तंत्रमंत्र ने भरमाया, मासूम बेटा गंवाया

35 साला उमेश परिहार के पास वह सबकुछ था जिस की दरकार किसी को भी होती है, मसलन अपना बड़ा सा घर, खूबसूरत स्मार्ट बीवी, 4 मासूम बच्चे, मांबाप और खुद की कार. यह सब उस ने अपनी मेहनत से हासिल किया था.

पेशे से ड्राइवर उमेश मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल जिले धार के गांव घाटबिल्लोदा के चंदननगर महल्ले में रहता था. काम के सिलसिले में अकसर उस का आनाजाना इंदौर और उज्जैन लगा रहता था. लेकिन जब से धार्मिक शहर उज्जैन में महाकाल कौरिडोर बना है, तब से उस के फेरे उज्जैन ज्यादा लग रहे थे.

पिछले कुछ महीनों से उमेश उज्जैन में ही रहने लगा था. अपनी बोलेरो कार उस ने किराए पर उठा दी थी. उज्जैन का माहौल दूसरे धार्मिक शहरों की तरह पूरी तरह धार्मिक है, जहां सुबह से बमबम भोले के नारे लगना शुरू होते हैं, तो देर रात तक यही सिलसिला चलता रहता है.

इस शहर में धर्मगुरुओं, ज्योतिषियों, बाबाओं और तांत्रिकों के इफरात से आश्रम और अड्डे हैं, जिन में ख्वाहिशमंद लोगों की लाइन लगी रहती है.

किसी को घरेलू कलह और लाइलाज बीमारी से छुटकारा चाहिए रहता है तो किसी को नौकरी की दरकार रहती है. बेटी की शादी के लिए भी लोग इन डेरों के चक्कर काटते नजर आते हैं, तो किसी को पितृ दोष से मुक्ति के लिए यह शहर मुफीद लगता है.

धनदौलत चाहने वालों का तो कहना ही क्या. यहां के काल भैरव मंदिर में शराब का भोग लगता है, जहां शनि उतरवाने के लिए दुनियाभर के लोग आते हैं. उज्जैन के महाकाल मंदिर में शिव अभिषेक करने के लिए तो हस्तियों का तांता लगा रहता है.

ऐसे माहौल का अलगअलग किस्म के लोगों पर अलगअलग असर पड़ता है. उमेश पर असर पड़ा तंत्रमंत्र का और उस में भी मरघट यानी श्मशान सिद्धि का, जिस के लिए उज्जैन खासतौर से जाना जाता है.

क्षिप्रा नदी के किनारे अघोरियों की श्मशान साधना होती है, जिस के बारे में तरहतरह के मनगढ़ंत किस्सेकहानियां फैलाने वालों ने फैला रखे हैं, जिन में से एक यह भी है कि अगर मरघट में तंत्रमंत्र और क्रियाएं करते रहने वाले बाबा किसी को आशीर्वाद दे दें, तो उस के वारेन्यारे होने से कोई नहीं रोक सकता.

ये बाबा आमतौर पर नंगे रहते हैं और अपने शरीर पर श्मशान की राख या भभूत लपेटे रहते हैं, चौबीसों घंटे गांजे और भांग के नशे में चूर रहने के चलते इन की आंखें सुर्ख लाल रहती हैं. इन्हें देखने भर से आम लोग डरते हैं, क्योंकि ये बेहद डरावने लगते हैं.

मतलब, उज्जैन में मुरादें पूरी करने की छोटीमोटी दुकानों समेत बड़ेबड़े शोरूम और माल्स भी हैं. जिस की जैसी हैसियत होती है, उस के मुताबिक वह आशीर्वाद खरीद लेता है, जिस की कोई गारंटी नहीं होती.

इस खालिस ठगी के धंधे में कैसेकैसे लोग उल्लू बनते हैं, इस की एक बानगी उमेश परिहार भी है, जिस के सिर पर रातोंरात रईस बनने का भूत कुछ ऐसे सवार हुआ कि उस ने अपने ही हाथों अपने 2 साल के बेटे भीम की इतनी बेरहमी से हत्या कर दी कि देखने वाले तो दूर की बात है, सुनने वालों की भी रूह कांप उठे.

लालच में गड़े धन के

कोई विरला ही होगा, जिस ने गड़े धन के किस्सेकहानी नहीं सुने होंगे जिन का सार यह रहता है कि जमीन के नीचे इफरात से सोनाचांदी, हीरेजवाहरात गड़े रहते हैं, जिन्हें तंत्रमंत्र के जरीए निकाला जा सकता है.

लेकिन यह काम आसान नहीं है, क्योंकि जमीन में गड़े धन की हिफाजत खतरनाक जहरीले सांप करते हैं, इसलिए यह पैसा माहिर गुरुओं, जो तांत्रिक ही होते हैं, जिन की सरपरस्ती और देखरेख में ही निकाला जाना चाहिए, नहीं तो लेने के देने पड़ जाते हैं और 90 फीसदी मामलों में गड़ा धन या खजाना निकालने वाला बेमौत मारा जाता है.

उज्जैन आतेजाते उमेश ने भी ऐसी चमत्कारी कहानियां सुनी थीं. सो जल्द ही अमीर बनने के सपने ने उस की रात की नींद और दिन का चैन छीन लिया. यहां तक कि उस ने अपनी कार के बोनट पर भी खोपड़ी का निशान बनवा लिया था.

बोलेरो कार किराए पर उठाने के बाद उमेश ऐसे किसी सिद्ध बाबा की तलाश में जुट गया जो तंत्रमंत्र सिखा दे, जिस से वह गड़ा धन निकाल कर बिना मेहनत किए ऐशोआराम की जिंदगी जिए.

इस के पहले उमेश परिहार किन्नरों का ड्राइवर हुआ करता था, जिन्होंने उसे खूब पैसा दिया था. लेकिन तंत्रमंत्र के फेर में पड़ कर वह नशा करने लगा और काम में भी आलस बरतने लगा तो किन्नरों ने भी उस से किनारा कर लिया.

उमेश की यह तलाश बमबम बाबा की शक्ल में पूरी हुई. उज्जैन में बमबम बाबा का बड़ा नाम है, जो अघोरी हैं और श्मशान साधना के स्पैशलिस्ट माने जाते हैं.

इस बाबा के बारे में भी कई चमत्कारिक किस्से उज्जैन के लोग सुनाते हैं कि वे पहुंचे हुए सिद्ध पुरुष हैं. एक बार जिस पर खुश हो जाएं, उस की हर मुराद पूरी हो जाए और जिस से गुस्सा हो जाएं, तो खड़ेखड़े ही उसे भस्म कर दें.

उमेश ने इस बाबा के बारे में सुना तो उसे लगा कि यही बाबा उसे गड़ा धन दिला सकते हैं. लिहाजा, वह बमबम बाबा के चक्कर काटने लगा.

कई दिनों की मिन्नत और मनुहार के बाद बाबा उसे अपना चेला बनाने को तैयार हुआ, लेकिन इस शर्त के साथ कि पहले किसी की बलि चढ़ाओ, तभी अपना चेला बनाऊंगा.

लालच में अंधा हो चुका उमेश पूरी तरह बाबा की गिरफ्त में आ चुका था, इसलिए यह बेवकूफी करने को भी तैयार हो गया.

लेकिन आजकल के जमाने में किसी की बलि लेना यानी उस की हत्या कर देना आसान काम नहीं रह गया है, सो वह परेशानी और चिंता में पड़ गया कि किस की बलि दे.

तंत्रमंत्र किस तरह अच्छेखासे आदमी की अक्ल हर लेता है, यह अब उमेश को देख सहज समझा जा सकता था, जिस के जेहन में बलि के लिए अपने ही जिगर के टुकड़े मासूम भीम के चेहरा कौंध गया.

बेरहमी से कुचल डाला

एक तरफ बेटा था तो वहीं दूसरी तरफ करोड़ों की काल्पनिक दौलत, जिस के बूते वह ऐशोआराम के खयालीपुलाव पका रहा था. अंधविश्वास के दलदल में गहरे तक धंस चुके उमेश को भीम सौफ्ट टारगेट लगा था, क्योंकि वह विरोध नहीं कर सकता था और आसानी से उसे मारा जा सकता था.

लिहाजा, बीती 5 सितंबर को उज्जैन से उमेश सीधा अपने घर घाटबिल्लोदा जा पहुंचा. घर पहुंचते ही उस ने ऊटपटांग हरकतें शुरू कर दीं. पहले तो उस ने पूजा का सारा सामान जमाया और फिर एक कटोरे में आग जला ली.

घर पर मौजूद उमेश की पत्नी, मां और पिता हैरान थे कि वह यह क्या कर रहा है. पूरे घर को आग का धुआं देता वह मंत्र भी बुदबुदाता जा रहा था और अपने साथ लाई भभूत भी वह घर में बिखेरता जा रहा था.

ये हरकतें देख कर पिता और पत्नी ने उसे टोका तो उस ने उन दोनों को पीट डाला. इस के बाद अचानक ही उस ने भीम को उठाया और उसे भी पीटने लगा तो पत्नी और घबरा गई, क्योंकि अब उमेश के सिर पर पागलपन सवार हो चुका था.

किसी अनहोनी से डरी पत्नी ने भीम को उमेश से छुड़ाना चाहा तो वह और बिफर उठा और खुद को बेटे समेत दूसरे कमरे में ले जा कर शटर बंद कर लिया. घर के लोग चिल्लाते रह गए, लेकिन पगलाया उमेश भीम को मारता रहा तो पत्नी ने पास के थाने की तरफ दौड़ लगा दी.

पुलिस तुरंत आ गई, लेकिन लाख कहने और धमकाने के बाद भी उमेश ने शटर नहीं खोला. देखते ही देखते वह बेटे को जमीन पर ऐसे पटकने लगा, जैसे धोबी कपड़े धोता है.

उस मासूम के रोनेचिल्लाने और चीखने का इस वहशी पर कोई असर नहीं हुआ. वह लगातार उसे पटकता रहा, जिस से उस की मौत हो गई. नजारा इतना डरावना था कि पुलिस वाले भी कांप उठे, क्योंकि भीम के शरीर की चटनी बन चुकी थी और सारा कमरा खून से लाल हो चुका था.

कोई और चारा न देख कर पुलिस ने शटर काटने के लिए गैस कटर का इंतजाम किया, लेकिन तब तक वह हैवान अपने मकसद में कामयाब हो चुका था. पुलिस को धमकाते हुए उस ने घर को गैस सिलैंडर से धमाका करने की धमकी भी दी थी.

शटर काट कर पुलिस वाले अंदर कमरे में गए, तब भी उमेश बमुश्किल काबू में आया. उस ने आग लगाने की कोशिश की और एक सिपाही को काट भी खाया. खुद को भी उस ने नुकसान पहुंचाया.

गिरफ्तारी के बाद उमेश को पीथमपुर के अस्पताल में भरती किया गया, क्योंकि उस की दिमागी हालत ठीक नहीं थी. पुलिस वाले जंजीर से बांध कर उसे ले गए. उस समय वहां मौजूद सारे लोग उमेश और उस के तंत्रमंत्र को कोस रहे थे, लेकिन सबक किसी ने लिया कि इस फरेब में नहीं पड़ेंगे, कहा नहीं जा सकता.

मेहनत से मिलता है धन देश में रोज कहीं न कहीं कोई न कोई ऐसे ही किसी अंधविश्वास मसलन तंत्रमंत्र, झाड़फूंक, ज्योतिष और टोनेटोटकों के फरेब में पड़ कर बरबाद हो रहा होता है और खुद का और दूसरों का नुकसान कर रहा होता है.

लेकिन सबकुछ जाननेसमझने के बाद भी लोग संभलते नहीं तो इस के जिम्मेदार वे खुद तो हैं ही, लेकिन इफरात से हर कहीं धूनी रमाए बैठे चिलम फूंकते बमबम बाबा जैसे तांत्रिक भी कम गुनाहगार नहीं ठहराए जा सकते, जो लोगों को बहलातेफुसलाते हैं.

उमेश को तो सजा होना तय है, लेकिन जब तक ऐसे बाबाओं पर कड़ी कार्यवाही नहीं होगी, तब तक कोई न कोई भीम तंत्रमंत्र की बलि चढ़ता रहेगा.

रही बात रातोंरात अंबानी और अडानी बन जाने के ख्वाब और ख्वाहिश की तो वह अगर तंत्रमंत्र से पूरी होना मुमकिन होती तो देश में सभी लोग अमीर होते. कम से कम वे बाबा तो होते ही, जो करोड़पति बनने का रास्ता चंद रुपयों में दिखाया करते हैं. लेकिन खुद भिखारियों सी जिंदगी जीते हैं.

साजिश : 17 साल की मंजुला का ब्लाइंड मर्डर

17 वर्षीय मंजुला अपने परिवार के साथ मोहाली के गांव मटौर में रहती थी. सेक्टर-69 के एक वकील के यहां वह बेबीसिटर की नौकरी करते हुए उन के छोटे बच्चे को संभालती थी. दिन के 9 बजे उस की ड्यूटी शुरू होती थी और प्राय: शाम 4 बजे छुट्टी कर के वह पैदल ही घर के लिए निकल पड़ती थी. 9 नवंबर, 2017 की सुबह भी वह नौकरी पर जाने के लिए रोजाना की तरह घर से निकली थी. मगर उस शाम घर नहीं लौटी.

पैदल चल कर भी मंजुला अकसर 5 बजे तक घर पहुंच जाया करती थी. उस रोज 6 बज गए और वह नहीं लौटी तो उस के भाई ने वकील के यहां फोन कर के दरियाफ्त की. वकील साहब ने बताया कि मंजुला तो हमेशा की तरह शाम के 4 बजे छुट्टी कर के चली गई थी.

इस जानकारी से घर में सब को लड़की की फिक्र हो गई. पहले तो उस की तलाश में काफी भागदौड़ की गई. फिर उस के भाई ने इस संबंध में पुलिस से गुहार लगाई तो फेज-8 के थाने में मंजुला की गुशुदगी लिखा दी गई. नाबालिग लड़की का मामला होने की वजह से पुलिस ने भी मंजुला की तलाश के लिए हाथपैर चलाए. लेकिन उस के संबंध में कहीं से कोई जानकारी नहीं मिली.

इस के बाद लगातार मंजुला की तलाश की जाती रही. उस का मिल पाना तो दूर की बात, उस के बारे में कहीं से कोई छोटीमोटी खबर तक नहीं मिल पाई थी. देखतेदेखते मंजुला को गायब हुए 5 दिन गुजर गए.

14 नवंबर को बालदिवस की वजह से कुछ बच्चे एक समारोह अटैंड कर के अपने घर लौट रहे थे. पैदल चलते हुए वे सेक्टर-69 स्थित निजी अस्पताल मायो के पास से हो कर आगे निकले तो 2 बच्चों को पेशाब की हाजत हुई. इस से फारिग होने को वे पास की झाड़ियों में चले गए. वहां पीछे एक छोटामोटा जंगल था.

झाडि़यों से निकलते वक्त इन की निगाह जंगल की तरफ चली गई. वहां इन्हें लेडीज कपड़ों के टुकड़े पड़े दिखाई दिए. जिज्ञासावश ये थोड़ा आगे बढ़ गए. आगे का दृश्य देख इन के मुंह से चीख निकल गई, जिसे सुन कर उन के साथी भी दौड़ते हुए वहां आ पहुंचे. फिर तो जो कुछ इन लड़कों ने वहां देखा, उस से उन के पैरों तले की जमीन खिसक गई.

इन से जरा ही फासले पर एक लड़की की गलीसड़ी नग्न हालत में लाश पड़ी थी.

ऐसा भयानक दृश्य देख, सभी लड़के भागते हुए सड़क पर आ गए. वहां उन्हें एक नौजवान खड़ा दिखाई दिया. उसे उन्होंने इस बाबत बता दिया. उस नौजवान ने अपने मोबाइल से तुरंत इस की सूचना पुलिस को दे दी. जरा सी देर में पुलिस कंट्रोल रूम की जिप्सी वहां आ पहुंची. पीसीआर कर्मियों ने मौकामुलाहजा कर के मामला फ्लैश कर दिया.

जिस वक्त यह सूचना फेज-8 के थाने में पहुंची, थानाप्रभारी राजीव कुमार अपने दफ्तर ही में थे. सबइंसपेक्टर जागीर सिंह व कुछ सिपाहियों को साथ ले कर वह घटनास्थल पर पहुंचे. नाबालिग मंजुला की गुमशुदगी की सूचना उन्हीं के थाने में दर्ज थी, जिस के साथ गुमशुदा लड़की का फोटो भी लगा था.

राजीव कुमार को लाश की सूरत मंजुला से मेल खाती लगी. उन्होंने तुरंत थाने से संबंधित फाइल मंगवा कर शव और फोटो में लड़की के हुलिए से मिलान करने का प्रयास किया. रिजल्ट पौजीटिव आते देख उन्होंने मंजुला के भाई को बुलवा भेजा. आते ही वह शव को देख फूटफूट कर रो पड़ा. उस ने इस की शिनाख्त अपनी बहन मंजुला के रूप में कर दी.

पहली ही नजर में साफ था कि लड़की के साथ गैंगरेप करने के बाद चाकुओं से गोदगोद कर उसे मौत के घाट उतारा गया था.

पुलिस ने अपनी आगे की काररवाई शुरू की. थानाप्रभारी ने मंजुला के भाई की तरफ से अज्ञात हत्यारों के खिलाफ भादंवि की धाराओं 363, 366, 302, 376-डी एवं 120-बी के अलावा पौक्सो एक्ट की धारा 4, 5 के अंतर्गत रिपोर्ट दर्ज कर ली.

इस दौरान मौके की दीगर काररवाइयों को अंजाम देते हुए पुलिस ने मंजुला के शव को पोस्टमार्टम के लिए मोहाली के सिविल अस्पताल भिजवा दिया.

अस्पताल में डाक्टरों के विशेष पैनल ने मंजुला के शव का पोस्टमार्टम कर के अपनी रिपोर्ट में उस के जिस्म पर तेजधार हथियार के 13 घावों का उल्लेख करने के अलावा इस बात की भी पुष्टि की कि उस के साथ एक से ज्यादा पुरुषों ने बलात्कार किया था. डाक्टरों ने अपनी रिपोर्ट में मौत का कारण अत्यधिक रक्तस्राव बताया था. मंजुला का बिसरा भी रासायनिक परीक्षण के लिए फोरेंसिक लैबोरेट्री भेज दिया.

