तुम ऐसी निकलीं: फरेबी आशिक की मोहब्बत

मन का बोधबिंदु जब  बारबार यह कहने लगता है कि अरे, यह  कहां खप रहे हो, यह कौन सी बेहया सी चीज सोख ली तुम ने, तब ऐसा होता ही है कि कोई तूफान फड़फड़ा कर आ जाता है जो न जाने क्या-क्या उड़ा ले जाता है और जाने क्याक्या थमा जाता है.

दिल्ली के सदर बाजार  से  जाती तंग सी एक छोटी गली को मटर गली कहा जाता था. मटर गली नाम किस ने रखा, यह पता नहीं, पर यहां के सब से बुजुर्ग बुद्धि काका 7-8  दिनों पहले उस को  बता रहे थे  कि उन के दादाजी भी इस जगह को  इसी नाम से पुकारते थे. तब यहां एक  विशाल मंडी हुआ करती थी. उस मंडी में किसान सब्जियां लाते थे- अदरक, हलदी,  लहसुन,  प्याज आदि. ठेठ पहाड़ी रईस अपने टटटू की  आर्मी ले कर मनचाहा माल यानी अदरक, लहसुन, प्याज लाद कर ले जाते. पहाड़ी लोग बगैर इन बेशकीमती लहसुन, प्याज के मांस वगैरह को बेस्वाद ही समझते थे. तब से ही हर  आमओखास की पसंद थी यह मटर गली.

पर, अब इस का चेहरामोहरा  बदल सा गया है. यह जगह अब सब्जी मंडी तो कम बल्कि मिलीजुली मार्केट बन गई है जहां देसी दवाओं से ले कर कपड़े, कफन, वरमाला, मोतियों के हार और जूतेचप्पल आदि सबकुछ मिल जाता है.

यहीं मटर गली से पतली सी  पगडंडी आगे राजपुरा कालोनी की तरफ  जा रही है. पहले यहां सब कैसा था, यह तो  उस को कुछ भी  मालूम नहीं मगर मोनिका ने बताया था कि  पहले भी यह  एकदम कच्ची हुआ करती थी और आज भी  कच्ची  ही रह गई है यह पगडंडी.

वह इसी पगडंडी पर कैसे संभलसंभल कर  चलते हुए पहली बार मोनिका  से मिलने गया था. मोनिका का बाप यहां मटरगली  में ही घड़ी ठीक करने का  काम करता था और कुछ दलाली वाले  वैधअवैध काम भी  करता था. उस दोपहर मोनिका  परदे से सटी  उस का इंतजार कर रही थी जब वह उस के टैंटनुमा घर पर पहुंचा  था.

मगर उस की निगाह न घर पर थी न उस की साजसजावट पर. वह अपनी दोनों आंखों से बस मोनिका पर ही टिका था. उस दिन भी और उस के बाद भी हर दिन. यों मोनिका  से उस की पहली मुलाकात अचानक सर्कस के प्रांगण में तकरीबन एक महीना  पहले ही  हुई थी  जब उस ने अपने मालिक के  साथ बैडशीट और चादरों की  स्टाल सर्कस मैदान में  ही लगा रखी थी.

यह भीड़ बनाने के लिए एक प्रयोग के तहत किया गया था और  चादरों की  यह दुकान सर्कस मालिक से इकरारनामे के अंतर्गत बुकिंग विंडो से सट कर लगाई गई थी. ऐसा प्रयोग सर्कस में पहली बार हुआ था और उस को यह लगता था कि यहां पर सस्ती व मंहगी चादर दिखाएं, फिर बेचने में कामयाब होएं. यह भी तो सर्कस की  विधा यानी  एक कलाबाजी ही थी.

वह और उस का मालिक एक दोपहर यही हिसाब कर रहे थे कि एक दिन में 4 शो हैं और लगभग 2 हजार लोग यहां आ रहे हैं. अभी सर्कस 20 दिन और है. तो क्यों न पानीपत, पिलखुवा  और जयपुर  से चादरों की  एकदो गांठें ऐसी मंगाई जाएं जो सस्ती, सुंदर और टिकाऊ हों. वह एक बात  की चर्चा  कर के मालिक के  साथ हंस  रहा था कि मोनिका अचानक ही  सामने आ गई और पूछने लगी कि, ‘10 चादरों को एकसाथ खरीदने  में कितना डिसकाउंट मिलता है?’ एक युवती को ग्राहक के तौर पर  देखा तो मालिक ने यह बातचीत और बिक्री का पूरा  तूफान उस के भरोसे छोड़ दिया और  सामने से हट गया. कुछ ही लमहों बाद वह दूसरे टैंट  की तरफ निकल गया.

अब मोनिका आराम से   बैठ  गई और एक चादर की  तरफ अपनी उंगली से  इशारा करती हुई उस की डिटेल्स  पूछने लगी. तकरीबन 20 मिनट के वार्त्तालाप में वह साफ जान गया था कि  यह आत्मनिर्भर युवती है और घर की  गाड़ी की  स्टेयरिंग  भलीभांति संभाले है. उस ने दर्जनों चादरों से मोनिका का  परिचय कराया. वह चादरों का  कपड़ा और उन के  प्रिंट देखने के लिए कभीकभी उस के बहुत करीब भी आ रही थी.  उस के बदन से किसी मोगरे  वाले साबुन की  भीनीभीनी महक आ रही थी.  मोनिका कुछ न कुछ बोले जा रही थी, मगर मोगरे की  महक से उस को कुछ याद आ रहा था. हां,  उस को  अब याद आया, 2 साल पहले वह मालिक के  साथ  ओडिशा एक  मेले में गया था, तब वे चादरें, साडी़, कुरते और रंगबिरंगी  ओढ़नी भी बेचा करते थे. वहां मेले में उन की दुकान लगी थी. पास ही के भोजनालय वाली छिम्मा से उस का काफी करीब का यानी दैहिक संबंध बन गया था.

वह जब भी उस को अपने पास बुलाया करती, ऐसे ही किसी साबुन से नहा कर  तैयार रहती थी. मगर वह छिम्मा को ज्यादा बरदाश्त नहीं कर पाया था. 10-12 दिनों  बाद जब वह उस के पास ही था  तो उस को इस महक से उलटी सी आने लगी थी.  तब छिम्मा ने राई और मिर्च से  नजर उतार कर, नींबूपानी मिला कर  उस की कितनी सेवा की  थी. उस के बाद तो जल्दी ही मेला भी उठ गया था  और  अब वह  छिम्मा को गलती से भी याद नहीं किया करता कि कैसे हैदराबाद की  रमा  और गोवा की डेल्मा की  तरह उस पर कोई  रुपया खर्च  ही नहीं करना पड़ा था.

छिम्मा तो हवा, पानी, सूरज की रोशनी की  तरह बिलकुल ही  फोकट में उस को  हासिल हो  गई थी. पर, वह आज,  बस, इसी महक के  कारण छिम्मा  को याद कर रहा था. लेकिन आज बात उलटी थी कि  उसे उलटी नहीं आ रही थी, जबकि उस का दिल बारबार  यह कह रहा था कि मोनिका पर वह महक खूब  भा  रही थी.

जैसे दोपहर की  अपेक्षा शाम को नदी का तट बहुत ही अच्छा लगता है वैसे ही वह इन दिनों जैसे किसी नदी का कोई सूना सा तट था और मोनिका एक  भीनीभीनी  शाम.  तो अब उस को नाम भी पता लग गया क्योंकि कुछ मिनट पहले ही उस का फोन बजा था और वह हौले से बोली थी,  ‘जी नहीं, गलत नंबर लग गया है,  मैं मोनिका हूं, लतिका नहीं. अभी उस का टाइम है.’ यह कह कर मोनिका ने फोन डिस्कनैक्ट किया और फिर उस ने सर्कस के ही एक सहायक लड़के को आवाज  लगा कर कड़क चाय लाने को कहा.

तब उस ने हंस कर मोनिका को  चाय का प्याला पीने का प्रस्ताव दिया  और उस ने पहले तो गरदन हिला कर जरा सा मना किया पर अगले ही पल अच्छा ,”हां चाय ले लूंगी” कह कर   पेशकश स्वीकार की. तब मोनिका ने अपने कोमल होंठों से कप को स्पर्श करते हुए  बताया था कि इस चादर की दुकान का  परिचय करवाया 2 दिनों पहले के  अखबार ने. उस में एक छोटा सा विज्ञापन था.  कलपरसों तो बारिश थी, इसलिए आज आ पाई. उस दिन मोनिका चादरें खरीद कर ले गई और उस ने पहली मुलाकात में  कितनी भारीभरकम छूट दे दी थी, लगभग आधे से कम  दाम.

मोनिका जिस दोपहर को चादरें ले  गई थी, उसी दिन की शाम उस को बारबार कहीं भगा कर ले जाती. उस रात उस की रात में भी, बस, रात ही रात थी. फिर भोर हुई, दिन चढ़ा और एक फोन आया. हालांकि वह औपचारिक फोन था मगर  जब 2-3 चादरों के  गड़बड़  और उन में कुछकुछ  घिसे हुए प्रिंट को ले कर मोनिका ने शिकायतभरा फोन किया तो उस ने घर का सब अतापता पूछ कर  खुद ही सही, सुंदर, सुघड़ छपाई की नईनई  चादरें उस के घर पर जा कर  अपने हाथों से मोनिका के हाथों में दी थीं.  तब से करीबकरीब वह 4 बार तो  वहां जा ही  चुका था.

एक दिन जब वह मोनिका के  घर पर भोजन और शयन कर के चाय की  चुस्कियां ले रहा था तभी मोनिका के  दरवाजे पर एक बरतन वाला आ गया. पुराने कपड़े के  बदले बरतन बेचने वाला वह धंधेबाज  मोनिका को उस की 3 पुरानी चुन्नियों के  एवज में एक कटोरी पकड़ा गया. उस के जाने के  बाद  मोनिका को  ऐसा  लगा कि वह ठगी गई है.

तब उस ने मोनिका के  गालों को सहलाते  हुए कहा था कि मोना, जाने दो न, भूल जाओ, दूसरों को मूर्ख बना कर खुश होने वाला अंत में पछताता है. हमारी उदासी  और खुशी हमारे सोचने पर और मन की दशा पर निर्भर करती है. अपने कष्ट के  लिए औरों को दोषी कहने वाला रोज कष्ट में रहता है. सुखदुख कुछ नहीं है, हमारा चुनाव है मोना. वह मन ही मन हंस रहा था कि गोवा की डेल्मा का  कहा उस को हूबहू याद रह गया, वाह.

मोनिका ने उस के चुप होने का  इंतजार किया और  यह कीमती सलाह सुन कर उस को  प्यार से एक मधुर  चुंबन दिया. ओह, मोनिका…

वह हौलेहौले  मोनिका का  कितना आदी होता जा रहा था. मोनिका के  साथ उस को  जीवन एकदम से ही सरस और  मधुमय  लगने लगा था. कभी लगता कि इसीलिए हर  मधुरता भी  एक हद तक ही रहती है, कहीं यह समय गुजर न जाए. फिलहाल भले ही चादरों का ही बहाना होता  था मगर उस को लगता कि यह तकदीर का संकेत था. उस के इस तुच्छ से  प्रेमिल संसार में भले ही किसी महान हीरो  वाला  का पुट न हो, भले ही मोनिका को ले कर वह, बस, कोई  सपना ही देख रहा हो  पर आज तो ये सब अनुभूतियां  ही उस के जीवन को रोमांचक बना रही  हैं.

एक रात जब चांदनीरात  जैसे दूध में नहा कर भीग  रही थी और काठगोदाम के कुछ पहाड़ सफेद हो कर दूर से ही चांदी जैसे चमक रहे थे, नीचे रानीबाग की  तरफ गौला नदी का  शोर संगीत सा लग रहा था. उस ने अपना फोन लिया और मोनिका के  नंबर पर लगा दिया. मगर डरकर  दोबारा नहीं किया. तो उसी समय  मोनिका ने ही फोन कर दिया, पूछने लगी, “ओ बुद्धू सेल्समैन.”

“अ,हां,” उस ने घबरा कर कहा.

“इस समय फ़ोन कैसे किया?”

“बस, यह बताना था कि आज शाम ही चादरों की  एक नई गांठ आई है. तुम अपनी किटी की 7-8 सहेलियों के लिए कह रहीं थी न. बिलकुल रोमांटिक छपाई है.”

“कैसी रोमांटिक, यह कैसी छपाई होती है, मैं नहीं समझी?”

“अब यह तो उन को छू कर पता लगेगा.”

“अच्छा, बुद्धू सेल्समैन, जब तुम ने छुआ तो  तुम को कैसा लगा, यह तो बताओ?” मोनिका की आवाज में बहुत शरारत थी.

वह दीवाना हुआ जा रहा था. पर  अब आगे और कुछ भी  बात नहीं करना चाहता था क्योंकि वह जानता था कि मिनटदोमिनट बाद ही सही फोन तो बंद करना ही होगा. उस ने बहाना बना कर अलविदा कहा, फोन बंद कर  दिया.

पर वह साफसाफ कल्पना कर  पा रहा था कि खुले हुए बाल कभी  मोनिका के गालों से तो  कभी उस की  गरदन पर खेल रहे होंगे.  वह वहां होता तो अभी वह गरमागरम… वह फिर अपना ध्यान हटा कर कहीं कुछ और ही सोचने लगा.

सर्कस की  अपनी भोजन व्यवस्था थी. वहां सुबह चायपोहा, दोपहर में दालरोटीखिचड़ी, शाम को चायपकौड़े और रात को रस  वाले  आलू-तेल के  परांठे मिलते थे.  साथ ही, मालिक उस को एक प्लेट राजमाचावल खाने  के पैसे अलग से रोज  नकद दिया करता था. पर यहां मोनिका के  हाथों के भरवां करेले, आलूशिमलामिर्च, आलूमटरगोभी का  स्वाद ही निराला था.

कुल मिला कर जिंदगी का  हर पल यहां चादर की दुकान और टैंट में मोनिका के बगैर  एक बहुत बरबाद चीज़ ही साबित हो रही  थी. बहुत बोर. रोज़ चादरों की तह करो और  उसी तह में तहमद बनते रहो. कहीं कोई रंग नहीं, कोई रस नहीं. मशीनी हाट और मशीनी काम. यह जीना भी कोई जीना था. हां, अब दुनिया में हर कोई अपना एक जीवन तो चुन ही लेता है और बाकी बारहखडी़ भी उसी हिसाब से तय होती जाती है.

एक दिन उस के लिए कितना भावुक करने वाला पल आया था कि जब मोनिका उस से खुद को कुछ सैकंड के लिए अलग कर के शायद कहीं शून्य में खो गई और एक गीत ‘रोजरोज आंखों तले एक ही सपना चले’ बस, इतना सा टूटाफूटा गुनगुना कर वह  कुछ देर चुप रही और पलंग के  नीचे कच्चे फर्श को ताकने लगी. वहां अपनी आंखों की  कलम  से ज़मीन पर कुछ चित्र बनाती रही,  फिर अचानक   बोली, “हां, जो भी हो, उम्मीद तो बना कर रखनी चाहिए.  सब खत्म होने  तक भी अच्छे होने  की उम्मीद करते रहना, कुदरत का फरमान है.  देह भले ही कितनी  उम्र  पार कर चुकी हो, तो भी उम्मीद को जवानी का  एहसास  छू कर रखना चाहिए, अगर  कहीं यह कमजोर देह डगमगा गई और हमारा आत्मबल मुंह के बल  गिर पड़े. तो चट संभल जाए. इस तरह जीवन के कंधे पर निराशा का बोझ नहीं पड़ता.”

मोनिका से यह सब सुन कर उस को अचंभा हुआ और फिर वह भी मोनिका के  सुर मे सुर मिला कर बोल पड़ा, “हां मोनिका,  हरेक  पल को स्वीकार करना जरूरी है. स्वीकृति ही तो  हर चीज से मुक्त कर देती है. यही रास्ता है. स्वीकृति सहनशीलता से कहीं ज्यादा बेहतर है. लेकिन अगर हम जागरूक नहीं हैं, अगर स्वीकार करना आप के लिए संभव नहीं है और आप हर छोटीछोटी चीज के लिए भी  चिड़चिड़ा जाते हैं तो उस से बचने के  लिए  कम-से-कम कुछ  सहनशीलता तो विकसित कर ही लेनी चाहिए. मैं ने आज तक यही माना कि यह जीवन, बस,  एक सहनशीलता पर ही टिका  है.  मैं खुद कितनी छोटी उम्र से कैसे शहरशहर किसी का  नौकर बन कर  जूझ रहा हूं. मगर मैं हमेशा  यही देख पाता हूं कि कोई  चीज सुविधाजनक नहीं है, तो उस के बारे में शिकायत करने का क्या लाभ. सब स्वीकार कर लो,  यही  सब से अच्छा और आरामदायक  रास्ता है.”

यह सुन कर मोनिका उस से कैसे लता सी लिपटती गई थी.  तब से मोनिका के  हर स्पर्श में उस को  एक कोमलता लगती.  उसे बारबार महसूस होता कि वह एक पोखर है और उस के  समूचे उदास पानी  में वह एक लहर पैदा कर देती है. वह  अब एक ऐसी महत्त्वपूर्ण चीज थी जो परिभाषित तो नहीं हो पा रही थी पर वह कुछ ऐसी तो थी  जो  उस के मर्म पर  और आंतरिक  इच्छा पर राज करने लगी थी.

मोनिका  के बिना यहां इस सर्कस में इतना टिक पाना उस के लिए  तकरीबन असंभव ही  होता. मालिक भी तो यही देख रहा  था कि वह कब तक यहां रहना सहन करता है. कभीकभी उस को यह लगता कि पूरी दुनिया में, बस,  यह एक मोनिका  ही तो  है जो उस के  अकेलेपन को पहचानती  है, उस के भीतर घुमड़ रहे उन खामोश बादलों  को सुन पाती है  जिन्हें केवल उस का उदास बिस्तर सुन पाता है या तकिया  और यह वह मोनिका से पहले शायद  अपने अकेले में सुनता रहा.

पहले जिन महिलाओं के दामन में वह भीग कर तर हुआ था वे सब इतनी मुलायम नहीं थीं, न दिल के  स्तर पर और न ही गुफ्तगू के  स्तर पर.

यों आज तक उस ने कभी भी  अपने लिए एक मनपसंद जीवन की  कामना  नहीं की थी, वह लगभग 40 वर्ष का  हो चला था. मालिक के  पास रह कर काम करतेकरते उस को 20 साल हो गए, पर उस के मन में काम को ले कर कभी खीझ  पैदा नहीं हुई. वह रांची से भोपाल, ओडिशा से  हैदराबाद, गाजियाबाद से लखीमपुर खीरी कहांकहां नहीं रहा.  कोई शहर, गांव या इंसान  उस को सब मजा ही मजा मिलता रहा. रहनसहन के मामले में  तो वह हमेशा एकजैसे ही रहा-  टीशर्ट और जींस. फैशनेबल कपड़ों  के मामले में  उस के मन  का मिजाज  कभी  भी विचलित नहीं होता.  शायद, यही उस का खास अंदाज रहा जो सब, खासकर आजकल मोनिका, को भी मोहित कर जाता है.

मोहित करना भी तो भ्रम  में  रखना ही है  और सच पूछा जाए तो हर एक इंसान को जी सकने के  लिए सांसों के  साथ भरपूर  भ्रम भी  चाहिए, वरना ज़िंदगी उसे सत्य की  पहचान करवा  कर किस अवसाद  में या किस  मुसीबत में डाल दे,  पता नहीं.

बहुत कम लोग हैं जो उस की तरह अपना सच जान कर भी उस को  सम्पूर्ण रूप से किसी भ्रम के  परदे से ढक कर जीवन का फ़ायदा उठा कर आनंद के  द्वार  पर पहुंचते हैं.

वैसे,  अधिकांश लोगों  में उस की  ही तरह ज्यादा होते होंगे. ज़िंदगी की इस रंगीन फिल्म के  आकर्षण  से अपने मन  को रोक पाना इतना आसान तो  है  भी नहीं. कुत्ते  की गरदन में जितना सुंदर पट्टा उस पर   उतनी ही नजरें  टिकी रहती हैं, पर वह तो कुत्ता नहीं है और न ही  किसी  तरह से हलका इंसान. वह मोनिका से सच्चा प्यार करता है,  बहुत सच्चा.

मोनिका को सुखी रखना उस के अलावा और किसी  के वश में है ही नहीं. वह इतने प्यार से उस से जुड़ी है,  तो रिश्ता तो उस को भी  निभाना ही होगा. हां,  यह वफादारी उस को कुछ  बेचैन भी करेगी. आगे और भी  जवान और मदमाते हुए आकर्षण  आएंगे लेकिन मोनिका से गठबंधन उस को एकदम योगी बना देगा. वह अब किसी तरफ नजर ही नहीं डालेगा.

