पाक मुहब्बत : इश्क का मुश्किल इम्तिहान

अहसान और परवीन की मुहब्बत इतनी पाक थी कि उन दोनों ने तकरीबन 7 साल साथसाथ गुजारे थे. वे दोनों एकदूसरे को दिल की गहराइयों से चाहते थे, पर उन्होंने मन ही मन ठान लिया था कि जब तक उन का निकाह नहीं होता, तब तक वे एकदूसरे के जिस्म को नहीं छुएंगे.

उस समय अहसान की उम्र महज 17 साल थी. तब वह अपनी चाची के घर उन के साथ रह रहा था, चाची उस पर अपनी जान छिड़कती थीं.

परवीन भी अकसर अहसान की चाची के घर आतीजाती रहती थी. परवीन और कोई नहीं, बल्कि अहसान की चाची की छोटी बहन थी, जो महज 16 साल की एक खूबसूरत लड़की थी. उस की नीली आंखें ऐसी लगती थीं, मानो कोई अंगरेज हो. गोरा बदन, बड़ीबड़ी आंखें, सुनहरे बाल उस की खूबसूरती में चार चांद लगाते थे.

एक दिन अहसान अपनी चाची से बातें कर रहा था कि तभी वहां परवीन भी आ गई.

चाची अचानक से बोलीं, ‘‘अहसान, तुझे परवीन कैसी लगती है?’’

अहसान ने कहा, ‘‘बहुत अच्छी.’’

चाची बोलीं, ‘‘मै चाहती हूं कि तेरी शादी परवीन से हो जाए.’’

अहसान ने शरमाते हुए कहा, ‘‘मुझे इस में कोई एतराज नहीं है चाची.’’

इतना सुन कर पास बैठी परवीन भी शरमा गई और तिरछी निगाहों से अहसान को देखते हुए अपने प्यार का इजहार करने लगी.

अहसान की चाची ने परवीन से पूछा, ‘‘क्यों परवीन, क्या तू चाहती है कि तेरी शादी अहसान से हो जाए?’’

परवीन शरमाते हुए बोली, ‘‘बाजी, आप की जो मरजी, भला मुझे क्या एतराज होगा.’’

उस दिन से परवीन और अहसान एकदूसरे को दिल की गहराइयों से चाहने लगे और अपनी शादी के सपने संजोने लगे. दोनों अकसर अकेले घूमने जाने लगे, जिस पर चाची को कोई एतराज नहीं था. फिर वे दोनों बालिग हो गए.

अब परवीन पर शादी करने का दबाव बढ़ने लगा था, जबकि अहसान अभी भी पढ़ाई में उलझ हुआ था. वह बीकौम कर रहा था.

जब परवीन को इस बात का पता चला कि उस के लिए रिश्ता ढूंढ़ा जा रहा है, तो उस ने अपनी बड़ी बहन से अपने दिल की बात कहते हुए कहा, ‘‘आप तो कह रही थीं कि मेरी शादी अहसान से कराओगी, फिर क्यों मेरे लिए रिश्ता ढूंढ़ा जा रहा है?’’

परवीन की बाजी बोलीं, ‘‘अहसान से तेरी शादी कैसे हो सकती है… अभी वह पढ़ रहा है. कुछ कमाता है नहीं, कैसे तेरे खर्चे उठाएगा?’’

परवीन ने कहा, ‘‘कुछ भी करो, पर मेरी शादी अहसान से करा दो. मैं उस के सिवा किसी और से शादी नहीं करूंगी. मैं ने उसे अपना सबकुछ मान लिया है. अब इस दिल में उस के सिवा किसी और का खयाल करना भी मेरे लिए बड़ा मुश्किल है.’’

अगले दिन परवीन ने सारी बात अहसान को बता दी और बोली, ‘‘मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती. तुम कुछ भी करो, क्योंकि मैं किसी गैर से शादी नहीं कर सकती.’’

अहसान बोला, ‘‘तुम फिक्र मत करो. मैं चाची से बात करता हूं. वे मेरी बात जरूर मानेंगी और मुझे कुछ काम करने का थोड़ा समय भी दे देंगी. मैं अपने पैरों पर खड़ा हो कर तुम से शादी कर लूंगा.’’

अहसान ने अगले ही दिन चाची से कहा, ‘‘चाची, आप ने मेरी शादी की बात परवीन से की थी. मैं उसे दिलोजान से चाहता हूं. मैं उस के बगैर नहीं रह सकता.’’

चाची बोलीं, ‘‘प्यार से पेट नहीं भरता, बल्कि जिंदगी जीने के लिए पैसों की जरूरत पड़ती है. जब पेट की भूख बढ़ती है, तो प्यार का सारा भूत उतर जाता है.’’

अहसान बोला, ‘‘मैं मेहनतमजदूरी कर के उस का पेट भरूंगा. उसे किसी चीज की कमी नहीं होने दूंगा.’’

चाची ने कहा, ‘‘मेहनतमजदूरी कर के एक वक्त का खाना खा सकते हो, अच्छी जिंदगी नहीं गुजार सकते. जिंदगी जीने के लिए पैसा चाहिए और मेरे अम्मीअब्बा कभी भी एक बेरोजगार से परवीन की शादी करने को कभी तैयार नहीं होंगे.’’

अहसान गिड़गिड़ाने लगा, ‘‘आप कोशिश तो करो. मुझे कुछ समय दे दो. प्लीज, मेरी खाली झाली में मेरा प्यार परवीन डाल दो.’’

चाची बोलीं, ‘‘बहुत मुश्किल है. पहले तुम कामयाब हो जाओ, उस के बाद परवीन से शादी करने का खयाल करना.’’

‘‘ठीक है चाची, मैं अगले 2 साल के अंदर एक कामयाब इनसान बन कर ही आऊंगा. मैं कल ही काम की तलाश में मुंबई जाता हूं,’’ अहसान बोला.

अगले ही दिन अहसान 2 साल का समय ले कर मुंबई चला गया और वहां उस ने अपनी जानपहचान के लोगों से काम की बात की, तो उसे एक बेकरी में हिसाबकिताब का काम मिल गया और 4,000 रुपए महीने की नौकरी पर उस ने वहां काम करना शुरू कर दिया.

6 महीने की कड़ी मेहनत के बाद अहसान ने 20,000 रुपए जोड़ लिए और अपनी चाची से फोन कर के सब बता दिया.

चाची बोलीं, ‘‘बहुत अच्छा है, पर 4,000 रुपए महीना कमाने से घर नहीं चलेगा. मेरे घर वाले इतना कम कमाने वाले से शादी नहीं करेंगे.’’

अहसान बोला, ‘‘अभी मेरे वादे के डेढ़ साल बाकी हैं. मैं इन डेढ़ साल के अंदर अच्छा पैसा कमाने वाला बन कर दिखाऊंगा.’’

चाची ने कहा, ‘‘ठीक है, पहले कामयाब बनो, तब बात करना. उस से पहले तुम मुझ से परवीन के बारे में कोई बात नहीं करोगे.’’

अहसान बोला, ‘‘ठीक है, चाची.’’

समय गुजरता गया. अहसान मेहनत और लगन से काम करता रहा. उसे काम करतेकरते डेढ़ साल हो गया. उस की मेहनत और लगन से खुश हो कर उस के मालिक ने पूछा, ‘‘क्या तुम हमारे साथ एक बेकरी में सा?ोदारी करोगे?’’

अहसान बोला, ‘‘मेरे पास अभी पैसा नहीं है. बड़ी मुश्किल से 70,000 रुपए ही जोड़ पाया हूं.’’

मालिक बोले, ‘‘ठीक है, बाकी पैसा मैं लगा दूंगा. एक बेकरी किराए पर मिल रही है. 30,000 रुपए महीना किराया है, ऊपर का जो खर्च होगा, वह तकरीबन 3 लाख रुपए है.

3 पार्टनर मिल कर इस बेकरी को ले लेते हैं. तुम ईमानदारी और जिम्मेदारी से उसे चलाना. जो बचत होगी, उसे तीनों आपस में बांट लेंगे.’’

अहसान बोला, ‘‘ठीक है, मैं तैयार हूं.’’

अगले ही दिन वह बेकरी किराए पर ले ली गई. अहसान को उस की जिम्मेदारी दे दी गई.

अहसान की मेहनत रंग लाई और 3 महीने में ही उस बेकरी में 2 लाख रुपए हर महीने की बचत होने लगी.

अहसान के ऊपर जो कर्जा हो गया था, वह भी उतर गया था और अब वह तकरीबन 60,000 रुपए हर महीने कमाने लगा था.

2 साल पूरे होने में अभी 15 दिन बाकी थे. अहसान ने गांव जाने का इरादा किया और एक महीने के लिए बेकरी पर अपने पार्टनर को बैठा कर वह गांव चला गया.

गांव पहुंचते ही अहसान सब से पहले अपनी चाची के घर गया और बोला, ‘‘चाची, मैं अब 60,000 रुपए महीना कमाने लगा हूं, जिस से मैं परवीन को सारी खुशियां दे सकता हूं. अब आप अपने वादे के मुताबिक मेरी शादी परवीन से करा कर उसे मेरी झाली में डाल दो.’’

यह सुन कर चाची बोलीं, ‘‘परवीन की शादी तो एक साल पहले ही कर दी गई है. उस के एक बेटा भी हो गया है. उस का शौहर भी मुंबई में रहता है और महीने में 15,000 रुपए कमा लेता है.’’

अहसान ने जैसे परवीन की शादी की बात सुनी, तो उस का खून खुश्क हो गया. उस के दिल की धड़कन जहां की तहां थम गई. उस ने जिस लड़की को पाने के लिए अपनी पढ़ाई कुरबान कर दी थी, जिस के लिए वह अपना गांव छोड़ कर पैसा कमाने के लिए मुंबई चला गया था, वापस आने से पहले ही उस के सपने चूर हो कर रह गए.

अहसान का दिल पूरी तरह टूट चुका था. उस ने दबे लहजे में अपनी चाची से कहा, ‘‘चाची, आप को भी थोड़ा सब्र नहीं हुआ. मेरे दिल के टुकड़े को किसी दूसरे के हवाले करते हुए आप का दिल नहीं धड़का.’’

चाची बोलीं, ‘‘हमें क्या पता था कि तू 2 साल में कामयाब हो जाएगा. हम ने सोचा था कि अगर तू कामयाब न हुआ, तो परवीन को जिंदगीभर तेरे इंतजार में थोड़ा बिठाए रखेंगे, इसलिए हमें रिश्ता अच्छा लगा तो हम ने उस की शादी कर दी. मेरी बात मान, तू भी कोई अच्छी सी लड़की देख कर शादी कर ले.’’

कुछ दिनों के बाद अहसान ने भी शादी कर ही ली. वह अपनी पुरानी जिंदगी भूल कर नई जिंदगी की शुरुआत करने में मशगूल हो गया. दिन बीतते गए.

एक बार अहसान ‘महाराष्ट्र संपर्क क्रांति’ ट्रेन से मुंबई जाने के लिए जैसे ही बोगी नंबर एस 5 की बर्थ नंबर 32 पर पहुंचा, तो वहां परवीन को देख कर दंग रह गया.

परवीन बर्थ नंबर 31 पर अपने 4 महीने के बेटे के साथ बैठी थी. जैसे ही दोनों की नजर एकदूसरे पर पड़ी, तो हैरान रह गए.

अहसान परवीन से बोला, ‘‘तुम भी मुंबई जा रही हो क्या परवीन?’’

‘‘हां, मेरे शौहर को 2 महीने के लिए उन के दोस्त का कमरा मिला था, तो उन्होंने मुझे अपने पास मुंबई बुला लिया है. वे बांद्रा स्टेशन पर आ कर मुझे ले जाएंगे.’’

अहसान ने कहा, ‘‘बहुत जल्दी की तुम ने शादी करने में, थोड़ा इंतजार कर लेती.’’

परवीन बोली, ‘‘वह एक साल मैं ने तुम्हारी याद में कैसे गुजारा था, मैं ही जानती हूं. तुम्हारा न कुछ अतापता था और न ही कोई मोबाइल नंबर. तब बाजी बोलीं कि क्यों उस की याद में परेशान होती है. अम्मी की तबीयत भी ठीक नहीं है. एक रिश्ता आया है.

‘‘अम्मी की तमन्ना थी कि उन के जीतेजी मेरी शादी हो जाए, तो मैं ने हां कर दी और मेरी शादी के एक महीने बाद ही वे चल बसीं.’’

अहसान ने कहा, ‘‘मेरा खयाल नहीं आया कि जब मैं तुम्हारी शादी की खबर सुनूंगा, तो मुझे पर क्या बीतेगी? मैं ने तुम्हारी बाजी से कामयाब होने के लिए 2 साल का समय मांगा था और मैं कामयाब हो कर तुम्हारी बाजी के पास गया, तो मुझे पता चला कि तुम ने शादी कर ली है. यह सुनते ही मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी दुनिया ही उजड़ गई है.’’

परवीन ने कहा, ‘‘अहसान, मुझे माफ कर देना. मैं मजबूर थी.’’

अहसान बोला, ‘‘चलो, छोड़ो पुरानी बातें… और सुनाओ, घर में सब कैसे हैं?’’

परवीन ने कहा, ‘‘सब सही है, पर जिस कमाऊ लड़के के चक्कर में घर वालों ने मेरी शादी की, वह बहुत गुस्से वाला है और हर समय घर पर ही पड़ा रहता है. सालभर में 6 महीने ही काम करता है,’’ यह कहतेकहते वह रोने लगी.

इस के बाद बात करतेकरते कब समय निकल गया, कुछ पता ही नहीं चला. रात के 10 बज गए थे.

तभी परवीन बोली, ‘‘बहुत दिन गुजर गए एकसाथ खाना खाए. चलो, खाना खाते हैं.’’

दोनों ने एकसाथ खाना निकाल कर सीट पर रख लिया. तभी परवीन ने हाथ बढ़ा कर पहला निवाला अहसान को खिलाते हुए कहा, ‘‘आज तो खाना मेरे हाथ से ही खाना पड़ेगा.’’

यह सुनते ही अहसान की आंखों में आंसू आ गए और उस ने भी अपने हाथों से परवीन को खाना खिलाना शुरू कर दिया.

रात के 12 बज चुके थे. पूरे डब्बे के मुसाफिर सो गए थे. बस, अहसान और परवीन जाग रहे थे कि तभी परवीन ने अहसान को जगह देते हुए कहा, ‘‘तुम आराम से यहीं सो जाओ.’’

अहसान चौंका और सोने के इरादे से अपने बैग से चादर निकालने लगा. जैसे ही उस ने अपनी चादर निकाली, उस में से एक छोटा टैडी बीयर निकल कर अहसान के पास आ गिरा.

जैसे ही अहसान ने उसे उठाया, उस में एक परचा लगा था, जिस में उस की बीवी ने बड़े प्यार से प्यारभरी बातें लिखी थीं और आखिर में ‘आई लव यू’ लिखा था, जिसे देखते ही अहसान की आंखें भर आईं और वह उसे अपने सीने से लगा कर ऊपर वाली बर्थ पर ही लेट गया.

परवीन ने उसे आवाज दी और कहा, ‘‘नीचे आ कर यहां सो जाओ.’’

पर अहसान नीचे नहीं आया और बोला, ‘‘तुम सो जाओ. मैं यहीं सो रहा हूं.’’

दरअसल, अहसान के सामने उस की बीवी का प्यारभरा लव लैटर आ गया था, जिसे देख कर उसे अहसास हो गया था कि परवीन के पास जा कर सोना अपनी बीवी का साथ गद्दारी करना है, उसे धोखा देना है, जबकि परवीन अब एक पराई औरत है.

अपनी बीवी को याद करतेकरते कब अहसान की आंख लग गई, उसे पता ही न चला. सुबह जब आंख खुली, तो उस ने अपनेआप को बांद्रा स्टेशन पर पाया. ट्रेन मुंबई आ चुकी थी. अहसान जल्दी से उठा और नीचे उतर आया.

परवीन ने पूछा, ‘‘क्या बात है, तुम रात को नीचे नहीं आए?’’

अहसान टालते हुए बोला, ‘‘मेरी आंख लग गई थी.’’

दोनों ने जल्दीजल्दी अपना सामान एक साइड में किया. थोड़ी देर बाद परवीन बोली, ‘‘पता नहीं, अब कभी हमारी मुलाकात होगी या नहीं. अच्छा, अपना मोबाइल नंबर तो दे दो.’’

अहसान ने परवीन को अपना मोबाइल नंबर दे दिया और दोनों का सामान वह गाड़ी से नीचे उतारने लगा.

प्लेटफार्म से बाहर निकलते ही परवीन का शौहर आ गया और आटोरिकशा में बैठा कर उसे ले जाने लगा.

परवीन हसरतभरी निगाहों से अहसान को देखती रही. थोड़ी ही देर में दोनों एकदूसरे की आंखों से ओझल हो गए.

अहसान ने मुंबई आ कर अपना काम संभाल लिया और खूब तरक्की की. कुछ ही दिनों में अहसान ने भी अपनी बीवी को मुंबई बुला लिया.

एक दिन अहसान ने अपनी चाची को फोन किया और उन की खबर जाननी चाही, तो उन्होंने बताया, ‘‘परवीन मायके में आ कर रह रही है. उस का शौहर उसे जानवरों की तरह मारतापीटता है. कुछ कामकाज भी नहीं करता है. और तू सुना क्या हाल हैं तेरे?’’

‘‘मैं 2 बेकरी चला रहा हूं. अब महीने के एक लाख रुपए कमाता हूं. बीवी भी खुश है. एक बेटी का बाप बन गया हूं.’’

चाची बोलीं, ‘‘तू ने वह कर दिखाया है, जिस की हमें उम्मीद भी नहीं थी. काश, हम समय रहते तुझे समझ पाते और परवीन से ही तेरी शादी करा देते, तो आज परवीन इस तरह की परेशानियों में न घिरी होती.’’

अहसान ने परवीन के बारे में इतना सुन कर फोन रख दिया.

एक दिन अहसान के फोन की घंटी बजी. उस ने फोन उठाया, तो दूसरी तरफ से परवीन के बोलने की आवाज आई, ‘‘अहसान, मैं अब उस जालिम के साथ नहीं रहूंगी, जो मुझे जानवरों की तरह मारतापीटता है, खाने को भी नहीं देता. कुछ कमाता ही नहीं, बस रातदिन दोस्तों के साथ घूमता फिरता है. उस ने मेरी जिंदगी नरक बना दी है. अहसान, अगर मैं उस से तलाक ले लूंगी, तो क्या तुम मुझ से शादी करोगे?’’

अहसान ने कहा, ‘‘कैसी बात कर रही हो तुम? ऐसा कुछ मत करो. अपने घर वालों से कहो कि उसे प्यार से सम?ाएं और उसे कोई काम करा दें, ताकि उस की कुछ इनकम होने लगे.

‘‘यह तो सोचो कि तुम्हारे पास अब उस का एक बेटा भी है. क्यों उसे उस के बाप से अलग करना चाहती हो? जल्दबाजी में कोई ऐसा कदम मत उठाना, जिस की वजह से बाद में परेशानी हो.’’

परवीन बोली, ‘‘मैं तुम से मशवरा नहीं मांग रही, बल्कि मैं तो यह कह रही हूं कि अगर मैं उस से तलाक ले लूं, तो क्या तुम मुझे अपनाओगे?’’

अहसान ने कहा, ‘‘ऐसा कैसे हो सकता है… मेरी भी बीवी है, बच्ची है, जिन्हें मैं बहुत प्यार करता हूं. तुम समझती क्यों नहीं…’’

परवीन गुस्से में बोली, ‘‘इस का मतलब यह है कि तुम मुझ से प्यार नहीं करते थे और न ही करते हो…’’

अहसान बोला, ‘‘मैं सिर्फ तुम से ही प्यार करता था, पर अब अपने बीवीबच्चों से प्यार करता हूं.

हां, तुम से अब वह प्यार नहीं करता, जो तुम सोच रही हो, क्योंकि अब तुम भी किसी दूसरे की

अमानत हो और मैं भी. अब सिर्फ हम एक अच्छे दोस्त हैं.’’

परवीन गुस्से में बोली, ‘‘ठीक है, तुम से ही उम्मीद थी कि तुम मुझे अपनाओगे, पर जब तुम ही पराए हो गए तो किसी और से क्या उम्मीद की जाए,’’ कहते हुए उस ने फोन रख दिया.

