सिर्फ एक घटना : निशा और गौतम का साहस

अचानक ही गौतम के मोबाइल फोन की घंटी बज उठी.

‘हैलो, मैं अनीता बोल रही हूं,’ उधर से आवाज आईं.

‘‘हां, बोलो अनीता. कोई खास बात है क्या?’’ गौतम ने पूछा.

‘गौतम, आज मेरे मम्मीपापा एक रिश्तेदार की शादी में जा रहे हैं. मैं रात को घर पर अकेली रहूंगी. तुम मौका देख कर यहां चले आना. हम लोग रातभर मजे करेंगे,’ अनीता ने कहा.

‘‘अनीता, मुझे बहुत डर लग रहा है. कहीं कोई देख लेगा तो मेरा क्या होगा?’’ गौतम की आवाज सहमी हुई थी.

‘मैं लड़की हो कर नहीं डर रही हूं और तुम लड़के हो कर…’ अनीता ने उसे मीठी झिड़की दी.

‘‘ठीक है अनीता, मैं आज रात में आ जाऊंगा. तुम मेरा इंतजार करना,’’ गौतम ने कहा.

गौतम 20 का गठीला नौजवान था. वह लंबे कद का था, जिस से हैंडसम दिखता था. अनीता और गौतम दोनों एकदूसरे से प्यार करते थे.

अनीता 18 साल की बहुत हसीन लड़की थी. उस की आंखें बड़ी खूबसूरत थीं. उस के सुडौल उभार मर्दों को बरबस अपनी तरफ खींच लेते थे. यही वजह थी कि गौतम उस के हुस्न का दीवाना हो गया था.

आधी रात हो गई थी. चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था. लोग अपने घरों में गहरी नींद में सो रहे थे. गौतम चुपके से अनीता के घर पहुंच गया.

अनीता उस का इंतजार कर रही थी. वह गौतम को अपने कमरे में ले गई. उस ने गौतम को प्यार से चूम लिया. गौतम ने भी अनीता को बांहों में भर लिया.

‘‘गौतम, पहले तुम अपना काम कर लो,’’ अनीता ने कहते हुए अपने कपड़े उतार दिए. उस के सैक्सी बदन को देखते ही गौतम के दिल की धड़कनें तेज हो गईं.

अनीता बिछावन पर लेट गई. गौतम भी झटपट अपने कपड़े उतार कर उस के साथ लेट गया. वह अनीता के जिस्म से लिपट कर उस के उभारों को सहलाता रहा. थोड़ी देर बाद गौतम ने अनीता के साथ सैक्स करना चाहा, लेकिन घबराहट व डर के मारे उस में तनाव नहीं आ सका. उसे डर लग रहा था कि अनीता के घर में वह पकड़ा जाएगा.

गौतम ने अनीता को चूम कर उस के कोमल अंगों को सहला कर अपने को जोश में लाना चाहा, लेकिन कामयाबी नहीं मिली.

अनीता 2-4 मिनट तक बिछावन पर लेटी उस के सैक्स करने का इंतजार करती रही, लेकिन गौतम कुछ कर नहीं सका. तब वह गुस्सा हो कर अपने कपड़े पहनने लगी.

अनीता गौतम की छाती को ठोंकते हुए गुस्से में बोली, ‘‘गौतम, तुम तो बहुत बड़े बौडीबिल्डर बनते थे न. आज तुम्हारी पोल खुल गई. तुम नामर्द हो, एकदम नामर्द.’’

गौतम ने अनीता से आंखें चुराते हुए कहा, ‘‘अनीता, मुझे समझने की कोशिश करो. पता नहीं, मुझे क्या हो गया है.’’

अनीता गुस्से में कांप रही थी. वह बोली, ‘‘कपड़े उतार कर अपनी इज्जत भी गंवा बैठी. लेकिन तुम…’’

अनीता तकरीबन चीखते हुए बोली, ‘‘चले जाओ यहां से. आज के बाद मुझ से मिलने की कोशिश भी मत करना.’’

गौतम कुछ नहीं बोला. वह शर्मिंदगी से सिर झुकाए कमरे से बाहर निकल गया. उस रात गौतम और अनीता का मजबूत दिखने वाला रिश्ता टूट गया.

घर आ कर गौतम उस रात सो नहीं सका. उस के मन में यही सब चलता रहा कि क्या वह नामर्द है? वह किसी भी औरत के साथ जिस्मानी संबंध नहीं बना सकता. उसे एक ही उपाय सूझा कि वह शादी नहीं करेगा, नहीं तो उस के चलते किसी लड़की की जिंदगी बरबाद हो जाएगी.

गौतम कुछ दिनों तक टैंशन में रहा. इस तकलीफ को भुला कर वह पढ़ाई में अपना मन लगाने लगा. कालेज में वह एक अच्छे स्टूडैंट के रूप में जाना जाता था. उस का स्वभाव भी शालीन हो गया था, जिस से प्रभावित हो कर कालेज में साथ पढ़ने वाली लड़की निशा उस से मन ही मन प्यार करने लगी थी.

निशा साधारण रूपरंग की लड़की थी. वह पढ़ाई में जहीन थी. वह गौतम को अपने टाइप का पाती थी, जिस से एक लगाव महसूस करती थी.

गौतम को भी निशा अच्छी लगती थी, लेकिन उस की अपनी मजबूरी साथ चल रही थी. वह किसी लड़की से प्यार नहीं करना चाहता था, क्योंकि उस के दिल में अनीता के साथ उस रात की जो घटना घटी थी, उस का पेंच बुरी तरह फंसा हुआ था.

एक दिन निशा ने गौतम को गुलाब का फूल दे कर अपने प्यार का इजहार कर दिया, ‘‘गौतम, मैं तुम्हें दिल से चाहती हूं. मुझे तुम से प्यार हो गया है. मेरे प्यार को ठुकराना मत.’’

गौतम ने हिचकिचाते हुए निशा के हाथ से गुलाब का फूल ले लिया. उस के चेहरे पर थोड़ी चिंता के भाव थे. वह निशा से बस इतना कह सका, ‘‘निशा, अपने प्यार को हर हाल में निभाना. बीच रास्ते में छोड़ कर चले जाना प्यार नहीं होता है.’’

निशा ने गौतम के हाथ को अपने हाथ में ले कर कहा, ‘‘गौतम, मैं हरदम अपने प्यार को निभाती रहूंगी.’’

गौतम और निशा की कालेज की पढ़ाई खत्म हो गई थी. वे दोनों नौकरी के लिए फार्म भरने लगे थे. गौतम की पढ़ाई में की गई कड़ी मेहनत काम आई. वह एक बड़े दफ्तर में जूनियर अफसर बन गया.

उसी दफ्तर में निशा को क्लर्क की नौकरी मिल गई. अब गौतम और निशा एक ही औफिस में साथसाथ काम करने लगे.

गौतम की मां उस की शादी करने की जिद करने लगी, जिस से गौतम डराडरा सा रहने लगा था. वह शादी कर के किसी लड़की की जिंदगी बरबाद नहीं करना चाहता था.

एक दिन तो मां ने गौतम से पूछा, ‘‘बेटा, अगर कोई लड़की तुम्हारी पसंद की हो तो बताना. मैं उसी लड़की से तुम्हारी शादी करवा दूंगी.’’

गौतम ने मां से कहा, ‘‘ठीक है, मां. कोई लड़की मेरी पसंद की होगी, तो मैं आप को बता दूंगा.’’

उस दिन औफिस में गौतम बहुत परेशान था. उस की परेशानी उस के चेहरे से साफ झलक रही थी.

गौतम को चिंतित देख कर निशा ने पूछ लिया, ‘‘क्या बात है गौतम, तुम आज काफी उदास दिख रहे हो?’’

‘‘निशा, मां मेरी शादी कराने की जिद कर रही हैं.’’

‘‘तो मां से तुम ने क्या कहा?’’ निशा ने पूछा.

‘‘यही कि कोई लड़की पसंद की होगी तो बताऊंगा,’’ गौतम ने निशा से कहा.

निशा के होंठों पर मुसकान खिल गई, ‘‘इस में उदास होने की तो कोई बात नहीं है.’’

‘‘नहीं निशा, मैं किसी लड़की की जिंदगी बरबाद नहीं करना चाहता. मेरे साथ एक घटना घट गई थी, जिस ने मेरी जिंदगी से शादी का सपना छीन लिया.’’

‘‘कौन सी घटना थी? मैं जानना चाहूंगी,’’ निशा ने पूछा.

गौतम ने अनीता के साथ घटी उस रात की घटना को तफसील से सुनाया. उस ने बताया कि कैसे उस रात को अनीता ने अपने कमरे में उसे नामर्द कहा था, जबकि अनीता ने जिस्मानी संबंध बनाने के लिए उसे खुद बुलाया था.

निशा, गौतम की बात बड़े ध्यान से सुन रही थी.

‘‘निशा अब तुम्हीं बताओ कि कौन सी लड़की एक नामर्द से शादी करना चाहेगी?’’

निशा ने कहा, ‘‘शादी तो मैं तुम से ही करूंगी,’’ निशा ने कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘गौतम, तुम्हारे साथ ऐसा कुछ भी नहीं है. अनीता के साथ घटी उस रात की घटना में एक बात सामने आ रही है कि तुम बहुत घबराए हुए थे. तुम्हारे मन में पकड़े जाने का डर था, जिस से ऐसे हालात पैदा हो गए थे. वह घटना वहम बन कर तुम्हें अब तक डराती रही है. बेवजह अपने को नामर्द समझना भी तो एक गुनाह है.’’

निशा की बातों से गौतम को हौसला मिला. उस की आंखों में खोई हुई चमक लौट आई.

गौतम और निशा की शादी बड़े ही धूमधाम से हो गई. आज उन की सुहागरात थी. एक कमरे को फूलों से सजा दिया गया था. निशा दुलहन के लाल जोड़े में पलंग पर बैठी थी. वह गौतम का इंतजार कर रही थी.

कुछ देर बाद गौतम कमरे में आया. वह कमरे का दरवाजा बंद कर निशा के पास आ कर बैठ गया, ‘‘निशा, दुलहन के लाल जोड़े में तुम बड़ी खूबसूरत लग रही हो,’’ गौतम ने उसे भरपूर नजर से देखते हुए कहा.

निशा मुसकरा दी. गौतम ने उसे बांहों में भर कर चूम लिया. निशा ने भी गौतम को प्यार से चूम लिया. धीमेधीमे प्यार का नशा दोनों पर छाने लगा. निशा ने गौतम को बांहों में जकड़ लिया.

गौतम और निशा ने जीभर कर सुहागरात का मजा लिया. निशा गौतम के प्यार से संतुष्ट हो गई थी.

निशा ने गौतम से प्यार से कहा, ‘‘आज सुहागरात में आप की मर्दानगी में कोई कमी नहीं थी.’’

‘‘निशा, तुम मेरी बीवी हो. यहां मुझे किस बात का डर था, जिस के चलते मुझे कोई परेशानी नहीं हुई,’’ गौतम ने निशा से कहा.

‘‘गौतम, अब समझ में आ गया न कि आप बेकार के वहम में जी रहे थे,’’ निशा बोली.

‘‘हां निशा, एक बोझ जो आज दिल से उतर गया,’’ गौतम ने कहा और निशा को चूम लिया.

अमेरिका, डोनाल्ड, ट्रंप और टूटे ख्वाब

‘‘अब मैं क्या कर सकता हूं? मुझे क्या पता था कि अमेरिका में इतना बड़ा उलटफेर हो जाएगा. हम खुद हैरान हैं कि कमला हैरिस कैसे हार गईं? तुम दोनों के ही नहीं, बल्कि और भी कई लोगों के पैसे समझ डूब गए हैं,’’ दलाल ने जब यह बात कही, तो वंदना और अजय के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई.

‘‘ऐसे कैसे हमारे पैसे डूब गए. हम दोनों ने कुल 40 लाख रुपए भरे हैं. हमारे मांबाप ने कर्ज ले कर हमें बाहर भेजने का इंतजाम किया था. वे तो जीतेजी मर जाएंगे,’’ अजय ने कहा.

‘‘भाई, डंकी से अमेरिका और कनाडा जाने वाले को तो पलपल का खतरा रहता है. अच्छा है कि तुम्हारे सिर्फ पैसे ही डूबे हैं, अगर कहीं जान पर बन आती तो हम यहां बैठे क्या कर लेते? हम ने तो पक्का काम किया था, पर इस बार के चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की इतनी भारी जीत ने सब गुड़ गोबर कर दिया.

‘‘अब तो उस ने मंच से भी बोल दिया है कि वहां किसी भी घुसपैठिए को बरदाश्त नहीं किया जाएगा. अब तो जब मामला ठंडा होगा, तो ही दोबारा कोशिश की जा सकती है,’’ दलाल ने अपनी बात कही और अपनी सीट से उठ कर बाहर चला गया.

अजय और वंदना अभी भी दलाल के दफ्तर में बैठे थे. उन्हें लगा जैसे सबकुछ खत्म हो गया है. वंदना तो रोने लगी थी.

अजय और वंदना दोनों वैसे तो उत्तर प्रदेश के मुज्जफरनगर जिले के आसपास के गांवों के रहने वाले थे, पर पिछले 3 साल से नोएडा में लिवइन रिलेशनशिप में रह रहे थे.

23 साल की भरे बदन की वंदना दलित समाज की एक होनहार लड़की थी और पिछले 2 साल से एक प्राइवेट अस्पताल में नर्स की कच्ची नौकरी कर रही थी.

25 साल का अजय एक रैस्टोरैंट में कुक था और बहुत बढि़या खाना बनाता था, पर उस के काम की कद्र नहीं थी.

चूंकि नोएडा महंगा शहर है और खर्चे ज्यादा हैं, तो अजय और वंदना ने सोचा कि क्यों न वे ज्यादा पैसे कमाने के लिए अमेरिका और कनाडा चले जाएं.

अजय कनाडा जाना चाहता था और वंदना अमेरिका. अमेरिका में जुलाई, 2024 तक साढ़े 7 डौलर प्रति घंटे का मिनिमम वेज मिलता रहा है. मतलब, भारतीय रुपए में 660 रुपए प्रति घंटा. रोज 12 घंटे काम करने के तकरीबन 7,000 रुपए. महीने में अगर 25 दिन भी काम कर लिया, तो पौने 2 लाख रुपए की कमाई हो सकती है.

अमेरिका और कनाडा में नर्स और कुक को काम मिल ही जाता है. हो सकता है कि इन्हें कुछ ज्यादा ही कमाई हो जाए.

6 महीने पहले की बात है. अजय और वंदना अपनेअपने गांव गए हुए थे. तब उन दोनों ने अपने मांबाप से विदेश जाने की बात कही थी.

अजय बोला था, ‘‘अरे बाबूजी, पड़ोस के गांव का रतन अमेरिका में ट्रक चलाता है. वह डंकी से वहां गया था और आज देखो, उस ने पूरे परिवार को संभाल लिया है.’’

‘‘यह डंकी क्या होता है?’’ बाबूजी ने सवाल दागा था.

‘‘किसी देश में घुसपैठ कर के घुसना. दलाल पैसे ज्यादा लेते हैं, पर अमेरिका और कनाडा जैसे अमीर देशों में घुसा देते हैं. वहां जाते ही चांदी ही चांदी,’’ अजय ने सम?ाया था.

‘‘पर बेटा, 20 लाख रुपए कम रकम नहीं होती. हमें अपना एक खेत बेचना पड़ेगा,’’ अजय की मां ने अपनी चिंता जताई थी.

