Family Story: कशमकश – सीमा भाभी के चेहरे से मुस्कान क्यों गायब हो गई थी

Family Story: ‘‘वाहभई, मजा आ गया… भाभी के हाथों में तो जैसे जादू की छड़ी है… बस खाने पर घुमा देती हैं और खाने वाला समझ ही नहीं पाता कि खाना खाए या अपनी उंगलियां चाटे,’’ मयंक ने 2-4 कौर खाते ही हमेशा की तरह खाने की तारीफ शुरू कर दी तो रसोई में फुलके सेंकती सीमा भाभी के चेहरे पर मुसकराहट तैर गई.

पास ही खड़ी महिमा के भीतर कुछ दरक सा गया, मगर उस ने हमेशा की तरह दर्द की उन किरचों को आंखों का रास्ता नहीं दिखाया, दिल में उतार लिया.

‘‘अरे भाभी, महिमा को भी कुछ बनाना सिखा दो न… रोजरोज की सादी रोटीसब्जी से हम ऊब गए… बच्चे तो हर तीसरे दिन होटल की तरफ भागते हैं,’’ मयंक ने अपनी बात आगे बढ़ाई तो लाख रोकने की कोशिशों के बावजूद महिमा की पलकें नम हो आईं.

इस के पास कहां इतना टाइम होता है जो रसोई में खपे… एक ही काम होगा… या तो कलम पकड़ लो या फिर चकलाबेलन… सीमा की चहक में छिपे व्यंग्यबाण महिमा को बेंध गए, मगर बात तो सच ही थी, भले कड़वी सही.

महिमा एक कामकाजी महिला है. सरकारी स्कूल में अध्यापिका महिमा को मलाल रहता है कि वह आम गृहिणियों की तरह अपने घर को वक्त नहीं दे पाती. ऐसा नहीं है कि उसे अच्छा खाना बनाना नहीं आता, मगर सुबह उस के पास टाइम नहीं होता और शाम को वह थक कर इतनी चूर हो चुकी होती है कि कुछ ऐक्स्ट्रा बनाने की सोच भी नहीं पाती.

महिमा सुबह 5 बजे उठती है. सब का नाश्ता, खाना बना कर 8 बजे तक स्कूल पहुंचती है. दोपहर 3 बजे तक स्कूल में व्यस्त रहती है. उस के बाद घर आतेआते इतनी थक जाती है कि यदि घंटाभर आराम न करे तो रात तक चिड़चिड़ाहट बनी रहती है. रात को रसोई समेटतेसमटते 11 बज जाते हैं. अगले दिन फिर वही दिनचर्या.

इतनी व्यस्तता के बाद महिमा चाह कर भी सप्ताह के 6 दिन पति या बच्चों की खाने, नाश्ते की फरमाइशें पूरी नहीं कर पाती. एक रविवार का दिन उसे छुट्टी के रूप में मिलता है, मगर यह एक दिन बाकी 6 दिनों पर भारी पड़ता है. सब से पहले तो वह खुद ही इस दिन थोड़ा देर से उठती. फिर सप्ताह भर के कल पर टलने वालेकाम भी इसी दिन निबटाने होते हैं. मिलनेजुलने वाले दोस्तरिश्तेदार भी इसी रविवार की बाट जोहते हैं. इस तरह रविवार का दिन मुट्ठी में से पानी की तरह फिसल जाता है.

क्या करे महिमा… अपनी ग्लानि मिटाने के लिए वह बच्चों को हर रविवार होटल में खाने की छूट दे देती है. धीरेधीरे बच्चों को भी इस आजादी और रूटीन की आदत सी हो गई है.

महिमा महसूस करती है कि उस का घर सीमा भाभी के घर की तरह हर वक्त सजासंवरा नहीं दिखता. घर के सामान पर धूलमिट्टी की परत भी दिख जाती है. कई बार छोटेछोटे मकड़ी के जाले भी नजर आ जाते हैं. इधरउधर बिखरे कपड़े और जूते तो रोज की बात है. लौबी में रखी डाइनिंगटेबल भी खाने के कम, बच्चों की किताबों, स्कूल बैग, हैलमेट आदि रखने के ज्यादा काम आती है.

कई बार जब महिमा झुंझला कर साफसफाई में जुट जाती है, तो बच्चे पूछ बैठते हैं, ‘‘आज अचानक यह सफाई का बुखार कैसे चढ़ गया? कोई आने वाला है क्या?’’ तब वह और भी खिसिया जाती.

हालांकि महिमा ने अपनी मदद के लिए कमला को रखा हुआ है, मगर वह उस के स्कूल जाने के बाद आती है, इसलिए जो जैसा कर जाती है उसी में संतुष्ट होना पड़ता है.

स्कूल में आत्मविश्वास से भरी दिखने वाली महिमा भीतर ही भीतर अपना आत्मविश्वास खोती जा रही थी. यदाकदा अपनी तुलना सीमा भाभी से करने लगती कि कितने आराम से रहती हैं सीमा भाभी. घर भी एकदम करीने से सजा हुआ… अच्छे खाने से पतिबच्चे भी खुश.

दिन में 2-3 घंटे एसी की ठंडी हवा में आराम… और एक मैं हूं…. चाहे हजारों रुपए महीना कमाती हूं… कभी अपने पैसे का रोब नहीं झाड़ती… जेठानी के सामने हमेशा देवरानी ही बनी रहती हूं… कभी भी रानी बनने का गरूर नहीं दिखाती… फिर भी मयंक ने कभी मेरी काबिलियत पर गर्व नहीं किया. बच्चे भी अपनी ताई के ही गुण गाते रहते हैं.

वैसे देखा जाए तो वे सब भी कहां गलत हैं. कहते हैं कि दिल तक पहुंचने का रास्ता पेट से हो कर गुजरता है. मगर मैं कहां इन दूरियों को तय कर पाई हूं… जल्दीजल्दी जो कुछ बना पाती हूं बस बना देती हूं. एक सा नाश्ता और खाना खाखा कर बेचारे ऊब जाते होंगे… कैसी मां और पत्नी हूं… अपने परिवार तक को खुश नहीं रख पाती… महिमा खुद को कोसने लगती और फिर अवसाद के दलदल में थोड़ा और गहरे धंस जाती.

क्या करूं? क्या इतनी मेहनत से लगी नौकरी छोड़ दूं? मगर अब यह सिर्फ नौकरी कहां रही… यह तो मेरी पहचान बन चुकी है. स्कूल के बच्चे जब मुझे सम्मान की दृष्टि से देखते हैं. उन के अभिभावक बच्चों के सामने मेरा उदाहरण देते हैं तो वे कितने गर्व के पल होते हैं… वह अनमोल खुशी को क्या सिर्फ इतनी सी बात के लिए गंवा दूं कि पति और बच्चों को उन का मनपसंद खाना खिला सकूं. महिमा अकसर खुद से ही सवालजवाब करने लगती, मगर किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाती.

इसी बीच महिमा की स्कूल में गरमी की छुट्टियां हो गईं. उस ने तय कर लिया कि इन पूरी छुट्टियों में वह सब की शिकायतें दूर करने की कोशिश करेगी. सब का मनपसंद खाना बनाएगी. नईनई डिशेज बनाना सीखेगी… घर को एकदम साफसुथरा और सजा कर रखेगी…

छुट्टी का पहला दिन. नाश्ते में गरमगरम आलू के परांठे देखते ही सब के चेहरे खिल उठे. भूख से अधिक ही खा लिए सब ने. उन्हें संतुष्ट देख कर महिमा का दिल भी खुश हो गया. मयंक टिफिन ले कर औफिस निकल गया और बच्चे कोचिंग क्लास. महिमा घर को समेटने में जुट गई.

दोपहर ढलतेढलते पूरा घर चमक उठा. लगा मानो दीवाली आने वाली है. मयंक और बच्चे घर लौट आए. आते ही बच्चों ने अपनी किताबें और बैग व मयंक ने अपनी फाइलें और हैलमेट लापरवाही से डाइनिंगटेबल पर पटक दिया. महिमा का मूड उखड़ गया, मगर उस ने एक लंबी सास ली और सारा सामान यथास्थान पर रख कर डाइनिंगटेबल फिर से सैट कर दी.

महिमा ने रात के खाने में भी 2 मसालेदार सब्जियों के अलावा रायता और सूजी का हलवा भी बनाया. सजी डाइनिंगटेबल देख कर मयंक और बच्चे खुश हो गए. उन्हें खुश देख कर महिमा भी खुश हो उठी.

अब रोज यही होने लगा. नाश्ते में अकसर मैदा, बेसन, आलू और अधिक तेलमिर्च मसाले का इस्तेमाल होता था. रात में भी महिमा कई तरह के व्यंजन बनाती थी. अधिक वैरायटी बनाने के चक्कर में अकसर रात का खाना लेट हो जाता था और गरिष्ठ होने के कारण ठीक से हजम भी नहीं हो पाता था.

अभी 15 दिन भी नहीं बीते थे कि मयंक ने ऐसिडिटी की शिकायत की. रातभर खट्टी डकारों और सीने में जलन से परेशान रहा. सुबह डाक्टर को दिखाया तो उस ने सादे खाने और कई तरह के दूसरे परहेज बताने के साथसाथ क्व2 हजार का दवाओं का बिल थमा दिया.

दूसरी तरफ घर को साफसुथरा और व्यवस्थित रखने के प्रयास में बच्चों की आजादी छिनती जा रही थी. महिमा उन्हें हर वक्त टोकती रहती कि इस्तेमाल करने के बाद अपना सामान प्रौपर जगह पर रखें. मगर बरसों की आदत भला एक दिन में छूटती है और फिर वैसे भी अपना घर इसीलिए तो बनाया जाता है ताकि वहां अपनी मनमरजी से अपने तरीके से रहा जाए. मां की टोकाटाकी से बच्चे घर वाली फीलिंग के लिए तरसने लगे, क्योंकि घर अब होटल की तरह लगने लगा था.

घर को संवारने और सब को मनपसंद खाना खिलाने की कवायद में महिमा पूरा दिन उलझी रहने लगी. हर वक्त कोई न कोई नई डिश या नया आइडिया उस के दिमाग में पकता रहता. साफसफाई के लिए भी दिन भर परेशान होती, कभी कमला पर झल्लाती तो कभी बच्चों को टोकती. नतीजन, एक दिन रसोई में खड़ीखड़ी महिमा गश खा कर गिर पड़ी. मयंक ने उसे उठा कर बिस्तर में लिटाया. बेटे ने तुरंत डाक्टर को फोन किया.

चैकअप करने के बाद पता चला कि महिमा का बीपी बहुत ज्यादा बढ़ा हुआ है. डाक्टर ने आराम करने की सलाह के साथसाथ मसालेदार, ज्यादा घी व तेल वाले खाने से परहेज करने की सलाह दी. साथ ही लंबाचौड़ा बिल थमाया वह अलग.

‘‘सौरी मयंक मैं एक अच्छी पत्नी और मां की कसौटी पर खरी नहीं उतर सकी,’’ महिमा ने मायूसी से कहा.

‘‘पगली यह तुम से किस ने कहा? तुम ने तो हमेशा अपनी जिम्मेदारियां पूरी शिद्दत के साथ निभाई है. मुझे गर्व है तुम पर,’’ मयंक ने उस का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा.

‘‘तो फिर वे हमेशा सीमा भाभी की तारीफें… वह सब क्या है?’’ महिमा ने संशय से पूछा.

‘‘अरे बावली, तुम भी गजब करती हो… पता नहीं किस आसमान तक अपनी सोच के घोड़े दौड़ा लेती हो,’’ मयंक ने ठहाका लगाते हुए कहा. महिमा अचरज के भाव लिए मुंह खोले उसे देख रही थी.

जब हमारी सगाई हुई थी उस के बाद से ही सीमा भाभी के व्यवहार में परिवर्तन नजर आने लगा था. उन्हें लगने लगा था कि नौकरीपेशा बहू आने के बाद घर में उन की अहमियत कम हो जाएगी. यह भी हो सकता है कि तुम उन पर अपने पैसे का रोब दिखाओ.

बातबात में उन की तारीफ करते हैं ताकि वे किसी हीनभावना से ग्रस्त न हो जाएं. मगर इस सारे गणित में अनजाने में ही सही, हम से तुम्हारा पक्ष नजरअंदाज होता रहा. हम सब तुम्हारे गुनाहगार हैं,’’ मयंक ने शर्मिंदा होते हुए अपने कान पकड़ लिए.

यह देख महिमा खिलखिला पड़ी, ‘‘तो अब सजा तो आप को मिलेगी ही… आप सब को अगले 20 दिन और इसी तरह का चटपटा और मसालेदार खाना खाना पड़ेगा.’’

‘‘न बाबा न… इतनी बड़ी सजा नहीं… हमें तो वही सादी रोटीसब्जी चाहिए ताकि हमारा पेट भी हैप्पी रहे और जेब भी. क्यों बच्चो?’’ मयंक ने नाटकीयता से कहा. अब तक बच्चे भी वहां आ चुके थे.

‘‘ठीक है, मगर सप्ताह में एक दिन तो होटल जाने दोगे और हमें अपनी मनपसंद डिशेज खाने दोगे न?’’ दोनों बच्चे एकसाथ चिल्लाए तो महिमा के होंठों पर भी मुसकराहट तैर गई.

Romantic Story: रुक जाओ शबनम

Romantic Story: आज शबनम अब तक अस्पताल नहीं आई थी. 2 बजने को आए वरना वह तो रोज 10 बजे ही अस्पताल पहुंच जाती थी. कभी भी छुट्टी नहीं करती. मैं उस के लिए चिंतातुर हो उठा था.

इन दिनों जब से कोरोना का संकट गहराया है वह मेरे साथ जीजान से मरीजों की सेवा में जुटी हुई थी. मैं डॉक्टर हूं और वह नर्स. मगर उसे मेडिकल फील्ड की इतनी जानकारी हो चुकी है कि कभी मैं न रहूं तो भी वह मेरे मरीजों को अच्छी तरह और आसानी से संभाल लेती है.

मैं आज अपने मरीजों को अकेले ही संभाल रहा था. अस्पताल की एक दूसरी नर्स स्नेहा मेरी हैल्प करने आई तो मैं ने उसी से पूछ लिया,” क्या हुआ शबनम आज आई नहीं. ठीक तो है वह ?”

“हां ठीक है. मगर कल शाम घर जाते वक्त कह रही थी कि उसे आसपड़ोस के कुछ लोग काफी परेशान करने लगे हैं. वह मुस्लिम है न. अभी जमात वाले केसेज जब से बढ़े हैं सोसाइटी के कट्टरपंथी लोग उसे ही कसूरवार मारने लगे हैं. उसे सोसाइटी से निकालने की मांग कर रहे हैं और गद्दार कह कर नफरत से देखते हैं. बेचारी अकेली रहती है. इसलिए ये लोग उसे और भी ज्यादा परेशान करते हैं. मुझे लगता है इसी वजह से नहीं आई होगी.”

“कैसी दुनिया है यह? धर्म या जाति के आधार पर किसी को जज करना कितना गलत है. कोई नर्स रातदिन लोगों की केयर करने में लगी हुई है. उस पर इतना गंदा इल्जाम….?” मेरे अंदर गुस्से का लावा फूट पड़ा.

स्नेहा भी शबनम को ले कर परेशान थी, “आप सही कह रहे हैं सर. शबनम ने तो अपनी जिंदगी मरीजों की देखभाल में लगा रखी है. उस ने तो यह कभी नहीं देखा कि उस के सामने हिंदू मरीज है या मुस्लिम. फिर लोग उस का धर्म क्यों देख रहे हैं? देश को विभाजित करने वाले कट्टरपंथी ही ऐसी गलत सोच को हवा देते हैं.”

तभी मेरा मोबाइल बज उठा. शबनम का फोन था,” हैलो शबनम, ठीक तो हो तुम?” मैं ने चिंतित स्वर में पूछा.

“नहीं सर मैं ठीक नहीं. सोसाइटी के कुछ लोगों ने मेरे निकलने पर रोक लगा दी है. एक तरह से नजरबंद कर के रखा है मुझे. उस पर अभी दोपहर में मैं बाथरूम में गिर गई. अब तो समझ नहीं आ रहा कि दवा लेने भी कैसे जाऊं?”

“तुम घबराओ नहीं. एकदो घंटे आराम करो. मैं खुद तुम्हारे लिए बैंडेज और दवाइयों का इंतजाम करता हूं.” कह कर मैंने फोन रख दिया.

अब मुझे शबनम के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभानी थी. उस ने आज तक हमेशा मेरा साथ दिया है. मानवता के नाते अब मेरा धर्म है कि मैं उस का साथ दूं.

5 बजे के बाद मरीजों को निबटा कर मैं फर्स्ट ऐड बॉक्स, जरूरी दवाओं और फल सब्जियों के साथ उस के घर पहुंचा. उस की सोसाइटी के बाहर पुलिस खड़ी थी. मेरे डाक्टर होने के बावजूद काफी पूछताछ और स्क्रीनिंग के बाद अंदर जाने दिया गया. शबनम का घर दूसरे माले पर था. मैं ने उस के दरवाजे की घंटी बजाई तो लंगड़ाती हुई वह बाहर निकली और दरवाजा खोला. मुझे देख कर उस के चेहरे पर सुकून भरी मुस्कुराहट की लकीरें खिंच गई.

“डॉक्टर अविनाश आप खुद आ गए ?”

हां शबनम दिखाओ कहां चोट लगी है तुम्हें? ठीक से बैंडेज कर दूं. ”

“जी बैंडेज का सामान मेरे पास था. पट्टी तो बांध ली है मैं ने.”

“ठीक है फिर भी ये कुछ जरूरी दवाइयां अपने पास रखो और फलसब्जियां भी.”

“थैंक यू वेरी मच सर .” शबनम की आंखों में कृतज्ञता के आंसू आ गए तो मैं ने उस के कंधे थपथपाए और बाहर निकलता हुआ बोला,” देखो शबनम, कभी भी किसी भी चीज की जरूरत हो तो मुझे जरूर बताना. वैसे मैं कोशिश करूंगा कि तुम्हें इस सोसाइटी से ले कर जाऊं. अस्पताल के पास जो मेरा दो कमरे वाला घर है न वहीं तुम्हें ठहरा दूंगा. आजकल मैं भी वहीं रहने लगा हूं क्योंकि अस्पताल पास में और फिर मेरे कारण मेरे परिवार में कोरोनावायरस न फैल जाए यह डर भी रहता है.”

“जी सर जैसा आप उचित समझें” कह कर शबनम ने मुझे विदा किया.

इस के बाद दोतीन बार खानेपीने की और दूसरी चीजें ले कर मैं उस के घर गया.

