लव इन मालगाड़ी: मालगाड़ी में पनपा मंजेश और ममता का प्यार

देश में लौकडाउन का ऐलान हो गया, सारी फैक्टरियां बंद हो गईं, मजदूर घर पर बैठ गए. जाएं भी तो कहां. दिहाड़ी मजदूरों की शामत आ गई. किराए के कमरों में रहते हैं, कमरे का किराया भी देना है और राशन का इंतजाम भी करना है. फैक्टरियां बंद होने पर मजदूरी भी नहीं मिली.

मंजेश बढ़ई था. उसे एक कोठी में लकड़ी का काम मिला था. लौकडाउन में काम बंद हो गया और जो काम किया, उस की मजदूरी भी नहीं मिली.

मालिक ने बोल दिया, ‘‘लौकडाउन के बाद जब काम शुरू होगा, तभी मजदूरी मिलेगी.’’

एक हफ्ते घर बैठना पड़ा. बस, कुछ रुपए जेब में पड़े थे. उस ने गांव जाने की सोची कि फसल कटाई का समय है, वहीं मजदूरी मिल जाएगी. पर समस्या गांव पहुंचने की थी, दिल्ली से 500 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के सीतापुर के पास गांव है. रेल, बस वगैरह सब बंद हैं.

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तभी उस के साथ काम करने वाला राजेश आया, ‘‘मंजेश सुना है कि आनंद विहार बौर्डर से स्पैशल बसें चल रही हैं. फटाफट निकल. बसें सिर्फ आज के लिए ही हैं, कल नहीं मिलेंगी.’’

इतना सुनते ही मंजेश ने अपने बैग में कपड़े ठूंसे, उसे पीठ पर लाद कर राजेश के साथ पैदल ही आनंद विहार बौर्डर पहुंच गया.

बौर्डर पर अफरातफरी मची हुई थी. हजारों की तादाद में उत्तर प्रदेश और बिहार जाने वाले प्रवासी मजदूर अपने परिवार के संग बेचैनी से बसों के इंतजार में जमा थे.

बौर्डर पर कोई बस नहीं थी. एक अफवाह उड़ी और हजारों की तादाद में मजदूर सपरिवार बौर्डर पर जमा हो गए. दोपहर से शाम हो गई, कोई बस नहीं आई. बेबस मजदूर पैदल ही अपने गांव की ओर चल दिए.

लोगों को पैदल जाता देख मंजेश और राजेश भी अपने बैग पीठ पर लादे पैदल ही चल दिए.

‘‘राजेश, सीतापुर 500 किलोमीटर दूर है और अपना गांव वहां से 3 किलोमीटर और आगे, कहां तक पैदल चलेंगे और कब पहुंचेंगे…’’ चलतेचलते मंजेश ने राजेश से कहा.

‘‘मंजेश, तू जवान लड़का है. बस 10 किलोमीटर के सफर में घबरा गया. पहुंच जाएंगे, चिंता क्यों करता है. यहां सवारी नहीं है, आगे मिल जाएगी. जहां की मिलेगी, वहां तक चल पड़ेंगे.’’

मंजेश और राजेश की बात उन के साथसाथ चलते एक मजदूर परिवार ने सुनी और उन को आवाज दी, ‘‘भैयाजी क्या आप भी सीतापुर जा रहे हैं?’’

सीतापुर का नाम सुन कर मंजेश और राजेश रुक गए. उन के पास एक परिवार आ कर रुक गया, ‘‘हम भी सीतापुर जा रहे हैं. किस गांव के हो?’’

मंजेश ने देखा कि यह कहने वाला आदमी 40 साल की उम्र के लपेटे में होगा. उस की पत्नी भी हमउम्र लग रही थी. साथ में 3 बच्चे थे. एक लड़की तकरीबन 18 साल की, उस से छोटा लड़का तकरीबन 15 साल का और उस से छोटा लड़का तकरीबन 13 साल का.

‘‘हमारा गांव प्रह्लाद है, सीतापुर से 3 किलोमीटर आगे है,’’ मंजेश ने अपने गांव का नाम बताया और उस आदमी से उस के गांव का नाम पूछा.

‘‘हमारा गांव बसरगांव है. सीतापुर से 5 किलोमीटर आगे है. हमारे गांव आसपास ही हैं. एक से भले दो. बहुत लंबा सफर है. सफर में थोड़ा आराम रहेगा.’’

‘‘चलो साथसाथ चलते हैं. जब जाना एक जगह तो अलगअलग क्यों,’’ मंजेश ने उस से नाम पूछा.

‘‘हमारा नाम भोला प्रसाद है. ये हमारे बीवीबच्चे हैं.’’

मंजेश की उम्र 22 साल थी. उस की नजर भोला प्रसाद की बेटी पर पड़ी और पहली ही नजर में वह लड़की मंजेश का कलेजा चीर गई. मंजेश की नजर उस पर से हट ही नहीं रही थी.

‘‘भोला अंकल, आप ने बच्चों के नाम तो बताए ही नहीं?’’ मंजेश ने अपना और राजेश का नाम बताते हुए पूछा.

‘‘अरे, मंजेश नाम तो बहुत अच्छा है. हमारी लड़की का नाम ममता है. लड़कों के नाम कृष और अक्षय हैं.’’

मंजेश को लड़की का नाम जानना था, ममता. बहुत बढि़या नाम. उस का नाम भी म से मंजेश और लड़की का नाम भी म से ममता. नाम भी मैच हो गए.

मंजेश ममता के साथसाथ चलता हुआ तिरछी नजर से उस के चेहरे और बदन के उभार देख रहा था. उस के बदन के आकार को देखता हुआ अपनी जोड़ी बनाने के सपने भी देखने लगा.

मंजेश की नजर सिर्फ ममता पर टिकी हुई थी. ममता ने जब मंजेश को अपनी ओर निहारते देखा, उस के दिल में भी हलचल होने लगी. वह भी तिरछी नजर से और कभी मुड़ कर मंजेश को देखने लगी.

मंजेश पतले शरीर का लंबे कद का लड़का है. ममता थोड़े छोटे कद की, थोड़ी सी मोटी भरे बदन की लड़की थी. इस के बावजूद कोई भी उस की ओर खिंच जाता था.

चलतेचलते रात हो गई. पैदल सफर में थकान भी हो रही थी. सभी सड़क के किनारे बैठ गए. अपने साथ घर का बना खाना खाने लगे. कुछ देर के लिए सड़क किनारे बैठ कर आराम करने लगे.

जब दिल्ली से चले थे, तब सैकड़ों की तादाद में लोग बड़े जोश से निकले थे, धीरेधीरे सब अलगअलग दिशाओं में बंट गए. कुछ गिनती के साथी अब मंजेश के साथ थे. दूर उन्हें रेल इंजन की सीटी की आवाज सुनाई दी. मंजेश और राजेश सावधान हो कर सीटी की दिशा में कान लगा कर सुनने लगे.

‘‘मंजेश, रेल चल रही है. यह इंजन की आवाज है,’’ राजेश ने मंजेश से कहा.

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‘‘वह देख राजेश, वहां कुछ रोशनी सी है. रेल शायद रुक गई है. चलो, चलते हैं,’’ सड़क के पास नाला था, नाला पार कर के रेल की पटरी थी, वहां एक मालगाड़ी रुक गई थी.

‘‘राजेश उठ, इसी रेल में बैठते हैं. कहीं तो जाएगी, फिर आगे की आगे सोचेंगे. भोला अंकल जल्दी करो. अभी रेल रुकी हुई है, पकड़ लेते हैं,’’ मंजेश के इतना कहते ही सभी गोली की रफ्तार से उठे और रेल की ओर भागे. उन को देख कर आतेजाते कुछ और मजदूर भी मालगाड़ी की ओर लपके. जल्दबाजी में सभी नाला पार करते हुए मालगाड़ी की ओर दौड़े, कहीं रेल चल न दे.

ममता नाले का गंदा पानी देख थोड़ा डर गई. मंजेश ने देखा कि कुछ दूर लकड़ी के फट्टों से नाला पार करने का रास्ता है. उस ने ममता को वहां से नाला पार करने को कहा. लकड़ी के फट्टे थोड़े कमजोर थे, ममता उन पर चलते हुए डर रही थी.

मंजेश ने ममता का हाथ पकड़ा और बोला, ‘‘ममता डरो मत. मेरा हाथ पकड़ कर धीरेधीरे आगे बढ़ो.’’

मंजेश और ममता एकदूसरे का हाथ थामे प्यार का एहसास करने लगे.

राजेश, ममता का परिवार सभी तेज रफ्तार से मालगाड़ी की ओर भाग रहे थे. इंजन ने चलने की सीटी बजाई. सभी मालगाड़ी पर चढ़ गए, सिर्फ ममता और मंजेश फट्टे से नाला पार करने के चलते पीछे रह गए थे. मालगाड़ी हलकी सी सरकी.

‘‘ममता जल्दी भाग, गाड़ी चलने वाली है,’’ ममता का हाथ थामे मंजेश भागने लगा. मालगाड़ी की रफ्तार बहुत धीमी थी. मंजेश मालगाड़ी के डब्बे पर लगी सीढ़ी पर खड़ा हो गया और ममता का हाथ पकड़ कर सीढ़ी पर खींचा.

एक ही सीढ़ी पर दोनों के जिस्म चिपके हुए थे, दिल की धड़कनें तेज होने लगीं. दोनों धीरेधीरे हांफने लगे.

तभी एक झटके में मालगाड़ी रुकी. उस झटके से दोनों चिपक गए, होंठ चिपक गए, जिस्म की गरमी महसूस करने लगे. गाड़ी रुकते ही मंजेश सीढ़ी चढ़ कर डब्बे की छत पर पहुंच गया. ममता को भी हाथ पकड़ कर ऊपर खींचा.

मालगाड़ी धीरेधीरे चलने लगी. मालगाड़ी के उस डब्बे के ऊपर और कोई नहीं था. राजेश और ममता के परिवार वाले दूसरे डब्बों के ऊपर बैठे थे.

भोला प्रसाद ने ममता को आवाज दी. ममता ने आवाज दे कर अपने परिवार को निश्चित किया कि वह पीछे उसी मालगाड़ी में है.

मालगाड़ी ठीकठाक रफ्तार से आगे बढ़ रही थी. रात का अंधेरा बढ़ गया था. चांद की रोशनी में दोनों एकदूसरे को देखे जा रहे थे. ममता शरमा गई. उस ने अपना चेहरा दूसरी ओर कर लिया.

‘‘ममता, दिल्ली में कुछ काम करती हो या फिर घर संभालती हो?’’ एक लंबी चुप्पी के बाद मंजेश ने पूछा.

‘‘घर बैठे गुजारा नहीं होता. फैक्टरी में काम करती हूं,’’ ममता ने बताया.

‘‘किस चीज की फैक्टरी है?’’

‘‘लेडीज अंडरगारमैंट्स बनाने की. वहां ब्रापैंटी बनती हैं.’’

‘‘बाकी क्या काम करते हैं?’’

‘‘पापा और भाई जुराब बनाने की फैक्टरी में काम करते हैं. मम्मी और मैं एक ही फैक्टरी में काम करते हैं. सब से छोटा भाई अभी कुछ नहीं करता है, पढ़ रहा है. लेकिन पढ़ाई में दिल नहीं लगता है. उस को भी जुराब वाली फैक्टरी में काम दिलवा देंगे.

‘‘तुम क्या काम करते हो, मेरे से तो सबकुछ पूछ लिया,’’ ममता ने मंजेश से पूछा.

‘‘मैं कारपेंटर हूं. लकड़ी का काम जो भी हो, सब करता हूं. अलमारी, ड्रैसिंग, बैड, सोफा, दरवाजे, खिड़की सब बनाता हूं. अभी एक कोठी का टोटल वुडवर्क का ठेका लिया है, आधा काम किया है, आधा पैंडिंग पड़ा है.’’

‘‘तुम्हारे हाथों में तो बहुत हुनर है,’’ ममता के मुंह से तारीफ सुन कर मंजेश खुश हो गया.

चलती मालगाड़ी के डब्बे के ऊपर बैठेबैठे ममता को झपकी सी आ गई और उस का बदन थोड़ा सा लुढ़का, मंजेश ने उस को थाम लिया.

‘‘संभल कर ममता, नीचे गिर सकती हो.’’

मंजेश की बाहों में अपने को पा कर कुछ पल के लिए ममता सहम गई, फिर अपने को संभालती हुई उस ने नीचे

झांक कर देखा ‘‘थैंक यू मंजेश, तुम ने बांहों का सहारा दे कर बचा लिया,

वरना मेरा तो चूरमा बन जाता.’’

‘‘ममता, एक बात कहूं.’’

‘‘कहो.’’

‘‘तुम मुझे अच्छी लग रही हो.’’

मंजेश की बात सुन कर ममता चुप रही. वह मंजेश का मतलब समझ गई थी. चुप ममता से मंजेश ने उस के दिल की बात पूछी, ‘‘मेरे बारे में तुम्हारा क्या खयाल है?’’

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ममता की चुप्पी पर मंजेश मुसकरा दिया, ‘‘मैं समझ गया, अगर पसंद नहीं होता, तब मना कर देती.’’

‘‘हां, देखने में तो अच्छे लग रहे हो.’’

‘‘मेरा प्यार कबूल करती हो?’’

‘‘कबूल है.’’

मंजेश ने ममता का हाथ अपने हाथों में लिया, आगे का सफर एकदूसरे की आंखों में आंखें डाले कट गया.

लखनऊ स्टेशन पर मंजेश, ममता, राजेश और ममता का परिवार मालगाड़ी से उतर कर आगे सीतापुर के लिए सड़क के रास्ते चल पड़ा.

सड़क पर पैदल चलतेचलते मंजेश और ममता मुसकराते हुए एकदूसरे को ताकते जा रहे थे.

ममता की मां ने ममता को एक किनारे ले जा कर डांट लगाई, ‘‘कोई लाजशर्म है या बेच दी. उस को क्यों घूर रही है, वह भी तेरे को घूर रहा?है. रात गाड़ी के डब्बे के ऊपर क्या किया?’’

‘‘मां, कुछ नहीं किया. मंजेश अच्छा लड़का है.’’

‘‘अच्छा क्या मतलब?’’ ममता की मां ने उस का हाथ पकड़ लिया.

ममता और मां के बीच की इस बात को मंजेश समझ गया. वह भोला प्रसाद के पास जा कर अपने दिल की बात कहने लगा, ‘‘अंकल, हमारे गांव आसपास हैं. आप मेरे घर चलिए, मैं अपने परिवार से मिलवाना चाहता हूं.’’

मंजेश की बात सुन कर भोला प्रसाद बोला, ‘‘वह तो ठीक है, पर क्यों?

‘‘अंकल, मुझे ममता पसंद है और मैं उस से शादी करना चाहता हूं. हमारे परिवार मिल कर तय कर लें, मेरी यही इच्छा है.’’

मंजेश की बात सुन कर ममता की मां के तेवर ढीले हो गए और वे मंजेश के घर जाने को तैयार हो गए.

लौकडाउन जहां परेशानी लाया है, वहीं प्यार भी लाया है. मंजेश और ममता का प्यार मालगाड़ी में पनपा.

सभी पैदल मंजेश के गांव की ओर बढ़ रहे थे. ममता और मंजेश हाथ में हाथ डाले मुसकराते हुए एक नए सफर की तैयारी कर रहे थे.

एक इंच मुसकान : दीपिका-सलोनी की कशमश

‘‘अरे, कहां भागी जा रही हो?’’ दीपिका को तेजतेज कदमों से जाते हुए देख पड़ोस में रहने वाली उस की सहेली सलोनी उसे आवाज लगाते हुए बोली.

‘‘मरने जा रही हूं,’’ दीपिका ने बड़बड़ाते हुए जवाब दिया.

‘‘अरे वाह, मरने और इतना सजधन कर. चल अच्छा है, आज यमदूतों का भी दिन अच्छा गुजरेगा,’’ सलोनी चुटकी लेते हुए बोली.

‘‘मैं परेशान हूं और तुझे मजाक सूझ रहा है,’’ दीपिका सलोनी को घूरते हुए बोली, ‘‘अभी मैं औफिस के लिए लेट हो रही हूं, तुझ से शाम को निबटूंगी.’’

‘‘अरे हुस्नेआरा, इस बेचारी को भी आज करोलबाग की ओर जाना है, यदि महारानी को कोई एतराज न हो तो यह नाचीज उन के साथ चलना चाहती है,’’ सलोनी ने दीनहीन होने की ऐक्टिंग करते हुए मासूमियत से जवाब दिया.

‘‘चल, बड़ी आई औपचारिकता निभाने वाली,’’ सलोनी की पीठ पर हलका सा धौल जमाते हुए दीपिका बोली, ‘‘एक तू ही तो है, जो मेरा दुखदर्द समझती है.’’

बातोंबातों में दोनों पड़ोसन सहेलियां बसस्टैंड पहुंच गईं. कुछ ही देर में करोल बाग वाली बस आ गई.

एक तो औफिस टाइम, ऊपर से सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती हुई दिल्ली की आबादी. जिधर देखो भीड़ ही भीड़. खैर, धक्कामुक्की के बीच दोनों सहेलियां बस में सवार हो गईं. यह अच्छा था कि 2 सीटों वाली एक लेडीज बर्थ खाली थी.

‘‘कुछ तो अच्छा हुआ,’’ कहते हुए दीपिका सलोनी का हाथ पकड़ कर झट से उस खाली बर्थ पर कर बैठ गई.

सलोनी ने पूछा, ‘‘अरे, ऐसा क्यों बोल रही है? चल, अब साफसाफ बता कि क्या हुआ…? और यह चांद सा चेहरा आज सूजा हुआ क्यों है?’’

दीपिका बोली, ‘‘अरे, क्या बताऊं? घर में किसी को मेरी बिलकुल भी परवाह नहीं है. मैं सिर्फ पैसा कमाने की मशीन और सब की सेवा करने वाली नौकरानी हूं.’’

‘‘अरे, इतना गुस्सा… क्यों, क्या हो गया?’’ सलोनी उसे प्यार से अपने से चिपकाते हुए बोली.

‘‘आज सुबह मैं थोड़ी ज्यादा देर तक क्या सो गई, घर का पूरा माहौल ही बिगड़ गया. देर हो जाने के चलते भागमभाग में मैं इन के लिए कपड़े निकालना भूल गई, तो महाशय तौलिया लपेटे ही तब तक बैठे रहे, जब तक कि मैं बाथरूम से निकल नहीं आई.

‘‘इस भागदौड़ के बीच इतना मुश्किल से जो नाश्ता बनाया, उसे भी बिना किए यह कहते हुए औफिस चले गए कि आज शर्टपैंट न होने के चलते तैयार होने में देरी हो गई.

‘‘इधर साहबजादे तरुण को आलूगोभी की सब्जी नाश्ते में दी, तो वे जनाब मुंह फुला कर बैठ गए कि रोजरोज एक ही तरह की सब्जी खातेखाते बोर हो गया हूं, मशरूम क्यों नहीं बनाई?

‘‘उधर, बिटिया रानी की रोज यही शिकायत रहती है कि आप रोज एक ही तरह की बहनजी स्टाइल की चोटी करती हो. मेरी फ्रैंड्स की मम्मियां रोज नएनए स्टाइल में उन के हेयर डिजाइन करती हैं.

‘‘बस, सब को अपनीअपनी पड़ी रहती है. कोई यह नहीं पूछता कि मैं ने नाश्ता किया या नहीं? टिफिन में क्या ले जा रही हूं? मेरी डै्रस कैसी है? कहीं मुझे लेट तो नहीं हो रहा है? सब को बस अपनीअपनी चिंता है,’’ कहतेकहते दीपिका की आंखों में आंसू भर गए.

‘‘अरे, परेशान मत हो मेरी ब्यूटी क्वीन, अव्वल तो तू खुद इतनी खूबसूरत है कि कुछ भी पहन ले तो भी हीरोइन ही लगेगी और घर के जो सारे लोग तुझ से फरमाइशें करते हैं, उस की वजह उन का तुझ से लगाव है. वे तुझ पर भरोसा करते है,’’ सलोनी प्यार से समझाते हुए बोली.

‘‘बसबस रहने दो. मैं सब समझती हूं. यह सब कहने की बात है. यहां मेरी जान भी जा रही होगी न, तो किसी न किसी को जरूर मुझ से कोई काम पड़ा होगा,’’ दीपिका का उबाल कम होने का नाम नहीं ले रहा था.

इसी बीच अगले स्टौप पर बस के रुकते ही उस के औफिस में डेली वेज पर काम करने वाली चपरासी कांति किसी तरह जगह बनाते हुए भी उस में दाखिल हो गई. लेडीज सीट की ओर पहुंच कर बस के हैंगिंग हुक को पकड़ कर वह खड़ी हो गई.

अभी वह आंचल से अपना पसीना पोंछ रही थी कि दीपिका ने पूछा, ‘‘अरे कांति, कैसी हो?’’

दीपिका की आवाज सुन कर कांति चौंक कर उस की ओर मुड़ते हुए बोली, ‘‘अरे मैडम, आप भी इसी बस में… नमस्ते,’’ दीपिका को देख कर उस के चेहरे पर हमेशा छाई रहने वाली मुसकान कुछ और खिल आई थी.

दीपिका बोली, ‘‘नमस्ते. तुम तो रोज 9 बजे दफ्तर पहुंच जाती हो, पर आज लेट कैसे?’’

कांति ने कहा, ‘‘दरअसल मैडम, आज से बेटे की 10वीं की बोर्ड परीक्षा शुरू हुई है. वह जिद कर रहा था कि सब के मम्मीपापा उन्हें छोड़ने एग्जाम सैंटर पर आएंगे, तो आप भी मेरे साथ चलिए. वह इतने लाड़ से बोल रहा था कि मैं उसे मना नहीं कर पाई. उसे पहुंचाने चली गई, इसलिए थोड़ी देर हो गई… सौरी.’’

दीपिका बोली, ‘‘अरे, कोई बात नहीं. मैं तो बस ऐसे ही पूछ रही थी. लेकिन एक बात बताओ, तुम्हारे पति भी तो बेटे के साथ जा सकते थे न?’’

अभी कांति कोई जवाब दे पाती कि दीपिका सलोनी की ओर मुड़ते हुए बोली, ‘‘देखो, हर घर की यही कहानी है. औरत घर का भी काम करे और बाहर भी मरे और पति एक भी काम ऐक्स्ट्रा नहीं कर सकते, क्योंकि वे मर्द हैं.’’

‘‘नहीं मैडम, ऐसी बात नहीं है,’’ अभी कांति आगे कुछ और बोल पाती कि दीपिका ने कहा, ‘‘अब पति की तरफदारी करना छोड़ो. पति को हमेशा परमेश्वर मानने और उन की ज्यादतियों पर परदा डालने का ही यह नतीजा है कि उन की मनमानी बढ़ती जा रही है,’’ वह बिफरने सी लगी थी.

‘‘नहीं मैडम, मैं उन्हें बचा नहीं रही हूं. दरअसल, पिछले साल आटोरिकशा चलाते समय उन का बुरी तरह से एक्सीडैंट हो गया था, जिस में उन का दाहिना हिस्सा बुरी तरह खराब हो गया था, इसलिए बाहर के काम में उन्हें बहुत ही दिक्कत होती है. पर, वे घरेलू काम में मेरी पूरी मदद करते हैं और मुझे अपने परिवार के लिए कुछ भी करना बहुत अच्छा लगता है.’’

कांति की बात से हैरान दीपिका एकदम सन्नाटे में आ गई. दिव्यांग और बेरोजगार पति, छोटी सी तनख्वाह में पूरे परिवार का गुजारा करने वाली कांति क्या उस से कम चुनौतियों का सामना कर रही है, लेकिन एक इंच की मुसकान लिए घर और बाहर दोनों जगह का काम कितनी हंसीखुशी से संभाल रही है.

इधर कांति बोले जा रही थी, ‘‘मैडम, बच्चे और पति जब अपनी इच्छा और परेशानी मेरे सामने रखते हैं, तो मुझे लगता है कि मैं इस घर की धुरी हूं. उन का मुझ से कुछ उम्मीद रखना मुझे मेरे होने का अहसास कराता रहता है.’’

कांति की सहज बातों ने अनजाने में ही दीपिका के अंदर धधक रही गुस्से की आग को मीठी फुहार से बुझा दिया. सच में कांति ने कितनी आसानी से उसे समझा दिया था कि पति और बच्चों की फरमाइशें और उन का उस पर निर्भर होना उसे परेशान करना नहीं, बल्कि उस से जुड़े रहने की निशानी है.

एक पल के लिए दीपिका ने कल्पना कर यह देखा कि पति और बच्चे अपनाअपना काम करने में बिजी हैं. कोई अपनी डिमांड पूरी करने के लिए न तो उस की चिरौरी कर रहा है और न ही कोई तुनक कर मुंह फुलाए बैठा है.

अभी कुछ पल पहले तक इन्हीं फरमाइशों से बुरी तरह खीझी हुई दीपिका का दिल इस कल्पना से ही घबरा उठा था. वह खुद से दृढ़तापूर्वक बोली, ‘‘चलो, आज से ही एक नई शुरुआत करते हैं.’’

पछतावे की बूंदें गुस्से और खीझ से उपजे उस की आंखों के सूखेपन को तर कर रही थीं. तभी उस के मोबाइल फोन की रिंगटोन बजी. देखा तो पति अश्विनी की काल थी. उस के ‘हैलो’ कहते ही वे बोले, ‘दीपू, आज सुबह सोते समय तुम बिलकुल इंद्रलोक की परी लग रही थीं. तुम्हें नींद से जगा कर मैं यह मौका खोना नहीं चाहता था.’

अश्विनी की बातें सुन कर इस भीड़ भरी बस में भी दीपिका के गाल शर्म से गुलाबी हो उठे. वह धीरे से बोली, ‘‘बसबस, ठीक है. शाम को समय से घर आ जाना. आज मैं आप के पसंद के केले के कोफ्ते और लच्छा परांठा बनाऊंगी और तरुण के लिए मशरूम… बाय.’’

अश्विनी ने कहा, ‘बाय स्वीटहार्ट.’

फोन रखते ही उस ने सलोनी के साथ मिल कर 2 सीट वाली बर्थ पर थोड़ी सी जगह बनाई और कांति का हाथ पकड़ कर उसे सीट पर बैठाते हुए बोली, ‘‘आओ, कांति बैठो, तुम भी खड़ेखड़े काफी थक गई होगी. हम सब साथसाथ चलेंगे.’’

कांति पहले थोड़ा सा हिचकी, लेकिन दीपिका के न्योते से उस का संकोच चला गया.

कांति बोली, ‘‘थैक्स दीदी. आप का परिवार बहुत भाग्यशाली है.’’

दीपिका ने कहा, ‘‘धन्यवाद. पर भला वह क्यों?’’

कांति ने कहा, ‘‘जब आप बाहरी लोगों का ही इतना ध्यान रखती हैं, तो आप के घर वालों को तो किसी बात की चिंता करने की कोई जरूरत ही नहीं पड़ती होगी.’’

कांति की हथेली को धीमे से दबा कर उसे मौन धन्यवाद देते हुए दीपिका बोली, ‘‘थैक्स, कांति. मेरे संसार में मुझे अपने इस वजूद का अहसास कराने के लिए.’’

दीपिका के चेहरे पर भी अब कांति की तरह एक इंच की सच्ची वाली मुसकान खिल आई थी. उसे मुसकराते हुए देख कर सलोनी बोली, ‘‘तुम अब लग रही हो न सच्ची ब्यूटी क्वीन.’’

दुनिया से बेखबर बस की इस लेडीज बर्थ पर एकसाथ 3 मुसकान खिल आईं. इधर अच्छी और चिकनी सड़क पा कर बस की रफ्तार भी तेज हो गई थी.

मैं जीत गई : कौर्ट मैरिज की कहानी

कोर्ट में रुतबा और उस का शौहर आसिम खड़े थे. एक तरफ आसिम के तो दूसरी तरफ रुतबा के अम्मीअब्बू भी वहां मौजूद थे. देखने पर लग रहा था कि शायद वे दोनों कोर्टमैरिज करने यहां आए थे.

जैसे ही वकील ने कोर्टमैरिज के लिए कुछ पेपर दोनों के सामने रखे, रुतबा की आंखों से आंसू बहने लगे.

अम्मी ने रुतबा को संभालते हुए कहा, ‘‘रुतबा, फिक्र मत करो. आसिम बहुत ही नेक लड़का है और तुम्हें बहुत खुश रखेगा. पिछली सारी बातें भूल कर तुम एक नई जिंदगी की ओर कदम आगे बढ़ाओ.’’

आसिम के अम्मीअब्बू ने भी रुतबा के सिर पर प्यार से हाथ रखा और उसे दस्तखत करने की ओर इशारा किया.

रुतबा और आसिम दोनों ने उन पेपरों पर अपनेअपने दस्तखत कर दिए. दोनों के अम्मीअब्बू के चेहरों पर खुशी साफतौर पर देखी जा सकती थी.

कोर्ट से बाहर आ कर आसिम रुतबा और अम्मीअब्बू के साथ एक कार में बैठ गया और रुतबा के मांबाप दूसरी कार में बैठ कर चले गए.

ससुराल में आ कर रुतबा ने जिन 2 बच्चों का सब से पहले सामना किया, वे बच्चे आसिम के थे, जिस की पहली पत्नी मर चुकी थी और अब इन बच्चों को रुतबा को ही संभालना था.

रुतबा ने घर आते ही दोनों बच्चों को अपने गले से लगा लिया और फूटफूट कर रोने लगी. आसिम और उस के मांबाप ने उसे संभाला, अंदर ले गए और खानेपीने का इंतजाम किया.

अगले दिन की शाम को घर में एक पार्टी रखी गई थी, जिस में रुतबा की सहेलियां, कुछ रिश्तेदार और आसिम के भाईबहन व खास मेहमान शामिल होने वाले थे.

रुतबा ने खुद को तैयार करने के साथसाथ बच्चों को भी तैयार किया. लड़के का नाम मुश्ताक था और लड़की मुसकान थी. मुसकान और मुश्ताक दोनों अपनी नई मां को पा कर बेहद खुश थे. वे दोनों रुतबा के साथ थे.

शाम की पार्टी में आसिम, रुतबा और मुसकान व मुश्ताक चारों एकसाथ सब के सामने आए. सब मेहमानों ने आसिम व रुतबा को मुबारकबाद दी और रुतबा की हिम्मत की दाद दी कि उस ने इन दोनों बच्चों को आते ही संभाल लिया.

आसिम ने भी सब के सामने माइक पर रुतबा का शुक्रिया अदा किया, ‘‘रुतबा, तुम्हारा बहुत शुक्रिया. तुम ने मेरे घर को बचा लिया, वरना मेरी जिंदगी वीरान हो चुकी थी.’’

मुसकान 9 साल की थी और मुश्ताक 7 साल का. वे दोनों भी सामने आए. मुसकान खिले चेहरे के साथ बोली, ‘‘आई लव यू नई मम्मा, अब हमें दोबारा छोड़ कर कहीं मत जाना.’’

रुतबा ने बच्चों को गले से लगा लिया. सब मेहमानों ने ताली बजा कर अपनी खुशी जाहिर की. इस के बाद डिनर चला और सब ने खूब ऐंजौय किया.

अगले हफ्ते रुतबा अपनी ससुराल के सभी सदस्यों के साथ कुल्लूमनाली घूमने गई. वहां सब उसे खुश रखने की कोशिश कर रहे थे. रुतबा हंसती, पर फिर गंभीर हो जाती थी.

आसिम ने उसे सम?ाया, ‘‘देखो, अब तुम सबकुछ भूल जाओ. मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं. मुसकान और मुश्ताक तुम्हारे साथ हैं. यह परिवार तुम्हारा अपना है. तुम किसी बात की फिक्र मत करो.’’

यह सुन कर रुतबा रोने लगी और आसिम के गले से लग गई. वह बोली, ‘‘आसिम, क्या करूं… वह अंधेरा मु?ो अब भी बहुत डराता है. लगता है, जैसे कोई मेरा पीछा कर रहा है. मेरा बेटा जो अब भी उस के चंगुल में है.’’

आसिम ने प्यार से रुतबा के सिर को अपने सीने से लगाया और सम?ाया, ‘‘रुतबा, तुम्हारी जान बच गई, यह क्या कम है. तुम कभी परेशान मत होना.’’

आसिम के अम्मीअब्बू भी वहां आ गए. अब्बू बोले, ‘‘बेटी, हम सब तुम्हारे साथ हैं. सब ठीक हो जाएगा.’’

रुतबा को हिम्मत मिली और अब वह कुल्लूमनाली में नया परिवार पा कर खुश रहने लगी.

एक दिन अचानक रुतबा के घर उस की बहुत पुरानी सहेली विमला आई, जो कभी उस के साथ कालेज में पढ़ा करती थी. रुतबा ने उसे सब से मिलवाया और अपने कमरे में ले गई.

विमला ने हैरानी से पूछा, ‘‘रुतबा, तुम आस्ट्रेलिया से कब आई और यह शादी? शब्बीर कहां है?’’

‘‘एकसाथ इतने सवाल… थोड़ा सांस ले लो, फिर एकएक कर के बताती हूं,’’ रुतबा ने मुसकराते हुए कहा.

थोड़ा रुक कर रुतबा ने बताना शुरू किया, जो कुछ इस तरह था :

रुतबा अपने 3 भाइयों की एकलौती बहन थी. पढ़ाई में ढीली थी. लाड़ली होने के चलते घर में किसी बात का प्रैशर नहीं था. मांबाप दिल खोल कर उस पर खर्च करते थे.

रुतबा खूबसूरत भी बहुत थी. जो देखता, पसंद कर लेता था. पर एक कमी थी कि वह जल्दी लोगों की बातों में आ जाती थी.

विमला और रुतबा एक ही कालेज में पढ़ती थीं. पढ़ाई भी क्या करती थीं, सिर्फ नाम के लिए कालेज जाती थीं. उन्हीं की क्लास में एक लड़का जुबैर भी पढ़ता था.

एक दिन जुबैर ने रुतबा से कहा, ‘‘रुतबा, मेरा भाई शब्बीर अहमद आस्ट्रेलिया में कंप्यूटर इंजीनियर है और उस ने तुम्हें सोशल मीडिया पर पसंद कर लिया है.’’

रुतबा ने हैरान होते हुए पूछा, ‘‘सोशल मीडिया पर कहां?’’

‘‘एक मैट्रीमोनियल साइट पर.’’

‘‘पर, मैं ने तो वहां अपने लिए

ऐसा कुछ भी पोस्ट नहीं डाला,’’ रुतबा बोली.

‘‘शायद तुम्हारे भाइयों या अब्बा ने डाल दिया हो.’’

‘‘हो सकता है.’’

इस के बाद रुतबा ने घर आ कर इस बात का जिक्र किया, तो सब ने ‘हां’ में सिर हिला दिया और उसे बताया भी कि कोई लड़का आस्ट्रेलिया में रहता है, जिस ने तुम्हें पसंद किया है.

रुतबा ने बताया, ‘‘उस लड़के का भाई जुबैर मेरी ही क्लास में है.’’

एक दिन शब्बीर अहमद और उस के अम्मीअब्बा रुतबा को देखने आए और शादी भी पक्की हो गई.

शब्बीर अहमद ने कहा, ‘‘मु?ो आस्ट्रेलिया जल्दी जाना है. प्लीज, यह शादी जल्दी करवा दीजिए. मैं रुतबा को अपने साथ ही ले कर जाऊंगा.’’

शब्बीर अहमद और उस के घर वालों ने मिल कर जितनी जल्दी हो सकता था, रुतबा का पासपोर्ट बनवाया और शादी भी बहुत जल्दी में हुई.

शब्बीर रुतबा को ले कर आस्ट्रेलिया चला गया. रुतबा के परिवार वालों ने शब्बीर के मांबाप से अच्छी तरह से बातचीत की. उन्हें सब बहुत अच्छा लगा.

उधर आस्ट्रेलिया में शब्बीर रुतबा को बहुत प्यार करता था. वह सुबह औफिस जाता था और रुतबा घर में ही रहती थी. शब्बीर रुतबा को अकेले कहीं नहीं जाने देता था और न ही किसी से बात करने देता था. वैसे भी रुतबा को इंगलिश बोलना नहीं आता था.

शब्बीर अहमद ने एक घर खरीदा हुआ था, जो ज्यादा बड़ा तो नहीं था, पर आरामदायक था. एक साल ऐसे ही हंसीखुशी में बीत गया. इस बीच रुतबा और शब्बीर भारत अपने परिवार वालों से मिलने आए.

एक दिन शब्बीर ने रुतबा से कहा, ‘‘रुतबा, हमें मम्मीपापा बन जाना चाहिए. अब हमारी शादी को पूरे 2 साल हो चुके हैं.’’

रुतबा बोली, ‘‘शब्बीर, हम लोग कोई प्रिकोशन भी नहीं ले रहे हैं, जब बेबी हो ही नहीं रहा तो क्या करें?’’

शब्बीर थोड़ा परेशान हो कर बोला, ‘‘नहीं रुतबा, मेरे लिए बच्चा बहुत ही जरूरी है.’’

‘‘मतलब क्या है तुम्हारा?’’ रुतबा हैरान हो कर बोली.

शब्बीर थोड़ा घबरा गया, फिर बात संभालते हुए बोला, ‘‘मेरे कहने का मतलब है कि बच्चा हमारे लिए बहुत खास है.’’

रुतबा मुसकरा कर बोली, ‘‘कोई बात नहीं, हो जाएगा.’’

रुतबा शब्बीर की मीठीमीठी बातों में आ गई और शादी के तीसरे साल में पेट से हो गई.

शब्बीर रुतबा को अपने घर भारत ले आया और यहां ससुराल में उस की पूरी तरह से देखभाल की गई और यहीं पर रुतबा ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम आमिर रखा गया.

जब आमिर 4 महीने का हुआ, तो शब्बीर अहमद रुतबा और आमिर को आस्ट्रेलिया ले गया. इस बीच रुतबा कई बार मायके भी आई. कोई भी ऐसी बात नहीं हुई. सबकुछ ठीक चल रहा था. आस्ट्रेलिया में शब्बीर आमिर का पूरा ध्यान रखता था.

अब आमिर स्कूल जाने लगा था. शब्बीर पीटीएम पर जाता था, पर रुतबा को साथ नहीं ले जाता था. शब्बीर का बरताव अब रुतबा की तरफ से थोड़ा बदल चुका था. वह औफिस से घर देर से आने लगा था. रुतबा ने वजह पूछी, तो घर में लड़ाई?ागड़े होने लगे.

रुतबा को अब कुछकुछ सम?ा में आने लगा था कि शब्बीर ने शायद बच्चे के लिए ही उस से शादी की थी.

शब्बीर और रुतबा की एक दिन काफी बहस भी हुई. वजह, रात को शब्बीर घंटों फोन पर किसी से बात करता रहता था. रुतबा पूछती तो कह देता कि उस के औफिस का मामला है, वह बीच में न आए. शब्बीर रुतबा के कमरे में भी रहना पसंद नहीं करता था. उसे लड़ाई करने का कोई बहाना चाहिए होता था.

हद तो तब हो गई, जब शब्बीर चुपके से आमिर को स्कूल से ले आया और यही नहीं, वह 2 दिन घर भी नहीं आया. औफिस फोन किया तो पता चला कि वह भारत चला गया है. वहां से रुतबा को अपनी जिंदगी बरबाद होती नजर आई.

रुतबा ने अपने घर फोन किया, पर घंटी जा ही नहीं रही थी. ससुराल फोन किया, तो वहां किसी ने नहीं उठाया. पता नहीं, शब्बीर आखिर फोन के साथ क्या कर के गया था कि रुतबा का फोन उस के मायके लग ही नहीं रहा था.

विदेश में अकेली रुतबा बुरी तरह से फंस गई थी. 2 घंटे लगातार रोने के बाद उस ने अपनेआप को मजबूत किया और अपने पड़ोस में रहने वाले एक परिवार से मिली. पहले तो वह उन्हें कुछ सम?ा नहीं पाई, पर बाद में धीरेधीरे उस ने उन्हें अपनी परेशानी बताई.

रुतबा एक बात तो अच्छी तरह से सम?ा चुकी थी कि शब्बीर उसे जानबू?ा कर बाहर किसी से भी मिलने इसलिए ही नहीं देता था, जिस से वह सबकुछ सीख न जाए और उस के इरादों पर पानी फेर दे.

रुतबा ने अपने पड़ोसियों की मदद ली और किसी तरह शब्बीर के औफिस पहुंच गई. भाषा की बहुत दिक्कत आई. उसे अपनी बात वहां के स्टाफ को सम?ाने में सुबह से शाम हो गई. बहुत मुश्किल से वह शब्बीर के बारे में कुछ जानकारी जमा कर पाई.

औफिस में एक सफाई मुलाजिम था, जो थोड़ीबहुत हिंदी सम?ा लेता था. उस ने रुतबा की बात सम?ा कर औफिस वालों को बताई.

वहां के बौस ने बताया कि शब्बीर तो नौकरी छोड़ कर चला गया है.

यह सुन कर रुतबा के होश उड़ गए और उसे चक्कर आने लगे. बड़ी मुश्किल से किसी तरह वह अपने घर पहुंची. उसे कुछ भी सम?ा में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? यह तो सरासर धोखाधड़ी का केस था, जिस में अपराधी का पता लगाना आसान नहीं था.

रुतबा की पूरी रात बेचैनी में निकली. बहुत मुश्किल से उस की आंख लगी होगी कि किसी ने डोरबैल बजा दी.

‘‘इतनी सुबह कौन हो सकता है?’’ बुदबुदाते हुए रुतबा बाहर दरवाजे पर निकल कर आई.

दरवाजा खोलते ही रुतबा ने

2 औरतों और 2 मर्दों को हाथ में कुछ पेपर ले कर सामने खड़ा पाया.

रुतबा ने टूटीफूटी इंगलिश में उन से कुछ पूछा, तो उन्होंने बताया कि शब्बीर अहमद यह घर उन्हें बेच कर चला गया है. शब्बीर अहमद ने बैंक बैलेंस सब अपने नाम करवा लिया है. इस के साथ ही रुतबा से तलाक के कागजात भी वे लोग साथ लाए थे, जो शब्बीर उन्हें दे कर गया था.

यह सुन कर रुतबा को इतना बड़ा ?ाटका लगा कि वह वहीं गिर कर बेहोश हो गई. पड़ोसियों को बुलाया गया और उन से बातचीत की गई.

जब रुतबा को होश आया, तो सब ने सम?ाया कि अब यह घर उस का नहीं रहा, उसे यहां से जाना होगा. पर कहां जाएगी बेचारी? सब तो खत्म ही हो चुका था.

पड़ोसी रुतबा को पुलिस के पास ले गए. उस ने सारी घटना उन्हें सुनाई और शब्बीर अहमद के खिलाफ रिपोर्ट लिखवाई.

आज रुतबा को पढ़ाई की अहमियत का अहसास हो रहा था कि काश, वह अच्छी तरह से पढ़ लेती तो इस तरह शब्बीर अहमद उसे बेवकूफ बना कर यों उस के बेटे आमिर को ले कर अकेले भारत न चला गया होता.

खैर, अब पछताने से क्या फायदा. पुलिस ने रुतबा के पास कोई ठहरने की जगह न हो सकने के चलते उसे वुमन सैल भेज दिया. वहां जा कर उस ने नौकरी की, क्योंकि उस के पास अपने फोन को चार्ज करने तक के पैसे नहीं थे.

उधर पुलिस भी शब्बीर अहमद की तलाश कर रही थी. कोई सुराग हाथ नहीं लग रहा था, क्योंकि वह बहुत चालाक था, जो भोलीभाली खूबसूरत लड़कियों को मैट्रीमोनियल साइट के नाम से ठगा करता था.

एक दिन वुमन सैल में एक औरत ने रुतबा से उस के परिवार के बारे में पूछा, तो रुतबा ने बताया कि भारत में उस का फोन मायके वालों तक पहुंच ही नहीं रहा है. तब फोन चैक करवाया गया, तो पता चला कि शब्बीर ने लौक किया हुआ था.

तकरीबन एक साल बाद जा कर रुतबा की अपने मायके में बात हुई. खूब फूटफूट कर रोई रुतबा ने सब सच बता दिया.

उधर रुतबा के परिवार वाले शब्बीर के घर गए. पता लगा कि 2 साल पहले ही वे लोग कहीं बाहर चले गए थे. उन्हें भी बहुत ?ाटका लगा और रुतबा के भाइयों ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवा दी.

रुतबा के भाइयों ने बिना देर किए आस्ट्रेलिया जाने की फ्लाइट बुक करवाई और सीधे वुमन सैल पहुंचे. वहां से सारी जानकारी ली, फिर पुलिस में रिपोर्ट लिखवाई और शब्बीर अहमद व उस के परिवार के बारे में सारी जानकारी दी.

एक पुलिस वाले ने कहा, ‘‘यह मामला भारत का है. हम वहां जा कर तो कुछ नहीं कर पाएंगे, पर अगर शब्बीर अहमद यहां आएगा, तो हम उसे गिरफ्तार जरूर करेंगे.’’

रुतबा के भाइयों ने वुमन सैल वालों का बहुत शुक्रिया अदा किया और रुतबा को अपने साथ भारत ले आए.

भारत आ कर रुतबा को ऐसा लगा मानो किसी जेल से छूट कर आई हो. वह बहुत रोई. सब को शब्बीर अहमद पर बहुत गुस्सा आ रहा था. पुलिस उस की जांच में जुट गई.

धीरेधीरे वक्तगुजरता गया, पर रुतबा के जख्म हमेशा हरे रहे. अब तक हंसतीखेलती रुतबा बहुत शांत हो चुकी थी. उस की सारी नादानियां खत्म हो चुकी थीं. इतना बड़ा ?ाटका, वह भी इतनी कम उम्र में, कोई छोटी बात नहीं थी रुतबा के लिए. ऊपर से उस का बच्चा उस से छीन लेना कहां का इंसाफ था?

अपने गम को कम करने के लिए रुतबा ने अपने अब्बू से कह कर वहीं कालेज में दाखिला ले लिया और अब उस ने पढ़ाई की अहमियत को सम?ाते हुए लगन के साथ पढ़ना शुरू कर दिया.

रुतबा के कालेज में एक टीचर थे, जो रूतबा की मेहनत से काफी प्रभावित थे. वे रुतबा के बारे में सबकुछ जानते थे. जब रुतबा की पोस्ट ग्रेजुएशन पूरी हुई, तब उन्होंने रुतबा के अब्बू से अपने भतीजे आसिम के लिए रुतबा की शादी की बात की.

आसिम की बीवी की 4 साल पहले मौत हो चुकी थी और उस के 2 बच्चे थे. पहले तो रुतबा के भाइयों और परिवार वालों ने मना कर दिया, पर बाद में घर की औरतों ने आपस में सलाह करते हुए कहा कि अभी रुतबा की पूरी जिंदगी पड़ी है. कैसे काटेगी अकेले?

‘‘पर, 2 बच्चों के बाप के साथ शादी? नहीं, हम बहन को एक अंधेरे से निकाल कर दूसरे अंधेरे में नहीं डाल सकते,’’ बड़े भाई ने कहा.

अम्मी बोलीं, ‘‘एक बार रुतबा को उन बच्चों से मिलवा देते हैं और आसिम से बात करवा देते हैं.’’

पहले तो रुतबा ने भी मना कर दिया, पर जब बच्चों ने आ कर उस से बात की और उस की गोद में बैठ गए, तब उसे अपना बेटा आमिर याद आ गया और वह रोने लगी.

आसिम ने रुतबा को सम?ाया और कहा कि वह उसे जिंदगी में कभी दुख नहीं देगा और वह अपनी इच्छा से रह सकती है, जी सकती है.

देखते ही देखते कुछ महीने और निकल गए. अब रुतबा शादी के लिए तैयार थी. वह बच्चों के चलते ही शादी के लिए राजी हुई थी. उस ने शादी में कोई सजावट नहीं करवाई. उस की साधारण तरीके से शादी हुई और आज अपनी दोस्त विमला को वह यह सब बता रही थी, जिस को सुन कर विमला की आंखों में आंसू आ गए.

इतने में मुश्ताक और मुसकान वहां आ गए. विमला उन के लिए गिफ्ट लाई थी. उस ने उन्हें गिफ्ट दिया. खाना खा कर वह अपने घर चली गई.

रुतबा ने आसिम को अपनी सहेली विमला के आने के बारे में बताया.

आसिम ने खुश हो कर कहा, ‘‘अगर कहीं बाहर जाने का मन किया करे, तो चली जाया करो.’’

रुतबा ने ‘हां’ कहा और वहां से बाहर आ गई.

एक दिन अचानक रुतबा के घर पुलिस आई, क्योंकि शब्बीर वाला केस चल रहा था और रुतबा, आसिम और उस के भाइयों को पूछताछ के लिए थाने ले गई. वहां एक आदमी को पुलिस ने पकड़ा हुआ था, जिस को देख कर रुतबा को बताना था कि क्या यही शब्बीर है?

रुतबा ने उसे देखा और उस के नजदीक जा कर उस के गाल पर एक चांटा मारते हुए पूछा, ‘‘मेरा बेटा आमिर कहां है?’’

आसिम सम?ा गया कि यही शब्बीर है. पुलिस ने शब्बीर को जेल में डाल दिया और बच्चे के बारे में पूछने लगी.

केस अदालत में पहुंच गया. शब्बीर ने अपना बयान दिया, ‘‘रुतबा से शादी करने से पहले मैं शादीशुदा था. मेरी बीवी को बच्चा नहीं हो सकता था, इसलिए मु?ो उसे बच्चा देना था.

‘‘मैं ने उसे सम?ाया कि बच्चा अनाथालय से ले लेते हैं, पर वह मेरा ही बच्चा चाहती थी, इसलिए मैं ने ?ाठा नाटक रचा और रुतबा से शादी कर ली.

‘‘रुतबा से पहले भी मैं ने कई लड़कियों को अपने जाल में फंसाया था. कालेज में मेरा कोई भाई नहीं था, न ही मेरे सगे मांबाप थे, वे तो दूर गांव में रहते हैं, जिन को इन सब बातों का पता भी नहीं है.

‘‘मैं ने रुतबा से बच्चा पैदा करवाया और अपनी बीवी को ला कर दे दिया. मु?ो नहीं पता था कि एक मां को उस के बच्चे से अलग करने का नतीजा कितना बुरा होगा.

‘‘पिछले साल मेरी बीवी को कैंसर हुआ और वह मर गई. बच्चे को मैं ने गांव में छोड़ दिया और बाहर दूसरे देश जाने की सोच ही रहा था कि पुलिस ने मु?ो पकड़ लिया.’’

जज साहब ने पुलिस को तुरंत गांव जा कर बच्चे को लाने का और्डर दिया. 2 दिन बाद अदालत में सब के सामने बच्चा रुतबा को सौंप दिया गया.

आसिम, उस के अम्मीअब्बा और रुतबा का पूरा मायका आज सब साथ में थे. मुश्ताक और मुसकान ने आमिर का हाथ थामा और उसे गले से लगा लिया.

रुतबा आज खुश थी. एक अपराधी को उस के किए की सजा मिली और उस का बेटा आमिर उसे मिल चुका था.

रुतबा ने आसिम से कहा, ‘‘आसिम, आप ने मेरे लिए बहुत परेशानी उठाई. आप की मेहनत व कोशिश का फल है, जो आज मैं आमिर से मिल पाई. मै जीत गई,’’ कहते हुए रुतबा आसिम के गले से लग गई और रोने लगी.

सब ने कहा कि अब रोने के दिन गए, अपने नए परिवार के साथ हंसीखुशी रहो. रुतबा अपने शौहर व तीनों बच्चों के साथ अपनी ससुराल आ गई.

बदनाम गली : संतो के नाम

दरवाजा खुला तो उस की नजरें बाहर की ओर उठ गईं. हलकी रोशनी में एक आदमी साफ दिखाई दे रहा था. वह सहम कर सिकुड़ गई थी. एक कोने में दुबकी डरीडरी आंखों से वह उसे घूरने लगी.

‘‘क्यों घबरा रही हो संतो रानी?’’ उस आदमी की आवाज में हवस की बू थी. शराब के नशे में झूमता हुआ एक हाथ में बोतल थामे और दूसरे में एक गजरा लिए वह आदमी उस की ओर बढ़ रहा था.

‘‘मैं कहती हूं, चले जाओ. चले जाओ यहां से,’’ संतो चीख रही थी.

लेकिन संतो की चीख की अहमियत ही कितनी थी. वह किसी परकटे परिंदे की तरह फड़फड़ा रही थी और वह आदमी शातिर बहेलिए की तरह खुश हो रहा था.

वह आदमी आला दर्जे का घटिया इनसान था. संतो की चीखों का उस पर कोई असर न हुआ. उस पर तो वहशीपन सवार था. वह बोला, ‘‘चला जाऊंगा, जरूर चला जाऊंगा… बस तू एक बार ‘हां’ कह दे.’’

‘‘नहीं… मैं हरगिज तेरे इशारे पर काम नहीं करूंगी. नहीं करूंगी वह काम, जो मुझे पसंद नहीं.’’

‘‘करेगा तो तुम्हारा मरा हुआ बाप भी. देखता हूं, कब तक इनकार करती हो?’’ उस आदमी की आवाज सख्त हो उठी थी, आंखें लाल हो उठी थीं. वह आगे बोला, ‘‘और 4 दिन भूखीप्यासी रही तो होश ठिकाने आ जाएगा. जब भूख से अंतडि़यां कुलबुलाएंगी, तब सबकुछ मंजूर हो जाएगा.’’

इतना कह कर वह आदमी बाहर चला गया. संतो ने दरवाजा बंद कर दिया. पर उस के जाने के बाद भी उस की आवाज कमरे में गूंज रही थी.

संतो फूटफूट कर रोने लगी, पर उस की फरियाद घुट कर रह गई. वह सोचने लगी, ‘एक हद तक उस ने ठीक ही तो कहा है. भूख की वजह से ही तो मैं यहां तक आई हूं.’

संतो बीते दिनों को याद करने लगी. 2-3 महीने पहले उस के गांव केशवगढ़ और आसपास के इलाके में सूखा पड़ा था. खेतों की खड़ी फसलें झुलस कर बरबाद हो गईं. धरती फट गई. कुओं, तालाबों का पानी नीचे जमीन में समा गया. अन्न के साथसाथ पानी की परेशानी भी होने लगी.

जानवरों ने भी अपने मालिकों से विदा ले ली. बूढ़ों में चंद कदम चलने भर की ताकत न रही. मदद के नाम पर जोकुछ मिला, वह बहुत थोड़ा था.

लोग उस इलाके को छोड़ कर जाने लगे. ऐसे में कुछ दलाल किस्म के लोग जवान लड़कियों को पैसों का लालच दे कर शहरों में ले गए. उन से कहा गया था कि वे उन्हें काम पर लगाएंगे. वे मेहनत करेंगी और अपना और अपने घर वालों का पेट भरेंगी. इन बातों पर उन्हें यकीन हो गया था.

केशवगढ़ में सब से खराब हालत संतो की थी. उस का बूढ़ा पिता भूख से तड़पतड़प कर मर गया था. तंगी तो यों ही बनी रहती थी, उस पर बाप का साया भी उठ गया. अब वह बिलकुल टूट सी गई थी.

अचानक एक दिन सेवादास नाम का एक आदमी उस के पास आया. उस ने बताया कि वह उस के दूर के रिश्ते का चाचा है. वह बनारस में रहता है और केशवगढ़ में अकाल की खबर पा कर उस से मिलने आया है.

तब संतो मुसीबत में फंसी हुई थी. फरेबी सेवादास भी उसे बिलकुल अपना लगने लगा.

अगले दिन सेवादास उसे ले कर बनारस चला आया था. रास्ते में उसे अच्छे कपड़े भी खरीद दिए और खूब खातिरदारी करता रहा था.

उस ने संतो को पहले अपने घर में रखा. वह भी इतमीनान से उस के साथ रहने लगी.

एक दिन सेवादास के पास एक मोटी सी औरत आई. आते ही वह संतो का आगापीछा देखने लगी.

उस की निगाहें संतो को चुभ रही थीं. उस से रहा न गया तो पूछ बैठी, ‘‘चाचा, यह कौन है? यह मुझे ऐसे क्यों देख रही है?’’

सेवादास शरारतभरी मुसकान होंठों पर लाते हुए बोला, ‘‘चाचा नहीं संतो रानी, हमारा नाम तो सेवादास है… सेवादास. लोगों की सेवा करना ही हमारा काम है. क्यों चमेलीबाई?’’

चमेलीबाई बोली, ‘‘कहां से लाया रे सेवादास, इस हीरे के टुकड़े को? अनारकली है, अनारकली. अब देखना, पूरे बनारस में चमेलीबाई का ही सिक्का चलेगा.’’

संतो सकते में आ गई थी. उस की अजीब हालत थी. वह कुछ समझ नहीं पा रही थी.

चमेलीबाई उस की ओर निगाहें फेर कर बोली, ‘‘मैं तुम्हारे जिस्म का मुआयना कर रही हूं. क्या तुम्हें सेवादास ने कुछ नहीं बताया?’’

‘‘नहीं तो.’’

‘‘क्यों रे, इसे कुछ बताया नहीं?’’ चमेलीबाई ने सवाल किया.

‘‘बताने की तो जरूरत ही नहीं है चमेलीबाई. सुना है, यह बहुत अच्छा गाती है. जब यह नाचती है तो समय भी ठहर जाता है. तुम्हारे कोठे पर तो नोटों की बरसात हो जाएगी… बरसात…’’

‘कोठा’ लफ्ज सुनते ही संतो कांप उठी. उस ने यह शब्द भी सुन रखा था और वहां की घिनौनी करतूतों को भी खूब समझती थी. उसे लगा कि वह बुरी फंसी है.

संतो का गुस्सा फूट पड़ा, ‘‘चाचा बने फिरते थे. सेवादास, तुम तो मुझे काम दिलाने के लिए लाए थे. क्या यही काम कराना था? कोठे पर नचवाना था… मेरे जिस्म का सौदा करना था? पर, कान खोल कर सुन लो तुम दोनों, मैं कोठे पर हरगिज नहीं नाचूंगी.’’

फिर उसी दिन से संतो पर जुल्म ढाना शुरू हो गया. पहले तो उसे डरायाधमकाया गया, पर बाद में पीटा भी गया और भूखाप्यासा भी रखा गया. आखिर पेट की आग के आगे वह टूटती चली गई.

भूख और प्यास से संतो तिलतिल कर मर रही थी. वह एक बार में ही मर जाना चाहती थी, पर सेवादास न उसे मरने दे रहा था और न जीने. एक दिन वह बेहोश हो गई. तब उस ने मजबूर हो कर सेवादास की बात मान ली.

देखते ही देखते संतो के पैरों में घुंघरू बंध गए. पर उन की झंकार से उस का दिल चकनाचूर हो गया. टूटे दिल के तारों से जो दर्दीला स्वर फूटा तो लोग झूम उठे. उस पर नोटों की बारिश करने लगे. पर असलियत किस ने जानी थी. काश, कोई आंखों के झरोखे से उस के दिल में झांक कर देखता तो उसे सचाई का पता चलता.

कितने अरमान संजोए थे संतो ने. सोचा था कि कोई साजन होगा, कोई मनमीत होगा, जिस के सीने पर वह अपना सिर रख कर अपना हर गम भूल जाएगी. उस का बालम हौलेहौले उस की जुल्फों को संवारेगा, उस में फूल लगाएगा, तब खिले गुलाब की तरह उस का तनमन महक उठेगा.

कोठे पर हर तरह के लोग आते थे. पर ज्यादातर की आंखों में संतो ने जिस्म की भूख ही देखी थी. उसे लगता, हर कोई उस के बदन को नोचना चाहता है, उसे कच्चा निगल जाने को तैयार है.

उन्हीं दिनों सुंदर नाम का एक नौजवान भी चमेलीबाई के कोठे पर आने लगा था. वह अपने नाम की तरह सुंदर भी था. दिल का बेहद भोला, फरेब नाम की किसी भी चीज से अनजान.

संतो धीरेधीरे सुंदर की ओर खिंचती चली गई. सुंदर से आंखें मिलते ही उस के दिल में हलचल होने लगती, पर किसी को कुछ बताना भी बेकार था. सुंदर आता तो संतो को नाचने का मन होता, नहीं तो वह उदास ही रहती.

एक दिन सुंदर नहीं आया. संतो सिंगार करने के बावजूद अपने कमरे में बैठी रही. चमेलीबाई के बुलावे पर बुलावे आते रहे, पर उस पर कोई असर न हुआ. मजबूर हो कर चमेलीबाई को खुद बुलाने आना पड़ा, क्योंकि कई लोग वहां बैठे उस का इंतजार कर रहे थे.

‘‘आजकल नखरे बहुत करने लगी है हमारी महारानी. बाहर हुस्न के मतवाले तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं और तुम यहां सजधज कर बैठी हो,’’ आते ही चमेलीबाई बरस पड़ी.

‘‘आज नाचने का मेरा दिल नहीं है,’’ संतो बोली.

‘‘नाचेगी नहीं, तो इतने लोगों का पेट कैसे भरेगा? क्या तेरा बाप पैसे दे जाएगा?’’ चमेलीबाई बोली.

फिर रुक कर वह बोली, ‘‘चल, जल्दी… नखरे मत दिखा.’’

संतो ने आह भर कर कहा, ‘‘मेरा असली कद्रदान तो आज आया ही नहीं.’’

‘‘असली कद्रदान… किस की बातें कर रही है?’’ चमेलीबाई चौंक उठी.

‘‘उस की आंखों में मैं ने प्यार देखा है,’’ संतो भावुक हो उठी थी.

पर चमेलीबाई को यह गवारा न था. उस का पेशा चौपट हो जाता. वह उबल पड़ी, ‘‘सुन संतो, हमारे पेशे में प्यारमुहब्बत नाम की कोई चीज ही नहीं है. यहां लोग प्यार करते हैं, सिर्फ एक रात के लिए. सुबह बीच चौराहे पर छोड़ कर चले जाते हैं. एक रात की दुलहन हर कोई बना लेता है, पर उम्रभर के लिए कोई नहीं अपने घर ले जाता.

‘‘कोठे तक तो चारों ओर से रास्ते आते हैं, पर यहां से कोई रास्ता ‘घर’ तक नहीं जाता. फिर हमारा पेशा ही ऐसा है कि हम ऐसा करने की हिमाकत कर ही नहीं सकतीं. दिन में ख्वाब देखना छोड़ दो और चलो उठो.’’

चमेलीबाई ने कोई सख्त धमकी तो नहीं दी, पर बहुतकुछ कह गई थी. संतो बेमन से लोगों का मनोरंजन करने लगी. पर उस के तौरतरीकों से चमेलीबाई को मालूम हो गया कि वह सुंदर से बेहद प्यार करने लगी है.

चमेलीबाई को लग रहा था कि दबाने से संतो बगावत करने पर उतर आएगी, इसलिए वह सिर्फ इतना बोली, ‘‘संतो, अगर तुम समझती हो कि बाहर की दुनिया में जा कर तुम खुश रह सकोगी, तो जा सकती हो. पर सबकुछ इतना आसान नहीं है. लोग तुम्हें वहां जीने नहीं देंगे.’’

पर प्यार तो अंधा होता है. संतो ने अपनी दुलहन बनने की सब से बड़ी ख्वाहिश पूरी कर ली. सुंदर की बीवी बन कर वह उस के घर आ गई.

सुंदर भी अकेला था. संतो की नजरों से प्यार का पैगाम पा कर उस का दिल भी बेकाबू हो गया. वह संतो के प्यार के सागर में गोते लगाने लगा.

यों ही मजे से प्यार भरे दिन बीत रहे थे. अचानक एक दिन संतो की सारी उम्मीदों पर पानी फिर गया. उस दिन शाम को सुंदर शराब पी कर आया था. आते ही वह घर के सामान को इधरउधर फेंकने लगा और चीखने लगा.

‘‘यह आप को क्या हो गया है?’’ संतो तड़प उठी.

‘‘कुछ नहीं… यह शराब है जानी, शराब, यह बेवफा नहीं होती. यह धोखा नहीं देती. यह जूठन नहीं होती,’’ सुंदर बड़बड़ाता गया.

‘‘आखिर हुआ क्या है…? आप ने शराब क्यों पी?’’

‘‘यह तुम मुझ से पूछ रही हो? अपनी औकात मत भूलो. निकल जाओ, मेरे घर से. तुम एक धंधेवाली हो… धंधेवाली. तुम्हारी वजह से मेरा जीना मुश्किल हो गया है.’’

संतो को लगा कि जिस तख्ते को पकड़ कर वह जिंदगी का दरिया पार करना चाहती थी, वह डूबता जा रहा है. आगे का रास्ता अंधेरों से भरा है.

सुंदर ने संतो को घर से निकाल दिया. अब चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा था. उसे कुछ दरिंदे अपनी ओर बढ़ते महसूस हुए. उस के आगे एक ही रास्ता बचा था, कोठे का रास्ता. पर वहां वह जाना नहीं चाहती थी.

वह तेज कदम उठाती चलने लगी. पर अगले ही मोड़ पर सेवादास ने उस की बांह पकड़ ली और उसे दोबारा उसी बदनाम गली में पहुंचा दिया.

‘‘आओ मेरी संतो रानी, आओ,’’ चमेलीबाई मुसकराते हुए बोली.

संतो नजरें नीची किए खड़ी थी. ‘‘संतो, हम कोठेवालियों का यही अंजाम होता है. यह दुनिया हमें किसी की ‘घरवाली’ बन कर चैन से जीने नहीं देती. हमारा पेशा ही ऐसा है. अगर कोई हिम्मत कर के हाथ थाम भी लेता है, तो साथ नहीं निभा पाता.

‘‘बदनाम गली में रहनेवालियों के लिए घर एक सपना हो सकता है, हकीकत नहीं, क्योंकि दुनिया का नजरिया जब तक नहीं बदलता, तब तक कुछ नहीं हो सकता.’’

संतो को दोबारा उसी गली में जिंदगी के बाकी दिन गुजारने के लिए मजबूर होना पड़ा.

थोड़ा सा इंतजार: क्या मिल पाया तनुश्री और वेंकटेश को परिवार का प्यार

बरसों बाद अभय को उसी जगह खड़ा देख कर तनुश्री कोई गलती नहीं दोहराना चाहती थी. कई दिनों से तनुश्री अपने बेटे अभय को कुछ बेचैन सा देख रही थी. वह समझ नहीं पा रही थी कि अपनी छोटी से छोटी बात मां को बताने वाला अभय अपनी परेशानी के बारे में कुछ बता क्यों नहीं रहा है. उसे खुद बेटे से पूछना कुछ ठीक नहीं लगा.

आजकल बच्चे कुछ अजीब मूड़ हो गए हैं, अधिक पूछताछ या दखलंदाजी से चिढ़ जाते हैं. वह चुप रही. तनुश्री को किचन संभालते हुए रात के 11 बज चुके थे. वह मुंहहाथ धोने के लिए बाथरूम में घुस गई. वापसी में मुंह पोंछतेपोंछते तनुश्री ने अभय के कमरे के सामने से गुजरते हुए अंदर झांक कर देखा तो वह किसी से फोन पर बात कर रहा था. वह एक पल को रुक कर फोन पर हो रहे वार्तालाप को सुनने लगी. ‘‘तुम अगर तैयार हो तो हम कोर्ट मैरिज कर सकते हैं…नहीं मानते न सही…नहीं, अभी मैं ने अपने मम्मीपापा से बात नहीं की…उन को अभी से बता कर क्या करूं? पहले तुम्हारे घर वाले तो मानें…रोना बंद करो. यार…उपाय सोचो…मेरे पास तो उपाय है, तुम्हें पहले ही बता चुका हूं…’’ तनुश्री यह सब सुनने के बाद दबेपांव अपने कमरे की ओर बढ़ गई. पूरी रात बिस्तर पर करवटें बदलते गुजरी.

अभय की बेचैनी का कारण उस की समझ में आ चुका था. इतिहास अपने आप को एक बार फिर दोहराना चाहता है, पर वह कोशिश जरूर करेगी कि ऐसा न हो, क्योंकि जो गलती उस ने की थी वह नहीं चाहती थी कि वही गलती उस के बच्चे करें. तनुश्री अतीत की यादों में डूब गई. सामने उस का पूरा जीवन था. कहने को भरापूरा सुखी जीवन. अफसर पति, जो उसे बेहद चाहते हैं. 2 बेटे, एक इंजीनियर, दूसरा डाक्टर. पर इन सब के बावजूद मन का एक कोना हमेशा खाली और सूनासूना सा रहा. क्यों? मांबाप का आशीर्वाद क्या सचमुच इतना जरूरी होता है? उस समय वह क्यों नहीं सोच पाई यह सब? प्रेमी को पति के रूप में पाने के लिए उस ने कितने ही रिश्ते खो दिए. प्रेम इतना क्षणभंगुर होता है कि उसे जीवन के आधार के रूप में लेना खुद को धोखा देने जैसा है. बच्चों को भी कितने रिश्तों से जीवन भर वंचित रहना पड़ा.

कैसा होता है नानानानी, मामामामी, मौसी का लाड़प्यार? वे कुछ भी तो नहीं जानते. उसी की राह पर चलने वाली उस की सहेली कमला और पति वेंकटेश ने भी यही कहा था, ‘प्रेम विवाह के बाद थोड़े दिनों तक तो सब नाराज रहते हैं लेकिन बाद में सब मान जाते हैं.’ और इस के बहुत से उदाहरण भी दिए थे, पर कोई माना? पिछले साल पिताजी के गुजरने पर उस ने इस दुख की घड़ी में सोचा कि मां से मिल आती हूं. वेंकटेश ने एक बार उसे समझाने की कोशिश की, ‘तनु, अपमानित होना चाहती हो तो जाओ. अगर उन्हें माफ करना होता तो अब तक कर चुके होते. 26 साल पहले अभय के जन्म के समय भी तुम कोशिश कर के देख चुकी हो.’ ‘पर अब तो बाबा नहीं हैं,’ तनुश्री ने कहा था.

‘पहले फोन कर लो तब जाना, मैं तुम्हें रोकूंगा नहीं.’ तनुश्री ने फोन किया. किसी पुरुष की आवाज थी. उस ने कांपती आवाज में पूछा, ‘आप कौन बोल रहे हैं?’ ‘मैं तपन सरकार बोल रहा हूं और आप?’ तपन का नाम और उस की आवाज सुनते ही तनुश्री घबरा सी गई, ‘तपन… तपन, हमारे खोकोन, मेरे प्यारे भाई, तुम कैसे हो. मैं तुम्हारी बड़ी दीदी तनुश्री बोल रही हूं?’ कहतेकहते उस की आवाज भर्रा सी गई थी. ‘मेरी तनु दीदी तो बहुत साल पहले ही मर गई थीं,’ इतना कह कर तपन ने फोन पटक दिया था. वह तड़पती रही, रोती रही, फिर गंभीर रूप से बीमार पड़ गई. पति और बच्चों ने दिनरात उस की सेवा की. सामाजिक नियमों के खिलाफ फैसले लेने वालों को मुआवजा तो भुगतना ही पड़ता है. तनुश्री ने भी भुगता. शादी के बाद वेंकटेश के मांबाप भी बहुत दिनों तक उन दोनों से नाराज रहे. वेंकटेश की मां का रिश्ता अपने भाई के घर से एकदम टूट गया.

कारण, उन्होंने अपने बेटे के लिए अपने भाई की बेटी का रिश्ता तय कर रखा था. फिर धीरेधीरे वेंकटेश के मांबाप ने थोड़ाबहुत आना- जाना शुरू कर दिया. अपने इकलौते बेटे से आखिर कब तक वह दूर रहते पर तनुश्री से वे जीवन भर ख्ंिचेख्ंिचे ही रहे. जिस तरह तनुश्री ने प्रेमविवाह किया था उसी तरह उस की सहेली कमला ने भी प्रेमविवाह किया था. तनुश्री की कोर्ट मैरिज के 4 दिन पहले कमला और रमेश ने भी कोर्ट मैरिज कर ली थी. उन चारों ने जो कुछ सोचा था, नहीं हुआ. दिनों से महीने, महीनों से साल दर साल गुजरते गए. दोनों के मांबाप टस से मस नहीं हुए. उस तनाव में कमला चिड़चिड़ी हो गई. रमेश से उस के आएदिन झगड़े होने लगे. कई बार तनुश्री और वेंकटेश ने भी उन्हें समझाबुझा कर सामान्य किया था. रमेश पांडे परिवार का था और कमला अग्रवाल परिवार की. उस के पिताजी कपड़े के थोक व्यापारी थे. समाज और बाजार में उन की बहुत इज्जत थी. परिवार पुरातनपंथी था. उस हिसाब से कमला कुछ ज्यादा ही आजाद किस्म की थी.

एक दिन प्रेमांध कमला रायगढ़ से गाड़ी पकड़ कर चुपचाप नागपुर रमेश के पास पहुंच गई. रमेश की अभी नागपुर में नईनई नौकरी लगी थी. वह कमला को इस तरह वहां आया देख कर हैरान रह गया. रमेश बहुत समझदार लड़का था. वह ऐसा कोई कदम उठाना नहीं चाहता था, पर कमला घर से बाहर पांव निकाल कर एक भूल कर चुकी थी. अब अगर वह साथ न देता तो बेईमान कहलाता और कमला का जीवन बरबाद हो जाता. अनिच्छा से ही सही, रमेश को कमला से शादी करनी पड़ी. फिर जीवन भर कमला के मांबाप ने बेटी का मुंह नहीं देखा. इस के लिए भी कमला अपनी गलती न मान कर हमेशा रमेश को ही ताने मारती रहती. इन्हीं सब कारणों से दोनों के बीच दूरी बढ़ती जा रही थी. तनुश्री के बाबा की भी बहुत बड़ी फैक्टरी थी. वहां वेंकटेश आगे की पढ़ाई करते हुए काम सीख रहा था. भिलाई में जब कारखाना बनना शुरू हुआ, वेंकटेश ने भी नौकरी के लिए आवेदन कर दिया. नौकरी लगते ही दोनों ने भाग कर शादी कर ली और भिलाई चले आए. बस, उस के बाद वहां का दानापानी तनुश्री के भाग्य में नहीं रहा.

सालोंसाल मांबाप से मिलने की उम्मीद लगाए वह अवसाद से घिरती गई. जीवन जैसे एक मशीन बन कर रह गया. वह हमेशा कुछ न कर पाने की व्यथा के साथ जीती रही. शादी के बाद कुछ महीने इस उम्मीद में गुजरे कि आज नहीं तो कल सब ठीक हो जाएगा. जब अभय पेट में आया तो 9 महीने वह हर दूसरे दिन मां को पत्र लिखती रही. अभय के पैदा होने पर उस ने क्षमा मांगते हुए मां के पास आने की इजाजत मांगी. तनुश्री ने सोचा था कि बच्चे के मोह में उस के मांबाप उसे अवश्य माफ कर देंगे. कुछ ही दिन बाद उस के भेजे सारे पत्र ज्यों के त्यों बंद उस के पास वापस आ गए.

वेंकटेश अपने पुराने दोस्तों से वहां का हालचाल पूछ कर तनुश्री को बताता रहता. एकएक कर दोनों भाइयों और बहन की शादी हुई पर उसे किसी ने याद नहीं किया. बड़े भाई की नई फैक्टरी का उद्घाटन हुआ. बाबा ने वहीं हिंद मोटर कसबे में तीनों बच्चों को बंगले बनवा कर गिफ्ट किए, तब भी किसी को तनु याद नहीं आई. वह दूर भिलाई में बैठी हुई उन सारे सुखों को कल्पना में देखती रहती और सोचती कि क्या मिला इस प्यार से उसे? इस प्यार की उसे कितनी बड़ी कीमत अदा करनी पड़ी. एक वेंकटेश को पाने के लिए कितने प्यारे रिश्ते छूट गए. कितने ही सुखों से वह वंचित रह गई.

बाबा ने छोटी अपूर्वा की शादी कितने अच्छे परिवार में और कितने सुदर्शन लड़के के साथ की. बहन को भी लड़का दिखा कर उस की रजामंदी ली थी. कितनी सुखी है अपूर्वा…कितना प्यार करता है उस का पति…ऐसा ही कुछ उस के साथ भी हुआ होता. प्यार…प्यार तो शादी के बाद अपने आप हो जाता है. जब शादी की बात चलती है…एकदूसरे को देख कर, मिल कर अपनेआप वह आकर्षण पैदा हो जाता है जिसे प्यार कहते हैं. प्यार करने के बाद शादी की हो या शादी के बाद प्यार किया हो, एक समय बाद वह एक बंधाबंधाया रुटीन, नमक, तेल, लकड़ी का चक्कर ही तो बन कर रह जाता है. कच्ची उम्र में देखा गया फिल्मी प्यार कुछ ही दिनों बाद हकीकत की जमीन पर फिस्स हो जाता है पर अपने असाध्य से लगते प्रेम के अधूरेपन से हम उबर नहीं पाते. हर चीज दुहराई जाती है. संपूर्ण होने की संभावना ले कर पर सब असंपूर्ण, अतृप्त ही रह जाता है. अगले दिन सुबह तनुश्री उठी तो उस के चेहरे पर वह भाव था जिस में साफ झलकता है कि जैसे कोई फैसला सोच- समझ कर लिया गया है. तनुश्री ने उस लड़की से मिलने का फैसला कर लिया था. उसे अभय की इस शादी पर कोई एतराज नहीं था. उसे पता है कि अभय बहुत समझदार है. उस का चुनाव गलत नहीं होगा. अभय भी वेंकटेश की तरह परिपक्व समझ रखता है.

पर कहीं वह लड़की उस की तरह फिल्मों के रोमानी संसार में न उड़ रही हो. वह नहीं चाहती थी कि जो कुछ जीवन में उस ने खोया, उस की बहू भी जीवन भर उस तनाव में जीए. अभय ने मां से काव्या को मिलवा दिया. किसी निश्चय पर पहुंचने के लिए दिल और दिमाग का एकसाथ खड़े रहना जरूरी होता है. तनुश्री काव्या को देख सोच रही थी क्या यह चेहरा मेरा अपना है? किस क्षण से हमारे बदलने की शुरुआत होती है, हम कभी समझ नहीं पाते. तनुश्री ने अभय को आफिस जाने के लिए कह दिया. वह काव्या के साथ कुछ घंटे अकेले रहना चाहती थी. दिन भर दोनों साथसाथ रहीं.

काव्या के विचार तनुश्री से काफी मिलतेजुलते थे. तनु ने अपने जीवन के सारे पृष्ठ एकएक कर अपनी होने वाली बहू के समक्ष खोल दिए. कई बार दोनों की आंखें भी भर आईं. दोनों एकमत थीं, प्रेम के साथसाथ सारे रिश्तों को साथ ले कर चलना है. एक सप्ताह बाद उदास अभय मां के घुटनों पर सिर रखे बता रहा था, ‘‘काव्या के मांबाप इस शादी के खिलाफ हैं. मां, काव्या कहती है कि हमें उन के हां करने का इंतजार करना होगा. उस का कहना है कि वह कभी न कभी तो मान ही जाएंगे.’’ ‘‘हां, तुम दोनों का प्यार अगर सच्चा है तो आज नहीं तो कल उन्हें मानना ही होगा. इस से तुम दोनों को भी तो अपने प्रेम को परखने का मौका मिलेगा,’’ तनुश्री ने बेटे के बालों में उंगलियां फेरते हुए कहा, ‘‘मैं भी काव्या के मांबाप को समझाने का प्रयास करूंगी.’’ ‘‘मेरी समझ में कुछ नहीं आता, मैं क्या करूं, मां,’’ अभय ने पहलू बदलते हुए कहा. ‘‘बस, तू थोड़ा सा इंतजार कर,’’ तनुश्री बोली. ‘‘इंतजार…कब तक…’’ अभय बेचैनी से बोला.

‘‘सभी का आशीर्वाद पाने तक का इंतजार,’’ तनुश्री ने कहा. वह सोचने लगी कि आज के बच्चे बहुत समझदार हैं. वे इंतजार कर लेंगे. आपस में मिलबैठ कर एकदूसरे को समझाने और समझने का समय है उन के पास. हमारे पास वह समय ही तो नहीं था, न टेलीफोन और न मोबाइल ताकि एकदूसरे से लंबी बातचीत कर कोई हल निकाल सकते. आज बच्चे कोई भी कदम उठाने से पहले एकदूसरे से बात कर सकते हैं…एकदूसरे को समझा सकते हैं. समय बदल गया है तो सुविधा और सोच भी बदल गई है. जीवन कितना रहस्यमय होता है. कच्चे दिखने वाले तार भी जाने कहांकहां मजबूती से जुड़े रहते हैं, यह कौन जानता है.

दिल का बोझ : दीदी लाई थी कौन सी खुशियां

मंजू अपनी मां के साथ फर्स्ट फ्लोर पर रहती थी. वह अपने फ्लैट के नीचे वाली दुकान से दूध लाने गई थी. वह जैसे ही दूध ले कर आई, अपने साथ एक नन्हा सा गोलमटोल बच्चा भी गोद में ले आई थी.

‘‘अरे, यह किस का बच्चा उठा लाई?’’ मां ने हैरानी से देख कर पूछा.

‘‘विनोद अंकल की दुकान पर खेल रहा था. उन्हीं के घर का कोई होगा… मैं ज्यादा नहीं जानती,’’ मंजू ने हंसते हुए अपनी मां को सफाई दी.

विनोद ने मंजू के घर के नीचे मोटर पार्ट्स की दुकान खोल रखी है. दुकान में भीड़ कम ही रहती है.

बच्चा बहुत खूबसूरत था. मां की भी ममता जाग गई. उन्होंने उसे गोद में ले लिया.

बच्चा घंटाभर वहां खेलता रहा. बच्चे की किलकारी से मंजू की मां के चेहरे पर खुशी की लकीरें उभर आई थीं. वे उस का खास खयाल रख रही थीं. बच्चा एक कटोरी दूध भी पी गया था.

एक घंटे बाद मां मंजू से बोलीं, ‘‘जा कर बच्चे को दुकान पर पहुंचा दे.’’

मंजू बच्चे को विनोद अंकल की दुकान पर छोड़ आई. इस तरह से वह बच्चा कई दिन तक मंजू के घर आता रहा. उस की मां बच्चे का ध्यान रखतीं. बच्चा वहां खेलता, घंटे 2 घंटे बाद मंजू दुकान में छोड़ आती. कई दिनों से यह सिलसिला चल रहा था.

उस दिन रात के 10 बज रहे थे. मंजू अपनी मां के बगल में सोई हुई थी. मंजू को नींद नहीं आ रही थी. वह सोच रही थी कि कैसे बात को शुरू करे.

‘‘बच्चा कितना खूबसूरत है न मां?’’ मंजू बोली.

‘‘अरे, तू किस की बात कर रही है?’’

‘‘उसी बच्चे की मां जो विनोद अंकल की दुकान से लाई थी.’’

‘‘सो जा. क्या तुझे नींद नहीं आ रही है? अभी भी तेरा ध्यान उस बच्चे पर अटका है?’’ मां ने मंजू को हिदायत दी.

‘‘दीदी का बच्चा भी ऐसा ही होता न मां?’’ मंजू अचानक बोली.

यह सुन कर मां गुस्से में बिफर पड़ीं, इसलिए वे बिस्तर से उठ कर बैठ गईं.

‘‘तेरे बड़े चाचा ने मना किया था न कि दीदी का नाम कभी मत लेना? वह हम लोगों के लिए मर गई है…’’ मां गुस्से में बोलीं.

अब तक मंजू भी चादर फेंक कर उठ कर बैठ गई थी और बोली, ‘‘मानती हूं कि दीदी हम लोगों के लिए मर गई हैं, लेकिन सचमुच में तो नहीं मरी हैं न?’’ उस ने मां से सवाल किया.

मां के पास कोई जवाब नहीं था. वे मंजू का मुंह ताकती रह गईं.

मंजू का दिल तेजी से धड़क रहा था. वह सोच नहीं पा रही थी कि जो कहने वाली है, उस का क्या नतीजा होने वाला है? अपना दिल मजबूत कर के वह मां से बोली, ‘‘मां, वह जो बच्चा रोज आ रहा है न, वह अपनी दीदी का ही बच्चा है. तुम उस की नानी हो और वह तुम्हारा नाती है. तुम्हारी अपनी बेटी का बेटा है,’’ मंजू हिम्मत कर के सबकुछ एक ही सांस में बोल गई.

मां को यह सुन कर ऐसा लगा, जैसे वे आसमान से जमीन पर गिर गई हैं. वे कुछ भी नहीं बोल पा रही थीं, सिर्फ मंजू को देखे जा रही थीं. मंजू अपनी मां के चेहरे के भावों को पढ़ने की कोशिश कर रही थी. मां पुरानी यादों में खोने लगी थीं.

3 साल पहले की घटी हुई वह घटना. उन की बड़ी बेटी सोनी कालेज में पढ़ती थी. कालेज आतेजाते वह अमर डिसूजा नाम के एक ईसाई लड़के के इश्क में पड़ गई थी.

अमर बहुत खूबसूरत था. वह सोनी से बहुत प्यार करता था. दोनों घंटों एकदूसरे से मोबाइल पर बात किया करते थे. सोनी उस के प्यार में पागल हो गई थी. उसे इस बात का कहां ध्यान रहा कि वह एक हिंदू ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखती है, जबकि अमर एक ईसाई परिवार से था.

जैसे ही सोनी के बड़े चाचा और उस के पिता को मालूम हुआ, सोनी को काफी भलाबुरा सुनना पड़ा था. घर के लोगों के साथसाथ बाहर के लोगों ने भी उसे खूब जलील किया था. लोग यही कह रहे थे कि सोनी को कोई हिंदू लड़का नहीं मिला था? उस ने अपना धर्म भ्रष्ट कर दिया था, इसीलिए उस के बड़े चाचा ने उसे घर से बाहर निकलने से मना कर दिया था. अमर से भी दूर रहने की हिदायत दे दी थी.

उस के चाचा ने चेतावनी दी थी, ‘अब से तुम्हारी पढ़ाईलिखाई बंद रहेगी. बहुत हो गया पढ़नालिखना.’

सोनी की शादी की तैयारी जोरशोर से चल रही थी. कई जगह लड़के देखे जा रहे थे, लेकिन वह पढ़ना चाहती थी. उस ने अपनी मां और अपने पिता से काफी गुजारिश की थी. कुछ दिन बाद उस के पिता ने सिर्फ कालेज में एडमिशन लेने और फार्म भरने की इजाजत दी थी. धीरेधीरे सोनी कालेज आनेजाने लगी थी.

एक दिन अचानक थाने से खबर आई कि सोनी अमर के साथ थाने में पहुंच गई है. दोनों ने एकदूसरे से प्यार करने की बात स्वीकार ली थी.

सोनी 18 साल की हो चुकी थी और अमर भी 21 साल का था. दोनों की पहले से ही गुपचुप तरीके से शादी करने की तैयारियां चल रही थीं, वे सिर्फ बालिग होने का इंतजार कर रहे थे.

सोनी के बड़े चाचा और उस के पिता ने शादी रुकवाने की कई तरह से कोशिश की, लेकिन वे ऐसा नहीं कर पाए. जब लड़कालड़की ही राजी थे, तो भला उन्हें कौन रोक सकता था. थानेदार की मदद से दोनों की शादी करवा दी गई थी. प्रशासन ने उन्हें प्रोटैक्शन दे कर अमर के घर तक पहुंचाया था.

बड़े चाचा ने गुस्से में आ कर सोनी का पुतला बना कर दाह संस्कार करवा दिया. पिता ने खास हिदायत दी थी, ‘वह हमारे लिए मर गई है. घर में कोई अब उस का नाम तक नहीं लेगा.’

तब से ले कर आज तक किसी ने भी सोनी का नाम इस घर में नहीं लिया था. आज जब मंजू उस के बच्चे की बात कर रही थी, तो मां सुन कर सन्न रह गई थीं.

मां मन ही मन सोनी से रिश्ता खत्म हो जाने के चलते दुखी रहती थीं. वे इस दुख को किसी के साथ जाहिर भी नहीं कर पाती थीं. आज वे अपने नाती को अनजाने में ही दुलार चुकी थीं.

जब मंजू ने मां को जोर से झुकझुरा, तो वे अपनी यादों से बाहर आ गईं, ‘‘ऐसा तू ने क्यों किया मंजू?’’ मां गुस्से में बोलीं.

‘‘तुम दीदी के जाने के बाद क्या कभी उन्हें भुला पाई हो मां? अपने दिल पर हाथ रख कर सच बताना?’’

मां के चेहरे पर बेचैनी देखी जा सकती थी. उन के पास कोई जवाब नहीं था. जैसे वे सच का सामना कर ही नहीं सकती थीं. वे मंजू से नजरें नहीं मिला पा रही थीं. ऐसा लग रहा था जैसे उन की चोरी पकड़ी गई है. चोरी पकड़ने वाला कोई और नहीं, बल्कि उन की अपनी बेटी की थी.

यह तो सच था कि जब से सोनी चली गई थी, मां दुखी थीं. वे कैसे जिंदा बेटी को मरा मान सकती थीं? उसे जितना भी भुलाने की कोशिश की थी, वे अपनी बेटी की यादों में खो जाती थीं. उन्होंने अपनी दोनों बेटियों को खूब प्यार दिया था.

बड़ी बेटी के गम में पिता उदास रहने लगे थे. कुछ दिन बाद उन्हें दिल का दौरा पड़ा और वे चल बसे. तब से मां अकेली हो गई थीं. वे चाहती थीं कि किसी तरह मंजू की भी शादी हो जाए.

‘‘मंजू, तुम कब से यह सब जानती हो?’’ मां ने सवाल किया.

‘‘एक दिन अचानक दीदी बाजार में मिल गई थीं. दीदी ने मुझे से नजरें फेर ली थीं, लेकिन मैं ने ही उन का पीछा किया था. बात करने पर उन्हें मजबूर कर दिया था. वे कहने लगी थीं कि मैं तो तुम्हारे लिए मर गई हूं. मैं ने उन्हें बहुत समझाया, तब जा कर वे बात करने के लिए तैयार हुई थीं.

‘‘दीदी भी यह जान कर बहुत दुखी थीं कि हम सब ने उन्हें मरा समझे लिया है. दीदी के गम में पिताजी नहीं रहे, उन्हें यह जान कर काफी दुख हुआ. लेकिन मैं ने उन्हें बताया कि यह सब बड़े चाचा का कियाधरा है. पिताजी तो उन की हां में हां मिलाते रहे. मां तो कुछ समझे ही नहीं पाई थीं. वे आज भी आप के लिए दुखी रहती हैं.

‘‘यह सुन कर दीदी रोने लगी थीं. वे आप को बहुत याद करती हैं. मैं उन से लगातार फोन पर बातचीत करती रहती हूं. तभी मैं जान पाई थी कि दीदी को एक बच्चा हुआ है और यह मेरी ही योजना थी कि किसी तरह से आप को और दीदी को मिला दूं. दीदी का बच्चा उन का देवर ले कर आता है. वह विनोद अंकल की दुकान पर सेल्समैन है.’’

मां मंजू के सिर पर हाथ फेरने लगीं. उन की आंखों से आंसू बहने लगे. ऐसा लग रहा था, दिल का बोझे आंखों से बाहर निकल रहा था.

मंजू अपनी मां से आज ये सब बातें कर के हलका महसूस कर रही थी. वह बहुत खुश थी. रात के 11 बज गए थे, इसलिए वह अपनी दीदी को परेशान नहीं करना चाहती थी, वरना यह खुशखबरी दीदी तक अभी पहुंचा देती, पर वह खुश थी कि अब उस की दीदी मां से बात कर सकेंगी. अब उस के घर में एक नन्हा बच्चा खेलेगा. वह सालों से 2 परिवारों में आई दरार को पाटने में कामयाब हो गई थी.

छल: आशिक की मारी रोमा

रोमा सारे घरों का काम जल्दीजल्दी निबटा कर तेज कदमों से भाग ही रही थी कि वनिता ने आवाज लगाई, ‘‘अरी ओ रोमा… नाश्ता तो करती जा. मैं ने तेरे लिए ही निकाल कर रखा है.’’‘‘रख दीजिए बीबीजी, मैं शाम को आ कर खा लूंगी. अभी बहुत जरूरी काम से जा रही हूं,’’ कहते हुए रोमा सरपट दौड़ गई. रोमा यहां सोसाइटी के कुछ घरों में झाड़ूपोंछा, बरतन, साफसफाई का काम करती थी. इस समय वह इतनी तेजी से अपने प्रेमी रौनी से मिलने जा रही थी. रौनी बगल वाली सोसाइटी में मिस्टर मेहरा के यहां ड्राइवर था.

पिछले 2 साल से रोमा और रौनी में गहरी जानपहचान हो गई थी. वे दोनों अगलबगल की सोसाइटी में काम करते थे और एक दिन आतेजाते उन की निगाहें टकरा गईं. फिर देखते ही देखते उन के बीच प्यार की शहनाई बज उठी.जवानी की दहलीज पर अभीअभी कदम रखने वाली रोमा पूर्णमासी के चांद की तरह बेहद ही खूबसूरत और मादक लगती थी. उस की हिरनी जैसी आंखें, सुराहीदार गरदन, पतली कमर और गदराया बदन देख कर हर कोई उसे रसभरी निगाहों से देखता था, लेकिन रोमा की जिंदगी का रस रौनी था, जिस से शादी कर के वह अपना घर बसाना चाहती थी. रौनी दिखने में बांका जवान था.

बिखरे बाल, आंखों पर चश्मा, शर्ट के सामने के 2 बटन हमेशा खुले, गले में चेन और कलाई में ब्रैसलेट… रौनी का यह स्टाइल किसी हीरो से कम नहीं था और रोमा उस के इसी स्टाइल पर मरमिटी थी.अकसर रोमा ही सारे घरों का काम निबटा कर रौनी को पास वाले पार्क में मिलने के लिए फोन किया करती थी, लेकिन आज पहली बार रौनी ने फोन कर के रोमा को ‘जरूरी काम है’ कह कर बुलाया था.रोमा भागीभागी पार्क में पहुंची, तो देखा कि रौनी वहां उस का इंतजार कर रहा था.

रोमा को सामने देखते ही रौनी ने उसे अपनी बांहों में दबोच लिया. रोमा खुद को छुड़ाते हुए बोली, ‘‘यही था तेरा जरूरी काम, जो तू ने मुझे यहां इतनी जल्दी में बुलाया… तुझे पता है कि मैं बनर्जी के घर का काम छोड़ कर आई हूं…

अब जल्दी से बोल कि यहां मुझे क्यों बुलाया?’’रोमा की कमर पर अपना हाथ डाल कर उसे अपनी ओर खींच कर करीब लाने के बाद उस के होंठों पर अपनी उंगली फेरते हुए रौनी बोला, ‘‘हमारी शादी के लिए रुपयों का जुगाड़ हो गया…’’यह सुनते ही रोमा उछल पड़ी और बोली, ‘‘अरे वाह… यह सब तू ने कैसे किया? तेरा मालिक तुझे रुपए उधार देने के लिए तैयार हो गया क्या?’’रोमा के ऐसा पूछने पर रौनी के चेहरे पर एक राजभरी मुसकान और आंखों पर एक अजीब सी शरारत तैर गई और वह रोमा का चेहरा अपने दोनों हाथों में ले कर उस के होंठों को चूमने लगा. रोमा झुंझला कर रौनी से अलग होते हुए बोली,

‘‘छोड़ मुझे… पहले यह बता कि रुपए कहां से आएंगे?’’अपने हाथों से अपने ही होंठों को पोंछते हुए रौनी बोला, ‘‘तुझे हमारे साहब के बच्चे को जन्म देना होगा.’’इतना सुनते ही रोमा चिढ़ गई और बोली, ‘‘तुझे शर्म नहीं आती, कैसी बेशर्मों जैसी बात करता है. मैं भला तेरे साहब के बच्चे की मां क्यों बनूंगी…’’

रोमा के ऐसा कहने पर रौनी हंसते हुए बोला, ‘‘अरे, तुझे साहब के बच्चे की मां नहीं बनना है, बच्चे की मां तो उन की बीवी ही रहेगी, तुझे तो बस उन के बच्चे को अपनी कोख में 9 महीने के लिए रखना है. इस के लिए साहब हमें 2 लाख रुपए देंगे, मकान किराए पर ले कर देंगे और खानापीना सब का खर्चा साहब ही उठाएंगे.’’पहले तो रोमा मानी नहीं, लेकिन जब रौनी ने उसे सरोगेसी मां के बारे में अच्छी तरह से समझाया, अपने प्यार का वास्ता दिया और जल्द ही शादी करने का वादा किया, तो 20 साल की भोलीभाली रोमा सरोगेसी मां बनने के लिए तैयार हो गई.

रोमा ने सारे घरों का काम छोड़ दिया. इतना ही नहीं, अपना घर भी छोड़ दिया. वैसे भी घर पर उस का अपना कोई था नहीं. बाप पूरा दिन शराब के नशे में पड़ा रहता. उसे अपना होश नहीं रहता था, तो वह अपनी बेटी की फिक्र कहां से करता. सौतेली मां के लिए रोमा बोझ ही थी. रोमा के आगेपीछे कोई नहीं था. जो था रौनी ही था, जिस पर उसे अंधा भरोसा था और वह रौनी पर जान छिड़कती थी.रौनी कोलकाता से रोमा को उत्तराखंड ले आया.

यहां आ कर रोमा को पता चला कि जहां वह रहने वाली है वह कोई घर नहीं, बल्कि एक आश्रम है, जहां उस के जैसी और भी बहुत सी लड़कियां और औरतें दिखाई दे रही थीं, जो मां बनने वाली थीं. आश्रम में कुछ जवान लड़कियां और बुजुर्ग औरतें भी थीं, जो साध्वी और सेवादार थीं. यह आश्रम एक जानेमाने आचार्य द्वारा चलाया जा रहा था, जिन का देशविदेश में हर दिन प्रवचन होता था और वे धर्म से जुड़ी कहानियां भक्तों से साझा करते थे.

रोमा को यह सब बहुत अटपटा लग रहा था, लेकिन वह रौनी का साथ पा कर इन सभी को नजरअंदाज कर रही थी. रोमा की दुनिया अब बदल गई थी. रौनी हर समय उस के साथ रहता, उस का पूरा खयाल रखता. एक महीने के भीतर डाक्टर की निगरानी में रोमा पेट से भी हो गई, लेकिन उसे कुछ समझ नहीं आया कि यह सब हुआ कैसे? न रौनी के साहब यहां आए और न ही साहब की पत्नी.इस बीच रोमा ने न कभी आश्रम में रह रही किसी लड़की या औरत से कोई बात की और न ही यह जानने की कोशिश की कि वे सब कहां से आई हैं, उन के पति कहां हैं और वे इस आश्रम में कब से हैं.

एक रात अचानक खाना खाने के बाद रौनी कहीं जाने की तैयारी करने लगा. यह देख कर रोमा बोली, ‘‘रौनी, तू कहीं जा रहा है क्या?’’रोमा के ऐसा कहने पर रौनी बोला, ‘‘हां, काम पर तो लौटना होगा. शादी की तैयारी जो करनी है.’’यह सुन कर रोमा का चेहरा उतर गया. वह रोआंसी हो गई और रौनी के गले लगते हुए बोली, ‘‘तू मत जा, रौनी. मैं तेरे बगैर यहां नहीं रह पाऊंगी.

फिर अभी तो बच्चे के होने में पूरे 9 महीने हैं. मैं यहां अकेली तेरे बगैर कैसे रहूंगी… मैं भी तेरे साथ चलती हूं.’’रोमा को इस तरह रोते और साथ चलने की जिद करते देख रौनी उसे समझाते हुए बोला, ‘‘देख, साहब और मेमसाहब की पहली शर्त यही थी कि उन का बच्चा इसी आश्रम में पैदा हो, ताकि बच्चे में अच्छे गुण और संस्कार आएं, इसलिए तुझे यहीं रहना होगा और मुझे तो जाना ही होगा. ‘‘शादी के लिए और भी रुपयों की जरूरत पड़ेगी. तुझे दुखी होने की कोई जरूरत नहीं.

तू यहां अकेली कहां है. इस आश्रम में इतने सारे लोग हैं. सब तेरा ध्यान रखेंगे और मैं भी तो आताजाता ही रहूंगा,’’ ऐसा कह कर रौनी जाने लगा. रोमा उसे भारी मन से आश्रम के बाहर तक छोड़ने के लिए साथ चलने लगी. अभी वे दोनों आश्रम के मेन गेट से कुछ दूर ही पहुंचे थे कि एक लड़की दौड़ती हुई आई और रौनी से लिपट गई. यह देख कर रोमा हैरान थी, क्योंकि वह लड़की बारबार रौनी को अपने साथ ले चलने की बात कह रही थी.वह लड़की कह रही थी,

‘‘रौनी, यह आश्रम, आश्रम नहीं है. यहां लड़कियों की दलाली होती है. उन का शारीरिक शोषण होता है. जबरन उन्हें पेट से किया जाता है और उन से पैदा होने वाले बच्चों को उन पैसे वाले और विदेशी जोड़ों को बेच दिया जाता है, जिन के बच्चे नहीं हैं.’’उस लड़की की बातों को सुन कर रोमा को यह समझने में समय नहीं लगा कि उस के साथ छल हुआ है और वह भी उस लड़की की ही तरह रौनी के हाथों ठगी जा चुकी है. वह रौनी के किसी भी साहब या उन की पत्नी के लिए सरोगेसी मां नहीं बनाई जा रही है, बल्कि इस आश्रम में बच्चों का व्यापार होता है और उसे इसीलिए इस आश्रम में लाया गया है.

रोमा उस लड़की से कोई सवाल करती या फिर रौनी से पूछती कि उस ने उस के साथ यह छल क्यों किया, उस से पहले एक साध्वी तेज कदमों से वहां आई और उस लड़की के गाल पर जोरदार तमाचा जड़ने के बाद उसे वहां से खींच कर ले जाने लगी. वह लड़की चीखचीख कर रौनी को पुकारती रही और उस से कहती रही, ‘‘रौनी, मुझे इस नरक से ले चलो…’’लेकिन रौनी उस लड़की को अनसुना और रोमा को अनदेखा कर आश्रम के गेट से बाहर अपने नए शिकार की तलाश में निकल गया. रोमा हैरान सी खड़ी रौनी को अपनी आंखों से ओझल होते हुए देखती रही.

सपने देखने वाली लड़की : जब देवांश के उड़े होश

देवांश उसे दूर से एकटक देख रहा था. देख क्या रहा था,नजर पड़ गई और बस आंखें ही अटक गई उसपर !विश्वास नहीं होता – यह वही है या उस जैसी कोई दूसरी?

मुंबई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनल  स्टेशन पर पीठ पर एक बैग लादे वह अकेली खड़ी है!

देवांश का ध्यान अपने काम से भटक गया था.सवारी गई तेल लेने! पहले यह शंका तो निवारण कर ले! बिहार के समस्तीपुर से यहां मुंबई में अकेले! लग रहा है,अभी अभी ट्रेन से उतरी है.

चाहता है उसे अनदेखा कर सवारी ढूंढे, कहीं वह नहीं हुई तो थप्पड़ भी पड़ सकता है.

आजकल की स्टंटमैन लड़कियां! देवांश इनसे दूर ही रहता है!

लेकिन अगर वही हुई तो? यह जरूर उसका फिर नासमझी में उठाया  गया कदम होगा !

वह इसके घरवालों को जानता है, वे ऐसे बिलकुल नहीं कि बेटी को अकेले मुंबई आने दें! इसके पापा का साइकिल में हवा भरने, पंक्चर बनाने की एक छोटी सी दुकान है. एक बड़ा भाई है जो पहिए वाले ठेले पर माल ढुलाई करता है. इससे दो बड़ी बहनें हैं जिनकी जैसे तैसे शादी हुई थी.

आज से पांच साल पहले जब देवांश मुंबई भाग आया था तब यह शायद बारह साल के आसपास की रही होगी.उस वक्त देवांश बीस वर्ष का था. शिप्रा उस समय सरकारी स्कूल में पढ़ रही थी .सजने का बड़ा शौक था  इसे. इस कारण हरदम इसकी मां इस पर टिक टिक करती रहती.दुकान से लगे छोटे से घर में ये अपने भाई, मां, पप्पा के साथ रहती थी .

अब तक वह इधर उधर देखती ,कुछ सोचती, थोड़ा थोड़ा चलती देवांश से अनजान उसकी ओर ही बढ़ी चली आ रही थी.

देवांश भी अब तक उसके नजदीक आ चुका था.

“तुम शिप्रा हो न? यहां कैसे?”

पहले शिप्रा ने खुद को छिपाने का प्रयत्न किया लेकिन देवांश का अपनी बात पर भरोसा देख उसे मानना पड़ा कि वह समस्तीपुर के फुलचौक की शिप्रा ही है.

अपनी बात को टालने की गरज से शिप्रा ने प्रतिप्रश्न किया – “तुम यहां कैसे?”

“बीस साल की उम्र में मुंबई भाग आया था. हीरो बनना था. सालभर खूब एड़ियां घिसी, फिल्मी स्टूडियो के बाहर कतारें लगाई, प्रोड्यूसर डायरेक्टर के पीछे भागता रहा, लेकिन रात ?

वह तो पिशाचिनी की तरह भूखी प्यासी मुझे निगलने को आती थी.

स्टूडियो के बाहर नए लड़के लड़कियों की इतनी भीड़ कि कौन किसे पूछे? उनमें जिनके पहचान के  निकल जाते, उन्हें  किसी तरह अन्दर जाने का मौका मिल जाता.लेकिन इतना तो काफी नहीं होता न! मंजे हुए कलाकारों के सामने खड़े होने की भी कुबत कम लोगों में ही होती है! फिर गिड़गिड़ाना भी आना चाहिए, इज्जत पर बाट लगाकर काम के लिए हाथ फैलाना भी आना चाहिए! मैंने तो साल भर में हाथ जोड़ लिए! मेरा औटो जिंदाबाद! पहले भाड़े पर लेकर चलाता था, अब अपना है, मीरा रोड पर अपनी खोली भी है!  मगर तुम यहां क्यों आ गई? बारहवीं बोर्ड दिया?” एक साथ इतनी बातें कहने के पीछे देवांश की एक ही मंशा थी कि वो मुंबई की जिंदगी और अपने सपनों की वास्तविकता को समझे!

“देकर ही आई हूं! मुझे एक हीरो से मिलना है, उसके साथ मुझे हीरोइन का रोल करना है! मै ठान कर आई हूं, हार नहीं मानूंगी.”

अब तक शिप्रा अपने नए स्मार्ट फोन पर किसी का नंबर ढूंढने में लगी थी.

देवांश ने कहा-” तुम्हारे पप्पा मेरी साइकिल कई बार ऐसे ही ठीक कर दिया करते थे .कुछ तो मेरा भी फर्ज बनता है, अपने जगह की हो, कहां मारी मारी फिरोगी! अच्छा हुआ जो मै तुम्हे मिल गया! चलो मेरे घर. वहीं रहकर काम ढूंढ़ लेना.”

इस बीच शिप्रा की उससे बात हो जाती है जहां वह फोन लगा रही थी. बात समाप्त होते ही शिप्रा का रुख थोड़ा बदल सा जाता है. वह अब जल्दी निकलना चाहती है.

“देवांश जी मुझे जल्दी निकलना होगा, हरदीप जी से बात हो गई, उन्हीं के कहने पर यहां आई हूं . वे मुझे अपने स्टूडियो में बुला रहे हैं, इंटरव्यू करेंगे, और फोटो शूट भी!”

“ये सब पक्का है? देखो, मुंबई है ,सही गलत की पहचान जरूरी है, ठगी न जाओ!”

“देवांश जी मुझे अभी जाना है, आपको बाद में बताऊंगी .

आप भैया के साथ स्कूल पढ़े हो, मेरे घरवालों को पहचानते हो, अभी कुछ बताना मत उन्हें, पता चला तो मेरी जबरदस्ती शादी कर देंगे. मै बड़ी स्टार बनना चाहती हूं, दीदियों की तरह गृहस्थी में अभी से नहीं पीसना मुझे!”

जाना कहां है? चलो छोड़ देता हूं तुम्हे.”

“करजत नाम की कोई जगह है- वहीं कहीं बता रहे हैं”

“मेरा फोन नंबर रख लो, रात को वापिस आ जाना, अपना नंबर दे दो, मै अपना पता तुम्हे लिख भेजूंगा. मुंबई अनजान नई लड़कियों के लिए ठीक नहीं, शोषण हो सकता है!”

“मुझे जल्द पहुंचाइए देवांश जी, कहीं देर न हो जाए!”

औटो भीड़ को काटते जैसे तैसे गंतव्य की ओर दौड़ रहा था.

शिप्रा को अपने सपनों के आगे जिंदगी की चुनौतियां तुच्छ नजर आ रही थी.देवांश समझ चुका कि यह चट्टानों से टकराए बिना नहीं मानेगी.

देवांश भी तो ऐसा ही था. कितनी रातें उसने आंखों में काटी, कितने दिन फाकों में! और जब काम मिलने को हुआ तो जैसे सर दीवार से जा टकराया! गीगोलो! अमीर औरतों के ऐश के लिए खरीदा गया गुलाम; उसे धोखा देकर ले जाने की पूरी तैयारी हो चुकी थी कि अचानक जैसे उसे दो कदम पीछे आकर फिर से सोच लेने की मति आई, उसके तो होश ही उड़ गए! किसी तरह बच कर निकला था वह! औटो दौड़ाते वह बेचैन हो गया.

लड़की को पता नहीं कहां पहुंचाने जा रहा है वह!

“हरदीप जी को कैसे जानती हो?”

“फेसबुक से, मेरी सुन्दरता देख उन्होंने फेसबुक पर फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी थी. बाद में मुझे समझाया कि मै आसानी से हीरोइन बन सकती हूं अगर किसी तरह मुंबई पहुंच जाऊं!  वे मुझे स्टार बना देंगे. जोखिम तो लेना पड़ता है सपने पूरे करने के लिए!”

“पैसे हैं तुम्हारे पास?”

“घर में रखे दो हजार उठा लाई हूं, मां के चांदी के पायल भी,जब तक चले, फिर तो रुपए मिल ही जाएंगे.”

“कई बार नई लड़कियों का शोषण होता है, सावधान रहना!”

मतलब?”

“कोई तुम्हारा नाजायज फायदा उठा कर तुम्हे ठग सकता है,जैसे कोई कहे कि हम तो तुम्हे नाम पैसा सब देंगे, बदले में तुम क्या दोगी,तो -”

” जो कहेंगे वही करने का कहूंगी!”

“अरे! तुम्हारी उम्र कितनी है! तुम्हे समझ नहीं आती क्या बात!”

“अठारह साल!”

” छोड़ो, इससे आगे और क्या क्या समझाऊं तुम्हे! अगर रात को वापिस मेरे पास आने का मन हो तो फोन कर लेना मुझे.”

उस रात तो क्या महीने भर देवांश को शिप्रा का पता नहीं लग पाया.

और एक रात अभी वह अपने कमरों की बत्ती बुझाकर सोने चला ही था कि उसके दरवाजे पर किसी ने आवाज दी .

थोड़ा झल्लाया, दिन भर के खटे मरे, नींद से बोझिल आंखों में स्वागत सत्कार का आल्हाद कहां से लाए? झल्लाहट में दरवाजा खोला और सामने शिप्रा को देख अवाक रह गया.

सुंदर सजीली,एक ही नजर में भा जाने वाली लडकी जैसे अचानक कोयले के खदान से उठ आई हो! आंखों के नीचे गहरी कालिख!तनाव से चेहरा सूखा सा! विषाद के गहरे बादल जैसे अभी बरस पड़ेंगे!

“आओ आओ, फोन कर देती तो लेने चला आता! कहां रही अब तक?

“अंदर आ जाने दो देवांश जी! सब बताती हूं!”

पहले से  ज्यादा समझदार लगी शिप्रा.

रात के दस बज रहे थे, देवांश ने अपना डिनर ले लिया था.सो उस ने बिहारी स्टाईल में दाल भात आलू चोखा ,पापड़, सलाद लगाकर शिप्रा को खिलाया, और  अपने छोटे से पलंग पर उसका बिस्तर लगा दिया.

देवांश बगल वाले छोटे कमरे में अपनी खटिया बिछा कर अभी जाने को हुआ कि शिप्रा ने उसकी कलाई पकड़ ली.

“यहीं इसी कमरे में सो जाओ.अलग मत सोओ !”

“अरे क्यों ?” देवांश को आश्चर्य हुआ.

शिप्रा ने अपना सर झुका लिया.

“कहो!” देवांश ने जोर दिया.

रात कोई दूसरे कमरे से आकर मुझ पर सोते वक्त हमला न कर दे इसका डर लगता है, अच्छा है कोई साथ ही सो रहे, किसी के दरवाजे खोल कर अंदर आ जाने के डर से मै रात को सो ही नहीं पाती!”

“क्या हुआ था, मुझे बताओ, मै तुम्हारा हर डर दूर कर दूंगा .”

उसके स्नेह भरे स्वर में अपनेपन की ऐसी आश्वस्ति थी कि शिप्रा का तनाव कुछ कम होने लगा.

देवांश के पलंग पर दोनो आसपास बैठे थे, शिप्रा कहने लगी-”

उस दिन प्रोड्यूसर हरदीप जी के स्टूडियो के बाहर वेटिंग हौल में रात के आठ बजे तक बैठी मै इंतजार करती रही, आपने मुझे वहां करीब दोपहर के एक बजे छोड़ा था. सोच रही थी आपको फोन कर ही लूं, कि पियोन आकर मुझे बुला ले गया. मुझे एक आलीशान बड़े से कमरे में ले आया वह. यहां सोफे से लेकर पलंग तक सब कुछ मेरी कल्पना से परे की बेहतरीन चीजें थीं.सब कुछ अब जैसे जल्दी होने लगा था. मै घबराई भी थी और उत्सुक भी!

बाहर से मै लौक कर दी गई थी, मुझे अच्छा नहीं लगा, मगर इंतजार करती रही.

कुछ देर बाद हरदीप जी आए.पचपन के आसपास की उम्र होगी उनकी .आराम से बात की, मुझे कुछ छोटे विकनी टाईप के कपड़े दिए और उसे पहन कर आने को कहा. मै झिझक गई, तो आंखें इस तरह तरेरी कि मुझे बदलने जाना पड़ा .बाथरूम से वापिस आई तो देखा तीन लोग शूट के लिए आ पहुंचे थे. जैसा कहा गया वैसा कर दिया, शूटिंग पूरी होने पर  हरदीप जी ने मुझसे कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर करवाये. बाकी लोगों के जाने के बाद हरदीप जी ने मुझे नजदीक बिठा कर शाबासी दी और उनके साथ सहयोग करने पर जल्द मुझे स्टार बनाकर मेरे पसंद के हीरो के साथ रोल देने का वादा किया. डिनर आ गया था, और वो बहुत लाजवाब था. हरदीप जी को मैंने अनुरोध किया कि वे बाहर से दरवाजा मत लगाएं,”

“ये तुम्हारा मामला नहीं है” कहकर वे बाहर से बन्द कर चले गए.

फिर ये सिलसिला चल निकला . कभी बाहर भी शूट को ले जाते तो उनकी वैन में, काम ख़तम होते ही मुझ पर ताला जड़ दिया जाता. कितना भी समझा लूं,  वे मुझे सांस लेने की इजाजत नहीं देते!”

“सोते हुए तुम पर कभी हमला हुआ था? क्या वजह है तुम्हारे डर की?”

“यूं तो जैसे मै उनकी खरीदी गुलाम थी. कभी साज सज्जा के नाम पर, कभी दृश्य और संवाद के कारण वे सभी मेरी देह को खिलौना ही समझते. लेकिन इसके बाद की वो रात मेरे लिए बुरा सपना था! मुझे सपनों से डर लगने लगा है!”

“कहोगी क्या हुआ था?”अनायास ही अधिकार का स्वर मुखर हो गया था देवांश में, लेकिन वह तुरंत संभल गया.

“इस तरह उनके कहे पर उठते बैठते बीस दिन हो गए थे. थकी हारी रात को मै सो रही थी.मध्य रात्रि में जैसे मेरे कमरे को किसी ने बाहर से खोला, मुझे अंदर से बन्द करने की सख्त मनाही थी.

नींद में होने की वजह से जब तक संभल पाती किसी ने अजगर की तरह मुझ पर कब्जा कर लिया, मै उसके पंजो में छटपटाती सी शिथिल पड़ गई. फिर तो यह सिलसिला ही चल पड़ा. लेकिन सुबह सब कुछ सामान्य रहता  जैसे किसी को कुछ मालूम ही न हो. मै पागल सी होने लगी. मै वहां से निकलना चाहती थी, हरदीप जी से कहा तो सबके सामने मेरा कांट्रैक्ट पेपर दिखा दिया. मुझे हस्ताक्षर करते वक़्त उसे पढ़ना चाहिए था. तीन महीने के मुझे पचास हजार मिलने थे,और एक दिन भी पहले छोड़ना चाहूं तो प्रति दिन दो सौ के हिसाब से जितना बने. मेरे सपनों पर काली स्याही फैल गई थी, मै स्टार बनने के लिए  तिल तिल कितना मरती! शायद पचास हजार का शिकंजा कसकर वे कई को रोक रखते थे और मनमानी करते थे, मुझे लगा आखिर तक शायद वे खुद ही ऐसे हालात पैदा कर दें कि मै तीन महीने से पहले ही छोड़ने को बाध्य हो जाऊं! फिर क्यों नहीं अभी ही निकल जाऊं! मैंने तय किया कि अब और नहीं!

मुझे उन्होंने छह हजार पकड़ा दिए, और मै अपना सबकुछ खो कर निकल आई.”

सब कुछ खोकर से क्या मतलब है तुम्हारा? क्या तुम इज्जत की बात कर रही हो? तुमने आगे बढ़ने और सपनों को पूरा करने के लिए जोखिम उठाया, इस जोखिम उठाने को इसलिए गलत नहीं कह सकते क्योंकि तुम एक लड़की हो और सपने बेचने वाले लोग गिद्ध है ! वे जो गिद्घ बने बैठे हैं, उन्हें अपनी इज्जत बचाने के लिए सभ्य होना चाहिए! हां तुम्हारी गलती इतनी है कि जब तुम्हे मैंने आगाह किया, सतर्क होने को समझाया तुमने अपनी धुन में मेरे अनुभव को तवज्जो नहीं दी, सपने देखना और उसके पीछे दौड़ना फिर भी आसान है, लेकिन सपनों को हकीकत में बदलने के लिए जुनून के साथ धीरज की जरूरत होती है, और यह जरा कठिन है!”

“क्या मुझे वापिस समस्तीपुर जाना चाहिए?”

“क्यों? जीवन में कुछ अच्छा सोचने के लिए देहरी तो लांघना ही पड़ता है. मुझे सपने देखना पसंद है, और सपने देखने वाली लड़की भी! अब चलो शुरू से शुरू करते हैं. तुम्हे अब आगे बढ़ाने में मै मदद करूंगा. जिंदगी मसाला चाय नहीं – कि बना और पीया, सपने अच्छे हैं, लेकिन उन्हें हासिल करने में समझदारी चाहिए! समझी !”देवांश ने उसकी आंखों में अपने नजर की मुस्कुराहट बिखेर कर हलके से शिप्रा की हथेली को दबाया. विश्वास और संवेदना से भरी लजाती सी मुस्कान शिप्रा के दिल का हाल बता रही थी.

“सपने पूरे हो जाएं और मुझे भी अपनी जिंदगी में शामिल करना चाहो तो बन्दा हमेशा हाजिर है ! कभी बता नहीं पाया मगर हमेशा चाहता था कि तुमसे दोस्ती हो जाय!”देवांश मन को धीरे धीरे खोल रहा था.

“देवांश तुम जैसे प्यारे इंसान क्या सचमुच के होते हैं? क्या यह भी तो कोई सपना नहीं ! ”

शिप्रा ने देवांश के कंधे पर अपना सर टिका दिया था.मन का बोझ पिघलने लगा था.सपने देखने का अपराध बोध जाता रहा, शिप्रा फिर से हसीन सपनों को सच करने का सपना देखने लगी थी.

उम्र भर का रिश्ता : एक महामारी ने कैसे बदली सपना की जिंदगी

शहर की भीड़भाड़ से दूर कुछ दिन तन्हा प्रकृति के बीच बिताने के ख्याल से मैं हर साल करीब 15 -20 दिनों के लिए मनाली, नैनीताल जैसे किसी हिल स्टेशन पर जाकर ठहरता हूं. मैं पापा के साथ फैमिली बिजनेस संभालता हूं इसलिए कुछ दिन बिजनेस उन के ऊपर छोड़ कर आसानी से निकल पाता हूं.

इस साल भी मार्च महीने की शुरुआत में ही मैं ने मनाली का रुख किया था  मैं यहां जिस रिसॉर्ट में ठहरा हुआ था उस में 40- 50 से ज्यादा कमरे हैं. मगर केवल 4-5 कमरे ही बुक थे. दरअसल ऑफ सीजन होने की वजह से भीड़ ज्यादा नहीं थी. वैसे भी कोरोना फैलने की वजह से लोग अपनेअपने शहरों की तरफ जाने लगे थे. मैं ने सोचा था कि 1 सप्ताह और ठहर कर निकल जाऊंगा मगर इसी दौरान अचानक लॉक डाउन हो गया. दोतीन फैमिली रात में ही निकल गए और यहां केवल में रह गया.

रिसॉर्ट के मालिक ने मुझे बुला कर कहा कि उसे रिसॉर्ट बंद करना पड़ेगा. पास के गांव से केवल एक लड़की आती रहेगी जो सफाई करने, पौधों को पानी देने, और फोन सुनने का काम करेगी. बाकी सब आप को खुद मैनेज करना होगा.

अब रिसॉर्ट में अकेला मैं ही था. हर तरफ सायं सायं करती आवाज मन को उद्वेलित कर रही थी. मैं बाहर लॉन में आ कर टहलने लगा.सामने एक लड़की दिखी जिस के हाथों में झाड़ू था. गोरा दमकता रंग, बंधे हुए लंबे सुनहरे से बाल, बड़ीबड़ी आंखें और होठों पर मुस्कान लिए वह लड़की लौन की सफाई कर रही थी. साथ ही एक मीठा सा पहाड़ी गीत भी गुनगुना रही थी. मैं उस के करीब पहुंचा. मुझे देखते ही वह ‘गुड मॉर्निंग सर’ कहती हुई सीधी खड़ी हो गई.

“तुम्हें इंग्लिश भी आती है ?”

“जी अधिक नहीं मगर जरूरत भर इंग्लिश आती है मुझे. मैं गेस्ट को वेलकम करने और उन की जरूरत की चीजें पहुंचाने का काम भी करती हूं.”

“क्या नाम है तुम्हारा?” मैं ने पूछा,”

“सपना. मेरा नाम सपना है सर .” उस ने खनकती हुई सी आवाज़ में जवाब दिया.

“नाम तो बहुत अच्छा है.”

“हां जी. मेरी मां ने रखा था.”

“अच्छा सपना का मतलब जानती हो?”

“हां जी. जानती क्यों नहीं?”

“तो बताओ क्या सपना देखती हो तुम? मुझे उस से बातें करना अच्छा लग रहा था.

उस ने आंखे नचाते हुए कहा,” मैं क्या सपना देखूंगी. बस यही देखती हूं कि मुझे एक अच्छा सा साथी मिल जाए.  मेरा ख्याल रखें और मुझ से बहुत प्यार करे. हमारा एक सुंदर सा संसार हो.” उस ने कहा.

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“वाह सपना तो बहुत प्यारा देखा है तुम ने. पर यह बताओ कि अच्छा सा साथी से क्या मतलब है तुम्हारा?”

“अच्छा सा यानी जिसे कोई गलत आदत नहीं हो. जो शराब, तंबाकू या जुआ जैसी लतों से दूर रहे. जो दिल का सच्चा हो बस और क्या .” उस ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया.

फिर मेरी तरफ देखती हुई बोली,” वैसे मुझे लगता है आप को भी कोई बुरी लत नहीं.”

“ऐसा कैसे कह सकती हो?” मैं ने उस से पूछा.

“बस आप को देख कर समझ आ गया. भले लोगों के चेहरे पर लिखा होता है.”

“अच्छा तो चेहरा देख कर समझ जाती हो कि आदमी कैसा है.”

“जी मैं झूठ नहीं बोलूंगी. औरतें आदमियों की आंखें पढ़ कर समझ जाती हैं कि वह क्या सोच रहा है. अच्छा सर आप की बीवी तो बहुत खुश रहती होगी न.”

“बीवी …नहीं तो. शादी कहां हुई मेरी?”

“अच्छा आप की शादी नहीं हुई अब तक. तो आप कैसी लड़की ढूंढ ढूंढते हैं?”

उस ने उत्सुकता से पूछा.

“बस एक खूबसूरत लड़की जो दिल से भी सुंदर हो चेहरे से भी. जो मुझे समझ सके.”

“जरूर मिलेगी सर. चलिए अब मैं आप का कमरा भी साफ कर दूं.” वह मेरे कमरे की तरफ़ बढ़ गई.

सपना मेरे आगेआगे चल रही थी. उस की चाल में खुद पर भरोसा और अल्हड़ पन छलक रहा था.

मैं ने ताला खोल दिया और दूर खड़ा हो गया. वह सफाई करती हुई बोली,” मुझे पता है. आप बड़े लोग हो और हम छोटी जाति के. फिर भी आप ने मेरे से इतने अच्छे से बातें कीं. वैसे आप यहां के नहीं हो न. आप का गांव कहां है ?”

“मैं दिल्ली में रहता हूं. वैसे हूं बिहार का ब्राम्हण .”

“अच्छा जी, आप नहा लो. मैं जाती हूं. कोई भी काम हो तो मुझे बता देना. मैं पूरे दिन इधर ही रहूंगी.”

“ठीक है. जरा यह बताओ कि आसपास कुछ खाने को मिलेगा?”

“ज्यादा कुछ तो नहीं सर. थोड़ी दूरी पर एक किराने की दुकान है. वहां कुछ मिल सकता है. ब्रेड, अंडा तो मिल ही जाएगा. मैगी भी होगी और वैसे समोसे भी रखता है. देखिए शायद समोसे भी मिल जाएं.”

“ओके थैंक्स.”

मैं नहाधो कर बाहर निकला. समोसे, ब्रेड अंडे और मैगी के कुछ पैकेटस ले कर आ गया. दूध भी मिल गया था. दोपहर तक का काम चल गया मगर अब कुछ अच्छी चीज खाने का दिल कर रहा था. इस तरह ब्रेड, दूध, अंडा खा कर पूरा दिन बिताना कठिन था.

मैं ने सपना को बुलाया,” सुनो तुम्हें कुछ बनाना आता है?”

“हां जी सर बनाना तो आता है. पर क्या आप मेरे हाथ का बना हुआ खाएंगे?”

“हां सपना खा लूंगा. मैं इतना ज्यादा कुछ ऊंचनीच नहीं मानता. जब कोई और रास्ता नहीं तो यही सही. तुम बना दो मेरे लिए खाना.”

मैं ने उसे ₹500 का नोट देते हुए कहा, “चावल, आटा, दाल, सब्जी जो भी मिल सके ले आओ और खाना तैयार कर दो.”

“जी सर” कह कर वह चली गई.

शाम में दोतीन डब्बों में खाना भर कर ले आई,” यह लीजिए, दाल, सब्जी और चपाती. अचार भी है और हां कल सुबह चावल दाल बना दूंगी.”

“थैंक्यू सपना. मैं ने डब्बे ले लिए. अब यह रोज का नियम बन गया. वह मेरे लिए रोज स्वादिष्ट खाना बना कर लाती. मैं जो भी फरमाइश करता वही तैयार कर के ले आती. अब मैं उस से और भी ज्यादा बातें करने लगा. उस से बातें करने से मन फ्रेश हो जाता. वह हर तरह की बातें कर लेती थी. उस की बातों में जीवन के प्रति ललक दिखती थी. वह हर मुश्किल का सामना हंस कर करना जानती थी. अपने बचपन के किस्से सुनाती रहती थी. उस के घर में मां, बाबूजी और छोटा भाई है. अभी वह अपने घर में अकेली थी. घरवाले शादी में पास के शहर में गए थे और वहीं फंस गए थे.

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वह बातचीत में जितनी बिंदास थी उस की सोच और नजरिए में भी बेबाकी झलकती थी. किसी से डरना या अपनी परिस्थिति से हार मानना उस ने नहीं सीखा था. किसी भी काम को पूरा करने या कोई नया काम सीखने के लिए अपनी पूरी शक्ति और प्रयास लगाती. हार मानना जैसे उस ने कभी जाना ही नहीं था.

उस की बातों में बचपन की मासूमियत और युवावस्था की मस्ती दोनों होती थी. बातें बहुत करती थी मगर उस की बातें कभी बोरियत भरने वाली नहीं बल्कि इंटरेस्ट जगाने वाली होती थीं. मैं घंटों उस से बातें करता.

उस ने शहर की लड़कियों की तरह कभी कॉलेज में जा कर पढ़ाई नहीं की. गांव के छोटे से स्कूल से पढ़ाई कर के हाल ही में 12वीं की परीक्षा दी थी. पर उस में आत्मविश्वास कूटकूट कर भरा हुआ था. दिमाग काफी तेज था. कोई भी बात तुरंत समझ जाती. हर बात की तह तक पहुंचती. मन में जो ठान लेती वह पूरा कर के ही छोड़ती.

शिक्षा और समझ में वह कहीं से भी कम नहीं थी. अपनी जाति के कारण ही उसे मांबाप का काम अपनाना पड़ा था.

उस की प्रकृति तो खूबसूरती थी ही दिखने में भी कम खूबसूरत नहीं थी. जितनी देर वह मेरे करीब बैठती मैं उस की खूबसूरती में खो जाया करता. वह हमेशा अपनी आंखों में काजल और माथे पर बिंदिया लगाती थी. उन कजरारी आंखों के कोनों से सुनहरे सपनों की उजास झलकती रहती. लंबी मैरून कलर की बिंदी हमेशा उस के माथे पर होती जो उस की रंगबिरंगी पोशाकों से मैच करती. कानों में बाली और गले में एक प्यारा सा हार होता जिस में एक सुनहरे रंग की पेंडेंट उभर कर दिखती.

“सपना तुम्हें कभी प्यार हुआ है ?” एक दिन यूं ही मैं ने पूछा.

मेरी बात सुन कर वह शरमा गई और फिर हंसती हुई बोली,” प्यार कब हो जाए कौन जानता है? प्यार बहुत बुरा रोग है. मैं तो कहती हूं यह कोरोना से भी बड़ा रोग है.”

उस के कहने का अंदाज ऐसा था कि मैं भी उस के साथ हंसने लगा. हम दोनों के बीच एक अलग तरह की बौंडिंग बनती जा रही थी. वह मेरी बहुत केयर करती. मैं भी जब उस के साथ होता तो पूरी दुनिया भूल जाता.

एक दिन शाम के समय मेरे गले में दर्द होने लगा. रात भर खांसी भी आती रही. अगले दिन भी मेरी तबीयत खराब ही रही. गले में खराश और खांसी के साथ सर दर्द हो रहा था. मेरी तबीयत को ले कर सपना परेशान हो उठी. वह मेरे खानपान का और भी ज्यादा ख्याल रखने लगी. मुझे गुनगुना पानी पीने को देती और दूध में हल्दी डाल कर पिलाती.

तीसरे दिन मुझे बुखार भी आ गया. सपना ने तुरंत मेरे घरवालों को खबर कर दी. साथ ही उस ने रिसोर्ट के डॉक्टर को भी फोन लगा लिया. डॉक्टर की सलाह के अनुसार उस ने मुझे बुखार की दवा दी. रिसोर्ट के ही इमरजेंसी सामानों से मेरी देखभाल करने लगी. उस ने मेरे लिए भाप लेने का इंतजाम किया. तुलसी, काली मिर्च, अदरक,सौंठ मिला कर हर्बल टी बनाई. एलोवेरा और गिलोय का जूस पिलाया. वह हर समय मेरे करीब बैठी रहती. बारबार गुनगुना कर के पानी पिलाती.

कोई और होता तो मेरे अंदर कोरोना के लक्षण का देख कर भाग निकलता. मगर वह बिल्कुल भी नहीं घबड़ाई. बिना किसी प्रोटेक्टिव गीयर के मेरी देखभाल करती रही. मेरे बहुत कहने पर उस ने दुपट्टे से अपनी नाक और मुंह ढकना शुरू किया.

इधर मेरे घर वाले बहुत परेशान थे. मेरी तो हिम्मत ही नहीं होती थी मगर सपना ही वीडियो कॉल करकर के पूरे हालातों का विवरण देती रहती. मेरी बात करवाती. खानपान के जरिए जो भी उपाय कर रही होती उस की जानकारी उन्हें देती. मां भी उसे समझाती कि और क्या किया जा सकता है.

इधर पापा लगातार इस कोशिश में थे कि मेरे लिए अस्पताल के बेड और एंबुलेंस का इंतजाम हो जाए. इस के लिए दिन भर फोन घनघनाते रहते. मगर इस पहाड़ी इलाके में एंबुलेंस की सुविधा उपलब्ध नहीं हो सकी. आसपास कोई अच्छा अस्पताल भी नहीं था. इन परिस्थितियों में मैं और मेरे घरवाले सपना की सेवा भावना और केयरिंग नेचर देख कर दंग थे. मम्मी तो उस की तारीफ करती नहीं थकतीं.

मैं भी सोचता कि वह नहीं होती तो मैं खुद को कैसे संभालता. इस बीच मेरा कोरोना टेस्ट हुआ और रिपोर्ट नेगेटिव आई.

सब की जान में जान आ गई. सपना की मेहनत रंग लाई और दोचार दिनों में मैं ठीक भी हो गया.

एकं दिन वह दोपहर तक नहीं आई. उस दिन मेरे लिए समय बिताना कठिन होने लगा. उस की बातें रहरह कर याद आ रही थीं. मुझे उस की आदत सी हो गई थी. शाम को वह आई मगर काफी बुझीबुझी सी थी.

“क्या हुआ सपना ? सब ठीक तो है ? मैं ने पूछा तो वह रोने लगी.

“जी मैं घर में अकेली हूं न. कल शाम दो गुंडे घर के आसपास घूम रहे थे. मुझे छेड़ने भी लगे. बड़ी मुश्किल से जान छुड़ा कर घर में घुस कर दरवाजा बंद कर लिया. सुबह में भी वह आसपास ही घूमते नजर आए. तभी मैं घर से नहीं निकली.”

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“यह तो बहुत गलत है. तुम ने आसपास वालों को नहीं बताया ?”

“जी हमारे घर दूरदूर बने हुए हैं. बगल वाले घर में काका रहते हैं पर अभी बीमार हैं. इसलिए मैं ने जानबूझ कर नहीं बताया. मुझे तो अब घर जाने में भी डर लग रहा है. वैसे भी गुंडों से कौन दुश्मनी मोल ले.”

“तुम घबराओ नहीं. अगर आज रात भी वे गुंडे तुम्हें परेशान करें तो कल सुबह अपने जरूरी सामान ले कर यहीं चली आना. अभी कोई है भी नहीं रिसॉर्ट में. तुम यहीं रह जाना. रिसॉर्ट के मालिक ने कुछ कहा तो मैं बात कर लूंगा उस से.”

“जी आप बहुत अच्छे हैं. उस की आंखों में खुशी के आंसू आ गए थे. अगले दिन सुबह ही वह कुछ सामानों के साथ रिसॉर्ट आ गई. वह काफी डरी हुई थी. आंखों से आंसू बह रहे थे.

“जी अब मैं घर में अकेली नहीं रहूंगी. कल भी गुंडे आ कर मुझे परेशान कर रहे थे. मैं सामान ले आई हूं.”

“यह तुम ने ठीक किया सपना. तुम यहीं रहो. यहां सुरक्षित रहोगी तुम.” मैं ने भरोसा दिलाते हुए अपना हाथ उस के हाथों पर रखा.

उस के हाथों के स्पर्श से मेरे अंदर एक सिहरन सी हुई. मैं ने जल्दी से हाथ हटा लिया. मेरी नजरों में शायद उस ने सब कुछ भांप लिया. उस के चेहरे पर शर्म की हल्की सी लाली बिखर गई.

उस दिन उस ने रिसॉर्ट के किचन में ही खाना बनाया.

मेरे लिए थाली सजा कर वह अलग खड़ी हो गई तो मैं ने सहज ही उस से कहा, “तुम भी खाओ न मेरे साथ.”

“जी अच्छा.”उस ने अपनी थाली भी लगा ली.

खाने के बाद भी बहुत देर तक हम बातें करते रहे. उस की सुलझी हुई और सरल बातें मेरे दिल को छू रही थीं. उस के अंदर कोई बनावटीपन नहीं था. मैं उसे बहुत पसंद करने लगा था.

मेरे जज्बात शायद उसे भी समझ आने लगे थे. एक दिन रात में बड़ी सहजता से उस ने मेरे आगे समर्पण कर दिया. मैं भी खुद को रोक नहीं सका. पल भर में वह मेरी जिंदगी का सब से जरूरी हिस्सा बन गई. धीरेधीरे सारी ऊंचनीच और भेदभाव की सीमा से परे हम दोनों दो जिस्म एक जान बन गए थे. लॉक डाउन के उन दिनों ने अनायास ही मुझे मेरे जीवनसाथी से मिला दिया था और अब मुझे यह स्वीकार करने में कोई परेशानी नहीं थी.

यह बात मैं ने अपने पैरंट्स के आगे रखी तो उन्होंने भी सहर्ष स्वीकार कर लिया.

मम्मी ने बड़ी सहजता से कहा,” जब सोच लिया है तो शादी भी कर लो बेटा. पता नहीं लौकडाउन कब खुले. जब यहां आओगे तो तुम्हारा रिसेप्शन धूमधाम से करेंगे. मगर देखो शादी ऑनलाइन रह कर ही करना.”

सपना यह सब बातें सुन कर बहुत शरमा गई. अगले दिन ही हम ने शादी करने का फैसला कर लिया. सपना ने कहा कि वह अपने परिचित काका को ले कर आएगी जो गांव में शादियां कराते हैं. साथ ही अपने मुंहबोले भाई को भी लाएगी जो कुछ दूर रहता है. हम ने सारी प्लानिंग कर ली थी. वह अपनी मां की शादी के समय के गहने और कपड़े पहन कर आने वाली थी. मैं ने भी अपना सफारी सूट निकाल लिया. अगले दिन हमारी शादी थी. हम ने रिसॉर्ट में रखे सामानों का उपयोग शादी की सजावट के लिए कर लिया. रिजोर्ट का एक बड़ा हिस्सा सपना और मैं ने मिल कर सजा दिया था.

अगले दिन सपना अपने घर से सजसंवर कर काका और भाई साथ आई. वह जानबूझ कर घूंघट लगा कर खड़ी हो गई. मैं ने घूंघट हटाया तो देखता ही रह गया. सुंदर कपड़ों और गहनों में वह इतनी खूबसूरत लग रही थी जैसे कोई परी उतर आई हो.

हम ने मेरे मम्मीपापा और परिवार वालों की मौजूदगी में ऑनलाइन शादी कर ली. अब बारी आई शादी की तस्वीरें लेने की. सपना के भाई ने रिसॉर्ट के खास हिस्सों में बड़ी खूबसूरती से तस्वीरें ली. अलगअलग एंगल से ली गई इन तस्वीरों को देख कर एक शानदार शादी का अहसास हो रहा था. रिसॉर्ट किसी फाइव स्टार होटल का फील दे रहा था.

हम ने तस्वीरें घरवालों और रिश्तेदारों को फॉरवर्ड कीं तो सब पूछने लगे कि कौन से होटल में इतनी शानदार शादी रचाई और वह भी लौकडाउन में.

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हमारी शादी को 3 महीने बीत चुके हैं. आज हमारा रिसेप्शन हो रहा है. सारे रिश्तेदार इकट्ठे हैं. रिसेप्शन पूरे धूमधाम के साथ संपन्न हो रहा है. खानेपीने का शानदार इंतजाम है. इस भीड़ और तामझाम के बीच मुझे अपनी शादी का दिन बहुत याद आ रहा है कि कैसे केवल 2 लोगों की उपस्थिति में हम ने उम्रभर का रिश्ता जोड़ लिया था.

घुटन: मीतू की खुशियों का बंद दरवाजा

“आशा है कि आप और आप का परिवार स्वस्थ होगा, और आप के सभी प्रियजन सुरक्षित और स्वस्थ होंगे, उम्मीद करते हैं कि हम सभी मौजूदा स्थिति से मजबूती से और अच्छे स्वास्थ्य के साथ उभरें, कृपया अपना और अपने परिवार का ख्याल रखें.”

घर पर रहें और सुरक्षित रहें

मीतू ने व्हाट्सऐप पर नीलिमा का भेजा यह मैसेज पढ़ा और एक ठंडी सांस भरी क्या सुरक्षित रहे. पता नहीं कैसी मुसीबत आ गई है. कितनी अच्छीखासी लाइफ चल रही थी. कहां से यह कोरोना आ गया. दुनिया भर में त्राहित्राहि मच गई है. खुद मेरी जिंदगी क्या कम उलझ कर रह गई है. सोचते हुए दोनों हाथों से सिर को पकड़ते हुए वह धप से सोफे पर बैठ गई.

मीतू का ध्यान दीवार पर लगी घड़ी पर गया. 2 बज रहे थे दोपहर के खाने का वक्त हो गया था. रिषभ को अभी भी हलका बुखार था. खांसी तो रहरह कर आ ही रही है.

रिषभ उस का पति. बहुत प्यार करती है वह उस से लव मैरिज हुई थी दोनों की. कालेज टाइम में ही दोनों का अफेयर हो गया था. रिषभ तो जैसे मर मिटा था उस पर. एकदूसरे के प्यार में डूबे कालेज के तीन साल कैसे गुजर गए थे, पता ही नहीं चला दोनों को. बीबीए करने के बाद एमबीए कर के रिषभ एक अच्छी जौब चाहता था ताकि लाइफ ऐशोआराम से गुजरे. मीतू से शादी कर के वह एक रोमांटिक मैरिड लाइफ गुजारना चाहता था.

रिषभ ने जैसा सोचा था बिलकुल वैसा ही हुआ. वह उन में से था जो, जो सोचते हैं वहीं पाते हैं. अभी उस की एमबीए कंपलीट भी नहीं हुई थी उस का सलेक्शन टौप मोस्ट कंपनी में हो गया. सीधे ही उसे अपनी काबिलियत के बूते पर बिजनेस डेवलपमेंट मैनेजर की पोस्ट मिल गई.

दिल्ली एनसीआर नोएड़ा में कंपनी थी उस की. मीतू को अच्छी तरह याद है वह दिन जब पहले दिन रिषभ ने कंपनी ज्वाइन की थी. जमीन पर पैर नहीं पड़ रहे थे उस के. लंच ब्रेक में जब उसे मोबाइल मिलाया था तब उस की आवाज में खुशी, जोश को अच्छी तरह महसूस किया था उस ने.

‘मीतू तुम सीधा मैट्रो पकड़ कर नोएडा सेक्टर 132 पहुंच जाना शाम को. मैं वहीं तुम्हारा इंतजार करूंगा. आज तुम्हें मेरी तरफ से बढ़िया सा डिनर, तुम्हारी पसंद का.’

कितना इंजौय किया था दोनों ने वह दिन. सब कितना अच्छा. भविष्य के कितने सुनहरे सपने दोनों ने एकदूसरे का हाथ थाम कर बुने थे.

रिषभ की खुशी, उस का उज्जवल भविष्य देख बहुत खुश थी वह. मन ही मन उस ने अपनेआप से वादा किया था कि रिषभ को वह हर खुशी देने की कोशिश करेंगी. बचपन में ही अपने मातापिता को एक हादसे में खो दिया था उस ने. लेकिन बूआ ने खूब प्यार लेकिन अनुशासन से पाला था रिषभ को, क्योंकि उन की खुद की कोई औलाद न थी. मीतू रिषभ की जिंदगी में प्यार की जो कमी रह गई थी, वह पूरी करना चाहती थी.

क्या हुआ उस वादे का, कहां गया वह प्यार. ‘ओफ रिषभ मैं यह सब नहीं करना चाहती तुम्हारे साथ.’ सोचते हुए मीतू को वह दिन फिर से आंखों के आगे तैर गया, जिस दिन रिषभ देर रात गए औफिस से घर वापस आया था. 4 दिन बाद होली आने वाली थी.

साहिर मीतू और रिषभ की आंखों का तारा. 5 साल का हो गया था. शाम से होली खेलने के लिए पिचकाारी और गुब्बारे लेने की जिद कर रहा था.

‘नहीं बेटा कोई पिचकारी और गुब्बारे नहीं लेने. कोई बच्चा नहीं ले रहा. देखो टीवी में यह अंकल क्या बोल रहे हैं. इस बार होली नहीं खेलनी है.’

मीतू ने साहिर को मना तो लिया लेकिन उस का दिल भीतर से कहीं डर गया. टीवी के हर चैनल पर कोरोना वायरस की खबरेें आ रही थी. मानव से मानव में फैलने वाला यह वायरस चीन से फैलता हुआ पूरे विश्व में तेजी से फैल रहा है. लोगों की हालत खराब है.

रिषभ रोज मैट्रो से आताजाता है.  कितनी भीड़ होती है. राजीव चैक मेट्रो स्टेशन पर तो कई बार इतना बुरा हाल होता है कि लोग एकदूसरे पर चढ़ रहे होते हैं. टेलीविजन पर लोगों को एतियात बरतने के लिए बोला जा रहा है.

मीतू उठी और रिमोट से टेलीविजन की वैल्यूम कम की और झट रिषभ का मोबाइल मिलाया. ‘कितने बजे घर आओगे, रिषभ.’

‘यार मीतू, बौस एक जरूरी असाइनमैंट आ गया है. रात 10 बजे से पहले तो क्या ही घर पहुंचुगा.’

‘सुनो भीड़भाड़ से जरा दूर ही रहना. इंटरनेट पर देख रहे हो न. क्या मुसीबत सब के सिर पर मंडरा रही है,‘ मीतू के जेहन में चिंता की लकीरें बढ़ती जा रही थीं.

‘डोंट वरी डियर, मुझे कुछ नहीं होने वाला. बहुत मोटी चमड़ी का हूं. तुम्हे तो पता ही है क्यों…’ रिषभ ने बात को दूसरी तरफ मोड़ना चाहा.

‘बसबस, ज्यादा मत बोलो, जल्दी घर आने की कोशिश करो, कह कर मीतू ने मोबाइल काट दिया लेकिन पता नहीं क्यों मन बैचेन सा था.

उस रात रिषभ देर से घर आया. काफी थका सा था. खाना खा कर सीधा बैडरूम में सोने चला गया.

अगले दिन मीतू ने सुबह दो कप चाय बनाई और रिषभ को नींद से जगाया.

‘मीतू इतनी देर से चाय क्यों लाई. औफिस को लेट हो जाऊंगा,‘ रिषभ जल्दीजल्दी चाय पीने लगा.

‘अरेअरे… आराम से ऐसा भी क्या है. मैं ने सोचा रात देर से आए हो तो जरा सोने दूं. कोई बात नहीं थोड़ा लेट चले जाना औफिस,‘ मीतू ने बोलते हुए रिषभ के गाल को हाथ लगाया, ‘रिषभ तुम गरम लग रहे हो. तबीयत तो ठीक है,‘ मीतू ने रिषभ का माथा छूते हुए कहा.

‘यार, बिलकुल ठीक हूं. बस थोड़ा गले में खराश सी महसूस हो रही है. चाय पी है थोड़ा बैटर लगा है,‘ और बोलता हुआ वाशरूम चला गया.

लेकिन मीतू गहरी चिंता में डूब गई. कल ही तो व्हाट्सऐप पर उस ने कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों के लक्षण के बारे में पढ़ा है. खांसी, बुखार, गले में खराश, सांस लेने में दिक्कत…

‘ओह…नो… रिषभ को कहीं… नहींनहीं, यह मैं क्या सोच रही हूं. लेकिन अगर सच में कहीं…’

मीतू के सोचते हुए ही पसीने छूट गए.

तब तक रिषभ वौशरूम से बाहर आ गया. मीतू को बैठा देख बोला, ‘किस सोच में डूबी हो,’ फिर उस का हाथ अपने हाथ से लेता हुआ अपना चेहरा उस के चेहरे के करीब ले आया और एक प्यार भरी किस उस के होंठो पर करना ही चाहता था कि मीतू एकदम पीछे हट गई.

‘अब औफिस के लिए देर नहीं हो रही,’ और झट से चाय के कप उठा कर कमरे से चली गई.

रिषभ मीतू के इस व्यवहार से हैरान हो गया. ऐसा तो मीतू कभी नहीं करती. उलटा उसे तो इंतजार रहता है कि रिषभ पहले प्यार की शुरूआत करे फिर मीतू अपनी तरफ से कमी नहीं छोड़ती थी लेकिन आज मीतू का पीछे हटना, कुछ अजीब लगा रिषभ को.

खैर ज्यादा सोचने का टाइम नहीं था रिषभ के पास. औफिस जाना था. झटपट से तैयार हो गया. नाश्ता करने के लिए डाइनिंग टेबल पर बैठ गया.

मीतू ने नाश्ता रिषभ के आगे रखा और जाने लगी तो वह बोला, ‘अरे, तुम्हारा नाश्ता कहां है. रोज तो साथ ही कर लेती हो मेरे साथ. आज क्या हुआ?’

‘कुछ नहीं तुम कर लो. मैं बाद में करूंगी. कुछ मन नहीं कर रहा.’ मीतू दूर से ही खड़े हो कर बोली.

‘क्या बात है तुम्हारी तबीयत तो ठीक है.’

‘हां सब ठीक है.‘ मीतू साहिर के खिलौने समेटते हुए बोली.

‘साहिर के स्कूल बंद हो गए हैं कोराना वायरस के चलते. चलो अब तुम्हें उसे सुबहसुबह स्कूल के लिए तैयार नहीं करना पड़ेगा. चलो कुछ दिन का आराम हो गया,‘ रिषभ ने मीतू को हंसाने की कोशिश की.

‘खाक आराम हो गया. यह आराम भी क्या आराम है. चारों तरफ खतरा मंडरा रहा है और तुम्हे मजाक सूझ रहा है,‘ मीतू नाराज होते हुए बोली.

‘अरे…अरे, मुझ पर क्यों गुस्सा निकाल रही हो. मेरा क्या कसूर है. मैं फैला रहा हूं क्या वायरस,‘ रिषभ ने बात खत्म करने की कोशिश की, ‘देखो ज्यादा पेनिक होने की जरूरत नहीं.’

‘मैं पेनिक नहीं हो रही बल्कि तुम ज्यादा लाइटली ले रहे हो सब.’

‘ओह, तो यह बात है. कहीं तुम्हें यह तो नहीं लग रहा कि मुझे कोरोना हो गया है. तुम ही दूरदूर रह रही हो. बेबी, आए एम फिट एंड फाइन. ओके शाम को मिलते हैं. औफिस चलता हूं. बाय डियर, ‘बोलता हुआ रिषभ घर से निकल गया.

मीतू के दिमाग में अब रातदिन कोरोना का भय व्याप्त हो गया था. होली आई और चली गई, उन की सोसाइटी में पहले ही नोटिस लग गया था कि कोई इस बार होली नहीं खेलेगा.

मीतू अब जैसे ही रिषभ औफिस से आता उसे सीधे बाथरूम जाने के लिए कहती और कपड़े वही रखी बाल्टी में रख्ने को कहती. फिर शौवर ले कर, कपड़े चेज करने के बाद ही कमरे में जाने देती.

हालात दिन पर दिन बिगड़ ही रहे थे. टेलीविजन पर लगातार आ रही खबरें, व्हाट्सऐप पर एकएक बाद एक मैसेज, कोरोना पर हो रही चर्चाएं मीतू के दिमाग को गड़बड़ा रही थीं.

दूसरी तरफ रिषभ मीतू के बदलते व्यवहार से परेशान हो रहा था. न जाने कहां चला गया था उस का प्यार. बहाने बनाबना कर उस से दूर रहती. साहिर का बहाना बना कर उस के कमरे में सोने लगी थी. साहिर को भी उस से दूर रखती थी. अपने ही घर में वह अछूत बन गया था.

रिषभ का पता है और मीतू भी इस बात से अनजान नहीं थी कि बदलते मौसम में अकसर उसे सर्दीजुकाम, खांसी, बुखार हो जाता है.

लेकिन कोरोना के लक्षण भी तो कुछ इसी तरह के हैं. मीतू पता नहीं क्यों टेलीविजन, व्हाट्सऐप के मैसेज पढ़पढ़ कर उन में इतनी उलझ गई है कि रिषभ को शक की निगाहों से देखने लगी है.

आज तो हद ही हो गई. सरकार ने जनता कफ्यू का ऐलान कर दिया था. रिषभ को रह रह कर  खांसी उठ रही थी. हलका बुखार भी था. रिषभ का मन कर रहा था कि मीतू पहले ही तरह उस के सिरहाने बैठे. उस के बालों में अपनी उंगलियां फेरे. दिल से, प्यार से उस की देखभाल करे. आधी तबीयत तो उस की मीतू की प्यारी मुसकान देख कर ही दूर हो जाती थी. लेकिन अचानक जैसे सब बदल गया था.­

मीतू न तो उस का टैस्ट करवाना चाहती है. रिषभ अच्छी तरह समझ रहा था कि मीतू नहीं चाहती कि आसपड़ोस में किसी को पता चले कि वह रिषभ को कोरोना टैस्ट के लिए ले गई है और लोगों को यह बात पता चले और उन से दूर रहे. खुद को सोशली बायकोट होते वह नहीं देख सकती थी.

मीतू का अपेक्षित व्यवहार रिषभ को और बीमार बना रहा था. उधर मीतू ने आज जब रिषभ सो गया तो उस के कमरे का दरवाजा बंद कर बाहर ताला लगा दिया.

रिषभ दवाई खा कर सो गया था. दोपहर हो गई थी और खाने का वक्त हो रहा था. मीतू अपनी सोच से बाहर निकल चुकी थी.

रिषभ की नींद खुली. थोड़ी गरमी महसूस हुई. दवा खाई थी इसलिए शायद पसीना आ गया था. सोचा, थोड़ी देर बाहर लिविंग रूप में बैठा जाए. पैरों में चप्पल पहनी और चल कर दरवाजे तक पहुंच कर हैंडल घुमाया. लेकिन यह क्या दरवाजा खुला ही नहीं. दरवाजा लौक्ड था

“मीतूमीतू, दरवाजा लौक्ड है. देखो तो जरा कैसे हो गया यह.” रिषभ दरवाजा पीटते हुए बोला.

“मैं ने लौक लगाया है,” मीतू ने सपाट सा जवाब दिया.

“दिमाग तो सही है तुम्हारा. चुपचाप दरवाजा खोला.”

‘नहीं तुम 14 दिन तक इस कमरे में ही रहोगे. खानेपीने की चिंता मत करो, वो तुम्हें टाइम से मिल जाएगा,‘ मीतू ने जवाब दिया.

‘मीतू तुम यह सब बहुत गलत कर रही हो.‘

‘कुछ गलत नहीं कर रही. मुझे अपने बच्चे की फिक्र है.‘

‘तो क्या मुझे साहिर की फिक्र नहीं है,‘ रिषभ लगभग रो पड़ा था बोलते हुए.

लेकिन मीतू तो जैसे पत्थर की बन गई थी. आज रिषभ का रोना सुन कर भी उस का दिल पिघला नहीं. कहां रिषभ की हलकी सी एक खरोंच भी उस का दिल दुखा देती थी.

रिषभ दरवाजा पीटतेपीटते थक गया तो वापस पलंग पर आ कर बैठ गया. यह क्या डाला था मीतू ने. बीमारी का भय, मौत के डर ने पतिपत्नी के रिश्ते खत्म कर दिया था.

14 दिन कैसे बीते यह रिषभ ही जानता है. मीतू की उपेक्षा को झेलना किसी दंश से कम न था उस के लिए. मीतू उस के साथ ऐसा व्यवहार करेगी, वह सोच भी नहीं सकता था. मौत का डर इंसान को क्या ऐसा बना देता है. जबकि अभी तो यह भी नहीं पूरी तौर से पता नहीं कि वह कोरोना वायरस से संक्रमित है भी या नहीं.

मीतू चाहे बेशक सब एहतियात के तौर पर कर रही हो लेकिन पतिपत्नी के बीच विश्वास, प्यार को एक तरफ रख कर उपेक्षा का जो रवैया अपनाया था, उस ने पतिपत्नी के प्यार को खत्म कर दिया था.

रिषभ कोरोना नेगेटिव निकला पर उन के रिश्ते पर जो नेगेटिविटी आ गई थी उस का क्या.

मीतू दोबारा से रिषभ के करीब आने की कोशिश करती लेकिन रिषभ उस से दूर ही रहता. कोरोना ने उन की जिंदगी को अचानक क्या से क्या बना दिया था. मीतू ने उस दिन दरवाजा लौक नहीं किया था, जिंदगीभर की दोनों की खुशियों को लौक कर दिया था.

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