‘‘मां, एक बार मैं कनाडा चला जाऊं, फिर 3-4 साल में तुझे नया खेत दिला दूंगा. इस गांव में तुम्हारी तूती बोलेगी,’’ अजय ने मां को मक्खन लगाया था.

उधर वंदना भी अपने मांबाप को मना चुकी थी. हालांकि वह एक साधारण परिवार की लड़की थी, पर चूंकि उस के पिताजी कोटे के चलते सरकारी नौकरी में थे, तो उन्होंने जैसेतैसे पैसे का इंतजाम कर दिया था. दोनों ने एक ही दलाल से मिल कर अमेरिका और कनाडा जाने का बंदोबस्त कर लिया.

इस बीच अमेरिका में चुनाव का ऐलान हो गया था. रिपब्लिकन पार्टी ने डोनाल्ड ट्रंप को राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाया था और कमला हैरिस को डैमोक्रैटिक पार्टी ने.

कमला हैरिस का शुरू से पलड़ा भारी लग रहा था, क्योंकि डोनाल्ड ट्रंप को एक बार राष्ट्रपति के रूप में पहले आजमाया जा चुका था और उन्होंने अपने कार्यकाल में ऐसा कुछ खास कमाल नहीं किया था.

अमेरिका में 5 नवंबर, 2024 को चुनाव हुए थे और डैमोक्रैटिक पार्टी के अलावा तमाम दूसरे नागरिकों को उम्मीद थी कि कमला हैरिस देश की पहली महिला राष्ट्रपति बनने का गौरव हासिल कर लेंगी, क्योंकि चुनाव से पहले डोनाल्ड ट्रंप ने उन पर खूब निजी हमले किए थे.

डोनाल्ड ट्रंप ने चुनाव प्रचार के दौरान पैंसिल्वेनिया में एक रैली में कमला हैरिस की शारीरिक बनावट और बुद्धिमत्ता की निंदा की थी. उन्होंने अपने समर्थकों से कहा था,’’ मैं उन से (कमला हैरिस) कहीं ज्यादा सुंदर हूं.’’

डोनाल्ड ट्रंप ने कमला हैरिस स्पैशल ‘टाइम’ मैगजीन के कवर फोटो का जिक्र करते हुए दावा किया था कि पत्रिका को एक स्कैच कलाकार को काम पर रखना पड़ा, क्योंकि उन की तसवीरें काम नहीं आईं. उन्होंने उन की बुद्धिमत्ता पर भी सवाल उठाया था और उन्हें कट्टरपंथी उदारवादी करार दिया था.

इतना ही नहीं, डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी एक रैली में कहा था, ‘‘कुटिल जो बाइडेन मानसिक रूप से विकलांग हो गए हैं… लेकिन कमला हैरिस, ईमानदारी से कहूं तो मेरा मानना है कि वे ऐसी ही पैदा हुई थीं. कमला में कुछ गड़बड़ है और मुझे नहीं पता कि वह क्या है, लेकिन निश्चित रूप से कुछ कमी है.’’

लोगों को डोनाल्ड ट्रंप का यह बड़बोलापन नहीं सुहा रहा था और ऐसा लग रहा था कि इस बार डोनाल्ड ट्रंप हार जाएंगे, पर जब चुनाव नतीजे आने शुरू हुए तो एकदम से पासा पलटने लगा.

डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार बढ़त बनानी शुरू की, तो वे आगे ही निकलते चले गए. उन्हें कुल 312 सीटें मिलीं और कमला हैरिस महज 226 सीटों पर सिमट कर रह गईं. यह रिपब्लिकन पार्टी की एक बड़ी जीत थी.

चुनाव जीतने के बाद जब डोनाल्ड ट्रंप ने घुसपैठियों पर नकेल कसने की बात कही, तो इस का असर बहुत से देशों पर पड़ने लगा.

एक दिन वंदना और अजय नोएडा के अपने वन रूम फ्लैट में थे. वंदना ने सवाल किया, ‘‘तुम्हें क्या लगता है, डोनाल्ड ट्रंप ने इतनी बड़ी जीत कैसे हासिल की?’’

‘‘खबरों की मानें, तो डोनाल्ड ट्रंप की जीत की एक अहम वजह उन का ग्रामीण क्षेत्रों में अपने समर्थन को बढ़ाने में कामयाब रहना है. उन्होंने इंडियाना, केंटकी, जौर्जिया और उत्तरी कैरोलिना में समर्थन को बढ़ाते हुए अपना दम दिखाया है.

‘‘डैमोक्रैटिक कमला हैरिस को शहरी केंद्रों के साथसाथ आसपास के उपनगरों में भी बड़ी बढ़त हासिल करनी थी. साल 2016 से ही ऐसे उपनगरीय इलाकों में डैमोक्रैट्स को बढ़त मिलती रही है, लेकिन कमला हैरिस को इन इलाकों में मनमुताबिक भारी बढ़त नहीं मिल पाई.

‘‘कमला हैरिस की हार में लैटिन वोटरों के बीच डैमोक्रैटिक पार्टी के लिए समर्थन कम होना बड़ी वजह रहा है. डोनाल्ड ट्रंप को गैरश्वेत वोटरों का भी समर्थन मिला है.’’

‘‘अमेरिका में भी जो बाइडन के खिलाफ एंटीइनकंबैंसी कहीं न कहीं कमला हैरिस की हार की वजह बनी है. रिपब्लिकन पार्टी ने ज्यादा भावनात्मक मुद्दे उठाए. इसी वजह से अमेरिकियों ने भी डैमोक्रैट के मुकाबले रिपब्लिकन पर भरोसा किया.’’ अजय ने अपनी बात रखी.

‘‘मतलब, अब अमेरिका में घुसपैठ करना मुश्किल हो जाएगा?’’ वंदना का अगला सवाल था.

‘‘यह तो डोनाल्ड ट्रंप का बड़ा ‘चुनावी मुद्दा’ रहा था. उन्होंने वादा किया था कि चुनाव जीतने के बाद वे घुसपैठियों को अमेरिका से बाहर करेंगे. उन्होंने साफ कर दिया था कि अब अमेरिका में सीधे रास्ते से आना होगा.

‘‘डोनाल्ड ट्रंप ने यह भी कहा था कि वे हर प्रवासी आपराधिक नैटवर्क को निशाना बनाने और उसे खत्म करने के लिए 18वीं सदी के कानून ‘एलियन एनिमीज ऐक्ट’ को लागू करेंगे, लेकिन यह कानून केवल विदेशी दुश्मन देश से आने वाले लोगों पर लागू होता है.’’

‘‘पर, गाज तो हर किसी पर गिरेगी न. हमारा ही हाल देख लो,’’ वंदना बोली.

अजय ने अखबार पढ़ते हुए कहा, ‘‘अरे यार, अब तो एक खरबूजे को देख कर दूसरा खरबूजा भी रंग बदलने लगा है. पिछले कुछ समय से कनाडा में हिंदू और सिख समुदाय के बीच चल रही टैंशन के बाद वहां भी वीजा को ले कर कड़े नियम किए जा रहे हैं.

‘‘जस्टिन ट्रूडो की सरकार ने भारतीय नागरिकों के विजिटर वीजा की अवधि को एक महीने तक सीमित कर दिया है. इस से साढ़े 4 लाख पंजाबियों पर संकट आ गया है. अब उन्हें हर साल टूरिस्ट वीजा लेना होगा. साथ ही, एक महीने में कनाडा छोड़ना होगा. यह कदम कनाडा सरकार ने वीजा प्रणाली में कड़े प्रावधान लागू करने के मकसद से उठाया है.

‘‘इस से भारतीय नागरिकों को लंबी अवधि के वीजा की सुविधा खत्म हो जाएगी. इस का सब से ज्यादा असर पंजाबी समुदाय के लोगों पर होगा, जिन का कनाडा आनाजाना लगा रहता है. पहले 6 महीने का समय मिलता था, पर नए नियम से कनाडा में 10 लाख लोगों पर संकट आ गया है, जो विजिटर या मल्टीपल वीजा पर कनाडा में हैं.’’

वंदना ने कहा, ‘‘भारत के संबंध कनाडा के साथ इतने ज्यादा अच्छे नहीं हैं. आएदिन दोनों देशों के नेता एकदूसरे पर देश में अशांति फैलाने के इलजाम लगाते रहते हैं.’’

‘‘जब वीजा से जाने वालों पर इतने ज्यादा कड़े नियम बनाए जा रहे हैं, तो फिर डंकी वालों पर तो ये दोनों देश नकेल ही कस देंगे. डोनाल्ड ट्रंप कभी नहीं चाहेंगे कि उन का पड़ोसी देश कनाडा घुसपैठियों का अड्डा बन जाए,’’ अजय बोला.

‘‘क्यों न एक बार अपने दलाल से बात कर ली जाए?’’ वंदना ने अजय से धीरे से कहा.

अगले दिन वे दोनों अपने दलाल के पास गए, तो वह बोला, ‘‘अगले कुछ महीनों के लिए तो तुम दोनों अमेरिका या कनाडा जाने के ख्वाब देखने बंद कर दो. वैसे भी तुम्हें अभीअभी 40 लाख रुपए की चपत लगी है.

‘‘हां, एक काम हो सकता है. अगर तुम दोनों चाहो, तो सस्ते में तुम्हें कंबोडिया भिजवा सकता हूं. वहां तुम्हें 30-40 हजार रुपए महीने की नौकरी मिल जाएगी और विदेश जाने का सपना भी पूरा हो जाएगा.’’

‘‘हम कंबोडिया तुम्हारे भरोसे क्यों जाएंगे? तुम ने तो पहले ही हमारे पैसे हड़प लिए हैं,’’ अजय ने वहां से जाते हुए कहा.

‘‘यह भी ठीक है, पर एक बात का ध्यान रखना कि आजकल कंबोडिया जैसे दक्षिणपूर्व एशियाई देश औनलाइन घोटालों के गढ़ बने हुए हैं. मानव तस्कर भारतीय नागरिकों को नौकरी का झांसा दे कर कंबोडिया ले जा रहे हैं और फिर उन्हें औनलाइन घोटाले और साइबर अपराध करने के लिए मजबूर किया जा रहा है.

‘‘भारत के गृह मंत्रालय के साइबर विंग के सूत्रों ने बताया कि घोटालेबाज डिजिटल गिरफ्तारी के जरीए हर दिन तकरीबन 6 करोड़ रुपए उड़ा रहे हैं.

इस साल के पहले 10 महीनों में ही घोटालेबाजों ने 2,140 करोड़ रुपए उड़ा लिए हैं.’’

अजय और वंदना उस दलाल की यह सलाह सुनते हुए वहां से जा रहे थे. अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद अचानक से उन दोनों की जिंदगी गहरे अंधेरे में जाती हुई लग रही थी. उन के ख्वाब चकनाचूर हो गए थे.

मैडमजी : इलैक्शन में किसका टिकट कटा

‘‘प्रमोदजी, मैं यह क्या सुन रही हूं…’’ गीता मैडम पार्टी के इलाकाई प्रभारी प्रमोदजी के दफ्तर में कदम रखते हुए बोलीं.

‘‘क्या हुआ मैडमजी… इतना गुस्सा क्यों हो?’’ प्रमोदजी के चेहरे से साफ पता चल रहा था कि वे मैडमजी के गुस्से की वजह जानते हैं.

‘‘प्रमोदजी, बताएं कि पार्टी ने आने वाले इलैक्शन में मेरी जगह उस कल की आई लड़की सारिका को टिकट देने का फैसला किया है. कल की आई वह लड़की आज आप के लिए इतनी खास हो गई है कि उस को मेरी जगह दी जा रही है?’’

‘‘अरे मैडमजी, आप कहां सब की बातों में आ रही हैं. आप तो पार्टी की पुरानी कार्यकर्ता हैं. आप ने तो पार्टी के लिए बहुतकुछ किया है. हम भी आप के बारे में सोचते, पर नेताजी के निर्वाचन समिति को आदेश हैं कि इस बार सब नए लोगों को ही आगे करना है…

‘‘दूसरी पार्टियां रोज नएनए चेहरों के साथ अखबारों में बने रहना चाहती हैं. बस, जनता को दिखाने के लिए हमारी पार्टी भी खूबसूरत चेहरों को आगे लाना चाहती है. ये कल के आए बच्चे हमारी और आप की जगह थोड़े ही ले सकते हैं,’’ बात करतेकरते प्रमोदजी ने अपना हाथ मैडमजी के हाथ पर रख दिया, ‘‘मैडमजी, हमारी नजर से देखो, तो उस सारिका से लाख गुना खूबसूरत हैं आप. पर नेताजी को कौन सम?ाए.’’

प्रमोदजी के चेहरे की मुसकान उन के इरादे साफ बता रही थी, पर छोटू की चाय ने उन को अपना हाथ मैडमजी के हाथ से हटाने पर मजबूर कर दिया.

छोटू चाय रख कर चला गया, तो मैडमजी ने फिर अपनी नाराजगी जताई, ‘‘प्रमोदजी, आप इन बातों से मुझे बहलाने की कोशिश मत कीजिए. आप के कहने पर मैं ने पिछली बार भी परचा नहीं भरा, क्योंकि आप चाहते थे कि आप की भाभी इलैक्शन लड़े. तब मैं भी नई थी और आप की बात मान गई थी.

‘‘पर अब क्या? सारिका 2 साल पहले पार्टी से जुड़ी है और उस को टिकट मिल रहा है. यह गलत है.

‘‘आप एक बार मेरी मुलाकात नेताजी से तो कराइए.

‘‘प्रमोदजी, मैं ने हमेशा वही किया है, जो आप ने कहा. कितनी बार आप के कहने पर ?ाठ भी बोला…यहां तक कि आप के कहने पर उस मनोहर पर गलत आरोप भी लगाए, ताकि आप इस कुरसी पर बने रहें. पर मुझे क्या मिला?

‘‘प्रमोदजी, आप जो कहेंगे, मैं करूंगी. बस, एक बार टिकट दिलवा दीजिए, फिर देखिए जीत तो मेरी पक्की है. आप समझा रहे हैं न,’’ इस बार मैडमजी ने प्रमोदजी का हाथ पकड़ लिया.

जब मैडमजी ने खुद प्रमोदजी का हाथ पकड़ लिया, तो उन की तो मानो मुंहमांगी मुराद पूरी हो गई. उन्होंने मैडमजी को भरोसा दिया कि वे आज ही नेताजी से उन के लिए बात करेंगे.

मैडमजी अपना धूप का चश्मा सिर से वापस आंखों पर लगा कर दफ्तर से घर चली आईं.

‘‘क्या बात है गीता, आज जल्दी घर आ गईं? कोई पार्टी या मीटिंगविटिंग नहीं थी आज?’’

घर में आते ही मैडमजी सिर्फ गीता बन जाती थीं, जो मैडमजी को बिलकुल पसंद नहीं था.

अपने पति की यह बात सुन कर वे एकदम चिढ़ गईं और बिना जवाब दिए अपने कमरे में चली गईं.

मैडमजी को पैसों की कोई कमी नहीं थी. उन को कमी थी तो एक पहचान की. मैडमजी सुनने की आदत हो गई थी उन को. उन का यही सपना था कि लोग सलाम करें, हाथ जोड़ कर आगेपीछे घूमें. वे सत्ता का नशा चखना चाहती थीं और इस के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार थीं.

