पूर्व कथा
दिल्ली की सड़कों पर ड्राइविंग करते हुए सात्वत की नजर चेष्टा पर पड़ती है, लेकिन जब तक वह डब्लू.एच.ओ. भवन के गेट के पास पहुंचता है तब तक वह ओझल हो जाती है. रिसेप्शनिष्ट से उस के बारे में पूछता है तो वह कोई भी सूचना देने से इनकार कर देती है. सात्वत वापस कार में आ कर बैठ जाता है और चेष्टा के बारे में सोचने लगता है.
उन दोनों की मुलाकात पटना में हुई थी. सात्वत निम्नवर्गीय परिवार का और चेष्टा उच्चवर्गीय परिवार की थी. दोनों के बीच घनिष्ठता बढ़ने लगती है. सात्वत की सोच थी कि चेष्टा से शादी कर दोनों खूब पैसा कमाएं.
चंद सालों में तरक्की करते हुए सात्वत अपना फ्लैट भी ले लेता है. वह चेष्टा से बात करने की कोशिश करता है पर उस के मातापिता सात्वत को उस से बात नहीं करने देते हैं. वह पटना जाता है तो चेष्टा की सहेली उस की शादी होने की बात उसे बताती है. सात्वत के मातापिता उसे शादी करने को कहते हैं तो वह खामोश रहता है, अचानक बिल्डिंग से निकलती चेष्टा को देख वर्तमान में लौट आता है.
चेष्टा का पीछा करते हुए सात्वत का एक्सीडेंट हो जाता है. तभी एक हाथ उस की मदद के लिए आगे आता है. वह हाथ चेष्टा का होता है. चेष्टा उसे अस्पताल चल कर ड्रेसिंग कराने को कहती है. ड्राइविंग करती चेष्टा और सात्वत के बीच खामोशी पसरी रहती है और इस खामोशी को सात्वत तोड़ता है उस की पिछली जिंदगी के बारे में जान कर,
और अब आगे…
चेष्टा ने उस की ओर तीखी निगाहों से देखा फिर लंबा निश्वास ले कर उस ने कार को आगे बढ़ा दिया. लालबत्ती पार कर के कार सफदरजंग अस्पताल पहुंची. लेकिन चेष्टा ने वहां कार नहीं रोकी. उस ने आगे बढ़ कर सफदरजंग एनक्लेव में एक दोमंजिला भवन के गेट के अंदर जा कर पोर्टिको में कार रोकी. सात्वत इस बीच सीट पर पीछे सिर टिकाए खामोश बैठा रहा. केवल बीचबीच में वह 1-2 पल के लिए तिरछी निगाहों से चेष्टा की ओर देख लेता था.
चेष्टा ने कार का दरवाजा खोल कर बाहर आते हुए कहा, ‘‘चलो,’’ तो सात्वत चौंक कर दरवाजा खोल कर बाहर निकला. चेष्टा ने सीढि़यां चढ़ते हुए आने का इशारा किया. दोनों पहली मंजिल में बरामदे के दाईं ओर एक आफिस के बाहर पहुंचे. चपरासी ने झट से दरवाजा खोला और चेष्टा के पीछे सात्वत अंदर गया. थोड़ा आश्चर्यचकित सा, हलका सा लंगड़ाता हुआ.
छोटा सा आफिस का कमरा था. एक मेज, कई कुरसियां, स्टूल, अलमारी, फाइलिंग कैबिनेट, एक टेलीफोन और एक कंप्यूटर आदि.
चेष्टा ने अपनी कुरसी पर बैठते हुए इशारा किया तो सात्वत भी सामने पड़ी दूसरी कुरसी खींच कर बैठ गया. चेष्टा ने जाते वक्त चपरासी से कहा कि डे्रसिंग का सामान और 2 कप चाय भेज देना. सात्वत ने सोचा कि चेष्टा यहां दिल्ली में इस आफिस में क्या कर रही है?
एक औरत तुरंत डे्रसिंग का सामान टे्र में ले कर आई. चेष्टा के इशारा करने पर उस ने सात्वत का जख्म साफ कर के दवा लगा कर पट्टी बांध दी. सात्वत ने लंबी सांस ले कर कहा, ‘‘थैंक यू.’’
