ये लम्हा कहां था मेरा- भाग 1

‘‘हमारी बात मान लो न निकिता… मिल तो लो आज अभिनव से. मैनेजर है मल्टीनैशनल कंपनी में और फोटो में भी अच्छा दिख रहा है. तुम्हें पसंद आए तभी हां करना… उस के घर से फोन आया है. पापा पूछ रहे हैं क्या कहना है उन्हें?’’ मीनाक्षी अपनी बेटी से मनुहार करते हुए बोलीं.

‘‘मम्मी, शादी करने के लिए नहीं करता मेरा मन… सोचा भी नहीं जाता मुझ से शादी के बारे में… आप तो जानती हैं सब,’’ निकिता का स्वर निराशा में डूबा था.

‘‘कब तक तुम्हारी दुनिया को अंधेरे में रखेगा वह हादसा? पापा अपनेआप को कुसूरवार समझ दिनरात गमगीन रहते हैं… निकाल दो बेटा अपने दिमाग से वे सब बातें.’’

‘‘मेरी तो कुछ समझ नहीं आता कि क्या करूं मम्मी? आप जो ठीक समझें कर लें,’’ कह कर निकिता गुमसुम सी फिर लैपटौप में खो गई.

‘‘तुम कितनी समझदार हो… ठीक है बेटा, फिर बुला लेते हैं आज उन लोगों को,’’ निकिता के सिर पर प्यार से हाथ फेर मीनाक्षी उस के कमरे से निकल गईं.

अपना काम निबटा निकिता न चाहते हुए भी आज शाम पहनने के लिए कपड़ों का चुनाव करने चल दी. शादी के लिए किसी रिश्ते की बात शुरू होते ही वह अनमनी सी हो जाती थी.

मेहमानों के लिए हो रही तैयारी से घर में रौनक दिख रही थी. उसी रौनक की छाया सुदीप पर भी पड़ रही थी वरना 2 सालों से बेटी निकिता का दर्द उन्हें चैन से सोने नहीं दे रहा था.

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शाम को आ गए वे लोग. औसत कदकाठी और आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी अभिनव की सादगी मीनाक्षी और सुदीप के मन में अंदर तक उतर गई. अभिनव और निकिता के बीच औपचारिक बातचीत हुई. एक नामी पब्लिशिंग हाउस में कंटैट राइटर की पोस्ट पर कार्य कर रही निकिता का गोरा रंग और खूबसूरत नैननक्श देख अभिनव के मम्मीपापा रिश्ता जोड़ने को बेताब हो रहे थे. डिनर के बाद जाते समय दोनों के मातापिता ने जल्द ही बच्चों से पूछ कर रिश्ता पक्का करने की बात कह खुशीखुशी एकदूसरे से बिदा ली.

उन के चले जाने के बाद मीनाक्षी और सुदीप अभिनव के विषय में निकिता की राय जानने को आतुर थे. निकिता सोच कर जवाब देने की बात कह अपने कमरे में चली गई. बिस्तर पर लेटते ही नींद की जगह विचारों का कारवां उसे घेरने लगा कि क्या करूं अब मना करती हूं शादी के लिए तो मम्मीपापा की परेशानी कम न कर पाने की गुनहगार बन जाती हूं. हां भी कैसे करूं? सोच कर ही सिहर उठती हूं कि अपना तन किसी को सौंप रही हूं.

मम्मीपापा का कहना है कि अभिनव समझदार लग रहा है. मैं खुश रह सकूंगी उस के साथ. पर क्या होगा अगर हर रात मुझे उस में राजन अंकल… नहीं… दरिंदा राजन दिखाई देने लगेगा… निकिता के दिमाग को एक बार फिर झकझोर गया वह दिन…

दिल्ली के नामी कालेज से एमए करने के बाद जब निकिता की प्लेसमैंट पुणे हुई तो मम्मी उस के दूर जाने की बात से चिंतित हो उठी थीं. तब पापा ने याद दिलाया कि उन के एक कुलीग राजन, जो पिछले साल नौकरी छोड़ गए थे, वहीं रह रहे हैं तो मीनाक्षी की सांस में सांस आ गई.

पुणे में निकिता के रहने की व्यवस्था एक पीजी में करवाने के बाद सुदीप निकिता को साथ ले राजन के घर पहुंच गए. राजन का इकलौता बेटा यूके में रह रहा था. राजन की पत्नी भी उन दिनों वहीं गई हुई थी. राजन ने कहा कि निकिता इसे अपना घर समझ कभी भी यहां आ सकती है. पूरा आश्वासन भी दिया था कि उस के रहते निकिता को किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं उठानी पड़ेगी.

निकिता और राजन की फोन पर कभीकभी बात हो जाती थी, लेकिन निकिता की व्यस्तता के कारण दोबारा मिलना नहीं हुआ था उन का. एक दिन निकिता के पास राजन का फोन आया कि पत्नी की तबीयत अचानक खराब हो जाने के कारण उसे यूके जाना पड़ रहा है, अत: जाने से पहले एक बार वह निकिता से मिलना चाहता है. निकिता शाम को राजन के घर चली गई.

राजन का व्यवहार उस दिन निकिता को बदलाबदला सा लग रहा था. उस के नमस्ते करने पर राजन ने उस के हाथों को अपने दोनों हाथों में ले कर चूम लिया. निकिता को यह बहुत अखर रहा था. कुछ देर बातचीत करने के बाद निकिता जाने लगी तो राजन ने कौफी पी कर जाने का आग्रह किया. फिर उसे कमरे में बैठने को कह कौफी बनाने चल दिया. कामवाली के बारे में निकिता के पूछने पर बोला कि वह आज जल्दी छुट्टी ले कर चली गई है.

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कुछ देर बाद कौफी ला कर टेबल पर रख राजन निकिता के सामने बैठ गया. निकिता को चुपचाप कौफी पीते देख हंसता हुआ बोला, ‘‘अरे, कुछ तो बात करो… अच्छा बताओ, मैं कैसा लगता हूं तुम्हें?’’

निकिता को कौफी का घूंट हलक से उतारना मुश्किल हो गया.

‘‘आप अच्छे लगते हैं, अंकल,’’ कह कर वह जल्दीजल्दी कौफी पीने लगी ताकि वहां से निकल पाए. मगर तभी बैठेबैठे उसे चक्कर सा आने लगा. ‘कहीं कौफी में कुछ नशीला तो नहीं?’ सोच कर आधा भरा हुआ मग टेबल पर रख वह उठने लगी तो राजन उस के पास आ कर खड़ा हो गया.

‘‘पता नहीं तुम क्यों मुझे अंकल कह कर बुला रही हो? लोग तो कहते हैं मैं अभी भी किसी बौलीवुड हीरो से कम नहीं लगता.’’

‘‘जी… अच्छा है अगर लोग ऐसा कहते हैं, आप ने फिट रखा हुआ है अपने को,’’ घबराई हुई सी निकिता खुद को सामान्य दिखाने की कोशिश कर रही थी.

‘‘तो फिर जी नहीं चाहता मेरे पास आने का?’’ कहते हुए राजन निकिता से सट कर बैठ गया.

निकिता भीतर तक कांप उठी. इस से पहले कि हिम्मत जुटा वह उठ भागती राजन उसे अपनी गिरफ्त में ले चुका था. निकिता ने खुद को छुड़ाने की भरपूर कोशिश की, लेकिन कौफी में मिलाए गए नशीले पदार्थ के असर से वह लड़खड़ा रही थी.

‘‘पता है मुझे, तुम भी यही चाहती हो… पर झिझकती हो कहने में. तभी तो एक बार बुलाते ही दौड़ी चली आई मिलने.’’

‘‘नहीं अंकल…’’ चीख उठी थी निकिता.

‘‘औरत की न का मतलब हां होता है,’’ कहते हुए अपना वहशियाना रूप दिखा दिया राजन ने.

अपनी हवस मिटा कर राजन सोफे पर ही औधे मुंह गिर गया. निकिता अपने कपड़े व्यवस्थित कर गिरतीपड़ती पीजी लौटी तो कुछ सोचनेसमझने की स्थिति में नहीं थी. उस की सहेली अदीबा ने मीनाक्षी को फोन किया. अगले दिन सुदीप और मीनाक्षी वहां पहुंच गए. निकिता से सब सुन कर वे अवाक रह गए. क्रोध से तमतमाया सुदीप राजन के घर पहुंचा, पर वह तो यूके निकल चुका था. पुलिस में शिकायत करने से भी तब कोई लाभ नहीं था. निकिता को साथ ले दोनों टूटेबिखरे से वापस आ गए.

सुदीप और मीनाक्षी निकिता का सहारा बन उसे दिनरात समझाते रहते. लगभग 2 महीने बाद वह इस हादसे से कुछ दूर हुई तो नई नौकरी की तलाश में जुट गई.

अदीबा के भाई की दिल्ली में अच्छी जानपहचान थी. उस की मदद से

कई जगह उसे रिक्त पदों के विषय में जानकारी मिली. अंतत: एक पब्लिशिंग हाउस में बतौर कंटैंट राइटर चुन लिया गया. फिर वहां काम संभालते हुए वह खुद को व्यस्त रखने लगी.

कुछ माह बाद सुदीप और मीनाक्षी ने विवाह की बात छेड़ी तो निकिता ने साफ मना कर दिया. उस का व्यथित मन किसी को भी अपना मानने को तैयार नहीं था, पर मम्मीपापा चाहते थे कि वह सब भूल कर नई जिंदगी शुरू करे.

आज भी तो नहीं मिलना चाह रही थी निकिता अभिनव से, लेकिन पापा की निराशा भी नहीं देखी जाती थी उस से. अभिनव से मिल कर उसे बुरा भी नहीं लगता था, परंतु पतिपत्नी संबंध के विषय में सोचते ही लगने लगता था कि अपनी देह कहां छिपा लूं कि किसी पुरुष की नजर ही न पड़े उस पर. अतीत के काले दलदल में फंसी निकिता रातभर बिस्तर पर करवटें बदलती रही.

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सुबह औफिस जाने लगी तो मीनाक्षी उस के जवाब के इंतजार में थीं. ‘‘अभी देर हो रही है, बाद में बात करते हैं,’’ कहते हुए वह भारी मन से औफिस चली गई.

औफिस में उस के पास अलगअलग विषयों पर लिखने के लिए कई मेल आए हुए थे, लेकिन काम में मन ही नहीं लग रहा था उस का. किसी तरह मन बना कर एक टौपिक पर सोच लिखना शुरू ही किया था कि मोबाइल बज उठा.

फोन मीनाक्षी का था. उन की आवाज में मनुहार की जगह आज बेबसी झलक रही थी, ‘‘बेटा, तुम्हारे मन में क्या चल रहा है, मैं समझ सकती हूं पर ऐसे कैसे अकेली रहोगी जिंदगीभर? इसी सोच में पापा दिनरात घुलते रहते हैं… कैसे समझाऊं तुम्हें कि मेरी तबीयत भी अब…’’ और बात पूरी होने से पहले ही मीनाक्षी के सिसकने की आवाजें आने लगीं.

हक्कीबक्की सी निकिता बिना कुछ सोचे बोल उठी, ‘‘मम्मी मैं आप को अभी फोन करने ही वाली थी… मुझे अभिनव पसंद है,’’ और फिर फोन काट धम्म से कुरसी पर बैठ गई. ‘शायद मुझे यही करना चाहिए था… इस के अलावा और कोईर् ऐसा रास्ता भी तो नहीं है जो मम्मीपापा को खुशियां दे पाए.’

