Romantic Story: धोखा – काश वासना के उस खेल को समझ पाती शशि

Romantic Story: घर में चहलपहल थी. बच्चे खुशी से चहक रहे थे. घर की साजसज्जा और मेहमानों के स्वागतसत्कार का प्रबंध करने में घर के बड़ेबुजुर्ग व्यस्त थे. किंतु शशि का मन उदास था. उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था. दरअसल, आज उस की सगाई थी. घर की महिलाएं बारबार उसे साजश्रृंगार के लिए कह रही थीं लेकिन वह चुपचाप खिड़की से बाहर देख रही थी. उसे कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या करे?

2 महीने पहले जब उस की शादी तय हुई थी तो वह खूब रोई थी. वह किसी और को चाहती थी. लेकिन उस के मातापिता ने उस से पूछे बगैर एक व्यवसायी से उस की शादी पक्की कर दी थी. वह अभी शहर में होस्टल में रह कर बीएड कर रही थी. वहीं अपने साथ पढ़ने वाले राकेश को वह दिल दे बैठी थी. लेकिन उस ने यह बात अपने मातापिता को नहीं बताई थी क्योंकि वह खुद या राकेश अभी अपने पैरों पर खड़े नहीं हो पाए थे. पढ़ाई पूरी होने में भी 2 साल बाकी थे. इसलिए वह चाहती थी कि शादी 2 साल के लिए किसी तरह से रुकवा ले. उस ने सोचा कि जब परिस्थितियां ठीक हो जाएंगी तो मन की बात अपने मातापिता को बता कर राकेश के लिए उन्हें राजी कर लेगी.

इसीलिए, पिछली छुट्टी में वह घर आई तो अपनी शादी की बात पक्की होने की सूचना पा कर खूब रोई थी. शादी के लिए मना कर दिया था, लेकिन किसी ने उस की एक न सुनी. पिताजी तो एकदम भड़क गए और चिल्लाते हुए बोले थे, ‘शादी वहीं होगी जहां मैं चाहूंगा.’ राकेश को उस ने फोन पर ये बातें बताई थीं. वह घबरा गया था. उस ने कहा था, ‘शशि, तुम शादी के लिए मना कर दो.’

‘नहीं, यह इतना आसान नहीं है. पिताजी मानने को तैयार नहीं हैं.’ ‘लेकिन मैं कैसे रहूंगा? अकेला हो जाऊंगा तुम्हारे बिना.’

‘मैं भी तुम्हारे बिना जी नहीं पाऊंगी, राकेश,’ शशि का गला भर आया था. ‘एक काम करो. तुम पहले होस्टल आ जाओ. कोई उपाय निकालते हैं,’ राकेश ने कहा था, ‘मैं रेलवे स्टेशन पर तुम्हारा इंतजार करूंगा. 2 नंबर गेट पर मिलना. वहीं से दोनों होस्टल चलेंगे.’

उदास स्वर में शशि बोली थी, ‘ठीक है. मैं 2 नंबर गेट पर तुम्हारा इंतजार करूंगी.’ तय योजना के अनुसार, शशि रेल से उतर कर 2 नंबर गेट पर खड़ी हो गई. तभी एक कार आ कर शशि के पास रुकी. उस में से राकेश बाहर निकला और शशि के गले लग कर बोला, ‘मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता.’

शशि रोआंसी हो गई. राकेश ने कहा, ‘आओ, गाड़ी में बैठ कर बातें करते हैं.’ ‘राकेश कितना सच्चा है,’ शशि ने सोचा, ‘तभी होस्टल जाने के लिए गाड़ी ले आया. नहीं तो औटो से 20 रुपए में पहुंचती. 2 किलोमीटर दूर है होस्टल.’

गाड़ी में बैठते ही राकेश ने शशि का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, ‘शशि, मैं तुम से प्यार करता हूं. तुम नहीं मिलीं, तो अपनी जान दे दूंगा.’ कार सड़क पर दौड़ने लगी.

शशि बोली, ‘नहीं राकेश, ऐसा नहीं करना. मैं तुम्हारी हूं और हमेशा तुम्हारी ही रहूंगी.’ ‘इस के लिए मैं ने एक उपाय सोचा है,’ राकेश ने कहा.

‘क्या,’ शशि बोली. ‘हम लोग शादी कर लेते हैं और अपनी नई जिंदगी शुरू करते हैं.’

शशि आश्चर्यचकित हो कर बोली, ‘यह क्या कह रहे हो, तुम्हारा दिमाग तो ठीक है न.’ ‘तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है,’ तभी उस ने ड्राइवर से कार रोकने को कहा.

कार एक पुल पर पहुंच गई थी. नीचे नदी बह रही थी. राकेश कार से बाहर आ कर बोला, ‘तुम शादी के लिए हां नहीं कहोगी तो मैं इसी पुल से नदी में कूद कर जान दे दूंगा,’ यह कह कर राकेश पुल की तरफ बढ़ने लगा. ‘यह क्या कर रहे हो, राकेश?’ शशि घबरा गई.

‘तो मैं जी कर क्या करूंगा.’ ‘चलो, मैं तुम्हारी बात मानती हूं. लेकिन जान न दो,’ यह कह कर उस ने राकेश को खींच कर वापस कार में बिठा दिया और खुद भी बगल में बैठ कर बोली, ‘लेकिन यह सब होगा कैसे?’

शशि के हाथों को अपने सीने से लगा कर राकेश बोला, ‘अगर तुम तैयार हो तो सब हो जाएगा. हम दोनों आज ही शादी करेंगे.’ शशि चकित रह गई. इस निर्णय पर वह कांप रही थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे? न कहे तो प्यार टूट जाता और राकेश जान दे देता. हां कहे तो मातापिता, रिश्तेदार और समाज के गुस्से का शिकार बनना पड़ेगा.

‘क्या सोच रही हो?’ राकेश ने पूछा. शशि बोली, ‘यह सब अचानक और इतनी जल्दी ठीक नहीं है, मुझे कुछ सोचनेसमझने का समय तो दो.’

‘इस का मतलब तुम्हें मुझ से प्यार नहीं है. ठीक है, मत करो शादी. मैं भी जिंदा नहीं रहूंगा.’ ‘अरे, यह क्या कर रहे हो? मैं तैयार हूं, लेकिन शादी कोई खेल नहीं है. कैसे शादी होगी. हम कहां रहेंगे? घर के लोग नाराज होंगे तो क्या करेंगे? हमारी पढ़ाई का क्या होगा?’ शशि ने कहा.

‘तुम इस की चिंता मत करो. मैं सब संभाल लूंगा. एक बार शादी हो जाने दो. कुछ दिनों बाद सब मान जाएंगे. वैसे अब हम बालिग हैं. अपने जीवन का फैसला स्वयं ले सकते हैं,’ राकेश ने समझाया. ‘लेकिन मुझे बहुत डर लग रहा है.’

‘मैं हूं न. डरने की क्या बात है?’ ‘चलो, फिर ठीक है. मैं तैयार हूं,’ डरतेडरते शशि ने शादी के लिए हामी भर दी. वह किसी भी कीमत पर अपना प्यार खोना नहीं चाहती थी.

राकेश खुश हो कर बोला, ‘तुम कितनी अच्छी हो.’ थोड़ी देर बाद कार एक होटल के गेट पर रुकी. राकेश बोला, ‘डरो नहीं, सब ठीक हो जाएगा. हम लोग आज ही शादी कर लेंगे, लेकिन किसी को बताना नहीं. शादी के बाद कुछ दिन हम लोग होस्टल में ही रहेंगे. 15 दिनों बाद मैं तुम्हें अपने घर ले चलूंगा. मेरी मां अपनी बहू को देखना चाहती हैं. वे बहुत खुश होंगी.’

‘तो क्या तुम ने अपनी मम्मीपापा को सबकुछ बता दिया?’ ‘नहीं, सिर्फ मम्मी को, क्योंकि मम्मी को गठिया है. ज्यादा चलफिर नहीं पातीं. इसीलिए वे जल्दी बहू को घर लाना चाहती हैं. किंतु पापा नहीं चाहते कि मेरी शादी हो. वे चाहते हैं कि मैं पहले पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ा हो जाऊं, लेकिन वे भी मान जाएंगे फिर हम दोनों की सारी मुश्किलें खत्म हो जाएंगी,’ राकेश बोला.

‘सच, तुम बहुत अच्छे हो.’ ‘तो मेरी प्यारी महबूबा, तुम होटल में आराम करो और हां, इस बैग में तुम्हारी जरूरत की सारी चीजें हैं. तुम रात 8 बजे तक तैयार हो जाना. फिर हम दोनों पास के मंदिर में चलेंगे. वहां शादी कर लेंगे. फिर हम होटल में आ जाएंगे. आज हमारी जिंदगी का सब से खुशी का दिन होगा.’

कुछ प्रबंध करने राकेश बाहर चला गया. शशि उधेड़बुन में थी. उस के कुछ समझ में नहीं आ रहा था. अपने मातापिता को धोखा देने की बात सोच कर उसे बुरा लग रहा था, लेकिन राकेश जिद पर अड़ा था और वह राकेश को खोना नहीं चाहती थी. कब रात के 8 बज गए, पता ही नहीं चला. तभी राकेश आ कर बोला, ‘अरे, अभी तक तैयार नहीं हुई? समय कम है. तैयार हो जाओ. मैं भी तैयार हो रहा हूं.’

‘लेकिन राकेश यह सब ठीक नहीं हो रहा है,’ शशि ने कहा. ‘यदि ऐसा है तो चलो, तुम्हें होस्टल पहुंचा देता हूं. किंतु मुझे हमेशा के लिए भूल जाना. मैं इस दुनिया से दूर चला जाऊंगा. जहां प्यार नहीं, वहां जी कर क्या करना?’ राकेश उदास हो कर बोला.

‘तुम बहुत जिद्दी हो, राकेश. डरती हूं कहीं कुछ बुरा न हो जाए.’ ‘लेकिन मैं किसी कीमत पर अपना प्यार पाना चाहता हूं, नहीं तो…’

‘बस राकेश, और कुछ मत कहो.’ 1 घंटे में तैयार हो कर दोनों पास के एक मंदिर में पहुंच गए. वहां राकेश के कुछ दोस्त पहले से मौजूद थे.

राकेश मंदिर के पुजारी से बोला, ‘पंडितजी, हमारी शादी जल्दी करा दीजिए.’ जल्दी ही शादी की प्रक्रिया पूरी हो गई. शशि और राकेश एकदूसरे के हो गए. शशि को अपनी बाहों में ले कर राकेश बोला, ‘चलो, अब हम होटल चलते हैं. आज की रात वहीं बितानी है.’

दोनों होटल में आ गए. लेकिन यह दूसरा होटल था. शशि को घबराहट हो रही थी. राकेश बोला, ‘चिंता न करो. अब सब ठीक हो जाएगा. आज की रात हम दोनों की खास रात है न.’ शशि मन ही मन डर रही थी, किंतु राकेश को रोक न सकी. फिर उसे भी अच्छा लगने लगा था. दोनों एकदूसरे में समा गए. कब 2 घंटे बीत गए, पता ही नहीं चला.

‘थक गई न. चलो, पानी पी लो और सो जाओ,’ पानी का गिलास शशि की तरफ बढ़ाते हुए राकेश बोला. शशि ने पानी पी लिया. जल्द ही उसे नींद आने लगी. वह सो गई. सुबह जब शशि की नींद खुली तो वह हक्काबक्का रह गई. उस के शरीर पर एक भी वस्त्र नहीं था. उस के मुंह से चीख निकल गई. जब उस ने देखा कि कमरे में राकेश के अलावा 3 और लड़के थे. सब मुसकरा रहे थे.

तभी राकेश बोला, ‘चुप रहो जानेमन, यहां तुम्हारी आवाज सुनने वाला कोई नहीं है. ज्यादा इधरउधर की तो तेरी आवाज को हमेशा के लिए खामोश कर देंगे.’ ‘यह तुम ने अच्छा नहीं किया, राकेश,’ अपने शरीर को ढकने का प्रयास करती हुई शशि रोने लगी, ‘तुम ने मुझे बरबाद कर दिया. मैं सब को बता दूंगी. पुलिस में शिकायत करूंगी.’

‘नहीं, तुम ऐसा नहीं करोगी अन्यथा हम तुम्हें जिंदा नहीं छोड़ेंगे. वैसे ऐसा करोगी तो तुम खुद ही बदनाम होगी,’ कह कर राकेश हंसने लगा. उस के दोस्त भी हंसने लगे. शशि का बदन टूट रहा था. उस के शरीर पर जगहजगह नोचनेखसोटने के निशान थे. वह समझ गई कि रात में पानी में नशीला पदार्थ मिला कर पिलाया था राकेश ने. उस के बेहाश हो जाने पर सब ने उस के साथ…

शशि का रोरो कर बुरा हाल हो गया. राकेश बोला, ‘अब चुप हो जा. जो हो गया उसे भूल जा. इसी में तेरी भलाई है और जल्दी से तैयार हो जा. तुझे होस्टल पहुंचा देता हूं. और हां, किसी से कुछ कहना नहीं वरना अंजाम अच्छा नहीं होगा.’

शशि को अपनी व अपने परिवार की खातिर चुप रहना पड़ा था. ‘‘अरे, खिड़की के बाहर क्या देख रही हो? जल्दी तैयार हो जा. मेहमान आने वाले होंगे,’’ तभी मां ने उसे झकझोरा तो वह पिछली यादों से वर्तमान में लौटी.

‘‘वह प्यार नहीं धोखा था. उस ने अपने मजे के लिए मेरी सचाई और भावना का इस्तेमाल किया,’’ शशि ने मन ही मन सोचा. अपने आंसू पोंछते हुए शशि बाथरूम में घुस गई. उसे अपनी नासमझी पर गुस्सा आ रहा था. अपनी जिंदगी का फैसला उस ने दूसरे को करने का हक दे दिया था जो उस की भलाई के लिए जिम्मेदार नहीं था. इसीलिए ऐसा हुआ, लेकिन अब कभी वह ऐसी भूल नहीं करेगी. मुंह पर पानी के छींटे मार कर वह राकेश के दिए घाव के दर्द को हलका करने की कोशिश करने लगी.

मेहमान आ रहे हैं. अब उसे नई जिंदगी शुरू करनी है. हां, नई जिंदगी…वह जल्दीजल्दी सजनेसंवरने लगी.

Romantic Story: सबक – आखिर कैसे बदल गई निशा?

Romantic Story, Writer- Nima Sharma

सुबह सैर कर के लौटी निशा ने अखबार पढ़ रहे अपने पति रवि को खुशीखुशी बताया, ‘‘पार्क में कुछ दिन पहले मेरी सपना नाम की सहेली बनी है. आजकल उस का अजय नाम के लड़के से जोरशोर के साथ इश्क चल रहा है.’’ ‘‘मुझे यह क्यों बता रही हो?’’ रवि ने अखबार पर से बिना नजरें उठाए पूछा.

‘‘यह सपना शादीशुदा महिला है.’’ ‘‘इस में आवाज ऊंची करने वाली क्या बात है? आजकल ऐसी घटनाएं आम हो गई हैं.’’

‘‘आप को चटपटी खबर सुनाने का कोई फायदा नहीं होता. अभी औफिस में कोई समस्या पैदा हो जाए तो आप के अंदर जान पड़ जाएगी. उसे सुलझाने में रात के 12 बज जाएं पर आप के माथे पर एक शिकन नहीं पड़ेगी. बस मेरे लिए आप के पास न सुबह वक्त है, न रात को,’’ निशा रोंआसी हो उठी. ‘‘तुम से झगड़ने का तो बिलकुल भी वक्त नहीं है मेरे पास,’’ कह रवि ने मुसकराते हुए उठ कर निशा का माथा चूमा और फिर तौलिया ले कर बाथरूम में घुस गया.

निशा ने माथे में बल डाले और फिर सोच में डूबी कुछ पल अपनी जगह खड़ी रही. फिर गहरी सांस खींच कर मुसकराई और रसोई की तरफ चल पड़ी. उस दिन औफिस में रवि को 4 परचियां मिलीं. ये उस के लंच बौक्स, पर्स, ब्रीफकेस और रूमाल में रखी थीं. इन सभी पर निशा ने सुंदर अक्षरों में ‘आईलवयू’ लिखा था.

इन्हें पढ़ कर रवि खुश भी हुआ और हैरान भी क्योंकि निशा की यह हरकत उस की समझ से बाहर थी. उस के मन में तो निशा की छवि एक शांत और खुद में सीमित रहने वाली महिला की थी.

रोज की तरह उस दिन भी रवि को औफिस से लौटने में रात के 11 बज गए. उन चारों परचियों की याद अभी भी उस के दिल को गुदगुदा रही थी. उस ने निशा को अपनी बांहों में भर कर पूछा, ‘‘आज कोई खास दिन है क्या?’’ ‘‘नहीं तो,’’ निशा ने मुसकराते हुए

जवाब दिया. ‘‘फिर वे सब परचियां मेरे सामान में क्यों रखी थीं?’’

‘‘क्या प्यार का इजहार करते रहना गलत है?’’ ‘‘बिलकुल नहीं, पर…’’

‘‘पर क्या?’’ ‘‘तुम ने शादी के 2 सालों में पहले कभी ऐसा नहीं किया, इसलिए मुझे हैरानी हो रही है.’’

‘‘तो फिर लगे हाथ एक नई बात और बताती हूं. आप की शक्ल फिल्म स्टार शाहिद कपूर से मिलती है.’’ ‘‘अरे नहीं. मजाक मत उड़ाओ, यार,’’ रवि एकदम से खुश हो उठा था.

‘‘मैं मजाक बिलकुल नहीं उड़ा रही हूं, जनाब. वैसे मेरा अंदाजा है कि आप बन रहे हो. अब तक न जाने कितनी लड़कियां आप से यह बात कह चुकी होंगी.’’ ‘‘आज तक 1 ने भी नहीं कही है यह बात.’’

‘‘चलो शाहिद कपूर नहीं कहा होगा, पर आप के इस सुंदर चेहरे पर जान छिड़कने वाली लड़कियों की कालेज में तो कभी कमी नहीं रही होगी,’’ निशा ने अपने पति की ठोड़ी बड़े स्टाइल से पकड़ कर उसे छेड़ा. ‘‘मैडम, मेरी दिलचस्पी लड़कियों में नहीं, बल्कि पढ़नेलिखने में थी.’’

‘‘मैं नहीं मानती कि कालेज में आप की कोई खास सहेली नहीं थी. आज तो मैं उस के बारे में सब कुछ जान कर ही रहूंगी,’’ निशा बड़ी अदा से मुसकराई और फिर स्टाइल से चलते हुए चाय बनाने के लिए रसोई में घुस गई. उस दिन से रवि के लिए अपनी पत्नी के बदले व्यवहार को समझना कठिन होता चला

गया था. उस रात निशा ने रवि से उस की गुजरी जिंदगी के बारे में ढेर सारे सवाल पूछे. रवि शुरू में झिझका पर धीरेधीरे काफी खुल गया. उसे पुराने दोस्तों और घटनाओं की चर्चा करते हुए बहुत मजा आ रहा था.

वैसे वह पलंग पर लेटने के कुछ मिनटों बाद ही गहरी नींद में डूब जाता था, लेकिन उस रात सोतेसोते 1 बज गया.

‘‘गुड नाइट स्वीट हार्ट,’’ निशा को खुद से लिपटा कर सोने से पहले रवि की आंखों में उस के लिए प्यार के गहरे भाव साफ नजर आ रहे थे.

अगले दिन निशा सैर कर के लौटी तो उस के हाथ में एक बड़ी सी चौकलेट थी. रवि के सवाल के जवाब में उस ने बताया, ‘‘यह मुझे सपना ने दी है. उस का प्रेमी अजय उस के लिए ऐसी 2 चौकलेट लाया था.’’ ‘‘क्या तुम्हें चौकलेट अभी भी पसंद है?’’

‘‘किसी को चौकलेट दिलवाने का खयाल आना बंद हो जाए, तो क्या दूसरे इंसान की उसे शौक से खाने की इच्छा भी मर जाएगी?’’ निशा ने सवाल पूछने के बाद नाटकीय अंदाज में गहरी सांस खींची और अगले ही पल खिलखिला कर हंस भी पड़ी. रवि ने झेंपे से अंदाज में चौकलेट के कुछ टुकड़े खाए और साथ ही साथ मन में निशा के लिए जल्दीजल्दी चौकलेट लाते रहने का निश्चय भी कर लिया.

‘‘आज शाम को क्या आप समय से लौट सकेंगे?’’ औफिस जा रहे रवि की टाई को ठीक करते हुए निशा ने सवाल किया. ‘‘कोई काम है क्या?’’

‘‘काम तो नहीं है, पर समय से आ गए तो आप का कुछ फायदा जरूर होगा.’’ ‘‘किस तरह का फायदा?’’

