Story In Hindi: चंगाई सभा

Story In Hindi, लेखक – आर. सेलट

पूरन पाल चुपचाप अपने सरकारी क्वार्टर के पीछे वाले दरवाजे की चौखट पर बैठा गहरी चिंता में डूबा हुआ था. उस के 3 बच्चे थे, 2 लड़कियां, जो नर्स बनने वाली थीं और एक लड़का.

पूरन पाल का एकलौता लड़का 14 साल का था, जो गूंगा ही पैदा हुआ था. पूरन पाल सोचता था, लड़कियों की शादी हो जाए और लड़के का बंदोबस्त हो जाए, तो उस की नैया भी पार लग जाए.

तकरीबन 2 महीने पहले पूरन पाल को पता चला कि शहर में विदेश से एक पादरी साहब आ कर ‘चंगाई सभा’ करने वाले हैं. चर्च के पादरी ने भी सब को इस बारे में बता दिया था. शहर में भी पोस्टर लगे थे.

फैक्टरी की दीवार पर भी एक पोस्टर चिपका था. हैरी ने बताया था, ‘‘बहुत बड़े पादरी आ रहे हैं.’’

पूरन पाल सोच रहा था कि उस के पिताजी भी तो अंगरेजों के समय में चर्च में बैरा थे. पर पहले पादरी छोटेबड़े नहीं होते थे. हां, अब समय भी तो बदल गया है. अब ऐरू को देखो, वह लालू चाचा का लड़का था और लालू चाचा तो उस के पिताजी के साथ चर्च में बैरा थे. पूरन पाल के पिताजी और लालू चाचा आपस में अच्छे दोस्त थे. दोनों मिशन के अनाथ आश्रम में पले थे.

ऐरू ने पूरन पाल के सामने ही गिरजे की किताबें बेचीं. फिर पादरी बनने की ट्रेनिंग ले ली और विदेश हो आया. वह बिशप भी बन गया है.

‘चंट था ससुरा, पर हम रहे भोंदू के भोंदू,’ सोचते हुए पूरन ने सिर झटक दिया, ‘अब तो ऐरू की बात ही और है. बंगला है, 2 कारें हैं, पत्नी शहर के बड़े अंगरेजी स्कूल में प्रिंसिपल है. लोग उसे रेवरंड ऐरन कहते हैं. कभी साथ हौकी खेलता था. अब अकेले में मिलता है, तो दुआसलाम कर लेता है, नहीं तो वह भी नहीं. कलक्टर, पुलिस कप्तान के साथ उठताबैठता है, उस के बच्चे भी तो मिशन स्कूल में ही पढ़ते हैं.’

बहरहाल, ‘चंगाई सभा’ की तैयारी जोरशोर से चल रही थी. सुनने में आया था कि 4-5 लाख रुपए भेजे हैं, विदेशी पादरी ने इंतजाम के लिए. गिरजे का सचिव डगलस बता रहा था कि विदेशी पादरी बहुत पहुंचे हुए हैं. वह सब को चंगा कर देते हैं. लंगड़े दौड़ने लगते हैं, गूंगे बोलने लगते हैं और बहरे सुनने लगते हैं.

डगलस ने कहा था, ‘‘तेरे लड़के की जीभ से ‘शैतानी बंधन’ भी खुल जाएगा. बस, यकीन पक्का होना चाहिए.’’

पूरन पाल बहुत खुश था. उसे ऐसा लग रहा था, मानो सारा तामझाम उसी के लिए हो रहा है. गिरजे के मैदान में हजारों लोगों के बैठने का इंतजाम किया गया था. दर्जनों लाउडस्पीकर और सैकड़ों बल्ब लगे थे. पूरन पाल को एक रात सपना भी आया कि उस का लड़का गोलू बोल रहा है.

आखिर वह दिन भी आ गया, जब ‘चंगाई सभा’ होनी थी. पूरन पाल सुबह से ही शाम होने का इंतजार करने लगा. उस दिन इतवार था, सो फैक्टरी तो जाना नहीं था. शाम होते ही वह गोलू को तैयार कर साइकिल पर बैठा कर ले गया.

पूरा मैदान रंगबिरंगी रोशनियों से नहा रहा था. माइक पर भाषण चालू था. विदेशी पादरी के आने से पहले, जिस को जितना मौका मिला, मंच पर आ कर बोल लिया. हजारों लोग बैठे थे. कुछ बाहर से भी आए थे.

हैरिसन भी आया था, चमकीली कमीज और टाई लगा कर. पूरन पाल को हंसी आ गई. हैरिसन फैक्टरी में कुली था. घर में भले खाने को न हो, पर बड़े दिन पर रम की 3-4 बोतलें जरूर लाता था. तभी लोगों में हलचल होने लगी.

3-4 कारों का काफिला मंच के सामने रुका. गोरे विदेशी पादरी स्टेज पर चढ़ गए. बिशप ऐरू भी साथ में था.

रमेश चंद्र नामक एक नेता, जो पहले ब्याज पर पैसा देता था, वह भी वहां आया हुआ था. पूरन ने सोचा कि यह यहां क्या कर रहा है? अब भोले पूरन पाल को क्या समझ कि ऐसे ‘वोट बैंक’ बारबार तो नहीं मिलते.

एकदम सन्नाटा छा गया था. आधा घंटा ‘दुआ’ हुई. फिर चंदा इकट्ठा किया गया. कुछ लोग स्टेज पर जा कर लिफाफे दे रहे थे, कुछ नीचे घुमाए जा रहे दान के डब्बे में पैसे डाल रहे थे.

जब चंदे का डब्बा पूरन पाल के सामने आया तो उस ने 10 रुपए का सिक्का पेटी में डाल दिया. नीचे
नोट थे, इसलिए सिक्के की आवाज भी नहीं आई.

पीतल की नक्काशी वाला बड़ा सुंदर डब्बा था, जिस पर बाइबिल की आयत लिखी थी, ‘जब तुम दाएं हाथ से दान करो तो तुम्हारे बाएं हाथ को भी पता न चले’.

फिर ऐलान हुआ, ‘जो लोग चंगाई चाहते हैं, सामने आ जाएं.’

पूरन पाल भी गोलू का हाथ पकड़ कर स्टेज के सामने जा पहुंचा. चंगाई शुरू हुई तो चाय वाले एलबर्ट के लंगड़े बच्चे का हाथ पकड़ कर धकियाते हुए दौड़ाया गया. अगला नंबर गोलू का था. पूरन उसे ले कर स्टेज पर पहुंचा.

विदेशी पादरी अंगरेजी में बोलता था और देशी पादरी हिंदी में उस की बात बताता था. बिशप ऐरू और नेता रमेश चंद्र अपनी बातचीत में मशगूल थे. शायद ईसाई कब्रिस्तान के पीछे पड़ी लंबीचौड़ी जमीन की बात कर रहे थे.

विदेशी पादरी ने गोलू के सिर पर हाथ रख कर ‘दुष्ट आत्माओं’ को भगाने की दुआ की. लोग हैरानी से देख रहे थे.

पादरी ने पूछा, ‘‘लड़का बचपन से गूंगा है?’’

पूरन पाल ने ‘हां’ में सिर हिला दिया. फिर पादरी धीरे से कुछ बुदबुदाने लगा. थोड़ी देर बाद उस ने कहा, ‘‘बेटा, अब बोलो, ‘जीसस लवस यू’…’’

गोलू के गले से वही पुरानी घुटी सी आवाज निकली, ‘‘इसस अम ऊ.’’

विदेशी पादरी जोर से चिल्लाया, ‘‘आलेलुइया… थैंक्स द लार्ड.’’

मंच पर बैठे लोग भी चिल्लाने लगे. उन की देखादेखी नीचे बैठे और खड़े लोग भी चिल्लाने लगे.

चर्च के पादरी ने कहा, ‘‘अब शैतानी बंधन जीभ से टूट चुका है. अब यह लड़का जल्दी ही बोलने लगेगा. बस, एक हफ्ते के अभ्यास की जरूरत है.’’

कुछ लोग अब भी चिल्ला रहे थे. पादरी साहब ने पूरन पाल को धीरे से धकियाते हुए स्टेज के दूसरी तरफ से उतरने का इशारा किया.

एक घंटे बाद ‘चंगाई सभा’ खत्म हुई. इतवार को गिरजे में पादरी ने ‘चंगाई सभा’ की बातें बढ़ाचढ़ा कर बताई.

पूरन पाल के लड़के और दूसरे लोगों के ‘चंगे’ होने की बातें बताईं.

जो लोग ‘चंगाई सभा’ में नहीं आ पाए थे, उन्हें इस बात का दुख था. गिरजे के सचिव डगलस ने नया स्कूटर खरीद लिया था.

2 महीने बाद भी पूरन पाल को थोड़ी उम्मीद थी कि शायद गोलू ठीक हो जाए. किंतु उस की आवाज में सुधार नहीं हुआ था. शाम को फैक्टरी से लौटते वक्त एलबर्ट चाय वाले के लड़के को देखा, जो ‘चंगाई सभा’ में ‘चंगा’ हो गया था, वह सड़क के किनारेकिनारे पहले की तरह बैसाखी के सहारे लंगड़ाते हुए चला आ रहा था. पूरन का दिल बैठ सा गया था.

अब वह घर के पिछवाड़े बैठा बेटे के बारे में सोच रहा था. सोचता था, गोलू ठीकठाक कहीं लग जाए,
तो बुढ़ापे में सहारा हो जाए या गोलू को ही सहारा…?

गरमियों के दिनों में शाम को पीछे बैठना पूरन को बहुत सुहाता था, ठंडीठंडी हवा उसे अच्छी लगती थी.
पर सच ही है. दिल अच्छा न हो तो कुछ भी अच्छा नहीं लगता. तभी पीछे के कमरे में लगा कलैंडर हवा में फड़फड़ाया.

पूरन पाल ने अलसाई नजरों से देखा, कलैंडर पर हल चला रहे किसान की तसवीर थी और नीचे बाइबिल की आयत याकुब 2.26 लिखी थी, ‘निदान, जैसे देह ‘आत्मा’ के बिना मरी हुई है, वैसे ही विश्वास भी कर्म के बिना मरा हुआ है’.

पूरन पाल को मानो निदान मिल गया. सुबह गोलू को तैयार कर साइकिल पर बैठा कर ले जाने लगा तो पत्नी सारा ने पूछा, ‘‘कहां…?’’

‘‘गूंगेबहरे बच्चों के सरकारी स्कूल…’’ पूरन पाल ने जवाब दिया. Story In Hindi

Story In Hindi: उपहार – कौन थी क्षमा जिस ने रविकांत के जीवन में बहार ला दी   

Story In Hindi: अपने पहले एकतरफा प्रेम का प्रतिकार रविकांत केवल ‘न’ मेें ही पा सका. उस की कांती तो मां-बाप के ढूंढ़े हुए लड़के आशुतोष के साथ विवाह कर जरमनी चली गई. वह बिखर गया. विवाह न करने की ठान ली. मांबाप अपने बेटे को कहते समझाते 4 साल के अंदर दिवंगत हो गए.

कांती के साथ कौलेज में बिताए हुए दिनों की यादें भुलाए नहीं भूलती थीं. यह जानते हुए भी कि वह निर्मोही किसी और की हो कर दूर चली गई है वह अपने मन को उस से दूर नहीं कर पा रहा था. कालिज की 4 सालों की दोस्ती मेें वह उसे अपना दिल दे बैठा था. कई बार कोशिश करने के बाद रविकांत ने बड़ी कठिनाई से सकुचाते झिझकते एक दिन कांती से कहा था, ‘मैं तुम से प्रेम करने लगा हूं और तुम्हें अपनी जीवनसंगिनी के रूप में पा कर अपने को धन्य समझूंगा.’

जवाब में कांती ने कहा था, ‘रवि, मैं तुम्हें एक अच्छा दोस्त मानती हूं और इसी नाते से मैं तुम से मिलती जुलती रही. मैं तुम से उस तरह का प्रेम नहीं करती हूं कि मैं तुम्हारी जीवनसंगिनी बनूं. रही विवाह की बात, तो मैं तुम्हें यह भी बता देती हूं कि मैं शादी तो अपने मां-बाप की मर्जी और उन के ढूंढ़े हुए लड़के से ही करूंगी. अब चूंकि तुम्हारे विचार मेरे प्रति दोस्ती से बढ़ कर दूसरा रुख ले रहे हैं, इसलिए मेरा अनुरोध है कि तुम भविष्य में मुझ से मिलना-जुलना छोड़ दो और हम दोनों की दोस्ती को यहीं खत्म समझो.’

उस के बाद कांती फिर कभी रविकांत से नहीं मिली. रविकांत भी यह साहस नहीं कर सका कि उस के मातापिता से मिल कर कांती का हाथ उन से मांगता क्योेंकि उस आखिरी मुलाकात  के दिन उसे कांती की आंखों में प्यार तो दूर सहानुभूति तक नजर नहीं आई थी.

रविकांत ने खुद को प्रेम में असफल समझ कर जिंदगी को बेमानी, बेकार और बेरौनक मान लिया. ऐसे में अधिकतर लोग कठिनाइयों और असफलताओं से घबरा कर खुद को कमजोर समझ अपना आत्मविश्वास और उत्साह खो बैठते हैं.

रविकांत अब 50 पार कर चुके हैं. उन के कनपटी के बाल सफेद हो चुके हैं. आंखों पर चश्मा लग गया  है. इतने सालों तक एक ही कंपनी की सेवा में पूरी निष्ठा से लगे रहे तो अब वह जनरल मैनेजर बन गए हैं.

कंपनी से मिले हुए उन के फ्लैट के सामने वाले फ्लैट में कुछ दिन पहले ही शोभना नाम की एक महिला अपनी 24 साल की बेटी क्षमा के साथ किराए पर रहने के लिए आई.

क्षमा अपनी मां की ही तरह अत्यंत सुंदर और हंसमुख लड़की थी. वह जब भी रविकांत के सामने पड़ती ‘अंकल नमस्ते’ कहना और उन्हें एक मुसकराहट देना कभी नहीं भूलती. रविकांत भी ‘हैलो, कैसी हो बेटी’ कहते और उस के उत्तर में वह ‘थैंक यू’ कहती. क्षमा एम.एससी. कर के 2 वर्ष का कंप्यूटर कोर्स कर रही थी. इधर कई दिनों से रविकांत को न देख कर उस ने उन के नौकर से पूछा तो पता चला कि वह तो कई दिनों से बीमार हैं और नर्सिंग होम में भरती हैं. नौकर से नर्सिंग होम का पता पूछ कर क्षमा उसी शाम उन से मिलने नर्सिंग होम पहुंची.

क्षमा को देख कर रविकांत बेहद खुश हुए पर क्षमा ने पहले तो इस बात का गुस्सा दिखाया कि इतने दिनों से बीमार होने पर भी उन्होंने उसे खबर क्यों नहीं दी. वह तो हमेशा की तरह यही सोचती रही कि आप कहीं ‘टूर’ पर गए होंगे. क्षमा की झिड़की वह चुपचाप सुनते रहे. मन में उन्हें अच्छा लगा. क्षमा काफी देर तक उन के पास बैठी उन का हालचाल पूछती रही.

रविकांत ने जब बताया कि अब वह ठीक हैं और कुछ ही दिनों में उन्हें नर्सिंग होम से छुट्टी मिल जाएगी तभी उस की प्रश्नावली रुकी. घर वापस लौटते समय वह उन्हें जल्दी से अच्छे होने की शुभकामना देना नहीं भूली.

क्षमा अब रोज शाम को रविकांत को देखने नर्सिंग होम जाती. रविकांत का भी मन बहल जाता था. वह बड़ी बेसब्री से उस के आने की प्रतीक्षा करते. उस के आने पर वे दोनों विभिन्न विषयों पर बहस करते और हंसते हुए बातचीत करते रहते. 2 घंटे कितनी जल्दी गुजर जाते पता ही नहीं लगता.