रुह का स्पंदन- भाग 2

दक्षा मां से बातें कर रही थी कि उसी समय वाट्सऐप पर मैसेज आने की घंटी बजी. दक्षा ने फटाफट बायोडाटा और फोटोग्राफ्स डाउनलोड किए. बायोडाटा परफेक्ट था. दक्षा की तरह सुदेश भी अपने मांबाप की एकलौती संतान था. न कोई भाई न कोई बहन. दिल्ली में उस का जमाजमाया कारोबार था. खाने और ट्रैवलिंग का शौक. वाट्सऐप पर आए फोटोग्राफ्स में एक दाढ़ी वाला फोटो था.

दक्षा को जो चाहिए था, वे सारे गुण तो सुदेश में थे. पर दक्षा खुश नहीं थी. उस के परिवार में जो घटा था, उसे ले कर वह परेशान थी. उसे अपनी मर्यादाओं का भी पता था. साथ ही स्वभाव से वह थोड़ी मूडी और जिद्दी थी. पर समय और संयोग के हिसाब से धीरगंभीर और जिम्मेदारी भी थी.

दक्षा का पालनपोषण एक सामान्य लड़की से हट कर हुआ था. ऐसा नहीं करते, वहां नहीं जाते, यह नहीं बोला जाता, तुम लड़की हो, लड़कियां रात में बाहर नहीं जातीं. जैसे शब्द उस ने नहीं सुने थे, उस के घर का वातावरण अन्य घरों से कदम अलग था. उस की देखभाल एक बेटे से ज्यादा हुई थी. घर के बिजली के बिल से ले कर बैंक से पैसा निकालने, जमा करने तक का काम वह स्वयं करती थी.

दक्षा की मां नौकरी करती थीं, इसलिए खाना बनाना और घर के अन्य काम करना वह काफी कम उम्र में ही सीख गई थी. इस के अलावा तैरना, घुड़सवारी करना, कराटे, डांस करना, सब कुछ उसे आता था. नौकरी के बजाए उसे बिजनैस में रुचि ही नहीं, बल्कि सूझबूझ भी थी. वह बाइक और कार दोनों चला लेती थी. जयपुर और नैनीताल तक वह खुद गाड़ी चला कर गई थी. यानी वह एक अच्छी ड्राइवर थी.

दक्षा को पढ़ने का भी खासा शौक था. इसी वजह से वह कविता, कहानियां, लेख आदि भी लिखती थी. एकदम स्पष्ट बात करती थी, चाहे किसी को अच्छी लगे या बुरी. किसी प्रकार का दंभ नहीं, लेकिन घरपरिवार वालों को वह अभिमानी लगती थी. जबकि उस का स्वभाव नारियल की तरह था. ऊपर से एकदम सख्त, अंदर से मीठी मलाई जैसा.

उस की मित्र मंडली में लड़कियों की अपेक्षा लड़के अधिक थे. इस की वजह यह थी कि लिपस्टिक या नेल पौलिश के बारे में बेकार की चर्चा करने के बजाय वह वहां उठनाबैठना चाहती थी, जहां चार नई बातें सुननेसमझने को मिलें. वह ऐसी ही मित्र मंडली पसंद करती थीं. उस के मित्र भी दिलवाले थे, जो बड़े भाई की तरह हमेशा उस के साथ खड़े रहते थे.

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सब से खास मित्र थी दक्षा की मम्मी, दक्षा उन से अपनी हर बात शेयर करती थी. कोई उस से प्यार का इजहार करता तो यह भी उस की मम्मी को पता होता था. मम्मी से उस की इस हद तक आत्मीयता थी. रूप भी उसे कम नहीं मिला था. न जाने कितने लड़के सालों तक उस की हां की राह देखते रहे.

पर उस ने निश्चय कर लिया था कि कुछ भी हो, वह प्रेम विवाह नहीं करेगी. इसीलिए उस की मम्मी ने बुआ के कहने पर मेट्रोमोनियल साइट पर उस की प्रोफाइल डाल दी थी. जबकि अभी वह शादी के लिए तैयार नहीं थी. उस के डर के पीछे कई कारण थे.

सुदेश और दक्षा के घर वाले चाहते थे कि पहले दोनों मिल कर एकदूसरे को देख लें. बातें कर लें और कैसे रहना है, तय कर लें. क्योंकि जीवन तो उन्हें ही साथ जीना है. उस के बाद घर वाले बैठ कर शादी तय कर लेंगे.

घर वालों की सहमति से दोनों को एकदूसरे के मोबाइल नंबर दे दिए गए. उसी बीच सुदेश को तेज बुखार आ गया, इसलिए वह घर में ही लेटा था. शाम को खाने के बाद उस ने दक्षा को मैसेज किया. फोन पर सीधे बात करने के बजाय उस ने पहले मैसेज करना उचित समझा था.

काफी देर तक राह देखने के बाद दक्षा का कोई जवाब नहीं आया. सुदेश ने दवा ले रखी थी, इसलिए उसे जब थोड़ा आराम मिला तो वह सो गया. रात करीब साढ़े 10 बजे शरीर में दर्द के कारण उस की आंखें खुलीं तो पानी पी कर उस ने मोबाइल देखा. उस में दक्षा का मैसेज आया हुआ था. मैसेज के अनुसार, उस के यहां मेहमान आए थे, जो अभीअभी गए हैं.

सुदेश ने बात आगे बढ़ाई. औपचारिक पूछताछ करतेकरते दोनों एकदूसरे के शौक पर आ गए. यह हैरानी ही थी कि दोनों के अच्छेबुरे सपने, डर, कल्पनाएं, शौक, सब कुछ काफी हद इस तरह से मेल खा रहे थे, मानो दोनों जुड़वा हों. घंटे, 2 घंटे, 3 घंटे हो गए. किसी भी लड़की से 10 मिनट से ज्यादा बात न करने वाला सुदेश दक्षा से बातें करते हुए ऐसा मग्न हो गया कि उस का ध्यान घड़ी की ओर गया ही नहीं, दूसरी ओर दक्ष ने भी कभी किसी से इतना लगाव महसूस नहीं किया था.

सुदेश और दक्षा की बातों का अंत ही नहीं हो रहा था. दोनों सुबह 7 बजे तक बातें करते रहे. दोनों ने बौलीवुड हौलीवुड फिल्मों, स्पोर्ट्स, पौलिटिकल व्यू, समाज की संरचना, स्पोर्ट्स कार और बाइक, विज्ञान और साहित्य, बच्चों के पालनपोषण, फैमिली वैल्यू सहित लगभग सभी विषयों पर बातें कर डालीं. दोनों ही काफी खुश थे कि उन के जैसा कोई तो दुनिया में है. सुबह हो गई तो दोनों ने फुरसत में बात करने को कह कर एकदूसरे से विदा ली.

Serial Story: धनिया का बदला- भाग 1

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

‘‘अरे, आओ रे छंगा… गले लग जाओ हमारे… आज कितने बरसों के बाद तुम से मुलाकात हो रही है… कितने दुबले हो गए हो तुम… खातेवाते नहीं हो क्या?’’ बीरू ने अपने भाई से कहा.

‘‘हां भाई बीरू… तुम तो जानते हो… इस खेतीकिसानी का काम करने के बाद कमबख्त चूल्हाचौका तो होने से रहा हम से… दिनभर की मेहनत के बाद जो भी बन पड़ता है बना लेते हैं और खा कर सो जाते हैं.’’

‘‘कोई बात नहीं छंगा भैया… अब हम आ गए हैं… कामधाम में तुम्हारा हाथ बंटाएंगे और तुम्हारी भाभी तुम को खूब दूधमलाई खिलाएंगी… और ये तुम्हारी 2 भतीजियां हैं, इन के साथ खूब खुश रहोगे तुम भी और हम भी.

‘‘हम दोनों भाई मिल कर काम करेंगे, तो हमारी खेती सोना उगलेगी सोना,’’ कह कर एक बार फिर से बीरू ने छंगा को गले लगा लिया.

बीरू और छंगा दोनों जुड़वां भाई थे. उन के मांबाप की मौत पहले ही हो  चुकी थी.

बचपन से ही बीरू को शहर जाने का शौक था, इसलिए वह गांव की ही एक लड़की से शादी करने के बाद अपनी बीवी को ले कर शहर निकल गया था और खेतीबारी का काम अकेले छंगा के सिर पर आ गया था.

अभी तक छंगा ही इस पूरी खेतीबारी का मालिक था. उस ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि बीरू किसी दिन शहर को छोड़ कर गांव में भी रहने के लिए आ सकता?है, इसलिए उस ने बातोंबातों में ही बीरू से पूछा, ‘‘तो भैया… क्या शहर वाला मकान, जो किराए पर लिए थे, वह छोड़ दिए हैं आप?’’

‘‘अरे, हां रे… वह सब हम छोड़  के आए हैं… किराए का मकान, नौकरी, सबकुछ… अरे, जब गांव में ही अपनी इतनी सारी जमीन पड़ी हुई?है, तब किसी दूसरे की हांहुजूरी क्या करनी?’’ बीरू ने साफसाफ कह दिया था.

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अभी तक तो छंगा ही इस सारी खेती का मालिक बना बैठा था, पर अब अचानक से बीरू का वापस गांव में आ कर बसने की बात करना उसे बिलकुल सुहा नहीं रहा था.

बीरू की पत्नी का नाम धनिया था. सांवला रंग, तीखे नैननक्श, सांचे में ढला हुआ शरीर. उसे देखने से लगता ही नहीं था कि वह 2 बच्चों की मां है.

धनिया भी गांव में ही पलीबढ़ी थी, पर जब उसे बीरू अपने साथ ब्याह कर शहर ले गया, तो उस ने साड़ी पहनना सीख लिया था.

गांव की लड़की पर जब शहरीपन का रंग चढ़ गया, तो एक अलग किस्म की नजाकत आ गई थी धनिया में. अब जब वह साड़ी बांध कर उस पर खुली पीठ वाला तंग ब्लाउज पहन कर निकलती तो गांव के कुंआरे लड़के तो होश खो ही बैठते, बल्कि शादीशुदा और बूढ़े भी ललचाई नजरों से उसे घूरते रहते थे.

एक दिन की बात है. शाम के समय बीरू और धनिया खेत की तरफ टहलने के लिए निकले थे कि तभी किसी ने धनिया पर छींटाकशी की, ‘‘अरे, तू शहर की है गोरी या गांव की है छोरी. एक बार कलेजे से हमारे लग जा, तो मैं आज मना लूं होली…’’

‘‘तुम लोगों को शर्म नहीं आती इस तरह से एक औरत को छेड़ते हुए,’’ धनिया ने पलट कर देखा, तो 3-4 मनचलों का एक ग्रुप बैठा हुआ था.

बीरू को मामले को भांपने में देर नहीं लगी. उस की त्योरियां चढ़ गईं और मुट्ठियां भिंच गईं. वह आगे बढ़ा और उस ग्रुप में सब से आगे खड़े आदमी का कौलर पकड़ लिया और आननफानन में 1-2 घूंसे रसीद कर दिए.

इस से पहले कि लड़ाई आगे बढ़ती, वहां पर छंगा आ गया और हाथ जोड़ कर उन मनचलों के सरदार से माफी मांगने लगा.

‘‘पर छंगा, तुम इस से माफी क्यों मांग रहे हो? इस ने तो तुम्हारी भाभी को छेड़ा है…’’ बीरू बिफर रहा था.