‘‘आज शाम को वक्त से लौटिएगा और जान जाइएगा.’’ निशा ने और जानकारी नहीं दी तो मन में उत्सुकता के भाव समेटे रवि को औफिस जाना पड़ा.

मन की इस उत्सुकता ने ही उस शाम रवि को औफिस से जल्दी घर लौटने को मजबूर कर दिया था. उस शाम निशा ने उस का मनपसंद भोजन तैयार किया था. शाही पनीर, भरवां भिंडी, बूंदी का रायता और परांठों के साथसाथ उस ने मेवा डाल कर खीर भी बनाई थी.

‘‘आज किस खुशी में इतनी खातिर कर रही हो?’’ अपने पसंदीदा भोजन को देख कर रवि बहुत खुश हो गया. ‘‘प्यार का इजहार करने का यह क्या बढि़या तरीका नहीं है?’’ निशा ने इतराते हुए पूछा तो रवि ठहाका मार कर हंस पड़ा.

भर पेट खाना खा कर रवि ने डकार ली और फिर निशा से बोला, ‘‘मजा आ गया, जानेमन. इस वक्त मैं बहुत खुश हूं… तुम्हारी किसी भी इच्छा या मांग को जरूर पूरा करने का वचन देता हूं.’’ ‘‘मेरी कोई इच्छा या मांग नहीं है, साहब.’’

‘‘फिर पिछले 2 दिनों से मुझे खुश करने की इतनी ज्यादा कोशिश क्यों की जा रही है?’’ ‘‘सिर्फ इसलिए क्योंकि आप को खुश देख कर मुझे खुशी मिलती है, हिसाबकिताब रख कर काम आप करते होंगे, मैं नहीं.’’ निशा ने नकली नाराजगी दिखाई तो रवि फौरन उसे मनाने के काम में लग गया.

रवि ने मेज साफ करने में निशा का हाथ बंटाया. फिर उसे रसोई में सहयोग दिया. निशा जब तक सहज भाव से मुसकराने नहीं लगी, तब तक वह उसे मनाने का खेल खेलता रहा. उस रात खाना खाने के बाद रवि निशा के साथ कुछ देर छत पर भी घूमा. बड़े लंबे समय के बाद दोनों ने इधरउधर की हलकीफुलकी बातें करते हुए यों साथसाथ समय गुजारा.

अगले दिन रविवार होने के कारण रवि देर तक सोया. सैर से लौट आने के बाद निशा ने चाय बनाने के बाद ही उसे उठाया. दोनों ने साथसाथ चाय पी. रवि ने नोट किया कि निशा लगातार शरारती अंदाज में मुसकराए जा रही है. उस ने पूछ ही लिया, ‘‘क्या आज भी मुझे कोई सरप्राइज मिलने वाला है?’’

‘‘बहुत सारे मिलने वाले हैं,’’ निशा की मुसकान रहस्यमयी हो उठी. ‘‘पहला बताओ न?’’

‘‘मैं ने अखबार छिपा दिया है.’’ ‘‘ऐसा जुल्म न करो, यार. अखबार पढ़े बिना मुझे चैन नहीं आएगा.’’

‘‘आप की बेचैनी दूर करने का इंतजाम भी मेरे पास है.’’ ‘‘क्या?’’

‘‘आइए,’’ निशा ने उस का हाथ पकड़ा और छत पर ले आई. छत पर दरी बिछी हुई थी. पास में सरसों के तेल से भरी बोतल रखी थी. रवि की समझ में सारा माजरा आया तो उस का चेहरा खुशी से खिल उठा और उस ने खुशी से पूछा, ‘‘क्या तेल मालिश करोगी?’’

‘‘यस सर.’’ ‘‘आई लव तेल मालिश.’’ रवि फटाफट कपड़े उतारने लगा.

‘‘ऐंड आईलवयू,’’ निशा ने प्यार से उस का गाल चूमा और फिर अपने कुरते की बाजुएं चढ़ाने लगी.

रवि के लिए वह रविवार यादगार दिन बन गया.

तेल मालिश करातेकराते वह छत पर ही गहरी नींद सो गया. जब उठा तो आलस ने उसे घेर लिया.

‘‘गरम पानी तैयार है, जहांपनाह और आज यह रानी आप को स्नान कराएगी,’’ निशा की इस घोषणा को सुन कर रवि के तनमन में गुदगुदी की लहर दौड़ गई.

रवि तो उसे नहाते हुए ही जी भर कर प्यार करना चाहता था पर निशा ने खुद को उस की पकड़ में आने से बचाते हुए कहा, ‘‘जल्दबाजी से खेल बिगड़ जाता है, साहब.

अभी तो कई सरप्राइज बाकी हैं. प्यार का जोश रात को दिखाना.’’ ‘‘तुम कितनी रोमांटिक…कितनी प्यारी…कितनी बदलीबदली सी हो गई हो.’’

‘‘थैंक यू सर,’’ उस की कमर पर साबुन लगाते हुए निशा ने जरा सी बगल गुदगुदाई तो वह बच्चे की तरह हंसता हुआ फर्श पर लुढ़क गया. निशा ने बाहर खाना खाने की इच्छा जाहिर की तो रवि उसे ले कर शहर के सब

से लोकप्रिय होटल में आ गया. भर पेट खाना खा कर होटल से बाहर आए तो यौन उत्तेजना का शिकार बने रवि ने घर लौटने की इच्छा जाहिर की. ‘‘सब्र का फल ज्यादा मीठा होता है, सरकार. पहले इस सरप्राइज का मजा तो ले लीजिए,’’ निशा ने अपने पर्स से शाहरुख खान की ताजा फिल्म के ईवनिंग शो के 2 टिकट निकाल कर उसे पकड़ाए तो रवि ने पहले बुरा सा मुंह बनाया पर फिर निशा के माथे में पड़े बलों को देख कर फौरन मुसकराने लगा.

निशा को प्यार करने की रवि की इच्छा रात के 10 बजे पूरी हुई. निशा तो कुछ देर पार्क में टहलना चाहती थी, लेकिन अपनी मनपसंद आइसक्रीम की रिश्वत खा कर वह सीधे घर लौटने को राजी हो गई. रवि का मनपसंद सैंट लगा कर जब वह रवि के पास पहुंची तो उस ने अपनी बांहें प्यार से फैला दीं.

‘‘नो सर. आज सारी बातें मेरी पसंद से हुई हैं, तो इस वक्त प्यार की कमान भी आप मुझे संभालने दीजिए. बस, आप रिलैक्स करो और मजा लो.’’ निशा की इस हिदायत को सुन कर रवि ने खुशीखुशी अपनेआपको उस के हवाले कर दिया.

रवि को खुश करने में निशा ने उस रात कोईर् कसर बाकी नहीं छोड़ी. अपनी पत्नी के इस नए रूप को देख कर हैरान हो रहा रवि मस्ती भरी आवाज में लगातार निशा के रंगरूप और गुणों की तारीफ करता रहा. मस्ती का तूफान थम जाने के बाद रवि ने उसे अपनी छाती से लगा कर पूछा, ‘‘तुम इतनी ज्यादा कैसे बदल गईर् हो, जानेमन? अचानक इतनी सारी शोख, चंचल अदाएं कहां से सीख ली हैं?’’

‘‘तुम्हें मेरा नया रूप पसंद आ रहा है न?’’ निशा ने उस की आंखों में प्यार से झांकते

हुए पूछा. ‘‘बहुत ज्यादा.’’

‘‘थैंक यू.’’ ‘‘लेकिन यह तो बताओ कि ट्रेनिंग कहां से ले रही हो?’’

‘‘कोई देता है क्या ऐसी बातों की ट्रेनिंग?’’ ‘‘विवाहित महिला एक पे्रमी बना ले तो उस के अंदर सैक्स के प्रति उत्साह यकीनन बढ़ जाएगा. कम से कम पुरुषों के मामले में तो ऐसा पक्का होता है. कहीं तुम ने भी तो अपनी उस पार्क वाली सहेली सपना की तरह किसी के साथ टांका फिट नहीं कर लिया है?’’

‘‘छि: आप भी कैसी घटिया बात मुंह से निकाल रहे हो?’’ निशा रवि की छाती से और ज्यादा ताकत से लिपट गई, ‘‘मुझ पर शक करोगे तो मैं पहले जैसा नीरस और उबाऊ ढर्रा फिर से अपना लूंगी.’’ ‘‘ऐसा मत करना, जानेमन. मैं तो तुम्हें जरा सा छेड़ रहा था.’’

‘‘किसी का दिल दुखाने को छेड़ना नहीं कहते हैं.’’ ‘‘अब गुस्सा थूक भी दो, स्वीटहार्ट. आज तुम ने मुझे जो भी सरप्राइज दिए हैं, उन के लिए बंदा ‘थैंकयू’ बोलने के साथसाथ एक सरप्राइज भी तुम्हें देना चाहता है.’’

‘‘क्या है सरप्राइज?’’ निशा ने उत्साहित लहजे में पूछा. ‘‘मैं ने तुम्हारी गर्भनिरोधक गोलियां फेंक

दी है?’’ ‘‘क्यों?’’ निशा चौंक पड़ी.

‘‘क्योंकि अब 3 साल इंतजार करने के बजाय मैं जल्दी पापा बनना चाहता हूं.’’ ‘‘सच.’’ निशा खुशी से उछल पड़ी.

‘‘हां, निशा. वैसे तो मैं भी अब ज्यादा से ज्यादा समय तुम्हारे साथ बिताने की कोशिश किया करूंगा, पर अकेलेपन के कारण तुम्हारे सुंदर चेहरे को मुरझाया सा देखना अब मुझे स्वीकार नहीं. मेरे इस फैसले से तुम खुश हो न?’’ निशा ने उस के होंठों को चूम कर अपना जवाब दे दिया.

रवि तो बहुत जल्दी गहरी नींद में सो गया, लेकिन निशा कुछ देर तक जागती रही. वह इस वक्त सचमुच अपनेआप को बेहद खुश व सुखी महसूस कर रही थी. उस ने मन ही मन अपनी सहेली सपना और उस के प्रेमी को धन्यवाद दिया. इन दोनों के कारण ही उस के विवाहित जीवन में आज रौनक पैदा हो गई थी.

पार्क में जानपहचान होने के कुछ दिनों बाद ही अजय ने सपना को अपने प्रेमजाल में फंसाने के प्रयास शुरू कर दिए थे. सपना तो उसे डांट कर दूर कर देती, लेकिन निशा ने उसे ऐसा करने से रोक दिया.

‘‘सपना, मैं देखना चाहती हूं कि वह तुम्हारा दिल जीतने के लिए क्याक्या तरकीबें अपनाता है. यह बंदा रोमांस करने में माहिर है और मैं तुम्हारे जरीए कुछ दिनों के लिए इस की शागिर्दी करना चाहती हूं.’’

निशा की इस इच्छा को जान कर सपना हैरान नजर आने लगी थी. ‘‘पर उस की शागिर्दी कर के तुम्हें हासिल क्या होगा?’’ आंखों में उलझन के भाव लिए सपना ने पूछा.

‘‘अजय के रोमांस करने के नुसखे सीख कर मैं उन्हें अपने पति पर आजमाऊंगी, यार.

उन्हें औफिस के काम के सिवा आजकल और कुछ नहीं सूझता है. उन के लिए कैरियर ही सबकुछ हो गया है. मेरी खुशी व इच्छाएं ज्यादा माने नहीं रखतीं. उन के अंदर बदलाव लाना मेरे मन की सुखशांति के लिए जरूरी हो गया

है, यार.’’ अपनी सहेली की खुशी की खातिर सपना ने अजय के साथ रोमांस करने का नाटक चालू रखा. सपना को अपने प्रेमजाल में फंसाने को वह जो कुछ भी करने की इच्छा प्रकट करता, निशा उसी तरकीब को रवि पर आजमाती.

पिछले दिनों निशा ने रवि को खुश करने के लिए जो भी काम किए थे, वे सब अजय की ऐसी ही इच्छाओं पर आधारित थे. उस ने कुछ महत्त्वपूर्ण सबक भविष्य के लिए भी सीखे थे. ‘विवाहित जीवन में ताजगी, उत्साह और नवीनता बनाए रखने के लिए पतिपत्नी दोनों को एकदूसरे का दिल जीतने के प्रयास 2 प्रेमियों की तरह ही करते रहना चाहिए,’ इस सबक को उस ने हमेशा के लिए अपनी गांठ में बांध लिया.

‘अपने इस मजनू को अब हरी झंडी दिखा दो,’ सपना को कल सुबह यह संदेशा देने की बात सोच कर निशा पहले मुसकराई और फिर सो रहे रवि के होंठों को हलके से चूम कर उस ने खुशी से आंखें मूंद लीं.

Romantic Story: पिया का घर

Romantic Story: कृष्णा अपने घने काले बालों को बाहर बालकनी में खड़ी हो कर सुलझ रही थी. उस की चाय जैसी भूरी रंगत को उस के बाल केश और अधिक मादक बनाते थे. शादी के 10 साल बाद भी नमन उतना ही दीवाना था जितना पहले साल था. नमन का प्यार उस की सहेलियों के बीच ईर्ष्या का विषय था. पर कभीकभी सत्य के व्यवहार से कृष्णा के मन में संशय भी होता था कि क्या यह प्यार है या दिखावा?

कुल मिला कर जिंदगी की गाड़ी ठीकठाक चल रही थी. छोटा सा परिवार था कृष्णा का, पति नमन और बेटी विहा. परंतु कुछ माह से कृष्णा ने महसूस किया था कि नमन देर रात को घर आने लगा है. जब भी कृष्णा पूछती, वह यही बोलता कि तुम्हारे और विहा के लिए खट रहा हूं, नहीं तो मेरे लिए दो रोटियां भी काफी हैं.

मगर कृष्णा के मन को फिर भी ऐसा लगता था कि कहीं कुछ तो गलत है. अभी भी बाहर बाल सुखाते हुए कृष्णा के मन में यही सब चल रहा था कि बाहर दरवाजे पर घंटी बजी. दरवाजा खोला देखा तो सामने नमन खड़ा था.

इस से पहले कृष्णा कुछ बोलती, नमन बोला, ‘‘अरे उदयपुर जा रहा हूं, 5 दिनों के लिए. इसलिए सोचा कि आज पूरा दिन अपनी बेगम के साथ बिताया जाए,’’ और फिर नमन ने 2 पैकेट पकड़ाए.

कृष्णा ने खोल कर देखे, ‘‘एक में बहुत सुंदर जैकेट थी और दूसरे में एक ट्रैक सूट.’’

कृष्णा मुसकराते हुए बोली, ‘‘अच्छा हरजाना भर रहे हो, नए साल पर यहां न होने का.’’

नमन उदास होते हुए बोला, ‘‘बस कृष्णा 2 साल और, फिर बस मेरे सारे समय पर तुम्हारा ही हक होगा.’’

कृष्णा रसोई में चाय बनाते हुए सोच रही थी कि नमन आखिर परिवार के लिए सब कर रहा है और वह है कि शक करती रहती है.

शाम को पूरा परिवार विहा के पसंदीदा होटल में डिनर करने गया था, लौंग ड्राइव करी और बाद में कृष्णा का पसंदीदा पान और विहा की आइसक्रीम. रात में कृष्णा ने नमन के करीब जाना चाहा तो वह बोला, ‘‘कृष्णा थक गया हूं, प्लीज आज नहीं.’’

कृष्णा मन मसोस कर बोली, ‘‘यह तुम पिछले 7 महीनों से कह रहे हो.’’

नमन बोला, ‘‘यार वर्क प्रैशर इतना है, क्या करूं? वापस आ कर डाक्टर के पास चलते हैं… शायद काम की अधिकता के कारण मेरी पौरुष शक्ति कम हो गई है.’’

नमन गहरी नींद में डूब गया और कृष्णा सोच रही थी कि कहीं नमन की क्षुधा कहीं और तो पूरी नहीं हो रही है. पर उस का मन यह मानने को तैयार नहीं था.

सुबह नमन एअरपोर्ट के लिए निकल गया और कृष्णा विहा के साथ शौपिंग करने निकल गई. घर आ कर विहा अपनी चीजों में व्यस्त थी और कृष्णा ने अपना मोबाइल उठाया तो देखा, उस में नमन के मैसेज थे कि वह एअरपोर्ट पहुंच गया है और अब उदयपुर पहुंच कर कौल करेगा.

कृष्णा फोन रख ही रही थी कि उस ने देखा कि किसी सिद्धार्थ के मैसेज थे. उस ने उत्सुकतावश मैसेंजर खोला, तो मैसेज पढ़ कर उस के होश उड़ गए.

सिद्धार्थ के हिसाब से नमन उदयपुर नहीं, नोएडा के लैमन राइस होटल में पूजा नाम की महिला के साथ रंगरलियां मना रहा है.

कृष्णा को लगा कि शायद कोई उस के साथ मजाक कर रहा है, इसलिए उस ने लिखा, ‘‘कैसे विश्वास करूं कि तुम सच बोल रहे हो?’’

उधर से जवाब आया, ‘‘रूम नंबर 204, सैक्टर 62, होटल लैमन राइस, नोएडा,’’

पूरी रात कृष्णा अनमनी सा रही. नमन का फोन आया वह बता रहा था कि उस ने कृष्णा के लिए लाल रंग की बंधेज खरीदी हैं और विहा के लिए जयपुरी घाघरा…

फोन रख कर कृष्णा को लगा कि वह कितना गलत सोच रही थी, सत्य के बारे में दोपहर में कृष्णा मैसेंजर पर सिद्धार्थ को ब्लौक करने ही वाली थी कि उस ने देखा, 3 फोटो थे, जो सिद्धार्थ ने भेजे थे. 3 फोटोज में एक औरत, नमन के साथ खड़ी मुसकरा रही थी. अच्छा तो इस का नाम पूजा है. कजरारी आंखें, होंठों पर लाल लिपस्टिक और लाल बंदेज की साड़ी. क्या अपनी महबूबा की उतरन ही उसे नमन पहनाता है.

सुबह कृष्णा, विहा को साथ ले कर मेरठ से नोएडा के लिए निकल गई. वह अब दुविधा में नहीं रहना चाहती थी. नोएडा में वह अपने मम्मीपापा के घर पहुंची. पता चला मम्मीपापा तो गांव गए हुए हैं. कृष्णा के भैया बोले, ‘‘अरे अचानक और सत्य कहां है?’’

कृष्णा बोली, ‘‘भैया आप की बहुत याद आ रही थी, बस चली आई और कल मेरे कुछ पुराने दोस्तों का नोएडा में गैटटुगैदर है. सोचा आप लोगों से मिल भी लूंगी और दोस्तों से भी.’’

सुबह नाश्ता कर के कृष्णा धड़कते दिल के साथ होटल पहुंची. कृष्णा रिसैप्शन पर पहुंची ही थी कि सामने से आती नमन और पूजा दिखाई दे गए थे. नमन का चेहरा सफेद पड़ गया पर फिर भी बेशर्मी से बोला, ‘‘तुम यहां क्या कर रही हो?’’

कृष्णा आंसू पीते हुए बोली, ‘‘तुम्हें घर लेने आई हूं.’’

नमन बोला, ‘‘मैं कोई दूध पीता बच्चा नहीं हूं… घर का रास्ता पता है मु?ो.’’

कृष्णा पूजा की तरफ गुस्से से देखते हुए बोली, ‘‘तो ये हैं आप का जरूरी काम जो तुम उदयपुर करने गए थे.’’

नमन भी बिना झिझक के बोला, ‘‘हां यह पूजा… मेरे साथ मेरे बिजनैस में मदद करती है. कल ही हम उदयपुर से आए हैं और आज तो मैं मेरठ पहुंच कर तुम्हें सरप्राइज देने वाला था.’’

कृष्णा बिना कुछ कहे दनदनाते हुए अपने घर चली गई. जब भैया और भाभी ने पूरी बात सुनी तो भाभी बोली, ‘‘अरे ऐसी औरतों के लिए अपना घर छोड़ने की गलती मत करना. कल मैं तुम्हें गुरुजी के पास ले कर जाऊंगी, तुम चिंता मत करो.’’

अगले दिन जब कृष्णा, अपनी भाभी के साथ वहां पहुंची तो गुरुजी ने बिना कुछ कहे ही जैसे उस के मन का हाल जान लिया.

कृष्णा को भभूति देते हुए गुरुजी ने कहा, ‘‘अपने पति के खाने में मिला देना. कम से कम 1 माह तक ऐसा करोगी तो उस औरत का काला जादू उतर जाएगा. उस औरत ने तुम्हारे पति पर वशीकरण मंत्र कर रखा है… जब वह वापस आए तो कुछ मत कहना. गुरुवार को केले के पेड़ की पूजा करो और शुक्रवार को पूरी निष्ठा से उपवास करना.’’