जिस दिन रविकांत को नर्सिंग होम से छुट्टी मिली, क्षमा उन्हें अपने साथ ले कर उन के फ्लैट पर आई. अगले दिन रविकांत अपनी ड्यूटी पर जाने लगे तो क्षमा ने यह कह कर जाने नहीं दिया कि आप आज आराम करें और फिर कल तरोताजा हो कर काम पर जाएं.

अगले दिन शाम को जब रविकांत देर से वापस लौटे तो उन के आने की आहट सुन उस ने दरवाजा खोला. नमस्ते की. साथ ही देर करने का उलाहना भी दिया.

सप्ताह में 1-2 बार क्षमा उन के बुलाने पर या खुद ही उन के फ्लैट में जा कर घंटे डेढ़ घंटे गप लड़ाती, नौकर थोड़ी देर में चाय दे जाता. चाय की चुस्कियां लेते हुए वह अपनी बातें चालू रखते जो अकसर अन्य विषयों से सिमट कर अब कालिज, आफिस, घरेलू और निजी बातों पर आ जाती थीं.

क्षमा ने एक दिन पूछ ही लिया, ‘‘अंकल, आप अकेले क्यों हैं? आप ने शादी क्यों नहीं की? आप को साथी की कमी महसूस नहीं होती क्या? आप को अकेले घर काटने को नहीं दौड़ता? नौकर के हाथ का खाना खातेखाते आप का जी नहीं ऊबता?’’

रविकांत ने अपने पिछले प्रेम का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘क्षमा, हम सब नियति के हाथों की कठपुतली हैं जिसे वह जैसा चाहती है नचाती है. अकेलापन तो मुझे भी बहुत काटता है पर मैं अपने आप को आफिस के काम में व्यस्त रख उसे भगाए रहता हूं. मुझे खुशी है कि अब मेरा कुछ समय तुम्हारे साथ हंसते-बोलते कट जाता है. तुम्हारे साथ बिताए ये क्षण मुझे अब भाने लगे हैं.’’

रविकांत की बीमारी को धीरे-धीरे 1 वर्ष हो गया. इस बीच क्षमा ने अपनी मां से पूछ रविकांत को करीब-करीब हर माह 1-2 बार खाने पर बुलाया. रविकांत शोभनाजी से मिलने पर क्षमा की बड़ी प्रशंसा करते. उन की थोड़ीबहुत औपचारिक बातें भी होतीं. जिस दिन रविकांत खाने पर आने को होते उस दिन क्षमा बड़े उत्साह से घर ठीक करने और खाना बनाने में मां के साथ लग जाती. वह अकसर मां से रविकांत के गुणों और विशेषताओं पर चर्चा करती रहती. वे हांहूं कर उस की बातें सुनती रहतीं.

बेटी और पड़ोसी रविकांत की बढ़ती दोस्ती और मिलनाजुलना कुछ महीनों से शोभना के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा था. क्षमा से इस बारे में कुछ न कह उन्होंने उस के विवाह के लिए प्रयत्न जोरों से शुरू कर दिए. उन की सहेली रमा का बेटा रौनक इन दिनों आस्ट्रेलिया से कुछ दिनों के लिए भारत आया हुआ था. क्षमा भी उस से बपचन से परिचित थी. शोभना ने रमा को क्षमा और रौनक के विवाह का सुझाव दिया तो वह अगले दिन शाम को अपने पति देवनाथ और बेटे रौनक के साथ मिलने आ गईं. शोभना और रमा के बीच कोई औपचारिकता तो थी नहीं सो उस ने उन्हें खाने के लिए रोक लिया.

भोजन के समय रमा ने सब के सामने क्षमा से सीधा प्रश्न कर दिया, ‘‘क्षमा बेटी, मेरा बेटा रौनक तुम्हें बचपन से पसंद करता है. यदि तुम्हें भी रौनक पसंद है तो तुम दोनों के विवाह से तुम्हारी मां और हमें बहुत खुशी होगी.’’

क्षमा पहले तो चुप रही पर रमा के बारबार आग्रह पर उस ने कहा, ‘‘आंटी, आप लोग हमारे बड़े हैं. मां जैसा कहेंगी मुझे मान्य होगा.’’

शोभना ने कहा, ‘‘क्षमा, रौनक सब प्रकार से तुम्हारे लिए उपयुक्त वर है. हमारे परिवारों के बीच संबंध भी मधुर हैं, इसलिए मैं चाहूंगी कि तुम और रौनक दोनों खाना खत्म करने के बाद बाहर लान में एकसाथ बैठ कर आपस में सलाह कर लो.’’

आपस में बातें कर के जब वे लौटे तो दोनों को खुश देख कर शोभना ने क्षमा को अंदर कमरे में ले जा कर उस से कहा, ‘‘तो फिर मैं बात पक्की कर दूं?’’

क्षमा के सकुचाते हुए स्वीकृति में सिर हिलाते ही उन्होंने उस के माथे को चूम कर उसे आशीर्वाद दिया. वे दोनों मांबेटी तब डाइंगरूम में आ गईं. शगुन के रूप में शोभना ने 1 हजार रुपए रौनक के हाथ में रख दोनों को आशीर्वाद दिया और रमा से लिपट उसे और उस के पति को बधाई दी. रौनक के आस्ट्रेलिया लौटने से पहले ही विवाह संपन्न करने की बात भी अभिभावकों के बीच हो गई.

क्षमा, शोभना और उस के पति का पासपोर्ट जापान, हांगकांग और आस्ट्रेलिया घूमने जाने के लिए पहले से ही बना हुआ था पर 3 वर्ष पहले क्षमा के पिता की अचानक मृत्यु हो जाने से वह प्रोग्राम कैंसिल हो गया था. यदि इस बीच क्षमा का वीसा बन गया तो वह भी रौनक के साथ आस्ट्रेलिया चली जाएगी नहीं तो रौनक 6 महीने बाद आ कर उसे ले जाएगा.

अगली शाम रविकांत से मिलने पर क्षमा ने उन्हें अपनी शादी के बारे में जब बताया तो उन्हें चुप और गंभीर देख वह बोली, ‘‘ऐसा लगता है अंकल कि आप को मेरे विवाह की बात सुन कर खुशी नहीं हुई.’’

रविकांत बोले, ‘‘तुम चली जाओगी तो मैं फिर अकेला हो जाऊंगा. मैं तो इन कुछ महीनों में ही तुम्हें अपने बहुत नजदीक समझने लगा था. पर यह तो मेरा स्वार्थ ही होगा, यदि मैं तुम्हारे विवाह से खुश न होऊं. मैं तो वर्षों से अकेले रहने का आदी हो गया हूं. मेरी बधाई स्वीकार करो.’’

क्षमा इठलाते हुए बोली, ‘‘ऐसे नहीं, मैं तो आप से बहुत बड़ा उपहार भी लूंगी, तभी आप की बधाई स्वीकार करूंगी.’’ रविकांत ने कहा, ‘‘तुम जो भी चाहोगी, मैं तुम्हें दूंगा. तुम कहो तो, तुम क्या लेना चाहोगी. अपनी इतनी अच्छी प्रिय दोस्त के लिए क्या मैं इतना भी नहीं कर सकूंगा.’’

‘‘पहले वादा कीजिए कि आप मना नहीं करेंगे.’’

‘‘अरे, मना क्योें करूंगा. लो, वादा भी करता हूं.’’

क्षमा बोली, ‘‘अंकल, मेरे सामने एक बड़ी समस्या है मेरी मां, जिन्होंने मेरे लिए इतना कुछ किया है, मैं उन्हें अकेली छोड़ विदेश चली जाऊं, ऐसा मेरा मन नहीं मानता. मैं चाहती हूं कि आप और मेरी मां, जो खुद भी एकाकी जीवन जी रही हैं, विवाह कर लें. आप दोनों को साथी मिल जाएगा. मैं मां को मना लूंगी. बस, आप हां कर दें.’’

रविकांत चुप रहे. कुछ देर के बाद क्षमा ने फिर कहा, ‘‘ठीक है, यदि आप तैयार नहीं हैं तो मैं अपने विवाह के लिए मना कर देती हूं. देखिए, मेरा विवाह अभी तय हुआ है, हुआ तो नहीं. मैं ने गलत सोचा था कि आप मेरे बहुत निकट हैं और मेरी भलाई के लिए मेरी भावनाओं को समझते हुए आप अपना दिया हुआ वादा निभाएंगे,’’ कहतेकहते क्षमा का गला रुंध गया.

रविकांत अपनी जगह से उठे. उन्होंने क्षमा के सिर पर हाथ रखा और उस के आंसू पोंछते हुए बोले, ‘‘मैं अपनी बेटी की खुशी के लिए सबकुछ करूंगा. मैं तुम्हारे सुझाव से सहमत हूं.’’

क्षमा खुशी से उछल पड़ी और उन के गले से लिपट गई. क्षमा ने अपनी शादी से पहले उन दोनों के विवाह कर लेने की जिद पकड़ ली ताकि वे दोनों संयुक्त रूप से उस का कन्यादान कर सकें.

अगले सप्ताह ही रविकांत और शोभना का विवाह बड़े सादे ढंग से संपन्न हुआ और उस के 5 दिन बाद रौनक और क्षमा की शादी बड़ी धूमधाम से हुई. Story In Hindi

Hindi Story: सुलझे लोग – शिशिर आजीवन अविवाहित क्यों रहना चाहता था

Hindi Story: सड़क दुर्घटना में हुई मिहिर की आकस्मिक मृत्यु ने सपना के परिवार को बुरी तरह झकझोर दिया था. सब से ज्यादा फिक्र सब लोगों को सपना को ले कर थी. बी.ए. की परीक्षा के तुरंत बाद सपना की सास ने सपना को एक शादी में देख कर अपने बेटे के लिए पसंद कर लिया था और शादी के लिए जल्दी मचा दी थी. सपना के घर वालों ने कहा भी था कि सपना को कोई प्रोफैशनल कोर्स कर लेने दें लेकिन उस की सास ने बड़े दर्प से कहा था, ‘‘हमारे घर की बहू को कभी नौकरी नहीं करनी पड़ेगी. मिहिर सरकारी प्रतिष्ठान में इंजीनियर है, अच्छी तनख्वाह पाता है. घरपरिवार की उस पर कोई जिम्मेदारी नहीं है. वकील बाप ने बढि़या कोठी बनवा ही दी है, इतना कैश भी छोड़ ही जाएंगे कि दोनों बेटे अपने बच्चों को अच्छा भविष्य दे सकें.’’

उन की बात गलत भी नहीं थी. सपना मिहिर के साथ बहुत खुश थी, पैसे की तो खैर, कमी थी ही नहीं. लेकिन शादी के 7 साल ही के बाद मिहिर उसे 2 बच्चों के साथ यों छोड़ कर चला जाएगा, यह किसी ने नहीं सोचा था. वैसे सपना के सासससुर का व्यवहार उस के साथ बहुत स्नेहपूर्ण और संवेदनशील था. सपना के भाई और पिता आश्वस्त थे कि उस का देवर और सासससुर उस का और बच्चों का पूरा खयाल रखेंगे, मगर सपना की चाची का कहना था कि यह सब मुंह देखी बातें हैं. हम लोगों को अभी सब बातें साफ कर लेनी चाहिए और उठावनी होते ही उन्होंने सपना की मां से कहा कि वह उस की सास से पूछें कि सपना अब कहां रहेगी?

‘‘हमारे साथ दिल्ली में रहेगी, बच्चों की छुट्टियों में आप लोगों के पास मेरठ आ जाया करेगी. मिहिर की बरसी के बाद उस के लिए उपयुक्त घरवर देखना शुरू करेंगे,’’ सास का स्वर कोशिश करने के बावजूद भी भर्रा गया.

‘‘आजकल कुंआरी लड़कियों के लिए तो उपयुक्त घरवर मिलते नहीं, बहनजी, सपना बेचारी के तो 2 बच्चे हैं,’’ चाची बोलीं.

‘‘मनोयोग से चेष्टा करने पर सब मिल जाता है, बहनजी. कोई न कोई विकल्प तो तलाशना ही होगा, क्योंकि सपना को हम ने न तो कभी बेचारी कहलवाना है, न ही उसे एक बेवा की निरीह और बोसीदा जिंदगी जीने देना है,’’ उस की सास ने दृढ़ स्वर में कहा और सपना की मां की ओर मुड़ीं, ‘‘फिलहाल तो हमें यह सोचना है कि अभी सपना के पास कौन रहेगा, आप या मैं? खैर, कोई जल्दी नहीं है, रिश्तेदारों के जाने के बाद तय कर लेंगे.’’

सब ने यही मुनासिब समझा कि सपना की मां उस के साथ रहे. सपना का देवर शिशिर नागपुर के एक कालेज में व्याख्याता था. वह हर दूसरे सप्ताहांत में आ जाता था. उस के आने से बच्चे तो खुश होते ही थे, सपना भी उस की पसंद का खाना बनाने में रुचि लेती थी. देवरभाभी में थोड़ी नोकझोंक भी हो जाती थी. शिशिर उम्र में सपना से कुछ महीने बड़ा था. कहता तो भाभी ही था लेकिन व्यवहार दोस्ती का था.

‘‘तुम्हारे आने से सब का दिल बहल जाता है, शिशिर, लेकिन तुम्हारी छुट्टियां खराब हो जाती हैं,’’ सपना की मां ने कहा.‘‘यहां आ कर मेरी छुट्टियां भी मजे से गुजर जाती हैं, मांजी. वहां छुट्टी के दिन सोने या पढ़ने के सिवा कुछ नहीं करता.’’‘‘दोस्तों के साथ समय नहीं गुजारते?’’

‘‘दोस्त हैं ही नहीं. पीएच.डी. करने के दौरान खानेसोने का समय ही नहीं मिला. जो दोस्त थे उन से भी संपर्क नहीं रहा और लड़कियां तो मांजी मुझ जैसे पुस्तक प्रेमी की ओर देखतीं भी नहीं,’’ शिशिर हंसा.

‘‘अब तो पीएच.डी. कर ली है, इसलिए दोस्त बनाओ.’’‘‘बनाऊंगा मांजी, मगर दिल्ली जा कर. मैं बंटीबन्नी के साथ रहने के लिए दिल्ली में नौकरी की कोशिश कर रहा हूं, उम्मीद है जल्दी ही मिल जाएगी,’’ शिशिर ने बताया.बच्चों की परीक्षा होने तक सपना भी संभल चुकी थी और बड़ी शांति से अपनी गृहस्थी को समेट रही थी. शिशिर को भी दिल्ली में नौकरी मिल गई थी. जब सपना की मां मेरठ लौट कर आई तो वह सपना की ओर से पूर्णतया निश्चिंत थी. सब के पूछने पर उस ने बताया, ‘‘मिहिर को तो वे वापस नहीं ला सकते, मगर ससुराल वाले बहुत सुलझे हुए लोग हैं और इसी कोशिश में रहते हैं कि सपना को हर तरह सुखी रखें. देवर ने भी बच्चों के साथ रहने की खातिर दिल्ली में नौकरी ढूंढ़ ली है.’’

‘‘बच्चों के साथ रहने को या यह देखने को कि कहीं सारी कोठी पर सपना का कब्जा न हो जाए,’’ चाची ने मुंह बिचकाया.‘‘चलो, इसीलिए सही, पर उस के रहने से हमारी बेटी और बच्चों का मन तो बहला रहेगा,’’ मां ने कहा.

‘‘तब तक जब तक उस की शादी नहीं होती. अपना घरसंसार बसाने के बाद कौन भाई के उजड़े चमन को सींचने आता है. मेरी मानो, तुम उन लोगों की बातों में न आ कर सपना के सासससुर से कहो कि वे उसे कोई अच्छा सा बिजनेस करा दें. उस का दिल भी लगा रहेगा और निजी आमदनी भी हो जाएगी,’’ चाची ने सलाह दी.

‘‘मगर सपना को तो बिजनेस का क ख ग भी नहीं मालूम,’’ मां ने कहा.‘‘सपना को न सही, जतिन को तो मालूम है. एम.बी.ए. कर रहा है, बहन की मदद करने को नौकरी के बजाय उस के साथ काम कर लेगा,’’ चाची बोलीं.

