ब्लैकमेलर: शिखा की सास ने बच्चे की मोह में क्या किया

बैडरूम की दीवार पर मर्फी रेडियो के पोस्टर बौय का फोटो आज भी मिलता है. जितना खूबसूरत बच्चा उतनी ही खूबसूरत अदा से मुसकराते हुए होंठों पर उंगली रखे पोज में रंगीन फोटो. यह फोटो शिखा के बैडरूम में पिछले 4 सालों से लगा था. सास ने कहा था कि सुंदर बच्चे का फोटो देखने से बच्चा भी सुंदर होगा. बच्चे की राह देखतेदेखते पिछले साल उस की सास चल बसीं.

खानापीना खत्म कर शिखा नाइट लाइट की मध्यम रोशनी में मर्फी बौय को देखे जा रही थी. तभी पति अमर ने कमरे में प्रवेश करते ही कहा, ‘‘मैं ने डाक्टर से अपौइंटमैंट ले ली है. अब हमें चल कर टैस्ट करा लेना चाहिए. देखें डाक्टर क्या कहता है.’’

‘‘हां, पर यह पहले होता तो अम्मांजी की इच्छा पूरी होने की उम्मीद तो जरूर रहती.’’

‘‘आज से पहले डाक्टर ने कभी दोनों को टैस्ट करने के लिए नहीं कहा था… तुम्हारी सहेली जो डाक्टर है, उस ने भी कहा था कि कभीकभी प्रैगनैंसी में देर हो जाती है. वैसे हम ने भी

1 साल तक परहेज बरता था.’’

अमर ने ग्रैजुएशन के बाद एक प्राइवेट कंपनी में स्पोर्ट्स कोटे से नौकरी जौइन कर ली थी. वह स्टेट लैवल बौक्सिंग चैंपियन

था. अच्छीखासी पर्सनैलिटी थी अमर की. औफिस में उस के दोस्त उस से कहते भी थे, ‘‘अरे यार बौक्ंिसग रिंग में तो तुम चैंपियन हो. अब अपनी गृहस्थी जमाओ… कम से कम अपने जैसा बलवान, हृष्टपुष्ट एक फ्यूचर चैंपियन तो पैदा करो.’’

‘‘वह भी हो जाएगा… जल्दी क्या है?’’ अमर कहता.

अब शादी के 5 साल बाद शिखा और अमर दोनों ने डाक्टर से इस विषय पर सलाह लेने की जरूरत महसूस की. डाक्टर ने दोनों के कुछ टैस्ट किए और फिर 2 दिनों के बाद जब वे मिलने गए तो डाक्टर बोला, ‘‘आप की रिपोर्ट्स तैयार हैं. शिखा की रिपोर्ट्स नौर्मल हैं. उन में मां बनने के सभी लक्षण हैं, पर…’’

‘‘पर क्या डाक्टर?’’ शिखा ने बीच में डाक्टर की बात काट कर पूछा.

‘‘आई एम सौरी, बट मुझे कहना ही होगा कि अमर पिता बनने के योग्य नहीं हैं.’’

कुछ पल डाक्टर के कैबिन में सन्नाटा रहा. फिर शिखा ने कहा, ‘‘पर डाक्टर आजकल मैडिकल साइंस इतनी तरक्की कर चुकी है… कोई मैडिसिन या उपाय तो होगा?’’

‘‘हां है क्यों नहीं… आईवीएफ तकनीक

से आप मां बन सकती हैं आजकल यह बहुत

ही आसान हो गया है. किसी सक्षम पुरुष के शुक्राणु का इस्तेमाल कर आप बच्चे को जन्म दे सकती हैं.’’

‘‘डाक्टर, इस के अलावा और कोई उपाय नहीं है?’’

‘‘सौरी, इस के अलावा एक ही उपाय बचता है कि आप किसी बच्चे को गोद ले लें. आप लोग ठीक से विचार कर के बता दें… मैं थोड़ी देर में आता हूं. अगर आप कुछ और समय चाहते हैं, तो आप अपनी सुविधा से अपना फैसला ले सकते हैं.’’

शिखा और अमर दोनों ने कुछ देर तक डाक्टर के क्लीनिक में बैठेबैठे विचार किया कि अब और देर करने से कोई लाभ नहीं होगा और बच्चा आईवीएफ तकनीक से ही होगा. शिखा ने मन में सोचा कि इस से उसे मातृत्व का अनुभव भी होगा. फिर दोनों ने डाक्टर को अपना फैसला बताया.

डाक्टर बोला, ‘‘वैरी गुड. आप के कुछ और टैस्ट होंगे. मेरे क्लीनिक में कुछ डोनर्स के सैंपल्स हैं. देख कर 1-2 दिन में आप को खबर दूंगा. कोई बड़ा प्रोसैस नहीं है. जल्द ही आप का काम हो जाएगा.’’

1 सप्ताह के अंदर ही शिखा आईवीएफ तकनीक की देन से गर्भवती हुई. डाक्टर ने शिखा को नियमित चैकअप कराते रहने को कहा.

कुछ दिनों के बाद जब अमर ने बड़ी शान से औफिस में दोस्तों से कहा कि वह पिता

बनने वाला है, तो एक दोस्त ने कहा, ‘‘आखिर हमारे चैंपियन ने बाजी मार ली. अब तुम्हें हम लोगों का मुंह मीठा कराना होगा.’’

दोस्तों के कहने पर औफिस की कैंटीन में ही उन्हें मिठाई खिलाई. दोस्तों ने उस से कहा, ‘‘इस छोटीमोटी पार्टी से तुम बचने वाले नहीं हो. हम लोगों को सपरिवार पार्टी देनी होगी.’’

‘‘ठीक है, वह भी होगी.’’

करीब 4 महीने बाद डाक्टर ने शिखा से कहा, ‘‘आप के बच्चे की ग्रोथ बिलकुल ठीक है. अब आप निश्चिंत रहें. आप का बच्चा स्वस्थ और हृष्टपुष्ट होगा.’’

इस खुशी में उस दिन रात अमर ने अपने घर पर दोस्तों को सपरिवार आमंत्रित किया. शिखा भी घर पर पार्टी की तैयारी में लगी थी. उसी समय कौल बैल बजी. उस ने दरवाजा खोला तो एक आदमी बाहर खड़ा था. वह बोला, ‘‘नमस्ते मैडम.’’

‘‘मैं ने आप को पहचाना नहीं, पर लगता है पहले कहीं देखा है… अच्छा बोलिए क्या काम है? अभी साहब घर पर नहीं हैं.’’

‘‘कोई बात नहीं है, मुझे सिर्फ आप ही से काम है.’’

‘‘मुझ से? मुझ से भला क्या काम हो सकता है आप को?’’

‘‘मैडम, आप के पेट में जो बच्चा है वह मेरा है.’’

‘‘क्या बकवास कर रहे हो? गैट लौस्ट,’’ बोल कर शिखा दरवाजा बंद करने लगी.

उस आदमी ने हाथ से दरवाजा पकड़ कर कहा, ‘‘अब मेरी बात ध्यान से सुनिए वरना बाद में शर्मिंदगी होगी और पछताना पड़ेगा. अमर बहुत शान से पार्टी दे रहा है बाप बनने की खुशी में. मैं पार्टी के बीच में ही आ कर सब को बताऊंगा कि यह बच्चा अमर का नहीं, मेरा है. उस की सारी मर्दानगी की हवा निकाल दूंगा मैं.’’

शिखा और अमर दोनों ने आईवीएफ की बात छिपा रखी थी और अभी तक सभी से बता रखा था कि यह बच्चा उन का अपना है. वह डर गई और फिर बोली, ‘‘आखिर तुम क्या चाहते हो? हमें परेशान कर के तुम्हें क्या मिलेगा?’’

‘‘मुझे और कुछ नहीं चाहिए, सिर्फ

क्व2 लाख दे दीजिए. मैं अपनी जबान बंद रखूंगा.’’

‘‘इतनी बड़ी रकम हम लोग तुम्हें नहीं दे सकते हैं.’’

‘‘देखिए, पैसे तो आप को देने ही होंगे, हंस कर या रो कर… आज नहीं तो कल… अब आप बताएं मैं रात में पार्टी में आऊं या नहीं.’’

शिखा कुछ देर सोचने लगी, फिर बोली, ‘‘अभी मेरे पास मुश्किल से क्व2 हजार हैं. उन्हें आप को दे रही हूं.’’

‘‘ठीक है, आप अभी वही दे दीजिए. बाकी आप एकमुश्त देंगी… मुझे डिलिवरी के पहले पूरी रकम मिल जानी चाहिए.’’