सोसाइटी वाले मुझे घूरघूर कर देखते थे. एक दिन तो हद ही हो गई जब सोसाइटी वालों के कहने पर एक ऊंची जाति के पुलिस एस आई नीरज शर्मा ने मुझ पर दोतीन डंडे बरसा दिए. मैं चीख पड़ा,” एक डॉक्टर के साथ इस तरह का सुलूक किया जाता है?”

” तुम डॉक्टर हो तो फिर तुम उस मुस्लिम लड़की के घर क्यों आते हो? दोनों मिले हुए हो न? तेरी यार है न वह ? क्या करने वाले हो मिलकर ?”

सर मैं डॉक्टर हूं और वह मेरे साथ काम करने वाली नर्स. इतना ही रिश्ता है हमारा. ऊंची और नीची जाति, हिंदू और मुस्लिम जैसे भेदभाव मैं नहीं मानता.” चिल्लाता हुआ मैं घर आ गया था मगर शबनम को ले कर चिंता बढ़ गई थी.

उस दिन मैं ने तय किया कि अब मैं शबनम को अपने घर ले आऊंगा. अगले दिन सुबहसुबह मैं उसे अपने घर ले आया.

अब शबनम मेरे घर में थी और अस्पताल भी करीब था. इसलिए वह जिद कर के अस्पताल जाने लगी. उसे लंगड़ाते हुए, तकलीफ सहते हुए भी मरीजों के लिए दौड़भाग करते देख मेरे मन में उस की इज्जत बढ़ती जा रही थी.

वह घर में भी मेरे लिए पौष्टिक खाना बनाती. दरअसल मेरे घरवाले मेरे साथ नहीं थे. स्वभाविक था कि मुझे खानेपीने की दिक्कत हो रही थी. ऐसे में मैं अस्पताल के कैंटीन में खा कर गुजारा करता था. मगर जब से शबनम मेरे घर आई उस ने मेरे मना करने के बावजूद किचन की कमान संभाल ली.
अपने पैर की तकलीफ के बावजूद मुझे मेरी पसंद की चीजें बना कर खिलाती. मुझे यह एहसास ही नहीं होने देती कि मैं घर वालों से दूर हूं.

अस्पताल में तो वह मेरी सहायिका थी ही घर में भी मेरी हर जरूरत का ध्यान रखती. हम दोनों बिना कहे ही एक अनजान से बंधन में बनते जा रहे थे. उस का कष्ट मैं महसूस करता था और मेरी तकलीफों का बोझ वह उठाने को तैयार थी. हमारा धर्म अलग था. जाति भी अलग थी. मगर मन एक था. हम एकदूसरे को खुद से बेहतर समझने लगे थे.

इधर आसपड़ोस में हम दोनों को ले कर सुगबुगाहट होने लगी थी. जल्द ही सब को पता लग गया कि शबनम दूसरे धर्म की है. लोगों के दिमाग में यह बात कुलबुलाने लगी कि वह मेरे घर में मेरे साथ क्यों रह रही है? उस के साथ मेरा रिश्ता क्या है?

शबनम की सोसाइटी वालों ने भी मेरे कुछ पड़ोसियों को भड़काने का काम किया. अभी तक सामने आ कर किसी ने मुझे कुछ कहा नहीं था मगर उन की आंखों में सवाल दिखने लगे थे.

फिर एक दिन मैं घर लौटा तो मुझे अपनी तबीयत खराब लगने लगी. गले में खराश के साथ सर दर्द हो रहा था. मैं ने खुद को क्वैरांटाइन कर लिया. मैं ने शबनम से भी चले जाने को को कहा मगर वह कहने लगी कि तबियत खराब में ऐसे छोड़ कर नहीं जा सकती. तब मैं ने उसे अपने कमरे में आने के लिए सख्ती से मना कर दिया. वह दूर से ही मेरा ख्याल रखती रही.

एक दिन दो पड़ोसी मेरे घर आए और शबनम को ले कर पूछताछ करने लगे. मैं ने सब सच बताया. अगले दिन सुबह उठा तो देखा घर के बाहर काफी हलचल है. इधर मेरी तबीयत खराब थी उधर मेरे घर के आगे कट्टरपंथी इकटठे हो कर नारे लगा रहे थे. मुझे गद्दार कहा जा रहा था. शबनम के साथ मेरा नाम ले कर सोसाइटी से निकाले जाने की मांग की जा रही थी.

मैं कुछ समझ नहीं पा रहा था. काफी देर तक होहल्ला होता रहा. तब तक शबनम अपने कपड़े पैक करने लगी.

वह हड़बड़ाती हुई बोली,” सर अब मैं यहां बिल्कुल नहीं रह सकती. मेरी वजह से आप को भी परेशानी सहनी पड़ रही है. मैं तो कहती हूं आप भी चलिए. आप को अस्पताल में एडमिट हो जाना चाहिए. तबीयत ठीक नहीं है आप की. कहिए तो आप के घर वालों को बुला देती हूं.”

“नहीं नहीं. तुम घर वालों से कुछ मत कहो. वे परेशान होंगे. तुम जाओ. मैं सब संभाल लूंगा.”

“मैं पहले भी कह चुकी हूं. आप को ऐसे अकेले छोड़ कर नहीं जा सकती. वैसे भी ये लोग यहां आप का जीना मुहाल कर देंगे. आप की तबीयत भी ज्यादा खराब हो रही है. मैं डॉक्टर अतुल को फोन कर देती हूं. वे हमें यहां से ले जाएंगे.”

“ओके. जैसा सही समझो.” मैं ने कहा.

तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. सोसायटी का अध्यक्ष सामने खड़ा था,” मिस्टर अविनाश, हम सबों का फैसला है कि अब आप इस सोसाइटी में नहीं रह सकते.”

“ठीक है. मैं जा रहा हूं. ” लड़खड़ाती आवाज में मैं ने कहा.

शबनम ने जल्दीजल्दी सब इंतजाम किया. किसी तरह हम अस्पताल पहुंच गए और कोरोना के संदेह की वजह से मुझे एडमिट कर दिया गया. टेस्ट रिपोर्ट पॉजिटिव आई. मेरी तबियत तेजी से खराब होने लगी. मगर शबनम ने न तो मेरा साथ छोड़ा और न आस. वह लगातार मेरा ख्याल रखती रही. मेरे अंदर सकारात्मक उर्जा भरती रही.

लंबे इलाज के बाद धीरेधीरे मैं ठीक हो गया. इस के बाद भी 14 दिन तक मुझे अस्पताल में ही रखा गया. इस दौरान शबनम के लिए एक लगाव मेरे मन में पैदा हो गया था. उसे पूरे समर्पण भाव के साथ मरीजों की और अपनी देखभाल करता देखता तो लगता जैसे इस से बेहतर लड़की मुझे कहीं मिल नहीं सकती.

एक दिन शबनम मुझे दुखी सी नजर आई. मैं ने टोका तो उस ने बताया,” मैं बस आप के ठीक होने का इंतजार कर रही थी. डॉक्टर अब मैं इस इलाके में और नहीं रहना चाहती. बहुत दुत्कारा है लोगों ने मुझे. आप के साथ मेरा नाम जोड़ कर आप को भी बदनाम किया गया. मेरी कोई गलती नहीं थी मगर मेरे पेशे को भी इज्जत नहीं दी गई. मेरा मन भर गया है. मैं तो बस आप की खातिर ही यहां अब तक रुकी रही. अब मुझे जाने की अनुमति दें. मैं अस्पताल छोड़ कर जाना चाहती हूं.”

शबनम की भीगी आंखों के पीछे मेरे लिए छुपा प्यार मैं साफ देख रहा था. मैं ने उसे रोका,”रुक जाओ शबनम. तुम कहीं नहीं जाओगी. जो नाम उन्होंने बदनाम करने के लिए जोड़ा उसे मैं हकीकत में जोड़ना चाहता हूं.”

शबनम ने अचरज से मेरी तरफ देखा. मैं ने मुस्कुराते हुए कहा, क्यों न इसी अस्पताल में हम आज शादी कर लें? देर करने की जरूरत क्या है?”

शबनम ने शरमा कर निगाहें झुका लीं. उस;का जवाब मुझे मिल गया था. अस्पताल में मौजूद दूसरे डॉक्टरों और नर्सों ने झटपट एक बहुत ही सादगी भरी शादी का इंतजाम कर दिया और इस तरह एक हिंदू डॉक्टर और एक मुस्लिम नर्स हमेशा के लिए हमसफर बन गए.

Romantic Story: विश्वास की आन – क्या मृदुला का सिद्धार्थ पर भरोसा करना सही था?

Romantic Story: ‘‘दिल संभल जा जरा, फिर मुहब्बत करने चला है तू…’’ गाने की आवाज से मृदुला अपना फोन उठाने के लिए रसोई से भागी, जो ड्राइंगरूम में पड़ा यह गाना गा रहा था. नंबर पर नजर पड़ते ही उस का दिल जोरजोर से धड़कने लगा. नाम फ्लैश नहीं हो रहा था, पर जो  नंबर चमक रहा था वह उसे अच्छी तरह याद था. वह नंबर तो शायद वह सपने में भी न भूल पाए.

रोहन अपने कमरे से चिल्ला रहा था, ‘‘मौम, आप का फोन बज रहा है.’’

मृदुला ने झटके से फोन उठाया. एक नजर उस ने कमरे में टीवी देखने में व्यस्त ऋषि पर डाली और दूसरी नजर रोहन पर जो अपने कमरे में पढ़ रहा था. वह फोन उठा कर बाहर बालकनी की ओर बढ़ गई.

‘‘हैलो… हाय… क्या हाल हैं?’’

‘‘अब ठीक हूं,’’ उधर से आवाज आई.

‘‘क्यों? क्या हुआ?’’

‘‘बस तुम्हारी आवाज सुन ली बंदे का दिन अच्छा हो गया.’’

‘‘अच्छा, तो यह बात है… अच्छा बताओ फोन क्यों किया? आज मेरी याद कैसे आ गई? तुम अच्छे से जानते हो आज शनिवार है. ऋषि और रोहन दोनों घर पर होते हैं… ऐसे में बात करना मुश्किल होता है,’’ मृदुला जल्दीजल्दी कह रही थी.

‘‘मैं ने तो बस यह बताने के लिए फोन किया कि अब मुझ से ज्यादा सब्र नहीं होता. मैं अगले हफ्ते दिल्ली आ रहा हूं तुम से मिलने. प्लीज तुम किसी होटल में मेरे लिए कमरा बुक करवा दो जहां बस तुम हो और मैं और हो तनहाई,’’ सिद्धार्थ ने अपना दिल खोल कर रख दिया.

‘‘होटल? न बाबा न मैं होटल में मिलने नहीं आऊंगी.’’

‘‘तो फिर हम कहां मिलेंगे? मैं 1500 किलोमीटर मुंबई से दिल्ली सिर्फ तुम्हें मिलने आ रहा हूं ओर एक तुम हो जो होटल तक नहीं आ सकतीं.’’

मृदुला बातों में खोई हुई थी. उसे एहसास ही न हुआ कि कब रोहन अपने कमरे से निकल कर बाहर बालकनी में उस के पीछे आ खड़ा हो गया था.

रोहन पर नजर पड़ते ही मृदुला ने कहा, ‘‘अच्छा, मैं बाद में बात करती हूं,’’ और फिर फोन काट दिया.

‘‘किस का फोन था मौम?’’ रोहन ने पूछा.

‘‘वो… वो मेरी फ्रैंड का फोन था.’’ कह वह फोन ले कर रसोई में चली गई और सब्जी काटने लगी.

वैसे तो वह रसोई में काम कर रही थी पर दिलोदिमाग मुंबई में सिद्धार्थ के पास पहुंच चुका था. दिल जोरजोर से धड़क रहा था. बस एक मिलने की आस में वह पिछले 8 सालों से जल रही थी. अब समझ नहीं पा रही थी कि कहां, कब और कैसे मिलेगी.

जिंदगी में कब कोई आ जाए, इनसान जान ही नहीं पाता. कोई दिल के इतने करीब पहुंच जाता है कि बाकी सब से दूर हो जाता है.

यों तो मृदुला की जिंदगी में कोई कमी न थी. प्यार करने वाला पति ऋषि था. होशियार और समझदार 16 साल का बेटा रोहन था पर फिर सिद्धार्थ, औनलाइन फ्रैंड बन कर उस की जिंदगी में आ गया था और फिर सब उलटपुलट हो गया था.

वह बेटे और पति से छिपछिप कर कंप्यूटर से बहुत मेल और चैट करती थी और फोन भी बहुत करती थी. उस की जिंदगी का हर खुशीगम तब तक अधूरा होता जब तक वह उसे सिद्धार्थ से बांट न लेती.

दोस्ती एक जनून बन गई थी. वह उस से एक दिन भी बिना बात किए न रहती थी. रोज बात करना दोनों की दिनचर्या का अभिन्न अंग था. ऐसा ही कुछ हाल सिद्धार्थ का भी था.

यों तो मृदुला पति के औफिस और बेटे के स्कूल जाने के बाद बात करती थी, फिर भी रोहन गूगल की हिस्ट्री में जा कर कई बार पूछता था कि मम्मी यह सिद्धार्थ कौन है? और वह कुछ जवाब नहीं दे पाती थी सिवा इस के कि पता नहीं.

रोहन को कुछकुछ अंदाजा होता जा रहा था कि मम्मी कुछ ऐसा कर रही हैं, जिसे वे छिपा रही हैं. कई बार गुस्से और आक्रोश में वह अपनी परेशानी का इजहार भी करता पर ज्यादा कुछ कह न पाता.

अब मृदुला क्या करेगी, सिद्धार्थ से मिलने की तमन्ना को दबा लेगी? या फिर होटल जाएगी उस से मिलने? यही सब सोचसोच कर वह परेशान थी.

फिर अचानक उस ने अपना मन बना दिया और सिद्धार्थ को फोन मिला लिया,

‘‘सिद्धार्थ, मैं पहले ही जिंदगी में काफी डरडर कर तुम से बात करती हूं… मैं अब इस डर के साथ और नहीं जीना चाहती. मेरे मन में कोई खोट नहीं है और न ही तुम्हारे मन में, तो क्यों न तुम मेरे घर आ जाओ. मैं तुम से मिलने होटल नहीं आ पाऊंगी और न ही मैं तुम से मिलने का मौका गंवाना चाहती हूं.’’

मृदुला की बात सुन कर सिद्धार्थ हड़बड़ा गया, ‘‘पागल हो गई हो क्या? तुम्हारा पति और रोहन क्या कहेंगे? नहीं यह ठीक नहीं होगा.’’

‘‘क्या ठीक नहीं होगा? क्या यह मेरा घर नहीं है जहां मैं किसी को अपनी मरजी से बुला सकूं? मेरे मन में कोई खोट नहीं है. मैं ने तुम से दोस्ती की तो क्या गलत किया? और अगर ऋषि, रोहन कोई परेशानी हैं तो ठीक है हम इस चैप्टर को अभी हमेशा के लिए बंद कर देते हैं… पर मुझे एक बार तो तुम से मिलना ही है. बहुत बेताब है यह दिल तुम से मिलने को… तुम आओगे न मेरे घर?’’ एक सांस में मृदुला सब बोल गई.

‘‘मुझे थोड़ा वक्त दो सोचने का,’’ उस ने गंभीर होते हुए कहा.

‘‘बस घबरा गए? यों तो बहुत दलीलें देते थे कि मैं तुम्हारे एक बार बुलाने पर दौड़ा चला आऊंगा… अब क्या हुआ? देख ली तुम्हारी फितरत… तुम मुझे होटल में बुला कर मेरा नाजायज फायदा उठाना चाहते थे,’’ उस की आवाज ऊंची हो गई थी.

‘‘चुप करो,’’ सिद्धार्थ बोला, ‘‘ठीक है मैं 20 तारीख को 12 बजे वाली फ्लाइट से

दिल्ली आऊंगा और वह शाम तुम्हारे और तुम्हारी फैमिली के नाम… पर प्लीज, ऋषि मुझे मारेगा तो नहीं?’’

‘‘ठीक है, मैं इंतजार करूंगी,’’ कह कर फोन काट दिया.

मृदुला ने उसे अपने घर बुला तो लिया पर फिर  उलझन में पड़ गई कि ऋषि और रोहन को क्या बताएगी कि सिद्धार्थ कौन है?

ऋषि तो फिर भी समझ जाएगा पर न जाने रोहन कैसे रिएक्ट करेगा… उस की क्या इज्जत रह जाएगी उस के सामने…

इंतजार के 7 दिन एक इम्तिहान की तरह गुजरे जिन में पलपल वह अपने  निर्णय पर अफसोस करती रही, पछताती रही.

मृदुला के अंदर चल रहे तूफान की बाहर किसी को भनक न थी. इन 7 दिनों में मिलने की दिली चाहत को दिमाग में चल रहे प्रश्न ‘अब क्या होगा’ ने दबा दिया था. अब मृदुला को मिलने की तीव्र इच्छा से ज्यादा इस बात की टैंशन थी कि 20 तारीख को वह ऐसा क्या करे ताकि सब अच्छी तरह से निबट जाए?

सुबह उठती तो इसी आस के साथ कि काश 20 तारीख को ऋषि और रोहन अपने दोस्तों से मिलने चले जाएं और वह सिद्धार्थ से बिना टैंशन के मिल सके. पर अकसर लोग जो सोचते हैं वह होता नहीं. उन दोनों का भी ऐसा कोई प्रोग्राम नहीं बना.

आखिरकार 20 तारीख आ ही गई. इस दौरान वह सिद्धार्थ से कोई बात न कर पाई. सारी रात करवटें बदलतेबदलते निकाल दी उस ने कि कल का दिन न जाने क्या तूफान ले कर आएगा उस की जिंदगी में.

कई मरतबा उस ने अपनेआप को कोसा भी कि क्यों ऐसा निर्णय लिया, पर तीर कमान से निकल चुका था. यह भी नहीं कह सकती थी कि वह न आए.

न जाने किस रौ और विश्वास में बह कर उस ने सिद्धार्थ को इतनी दूर से बुला लिया था. घर में शांति थी. सब अपनेअपने काम में लगे थे. तूफान से पहले ऐसा ही सन्नाटा होता है.

ठीक 3 बजे सिद्धार्थ का फोन आ गया, ‘‘मैं एअरपोर्ट पहुंच चुका हूं.’’

मृदुला का दिल जोरजोर से धड़कने लगा. आंखें खुशी से चमकने लगीं और चेहरा उत्तेजना से लाल हो गया.

‘‘एक बार फिर सोच लो, कहीं और मिल लेते हैं?’’ सिद्धार्थ ने घबराते हुए पूछा.

‘‘नहीं, अब जो होगा देखा जाएगा. मैं पीछे नहीं हटूंगी,’’ कह उस ने उसे मैट्रो से घर आने का रास्ता बताया और फिर फोन काट दिया.

अब मारे घबराहट के उस के हाथपैर फूलने लगे थे. ऋषि और रोहन अपनेअपने कमरे में थे. अचानक घंटी बजी. धड़कते दिल से उस ने दरवाजा खोला तो एक स्मार्ट, आकर्षक, लंबा, सांवला 38 वर्षीय युवक उस के सामने खड़ा था, जिसे देख उस का मुंह खुला का खुला रह गया.

वही चिरपरिचित हाय सुन कर वह चहक उठी और फिर अपने सूखे गले से धीरे से कहा, ‘‘हाय, आओ अंदर आओ.’’

डरतेडरते सिद्धार्थ ने अंदर कदम रखा, तो झट से रोहन अपने कमरे से बाहर ड्राइंगरूम में आ गया.

‘‘बेटा, ये सिद्धार्थ अंकल हैं.’’

मृदुला के मुंह से सिद्धार्थ नाम बड़ी मुश्किल से निकला, जिसे सुन कर रोहन थोड़ा सकपका गया और फिर अपना गुस्सा छिपाता जल्दी से नमस्ते कर के अपने कमरे में चला गया.

अपनी बेचैनी, घबराहट को छिपाते मृदुला ने हलकी मुसकान से सिद्धार्थ को देखा और सोफे पर बैठने को कहा.

ऋषि के कमरे में कोई हलचल नहीं थी. वहां रोज की तरह टीवी चल रहा था. ऋषि टीवी के सामने बैठे थे. वह कमरे में गई और बोली, ‘‘कोई आया है.’’

‘‘कौन?’’

‘‘सिद्धार्थ.’’

‘‘सिद्धार्थ कौन?’’ चौंकते हुए ऋषि ने पूछा.

‘‘मेरा दोस्त,’’ एक झटके में उस ने बोल दिया और अब वह तैयार थी किसी भी परिणाम के लिए. उस ने निर्णय कर लिया था कि अगर ऋषि नहीं चाहेगा तो वह वहां नहीं रहेगी और सिद्धार्थ के साथ तो कतई नहीं. वह जानती थी कि वह उस का अच्छा दोस्त तो हो सकता है पर अच्छा हमसफर नहीं.

10 मिनट तक ऋषि ने न तो कोई जवाब दिया और न ही अपनी जगह से हिला.

मृदुला रसोई में जा कर कौफी बनाने लगी. बीचबीच में अकेले बैठे सिद्धार्थ से भी बतियाती रही.

अचानक रोहन रसोई में आया और अपना आक्रोश निकालते हुए घर से बाहर चला गया.

कौफी बना कर लाई तो मृदुला ने देखा कि ऋषि कमरे से बाहर आया और फिर बड़े आराम से सिद्धार्थ से हाथ मिला कर उस के पास बैठ गया. उस का दिल जोरजोर से धड़कने लगा कि न जाने अब क्या हो. यह उन दोनों के रिश्ते की मजबूती थी कि कभी भी अपने आपसी झगड़े, गलतफहमी और शिकवेशिकायत को किसी के सामने नहीं आने दिया. यह सब कुछ बैडरूम के बाहर नहीं आता था. चाहे कितनी भी लड़ाई हो बैडरूम के बाहर वे नौर्मल पतिपत्नी ही होते थे. 10 मिनट बैठ कर बात करने से माहौल की बोझिलता थोड़ी कम हो गई थी. फिर वह मृदुला और सिद्धार्थ को अकेले छोड़ कर वापस अपने कमरे में चला गया.

पूरी तरह से संभालने में मृदुला को थोड़ा वक्त लगा. जैसेजैसे वक्त बीतता गया. उस का खोया विश्वास लौटने लगा आधे घंटे बाद रोहन वापस आया और सीधा रसोई में चला गया. वह उस के पीछेपीछे रसोई में गई तो देखा रोहन समोसे और जलेबियां ले कर आया था.

मृदुला ने आश्चर्य से उस की तरफ देखा तो वह बोला, ‘‘मां, आप के दोस्त के लिए. जब मेरे दोस्त आते हैं तब आप भी तो बाजार जा कर हमारे लिए पैप्सी और चिप्स लाती हो हमारी पसंद का, तो मैं भी आप की पसंद का आप के फ्रैंड के लिए लाया हूं… क्या आप को हक नहीं है दोस्त बनाने का?’’

मृदुला की आंखों में खुशी के आंसू भर आए और फिर वह खुशीखुशी प्लेट में समोसे और जलेबियां डालने लगी.

करीब 2 घंटे बाद सिद्धार्थ 7 बजे की फ्लाइट से मुंबई लौट गया.

सिद्धार्थ के जाने के बाद मृदुला को डर लग रहा था कि न जाने अब ऋषि क्या बखेड़ा करेगा. डर के मारे वह उस के सामने जाने से कतरा रही थी.

रात का खाना खाने के बाद जब वह बिस्तर पर लेटी तो ऋषि ने पूछा, ‘‘सिद्धार्थ

चला गया?’’

‘‘हां, चला गया.’’

‘‘तुम्हारा सच्चा दोस्त लगता है, तभी इतनी दूर से तुम से मिलने चला आया.’’

‘‘आप को बुरा लगा कि मैं ने एक आदमी से दोस्ती की? मुझे अपना घर दोस्त से ज्यादा प्यारा है और आज की इस हरकत के लिए आप जो चाहो मुझे सजा दे सकते हो.’’

‘‘सजा? कैसी सजा? तुम ने कुछ गलत तो नहीं किया… मैं 1 हफ्ते पहले से ही जानता था कि तुम्हारा दोस्त आने वाला है.’’

मृदुला यह सुन कर चौंक गई. फिर बोली, ‘‘तो आप ने मुझे कुछ कहा क्यों नहीं?’’

‘‘देखो मृदुला, मैं ने 20 साल तुम्हारे साथ काटे हैं… तुम्हारी रगरग से वाकिफ हूं. तुम चाहतीं तो उस से बाहर भी मिल सकती थीं पर तुम ने ऐसा नहीं किया…

कहीं अंदर तुम्हें भी मुझ पर हमारे रिश्ते पर विश्वास था… मैं उन पतियों में से नहीं हूं जो पत्नी को इनसान नहीं समझते… दोस्ती तो किसी से और कभी भी हो सकती है… हफ्ता भर पहले जब तुम ने उसे फोन पर घर आने का न्यौता दिया था तभी मैं ने तुम्हारी सारी बातें सुन ली थीं और मैं तुम्हारे विश्वास को ठेस नहीं पहुंचाना चाहता था. विश्वास की आन तो मुझे रखनी ही थी,’’ पति की बातें सुन कर मृदुला की आंखों से खुशी की आंसू बहने लगे.

‘‘और हां रही बात यह कि एक आदमी और एक औरत कभी दोस्त नहीं हो सकते, उस में मैं समझता हूं कि मैं ने आज तक तो तुम्हें कभी शिकायत का मौका नहीं दिया… क्यों ठीक कह रहा हूं न मैं?’’

पति की आखिरी बात का मतलब समझते हुए मृदुला शर्म से लाल हो गई और फिर लजाती हुई पति की बांहों में समा गई.

Family Story: तीसरी कौन – दिशा को रोहित में बदलाव समझ नहीं आ रहा था

Family Story: पलंग के सामने वाली खिड़की से बारिश में भीगी ठंडी हवाओं ने दिशा को पैर चादर में करने को मजबूर कर दिया. वह पत्रिका में एक कहानी पढ़ रही थी. इस सुहावने मौसम में बिस्तर में दुबक कर कहानी का आनंद उठाना चाह रही थी, पर खिड़की से आती ठंडी हवा के कारण चादर से मुंह ढक कर लेट गई. मन ही मन कहानी के रस में डूबनेउतराने लगी…

तभी कमरे में किसी की आहट ने उस का ध्यान भंग कर दिया. चूडि़यों की खनक से वह समझ गई कि ये अपरा दीदी हैं. वह मन ही मन मुसकराई कि वे मुझे गोलू समझेंगी. उसी के बिस्तर पर जो लेटी हूं. मगर अपरा अपने कमरे की साफसफाई में व्यस्त हो गईं. यह एक बड़ा हौल था, जिस के एक हिस्से में अपरा ने अपना बैड व दूसरे सिरे पर गोलू का बैड लगा रखा है. बीच में सोफे डाल कर टीवी देखने की व्यवस्था कर रखी है.

‘‘लाओ, यह कपड़ा मुझे दो. मैं तुम से बेहतर ड्रैसिंग टेबल चमका दूंगा… तुम इस गुलाब को अपने बालों में सजा कर दिखाओ.’’

‘‘यह तो रोहित की आवाज है,’’ दिशा बुदबुदाई. एक क्षण तो उसे लगा कि दोनों मियांबीवी के वार्त्तालाप के बीच कूद पड़े. फिर दूसरे ही क्षण जैसा चल रहा है वैसा चलने दो, सोच चुपचाप पड़ी रही. उन का वार्त्तालाप उस के कान गूंजने लगा…

‘‘अरे, आप रहने दो मैं कर लूंगी.’’

‘‘फिक्र न करो. मुझे अपने काम की कीमत वसूलनी भी आती है.’’

‘‘आप जाइए न यहां से… कहीं दिन में ही न शुरू हो जाइएगा.’’

‘‘अरे मान भी जाओ… यह रोमांटिक बारिश देख रही हो.’’

दिशा के कान बंद हो चुके थे और आंसू आंखों से निकल कर कनपटियों को जलाने लगे थे. ये रोहित कब से इतने रोमांटिक हो गए? चूडि़यों की खनखन और एक उन्मत्त प्रेमी की सांसें मानो उस के चारों ओर भंवर सी मंडराने लगी थीं. अब उस के अंदर हिलनेडुलने की भी शक्ति शेष न रही थी. कमरे में आया तूफान भले ही थम गया हो, मगर दिशा की गृहस्थी की जड़ों को बुरी तरह हिला गया. किसी तरह अपनेआप को संभाला और दरवाजे की ओर बढ़ गई. जातेजाते एक नजर उस बैड पर डालना न भूली जिस पर अपरा और रोहित कंबल के अंदर एकदूसरे को बांहों में भरे थे. अपने कमरे में आ कर दिशा ने एक नजर चारों तरफ दौड़ाई… क्या अंतर है इस बैडरूम और अपरा दीदी के बैडरूम में? जो रोहित इस कमरे में तो शांत और गंभीर बने रहते हैं वे उस कमरे में इतने रोमांटिक हो जाते हैं? आज भले ही उस के वैवाहिक जीवन के 15 वर्ष गुजर गए हों. मगर उस ने रोहित का यह रूप कभी नहीं देखा. आईने के सम्मुख दिशा एक बार फिर से अपने चेहरे को जांचने को विवश हो गई थी.

रोहित और दिशा के विवाह के 10 वर्ष बीत जाने पर भी जब उन को संतान की प्राप्ति नहीं हुई तो अपनी शारीरिक कमी को स्वीकारते हुए दिशा ने खुद ही रोहित को पुनर्विवाह के लिए राजी कर लिया और अपने ताऊजी की बेटी, जो 35 वर्ष की दहलीज पर भी कुंआरी थी के साथ करवा दिया. अपरा भले ही दिशा से 6-7 वर्ष बड़ी थी, मगर विवाह के विषय में पीछे रह गई थी. शुरूशुरू के रिश्तों में अपरा मीनमेख ही निकालती रही. 30 पार करतेकरते रिश्ते आने बंद हो गए. फिर दुहाजू रिश्ते आने लगे, जिन के लिए वह साफ मना कर देती. मगर दिशा का लाया प्रस्ताव उस ने काफी नानुकर के बाद स्वीकार कर लिया. तीनों जानते थे कि यह दूसरा विवाह गैरकानूनी है. ज्यादातर मामलों में हर जगह पत्नी का नाम दिशा ही लिखा जाता चाहे मौजूद अपरा हो. कुछ जुगाड़ कर के अपरा ने 2-2 आधार कार्ड और पैन कार्ड बनवा लिए थे. एक में उस का फोटो पर नाम दिशा था और दूसरे में फोटो व नाम भी उसी के. तीनों जानते थे कि कभी कुछ गड़बड़ हो सकती है पर उन्हें आज की पड़ी है.

फिर साल भर में गोलू भी गोद में आ गया तो सभी कहने लगे कि देखा अपरा का गठजोड़ तो यहां का था तो पहले कैसे विवाह हो जाता. दिशा तो पहले ही इस स्थिति को कुदरत का लेखा मान कर स्वीकार कर चुकी थी. अब तो गोलू भी 4 वर्ष का हो गया है. तो फिर आज ही उसे क्यों लग रहा है कि वही गलत थी. उस ने अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मार ली है. उस ने कभी अपने और अपरा दीदी के बीच रोहित के समय को ले कर न कोई विवाद किया, न ही शारीरिक संबंधों को कोई तवज्जो दी. लेकिन आज रोहित का उन्मुक्त व्यवहार उसे कचोट गया. आज लग रहा है वह ठगी गई है अपनों के ही हाथों. वह कभी रोहित से पूछती कि कैसी लग रही हूं तो सुनने को मिलता ठीक. खाना कैसा बना है? ठीक. यह सामान कैसा लगा? ठीक है. इन छोटेछोटे वाक्यों से रोहित की बात समाप्त हो जाती. न कभी कोई उपहार, न कोई सरप्राइज और न ही कोई हंसीमजाक. वह तो रोहित के इसी धीरगंभीर रूप से परिचित थी. फिर आज का उन्मुक्त प्रेमी. यह नया मुखौटा… ये सब क्या है? वह रातदिन अपरा दीदी, अपरा दीदी कहते नहीं थकती. पूरे घर की जिम्मेदारी अपरा को सौंप गोलू की मां बन कर ही खुश थी. अगर कोई नया घर में आता तो उसे ही दूसरे विवाह का समझता, एक तो कम उम्र दूसरा कार्यों को जिस निपुणता से अपरा संभालती उस का मुकाबला तो वह कर ही नहीं सकती थी. लोग कहते दोनों बहनें कितने प्रेम से रहती हैं. रहती भी कैसे नहीं, दिशा ने अपने सारे अधिकार जो खुशीखुशी अपरा को सौंप दिए थे. घर की चाबियों से ले कर रोहित तक. पर आज उसे इतना कष्ट क्यों हो रहा है?

बारबार एक ही खयाल आ रहा है कि वह एक बच्चा गोद भी ले सकती थी. मां ने कितना समझाया था कि एक दिन तू जरूर पछताएगी दिशा, पुनर्विवाह का चक्कर छोड़ एक बच्चा गोद ले ले अनाथाश्रम से… उसे घर मिल जाएगा और तुझे संतान… जब रोहित को कोई एतराज ही नहीं है तो फिर तू यह जिद क्यों कर रहीहै? सौत तो मिट्टी की भी बुरी लगती है. इस पर दिशा कहती कि नहीं मां रोहित मेरी हर बात मानते हैं, कमी मुझ में है, तो मैं रोहित को उस की संतान से वंचित क्यों रखूं? आजलगता है कि क्या फर्क पड़ जाता यदि गोलू की जगह गोद लिया बच्चा होता तो? घर में सिर्फ 3 प्राणी ही होते और रोहित उस के पहलू में सोया करते. आज उसे अपरा से ज्यादा रोहित अपराधी लग रहे थे. वे हमेशा उस की उपेक्षा करते रहे. लोग ठीक ही कहते हैं कि पहली सेवा करने के लिए और दूसरी मेवा खाने के लिए होती है. वह हमेशा 2 मीठे बोल सुनने को तरसती रही. फिर इसे रोहित की आदत मान कर चुप्पी साध ली, पर आज यह क्या था? ये उच्छृंखल व्यवहार, ये मीठेमीठे बोल, वह गुलाब का फूल.

अपरा दीदी मुझे जो इतना मान देती हैं वह सब नाटक है. मेरे सामने दोनों आपस में ज्यादा बात भी नहीं करते और अपने कमरे में बिछुड़े प्रेमीप्रेमिका या फिर कोई नयानवेला जोड़ा? दिशा की आंखें रोतेरोते सूजने लगी थीं. अपरा दीदी, अपरा दीदी कहतेकहते उस की जबान न थकती थी… वही अपरा आज उस की अपराधी बन सामने है. उस से उम्र में तजरबे में हर लिहाज से बड़ी थीं. उसे समझा सकती थीं कि यह दूसरे विवाह का चक्कर छोड़ एक बच्चा गोद ले ले. मेरा विवाह तो 19 वर्ष की कच्ची उम्र में ही हो गया था.

रोहित 10 साल बड़े थे. एक परिपक्व पुरुष… उन का मेरा क्या जोड़? न तो एकजैसे विचार न ही आचार… सास भी विवाह के साल भर में साथ छोड़ गईं. अपनी कच्ची गृहस्थी में जैसा उचित लगा वैसा करती गई. शायद ज्यादा भावुकता भी उचित नहीं होती. अपनी बेरंग जिंदगी के लिए किसे दोषी ठहराए? कौन है उस का अपराधी. रोहित, अपरा या वह खुद?

Family Story: मैं जलती हूं तुम से – विपिन का कौन सा राज जानना चाहती थी नीरा

Family Story: विपिन और मैं डाइनिंगटेबल पर नाश्ता कर रहे थे. अचानक मेरा मोबाइल बजा. हमारी बाई लता का फोन था.

‘‘मैडम, आज नहीं आऊंगी. कुछ काम है.’’

मैं ने कहा, ‘‘ठीक है,’’ पर मेरा मूड खराब हो गया.

विपिन ने अंदाजा लगा लिया.

‘‘क्या हुआ? आज छुट्टी पर है?’’

मैं ने कहा, ‘‘हां.’’

‘‘कोई बात नहीं नीरा, टेक इट ईजी.’’

मैं ने ठंडी सांस लेते हुए कहा, ‘‘बड़ी परेशानी होती है… हर हफ्ते 1-2 छुट्टियां कर लेती है. 8 साल पुरानी मेड है… कुछ कहने का मन भी नहीं करता.’’

‘‘हां, तो ठीक है न परेशान मत हो. कुछ मत करना तुम.’’

‘‘अच्छा? तो कैसे काम चलेगा? बिना सफाई किए, बिना बरतन धोए काम चलेगा क्या?’’

‘‘क्यों नहीं चलेगा? तुम सचमुच कुछ मत करना नहीं तो तुम्हारा बैकपेन बढ़ जाएगा… जरूरत ही नहीं है कुछ करने की… लता कल आएगी तो सब साफ कर लेगी.’’

‘‘कैसे हो तुम? इतना आसान होता है क्या सब काम कल के लिए छोड़ कर बैठ जाना?’’

‘‘अरे, बहुत आसान होता है. देखो खाना बन चुका है. शैली कालेज जा चुकी है, मैं भी औफिस जा रहा हूं. शैली और मैं अब शाम को ही आएंगे. तुम अकेली ही हो पूरा दिन. घर साफ ही है. कोई छोटा बच्चा तो है नहीं घर में जो घर गंदा करेगा. बरतन की जरूरत हो तो और निकाल लेना. बस, आराम करो, खुश रहो, यह तो बहुत छोटी सी बात है. इस के लिए क्या सुबहसुबह मूड खराब करना.’’

मैं विपिन का शांत, सौम्य चेहरा देखती रह गई. 25 सालों का साथ है हमारा. आज भी मुझे उन पर, उन की सोच पर प्यार पहले दिन की ही तरह आ जाता है.

मैं उन्हें जिस तरह से देख रही थी, यह देख वे हंस पड़े. बोले, ‘‘क्या सोचने लगी?’’

मेरे मुंह से न जाने क्यों यही निकला, ‘‘तुम्हें पता है, मैं जलती हूं तुम से?’’

जोर का ठहाका लगा कर हंस पड़े विपिन, ‘‘सच? पर क्यों?’’

मैं भी हंस दी. वे बोले, ‘‘बताओ तो?’’

मैं ने न में सिर हिला दिया.

फिर उन्होंने घड़ी देखते हुए कहा, ‘‘अब चलता हूं, आज औफिस में भी इस बात पर हंसी आएगी कि मेरी पत्नी ही जलती है मुझ से. भई, वाह क्या बात कही. शाम को आऊंगा तो बताना.’’

विपिन औफिस चले गए. मैं ने घर में इधर, उधर घूम कर देखा. हां, ठीक ही तो कह रहे थे विपिन. घर साफ ही है पर मैं भी आदत से मजबूर हूं. किचन में सारा दिन जूठे बरतन तो नहीं देख सकती न. सोचा बरतन धो लेती हूं. बस फिर झाड़ू लगा लूंगी, पोंछा छोड़ दूंगी. काम करतेकरते अपनी ही कही बात मेरे जेहन में बारबार गूंज रही थी.

हां, यह सच है कभीकभी विपिन के सौम्य, केयरफ्री, मस्तमौला स्वभाव से जलन सी होने लगती है. वे हैं ही ऐसे. कई बार उन्हें कह चुकी हूं कि विपिन, तुम्हारे अंदर किसी संत का दिल है क्या, वरना तो क्या यह संभव है कि इंसान किसी भी विपरीत परिस्थिति में विचलित न हो? ऐसा भी नहीं कि कभी उन्होंने कोईर् परेशानी या दुख नहीं देखा. बहुत कुछ सहा है पर हर विपरीत परिस्थिति से यों निकल आते हैं जैसे बस कोई धूल भरा कपड़ा धो कर झटक कर तार पर डाल कर हाथ धो लिए हों. जब भी कभी मूड खराब होता है बस कुछ पल चुपचाप बैठते हैं और फिर स्वयं को सामान्य कर वही हलकीफुलकी बातें. कई बार उन्हें छेड़ चुकी हूं कि कोई गुरुमंत्र पढ़ लेते हो क्या मन में?

रात में सोने के समय अगर हम दोनों को कोई बात परेशान कर रही हो तो जहां मैं रात भर करवटें बदलती रहती हूं, वहीं वे लेटते ही चैन की नींद सो जाते हैं.

विपिन की सोने की आदत से कभीकभी मन में आता है कि काश, मैं भी विपिन की तरह होती तो कितनी आसान सी जिंदगी जी लेती पर नहीं, मुझे तो अगर एक बार परेशान कर रही है तो सुखचैन खत्म हो जाता है मेरा, जब तक कि उस का हल न निकल आए पर विपिन फिर सुबह चुस्तदुरुस्त सुबह की सैर पर जाने के लिए तैयार.

विदेश में पढ़ रहा हमारा बेटा पर्व. अगर सुबह से रात तक फोन न कर पाए तो मेरा तो मुंह लटक जाता है पर विपिन कहेंगे ‘‘अरे, बिजी होगा. वहां सब उसे अपनेआप मैनेज करना पड़ता है. जैसे ही फुरसत होगी कर लेगा फोन वरना तुम ही कर लेना. परेशान होने की क्या बात है? इतना मत सोचा करो.’’

मैं घूरती हूं तो हंस पड़ते हैं, ‘‘हां, अब यही कहोगी न कि तुम मां हो, मां का दिल वगैरहवगैरह. पर डियर, मैं भी तो उस का पिता हूं, पर परेशान होने से बात बनती नहीं, बिगड़ जाती है.’’

मैं चिढ़ कर कहती हूं, ‘‘अच्छा, गुरुदेव.’’

जब खाने की बात हो, मेरी हर दोस्त, मेरी मां, बच्चे सब हैरान रह जाते हैं कि खाने के मामले में विपिन जैसा सादा इंसान शायद ही कोई दूसरा हो.

कई सहेलियां तो अकसर कहती हैं, ‘‘नीरा, जलन होती है तुम से… कितना अच्छा पति मिला है तुम्हें… कोई नखरा नहीं.’’

हां, तो आज मैं यही तो सोच रही हूं कि जलन होती है विपिन से, जो खाना प्लेट में हो, इतने शौक से खाएंगे कि क्या कहा जाए. सिर्फ दालचावल भी इतना रस ले कर खाएंगे कि मैं उन का मुंह देखती रह जाती हूं कि क्या सचमुच उन्हें इतना मजा आ रहा होगा खाने में.

हम तीनों अगर कोई मूवी देखने जाएं और अगर मूवी खराब हुई तो शैली और मैं कार में मूवी की आलोचना करेंगे. अगर विपिन से पूछेंगे कि कैसी लगी तो कहेंगे कि अच्छी तो नहीं थी पर अब क्या मूड खराब करना. टाइमपास करने गए थे न, कर आए. हंसी आ जाती है इस फिलौसफी पर.

हद तो तब थी जब हमारे एक घनिष्ठ रिश्तेदार ने निरर्थक बात पर हमारे साथ दुर्व्यवहार किया. हमारे संबंध हमेशा के लिए खराब हो गए. जहां मैं कई दिनों तक दुख में डूबी रही, वहीं थोड़ी देर चुप बैठने के बाद उन्होंने मुझे प्यार भरे गंभीर स्वर में कुछ यों समझाया, ‘‘नीरा, बस भूल जाओ उन्हें. यही संतोष है कि हम ने तो कुछ बुरा नहीं कहा उन्हें और अगर किसी अपने से इतना दिल दुखे तो वह फिर अपना कहां हुआ. अपने से तो प्यार, सहयोग मिलना चाहिए न… जो इतने सालों से मानसिक कष्ट दे रहे थे, उन से दूर होने पर खुश होना चाहिए कि व्यर्थ के झूठे रिश्तों से मुक्ति मिली, ऐसे अपने किस काम के जो मन को अकारण आहत करते रहें.’’

विपिन के बारे में ही सोचतेसोचते मैं ने अपने सारे काम निबटा लिए थे. आज अपनी ही कही बात में मेरा ध्यान था. ऐसे अनगिनत उदाहरण

हैं जब मुझे लगता है काश, मैं विपिन की तरह होती. हर बात को उन की तरह सोच लेती. हां, उन के जीने के अंदाज से जलन होती है मुझे,

पर इस जलन में असीमित प्रेम है मेरा, सम्मान है, गर्व है, खुशी है. उन की सोच ने मुझे जीवन में कई बार मेरे भावुक मन को निराशाओं से उबारा है.

शाम को विपिन जब औफिस से लौटे तो सामान्य बातचीत के बाद उन्होंने किचन में झांका, तो हंस पड़े, ‘‘मैं जानता था तुम मानोगी नहीं. सारे काम कर लोगी… क्यों किया ये सब?’’

‘‘जब जानते हो मानूंगी नहीं तो यह भी पता होगा कि पूरा दिन गंदा घर मुझे अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘अच्छा, ठीक है तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘हां,’’ वे जब तक फ्रैश हो कर आए, मैं ने चाय बना ली थी.

चाय पीतेपीते मुसकराए, ‘‘चलो, बताओ क्यों जलती हो मुझ से? सोचा था, औफिस से फोन पर पूछूंगा, पर काम बहुत था. अब बताओ.’’

‘‘यह जो हर स्थिति में तालमेल स्थापित कर लेते हो न तुम, इस से जलती हूं मैं. बहुत हो गया, आज गुरुमंत्र दे ही दो नहीं तो तुम्हारे जीने के अंदाज पर रोज ऐसे ही जलती रहूंगी मैं,’’ कह कर मैं हसी पड़ी.

विपिन ने मुझे गहरी नजरों देखते हुए कहा, ‘‘जीवन में जो हमारी इच्छानुसार न हो, उसे चुपचाप स्वीकार कर लो. जीवन जीने का यही एकमात्र उपाय है, ‘टेक लाइफ एज इट कम्स’.’’

मैं उन्हें अपलक देख रही थी. सादे से शब्द कितने गहरे थे. मैं तनमन से उन शब्दों को आत्मसात कर रही थी.

अचानक उन्होंने शरारत भरे स्वर में पूछा, ‘‘अब भी मुझ से जलन होगी?’’

मैं जोर से हंस पड़ी.

Romantic Story: दीमक – अविनाश के प्यार में क्या दीपंकर को भूल गई नम्रता?

Romantic Story: ऐंटीटर्माइटका छिड़काव हो रहा था. उस की अजीब सी दुर्गंध सांसों में घुली जा रही थी. एक बेचैनी और उदासी उस फैलते धुएंनुमा स्प्रे के कारण उस के भीतर समा रही थी. उफ, यह नन्ही सी दीमक किस तरह जीवन की गति में अवरोध पैदा कर देती है. हर चीज अस्तव्यस्त…कमरे, रसोई, हर अलमारी और पलंगों को खाली करना पड़ा है…खूबसूरत कैबिनटों पर रखे शोपीस, किताबें सब कुछ इधरउधर बिखरा पड़ा है.

हर 2-3 महीने में यह छिड़काव कराना जरूरी होता है. जब दिल्ली से फरीदाबाद आए थे तो किसे पता था कि इस तरह की परेशानी उस की जिंदगी की संगति को ही बिगाड़ कर रख देगी. अगर अपना मकान बनाना एक बहुत बड़ी सिरदर्दी और टैंशन का काम लगता है तो बनाबनाया मकान लेने की चाह भी चैन छीनने में कोई कसर नहीं छोड़ती है. जबउस में आ कर रहो तभी छूटी हुई खामियां जैसे छिपी दरारें, दरकती दीवारें आदि 1-1 कर सामने आने लगती हैं. पर इस जमाने में दिल्ली में 600 गज की कोठी खरीदना किसी बहुत बड़े सपने से कम नहीं है और आसपास एनसीआर इतने भर चुके हैं कि वहां भी कीमत आसमान रही है. ऐसे में फरीदाबाद का विकल्प ही उन के पास बचा था जहां बजट में कोठी मिल गई थी. तब तो यही सोचा था कि फरीदाबाद कौन सा दूर है, इसलिए यह कोठी खरीद ली थी.

हालांकि वह दिल्ली छोड़ कर आना नहीं चाहती थी, पर उस के पति दीपंकर की जिद थी कि उन्हें स्टेटस को मैंटेन करने के लिए कोठी में रहना ही चाहिए. आखिर क्या कमी है उन्हें. पैसा, पावर और स्टेटस सब है उस का सोसायटी में. फिर जब कारें घर के बाहर खड़ी हैं तो दिल्ली कौन सी दूर है. रोजरोज दिल्ली आनेजाने के झंझट के बारे में सोच उस के माथे पर शिकन उभर आई थी, पर बहस करने का कोई औचित्य नहीं था.

‘‘मैडम, हम ने स्प्रे कर दिया है, पर 3 महीने बाद आप को फिर करवाना होगा. दीमक जब एक बार फैल जाती है, तो बहुत आसानी से पीछा नहीं छोड़ती है जब तक कि पूरी तरह अंदर तक फैली उस की सुरंगें नष्ट न हो जाएं. दीमक लकड़ी में एक के बाद एक सुरंग बनाती जाती है. बाहर से पता नहीं चलता कि लकड़ी को कोई नुकसान पहुंच रहा है, पर उसे वह अंदर से बिलकुल खोखला कर देती है. अच्छा होगा कि आप साल भर का कौंट्रैक्ट हमारी कंपनी के साथ कर लें. फिर हम खुद ही आ कर स्प्रे कर जाया करेंगे. आप को बुलाने का झंझट नहीं रहेगा,’’ स्मार्ट ऐग्जीक्यूटिव, अपनी कंपनी का बिजनैस बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता था.

यहीं आने पर पता चला था फरीदाबाद में मेहंदी की खेती होती है, इसलिए दीमक बहुत जल्दी जगहजगह लग जाती है. स्प्रे की गंध उसे अभी भी अकुला रही थी. लग रहा था जैसे उलटी आ जाएगी. भीनीभीनी मेहंदी की सुगंध कितनी भाती है, पर जब उस की वजह से दीमक फैलने लगे, तो उस की खुशबू ही क्या, उस का रंग भी आंखों को चुभने लगता है. एक नन्ही सी दीमक किस तरह से घर को खोखला कर देती है. ठीक वैसे जैसे छोटीछोटी बातें रिश्ते की मजबूत दीवारों को गिराने लगती हैं. वे इतनी खोखली हो जाती हैं कि उस शून्यता और रिक्तता को भरने के लिए पूरी जिंदगी भी कम लगने लगती है.

‘‘ठीक है, आप कौंट्रैक्ट तैयार कर लें. पेपर तैयार कर कल आ जाएं. मैं इस समय बिजी हूं,’’ वह किसी भी तरह से उसे वहां से टालने के मूड में थी.

हर तरफ सामान बिखरा हुआ था और उसे शाम को अवनीश से मिलने जाना था. मेड को हिदायतें दे कर वह थोड़ी देर बाद ही सजधज कर बाहर निकल गई. अवनीश से मिलने जाना है तो ड्राइवर को नहीं ले जा सकती, इसलिए खुद ही दिल्ली तक ड्राइव करना पड़ा. जब से अवनीश उस की जिंदगी में आया था, उस की दुनिया रंगीन हो गई थी. शादी को 2 साल हो गए हैं, पर दीपंकर से उस की कभी नहीं बनी. रोमांस और रोमांच तो जैसे क्या होता है, उसे पता तक नहीं है. वह तो शुरू से ही बिंदास किस्म की रही है. घूमनाफिरना, पार्टियां अटैंड कर मौजमस्ती करना उस की फितरत है. दीपंकर के पास तो कभी उस के लिए टाइम होता ही नहीं है, बस पैसा कमाने और अपने बिजनैस टूअर में बिजी रहता है. हमेशा एक गंभीरता सी उस के चेहरे पर बनी रहती है.

दूसरी तरफ अवनीश है. स्मार्ट, हैंडसम और उसी की तरह मौजमस्ती करना पसंद करने वाला. हमेशा हंसता रहता है. उस की हर बात पर ध्यान देता है जैसे उसे कौन सा कलर सूट करता है, उस का हेयरस्टाइल आज कैसा है या कब उस ने कौन से शेड की लिपस्टिक लगाई थी. यहां तक कि उसे यह भी पता है कि वह कौन सा परफ्यूम पसंद करती है. दीपंकर को तो यह भी पता नहीं चलता कि कब उस ने नई ड्रैस खरीदी है या कौन सी साड़ी में वह ज्यादा खूबसूरत लगती है. हां, पैसे देने में कभी कटौती नहीं करता न ही पूछता कि कहां खर्च  कर रही हो?

‘‘हाय मेरी जान, बला की खूबसूरत लग रही हो…कितनी देर लगा दी. तुम्हारा इंतजार करतेकरते सूख गया मैं,’’ अवनीश की इसी अदा पर तो मरती है वह.

‘‘ट्रैफिक प्रौब्लम… ऐनी वे बताओ आज का क्या प्रोग्राम है?’’

‘‘शाम ढलने को है, प्रोग्राम क्या होना चाहिए, तुम ही सोचो,’’ अवनीश ने उसे आंख मारते हुए कहा तो वह शरमा गई.

अवनीश अकेला था और कुंआरा भी. अपने दोस्त के साथ एक कमरा शेयर कर के रहता था. दोनों के बीच आपस में पहले से ही तय था कि जब वह नम्रता को वहां ले जाएगा तो वह देर आएगा. अवनीश की बांहों से जब नम्रता मुक्त हुई तो बहुत खुश थी और अवनीश तो जैसे हमेशा उसे पा लेने को आतुर रहता था.

‘‘तुम ने मुझे दीवाना बना दिया है नम्रता. अच्छा आजकल सेल चल रही है, क्या खयाल है तुम्हारा कल कुछ शौपिंग करें?’’

‘‘मेरे होते हुए तुम्हें सेल में खरीदारी करने की क्या जरूरत?’’ कह नम्रता निकल गई और अवनीश उस के लाए हुए परफ्यूम को लगाने लगा.

‘‘सही मुरगी हाथ लगी है तेरे. बहुत ऐश कर रहा है,’’ अवनीश के दोस्त ने परफ्यूम से महकते कमरे में घुसते हुए कहा.

‘‘तू क्यों जल रहा है? फायदा तो तेरा भी होता है. मेरी सारी चीजों का तू भी तो इस्तेमाल करता है?’’ अवनीश बेशर्मी से मुसकराया.

अगले दिन नम्रता ने अवनीश के लिए ढेर सारी शौपिंग की. कुछ और भी

खरीदना है, कह कर उस ने नम्रता से उस का कै्रडिट कार्ड ले लिया. वह जानता था कि नम्रता अपने पति को पसंद नहीं करती है, इसलिए उस की भावनाओं का खूब फायदा उठा रहा था.

पति से नाखुश होने के कारण उस के अंदर संवेदनशीलता की कमी बनी रहती थी, क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि अवनीश से उस का साथ छूटे. उसे डर लगा रहता था कि कहीं वह शादी न कर ले. कभीकभी भावुक हो वह उस के सामने रो भी पड़ती थी.

3 महीने बाद जब फिर से ऐंटीटर्माइट स्प्रे करने कंपनी के लोग आए, तो उन्होंने कहा लकड़ी को गीला होने से बचाना चाहिए. उसे पता चला कि  दीमक नमी वाले स्थानों में अधिक पाई जाती है. जहां कहीं भी गली हुई लकड़ी मिलती है, वह तुरंत वहां अपनी पैठ बना लेती है. उस ने तो इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया था कि अवनीश धीरेधीरे उस के जीवन में पैठ बना कर उसे खोखला बनाता जा रहा है.

‘‘तुम्हारे पति की बहुत पहुंच है, उन से कह कर मेरे बौस का यह काम करवा दो न,’’ अवनीश ने एक दिन नम्रता के गालों को चूमते हुए कहा तो वह बोली, ‘‘तुम ने कह दिया, समझो हो गया. दीपंकर मेरी कोई बात नहीं टालते हैं. अच्छा चलो आज लंच किसी बढि़या होटल में करते हैं.’’

नम्रता सोचती थी कि अवनीश की वजह से उस की जिंदगी में बहार है…तितली की तरह उस के चारों ओर मंडराती रहती. उस के मुंह से अपनी प्रशंसा सुन बादलों में उड़ती रहती. दूसरी ओर अवनीश की मौज थी. उस का शरीर, पैसा और हर तरह की ऐश की मौज लूट रहा था.

जब नम्रता ने बताया के दीपंकर बिजनैस ट्रिप पर हफ्ते भर के लिए सिंगापुर जा रहा है, तो उस ने भी नम्रता से किसी हिल स्टेशन पर जाने के लिए प्लेन का टिकट बुक कराने के लिए कहा. दोनों ने वहां बहुत ऐंजौय किया, पर पहली बार उसे अवनीश का खुले हाथों से पैसे खर्चना अखरा.

वह समझ ही नहीं पा रही थी कि अवनीश नामक दीमक उस के और दीपंकर के रिश्ते के बीच आ उसे भुरभुरा कर रहा है. उसे क्या पता था कि दीमक अपना घर बनाने के लिए लकड़ी को खोखला नहीं करती है, बल्कि लकड़ी को ही चट कर जाती है और इसीलिए उस के लग जाने का पता नहीं चलता, क्योंकि वह अपने पीछे किसी तरह का बुरादा तक नहीं छोड़ती है. जब तक लकड़ी का वजूद पूरी तरह से खत्म नहीं हो जाता, दीमक लगने का एहसास तक नहीं हो पाता है. आसानी से उस का पता नहीं लगाया जा सकता, इसलिए उस से छुटकारा पाना भी कभीकभी असंभव हो जाता है. यहां तक कि उसे हटाने के लिए जो छिड़काव किया जाता है, वह उसे भी अपने में समा लेती और अधिक जहरीली हो जाती है.

कुछ दिनों से वह महसूस कर रही थी कि अवनीश की मांगें निरंतर बढ़ती जा रही हैं. जबतब उस का क्रैडिट कार्ड मांग लेता. दीपंकर उस से कहता नहीं है, पर कभीकभी लगता कि मेहनत से कमाए उस के पैसे वह अवनीश पर लुटा कर अच्छा नहीं कर रही है. दीपंकर की सौम्यता और उस पर अटूट विश्वास उसे अपराधबोध से भरने लगा था. माना अवनीश बहुत रोमांटिक है, पर दीपंकर ने कभी यह एहसास तो नहीं कराया कि वह उस से प्यार नहीं करता है. उस का केयर करना क्या प्यार नहीं है और अवनीश है कि बस जब भी मिलता है किसी न किसी तरह से पैसे खर्चवाने की बात करता है. क्या यह प्यार होता है? नहीं अवनीश उसे प्यार नहीं करता है. उस ने कहीं पढ़ा था कि दीमक घास के ऊपर या नमी वाली जमीन पर एक पहाड़ी सी भी बना लेती है जो दूर से देखने में बहुत सुंदर लगती है और एहसास तक नहीं होता कि उसे छूने भर से हाथों में एक अजीब सी सिहरन तक दौड़ सकती है.

पास जा कर देखो तब पता लगता है कि असंख्य दीमक उस के अंदर रेंग रही है और तब एक लिजलिजा सा एहसास मन को घेर लेता है. उसे समझ नहीं आ रहा था कि उस के मन और शरीर पर हावी होती जा रही अवनीशरूपी दीमक पर वह किस स्प्रे का छिड़काव करे… दीपंकर को धोखा देने के कारण मन लकड़ी के बुरादे सा भुरभुरा और खोखला होता जा रहा है…क्षणक्षण कुछ दरक जाता है…न जाने मन के कपाट इस सूरत में कितने समय तक बंद रह सकते हैं. डरती है वह कहीं कपाट खुल गए तो संबंधों की कड़ी ही न ढीली पड़ जाए. जब मजबूती न रहे तो टूटने में बहुत देर नहीं लगती किसी भी चीज को…फिर यह तो रिश्ता है. नम्रता को एहसास हुआ कि अपने पति की कमियों और रिश्ते से नाखुश होने के कारण उस के भीतर से जो संवेदनाओें का बहाव हो रहा है, उस की नमी में दीमक ने अपना घर बना लिया है. अवनीश के सामने उस ने दिल के दरवाजे खोल दिए हैं उस ने भी तो…उस की आंसुओं की आर्द्रता से मिलती नमी में पनपने और जगह बनाने का मौका मिल रहा है उसे.

अचानक उसे महसूस हुआ कि दीमक उस के घर में ही नहीं, उस की जिंदगी में भी लगी हुई है. धीरेधीरे वह किस तरह बिखर रही है…बाहर से सब सुंदर और अच्छा लगता है, पर अंदर ढेरों सुरंगें बनती जा रही हैं, जिन्हें बनने से अभी न रोका गया तो बाहर आना मुश्किल हो जाएगा. दीमक उस के जीवन को किसी बुरादे में बदल दे, उस से पहले ही हर जगह छिड़काव कराना होगा.‘‘दीमक कुछ ज्यादा ही फैल रही है, आप तुरंत किसी को भेजें. मुझे इसे पूरी तरह से हटाना है,’’ नम्रता नेघर में स्प्रे करवाने के लिए कंपनी में समय से पहले ही फोन कर उन्हें आने को कहा. ‘‘पर मैडम, अभी तो स्प्रे किए 2 ही महीने हुए हैं, 3 महीने बाद इसे करना होता है.’’

‘‘आप ऐक्स्ट्रा पैसे ले लेना. दीमक और फैल गई, तो सब बिखर जाएगा. आज ही भेज दो आदमी को, दीमक फैल रही है,’’ फोन तो कब का कट चुका था, पर वह लगातार बुदबुदा रही थी, ‘‘दीमक को फैलने से रोकना ही होगा.’’ उस के मोबाइल पर अवनीश का फोन आने लगा था. यह पहली बार हुआ था जब उस ने दूसरी घंटी भी बजाने दी थी. फिर तो रिंग होती ही रही. मोबाइल हाथ में ही था. जब उसे अहसास हुआ तो 10 मिनट बीत चुके थे. अवनीश की 5 मिस्ड काल्स थीं. उस ने मोबाइल साइलैंट मोड पर कर दिया और कपड़ों की अलमारी से कपड़े निकालने लगी, जो कपड़े अवनीश के साथ खरीदे थे उन में तो बुरी तरह दीमक लग चुकी थी. उन्हें बाहर ले जा कर जला डालना ही ठीक होगा.

Family Story: सबक – क्यों शादी के बाद राहुल बदल गया था

Family Story: ‘‘सुनो क्या आप औफिस से आते हुए सब्जी लेते आओगे?’’ संगीता जल्दी जल्दी घर में ताला लगाते हुए बोली.

सुन कर राहुल चौंक गया. बोला, ‘‘क्यों, तुम्हें क्या हुआ? रोज तो तुम्हीं लाती हो?’’

‘‘आज मुझे घर आने में देर हो जाएगी… मम्मी के घर जाना है. उन की तबीयत ठीक नहीं है.’’

संगीता की बात सुनते ही राहुल की त्योरियां चढ़ गईं, ‘‘तुम्हें तो रोज मायके जाने का कोई बहाना चाहिए… कभी मम्मी की तबीयत ठीक नहीं है, तो कभी पापा का मूड खराब है,’’ राहुल झुंझलाते हुए बोला.

राहुल की बात सुन कर संगीता रोंआसी हो गई. मांबाप की इकलौती संतान संगीता ने विवाह से पहले ही राहुल से कह दिया था कि उसे अपने मांबाप का खयाल रखना है. तब तो राहुल ने उस की इस सोच को सराहा था, लेकिन अब जब भी वह मायके जाने का नाम लेती है, राहुल ऐसे ही रिऐक्ट करता है. वैसे तो वह चुपचाप राहुल की बात सुन लेती है, लेकिन आज उस की बात संगीता के मन में चुभ गई. अत: वह भी तल्ख लहजे में बोली, ‘‘ठीक है, अब मैं वापस घर नहीं आऊंगी वहीं रह लूंगी.’’

राहुल ने संगीता की बात को हलके में लिया और उसे बसस्टौप पर छोड़ कर औफिस चला गया.

संगीता का मूड पूरी तरह खराब हो गया था. बस जब उस के सामने रुकी, तो वह अनमनी सी उस में चढ़ गई. औफिस में जल्दीजल्दी पैंडिंग काम निबटा कर लंच में घर के लिए निकल गई. लेकिन घर जाने के बजाय अपनी सहेली रितु के पास चली गई.

दरवाजे पर संगीता को देखते ही रितु खुशी से उस के गले लग गई.

उस के उदास चेहरे की ओर देखते हुए रितु बोली, ‘‘सचसच बता क्या हुआ? राहुल से फिर झगड़ा हुआ है क्या?’’

‘‘नहीं यार, ऐसी बात नहीं है,’’ संगीता आंखें चुराते हुए बोली.

‘‘अच्छा, तो अब तुम मुझ से बात छिपाओगी,’’ रितु नाराजगी दिखाते हुए बोली.

‘‘नहीं यार, तुझ से क्या छिपाना. तुझे तो सब पता है,’’ संगीता रितु का हाथ पकड़ते हुए बोली.

‘‘अच्छा ठीक है, तू बैठ मैं अभी आती हूं,’’ कह कर रितु किचन में चली गई. थोड़ी देर बाद चायनाश्ता ले कर बाहर आई.

जब संगीता नाश्ता कर चुकी, तो रितु बोली, ‘‘अब बता क्या बात है? क्यों इस खूबसूरत चेहरे पर 12 बज रहे हैं?’’

‘‘क्या बताऊं यार, रोजरोज की किचकिच से तंग आ गई हूं. जब भी राहुल से मम्मी के घर जाने की बात करती हूं, तो उस का पारा चढ़ जाता है. तू तो जानती ही है कि मम्मीपापा का मेरे अलावा और कोई नहीं है. राहुल से यह बात मैं ने पहले ही कह दी थी कि विवाह के बाद भी मैं मम्मीपापा की जिम्मेदारी इसी तरह निभाऊंगी. तब तो उन्होंने हंसते हुए हामी भर दी थी. लेकिन अब अपनी ही बात से पलट गए हैं.’’

‘‘अच्छा तो यह बात है, राहुल ने फिर से तेरे मायके जाने पर ऐतराज जताया. इसीलिए तेरा मूड खराब है,’’ रितु ठंडी सांस लेते हुए बोली, ‘‘चिंता न कर, इस समस्या का कोई समाधान निकालते हैं.’’

‘‘क्या समाधान निकलेगा इस का. मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है… एक तरफ मम्मीपापा हैं, तो दूसरी ओर राहुल. दोनों के प्रति अपने दायित्व निभातेनिभाते मैं तो थक गई हूं… कभीकभी तो मन करता है सब कुछ छोड़ कर कहीं दूर भाग जाऊं,’’ संगीता रोंआसे स्वर में बोली.

रितु कुछ सोचते हुए बोली, ‘‘सही कह रही है तू. कुछ दिनों के लिए इन झमेलों से कहीं दूर चली जा, तब राहुल को पता चलेगा कि बीवी घर में न रहे, तो कैसा महसूस होता है.’’

‘‘क्या तू मेरी बात से सहमत है रितु,’’ संगीता असमंजस में भर कर बोली.

‘‘और नहीं तो क्या? मैं कोई बात बिना सोचेसमझे थोड़े ही करती हूं,’’ रितु बोली.

‘‘पर जाऊं कहां यार यह भी तो समस्या है?’’

‘‘कहीं जाने की जरूरत नहीं है. यहीं मेरे पास ही रह… वरुण पूरे महीने के लिए अमेरिका गए हैं. मैं घर में अकेली ही हूं. दोनों सहेलियां मिल कर कालेज के दिनों की यादों को ताजा करेंगी.’’

‘‘चल यही ठीक है. कुछ दिन मैं तेरे पास ही रहती हूं,’’ संगीता राहत की सांस लेते हुए बोली.

‘‘अभी राहुल को इस बारे में कुछ भी नहीं बताना. उन्हें भी तो पता चले तेरी कीमत… आज जब तू घर नहीं पहुंचेगी तो बच्चू को पता चलेगा.’’

रितु से अपने मन की बात बताने के बाद संगीता बहुत हलका महसूस कर रही थी. रितु ने संगीता के अपने घर रहने की बात उस के माता पिता और सास ससुर को बता दी और साथ ही यह भी बोला कि वे राहुल से यह न बताएं कि संगीता कहां पर है.

औफिस जा कर राहुल संगीता से हुए झगड़े की बात भूल कर अपने काम में बिजी हो गया. जब घड़ी में 8 बजे तो उसे घर जाने की सुध आई. घर पहुंचने के बाद उस ने घर पर ताला देखा, तो उसे सुबह के वाद विवाद की याद आई. वह बड़बड़ाते हुए ताला खोलने लगा, ‘‘कितना भी मना कर लो, पर मैडम करेंगी अपने ही मन की… मायके जाना बंद नहीं कर सकतीं चाहे उस के लिए भले ही पति से झगड़ा मोल लेना पड़े.’’

जब रात के 10 बजे तक भी संगीता घर नहीं आई, तो राहुल को गुस्सा आने लगा कि आज तो हद हो गई. 10 बज गए पर मैडम का कहीं पता नहीं. आज घर आए, तो इस मामले का सही तरीके से निबटारा करता हूं. लेकिन जब 12 बजे तक भी संगीता नहीं आई, तो राहुल को सुबह का वाकेआ याद आ गया, साथ ही अपना डायलौग भी याद आ गया कि तुम वहीं क्यों नहीं रुक जातीं. अब उसे अपनेआप पर गुस्सा आने लगा कि क्यों नहीं वह अपनी जबान पर नियंत्रण रख पाता है. अभी वह संगीता को फोन करने की सोच ही रहा था कि फोन की घंटी बज उठी. धड़कते दिल से उस ने रिसीवर उठाया, तो उस के ससुर रमाकांत थे, ‘‘क्या बात है पापाजी इतनी रात को क्यों फोन किया?’’ राहुल झल्लाते हुए बोला.

‘‘बेटा, जरा संगीता से बात करवा दो, आज वह यहां आने वाली थी, पर आई नहीं. उस की तबीयत तो ठीक है न?’’ रमाकांत सुस्त स्वर में बोले.

रमाकांत की बात सुन कर राहुल घबराहट भरे स्वर में बोला, ‘‘क्या संगीता आप लोगों के पास नहीं गई है? वह तो वहीं जाने वाली थी. अभी तक घर भी नहीं आई है.’’

‘‘क्या कह रहे हो तुम? कहां चली गई मेरी बेटी बिना बताए?’’ रमाकांत रोंआसे स्वर में बोले फिर रिसीवर रख दिया.

अब तो राहुल की हालत खराब हो गई. वह बारबार संगीता के मोबाइल पर फोन करने लगा, लेकिन उस का फोन स्विच औफ आ रहा था.

सुबह होते ही राहुल सब से पहले संगीता के मायके गया. उसे लगा शायद संगीता अपने मम्मीपापा के पास गई हो और उसे सबक सिखाने के लिए यह सब कर रही हो… लेकिन जब संगीता वहां भी नहीं मिली तो वह निराश हो कर उस के औफिस गया. वहां तो पता चला कि संगीता तो लंच के समय ही औफिस से चली गई थी और आज औफिस नहीं आई. हताश सा राहुल घर चला गया. पूरा दिन वह संगीता की अच्छाइयों को याद कर के सुबकता रहा और यह सोच कर कहीं नहीं गया कि शायद संगीता घर वापस आ जाए. लेकिन सुबह से रात हो गई, संगीता नहीं आई.

संगीता और रितु दोनों रात भर गप्पें मारती रहीं. देर रात सोईं. सुबह कालबैल की आवाज से संगीता की नींद टूटी, तो उस ने देखा कि रितु गहरी नींद सो रही है, संगीता का मन उसे जगाने को नहीं हुआ. वह यह सोच कर दरवाजा खोलने चली गई कि दूध वाला आया होगा.

संगीता ने दरवाजा खोला, तो देखा कि दरवाजे पर 4 अजनबी खड़े हैं. उन्हें देख कर वह घबरा गई और जल्दी से दरवाजा बंद करने लगी. लेकिन इस से पहले ही उन चारों में से 2 ने संगीता को दबोच कर गाड़ी में डाल दिया. जब संगीता की आंख खुली, तो उस ने खुद को एक कच्चे घर में पाया. वह घबराई सी इधरउधर देखने लगी, लेकिन कुछ समझ नहीं आया.

संगीता घबराहट के मारे रोने लगी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे, किस से बात करे? फिर चुपचाप किसी के आने की राह देखने लगी. शाम के करीब 4 बजे 2 लोग आए और संगीता से उस के पति के बारे में पूछने लगे. संगीता ने अपने पति राहुल के बारे में बता दिया, तो वे बोले, ‘‘हम राहुल की नहीं वरुण की बात कर रहे हैं.’’

‘‘वरुण तो मेरी सहेली रितु का पति है,’’ संगीता ने अचकचाते हुए पूछा, ‘‘क्या किया है उस ने और आप लोग मुझे क्यों पकड़ कर लाए हैं?’’

रितु की बात सुन कर दोनों अजनबी अचकचा गए. उन्होंने संगीता को डांटते हुए कहा, ‘‘ज्यादा स्मार्ट बनने की कोशिश न करो, तुम्हारे पति ने हमारे मालिक से कर्जा लिया है और अब उसे चुकाने से कतरा रहा है. जब तक हमारा पैसा नहीं मिलेगा हम तुम्हें नहीं छोड़ेंगे… पैसा नहीं मिला तो हम तुम्हें बेच देंगे.’’

अजनबियों की बात सुन कर संगीता के हाथपांव फूल गए. वह सोचने लगी कि अजीब मुसीबत में फंस गई… कैसे छुटकारा मिलेगा? काश, राहुल को फोन कर पाती. दोनों अजनबी संगीता को धमका कर चले गए.

जब अगले दिन भी संगीता अपने घर नहीं पहुंची तो राहुल बुरी तरह टूट गया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे. संगीता को गए 2 दिन हो गए थे, लेकिन उस की कोई खबर नहीं थी. कहीं वह किसी हादसे का शिकार तो नहीं हो गई. यह सोचसोच कर वह रोने लगा.

अगले दिन डोरबैल की आवाज से उस की नींद टूटी. वह खुशीखुशी यह सोच कर दरवाजा खोलने गया कि शायद संगीता हो दरवाजे पर. लेकिन सामने उस के मातापिता खड़े थे. उन्हें देखते ही राहुल के सब्र का बांध टूट गया और वह अपने पिता के गले लग कर बच्चों की तरह रोने लगा.

उस के इस तरह रोने पर घबराते हुए उस के पिता बोले, ‘‘क्या बात है, तुम रो क्यों रहे हो? सब ठीक तो है?’’

‘‘नहीं पिताजी, कुछ भी ठीक नहीं है… संगीता घर छोड़ कर चली गई है… 2 दिन हो गए, लेकिन घर वापस नहीं आई,’’ राहुल सुबकते हुए बोला.

‘‘क्या कहा बहू घर छोड़ कर चली गई. पर क्यों?’’ राहुल की मां हैरानी से बोलीं, ‘‘जरूर तूने ही उस से झगड़ा किया होगा वरना मेरी बहू तो बेहद समझदार है.’’

‘‘हां मां, मैं ने ही उस का दिल दुखाया है… पहली बार नहीं, हमेशा उसे दुखी करता हूं मैं. तभी वह मुझे छोड़ कर चली गई,’’ कहते हुए राहुल ने सारी बात मातापिता को बता दी.

‘‘हूं, किया तो तूने गलत है बेटा, जब उस ने शादी से पहले ही यह कह दिया था कि उसे ही अपने मातापिता का सहारा बनना है, तो तू क्यों उस के मायके जाने पर ऐतराज जताता है? क्या कभी उस ने तुझे रोका है हमारे प्रति अपनी जिम्मेदारियां निभाने से या फिर उस ने कभी हमारी सेवा करने में कोई कसर छोड़ी है?’’ राहुल के पिता उसे समझाते हुए बोले.

‘‘आप सही कह रहे हैं पापा. मैं ही गलत था, जो अपनी बीवी के मनोभावों को नहीं समझ सका. एक बार वह वापस आ जाए, तो मैं उस की सारी बातों को मानूंगा और उस के मातापिता को भी आप की ही तरह समझूंगा.’’

राहुल के मम्मीपापा को उस के घर आए 2 दिन हो गए, लेकिन संगीता का कोई फोन नहीं आया, तो उन्हें भी घबराहट होने लगी. वे सोचने लगे कि संगीता ने हम से कौंटैक्ट क्यों नहीं किया? कहीं सचमुच में उस के साथ कोई हादसा तो नहीं हो गया?

उधर संगीता के अचानक गायब हो जाने से रितु बहुत परेशान थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह अचानक कहां चली गई. उस ने अपने दिल को यह सोच कर तसल्ली दी कि हो सकता है वह राहुल के पास लौट गई हो, लेकिन जाने से पहले वह अपना फोन क्यों नहीं ले कर गई. यह बात रितु को परेशान कर रही थी. 2 दिन तक उस ने संगीता के आने का इंतजार किया, लेकिन जब उस की कोई खबर नहीं मिली, तो उस ने राहुल से मिलने का निश्चय किया. अगले दिन रितु राहुल के औफिस पहुंची और उसे सारी बात बता दी. रितु की बात सुन कर राहुल घबरा गया.

रितु बोली, ‘‘ऐसे घबराने से काम नहीं चलेगा राहुल. लगता है संगीता किसी बड़ी मुसीबत में फंस गई… हमें पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करानी चाहिए.’’

फिर दोनों पुलिस स्टेशन पहुंचे और संगीता की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवा दी. रिपोर्ट लिखवाने के अगले ही दिन राहुल के पास फोन आया कि पास के गांव से कुछ लोगों की शिकायत आई है कि वहां एक खाली मकान में कुछ औरतों को कैद कर के रखा गया है… उन्हें कहीं बाहर भेजने की तैयारी चल रही है. हम वहां रेड मारने जा रहे हैं… आप भी हमारे साथ चलिए… शायद आप की पत्नी की कोई खबर मिल जाए.

फोन सुनते ही राहुल अपने और संगीता के मम्मीपापा के साथ पुलिस स्टेशन पहुंचा, साथ में रितु भी थी. पुलिस की टीम के साथ वे सभी गांव में पहुंचे. वहां एक कमरे में संगीता बंद थी.

सभी औरतों और वहां उपस्थित गुंडों को पकड़ लिया गया. पुलिस इंस्पैक्टर ने राहुल से कहा, ‘‘देखिए, इन में से कोई आप की पत्नी तो नहीं है?’’

उन्हें देख कर राहुल निराश हो गया, क्योंकि उन में संगीता नहीं थी.

इंस्पैक्टर बोले, ‘‘आप परेशान न हों. हम पूरे घर की तलाशी लेते हैं. हो सकता है कि आप की पत्नी को किसी और कमरे में रखा गया हो.’’

पूरे घर की तलाशी लेने के बाद संगीता एक कमरे में घुटनों पर मुंह रखे रोती मिली.

संगीता को देखते ही खुशी के मारे राहुल की चीख निकल गई, ‘‘थैंक्यू इंस्पैक्टर, मेरी पत्नी वह रही.’’

राहुल को देखते ही संगीता उस से लिपट गई. राहुल उस से माफी मांगते हुए बोला, ‘‘मुझे माफ कर दो संगीता… मेरी वजह से तुम्हें इतनी मुसीबतों का सामना करना पड़ा. मैं तुम से वादा करता हूं कि अब कभी तुम्हें अपनी जिम्मेदारियां पूरी करने से नहीं रोकूंगा… अब घर चलो.’’

‘‘बहू घर चलो… तुम्हारा पति पूरी तरह सुधर गया है,’’ संगीता अपने सासससुर का सम्मिलित स्वर सुन मुसकराने लगी.

Family Story: अतीत के झरोखे – क्या राधा ने जूही को बहू के रूप में स्वीकार किया?

Family Story: राधा और अविनाश न्यूयौर्क एअरपोर्ट से ज्योंही बाहर निकले आकाश उन से लिपट गया. इतने दिनों के बाद बेटे को देख कर दोनों की आंखें भर आईं. तभी उन के सामने एक गाड़ी आ कर रुकी. आकाश ने उन का सामान डिक्की में रखा और उन दोनों को बैठने को कह आगे जा बैठा. जूही ने पीछे मुड़ कर अपनी मोहिनी मुसकान बिखेरते हुए उन दोनों का आंखों से ही अभिवादन किया तो राधा को ऐसा लगा मानों कोई परी धरती पर उतर आई हो. राधा ने मन ही मन बेटे के पसंद की दाद दी. करीब घंटे भर की ड्राइव के बाद गाड़ी एक अपार्टमैंट के सामने रुकी. उतरते ही जूही का उन दोनों का पैर छू कर प्रणाम करना राधा का मन मोह गया. बड़े प्यार से उन्होंने जूही को गले लगा लिया. आकाश का 1 कमरे का घर अच्छा ही लगा उन्हें. जूही और आकाश दोनों मिल कर सामान अंदर ले आए. जब वे दोनों फ्रैश हो गए, तो जूही चाय बना लाई. चाय पीते हुए राधा जूही को निहारती रहीं. लंच कर अविनाश और राधा सो गए.

‘‘उठिए न मम्मी… आप के उठने का इंतजार कर के जूही चली गई.’’

उठने की इच्छा न होते हुए भी राधा को उठना पड़ा. फिर बड़े दुलार से बेटे का माथा सहलाती हुई बोलीं, ‘‘अरे, चिंता क्यों कर रहा है? मुझे और तेरे पापा को तेरी जूही बहुत पसंद है… सब कुछ अपने जैसा ही तो है उस में… अमेरिका में भी तुम ने अपनी बिरादरी की लड़की ढूंढ़ी यही क्या कम है हमारे लिए? अब जल्दी से उस के परिवार वालों से मिलवा दे. जब यहीं पर शादी करनी है, तो फिर इंतजार क्यों?’’

राधा की बातों से आकाश उत्साहित हो उठा. बोला, ‘‘उस के परिवार में केवल उस के पापा हैं. अपनी मां को तो वह बचपन में ही खो चुकी है. उस के पापा ने फिर शादी नहीं की. जूही को उस की नानी ने ही पाला है. उस के पापा चाहते हैं कि शादी के बाद हम उन्हीं के साथ रहें. लेकिन मैं ने इनकार कर दिया. जिस घर में हम शिफ्ट करने वाले हैं वह उसी एरिया में है. कल चल कर देख लीजिएगा.’’

बेटे की बातों से राधा भावविभोर हो रही थीं. उन के अमेरिका आने से पहले आकाश की पसंद को ले कर सभी ने उन्हें कितना भड़काया था. आकाश तो वैसा ही है… कहीं कोई बदलाव नहीं है उस में… दूसरों की खुशी देख कर लोग जलते भी तो हैं. ऐसे भी आकाश स्कूल से ले कर इंजीनियरिंग करने तक टौप ही तो करता रहा था. आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका आ रहा था तो भी लोगों को कितनी जलन हुई थी. शादी के बाद जूही को ले कर जब इंडिया जाऊंगी तो उस के रूपरंग को देख कर सभी ईर्ष्या करेंगे, ऐसा सोचते ही राधा मुसकरा उठीं.

‘‘क्या सोच कर मुसकरा रही हैं मां?’’ आकाश के पूछने पर राधा वर्तमान में लौट आईं.

‘‘कुछ भी तो नहीं रे… सब कुछ ठीक हो जाए तो सियाटल से अनीता और आदित्य भी आ जाएंगे… सारा इंतजाम कर के मैं आई ही हूं,’’ राधा बोलीं.

आकाश ने फोन पर ही जूही को बता दिया कि वह मम्मी को बहुत पसंद है. दूसरे दिन सवेरे ही जूही पहुंच गई. देखते ही राधा ने उसे गले लगा लिया. फिर उस के घर के बारे में पूछने लगीं.

जूही भी उन से कुछ खुल गई. उस ने उन से पूछा, ‘‘आकाश की तरह क्या मैं भी आप दोनों को मम्मीपापा कह सकती हूं?’’

राधा खुशी से बोलीं, ‘‘क्यों नहीं? अब आकाश से तुम अलग थोड़े ही हो,’’ कुछ ही दिनों की बात है जब तुम भी पूरी तरह से हमारी हो जाओगी.’’

राधा की बात पर जूही ने शरमा कर सिर झुका लिया. ‘‘अच्छा तो मम्मीजी आप लोग पापा और नानी से मिलने कब चल रहे हैं? वे दोनों आप से मिलने के लिए उत्सुक हैं.’’ फिर अगले दिन का करार ले कर ही जूही मानी. दूसरे दिन सुबह से ही राधा को जूही के घर जाने के लिए जरूरत से ज्यादा उत्साहित देख कर अविनाश उन से छेड़खानी कर रहे थे. इसी बीच जूही गाड़ी ले कर आ गई. तैयार हो कर राधा और अविनाश कमरे से बाहर निकले. ‘एक युवा बेटे की मां भी इस उम्र में इतनी कमनीय हो सकती है?’ सोच जूही मुसकरा उठी. रास्ते में सड़क के दोनों ओर की प्राकृतिक सुंदरता देख कर राधा मुग्ध हो उठीं कि सच में अमेरिका परियों और फूलों का देश है.

1 घंटे के बाद फूलों से सजे एक बड़े से घर के सामने गाड़ी रुकी तो उतरते ही एक बड़ी उम्र की संभ्रांत महिला ने सौम्य मुसकान के साथ उन का स्वागत किया, जो जूही की नानी थीं. लिविंगरूम में जूही के पापा अविनाश के पास आ कर बैठ गए. राधा की ओर मुड़े ही थे कि वे चौंक  गए और उन के अभिवादन में उठे हाथ हवा में झूल गए. उधर राधा के जुड़े हाथ भी उन की गोद में गिर गए, जिसे अविनाश के सिवा और कोई न देख सका. राधा के चेहरे पर स्तब्धता थी. सारी खुशियां काफूर हो गई थीं. उन की महीनों की चहचहाट पर अचानक चुप्पी का कुहरा छा गया था. वे असहज हो कर सिर को इधरउधर घुमाते हुए अपनी हथेलियों को मसल रही थीं.

जूही की नानी ही बोले जा रही थीं. माहौल गरम हो गया था जिसे सहज बनाने का अविनाश अपनी ओर से पूरा प्रयास कर रहे थे. लंच के समय भी अनमनी सी राधा को देख कर आकाश और जूही हैरान थे कि अचानक इन्हें क्या हो गया? आखिर जूही की नानी ने राधा को टोक ही दिया, ‘‘क्या बात है राधाजी, क्या मैं और आशीष आप को पसंद नहीं आए? हमें देखते ही चुप हो गईं… छोडि़ए, आप को हमारी जूही तो पसंद है न?’’

यह सुनते ही राधा सकुचा तो गईं, लेकिन बड़े ही रूखे शब्दों में कहा, ‘‘ऐसी कोई बात नहीं है… अचानक सिरदर्द होने लगा.’’

‘‘कुछ भी कहिए, लेकिन अमेरिका में जन्म लेने के बावजूद जूही की परवरिश बेमिसाल है. इस का सारा श्रेय आप लोगों को जाता है. जूही हम दोनों को बहुत पसंद है… शायद इंडिया में भी हम आकाश के लिए ऐसी लड़की नहीं ढूंढ़ पाते… क्यों राधा ठीक कहा न मैं ने?’’

राधा ने उन की बातें अनसुनी कर दीं. अविनाश की बातों से आशीष थोड़ा मुखर हो उठे. बोले, ‘‘तो अब बताइए कि कैसे आगे का कार्यक्रम रखा जाए?’’

जवाब में राधा ने कहा, ‘‘हम आप को सूचित कर देंगे… अब हम चलना चाहेंगे. आकाश, उठो और टैक्सी बुलाओ… मुझे मानहट्टन होते हुए जाना है… क्यों न हम नीति से मिलते चलें. मामा मामी के आने से वह भी बड़ी उत्साहित है. इन सब बातों के लिए जूही को तकलीफ देना ठीक नहीं है.’’

राधा की बातों से सभी चौंक गए.  ‘‘इस में तकलीफ जैसी कोई बात नहीं है,’’ आशीषजी बोले, ‘‘अविनाशजी, अगर आप की इजाजत हो तो 2 मिनट मैं अकेले में आप की पत्नीजी से कुछ बातें करना चाहूंगा… जूही जब मात्र 10 साल की थी तभी उस की मां गुजर गईं. अपने कुछ किए गलत कामों का प्रायश्चित्त करने के लिए सभी के आग्रह करने के बावजूद मैं ने दूसरी शादी नहीं की… मैं ने अकेले ही मांबाप दोनों का प्यार, संस्कार दे कर उसे पाला है… जब तक मैं राधाजी की सहमति से पूर्ण संतुष्ट नहीं हो जाता इस रिश्ते के लिए स्वयं को कैसे तैयार कर पाऊंगा?

जवाब में अविनाश का हंसना ही सहमति दे गया. फिर आशीषजी और राधा को छोड़ कर बाकी सभी बाहर निकल गए. आशीष राधा के समक्ष जा कर खड़े हो गए और फिर भर आए गले से बोले, ‘‘राधा, तुम से छल करने वाला, तुम्हें रुसवा करने वाला तुम्हारे सामाने खड़ा है… जो भी सजा दोगी मुझे मंजूर होगी… मेरी बेटी का कोई कुसूर नहीं है इस में… तुम से मेरी यही प्रार्थना है कि जूही और आकाश को कभी अलग नहीं करना वरना दोनों टूट जाएंगे. एकदूसरे के बगैर वे जी नहीं पाएंगे… सभी की खुशियां अब तुम्हारे हाथ में हैं. जूही ही तुम लोगों को छोड़ने जाएगी. इतनी ही देर में उस का चेहरा उदास हो कर कुम्हला गया है,’’ कह कर आशीष बाहर निकल आए और फिर जूही को इन सब के साथ जाने को कहा तो जूही और आकाश के मुरझाए चेहरे खिल उठे. पूरा रास्ता राधा आंखें बंद किए चुप रहीं. लौटने के बाद भी वे अनमनी सी लेट गईं, जबकि बाहर से आ कर बिना चेंज किए बैड पर जाना उन्हें कतई पसंद नहीं था.

अविनाश लिविंग रूम में बैठ कर टीवी देखते रहे. शाम हो गई थी. राधा उठ गई थीं. बोलीं, ‘‘सुनिए मैं सामने ही घूम रही हूं. आकाश आ जाए तो आप भी आ जाइएगा,’’ और फिर चप्पलें पहनते हुए सीढि़यां उतर गईं. बच्चों के पार्क में रखी बैंच पर जा बैठीं. आंखें बंद करते ही 32 साल से बंद अतीत चलचित्र की तरह आंखों के आगे घूम गया… बड़ी ही धूमधाम से राधा की मंगनी आशीष के साथ हुई थी. किसी फंक्शन में आशीष ने उन्हें देखा था और फिर उस की नजरों में बस गई थीं. मंगनी होने के बाद वे आशीष से कुछ ज्यादा ही खुल गई थीं. तब मोबाइल का जमाना नहीं था. सब के सो जाने के बाद धीरे से वे फोन को उठा कर अपने कमरे में ले जाती. और फिर शुरू होता प्यार भरी बातों का सिलसिला जो देर रात तक चलता. 2 महीने बाद ही शादी का मुहूर्त्त निकला था. इसी बीच अचानक आशीष को किसी प्रोजैक्ट वर्क के सिलसिले में 6 महीने के लिए न्यूयौर्क जाना पड़ा.

शादी नवंबर तक के लिए टल गई. वे मन मसोस कर रह गईं. लेकिन आशीष उज्ज्वल भविष्य के सपनों को आंखों में लिए अमेरिका के लिए रवाना हो गया. फिर राधा अपनी एम.एससी. की परीक्षा की तैयारी में लग गईं. आशीष फिर कभी नहीं लौटा. अमेरिका जाने पर आशीष एक गुजराती परिवार में पेइंगगैस्ट बन कर रहने लगे. अमेरिका उन्हें इतना भाया कि वह वहां से न लौटने का निश्चय कर किसी कीमत पर वहां रहने का जुगाड़ बैठाता रहा. यहां तक कि अपनी कंपनी की नौकरी भी छोड़ दी. सब से सरल उपाय यही था कि वह वहां की किसी नागरिकता प्राप्त लड़की से ब्याह कर ले. फिर आशीष ने उसी गुजराती परिवार की इकलौती लड़की से शादी कर ली. उस के इस धोखे से राधा टूट गई थी. उन्हें ब्याह नाम से चिढ़ सी हो गई थी.

फिर कुछ महीने बाद अविनाश के घर से आए रिश्ते के लिए न नहीं की. सब कुछ भुला अविनाश की पत्नी बन गईं. समय के साथ 2 बच्चों की मां भी बन गईं. दोनों बच्चों की अच्छी परवरिश की. पढ़नेलिखने में ही नहीं, बल्कि सारी गतिविधियों में दोनों बड़े काबिल निकले. बी.टैक करते ही बेटी की शादी सुयोग्य पात्र से कर दी. बेटी यहीं सियाट्टल में है. दोनों मल्टीनैशनल कंपनी में कार्यरत हैं. बड़े अरमान के साथ बेटे की शादी का सपना आंखों में लिए यहां आई थीं. टैनिस टूरनामैंट में आकाश और जूही पार्टनर बने और विजयी हुए. ऐसे ही मिलतेजुलते दोनों एकदूसरे को पसंद करने लगे. आकाश ने फेसबुक पर मां यानी राधा से जूही का परिचय करा दिया था. राधा को जूही में कोई कमी नजर नहीं आई. इसलिए उन के रिश्ते पर अपनी स्वीकृति की मुहर लगा दी. अब तक के जीवन में सभी प्रमुख निर्णय राधा ही लेती आई थीं, तो अविनाश को क्यों ऐतराज होता? राधा की खुशी ही उन के लिए सर्वोपरि थी. चूंकि जूही की मां नहीं थी और उसे नानी ने ही पाला था और वे इंडिया आने में लाचार थे, इसलिए निर्णय यही हुआ था कि अगर सब कुछ ठीकठाक हुआ तो वहीं शादी कर देंगे. इस निर्णय से उन की बेटी और दामाद दोनों बहुत खुश हुए. जूही के पिता के परिवार के बारे में उन्होंने ज्यादा छानबीन नहीं की और यहीं धोखा खा गईं. कितना सुंदर सब कुछ हो रहा था कि इस मोड़ पर वे आशीष से टकरा गईं और बंद स्मृतियों के कपाट खुल कर उन्हें विचलित कर गए… बेटे से भी नहीं कह सकतीं कि इस स्वार्थी, धोखेबाज की बेटी के साथ रिश्ता न जोड़ो… सिर से पैर तक उस के प्यार में डूबा हुआ है. वह भी क्यों मानने लगा अपनी मां की बात. दर्द से फटते माथे को दोनों हाथों से थाम वे सिसक उठीं.

तभी अचानक कंधों पर किसी का स्पर्श पा कर मुड़ीं तो पीछे अविनाश को खड़ा पाया. राधा के हाथों को सहलाते हुए वे उन की बगल में बैठ गए और बड़े सधे स्वर में कहने लगे, ‘‘राधा, अंदर से तुम इतनी कमजोर हो, मैं ने कभी सोचा न था. इतनी छोटी बात को दिल से लगाए बैठी हो. कुछ सुना था और कुछ अनुमान लगा लिया. अरे, आशीष ने तुम्हारे साथ जो किया वह कोई नई बात थोड़े है. यह देश उसे सपनों की मंजिल लगा. जूही की सुंदरता से साफ पता चलता है कि उस की मां कितनी सुंदर रही होगी… वीजा, फिर नागरिकता, रहने को घर, सुंदर पत्नी, सारी सुखसुविधाएं जब उसे इतनी सहजता से मिल गईं तो वह क्या पागल था कि देश लौट आता सिर्फ इसलिए कि उस की मंगनी हुई है? फिर जीवन में सब कुछ होना पहले से ही निर्धारित रहता है तुम्हारी ही तो ऐसी सोच है. तुम्हें मेरी बनना था तो ये महाशय तुम्हें कैसे ले जाते? माना कि बहुत सारी सुखसुविधाएं तुम्हें नहीं दे पाया लेकिन मन में संचित सारे प्यार को अब तक उड़ेलता रहा हूं. अचानक कल से मम्मी को हो क्या गया है, पापा? आकाश का यह पूछना मुझे पसोपेश में डाल गया है. हो सकता है वह सब कुछ समझ भी रहा हो. इतना नासमझ भी तो नहीं है.’’

राधा की आंखों से बहते आंसुओं ने अविनाश को आगे और कुछ नहीं कहने दिया. कुछ देर बाद आंचल से अपने आंसुओं को पोंछती हुई राधा ने कहा, ‘‘मैं कल से सोच रही हूं कि अगर जूही का जैनेटिक्स भी अपने बाप जैसा हुआ तो यह हमारे बेटे को हम से छीन लेगी… कितनी निर्ममता से आशीष अपनों को भूल गया था… उसे देखने के लिए मांबाप की आंखें सारी उम्र तरसती रह गईं और वह घरजमाई बन कर रह गया. इस की बेटी ने कहीं मेरे सीधेसादे बेटे को घरजमाई बना लिया तो हम भी बेटे को देखने को तरसते रह जाएंगे.’’ राधा की बातें सुन कर अविनाश को हंसी आ गई. तभी आकाश भी उन दोनों को खोजते हुए वहां आ गया. सकुचाई हुई मम्मी और हंसते हुए पापा को देख कर प्रश्न भरी आंखों से उन्हें देखा. अविनाश अपनेआप को अब रोक नहीं सके और सारी बात बता दी.

इतना सुनना था कि आकाश छोटे बच्चे की तरह राधा से लिपट गया. बोला, ‘‘मम्मी, आप के लिए जूही तो क्या पूरी दुनिया को छोड़ सकता हूं… इतना ही जाना है आप ने अपने बेटे को? फिर आप दोनों को भी मेरे साथ ही रहना है… आप दोनों के लिए ही तो इतना बड़ा घर लिया है… ऐसे भी इंडिया में है ही कौन आप दोनों का…. एक घर ही तो है? आराम से अब मेरे पास रहें. बीचबीच में दीदी से भी मिलते रहें.’’ आकाश की बातों से राधा के सारे गिलेशिकवे दूर हो गए और फिर से 2 हफ्ते बाद ही बड़ी धूमधाम के साथ आकाश और जूही शादी के बंधन में बंध कर हनीमून के लिए स्विट्जरलैंड चले गए. 1 महीने बाद आने का वादा ले कर बेटी, दामाद एवं नाती सियाट्टल चले गए तो अविनाश ने भी हंसते हुए राधा से कहा, ‘‘क्यों न हम भी हनीमून मना लें… हमारी शादी के बाद तो हमारे साथ हमारे पूरे परिवार ने भी हनीमून मनाया था… याद तो होगा तुम्हें… तुम से मिलने को भी हम तरस कर रह जाते थे. अब बेटे ने विदेश में अवसर दिया है तो हम क्यों चूकें और फिर अभी हम इतने बूढ़े भी तो नहीं हुए हैं.’’ अविनाश की बातें सुन राधा मुसकरा दीं और फिर शरमा कर अविनाश से लिपटते हुए अपनी सहमति जता दी.

Family Story: चित और पट – नीरा को उसकी सहेली वर्तिका ने क्या पट्टी पढ़ाई?

Family Story: आधी रात को नीरा की आंख खुली तो विपिन को खिड़की से झांकते पाया. ‘‘अब क्या हुआ? मैं ने कहा था न कि वक्तबेवक्त की कौल्स अटैंड न किया करें. अब जिस ने कौल की वह तो तुम्हें अपनी प्रौब्लम ट्रांसफर कर आराम से सो गया होगा… अब तुम जागो,’’ नीरा गुस्से से बोलीं.

‘‘तुम सो जाओ प्रिय… मैं जरा लौन में टहल कर आता हूं.’’ ‘‘अब इतनी रात में लौन में टहल कर क्या नींद आएगी? इधर आओ, मैं हैडमसाज कर देती हूं. तुरंत नींद आ जाएगी.’’

थोड़ी देर बाद विपिन तो सो गए, पर नीरा की नींद उड़ चुकी थी. विपिन की इन्हीं आदतों से वे दुखी रहती थीं. कितनी कोशिश करती थीं कि घर में तनाव की स्थिति पैदा न हो. घरेलू कार्यों के अलावा बैंकिंग, शौपिंग, रिश्तेदारी आदि सभी मोरचों पर अकेले जूझती रहतीं. गृहस्थी के शुरुआती दौर में प्राइवेट स्कूल में नौकरी कर घर में आर्थिक योगदान भी किया. विपिन का हर 2-3 साल में ट्रांसफर होने के कारण उन्हें हमेशा अपनी जौब छोड़नी पड़ी. उन्होंने अपनी तरक्की की न सोच कर घर के हितों को सर्वोपरि रखा. आज जब बच्चे भी अपनीअपनी जौब में व्यस्त हो गए हैं, तो विपिन घर के प्रति और भी बेफिक्र हो गए हैं. अब ज्यादा से ज्यादा वक्त समाजसेवा को देने लगे हैं… और अनजाने में ही नीरा की अनदेखी करने लगे हैं.

हर वक्त दिमाग में दूसरों की परेशानियों का टोकरा उठाए घूमते रहते. रमेशजी की बेटी

का विवाह बिना दहेज के कैसे संपन्न होगा, दिनेश के निकम्मे बेटे की नौकरी कब लगेगी, उस के पिता दिनरात घरबाहर अकेले खटते रहते हैं, शराबी पड़ोसी जो दिनरात अपनी बीवी से पी कर झगड़ा करता है उसे कैसे नशामुक्ति केंद्र ले जाया जाए आदिआदि. नीरा समझासमझा कर थक जातीं कि क्या तुम समाजसुधारक हो? अरे, जो मदद मांगे उसी की किया करो… सब के पीछे क्यों भागते हो? मगर विपिन पर कोई असर न पड़ता.

‘‘नीरा, आज का क्या प्रोग्राम है?’’ यह वर्तिका थी. नए शहर की नई मित्र. ‘‘कुछ नहीं.’’

‘‘तो फिर सुन हम दोनों फिल्म देखने चलेंगी आज,’’ कह वर्तिका ने फोन काट दिया. वर्तिका कितनी जिंदादिल है. उसी की हमउम्र पर कुंआरी, ऊंचे ओहदे पर. मगर जमीन से जुड़ी, सादगीपसंद. एक दिन कालोनी के पार्क में मौर्निंग वाक करते समय फोन नंबरों का आदानप्रदान भी हो गया.

फिल्म देखने के बाद भी नीरा चुपचाप सी थीं.

‘‘भाई साहब से झगड़ा हो गया है क्या?’’ वर्तिका ने छेड़ा. ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है… तू नहीं समझ पाएगी,’’ नीरा ने टालना चाहा.

‘‘क्योंकि मेरी शादी नहीं हुई है, इसलिए कह रही हो… अरे, मर्दों से तो मेरा रोज ही पाला पड़ता है. इन की फितरत को मैं खूब समझती हूं.’’ ‘‘अरे, तुम तो सीरियस हो गई मेरी प्रगतिशील मैडम… ऐसा कुछ भी नहीं है. दरअसल, मैं विपिन की तनाव उधार लेने की आदत से परेशान हूं… उन्हें कभी किसी के लिए अस्पताल जाना होता है, कभी किसी की औफिस वर्क में मदद करनी होती है,’’ नीरा उसे विस्तार से बताती चली गईं.

‘‘अच्छा एक बात बताओ कि क्या विवाह के शुरुआती दिनों से ही विपिन ऐसे हैं या फिर अब ऐसे हुए?’’ कौफी शौप में बैठते हुए वर्तिका ने पूछा. ‘‘शादी के 10-15 साल तो घरेलू जिम्मेदारियां ही इतनी अधिक थीं. बच्चे छोटे थे, किंतु जैसेजैसे बच्चे अपने पैरों पर खड़े होते गए, विपिन की जिम्मेदारियां कम होती गईं. अब तो विवाह के 26 वर्ष बीत चुके हैं. बच्चे भी अलग शहरों में हैं. अब तो इन्हें घर से बाहर रहने के

10 बहाने आते हैं,’’ नीरा उकता कर बोलीं. ‘‘तुम्हारे आपसी संबंधों पर इस का असर तो नहीं पड़ रहा है?’’ वर्तिका ने पूछा.

‘‘मैं ने पहले इस विषय पर नहीं सोचा था. मगर अब लगता है कि हमारे संबंधों के बीच भी परदा सा खिंच गया है.’’ ‘‘तो मैडम, अपने बीच का परदा उठा कर खिड़कियों में सजाओ… अपने संबंध सामान्य करो… उन्हें इतनी फुरसत ही क्यों देती हो कि वे इधरउधर उलझे रहें,’’ वर्तिका दार्शनिकों की तरह बोली.

‘‘तुम ठीक कहती हो. अब यह कर के भी देखती हूं,’’ और फिर नीरा शरारत से मुसकराईं तो वर्तिका भी हंस पड़ी. आज विपिन को घर कुछ ज्यादा ही साफ व सजा नजर आया. बैडरूम में भी ताजे गुलाबों का गुलदस्ता सजा मिला. ‘आज नीरा का जन्मदिन तो नहीं या फिर किसी बेटे का?’ विपिन ने सोचा पर कोई कारण न मिला तो रसोई की तरफ बढ़ गए. वहां उन्हें नीरा सजीधजी उन की मनपसंद डिशेज तैयार करती मिलीं.

‘‘क्या बात है प्रिय, बड़े अच्छे मूड में दिख रही हो आज?’’ विपिन नीरा के पीछे खड़े हो बोले. ‘‘अजी, ये सब आप की और अपनी खुशी के लिए कर रही हूं… कहा जाता है कि बड़ीबड़ी खुशियों की तलाश में छोटीछोटी खुशियों को नहीं भूल जाना चाहिए.’’

‘‘अच्छा तो यह बात है… आई एम इंप्रैस्ड.’’ रात नीरा ने गुलाबी रंग का साटन का गाउन निकाला और स्नानघर में घुस गईं.

‘‘तुम नहा रही हो… देखो मुझे रोहित ने बुलाया है. मैं एकाध घंटे में लौट आऊंगा,’’ विपिन ने जोर से स्नानघर का दरवाजा खटका कर कहा. नीरा ने एक झटके में दरवाजा खोल दिया. वे विपिन को अपनी अदा दिखा कर रोकने के मूड में थीं. मगर विपिन अपनी धुन में बाय कर चलते बने.

2 घंटे इंतजार के बाद नीरा का सब्र का बांध टूट गया. वे अपनी बेकद्री पर फूटफूट कर रो पड़ीं. आज उन्हें महसूस हुआ जैसे उन की अहमियत अब विपिन की जिंदगी में कुछ भी नहीं रह गई है. दूसरे दिन नीरा का उखड़ा मूड देख कर जब विपिन को अपनी गलती का एहसास हुआ, तो उन्होंने रात में नीरा को अपनी बांहों में भर कर सारी कसक दूर करने की ठान ली. मगर आक्रोषित नीरा उन की बांहें झटक कर बोलीं, ‘‘हर वक्त तुम्हारी मरजी नहीं चलेगी.’’

विपिन सोचते ही रह गए कि खुद ही आमंत्रण देती हो और फिर खुद ही झटक देती हो, औरतों का यह तिरियाचरित्तर कोई नहीं समझ सकता. उधर पीठ पलट कर लेटी नीरा की आंखें डबडबाई हुई थीं. वे सोच रही थीं कि क्या वे सिर्फ हांड़मांस की पुतला भर हैं… उन के अंदर दिल नहीं है क्या? जब दिल ही घायल हो, तो तन से क्या सुख मिलेगा?

2 महीने के बाद वर्तिका और नीरा फिर उसी कौफी शौप में बैठी थीं. ‘‘नीरा, तुम्हारी हालत देख कर तो यह नहीं लग रहा है कि तुम्हारी जिंदगी में कोई बदलाव आया है. तुम ने शायद मेरे सुझाव पर अमल नहीं किया.’’

‘‘सब किया, लेकिन लगता है विपिन नहीं सुधरने वाले. वे अपने पुराने ढर्रे पर

लौट गए हैं. कभी अस्पताल, कभी औफिस का बहाना, लेटलतीफी, फोन पर लगे रहना, समाजसेवा के नाम पर देर रात लौटना… मुझे तो अपनी जिंदगी में अब तनाव ही तनाव दिखने लगा है. बच्चे बड़े हो गए हैं. उन की अपनी व्यस्तताएं हैं और पति की अपनी, सिर्फ एक मैं ही बिलकुल बेकार हो गई हूं, जिस की किसी को भी जरूरत नहीं रह गई है,’’ नीरा के मन का गुबार फूट पड़ा. ‘‘मुझे देख, मेरे पास न तो पति हैं और न ही बच्चे?’’ वर्तिका बोल पड़ी.

‘‘पर तेरे जीवन का लक्ष्य तो है… औफिस में तो तेरे मातहत पुरुष भी हैं, जो तेरे इशारों पर काम करते हैं. मुझे तो घर पर काम वालियों की भी चिरौरी करनी पड़ती है,’’ नीरा रोंआसी हो उठी. ‘‘अच्छा दुखी न हो. सुन एक उपाय बताती हूं. उसे करने पर विपिन तेरे पीछेपीछे भागने लगेंगे.’’

‘‘क्या मतलब?’’ ‘‘मतलब एकदम साफ है. तू ने अपने घर को इतना व्यवस्थित और सुविधायुक्त कर रखा है कि विपिन घर और तेरे प्रति अपनी जिम्मेदारियों से निश्चिंत हैं और अपना वक्त दूसरों के संग बांटते हैं… तेरे लिए सोचते हैं कि घर की मुरगी है जब चाहे हलाल कर लो.’’

‘‘मेरी समझ में कुछ नहीं आया,’’ नीरा उलझन में पड़ कर बोलीं. ‘‘तो बस इतना समझ ले विपिन को तनाव लेना पसंद है, तो तू ही उन्हें तनाव देना शुरू कर दे… तब वे तेरे पीछे भागने लगेंगे.’’

‘‘सच में?’’ ‘‘एकदम सच.’’

‘‘तो फिर यही सही,’’ कह नीरा ने एक बार फिर से अपनी गृहस्थी की गाड़ी को पटरी पर लाने को कमर कस ली. ‘‘सुनो, यह 105 नंबर वाले दिनेशजी हैं न उन की पत्नी तो विवाह के 5 वर्ष बाद ही गुजर गई थीं, फिर भी उन्होंने अपनी पत्नी के गम में दूसरी शादी नहीं की. अपनी इकलौती औलाद को सीने से लगाए दिन काट लिए. अब देखो न बेटा भी हायर ऐजुकेशन के लिए विदेश चला गया.’’

‘‘उफ, तुम्हें कब से कालोनीवासियों की खबरें मिलने लगीं… तुम तो अपनी ही गृहस्थी में मग्न रहती हो,’’ विपिन को नीरा के मुख से यह बात सुन कर बड़ा आश्चर्य हुआ. ‘‘अरे, कल घर आए थे न उत्सव पार्टी का निमंत्रण देने. मैं ने भी चाय औफर कर दी. देर तक बैठे रहे… अपनी बीवी और बेटे को बहुत मिस कर रहे थे.’’

‘‘ज्यादा मुंह न लगाना. ये विधुर बड़े काइयां होते हैं. एक आंख से अपनी बीवी का रोना रोते हैं और दूसरी से दूसरे की बीवी को ताड़ते हैं.’’ ‘‘तुम पुरुष होते ही ऐसे हो… दूसरे मर्द की तारीफ सुन ही नहीं सकते. कितने सरल हृदय के हैं वे. बेचारे तुम्हारी ही उम्र के होंगे, पर देखो अपने को कितना मैंटेन कर रखा है. एकदम युवा लगते हैं.’’

‘‘तुम कुछ ज्यादा ही फिदा तो नहीं हो रही हो उन पर… अच्छा छोड़ो, मेरा टिफिन दो फटाफट. मैं लेट हो रहा हूं. और हां हो सकता है आज मैं घर देर से आऊं.’’ ‘‘तो इस में नई बात क्या है?’’ नीरा ने चिढ़ कर कहा, तो विपिन सोच में पड़ गए.

शाम को जल्दी पर घर पहुंच कर उन्होंने नीरा को चौंका दिया, ‘‘अरे, मैडम इतना सजधज कर कहां जाने की तैयारी हो रही है?’’ ‘‘यों ही जरा पार्क का एक चक्कर लगाने की सोच रही थी. वहां सभी से मुलाकात भी हो जाती है और कालोनी के हालचाल भी मिल जाते हैं.’’

विपिन हाथमुंह धोने गए तो नीरा ने उन का मोबाइल चैक किया कि आज जल्दी आने का कोई सुराग मिल जाए. पर ऐसा कुछ नहीं मिला. ‘‘आज क्या खिलाने वाली हो नीरा? बहुत दिन हुए तुम ने दालकचौरी नहीं बनाई.’’

‘‘शुक्र है, तुम्हें कुछ घर की भी याद है,’’ नीरा के चेहरे पर उदासी थी. ‘‘यहां आओ नीरा, मेरे पास बैठो. तुम ने पूछा ही नहीं कि आज मैं जल्दी घर कैसे आ

गया जबकि मैं ने बोला था कि मैं देरी से आऊंगा याद है?’’ ‘‘हां, मुझे सब याद है. पर पूछा नहीं तुम से.’’

‘‘मैं अपने सहकर्मी रोहित के साथ हर दिन कहीं न कहीं व्यस्त हो जाता था… आज सुबह उस ने बताया कि उस की पत्नी अवसाद में आ गई थी जिस पर उस ने ध्यान ही नहीं दिया था. कल रात वह अचानक चक्कर खा कर गिर पड़ी, तो अस्पताल ले कर भागा. वहीं पता चला कि स्त्रियों में मेनोपौज के बाद ऐसा दौर आता है जब उन की उचित देखभाल न हो तो वे डिप्रैशन में भी चली जाती हैं. डाक्टर का कहना है कि कुछ महिलाओं में अति भावुकता व अपने परिवार में पकड़ बनाए रखने की आदत होती है और उम्र के इस पड़ाव में जब पति और बच्चे इग्नोर करने लगते हैं तो वे बहुत हर्ट हो जाती हैं. अत: ऐसे समय में उन के पौष्टिक भोजन व स्वास्थ्य का खयाल रखना चाहिए वरना वे डिप्रैशन में जा सकती हैं.’’ ‘‘मुझे क्यों बता रहे हो?’’ नीरा पलट

कर बोलीं. ‘‘सीधी सी बात है मैं तुम्हें समय देना चाहता हूं ताकि तुम खुद को उपेक्षित महसूस न करो. तुम भी तो उम्र के इसी दौर से गुजर रही हो. अब शाम का वक्त तुम्हारे नाम… हम साथ मिल कर सामाजिक कार्यक्रमों में हिस्सा लिया करेंगे.’’

Family Story: मन बहुत प्यासा है – मीरा क्यों शेखर से अलग हो गई?

Family Story: शाम बहुत उदास थी. सूरज पहाडि़यों के पीछे छिप गया था और सुरमई अंधेरा अपनी चादर फैला रहा था. घर में सभी लोग टीवी के सामने बैठे समाचार सुन रहे थे. तभी न्यूज ऐंकर ने बताया कि सुबह दिल्ली से चली एक डीलक्स बस अलकनंदा में जा गिरी है. यह खबर सुनते ही सब के चेहरे का रंग उड़ गया और टीवी का स्विच औफ कर दिया गया. मैं नवीन की कमीज थामे सन्न सी खड़ी रह गई. ढेर सारे खयाल दिलोदिमाग में हलचल मचाते रहे. क्या सचमुच नवीन इज नो मोर? मां का विलाप सुन कर आंगन में आसपास की औरतें जुड़ने लगीं. उन में से कुछ रो रही थीं तो कुछ उन्हें सही सूचना आने तक तसल्ली रखने की सलाह दे रही थीं. बाबूजी ने मेरे डैडी को फोन किया और तुरंत घटनास्थल पर चलने को कहा. मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं? क्या मैं सचमुच… इस के आगे सोचने से दिल घबराने लगा.

3 दिन तक जीनेमरने जैसी स्थिति रही. चौथे दिन हारे हुए जुआरी की तरह बाबूजी और डैडी वापस लौट आए. अलकनंदा में उफान के कारण लाशें तक निकाली नहीं जा सकी थीं. पता कर के आए मर्दों के चेहरों पर हताशा को पढ़ कर औरतें चीखचीख कर रोने लगीं. कुछ उस घड़ी को कोस रही थीं, जिस घड़ी नवीन ने घर से बाहर कदम निकाला था. एक बूढ़ी औरत मेरे कमरे में आई और मुझे घसीटती हुई बाहर ले आई. कुछ औरतों ने आंखों ही आंखों में सरगोशियां कीं और मेरा चूडि़यों से भरा हाथ फर्श पर दे मारा. चूडि़यां टूटने के साथ खून की कुछ बूंदें मेरी कलाई पर छलक आईं पर इस की परवाह किस को थी. भरी जवानी में मेरे विधवा हो जाने से जैसे सब दुखी थीं और मुझे गले लगा कर रोना चाहती थीं. मैं पत्थर की शिला सी हो गई थी. मेरी आंखों में बूंद भर पानी भी नहीं था.

अपने विफल हो रहे प्रयासों से औरतों में खीज सी पैदा हो गई. कुछ मुझे घूरते हुए एकदूसरे से कुछ कह रही थीं, तो महल्ले की थुलथुली बहुएं, जो मेरी स्मार्टनैस से कुंठित थीं अपनी भड़ास निकालने की कोशिश कर रही थीं. मेरा लंबा कद, स्याह घने बाल, हिरनी जैसी आंखें और शादी में लाया गया ढेर सारा दहेज, जिस के कारण महल्ले की सासें अपनी बहुओं को ताने दिया करती थीं, आज बेमानी बन कर रह गया, तो मेरी सुंदर काया का मूल्य पल भर में कौडि़यों का हो गया. मेरी उड़ती नजर आंगन के कोने में खड़ी मोटरसाइकिल पर गई.इसी मोटरसाइकिल के लिए मझे 4 दिन तक भूखा रखा गया था और 6 महीने तक मैं मायके में पड़ी रही थी. आखिर पापा ने अपने फंड में से पैसा निकाल कर नवीन को मोटरसाइकिल ले दी थी. अब कौन चलाएगा इसे? नवीन की मौत से हट कर मेरा मन हर राउंड में लाई गई चीजों की फेहरिस्त बना रहा था.

कुल 2 साल ही तो हुए थे हमारी शादी को और हमारी बेटी मिनी साल भर की है. खुद को कर्ज में डुबो कर बेटी का घर भर दिया था पापा ने. क्या मैं उस आदमी के लिए रोऊं जो हर वक्त कुछ न कुछ मांगता ही रहता था और हर चौथे दिन रुई की तरह धुन देता था. तभी औरतों की खींचातानी से मिनी रोई तो मेरी तंद्रा टूटी. मैं उसे औरतों की भीड़ से निकाल कर कमरे में ले आई. औरतों का आनाजाना कई दिनों तक लगा रहा. कुछ मुझ कुलच्छनी बहू को घूरघूर कर एकदूसरे से बतियाती हुई आंसू बहातीं तो कुछ मेरे न रोनेधोने के कारण किसी रहस्य को सूंघने की कोशिश करतीं. पर मुझे उन की परवाह नहीं थी.

मां जो शेरनी की तरह दहाड़ती रहती थीं अब भीगी बिल्ली सी आंसू बहाती रहतीं. मेरी ननद गीता और उस के पति रजनीश भी आगए थे. गीता मेरे कमरे के फेरे मारती रहती और एकएक कीमती चीज के दाम पूछती रहती. रजनीश की नजर मोटरसाइकिल पर थी. गीता को वापस जाना था. रजनीश ने खिसियानी सी हंसी हंसते हुए कहा, ‘‘भाभी, अब इस मोटरसाइकिल का यहां क्या होगा? कहो तो मैं ले जाऊं. डीटीसी बसों में आतेजाते मैं तो तंग आ गया हूं. रोज देर हो जाती है तो बौस की डांट खानी पड़ती है.’’ फिर मोटरसाइकिल पर बैठ कर ट्रायल लेने लगा.

गीता भी पीछे नहीं रही, ‘‘भाभी, इस कौस्मैटिक बौक्स का अब आप क्या करेंगी? आप के लिए तो बेकार है. मैं ले जाती हूं इसे. कितने सारे तो परफ्यूम्स हैं. इतनी अच्छी चीजें इंडिया में कहां बनती हैं. आप के पापा का भी जवाब नहीं. हर चीज कीमती दी है आप को.’’

क्या संबंध स्वार्थ की कागजी नींव पर टिके होते हैं? यह सोचते हुए संबंधों पर से मेरी आस्था हटने लगी. यह वही गीता है, जो बारबार गश खा कर गिर रही थी और भाई की मौत को अभी 4 दिन भी नहीं गुजरे इस ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया. गीता और रजनीश की नजर तो मेरे लैपटौप और महंगे मोबाइलों पर भी थी, क्योंकि बाबूजी ने कह दिया था कि मोटरसाइकिल वगैरह अभी यहीं रहने दो. बाद में देखेंगे. गीता ने एक बार झिझकते हुए कहा, ‘‘भाभी, आप के पास तो 2 मोबाइल हैं. वाऊ, कितने खूबसूरत हैं.’’

मैं ने जब कोई जवाब नहीं दिया तो वह बोली, ‘‘मैं तो ऐसे ही कह रही थी.’’

गीता और रजनीश के जाने के बाद घर में गहरा सन्नाटा छा गया. मां और बाबूजी दोनों ही शंकित थे कि कहीं मैं भी उन्हें छोड़ कर न चली जाऊं. पर अब कहां जाना था मुझे. हालांकि पापा ने मुझे साथ चलने को कहा था पर मैं ने मना कर दिया. बाबूजी का दुलार तो मुझे हमेशा ही मिलता रहा था पर मां और नवीन के सामने उन की चलती ही नहीं थी. पर अब कितना कुछ बदल गया था. थोड़ी भागदौड़ के बाद मुझे नवीन की जगह नौकरी भी मिल गई. रसोईघर जहां मैं दिन भर खटती रहती थी, को मां ने संभाल लिया था. नौकरी पर आतेजाते मुझे लगता था कि कई आंखें मुझे घूर रही हैं. दरअसल, वे औरतें, जिन्हें मुझे ले कर निंदासुख मिलता था अब अजीब नजरों से मुझे देखती थीं. एक अभी हुई विधवा रोज नईनई पोशाकें पहन कर दफ्तर जाए यह बात उन के गले से नहीं उतरती थी. मां का भी अब महल्ले की चौपाल पर बैठना लगभग बंद हो गया था, तो पड़ोसिनों का आनाजाना भी कम हो गया था.

मेरी नौकरी ने जैसे मुझे नया जीवन दे दिया था. ऐसा लगता था जैसे मरुस्थल में बरसाती बादल उमड़नेघुमड़ने लगे हों. इस से बेचैनी और भी बढ़ जाती, तो मैं सोचती कि मैं विधवा हो गई तो इस में मेरा क्या कुसूर? दहेज में मिली कई कीमती साडि़यों की तह अभी तक नहीं खुली थीं. मैं जब उन में से कोई साड़ी निकाल कर पहनती तो मां प्रश्नवाचक नजरों से चुपचाप देखती रहतीं और मैं जानबूझ कर अनजान बनी रहती. कालोनी की जवान लड़कियों को मेरा कलर कौंबिनेशन बहुत पसंद आता. वे प्रशंसनीय नजरों से मुझे देखतीं पर मैं इस सब से तटस्थ रहती.

दफ्तर में मुझे सब से ज्यादा आकर्षित करता था शेखर. वह मेरे काम में मेरी मदद करता. फिर कभीकभी बाहर किसी रेस्तरां में कौफी पीने भी हम चले जाते. गपशप के दौरान कब वह मेरे करीब आता चला गया मुझे पता ही नहीं चला. धीरेधीरे हम दोनों एकदूसरे के इतने करीब आ गए कि साथ जीनेमरने की कसमें खाने लगे. एक दिन इतवार को दोपहर के समय जब मैं मिनी को गोद में लिए बाहर निकली तो मां ने प्रश्नवाचक नजरों से मुझे देखा. मुझे लगा जैसे मैं कोई अपराध करने जा रही हूं. पर अब मैं ने नजरों की भाषा को पढ़ना छोड़ दिया था. मन में एक अजीब सी प्यास थी और मैं मृगतृष्णा के पीछे दौड़ रही थी.

देर शाम को जब घर लौटी तो मां की नजर में कई सवाल थे. वे मिनी को उठा कर बाहर ले गईं और लौटीं तो पूछा, ‘‘यह शेखर अंकल कौन है?’’ मैं सन्न रह गई. मां मुझ से ऐसा सीधा सवाल करेंगी यह तो मैं ने सोचा ही नहीं था. मगर जल्दी ही मैं ने खुद को संभाला ओर बोली, ‘‘शेखर मेरे दफ्तर में काम करता है. मौल में मिल गया था.’’ मां ने हुंकार भरा और अपने कमरे में चली गईं. देर रात तक मां और बाबूजी की आवाजें कटकट कर मेरे कानों में आती रहीं और मैं दमसाधे सुनती रही. साथ में यह भी सोचती रही कि आखिर क्या चाहते हैं ये लोग? क्या मैं सारी उम्र यों ही गुजार दूं?

मुझे अकसर औफिस से आतेआते देर हो जाती. तब बाबूजी मुझे बस स्टौप पर खड़े मिलते. मुझे देखते ही कहते, ‘‘मैं यों ही टहलता हुआ इधर निकल आया था. सोचा, तुम आ रही होगी.’’ फिर सिर झुकाए साथसाथ चलने लगते. मुझे ऐसा लगता जैसे मैं कांच के मकान में रह रही हूं, जरा सी ठोकर लगते ही टूट जाएगा. मैं अपनी जिंदगी में आगे बढ़ना चाहती थी पर बाबूजी और मां का बुढ़ापा कैसे कटेगा यह सवाल मुझे सालता था. मैं शेयर के साथ अपनी तनहाई शेखर करना चाहती पर मां और बाबूजी का बुढ़ापा बीच में आ जाता था उन की आंखों का डर मुझे खुल कर जीने नहीं दे रहा था. शेखर कुछ दिनों की छुट्टी ले कर घर गया था. मैं सोच रही थी कि जब वह वापस आएगा तो उस से खुल कर बात करूंगी. उस ने वादा किया था कि वह अपने मांबाप को मना लेगा इसलिए मैं आश्वस्त थी.

लेकिन एक दिन औफिस में मैं ने अपनी मेज पर एक लंबा लिफाफा रखा देखा. लिफाफा खुला ही था. अंदर से कागज निकाला तो देखा तो लगा छनाक से कुछ टूट गया हो. एक वैडिंग कार्ड था- शेखर विद सरोज. साथ में एक चिट्ठी भी थी जिस में लिखा था- मीरा, एक विधवा के साथ विवाह करने की बात मेरे मम्मीडैडी के गले नहीं उतरी. विधवा, उस पर एक बच्ची की मां. सच मानो मीरा मैं ने मम्मीडैडी को समझाने की बहुत कोशिश की पर अपने अविवाहित बेटे के लिए उन के दिल में बड़ेबड़े अरमान हैं. कैसे तोड़ दूं उन्हें… मुझे क्षमा कर देना, मीरा. अगले दिन मैं ने निगाह घुमा कर देखा, शेखर मोटीमोटी फाइलों में गुम होने का असफल प्रयास कर रहा था. मैं ने खत सहित वैडिंग कार्ड को टुकड़ेटुकड़े कर डस्टबिन में डाला तो उस ने घूर कर मुझे देखा. मैं रोई नहीं. रोना मेरी आदत नहीं है. मैं तेजी से टाइप करती रही और मैं ने चपरासी को पंखा तेज करने को कहा, क्योंकि मन की तपिश और बढ़ गई थी.

शाम को जब औफिस से निकली तो खुली हवा के झोंके मन को सहलाने लगे मेरे कदम अपनेआप ही न्यू औप्टिकल स्टोर की ओर बढ़ गए. बाबूजी के लिए नया चश्मा बनवा कर जब निकली तो याद आया कि मां कई दिन से एक साड़ी लाने को कह रही थीं. एक ही क्षण में दुनिया कितनी बदल गई थी. बाबूजी डेढ़ महीने से नया चश्मा बनवाने को कह रहे थे पर उस ओर मेरा ध्यान ही नहीं जा रहा था. उन्हें पढ़नेलिखने में कितनी परेशानी हो रही थी, आज याद आया तो मन में अपराधबोध सा जागने लगा था. लगता है बाबूजी को शेखर के विवाह की बात पता चल गई थी. वे बस स्टौप पर भी नहीं आए. अगली सुबह देखा तो वे मोटरसाइकिल साफ कर रहे थे. मुझे लगा इसे बेचने की तैयारी है. मन में कसैलापन भर गया. पर तभी बोले, ‘‘बेटा, तुम्हें तो मोटरसाइकिल चलानी आती है न. चलो जरा डाक्टर की दुकान तक ले चलो. बसों में जाने में दिक्कत होती है.’’ मैं मुंह खोले उन्हें देखती रह गई और फिर उन के सीने से जा लगी, ‘‘बाबूजी…’’ मुझ से बोला नहीं जा रहा था.

तभी मां की आवाज आई, ‘‘और हां, लौटते हुए बेकरी से एक केक लेती आना. आज तेरा जन्मदिन है न…’’

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