‘‘अरे नहीं भैया, आप को कोई गलतफहमी हुई होगी… ये तो यहां के बहुत भले लोग हैं. और वैसे भी ये यहां के होने वाले मुखिया हैं. इन से कोई झगड़ा मोल नहीं लेता है,’’ अभी छंगा बीरू को समझा ही रहा था कि मनचलों का सरदार, जिस का नाम कालिया था, गरज उठा, ‘‘छंगा, यह तुम्हारा भाई नहीं होता, तो आज यह अपनी टांगों पर चल कर अपने घर नहीं जा पाता.’’

‘‘कोई बात नहीं भैया… ये अभी नएनए आए हैं… आप के बारे में पता नहीं था… आगे से ऐसा नहीं होगा,’’ छंगा ने बात को ज्यादा तूल नहीं दिया.

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अगले दिन छंगा बीरू को अपने खेत दिखाने ले गया. बीरू की खुशी का ठिकाना नहीं था, ‘‘अब तो दोनों भाई जम कर मेहनत करेंगे और इस जमीन से सोना उपजाएंगे,’’ कह कर बीरू ने खेत की मिट्टी उठा कर छंगा के माथे पर तिलक कर दिया और अपने माथे पर भी मिट्टी रगड़ ली थी.

‘‘ठीक है भैया, आप खेत में काम करो… हम जरा मुखियाजी के घर से खाद की बोरी उठा कर ले आते हैं,’’ कह कर छंगा वहां से चला गया.

बीरू तनमन से मेहनत करने में लग गया था और कोई फिल्मी गाने की धुन भी गुनगुना रहा था…

‘धांय’ की आवाज के साथ एक गोली ठीक बीरू के सीने में आ लगी थी और वह वहीं खेत में गिर गया.

गांव में लोग पीठ पीछे बहुतकुछ बातें कर रहे थे और सभी लोग मन ही मन हत्यारे को भी पहचान रहे थे, पर सामने किसी की भी कहने की हिम्मत नहीं हो रही थी कि बीरू को गोली किस ने मारी है.

छंगा ने पुलिस में रिपोर्ट भी दर्ज कराई. पुलिस ने छानबीन भी की, पर सुबूतों की कमी में पुलिस को मायूस ही लौटना पड़ा.

इस पूरी दुनिया में अब धनिया बेसहारा हो गई थी. वह सफेद साड़ी में बिना किसी साजसिंगार के सूनीसूनी फिरती थी.

‘‘भाभी… हम से आप का यह रूप नहीं देखा जाता… हम आप को ऐसे नहीं रहने देंगे,’’ छंगा की आवाज में दर्द था.

‘‘क्या करेंगे… जब हमारी किस्मत में ही विधवा का रूप लिखा है तो… ऊपर वाले की मरजी के आगे भला किस की चली है…’’

‘‘यह किस्मतविस्मत हम नहीं जानते… पर, सोचो भाभी… अभी तुम्हारे सामने पहाड़ सी जिंदगी है… 2 छोटी बेटियां हैं… और फिर गांव के मनचलों से बचने के लिए भी तो किसी के नाम का सहारा तो चाहिए न,’’ छंगा बोले जा रहा था.

धनिया की समझ में कुछ नहीं आ रहा था. उस की चुप्पी को छंगा ने हां समझा और पंचायत बुला कर धनिया  से शादी कर के उसे सहारा देने की  बात कही.

‘‘अगर इस मामले में धनिया को कोई एतराज नहीं है, तो हम पंचों को भला क्या एतराज होगा,’’ सरपंच ने कहा.

धनिया भी वहां मौजूद थी. गांव के मनचलों से बचने के लिए अगर उसे किसी के नाम का सहारा मिल रहा है, तो भला इस में बुराई ही क्या है, ऐसा सोच कर धनिया ने अपनी रजामंदी दे दी.

‘‘भाभी, तुम बच्चों को ले कर आराम से यहां सो जाओ, मैं बगल वाली कोठरी में जा कर सो जाता हूं,’’ छंगा  ने कहा.

धनिया अपनी बेटियों को सीने से लगा कर सोती और छंगा दूसरी कोठरी में सोता रहा.

दोनों की शादी को 2 महीने बीत गए थे, पर छंगा ने अपने बरताव से कोई ऐसा काम नहीं किया था, जिस से धनिया को कोई एतराज होता. बात करते समय भी धनिया के चेहरे की तरफ न देख कर बिना नजरें मिलाए ही बात करता था छंगा और जिस्मानी संबंध बनाने की बात भी उस के मन में नहीं आई थी.

छंगा धनिया की बेटियों को खूब प्यार देता था. जब भी वह शहर जाता तो उन के लिए मिठाई जरूर ले आता था और अपने पास बिठा कर बारीबारी से खिलाता था.

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छंगा का अपनी बेटियों के प्रति ऐसा प्यार देख कर धनिया के मन को भी संतोष मिलने लगा था.

कुछ दिनों के बाद अचानक ही धनिया को बुखार आ गया. बुखार बहुत तेज था. छंगा तुरंत ही धनिया को शहर के डाक्टर से दवा दिलवा कर लाया.

दवा खा कर धनिया को कुछ राहत तो मिली, पर उस का शरीर अकसर ढीला रहता और नींद उसे घेरे रहती. शायद बुखार के चलते बदन में कमजोरी आ गई होगी, ऐसा सोच कर वह निश्चिंत थी.

ये लम्हा कहां था मेरा- भाग 2

शाम को घर पहुंची तो मीनाक्षी ने बताया कि सुदीप निकिता की हां सुनने के बाद आगे की बात करने अभिनव के घर चले गए हैं. वहां अभिनव के दादाजी की तबीयत अचानक बिगड़ गई. 2-3 दिन से चल रहा बुखार इतना तेज हो गया कि वे बेहोशी की हालत में पहुंच गए. इस कारण उन्हें हौस्पिटल में भरती करना पड़ा. सुदीप भी अभिनव के पिता के साथ हौस्पिटल में ही थे.

2 दिन बाद दादाजी को हौस्पिटल से छुट्टी मिल गई. वे धीरेधीरे स्वस्थ हो रहे थे. इस बीच एक दिन अभिनव के मम्मीपापा निकिता के घर मिठाई का डब्बा ले कर आ गए. उन्होंने बताया कि दादाजी ने अभिनव का विवाह शीघ्र ही कर देने की इच्छा व्यक्त की है. मीनाक्षी और सुदीप तो स्वयं ही चाह रहे थे कि वह विवाह जल्द से जल्द हो जाए. फिर निकिता की हां कहीं न में न बदल जाए, इस का भी उन्हें भय सता रहा था.

डाक्टर से दादाजी की तबीयत के विषय में बात कर 2 महीने बाद ही विवाह

की तिथि तय कर दी गई. इस बीच एकदूसरे से खास बातचीत का अवसर नहीं मिला अभिनव व निकिता को. दोनों वीजा औफिस में मिले, किंतु वहां औपचारिकताएं पूरी करतेकरते ही समय बीत गया. अभिनव का विवाह के बाद एक  प्रोजैक्ट के सिलसिले में फ्रांस जाने का कार्यक्रम था. दोनों परिवारों के कहने पर इसे हनीमून ट्रिप का रूप दे दिया गया. निकिता भी साथ जा रही थी. उस ने भी अपनी प्रकाशन संस्था द्वारा पर्यटन पर प्रकाशित होने वाली एक पुस्तक के लिए फ्रांस पर लिखने में रूचि दिखाते हुए वह काम ले लिया. यों निकिता का मन भी नहीं था विवाह से पहले अभिनव से मिलनेजुलने का. क्या बात करती वह उस से? मातापिता की खुशियों का खयाल न होता उसे तो क्या वह शादी का फैसला लेती? शायद कभी नहीं.

समय पंख लगा कर उड़ा और निकिता व अभिनव पतिपत्नी के रिश्ते में बंध गए. बिदा हो कर निकिता ससुराल पहुंची तो रस्मोरिवाज पूरे होतेहोते रात हो गई. डिनर के बाद वह अपने कमरे में विचारमग्न बैठी थी कि अभिनव आ गया. उस ने बताया कि दादाजी को सांस लेने में कठिनाई हो रही है, इसलिए वह उन के पास ही बैठा है. निकिता को उस ने सो जाने की सलाह दे दी, क्योंकि अगले दिन उन्हें पैरिस की फ्लाइट लेनी थी.

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अभिनव के कमरे से जाते ही निकिता कपड़े बदल कर लेट गई. मातापिता की खुशियों के लिए जिंदगी से समझौता करने वाली निकिता यह नहीं जानती थी कि अभिनव भी एक मानसिक संघर्ष से जूझ रहा है. सच तो यह था कि वह भी अभी विवाह नहीं करना चाह रहा था. किसी लड़की के लिए मन में कोई भावना ही नहीं महसूस हो रही थी उसे कुछ दिनों से. अपनी पिछली नौकरी के दौरान हुआ एक अनुभव उस के मनमस्तिष्क को जकड़े बैठा था…

उस औफिस में सोनाली नाम की एक लड़की अभिनव के करीब आने की कोशिश करती रहती थी. काम में वह अच्छी नहीं थी, टीम लीडर अभिनव ही था, इसलिए उसे वश में कर प्रमोशन पाना चाहती थी. अभिनव उस की ओछी हरकतों को नापसंद करता था और उस से दूरी बनाए रखता था. इस बात से वह इतनी नाराज हुई कि एक दिन उस के कैबिन में काम की बातों पर चर्चा करते हुए अचानक ही शोर मचा दिया कि वह उस के साथ जबरदस्ती कर रहा था.

अभिनव के खिलाफ शिकायत भरा लंबाचौड़ा पत्र भी लिख कर दे दिया उस ने. उस में कहा गया कि अभिनव ने जानबूझ कर उस की रिपोर्ट खराब की है, क्योंकि वह उस से उस की मरजी के खिलाफ संबंध बनाना चाहता था. वहां के मैनेजमैंट ने अभिनव से इस विषय में सफाई मांगे बिना ही नौकरी छोड़ने का आदेश दे दिया.

उसी दिन से अभिनव कुंठित सा रहने लगा था. मातापिता द्वारा विवाह की बात शुरू होते ही वह टालमटोल करने लगता था. इस बार भी विवाह के लिए हामी उस ने अपने दादाजी की बीमारी के दबाव में आ कर भरी थी.

दादाजी के पास शादी की पहली रात अभिनव को बैठे देख उस की मम्मी ने वापस कमरे में भेज दिया. वह कमरे में पहुंचा तो निकिता गहरी नींद में थी. विचारों की कशमकश में उलझे हुए अभिनव को कब नींद आ गई, उसे पता ही नहीं लगा.

अगले दिन दोनों पैरिस रवाना हो गए. वहां लगभग 15 दिन बिताने थे उन्हें. अभिनव का काम तो केवल पैरिस तक ही सीमित था, लेकिन निकिता को फ्रांस के कुछ अन्य स्थानों पर भी जाना था.

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पैरिस पहुंच कर अभिनव जहां अपने औफिस की मीटिंग्स

और प्रोजैक्ट बनाने में लग गया, वहीं निकिता भ्रमण करते हुए नईनई जानकारी जुटाने में व्यस्त हो गई. उसे अपने प्रकाशन हाउस की फ्रांस स्थित एक सहयोगी कंपनी द्वारा महिला गाइड भी दी गई मदद के लिए.

2 दिन तक निकिता ने पैरिस में डिज्नीलैंड, नात्रे डैम, लैस इन्वैलिड्स, लुव्र म्यूजियम और ऐफिल टावर जा कर पर्याप्त जानकारी एकत्र कर ली. रात में होटल पहुंच कर जब वह डिनर कर लेती तब जा कर पहुंचता था अभिनव. औफिस में वह अगले दिन की प्रेजैंटेशन तैयार करने के बहाने देर तक रुका रहता था. उस के होटल पहुंचने पर निकिता दिनभर की थकान के कारण उनींदी सी होती थी.