एक बार मेरठ आने पर जब वह सब को बता रही थी कि उसे आशंका थी कि भोपाल में पलेबढ़े बच्चे दिल्ली के बच्चों के साथ शायद न चल सकें, मगर बंटी और बन्नी ने तो बड़ी आसानी से नए परिवेश को अपना लिया है तो चाची ने पूछा, ‘‘लेकिन इन्हें संवारने के चक्कर में तुम ने अपने लिए भी कुछ सोचा है या नहीं?’’‘‘मेरा सर्वस्व या जीवन तो अब ये बच्चे ही हैं, चाची. इन का भविष्य संवारने के अलावा मुझे और क्या सोचना है?’’

इस से पहले कि चाची कुछ और बोलती, बच्चों ने आ कर कहा कि वे वापस दिल्ली जाना चाहते हैं. चाची की वजह पूछने पर बोले, ‘‘यहां हमारा दिल नहीं लग रहा. दिल्ली में तो चाचा के साथ छुट्टी के रोज सुबह घुड़सवारी करने जाते हैं और टैनिस तो रोज ही शाम को खेलते हैं. हम ने चाचा को भी फोन किया था. उन का भी दिल नहीं लग रहा. कहते थे, मम्मी से पूछ लो, अगर वे कहती हैं, तो मैं अभी लेने आ जाता हूं, आप क्या कहती हैं, मम्मी?’’

‘‘तुम्हें और तुम्हारे चाचा को उदास तो कर नहीं सकती. इसलिए चलो, ड्राइवर से कहो, हमें छोड़ आएगा.’’लेकिन तब तक बन्नी ने शिशिर को आने के लिए फोन कर दिया. शिशिर के आने से बच्चे बहुत खुश हुए.‘‘बाप की कमी महसूस नहीं होने देता बच्चों को,’’ सब के जाने के बाद सपना के पिता ने कहा.

‘‘जब तक अपनी शादी नहीं हो जाती, भाई साहब. हमें शिशिर की शादी अपने परिवार की लड़की से करवानी चाहिए ताकि अगर वह सपना को कुछ तकलीफ दे तो हम उस की लगाम तो कस सकें,’’ चाची बोलीं.‘‘मगर अपने परिवार में लड़कियां हैं ही कहां?’’‘‘मेरे पीहर में हैं. मैं देखती हूं,’’ चाची ने बड़े इतमीनान से कहा.मिहिर की बरसी के कुछ दिन बाद ही चाची अपनी भांजी का रिश्ता शिशिर के लिए ले कर सपना की ससुराल पहुंच गईं.

‘‘अब घर में कुछ खुशी भी आनी चाहिए.’’‘‘जरूर आएगी, बहनजी, लेकिन पहले सपना की जिंदगी में,’’ सपना की सास ने कहा, ‘‘उसे व्यवस्थित करने के बाद ही हम शिशिर के बारे में सोचेंगे.’’‘‘व्यवस्थित करने वाली बात आप सही कह रही हैं. सपना को कोई बिजनेस करा दीजिए. मेरे बेटे ने अभी एम.बी.ए. किया है, वह सपना के अनुकूल अच्छा प्रोजैक्ट सुझा सकता है,’’ चाची उत्साह से बोलीं.

‘‘सपना को रोजीरोटी कमाने की कोई मुसीबत नहीं है. मिहिर ही उस के लिए बहुत कुछ छोड़ गया है और ससुर भी बहुत कमा रहे हैं. लेकिन जीने के लिए पैसा ही सब कुछ नहीं होता. मैं ने पहले भी कहा था कि हम लोग सपना को बेवा की बोसीदा जिंदगीज्यादा दिन तक नहीं जीने देंगे. आप लोगों को उस की फिक्र करने की कोई जरूरत नहीं है,’’ न चाहते हुए भी सपना की सास का स्वर तल्ख हो गया था.

‘‘मगर सपना ने तो बच्चों को अपना सर्वस्व बना लिया है. वह उन की जिम्मेदारी किसी अनजान आदमी से बांटने या शादी करने को तैयार नहीं होगी.’’सपना की सास कुछ सोचने लगी, ‘‘कहती तो आप सही हैं. फिर भी सपना को अब मैं ज्यादा रोज तक उदास या सादे लिबास में नहीं देख सकती. कोई न कोई विकल्प तो खोजना ही होगा,’’ उस ने दृढ़ स्वर में कहा.

चाची ने उस की ओर देखा. हमेशा ठसके से सजीसंवरी रहने वाली सपना की सास सादी सी शिफौन की साड़ी पहने थी.‘अगर बहू बेवा की वेशभूषा में रही तो तुम्हार सिंगारपिटार कैसे होगा, महारानी,’ चाची ने विद्रूपता से सोचा.अगले सप्ताहांत सपना के ससुर ने सपना के पिता को फोन किया कि वे उन लोगों से कुछ विचारविमर्श करना चाहते हैं, इसलिए क्या वह सपरिवार दिल्ली आ सकते हैं?

‘‘मुझे पता है क्या विचारविमर्श करेंगे,’’ चाची ने हाथ नचा कर कहा, ‘‘सपना शादी के लिए तैयार नहीं हो रही होगी, इसलिए चाहते होंगे कि हम उसे अपने पास रख लें ताकि उस की सास फिर सजसंवर सके.’’‘‘सपना की ससुराल वाले बड़े सुलझे हुए लोग हैं, वे ऐसा सोच भी नहीं सकते. हमें उन की बात सुनने से पहले न अटकल लगानी है, न सलाह देनी है,’’ सपना के पिता ने कहा.

शिशिर और सपना के सासससुर तो सामान्य लग रहे थे, मगर सपना कुछ अनमनी सी थी.‘‘जैसा कि मैं ने आप को पहले बताया था, हम लोग सपना का पूर्ण विवाह करना चाहते हैं,’’ सपना की सास ने कहते हुए चाची की ओर देखा.‘‘और इन्होंने ठीक सोचा था कि सपना अपने बच्चों की जिम्मेदारी किसी और के साथ बांटने को तैयार नहीं होगी. सपना ही नहीं, शिशिर भी बन्नीबंटी की जिम्मेदारी किसी गैर को सौंपने को तैयार नहीं है.’’

‘‘शिशिर का कहना है कि वह आजीवन उन्हें संभालेगा और अविवाहित रहेगा, क्योंकि बीवी को उस का दिवंगत भाई के बच्चों पर जान छिड़कना पसंद नहीं आएगा,’’ सपना के ससुर बोले, ‘‘मैं भी उस के विचारों से सहमत हूं, क्योंकि एक अतिरिक्त परिवार की जिम्मेदारी संभालने वाले व्यक्ति का अपना विवाहित जीवन तो कदापि सुखद नहीं हो सकता, वैसे भी शिशिर को लड़कियों या शादी में कोई दिलचस्पी नहीं है.’’

‘‘मगर शादी से एतराज भी नहीं है, अगर सपना से हो तो,’’ सपना की सास ने कहा. ‘‘दोनों ही बच्चों को किसी तीसरे से बांटना नहीं चाहते और उन की परवरिश में जिंदगी गुजारने को कटिबद्ध हैं. जब तक बच्चे छोटे हैं तब तक तो ठीक है, मगर जब ये समझने लायक होंगे कि लोग उन की मां और चाचा को ले कर क्या कहते हैं, तब सोचिए, उन पर क्या बीतेगी? वैसे लोग तो कहेंगे ही, उन का मुंह बंद करने का तो एक ही तरीका है, शिशिर और सपना की शादी. मगर उस के लिए सपना नहीं मान रही.’’

‘‘मगर क्यों? शिशिर में कोई कमी तो है नहीं,’’ सपना की मां ने कहा.‘‘इसीलिए तो मैं उस से शादी नहींकरना चाहती, मां. उसे एक से बढि़या एक कुंआरी लड़की मिल सकती है, तो फिर वह 2 बच्चों की मां से शादी क्यों करे?’’ सपना ने पूछा.‘‘इसलिए सपना कि वे दोनों बच्चे मेरी जिंदगी का अभिन्न अंग हैं, जिन्हें सिर्फ तुम स्वीकार कर सकती हो, कोई कुंआरी लड़की नहीं,’’ शिशिर ने किसी के बोलने से पहले कहा.

‘‘एक बात और सपना, मैं किसी मजबूरी या दयावश तुम से शादी नहीं कर रहा बल्कि इसलिए कि जब शादी करनी ही है तो किसी अनजान लड़की के बजाय जानीपहचानी तुम बेहतर रहोगी. तुम्हें ले कर मेरे मन में कोई पूर्वाग्रह नहीं है, मैं ने तुम्हें भाभी जरूर कहा है लेकिन देखा एक दोस्त की नजर से ही है.’’

‘‘और दोस्त तो अकसर शादी कर लेते हैं,’’ सपना का भाई सुनील बोला.‘‘खुद हिम्मत न करें तो दोस्त बढ़ कर करवा देते हैं, यार,’’ शिशिर हंसा.‘‘तो तुम्हारी शादी हम करवा देते हैं,’’ सुनील भी हंसा.‘‘मगर सपना माने तब न. उसे बेकार का वहम यह भी है कि उसे सुहाग का सुख है ही नहीं, तभी मिहिर की असमय मृत्यु हो गई.’’

‘‘जब उस के घर वाले मान गए हैं तो सपना भी मान जाएगी,’’ सपना के ससुर बोले. ‘‘उस की यह शंका कि दूसरी शादी कर के वह मिहिर की यादों के साथ बेवफाई कर रही है, मैं दूर कर देता हूं. मिहिर तुम्हें बच्चों की जिम्मेदारी सौंप कर गया है, जो तुम अकेले तो निभा नहीं सकतीं. हम तुम्हारा पूर्ण विवाह करना तो चाहते थे लेकिन साथ ही यह सोच कर भी विह्वल हो जाते थे कि किसी अनजान आदमी को अपने मिहिर की निशानियां कैसे सौंपेंगे? लेकिन शिशिर के साथ ऐसी कोई परेशानी नहीं है. दूसरे, मिहिर की जितनी आयु थी वह उतनी जी कर मरा है. शिशिर की जितनी आयु है, वह तुम से शादी करे या न करे, उतनी ही जिएगा और कोई शंका या एतराज?’’

‘‘नहीं, पापाजी,’’ सपना ने सिर झुका कर कहा लेकिन उस के रक्तिम होते गाल बहुत कुछ कह गए.‘‘आप ठीक कहते थे, भाई साहब, सपना के ससुराल वाले बहुत सुलझे हुए लोग हैं,’’ चाची के स्वर में अपनी हार के बावजूद भी उल्लास था. Hindi Story

Story In Hindi: परफैक्ट बैलेंस – नेहा किस बात से कमजोर महसूस कर रही थी

Story In Hindi: ‘‘नेहा बहुत थक गया हूं, एक गरमगरम चाय का कप और प्याज के पकौड़े हो जाएं. जरा जल्दी डार्लिंग,’’ राज ने औफिस से आते ही सोफे पर फैलते हुए कहा.

फीकी सी मुसकान बिखेरते नेहा ने पति को पानी का गिलास दिया और फिर उस के पास ही बैठ गई. फिर थकी सी आवाज में बोली, ‘‘चाय और पकौड़े थोड़ी देर में तैयार करती हूं. आज जल्दीजल्दी नहीं हो सकेगा.’’

‘‘क्यों, सब ठीक तो है?’’ राज की आवाज में खिन्नता साफ थी.

‘‘पिछले कुछ दिनों से थोड़ी कमजोरी महसूस कर रही हूं. थकीथकी सी रहती हूं,’’ पति की खिन्नता को भांप कर नेहा ने अपनी बढ़ती कमजोरी को थोड़ी बातों में समेट दिया था. यही तो वह करती आ रही है कई सालों से. कोई भी समस्या हो वह यथासंभव स्वयं ही सुलझा लेती या फिर हलके से उसे राज के सामने रखती ताकि उसे किसी प्रकार का तनाव न हो. ऐसा करने में नेहा को बहुत खुशी मिलती.

‘‘ठीक है पकौड़े न सही चाय के साथ बिस्कुट तो दे सकती हो मेरी नाजुक रानी,’’ राज ताना मारने से नहीं चूका. फिर नेहा की कमजोरी वाली बात को अनसुना कर फ्रैश होने के लिए बाथरूम की ओर बढ़ गया.

नाजुक नेहा के मन रूपी दर्पण पर जैसे किसी ने पत्थर दे मारा हो. कब थी वह नाजुक. 15 सालों की गृहस्थी में उस ने हर छोटेबड़े काम को कुशलता से निभाया था. कब टपटप करता बिगड़ा नल ठीक हो गया, कब पंखा दोबारा चलने लगा, कब बाथरूम की दीवार से रिसता पानी बंद हो गया उस ने राज को पता ही नहीं लगने दिया. बच्चों की देखरेख, पढ़ाईलिखाई, बैंक का काम, कितने ही और घरबाहर से जुड़े काम वह चुपचाप सुचारु रूप से संपन्न करती आ रही थी.

इतना ही नहीं नेहा छोटी कक्षा के 8-10 बच्चों को घर पर ही ट्यूशन भी पढ़ा देती थी. ताकि घर की आमदनी में थोड़ीबहुत वृद्धि हो सके.

पति और अपने बच्चों को प्रसन्न रखने में ही उस ने खुद को भुला दिया था. राज जबजब उसे गुलाबो या झांसी की रानी कह कर छेड़ता तो वह फूली न समाती थी. यही तो उस का प्यारा सा संसार था. यही उस की मनचाही साधना. अपने शौक, अपनी चाहतें सब कुछ उस ने सहर्ष भुला दिए थे. इस बात का नेहा को कभी कोई मलाल नहीं था, कोई गिला नहीं था. पर आज उसे मलाल हुआ कि मेरी कमजोरी, मेरी तकलीफ राज की नजर में कुछ अर्थ नहीं रखती. खुद को ताक पर रख दिया, यही मुझ से गलती हुई.

विचारों की उठतीउफनती लहरों में नेहा ने जैसेतैसे चाय बनाई.

राज फ्रैश हो कर आ गया था. खोईखोई सी नेहा ने उस के सामने चाय और बिस्कुट रख दिए. बस एक रोबोट की तरह यंत्रवत. कहते हैं कि सूखी आंखों से भी आंसू गिरते हैं, पर उन्हें समझने या देखने वाले बिरले ही होते हैं.

‘‘क्या कमाल की चाय बनाई है मेरी गुलाबो ने,’’ चाय की चुसकियां लेते हुए राज ने घाव पर मरहम लगाने की असफल चेष्टा की.

‘गुलाबो, हूं… अब लगे हैं मेरी खुशामद करने. चाय, बिस्कुट मिल गए… मेरी कमजोरी गई भाड़ में. दिल रखने के लिए ही सही कुछ तो पूछते मेरी कमजोरी के बारे में. इन्हें क्या? गलती मेरी ही है जो कभी इन के सामने अपनी तकलीफ नहीं रखी… यही तो सजा मिली है,’ मन ही मन बुदबुदा कर नेहा ने अपनी खीज निकाली.

‘‘नीरू और उमेश कहां हैं?’’ राज के प्रश्न पर नेहा का ध्यान भंग हुआ.

‘‘ट्यूशन वाले बच्चों का कैसा चल रहा है?’’

‘‘अच्छा चल रहा है. उन्हें भी आजकल अधिक समय देना पड़ रहा है. परीक्षा जो नजदीक है,’’ अनमनी सी नेहा बोली.

हर पौधे की तरह मानव हृदय के कोमल पौधे को भी समयसमय पर प्रेमजल से सींचना  पड़ता है, सहृदयता एवं सहानुभूति की खाद को जड़ों में यदाकदा डालना पड़ता है अन्यथा पौधा मुरझा जाता है. विशेषकर नारी का संवेदनशील हृदय जो प्रेम की हलकी सी थाप से छलकछलक जाता है, किंतु अवहेलना की तनिक सी चोट पर मरुस्थल सा शुष्क बन जाता है.