आज उस के पास 20 साल की  पक्की  नौकरी है. मालिक का  इतना स्नेह और दुलार है. अब मोनिका भी उसी की  होगी. वह मोनिका को सम्मान से अपनाने में  कतई पीछे नहीं हटेगा. जब  कुदरत आगे बढ़ कर उस को इतनी मखमली डोरी से बांध रही  है तो वह इस संकेत का अपमान भला कैसे कर सकता है. यह सोच कर ही उस को मीठीमीठी  गुदगुदी सी  होने लगी.

आज की व्यस्त ग्राहकी जितनी होनी थी, वह भी लगभग  हो  चुकी है. अब वह जानेमन के  पास जाएगा, शायद, वह अपने बाल संवार रही होगी या तकिया  सीने पर टिकाए  कुछ सोच कर हंस  रही होगी.  आज उस के लिए कोई सुंदर सी  ना…नहीं…नहीं… यह जरा  जल्दबाजी होगी. जरा रुक जाता हूं,  कल  या परसों ही कोर्ट में विवाह कर के   एक नए दिन  में नई  शाम  होगी, तब सब ले आऊंगा. यह  जिंदगी अब मेहरबान हो गई है, तो  भला हड़बडी़ कर के काम क्यों करना.  देर शाम तक उस से बातें करूंगा और  एक बढ़िया फिल्म दिखाने  हर रविवार को ले जाऊंगा और ढाबे पर छोलेकुलचे  या पावभाजी  हो जाए, तो होने वाले सुंदर लमहे सुनहरे हो जाएंगे.

ये विचार करतेकरते उस के मन  का बोझ हलका होने लगा  और वह खुद को दुनिया का  सब से सुखी मर्द मानने लगा. जिसे इतनी औरतों ने बेहिसाब प्यार किया, उस को  अब एक सलोनी पत्नी मिलने जा रही  है. यहां तो वह बेपनाह इश्क में कोई कमी छोड़ेगा ही नहीं.  मोनिका कितनी कोमलता से 2 चपाती सेंक कर परोस देती है,  स्वाद ऐसा आता है  जैसे सादी रोटी नहीं, घी का  हलवा खा रहे हों. मोनिका ने कितनी उम्मीद से खुद को उस के इंतजार में अब तक  सजाया होगा. यह सब सोचसोच कर वह यों ही लहालोट हुआ जाता था. उसी मखमली अंदाज में वह भी अपनी पत्नी मोनिका में प्यार के   सुरों को पिरोएगा. उसी अंदाज़ में उस के होंठों पर अपने होंठ रख मधुर, मीठा, रसीला, आनंद, सुख आदि ये सब भाव  एकएक कर के उस को गुदगुदा रहे थे. वह ही जानता था कि पिछले 48 घंटे उस ने कैसे काटे थे? मालिक ने उस को 2 दिनों के  लिए यहां से सौ किलोमीटर दूर काशीपुर भेजा था. वहां पर  2 हफ्ते  बाद ही सहकारी समिति का मेला होने वाला था. उस को वहां जा कर 2 बैठकों मे शामिल हो कर सब फाइनल कर के आना था.

वह एक दिन पहले ही  काशीपुर से लौटा था और, बस, दिल में मोनिकामोनिका ही किए जा रहा था. उस पगले  का यह बचाखुचा जीवन जितना भी था, अब, बस, उस के  ही  के दामन  में बेपरवाह  भीग जाना चाहता था और उस में उस के अलावा  अब  किसी और  को बिलकुल भी राजदार, भागीदार नहीं  बनाना चाहता था. बस, यही सब सपने बुनता वह दीवाना एकएक कर  बिखरी चादरें समेट रहा  था,  उन की तहें  बना रहा  था कि मोनिका अचानक  ही आई और आ कर सामने ही  बैठ गई. वह अकबका सा गया, ‘वह तो  यहां आती नहीं थी, फिर कैसे आ गई?’ वह सोचता रहा.

मोनिका नकली सी हंसी के  साथ मुसकरा दी. ‘मोनिका…’ अचानक  उस के मुंह से निकला. उस ने अचानक महसूस किया कि अंतरंग क्षणों में वह उस के कानों में  इसी भावुकता से फुसफुसाता था. ‘मोनिका…’ वह दोबारा मन में बोला. इतने में वह साफसाफ  बोली, ” पैसे, पैसों के  हिसाब के लिए आई हूं.”

“ओह, अच्छा.” वह समझा कि मोनिका बहुत ही सुसंकृत है और  वह सब के सामने बहुत कायदे से पेश आना चाहती है, इसलिए  उस ने गरदन दाएं और बाएं दौडा़ कर देखा. मगर आसपास तो उन दोनों के सिवा और कोई भी था ही नहीं. सो, उस को लगा कि उस की गैरहाजिरी में शायद  वह चादरें पसंद कर  ले गई होगी. तो, आज उन के  पैसे देने आई होगी.

“हां, तो मोनिका…” उस ने आंखें मिला कर कहा तो वह नजर नीची कर के फिर बोली, “आज तुम  मेरा हिसाब पूरा कर दो, 5 बार के मेरे  पैसे दे दो, 2 हजार रुपए के  हिसाब से 10 हजार बनते हैं.  आप, 8 हजार रुपए दे दो.”

मोनिका ऐसा कह कर खामोश हो गई,  पर उस की आंखें नीची ही रहीं. उस के कानों ने यह सुना, तो वह तो जैसे आसमान से गिरा. उस को लगा कि  वह जैसे किसी सडे़ हुए गोबर में फेंक दिया गया हो, छपाक… यह वही मोनिका है  और किस बात के पैसे मांग रही है, उन मुलाक़ातों, ताल्लुकातों के जिन में वह भी  अपनी मरजी से शामिल हुई. मगर वह तो उस से बहुत प्यार करती थी.

“मोनिका,” उस के मुंह से निकला और मुंह खोलते ही जैसे सडा़ हुआ  गोबर सीधा उस के मुंह में गया,  लेकिन उस ने  अपनी आंखों से, पलकों से वह बदबूदार गोबर हटाया और  पलकें झपकाते हुए कहा, “मोनिका, हम तो एकदूसरे की  पूरी सहमति से… है ना… और यह तो प्यार था.”

“मगर, मैं तो  किसी प्रेमव्रेम को बिलकुल भी  नहीं मानती. चादर की  तरह मेरी देह भी, बस, बिक्री के  लिए ही सजतीसंवरती  है.

“तुम, गंदे आदमी,  जिस से पता नहीं कैसीकैसी मछली सी भयानक बदबू आती रहती है. तुम, जो मुझे एक चुन्नी के समान अपने अंग में लपेटे रखना चाहते हो, तुम, जो केवल अपनी शारीरिक वासनाओं को तृप्त करना चाहते हो, तुम, कैसे राक्षस हो, दैत्य हो, मुझे पता है क्योंकि तुम को मैं ने सहा है. और तुम कहते हो  मुझे  प्यार करते हो? तुम…” और वह चुप हो गई.

अब वह गिड़गिडा़ने लगा, “मोनिका, अब तो  मैं ने अपना जीवन तुम्हारे हाथ में दे दिया  है. मेरे पास शब्द नहीं हैं, मेरे मन की  आवाज सुनो. तुम आज मेरे कोमल दिल को लात मार रही हो  पर एक दिन जरूर…”

मगर मोनिका बिलकुल  ही जड़ हो कर बैठी  थी.  अचानक  उस से बेहतर  होने  का तेज मोनिका के हावभाव  में उदित हुआ. विश्वास  और व्यावहारिकता के रंग  उस की आंखों में छा गए. वह जैसे किसी जरूरी काम को याद कर के  उठ खड़ी हुई. उस के इस रूखेपन से  अब तो वह जैसे  दोबारा उस गोबर में सन  कर लथपथ हो गया था. उस  बदबू से बचने के लिए उस ने  जल्दी से 5 हजार रुपए थमा दिए और  उस की तरफ से अपना  मुंह मोड़ लिया.

मोनिका रुपए लपक कर सीधे  अपने रास्ते चलती  गई. अब वह जरा सा दूर थी. लेकिन अब भी गोबर की हलकीहलकी गंध वहां पर  रह गई थी. उस ने पानी से भरा हुआ  एक जग लिया और  अपना मुंह छपाकछपाक कर धो लिया. एक सूखे कपड़े से मुंह साफ कर अब वह छिम्मा को याद कर रहा था. उस को तो गलती से ही  कभीकभार ही  उस पर  प्यार उमड़ता क्योंकि  छिम्मा तो उस के लिए, बस, एक  टाइमपास  ही थी. मगर वह औरत बड़ी  दिलदार थी.  वस्त्र पहनतेपहनते ही  उस के हाथ पर सौदोसौ रुपए रख ही देती थी.  कितनी मधुर मोहरे वाली महक आती थी उस के भीगे बदन से. और एक यह  थी, निर्लज्ज मटर गली वाली लालची. छि: कितना गंदा नाम, बदनाम, मोनिका.

वह टूट कर  बिखरा, बेकार, बेजान  खिलौना सा बन गया था.  जाते हुए मोनिका की  चप्पल दूर से  ही आवाज कर रही थी और  उसे एकाएक लगा कि एक चप्पल ऊपर उठी और उड़ती हुई  सीधी उस के गाल पर चट से  आ लगी है. अपने  कोमल गाल पर मोनिका  की चप्पल खा कर वह दर्द से कराहने  लगा कि उस के कान में सर्कस  के  मैनेजर की  आवाज पड़ी. वह  वहीं पर एक जोकर को समझा रहा था कि, “तू तो है ही इस काबिल कि तेरी जम कर  हंसी उडा़ई जाए.  हमें पता है कि तेरा कौन सा बटन कब और कैसे दबाना है, समझा कि नहीं? तुझे शरबत पिला कर तेरा सत्कार कर रहे हैं, तो ऐसे ही नहीं, हम  तुझ से दोगुना काम भी  निकाल लेंगे, यह मत भूलना.”

उस को लगा कि यह डायलौग उस के लिए फिट था. उस ने दोनों हाथों से अपने  कान बंद कर लिए और मदहोशी वाली हालत  में  कदमताल करताकरता  बाहर निकल पड़ा. और  सर्कस का मैदान छोड़ कर वह आगे  कहीं किसी सड़क पर आ गया.

“अरे, यह  सुराही तो बहुत जतन से सांचे पर ढाल कर पकाई थी.   इस से तो यह उम्मीद नहीं थी. हम ने सोचा था,  यह  बहुत दिन  साथ निभाएगी.  पर  यह शायद नए  पानी की तासीर से   डर गई. ओह, धत तेरी की. चल.”  वहां एक आदमी था जो   टुकड़ेटुकड़े हो गई सुराही को ठिकाने लगा रहा था.

उस ने यह सब अनदेखा किया मगर हर चीज तो वश में नहीं होती न. अचानक  वह अपने सामने देखता है कि  फैला हुआ लंबा उजाड़ रास्ता है.  यह देख कर वह  लड़खडा़ने  सा लगा और उसी रास्ते पर एक जगह लुढ़क गया. उस ने बंद आंखों से कुछ चित्र देखे, रमा और छिम्मा अपने हाथ हिला कर  उसे बुला रही थीं. वह एकाएक उठा और उठ कर खड़ा हो गया. ऐसा लगा कि कोई लतिका उस के  पीछे दौड़ती आ रही थी. फिर वह उस का  हाथ पकड़ कर पूछ रही थी, ‘सुनिए, ये वाली  10 चादरें खरीदनी  हैं, कितना डिस्काउंट मिलेगा?’

मगर उस को कुछ और भी  याद आने  लगा था…उस दिन एक फोन आया था कि नहींनहीं, मैं मोनिका हूं, लतिका नहीं. तो, ऐसे ही सारी जाजिम बिछाई जाती है. पहले चादर देखो, फिर वही चादर बिछा दो.

पासा पलट गया: इश्क के झांसे में हुस्न

आभा गोरे रंग की एक खूबसूरत लड़की थी. उस का कद लंबा, बदन सुडौल और आंखें बड़ीबड़ी व कजरारी थीं. उस की आंखों में कुछ ऐसा जादू था कि उसे जो देखता उस की ओर खिंचा चला जाता. विक्रम भी पहली ही नजर में उस की ओर खिंच गया था.

उन दिनों विक्रम अपने मामा के घर आया हुआ था. उस के मामा का घर पटना से तकरीबन 20 किलोमीटर दूर एक गांव में था.

विक्रम तेजतर्रार लड़का था. वह बातें भी बहुत अच्छी करता था. खूबसूरत लड़कियों को पहले तो वह अपने प्रेमजाल में फंसाता था, फिर उन्हें नौकरी दिलाने का लालच दे कर हुस्न और जवानी के रसिया लोगों के सामने पेश कर पैसे कमाता था. इसी प्लान के तहत उस ने आभा से मेलजोल बढ़ाया था.

उस दिन जब आभा विक्रम से मिली तो बेहद उदास थी. विक्रम कई पलों तक उस के उदास चेहरे को देखता रहा, फिर बोला, ‘‘क्या बात है आभा, आज बड़ी उदास लग रही हो?’’

‘‘हां,’’ आभा बोली, ‘‘विक्रम, मैं अब आगे पढ़ नहीं पाऊंगी और अगर पढ़ नहीं पाई तो अपना सपना पूरा नहीं कर पाऊंगी.’’

‘‘कैसा सपना?’’

‘‘पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ा होने का सपना ताकि अपने मांबाप को गरीबी से छुटकारा दिला सकूं.’’

‘‘बस, इतनी सी बात है.’’

‘‘तुम बस इसे इतनी सी ही बात समझते हो?’’

‘‘और नहीं तो क्या…’’ विक्रम बोला, ‘‘तुम पढ़लिख कर नौकरी ही तो करना चाहती हो?’’

‘‘हां.’’

‘‘वह तो तुम अब भी कर सकती हो.’’

‘‘लेकिन, भला कम पढ़ीलिखी लड़की को नौकरी कौन देगा? मैं सिर्फ इंटर पास हूं,’’ आभा बोली.

‘‘मैं कई सालों से पटना की एक कंपनी में काम करता हूं, इस नाते मैनेजर से मेरी अच्छी जानपहचान है. अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हारे बारे में उस से बात कर सकता हूं.’’

‘‘तो फिर करो न…?’’ आभा बोली, ‘‘अगर तुम्हारे चलते मुझे नौकरी मिल गई तो मैं हमेशा तुम्हारी अहसानमंद रहूंगी.’’

आभा विक्रम के साथ पटना आ गई थी. एक होटल के कमरे में विक्रम ने एक आदमी से मिलवाया. वह तकरीबन 45 साल का था.

जब विक्रम ने उस से आभा का परिचय कराया तो वह कई पलों तक उसे घूरता रहा, फिर अपने पलंग के सामने पड़ी कुरसी पर बैठने का इशारा किया.

आभा ने एक नजर कुरसी के पास खड़े विक्रम को देखा, फिर कुरसी पर बैठ गई.

उस के बैठते ही विक्रम उस आदमी से बोला, ‘‘सर, आप आभा से जो कुछ पूछना चाहते हैं, पूछिए. मैं थोड़ी देर में आता हूं,’’ कहने के बाद विक्रम आभा को बोलने का कोई मौका दिए बिना जल्दी से कमरे से निकल गया.

उसे इस तरह कमरे से जाते देख आभा पलभर को बौखलाई, फिर अपनेआप को संभालते हुए तथाकथित मैनेजर को देखा.

उसे अपनी ओर निहारता देख वह बोला, ‘‘तुम मुझे अपने सर्टिफिकेट दिखाओ.’’

आभा ने उसे अपने सर्टिफिकेट दिखाए. वह कुछ देर तक उन्हें देखने का दिखावा करता रहा, फिर बोला, ‘‘तुम्हारी पढ़ाईलिखाई तो बहुत कम है. इतनी कम क्वालिफिकेशन पर आजकल नौकरी मिलना मुश्किल है.’’

‘‘पर, विक्रम ने तो कहा था कि इस क्वालिफिकेशन पर मुझे यहां नौकरी मिल जाएगी.’’

‘‘ठीक है, मैं विक्रम के कहने पर तुम्हें अपनी फर्म में नौकरी दे तो दूंगा, पर बदले में तुम मुझे क्या दोगी?’’ कहते हुए उस ने अपनी नजरें आभा के खूबसूरत चेहरे पर टिका दीं.

‘‘मैं भला आप को क्या दे सकती हूं?’’ आभा उस की आंखों के भावों से घबराते हुए बोली.

‘‘दे सकती हो, अगर चाहो तो…’’

‘‘क्या…?’’

‘‘अपनी यह खूबसूरत जवानी.’’

‘‘क्या बकवास कर रहे हैं आप?’’ आभा झटके से अपनी कुरसी से उठते हुए बोली, ‘‘मैं यहां नौकरी करने आई हूं, अपनी जवानी का सौदा करने नहीं.’’

‘‘नौकरी तो तुम्हें मिलेगी, पर बदले में मुझे तुम्हारा यह खूबसूरत जिस्म चाहिए,’’ कहता हुआ वह आदमी पलंग से उतर कर आभा के करीब आ गया. वह पलभर तक भूखी नजरों से उसे घूरता रहा, फिर उस के कंधे पर हाथ रख दिया.

उस आदमी की इस हरकत से आभा पलभर को बौखलाई, फिर उस के जिस्म में गुस्से और बेइज्जती की लहर दौड़ गई. वह बोली, ‘‘मुझे नौकरी चाहिए, पर अपने जिस्म की कीमत पर नहीं,’’ कहते हुए आभा दरवाजे की ओर लपकी.

पर दरवाजे पर पहुंच कर उसे झटका लगा. दरवाजा बाहर से बंद था. आभा दरवाजा खोलने की कोशिश करती रही, फिर पलट कर देखा.

‘‘अब यह दरवाजा तभी खुलेगा जब मैं चाहूंगा,’’ वह आदमी अपने होंठों पर एक कुटिल मुसकान बिखेरता हुआ बोला, ‘‘और मैं तब तक ऐसा नहीं चाहूंगा जब तक तुम मुझे खुश नहीं कर दोगी.’’

उस आदमी का यह इरादा देख कर आभा मन ही मन कांप उठी. वह डरी हुई आवाज में बोली, ‘‘देखो, तुम जैसा समझते हो, मैं वैसी लड़की नहीं हूं. मैं गरीब जरूर हूं, पर अपनी इज्जत का सौदा नहीं कर सकती. प्लीज, दरवाजा खोलो और मुझे जाने दो.’’

‘‘हाथ आए शिकार को मैं यों ही कैसे जाने दूं…’’ बुरी नजरों से आभा के उभारों को घूरता हुआ वह बोला, ‘‘तुम्हारी जवानी ने मेरे बदन में आग लगा दी है और मैं जब तक तुम्हारे तन से लिपट कर यह आग नहीं बुझा लेता, तुम्हें जाने नहीं दे सकता,’’ कहते हुए वह झपट कर आगे बढ़ा, फिर आभा को अपनी बांहों में दबोच लिया.

अगले ही पल वह आभा को बुरी तरह चूमसहला रहा था. साथ ही, वह उस के कपड़े भी नोच रहा था. ऐसे में जब आभा का अधनंगा बदन उस के सामने आया तो वह बावला हो उठा. उस ने आभा को गोद में उठा कर पलंग पर डाला, फिर उस पर सवार हो गया.

आभा रोतीछटपटाती रही, पर उस ने उसे तभी छोड़ा जब अपनी मनमानी कर ली. ऐसा होते ही वह हांफता हुआ आभा पर से उतर गया.

आभा कई पलों तक उसे नफरत से घूरती रही, ‘‘तू ने मुझे बरबाद कर डाला. पर याद रख, मैं इस की सजा दिला कर रहूंगी. तेरी काली करतूतों का भंडाफोड़ पुलिस के सामने करूंगी.’’

‘‘तू मुझे सजा दिलाएगी, पर मैं तुझे इस लायक छोड़ूंगा ही नहीं,’’ कहते हुए उस ने झपट कर आभा की गरदन पकड़ ली और उसे दबाने लगा.

आभा उस के चंगुल से छूटने की भरपूर कोशिश कर रही थी, पर थोड़ी ही देर में उसे यह अहसास हो गया कि वह उस से पार नहीं पा सकती और वह उसे गला घोंट कर मार डालेगा.

ऐसा अहसास करते ही उस ने अपने हाथपैर पटकने बंद कर दिए, अपनी सांसें रोक लीं और शरीर को शांत कर लिया.

जब तथाकथित मैनेजर को इस बात का अहसास हुआ तो उस ने आभा की गरदन छोड़ दी और फटीफटी आंखों से आभा के शरीर को देखने लगा. उसे लगा कि आभा मर चुकी है. ऐसा लगते ही उस के चेहरे से बदहवासी और खौफ टपकने लगा.

तभी दरवाजा खुला और विक्रम कमरे में आया. ऐसे में जैसे ही उस की नजर आभा पर पड़ी, उस के मुंह से घुटीघुटी सी चीख निकल गई. वह कांपती हुई आवाज में बोला, ‘‘यह क्या किया आप ने? इसे तो जान से मार डाला आप ने?’’

