कमला की आंखें नम हो गईं. उन्हें लगा, ‘जो हमसफर इतने पास आ जाते हैं, उन्हें फिर एकदूसरे को अपनी बात समझानी नहीं पड़ती. उन की आंतरिक अनुभूतियां ही वाणी समान मुखर हो उठती हैं.’ सभी वृद्धों की आंखें विजयीगर्व से चमक रही थीं.
दूसरे दिन कमला ने सभी वृद्धों से अपने पोते की भविष्यवाणी के बारे में बताया और यह भी कहा कि वे उस की पसंद की चीजें ले कर अकसर उस से मिलने जाया करेंगी.
इतवार के दिन उन्होंने राजू की पसंद की ढेर सारी चीजें खरीदीं, ताकि वह अपने दोस्तों को भी दे सके. होस्टल पहुंचते ही राजू उन से लिपट कर बोला, ‘‘दादी, मैं जानता था कि तुम जरूर मुझ से मिलने आओगी,’’ उस ने अपने दोस्तों से कहा कि यही मेरी प्यारी दादी हैं. कमला ने सभी सामान बच्चों में बांटा और कई घंटे उन के साथ व्यतीत करने के बाद यह कह कर लौट पड़ीं कि वे यहां आती रहेंगी.
राजू ने पूछा, ‘‘घर पर सब ठीक है न?’’
उन्होंने मुसकराते हुए कहा, ‘‘ मैं घर में नहीं रहती. एक वृद्ध आश्रम है, वहीं पर रहती हूं.’’
राजू चीख कर बोला, ‘‘मैं समझ गया हूं, उन्होंने आप को भी घर से निकाल दिया है.’’
हंसते हुए उन्होंने उत्तर दिया, ‘‘राजू, वहां तेरे बिना मेरा मन भी तो नहीं लगता था. इस कारण भी तेरे मातापिता ने मुझे आश्रम भेज दिया.’’
‘‘मैं सब समझता हूं. वे हम दोनों को प्यार नहीं करते, इसी कारण घर से निकाल दिया है.’’
उन्होंने प्यार से राजू के माथे को चूमते हुए कहा, ‘‘बेटे, मातापिता के लिए ऐसी बातें नहीं सोचनी चाहिए. वे जो कुछ भी कर रहे हैं, तुम्हारे भविष्य को उज्ज्वल बनाने के लिए ही कर रहे हैं. होस्टल में बच्चों के संग तुम्हारा मन लग जाएगा, इसलिए तुम्हें यहां भेजा है.’’
राजू ने अविश्वास से दादी की तरफ देख कर कहा, ‘‘आप कहती हो तो मान लेता हूं,’’ फिर मासूमियत से बोला, ‘‘दादी, अपने घर में कब ले चलोगी?’’
कमला की आंखों में आंसू तैर आए, जिन्हें उन्होंने बड़े कौशल से पी कर कहा, ‘‘बेटे, हमारे घर में सभी वृद्ध लोग हैं. वहां तुम्हारा मन नहीं लगेगा. हम हीतुम्हारे पास आते रहेंगे.’’
वृद्धाश्रम लौटने पर काफी देर उन का मन उदास रहा. फिर उन के भीतर से आवाज आई, ‘तुझे भावुकता में बह कर अपने ध्येय को नहीं भूलना. तेरा लक्ष्य तेरे सामने है. इस समय बीस हाथ तेरी सहायता के लिए तैयार हैं. ये हाथ दिनोंदिन बढ़ते ही जाएंगे. सफलता तुझे पुकारपुकार कर कह रही है, आगे बढ़ती जा, ‘यह सोचते ही अदम्य उत्साह से वे उठ खड़ी हुईं.
दूसरे दिन कमला ने आश्रम के वृद्धों से कहा, ‘‘आप लोगों के पास जो भी कोठियां हैं, अगर आप खुशीखुशी उन्हें वृद्धाश्रम बनाने के लिए दे सकें, तो जो व्यय हम इस वृद्धाश्रम पर कर रहे हैं, वही हम अपने आश्रम पर खर्च करेंगे. हम सभी मिल कर उन्हें आवश्यक सामान से सुसज्जित कर कई वृद्ध आश्रम बना सकते हैं. मेरे पास जितनी संपत्ति है, उसे मैं वृद्धाश्रमों को दे रही हूं. यह सही है कि इस उम्र में हम थक सकते हैं पर जिस उत्साह से हम कार्य करेंगे, उस से शायद किसी को भी थकावट महसूस नहीं होगी.’’
हर वृद्ध, जिस के पास पैसा था, ने वह दिया और जिस के पास कोठी भी थी, उस ने सहर्ष कोठी तथा पैसा दोनों ही दिए. जब वृद्धों ने अपनीअपनी कोठियां खाली करवानी शुरू कीं तो रिश्तेदारों के होश उड़ गए. इस प्रकार कई कोठियां खाली हो गईं. अब उन वृद्धों ने बड़े उत्साह से उन में आवश्यक सामान तथा नौकरों का बंदोबस्त करना शुरू कर दिया.
समाचारपत्रों में इन वृद्ध आश्रमों की प्रशंसा में कौलम भर गए. मध्यवर्गीय परिवार के वृद्धों को प्राथमिकता मिली. हर वृद्धाश्रम का ट्रस्ट बना दिया गया, ताकि जिन्होंने पैसा दिया है, उन की मृत्यु के बाद भी वे सुचारु रूप से चलते रहें.
वृद्धों के निराश चेहरों पर रौनक आने लगी. समाज के जो संभ्रांत परिवार थे, उन के यहां एक अनोखा परिवर्तन आया. परिवार की युवा पीढ़ी जहां सतर्क हुई, वहीं वृद्धों के प्रति उन के व्यवहार में भी परिवर्तन आया और उन की पूरी देखभाल होने लगी.
कमला तथा अन्य वृद्धों, जिन्होंने इन आश्रमों को बनवाने में अपना पूरा सहयोग दिया था, की देखादेखी बहुत से रईसों ने अपना पैसा तथा सहयोग देना शुरू
कर दिया क्योंकि वे स्वजनों के व्यवहारपरिवर्तन के इस छलावे को समझ चुके थे और किसी न किसी रूप में इन वृद्धाश्रमों से संपर्क बनाने की चेष्टा में लग गए थे. एक तरफ वाहवाही की चाह थी, तो दूसरी ओर परोपकार की भावना जोर मार रही थी. हृदय के किसी कोने में प्रतिकार भी था.
कमला वृद्धाश्रम के एक कक्ष में बैठी विचारों में मगन थीं. उन के चहेरे पर वेदना और शांति के भावों का अनोखा मिश्रण झलक रहा था. अब उन्होंने जाना कि कांटों की शय्या पर सोया प्राणी ही कुछ करने की क्षमता रखता है. जिस सत्कार्य को करने का उन्होंने बीड़ा उठाया था, उस को प्रेरणा देने वाला उन के बेटेबहू का व्यवहार ही तो था. कमला ने महसूस किया कि देने से बड़ा सुख और कोई नहीं है. दूसरों को सहायता तथा सुख पहुंचा कर अपने हृदय को कितनी शांति और सुकून मिलता है. उन्होंने जीवन का सब से बड़ा सुख पा लिया था.