इस घटना के बाद तो कविता एकदम ही गुमसुम रहने लगी थी. इस दौरान राघव ने अपने दफ्तर से छुट्टी ले कर एक छोटे बच्चे की तरह कविता की देखभाल की.
कविता को यों मन ही मन घुटते देख, एक दिन मां ने उस से कहा, ‘‘कविता, मैं तुम्हारा दर्द समझती हूं, बेटा, पर इस का मतलब यह तो नहीं कि जीना छोड़ दिया जाए.’’
मां की बात सुन कर कविता ने सिसकते हुए कहा, ‘‘तो और क्या करूं, अब किस के लिए जीने की इच्छा रखूं मैं, रंजन के लिए, जिस ने यह खबर सुन कर भी आने से मना कर दिया…सोचा था बच्चे के आने पर सब ठीक हो जाएगा, पर…मां, रंजन अपने बड़े भाई जैसे क्यों नहीं हैं…’’ कहते हुए कविता मां के गले से लग गई.
कविता के स्वास्थ्य में कुछ सुधार आने के बाद राघव एक दिन एक व्यक्ति को ले कर घर आए और बोले, ‘‘कविता, मैं जानता हूं तुम बहुत अच्छा डांस करती हो और मैं चाहता हूं कि तुम नृत्य की विधिवत शिक्षा लो.’’
अब कविता को एक नया लक्ष्य मिल गया था. वह लगन से डांस सीखने लगी. उसे खुश देख कर राघव को बहुत संतुष्टि मिलती थी.
एक दिन मां ने राघव से कहा, ‘‘बेटा, तेरी मौसी का फोन आया था, वह तीर्थयात्रा पर जा रही हैं, मैं भी साथ जाना चाहती हूं, तुम मेरे जाने का इंतजाम कर दो.’’
राघव कुछ चिंतित हो कर बोले, ‘‘मां, कविता से तो पूछ लो, वह यहां मेरे साथ अकेली रह लेगी.’’
मां ने इस बारे में जब कविता से पूछा तो वह मान गई.
मां के जाने के बाद राघव कविता से कुछ दूरी बना कर रहने की कोशिश करते और कविता भी अपने डांस में व्यस्त रहती थी. एक दिन कविता ने राघव से कहा, ‘‘मुझे आप को एक अच्छी खबर सुनानी है. गुरुजी एक स्टेज शो ‘अभिज्ञान शाकुंतलम्’ कर रहे हैं और मैं उस में शकुंतला बन रही हूं.’’
राघव खुश हो कर बोले, ‘‘अरे, वाह, कब है वह?’’
‘‘अगले शुक्रवार…’’
राघव ताली बजा कर बोले, ‘‘वाह, इसे कहते हैं संयोग, उसी दिन तो रंजन और मां वापस आ रहे हैं. बड़ा मजा आएगा, जब रंजन तुम्हें स्टेज पर शकुंतला बना देखेगा.’’
शाम को राघव घर लौटे तो तेज बारिश हो रही थी. आते ही उन्होंने आवाज दी, ‘‘कविता, एक कप चाय दे दो.’’
बहुत देर तक जब कविता नहीं आई तो वह बाहर आ कर कविता को देखने लगे, कविता वहां भी न थी, तभी उन्हें छत पर पैरों के थाप की आवाज सुनाई दी. वह छत पर गए तो देखा कि कविता बारिश में भीगते हुए नृत्य का अभ्यास कर रही थी और उस की गुलाबी साड़ी उस के शरीर से चिपक कर शरीर का एक हिस्सा लग रही थी. उस पल कविता बहुत खूबसूरत लग रही थी. राघव ने अपनी नजरें झुका लीं और बोले, ‘‘कविता… नीचे चलो, बीमार पड़ जाओगी.’’
राघव की आवाज सुन कर कविता चौंक पड़ी और उन के पीछेपीछे चल पड़ी. थोड़ी देर बाद जब वह चाय ले कर राघव के कमरे में आई तब भी उस के गीले केशों से पानी टपक रहा था.