‘‘क्या बात है गीता, बहुत परेशान दिख रही हो?’’ कहते हुए समीर ने कमरे की बत्ती जलाई, तो मैडमजी को एहसास हुआ कि रात हो गई है.

‘‘नहीं, कुछ नहीं. बस, सिरदर्द कर रहा है. दवा ली है. ठीक हो जाऊंगी. आप कहीं जा रहे हैं क्या?’’

‘‘हां… तुम को कल रात को बताया तो था कि मैं आज रात को 3 दिन के लिए बाहर जा रहा हूं. अगर ज्यादा तबीयत खराब हो, तो डाक्टर बुला लेना,’’ समीर इतना कह कर कमरे से बाहर चले गए.

समीर के जाते ही गीता ने फोन उठा कर प्रमोदजी को मिला दिया, ‘‘हैलो प्रमोदजी, मैं बोल रही हूं. क्या आप ने नेताजी से बात की?’’

‘‘अरे मैडमजी, मैं आप के बारे में ही सोच रहा था. आज आप गजब की लग रही थीं. क्या मदहोश खुशबू आती है… अभी तो घर पर हूं, कल दफ्तर जा कर आप से बात करता हूं,’’ प्रमोदजी के पास से शायद उन की पत्नी की आवाज आ रही थी, इसलिए उन्होंने फोन जल्दी रख दिया.

मैडमजी भी कच्ची खिलाड़ी नहीं थीं. सारी रात जाग कर उन्होंने सोच लिया था कि आगे क्या करना है, जिस से सारिका को टिकट न मिले और प्रमोदजी को भी सबक मिल जाए.

अगले दिन अपनी अलमारी से नोटों की 3 गड्डियां पर्स में डाल कर मैडमजी जल्दी ही घर से निकल गईं. सीधे कौफी हाउस पहुुंच कर वे पत्रकारों से मिलीं. उन्हें कुछ सम?ाया और एक नोट की गड्डी उन्हें दी.

फिर वे एक सुनसान जगह पर 6-7 लड़कों से मिलीं. नोटों की बाकी गड्डी और एक फोटो उन को दी. थोड़ी देर बात की और तेजी से निकल गईं. वहां से वे सीधे प्रमोदजी के दफ्तर पहुंच गईं.

वहां अभी कोई नहीं आया था. बस, छोटू सफाई कर रहा था. वे चुपचाप छोटू के पास गईं, उसे कुछ सम?ाया. उस के हाथ में सौ रुपए का एक नोट रख दिया.

अब इंतजार था प्रमोदजी के आने का. बाथरूम में जा कर मैडमजी ने पर्स से लिपस्टिक निकाल कर दोबारा लगाई और प्रमोदजी का इंतजार करने लगीं.

दफ्तर में मैडमजी को देख कर प्रमोदजी पहले थोड़ा हैरान हुए, पर वे मुसकराते हुए बोले, ‘‘मैडमजी, आप इतनी सुबहसुबह?’’

‘‘बस, क्या बताऊं प्रमोदजी, सारी रात सो नहीं पाई,’’ इतना कह कर मैडमजी ने साड़ी का पल्लू सरका दिया और बोलीं, ‘‘अरे, यह पल्लू भी न… माफ कीजिए,’’ फिर उन्होंने अदा से अपना पल्लू ठीक कर लिया.

‘‘मैडमजी, आज तो आप कहर बरपा रही हैं. यह रंग बहुत जंचता है आप पर,’’ प्रमोदजी मैडमजी के पास आ कर बोले.

‘‘आप भी न प्रमोदजी, बस कुछ भी…’’ मैडमजी ने अपना सिर प्रमोदजी के कंधे पर रख दिया.

उन्होंने मैडमजी की कमर पर हाथ रखना चाहा, पर उसी वक्त छोटू चाय ले कर आ गया और वे सकपका कर मैडमजी से दूर हो गए और बोले,

‘‘मैं ने तो चाय नहीं मंगवाई. चल, भाग यहां से.’’

‘‘प्रमोदजी, चाय मैं ने मंगवाई थी. रख दे यहां. चल, तू जा,’’ मैडमजी ने फिर अदा से प्रमोदजी की ओर देखा, पर प्रमोदजी को एहसास हो गया था कि वे पार्टी दफ्तर में हैं, इसलिए अपनी कुरसी पर जा कर बैठ गए.

मैडमजी खुश थीं कि छोटू एकदम सही वक्त पर आ गया.

‘‘प्रमोदजी, बातें तो होती ही रहेंगी. आप यह बताओ कि नेताजी से बात कब करोगे?’’

‘‘मैडमजी, बस आज ही… रैली के बारे में बात करने मैं आज ही पार्टी दफ्तर जा रहा हूं. आप के बारे में भी बात कर लूंगा.’’

‘‘पर आप को लगता है कि वे मानेंगे?’’ मैडमजी ने चिंता जताई.

‘‘अरे, वह सब आप मुझ पर छोड़ दो,’’ प्रमोदजी ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘नहीं, आप ही कह रहे थे न कल कि नए चहरे… बस, इसलिए पूछा… और नेताजी अपना फैसला बदलेंगे,’’ मैडमजी फिर अदा से बोलीं.

‘‘इतने सालों में आप हमें ठीक से जान नहीं पाई हैं. पार्टी में अच्छी पकड़ है हमारी. हाईकमान के फैसले को बदलना मेरे लिए कोई मुश्किल बात नहीं,’’ प्रमोदजी अपने मुंह मियां मिट्ठू बन रहे थे और मैडमजी कुरसी पर टेक लगा कर उन की बातें अपने फोन पर रिकौर्ड कर रही थीं.

प्रमोदजी आगे बोले, ‘‘मैडमजी, इतने साल तक पार्टी में झाक नहीं मारी है मैं ने. हर किसी की कमजोरी जानता हूं. हर किसी को बोतल में उतार कर ही यहां तक पहुंचा हूं. आप ने तो देखा ही है कि जो मेरी बात नहीं मानता, उस का हाल उस मनोहर जैसा होता है.

‘‘बेचारा कुछ किए बिना ही जेल की हवा खा रहा है. और नेताजी के भी कई किस्से इस दिल में कैद हैं,’’ मैडमजी के सामने अपनी शान दिखाने के चक्कर में प्रमोदजी न जाने क्याक्या बोल गए.

मैडमजी का काम हो चुका था. वे किसी काम का बहाना कर के वहां से निकल गईं. अब उन्हें अगले काम के पूरा होने का इंतजार था. घर जाने का उन का मन नहीं था, इसलिए वे पास की कौफी शौप में जा कर बैठ गईं. समय देखा… अब तक तो खबर आ जानी चाहिए थी.

मैडमजी कौफी पी कर पैसे देने ही वाली थीं कि उन की नजर टैलीविजन पर गई. चेहरे पर हलकी मुसकान आ गई. पर्स उठा कर वापस प्रमोदजी के दफ्तर आ गईं.

प्रमोदजी फोन पर थे. वे काफी परेशान थे, ‘‘नहीं नेताजी, मुझे तो कुछ भी नहीं पता. यह खबर सच्ची है या नहीं… आप यकीन कीजिए, मुझे नहीं पता था कि सारिका कालेज में दाखिले के नाम पर छात्रों से पैसे लेती है…

‘‘पर नेताजी, आप मेरी बात तो सुनो. आप मुझे… ठीक है, जैसा आप कहो,’’ प्रमोदजी ने पलट कर के देखा, ‘‘अरे मैडमजी, अच्छा हुआ आप आ गईं.’’

‘‘क्या हुआ प्रमोदजी?’’ मैडमजी ने झूठी चिंता जताई.

‘‘हां मैडमजी, पार्टी दफ्तर से फोन था. कुछ लड़कों ने किसी टैलीविजन रिपोर्टर को इंटरव्यू दिया है कि कालेज में दाखिला करवाने के नाम पर सारिका ने उन से मोटी रकम ली है. अब देखो, इतना बड़ा कांड कर दिया और हमें कानोंकान खबर तक नहीं…’’

प्रमोदजी कुरसी पर बैठते हुए बोले, ‘‘नेताजी ने फिर हमें जिम्मेदारी दे दी है. उन का मानना है कि इस बार किसी भी बदनाम आदमी को टिकट तो क्या, पार्टी में भी जगह न दी जाए,’’ कहते हुए प्रमोदजी के चेहरे से एकदम चिंता के भाव गायब हो गए, जैसे उन के शैतानी दिमाग में कुछ आया हो.

‘‘मैडमजी, इस से पहले कि फिर कोई नया चेहरा सामने आए, मैं आप का नाम आगे कर देता हूं… कल नेताजी से मिलने जा रहा हूं, तो आज शाम को पहले आप से एक छोटी सी मुलाकात

हो जाए… दफ्तर के पीछे वाले मेरे फ्लैट पर.’’

प्रमोदजी की बात सुन कर मैडमजी फिर मुसकारा दीं और बोलीं, ‘‘प्रमोदजी, नाम तो आप को मेरा ही लेना होगा और कान खोल कर सुन लो, अगर मेरे बारे में कोई गलत खयाल मन में भी लाए, तो आप भी इस पार्टी में नजर नहीं आएंगे.

‘‘…अब ध्यान से मेरी बात सुनो. जिन लड़कों ने सारिका पर इलजाम लगाया है, वे सारिका के साथसाथ आप का नाम भी ले सकते थे, पर मु?ो इस पार्टी में लाने वाले आप थे, मैं ने हमेशा आप को अपने पिता जैसा माना, इसलिए अपनी परेशानी ले कर मैं आप के पास आई और आप मु?ा पर ही गंदी नजर रखे हुए हैं. शर्म नहीं आई आप को…’’

इतना कह कर मैडमजी ने अपने मोबाइल फोन से अपनी और प्रमोदजी के बीच हुई सारी बातों की रिकौर्डिंग उन्हें सुना दी. प्रमोदजी को पसीने आ गए.

‘‘अब आप के लिए बेहतर होगा कि नेताजी को अभी फोन कर के मेरे नाम पर मुहर लगवा दीजिए, वरना कल आप की यह आवाज हर टैलीविजन चैनल पर सुनने को मिलेगी,’’ मैडमजी पर्स संभालते हुए तेज कदमों से कमरे से बाहर निकल गईं.

शाम होतेहोते मैडमजी के खास कार्यकर्ताओं के उन्हें टिकट मिलने की बधाई देने के फोन आने भी शुरू हो गए थे.

बदलाव : क्या था छपरा ढाणी का राज

‘‘मारकर आइए या मर कर आइए. मेरे दूध की लाज रखना. टीचरजी, मैं तो एक ही सीख दे कर भेजूं छोरे को,’’ छाती ठोंक कर मेजर जसवंत सिंह राठौड़ की मां सुनंदा देवी उसे बता रही थीं.

राजस्थान के सुदूर इलाके में बसा एक छोटा सा गांव ‘छपरा ढाणी’. अर्पिता की बहाली वहां के एक सरकारी प्राइमरी स्कूल में हुई थी.

कुल जमा 20 बच्चे और वह एकलौती टीचर. ऐसा ठेठ गांव उस ने कभी नहीं देखा था. आगे होने वाली असुविधाओं के बारे में सोच कर एक बार तो उस ने भी इस्तीफा देने की ठान ली थी, पर जल्दी ट्रांसफर का भरोसा पा कर वह मन मसोस कर आ गई थी.

स्कूल क्या था जी, एक टपरा था बस. कच्ची मिट्टी का, खपरैल वाला. एक ही कमरे में 5वीं तक की जमात चलती थी. पहलीदूसरी जमात में

5-5, तीसरीचौथी जमात में कुल 8 और 5वीं जमात में सिर्फ 2 बच्चे थे. आगे की पढ़ाई के लिए पास के ही किसी दूसरे गांव में जाना पड़ता था.

पहला दिन अर्पिता को बहुत नागवार गुजरा. अगले दिन सुबह ही एक बच्चा लोटा भर दूध रख गया. शाम को वह खाना ले कर फिर आया. दौड़ कर वह जाने ही वाला था कि अर्पिता ने उसे पकड़ लिया, ‘‘बच्चे, अपना नाम तो बता कर जाओ.’’

‘‘माधव सिंह.’’

‘‘अच्छा माधव, मुझे अपने गांव की सैर कराओगे?’’

वह पलभर के लिए ठिठका और फिर सिर हिला कर हामी भर दी.

माधव कूदताफांदता आगे बढ़ रहा था. पर, अर्पिता को उस बलुई रेत में चलने का अभ्यास नहीं था. बारबार उस के पैर रेत में धंस जाते थे.

‘‘टीचरजी, वह देखिए. वह रामसा पीर का मंदिर है और ये रहे ऊंचेऊंचे टीबे. यहां हम सब बच्चे राजामंत्री का खेल खेलते हैं.’’

‘‘टीबे…?’’ अर्पिता ने सवालिया नजरों से पूछा.

‘‘जी टीचरजी, जब रेत के ढेर ऊंचे से हो कर जम जाते हैं, उसे टीबा कहते हैं. वह हमारे गांव के राजा साहब की गढ़ी. चलिए, आप को उन का महल दिखाता हूं.’’

गढ़ी के द्वार पर ही राजा साहब मिल गए. इतिहास और फिल्में, टीवी सीरियल वगैरह देख कर अर्पिता के मन में राजा की एक अलग ही इमेज बन गई थी. रेशमी शेरवानी, सिर पर ताज और बगल में तलवार खोंसी हुई. पर ये राजाजी तो बिलकुल साधारण कपड़ों में थे.

‘‘आइए टीचरजी, कोई परेशानी तो नहीं हुई हमारे गांव में? कोई भी दिक्कत हो, तो हमें सेवा का मौका जरूर दें,’’ अधेड़ उम्र पार करते राजाजी की भाषा बड़ी अच्छी थी.

बातोंबातों में उन्होंने बताया कि उन की पढ़ाईलिखाई अमेरिका में ही हुई.

वे खुद अपने महल का कोनाकोना दिखा रहे थे, ‘‘यह अस्तबल कभी घोड़ों से भरा रहता था. अब तो बस एक अंबर घोड़ा बचा है, वह भी बूढ़ा और बीमार रहता है.’’

‘‘अरे भुवन सिंह, कुछ खाया या नहीं इस ने?’’

‘‘जी सरकार, अभीअभी वैद्यजी देख कर गए हैं,’’ हाथ जोड़े भुवन सिंह ने जवाब दिया.

‘‘और इधर की तरफ है पुस्तकालय यानी हमारी लाइब्रेरी.’’

देशविदेश के हर विषय से संबंधित करीने से सजी किताबें. अर्पिता के लिए बहुत अस्वाभाविक सा था. रंगीन  कांच के टुकड़ों की कारीगरी से पूरा महल सजा हुआ था. महीन नक्काशी का काम आज भी उस समय की शानोशौकत का परिचय देता था.

‘‘माधव बेटा, अब तुम टीचरजी को रनिवासे में ले जाओ.’’

परदा प्रथा थी. राजाजी वहीं रुक गए और उसे बच्चे के साथ भीतर भेज दिया.

‘‘रानी मां धोक,’’ बच्चा बोला. साथ ही, अर्पिता ने भी हाथ जोड़ दिए.

रानी साहिबा बेटी के सिर में तेल मलती उठ खड़ी हुईं. इस उम्र में भी उन की खूबसूरती और ओज बरकरार था. हंस कर पास बैठाया और अर्पिता के चेहरे पर हैरानी देख कर बोलीं, ‘‘अब सेवकसेविकाएं तो रहे नहीं,’’ और वे मुसकरा दीं.

