प्यार में मिला धोखा: भाग 1

सौजन्य-  मनोहर कहानियां

सेजल मिश्रा और हिमांशु एकदूसरे को इतना चाहते थे कि उन्होंने शादी करने का फैसला कर लिया था. इसी दौरान सेजल की मां प्रतिभा उपाध्याय ने सेजल के ऐसे कान भरे कि वह प्रेमी की जान लेने को आमादा हो गई. इस के बाद जो हुआ…

21वर्षीय हिमांशु सिंह सुलतानपुर पीडब्लूडी कालोनी में अपनी मां प्रतिमा सिंह और बड़े भाई शिवेंद्र के साथ रहता था. 3 दिसंबर, 2020 की शाम साढ़े 6 बजे किसी का फोन आया तो वह घर से निकल गया. देर रात तक जब वह नहीं लौटा तो शिवेंद्र ने उस का फोन लगाया, लेकिन उस का फोन स्विच्ड औफ मिला. हर बार फोन बंद ही मिला तो वह परेशान हो गया. मां प्रतिमा सिंह भी चिंतित हो गईं कि पता नहीं वह कहां है जो उस का फोन भी नहीं लग रहा.

अगले दिन भी हिमांशु की तलाश की गई, लेकिन उस का कुछ पता न चला. मोबाइल भी लगातार बंद आ रहा था. जब कुछ पता न चला तो 5 दिसंबर को शिवेंद्र अपने मामा विवेक सिंह के साथ शहर कोतवाली पहुंचा.

कोतवाली में मौजूद इंसपेक्टर भूपेंद्र सिंह को उन्होंने हिमांशु के लापता होने की बात बताई. पूरी  बात जानने के बाद इंसपेक्टर सिंह ने हिमांशु की गुमशुदगी दर्ज कर ली. इस के बाद पुलिस अपने स्तर से हिमांशु को खोजने लगी. 8 दिसंबर को इंसपेक्टर भूपेंद्र सिंह को जानकारी मिली कि बाराबंकी के लोनी कटरा थाना पुलिस ने 4 दिसंबर को अखैयापुर गांव के पास नाले से एक युवक की नग्न लाश बरामद की थी. जिस की शिनाख्त नहीं हो पाई थी.

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इंसपेक्टर सिंह ने कटरा थाने से लाश के फोटो मंगवा कर हिमांशु के भाई व मामा को दिखाए तो उन्होंने लाश की शिनाख्त हिमांशु के रूप में कर दी.

इंसपेक्टर भूपेंद्र सिंह ने हिमांशु के भाई शिवेंद्र से पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि हिमांशु की किसी से दुश्मनी नहीं थी, लेकिन उस के प्रेम संबंध 18 वर्षीय सेजल मिश्रा नाम की युवती से थे.

वह डा. प्रदीप मिश्रा और प्रतिभा उपाध्याय की बेटी है और शास्त्रीनगर मोहल्ले में रहती है. प्रतिभा का तलाक हो चुका है. इसलिए वह पति से अलग रह रही है.

इस से हिमांशु की हत्या का शक सेजल के परिजनों पर गया. लिहाजा पुलिस ने प्रतिभा के घर के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी. इस से पता चला कि डा. प्रदीप घटना के दिन शाम 6 बजे से ले कर रात साढे़ 8 बजे तक प्रतिभा के घर पर थे.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी उसी समय के बीच हत्या किए जाने की पुष्टि हुई थी. हिमांशु के नंबर की काल डिटेल्स और लोकेशन की जांच की गई तो शक और पुख्ता हो गया. हिमांशु की आखिरी लोकेशन प्रतिभा के घर की थी. असरोगा टोल प्लाजा पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज में घटना की रात 12:05 बजे महाराष्ट्र नंबर की एक स्कोडा कार जाते हुए दिखी.

पुलिस ने हिमांशु के दोस्तों से पूछताछ की तो पता चला कि हिमांशु अपने एक दोस्त के साथ घटना की शाम प्रतिभा के घर गया था. हिमांशु दोस्त को बाहर छोड़ कर अंदर चला गया था. हिमांशु काफी समय तक वापस नहीं लौटा तो दोस्त उस के मोबाइल पर मैसेज भेज कर वापस आ गया. हिमांशु 6:40 बजे प्रतिभा के घर में घुसा था. 8:22 बजे वह प्रतिभा के घर से निकलते देखा गया.

हिमांशु के परिजनों ने भी उस के हिमांशु के आने की पुष्टि कर दी. अब यह बात समझ नहीं आ रही थी कि जब हिमांशु प्रतिभा के घर से निकल आया तो गया कहां. लेकिन शक की गुंजाइश अभी थी कि फोटो में निकलते समय हिमांशु का चेहरा नहीं दिख रहा था. हिमांशु के साथ  गए दोस्त और अन्य दोस्तों को युवक का फोटो दिखाया गया तो उन्होंने फोटो में दिख रहे युवक की पहचान हिमांशु के रूप में नहीं की.

वह युवक कपड़े जरूर हिमांशु के पहने था, लेकिन चालढाल उस की अलग थी. इस का मतलब यह था कि किसी और को हिमांशु के कपड़े पहना कर गुमराह करने के लिए घर से निकाला गया था. तमाम सुबूत प्रदीप मिश्रा और उन की तलाकशुदा पत्नी प्रतिभा की ओर इशारा कर रहे थे.

इंसपेक्टर भूपेंद्र सिंह ने 14 दिसंबर को डा. प्रदीप मिश्रा को हिरासत में ले कर पूछताछ की तो थोड़ी सख्ती में ही वह टूट गए और उन्होंने घटना के पीछे की पूरी कहानी बयां कर दी.

हिमांशु की हत्या करने में प्रदीप के अलावा प्रतिभा, उस की बेटी सेजल और उन का नौकर सद्दाम शामिल थे. हत्या के लिए बाकायदा एक प्रौपर्टी डीलर गुफरान अख्तर के जरिए 50 हजार रुपए की सुपारी दी गई थी. गुफरान ने अपने हिस्ट्रीशीटर दोस्त वाहिद खान को हत्या के लिए तैयार किया था. वाहिद ने सब के सामने घटना को अंजाम दिया था.

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पूछताछ के बाद इंसपेक्टर भूपेंद्र सिंह ने शिवेंद्र सिंह की तरफ से प्रदीप मिश्रा, प्रतिभा उपाध्याय, सेजल मिश्रा, गुफरान अख्तर, वाहिद खान और सद्दाम के खिलाफ भादंवि की धारा 364/302/201/34/120बी के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

आरोपियों से पूछताछ के बाद हिमांशु की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह अवैध संबंधों की बुनियाद पर रचीबसी निकली—

उत्तर प्रदेश के जिला सुलतानपुर की शहर कोतवाली के शास्त्रीनगर मोहल्ले में रहती थी प्रतिभा उपाध्याय. प्रतिभा का विवाह 19 साल पहले बडि़यावीर में रहने वाले प्रदीप मिश्रा से हुआ था. प्रदीप मिश्रा होम्योपैथी के डाक्टर थे. विवाह के साल भर बाद ही प्रतिभा ने एक खूबसूरत बेटी सेजल को जन्म दिया.

समय अपनी गति से आगे बढ़ता गया. सन 2007 में प्रतिभा ने प्रदीप से किसी बात से खफा हो कर तलाक ले लिया और बेटी सेजल के साथ शास्त्रीनगर मोहल्ले में रहने लगी. प्रतिभा ब्याज पर पैसे देने का काम करती थी. इस पर उसे अच्छी कमाई होती थी.

अगले भाग में पढ़ें- हिमांशु से मुलाकात के बाद सेजल खोईखोई सी रहने लगी थी

प्यार में मिला धोखा: भाग 2

सौजन्य-  मनोहर कहानियां

मांबेटी का रहनसहन काफी अच्छा था. प्रतिभा हाई सोसायटी की महिलाओं की तरह ही जींस टीशर्ट पहनती थी, हाथ में महंगा मोबाइल होता था. रहनसहन और काम के चलते प्रतिभा का हर तरह के लोगों से संपर्क रहता था. वह किसी के दबाव में नहीं आती थी.

समय के साथ सेजल जवान हो गई. उस ने इंटर तक पढ़ाई कर ली थी और आगे पढ़ने की तैयारी कर रही थी. गोरे रंग की सेजल बेहद खूबसूरत थी. गलीमोहल्ले का हर युवक उस से नजदीकी बढ़ाने को बेकरार रहता था.