Serial Story: धनिया का बदला- भाग 3

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

धनिया रोते हुए गांव के बाहर जाने लगी. वह कहां जाएगी, उसे कुछ पता नहीं था. तभी रास्ते में उसे एक बूढ़ी काकी ने रोक कर कहा, ‘‘धनिया… मैं छंगा को अच्छी तरह जानती हूं. वह कभी अच्छा नहीं था और वह कालिया… वह तो एक नंबर का बदमाश है. उस ने ऐसे ही छल कर के लोगों की जमीन हड़प ली है. लोग उस के डर के चलते कुछ कह नहीं पाते.’’

‘‘पर काकी, अब मैं क्या करूं…?’’

‘‘दुनिया का दस्तूर ही यही है… जैसे को तैसा.’’

धनिया को कुछ समझ नहीं आया, तो काकी ने एक 30 साल के आदमी की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘यह मेरा बेटा राजू है. यह शहर से पढ़ कर आया है, तो गांव में कंप्यूटर की दुकान खोलना चाहता था, पर कालिया को यह मंजूर नहीं हुआ कि गांव के लोग बाहर की दुनिया के बारे में जागरूक बनें, इसलिए रात में मेरे बेटे की दुकान लूट ली और जब यह पुलिस में रिपोर्ट करने गया, तो मारमार कर इस की टांग ही तोड़ दी.

‘‘दीदी, मेरा नाम राजू है. मुझ से आप को जो भी मदद चाहिए, बेझिझक बता दीजिएगा,’’ राजू ने कहा.

काकी और राजू की बातों से धनिया को कुछ हिम्मत मिली, तो उस ने कुछ समय गांव में ही रहने का फैसला किया और एक पेड़ के नीचे जा कर बैठ गई. उस की बच्चियां भूख से परेशान हो रही थीं. धनिया उन का मन बहलाने के लिए उन्हें सेमल का फूल पानी में डुबा कर खिलाने लगी.

‘‘अरे, यह सब करने से बच्चों का पेट नहीं भरेगा… यह लो, तुम भी खाना खाओ और इन्हें भी खिलाओ,’’ एक टोकरी में भर कर पूरीसब्जी ले कर आया था कालिया.

दोनों बच्चियां खाने की खुशबू से होंठों पर जीभ फेरने लगीं. धनिया से बेटियों का इस तरह से परेशान होना उसे दुखी कर रहा था.

धनिया ने निगाहें नीची रखीं, पर उस के हाथ खुद ब खुद खाने से भरी टोकरी लेने के लिए आगे बढ़ गए.

जैसे ही धनिया ने हाथ आगे बढ़ाए, कालिया ने अपने हाथों को रोकते हुए कहा, ‘‘खाना तो मैं दे रहा हूं, पर इस की कीमत तुम्हें देनी होगी,’’ कालिया ने अपनी एक आंख दबाते हुए कहा.

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‘‘क्या करना होगा मुझे…?’’ डर गई थी धनिया.

‘‘कुछ नहीं… तुम्हें कुछ नहीं करना होगा… जो भी करूंगा मैं करूंगा. तुम तो बस आज रात मेरे कमरे पर अकेली आ जाना बस,’’ कालिया ने धनिया को ऊपर से नीचे तक घूरते हुए कहा.

कालिया खाना देने के बदले धनिया से उस की इज्जत मांग रहा था. धनिया जानती थी कि उसे यह कदम तो उठाना ही पड़ेगा, इसलिए उस ने खाने की टोकरी ले ली और यह भी पूछ लिया कि उसे आना कहां पर है.

कालिया एक विजयी मुसकान के साथ वहां से चला गया.

रात हुई, तो धनिया कालिया की बताई गई जगह पर पहुंच गई. उस के इंतजार में कालिया बेकरार हुआ जा रहा था. जैसे ही धनिया उस के दरवाजे पर पहुंची, कालिया उस पर झपट पड़ा और पागलों की तरह उसे चूमने लगा.

धनिया उसे अपने से अलग करते हुए बोली, ‘‘सारा काम अभी कर लोगे, तो भला रातभर क्या करोगे… मैं तो सारी की सारी तुम्हारी हूं… इतनी भी बेचैनी ठीक नहीं.’’

‘‘अरे, तुम क्या जानो धनिया… मैं तो तुम से बहुत पहले से ही प्यार करता था, पर तुम ने शहर जाने के चक्कर में उस बीरू से शादी कर ली, पर मैं आज भी तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं… अब मैं तुम्हें कहीं नहीं जाने दूंगा… आओ मेरी बांहों में समा जाओ,’’ कालिया ने बांहें फैलाते हुए कहा.

धनिया ने शराब का गिलास कालिया की ओर बढ़ाया, जिसे वह जल्दी से गटक गया और धनिया के सीने को घूरने लगा, ‘‘बस, अब तुम आ गई हो, तो

मुझे रोज रात को ऐसे ही खुश करती रहना… मेरी धनिया,’’ कालिया नशे में आ रहा था.

‘‘हांहां, बिलकुल… अब तो मुझे तुम्हारा ही सहारा है… पर, मुझे यह समझ नहीं आ रहा है कि भला  तुम्हारी मेरे पति से क्या दुश्मनी थी, जो तुम ने उसे गोली मार दी?’’ धनिया  की सवालिया नजरें कालिया के चेहरे  पर थीं.

‘‘नहीं… मैं ने तुम्हारे पति को नहीं मारा, बल्कि तुम्हारा देवर छंगा ही तुम्हारे पति का कातिल है… वह गांव के साहूकार की लड़की से प्यार करता है और उस से शादी करने के लिए उसे पैसे की जरूरत थी, जो उसे जमीन बेचने से मिल सकती थी, पर बीरू के वापस आने से उस के प्लान पर पानी फिर गया, इसीलिए उस ने उसे गोली मार दी.

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‘‘मुझ में और उस में एक करार था कि वह जमीन मुझे बेच कर मुझ से पैसे लेगा और उस पैसे के बल पर अपने पसंद की लड़की से शादी करेगा और तुम को मुझे सौंप देगा.

‘‘यही वजह थी कि छंगा ने तुम्हें आज तक छुआ भी नहीं था, क्योंकि मैं ने ही उसे ऐसा करने से मना किया था,’’ नशे में सब बताता जा रहा था कालिया.

धनिया ने कालिया को शराब पिलाना तब तक जारी रखा, जब तक वह नशे के चलते बेसुध नहीं हो गया और जब वह बेहोश होने लगा, तो धनिया ने जमीन के कागज, जो उस ने गांव की बड़ी काकी के बेटे की मदद से पहले से ही तैयार करवा कर रखे हुए थे, पर बड़ी सफाई से कालिया का अंगूठा लगवा लिया.

रात को कालिया के पास जाने से पहले राजू ने एक मोबाइल फोन धनिया को दे दिया था और वीडियो बनाना  भी सिखा दिया था, जिस में बड़ी सफाई से धनिया ने वे सारी बातें वीडियो के रूप में रिकौर्ड कर ली थीं, जिन में कालिया छंगा की पोल खोलता नजर आ रहा था.

अगले दिन धनिया ने पंचायत बुलाई और फिर से छंगा और कालिया को बुलाया गया. धनिया ने जमीन के कागज पंचायत को दिखाए और बताया कि कालिया ने फिर जमीन उस के नाम कर दी है.

‘‘नहीं, यह मेरे अंगूठे का निशान नहीं है,’’ कालिया चिल्ला उठा, पर कालिया के अंगूठे की छाप भी मेल खा रही थी.

धनिया ने मोबाइल फोन पर बनाई गई वीडियो क्लिप भी पंचों को दिखाई, जिसे देख कर सरपंच ने फैसला सुनाया, ‘‘चूंकि जमीन के कागजों पर लगा हुआ कालिया का अंगूठा इस बात की साफ गवाही दे रहा है कि कालिया ने जमीन धनिया के नाम कर दी है, इसलिए अब उस जमीन पर धनिया का हक है.

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‘‘जहां तक बीरू की हत्या की बात है, उस की जांच के लिए हम ने पुलिस को खबर भेजी है. आगे की जांच पुलिस ही करेगी.’’

यह सुन कर छंगा और कालिया वहां से भागने की कोशिश करने लगे, पर वहां मौजूद गांव वालों ने उन्हें पकड़ लिया और पुलिस के आने पर हवाले कर दिया.

ये लम्हा कहां था मेरा- भाग 3

अभिनव काम में हुई देरी के कारण माफी मांग निकिता को सोने को कह देता और स्वयं भी बिस्तर पर लेटते ही बेसुध हो जाता. लेकिन एकदूसरे को पतिपत्नी का स्थान न दिए जाने के बावजूद भी इन 2-3 दिनों में दोनों के मन में एकदूसरे के प्रति मित्रता का भाव जन्म लेने लगा था. दिन में अकसर अपनाअपना काम करते हुए वे फोन पर बातचीत कर लेते थे. एकदूसरे से नई जगह और नए लोगों के विषय में अनुभव बांटना दोनों का अच्छा लगता था.

2 दिन बाद निकिता का पैरिस का काम पूरा हो गया और वह अपनी गाइड के साथ फ्रैंच रिविएरा के लिए रवाना हो गई. फ्रांस के दक्षिण पूर्व में भूमध्य सागर के तट पर बसे इस स्थान के विषय में सोचते हुए निकिता के मस्तिष्क में कांस फिल्म फैस्टिवल, मौजमस्ती के लिए बना विशाल खेल का मैदान, रेतीले बीच और नीस

में मनाए जाने वाले फूलों के कार्निवाल की छवि बन रही थी. मन चाह रहा था कि गाइड के स्थान पर अभिनव साथ होता तो लिखने की सामग्री जुटाने के साथसाथ ही वह दोस्ती का आनंद भी ले पाती.

नौनस्टौप फ्लाइट में लगभग डेढ़ घंटे का सफर तय कर वे नीस पहुंचे. एअरपोर्ट से निकल कर होटल जाने के लिए टैक्सी में बैठ निकिता खिड़की से बाहर झांकने लगी. साफ मौसम जहां निकिता के मन को सुकून दे रहा था, वहीं अभिनव की चाह को भी बढ़ा रहा था. ‘क्या इस समय मुझे सिर्फ एक दोस्त की जरूरत है? मेरी गाइड ऐलिस भी एक अच्छी मित्र बन गई है, फिर अभिनव ही क्यों याद आ रहा है मुझे बारबार?’

निकिता की सोच मोबाइल की रिंग बजने से टूट गई. अभिनव का फोन था अरे, मैं तो फ्लाइट से उतर कर अभिनव को फोन करना ही भूल गई. कुछ देर बातें करने के बाद फोन काटने से पहले अभिनव से मिसिंग यू सुन निकिता मंदमंद मुसकरा उठी.

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पैरिस में अभिनव का मन भी औफिस में नहीं लग रहा था. तबीयत खराब होने का बहाना कर वह अपने होटल आ गया. कुछ देर टीवी देखने के बाद वाशरूम गया तो निकिता के अंतर्वस्त्र दरवाजे के पीछे टंगे थे. ‘‘भुलक्कड़, कहीं की,’’ कहते हुए उस ने मुसकरा कर उन्हें दरवाजे से उतारा तो निकिता के परफ्यूम की खुशबू से उसे अपने भीतर एक उत्तेजना सी महसूस हुई.