जब कृष्णा अगले दिन मेरठ जाने के लिए निकली तो भाभी बोली, ‘‘कृष्णा, मम्मीपापा से इस बात का जिक्र मत करना. तुम यह उपाय करोगी तो समस्या का समाधान अवश्य होगा, थोड़ा धीरज से काम लेना.’’

कृष्णा वापस घर आ गई और ठीक दूसरे दिन नमन भी आ गया था. न नमन ने कोई सफाई दी न कृष्णा ने कोई सवाल किया. घर का माहौल थोड़ा घुटाघुटा सा था पर कृष्णा को विश्वास था कि वह पति को सही रास्ते पर ले आएगी.

रोज चाय या खाने में कृष्णा भभूति डाल कर देने लगी थी. नमन अब समय पर घर आने लगा था. कृष्णा को लगा शायद गुरुजी के उपाय काम कर रहे हैं.

उधर नमन एक पहुंचा हुआ खिलाड़ी था. वह शिकार तो अब भी कर रहा था पर  अब उस ने खेलने का तरीका बदल दिया था. अब वह घर से ही अपनी महिलामित्रों को फोन करने लगा था. जब कृष्णा कुछ कहती तो वह उसे अपनी बातों में उलझ लेता. कृष्णा को अपनी बुद्धि से अधिक भभूति और व्रत पर विश्वास था. वह सबकुछ जान कर भी आंखें मूंदे हुए थी. पर एक रोज तो हद हो गई जब बड़ी बेशर्मी से नमन, कृष्णा के सामने ही पूजा से वीडियो कौल कर रहा था.

कृष्णा अपनाआपा खो बैठी और गुस्से से उस के हाथ से फोन छीनते हुए बोली, ‘‘तुम ने सारी हदें पार कर दी हैं. मेरा नहीं तो कम से कम विहा के बारे में तो सोचो. क्या कमी है मु?ा में?’’

नमन खींसें निपोरते हुए बोला, ‘‘तुम्हारे अंदर अब न वह हुस्न है न वह मादकता रही है. एक ठंडी लाश के साथ मैं कैसे अपनी शारीरिक जरूरतें पूरी करूं? शुक्र करो मैं तुम्हारे सारे खर्च उठा रहा हूं और अपने नाम के साथ तुम्हारा नाम जोड़ रखा है… और क्या चाहिए तुम्हें?’’

कृष्णा गुस्से में बोली, ‘‘क्या तुम्हें लगता है मैं अनाथ हूं या सड़क पर पड़ी हुई लड़की हूं? मेरे पापा और भाई अभी जिंदा हैं. वह तो मैं तुम्हारी इज्जत के कारण अब तक चुप थी. अब अगर तुम चाहोगे तो भी वे तुम्हें मेरे करीब नहीं फटकने देंगे.’’

नमन बोला, ‘‘अगर तुम्हारे करीब फटकना होता तो मैं क्या बाहर जाता?’’

अब कृष्णा बरदाश्त नहीं कर पाई और रात में ही विहा को ले कर मम्मीपापा के घर  नोएडा आ गई. अब कृष्णा के पास और कोई उपाय नहीं था. उसे अपने मम्मीपापा को सब बताना पड़ा. मम्मी और पापा सब सुन कर सन्नाटे में आ गए.

पूरी बात सुन कर भैया आग बबूला हो गए, ‘‘कृष्णा तुम ने बिलकुल ठीक किया, अब तुम वापस नहीं जाओगी. विहा और तुम मेरी जिम्मेदारी हो.’’

मगर यह बात सुनते ही भाभी के चेहरे पर चिंता की लकीर खिंच गई. एकाएक बोल उठी, ‘‘अरे तुम कैसी पागलों जैसी बातें कर रहे हो? कोई ऐसे अपना घर छोड़ सकता है क्या? फिर आज की नहीं, कल की सोचो, विहा और कृष्णा की पूरी जिंदगी का सवाल है. कृष्णा तो नौकरी भी नहीं करती कि अपना और विहा का खर्च उठा सके.’’

भैया बोले, ‘‘अरे तो इस घर पर उस का भी बराबरी का हक है.’’

भाभी उस के आगे कुछ न बोल सकी पर वह भैया की इस बात से नाखुश है, यह बात कृष्णा को पता थी. दिन हफ्तों में और हफ्ते महीनों में परिवर्तित हो गए पर नमन की तरफ से कोई पहल नहीं हुई. कृष्णा को सम?ा नहीं आ रहा था कि उस का फैसला सही है या गलत. विहा की बु?ा आंखें और मम्मीपापा की खामोशी सब कृष्णा को कचोटते थे.

भैया ने कह तो दिया था कि वह भी इस घर की संपत्ति में बराबर की हकदार है पर कृष्णा में इतना हौसला नहीं था कि वह इस हक के लिए खड़ी हो पाए.

एक दिन कृष्णा अपने पापा से बुटीक खोलने के बारे में बात कर रही थी. तभी मम्मी हाथ जोड़ते हुए बोलीं, ‘‘बेटी, क्यों हमारा बुढ़ापा खराब करने पर तुली हुई है? अगर तेरे पापा ने तु?ो पैसा दिया तो बहू को अच्छा नहीं लगेगा… हमारे बुढ़ापे का सहारा तो वही है. मैं ने आज नमन से बात करी थी, वह बोल रहा है तुम अपनी मरजी से घर छोड़ कर गई हो और अपनी मरजी से वापस आ सकती हो.’’

कृष्णा बहुत ठसक से घर छोड़ कर आई थी पर किस मुंह से वापस जाए वह सम?ा नहीं पा रही थी. मगर भैया का तनाव, भाभी का अबोला सबकुछ कृष्णा को सोचने पर मजबूर कर रहा था.

पहले हफ्ते जो विहा पूरे घर की आंखों का तारा थी वह अब सब के लिए बेचारी बन कर रह गई थी. एक दिन कृष्णा ने देखा कि भैया के बच्चे गोगी और टिम्सी, पिज्जा के लिए जिद कर रहे थे. विहा बोली, ‘‘टिम्सी मेरे लिए तो डबल चीज मंगवाना.’’

गोगी बोला, ‘‘ये नखरे अपने पापा के घर करना, अब जो मंगवाया है उसी में काम चलाओ.’’

कितनी बार कृष्णा ने गोगी और टिम्सी को छिपछिप कर बादाम, आइसक्रीम  और चौकलेट खाते देखा था. विहा एकदम बु?ा गई थी, उस ने जिद करना बिलकुल छोड़ दी थी. कृष्णा ने बहुत छोटीबड़ी जगह नौकरी के लिए आवेदन भी किया पर कहीं सफलता नहीं मिली. हर तरफ से थकहार के कृष्णा ने गुरुजी को फोन किया.

गुरुजी ने बोला, ‘‘इस अमावस्या पर अगर वह अपने पिया के घर जाएगी तो सब ठीक हो जाएगा.’’

कृष्णा ने जब यह फैसला अपने परिवार को सुनाया तो भाभी एकदम से चहकने लगी, ‘‘अरे कृष्णा तुम ने बिलकुल सही किया, बच्चे को मम्मी और पापा दोनों की जरूरत होती है. तुम क्यों किसी तितली के लिए अपना घर छोड़ती हो. तुम रानी हो उस घर की और उसी सम्मान के साथ रहना.’’

कृष्णा मन ही मन जानती थी कि वह रानी नहीं पर एक अनचाही मेहमान है इस घर की और एक अनचाहा सामाजिक रिश्ता है पिया के घर का.

अगले दिन कृष्णा जब अपने सामान समेत घर पहुंची तो नमन ने विहा को तो खूब दुलारा, परंतु कृष्णा को देख कर व्यंग्य से मुसकरा उठा.

अब नमन को पूरी आजादी थी. उसे अच्छी तरह समझ आ गया था कि अब कृष्णा के पास पिया के घर के अलावा कोई और रास्ता नहीं है. वह जब चाहे आता और जब चाहे जाता था… जो एक आंखों की शर्म थी वह अब नहीं रही थी. खुलेआम वह कमरे में ही बैठ कर अपनी गर्ल फ्रैंड्स से बातें करता था जो कभीकभी अश्लीलता की सीमा भी लांघ जाती थीं.

कृष्णा से जब नमन का व्यवहार सहन नहीं होता था तो वह बाहर आ कर बालकनी में खड़ी हो जाती थी. उस दिन भी खड़ी हुई तो कहीं दूर यह गाना चल रहा था:

‘‘पिया का घर, रानी हूं मैं…’’

गाने के बोल के साथसाथ कृष्णा की आंखों से आंसू भी टपटप बह रहे थे.

Romantic Story: पर्सनल स्पेस – क्यों नेहा के पास जाने को बेताब हो उठा मोहित?

Romantic Story: आज औफिस में मैं बिलकुल भी ढंग से काम नहीं कर सका था. इस कारण बौस से तो कई बार डांट खानी पड़ी ही, सहयोगियों के साथ भी झड़प हो गई थी.

आखिर में तंग आ कर मैं ने औफिस से1 घंटा पहले जाने की अनुमति बौस से मांगी, तो उन्होंने तीखे शब्दों में मुझ से कहा, ‘‘मोहित, आज सारा दिन तुम ने कोई भी काम ढंग से नहीं किया है. मुझे छोटीछोटी बातों पर

किसी को डांटना अच्छा नहीं लगता. मुझे उम्मीद है कि कल तुम्हारा चेहरा मुझे यों लटका हुआ नहीं दिखेगा.’’

‘‘बिलकुल नहीं दिखेगा, सर,’’ ऐसा वादा कर मैं उन के कक्ष से बाहर आ गया.

औफिस से निकल कर मैं मोटरसाइकिल से बाजार जाने को निकल पड़ा. मुझे अपनी पत्नी नेहा के लिए कोई अच्छा सा गिफ्ट लेना था.

हमारी शादी को अभी 4 महीने ही हुए हैं. वह मेरे सुख व खुशियों का बहुत ध्यान रखती है. मेरी पसंद पूछे बिना मजाल है वह कोई काम कर ले.

पिछले गुरुवार को उस का यही प्यार भरा व्यवहार मुझे ऐसा खला कि मैं ने उसे शादी के बाद पहली बार बहुत जोर से डांट दिया था.

उस दिन हमें रवि की शादी की पहली सालगिरह की पार्टी में जाना था. जगहजगह टै्रफिक जाम मिलने के कारण मुझे औफिस से घर पहुंचने में पहले ही देर हो गई थी. ऊपर से ये देख कर मेरा गुस्सा बढ़ने लगा कि नेहा समय से तैयार होना शुरू करने की बजाय मेरे घर पहुंचने का इंतजार कर रही थी.

‘‘इन में से मैं कौन सी साड़ी पहनूं, यह तो बता दो?’’ आदत के अनुरूप उस ने इस मामले में भी मेरी पसंद जाननी चाही थी.

‘‘नीली साड़ी पहन लो,’’ अपना व उस का मूड खराब करने से बचने के लिए मैं ने अपनी आवाज में गुस्से के भाव पैदा नहीं होने दिए थे.

‘‘मुझे लग रहा है कि मैं ने इसे तब भी पहना था, जब हम रवि के घर पहली बार डिनर करने गए थे.’’

‘‘तो कोई दूसरी साड़ी पहन लो.’’

‘‘आप प्लीज बताओ न कि कौन सी पहनूं?’’

इस बार मेरे सब्र का बांध टूट गया और मैं उस पर जोर से चिल्ला उठा, ‘‘यार, तुम जल्दी तैयार होने के बजाय फालतू की बातें करने में समय बरबाद क्यों कर रही हो? हर काम करने से पहले मेरी जान खाने की बजाय तुम अपनेआप फैसला क्यों नहीं करतीं कि क्या किया जाए, क्या न किया जाए? मुझे ऐसा बचकाना व्यवहार बिलकुल अच्छा नहीं लगता है.’’

पार्टी में पहुंच कर उस का मूड पूरी तरह से ठीक हो गया, पर मेरा मूड उस के चिपकू व्यवहार के कारण खराब बना रहा.

रवि मेरा कालेज का दोस्त है. उस पार्टी में शामिल होने कालेज के और भी बहुत से दोस्त आए थे. मैं कुछ समय अपने इन पुराने दोस्तों के साथ बिताना चाहता था, पर नेहा मेरा हाथ छोड़ने को तैयार ही नहीं थी.

कुछ देर के लिए जब वह फ्रैश होने गई, तब मैं अपने दोस्तों के पास पहुंच गया था. मेरे दोस्त मौका नहीं चूके और नेहा का चिपकू व्यवहार मेरी खिंचाई का कारण बन गया था.

मुंहफट सुमित ने मेरा मजाक उड़ाते हुए कह भी दिया, ‘‘अबे मोहित, ऐसा लगता है कि तू ने तो किसी थानेदारनी के साथ शादी कर ली है. नेहा भाभी तो तुझे बिलकुल पर्सनल स्पेस नहीं देती हैं.’’

‘‘शायद मोहित शादी के बाद भी हर सुंदर लड़की के साथ इश्क लड़ाने को उतावला रहता होगा, तभी भाभी इस की इतनी जबरदस्त चौकीदारी करती हैं,’’ कुंआरे नीरज के इस मजाक पर सभी दोस्तों ने एकसाथ ठहाका लगाया था.

अपने मन की खीज को काबू में रखते हुए मैं ने जवाब दिया, ‘‘वह थानेदारनी नहीं बल्कि बहुत डिवोटिड वाइफ है. तुम सब अंदाजा भी नहीं लगा सकते कि वह कितनी केयरिंग और घर संभालने में कितनी कुशल है.’’

‘‘अपना यार तो बेडि़यों को ही आभूषण समझने लगा है,’’ नीरज के इस मजाक पर जब दोस्तों ने एक और जोरदार ठहाका लगाया, तो मैं मन ही मन नेहा से चिढ़ उठा था.

पार्टी में हमारे साथ पढ़ी सीमा भी मौजूद थी. वह कुछ दिनों के लिए मुंबई से यहां मायके में अकेली रहने आई थी. पति के साथ न होने के कारण वह खूब खुल कर कालेज के पुराने दोस्तों से हंसबोल रही थी. मेरे मन में उस के ऊपर डोरे डालने जैसा कोई खोट नहीं था, पर कुछ देर उस के साथ हलकेफुलके अंदाज में फ्लर्ट करने का मजा मैं जरूर लेना चाहता था.

नेहा के हर समय चिपके रहने के कारण मैं उस के साथ कुछ देर भी मस्ती भरी गपशप नहीं कर सका. अपने सारे दोस्तों को उस के साथ खूब ठहाके लगाते देख मेरा मन खिन्न हो उठा.

मुझे थोड़ा सा भी समय अपने ढंग से जीने के लिए नहीं मिल रहा है, मेरे मन में इस शिकायत की जड़ें पलपल मजबूत होती चली गई थीं.

मैं खराब मूड के साथ पार्टी से घर लौटा था. मेरे माथे पर खिंची तनाव की रेखाएं देख कर नेहा ने मुझ से पूछा, ‘‘क्या सिर में दर्द हो रहा है?’’

‘‘हां, मुझे भयंकर सिरदर्द हो रहा है, पर तुम सिर दबाने की बात मुंह से निकालना भी मत,’’ मैं ने रूखे लहजे में जवाब दिया.

‘‘मैं सिर दबा दूंगी तो आप की तबीयत जल्दी ठीक हो जाएगी,’’ मेरी रुखाई देख कर उस का चेहरा फौरन उतर सा गया था.

‘‘मुझे सिरदर्द जल्दी ठीक नहीं करना है. अब तुम मेरा सिर खाना बंद करो, क्योंकि मैं कुछ देर शांति से अकेले बैठना चाहता हूं. मुझे खुशी व सुकून से जीने के लिए पर्सनल स्पेस चाहिए, यह बात तुम जितनी जल्दी समझ लोगी उतना अच्छा रहेगा,’’ मैं उस के ऊपर जोर से गुर्राया, तो वह आंसू बहाती हुई मेरे सामने से हट गई थी.

अगले दिन मैं ने उस के साथ ढंग से बात नहीं की. वह रात को मुझ से लिपट कर सोने लगी, तो मैं ने उसे दूर धकेला और करवट बदल ली. मुझे उस का अपने साथ चिपक कर रहना फिलहाल बिलकुल बरदाश्त नहीं हो रहा था.

अगले दिन शनिवार की सुबह मैं जब औफिस जाने को घर से निकलने लगा, तब उस ने मुझ से दुखी व उदास लहजे में कहा था, ‘‘आपस का प्यार बढ़ाने के लिए पर्सनल स्पेस की नहीं, बल्कि प्यार भरे साथ की जरूरत होती है. मैं आप से दूर नहीं रह सकती, क्योंकि आप के साथ मैं कितना भी हंसबोल लूं, पर मेरा मन नहीं भरता है. आज अपने भाई के साथ मैं कुछ दिनों के लिए मायके रहने जा रही हूं. मेरी अनुपस्थिति में आप जी भर कर पर्सनल स्पेस का मजा ले लेना.’’

मैं ने उसे रुकने के लिए एक बार भी नहीं कहा, क्योंकि मैं सचमुच कुछ दिनों के लिए अपने ढंग से अकेले जीना चाहता था.

नेहा से मिली आजादी का फायदा उठाने के लिए मैं ने उस दिन औफिस खत्म होने के बाद अपने दोस्त नीरज को फोन किया. उस ने फौरन मुझे अपने घर आने की दावत दे दी, क्योंकि वह मुफ्त की शराब पीने को हमेशा ही तैयार रहता था.

हम दोनों ने उस के ड्राइंगरूम में बैठ कर शराब पी. हमारी महफिल सजने के कारण उस की पत्नी कविता का मूड खराब नजर आ रहा था, पर हम दोनों ने अपनी मस्ती के चलते इस बात की फिक्र नहीं की.

शराब खत्म हो जाने के बाद मुझे मालूम पड़ा कि मेरा दोस्त बदल चुका था. नीरज ने कविता के डर के कारण मुझे डिनर कराए बिना ही घर से विदा कर दिया.

मैं ने बाहर से बर्गर खाया और घर लौट कर नीरज को मन ही मन ढेर सारी गालियां देता पलंग पर ढेर हो गया.

पार्टी के दिन सीमा से खुल कर हंसीमजाक न कर पाने की बात अभी भी मेरे मन में अटकी हुई थी. इतवार की सुबह मैं ने रवि से उस का फोन नंबर ले कर उस के साथ लंच करने का कार्यक्रम बना लिया.

हम 12 बजे एक चाइनीज रेस्तरां में मिले. पहले मैं ने उसे बढि़या लंच कराया और फिर हम बाजार में घूमने लगे. उस की खनकती हंसी और बातें करने का दिलकश अंदाज लगातार मेरे मन को गुदगुदाए जा रहा था.

कुछ देर बाद मैं ने उस से पूछा, ‘‘क्या हम मैटनी शो देखने चलें?’’

‘‘नहीं,’’ उस ने अपनी आंखों में शरारत भर कर जवाब दिया.

‘‘क्यों मना कर रही हो?’’ मैं ने हंसते हुए पूछा.

‘‘हाल के अंधेरे में तुम अपने हाथों को काबू में नहीं रख पाओगे.’’

‘‘मैं वादा करता हूं कि बिलकुल शरीफ बच्चा बन कर फिल्म देखूंगा.’’

‘‘सौरी मोहित, शादी के बाद तुम्हें नेहा के प्रति वफादार रहना चाहिए.’’

उस का यह वाक्य मेरे मन को बुरी तरह चुभ गया. मैं ने उस से चिढ़ कर पूछा, ‘‘क्या तुम अपने पति के प्रति वफादार हो?’’

‘‘मैं उन के प्रति पूरी तरह से वफादार हूं,’’ उस का इतरा कर यह जवाब देना मेरी चिढ़ को और ज्यादा बढ़ा गया.

‘‘फिर मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि अगर मैं जरा सी भी कोशिश करूं, तो तुम मेरे साथ सोने को राजी हो जाओगी.’’

‘‘शटअप.’’ उस ने मुझे चिढ़ कर डांटा, तो मैं उस का मजाक उड़ाने वाले अंदाज में हंस पड़ा था.

मेरे खराब व्यवहार के लिए उस ने मुझे माफ नहीं किया और कुछ मिनट बाद जरूरी काम होने का बहाना बना कर चली गई. मुझे उस के चले जाने का अफसोस तो नहीं हुआ, पर मन अजीब सी उदासी का शिकार जरूर हो गया.

मैं ने अकेले ही फिल्म देखी और बाद में देर रात तक बाजार में अकारण घूमता रहा. उस रात भी मैं ढंग से सो नहीं सका, क्योंकि नेहा की याद बहुत सता रही थी. बारबार उस से फोन पर बातें करने की इच्छा हो रही थी, पर उस के साथ गलत व्यवहार करने के अपराधबोध ने ऐसा नहीं करने दिया.