शिखा ने उस आदमी को क्व2 हजार देते हुए कहा, ‘‘अभी इन्हें रखो. बाकी के लिए मैं अमर से बात करती हूं.’’

‘‘ठीक है, मैं 2 दिन बाद फिर आऊंगा.’’

उस रात पार्टी के बाद शिखा ने अमर को ब्लैकमेलर वाली बात बताई तो अमर बोला,

‘‘क्व2 लाख हमारे लिए बहुत बड़ी रकम होती है. कहां से लाऊंगा… उस के लिए मुझे कर्ज लेना होगा… पर यह तो ब्लैकमेलिंग हुई… उसे हमारा पता किस ने दिया होगा?’’

‘‘मुझे लगता है उस आदमी को कभी मैं ने डाक्टर के क्लीनिक में देखा है.’’

‘‘डाक्टर ऐसा नहीं कर सकता है, फिर भी एक बार मैं उस से बात करता हूं.’’

दूसरे दिन अमर डाक्टर के पास पहुंचा तो डाक्टर ने कहा, ‘‘हम लोग ऐसी सूचनाएं गुप्त रखते हैं. इसीलिए हम 3 शपथ पत्र तैयार करते हैं- पहला आईवीएफ के लिए आप दोनों की सहमति का, दूसरा यह कि आप लोग कभी डोनर के बारे में जानकारी नहीं लेंगे और अगर किसी तरह से आप को यह मालूम भी हो जाए तो आप इसे किसी को नहीं बताएंगे और साथ ही आप के बच्चे का डोनर की संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं होगा.’’

‘‘हां, हमें याद है पर, तीसरा शपथपत्र कौन सा है?’’

‘‘तीसरा हम डोनर से लेते हैं कि वह अपना अंश स्वेच्छा से दे रहा है और उसे यह जानने का हक नहीं होगा कि उस का अंश किसे दिया गया. अगर किसी तरह उसे पता चल भी जाए तो वह इसे किसी को नहीं बताएगा और होने वाले बच्चे पर उस का कोई अधिकार नहीं होगा.’’

‘‘पर शिखा ने कहा है कि उस आदमी को शायद पहले आप के क्लीनिक में देखा है. कहीं आप का ही कोई स्टाफ तो उस से मिला नहीं है?’’

‘‘हम पूरी सावधानी बरतते हैं, पर स्वार्थवश इस के लीक होने की संभावना हो सकती है,’’ डाक्टर बोला.

‘‘हम से गलती सिर्फ इतनी हुई है कि हम ने किसी से इस तकनीक की बात न कह कर इसे अपना बच्चा बताया है,’’ अमर बोला.

‘‘खैर, आप आगे भी यह बता सकते हैं.’’

‘‘नहीं डाक्टर, इट्स टू लेट… वह ब्लैकमेल कर रहा है… लगता है हमें पैसे देने ही होंगे.’’

डाक्टर कुछ देर सोचने के बाद बोला, ‘‘आप उसे एक पैसा भी नहीं देंगे. आप लोग खासकर शिखाजी को थोड़ी होशियारी से काम लेना होगा और जरा साहस भी दिखाना होगा.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘देखिए 2 रास्ते हैं- या तो अबौर्शन

करवा लें या…’’

‘‘प्लीज डाक्टर अबौर्शन की बात न कीजिए… शिखा टूट जाएगी.’’

‘‘मैं भी यही चाहता हूं… शिखाजी से कहें कि जब वह आदमी पैसों के लिए आए तो बिलकुल न डरें, बल्कि बोल्ड हो कर उसे फेस करें.’’

‘‘वह किस तरह?’’

‘‘अगली बार जब वह आए तो शिखाजी को बोलना होगा कि हां, मुझे अब पता चल गया है कि मेरा रेप तुम ने ही किया था और उसी के चलते मैं प्रैगनैंट हूं. अब मैं पुलिस को सूचित करने जा रही हूं. यह बात उसे धमकाते हुए बोल्डली कहनी होगी.’’

2 दिन बाद वह आदमी बाकी के रुपए लेने आने वाला था. शिखा ने उस दिन अमर को छुट्टी लेने को कहा, क्योंकि उसे डर था कहीं वह आदमी उस पर हमला न कर बैठे.

ठीक 2 दिन बाद ब्लैकमेलर जब पैसे मांगने आया तो शिखा ने ऊंची आवाज में कहा, ‘‘मैं ने भी पता किया है, मेरे गर्भ में तुम्हारा ही अंश है… उस दिन जो तुम ने मेरा बलात्कार किया था उसी का नतीजा है यह. बलात्कार के दिन तुम ने नकाब से चेहरा ढक रखा था, मैं पहचान नहीं सकी थी, पर आज तुम स्वयं चल कर मेरे सामने आए हो, इस से अच्छी बात और क्या हो सकती है. मैं ने उस दिन रुपए देने से पहले सैल फोन से तुम्हारा फोटो भी खींच रखा है. अब आसानी से पुलिस तुम्हें पकड़ सकती है.’’

पासा पलटते देख वह आदमी गिड़गिड़ाने लगा और बोला, ‘‘मैडम, आप ऐसा न

करें, मैं जेल चला जाऊंगा, मैं भी बालबच्चेदार आदमी हूं.’’

‘‘फिर तुम मेहनत कर क्यों नहीं कमाते हो… चलो मेरे क्व2 हजार वापस करो.’’

वह आदमी अपनी जेब से क्व5 सौ का एक नोट शिखा को देते हुए बोला, ‘‘मैडम, अभी मेरे पास इतने ही हैं… इन्हें रख लो. बाकी मैं जल्द ही लौटा दूंगा.’’

शिखा ने नोट उसे लौटाते हुए कहा, ‘‘इस से अपने बच्चों के लिए खिलौने और मिठाई मेरी तरफ से दे देना. बेहतर होगा कि तुम आगे से इस तरह के गलत काम न करने का वादा करो.’’

नोट वापस ले कर ब्लैकमेलर वहां से तुरंत खिसक लिया.

उस के जाने के बाद शिखा ने पति से पूछा, ‘‘क्या तुम ने सचमुच पुलिस को फोन किया है?’’

‘‘नहीं, एक झूठ रेप का तुम ने कहा और दूसरा झूठ मैं ने कहा… चलो बला टल गई,’’ और फिर दोनों जोर से हंस पड़े.

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Friendship Day Special: पंचायती राज – कैसी थी उनकी दोस्ती

उस दिन मुनिया अपने मकान में अकेली थी कि शोभित को अपने पास आया देख कर उस का मन खुशी से झूम उठा. उस ने इज्जत के साथ शोभित को पास बैठाया. पास के मकानों में रहते हुए शोभित और मुनिया में अच्छी दोस्ती हो गई थी. दोनों बचपन से ही एकदूसरे के घर आनेजाने लगे थे. कब उन के बीच प्यार का बीज पनपने लगा, उन्हें पता भी नहीं चला. अगर उन दोनों में मुलाकातें न हो जातीं, तो उन के दिल तड़पने लगते थे.

कुछ देर की खामोशी को तोड़ते हुए शोभित बोला, ‘‘मुनिया, मैं कई दिनों से तुम से अपने मन की बात कहना चाहता था, लेकिन सोचा कि कहीं तुम्हें या तुम्हारे परिवार वालों को बुरा न लगे.’’ ‘‘तो आज कह डालो न. यहां कोई नहीं है. तुम्हारी बात मेरे तक ही रहेगी,’’ कह कर वह हंसी थी.

‘‘मुनिया, तुम मेरे दिल में इस तरह बस गई हो कि तुम्हें एक बार दिन में देख न लूं, तो मुझे चैन नहीं पड़ता. मैं तुम्हें चाहने लगा हूं. तुम से इतनी मुहब्बत हो गई है कि मैं रातरात भर तुम्हारी याद में सपने देखता रहता हूं.’’ यह सुन कर मुनिया खुशी से पागल हो गई, लेकिन अपनी इच्छा को दबाते हुए उस ने पूछा, ‘‘क्या तुम नहीं जानते हो कि अगर हमारे रिश्ते की भनक तुम्हारे घर वालों को लग गई, तो इस का क्या नतीजा होगा?’’

शोभित बोला, ‘‘मैं तुम से सच्चा प्यार करता हूं. मुझे किसी की परवाह नहीं है.’’ मुनिया ने उस की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘मैं तो तुम्हें बहुत पहले से अपने दिल में बसा चुकी हूं, लेकिन आज तक कह नहीं पाई. मुझे डर लगता है कि समाज शायद हमारी इस चाहत को कभी नहीं समझेगा.’’