बिस्तर पर लेटा तो लगा कि निकिता भी पास ही लेटी दिखती तो बैड यों सूनासूना न लगता. जब होटल के कमरे में भी उस का मन नहीं लगा तो टैक्सी ले कर ऐफिल टावर पहुंच गया. वहां मस्ती करते हुए जोड़ों को हाथ में हाथ डाले घूमते देख वह बेचैन होने लगा.

उधर निकिता नीस में होटल पहुंच कुछ देर आराम करने के बाद ऐलिस के साथ सी बीच की ओर चल दी. वहां का नजारा बहुत हसीन था. आराम से लेटे युवकयुवतियां भी थे वहां और छोटे बच्चों का हाथ पकड़ उन्हें टहलाते हुए हंसतेमुसकराते बुजुर्ग भी. निकिता को बारबार अभिनव का ही खयाल आ रहा था. लग रहा था कि उसे फोन कर बताए कि कितना मनोरम दृश्य है इधर.

वहां कुछ लोगों के विचार अपनी डायरी में नोट कर तसवीरें खींचने के बाद ऐलिस के साथ वह बाजार की ओर चल दी. विभिन्न प्रकार की वस्तुएं बेचते और पर्यटन की दृष्टि से कई महत्त्वपूर्ण बाजार हैं नीस में.

सब से पहले वे उस बाजार में पहुंचे जहां लोग अपने पुराने सामान को कम कीमत

पर बेचने व अन्य लोग उस में से अपनी जरूरत का सामान लेने आते हैं. निकिता दुकानदारों व लोगों से बातचीत में व्यस्त थी. ऐलिस वहां रखा सामान देखते हुए एक बड़ी सी घड़ी की ओर आकर्षित हो गई. उसे हाथों में उठा कर देखते हुए उस का पैर नीचे रखे सोफे से टकरा गया और धड़ाम से जमीन पर गिरते ही घड़ी का कांच टूट कर उस के हाथ में गड़ गया.

ऐलिस को ऐसी स्थिति में देख निकिता घबरा गई. आसपास खड़े लोगों में से किसी ने अस्पताल फोन कर ऐंबुलैंस मंगवा ली. अस्पताल पहुंचने पर कांच निकालने के लिए ऐलिस को औपरेशन थिएटर ले जाया गया. निकिता ने पब्लिशिंग हाउस में फोन कर ऐलिस के पति का मोबाइल नंबर लिया और घटना की जानकारी दे दी. औपरेशन चल ही रहा था कि ऐलिस के औफिस से कुछ लोग उस के पति के साथ वहां पहुंच गए.

निकिता ने तब अभिनव को फोन किया और सारी बात बताई. अभिनव ने सुनते ही नीस आने का निर्णय कर लिया.

‘‘अरे नहीं, ऐसा मत करो अभिनव… मैं कुछ देर बाद होटल लौट जाऊंगी और कल फिर अपने काम में लग जाऊंगी… मेरी फिक्र न करो तुम,’’ निकिता बोली.

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‘‘नहीं निकिता, अजनबी जगह है वह तुम्हारे लिए, मैं आ रहा हूं… और फिर तुम ने बताया कि अभी कोई नया गाइड भी प्रोवाइड नहीं कर पाएंगे पब्लिशर तुम्हें.’’

‘‘कोई बात नहीं, तुम्हें भी तो काम है न पैरिस में… मैं यहां डरूंगी नहीं… अकेली ही…’’

‘‘अरे डर तो मैं गया था तुम्हारा फोन सुन कर…जब तुम ने कहा न कि तुम अस्पताल से बोल रही हो तो मुझे लगा कि 2016 की तरह ही कहीं फिर से टैररिस्ट अटैक तो नहीं हो गया वहां… बस उस के बाद से अचानक फिक्र सी होने लगी है तुम्हारी… बस कुछ न कहो, मैं आ रहा हूं.’’

सच तो यह था कि निकिता कुछ कहना चाह भी नहीं रही थी. ऐलिस के चोटिल होने के बाद अचानक ही वह स्वयं को इतना अकेला महसूस करने लगी थी कि कुछ देर पहले तक यहां के लोगों की मुसकराहट उसे विद्रूप हंसी लगने लगी थी और प्रत्येक पुरुष उसे राजन जैसा लग रहा था.

अगले दिन पर्यटन स्थलों पर जा कर लेखन सामग्री एकत्र करना तो दूर उसे अस्पताल से होटल लौटने में ही अजीब सी दहशत हो रही थी.

हिम्मत जुटा कर होटल पहुंची तो अभिनव का फोन आ गया. उस ने बताया कि फ्लाइट में टिकट न मिलने के कारण वह ट्रेन से रहा है. वहां से हर 40 मिनट बाद नीस के लिए ट्रेन मिल जाती है. लगभग 6-7 घंटे की जर्नी होगी. रात तक वह नीस पहुंच जाएगा.

निकिता को अभिनव का आना बहुत अच्छा लग रहा था, साथ ही चिंता भी हो रही थी कि रात के समय कहीं ट्रेन से आते हुए उसे किसी प्रकार की समस्या का सामना न करना पड़े. घबराई सी वह अभिनव को बारबार फोन कर रही थी.

अभिनव उस की परेशानी को महसूस कर उस का ध्यान कहीं और लगाने के उद्देश्य से बोला, ‘‘तुम आराम करो न निकिता… ट्रेन में मेरे पास वाली सीट पर एक बहुत खूबसूरत हसीना बैठी है. फ्रांस की ब्यूटी से बात करने का मौका मिला है… थोड़ी देर तो मजे लेने दो जिंदगी के.’’

निकिता ने ओके कह कर फोन रख दिया और रोंआंसी हो उठी. अभिनव का किसी और को सुंदर कहना और उस में रूचि लेना उसे बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा था. ‘मैं ऐसा क्यों महसूस करने लगी हूं अभिनव के प्रति और खुद को असुरक्षित महसूस करने पर मुझे अभिनव की जरूरत क्यों लगने लगी है? क्यों राजन की छवि नहीं दिखाई दे रही मुझे अभिनव में?’ उस ने स्वयं से प्रश्न करने शुरू कर दिए और फिर उत्तर भी दे दिए, ‘क्यों लगेगा वह मुझे राजन जैसा? राजन ने निकिता को सिर्फ एक देह समझा और अभिनव… उस ने मेरे मन को जाना, मुझे यहां कैसा लग रहा होगा इस वक्त, वह अच्छी तरह समझ गया.

‘मेरे इतने करीब होने पर भी कभी मन नहीं डोला उस का और 7 फेरों में बंध जाने पर भी मेरे जिस्म को अपनी जागीर नहीं समझा उस ने. तभी तो मेरा जी चाह रहा है उस के कंधे पर सिर रख कर आंखें मूंद लूं और समर्पित कर दूं खुद को मन को ही नहीं, तन को भी…’

रात के लगभग 1 बजे पहुंच गया अभिनव. निकिता उसे देख कर खिल उठी. उस का झीनी गुलाबी नाइटी पहने अपनी स्नेहिल आंखों और प्रेम भरी मुसकान से स्वागत करना अभिनव को बहुत अच्छा लगा.

‘‘मैं चेंज कर लेती हूं, फिर चलते हैं डाइनिंग हौल में,’’ कह कर निकिता उठने लगी तो अभिनव ने उस का हाथ पकड़ कर अपने पास बैठा लिया, ‘‘नहीं, रूम में ही मंगा लेते हैं कुछ… मेरे पास बैठी रहो आज… बहुत कुछ बताना है तुम्हें… बस मैं आया अभी,’’ कह कर अभिनव वाशरूम में फ्रैश होने चला गया.

निकिता ने कमरे में अनियन टार्ट और कौफी मंगवा ली.

अभिनव फ्रैश हो कर लौटा तो दोनों कौफी के घूंट भरने लगे. अभिनव तो जैसे आज निकिता के सामने अपना मन खोल देने को व्याकुल हो रहा था. बिना किसी लागलपेट को बोल उठा, ‘‘निकिता, पता है मैं शादी नहीं करना चाहता था?’’

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‘‘मतलब?’’ निकिता का मुंह आश्चर्य से खुला रह गया.

कुछ पल की चुप्पी के बाद अभिनव ने आपबीती सुना दी निकिता को.

‘‘निकिता इस बात को सुनने के बाद क्या तुम मुझ पर यकीन रख पाओगी… सच बताना क्या तुम्हें लगता हूं मैं वैसा जैसा सोनाली ने इलजाम लगा मुझे बना दिया था?’’ वह रुंधे गले से निकिता की ओर देखते हुए बोला.

‘‘अभिनव स्त्री के बारे में कहा जाता है कि वह पुरुष की फितरत उस की आंखें देख कर ही जान जाती है. सच कहूं तो आज मुझे बहुत दुख हो रहा है कि आप जैसे इंसान पर ऐसे आरोप लगे. भेड़ और भेडि़ए का फर्क समझ आता है मुझे. आप चाहते तो अपने शरीर की भूख मिटा सकते थे इन बीते 3 दिनों में, पर आप जब तक मेरे दिल तक नहीं पहुंचे शरीर तक पहुंचना बेमानी लगा आप को… आप के लिए बहुत इज्जत है मेरे मन में,’’ निकिता एक सांस में ही सब बोल गई.

‘‘निकिता, तुम्हारा इस प्रकार मुझ पर विश्वास करना… बता नहीं सकता कि तुम ने मुझ पर कितना बड़ा एहसान किया है.’’

‘‘अभिनव अपने जीवन की किताब भी आज मैं खोल देना चाहती हूं तुम्हारे सामने… मैं भी शादी नहीं करना चाहती थी,’’ कह कर निकिता बेबस चेहरा लिए अभिनव की ओर देखने लगी.

‘‘मुझे सब पता है निकिता, तुम्हें कुछ बताने की जरूरत नहीं,’’ निकिता की ओर स्नेह से देखता हुआ अभिनव बोला.

‘‘क्या पता है?’’ हक्कीबक्की सी हो निकिता ने पूछा.

‘‘निकिता तुम्हारी एक सहेली थी न अदीबा नाम की, जो पुणे में तुम्हारे साथ पीजी में रहती थी, उस का भाई हाशिम मेरा दोस्त है. कुछ समय पहले वह अपनी बहन की एक सहेली के लिए हमारे औफिस में जौब की बात करने आया था. मेरा अच्छा दोस्त है, इसलिए बहन की उस सहेली के विषय में सब बताया था उस ने.उस सहेली पर किस प्रकार उस के ही पिता के दोस्त ने बुरी नजर डाली थी, यह बताते हुए उस ने मुझ से कहा था कि बहन की सहेली के लिए जल्द से जल्द नौकरी का इंतजाम करना है तो कि वह पिछला सब भूल कर सामान्य जीवन बिताने लगे.‘‘तुम एक दिन जब अदीबा के साथ हाशिम के पास आई थीं तो मैं ने देख लिया था. फिर जब तुम्हें देखने तुम्हारे घर आया तो तुम्हारे चेहरे के भाव देख कर समझ गया कि विवाह बंधन में तुम भी बंधना नहीं चाहती, पर जब तुम्हारी ओर से हां में जवाब मिला और उधर दादाजी बीमार हुए तो मैं ने भी हां कह दी. आज तुम ने जो विश्वास मुझ पर दिखाया, मैं एहसानमंद हो गया हूं तुम्हारा. हां, एक बात और तुम उस बुरे हादसे को बिलकुल भूल जाओ, मैं हूं न साथ,’’ अभिनव ने अपनी बात पूरी करने से पहले ही निकिता का हाथ अपने हाथों में ले लिया.