अहसान भी अपने काम में मसरूफ हो गया. रहरह कर उसे परवीन के कहे शब्द सता रहे थे, पर वह अब उसे कैसे अपना सकता था, क्योंकि उस की बीवी थी, बच्ची थी, जिन्हें वह धोखा नहीं दे सकता था

एक दिन अहसान की चाची का फोन आया और उन्होंने उसे एक दुखभरी बात बताई, जिसे सुन कर अहसान के होश ही उड़ गए.

चाची ने बताया, ‘‘परवीन अब इस दुनिया में नहीं रही. उसे अचानक सीने में दर्द हुआ, फिर जल्दबाजी में उसे हौस्पिटल ले जाया गया, पर वहां पहुंचतेपहुंचते उस की मौत हो गई.’’

यह सुनते ही अहसान को बड़ा धक्का लगा. देखते ही देखते उस की पाक मुहब्बत, जिसे वह सच्चे दिल से चाहता था, आज इस दुनिया में नहीं थी.

अहसान कई दिनों तक परवीन के गम में दुखी रहा. उसे न तो खाना अच्छा लगा और न ही कोई काम. उस की आंखों से नींद कोसों दूर थी. वह यही सोच कर बेचैन हो रहा था कि कहीं परवीन की मौत का जिम्मेदार वह तो नहीं, क्योंकि आखिरी समय में परवीन ने उस से प्यार मांगा था, पर अपने बीवीबच्चों के होते हुए उस ने उस के प्यार को ठुकरा दिया था.

वक्त का पहिया : क्या सेजल वाकई आवारा लड़की थी?

‘‘आज फिर कालेज में सेजल के साथ थी?’’ मां ने तीखी आवाज में निधि से पूछा.

‘‘ओ हो, मां, एक ही क्लास में तो हैं, बातचीत तो हो ही जाती है, अच्छी लड़की है.’’

‘‘बसबस,’’ मां ने वहीं टोक दिया, ‘‘मैं सब जानती हूं कितनी अच्छी है. कल भी एक लड़का उसे घर छोड़ने आया था, उस की मां भी उस लड़के से हंसहंस के बातें कर रही थी.’’

‘‘तो क्या हुआ?’’ निधि बोली.

‘‘अब तू हमें सिखाएगी सही क्या है?’’ मां गुस्से से बोलीं, ’’घर वालों ने इतनी छूट दे रखी है, एक दिन सिर पकड़ कर रोएंगे.’’

निधि चुपचाप अपने कमरे में चली गई. मां से बहस करने का मतलब था घर में छोटेमोटे तूफान का आना. पिताजी के आने का समय भी हो गया था. निधि ने चुप रहना ही ठीक समझा.

सेजल हमारी कालोनी में रहती है. स्मार्ट और कौन्फिडैंट.

‘‘मुझे तो अच्छी लगती है, पता नहीं मां उस के पीछे क्यों पड़ी रहती हैं,’’ निधि अपनी छोटी बहन निकिता से धीरेधीरे बात कर रही थी. परीक्षाएं सिर पर थीं. सब पढ़ाई में व्यस्त हो गए. कुछ दिनों के लिए सेजल का टौपिक भी बंद हुआ.

घरवालों द्वारा निधि के लिए लड़के की तलाश भी शुरू हो गई थी पर किसी न किसी वजह से बात बन नहीं पा रही थी. वक्त अपनी गति से चलता रहा, रिजल्ट का दिन भी आ गया. निधि 90 प्रतिशत लाई थी. घर में सब खुश थे. निधि के मातापिता सुबह की सैर करते हुए लोगों से बधाइयां बटोर रहे थे.

‘‘मैं ने कहा था न सेजल का ध्यान पढ़ाई में नहीं है, सिर्फ 70 प्रतिशत लाई है,’’ निधि की मां निधि के पापा को बता रही थीं. निधि के मन में आया कि कह दे ‘मां, 70 प्रतिशत भी अच्छे नंबर हैं’ पर फिर कुछ सोच कर चुप रही.

सेजल और निधि ने एक ही कालेज में एमए में दाखिला ले लिया और दोनों एक बार फिर साथ हो गईं. एक दिन निधि के पिता आलोकनाथ बोले, ‘‘बेटी का फाइनल हो जाए फिर इस की शादी करवा देंगे.’’

‘‘हां, क्यों नहीं, पर सोचनेभर से कुछ न होगा,’’ मां बोलीं.

‘‘कोशिश तो कर ही रहा हूं. अच्छे लड़कों को तो दहेज भी अच्छा चाहिए. कितने भी कानून बन जाएं पर यह दहेज का रिवाज कभी नहीं बदलेगा.’’

निधि फाइनल ईयर में आ गई थी. अब उस के मातापिता को चिंता होने लगी थी कि इस साल निकिता भी बीए में आ जाएगी और अब तो दोनों बराबर की लगने लगी हैं. इस सोचविचार के बीच ही दरवाजे की घंटी घनघना उठी.

दरवाजा खोला तो सामने सेजल की मां खड़ी थीं, बेटी के विवाह का निमंत्रण पत्र ले कर.

निधि की मां ने अनमने ढंग से बधाई दी और घर के भीतर आने को कहा, लेकिन जरा जल्दी में हूं कह कर वे बाहर से ही चली गईं. कार्ड ले कर निधि की मां अंदर आईं और पति को कार्ड दिखाते हुए बोलीं, ‘‘मैं तो कहती ही थी, लड़की के रंगढंग ठीक नहीं, पहले से ही लड़के के साथ घूमतीफिरती थी. लड़का भी घर आताजाता था.’’

‘‘कौन लड़का?’’ निधि के पिता ने पूछा.

‘‘अरे, वही रेहान, उसी से तो हो रही है शादी.’’

निधि भी कालेज से आ गई थी. बोली, ‘‘अच्छा है मां, जोड़ी खूब जंचेगी.’’ मां भुनभुनाती हुई रसोई की तरफ चल पड़ीं.

सेजल का विवाह हो गया. निधि ने आगे पढ़ाई जारी रखी. अब तो निकिता भी कालेज में आ गई थी. ‘निधि के पापा कुछ सोचिए,’ पत्नी आएदिन आलोकनाथजी को उलाहना देतीं.

‘‘चिंता मत करो निधि की मां, कल ही दीनानाथजी से बात हुई है. एक अच्छे घर का रिश्ता बता रहे हैं, आज ही उन से बात करता हूं.’’

लड़के वालों से मिल के उन के आने का दिन तय हुआ. निधि के मातापिता आज खुश नजर आ रहे थे. मेहमानों के स्वागत की तैयारियां चल रही थीं. दीनानाथजी ठीक समय पर लड़के और उस के मातापिता को ले कर पहुंच गए. दोनों परिवारों में अच्छे से बातचीत हुई, उन की कोई डिमांड भी नहीं थी. लड़का भी स्मार्ट था, सब खुश थे. जाते हुए लड़के की मां कहने लगीं, ‘‘हम घर जा कर आपस में विचारविमर्श कर फिर आप को बताते हैं.’’

‘‘ठीक है जी,’’ निधि के मातापिता ने हाथ जोड़ कर कहा. शाम से ही फोन का इंतजार होने लगा. रात करीब 8 बजे फोन की घंटी बजी. आलोकनाथजी ने लपक कर फोन उठाया. उधर से आवाज आई, ‘‘नमस्तेजी, आप की बेटी अच्छी है और समझदार भी लेकिन कौन्फिडैंट नहीं है, हमारा बेटा एक कौन्फिडैंट लड़की चाहता है, इसलिए हम माफी चाहते हैं.’’

आलोकनाथजी के हाथ से फोन का रिसीवर छूट गया.

‘‘क्या कहा जी?’’ पत्नी भागते हुए आईं और इस से पहले कि आलोकनाथजी कुछ बताते दरवाजे की घंटी बज उठी. निधि ने दरवाजा खोला. सामने सेजल की मां हाथ में मिठाई का डिब्बा लिए खड़ी थीं और बोलीं, ’’मुंह मीठा कीजिए, सेजल के बेटा हुआ है.’’

अब सोचने की बारी निधि के मातापिता की थी. ‘वक्त के साथ हमें भी बदलना चाहिए था शायद.’ दोनों पतिपत्नी एकदूसरे को देखते हुए मन ही मन शायद यही समझा रहे थे. वैसे काफी वक्त हाथ से निकल गया था लेकिन कोशिश तो की जा सकती थी.

मांगलिक कन्या : शादी में रोड़ा बना अंधविश्वास

विवाह की 10वीं वर्षगांठ के निमंत्रणपत्र छप कर अभीअभी आए थे. कविता बड़े चाव से उन्हें उलटपलट कर देख रही थी. साथ ही सोच रही थी कि जल्दी से एक सूची तैयार कर ले और नाम, पते लिख कर इन्हें डाक में भेज दे. ज्यादा दिन तो बचे नहीं थे. कुछ निमंत्रणपत्र स्वयं बांटने जाना होगा, कुछ गौरव अकेले ही देने जाएंगे. हां, कुछ कार्ड ऐसे भी होंगे जिन्हें ले कर वह अके जाएगी.

सोचतेसोचते कविता को उन पंडितजी की याद आई जिन्होंने उस के विवाह के समय उस के ‘मांगलिक’ होने के कारण इस विवाह के असफल होने की आशंका प्रकट की थी. पंडितजी के संदेह के कारण दोनों परिवारों में उलझनें पैदा हो गई थीं. ताईजी ने तो अपने इन पंडितजी की बातों से प्रभावित हो कर कई पूजापाठ करवा डाले थे.

एकएक कर के कविता को अपने विवाह से संबंधित सभी छोटीबड़ी घटनाएं याद आने लगीं. कितना तनाव सहा था उस के परिवार वालों ने विवाह के 1 माह पूर्व. उस समय यदि गौरव ने आधुनिक एवं तर्कसंगत विचारों से अपने परिवार वालों को समझायाबुझाया न होता तो हो चुका था यह विवाह. कविता को जब गौरव, उस के मातापिता एवं ताईजी देखने आए थे तो सभी को दोनों की जोड़ी ऐसी जंची कि पहली बार में ही हां हो गई. गौरव के पिता नंदकिशोर का अपना व्यवसाय था. अच्छाखासा पैसा था. परिवार में गौरव के मातापिता, एक बहन और एक ताईजी थीं. कुछ वर्ष पूर्व ताऊजी की मृत्यु हो गई थी.

ताईजी बिलकुल अकेली हो गई थीं, उन की अपनी कोई संतान न थी. गौरव और उस की बहन गरिमा ही उन का सर्वस्व थे. गौरव तो वैसे ही उन की आंख का तारा था. बच्चे ताईजी को बड़ी मां कह कर पुकारते और उन्हें सचमुच में ही बड़ी मां का सम्मान भी देते. गौरव के मातापिता भी ताईजी को ही घर का मुखिया मानते थे. घर में छोटेबड़े सभी निर्णय उन की सम्मति से ही लिए जाते थे.

जैसा कि प्राय: होता है, लड़की पसंद आने के कुछ दिन पश्चात छोटीमोटी रस्म कर के रिश्ता पक्का कर दिया गया. इस बीच गौरव और कविता कभीकभार एकदूसरे से मिलने लगे. दोनों के मातापिता को इस में कोई आपत्ति भी न थी. वे स्वयं भी पढ़ेलिखे थे और स्वतंत्र विचारों के थे. बच्चों को ऊंची शिक्षा देने के साथसाथ अपना पूर्ण विश्वास भी उन्होंने बच्चों को दिया था. अत: गौरव का आनाजाना बड़े सहज रूप में स्वीकार कर लिया गया था. पंडितजी से शगुन और विवाह का मुहूर्त निकलवाने ताईजी ही गई थीं. पंडितजी ने कन्या और वर दोनों की जन्मपत्री की मांग की थी.

दूसरे दिन कविता के घर यह संदेशा भिजवाया गया कि कन्या की जन्मपत्री भिजवाई जाए ताकि वर की जन्मपत्री से मिला कर उस के अनुसार ही विवाह का मुहूर्त निकाला जाए. कविता के मातापिता को भला इस में क्या आपत्ति हो सकती थी, उन्होंने वैसा ही किया.

3 दिन पश्चात ताईजी स्वयं कविता के घर आईं. अपने भावी समधी से वे अनुरोध भरे स्वर में बोलीं, ‘‘कविता के पक्ष में ‘मंगलग्रह’ भारी है. इस के लिए हमारे पंडितजी का कहना है कि आप के घर में कविता द्वारा 3 दिन पूजा करवा ली जाए तो इस ग्रह का प्रकोप कम हो सकता है. आप को कष्ट तो होगा, लेकिन मैं समझती हूं कि हमें यह करवा ही लेना चाहिए.’’

कविता के मातापिता ने इस बात को अधिक तूल न देते हुए अपनी सहमति दे दी और 3 दिन के अनुष्ठान की सारी जिम्मेदारी सहर्ष स्वीकार कर ली. 2 दिन आराम से गुजर गए और कविता ने भी पूरी निष्ठा से इस अनुष्ठान में भाग लिया. तीसरे दिन प्रात: ही फोन की घंटी बजी और लगा कि कविता के पिता फोन पर बात करतेकरते थोड़े झुंझला से रहे हैं.

फोन रख कर उन्होंने बताया, ‘‘ताईजी के कोई स्वामीजी पधारे हैं. ताईजी ने उन को कविता और गौरव की जन्मकुंडली आदि दिखा कर उन की राय पूछी थी. स्वामीजी ने कहा है कि इस ग्रह को शांत करने के लिए 3 दिन नहीं, पूरे 1 सप्ताह तक पूजा करनी चाहिए और उस के उपरांत कन्या के हाथ से बड़ी मात्रा में 7 प्रकार के अन्न, अन्य वस्तुएं एवं नकद राशि का दान करवाना चाहिए. ताईजी ने हमें ऐसा ही करने का आदेश दिया है.’’

यह सब सुन कर कविता को अच्छा नहीं लगा. एक तो घर में वैसे ही विवाह के कारण काम बढ़ा हुआ था, जिस पर दिनरात पंडितों के पूजापाठ, उन के खानेपीने का प्रबंध और उन की देखभाल. वह बेहद परेशान हो उठी.  कविता जानती थी कि दानदक्षिणा की जो सूची बताई गई है उस में भी पिताजी का काफी खर्च होगा. वह समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे. लेकिन मां के चेहरे पर कोई परेशानी नहीं थी. उन्होंने ही जैसेतैसे पति और बेटी को समझाबुझा कर धीरज न खोने के लिए राजी किया. उन की व्यावहारिक बुद्धि यही कहती थी कि लड़की वालों को थोड़ाबहुत झुकना ही पड़ता है.

इस बीच गौरव भी अपनी और अपने मातापिता की ओर से कविता के घर वालों से उन्हें परेशान करने के लिए क्षमा मांगने आया. वह जानता था कि यह सब ढकोसला है, लेकिन ताईजी की भावनाओं और उन की ममता की कद्र करते हुए वह उन्हें दुखी नहीं करना चाहता था. इसलिए वह भी इस में सहयोग देने के लिए राजी हो गया था, वरना वह और उस के मातापिता किसी भी कारण से कविता के परिवार वालों को अनुचित कष्ट नहीं देना चाहते थे.

लेकिन अभी एक और प्रहार बाकी था. किसी ने यह भी बता दिया था कि इस अनुष्ठान के पश्चात कन्या का एक झूठमूठ का विवाह बकरे या भेड़ से करवाना जरूरी है क्योंकि मंगल की जो कुदृष्टि पूजा के बाद भी बच जाएगी, वह उसी पर पड़ेगी. उस के पश्चात कविता और गौरव का विवाह बड़ी धूमधाम से होगा और उन का वैवाहिक जीवन संपूर्ण रूप से निष्कंटक हो जाएगा.  ताईजी यह संदेश ले कर स्वयं आई थीं. उस समय कविता घर पर नहीं थी. जब वह आई और उस ने यह बेहूदा प्रस्ताव सुना तो बौखला उठी. उसे समझ नहीं आया कि वह क्या करे. पहली बार उस ने गौरव को अपनी ओर से इस में सम्मिलित करने का सोचा.

उस ने गौरव से मिल कर उसे सारी बात बताई. गौरव की भी वही प्रतिक्रिया हुई, जिस की कविता को आशा थी. वह सीधा घर गया और अपने परिवार वालों को अपना निर्णय सुना डाला, ‘‘यदि आप इन सब ढकोसलों को और बढ़ावा देंगे या मानेंगे तो मैं कविता तो क्या, किसी भी अन्य लड़की से विवाह नहीं करूंगा और जीवन भर अविवाहित रहूंगा. मैं आप को दुखी नहीं करना चाहता, आप की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाना चाहता, नहीं तो मैं पूजा करने की बात पर ही आप को रोक देता. लेकिन अब तो हद ही हो गई है. आप लोगों को मैं ने अपना फैसला सुना दिया है. अब आगे आप की इच्छा.’’

ताईजी का रोरो कर बुरा हाल था. उन्हें तो यही चिंता खाए जा रही थी कि कविता के ‘मांगलिक’ होने से गौरव का अनिष्ट न हो, लेकिन गौरव उन की बात समझने की कोशिश ही नहीं कर रहा था. उस का कहना था, ‘‘यह झूठमूठ का विवाह कर लेने से कविता का क्या बिगड़ जाएगा?’’  उधर कविता को भी गौरव ने यही पट्टी पढ़ाई थी कि तुम पर कैसा भी दबाव डाला जाए, तुम टस से मस न होना, भले ही कितनी मिन्नतें करें, जबरदस्ती करें, किसी भी दशा में तुम अपना फैसला न बदलना. भला कहीं मनुष्यों के विवाह जानवरों से भी होते हैं. भले ही यह झूठमूठ का ही क्यों न हो.

कविता तो वैसे ही ताईजी के इस प्रस्ताव को सुन कर आपे से बाहर हो रही थी. उस पर गौरव ने उस की बात को सम्मान दे कर उस की हिम्मत को बढ़ाया था. साथ ही गौरव ने यह भी बता दिया था कि उस के मातापिता को कविता बहुत पसंद है और वे इन ढकोसलों में विश्वास नहीं करते. इसलिए ताईजी को समझाने में उस के मातापिता भी सहायता करेंगे. वैसे ताईजी को यह स्वीकार ही नहीं होगा कि गौरव जीवन भर अविवाहित रहे. वे तो न जाने कितने वर्षों से उस के विवाह के सपने देख रही थीं और उस की बहू के लिए उन्होंने अच्छे से अच्छे जेवर सहेज कर रखे हुए थे.

लेकिन पुरानी रूढि़यों में जकड़ी अशिक्षित ताईजी एक अनजान भय से ग्रस्त इन पाखंडों और लालची पंडितों की बातों में आ गई थीं. गौरव ने कविता को बता दिया था कि धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा और अगर फिर भी ताईजी ने स्वीकृति न दी तो दोनों के मातापिता की स्वीकृति तो है ही, वे चुपचाप शादी कर लेंगे.

कविता को गौरव की बातों ने बहुत बड़ा सहारा दिया था. पर क्या ताईजी ऐसे ही मान गई थीं? घर छोड़ जाने और आजीवन विवाह न करने की गौरव द्वारा दी गई धमकियों ने अपना रंग दिखाया और 4 महीने का समय नष्ट कर के अंत में कविता और गौरव का विवाह बड़ी धूमधाम से हो गया.

कविता एक भरपूर गृहस्थी के हर सुख से संपन्न थी. धनसंपत्ति, अच्छा पति, बढि़या स्कूलों में पढ़ते लाड़ले बच्चे और अपने सासससुर की वह दुलारी बहू थी. बस, उस के वैवाहिक जीवन का एक खलनायक था, ‘मंगल ग्रह’ जिस पर गौरव की सहायता एवं प्रोत्साहन से कविता ने विजय पाई थी. कभीकभी परिवार के सभी सदस्य मंगल ग्रह की पूजा और नकली विवाह की बातें याद करते हैं तो ताईजी सब से अधिक दिल खोल कर हंसतीं. काफी देर से अकेली बैठी कविता इन्हीं मधुर स्मृतियों में खोई हुई थी. फोन की घंटी ने उसे चौंका कर इन स्मृतियों से बाहर निकाला.

फोन पर बात करने के बाद उस ने अपना कार्यक्रम निश्चित किया और यही तय किया कि अपने सफल विवाह की 10वीं वर्षगांठ का सब से पहला निमंत्रणपत्र वह आज ही पंडितजी को देने स्वयं जाएगी, ऐसा निर्णय लेते ही उस के चेहरे पर एक शरारत भरी मुसकान उभर आई.