‘‘नहीं,’’ वह आदमी डरी हुई आवाज में बोला, ‘‘मैं इसे मारना नहीं चाहता था, पर यह पुलिस में जाने की धमकी देने लगी तो मैं ने इस का गला दबा दिया.’’

‘‘और यह मर गई…’’ विक्रम उसे घूरता हुआ बोला.

‘‘जरा सोचिए, मगर इस बात का पता होटल वालों को लगा तो वह पुलिस बुला लेंगे. पुलिस आप को पकड़ कर ले जाएगी और आप को फांसी की सजा होगी.’’

‘‘नहीं…’’ वह आदमी डरी हुई आवाज में बोला, ‘‘ऐसा कभी नहीं होना चाहिए.’’

‘‘वह तो तभी होगा जब चुपचाप इस लाश को ठिकाने लगा दिया जाए.’’

‘‘तो लगाओ,’’ वह आदमी बोला.

‘‘यह इतना आसान नहीं है,’’ कहते हुए विक्रम की आंखों में लालच की चमक उभरी, ‘‘इस में पुलिस में फंसने का खतरा है और कोई यह खतरा यों ही नहीं लेता.’’

‘‘फिर…?’’

‘‘कीमत लगेगी इस की.’’

‘‘कितनी?’’

‘‘5 लाख?’’

‘‘5 लाख…? यह तो बहुत ज्यादा रकम है.’’

‘‘आप की जान से ज्यादा तो नहीं,’’ विक्रम बोला, ‘‘और अगर आप को कीमत ज्यादा लग रही है तो आप खुद इसे ठिकाने लगा दीजिए, मैं तो चला,’’ कहते हुए विक्रम दरवाजे की ओर बढ़ा.

‘‘अरे नहीं…’’ वह हड़बड़ाते हुए बोला, ‘‘ठीक है, मैं तुम्हें 5 लाख रुपए दूंगा, पर इस मामले में तुम्हारी कोई मदद नहीं करूंगा. तुम्हें सबकुछ अकेले ही करना होगा.’’ड्टविक्रम ने पलभर सोचा, फिर हां में सिर हिलाता हुआ बोला, ‘‘कर लूंगा, पर पैसे…?’’

‘‘काम होते ही पैसे मिल जाएंगे.’’

‘‘पर याद रखिए, अगर धोखा देने की कोशिश की तो मैं सीधे पुलिस के पास चला जाऊंगा.’’

‘‘मैं ऐसा नहीं करूंगा,’’ कहते हुए वह कमरे से निकल गया.

इधर वह कमरे से निकला और उधर उस ने बेसुध पड़ी आभा को देखा. वह उसे ठिकाने लगाने के बारे में सोच ही रहा था कि आभा उठ बैठी.

अपने सामने आभा को खड़ी देख विक्रम की आंखें हैरानी से फटती चली गईं. उस के मुंह से हैरत भरी आवाज फूटी, ‘‘आभा, तुम जिंदा हो?’’

‘‘हां,’’ आभा बोली, ‘‘पर, अब तुम जिंदा नहीं रहोगे. तुम भोलीभाली लड़कियों को नौकरी का झांसा दे कर जिस्म के सौदागरों को सौंपते हो. मैं तुम्हारी यह करतूत लोगों को बतलाऊंगी, तुम्हारी शिकायत पुलिस में करूंगी.’’

आभा का यह रूप देख कर पहले तो विक्रम बौखलाया, फिर उस के सामने गिड़गिड़ाता हुआ बोला, ‘‘ऐसा मत करना.’’

‘‘क्यों न करूं मैं ऐसा, तुम ने मेरी जिंदगी बरबाद कर दी और कहते हो कि मैं ऐसा न करूं.’’

‘‘क्योंकि, तुम्हारे ऐसा न करने से मेरे हाथ एक मोटी रकम लगेगी जिस में से आधी रकम मैं तुम्हें दे दूंगा.’’

‘‘मतलब…?’’

विक्रम ने उसे पूरी बात बताई.

‘‘सच कह रहे हो तुम?’’

‘‘बिलकुल.’’

‘‘अपनी बात से तुम पलट तो नहीं जाओगे?’’

‘‘ऐसे में तुम बेशक पुलिस में मेरी शिकायत कर देना.’’

‘‘अगर तुम ने मुझे धोखा नहीं दिया तो मुझे क्या पागल कुत्ते ने काटा है जो मैं ऐसा करूंगी.’’

तीसरे दिन आभा के हाथ में ढाई लाख की मोटी रकम विक्रम ने ला कर रख दी. उस ने एक चमकती नजर इन नोटों पर डाली, फिर विक्रम की आंखों में झांकते हुए बोली, ‘‘अगर दोबारा कोई ऐसा ही मोटा मुरगा फंसे तो मुझ से कहना. मैं फिर से यह सब करने को तैयार हो जाऊंगी,’’ कहते हुए आभा मुसकराई.

‘‘जरूर,’’ कहते हुए विक्रम के होंठों पर भी एक दिलफरेब मुसकान खिल उठी.

टुकड़ों में बंटी जिंदगी: एक मासूम बना कठपुतली

पिता की गलतियों के कारण ही मैं मंदबुद्धि बालक पैदा हुआ. जब मैं मां के गर्भ में था तो मेरी मां को भरपूर खाना नहीं मिलता था. उन को मेरे पिता यह कह कर मानसिक यंत्रणा देते थे कि उन की जन्मपत्री में लिखा है कि उन का पहला बच्चा नहीं बचेगा. वह बच्चा मैं हूं. जो 35 वर्षगांठ बिना किसी समारोह के मना चुका है.

पैदा होने के बाद मैं पीलिया रोग से ग्रसित था, लेकिन मेरा इलाज नहीं करवाया गया. मेरी मां बहुत ही सीधी थीं मेरे पापा उन को पैसे नहीं देते थे कि वे अपनी मरजी से मेरे लिए कुछ कर सकें. सबकुछ सहते हुए वे अंदर से घुटती रहती थीं. वह जमाना ही ऐसा था जब लड़कियां शादी के बाद अपनी ससुराल से अर्थी में ही निकलती थीं. मायके वाले साथ नहीं देते थे.

मेरी नानी मेरी मां को दुखी देख कर परेशान रहती थीं. लेकिन परिवार के अन्य लोगों का सहयोग न मिलने के कारण कुछ नहीं कर पाईं. मैं 2 साल का हो गया था, लेकिन न बोलता था, न चलता था. बस, घुटनों चलता था. मेरी मां पलपल मेरा ध्यान रखती थीं और हर समय मु झे गोदी में लिए रहती थीं. शायद वे जीवनभर का प्यार 2 साल में ही देना चाहती थीं.

मेरे पैदा होने के बाद मेरे कार्यकलाप में प्रगति न देख कर वे बहुत अधिक मानसिक तनाव में रहने लगीं. जिस का परिणाम यह निकला कि वे ब्लडकैंसर जैसी घातक बीमारी के कारण 3 महीने में ही चल बसीं. लेकिन मैं मंदबुद्धि बालक और उम्र भी कम होने के कारण सम झ ही नहीं पाया अपने जीवन में आए इस भूचाल को. सूनी आंखों से मां को ढूंढ़ तो रहा था, लेकिन मु झे किसी से पूछने के लिए शब्दों का ज्ञान ही नहीं था. मु झे अच्छी तरह याद है जब मेरी मां का क्रियाकर्म कर के मेरे मामा और नाना दिल्ली लौटे तो मु झे एक बार तो उन्होंने गोद में लिया, लेकिन मेरी कुछ भी प्रतिक्रिया न देख कर किसी ने भी मेरी परवाह नहीं की. बस, मेरी नानी ने मु झे अपने से बहुत देर तक चिपटाए रखा था. मेरे पापा तो एक बार भी मु झ से मिलने नहीं आए.

मां ने अंतिम समय में मेरी जिम्मेदारी किसी को नहीं सौंपी. लेकिन मेरे नानानानी ने मु झे अपने पास रखने का निर्णय ले लिया. उन का कहना था कि मेरी मां की तरह मेरे पापा मु झे भी यंत्रणा दे कर मार डालेंगे. वे भूले नहीं थे कि मेरी मां ने उन को बताया था कि गलती से मेरी बांह पर गरम प्रैस नहीं गिरी थी, बल्कि मेरे पिता ने जानबू झ कर मेरी बांह पर रख दी थी, जिस का निशान आज तक मेरी बांह पर है. एक बार सीढ़ी से धकेलने का प्रयास भी किया था. इस के पीछे उन की क्या मानसिकता थी, शायद वे जन्मपत्री की बात सत्य साबित कर के अपना अहं संतुष्ट करने की कोशिश कर रहे थे. वे मु झे कभी लेने भी नहीं आए.

मां की मृत्यु के 3 महीने के बाद ही उन्होंने दूसरा विवाह कर लिया. यह मेरे लिए विडंबना ही तो थी कि मु झे मेरी मां के स्थान पर दूसरी मां नहीं मिली, लेकिन मेरे पिता को दूसरी पत्नी मिलने में देर नहीं लगी. पिता के रहते हुए मैं अनाथ हो गया.

मैं मंदबुद्धि था, इसलिए मेरे नानानानी ने मु झे पालने में बहुत शारीरिक, मानसिक व आर्थिक कष्ट सहे. शारीरिक इसलिए कि मंदबुद्धि होने के कारण  15 साल की उम्र तक लघु और दीर्घशंका का ज्ञान ही नहीं था, कपड़ों में ही अपनेआप हो जाता था और उन को नानी को साफ करना पड़ता था. रात को बिस्तर गीला हो जाने पर नानी रात को उठ कर बिस्तर बदलती थीं.

ढलती उम्र के कारण मेरे नानानानी शारीरिक व मानसिक रूप से बहुत कमजोर हो गए थे. लेकिन मोहवश वे मेरा बहुत ध्यान रखते थे. मैं स्कूल अकेला नहीं जा पाता था, इसलिए मेरे नाना मु झे स्कूलबस तक छोड़ने जाते थे. मु झे ऐसे स्कूल में भेजा जहां सभी बच्चे मेरे जैसे थे. उन्होंने मानसिक कष्ट सहे, इसलिए कि मेरे मंदबुद्धि होने के कारण नानानानी कहीं भी मु झे ले कर जाते तो लोग परिस्थितियों को नजरअंदाज करते हुए मेरे असामान्य व्यवहार को देख कर उन को ताने देते. उस से उन का मन बहुत व्यथित होता. फिर वे मु झे कहीं भी ले कर जाने में कतराने लगे.

उन के अपने बच्चों ने भी मेरे कारण उन से बहुत दूरी बना ली थी. कई रिश्तेदारों ने तो यहां तक भी कह दिया कि मु झे अनाथाश्रम में क्यों नहीं डाल देते? नानानानी को यह सुन कर बहुत दुख होता. कई बार कोई घर आता तो नानी गीले बिस्तर को जल्दी से ढक देतीं, जिस से उन की नकारात्मक प्रतिक्रिया का दंश उन को न  झेलना पड़े.

मैं शारीरिक रूप से बहुत तंदुरुस्त था. दिमाम का उपयोग न होने के कारण ताकत भी बहुत थी, अंदर ही अंदर अपनी कमी को सम झते हुए सारा आक्रोश अपनी नानी पर निकालता था. कभी उन के बाल खींचता कभी उन पर पानी डाल देता और कभी उन की गोदी में सिर पटक कर उन को तकलीफ पहुंचाता. मातापिता के न रहने से उन के अनुशासन के बिना मैं बहुत जिद्दी भी हो गया था. मैं ने अपनी नानी को बहुत दुख दिया. लेकिन इस में मेरी कोई गलती नहीं थी क्योंकि मैं मंदबुद्धि बालक था. नानानानी ने आर्थिक कष्ट सहे, इस प्रकार कि मेरा सारा खर्च मेरे पैंशनधारी नाना पर आ गया था. कहीं से भी उन को सहयोग नहीं मिलता था. उन्होंने मेरा अच्छे से अच्छे डाक्टर से इलाज करवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. वैसे भी मु झे कभी किसी चीज की कमी महसूस नहीं होने दी.

नानी मेरे भविष्य को ले कर बहुत चिंतित रहती थीं और मेरे कारण मानसिक आघात सहतेसहते थक कर असमय ही 65 वर्ष की उम्र में ही सदा के लिए विदा हो गईं. उस समय मेरी उम्र 18 वर्ष की रही होगी. अब तक मानसिक और शारीरिक रूप से मैं काफी ठीक हो गया था. अपने व्यक्तिगत कार्य करने के लिए आत्मनिर्भर हो गया था. लेकिन भावाभिव्यक्ति सही तरीके से सही भाषा में नहीं कर पाता था. टूटीफूटी और कई बार निरर्थक भाषा ही बोल पाता था.

मेरे जीवन की इस दूसरी त्रासदी को भी मैं नहीं सम झ पाया और न परिवार वालों के सामने अभिव्यक्त ही कर पाया, इसलिए नानी की मृत्यु पर आए परिवार के अन्य लोगों को मु झ से कोई सहानुभूति नहीं थी. वैसे भी, अभी नाना जिंदा थे मेरे पालनपोषण के लिए. औपचारिकता पूरी कर के सभी वापस लौट गए. नाना ने मु झे भरपूर प्यार दिया. उन के अन्य बच्चों के बच्चों को मु झ से ईर्ष्या भी होती थी कि उन के हिस्से का प्यार भी मु झे ही मिल रहा है. लेकिन उन के तो मातापिता भी थे, मैं तो अनाथ था. मेरी मंदबुद्धि के कारण यदि कोईर् मेरा मजाक उड़ाता तो नाना उन को खूब खरीखोटी सुनाते, लेकिन कब तक…? वे भी मु झे छोड़ कर दुनिया से विदा हो गए.

उस समय मैं 28 साल का था, लेकिन परिस्थिति पर मेरी प्रतिक्रिया पहले जैसी थी. मेरा सबकुछ लुट चुका था और मैं रो भी नहीं पा रहा था. बस, एक एहसास था कि नाना अब इस दुनिया में नहीं हैं. इतनी मेरे अंदर बुद्धि नहीं थी कि मैं अपने भविष्य की चिंता कर सकूं. मु झे तो पैदा ही कई हाथों की कठपुतली बना कर किया गया था. लेकिन अभी तक मैं ऐसे हाथों के संरक्षण में था, जिन्होंने मु झे इस लायक बना दिया था कि मैं शारीरिक रूप से बहुत सक्षम और किसी पर निर्भर नहीं था और कोई भी कार्य, जिस में बुद्धि की आवश्यकता नहीं हो, चुटकियों में कर देता था. वैसे भी, जो व्यक्ति दिमाग से काम नहीं करते, शारीरिक रूप से अधिक ताकत वाले होते हैं.

मेरी मनोस्थिति बिलकुल 2 साल के बच्चे की तरह थी, जो उस के साथ क्या हो रहा है, उस के लिए क्या अच्छा है, क्या बुरा है, सम झ ही नहीं पाता. लेकिन मेरी याद्दाश्त बहुत अच्छी थी. गाडि़यों के नंबर, फोन नंबर तथा किसी का घर किस स्थान पर है. मु झे कभी भूलता नहीं था. कहने पर मैं कोई भी शारीरिक कार्य कर सकता था, लेकिन अपने मन से कुछ नहीं कर पाता था.

नाना की हालत गंभीर होने पर मैं ने अपने पड़ोस की एक आंटी के कहने पर अपनी मौसी को फोन से सूचना दी तो आननफानन मेरे 2 मामा और मौसी पहुंच गए और नाना को अस्पताल में भरती कर दिया. डाक्टरों ने देखते ही कह दिया कि उन का अंतिम समय आ गया है. उन के क्रियाकर्म हो जाने के बाद सब ने घर की अलमारियों का मुआयना करना शुरू किया. महत्त्वपूर्ण दस्तावेज निकाले गए. सब की नजर नाना के मकान पर थी. मैं मूकदर्शक बना सब देखता रहा. भरापूरा घर था. मकान भी मेरे नाना का था.

मेरे एक मामा की नजर आते ही मेरे हृष्टपुष्ट शरीर पर टिक गई. उन्होंने मेरी मंदबुद्धि का लाभ ले कर मु झे मेरे मनपसंद खाने की चीजें बाजार से मंगवा कर दीं और बारबार मु झे उन के साथ भोपाल जाने के लिए उकसाते रहे. मु झे याद नहीं आता कि कभी उन्होंने मेरे से सीधेमुंह से बात भी की हो. तब तो और भी हद हो गई थी जब एक बार मैं नानी के साथ भोपाल उन के घर गया था और मेरे असामान्य व्यवहार के लिए उन्होंने नानी को दोषी मानते हुए बहुत जलीकटी सुनाई. उन को मामा की बातों से बहुत आघात पहुंचा. जिस कारण नानी निश्चित समय से पहले ही दिल्ली लौट गई थीं.

अब उन को अचानक इतना प्यार क्यों उमड़ रहा था. यह सोचने की बुद्धि मु झ में नहीं थी. इतना सहयोग यदि नानी को पहले मिलता तो शायद वे इतनी जल्दी मु झे छोड़ कर नहीं जातीं. पहली बार सब को यह विषय विचारणीय लगा कि अब मैं किस के साथ रहूंगा?

नाना से संबंधित कार्यकलाप पूरा होने तक मेरे मामा ने मेरा इतना ब्रेनवौश कर दिया कि मैं कहां रहना चाहता हूं? किसी के भी पूछने पर मैं  झट से बोलता, ‘मैं भोपाल जाऊंगा,’ नाना के कई जानने वालों ने मामा को कटाक्ष भी किया कि कैसे सब खत्म हो जाने के बाद उन का आना हुआ. इस से पहले तो उन को वर्षों से कभी देखा नहीं. इतना सुनते ही ‘चोर की दाढ़ी में तिनका’ मुहावरे को सार्थक करते हुए वे उन पर खूब बरसे. परिणाम यह निकला कि बहुत सारे लोग नाना की तेरहवीं पर बिना खाए ही लौट गए.

आखिरकार, मैं मामा के साथ भोपाल पहुंच गया. मेरी दाढ़ी और बाल बहुत बड़ेबड़े हो गए थे. सब से पहले मेरे मामा ने उन्हें संवारने के लिए मु झे सैलून भेजा, फिर मेरे लिए नए कपड़े खरीदे, जिन को पहन कर मेरा व्यक्तित्व ही बदल गया था. मेरे मामा की फैक्ट्री थी, जिस में मैं उन के बेटे के काम में हाथ बंटाने के लिए जाने लगा. जब मैं नानी के साथ एक बार यहां आया था, तब मु झे इस फैक्ट्री में घुसने की भी अनुमति नहीं थी. अब जबकि मैं शारीरिक श्रम करने के लायक हो गया तो उन के लिए मेरे माने ही बदल गए थे.

धीरेधीरे मु झे सम झ में आने लगा कि उन का मु झे यहां लाने का उद्देश्य क्या था? मैं चुपचाप एक रोबोट की तरह सारा काम करता. मु झे अपनी इच्छा व्यक्त करने का तो कोई अधिकार ही नहीं था. दिल्ली के जिस मकान में मेरा बचपन गुजरा, उस में तो मैं कभी जा नहीं सकता था क्योंकि प्रौपर्टी के  झगड़े के कारण उस में ताला लग गया था. और मैं भी मामा की प्रौपर्टीभर बन कर रह गया था, जिस में कोई बंटवारे का  झं झट नहीं था. उन का ही एकछत्र राज्य था. मैं अपने मन से किसी के पास जा नहीं सकता था, न किसी को मु झे बुलाने का अधिकार ही था.

मेरा जीवन टुकड़ों में बंट गया था. मेरा अपना कोई अस्तित्व नहीं था. मैं अपना आक्रोश प्रकट भी करता तो किस के सामने करता. कोई नानानानी की तरह मेरी भावना को सम झने वाला ही नहीं था. मैं तो इस लायक भी नहीं था कि अपने पिता से पूछूं कि मेरे इस प्रकार के टुकड़ों में बंटी जिंदगी का उत्तरदायी कौन है? उन को क्या हक था मु झे पैदा करने का? मेरी मां अंतिम समय में, मेरे पिता की ओर इशारा कर के रोते हुए मामा से कह रही थीं, ‘इस ने मु झे बीमारी दी है, इस को मारो…’ लेकिन प्रतिक्रियास्वरूप किसी ने कुछ नहीं किया, करते तो तब जब उन को मेरी मां से प्यार होता.

काश, मु झे इतनी बुद्धि होती कि मैं अपनी मां का बदला अपने पिता से लेता. लेकिन काश ऐसा कोई होता जो मेरा बदला जरूर लेता. जिस के पास बुद्धि है.