‘‘वह तो है. परीक्षा आ रही है तो समय देना ही पड़ेगा. इतना तो शुक्र है कि घर बैठे ही कमा लेती हो. बाहर नौकरी करती तो आए दिन थक जाती… आनाजाना पड़ता तो पता चलता,’’ घायल मन पर राज ने फिर चोट की.

यह चोट नेहा के लिए असहनीय थी. बोली, ‘‘घर पर ही अंदरबाहर के हजारों काम होते हैं. ये काम आप को दिखते ही नहीं. सब कियाकराया जो मिल जाता है… इतने सालों की गृहस्थी में मैं ने आप पर किसी भी काम का कम से कम बोझ डाला है. इसीलिए मेरी थकान, मेरी कमजोरी आप को पच नहीं रही. आखिर बढ़ती उम्र है… शरीर हमेशा एकजैसा तो नहीं रहता… पर नहीं, मैं तो सदैव गुलाब की तरह खिली रहूं, तरोताजा रहूं… है न?’’ क्रोध और क्षोभ से नेहा की आंखें छलछला आईं.

‘‘अब यह भी क्या बात हुई नाराज होने की? तुम तो मेरी झांसी की रानी हो. कुछ भी कहो आज भी तुम मुझे पहले जैसी गुलाबो ही दिखती हो,’’ राज ने बढ़ती कड़वाहट में मिठास घोलनी चाही.

‘‘रहने दो अपने चोंचले. आप का चैक बैंक में जमा करा दिया था और इंश्योरैंस वाले को फोन कर दिया था,’’ नेहा ने मात्र सूचना दी.

‘‘यह हुई न बात. पढ़ीलिखी, मौडर्न बीवी का कितना सुख होता है. मौडर्न औरत वाकई चुस्त और दुरुस्त होती है.’’

‘‘मौडर्न औरत बेमतलब पिसतीघुटती नहीं है और न ही इतनी मूर्ख कि अपने वजूद को भुला दे चाहे कोई कद्र करे या न करे,’’ नेहा के स्वर तीखे हो चले थे.

‘‘तिल का ताड़ मत बनाओ नेहा. तुम ही एकमात्र स्त्री नहीं हो जो घर और बाहर संभाल रही है. इस बढ़ती महंगाई के युग में हर सजग स्त्री कुछ न कुछ कर के पैसा कमा रही है. घर और परिवार में बैलेंस आजकल की स्त्री को बखूबी आता है. तनिक सूझबूझ से सब हो जाता है,’’ राज ने आग में घी डाल ही दिया.

‘‘आप कहना क्या चाहते हैं? क्या मुझ में सूझबूझ नहीं? इतने सालों से क्या मैं झकझोर रही हूं? क्या कमी रखी है किसी भी बात में? बैलेंस ही तो करती आ रही हूं अब तक… पर सच ही कहा है कि घर की मुरगी दाल बराबर,’’ नेहा आपे से बाहर हो चुकी थी.

सच सब से गहरे घाव भी उन्हीं से मिलते हैं जिन्हें हम बहुत चाहते हैं. उसी समय नीरू और उमेश आ गए. तूफान थम सा गया. नेहा ने उन्हें नाश्ता कराया. फिर उन्हें पढ़ाने बैठ गई.

वातावरण बोझिल हो चुका था.

‘‘मैं जरा बाहर घूमने जा रहा हूं,’’ कह कर राज बाहर निकल गया.

राज और नेहा की गृहस्थी सुखी और सामान्य थी. थोड़ी बहुत नोकझोंक होती रहती थी. यह सब तो गृहस्थ जीवन का अभिन्न अंग है. बहुत मिठास भी बनावटी लगती है.

नेहा राज को बहुत परिश्रम करता देखती. महीने में 2-3 टूअर भी हो जाते. देर रात तक राज नएनए प्रोजैक्ट पर काम करता. अपने पति पर नेहा को गर्व था. वह राज को प्रसन्न रखने की भरसक कोशिश करती.

सच तो यह था कि दोनों एकदूसरे से बहुत प्यार करते थे. लेकिन प्यार करने और दूसरे के मन की गहराई को समझने में काफी अंतर है. दिल महंगी भेंट नहीं मांगता. 2 शब्द प्रेम, प्रशंसा या सहानुभूति के ही पर्याप्त होते हैं. भावनाओं का स्थान भौतिक पदार्थ कमी नहीं ले सकते.

चूंकि नेहा हमेशा खिलीखिली रहती, इसलिए राज को उसे इसी प्रकार देखने की आदत हो चुकी थी. उस ने कभी इस बात को न जाना न समझा कि नेहा हर कार्य को कैसे कुशलतापूर्वक निबटा लेती. बहुत कम ऐसे अवसर आए जब नेहा ने अपनी परेशानी राज को बताई. प्रेमविभोर नेहा से शायद जानेअनजाने यही गलती हो गई थी. आज झगड़े का मूल कारण भी यही था. रात को डिनर के समय पतिपत्नी चुपचाप से थे. अंदर की पीड़ा जो थी सो थी.

बच्चे स्वभावानुसार चहक रहे थे, ‘‘पापा, मम्मी ने आज दमआलू कितने स्वादिष्ठ बनाए हैं,’’ नीरू ने चटकारे लेते हुए कहा.

‘‘हां बेटा, बहुत स्वादिष्ठ बने हैं,’’ राज ने स्वीकार किया.

उमेश भी नेहा को अपनी विज्ञान शिक्षिका और स्कूल की विज्ञान प्रदर्शिनी के बारे में बता रहा था. नेहा भी जैसेतैसे बेटे के उत्साह में भाग ले रही थी.

बच्चों का भोलापन वास्तव में कलकल करते निर्मल शीतल जलप्रपात सा है, जो पतिपत्नी के गिलेशिकवों के जलतेबुझते अंगारों को शांत कर देता है.

डिनर समाप्त हुआ तो बच्चे अपने बैडरूम में चले गए. नेहा ने जल्दी से बचे काम निबटाए और कपड़े बदल कर राज की तरफ पीठ कर के लेट गई. राज लेटेलेटे कुछ पढ़ रहा था. 11 बज रहे थे. नेहा के लेटते ही राज ने बत्ती बुझा दी.

‘‘नाराज हो क्या?’’ राज की आवाज में मलाई जैसी चिकनाहट थी.

नेहा चुप. कांटा बहुत गहरा चुभा था. पीड़ा हो रही थी.

‘‘डार्लिंग कल शाम मैं टूअर पर निकल जाऊंगा. 2-3 दिन के बाद ही आऊंगा. तुम बात नहीं करोगी तो कैसे चलेगा.’’

‘‘मेरा सिर दुख रहा है. आप सो जाएं,’’ नेहा ने टालना चाहा.

‘‘लाओ मैं तुम्हारा सिर दबा दूं,’’ राज नेहा को मना रहा था.

नेहा अब तक मन ही मन कोई फैसला ले चुकी थी. इसलिए प्रतिकार किए बिना उस ने करवट बदली और राज की ओर देखा. राज ने समझा बिगड़ी बात बनने लगी है. वह नेहा का सिर दबाने लगा.

‘अच्छा है… होने दो सेवा,’ नेहा मन ही मन मुसकराई. मन हलका हुआ तो आंख लग गई. राज भी हलके मन से सो गया.

अगला दिन सामान्य ही रहा. राज औफिस निकल गया. बच्चे स्कूल. नेहा

रोज के कार्यों में व्यस्त हो गई. पर कल रात उस ने जो फैसला लिया था. उसे भूली नहीं थी.

शाम हुई. बच्चे स्कूल से लौटे और राज औफिस से. कुछ खापी कर राज टूअर पर निकल गया. निकलने से पहले नेहा को आलिंगन में लिया. बच्चों को प्यार किया. सब ठीकठाक था. हमेशा की तरह.

3 दिन बाद राज सुबह 9 बजे घर लौटा. बच्चे स्कूल जा चुके थे. नेहा ने हंसते हुए स्वागत किया, ‘‘आप नहाधो लें. तब तक मैं नाश्ता तैयार करती हूं,’’

राज को लगा सब पहले जैसा नौर्मल है. दिल को सुकून मिला.

राज जैसे ही तरोताजा हुआ नेहा ने उस के सामने गरमगरम चाय और प्याज के पकौड़े रख दिए. साथ में पुदीने की चटनी.

‘‘मैं जानता था मेरी गुलाबो कभी बदल नहीं सकती,’’ राज बहुत खुश था.

‘‘कैसा रहा आप का टूअर?’’

‘‘अच्छा रहा. बहुत काम करना पड़ा पर मैं संतुष्ट हूं.’’

‘‘औफिस कितने बजे जाना है?’’

‘‘दोपहर 3 बजे निकलना है. थोड़ा आराम करूंगा. तुम अपनी कहो. क्याक्या किया इन 3 दिनों में?’’ राज ने पकौड़ों का आनंद लेते हुए उत्सुकता से नेहा की ओर देखा.

‘‘बहुत कुछ किया,’’ नेहा के चेहरे पर रहस्यमयी मुसकान थी.

‘‘बताओ तो सही.’’

‘‘एक स्कूल में इंटरव्यू दे कर आई हूं. पार्टटाइम जौब है. छठी और 7वीं कक्षा के बच्चों को अंगरेजी और समाजशास्त्र पढ़ाना है. मेरी ही पसंद के विषय हैं.’’

‘‘इंटरव्यू… यह सब क्या है,’’ राज सकपका गया.

‘‘हां डार्लिंग इंटरव्यू. नौकरी लगभग तय है. अगले महीने से जाना होगा. मेरी 1-2 सहेलियां भी वहां पढ़ा रही हैं. वेतन भी अच्छा है. मेरी सहेली ने ही मेरी सिफारिश की थी. अत: बात बन गई,’’ नेहा ने डट कर अपनी बात कह डाली. वह जानती थी कि राज को यह बात अच्छी नहीं लगेगी. लगे न लगे पर अब पता चलेगा कि परफैक्ट बैलेंस रखना क्या होता है.

‘‘अचानक यह नौकरी की क्या सूझी?’’ राज हैरान और खिन्न था.

‘‘अब इस में सूझने की क्या बात है?

जब हर आधुनिक स्त्री नौकरी कर रही है तो फिर मैं क्यों नहीं,’’ नेहा ने चटनी के चटखारे लेते हुए कहा.

‘‘तुम्हें मेरी उस दिन की बात बुरी लग गई?’’

‘‘बिलकुल नहीं. आप ठीक कहते थे. बैलेंस करने की ही तो बात है,’’ नेहा को मजा आ रहा था.

‘‘तुम्हारी कमजोरी… थकावट का क्या… सेहत भी देखनी पड़ती है.’’

‘‘भई कमाल है. आज आप को मेरी सेहत की बहुत चिंता होने लगी. पर सुन कर अच्छा लगा. चिंता न करें यह सब तो चलता ही है.’’

‘‘नेहा, बात उड़ाओ मत. मैं सीरियस हूं,’’ राज परेशान हो उठा.

‘‘धीरज रखें. मैं डाक्टर से मिल कर आई हूं. ब्लड टैस्ट की रिपोर्ट भी आ गई है.

सब ठीक है हीमोग्लोबिन कम है. डाक्टर की बताई दवा लेनी शुरू कर दी है और खानपान भी डाक्टर के निर्देशानुसार ले रही हूं.’’

‘‘और तुम्हारी ट्यूशनें?’’

‘‘पार्टटाइम नौकरी है. दोपहर 12:30 बजे तक लौट आऊंगी. ट्यूशन तो 3 बजे शुरू होती है. वह भी सप्ताह में 4 बार. महरी फुलटाइम सुबह से शाम तक आ जाया करेगी. बच्चे तो शाम 5 बजे तक ही लौटते हैं. स्कूल मुझे सप्ताह में 5 दिन ही जाना है. शनिर विवार छुट्टी. सब बैलेंस हो जाएगा,’’ नेहा मोरचे पर डटी थी.

‘‘तुम जानती हो अगले महीने बड़े भाईसाहब और भाभी आ रहे हैं,’’ राज ने हारे सिपाही के स्वर में कहा.

‘‘यह तो और भी अच्छी बात है. भाभीजी तो बहुत सुघड़ हैं. मेरी बहुत मदद हो जाएगी. वे भी थोड़ीबहुत घर की देखभाल कर लेंगी और भाईसाहब बच्चों को गणित और विज्ञान पढ़ा दिया करेंगे. इन विषयों में तो वे माहिर हैं,’’ नेहा आज घुटने टेकने वाली नहीं थी.

‘‘तो तुम ने नौकरी करने का निश्चय कर ही लिया है,’’ राज ने हथियार डाल दिए.

‘‘बिलकुल. आप देखना आप की झांसी की रानी घरबाहर को कैसा बैलेंस करती है. आप से ही तो मुझे प्रेरणा मिली है. खैर, छोडि़ए इन बातों को. आप थके हुए हैं. आओ सिर में तेल की मालिश कर देती हूं. आराम मिलेगा,’’ नेहा चाश्नी से सने तीर छोड़ रही थी.

‘‘लंच में क्या है?’’

‘‘सब आप की मनपसंद की चीजें.

लौकी के कोफ्ते, बैगन का भरता और मीठे में बासमती चावल की खीर. आया न मुंह में पानी?’’

‘‘हांहां, ठीक है,’’ राज निरुत्तर हो चुका था.

कहना न होगा कि नेहा परफैक्ट बैलेंस का अंदाज सीख चुकी थी. Story In Hindi

Love Story In Hindi: प्यार भरा मैसेज – दीपा किसके इंतजार में खिड़की पर खड़ी थी

Love Story In Hindi: दीपा तीसरी बार खिड़की के पास आई, लेकिन राजू ने उस की तरफ देखा तक नहीं. राजू दीपा के घर के सामने चाय की दुकान पर बैठा था और अपने ही खयालों में खोया था. मोहन ने कहा, ‘‘राजू देखो तो, दीपा कई बार खिड़की के पास आई और इंतजार कर के चली गई. एक तुम हो कि नजर ही नहीं घूम रही है.’’ राजू ने बेरुखी से मोहन को देखा, फिर सिर उठा कर दीपा पर एक नजर डाली तो दीपा की आंखों की चमक दोगुनी हो गई. उस के होंठों पर एक हलकी सी मोहक मुसकान तैर गई. फिर दोनों की आंखों ही आंखों में बातें हुईं और दीपा के गालों पर लाली तैर गई.

फिर वह नजरें झुका कर खिड़की से हट गई. कुछ देर बाद दीपा की छोटी बहन मंजू चाय की दुकान पर आई और उस ने राजू के हाथों में अपना मोबाइल फोन थमा दिया. उस ने यह भी कहा कि दीदी ने यह मैसेज भेजा है. उन का मोबाइल खराब है. इसी पर जवाब लिख दो. अब राजू के हाथों में वही मैसेज जैसे फड़फड़ा रहा था. उसे पुरानी मुलाकातें याद आ रही थीं. जब वह पहली बार दीपा से मिला था तो दीपा सिलाई सीखने जा रही थी. राजू गली में सामने से आ रहा था. वहीं दीपा से उस की नजरें चार हुईं. तब उस ने कई दिनों से लिख कर रखा अपना मोबाइल नंबर हिम्मत कर के वहीं गिरा दिया और दीपा के पास से निकलता हुआ खंभे की ओट ले कर खड़ा हो गया.

दीपा धीरेधीरे चलती हुई कागज के पास पहुंच कर रुक गई और दबी नजरों से इधरउधर देख कर अपने हाथ में पकड़ा रूमाल गिरा दिया. फिर उस ने रूमाल उठाने के बहाने कागज, जिस पर मोबाइल नंबर लिखा था, उठा लिया और तेज कदमों से चल कर अपने सिलाई स्कूल की तरफ चली गई. राजू ने चैन की सांस ली. सोचा कि यह तो अच्छा हुआ कि उस समय गली में कोई था नहीं. कुछ देर तक राजू वहीं खड़ा रहा और अपनी घबराहट पर काबू पाने की कोशिश करता रहा. फिर चल पड़ा दीपा के सिलाई स्कूल की तरफ. दीपा के सिलाई स्कूल के सामने बैठ कर समय गुजारने के लिए उस ने पास के मूंगफली वाले से कई बार मूंगफली खरीदी.