‘‘बाई सा, टीचरजी के लिए चाय तो बना लाओ और कुंअर सा से भी कह दो कि टीचरजी के दर्शन कर जाएं.’’

‘‘जी मां सा, अभी कहती हूं.’’

अर्पिता को बड़ी हैरानी हुई. मांबेटी के बीच भी बोली में आज भी वही राजसीपन. रात को वह लेटी तो नींद कोसों दूर थी. गांव के बारे में और

ज्यादा जानने की इच्छा बलवती होती जा रही थी.

अगले दिन माधव फिर आया, तो अर्पिता पूछ बैठी, ‘‘एक बात तो बता कि तेरे पिताजी क्या करते हैं? और यह गांव कितना खालीखाली सा क्यों है? रास्ते में कोई दिखता ही नहीं.’’

‘‘बापू फौज में हैं और बाकी मैं नहीं जानता हूं. आप मेरी दादी सा से पूछ लेना,’’ रात के खाने का न्योता देते हुए माधव बोला और शाम को वह तय समय पर उन्हें लेने आ गया.

मौसम बड़ा सुहावना सा था. मोर ‘पीहूपीहू’ की मधुर आवाज करते पेड़ों पर उड़ रहे थे.

‘‘नमस्ते टीचरजी,’’ माधव की दादी सामने ही इंतजार कर रही थीं. गजभर का घूंघट निकाले माधो की मां ने दूर से ही अपनी ओढ़नी का पल्लू जमीन से छुआया और माथे से लगा कर बोलीं, ‘‘नमस्ते टीचरजी.’’

अर्पिता ने बाहर बनी बैठक की ओर रुख किया, तो दादी बोलीं, ‘‘आप भीतर चलिए टीचरजी. यह बैठक मर्दों के लिए है. बाहर का कोई आदमी भीतर घर में नहीं जाता.’’

अर्पिता को हैरानी हुई, पर वह कुछ न बोली. भीतर पीढ़ा लगा कर उसे बैठाया गया. रसोई में माधव की मां उसी घूंघट के साथ मिट्टी के चूल्हे पर बाजरे की गोलगोल फूलीफूली रोटियां बना रही थीं.

दादी ने थाल परोसा. काचरे की सब्जी, खीचड़ा, देशी घी में डूबी हुई रोटियां और लहसुन की चटनी.

‘‘शुरू करो टीचरजी,’’ उन्होंने खाने के लिए कहा और पास ही बैठ कर पंखा ?ालने लगीं.

‘‘इस गांव में बिजली आधी बार ही रहती है. वैसे, बेटा पिछली बार जब आया था, तब इनवर्टर लगा कर गया था, पर उस की भी बैटरी खत्म हो गई है.’’

आखिर अर्पिता के सब्र का बांध टूट ही गया. उस से रहा न गया, तो पूछ ही लिया, ‘‘कितने बेटे हैं आप के?’’

‘‘टीचरजी, एक तो लड़ाई में खेत रहा. दूसरा अभी बौर्डर पर है.’’

‘‘और आप के पति…?’’

‘‘जी, वे तो कब के शहीद हो गए,’’ दादी ने तसवीर की ओर इशारा किया,  ‘‘घबराओ नहीं, यह तो जवानों की शान है,’’ अर्पिता को दुखी देख कर वे बड़ी सधी आवाज में बोलीं.

‘‘एक बात तो बताइए कि पति और एक बेटा जाने के बावजूद भी आप ने दूसरे बेटे को फौज में भेज दिया… डर नहीं लगता?’’

अर्पिता की यह बात सुन कर दादी उस की नासम?ा पर हंसीं और बोलीं, ‘‘देखो टीचरजी, इस गांव में आप को बूढ़े, बच्चे और औरतों के सिवा कोई न मिलेगा. फौज तो राजपूतों की शान है. हमारे तो खून में ही देश की सेवा लिखी है. या तो दुश्मन की छाती चीर देनी है या खुद मर जाना है. अगर औरतें डरती रह गईं, तो देश की सेवा कौन करेगा…’’

‘‘वह देख रहे हो, मेरे बेटे जसवंत सिंह की पत्नी है. बकरियों के लिए चारापानी से ले कर घर का सारा काम करती है, पर उफ तक नहीं करती. मैं खेत संभालती हूं और साथ ही बाहर का काम. बहूबेटियां हमारे यहां परदे में ही रहती हैं.’’

अर्पिता ने देखा कि माधव की मां घूंघट निकाले अब भी दूधदही के बरतनों में लगी हुई थीं.

‘‘क्या मैं आप की बहू से कुछ देर बात कर सकती हूं?’’ अर्पिता ने पूछा.

‘‘अरे, आप तो हमारे गांव की मेहमान हो टीचरजी. हमारे बच्चों को पढ़ाने के लिए आई हो, शिक्षा देने आई हो. आराम से बात करो,’’ कह कर वे बैठकखाने को ठीक करने चल दीं.

माधव की मां का घूंघट अर्पिता को बेहद खटक रहा था. वह उन का चेहरा देखना चाहती थी.

‘‘मैं खुद एक औरत हूं बहन, मुझ से क्या परदा… आप घूंघट हटा दो.’’

थोड़ा सकुचाते हुए माधव की मां ने घूंघट हटा दिया. भीतर सचमुच की रूपकंवर थीं. अर्पिता उन से बड़े ही नपेतुले अंदाज में बात कर रही थी. लग रहा था कि इंगलिश का अगर कोई शब्द निकल गया, तो शायद वे सम?ा न पाएं.

बातोंबातों में अर्पिता ने पूछा, ‘‘आप थकती नहीं हैं, दिनभर यह चारापानी और घर के काम करतेकरते? पति कितने दिनों बाद घर आ पाते हैं?’’

‘‘टीचरजी, ये तो घर के काम हैं, इन से क्या थकना. हालांकि, सरकार सुविधाएं बहुत देती है, पर नौकरों को देने वाले पैसे अगर हम गरीबों को दे तो कुछ सेवा कर पाएंगे.’’

यह सुन कर अर्पिता को बड़ी हैरानी हुई. इतनी बड़ी सोच और वह भी एक अनपढ़ सी दिखने वाली औरत के मुंह से.

फिर माहौल को हलका करने के अंदाज से अर्पिता ने पूछा, ‘‘क्या आप पूरी जिंदगी ऐसे ही बिता दोगी?’’

और इस बार वाकई में हैरान करने वाला जवाब था, ‘‘मैं ने बीए पास किया है और अब बीऐड कर रही हूं. टीचरजी, सासू मां ने कहा है कि सरकारी नौकरी लगते ही वे मु?ो बाहर भेज देंगी.’’

अर्पिता फिर दादी की ओर मुखातिब हुई, ‘‘और यह परदा प्रथा?’’

‘‘जी, यह तो बस इसी गांव तक है. पुराने समय से चलती आई प्रथा है. बहू को पूरी जिंदगी ऐसे ही थोड़े बैठा कर रखेंगे. उस की अपनी जिंदगी है. आगे बढ़े और खूब तरक्की करे.’’

‘‘टीचरजी, आप को छोड़ आऊं?’’ माधव पूछ रहा था.

अर्पिता ने आदर से दादी को प्रणाम किया और रूपकंवर की ओर एक स्नेह भरी नजर डाल कर अपने घर को चल दी.

विधवा सास की तड़प : सलमान अपने होश कब खो बैठा

माहिरा को बच्चा होने वाला था. उस ने मदद के लिए अपनी मां राबिया को बुला लिया. राबिया को करीब देख कर माहिरा का शौहर सलमान अपने होश खो बैठा. एक रात राबिया और सलमान अकेले में मिले. आगे क्या हुआ?

सलमान की शादी को 7 महीने हो गए थे और वह अपनी बीवी माहिरा के साथ खुशीखुशी दिल्ली में रह रहा था. माहिरा पेट से थी और 3 महीने बाद उस की डिलीवरी होने वाली थी.

सलमान को माहिरा की बड़ी चिंता सता रही थी, क्योंकि उस ने माहिरा से लवमैरिज की थी, जिस वजह से उस के घर वाले उस से नाखुश थे, क्योंकि माहिरा एक अलग बिरादरी से थी. लिहाजा, उन्होंने सलमान और माहिरा से सारे रिश्ते तोड़ लिए थे.

पर, आज जब माहिरा पेट से हुई, तो उस की देखभाल के लिए किसी औरत का होना जरूरी था.

सलमान की कमाई भी कुछ खास न थी, जिस से वह माहिरा की देखभाल के लिए कोई नौकरानी रख लेता, ताकि उसे कुछ आराम मिल सके.

वैसे तो सलमान माहिरा के काम में उस की पूरी मदद करता था, पर ज्योंज्यों माहिरा की डिलीवरी के दिन करीब आ रहे थे, त्योंत्यों सलमान की चिंता भी बढ़ती जा रही थी.

माहिरा ने जब सलमान को परेशान देखा, तो उस ने उस से पूछ ही लिया, ‘‘क्या बात है, आप कुछ परेशान से लग रहे हैं?’’

सलमान ने कहा, ‘‘हां, तुम्हारा ऐसा समय चल रहा है, जिस में तुम्हें आराम की सख्त जरूरत है और साथ ही तुम्हारे साथ किसी औरत का होना भी जरूरी है.

‘‘यही सोच कर मुझे चिंता हो रही है कि मेरे अम्मीअब्बू ने तो हम से नाता तोड़ लिया है, मैं किसे बुलाऊं, जो ऐसे मुश्किल  समय में तुम्हारा साथ दे सके.’’

माहिरा बोली, ‘‘आप टैंशन मत लो. मैं अपनी अम्मी से बात करती हूं, वे जरूर आ जाएंगी. वैसे भी मेरे भाईभाभी के अलावा वहां और कौन है, जिसे अम्मी की जरूरत हो…

‘‘भाभी अपना काम खुद कर लेती हैं. अम्मी दिनभर घर पर खाली ही रहती हैं. उन का भी यहां आ कर मन लग जाएगा और हवापानी भी बदल जाएगा.

‘‘वैसे भी अब्बा की मौत के बाद अम्मी अकेली हो गई थीं. उस  समय अम्मी की उम्र महज 24 साल थी. लोगों ने उन से बहुत कहा था कि दूसरी शादी कर लो, पर उन्होंने हम भाईबहन पर सौतेले बाप का साया न पड़े, इस डर से दूसरी शादी नहीं की.’’

सलमान बोला, ‘‘ठीक है, तुम अपनी अम्मी को कल ही यहां बुला लो, क्योंकि अब तुम्हारी डिलीवरी में भी एक हफ्ता ही बाकी बचा है.’’

माहिरा ने अगले ही दिन अपनी अम्मी को फोन कर दिया और जल्द आने को कहा. माहिरा की अम्मी राबिया अगले ही दिन दिल्ली के लिए रवाना हो गईं. सलमान उन्हें लेने रेलवे स्टेशन चला गया.

राबिया जैसे ही रेलवे स्टेशन पहुंचीं, तो सलमान उन्हें देख कर दंग रह गया.

जब से सलमान की शादी माहिरा से हुई थी, उस ने एकाध बार ही चलतीफिरती नजरों से उन्हें देखा था, क्योंकि शादी के फौरन बाद ही वह माहिरा को अपने साथ दिल्ली ले आया था.

राबिया का कसीला बदन और ऊंची उठी हुई छाती देख कर ऐसा लगता था, जैसे वे माहिरा की अम्मी नहीं, बल्कि बहन हैं. उन्हें देख कर कोई भी यह नहीं कह सकता था कि उन की उम्र 45 साल की होगी.

सलमान ने अपनी सास राबिया को आटोरिकशा में बैठाया और घर ले आया.

राबिया अपनी बेटी माहिरा से मिल कर बहुत खुश हुईं. वे दोनों आपस में बातें करने लगीं और सलमान नाश्ते का सामान लेने बाजार चला गया.

4 दिन बाद ही माहिरा को दर्द उठा, तो उसे जल्दी अस्पताल ले जाया गया. काफी कोशिश के बाद भी माहिरा की नौर्मल डिलीवरी नहीं हो पाई.

डाक्टर ने आपरेशन की तैयारी शुरू कर दी और तकरीबन 3 घंटे बाद माहिरा ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया, जिसे पा कर सलमान और माहिरा दोनों खुश हो गए.

3 दिन बाद ही माहिरा को डिस्चार्ज भी कर दिया. सलमान उसे ले कर घर आ गया.

अभी माहिरा को आए हुए एक हफ्ता ही गुजरा था कि एक दिन सलमान बाथरूम से नहा कर बाहर निकला. उस ने एक तौलिए से अपनेआप को ढांप रखा था.

सलमान की सास राबिया माहिरा के कमरे से निकल कर किचन में जा रही थीं कि उन की निगाह सलमान के गठीले बदन पर पड़ी. वे सलमान को एकटक निहारती रहीं और एक कातिल मुसकान बिखेरते हुए किचन में चली गईं.

सलमान अपनी सास राबिया की कातिल मुसकान को अच्छी तरह समझ चुका था.

राबिया और माहिरा एक ही जगह सोते थे, क्योंकि माहिरा को किसी भी चीज की जरूरत होती तो राबिया ही देती थीं, साथ ही बच्ची के रोने पर भी वे ही उसे अपनी गोद में उठा कर चुप कराती थीं.

सलमान अलग कमरे में सोता था, ताकि आराम से सुबह काम पर जा सके.

एक रात की बात है. सलमान अपने कमरे में लेटा हुआ था. उस की आंखों से नींद कोसों दूर थी. उसे रहरह कर अपनी सास की कातिल मुसकराहट सता रही थी. उधर राबिया भी सलमान को पाने की ललक में करवटें बदल रही थीं.

रात के 2 बज चुके थे. माहिरा और उस की बच्ची गहरी नींद में सो चुके थे, पर राबिया की आंखों से नींद गायब थी. वे पानी लेने के लिए उठीं और किचन की तरफ बढ़ी ही थीं कि अंधेरा होने की वजह से वे सलमान से जा टकराईं.

सलमान ने अपनी सास राबिया को सहारा देते हुए अपने हाथ आगे बढ़ाए, तो उस के हाथ राबिया की उठी हुई कसीली छाती से जा टकराए. राबिया छटपटा गईं और खुद को सलमान के हवाले कर दिया.

सलमान ने अपने कड़क हाथों से राबिया की उठी हुई छाती को सहलाना शुरू कर दिया. राबिया कई साल से मर्द की इस छुअन से काफी दूर थीं और इस से उन की जिस्मानी तड़प जाग उठी.

सलमान ने अपनी सास राबिया के होंठों पर अपने होंठ रख दिए, तो राबिया ने भी उस के होंठों को चूसना शुरू कर दिया. दोनों तरफ आग भड़क चुकी थी.

सलमान ने राबिया को अपनी बांहों में उठाया और अपने कमरे में ले गया.

राबिया भी सलमान की गोद में एक बच्चे की तरह उस से चिपक गईं. सलमान ने बिना समय गंवाए राबिया के कपड़े उतारने शुरू कर दिए.

राबिया का गोरा और कसा हुआ बदन देख सलमान हैरान रह गया. वह राबिया के बदन को चूमने लगा. राबिया भी पूरे जोश के साथ सलमान के बदन को चूमने लगीं. वे पूरी तरह बेकाबू होती नजर आ रही थीं.

