कोरोना महामारी की पहली लहर के दौरान जहां सभी लोग अपनेअपने घरों में सिमट गए थे, वहीं नौकरीपेशा लोगों के लिए ड्यूटी पर जमे रहना जरूरी था.
उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले का रहने वाला 25 साल का राजेश कुमार रेलवे में ट्रैकमैन की नौकरी कर रहा था. उस की पोस्टिंग बिहार के रोहतास जिले में हुई थी. वह कई सालों से रोहतास के डेहरी औन सोन के रेलवे क्वार्टर में रह रहा था.
रेलवे लाइन के किनारे सरकारी क्वार्टर बने हुए थे. वैसे, इस महकमे के सरकारी क्वार्टरों की हालत अच्छी नहीं थी. ज्यादातर रेलवे मुलाजिम इन क्वार्टरों में रहना पसंद नहीं करते थे. इस की वजह यह थी कि सरकारी क्वार्टर होने के चलते इन के रखरखाव और मरम्मत ठीक से नहीं हो पाई थी, जिस से कुछ को छोड़ कर ज्यादार क्वार्टर जर्जर हो चुके थे, इसलिए लोगों को रहने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था.
लिहाजा, ज्यादातर रेलवे मुलाजिम सरकारी क्वार्टर को अलौट नहीं करवाना चाहते थे. दूसरी वजह यह भी थी कि रेलवे स्टेशन शहर से थोड़ा दूर था. लेकिन राजेश कुंआरा था और उसे घर के लिए पैसे भी बचाने थे, इसलिए उस के लिए रेलवे क्वार्टर में ही रहना ठीक था.
जब कोरोना की पहली लहर आई तो राजेश को हाजिरी लगाने भर के लिए ड्यूटी जाना पड़ता था, क्योंकि देशभर में ट्रेनों की आवाजाही बंद कर दी गई थी.
उस दिन रात के तकरीबन 9 बजे राजेश क्वार्टर से खाना खा कर आदतन चहलकदमी करने निकला था. वह जैसे ही घर से बाहर निकला, घर के पिछवाड़े में एक औरत उस के कमरे की दीवार के पास बदहवास हालत में पड़ी हुई थी.
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