बिस्तर पर आतेआते रात के 3 बज चुके थे. नाइट लैंप की हलकी रोशनी में

अभिनव की आंखों में नींद की जगह मदहोशी छलक रही थी. उस मदहोशी का असर निकिता पर भी हो रहा था और वह अभिनव के आकर्षण से स्वयं को अलग नहीं कर पा रही थी. कुछ देर तक दोनों पलकें मूंदें लेट कर बातचीत शुरू करने की एकदूसरे की पहल का इंतजार करते रहे.

आखिर चुप्पी को तोड़ते हुए अभिनव बोला, ‘‘निकिता एक बात कहना चाहता हूं.’’

‘‘कहो न,’’ अभिनव के मोहपाश में जकड़ी निकिता उस की ओर प्रेमभरी दृष्टि डालते हुए बोली.

‘‘सोच रहा हूं तुम्हें फ्रांस पर बहुत कुछ लिखना है, इस के लिए जानकारी जुटा रही हो तुम. इस प्रेम नगरी में आ कर क्या फ्रैंच किस पर कुछ नहीं लिखना चाहोगी?’’ शरारत से मुसकराते हुए अभिनव बोला.

‘‘कैसे लिखूंगी? मुझे कहां पता है कुछ फ्रैंच किस के बारे में,’’ निकिता अदा से बोली.

अभिनव खिसक कर निकिता के पास आ गया और फिर उस के चेहरे पर चुंबनों की बौछार कर दी. निकिता का पोरपोर भीगा जा रहा था. कितना खूबसूरत और बेशकीमती

था वह लमहा, जो अब तक उन के भीतर ही छिपा था पर उसे महसूस करवाने वाला आज मिला था उन्हें.

‘‘ऐलिस बाजार में घड़ी की सुंदरता को निहार ही रही थी कि अचानक उस का पैर फिसला और…’’

‘‘झीनी गुलाबी नाइटी पहने निकिता ने जब रात को अभिनव का स्वागत किया तो वह खुशी से झूम उठा…’’

विदाई- भाग 3: क्या कविता को नीरज का प्यार मिला?

‘‘दुनिया छोड़ कर जल्दी जाने वाली कविता के साथ इतना मोह रखना ठीक नहीं है नीरज,’’ उस की मां, अकसर अकेले में उसे समझातीं, ‘‘तुम्हारी जिंदगी अभी आगे भी चलेगी, बेटे. कोई ऐसा तेज सदमा दिमाग में मत बैठा लेना कि अपने भविष्य के प्रति तुम्हारी कोई दिलचस्पी ही न रहे.’’

नीरज हमेशा हलकेफुलके अंदाज में उन्हें जवाब देता, ‘‘मां, कविता इतने कम समय के लिए हमारे साथ है कि हम उसे अपना मेहमान ही कहेंगे और मेहमान की विदाई तक उस की देखभाल, सेवा व आवभगत में कोई कमी न रहे, मेरी यही इच्छा है.’’

वक्त का पहिया अपनी धुरी पर निरंतर घूमता रहा. कविता की शारीरिक शक्ति घटती जा रही थी. नीरज ने अगर उस के होंठों पर मुसकान बनाए रखने को जी जान से ताकत न लगा रखी होती तो अपनी तेजी से करीब आ रही मौत का भय उस के वजूद को कब का तोड़ कर बिखेर देता.

एक दिन चाह कर भी वह घर से बाहर जाने की शक्ति अपने अंदर नहीं जुटा पाई. उस दिन उस की खामोशी में उदासी और निराशा का अंश बहुत ज्यादा बढ़ गया.

उस रात सोने से पहले कविता नीरज की छाती से लग कर सुबक उठी. नीरज उसे किसी भी प्रकार की तसल्ली देने में नाकाम रहा.

‘‘मुझे इस एक बात का सब से ज्यादा मलाल है कि हमारे प्रेम की निशानी के तौर पर मैं तुम्हें एक बेटा या बेटी नहीं दे पाई… मैं एक बहू की तरह से…एक पत्नी के रूप में असफल हो कर इस दुनिया से जा रही हूं…मेरी मौत क्या 2-3 साल बाद नहीं आ सकती थी?’’ कविता ने रोंआसी हो कर नीरज से सवाल पूछा.

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‘‘कविता, फालतू की बातें सोच कर अपने मन को परेशान मत करो,’’ नीरज ने प्यार से उस की नाक पकड़ कर इधरउधर हिलाई, ‘‘मौत का सामना आगेपीछे हम सब को करना ही है. इस शरीर का खो जाना मौत का एक पहलू है. देखो, मौत की प्रक्रिया पूरी तब होती है जब दुनिया को छोड़ कर चले गए इनसान को याद करने वाला कोई न बचे. मैं इसी नजरिए से मौत को देखता हूं. और इसीलिए कहता हूं कि मेरी अंतिम सांस तक तुम्हारा अस्तित्व मेरे लिए कायम रहेगा…मेरे लिए तुम मेरी सांसों में रहोगी… मेरे साथ जिंदा रहोगी.’’

कविता ने उस की बातों को बड़े ध्यान से सुना था. अचानक वह सहज ढंग से मुसकराई और उस की आंखों में छाए उदासी के बादल छंट गए.

‘‘आप ने जो कहा है उसे मैं याद रखूंगी. मेरी कोशिश रहेगी कि बचे हुए हर पल को जी लूं… बची हुई जिंदगी का कोई पल मौत के बारे में सोचते हुए नष्ट न करूं. थैंक यू, सर,’’ नीरज के होंठों का चुंबन ले कर कविता ने बेहद संतुष्ट भाव से आंखें मूंद ली थीं.

आगामी दिनों में कविता का स्वास्थ्य तेजी से गिरा. उसे सांस लेने में कठिनाई होने लगी. शरीर सूख कर कांटा हो गया. खानापीना मुश्किल से पेट में जाता. शरीर में जगहजगह फैल चुके कैंसर की पीड़ा से कोई दवा जरा सी देर को भी मुक्ति नहीं दिला पाती.

अपनी जिंदगी के आखिरी 3 दिन उस ने अस्पताल के कैंसर वार्ड में गुजारे. नीरज की कोशिश रही कि वह वहां हर पल उस के साथ बना रहे.

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‘‘मेरे जाने के बाद आप जल्दी ही शादी जरूर कर लेना,’’ अस्पताल पहुंचने के पहले दिन नीरज का हाथ अपने हाथों में ले कर कविता ने धीमी आवाज में उस से अपने दिल की बात कही.

‘‘मुझे मुसीबत में फंसाने वाली मांग मुझ से क्यों कर रही हो?’’ नीरज ने जानबूझ कर उसे छेड़ा.

‘‘तो क्या आप मुझे अपने लिए मुसीबत समझते रहे हो?’’ कविता ने नाराज होने का अभिनय किया.

‘‘बिलकुल नहीं,’’ नीरज ने प्यार से उस की आंखों में झांक कर कहा, ‘‘तुम तो सोने का दिल रखने वाली एक साहसी स्त्री हो. बहुत कुछ सीखा है मैं ने तुम से.’’

‘‘झूठी तारीफ करना तो कोई आप से सीखे,’’ इन शब्दों को मुंह से निकालते समय कविता की खुशी देखते ही बनती थी.

कविता का सिर सहलाते हुए नीरज मन ही मन सोचता रहा, ‘मैं झूठ नहीं कह रहा हूं, कविता. तुम्हारी मौत को सामने खड़ी देख हमारी साथसाथ जीने की गुणवत्ता पूरी तरह बदल गई. हमारी जीवन ज्योति पूरी ताकत से जलने लगी… तुम्हारी ज्योति सदा के लिए बुझने से पहले अपनी पूरी गरिमा व शक्ति से जलना चाहती होगी…मेरी ज्योति तुम्हें खो देने से पहले तुम्हारे साथ बीतने वाले एकएक पल को पूरी तरह से रोशन करना चाहती है. जीने की सही कला…सही अंदाज सीखा है मैं ने तुम्हारे साथ पिछले कुछ हफ्तों में. तुम्हारे साथ की यादें मुझे आगे भी सही ढंग से जीने को सदा उत्साहित करती रहेंगी, यह मेरा वादा रहा तुम से…भविष्य में किसी अपने को विदाई देने के लिए नहीं, बल्कि हमसफर बन कर जिंदगी का भरपूर आनंद लेने के लिए मैं जिऊंगा क्योंकि जिंदगी के सफर का कोई भरोसा नहीं.’

जब 3 दिन बाद कविता ने आखिरी सांस ली तब नीरज का हाथ उस के हाथ में था. उस ने कठिनाई से आंखें खोल कर नीरज को प्रेम से निहारा. नीरज ने अपने हाथ पर उस का प्यार भरा दबाव साफ महसूस किया. नीरज ने झुक कर उस का माथा प्यार से चूम लिया.

कविता के होंठों पर छोटी सी प्यार भरी मुसकान उभरी. एक बार नीरज के हाथ को फिर प्यार से दबाने के बाद कविता ने बड़े संतोष व शांति भरे अंदाज में सदा के लिए अपनी आंखें मूंद लीं.

नीरज ने देखा कि इस क्षण उस के दिलोदिमाग पर किसी तरह का बोझ नहीं था. इस मेहमान को विदा कहने से पहले उस की सुखसुविधा व मन की शांति के लिए जो भी कर सकता था, उस ने खुशीखुशी व प्रेम से किया. तभी तो उस के मन में कोई टीस या कसक नहीं उठी.

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विदाई के इन क्षणों में उस की आंखों से जो आंसुओं की धारा लगातार बह रही थी उस का उसे कतई एहसास नहीं था.

Serial Story: धनिया का बदला- भाग 2

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

‘‘अरे धनिया, आप चिंता क्यों करती हो… आप तो बस दवा खाओ और आराम करो… हम खाना भी बना लेंगे और बच्चों को भी संभाल लेंगे,’’ छंगा कह रहा था. उस की बात सुन कर खटिया पर लेटी हुई धनिया की आंखों में आंसू आ गए.

बीरू के मर जाने के बाद उस के हिस्से की जमीन धनिया के नाम कर दी गई थी. छंगा के मन में तो खोट था. वह उस जमीन को अपने नाम पर करा कर धनिया से छुटकारा पाना चाहता था, इसलिए एक दिन जब धनिया बुखार की दवा खा कर सो रही थी, तब धोखे से छंगा ने जमीन के कागजों पर धनिया का अंगूठा लगवा लिया.

शायद छंगा को इसी दिन का इंतजार ही था कि कागजों पर अंगूठा लग जाए और वह अकेला ही इस जमीन पर  राज करे.

जब कुछ दिनों बाद धनिया की सेहत में सुधार हो गया, तब उस ने गौर किया कि छंगा का उस के और उस की बेटियों के प्रति बरताव बदल सा गया है. जहां पहले वह बच्चियों के लिए खानेपीने की चीजें लाता था, वहीं अब वह खाली हाथ चला आता है और सीधे मुंह बात भी नहीं करता और उन्हें मारनापीटना भी शुरू कर दिया है.

‘‘अब तो तुम्हारा बुखार सही हो गया है… कुछ कामधाम भी किया करो… सारा दिन तुम्हारे बच्चे मुझे तंग करते रहते हैं और मेरे पैसे खर्च करवाते हैं. अब इन का और खर्चा मुझ से नहीं उठाया जाता,’’ छंगा गरज रहा था.

‘शायद बाहर की कुछ परेशानी होगी, तभी तो ऐसे कह रहा है छंगा, नहीं तो मीठा बोलने वाला छंगा इतना कड़वा क्यों बोलता,’ ऐसा सोच कर धनिया खुद ही खेत की तरफ सब्जी तोड़ने चल दी.