तब तक चाय आ गई और दोनों खामोश चाय पीने लगे, अपनेअपने खयालों में घिरे हुए.
सात्वत ने चेष्टा के सिर की ओर देखते हुए चौंक कर पूछा, ‘‘तुम्हारे हसबैंड?’’
चेष्टा ने सात्वत की ओर व्यथित नजरों से देखा, फिर अपने सूने सीमंत पर हाथ फेरती हुए, मुसकराने की नाकाम कोशिश करते हुए मंद स्वर में बोली, ‘‘मेरे पति जिंदा हैं, यानी जब तक जानती हूं तब तक थे, अब पता नहीं.’’
‘‘डाइवोर्स?’’
चेष्टा ने नकारात्मक सिर हिलाया और बिना जवाब दिए चाय की प्याली में कुछ तलाशती हुई सी खामोश बैठी रही.
‘‘सौरी, आई एम सौरी,’’ सात्वत को लगा कि उसे यह व्यक्तिगत प्रश्न नहीं पूछना चाहिए था.
चाय खत्म हो गई तो सात्वत ने बातों का सूत्र पुन: जोड़ने के लिए पूछा, ‘‘तुम पूना से यहां कब आईं? रहती कहां हो? अपना पता और टेलीफोन नंबर दे दो.’’
चेष्टा एक पल उस की ओर देख कर फिर नीचे देखने लगी, मानो पलकों के कोरों पर आए आंसुओं को वापस ढकेलने की कोशिश कर रही हो. फिर अचानक उस ने हंस कर कहा, ‘‘मेरी शादी के बारे में तो तुम्हें मालूम ही होगा?’’
‘‘हां, मैं पटना गया था मिलने. तुम्हारी ही एक सहेली ने बताया कि शादी हो गई.’’
‘‘मालूम है,’’ चेष्टा बोली, ‘‘शायद तुम्हारे फोन कौल्स ने ही ममीडैडी को मेरी शादी करने के लिए फोर्स किया. उन्हें हम दोनों के प्रेम के बारे में मालूम हो गया था. शायद वे नहीं चाहते थे…कह नहीं सकती,’’ चेष्टा के चेहरे पर गहरी पीड़ा और वेदना की छाया उभरी. उस ने सात्वत के मन में उठते प्रश्नों को जान लिया और आगे बोली, ‘‘इनकार करना बहुत मुश्किल होता है. खासकर उन मांबाप की बात जिन्होंने जिंदगी में कुछ भी इनकार नहीं किया, कभी डांटा तक नहीं, हमेशा पूरी तरह से सपोर्ट किया. केवल एक के अलावा. वे तो मन में अच्छा ही चाहते होंगे. लेकिन हमेशा अच्छा नहीं होता. हजारों शादियां ऐसे ही होती हैं.’’
चेष्टा चुप हो गई मानो उस ने कुछ गलत कह दिया हो. सात्वत भी खामोश रहा क्योंकि उस के पास शब्द नहीं थे. कुछ क्षण गहरी खामोशी छाई रही. चेष्टा ने अचानक सात्वत की ओर देखा और बोली, ‘‘लंच का समय हो गया है,’’ मानो वह चेतना पर बोझ बनती इस खामोशी को दूर हटाना चाहती हो.
सात्वत चौंका फिर उस ने कहा, ‘‘नहीं, मैं लंच नहीं करता. हैवी ब्रेकफास्ट कर के निकलता हूं. दिन में कभीकभार कुछ स्नैक्स ले लेता हूं.’’
चेष्टा ने कौल बेल बजाई और चपरासी के अंदर आते ही उस से कहा, ‘‘2 कप चाय और कुछ बिस्कुट ले आओ.’’
दोनों थोड़ा सहज हुए. चेष्टा ने सात्वत की ओर देख कर उस की आंखों में उभरे प्रश्न को पढ़ लिया और बोली, ‘‘डैडी ने तुरंत रिश्ता तय कर दिया और 15 दिन बाद शादी कर दी.
‘‘मैं पूना आ गई. पति एक फर्म में एग्जीक्यूटिव थे. ससुर डी.जी. पुलिस थे. अब रिटायर्ड हैं. समाज की नजरों में तो सबकुछ परफेक्ट था. शिकायत की कोई वजह नहीं थी. पति ऊंची पोस्ट पर, अच्छी तनख्वाह. मैं शादी के 3 महीने बाद ही गर्भवती हो गई. डिलिवरी हुई तो बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ.’’
चेष्टा चुप हो गई और चाय पीने लगी. सात्वत व्यथित, अवाक् उस की ओर देखता रहा. फिर चेष्टा के इशारा करने पर वह बिस्कुट और चाय पीने लगा.
चेष्टा ने आगे कहा, ‘‘1 साल के बाद मैं दोबारा गर्भवती हो गई,’’ वह कुछ देर रुकी फिर फुसफुसा कर बोली, ‘‘वह भी मरा हुआ पैदा हुआ.’’
सात्वत के अंतर में पीड़ा का ऐसा वेग उभरा कि उस की जबान जड़ हो गई, सांत्वना के शब्द भी नहीं निकले और वह चुपचाप नीचे देखता रहा. चेष्टा ने सहज स्वर में आगे कहा, ‘‘तब डाक्टर ने ब्लड टेस्ट किया…इमैजिन, गर्भावस्था में नहीं किया और मैं एच.आई.वी. पाजिटिव थी.’’
‘‘ह्वाट?’’ सात्वत ने वेदना से अभिभूत हो कर चेष्टा की ओर देखा. उस के बदन में कंपकंपी सी दौड़ गई.
चेष्टा धीरे से मुसकराई, मानो वह सात्वत को ढाढ़स दे रही हो. वह बोली, ‘‘एड्स नहीं, केवल एच.आई.वी. पाजिटिव. मैं ने जिंदगी में कभी कोई इंजेक्शन नहीं लिया था. कभी ब्लड ट्रांसफ्यूजन नहीं लिया था, कभी किसी पुरुष के साथ संबंध बनाने का कोई प्रश्न ही नहीं था. फिर शादी के बाद एच.आई.वी. पाजिटिव कैसे हो गई? समझ सकते हो?
‘‘उस डाक्टर को पहली बार गर्भवती होने पर टेस्ट कराना चाहिए था. मेरे पति का भी ब्लड टेस्ट कराना चाहिए था…उस ने टेस्ट की रिपोर्ट मेरे पति, सासससुर को दे दी और उन लोगों ने मुझे घर से निकाल दिया, बिना कुछ पूछे, बिना कुछ जाने, बिना अपने बेटे के बारे में कुछ पता लगाए.’’
‘‘तुम ने केस नहीं किया?’’
‘‘केस…मुकदमा?’’ वह हंसी, जिस में केवल असीम व्यथा और निराशा की झलक और ध्वनि थी, ‘‘उस समय मुझे कुछ नहीं सूझा. मैं गहरे अंधकार में चली गई. बस, एक ही बात मन में आ रही थी, आत्महत्या…लेकिन उस समय मेरे मम्मीडैडी ने बहुत सहारा दिया. वे मुझे अपने साथ पटना ले आए. मुझे उस गहरे अंधकार से निकलने में महीनों लग गए. मैं धीरेधीरे सहारा ले कर, झिझकते, रुकते इस राह पर चल पड़ी. मैं ने एक एन.जी.ओ. ज्वाइन किया, डब्लू.एच.ओ. का सपोर्ट है. मैं ने एच.आई.वी. एड्स की टे्रनिंग ली. काउंसलर बनी. पूरे देश में घूमती हूं, टे्रनिंग और काउंसलिंग के लिए. समय कट जाता है, अब मन लग गया है. अब लगता है कि इस जीवन में कोई लक्ष्य है, कोई काम है.’’
चेष्टा अचानक चुप हो गई. सात्वत नीचे की ओर देखता हुआ चुपचाप बैठा रहा. उस के बदन में हलका कंपन हो रहा था. उसे लग रहा था मानो सांस लेने में कठिनाई हो रही है और गले से आवाज नहीं निकल रही है. चेष्टा की आवाज सुन कर उस ने चौंक कर उस की ओर देखा.
‘‘उस ने दूसरी शादी कर ली. न जाने क्या हुआ होगा. मैं ने आंख मूंद कर पेपर्स पर हस्ताक्षर कर दिए. मुझे कुछ भी नहीं चाहिए था, केवल छुटकारा, घिन लगती थी कुछ भी संपर्क रखने में. धीरेधीरे मन लग गया. यहां लोग बहुत सपोर्ट करते हैं. पूरे देश में घूम कर टे्रनिंग और काउंसलिंग करती हूं. यहां रेगुलर काम करती हूं. यह संस्था भी एन.जी.ओ. चलाती है. सरकार और डब्लू.एच.ओ. का सपोर्ट है. यहां एड्स से मरे मांबाप के अनाथ बच्चे रहते हैं. एच.आई.वी. निगेटिव और पाजिटिव दोनों बच्चे. जो पाजिटिव हैं उन के ट्रीटमेंट और रिहैबिलिटेशन का भी प्रोग्राम है. जो निगेटिव हैं, तकदीर वाले, वे कम से कम पहले की तरह फुटपाथ पर तो नहीं हैं.’’
चेष्टा चुप हो गई और खिड़की से बाहर देखने लगी. सात्वत ने उस की ओर देखा तो वह मुसकराई. सात्वत को लगा मानो धूमिल होते कमरे में अचानक रोशनी फैल गई है.
‘‘जानते हो सात्वत, जब हम लोगों ने पहले यहां काम शुरू किया था तो एक हफ्ते के बाद ही सब महल्ले वालों ने हमें घेर लिया और हल्ला करने लगे कि इन बच्चों को यहां से हटाओ. हमारे बच्चों में भी एच.आई.वी. एड्स फैल जाएगा. क्या तुम यह कल्पना कर सकते हो कि दिल्ली में ये सब पढ़ेलिखे, नौकरीपेशा वाले लोग हैं. हमें पुलिस की मदद लेनी पड़ी. फिर हम लोगों ने फेज वाइज सभी महल्ले वालों को बुला कर सेमिनार किया, उन्हें टे्रनिंग दी, लिटरेचर दिया, एड्स के बारे में पूरी तरह से बतलाया. तब वे सहमत हुए कि इन बच्चों से उन के बच्चों को कोई भी खतरा नहीं है. अब तो कुछ लोग मदद भी करने लगे हैं.’’
सात्वत ने अपनी आंखों को मल कर उन पर छाए अंधेरे को कुछ दूर करने की कोशिश की और खिड़की के बाहर देखा, ‘‘यहां स्कूल है? बच्चे पढ़ते हैं? कोई शोर नहीं है.’’
चेष्टा मुसकराई, ‘‘सभी बच्चे क्लास में हैं. इसलिए दिखाई नहीं दिए,’’ फिर उस ने घड़ी की ओर देखा, ‘‘कुछ देर में क्लास खत्म हो जाएगी, तब देखना.’’
‘‘अभी कैसी हो? क्या कोई दवा…’’
‘‘नहीं, अभी तक मेडिसिन, एंटी रेट्रोवायरल थेरैपी की जरूरत नहीं पड़ी. हर 6 महीने पर ब्लड टेस्ट कराना पड़ता है. मेरा सी.डी. फोर काउंट 300-400 के ऊपर ही रहता है. हां, कुछ एहतियात लेने पड़ते हैं. ज्यादा धूप, ज्यादा ठंड में नहीं जा सकती. बरसात में पानी से भीगने से बचना पड़ता है. केयर करनी पड़ती है कि कोई इन्फेक्शन न लगे.’’
चेष्टा चुप हो गई मानो थक गई हो. सात्वत भी सुस्त, थका, आहत, आक्रांत, खिड़की के बाहर देखता रहा. फिर उस ने फुसफुसा कर कहा, ‘‘गलती हो गई… बहुत बड़ी भूल हो गई.’’
