Valentine’s Special- कड़ी: भाग 3

अपूर्वा को यह संभव नहीं लगता क्योंकि उसे और आलोक को अभी तक तो एकदूसरे से कोई ऐसा लगाव है नहीं कि वह ग्रीनकार्ड वापस कर के भारत आ जाए. और अब जब उसे विवेक पसंद आ गया है तो वह कोशिश भी नहीं करेगी. हमें जबरदस्ती ही करनी पड़ेगी दोनों औरतों के साथ.’’

‘‘देखिए धर साहब, अपनी इज्जत तो सभी को प्यारी होती है खासकर अभिजात्य वर्ग की महिलाओं को अपने सोशल सर्किल में,’’ निखिल ने नम्रता से कहा, ‘‘जबरदस्ती करने से तो वे बुरी तरह बिलबिला जाएंगी और उन के ताल्लुकात अपूर्वा और विवेक के साथ हमेशा के लिए बिगड़ सकते हैं.’’

‘‘अपूर्वा और विवेक से ही नहीं, मेरे और केशव नारायण से भी बिगड़ेंगे लेकिन इन सब फालतू बातों से डर कर हम बच्चों की जिंदगी तो खराब नहीं कर सकते न?’’

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‘‘कुछ खराब करने की जरूरत नहीं है, धर साहब. धैर्य और चतुराई से बात बन सकती है,’’ निखिल ने कहा, ‘‘मैं यह प्रतियोगिता जीतने की खुशी के बहाने आप को सपरिवार क्लब में डिनर पर आमंत्रित करूंगा और अपनी ससुराल वालों को भी. फिर देखिए मैं क्या करता हूं.’’

जस्टिस धर ने अविश्वास से उस की ओर देखा. निखिल ने धीरेधीरे उन्हें अपनी योजना बताई. जस्टिस धर ने मुसकरा कर उस का हाथ दबा दिया.

निखिल का निमंत्रण सुकन्या ने खुशी से स्वीकार कर लिया. क्लब में बैठने की व्यवस्था देख कर उस ने निखिल से पूछा कि कितने लोगों को बुलाया है?

‘‘केवल जस्टिस धरणीधर के परिवार को?’’

‘‘उन्हें ही क्यों?’’ सुकन्या ने चौंक कर पूछा.

‘‘क्योंकि जस्टिस धर ने मैच जीतने की खुशी में मुझ से दावत मांगी थी. सो, बस, उन्हें बुला लिया और लोगों को बगैर मांगे छोटी सी बात के लिए दावत देना अच्छा नहीं लगता न,’’ निखिल ने समझाने के स्वर में कहा.

तभी धर परिवार आ गया. विवेक और अपूर्वा बड़ी बेतकल्लुफी से एकदूसरे से मिले और फिर बराबर की कुरसियों पर बैठ गए, जस्टिस धर ने आश्चर्य व्यक्त किया, ‘‘तुम एकदूसरे को जानते हो?’’

‘‘जी पापा, बहुत अच्छी तरह से,’’ अपूर्वा ने कहा, ‘‘हम दोनों रोज सुबह टैनिस खेलते हैं.’’

‘‘और तकरीबन 24 घंटे बराबर की कुरसियों पर बैठे रहे हैं अमेरिका से लौटते हुए,’’ विवेक ने कहा.

‘‘शीलाजी, आप ने शादी से पहले कुछ समय अपने साथ गुजारने को बेटी को दिल्ली बुला ही लिया?’’ सुकन्या ने पूछा.

‘‘नहीं आंटी, मैं खुद ही आई हूं,’’ अपूर्वा बोली, ‘‘मम्मी तो अभी भी वापस जाने को कह रही हैं लेकिन मैं नहीं जाने वाली. मुझे अमेरिका पसंद ही नहीं है.’’

‘‘लेकिन तुम्हारी सगाई तो अमेरिका में हो चुकी है,’’ सुकन्या बोली.

‘‘सगाईवगाई कुछ नहीं हुई है,’’ जस्टिस धर बोले, ‘‘बस, हम ने लड़का पसंद किया और उस के मांबाप ने हमारी लड़की. लड़का फिलहाल किसी प्रोजैक्ट पर काम कर रहा है और जब तक प्रोजैक्ट पूरा न हो जाए वह सगाईशादी के चक्कर में पड़ कर ध्यान बंटाना नहीं चाहता. एक तरह से अच्छा ही है क्योंकि उस के प्रोजैक्ट के पूरे होने से पहले ही मेरी बेटी को एहसास हो गया है कि वह कितनी भी कोशिश कर ले उसे अमेरिका पसंद नहीं आ सकता.’’

‘‘विवेक की तरह,’’ केशव नारायण ने कहा, ‘‘इस के मामा ने इसे वहां व्यवस्थित करने में बहुत मदद की थी, नौकरी भी अच्छी मिल गई थी लेकिन जैसे ही यहां अच्छा औफर मिला, यह वापस चला आया.’’

‘‘सुव्यवस्थित होना या अच्छी नौकरी मिलना ही सबकुछ नहीं होता, अंकल,’’ अपूर्वा बोली, ‘‘जिंदगी में सकून या आत्मतुष्टि भी बहुत जरूरी है जो वहां नहीं मिल सकती.’’

‘‘यह तो बिलकुल विवेक की भाषा बोल रही है,’’ निकिता ने कहा.

‘‘भाषा चाहे मेरे वाली हो, विचार इस के अपने हैं,’’ विवेक बोला.

‘‘यानी तुम दोनों हमखयाल हो?’’ निखिल ने पूछा.

‘‘जी, जीजाजी, हमारे कई शौक और अन्य कई विषयों पर एक से विचार हैं.’’

‘‘यह तो बड़ी अच्छी बात है,’’ निखिल शीला और सुकन्या की ओर मुड़ा, ‘‘आप इन दोनों की शादी क्यों नहीं कर देतीं.’’

‘‘क्या बच्चों वाली बातें कर रहे हो निखिल?’’ सुकन्या ने चिढ़े स्वर में कहा, ‘‘ब्याहशादी में बहुतकुछ देखा जाता है. क्यों शीलाजी?’’

‘‘आप ठीक कहती हैं, सिर्फ मिजाज का मिलना ही काफी नहीं होता,’’ शीला ने हां में हां मिलाई.

‘‘और क्या देखा जाता है?’’ निखिल ने चिढ़े स्वर में पूछा. ‘‘कुल गोत्र, पारिवारिक स्तर, और योग्यता वगैरा, वे तो दोनों के ही खुली किताब की तरह सामने हैं बगैर किसी खामी के…’’

‘‘फिर भी यह रिश्ता नहीं हो सकता,’’ सुकन्या और शीला एकसाथ बोलीं.

‘‘क्योंकि इस पर वरवधू की माताओं के महिला क्लब के सदस्यों की स्वीकृति की मुहर नहीं लगी है,’’ जस्टिस धर ने कहा.

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‘‘यह तो आप ने बिलकुल सही फरमाया, जज साहब,’’ केशव नारायण ठहाका लगा कर हंसे, ‘‘वही मुहर तो सुकन्या और शीलाजी की मानप्रतिष्ठा का प्रतीक है.’’ दोनों महिलाओं ने आग्नेय नेत्रों से अपनेअपने पतियों को देखा, इस से पहले कि वे कुछ बोलतीं, निखिल बोल पड़ा, ‘‘उन की मुहर मैं लगवा दूंगा, उन्हें एक बढि़या सी दावत दे कर जिस में विवेक और अपूर्वा सब के पांव छू कर आशीर्वाद के रूप में स्वीकृति प्राप्त कर लेंगे.’’

‘‘आइडिया तो बहुत अच्छा है, निखिल, लेकिन कन्या और वर की माताओं की समस्या का हल नहीं है,’’ जस्टिस धर ने उसांस ले कर कहा, ‘‘असल में शीला ने सब को बताया हुआ है कि उस का होने वाला दामाद अमेरिका में रहता है.’’

‘‘यह बात तो है,’’ निखिल कुछ सोचते हुए बोला, ‘‘आप ने सब को लड़के का नाम वगैरा बताया है आंटी?’’

‘‘नहीं, बस इतना ही बताया था कि अमेरिका में अनिल के पड़ोस में रहता है. हमें अच्छा लगा और हम ने अपूर्वा के लिए पसंद कर लिया.’’

‘‘उस के मांबाप के बारे में बताया था?’’

‘‘कुछ नहीं. किसी ने पूछा भी नहीं.’’

‘‘तो फिर तो समस्या हल हो गई, साले साहब भी तो अमेरिका से ही लौटे हैं, इन्हें अनिल का पड़ोसी बना दीजिए न. आप ने तो विवेक का अमेरिका का एड्रैस अपनी सहेलियों को नहीं दिया हुआ न, मां?’’ निखिल ने सुकन्या से पूछा.

‘‘हमारी सहेलियों को यह सब पूछने की फुरसत नहीं है, निखिल. लेकिन वे इतनी बेवकूफ भी नहीं हैं कि तुम्हारी बचकानी बातें सुन कर यह मान लें कि विवेक वही लड़का है जो शीलाजी अमेरिका में पसंद कर के आई थीं,’’ सुकन्या ने झल्ला कर कहा, ‘‘वे मुझ से पूछेंगी नहीं कि मैं ने यह, बात उन सब को क्यों नहीं बताई?’’

‘‘क्योंकि आप नहीं चाहती थीं कि जब तक सगाईशादी की तारीख पक्की न हो, वे सब आप दोनों को समधिन बना कर क्लब के अनौपचारिक माहौल और आप के रिश्तों को खराब करें,’’ निखिल बोला.

‘‘यह बात तो निखिलजी ठीक कह रहे हैं, सुकन्या और पिछली मीटिंग में ही किसी के पूछने पर कि आप ने विवेक के लिए कोई लड़की पसंद की या नहीं. आप ने कहा था कि लड़की तो पसंद है लेकिन जिस से शादी करनी है उसे तो फुरसत मिले. विवेक आजकल बहुत व्यस्त है,’’ शीला ने कुछ सोचते हुए कहा.

‘‘तो अगली मीटिंग में कह दीजिएगा कि विवेक को फुरसत मिल गई है और फलां तारीख को उस की सगाई है. अगली मीटिंग से पहले तारीख तय कर लीजिए,’’ निखिल ने कहा.

‘‘वह तो हमें अभी तय कर लेनी चाहिए, क्यों धर साहब?’’ केशव नारायण ने पूछा.

‘‘जी हां, इस से पहले कि कोई और शंका उठे.’’

‘‘तो ठीक है आप लोग तारीख तय करिए, हम लोग पीने के लिए कोई बढि़या चीज ले कर आते हैं,’’ निखिल उठ खड़ा हुआ. ‘‘चलो विवेक, अपूर्वा और निक्की तुम भी आ जाओ.’’