सोमवार को औफिस में दिन गुजारना मेरे लिए मुश्किल हो गया था. काम में मन न लगने के कारण बौस से कई बार डांट खाई. जब वहां रुकना बेहद कठिन हो गया, तो बौस से इजाजत ले कर मैं घंटा भर पहले औफिस से बाहर आ गया था.

औफिस से निकलने के घंटे भर बाद मैं ने नेहा को फोन कर के उलाहना दिया, ‘‘तुम इतनी ज्यादा निर्मोही कैसे हो गई हो? आज दिन भर फोन कर के मेरा हालचाल क्यों नहीं पूछा?’’

‘‘मैं ने तो आप की नाराजगी व डांट के डर से फोन नहीं किया,’’ उस की आवाज का कंपन बता रहा था कि मेरी आवाज सुन कर वह भावुक हो उठी थी.

‘‘तुम्हारा फोन आने से मैं नाराज क्यों होऊंगा?’’

‘‘मैं फोन करती तो आप जरूर डांट कर कहते कि मैं मायके में रह कर भी आप को चैन से जीने नहीं दे रही हूं.’’

‘‘मैं पागल हूं, जो तुम्हें अकारण डांटूंगा. मुझे लगता है कि मायके पहुंच कर तुम्हें मेरा ध्यान ही नहीं आया.’’

‘‘जिस के अंदर मेरी जान बसती है, उस का ध्यान मुझे कैसे नहीं आएगा?’’

‘‘तो वापस कब आओगी?’’

‘‘आप आज लेने आ जाओगे, तो आज ही साथ चल चलूंगी.’’

‘‘मैं तो आ गया हूं.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मतलब यह कि दरवाजा क्यों नहीं खोल रही है, पगली?’’

‘‘क्या बारबार घंटी आप बजा रहे हो?’’

‘‘दरवाजा खोल कर देख लो न मेरी जान.’’

‘‘मैं अभी आई.’’

उस की उतावलेपन व खुशी से भरी आवाज सुन कर मैं जोर से हंस पड़ा था.

दरवाजा खोल कर जब नेहा ने मुझे फूलों का बहुत सुंदर सा गुलदस्ता हाथ में लिए खड़ा देखा, तो उस का चेहरा खुशी से खिल उठा. अपना उपहार स्वीकार करने के बाद वह मेरी छाती से लिपट कर खुशी के आंसू बहाने लगी.

मुझे इस समय उस की वह बात ध्यान आ रही थी, जो उस ने मायके आने से पहले कही थी, ‘आपस का प्यार बढ़ाने के लिए पर्सनल स्पेस की नहीं, बल्कि प्यार भरे साथ की जरूरत होती है. मैं आप से दूर नहीं रह सकती, क्योंकि आप के साथ मैं कितना भी हंसबोल लूं, पर मेरा मन नहीं भरता है.’

मैं ने उस का माथा चूम कर भावुक लहजे में कहा, ‘‘मेरी समझ में यह आ गया

है कि तुम्हारे अलावा मेरी जिंदगी में खुशियां भरने की किसी के पास फुरसत नहीं है. मुझे अपनी जिंदगी में पर्सनल स्पेस नहीं, बल्कि तुम्हारा प्यार भरा साथ चाहिए. भविष्य में मेरी बातों का बुरा मान कर फिर कभी मुझे अकेला मत छोड़ना.’’

‘‘कभी नहीं छोड़ूंगी.’’ अपनी मम्मी की उपस्थिति की परवाह न करते हुए उस ने मेरे होंठों पर छोटा सा चुंबन अंकित किया और फिर शरमा भी गई.

उस ने कुछ देर बाद ही मेरे साथ सट कर बैठते हुए ढेर सारे सवाल पूछने शुरू कर दिए. मुझे उस के सवालों का जवाब देने में अब कोई परेशानी महसूस नहीं हो रही थी. उस से दूर रहने के मेरे अनुभव इतने घटिया रहे थे कि मेरे सिर से पर्सनल स्पेस में जीने का भूत पूरी तरह से उतर गया था.

Romantic Story: प्यार के मायने – निधि को किस ने सिखाया प्यार का सही मतलब?

Romantic Story: उससे मेरा कोई खास परिचय नहीं था. शादी से पहले जिस औफिस में काम करती थी, वहीं था वह. आज फ्रैंच क्लास अटैंड करते वक्त उस से मुलाकात हुई. पति के कहने पर अपने फ्री टाइम का सदुपयोग करने के विचार से मैं ने यह क्लास जौइन की थी.

‘‘हाय,’’ वह चमकती आंखों के साथ अचानक मेरे सामने आ खड़ा हुआ.

मैं मुसकरा उठी, ‘‘ओह तुम… सो नाइस टु मीट यू,’’ नाम याद नहीं आ रहा था मुझे उस का. उस ने स्वयं अपना नाम याद दिलाया, ‘‘अंकित, पहचाना आप ने?’’

‘‘हांहां, बिलकुल, याद है मुझे.’’

मैं ने यह बात जाहिर नहीं होने दी कि मुझे उस का नाम भी याद नहीं.

‘‘और सब कैसा है?’’ उस ने पूछा.

‘‘फाइन. यहीं पास में घर है मेरा. पति आर्मी में हैं. 2 बेटियां हैं, बड़ी 7वीं कक्षा में और छोटी तीसरी कक्षा में पढ़ती है.’’

‘‘वाह ग्रेट,’’ वह अब मेरे साथ चलने लगा था, ‘‘मैं 2 सप्ताह पहले ही दिल्ली आया हूं. वैसे मुंबई में रहता हूं. मेरी कंपनी ने 6 माह के प्रोजैक्ट वर्क के लिए मुझे यहां भेजा है. सोचा, फ्री टाइम में यह क्लास भी जौइन कर लूं.’’

‘‘गुड. अच्छा अंकित, अब मैं चलती हूं. यहीं से औटो लेना होगा मुझे.’’

‘‘ओके बाय,’’ कह वह चला गया.

मैं घर आ गई. अगले 2 दिनों की छुट्टी ली थी मैं ने. मैं घर के कामों में पूरी तरह व्यस्त रही. बड़ी बेटी का जन्मदिन था और छोटी का नए स्कूल में दाखिला कराना था.

2 दिन बाद क्लास पहुंची तो अंकित फिर सामने आ गया, ‘‘आप 2 दिन आईं नहीं. मुझे लगा कहीं क्लास तो नहीं छोड़ दी.’

‘‘नहीं, घर में कुछ काम था.’

वह चुपचाप मेरे पीछे वाली सीट पर बैठ गया. क्लास के बाद निकलने लगी तो फिर मेरे सामने आ गया, ‘‘कौफी?’’

‘‘नो, घर जल्दी जाना है. बेटी आ गई होगी, और फिर पति आज डिनर भी बाहर कराने वाले हैं,’’ मैं ने उसे टालनाचाहा.

‘‘ओके, चलिए औटो तक छोड़ देता हूं,’’ वह बोला.

मुझे अजीब लगा, फिर भी साथ चल दी. कुछ देर तक दोनों खामोश रहे. मैं सोच रही थी, यह तो दोस्ती की फिराक में है, जब कि मैं सब कुछ बता चुकी हूं. पति हैं, बच्चे हैं मेरे. आखिर चाहता क्या है?

तभी उस की आवाज सुनाई दी, ‘‘आप को किरण याद है?’’

‘‘हां, याद है. वही न, जो आकाश सर की पीए थी?’’

‘‘हां, पता है, वह कनाडा शिफ्ट हो गई है. अपनी कंपनी खोली है वहां. सुना है किसी करोड़पति से शादी की है.’’

‘‘गुड, काफी ब्रिलिऐंट थी वह.’’

‘‘हां, मगर उस ने एक काम बहुत गलत किया. अपने प्यार को अकेला छोड़ कर चली गई.’’

‘‘प्यार? कौन आकाश?’’

‘‘हां. बहुत चाहते थे उसे. मैं जानता हूं वे किरण के लिए जान भी दे सकते थे. मगर आज के जमाने में प्यार और जज्बात की कद्र ही कहां होती है.’’

‘‘हूं… अच्छा, मैं चलती हूं,’’ कह मैं ने औटो वाले को रोका और उस में बैठ गई.

वह भी अपने रास्ते चला गया. मैं सोचने लगी, आजकल बड़ी बातें करने लगा है, जबकि पहले कितना खामोश रहता था. मैं और मेरी दोस्त रिचा अकसर मजाक उड़ाते थे इस का. पर आज तो बड़े जज्बातों की बातें कर रहा है. मैं मन ही मन मुसकरा उठी. फिर पूरे रास्ते उस पुराने औफिस की बातें ही सोचती रही. मुझे समीर याद आया. बड़ा हैंडसम था. औफिस की सारी लड़कियां उस पर फिदा थीं. मैं भी उसे पसंद करती थी. मगर मेरा डिवोशन तो अजीत की तरफ ही था. यह बात अलग है किअजीत से शादी के बाद एहसास हुआ कि 4 सालों तक हम ने मिल कर जो सपने देखे थे उन के रंग अलगअलग थे. हम एकदूसरे के साथ तो थे, पर एकदूसरे के लिए बने हैं, ऐसा कम ही महसूस होता था. शादी के बाद अजीत की बहुत सी आदतें मुझे तकलीफ देतीं. पर इंसान जिस से प्यार करता है, उस की कमियां दिखती कहां हैं?

शादी से पहले मुझे अजीत में सिर्फ अच्छाइयां दिखती थीं, मगर अब सिर्फ रिश्ता निभाने वाली बात रह गई थी. वैसे मैं जानती हूं, वे मुझे अब भी बहुत प्यार करते हैं, मगर पैसा सदा से उन के लिए पहली प्राथमिकता रही है. मैं भी कुछ उदासीन सी हो गई थी. अब दोनों बच्चियों को अच्छी परवरिश देना ही मेरे जीवन का मकसद रह गया था.

अगले दिन अंकित गेट के पास ही मिल गया. पास की दुकान पर गोलगप्पे खा रहा था. उस ने मुझे भी इनवाइट किया पर मैं साफ मना कर अंदर चली गई.

क्लास खत्म होते ही वह फिर मेरे पास आ गया, ‘‘चलिए, औटो तक छोड़ दूं.’’

‘‘हूं,’’ कह मैं अनमनी सी उस के साथ चलने लगी.

उस ने टोका, ‘‘आप को वे मैसेज याद हैं, जो आप के फोन में अनजान नंबरों से आते थे?’’

‘‘हां, याद हैं. क्यों? तुम्हें कैसे पता?’’ मैं चौंकी.

‘‘दरअसल, आप एक बार अपनी फ्रैंड को बता रही थीं, तो कैंटीन में पास में ही मैं भी बैठा था. अत: सब सुन लिया. आप ने कभी चैक नहीं किया कि उन्हें भेजता कौन है?’’

‘‘नहीं, मेरे पास इन फुजूल बातों के लिए वक्त कहां था और फिर मैं औलरैडी इंगेज थी.’’

‘‘हां, वह तो मुझे पता है. मेरे 1-2 दोस्तों ने बताया था, आप के बारे में. सच आप कितनी खुशहाल हैं. जिसे चाहा उसी से शादी की. हर किसी के जीवन में ऐसा कहां होता है? लोग सच्चे प्यार की कद्र ही नहीं करते या फिर कई दफा ऐसा होता है कि बेतहाशा प्यार कर के भी लोग अपने प्यार का इजहार नहीं कर पाते.’’

‘‘क्या बात है, कहीं तुम्हें भी किसी से बेतहाशा प्यार तो नहीं था?’’ मैं व्यंग्य से मुसकराई तो वह चुप हो गया.

मुझे लगा, मेरा इस तरह हंसना उसे बुरा लगा है. शुरू से देखा था मैं ने. बहुत भावुक था वह. छोटीछोटी बातें भी बुरी लग जाती थीं. व्यक्तित्व भी साधारण सा था. ज्यादातर अकेला ही रहता. गंभीर, मगर शालीन था. उस के 2-3 ही दोस्त थे. उन के काफी करीब भी था. मगर उसे इधरउधर वक्त बरबाद करते या लड़कियों से हंसीमजाक करते कभी नहीं देखा था.

मैं थोड़ी सीरियस हो कर बोली, ‘‘अंकित, तुम ने बताया नहीं है,’’ तुम्हारे कितने बच्चे हैं और पत्नी क्या करती है?

‘‘मैडम, आप की मंजिल आ गई, उस ने मुझे टालना चाहा.’’

‘‘ठीक है, पर मुझे जवाब दो.’’

मैं ने जिद की तो वह मुसकराते हुए बोला, ‘‘मैं ने अपना जीवन एक एनजीओ के बच्चों के नाम कर दिया है.’’

‘‘मगर क्यों? शादी क्यों नहीं की?’’

‘‘क्योंकि हर किसी की जिंदगी में प्यार नहीं लिखा होता और बिना प्यार शादी को मैं समझौता मानता हूं. फिर समझौता मैं कभी करता नहीं.’’

वह चला गया. मैं पूरे रास्ते उसी के बारे में सोचती रही. मैं पुराने औफिस में अपनी ही दुनिया में मगन रहती थी. उसे कभी अहमियत नहीं दी. मैं उस के बारे में और जानने को उत्सुक हो रही थी. मुझे उस की बातें याद आ रही थीं. मैं सोचने लगी, उस ने मैसेज वाली बात क्यों कही? मैं तो भूल भी गई थी. वैसे वे मैसेज बड़े प्यारे होते थे. 3-4 महीने तक रोज 1 या 2 मैसेज मुझे मिलते, अनजान नंबरों से. 1-2 बार मैं ने फोन भी किया, मगर कोई जवाब नहीं मिला.

घर पहुंच कर मैं पुराना फोन ढूंढ़ने लगी. स्मार्ट फोन के आते ही मैं ने पुराने फोन को रिटायर कर दिया था. 10 सालों से वह फोन मेरी अलमारी के कोने में पड़ा था. मैं ने उसे निकाल कर उस में नई बैटरी डाली और बैटरी चार्ज कर उसे औन किया. फिर उन्हीं मैसेज को पढ़ने लगी. उत्सुकता उस वक्त भी रहती थी और अब भी होने लगी कि ये मैसेज मुझे भेजे किस ने थे? जरूर अंकित इस बारे में कुछ जानता होगा, तभी बात कर रहा था. फिर मैं ने तय किया कि कल कुरेदकुरेद कर उस से यह बात जरूर उगलवाऊंगी.

पर अगले 2-3 दिनों तक अंकित नहीं आया. मैं परेशान थी. रोज बेसब्री से उस का इंतजार करती. चौथे दिन वह दिखा.मुझ से रहा नहीं गया, तो मैं उस के पास चली गई. फिर पूछा, ‘‘अंकित, इतने दिन कहां थे?’’

वह चौंका. मुझे करीब देख कर थोड़ा सकपकाया, फिर बोला, ‘‘तबीयत ठीक नहीं थी.’’

‘‘तबीयत तो मेरी भी कुछ महीनों से ठीक नहीं रहती.’’

‘‘क्यों, क्या हुआ?’’ उस ने चिंतित स्वर में पूछा.

‘‘बस किडनी में कुछ प्रौब्लम है.’’

‘‘अच्छा, तभी आप के चेहरे पर थकान और कमजोरी सी नजर आती है. मैं सोच भी रहा था कि पहले जैसी रौनक चेहरे पर नहीं दिखती.’’

‘‘हां, दवा जो खा रही हूं,’’ मैं ने कहा.

फिर सहज ही मुझे मैसेज वाली बात याद आई. मैं ने पूछा, ‘‘अच्छा अंकित, यह बताओ कि वे मैसेज कौन भेजता था मुझे? क्या तुम जानते हो उसे?’’

वह मेरी तरफ एकटक देखते हुए बोला, ‘‘हां, असल में मेरा एक दोस्त था. बहुत प्यार करता था आप से पर कभी कह नहीं पाया. और फिर जानता भी था कि आप की जिंदगी में कोई और है, इसलिए कभी मिलने भी नहीं आया.’’

‘‘हूं,’’ मैं ने लंबी सांस ली, ‘‘अच्छा, अब कहां है तुम्हारा वह दोस्त?’’

वह मुसकराया, ‘‘अब निधि वह इस दुनिया की भीड़ में कहीं खो चुका है और फिर आप भी तो अपनी जिंदगी में खुश हैं. आप को परेशान करने वह कभी नहीं आएगा.’’

‘‘यह सही बात है अंकित, पर मुझे यह जानने का हक तो है कि वह कौन है और उस का नाम क्या है’’

‘‘वक्त आया तो मैं उसे आप से मिलवाने जरूर लाऊंगा, मगर फिलहाल आप अपनी जिंदगी में खुश रहिए.’’

मैं अंकित को देखती रह गई कि यह इस तरह की बातें भी कर सकता है. मैं मुसकरा उठी. क्लास खत्म होते ही अंकित मेरे पास आया और औटो तक मुझे छोड़ कर चला गया.

उस शाम तबीयत ज्यादा बिगड़ गई. 2-3 दिन मैं ने पूरा आराम किया. चौथे दिन क्लास के लिए निकली तो बड़ी बेटी भी साथ हो ली. उस की छुट्टी थी. उसी रास्ते उसे दोस्त के यहां जाना था. इंस्टिट्यूट के बाहर ही अंकित दिख गया. मैं ने अपनी बेटी का उस से परिचय कराते हुए बेटी से कहा, ‘‘बेटा, ये हैं आप के अंकित अंकल.’’

तभी अंकित ने बैग से चौकलेट निकाला और फिर बेटी को देते हुए बोला, ‘‘बेटा, देखो अंकल आप के लिए क्या लाए हैं.’’

‘‘थैंक्यू अंकल,’’ उस ने खुशी से चौकलेट लेते हुए कहा, ‘‘अंकल, आप को कैसे पता चला कि मैं आने वाली हूं?’’

‘‘अरे बेटा, यह सब तो महसूस करने की बात है. मुझे लग रहा था कि आज तुम मम्मी के साथ आओगी.’’

वह मुसकरा उठी. फिर हम दोनों को बायबाय कह कर अपने दोस्त के घर चली गई. हम अपनी क्लास में चले गए.

अंकित अब मुझे काफी भला लगने लगा था. किसी को करीब से जानने के बाद ही उस की असलियत समझ में आती है. अंकित भी अब मुझे एक दोस्त की तरह ट्रीट करने लगा, मगर हमारी बातचीत और मुलाकातें सीमित ही रहीं. इधर कुछ दिनों से मेरी तबीयत ज्यादा खराब रहने लगी थी. फिर एक दिन अचानक मुझे हौस्पिटल में दाखिल होना पड़ा. सभी जांचें हुईं. पता चला कि मेरी एक किडनी बिलकुल खराब हो गई है. दूसरी तो पहले ही बहुत वीक हो गई थी, इसलिए अब नई किडनी की जरूरत थी. मगर मुझ से मैच करती किडनी मिल नहीं रही थी. सब परेशान थे. डाक्टर भी प्रयास में लगे थे. एक दिन मेरे फोन पर अंकित की काल आई. उस ने मेरे इतने दिनों से क्लास में न आने पर हालचाल पूछने के लिए फोन किया था. फिर पूरी बात जान उस ने हौस्पिटल का पता लिया. मुझे लगा कि वह मुझ से मिलने आएगा, मगर वह नहीं आया. सारे रिश्तेदार, मित्र मुझ से मिलने आए थे. एक उम्मीद थी कि वह भी आएगा. मगर फिर सोचा कि हमारे बीच कोई ऐसी दोस्ती तो थी नहीं. बस एकदूसरे से पूर्वपरिचित थी, इसलिए थोड़ीबहुत बातचीत हो जाती थी. ऐसे में यह अपेक्षा करना कि वह आएगा, मेरी ही गलती थी.

समय के साथ मेरी तबीयत और बिगड़ती गई. किडनी का इंतजाम नहीं हो पा रहा था. फिर एक दिन पता चला कि किडनी डोनर मिल गया है. मुझे नई किडनी लगा दी गई. सर्जरी के बाद कुछ दिन मैं हौस्पिटल में ही रही. थोड़ी ठीक हुई तो घर भेज दिया गया. फ्रैंच क्लासेज पूरी तरह छूट गई थीं. सोचा एक दफा अंकित से फोन कर के पूछूं कि क्लास और कितने दिन चलेंगी. फिर यह सोच कर कि वह तो मुझे देखने तक नहीं आया, मैं भला उसे फोन क्यों करूं, अपना विचार बदल दिया. समय बीतता गया. अब मैं पहले से काफी ठीक थी. फिर भी पूरे आराम की हिदायत थी. एक दिन शाम को अजीत मेरे पास बैठे हुए थे कि तभी फ्रैंच क्लासेज का जिक्र हुआ. अजीत ने सहसा ही मुझ से पूछा, ‘‘क्या अंकित तुम्हारा गहरा दोस्त था? क्या रिश्ता है तुम्हारा उस से?’’