चाय पीते हुए राघव बोले, ‘‘कविता, बैठो, तुम्हारा एक पोर्टे्ट बनाता हूं,’’ कविता बैठ गई. पोटे्रट बनाते हुए राघव ने देखा कि कविता की आंखों से आंसू बह रहे हैं. वह ब्रश रख कर कविता के पास आ गए और उस के आंसू पोंछते हुए बोले, ‘‘कविता, अब तो रंजन आने वाला है, अब इन आंसुओं का कारण?’’
कविता तड़प उठी और राघव के सीने से जा लगी. राघव चौंक पडे़. कविता ने सिसकते हुए कहा, ‘‘आप ने मुझे अपने लिए क्यों नहीं चुना…चुना होता तो आज मैं इतनी अतृप्त और अधूरी न होती.’’
कविता भी उन से प्यार करने लगी है, यह जान कर राघव अचंभित हो उठे. अनायास ही उन के हाथ कविता के बालों को सहलाने लगे. कविता ने राघव की ओर देखा, तो उन्होंने कविता की भीगी हुई आंखों को चूम लिया.
राघव के स्पर्श से बेचैन हो कर कविता ने अपने प्यासे अधर उन की ओर उठा दिए. कविता की आंखों में उतर आए मौन आमंत्रण को राघव ठुकरा न सके और दोनों कब प्यार के सुखद एहसास में खो गए उन्हें पता ही न चला.
सुबह जब राघव की नींद खुली तो कविता को अपने पास न पा कर वह हड़बड़ा कर उस के कमरे की ओर भागे, देखा, वह चाय बना रही थी. तब उन की जान में जान आई. कविता ने मुसकरा कर कहा, ‘‘आप उठ गए, लो, चाय पी लो.’’
राघव नजरें झुका कर बोेले, ‘‘कविता, कल रात जो हुआ…’’
‘‘मुझे उस का कोई अफसोस नहीं…’’ कविता राघव की बात बीच में ही काटती हुई बोली, ‘‘और आप भी अफसोस जता कर मुझे मेरे उस सुखद एहसास से वंचित मत करना.’’
कविता ने राघव के पास जा कर कहा, ‘‘सच राघव, मैं ने पहली बार जाना है कि प्यार क्या होता है. रंजन के प्यार में सदा दाता होने का दंभ पाया है मैं ने, पर आप के साथ मैं ने अपनेआप को जिया है, उस कोमल एहसास को आप मुझ से मत छीनो.’’
‘‘पर कवि… आज रंजन वापस आने वाला है, फिर…’’ कहते हुए राघव ने कविता को जोर से अपने सीने से लगा लिया, मानो अब वह कविता को अपने से दूर जाने नहीं देना चाहते हैं.
तभी दरवाजे की घंटी बजी. कविता ने दरवाजा खोला तो मां को सामने पा कर वह खुशी से उछल पड़ी. मां ने कविता के चेहरे पर छाई खुशी को देख कर पूछा, ‘‘क्या बात है, कविता, बहुत खुश लग रही हो, रंजन आ गया क्या?’’
मां की बात सुन कर कविता ने राघव की ओर देखा तो बात को संभालते हुए वह बोले, ‘‘रंजन आज शाम को आएगा, और आज कविता का स्टेज शो है न इसीलिए यह बहुत खुश है.’’
शाम को कविता को मानस भवन छोड़ कर राघव, रंजन को लेने एअरपोर्ट चले गए. एअरपोर्ट से लौटते समय घर न जा कर कहीं और जाते देख रंजन बोला, ‘‘हम कहां जा रहे हैं, भैया?’’
‘‘चलो, तुम्हें कुछ दिखाना है.’’