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‘‘कमाल कर दिया जीजाजी आप ने भी,’’ विवेक ने कुछ दूर जाने के बाद कहा. ‘‘समझ नहीं पा रहा आप को जादूगर कहूं या जीनियस?’’

‘‘जीनियसवीनियस कुछ नहीं, साले साहब,’’ निखिल मुसकराया, ‘‘मैं तो महज एक अदना सी कड़ी हूं आप दोनों का रिश्ता जोड़ने वाली.’’

‘‘अदना नहीं, अनमोल कड़ी, जीजाजी,’’ अपूर्वा विह्वल स्वर में बोली.

Valentine’s Special- कड़ी: भाग 2

घर जाने के बाद विवेक का फोन आया कि मां बहुत बिगड़ीं कि अगर वह कह कर भी लड़की देखने नहीं गईं तो उन की क्या इज्जत रह जाएगी. तो मैं ने कह दिया कि मेरी इज्जत का क्या होगा जब मैं वादा तोड़ कर शादी करूंगा? पापा ने मेरा साथ दिया कि मां ने तो सिर्फ प्रस्ताव रखा है और मैं वादा कर चुका हूं. सो, मां गुड़गांव वालों को फिलहाल तो लड़के की व्यस्तता का बहाना बना कर टाल दें.

जैसा निकिता का खयाल था, अगली सुबह मां का फोन आया कि वह किसी तरह भी समय निकाल कर उन से मिलने आए. निकिता तो इस इंतजार में थी ही, वह तुरंत मां के घर पहुंच गई. मां ने उसे उत्तेजित स्वर में सब बताया, गुड़गांव वाली डाक्टर लड़की की तारीफ की और कहा, ‘‘महज इसलिए कि अमेरिका के रहनसहन पर विवेक और अपूर्वा के विचार मिलते हैं और वह उसी से शादी करना चाहता है, मैं उस लड़की को अपने घर की बहू नहीं बना सकती.’’

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‘‘पापा क्या कहते हैं?’’

‘‘उन के लिए तो जस्टिस धरणीधर के घर बेटे की बरात ले कर जाना बहुत गर्व और खुशी की बात है,’’ मां ने चिढ़े स्वर में कहा.

‘‘तो आप किस खुशी में बापबेटे की खुशी में रुकावट डाल रही हैं, मां?’’

‘‘क्योंकि सब सहेलियों में मजाक तो मेरा ही बनेगा कि सुकन्या को बेटे से बड़ी लड़की ही मिली अपनी बहू बनाने को.’’

‘‘आप ने अपनी सहेलियों को विवेक की उम्र बताई है?’’

‘‘नहीं. उस का तो कभी जिक्र ही नहीं आया.’’

‘‘तो फिर उन्हें कैसे पता चलेगा कि अपूर्वा विवेक से बड़ी है क्योंकि लगती तो छोटी है?’’

‘‘शीलाजी कहती थीं कि लड़का उन के बेटे का पड़ोसी है. सो, शादी तय होने के बाद अकसर ही वह उन के घर आता होगा और लड़की उस के घर जाती होगी. क्या गारंटी है कि लड़की कुंआरी है?’’

‘‘अमेरिका से विक्की जो पिकनिक वगैरा की फोटो भेजा करता था उस में उस के साथ कितनी लड़कियां होती थीं? आप क्या अपने बेटे के कुंआरे होने की गारंटी ले सकती हैं?’’

सुकन्या के चुप रहने से निकिता की हिम्मत बढ़ी.

‘‘गुड़गांव वाली लड़की के बायोडाटा के अनुसार, वह भी किसी विशेष ट्रेनिंग के लिए 2 वषों के लिए अमेरिका गई थी. सो, गारंटी तो उस के बारे में भी नहीं ली जा सकती. अपूर्वा को नापसंद करने के लिए आप को कोई और वजह तलाश करनी होगी, मां.’’

‘‘यही वजह क्या काफी नहीं है कि वह विवेक से बड़ी है और मांबाप का तय किया रिश्ता नकार रही है?’’

तभी निकिता का मोबाइल बजा. निखिल का फोन था पूछने को कि मां निकिता को समझा सकी या नहीं और सब सुनने पर बोला कि यह क्लब की सहेलियों वाली समस्या तो शायद अपूर्वा की मां के साथ भी होगी. सो, बेहतर रहेगा कि दोनों सहेलियों को एकसाथ ही समझाया जाए.

‘‘मगर यह होगा कैसे?’’ निकिता ने पूछा.

‘‘साथ बैठ कर सोचेंगे. फिलहाल तुम मां से ज्यादा मत उलझो और किसी बहाने से घर वापस चली जाओ. मैं विवेक को शाम को वहीं बुला लेता हूं,’’ कह कर निखिल ने फोन रख दिया.

जैसा कि अपेक्षित था, सुकन्या ने पूछा. ‘‘किस का फोन था?’’

‘‘निखिल का पूछने को कि शाम को कुछ लोगों को डिनर पर बुला लें?’’

‘‘तो तू ने क्या कहा?’’

‘‘यही कि जरूर बुलाएं. मैं जाते हुए बाजार से सामान ले जाऊंगी और निखिल के लौटने से पहले सब तैयारी कर दूंगी.’’

‘‘और मैं ने जो तुझे अपनी समस्या सुलझाने व बापबेटे को समझाने को बुलाया है, उस का क्या होगा?’’  सुकन्या ने चिढ़े स्वर में पूछा.

‘‘आप की तो कोई समस्या ही नहीं है, मां. आप सीधी सी बात को उलझा रही हैं और आप के एतराज से जब मैं खुद ही सहमत नहीं हूं तो पापा या विक्की को क्या समझाऊंगी?’’ कह कर निकिता उठ खड़ी हुई. सुकन्या ने भी उसे नहीं रोका.

शाम को निखिल व विवेक इकट्ठे ही घर पहुंचे.

‘‘अपूर्वा को सब बात बता कर पूछता हूं कि क्या उस की मां के साथ भी यह समस्या आएगी,’’ विवेक ने निखिल की बात सुनने के बाद कहा और बरामदे में जा कर अपूर्वा से मोबाइल पर बात करने लगा.

‘‘आप का कहना सही है, जीजाजी, अपूर्वा कहती है कि घर में सिर्फ मां ही को उस का रिश्ता तोड़ने पर एतराज है वह भी इसलिए कि लोग, खासकर उन की महिला क्लब की सहेलियां, क्या कहेंगी. रिश्ता तो खैर टूट ही रहा है क्योंकि जस्टिस धर ने अपने बेटे को आलोक से बात करने को कह दिया है. लेकिन मेरे साथ रिश्ता जोड़ने में भी उस की मां जरूर अडं़गा लगाएंगी, यह तो पक्का है,’’ विवेक ने कहा.

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‘‘आलोक से रिश्ता खत्म हो जाने दो, फिर तुम्हारे से जोड़ने की प्रक्रिया शुरू करेंगे. मां के कुछ कहने पर यही कहो कि कुछ दिनों तक सिवा अपने काम के, तुम किसी और विषय पर सोचना नहीं चाहते. अपूर्वा को आश्वासन दे दो कि उस की शादी तुम्हीं से होगी,’’ निखिल ने कहा.

‘‘मगर कैसे? 2 जिद्दी औरतों को मनाना आसान नहीं है, निखिल,’’ निकिता ने कहा.

‘‘पापा को तो बीच में डालना नहीं चाहता क्योंकि तब मां उन से और अपूर्वा दोनों से चिढ़ जाएंगी,’’ निखिल कुछ सोचते हुए बोला. ‘‘पापा से इजाजत ले कर मैं ही जस्टिस धरणीधर से बात करूंगा.’’

‘‘मगर पापा या जस्टिस धर की ओर से तो कोई समस्या है ही नहीं,’’ विवेक ने कहा.

‘‘मगर जिन्हें समस्या है, उन दोनों को एकसाथ कैसे धाराशायी किया जा सके, यह तो उन से बात कर के ही तय किया जा सकता है. फिक्र मत करो साले साहब, मैं उसी काम की जिम्मेदारी लेता हूं जिसे पूरा कर सकूं,’’ निखिल ने बड़े इत्मीनान से कहा, ‘‘जस्टिस धर के साथ खेलने का मौका तो नहीं मिला लेकिन बिलियर्ड्स रूम में अकसर मुलाकात हो जाती है. सो, दुआसलाम है. उसी का फायदा उठा कर उन से इस विषय में बात करूंगा.’’

कुछ दिनों के बाद क्लब में आयोजित एक बिलियर्ड प्रतियोगिता जीतने पर जस्टिस धर ने उस के खेल की तारीफ की, तो निखिल ने उन्हें अपने साथ कौफी पीने के लिए कहा और उस दौरान उन्हें विवेक व अपूर्वा के बारे में बताया.

जस्टिस धर के यह कहने पर कि उन्हें तो अपूर्वा के लिए ऐसे ही घरवर की तलाश है. सो, वे विवेक और उस के पिता केशव नारायण से मिलना चाहेंगे. निखिल ने कहा कि वे तो स्वयं ही उन से मिलना चाहते हैं, लेकिन समस्या सुकन्या के एतराज की है, महिला क्लब के सदस्यों को ले कर और यह समस्या अपूर्वा की माताजी की भी हो सकती है.

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‘‘अपूर्वा की माताजी के महिला क्लब की सदस्यों ने तो मेरी नाक में दम कर रखा है,’’ जस्टिस धर ने झल्ला कर कहा, ‘‘शीला स्वयं भी नहीं चाहती कि अपूर्वा शादी कर के अमेरिका जाए लेकिन सब सहेलियों को बता चुकी है कि उस का होने वाला दामाद अमेरिका में इंजीनियर है. सो, उन के सामने अपनी बात बदलना नहीं चाहती, इसलिए अपूर्वा को समझा रही है कि फिर अमेरिका जाए और आलोक को बहलाफुसला कर भारत में रहने को मना ले.

Valentine’s Special- कड़ी: भाग 1

बृहस्पति की शाम को विवेक को औफिस से सीधे अपने घर आया देख कर निकिता चौंक गई.

‘‘खैरियत तो है?’’

‘‘नहीं दीदी,’’ विवेक ने बैठते हुए कहा, ‘‘इसीलिए आप से और निखिल जीजाजी से मदद मांगने आया हूं, मां मुझे लड़की दिखाने ले जा रही है.’’

निखिल ठहाका लगा कर हंस पड़ा और निकिता भी मुसकराई.

‘‘यह तो होना ही है साले साहब. गनीमत करिए, अमेरिका से लौटने के बाद मां ने आप को 3 महीने से अधिक समय दे दिया वरना रिश्तों की लाइन तो आप के आने से पहले ही लगनी शुरू हो गई थी.’’