वे दोनों एकदूसरे के बदन से खेलते रहे. कुछ ही देर में दोनों चरम सीमा पर पहुंच कर एकदूसरे से अलग हो गए.

एक बार यह सिलसिला शुरू हुआ तो चलता ही रहा. जब भी राबिया और सलमान को मौका मिलता, वे अपने जिस्म की आग को ठंडा कर लेते.

बंद गले का कोट: क्या हुआ था सुनील के साथ

मास्को में गरमी का मौसम था. इस का मतलब यह नहीं कि वहां सूरज अंगारे उगलने लगा था, बल्कि यह कहें कि सूरज अब उगने लगा था, वरना सर्दी में तो वह भी रजाई में दुबका बैठा रहता था. सूरज की गरमी से अब 6 महीने से जमी हुई बर्फ पिघलने लगी थी. कहींकहीं बर्फ के अवशेष अंतिम सांसें गिनते दिखाई देते थे. पेड़ भी अब हरेभरे हो कर झूमने लगे थे, वरना सर्दी में तो वे भी ज्यादातर बर्फ में डूबे रहते थे. कुल मिला कर एक भारतीय की नजर से मौसम सुहावना हो गया था. यानी ओवरकोट, मफलर, टोपी, दस्ताने वगैरा त्याग कर अब सर्दी के सामान्य कपड़ों में घूमाफिरा जा सकता था. रूसी लोग जरूर गरमी के कारण हायहाय करते नजर आते थे. उन के लिए तो 24 डिग्री सेल्सियस से ऊपर पारा हुआ नहीं कि उन की हालत खराब होने लगती थी और वे पंखे के नीचे जगह ढूंढ़ने लगते थे. बड़े शोरूमों में एयर कंडीशनर भी चलने लगे थे.

सुनील दूतावास में तृतीय सचिव के पद पर आया था. तृतीय सचिव का अर्थ था कि चयन और प्रशिक्षण के बाद यह उस की पहली पोस्टिंग थी, जिस में उसे साल भर देश की भाषा और संस्कृति का औपचारिक प्रशिक्षण प्राप्त करना था और साथ ही दूतावास के कामकाज से भी परिचित होना था. वह आतेजाते मुझे मिल जाता और कहता, ‘‘कहिए, प्रोफेसर साहब, क्या चल रहा है?’’

‘‘सब ठीक है, आप सुनाइए, राजदूत महोदय,’’ मैं जवाब देता.

हम दोनों मुसकानों का आदानप्रदान करते और अपनीअपनी राह लेते. रूस में रहते हुए अपनी भारतीय संस्कृति के प्रति प्रेमप्रदर्शन के लिए और भारतीयों की अलग पहचान दिखाने के लिए मैं बंद गले का सूट पहनता था. रूसी लोग मेरी पोशाक से बहुत आकर्षित होते थे. वे मुझे देख कर कुछ इशारे वगैरा करने लगते. कुछ लोग मुसकराते और ‘इंदीइंदी’ (भारतीयभारतीय) कहते. कुछ मुझे रोक कर मुझ से हाथ मिलाते. कुछ मेरे साथ खडे़ हो कर फोटो खिंचवाते. कुछ ‘हिंदीरूसी भाईभाई’ गाने लगते. सुनील को भी मेरा सूट पसंद था और वह अकसर उस की तारीफ करता था.

यों पोशाक के मामले में सुनील खुद स्वच्छंद किस्म का जीव था. वह अकसर जींस, स्वेटर वगैरा पहन कर चला आता था. कदकाठी भी उस की छोटी और इकहरी थी. बस, उस के व्यवहार में भारतीय विदेश सेवा का कर्मचारी होने का थोड़ा सा गरूर था.

मैं ने कभी उस की पोशाक वगैरा पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन एक दिन अचानक वह मुझे बंद गले का सूट पहने नजर आया. मुझे लगा कि मेरी पोशाक से प्रभावित हो कर उस ने भी सूट बनवाया है. मुझे खुशी हुई कि मैं ने उसे पोशाक के मामले में प्रेरित किया.

‘‘अरे, आज तो आप पूरे राजदूत नजर आ रहे हैं,’’ मैं ने कहा, ‘‘सूट आप पर बहुत फब रहा है.’’

उस ने पहले तो मुझे संदेह की नजरों से देखा, फिर हलके से ‘धन्यवाद’ कहा और ‘फिर मिलते हैं’ का जुमला हवा में उछाल कर चला गया. मुझे उस का यह व्यवहार बहुत अटपटा लगा. मैं सोचने लगा कि मैं ने ऐसा क्या कह दिया कि वह उखड़ गया. मुझे कुछ समझ नहीं आया. इस पर ज्यादा सोचविचार करना मैं ने व्यर्थ समझा और यह सोच कर संतोष कर लिया कि उसे कोई काम वगैरा होगा, इसलिए जल्दी चला गया.

तभी सामने से हीरा आता दिखाई दिया. वह कौंसुलेट में निजी सहायक के पद पर था.

‘‘क्या बात हो रही थी सुनील से?’’ उस ने शरारतपूर्ण ढंग से पूछा.

‘‘कुछ नहीं,’’ मैं ने बताया, ‘‘पहली बार सूट में दिखा, तो मैं ने तारीफ कर दी और वह मुझे देखता चला गया, मानो मैं ने गाली दे दी हो.’’

‘‘तुम्हें पता नहीं?’’ हीरा ने शंकापूर्वक कहा.

‘‘क्या?’’ मुझे जिज्ञासा होना स्वाभाविक था.

‘‘इस सूट का राज?’’ उस ने कहा.

‘‘सूट का राज? सूट का क्या राज, भई?’’ मैं ने भंवें सिकोड़ते हुए पूछा.

‘‘असल में इसे पिछले हफ्ते मिलित्सिया वाले (पुलिस वाले) ने पकड़ लिया था,’’ उस ने बताया, ‘‘वह बैंक गया था पैसा निकलवाने. बैंक जा रहा था तो उस के 2 साथियों ने भी उसे अपने चेक दे दिए. वह बैंक से निकला तो उस की जेब में 3 हजार डालर थे.

‘‘वह बाहर आ कर टैक्सी पकड़ने ही वाला था कि मिलित्सिया का सिपाही आया और इसे सलाम कर के कहा कि ‘दाक्यूमेत पजालस्ता (कृपया दस्तावेज दिखाइए).’ इस ने फट से अपना राजनयिक पहचानपत्र निकाल कर उसे दिखा दिया. वह बड़ी देर तक पहचानपत्र की जांच करता रहा फिर फोटो से उस का चेहरा मिलाता रहा. इस के बाद इस की जींस और स्वेटर पर गौर करता रहा, और अंत में उस ने अपना निष्कर्ष उसे बताया कि यह पहचानपत्र नकली है.’’

‘‘सुनील को जितनी भी रूसी आती थी, उस का प्रयोग कर के उस ने सिपाही को समझाने की कोशिश की कि पहचानपत्र असली है और वह सचमुच भारतीय दूतावास में तृतीय सचिव है. लेकिन सिपाही मानने के लिए तैयार नहीं था. फिर उस ने कहा कि ‘दिखाओ, जेब में क्या है?’ और जेबें खाली करवा कर 3 हजार डालर अपने कब्जे में ले लिए. अब सुनील घबराया, क्योंकि उसे मालूम था कि मिलित्सिया वाले इस तरह से एशियाई लोगों को लूट कर चल देते हैं और फिर उस की कोई सुनवाई नहीं होती. अगर कोई काररवाई होती भी है तो वह न के बराबर होती है. मिलित्सिया वाले तो 100-50 रूबल तक के लिए यह काम करते हैं, जबकि यहां तो मसला 3 हजार डालर यानी 75 हजार रूबल का था.’’

‘‘उस ने फिर से रूसी में कुछ कहने की कोशिश की लेकिन मिलित्सिया वाला भला अब क्यों सुनता. वह तो इस फिराक में था कि पैसा और पहचानपत्र दोनों ले कर चंपत हो जाए, लेकिन सुनील के भाग्य से तभी वहां मिलित्सिया की गाड़ी आ गई. उस में से 4 सिपाही निकले, जिन में से 2 के हाथों में स्वचालित गन थीं. उन्हें देख कर सुनील को लगा कि शायद अब वह और उस के पैसे बच जाएं.

‘‘वे सिपाही वरिष्ठ थे, इसलिए पहले सिपाही ने उन्हें सैल्यूट कर के उन्हें सारा माजरा बताया और फिर मन मार कर पहचानपत्र और राशि उन के हवाले कर दी और कहा कि उसे शक है कि यह कोई चोरउचक्का है. उन सिपाहियों ने सुनील को ऊपर से नीचे तक 2 बार देखा. मौका देख कर सुनील ने फिर से अपने रूसी ज्ञान का प्रयोग करना चाहा, लेकिन उन्होंने कुछ सुनने में रुचि नहीं ली और आपस में कुछ जोड़तोड़ जैसा करने लगे. इस पर सुनील की अक्ल ने काम किया और उस ने उन्हें अंगरेजी में जोरों से डांटा और कहा कि वह विदेश मंत्रालय में इस बात की सख्त शिकायत करेगा.

‘‘उन्हें अंगरेजी कितनी समझ में आई, यह तो पता नहीं, लेकिन वे कुछ प्रभावित से हुए और उन्होंने सुनील को कार में धकेला और कार चला दी. पहला सिपाही हाथ मलता और वरिष्ठों को गालियां देता वहीं रह गया. अब तो सुनील और भी घबरा गया, क्योंकि अब तक तो सिर्फ पैसा लुटने का डर था, लेकिन अब तो ये सिपाही न जाने कहां ले जाएं और गोली मार कर मास्कवा नदी में फेंक दें. उस का मुंह रोने जैसा हो गया और उस ने कहा कि वह दूतावास में फोन करना चाहता है. इस पर एक सिपाही ने उसे डांट दिया कि चुप बैठे रहो.

‘‘सिपाही उसे ले कर पुलिस स्टेशन आ गए और वहां उन्होंने थाना प्रभारी से कुछ बात की. उस ने भी सुनील का मुआयना किया और शंका से पूछा, ‘आप राजनयिक हैं?’

‘‘सुनील ने अपना परिचय दिया और यह भी बताया कि कैसे उसे परेशान किया गया है, उस के पैसे छीने गए हैं. बेमतलब उसे यहां लाया गया है और वह दूतावास में फोन करना चाहता है.

‘‘प्रभारी ने सामने पड़े फोन की ओर इशारा किया. सुनील ने झट से कौंसुलर को फोन मिलाया. कौंसुलर ने मुझे बुलाया और फिर मैं और कौंसुलर दोनों कार ले कर थाने पहुंचे. हमें देख कर सुनील लगभग रो ही दिया. कौंसुलर ने सिपाहियों को डांटा और कहा कि एक राजनयिक के साथ इस तरह का व्यवहार आप लोगों को शोभा नहीं देता.’’

‘‘इस पर वह अधिकारी काफी देर तक रूसी में बोलता रहा, जिस का मतलब यह था कि अगर यह राजनयिक है तो इसे राजनयिक के ढंग से रहना भी चाहिए और यह कि इस बार तो संयोग से हमारी पैट्रोल वहां पहुंच गई, लेकिन आगे से हम इस तरह के मामले में कोई जिम्मेदारी नहीं ले सकते?

‘‘अब कौंसुलर की नजर सुनील की पोशाक पर गई. उस ने वहीं सब के सामने उसे लताड़ लगाई कि खबरदार जो आगे से जींस में दिखाई दिए. क्या अब मेरे पास यही काम रह गया है कि थाने में आ कर इन लोगों की उलटीसीधी बातें सुनूं और तुम्हें छुड़वाऊं.’’

‘‘हम लोग सुनील को ले कर आ गए. अगले 2 दिन सुनील ने छुट्टी ली और बंद गले का सूट सिलवाया और उसे पहन कर ही दूतावास में आया. मैं ने तो खैर उस का स्टेटमेंट टाइप किया था, इसलिए इतने विस्तार से सब पता है, लेकिन यह बात तो दूतावास के सब लोग जानते हैं,’’ हीरा ने अपनी बात खत्म की.

‘‘तभी…’’ मेरे मुंह से निकला, ‘‘उसे लगा होगा कि मैं भी यह किस्सा जानता हूं और उस का मजाक उड़ा रहा हूं.’’

‘‘अब तो जान गए न,’’ हीरा हंसा और अपने विभाग की ओर बढ़ गया.

मुझे अफसोस हुआ कि सुनील को सूट सिलवाने की प्रेरणा मैं ने नहीं, बल्कि पुलिस वालों ने दी थी.