चेष्टा ने दर्दभरी सर्द आवाज में कहा, ‘‘भूल हो गई मुझ से. इनसान की एक भूल उस की पूरी जिंदगी को बरबाद कर देती है और कभीकभी तो कई जिंदगियों को बरबाद कर देती है, लेकिन अब मुझे एक ही बात का बहुत अफसोस होता है. अगर पहली पे्रगनेंसी में मेरा समय पर टेस्ट हो जाता तो प्रौपर केयर और इलाज से मुझे एक बच्चा लड़का या लड़की स्वस्थ पैदा होता और फिर मैं उस के सहारे अपनी जिंदगी काट लेती. अब दिन भर काम करने के बाद घर लौटती हूं तो घर सूनासूना लगता है. एक दीवार घड़ी के अलावा मेरा कोई इंतजार नहीं करता.’’
कमरे से उजाला चुपचाप निकल गया था पर खिड़की के बाहर अभी भी हलकी रोशनी थी. चेष्टा सहज होती हुई सामान्य स्वर में बोली, ‘‘जानते हो, सात्वत, ऐसा बहुत हो रहा है. आजकल लड़कों की देर से शादी होती है, उन का तरहतरह का कांटेक्ट होता है. कई एच.आई.वी. पौजिटिव हो जाते हैं. शादी होती है, अपनी पत्नी को इन्फेक्ट करते हैं और अकसर ब्लेम पत्नी पर लगता है. गरीबों में तो और भी है, उन्हें जानकारी भी नहीं है. वे अपने गांव से बाहर बहुत दूर शहर में जा कर नौकरी करते हैं. सालसाल भर घर नहीं आते और जब आते हैं तो एच.आई.वी. के साथ आते हैं और पत्नी को प्रभावित करते हैं.’’
चेष्टा ने अचानक चुप हो कर सात्वत की ओर देखा, ‘‘आई एम सौरी, मैं ही बोलती जा रही हूं. तुम कैसे हो? क्या कर रहे हो? शादी कब हुई? बच्चे…’’
सात्वत उस की बात नहीं सुन पा रहा था. ध्वनि कानों से टकरा तो रही थी पर शब्द नहीं बन रहे थे. दिमाग में शून्य सा जम गया था. उस ने चौंक कर बाहर देखा…बच्चों का हुजूम मैदान में निकल रहा था. उन का समवेत स्वर उमड़ कर अंदर आया, उसे चेतन करता हुआ.
सात्वत ने सिर को झटका दिया, मानो विचारों के घने जाल को तोड़ कर अपनी बंद चेतना को आजाद कर रहा हो. चेष्टा का अंतिम वाक्य उस के मानस पटल पर दस्तक देता रहा. उस ने चेष्टा की ओर देखा, ‘‘शादी? नहीं, कभी सोचा नहीं…केवल एक बार सोचा था…भूल हो गई. उस के बाद किसी से भी…कोई इच्छा नहीं रही.’’
चेष्टा की आंखों में आश्चर्य के साथ गहरी वेदना झलकी, ‘‘अभी तक शादी नहीं की?’’
सात्वत ने कहा, ‘‘नहीं की…तुम… तुम मुझ से शादी करोगी?’’
चेष्टा के पोरपोर झंकृत हो उठे. एक लहर सी पूरे बदन में फैल गई. संवेदनाओं और भावनाओं के घने बादल उमड़ कर आंखों से बह निकले. अंतर से एक आह उभरी. उस ने कंपित हो कर कहा, ‘‘मेरी जिंदगी तो बरबाद हो ही चुकी है. अब तुम्हारी जिंदगी भी बरबाद हो…नहीं.’’
सात्वत ने आगे झुक कर कहा, ‘‘तुम्हारे मना करने पर मेरी जिंदगी अब कभी आबाद नहीं होगी, यह तो तुम जानती हो.’’
चेष्टा ने बुझे स्वर में कहा, ‘‘जानते हो क्या कह रहे हो? मुझे कोई बच्चा नहीं हो सकता.’’
सात्वत ने चेष्टा की ओर सजग दृष्टि से देखा, ‘‘जानता हूं…हम बच्चा गोद लेंगे. वरना मुझे भी एक दीवार की घड़ी के सहारे ही जिंदगी गुजारनी होगी. हां, तुम्हारा साथ मेरी जिंदगी में खुशी ला सकता है.’’
चेष्टा देर तक खामोश रही तो सात्वत उठ कर खड़ा हो गया. उस ने कहा, ‘‘अब तो जा रहा हूं. कल आऊंगा, इसी समय तुम्हारा जवाब सुनने.’’