इश्क के चक्कर में : किस ने रची थी वह खतरनाक साजिश

मेरे मुवक्किल रियाज पर नादिर के कत्ल का इलजाम था. इस मामले को अदालत में पहुंचे करीब 3 महीने हो चुके थे, पर बाकायदा सुनवाई आज हो रही थी. अभियोजन पक्ष की ओर से 8 गवाह थे, जिन में पहला गवाह सालिक खान था. सच बोलने की कसम खाने के बाद उस ने अपना बयान रिकौर्ड कराया.

सालिक खान भी वहीं रहता था, जहां मेरा मुवक्किल रियाज और मृतक नादिर रहता था. रियाज और नादिर एक ही बिल्डिंग में रहते थे. वह तिमंजिला बिल्डिंग थी. सालिक खान उसी गली में रहता था. गली के नुक्कड़ पर उस की पानसिगरेट की दुकान थी.

भारी बदन के सालिक की उम्र 46-47 साल थी. अभियोजन पक्ष के वकील ने उस से मेरे मुवक्किल की ओर इशारा कर के पूछा, ‘‘सालिक खान, क्या आप इस आदमी को जानते हैं?’’

‘‘जी साहब, अच्छी तरह से जानता हूं.’’

‘‘यह कैसा आदमी है?’’

‘‘हुजूर, यह आवारा किस्म का बहुत झगड़ालू आदमी है. इस के बूढ़े पिता एक होटल में बैरा की नौकरी करते हैं. यह सारा दिन मोहल्ले में घूमता रहता है. हट्टाकट्टा है, पर कोई काम नहीं करता.’’

‘‘क्या यह गुस्सैल प्रवृत्ति का है?’’ वकील ने पूछा.

‘‘जी, बहुत ही गुस्सैल स्वभाव का है. मेरी दुकान के सामने ही पिछले हफ्ते इस की नादिर से जम कर मारपीट हुई थी. दोनों खूनखराबे पर उतारू थे. इस से यह तो नहीं होता कि कोई कामधाम कर के बूढ़े बाप की मदद करे, इधरउधर लड़ाईझगड़ा करता फिरता है.’’

‘‘क्या यह सच है कि उस लड़ाई में ज्यादा नुकसान इसी का हुआ था. इस के चेहरे पर चोट लगी थी. उस के बाद इस ने क्या कहा था?’’ वकील ने मेरे मुवक्किल की ओर इशारा कर के पूछा.

‘‘इस ने नादिर को धमकाते हुए कहा था कि यह उसे किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ेगा. इस का अंजाम उसे भुगतना ही पड़ेगा. इस का बदला वह जरूर लेगा.’’

इस के बाद अभियोजन के वकील ने कहा, ‘‘दैट्स आल हुजूर. इस धमकी के कुछ दिनों बाद ही नादिर की हत्या कर दी गई, इस से यही लगता है कि यह हत्या इसी आदमी ने की है.’’

उस के बाद मैं गवाह से पूछताछ करने के लिए आगे आया. मैं ने पूछा, ‘‘सालिक साहब, क्या आप शादीशुदा हैं?’’

‘‘जी हां, मैं शादीशुदा ही नहीं, मेरी 2 बेटियां और एक बेटा भी है.’’

‘‘क्या आप की रियाज से कोई व्यक्तितगत दुश्मनी है?’’

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है.’’

‘‘तब आप ने उसे कामचोर और आवारा क्यों कहा?’’

‘‘वह इसलिए कि यह कोई कामधाम करने के बजाय दिन भर आवारा घूमता रहता है.’’

‘‘लेकिन आप की बातों से तो यही लगता है कि आप रियाज से नफरत करते हैं. इस की वजह यह है कि रियाज आप की बेटी फौजिया को पसंद करता है. उस ने आप के घर फौजिया के लिए रिश्ता भी भेजा था. क्या मैं गलत कह रहा हूं?’’

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. हां, उस ने फौजिया के लिए रिश्ता जरूर भेजा था, पर मैं ने मना कर दिया था.’’ सालिक खान ने हकलाते हुए कहा.

‘‘आप झूठ बोल रहे हैं सालिक खान, आप ने इनकार नहीं किया था, बल्कि कहा था कि आप पहले बड़ी बेटी शाजिया की शादी करना चाहते हैं. अगर रियाज शाजिया से शादी के लिए राजी है तो यह रिश्ता मंजूर है. चूंकि रियाज फौजिया को पसंद करता था, इसलिए उस ने शादी से मना कर दिया था. यही नहीं, उस ने ऐसी बात कह दी थी कि आप को गुस्सा आ गया था. आप बताएंगे, उस ने क्या कहा था?’’

‘‘उस ने कहा था कि शाजिया सुंदर नहीं है, इसलिए वह उस से किसी भी कीमत पर शादी नहीं करेगा.’’

‘‘…और उसी दिन से आप रियाज से नफरत करने लगे थे. उसे धोखेबाज, आवारा और बेशर्म कहने लगे. इसी वजह से आज उस के खिलाफ गवाही दे रहे हैं.’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है. मैं ने जो देखा था, वही यहां बताया है.’’

‘‘क्या आप को यकीन है कि रियाज ने जो धमकी दी थी, उस पर अमल कर के नादिर का कत्ल कर दिया है?’’

‘‘मैं यह यकीन से नहीं कह सकता, क्योंकि मैं ने उसे कत्ल करते नहीं देखा.’’

‘‘मतलब यह कि सब कुछ सिर्फ अंदाजे से कह रहे हो?’’

मैं ने सालिक खान से जिरह खत्म कर दी. रियाज और मृतक नादिर गोरंगी की एक तिमंजिला बिल्डिंग में रहते थे, जिस की हर मंजिल पर 2 छोटेछोटे फ्लैट्स बने थे. नादिर अपने परिवार के साथ दूसरी मंजिल पर रहता था, जबकि रियाज तीसरी मंजिल पर रहता था.

रियाज मांबाप की एकलौती संतान था. उस की मां घरेलू औरत थी. पिता एक होटल में बैरा थे. उस ने इंटरमीडिएट तक पढ़ाई की थी. वह आगे पढ़ना चाहता था, पर हालात ऐसे नहीं थे कि वह कालेज की पढ़ाई करता. जाहिर है, उस के बाप अब्दुल की इतनी आमदनी नहीं थी. वह नौकरी ढूंढ रहा था, पर कोई ढंग की नौकरी नहीं मिल रही थी, इसलिए इधरउधर भटकता रहता था.

बैरा की नौकरी वह करना नहीं चाहता था. अब उस पर नादिर के कत्ल का आरोप था. मृतक नादिर बिलकुल पढ़ालिखा नहीं था. वह अपने बड़े भाई माजिद के साथ रहता था. मांबाप की मौत हो चुकी थी. माजिद कपड़े की एक बड़ी दुकान पर सेल्समैन था. वह शादीशुदा था. उस की बीवी आलिया हाउसवाइफ थी. उस की 5 साल की एक बेटी थी. माजिद ने अपने एक जानने वाले की दुकान पर नादिर को नौकरी दिलवा दी थी. नादिर काम अच्छा करता था. उस का मालिक उस पर भरोसा करता था. नादिर और रियाज के बीच कोई पुरानी दुश्मनी नहीं थी.

अगली पेशी के पहले मैं ने रियाज और नादिर के घर जा कर पूरी जानकारी हासिल  कर ली थी. रियाज का बाप नौकरी पर था. मां नगीना से बात की. वह बेटे के लिए बहुत दुखी थी. मैं ने उसे दिलासा देते हुए पूछा, ‘‘क्या आप को पूरा यकीन है कि आप के बेटे ने नादिर का कत्ल नहीं किया?’’

‘‘हां, मेरा बेटा कत्ल नहीं कर सकता. वह बेगुनाह है.’’

‘‘फिर आप खुदा पर भरोसा रखें. उस ने कत्ल नहीं किया है तो वह छूट जाएगा. अभी तो उस पर सिर्फ आरोप है.’’

नगीना से मुझे कुछ काम की बातें पता चलीं, जो आगे जिरह में पता चलेंगी. मैं रियाज के घर से निकल रहा था तो सामने के फ्लैट से कोई मुझे ताक रहा था. हर फ्लैट में 2 कमरे और एक हौल था. इमारत का एक ही मुख्य दरवाजा था. हर मंजिल पर आमनेसामने 2 फ्लैट्स थे. एक तरफ जीना था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, 17 अप्रैल की रात 2 बजे के करीब नादिर की हत्या हुई थी. उसे इसी बिल्डिंग की छत पर मारा गया था. उस की लाश पानी की टंकी के करीब एक ब्लौक पर पड़ी थी. उस की हत्या बोल्ट खोलने वाले भारी रेंच से की गई थी.

अगली पेशी पर अभियोजन पक्ष की ओर से कादिर खान को पेश किया गया. कादिर खान भी उसी बिल्डिंग में रहता था. बिल्डिंग के 5 फ्लैट्स में किराएदार रहते थे और एक फ्लैट में खुद मकान मालिक रहता था. अभियोजन के वकील ने कादिर खान से सवालजवाब शुरू किए.

लाश सब से पहले उसी ने देखी थी. उस की गवाही में कोई खास बात नहीं थी, सिवाय इस के कि उस ने भी रियाज को झगड़ालू और गुस्सैल बताया था. मैं ने पूछा, ‘‘आप ने मुलाजिम रियाज को गुस्सैल और लड़ाकू कहा है, इस की वजह क्या है?’’

‘‘वह है ही झगड़ालू, इसलिए कहा है.’’

‘‘आप किस फ्लैट में कब से रह रहे हैं?’’

‘‘मैं 4 नंबर फ्लैट में 4 सालों से रह रहा हूं.’’

‘‘इस का मतलब दूसरी मंजिल पर आप अकेले ही रहते हैं?’’

‘‘नहीं, मेरे साथ बीवीबच्चे भी रहते हैं.’’

‘‘जब आप बिल्डिंग में रहने आए थे तो रियाज आप से पहले से वहां रह रहा था?’’

‘‘जी हां, वह वहां पहले से रह रहा था.’’

‘‘कादिर खान, जिस आदमी से आप का 4 सालों में एक बार भी झगड़ा नहीं हुआ, इस के बावजूद आप उसे झगड़ालू कह रहे हैं, ऐसा क्यों?’’

‘‘मुझ से झगड़ा नहीं हुआ तो क्या हुआ, वह झगड़ालू है. मैं ने खुद उसे नादिर से लड़ते देखा है. दोनों में जोरजोर से झगड़ा हो रहा था. बाद में पता चला कि उस ने नादिर का कत्ल कर दिया.’’

‘‘क्या आप बताएंगे कि दोनों किस बात पर लड़ रहे थे?’’

‘‘नादिर का कहना था कि रियाज उस के घर के सामने से गुजरते हुए गंदेगंदे गाने गाता था. जबकि रियाज इस बात को मना कर रहा था. इसी बात को ले कर दोनों में झगड़ा हुआ था. लोगों ने बीचबचाव कराया था.’’

‘‘और अगले दिन बिल्डिंग की छत पर नादिर की लाश मिली थी. उस की लाश आप ने सब से पहले देखी थी.’’

एक पल सोच कर उस ने कहा, ‘‘हां, करीब 9 बजे सुबह मैं ने ही देखी थी.’’

‘‘क्या आप रोज सवेरे छत पर जाते हैं?’’

‘‘नहीं, मैं रोज नहीं जाता. उस दिन टीवी साफ नहीं आ रहा था. मुझे लगा कि केबल कट गया है, यही देखने गया था.’’

‘‘आप ने छत पर क्या देखा?’’

‘‘जैसे ही मैं ने दरवाजा खोला, मेरी नजर सीधे लाश पर पड़ी. मैं घबरा कर नीचे आ गया.’’

‘‘कादिर खान, दरवाजा और लाश के बीच कितना अंतर रहा था?’’

‘‘यही कोई 20-25 फुट का. ब्लौक पर नादिर की लाश पड़ी थी. उस की खोपड़ी फटी हुई थी.’’

‘‘नादिर की लाश के बारे में सब से पहले आप ने किसे बताया?’’

‘‘दाऊद साहब को बताया था. वह उस बिल्डिंग के मालिक हैं.’’

‘‘बिल्डिंग के मालिक, जो 5 नंबर फ्लैट में रहते हैं?’’

‘‘जी, मैं ने उन से छत की चाबी ली थी, छत की चाबी उन के पास ही रहती है.’’

‘‘उस दिन छत का दरवाजा तुम्हीं ने खोला था?’’

‘‘जी साहब, ताला मैं ने ही खोला था?’’

‘‘ताला खोला तो ब्लौक पर लाश पड़ी दिखाई दी. जरा छत के बारे में विस्तार से बताइए?’’

‘‘पानी की टंकी छत के बीच में है. टंकी के करीब छत पर 15-20 ब्लौक लगे हैं, जिन पर बैठ कर कुछ लोग गपशप कर सकते हैं.’’

‘‘अगर ताला तुम ने खोला तो मृतक आधी रात को छत पर कैसे पहुंचा?’’

‘‘जी, यह मैं नहीं बता सकता. दाऊद साहब को जब मैं ने लाश के बारे में बताया तो वह भी हैरान रह गए.’’

‘‘बात नादिर के छत पर पहुंचने भर की नहीं है, बल्कि वहां उस का बेदर्दी से कत्ल भी कर दिया गया. नादिर के अलावा भी कोई वहां पहुंचा होगा. जबकि चाबी दाऊद साहब के पास थी.’’

‘‘दाऊद साहब भी सुन कर हैरान हो गए थे. वह भी मेरे साथ छत पर गए. इस के बाद उन्होंने ही पुलिस को फोन किया.’’

इसी के बाद जिरह और अदालत का वक्त खत्म हो गया.

मुझे तारीख मिल गई. अगली पेशी पर माजिद की गवाही शुरू हुई. वह सीधासादा 40-42 साल का आदमी था. कपड़े की दुकान पर सेल्समैन था. फ्लैट नंबर 2 में रहता था. उस ने कहा कि नादिर और रियाज के बीच काफी तनाव था. दोनों में झगड़ा भी हुआ था. यह कत्ल उसी का नतीजा है.

अभियोजन के वकील ने सवाल कर लिए तो मैं ने पूछा, ‘‘आप का भाई कब से कब तक अपनी नौकरी पर रहता था?’’

‘‘सुबह 11 बजे से रात 8 बजे तक. वह 9 बजे तक घर आ जाता था.’’

‘‘कत्ल वाले दिन वह कितने बजे घर आया था?’’

‘‘उस दिन मैं घर आया तो वह घर पर ही मौजूद था.’’

‘‘माजिद साहब, पिछली पेशी पर एक गवाह ने कहा था कि उस दिन शाम को उस ने नादिर और रियाज को झगड़ा करते देखा था. क्या उस दिन वह नौकरी पर नहीं गया था?’’

‘‘नहीं, उस दिन वह नौकरी पर गया था, लेकिन तबीयत ठीक न होने की वजह से जल्दी घर आ गया था.’’

‘‘घर आते ही उस ने लड़ाईझगड़ा शुरू कर दिया था?’’

‘‘नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं है. घर आ कर वह आराम कर रहा था, तभी रियाज खिड़की के पास खड़े हो कर बेहूदा गाने गाने लगा था. मना करने पर भी वह चुप नहीं हुआ. पहले भी इस बात को ले कर नादिर और उस में मारपीट हो चुकी थी. नादिर नाराज हो कर बाहर निकला और दोनों में झगड़ा और गालीगलौज होने लगी.’’

‘‘झगड़ा सिर्फ इतनी बात पर हुआ था या कोई और वजह थी?’’ मैं ने पूछा.

‘‘यह आप रियाज से ही पूछ लीजिए. मेरा भाई सीधासादा था, बेमौत मारा गया.’’ जवाब में माजिद ने कहा.

‘‘आप को लगता है कि रियाज ने धमकी के अनुसार बदला लेने के लिए तुम्हारे भाई का कत्ल कर दिया है.’’

‘‘जी हां, मुझे लगता नहीं, पूरा यकीन है.’’

‘‘जिस दिन कत्ल हुआ था, सुबह आप सो कर उठे तो आप का भाई घर पर नहीं था?’’

‘‘जब मैं सो कर उठा तो मेरी बीवी ने बताया कि नादिर घर पर नहीं है.’’

‘‘यह जान कर आप ने क्या किया?’’

‘‘हाथमुंह धो कर मैं उस की तलाश में निकला तो पता चला कि छत पर नादिर की लाश पड़ी है.’’

‘‘पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, नादिर का कत्ल रात 1 से 2 बजे के बीच हुआ था. क्या आप बता सकते हैं कि नादिर एक बजे रात को छत पर क्या करने गया था? आप ने जो बताया है, उस के अनुसार नादिर बीमार था. छत पर ताला भी लगा था. इस हालत में छत पर कैसे और क्यों गया?’’

‘‘मैं क्या बताऊं? मुझे खुद नहीं पता. अगर वह जिंदा होता तो उसी से पूछता.’’

‘‘वह जिंदा नहीं है, इसलिए आप को बताना पड़ेगा, वह ऊपर कैसे गया? क्या उस के पास डुप्लीकेट चाबी थी? उस ने मकान मालिक से चाबी नहीं ली तो क्या पीछे से छत पर पहुंचा?’’

‘‘नादिर के पास डुप्लीकेट चाबी नहीं थी. वह छत पर क्यों और कैसे गया, मुझे नहीं पता.’’

‘‘आप कह रहे हैं कि आप का भाई सीधासादा काम से काम रखने वाला था. इस के बावजूद उस ने गुस्से में 2-3 बार रियाज से मारपीट की. ताज्जुब की बात तो यह है कि रियाज की लड़ाई सिर्फ नादिर से ही होती थी. इस की एक खास वजह है, जो आप बता नहीं रहे हैं.’’

‘‘कौन सी वजह? मैं कुछ नहीं छिपा रहा हूं.’’

‘‘अपने भाई की रंगीनमिजाजी. नादिर सालिक खान की छोटी बेटी फौजिया को चाहता था. वह फौजिया को रियाज के खिलाफ भड़काता रहता था. उस ने उस के लिए शादी का रिश्ता भी भेजा था, जबकि फौजिया नादिर को इस बात के लिए डांट चुकी थी. जब उस पर उस की डांट का असर नहीं हुआ तो फौजिया ने सारी बात रियाज को बता दी थी. उसी के बाद रियाज और नादिर में लड़ाईझगड़ा होने लगा था.’’

‘‘मुझे ऐसी किसी बात की जानकारी नहीं है. मैं ने रिश्ता नहीं भिजवाया था.’’

‘‘खैर, यह बताइए कि 2 साल पहले आप के फ्लैट के समने एक बेवा औरत सकीरा बेगम रहती थीं, आप को याद हैं?’’

माजिद हड़बड़ा कर बोला, ‘‘जी, याद है.’’

‘‘उस की एक जवान बेटी थी रजिया, याद आया?’’

‘‘जी, उस की जवान बेटी रजिया थी.’’

‘‘अब यह बताइए कि सकीरा बेगम बिल्डिंग छोड़ कर क्यों चली गई?’’

‘‘उस की मरजी, यहां मन नहीं लगा होगा इसलिए छोड़ कर चली गई.’’

‘‘माजिद साहब, आप असली बात छिपा रहे हैं. क्योंकि वह आप के लिए शर्मिंदगी की बात है. आप बुरा न मानें तो मैं बता दूं? आप का भाई उस बेवा औरत की बेटी रजिया पर डोरे डाल रहा था. उस की इज्जत लूटने के चक्कर में था, तभी रंगेहाथों पकड़ा गया. यह रजिया की खुशकिस्मती थी कि झूठे प्यार के नाम पर वह अपना सब कुछ लुटाने से बच गई. इस बारे में बताने वालों की कमी नहीं है, इसलिए झूठ बोलने से कोई फायदा नहीं है. सकीरा बेगम नादिर की वजह से बिल्डिंग छोड़ कर चली गई थीं.’’

‘‘जी, इस में नादिर की गलती थी, इसलिए मैं ने उसे खूब डांटा था. इस के बाद वह सुधर गया था.’’

‘‘अगर वह सुधर गया था तो आधी रात को छत पर क्या कर रहा था? क्या आप इस बात से इनकार करेंगे कि नादिर सकीरा बेगम की बेटी रजिया से छत पर छिपछिप कर मिलता था? इस के लिए उस ने छत के ताले की डुप्लीकेट चाबी बनवा ली थी. जब इस बात की खबर दाऊद साहब को हुई तो उन्होंने ताला बदलवा दिया था.’’

उस ने लड़खड़ाते हुए कहा, ‘‘यह भी सही है.’’

अगली पेशी पर मैं ने इनक्वायरी अफसर से पूछताछ की. उस का नाम साजिद था. मैं ने कहा, ‘‘नादिर की हत्या के बारे में आप को सब से पहले किस ने बताया?’’

‘‘रिकौर्ड के अनुसार, घटना की जानकारी 18 अप्रैल की सुबह 10 बजे दाऊद साहब ने फोन द्वारा दी थी. मैं साढ़े 10 बजे वहां पहुंच गया था.’’

‘‘जब आप छत पर पहुंचे, वहां कौनकौन था?’’

‘‘फोन करने के बाद दाऊद साहब ने सीढि़यों पर ताला लगा दिया था. मैं वहां पहुंचा तो मृतक की लाश टंकी के पीछे ब्लौक पर पड़ी थी. अंजाने में पीछे से उस की खोपड़ी पर  लोहे के वजनी रेंच से जोरदार वार किया गया था. उसी से उस की मौत हो गई थी.’’

‘‘हथियार आप को तुरंत मिल गया था?’’

‘‘जी नहीं, थोड़ी तलाश के बाद छत के कोने में पड़े कबाड़ में मिला था.’’

‘‘क्या आप ने उस पर से फिंगरप्रिंट्स उठवाए थे?’’

‘‘उस पर फिंगरप्रिंट्स नहीं मिले थे. शायद साफ कर दिए गए थे.’’

‘‘घटना वाली रात मृतक छत पर था, वहीं उस का कत्ल किया गया था. सवाल यह है कि जब छत पर जाने वाली सीढि़यों के दरवाजे पर ताला लगा था तो मृतक छत पर कैसे पहुंचा? इस बारे में आप कुछ बता सकते हैं?’’

जज साहब काफी दिलचस्पी से हमारी जिरह सुन रहे थे. उन्होंने पूछा, ‘‘मिर्जा साहब, इस मामले में आप बारबार किसी लड़की का जिक्र क्यों कर रहे हैं? इस से तो यही लगता है कि आप उस लड़की के बारे में जानते हैं?’’

‘‘जी सर, कुछ हद तक जानता हूं.’’

‘‘तो आप मृतक की प्रेमिका का नाम बताएंगे?’’ जज साहब ने पूछा.

‘‘जरूर बताऊंगा सर, पर समय आने दीजिए.’’

पिछली पेशी पर मैं ने प्यार और प्रेमिका का जिक्र कर के मुकदमे में सनसनी पैदा कर दी थी. यह कोई मनगढ़ंत किस्सा नहीं था. इस मामले में मैं ने काफी खोज की थी, जिस से मृतक नादिर के ताजे प्यार के बारे में पता कर लिया था. अब उसी के आधार पर रियाज को बेगुनाह साबित करना चाहता था.

काररवाई शुरू हुई. अभियोजन की तरफ से बिल्डिंग के मालिक दाऊद साहब को बुलाया गया. वकील ने 10 मिनट तक ढीलीढाली जिरह की. उस के बाद मेरा नंबर आया. मैं ने पूछा, ‘‘छत की चाबी आप के पास रहती है. घटना वाले दिन किसी ने आप से चाबी मांगी थी?’’

‘‘जी नहीं, चाबी किसी ने नहीं मांगी थी.’’

‘‘इस का मतलब यह हुआ कि 17 अप्रैल की रात को कातिल रियाज और मृतक नादिर में किसी एक के पास छत के दरवाजे की चाबी थी या दोनों के पास थी. उसी से दोनों छत पर पहुंचे थे. दाऊद साहब, आप के खयाल से नादिर की हत्या किस ने की होगी?’’

दाऊद ने रियाज की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘इसी ने मारा है और कौन मारेगा? इन्हीं दोनों में झगड़ा चल रहा था.’’

‘‘आप ने सरकारी वकील को बताया है कि रियाज आवारा, बदमाश और काफी झगड़ालू है. आप भी उसी बिल्डिंग में रहते हैं. आप का रियाज से कितनी बार लड़ाईझगड़ा हुआ है?’’

‘‘मुझ से तो उस का कभी कोई झगड़ा नहीं हुआ. मैं ने उसे झगड़ालू नादिर से बारबार झगड़ा करने की वजह से कहा था.’’

‘‘इस का मतलब आप के लिए वह अच्छा था. आप से कभी कोई लड़ाईझगड़ा नहीं हुआ था.’’

‘‘जी, आप ऐसा ही समझिए.’’ दाऊद ने गोलमोल जवाब दिया.

‘‘सभी को पता है कि 2 साल पहले रजिया से मिलने के लिए नादिर ने छत के दरवाजे में लगे ताले की डुप्लीकेट चाबी बनवाई थी. जब सब को इस बात की जानकारी हुई तो बड़ी बदनामी हुई. उस के बाद आप ने छत के दरवाजे का ताला तक बदल दिया था. हो सकता है, इस बार भी उस ने डुप्लीकेट चाबी बनवा ली हो और छत पर किसी से मिलने जाता रहा हो? इस बार लड़की कौन थी, बता सकते हैं आप?’’

‘‘इस बारे में मुझे कुछ नहीं पता. हां, हो सकता है उस ने डुप्लीकेट चाबी बनवा ली हो. लड़की के बारे में मैं कैसे बता सकता हूं. हो सकता है, रियाज को पता हो.’’

‘‘आप रियाज का नाम क्यों ले रहे हैं?’’

‘‘इसलिए कि वह भी फौजिया से प्यार करता था या उसे इस प्यार की जानकारी थी.’’

मैं ने भेद उगलवाने की गरज से कहा, ‘‘दाऊद साहब, यह तो सब को पता है कि रियाज फौजिया से शादी करना चाहता था और इस के लिए उस ने रिश्ता भी भेजा था. जबकि नादिर उसे रियाज के खिलाफ भड़काता था. कहीं नादिर फौजिया के साथ ही छत पर तो नहीं था? इस का उल्टा भी हो सकता है?’’

दाऊद जिस तरह फौजिया को नादिर से जोड़ रहा था, यह उस की गंदी सोच का नतीजा था या फिर उस के दिमाग में कोई और बात थी. उस ने पूछा, ‘‘उल्टा कैसे हो सकता है?’’

‘‘यह भी मुमकिन है कि घटना वाली रात नादिर फौजिया से मिलने बिल्डिंग की छत पर गया हो और…’’

मेरी अधूरी बात पर उस ने चौंक कर मेरी ओर देखा. इस के बाद खा जाने वाली नजरों से मेरी ओर घूरते हुए बोला, ‘‘और क्या वकील साहब?’’

‘‘…और यह कि फौजिया के अलावा कोई दूसरी लड़की भी तो हो सकती है? किसी ने फौजिया को आतेजाते देखा तो नहीं, इसलिए वहां दूसरी लड़की भी तो हो सकती थी. इस पर आप को कुछ ऐतराज है क्या?’’

दाऊद ने हड़बड़ा कर कहा, ‘‘भला मुझे क्यों ऐतराज होगा?’’

‘‘अगर मैं कहूं कि वह लड़की उसी बिल्डंग की रहने वाली थी तो..?’’

‘‘…तो क्या?’’ वह हड़बड़ा कर बोला.

‘‘बिल्डिंग का मालिक होने के नाते आप को उस लड़की के बारे में पता होना चाहिए. अच्छा, मैं आप को थोड़ा संकेत देता हूं. उस का नाम ‘म’ से शुरू होता है और आप का उस से गहरा ताल्लुक है, जिस के इंतजार में नादिर छत पर बैठा था.’’

मैं असलियत की तह तक पहुंच चुका था. बस एक कदम आगे बढ़ना था. मैं ने कहा, ‘‘दाऊद साहब, नाम मैं बताऊं या आप खुद बताएंगे? आप को एक बार फिर बता दूं कि उस का नाम ‘म’ से शुरू होता है, जिस का इश्क नादिर से चल रहा था और यह बात आप को मालूम हो चुकी थी. अब बताइए नाम?’’

दाऊद गुस्से से उबलते हुए बोला, ‘‘अगर तुम ने मेरी बेटी मनीजा का नाम लिया तो ठीक नहीं होगा.’’

मैं ने जज साहब की ओर देखते हुए कहा, ‘‘सर, मुझे अब इन से कुछ नहीं पूछना. मेरे हिसाब से नादिर का कत्ल इसी ने किया है. रियाज बेगुनाह है. इस की नादिर से 2-3 बार लड़ाई हुई थी, इस ने धमकी भी दी थी, लेकिन इस ने कत्ल नहीं किया. धमकी की वजह से उस पर कत्ल का इल्जाम लगा दिया गया. अब हकीकत सामने है सर.’’

अगली पेशी पर अदालत ने मेरे मुवक्किल को बाइज्जत बरी कर दिया, क्योंकि वह बेगुनाह था. दाऊद के व्यवहार से उसे नादिर का कातिल मान लिया गया था. जब अदालत के हुक्म पर पुलिस ने उस से पूछताछ की तो थोड़ी सख्ती के बाद उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था.

नादिर एक दिलफेंक आशिकमिजाज लड़का था. जब फौजिया ने उसे घास नहीं डाली तो उस ने इश्क का चक्कर दाऊद की बेटी मनीजा से चलाया. वह उस के जाल में फंस गई. दाऊद को अपनी बेटी से नादिर के प्रेमसंबंधों का पता चल गया था. नादिर के इश्कबाजी के पुराने रिकौर्ड से वह अच्छी तरह वाकिफ था.

दाऊद ने बेटी के प्रेमसंबंधों को उछालने या उसे समझाने के बजाय नादिर की जिंदगी का पत्ता साफ करने का फैसला कर लिया. वह मौके की ताक में रहने लगा. रियाज और नादिर के बीच लड़ाईझगड़े और दुश्मनी का माहौल बना तो दाऊद ने नादिर के कत्ल की योजना बना डाली.

दाऊद को पता था कि नादिर ने मनीजा की मदद से छत की डुप्लीकेट चाबी बनवा ली है. घटना वाली रात को वह दबे पांव मनीजा के पहले छत पर पहुंच गया. नादिर छत पर मनीजा का इंतजार कर रहा था, तभी पीछे से अचानक पहुंच कर दाऊद ने उस की खोपड़ी पर वजनी रेंच से वार कर दिया.

एक ही वार में नादिर की खोपड़ी फट गई और वह मर गया. उस की जेब से चाबी निकाल कर दाऊद दरवाजे में ताला लगा कर नीचे आ गया.

मैं ने दाऊद से कहा कि वह बिल्डिंग का मालिक था. नादिर को वहां से निकाल सकता था. मारने की क्या जरूरत थी? जवाब में उस ने कहा, ‘‘मैं उस बदमाश को छोड़ना नहीं चाहता था. घर बदलने से उस की बुरी नीयत नहीं बदलती. वह मेरी मासूम बच्ची को फिर बहका लेता या फिर किसी सीधीसादी लड़की की जिंदगी बरबाद करता.’’

इस तरह नादिर को मासूम लड़कियों को अपने जाल में फंसाने की कड़ी सजा मिल गई थी.

बहारें फिर भी आएंगी : प्रेम ने कहा दम तोड़ा

आ मिर और मल्लिका ने कालेज के स्टेज पर शेक्सपियर का प्रसिद्ध नाटक रोमियोजूलियट क्या खेला कि ये पात्र उन के वास्तविक जीवन में भी प्रतिबिंबित हो उठे. महीनेभर की रिहर्सल उन्हें इतना करीब ले आई कि वे एकदूजे की धड़कनों में ही समा गए. स्टेज पर अपने पात्रों में वे इतने जीवंत हो उठे थे कि सभी ने इन दोनों का नाम भी रोमियोजूलियट ही रख दिया था.

कालेज कैंपस हो या बाहर, दीनदुनिया से बेखबर, हाथों को थाम चहलकदमी करते प्यार के हजारों रंगों को बिखराते वे दिख जाते. प्रीत की खुशबू से मदहोश हो कर वे  झूम उठे थे. जाति अलग, धर्म अलग फिर भी कोई खौफ नहीं आंखों में. विरहमिलन की अनगिनत गाथाओं को समेटे इस दीवाने प्रेम को जाति और धर्म से क्या लेनादेना था.

प्रेम ने तो कभी दरिया में, कभी पहाड़ों पर, कभी दीवारों में, कभी मरुस्थलों में दम तोड़ दिया पर प्रियतम का साथ नहीं छोड़ा. एक ही मन, एक ही चुनर, प्रीत के ऐसे पक्के रंग में रंगी विरहबेला में न छीजा न सूखा. दिनोंदिन प्रेमी प्रेमरस में भीगते और भिगोते सूली पर चढ़ गए. पर जातिधर्म की न समाप्त होने वाली सरहदों ने प्रेमीयुगल को शायद ही बख्शा हो. मल्लिका और आमिर के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ.

पहले तो सभी इसे सहजता से लेते रहे लेकिन जैसे ही इश्क के गहराते रंग का अनुभव हुआ दोनों ओर के लोगों की तलवारें तन गईं. फिर प्यार भी कहीं छिपता है? यह तो पलभर में हरसिंगार के फूलों की तरह अपनी आभा बिखेरता है. बेहद सुंदर और प्रतिभा की मालकिन मल्लिका को पाने के लिए प्रोफैसरों से ले कर सजातीयविजातीय लड़कों में एक होड़ सी लगी थी. बहुत दीवाने थे उस के लेकिन सब को अनदेखा कर उन की नादानियों पर हंसती रही.

जिसे भी मल्लिका पलभर को देख लेती वह निहाल हो उठता था. जिधर से गुजर जाती, लोग उस की खूबसूरती के कायल हो जाते थे. कट्टर मानसिकता वाले राजपूत परिवार से ताल्लुक रखने वाली मल्लिका के लिए अपनी बिरादरी में भी एक से एक सुयोग्य लड़के शादी के लिए आंखें बिछाए कतार में खड़े थे. लेकिन मल्लिका के सपनों का राजकुमार आमिर बन चुका था.

मल्लिका का किसी गैरजाति के लड़के को चाहना जमाना इसे कितने दिनों तक सहन करता. आमिर पर न जाने कितने जानलेवा हमले हुए, मल्लिका को तो एसिड से जला देने की धमकियों से भरी न जाने कितनी गुमनाम चिट्ठियां मिलती रहीं, जो उन के प्रेम को और मजबूत ही करती रहीं. आमिर का एक प्यारभरा स्पर्श, एक स्नेहिल मुसकान उस की राहों में बिछे हर कांटे के डंक को मिटाती रही. आमिर के बारे में पता चलते ही मल्लिका के मातापिता ने अपनी लाड़ली को हर तरह से सम झाया, अपनी जान देने की धमकी तक दी. पर प्यार की इस मेहंदी का रंग लाल ही होता गया. जैसेजैसे समाज के शिकंजे कसते गए वह आमिर के प्यार में और डूबती गई.

एक हिंदू लड़की अपनी जातिबिरादरी के एक से एक होनहार और खूबसूरत नौजवानों को नजरअंदाज कर के मुसलिम से प्यार करे, हिंदू समाज को यह सहन कैसे होता. राजनीति का अखाड़ा बने कालेज परिसर में ही आमिर पर ऐसा जानलेवा हमला हुआ कि उस की जान बालबाल बची. मल्लिका पर भी तेजाबी हमले हुए. गरदन और हाथ ही  झुलसे. चेहरे पर एकाध छींटे पड़े जरूर, पर वे उलटे उस की सुंदरता में चारचांद लगा गए.

पुलिस ने कुछ विरोधी हिंदू आतंकियों को पकड़ा पर जैसा इस तरह के मामलों में होता है, सुबूतों के अभाव में वे छूट गए. मुसलिम समाज क्यों पीछे रहता, वह भी दलबल के साथ आमिर के बचाव में उतर आया. हिंदूमुसलिम दंगा भड़कने ही वाला था कि मल्लिका और आमिर ने कोर्टमैरिज कर के दंगाइयों के मनसूबों पर पानी फेर दिया. मल्लिका के मातापिता ने जीतेजी उसे अपने लिए मरा करार दे दिया, तो आमिर के घरवालों ने उसे अपनाते हुए धूमधाम से अपने घर ले जा कर उस का भरपूर मानसम्मान किया जिसे उन दोनों ने कोई खास तरजीह नहीं दी. धर्म के सौदागरों के शह और मात के खेलों से वे अनजान नहीं थे.

अभी आमिर के घर में मल्लिका के कुछ ही घंटे बीते थे कि बाहर गेट पर पटाखे फूट कर आकाश को छू रहे थे. चेहरे को छिपाए

8-10 आदमियों का समूह चिल्ला रहा था. राजपूत की बेटी इन विधर्मियों के घर में. अकबर का इतिहास दोहरा रहे हो तुम लोग. राजपूतों का वह समाज नपुंसक था जिस ने पैरों पर गिर कर अपनी बहनबेटियों को म्लेच्छों के हवाले कर दिया था. उसे किसी भी हालत में दोहराने नहीं देंगे हम. सुनो विधर्मियो, हमें नीचा दिखाने के लिए बड़ी शान से मुसलिम बना कर जिसे विदा करा लाए हो तुम सभी, उस म्लेच्छ लड़की को घर से निकाल बाहर करो. हम यहीं पर उस के टुकड़ेटुकड़े कर देंगे.

आज गौमांस खाएगी, कल रोजा रख कर कुरानपाठ करेगी. बुरका ओढ़ कर तुम्हारी बिरादरी में घूमेगी, तुम्हारे गंदे खून से बच्चे पैदा कर के राजपूतों की नाक कटवाएगी. निकालो इसे, नहीं तो इस का अंजाम बहुत भयानक होगा. आज पटाखों से केवल तुम्हारा गेट जला है. कल बम फोड़ कर तुम सब को भून डालेंगे.

उन की गगनभेदी आवाजों से घर के अंदर सभी दहशत से कांप रहे थे. आमिर की बांहों में मल्लिका अर्धमूर्च्छित पड़ी थी. हिंदुओं की कारगुजारी की जानकारी पाते उस के विरोध में मुसलिम समाज भी इकट्ठा होने लगा था. वह तो अच्छा हुआ कि आननफानन में पुलिस पहुंच गई, और दंगों के शोले भड़कने से रह गए.

फिर महीनों तक आमिर को पुलिस सुरक्षा लेनी पड़ी थी. उन का बाहर निकलना मुश्किल था. घात लगाए बैठे राजपूतों का खून खौल रहा था. कुछ अलग हट कर करने की चाह से ये आंखें मूंदे सभीकुछ सहन कर रहे थे. रिजल्ट निकलते ही इन्हें आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका चले जाना था. सभी तैयारियां हो चुकी थीं. बची हुई औपचारिकताओं को ये छिपछिपा कर पूरी कर रहे थे. पर मौत का खतरा टला नहीं था. अपने हनीमून को ये दोनों दहशतों के बीच ही मना रहे थे.

इन दोनों का रिजल्ट आ गया. तैयारियां तो थीं ही. जाने के दिन छिपतेछिपते किसी प्रकार से वे इंटरनैशनल हवाईअड्डे तक पहुंचे. रिश्तेदार तो दूर, इन्हें विदा करने कोई संगीसाथी भी नहीं आ सका. उमड़ आए आंसुओं के समंदर को दोनों पलकों से पी रहे थे. बुरके में मल्लिका का दम घुट रहा था तो खुले में आमिर के पसीने छूट रहे थे.

जब तक प्लेन उड़ा नहीं, वे डर के साए में ही रहे. किसी तरह की जांचपड़ताल से वे घबरा उठते थे. 17 घंटे के अंतराल के बाद ही एकदूसरे की बांहें थाम पहुंच गए अमेरिका के न्यूजर्सी में, जहां की गलियों में उन्नत सिर उठाए उन के सपनों की मंजिल, प्रिंसटन कालेज बांहें फैलाए उन का स्वागत कर रहा था. इस की तैयारी वे महीनों से कर रहे थे. बहुत हाईस्कोर के साथ उन्होंने टोफेल आदि को क्लीयर कर रखा था. प्रिंसटन यूनिवर्सिटी ने दोनों का लोन सैंक्शन करते हुए पासपोर्ट, वीजा आदि के मिलने में बड़ा ही सहयोग दिया. प्यार के विरोध में उठे स्वरों एवं छलनी दिल के सिवा वे भारत से कुछ भी नहीं लाए थे. सामने चुनौतियों से भरे रास्ते थे, पर उन के पास हौसलों के पंख थे. ख्वाबों की दुनिया उन्हें खुद बनानी थी.

यहां आ कर भी महीनों तक मल्लिका दहशत में जीती रही. किसी भी हिंदू की नजर उसे सहमा कर रख देती थी. कालेज परिसर में रहने वाले विद्यार्थियों के आश्वासन भी उसे सामान्य नहीं बना सके थे. मल्लिका ने कभी पलट कर भी अपनों की खबर नहीं ली. आमिर के मांबाप और छोटी बहन से कभी बात कर लिया करती थी पर उन्हें भी कभी यहां आने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया.

प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में इंटरनैशनल सिक्योरिटी, जो एक नया विषय था, उस में पीएचडी करने का फैसला मल्लिका और आमिर ने लिया. यह भी अच्छी बात रही कि यूनिवर्सिटी की ओर से ही उन दोनों को रहने के लिए जगह मिली, जिस ने उन के रहने की बड़ी समस्या को हल कर दिया. जैसेजैसे दिन गुजरते गए, उन की राहें आसान होती गईं.

अभी भी उन के रिश्ते पतिपत्नी से ज्यादा प्रेमीप्रेमिका जैसे ही थे. हाथों में हाथ डाले जिधर चाहा निकल गए. न किसी के देख लेने का डर था और न कोई दंगा भड़कने का. अकसर वे दोनों मखमली हरी घास पर लेट कर गरमी का आनंद लेते हुए पढ़ाई किया करते थे. जब? भी थक जाते, आइसक्रीम खा कर तरोताजा हो उठते.

वीकैंड में अकसर चहलकदमी करते हुए प्राकृतिक सौंदर्य को निहारते दुकानों में जा कर शौपिंग करते. रैस्टोरैंट में हर तरह के कौंटिनैंटल फूड खाते. आमिर को कौफी बहुत पसंद थी तो मल्लिका को टोमैटो सूप और ग्रिल्ड सैंडविच.

इतने लंबे समय में दोनों कभी मंदिरमसजिद नहीं गए. प्यार ही उन का मजहब था. विवरस्पून स्ट्रीट की विशाल प्रिंसटन पब्लिक लाइब्रेरी में जा कर दोनों पढ़ाई करते. समय ने इन के परिश्रम और लगन का भरपूर रिवौर्ड दिया.

युद्ध के कारण, नेचर डेटरैंस, एलाएंस, फौर्मेशन, सिविल मिलिटरी रिलेशन, आर्म्स कंपीटिशन के साथ आर्म्स की रोक आदि पर इन की हर छानबीन को खूब वाहवाही मिली. इन का परफौर्मैंस इतना अच्छा रहा कि दोनों की नियुक्ति प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में ही हो गई. सपनों की मंजिल पर पहुंच कर दोनों अभिभूत थे.

प्रिंसटन के लिंडेन लेन में इन्होंने रहने के लिए एक टाउन हाउस ले लिया था, जिस के गैराज में चमचमाती हुई नई गाड़ी खड़ी थी.

युद्ध के कारणों और निवारणों पर रिसर्च करते हुए उन्होंने करीबकरीब दुनिया के सारे शक्तिशाली देशों की परिक्रमा कर डाली. यह अपनेआप में बहुत खास अनुभव रहा. पढ़तेपढ़ाते विभिन्न देशों की संस्कृति को मानसम्मान देते हुए उन्होंने मेल्ंिटग पौट औफ कल्चर को अपना लिया. दंगा, हिंसा और खूनखराबे के डर से अपने देश से क्या भागे कि सारी दुनिया को ही गले लगा लिया. यही कारण है कि अमेरिका में रह रहे सारे विश्ववासियों को इन्होंने प्यार से एक गुलदस्ते में ही संजो लिया. सभी वर्गों में इन का बड़ा मानसम्मान था.

2 साल में ही सारे लोन चुका कर इन्होंने अपना परिवार बढ़ाने का निर्णय लिया. गर्भावस्था में आमिर ने मल्लिका का बहुत ध्यान रखा. अपने जुड़वां बच्चों का नाम उन्होंने अर्थ और आशी रखा. ऐसे वक्त में गुजरात की रहने वाली पारुल बेन किसी सौगात की तरह उन्हें मिल गईं, जिन्होंने दोनों बच्चों की देखरेख के साथ मल्लिका का भी मां की तरह खयाल रखा. मल्लिका और आमिर ने भी उन्हें कभी नैनी नहीं सम झा.

अपने बच्चों को पारुल बेन को सौंप कर मल्लिका और आमिर पढ़नेपढ़ाने की दुनिया में ख्याति बटोरते रहे. पारुल बेन भी उन की कसौटी पर सब तरह से खरा सोना निकलीं. किसी बात के लिए उन्हें निराश नहीं किया. अर्श और आशी को पारुल बेन ने दोनों संस्कृतियों के सारे संस्कार दिए. घर और बच्चों की सारी जिम्मेदारियों से मुक्त हो कर आमिर और मल्लिका को ऊंची उड़ान भरने के अवसर मिले. मल्लिका के सौंदर्य और प्रतिभा पर उस के क्षेत्र के लोग मुग्ध थे. ब्यूटी और ब्रेन का अनोखा सामंजस्य था उस में. उन से जुड़ कर सभी लाभान्वित ही होते रहे. अपने आसपास के ही नहीं, बल्कि जिस देश में भी गए वहां की संस्कृति को आत्मसात कर लिया. उन्होंने बहुत बड़ी पहचान को प्राप्त कर लिया था. यह उन के जीवन की बहुत बड़ी विजय थी.

समय पखेरू बन कर उड़ता रहा. अर्थ ने फाइनैंस में एमबीए कर के न्यूयौर्क की प्रतिष्ठित कंपनी को जौइन कर लिया. साल भी नहीं बीता था कि उस ने उसी कंपनी में कार्यरत चाइनीज लड़की से शादी कर ली और 4 महीने बाद ही 2 जुड़वां लड़कियों का पिता बन गया. वहां की खुली संस्कृति के लिए यह बड़ी आम बात थी. वहां बच्चे पहले पैदा होते हैं, शादी बाद में होती है.

आशी ने भी मैडिसिन की पढ़ाई कर के एक अफ्रीकीअमेरिकन से ब्याह रचा लिया. सालभर में वह भी अपने पिता के हमशक्ल जैसे बच्चे की मां बन गई. अपने बच्चों के उठाए इन कदमों की कोई आलोचना मल्लिका और आमिर ने कभी नहीं की. सब तरह से सहयोग देते हुए उन्हें संवारते हुए निखारा था. दोनों अपने बच्चों के बच्चे देख कर अभिभूत थे. सारे जहां की खुशियों को वे बटोर रहे थे.

अपने नानानानी और दादादादी बनने की खुशी में उन्होंने न्यूजर्सी में ही बड़ी शानदार पार्टी रखी थी. महीनेभर पहले सारी नाराजगी को भुलाते हुए दोनों ने अपने परिवारवालों को भी न्योता दिया था. वे आएं या न आएं, उस से उदासीन होते हुए वे अपनी खुशियों में मग्न थे. इतने लंबे समय में मल्लिका ने भूल कर भी अपनों को कभी याद नहीं किया था. उन के सारे रिश्तेनाते एकदूसरे के लिए वे स्वयं ही थे. बाकी कमी पारुल बेन ने आ कर पूरी कर दी थी. किसी अपने की तरह अर्थ और आशी की खुशियों से उन की भी आंखें छलक रही थीं. दोनों में से वे किस के पास जा कर, रह कर बच्चों की देखरेख करें, इस के लिए अर्थ और आशी को विवाद करते देख पारुल बेन भी अपने अस्तित्व के महत्त्व पर, अपनी काबिलीयत पर खुश थीं. 1,800 डौलर मासिक पगार पर काम करने वाली पारुल बेन लाखों डौलर की मालकिन होने के साथ अपना भविष्य संवारते हुए परिवार की बहुत बड़ी स्तंभ बन गई थीं.

भारत से आमिर और मल्लिका दोनों के मातापिताओं के साथ उन के भैयाभाभी भी आए. मिलन की खुशियों में छलकते आंसुओं ने दरिया ही बहा दिया था. फिर आरोपों और प्रत्यारोपों के लिए समय ही कहां था. वर्षों से बिछुड़े बच्चों के लिए नजराने में वे सारा भारत ही उठा लाए थे. उस प्यार के उफनते समंदर में न कोई जाति थी, न कोई धर्म, एक परिवार की तरह सारे भेदभाव को भूल कर सभी एकदूसरे से गले मिल रहे थे.

 

उफ्फ ये पति और समोसा: शादी के बाद एक पत्नी की कहानी

सलोनी की शादी के लिए सब उस के पीछे पड़े थे कि समय से होनी चाहिए नहीं फिर अच्छा पति नहीं मिलेगा…

सलोनी ने सारे व्रतउपवास कर लिए. अब इंतजार था कि कोई राजकुमार आएगा और उसे घोड़े पर बैठा कर ले जाएगा और जिंदगी हो जाएगी सपने जैसी. प्रतीक्षा को विराम लगा. आ गए राजकुमार साहब घोड़े पर तो नहीं पर कार पर चढ़ कर आ गए.

हां तो शादी के पहले का हाल भी बताना जरूरी है. सगाई के बाद ही सलोनी को ये राजकुमार साहब लगे फोन करने. घंटो बतियाते, चिट्ठी भी लिखतेलिखाते. सलोनी के तो पौ बारह, पढ़ालिखा बांका जवान मुंडा जो मिल गया था… शादी धूमधाम से हुई. सलोनी की मुसकान रोके नहीं रुक रही थी.

राजकुमार साहब भी शुरुआत में हीरो की माफिक रोमांटिक थे पर पति बनते ही दिमाग चढ़ गया 7वें आसमान पर ‘मैं पति हूं.’ सलोनी भी भौचक्का कि इन महानुभाव को हुआ… क्या अभी तक तो बड़े सलीके से हंसतेमुसकराते थे जनाब, लेकिन पति बनते ही नाकभौं सिकोड़ कर बैठ गए. प्रेम के महल में हुक्म की इंतहा यह बात कुछ हजम नहीं हुई पर शादी की है तो हजम करनी ही पड़ेगी तो सलोनी ने अपना पूरा हाजमा ठीक किया.

मगर पति को यह कैसे बरदाश्त कि पत्नी का हाजमा सही हो रहा है कुछ तो करना पड़ेगा वरना पति बनने का क्या फायदा.

‘‘कपड़े क्यों नहीं फैलाए अभी तक… मशीन में सड़ जाएंगे,’’ पति महाशय ने अपना भोंपू फूंका.

सलोनी ने सहम कर कहा, ‘‘भूल गई थी.’’

‘‘कैसे भूल गई फेसबुक, व्हाट्सऐप, किताबें याद रहती हैं… यह कैसे भूल गई.’’

‘अब भूल गई तो भूल गई. भूल सुधार ली जाएगी,’ सलोनी ने मन में कहा.

‘‘भूलना कितनी बड़ी गलती, अब जाओ कोई काम मत करना मेरा मैं खुद कर लूंगा,’’ पति महाशय ने ऐलान कर दिया.

‘ठीक है जनाब कर लो बहुत अच्छा. ऐसे भी मुझे कपड़े फैलाने पसंद नहीं,’ सलोनी ने मन में सोचा.

पति महाशय ने मुंह फुला लिया… अब बात नहीं करेंगे. बात नहीं करेंगे तो वह भी कुछ घंटे नहीं बल्कि पूरे 3-4 दिन नहीं करेंगे… इतनी बड़ी भूल जो कर दी सलोनी ने. अब सलोनी का हाजमा कहां से ठीक हो. अब तो ऐसिडिटी होनी ही है, फिर सिरदर्द.

एक बार सलोनी पति महाशय के औफिस के टूअर पर साथ आई थी. पति महाशय ने रात को गैस्टहाउस के कमरे में साबुन मांगा. सलोनी ने साबूनदानी पकड़ाई पर यह क्या उस में तो छोटा सा साबुन का टुकड़ा था. पति महाशय का गुस्सा 7वें आसमान पर… बस पूरा 1 हफ्ता बात नहीं की. औफिस के टूअर में घूमने आई सलोनी की घुमाई गैस्टहाउस में ही रह गई… इतनी बड़ी भूल जो कर दी थी.

उस के बाद से सलोनी कभी साबुन ले जाना नहीं भूली.

पति महाशय ने इसी में गर्व से सीना तान लिया कि सलोनी की इतनी बड़ी गलती जो उन्होंने सुधार दी. सलोनी ने भी सोचा कि पति के इस तरह मुंह फुलाने की गलती को सुधारा जाए पर पति कहां सुधरने वाले. उन का मुंह गुब्बारे जैसा फूला तो जल्दी पिचकेगा नहीं, आखिर पति हैं न.

सलोनी एक बार घूमने गई थी बड़े शौक से. पति महाशय ने ऊंची एड़ी के सैंडल खरीदे. सलोनी सैंडल पहन कर ज्यों ही घूमने निकली ऊंची एड़ी का एक सैंडल गया टूट और पति महाशय गए रूठ. उस पर से ताना भी मार दिया, ‘‘कभी इतनी ऊंची एड़ी के सैंडल पहने नहीं तो खरीदे क्यों? अब चलो बोरियाबिस्तर समेट वापस चलो.’’

सलोनी हो गई हक्काबक्का… इतनी सी बात पर इतना बवाल… आखिर सैंडल का ही तो था सवाल दूसरे ले लेंगे. नहीं तो नहीं… एक बार पति महाशय का मुंह तिकोना हो गया तो सीधा होने में समय लगता है पर सलोनी को भी ऐसे आड़ेतिरछे सीधा करना खूब आता है. सौरी बोल कर मामला रफादफा किया और पति महाशय को घुमाघुमा के घुमा लिया.

कभीकभी पति महाशय का स्वर चाशनी में लिपटा होता है पर ऐसा बहुत कम ही होता है, हिटलर के नाती जो ठहरे. एक बार बड़े प्यार से सलोनी को जन्मदिन पर घुमाने का वादा कर औफिस चले गए और लौटने पर सलोनी के तैयार होने में सिर्फ 5 मिनट की देरी पर बिफर पड़े. नाकभौं सिकोड़ कर ले गए मौल लेकिन मुंह से एक शब्द नहीं फूटा. सलोनी ने अपनी फूटी किस्मत को कोसा. ऐसे नमूने पति जो मिले थे उसे.

सलोनी पति की प्रतीक्षा में थी कि पति टूर से लौट कर आएंगे तो साथ में खाना खाएंगे. पति महाशय लौटे 11 बजे. जैसे ही सुना कि सलोनी ने खाना नहीं खाया तो बस जोर से डपट दिया और पूरी रात मुंह घुमा कर लेटे रहे. सलोनी ने फिल्मों में कुछ और ही देखा था पर हकीकत तो कुछ और ही थी. वह दिन और आज का दिन सलोनी ने पति की प्रतीक्षा किए बगैर ही खाने का नियम बना लिया… कौन भूखे पेट को लात मारे और भूखे रह कर कौन से उसे लड्डू मिलने वाले थे…

कभीकभी भ्रम का घंटा मनुष्य को अपने में लपेटे में ले ही लेता है. सलोनी को लगा कि पति महाशय का त्रिकोण अब सरल कोण में तबदील होने लगा है पर भ्रम तो भ्रम ही होता है सच कहां होता है. सलोनी को प्रतीत हुआ कि उस का एकलौता पति भी सलोना हो गया है पर सूरत

और सीरत में फर्क होता है न… सूरत से सलोना और सीरत… व्यंग्यबाण चला दिया, ‘‘आजकल बस पढ़तीलिखती ही रहती हो घर का काम भी मन से किया करो नहीं तो कोई जरूरत नहीं करने की…’’

सलोनी ने कुछ ऊंचे स्वर में कहा, ‘‘दिखता नहीं है कि मैं कितना काम करती हूं.’’

इतना कहना था कि पति जनाब ने मुंह फुला लिया कि पढ़लिख कर सलोनी का दिमाग खराब हो रहा है.

सलोनी ने भी ठान लिया कि इस बार नहीं मनाएगी, पर हमेशा की तरह सलोनी ने ही मनाया, ‘‘तुम रूठी रहो मैं मनाता रहूं,’’ यह गीत सलोनी की जिंदगी में लिंग बदल कर बज रहा था और धूमधड़ाके से बजता आ रहा था.

सलोनी ने एक दिन अपनी माताश्री से अपनी व्यथाकथा कह डाली, ‘‘मां, पापा तो ऐसे

हैं नहीं…’’

माताश्री मुसकराईं, ‘‘बेटी, तुम्हारे पापा बहुत अच्छे हैं पर पति कैसे हैं

उस का दुखड़ा अब तुम से क्या बताऊं… मेरी दुखती रग पर तुमने हाथ रख दिया. दरअसल, यह पति नामक प्रजाति होती ही ऐसी है… इस प्रजाति में कोई भी जैविक विकास की अवधारणा लागू नहीं होती, इसलिए जो है जैसा है, इन्हीं से उल?ो रहो… ये कभी सुलझने वाले नहीं. लड़के प्रेमी, भाई, मित्र, पिता सब रूप में अच्छे हैं पर पति बनते ही देवता इन पर सवार हो जाते हैं. सलोनी ने देवी चढ़ना सुना था पर देवता… उसे वह गाना याद आने लगा, ‘भला है बुरा है जैसा भी है मेरा पति मेरा…’’

‘‘पर माताश्री, फिर स्त्री के अधिकारों का क्या और स्त्री विमर्श का प्रश्न?’’ सलोनी ने पूछा

‘‘सलोनी बेटी, तुम्हारा पति त्रिकोण ही सही  पर तिकोना समोसा खिलाता है न.’’

‘‘हां, वह तो खिलाता है.’’

‘‘बस फिर कोई बात नहीं, उस की बातें एक कान से सुनो दूसरे से निकालो और अपना काम धीरेधीरे करते चलो,’’ माताश्री ने पति का मर्म समझ दिया.

सलोनी ने एक ठंडी आह भरी और मुंह से निकला ‘उफ ये पति.’

काली सोच : क्या वो खुद को माफ कर पाई

अंधविश्वास, पुरातनपंथी और कट्टरवादी सोच ने न जाने कितनों का घर उजाड़ा है. शुभा की आंखों पर भी न जाने क्यों इन्हीं सब का परदा पड़ा हुआ था, जिस का परिणाम इतना भयावह होगा, इस की वह कल्पना भी नहीं कर सकती थी.

लेखन कला मुझे नहीं आती, न ही वाक्यों के उतारचढ़ाव में मैं पारंगत हूं. यदि होती तो शायद मुझे अपनी बात आप से कहने में थोड़ी आसानी रहती. खुद को शब्दों में पिरोना सचमुच क्या इतना मुश्किल होता है?

बाहर पूनम का चांद मुसकरा रहा है. नहीं जानती कि वह मुझ पर, अपनेआप पर या किसी और पर मुस्कुरा रहा है. मैं तो बस इतना जानती हूं कि वह भी पूनम की ऐसी ही एक रात थी जब मैं अस्पताल के आईसीयू के बाहर बैठी अपने गुनाहों के लिए बेटी से माफी मांग रही थी, ‘मुझे माफ कर दे बेटी. पाप किया है मैं ने, महापाप.’

मानसी, मेरी इकलौती बेटी, भीतर आईसीयू में जीवन और मौत के बीच झूल रही है. उस ने आत्महत्या करने की कोशिश की, यह तो सभी जानते हैं पर यह कोई नहीं जानता कि उसे इस हाल तक लाने वाली मैं ही हूं. मैं ने उस मासूम के सामने कोई और रास्ता छोड़ा ही कहां था?

कहते हैं आत्महत्या करना कायरों का काम है पर क्या मैं कायर नहीं जो भविष्य की दुखद घटनाओं की आशंका से वर्तमान को ही रौंदती चली आई?

हर मां का सपना होता है कि वह अपनी नाजों से पाली बेटी को सोलहशृंगार में पति के घर विदा करे. मैं भी इस का अपवाद नहीं थी. तिनकातिनका जोड़ कर जैसे चिडि़या अपना घोंसला बनाती है. वैसे ही मैं भी मानसी की शादी के सपने संजोती गई. वह भी मेरी अपेक्षाओं पर हमेशा खरी उतरी. वह जितनी सुंदर थी उतनी ही मेधावी भी. शांत, सुसभ्य, मृदुभाषिणी मानसी घरबाहर सब की चहेती थी. एक मां को इस से ज्यादा और क्या चाहिए?

‘देखना अपनी लाडो के लिए मैं चांद सा दूल्हा लाऊंगी,’ मैं सुशांत से कहती तो वे मुसकरा देते.

उस दिन मानसी की 12वीं कक्षा का परिणाम आया था. वह पूरे स्टेट में फर्स्ट आईर् थी. नातेरिश्तेदारों की तरफ से बधाइयों का तांता लगा हुआ था. हमारे पड़ोसी व खास दोस्त विनोद भी हमारे घर आए थे मिठाई ले कर.

‘मिठाई तो हमें खिलानी चाहिए भाईसाहब, आप ने क्यों तकलीफ की,’ सुशांत ने गले मिलते हुए कहा तो वे बोले, ‘हां हां, जरूर खाएंगे. सिर्फ मिठाई ही क्यों? हम तो डिनर भी यहीं करेंगे, लेकिन पहले आप मेरी तरफ से मुंह मीठा कीजिए. रोहित का मैडिकल कालेज में दाखिला हो गया है.’

‘फिर तो आज दोहरी खुशी का दिन है. मानसी ने 12वीं में टौप किया है. मैं ने मिठाई की प्लेट उन की ओर बढ़ाई.’

‘आप चाहें तो हम यह खुशी तिहरी कर लें,’ विनोद ने कहा.

‘हम समझे नहीं,’ मैं अचकचाई.

‘अपनी बेटी मानसी को हमारे आंचल में डाल दीजिए. मेरी बेटी की कमी पूरी हो जाएगी और आप की बेटे की,’ मिसेज विनोद बड़ी मोहब्बत से बोली.

‘देखिए भाभीजी, आप के विचारों की मैं इज्जत करती हूं, लेकिन मुंह रहते कोई नाक से पानी नहीं पीता. शादीविवाह अपनी बिरादरी में ही शोभा देते हैं,’ इस से पहले कि सुशांत कुछ कहते मैं ने सपाट सा उत्तर दे दिया.

‘जानती हूं मैं. सदियों पुरानी मान्यताएं तोड़ना आसान नहीं होता. हमें भी काफी वक्त लगा है इस फैसले तक पहुंचने में. आप भी विचार कर देखिएगा,’ कहते हुए वे लोग चले गए.

‘इस में हर्ज ही क्या है शुभा? दोनों बच्चे बचपन से एकदूसरे को जानते हैं, समझते हैं. सब से बढ़ कर बौद्धिक और वैचारिक समानता है दोनों में. मेरे खयाल से तो हमें इस रिश्ते के लिए हां कह देनी चाहिए.’ सुशांत ने कहा तो मेरी त्योरियां चढ़ गईं.

‘तुम्हारा दिमाग तो नहीं फिर गया है. आलते का रंग चाहे जितना शोख हो, उस का टीका नहीं लगाते. कहां वो, कहां हम उच्चकुलीन ब्राह्मण. हमारी उन की भला क्या बराबरी? दोस्ती तक तो ठीक है, पर रिश्तेदारी अपनी बराबरी में होनी चाहिए. मुझे यह रिश्ता बिलकुल पसंद नहीं है.’

‘एक बार खुलेमन से सोच कर तो देखो. आखिर इस में बुराई ही क्या है? दीपक ले कर ढूंढ़ेंगे तो भी ऐसा दामाद हमें नहीं मिलेगा’, सुशांत ने कहा.

‘मुझे जो कहना था मैं ने कह दिया. तुम्हें इतना ही पसंद है तो कहीं से मुझे जहर ला दो. अपने जीतेजी तो मैं यह अनर्थ नहीं होने दूंगी. अरे, रिश्तेदार हैं, समाज है उन्हें क्या मुंह दिखाएंगे. दस लोग दस तरह के सवाल पूछेंगे, क्या जवाब देंगे उन्हें हम?’

मैं ने कहा तो सुशांत चुप हो गए. उस दिन मैं ने मानसी को ध्यान से देखा. वाकई मेरी गुडि़या विवाहयोग्य हो गई थी. लिहाजा, मैं ने पुरोहित को बुलावा भेजा.

‘बिटिया की कुंडली में तो घोर मंगल योग है बहूरानी. पतिसुख से यह वंचित रहेगी. पुरोहित के मुख से यह सुन कर मेरा मन अनिष्ट की आशंका से कांप उठा. मैं मध्यवर्गीय धर्मभीरू परिवार से थी और लड़की के मंगला होने के परिणाम से पूरी तरह परिचित थी. मैं ने लगभग पुरोहित के पैर पकड़ लिए, ‘कोई उपाय बताइए पुरोहितजी. पूजापाठ, यज्ञहवन, मैं सबकुछ करने को तैयार हूं. मुझे कैसे भी इस मंगल दोष से छुटकारा दिलाइए.’

‘शांत हो जाइए बहूरानी. मेरे होते हुए आप को परेशान होने की बिलकुल भी जरूरत नहीं है,’ उन्होंने रसगुल्ले को मुंह में दबाते हुए कहा, ‘ऐसा कीजिए, पहले तो बिटिया का नाम मानसी के बजाय प्रिया रख दीजिए.’

‘ऐसा कैसे हो सकता है पंडितजी. इस उम्र में नाम बदलने के लिए न तो बिटिया तैयार होगी न उस के पापा. वे कुंडली मिलान के लिए भी तैयार नहीं थे.’

‘तैयार तो बहूरानी राजा दशरथ भी नहीं थे राम वनवास के लिए.’ पंडितजी ने घोर दार्शनिक अंदाज में मुझे त्रियाहट का महत्त्व समझाया व दक्षिणा ले कर चलते बने.

‘आज से तुम्हारा नाम मानसी के बजाय प्रिया रहेगा,’ रात के खाने पर मैं ने बेटी को अपना फैसला सुना दिया.

‘लेकिन क्यों मां, इस नाम में क्या बुराई है?’

‘वह सब मैं नहीं जानती बेटा, पर मैं जो कुछ भी कर रही हूं तुम्हारे भले के लिए ही कर रही हूं. प्लीज, मुझे समझने की कोशिश करो.’

उस ने मुझे कितना समझा, कितना नहीं, यह तो मैं नहीं जानती पर मेरी बात का विरोध नहीं किया.

हर नए रिश्ते के साथ मैं उसे हिदायतों का पुलिंदा पकड़ा देती.

‘सुनो बेटा, लड़के की लंबाई थोड़ा कम है, इसलिए फ्लैटस्लीपर ही पहनना.’

‘लेकिन मां फ्लैटस्लीपर तो मुझ पर जंचते नहीं हैं.’

‘देखो प्रिया, यह लड़का 6 फुट का है. इसलिए पैंसिलहील पहनना.’

‘लेकिन मम्मी मैं पैंसिलहील पहन कर तो चल ही नहीं सकती. इस से मेरे टखनों में दर्द होता है.’

‘प्रिया, मौसी के साथ पार्लर हो आना. शाम को कुछ लोग मिलने आ

रहे हैं.’

‘मैं नहीं जाऊंगी. मुझे मेकअप पसंद नहीं है.’

‘बस, एक बार तुम्हारी शादी हो जाए, फिर करती रहना अपने मन की.’

मैं सुबकने लगती तो प्रिया हथियार

डाल देती.

पर मेरी सारी तैयारियां धरी की धरी रह जातीं जब लड़के वाले ‘फोन से खबर करेंगे’, कहते हुए चले जाते या फिर दहेज में मोटी रकम की मांग करते, जिसे पूरा करना किसी मध्यवर्गीय परिवार के वश की बात नहीं थी.

‘ऐसा कीजिए बहूरानी, शनिवार की सुबह 3 बजे बिटिया से पीपल के फेरे लगवा कर ग्रहशांति का पाठ करवाइए,’ पंडितजी ने दूसरी युक्ति सुझाई.

‘तुम्हें यह क्या होता जा रहा है मां, मैं ये जाहिलों वाले काम बिलकुल नहीं करूंगी,’ प्रिया गुस्से से भुनभुनाई, ‘पीपल के फेरे लगाने से कहीं रिश्ते बनते हैं.’

‘सच ही तो है, शादियां यदि पीपल के फेरे लगाने से

तय होतीं तो सारी विवाहयोग्य लड़कियां पीपल के इर्दगिर्द ही घूमती नजर आतीं,’ सुशांत ने भी हां में हां मिलाई.

‘चलो, माना कि नहीं होती पर हमें यह सब करने में हर्ज ही क्या है?’

‘हर्ज है शुभा, इस से लड़कियों का मनोबल गिरता है. उन का आत्मसम्मान आहत होता है. बारबार लड़के वालों द्वारा नकारे जाने पर उन में हीनभावना घर कर जाती है. तुम ये सब समझना क्यों नहीं चाहतीं. मानसी को पहले अपनी पढ़ाई पूरी कर लेने दो. उसे जो बनना है वह बन जाने दो. फिर शादी भी हो जाएगी,’ सुशांत ने मुझे समझाने की कोशिश की.

‘तब तक सारे अच्छे रिश्ते हाथ से निकल जाएंगे, फिर सुनते रहना रिश्तेदारों और पड़ोसियों के ताने.’

‘रिश्तेदारों का क्या है, वे तो कुछ न कुछ कहते ही रहेंगे. उन की बातों से डर कर क्या हम बेटी की खुशियों, उस के सपनों का गला घोंट दें.’

‘तुम कहना क्या चाहते हो, मैं क्या इस की दुश्मन हूं. अरे, लड़कियां चाहे कितनी भी पढ़लिख जाएं, उन्हें आखिर पराए घर ही जाना होता है. घरपरिवार और बच्चे संभालने ही होते हैं और इन सब कामों की एक उम्र होती है. उम्र निकलने के बाद यही काम बोझ लगने लगते हैं.’

‘तो हमतुम मिल कर संभाल लेंगे न इन की गृहस्थी.’

‘संभालेंगे तो तब न जब ब्याह होगा इस का. लड़के वाले तो मंगला सुनते ही भाग खड़े होते हैं.’

हमारी बहस अभी और चलती अगर सुशांत ने मानसी की डबडबाई आंखों को देख न लिया होता.

सुशांत ने ही बीच का रास्ता निकाला था. वे कहीं से पीपल का बोनसाई का पौधा ले आए थे, जिस से मेरी बात भी रह जाए और प्रिया को घर से बाहर भी न जाना पड़े.

साल गुजरते जा रहे थे. मानसी की कालेज की पढ़ाई भी पूरी हो गई थी.

अंधविश्वास, पुरातनपंथी और कट्टरवादी सोच ने न जाने कितनों का घर उजाड़ा है. शुभा की आंखों पर भी न जाने क्यों इन्हीं सब का परदा पड़ा हुआ था, जिस का परिणाम इतना भयावह होगा, इस की वह कल्पना भी नहीं कर सकती थी.

लेखन कला मुझे नहीं आती, न ही वाक्यों के उतारचढ़ाव में मैं पारंगत हूं. यदि होती तो शायद मुझे अपनी बात आप से कहने में थोड़ी आसानी रहती. खुद को शब्दों में पिरोना सचमुच क्या इतना मुश्किल होता है?

बाहर पूनम का चांद मुसकरा रहा है. नहीं जानती कि वह मुझ पर, अपनेआप पर या किसी और पर मुस्कुरा रहा है. मैं तो बस इतना जानती हूं कि वह भी पूनम की ऐसी ही एक रात थी जब मैं अस्पताल के आईसीयू के बाहर बैठी अपने गुनाहों के लिए बेटी से माफी मांग रही थी, ‘मुझे माफ कर दे बेटी. पाप किया है मैं ने, महापाप.’

मानसी, मेरी इकलौती बेटी, भीतर आईसीयू में जीवन और मौत के बीच झूल रही है. उस ने आत्महत्या करने की कोशिश की, यह तो सभी जानते हैं पर यह कोई नहीं जानता कि उसे इस हाल तक लाने वाली मैं ही हूं. मैं ने उस मासूम के सामने कोई और रास्ता छोड़ा ही कहां था?

कहते हैं आत्महत्या करना कायरों का काम है पर क्या मैं कायर नहीं जो भविष्य की दुखद घटनाओं की आशंका से वर्तमान को ही रौंदती चली आई?

हर मां का सपना होता है कि वह अपनी नाजों से पाली बेटी को सोलहशृंगार में पति के घर विदा करे. मैं भी इस का अपवाद नहीं थी. तिनकातिनका जोड़ कर जैसे चिडि़या अपना घोंसला बनाती है. वैसे ही मैं भी मानसी की शादी के सपने संजोती गई. वह भी मेरी अपेक्षाओं पर हमेशा खरी उतरी. वह जितनी सुंदर थी उतनी ही मेधावी भी. शांत, सुसभ्य, मृदुभाषिणी मानसी घरबाहर सब की चहेती थी. एक मां को इस से ज्यादा और क्या चाहिए?

‘देखना अपनी लाडो के लिए मैं चांद सा दूल्हा लाऊंगी,’ मैं सुशांत से कहती तो वे मुसकरा देते.

उस दिन मानसी की 12वीं कक्षा का परिणाम आया था. वह पूरे स्टेट में फर्स्ट आईर् थी. नातेरिश्तेदारों की तरफ से बधाइयों का तांता लगा हुआ था. हमारे पड़ोसी व खास दोस्त विनोद भी हमारे घर आए थे मिठाई ले कर.

‘मिठाई तो हमें खिलानी चाहिए भाईसाहब, आप ने क्यों तकलीफ की,’ सुशांत ने गले मिलते हुए कहा तो वे बोले, ‘हां हां, जरूर खाएंगे. सिर्फ मिठाई ही क्यों? हम तो डिनर भी यहीं करेंगे, लेकिन पहले आप मेरी तरफ से मुंह मीठा कीजिए. रोहित का मैडिकल कालेज में दाखिला हो गया है.’

‘फिर तो आज दोहरी खुशी का दिन है. मानसी ने 12वीं में टौप किया है. मैं ने मिठाई की प्लेट उन की ओर बढ़ाई.’

‘आप चाहें तो हम यह खुशी तिहरी कर लें,’ विनोद ने कहा.

‘हम समझे नहीं,’ मैं अचकचाई.

‘अपनी बेटी मानसी को हमारे आंचल में डाल दीजिए. मेरी बेटी की कमी पूरी हो जाएगी और आप की बेटे की,’ मिसेज विनोद बड़ी मोहब्बत से बोली.

‘देखिए भाभीजी, आप के विचारों की मैं इज्जत करती हूं, लेकिन मुंह रहते कोई नाक से पानी नहीं पीता. शादीविवाह अपनी बिरादरी में ही शोभा देते हैं,’ इस से पहले कि सुशांत कुछ कहते मैं ने सपाट सा उत्तर दे दिया.

‘जानती हूं मैं. सदियों पुरानी मान्यताएं तोड़ना आसान नहीं होता. हमें भी काफी वक्त लगा है इस फैसले तक पहुंचने में. आप भी विचार कर देखिएगा,’ कहते हुए वे लोग चले गए.

‘इस में हर्ज ही क्या है शुभा? दोनों बच्चे बचपन से एकदूसरे को जानते हैं, समझते हैं. सब से बढ़ कर बौद्धिक और वैचारिक समानता है दोनों में. मेरे खयाल से तो हमें इस रिश्ते के लिए हां कह देनी चाहिए.’ सुशांत ने कहा तो मेरी त्योरियां चढ़ गईं.

‘तुम्हारा दिमाग तो नहीं फिर गया है. आलते का रंग चाहे जितना शोख हो, उस का टीका नहीं लगाते. कहां वो, कहां हम उच्चकुलीन ब्राह्मण. हमारी उन की भला क्या बराबरी? दोस्ती तक तो ठीक है, पर रिश्तेदारी अपनी बराबरी में होनी चाहिए. मुझे यह रिश्ता बिलकुल पसंद नहीं है.’

‘एक बार खुलेमन से सोच कर तो देखो. आखिर इस में बुराई ही क्या है? दीपक ले कर ढूंढ़ेंगे तो भी ऐसा दामाद हमें नहीं मिलेगा’, सुशांत ने कहा.

 

हुस्न का बदला : कहानी शीला के जज्बात की

शीला की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे और क्या न करे. पिछले एक महीने से वह परेशान थी. कालेज बंद होने वाले थे. प्रदीप सैमेस्टर का इम्तिहान देने के बाद यह कह कर गया था, ‘मैं तुम्हें पैसों का इंतजाम कर के 1-2 दिन बाद दे दूंगा. तुम निश्चिंत रहो. घबराने की कोई बात नहीं.’

‘पर है कहां वह?’ यह सवाल शीला को परेशान कर रहा था. उस की और प्रदीप की पहचान को अभी सालभर भी नहीं हुआ था कि उस ने उस से शादी का वादा कर उस के साथ… ‘शीला, तुम आज भी मेरी हो, कल भी मेरी रहोगी. मुझ से डरने की क्या जरूरत है? क्या मुझ पर तुम्हें भरोसा नहीं है?’ प्रदीप ने ऐसा कहा था.

‘तुम पर तो मुझे पूरा भरोसा है प्रदीप,’ शीला ने जवाब दिया था.

शीला गांव से आ कर शहर के कालेज में एमए की पढ़ाई कर रही थी. यह उस का दूसरा साल था. प्रदीप इसी शहर के एक वकील का बेटा था. वह भी शीला के साथ कालेज में पढ़ाई कर रहा था. ऐयाश प्रदीप ने गांव से आई सीधीसादी शीला को अपने जाल में फंसा लिया था.

शीला उसे अपना दोस्त मान कर चल रही थी. उन की दोस्ती अब गहरी हो गई थी. इसी दोस्ती का फायदा उठा कर एक दिन प्रदीप उसे घुमाने के बहाने पिकनिक पर ले गया. फिर वे मिलते, पर सुनसान जगह पर. इस का नतीजा, शीला पेट से हो गई थी.

जब शीला को पता चला कि उस के पेट में प्रदीप का बच्चा पल रहा है, तो वह घबरा गई. बमुश्किल एक क्लिनिक की लेडी डाक्टर 10 हजार रुपए में बच्चा गिराने को तैयार हुई. डाक्टर ने कहा कि रुपयों का इंतजाम 2 दिन में ही करना होगा.

इधर प्रदीप को ढूंढ़तेढूंढ़ते शीला को एक हफ्ते का समय बीत गया, पर वह नहीं मिला. शीला ने उस का घर भी नहीं देखा था. प्रदीप के दोस्तों से पता करने पर ‘मालूम नहीं’ सुनतेसुनते वह परेशान हो गई थी.

शीला ने सोचा कि क्यों न घर जा कर कालेज में पैसे जमा करने के नाम पर पिता से रुपए मांगे जाएं. सोच कर वह घर आ गई. उस की बातचीत के ढंग से पिता ने अपनी जमीन गिरवी रख कर शीला को 10 हजार रुपए ला कर दे दिए.

वह रुपए ले कर ट्रेन से शहर लौट आई. टे्रन के प्लेटफार्म पर रुकते ही शीला ने जब अपने सूटकेस को सीट के नीचे नहीं पाया, तो वह घबरा गई. काफी खोजबीन की गई, पर सूटकेस गायब था. वह चीख मार कर रो पड़ी. शीला गायब बैग की शिकायत करने रेलवे पुलिस के पास गई, पर पुलिस का रवैया ढीलाढाला रहा.

अचानक पीछे से किसी ने शीला को आवाज दी. वह उस के बचपन की सहेली सुधा थी.

‘‘अरे शीला, पहचाना मुझे? मैं सुधा, तेरी बचपन की सहेली.’’

वे दोनों गले लग गईं.

‘‘कहां से आ रही है?’’ सुधा ने पूछा.

‘‘घर से,’’ शीला बोली.

‘‘तू कुछ परेशान सी नजर आ रही है. क्या बात है?’’ सुधा ने पूछा.

शीला ने उस पर जो गुजरी थी, सारी बात बता दी. ‘‘बस, इतनी सी बात है. चल मेरे साथ. घर से तुझे 10 हजार रुपए देती हूं. बाद में मुझे वापस कर देना.’’ सुधा उसी आटोरिकशा से शीला को अपने घर ले कर पहुंची.

शीला ने जब सुधा का शानदार घर देखा, तो हैरान रह गई.

‘‘सुधा, तुम्हारा झोंपड़पट्टी वाला घर? तुम्हारी मां अब कहां हैं?’’ शीला ने सवाल थोड़ा घबरा कर किया.

‘‘वह सब भूल जा. मां नहीं रहीं. मैं अकेली हूं. एक दफ्तर में काम करती हूं. और कुछ पूछना है तुझे?’’ सुधा ने कहा, ‘‘ले नाश्ता कर ले. मुझे जरूरी काम है. तू रुपए ले कर जा. अपना काम कर, फिर लौटा देना… समझी?’’ कह कर सुधा मुसकरा दी.

शीला रुपए ले कर घर लौट आई. अगले दिन जैसे ही शीला आटोरिकशा से डाक्टर के क्लिनिक पर पहुंची, तो वहां ताला लगा था. पूछने पर पता चला कि डाक्टर बाहर गई हैं और 2 महीने बाद आएंगी. शीला निराश हो कर घर आ गई. उस ने एक हफ्ते तक शहर के क्लिनिकों पर कोशिश की, पर कोई इस काम के लिए तैयार नहीं हुआ.

हार कर शीला सुधा के घर रुपए वापस करने पहुंची.

‘‘मैं पैसे वापस कर रही हूं. मेरा काम नहीं हुआ,’’ कह कर शीला रो पड़ी.

‘‘अरे, ऐसा कौन सा काम है, जो नहीं हुआ? मुझे बता, मैं करवा दूंगी. मैं तेरी आंख में आंसू नहीं देख सकती,’’ सुधा ने कहा.

शीला ने सबकुछ सचसच बता दिया. ‘‘तू चिंता मत कर. मैं सारा काम कर दूंगी. मुझ पर यकीन कर,’’ सुधा ने कहा. और फिर सुधा ने शीला का बच्चा गिरवा दिया. डाक्टर ने उसे 15 दिन आराम करने की सलाह दी.

शीला बारबार कहती, ‘‘सुधा, तुम ने मुझ पर बहुत बड़ा एहसान किया है. यह एहसान मैं कैसे चुका पाऊंगी?’’

‘‘तुम मेरे पास ही रहो. मैं अकेली हूं. मेरे रहते तुम्हें कौन सी चिंता?’’ शीला अपना मकान छोड़ कर सुधा के घर आ गई.

शीला को सुधा के पास रहते हुए तकरीबन 6 महीने बीत गए. पिता की बीमारी की खबर पा कर वह गांव चली आई. पिता ने गिरवी रखी जमीन की बात शीला से की. शीला ने जमीन वापस लेने का भरोसा दिलाया.

जब शीला सुधा के पास आई, तो उस ने सुधा से कहा, ‘‘मुझे कहीं नौकरी पर लगवा दो. मैं कब तक तुम्हारा बोझ बनी रहूंगी? मुझे भी खाली बैठना अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘ठीक है. मैं कोशिश करती हूं,’’ सुधा ने कहा.

एक दिन सुधा ने शीला से कहा, ‘‘सुनो शीला, मैं ने तुम्हारी नौकरी की बात की थी, पर…’’ कह कर सुधा चुप हो गई.

‘‘पर क्या? कहो सुधा, क्या बात है बताओ मुझे? मैं नौकरी पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हूं.’’ सुधा मन ही मन खुश हो गई. उस ने कहा, ‘‘ऐसा है शीला, तुम्हें अपना जिस्म मेरे बौस को सौंपना होगा, सिर्फ एक रात के लिए. फिर तुम मेरी तरह राज करोगी.’’

शीला ने सोचा कि प्रदीप से बदला लेने का अच्छा मौका है. इस से सुधा का एहसान भी पूरा होगा और उस का मकसद भी.

शीला ने अपनी रजामंदी दे दी. फिर सुधा के कहे मुताबिक शीला सजसंवर कर बौस के पास पहुंच गई. बौस के साथ रात बिता कर वह घर आ गई. साथ में सौसौ के 20 नोट भी लाई थी. और फिर यह खेल चल पड़ा. दिन में थोड़ाबहुत दफ्तर का काम और रात में ऐयाशी.

अब शीला भी आंखों पर रंगीन चश्मा, जींसशर्ट, महंगे जूते, मुंह पर कपड़ा लपेटे गुनाहों की दुनिया की बेताज बादशाह बन गई थी.

कालेज के बिगड़ैल लड़के, अमीर कारोबारी, सफेदपोश नेता सभी शीला के कब्जे में थे. एक दिन शीला ने सुधा से कहा, ‘‘दीदी, मुझे लगता है कि अमीरों ने फरेब की दुकान सजा रखी है…’’ इतने में सुधा के पास फोन आया.

‘‘कौन?’’ सुधा ने पूछा.

‘‘मैडम, मैं प्रदीप… मुझे शाम को…’’

‘‘ठीक है. 10 हजार रुपए लगेंगे. एक रात के… बोलो?’’

‘‘ठीक है,’’ प्रदीप ने कहा.

‘‘कौन है?’’ शीला ने पूछा.

‘‘कोई प्रदीप है. उसे एक रात के लिए लड़की चाहिए.’’ शीला ने दिमाग पर जोर डाला. कहीं यह वही प्रदीप तो नहीं, जिस ने उस की जिंदगी को बरबाद किया था.

‘‘दीदी, मैं जाऊंगी उस के पास,’’ शीला ने कहा.

‘‘ठीक है, चली जाना,’’ सुधा बोली.

शीला ने ऐसा मेकअप किया कि उसे कोई पहचान न सके. दुपट्टे से मुंह ढक कर चश्मा लगाया और होटल पहुंच गई.

शीला ने एक कमरा पहले से ही बुक करा रखा था, ताकि वही प्रदीप हो, तो वह देह धंधे के बदले अपना बदला चुका सके. प्रदीप नशे में झूमता हुआ होटल पहुंच गया.

‘‘मेरे कमरे में कौन है?’’ प्रदीप ने मैनेजर से पूछा.

‘‘वहां एक मेम साहब बैठी हैं. कह रही हैं कि साहब के आने पर कमरा खाली कर दूंगी. वैसे, यह उन्हीं का कमरा है. होटल के सभी कमरे भरे हैं,’’ कह कर मैनेजर चला गया.

प्रदीप ने दरवाजा खोल कर देखा, तो खूबसूरती में लिपटी एक मौडर्न बाला को देख कर हैरान रह गया.

‘‘कमाल का हुस्न है,’’ प्रदीप ने सोफे पर बैठते हुए कहा.

‘‘यह आप का कमरा है?’’

‘‘जी,’’ शीला ने कहा.

‘‘मैं आप का नाम जान सकता हूं?’’ प्रदीप ने पूछा.

‘‘मोना.’’

‘‘आप कपड़े उतारिए और अपना शौक पूरा करें. समय बरबाद न करें. इसे अपना कमरा ही समझिए.’’

इस के बाद शीला ने प्रदीप को अपना जिस्म सौंप दिया. वे दोनों अभी ऐयाशी में डूबे ही थे कि किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी.

प्रदीप मुंह ढक कर सोने का बहाना कर के सो गया.

शीला ने दरवाजा खोला, तो पुलिस को देख कर वह जोर से चिल्लाई, ‘‘पुलिस…’’

‘‘प्रदीप साहब, आप के खिलाफ शिकायत मिली है कि आप ने मोना मैडम के कमरे पर जबरदस्ती कब्जा जमा कर उन से बलात्कार किया है. आप को गिरफ्तार किया जाता है,’’ पुलिस ने कहा.

‘‘जी, मैं…’’ यह सुन कर प्रदीप की घिग्घी बंध गई.

पुलिस ने जब प्रदीप को गिरफ्तार किया, तो मोना उर्फ शीला जोर से खिलखिला कर हंस उठी और बोली, ‘‘प्रदीपजी, इसे कहते हैं हुस्न का बदला…’’

अंत भला तो सब भला : नन्द-भाभी की लड़ाई में कौन जीता

संगीता को यह एहसास था कि आज जो दिन में घटा है, उस के कारण शाम को रवि से झगड़ा होगा और वह इस के लिए मानसिक रूप से तैयार थी. लेकिन जब औफिस से लौटे रवि ने मुसकराते हुए घर में कदम रखा तो वह उलझन में पड़ गई.

‘‘आज मैं बहुत खुश हूं. तुम्हारा मूड हो तो खाना बाहर खाया जा सकता है,’’ रवि ने उसे हाथ से पकड़ कर अपने पास बैठा लिया.

‘‘किस कारण इतना खुश नजर आ रहे हो ’’ संगीता ने खिंचे से स्वर में पूछा.

‘‘आज मेरे नए बौस उमेश साहब ने मुझे अपने कैबिन में बुला कर मेरे साथ दोस्ताना अंदाज में बहुत देर तक बातें कीं. उन की वाइफ से तो आज दोपहर में तुम मिली ही थीं. उन्हें एक स्कूल में इंटरव्यू दिलाने मैं ही ले गया था. मेरे दोस्त विपिन के पिताजी उस स्कूल के चेयरमैन को जानते हैं. उन की सिफारिश से बौस की वाइफ को वहां टीचर की जौब मिल जाएगी. बौस मेरे काम से भी बहुत खुश हैं. लगता है इस बार मुझे प्रमोशन जरूर मिल जाएगी,’’ रवि ने एक ही सांस में संगीता को सारी बात बता डाली. संगीता ने उस की भावी प्रमोशन के प्रति कोई प्रतिक्रिया जाहिर करने के बजाय वार्त्तालाप को नई दिशा में मोड़ दिया, ‘‘प्रौपर्टी डीलर ने कल शाम जो किराए का मकान बताया था, तुम उसे देखने कब चलोगे ’’

‘‘कभी नहीं,’’ रवि एकदम चिड़ उठा.

‘‘2 दिन से घर के सारे लोग बाहर गए हुए हैं और ये 2 दिन हम ने बहुत हंसीखुशी से गुजारे हैं. कल सुबह सब लौट आएंगे और रातदिन का झगड़ा फिर शुरू हो जाएगा. तुम समझते क्यों नहीं हो कि यहां से अलग हुए बिना हम कभी खुश नहीं रह पाएंगे…हम अभी उस मकान को देखने चल रहे हैं,’’ कह संगीता उठ खड़ी हुई.

‘‘मुझे इस घर को छोड़ कर कहीं नहीं जाना है. अगर तुम में जरा सी भी बुद्धी है तो अपनी बहन और जीजा के बहकावे में आना छोड़ दो,’’ गुस्से के कारण रवि का स्वर ऊंचा हो गया था. ‘‘मुझे कोई नहीं बहका रहा है. मैं ने 9 महीने इस घर के नर्क में गुजार कर देख लिए हैं. मुझे अलग किराए के मकान में जाना ही है,’’ संगीता रवि से भी ज्यादा जोर से चिल्ला पड़ी. ‘‘इस घर को नर्क बनाने में सब से ज्यादा जिम्मेदार तुम ही हो…पर तुम से बहस करने की ताकत अब मुझ में नहीं रही है,’’ कह रवि उठ कर कपड़े बदलने शयनकक्ष में चला गया और संगीता मुंह फुलाए वहीं बैठी रही.

उन का बाहर खाना खाने का कार्यक्रम तो बना ही नहीं, बल्कि घर में भी दोनों ने खाना अलगअलग और बेमन से खाया. घर में अकेले होने का कोई फायदा वे आपसी प्यार की जड़ें मजबूत करने के लिए नहीं उठा पाए. रात को 12 बजे तक टीवी देखने के बाद जब संगीता शयनकक्ष में आई तो रवि गहरी नींद में सो रहा था. अपने मन में गहरी शिकायत और गुस्से के भाव समेटे वह उस की तरफ पीठ कर के लेट गई. किराए के मकान में जाने के लिए रवि पर दबाव बनाए रखने को संगीता अगली सुबह भी उस से सीधे मुंह नहीं बोली. रवि नाश्ता करने के लिए रुका नहीं. नाराजगी से भरा खाली पेट घर से निकल गया और अपना लंच बौक्स भी मेज पर छोड़ गया. करीब 10 बजे उमाकांत अपनी पत्नी आरती, बड़े बेटे राजेश, बड़ी बहू अंजु और 5 वर्षीय पोते समीर के साथ घर लौटे. वे सब उन के छोटे भाई के बेटे की शादी में शामिल होने के लिए 2 दिनों के लिए गांव गए थे.

फैली हुई रसोई को देख कर आरती ने संगीता से कुछ तीखे शब्द बोले तो दोनों के बीच फौरन ही झगड़ा शुरू हो गया. अंजु ने बीचबचाव की कोशिश की तो संगीता ने उसे भी कड़वी बातें सुनाते हुए झगड़े की चपेट में ले लिया. इन लोगों के घर पहुंचने के सिर्फ घंटे भर के अंदर ही संगीता लड़भिड़ कर अपने कमरे में बंद हो गई थी. उस की सास ने उसे लंच करने के लिए बुलाया पर वह कमरे से बाहर नहीं निकली. ‘‘यह संगीता रवि भैया को घर से अलग किए बिना न खुद चैन से रहेगी, न किसी और को रहने देगी, मम्मी,’’ अंजु की इस टिप्पणी से उस के सासससुर और पति पूरी तरह सहमत थे. ‘‘इस की बहन और मां इसे भड़काना छोड़ दें तो सब ठीक हो जाए,’’ उमाकांत की विवशता और दुख उन की आवाज में साफ झलक रहा था.

‘‘रवि भी बेकार में ही घर से कभी अलग न होने की जिद पर अड़ा हुआ है. शायद किराए के घर में जा कर संगीता बदल जाए और इन दोनों की विवाहित जिंदगी हंसीखुशी बीतने लगे,’’ आरती ने आशा व्यक्त की.‘‘किराए के घर में जा कर बदल तो वह जाएगी ही पर रवि को यह अच्छी तरह मालूम है कि उस के घर पर उस की बड़ी साली और सास का राज हो जाएगा और वह इन दोनों को बिलकुल पसंद नहीं करता है. बड़े गलत घर में रिश्ता हो गया उस बेचारे का,’’ उमाकांत के इस जवाब को सुन कर आरती की आंखों में आंसू भर आए तो सब ने इस विषय पर आगे कोई बात करना मुनासिब नहीं समझा.

शाम को औफिस से आ कर रवि उस से पिछले दिन घटी घटना को ले कर झगड़ा करेगा, संगीता की यह आशंका उस शाम भी निर्मूल साबित हुई. रवि परेशान सा घर में घुसा तो जरूर पर उस की परेशानी का कारण कोई और था. ‘‘मुझे अस्थाई तौर पर मुंबई हैड औफिस जाने का आदेश मिला है. मेरी प्रमोशन वहीं से हो जाएगी पर शायद यहां दिल्ली वापस आना संभव न हो पाए,’’ उस के मुंह से यह खबर सुन कर सब से ज्यादा परेशान संगीता हुई.

‘‘प्रमोशन के बाद कहां जाना पड़ेगा आप को ’’ उस ने चिंतित लहजे में पूछा.

‘‘अभी कुछ पता नहीं. हमारी कंपनी की कुछ शाखाएं तो ऐसी घटिया जगह हैं, जहां न अच्छा खानापीना मिलता है और न अस्पताल, स्कूल जैसी सुविधाएं ढंग की हैं,’’ रवि के इस जवाब को सुन कर उस का चेहरा और ज्यादा उतर गया.

‘‘तब आप प्रमोशन लेने से इनकार कर दो,’’ संगीता एकदम चिड़ उठी, ‘‘मुझे दिल्ली छोड़ कर धक्के खाने कहीं और नहीं जाना है.’’ ‘‘तुम पागल हो गई हो क्या  मैं अपनी प्रमोशन कैसे छोड़ सकता हूं ’’ रवि गुस्सा हो उठा.

‘‘तब इधरउधर धक्के खाने आप अकेले जाना. मैं अपने घर वालों से दूर कहीं नहीं जाऊंगी,’’ अपना फैसला सुना कर नाराज नजर आती संगीता अपने कमरे में घुस गई.

आगामी शनिवार को रवि हवाईजहाज से मुंबई चला गया. उस के घर छोड़ने से पहले ही अपनी अटैची ले कर संगीता मायके चली गई थी. रवि के मुंबई चले जाने से संगीता की किराए के अलग घर में रहने की योजना लंगड़ा गई. उस के भैयाभाभी तो पहले ही से ऐसा कदम उठाए जाने के हक में नहीं थे.

उस की दीदी और मां रवि की गैरमौजूदगी में उसे अलग मकान दिलाने का हौसला अपने अंदर पैदा नहीं कर पाईं. विवाहित लड़की का ससुराल वालों से लड़झगड़ कर अपने भाईभाभी के पास आ कर रहना आसान नहीं होता, यह कड़वा सच संगीता को जल्द ही समझ में आने लगा. कंपनी के गैस्टहाउस में रह रहा रवि उसे अपने पास रहने को बुला नहीं सकता था और संगीता ने अपनी ससुराल वालों से संबंध इतने खराब कर रखे थे कि वे उसे रवि की गैरमौजूगी में बुलाना नहीं चाहते थे.

सब से पहले संगीता के संबंध अपनी भाभी से बिगड़ने शुरू हुए. घर के कामों में हाथ बंटाने को ले कर उन के बीच झड़पें शुरू हुईं और फिर भाभी को अपनी ननद की घर में मौजूदगी बुरी तरह खलने लगी. संगीता की मां ने अपनी बेटी की तरफदारी की तो उन का बेटा उन से झगड़ा करने लगा. तब संगीता की बड़ी बहन और जीजा को झगड़े में कूदना पड़ा. फिर टैंशन बढ़ती चली गई. ‘‘हमारे घर की सुखशांति खराब करने का संगीता को कोई अधिकार नहीं है, मां. इसे या तो रवि के पास जा कर रहना चाहिए या फिर अपनी ससुराल में. अब और ज्यादा इस की इस घर में मौजूदगी मैं बरदाश्त नहीं करूंगा,’’ अपने बेटे की इस चेतावनी को सुन कर संगीता की मां ने घर में काफी क्लेश किया पर ऐसा करने के बाद उन की बेटी का घर में आदरसम्मान बिलकुल समाप्त हो गया. बहू के साथ अपने संबंध बिगाड़ना उन के हित में नहीं था, इसलिए संगीता की मां ने अपनी बेटी की तरफदारी करना बंद कर दिया. उन में आए बदलाव को नोट कर के संगीता उन से नाराज रहने लगी थी.

संगीता की बड़ी बहन को भी अपने इकलौते भाई को नाराज करने में अपना हित नजर नहीं आया था. रवि की प्रमोशन हो जाने की खबर मिलते ही उस ने अपनी छोटी बहन को सलाह दी, ‘‘संगीता, तुझे रवि के साथ जा कर ही रहना पड़ेगा. भैया के साथ अपने संबंध इतने ज्यादा मत बिगाड़ कि उस के घर के दरवाजे तेरे लिए सदा के लिए बंद हो जाएं. जब तक रवि के पास जाने की सुविधा नहीं हो जाती, तू अपनी ससुराल में जा कर रह.’’ ‘‘तुम सब मेरा यों साथ छोड़ दोगे, ऐसी उम्मीद मुझे बिलकुल नहीं थी. तुम लोगों के बहकावे में आ कर ही मैं ने अपनी ससुराल वालों से संबंध बिगाड़े हैं, यह मत भूलो, दीदी,’’ संगीता के इस आरोप को सुन कर उस की बड़ी बहन इतनी नाराज हुई कि दोनों के बीच बोलचाल न के बराबर रह गई. रवि के लिए संगीता को मुंबई बुलाना संभव नहीं था. संगीता को बिन बुलाए ससुराल लौटने की शर्मिंदगी से हालात ने बचाया.

दरअसल, रवि को मुंबई गए करीब 2 महीने बीते थे जब एक शाम उस के सहयोगी मित्र अरुण ने संगीता को आ कर बताया, ‘‘आज हमारे बौस उमेश साहब के मुंह से बातोंबातों में एक काम की बात निकल गई, संगीता… रवि के दिल्ली लौटने की बात बन सकती है.’’

‘‘कैसे ’’ संगीता ने फौरन पूछा.

अनुंकपा के आधार पर उस की पोस्टिंग यहां हो सकती है.’’

‘‘मैं कुछ समझी नहीं ’’ संगीता के चेहरे पर उलझन के भाव उभरे.

‘‘मैं पूरी बात विस्तार से समझाता हूं. देखो, अगर रवि यह अर्जी दे कि दिल के रोगी पिता की देखभाल के लिए उस का उन के पास रहना जरूरी है तो उमेश साहब के अनुसार उस का तबादला दिल्ली किया जा सकता है.’’ ‘‘लेकिन रवि के बड़े भैयाभाभी भी तो मेरे सासससुर के पास रहते हैं. इस कारण क्या रवि की अर्जी नामंजूर नहीं हो जाएगी ’’

‘‘उन का तो अपना फ्लैट है न ’’

‘‘वह तो है.’’

‘‘अगर वे अपने फ्लैट में शिफ्ट हो जाएं तो रवि की अर्जी को नामंजूर करने का यह कारण समाप्त हो जाएगा.’’

‘‘यह बात तो ठीक है.’’

‘‘तब आप अपने जेठजेठानी को उन के फ्लैट में जाने को फटाफट राजी कर के उमेश साहब से मिलने आ जाओ,’’ ऐसी सलाह दे कर अरुण ने विदा ली. संगीता ने उसी वक्त रवि को फोन मिलाया.

‘‘तुम जा कर भैयाभाभी से मिलो, संगीता. मैं भी उन से फोन पर बात करूंगा,’’ रवि सारी बात सुन कर बहुत खुश हो उठा था. संगीता को झिझक तो बड़ी हुई पर अपने भावी फायदे की बात सोच कर वह अपनी ससुराल जाने को 15 मिनट में तैयार हो गई. रवि के बड़े भाई ने उस की सारी बात सुन कर गंभीर लहजे में जवाब दिया, ‘‘संगीता, इस से ज्यादा खुशी की बात और क्या हो सकती है कि रवि का तबादला दिल्ली में हो जाए पर मुझे अपने फ्लैट को किराए पर मजबूरन चढ़ाना पढ़ेगा. उस की मासिक किस्त मैं उसी किराए से भर पाऊंगा.’’ रवि और संगीता के बीच फोन पर 2 दिनों तक दसियों बार बातें हुईं और अंत में उन्हें बड़े भैया के फ्लैट की किस्त रवि की पगार से चुकाने का निर्णय मजबूरन लेना पड़ा.

सप्ताह भर के अंदर बड़े भैया का परिवार अपने फ्लैट में पहुंच गया और संगीता अपना सूटकेस ले कर ससुराल लौट आई. रवि ने कूरियर से अपनी अर्जी संगीता को भिजवा दी. उसे इस अर्जी को रवि के बौस उमेश साहब तक पहुंचाना था. संगीता ने फोन कर के उन से मिलने का समय मांगा तो उन्होंने उसे रविवार की सुबह अपने घर आने को कहा. ‘‘क्या मैं आप से औफिस में नहीं मिल सकती हूं, सर ’’ संगीता इन शब्दों को बड़ी कठिनाई से अपने मुख ने निकाल पाई.

‘‘मैं तुम्हें औफिस में ज्यादा वक्त नहीं दे पाऊंगा, संगीता. मैं घर पर सारे कागजात तसल्ली से चैक कर लूंगा. मैं नहीं चाहता हूं कि कहीं कोई कमी रह जाए. यह मेरी भी दिली इच्छा है कि रवि जैसा मेहनती और विश्वसनीय इनसान वापस मेरे विभाग में लौट आए. क्या तुम्हें मेरे घर आने पर कोई ऐतराज है ’’

‘‘न… नो, सर. मैं रविवार की सुबह आप के घर आ जाऊंगी,’’ कहते हुए संगीता का पूरा शरीर ठंडे पसीने से नहा गया था. उस के साथ उमेश साहब के घर चलने के लिए हर कोई तैयार था पर संगीता सारे कागज ले कर वहां अकेली पहुंची. उन के घर में कदम रखते हुए वह शर्म के मारे खुद को जमीन में गड़ता महसूस कर रही थी. उमेश साहब की पत्नी शिखा का सामना करने की कल्पना करते ही उस का शरीर कांप उठता था. रवि के मुंबई जाने से कुछ दिन पूर्व ही वह शिखा से पहली बार मिली थी. उस मुलाकात में जो घटा था, उसे याद करते ही उस का दिल किया कि वह उलटी भाग जाए. लेकिन अपना काम कराने के लिए उसे उमेश साहब के घर की दहलीज लांघनी ही पड़ी.

अचानक उस दिन का घटना चक्र उस की आंखों के सामने घूम गया. उस दिन रवि शिखा को एक स्कूल में इंटरव्यू दिलाने ले जा रहा था. रवि का बैंक उस स्कूल के पास ही था. उसे बैंक में कुछ पर्सनल काम कराने थे. जितनी देर में शिखा स्कूल में इंटरव्यू देगी, उतनी देर में वह बैंक के काम करा लेगा, ऐसा सोच कर रवि कुछ जरूरी कागज लेने शिखा के साथ अपने घर आया था. संगीता उस दिन अपनी मां से मिलने गई हुई थी. वह उस वक्त लौटी जब शिखा एक गिलास ठंडा पानी पी कर उन के घर से अकेली स्कूल जा रही थी. वह शिखा को पहचानती नहीं थी, क्योंकि उमेश साहब ने कुछ हफ्ते पहले ही अपना पदभार संभाला था.

‘‘कौन हो तुम  मेरे घर में किसलिए आना हुआ ’’ संगीता ने बड़े खराब ढंग से शिखा से पूछा था.

‘‘रवि और मेरे पति एक ही औफिस में काम करते हैं. मेरा नाम शिखा है,’’ संगीता के गलत व्यवहार को नजरअंदाज करते हुए शिखा मुसकरा उठी थी.

‘मेरे घर मेें तुम्हें मेरी गैरमौजूदगी में आने की कोई जरूरत नहीं है… अपने पति को धोखा देना है तो कोई और शिकार ढूंढ़ो…मेरे पति के साथ इश्क लड़ाने की कोशिश की तो मैं तुम्हारे घर आ कर तुम्हारी बेइज्जती करूंगी,’’ उसे यों अपमानित कर के संगीता अपने घर में घुस गई थी. तब उसे रोज लगता था कि रवि उस के साथ उस के गलत व्यवहार को ले कर जरूर झगड़ा करेगा पर शिखा ने रवि को उस दिन की घटना के बारे में कुछ बताया ही नहीं था. अब रवि की दिल्ली में बदली कराने के लिए उसे शिखा के पति की सहायता चाहिए थी. अपने गलत व्यवहार को याद कर के संगीता शिखा के सामने पड़ने से बचना चाहती थी पर ऐसा हो नहीं सका.

उन के ड्राइंगरूम में कदम रखते ही संगीता का सामना शिखा से हो गया.

‘‘मैं अकारण अपने घर आए मेहमान का अपमान नहीं करती हूं. तुम बैठो, वे नहा रहे हैं,’’ उसे यह जानकारी दे कर शिखा घर के भीतर चल दी.

‘‘प्लीज, आप 1 मिनट मेरी बात सुन लीजिए,’’ संगीता ने उसे अंदर जाने से रोका.

‘‘कहो,’’ अपने होंठों पर मुसकान सजा कर शिखा उस की तरफ देखने लगी.

‘‘मैं…मैं उस दिन के अपने खराब व्यवहार के लिए क्षमा मांगती हूं,’’ संगीता को अपना गला सूखता लगा.

‘‘क्षमा तो मैं तुम्हें कर दूंगी पर पहले मेरे एक सवाल का जवाब दो…यह ठीक है कि तुम मुझे नहीं जानती थीं पर अपने पति को तुम ने चरित्रहीन क्यों माना ’’ शिखा ने चुभते स्वर में पूछा.

‘‘उस दिन मुझ से बड़ी भूल हुई…वे चरित्रहीन नहीं हैं,’’ संगीता ने दबे स्वर में जवाब दिया.

‘‘मेरी पूछताछ का भी यही नतीजा निकला था. फिर तुम ने हम दोनों पर शक क्यों किया था ’’

‘‘उन दिनों मैं काफी परेशान चल रही थी…मुझे माफ कर…’’

‘‘सौरी, संगीता. तुम माफी के लायक नहीं हो. तुम्हारी उस दिन की बदतमीजी की चर्चा मैं ने आज तक किसी से नहीं की है पर अब मैं सारी बात अपने पति को जरूर बताऊंगी.’’

‘‘प्लीज, आप उन से कुछ न कहें.’’

‘‘मेरी नजरों में तुम कैसी भी सहायता पाने की पात्रता नहीं रखती हो. मुझे कई लोगों ने बताया है कि तुम्हारे खराब व्यवहार से रवि और तुम्हारे ससुराल वाले बहुत परेशान हैं. अपने किए का फल सब को भोगना ही पड़ता है, सो तुम भी भोगो. शिखा को फिर से घर के भीतरी भाग की तरफ जाने को तैयार देख संगीता ने उस के सामने हाथ जोड़ दिए, ‘‘मैं आप से वादा करती हूं कि मैं अपने व्यवहार को पूरी तरह बदल दूंगी…अपनी मां और बहन का कोई भी हस्तक्षेप अब मुझे अपनी विवाहित जिंदगी में स्वीकार नहीं होगा…मेंरे अकेलेपन और उदासी ने मुझे अपनी भूल का एहसास बड़ी गहराई से करा दिया है.’’

‘‘तब रवि जरूर वापस आएगा… हंसीखुशी से रहने की नई शुरुआत के लिए तुम्हें मेरी शुभकामनाएं संगीता…आज से तुम मुझे अपनी बड़ी बहन मानोगी तो मुझे बड़ी खुशी होगी.’’

‘‘थैंक यू, दीदी,’’ भावविभोर हो इस बार संगीता उन के गले लग कर खुशी के आंसू बहाने लगी थी. उमेश साहब के प्रयास से 4 दिन बाद रवि के दिल्ली तबादला होने के आदेश निकल गए. इस खबर को सुन कर संगीता अपनी सास के गले  लग कर खुशी के आंसू बहाने लगी थी. उसी दिन शाम को रवि के बड़े भैया उमेश साहब का धन्यवाद प्रकट करने उन के घर काजू की बर्फी के डिब्बे के साथ पहुंचे.

‘‘अब तो सब ठीक हो गया न राजेश ’’

‘‘सब बढि़या हो गया, सर. कुछ दिनों में रवि बड़ी पोस्ट पर यहीं आ जाएगा. संगीता का व्यवहार अब सब के साथ अच्छा है. अपनी मां और बहन के साथ उस की फोन पर न के बराबर बातें होती हैं. बस, एक बात जरा ठीक नहीं है, सर.’’

‘‘कौन सी, राजेश ’’

‘‘सर, संयुक्त परिवार में मैं और मेरा परिवार बहुत खुश थे. अपने फ्लैट में हमें बड़ा अकेलापन सा महसूस होता है,’’ राजेश का स्वर उदास हो गया.

‘‘अपने छोटे भाई के वैवाहिक जीवन को खुशियों से भरने के लिए यह कीमत तुम खुशीखुशी चुका दो, राजेश. अपने फ्लैट की किस्त के नाम पर तुम रवि से हर महीने क्व10 हजार लेने कभी बंद मत करना. यह अतिरिक्त खर्चा ही संगीता के दिमाग में किराए के मकान में जाने का कीड़ा पैदा नहीं होने देगा.’’

‘‘आप ठीक कह रहे हैं, सर. वैसे रवि से रुपए ले कर मैं नियमित रूप से बैंक में जमा कराऊंगा. भविष्य में इस मकान को तोड़ कर नए सिरे से बढि़या और ज्यादा बड़ा दोमंजिला मकान बनाने में यह पैसा काम आएगा. तब मैं अपना फ्लैट बेच दूंगा और हम दोनों भाई फिर से साथ रहने लगेंगे,’’ राजेश भावुक हो उठा. ‘‘पिछले दिनों रवि को मुंबई भेजने और तुम्हारे फ्लैट की किस्त उस से लेने की हम दोनों के बीच जो खिचड़ी पकी है, उस की भनक किसी को कभी नहीं लगनी चाहिए,’’ उमेश साहब ने उसे मुसकराते हुए आगाह किया. ‘‘ऐसा कभी नहीं होगा, सर. आप मेरी तरफ से शिखा मैडम को भी धन्यवाद देना. उन्होंने रवि के विवाहित जीवन में सुधार लाने का बीड़ा न उठाया होता तो हमारा संयुक्त परिवार बिखर जाता.’’

‘‘अंत भला तो सब भला,’’ उमेश साहब की इस बात ने राजेश के चेहरे को फूल सा खिला दिया था.

वह सुंदर लड़की: दोस्त की बड़ी बहन पर आया दिल

मेरा घर सहारनपुर में था. 10वीं का इम्तिहान देने के बाद आगे की पढ़ाई करने के लिए पिताजी ने मुझे मेरे काकाजी के पास भेज दिया, जो दिल्ली के सब्जी मंडी नामक महल्ले में रहते थे.

जेबखर्च के लिए पिताजी हर महीने मुझे 2,000 रुपए भेजा करते थे. दिल्ली जैसा इतना बड़ा शहर और खुली आजादी, मेरे तो मजे हो गए. कालेज जाने के बजाय वे रुपए मैं फिल्में देखने और दोस्तों के साथ मौजमस्ती करने में खर्च कर देता था.

मैं जहां रहता था, उस महल्ले में मेरी उम्र के और भी कई लड़के थे, जिन से बहुत जल्द मेरी दोस्ती हो गई. उन में मेरा सब से अच्छा दोस्त था अविनाश. रोज शाम के समय हम सब क्रिकेट खेलते थे. अपने काकाजी को जब मैं गली में घुसते हुए देखता तब मैं तुरंत किसी दीवार की आड़ में छिप जाता.

अगर वे देख लेते कि शाम के समय पढ़ाई करने के बजाय मैं क्रिकेट खेल रहा हूं, तब फोन कर के पिताजी को बता देते और फिर पिताजी मुझे सहारनपुर बुला लेते.

एक शाम जब हम बहुत देर तक क्रिकेट खेल रहे थे, तब एक लड़की अविनाश को बुलाने आई. वह इतनी सुंदर थी कि मैं उसे देखता ही रह गया. जब उस की मुझ पर नजर पड़ी, तब वह मुसकरा दी.

उन दोनों के जाने के बाद, मेरे पूछने पर, महल्ले के एक लड़के ने मुझे बताया कि वह लड़की अविनाश की बड़ी बहन है. उस का नाम दीपा है और वह सुंदरम शौपिंग माल में नौकरी करती है.

मुझे याद आया कि एक रोमांटिक फिल्म देखते समय मेरे कालेज के दोस्त राजेश ने मुझ से कहा था, ‘अपनी जिंदगी भी फिल्मों जैसी है. अगर कोई लड़की तुम्हें देख कर मुसकराए, तो इस का मतलब है कि वह तुम्हें पसंद करती है और तुम से दोस्ती करना चाहती है.

‘लेकिन लड़कियां बहुत शर्मीली होती हैं, इसलिए पहल तुम्हें करनी होगी. दोस्ती का हाथ आगे बढ़ाओगे, तो वह तुम्हारी दोस्त बन जाएगी.’राजेश की इस बात को मैं ने सच समझ लिया था.

अगले दिन मैं ने यह पता कर लिया कि दुकान पर जाने के लिए दीपा रोजाना सवेरे ठीक 10 बजे घर से निकलती है. उस के बाद दीपा को एक नजर देखने के लिए मैं अपने कमरे में खिड़की की आड़ में छिप कर उस का इंतजार किया करता और उसे देखते ही मेरे दिल की धड़कनें तेज हो जातीं. मुझे एक फिल्म का संवाद याद आया

, ‘अगर किसी लड़की को देखते ही दिल की धड़कनें तेज हो जाएं, तो तुम्हें उस लड़की से इश्क हो गया है.’एक दिन सवेरे दीपा जब घर से निकली तब मैं उस का पीछा करने लगा.

मैं मन ही मन यही सोच रहा था कि किसी दिन हिम्मत कर के दीपा से कह दूंगा, ‘दीपा, मुझे तुम से प्यार हो गया है…’शौपिंग माल ज्यादा दूर नहीं था, इसलिए दीपा पैदल जा रही थी. जब वह शौपिंग माल के नजदीक पहुंची, तब मैं थोड़ी देर वहीं रुक कर उसे देखता रहा, फिर अपने कमरे में लौट गया.यह सिलसिला अगले 3 दिनों तक चलता रहा.

चौथे दिन जब मैं दीपा का पीछा कर रहा था, तब वह अचानक मुड़ी और मुझे घूर कर देखने लगी. मैं सकपका कर वापस जाने के लिए मुड़ा, तो उस ने पूछा, ‘‘मेरे भाई अविनाश के दोस्त हो न तुम?’’मैं इतना घबरा गया था कि मुझ से कुछ बोला ही नहीं गया.

उस ने जब यही सवाल दोबारा पूछा, तब मैं ने झिझकते हुए कहा, ‘‘हां, मैं अविनाश का दोस्त हूं.’’‘‘क्या नाम है तुम्हारा?’’‘‘प्रमोद.’’‘‘तुम रोज मेरा पीछा क्यों करते हो?’’मुझ से कोई जवाब नहीं बन पड़ा, तो उस ने दोबारा पूछा, ‘‘चुप क्यों हो? बताओ, तुम मेरा पीछा क्यों करते हो?’’मैं ने झूठमूठ कह दिया, ‘‘मैं तुम्हारा पीछा नहीं करता हूं, मुझे अपने लिए कमीज खरीदनी है,

इसलिए शौपिंग माल में जाता हूं.’’दीपा पलभर मुझे देखती रही और फिर उस ने कहा, ‘‘तुम्हें शायद बहुत सारी कमीजें खरीदनी होंगी, इसलिए रोज जाते हो वहां.’’‘‘बहुत सारी नहीं, सिर्फ 3.

लेकिन अब तक मैं ने कुछ नहीं खरीदा, क्योंकि जो कमीजें मुझे पसंद आती हैं, वे बहुत महंगी हैं.’’दीपा ने कहा, ‘‘मैं वहीं एक दुकान में नौकरी करती हूं और शौपिंग माल के कई दुकानदारों से मेरी जानपहचान है. तुम मेरे साथ चलो, मैं तुम्हें वाजिब दाम पर कमीज दिला दूंगी.’’

कोई बहाना नहीं सूझ रहा था, इसलिए मैं चुपचाप दीपा के पीछे चल पड़ा. मुझे अपने साथ ले कर दीपा शौपिंग माल पहुंची. 2-3 दुकानों में घूमने के बाद मैं ने मजबूरन एक दुकान से 2,000 रुपए में 3 कमीजें खरीदीं और फिर दीपा को ‘थैंक यू’ बोल कर लौट गया.मुझे अपनेआप पर बहुत गुस्सा आ रहा था कि दीपा का पीछा करने की गलती कर के मैं ने एक ही दिन में 2,000 रुपए खर्च कर दिए थे.

अब पूरा महीना कैसे गुजारूंगा मैं…उस शाम मैं अपने दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलने भी नहीं गया. वे मुझे बुलाने आए तो मैं ने कहा कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है.रात के 8 बज गए थे.

तभी किसी ने मेरे कमरे का दरवाजा खटखटाया. दरवाजा खोला तो मैं यह देख कर चौंक गया कि सामने दीपा खड़ी थी. मैं पलभर उसे देखता रहा, तो उस ने कहा, ‘‘अविनाश ने बताया कि तुम कालेज में पढ़ने के लिए यहां आए हो और जेबखर्च के लिए तुम्हें हर महीने 2,000 रुपए मिलते हैं… क्या यह सच है?’’

‘‘हां सच है,’’ मैं ने धीमी आवाज में कहा.‘‘लेकिन तुम ने तो सारी रकम एक ही दिन में खर्च कर दी… अब पूरा महीना कैसे गुजारोगे तुम?’’मुझ से कोई जवाब नहीं बन पड़ा, इसलिए मैं खामोश रहा.

दीपा ने कहा, ‘‘आज सवेरे जब तुम मेरा पीछा कर रहे थे, तब मैं ने भांप लिया था कि तुम ने मुझ से झूठ कहा था कि तुम शौपिंग माल में खरीदारी करने जा रहे हो. झूठ कहा था या नहीं?’’मैं ने गरदन झुका कर धीमी आवाज में कहा, ‘‘हां, झूठ कहा था.’’

‘‘तुम ने जो कमीजें खरीदी हैं, वे मुझे दे दो. मैं दुकानदार को लौटा दूंगी. तुम्हारे 2,000 रुपए कल तुम्हें मिल जाएंगे.’’मैं ने ऐसा ही किया. दीपा जाने लगी, फिर उस ने मुड़ कर कहा, ‘‘तुम अविनाश के दोस्त हो, मेरे छोटे भाई जैसे हो, इसलिए तुम्हें एक सलाह देती हूं.’’‘‘जी कहिए…’’

‘‘अगर कोई लड़की तुम्हें देख कर मुसकरा दे या तुम से हंस कर बात कर ले, तो यह मत समझना कि उसे तुम से प्यार हो गया है या वह तुम से दोस्ती करना चाहती है. लड़कियों और औरतों की इज्जत करना सीखो.’’मैं ने शर्मिंदगी से कहा, ‘‘मुझे माफ दीजिए, फिर ऐसी गलती कभी नहीं करूंगा.’’दीपा पलभर मुझे देखती रही और फिर चली गई.

 

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