गहरा रिश्ता: रोहित के साथ कौन सा हुआ हादसा

रोहित सड़क पर बेहोशी की हालत में पड़ा हुआ तड़प रहा था. सिर से खून की धार बह रही थी. उस का स्कूटर नजदीक ही गिरा पड़ा था.
कानूनी पचड़े में फंसने के चलते कोई भी आदमी उस की मदद के लिए आगे नहीं आया. लोग एक नजर उस पर डालते और फिर आगे बढ़ जाते.
गायत्री का रिकशा जैसे ही उधर से गुजरने लगा, उस की नजर तड़पते हुए रोहित पर पड़ी. उसे देखते ही उस के चेहरे पर घबराहट छा गई. अगले ही पल उस ने रिकशे वाले को रुकने के लिए कहा. रिकशा रुकते ही उतर कर उस ने रोहित को टटोल कर देखा. उस की सांस चल रही थी.
‘‘बहनजी, छोडि़ए. क्यों इस लफड़े में पड़ती हैं आप? पुलिस आ कर अपनेआप संभाल लेगी,’’ रिकशे वाले ने बला टालने के लिए कहा. वह बुरी तरह डरा हुआ था.
‘‘चुप करो. शर्म नहीं आती तुम्हें… एक आदमी तड़पतड़प कर अपनी जान दे रहा है और तुम्हें यह लफड़ा लग रहा है,’’ कहते हुए गायत्री ने अपना रूमाल बेहोश रोहित के सिर पर बांध दिया.
‘‘इधर आओ, थोड़ी मदद करो,’’ रिकशे वाले से कहते हुए गायत्री ने रोहित को उठाने की कोशिश की.
गायत्री को यह सब करते देख डर की वजह से दूर खड़े लोग भी पास आ गए थे. गायत्री ने उन की मदद से रोहित को रिकशे में डाला. उस के बाद वह अस्पताल की ओर चल दी.
जल्दी ही वे अस्पताल पहुंच गए. ज्यों ही रिकशा गेट के अंदर पहुंचा, वैसे ही अस्पताल से बाहर निकल रहे एक नौजवान की नजर रोहित पर पड़ी.
‘‘अरे, यह तो हमारे रोहित साहब हैं,’’ कहते हुए वह रिकशे के साथ हो लिया.
‘‘आप इन्हें जानते हैं?’’ गायत्री ने उस से पूछा.
‘‘जी हां. यह हमारे इंजीनियर साहब हैं. मैं इन्हीं के दफ्तर में काम करता हूं,’’ नौजवान ने जल्दी से कहा.
डाक्टरों ने रोहित की हालत को देखते हुए तुरंत ही उस के इलाज का इंतजाम किया.
गायत्री बाहर बरामदे में बैठ गई. उस ने उस नौजवान को रोहित के घर खबर देने के लिए भेज दिया.
थोड़ी देर बाद एक डाक्टर बाहर आया, तो गायत्री ने उस से रोहित के बारे में पूछा.
‘‘वह अब ठीक है. अच्छा हुआ, आप उन्हें वक्त पर ले आई. अगर देर हो जाती, तो बचना मुश्किल था,’’ डाक्टर ने उसे बताया.
इस के बाद यह सोच कर कि अब रोहित के घर वाले आ ही जाएंगे, गायत्री अपने घर की ओर चल दी.
‘‘क्या हुआ बेटी?’’ गायत्री की खून से सनी साड़ी देख कर मां ने घबराई हुई आवाज में पूछा और लपक कर उसे दोनों हाथों से थाम लिया.
‘‘कुछ नहीं मां,’’ गायत्री ने सोफे पर बैठते हुए कहा.
‘‘पर बेटी, यह खून?’’ मां ने उस की साड़ी की ओर इशारा करते हुए पूछा.
मां जल्दी से पानी का गिलास ले आई. पानी पीने के बाद गायत्री ने उन को सारी बात बता दी. तब कहीं जा कर मां को चैन मिला.
वक्त के साथ हर वारदात कहीं दफन सी हो जाती है. इस वारदात को घटे भी 15-20 दिन गुजर गए थे. गायत्री भी अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में खो सी गई थी. पिता की मौत के बाद उस ने मेहनत से पढ़ाई कर अच्छे नंबरों से एमए पास किया था. इस वजह से सीधे ही उसे कालेज में नौकरी मिल गई थी.
नौकरी मिलने के बाद उन की माली हालत भी सुधर गई थी. दोनों मांबेटी अपनी छोटी सी दुनिया में खुश भी थीं. लेकिन मां को गायत्री की शादी की चिंता अंदर ही अंदर परेशान किए रहती थी. कितने ही मिलने वालों व रिश्तेदारों से इस बारे में कह रखा था, मगर अभी तक कहीं बात नहीं बनी थी.
एक दिन शाम के वक्त गायत्री बाजार जाने की तैयारी कर रही थी कि किसी ने घंटी बजाई. उस ने जा कर दरवाजा खोला तो सामने रोहित को खड़ा पाया. वह एक ही नजर में उसे पहचान गई.
रोहित दोनों हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘नमस्ते.’’
‘‘नमस्ते,’’ गायत्री ने मुसकराते हुए कहा.
‘‘मुझे गायत्रीजी से मिलना है,’’ रोहित ने कुछ झिझक के साथ कहा.
‘‘जी, मैं ही गायत्री हूं. अंदर आइए,’’ गायत्री ने अंदर की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘अब आप कैसे हैं?’’
‘‘बिलकुल ठीक हूं… वह भी आप की वजह से,’’ रोहित ने मुसकराते हुए कहा.
‘‘उस दिन अगर आप ने मुझे वक्त पर अस्पताल न पहुंचाया होता तो आज…’’
‘‘छोडि़ए भी… बीती बातों को याद करने से क्या फायदा?’’
इसी बीच मां भी कमरे में चली आईं.
‘‘ये मेरी मां हैं,’’ गायत्री ने मां का परिचय कराते हुए कहा.
‘‘नमस्ते माताजी,’’ रोहित ने तुरंत दोनों हाथ जोड़ते हुए कहा.
‘‘मां, ये वही हैं, जिन का कुछ दिन पहले ऐक्सीडैंट हुआ था और जिन्हें मैं अस्पताल ले कर गई थी,’’ गायत्री ने मां को बताया.
‘‘अच्छाअच्छा, जीते रहो बेटा, मैं तो उस दिन घबरा ही गई थी, जब यह खून से सने कपड़ों में घर आई.’’
इसी बीच गायत्री उठ कर रसोई में चली गई और जल्दी से शरबत बना कर ले आई. फिर बोली, ‘‘घर का पता ढूंढ़ने में तो परेशानी नहीं हुई आप को?’’
‘‘बिलकुल नहीं, आप का पता अस्पताल के रजिस्टर में लिखा हुआ था. जब मुझे मेरे दफ्तर के एक नौजवान ने बताया कि एक लड़की मुझे अस्पताल पहुंचा कर गई थी, तो मैं ने उसी वक्त सोच लिया था आप से तो मैं जरूर मिलूंगा.
‘‘देखिए, ज्यादा तो मैं क्या कहूं… बस इतना ही कहूंगा कि आप का यह कर्ज मैं कभी नहीं उतार सकूंगा. मेरी यह जिंदगी आप की ही अमानत है,’’ रोहित ने भरी आंखों से कहा.
‘‘अब आप मेरी कुछ ज्यादा ही तारीफ कर रहे हैं.’’
यह सुन कर रोहित मुसकरा दिया. फिर उस ने ब्रीफकेस से शादी का कार्ड निकाल कर गायत्री की मां की तरफ बढ़ा दिया, ‘‘यह मेरी बहन की शादी का कार्ड है. आप को इस शादी में हर हालत में शामिल होना है.’’
‘‘क्यों नहीं, हम जरूर आएंगे. इस बहाने भाभीजी से भी मुलाकात हो जाएगी,’’ गायत्री ने कहा.
‘‘भाभीजी? भई, कौन सी भाभी?’’ रोहित चौंकते हुए बोला.
‘‘अरे, तुम्हारी पत्नी के लिए बोल रही है,’’ मां ने हंसते हुए कहा.
‘‘पर, मैं तो अभी कुंआरा हूं.’’
यह सुन कर गायत्री एकदम झेंप गई. उस ने शर्म से चेहरा झुका लिया. पूरे शरीर में एक झुरझुरी सी दौड़ गई थी. अचानक ऐसा क्यों हो रहा था कि वह खुद भी नहीं समझ पा रही थी.
‘‘अच्छा माताजी, अब मैं चलता हूं,’’ रोहित ने उठते हुए हाथ जोड़ कर कहा.
‘‘ठीक है, बेटा,’’ मां ने कहा.
गायत्री बाहर दरवाजे तक रोहित को छोड़ने आई. वह जाते हुए रोहित को एकदम देखे जा रही थी. उसे ऐसा महसूस हो रहा था, जैसे इन 15-20 मिनटों में ही रोहित ने उस का सबकुछ चुरा लिया हो.
उधर गायत्री से मिलने के बाद रोहित भी बेचैन रहने लगा था. उसे ऐसा महसूस हो रहा था, मानो उस के सीने में से कुछ निकल कर खो गया है. बारबार गायत्री का मासूम चेहरा उस की आंखों के सामने आ जाता. उस की आवाज उस के कानों में गूंजती हुई सुनाई देती.
इस तरह दोनों ही तरफ चाहत की चिनगारी सुलग चुकी थी. गायत्री जानेअनजाने रोहित के प्यार में डूब तो गई, मगर अंदर ही अंदर वह एक बात को ले कर परेशान भी थी. वह छोटी जाति की थी और रोहित ऊंची जाति का था. उसे डर था कि रोहित उस की जाति से अनजान है और जिस दिन उसे मालूम पड़ेगा, तो वह उस से प्यार की जगह नफरत करने लगेगा.
अगर रोहित को प्यार में किसी तरह मना भी लिया, तो उस के घर वाले इस रिश्ते को कभी मंजूर नहीं करेंगे.
कई बार गायत्री ने चाहा कि वह रोहित से इस बारे में खुल कर बात कर ले. लेकिन इस के लिए वह हिम्मत नहीं जुटा पाती. बस, सोच कर ही रह जाती.
उधर गायत्री का प्यार पा कर रोहित फूला नहीं समा रहा था. उसे गायत्री
की परेशानी के बारे में कुछ भी मालूम नहीं था.
गायत्री की मां से दोनों का प्यार छिपा नहीं था. गायत्री ने भी एक दिन झिझकते हुए मां को बता दिया था कि वह रोहित को पसंद करती है और वह भी उसे चाहता है.
मां ने बेटी का दिल न तोड़ने के लिए कुछ कहा तो नहीं, पर वह भी अंदर ही अंदर उसी डर से परेशान थीं, जिस से गायत्री थी. उन्होंने एक दिन गायत्री को इस बारे में बोल भी दिया कि वह रोहित से इस बारे में खुल कर बात क्यों नहीं कर लेती.
मां के समझाने पर गायत्री में थोड़ी हिम्मत आ गई. उस ने पक्का फैसला कर लिया कि अब जब भी रोहित मिलेगा, उस से साफ बात करेगी.
वह छुट्टी का दिन था. मां किसी रिश्तेदार के यहां गई हुई थी… इधर रोहित से कई दिनों से मुलाकात नहीं हो पाई थी. इस वजह से गायत्री परेशान थी. समय काटने के लिए सोफे पर लेटे हुए ही वह किताब के पन्ने पलट रही थी, तभी किसी ने घंटी बजाई.
गायत्री ने जा कर दरवाजा खोला, तो सामने रोहित को खड़े पाया, जो हलकी मुसकान लिए हुए बाहर खड़ा था.
रोहित को देखते ही उस का रोमरोम खिल उठा. वह धीरे से बोली, ‘‘अब अंदर भी आएंगे या जनाब यहीं खड़े रहेंगे,’’ गायत्री ने कुछ अदा के साथ रोहित को देखते हुए कहा.
‘‘लीजिए… आप का हुक्म सिरआंखों पर,’’ कहते हुए रोहित भी शान के साथ अंदर चला आया.
‘‘आज हुजूर अचानक यहां कैसे टपक पड़े?’’ गायत्री ने रोहित को बैठने का इशारा करते हुए कहा.
‘‘लो, आप को यहां आना अच्छा नहीं लगा तो अभी चले जाते हैं,’’ रोहित ने उठने का नाटक करते हुए कहा.
‘‘खैर, छोडि़ए… यह बताइए कि क्या लेंगे, ठंडा या गरम?’’ गायत्री ने बात के रुख को मोड़ते हुए कहा.
‘‘जो आप पिलाएंगी.’’
गायत्री लजाती हुई उठ कर चली गई और जल्दी ही शरबत के 2 गिलास बना कर ले आई.
‘‘अरे, आज माताजी दिखाई नहीं दे रही हैं,’’ रोहित ने ट्रे से गिलास उठाते हुए पूछा.
‘‘आज वह एक रिश्तेदार के यहां गई हुई हैं.’’
‘‘तुम नहीं गए?’’
‘‘जी नहीं, मेरा मन नहीं था.’’
‘‘क्या हुआ तुम्हारे मन को?’’ रोहित ने उसे छेड़ते हुए कहा.
‘‘बता दूं…?’’ गायत्री ने मौका देख कर अपनी बात पर आते हुए कहा.
‘‘हांहां, जरा हम भी तो सुनें कि हमारी महारानीजी का इरादा क्या है?’’
‘‘रोहित, आज मेरा मूड सचमुच हंसीमजाक का नहीं है. मैं आप से एक खास बात करना चाहती हूं,’’ गायत्री ने कुछ झिझकते हुए कहा.
‘‘खास बात?’’ रोहित कुछ चौंकते हुए बोला.
‘‘हां, इस बात को ले कर मैं कुछ दिनों से परेशान हूं. पहले भी कई बार मैं ने इस बारे में आप से बात करने की कोशिश की थी, लेकिन हिम्मत नहीं जुटा पाई.’’
‘‘चलो, आज तो तुम ने हिम्मत जुटा ली है. अब अपनी बात कह भी डालो, जिसे ले कर तुम इतनी परेशान दिखाई दे रही हो.’’
‘‘रोहित, तुम जानते हो कि मैं कौन हूं?’’
‘‘लो, यह भी कोई पूछने की बात है. भला मुझ से ज्यादा तुम्हें और कौन जानेगा?’’ रोहित ने धीरे से कहा.
‘‘बात को टालो मत.’’
‘‘ठीक है, तो फिर सुनो. तुम एक प्यारी सी सुंदर लड़की हो. कालेज में पढ़ाती हो और अपने सामने बैठे इस नालायक आदमी से बेपनाह मुहब्बत करती हो,’’ रोहित ने गायत्री को छेड़ते हुए कहा.
‘‘रोहित, मेरा यह मतलब नहीं है. मेरा मतलब मेरे परिवार से है, जिस में मैं ने जन्म लिया है,’’ गायत्री ने असली बात पर आते हुए कहा.
‘‘ओह… आखिर वही बात सामने आ गई, जिस का मुझे डर था. मैं ने बहुत दिन पहले ही सोच लिया था कि एक दिन ऐसा भी आ सकता है.’’
‘‘कौन सी बात?’’ गायत्री ने हैरानी से पूछा.
‘‘हूं… तो सुनिए जनाब, तुम यही कहना चाहती हो न कि देखो रोहित तुम एक ऊंची जाति के हो और मैं छोटी जाति की हूं, इसलिए हमारा रिश्ता समाज और तुम्हारे घर वालों को कभी पसंद नहीं होगा. इसलिए बेहतर यही है कि हम अपने कदम वापस खींच लें और एक सपना समझ कर सबकुछ भूल जाएं. क्यों ठीक है न?’’ कह कर रोहित चुप हो गया और गायत्री की आंखों में देखने लगा, जहां से लगातार आंसू बहे जा रहे थे.
‘‘रोहित,’’ गायत्री सुबक पड़ी और अपना चेहरा रोहित की गोद में छिपा लिया.
‘‘अरे पगली, एक बेतुकी बात के लिए अपने सीने पर इतना भारी बोझ ले कर बैठी थीं. मैं ने तुम से मुहब्बत अपना दिल बहलाने या ऐयाशी के लिए नहीं की है, बल्कि अपना जीवनसाथी बनाने के लिए तुम से यह रिश्ता जोड़ा है. मुझे तुम से बेपनाह मुहब्बत है. फिर हमारे बीच यह जाति वाली बात कहां से आ गई?’’
रोहित की बात सुन कर गायत्री उसे ऐसे देखने लगी, जैसे कोई सपना देख रही हो.
‘‘देखो गायत्री, आज मुझे बहुत अफसोस हो रहा है कि इतने दिन मेरे साथ रह कर भी तुम मुझे पहचान नहीं पाई. तुम नहीं जानतीं, मेरे घर वाले कितने खुले विचारों के हैं. वह इस जातबिरादरी को बिलकुल नहीं मानते.
‘‘अपने घर वालों को मैं ने शुरू में ही तुम्हारे बारे में सबकुछ बता दिया था. तुम्हारे ही महल्ले के एक आदमी से, जो हमारे ही दफ्तर में काम करता है, तुम्हारे बारे में मुझे सारी जानकारी मिल गई थी. मेरे घर वालों को सिर्फ एक गुणी
और सुशील बहू चाहिए, जो उन के परिवार की शोभा बढ़ा सके. ये सब गुण तुम्हारे अंदर हैं, इसलिए मैं ने तुम्हें चुन कर कोई गलती नहीं की है.
‘‘मैं तो खुद ही ऐसा मौका तलाश रहा था, ताकि तुम से शादी की बात कर सकूं… आज वह मौका तुम ने खुद ही दे दिया.’’
‘‘रोहित, मैं यह सब क्या सुन रही हूं?’’ गायत्री ने उस के कंधे पर अपना सिर टिकाते हुए कहा.
‘‘रानीजी, आप जो सुन रही हैं, वही सच है. अब तो आप अपना फैसला सुनाइए,’’ रोहित ने उस का चेहरा अपने सामने करते हुए कहा.
‘‘मैं ने तो कभी सोचा ही नहीं था कि मुझे तुम्हारे जैसा सच्चा इनसान इस तरह मिल जाएगा. क्या तुम्हारा वह ऐक्सीडैंट कुदरत ने इसीलिए करवाया था कि हमें मिलना था?’’
‘‘शायद, अगर वह सब नहीं होता, तो हम मिलते कैसे? खैर, बाकी सब बातें छोड़ो और यह बताओ कि मेरे मांबाप की बहू बन कर मेरा और उन का सपना कब पूरा करोगी?’’
‘‘जब आप का हुक्म होगा मेरे साजन,’’ कह कर गायत्री अदा से उठी और उस ने सिर पर चुन्नी रख कर रोहित के पैर छू लिए.
रोहित जोर से हंस पड़ा. उस ने गायत्री को उठा कर अपने सीने से लगा लिया. दोनों ने अपनेआप को एक गहरे रिश्ते में बांध लिया था.