खेत पर पहुंचते ही उस की आंखें हैरत से फटी रह गईं. खेत में खड़े नीम के पेड़ की छांव में गांव के कुछ मुस्टंडे शराब और मांस खा रहे थे.

‘‘तुम लोग मेरे खेत में गंदगी क्यों फैला रहे हो… क्या तुम लोगों को और कोई जगह नहीं मिली… चलो, भागो यहां से,’’ धनिया चीख रही थी.

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‘‘तुम्हारा खेत… पर, यह खेत तो तुम अपनी मरजी से छंगा के नाम पर चुकी हो… और उसी ने हमें यहां बुला कर खानेपीने का इंतजाम करवाया है. अगर हमारी बात पर यकीन न आ रहा हो, तो पंचायत बुला कर पूछ लो,’’ उन में से एक ने धनिया से कहा.

धनिया ने उन लोगों को तो किसी तरह वहां से चलता किया, पर उन लोगों की बात उस के कानों में गूंजती रही.

धनिया घर लौटी, तो अपनी बेटियों को उस ने दरवाजे पर ही रोते पाया.

‘‘देखो अम्मां… पापा ने हमें मार कर घर से बाहर निकाल दिया है,’’ एक बेटी ने बताया.

धनिया का दिल दहल उठा था. उस ने बाहर से ही छंगा को आवाज लगाई.

‘‘अब मुझे तेरी जरूरत नहीं है… तू मेरी जिंदगी से चली जा, तुझ में है ही क्या? भला कोई 2 बेटियों की मां के साथ कैसे खुश रह सकता है,’’ छंगा अंदर से ही बोला और दरवाजा बंद  कर लिया.

रोती हुई धनिया पंचायत पहुंची. पंचों ने तुरंत ही छंगा को तलब किया और उस से पूछा कि जिस औरत के साथ अभी कुछ दिन पहले ही तुम ने ब्याह किया है, आज उस के साथ ऐसा सुलूक क्यों कर रहे हो?

‘‘भला मैं ऐसा सुलूक करने वाला कौन होता हूं… इस कागज पर खुद धनिया का अंगूठा लगा है और जिस में लिखा हुआ है कि मैं अब अपनी सारी खेती छंगा के नाम कर रही हूं और अपनी मरजी से छंगा का घर छोड़ कर जा रही हूं, इसलिए भविष्य में उसे मेरा पति और मुझे उस की पत्नी न समझा जाए,’’ कह कर छंगा ने कागज आगे बढ़ा दिया.

पंचों ने उन कागजों को उलटापलटा. कागज पर यही लिखा हुआ था, जिस के नीचे धनिया का अंगूठा भी लगा हुआ था.

‘‘तुम ने तो अपनी मरजी से ही ये सब किया है… यह अंगूठे का निशान तो तुम्हारा ही है न?’’ पंचों में से  एक ने कागज दिखाते हुए पूछा.

धनिया हैरान थी. अंगूठे का निशान तो उसी का था, पर भला वह क्यों ऐसा करने लगी? यह सोच कर वह परेशान हो उठी.

कागजों के आगे पंच भी मजबूर थे, इसलिए उन्होंने छंगा के हक में फैसला सुना दिया और धनिया सड़क पर आ गई.

रात हुई तो धनिया को डर लगने लगा. कुछ सोच कर वह बेटियों को ले कर अपने घर गई. दरवाजा अंदर से भिड़ा हुआ था. सामने छंगा बैठा हुआ ढेर सारे नोटों की गड्डियां गिन रहा था.

धनिया सन्न रह गई थी, उस की आंखें फटी की फटी रह गई थीं. आखिरकार आज से पहले इतना पैसा तो छंगा के पास नहीं देखा था उस ने.

‘‘ऐसे चुड़ैल की तरह क्या देख रही है… क्या कभी पैसा नहीं देखा… और फिर मेरे घर क्यों आई हो, जब तुझे पंचायत में शिकायत ले कर जाना ही है… अब मुझे तेरा साथ नहीं चाहिए,’’ छंगा ने धनिया को देख कर कहा.

‘‘मैं कोई भीख मांगने नहीं आई… मेरे हिस्से की जमीन…’’

‘‘तेरी कोई जमीन नहीं… और जो जमीन तू ने मेरे नाम कर दी थी, वह भी मैं ने कालिया को बेच दी है,’’ कह कर छंगा ने दरवाजा बंद कर दिया था.

Serial Story- एक तवायफ मां नहीं हो सकती: भाग 1

यह उन दिनों की बात है जब मैं पंजाब के एक छोटे से शहर के एक थाने में तैनात था. एक दिन दोपहर लगभग 3 बजे एक अधेड़ उम्र की औरत थाने में आई, उस के साथ 2 आदमी भी थे. उन्होंने बताया कि एक औरत मर गई है, उन्हें शक है कि उस की हत्या की गई है. पूछने पर उन्होंने बताया कि उन्हें संदेह इसलिए है कि देखने से ऐसा लग रहा है जैसे उसे जहर दिया गया हो.

मैं ने देखा मर्द बोल रहे थे लेकिन औरत चुप थी. मैं ने पूछा रिपोर्ट किस की ओर से लिखी जाएगी. उन्होंने औरत की ओर इशारा कर दिया. वे दोनों मर्द उस के पड़ोसी थे. औरत का नाम शादो था और मरने वाली का नाम सरदारी बेगम. मैं ने मरने वाली से उस का संबंध पूछा तो उस ने बताया कि मरने वाली उस की सौतन थी. उस के पति का 9 महीने पहले देहांत हो चुका था. सौतनों के झगड़े होना मामूली बात है. मैं ने भी इसी तरह का केस समझ कर रिपोर्ट लिख ली और उनके घर पहुंच गया.

मैं ने लाश को देखा तो लगा कि मृतका को जहर दिया गया है. मैं ने कागजी काररवाई कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और केस की जांच में लग गया. मैं ने देखा कि घर में एक ओर चीनी की प्लेट में थोड़ा सा हलवा रखा हुआ था, उस में से कुछ हलवा खाया भी गया था.

मैं ने अनुमान लगाया कि मृतका को हलवे में जहर मिला कर खिलाया गया होगा. मैं ने उस हलवे को जाब्ते की काररवाई में शामिल कर के उसे मैडिकल टेस्ट के लिए भेज दिया. मैडिकल रिपोर्ट आने पर ही आगे की काररवाई की जा सकती थी.

शादो से मैं ने पूरी जानकारी ली तो पता लगा कि उस के और सरदारी बेगम के पति का नाम मसूद अहमद था. वह छोटामोटा कारोबार करते थे. सरदारी बेगम अपने पति की दूर की रिश्तेदार भी थी, जबकि शादो की उन से कोई रिश्तेदारी नहीं थी. सरदारी बेगम से मसूद के 2 बेटे और एक बेटी थी. जबकि शादो से कोई संतान नहीं थी. तीनों बच्चों की शादी हो चुकी थी. लड़की अपने घर की थी और दोनों लड़के मांबाप से अलग रहते थे. शादो ने कहा कि उन दोनों को उन की मां के मरने की जानकारी दे दी गई है.

शादो से जो जानकारी मिली, वह संक्षेप में लिख रहा हूं. मसूद अहमद का कारोबार ठीकठाक चल रहा था. उन्होंने शादो से चोरीछिपे शादी कर ली थी और उसे एक अलग मकान में रखा हुआ था. इसी बीच मसूद बीमार पड़ गए. उन की हालत दिनबदिन गिरती जा रही थी. तभी एक दिन उन्होंने सरदारी बेगम से कहा कि उन्होंने चोरी से एक और शादी की हुई है.

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यह सुन कर सरदारी बेगम को दुख तो हुआ लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था. मसूद अहमद ने दूसरी पत्नी शादो को बुला कर उस का हाथ सरदारी बेगम के हाथ में दे कर कहा कि मेरा कोई भरोसा नहीं है कि मैं कितने दिन जिऊंगा. मेरे बाद तुम शादो का खयाल रखना, क्योंकि इस के आगेपीछे कोई नहीं है. मैं तुम्हारी खानदानी शराफत की वजह से इस का हाथ तुम्हें दे रहा हूं और उम्मीद करता हूं कि तुम इस का खयाल रखोगी.

सरदारी बेगम ने मसूद से वादा किया कि वह शादो का पूरा खयाल रखेगी और उसे कभी भी अकेला नहीं छोड़ेगी. इस के कुछ दिन बाद ही मसूद का देहांत हो गया.

सरदारी बेगम ने शादो को अपने पास बुला कर रख लिया और उस से कहा कि वह उसे सौतन की तरह नहीं, बल्कि अपनी सगी बहन की तरह रखेगी. शादो के इस तरह घर में आ कर रहने से सरदारी के दोनों बेटे खुश नहीं थे. न ही उन्होंने उसे अपनी सौतेली मां माना. उस के आने से घर में रोज झगड़े होने लगे. हालात से तंग आ कर सरदारी बेगम शादो के उस मकान में चली गई, जिस में वह रहा करती थी.

दोनों बेटे इस बात से खुश थे, लेकिन दुनियादारी निभाने के लिए मां से कहते थे कि तुम हमारे पास आ जाओ, लेकिन शादो को साथ नहीं लाना. सरदारी ने कहा कि मैं मरते दम तक अपने पति से किया वादा पूरा करूंगी और शादो का साथ नहीं छोड़ सकती.

महीने-2 महीने में सरदारी बेगम अपने बेटों से मिलने चली जाती थी. बड़ा बेटा मां से खुश नहीं था. वह कहता था कि शादो को छोड़ कर यहां आ जाओ, लेकिन वह इस के लिए तैयार नहीं थी.

बड़े बेटे शरीफ ने बहाने बना कर अपने पिता के कारोबार और बैंक में जमा रकम पर कब्जा कर लिया था. इस से उन दोनों को खानेपीने की तंगी होने लगी. सरदारी बेगम पढ़ीलिखी थी, उस ने घर में बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया.

शादो ने एक स्कूल की हेडमिस्ट्रैस से मिल कर अपने लिए स्कूल में छोटेमोटे कामों के लिए नौकरी कर ली. इस तरह उन की आय बढ़ गई और खानेपीने का इंतजाम हो गया. शरीफ अपनी मां से बारबार शादो को छोड़ने के लिए कहा करता था लेकिन वह किसी तरह भी तरह तैयार नहीं होती थी. इस से शरीफ अपनी मां से बहुत नाराज था.

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जिस दिन सरदारी बेगम का देहांत हुआ था, उस दिन शादो स्कूल से अपनी ड्यूटी पूरी कर के घर पहुंची तो देखा सरदारी बेगम मर चुकी हैं. वह रोनेचीखने लगी. मोहल्ले वाले इकट्ठा हो गए. उन्होंने लाश को देखा तो मृतका का रंग देख कर उन्हें भी लगा कि उसे जहर दिया गया है या उस ने खुद जहर खा लिया है, इसलिए पुलिस में रिपोर्ट करनी जरूरी है. और इस तरह वे 2 आदमी शादो के साथ रिपोर्ट लिखाने थाने आए थे.

अगले दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई, जिस में लिखा था कि मृतका की मौत जहर के कारण हुई है. उस के पेट में जो हलवे की मात्रा निकली, वह हजम नहीं हुई थी, उस में जहर मिला हुआ था. शाम तक हलवे के टेस्ट की रिपोर्ट भी आ गई. रिपोर्ट में लिखा था कि हलवे में संखिया की मात्रा पाई गई है. संखिया को अंगरेजी में आर्सेनिक कहते हैं. यह इंसान के लिए बहुत खतरनाक होता है.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट और मैडिकल टेस्ट से यह बातसाफ हो गई कि सरदारी बेगम को जहर दे कर मारा गया था. मैं ने शादो से पूछा कि क्या उस दिन घर में हलवा बना था? लेकिन उस ने इस बात से इनकार कर दिया.