मेरी कथा को शब्दों का जामा पहनाने वाली को धन्यवाद, कम से कम उन को मु झ से कुछ सहानुभूति तो है, जिस के कारण मु झ मंदबुद्धि बालक, जिस को शब्दों में अभिव्यक्ति नहीं आती, की मूकभाषा तथा भावना को सम झ कर उस की आत्मकथा को कलमबद्ध कर के लोगों के सामने उजागर तो किया.

घोंसला: सारा ने क्यों किया था शादी से इंकार

साराआज खुशी से झम रही थी. खुश हो भी क्यों न पुणे की एक बहुत बड़ी फर्म में उस की नौकरी जो लग गई थी. अपनी गोलगोल आंखें घुमाते हुए वह अपनी मम्मी से बोली, ‘‘मैं कहती थी न कि मेरी उड़ान कोई नहीं रोक सकता.’’

‘‘पापा ने पढ़ने के लिए मुझे मुजफ्फरनगर से बाहर नहीं जाने दिया पर अब इतनी अच्छी नौकरी मिली है कि वह मुझे रोक नहीं सकते हैं.’’

सारा थी 23 वर्ष की खूबसूरत नवयुवती, जिंदगी से भरपूर, गोरा रंग, गोलगोल आंखें, छोटी सी नाक और गुलाबी होंठ, होंठों के बीच काला तिल सारा को और अधिक आकर्षक बना देता था. उसे खुले आकाश में उड़ने का शौक था. वह अकेले रहना चाहती थी और जीवन को अपने तरीके से जीना चाहती थी.

जब भी सारा के पापा कहते, ‘‘हमें तुम से जिंदगी का अधिक अनुभव है इसलिए हमारा कहा मानो.’’

सारा फट से कहती, ‘‘पापा मैं अपने अनुभवों से कुछ सीखना चाहती हूं.’’

सारा के पापा उसे पुणे भेजना नहीं चाहते थे पर सारा की दलीलों के आगे उन की एक न चली.

फिर सारा की मम्मी ने भी समझया, ‘‘इतनी अच्छी नौकरी है, आजकल अच्छी नौकरी वाली लड़कियों की शादी आराम से हो जाती है.

फिर सारा के पापा ने हथियार डाल दिए थे. ढेर सारी नसीहतें दे कर सारा के पापा वापस मुजफ्फरनगर आ गए थे.

सारा को शुरुआत में थोड़ी दिक्कत हुई थी परंतु धीरधीरे वह पुणे की लाइफ की अभ्यस्त हो गई थी.

यहां पर मुजफ्फरनगर की तरह न टोकाटाकी थी न ही ताकाझंकी. सारा को आधुनिक कपड़े पहनने का बहुत शौक था जिसे सारा अब पूरा कर पाई थी. वह स्वच्छंद तितली की तरह जिंदगी बिता रही थी. दफ्तर में ही सारा की मुलाकात मोहित से हुई थी. मोहित का ट्रांसफर दिल्ली से पुणे हुआ था.

मोहित को सारा पहली नजर में ही भा गई थी. सारा और मोहित अकसर वीकैंड पर बाहर घूमने जाते थे. परंतु सारा को हरहाल में रात 9 बजे तक अपने होस्टल वापस जाना ही पड़ता था.

फिर एक दिन मोहित ने यों ही सारा से कहा, ‘‘सारा, तुम मेरे फ्लैट में शिफ्ट क्यों नहीं हो जाती हो. चिकचिक से छुटकारा भी मिल जाएगा और हमें यों ही हर वीकैंड पर बंजारों की तरह घूमना नहीं पड़ेगा. सब से बड़ी बात तुम्हारा होस्टल का खर्च भी बच जाएगा.’’

सारा छूटते ही बोली, ‘‘पागल हो क्या, ऐसे कैसे रह सकती हूं तुम्हारे साथ? मतलब मेरातुम्हारा रिश्ता ही क्या है?’’

मोहित बोला, ‘‘रहने दो बाबा, मैं तो भूल ही गया था कि तुम तो गांव की गंवार हो. छोटे शहर के लोगों की मानसिकता कहां बदल सकती हैं चाहे वह कितने ही आधुनिक कपड़े पहन लें.’’

सारा मोहित की बात सुन कर एकदम चुप हो गईं. अगले कुछ दिनों तक मोहित सारा से खिंचाखिंचा रहा.

एक दिन सारा ने मोहित से पूछा, ‘‘मोहित, आखिर मेरी गलती क्या हैं?’’

मोहित बोला, ‘‘तुम्हारा मुझ पर अविश्वास.’’

‘‘बात अविश्वास की नहीं है मोहित, मेरे परिवार को अगर पता चल जाएगा तो वे मेरी नौकरी भी छुड़वा देंगे.’’

‘‘तुम्हें अगर रहना है तो बताओ बाकी सब मैं हैंडल कर लूंगा.’’

घर पर पापा के मिलिटरी राज के कारण सारा का आज तक कोई बौयफ्रैंड नहीं बन पाया था, इसलिए वह यह सुनहरा मौका हाथ से नहीं छोड़ना चाहती थी. अत: 1 एक हफ्ते बाद मोहित के साथ शिफ्ट कर गई. घर पर सारा ने बोल दिया कि उस ने एक लड़की के साथ अलग से फ्लैट ले लिया है क्योंकि उसे होस्टल में बहुत असुविधा होती थी.

यह बात सुनते ही सारा के मम्मीपापा ने जाने के लिए सामान बांध लिया था. वे देखना चाहते थे कि उन की लाड़ली कैसे अकेले रहती होगी.

सारा घबरा कर मोहित से बोली, ‘‘अब क्या करेंगे?’’

मोहित हंसते हुए बोला, ‘‘अरे देखो मैं कैसा चक्कर चलाता हूं,’’

अगले रोज मोहित अपनी एक दोस्त शैली को ले कर आ गया और बोला, ‘‘तुम्हारे मम्मीपापा के सामने मैं शैली के बड़े भाई के रूप में उपस्थित रहूंगा.’’

सारा के मम्मीपापा आए और फिर मोहित के नाटक पर मोहित हो कर चले गए.

सारा के मम्मीपापा के सामने मोहित शैली के बड़े भाई के रूप में मिलने आता. सारा के मम्मीपापा को अब तसल्ली हो गई थी और वे निश्तिंत हो कर वापस अपने घर चले गए.

सारा और मोहित एकसाथ रहने लगे थे. सारा को मोहित का साथ भाता था परंतु अंदर ही अंदर उसे अपने मम्मीपापा से झठ बोलना भी कचोटता रहता था. एक दिन सारा ने मोहित से कहा, ‘‘मोहित, तुम मुझे पसंद करते हो क्या?’’

मोहित बोला, ‘‘अपनी जान से भी ज्यादा?’’

सारा बोली, ‘‘मोहित तुम और मैं क्या इस रिश्ते को नाम नहीं दे सकते हैं?’’

मोहित चिढ़ते हुए बोला,’’ यार मुझे माफ करो, मैं ने पहले ही कहा था कि हम एक दोस्त की तरह ही रहेंगे. मैं तुम पर कोई बंधन नहीं लगाना चाहता हूं और न ही तुम मुझ पर लगाया करो. और तुम यह बात क्यों भूल जाती हो कि मेरे घर पर रहने के कारण तुम्हारी कितनी बचत हो रही है और भी कई फायदे भी हैं,’’ कहते हुए मोहित ने अपनी आंख दबा दी.

सारा को मोहित का यह सस्ता मजाक बिलकुल पसंद नहीं आया. 2 दिन तक मोहित और सारा के बीच तनाव बना रहा परंतु फिर से मोहित ने हमेशा की तरह सारा को मना लिया. सारा भी अब इस नए लाइफस्टाइल की अभ्यस्त हो चुकी थी.

सारा जब मुजफ्फरनगर से पुणे आई थी तो उस के बड़ेबड़े सपने थे परंतु अब न जाने क्यों उस के सब सपने मोहित के इर्दगिर्द सिमट कर रह गए थे.

आज सारा बेहद परेशान थी. उस के पीरियड्स की डेट मिस हो गई थी. जब उस ने मोहित को यह बात बताई तो वह बोला, ‘‘सारा ऐसे कैसे हो सकता है हम ने तो सारे प्रीकौशंस लिए थे?’’

‘‘तुम मुझ पर शक कर रहे हो?’’

‘‘नहीं बाबा कल टैस्ट कर लेना.’’

सारा को जो डर था वही हुआ. प्रैगनैंसी किट की टैस्ट रिपोर्ट देख कर सारा के हाथपैर ठंडे पड़ गए.

मोहित उसे संभालते हुए बोला, ‘‘सारा टैंशन मत लो कल डाक्टर के पास चलेंगे.’’

अगले दिन डाक्टर के पास जा कर जब उन्होंने अपनी समस्या बताई तो डाक्टर बोली, ‘‘पहली बार अबौर्शन कराने की सलाह मैं नहीं दूंगी… आगे आप की मरजी.’’

घर आ कर सारा मोहित की खुशामद करने लगी, ‘‘मोहित, प्लीज शादी कर लेते हैं. यह हमारे प्यार की निशानी है.’’

मोहित चिढ़ते हुए बोला, ‘‘सारा, प्लीज फोर्स मत करो… यह शादी मेरे लिए शादी नहीं बल्कि एक फंदा बनेगी.’’

सारा फिर चुप हो गई थी. अगले दिन चुपचाप जब सारा तैयार हो कर जाने लगी तो मोहित भी साथ हो लिया.

रास्ते में मोहित बोला, ‘‘सारा, मुझे मालूम है तुम मुझ से गुस्सा हो पर ऐसा कुछ

जल्दबाजी में मत करो जिस से बाद में हम

दोनों को घुटन महसूस हो. देखो इस रिश्ते में

हम दोनों का फायदा ही फायदा है और शादी के लिए मैं मना कहां कर रहा हूं, पर अभी नहीं कर सकता हूं.’’

डाक्टर से सारा और मोहित ने बोल दिया था कि कुछ निजी कारणों से वे अभी बच्चा नहीं कर सकते हैं.

डाक्टर ने उन्हें अबौर्शन के लिए 2 दिन बाद आने के लिए कहा. मोहित ने जब पूरा खर्च पूछा तो डाक्टर ने कहा, ‘‘25 से 30 हजार रुपए.’’

घर आ कर मोहित ने पूरा हिसाब लगाया, ‘‘सारा तुम्हें तो 3-4 दिन बैड रैस्ट भी करना होगी जिस कारण तुम्हें लीव विदआउट पे लेनी पड़ेगी. तुम्हारा अधिक नुकसान होगी, इसलिए इस अबौर्शन का 50% खर्चा मैं उठा लूंगा.’’

सारा छत को टकटकी लगाए देख रही थी. बारबार उसे ग्लानि हो रही थी कि वह एक जीव हत्या करेगी. बारबार सारा के मन में खयाल आ रहा था कि अगर उस की और मोहित की शादी हो गई होती तो भी मोहित ऐसे ही 50% खर्चा देता. सारा ने रात में एक बार फिर मोहित से बात करने की कोशिश करी, मगर उस ने बात को वहीं समाप्त कर दिया.

मोहित बोला, ‘‘तुम्हें वैसे तो बराबरी चाहिए, मगर अब फीमेल कार्ड खेल रही हो. यह गलती दोनों की है तो 50% भुगतान कर तो रहा हूं और यह बात तुम क्यों भूल जाती हो कि तुम्हारा वैसे ही क्या खर्चा होता है. यह घर मेरा है जिस में तुम बिना किराए दिए रहती हो.’’

मोहित की बात सुन कर सारा का मन खट्टा हो गया.

जब से सारा अबौर्शन करा कर लौटी थी वह मोहित के साथ हंसतीबोलती जरूर थी, मगर उस के अंदर बहुत कुछ बदल गया था. पहले जो सारा मोहित को ले कर बहुत केयरिंग और पजैसिव थी अब उस ने मोहित से एक डिस्टैंस बना लिया था.

शुरूशुरू में तो मोहित को सारा का बदला व्यवहार अच्छा लग रहा था परंतु बाद में उसे सारा का वह अपनापन बेहद याद आने लगा.

पहले मोहित जब औफिस से घर आता था तो सारा उस के साथ ही चाय लेती थी परंतु आजकल अधिकतर वह गायब ही रहती थी.

एक दिन संडे को मोहित ने कहा, ‘‘सारा कल मैं ने अपने कुछ दोस्त लंच पर बुलाए हैं.’’

सारा लापरवाही से बोली, ‘‘तो मैं क्या

करूं, तुम्हारे दोस्त हैं तुम उन्हें लंच पर बुलाओ या डिनर पर.’’

‘‘अरे यार हम एकसाथ एक घर में रहते हैं… ऐसा क्यों बोल रही हो.’’

सारा मुसकराते हुए बोली, ‘‘बेबी, इस घोंसले की दीवारें आजाद हैं… जो जब चाहे उड़ सकता है. कोई तुम्हारी पत्नी थोड़े ही हूं जो तुम्हारे दोस्तों को ऐंटरटेन करूं.’’

मोहित मायूस होते हुए बोला, ‘‘एक दोस्त के नाते भी नहीं?’’

‘‘कल तुम्हारी इस दोस्त को अपने दोस्तों के साथ बाहर जाना है.’’

मोहित आगे कुछ नहीं बोल पाया.

सारा ने अब तक अपनी जिंदगी मोहित

के इर्दगिर्द ही सीमित कर रखी थी. जैसे ही उस

ने बाहर कदम बढ़ाए तो सारा को लगा कि वह कुएं के मेढक की तरह अब तक मोहित के

साथ बनी हुई थी. इस कुएं के बाहर तो बहुत

बड़ा समंदर है. सारा अब इस समंदर की सारी सीपियों और मोतियों को अनुभव करना

चाहती थी.

एक दिन डिनर करते हुए सारा मोहित से बोली, ‘‘मोहित, तुम्हें पता नहीं है तुम कितने अच्छे हो.’’

मोहित मन ही मन खुश हो उठा. उसे लगा कि अब सारा शायद फिर से प्यार का इकरार करेगी.

मगर सारा मोहित की आशा के विपरीत बोली, ‘‘अच्छा हुआ तुम ने शादी करने से मना कर दिया. मुझे उस समय बुरा अवश्य लगा परंतु अगर हम शादी कर लेते तो मैं इस कुएं में ही सड़ती रहती.’’

अगले माह मोहित को कंपनी के काम से बैंगलुरु जाना था. उसे न जाने क्यों अब सारा का यह स्वच्छंद व्यवहार अच्छा नहीं लगता था. उस ने मन ही मन तय कर लिया था कि अगले माह सारा के जन्मदिन पर वह उसे प्रोपोज कर देगा और फिर परिवार वालों की सहमति से अगले साल तक विवाह के बंधन में बंध जाएंगे.

बैंगलुरु पहुंचने के बाद भी मोहित ही सारा को मैसेज करता रहता था परंतु चैट पर बकबक करने वाली सारा अब बस हांहूं के मैसेज तक सीमित हो गई थी.

जब मोहित बैंगलुरु से वापस पुणे पहुंचा तो देखा सारा वहां नही थी. उस ने फोन लगाया तो सारा की चहकती आवाज आई, ‘‘अरे यार मैं गोवा में हूं, बहुत मजा आ रहा है.’’

इस से पहले कि मोहित कुछ बोलता सारा ने झट से फोन काट दिया.

3 दिन बाद जब सारा वापस आई तो मोहित बोला, ‘‘बिना बताए ही चली गईं, एक बार पूछा भी नही.’’

सारा बोली, ‘‘तुम मना कर देते क्या?’’

मोहित झेंपते हुए बोला, ‘‘मेरा मतलब यह नहीं था.’’

मोहित को उस के एक नजदीकी दोस्त ने बताया था कि सारा अर्पित नाम के लड़के के साथ गोवा गई थी. मोहित को यह सुन कर बुरा लगा था, मगर उसे समझ नहीं आ रहा था कि सारा से क्या बात करे? उस ने खुद ही अपने और सारा के बीच यह खाई बनाई थी.

मोहित सारा को दोबारा से अपने करीब लाने के लिए सारे ट्रिक्स अपना चुका था परंतु अब सारा पानी पर तेल की तरह फिसल गई थी.

अगले हफ्ते सारा का जन्मदिन था. मोहित ने मन ही मन उसे सरप्राइज देने की सोच रखी थी. तभी उस रात अचानक मोहित को तेज बुखार हो गया. सारा ने उस की खूब अच्छे से देखभाल करी. 5 दिन बाद जब मोहित पूरी तरह से ठीक हो गया तो उसे विश्वास हो गया कि सारा उसे छोड़ कर कहीं नहीं जाएगी. मोहित ने सारा के लिए हीरे की अंगूठी खरीद ली. कल सारा का जन्मदिन था. मोहित शाम को जल्दी आ गया था. उस ने औनलाइन केक बुक कर रखा था.

न जाने क्यों आज उसे सारा का बेसब्री से इंतजार था.

जैसे ही सारा घर आई तो मोहित ने उस के लिए चाय बनाई. सारा ने मुसकराते हुए चाय का कप पकड़ा और कहा, ‘‘क्या इरादा है जनाब का?’’

मोहित बोला, ‘‘कल तुम्हारा जन्मदिन है, मैं तुम्हें स्पैशल फील कराना चाहता हूं.’’

‘‘वह तो तुम्हें मेरे घर आ कर करना पड़ेगा.’’

‘‘तुम क्या अपने घर जा रही हो जन्मदिन पर.’’

‘‘मैं ने अपने औफिस के पास एक छोटा सा फ्लैट ले लिया है. मैं अपना जन्मदिन वहीं मनाना चाहती हूं. अब मैं अपना खर्च खुद उठाना चाहती हूं… यह निर्णय मुझे बहुत पहले ही ले लेना चाहिए था.’’

मोहित बोला, ‘‘मुझे मालूम है तुम मुझ से अब तक अबौर्शन की बात से नाराज हो. यार मेरी गलती थी कि मैं ने तुम से तब शादी करने के लिए मना कर दिया था.’’

‘‘अरे नहीं तुम सही थे, मजबूरी में अगर तुम मुझ से शादी कर भी लेते तो हम दोनों हमेशा दुखी रहते.’’

‘‘सारा मैं तुम से प्यार करता हूं और तुम से शादी करना चाहता हूं.’’

‘‘मोहित पर मैं तुम से आकर्षित थी… अगर प्यार होता तो शायद आज मैं अलग रहने का फैसला नहीं लेती.’’

सारा सामान पैक कर रही थी. मोहित के अहम को ठेस लग गई थी, इसलिए उस ने अपना आखिरी दांव खेला, ‘‘तुम्हारे नए बौयफ्रैंड को पता है कि तुम ने अबौर्शन करवाया था. अगर तुम्हारे घर वालों को यह बात पता चल जाएगी तो सोचो उन्हें कैसा लगेगा? मैं तुम पर विश्वास करता हूं, इसलिए मैं तुम से शादी करने को अभी भी तैयार हूं.’’

‘‘पर मोहित मैं तैयार नहीं हूं. बहुत अच्छा हुआ कि इस बहाने ही सही मुझे तुम्हारे विचार पता चल गए. और रही बात मेरे परिवार की, तो वे कभी नहीं चाहेंगे कि मैं तुम जैसे लंपट इंसान से विवाह करूं. मोहित तुम्हारा यह घोंसला आजादी के तिनकों से नहीं वरन स्वार्थ के तिनकों से बुना हुआ है. अगर एक दोस्त के नाते कभी मेरे घर आना चाहो तो अवश्य आ सकते हो,’’ कहते हुए सारा ने अपने नए घोंसले का पता टेबल पर रखा और एक स्वच्छंद चिडि़या की तरह खुले आकाश में विचरण करने के लिए उड़ गई.

सारा ने अब निश्चय कर लिया था कि वह अपनी मेहनत और हिम्मत के तिनकों से अपना घोंसला स्वयं बनाएगी. तिनकातिनका जोड़ कर बनाएगी अब वह अपना घोंसला… आज की नारी में हिम्मत, मेहनत और खुद पर विश्वास का हौसला.

नाइट फ्लाइट :ऋचा से बात करने में क्यों कतरा रहा था यश

मुंबई का अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा. अभी शाम के 5 भी  नहीं बजे थे. यश की फ्लाइट रात के 8 बजे की थी. वह लंबी यात्रा में किसी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहता था. सो, एयरपोर्ट जल्दी ही आ गया था. उस ने टैक्सी से अपना सामान उतार कर ट्रौली पर रखा. हवाईअड्डे पर काफी भीड़ थी. वह मन ही मन सोच रहा था, आजकल हवाई यात्रा करने वालों की कमी नहीं है. यश ने अपना पासपोर्ट और टिकट दिखा कर अंदर प्रवेश किया.