पिता के बिना मां के साथ रहते हुए सेजल भी काफी खुले मिजाज की हो गई थी. मां के तौरतरीके और रंगढंग देख कर वह भी उसी रंग में ढल गई थी. उस के जो मन में आता, करती. वह अपने सपनों के राजकुमार के इंतजार में पलकें बिछाए बैठी थी.

हिमांशु सिंह बाराबंकी के गांव जंगरा बसावनपुर का रहने वाला था. उस का एक बड़ा भाई था शिवेंद्र. हिमांशु के पिता का नाम प्रदीप सिंह और मां का नाम प्रतिभा सिंह था. प्रदीप खेतीकिसानी का काम करते थे. लेकिन किसी वजह से उन की मानसिक स्थिति ठीक नहीं रही.

भाई बना सहारा

पति की मानसिक स्थिति ठीक न होने पर प्रतिभा सिंह अपने दोनों बेटों को साथ ले कर सुलतानपुर अपने भाई विवेक सिंह के पास आ गई. विवेक सिंह सरकारी नौकरी करते थे और गोलाघाट क्षेत्र में रहते थे. उन्होंने अपनी बहन और भांजों को सहारा दिया. उन की परवरिश में मदद की.

शिवेंद्र ने मुरादाबाद स्थित एक इंस्टीट्यूट से सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया था. वह काफी स्मार्ट था. खूबसूरत युवतियों में उस का काफी लगाव था. जब हिमांशु और उस का भाई शिवेंद्र अपने दम पर कुछ करने के काबिल हुए तो विवेक सिंह ने उन्हें पीडब्लूडी कालोनी में एक मकान रहने के लिए दिला दिया. उन का सारा खर्चा विवेक सिंह ही उठा रहे थे.

हिमांशु की सेजल से मुलाकात मार्केट में शौपिंग करते समय हुई थी. पहली ही नजर में सेजल उसे दिल दे बैठी. उधर हिमांशु भी उसे देखते ही उस पर फिदा हो गया था. उस पहली मुलाकात में दोनों के बीच कोई संवाद शुरू नहीं हो सका. मगर सेजल मार्केट से घर लौट कर भी हिमांशु को भुला नहीं पाई. उस रात वह हिमांशु के बारे में ही सोचती रही.

Crime- ब्लैक मेलिंग का फल!

हिमांशु से हुई उस पहली मुलाकात के बाद सेजल खोईखोई सी रहने लगी थी. अब उसे बेसब्री से इंतजार था हिमांशु से अपनी मुलाकात होने का, ताकि वह अपना हाले दिल बयां कर सके.

पहली मुलाकात के 2 हफ्ते बाद एक दिन उसी मार्केट में उसे हिमांशु दिखाई दे गया. हिमांशु को देखते ही उस के दिल के तार झनझना उठे, चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई.

अब तक हिमांशु की निगाह भी उस पर पड़ चुकी थी. वह धड़कते दिल से बस सेजल को ही घूरे जा रहा था. कुछ पलों तक यह घूरने का सिलसिला चलता रहा. फिर हिमांशु सेजल के पास आया और बेहद मीठे लहजे में झिझकते हुए बोला, ‘‘माफ कीजिए, क्या मैं आप से कुछ बातें कर सकता हूं?’’

‘‘जी हां कीजिए, क्या बात करना चाहते हैं?’’

‘‘सामने रेस्टोरेंट में चल कर एकएक कप चाय पीते हैं, वहीं बातें भी हो जाएंगी.’’

‘‘अच्छा आइडिया है, चलिए.’’ सेजल ने उतावले मन से कहा.

दोनों कुछ कदमों की दूरी पर स्थित रेस्टोरेंट में दाखिल हो गए.

उस दिन दोनों ने एकदूसरे के बारे में बहुत कुछ जान लिया. दोस्ती हुई तो फोन पर बात करने का सिलसिला शुरू हो गया. सेजल के मोबाइल पर हिमांशु के फोन काल्स आने लगे. दोनों कईकई घंटे बात करते, मगर फिर भी दिल नहीं भरता. अब हिमांशु प्रतिभा की गैरमौजूदगी में सेजल के घर भी आनेजाने लगा.

एक दिन जब हिमांशु सेजल के घर आया तो हिमांशु ने सेजल को बांहों में भर कर उस के होंठोें को चूम लिया, ‘‘अब ये दूरियां बरदाश्त नहीं होतीं, तुम से एक पल भी अलग होने को दिल नहीं करता.’’

‘‘तो फिर मुझ से शादी क्यों नहीं कर लेते हो?’’

‘‘वह तो मैं करूंगा ही यार, मगर शादी के बाद रोमांस का मजा किरकिरा हो जाता है. इसलिए सोचता हूं कि पहले जी भर कर सैरसपाटा और मस्ती कर ली जाए. फिर शादी की बात सोचेंगे.’’

प्रेमी हिमांशु के मनोभावों को जान कर सेजल प्रसन्नता से खिल उठी. उसे हिमांशु दुनिया का सब से अच्छा इंसान नजर आने लगा. कुछ दिनों बाद सेजल का जन्मदिन था. उस दिन सेजल ने हिमांशु के सिवाय किसी को इनवाइट नहीं किया. यहां तक कि अपनी खास सहेली हिमानी को भी नहीं बुलाया.

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मिल गए हिमांशु और सेजल

तन्हा कमरे में दो जवां दिल, कोई रोकनेटोकने वाला भी नहीं था, ऐसे में मन भटकते कितनी देर लगती है. फिर हिमांशु ने सेजल को बांहों में भींच कर प्यार करना शुरू कर दिया. लेकिन सेजल ने किसी तरह खुद पर काबू किया और हिमांशु को भी बेकाबू होने से रोक लिया.

दोनों ही सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहते थे. सोशल मीडिया ऐप ‘इंस्टाग्राम’ पर सेजल ने हिमांशु के साथ अपनी रिलेशनशिप को ले कर एक पोस्ट डाली, जिस में वह हिमांशु के साथ एक सेल्फी में  दिख रही थी. उस में उस ने हिमांशु से अपने प्यार का इजहार किया था और अपने रिलेशनशिप के 2 साल 7 महीने पूरे होने पर खुशी जताई थी.

ये पोस्ट सेजल के मित्रों के अलावा और अन्य लोगों ने भी देखी. यह बात सेजल की मां प्रतिभा तक भी पहुंच गई. प्रतिभा ने सेजल से बात की और उसे गुस्से में डांटा भी.

लेकिन कुछ सोचने के बाद प्रतिभा ने सेजल को समझाया, ‘‘मानती हूं कि तू उम्र के उस दौर से गुजर रही है, जहां किसी भी लड़के के प्रति आकर्षित हो सकती है. लेकिन एक सच यह भी है कि उम्र के इस दौर में दिमाग से ज्यादा दिल से काम लिया जाता है. जैसे तूने सिर्फ अपने दिल की सुनी, दिमाग की नहीं. दिमाग की सुनती तो तू उसे अपने लिए नहीं चुनती.’’

‘‘मौम, हिमांशु में क्या खराबी है. गुड लुकिंग है, हैंडसम है, मेरी उस की जोड़ी बहुत अच्छी लगती है.’’ सेजल ने खुश होते हुए अपने दिल की बात बता दी.

‘‘बेटा, केवल खूबसूरती और प्यार से जिंदगी में काम नहीं चलता. अच्छी तरह से जिंदगी गुजारने के लिए आमदनी का अच्छा जरिया होना चाहिए, जो उस के पास नहीं है. न नौकरी न कामधंधा और न ही रहने का खुद का कोई ठिकाना. ऐसे में वह तुझे क्या खुश रखेगा.’’

अगले भाग में पढ़ें- वाहिद ने पीछे से लोहे के पाइप से हिमांशु के सिर पर प्रहार किया

Crime Story: प्यार में मिला धोखा

प्यार में मिला धोखा: भाग 3

सौजन्य-  मनोहर कहानियां

पहले नहीं सोचा था

मां की बात सुन कर सेजल सोच में पड़ गई. वह सोचने लगी कि उस की मां कह तो सही रही हैं. प्यार के रंग और जोश में वह यह कुछ सोच ही न सकी कि आगे कैसे उस के साथ जिंदगी कटेगी. ऐसे में उस ने हिमांशु से दूर होने का फैसला कर लिया.

