लेखक- नीरज कुमार मिश्रा
गौरी चुपचाप सब सुन लेती ,बहस करने उसने सीखा नहीं था और सच बताने का मतलब था उसकी अपनी ही दुनिया में आग लगाना.
अपनी इस परेशानी को दोस्तों से भी विराम ने शेयर किया था , दोस्तों ने हसते हुए यही बताया कि तू उसकी शर्म को खत्म कर ,थोड़ा मोबाइल पर सेक्स वेक्स दिखाया कर ,कुछ दिन बाद सब नॉर्मल हो जायेगा.
रात को बिस्तर में विराम ने मोबाइल ऑन किया और गौरी के बालों को सहलाते हुए मोबाइल पर एक पोर्न फिल्म चला दी ,विराम को लगा कि इससे गौरी की सोयी इच्छाएं जाग जाएंगी .
इच्छाएं अगर सोयी हो तो वे जाग सकती हैं पर उन इच्छाओं का क्या जो मर ही चुकी हों.
पति की खुशी के लिए मोबाइल पर आँखे गड़ाई रही गौरी पर उसके शरीर में कोई हरकत नहीं हुई .
मन ही मन झुंझुला पड़े थे विराम ,मोबाइल बंद करके रख दिया और करवट बदल कर लेट गए.
गौरी के मन पर जो कुठाराघात हुआ था उससे उसकी सम्वेदनाएँ ही तो मरी थी, बाकी तो वह एक सम्पूर्ण स्त्री थी और जब गौरी के स्त्रीत्व को उसके जीवन पुरुष विराम का साथ मिला तो वह माँ बन गयी.
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एक माँ “माँ बनकर ही एक स्त्री पूर्ण होती है ” यही तो उसकी दादी अक्सर कहा करती थी
आब गौरी की समझ में आ गया था,नन्ही बिटिया की देखभाल में कब दिन पंख लगाकर उड़ने लगे उसे पता ही न चला.
विराम के घरवालों ने भी गौरी का खूब ध्यान रखा ,उनकी बहू ने लक्ष्मी को जन्म जो दिया था.
संवर की देखभाल के बाद शरीर की आभा देखते ही बनती थी गौरी की ,अपने आपको आईने में देखा ,पता नहीं कितने दिनों के बाद उसे कुछ अच्छा सा लगा ,मुस्कुराने की कोशिश भी करी पर असफल ही रही वो ,किसी ने मानो उसके होठों पर सिहरन आने से पहले ही उन्हें सी दिया हो और कह दिया हो कि नहीं गौरी नहीं तुझे तो हँसने का अधिकार ही नहीं है.
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बेटी रिया के जनम के आठ महीने हो चुके थे और अब तो विराम ने भी महीनो से गौरी से शारीरिक मिलन की कोई इच्छा नहीं ज़ाहिर करी थी बल्कि वे तो और भी शांत हो गए थे ,शायद काम ज्यादा था ,रोज़ ही देर रात गए आते और चुपचाप सो जाते.
सभी घर वालों का प्यार देख गौरी बहुत खुश थी ,एक अच्छा पति ,एक नन्ही बिटिया ,और जीने को क्या चाहिए था.
पर अपने पति का सेक्स में साथ न दे पाने और उन्हें संतुष्ट न कर पाने का मलाल गौरी को अब भी था,पर वो अपने स्वभाव से विवश थी वो स्वभाव जो उसने नही बनाया था बल्कि इस समाज ने उसे दिया.
गौरी को नींद नहीं आ रही थी,उसने हाथ लगाकर रिया को छुआ तो पाया कि रिया ने बिस्तर गीला कर रखा था, उसका डायपर बदलना था सो गौरी उठने लगी ,बिजली नहीं थी ,विराम का मोबाइल उठाकर ,मोबाइल की टॉर्च जलाई और रिया का डायपर बदलकर जैसे ही मोबाइल की टॉर्च बंद करी तो मोबाइल पर एक वीडियो ,गौरी की उंगली के स्पर्श से प्ले होने लगा जिसे शायद विराम रात में देखते देखते ही सोये थे और उसका बैक बटन दबाना भूल गए थे और इसलिए टॉर्च जलने के बाद बंद करने के उपक्रम में वह वीडीयो चलने लगा था.
क्या ये विराम हैं ……..हाँ विराम ही तो हैं…
गौरी की आँखें हैरत से फैल गयी थी. विराम इस वीडियो मे एक महिला के साथ संभोगरत थे और वह महिला पूरा साथ दे दे रही थी, और विराम द्वारा अपना ही वीडीयो बनाये जाने पर बनावटी नाराज़गी भी ज़ाहिर कर रही थी ,और अब तो विराम के कहने पर उसने उत्तेजनात्मक सिसकियाँ भी भरना शुरू कर दी थी.
गौरी की आँखों से अश्रुधारा बह निकली, वीडीयो की आवाजों से विराम हड़बड़ाकर जाग गए ,और लपककर मोबाइल गौरी के हाथों से छीन लिया.
शायद विराम शर्मिंदा थे पर एक पुरुष के अहंकार ने उनकी शर्म को क्रोध का जामा पहनाने मे देर न करी.
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“अरे…ऐसे क्या देख रही हो ….मैं एक जवान मर्द हूँ,मेरी भी कुछ इच्छाएं हैं ,जब घर में खाना नहीं मिलेगा तो आदमी बाहर का ही खाना तो खायेगा न”.
हाँ पुरुष प्रधान इस दुनिया में बाहर का खाना खाने का अधिकार पुरुष को ही ससम्मान दिया गया है ,महिला नज़र भी उठा ले तो वह पापी है
और इस दुनिया में चाचा जैसे पुरुष भी हैं
विराम जैसे भी और पारस जैसे भी
आँगन में बाप बेटी के ठहाको की आवाज़ें फिर से आने लागी थी ,गौरी भी चाय लेकर वहां जा पहुंची,रिया माँ को देखकर फिर बोल पडी
“अरे…आओ माँ ….पर रोनी सूरत क्यों बना रखी है….
कभी मुस्करा भी दिया करो माँ….”
गौरी चाय कपों में डाल रही थी ,उसने एक नज़र विराम की तरफ देखा उनके चेहरे पर कोई भाव नहीं था ,गौरी ने मुस्करा दिया .
गुड़िया और गुड्डे ,दानव ,सजीला राजकुमार ,सोने का पिंजरा सभी को चीनी के साथ घोलती जा रही थी गौरी.
कोई स्त्री हँसने का अपना सहज स्वभाव यूँ ही नहीं भूलती, कोई स्त्री बात बात में यूँ ही नहीं ड़ो पड़ती जिस स्त्री ने बचपन में ही यौन उत्पीड़न को महसूस किया हो… वो अपने आप में ही सिमटकर रह जाती है और कभी खिल नहीं पाती, खुल नहीं पाती, बोल नहीं पाती हमारी गौरी की तरह.