जरूरत : जातपांत का भेदभाव

गांव में जैसे भूचाल सा आ गया था. एक ऐसा भूचाल, जो सामने से भले ही दिखाई न दे, मगर जिस ने कुछ परिवारों में उथलपुथल जरूर मचा दी थी. कुछ परिवार फनफना रहे थे, तो कुछ परिवार सहमे हुए थे कि पता नहीं, अब क्या अनहोनी घट जाए.

गांव के घरघर में सुगबुगाहट के साथ चर्चा हो रही थी. अब गीता और उस के पति शंकर की खैर नहीं. हो सकता है कि दोनों को गांव से भगा दिया जाए, किसी से भी रिश्ता न रखने दिया जाए या दोनों की बुरी तरह पिटाई की जाए. ऐसा डर लाजिमी था.

हो भी क्यों न. आखिर इतने दिनों बाद जब यह पता चले कि शंकर नीची जाति का है, तो कुछ भी अनहोनी हो सकती है. लड़की ने भी झूठ बोल कर परिवार और खानदान की नाक कटवा दी, तो शंकर की भी इतनी हिम्मत कैसे हुई कि पूरे गांव वालों की आंख में वह धूल झोंके.

हैरानी तो यह है कि आखिर इतने दिनों तक इस बात की भनक किसी को मिली क्यों नहीं, अब तो दोनों का एकलौता बेटा सुरेश कालेज में पढ़ रहा है. पता नहीं तीनों की क्या दुर्गति हो. तीनों को एक घर में बंद कर के पहरा लगा दिया गया है.

जब सूरजदेव आएगा, तभी फैसला होगा कि उन्हें क्या सजा दी जाए. इस घटना को ले कर गांव की सभी जातियों के लोगों में अपनेअपने तरीके और सोच के मुताबिक चर्चा हो रही थी.

‘‘भैया, शंकर की हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी. छोटी जाति का हो कर बड़ी जाति की लड़की से शादी कर के वह इतने दिनों तक झूठ बोल कर कितनी शान से गांव में रह रहा था.

बाबू साहब भले आदमी हैं. शंकर को अपनी जाति का लड़का मान कर बेटी के प्रेम विवाह को स्वीकार कर लिया था, लेकिन झूठ तो बरदाश्त नहीं किया जा सकता है न.’’

‘‘गीता ने भी तो खानदान की नाक कटवा दी है. दूर के कालेज में पढ़ने क्या गई, छोटी जाति के लड़के से ब्याह कर लिया. उसी ने झूठ बोला है कि उस का पति उसी की जाति का है.

‘‘पास के गांव के एक स्कूल में एक मास्टर बदली हो कर आया है रघुवीर प्रसाद. उसी ने किसी को बता दिया कि शंकर उसी का दूर का रिश्तेदार है. बस, यह बात एक घर से दूसरे घर होती हुई गांवभर में पहुंच गई. भांडा फूट गया. भला सचाई को कितने दिनों तक छिपाया जा सकता है. वैसे, शंकर है अच्छा आदमी.’’

‘‘हां, शंकर अच्छा आदमी तो है ही. शेर सिंह की मां की जान उसी के चलते बची है. पंडित महेंद्र शर्मा की बेटी को उस की ससुराल वाले बहुत परेशान करते थे. उसी ने पंडितजी के साथ जा कर मामले को शांत करवाया. आज लड़की अपनी ससुराल में सुख से है.

‘‘पता नहीं, कितने लोग उस के एहसान तले दबे हैं. अब जातपांत का भेदभाव खत्म होना चाहिए. शंकर को माफ कर के अपनी जाति में शामिल कर लेना चाहिए.’’

‘‘अबे चुप कर. उस ने हम लोगों की जाति के साथ धोखा किया है. अच्छा आदमी है तो क्या हुआ, काम तो गलत किया है. बाबू साहब ने ठीक किया है. उन के बेटे तो शंकर के हाथपैर तोड़ कर उसे कहीं फेंक देते, मगर बहन का मुंह देख कर अभी कुछ नहीं कहा है.

‘‘इस गांव का शेर सूरजदेव सिंह है, वहीं यहां की सामाजिक समस्याओं का फैसला करता है. वह आज शाम तक आ जाएगा. किसी काम से दिल्ली गया है.

‘‘चोरडकैत, आसपास के गांव के लोग, पुलिस, सरकारी अफसर, सब उस के फैसले को मानते हैं. उस के नाम से लोग थरथर कांपते हैं. आने दो उसे. फैसला हो जाएगा.’’

जितने लोग उतनी तरह की बातें. बात घूमफिर कर एक ही जगह पहुंचती कि इस अपराध में गीता भी बराबर की साझेदार है. उसे शंकर अच्छा लगा था और उस से शादी कर ली. उसी ने शंकर से ?ाठ बुलवाया था कि वह उसी जाति का है. अब सूरजदेव सिंह के आने पर पता नहीं क्या फैसला हो. गीता को भी कड़ी सजा मिल सकती है.

शाम को गांव की चौपाल में पंचायत लगी. पंचायत में शंकर, गीता और उस के बेटे सुरेश के हाथपैर बांध कर खड़ा किया गया था. पंचायत में प्लास्टिक की कुछ कुरसियों पर गीता के पिता, दोनों भाई, कई रिश्तेदार, सूरजदेव सिंह और उन के लठैत, गांव की दूसरी कई जातियों के लोग जमा थे. सब की सांसें मानो थमी हुई थीं.

सूरजदेव सिंह के इशारे पर गीता के पीहर वालों ने उन के अपराध का ब्योरा देना शुरू किया. गीता, शंकर और उन का बेटा चुपचाप सिर झुकाए खड़े थे.

सारी बातें सुन लेने के बाद सूरजदेव की आंखों में एक खतरनाक चमक उभरी. उस ने तीनों को गौर से देखने के बाद आसपास घेरा बना कर खड़े गांव वालों की ओर भी देखा. ज्यादातर लोगों की आंखों में गीता, शंकर और उस के बेटे को ले कर हमदर्दी की झलक थी.

सभी एकदूसरे का मुंह देख रहे थे, मगर कोई किसी से कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था. पंचायत में सन्नाटा पसरा था.

थोड़ी देर बाद सूरजदेव की गंभीर आवाज गूंजी, ‘‘मैं ने सारा कुछ सुन लिया है. सारा कुछ पता लगा लिया है. गीता और शंकर को तो हमारे समाज ने अपना लिया था, लेकिन जाति को ले कर झूठ बोलना बहुत बड़ा अपराध है.

‘‘अब शंकर कहता है कि वह कोई जातपांत नहीं मानता है. यह उस की मरजी है. उसे गीता ने बोलने को मजबूर किया था कि वह अपनी ही जाति का है. अब सचाई सामने आ गई है. अब आप लोग ही बताएं कि इन के लिए कैसी सजा ठीक रहेगी?’’

सजा के नाम पर पंचायत में आए ज्यादातर लोगों के शरीर में सिहरन दौड़ गई. सभी फिर एकदूसरे का मुंह देखने लगे. कुछ देर बाद ही गीता के दोनों भाइयों में से एक ने धीरे से कहा, ‘‘इन लोगों की अच्छी तरह पिटाई कर के यहां से दूर भगा दिया जाना चाहिए. वैसे, आप की मरजी. आप अपनी तरफ से जो भी सजा तय करते हैं, ठीक ही होगा. हम लोगों ने आप के फैसले को हमेशा ही इज्जत दी है, उसे माना है.’’

फिर सन्नाटा पसर गया. सभी के दिल की धड़कनें तेज हो गई थीं. ‘‘तो ठीक है…’’ सूरजदेव सिंह की रोबीली आवाज गूंजी, ‘‘मेरा मानना है कि गीता और शंकर को माफ किया जाए. मैं इन्हें हंसीखुशी गांव में रहने की इजाजत देता हूं. आप लोगों को कुछ कहना है तो बताएं. उस पर सोचविचार किया जाएगा.’’

सूरजदेव सिंह की इस बात से सभी के चेहरे पर घोर आश्चर्य उमड़ आया. सभी में कानाफूसी होने लगी, मगर किसी से कुछ कहते नहीं बन पड़ा. इसी में चंद मिनट गुजर गए. ऐसा लगा, जैसे सभी सोच रहे हों कि जब सूरजदेव सिंह ने कोई फैसला ले लिया है, तो अब कुछ कहने को नहीं रहा. जरूर इस में भी कोई बात है. सभी उसे देखने लगे.

सूरजदेव उठ खड़ा हुआ था. एक बार सभी के चेहरे को देखते हुए वह धीरे से मुसकरा कर गंभीरता से बोला, ‘‘मैं ने इस मामले पर काफी सोचविचार किया है. इस ने मुझे नई दिशा दी है. हमें ऐसे लोगों की उन गलतियों को माफ कर देना चाहिए, जो माफी के लायक हों, क्योंकि आज समाज को अच्छे लोगों की बहुत जरूरत है.

‘‘हमें अच्छे लोगों की जाति का समाज बनाना होगा, जहां कोई भेदभाव नहीं हो, छुआछूत न हो, तभी यह दुनिया कायम रह सकेगी.

‘‘शंकर और गीता ने जो किया, वह उन की मजबूरी थी, क्योंकि यह मजबूरी हमारे रूढि़वादी समाज ने उन्हें सौंपी है. ये लोग गांव में पहले की तरह रहेंगे. यही मेरा फैसला है.’’

पंचायत में सभी एकदूसरे का मुंह देखने लगे. सूरजदेव सिंह के इशारे पर शंकर, गीता और उन के बेटे सुरेश के हाथपैर के बंधन खोल दिए गए.

हालांकि, कुछ लोगों के चेहरे पर थोड़ी नाराजगी और हार की हलकी झलक थी, मगर ऐसा लगा कि कहीं उन के अंदर भी सूरजदेव सिंह के फैसले का समर्थन हो.

सभी के चेहरे पर इस फैसले से एक अजीब खुशी थिरक उठी थी. शंकर और गीता ने सभी की ओर देखते हुए हाथ जोड़ दिए थे. गीता के पिता बाबू साहब ने आगे बढ़ कर उन दोनों को गले से लगा लिया था.

नेपाली लड़की : कहानी जानकी बहादुर की

प्रमोद ने अपने घर में झाड़ूपोंछा करने वाली लड़की संजू से कहा था कि अगर वह अंगरेजी कंप्यूटर टाइपिंग करने वाली किसी स्टूडैंट को जानती है

और जिसे पार्टटाइम नौकरी की जरूरत है, तो उसे ले आए.

संजू 3 दिन बाद जिस लड़की को लाई, वह कद में कुछ कम ऊंची, पर गठा हुआ बदन, गोल चेहरा, रंग साफ, बाल बौबकट थे, जो उस के गोल चेहरे को खूबसूरत बना रहे थे. पहनावे से वह आम लड़की दिखती

थी. उस की उम्र का अंदाजा लगाना भी मुश्किल था.

जो भी हो, प्रमोद को अंगरेजी कंप्यूटर टाइपिंग जानने वाले की जरूरत थी, इसलिए उस ने ज्यादा पूछताछ किए बिना ही उस लड़की को अपने दफ्तर में टाइपिस्ट का काम दे दिया.

उस लड़की ने अपना नाम जानकी बहादुर बताया था. शक्ल से वह किसी उत्तरपूर्वी प्रदेश की लगती थी.

बाद में प्रमोद ने नाम से अंदाजा लगाया कि जानकी बहादुर नेपाल से आए किसी परिवार की लड़की है. उसे उस लड़की की राष्ट्रीयता से कुछ लेनादेना नहीं था, इसलिए इस ओर ध्यान भी नहीं दिया.

शुरूशुरू में प्रमोद जानकी को डिक्टेशन देता था, ज्यादातर ईमेल, बिजनैस लैटर लिखवाता था. चूंकि वह कौमर्स की छात्रा थी, तो लैटर का कंटैंट सम?ाने में उसे मुश्किल नहीं हुई, लेकिन टाइपिंग में स्पैलिंग की गलतियां होती थीं. हो सकता है कि वह प्रमोद का अंगरेजी उच्चारण सम?ा न पाती हो या फिर हिंदी मीडियम से कौमर्स करने के चलते कौमर्स के तकनीकी अंगरेजी शब्द उस के लिए अजनबी थे, इसलिए प्रमोद उस को डिक्टेशन न दे कर खुद चिट्ठियां लिख कर

देने लगा.

1-2 महीने में ही प्रमोद को यह देख कर बेहद हैरानी हुई कि अब उस लड़की द्वारा टाइप की गई चिट्ठियों में से गलतियां नदारद थीं.

एक दिन जानकी ने प्रमोद से कहा, ‘‘सर, क्या आप मु?ो फुलटाइम के लिए दफ्तर में रख सकते हैं?’’

‘‘तुम दफ्तर का और क्या काम कर सकती हो?’’

‘‘आप जो भी करने को कहेंगे?’’

‘‘और कालेज?’’

‘‘मैं प्राइवेट पढ़ाई कर रही हूं.’’

‘‘ठीक है…’’ फिर प्रमोद ने उस से पूछा, ‘‘हिंदी की टाइपिंग कर सकोगी?’’

‘‘10-15 दिन में सीख लूंगी,’’ जानकी ने बड़े यकीन के साथ कहा.

प्रमोद के पास इस बात पर यकीन न करने की कोई वजह नहीं थी, क्योंकि 2-3 महीनों में वह काम के प्रति उस की लगन देख कर हैरान था.

जानकी न तो दफ्तर बंद होते ही घर भागती थी और न ही उस ने कभी बहाना किया कि सर, मेरे पास काम बहुत है, या फिर 5 बज गए हैं.

बौस को और क्या चाहिए? बस, ज्यादा से ज्यादा काम और अच्छे ढंग से किया गया काम.

देखते ही देखते प्रमोद जानकी पर पूरी तरह निर्भर हो गया. वह न केवल दफ्तर के कामों में माहिर हो गई, बल्कि प्रमोद ने दफ्तर के बाहर का काम भी उसे सौंप दिया. स्टेशनरी खरीदना, और्डर भेजना, रिसीव करना, हिसाबकिताब रखना वगैरह. वह एकएक पैसे का हिसाब रखती थी और सच पूछो तो उस से हिसाब मांगने की प्रमोद को कभी जरूरत नहीं पड़ी.

एक बार प्रमोद गंभीर रूप से बीमार पड़ गया था. जानकी जानती थी कि

उस का शहर में अपना कोई नहीं है, तो वह एक हफ्ते तक अस्पताल में रातदिन एक नर्स की तरह उस की देखभाल करती रही.

प्रमोद ने इस दौरान दफ्तर में अपना काम जानकी को करने को कहा, तो उस ने बड़ी खुशी से उसे स्वीकारा और निभाया.

अस्पताल में प्रमोद ने जानकी से पूछा था, ‘‘मेरे लिए जो तुम इतना कर रही हो, क्या

इस के लिए तुम ने अपने मम्मीपापा से पूछा था?’’

‘‘हां सर, रात में अस्पताल में रहने के लिए जरूर पूछा था.’’

अस्पताल से छुट्टी देते हुए डाक्टर ने प्रमोद से कहा था, ‘‘उम्र ज्यादा होने के चलते आप का शरीर पूरी तरह ठीक नहीं हुआ है, इसलिए अभी कुछ समय और आराम की जरूरत है. कुछ दिन आप दफ्तर के कामों में मत पडि़ए.’’

डाक्टर की सलाह मान कर प्रमोद ने दफ्तर से 3-4 महीने की छुट्टी लेने का निश्चय किया. वह अपने बेटे के पास बेंगलुरु जाना चाहता था. पर इतने लंबे समय तक दफ्तर कौन संभालेगा?

प्रमोद ने कुछ सोच कर स्टाफ की मीटिंग बुलाई और बात की.

प्रमोद जानकी को जिम्मेदारी सौंपना चाहता था, पर उस ने जैसे ही उस का नाम लिया, स्टाफ की दूसरी लड़कियां भड़क गईं.

‘‘सर, वह जूनियर है,’’ एक लड़की बोली,

‘‘आप को यह जिम्मेदारी मिसेज दीक्षित को देनी चाहिए, जो पिछले

10 साल से इस दफ्तर में काम कर रही हैं,’’ दूसरी लड़की बोली.

‘‘सर, जानकी को दफ्तर में आए डेढ़ साल ही हुआ है और आप उस को इतनी बड़ी जिम्मेदारी सौंपना चाहते हैं?’’ तीसरी लड़की ने कहा.

‘‘वह नेपाली है…’’ एक और लड़की बोली.

अब प्रमोद से सहन नहीं हुआ. डाक्टर ने कहा था कि तनाव से बचना, ब्लडप्रैशर बढ़ सकता है. पर यह आखिरी वाक्य उसे गाली जैसा लगा, तो उसे कहना पड़ा, ‘‘तो क्या हुआ? हमारी संस्था के प्रति उस की निष्ठा आप सब से कहीं ज्यादा है. वह संस्था को अपना समझ कर काम करती है, केवल तनख्वाह के लिए नहीं…’’

प्रमोद लैक्चर दे रहा था और स्टाफ सिर ?ाकाए सुन रहा था.

5 बजे दफ्तर बंद हुआ, तो मिसेज दीक्षित प्रमोद के पास आईं.

‘‘सर, मु?ो आप से एक बात कहनी है,’’ मिसेज दीक्षित बोलीं.

‘‘उम्मीद है, तुम्हारी परेशानी सुन कर मेरा ब्लडप्रैशर नहीं बढ़ेगा,’’ प्रमोद ने कहा.

‘‘सर, आप मुझे शर्मिंदा कर रहे हैं,’’ मिसेज दीक्षित ने कहा.

‘‘नहीं, बोलो,’’ प्रमोद बोला.

वे थोड़ी देर तक चुप रहीं. शायद सोचती रहीं कि बोलें कि न बोलें. फिर उन्होंने लंबी सांस ली और कहा, ‘‘सर, यह किसी के खिलाफ शिकायत नहीं है, पर आप को बताना जरूरी है. सर, जानकी जिस रेलवे कालोनी में रहती है, मैं भी वहीं रहती हूं. उस का और मेरा क्वार्टर दूर नहीं है.

‘‘सर, आप बुरा मत मानना. जानकी के पिता शराबी हैं. उन के घर में आएदिन लड़ाई होती रहती है. उधार की शराब पीपी कर उन पर इतना कर्ज हो गया है कि कर्ज देने वाले हर दिन उन के दरवाजे पर खड़े रहते हैं, गालीगलौज करते हैं. कालोनी वाले इस बात की शिकायत रेलवे मंडल अधिकारी से भी कर चुके हैं…’’

प्रमोद ने मिसेज दीक्षित की बात काट कर कहा, ‘‘तो इन बातों का हमारे दफ्तर से क्या संबंध है? या फिर जानकी का क्या संबंध है? ये बातें तो मैं भी जानता हूं.’’

‘‘जी…?’’ मिसेज दीक्षित की आंखें हैरानी से फैल गईं.

प्रमोद ने उन से कहा, ‘‘वह कुरसी खींच लीजिए और बैठ जाइए.’’

प्रमोद का दफ्तर एक अमेरिकी मिशनरी के पुराने बंगले में था. उस मिशनरी के लौट जाने के बाद प्रमोद की संस्था ने उस को खरीद लिया था. आधे में दफ्तर और आधे में उस का घर.

पत्नी की मौत के बाद प्रमोद अकेला ही कोठी में रहता था और संस्था चलाता था. संस्था प्रकाशन का काम करती थी और प्रमोद उस का संपादक था. सारे प्रकाशन की जिम्मेदारी उस पर ही थी.

प्रमोद ने मिसेज दीक्षित से कहा, ‘‘जानकी ने खुद मुझे अपने परिवार के बारे में बताया है. आज से 40 साल पहले जानकी के पिता उस की मां को भगा कर भारत में लाए थे.

‘‘वे नेपाल से सीधे जबलपुर कैसे पहुंच गए, यह वह भी अपनेआप में एक दिलचस्प कहानी है. पहले वे रेलवे के किसी अफसर के यहां खाना बनाते थे और उसी के गैस्ट हाउस में रहते थे.

‘‘परिवार में लड़ाई?ागड़े तो तब शुरू हुए, जब जानकी की मां ने हर साल लड़कियों को जन्म देना शुरू किया. यह सिलसिला तभी रुका, जब एक दिन जानकी के पिता अचानक नेपाल भाग गए. उन की पत्नी अपनी 3 छोटीछोटी बेटियों के साथ जबलपुर में रह गईं.

‘‘वैसे, जबलपुर में नेपालियों की आबादी कम नहीं है. इन की वफादारी और ईमानदारी के चलते जहां भी चौकीदार की जरूरत पड़ती है, वहां ये लोग ही आप को मिलेंगे.

‘‘हां, अब होटलों में चाइनीज फूड बनाने वाले भी नेपाली मिलने लगे हैं. ऐसे ही दूर के एक रिश्तेदार ने 3 बच्चियों की मां को सहारा दिया. उस का अपना छोटा सा ढाबा था. बच्चियों को सिखाया गया कि उसे ‘मामा’ कहो.

‘‘बच्चियों के वे मामा समझदार थे. उन्होंने बिना देर किए तीनों लड़कियों को सरकारी स्कूल में भरती कर दिया.

‘‘मामा के साथ यह परिवार खुशीखुशी दिन बिता रहा था कि कुछ सालों बाद जानकी के पिता एक और नेपाली लड़की को ले कर जबलपुर आ टपके.

‘‘उन्होंने एक रेलवे अफसर को खुश कर उन के रिटायरमैंट के पहले रेलवे अस्पताल में मरीजों को खाना खिलाने  की नौकरी पा ली. इतना ही नहीं, नौकरी के साथ रेलवे क्वार्टर भी मिल गया. उधर जानकी अपनी मां और बहनों के साथ अपने दूर के रिश्तेदार के साथ रह कर बड़ी हो रही थी.

‘‘जानकी की मां को खबर मिली कि जिस लड़की को उस के पति नेपाल से लाए थे, वह उन्हें छोड़ कर वापस नेपाल चली गई है. ढलती उम्र और अकेलेपन ने जानकी के पिता को अपने परिवार में लौटने के लिए मजबूर कर दिया.

‘‘लेकिन अब जबलपुर के हवापानी ने जानकी की मां को काफी सम?ादार बना दिया था. उन में सम्मान की भावना जाग चुकी थी और वे जान चुकी थीं कि उन का और उन की लड़कियों का फायदा किस के साथ रहने में है. लिहाजा, उन्होंने घर जाने से इनकार कर दिया.

‘‘इस से उन के पति की मर्दानगी को गहरी ठेस लगी और वे अपने अकेलेपन को मिटाने के लिए शराबी बन गए और रेलवे अस्पताल के एक सूदखोर काले खां से उधार पैसा ले कर वे शराब पीने लगे.

‘‘यह सब जानकी की मां से देखा न गया. पति की घर वापसी हुई, पर वे उन की लत न छुड़ा सकीं.

‘‘नशे की हालत में जानकी के पिता अपनी पत्नी को कोसते हैं, तो वे भी ईंट का जवाब पत्थर से देती हैं. बेटियां अपने मांबाप में बीचबचाव करती हैं. कालोनी वाले तमाशे का मुफ्त मजा लेते हैं.

‘‘ऐसे माहौल में जानकी की मां का जिंदगी बिताना क्या आप के दिल में हमदर्दी पैदा नहीं करता मिसेज दीक्षित? अगर कोई कीचड़ से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा है, तो क्या हमें अपना हाथ बढ़ा कर उसे बाहर नहीं निकालना चाहिए?’’

मिसेज दीक्षित भरे गले से बोलीं, ‘‘सौरी सर.’’

हकीकत: खूनी जग्गा

‘‘बा बूजी, हमारे भाई की शादी में जरूर आना,’’ खुशी से चहकती लक्ष्मी शादी का कार्ड मुझे देते हुए कह रही थी.

‘‘जरूर आऊंगा लक्ष्मी. तुम्हारे यहां न आऊं, ऐसा कैसे हो सकता है…’’ मैं भी उसे दिलासा देते हुए बोला था.

लक्ष्मी के मांबाप उसी समय गुजर गए थे, जब वह मुश्किल से 15 साल की रही होगी. उस की गोद में डेढ़ साल का छोटा भाई और साथ में 5 साल की बहन रानी थी.

आज इस बात को कई साल हो गए हैं. डेढ़ साल का वह छोटा भाई आज खूबसूरत नौजवान है, जिस की शादी लक्ष्मी करा रही है.

मैं लक्ष्मी के जाते ही पुरानी यादों में खो गया. उस के पिता आंध्र प्रदेश से यहां मजदूरी करने आए थे, जो साइकिल मरम्मत की दुकान द्वारा अपना परिवार चलाते थे. वे किराए की ?ाग्गी में पत्नी व बच्चों के साथ रहते थे.

उसी महल्ले में जग्गा बदमाश भी रहता था, जिस की निगाह 14 साल की लक्ष्मी पर जा टिकी थी. सांवले रंग की लक्ष्मी तब भी भरे बदन वाली दिखती थी.

एक दिन जग्गा ने मौका पा कर लक्ष्मी को रौंद डाला. कली फूल बनने से पहले ही मसल दी गई थी.

जग्गा की इस करनी से लक्ष्मी का सीधासादा बाप इतना गुस्साया कि उस ने सो रहे जग्गा की कुदाल से काट कर हत्या कर दी.

खून के केस में लक्ष्मी का बाप जेल चला गया और मां दाई का काम कर के अपने बच्चे पालने लगी.

इधर लक्ष्मी पेट से हो गई, तो उस की मां लोकलाज के डर से महल्ला बदल कर इधर आ गई. फिर तो सरकारी अस्पताल में बच्चे का जन्म और उस की जल्दी मौत. लक्ष्मी की मां द्वारा इस तनाव को ?ोल न पाना और अचानक मर जाना, सब एकसाथ हुआ.

एक चैरिटेबल स्कूल में दाई की जरूरत थी, सो लक्ष्मी को रख लिया गया. सुबह नियमित समय पर आना, अपना काम मन से करना, सब से मीठा बोलना, लक्ष्मी के ऐसे गुण थे कि वह सभी का सम्मान पाने लगी.

आज इस बात को तकरीबन 25 साल से ज्यादा हो गए हैं. अब लक्ष्मी एक अधेड़ औरत दिखती है.

‘‘क्यों लक्ष्मी, इन सब झमेलों के बीच तुम अपनी शादी भूल गईं?’’ मैं ने मजाक में पूछा था.

‘‘भूली कहां सर. शादी के बाद भी तो बच्चे ही होते न, सो 2 बच्चे मेरी गोद में हैं. मैं ने जन्म नहीं दिया है तो

क्या हुआ, अपना दूध पिला कर पाला तो है,’’ लक्ष्मी का यह जवाब मुझे अंदर तक हिला गया.

‘‘तुम ने दूध पिलाया है?’’ मेरे मुंह से निकल गया.

‘‘हां साहब, मैं उस जग्गा बदमाश के चलते बदनाम हो गई थी. कौन शादी करता मुझसे? बच्चा पैदा करने के चलते मैं ने एक बार अपने रोते भाई को मजाक में दूध पिलाया था. वह चुप हो गया और मुझे मजा आया, फिर तो मैं ने 2 साल तक उसे दूध पिलाया.’’

यह सुन कर मैं चुप हो गया.

‘‘क्या सोचने लगे बाबूजी?’’

‘‘यही कि तुम्हारी जितनी तारीफ करूं, कम है,’’ मेरे मुंह से निकला.

लक्ष्मी के दोनों भाईबहनों का स्कूल में दाखिला मैं ने ही कराया था. वहीं वे दोनों 12वीं जमात में फर्स्ट डिवीजन में पास कर चुके थे.

बहन जहां नर्स की ट्रेनिंग ले कर सरकारी अस्पताल में नर्स थी, वहीं भाई ने बीकौम किया और बैंक में क्लर्क हो गया था. उसी की शादी का कार्ड ले कर लक्ष्मी मेरे पास आई थी.

‘‘लक्ष्मी, तुम ने इतना कुछ कैसे कर लिया?’’ मैं ने एक दिन उस से पूछा था.

‘‘यह सोचने का समय कहां था साहब. बाप जेल में, मां मर गई. रिश्तेदारों में से कोई झांकने तक नहीं आया, इसलिए जैसेतैसे कर के जो भी काम मिला करती गई.

‘‘स्कूल का काम करते हुए 1-2 घर का काम करतेकरते जैसेतैसे कर के पैसा कमा कर भाईबहन और खुद का पेट भरना था. फीस के अलावा सारे खर्च थे, जो पूरा करतेकरते जिंदगी निकल गई. आज सब अपने पैरों पर खड़े हैं, तो उन की शादी करनी है.’’

लक्ष्मी ने जब ईडब्लूएस मकान के लिए कहा, तो मैं चौंक गया था. मैं ने उसे बैंक से लोन दिलवाया था. गारंटी भी मैं ने ही दी थी. मजे की बात यह कि उस ने पूरी किस्त समय से भर कर मकान अपना कर लिया. इसी तरह दूसरी सारी समस्याओं का सामना भी वह मजे में करती गई.

एक दिन एक अखबार में किसी के खुदकुशी करने की खबर को सुन कर लक्ष्मी परेशान हो गई और पूछ बैठी, ‘‘साहब, लोग खुदकुशी क्यों करते हैं?’’

‘‘जो जिंदगी से नाराज होते हैं या जिन्हें मनचाहा नहीं मिलता, वे खुदकुशी कर लेते हैं,’’ मेरा जवाब था.

‘‘साहब, मेरी पूरी जिंदगी में संघर्ष ही रहा. मांबाप को खोया, बच्चा

खोया, मगर लड़ती रही. अगर नहीं लड़ती, तो आज ये दोनों अनाथ होते. भटकभटक कर जान दे चुके होते, इसलिए इन की खातिर जीना पड़ा. अब तो आदत हो चुकी है. लेकिन मेरे मन में एक बार भी खुदकुशी करने का विचार नहीं आया.’’ लक्ष्मी की इस बात ने मुझे बिलकुल चुप करा दिया था.

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