अब वह हिमांशु से कटने लगी. जबकि हिमांशु उस से शादी करने का दबाव बना रहा था. सेजल उस से दूर होने की कोशिश कर रही थी, लेकिन हिमांशु उस का पीछा छोड़ने को ही तैयार न था. तब प्रतिभा एक दिन हिमांशु के घर पहुंच गई. उस ने हिमांशु की मां को न सिर्फ अपने बेटे को समझाने की हिदायत दी बल्कि काफी भलाबुरा भी कहा.

इसी दिन हिमांशु के घर वालों को उस के प्रेम संबंधों का पता चला. मां ने हिमांशु को समझाया भी कि वह सेजल से दूर रहे. लेकिन प्यार में आकंठ डूबा हिमांशु सेजल से दूर होने की सपने में भी नहीं सोच सकता था.

हिमांशु के पीछा न छोड़ने पर मांबेटी उस से छुटकारा पाने का उपाय सोचने को मजबूर हो गईं. डा. प्रदीप ने प्रतिभा से तलाक के बाद दूसरी शादी कर ली थी, एक बेटा भी था. लेकिन इधर कुछ समय से वह फिर से प्रतिभा से मिलने उस के घर आने लगा था. रोजाना एकडेढ़ घंटे वह प्रतिभा के घर रुकता था. प्रदीप को भी हिमांशु के बारे में पता था, वह भी उस से काफी गुस्सा था.

प्रदीप और प्रतिभा का एक प्रौपर्टी डीलर काफी करीबी था. उस का नाम गुफरान अख्तर था और शहर कोतवाली के चौक मोहल्ले में रहता था. दोनों ने गुफरान से बात की और उस से हिमांशु को ठिकाने लगाने में मदद मांगी. गुफरान का एक साथी था वाहिद खान. वाहिद चांदा थाने के अंतर्गत कोथरा गांव में रहता था. वह चांदा थाने का हिस्ट्रीशीटर था.

गुफरान ने वाहिद से बात की और उसे प्रदीप और प्रतिभा से मिला कर पूरी डील फाइनल करा दी. हत्या की सुपारी की रकम 50 हजार रुपए तय हुई जो काम होने के बाद दी जानी थी. हिमांशु की हत्या करने का पूरा तानाबाना बुना गया. इस में प्रतिभा ने अपने नौकर सद्दाम को भी शामिल कर लिया.

3 दिसंबर, 2020 की शाम सेजल ने फोन कर के हिमांशु को अपने घर बुलाया कि उस के मम्मीपापा उस से बात करना चाहते हैं. हिमांशु अपने दोस्त के साथ प्रतिभा के घर पहुंचा. करीब पौने 7 बजे वह दोस्त को बाहर खड़ा कर के अंदर चला गया. वहां प्रदीप, प्रतिभा, सेजल, नौकर सद्दाम के साथ गुफरान और वाहिद मौजूद थे.

बातचीत शुरू हुई. बातचीत के दौरान ही वाहिद ने पीछे से लोहे के पाइप से हिमांशु के सिर पर प्रहार किया. प्रहार इतना तेज था कि हिमांशु के मुंह से चीख भी न निकल सकी. फिर ताबड़तोड़ सिर व शरीर पर कई प्रहार कर के वाहिद ने हिमांशु की हत्या कर दी. बाकी सभी उस की हत्या अपनी आंखों के सामने होते देखते रहे.

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हिमांशु को मारने के बाद उस के कपड़े उतार कर सद्दाम को पहनाए गए. हिमांशु की तरह ही वेशभूषा बना कर उस की ही तरह सद्दाम रात 8:22 बजे घर से निकला, जिस से लगे कि हिमांशु घर से निकला है.

सभी को पता था कि बाहर सीसीटीवी कैमरे लगे हैं. उन में हिमांशु की घर में आते हुए फोटो कैद हुई होगी. ऐसे में उन पर ही पुलिस का शक जाएगा. इस से बचने के लिए ही यह रास्ता अपनाया गया.

देर रात वाहिद ने अपनी स्कोडा कार में हिमांशु की नग्न लाश डाली. फिर गुफरान के साथ कार से बाराबंकी के लोनी कटरा थाना क्षेत्र के अखैयापुर गांव के पास एक नाले में हिमांशु की लाश फेंक दी और वापस आ गए.

वाहिद को मिल गई रकम

अगले दिन वाहिद को अपनी तय सुपारी की रकम भी मिल गई. लेकिन तमाम होशियारी के बाद भी उन सब का गुनाह कानून की नजर में आ ही गया. आवश्यक पूछताछ के बाद पुलिस ने डा. प्रदीप को न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

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19 दिसंबर को इंसपेक्टर भूपेंद्र सिंह ने गुफरान अख्तर और वाहिद खान को नगर कोतवाली के पयागीपुर चौराहे से उस समय गिरफ्तार कर लिया, जब दोनों स्कोडा कार से कहीं भागने की फिराक में थे. उन के पास से हत्या में प्रयुक्त लोहे का पाइप और स्कोडा कार बरामद हो गई.

उन दोनों ने हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. आवश्यक पूछताछ के बाद गुफरान और वाहिद को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक प्रतिभा, सेजल और नौकर सद्दाम पुलिस की पकड़ से दूर थे. पुलिस सरगर्मी से उन की तलाश कर रही थी. उन तीनों पर पुलिस ने ईंनाम भी घोषित कर दिया था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Crime News: उधार के पैसे और हत्या

अपने परिजनों के राजनीतिक रसूख के चलते कोई बिगड़ैल नवाब अगर पैसे उधार लेकर आंखें दिखाने लगे, पैसे देना ना चाहे, तो उसका परिणाम जतिन राय जैसा हो सकता है.

रायपुर के खमताराई थाना इलाके में जतिन राय अभी नाबालिग ही था. उम्र थी 20 वर्ष और पार्षद अंजनी विभार का भतीजा था. चाचा भी प्रदेश में सत्ता में धमक रखते हैं.

राजधानी रायपुर के थाना खम्हारडीह इलाके में एक सूटकेस से जतिन राय नाम के युवक की लाश मिली . पुलिस इस हत्याकांड को अंजाम देने वाले प्रदीप नायक, सुजीत तांडी और केवी दिवाकर को गिरफ्तार तो कर लिया मगर संपूर्ण घटनाक्रम को देखें तो जहां यह घटना एक बड़ा संदेश देती है कि अगर परिजन राजनीति में है, प्रभावशाली है तो बच्चे किस तरह “बिगड़े नवाब” बन सकते हैं. दूसरी तरफ पुलिस हत्या जैसे गंभीर अपराध पर भी कैसा लचीला रुख अपनाती है और अगर राजनीतिक प्रभाव ना हो मुख्यमंत्री तक पहुंच नहीं हो तो कुंभकर्णी नींद में सोती रहती है.

अपनी मौत का सामान लेकर आया जतिन!

आरोपियों ने जो घटनाक्रम पुलिस के समक्ष बयां किया है उसके अनुसार जतिन राय को कहा गया था कि अपने साथ एक बड़ा सुटकेश ट्रॉली बैग लेकर आना. क्योंकि हमें कहीं बाहर जाना है. जतिन ने अपनी मां से बैग मांगा, उन्होंने बैग देने से मना कर दिया.दूसरी तरफ आरोपी बार-बार उसे कॉल कर बुला रहे थे.
जतिन ने आखिरकार अपने पड़ोसी अभय से एक बड़ा सूटकेस लिया और प्रदीप से मिलने के लिए निकला.आरोपी प्रदीप के बताए स्थान पर पहुंचने के बाद थोड़ी देर में अपने 20 हजार रुपए लौटाने को लेकर दोनों के बीच विवाद शुरू हुआ. फिर प्रदीप ने अपने साथियों के साथ मिलकर जतिन की गला दबाकर हत्या कर दी. उसकी लाश को उसी सूटकेस में भर दिया जिसे लेकर वह पहुंचा था. वे आरोपी जतिन का स्कूटर लेकर चंडीनगर में सुनसान इलाके के कुएं में लाश भरे बैग को डाल कर आराम से अपने अपने घर चले गए.

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राजनीतिक रसूख!