यश ने एयर इंडिया के काउंटर से चेकइन कर अपना बोर्डिंग पास लिया. उस ने अपने लिए किनारे वाली सीट पहले से बुक करा ली थी. उसे यात्रा के दौरान विंडो या बीच वाली सीट से निकल कर वौशरूम जाने में परेशानी होती है. उस के बाद वह सुरक्षा जांच के लिए गया. सुरक्षा जांच के बाद टर्मिनल 2 की ओर बढ़ा जहां से एयर इंडिया की उड़ान संख्या ए/314 से उसे हौंगकौंग जाना था. वहां पर वह एक किनारे कुरसी पर बैठ गया. अभी भी उस की फ्लाइट में डेढ घंटे बाकी थे. हौंगकौंग के लिए और भी उड़ानें थीं पर उस ने जानबूझ कर नाइट फ्लाइट ली ताकि रात जहाज में सो कर गुजर जाए और सारा दिन काम कर सके. उस की फ्लाइट हौंगकौंग के स्थानीय समय के अनुसार सुबह 6.45 बजे वहां लैंड करती.

थोड़ी देर बाद एक बुजुर्ग आ कर यश की बगल में एक सीट छोड़ कर बैठ गए. बीच की सीट पर उन्होंने अपना बैग रख दिया. देखने में वे किसान लग रहे थे. उन्होंने अपना बोर्डिंग पास यश को दिखाते हुए पंजाबी मिश्रित हिंदी में पूछा, ‘‘पुत्तर, मेरा जहाज यहीं से उड़ेगा न?’’

यश ने हां कहा और अपनी किताब पढ़ने लगा. बीचबीच में वह सामने टीवी स्क्रीन पर न्यूज देख लेता. लगभग आधे घंटे के बाद एक युवती आई. यश की बगल वाली सीट पर बुजुर्ग का बैग रखा था. लड़की ने यश से कहा, ‘‘प्लीज, आप अपना बैग हटा लेते, तो मैं यहां बैठ जाती.’’

यश ने मुसकराते हुए बुजुर्ग की ओर इशारा कर कहा, ‘‘यह बैग उन का है.’’

उस बुजुर्ग को हिंदी ठीक से नहीं आती थी. लड़की के समझाने पर उन्होंने अपना बैग नीचे रखा. तब लड़की ने यश की ओर देख कर कहा, ‘‘मैं थोड़ी देर में वौशरूम से आती हूं.’’

इस बार यश ने सिर उठा कर उसे देखा और मुसकराते हुए, ‘इट्स ओके’ कहा. फिर लड़की को जाते हुए देखा. लड़की खूबसूरत थी. उस की पतली कमर के ऊपर ब्लू स्कर्ट और स्कर्ट के बाहर झांकती पतली टांगें उसे अच्छी लगी थीं. ऊपर एक सफेद टौप था. उस ने हाईहील सैंडिल पहनी थी.

करीब 10 मिनट के बाद एक हाथ में स्नैक्स और दूसरे में कोक का कैन लिए वह लड़की आ रही थी. पहले स्नैक्स खाती, फिर कोक सिप करती. यश ने देखा कि उसे हाईहील पहन कर चलने में कुछ असुविधा हो रही थी. वह जैसे ही अपनी कुरसी पर बैठने जा रही थी कि थोड़ा लड़खड़ा पड़ी. उस ने अपने को तो संभाल लिया पर कोक का कैन हाथ से छूट कर यश की गोद में जा पड़ा. कुछ कोक छलक कर उस की जींस पर गिरी जिस से जींस कुछ गीली हो गई थी.

यश ने खड़े हो कर कैन उसे पकड़ाया. लड़की बुरी तरह शर्मिंदा थी, बोली, ‘‘आई एम ऐक्सट्रीमली सौरी.’’ और बैग में से कुछ टिश्यूपेपर निकाल कर उस की जींस पोंछने लगी.

यश को यह अच्छा नहीं लगा, वह बोला, ‘‘आप रहने दें, मैं खुद कर लेता हूं.’’ और उस के हाथ से टिश्यू ले कर खुद गीलापन कम करने की कोशिश करने लगा.

थोड़ी देर बाद बोर्डिंग की घोषणा हुई. यह भी इत्तफाक ही था कि वह लड़की और बुजुर्ग दोनों यश की बगल की सीटों पर थे. बुजुर्ग को विंडो सीट और लड़की को बीच वाली सीट मिली थी.

विमान के कैप्टन ने यात्रियों का स्वागत करते हुए कहा कि मुंबई से हौंगकौंग तक की उड़ान करीब 8 घंटे 35 मिनट की होगी. पर लगभग 2 घंटे के बाद विमान एक घंटे के लिए दिल्ली में रुकेगा. जिन यात्रियों को हौंगकौंग जाना है, कृपया अपनी सीट पर बैठे रहें. विमान परिचारिका ने सुरक्षा नियम समझाए. बुजुर्ग यात्री पहली बार हवाई जहाज से यात्रा कर रहे थे. उन्हें बैल्ट बांधने में लड़की ने मदद की. उन्होंने बताया कि वे कनाडा जा रहे हैं. वे कुछ दिन हौंगकौंग में अपनी भतीजी की शादी के सिलसिले में रुकेंगे.

फिर उन्हें हौंगकौंग से वैंकुवर जाना है. उन के बेटे ने उन का ग्रीनकार्ड स्पौंसर किया है.

निश्चित समय पर विमान ने टेकऔफ किया. बातचीत का सिलसिला यश ने शुरू किया. वह लड़की से बोला, ‘‘मैं यश मेहता, सौफ्टवेयर इंजीनियर हूं. मेरी कंपनी बैंकिंग सौफ्टवेयर बनाती है. अभी मैं एक प्रोडक्ट के सिलसिले में हौंगकौंग के बार्कले इन्वैस्टमैंट बैंक और एचएसबीसी बैंक जा रहा हूं.’’

‘‘ग्लैड टू मीट यू, मैं ऋचा शर्मा. हौंगकौंग में हमारा बिजनैस है.’’

‘‘तब तो आप अकसर वहां जाती होंगी.’’

‘‘जी नहीं, पहली बार जा रही हूं.’’

तब तक जलपान दिया गया. यश और ऋ चा ने देखा कि वे बुजुर्ग बारबार उठ कर बाथरूम जा रहे हैं जिस के चलते ऋचा को ज्यादा परेशानी हो रही थी. यश किनारे वाली सीट पर था तो वह अपने पैर बाहर की तरफ मोड़ लेता.

बुजुर्ग ने बताया कि उन्हें शुगर और किडनी दोनों बीमारियां हैं. उन की एक आदत यश और ऋ चा दोनों को बुरी लगी कि विमान परिचारिका जो भी कुछ सामान अगलबगल की सीट पर देती, वे अपने लिए भी मांग बैठते.

कुछ देर बाद विमान दिल्ली हवाई अड्डे पर उतर रहा था. करीब एक घंटे के बाद विमान ने हौंगकौंग के लिए उड़ान भरी. आधे घंटे के बाद डिनर सर्व हुआ. डिनर के बाद यश सोने की तैयारी में था. तभी ऋ चा ने अपने रिमोट से परिचारिका को बुलाने के लिए कौलबैल का बटन दबाया. थोड़ी देर में वह आई. ऋचा ने उस के कान में धीरे से कुछ कहा. परिचारिका ‘श्योर मैम, मैं देखती हूं,’ बोल कर चली गई.

कुछ ही देर बाद वह लौट कर आई. उस ने एक टिश्यू में लिपटा हुआ कुछ सामान ऋचा को दिया. बुजुर्ग ने कहा, ‘‘पुत्तर, एक मुझे भी दे दो.’’

परिचारिका बोली, ‘‘सर, यह आप के काम की चीज नहीं है.’’

‘‘तुम मुझे दो तो सही. मैं देख लूंगा, मेरे लिए है या नहीं.’’

ऋचा शरमा रही थी और अपनी हंसी भी नहीं छिपा पा रही थी. बारबार समझाने पर भी वे नहीं मान रहे थे. तब परिचारिका ने झुंझला कर कहा, ‘‘आप को भी मासिकधर्म है क्या?’’

बुजुर्ग बोले, ‘‘छि, क्या बोलती है?’’

तब जा कर उन की समझ में बात आई. यश ने कहा, ‘‘मैं देख रहा हूं आप हर चीज अपने लिए मांग रहे हैं?’’

‘‘आते समय मेरे बेटे ने समझाया था कि शर्म नहीं करना, सब चीजें जहाज में फ्री मिलती हैं.’’

यश हंस पड़ा. इसी बीच ऋचा सैनिटरी नैपकिन ले कर वौशरूम चली गई. 10 मिनट बाद वह लौट कर अपनी सीट पर आ रही थी. बगल की सीट पर बैठा यात्री सो रहा था और उस का हैडफोन नीचे गिरा था. ऋचा का पैर हैडफोन की तार में फंस गया, ऊपर से हाईहील, पैंसिल नोक वाली सैंडिल. ऋचा गिर पड़ी और उस की स्कर्ट भी कुछ इस तरह उठ गई थी कि उस का अधोवस्त्र भी झलकने लगा. वह उठने की कोशिश कर रही थी, पर दोबारा फिसल पड़ी थी. यश ने उसे सहारा दे कर अपनी सीट पर बैठाया और खुद बीच वाली सीट पर बैठ गया.

‘‘थैंक्स अ लौट,’’ ऋ चा बोली.

‘‘इट्स ओके. पर एक बात पूछूं, बुरा न मानिए.’’

ऋचा के पूछिए बोलने पर वह बोला, ‘‘आप हाईहील में सहज नहीं लगती हैं, फिर फ्लाइट में क्यों इसे पहन कर आई हैं?’’

‘‘हाईहील के बगैर मेरी हाइट 5 फुट से भी कम हो जाती है. वैसे, मैं रैगुलर इसे यूज नहीं करती.’’

थोड़ी देर बाद ऋ चा को नींद आ गई. उस ने नींद में यश के कंधे पर अपना सिर रख दिया. यश को उस का सामीप्य अच्छा लग रहा था. कंधे पर एक खुशनुमा बोझ तो था, पर उस के बदन और बालों की खुशबू यश को रोमांचित कर रही थी. वह यथावत स्थिति में बैठा रहा. उसे डर था कि कहीं हिलनेडुलने से ऋचा की नींद न टूट जाए और वह इस आनंद से वंचित रह जाए. बीच में कभी ऋचा की नींद खुलती तो वह सीधा हो कर बैठती, पर 5 मिनट के अंदर फिर यश के कंधों पर लुढ़क जाती.

इस बीच, यश ने दोनों सीटों के बीच वाले हिस्से को उठा कर खड़ा कर दिया. कभी तो ऋ चा का सिर उस के सीने पर भी आ जाता, तब उस की नींद खुलती और सौरी बोल कर सीधी हो जाती और बोलती, ‘‘मुझ से नींद बरदाश्त नहीं होती. मैं कहीं भी जाती हूं किसी तरह अपने सोनेभर की जगह बना ही लेती हूं.’’

यश ने कहा, ‘‘आप कहें तो मैं आप के लिए कुछ और जगह बना दूं. मेरे पैर पर तकिया रख कर सो लें.’’

‘‘ओह, नोनो.’’

पर 10 मिनट के अंदर उस का सिर यश के पैर पर रखे तकिए पर आ गया. यश को भी नींद आ रही थी, पर वह अपनी नींद कुरबान करने को तैयार था, बल्कि एकाध बार तो उस का दाहिना हाथ ऋ चा के बालों पर फिसलने लगता.

देखतेदेखते लैंडिंग की भी घोषणा हुई. तब यश ने धीरे से ऋचा का सिर हिला कर कहा ‘‘उठिए, बैल्ट बांधिए. हम हौंगकौंग पहुंच रहे हैं.’’

‘‘इतनी जल्दी आ गए. मुझे तो पता ही नहीं चला.’’ और फिर सीधा बैठ कर बैल्ट बांधती हुई बोली, ‘‘क्या मैं रातभर इसी तरह सोती आई? सौरी, आप को तकलीफ दी.’’

‘‘कोई बात नहीं, इट्स अ प्लेजर फौर मी. अगर सफर लंबा होता तो मुझे और खुशी होती.’’

ऋ चा मुसकरा कर रह गई. ऋ चा और यश दोनों का इमिग्रेशन और कस्टम एक ही डैस्क पर हुआ. वहीं लाइन में खड़े यश ने कहा, ‘‘आप के साथ का सफर बड़ा प्यारा रहा. क्या हम आगे भी मिल सकते हैं?’’

‘‘हां, मिलने में कोई बुराई नहीं है.’’

‘‘तो शाम को विंधम स्ट्रीट के इंडियन रैस्टोरैंट में मिलते हैं. जब हौंगकौंग आता हूं, वहां मैं अकसर डिनर करता हूं. लाजवाब स्वाद है वहां के खाने में.’’

ऋ चा हंस कर बोली, ‘‘तब तो वहां मैं जरूर मिलूंगी.’’

दोनों एयरपोर्ट से बाहर निकले. दोनों के लिए तख्तियां ले कर कार के ड्राइवर्स खड़े थे. दोनों अपनेअपने गंतव्य स्थान पर गए.

यश 2-3 घंटे होटल में आराम कर अपने काम पर चला गया. दिनभर वह शाम को ऋचा से होने वाली मुलाकात को सोच कर रोमांचित होता रहा.

यश ने शाम को उस इंडियन रैस्टोरैंट में अपने लिए टेबल बुक कर लिया था. होटल पहुंच कर वह अपने टेबल पर बैठा बारबार घड़ी देख रहा था. सोच रहा था कि ऋचा बोल कर भी क्यों नहीं आई. वह सोच ही रहा था कि तभी ऋचा एप्रन पहने सामने आ खड़ी हुई. उसे मेनू बुक देते हुए बोली, ‘‘गुड इवनिंग सर, आप खाने में क्या पसंद करेंगे?’’

यश उसे वेट्रैस की ड्रैस में देख कर घबरा गया और बोला, ‘‘तुम यहां वेट्रैस हो? यही तुम्हारा बिजनैस है?’’

‘‘रिलैक्स सर. अच्छा, आज मेरी पसंद का डिनर लें. आप को शिकायत का मौका नहीं दूंगी.’’

यश ने उस का हाथ पकड़ कर बैठाना चाहा तो वह बोली, ‘‘मैं डिनर ले कर आती हूं. दोनों साथ बैठ कर खाएंगे.’’

यश हैरानपरेशान सा बैठा था. थोड़ी देर में वह भरपूर खाना ले कर आई और एप्रन खोल कर रख दिया. दोनों खाते रहे. यश ने 2-3 बार पूछना चाहा कि क्या वह वेट्रैस है, पर हर बार वह टाल जाती.

खाना खत्म होते ही एक युवक उन के पास आया और उस ने ऋ चा से पूछा, ‘‘कुछ और चाहिए. खाना पसंद आया तुम्हारे वीआईपी गैस्ट को?’’

यश उस युवक की ओर देखने लगा. ऋ चा बोली, ‘‘मीट माई हस्बैंड, नीलेश.’’

यश भौचक्का सा कभी ऋचा, तो कभी नीलेश को देखता रहा. थोड़ी देर बाद नीलेश बोला, ‘‘हमारी शादी 2 महीने पहले इंडिया में हुई थी. इसे मायके में कुछ दिन रुकने का मन था. मैं यहां पहले चला आया. इस होटल में मेजर शेयर हमारा है. आप ने यात्रा में ऋचा की काफी सहायता की है. वह आप की बहुत तारीफ कर रही थी. दरअसल, इस टेबल की वेट्रैस आज छुट्टी पर है. ऋ चा बोली कि उस का एक खास गैस्ट आ रहा है, वह खुद मेहमाननवाजी करेगी. और आज का डिनर हमारी तरफ से कौंप्लीमैंट्री रहा.’’

यश अभी तक इस आश्चर्यजनक वाकए से उबर नहीं सका था, वह बोला, ‘‘ऋचा, आप ने पहले क्यों नहीं बताया?’’

‘‘मैं ने कहा था कि मेरा बिजनैस है. पर जब आप ने इंडियन रैस्टोरैंट का नाम लिया तो मैं ने सोचा, क्यों न सरप्राइज दिया जाए, और आप को कुछ देर और रोमांचित होने का मौका दिया मैं ने.’’

‘‘नौट फेयर ऋचा, मुझे आप ने अपने बारे में अंधेरे में रखा.’’

ऋचा ने यश की पीठ थपथपाई और कहा, ‘‘वी विल रिमेन गुड फ्रैंड्स. इस होटल में जब भी चाहो, आ जाना. बिल नहीं भी देंगे तो भी चलेगा. पर हर बार मैं सर्व नहीं कर सकूंगी. होप यू डौंट माइंड.’’

नीलेश और ऋचा दोनों होटल के बाहर तक यश को छोड़ने आए.

यश ने टैक्सी ली और वापस अपने होटल आ गया. रिलैक्स हो कर सोफे पर बैठ गया. उसे एहसास हो रहा था कि हम बिना दूसरे के बारे में जाने न जाने क्याक्या सोच बैठते हैं. ऋचा को देख उस ने न जाने क्याक्या सोच लिया था. गलती तो उसी की थी. मन तो बावरा होता है, लेकिन अपनी सोच पर तो हमारी खुद की पकड़ होती है. यश को अपनेआप पर हंसी आ गई. फिर लंबी सांस भर कर बोला, ‘‘नौट अगेन.’’

प्यार चढ़ा परवान : हवस के मारे प्रमिला और शंकर

प्रमिला और शंकर के बीच अवैध संबंध हैं, यह बात रामनगर थाने के लगभग सभी कर्मचारियों को पता था. मगर इन सब से बेखबर प्रमिला और शंकर एकदूसरे के प्यार में इस कदर खो गए थे कि अपने बारे में होने वाली चर्चाओं की तरफ जरा भी ध्यान नहीं जा रहा था.

शंकर थाने के इंचार्ज थे तो प्रमिला एक महिला कौंस्टेबल थी. थाने के सर्वेसर्वा अर्थात इंचार्ज होने के कारण शंकर पर किसी इंस्पैक्टर, हवलदार या स्टाफ की उन के सामने चूं तक करने की हिम्मत नहीं होती थी.

थाने की सब से खूबसूरत महिला कौंस्टेबल प्रमिला थाने में शेरनी बनी हुई थी, क्योंकि थाने का प्रभारी उस पर लट्टू था और वह उसे अपनी उंगलियों पर नचाती थी.

जिन लोगों के काम शंकर करने से मना कर देते थे, वे लोग प्रमिला से मिल कर अपना काम करवाते थे.

प्रमिला और शंकर के अवैध रिश्तों से और कोई नहीं मगर उन के परिजन जरूर परेशान थे. प्रमिला 1 बच्चे की मां थी तो शंकर का बड़ा बेटा इस वर्ष कक्षा 10वीं की परीक्षा दे रहा था.

मगर कहते हैं न कि प्रेम जब परवान चढ़ता है तो वह खून के रिश्तों तक को नजरअंदाज कर देता है. प्रमिला के घर में अकसर इस बात को ले कर पतिपत्नी के बीच झगड़ा होता था मगर प्रमिला हर बार यही दलील देती थी कि लोग उन की दोस्ती का गलत अर्थ निकाल रहे हैं. थाना प्रभारी जटिल केस के मामलों में या जहां महिला कौंस्टेबल का होना बहुत जरूरी होता है तभी उसे दौरों पर अपने साथ ले जाते हैं. थाने की बाकी महिला कौंस्टेबलों को यह मौका नहीं मिलता है इसलिए वे लोग मेरी बदनामी कर रहे हैं. यही हाल शंकर के घर का था मगर वे भी बहाने और बातें बनाने में माहिर थे. उन की पत्नी रोधो कर चुपचाप बैठ जाती थीं.

शंकर किसी न किसी केस के बहाने शहर से बाहर चले जाते थे और अपने साथ प्रमिला को भी ले जाते थे. अपने शहर में वे दोनों बहुत कम बार साथसाथ दिखाई देते थे ताकि उनके अवैध प्रेम संबंधों को किसी को पता न चलें. लेकिन कहते हैं न कि खांसी और प्यार कभी छिपाए नहीं छिपता, इन के साथ भी यही हो रहा था.

एक दिन शाम को प्रमिला अपने प्रेमी शंकर के साथ एक फिल्म देख कर रात देर से घर पहुंची तो उस के पति ने हंगामा खड़ा कर दिया. दोनों में जम कर हंगामा हुआ.

प्रमिला के घर में घुसते ही अमित ने गुस्से से कहा,”प्रमिला, तुम्हारा चालचलन मुझे ठीक नहीं लग रहा है. पूरे मोहल्ले में तुम्हारे और डीएसपी शंकर के अवैध संबंधों के चर्चे हो रहे हैं. तुम्हें शर्म आनी चाहिए. 1 बच्चे की मां हो कर तुम किसी पराए मर्द के साथ गुलछर्रे उड़ा रही हो…”

अमित की बात बीच में ही काटती हुई प्रमिला ने शेरनी की दहाड़ती हुई बोली,”अमित, बस करो, मैं अब और नहीं सुन सकती… तुम मेरे पति हो कर मुझ पर ऐसे घिनौने लांछन लगा रहे हो, तुम्हें शर्म आनी चाहिए. मेरे और थाना प्रभारी के बीच दोस्ताने रिश्ते हैं. कई बार जटिल और महिलाओं से संबंधित मामलों में जब दूसरी जगह जाना पड़ता है तब वे मुझे अपने साथ ले जाते हैं, जिस के कारण बाकी के लोग मुझ से जलते हैं और मुझे बदनाम करते हैं.