Valentine’s Special- कड़ी: भाग 3

अपूर्वा को यह संभव नहीं लगता क्योंकि उसे और आलोक को अभी तक तो एकदूसरे से कोई ऐसा लगाव है नहीं कि वह ग्रीनकार्ड वापस कर के भारत आ जाए. और अब जब उसे विवेक पसंद आ गया है तो वह कोशिश भी नहीं करेगी. हमें जबरदस्ती ही करनी पड़ेगी दोनों औरतों के साथ.’’

‘‘देखिए धर साहब, अपनी इज्जत तो सभी को प्यारी होती है खासकर अभिजात्य वर्ग की महिलाओं को अपने सोशल सर्किल में,’’ निखिल ने नम्रता से कहा, ‘‘जबरदस्ती करने से तो वे बुरी तरह बिलबिला जाएंगी और उन के ताल्लुकात अपूर्वा और विवेक के साथ हमेशा के लिए बिगड़ सकते हैं.’’

‘‘अपूर्वा और विवेक से ही नहीं, मेरे और केशव नारायण से भी बिगड़ेंगे लेकिन इन सब फालतू बातों से डर कर हम बच्चों की जिंदगी तो खराब नहीं कर सकते न?’’

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‘‘कुछ खराब करने की जरूरत नहीं है, धर साहब. धैर्य और चतुराई से बात बन सकती है,’’ निखिल ने कहा, ‘‘मैं यह प्रतियोगिता जीतने की खुशी के बहाने आप को सपरिवार क्लब में डिनर पर आमंत्रित करूंगा और अपनी ससुराल वालों को भी. फिर देखिए मैं क्या करता हूं.’’

जस्टिस धर ने अविश्वास से उस की ओर देखा. निखिल ने धीरेधीरे उन्हें अपनी योजना बताई. जस्टिस धर ने मुसकरा कर उस का हाथ दबा दिया.

निखिल का निमंत्रण सुकन्या ने खुशी से स्वीकार कर लिया. क्लब में बैठने की व्यवस्था देख कर उस ने निखिल से पूछा कि कितने लोगों को बुलाया है?

‘‘केवल जस्टिस धरणीधर के परिवार को?’’

‘‘उन्हें ही क्यों?’’ सुकन्या ने चौंक कर पूछा.

‘‘क्योंकि जस्टिस धर ने मैच जीतने की खुशी में मुझ से दावत मांगी थी. सो, बस, उन्हें बुला लिया और लोगों को बगैर मांगे छोटी सी बात के लिए दावत देना अच्छा नहीं लगता न,’’ निखिल ने समझाने के स्वर में कहा.

तभी धर परिवार आ गया. विवेक और अपूर्वा बड़ी बेतकल्लुफी से एकदूसरे से मिले और फिर बराबर की कुरसियों पर बैठ गए, जस्टिस धर ने आश्चर्य व्यक्त किया, ‘‘तुम एकदूसरे को जानते हो?’’

‘‘जी पापा, बहुत अच्छी तरह से,’’ अपूर्वा ने कहा, ‘‘हम दोनों रोज सुबह टैनिस खेलते हैं.’’

‘‘और तकरीबन 24 घंटे बराबर की कुरसियों पर बैठे रहे हैं अमेरिका से लौटते हुए,’’ विवेक ने कहा.

‘‘शीलाजी, आप ने शादी से पहले कुछ समय अपने साथ गुजारने को बेटी को दिल्ली बुला ही लिया?’’ सुकन्या ने पूछा.

‘‘नहीं आंटी, मैं खुद ही आई हूं,’’ अपूर्वा बोली, ‘‘मम्मी तो अभी भी वापस जाने को कह रही हैं लेकिन मैं नहीं जाने वाली. मुझे अमेरिका पसंद ही नहीं है.’’

‘‘लेकिन तुम्हारी सगाई तो अमेरिका में हो चुकी है,’’ सुकन्या बोली.

‘‘सगाईवगाई कुछ नहीं हुई है,’’ जस्टिस धर बोले, ‘‘बस, हम ने लड़का पसंद किया और उस के मांबाप ने हमारी लड़की. लड़का फिलहाल किसी प्रोजैक्ट पर काम कर रहा है और जब तक प्रोजैक्ट पूरा न हो जाए वह सगाईशादी के चक्कर में पड़ कर ध्यान बंटाना नहीं चाहता. एक तरह से अच्छा ही है क्योंकि उस के प्रोजैक्ट के पूरे होने से पहले ही मेरी बेटी को एहसास हो गया है कि वह कितनी भी कोशिश कर ले उसे अमेरिका पसंद नहीं आ सकता.’’

‘‘विवेक की तरह,’’ केशव नारायण ने कहा, ‘‘इस के मामा ने इसे वहां व्यवस्थित करने में बहुत मदद की थी, नौकरी भी अच्छी मिल गई थी लेकिन जैसे ही यहां अच्छा औफर मिला, यह वापस चला आया.’’

‘‘सुव्यवस्थित होना या अच्छी नौकरी मिलना ही सबकुछ नहीं होता, अंकल,’’ अपूर्वा बोली, ‘‘जिंदगी में सकून या आत्मतुष्टि भी बहुत जरूरी है जो वहां नहीं मिल सकती.’’

‘‘यह तो बिलकुल विवेक की भाषा बोल रही है,’’ निकिता ने कहा.

‘‘भाषा चाहे मेरे वाली हो, विचार इस के अपने हैं,’’ विवेक बोला.

‘‘यानी तुम दोनों हमखयाल हो?’’ निखिल ने पूछा.

‘‘जी, जीजाजी, हमारे कई शौक और अन्य कई विषयों पर एक से विचार हैं.’’

‘‘यह तो बड़ी अच्छी बात है,’’ निखिल शीला और सुकन्या की ओर मुड़ा, ‘‘आप इन दोनों की शादी क्यों नहीं कर देतीं.’’

‘‘क्या बच्चों वाली बातें कर रहे हो निखिल?’’ सुकन्या ने चिढ़े स्वर में कहा, ‘‘ब्याहशादी में बहुतकुछ देखा जाता है. क्यों शीलाजी?’’

‘‘आप ठीक कहती हैं, सिर्फ मिजाज का मिलना ही काफी नहीं होता,’’ शीला ने हां में हां मिलाई.

‘‘और क्या देखा जाता है?’’ निखिल ने चिढ़े स्वर में पूछा. ‘‘कुल गोत्र, पारिवारिक स्तर, और योग्यता वगैरा, वे तो दोनों के ही खुली किताब की तरह सामने हैं बगैर किसी खामी के…’’

‘‘फिर भी यह रिश्ता नहीं हो सकता,’’ सुकन्या और शीला एकसाथ बोलीं.

‘‘क्योंकि इस पर वरवधू की माताओं के महिला क्लब के सदस्यों की स्वीकृति की मुहर नहीं लगी है,’’ जस्टिस धर ने कहा.

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‘‘यह तो आप ने बिलकुल सही फरमाया, जज साहब,’’ केशव नारायण ठहाका लगा कर हंसे, ‘‘वही मुहर तो सुकन्या और शीलाजी की मानप्रतिष्ठा का प्रतीक है.’’ दोनों महिलाओं ने आग्नेय नेत्रों से अपनेअपने पतियों को देखा, इस से पहले कि वे कुछ बोलतीं, निखिल बोल पड़ा, ‘‘उन की मुहर मैं लगवा दूंगा, उन्हें एक बढि़या सी दावत दे कर जिस में विवेक और अपूर्वा सब के पांव छू कर आशीर्वाद के रूप में स्वीकृति प्राप्त कर लेंगे.’’

‘‘आइडिया तो बहुत अच्छा है, निखिल, लेकिन कन्या और वर की माताओं की समस्या का हल नहीं है,’’ जस्टिस धर ने उसांस ले कर कहा, ‘‘असल में शीला ने सब को बताया हुआ है कि उस का होने वाला दामाद अमेरिका में रहता है.’’

‘‘यह बात तो है,’’ निखिल कुछ सोचते हुए बोला, ‘‘आप ने सब को लड़के का नाम वगैरा बताया है आंटी?’’

‘‘नहीं, बस इतना ही बताया था कि अमेरिका में अनिल के पड़ोस में रहता है. हमें अच्छा लगा और हम ने अपूर्वा के लिए पसंद कर लिया.’’

‘‘उस के मांबाप के बारे में बताया था?’’

‘‘कुछ नहीं. किसी ने पूछा भी नहीं.’’

‘‘तो फिर तो समस्या हल हो गई, साले साहब भी तो अमेरिका से ही लौटे हैं, इन्हें अनिल का पड़ोसी बना दीजिए न. आप ने तो विवेक का अमेरिका का एड्रैस अपनी सहेलियों को नहीं दिया हुआ न, मां?’’ निखिल ने सुकन्या से पूछा.

‘‘हमारी सहेलियों को यह सब पूछने की फुरसत नहीं है, निखिल. लेकिन वे इतनी बेवकूफ भी नहीं हैं कि तुम्हारी बचकानी बातें सुन कर यह मान लें कि विवेक वही लड़का है जो शीलाजी अमेरिका में पसंद कर के आई थीं,’’ सुकन्या ने झल्ला कर कहा, ‘‘वे मुझ से पूछेंगी नहीं कि मैं ने यह, बात उन सब को क्यों नहीं बताई?’’

‘‘क्योंकि आप नहीं चाहती थीं कि जब तक सगाईशादी की तारीख पक्की न हो, वे सब आप दोनों को समधिन बना कर क्लब के अनौपचारिक माहौल और आप के रिश्तों को खराब करें,’’ निखिल बोला.

‘‘यह बात तो निखिलजी ठीक कह रहे हैं, सुकन्या और पिछली मीटिंग में ही किसी के पूछने पर कि आप ने विवेक के लिए कोई लड़की पसंद की या नहीं. आप ने कहा था कि लड़की तो पसंद है लेकिन जिस से शादी करनी है उसे तो फुरसत मिले. विवेक आजकल बहुत व्यस्त है,’’ शीला ने कुछ सोचते हुए कहा.

‘‘तो अगली मीटिंग में कह दीजिएगा कि विवेक को फुरसत मिल गई है और फलां तारीख को उस की सगाई है. अगली मीटिंग से पहले तारीख तय कर लीजिए,’’ निखिल ने कहा.

‘‘वह तो हमें अभी तय कर लेनी चाहिए, क्यों धर साहब?’’ केशव नारायण ने पूछा.

‘‘जी हां, इस से पहले कि कोई और शंका उठे.’’

‘‘तो ठीक है आप लोग तारीख तय करिए, हम लोग पीने के लिए कोई बढि़या चीज ले कर आते हैं,’’ निखिल उठ खड़ा हुआ. ‘‘चलो विवेक, अपूर्वा और निक्की तुम भी आ जाओ.’’

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‘‘कमाल कर दिया जीजाजी आप ने भी,’’ विवेक ने कुछ दूर जाने के बाद कहा. ‘‘समझ नहीं पा रहा आप को जादूगर कहूं या जीनियस?’’

‘‘जीनियसवीनियस कुछ नहीं, साले साहब,’’ निखिल मुसकराया, ‘‘मैं तो महज एक अदना सी कड़ी हूं आप दोनों का रिश्ता जोड़ने वाली.’’

‘‘अदना नहीं, अनमोल कड़ी, जीजाजी,’’ अपूर्वा विह्वल स्वर में बोली.

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