‘‘लेकिन मैं लड़की पसंद कर चुका हूं जीजाजी और यह फैसला भी कि शादी करूंगा तो उसी से.’’

‘‘तो यह बात मां को बताने में क्या परेशानी है, लड़की अमेरिकन है क्या?’’

‘‘नहीं जीजाजी. आप को शायद याद होगा, दीदी, जब मैं अमेरिका से आया था तो एयरपोर्ट पर मेरे साथ एक लड़की भी बाहर आई थी?’’

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निकिता को याद आया, विवेक के साथ एक लंबी, पतली युवती को आते देख कर उस ने मां से कहा था, ‘विक्की के साथ यह कौन है, मां? पर जो भी हो दोनों की जोड़ी खूब जम रही है.’ मां ने गौर से देख कर कहा था, ‘जोड़ी भले ही जमे मगर बन नहीं सकती. यह जस्टिस धरणीधर की बेटी अपूर्वा है और इस की शादी अमेरिका में तय हो चुकी है, शादी से पहले कुछ समय मांबाप के साथ रहने आई होगी’.

निकिता ने मां की कही बात विवेक को बताई.

‘‘तय जरूर हुई है लेकिन शादी होगी नहीं. मेरी तरह अपूर्वा को भी अमेरिका में रहना पसंद नहीं है और वह हमेशा के लिए भारत लौट आई है,’’ निकिता की बात सुन कर विवेक ने कहा.

‘‘उस ने यह फैसला तुम से मुलाकात के बाद लिया?’’

‘‘मुझ से तो उस की मुलाकात प्लेन में हुई थी, दीदी. बराबर की सीट थी, सो, इतने लंबे सफर में बातचीत तो होनी ही थी. मेरे से यह सुन कर कि मैं हमेशा के लिए वापस जा रहा हूं, उस ने बताया कि उस का इरादा भी वही है. उस के बड़े भाई और भाभी अमेरिका में ही हैं.

‘‘पिछले वर्ष घरपरिवार अपने बेटे के पास बोस्टन गया था. वहां जस्टिस धर को पड़ोस में रहने वाला आलोक अपूर्वा के लिए पसंद आ गया. अपूर्वा के यह कहने पर कि उसे अमेरिका पसंद नहीं है, उस की भाभी ने सलाह दी कि बेहतर रहे कि वीसा की अवधि तक अपूर्वा वहीं रुक कर कोई अल्पकालीन कोर्स कर ले ताकि उसे अमेरिका पसंद आ जाए. सब को यह सलाह पसंद आई. संयोग से आलोक के मातापिता भी उन्हीं दिनों अपने बेटे से मिलने आ गए और सब ने मिल कर आलोक और अपूर्वा की शादी की बात पक्की कर दी और यह तय किया कि शादी आलोक का प्रोजैक्ट पूरा होने के बाद करेंगे.

‘‘अपूर्वा को आलोक या उस के घर वालों से कोई शिकायत नहीं है. बस, अमेरिका की भागदौड़ वाली जिंदगी खासकर ‘यूज ऐंड थ्रो’ वाला रवैया कोशिश के बावजूद भी पसंद नहीं आ रहा. भाईभावज ने कहा कि वह बगैर आलोक से कुछ कहे, पहले घर जाए और फिर कुछ फैसला करे. मांबाप भी उस से कोई जोरजबरदस्ती नहीं कर रहे मगर उन का भी यही कहना है कि वह रिश्ता तोड़ने में अभी जल्दबाजी न करे क्योंकि आलोक के प्रोजैक्ट के पूरे होने में अभी समय है. तब तक हो सकता है अपूर्वा अपना फैसला बदल ले. यह जानते हुए कि उस का फैसला कभी नहीं बदलेगा, अपूर्वा आलोक को सच बता देना चाहती है ताकि वह समय रहते किसी और को पसंद कर सके.’’

‘‘उस के इस फैसले में आप का कितना हाथ है साले साहब?’’

‘‘यह उस का अपना फैसला है, जीजाजी. हालांकि मैं ने उस से शादी करने का फैसला प्लेन में ही कर लिया था मगर उस से कुछ नहीं कहा. टैनिस खेलने के बहाने उस से रोज सुबह मिलता हूं. आज उस के कहने पर कि समझ नहीं आ रहा मम्मीपापा को कैसे समझाऊं कि आलोक को ज्यादा समय तक अंधेरे में नहीं रखना चाहिए, मैं ने कहा कि अगर मैं उन से उस का हाथ मांग लूं तो क्या बात बन सकती है तो वह तुरंत बोली कि सोच क्या रहे हो, मांगो न. मैं ने कहा कि सोचना मुझे नहीं, उसे है क्योंकि मैं तो हमेशा नौकरी करूंगा और वह भी अपने देश में ही. सो, आलोक जितना पैसा कभी नहीं कमा पाऊंगा. उस का जवाब था कि फिर भी मेरे साथ वह आलोक से ज्यादा खुश और आराम से रहेगी.’’

‘‘इस से ज्यादा और कहती भी क्या, मगर परेशानी क्या है?’’ निखिल ने पूछा.

‘‘मां की तरफ से तो कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए क्योंकि अपूर्वा की मां शीला से उन की जानपहचान है…’’

‘‘वही जानपहचान तो परेशानी की वजह है, दीदी,’’ विवेक ने बात काटी, ‘‘मां कहती हैं कि अपूर्वा की मां ने उन्हें जो बताया है वह सुनने के बाद वे उसे अपनी बहू कभी नहीं बना सकतीं.’’

‘‘शीला धर से मां की मुलाकात सिर्फ महिला क्लब की मीटिंग में होती है और बातचीत तभी जब संयोग से दोनों बराबर में बैठें. मैं नहीं समझती कि इतनी छोटी सी मुलाकात में कोई भी मां अपनी बेटी के बारे में कुछ आपत्तिजनक बात करेगी.’’

‘‘मां उन से मिली जानकारी को आपत्तिजनक बना रही हैं जैसे लड़की की उम्र मुझ से ज्यादा है…’’

‘‘तो क्या हुआ?’’ निकिता ने बात काटी, ‘‘लगती तो तुम से छोटी ही है और आजकल इन बातों को कोई नहीं मानता. मैं समझाऊंगी मां को.’’

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‘‘यही नहीं और भी बहुतकुछ समझाना होगा, दीदी,’’ विवेक ने उसांस ले कर कहा, ‘‘फिलहाल तो शनिवार की शाम को गुड़गांव में जो लड़की देखने जाने का कार्यक्रम बना है, उसे रद करवाओ.’’

‘‘मुझे तो मां ने इस बारे में कुछ नहीं बताया.’’

‘‘कुछ देर पहले मुझे फोन किया था कि शनिवारइतवार को कोई प्रोग्राम मत रखना क्योंकि शनिवार को गुड़गांव जाना है लड़की देखने और अगर पसंद आ गई तो इतवार को रोकने की रस्म कर देंगे. मैं ने टालने के लिए कह दिया कि अभी मैं एक जरूरी मीटिंग में हूं, बाद में फोन करूंगा. मां ने कहा कि जल्दी करना क्योंकि मुझे निक्की और निखिल को भी चलने के लिए कहना है.’’

निखिल फिर हंस पड़ा,

‘‘यानी मां ने जबरदस्त नाकेबंदी की योजना बना ली है. पापा भी शामिल हैं इस में?’’

‘‘शायद नहीं, जीजाजी. सुबह मैं और पापा औफिस जाने के लिए इकट्ठे ही निकले थे. तब मां ने कुछ नहीं कहा था.’’

‘‘मां योजना बनाने में स्वयं ही सिद्धहस्त हैं. उन्हें किसी को शामिल करने या बताने की जरूरत नहीं है. उन के फैसले के खिलाफ पापा भी नहीं बोल सकते,’’ निकिता ने कहा.

‘‘तुम्हारा मतलब है साले साहब को गुड़गांव लड़की देखने जाना ही पड़ेगा,’’ निखिल बोला.

‘‘जब उसे वहां शादी करनी ही नहीं है तो जाना गलत है. तुम कई बार शनिवार को भी काम करते हो विवेक, सो, मां से कह दो कि तुम्हें औफिस में काम है और फिर चाहे अपूर्वा के साथ या मेरे घर पर दिन गुजार लो.’’

‘‘औफिस में वाकई काम है, दीदी. लेकिन उस से समस्या हल नहीं होगी. मां लड़की वालों को यहां बुला लेंगी.’’

‘‘तुम चाहो तो मां को समझाने के लिए विवेक के साथ जा सकती हो, निक्की. मैं बच्चों को खाना खिलाने के बाद सुला भी दूंगा.’’

‘‘तब तो मां और भी चिढ़ जाएंगी कि मैं ने दीदी से उन की शिकायत की है. फिलहाल तो दीदी को मुझे यह समझाना है कि गुड़गांव वाला परिच्छेद खुलने से पहले बंद कैसे करूं. और जब मां मेरी शिकायत दीदी से करें तो वह कैसे बात संभालेंगी,’’ विवेक ने कहा.

निकिता ने विवेक को समझाया कि वह मां से कह दे कि न तो वह उन की मरजी के बगैर शादी करेगा और न अपनी मरजी के बगैर. सो, लड़की देखने जाने का सवाल ही नहीं उठता.

Valentine’s Special- कोई अपना: शालिनी के जीवन में बहार आने को थी

Valentine’s Special- कोई अपना: भाग 3

उन के जाने के बाद मेरा क्रोध पति पर उतरा, ‘‘आप ही बांध लेना इसे, मुझे नहीं पहनना इसे.’’ ‘‘अरे बाबा, 2-3 सौ रुपए की साड़ी होगी, किसी बहाने कीमत चुका देंगे. तुम तो बिना वजह अड़ ही जाती हो. इतने प्यार से कोई कुछ दे तो दिल नहीं तोड़ना चाहिए.’’

‘‘यह प्यारव्यार सब दिखावा है. आप से कर्ज लिया है न उन्होंने, उसी का बदला उतार रहे होंगे.’’ ‘‘50 हजार रुपए में न बिकने वाला क्या 2-3 सौ रुपए की साड़ी में बिक जाएगा? पगली, मैं ने दुनिया देखी है, प्यार की खुशबू की मुझे पहचान है.’’