पोस्टमार्टम के बाद मंजुला का शव उस के परिजनों के हवाले कर दिया गया, जिन्होंने रोतेबिलखते उस का अंतिम संस्कार कर दिया.

यह एक ब्लाइंड मर्डर केस था जो थाना पुलिस हल कर पाने में सफल नहीं हो पा रही थी. मोहाली के एसएसपी कुलदीप चहल ने इसे चुनौती के रूप में लेते हुए इस की जांच का जिम्मा जिला पुलिस की सीआईए ब्रांच को सौंप दिया.

सीआईए इंसपेक्टर तरलोचन सिंह ने केस की फाइल हाथ में आते ही न केवल इस का गहराई से अध्ययन किया बल्कि घटनास्थल पर जा कर बारीकी से जांच भी की. हालांकि  घटना को हुए काफी दिन गुजर चुके थे, ऐसे में उन्हें घटनास्थल से कत्ल संबंधी कोई क्लू मिलने की उम्मीद नहीं थी. क्लू उन्हें चाहिए भी नहीं था. उन्होंने अपनी पुलिस की नौकरी में न जाने कितने ब्लाइंड मर्डर केस सौल्व किए थे.

उन्होंने घटनास्थल का बारीकी से अध्ययन कर के एकएक नुक्ते को जोड़ कर अपराधी तक पहुंचने का प्रयास किया था. उन्होंने घटनास्थल की फिर से फोटोग्राफी भी कराई फिर फाइल का ठीक से अध्ययन किया.

नक्शा व फोटो सामने रख कर इंसपेक्टर तरलोचन सिंह ने उन का घटनास्थल से मिलान करते हुए एकाग्रचित्त हो कर अपनी अलग तरह की जांच शुरू की. उन्होंने लाश बरामद होने के समय खींचे गए फोटो को भी बड़े ध्यान से देखा.

एक फोटो में जमीन की मिट्टी पर एक ऐसे हाथ की छाप उभर रही थी जो किसी युवती का लग रहा था. यह हाथ मृतका का भी हो सकता था. मगर इस मुद्दे को यहीं पर खत्म न कर के तरलोचन सिंह ने चित्र के आधार पर उस जगह की तलाश की, जहां का यह फोटो था.

अनुमान और प्रयासों के आधार पर वह जगह मिल गई. लेकिन हाथ की छाप अब वहां नहीं थी. अब तक उस में शायद धूल वगैरह भर गई थी. तरलोचन सिंह ने इस जगह को आसपास से खुदवाया तो वहां से हरे रंग के कांच की चूड़ी का एक टुकड़ा उन के हाथ लग गया. उन्होंने उसे अपने पास संभाल कर रख लिया. टुकड़े को ले कर वह एसएसपी चहल के पास पहुंचे. फिर सीधेसपाट लहजे में बोले, ‘‘सर, इस ब्लाइंड मर्डर केस में कोई न कोई लड़की इन्वौल्व है.’’

‘‘लेकिन तरलोचन सिंह आप यह क्यों भूल रहे हो कि मर्डर के साथ यह गैंगरेप का मामला भी है.’’

‘‘लेकिन वो सब बदला लेने के नीयत से भी तो करवाया जा सकता है, सर.’’

‘‘मतलब यह कि किसी लड़की ने इस लड़की से बदला लेने के लिए पहले इस का गैंगरेप करवाया और फिर इस का मर्डर करवा दिया.’’

‘‘गैंगरेप जरूर करवाया गया सर, लेकिन मर्डर इस लड़की ने खुद अपने हाथों किया है. हां, ऐसा करते वक्त दूसरों की मदद जरूर ली गई होगी, यह सोचा जा सकता है.’’

‘‘तरलोचन सिंह, मेरी समझ में फिलहाल आप की बात नहीं आ रही है. आखिर ऐसा कौन सा क्लू आप के हाथ लग गया जो आप इतने उत्साहित हैं.’’

एसएसपी की बात पर हरे रंग की चूड़ी का टुकड़ा निकाल कर दिखाते हुए तरलोचन सिंह ने पहले घटनास्थल पर किए गए अपने प्रयास की बात बताई. फिर बताया कि रिकौर्ड में दर्शाया गया है कि मृतका ने लाल रंग की चूड़ियां पहन रखी थीं.

इस मामले में अभी तक पुलिस अपनी जो काररवाई करती आई थी वो यही थी कि पिछले कुछ अरसे में पकडे़ गए गैंग रेप आरोपियों को बुड़ैल जेल से ट्रांजिट रिमांड पर ला कर उन से इस केस के बारे में गहन पूछताछ करती रही थी.

मुखबिरों को लगा कर उन के कहने पर कुछ संदिग्ध लोगों पर भी शिकंजा कसा गया था. मगर पुलिस की पूछताछ में उन्हें बेकसूर पा कर हरी झंडी दे दी गई थी.

आगे छानबीन का सारा कार्यक्रम ही बदल दिया गया. अपने अन्य प्रयासों के अलावा सीआईए इंसपेक्टर तरलोचन सिंह ने इस काम पर अपने खास मुखबिरों को लगाया.

10 जनवरी, 2018 को इंसपेक्टर तरलोचन सिंह के एक खास मुखबिर ने आ कर उन्हें इस केस के बारे में अहम सूचना दी. इस सूचना के अनुसार मृतका के मटौर स्थित निवास के पास एक औरत शीला अपनी जवान लड़की पूजा के साथ रहती थी. उन्हीं दोनों ने पहले अपने साथियों से मंजुला का रेप करवाया, फिर उसे मौत के घाट उतार दिया.

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‘‘लेकिन इस के पीछे कोई वजह भी तो रही होगी? इतने बड़े कांड को अंजाम देने का कोई कारण तो होगा?’’ तरलोचन सिंह ने मुखबिर से पूछा.

‘‘इस सब की जानकारी मुझे नहीं हो पाई है. लेकिन इस केस के असली कसूरवार यही लोग हैं. इन्होंने एक जगह बैठ कर आपस में मीटिंग की है. मैं ने छिप कर इन की सारी बातें सुनी हैं. आज ये लोग यहां से निकल भागने वाले हैं. मैं आप को वहां ले चलता हूं, जहां इन्होंने शरण ले रखी है. आप अभी उन्हें काबू कर लें, वरना पछतावे वाली बात हो जाएगी.’’ मुखबिर ने कहा.

ज्यादा सोचनेसमझने का वक्त नहीं था. इंसपेक्टर तरलोचन सिंह ने उसी वक्त अपनी पुलिस पार्टी तैयार कर के मुखबिर को साथ लिया और उस की बताई जगह पर छापा मारा. वहां एक औरत व एक युवती के अलावा एक अन्य शख्स पुलिस के हत्थे चढ़ गया. मालूम पड़ा इन के साथ एक और भी आदमी था जो किसी तरह फरार होने में सफल हो गया था.

काबू में आए तीनों लोगों को सीआईए के पूछताछ केंद्र में अभी लाया ही गया था  कि तीनों ने मंजुला को कत्ल किए जाने का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस आधार पर उन्हें अदालत में पेश कर के कस्टडी रिमांड ले लिया गया.

रिमांड की अवधि में हुई गहन पूछताछ के दौरान इन तीनों ने जो कुछ पुलिस को बताया, उस से अपराध की एक अलग ही कहानी सामने आई.

पकड़ी गई औरत का नाम शीला और युवती थी उस की बेटी पूजा. इन के साथ पकड़े गए शख्स का नाम मक्खन था, जो शख्स भागने में सफल हो गया था, उस का नाम था रहूण.

शीला उत्तर प्रदेश के जिला देवरिया की रहने वाली थी. इस के पति रामनिवास का काम अच्छा नहीं चल रहा था, मगर वह अपना मूल प्रदेश छोड़ कर किसी अन्य प्रदेश में जाना भी नहीं चाहता था. घर की गुजरबसर के लिए शीला और उस की बेटी पूजा छोटीमोटी नौकरी करती थीं. शीला जवान हो रही थी, घर वालों को उस की शादी की चिंता स्वाभाविक ही थी.

उत्तर प्रदेश के कामगार यह बात अच्छी तरह जानते हैं कि पंजाब में उन के लिए हमेशा रोजगार के अवसर रहते हैं. इसी वजह से शीला कुछ साल पहले पति से अनुमति ले कर बेटी पूजा के साथ मोहाली आ गई. मोहाली की एक फैक्ट्री में दोनों को काम मिल गया. रहने के लिए मोहाली के गांव मटौर में किराए का मकान भी ले लिया.

यहीं पर पड़ोस में मंजुला अपने परिवार के साथ रहती थी. शीला ने पुलिस को बताया कि एक बार उस का पति उन लोगों से मिलने मटौर आया.

एक दिन मंजुला ने उस पर छेड़खानी का आरोप लगाते हुए हंगामा खड़ा कर दिया. जैसेतैसे बात संभल तो गई लेकिन मंजुला ने धमकी देते हुए कहा कि वह रामनिवास को छोड़ेगी नहीं. उसे उस की करतूत की सजा दे कर रहेगी.

कुछ दिनों बाद रामनिवास वापस उत्तर प्रदेश चला गया, जहां सड़क दुर्घटना में उस की मृत्यु हो गई. उसे टक्कर मारने वाला चालक अपना वाहन भगा ले गया था. बाद में उसे पकड़ा नहीं जा सका.

पूजा और शीला के दिमाग में यह बात घर कर गई थी कि उस की मौत के पीछे मंजुला का हाथ था. उसी ने योजना बना कर रामनिवास को मरवाया था. इसीलिए मांबेटी ने तय कर लिया कि वे मंजुला को भी दर्दनाक मौत दे कर रहेंगी. योजना बनी तो इन लोगों ने पैसों का लालच दे कर मटौर में रहने वाले अपने परिचित मक्खन व रहूण को भी तैयार कर लिया. ये दोनों मूलरूप से बिहार के रहने वाले थे.

दोनों ने मांबेटी से एक ही बात कही कि उन्हें इस काम के लिए पैसा नहीं चाहिए. बस वे मंजुला को मारने से पहले उस के साथ शारीरिक संबंध बनाएंगे.

योजना बन गई. इस के लिए लंबे फल वाला एक चाकू भी खरीद लिया गया. मंजुला का पीछा कर के उस के आनेजाने के रास्तों के बारे में पता लगा कर उसे 9 नवंबर, 2017 की शाम को उस वक्त झाडि़यों में खींच लिया गया जब वह वकील के यहां से छुट्टी कर के पैदल वहां से गुजर रही थी.

जंगल में ले जा कर मक्खन और रहूण ने उसे निर्वस्त्र कर के बारीबारी से उस के साथ बलात्कार किया. फिर मक्खन और रहूण के अलावा पूजा ने मंजुला के हाथपैर पकड़े. तभी शीला ने चाकुओं से लगातार वार कर के मंजुला की हत्या कर दी.

पूछताछ के दौरान ही शीला की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त चाकू भी बरामद कर लिया गया था. कस्टडी रिमांड की समाप्ति पर तीनों अभियुक्तों को फिर से अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, मंजुला बदला हुआ नाम है

 

 

एक माशूका का खौफनाक बदला

मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल जिले सीधी का एक गांव है नौगवां दर्शन सिंह, जिस में ज्यादातर आदिवासी या फिर पिछड़ी और दलित जातियों के लोग रहते हैं. शहरों की चकाचौंध से दूर बसे इस शांत गांव में एक वारदात ऐसी भी हुई, जिस ने सुनने वालों को हिला कर रख दिया और यह सोचने पर भी मजबूर कर दिया कि राजो (बदला नाम) ने जो किया, वैसा न पहले कभी सुना था और न ही किसी ने सोचा था.

इस गांव का एक 20 साला नौजवान संजय केवट अपनी ही दुनिया में मस्त रहता था. भरेपूरे घर में पैदा हुए संजय को किसी बात की चिंता नहीं थी. पिता की भी अच्छीखासी कमाई थी और खेतीबारी से इतनी आमदनी हो जाती थी कि घर में किसी चीज की कमी नहीं रहती थी.बचपन की मासूमियत संजय और राजो दोनों बचपन के दोस्त थे.

अगलबगल में होने के चलते दोनों पर एकदूसरे के घर आनेजाने की कोई रोकटोक नहीं थी. 8-10  साल की उम्र तक दोनों साथसाफ बेफिक्र हो कर बचपन के खेल खेलते थे.चूंकि चौबीसों घंटे का साथ था, इसलिए दोनों में नजदीकियां बढ़ने लगीं और उम्र बढ़ने लगी, तो दोनों में जवान होने के लक्षण भी दिखने लगे. संजय और राजो एकदूसरे में आ रहे इन बदलावों को हैरानी से देख रहे थे.

अब उन्हें बजाय सारे दोस्तों के साथ खेलने के अकेले में खेलने में मजा आने लगा था. जवानी केवल मन में ही नहीं, बल्कि उन के तन में भी पसर रही थी. संजय राजो को छूता था, तो वह सिहर उठती थी. वह कोई एतराज नहीं जताती थी और न ही घर में किसी से इस की बात करती थी.धीरेधीरे दोनों को इस नए खेल में एक अलग किस्म का मजा आने लगा था, जिसे खेलने के लिए वे तनहाई ढूंढ़ ही लेते थे.

किसी का भी ध्यान इस तरफ नहीं जाता था कि बड़े होते ये बच्चे कौन सा खेल खेल रहे हैं.जवानी की आगयों ही बड़े होतेहोते संजय और राजो एकदूसरे से इतना खुल गए कि इस अनूठे मजेदार खेल को खेलतेखेलते सारी हदें पार कर गए. यह खेल अब सैक्स का हो गया था, जिसे सीखने के लिए किसी लड़के या लड़की को किसी स्कूल या कोचिंग में नहीं जाना पड़ता.

बात अकेले सैक्स की भी नहीं थी. दोनों एकदूसरे को बहुत चाहने भी लगे थे और हर रोज एकदूसरे पर इश्क का इजहार भी करते रहते थे. चूंकि अब घर वालों की तरफ से थोड़ी टोकाटाकी शुरू हो गई थी, इसलिए ये दोनों सावधानी बरतने लगे थे.

18-20 साल की उम्र में गलत नहीं कहा जाता कि जिस्म की प्यास बुझती नहीं है, बल्कि जितना बुझने की कोशिश करो उतनी ही ज्यादा भड़कती है. संजय और राजो को तो तमाम सहूलियतें मिली हुई थीं, इसलिए दोनों अब बेफिक्र हो कर सैक्स के नएनए प्रयोग करने लगे थे.

इसी दौरान दोनों शादी करने का भी वादा कर चुके थे. एकदूसरे के प्यार में डूबे कब दोनों 20 साल की उम्र के आसपास आ गए, इस का उन्हें पता ही नहीं चला. अब तक जिस्म और सैक्स इन के लिए कोई नई बात नहीं रह गई थी.

दोनों एकदूसरे के दिल के साथसाथ जिस्मों के भी जर्रेजर्रे से वाकिफ हो चुके थे. अब देर बस शादी की थी, जिस के बाबत संजय ने राजो को भरोसा दिलाया था कि वह जल्द ही मौका देख कर घर वालों से बात करेगा.उन्होंने सैक्स का एक नया ही गेम ईजाद किया था, जिस में दोनों बिना कपड़ों के आंखों पर पट्टी बांध लेते थे और एकदूसरे के जिस्म को सहलातेटटोलते हमबिस्तरी की मंजिल तक पहुंचते थे.

खासतौर से संजय को तो यह खेल काफी भाता था, जिस में उसे राजो के नाजुक अंगों को मनमाने ढंग से छूने का मौका मिलता था. राजो भी इस खेल को पसंद करती थी, क्योंकि वह जो करती थी, उस दौरान संजय की आंखें पट्टी से बंधी रहती थीं.

शुरू हुई बेवफाई जैसा कि गांवदेहातों में होता है,16-18 साल का होते ही शादीब्याह की बात शुरू हो जाती है. राजो अभी छोटी थी, इसलिए उस की शादी की बात नहीं चली थी, पर संजय के लिए अच्छेअच्छे रिश्ते आने लगे थे.

यह भनक जब राजो को लगी, तो वह चौकन्नी हो गई, क्योंकि वह तो मन ही मन संजय को अपना पति मान चुकी थी और उस के साथ आने वाली जिंदगी के ख्वाब यहां तक बुन चुकी थी कि उन के कितने बच्चे होंगे और वे बड़े हो कर क्याक्या बनेंगे.

शादी की बाबत उस ने संजय से सवाल किया, तो वह यह कहते हुए टाल गया, ‘तुम बेवजह चिंता करते हुए अपना खून जला रही हो. मैं तो तुम्हारा हूं और हमेशा तुम्हारा ही रहूंगा.’संजय के मुंह से यह बात सुन कर राजो को तसल्ली तो मिली, पर वह बेफिक्र न हुई.

एक दिन राजो ने संजय की मां से पड़ोसनों से बतियाते समय यह सुना कि  संजय की शादी के लिए बात तय कर दी है और जल्दी ही शादी हो जाएगी.इतना सुनना था कि राजो आगबबूला हो गई और उस ने अपने लैवल पर छानबीन की तो पता चला कि वाकई संजय की शादी कहीं दूसरी जगह तय हो गई थी.

होली के बाद उस की शादी कभी भी हो सकती थी.संजय उस से मिला, तो उस ने फिर पूछा. इस पर हमेशा की तरह संजय उसे टाल गया कि ऐसा कुछ नहीं है. संजय के घर में रोजरोज हो रही शादी की तैयारियां देख कर राजो का कलेजा मुंह को आ रहा था.

उसे अपनी दुनिया उजड़ती सी लग रही थी. उस की आंखों के सामने उस के बचपन का दोस्त और आशिक किसी और का होने जा रहा था. इस पर भी आग में घी डालने वाली बात उस के लिए यह थी कि संजय अपने मुंह से इस हकीकत को नहीं मान रहा था.

इस से राजो को लगा कि जल्द ही एक दिन इसी तरह संजय अपनी दुलहन ले आएगा और वह घर के दरवाजे या खिड़की से देखते हुए उस की बेवफाई पर आंसू बहाती रहेगी और बाद में संजय नाकाम या चालाक आशिकों की तरह घडि़याली आंसू बहाता घर वालों के दबाव में मजबूरी का रोना रोता रहेगा. बेवफाई की दी सजाराजो का अंदाजा गलत नहीं था.