वह मूंगफली खाता रहा और सुनहरे सपनों में खोया रहा. कुछ देर बाद एक लड़की मूंगफली वाले के पास आई. मूंगफली ले कर जाते समय राजू के पास रुकी, फिर बोली, ‘‘यह चिट दीपा ने दी है,’’ और चिट देने के बाद वह तेज कदमों से सिलाई स्कूल में घुस गई. तब राजू की खुशी का ठिकाना न रहा. वह तुरंत वहां से उठा और तेज कदमों से चल कर पास के आजाद पार्क में पहुंचा. वहीं एक पेड़ के नीचे बैठ कर उस ने नंबर सेव किया और ‘हैलो’ का मैसेज दिया. दीपा ने जवाब में मैसेज किया, ‘मैं जबजब तुम को देखती हूं, मेरे मन के तार झनझना उठते हैं. आज तुम्हारा नंबर पा कर मैं खुशी से पागल हो गई. कल रविवार को मैं घर से सहेली के यहां जाने का बहाना बना कर निकलूंगी और आजाद पार्क में तुम से झूले के पास मिलूंगी…’ राजू को लगा जैसे वक्त थम गया हो.

उस के लिए दिन और रात भारी लग रहे थे. किसी तरह दिनरात बीते. दूसरे दिन वह दीपा से मिला. उस के बाद तो सिलसिला चल पड़ा. कभी सिनेमाघर में, तो कभी कौफीहाउस में उन की शामें कटने लगीं. एक रोज दीपा ने उसे अपनी एक सहेली के कमरे में बुलाया, जो एक घर की बरसाती में रहती थी. वह उन्हें कोल्ड ड्रिंक दे कर चली गई. उसे अपने बौयफ्रैंड से मिलने जाना था. दीपा ने उसे बांहों में जकड़ते हुए कहा, ‘‘राजू, मैं तुम से बेहद प्यार करती हूं.’’ राजू बोला, ‘‘मैं भी, पर हमारी जातियां…’’ ‘‘मैं जातियों को नहीं मानती,’’ कह कर दीपा ने राजू के होंठों पर अपने होंठ रख कर मुंह बंद कर दिया. धीरेधीरे दोनों ने सारी सीमाएं पार कर लीं. अब दोनों के बीच कोई दीवार नहीं रही. चाय की दुकान पर बैठे राजू का ध्यान तब टूटा, जब मोहन ने उस से कहा,

‘‘देख तो मैसेज में क्या लिखा है?’’ मैसेज में लिखा था : ‘मेरा मन बहुत घबरा रहा है. मैं तुम्हारे बच्चे की मां बनने वाली हूं. तुम आज ही मेरे पिताजी से मिलना और हमारी शादी के बारे में जरूर बातचीत करना. पिताजी शाम को 5 बजे दफ्तर से घर चले आते हैं. जरूर आना. मैं इंतजार करूंगी.’ राजू ने मोबाइल फोन छोटी बहन मंजू को वापस करते हुए कहा, ‘‘कह देना कि मेरी भी तबीयत ठीक नहीं है. मैं गांव जा रहा हूं. मैं आ कर बताता हूं. गांव का पता भी किसी को नहीं बताना.’’

फिर राजू तेज कदमों से बसअड्डे की ओर चल पड़ा. राजू जानता था कि वह दीपा के घर जाएगा तो उस की और दीपा दोनों की हत्या हो जाएगी. दीपा के पिता लोकल पार्टी के नेता थे और आएदिन मंदिरों के आगे कीर्तन गाते नजर आते थे. उन्होंने कुछ लठैत भी पाले हुए थे. अब दीपा का बच्चा गिरवा दिया जाएगा, लेकिन दोनों की जान तो बच जाएगी. वह समझ गया था कि उन का प्यार तो उस रेल की पटरी की तरह है, जिस पर कोई ट्रेन नहीं चलती. उस की पटरियों पर चल कर इश्क कर सकते हैं, पर कहीं पहुंच नहीं सकते. Love Story In Hindi

Hindi Funny Story: पति ‘नेता’ की पूजा

Hindi Funny Story: नेता आजकल तैंतीस कोटि होते हैं. कोटि का मतलब ‘करोड़’ भी होता है और ‘वर्ग’ भी. गिनतियों के जाल से बचने के लिए ‘कोटि’ का मतलब ‘वर्ग’ ही ले लें और मान लें कि नेता तैंतीस प्रकार के होते हैं. इसी प्रकार पति ‘नेता’ भी कुछ इस तरह के हो सकते हैं

: संविधान के मुताबिक, इस पति ‘नेता’ को कई तरह से अधिकार और मौके दिए जाते हैं, जैसे शक्ति भाव, रिश्वत, काम निकलवाना, फूल मालाएं पहनाना, उलाहने, ताने, गालियों की भेंट आदि. अच्छे गुणों वाली पत्नियां इन सभी का इस्तेमाल करती हैं. पति ‘नेताओं’ के तरहतरह के रूप कई प्रकार के हैं. नेता पार्ट टाइम भी होते हैं, फुल टाइम भी. पार्ट टाइम वे, जिन्हें पार्टी न पद देती है, जो न चुनाव लड़ते हैं. फुल टाइम वे, जो पार्टी में कोई पद रखते हैं और चुनाव लड़ते हैं.

पति ‘नेता’ अपना काम भी करते हैं, क्योंकि हर नेता की ऊपरी कमाई हो, यह जरूर नहीं. ड्राइवर : ड्राइवर रूपी पति ‘नेता’ रेल, मोटर वगैरह के ड्राइवर यूनियन का अध्यक्ष होता है. लेकिन वे घर की गाड़ी को सही ढंग से चला सकते हैं या नहीं, यह बात साफ नहीं है. गाड़ी चलाने में हादसा हो सकता है और घर में भी. फिर भी आप अपने पति से 2 तरह से बरताव कर सकती?हैं.

हरी साड़ी, उसी रंग की बिंदी का इस्तेमाल आप के पति को घर में घुसने के लिए हरी झंडी का काम करेगा. लेकिन अगर आप ने लाल रंग का इस्तेमाल किया, तो पति ‘नेता’ घर के बाहर ही खड़े रहेंगे. अगर नारंगी पहनी है, तो वे वहीं खड़े रह जाएंगे, पर चालू रहेंगे. पुलिस : आप के पति पुलिस में हैं और नेता के साथ लगे हैं तो, बधाई. सैयां भए कोतवाल तो आप को डर काहे का. फिर भी आप यह न भूलें कि पुलिस कानून को बचाने वाली नहीं होती तोड़ने वाली होती है.

ज्यादातर पत्नियों की तरह आप को भी ऐसी आदत डालनी पड़ सकती है कि आप पति के आते ही जेबों की सफाई करें. कहीं ऐसा न हो कि पति रंगे हाथों पकड़े जाएं. अगर पति पकड़े गए तो ईडी, एंटी करप्शन, सीबीआई वाले घर को तहसनहस कर के पति को लाइनहाजिर करने की धमकी दे सकते हैं. चोरी के माल को ऐसे में आए मेहमानों को चायनाश्ते में सौंप दीजिए और प्रार्थना कीजिए कि बात बढ़ाने से क्या फायदा, मामला खत्म किया जाए.

उम्मीद है कि ‘घूस देवी’ आप के पति ‘नेता’ को गुस्से से बचा लेगी. नेताओं की आदत होती है कि वे पुलिस वालों को नेता भी बना डालते हैं, क्योंकि चोरचोर मौसरे भाई ही होते हैं. कपड़ा दुकानदार पति ‘नेता’ : आप इतना तय मानिए कि आप को कपड़ों की कमी नहीं होगी. वे हरेक की कमीज भी उतरवा लेने में माहिर होंगे. एक सज्जन कपड़ा बेचने का काम करते थे, लेकिन ऐसे ही एक को कुछ दोस्त पकड़ कर एक क्लब में ले गए और उन्हें मेज के पास बैठा दिया.

थोड़ी देर बाद उन्हें नींद आ गई और मेज का कपड़ा 1 और 2 कहते हुए उन्होंने नींद में ही टुकड़ेटुकड़े कर दिए. पूछने पर बताया कि सपने में ग्राहक को एकएक मीटर कपड़ा बेच रहे थे. ऐसे नेता जब रात को कपड़े उतारते हैं तो भी तह कर के रखते हैं, अपनी धोती भी, आप की साड़ी भी चाहे, तब तक आप सो ही जाएं. अगर आप के पति ऐसी हालत में हों तो उन से दूर से ही बातचीत कीजिए. कपड़े उतारने तक तो कोई गड़बड़ी नहीं होगी, लेकिन कपड़े के टुकड़े हो जाने पर अपना ही नुकसान होगा. Hindi Funny Story

Hindi Short Story: काका-वा – रानी को चेन्नई में क्या अलग लगा

Hindi Short Story: बिहार से तबादला होने के बाद रानी जब चेन्नई पहुंची तो उस के लिए सबकुछ ही बदला हुआ था. हवा, पानी, खानपान, पहनावा और भाषा सबकुछ ही तो अलग था. शुरूशुरू में चेन्नई के लोग भी उसे अजीब ही लगते थे. अधिकतर औरतों ने पूरे शरीर पर ही हलदी रगड़ी हुई होती. शुरू में तो रानी को लगा शायद यहां की औरतें पीलिया रोग से पीडि़त हैं. पर धीरेधीरे यह भेद भी खुल गया कि नहाने से पहले हलदी लगाना यहां की परंपरा है.

भाषा न आने के कारण रानी को अकेलापन अधिक लगता था. वह आसपास बोले जाने वाले शब्दों को ध्यान से सुनती पर सब उस के सिर के ऊपर से गुजर जाते थे. तमिल भाषा सिखाने वाली एक किताब भी वह ले आई थी. उसे यहां के कौए भी अलग नजर आते थे. बिहार जैसे कौए नहीं थे. यहां के कौए तो पूरे के पूरे चमकीले काले थे और आकार में भी कुछ बड़े थे. उन की कांवकांव में भी अधिक कर्कशता थी और घर में फुदकने वाली, चींचीं करने वाली चिडि़यां तो यहां थीं ही नहीं.

यहां सुबह उठने के बाद जैसे ही रानी रसोई में चाय बनाने जाती, तो रसोई की खिड़की की मुंडेर पर कौओं के ही दर्शन करती. उस की रसोई की खिड़की से सामने वाली बड़ी इमारत साफ नजर आती थी और उसे ऐसा लगा कि उस इमारत के सभी फ्लैटों के रसोईघर इसी दिशा में थे क्योंकि सभी खिड़कियों की मुंडेरों पर कौओं के लिए चावल डले होते. उस के गांव में तो लोग कबूतर को दाना देना अच्छा समझते थे, पर यहां कौओं को पके हुए चावल डालना शायद अच्छा समझा जाता था. यही देख कर उस ने भी कौओं को चावल डालने की बात सोची. पर सुबहसुबह वह चावल नहीं पकाती थी. उस की रसोई में तो सुबह के समय परांठे और पूरियां बनती थीं.

पहले दिन उस ने आधी चपाती के टुकड़े खिड़की की बाहरी चौखट पर रख दिए पर एक भी कौआ नहीं आया. उसे बहुत दुख हुआ कि कौओं ने चपाती का एक टुकड़ा भी ग्रहण नहीं किया. सारा दिन रोटी के टुकड़े वहीं पड़े रहे. दूसरे दिन फिर उस ने नाश्ते में बनी पहली रोटी के कुछ टुकड़े कर के खिड़की में डाल दिए. शायद घी की महक थी या रानी की श्रद्धा का असर था कि एक कौआ उड़ कर आया, बैठा और उस ने रोटी के टुकड़ों को ध्यान से देखा. फिर अपने पंजों में उठा कर कुछ देर बैठा रहा जैसे सोच रहा हो कि यह नई चीज खाऊं या नहीं, फिर उस ने पूरा का पूरा टुकड़ा निगल लिया. फिर दूसरा टुकड़ा चोंच में उठा कर उड़ गया. फिर दूसरा कौआ आया तो उस ने भी वैसी ही प्रतिक्रिया दोहराई.

आज रानी को अच्छा लगा और उस का हौसला बढ़ गया. दूसरे दिन उस ने एक बड़ी रोटी बनाई और उस के अनेक टुकड़े कर के खिड़की के बाहर डाल दिए. पहले एक कौआ आया और उस ने कुछ ऐसी आवाज निकाली कि उसे सुन कर बहुत सारे कौए एकसाथ आ गए और पल भर में ही सारी रोटी खा गए. आज रानी को बहुत अच्छा लगा. उस ने सोचा कि ये दक्षिण भारतीय कौए भी अब रोटी खाना सीख गए हैं. अब तो कौओं को रोटी डालना उस की सुबह की दिनचर्या में शामिल हो गया था. धीरेधीरे वह कौओं को पहचानने भी लगी थी. एक कौए की चोंच मुड़ी हुई थी. दूसरे कौए का एक पंजा ही नहीं था तो एक और कौए की गरदन के बाल झड़े हुए थे. वह सोचती कि जैसे उसे कौओं की पहचान होती जा रही है वैसे ही क्या कौए भी उसे पहचानते होंगे? पर इस का कोई उत्तर उस के पास नहीं था.

एक दिन रानी ने डबलरोटी का नाश्ता तैयार किया. डबलरोटी के ही छोटेछोटे टुकड़े कर के उस ने खिड़की में डाल दिए. कौए आए, कांवकांव किया, पर उन्होंने डबलरोटी के टुकड़े नहीं खाए. उन्हें वहीं छोड़ कर वे उड़ गए, उस ने सोचा पहले रोटी नहीं खाते थे और आज डबलरोटी नहीं खा रहे हैं. कल भी उन्हें यही डालूंगी तब खा लेंगे.

दूसरे दिन फिर उस ने डबलरोटी डाली पर किसी भी कौए ने नहीं खाई. तीसरे दिन फिर उस ने डबलरोटी डाली पर फिर कौओं ने नहीं खाई. तब उस ने जल्दी से आटा निकाला, एक रोटी बनाई और रोटी के टुकड़े डाले. कौओं ने पहले की तरह पल भर में सब टुकड़े लपक लिए थे. आज उस ने जाना कि कौओं की भी पसंद और नापसंद होती है. उस की जांच करने के लिए उस ने अगले दिन उबले चावल डाले. कौए आए और सूंघ कर चले गए. दिनभर चावल वहीं पड़े रहे और गिलहरियां खाती रहीं. उस दिन रानी ने गिलहरियों के व्यवहार को भी करीब से देखा, कैसे एकएक दाने को दोनों पंजों से पकड़ कर कुतरकुतर कर बड़े प्यार से खाती हैं. उन की चमकती हुई दोनों आंखें कितनी सुंदर लगती हैं. इन जीवों का व्यवहार देखने में रानी को आनंद आने लगा था. उसे लगा था कि उसे तो जीवशास्त्री बनना चाहिए था.

कौओं को रोटी डालतेडालते रानी ने उन के व्यवहार को भी बहुत करीब से देखा. उस ने देखा कि कौओं में भी लालच होता है. कई कौए तो अधिक से अधिक रोटी के टुकड़े निगल कर और फिर चोंच में भी दबा कर उड़ जाते थे. अपने रोज के साथियों के लिए एक टुकड़ा तक नहीं छोड़ते थे. ऐसे दबंग कौओं से कमजोर कौए डरते भी थे. दबंग कौए जब तक खिड़की पर बैठे रहते कमजोर कौए दूर बैठे उन के उड़ने का इंतजार करते. जब दबंग कौए उड़ जाते तभी वे खिड़की पर आते और बचेखुचे टुकड़ों को खा कर ही संतोष कर लेते थे.