“अमित, तुम्हें एक बात बता दूं कि तुम्हारी यह दो टके की मास्टर की नौकरी से हमारा घर नहीं चल रहा है. तुम्हारी तनख्खाह से तो राजू के दूध के 1 महीने का खर्च भी नहीं निकलता है…समझे. फिर तुम्हारे बूढ़े मांपिता भी तो हमारी छाती पर बैठे हुए हैं, उन की दवाओं का खर्च कहां सा आता है, यह भी सोचो.

“अमित, पैसे कमाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है, कई पापड़ बेलने पड़ते हैं. थाना प्रभारी के साथ मेरे अच्छे संबंधों की बदौलत मुझे ऊपरी कमाई में ज्यादा हिस्सा मिलता है, फिर मैं उन के साथ अकसर दौरे पर जाती हूं तो तब टीएडीए आदि का मोटा बिल भी बन जाता है. यह सब मैं इस परिवार के लिए कर रही हूं. तुम कहो तो मैं नौकरी छोड़ कर घर पर बैठ जाती हूं, फिर देखती हूं तुम कैसे घर चलाते हो?“

अमित ने ज्यादा बात बढ़ाना उचित नहीं समझा. वह जानता था कि प्रमिला से बहस करना बेकार है. वह प्रमिला को जब तक रंगे हाथों नहीं पकड़ लेता तब तक वह उस पर हावी ही रहेगी. अमित के बुजुर्ग पिता ने भी उसे चुप रहने की सलाह दी. वे जानते थे कि घर में अगर रोजाना कलह होते रहेंगे तो घर का माहौल खराब हो जाता है और घर में सुखशांति भी नहीं रहती है.

उन्होंने अमित को समझाते हुए कहा,”बेटा अमित, बहू से झगड़ा मत करो, उस पर अगर इश्क का भूत सवार होगा तो वह तुम्हारी एक भी बात नहीं सुनेगी. इस समय उलटा चोर कोतवाल को डांटने वाली स्थिति बनी हुई है. जब उस की अक्ल ठिकाने आएगी तब सबकुछ ठीक हो जाएगा.

“बेटा, वक्त बड़ा बलवान होता है. आज उस का वक्त है तो कल हमारा भी वक्त आएगा.“

अपने उम्रदराज पिता की बात सुन कर अमित ने खामोश रहने का निर्णय ले लिया.

एक दिन जब प्रमिला अपने घर जाने के लिए रवाना हो रही थी, तभी उसे शंकर ने बुलाया.

“प्रमिला, हमारे हाथ एक बहुत बड़ा बकरा लगने वाला है. याद रखना किसी को खबर न हो पाए. कल सुबह 4 बजे हमारी टीम एबी ऐंड कंपनी के मालिक के घर पर छापा डालने वाली है. कंपनी के मालिक सुरेश का बंगला नैपियंसी रोड पर है. हम आज रात उस के बंगले के ठीक सामने स्थित होटल हिलटोन में ठहरेंगे. मैं ने हम दोनों के लिए वहां पर एक कमरा बुक कर दिया है. टीम के बाकी सदस्य सुबह हमारे होटल में पहुंचेंगे, इस के बाद हमारी टीम आगे की काररवाई के लिए रवाना हो जाएगी. तुम जल्दी से अपने घर चली जाओ और तैयारी कर के रात 9 बजे सीधे होटल पहुंच जाना, मैं तुम्हें वहीं पर मिलूंगा.“

“यस सर, मैं पहुँच जाऊंगी…” कहते हुए प्रमिला थाने से बाहर निकल गई.

सुबह ठीक 4 बजे सायरन की आवाज गूंज उठी. 2 जीपों में सवार पुलिसकर्मियों ने एबी कंपनी के बंगले को घेर लिया. गहरी नींद में सो रहे बंगले के चौकीदार हडबड़ा कर उठ गए. पुलिस को गेट पर देखते ही उनकी घिग्घी बंध गई. चौकीदारों ने गेट खोल दिया. कंपनी के मालिक सुरेश के घर वालों की समझ में कुछ आता इस से पहले पुलिस ने उन सब को एक कमरे में बंद कर के घर की तलाशी लेनी शुरू कर दी.

प्रमिला को सुरेश के परिवार की महिला सदस्यों को संभालने का जिम्मा सौंपा गया था.

करीब 2 घंटे तक पूरे बंगले की तलाशी जारी रही. छापे के दौरान पुलिस ने बहुत सारा सामान जब्त कर लिया.

कंपनी का मालिक सुरेश बड़ी खामोशी से पुलिस की काररवाई को देख रहा था. वह भी पहुंचा हुआ खिलाड़ी था, उसे पता था कि शंकर एक नंबर का भ्रष्ट पुलिस अधिकारी है. उसे छापे में जो गैरकानूनी सामान मिला है उस का आधा तो शंकरऔर उस के साथी हड़प लेंगे, फिर बाद में शंकर की थोड़ी जेब गरम कर देगा तो वह मामले को रफादफा भी कर देगा.

बंगले पर छापे के दौरान मिले माल के बारे में सुन कर थाने के अन्य पुलिस वालों के मुंह से लार टपकने लगी. शंकर ने सभी के बीच माल का जल्दी से बंटवारा करना उचित समझा. बंटवारे को ले कर उन के अर्दली और कुछ कौंस्टबलों में झगड़ा भी शुरू हो गया. शंकर ने अपने अर्दली और अन्य कौंस्टबलों को समझाया मगर उन के बीच लड़ाई कम होने के बजाय बढ़ती ही गई.

शंकर ने छापे में मिला हुआ कुछ महंगा सामान उसी होटल के कमरे में छिपा कर रखा था. इधर बंटवारे से नाराज अर्दली और 2 कौंस्टेबल शंकर से बदला लेने की योजना बनाने लगे.

उन्होंने तुरंत अपने इलाके के एसपी आलोक प्रसाद को सारी घटना की जानकारी दी. उन्हें यह भी बताया कि शंकर और प्रमिला हिलटोन होटल में रूके हुए हैं.

उन्हें रंगे हाथ पकड़ने का यह सुनहरा मौका है. एसपी आलोक प्रसाद को यह भी सूचना दी गई कि कंपनी मालिक के घर पर पड़े छापे के दौरान बरामद माल का एक बड़ा हिस्सा शंकर और प्रमिला ने अपने कब्जे में रखा था, जो उसी होटल में रखा हुआ है.

एसपी आलोक प्रसाद अपनी टीम के साथ तुरंत होटल हिलटोन पर पहुंच गए. इस मौके पर कंपनी के मालिक के साथसाथ शंकर की पत्नी और प्रमिला के पति को भी होटल पर बुला लिया गया ताकि शंकर और प्रमिला के बीच के अवैध संबंधों का पर्दाफाश हो सके.

एसपी आलोक प्रसाद ने डुप्लीकैट चाबी से होटल के कमरे का दरवाजा खुलवाया, तो कमरे में शंकर और प्रमिला को बिस्तर पर नग्न अवस्था में सोए देख कर सभी हैरान रह गए.

एसपी को सामने देख कर शंकर की हालत पतली हो गई. वह बिस्तर से कूद कर अपनेआप को संभालते हुए उन्हें सैल्यूट करने लगा.

शंकर के सैल्यूट का जवाब देते हुए आलोक प्रसाद ने व्यंग्य से कहा,”शंकर पहले कपड़े पहन लो, फिर सैल्यूट करना. यह तुम्हारे साथ कौन है? इसे भी कपड़े पहनने के लिए कहो…”

प्रमिला की समझ में कुछ नहीं आया कि यह सब क्या हो रहा है. वह दौड़ कर बाथरूम में चली गई.

कुछ देर के बाद आलोक प्रसाद ने सभी को अंदर बुलाया. शंकर की पत्नी तो भूखी शेरनी की तरह शंकर पर झपटने लगी. वहां मौजूद लोगों ने किसी तरह बीचबचाव किया.

आलोक प्रसाद ने प्रमिला के पति की ओर मुखातिब होते हुए कहा,”अमित, अपनी पत्नी को बाथरूम से बाहर बुला दो, बहुत देर से अंदर बैठी है, पसीने से तरबतर हो गई होगी…”

“प्रमिला बाहर आ जाओ, अब अपना मुंह छिपाने से कोई फायदा नहीं है, तुम्हारा मुंह तो काला हो चुका है और तुम्हारी करतूतों का पर्दाफाश भी हो चुका है,“ अमित तैश में आ कर कहा.

प्रमिला नजरें और सिर झुकाते हुए बाथरूम से बाहर आई. उसे देखते ही अमित आगबबूला हो उठा और वह प्रमिला पर झपटने के लिए आगे बढ़ा, मगर उसे भी समझा कर रोक दिया गया.

“अमित, अब पुलिस अपना काम करेगी. इन दोनों को इन के अपराधों की सजा जरूर मिलेगी…” कहते हुए आलोक प्रसाद शंकर के करीब पहुंचे  और उन के कंधे पर हाथ रखते हुए बोले,”शंकर, कंपनी मालिक के घर छापे के दौरान जब्त माल कहां है? जल्दी से बाहर निकालो. कोई भी सामान छिपाने की तुम्हारी कोशिश नाकाम होगी, क्योंकि इस वक्त हमारे बीच कंपनी का मालिक भी मौजूद है.”

शंकर ने प्रमिला को अंदर से बैग लाने को कहा. प्रमिला चुपचाप एक बड़ा सूटकेस ले कर आई.

भारीभरकम सूटकेस देख कर आलोक प्रसाद ने एक इंस्पैक्टर से कहा,”सूटकेस अपने कब्जे में ले लो और इन दोनों को पुलिस स्टैशन ले कर चलो. अब आगे की काररवाई वहीं होगी.“

सिर झुकाए हुए शंकर और प्रमिला एक कौंस्टेबल के साथ कमरे से बाहर निकल गए हैं.

एसपी आलोक प्रसाद शंकर और प्रमिला को रोक कर बोले,”आप दोनों एक बात याद रखना, जो आदमी अपने परिवार को धोखे में रख कर उस के साथ अन्याय करता है, अनैतिक संबंधों में लिप्त हो कर अपने परिवार की सुखशांति भंग करता है और जो अपनी नौकरी के साथ बेईमानी करता है, उसे एक न एक दिन बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है.”

वे दोनों सिर झुकाए चुपचाप खङे थे. उन्हें पता था कि अब आगे न सिर्फ उन की नौकरी छिन जाएगी, बल्कि जेल भी जाना होगा.

लालच और वासना ने दोनों को मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा था.

दूसरी शादी: कैसे एक हुई विनोद बाबू और मंजुला की राहें

साधारण कदकाठी के विनोद बाबू पहले जैसेतैसे रहते थे, लेकिन दूसरी शादी के बाद वे सलीके से कपड़े वगैरह पहनने लगे थे. वे चेहरे की बेतरतीब बढ़ी हुई दाढ़ीमूंछ को क्लीन शेव में बदल चुके थे. उन की आंखों पर खूबसूरत फ्रेम का चश्मा भी चढ़ गया था. इतना ही नहीं, सिर के खिचड़ी बालों को भी वे समयसमय पर डाई करवाना नहीं भूलते थे.

वैसे तो विनोद बाबू की उम्र 48 के करीब पहुंच गई थी, लेकिन जब से उन की मंजुला से दूसरी शादी हुई थी, तब से वे सजसंवर कर रहने लगे थे. इस का सुखद नतीजा यह हुआ है कि वे अब 38 साल के आसपास दिखने लगे थे.

इसी साल नवरात्र के बाद अक्तूबर के दूसरे हफ्ते में विनोद बाबू मंजुला से कोर्ट मैरिज कर चुके थे. तब से उन की जिंदगी में अलग ही बदलाव दिखने लगा था. पहले वे छुट्टी के बाद भी किसी बहाने देर तक अपने स्कूल में जमे रहने की कोशिश करते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं था.

अभी शाम के साढ़े 4 बज रहे थे. विनोद बाबू अपनी बाइक खड़ी कर के घर में कदम रख चुके थे. वे फ्रैश होने के बाद खुद को तरोताजा महसूस करने लगे थे. मंजुला घर की छोटीमोटी चीजों को सहेजने में लगी हुई थी. बेटाबेटी ट्यूशन पढ़ने गए हुए थे.

मंजुला को अकेली देख कर विनोद बाबू ने उन्हें पकड़ कर अपनी गोद में बैठाने की कोशिश की.

मंजुला बनावटी गुस्सा जाहिर करते हुए बोली, ‘‘मम्मीजी अपने कमरे में ही हैं. आप की आवाज सुन कर इधर आ जाएंगी.’’

‘‘मैं अपनी मां को बहुत अच्छी तरह से जानता हूं. हम दोनों के रहते वे इस कमरे में कभी नहीं आएंगी…’’ इतना कह कर वे मंजुला को अपनी बांहों में भर कर प्यार करने लगे.

तभी सासू मां ने बहू को आवाज लगाई. मंजुला खुद को छुड़ाते हुए अपनी सासू मां के कमरे की तरफ चली गई.

सासू मां ने मंजुला से कहा, ‘‘बहू, चाय बना दो.’’

मंजुला ने हां कह दी. वैसे उन्हें पता है कि सास को शाम के समय अपने पड़ोसियों के घर आनेजाने की पुरानी आदत है. जब तक वे 2-4 लोगों से जी भर कर बातें नहीं कर लेती हैं, उन का मन ही नहीं लगता है.

मंजुला नीले रंग की साड़ी में काफी खूबसूरत लग रही थी. उस ने अपने होंठों पर हलके गुलाबी रंग की लिपस्टिक लगा रखी थी. लंबे और खुले बाल उस की खूबसूरती को बढ़ा रहे थे.

सासू मां के कमरे से लौटने के बाद मंजुला ने विनोद बाबू से कहा, ‘‘आप स्कूल से थक कर आए हैं. थोड़ी देर आराम कर लीजिए. मैं आप के लिए भी चाय बना कर ला रही हूं.’’

मंजुला ने कुछ दिन में ही घर की रंगत ही बदल डाली थी. विनोद बाबू की पहली बीवी रजनी कैंसर के चलते गुजर गई थीं. तकरीबन 6 महीने तक कैंसर अस्पताल में भागदौड़ कर अपनी बीवी की वे समयसमय पर कीमोथैरेपी कराते रहे थे. वे इधरउधर से पैसे जुटा कर पानी की तरह बहा चुके थे, लेकिन आखिरी बार हुई कीमोथैरेपी के बाद दस्त और उलटी इतनी ज्यादा बढ़ गई थीं कि वे इन्हें अकेला छोड़ कर चली गईं.

रजनी के मौत के बाद विनोद बाबू का घर में रहना मुश्किल हो गया था. वे बेमन से अपने घर में आ पाते थे, वह भी सिर्फ अपने 10 साल के बेटे और बूढ़ी मां के लिए. पर सब्र बुरे से बुरे वक्त का सब से बड़ा मरहम होता है. कई साल गुजर गए थे. पत्नी की मौत के बाद ऐसा लगा था कि विनोद बाबू दोबारा शादी नहीं करेंगे.

जब पूरी दुनिया के साथ अपने देश में कोरोना वायरस की शुरुआत हुई, तो वह सब के लिए आफत ले कर आई थी. विनोद बाबू को कोरोना महामारी के दौरान अपने स्कूल में बने सैंटर में काम करना पड़ा था. वे दूसरे राज्यों से आए हुए लोगों की काफी मुस्तैदी से सेवा में जुटे हुए थे, लेकिन उन्हें वहां ड्यूटी करना महंगा पड़ गया था, क्योंकि वे खुद भी कोविड 19 की चपेट में आ चुके थे.

साथी टीचरों ने एंबुलैंस बुला कर विनोद बाबू को अस्पताल में भरती करवा दिया था. वे कई दिनों से अस्पताल के वार्ड में पड़े हुए थे. घर पर बेटा अर्नव था. उन का छोटा भाई अपने बीवीबच्चों के साथ अलग रह रहा था. विनोद बाबू अपनी मां और बेटे के साथ अलग रहते थे.

विनोद बाबू से 2 दिन पहले इस वार्ड में मंजुला आई थी. सांवले रंग की मंजुला देखने में काफी दुबलीपतली लग रही थी, पर खूबसूरत बहुत थी. रहरह कर उन की नजरें मंजुला की ओर चली ही जा रही थीं.

2 दिन बाद रात में विनोद बाबू की तबीयत अचानक ज्यादा बिगड़ने लगी थी. रात की शिफ्ट में काम करने वाले डाक्टर और नर्स ऊंघ रहे थे. उन्हें भी महामारी के चलते ज्यादा काम करना पड़ रहा था. ज्यादातर मरीज सोए हुए थे.

उस रात मंजुला की तबीयत ठीक थी, लेकिन से नींद नहीं आ रही थी. विनोद बाबू की हालत बिगड़ते देख उस से रहा नहीं गया और वह उन के पास आ गईं.

विनोद बाबू का औक्सीजन लैवल कम हो रहा था. छटपटाते देख वह उन के पास आ कर बोली, ‘‘आप पेट के बल लेट कर लंबीलंबी सांस भरने और छोड़ने की कोशिश कीजिए.’’

मंजुला विनोद बाबू की पीठ सहलाने लगी थी. इस से उन्हें राहत महसूस होने लगी थी. कुछ देर में ही उन का औक्सीजन लैवल सामान्य होने लगा था. उन्होंने मंजुला का शुक्रिया अदा किया था.

एक दिन मंजुला के बगल वाले बिस्तर की अधेड़ औरत मरीज मर गई. उस का बिस्तर अब खाली हो चुका था. वार्ड में दहशत का माहौल बन चुका था, इसीलिए मंजुला को उस रात नींद नहीं आ रही थी.

मंजुला को बेचैन देख कर विनोद बाबू से रहा नहीं गया था. आखिरकार उन्होंने मंजुला से पूछा, ‘‘अगर तुम्हें कोई परेशानी हो रही है, तो मेरे पास वाले खाली बिस्तर पर आ जाओ.’’

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है…’’ मंजुला ने यह कह तो दिया था, पर वह उस दिन काफी डर गई थी.

विनोद बाबू के बारबार कहने पर मंजुला उन के बगल वाले खाली बिस्तर पर आ गई थी.

‘‘तुम्हारे घर में कौनकौन लोग हैं?’’

‘‘मेरे घर में सास, ससुर, पति के अलावा 7 साल की एक बेटी है.’’

‘‘बेटी तो तुम्हें बहुत याद करती होगी?’’

‘‘पता नहीं याद करती होगी भी या नहीं,’’ यह कह कर मंजुला उदास हो गई थी.

‘‘परिवार वाले भी तुम्हें बहुत मिस कर रहे होंगे?’’ यह सुन कर मंजुला थोड़ी देर चुप रही, फिर बोली, ‘‘ऐसा कुछ नहीं है. मैं आज तक अपनी बेटी के बाद एक बेटे को जन्म नहीं दे पाई हूं, इसलिए घर के लोग नाखुश हैं. वैसे, मेरे शरीर के अंदर कुछ ऐसी परेशानी आ गई है कि डाक्टर ने साफ कह दिया है कि अब मैं दोबारा मां नहीं बन पाऊंगी.

‘‘मेरी बेटी अपनी दादी के पास रह रही है. वे सब तो चाहते हैं कि मैं मरूं तो मेरे पति को दूसरी शादी करने का मौका मिले, ताकि उन के घर में बेटे का जन्म हो सके.’’

विनोद बाबू हैरानी से मंजुला के चेहरे की ओर देख रहे थे, इसलिए वे कुछ देर तक चुप रही, फिर बोली, ‘‘वैसे, मैं भी अब उन को शादी करने की इजाजत दे देना चाहती हूं.’’

विनोद बाबू को यह सब सुन कर झटका सा लगा था, ‘‘बेटा या बेटी पैदा करना किसी के बस में नहीं होता है. फिर भी आज भी लोग किसी औरत से कैसे उम्मीद रखने लगते हैं कि उन के मन के मुताबिक बेटा या बेटी जनमे.

‘‘21वीं सदी में भी लोगों की सोच नहीं बदल रही है, जबकि आज लड़कियां आसमान की ऊंचाइयों पर उड़ रही हैं,’’ विनोद बाबू मंजुला को समझाने की कोशिश कर रहे थे.

एकदूसरे के सुखदुख बांटते हुए अस्पताल में दिन बीत रहे थे. जब मंजुला पूरी तरह से ठीक हो गई और डाक्टर ने डिस्चार्ज करने की इजाजत दे दी, तब भी उन के घर से कोई नहीं आया था.

मंजुला के पति अस्पताल में भरती कराने के बाद यह कह कर जा चुके थे, ‘तुम मर भी जाओगी, तो मैं तुम्हें यहां देखने नहीं आऊंगा.’