एक दिन इशारों में ही संजय ने मान लिया कि उस की शादी तय हो चुकी है. दूसरे दिन राजो ने तय कर लिया कि बचपन से ही उस के जिस्म और जज्बातों से खिलवाड़ कर रहे इस बेवफा आशिक को क्या सजा देनी है. वह कड़कड़ाती जाड़े की रात थी.

23 जनवरी को उस ने हमेशा की तरह आंख पर पट्टी बांध कर सैक्स का गेम खेलने के लिए संजय को बुलाया. इन दिनों तो संजय के मन मेें लड्डू फूट रहे थे और उसे लग रहा था कि शादी के बाद भी उस के दोनों हाथों में लड्डू होंगे. रात को हमेशा की तरह चोरीछिपे वह दीवार फांद कर राजो के कमरे में पहुंचा, तो वह उस से बेल की तरह लिपट गई.

जल्द ही दोनों ने एकदूसरे की आंखों पर पट्टी बांध दी. संजय को बिस्तर पर लिटा कर राजो उस के अंगों से छेड़छाड़ करने लगी, तो वह आपा खोने लगा. मौका ताड़ कर राजो ने इस गेम में पहली और आखिरी बार बेईमानी करते हुए अपनी आंखों पर बंधी पट्टी उतारी और बिस्तर के नीचे छिपाया चाकू निकाल कर उसे संजय के अंग पर बेरहमी से दे मारा.

एक चीख और खून के छींटों के साथ उस का अंग कट कर दूर जा गिरा.दर्द से कराहता, तड़पता संजय भाग कर अपने घर पहुंचा और घर वालों को सारी बात बताई, तो वे तुरंत उसे सीधी के जिला अस्पताल ले गए. संजय का इलाज हुआ, तो वह बच गया, पर पुलिस और डाक्टरों के सामने झठ यह बोलता रहा कि अंग उस ने ही काटा है.

पर पुलिस को शक था, इसलिए वह सख्ती से पूछताछ करने लगी. इस पर संजय के पिता ने बयान दे दिया कि संजय को पड़ोस में रहने वाली लड़की राजो ने हमबिस्तरी के लिए बुलाया था और उसी दौरान उस का अंग काट डाला, जबकि कुछ दिनों बाद उस की शादी होने वाली है.पुलिस वाले राजो के घर पहुंचे, तो उस के कमरे की दीवारों पर खून के निशान थे, जबकि फर्श पर बिखरे खून पर उस ने पोंछा लगा दिया था.

तलाशी लेने पर कमरे में कटा हुआ अंग नहीं मिला, तो पुलिस वालों ने राजो से भी सख्ती की.पुलिस द्वारा बारबार पूछने पर जल्द ही राजो ने अपना जुर्म स्वीकारते हुए बता दिया कि हां, उस ने बेवफा संजय का अंग काट कर उसे सजा दी है और वह अंग बाहर झाडि़यों में फेंक दिया है, ताकि उसे कुत्ते खा जाएं.

दरअसल, राजो बचपन के दोस्त और आशिक संजय पर खार खाए बैठी थी और बदले की आग ने उसे यह जुर्म करने के लिए मजबूर कर दिया था. राजो चाहती थी कि संजय किसी और लड़की से जिस्मानी ताल्लुकात बना ही न पाए. यह मुहब्बत की इंतिहा थी या नफरत थी, यह तय कर पाना मुश्किल है, क्योंकि बेवफाई तो संजय ने की थी, जिस की सजा भी वह भुगत रहा है.

राजो की हिम्मत धोखेबाज और बेवफा आशिकों के लिए यह सबक है कि वह दौर गया, जब माशूका के जिस्म और जज्बातों से खेल कर उसे खिलौने की तरह फेंक दिया जाता था. अगर अपनी पर आ जाए, तो अब माशूका भी इतने खौफनाक तरीके से बदला ले सकती है.

सफेद कार का आतंक

12 जून, 2017 को गुमानी शंकर जिस वक्त कोटा से रवाना हुए, उस समय सुबह के 9 बजे थे. कारोबारी गुमानी शंकर को अपने परिवार के साथ एक वैवाहिक समारोह में भाग लेने श्यामनगर जाना था. गाड़ी वह खुद ड्राइव कर रहे थे. बगल वाली सीट पर उन का पोता हिमांशु बैठा था, जबकि पीछे की सीट पर उन की पत्नी लाडबाई और बहू सुनीता बैठी थी. उन्होंने हाईवे पर अनंतपुरा बाईपास से गुजर कर करीब एक किलोमीटर का फासला तय किया था कि रियरव्यू में उन्हें दाईं तरफ से सफेद रंग की एक कार तेजी से आती दिखाई दी.

गुमानी शंकर बहुत अच्छे ड्राइवर नहीं थे, इसलिए उन्होंने उस कार को साइड देने के लिए अपनी कार की रफ्तार कम कर ली. पीछे से आती कार तेजी से आगे निकल कर गुमानी शंकर की कार के आगे जाकर रुक गई. मजबूरी में गुमानी शंकर को अपनी कार रोकनी पड़ी.

इस से पहले कि गुमानी शंकर कुछ समझ पाते, मुंह पर ढांटा बांधे भारीभरकम एक आदमी ड्राइविंग सीट की ओर का गेट खोल कर फुरती से उन्हें परे धकेलते हुए अंदर आ घुसा और चाबी निकाल कर इग्नीशन औफ कर दिया. चाबी जेब में रख कर उस व्यक्ति ने गन चमकाई तो गुमानी शंकर की आंखें फटी रह गईं. उन के मुंह से बोल तक नहीं निकला. उस ने धमकाते हुए कहा, ‘‘खबरदार! कोई जरा भी आवाज नहीं निकालेगा.’’

गुमानी शंकर की अपनी जगह से हिलने तक की हिम्मत नहीं हुई. उस आदमी की बात से सभी समझ गए कि ये लुटेरे हैं. उस ने पहले डैश बोर्ड टटोला, उस के बाद उन के कपड़ों की तलाशी ली. उसे 30 हजार रुपए मिले, जिन्हें उस ने अपनी जेब में रख लिए.

गुमानी शंकर चाह कर भी कोई विरोध नहीं कर सके. उस ने महिलाओं के गले से मंगलसूत्र तोड़  लिए. गुमानी शंकर ने दिलेरी दिखाने की कोशिश में मुंह खोलना चाहा, लेकिन अपनी तरफ तनी हुई गन ने उन के कसबल ढीले कर दिए. तभी लुटेरों में से एक ने कहा, ‘‘जा रहे हैं सेठ, अफसोस है कि माल उम्मीद से बहुत कम मिला. अब यह सोच कर हलकान मत होना कि हम कौन हैं. बेहतरी इसी में है कि इस वारदात को ही भूल जाओ.’’

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इस के बाद लुटेरे फुरती से अपनी कार में सवार हुए और कार मोड़ कर अनंतपुरा की तरफ निकल गए. गुमानी शंकर ने कार से बाहर निकल कर उन्हें देखना चाहा, लेकिन तब तक वे आंखों से ओझल हो चुके थे. उन्होंने तत्काल मोबाइल निकाल कर पुलिस कंट्रोल रूम का नंबर मिलाया. लेकिन पुलिस से संपर्क नहीं हो सका. थकहार कर वह ड्राइविंग सीट पर बैठ गए.

अब तक एक बात उन के दिलोदिमाग में घर कर गई थी कि लुटेरे सफेद रंग की स्विफ्ट डिजायर कार में आए थे और उस पर नंबर प्लेट नहीं थी. उन की भाषा भरतपुरिया लहजा लिए हुए थी, इस का मतलब वे उधर के थे.

लुटेरों का अगला शिकार गोविंदनगर निवासी सुरेंद्र नायक बने. नायक अपनी पत्नी टीना के साथ बाइक पर थे. गुरुवार 15 जून की सुबह 9 बजे नायक डीडीआई अस्पताल के मुहाने पर पहुंचे थे कि ट्रैफिक नियमों को दरकिनार करते हुए सामने से तेजरफ्तार आ रही सफेद कार को देख कर वह हड़बड़ा गए.

नायक बाइक का संतुलन संभाल पाते, उस के पहले ही कार से फुरती से निकल कर 2 ढांटाधारी युवकों ने उन्हें घेर लिया. उन में से एक ने गन दिखा कर बाइक की चाबी निकाल ली. जबकि दूसरे ने यह कहते हुए झटके से नायक की पत्नी के गले से मंगलसूत्र खींच लिया कि दिनदहाड़े इतने कीमती जेवर पहन कर घर से निकलना अच्छा नहीं है. आइंदा से इस बात को याद रखना.

कोई कुछ समझ पाता, उस के पहले ही दोनों युवक कार में बैठ कर छूमंतर हो गए. लुटेरे बाइक की चाबी भी साथ ले गए थे. नतीजतन नायक के पास हाथ मलने के अलावा कोई चारा नहीं रहा. पीसीआर को सूचना दी गई तो थोड़ी देर में पुलिस की टीम वहां पहुंच गई, लेकिन तब तक उन के करने के लिए कुछ नहीं बचा था. ताज्जुब की बात यह थी कि भीड़भरी सड़क पर इतनी बड़ी वारदात हो रही थी और किसी ने उन की मदद नहीं की.

अगले 8 दिनों में कोटा महानगर के अलगअलग इलाकों में दिनदहाड़े लूट की एक दरजन वारदातों ने शहर में तहलका मचा दिया. बदमाश बेखौफ हो कर हाईवे पर दिनदहाड़े हथियारों के बल पर जिस तरह लूटपाट कर रहे थे, पुलिस के लिए खुली चुनौती थी.

हर वारदात में बिना नंबर की स्विफ्ट डिजायर कार और गन के साथ लूटपाट करने वाले दो ढांटाधारी युवकों की मौजूदगी ने यह साबित कर दिया था कि सभी वारदातें एक ही गिरोह कर रहा है. क्योंकि हर वारदात का स्टाइल एक जैसा था. ट्रैफिक नियमों को धता बताते हुए अचानक शिकार के सामने नमूदार होना और गन दिखा कर जो भी मालमत्ता मिले, लूट कर भाग जाना.

लूटी जाने वाली कार और बाइक सवार को निहत्था करने के मकसद से चाबी साथ ले जाना भी उन की वारदात में शामिल था, ताकि उन का पीछा न किया जा सके. वारदातों से सहमे लोगों में भरोसा बनाए रखने के लिए एसपी अंशुमान भोमिया ने मीडिया के जरिए लोगों को आश्वस्त किया कि लूट के मामलों की गहराई से जांच की जा रही है. उन्होंने कहा कि अपराधियों और अपराध में इस्तेमाल की जा रही कार के बारे में पता लगाया जा रहा है. अपराधी जल्दी ही पुलिस की गिरफ्त में होंगे. इस बीच पुलिस यह जान चुकी थी कि लुटेरों की कार का नंबर आरजे25 सीए 4717 है.

लुटेरे सिर्फ कोटा तक ही सीमित रहे हों, ऐसा नहीं था. जब एसपी अंशुमान भोमिया अपने मातहतों के साथ लूट की घटनाओं की समीक्षा कर रहे थे, उन्हें चौंकाने वाली सूचना मिली कि लूट की ऐसी ही वारदातें बूंदी, टोंक, बारां और उदयपुर में भी हो चुकी हैं.

लुटेरे जीआरपी थाना क्षेत्र, सवाई माधोपुर में 2 ट्रेनों में भी लूट की वारदातों को अंजाम दे चुके हैं. ट्रेनों में लूटपाट के दौरान उन्होंने सिर्फ महिलाओं को ही निशाना बनाया था. उन्होंने महिलाओं से कहा था कि किसी भी तरह की गलत हरकत से बचना चाहती हैं तो बिना देर किए जेवर उतार कर दे दें. डरीसहमी महिलाओं ने एक पल की भी देर नहीं की थी.

एक तरफ पुलिस सफेद स्विफ्ट डिजायर कार वाले लुटेरों की तलाश में भटक रही थीं तो दूसरी तरफ उन की गतिविधियां चरम पर थीं. हालात दिनोंदिन पेचीदा होते जा रहे थे. इस पर कोटा संभाग के आईजी विशाल बंसल ने एसपी अंशुमान भोमिया को सलाह दी कि लुटेरों को गिरफ्तार करने के लिए विशेष दल का गठन कर के कोटा, बूंदी और टोंक पुलिस का जौइंट औपरेशन शुरू कराएं.

एसपी अंशुमान भोमिया लुटेरों को पकड़ने के लिए एडीशनल एसपी अनंत कुमार के निर्देशन में डीएसपी शिवभगवान गोदारा, राजेश मेश्राम, सीआई अनिल जोशी, लोकेंद्र पालीवाल, धनराज मीणा, शौकत खान, रामनाथ सिंह और सर्किल इंसपेक्टर श्रीचंद को शामिल कर के विशेष टीमों का गठन कर दिया.

पहली टीम सीआई लोकेंद्र पालीवाल की अगुवाई में कोटा, बूंदी हाईवे पर नजर रख रही थी, जबकि दूसरी टीम अनिल जोशी के नेतृत्व में मुखबिर तंत्र के जरिए शहर से रिसने वाली सूचनाएं खंगाल रही थी. बूंदी और टोंक पुलिस ने भी अपने खुफिया तंत्र को हाईवे पर मुस्तैद कर दिया था.

बूंदी के एसपी राजेंद्र सिद्धू के निर्देशन में लुटेरों की तलाश में जुटी पुलिस की जांच में 2 बातें सामने आईं. पहली तो यह कि लुटेरे नाकों से गुजरने से बच रहे थे, साथ ही उन के निशाने पर वही लोग होते थे, जिन के साथ महिलाएं होती थीं. लुटेरे जरूरत से ज्यादा दुस्साहसी थे. यही वजह थी कि वे हर वारदात में एक ही स्विफ्ट डिजायर कार इस्तेमाल कर रहे थे और घूमफिर कर उन्हीं इलाकों में वारदात कर रहे थे.

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पुलिस ने लूट में इस्तेमाल की जा रही कार को टारगेट कर के पूरे कोटा शहर की कड़ी नाकेबंदी कर दी. नाकेबंदी के दौरान करीब एक हजार कारों को चैक किया गया, लेकिन निराशा ही हाथ लगी.

लुटेरों की टोह में पुलिस पूरी तरह सक्रिय थी, लेकिन कामयाबी हाथ नहीं लग रही थी. कशमकश के दौरान एसपी अंशुमान भोमिया के दिमाग में एक खयाल कौंधा, हालांकि खयाल दूर की कौड़ी था, लेकिन टटोलने में कोई हर्ज नहीं था.

दूर की यह कौड़ी 31 मई की वारदात से जुड़ी थी, जिस में जीआरपी पुलिस ने जयपुर सुपरफास्ट में लूटपाट करने वाले अबरार और सोनू मीणा नाम के 2 लुटेरों को सवाई माधोपुर से पकड़ा था. पूछताछ में उन्होंने अपने 2 साथियों के नाम भी बताए थे, जो फरार हो गए थे.

जीआरपी थानाप्रभारी गंगासहाय शर्मा के मुताबिक उन के नाम वारिस उर्फ भूरिया तथा राजेश मीणा थे. अंशुमान भोमिया ने एडीशनल एसपी अनंत कुमार शर्मा को मन की बात बताई तो वह भी सहमत हो गए. उन के बारे में पुलिस को जो पुख्ता जानकारी हासिल हुई, उस के मुताबिक, दोनों ही जेल से हाल ही में छूटे थे.

21 जून बुधवार की रात जौइंट औपरेशन के तहत अनंत कुमार शर्मा अपनी गाड़ी से गश्त कर रहे थे. अचानक वायरलैस से उन्हें सूचना मिली कि लुटेरे टोंक जिले में वारदात करने के बाद उनियारा की तरफ जा रहे हैं. बूंदी के एसपी राजेंद्र सिद्धू को इस बाबत सूचना मिल चुकी थी और उन की हिदायत पर लाखेरी और इंद्रगढ़ पुलिस स्विफ्ट डिजायर कार का पीछा कर रही थी.

राजेंद्र सिद्धू ने टोंक और उनियारा पुलिस को भी सतर्क कर दिया था. सूत्रों से पता चला कि स्विफ्ट डिजायर कार में बैठे लुटेरों ने खतरा भांप कर इंद्रगढ़ लाखेरी पुलिस पर फायर भी किया था, लेकिन उन्होंने पीछा करना नहीं छोड़ा.

पुलिस के इस जौइंट औपरेशन में कोटा, बूंदी और टोंक पुलिस ने लुटेरों को चारों ओर से घेर लिया. नतीजतन टोंक जिले के थाना सोंप में पुलिस ने उन्हें कल्याणपुरा पायगा गांव के पास रोक लिया. पकड़े गए युवक वारिस उर्फ भूरिया तथा राजेश मीणा थे. अनंत कुमार शर्मा भी पुलिस टीम के साथ पहुंच गए थे. थाना सोंप में काररवाई के बाद दोनों लुटेरों और जब्त कार को लाखेरी, इंद्रगढ़ पुलिस को सौंप दिया गया.

पुलिस उन्हें ले कर बूंदी के लिए रवाना हुई. उन के पास भारी संख्या में जेवरात के अलावा 66 हजार रुपए नकद, एक देशी कट्टा और रिवौल्वर था. पूछताछ में उन्होंने बूंदी और सवाई माधोपुर में वारदातों के अलावा कोटा हाईवे पर की गई वारदातों को भी स्वीकार किया. बूंदी में 5 मामले दर्ज होने से लुटेरों को पहले बूंदी पुलिस को सौंपा गया.

अनिल कुमार शर्मा कोटा पहुंचे तो 2 अन्य लुटेरों के पकड़े जाने की सूचना मिली. इन के नाम मनोज उर्फ बंटी तथा दानिश थे. दोनों के कब्जे से 2 भरी हुई पिस्टलें बरामद हुई थीं. अंशुमान भोमिया के मुताबिक आरोपियों से शुरुआती पूछताछ में इस बात का खुलासा हुआ है कि उन्होंने कुछ समय पहले ही यह कार सवाई माधोपुर के एक व्यक्ति से डेढ़ लाख रुपए में खरीदी थी. लेकिन सौदे की रकम अभी तक नहीं चुकाई गई थी.