कौओं के खाने की प्रक्रिया में रानी ने उन की काली, पतली और लंबी जीभ भी देखी. उन की जीभ देख कर उसे उबकाई सी आने लगती थी. उसे टेढ़ी चोंच वाले और एक पैर वाले कौए पर विशेष दया आती थी. इसलिए उन दोनों विकलांग कौओं के लिए वह अलग से रोटी रख लेती थी. जब और सब कौए रोटी ले कर उड़ जाते थे तब वे दोनों कौए एकसाथ खिड़की पर आते और वह दोनों को रोटी डालती. आराम से अपनाअपना हिस्सा ले कर वे उड़ जाते थे.

रानी ने एक और बात जानी कि कमजोर कौओं में बहुत अधिक धीरज होता है. कभीकभी रानी काम में इतना अधिक व्यस्त होती कि उन दोनों को देख कर भी उन्हें अनदेखा सा कर जाती थी. पर वे दोनों शांत बैठे इंतजार करते रहते थे. एकदो बार तो आधे घंटे से अधिक देर तक दोनों धीरज धरे बैठे रहे थे. उन्हें इस तरह देख कर उस ने मन ही मन उन से माफी मांगी थी और उन्हें रोटी दे दी थी. इतनी देर से भोजन न मिलने पर भी उन में अधीरता नहीं थी, दोनों ने बड़े शांत भाव से रोटी खाई. टेढ़ी चोंच वाले कौए पर उसे अधिक दया आती थी क्योंकि वह रोटी का टुकड़ा बड़ी मुश्किल से उठा पाता था.

कौओं से दोस्ती ने रानी को दार्शनिक भी बना दिया था. वह मानव और पक्षियों की तुलना करने लगती. उसे लगता दोनों में कितनी समानता है. दोनों में लालच है, दोनों में पसंदनापसंद है, दोनों में धीरज है, दोनों में मैत्री और दया भी है.

रानी जब इस प्रकार दोनों की तुलना करती तो उस के मन में एक विचार बारबार आता था कि क्या ये भी मनुष्य को पहचानते हैं. इस मुश्किल का हल भी उसे शीघ्र ही मिल गया. तभी एक अंगरेजी की पत्रिका उस के हाथ लगी. उस में पूरा एक लेख था कि कौए भी आदमी को पहचानते हैं. इस कहानी में एक ऐसे व्यक्ति के अनुभव लिखे हुए थे जिस ने एक कौए को पाल रखा था और वह कौआ हजारों की भीड़ में उसे पहचान कर उस के कंधे पर ही आ कर बैठता था. यह पढ़ कर रानी भी खुश हुई कि ये दोनों कौए जो रोज उस के हाथ की रोटी खा कर जाते हैं उसे जरूर पहचानते होंगे. इस का प्रमाण भी उसे मिल गया. एक दिन सुबह की सैर के लिए निकली तो टेढ़ी चोंच वाला कौआ उड़ता हुआ आया और उस के सिर पर बैठ गया. अचानक इतने बोझ को सिर पर महसूस कर के वह घबरा गई थी और उस ने जोर से धक्का दे कर उसे उड़ा दिया था. घर आ कर उस ने जब इस घटना के बारे में बताया तो सब ने इस का अलगअलग अर्थ लगाया. पति बोले, ‘‘जल्दी नहा लो. कौए कितने गंदे होते हैं.’’

सासूमां बोलीं, ‘‘यह तो बहुत बड़ा अपशकुन है. कौए का सिर पर बैठना घर में किसी की मृत्यु का संकेत देता है. जल्दी मंदिर जाओ और एक चांदी का कौआ दान करो.’’

अनजाने में ही रानी के इस दोस्त ने उसे दुविधा में डाल दिया था. फिर उस ने अंगरेजी पत्रिका के लेख के सहारे सासूमां को समझाया कि कौऐ का यह व्यवहार दोस्ती के कारण था. वह कौआ किसी चांदी के दुकानदार का एजेंट तो था नहीं, इसलिए इस तर्कहीन दान की बात एकदम बेकार है. सासूमां ने भी जब इस पर ध्यान से सोचा तो उन्हें अपने द्वारा बताए गए इस उपाय पर खुद हंसी आने लगी.

जिंदगी अपनी रफ्तार चलती रही. कौए के सिर पर बैठने के अपशकुन का वहम दम तोड़ चुका था. चेन्नई में आना रानी को भा गया था. वह सुबह उठते ही अन्य चेन्नई वालों की तरह आवाज लगाती, ‘‘काका वा (अर्थात कौएजी) आओ और भोजन ग्रहण करो. Hindi Short Story

Story In Hindi: यह घर मेरा भी है – शादी के बाद समीर क्यों बदल गया?

Story In Hindi: मैं और मेरे पति समीर अपनी 8 वर्षीय बेटी के साथ एक रैस्टोरैंट में डिनर कर रहे थे, अचानक बेटी चीनू के हाथ के दबाव से चम्मच उस की प्लेट से छिटक कर उस के कपड़ों पर गिर गया और सब्जी छलक कर फैल गई.

यह देखते ही समीर ने आंखें तरेरते हुए उसे डांटते हुए कहा, ‘‘चीनू, तुम्हें कब अक्ल आएगी? कितनी बार समझाया है कि प्लेट को संभाल कर पकड़ा करो, लेकिन तुम्हें समझ ही नहीं आता… आखिर अपनी मां के गंवारपन के गुण तो तुम में आएंगे ही न.’’

यह सुनते ही मैं तमतमा कर बोली, ‘‘अभी बच्ची है… यदि प्लेट से सब्जी गिर भी गई तो कौन सी आफत आ गई है… तुम से क्या कभी कोई गलती नहीं होती और इस में गंवारपन वाली कौन सी बात है? बस तुम्हें मुझे नीचा दिखाने का कोई न कोई बहाना चाहिए.’’

‘‘सुमन, तुम्हें बीच में बोलने की जरूरत नहीं है… इसे टेबल मैनर्स आने चाहिए. मैं नहीं चाहता इस में तुम्हारे गुण आएं… मैं जो चाहूंगा, इसे सीखना पड़ेगा…’’

मैं ने रोष में आ कर उस की बात बीच में काटते हुए कहा, ‘‘यह तुम्हारे हाथ की कठपुतली नहीं है कि उसे जिस तरह चाहो नचा लो और फिर कभी तुम ने सोचा है कि इतनी सख्ती करने का इस नन्ही सी जान पर क्या असर होगा? वह तुम से दूर भागने लगेगी.’’

‘‘मुझे तुम्हारी बकवास नहीं सुननी,’’ कहते हुए समीर चम्मच प्लेट में पटक कर बड़बड़ाता हुआ रैस्टोरैंट के बाहर निकल गया और गाड़ी स्टार्ट कर घर लौट गया.

मेरी नजर चीनू पर पड़ी. वह चम्मच को हाथ में

पकड़े हमारी बातें मूक दर्शक बनी सुन रही थी. उस का चेहरा बुझ गया था, उस के हावभाव से लग रहा था, जैसे वह बहुत आहत है कि उस से ऐसी गलती हुई, जिस की वजह से हमारा झगड़ा हुआ. मैं ने उस का फ्रौक नैपकिन से साफ किया और फिर पुचकारते हुए कहा, ‘‘कोई बात नहीं बेटा, गलती तो किसी से भी हो सकती है. तुम अपना खाना खाओ.’’

‘‘नहीं ममा मुझे भूख नहीं है… मैं ने खा लिया,’’ कहते हुए वह उठ गई.

मुझे पता था कि अब वह नहीं खाएगी. सुबह वह कितनी खुश थी, जब उसे पता चला था कि आज हम बाहर डिनर पर जाएंगे. यह सोच कर मेरा मन रोंआसा हो गया कि मैं समीर की बात पर प्रतिक्रिया नहीं देती तो बात इतनी नहीं बढ़ती. मगर मैं भी क्या करती. आखिर कब तक बरदाश्त करती? मुझे नीचा दिखाने के लिए बातबात में चीनू को मेरा उदाहरण दे कर कि आपनी मां जैसी मत बन जाना, उसे डांटता रहता है. मेरी चिढ़ को उस पर निकालने की उस की आदत बनती जा रही थी.

हम दोनों कैब ले कर घर आए तो देखा समीर दरवाजा बंद कर के अपने कमरे में था. हम भी आ कर सो गए, लेकिन मेरा मन इतना अशांत था कि उस के कारण मेरी आंखों में नींद आने का नाम ही नहीं ले रही थी. मैं ने बगल में लेटी चीनू को भरपूर दृष्टि से देखा, कितनी मासूम लग रही थी वह. आखिर उस की क्या गलती थी कि वह हम दोनों के झगड़े में पिसे?

विवाह होते ही समीर का पैशाचिक व्यवहार मुझे खलने लगा था. मुझे हैरानी होती थी यह देख कर कि विवाह के पहले प्रेमी समीर के व्यवहार में पति बनते ही कितना अंतर आ गया. वह मेरे हर काम में मीनमेख निकाल कर यह जताना कभी नहीं चूकता कि मैं छोटे शहर में पली हूं. यहां तक कि वह किसी और की उपस्थिति का भी ध्यान नहीं रखता था.

इस से पहले कि मैं समीर को अच्छी तरह समझूं, चीनू मेरे गर्भ में आ गई. उस के बाद तो मेरा पूरा ध्यान ही आने वाले बच्चे की अगवानी की तैयारी में लग गया था. मैं ने सोचा कि बच्चा होने के बाद शायद उस का व्यवहार बदल जाएगा. मैं उस के पालनपोषण में इतनी व्यस्त हो गई कि अपने मानअपमान पर ध्यान देने का मुझे वक्त ही नहीं मिला. वैसे चीनू की भौतिक सुखसुविधा में वह कभी कोई कमी नहीं छोड़ता था.

वक्त मुट्ठी में रेत की तरह फिसलता गया और चीनू 3 साल की हो गई. इन सालों में मेरे प्रति समीर के व्यवहार में रत्तीभर परिवर्तन नहीं आया. खुद तो चीनू के लिए सुविधाओं को उपलब्ध करा कर ही अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझता था, लेकिन उस के पालनपोषण में मेरी कमी निकाल कर वह मुझे नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ता था.

धीरेधीरे वह इस के लिए चीनू को अपना हथियार बनाने लगा कि वह भी

मेरी आदतें सीख रही है, जोकि मेरे लिए असहनीय होने लगा था. इस प्रकार का वादविवाद रोज का ही हिस्सा बन गया था और बढ़ता ही जा रहा था. मैं नहीं चाहती थी कि वह हमारे झगड़े के दलदल में चीनू को भी घसीटे. चीनू तो सहमी हुई मूकदर्शक बनी रहती थी और आज तो हद हो गई थी. वास्तविकता तो यह है कि समीर को इस बात का बड़ा घमंड है कि वह इतना कमाता है और उस ने सारी सुखसुविधाएं हमें दे रखी हैं और वह पैसे से सारे रिश्ते खरीद सकता है.

मैं सोच में पड़ गई कि स्त्री को हर अवस्था में पुरुष का सुरक्षा कवच चाहिए होता है. फिर चाहे वह सुरक्षाकवच स्त्री के लिए सोने के पिंजरे में कैद होने के समान ही क्यों न हो? इस कैद में रह कर स्त्री बाहरी दुनिया से तो सुरक्षित हो जाती है, लेकिन इस के अंदर की यातनाएं भी कम नहीं होतीं. पिछली पीढ़ी में स्त्रियां आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं होती थीं, इसलिए असहाय होने के कारण पति द्वारा दी गई यातनाओं को मनमार कर स्वीकार लेती थीं. उन्हें बचपन से ही घुट्टी पिला दी जाती थी कि उन के लिए विवाह करना आवश्यक है और पति के साथ रह कर ही वे सामाजिक मान्यता प्राप्त कर सकती हैं, इस के इतर उन का कोई वजूद ही नहीं है.

मगर अब स्त्रियां आत्मनिर्भर होने के साथसाथ अपने अधिकारों के लिए भी जागरूक हो गई हैं. फिर भी कितनी स्त्रियां हैं जो पुरुष के बिना रहने का निर्णय ले पा रही हैं? लेकिन मैं यह निर्णय ले कर समाज की सोच को झुठला कर रहूंगी. तलाक ले कर नहीं, बल्कि साथ रह कर. तलाक ही हर दुखद वैवाहिक रिश्ते का अंत नहीं होता. आखिर यह मेरा भी घर है, जिसे मैं ने तनमनधन से संवारा है. इसे छोड़ कर मैं क्यों जाऊं?

लड़कियों का विवाह हो जाता है तो उन का अपने मायके पर अधिकार नहीं रहता, विवाह के बाद पति से अलग रहने की सोचें तो वही उस घर को छोड़ कर जाती हैं, फिर उन का अपना घर कौन सा है, जिस पर वे अपना पूरा अधिकार जता सकें? अधिकार मांगने से नहीं मिलता, उसे छीनना पड़ता है. मैं ने मन ही मन एक निर्णय लिया और बेफिक्र हो कर सो गई.

सुबह उठी तो मन बड़ा भारी हो रहा था. समीर अभी भी सामान्य नहीं था. वह

औफिस के लिए तैयार हो रहा था तो मैं ने टेबल पर नाश्ता लगाया, लेकिन वह ‘मैं औफिस में नाश्ता कर लूंगा’ बड़बड़ाते हुए निकल गया. मैं ने भी उस की बात पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.

चीनू आ कर मुझ से लिपट गई. बोली, ‘‘ममा, पापा को इतना गुस्सा क्यों आता है? मुझ से थोड़ी सब्जी ही तो गिरी थी…आप को याद है उन से भी चाय का कप लुढ़क गया था और आप ने उन से कहा था कि कोई बात नहीं, ऐसा हो जाता है. फिर तुरंत कपड़ा ला कर आप ने सफाई की थी. मेरी गलती पर पापा ऐसा क्यों नहीं कहते? मुझे पापा बिलकुल अच्छे नहीं लगते. जब वे औफिस चले जाते हैं, तब घर में कितना अच्छा लगता है.’’

‘‘सब ठीक हो जाएगा बेटा, तू परेशान मत हो… मैं हूं न,’’ कह कर मैं ने उसे अपनी छाती से लगा लिया और सोचने लगी कि इतनी प्यारी बच्ची पर कोई कैसे गुस्सा कर सकता है? यह समीर के व्यवहार का कितना अवलोकन करती है और इस के बालसुलभ मन पर उस का कितना नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है.

समीर और मुझ में बोलचाल बंद रही. कभीकभी वह औपचारिकतावश चीनू से पूछता कहीं जाने के लिए तो वह यह देख कर कि वह मुझ से बात नहीं करता है, उसे साफ मना कर देती थी. वह सोचता था कि कोई प्रलोभन दे कर वह चीनू को अपने पक्ष में कर लेगा, लेकिन वह सफल नहीं हुआ. समीर की बेरुखी दिनबदिन बढ़ती जा रही थी, मनमानी भी धीरेधीरे बढ़ रही थी. जबतब घर का खाना छोड़ कर बाहर खाने चला जाता, मैं भी उस के व्यवहार को अनदेखा कर के चीनू के साथ खुश रहती. यह स्थिति 15 दिन रही.

एक दिन मैं चीनू के साथ कहीं से लौटी तो देखा समीर औफिस से अप्रत्याशित जल्दी लौट कर घर में बैठा था. मुझे देखते ही गुस्से में बोला, ‘‘क्या बात है, आजकल कहां जाती हो बताने की भीजरूरत नहीं समझी जाती…’’ उस की बात बीच में काट कर मैं बोली, ‘‘तुम बताते हो कि तुम कहां जाते हो?’’

‘‘मेरी बात और है.’’

‘‘क्यों? तुम्हें गुलछर्रे उड़ाने की इजाजत है, क्योंकि तुम पुरुष हो, मुझे नहीं. क्योंकि…’’

‘‘लेकिन तुम्हें तकलीफ क्या है? तुम्हें किस चीज की कमी है? हर सुख घर में मौजूद है. पैसे की कोई कमी नहीं. जो चाहे कर सकती हो,’’ गुलछर्रे उड़ाने वाली बात सुन कर वह थोड़ा संयत हो कर मेरी बात को बीच में ही रोक कर बोला, क्योंकि उस के और उस की कुलीग सुमन के विवाहेतर संबंध से मैं अनभिज्ञ नहीं थी.

‘‘तुम्हें क्या लगता है, इन भौतिक सुखों के लिए ही स्त्री अपने पूर्व रिश्तों को विवाह की सप्तपदी लेते समय ही हवनकुंड में झोंक देती है और बदले में पुरुष उस के शरीर पर अपना प्रभुत्व समझ कर जब चाहे नोचखसोट कर अपनी मर्दानगी दिखाता है… स्त्री भी हाड़मांस की बनी होती है, उस के पास भी दिल होता है, उस का भी स्वाभिमान होता है, वह अपने पति से आर्थिक सुरक्षा के साथसाथ मानसिक और सामाजिक सुरक्षा की भी अपेक्षा करती है. तुम्हारे घर वाले तुम्हारे सामने मुझे कितना भी नीचा दिखा लें, लेकिन तुम्हारी कोई प्रतिक्रिया नहीं होती. तुम मूकदर्शक बने खड़े देखते रहते हो… स्वयं हर समय मुझे नीचा दिखा कर मेरे मन को कितना आहत करते हो, यह कभी सोचा है?’’

‘‘ठीक है यदि तुम यहां खुश नहीं हो तो अपने मायके जा कर रहो, लेकिन चीनू तुम्हारे साथ नहीं जाएगी, वह मेरी बेटी है, उस की परवरिश में मैं कोई कमी नहीं रहने देना चाहता. मैं उस का पालनपोषण अपने तरीके से करूंगा… मैं नहीं चाहता कि वह तुम्हारे साथ रह कर तुम्हारे स्तर की बने,’’ समीर के पास जवाब देने को कुछ नहीं बचा था, इसलिए अधिकतर पुरुषों द्वारा प्रयोग किया जाने वाला अंतिम वार करते हुए चिल्ला कर बोला.

‘‘चिल्लाओ मत. सिर्फ पैदा करने से ही तुम चीनू के बाप बनने के अधिकारी नहीं हो सकते. वह तुम्हारे व्यवहार से आहत होती है. आजकल के बच्चे हमारे जमाने के बच्चे नहीं हैं कि उन पर अपने विचारों को थोपा जाए, हम उन को उस तरह नहीं पाल सकते जैसे हमें पाला गया है. इन के पैदा होने तक समय बहुत बदल गया है.

‘‘मैं उसे तुम्हारे शाश्नात्मक तरीके की परवरिश के दलदल में नहीं धंसने दूंगी…

मैं उस के लिए वह सब करूंगी जिस से कि वह अपने निर्णय स्वयं ले सके और मैं तुम्हारी पत्नी हूं, तुम्हारी संपत्ति नहीं. यह घर मेरा भी है. जाना है तो तुम जाओ. मैं क्यों जाऊं?

‘‘इस घर पर जितना तुम्हारा अधिकार है, उतना ही मेरा भी है. समाज के सामने मुझ से विवाह किया है. तुम्हारी रखैल नहीं हूं… जमाना बदल गया, लेकिन तुम पुरुषों की स्त्रियों के प्रति सोच नहीं बदली. सारी वर्जनाएं, सारे कर्तव्य स्त्रियों के लिए ही क्यों? उन की इच्छाओं, आकांक्षाओं का तुम पुरुषों की नजरों में कोई मूल्य नहीं है.

‘‘उन के वजूद का किसी को एहसास तक भी नहीं. लेकिन स्त्रियां भी क्यों उर्मिला की तरह अपने पति के निर्णय को ही अपनी नियत समझ कर स्वीकार लेती हैं? क्यों अपने सपनों का गला घोंट कर पुरुषों के दिखाए मार्ग पर आंख मूंद कर चल देती हैं? क्यों अपने जीवन के निर्णय स्वयं नहीं ले पातीं? क्यों औरों के सुख के लिए अपना बलिदान करती हैं? अभी तक मैं ने भी यही किया, लेकिन अब नहीं करूंगी. मैं इसी घर में स्वतंत्र हो कर अपनी इच्छानुसार रहूंगी,’’ समीर पहली बार मुझे भाषणात्मक तरीके से बोलते हुए देख कर अवाक रह गया.

‘‘पापा, मैं आप के पास नहीं रहूंगी, आप मुझे प्यार नहीं करते. हमेशा डांटते रहते हैं… मैं ममा के साथ रहूंगी और मैं उन की तरह ही बनना चाहती हूं… आई हेट यू पापा…’’ परदे के पीछे खड़ी चीनू, जोकि हमारी सारी बातें सुन रही थी, बाहर निकल कर रोष और खुशी के मिश्रित आंसू बहने लगी. मैं ने देखा कि समीर पहली बार चेहरे पर हारे हुए खिलाड़ी के से भाव लिए मूकदर्शक बना रह गया. Story In Hindi

Hindi Story: दर्द का सफर – जीवन के दर्द पाल कर बैठ जाएं तो..

Hindi Story: ‘मन क्यों रोनेरोने को है
क्या जाने क्या होने को है
हृदय संजोए अनगिनत यादें तन तो बोझा ढोने को है
आहें दर्पण धुंधलाने को,
हर आंसू मुख धोने को है.
दिया जिंदगी ने बहुतेरा,
मिला सभी, पर खोने को है.
फूल समय ने सभी चुन लिए,
अब जाने क्या बोने को है.’

सैटेलाइट रोड पर स्थित सरदार पटेल हौल में अपने शो की शुरुआत मैं ने विश्व प्रकाश दीक्षित की इसी गजल के साथ शुरू की. गजल खत्म होते ही श्रोताओं की तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा हौल गूंज उठा. इस से मुझे काफी संतोष हुआ, क्योंकि यह मेरा पहला सोलो परफौर्मेंस था. शो से पहले मैं काफी नर्वस थी. पर थैंक्स टू देव. उन के मोटिवेशन से मेरा हौसला सातवें आसमान पर था. गजल के बाद कुछ फिल्मी गीत और 2 घंटे की रजनी पंडित म्यूजिकल इवनिंग खत्म हुई. मेरा दर्द का सफर खुशी के मुकाम पर आखिरकार पहुंच ही गया.

मेरा अब तक का जीवन दर्द का ही सफर है. हर पहलू, हर हिस्से में दर्द ही दर्द है. इस से मुझे प्रेरणा भी मिलती है, क्योंकि हर गम की काली रात का अंत सुहानी सुबह से जरूर होता है. पहले अपना परिचय दे दूं. मेरा नाम रजनी है और उम्र 27 साल है. समाजशास्त्र में एमए हूं. फिलहाल अहमदाबाद में रहती हूं. इस शहर में आए कुछ महीने ही हुए. वैसे मैं मूलरूप से नडियाद जिले के एक गांव की रहने वाली हूं. मेरे पिताजी राजस्व विभाग में कार्यरत हैं और मां गृहिणी हैं. बाकी परिवार में भाई, बहन, भाभी, भतीजे सब हैं.

देखा जाए तो मेरा परिवार एक आदर्श परिवार है. पर मेरे बचपन की शुरुआत दर्द के सफर से शुरू हुई. मुझे एक बात जो धीरेधीरे समझ आने लगी वह थी बेटी की उपेक्षा. आज भले ही चारों तरफ ये नारे दिए जाते हों कि बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, लड़कालड़की एक समान, पढ़ीलिखी लड़की, रोशनी घर की, पर हकीकत अलग है. मेरे घर में ही मिलेंगे कुछ ऐसे निशान, जहां अरमानों ने खुदकुशी की है.

वास्तव में अपने ही घर वाले बेटियों से अच्छा व्यवहार नहीं करते. चाहे मातापिता हों या भाईभाभी, उन का व्यवहार भी ठीक नहीं रहता. वे पगपग पर लड़कियों की उपेक्षा करते हैं. उन्हें मानसिक रूप से प्रताडि़त करते हैं. लड़कियों को बोझ समझा जाता है. हो सकता है कि हर घर में ऐसा नहीं होता हो, पर मेरे घर में ऐसा होता है. मैं ने इसे महसूस किया है और भोगा है.

मैं ने मांबेटी, बापबेटी, भाईबहन और भाभीननद के बीच रिश्तों की असलियत देखी है. उस का दुखद अनुभव किया है. आपसी रिश्तों में प्रेम के महत्त्व पर मुझे एक लघुकथा याद आ रही है. एक बार एक ग्वालन दूध बेच रही थी और सब को दूध नापनाप कर दे रही थी. उसी समय एक नौजवान दूध लेने आया तो ग्वालन ने बिना नापे ही उस नौजवान का बरतन दूध से भर दिया.

वहीं थोड़ी दूर पर एक साधु हाथ में माला ले कर मनकों को फेर रहा था. उस की नजर ग्वालन पर पड़ी और उस ने यह सब देखा और पास बैठे व्यक्ति को सारी बात बता कर इस का कारण पूछा. उस व्यक्ति ने बताया कि जिस नौजवान को उस ग्वालन ने बिना नापे दूध दिया है वह उस से प्रेम करती है. यह बात साधु के दिल को छू गई और उस ने सोचा कि एक दूध बेचने वाली ग्वालन जिस से प्रेम करती है, उस का हिसाब नहीं रखती और मैं यहां बैठा सुबह से शाम तक मनके गिनगिन कर माला फेर रहा हूं. मुझ से तो अच्छी यह ग्वालन है और उस ने माला तोड़ कर फेंक दी.

जीवन ऐसा ही होना चाहिए. जहां प्रेम होता है, वहां हिसाबकिताब नहीं होता और जहां हिसाबकिताब होता है वहां प्यार नहीं, सिर्फ व्यापार होता है. हम कम से कम आपसी रिश्तों को तो स्वार्थ, उपेक्षा, नफरत, विरोध व व्यापार से दूर रखें.

मैं अपने घर के अनुभव को आज के समाज से जोड़ती हूं. पिछले 2 दिनों से लगातार अखबार में कुछ ऐसी ही खबरें आ रही हैं उन में एक खबर थी कि मुंबई में एक महिला का बेटा अमेरिका से जब घर आया तो उसे अपनी मां का कंकाल बंद घर में मिला, उस महिला के उसी बिल्डिंग में

2 फ्लैट थे जिन की कीमत करोड़ों में है और बेटा भी अमेरिका में अच्छा कमाता है. दूसरी खबर थी कि रेमंड्स कंपनी के मालिक विजयपत सिंघानिया अब जिंदगी के आखिरी दिनों में मुंबई के एक छोटे से फ्लैट में मुफलिसी में जिंदगी बिता रहे हैं.

एक मामले में मां और बेटे के बीच रिश्ते असंवेदनशील हो गए तो दूसरी मिसाल में बापबेटे के बीच रिश्ते तल्ख हो गए. विजयपत का सगा बेटा गौतम ही उन्हें कुछ भी देने को राजी नहीं है, इसलिए विजयपत को अदालत का सहारा लेना पड़ा.

आज के रिश्ते स्वार्थी, क्रूर, निर्दयी और असंवेदनशील हो गए हैं. उन में नजदीक का स्नेह और अपनापन नहीं है. रिश्तों में गर्मजोशी नहीं है. प्रेम गायब हो चुका है. मैं ईश्वर दत्त अंजुम को याद करती हूं. तुम को रोना है तो महफिल सजा कर न रोना, दिल का हर दर्द जमाने से छिपा कर रोना.

रोनेधोने के भी दस्तूर हुआ करते हैं, अपने अश्कों में लहू दिल का मिला कर रोना. मेरी मां मेरे प्रति पता नहीं क्यों कुछ ज्यादा ही क्रूर नजर आई हैं. इसे मैं काफी पहले से महसूस कर रही हूं, लेकिन इस क्रूरता में इजाफा 2 साल पहले हुआ जब मेरे भाई की शादी हुई और भाभी का घर में प्रवेश हुआ. भाभी ने आते ही मेरा जीना हराम कर दिया. वह छोटीछोटी बातों को ले कर मेरे पीछे पड़ने लगी. मुझे ताना मारने लगी. जब गुस्सा आता तो पूरा आसमान सिर पर उठा लेती और चीखचीख कर बोलती, ‘रजनी ने मेरा जीना हराम कर दिया है.’ भाभी ने एक बार फांसी लगाने का भी नाटक किया. मेरी मां हमेशा उसी के पक्ष में रहतीं, क्योंकि घर में भाई ही कमाने वाला है.

मां भाभी का समर्थन करतीं और कहतीं, ‘रजनी, तुम चुप रहो, अपनी भाभी से जबान मत लड़ाओ. तुम्हारा क्या है, तुम्हें तो शादी कर दूसरे घर जाना है.

मैं अपनी मां की खूब इज्जत करती हूं. उन के लिए मेरे मन में अगाध सम्मान है. मेरी नजर में मेरी मां सरीखी दुनिया में कोई दूसरा नहीं है. वे बेमिसाल हैं, पर उन का एक और पक्ष आप के सामने रख चुकी हूं. वे कई बार तो यह भी कह चुकी हैं कि मुझे तुम से कोई मतलब नहीं. कहीं तुम्हारी वजह से मेरे दोनों बेटों का कत्ल न हो जाए. मेरे लिए अफसोस की बात है कि मेरा सगा भाई भी भाभी की हां में हां मिलाता.

भाई पैसे के घमंड में रहता है क्योंकि वह काफी पैसे कमाता है. वह भी कहता कि रजनी तुम जबान बहुत चलाती हो. तुम मेरी दुश्मन बन गई हो. अपनी भाभी का सम्मान किया करो. तुम भाभी का हमेशा अपमान करती हो. वे तुम से बड़ी हैं. मेरी भाभी एक बार तो मेरे ऊपर हाथ भी उठा चुकी है. मैं भी भाभी को मार कर उसे करारा जवाब दे सकती थी, पर मैं ने ऐसा नहीं किया. मैं खून का घूंट पी कर रह गई.

भाई यह भी कहता कि रजनी, तुम जिंदगी में कुछ नहीं कर पाओगी. नौकरी कर के कितना कमाओगी? 5 हजार, 10 हजार, बस. इतनी मेरी एक दिन की कमाई और खर्च है.

मैं मांपिताजी का बहुत सम्मान करती हूं. कुल मिला कर मुझे उन से कोई शिकायत नहीं है. पर मेरा दुख है कि चाहे मां हों या पिताजी दोनों ने मेरी भावनाओं को समझने का कोई प्रयास नहीं किया. लिहाजा, मेरा दर्द का सफर चलता रहा. ‘रात गम की बसर नहीं होती, उफ, सहर क्यों नहीं होती.’

मां को चाहिए कि वे बेटी की भावनाओं और आकांक्षाओं को समझें, बेटी को कभी हर्ट न करें. कहते भी हैं कि एक बेटी का मनोविज्ञान उस की मां ही समझ सकती है. पर मेरी मां ने तो मुझे बिलकुल नहीं समझा. मां ने हमेशा मेरी उपेक्षा ही की है. मैं लड़की हूं, मां मुझे जिस खूंटे से बांध दें मैं वहीं चली जाऊं तो मैं बहुत अच्छी वरना खराब. मां ने खूब डरायाधमकाया, किसी से बात नहीं करने दी. सैकड़ों प्रतिबंध लगा दिए. ‘एक तपती दोपहर है अब हमारी जिंदगी. एक उजड़ा सा शहर है अब हमारी जिंदगी. हर दिशा में हाथ में पत्थर सजे छोटेबड़े एक सुंदर कांच का घर है अब हमारी जिंदगी.’ मां का ऐसा व्यवहार मुझे बराबर तोड़ता रहता. यह तो कोई बात नहीं हुई अपनी संतानों में से कि मां एक को दबाए और दूसरे को बाहुबली बना दे. यह बिलकुल भी उचित नहीं है, लेकिन मेरे साथ यह सबकुछ किया गया.

Ī मैं हमेशा से एक सिंगर बनने का सपना देखती रही. अहमदाबाद में इस का काफी स्कोप था लेकिन वहां शायद ही मेरा सपना पूरा हो पाए. यह सोच कर मैं अहमदाबाद चली आई. और यहां मैं ने एक संगीत विद्यालय में दाखिला ले लिया. इस में मेरी नई सहेली दीपाली ने काफी मदद की. दीपाली भी बहुत अच्छा गाती है. उस से पहले देव का प्रवेश मेरे जीवन में हो चुका था. देव ने मुझे भावनात्मक सहारा दिया. मैं गायन की दुनिया में आगे बढ़ने लगी. धीरधीरे मुझे गायिकी के मंच मिलने लगे और मेरी जिंदगी ढर्रे पर आ गई और आज मेरे पहले प्रोफैशनल शो की कामयाबी ने दर्द का सफर खत्म कर दिया. Hindi Story

Story In Hindi: खौफ – क्या था स्कूल टीचर प्रिंसिपल के रिश्ते का सच

Story In Hindi: प्रिंसिपल दास की नजरें आजकल अक्सर ही अवनि पर टिकी रहती थीं. अवनि स्कूल में नई आई थी और दूसरे टीचर्स से काफी अलग थी. लंबी, छरहरी, गोरी, घुंघराले बालों और आत्मविश्वास से भरपूर चाल वाली अवनि की उम्र 30- 32 साल से अधिक की नहीं थी. उधर 48 साल की उम्र में भी मिस्टर दास अकेले थे. बीवी का 10 साल पहले देहांत हो गया था. तब से वे स्कूल के कामों में खुद को व्यस्त रखते थे. मगर जब से स्कूल में टीचर के रूप में अवनि आई है उन के दिल में हलचल मची हुई है. वैसे अवनि विवाहिता है पर कहते हैं न कि दिल पर किसी का जोर नहीं चलता. प्रिंसिपल दास का दिल भी अवनि को देख बेकाबू रहता था.

” अवनि बैठो,” प्रिंसिपल दास ने अवनि को अपने केबिन में बुलाया था.

उन की नजरें अवनि के बालों में लगे गुलाब पर टिकी हुई थीं. अवनि के बालों में रोज एक छोटा सा गुलाब लगा होता था जो अलगअलग रंग का होता था. प्रिंसिपल दास ने आज पूछ ही लिया,” आप के बालों में रोज गुलाब कौन लगाता है?”

“कोई भी लगाता हो सर वह महत्वपूर्ण नहीं. महत्वपूर्ण यह है कि आप की नजरें मेरे गुलाब पर रहती हैं. जरा अपनी मंशा तो जाहिर कीजिए,”
शरारत से मुस्कुराते हुए अवनि ने पूछा तो प्रिंसिपल दास झेंप गए.

हकलाते हुए बोले,” नहीं ऐसा नहीं. दरअसल मेरी नजरें तो… आप पर ही रहती हैं.”

अवनि ने अचरज से प्रिंसिपल दास की तरफ देखा फिर मीठी मुस्कान के साथ बोली,” यह बात तो मुझे पता थी जनाब बस आप के मुंह से सुनना चाहती थी. वैसे मानना पड़ेगा आप हैं काफी दिलचस्प.”

“थैंक्स,” अवनि के कमेंट पर प्रिंसिपल दास थोड़े शरमा गए थे.

पानी का गिलास बढ़ाते हुए बोले,” आप के लिए क्या मंगाऊं चाय या कॉफी?”

“नहीं नहीं पानी ही ठीक है. आज तो आप की बातों ने ही चायकॉफ़ी का सारा काम कर दिया,” कहते हुए अवनि हंस पड़ी.

ऐसी ही दोचार छोटीमोटी मुलाकातों के बाद आखिर प्रिंसिपल दास ने एक दिन हिम्मत कर के कह ही दिया,” आप मुझे बहुत अच्छी लगती हो. वैसे मैं जानता हूं एक विवाहित स्त्री से मेरा ऐसी बातें कहना उचित नहीं पर बस एक बार कह देना चाहता था.”

“मिस्टर दास हर बात जुबां से कहनी जरूरी तो नहीं होती. वैसे भी आप की नजरें यह बात कितनी ही दफा कह चुकी हैं.”

“तो क्या आप भी नजरों की भाषा पढ़ लेती हैं?”

“बिल्कुल. मैं हर भाषा पढ़ लेती हूं.”

“आप के पति भी आप से बहुत प्यार करते होंगे न,” प्रिंसिपल ने उस के चेहरे पर निगाहें टिकाते हुए पूछा.

“देखिए मैं यह नहीं कहूंगी कि वह प्यार नहीं करते. प्यार तो करते हैं पर बहुत बोरिंग इंसान हैं. न कहीं घूमने जाना, न रोमांटिक बातें करना और न हंसनाखिलखिलाना. वैरी बोरिंग. घर में पति के अलावा केवल सास हैं जो बीमार हैं. ससुर हैं नहीं. पूरे दिन घर में बोर हो जाती थी इसलिए स्कूल जॉइन कर लिया. मुझे घूमनाफिरना, दिलचस्प बातें करना, दुनिया की खुशियों को अपनी बाहों में समेट लेना यह सब बहुत पसंद है. आप जैसे लोग भी पसंद हैं जिन के अंदर कुछ अट्रैक्शन हो. मेरे पति में कोई अट्रैक्शन नहीं है.”

प्रिंसिपल दास को अवनि की बातें सुन कर गुदगुदी हो रही थी. अवनि जैसी महिला उन्हें अट्रैक्टिव कह रही थी और क्या चाहिए था. उन्हें दिल कर रहा था अपनी महबूबा यानी अवनि को बाहों में भर लें पर कैसे? कोई पृष्ठभूमि तो बनानी पड़ेगी.

मिस्टर दास ने इस का भी उपाय निकाल लिया.

“अवनि क्यों न आप की क्लास के बच्चों को ले कर हम पिकनिक पर चलें. स्पोर्ट्स डे के दौरान आप की क्लास के बच्चों ने बेहतरीन परफॉर्मेंस दी. उन के रिजल्ट भी काफी अच्छे आए हैं.”

“ग्रेट आइडिया सर. बताइए न कब चलना है और कहां जाना है?” खुश हो कर अवनि ने कहा.

अवनि क्लास 7 की क्लास टीचर थी. अगले संडे ही कक्षा 7 के बच्चों को शहर के सब से खूबसूरत पार्क में ले जाया गया. पूरे दिन बच्चे एक तरफ खेलते रहे और पार्क के दूसरे कोने में मिस्टर दास अवनि के साथ रोमांस की पींगे बढ़ाने में व्यस्त रहे.

अब तो अक्सर बहाने ढूंढे जाने लगे. प्रिंसिपल और अवनि कभी कोई मीटिंग अटैंड करने बाहर निकल जाते तो कभी किसी सेलिब्रेशन के नाम पर, कभी स्कूल के दूसरे बच्चे और टीचर की शामिल होते तो कभी दोनों अकेले ही जाने का प्रोग्राम बना लेते. प्रिंसिपल को हर समय अवनि का साथ पसंद था तो अवनि को इस बहाने घूमनाफिरना, खानापीना और मस्ती मारना. दोनों ही एकदूसरे की इच्छा पूरी कर अपना मतलब निकाल रहे थे. ऐसे ही वक्त गुजरता रहा. उन का यह अवैध रिश्ता वैध रास्तों से आगे बढ़ता रहा.

अब तो अवनि अक्सर अपने हाथ का बना खाना और पकवान आदि प्रिंसिपल के लिए ले कर आती. सब की नजरें बचा कर दोनों एकदूसरे में खो जाते. पर कहते हैं न इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपता. धीरेधीरे स्टाफ रूम में दूसरे टीचर इन के रिश्ते पर कानाफूसी करने लगे. मगर अवनि इन बातों के लिए तैयार थी. वह बड़ी कुशलता से इन बातों को अफवाह बता कर आगे बढ़ जाती.

एक दिन अवनि स्कूल आई तो उसे खबर मिली कि साधारण टीचर के रूप में हाल ही में आई मिस श्वेता गुलाटी को प्रमोशन दे कर क्लास 10th की क्लास टीचर बना दिया गया है. इस बात से हर कोई अचंभित था. स्कूल के सब से सीनियर क्लास की क्लास टीचर बनना और वह भी इतने कम दिनों में, किसी को भी सहजता से कुबूल नहीं हो रहा था. अवनि तो बौखला ही गई.

वह पहले से ही यह बात गौर कर रही थी कि प्रिंसिपल दास आजकल श्वेता गुलाटी पर काफी मेहरबान रहने लगे हैं. 20 साल की श्वेता काफी खूबसूरत थी जैसे अभीअभी किसी कमसिन कली ने पंखुड़ियां खोली हों. वह जब इंग्लिश में गिटिरपिटिर करती तो दूसरे टीचर इनफीरियरिटी कंपलेक्स से ग्रस्त हो जाते. उस पर श्वेता के कपड़े भी काफी बोल्ड होते. कभी ऑफशोल्डर्ड ड्रेस तो कभी स्लीवलैस, कभी बैकलेस तो कभी शौर्ट स्कर्ट. वैसे तो उस की अदाओं के दीवाने स्कूल के ज्यादातर पुरुष थे मगर सब से ज्यादा पावरफुल प्रिंसिपल दास ही थे. सो श्वेता उन के केबिन के आसपास मंडराने लगी थी.

अवनि गुस्से में आगबबूला हो कर प्रिंसिपल के केबिन में पहुंची पर वे वहां नहीं थे. पूछने पर पता चला कि वे मिस गुलाटी के साथ लाइब्रेरी में हैं. अवनि का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. उस ने बैग उठाया और बिना किसी को इन्फॉर्म किए घर चली आई. बाद में उस के मोबाइल पर प्रिंसिपल का फोन आया तो अवनि ने फोन उठाया ही नहीं.

अगले दिन भी वह स्कूल नहीं पहुंची तो प्रिंसिपल ने उसे मैसेज किया,’ मैं तुम्हारे घर के सामने कार ले कर पहुँच रहा हूं. मुझ से नाराज हो तो भी एक बार हमें बात करनी चाहिए. आज हम बाहर ही लंच करेंगे. मैं 20 -25 मिनट में पहुंच जाऊँगा, तैयार रहना. ‘

अवनि तैयार हो कर बाहर निकली. तब तक प्रिंसिपल की कार पहुंच चुकी थी. वह कार में पीछे जा कर बैठ गई. दोनों शहर से दूर एक रेस्टोरेंट पहुंचे. कोने की एक खाली सीट पर बैठते हुए प्रिंसिपल ने बात शुरू की,” अब आप कुछ बताएंगी इस नाराज़गी की वजह क्या है?”

“वजह भी बतानी पड़ेगी? आप इतने नादान तो नहीं.”

“ओके बाबा मैं ने श्वेता को प्रमोशन दी इसी बात पर नाराज़ हो न?” प्रिंसिपल ने अपनी गलती मानी.

“मैं जान सकती हूं उस में ऐसे कौन से सुर्खाब के पंख लगे हैं जो मुझ में नहीं?” गुस्से में अवनि ने कहा.

“ऐसा कुछ नहीं है डार्लिंग…..मैं… ”

“डोंट टेल मी डार्लिंग. अब तो नई डार्लिंग मिल गई है जनाब को.”

“अरे ऐसी बात नहीं अवनि. ऐसा क्यों कह रही हो?”

“सच ही कह रही हूं. जरूर उस ने खुश कर दिया होगा आप को. तभी तो इतने कम समय में…, ” अवनि ने सीधा इल्जाम लगा दिया था.

“जुबान संभाल कर बात करो अवनि. मैं ऐसा नहीं कि हर किसी को इसी नजर से देखूं. खबरदार जो ऐसी बातें कीं. मैं प्रिंसिपल हूं, मेरे पास ऑथोरिटी है. जो मुझे काबिल लगेगा उसे प्रमोशन दूंगा. इस में तुम्हें बीच में आने का कोई हक नहीं.” प्रिंसिपल ने भी तेवर में कहा.

“हक तो वैसे भी कुछ डिसाइड नहीं हुए हैं मेरे. अब बता देना कि मैं कहां फेंक दी जाऊंगी? अब मेरी जरुरत तो रही नहीं आप को ”

“शट अप अवनि कैसी बातें कर रही हो? ”

“बातें ही नहीं काम भी करूंगी. आप खुद को सीनियर मोस्ट मत समझो. आप के ऊपर भी मैनेजमेंट है. मैं मैनेजमेंट से आप की शिकायत करूंगी.”

“अच्छा तो इतनी सी बात के लिए तुम मुझे धमकी दे रही हो? अवनि मेरे प्यार का यही बदला दोगी? ठीक है मैं भी देख लूंगा. तुम्हारे भी तो अमीर पति हैं न जिन्हें धोखा दे रही हो. मेरे पास भी बहुत से सबूत हैं अवनि जिन्हें तुम्हारे पति को दिखा दूं तो अभी हाथ में तलाक के कागजात मिल जाएंगे,” प्रिंसिपल ने धमकी दी.

“तो मिस्टर दास आप भी सावधान रहना. मेरे साथ आप की बहुत सी तस्वीरें, मैसेज और चैटिंग हैं जिन्हें मैनेजमेंट को दिखा कर अभी आप को नौकरी से निकलवा सकती हूं. आप को लूज करेक्टर साबित कर इज्जत पानी में मिला सकती हूं. पर मैं ऐसा करूंगी नहीं. मैं ने भी प्यार किया है आप को. भले ही आज कोई और पसंद आ गई हो.”

“ऐसा नहीं है अवनि. श्वेता पसंद नहीं आई बल्कि मेरे छोटे भाई की फ्रेंड है और फिर काबिल भी है. नॉलेज अच्छी है उस की. अगर तुम्हें बुरा लगा तो सॉरी पर मेरा मकसद तुम्हें हर्ट करना नहीं था,” प्रिंसिपल की आवाज नर्म पड़ गई थी.

“इट्स ओके सर. शायद मैं ने भी कुछ ज्यादा ही कह दिया आप को,”

अवनि ने भी झगड़ा बढ़ाना उचित नहीं समझा. झगड़ा बढ़ता इस से पहले ही दोनों ने पैचअप कर लिया. दोनों ही जानते थे कि उन के हाथ में एकदूसरे की कमजोर कड़ी है. नुकसान दोनों का ही होना था. बात आई गई हो गई. दोनों फिर से एकदूसरे के रोमांस में डूबते चले गए.

मगर इस बार दोनों की ही तरफ से सावधानी बरती जा रही थी. मिल कर तस्वीरें और सेल्फी लेने की परंपरा बंद कर दी गई. दोनों घूमने भी जाते तो साथ में तस्वीरें कम से कम लेते. चैटिंग के बजाय व्हाट्सएप कॉल करते और मैसेज करना भी बंद कर दिया गया. दोनों को ही डर था कि सामने वाला कभी भी उस की पोल पट्टी खोल कर उसे नंगा कर सकता है. उन के बीच पतिपत्नी का रिश्ता तो था नहीं जो हक के साथ रोमांस करें. यहां रोमांस भी छिपछिप कर करना था और एकदूसरे पर कोई हक भी नहीं था.

अवनि ने अपने मोबाइल ‘में से वे सारी तसवीरें निकाल कर लैपटॉप में एक जगह इकट्ठी कर लीं जिन तस्वीरों में दोनों एकदूसरे के बहुत करीब नजर आ रहे थे. यही नहीं सारी चैटिंग और मैसेज भी एक जगह स्टोर कर के रख लिए. वह कभी भी मौके पर चौका मारने के लिए तैयार थी. उसे पता था कि प्रिंसिपल भी ऐसा ही कुछ कर सकता है. इसलिए वह इस रिश्ते को खत्म कर उस की नाराजगी भी बढ़ाना नहीं चाहती थी.

अब उन के बीच जो रोमांस था उस में मजा तो था पर एकदूसरे से ही खौफ भी था. प्यार के साथ डर की यह भावना दोनों के लिए ही नई थी. मगर अब यही खौफ उन की जिंदगी का हिस्सा बन चूका था. दोनों ही एकदूसरे को प्यार भरी नजरों से देखते थे पर दोनों के दिमाग का एक हिस्सा समझ रहा था कि एक शख्स मेरी तबाही की वजह बन सकता है. Story In Hindi

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