स्टेज पर अपनी पत्नी कविता को शकुंतला के रूप में देख कर रंजन निहाल हो गया. वह बहुत ही आकर्षक लग रही थी, उस का डांस भी बहुत अच्छा था. नाटक खत्म होने पर जब राघव और रंजन, कविता से मिलने गए तो वहां लोगों की भीड़ देख कर हैरान रह गए. लौटते हुए रंजन ने कविता से कहा, ‘‘मुझे नहीं पता था कि तुम इतनी अच्छी डांसर हो.’’
कविता ने धन्यवाद कहा.
घर लौटते ही कविता बोली, ‘‘मां, मैं अपने घर जा रही हूं.’’
कविता की बात सुन कर सभी सकते में आ गए. मां ने चौंक कर कहा, ‘‘आज ही तो रंजन आया है और तुम अपने घर जाने की बात कर रही हो.’’
‘‘इसीलिए तो जा रही हूं मां, अब मैं रंजन के साथ एक छत के नीचे नहीं रह सकती.’’
कविता की यह बात सुन कर रंजन ने गुस्से से कहा, ‘‘यह क्या बकवास कर रही हो, कविता. मैं तुम्हारा पति हूं, कोई गैर नहीं.’’
कविता बिफर कर बोली, ‘‘पति… तुम जानते भी हो कि पति शब्द का मतलब क्या होता है? नहीं…तुम्हारे लिए बस, काम, पैसा, तरक्की, स्टेटस यही सबकुछ है. भावनाएं, प्यार क्या होता है इस से तुम अनजान हो.’’
रंजन भड़क कर बोला, ‘‘तुम इस तरह मुझे छोड़ कर नहीं जा सकतीं…’’
‘‘क्यों…क्यों नहीं जा सकती? ऐसा क्या किया है तुम ने आज तक मेरे लिए, जो तुम मुझे रोकना चाहते हो? जबजब मुझे तुम्हारी जरूरत थी, तुम नहीं थे, यहां तक कि जब मैं ने अपना बच्चा खोया तब भी तुम मेरे साथ नहीं थे और तुम्हें तो इस से खुशी ही हुई होगी, तुम उस झंझट के लिए तैयार जो नहीं थे. मन का रिश्ता तो तुम मुझ से कभी जोड़ ही नहीं सके और इस तन का रिश्ता भी मैं आज तोड़ कर जा रही हूं.’’
कविता के तानों से तिलमिला कर रंजन ने तल्खी से कहा, ‘‘तुम्हें क्या लगता है कि तुम यों ही चली जाओगी और मैं तुम्हें जाने दूंगा,’’ इतना कह कर रंजन कविता की बांह पकड़ कमरे की ओर ले जाते हुए बोला, ‘‘चुपचाप अंदर चलो, मैं तुम्हें अपने को इस तरह अपमानित नहीं करने दूंगा. आखिर मेरी भी समाज में कोई इज्जत है.’’
‘‘रंजन…कविता का हाथ छोड़ दो…’’ मां ने तेज स्वर में कहा.
‘‘मां, तुम भी इस का साथ दे रही हो?’’ रंजन चौंक कर बोला.
कविता की बांह रंजन से छुड़ाते हुए मां बोलीं, ‘‘हां, रंजन, क्योंकि मैं जानती हूं कि यह जो कर रही है, सही है. आज भी तुम उसे अपने प्यार की खातिर नहीं, समाज में बनी अपनी झूठी प्रतिष्ठा के कारण रोकना चाहते हो. कविता को यह कदम तो बहुत पहले उठा लेना चाहिए था. जाने दो उसे…’’
कविता ने नम आंखों के साथ मां के पैर छुए और राघव की ओर पलट कर बोली, ‘‘आप ने मुझे जीने की जो नई राह दिखाई है उस के लिए आप की आभारी हूं, अब नृत्य साधना को ही मैं ने अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया है. आप से जो भी मैं ने पाया है वह मेरे लिए अनमोल है. वह सदा मेरी अच्छी यादों में अंकित रहेगा…’’
इतना कह कर कविता चल पड़ी, अपने लिए, अपने हिस्से की थोड़ी सी जमीं और थोड़ा सा आसमां.