‘‘वह सब तुम मुझ पर छोड़ दो,’’ इतना कह कर शोभित ने मुनिया को खींच कर अपनी बांहों में कस लिया और उस के गालों व होंठों को चूमने लगा. मुनिया उस के प्यार में मदहोश होती रही और उसे प्यार करने लगी. हरिराम और विक्रम पाल एक ही गांव में शुरू से पासपास रहते रहे थे. हरिराम का अपना निजी पुश्तैनी पक्का शानदार मकान था, जिस के सामने विक्रम पाल का मकान छोटा सा खपरैलदार बना था, फिर भी फैलाव में वह थोड़ा बड़ा था.

हरिराम ऊंची जाति का था और विक्रम पाल को लोग नीची जाति का मानते जरूर थे, लेकिन उस का गांव वालों के साथ उठनाबैठना बराबर का था. गांव में अंतर्जातीय विवाह की प्रथा नहीं थी, फिर भी गांव के कुछ लड़के व लड़कियां प्रेमजाल में फंस कर गांव छोड़ कर दूर जा बसे थे.

गांव के लड़के मुनिया और शोभित की प्रेम कहानी को चटकारे ले कर फैलाने लगे. एक दिन यह खबर शोभित के पिता हरिराम के कानों में पहुंची. उन्होंने शोभित की पिटाई कर दी. शोभित ने भी कसम खा ली थी कि वह मुनिया को अपना जीवनसाथी बना कर रहेगा, चाहे इस के लिए उसे कोई भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े. वह भूल गया था कि एक ऊंचे खानदान वाले निचले खानदान की लड़की को बहू बनाना कभी पसंद नहीं करेंगे. वह यह भी अच्छी तरह जानता था कि प्यार करने वालों को गांवनिकाला दिया जा चुका था.

इधर हरिराम कुछ लोगों को साथ ले कर मुनिया के पिता विक्रम पाल के दरवाजे पर पहुंच कर गुस्से में दरवाजा पीटने लगा. विक्रम पाल के बाहर आने पर हरिराम चिल्लाते हुए बोला, ‘‘तुम्हारी बेटी ने कैसे इतनी हिम्मत कर ली कि उस ने मेरे बेटे को अपने झूठे प्रेमजाल में फंसा कर सारे गांव में हमारी बेइज्जती का डंका पिटवा दिया.’’

‘‘मैं आप की बात समझा नहीं,’’ विक्रम पाल ने शांत लहजे में पूछा. ‘‘सारे गांव में ढिंढोरा पिट चुका है और तुम्हें खबर नहीं लगी. पूछो अपनी बेटी से कि उस ने क्यों मेरे बेटे पर अपना प्रेमजाल फैलाया? तुम उसे अपने हाथों से नहीं मारोगे, तो वह मार दी जाएगी. पड़ोस में रहने का यह मतलब नहीं है कि तुम लोग हमारे सिर पर चढ़ कर बैठने की कोशिश करो, हमारी बराबरी करने की हिम्मत करोगे.’’

‘‘वे दोनों नादान हैं. गलती कर दी होगी. उम्र का तकाजा है. हमें समझदारी से काम लेना चाहिए, वरना गांव का माहौल बिगड़ जाएगा. उन्हें माफ कर दो. मैं मुनिया को समझा दूंगा,’’ विक्रम पाल ने गुजारिश की. ‘‘तुम अपनी बेटी पर लगाम कसो, वरना,’’ कहते हुए हरिराम अपने लोगों के साथ वापस चला गया.

उस गांव में खाप पंचायत का बोलबाला था, जिस के तालिबानी फरमानों ने बहुत से नौजवान प्रेमी जोड़ों के सपने उजाड़ दिए थे. शोभित और मुनिया को अपने ऊपर होने वाले जुल्म की फिक्र न थी. वे दोनों छिपते हुए अपने किसी दोस्त के यहां मिलते रहे.

एक दिन मुनिया की सहेली ने उसे समझाया, ‘‘तुम जितनी भोली और नासमझ हो, तुम्हारा शोभित वैसा नहीं है. वह पैसे वाला है. तुम्हारा उस से कोई मुकाबला नहीं हो सकता. ‘‘ये बड़े घर के लोग छोटों की इज्जत को खरीदने की चीज समझते हैं, पर घर की बहू नहीं बना सकते. अफसोस इस बात का है कि हम नीची जाति की लड़कियों से वे मनोरंजन तो कर सकते हैं, पर अपने घर में जगह नहीं दे सकते.’’

‘‘अब मैं क्या करूं? न तो उसे छोड़ते बनता है, न ही उस के बगैर मैं जिंदा रह सकूंगी,’’ निराश हो कर मुनिया ने कहा. ‘‘निराश मत हो. शोभित से मिल कर मंदिर में शादी कर लो. उस के बाद जो होगा देखा जाएगा.’’

‘‘इस से तो बात बढ़ेगी.’’ ‘‘तब प्रेम की दुहाई मत दो और शोभित से नाता तोड़ दो. इसी में तुम्हारी भलाई है,’’ सहेली ने कहा.

गांव में छोटी सी बात भी बहुत जल्दी फैल जाती है, फिर मुनिया और शोभित के मिलने की बात कैसे छिप सकती थी. गांव की पंचायत बैठ गई. लोग इकट्ठा होने लगे. कुछ परदानशीं औरतें और शहर से पढ़ कर लौटी लड़कियां भी वहां थीं. ऐसा लग रहा था, जैसे गांव का पूरा समाज वहां जमा हो रहा था.

मुनिया के सिर पर आंचल था. उस की मांग में सिंदूर और माथे पर लाल टीका लगा था. मुनिया और शोभित ने गुपचुप शादी रचा ली थी. पंचायत में हरिराम ने हंगामा करते हुए चीख कर कहा, ‘‘इस नीच लड़की मुनिया ने मेरे बेटे शाभित पर इतना दबाव डाला कि उस ने हमारी इज्जत को दरकिनार करते हुए उस से शादी कर ली. इस पापिन को मौत की सजा दी जाए, ताकि गांव की दूसरी बहूबेटियों की इज्जत बनी रहे.’’

कुछ लोगों ने उस की शिकायत को जायज माना. ‘‘इस में सारा कुसूर हरिराम का है. शुरू से ही शोभित और मुनिया साथ खेलतेखाते रहे और आज उन्हें ऊंचनीच समझाई जा रही है. बाप को अपने बेटे के चालचलन पर काबू करना था. उस समय हरिराम को याद नहीं आया कि उन का बेटा नीचे कुल की लड़की के साथ बैठ कर उस की जूठी रोटी खाता था.

‘‘मैं तो कहता हूं कि शोभित ने मेरी बेटी के साथ फरेब किया है. मौत का भागी तो वह होगा,’’ हरिराम के जवाब में विक्रम पाल ने अपनी सफाई दी. दोनों पक्षों में देर तक बहस चलती रही. बाद में पंचायत ने फैसला सुनाया, ‘मुनिया और उस के परिवार को गांव से निकाल दिया जाए, क्योंकि नीची जाति की लड़की से ऊंचे जाति के लड़के की शादी नहीं हो सकती. दोनों की शादी एक तमाशा है.’

उसी समय शहर से पढ़ कर आई कुछ लड़कियों में से एक चिल्लाने लगी, ‘‘पंचायत को इसी तरह का गलत फैसला सुनाना था, तो हमें शहर पढ़ने क्यों भेजा गया? वहां तो हम सभी को हर जाति, हर तबके की लड़कियों के साथ खानापीना पड़ता था. ऐसे में हम सभी लड़कियों को इस गांव में रहने का कोई हक नहीं. हमें भी गांव से निकाल देना चाहिए. ‘‘गांव के जो लड़के शहर में जा कर नीची जाति की लड़कियों से जिस्मानी संबंध बना कर खुद को पाकसाफ कहते हुए गांव लौटते हैं, उन्हें भी गांव से निकाल देना चाहिए.’’

‘‘पंचायत का फैसला अटल है. तुम लोगों की सारी बातें बकवास हैं,’’ एक पंच ने कहा. ‘‘आप लोगों का ऐसा तालिबानी फरमान हम नहीं मानेंगीं. हम बड़े सरकारी अफसरों को इस मामले की जानकारी दे कर इंसाफ मांगेंगीं. आप लोगों का इसी तरह मनमानी आदेश चलता रहा, तो देश को आगे बढ़ाने की तरफ ध्यान देने के बजाय नौजवान पीढ़ी ऐसी खाप पंचायतों के फरमानों में ही उलझ कर दम तोड़ने लगेंगी.

‘‘यही नहीं, दूसरे गांव में भी ऐसी खाप पंचायतें खुद को कानून से ऊपर मान कर गैरकानूनी कदम उठा रही हैं, जिस का हम विरोध करेंगीं,’’ उन लड़कियों में से दूसरी ने उठ कर कहा. उसी समय पुलिस इंस्पैक्टर दलबल के साथ वहां पहुंचे और बोले, ‘‘किसी ने कलक्टर साहब को फोन किया है कि किसी नीची जाति की लड़की के साथ आप की पंचायत नाइंसाफी कर रही है, इसलिए मुखियाजी को चल कर कोर्ट में अपनी सफाई देनी होगी. तब तक के लिए पंचायत का आदेश माना नहीं जाएगा. लड़की को सताया न जाए, वरना हमें कानूनी कार्यवाही करनी पड़ेगी.’’ उसी समय पंचायत खत्म हो गई. शोभित और मुनिया दोबारा अपने दोस्त के मकान की ओर चले गए.

तभी ‘हमारी जीत हुई… हम साथसाथ रहेंगे…’ का शोर हुआ.

Friendhsip Day Special: एक अच्छा दोस्त-सतीश से क्या चाहती थी राधा

सतीश लंबा, गोरा और छरहरे बदन का नौजवान था. जब वह सीनियर क्लर्क बन कर टैलीफोन महकमे में पहुंचा, तो राधा उसे देखती ही रह गई. शायद वह उस के सपनों के राजकुमार सरीखा था.

कुछ देर बाद बड़े बाबू ने पूरे स्टाफ को अपने केबिन में बुला कर सतीश से मिलवाया.

राधा को सतीश से मिलवाते हुए बड़े बाबू ने कहा, ‘‘सतीश, ये हैं हमारी स्टैनो राधा. और राधा ये हैं हमारे औफिस के नए क्लर्क सतीश.’’

राधा ने एक बार फिर सतीश को ऊपर से नीचे तक देखा और मुसकरा दी.

औफिस में सतीश का आना राधा की जिंदगी में भूचाल लाने जैसा था. वह घर जा कर सतीश के सपनों में खो गई. दिन में हुई मुलाकात को भूलना उस के बस में नहीं था.

सतीश और राधा हमउम्र थे. राधा के मन में उधेड़बुन चल रही थी. उसे लग रहा था कि काश, सतीश उस की जिंदगी में 2 साल पहले आया होता.

राधा की शादी 2 साल पहले मोहन के साथ हुई थी. वह एक प्राइवेट कंपनी में असिस्टैंट मैनेजर था. घर में किसी चीज की कमी नहीं थी, मगर मोहन को कंपनी के काम से अकसर बाहर ही रहना पड़ता था. घर में रहते हुए भी वह राधा पर कम ही ध्यान दे पाता था.

यों तो राधा एक अच्छी बीवी थी, पर मोहन का बारबार शहर से बाहर जाना उसे पसंद नहीं था. मोहन का सपाट रवैया उसे अच्छा नहीं लगता था. वह तो एक ऐसे पति का सपना ले कर आई थी, जो उस के इर्दगिर्द चक्कर काटता रहे. लेकिन मोहन हमेशा अपने काम में लगा रहता था.

अगले दिन सतीश समय से पहले औफिस पहुंच गया. वह अपनी सीट पर बैठा कुछ सोच रहा था कि तभी राधा ने अंदर कदम रखा.

सतीश को सामने देख राधा ने उस से पूछा, ‘‘कैसे हैं आप? इस शहर में पहला दिन कैसा रहा?’’

सतीश ने सहज हो कर जवाब दिया, ‘‘मैं ठीक हूं. पहला दिन तो अच्छा ही रहा. आप कैसी हैं?’’

राधा ने चहकते हुए कहा, ‘‘खुद ही देख लो, एकदम ठीक हूं.’’

इस के बाद राधा लगातार सतीश के करीब आने की कोशिश करने लगी. धीरेधीरे सतीश भी खुलने लगा. दोनों औफिस में हंसतेबतियाते रहते थे.

हालांकि औफिस के दूसरे लोग उन की इस बढ़ती दोस्ती से अंदर ही अंदर जलते थे. वे पीठ पीछे जलीकटी बातें भी करने लगे थे.

राधा के जन्मदिन पर सतीश ने उसे एक बढि़या सा तोहफा दिया और कैंटीन में ले जा कर लंच भी कराया.

राधा एक नई कशिश का एहसास कर रही थी. समय पंख लगा कर उड़ता गया. सतीश और राधा की दोस्ती गहराती चली गई.

राधा शादीशुदा है, सतीश यह बात बखूबी जानता था. वह अपनी सीमाओं को भी जानता था. उसे तो एक अजनबी शहर में कोई अपना मिल गया था, जिस के साथ वह अपने सुखदुख की बातें कर सकता था.

सतीश की मां ने कई अच्छे रिश्तों की बात अपने खत में लिखी थी, मगर वह जल्दी शादी करने के मूड में नहीं था. अभी तो उस की नौकरी लगे केवल 8 महीने ही हुए थे. वह राधा के साथ पक्की दोस्ती निभा रहा था, लेकिन राधा इस दोस्ती का कुछ और ही मतलब लगा रही थी.

राधा को लगने लगा था कि सतीश उस से प्यार करने लगा है. वह पहले से ज्यादा खुश रहने लगी थी. वह अपने मेकअप और कपड़ों पर भी ज्यादा ध्यान देने लगी थी. उस पर सतीश का नशा छाने लगा था. वह मोहन का वजूद भूलती जा रही थी.

सतीश हमेशा राधा की पसंदनापसंद का खयाल रखता था. वह उस की हर बात की तारीफ किए बिना नहीं रहता था. यही तो राधा चाहती थी. उसे अपना सपना सच होता दिखाई दे रहा था.

एक दिन राधा ने सतीश को डिनर पर अपने घर बुलाया. सतीश सही समय पर राधा के घर पहुंच गया.

नीली जींस व सफेद शर्ट में वह बेहद सजीला जवान लग रहा था. उधर राधा भी किसी परी से कम नहीं लग रही थी. उस ने नीले रंग की बनारसी साड़ी बांध रखी थी, जो उस के गोरे व हसीन बदन पर खूब फब रही थी.

सतीश के दरवाजे की घंटी बजाते ही राधा की बांछें खिल उठीं. उस ने मीठी मुसकान बिखेरते हुए दरवाजा खोला और उसे भीतर बुलाया.

ड्राइंगरूम में बैठा सतीश इधरउधर देख रहा था कि तभी राधा चाय ले कर आ गई.

‘‘मैडम, मोहनजी कहां हैं? वे कहीं दिखाई नहीं दे रहे,’’ सतीश ने पूछा.

राधा खीज कर बोली, ‘‘वे कंपनी के काम से हफ्तेभर के लिए हैदराबाद गए हैं. उन्हें मेरी जरा भी फिक्र नहीं रहती है. मैं अकेली दीवारों से बातें करती रहती हूं. खैर छोड़ो, चाय ठंडी हो रही है.’’

सतीश को लगा कि उस ने राधा की किसी दुखती रग पर हाथ रख दिया है. बातोंबातों में चाय कब खत्म हो गई, पता ही नहीं चला.

राधा को लग रहा था कि सतीश ने आ कर कुछ हद तक उस की तनहाई दूर की है. सतीश कितना अच्छा है. बातबात पर हंसतामुसकराता है. उस का कितना खयाल रखता है.

तभी सतीश ने टोकते हुए पूछा, ‘‘राधा, कहां खो गई तुम?’’

‘‘अरे, कहीं नहीं. सोच रही थी कि तुम्हें खाने में क्याक्या पसंद हैं?’’

सतीश ने चुटकी लेते हुए जवाब दिया, ‘‘बस यही राजमा, पुलाव, रायता, पूरीपरांठे और मूंग का हलवा. बाकी जो आप खिलाएंगी, वही खा लेंगे.’’

‘‘क्या बात है. आज तो मेरी पसंद हम दोनों की पसंद बन गई,’’ राधा ने खुश होते हुए कहा.

राधा सतीश को डाइनिंग टेबल पर ले गई. दोनों आमनेसामने जा बैठे. वहां काफी पकवान रखे थे.

खाते हुए बीचबीच में सतीश कोई चुटकुला सुना देता, तो राधा खुल कर ठहाका लगा देती. माहौल खुशनुमा हो गया था.

‘काश, सब दिन ऐसे ही होते,’ राधा सोच रही थी.

सतीश ने खाने की तारीफ करते हुए कहा, ‘‘वाह, क्या खाना बनाया?है, मैं तो उंगली चाटता रह गया. तुम इसी तरह खिलाती रही तो मैं जरूर मोटा हो जाऊंगा.’’

‘‘शुक्रिया जनाब, और मेरे बारे में आप का क्या खयाल है?’’ कहते हुए राधा ने सतीश पर सवालिया निगाह डाली.

‘‘अरे, आप तो कयामत हैं, कयामत. कहीं मेरी नजर न लग जाए आप को,’’ सतीश ने मुसकरा कर जवाब दिया.

सतीश की बात सुन कर राधा झूम उठी. उस की आंखों के डोरे लाल होने लगे थे. वह रोमांटिक अंदाज में अपनी कुरसी से उठी और सतीश के पास जा कर स्टाइल से कहने लगी, ‘‘सतीश, आज मौसम कितना हसीन है. बाहर बूंदों की रिमझिम हो रही?है और यहां हमारी बातोें की. चलो, एक कदम और आगे बढ़ाएं. क्यों न प्यारमुहब्बत की बातें करें…’’

इतना कह कर राधा ने अपनी गोरीगोरी बांहें सतीश के गले में डाल दीं. सतीश राधा का इरादा समझ गया. एक बार तो उस के कदम लड़खड़ाए, मगर जल्दी ही उस ने खुद पर काबू पा लिया और राधा को अपने से अलग करता हुआ बोला, ‘‘राधाजी, आप यह क्या कर रही?हैं? क्यों अपनी जिंदगी पर दाग लगाने पर तुली हैं? पलभर की मौजमस्ती आप को तबाह कर देगी.

‘‘अपने जज्बातों पर काबू कीजिए. मैं आप का दोस्त हूं, अंधी राहों पर धकेलने वाला हवस का गुलाम नहीं.

‘‘आप अपनी खुशियां मोहनजी में तलाशिए. आप के इस रूप पर उन्हीं का हक है. उन्हें अपनाने की कोशिश कीजिए,’’ इतना कह कर सतीश तेज कदमों से बाहर निकल गया.

राधा ठगी सी उसे देखती रह गई. उसे अपने किए पर अफसोस हो रहा था. वह सोचने लगी, ‘मैं क्यों इतनी कमजोर हो गई? क्यों सतीश को अपना सबकुछ मान बैठी? क्यों इस कदर उतावली हो गई?

‘अगर सतीश ने मुझे न रोका होता तो आज मैं कहीं की न रहती. बाद में वह मुझे ब्लैकमेल भी कर सकता था. मगर वह ऐसा नहीं है. उस ने मुझे भटकने से रोक लिया. कितना महान है सतीश. मुझे उस की दोस्ती पर नाज है.’

एक मौका और दीजिए : बहकने लगे सुलेखा के कदम -भाग 3

दर्द से उसे यों तड़पता देख कर उस ने दूध मेज पर रखा तथा उस के पास ‘क्या हुआ’ कहती हुई आई. उस के आते ही उस ने हाथपैर ढीले छोड़ दिए तथा सांस रोक कर ऐसे लेट गया मानो जान निकल गई हो. वह बचपन से तालाब में तैरा करता था, अत: 5 मिनट तक सांस रोक कर रखना उस के बाएं हाथ का खेल था.

सुलेखा ने उस के शांत पड़े शरीर को छूआ, थोड़ा झकझोरा, कोई हरकत न पा कर बोली, ‘‘लगता है, यह तो मर गए…अब क्या करूं…किसे बुलाऊं?’’

मनीष को उस की यह चिंता भली लगी. अभी वह अपने नाटक का अंत करने की सोच ही रहा था कि सुलेखा की आवाज आई :

‘‘सुयश, हमारे बीच का कांटा खुद ही दूर हो गया.’’

‘‘क्या, तुम सच कह रही हो?’’

‘‘विश्वास नहीं हो रहा है न, अभीअभी हार्टअटैक से मनीष मर गया. अब हमें विवाह करने से कोई नहीं रोक पाएगा…मम्मी, पापा के कहने से मैं ने मनीष से विवाह तो कर लिया पर फिर भी तुम्हारे प्रति अपना लगाव कम नहीं कर सकी. अब इस घटना के बाद तो उन्हें भी कोई एतराज नहीं होगा.

‘‘देखो, तुम्हें यहां आने की कोई आवश्यकता नहीं है. बेवजह बातें होंगी. मैं नीलेश भाई साहब को इस बात की सूचना देती हूं, वह आ कर सब संभाल लेंगे…आखिर कुछ दिनों का शोक तो मुझे मनाना ही होगा, तबतक तुम्हें सब्र करना होगा,’’ बातों से खुशी झलक रही थी.

‘पहले दूध पी लूं फिर पता नहीं कितने घंटों तक कुछ खाने को न मिले,’ बड़बड़ाते हुए सुलेखा ने दूध का गिलास उठाया और पास पड़ी कुरसी पर बैठ कर पीने लगी.

मनीष सांस रोके यह सब देखता, सुनता और कुढ़ता रहा. दूध पी कर वह उठी और बड़बड़ाते हुए बोली, ‘अब नीलेश को फोन कर ही देना चाहिए…’ उसे फोन मिला ही रही थी कि  मनीष उठ कर बैठ गया.’

‘‘तुम जिंदा हो,’’ उसे बैठा देख कर अचानक सुलेखा के मुंह से निकला.

‘‘तो क्या तुम ने मुझे मरा समझ लिया था…?’’ मनीष बोला, ‘‘डार्लिंग, मेरे शरीर में हलचल नहीं थी पर दिल तो धड़क रहा था. लेकिन खुशी के अतिरेक में तुम्हें नब्ज देखने या धड़कन सुनने का भी ध्यान नहीं रहा. तुम ने ऐसा क्यों किया सुलेखा? जब तुम किसी और से प्यार करती थीं तो मेरे साथ विवाह क्यों किया?’’

‘‘तो क्या तुम ने सब सुन लिया?’’ कहते हुए वह धम्म से बैठ गई.

‘‘हां, तुम्हारी सचाई जानने के लिए मुझे यह नाटक करना पड़ा था. अगर तुम उस के साथ रहना चाहती थीं तो मुझ से एक बार कहा होता, मैं तुम दोनों को मिला देता, पर छिपछिप कर उस से मिलना क्या बेवफाई नहीं है.

‘‘10 महीने मेरे साथ एक ही कमरे में मेरी पत्नी बन कर गुजारने के बावजूद आज अगर तुम मेरी नहीं हो सकीं तो क्या गारंटी है कल तुम उस से भी मुंह नहीं मोड़ लोगी…या सुयश तुम्हें वही मानसम्मान दे पाएगा जो वह अपनी प्रथम विवाहित पत्नी को देता…जिंदगी एक समझौता है, सब को सबकुछ नहीं मिल जाता, कभीकभी हमें अपनों के लिए समझौते करने पड़ते हैं, फिर जब तुम ने अपने मातापिता के लिए समझौता करते हुए मुझ से विवाह किया तो उस पर अडिग क्यों नहीं रह पाईं…अगर उन्हें तुम्हारी इस भटकन का पता चलेगा तो क्या उन का सिर शर्म से नीचा नहीं हो जाएगा?’’

‘‘मुझे माफ कर दो, मनीष. मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई,’’ सुलेखा ने उस के कदमों पर गिरते हुए कहा.

‘‘अगर तुम इस संबंध को सच्चे दिल से निभाना चाहती हो तो मैं भी सबकुछ भूल कर आगे बढ़ने को तैयार हूं और अगर नहीं तो तुम स्वतंत्र हो, तलाक के पेपर तैयार करवा लेना, मैं बेहिचक हस्ताक्षर कर दूंगा…पर इस तरह की बेवफाई कभी बरदाश्त नहीं कर पाऊंगा.’’

उसी समय सुलेखा का मोबाइल खनखना उठा…

‘‘सुयश, आइंदा से तुम मुझे न तो फोन करना और न ही मिलने की कोशिश करना…मेरे वैवाहिक जीवन में दरार डालने की कोशिश, अब मैं बरदाश्त नहीं करूंगी,’’ कहते हुए सुलेखा ने फोन काट दिया तथा रोने लगी.

उस के बाद फिर फोन बजा पर सुलेखा ने नहीं उठाया. रोते हुए बारबार उस के मुंह से एक ही बात निकल रही थी, ‘‘प्लीज मनीष, एक मौका और दे दो…अब मैं कभी कोई गलत कदम नहीं उठाऊंगी.’’

उस की आंखों से निकलते आंसू मनीष के हृदय में हलचल पैदा कर रहे थे पर मनीष की समझ में नहीं आ रहा था कि वह उस की बात पर विश्वास करे या न करे. जो औरत उसे पिछले 10 महीने से बेवकूफ बनाती रही…और तो और जिसे उस की अचानक मौत इतनी खुशी दे गई कि उस ने डाक्टर को बुला कर मृत्यु की पुष्टि कराने के बजाय अपने प्रेमी को मृत्यु की सूचना  ही नहीं दी, अपने भावी जीवन की योजना बनाने से भी नहीं चूकी…उस पर एकाएक भरोसा करे भी तो कैसे करे और जहां तक मौके का प्रश्न है…उसे एक और मौका दे सकता है, आखिर उस ने उस से प्यार किया है, पर क्या वह उस से वफा कर पाएगी या फिर से वह उस पर वही विश्वास कर पाएगा…मन में इतना आक्रोश था कि वह बिना सुलेखा से बातें किए करवट बदल कर सो गया.

दूसरा दिन सामान्य तौर पर प्रारंभ हुआ. सुबह की चाय देने के बाद सुलेखा नाश्ते की तैयारी करने लगी तथा वह पेपर पढ़ने लगा. तभी दरवाजे की घंटी बजी. दरवाजा मनीष ने खोला तो सामने किसी अजनबी को खड़ा देख वह चौंका पर उस से भी अधिक वह आगंतुक चौंका.

वह कुछ कह पाता इस से पहले ही मनीष जैसे सबकुछ समझ गया और सुलेखा को आवाज देते हुए अंदर चला गया, पर कान बाहर ही लगे रहे.

सुलेखा बाहर आई. सुयश को खड़ा देख कर चौंक गई. वह कुछ कह पाता इस से पहले ही तीखे स्वर में सुलेखा बोली, ‘‘जब मैं ने कल तुम से मिलने या फोन करने के लिए मना कर दिया था उस के बाद भी तुम्हारी यहां मेरे घर आने की हिम्मत कैसे हुई. मैं तुम से कोई संबंध नहीं रखना चाहती…आइंदा मुझ से मिलने की कोशिश मत करना.’’

सुयश का उत्तर सुने बिना सुलेखा ने दरवाजा बंद कर दिया और किचन में चली गई. आवाज में कोई कंपन या हिचक नहीं थी.

वह नहाने के लिए बाथरूम गया तो सबकुछ यथास्थान था. तैयार हो कर बाहर आया तो नाश्ता लगाए सुलेखा उस का इंतजार कर रही थी. नाश्ता भी उस का मनपसंद था, आलू के परांठे और मीठा दही.

आफिस जाते समय उस के हाथ में टिफिन पकड़ाते हुए सुलेखा ने सहज स्वर में पूछा, ‘‘आज आप जल्दी आ सकते हैं. रीजेंट में बाबुल लगी है…अच्छी पिक्चर है.’’

‘‘देखूंगा,’’ न चाहते हुए भी मुंह से निकल गया.

गाड़ी स्टार्ट करते हुए मनीष सोच रहा था कि वास्तव में सुलेखा ने स्वयं को बदल लिया है या दिखावा करने की कोशिश कर रही है. सचाई जो भी हो पर वह उसे एक मौका अवश्य देगा.

कार पूल : शेयरिंग कैब में भिड़े दो दिल

अर्पित अहमदाबाद एक संभ्रांत परिवार का लड़का था. लड़का क्या, नवयुवक था. सरकारी नौकरी करते हुए 6 माह हो चुके थे. उस के पास स्वयं की कार थी, लेकिन वह पूल वाली कैब से औफिस जाना पसंद करता था. शहर में कैब की सर्विस बहुत अच्छी थी.

अर्पित खुशमिजाज इनसान था. कैब में सहयात्रियों और कैब चालक से बात करना उस को अच्छा लगता था.

उस दिन भी वह औफिस से घर वापसी आते हुए रोज की तरह शेयरिंग वाली कैब से आ रहा था. रास्ते में श्रेया नाम की एक और सवारी उस कैब में सवार होनी थी.

अर्पित की आदत थी कि शेयरिंग कैब में वह पीछे की सीट पर जिस तरफ बैठा होता था, उस तरफ का गेट लौक कर देता था. उस दिन भी ऐसा ही था. श्रेया को लेने जब कैब पहुंची, तो उस ने अर्पित वाली तरफ के गेट को खोल कर बैठने की कोशिश की, पर गेट लौक होने के कारण उस का गेट खोलने में असफल रही श्रेया झल्ला कर कार की दूसरी तरफ से गेट खोल कर बैठ गई. युद्ध की स्थिति तुरंत ही बन गई और सारे रास्ते अर्पित और श्रेया लड़ते हुए गए.

घर आने पर अर्पित उतर गया. श्रेया के लिए ये वाकिआ बरदाश्त के बाहर था. असल में श्रेया को अपने लड़की होने का बहुत गुरूर था. आज तक उस ने लड़को को अपने आसपास चक्कर काटते ही देखा था. कोई लड़का इतनी बुरी तरह से उस से पहली बार उलझा था. श्रेया के तनबदन में आग लगी हुई थी.

अर्पित का घर श्रेया ने उस दिन देख ही लिया था. नामपते की जानकारी से श्रेया ने अर्पित के बारे में सबकुछ पता कर लिया और तीसरे ही दिन अर्पित के घर से 50 मीटर दूर आ कर लगभग उसी समय के अंदाजे के साथ कैब बुकिंग का प्रयास किया. जब अर्पित सुबह औफिस के लिए निकलता था.

श्रेया का भाग्य कहिए या अर्पित का दुर्भाग्य, श्रेया को अर्पित वाली कैब में ही बुकिंग मिल गई, एक कुटिल मुसकान कैब वाले एप पर ‘‘अर्पित के साथ पूल्ड‘‘ देख कर श्रेया के चेहरे पर तैर गई.

जिस तरफ श्रेया खड़ी थी, उसी तरफ कैब आती होने के कारण श्रेया को पिक करती हुई कैब अर्पित के घर के सामने रुकी. अर्पित बेखयाली में ड्राइवर के बगल वाली सीट पर सवार हो गया, तभी उसे पीछे से खनकती हुई आवाज आई, ‘‘कैसे हो अर्पितजी ?”

अर्पित ने चैंकते हुए पीछे मुड़ कर देखा, तो श्रेया सकपका गई, क्योंकि 3 दिन पुराना वाकिआ उसे याद आ गया लेकिन आज श्रेया के बात की शुरुआत करने का अंदाज ही अलग था, सो धीरेधीरे श्रेया और अर्पित की बातचीत दोस्ती में बदल गई.

दोनों का गंतव्य अभी बहुत दूर था. अर्पित कैब को रुकवा कर पीछे वाली सीट पर श्रेया के बगल में जा कर बैठ गया. एकदूसरे के फोन नंबर लिएदिए गए. अर्पित अपना औफिस आने पर उतर गया और श्रेया ने गरमजोशी से हाथ मिला कर उस को विदा किया.

अर्पित के मानो पंख लग गए. औफिस में अर्पित सारे दिन चहकाचहका रहा. दोपहर में श्रेया का फोन आया, तो अर्पित का तनबदन झूम उठा. श्रेया ने उस को लंच साथ करने का प्रस्ताव रखा, जो उस ने सहर्ष स्वीकार कर लिया.

दोपहर तकरीबन 1 बजे दोनों अर्पित के औफिस से थोड़ी दूर एक रेस्तरां में मिले और साथ लंच लिया.

अब तो यह लगभग रोज का ही किस्सा बन गया. औफिस के बाद शाम को भी दोनों मिलने लगे और साथसाथ घूमतेफिरते दोनों के बीच में जैसे प्यार के अंकुर फूट के खिलने लगे.

एक दिन श्रेया ने अंकुर को दोपहर में फोन कर के बताया कि शाम तक वह घर में अकेली है और अगर अर्पित उस के घर आ जाए, तो दोनों ‘अच्छा समय‘ साथ बिता सकते हैं. अर्पित के सिर पर प्यार का भूत पूरी तरह से चढ़ा हुआ था. अपने बौस को तबीयत खराब का बहाना बना कर अर्पित श्रेया के घर के लिए निकल पड़ा.

आने वाले किसी भी तूफान से बेखबर, मस्ती और वासना में चूर अर्पित श्रेया के घर पहुंचा और डोरबैल बजाई. एक मादक अंगड़ाई लेते हुए श्रेया ने अपने घर का दरवाजा खोला.

श्रेया के गीले और खुले बाल और नाइट गाउन में ढंका बदन देख कर अर्पित की खुमारी और परवान चढ़ गई. श्रेया ने अर्पित को अंदर ले कर गेट बंद कर दिया.

कुछ ही देर में दोनों एकदूसरे के आगोश में आ गए और एक प्यार भरे रास्ते पर निकल पड़े.

अर्पित ने श्रेया के बदन से कपड़े जुदा करने में कोई जल्दबाजी नहीं दिखाई. उस ने श्रेया के पूरे बदन पर मादकता से फोरप्ले करते हुए समूचे जिस्म को प्यार से सहलाया.

धीरेधीरे अब अर्पित श्रेया के बदन से कपड़े जुदा करने लगा. एकाएक ही श्रेया जोरजोर से चिल्लाने लगी. अर्पित को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह चिल्ला क्यों रही है. कुछ ही पलों में अड़ोसपड़ोस के बहुत से लोग जमा हो गए और श्रेया के घर के अंदर आ गए.

श्रेया ने चुपचाप मेन गेट पहले ही खोल दिया था. श्रेया ने सब को बताया कि अर्पित जबरदस्ती घर में घुस कर उस का बलात्कार करने की कोशिश कर रहा था. उन मे से एक आदमी ने पुलिस को फोन कर दिया. ये सब इतनी जल्दी हुआ कि अर्पित को सोचनेसमझने का मौका नहीं मिला. थोड़ी ही देर बाद अर्पित सलाखों के पीछे था.

श्रेया ने उस दिन की छोटी सी लड़ाई का विकराल बदला ले डाला था.

जेल में 48 घंटे बीतने के साथ ही अर्पित को नौकरी से सस्पैंड किया जा चुका था. अर्पित को अपना पूरा भविष्य अंधकरमय नजर आने लगा और कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था.

कोर्ट में कई बार पेश किए जाने के उपरांत आज जज ने उस के लिए सजा मुकर्रर करने की तारीख रखी थी. अंतिम सुनवाई के उपरांत जज साहिबा जैसे ही अपना फैसला सुनाने को हुईं, अचानक ही इंस्पैक्टर प्रकाश ने कोर्ट मे प्रवेश करते हुए जज साहिबा से एक सुबूत पेश करने की इजाजत मांगी. मामला संगीन था और जज साहिबा बड़ी सजा सुनाने के मूड में थीं, इसलिए उन्होंने इंस्पैक्टर प्रकाश को अनुमति दे दी.

इंस्पैक्टर प्रकाश के साथ अर्पित का सहकर्मी विकास था और विकास के मोबाइल में अर्पित और श्रेया के बीच हुए प्रेमालाप की और श्रेया के मादक आहें भरने और अर्पित की वासना को और भड़काने के लिए प्रेरित करने की समूची औडियो रिकौर्डिंग मौजूद थी. दरअसल, जिस समय दोनों का प्रेमालाप शुरू होने वाला था, उसी समय विकास ने अर्पित की तबीयत पूछने के लिए उस को फोन मिलाया था और अर्पित ने गलती से फोन काटने के बजाय रिसीव कर के बेड के एक तरफ रख दिया था. विकास ने सारी काल रिकौर्ड कर ली थी.

श्रेया और अर्पित के बीच हुआ सारा वार्तालाप और श्रेया की वासना भरी आहें व अर्पित को बारबार उकसाने का प्रमाण उस सारी रिकौर्डिंग से सर्वविदित हो गया.

अदालत के निर्णय लिए जाने वाले दिन पूर्व में श्रेया द्वारा रूपजाल में फंसाए हुए अनिल ने भी अदालत में श्रेया के खिलाफ बयान दिया, जिस से श्रेया का ऐयाश होना और पुख्ता हो गया.

अदालत ने तमाम सुबूतों को मद्देनजर रखते हुए यह संज्ञान लिया कि श्रेया एक ऐयाश लड़की थी और भोलेभाले नौजवानों को अपने रूपजाल में फंसा कर उन के पैसों पर मौजमस्ती और ऐश करती थी. एक बेगुनाह नौजवान की जिंदगी बरबाद होने से बच गई. श्रेया को चरित्रहीनता और झूठे आरोप लगा कर युवक को बरबाद करने का प्रयास करने का आरोपी करार देते हुए जज ने जम कर फटकार लगाई. जज ने श्रेया को भविष्य में कुछ भी गलत करने पर सख्त सजा की चेतावनी देते हुए अर्पित को बाइज्जत बरी करने के आदेश दिए.

अर्पित ने मन ही मन ऊपर वाले का शुक्रिया अदा करते हुए भविष्य में एक सादगी भरी जिंदगी जीने का निर्णय लिया.

गुप्त रोग: रूबी और अजय के नजायज संबंधों का कैसे हुआ पर्दाफाश – भाग 3

”हां, और आप भी समय पर दवाएं खाते रहिएगा. ज्यादा तलाभुना भी मत खाइएगा,” रूबी ने परेशानी के भाव चेहरे पर लाते हुए कहा.

रणबीर के आ जाने से कई दिनों तक रूबी और अजय सिंह मिल नहीं पा रहे थे. अब आज रणबीर के जाने के बाद उन्हें जी भर कर जिस्म का सुख उठाने का मौका मिलने वाला था.

रूबी के फोन करते ही अजय सिंह उस के घर आ गया और दोनों ही पूरी तरह सैक्स सुख लेने लगे. इन पूरे 2 दिनों में अजय सिंह रूबी के घर में ही रहा.

2 दिन के बाद रणबीर का फोन आया कि वह शहर में आ चुका है और घर पहुंचने वाला है. अजय सिंह यह जान कर वहां से निकल लिया.

रणबीर मुसकराते हुए घर आया. रूबी ने उस के गले लगते हुए कहा कि वह उस के लिए चाय बना कर लाती है.

चाय पीते समय रणबीर ने उसे बताया कि कल शाम को उसे गुजरात जाना है. रूबी ने सामने से तो हैरानी दिखाई, पर मन ही मन वह रणबीर के जाने की बात सुन कर बहुत खुश हो रही थी.

अगले दिन रणबीर गुजरात के लिए निकल गया.

रणबीर के जाने के करीब एक हफ्ते बाद उसे एक चिट्ठी मिली, जिसे पढ़ कर रूबी बुरी तरह चौंक गई :

‘मैं तुम्हारे और तुम्हारे उस ‘फ्रैंड’ के संबंधों के बारे में सबकुछ जान चुका हूं. मैं ने तुम्हें बहुत प्यार किया, पर तुम से बेवफाई ही मिली. अब मेरे पास तुम्हें तलाक देने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है.

‘2 दिन के लिए बाहर जाने का बहाना कर के मैं ने तुम्हारे बैडरूम में कैमरा लगा कर तुम्हारी हकीकत जान ली है. मेरे पास गैरमर्द के साथ तुम्हारी सैक्स वीडियो भी है, जिस को मैं ने सोशल मीडिया में वायरल कर दिया है. जल्द ही तुम पूरे शहर में फेमस हो जाओगी और अब तुम अपने प्रेमी के पास चली जाना, क्योंकि मैं ने यह मकान भी बेच दिया है.’

चिट्ठी पढ़ कर रूबी सकते में आ गई थी. बदहवास हालत में वह अस्पताल जा कर अजय सिंह से मिलने पहुंची, पर वहां जा कर उसे पता चला कि उन दोनों का फूहड़ वीडियो सोशल मीडिया के द्वारा शहर में वायरल हो चुका है और बदनामी के डर से डाक्टर साहब ने उसे नौकरी से निकाल दिया है.

परेशान रूबी ने अजय सिंह को फोन लगाया.

‘तू ने मेरी ही सैक्स की वीडियो बना डाली और पूरे शहर में बदनामी करवा दी है, और इस के चलते मुझे अपनी नौकरी से भी हाथ धोना पड़ गया है,’ अजय सिंह चीख रहा था.

‘बीवीबच्चों को भी मेरे नाजायज संबंधों के बारे में पता चल गया है और इन सब की जिम्मेदार सिर्फ तुम हो, पर, इतनी जिल्लत के साथ मेरा जी पाना बहुत मुश्किल है, इसलिए मैं यह दुनिया ही छोड़ कर जा रहा हूं,’ यह कह कर फोन कट गया था.

आतेजाते लोग रूबी को रोते हुए देख रहे थे. नौजवान लड़के और पान की दुकानों पर खड़े आदमी कभी मोबाइल की स्क्रीन पर देखते तो कभी रूबी के चेहरे की तरफ.

रूबी को उस की बेवफाई की सजा मिल गई थी.

 

15 अगस्त स्पेशल: फौजी के फोल्डर से एक सैनिक की कहानी – भाग 3

‘पर उस ने ऐसा कैसे किया. मैं ने सिर्फ और सिर्फ इसी समारोह के लिए कैमरा लिया था और उस ने सब बेकार कर दिया. अब दोबारा यह समय तो नहीं आएगा. मैं ने सोचा था जब आप लोग मेरे कंधे पर स्टार लगाओगे तो उस फोटो को मैं फ्रेम करवा कर ड्राइंगरूम में सजाऊंगा, मगर इस की गलती से सब बेकार हो गया.’

‘क्या बेकार हुआ बता. जा, तू अभी अपनी वरदी पहन. महिमा, तू पापा को बुला कर ला. हम अभी तेरे कंधे पर स्टार लगाते हुए तेरे साथ फोटो खिंचवा लेते हैं. अभी हम जिंदा ही हैं, मरे नहीं, कि दोबारा फोटो न खींच सकें.’

कितना सही कहा था मां ने. जब तक जीवन है, उम्मीद नहीं मरती. मगर जो चले गए इस जीवन से, उन के मातापिता की उम्मीदों का क्या? वे क्या उम्मीद रखें और किस से रखें? आजकल हर कोई अपनी बयानबाजी में जुट कर रोज ही अखबारों व टैलीविजन पर सुर्खियां बटोरने में लगा है. कोई कहता है किस ने इन्हें फौज जौइन करने को कहा था? तो कोई कुछ और.

किसी को आर्मी जौइन करने को कह कर तो देखो, तब पता चल जाएगा. किसी दूसरे के कहने से तो कोई जा भी नहीं सकता. हम अपने देशप्रेम के जज्बे के चलते मरमिटने के लिए ही वरदी पहनते हैं. भले ही हमारे परिवार की सहमति हो या न हो. वे हमें भेजना नहीं चाहते हों, मगर हमारी जिद से उन्हें झुकना भी पड़ता है और शहीद हो जाने का दर्द भी उन्हें ही झेलना होता है. और ये रातदिन बकवास करने वालों का क्या जाता है. अपनी राजनीति चमकाते रहने के अलावा सीखा ही क्या है? क्या वे मोहित की बहन के न सूखने वाले आंसुओं को समेट उन के भाई या बेटे की जिम्मेदारी निभाने जाएंगे? जब ऐसा कुछ भी कर नहीं सकते तो उन के घावों को कुरेदते क्यों हैं?

एक फोटो पर अचानक नजर पड़ते ही राघव अतीत की यादों से बाहर आ गया. उस की उंगलियां आगे बढ़ने से रूक गईं. महिमा के केक काटने की फोेटो थी. अरे, इसी महीने तो महिमा का जन्मदिन पड़ता है. ओह, वह तो सब भूल ही गया था. यहां नैटवर्क भी बहुत कमजोर है. कभी फोन लगता है, कभी नहीं. चलो, अभी मिला कर देखता हूं, मिल गया तो ऐडवांस में ही बधाईर् दे दूंगा.

फोन एक बार में ही मिल गया. तो राघव का मुंह खिल गया, मानो कोई गड़ा हुआ खजाना हाथ लग गया हो.

‘‘हैलो मां, प्रणाम, कैसी हैं आप?’’

‘‘खुश रहो बेटा,’’ आज कितनो दिनों के बाद आवाज सुनने को मिल रही है.’’

‘‘मां, जल्दी से महिमा को फोन दो… हैप्पी बर्थडे टू यू, हैप्पी बर्थ टू डिअर सिस, हैप्पी बर्थडे टू महिमा, हैप्पी…’’

‘‘बस, कर भाई. आज मेरा जन्मदिन नहीं है और तुम्हें उसी दिन ही फोन करना होगा. मैं आज की कौल को नहीं मानती.’’

‘‘अरे, मेरी बात तो सुनो…’’ फोन कट गया. राघव ने फिर कई बार फोन लगाने की कोशिश की मगर फोन नहीं लगा.

राघव फिर अतीत में खो गया. मेरी आवाज तो मेरे घर वालों ने सुन ही ली. फोन की समस्या के चलते घर वाले मेरा फोन हमेशा लाउडस्पीकर पर लगा कर ही बातचीत करते हैं पर क्या मोहित की बहन उस की आवाज कभी सुन पाएगी? और सोमेश की मां, क्या वे अपने इकलौते बेटे की आवाज सुनने का इंतजार अपनी बेबसी के आंसुओं में डूब कर न करती होंगी?

क्या करूं? कभी सोचता हूं मैं ही कुछ बात कर लूं उन के परिवारों से. मगर फिर सोचता हूं, कहीं उन के घाव मेरी आवाज सुन कर हरे न हो जाएं. इस से अच्छा छुट्टियों में उन के घर ही हो कर आऊंगा. मगर अभी तो सारी छुट्टियां ही कैंसिल हो गई हैं. ओह, छुट्टियों से याद आया कि कल हवलदार लोकेश सिंह का जन्मदिन था और वह कैसे अपने घर वालों को फोन पर मना रहा था.

‘अरे मां, मेरी तरफ से सब को आज ही पार्टी दे दो जन्मदिन की. जब छुट्टियों में घर आऊंगा तो फिर एक बढि़या पार्टी करूंगा. मेरे बच्चों को भी स्कूल के लिए टौफियां, चौकलेट दिला देना. और हां मां, छुटकी जब ससुराल से घर आए तो इस बार उसे एक अंगूठी दिलवा देना. मैं रुपए भेज रहा हूं. हर बार यही कहती है फोन पर कि, भतीजेभतीजी दोनों हो गए पर मुझे क्या मिला. और मां, बापू को शहर ले जा कर जांच करवा देना. बिन्नी कह रही हैं कि बापू की खांसी 2 महीने से बराबर बनी हुई है…’ न जाने कितनी बकबक करे जा रहा था आखिर में एक साथी ने बोल ही दिया, ‘अरे, बस कर. सारी कथा आज ही बांच लेगा क्या?’ एक सम्मिलित ठहाके के साथ सब अपने गमों को छिपा ले गए.

अचानक उसे याद आई कि आज नाइट शिफ्ट है और ड्यूटी का समय हो गया था. वह अतीत के पन्नों से बाहर निकल आया. रात के समय बौर्डर की सभी चौकियों की जानकारी लेना, सब की उपस्थिति देखना जैसे कई कार्य उस की ड्यूटी में शामिल हैं. आज राघव आधा घंटा पहले ही तैयार हो गया था, इसलिए लैपटौप खोल कर बैठा था. उस ने दीवारघड़ी पर नजर डाली और सोचा, बाहर गाड़ी आ गई होगी. उस ने लैपटौप को शटडाउन कर दिया और टेबल पर रखी कैप उठा कर पहन ली. तभी एक तेज धमाके ने पूरी इमारत को हिला कर रख दिया.

धमाका इतना तेज था कि टेबल पर रखा सामान नीचे बिखर गया. राघव तेजी से अपनी पिस्तौल को उठा बाहर को दौड़ पड़ा. बाहर का नजारा बड़ा हृदयविदारक था. उस की गाड़ी धमाके के साथ जल रही थी. ड्राइवर और सहायक धमाके के कारण गाड़ी से उछल कर दूर गिरे पड़े थे. चारों तरफ से सैनिकों ने अपनी पोजीशन संभाल ली. कुछ सैनिक दौड़ कर घायलों को गाड़ी में डाल कर सेना के स्वास्थ्य केंद्र को चले गए. 3 घंटे की अफरातफरी के बाद यह निष्कर्ष निकला कि धमाका पड़ोसी देश की सेना द्वारा किए गए मोर्टार हमले से हुआ है. जिस में

2 सैनिक शहीद हो गए. राघव फिर सोच में डूब गया, कल यही लोकेश अपने घर वालों की आंखों में कईर् सपने दिखा रहा था आज उन्हीं आंखों को सूना कर गया. आज लोकेश शांत हो गया है, कल इस से कहा भी था, ‘अरे, बस कर, सारी कथा आज ही बांच लेगा क्या.’ लेकिन, अब उस की कथा कौन पूरी करेगा?

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