एसपी भोमिया ने बताया कि लुटेरों ने वारदातों में जिस कार का उपयोग किया था, उस के आगेपीछे के 4 और 7 नंबर साफ कर दिए गए थे. इस से 17 का अंक ही नजर आ रहा था. उन्होंने बताया कि नाकेबंदी के दौरान एक हजार से ज्यादा सफेद स्विफ्ट डिजायर कारों को चैक किया गया था. फिलहाल आरोपी न्यायिक अभिरक्षा में हैं.

– कथा पुलिस सूत्रों के आधार पर

मोहब्बत का खूनी अंजाम

जब जब इश्क की कलम से दिल के कागज पर मोहब्बत की इबादत लिखी गई है, तबतब मोहब्बत करने वाले फना हुए हैं. इस तरह की कहानी में तब और दिलचस्प मोड़ आया है, जब वह त्रिकोण प्रेम पर आधारित हुई है और प्रेम त्रिकोण की कहानी में अकसर खूनी खेल सामने आता है. कुछ ऐसा ही इस त्रिकोण प्रेम में भी हुआ.

8 दिसंबर, 2017 की अलसाई सुबह चटख धूप के साथ खिली. लोग अपने घरों से निकल कर अपनी दिनचर्या में रम रहे थे.

उत्तर प्रदेश के जिला आजमगढ़ के बिलरियागंज थाने के भदाव गांव के कुछ लोग अपने खेतों की तरफ जा रहे थे. तभी गांव से बाहर कच्ची सड़क से दाईं ओर करीब 500 मीटर की दूरी पर कुदारन तिवारी के खेत में सफेद रंग की स्विफ्ट डिजायर कार लावारिस हालत में खड़ी दिखी. उत्सुकतावश लोग उस कार की ओर चले गए कि सुबहसुबह खेत में किस की कार खड़ी है.

लोगों ने जब कार के भीतर झांक कर देखा तो भीतर कोई नहीं था. कार का नंबर था यूपी53सी 3262. कार से कुछ दूरी पर एक युवक की लाश पड़ी थी. उस के सिर के घाव से लग रहा था कि किसी ने सिर में गोली मार कर उस की हत्या की है. उस का चेहरा खून से सना था.

मृतक काले रंग की पैंट और नीलेपीले रंग की धारीदार डिजाइन वाली जैकेट पहने था. उस के पैरों में कोई चप्पल या जूते नहीं थे. चेहरे पर दाढ़ी थी. वह शक्लसूरत और पहनावे से किसी अच्छे परिवार का लग रहा था.

लाश पड़ी होने की जानकारी मिलते ही आसपास के गांव के और लोग भी वहां जुटने लगे. उसी भीड़ में से किसी ने 100 नंबर पर फोन कर के इस की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. चूंकि मामला बिलरियागंज थाने का था, इसलिए पुलिस कंट्रोलरूम ने बिलरियागंज थाने को घटना की इत्तला दे दी. लाश मिलने की खबर पा कर बिलरियागंज के थानाप्रभारी विजय प्रताप यादव पुलिस टीम के साथ घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए.

घटनास्थल पहुंचने के बाद थानाप्रभारी ने अपने आला अधिकारियों को भी मामले की सूचना दे दी. इस के अलावा उन्होंने फोरैंसिक टीम और डौग स्क्वायड को भी सूचना दे कर मौके पर बुला लिया.

खबर पा कर एसपी अजय कुमार साहनी, एसपी (देहात) एन.पी. सिंह, सीओ (सगड़ी) सुधाकर सिंह भी घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस ने कार के नंबर की जांच की तो वह नंबर गोरखपुर आरटीओ का था.

जांचपड़ताल से पता चला कि वह कार गोरखपुर के दीपक सिंह के नाम से रजिस्टर्ड थी. इस से यही अंदाजा लगाया गया कि मृतक गोरखपुर का रहने वाला होगा. फिर पुलिस ने मृतक के कपड़ों की तलाशी ली तो उस की जेब से सगड़ी के बाबू शिवपत्तर राय स्मारक कालेज का एक परिचयपत्र मिला. उस परिचयपत्र से उस की शिनाख्त एमए के छात्र विभांशु प्रताप पांडेय के रूप में हुई, जिस में उस का पता गांव भौवापार थाना बेलीपार लिखा था.

कार की तलाशी लेने पर डिक्की में उल्टी और खून के धब्बे मिले. कार में एक जोड़ी लेडीज चप्पल पड़ी मिली. ऐसे में अनुमान लगाया जा रहा था कि बदमाश हत्या कहीं और कर लाश को ठिकाने लगाने ले जा रहे थे, लेकिन कार खेत में फंस जाने की वजह से दूर नहीं भाग सके और उस की लाश फेंक कर फरार हो गए. इस का मतलब साफ था कि कार में कोई महिला भी सवार थी. वह कौन थी? यह मामला और भी पेचीदा हो गया.

पुलिस इस मामले को प्रेम संबंधों से जोड़ कर देखने लगी थी. कार में लेडीज चप्पल और उल्टी ने गुत्थी बुरी तरह उलझा कर रख दी थी. विभांशु के मुंह से झाग निकले थे. वह झाग किसी जहरीले पदार्थ के सेवन से थे या किसी और के, यह बात जांच के बाद ही पता चलना था.

मौके की जरूरी काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दी. कागजी काररवाई पूरी करने के पहले पुलिस ने घटना की सूचना मृतक के परिजनों को दे दी थी. सूचना मिलने के बाद वह भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

मृतक के बड़े भाई जोकि पेशे से एक वकील थे, उन की तहरीर पर पुलिस ने रुचि राय पुत्री अरविंद राय, ग्रामप्रधान श्यामनारायण राय और उस के भाई सत्यम राय सहित 8 अज्ञात लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

सभी आरोपी कोतवाली जीयनपुर के बांसगांव के निवासी थे. घनश्याम पांडेय का आरोप था कि भाई को उस की प्रेमिका रुचि राय ने फोन कर के बुलाया था और उस की हत्या करवा दी. रिपोर्ट नामजद लिखाई गई थी, इसलिए पुलिस ने नामजद आरोपियों की तलाश शुरू कर दी.

चूंकि वादी घनश्याम पांडेय एक वकील के साथसाथ रसूखदार और ऊंची पहुंच वाला था, पुलिस की थोड़ी सी भी चूक कानूनव्यवस्था बिगाड़ सकती थी, इसलिए एसपी अजय कुमार साहनी ने सीओ सुधाकर सिंह के नेतृत्व में गठित पुलिस टीम को निर्देश दे दिए थे कि नामजद आरोपियों को जल्द गिरफ्तार किया जाए.

पुलिस टीम ने आरोपियों के घर दबिश डाली तो वह अपने ठिकानों पर नहीं मिले. उन के न मिलने पर पुलिस की समस्या और बढ़ गई. उन की तलाश के लिए पुलिस ने अपने सभी मुखबिरों को भी अलर्ट कर दिया.

9 दिसंबर, 2017 की सुबह थानाप्रभारी विजय प्रताप यादव को एक मुखबिर ने आरोपी ग्रामप्रधान श्यामनारायण राय के बारे में एक महत्त्वपूर्ण जानकारी दी. उस से मिली जानकारी के बाद थानाप्रभारी अपनी टीम के साथ सगड़ी-खालिसपुर मार्ग पर पहुंच गए. श्यामनारायण वहीं खड़ंजे के पास खड़ा मिल गया. पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया. वह वहां से कहीं भागने की फिराक में था.

तलाशी लेने पर उस के पास से एक पिस्टल .32 बोर व 2 जिंदा कारतूस के अलावा एक कारतूस का खोखा भी मिला. थाने ला कर जब उस से पूछताछ की गई, उस ने विभांशु की हत्या करने का जुर्म कबूल कर लिया.

पुलिस ने उस के पास से जो पिस्टल बरामद किया था, उसी से उस ने विभांशु की हत्या की थी. उस ने उस की हत्या की जो कहानी बताई, वह प्रेम त्रिकोण वाली निकली—

22 वर्षीय विभांशु प्रताप पांडेय उर्फ विभू मूलरूप से गोरखपुर के बेलीपार थाना क्षेत्र के ऊंचगांव (भौवापार) के रहने वाले रमाशंकर पांडेय का बेटा था. रमाशंकर पांडेय के 7 बेटों में विभांशु सब से छोटा और सब का दुलारा था. रमाशंकर पांडेय के सभी बेटे अपने पैरों पर खड़े थे. सब से बड़ा बेटा घनश्याम पांडेय अधिवक्ता था. अन्य बेटे भी अच्छे पदों पर कार्यरत थे.

विभांशु ही घर पर रह कर खेती के काम में पिता का हाथ बंटाता था. इस के साथ वह आजमगढ़ के बाबू शिवपत्तर राय स्मारक कालेज से एमए की पढ़ाई भी कर रहा था. वह काफी मेहनती युवक था. उस की एक खास बात थी कि वह जिस भी काम को करने की ठान लेता, उसे हर हाल में पूरा करने की कोशिश करता.

खैर, गोरखपुर से आजमगढ़ की कुल दूरी 85 किलोमीटर थी. विभांशु कालेज अपनी बाइक से आताजाता था. वैसे आजमगढ़ के रामगढ़ व जमसर गांव में उस की रिश्तेदारियां थीं. जिस दिन उस का मन कालेज से घर लौटने का नहीं होता तो वह इन में से अपनी किसी रिश्तेदारी में रुक जाता था. अपने रुकने की खबर वह फोन कर के घर वालों को दे देता था.

सन 2015 की बात है. रिश्तेदारी में आतेजाते एक दिन विभांशु की नजर एक खूबसूरत युवती पर पड़ी तो वह उसे अपलक निहारता रह गया. पहली ही नजर में वह उस के कजरारे नैनों के तीर से घायल हो गया था. उस ने अपने स्रोतों से पता किया तो जानकारी मिली कि उस का नाम रुचि राय है और वह पड़ोस के कल्याणपुर बांसगांव में रहती है.

रुचि के दिल में प्यार का रंग भरने के लिए विभांशु रिश्तेदारों के यहां ज्यादा समय बिताने लगा. वहीं रह कर पढ़ने लगा. घर वाले इस बात से बेखबर थे कि विभांशु पर प्रेम रोग का रंग चढ़ने लगा है. एक दिन की बात है. विभांशु कालेज से घर आ रहा था तभी सड़क पर उसे रुचि जाती हुई दिखाई दी. रुचि को देख कर उस का दिल जोरजोर से धड़कने लगा.

विभांशु ने तय किया कि आज वह उस से बात कर के ही रहेगा. थोड़ी दूर बढ़ने के बाद विभांशु ने अपनी बाइक उस के नजदीक ले जा कर रोक दी. अचानक पास बाइक रुकी देख रुचि सहम गई. इस से पहले कि वह कुछ कहती, विभांशु बोला, ‘‘मैं आप से कुछ बात करना चाहता हूं.’’

इतना सुनते ही रुचि चौंकते हुए बोली, ‘‘आप को मैं पहचानती नहीं. और मैं अजनबियों से बात नहीं करती.’’

‘‘लेकिन मैं आप को अच्छी तरह जानतापहचानता हूं. रुचि राय नाम है आप का और कल्याणपुर बांसगांव में रहती हैं.’’ उस ने कहा.

अपना नाम सुन कर रुचि हैरान रह गई कि अजनबी युवक को मेरा नाम और पता कैसे पता चला. बिना कोई उत्तर दिए वह आगे बढ़ गई पर विभांशु भी उस के पीछेपीछे बाइक से आ रहा था. रास्ता सुनसान था. पीछे बाइक सवार युवक को अपनी ओर आते देखा तो रुचि सहम गई.

वह तेजतेज कदमों से आगे बढ़ने लगी. विभांशु ने आगे बढ़ कर उस का रास्ता फिर रोक लिया और बोला, ‘‘मुझे गलत मत समझो, मैं कोई लुच्चालफंगा नहीं हूं.’’

‘‘रास्ता रोकने की हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी? हट जाओ मेरे रास्ते से वरना अभी शोर मचा दूंगी.’’ हिम्मत बटोर कर वह बोली, ‘‘मुझे ऐसीवैसी लड़की मत समझना, वरना अभी दिन में ही तारे दिखा दूंगी.’’

‘‘नाराज क्यों हो रही हैं. नहीं रोकूंगा, जाइए. वैसे मैं अपने बारे में तो बताना भूल गया. मेरा नाम विभांशु प्रताप पांडेय है और पड़ोस के गांव रामगढ़ में रहता हूं. अभी तुम जाओ, मैं फिर मिलूंगा.’’

कह कर विभांशु बाइक तेज गति से चला कर वहां से निकल गया. उस के जाने के बाद रुचि की जान में जान आई. रास्ते भर वह यही सोचती रही कि इस युवक को मेरा नाम और पता कैसे मालूम हुआ. सोचतेसोचते घर कब पहुंची उसे पता नहीं चला.

बात आईगई, खत्म हो गई और वह अपने कामों में लग गई. अब जब भी वह मिलती विभांशु हायहैलो कर के निकल जाता था. पर यह इत्तफाक था या कुछ और कि उस दिन के बाद रुचि से रास्ते में उस की मुलाकात अकसर हो जाया करती थी. विभांशु की आशिकी की निगाहें देख कर रुचि के दिल में भी उस के लिए चाहत के बीज अंकुरित होने लगे.

इस के बाद विभांशु जब भी उस से हायहैलो कहता, वह भी मुसकरा पड़ती थी. अपनी ओर उसे आकर्षित हुआ देख कर विभांशु की खुशियों का ठिकाना नहीं रहा. फिर उन के बीच बातचीत भी होने लगी.

मौका देख कर उन्होंने एकदूसरे से अपनी मोहब्बत का इजहार भी कर दिया. रुचि और विभांशु की मोहब्बत की गाड़ी पटरी पर दौड़ी तो वो भविष्य के सपने बुनने लगे और शादी तक के सपने देखने लगे. यह पंछी प्यार की उड़ान भरने लगे. दोनों बाइक पर इधरउधर खूब घूमने लगे. इस बात पर भी उन्होंने ध्यान नहीं दिया कि जानने वालों ने उन्हें देखा भी है या नहीं. लिहाजा उन के प्यार की चर्चा गलीमोहल्लों में होने लगी थी.

रुचि और विभांशु की मोहब्बत की खुशबू कल्याणपुर बांसगांव के ग्रामप्रधान श्यामनारायण राय तक पहुंची. श्यामनारायण राय रुचि का हमउम्र और अविवाहित था. लिहाजा उस का मन मचल गया और वह रुचि की ओर आकर्षित हो गया. रुचि को पाने की हसरतें उमंगें भरने लगीं. किसी के माध्यम से उस ने अपनी मोहब्बत का पैगाम रुचि तक भिजवाया पर रुचि ने उस का पैगाम ठुकरा दिया.

श्यामनारायण काफी दबंग और पहुंच रखने वाला था. उस की मोहब्बत एकतरफा थी, जबकि रुचि विभांशु से प्यार करती थी. रुचि द्वारा ग्रामप्रधान को लिफ्ट न देने पर वह बौखला गया. इसलिए उस ने तय कर लिया कि वह रुचि और विभांशु की मोहब्बत में बाधा को सफल नहीं होने देगा.

विभांशु भी कमजोर नहीं था. ग्रामप्रधान श्यामनारायण राय से मुकाबला करने के लिए उस के सामने आ खड़ा हुआ. यह बात श्यामनारायण को काफी नागवार लगी कि एक बाहरी युवक उसी के घर में घुस कर उसे ही चुनौती देने पर आमादा है. यह बात उस के बरदाश्त के बाहर थी.

रुचि को चाहने वाले 2 लोग थे लेकिन रुचि तो उन में से केवल एक को ही चाहती थी. लिहाजा रुचि को ले कर उन दोनों के बीच विवाद खड़ा हो गया जो थमने के बजाय बढ़ता ही गया.

अक्तूबर, 2017 की बात है. विभांशु दशहरे का मेला घूमने गया था. फोन कर के उस ने रुचि को भी मेले में बुला लिया था. काफी देर तक साथसाथ मेला घूमने के बाद दोनों अपनेअपने घरों को रवाना हुए. प्रेमिका से विदा होते विभांशु ने उसे फ्लाइंग किस दिया. रुचि ने मुसकरा कर इस का जवाब दे दिया.

इत्तफाक से उसी समय श्यामनारायण भी कहीं से उधर आ पहुंचा. उस ने दोनों को किस लेतेदेते देख लिया था. यह देख कर उस का खून खौल उठा. उस ने आव देखा न ताव, कुछ ग्रामीणों को आवाज लगा दी.

ग्रामप्रधान की आवाज सुन कर गांव के तमाम लोग वहां पहुंच गए. प्रधान ने विभांशु पर गांव की लड़की को छेड़ने का आरोप लगाया. इस के बाद तो ग्रामीण भड़क गए. विभांशु वहां से भागा तो उन्होंने दौड़ कर उसे दबोच लिया. इस के बाद उस की जम कर पिटाई की.

पिटाई के बाद भी उन्होंने विभांशु को नहीं छोड़ा बल्कि प्रधान श्यामनारायण ने उसे पुलिस के हवाले कर दिया. जीयनपुर के थानाप्रभारी ने विभांशु को लड़की छेड़ने के आरोप में जेल भेज दिया. इस तरह प्रधान ने विभांशु को जेल भिजवा कर अपनी खुन्नस निकाल ली.

घर वालों को जब यह पता चला कि लड़की छेड़ने के आरोप में विभांशु जेल में बंद है तो वे परेशान हो गए. शर्म के मारे उन का चेहरा झुक गया. किसी तरह विभांशु के बड़े भाई वकील घनश्याम पांडेय ने उस की जमानत कराई. घर वालों ने विभांशु को खूब डांटा, साथ ही समझाया कि ये इश्कविश्क का चक्कर छोड़ कर पढ़ाई पर ध्यान दो. जब समय आएगा तो किसी अच्छी लड़की से शादी करा कर गृहस्थी बसा दी जाएगी.

परिवार के दबाव में आ कर उस समय तो कह दिया कि वह ऐसा कोई काम नहीं करेगा, जिस से परिवार की बदनामी हो लेकिन वह दिल से रुचि को निकाल नहीं पाया. साथ ही वह श्यामनारायण द्वारा जेल भिजवा देने वाली बात से काफी आहत था. उस ने तय कर लिया कि वह इस का बदला जरूर लेगा.

वह प्रधान श्यामनारायण से बदला लेने का मौका ढूंढने लगा. इसी बीच 4 दिसंबर, 2017 को ग्रामप्रधान श्यामनारायण पर किसी ने हमला कर दिया. प्रधान का पूरा शक विभांशु पर आ गया. प्रधान ने तय कर लिया कि वह विभांशु को सूद के साथ इस का भुगतान करेगा. जबकि वास्तविकता यह थी कि विभांशु का उस हमले से कोई लेनादेना नहीं था और न ही उस ने ऐसा किया था.

बहरहाल, इश्क की जलन ने एक नाकाम प्रेमी श्यामनारायण राय को इंसान से शैतान बना दिया था. वह विभांशु के खून का प्यासा हो गया. वह मौके की तलाश में था लेकिन उसे मौका नहीं मिल पा रहा था.

7 दिसंबर, 2017 की शाम 6 बजे रुचि ने विभांशु को फोन कर के मिलने के लिए आजमगढ़ बुलाया. प्रेमिका के बुलावे पर वह बेहद खुश था. तैयार हो कर वह बाइक ले कर रुचि से मिलने निकल गया. घर से निकलते समय उस ने घर वालों से यही कहा था कि वह शहर जा रहा है और थोड़ी देर में आ जाएगा.

विभांशु पहले अलहलादपुर में रहने वाले अपने दोस्त दीपक सिंह के घर गया. वहां उस ने बाइक खड़ी की ओर उस की स्विफ्ट डिजायर कार ले कर प्रेमिका से मिलने आजमगढ़ रवाना हो गया. यह बात पता नहीं कैसे प्रधान श्यामनारायण को पता चल गई. फिर तो उस की बांछें खिल उठीं. वह कल्याणपुर बांसगांव से पहले खालिसपुर गांव के पास घात लगा कर बैठ गया. रात 11 बजे के करीब विभांशु स्विफ्ट डिजायर कार ले कर गुजरा.

प्रधान ने गाड़ी में विभांशु को जाते देख लिया. प्रधान मोटरसाइकिल पर था. उस ने कार का पीछा किया और ओवरटेक कर के उसे रोक लिया. सुनसान जगह पर प्रधान को देख विभांशु का माथा ठनक गया. वह कार ले कर वहां से भागना चाहा लेकिन कार के आगे प्रधान और उस की बाइक थी, इसलिए वहां से नहीं भाग सका.

सड़क पर ही दोनों के बीच बहस छिड़ गई. बात काफी बढ़ गई. मामला गालीगलौज से हाथापाई तक पहुंच गया. प्रधान श्यामनारायण का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया. उस ने कार का दरवाजा खोल कर विभांशु को खींच कर बाहर निकाल लिया. उसी समय उस ने कमर से लाइसेंसी पिस्टल निकाली और उस के सिर में गोली मार दी.

गोली लगते ही विभांशु कटे पेड़ की तरह धड़ाम से सड़क पर गिर गया और मौके पर ही उस की मौत हो गई. इस के बाद प्रधान ने फोन कर के छोटे भाई सत्यम राय उर्फ रजनीश को मौके पर बुला लिया.

श्यामनारायण और सत्यम दोनों ने मिल कर उसे कार की पिछली सीट पर डाला फिर लाश ठिकाने लगाने के लिए गांव के बाहर ले गए.

वह कार को सड़क से नीचे खेत में ले गए. वहां से वह नहर की ओर ले जा रहे थे, तभी कार कुदारन तिवारी के खेत में जा कर फंस गई. वहां से कार नहीं निकली तो वह वहीं खेत में छोड़ दी और लाश भी कुछ आगे डाल दी. इस के बाद वे घर लौट आए और इत्मीनान से सो गए.

उन्हें विश्वास था कि पुलिस को उन पर शक नहीं होगा पर जब मृतक के भाई घनश्याम पांडेय ने नामजद रिपोर्ट लिखाई तो प्रधान श्यामनारायण पुलिस से बचने के लिए घर से निकल कर सगड़ी-खालिसपुर मार्ग पर जा कर खड़ा हो गया और उधर से आने वाले वाहन का इंतजार करने लगा. इस से पहले कि वह वहां से कहीं जाता, थानाप्रभारी विजयप्रताप यादव ने उसे मुखबिर की सूचना पर गिरफ्तार कर लिया.

प्रधान श्यामनारायण राय से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. इस के 3 दिनों के बाद उस का छोटा भाई सत्यम राय उर्फ रजनीश भी बांसगांव से गिरफ्तार कर लिया गया. पूछताछ में उस ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

कथा लिखे जाने तक पुलिस कार में मिली महिला की सैंडिल और उल्टी के बारे में जांचपड़ताल कर रही थी. आरोपी रुचि राय फरार चल रही थी. पुलिस उस की तलाश में जुटी हुई थी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मां के लिए बेटियां बनी अपराधी

‘अम्मा, यह बेटा है या बेटी?’’ एक युवती ने समीना से पूछा. अस्पताल के वार्ड में एक स्टूल पर बैठी समीना ने कहा, ‘‘अरी लाली, यह मेरा पोता है. आज सुबह ही पैदा हुआ है.’’

‘‘अम्मा, पोता होने से तेरी तो मौज हो गई,’’ उस युवती ने समीना को बातें में लगाते हुए कहा.

‘‘हां लाली, सब अल्लाह की मेहर है,’’ समीना आसमान की ओर हाथ उठा कर बोली.

‘‘अम्मा, तेरा पोता बड़ा खूबसूरत और गोलमटोल है,’’ युवती ने नवजात बच्चे को दुलारते हुए कहा, ‘‘अम्मा, तू कहे तो मैं इसे गोद में ले कर खिला लूं.’’

‘‘ले तेरा मन बालक को गोद में खिलाने की है तो खिला ले.’’ समीना ने अपने पोते को युवती की गोद में देते हुए कहा.

युवती नवजात को गोद में ले कर दुलारने, प्यार करने लगी. उसे अपने पोते पर इतना प्यार बरसाते देख कर समीना ने पूछा, ‘‘लाली, तू यहां क्या कर रही है?’’

‘‘अम्मा, मेरी चाची के औपरेशन से बच्चा हुआ है. वह इसी अस्पताल के बच्चा वार्ड में मशीन में रखा है.’’ युवती ने समीना को बताया, ‘‘मैं तो चाची की मदद के लिए आई थी, लेकिन बालक मशीन में रखा है, इसलिए इधर आ गई. मुझे बच्चा खिलाना अच्छा लगता है.’’

समीना ने उस युवती को आशीर्वाद दिया.

यह बीती 10 जनवरी की बात है. भरतपुर जिले की पहाड़ी तहसील के हैवतका गांव के निवासी तारीफ की पत्नी मनीषा ने तड़के 4 बज कर 20 मिनट पर पहाड़ी के राजकीय अस्पताल में बेटे को जन्म दिया था. प्रसव के दौरान मनीषा को चूंकि अधिक रक्तस्राव हुआ था और वह एनीमिक भी थी, इसलिए डाक्टरों ने उसे जिला मुख्यालय भरतपुर के जनाना अस्पताल रेफर कर दिया था.

मनीषा के परिवार वाले उसे पहाड़ी से भरतपुर के राजकीय जनाना अस्पताल ले आए. भरतपुर, राजस्थान का संभाग मुख्यालय है. वहां अच्छी चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध हैं.

मनीषा दोपहर करीब 12 बज कर 28 मिनट पर अस्पताल पहुंची. कागजी खानापूर्ति के बाद उसे 12 बज कर 50 मिनट पर अस्पताल के पोस्ट नैटल केयर वार्ड नंबर-1 में बैड नंबर 7 पर भरती कर लिया गया.

अस्पताल में भरती होने पर प्रसूता मनीषा बैड पर लेट गई. मनीषा के साथ उस की सास समीना और समीना की सास जुम्मी सहित गांव के कई पुरुष भी भरतपुर आए थे. मनीषा का पति तारीफ साथ नहीं था. वह ट्रक चलाता था और ट्रक ले कर दिल्ली से मुंबई गया हुआ था. मनीषा की शादी करीब डेढ़ साल पहले हुई थी. पहली संतान के रूप में उसे बेटा हुआ था.

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मनीषा के नवजात बेटे को समीना गोद में ले कर खिला रही थी, तभी वह युवती वहां आ गई थी. उस ने समीना और मनीषा को बातों में लगा लिया. हंसहंस कर बात करते हुए उस ने समीना से उस का पोता अपनी गोद में ले लिया.

वह युवती जब नवजात को गोद में ले कर दुलार रही थी, तभी डाक्टर ने मनीषा को ब्लड चढ़ाने की जरूरत बताई. इस पर मनीषा का जेठ मुफीद और ताया ससुर सद्दीक भरतपुर के ही आरबीएम अस्पताल से ब्लड लेने चले गए. अस्पताल में भरती मनीषा, उस की सास समीना और दादी सास जुम्मी अस्पताल में रह गईं.

उस युवती को अपने पोते के साथ खेलता देख कर समीना ने उस से कहा, ‘‘लाली, हम ने सुबह से चाय तक नहीं पी है. तू हमारी बहू के पास बैठ कर बच्चे को खिला, हम अस्पताल के बाहर कैंटीन पर चायनाश्ता कर आते हैं.’’

इस के लिए वह युवती खुशीखुशी तैयार हो गई. दोपहर करीब 2 बजे युवती को वहां बैठा छोड़ कर समीना और उस की सास जुम्मी चाय पीने अस्पताल के बाहर चली गईं.

समीना और उस की सास के बाहर जाने के बाद उस युवती ने मनीषा से कहा कि तुम्हें शौचालय जाना हो तो मैं ले चलती हूं. मनीषा के हां कहने पर वह युवती उस का हाथ पकड़ कर उसे शौचालय ले गई. मनीषा का बेटा युवती की गोद में ही था. मनीषा शौचालय के अंदर चली गई.

कुछ देर बाद मनीषा शौचालय से बाहर निकली तो वहां वह युवती नहीं थी. मनीषा ने सोचा कि शायद वह बैड पर जा कर बैठ गई होगी.

मनीषा जैसेतैसे सहारा ले कर अपने बैड तक आई, लेकिन वह वहां भी नहीं थी. इस पर मनीषा ने शोर मचाया तो वार्ड में भरती अन्य प्रसूताओं के घर वाले एकत्र हो गए.

उधर अस्पताल के बाहर मनीषा की सास समीना जब चाय पी रही थी तो उस ने उस युवती को बच्चे को कंबल में लपेट कर ले जाते हुए देखा. समीना ने कंबल देख कर युवती को टोका भी लेकिन वह रुकी नहीं.

वह तेज कदमों से चली गई. इस से समीना को संदेह हुआ. वह वार्ड में बहू के पास आई तो वह रो रही थी. मनीषा ने बताया कि जो युवती बच्चे को गोद में ले कर खिला रही थी, वह उसे ले कर भाग गई है.

समीना तुरंत अस्पताल के बाहर आई, लेकिन युवती वहां कहीं नहीं थी. तब तक अस्पताल में भरती प्रसूताओं के घर वाले भी बाहर आ गए थे. लोगों ने पूछताछ की तो पता चला, कंबल में बच्चे को लपेटे हुए एक युवती सफेद रंग की स्कूटी पर गई है. उस स्कूटी के पास पहले से ही एक और युवती खड़ी थी. दोनों स्कूटी से गई हैं.

करीब 10 घंटे पहले कोख से जन्मा कलेजे का टुकड़ा चोरी हो जाने से मनीषा पीली पड़ गई. उस की तबीयत खराब होने लगी तो उसे डाक्टरों ने संभाला.

भरतपुर के सरकारी अस्पताल से नवजात लड़का चोरी होने की घटना से पूरे अस्पताल में सनसनी फैल गई. मनीषा के ताया ससुर सद्दीक ने इस की सूचना मथुरा गेट थाना पुलिस को दी. पुलिस ने अपहरण का मामला दर्ज कर लिया.

पुलिस ने अस्पताल पहुंच कर जांचपड़ताल की. अस्पताल के बाहर वाहन पार्किंग वाले से पूछताछ में पता चला कि जिस स्कूटी पर दोनों युवतियां गई हैं, उस का नंबर 1361 है. यह नंबर पार्किंग वाले के पास रहने वाली आधी पर्ची पर लिखा मिला.

पार्किंग वाले ने वाहन की सीरीज व जिले का कोड नंबर नहीं लिखा था. पुलिस ने अस्पताल के अंदरबाहर और आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की रिकौर्डिंग खंगाली. कैमरों की फुटेज में एक युवती गोद में बच्चा लिए हुए जाती नजर आई.

पुलिस के पास जांच करने के लिए केवल सफेद रंग की स्कूटी का नंबर 1361 था. पुलिस को इसी के सहारे अपनी जांच करनी थी. भरतपुर के एसपी अनिल कुमार टांक ने मामले को गंभीरता से लेते हुए एडीशनल एसपी सुरेश खींची और डीएसपी (सिटी) आवड़दान रत्नू के नेतृत्व में कई पुलिस टीमें गठित कीं.

पुलिस टीमों ने स्कूटी के अलावा रंजिशवश ऐसी वारदात करने और दूसरे कारणों को भी ध्यान में रखा. पुलिस को यह भी शक हुआ कि किसी पारिवारिक रंजिशवश तो बच्चे का अपहरण नहीं हुआ. इसी अस्पताल में उसी दिन एक प्रसूता के 2 जुड़वां नवजात बच्चों की मौत हो गई थी, इस एंगल पर भी बच्चा चोरी की आशंका को ध्यान में रख कर जांच की गई.

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पुलिस का ध्यान इस बात पर भी गया कि युवती जब बच्चा ले जा रही थी तो उसे समीना ने देख लिया था. इस से घबरा कर उस ने कहीं नवजात को भरतपुर की सुजानगंगा नहर में न फेंक दिया हो.

पुलिस की एक टीम ने परिवहन कार्यालय जा कर जांचपड़ताल की तो भरतपुर में 1361 नंबर की 2 स्कूटी मिलीं. ये दोनों स्कूटी लाल रंग की थीं, जबकि बच्चा चोरी में इस्तेमाल की गई स्कूटी सफेद रंग की थी. इस पर आसपास के जिलों के परिवहन कार्यालयों की मदद लेने का निर्णय लिया गया.

मथुरा गेट थानाप्रभारी राजेश पाठक के नेतृत्व में एक पुलिस टीम ने सुजानगंगा नहर और आसपास के इलाकों में नवजात की तलाश की, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला. पुलिस ने प्रसूता मनीषा के गांव से भी जानकारी कराई कि कोई आपसी रंजिश का ऐसा मामला तो नहीं है, जिस के चलते नवजात का अपरहण कर लिया जाए.

दूसरे दिन पुलिस ने भरतपुर और आसपास के अस्पतालों व निजी नर्सिंगहोमों में बच्चे की तलाश की. पुलिस का मानना था कि नवजात की तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए उसे किसी अस्पताल या नर्सिंगहोम में भरती कराया जा सकता है. लेकिन पुलिस को इस भागदौड़ में भी सफलता नहीं मिली.

जांच में एक तथ्य यह जरूर सामने आया कि बच्चे की अपहर्त्ता युवती एक दिन पहले और उस से पहले भी कई बार अस्पताल में रैकी करने आई थी. एक संभावना यह भी थी कि किसी की सूनी गोद भरने के लिए बच्चे की चोरी की गई हो.

पुलिस की एक टीम भरतपुर जिले के कुम्हेर भी भेजी गई. वहां 2 मृत बच्चों को जन्म देने वाली महिला बदहवास स्थिति में थी, इसलिए बच्चा चोरी की आशंका जताई गई थी, लेकिन वहां ऐसा कुछ नहीं मिला. फतेहपुर सीकरी में भी पुलिस टीम जांच करने गई, लेकिन नवजात का कोई सुराग नहीं मिला.

मामला उछलने पर दूसरे दिन पुलिस के साथ इस मामले की जांच बाल कल्याण समिति एवं अस्पताल प्रशासन ने भी शुरू की. अस्पताल प्रशासन ने जनाना अस्पताल की प्रभारी डा. ऊषा गुप्ता के नेतृत्व में 3 सदस्यीय जांच कमेटी बनाई.

पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज देखने के बाद उन रास्तों पर जांच शुरू की, जहां से बच्चे को ले जाया गया था. इसी क्रम में पुलिस की टीमें जांच के लिए मथुरा और आगरा भेजी गईं. भरतपुर के पास सब से बड़ा शहर मथुरा और आगरा है. पुलिस की एक टीम ने भरतपुर के वाहन शोरूमों पर पहुंच कर सफेद रंग की स्कूटी की बिक्री के रिकौर्ड की पड़ताल की. इस के अलावा निस्संतान दंपतियों और बावरिया बस्ती में भी नवजात की खोजबीन की गई.

तीसरे दिन अस्पताल प्रशासन ने प्रसूता मनीषा, उस की सास समीना, दादी सास, देवर व अन्य परिजनों से कई घंटे पूछताछ की. उधर नवजात बेटे का कोई अतापता नहीं मिलने पर मनीषा रोरो कर बेहाल हो गई थी.

भरतपुर से मथुरा गई पुलिस टीम को 12 जनवरी को वहां के परिवहन कार्यालय का रिकौर्ड देखने के बाद 1361 नंबर की सफेद रंग की एक स्कूटी के बारे में पता चला. यह स्कूटी यूपी85 सीरीज की थी. पुलिस को इस स्कूटी के मालिक का नामपता मिल गया.

इस बीच, 12 जनवरी को ही पूरे भरतपुर जिले में यह अफवाह तेजी से फैल गई कि अस्पताल से चोरी हुआ नवजात भरतपुर शहर के पास सरसों के एक खेत में पड़ा मिल गया है. यह अफवाह पुलिस तक पहुंची तो जांचपड़ताल की गई.

कई लोगों की काल डिटेल्स निकलवाई गईं. जांच में सामने आया कि मनीषा के मायके से फोन आया था. उन लोगों को भी यह बात किसी और ने बताई थी.

घटना के चौथे दिन यानी 13 जनवरी की सुबह भरतपुर से 15 किलोमीटर दूर सांतरुक की सड़क पर गोवर्धन नहर के किनारे झाडि़यों में कंबल में लिपटा एक नवजात बालक मिला. यह नवजात मनीषा का ही बेटा था, जो 10 जनवरी को भरतपुर के अस्पताल से चोरी हुआ था.

झाडि़यों में पड़े इस नवजात को 2 बाइक सवार युवकों ने देखा था. उन्होंने शोर मचाया तो आसपास के लोग एकत्र हो गए.