‘‘आप ऐसा क्यों पूछ रहे हैं?’’ मैं ने चौंकते हुए कहा.

‘‘अब ऐसे तो कोई अपनी किडनी नहीं देता न. किडनी डोनर और कोई नहीं, अंकित नाम का व्यक्ति था. उस ने मुझे बताया कि वह तुम्हारे साथ फ्रैंच क्लास में जाता है और तुम्हें अपनी एक किडनी देना चाहता है. तभी से यह बात मुझे बेचैन किए हुए है. बस इसलिए पूछ लिया.’’ अजीत की आंखों में शक साफ नजर आ रहा था. मैं अंदर तक व्यथित हो गई, ‘‘अंकित सचमुच केवल क्लासफैलो था और कुछ नहीं.’’

‘‘चलो, यदि ऐसा है, तो अच्छा वरना अब क्या कहूं,’’ कह कर वे चले गए. पर उन का यह व्यवहार मुझे अंदर तक बेध गया कि क्या मुझे इतनी भी समझ नहीं कि क्या गलत है और क्या सही? किसी के साथ भी मेरा नाम जोड़ दिया जाए.

मैं बहुत देर तक परेशान सी बैठी रही. कुछ अजीब भी लग रहा था. आखिर उस ने मुझे किडनी डोनेट की क्यों? दूसरी तरफ मुझ से मिलने भी नहीं आया. बात करनी होगी, सोचते हुए मैं ने अंकित का फोन मिलाया, मगर उस ने फोन काट दिया. मैं और ज्यादा चिढ़ गई. फोन पटक कर सिर पकड़ कर बैठ गई.

तभी अंकित का मैसेज आया, ‘‘मुझे माफ कर देना निधि. मैं आप से बिना मिले चला आया. कहा था न मैं ने कि दीवानों को अपने प्यार की खातिर कितनी भी तकलीफ सहनी मंजूर होती है. मगर वे अपनी मुहब्बत की आंखों में तकलीफ नहीं सह सकते, इसलिए मिलने नहीं आया.’’

मैं हैरान सी उस का यह मैसेज पढ़ कर समझने का प्रयास करने लगी कि वह कहना क्या चाहता है. मगर तभी उस का दूसरा मैसेज आ गया, ‘‘आप से वादा किया था न मैं ने कि उस मैसेज भेजने वाले का नाम बताऊंगा. दरअसल, मैं ही आप को मैसेज भेजा करता था. मैं आप से बहुत प्यार करता हूं. आप जानती हैं न कि इनसान जिस से प्यार करता है उस के आगे बहुत कमजोर महसूस करने लगता है. बस यही समस्या है मेरी. एक बार फिर आप से बहुत दूर जा रहा हूं. अब बुढ़ापे में ही मुलाकात करने आऊंगा. पर उम्मीद करता हूं, इस दफा आप मेरा नाम नहीं भूलेंगी, गुडबाय.’’ अंकित का यह मैसेज पढ़ कर मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं मुसकराऊं या रोऊं. अंदर तक एक दर्द मेरे दिल को बेध गया था. सोच रही थी, मेरे लिए ज्यादा गहरा प्यार किस का है, अजीत का, जिन्हें मैं ने अपना सब कुछ दे दिया फिर भी वे मुझ पर शक करने से नहीं चूके या फिर अंकित का, जिसे मैं ने अपना एक पल भी नहीं दिया, मगर उस ने आजीवन मेरी खुशी चाही.

Romantic Story: खेल खेल में

Romantic Story: शिखा के पास उस समय नीरज भी खड़ा था जब अनिता ने उस से कहा, ‘‘मैं ने तुम्हारी मम्मी को फोन कर के उन से इजाजत ले ली है.’’

‘‘किस बात की?’’ शिखा ने चौंक कर पूछा.

‘‘आज रात तुम मेरे घर पर रुकोगी.

कल रविवार की शाम मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ आऊंगी.’’

‘‘कोई खास मौका है क्या?’’

‘‘नहीं. बस, बहुत दिनों से किसी के साथ दिल की बातें शेयर नहीं की हैं. तुम्हारे साथ जी भर कर गपशप कर लूंगी, तो मन हलका हो जाएगा. मैं लंच के बाद चली जाऊंगी. तुम शाम को सीधे मेरे घर आ जाना.’’

नीरज ने वार्त्तालाप में हिस्सा लेते हुए कहा, ‘‘अनिता, मैं शिखा को छोड़ दूंगा.’’

‘‘इस बातूनी के चक्कर में फंस कर ज्यादा लेट मत हो जाना,’’ कह कर अनिता अपनी सीट पर चली गई.

औफिस के बंद होने पर शिखा नीरज के साथ उस की मोटरसाइकिल पर अनिता के घर जाने को निकली.

‘‘कल 11 बजे पक्का आ जाना,’’ नीरज ने शिखा को अनिता के घर के बाहर उतारते हुए कहा.

‘‘ओके,’’ शिखा ने मुसकरा कहा.

अनिता रसोई में व्यस्त थी. शिखा उन किशोर बच्चों राहुल और रिचा के साथ गपशप करने लगी. अनिता के पति दिनेश साहब घर पर उपस्थित नहीं थे. अनिता उसे बाजार ले गई. वहां एक रेडीमेड कपड़ों की दुकान में घुस गई. अनिता और दुकान का मालिक एकदूसरे को नाम ले कर संबोधित कर रहे थे. इस से शिखा ने अंदाजा लगाया कि दोनों पुराने परिचित हैं.

‘‘दीपक, अपनी इस सहेली को मुझे एक बढि़या टीशर्ट गिफ्ट करनी है. टौप क्वालिटी की जल्दी से दिखा दो,’’ अनिता ने मुसकराते हुए दुकान के मालिक को अपनी इच्छा बताई.

शिखा गिफ्ट नहीं लेना चाहती थी, पर अनिता ने उस की एक न सुनी. दीपक खुद अनिता को टीशर्ट पसंद कराने के काम में दिलचस्पी ले रहा था. अंतत: उन्होंने एक लाल रंग की टीशर्ट पसंद कर ली.

शिखा के लिए टीशर्ट के अलावा अनिता ने रिचा और राहुल के लिए भी कपड़े खरीदे फिर पति के लिए नीले रंग की कमीज खरीदी.

दुकान से बाहर आते हुए शिखा ने मुड़ कर देखा तो पाया कि दीपक टकटकी बांधे उन दोनों को उदास भाव से देख रहा है. शिखा ने अनिता को छेड़ा, ‘‘मुझे तो दाल में काला नजर आया है, मैडम. क्या यह दीपक साहब आप के कभी प्रेमी रहे हैं?’’

‘‘प्रेमी नहीं, कभी अच्छे दोस्त थे… मेरे भी और मेरे पति के भी. इस विषय पर कभी बाद में विस्तार से बताऊंगी. पतिदेव घर पहुंच चुके होंगे.’’

‘‘अच्छा, यह तो बता दीजिए कि आज क्या खास दिन है?’’

‘‘घर पहुंच कर बताऊंगी,’’ कह कर अनिता ने रिकशा किया और घर आ गईं.

वे घर पहुंचीं तो दिनेश साहब उन्हें ड्राइंगरूम में बैठे मिले. शिखा को देख कर उन के होंठों पर उभरी मुसकान अनिता के हाथ में लिफाफों को देख फौरन गायब हो गई.

‘‘तुम दीपक की दुकान में क्यों घुसीं?’’ कह कर उन्होंने अनिता को आग्नेय दृष्टि से देखा.

‘‘मैं शिखा को अच्छी टीशर्ट खरीदवाना चाहती थी. दीपक की दुकान पर सब से

अच्छा सामान…’’

‘‘मेरे मना करने के बावजूद तुम्हारी हिम्मत कैसे हो गई उस की दुकान में कदम रखने की?’’ पति गुस्से से दहाड़े.

‘‘मुझ से गलती हो गई,’’ अनिता ने मुसकराते हुए अपने हाथ जोड़ दिए, ‘‘आज के दिन तो आप गुस्सा न करो.’’

‘‘आज का दिन मेरी जिंदगी का सब से मनहूस दिन है,’’ कह कर गुस्से से भरे दिनेशजी अपने कमरे में चले गए.

‘‘मैडम, जब आप को मना किया गया था तो आप क्यों गईं दीपक की दुकान पर?’’

आंखों में आंसू भर कर अनिता ने उदास लहजे में जवाब दिया, ‘‘आज मैं तुम्हें 10 साल पुरानी घटना बताती हूं जिस ने मेरे विवाहित जीवन की सुखशांति को नष्ट कर डाला. मैं कुसूरवार न होते हुए भी सजा भुगत रही हूं, शिखा.

‘‘दीपक का घर पास में ही है. खूब आनाजाना था हमारा एकदूसरे के यहां. दिनेश साहब जब टूर पर होते, तब मैं अकसर उन के यहां चली जाती थी.

‘‘दीपक मेरे साथ हंसीमजाक कर लेता था. इस का न कभी दिनेश साहब ने बुरा माना, न दीपक की पत्नी ने, क्योंकि हमारे मन में खोट नहीं था.

‘‘एक शाम जब मैं दीपक के घर पहुंची, तो वह घर में अकेला था. पत्नी अपने दोनों बच्चों को ले कर पड़ोसी के यहां जन्मदिन समारोह में शामिल होने गई थी.’’

अपने गालों पर ढलक आए आंसुओं को पोंछने के बाद अनिता ने आगे बताया, ‘‘दीपक अकेले में मजाक करते हुए कभीकभी रोमांटिक हो जाता था. मैं सारी बात को खेल की तरह से लेती क्योंकि मेरे मन में रत्ती भर खोट नहीं था.

‘‘दीपक ने भी कभी सभ्यता और शालीनता की सीमाओं को नहीं तोड़ा था.

‘‘दिनेश साहब टूर पर गए हुए थे. उन्हें अगले दिन लौटना था, पर वे 1 दिन पहले

लौट आए.

‘‘मेरी सास ने जानकारी दी कि मैं दीपक के घर गई हूं. वह तो सारा दिन वहीं पड़ी रहती है. ऐसी झूठी बात कह कर उन्होंने दिनेश साहब के मन में हम दोनों के प्रति शक का बीज बो दिया.

‘‘उस शाम दीपक मुझे पियक्कड़ों की बरात की घटनाएं सुना कर खूब हंसा रहा था. फिर अचानक उस ने मेरी प्रशंसा करनी शुरू कर दी. वह पहले भी ऐसा कर देता था, पर उस शाम खिड़की के पास खड़े दिनेश साहब ने सारी बातें सुन लीं.

‘‘उस शाम से उन्होंने मुझे चरित्रहीन मान लिया और दीपक से सारे संबंध तोड़ लिए. और… और… मैं अपने माथे पर लगे उस झूठे कलंक के धब्बे को आज तक धो नहीं पाई हूं, शिखा.’’

‘‘यह तो गलत बात है, मैडम. दिनेश साहब को आप की बात सुन कर अपने मन से गलतफहमी निकाल देनी चाहिए थी,’’ शिखा ने हमदर्दी जताई.

‘‘वे मुझे माफ करने को तैयार नहीं हैं. वे मेरे बड़े हो रहे बच्चों के सामने कभी भी मुझे चरित्रहीन होने का ताना दे कर बुरी तरह शर्मिंदा कर देते हैं.’’

‘‘यह तो उन की बहुत गलत बात है, मैडम.’’

‘‘मैं खुद को कोसती हूं शिखा कि मुझे खेलखेल में भी दीपक को बढ़ावा नहीं देना  चाहिए था. मेरी उस भूल ने मुझे सदा के लिए अपने पति की नजरों से गिरा दिया है.’’

‘‘जब आप को पता था कि दिनेश साहब बहुत गुस्सा होंगे, तब आप दीपक की दुकान पर क्यों गईं?’’

शिखा के इस सवाल के जवाब में अनिता खामोश रह उस की आंखों में अर्थपूर्ण अंदाज में झांकने लगी.

कुछ पल खामोश रहने के बाद शिखा सोचपूर्ण लहजे में बोली, ‘‘मुझे दिनेश साहब का गुस्सा… उन की नफरत दिखाने के लिए आप जानबूझ कर दीपक की दुकान से खरीदारी कर के लाई हैं न? मेरी आंखें खोलने के लिए आप ने यह सब किया है न?’’

‘‘हां, शिखा,’’ अनिता ने झुक कर शिखा का माथा चूम लिया, ‘‘मैं नहीं चाहती कि तुम नीरज के साथ प्रेम का खतरनाक खेल खेलते हुए मेरी तरह अपने पति की नजरों में हमेशा के लिए गिर जाओ.’’

‘‘मेरे मन में उस के प्रति कोई गलत भाव नहीं है, मैडम.’’

‘‘मैं भी दीपक के लिए ऐसा ही सोचती थी. देखो, तुम्हारा पति भी दिनेश साहब की तरह गलतफहमी का शिकार हो सकता है. तब खेलखेल में तुम भी अपने विवाहित जीवन की खुशियां खो बैठोगी.

‘‘तुम अपने पति से नाराज हो कर मायके में रह रही हो. यों दूर रहने के कारण पति के मन में पत्नी के चरित्र के प्रति शक ज्यादा आसानी से जड़ पकड़ लेता है. पति के प्यार का खतरा उठाने से बेहतर है ससुराल वालों की जलीकटी बातें और गलत व्यवहार सहना. तुम फौरन अपने पति के पास लौट जाओ, शिखा,’’ अत्यधिक भावुक हो जाने से अनिता का गला रुंध गया.

‘‘मैं लौट जाऊंगी,’’ शिखा ने दृढ़ स्वर में अपना फैसला सुनाया.

‘‘तुम्हारा कल नीरज से मिलने का कार्यक्रम है…’’

‘‘हां.’’

‘‘उस का क्या करोगी?’’

शिखा ने पर्स में से अपना मोबाइल निकाल कर उसे बंद कर कहा, ‘‘आज से यह खतरनाक खेल बिलकुल बंद. उस की झूठीसच्ची प्रशंसा अब मुझे गुमराह नहीं कर पाएगी.’’

‘‘मुझे बहुत खुशी है कि जो मैं तुम्हें समझाना चाहती थी, वह तुम ने समझ लिया,’’ अपनी उदासी को छिपा कर अनिता मुसकरा उठी.

‘‘मुझे समझाने के चक्कर में आप तो परेशानी में फंस गईं?’’ शिखा अफसोस से भर उठी.

‘‘लेकिन तुम तो बच गईं. चलो, खाना खाएं.’’

‘‘आप को शादी की सालगिरह की शुभकामनाएं और कामना करती हूं कि दिनेश साहब की गलतफहमी जल्दी दूर हो और आप उन का प्यार फिर से पा जाएं.’’

‘‘थैंक यू,’’ शिखा की नजरों से अपनी आंखों में भर आए आंसुओं को छिपाने के लिए अनिता रसोई की तरफ चल दी.

शिखा का मन उन के प्रति गहरे धन्यवादसहानुभूति के भाव से भर उठा था.

Romantic Story: बेनाम रिश्ता – क्या किशन के दिल में अमृता के लिए प्यार था?

Romantic Story: अपने विवाह के बाद किसी रिश्तेदार के विवाह समारोह में मेरा जाना हुआ. वहां जा कर मैं ने देखा कि तमाम रिश्तेदारों के साथसाथ मेरी चचेरी भाभी भी आई हुई थीं. उन से मेरा 40 वर्षों बाद मिलना हुआ था. रात को भोजन के बाद मैं भाभी के पास बैठी उन से बातें कर रही थी.

उन्होंने बताया कि चाचा की मृत्यु के तुरंत बाद ही वे ससुराल छोड़ कर अपने इकलौते बेटे व बहू के साथ अपने मायके लखनऊ जा कर बस गईर् थीं.

मैं बहुत ध्यान से उन की बातें सुन रही थी और साथ ही साथ विस्तार से जानने की जिज्ञासा भी प्रकट कर रही थी.

उन्होंने आगे बताया कि उन का भाई किशन भी लखनऊ में अपने पैतृक मकान में परिवार सहित रह कर पुश्तैनी व्यवसाय संभाल रहा था.

इतना सुनने के बाद मेरे लिए आगे कुछ और जानने की जिज्ञासा का कोई औचित्य नहीं था, क्योंकि वे मेरे और किशन के रिश्ते से अनभिज्ञ नहीं थीं. मेरी आंखों के सामने एक धुंधला सा चेहरा तैर गया, जो वक्त के बहाव में धूमिल होतेहोते मिट सा गया था. मैं नहीं चाहती थी कि मेरे मन में जो चल रहा है, उस को मेरे चेहरे के भाव से भाभी पढ़ लें, इसलिए मैं आंखें बंद कर के सोने का उपक्रम करने लगी और उन से विदा ले कर अपने कमरे में चली आई. दिनभर की भागदौड़ से थकी होने के कारण तुरंत ही मैं सो गई.

तमाम मेहमानों के साथ भाभी ने भी विदा ली. जातेजाते वे अपना मोबाइल नंबर देना और मेरा लेना नहीं भूलीं. इस मुलाकात ने हमारी आत्मीयता को पुनर्जीवित कर दिया था. मैं दिल्ली

लौट आई और अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गई.

मुझे आए हुए 20 दिन बीते कि एक दिन मेरा मन भाभी से बात करने को हुआ, लेकिन यह सोच कर टाल दिया कि कहीं किशन भी आसपास न बैठा हो. मैं बुझी हुई आग को दोबारा सुलगाना नहीं चाहती थी. लेकिन फिर भी परोक्षरूप से उस से संपर्क करने की इच्छा का ही तो परिणाम था कि मैं उन से बात करना चाह रही थी.

अभी 3 दिन ही बीते कि अचानक अपने मोबाइल में एक मैसेज और उस को भेजने वाले का नाम पढ़ कर मैं बुरी तरह चौक गई. जो मैं नहीं चाहती थी, वही हुआ. भाभी के भाई किशन का मैसेज था, ‘‘कैसी हो अमृता,’’ मैसेज पढ़ते हुए मैं ने अपने चारों और ऐसे देखा, जैसे मैं कोई चोरी कर रही हूं.

मेरे मन में अजीब सी हलचल होने लगी. पलक झपकते ही मैं समझ गई कि किशन ने भाभी से ही मेरा मोबाइल नंबर लिया होगा. मेरे मन में भाभी से मिलने के बाद उस का खयाल आना और उस का मैसेज आना, टैलीपैथी ही तो थी, सच ही कहा गया है किसी से मिलने के पीछे भी कोई न कोई कारण होता है. तो क्या भाभी से मिलने का कारण भी मेरा किशन से दोबारा संपर्क होना था, मैं सोच रही थी.

मेरा मन अशांत हो चला था. मैं अपने मस्तिष्क को 40 वर्ष पहले अतीत में घटित घटना की यादों में धकेलने के लिए मजबूर हो गई थी, जो मेरे मानस पटल से समय के बहाव में धुलपुंछ गए थे और जिन का मेरे जीवन में अब कोई अस्तित्व ही नहीं था. अतीत के पन्ने एकएक कर के मेरी आंखों के सामने खुलने लगे.

मेरी भाभी अपनी मां और भाई के साथ मथुरा में हमारे घर आई थीं. तब मेरी उम्र 21-22 वर्ष की रही होगी. भाभी के आग्रह पर जहांजहां वे घूमने गए, मैं भी उन के साथ गई. साथसाथ घूमते हुए भाभी के भाई की गहरी निगाहों की कब मैं शिकार हो गई, मुझे पता ही नहीं चला. उस की मंदमंद मुसकान और बोलती हुई बड़ीबड़ी भूरी आंखों ने मुझे मूक प्रेमनिमंत्रण देने में जरा भी संकोच नहीं किया. जिस को स्वीकार करने से मैं अपनेआप को रोक नहीं पाई.

वह बहुत कम बोलता था, लेकिन उस की आंखों की भाषा से कुछ भी अनकहा नहीं रहता था. किसी ने ठीक ही कहा है खामोशियों की भी जबां होती है. परिवार वालों से हट कर जब भी मौका मिलता था, वह मेरा हाथ पकड़ लेता था और मैं ने भी कभी हाथ छुड़ाने का प्रयास नहीं किया था. हम दोनों मंत्रमुग्ध से एकदूसरे का साथ पाने के लिए आतुर रहते थे. और वह होली का दिन, कैसे भूल सकती हूं… वह सब. यंत्रचालित हम एकदूसरे के पीछे भागते रहते थे.