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मैं निरुत्तर हो गई. परंतु मन में दबा अविश्वास मुझे इस भाव में उबार नहीं पाया कि वास्तव में कोई बिना मतलब भी हम से मिल सकता है. वह साड़ी अटैची में कहीं नीचे रख दी, ताकि न वह मुझे दिखाई दे और न ही मेरा जी जले. समय बीतता रहा और इसी बीच ढेर सारे कड़वे सत्य मेरे स्वभाव पर हावी होते रहे. बेरुखी और सभी को अविश्वास से देखना कभी मेरी प्रकृति में शामिल नहीं था. मगर मेरे आसपास जो घट रहा था, उस से एक तल्खी सी हर समय मेरी जबान पर रहने लगी. मेरे भीतर और बाहर शीतयुद्ध सा चलता रहता. भीतर का संवेदनशील मन बाहर के संवेदनहीन थपेड़ों से सदा ही हार जाता. धीरेधीरे मैं बीमार सी भी रहने लगी, वैसे कोई रोग नहीं था, मगर कुछ तो था, जो दीमक की तरह चेतना को कचोट और चाट रहा था.

एक सुबह जब मेरी आंख अस्पताल में खुली तो हैरान रह गई. घबराए से पति पास बैठे थे. मैं हड़बड़ा कर उठने लगी, मगर शरीर ने साथ ही नहीं दिया.

‘‘शालिनी,’’ पति ने मेरा हाथ कस कर पकड़ लिया, ‘‘अब कैसी हो?’’ मुझे ग्लूकोज चढ़ाया जा रहा था. पति की बढ़ी दाढ़ी बता रही थी कि उन्होंने 2-3 दिनों से हजामत नहीं बनाई.

‘‘शालिनी, तुम्हें क्या हो गया था?’’ पति ने हौले से पूछा. मैं खुद हैरान थी कि मुझे क्या हो गया है? बाद में पता चला कि 2 दिन पहले सुबह उठी थी, लेकिन उष्ण रक्तचाप से चकरा कर गिर पड़ी थी.

‘‘बच्चों को तो नहीं बुला लिया?’’ मैं ने पति से पूछा. ‘‘नहीं, उन के इम्तिहान हैं न.’’

‘‘अच्छा किया.’’ ‘‘सुनीलजी, अब आप घर जा कर नहाधो लीजिए, हम भाभीजी के पास बैठेंगे. आप चिंता मत कीजिए, अब खतरे की कोई बात…’’ किसी का स्वर कानों में पड़ा तो मेरी आंखें खुलीं.

‘‘अरे, भाभीजी को होश आ गया,’’ स्वर में एक उल्लास भर आया था, ‘‘भाईसाहब, मैं अभी उर्मि को फोन कर के आता हूं.’’ वह युवक बाहर निकल गया, पर मैं उसे पहचान न सकी.

‘‘तुम ने तो मुझे डरा ही दिया था. ऐसा लग रहा था, इतने बड़े संसार में अकेला हो गया हूं. बच्चों के इम्तिहान चल रहे हैं, उन्हें बुला नहीं सकता था और इस अजनबी शहर में ऐसा कौन था जिस पर भरोसा करता,’’ पति ने मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए कहा. मेरी आंखों के कोर भीग गए थे. ऐसा लगा मेरा अहं किसी कोने से जरा सा संतुष्ट हो गया है. सोचती थी, पति की जिंदगी में मेरी जरूरत ही नहीं रही. जब उन्हें रोते देखा तो लगा, मेरा अस्तित्व इतना भी महत्त्वहीन नहीं है.

मैं 2 दिन और अस्पताल में रही. इस बीच वह युवक लगातार मेरे पति की सहायता को आता रहा.

जब अस्पताल से लौटी तो कल्पना के विपरीत मेरा घर साफसुथरा था. शरीर में कमजोरी थी, मगर मन स्वस्थ था, जिस का सहारा ले कर मैं ने पति से ठिठोली की, ‘‘मुझे नहीं पता था, तुम घर की देखभाल भी कर सकते हो.’’ ‘‘यह सब उर्मि ने किया है. सचमुच अगर वे लोग सहारा न देते तो पता नहीं क्या होता.’’

‘‘उर्मि कौन?’’ ‘‘वही पतिपत्नी जो तुम्हें एक बार साड़ी उपहार में दे गए थे…’’

‘‘क्या?’’ मैं अवाक रह गई. ‘‘पता नहीं, किस ने उन्हें बताया कि तुम अस्पताल में हो. दोनों सीधे वहीं पहुंच गए. तुम्हें खून चढ़ाने की नौबत आ गई थी, उर्मि ने ही अपना खून दिया. मैं उस का ऋण जीवन में कभी नहीं चुका सकता.

‘‘वही हमारे घर को भी संभाले रही. आज सुबह ही अपने घर वापस गई है. शायद, दोपहर को फिर आएगी.’’ ‘‘और उस का बुटीक?’’

‘‘वह तो कब का बंद हो चुका है. उस के ससुर उन दोनों को अपने घर ले गए हैं. बैंक का कर्ज तो उन्होंने कब का वापस दे दिया. वे तो बस प्यार के मारे हमारा हालचाल पूछने आए थे. और हमें हमेशा के लिए अपना ऋणी बना गए.’’ अनायास मैं रो पड़ी और सोचने लगी कि मेरे पति ठीक ही कहते थे कि हमें तो बस अपना काम ईमानदारी से करना है. अच्छे लोग मिलें या बुरे, ईमानदार हों या बेईमान, बस, उन का हमारे चरित्र पर कोई प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए. कुछ लोग हमें खरीदना चाहते हैं तो कुछ आदर दे कर मांबाप का दरजा भी तो देते हैं. इस संसार में हर तरह के लोग हैं, फिर हम उन की वजह से अपना स्वभाव क्यों बिगाड़ें, क्यों अपना मन भारी करें?

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‘‘तुम्हारे कपड़े निकाल देता हूं, नहाओगी न?’’ पति के प्रश्न ने चौंका दिया. मैं वास्तव में नहाधो कर तरोताजा होना चाहती थी. मैं ने अटैची से वही गुलाबी साड़ी निकाली, जिसे पहले खोल कर भी नहीं देखा था.

दोपहर को उर्मि हमारा दोपहर का भोजन ले कर आई. मैं समझ नहीं पा रही थी कि कैसे उस का स्वागत करूं. ‘‘अरे, आप कितनी सुंदर लग रही हैं,’’ उस ने समीप आ कर कहा. फिर थोड़ा रुक गई, संभवतया मेरा रूखा व्यवहार उसे याद आ गया होगा.

मैं समझ नहीं पाई कि क्यों रो पड़ी. उस प्यारी सी युवती को मैं ने बांह से पकड़ कर पास खींचा और गले से लगा लिया.

‘‘आप को दीदी कह सकती हूं न?’’ उस ने हौले से पूछा. ‘‘अवश्य, अब तो खून का रिश्ता भी है न,’’ मेरे मन से एक भारी बोझ उतर गया था. ऐसा लगा, वास्तव में कोई अपना मिल गया है. सस्नेह मैं ने उस का माथा चूम लिया.

फिर उस ने मुझे और मेरे पति को खाना परोसा. ‘‘तुम्हारी ससुराल वाले कैसे हैं?’’ मैं ने धीरे से पूछा तो वह उदास सी हो गई.

‘‘संसार में सब को सबकुछ तो नहीं मिल जाता न, दीदी. सासससुर तो बहुत अच्छे हैं, परंतु मेरे मांबाप आज तक नाराज हैं. मैं तरस जाती हूं किसी ऐसे घर के लिए जिसे अपना मायका कह सकूं.’’ ‘‘मैं…मैं हूं न, इसी घर को अपना मायका मान लो, मुझे बहुत प्रसन्नता होगी.’’

सहसा उर्मि मेरी गोद में सिर रख कर रो पड़ी. मेरे पति पास खड़े मुसकरा रहे थे. उस के बाद उर्मि हमारी अपनी हो गई. उस घटना को 8 साल बीत गए हैं. हमारा स्थानांतरण 2 जगह और हुआ. फिर से अच्छेबुरे लोगों से पाला पड़ा, परंतु मेरा मन किसी से बंधा नहीं. उर्मि आज भी मेरी है, मेरी अपनी है. मैं अकसर यह सोच कर स्नेह और प्रसन्नता से सराबोर हो जाती हूं कि निकट संबंधियों के अलावा इस संसार में मेरा कोई अपना भी है.

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Valentine’s Special- कोई अपना सा: भाग 2

इसी कारण मैं ने उस युवती को टाल दिया. फिर शीतल पेय उन के सामने रख, पंखा तेज कर दिया क्योंकि गरमी बहुत ज्यादा थी. वे दोनों बारबार पसीना पोंछ रहे थे.

चंद क्षणों के बाद उस युवक ने पूछा, ‘‘सुनीलजी कितने बजे तक आ जाते हैं?’’ ‘‘कोई निश्चित समय नहीं है. वैसे अच्छा होगा, आप उन से कार्यालय में ही मिलें. ऐसा है कि वे घर पर किसी से मिलना पसंद नहीं करते.’’

‘‘जी, औफिस में उन के पास समय ही कहां होता है.’’ ‘‘इस विषय में मैं आप की कोई भी मदद नहीं कर सकती. बेहतर होगा, आप उन से वहीं मिलें,’’ ढकेछिपे शब्दों में ही सही, मैं ने उन्हें फिर वह कहानी दोहराने से रोक दिया जिस की टीस अकसर मेरे मन में उठती रहती थी.

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वे दोनों अपना सा मुंह ले कर चले गए. उन के इस तरह उदास हो कर जाने पर मुझे दुख हुआ, परंतु क्या करती? शाम को पति को सब सुनाया तो वे हंस पड़े, ‘‘ऐसा कहने की क्या जरूरत थी, उन की नईनई शादी हुई है. प्रेमविवाह किया है. दोनों के घर वालों ने कुछ नहीं दिया. सो, कर्ज ले कर कोई काम शुरू करना चाहता है. घर चला आया तो हमारा क्या ले गया. तुम प्यार से बात कर लेतीं, तो कौन सा नुकसान हो जाता?’’

‘‘लेकिन काम हो जाने के बाद तो ये मजे से अपना पल्ला झटक लेंगे.’’ ‘‘झटक लें, हमारा क्या ले जाएंगे. देखो शालिनी, हम समाज से कट कर तो नहीं रह सकते. मैं बैंक अधिकारी हूं, मुझ से तो वही लोग मिलेंगे, जिन्हें मुझ से काम होगा. अब क्या हम किसी के साथ हंसेंबोलें भी नहीं? कोई आता है या बुलाता है तो इस में कोई खराबी नहीं है. बस, एक सीमारेखा खींचनी चाहिए कि इस के पार नहीं जाना. भावनात्मक नाता बनाने की कोई जरूरत नहीं है. यों मिलो, जैसे हजारों जानने वाले मिलते हैं. इतनी मीठी भी न बनो कि कोई चट कर जाए और इतनी कड़वी भी नहीं कि कोई थूक दे.’’

मेरे पति ने व्यावहारिकता का पाठ पढ़ा दिया, जो मेरी समझ में तो आ गया, मगर भावुकता से भरा मन उसे सहज स्वीकार कर पाया अथवा नहीं, समझ नहीं पाई.

एक शाम एक दंपती हमारे यहां आए. बातचीत के दौरान पत्नी ने कहा, ‘‘अब आप कार क्यों नहीं ले लेते.’’ ‘‘कभी जरूरत ही महसूस नहीं हुई. जब लगेगा कार होनी चाहिए तब ले लेंगे,’’ मैं ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘फिर भी भाभीजी, भाईसाहब बैंक में उच्चाधिकारी हैं, स्कूटर पर आनाजाना अच्छा नहीं लगता.’’ ‘‘क्यों, हमें तो बुरा नहीं लगता. कृपया आप विषय बदल लीजिए. हमारी जिंदगी में दखल न ही दें तो अच्छा है.’’

बच्चे बाहर पढ़ रहे थे, जिस वजह से कमरतोड़ खर्चा बड़ी मुश्किल से हम सह रहे थे. ईमानदार इंसान इन सारे खर्चों के बीच भला कहां कार और अन्य सुविधाओं के विषय में सोच सकता है. उस पर तुर्रा यह कि कोई आ कर यह जता जाए कि अब हमें स्कूटर शोभा नहीं देता, तो भला कैसे सुहा सकता है. एक बार तो कमाल ही हो गया. हमें किसी के जन्मदिन की पार्टी में जाना पड़ा. मेजबान ने मुझे घर की मालकिन से मिलाया, ‘‘आप सुनीलजी की पत्नी हैं और ये हैं मेरी पत्नी सुलेखा.’’ कीमती जेवरों से लदी आधुनिका मुझे देख ज्यादा प्रसन्न नहीं हुईं. फीकी सी मुसकान से मेरा स्वागत कर अन्य मेहमानों में व्यस्त हो गईं. पति को तो 2-3 लोगों ने बैंक की बातों में उलझा लिया, लेकिन मैं अकेली रह गई. चुपचाप एक तरफ बैठी रही. अचानक हाथ में गिलास थामे एक आदमी ने कहा, ‘‘आप सुनीलजी की पत्नी हैं?’’

‘‘जी हां,’’ मैं ने उत्तर दिया. ‘‘भाभीजी, आप से एक बात करनी थी…जरा सुनीलजी को समझाइए न, पूरे 50 हजार रुपए देने को तैयार हूं. आप कहिए न, मेरा काम हो जाएगा. अरे, ईमानदारी से रोटी ही चलती है, बस? आखिर वे कितना कमा लेते होंगे, यही 14-15 हजार…कितनी बार कहा है, हम से हाथ मिला लें…’’

मैं उस धूर्त व्यापारी को जवाब दिए बगैर ही वहां से उठ खड़ी हुई थी. मेरे पति पूरी बात सुन कर हैरान रह गए. मैं ने तनिक गुस्से से कहा, ‘‘आज के बाद ऐसी पार्टियों में मत ले जाना. मेरा वहां दम घुटता है.’’ ‘‘कोई बात नहीं, शालिनी, तुम एक कान से सुनो, दूसरे से निकाल दो. आजकल हर तीसरा इंसान बिकाऊ है. शायद वह सोचता होगा, तुम से बात कर के उस का काम आसान हो जाएगा.’’

मैं रो पड़ी थी. फिर कितने दिन सामान्य नहीं हो पाई थी. इसी बीच फिर खाने का दावतनामा मिला तो मैं ने तुनक कर कहा, ‘‘मैं कहीं नहीं जाऊंगी.’’

‘‘उन लोगों ने हम दोनों को खासतौर पर बुलाया है. छोटा सा काम शुरू किया है, उसी खुशी में.’’ ‘‘मुझे किसी के काम से क्या लेनादेना है, आप ही चले जाइए.’’

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‘‘ऐसा नहीं सोचते, शालिनी, वे हमारा इतना मान करते हैं, सभी एकजैसे नहीं होते.’’

पति ने बहुत जिद की थी, मगर मैं टस से मस न हुई. वे अकेले ही चले गए. जब पति 2 घंटे बाद लौटे तो कोई साथ था.

‘‘नमस्ते, भाभीजी,’’ एक नारी स्वर कानों में पड़ा, सामने एक युवा जोड़ा खड़ा था. ऐसा लगा, इस से पहले कहीं इन से मिल चुकी हूं. ‘‘आप हमारे घर नहीं आईं, इसलिए सोचा, हम ही आप से मिल आएं,’’ महिला ने कहा.

‘‘बैठिए,’’ मैं ने सोफे की तरफ इशारा किया. उस के हाथ में रंगदार कागज में कुछ लिपटा था, जिसे बढ़ कर मेरे हाथ में देने लगी. मुझे लगा, बिच्छू है उस में, जो मुझे डस ही जाएगा. मैं ने जरा तीखी आवाज में कहा, ‘‘नहींनहीं, यह सब हमारे यहां…’’

‘‘यह मेरे बुटीक की पहली पोशाक है. हमारे मांबाप ने तो हमें दुत्कार ही दिया था. लेकिन सुनील भाईसाहब की कृपा से हमें कर्ज मिला और छोटा सा काम खोला. हमें आप लोगों का बहुत सहारा है, आप ही अब हमारे मांबाप हैं. कृपया मेरी यह भेंट स्वीकार करें,’’ कहतेकहते वह रो पड़ी. मैं भौचक्की सी रह गई कि पत्थरों के इस शहर में कोई रो भी रहा है. वह कड़वाहट जिसे मैं पिछले कई सालों से ढो रही थी, क्षणभर में ही न जाने कहां लुप्त हो गई.

‘‘भाभीजी, आप इसे स्वीकार कर लें, वरना इस का दिल टूट जाएगा,’’ इस बार उस के पति ने बात संभाली. मैं ने उस के हाथ से पैकेट ले कर खोला, उस में गुलाबी रंग की कढ़ाई की हुई सफेद साड़ी थी.

‘‘आप घर नहीं आईं, इसलिए हम स्वयं ही देने चले आए. आप इसे पहनेंगी न?’’ ‘‘हांहां, जरूर पहनूंगी, मगर इस की कीमत कितनी है?’’

‘‘वह तो हम ने लगाई ही नहीं, आप पहन लेंगी तो कीमत अपनेआप मिल जाएगी.’’ ‘‘नहींनहीं, भला ऐसा कैसे होगा,’’ फिर मेरा स्वर कड़वा होने लगा था. मैं कुछ और भी कहती, इस से पहले मेरे पति ने ही वह साड़ी ले कर मेज पर रख दी, ‘‘हमें यह साड़ी पसंद है, शालिनी इसे अवश्य पहनेगी. और गुलाबी रंग तो इसे बहुत प्रिय है.’’

Valentine’s Special- कोई अपना: भाग 1

स्थानांतरण के बाद जब हम नई जगह आए तो पिछली भूलीभटकी कई बातें अकसर याद आतीं. कुछ दिन तो नए घर में व्यवस्थित होने में ही लग गए और कुछ दिन पड़ोसियों से जान-पहचान करने में. धीरेधीरे कई नए चेहरे सामने चले आए, जिन से हमें एक नया संबंध स्थापित करना था. मेरे पति बैंक में प्रबंधक हैं, जिस वजह से उन का पाला अधिकतर व्यापारियों से ही पड़ता. अभी महीना भर ही हुआ था कि एक शाम हमारे घर में एक युवा दंपती आए और इतने स्नेह से मिले, मानो बहुत पुरानी जानपहचान हो. ‘‘नई जगह पर दिल लग गया न, भाभीजी? हम ने तो कई बार सुनीलजी से कहा कि आप को ले कर हमारे घर आएं. आप आइए न कभी, हमारे साथ भी थोड़ा सा समय गुजारिए.’’ युवती की आवाज में बेहद मिठास थी, जो कि मेरे गले से नीचे नहीं उतर रही थी. इतने प्यार से ‘भाभीभाभी’ की रट तो कभी मेरे देवर ने भी नहीं लगाई थी.

मेरे पति अभी बैंक से आए नहीं थे, सो मुझे ही औपचारिकता निभानी पड़ रही थी. नई जगह थी, सो, सतर्कता भी आवश्यक थी. शायद? उन्होंने मेरे चेहरे की असमंजसता पढ़ ली थी. युवक बोला, ‘‘मुझे सुनीलजी से कुछ विचारविमर्श करना था. बैंक में तो समय नहीं होता न उन के पास, इसलिए सोचा, घर पर ही क्यों न मिल लें. इसी बहाने आप के दर्शन भी हो जाएंगे.’’

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‘‘ओह,’’ उन का आशय समझते ही मेरे चेहरे पर अनायास ही एक बनावटी मुसकान चली आई. शीतल पेय लेने जब मैं भीतर जाने लगी तो वह युवती भी साथ ही चली आई, ‘‘मैं आप की मदद करूं?’’

मेरे चेहरे पर खीझ उभर आई कि अपना काम हो तो लोग किस सीमा तक झुक जाते हैं.

लगभग 4 साल पहले जब नएनए लुधियाना गए थे, तब भी ऐसा ही हुआ था. मधु कैसे घुसी चली आई थी हमारी जिंदगी में. दोनों पतिपत्नी कितने प्यार से मिले थे. मधु के पति केशव ने कहा था, ‘भाभीजी, आप आइए न हमारे घर. मधु आप से मिल कर बहुत खुश होगी.’ ‘जी, जरूर आएंगे,’ मैं कितनी खुश हुई थी, कोई अपना सा लगने वाला जो मिला था. परिवार सहित पहले वे लोग हमारे घर आए और उस के बाद हम उन के घर गए. मधु मुझ से जल्दी ही घुलमिल गई थी जैसे पुरानी दोस्ती हो.

‘ये साहब आप को कैसे जानते हैं?’ मैं ने पति से पूछा. ‘हमारे बैंक की ही एक पार्टी है. अपना व्यवसाय बढ़ाने के लिए बेचारा दौड़धूप कर रहा है. बड़ी फैक्टरी खोलने का विचार है,’ पति ने लापरवाही से टाल दिया था, मानो उन्हें मेरा प्रश्न बेतुका सा लगा हो.

एक दिन मधु ऊन लाई और जिद करने लगी कि मैं उस के बेटे का स्वेटर बुन दूं. काफी मेहनत के बाद मैं ने रंगबिरंगा स्वेटर बुना था. उसे देख कर मधु बहुत खुश हुई थी, ‘भाभी, बहुत सफाई है आप के हाथ में. अब एक स्वेटर अपने देवर का भी बुन देना. ये कह रहे थे, इतना अच्छा स्वेटर तो उन्होंने आज तक नहीं देखा.’

‘मुझे समय नहीं मिलेगा,’ मैं ने टालना चाहा तो वह झट बोल पड़ी, ‘अपना भाई कहेगा तो क्या उसे भी इसी तरह इनकार कर देंगी?’ मधु के स्वर का अपनापन मुझे भीतर तक पुलकित कर गया था.

वह आगे बोली, ‘माना कि हम में खून का रिश्ता नहीं है, फिर भी आप को अपनों से कम तो नहीं जाना. मुझे ऊन से एलर्जी है, तभी तो आप से कह रही हूं.’ आखिर मुझे उस की बात माननी पड़ी. लेकिन मेरे पति ने मुझे डांट दिया था, ‘यह क्या समाजसेवा का काम शुरू कर दिया है? उसे ऊन से एलर्जी है तो पैसे दे कर कहीं से भी बनवा लें. तुम अपनी जान क्यों जला रही हो?’

‘वे लोग हम से कितना प्यार करते हैं, और कुछ बना दिया तो क्या हुआ.’ मेरे पति खीझ कर चुप रह गए थे.

हमारा आनाजाना लगा रहता और हर बार वे लोग ढेर सारा प्यार जताते. धीरेधीरे उन का आना कम होने लगा. 2 महीनों की छुट्टियों में हम अपने घर गए थे. जब वापस आए, तब भी वे हम से मिलने नहीं आए.

एक दिन मैं ने पति से कहा, ‘मधु नहीं आई हम से मिलने, वे लोग कहीं बाहर गए हुए हैं?’ ‘पता नहीं,’ पति ने लापरवाही से उत्तर दिया.

‘क्या, केशव भाईसाहब आप से नहीं मिले?’ ‘कल उस का भाई बैंक में आया था.’

‘तो आप ने उन का हालचाल नहीं पूछा क्या?’ ‘नहीं. इतना समय नहीं होता, जो हर आनेजाने वाले के परिवार का हालचाल पूछता रहूं.’

‘कैसी रूखी बातें कर रहे हैं.’ किसी तरह पति मुझे टाल कर अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गए और मैं यही सोचने लगी कि आखिर मधु आई क्यों नहीं?

15-20 दिनों बाद बच्चों के स्कूल में ‘पेरैंट्स मीटिंग’ थी. मधु का घर रास्ते में ही पड़ता था. अत: सो, वापसी पर मैं उस के घर चली गई. ‘ओह, आप,’ मधु का स्वर ठंडा सा था, मानो उसे मुझ से मिलना अच्छा न लगा हो. जब भीतर आई तो उस की सखियों से मुलाकात हुई. उस ने उन से मेरा परिचय कराया, ‘इन से मिलो, ये हैं मेरी रेखा और निशी भाभी, और आप हैं शालिनी भाभी.’

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थोड़ी देर बाद 15-20 वर्ष का लड़का मेरे सामने शीतल पेय रख गया. सोफे पर 4-5 सूट बिछाए, वह अपनी सखियों में ही व्यस्त रही. वे तीनों महंगे सूटों और गहनों के बारे में ही बातचीत करती रहीं. मैं एक तरफ अवांछित सी बैठी, चुपचाप अपनी अवहेलना और उन की गपशप सुनती व महसूस करती रही. शीतल पेय के घूंट गले में अटक रहे थे. कितने स्नेह से मैं उस से मिलने गई थी बेगाना सा व्यवहार, आखिर क्यों?

‘अच्छा, मैं चलूं,’ मैं उठ खड़ी हुई तो वहीं बैठेबैठे उस ने हाथ हिला दिया, ‘माफ करना शालिनी भाभी, मैं नीचे तक नहीं आ पाऊंगी.’ ‘कोई बात नहीं,’ कहती हुई मैं चली आई थी.

मैं मधु के व्यवहार पर हैरान रह गई थी कि कहां इतना अपनापन और कहां इतनी दूरी.

दिनभर बेहद उदास रही. रात को पति से बात की तो उन्होंने बताया, ‘उन्हें बैंक से 2 करोड़ रुपए का कर्ज मिल गया है. नई फैक्टरी का काम जोरों से चल रहा है. भई, मैं तो पहले ही जानता था, उन्हें अपना काम कराना था, इसलिए चापलूसी करते आगेपीछे घूम रहे थे. लेकिन तुम तो उन से भावनात्मक रिश्ता बांध बैठीं.’ ‘लेकिन,’ अनायास मैं रो पड़ी, क्योंकि छली जो गई थी, किसी ने मेरे स्नेह को छला था.

‘कई लोग अधिकारी के घर तक में घुस जाते हैं, जबकि काम तो अपनी गति से अपने समय पर ही होता है. कुछ लोग सोचते हैं, अधिकारी से अच्छे संबंध हों तो काम जल्दी होता है और केशव उन्हीं लोगों में से एक है,’ पति ने निष्कर्ष निकाला था. उस के बाद वे लोग हम से कभी नहीं मिले. मधु का वह दोगला व्यवहार मन में कांटे की तरह चुभता है. कोई ज्यादा झुक कर ‘भाभीजी, भाभीजी’ कहता है तो स्वार्थ की बू आने लगती है.

मीठी परी: भाग 4

शाम कौ सैंट्रलसिटी रैस्टोरैंट में मिले. सिम्मी ने स्वयं अपनी शादी व तलाक के बारे में बताया कि लड़का जरमनी से आया था पर जल्दी ही उस के ड्रग ऐडिक्ट होने की बात सामने आई. सिम्मी ने अस्पताल और समयसमय पर थेरैपी के साथ रीहैबिलिटेशन के पेपर दिखाए. उस का मानना था कि ऐसी आदत जल्दी छूटती नहीं. वह यहां एमबीए कर रही है. इतना कहते हुए अपने भाईभाभी का आभार प्रकट किया. साधारण सी दिखती लड़की का साहस और सोच पवन को अच्छी लगी. पवन अभी साहस जुटा रहा था अपने बारे में बताने का कि सिम्मी के भाई ने कहा कि आप के बारे में मांपापा व बड़े भाई को जानकारी है और अब आप का और सिम्मी का निर्णय ही हमारा फैसला होगा.

कुछ दिनों के बाद भाई की सलाह से सिम्मी ने फोन पर पवन से बात की और दोनों बाहर मिले. सिम्मी की तरफ से हां पर पवन ने फोन पर मां को बताया कि ठीक है. फिर भी जाने क्यों, जो पवन के साथ हो चुका था, उस का डर उस के मन के किसी कोने में छिपा बैठा था.

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बर्मिंघम की कोर्ट में शादी के अवसर पर पवन का भाई नयन पहुंचा. सादी सी सैरामनी के साथ और परिवार के नाम पर 5 लोगों ने बाहर खाना खाया और नवदंपती को विदाई दी. नयन एक हफ्ता होटल में रुक इधरउधर घूम वापस लौटा. संजना भाभी खुश थी. मां ने महल्ले में लड्डू बंटवाए और पवन की विदेश में शादी की सब को खबर दी. पहले की घटित हुई सारी कहानी पर खाक डाल दी गई. एक सप्ताह का आनंदमय समय इकट्ठा बिता पवन काम पर लौटा और सिम्मी पढ़ाई में लग गई. पवन की मां या भाभी से सिम्मी बहुत आदर से फोन पर बात करती. सिम्मी के भाईभाभी भी कभी थोड़ी देर के लिए आ जाते और बहन को खुश देख राहत की सांस लेते. परीक्षा खत्म हुई और अच्छा रिजल्ट पा सिम्मी के साथ पवन भी खुश हुआ और उस को सुंदर सी ड्रैस गिफ्ट की.

सिम्मी ने पवन को यह कह हैरान कर दिया कि नौकरी तो कभी भी की जा सकती है पर परिवार बढ़ाना है तो हम दोनों की आयु देखते हमें पहले बच्चे के विषय में सोचना चाहिए. पवन खुश, ‘‘अरे, सोचना क्या, इरादा नेक है.’’ जब समय मिलता, दोनों कहीं न कहीं घूम आते. 2 महीने बीते तो पाया कि सिम्मी गर्भवती है. सब बहुत खुश और सिम्मी के पैर तो खुशी के मारे धरती पर टिक ही नहीं रहे थे, ‘‘हमारा पहला बच्चा.’’ पवन सिम्मी का पूरा ध्यान रखता.

6 महीने बीतने को आए जब एक दिन औफिस से लौटने पर सिम्मी ने एक फोटो सामने रखते पवन से पूछा, ‘‘यह कौन है, कितना प्यारा बच्चा है?’’ पवन के काटो तो खून नहीं, यह फोटो उस ने ऐनी की क्रिस को गोद लिए पहले दिन डेकेयर छोड़ने जाने पर खींची थी. अच्छा हुआ कि वह नहीं था उस फोटो में. उस ने बड़ी सावधानी से कैमरे, अलबम, फ्रेम से सब फोटो बड़े दुख के साथ निकाल फेंक दी थी. यह फोटो किसी दूसरी फोटो के साथ उलटी लगी रह गई थी जिसे वह देख नहीं पाया. अपने को संभालते हुए, एक सहकर्मी व उस के बेटे की बता फोटो ले ली. सिम्मी की ओर से कोई प्रश्न न पूछा जाए, सोच कर पवन किचन में अपने व सिम्मी के लिए चाय बनाने लगा. ऐनी अब स्कौटलैंड में ही थी पर पवन के घर व औफिस बदलने की उसे खबर थी. ऐनी की बहन के विवाह को 10 वर्ष हो चुके थे. पर कोई संतान नहीं थी. काफी इलाज कराने के बाद कोई संभावना भी नहीं थी. घर में बच्चा गोद लेने की चर्चा चल रही थी.

ऐनी सब पीछे छोड़ तो आई थी पर कभीकभी उस का मन क्रिस को याद कर उदास हो जाता. उस ने बहन से सलाह की कि यदि उस का पति माने तो वह क्रिस को गोद ले सकती है. उस के पास क्रिस के जन्म पर अस्पताल से मिला प्रमाणपत्र है जिस पर उस का व पवन का नाम लिखा है. बात तय हो गई. यूके में कोर्ट द्वारा पवन को सम्मन भिजवा दिया गया जिस में ऐनी ने बिना किसी शर्त के बेटे क्रिस को अपनाने की अपील की. पत्र पवन के नाम था, पर घर पर सिम्मी को मिला. खोला तो ऐनी नाम देख उसे याद हो आया यही नाम तो बताया गया था पवन की पहली पत्नी का. पर बच्चा उस की तो कभी चर्चा ही नहीं की किसी ने? सिम्मी का 8वां महीना चल रहा था और उस के मानसपटल पर इतने विचार आजा रहे थे कि वह बहुत घबरा गई. पवन को फोन पर तुरंत घर आने को कह वह बैठ गई. अचानक तसवीर उभरी जो उस को अलबम में मिली थी जिसे पवन ने सहकर्मी और उस का बेटा बताया था. कहीं वह बच्चा पवन…क्या हो रहा है ये सब, वह मन को शांत करते हुए सोफे पर बैठ गई.

घबराए आए पवन ने उसे यों बैठे देखा तो सोचा, अवश्य उस की तबीयत ठीक नहीं. कहा, ‘‘उठो, अस्पताल चलते हैं.’’ ‘‘नहीं, कोर्ट में जाओ,’’ कहते हुए सिम्मी ने लिफाफा थमाया. पवन को तो जैसे घड़ों पानी पड़ गया हो, कहां जा डूबे, क्या करे? सिम्मी ने उसे हाथ पकड़ कर पास बैठाया, फिर उठ कर पानी ला कर पिलाया और धीरे से उस का झुका मुंह उठा, पूछा, ‘‘पवन, बस, सच बताओ, बाकी हम संभाल लेंगे.’’

अब छिपाने को कुछ रह ही नहीं गया था. पवन सिम्मी के कंधे पर सिर रख फफक कर रो पड़ा. सिम्मी ने उसे बांहों में सहलाया, ‘‘रोओ नहीं, शांत हो जाओ.’’ जब वह पूरी तरह शांत हो गया तो माफी मांगते सच उगल दिया.

सिम्मी ने कहा, ‘‘अब पूरी सचाई से बताओ कि तुम क्या चाहते हो? ‘‘प्लीज सिम्मी, मेरा साथ नहीं छोड़ना.’’

‘‘पवन अगर तुम ने हमें शादी से पहले अपने बेटे के बारे में बताया होता तो सच मानो वह आज हमारे साथ होता पर फिक्र न करो वह अब भी हमारे घर में है तुम्हारे भाईभाभी के साथ. जब चाहे उसे यहां ले आओ. हमारे 2 बच्चे हो जाएंगे. बोलती सिम्मी का मुख पवन गौर से परखता रहा, क्या यह सच कह रही है, क्या ऐसा संभव है, क्या अब मेरा बेटा मेरे पास रह सकता है?

सिम्मी ने उसे धीरे से झिंझोड़ा, ‘‘पवन, मैं तुम्हारे बेटे की मां बनने को तैयार हूं. उठो, नोटिस का जवाब दो. कल किसी अच्छे वकील से मिलो. उठो पवन, शाम की चाय नहीं पिलाओगे.’’

पवन हैरान, ‘कैसी औरत है, कितनी सहजता से सब समेट लिया. कोई शिकायत नहीं, कितना बड़ा दिल है इस का. बिना कहे क्षमा कर दिया.’ दोनों ने मिल कर चाय पी और फिर सिम्मी बोली, ‘‘पवन, जरा भाईभाभी को फोन कर क्रिस का हाल जानें और उन्हें बताएं कि दूसरे बच्चे के होने के बाद हम पहले उसे लेने वहां आएंगे.’’

‘‘सच सिम्मी.’’ ‘‘हां, सच पवन. और सुनो, मां को भी अपना फैसला बताएंगे तो वे भी खुश होंगी. रही मेरे परिवार की बात, तो उन से मैं स्वयं निबट लूंगी.’’

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ये सब सुन पवन ने फोन लगा, सिम्मी को पकड़ाया और साथ ही झुक उस का माथा चूम लिया. सिम्मी ने शरारत से देख, कहा, ‘‘अब मेरी बारी…अब तुम्हारा मुंह मीठा कर दिया मैं ने, कड़वी बातें भूल जाओ. मैं हूं मीठी परी, मुझ से कभी झूठ न बोलना.’’ पवन ने अपने दोनों कान पकड़ नहीं की मुद्रा में सिर हिलाया तो सिम्मी अपने पेट पर दोनों हाथ रख जोर से हंस दी. पवन हैरान था उस का यह सुहावना रूप देख, धीरे से बुदबुदाया, ‘मीठी परी’.

मीठी परी: भाग 3

पवन औफिस से जल्दी निकल, क्रिस को डेकेयर से घर लाया, उसे दूध पिलाया. ऐनी को कई बार फोन किया पर उस का फोन स्विच औफ था. उस का मन भयभीत होने लगा कि कहीं उसे कुछ हो तो नहीं गया. जब ऐसे करते रात के 12 बजने को आए तो चिंतित पवन कहां फोन करे, उस के पास तो ऐनी के किसी जानपहचान वाले या उस की मांबहन का नंबर तक नहीं था. कैसा बेवकूफ है वह, कभी उन से बात ही नहीं हुई.

रात 2 बजे फोन बजा तो उस ने लपक कर फोन उठाया, फोन ऐनी का ही था. उस ने सीधा कहा, ‘‘मैं अपनी मां के पास आ गई हूं. तुम्हें क्रिस को स्वयं पालना है, मुझे कुछ नहीं चाहिए. मेरा कोई पता या फोन नंबर नहीं है.’’ ‘‘ऐनीऐनी’’ कहता रह गया पवन, और फोन कट गया. सिर धुन लिया पवन ने और सोते क्रिस को देख बेहाल हो गया. क्या कुसूर है उस का या इस नन्हे बच्चे का.

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दिन बीतते गए. सब रोज के ढर्रे पर चलता रहा. ऐसा कब तक चलेगा? हताश हो कर सोचा, मां या भाई को बताऊं. पहले ऐनी के साथ रहने का बता मां को सदमा दिया था, अब उस से बड़ा सदमा देने के बारे में सोच कर ही डर गया. कुछ तो करना होगा, यह सोच कर हिम्मत जुटा भाई को फोन किया तो पता चला वह 1 महीने के लिए दूसरी जगह पोस्ंिटग पर है. फोन पर पवन के रोने की आवाज सुन, भाभी डर गई, ‘‘पवन, क्या हुआ, ऐनी तो ठीक है?’’

‘‘भाभी, ऐनी मुझे छोड़ कर चली गई.’’ भाभी ने कुछ और समझा, ‘‘कैसे हुआ, क्या हुआ, तुम साथ नहीं थे क्या?’’

‘‘भाभी, वो अब मेरे साथ रहना नहीं चाहती. अपने बेटे को छोड़ कर, अपनी मां के पास चली गई है.’’ ‘‘बेटे को, यानी तुम्हारा बेटा या केवल उस का?’’ भाभी कुछ अंदाजा लगा चुकी थी, ‘‘तुम ने पहले क्यों नहीं बताया?’’

‘‘जब पहली बार ऐनी के बारे में बताया था, तब हमारा बेटा क्रिस 2 महीने का था.’’ ‘‘अब क्या करोगे?’’

‘‘भाभी, कुछ समझ नहीं आ रहा.’’ संजना ने कहा, ‘‘सुनो, बच्चे को ले सीधा हमारे पास चले आओ, तब तक तुम्हारे भाई भी आ जाएंगे. सब मिल कर कुछ उपाय सोचेंगे.’’

तुरंत बच्चे का पासपोर्ट बनवा, वीजा लगवा, काम से एक महीने की छुट्टी ले पवन वापस इंडिया चल पड़ा. भाई के घर वापस आने से 4 दिन पहले पहुंच गया. भाभी को पूरी बात बता, थोड़ा सहज हुआ. ‘‘कुछ गलत तो नहीं किया तुम ने ऐनी से शादी कर. अगर बच्चा पैदा हो गया तो विदेश में ऐसी बातें होती ही हैं.’’

‘‘भाभी, शादी नहीं की थी, सोचा था, कुछ समय इकट्ठा गुजारेंगे. पर उसी बीच वह प्रैग्नैंट हो गई. उस के बाद भी शादी कर लेता तो ठीक होता.’’ भाभी ने कहा, ‘‘अब अपने देश में भी अजीब सा चलन हो गया है लिवइन रिलेशनशिप का. लगता है लगाव, जिम्मेदारी, ममता केवल शब्द ही रह गए हैं, कोई भावना नहीं.’’

अगली सुबह नयन आ गए. अचानक पवन को वहां देख हैरान हुए और फिर घर में बच्चे के रोने की आवाज सुन और भी हैरान से हो गए. संजना ने जल्दी से कहा, ‘‘मैं चाय बनाती हूं. आप पहले अपने बेटे रोहन को जगाएं, आप को आया देख खुश होगा. फिर सब बात होगी.’’ नयन कुछ समझ नहीं पा रहा था. रोहन उठ, पापा से मिला और फिर भाग, दूसरे कमरे में ताली बजा नन्हे क्रिस को रोते से चुप कराने की कोशिश करने लगा. पवन ये सब देख अपने आंसू नहीं रोक पाया.

पत्नी संजना से सब जान नयन ने किसी को कुछ नहीं कहा. नाश्ता करते नयन ने देखा पवन चुपचाप खाने की कोशिश कर रहा पर जैसे खाना उस के गले से नहीं उतर रहा था. नयन के कहने पर कि नाश्ते के बाद हमारे कमरे में मिलते हैं, उस की घबराहट और बढ़ गई. क्रिस दूध पीने के बाद सो गया. रोहन को उस की पसंद का टीवी पर प्रोग्राम लगा दूसरे कमरे में बिठाया और फिर तीनों कमरे में मिले.

नयन ने सीधी बात शुरू की, ‘‘पवन, मैं समझता हूं कि ऐसे हालात में तुम क्रिस को हमारा बेटा समझ यहां छोड़ जाओ. आगे की सोचो, तुम वापस जाना चाहो या यहां रहो, यह तुम्हारा अपना फैसला होगा. मां को हम समझा लेंगे.’’ पवन का दिलआंखें ऐसे रोईं कि भाभी भी साथ रोती हुई, उस को तसल्ली दे, उस की पीठ थपथपाती रही. ‘‘सब ठीक हो जाएगा, हौसला रखो, पवन,’’ कह कर नयन उठ बाहर चले गए.

इस बार मां को इस दुख से उबारने की जिम्मेदारी पवन ने स्वयं ली. भरे मन से क्रिस को भाभी के पास छोड़ मां के पास जा, बिना रोए, ढांढ़स बांध, सारी बात बताई. मां ने उस के सिर पर हाथ रख कर कहा, ‘‘बेटा, किस को दोष दें, समय की बात है.’’ मां ने समझाया, ‘‘जो हुआ सो हुआ, अब वह जल्दी अपना घर बसाए. शादी टूटने की बात तो ठीक है पर बच्चे की चर्चा न ही हो तो अच्छा है.’’ पवन ने वापस लौट कुछ समय के बाद घर और नौकरी बदल ली. बैठता तो क्रिस को याद करने के साथ यह भी सोचता कि कैसी ममतामयी और समझदार हैं संजना भाभी, कितनी सहजता से भाई ने क्रिस को अपने बेटे जैसे रखने के बारे में सोच लिया. मां भी क्या रिश्ता है, कितनी सरलता से मां ने उसे आगे की सोचने की सलाह दी. क्या ऐनी के मन में ऐसा कोई भाव नहीं जागा.