कंबल में लिपटे नवजात के पास दूध की बोतल रखी थी. उस के सिर पर गर्म टोपा और पैरों में गर्म पायजामी थी. बच्चे के फुल स्लीव स्वेटर पर सेफ्टी पिन से एक पत्र लगा हुआ था. पत्र पर लिखा था, ‘यह बच्चा भरतपुर के जनाना अस्पताल से चोरी हुआ है, कृपया इसे इस के मांबाप को सौंप दें.’

लोगों की सूचना पर पुलिस मौके पर पहुंची. नवजात को एंबूलेंस से भरतपुर के जनाना अस्पताल लाया गया. अस्पताल में 4 दिन से बदहवास पड़ी मनीषा ने अपने कलेजे के टुकड़े को देखते ही पहचान लिया.

मनीषा और उस की सास समीना ने बच्चे की बलाइयां लीं और उसे जी भर के दुलार किया. डाक्टरों ने नवजात का स्वास्थ्य परीक्षण कर के उसे आईसीयू में भरती करा दिया.

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दूसरी ओर भरतपुर पुलिस ने मथुरा में 1361 नंबर की सफेद स्कूटी के मालिक का पता लगा कर स्कूटी जब्त कर ली. यह स्कूटी मथुरा के रामवीर नगर निवासी सेना के सूबेदार की पत्नी मीना देवी के नाम पर थी. पूछताछ के बाद पुलिस ने मीना देवी की शिक्षिका बेटी शिवानी को हिरासत में ले लिया.

शिवानी को पुलिस भरतपुर ले आई और उस से व्यापक पूछताछ की. पूछताछ के आधार पर पुलिस शिवानी की बहन प्रियंका को भी आगरा से भरतपुर ले आई.

भरतपुर की मथुरा गेट थाना पुलिस ने 14 जनवरी को दोनों बहनों को बच्चे के अपरहण के मामले में गिरफ्तार कर लिया. पुलिस पूछताछ में दोनों बहनों से जो कहानी पता चली, वह कुछ इस तरह थी—

मथुरा के रहने वाले सेना के सूबेदार लक्ष्मण सिंह जाट की शादी मीना देवी से हुई थी. कालांतर में उन के 4 बच्चे हुए. 3 बेटियां और 1 बेटा. उन्होंने 2 बेटियों की शादी कर दी थी, जबकि 14 साल के एकलौते बेटे की 2016 में असामयिक मौत हो गई थी. तीसरी 15 वर्षीय बेटी खुशबू मथुरा में मातापिता के पास रहती थी.

एकलौते भाई की मौत से दोनों बड़ी बहनों को तो झटका लगा ही, उन की मां मीना देवी डिप्रेशन में आ गई थीं. लक्ष्मण सिंह को बेटे की चाहत थी. इस के लिए रिश्तेदार और करीबी लक्ष्मण सिंह पर दूसरी शादी के लिए दबाव बना रहे थे. क्योंकि मीना देवी फिर गर्भवती नहीं हो पा रही थीं.

डिप्रेशन की हालत में मीना देवी ने एक बार सुसाइड करने का भी प्रयास किया था. उन्होंने कोई बेटा गोद लेने की भी कोशिश की थी, लेकिन सफलता नहीं मिली थी. मां का घर न उजड़े, इस के लिए दोनों बड़ी बेटियां शिवानी व प्रियंका तरकीब सोचने लगीं. दोनों बहनों के नाना लाल सिंह भी चाहते थे कि उन की बेटी मीना का घर बसा रहे. इस बीच दोनों बहनों ने पिता व अन्य घर वालों के बीच यह बात फैला दी कि उन की मां गर्भवती है.

दोनों बहनों ने किसी नवजात को खरीदने के लिए मथुरा व आगरा के निजी अस्पतालों में भी बात की थी. एक नर्स के माध्यम से बच्चा खरीदने की बात तय भी हो गई थी, लेकिन जिस प्रसूता का बच्चा लेना था, उस की मौत हो गई. इस से दोनों बहनों को अपनी मां के गर्भवती बताने की योजना पर पानी फिरता नजर आया.

इस के बाद मीना देवी के पिता लाल सिंह कई दिनों तक हरियाणा के मेवात इलाके में नवजात खरीदने के लिए घूमे. उन्हें किसी नर्स ने बताया था कि मेवात इलाके में गरीब लोग सक्षम न होने के कारण नवजात बच्चा बेच सकते हैं.

काफी प्रयासों के बाद भी जब किसी नवजात का इंतजाम नहीं हुआ तो दोनों बहनों शिवानी व प्रियंका ने अपनी मां के लिए बच्चा चोरी करने की योजना बनाई. इस के लिए उन्हें भरतपुर का सरकारी अस्पताल सुरक्षित जगह लगी. इस पर दोनों बहनें 9 जनवरी को भरतपुर आईं और अस्पताल में किसी नवजात बच्चे की तलाश की, लेकिन वे किसी बच्चे को ले जाने में कामयाब नहीं हुईं.

इस के अगले दिन 10 जनवरी को दोनों बहनें मां की स्कूटी से मथुरा से भरपुर आईं. उन्होंने अपनी स्कूटी जनाना अस्पताल के बाहर पार्किंग में खड़ी की. शिवानी अस्पताल में अंदर चली गई, जबकि प्रियंका अस्पताल के अंदरबाहर चक्कर लगा कर शिवानी पर नजर रखती रही.

शिवानी ने अस्पताल के वार्ड में भरती मनीषा की सास की गोद में नवजात को देख कर सब से पहले यही पूछा कि लड़का है या लड़की.

समीना ने जब उसे बताया कि लड़का है तो शिवानी को अपनी योजना सफल होती नजर आई. उस ने समीना और मनीषा को बातों में लगा कर बच्चे को अपनी गोद में ले लिया. इस बीच समीना जब चायनाश्ता करने अस्पताल से बाहर चली गई तो शिवानी ने मनीषा को शौचालय चलने की बात कही. मनीषा के शौचालय में घुसते ही शिवानी बच्चे को ले कर तेजी से अस्पताल से बाहर निकल आई.

प्रियंका ने उसे बच्चे के साथ आता देख कर पार्किंग से स्कूटी निकाल ली. इस दौरान समीना ने अपने पोते का कंबल पहचान कर शिवानी को टोका तो वह रुकने के बजाय बाहर स्कूटी ले कर तैयार खड़ी प्रियंका के साथ भाग निकली.

दोनों बहनें स्कूटी से बच्चे को ले कर भरतपुर से सीधे मथुरा पहुंचीं. मथुरा से उन्होंने मां मीना देवी और आगरा में नाना लाल सिंह को बच्चा खरीद कर लाने की बात बताई. बाद में प्रियंका अपनी ससुराल आगरा चली गई.

जांच में सामने आया कि वारदात के बाद दोनों बहनें पुलिस की गतिविधि पर नजर रखे हुए थीं. पुलिस का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा था. यह देख कर दोनों बहनें 13 जनवरी की सुबह बच्चे को भरतपुर सीमा में रारह में सांतरुक स्थित नहर के पास लावारिस छोड़ कर लौट आई थीं.

दोनों बहनों में 20 साल की प्रियंका छोटी है और 23 साल की शिवानी बड़ी. मथुरा के रहने वाले पुष्पेंद्र जाट की पत्नी शिवानी एक निजी स्कूल में शिक्षिका है, जबकि मूलरूप से उत्तर प्रदेश के हाथरस के सरूपा नौगावां निवासी और आजकल आगरा में रह रहे भूपेंद्र सिंह जाट की पत्नी प्रियंका बीए की पढ़ाई कर रही है.

शिवानी को औपरेशन से बेटी हुई थी. उसे डाक्टरों ने 2 साल तक बच्चा पैदा नहीं करने की सलाह दी थी. प्रियंका शादी के तुरंत बाद गर्भवती हो गई थी, लेकिन परीक्षा होने के कारण उस ने गर्भपात करा दिया था. इस से उस के ससुराल वाले नाराज थे. वारदात के दौरान वह 15 दिन से मायके में थी.

पुलिस ने शिवानी व प्रियंका को 15 जनवरी, 2018 को अदालत में पेश किया. अदालत ने दोनों को न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया. शिक्षा के पेशे से जुड़ी और एक बेटी की मां शिवानी ने पढ़ीलिखी छोटी बहन के साथ मिल कर अपनी मां का टूटता घर बसाए रखने के लिए बच्चे को चुरा कर एक मां को जो यातना दी, उस अपराध के लिए कानून उन्हें सजा देगा. लेकिन इस वारदात ने दोनों के घर वालों व ससुराल वालों के सिर भी शर्म से झुका दिए.

गणेश की शातिर सोच ने उसे बनाया अपराधी

उत्तर प्रदेश के जिला वाराणसी के थाना भेलूपुर में प्रमोद कुमार पत्नी और 3 बच्चों के साथ हंसीखुशी से रहता था. शुभम उस का सब से छोटा बेटा था, जो सभी का लाडला था. गुरुवार 27 अक्तूबर, 2016 को अचानक वह गायब हो गया तो पूरा परिवार परेशान हो उठा.13 महीने का शुभम जब कहीं दिखाई नहीं दिया तो उस की तलाश शुरू हुई. उस के बारे में आसपास के घरों में पूछा गया तो जल्दी ही उस के गायब होने की खबर पूरे मोहल्ले में फैल गई. इस के बाद मोहल्ले के भी कुछ लोग मदद के लिए आ गए. जब शुभम का कहीं कुछ पता नहीं चला तो बिना देर किए सलाह कर के सब उस के गुम होने की सूचना थाना भेलूपुर पुलिस को देने पहुंच गए.

थानाप्रभारी इंसपेक्टर राजीव कुमार सिंह को जब 13 महीने के शुभम के गायब होने की तहरीर दी गई तो उन्होंने गुमशुदगी दर्ज करा कर शुभम की फोटो ले कर प्रमोद कुमार तथा उन के साथ आए लोगों को धैर्य बंधाते हुए कहा, ‘‘आप लोग बिलकुल मत घबराइए, शुभम को कुछ नहीं होगा. हम उसे जल्द ही ढूंढ निकालेंगे.’’

इस के बाद राजीव कुमार सिंह ने आवश्यक जानकारी ले कर सभी को घर भेज दिया. एक मासूम की गुमशुदगी की बात थी, इसलिए उन्होंने इस की जानकारी अधिकारियों को दे कर थाने में मौजूद सिपाहियों को बच्चे की तलाश में लगा दिया. इस के अलावा इलाके के सभी मुखबिरों को भी सतर्क कर दिया.

प्रमोद की किसी से न कोई अदावत थी और न किसी से कोई विवाद था. ऐसे में यही लगता था कि बच्चे का फिरौती के लिए अपहरण किया गया होगा. लेकिन प्रमोद कुमार की इतनी हैसियत भी नहीं थी कि वह फिरौती के रूप में मोटी रकम दे सकता. फिर भी पुलिस फिरौती के लिए किए गए अपहरण को ही ध्यान में रख कर चल रही थी.

और हुआ भी वही. प्रमोद द्वारा थाने में तहरीर दे कर लौटने के थोड़ी देर बाद ही उसे एक पत्र मिला, जिस में शुभम के अपहरण की बात लिख कर उस की सकुशल वापसी के लिए 5 लाख रुपए की फिरौती मांगी गई थी.

अपहर्त्ता ने पत्र में लिखा था, ‘तुम्हारे जीजा ने मुझे बहुत परेशान किया है. अब तुम्हें अपना बेटा चाहिए तो 5 लाख रुपए दो, वरना बाद में चिडि़या खेत चुग जाएगी.’

ताज्जुब की बात यह थी कि पत्र भेजने वाला कोई और नहीं, प्रमोद कुमार के पड़ोस में ही रहने वाला गणेश राजभर था, जो औटो चलाता था. प्रमोद कुमार ने तुरंत इस बात की जानकारी थाना भेलूपुर पुलिस को तो दी ही, खुद भी गणेश की तलाश में लग गया. गणेश के घर में कोई नहीं था. पुलिस भी सूचना मिलते ही गणेश की तलाश में तेजी से जुट गई थी.

एसपी (सिटी) राजेश यादव ने सीओ राजेश श्रीवास्तव को निर्देश दिया कि किसी भी तरह गणेश को गिरफ्तार कर के शुभम को सकुशल बरामद किया जाए. इस के बाद थाना भेलूपुर पुलिस के अलावा क्राइम ब्रांच को भी गणेश की तलाश में लगा दिया गया.

आखिर पुलिस की मेहनत रंग लाई और अपहरण के 2 दिनों बाद यानी 29 अक्तूबर, 2016 को मुखबिर की सूचना पर गणेश को बच्चे के साथ मंडुआडीह रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार कर लिया गया. गिरफ्तार करने के साथ ही उस के कब्जे से मासूम शुभम को सकुशल बरामद कर लिया गया. वह काफी डरासहमा हुआ था.

गणेश की गिरफ्तारी और मासूम शुभम की सकुशल बरामदगी के बाद एसपी (सिटी) राजेश यादव ने अपने औफिस में प्रैसवार्ता बुला कर अभियुक्त गणेश को पत्रकारों के सामने किया तो उस ने मासूम शुभम के अपहरण की जो कहानी सुनाई, वह प्रतिशोध की भावना से भरी हुई इस प्रकार थी—

वाराणसी के थाना सारनाथ के सोना तालाब का रहने वाला गणेश राजभर घर वालों से न पटने की वजह से परिवार के साथ थाना भेलूपुर के कमच्छा सट्टी स्थित अपनी ससुराल में किराए का मकान ले कर रहता था. गुजरबसर के लिए वह औटो चलाता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटे थे. किराए पर रहने की वजह से उसे आर्थिक रूप से तो परेशानी होती ही थी, साथ ही बारबार कमरा बदलने से भी उसे दिक्क्त होती थी.

यही सोच कर उस ने कुछ पैसा इकट्ठा किया और जमीन लेने की योजना बनाई, जिस से वह अपना मकान बना कर उस में आराम से रह सके. इस से उस के किराए के पैसे तो बचते ही, बारबार कमरा बदलने की जहमत से भी छुटकारा मिल जाता. इस के अलावा उस में वह थोड़ीबहुत सागसब्जी की खेती भी कर लेगा, जिस से चार पैसे भी बचते.

पैसे इकट्ठा हो गए तो गणेश जमीन की तलाश में लग गया. किसी के माध्यम से उस ने प्रकाश मास्टर से साढ़े 3 लाख रुपए में एक जमीन खरीदी. लेकिन जमीन खरीदने के बाद उसे पता चला कि वह जमीन बंजर है. यह जान कर वह परेशान हो उठा. क्योंकि वहां कुछ भी नहीं हो सकता था. प्रकाश से उस ने अपने रुपए वापस मांगे तो उस ने पैसे देने से मना कर दिया. इस के बाद दोनों में अकसर तकरार होने लगी.

गणेश को जब पता चला कि प्रकाश मास्टर उस के पड़ोस में रहने वाले प्रमोद कुमार का बहनोई है तो उस के मन में शातिर और घृणित सोच ने जन्म लेना शुरू कर दिया. वह थी प्रमोद कुमार के मासूम बेटे शुभम के अपहरण की. उसे लगता था कि साले के बेटे की चाहत में प्रकाश उस के रुपए तो लौटा ही देगा, फिरौती के रूप में भी कुछ रुपए देगा.

बस फिर क्या था, अपनी इसी सोच को अंजाम देने के लिए वह मौके की तलाश में रहने लगा. आखिर 27 अक्तूबर, 2016 को उसे मौका मिल ही गया. उस समय शुभम  घर के बाहर खेल रहा था. गणेश ने अपने 14 साल के बेटे सूरज को भेज कर औटो में घुमाने के बहाने शुभम को मंगा लिया और उसे ले कर चला गया. बाद में उस ने अपने बेटे सूरज के हाथों फिरौती के लिए प्रमोद के पास चिट्ठी भिजवा दी थी.

फिरौती की चिट्ठी मिलते ही प्रमोद के घर में कोहराम मच गया था, जबकि गणेश फिरौती के 5 लाख पाने के सपने देखने लगा था. उस के ये सपने पूरे होते, उस के पहले ही पुलिस ने उसे पकड़ लिया.

दरअसल, गणेश को इस बात की जरा भी उम्मीद नहीं थी कि लोग इतनी जल्दी पुलिस को शुभम के अपहरण की सूचना दे देंगे. गणेश द्वारा शुभम के अपहरण का अपराध स्वीकार करने के बाद थाना भेलूपुर पुलिस ने उस के खिलाफ अपहरण का मुकदमा दर्ज किया और उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

जानलेवा फेसबुक फ्रेंडशिप

आजकल तकरीबन हर कोई सोशल मीडिया खासतौर से फेसबुक, ट्विटर और ह्वाट्सऐप पर मौजूद है. कई लोगों के लिए इन साइटों पर रहना जरूरत की बात है, तो ज्यादातर लोग इन के जरीए अपना वक्त काटते हैं.

हैरानी की बात है कि अब तेजी से लड़कियां भी फेसबुक पर दिख रही हैं. बड़े शहरों की लड़कियों को पछाड़ते हुए अब देहातों और कसबों की लड़कियां भी फेसबुक पर अकाउंट खोल कर दोस्त बनाने लगी हैं और उन से चैट यानी लिखित में बातचीत करने लगी हैं.

फेसबुक पर दोस्त बना कर उन से चैट करने पर घर वालों को कोई खास एतराज नहीं होता, क्योंकि उन्हें स्मार्टफोन और कंप्यूटर की ज्यादा जानकारी नहीं होती, इसलिए लड़कियां बेखौफ हो कर अपने बौयफ्रैंड से बातें करती हैं.

ये बातें कभीकभी ऐसे जुर्म की भी वजह बन जाती हैं, जिस से नादान लड़कियां मुसीबत में पड़ जाती हैं, इसलिए अब जरूरी हो चला है कि फेसबुक का इस्तेमाल सोचसमझ कर और एहतियात बरतते हुए किया जाए, नहीं तो हालात मध्य प्रदेश के इंदौर की प्रिया जैसे भी हो सकते हैं.

आशिक बना कातिल

17 साला प्रिया इंदौर के गीता नगर इलाके के कृष्णा नगर अपार्टमैंट्स में तीसरी मंजिल पर रहती थी. हाईस्कूल में पढ़ रही प्रिया पढ़ाई की अहमियत समझती थी, इसलिए इंजीनियर बनने की अपनी ख्वाहिश पूरी करने के लिए उस ने अभी से आईआईटी की भी तैयारी शुरू कर दी थी और कोचिंग क्लास में  जाती थी.

प्रिया के पिता श्याम बिहारी रावत एक कोचिंग इंस्टीट्यूट में काम करते हैं और मां किरण पेशे से ब्यूटीशियन हैं. हालांकि ये लोग कोई बहुत बड़े रईस नहीं हैं, लेकिन इज्जत से गुजारे लायक कमाई आराम से हो जाती थी. पूजा इन दोनों की एकलौती लड़की थी.

दूसरी लड़कियों की तरह पूजा भी फेसबुक का इस्तेमाल करती थी और उस के कई दोस्त भी बन गए थे.

प्रिया जानती थी कि फेसबुक पर लड़कों या अनजान लोगों से दोस्ती करना अब खतरे से खाली बात नहीं, इसलिए वह ऐसी फ्रैंड रिक्वैस्ट मंजूर नहीं करती थी, जिन में सामने वाला जानपहचान का न हो.

एक दिन पूजा को प्रियांशी नाम की लड़की ने फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजी, तो उस ने इसे मंजूर कर लिया, क्योंकि प्रियांशी लड़की थी और उस की प्रोफाइल भी प्रिया को ठीकठाक लगी थी.

धीरेधीरे प्रिया और प्रियांशी की फेसबुक पर दोस्ती गहराने लगी और दोनों चैटिंग करने लगीं. इस दौरान प्रिया ने प्रियांशी से कई दिली बातें कीं और अपना और अपनी मम्मी का मोबाइल नंबर भी उसे दे दिया.

लेकिन एक दिन प्रियांशी की हकीकत प्रिया के सामने खुल ही गई कि वह लड़की नहीं, बल्कि लड़का है. उस का असली नाम अमित यादव है. वह 24 साल का है और पेशे से सौफ्टवेयर इंजीनियर है.

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अमित ने असलियत बताते हुए प्रिया से मुहब्बत का इजहार किया, तो धोखा खाई प्रिया तिलमिला उठी और उस ने अमित का अकाउंट ब्लौक कर दिया.

गूजरखेड़ी गांव का रहने वाला अमित अब तक प्रिया, उस के घर और स्वभाव के बारे में चैट के जरीए प्रिया से ही काफीकुछ जानकारी हासिल कर चुका था, इसलिए उस ने प्रिया के मोबाइल पर फोन कर उस से अपनी मुहब्बत का इजहार किया. तब भी प्रिया ने उसे झिड़क दिया.

जब प्रिया ने अमित का फोन रिसीव करना बंद कर दिया, तो एकतरफा प्यार में पागल इस सिरफिरे आशिक ने मैसेज भेजने शुरू कर दिए.

प्रिया को अब समझ आ गया था कि धोखे या गलती से ही सही, वह एक गलत और झक्की नौजवान से फेसबुक पर दोस्ती कर के फंस चुकी है, तो उस ने पीछा छुड़ाने के लिए उस पर ध्यान देना ही बंद कर दिया.

इस अनदेखी और बेरुखी से अमित और भी तिलमिला गया, जो यह मान कर चल रहा था कि चूंकि वह प्रिया से प्यार करता है, इसलिए यह उस की जिम्मेदारी है कि वह भी उसे प्यार करे. हालांकि उसे मन में कहीं न कहीं एहसास होने लगा था कि प्रिया सख्तमिजाज और उसूलों वाली लड़की है.

हिम्मत न हारते हुए अमित ने प्रिया की मां किरण को फोन किया और सारी बात बताई. इस पर किरण ने प्रिया से पूछा, तो उस ने मां को साफसाफ बता दिया कि अमित एक धोखेबाज लड़का है, जिस ने लड़की बन कर फेसबुक पर उस से दोस्ती की और अब जबरदस्ती प्यारमुहब्बत की बातें कर रहा है.

बेरहमी आशिक की

मां किरण ने आजकल के जमाने को देख शुरू में तो बेटी की तरह ही अमित को झिड़क दिया.

यह देख कर अमित गिड़गिड़ाया, ‘‘आंटी, मुझे बस एक बार प्रिया से बात कर लेने दें, फिर मैं कभी फोन नहीं करूंगा.’’

दुनिया देख चुकीं किरण यहीं गच्चा खा गईं. उन्होंने सोचा था कि लड़का एकतरफा प्यार में पागल हो गया है और कहीं ऐसा न हो कि गुस्से में आ कर बेटी को कोई नुकसान पहुंचा दे, इसलिए जब

27 सितंबर, 2016 की सुबह उस का दोबारा फोन आया, तो उन्होंने उसे घर आने की इजाजत दे दी, लेकिन इस शर्त पर कि बात दरवाजे के बाहर से ही होगी.

अमित तो मानो इसी फिराक में था, इसलिए वह किरण की हर बात मानता गया और सुबह के तकरीबन 10 बजे उन के घर पहुंच गया.

जब किरण ने उसे दरवाजे से ही टरकाना चाहा, तो वह फिर दुखी होने की ऐक्टिंग करते हुए बोला, ‘‘यहां बाहर खड़ेखड़े क्या बात होगी. अंदर आने दें तो इतमीनान से बात कर लूंगा.’’

किरण ने उसे अंदर आने दिया. अंदर आ कर अमित ने बाथरूम जाने की बात कही और बाथरूम में चला भी गया.

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अंदर कमरे में प्रिया स्कूल जाने के लिए अपना बैग लगा रही थी कि अमित ने बगैर कुछ कहे या मौका दिए पीछे से चाकू निकाल कर उस पर जानलेवा हमला कर दिया.

प्रिया हमले से घबराई और चीखी तो किरण उस के कमरे की तरफ भागीं, पर जब तक अमित प्रिया पर चाकू के दर्जनभर वार कर चुका था, जो पीठ के अलावा पेट, सीने और चेहरे पर लगे थे.

बदहवास सी किरण बेटी को बचाने बीच में आईं, तो अमित ने उन पर भी हमला बोल दिया. मौका पा कर प्रिया बाथरूम में जा घुसी और डर के मारे भीतर से दरवाजा बंद कर लिया.

शोर सुन कर अपार्टमैंट्स के कई लोग किरण के फ्लैट की तरफ भागे, तो उन्होंने हाथ में चाकू लिए एक नौजवान यानी अमित को भागते देखा. दूसरी मंजिल पर आ कर उस ने भीड़ देखी, तो अपने बचाव के लिए वह नीचे कूद गया.

इधर लोग किरण के घर में गए और हालात देख कर बाथरूम का दरवाजा तोड़ा. वहां प्रिया बेहोश पड़ी थी. लोगों ने तुरंत पुलिस को खबर की और प्रिया को कार में डाल कर अस्पताल की तरफ भागे, पर इलाज के दौरान ही प्रिया ने दम तोड़ दिया.

अमित नीचे कूद तो गया, लेकिन उस के हाथपैर की हड्डियां टूट गईं, इसलिए भाग नहीं सका और गिरफ्तार हो गया. उसे जेल वार्ड में रखा गया.

अमित अपने बयानों में पुलिस को यह कहते हुए बरगलाने की कोशिश करने लगा कि प्रिया उस पर जबरदस्ती करने का झूठा इलजाम लगा रही थी और उसी ने 100 नंबर पर फोन कर पुलिस को बुलाया था.

पर यह बहानेबाजी ज्यादा नहीं चली और जल्दी ही एकतरफा प्यार में पगलाए इस आशिक का जुर्म सामने आ गया.

प्रिया के पिता श्याम बिहारी ने जब बेटी की हत्या की खबर सुनी, तो सदमे के चलते वे बेहोश हो गए और होश में आते ही हत्यारे अमित को फांसी की सजा देने की मांग करने लगे.

एहतियात बरतना है जरूरी

जिस ने भी इस अपराध के बारे में सुना, वह सन्न रह गया और फेसबुक जैसी साइट को कोसता नजर आया कि आजकल यह जुर्म का नया जरीया बन गया है, इसलिए लड़कियों को जरा संभल कर रहना चाहिए.

बात सच भी है, क्योंकि लड़कियां फेसबुक पर ज्यादा से ज्यादा फ्रैंड्स बनाना अपनी शान की बात समझती हैं. हालांकि प्रिया ने अमित को लड़की समझ कर उस से दोस्ती की थी, पर इस हादसे से लगता है कि फेसबुक का इस्तेमाल करते समय लड़कियों को कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए, नहीं तो वे भी प्रिया की तरह किसी हादसे या जुर्म का शिकार हो सकती हैं:

* यह जरूरी नहीं कि जो फ्रैंड रिक्वैस्ट भेज रही है, ये हकीकत में लड़की हो, इसलिए उसे प्रोफाइल की बारीकी से जांच कर लेनी चाहिए कि फैमिली फोटो डाले गए हैं या नहीं.  कितने फ्रैंड्स कौमन हैं. अगर कौमन फ्रैंड्स न हों या कम हों, तो भी फ्रैंड रिक्वैस्ट कबूल नहीं करनी चाहिए.

* किसी भी अनजान शख्स की फ्रैंड रिक्वैस्ट कबूल न करें.

* अपने प्रोफाइल में मोबाइल नंबर नहीं डालना चाहिए, न ही चैटिंग में किसी को देना चाहिए.

* अगर सामने वाली लड़की ज्यादा अपनापन दिखाए, तो चौकन्ना हो जाएं. अकसर जब 2 अनजान लड़कियां दोस्त बनती हैं, तो एकदूसरे से यह जरूर पूछती हैं कि तुम्हारा कोई बौयफ्रैंड है क्या? तुम ने कभी सैक्स किया है क्या? ऐसी बातें करने वाली लड़की को भाव नहीं देना चाहिए.

* घर का पता किसी को न दें.

* फेसबुक का पासवर्ड भी किसी को न दें.

* फ्रैंड कहीं बाहर होटल या पार्क वगैरह में मिलने बुलाए, तो सख्ती दिखाते हुए मना कर देना चाहिए. आजकल लोग गिरोह बना कर भी फेसबुक पर भोलीभाली लड़कियों को फांसने लगे हैं.

* अगर यह पता चल जाए कि सामने जो लड़की थी, वह असल में लड़का है, तो उस से धीरेधीरे कन्नी काटनी चाहिए. ब्लौक कर देने या भड़कने से गुस्से में आ कर लड़का कोई भी खतरनाक कदम उठा सकता है.

* इस के बाद भी बात न बने, तो मांबाप या घर के बड़ों को भरोसे में लेते हुए सारी बात बता देनी चाहिए.

11 दुल्हों की फरेबी दुलहन की कहानी

देश की राजधानी दिल्ली से सटे नोएडा शहर में कारखानों और बड़ीबड़ी कंपनियों के तमाम औफिस हैं, जिन में काम करने के लिए देश के अलगअलग राज्यों से आए लोग यहां रह रहे हैं. रहने  वालों की संख्या बढ़ती गई तो फ्लैट कल्चर कायम हुआ. जिन में रहने वाले लोग एकदूसरे से ज्यादा मतलब नहीं रखते.  इसे इस तरह भी कह सकते हैं कि लोग निजी जिंदगी में किसी की दखलंदाजी पसंद नहीं करते. ऐसे में किस फ्लैट में कौन रहता है और कौन क्या करता है, पड़ोसियों तक को पता नहीं होता. नोएडा शहर के ही सैक्टर-120 स्थित जोडिएक अपार्टमेंट सोसाइटी भी इस आधुनिक हकीकत से अलग नहीं थी. 17 दिसंबर, 2016 की सुबह पुलिस की 2 गाडि़यां सोसाइटी में आ कर रुकीं. पुलिस ने गेट पर तैनात सुरक्षाकर्मियों से कुछ पूछताछ की और फिर एक सुरक्षाकर्मी को साथ ले कर सीधे 11वीं मंजिल पर बने फ्लैट नंबर-1104 के सामने जा पहुंची.

पुलिस के इशारे पर सुरक्षाकर्मी ने दरवाजे के ठीक बराबर में लगी डोरबैल बजाई तो अंदर से किसी लड़की की आवाज आई, ‘‘कौन है?’’

सुरक्षाकर्मी ने जवाब में कहा, ‘‘दरवाजा खोलिए मैम, मैं गार्ड हूं.’’

‘‘क्या बात है?’’

‘‘आप से कोई मिलने आया है.’’ गार्ड ने कहा.

कुछ पलों की खामोशी के बाद एक लड़की ने दरवाजा खोला तो दरवाजे पर पुलिस वालों को देख कर उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. वह कुछ समझ पाती, उस के पहले ही एक पुलिसकर्मी ने पूछा, ‘‘मेघा कहां है?’’

पुलिस वाले के इस सवाल पर वह चौंकी, लेकिन तुरंत ही संभलने की कोशिश करते हुए जवाब देने के बजाए सवाल दाग दिया, ‘‘एक्सक्यूजमी सर, कौन मेघा? मैं समझी नहीं. आप शायद गलत जगह आ गए हैं. यहां कोई मेघा नहीं रहती.’’

लड़की के जवाब से एकबारगी पुलिसकर्मी सकते में आ गए. लेकिन अगले ही पल उस ने कहा, ‘‘यह नाटक बंद करो और जल्दी बताओ कि मेघा कहां है?’’

वह लड़की कोई जवाब देती, उस के पहले ही पुलिसकर्मी फ्लैट में दाखिल हो गए. अंदर बैडरूम में एक लड़की एक युवक के साथ बैठी टीवी देख रही थी. पुलिसकर्मियों की नजर जैसे ही उस लड़की पर पड़ी, उन के चेहरे पर मुसकान तैर गई. जबकि लड़की ने हारे हुए जुआरी की तरह दोनों हाथों से अपना सिर थाम लिया.

उस की हालत देख कर उस पुलिसकर्मी ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा, ‘‘यहां भी तुम शादी करने आई होगी मेघा? चलो, बहुत शादियां कर लीं, अब बाकी का वक्त जेल में बिता लेना.’’

लड़की हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाते हुए बोली, ‘‘मुझे माफ कर दीजिए सर, अब आगे से ऐसी गलती नहीं करूंगी.’’ पुलिसकर्मियों ने उस की बातों को नजरअंदाज करते हुए फ्लैट में रहने वाले तीनों लोगों को कस्टडी में ले कर औपचारिक पूछताछ की. इस के बाद पुलिस तीनों को थाना फेज-2 ले आई, जहां उन से लंबी पूछताछ की गई. गिरफ्तार तीनों लोगों में मेघा भार्गव, उस की बहन प्राची और जीजा देवेंद्र शर्मा शामिल थे.

अगले दिन मेघा की गिरफ्तारी अखबारों और समाचार चैनलों की सुर्खियां बन गई. इस की वजह यह थी कि मेघा कोई मामूली लड़की नहीं थी. उस ने 11 लोगों से शादी कर के उन से करीब एक करोड़ रुपए से ज्यादा की ठगी की थी. लोग उस की सुंदरता के जाल में आसानी से फंस जाते थे. उसे ले कर ढेरों अरमान सजाते थे, जबकि वह शादी की शहनाई में धोखे की धुन बजाती थी.

उन की नईनवेली दुलहन मेघा फरेबी होती थी और वह कुछ ही दिनों में पूरे परिवार को नींद की गोलियां खिला कर घर में रखी नकदी और गहने ले कर रफूचक्कर हो जाती थी. इस के बाद ऐशपरस्त जिंदगी जीने वाली मेघा एक बार फिर नए दूल्हे की तलाश में निकल पड़ती थी. सिलसिला था कि थमने का नाम ही नहीं ले रहा था. केरल के त्रिवेंद्रम में भी मेघा फरेब का ऐसा ही खेल खेल कर आई थी.

नोएडा पुलिस की मदद से उसे गिरफ्तार करने  वाली केरल पुलिस ही थी. उस के कारनामे से हर कोई दंग था. तीनों आरोपियों को केरल ले जाना था, लिहाजा पुलिस ने तीनों को सूरजपुर स्थित न्यायालय में पेश किया और कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर के उन्हें साथ ले कर केरल के लिए रवाना हो गई. सचमुच इस लुटेरी दुलहन का हर कारनामा चौंकाने वाला था.

27 वर्षीया मेघा भार्गव मूलरूप से भोपाल के अशोकनगर निवासी उमेश भार्गव की 4 बेटियों में तीसरे नंबर के बेटी थी. उस ने एमबीए की पढ़ाई की थी. वह शुरू से ही शातिर दिमाग और महत्वाकांक्षी थी. उस के ऐशपरस्ती के जो सपने थे, वे साधारण जिंदगी में कभी पूरे नहीं हो सकते थे. लेकिन वह अपने सपनों को पूरा करना चाहती थी.

करीब 6 साल पहले मेघा ने केतन नामक युवक से एक कालेज में एडमीशन कराने के नाम पर 80 हजार रुपए ले लिए थे. लेकिन एडमीशन नहीं हो सका तो केतन अपने रुपए वापस मांगने लगा. मेघा ने रुपए लौटाने में आनाकानी की तो उस ने उस के खिलाफ ठगी का मामला दर्ज करा दिया. दरअसल, मेघा का मकसद उसे धोखा देना ही था. पुलिस ने इस मामले में उस के खिलाफ कोई काररवाई नहीं की तो केतन न्यायालय चला गया. इस के बाद मेघा का परिवार मध्य प्रदेश के इंदौर शहर के गोयल विहार में शिफ्ट हो गया. लेकिन केतन ने उस का पीछा नहीं छोड़ा.

अंत में पुलिस से दबाव  डलवा कर उस ने अपनी रकम वसूल कर ही ली. मेघा ने पीछा छुड़ाने के लिए यह रकम कर्ज ले कर अदा की थी. कर्ज अदा करने के लिए उस ने एक संस्थान में रिसैप्शनिस्ट की नौकरी कर ली. समय अपनी गति से चलता रहा. करीब 2 साल पहले मेघा की मुलाकात महेंद्र बुंदेला से हुई. समाज में ऐसे शातिर लोगों की कमी नहीं है, जो महत्वाकांक्षी लोगों का इस्तेमाल अपने हिसाब से करने में माहिर होते हैं.

मेघा के रंगढंग और पैसे की जरूरतों को देख कर महेंद्र समझ गया कि यह ऐसी लड़की है, जो पैसों के लिए कुछ भी कर सकती है. मौका देख कर उस ने मेघा से कहा, ‘‘मेघा, तुम ऐश की जिंदगी जीना चाहती हो न?’’