20 दिनों के साथ के बाद अंत में बिछुड़ने का दिन आ गया. भाभी मुझ से खिंचीखिंची ही रहीं. इस से मुझे आभास हो गया था कि उन से कुछ भी छिपा नहीं है, मौका पा कर किशन ने मेरे हाथ में एक छोटी सी पर्ची थमा दी, जिस में उस का पता लिखा था. कुछ भी कहनेसुनने का हम दोनों को कभी मौका नहीं मिला. आज के विपरीत वह जमाना ही ऐसा था, जब अपने हावभाव से ही प्रेम की अभिव्यक्ति होती थी, उसे शब्दों का जामा पहनाने में इतना विलंब हो जाता था कि समय के बहाव में परिस्थितियां ही बदल जाती थीं.

मुझे याद है, उस के जाने के बाद अगले दिन अपनी सहेली से लिपट कर मैं कितना रोई थी. किशन से लगभग 3 महीने तक पत्रव्यवहार हुआ. फिर अचानक उस का पत्र आना बंद हो गया. मैं ने पत्र लिख कर कारण पूछा, लेकिन कोई जवाब नहीं आया.

समय बीतता गया और किशन के साथ बिताए गए दिनों की यादें समय की परतों के नीचे दबती चली गईं. और आज अचानक इतने वर्षों बाद उस का यह अप्रत्याशित मैसेज. मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं?

अपने पति की मृत्यु के बाद से जीवन अकेलेपन और खालीपन के एहसास के नीचे दब कर दम तोड़ रहा था और एक बोझ सा बन गया था, लेकिन जीना तो था न. बच्चे बहुत व्यस्त रहते थे, मैं हमेशा उन के सामने मुसकराहट का मुखौटा ओढ़े रहती थी, लेकिन रात में अकेले, साथी की कमी को बहुत शिद्दत से महसूस करती थी और कई बार तो रातभर नींद नहीं आती थी, यह सोच कर कि  पहाड़ सा जीवन कैसे काटूंगी.

वर्तमान परिस्थितियां देखते हुए मेरा मन किशन से बात करने के लिए व्याकुल हो गया. कुछ देर के आत्ममंथन के बाद हमारे जमाने के विपरीत जब पति के अतिरिक्त किसी भी पुरुष से आत्मीयता का संबंध रखना पाप समझा जाता था, इस जमाने की बदली हुई सोच, नई टैक्नोलौजी द्वारा उपलब्ध संपर्क साधन के कारण और पहले प्यार की अनुभूति की पुनरावृत्ति की मिठास को पाने के लोभ ने आग में घी डालने का कार्य किया और मेरा मन, मन की सीमारेखा को तोड़ने के लिए मजबूर हो गया.

मैं ने अपने मन को यह कह कर समझाया, ‘देखिए आगेआगे होता है क्या.’ और मैं ने जवाब दिया, ‘‘ठीक हूं, तुम बताओ?’’ वह जैसे मेरे जवाब का इंतजार ही कर रहा था. प्रत्युत्तर में उस ने औपचारिकतापूर्ण मेरे परिवार के बारे में विस्तार से पूछा और अपने परिवार के बारे में बताया कि उस के परिवार में उस की पत्नी और 2 बेटियां हैं, दोनों बेटियों का विवाह हो चुका है.

वर्षों बाद उस की आवाज सुन कर मैं बहुत रोमांचित हुई, ऐसा लगा कि जैसे हमारे अतीत के मूकप्रेम को वाणी मिल गई. वार्त्तालाप में साथसाथ बिताए गए वे दिन, जो धरातल में कही समा गए थे, पुनर्जीवित हो गए. बहुत सारी घटनाएं किशन ने याद दिलाईं, जो मैं भूल चुकी थी.

मैं ने पूछा, ‘‘तुम्हें तो सब याद है.’’

वह बोला, ‘‘मैं भूला ही कब था?’’

‘‘तो फिर तुम ने पत्र लिखना क्यों बंद कर दिया?’’

क्या करता दीदी ने सबकुछ पिताजी को बता दिया. और उन के आदेश पर मुझे ऐसा करना पड़ा. वह जमाना ही ऐसा था, जब बड़ों का वर्चस्व ही सर्वोपरि होता था.’’

‘‘काश, उस समय मोबाइल होता.’’ मेरी इस आवाज का मर्म उसे अंदर तक आहत कर गया.

‘‘चलो, अब तो मोबाइल है. अब तो बात कर सकते हैं,’’ उस ने मुझे सांत्वना देते हुए कहा.

उस से बात कर के मुझे अपने पर नाज हो आया कि आज इतने सालों बाद भी मैं किसी की यादों में बसी हूं. विवाह एक सामाजिक बंधन है, जो शरीर को तो कैद कर सकता है, लेकिन मन तो आजाद पंछी की तरह अरमानों के गगन में जब चाहे उड़ सकता है. बहुत बार विवाह के समय हवन की अग्नि भी प्यार की तपिश को अक्षुण्ण नहीं कर पाती. उस की बातों से स्पष्ट हो गया था कि वह भी अपने परिवार के प्रति समर्पित है, लेकिन मेरी तरह उस के भी दिल का एक कोना खाली ही रहा. प्रसिद्ध शायर फराज ने ठीक ही कहा है, ‘‘कुछ जख्म सदियों के बाद भी ताजा रहते हैं फराज, वक्त के पास भी हर मर्ज की दवा नहीं होती.’’

मुझे किशन की बातें बहुत रोमांचित करती थीं. लेकिन कभीकभी मेरा मन नैतिकता और अनैतिकता के झूले में झूलता हुआ रिश्ते के स्थायित्व के बारे में सोच कर उद्विग्न हो जाता था. लेकिन धीरेधीरे उस से बातें कर के मुझे एहसास हो चला था कि हमारा प्रेम परिपक्व उम्र की अंतरंग मित्रता में परिवर्तित हो गया है. इस नए रिश्ते को बनाने में किशन का बहुत सहयोग था.

पहले उस की जो बातें मुझे रोमांचित करती थीं, अब अजीब सा सुकून देने लगी थीं. अब हम दोनों की बातचीत में किसी कारण लंबा अंतराल भी आ जाता था, तो मुझे उस के दोबारा खो जाने की बात सोच कर बेचैनी नहीं होती थी. हम दोनों ही वार्त्तालाप के दौरान एक बार मिलने की इच्छा व्यक्त करते थे.

एक दिन उस ने मुझे यह कह कर चौंका दिया कि वह एक बार मिलने के लिए बहुत बेचैन है और वह जल्दी ही किसी बहाने से मुझ से मिलने दिल्ली आएगा. यह सुन कर मुझे सुखद आश्चर्य हुआ. उस से मिलने की कल्पना ही मुझे बहुत रोमांचित कर रही थी. सोच में पड़ गई. 40 वर्षों में उस में जाने कितना परिवर्तन आ गया होगा, पता नहीं, मैं उस के साथ सहज हो पाऊंगी या नहीं.

वह दिन भी आ गया जब उसे दिल्ली आना था. किशन से इतने सालों बाद मिलना, मेरे लिए, सपने का वास्तविकता में बदलने से कम नहीं था. समय और परिस्थितियां बहुत बदल गई थीं. इसलिए उस से मिलने के लिए अपनी मनोस्थिति को तैयार करने में मुझे बहुत समय लगा.

उस से मिलने पर मुझे लगा कि हम दोनों के सिर्फ बाहरी आवरण पर ही उम्र ने छाप छोड़ी थी, लेकिन अंदर के एहसास में रत्तीभर भी परिवर्तन नहीं आया था. इतने सालों बाद मिलने पर समझ ही नहीं आ रहा था कि बातों का सिलसिला कहां से आरंभ किया जाए, अभी भी बिना कुछ कहे ही जैसे हम ने आपस में सबकुछ कह दिया था.

किशन ने मेरे हाथों को अपने हाथों में लेते हुए बात आरंभ की, ‘‘अमृता, जरूरी नहीं कि हम जिस से प्यार करें, उस से शादी भी हो जाए और जिस से शादी हो उस से प्यार हो जाए, क्योंकि प्यार किया नहीं जाता, हो जाता है, इसलिए इन दोनों का आपस में कोई संबंध नहीं है.

‘‘हमारी आपस में शादी नहीं हुई, लेकिन आपस के प्यार के एहसास के रिश्ते को अच्छे दोस्त बन कर तो जिंदा रख सकते हैं. वैसे भी, उम्र के इस पड़ाव में इस से अधिक चाहिए ही क्या? मेरे जीवन में तुम्हारी जगह कोई नहीं ले सकता.’’

मुझे ऐसा लग रहा था. जैसे मैं किसी दूसरी दुनिया में विचरण कर रही हूं. हमारे पुरुषप्रधान समाज में तो ऐसी सोच वाला पुरुष मिलना असंभव नहीं, तो कठिन जरूर है, जिस ने मेरे प्यार को दीये की लौ की तरह अभी तक अपने दिल में छिपा रखा था. मैं अपने को धन्य समझ कर, भावातिरेक में उस से लिपट गई और मेरी आंखों से आंसू बह निकले.

उस ने मुझे अपने बाहुपाश में थोड़ी देर के लिए जकड़े रखा. किशन के पहली बार के इस स्पर्श ने मुझे अलौकिक सुकून दिया. मुझे लगा कि मेरे एकाकी जीवन में किसी साथी ने दस्तक दे दी थी और मुझे जीने का सबब मिल गया था.

पति और पत्नी का रिश्ता कानूनी है, लेकिन यह बेनाम रिश्ता, क्योंकि इस ने समाज की स्वीकृति की मुहर प्राप्त नहीं की है, अवैध माना जाता है. समाज को अपनी सोच बदलने की आवश्यकता है, क्योंकि यह बेनाम रिश्ता इतना खूबसूरत होता है कि जीवन के लिए संजीवनी से कम नहीं होता और ताउम्र खुशी देता है.

शायर गुलजार ने इस बेनाम रिश्ते को अपनी कलम से बहुत खूबसूरत तरीके से उकेरा है, ‘हाथ से छू के इस रिश्ते को इलजाम न दो.’

उस ने मुझ से कहा कि हमारा मिलना आसान नहीं है, लेकिन फोन पर एकदूसरे के संपर्क में रह कर हमेशा एकदूसरे से जुड़े रहेंगे. किशन ने एक ऐसा एहसास दे कर, जिस के कारण हजारों मील की दूरियां भी बेमानी हो गई थीं, मुझ से विदा ली. इन दोनों के बीच की दूरी अब कोई माने नहीं रखती थी. दिल से दिल जुड़ गए थे. यह रिश्ता दिल का था. समाज की मुहर की जरूरत भी नहीं थी इसे.

Romantic Story: इजहार – सीमा के लिए गुलदस्ता भेजने वाले का क्या था राज?

Romantic Story, लेखक – सिद्धार्थ जैन

मनीषा ने सुबह उठते ही जोशीले अंदाज में पूछा, ‘‘पापा, आज आप मम्मी को क्या गिफ्ट दे रहे हो?’’

‘‘आज क्या खास दिन है, बेटी?’’ कपिल ने माथे में बल डाल कर बेटी की तरफ देखा.

‘‘आप भी हद करते हो, पापा. पिछले कई सालों की तरह आप इस बार भी भूल गए कि आज वैलेंटाइनडे है. आप जिसे भी प्यार करते हो, उसे आज के दिन कोई न कोई उपहार देने का रिवाज है.’’

‘‘ये सब बातें मुझे मालूम हैं, पर मैं पूछता हूं कि विदेशियों के ढकोसले हमें क्यों अपनाते हैं?’’

‘‘पापा, बात देशीविदेशी की नहीं, बल्कि अपने प्यार का इजहार करने की है.’’

‘‘मुझे नहीं लगता कि सच्चा प्यार किसी तरह के इजहार का मुहताज होता है. तेरी मां और मेरे बीच तो प्यार का मजबूत बंधन जन्मोंजन्मों पुराना है.’’

‘‘तू भी किन को समझाने की कोशिश कर रही है, मनीषा?’’ मेरी जीवनसंगिनी ने उखड़े मूड के साथ हम बापबेटी के वार्तालाप में हस्तक्षेप किया, ‘‘इन से वह बातें करना बिलकुल बेकार है जिन में खर्चा होने वाला हो, ये न ला कर दें मुझे 5-10 रुपए का गिफ्ट भी.’’

‘‘यह कैसी दिल तोड़ने वाली बात कर दी तुम ने, सीमा? मैं तो अपनी पूरी पगार हर महीने तुम्हारे चरणों में रख देता हूं,’’ मैं ने अपनी आवाज में दर्द पैदा करते हुए शिकायत करी.

‘‘और पाईपाई का हिसाब न दूं तो झगड़ते हो. मेरी पगार चली जाती है फ्लैट और कार की किस्तें देने में. मुझे अपनी मरजी से खर्च करने को सौ रुपए भी कभी नहीं मिलते.’’

‘‘यह आरोप तुम लगा रही हो जिस की अलमारी में साडि़यां ठसाठस भरी पड़ी हैं. क्या जमाना आ गया है. पति को बेटी की नजरों में गिराने के लिए पत्नी झूठ बोल रही है.’’

‘‘नाटक करने से पहले यह तो बताओ कि उन में से तुम ने कितनी साडि़यां आज तक खरीदवाई हैं? अगर तीजत्योहारों पर साडि़यां मुझे मेरे मायके से न मिलती रहतीं तो मेरी नाक ही कट जाती सहेलियों के बीच.’’

‘‘पापा, मम्मी को खुश करने के लिए 2-4 दिन कहीं घुमा लाओ न,’’ मनीषा ने हमारी बहस रोकने के इरादे से विषय बदल दिया.

‘‘तू चुप कर, मनीषा. मैं इस घर के चक्करों से छूट कर कहीं बाहर घूमने जाऊं, ऐसा मेरे हिस्से में नहीं है,’’ सीमा ने बड़े नाटकीय अंदाज में अपना माथा ठोंका.

‘‘क्यों इतना बड़ा झूठ बोल रही हो? हर साल तो तुम अपने भाइयों के पास 2-4 हफ्ते रहने जाती हो,’’ मैं ने उसे फौरन याद दिलाया.

‘‘मैं शिमला या मसूरी घुमा लाने की बात कह रही थी, पापा,’’ मनीषा ने अपने सुझाव का और खुलासा किया.

‘‘तू क्यों लगातार मेरा खून जलाने वाली बातें मुंह से निकाले जा रही है? मैं ने जब भी किसी ठंडी पहाड़ी जगह घूम आने की इच्छा जताई, तो मालूम है इन का क्या जवाब होता था? जनाब कहते थे कि अगर नहाने के बाद छत पर गीले कपड़ों में टहलोगी तो इतनी ठंड लगेगी कि हिल स्टेशन पर घूमने का मजा आ जाएगा.’’

‘‘अरे, मजाक में कही गई बात बच्ची को सुना कर उसे मेरे खिलाफ क्यों भड़का रही हो?’’ मैं नाराज हो उठा.

मेरी नाराजगी को पूरी तरह से नजरअंदाज करते हुए सीमा ने अपनी शिकायतें मनीषा को सुनानी जारी रखीं, ‘‘इन की कंजूसी के कारण मेरा बहुत खून फुंका है. मेरा कभी भी बाहर खाने का दिल हुआ तो साहब मेरे हाथ के बनाए खाने की ऐसी बड़ाई करने लगे जैसे कि मुझ से अच्छा खाना कोई बना ही नहीं सकता.’’

‘‘पर मौम, यह तो अच्छा गुण हुआ पापा का,’’ मनीषा ने मेरा पक्ष लिया. बात सिर्फ बाहर खाने में होने वाले खर्च से बचने के लिए होती है.

‘‘उफ,’’ मेरी बेटी ने मेरी तरफ ऐसे अंदाज में देखा मानो उसे आज समझ में आया हो कि मैं बहुत बड़ा खलनायक हूं.

‘‘जन्मदिन हो या मैरिज डे, अथवा कोई और त्योहार, इन्हें मिठाई खिलाने के अलावा कोई अन्य उपहार मुझे देने की सूझती ही नहीं. हर खास मौके पर बस रसमलाई खाओ या गुलाबजामुन. कोई फूल, सैंट या ज्वैलरी देने का ध्यान इन्हें कभी नहीं आया.’’

‘‘तू अपनी मां की बकबक पर ध्यान न दे, मनीषा. इस वैलेंटाइनडे ने इस का दिमाग खराब कर दिया है, जो इस जैसी सीधीसादी औरत का दिमाग खराब कर सकता हो, उस दिन को मनाने की मूर्खता मैं तो कभी नहीं करूंगा,’’ मैं ने अपना फैसला सुनाया तो मांबेटी दोनों ही मुझ से नाराज नजर आने लगीं.

दोनों में से कोई मेरे इस फैसले पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त कर पाती, उस से पहले ही किसी ने बाहर से घंटी बजाई.

मैं ने दरवाजा खोला और हैरानी भरी आवाज में चिल्ला पड़ा, ‘‘देखो, कितना सुंदर गुलदस्ता आया है.’’

‘‘किस ने भेजा है?’’ मेरी बगल में आ खड़ी हुई सीमा ने हैरान हो कर पूछा.

‘‘और किस को भेजा है?’’ मनीषा उस पर लगा कार्ड पढ़ने की कोशिश करने लगी.

‘‘इस कार्ड पर लिखा है ‘हैपी वेलैंटाइनडे, माई स्वीटहार्ट,’ कौन किसे स्वीटहार्ट बता रहा है, यह कुछ साफ नहीं हुआ?’’ मेरी आवाज में उलझन के भाव उभरे.

‘‘मनीषा, किस ने भेजा है तुम्हें इतना प्यारा गुलदस्ता?’’ सीमा ने तुरंत मीठी आवाज में अपनी बेटी से सवाल किया.

मेरे हाथ से गुलदस्ता ले कर मनीषा ने उसे चारों तरफ से देखा और अंत में हैरानपरेशान नजर आते हुए जवाब दिया, ‘‘मौम, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है.’’

‘‘क्या इसे राजीव ने भेजा?’’

‘‘न…न… इतना महंगा गुलदस्ता उस के बजट से बाहर है.’’

‘‘मोहित ने?’’

‘‘वह तो आजकल रितु के आगेपीछे दुम हिलाता घूमता है.’’

‘‘मोहित ने?’’

‘‘नो मम्मी. वी डौंट लाइक इच अदर वैरी मच.’’

‘‘फिर किस ने भेजे हैं इतने सुंदर फूल?’’

‘‘जरा 1 मिनट रुकोगी तुम मांबेटी… यह अभी तुम किन लड़कों के नाम गिना रही थी, सीमा?’’ मैं ने अचंभित नजर आते हुए उन के वार्त्तालाप में दखल दिया.

‘‘वे सब मनीषा के कालेज के फ्रैंड हैं,’’ सीमा ने लापरवाही से जवाब दिया.

‘‘तुम्हें इन सब के नाम कैसे मालूम हैं?’’

‘‘अरे, मनीषा और मैं रोज कालेज की घटनाओं के बारे में चर्चा करती रहती हैं. आप की तरह मैं हमेशा रुपयों के हिसाबकिताब में नहीं खोई रहती हूं.’’

‘‘मैं हिसाबकिताब न रखूं तो हर महीने किसी के सामने हाथ फैलाने की नौबत आ जाए, पर इस वक्त बात कुछ और चल रही है… जिन लड़कों के तुम ने नाम लिए…’’

‘‘वे सब मनीषा के साथ पढ़ते हैं और इस के अच्छे दोस्त हैं.’’

‘‘मनीषा, तुम कालेज में कुछ पढ़ाई वगैरह भी कर रही हो या सिर्फ अपने सोशल सर्कल को बड़ा करने में ही तुम्हारा सारा वक्त निकल जाता है?’’ मैं ने नकली मुसकान के साथ कटाक्ष किया.

‘‘पापा, इनसान को अपने व्यक्तित्व का संपूर्ण विकास करना चाहिए या नहीं?’’ मनीषा ने तुनक कर पूछा.

‘‘वह बात तो सही है पर यह गुलदस्ता भेजने वाले संभावित युवकों की लिस्ट इतनी लंबी होगी, यह बात मुझे थोड़ा परेशान कर रही है.’’

‘‘पापा, जस्ट रिलैक्स. आजकल फूलों का लेनादेना बस आपसी पसंद को दिखाता है. फूल देतेलेते हुए ‘मुझे तुम से प्यार हो गया है और अब सारी जिंदगी साथ गुजारने की तमन्ना है,’ ऐसे घिसेपिटे डायलौग आजकल नहीं बोले जाते हैं.’’

‘‘आजकल तलाक के मामले क्यों इतने ज्यादा बढ़ते जा रहे हैं, इस विषय पर हम फिर कभी चर्चा करेंगे, पर फिलहाल यह बताओ कि क्या तुम ने यह गुलदस्ता भेजने वाले की सही पहचान कर ली है?’’

‘‘सौरी, पापा. मुझे नहीं लगता कि यह गुलदस्ता मेरे लिए है.’’

उस का जवाब सुन कर मैं सीमा की तरफ घूमा और व्यंग्य भरे लहजे में बोला, ‘‘जो तुम्हें पसंद करते हों, उन चाहने वालों के 10-20 नाम तुम भी गिना दो, रानी पद्मावती. ’’

‘‘यह रानी पद्मावती बीच में कहां से आ गई?’’

‘‘अब कुछ देरे तुम चुप रहोगी, मिस इंडिया,’’ मैं ने मनीषा को नाराजगी से घूरा तो उस ने फौरन अपने होंठों पर उंगली रख ली.

‘‘मुझे फालतू के आशिक पालने का शौक नहीं है,’’ सीमा ने नाकभौं चढ़ा कर जवाब दिया.

‘‘पापा, मैं कुछ कहना चाहती हूं,’’ मनीषा की आंखों में शरारत के भाव मुझे साफ नजर आ रहे थे.

‘‘तुम औरतों को ज्यादा देर खामोश रख पाना हम मर्दों के बूते से बाहर की बात है. कहो, क्या कहना चाहती हो?’’

‘‘पापा, हो सकता है मीना मौसी की बेटी की शादी में मिले आप के कजिन रवि चाचा के दोस्त नीरज ने मौम के लिए यह गुलदस्ता भेजा हो.’’

‘‘तेरे खयाल से उस मुच्छड़ ने तेरी मम्मी पर लाइन मारने की कोशिश की है?’’

‘‘मूंछों को छोड़ दो तो बंदा स्मार्ट है, पापा.’’

‘‘क्या कहना है तुम्हें इस बारे में?’’ मैं ने सीमा को नकली गुस्से के साथ घूरना शुरू कर दिया.

‘‘मैं क्यों कुछ कहूं? आप को जो पूछताछ करनी है, वह उस मुच्छड़ से जा कर करो,’’ सीमा ने बुरा सा मुंह बनाया.

‘‘अरे, इतना तो बता दो कि क्या तुम ने अपनी तरफ से उसे कुछ बढ़ावा दिया था?’’

‘‘जिन्हें पराई औरतों पर लार टपकाने की आदत होती है, उन्हें किसी स्त्री का साधारण हंसनाबोलना भी बढ़ावा देने जैसा लगता है.’’

‘‘मुझे नहीं लगता कि उस मुच्छड़ ने तेरी मां को ज्यादा प्रभावित किया होगा. किसी और कैंडिडेट के बारे में सोच, मनीषा.’’

‘‘मम्मी के सहयोगी आदित्य साहब इन के औफिस की हर पार्टी में मौम के चारों तरफ मंडराते रहते हैं,’’ कुछ पलों की सोच के बाद मेरी बेटी ने अपनी मम्मी में दिलचस्पी रखने वाले एक नए प्रत्याशी का नाम सुझाया.

‘‘वह इस गुलदस्ते को भेजने वाला आशिक नहीं हो सकता,’’ मैं ने अपनी गरदन दाएंबाएं हिलाई, ‘‘उस की पर्सनैलिटी में ज्यादा जान नहीं है. बोलते हुए वह सामने वाले पर थूक भी फेंकता है.’’

‘‘गली के कोने वाले घर में जो महेशजी रहते हैं, उन के बारे में क्या खयाल है.’’

‘‘उन का नाम लिस्ट में क्यों ला रही है?’’

‘‘पापा, उन का तलाक हो चुका है और मम्मी से सुबह घूमने के समय रोज पार्क में मिलते हैं. क्या पता पार्क में साथसाथ घूमते हुए वे गलतफहमी का शिकार भी हो गए हों?’’

‘‘तेरी इस बात में दम हो सकता है.’’

‘‘खाक दम हो सकता है,’’ सीमा एकदम भड़क उठी, ‘‘पार्क में सारे समय तो वे बलगम थूकते चलते हैं. प्लीज, मेरे साथ किसी ऐरेगैरे का नाम जोड़ने की कोई जरूरत नहीं है. अगर यह गुलदस्ता मेरे लिए है, तो मुझे पता है भेजने वाले का नाम.’’

‘‘क…क… कौन है वह?’’ उसे खुश हो कर मुसकराता देख मैं ऐसा परेशान हुआ कि सवाल पूछते हुए हकला गया.

‘‘नहीं बताऊंगी,’’ सीमा की मुसकराहट रहस्यमयी हो उठी तो मेरा दिल डूबने को हो गया.

‘‘मौम, क्या यह गुलदस्ता पापा के लिए नहीं हो सकता है?’’ मेरी परेशानी से अनजान मनीषा ने मेरी खिंचाई के लिए रास्ता खोलने की कोशिश करी.

‘‘नहीं,’’ सीमा ने टका सा जवाब दे कर मेरी तरफ मेरी खिल्ली उड़ाने वाले भाव में देखा.

‘‘मेरे लिए क्यों नहीं हो सकता?’’ मैं फौरन चिढ़ उठा, ‘‘अभी भी मुझ पर औरतें लाइन मारती हैं.. मैं ने कई बार उन की आंखों में अपने लिए चाहत के भाव पढ़े हैं.’’

‘‘पापा की पर्सनैलिटी इतनी बुरी भी नहीं है…’’

‘‘ऐक्सक्यूज मी… पर्सनैलिटी बुरी नहीं है से तुम्हारा मतलब क्या है?’’ मैं ने अपनी बेटी को गुस्से से घूरा तो उस ने हंस कर जले पर नमक बुरकने जैसा काम किया.

‘‘बात पर्सनैलिटी की नहीं, बल्कि इन के कंजूस स्वभाव की है, गुडिया. जब ये किसी औरत पर पैसा खर्च करेंगे नहीं तो फिर वह औरत इन के साथ इश्क करेगी ही क्यों?’’

‘‘आप को किसी लेडी का भी नाम ध्यान नहीं आ रहा है, जिस ने पापा को यह गुलदस्ता भेजा हो?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘पापा, आप की मार्केट वैल्यू तो बहुत खराब है,’’ मेरी बेटी ने फौरन मुझ से सहानुभूति दर्शाई.

‘‘बिटिया, यह घर की मुरगी दाल बराबर समझने की भूल कर रही है,’’ मैं ने शान से कौलर ऊपर कर के छाती फुला ली तो सीमा अपनी हंसी नहीं रोक पाई थी.

‘‘अब तो बिलकुल समझ नहीं आ रहा कि इस गुलदस्ते को भेजा किस ने है और यह है किस के लिए?’’ मनीषा के इन सवालों को सुन कर उस की मां भी जबरदस्त उलझन का शिकार हो गई थी.

उन की खामोशी जब ज्यादा लंबी खिंच कर असहनीय हो गई तो मैं ने शाही मुसकान होंठों पर सजा कर पूछा, ‘‘सीमा, क्या यह प्रेम का इजहार करने वाला उपहार मैं ने तुम्हारे लिए नहीं खरीदा हो सकता है?’’

‘‘इंपौसिबल… आप की इन मामलों में कंजूसी तो विश्वविख्यात है,’’ सीमा ने मेरी भावनाओं को चोट पहुंचाने में 1 पल भी नहीं लगाया.

मेरे चेहरे पर उभरे पीड़ा के भावों को उन दोनों ने अभिनय समझ और अचानक ही दोनों खिलखिला कर हंसने लगीं.

‘‘मेरे हिस्से में ऐसा कहां कि ऐसा खूबसूरत तोहफा मुझे कभी आप से मिले,’’ हंसी का दौरा थम जाने के बाद सीमा ने बड़े नाटकीय अंदाज में उदास गहरी सांस छोड़ी.

‘‘मेरे खयाल से फूल वाला लड़का गलती से यह गुलदस्ता हमारे घर दे गया है और जल्द ही इसे वापस लेने आता होगा,’’ मनीषा ने एक नया तुर्रा छोड़ा.

‘‘इस कागज को देखो. इस पर हमारे घर का पता लिखा है और इस लिखावट को तुम दोनों पहचान सकतीं,’’ मैं ने एक परची जेब से निकाल कर मनीषा को पकड़ा दी.

‘‘यह तो आप ही की लिखावट है,’’ मनीषा हैरान हो उठी.

‘‘आप इस कागज को हमें क्यों दिखा रहे हो?’’ सीमा ने माथे में बल डाल कर पूछा.

‘‘इसी परची को ले कर गुलदस्ता देने वाला लड़का हमारे घर तक पहुंचा था. लगता है कि तुम दोनों इस बात को भूल चुके हो कि मेरे अंदर भी प्यार करने वाला दिल धड़कता है… मैं जो हमेशा रुपएपैसों का हिसाबकिताब रखने में व्यस्त रहता हूं, मुझे पैसा कम कमाई और ज्यादा खर्च की मजबूरी ने बना दिया है,’’ अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के बाद मैं थकाहारा सा उठ कर शयनकक्ष की तरफ चलने लगा तो वे दोनों फौरन उठ कर मुझ से लिपट गईं.

‘‘आई एम सौरी, पापा. आप तो दुनिया के सब से अच्छे पापा हो,’’ कहते हुए मनीषा की आंखें भर आईं.

‘‘मुझे भी माफ कर दो, स्वीटहार्ट,’’ सीमा की आंखों में भी आंसू छलक आए.

मैं ने उन के सिरों पर प्यार से हाथ रख और भावुक हो कर बोला, ‘‘तुम दोनों के लिए माफी मांगना बिलकुल जरूरी नहीं है. आज वैलेंटाइनडे के दिन की यह घटना हम सब के लिए महत्त्वपूर्ण सबक बननी चाहिए. भविष्य में मैं प्यार का इजहार ज्यादा और जल्दीजल्दी किया करूंगा. मैं नहीं बदला तो मुझे डर है कि किसी वैलेंटाइनडे पर किसी और का भेजा गुलदस्ता मेरी रानी के लिए न आ जाए.’’

‘‘धत्, इस दिल में आप के अलावा किसी और की मूर्ति कभी नहीं सज सकती है, सीमा ने मेरी आंखों में प्यार से झांका और फिर शरमा कर मेरे सीने से लग गई.’’

‘‘मुझे भी दिल में 1 ही मूर्ति से संतोष करने की कला सिखाना, मौम,’’ शरारती मनीषा की इस इच्छा पर हम एकदूसरे के बहुत करीब महसूस करते हुए ठहाका मार कर हंस पडे़.

Romantic Story: मेरा प्यार था वह – क्यों शादी के बाद मेघा बदल गई?

Romantic Story: मुझे ऐसा लगा कि नीरज वहीं उस खिड़की पर खड़ा है. अभी अपना हाथ हिला कर मेरा ध्यान आकर्षित करेगा. तभी पीछे से किसी का स्पर्श पा कर मैं चौंकी.

‘‘मेघा, आप यहां क्या कर रही हैं? सब लोग नाश्ते पर आप का इंतजार कर रहे हैं और जमाईजी की नजरें तो आप ही को ढूंढ़ रही हैं,’’ छेड़ने के अंदाज में भाभी ने कहा.

सब हंसतेबोलते नाश्ते का मजा ले रहे थे, पर मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा था. मैं एक ही पूरी को तोड़े जा रही थी.

‘‘अरे मेघा, खा क्यों नहीं रही हो? बहू, मेघा की प्लेट में गरम पूरियां डालो,’’ मां ने भाभी से कहा.

‘‘नहीं, मुझे कुछ नहीं चाहिए. मेरा नाश्ता हो गया,’’ कह कर मैं उठ गई.

प्रदीप भैया मुझे ही घूर रहे थे. मुझे भी उन पर बहुत गुस्सा आ रहा था कि आखिर उन्होंने मेरी खुशी क्यों छीन ली? पर वक्त की नजाकत को समझ कर मैं चुप ही रही. मां पापा भी समझ रहे थे कि मेरे मन में क्या चल रहा है. मैं नीरज से बहुत प्यार करती थी. उस के साथ शादी के सपने संजो रही थी. पर सब ने जबरदस्ती मेरी शादी एक ऐसे इनसान से करवा दी, जिसे मैं जानती तक नहीं थी.

‘‘मां, मैं आराम करने जा रही हूं,’’ कह कर मैं जाने ही लगी तो मां ने कहा, ‘‘मेघा, तुम ने तो कुछ खाया ही नहीं… जूस पी लो.’’

‘‘मुझे भूख नहीं है,’’ मैं ने मां से रुखे स्वर में कहा.

‘‘मेघा, ससुराल में सब का व्यवहार कैसा है और तुम्हारा पति सार्थक, तुम्हें प्यार करता है कि नहीं?’’ मां ने पूछा.

‘‘सब ठीक है मां,’’ मन हुआ कि कह दूं कि आप लोगों से तो सब अच्छे ही हैं. फिर मां कहने लगी, ‘‘सब का मन जीत लेना बेटा, अब वही तुम्हारा घर है.’’

‘‘मांबेटी में क्या बातें हो रही हैं?’’ तभी मेरे पति सार्थक ने कमरे में आते ही कहा.

‘‘मैं इसे समझा रही थी कि अब वही तुम्हारा घर है. सब की बात मानना और प्यार से रहना.’’

‘‘मां, आप की बेटी बहुत समझदार है. थोड़े ही दिनों में मेघा ने सब का मन जीत लिया,’’ सार्थक ने मेरी तरफ देखते हुए कहा.

मेरी शादी को अभी 3 ही महीने हुए थे, मैं शादी के बाद पहली बार मां के घर आई

थी. हमारे यहां आने से सब खुश थे, पर मेरी नजर तो अभी भी अपने प्यार को ढूंढ़ रही थी.

सार्थक ने रात में कमरे में आ कर कहा, ‘‘मेघा क्या हुआ? अगर कोई बात है तो मुझे बताओ. जब से यहां आई हो, बहुत उदास लग रही हो.’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है,’’ मैं ने अनमने ढंग से जवाब दिया. सार्थक मुझे एकदम पसंद नहीं. मेरे लिए यह जबरदस्ती और मजबूरी का रिश्ता है, जिसे मैं पलभर में तोड़ देना चाहती हूं पर ऐसा कर नहीं सकती हूं.

‘‘अच्छा ठीक है,’’ सार्थक ने बड़े प्यार से कहा.

‘‘आज मेरे सिर में दर्द है,’’ मैं ने अपना मुंह फेर कर कहा.

रात करीब 3 बजे मेरी नींद खुल गई. सोने की कोशिश की, पर नींद नहीं आ रही थी. फिर पुरानी यादें सामने आने लगीं…

हमारे घर में सब से पहले मैं ही उठती थी. मेरे पापा सुबह 6 बजे ही औफिस के लिए निकल जाते थे. मैं ही उन के लिए चायनाश्ता बनाती थी. बाकी सब बाद में उठते थे.

मेरे पापा रेलवे में कर्मचारी थे, इसलिए हम शुरू से ही रेलवे क्वार्टर में रहे. रेलवे क्वार्टर्स के घर भले ही छोटे होते थे, पर आगे पीछे इतनी जमीन होती थी कि एक अच्छा सा लौन बनाया जा सकता था. हम ने भी लौन बना कर बहुत सारे फूलों के पौधे लगा रखे थे, शाम को हम सब कुरसियां लगा कर वहीं बैठते थे.

मेरे घर के सामने ही मेरी दोस्त नम्रता का घर था, उस के पापा भी रेलवे में एक छोटी पोस्ट पर काम करते थे. मैं और नम्रता एक ही स्कूल और एक ही क्लास में पढ़ती थीं. हम दोनों पक्की सहेलियां थीं. बेझिझक एकदूसरे के घर आतीजाती रहती थीं. एक रोज मैं और नम्रता बाहर खड़ी हो कर बातें कर रही थीं, तभी मेरी नजर उस के घर की खिड़की पर पड़ी तो देखा कि नीरज यानी नम्रता का बड़ा भाई मुझे एकटक देख रहा है. मुझे थोड़ा अजीब लगा. नीरज भी सकपका गया. मैं अपने घर के अंदर चली गई, पर बारबार मेरे दिमाग में उलझन हो रही थी कि आखिर वह मुझे ऐसे क्यों देख रहा था.

मैं ने महसूस किया कि वह अकसर मुझे देखता रहता है. नीरज का मुझे देखना मेरे दिल को धड़का जाता था. शायद नीरज मुझे पसंद करने लगा था. धीरेधीरे मुझे भी नीरज से प्यार होने लगा. हमारी आखें चार होने लगीं. उस की आंखों ने मेरी आंखों को बताया कि हमें एकदूसरे से प्यार हो गया है. अब तो हमेशा मैं उस खिड़की के सामने जा कर खड़ी हो जाती थी. नीरज की भूरी आंखें और सुनहरे बाल मुझे पागल कर देते थे. अब हम छिपछिप कर मिलने भी लगे थे.

सुबह मैं फिर उसी खिड़की के पास जा कर बैठ गई. तभी पीछे से किसी का स्पर्श पाकर मैं हड़बड़ा गई और मेरी सोच पर पूर्णविराम लग गया.

‘‘मेघा, तुम कब से यहां बाहर बैठी हो? चलो अंदर चाय बनाती हूं,’’  मां ने कहा.

‘‘मैं यहीं ठीक हूं मां, आप जाओ, मैं थोड़ी देर में आती हूं.’’

मां ने मुझे शंका भरी नजरों से देखते हुए कहा, ‘‘तुम अभी तक उस लफंगे को नहीं भूली हो? अरे, सब कुछ एक बुरा सपना समझ कर क्यों नहीं भूल जाती हो? उसी में सब की भलाई है. बेटा, अब तुम्हारी शादी हो चुकी है, अपनी घरगृहस्थी संभालो. अपने पति को प्यार करो. इतना अच्छा जीवनसाथी और ससुराल मिली है. एक लड़की को और क्या चाहिए?’’

मां की बातों से मुझे रोना आ गया. मेरी गलती क्या थी? यही न कि मैं ने प्यार किया और प्यार करना कोई गुनाह तो नहीं है? अपने पति से कैसे प्यार करूं. जब मुझे उन से प्यार ही नहीं है?

‘‘अब क्यों रो रही हो? अगर तेरी करतूतों के बारे में जमाई राजा को पता चल गया, तो क्या होगा? अरे बेवकूफ लड़की, क्यों अपना सुखी संसार बरबाद करने पर तुली हो,’’ मां ने गुस्से में कहा.

‘‘कौन क्या बरबाद कर देगा मांजी?’’ सार्थक ने पूछा? जैसे उन्होंने हमारी सारी बातें सुन ली हों.

मां हड़बड़ा कर कहने लगी, ‘‘कुछ नहीं जमाईजी, मैं तो मेघा को यह समझाने की कोशिश कर रही थी कि अब पिछली बातें भूल जाओ… यह अपनी सब सहेलियों को याद कर के रो रही हैं.’’

‘‘ऐसे कैसे भूल जाएगी अपनी सहेलियों को… स्कूलकालेज अपने दोस्तों के साथ बिताया वह पल ही तो हम कभी भी याद कर के मुसकरा लेते हैं,’’ सार्थक ने कहा, ‘‘मेघा, दुनिया अब बहुत ही छोटी हो गई है. हम इंटरनैट के जरीए कभी भी, किसी से भी जुड़ सकते हैं.’’

हम मां के घर 3-4 दिन रह कर अपने घर रांची चल दिए. पटना से रांची करीब 1 दिन का रास्ता है. सार्थक तो सो गए पर ट्रेन की आवाज से मुझे नींद नहीं आ रही थी. मैं फिर वही सब सोचने लगी कि कैसे मेरे परिवार वालों ने हमारे प्यार को पनपने नहीं दिया.

प्रदीप भैया को कैसे भूल सकती हूं. उन की वजह से ही मेरा प्यार अधूरा रह गया था. मेरी आंखों के सामने ही उन्होंने नीरज को कितना मारा था. अगर तब नीरज की मां आ कर प्रदीप भैया के पैर न पकड़ती, तो शायद वे नीरज को मार ही डालते. उस दिन के बाद हम दोनों कभी एकदूसरे से नहीं मिले.

भैया ने तो यहां तक कह दिया था नीरज को कि आइंदा कभी यहां नजर आया या  मेरी बहन को नजर उठा कर भी देखने की कोशिश की, तो मार कर ऐसी जगह फेंकूंगा कि कोई ढूंढ़ नहीं पाएगा.

प्रदीप भैया की धमकी से डर कर नीरज और उस के परिवार वाले यहां से कहीं और चले गए.

नम्रता को हमारे प्यार के बारे में सब पता था. एक दिन नम्रता मेरी मां से यह कह कर मुझे अपने घर ले गई कि हम साथ बैठ कर पढ़ाई करेंगी. हमारी 12वीं कक्षा की परीक्षा अगले महीने शुरू होने वाली थी. अत: मां ने हां कर दी. अब तो हमारा मिलना रोज होने लगा.

एक रोज जब मैं नम्रता के घर गई तो कोई नहीं दिखा सिर्फ नीरज था. उस ने बताया कि नम्रता और मां बाहर गई हैं. मैं वापस अपने घर आने लगी तभी नीरज ने मेरा हाथ अपनी ओर खींचा.