पति की यही नफरत भरी बातें मंजुला को घर जाने से रोक रही थीं. वैसे, वह भी अपनी सास और पति के रोजरोज के तानों से तंग आ चुकी थी. इधर विनोद बाबू उन्हें घर तक छोड़ने के लिए तैयार थे, लेकिन मंजुला ने उन से कहा, ‘‘आप जाइए. मैं बाद में घर चली जाऊंगी.’’

विनोद बाबू समझ गए तो उन से रहा नहीं गया और बोले, ‘‘चलो, मेरे घर चलो. तुम मेरे घर में पूरी तरह से सुरक्षित रहोगी. तुम्हारी भावनाओं का पूरा खयाल रखा जाएगा.’’

मंजुला जानती थी कि विनोद बाबू के साथ वह वाकई महफूज रहेगी और फिर कुछ सोचते हुए उस ने हां कह दी.

अब मंजुला विनोद बाबू के घर में रहने लगी और इस बात का पता उस के पति और परिवार वालों को चला तो उन के तेवर और सुर बदल गए थे. उन्होंने विनोद बाबू पर मंजुला को बरगलाने का आरोप लगाया था, लेकिन मंजुला अपने फैसले पर अडिग रही थी.

विनोद बाबू के परिवार की मदद से मंजुला अपने पति से तलाक लेने के लिए कोर्ट में अर्जी दाखिल कर चुकी थी. तकरीबन ढाई साल तक केस चलता रहा. जब भी वह अदालत में जाती थी, विनोद बाबू की माताजी उन के साथ रहती थीं.

तकरीबन ढाई साल की भागदौड़ और सामाजिक हिकारत सहने के बाद मंजुला अपने पति से तलाक ले पाई थी. तलाक के अगले दिन यानी दशहरा के बाद अक्तूबर के दूसरे हफ्ते में कोर्ट में ही मंजुला विनोद बाबू की दूसरी पत्नी बनना स्वीकार कर चुकी थी.

मंजूला को कोर्ट के आदेश के मुताबिक बेटी को भी अपने पास रखने की परमिशन मिल चुकी थी, क्योंकि बेटी भी अपनी मां के साथ ही रहना चाहती थी.

मंजुला अपने सासू मां को चाय पिला चुकी थी. सासू मां चाय पीने के बाद अपनी सहेली के घर जा चुकी थीं. अब मंजुला ट्रे में 2 कप चाय ले कर अपने कमरे में हाजिर थी.

मंजुला ने जैसे ही टेबल पर चाय की ट्रे रखी, विनोद बाबू ने उस के होंठ चूम लिए. वह भी उन के गले लग गई थी. आखिर में उस ने इशारा किया, ‘‘जनाब, चाय ठंडी हो जाएगी.’’

वे दोनों बातें करते हुए चाय पीने लगे थे. मंजुला चाय खत्म कर विनोद बाबू के बगल में आ कर लेट गई थी.

‘‘तुम्हारे साथ बातें करने में ही मेरी सारी थकान मिट जाती है,’’ विनोद बाबू मनुहार करते हुए बोले थे.

मंजुला ने अपना सिर उन के सीने पर रख दिया. सालों बाद उन्हें ऐसी खुशी मिल रही थी.

धीरज कुमार      

धोखेबाज: क्या मनोज को मिल पाया सच्चा प्यार

उस समय बाजार बंद था. सड़कें सुनसान थीं. आसमान नीला था. पेड़ हरे थे. ऐसा मौसम दिल्ली जैसे मैट्रो शहर में कभी किसी ने नहीं देखा था. खैर, ऐसे समय में मनोज को मोबाइल फोन और टैलीविजन से इश्क हो गया था. फेसबुक पर समय ज्यादा ही कट रहा था. और भला कटे भी क्यों न… कमबख्त इश्क जो हो गया था.

एक इश्क लड़की से और दूसरा इश्क मोबाइल फोन से. समझ नहीं आया कि इश्क मोबाइल फोन से हुआ था या मोबाइल वाली लड़की से. हां, शुरुआत बस औपचारिक बातचीत से हुई थी. धीरेधीरे वह भी खुलने लग गई और मनोज भी. उस की प्यारभरी बातें मनोज को अपनी तरफ खींचती चली जा रही थीं.

हां, फ्रैंड रिक्वैस्ट उस ने ही मनोज को भेजी थी. मनोज ने फ्रैंड रिक्वैस्ट स्वीकार करने से पहले उस का प्रोफाइल देखा था. फोटो उस का भारतीय लड़की के जैसा था. उस के बाल और आंखें विदेशी जैसी थीं. भूरे बाल और नीली आंखें.

उस ने अपने प्रोफाइल फोटो में नीली जींस और सफेद टीशर्ट पहन रखी थी. फोटो में देख कर अंदाजा लगाया जा सकता था कि वह तकरीबन 5 फुट, 7 इंच ऊंची होगी. उम्र 30-35 साल के आसपास की होगी.

मनोज द्वारा फ्रैंड रिक्वैस्ट स्वीकार करते ही उस ने मैसेज भेजा था, ‘हैलो, गुड मौर्निंग डियर…’

‘डियर’ शब्द से संबोधित करने पर मनोज बड़ा खुश हुआ.

‘हैलो, गुड मौर्निंग…’ मनोज ने भी जवाब दिया.

फिर उस का दूसरा मैसेज आया, ‘आप कैसे हो डियर?’

‘मैं ठीक हूं. आप कैसी हैं?’

‘मैं ठीक हूं. अपने काम में बिजी हूं…’ फिर तुरंत उस ने एक लंबा खतनुमा मैसेज इंगलिश में भेज दिया, ‘मेरा नाम जेसिका छोटू दुबे है. मैं आधी भारतीय हूं  और आधी अंगरेज हूं, क्योंकि मेरी मां दिल्ली से थीं और मेरे पिता इंगलैंड से. मैं ने फेसबुक पर आप का प्रोफाइल देखा और मैं ने आप को अपना दोस्त बनाने के लिए एक मैसेज भेजने का फैसला किया, क्योंकि मैं भारत में किसी को नहीं जानती.

‘मैं अभी अगले महीने भारत की यात्रा का प्लान कर रही हूं. मैं भारत पहली बार आ रही हूं… मुझे ऐसा लगता है कि अपनी मातृभूमि में आ कर मुझे बहुत खुशी होगी…’

मनोज को इतनी इंगलिश आती थी, इसलिए उस ने जवाब दिया, ‘मैं दिल्ली में रहता हूं. दिल्ली बहुत ही खूबसूरत जगह है. यहां कई सैलानी घूमने आते हैं. मैं एक आटोमोबाइल कंपनी में मशीन औपरेटर हूं…’

‘आप मुझे अपना ह्वाट्सएप नंबर भेजें, हम ह्वाट्सएप पर और बात करते हैं…’

मनोज ने अपना ह्वाट्सएप नंबर तुरंत भेज दिया. तुरंत ही जेसिका का जवाब भी आ गया.

नंबर विदेश का ही था. अब मनोज को पूरा यकीन हो चुका था कि वह किसी विदेशी लड़की से बात कर रहा है.

फिर रात हुई और फिर सुबह. इस बीच मनोज का कई बार जेसिका से बात करने का मन हुआ, पर वह उसे औनलाइन नहीं मिली.

मगर थोड़ी देर बाद जेसिका का मैसेज मिला, ‘मैं चाहती हूं कि आप मुझे बेहतर तरीके से जानें… मैं ने शादी नहीं की… मैं लंदन में रहती हूं… मैं फिलहाल ब्रिटिश पैट्रोलियम के एक समुद्र तटीय इलाके में नर्स के रूप में काम करती हूं. मेरे कहने का मतलब है कि मैं एक नर्स हूं, लेकिन मैं 32 साल की हूं. मैं ने अपनी मां को तब खो दिया था, जब मैं 10 साल की थी.

‘मैं ने 6 महीने की छुट्टी ले ली है. मैं अगले महीने भारत की यात्रा करने की योजना बना रही हूं. यह मेरी पहली यात्रा होगी और मैं बहुत सारी मस्ती करना चाहती हूं. मैं चाहती हूं कि आप अगले मैसेज में अपने बारे में बताएं, ताकि हम एकदूसरे को बेहतर तरीके से समझ सकें…’

मनोज ने भी तुरंत मैसेज किया, ‘आप ने मुझे अपने बारे में इतना कुछ बता कर यह साबित किया है कि आप दिल की साफ और नेकदिल इनसान हैं. अमूमन लोग इतनी जल्दी इतना प्यार किसी को नहीं करते. मैं आप का इंतजार करूंगा…’

इस के बाद जेसिका का कोई मैसेज नहीं आया. लेकिन अगले दिन सुबह मनोज ने जेसिका का मैसेज देखा.

‘डियर, शायद मेरी नौकरी के चलते कोई भी मर्द हमेशा घर से दूर रहने वाली लड़की के साथ नहीं रहना चाहेगा, शायद इसलिए कि जब मैं छोटी थी, तो मर्दों के साथ मेरा अनुभव अच्छा नहीं था.

‘मैं बहुत धार्मिक नहीं हूं, क्योंकि मैं नियमित रूप से प्रार्थना में शामिल नहीं होती हूं. मैं ग्रेटर लंदन में केसिंगटन स्क्वायर में रहती हूं. आप बेझिझक

मुझ से कुछ भी पूछें और मैं आप को जवाब दूंगी..’

‘‘मैं एक कंपनी में सीएनसी औपरेटर हूं. बहुत थकाऊ और बोरिंग काम है. पूरे 8 घंटे मशीन के सामने मशीन बन कर खड़ा रहता हूं. पर मेरी मजबूरी है कि मैं यह सब करता हूं. अच्छी नौकरी की तलाश में हूं. मैं यह भी जानता हूं कि ऐसे उबाऊ काम करने वाले से कोई दोस्ती नहीं करेगा.

‘हां, फिलहाल आराम फरमा रहा हूं और लौकडाउन के खुलने का इंतजार कर रहा हूं. आप के मैसेज बहुत लेट आते हैं. मुझे आप के जवाब का बेसब्री से इंतजार रहता है,’ मनोज ने जवाब दे दिया.

‘लगता है कि आप अच्छा समय बिता रहे हैं. मैं फेसबुक पर नई हूं, लेकिन मेरी उम्मीद बहुत ज्यादा है. तुम एक अच्छे और सभ्य आदमी की तरह लग रहे हो और मैं इसे थोड़ा और आगे ले जाना पसंद करूंगी. यह भारत की मेरी पहली यात्रा है और मैं इसे ले कर बहुत उत्साहित हूं. मैं अभी तक भारत में किसी को नहीं जानती हूं…’

‘आप भारत कब आ रही हैं? अब आप से मिलने का बहुत मन कर रहा है और आप के साथ बैठ कर बहुत सारी बात करने का भी. भारत बहुत बड़ा देश है. यहां घूमने की कई जगहें हैं.

‘मुझे लगता है कि आप किसी सच्चे जीवनसाथी का इंतजार कर रही हैं. मैं दुआ करता हूं कि आप को जल्द ही सच्चा जीवनसाथी मिले…’

इस मैसेज के बाद काफी लंबे समय तक जेसिका का कोई मैसेज नहीं आया. मतलब, चौथे दिन उस ने मैसेज किया, ‘जानेमन, आज तुम कैसे हो? मैं कुछ दिनों से बहुत बिजी हो गई हूं. जैसा कि मैं ने आप से पहले कहा था कि मैं अपनी बुकिंग करने में बिजी हूं और मैं 28 अक्तूबर को उड़ान भरूंगी. मैं उस समय को ले कर बहुत खुश हूं, जो हम एकसाथ बिताने जा रहे हैं.

‘मैं आज खरीदारी के लिए भी गई थी. मैं ने आप के लिए भी बहुत सी चीजें खरीदी हैं. मैं रवाना होने से पहले आप को कुरियर से वह सब सामान भेजूंगी, इसलिए मुझे अपना पूरा नाम, मोबाइल नंबर और पता भेजें, जहां आप पैकेट रिसीव करना चाहते हैं.’

‘ओह, मैं पहले इतना खुश कभी नहीं हुआ था. न जाने क्यों मैं घबरा भी रहा हूं. ठीक वैसे ही जैसे प्यार की पहली मुलाकात में लोग घबराते, शरमाते हैं. क्य तुम भी ऐसा महसूस कर रही हो? और मुझे किसी चीज की जरूरत नहीं है. बस तुम आ रही हो, इस से बड़ी खुशी की कोई बात नहीं.’

‘मना मत करो प्लीज. गिफ्ट तो तुम्हें लेना ही होगा जानेमन,’ इतना मैसेज लिख कर जेसिका ने मैसेज में एक चुम्मा भी भेज दिया.

मनोज खुश हुआ, पर साथ ही मैसेज किया, ‘मुझे बस एक बात का डर है. यहां कोरोना फैला हुआ है. इस वजह से यहां घूमनाफिरना बहुत ही मुश्किल है. विदेश से आने के बाद आप को भी

14 दिनों के लिए क्वारंटीन रहना होगा. दिल्ली में होटल मिलना भी मुश्किल होगा, लेकिन हम दोनों साथ रहने की कोशिश करेंगे. वैसे, मैं एक पता भेज रहा हूं…’ फिर मनोज ने अपना किराए के घर का पता जेसिका को भेज दिया.

‘मैं ने जो पैकेट भेजा है, उस में सफेद धारियों के बैग के अंदर 2,00,000 पाउंड, लैपटौप, सोने की कलाई घड़ी, डिजाइनर परफ्यूम, एप्पल आईफोन है. दूसरे बैग में मैं ने कुछ अपना सामान भी रख दिया है, ताकि जब मैं आऊं तो मेरा सामान कम हो.’

इतने सारे गिफ्ट और पैसे के बारे में जान कर मनोज को लग रहा था कि अब उस की गरीबी दूर हो जाएगी. हमेशा के लिए सड़ी सी नौकरी से उसे छुटकारा मिल जाएगा.

अपनी बात को पुख्ता करने के लिए मनोज ने जेसिका को लिखा, ‘लव, क्या तुम मुझे कुरियर की परची और पैकेट का फोटो भेज सकती हो, ताकि मुझे सामान लेने में आसानी रहे…’

‘आप मेरे लिए एक अद्भुत इनसान साबित हुए हैं. 2,00,000 पाउंड मेरे आने से पहले कार खरीदने और पंजीकरण करने में आप की मदद करने के लिए हैं.

‘मैं आने से पहले आप को कार के लिए कागजी कार्यवाही करने में सक्षम मानती हूं, तो मैं सफेद धारियों वाले बैग के अंदर अपने पासपोर्ट और इंटरनैशनल ड्राइविंग लाइसैंस की एक फोटोकौपी भी भेज रही हूं.

‘पैसे का कोई पता न लगा सके, इसलिए सामान के अंदर अच्छी तरह छिपा कर रखा है. मुझे इसे इस तरह से करना था, ताकि यह सुरक्षित रहे. जैसे ही आप कुरियर सेवा से पैकेट लेते हैं, कृपया मुझे बताएं. मैं अभी समुद्र तटीय इलाके में हूं.’

अगले दिन ही जेसिका ने मनोज को सामान का बैग और कुरियर परची का फोटो भेज दिया.

मनोज ने कुरियर की परची को ध्यान से पढ़ा था. उस में पूरा पता और लंदन का पता भी लिखा था. काला सा बड़ा बैग था. बैग के ऊपर भी कुरियर की परची चिपकी हुई थी.

अगले दिन फिर सुबह जेसिका का मैसेज मिला, ‘तुम्हें 3 दिन बाद ही बैग मिल जाएगा.’

सच में 3 दिन बाद ही एक फोन आया, ‘क्या आप मनोज बोल रहे हैं?’

‘‘जी, मैं मनोज बोल रहा हूं.’’

‘जी, आप का एक कुरियर लंदन से आया है. क्या यह कुरियर आप ही का है?’

‘‘जी, मेरा ही है.’’

‘क्या आप इस कुरियर को लेना चाहते हैं?’

‘‘जी हां, लेना चाहता हूं.’’

‘35,000 रुपए डिपौजिट करने पर यह कुरियर आप को पहुंचा दिया जाएगा.’

‘‘जी, वह क्यों?’’

‘सर, विदेश से आए कुरियर सरकारी टैक्स जमा करने के बाद ही मिलते हैं.’

यह सुनते ही मनोज को पसीना आना शुरू हो गया. इतनी बड़ी रकम उस के पास थी ही नहीं.

‘क्या आप अभी पैसे डिपौजिट कर रहे हैं? नहीं तो यह एक दिन बाद वापस चला जाएगा…’

‘‘मैं आप को बताता हूं,’’ इतना कह कर मनोज सोच में पड़ गया. सच कहें, तो उस के अकाउंट में 35,000 रुपए थे ही नहीं. अगर ये पैसे होते, तो शायद वह इन पैसों को अब तक दे देता. अमूमन जैसे लड़के प्यार के लिए कुछ भी कर देते हैं, मनोज ने ऐसा कुछ नहीं किया.

मनोज को पहली बार उसी शाम जेसिका का फोन आ गया. मनोज फोन उठाने के पहले सोच रहा था कि वह इंगलिश में बात करेगी. उस ने इंगलिश में कहा, ‘क्या तुम्हें गिफ्ट मिल गया है?’

मनोज उस की आवाज को पहली बार सुन रहा था. बहुत ही प्यारी, सुरीली, मीठी आवाज थी.

मनोज ने जवाब दिया, ‘‘मेरे पास 35,000 रुपए नहीं हैं.’’

‘कोई नहीं, तुम किसी से ले कर दे दो. बैग में बहुत पैसे हैं. इसे पाते ही तुम्हारी सारी तकलीफ दूर हो जाएगी.’

‘‘एक काम करो, तुम अभी मेरे अकाउंट में पैसे ट्रांसफर कर दो. मैं जा कर गिफ्ट ले लूंगा.’’

‘ओह डियर, अभी मैं समुद्र के किनारे हूं. जब मैं मैदानी इलाके में जाऊंगी, तो तुम्हें पैसे ट्रांसफर कर दूंगी. अभी तो तुम वहीं किसी से पैसे ले कर गिफ्ट ले लो. उस में बहुत सारे पैसे हैं.’

मनोज किसी भी तरह से जेसिका की बात को मान नहीं रहा था. वह हर तरह से उसे समझाने की कोशिश कर रही थी. धीरेधीरे वह गंभीर होने लगी. उस की प्यारी, मीठी, सुरीली आवाज कड़वी और भारी हो गई…

‘तुम मुझे धोखेबाज समझ रहे हो…’

‘‘नहीं… नहीं, तुम मुझे गलत समझ रही हो. मेरे मन में कोई ऐसी बात नहीं है.’’

‘तुम मुझे धोखेबाज समझ रहे हो. तुम मुझे धोखा दे रहे हो. तुम प्यार के लायक नहीं हो. मैं गिफ्ट वापस मंगा रही हूं,’ इतना कह कर जेसिका ने तुरंत फोन काट दिया.

उस दिन के बाद जेसिका का फोन कभी नहीं लगा. यहां तक कि वह फेसबुक, मैसेंजर से भी गायब हो गई थी. हां, हो सकता है कि वह नया प्यार ढूंढ़ रही हो, जिस से 35,000 रुपए मिल सकें. जो उसे धोखा न दे. अगर आप को ऐसा कोई मैसेज आए तो बताइएगा.

प्यास: क्या कमल की रहस्यमयी मौत का खुलासा हुआ?

सुबह के 9 बजे होंगे. भैंसों का चारापानी कर के, दूध दुह कर और उसे ग्राहकों को बांट कर मदन खाट पर जा कर लेट गया. पल दो पल में ही धूप उस के बदन पर लिपट कर अंगअंग सहला कर गरमाहट बढ़ाने लगी.

30 साल के मदन का पूरा बदन धूप की शरारतों से इठला ही रहा था, तभी अचानक किसी ने बाहर खटखट की आवाज की.

‘अब कौन आया होगा?’ यह सवाल खुद से करता हुआ वह ?झट से करवट बदल कर पलटा और खाट पर से उठ कर जमीन खड़ा हुआ. जल्दी से वह बाहर गया, तो देखते ही पहचान गया.

‘‘अरे, चमेली तुम…?’’

‘‘हां, मैं…’’ उस जवान लड़की ने अपने पास खड़े 4-5 साल के बच्चे की कलाई को ?ाक?ार कर कहा.

चमेली मदन की दूर की रिश्तेदार थी. उस की शादी जिला गाजियाबाद में हुई थी. इस समय कुछ तो ऐसा हुआ था कि सारी दुनिया छोड़ कर वह बस मदन के दरवाजे पर खड़ी थी.

मदन ने चमेली को भीतर बुला लिया. कुछ ही देर बाद मदन को बाहर से कुछ आवाजें सुनाई देने लगीं. लोगों में खुसुरफुसुर होने लगी थी. पर, मदन अपनी मेहनत पर जीने वाला स्वाभिमानी नौजवान किसी बात से नहीं डरता था और न ही किसी की परवाह करता था.