‘‘बिलकुल.’’ मेघा की आंखों में एकाएक चमक आ गई. ‘‘मेरे पास एक आइडिया है. तुम चाहो तो महीने भर में ही इतनी रकम कमा सकती हो कि पूरे साल मेहनत कर के भी उतना नहीं कमा सकती. लेकिन इस के लिए मैं जिस से कहूं, तुम्हें उस से शादी करनी होगी. वहां से जो माल मिलेगा, उस में मुझे आधा हिस्सा देना होगा.’’

‘‘क…क्या,’’ मेघा चौंकी, ‘‘लेकिन मैं अभी शादी नहीं करना चाहती.’’

‘‘शादी तो एक नाटक होगी, लेकिन उसी से तुम अमीर बन सकती हो.’’ महेंद्र ने उसे समझाया, ‘‘मैं किसी ऐसे अमीर को पकडूंगा, जिस की शादी नहीं हो रही होगी. शादी के बाद उस के माल पर हाथ साफ कर के तुम दूर निकल जाना.’’

मेघा को महेंद्र की यह योजना पसंद आ गई. इस के बाद महेंद्र एक ऐसा तलाकशुदा आदमी ढूंढ कर लाया, जो शादी के लिए काफी परेशान था. महेंद्र ने उसे मेघा की फोटो दिखा कर किसी दूसरे राज्य की अनाथ लड़की बताया. फोटो देखते ही उस ने मेघा को पसंद कर लिया तो उस ने दोनों की मुलाकात करा दी. मेघा सुंदर भी थी और पढीलिखी भी.

उस आदमी की जिंदगी में जैसे खुशियों की बहार खुद चल कर आ रही थी. महेंद्र ने कहा कि लड़की जल्द से जल्द शादी करना चाहती है, क्योंकि उसे पति के रूप में सहारा चाहिए. इस पर वह आदमी और भी खुश हुआ. इस मौके को वह हाथ से जाने नहीं देना चाहता था, इसलिए जल्दी ही महेंद्र ने एक मंदिर में उन का विवाह करा दिया.

विवाह के अभी 10 दिन ही बीते थे कि मेघा एक रात करीब साढ़े 11 लाख रुपए की नकदी ले कर लापता हो गई. उस आदमी ने महेंद्र से संपर्क किया तो उस ने हाथ खड़े कर दिए. उस ने कहा कि उस अनाथ लड़की से उस की जानपहचान जरूर थी, लेकिन वह कहां की रहने वाली थी, इस बारे में उसे पता नहीं था. यह उस आदमी की शराफत थी  कि उस ने पुलिस में शिकायत नहीं की. जैसा तय था, मेघा ने आधी रकम महेंद्र को दे दी.

इस के बाद मेघा मुंबई चली गई. कुछ दिन मस्ती में गुजारने के बाद उस ने नया शिकार तलाश कर लिया और इस नए शिकार को उस ने 40 लाख रुपए का चूना लगाया. मेघा को ठगी का यह अनोखा धंधा रास आ गया. अब तक वह इतनी तेज हो गई थी कि उस ने महेंद्र का साथ छोड़ दिया और खुद ही अपने लिए दूल्हे ढूंढने लगी.

उस ने पुणे के एक अमीर परिवार के अपाहिज लड़के से शादी कर के वहां 90 लाख रुपए का चूना लगाया. इस के बाद उस ने मुंबई छोड़ दी. इस बीच मेघा की बड़ी बहन प्राची का विवाह देवेंद्र से हो चुका था. मेघा के धंधे से वे वाकिफ थे. रुपयों के लालच में वे भी उस की फितरत में शामिल हो गए.

कभी पैसोंपैसों के लिए मोहताज रहने वाली मेघा नोटों से खेलने लगी. वह अच्छा खाने और महंगे कपड़े पहनने की शौकीन थी. बड़े शहरों में घूमने के लिए हवाई जहाज की यात्राएं करती थी. मेघा सौ, 5 सौ के नोट टिप में दे दिया करती थी.

उस का कोई स्थाई ठिकाना नहीं था. वह शादियों के विज्ञापन देने वाली इंटरनेट बेवसाइट्स पर शिकार की तलाश करती थी. खास बात यह थी कि वह पैसे वाले तलाकशुदा और विकलांगों से ही शादी करती थी. इस की वजह यह थी कि उन्हें अच्छी लड़की मिल रही होती थी. ऐसे जरूरतमंद लोग ज्यादा छानबीन किए बिना शादी के लिए आसानी से तैयार हो जाते थे.

मेघा की बहन और जीजा भावी दूल्हे के परिवार से मिलते थे और माली हालत का अंदाजा लगा कर ही रिश्ता पक्का करते थे. रिश्ता पक्का होते ही शादी की जल्दी करते थे. वह अपनी कमजोर माली हालत का परिचय देते तो शादी का खर्च भी लड़के वाले ही उठाते थे. जिन की माली हालत लूटने लायक नहीं होती थी, वहां वे कोई न कोई बहाना बना कर रिश्ता तोड़ देते थे.

मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के अलावा राजस्थान और बिहार में भी मेघा ने लोगों को अपना शिकार बनाया था. परिवार के नाम पर मेघा की शादी में बहन और जीजा ही शामिल होते थे. कुछ मामलों में वह खुद को अनाथ और दुखियारी लड़की बता कर अकेली ही रिश्ता पक्का कर लेती थी. वह हंसमुख स्वभाव की थी, इसलिए शादी के बाद दूल्हे के घर वालों से मीठीमीठी बातें कर के घुलमिल जाती थी.

ससुराल वाले तो अपनी नईनवेली दुलहन की तारीफ करते नहीं थकते थे कि उन के नसीब अच्छे थे, जो गुणी बहू मिली. रुपए और गहने कहां रखे होते थे, इस की वह जल्दी से जल्दी जानकारी हासिल कर लेती थी. उस में एक खास बात यह थी कि वह घर में खाना बनाने का काम भी जल्दी ही संभाल लेती थी.

ऐसा कर के वह एक तीर से 2 शिकार करती थी. एक तो लड़के वाले उस के कामकाज की प्रशंसा कर के विश्वास करने लगते थे, दूसरे उसे नींद की गोलियां मिलाने में सुविधा हो जाती थी. वह ऐसी अदाकारा बन चुकी थी कि सभी उस पर पूरी तरह विश्वास कर बैठते थे. वारदात करने से पहले वह बहन और जीजा को बता देती थी, जिस से तय समय पर वे घर के बाहर पहुंच जाते थे. इस के बाद मेघा सामान समेट कर उन के साथ निकल जाती थी.

प्रत्येक वारदात के बाद मेघा अपने मोबाइल का सिमकार्ड तोड़ कर फेंक देती थी. कुछ लोगों ने पुलिस में शिकायतें भी कीं, लेकिन पुलिस कभी उस तक पहुंच नहीं पाई. इस से उस के हौसले बढ़ते गए. पिछले साल मेघा अपनी बहन और जीजा के साथ केरल पहुंची. मेघा ने अपने पुराने अंदाज में शादी कर के 4 लोगों को ठगा. कुछ महीने पहले उस ने त्रिवेंद्रम के लौरेन जोसटिस से शादी की.

शादी के 20 दिनों बाद ही वह करीब 15 लाख के माल पर हाथ साफ कर के भाग निकली. उस के शिकार हुए लोग लुटने के बाद सिर पीट कर रह जाते थे, लेकिन लौरेन सिर पीटने वालों में नहीं थे. उन्होंने सीधा पुलिस का रुख किया और मेघा के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया. पुलिस ने मामले को गंभीरता लिया और इस केस की जांच का जिम्मा इंसपेक्टर टी. सज्जी को सौंपा गया. कुछ समय मुंबई में रहने के बाद मेघा, प्राची और देवेंद्र नोएडा आ कर रहने लगे.

यह इत्तेफाक ही था कि अभी तक मेघा कभी पकड़ी नहीं गई थी. उस का सोचना था कि उस का जन्म ही शादी की चाह रखने वाले लोगों को ठगने के लिए हुआ है. तीनों फ्लैट में गुमनाम जिंदगी जी रहे थे और किसी से कोई वास्ता नहीं रखते थे. आसपास के लोगों को खबर भी नहीं थी कि वहां शादी के नाम पर अपने हाथों में मक्कारी की मेहंदी लगाने वाली जालसाज दुलहन रहती है. नोएडा में भी वे नए शिकार की तलाश में जुट गए थे. उधर केरल पुलिस ने ठगी के इस मामले को चुनौती के रूप में लिया.

उस ने मेघा के फोटो हासिल करने के साथ ही उस के मोबाइल नंबर को हासिल कर के उस की कौल डिटेल्स निकलवाई. उन की गहराई से जांचपड़ताल की गई. उस में 2 नंबर मिले, जिन पर उस की सब से ज्यादा बातें हुई थीं. इन तीनों की लोकेशन भी साथसाथ होती थी. यही दोनों नंबर उस की बहन और जीजा के थे. लेकिन परेशानी की बात यह थी कि तीनों ही नंबर बंद कर दिए गए थे.

जिन मोबाइल हैंडसेट में ये नंबर इस्तेमाल होते थे, उन पर कोई दूसरा नंबर भी नहीं चल रहा था. लेकिन एक महीने बाद एक मोबाइल हैंडसेट में नया नंबर चल गया. जांच में यह नंबर मेघा के जीजा देवेंद्र का निकला. इस नंबर के संपर्क में 2॒ नंबर और आए. पुलिस समझ गई कि ये मेघा और प्राची के नंबर हैं. पुलिस ने इन नंबरों की लोकेशन पता कराई तो वह नोएडा की मिली. इस के बाद पुलिस ने तीनों ही नंबरों को सर्विलांस पर लगा दिया. बहुत जल्दी साफ हो गया कि ये नंबर शादी के नाम पर ठगी करने वाली तिगड़ी के हैं. मेघा कोई नया शिकार फांस कर नंबर बदल सकती थी, इसलिए उसे जल्दी गिरफ्तार करना जरूरी था.

इंसपेक्टर टी. सज्जी के नेतृत्व में एक पुलिस टीम नोएडा आ पहुंची और एसएसपी धर्मेंद्र यादव से मिली. एसएसपी ने एसपी (सिटी) दिनेश यादव को मदद करने के निर्देश दिए. उन्होंने फेज-2 थानाप्रभारी उम्मेद सिंह को केरल से आई पुलिस टीम के साथ लगा दिया.

पुलिस ने पहले सुरागसी की, उस के बाद सोसाइटी जा कर तीनों को गिरफ्तार कर लिया. मेघा के पकड़े जाने के बाद केरल के वे अन्य लोग भी सामने आ गए हैं, जिन्हें मेघा ने ठगा था. पुलिस ने मेघा, प्राची और देवेंद्र को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया था. कथा लिखे जाने तक किसी भी आरोपी की जमानत नहीं हो सकी थी. मेघा ने अपनी महत्वाकांक्षाओं को काबू में रखा होता और पढ़ाई का सही इस्तेमाल किया होता तो आज उसे जेल जाने की नौबत न आती.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

इंसान को लुटेरा बना सकती है शाहखर्ची

29 दिसंबर, 2016 की रात उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के थाना निगोहां के गांव मदाखेड़ा के देशी शराब के ठेके पर कुछ लोग बैठे शराब पी रहे थे. रात गहराई तो शराब पीने वाले वे लोग ठेके से थोड़ी दूरी पर जा कर खड़े हो गए. इस की वजह यह थी कि वे शराब के ठेके के पास चलने वाली कैंटीन में चोरी करना चाहते थे. वे अकसर यहां शराब पीने आते थे. इस से उन्हें पता था कि कैंटीन में पैसा रखा रहता है. दरअसल, नया साल आने वाला था, इसलिए उन लोगों को मौजमस्ती और शाहखर्ची के लिए पैसों की जरूरत थी. इस के लिए उन्हें कैंटीन में चोरी करने से बेहतर कोई दूसरा उपाय नजर नहीं आ रहा था. शराब का यह ठेका सिसेंडी निवासी राजेश कुमार जायसवाल की पत्नी सरिता जायसवाल के नाम था.

28 साल का मनीष कुमार अपने परिवार के गुजरबसर के लिए ठेके के पास कैंटीन चलाता था. उस की कैंटीन में शराब के साथ पीने के लिए पानी, कोल्डड्रिंक और नमकीन बिस्कुट वगैरह मिलता था. दिन भर जो बिक्री होती थी, वह मनीष के पास कैंटीन में ही रखी रहती थी. रायबरेली जिले के रहने वाले राजनारायण, कल्लू, चुन्नीलाल और चंदन अकसर यहां आ कर शराब पीते थे. पैसों के लिए ये इलाके में चोरी और लूटपाट करते थे. इन सभी को शान से रहने की आदत थी. इन्हें महंगी गाडि़यों में घूमने और ब्रांडेड कपड़े पहनने का शौक था.

रायबरेली जिले के थाना बछरावां के रहने वाले राजनारायण और चंदन बापबेटे थे. बेरोजगारी और महंगे शौक ने दोनों को एक साथ अपराध करने के लिए विवश कर दिया था. गिरोह बना कर ये इलाके में पत्तल और दोने बेचते थे.

इस के जरिए ये पता कर लेते थे कि किस घर या दुकान में रकम मिल सकती है. ये सभी ज्यादातर बड़ी दुकानों, शोरूम और दूसरी जगहों को ही निशाना बनाते थे. गांव और आसपास की बाजारों में अभी भी लोग बैंकों में पैसा रखने के बजाए घर पर ही रखते हैं. दिसंबर महीने में नोटबंदी के चलते बैंकों में पैसा जमा कराना मुश्किल हो गया था, इसलिए कैंटीन चलाने वाले मनीष ने भी बिक्री के पैसों को कैंटीन में ही रखा हुआ था.

यह बात लुटेरे गिरोह को पता चल गई थी, इसलिए 29 दिसंबर को शराब पीने के बाद इन लोगों ने वहां चोरी की योजना बना डाली थी. रात में मनीष सो गया तो ये सभी चोरी करने के लिए कैंटीन में घुसे. चोरी करते समय बदमाशों ने इस बात का पूरा खयाल रखा कि किसी तरह का कोई शोरशराबा न हो.

इस के बावजूद कैंटीन में रखा एक बरतन गिर गया, जिस की आवाज सुन कर मनीष जाग गया. उस के जागने से चोरी करने वाले परेशान हो उठे. उन्हें पकड़े जाने का भय सताने लगा. बचने के लिए उन्होंने मनीष के सिर पर लोहे का सरिया मार दिया, जिस से वह बेहोश हो कर गिर गया.

उस के सिर से खून बहने लगा. इस के बाद लुटेरे नकदी और सामान लूट कर भाग गए. सुबह शराब के ठेके का सेल्समैन पहुंचा तो उस ने मनीष को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचाया. मनीष के शरीर से खून ज्यादा बह चुका था, इसलिए उसे बचाया नहीं जा सका.

उस की मौत की सूचना थाना निगोहां पुलिस को दी गई तो पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ चोरी और हत्या का मुकदमा दर्ज कर मामले की जांच शुरू कर दी. इंसपेक्टर ओमवीर सिंह ने मामले की जानकारी लखनऊ की एसएसपी मंजिल सैनी को दी तो उन्होंने इस मामले की जांच में क्राइम ब्रांच को भी लगा दिया.

एसपी क्राइम डा. सुजय कुमार की अगुवाई में गठित टीम में से सर्विलांस सेल के प्रभारी अक्षय कुमार और इंसपेक्टर क्राइम उदय प्रताप सिंह ने मामले की छानबीन शुरू कर दी. पुलिस के लिए सब से मुश्किल काम यह था कि घटना का कोई चश्मदीद नहीं था. यह पूरी तरह से ब्लाइंड मर्डर था. ऐसे में पूरा दारोमदार सर्विलांस टीम पर था.

निगोहां पुलिस और क्राइम ब्रांच ने कुछ संदिग्ध लोगों को निशाने पर लिया. उन की जानकारी सर्विलांस टीम को दी. इस तरह कड़ी से कड़ी जुड़ने लगी. आखिर में पुलिस के हत्थे रायबरेली जिले का यह लुटेरा गिरोह लग गया. अब जरूरत थी घटना के बारे में उन से कबूल करवाना.

दरअसल, लुटेरे आपस में फोन पर बातें कर रहे थे, उसी से पुलिस को उन के द्वारा की गई वारदात का पता तो चल ही गया था, यह भी पता चल गया था कि वे निगोहां के टिकरा गांव के पास बने सामुदायिक मिलन केंद्र पर एकत्र होंगे.

यह जानकारी मिलते ही पुलिस टीम ने घेराबंदी कर के 6 जनवरी को इस गिरोह को पकड़ लिया था. पुलिस को इस गिरोह के पास से 35 हजार रुपए नकद और 10 मोबाइल फोन मिले थे. पुलिस ने गिरोह के सदस्यों से वह सरिया भी बरामद कर लिया था, जिस से मनीष की हत्या की गई थी.

पूछताछ में इस गिरोह ने बताया था कि निगोहां के ही बाबूखेड़ा गांव में रामू के घर 15 अक्तूबर को हुई चोरी भी इन्हीं लोगों ने की थी. दरअसल 29 दिसंबर की रात इस गिरोह ने सब से पहले पत्तेखेड़ा और मदाखेड़ा गांव में चोरी का प्रयास किया था, पर सफल नहीं हो सके थे.

ऐसे में ये शराब के ठेके पर पहुंचे, जहां कैंटीन में इन लोगों ने पैसा देखा तो लूट की योजना बना डाली. लूट के दौरान आवाज होने से ये लोग बचने के लिए मनीष को मारने पर मजबूर हो गए. पुलिस की इस सफलता के लिए एसएसपी मंजिल सैनी और एसपी क्राइम डा. संजय कुमार ने पुलिस टीम को बधाई दी है.

एसआई अक्षय कुमार ने बताया कि यह गिरोह पहले अपने टारगेट को चुनता था, उस के बाद चोरी करता था. उस दिन 2 जगहों पर असफल होने के बाद ये कैंटीन में चोरी करने को मजबूर हो गए. इन्हें किसी भी तरह से पैसा हासिल करना था, इसलिए ये समझ नहीं पाए कि कैंटीन में कोई सोया हुआ है. इन्हें लगता था कि कैंटीन में कोई होगा नहीं. इंसपेक्टर ओमवीर सिंह का कहना था कि इस गिरोह के पकड़े जाने के बाद इलाके में होने वाली चोरियां रोकी जा सकेंगी?

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