9 फरवरी 2021को जतिन के लापता होने की शिकायत खमतराई थाने में परिवार ने दर्ज करवाई गई . मगर 5 दिनों तक पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी रही जहां परिजनों का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. थाने तक महापौर एजाज मेंबर और पर्व मंत्री सत्यनारायण शर्मा आ पहुंचे. मामला मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के दरबार तक पहुंचा और पुलिस को तत्परता से आरोपियों को खोजने का निर्देश मिला.और कहते हैं न, जब पुलिस अपने पर आ जाए तो आरोपी बच नहीं सकते. इस घटनाक्रम में भी यही हुआ सख्ती बरतने पर प्रदीप, उसका साथी सूरज और केवी दिवाकर पुलिस के समक्ष सच स्वीकार कर लिया.
दरअसल, करीब एक महीने पहले हत्या के आरोपी प्रदीप ने अपनी बाइक गिरवी रखी थी. इसके बदले में उसे 30 हजार रुपए मिले थे. इसमें से 20 हजार रुपए मांगने पर प्रदीप ने जतिन को दिए थे. और अब इन रुपयों को जतिन लौटा नहीं रहा था. जब भी प्रदीप पैसा मांगता तो जतिन बहाने बनाने लगता और ऐसा व्यवहार करता कि रुपए तो नहीं मिलेंगे जो करना है कर लेना. हालांकि जतिन के परिवार वालों का कहना है कि प्रदीप, जतिन से चिढ़ता था, इसलिए उसकी हत्या की और अब झूठ ही रुपयों की देनदारी की बातें कर रहा है.

“क्राइम पेट्रोल” देख बनाया प्लान

इस सनसनीखेज हत्याकांड के संदर्भ में पुलिस ने हमारे संवाददाता को बताया कि इस हत्याकांड के पीछे जहां पैसों की लेनदेन थी, रुपए नहीं मिलने से नाराज प्रदीप को “क्राइम पेट्रोल” का एक एपिसोड देखकर यह सुझा कि क्यों ना जतिन राय को कुछ इस तरह सजा दे दी जाए. पुलिस के समक्ष यह भी सच सामने आ गया है कि प्रदीप घटना से पहले जतिन को लगातार फोन कर रहा था, वो उसे बुला रहा था, जतिन जाने से इनकार कर चुका था. मगर वह बार-बार दोस्ती की दुहाई दे रहा था. जतिन जब प्रदीप के पास भनपुरी स्थित मकान में पहुंचा तो यहां दोस्तों ने उसका स्वागत किया और मिलकर शराब पार्टी की. प्रदीप ने जानबूझकर जतिन को ज्यादा शराब पिलाई. प्रदीप ने तीव्र आवाज में म्यूजिक चला रखा था ताकि किसी को कोई आभास ना मिले. इसके बाद हत्यारों ने मौका मिलते ही उसकी गला घोंट कर हत्या कर दी और जो सूटकेस जतिन लेकर आया था उसी में उसके शव को डालकर खम्हारडीह में फेंक दिया गया.
तीन दिन बाद कचरा बीनने वाले एक बच्चे की नजर कुएं में पड़े बैग और उसमें से निकले पैरों पर पड़ी थी. और मामला पुलिस तक पहुंचा. मगर पुलिस जांच में उदासीन रही जब जतिन राय के चाचा और परिजनों ने हंगामा किया तब जाकर पुलिस के उच्च अधिकारियों के कान में जूं रेंगी और मामले की जांच में में तेजी आई और अंततः मामले का खुलासा हुआ.

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Crime News: खूनी खेल और खिलाड़ी

हरियाणा के पहलवानों ने ओलिंपिक खेलों में मैडल जीत कर पूरी दुनिया में भारत का नाम रोशन किया है. पहलवानी से यहां के लोगों का इतना ज्यादा लगाव है कि जगहजगह देशी अखाड़े खुले हुए हैं. वहां के कोच या खलीफा या गुरुजी अपने शिष्यों को पहलवानी के दांवपेंच सिखाते हैं. पर कई बार ऐसे अखाड़ों में दबदबे का ऐसा घिनौना खेल खेला जाता है कि पूरा कुश्ती जगत शर्मसार हो जाता है.

हरियाणा के रोहतक में शुक्रवार, 12 फरवरी की शाम हुए एक हत्याकांड से पूरे राज्य में मानो हड़कंप मच गया. बताया जा रहा है कि एक कालेज के पास बने अखाड़े के संचालन को ले कर हुए झगड़े के चलते यह वारदात हुई और गोलीबारी की गई.

इस हत्याकांड में 5 लोगों की मौत हो गई और 2 घायल बताए गए. मरने वालों में 2 कोच और एक महिला पहलवान शामिल थी.

मरने वालों के नाम मनोज मलिक, उन की पत्नी साक्षी मलिक, प्रदीप मलिक उर्फ फौजी, सतीश दलाल और मथुरा, उत्तर प्रदेश की पूजा हैं. मनोज मलिक और साक्षी मलिक का एक 3 साल का बच्चा और पहलवान अमरजीत सिंह घायल हुए. मनोज मलिक और प्रदीप मलिक उर्फ फौजी नैशनल लैवल के खिलाड़ी रह चुके थे.

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मारे गए मनोज मलिक जाट कॉलेज में डीपीई थे और वे इस अखाड़े का भी संचालन करते थे. उन की हत्या करने का आरोप अखाड़े में ट्रेनर का काम करने वाले सुखविंदर पर लगा. बताया जा रहा है कि सुखविंदर् इस अखाड़े में हिस्सेदारी की मांग कर रहे था, जबकि मनोज मलिक इस के लिए तैयार नहीं थे.

इसी बात को ले कर मनोज मलिक और सुखविंदर के बीच झगड़ा हुआ और सुखविंदर ने कथिततौर पर मनोज समेत 5 लोगों की गोली मार कर हत्या कर दी. इस के बाद वह फरार हो गया लेकिन अगले ही उसे गिरफ्तार भी कर लिया गया. उस पर एक लाख रुपए का इनाम भी रखा गया था.

इस गोलीकांड के बाद जो बातें सामने आ रही हैं, उन के मुताबिक सुखविंदर के खिलाफ अखाड़े में कुश्ती करने वाली कई महिला पहलवानों के परिवार वालों ने मनोज मलिक से शिकायत की थी. इस के चलते मनोज मलिक ने सुखविंदर को अखाड़े से हटा दिया था.

इस के अलावा अखाड़े में आने वाले कुछ पहलवानों का कहना है कि सुखविंदर का कहना था कि मनोज मलिक और उन की साक्षी मलिक पत्नी को नौकरी मिल चुकी है. ऐसे में अगर अखाड़े का संचालन उसे मिल जाता है तो उस की गुजरबसर आसान हो जाएगी.

इसी तनातनी को शांत करने के लिए शु्क्रवार, 12 फरवरी, 2021 को समझौते के लिए सुखविंदर ने मनोज मलिक और दूसरे लोगों को अखाड़े के पास बने कमरे में बुलाया था. आरोप है कि वहीं पर उस ने पिस्तौल से सब को गोली मार दी. इस से कमरे में मौजूद 5 लोगों की मौत हो गई और 2 लोग घायल हो गए. आरोपी सुखविंदर कमरे को ताला लगा कर भाग गया.

नीचे अखाड़े में प्रैक्टिस कर रहे पहलवानों को जब गोलियां चलने की आवाज आई तो वे ऊपर पहुंचे, लेकिन वहां ताला लगा हुआ था. कमरे से मनोज मलिक और साक्षी मलिक के छोटे बच्चे के रोने की आवाज आ रही थी, जिस के बाद वे पहलवान ताला तोड़ कर अंदर घुसे. वहां खून से सनी 5 लाशें पड़ी हुई थीं.

इस के बाद वहां मौजूद लोगों ने पुलिस को सूचना दी और घायलों को अस्पताल पहुंचाया. आरोपी ने सभी को सिर और गले में गोली मारी थी.

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गोली लगने से घायल हुआ मनोज मलिक का 3 साल का बच्चा इलाज के दौरान कोमा में चला गया, जबकि घायल अमरजीत सिंह को बेहतर इलाज के लिए गुरुग्राम के बड़े अस्पताल रैफर किया गया.

आप को फिल्म ‘कमांडो-3’ तो याद ही होगी. उस फिल्म की शुरुआत में ही अखाड़े का एक सीन था, जिस में पहलवानी करने वाले लड़के स्कूल जाती लड़कियों से छेड़छाड़ करते हैं. उन लोगों से पूरा महल्ला डरता है. इस सीन में स्कूली लड़की की स्कर्ट को एक पहलवान खींचता है, जिस के बाद हीरो विद्युत जामवाल उन पहलवानों से भिड़ कर लड़की की बेइज्जती का बदला लेता है.

इस सीन को ले कर सोशल मीडिया पर काफी विवाद हुआ था और कई नामी पहलवानों ने इस सीन को अखाड़े और पहलवानी करने वालों की बेइज्जती बताया था. उन की दलील थी कि पहलवान अखाड़े में कोई जुर्म नहीं कर सकते हैं, पर रोहतक वाले मामले ने उन की इस दलील पर पानी फेर दिया.

और कांड भी हुए हैं

साल 2019 के नवंबर महीने में हरियाणा की रहने वाली नैशनल लैवल की ताइक्वांडो खिलाड़ी सरिता जाट को कुश्ती के एक खिलाड़ी सोमवीर जाट ने गोली मार दी थी.

सोमवीर जाट सरिता से प्यार करता था और उस से शादी करना चाहता था, पर सरिता के मना करने पर वह बहुत ज्यादा गुस्सा हो गया था और उस ने सरिता की मां के सामने ही उस की छाती में गोली ठोंक दी थी.

इस वारदात के तकरीबन एक साल बाद आरोपी सोमवीर जाट को पुलिस ने राजस्थान के दौसा इलाके से गिरफ्तार किया था.

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साल 2015 में रोहतक के कबड्डी खिलाड़ी रह चुके सन्नी देव उर्फ कुक्की के सिर भी एक खून का इलजाम लगा था. कुक्की नैशनल लैवल का कबड्डी खिलाड़ी था. विरोधी पक्ष के हत्थे जब कुक्की नहीं लगा तो उस ने कुक्की के छोटे भाई और नैशनल लैवल के कबड्डी खिलाड़ी सुखविंदर नरवाल को गोलियों से भून डाला था.

हरियाणा के लिए क्रिकेट खेल चुका सुरजीत रंगदारी के मामले में पुलिस के हत्थे चढ़ा था. वह रंगदारी से पैसा इकट्ठा कर के फिर से क्रिकेट खेलना चाहता था, लेकिन पैसे कमाने का उस का यह तरीका उसे जुर्म की राह पर ले गया.

दिल्ली का जितेंद्र उर्फ गोगी वौलीबाल का नैशनल लैवल का खिलाड़ी था. उस का उठनाबैठना बदमाशों के साथ हो गया और उस ने खेल छोड़ कर दिल्ली, सोनीपत, पानीपत व दूसरी कई जगहों पर वारदात करनी शुरू कर दीं.

ऐसे अपराधी खिलाड़ियों की फेहरिस्त बड़ी लंबी है. बहुत बार तो खेल में मनमुताबिक कामयाबी न मिलने पर बहुत से खिलाड़ी अपराध की दुनिया में कदम रख देते हैं. वे सेहतमंद होते हैं और बदन से ताकतवर भी, खासकर कुश्ती और कबड्डी से जुड़े लोग, जो अपने दबदबे से लोगों में डर पैदा करने में कामयाब हो जाते हैं.

इस सिलसिले में रोहतक के एक वकील नीरज वशिष्ठ का कहना है, ‘सभ्य समाज में ऐसे अपराध की कोई जगह नहीं है और जब अपराध खेल जगत में अपने दबदबे के लिए दस्तक देने लगे तो हमें जरूर सोचना चाहिए. जिस खेलकूद से हम अपने बच्चों का भविष्य जोड़ कर देखते हैं, उस में अगर ‘मैं ही सबकुछ’ की जिद हावी हो जाती है तो उस से न केवल खेल, बल्कि उस में शामिल सभी का नुकसान ही होता है.

‘हम सब को इस आपराधिक सोच को रोकना होगा, नहीं तो खेल जगत में जो नाम हमारे देशप्रदेश ने हासिल किया है उसे धूल में मिलते देर नहीं लगेगी.’

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‘अर्जुन अवार्ड’ विजेता पहलवान और कोच कृपाशंकर बिश्नोई ने इस हत्याकांड पर दुख और रोष जाहिर किया. मारे गए पहलवान प्रदीप मलिक उन्हीं की तरह रेलवे से जुड़े थे और रतलाम मंडल में अपनी सेवाएं दे रहे थे.

कृपाशंकर बिश्नोई के मुताबिक, ‘यह खेल दुनिया खासकर कुश्ती जगत के लिए बड़ा नुकसान है, जिस की भरपाई नहीं हो पाएगी.’

जब से देश में कुश्ती दोबारा मशहूर हुई है तब से अखाड़ों में रौनक बढ़ने लगी है, पर बहुत से अखाड़े नामचीन पहलवान बनाने के चक्कर में खुल तो गए हैं, लेकिन मानकों पर खरे नहीं उतर पाते हैं.

एक खबर के मुताबिक रोहतक जिले में ही 40 अखाड़ों में से 10 अखाड़े मानकों पर खरे उतरे हैं. बाकी का तो रजिस्ट्रेशन तक नहीं हुआ है. मतलब ये अब कमाई का जरीया बन गए हैं. इसी कमाई के चक्कर में यह हत्याकांड हुआ है.

Crime Story- शैतानी मंसूबा: भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

उन दिनों मेरी पोस्टिंग नौशहरा में थी. मेरी रिहाइश भी थाने के करीब ही थी. एसआई मशकूर हुसैन ने खबर सुनाई,

‘नौशहरा गांव में एक कत्ल की वारदात हो गई है. मकतूल का बाप और 2 आदमी बाहर बैठे आप का इंतजार कर रहे हैं.’

मैं उन लोगों के साथ फौरन मौकाएवारदात पर जाने के लिए रवाना हो गया. मकतूल का नाम आफताब था, वह फय्याज अली का बड़ा बेटा था. उस से छोटा नौशाद उस की उम्र 20 साल थी. आफताब उस से 2 साल बड़ा था. उस की शादी एक महीने पहले ही हुई थी.

मकतूल का बाप फय्याज अली छोटा जमींदार था. उस के पास 10 एकड़ जमीन थी, जिस पर बापबेटे काश्तकारी करते थे. मैं खेत में पहुंचा, जहां पर 2 छोटे कमरे बने हुए थे. बरामदे में कटे हुए गेहूं का ढेर लगा था. फय्याज के साथ मैं कमरे के अंदर पहुंच गया. मकतूल की लाश कमरे में पड़ी चारपाई के पायंते पर पड़ी थी.

मैं ने गौर से लाश की जांच की. वह औंधे मुंह पड़ा था. मुंह के करीब खून का छोटा सा तालाब बन गया था. खोपड़ी पर किसी वजनी चीज से वार किया गया था. खोपड़ी का पिछला हिस्सा काफी जख्मी था. खोपड़ी चटक गई थी. यह जख्म ही मौत की वजह था. वार बड़ी बेदर्दी से किया गया था, जिस से मारने वाले की नफरत का अंदाजा होता था.

मेरे अंदाज के मुताबिक उसे सुबह 5-6 बजे मारा गया था. मैं ने कमरे की अच्छे से तलाशी ली. आला ए कत्ल नहीं मिला. मैं ने दूसरे कमरे की भी तलाशी ली, जहां खेती के औजार और बीज पड़े थे. काररवाई पूरी होने पर लाश मशकूर हुसैन के साथ पोस्टमार्टम के लिए सिटी अस्पताल भिजवा दी.

कमरे के बाहर अब तक काफी लोग जमा हो चुके थे. मैं ने फय्याज को तसल्ली दी. उसे यकीन दिलाया कि कातिल जल्दी ही पकड़ा जाएगा. फिर उस से पूछा, ‘‘क्या आफताब की किसी से लड़ाई थी?’’

उस ने रोते हुए जवाब दिया, ‘‘उस का कोई दुश्मन नहीं था. वह तो सब से मिलजुल कर रहता था.’’

‘‘पर फय्याज अली, लाश की हालत देख कर लगता है कि किसी ने दुश्मनी निकाली है. क्या किसी पर शक है? उस की लाश कितने बजे मिली थी?’’

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‘‘हुजूर, वह सुबह 5 बजे अपने भाई के साथ खेतों पर निकल जाता था. लाश 8 बजे मिली. मैं देर से उन का नाश्ता ले कर जाता था.’’

‘‘क्या तुम आज भी 8 बजे नाश्ता ले कर निकले थे?’’

‘‘जी सरकार. आज मैं अकेले आफताब का नाश्ता लाया था, क्योंकि नौशाद बीमार घर पर पड़ा है.’’

काफी देर तक मैं अंदरबाहर की तलाशी लेता रहा. फिर फय्याज अली से पूछा, ‘‘जब तुम कमरे पर पहुंचे तो तुम ने क्या देखा?’’

‘‘जब मैं खेतों पर पहुंचा, मैं ने उसे खेत में नहीं देखा तो परेशान हो गया. वह सवेरे घर से आ कर डेरे से खेतों के कपड़े पहन कर काम शुरू करता था. शाम को काम खत्म कर के घर के कपड़े बदलता था. जब मैं कमरे पर पहुंचा तो वह घर के कपड़ों में ही औंधा पड़ा था. उसे कपड़े बदलने का मौका भी नहीं मिला था. शायद कातिल उस के साथ ही यहां पहुंचा हो.’’

‘‘मेरे खयाल में कातिल ने बेखबरी में मकतूल पर पीछे से वार किया है. उसे कपड़े बदलने का मौका तक नहीं मिल सका. मुझे शक है कि कातिल पहले से ही कमरे में था.’’

‘‘लेकिन दोनों कमरों के दरवाजे हम ताला लगा कर बंद करते हैं. कोई बंदा अंदर कैसे जा सकता है?’’

अचानक मेरी नजर कमरे की खिड़की पर पड़ी, जिस से आसानी से एक आदमी कमरे के अंदर आ सकता था. मैं ने खिड़की की तरफ इशारा करते हुए कहा, ‘‘देखो, वह खिड़की खुली हुई है. कुंडी नहीं लगी है.’’

फय्याज हैरानी से बोला, ‘‘हैरत है जनाब, हम रोज शाम को खिड़की दरवाजे याद से बंद करते हैं. कल शायद भूल हो गई और कातिल को अंदर आने का मौका मिल गया.’’

उस के बाद मैं फय्याज के साथ कमरे बंद करवा कर उस के घर पहुंचा, जहां उस की बीवी सुलताना और बहू खालिदा थीं. घर का माहौल बेहद बोझिल था. आसपड़ोस की औरतें दोनों को तसल्ली दे रही थीं. मुझे नौशाद कहीं दिखाई नहीं दिया. मैं ने उस के बारे में पूछा तो पता लगा कि वह रिश्तेदारी में मौत की खबर देने गया है. औरतें कुछ बताने की हालत में नहीं थीं.

मैं बाहर आ गया. सामने किराने की एक दुकान थी. मैं वहां पहुंच गया. मैं ने दुकानदार अली से कहा, ‘‘तुम्हारी दुकान के सामने ही रहने वाले फय्याज का कत्ल हो गया है. तुम्हारा इस बारे में क्या खयाल है?’’

उस ने बड़ी ही उदासी से कहा, ‘‘बहुत अफसोसजनक घटना है. आफताब बहुत अच्छा लड़का और कबड्डी का अच्छा खिलाड़ी था.’’

‘‘चाचा, मुझे लगता है कि यह कत्ल दुश्मनी और नफरत का नतीजा है. क्या तुम्हें कुछ अंदाजा है, कौन यह काम कर सकता है?’’

कुछ देर वह सोचता रहा फिर बोला, ‘‘सरकार, ऐसे तो मुझे कुछ अंदाजा नहीं है. अभी तो बेचारे की शादी हुई थी. बड़ा ही सीधा बंदा था और बहुत ही धीमे मिजाज का. पर मुझे याद पड़ता है कुछ अरसे पहले कबड्डी के एक मैच में विरोधी टीम के एक बंदे ने बेइमानी की थी. उस का नाम फैजी था. दोनों की खूब कहासुनी हुई थी. फैजी का एक साथी जावेद भी बहुत बढ़चढ़ कर बोल रहा था. वह तो अच्छा हुआ देखने वालों ने समझाबुझा कर मामला संभाल लिया. मैं भी वहीं था. फैजी और जावेद बड़े लड़ाकू किस्म के लड़के हैं. उस दिन आफताब खेल से बाहर निकल गया. बात खत्म हो गई.’’

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‘‘यह कितने दिन पहले की बात है?’’

चाचा ने सोच कर कहा, ‘‘उस की शादी के बाद ये मैच हुआ था. पर थानेदार साहब, यह इतनी बड़ी बात नहीं है कि कोई किसी का कत्ल कर दे.’’

मैं ने चाचा को बहुत कुरेदा पर कोई खास जानकारी न हो सकी. थाने पहुंच कर मैं ने जावेद को बुलवाया तो पता चला कि वह किसी काम से गल्ला मंडी गया है. सिपाही उस की मां से कह कर आया था कि आने पर उसे थाने भेज दे.

शाम को मशकूर हुसैन शहर से वापस आ गया. लाश दूसरे दिन मिलने वाली थी. मौत की वजह खोपड़ी पर लगी चोट थी. मैं ने मशकूर हुसैन से पूछा, ‘‘तुम जावेद के बारे में क्या जानते हो?’’

उस ने कहा, ‘‘जावेद कबड्डी का अच्छा खिलाड़ी है. एक मैच में उस की आफताब से लड़ाई भी हुई थी, पर यह इतनी अहम बात नहीं है कि बात कत्ल तक पहुंच जाए.’’

‘‘जावेद के आने पर असली बात पता चलेगी.’’

‘‘एक बात और है सर, मेरी मालूमात के मुताबिक जावेद की बहन फरीदा की शादी आफताब से होने वाली थी. एक साल मंगनी रही फिर आफताब के घर वालों ने यह कह कर मंगनी तोड़ दी कि लड़की का चालचलन ठीक नहीं है. और फिर उस की शादी भाई की बेटी खालिदा से कर दी.’’

मैं ने कहा, ‘‘मंगनी टूटने का भी दुख और अपमान ऐसे काम को उकसा सकता है.’’

अगले दिन फिर मैं फय्याज अली के घर गया. जावेद अभी तक नहीं आया था. मैं उस के बारे में सोच रहा था. फय्याज अली के घर का माहौल वैसा ही शोकग्रस्त था. मैं मकतूल की बेवा खालिदा से मिला. वह सदमे में थी. रोरो कर उस की आंखें सुर्ख हो रही थीं.

अच्छी खूबसूरत लड़की बेहाल हो रही थी. उस से कुछ पूछना बेकार था. मैं ने फय्याज से पूछा, ‘‘क्या कबड्डी के एक मैच में जावेद और आफताब की लड़ाई हुई थी?’’

उस ने बेबसी से कहा, ‘‘हां, मैं ने भी सुना था कि कुछ बेइमानी होने पर दोनों के बीच में कहासुनी हुई थी.’’

मैं ने आफताब की मां से पूछा, ‘‘आप के बेटे की मंगनी पहले जावेद की बहन फरीदा से हुई थी. फिर मंगनी क्यों तोड़ दी? हो सकता है, इस वाकये की वजह से जावेद आफताब से नफरत करने लगा हो.’’

‘‘मंगनी तो टूटी थी क्योंकि फरीदा का चालचलन अच्छा नहीं था. पर थानेदार साहब, मुझे जावेद से ज्यादा फैजी पर शक है क्योंकि कबड्डी के मैदान के साथसाथ आफताब ने उसे जिंदगी के मैदान में भी हरा दिया था. क्योंकि फैजी खालिदा से शादी करना चाहता था. वैसे हमारी फैजी से कोई सीधी रिश्तेदारी नहीं है, पर खालिदा की मां और फैजी की मां आपस में बहनें हैं.

अगले भाग में पढ़ें- बदला लेने के लिए उसने आफताब को मार दिया

Crime Story- शैतानी मंसूबा: भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

‘‘खालिदा फैजी की खालाजाद बहन है. फैजी की मां की बड़ी आरजू थी कि वह खालिदा को अपनी बहू बनाए पर खालिदा की मां ने साफ इनकार कर दिया. इस पर बहुत लड़ाई भी हुई थी. लंबी नाराजगी चल रही है और खालिदा की शादी मेरे बेटे आफताब से हो गई. इस के पहले फैजी की मां और खालिदा की मां के ताल्लुकात बहुत अच्छे थे और सदमे में फैजी के बाप को फालिज का असर हो गया.’’

सारी कहानी सुन कर मैं सोच में पड़ गया. अब फैजी और जावेद दोनों शक के घेरे में आ गए थे. मैं ने फय्याज अली को बताया, ‘‘लाश शाम तक आ जाएगी. वे लोग मय्यत का बंदोबस्त कर लें.’’

सब को तसल्ली दे कर मैं वहां से उठ गया. उस दिन भी नौशाद से मुलाकात न हो सकी. वह काम से बाहर गया था.

सुलताना से की गई मालूमात तफ्तीश को आगे बढ़ाने में कारामद थी. जब मैं बाहर निकला तो फय्याज के साथ एक अधेड़ उम्र का आदमी और एक लड़का भी था. फय्याज ने बताया, ‘‘यह मेरे भाई फिदा अली हैं और यह खालिदा का भाई सईद.’’

इन के बारे में मैं पहले ही सुन चुका था. इन लोगों से कुछ पूछना बेकार था.

दूसरे दिन जावेद मेरे सामने खड़ा था. कसरती नौजवान था. उस के चेहरे पर रूखापन और अकड़ थी. उस ने तीखे लहजे में पूछा, ‘‘थानेदार साहब, मैं ने क्या किया है जो आप ने मुझे थाने बुलाया है?’’

‘‘मुझे कुछ पूछताछ करनी है. सीधा और सही जवाब चाहिए.’’

‘‘मुझे झूठ बोलने की क्या जरूरत है. बेवजह मुझे पकड़ लाए.’’

हवलदार ने एक चांटा उसे जड़ा तो उस का दिमाग सही हो गया. धीमे लहजे में बोला, ‘‘पूछिए, क्या पूछना है?’’

‘‘वारदात के दिन तुम कहां थे? शाम तक भी घर वापस नहीं आए.’’

‘‘सरकार, मैं गल्ला मंडी गया था. कुछ काम पड़ गया, आतेआते रात हो गई. सुबह आप की खिदमत में हाजिर हूं.’’

‘‘गल्ला मंडी क्यों गए थे?’’

‘‘मुझे सब्जियों के बीज लाने थे और गेहूं के दाम भी चैक करने थे. मैं सवेरे 8 बजे घर से निकला था.’’

इस का मतलब वह आफताब की मौत के बाद घर से निकला था. मैं आंख बंद कर के उस पर यकीन नहीं कर सकता था.

‘‘तुम ने जो बीज खरीदे, उस की रसीद दिखाओ?’’

उस ने जेब से तुड़ीमुड़ी रसीद निकाल कर मेरे आगे कर दी. तारीख की जगह पर मुझे ओवरराइटिंग का गुमान हुआ. मैं ने रसीद दराज में रख ली.

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‘‘जावेद, यह बताओ कि आफताब की मंगनी तुम्हारी बहन से हुई थी तो यह मंगनी क्यों टूट गई?’’

‘‘सरकार, उन लोगों ने मेरी बहन पर बदचलनी का इलजाम लगा कर मंगनी तोड़ दी. मुझे बहुत गुस्सा आया रंज भी हुआ. बेवजह मेरी बहन बदनाम हुई.’’

‘‘और इसी का बदला लेने के लिए गुस्से में तुम ने आफताब का कत्ल कर दिया.’’

वह घबरा कर बोला, ‘‘थानेदार साहब, गुस्सा अपनी जगह है. मैं इस बात के लिए आफताब को कत्ल नहीं कर सकता. हां, मेरी उस से लड़ाई हुई थी. उसे बुराभला कह कर मैं ने अपना गुस्सा उतार लिया था और अपने दोस्त फैजी का साथ दिया था. मैं कसम खाता हूं, मैं इस कत्ल में शामिल नहीं हूं.’’

मैं ने पलटवार किया, ‘‘तो क्या यह कत्ल फैजी ने किया है? वह खालिदा से शादी करना चाहता था, पर जब उस की शादी आफताब से हो गई तो बदला लेने के लिए उस ने आफताब को मार दिया.’’

वह जल्दी से बोला, ‘‘नहीं सरकार, फैजी ऐसा नहीं कर सकता. इतनी सी बात के लिए कोई खून नहीं कर सकता. मैं यह मानता हूं कि मेरे और फैजी के दिल में आफताब के लिए जहर भरा था, पर हम ने कत्ल की वारदात नहीं की है.’’

मैं ने धमकाते हुए कहा, ‘‘तुम शक के दायरे से बाहर नहीं हो. गांव छोड़ कर बाहर मत जाना.’’

दोपहर को पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई और साथ ही लाश भी. लाश घर वालों के सुपुर्द कर दी गई. रिपोर्ट के मुताबिक, आफताब को 18 तारीख की सवेरे 5 और 6 बजे के बीच मारा गया था.

मौत खोपड़ी चटखने से हुई. खोपड़ी के पिछले हिस्से पर लोहे की भारी चीज से वार किया गया था. यह वार बेखबरी में पीछे से किया गया था.

शाम को लाश को दफना दिया गया. काफी लोग जमा हुए थे. गमी का माहौल था. दूसरे दिन मैं ने मशकूर हुसैन को जावेद की बात की सच्चाई जानने को रसीद के साथ गल्ला मंडी रवाना कर दिया. उस के बाद फैजी को थाने बुलाया.

फैजी 23-24 साल का गोरा जवान था. आते ही उस ने तीखे लहजे में पूछा, ‘‘मुझे आप ने सिपाही से पकड़वा कर क्यों बुलवाया? मेरा क्या कसूर है?’’

मैं ने नरम लहजे में कहा, ‘‘तुम से कुछ पूछताछ करनी है. एक बार में सच बोल दो तो बेहतर है. मार के बाद तो सच ही निकलेगा. तुम ने आफताब का कत्ल क्यों किया?’’

वह चीखते हुए बोला, ‘‘आप यह कैसा इलजाम लगा रहे हैं. इस कत्ल में मैं शामिल नहीं हूं. खुदा की कसम, मैं ने उस का कत्ल नहीं किया. यह सरासर इलजाम है.’’

मैं ने कड़क कर कहा, ‘‘फिर बताओ किस ने कत्ल किया? तुम उस से नफरत करते थे क्योंकि तुम्हारी पसंद की लड़की की शादी आफताब से हो गई थी. उस की जीत तुम से बरदाश्त नहीं हुई. कबड्डी के मैदान में भी तुम ने उस से झगड़ा किया था.’’

‘‘यह सही है कि मैं उस से नफरत करता था, पर सच्चाई यह है कि मैं ने आफताब को नहीं मारा.’’

‘‘जब तक सही कातिल हाथ नहीं आता, शक में तुम हवालात में बंद रहोगे.’’

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फैजी की गिरफ्तारी की खबर जल्दी ही गांव में फैल गई. उस की मां रोतेधोते हमारे पास पहुंच गई. कहने लगी, ‘‘मेरा बेटा बेकसूर है. सुलताना ने आप को भड़काया, इलजाम लगाया, आप ने उसे हवालात में डाल दिया. यह जुल्म है सरकार. यह बात सही है कि फैजी खालिदा से शादी करना चाहता था पर मेरी बहन ने ही मना कर दिया, मैं किसी को क्या दोष दूं.’’

मैं ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘देखो, अभी जांच चल रही है. फैजी शक के दायरे में आता है, इसलिए उसे बंद किया है. अगर वह बेकसूर है तो यकीन रखो, मैं उसे छोड़ दूंगा.’’

अगले भाग में पढ़ें- अंगूठी देखते ही उस का रंग उड़ चुका था

Crime Story- शैतानी मंसूबा: भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

वह रोते हुए बोली, ‘‘हुजूर, उस का बाप भी फालिज में पड़ा हुआ है. बेटा जेल में बंद है, हम पर रहम करें.’’

मैं ने समझाबुझा कर उसे घर भेजा. इसी बीच मशकूर हुसैन गल्ला मंडी से लौट आया. उस ने बताया, ‘‘तारीख में हेरफेर किया गया है. 3 को 8 बनाया गया है. बीज 13 तारीख को खरीदे गए थे, रसीद में 18 है.’’

वह दूसरी रसीद भी साथ लाया था. मैं ने फौरन जावेद को बुलवाया. उसे दोनों रसीदें दिखाईं तो वह हड़बड़ा गया. कहने लगा, ‘‘मैं ने तारीख बदली है यह सच है, पर इस की वजह दूसरी है, जिसे मैं ही जानता हूं.’’

मैं ने एक चांटा लगाते हुए पूछा, ‘‘वारदात के अलावा और क्या वजह हो सकती है.’’

वह गिड़गिड़ाया, ‘‘हुजूर, बात यह है कि 13 तारीख की रसीद दिखा कर मैं ने अपने बाप से पैसे वसूल कर लिए थे. मुझे जुए की लत लग गई है. 18 को मैं गल्ला मंडी तो गया था पर कुछ खरीदा नहीं और पुरानी रसीद में तारीख बदल कर अब्बा से दोबारा पैसे वसूल कर लिए. बस इतनी सी बात है.’’

वह रोने लगा, कसमें खाने लगा. उस की बात में सच्चाई थी क्योंकि गल्ला मंडी से यही मालूम हुआ था कि वह 13 तारीख को बीज ले गया था, 18 तारीख को सिर्फ आ कर चला गया था. वहां से वह हनीफ के जुआ अड्डे पर गया था. पर मैं इस तरह से उसे छोड़ नहीं सकता था. मैं ने उसे भी हवालात में डलवा दिया. गल्ला मंडी की जांच एक सिपाही के जिम्मे कर दी.

शाम को मैं खुद फैजी के घर चला गया. उस का बाप बाबू खां दुबलापतला, बीमार सा आदमी था. फालिज ने उसे बिस्तर से लगा दिया था. मैं ने उसे तसल्ली दी, ‘‘हौसला रखो बाबू खां. फैजी अगर बेकसूर है तो मैं तुम से वादा करता हूं कि उस का बाल भी बांका नहीं होगा.’’

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उस ने कांपती आवाज में कहा, ‘‘थानेदार साहब, इंसान गलती का पुतला है. ऐसी ही संगीन गलती मेरी बीवी जाहिदा ने भी की. वह खालिदा की शादी आफताब के बजाय नौशाद से करती तो बहुत अच्छा होता.’’

बाबू खां की एक बात में हजार भेद छिपे थे. बाबू खां को समझा कर मैं लौट आया. जैसे ही मैं थाने पहुंचा, सिपाही साजिद मेरे आगे हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया और बोला, ‘‘सर, मुझ से बड़ी गलती हो गई. 18 तारीख वारदात के दिन जब हम लोग कमरों की तलाशी ले रहे थे, मुझे यह अंगूठी खिड़की के बाहर पड़ी मिली थी. मैं ने इसे जेब में रख लिया था और फिर एकदम भूल गया. आज जब ड्रैस धोने को निकाला तो यह अंगूठी हाथ लगी.’’

उस ने अंगूठी मेरी टेबल पर रख दी. गुस्सा तो मुझे बहुत आया. क्लू के होते हुए भी मैं अंधेरे में हाथपांव मार रहा था. 2 बंदों को हवालात में बिठा रखा था. मैं ने साजिद अली की अच्छी खबर ली और वार्निंग दी कि ऐसी गलती दोबारा नहीं होनी चाहिए.

अंगूठी अच्छीखासी महंगी थी, जिस में चौकोर माणिक जड़ा था. चारों तरफ नन्हे फिरोजे जड़े हुए थे. मैं ने जावेद और फैजी को अपने कमरे में बुलाया. दोनों के हाथ बारीकी से चैक किए. वहां किसी की अंगुली पर अंगूठी का निशान नहीं था. फिर मैं ने उन्हें अंगूठी दिखाते हुए कहा, ‘‘सचसच बताना, यह अंगूठी किस की है? क्या इसे पहचानते हो?’’

दोनों के मुंह से एक साथ निकला, ‘‘हां सरकार, यह अंगूठी नौशाद की है.’’

कच्चा वारदाती जब पुलिस के हाथ चढ़ता है तो 2 झन्नाटेदार थप्पड़ उसे सच बोलने पर मजबूर कर देते हैं. नौशाद को गिरफ्तार कर के जब मेरे सामने लाया गया, मैं ने माणिक जड़ी अंगूठी उस के सामने रख दी. थप्पड़ों से पहले ही उस के होश ठिकाने आ चुके थे. अंगूठी देखते ही उस का रंग उड़ चुका था. मैं ने पूछा, ‘‘यह अंगूठी तुम्हारी है न?’’

‘‘सर, यह आप को कहां से मिली?’’

‘‘जहां से तुम खिड़की के रास्ते कमरे के अंदर पहुंचे थे, वहां दीवार के पास पड़ी थी.’’

वह हक्काबक्का मेरी सूरत देख रहा था. बाबू खां का कहा हुआ एक वाक्य मेरे जहन में गूंज रहा था, ‘‘मांबाप को शादी के वक्त औलाद की पसंदनापसंद का खयाल रखना चाहिए. अगर वह खालिदा का रिश्ता आफताब के बजाय नौशाद से करती तो बहुत बेहतर होता.’’ अब इस वाक्य के पीछे छिपी कहानी पूरी तरह मेरी समझ में आ गई थी. नौशाद ने कांपती आवाज में कहा, ‘‘यह अंगूठी मेरी है.’’

‘‘क्या तुम खालिदा से मोहब्बत करते हो और वह भी तुम्हें पसंद करती है?’’

‘‘जी, यह सच है मैं और खालिदा एकदूसरे से बहुत मोहब्बत करते हैं.’’ उस ने थूक निगलते हुए कहा.

‘‘तो क्या अपनी पसंद और मोहब्बत को पाने के लिए सगे भाई को कत्ल कर देना चाहिए?’’ मैं ने नफरत भरे लहजे में कहते हुए एक तमाचा और मारा.

यह खुदगर्जी और जुल्म की एक बदतरीन मिसाल थी. इस से पहले मैं ने नौशाद को देखा ही नहीं था, नहीं तो शायद उस की खूबसूरती देख कर मेरे दिल में शक होता. नौशाद ने रोते हुए गरदन झुका ली.

अगले एक घंटे के अंदर मैं ने उस का इकबालिया बयान ले लिया. किस्सा यूं था—

खालिदा और नौशाद बेहद खूबसूरत थे. वे दोनों एकदूसरे से मोहब्बत करते थे पर खालिदा की मां ने फैजी का रिश्ता आने की वजह से उस की शादी आफताब से तय कर दी और एक हफ्ते के अंदर ही खालिदा और आफताब की शादी निपटा दी. खालिदा और नौशाद को शादी के मौके पर कुछ कहने का वक्त ही नहीं मिला. जब होश आया, जुबान खोलते, तब तक शादी हो चुकी थी.

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खालिदा ब्याह कर उसी के घर में आ गई. वह ब्याह कर और कहीं जाती तो शायद नौशाद उसे भूल जाता, पर अपने ही घर में अपनी महबूबा को भाभी के रूप में देख कर नौशाद का दिमाग खराब हो गया. वह रातदिन खालिदा को देख कर जलता और सोचता कि उसे कैसे हासिल किया जाए. फिर एक दिन उस ने एक शैतानी मंसूबा बना डाला और फैसला कर लिया कि सगे भाई आफताब को रास्ते से हटा देगा.

अपने मंसूबे के मुताबिक वारदात के एक दिन पहले अपनी बीमारी का कामयाब ड्रामा रचाया और 18 तारीख की सुबह वह भाई के साथ काम करने के लिए खेतों पर नहीं गया. वह छत पर सोता था, इसलिए उस की कारगुजारी सब से छिपी रही. किसी को कानोंकान खबर भी नहीं हुई कि मकतूल के पहले चुपके से वह डेरे पर पहुंच गया.

अपने मकसद को पूरा करने के लिए उस ने खिड़की की कुंडी नहीं लगाई थी. वह खिड़की के रास्ते आफताब से पहले ही कमरे में घुस कर दरवाजे के पीछे छिप कर खड़ा हो गया और आफताब का इंतजार करने लगा.

जैसे ही आफताब ताला खोल कर कमरे में दाखिल हुआ, उस ने लोहे के भारी रेंच-पाने से उस के सिर पर करारा वार किया. अगले ही पल किसी कटे हुए दरख्त की तरह वह जमीन पर गिर गया. उस की खोपड़ी चटख गई थी.

नौशाद खिड़की के रास्ते कमरे में आया था. चढ़ते वक्त उस की अंगूठी दीवार के पास गिर गई, उसे पता नहीं चला. और साजिद ने भी अंगूठी देने में देर कर दी, नहीं तो केस दूसरे दिन ही हल हो जाता. बेवजह ही फैजी और जावेद को हवालात में बंद रखा. जर, जोरू और जमीन शुरू से ही कत्ल की वजह बनते रहे हैं. दोनों ही खूबसूरत लड़की और लड़के की जिंदगी नादानी में उठाए एक कदम से बरबाद हो गई.

Crime Story: 28 साल बाद

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