‘‘नीरज, छोड़ो मेरा हाथ कोई देख लेगा,’’ मैं ने नीरज से कहा.

‘‘कोई नहीं देखेगा, क्योंकि घर में मेरे अलावा कोई है ही नहीं,’’ उस ने शरारत भरी नजरों से देखते हुए कहा. उस की नजदीकियां देख कर मेरा दिल जोरजोर से धड़कने लगा. मैं अपनेआप को नीरज से छुड़ाने की कोशिश कर भी रही थी और नहीं भी. मैं ने अपनी आंखें बंद कर लीं. तभी उस ने मेरे अधरों पर अपना होंठ रख दिया.

‘‘नीरज, यह क्या किया तुम ने? यह तो गलत है.’’

‘‘इस में गलत क्या है? हम एकदूसरे से प्यार करते हैं,’’ कह कर उस ने मेरे गालों को चूम लिया.

किसी को हमारे प्यार के बारे में अब तक कुछ भी पता नहीं था, सिर्फ नम्रता को छोड़ कर सुनहरे सपनों की तरह हमारे दिन बीत रहे थे. हमारे प्यार को 3 साल हो गए.

नीरज की भी नौकरी लग गई, और मेरी भी स्नातक की पढ़ाई पूरी हो गई. अब तो हम अपनी शादी के सपने भी संजोने लगे.

मैं ने नीरज को अपने मन का डर बताते हुए कहा, ‘‘नीरज, अगर हमारे घर वाले हमारे शादी नहीं होने देंगे तो?’’

‘‘तो हम भाग कर शादी कर लेंगे और अगर वह भी न कर पाए तो साथ मर सकते हैं न? बोलो दोगी मेरा साथ?’’

‘‘हां नीरज, मैं अब तुम्हारे बिना एक दिन भी नहीं सकती हूं,’’ मैं ने उस के कंधे पर अपना सिर रखते हुए कहा.

हमें पता ही नहीं चला कि कब प्रदीप भैया ने हमें एकदूसरे के साथ देख लिया था.

मेरे और नीरज के रिश्ते को ले कर घर में बहुत हंगामा हुआ. मुझे भैया से बहुत मार भी पड़ी. अगर भाभी बीच में न आतीं, तो शायद मुझे मार ही डालते. उस वक्त मांपापा ने भी मेरा साथ नहीं दिया था.

जल्दीजल्दी में मेरी शादी तय कर दी गई. इन जालिमों की वजह से मेरा प्यार अधूरा रह गया. कभी माफ नहीं करूंगी इन प्यार के दुश्मनों को.

‘‘हैलो मैडम, जरा जगह दो… मुझे भी बैठना है,’’ किसी अनजान आदमी ने मुझे छूते हुए कहा, तो मैं चौंक उठी.

मैं ने कहा, ‘‘यह तो आरक्षित सीट है.’’ तभी 2 लोग और आ गए और मेरे साथ बदतमीजी करने लगे. मैं चिल्लाई, ‘‘सार्थक.’’

सार्थक हड़बड़ा कर उठ गए. जब उन्होंने देखा कि कुछ लड़के मेरे साथ छेड़खानी करने लगे हैं, तो वे सब पर टूट पड़े. रात थी, इसलिए सारे पैसेंजर सोए हुए थे. मैं तो डर गई कि कहीं चाकूवाकू न चला दें.

अत: मैं जोरजोर से रोने लगी. तब तक डिब्बे की लाइट जल गई और पैसेंजर उन बदमाशों को पकड़ कर मारने लगे. कुछ ही देर में पुलिस भी आ गई.

‘‘मेघा, तुम ठीक हो न, तुम्हें कहीं लगी तो नहीं?’’ सार्थक ने मुझे अपने सीने से लगा लिया. उन के सीने से लगते ही लगा जैसे मैं ठहर गई. अब तक तो बेवजह भावनाओं में बहे जा रही थी, जिन की कोई मंजिल ही न थी.

‘‘मैं ठीक हूं, मैं ने कहा.’’ सार्थक के हाथ से खून निकल रहा था, फिर भी उन्हें मेरी ही चिंता थी.

तभी किसी पैसेंजर ने कहा, ‘‘आप चिंता न करें भाई साहब इन्हें कुछ नहीं हुआ है. पर थोड़ा डर गई हैं. खून तो आप के हाथ से निकल रहा है.’’

तभी किसी ने आ कर सार्थक के हाथों पर पट्टी बांध दी. तब जा कर खून का बहना रुका.

मैं यह क्या कर रही थी? इतने अच्छे इनसान के साथ इतनी बेरुखी. सार्थक को अपने से ज्यादा मेरी चिंता हो रही थी… मैं इतनी स्वार्थी कैसे हो सकती हूं?

अब सार्थक ही मेरी दुनिया है, मेरे लिए सब कुछ है. नीरज तो मेरा प्यार था. सार्थक तो मेरा जीवनसाथी है.

Hindi Romantic Story: प्यार के रंग

Hindi Romantic Story: सफेद कोट पहने और गले में आला लटकाए वह अपलक उसे आता देख रहा था. कुछ तो बात थी उस लड़की में कि डाक्टर मृणाल सा उस की ओर खिंचता जा रहा था.

मझोला कद, साधारण नैननक्श के बावजूद उस लड़की में एक कशिश थी जो डाक्टर मृणाल को बेचैन कर रही थी. कुछ भी तो नहीं जानता था वह उस के बारे में, सिवा इस के कि उस की एक मरीज चांदनी को देखने वह रोज सुबहशाम आती है. 6 महीने से यह क्रम बिना नागा चला आ रहा है, जबकि वह जानती है कि उस का आना चांदनी को पता नहीं चलता.

आज डाक्टर मृणाल ने तय कर लिया था कि वे आज उस से कुछ पूछेंगे. “गुड मौर्निंग डाक्टर, आप को कुछ चाहिए?” रिसैप्शनिस्ट विनम्रता से पूछ रही थी.

“नहीं, धन्यवाद. मैं किसी की प्रतीक्षा कर रहा था,” कहते हुए डाक्टर मृणाल रिसैप्शन से हट कर उस के पीछे चल दिए.

उन की मरीज चांदनी एक साधारण परिवार से थी. किसी हादसे के कारण वह कोमा में चली गई थी. शुरू में उस के भाई, भाभी, पिता सब उसे देखने आते थे. परंतु इलाज के खर्चे के आगे घुटने टेकने लगे. अस्पताल से दबाव पड़ा कि और पैसे जमा करो या मरीज को घर ले जाओ, तो परिजनों ने आना बंद कर दिया. बेचारी को अस्पताल के रहमोकरम पर छोड़ दिया. परंतु, यह लड़की लगातार सुबहशाम आती रहती है.

वार्ड में वह चांदनी के सिर पर स्नेह से हाथ फेरते हुए कुछ बोल रही थी इस बात से अनजान कि उस की बात चांदनी नहीं, पीछे खड़े डाक्टर मृणाल सुन रहे हैं, “तुझे ठीक होना होगा चांदनी, मैं तुझे इस तरह से नहीं देख सकती.”

“आप का विश्वास इसे ठीक करेगा, मिस…” डाक्टर मृणाल ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी.

” वर्षा, मेरा नाम वर्षा है डाक्टर,” वह उठती हुई बोली.

“वर्षा जी, आप इन की बहन हैं?”

“नहीं डाक्टर, यह मेरी सहेली है.”

“सहेली ? आप सहेली के लिए…” डाक्टर मृणाल को कुछ सूझा नहीं तो वे चुप हो गए.

” जी हां, मैं अपनी सहेली के लिए ही आती हूं. आप को एतराज है क्या डाक्टर?” वह सीधे डाक्टर की आंखों में देख रही थी.

“क्षमा करें, आप की भावना को आहत करने का मेरा इरादा नहीं था. पर आजकल … आप समझ रही हैं न वर्षा जी, मैं क्या कहना चाह रहा हूं.”

“जी डाक्टर, समझ रही हूं. मैं भी क्षमा चाहती हूं. मुझे इस तरह उत्तेजित नहीं होना चाहिए था.”

“क्षमा तो आप को मिल सकती है वर्षा जी, अगर आप कैंटीन में चल कर मेरे साथ एक कप कौफी पिएं.”

अपने हाथ में बंधी घड़ी पर नजर डालते हुए वर्षा बोली, “लेकिन मुझे जाना है.”

“क्या 10 मिनट भी नहीं निकाल सकतीं?”

“ठीक है, 10 मिनट तो हैं.”

“आइए.”

दोनों मौन कैंटीन की ओर चल दिए. वहां पहुंच कर डाक्टर मृणाल बैठने से पहले काउंटर पर 2 कौफी बोल आए.

“वर्षा जी, आप क्या कर रही हैं?”

“मैं स्कूल में पढ़ा रही हूं डॉक्टर,” मृदु मुसकान के साथ वर्षा बोली.

“आप मुझे मृणाल ही कहें. मृणाल, मेरा नाम है,” विनम्रता से डाक्टर मृणाल बोले.

“बहुत अच्छा नाम है.”

“आप को देख कर तो लगता है आप पढ़ ही रही होंगी.”

“मैं पढ़ ही रही थी डाक्टर…मेरा मतलब है मृणाल जी.”

“अं…?”

“परिस्थितियां बदल गईं मृणाल जी और मुझे पढ़ाई छोड़ कर नौकरी करनी पड़ी.”

“हां, समय बहुत बलवान होता है.”

“अरे, समय हो गया, मुझे निकलना होगा. मेरे स्कूल का टाइम हो गया,” अपना कप रखती हुई वर्षा उठ खड़ी हुई.

“कौफी पर मेरा साथ देने के लिए धन्यवाद वर्षा जी.”

मृणाल वहीं बैठा वर्षा को जाता देखता रहा. धीरेधीरे यह रोज की दिनचर्या बन गई. मृणाल सुबहसुबह वर्षा के आने के समय पर चांदनी के वार्ड में पहुंच जाता और शाम को फिर वर्षा को वहीं मिलता.

एक दिन वर्षा ने हंसते हुए पूछा, “मृणाल, आप मेरी सहेली के इलाज में कुछ ज्यादा ही रुचि लेते हैं, क्या बात है?”

“आप की सहेली तो मेरी मरीज है. उस के प्रति मेरी जिम्मेदारी है. लेकिन आप से मुझे प्यार हो गया है.”

“नहीं…” कहती हुई वर्षा उठी और तेजी से कमरे से बाहर भाग गई.

हतप्रभ सा मृणाल कुछ समझ ही नहीं पाया. अगली सुबह मृणाल बेसब्री से वार्ड में टहल रहा था, सोच रहा था, वह आएगी या नहीं. तभी वह रोज की तरह आती दिखाई दी और मृणाल की जान में जान आ गई.

“गुडमौर्निंग वर्षा.”

“गुडमौर्निंग डाक्टर.”

“क्या बात है वर्षा, तुम ठीक तो हो?” वर्षा की लाल आंखों की ओर देखते हुए मृणाल ने पूछा.

“मैं ठीक हूं डाक्टर. लेकिन क्षमा चाहती हूं, यदि मेरी किसी बात से आप के मन में यह प्यार वाली बात आई है तो.”

“वर्षा…”

“डा. मृणाल, प्यार या ऐसी सारी कोमल भावनाएं मेरे जीवन से दूर जा चुकी हैं. मेरे जीवन का एक ही लक्ष्य है, कि मेरी चांदनी ठीक हो जाए. उस के पहले मैं और कुछ नहीं सोच सकती.”

“तुम्हें पता है, चांदनी ठीक भी हो सकती है और…”

“जानती हूं, आप सब डाक्टरों यही बताया है.”

“फिर?”

“अपने जीवन का निर्णय लेने का अधिकार तो मुझे है ही.”

“वर्षा, तुम्हारा यह निस्वार्थ समर्पण, तुम्हें औरों से अलग खड़ा करता है.”

“एक मिनट, डाक्टर मुझे महान समझने की भूल मत करिएगा.”

“तुम महान हो वर्षा. जो जीवन में अकेला होता है, इस निश्च्छ्ल स्नेह की कीमत वही जानता है. आज से 4 वर्षों पहले जब मुझे पहली सैलरी मिली थी तब मैं ने अपने मम्मीपापा को तीर्थयात्रा के लिए भेजा था. यह उन का सपना था. परंतु मेरा समय देखो, लौटते समय उन की बस खाई में गिर गई और कोई नहीं बचा. डाक्टर हो कर भी मैं कुछ नहीं कर सका. मेरी दुनिया उजड़ गई. मैं बिलकुल अकेला हो गया. इस दर्द को मैं ने भोगा है. फिर मैं ने चांदनी को अकेले होते हुए देखा. परंतु समय की बलवान है वह, कि अपनों द्वारा छोड़े जाने के बाद भी तुम ने उसे नहीं छोड़ा. तुम्हारे लिए मेरे मन में प्यार के साथसाथ बहुत आदर भी है.”

“नहीं डाक्टर मृणाल, मैं इस प्यार और आदर के योग्य नहीं हूं. जहां तक बात अपनों के तिरस्कार की है तो डूबते सूरज को कौन जल चढ़ाता है? और अगर मेरी बात करें तो यह मेरा प्रायश्चित्त भी है. कहीं ना कहीं मैं खुद

को दोषी पाती हूं.”

“भरोसा कर सको, तो मुझे पूरी बात बताओ. पर प्लीज, मुझे मृणाल ही कहो.”

“भरोसा तो जाने क्यों आप पर हो गया है. और जहां तक अकेलेपन की बात है, तो चांदनी का साथ देने का निर्णय ले कर मैं भी पूरी तरह अकेली ही हो गई हूं.”

“बैठो,” स्टूल वर्षा की ओर खिसकाते हुए डाक्टर मृणाल बोले.

दोनों चांदनी की बैड के पास 2 स्टूलों पर बैठ गए. वर्षा शून्य में देखती हुई बोली, “मेरे मम्मीपापा नहीं हैं. केवल भाई, भाभी हैं. उन पर मैं बोझ हूं. चांदनी के पापा हैं और भाई, भाभी भी हैं. भाभी को वह फूटी आंख नहीं सुहाती. दुनियादारी निभाने कुछ समय वे लोग अस्पताल आए और अब खुश हैं कि उस की शादी का खर्चा बचा. अंकल खुद बेटे के ऊपर ही आश्रित हैं. हम दोनों सहेलियां बचपन से साथ ही पढ़ी हैं. घर हमारा भले ही दूर था, पर मन बहुत करीब था. हमारे दर्द साझा थे. हम दोनों पढ़ कर अपने पैरों पर खड़ा होना चाहते थे. परंतु चांदनी के जीवन में तपन नाम का एक लड़का आ गया. दोनों के बीच गहरा प्रेम था, ऐसा मुझे लगता था. चांदनी मेरे घर आने का बहाना कर तपन के साथ समय बिताती थी. पर हमेशा मुझे बता देती थी ताकि मैं घर वालों के प्रश्नों को संभाल लूं. सबकुछ ठीक ही चल रहा था. उस दिन तपन ने मुझे फोन कर कहा, ‘मैं चांदनी को सरप्राइज देना चाहता हूं. चांदनी को विराट होटल के कमरा नंबर 16 में भेज दो. मेरा जन्मदिन है और मैं चाहता हूं कि मैं आज के दिन ही उसे प्रपोज करूं.’ मैं बहुत खुश हो गई और उस के सरप्राइज में शामिल हो गई. चांदनी को फोन कर के वहां बुला लिया.”

यह सब बोलतेबोलते वर्षा फफक कर रो पड़ी. मृणाल ने उठ कर उसे गिलास में पानी दिया. शून्य में देखते हुए ही उस ने पानी पी कर गिलास मृणाल को पकड़ा दिया.

“मैं चांदनी के फोन की प्रतीक्षा कर रही थी. पर उस का फोन नहीं आया. मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था कि इतनी बड़ी बात वह मुझे क्यों नहीं बता रही. जब नहीं रहा गया तो मैं ने उसे फोन लगाया. पर फोन नहीं उठा. थकहार कर मैं ने उस की भाभी को फोन मिलाया. वे बोलीं, ‘तुम्हारी सहेली तुम्हारे घर जाने का बहाना कर जाने कौन सा गुल खिलाने होटल विराट चली गई थी. वहां गिर गई है. पता नहीं बचेगी कि नहीं. हम लोग अस्पताल में हैं.’

“मैं भागतीदौड़ती अस्पताल पहुंची. उस की हालत देख कर साफ पता चल रहा था कि उस के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश हुई है. मैं ने पुलिस को, भैया और अंकल को उस के होटल विराट जाने का कारण बताया और तपन का नंबर दे दिया. पता चला तपन एक रईस परिवार का बिगड़ा हुआ लड़का था और उस ने गलत इरादे से चांदनी को वहां बुलाया था. कमरे में वह 2 दोस्तों के साथ उस की प्रतीक्षा कर रहा था. परंतु चांदनी ने उन सब का डट कर मुकाबला किया और आखिर में खुद को बचाने के लिए खिड़की से कूद गई. उस का सिर दीवार से टकराया था और वह कोमा में चली गई. तपन ने पुलिस वालों के साथसाथ चांदनी के भाई को भी मोटी रकम दे कर केस वापस करा लिया. और अब वे लोग उस का इलाज भी नहीं करा रहे हैं. इसलिए, मैं ने पढ़ाई छोड़ कर 2 महीना पहले यह नौकरी जौइन कर ली, ताकि चांदनी का इलाज न रुके. मैं और कुछ तो नहीं कर सकती, पर उस का इलाज तो जरूर करवाऊंगी,” यह कह कर वह फिर रो पड़ी.

मृणाल ने धीरे से वर्षा के कंधे पर हाथ रखा, “वर्षा, तुम अपने इस निर्णय पर मुझे हमेशा अपने साथ खड़ा पाओगी. आंसू पोंछ लो वर्षा.”

वर्षा ने नजर उठा कर मृणाल की ओर देखा जैसे तोल रही हो.

“वर्षा हम दोस्त हैं, और दोस्त ही रहेंगे. यह दोस्ती प्यार के रिश्ते में तब ही बदलेगी जब तुम चाहोगी. मैं सारी उम्र तुम्हारी प्रतीक्षा कर सकता हूं. रही बात चांदनी के इलाज की, तो मैं तुम से वादा करता हूं, आज से यह जिम्मेदारी मेरी है.”

“मृणाल…”

“कुछ मत बोलो वर्षा. बस, मुझे अपने साथ खड़े रहने की अनुमति दे दो.”

एक महीने बाद डा. मृणाल और वर्षा एक सादे समारोह में परिणय सूत्र में बंध गए. मृणाल के छोटे से घर में पहुंच कर वर्षा ने चारों ओर नजर घुमाई. सलीके और सादगी से सजा घर मृणाल के व्यक्तित्व से मेल खा रहा था. उसी समय मृणाल ने पीछे से आ कर उसे बांहों में भर लिया. इस अनोखी छुअन से वह सिहर उठी और आंखें बंद कर मृणाल की आगोश में समा गई.

“वर्षा, तुम्हें कुछ दिखाना है, आओ मेरे साथ.”

वर्षा मृणाल के पीछे चल दी. एक कमरे का दरवाजा खोल कर मृणाल उस का हाथ पकड़ कर अंदर प्रविष्ट हुआ. चकित सी वर्षा देखती रह गई. वह कमरा अस्पताल का कमरा लग रहा था, जिस में सारी मैडिकल सुविधाएं उपलब्ध थीं. और ठीक बीचोंबीच अस्पताल वाला लोहे का एक बैड पड़ा हुआ था.

“वर्षा, यह कमरा तुम्हारी सहेली और मेरी बहन चांदनी के लिए है. कल हम दोनों चल कर उसे यहां ले आएंगे. अब से वह अपने घर में रहेगी और हम दोनों मिल कर उस की देखभाल करेंगे.”

वर्षा आश्चर्य से मृणाल की ओर पलटी और उस के गले से लग कर सिसक उठी, “मृणाल.”

“वर्षा,” मृणाल ने कस कर उसे अपनी बांहों में ले लिया.

“आप बहुत महान हैं मृणाल. शायद ही किसी पति ने अपनी पत्नी को इतना अनमोल तोहफा दिया होगा.”

“नहीं वर्षा, तुम्हारे लिए तो कुछ भी किया जाए वह कम ही है. आज के समय में किसी के लिए अपना पूरा जीवन उत्सर्ग करने को कोई तत्पर हो तो वह हीरा ही है. और ऐसा हीरा मेरे जीवन में आया है. तो उसे तो मैं पलकों पर बिठा कर ही रखूंगा.”

“मृणाल, प्यार पर से तो मेरा विश्वास ही उठ गया था. पर तुम ने मेरे जीवन को प्यार से सराबोर कर दिया,” कह कर वर्षा फिर आलिंगनबद्ध हो गई.

दोनों का तनमन प्यार की फुहार से भीग रहा था.

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