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इतवार का दिन था, पवन 10 बजे तक लेटा रहा. रात किनकिन विचारों में उलझा रहा था. तभी फोन बजा. भाई का फोन था, बता रहा था कि क्रिस ठीक है और उस की कुछ फोटो अपलोड कर भेजी हैं. साथ ही, यह भी बताया कि ईमेल पर किसी की पूरी डिटेल्स, फोटो और पता लिखा है. तुम स्वयं भी साइट देख सकते हो. मां और संजना लड़की के परिवार से मिल सब जानकारी ले भी आए और तुम्हारे विषय में भी बता दिया है. याद रहे, क्रिस अब हमारा बेटा है. जैसा मां का सुझाव था वैसे ही करो. लड़की सिम्मी अपने भाईभाभी के पास पिछले 2 वर्षों से रह रही है जो यूके में कई वर्षों से हैं. तुम्हारा पता नहीं दिया. मां चाहती हैं कि तुम स्वयं देखभाल कर बात बढ़ाओ.

पवन का मन खुश न हो, दुखी हुआ, काश, ऐनी के साथ ही सब ठीक रहता तो…किसे दोष दे. पवन को लगा शायद पहली बार सब मां के आशीर्वाद के बिना हुआ था इसलिए…टालता रहा. पर जब मां ने पूछा कि उन्हें फोन क्यों नहीं किया, सिम्मी के परिवार से क्यों नहीं मिला तो अब तक कहा कि इस इतवार सिम्मी के परिवार को फोन अवश्य करूंगा. फोन किया तो सिम्मी ने ही उठाया, पूछा, ‘‘कहिए, किस से बात करनी है?’’

‘‘संजयजी से, जरा रुकें, भाभी को मैसेज दे दें.’’ झिझकते हुए पवन ने अपना परिचय दिया तो भाभी फोन पर बात करती हुई खुश हो पूछ बैठी, ‘‘आप आज शाम मिल सकते हैं.’’

‘‘जी, ठीक है, कहां?’’ ‘‘संजयजी अभी आते होंगे, वे आप को बताएंगे.’’ अब तो पवन घबराया कि क्या बताए क्या छिपाए.

मीठी परी: भाग 2

अगले हफ्ते ऐनी अपना सामान ला पवन के साथ रहने आ गई. अंधा क्या मांगे, दो आंखें. बिखरा सामान ठिकाने लग गया. सुबह का नाश्ता दोनों इकट्ठे बैठ कर खाते. शनिवार पब जाने और बाहर खाना खा कर आने का रूटीन बन गया. इतवार घर में रह मस्ती होती और अब पवन ने भी कुछकुछ पकाना सीख लिया था. शाम की कौफी बनाना अब उस की जिम्मेदारी थी.

अब पवन मां को स्वयं फोन कर थोड़ी सी बातें कर लेता, लेकिन अभी तक ऐनी की कोई चर्चा नहीं की. मां की बारबार शादी की बात वह यह कह कर टाल जाता कि अभी वह और अच्छी नौकरी की तलाश में है. मां उसे कुछ समय के लिए वापस घर बुला रही थी. पिता की बरसी करनी थी और फिर एक महीने बाद नयन की संजना से शादी थी. रमा की भाभी उस के पास रहने व सहारा देने आ गईं. कहा जाता है कि सब काम समय पर होते चलते हैं. बस, जाने वाला ही चला जाता है. सब के प्रयत्न से शादी अच्छी हो गई. पर रमा बारबार होती गीली आंखों के आंसुओं को अंदर ही रोके रही, शगुन का काम था.

कुछ दिन मायके और ससुराल रह संजना नयन के साथ असम चली गई. नयन मां को अकेला छोड़ कर नहीं जाना चाहता था पर मां ने सब यादों को समेटे अपने घर में ही रहना तय किया. संजना कभीकभी फोन कर देवर का हाल जानती रहती थी. उधर, ऐनी व पवन के बीच सब ठीक चल रहा था, कभी छुट्टियां ले दोनों कहीं घूम आते. देखतेदेखते 10 महीने बीत गए. मां ने इस बार पवन को खुशखबरी देते संजना के गर्भवती होने की बात बताई.

संजना के मायके वाले उसे डिलीवरी के लिए अपने पास रखना चाहते थे. पर नयन यह कह कर कि उसे यहां हर तरह का आराम है और फिर मां भी गोदभराई की रस्म के लिए आएंगी, तो रुकेंगी, उस का जाना टाल दिया. सब ठीक रहा और संजना ने एक स्वस्थ बेटे को जन्म दिया. सब ओर से बधाई का आदानप्रदान हुआ. चाचा पवन को नई पदवी की विशेष बधाई मिली. बच्चे के 4 महीने के होते ही मां असम से लौट आईं, नयन स्वयं छोड़ने आया.

‘यह कैसे हो गया, कहां गलती हुई, क्यों नहीं ध्यान दिया?’ ऐनी यह सब सोचते हुए परेशान थी. वह प्रैग्नैंट थी. ‘नहीं, वह झंझट नहीं ले सकती, उसे नौकरी करनी है.’ सब आगापीछा सोचते हुए पवन से अबौर्शन की जिद करने लगी. पवन थोड़ा तो परेशान हुआ पर तसल्ली दी कि वह पूरी तरह से सहयोग करेगा ऐनी व बच्चे का ध्यान रखने में. ऐनी की मां अब अपनी छोटी बेटी के पास स्कौटलैंड में रहती थी. समय पर मां को बुलाने पर बात अटकी तो पवन ने कहा, ‘देखेंगे.’ पहले वाले लड़के ने मां के कारण ही ऐनी से किनारा किया था और अब वह वही मुसीबत मोल ले ले, नहीं. ऐनी को यह मंजूर न था.

अपनी गर्भावस्था के दौरान ऐनी स्वस्थ व चुस्त रही और काम पर जाती रही. बस, डिलीवरी होने से पहले 3 दिन ही घर पर रही थी और 9 महीने पूरे होते ही उस ने सुंदर, स्वस्थ बेटे को जन्म दिया. उस के गोल्डन, ब्राउन, घुंघराले बालों को देखते ही चहकी, ‘‘यह तो अपने नाना जैसा है.’’ अपने पिता की याद में उस की आंखें भर आईं. वे दोनों बहनें छोटी ही थीं जब उस के पिता का कार दुर्घटना में निधन हो गया था और पिता के काम की जगह ही मां को काम दे दिया गया था. ऐनी को नौकरी से 3 महीने की छुट्टी मिल गई और पवन भी कोशिश कर उस की हर संभव सहायता करता. छोटे बेबी को पालना आसान नहीं. मां के फोन आते रहते. पर इस बार पवन ने पक्का इरादा कर ऐनी के बारे में बता दिया, लेकिन बच्चे का जिक्र नहीं किया.

मां यह सुन सन्नाटे में आ, पूछना भूल गई कि कौन है, कब यह सब हुआ? पवन हैलोहैलो ही कहता रह गया, फोनलाइन कट गई. बिना शादी एकसाथ रहना, बच्चे होना और फिर साथ रहने की गारंटी, क्या कहा जा सकता है. पवन दोबारा फोन करने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाया. लेकिन, भाभी का फोन आ गया. ‘‘मां अस्पताल में हैं. उन की अचानक तबीयत खराब होने की खबर सुनते ही वे लोग फौरन मां के पास पहुंच गए. अभी नयन मां के पास अस्पताल में हैं.’’

भाभी ने उस की शादी के बारे में पूछा तो पवन ने रोंआसा हो बताया कि यह अचानक किया फैसला है और झूठ का सहारा ले यह कह दिया कि यहां सैटल होने के लिए यहां की लड़की से शादी करने से मदद मिल जाती है. पवन का मन परेशान हुआ कि बच्चे के बारे में जानेंगे तो क्या सोचेंगे. भाभी ने कहा कि मां उस के लिए यहां लड़कियां देख रही थीं. अचानक खबर से उन्हें काफी धक्का लगा है. पर अब क्या हो सकता है. तसल्ली दी कि जब तक मां पूरी तरह ठीक नहीं हो जाएंगी, वह यहां रह उन की देखभाल करेगी. नयन भी आतेजाते रहेंगे. बाद में वे मां को अपने साथ असम ले जाएंगे.

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पिछली बार जब रमा असम गई थी तो कुछ दिनों के बाद ही कहना शुरू कर दिया था कि यहां बहुत अकेलापन है. वह वापस जाना चाहती है. नयन ने समझाने की बहुत कोशिश भी की थी कि आप की बहू, बेटा, पोता हैं, यहां अकेलापन कैसा और फिर यह भी आप का घर है. पर नहीं, वह जल्दी लौट आई थी. इधर, ऐनी बच्चे क्रिस को अकेले संभालने में परेशान हो जाती थी. पवन रात में बच्चे के लिए कई बार जागता था. अब ऐनी के काम पर वापस जाने का समय हुआ. क्रिस को घर से दूर एक डेकेयर में छोड़ना तय हुआ. क्रिस को सुबह पवन छोड़ आता था, शाम को ऐनी ले आती थी. आसान नहीं था यह सब. अब आएदिन दोनों में किसी न किसी बात पर बहस होने लगी. बच्चे के कारण दोनों का बाहर घूमनाफिरना, मौजमस्ती कम हो गई थी. ऐनी जैसी मौजमस्ती में रहने वाली के लिए यह सब बदलाव मुश्किल सा हो गया था जबकि पवन ने बहुत सी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली थी.

अचानक एक दिन ऐनी को पता नहीं क्या सूझी, जो सीधा ही पवन से कह दिया कि वह नौकरी छोड़ बेबी क्रिस को ले अपनी मांबहन के पास स्कौटलैंड चली जाएगी. पवन हैरत में था कि अपनी ओर से वह और क्या करे कि ऐनी अपना इरादा बदल ले. अभी इस बात को एक सप्ताह ही बीता था कि पवन को डेकेयर से फोन पर बताया गया कि मिस ऐनी का उन्हें फोन आया था कि आज आप क्रिस को लेने आएं, वे नहीं आ पाएंगी. ‘‘ठीक है,’’ कह कर पवन ने सोचा कि ऐनी यह बात सीधे उस से भी कह सकती थी. फिर यह सोच कर मन को तसल्ली दी कि वह आजकल बहुत परेशान व नाराज सी रहती है. इसलिए शायद उस से नहीं कहा.

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