इस से पहले मदन कुछ कहता, चमेली ?ाक कर उस के पैरों से लिपट गई.

चमेली को इस तरह लिपटते देख मदन को अभीअभी सेंकी हुई धूप की गरमाहट दोबारा महसूस होने लगी और वह रोमांचित सा हो रहा था, पर उधर इस सब से बेखबर चमेली उस से सुबकसुबक कर बोली, ‘‘मेरा पति हर बात पर शक करता था. मैं वहां से भाग आई. अब मैं वापस लौट कर नहीं जाना चाहती. आप मु?ो अपनी शरण में ले लो.’’

मदन अपनेआप को संभालने की कोशिश करने लगा और उस ने बच्चे को प्यार से पुचकार कर कहा, ‘‘आओ न… मेरे पास आओ.’’

मदन के शब्दों ने उस बच्चे पर जादू सा काम किया. प्यार का संकेत मिला और वह मदन की छाती से लिपट गया. मदन ने आंखें बंद कर लीं. उस को एक पल के लिए ऐसा लगा, जैसे चमेली ने आ कर उसे जकड़ लिया हो.

अचानक चमेली ने उठ कर कहा, ‘‘आप को कोई दिक्कत तो नहीं?’’

‘‘अरे, नहीं. तुम आराम से यहां रहो,’’ मदन ने अपनी आवाज में प्यार छलकाते हुए कहा, तो चमेली के बदन में जैसे बिजली सी दौड़ गई.

मदन ने कहा, ‘‘तुम थकी हुई हो. मैं कुछ चायदूध गरम करता हूं.’’

चमेली मदन की ओर देख कर जोर से बोली, ‘‘बस, अब मैं सब कर लूंगी.’’

मदन यह सुन कर निश्चिंत हो गया और वह बच्चे के साथ खेलने लगा.

चमेली जरा सी देर में चाय, दूध सब तैयार कर लाई. चमेली और मदन चाय की चुसकियां लेने लगे. बच्चा दूध का गिलास गटागट पी गया और शरीर में ताकत आते ही यहांवहां दौड़ने लगा.

मदन के इस कच्चे मकान में रसोई और गोदाम के अलावा 3 कमरे और भी थे. एक कमरा चमेली ने ले लिया. इस दौरान 2-4 दिन गांव के लोगों ने किसी न किसी बहाने मदन के आंगन की ताक?ांक भी कर ली. पर आखिरकार सब लोग समझ गए कि चमेली मदन की शरण में आई है और मदन को इस मामले में किसी की राय कतई नहीं चाहिए.

चमेली को आए 7-8 दिन हो गए थे. मदन अपने कच्चे मकान के उसी कमरे में रहता, जहां चमेली रहती.

मदन चमेली के साथ सुख पा रहा था और वह कमरा मदन को किसी परीलोक से कम न लगता था. अब चमेली ने इतना प्यार लुटा दिया, तो मदन भी पीछे नहीं रहा. शहर से बादाम, काजू, अखरोट, कपड़ेलत्ते, मखमली बिस्तर और कई खिलौने ला कर उस ने चमेली के बच्चे को दिए और उसे निहाल कर दिया.

मदन ने उस बच्चे का नाम कमल रखा. चमेली को कमल नाम इतना भाया कि वह अपने बच्चे का असली नाम बिलकुल ही भूल गई.

तकरीबन एक महीना हो गया था और अब हालात इतने अच्छे थे कि चमेली सुबहशाम कुछ नहीं सोचती थी. जब भी तड़प कर मदन पुकार लगाता, चमेली उस के लिए गलीचा बनने में पलभर की देरी नहीं करती थी. चमेली उस की मांग पर उफ न करती, तो मदन ने भी उसे सिरआंखों पर बिठाया.

चमेली ने भी गांव में सहेलियां बना ली थीं. जब मदन गांव से बाहर होता तो चमेली का जी उचटने लगता और कभी कमल को ले कर तो कभी उस को सुला कर वह यहांवहां, इधरउधर आनेजाने लगी.

एक दिन मदन ने कमल को गांव की पाठशाला में दाखिला दिला दिया, वहीं सुबह दूध और दोपहर को बढि़या खाना मिलता था. चमेली अब और खूबसूरत हो गई थी.

3 महीने गुजर गए. एक दिन मदन को सदमा लगा, जैसे वह आसमान से गिरा. हुआ यों कि चमेली रातोंरात गायब हो गई. खूब पता लगाया तो खबर मिली कि वह बगल के गांव के एक छोरे के संग मुंबई भाग गई. दोनों अपनी मरजी से गए थे और चमेली मदन के घर से एक रुपया तक न ले गई, बस उस के कपड़े वहां नहीं थे. घर पर सब सामान सहीसलामत पा कर मदन ने चैन की सांस ली, मगर अब वह और कमल अकेले रह गए.

चमली उसे धोखा दे गई, इसीलिए शोक करना बेवकूफी ही होती. पर, जीवट वाले मदन ने हार नहीं मानी और उस ने कमल को ही अपनी जिंदगी मान लिया.

मदन कमल को खुद स्कूल छोड़ने और लाने जाता, बाकी समय उस की भैंसें तो थीं ही, जो उस को बिजी रखती थीं.

हौलेहौले मदन और कमल एकदूजे की छवि बनते गए. कमल 10 साल का हुआ, तो उस को नईनई बातें पता लगीं. वह पढ़ने में अच्छा था और मेवे, फलफूल खा कर मजबूत शरीर का धावक भी था.

एक दिन कमल मदन से सैनिक स्कूल में पढ़ने की जिद करने लगा. मदन ने उस की पूरी बात सुनी. मदन को कोई दिक्कत नहीं थी. यह तो गर्व की बात थी. मदन ने खुशीखुशी दौड़भाग कर सैनिक स्कूल का दाखिला फार्म भर दिया.

इम्तिहान में कमल का चयन हो गया. मदन उस को होस्टल छोड़ कर वापस लौटा और 1-2 दिन बेचैन रह कर फिर से खुद को यहांवहां उल?ा कर भैंसों के काम में मन लगाने लगा.

कमल और चमेली दोनों ही बारीबारी से मदन के सपनों में आते थे. वैसे, कमल की तो नियम से चिट्ठी और फोन भी आते थे. 2 महीने तक तो लंबी छुट्टियों में कमल उस के पास आ कर रहा.

कमल मदन को सैनिक स्कूल के कितने किस्से सुनाता रहता था. मदन को लगता कि चलो, जिंदगी कामयाब हो गई.

समय पंख लगा कर उड़ता रहा. कमल जब 14 साल का हुआ, तो उसे वहां पर मेधावी छात्र की छात्रवृत्ति मिलने लगी. अब वह पढ़नेलिखने के लिए मदन पर कतई निर्भर नहीं था.

मदन इस साल इंतजार करता रहा, पर न तो कमल खुद ही आया और न ही उस का फोन आया. अब तो उस के चिट्ठीफोन आने सब बंद हो गए थे.

मदन को अब कुछ डिप्रैशन सा रहने लगा. पर, वह चमेली के धोखे को याद कर के कमल का यह बरताव ?ोल गया. अब उस को काम करने में आलस आने लगा था खासतौर पर भोजन पकाने में, इसलिए कुछ सोच कर उस ने घरेलू काम में मदद के लिए एक कामवाली रख ली. वह मदन से कुछ ज्यादा उम्र की थी और खाना बनाना, कपड़े धोना वगैरह सब काम करने लगी.

एक दिन खाट पर लेटा मदन सोच रहा था कि आज कमल होता तो  20 साल का होता. और चमेली… चमेली कहां होगी, यही सोचते हुए वह अचानक खाट से उठ बैठा, तो सामने कामवाली को खड़ा पाया.

वह कामवाली एक गिलास चाय बना कर ले आई थी. मदन की आंख से आंसू बह रहे थे. उस ने नजदीक जा कर वह आंसू अपने आंचल से पोंछ दिए और मदन अचानक ही एकदम भावुक सा हो उठा. उस ने संकेत से कुछ याचना की, फिर दोनों गले लग कर काफी देर तक यों ही बैठे रहे.

मदन बहुत ही कोमल दिल वाला और बड़ा ही भावुक है, यह बात इन  3 महीनों में वह अनुभवी कामवाली भांप गई थी.

अब कुछ सिलसिला यों बनने लगा कि वह कामवाली चमेली के उस कमरे में ले जा कर मदन को कभीकभी सहला दिया करती, तो कभी प्यार से पुचकार देती और कभीकभी मदन के कहने पर सारा काम यों ही रहने देती. बस मदन को छाती से चिपटा कर उस का दुखदर्द पी जाती थी. उस दिन भोजन मदन पकाता और एक ही थाली में दोनों थोड़ाथोड़ा खा लेते, पर पूरे तृप्त हो जाते थे.

इसी तरह एक साल और गुजर गया. मदन अब फिर से मजे में रहने लगा था. गांव वालों की खुसुरफुसुर और ताक?ांक चल रही थी. पर, इस से वह न तो कभी घबराया था और न ही आगे डरने वाला था. उस की कामवाली तो अपने खूनपसीने की रोटी खा रही थी. वह किसी अफवाह पर कान तक न देती थी. हर समय मौज में रहती और मदन की मौज में तिल भर कमी न आने देती थी.

एक दिन सुबहसवेरे वह मदन को सहला कर चाय उबाल रही थी कि एक आहट हुई. मदन उठ कर बाहर गया, तो 2 लोग बाहर खड़े थे, एक कमल और गोदी में तकरीबन 2 साल का प्यारा सा बच्चा.

मदन ने मन ही मन सोचा कि वाह बेटा, नौकरीब्याह सब कर लिया और खबर तक नहीं दी. पर, वह सिर ?ाटक कर अपने विचार बदलने लगा. उस का दयावान मन जाग गया.

मदन को कमल से नाराजगी तो थी, पर नफरत नहीं थी. वह बहुत ही  प्यार से उसे भीतर लाया. कमल ने सब रामकहानी सुना दी. वह अफसर हो गया था, पर पत्नी बेवफा निकली. वह किसी रसोइए के साथ भाग गई थी. अब यह नन्हा बच्चा किस के भरोसे रहेगा, कह कर कमल सुबक उठा.

कुछ देर बाद कमल के हाथों में चाय का  गिलास आ गया था और बच्चे को एक खूबसूरत पर अधेड़ औरत गोदी में खिला रही थी.

मदन से सौ ?ाठीसच्ची बातें कर के कमल उसी दिन वापस लौट गया. मदन की जिंदगी एक बार फिर रौनक से भर उठी थी. कितने बरस बीतते गए और बूढ़ा मदन उस बच्चे को बचपन से किशोरावस्था में जाता देख रहा था. यह बच्चा तो कमल से कई गुना मेधावी था, पर वह गांव की मिट्टी से बहुत लगाव रखता था. गांव छोड़ना ही नहीं चाहता था. तकरीबन 56 साल की बूढ़ी हो  चली कामवाली अब मदन के पास रहने लगी थी.

अब मदन और वह कामवाली उस बच्चे की जिंदगी के आधार थे. उन का गांव तो अब बहुत बेहतरीन हो गया था. बहुत सारी सुविधाएं यहां पर थीं.

एक दिन मदन अपनी कामवाली के साथ किसी सामाजिक समारोह में गया तो वहां एक फौजी मिला. बातों से बातें निकलीं तो खुलासा हुआ कि वह कमल को जानता था. उस ने कमल की हर काली करतूत बताई और खुलासा किया कि कमल न जाने कितनी औरतें बदल चुका है. वह अफसरों की कमजोर नस का फायदा उठाता है और खुद भी गुलछर्रे उड़ाता है. वह अनैतिक हो चुका है. इतना बुद्धिमान है, पर बहुत ही गलत रास्ते पर है.

मदन चुपचाप सुनता रहा. उस को सुकून मिला कि अच्छा हुआ, जो कमल का बेटा यहां पर नहीं है. सुनता तो कितना परेशान होता.

मदन को इस बात का अंदेशा था, क्योंकि कमल ने कभी एक नया पैसा इस बच्चे के लिए नहीं भेजा, कभी एक फोन तक नहीं किया था.

मदन ने उस फौजी नौजवान को अपना फोन नंबर दिया और उस का नंबर भी ले लिया.

कुछ हफ्ते और बीत गए. एक दिन सुबहसुबह ही मदन के पास फोन आया कि कमल की किसी रहस्यमयी और अज्ञात बीमारी से अचानक मौत हो गई है.

मदन ने संदेश सुन कर फोन काट दिया. उस ने उस रोज अपना सारा काम उसी तरह से किया, जैसे वह पहले किया करता था. बच्चा भी पाठशाला से लौट कर खापी कर खेलने चला गया. उस दिन मदन की शाम एक सामान्य शाम की तरह गुजरी.

मदन ने एक पल को भी कमल का शोक नहीं मनाया. अब कमल और चमेली उस के लिए अजनबी थे.

गलत फैसला : बदल गई सुखराम की जिंदगी

रौयल स्काई टावर को बनते हुए 2 साल हो गए. आज यह टावर शहर के सब से ऊंचे टावर के रूप में खड़ा है. सब से ऊंचा इसलिए कि आगरा शहर में यही एक 22 मंजिला इमारत है. जब से यह टावर बन रहा है, हजारों मजदूरों के लिए रोजीरोटी का इंतजाम हुआ है. इस टावर के पास ही मजदूरों के रहने के लिए बनी हैं  झोपडि़यां.

इन्हीं  झोंपडि़यों में से एक में रहता है सुखराम अपनी पत्नी चंदा के साथ. सुखराम और चंदा का ब्याह 2 साल पहले ही हुआ था. शादी के बाद ही उन्हें मजदूरी के लिए आगरा आना पड़ा. वे इस टावर में सुबह से शाम तक साथसाथ काम करते थे और शाम से सुबह तक का समय अपनी  झोंपड़ी में साथसाथ ही बिताते थे. इस तरह एक साल सब ठीकठाक चलता रहा.

एक दिन चंदा के गांव से चिट्ठी आई. चिट्ठी में लिखा था कि चंदा के एकलौते भाई पप्पू को कैंसर हो गया है और उन के पास इलाज के लिए पैसे का कोई इंतजाम नहीं है.

सुखराम को लगा कि ऐसे समय में चंदा के भाई का इलाज उस की जिम्मेदारी है, पर पैसा तो उस के पास भी नहीं था, इसलिए उस ने यह बात अपने साथी हरिया को बता कर उस से सलाह ली.

हरिया ने कहा, ‘‘देखो सुखराम, गांव में तुम्हारे पास घर तो है ही, क्यों न घर को गिरवी रख कर बैंक से लोन ले लो. बैंक से लोन इसलिए कि घर भी सुरक्षित रहेगा और बहुत ज्यादा मुश्किल का सामना भी नहीं करना पड़ेगा.’’

कहते हैं कि बुरा समय जब दस्तक देता है, इनसान भलेबुरे की पहचान नहीं कर पाता. यही सुखराम के साथ हुआ. उस ने हरिया की बात पर ध्यान न दे कर यह बात ठेकेदार लाखन को बताई.

लाखन ने उस से कहा, ‘‘क्यों चिंता करता है सुखराम, 20,000 रुपए भी चाहिए तो ले जा.’’

सुखराम ने चंदा को बिना बताए  लाखन से 20,000 रुपए ले लिए और चंदा के भाई का इलाज शुरू हो गया.

चंदा सम झ नहीं पा रही थी कि इतना पैसा आया कहां से, इसलिए उस ने पूछा, ‘‘इतना पैसा आप कहां से लाए?’’

तब सुखराम ने लाखन का गुणगान किया. जब कुछ दिनों बाद पप्पू चल बसा, तो उस के अंतिम संस्कार का इंतजाम भी सुखराम ने ही किया.

इस घटना के कुछ ही दिनों के बाद सुखराम की मां भी चल बसीं. वे गांव में अकेली रहती थीं, इसलिए पड़ोसी ही मां का सहारा थे. पड़ोसियों ने सुखराम को सूचित किया.

सुखराम चंदा के साथ गांव लौटा और मां का अंतिम संस्कार किया.  जिंदगीभर गांव में खाया जो था, इसलिए खिलाना भी जरूरी समझा.

मकान सरपंच को महज 15,000 रुपए में बेच दिया. तेरहवीं कर के आगरा लौटने तक सुखराम के सभी रुपए खर्च हो चुके थे, क्योंकि गांव में मां का भी बहुत लेनदेन था.

इतिहास गवाह है कि चक्रव्यूह में घुसना तो आसान होता है, पर उस में से बाहर निकलना बहुत मुश्किल. जिंदगी के इस चक्रव्यूह में सुखराम भी बुरी तरह फंस चुका था. जैसे ही वह आगरा लौटा, शाम होते ही लाखन शराब की बोतल हाथ में लिए चला आया.

वह सुखराम से बोला, ‘‘सुखराम, मु झे अपना पैसा आज ही चाहिए और अभी…’’

सुखराम ने उसे अपनी मजबूरी बताई. वह गिड़गिड़ाया, पर लाखन पर इस का कोई असर नहीं हुआ. वह बोला, ‘‘तुम्हारी परेशानी तुम जानो, मु झे तो मेरा पैसा चाहिए. जब मैं ने तुम्हें पैसा दिया है, तो मु झे वापस भी चाहिए और वह भी आज ही.’’

सुखराम और चंदा की सम झ में कुछ नहीं आ रहा था. वे उस के सामने मिन्नतें करने लगे.

लाखन ने कुटिलता के साथ चंदा की ओर देखा और बोला, ‘‘ठीक है सुखराम, मैं तु झे कर्ज चुकाने की मोहलत तो दे सकता हूं, लेकिन मेरी भी एक शर्त है. हफ्ते में एक बार तुम मेरे साथ शराब पियोगे और घर से बाहर रहोगे… उस दिन… चंदा के साथ… मैं…’’

इतना सुनते ही सुखराम का चेहरा तमतमा उठा. उस ने लाखन का गला पकड़ लिया. वह उसे धक्के मार कर घर से बाहर निकाल देना चाहता था, लेकिन क्या करता? वह मजबूर था. चंदा चाहती थी कि उस की जान ले ले, मगर वह खून का घूंट पी कर रह गई. उस के पास भी कोई दूसरा रास्ता नहीं था. जब लाखन नहीं माना और उस ने सुखराम के साथ मारपीट शुरू कर दी तो चंदा लाखन के आगे हाथ जोड़ कर सुखराम को छोड़ने की गुजारिश करने लगी.

लाखन ने सुखराम की कनपटी पर तमंचा रख दिया तो वह मन ही मन टूट गई. उस की आंखों से आंसू बहने लगे, इसलिए कलेजे पर पत्थर रख कर उस ने लाखन को अपने शरीर से खेलने की हामी भर दी.

लाखन बहुत खुश हुआ, क्योंकि चंदा गजब की खूबसूरत थी. उस का जोबन नदी की बाढ़ की तरह उमड़ रहा था. उस की आंखें नशीली थीं. यही वजह थी कि पिछले 2 साल से लाखन की बुरी नजर चंदा पर लगी थी.

बुरे समय में पति का साथ देने के लिए चंदा ने ठेकेदार लाखन के साथ सोना स्वीकार किया और सुखराम की जान बचाई.

सुखराम ने उस दिन से शराब को गम भुलाने करने का जरीया बना लिया. इस तरह हवस के कीचड़ में सना लाखन चंदा की देह को लूटता रहा. जब सुखराम को पता चला कि चंदा पेट से है, तो उस ने चंदा से बच्चा गिराने की बात की, पर वह नहीं मानी.

सुखराम बोला, ‘‘मैं उस बच्चे को नहीं अपना सकता, जो मेरा नहीं है.’’

चंदा ने उसे बहुत सम झाया, पर वह न माना. चंदा ने भी अपना फैसला

सुना दिया, ‘‘मैं एक औरत ही नहीं, एक मां भी हूं. मैं इस बच्चे को जन्म ही नहीं दूंगी, बल्कि उसे जीने का हक भी दूंगी.’’

इस बात पर दोनों में  झगड़ा हुआ. सुखराम ने कहा, ‘‘ठेकेदार के साथ सोना तुम्हारी मजबूरी थी, पर उस के बच्चे को जन्म देना तो तुम्हारी मजबूरी नहीं है.’’

चंदा ने जवाब दिया, ‘‘तुम्हारा साथ देने के लिए मैं ने ऐसा घोर अपराध किया था, लेकिन अब मैं कोई गलती नहीं करूंगी… जो हमारे साथ हुआ, उस में इस नन्हीं सी जान का भला क्या कुसूर? जो भी कुसूर है, तुम्हारा है.’’

इस के बाद चंदा सुखराम को छोड़ कर चली गई. वह कहां गई, किसी को नहीं मालूम, पर आज सुखराम को हरिया की कही बात याद आई. वह सिसक रहा था और सोच रहा था कि काश, उस ने गलत फैसला न लिया होता.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें