दुनिया नई पुरानी : एक परिवार ऐसा भी

एक सीधीसादी, संतुष्ट जिंदगी जी रहा था जनार्दन का परिवार. सबकुछ ठीकठाक चल रहा था लेकिन एक दिन ऐसा जलजला आया जो परिवार की सारी खुशियां बहा ले गया.

पदोन्नति के साथ जनार्दन का तबादला किया गया था. अब वे सीनियर अध्यापक थे. दूरदराज के गांवों में 20 वर्षों का लंबा सेवाकाल उन्होंने बिता दिया था. उन की पत्नी शहर आने पर बहुत खुश थी. गांव की अभावभरी जिंदगी से वह ऊब चुकी थी. अपने बच्चों को पढ़ानेलिखाने में जनार्दन व उन की पत्नी ने खूब ध्यान दिया था.

उन की 2 बेटियां और एक बेटा था. बड़ी का नाम मालती, मंझली मधु और छोटे बेटे का नाम दीपू था. मालती सीधीसादी मगर गंभीर स्वभाव की, तो मधु थोड़ी जिद्दी व शरारती थी, जबकि दीपू थोड़ा नटखट था.

मालती बीए की पढ़ाई कर रही थी, मधु 11वीं में पढ़ रही थी और दीपू तीसरी कक्षा में पढ़ रहा था. समय बीत रहा था.

वहां गांव में जनार्दन पैदल ही स्कूल जातेआते थे. यहां शहर में आ कर उन्होंने बाइक ले ली थी. जिस पर छुट्टी के दिन श्रीमतीजी को बैठा कर जनार्दन शौपिंग करने या घूमने जाते थे. उन की पत्नी दुपहिया वाहन में सैर कर फूले न समाती. कभीकभी दीपू भी जिद कर मांबाप के बीच बैठ कर सवारी का आनंद ले लेता था.

मधु विज्ञान विषय ले कर पढ़ रही थी. जनार्दन ने शहर के एक ट्यूशन सैंटर में भी अब उस का दाखिला करवा दिया था. वह बस से आयाजाया करती. दीपू को जनार्दन खुद स्कूल छोड़ जाया करते और लौटते समय ले आते. एक व्यवस्थित ढर्रे पर जीवन चल रहा था.

नई कालोनी में आ कर जनार्दन की पत्नी बच्चों के लालनपालन में तल्लीन थी. दिन के बाद रात, रात के बाद दिन. समय कट रहा था. बेहद घरेलू टाइप की महिला थी वह. एक ऐसी आम भारतीय महिला जिस का सबकुछ उस का पति, बच्चे व घर होता है. मां का यह स्वभाव बड़ी बेटी को ही मिला था.

मधु ट्यूशन खत्म होते ही बस से ही लौटती. कालोनी के पास ही बस का स्टौप था. ट्यूशन सैंटर के पास एक ढाबा था. शहर के लड़के और बाबू समुदाय अपने खाने का शौक पूरा करने वहां आते थे. एक दिन यहीं पर मधु सड़क पार कर बसस्टौप के लिए जा रही थी, एक कार टर्न लेते हुए मधु के एकदम पास आ कर रुकी. मधु घबरा गई थी. वह पीछे हट गई. कारचालक ने कार किनारे पार्क की और मधु के पास आया, बोला, ‘‘मैडम, सौरी, मैं जरा जल्दी में था.’’  दोनों की आंखें चार हुईं.

‘‘दिखाई नहीं देता क्या,’’ वह गुस्से से बोली.

‘‘अब एकदम ठीक दिखाई देता है मैडम.’’ उस ने मधु की आंखों में आंखें डालते हुए कहा.

‘‘नौनसैंस,’’ मधु ने उसे गुस्से से देख कर कहा.

फिर मधु बसस्टौप की तरफ बढ़ चली. वह उसे जाता हुआ देखता रहा. उस का नाम था शैलेश. शहर के एक कपड़े के व्यापारी का बेटा. अब तो शैलेश अकसर ट्यूशन सैंटर के पास दिखता- कभी ढाबे से निकलते हुए, कभी कार खड़ी कर इंतजार करते हुए. फिर वही हुआ जो ऐसे में होता है. एक शरारत पहचान में, पहचान दोस्ती में, और फिर दोस्ती प्यार में बदल गई.

बस की जगह अब मधु कार या कभी बाइक में ट्यूशन से लौटती. मधु के मातापिता इस बात से अनजान थे. लेकिन कालोनी के एक अशोकन सर को सबकुछ पता था. इधर अशोकन सर

शाम की चहलकदमी को निकलते और कालोनी से कुछ कदम दूर मधु कार से कभी बाइक से उतरती, दबेपांव धीरेधीरे घर की ओर जाती. इन की हायबाय उन्होंने कितनी ही बार देखी.

मां तो यही सोचती कि उस की बेटी सयानी है, विज्ञान की छात्रा है, एक दिन उसे डाक्टर बनना है. वह एक मौडर्न लड़की है. दुनिया में आजकल यही तो चाहिए. पिता को घर की जिम्मेदारियों से फुरसत कहां मिलती है भला.

लेकिन मधु के प्यार की भनक मालती को लग गई थी. उस के फोनकौल्स अब ज्यादा ही आ रहे थे. जब देखो मोबाइल फोन कान से लगाए रहती. एक शाम जब वह काफी देर बातें कर चुकी, तो मालती ने पूछा, ‘‘मधु, कौन था वह जिस से तुम इतनी हंसहंस कर बातें कर रही थी? तुम कहीं ऐसेवैसे के चक्कर में तो नहीं पड़ गईं. अपनी पढ़ाई का खयाल रखना.’’

मधु ने जवाब में कहा, ‘‘नहीं दीदी, ऐसीवैसी कोई बात नहीं है.’’

आखिर एक दिन उस ने दीदी को बता ही दिया कि वह शैलेश से प्यार करने लगी है. वह अच्छा लड़का है.’’

मालती ने मन में सोचा, ‘शायद यह सब सच हो.’

एक दिन अचानक मुख्यभूमि से जनार्दन के पास फोनकौल आई.

उन्हें अपने पैतृक गांव जाना पड़ा. उन के मित्र वेंकटेश ने फौरन उन के विमान टिकट का बंदोबस्त किया. पापामम्मी दोनों को जाना था. ज्यों ही मम्मीपापा गए, मधु ने दीदी से कहा कि वह 2-3 दिनों के लिए चेन्नई जाना चाहती है. शैलेश 2-3 दिनों के लिए अपने बिजनैस के सिलसिले में चेन्नई जाएगा. वह उसे भी साथ ले जाना चाहता है.

‘‘दीदी, तू साथ दे दे. बस, 2-3 दिनों की ही तो बात है.’’

मालती अवाक रह गई. मगर वह क्या कर पाती भला. उस की ख्वाहिश और बारबार यह आश्वासन कि शैलेश बहुत अच्छा लड़का है, वह उस से शादी करने को राजी है. मालती ने उसे इजाजत दे दी. शैलेश के साथ विमान से मधु चेन्नई चली गई. मालती का जैसे दिन का चैन और रातों की नींद उड़ गई थी. पता नहीं क्या हो जाए. लेकिन चौथे दिन वह शैलेश के साथ लौट आई थी. टूरिस्ट सीजन की वजह से उन्हें किसी ने ज्यादा नोटिस नहीं किया था.

एक सप्ताह के बाद मम्मीपापा मुख्यभूमि से लौट आए थे. गांव की पुश्तैनी जमीन का उन का हिस्सा उन्हें मिलने वाला था. मम्मीपापा के लौट आने पर मालती का मन बेहद हलका हो गया था.

समय गुजरता जा रहा था. जनार्दन और उन की पत्नी बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए दिनरात एक कर रहे थे. मालती अब बीए पास कर चुकी थी. वह आगे पढ़ने की सोच रही थी. दीपू 7वीं कक्षा में पहुंच गया था और मधु अब कालेज में पढ़ रही थी.

आधुनिक खयाल की लड़की होने के कारण मधु के पहनावे भी आधुनिक थे. उस की सहेलियां अमीर घरों की थीं. उन लड़कियों के बीच एक नाम बहुत ही सुनाई देता था- बबलू. वैसे उस का सही नाम जसवंत था. बबलू कभी अकेला नहीं घूमता था, 3-4 चेले हमेशा उसे घेरे रहते. क्यों न हों, वह शहर के एक प्रभावी नेता का बेटा जो था. ऊपर से वह तबीयत का भी रंगीन था. उस ने जब मधु को देखा, तो देखता ही रह गया उस की गोरी काया और भरपूर यौवन को. पर मधु भला उस पर क्यों मोहित होती, वह तो शैलेश की दीवानी थी. जब कभी कक्षाएं औफ होतीं तो मधु अपना समय शैलेश के साथ ही बिताती, कभी किसी पार्क या किसी दूसरी जगह पर.

जर्नादन और वेंकटेश की दोस्ती अब पारिवारिक बंधन में बदलने जा रही थी. वेंकटेश के बेटे को मालती बहुत पसंद थी. पिछले बरस उस ने अपनी सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की थी और उस की सरकारी नौकरी भी लग गई थी.

एक सुबह वेंकटेश और उन की पत्नी अपने बेटे का रिश्ता मालती के लिए ले कर आ गए थे. और अगले फागुन में शादी की तिथि निकल आई थी. मालती शादी के बाद भी पढ़ाई करे, उन्हें एतराज नहीं था. मां यही तो चाहती थी कि उस की बेटी को अच्छी ससुराल मिले.

इधर, मधु कालेज में अपनी सहेलियों की मंडली में हंसतीखेलती व चहकती रहती. क्लास न होने पर कैंटीन में समय बिताती या लाइब्रेरी में पत्रिकाएं उलटतीपलटती. कभीकभार शैलेश उसे पार्क में बुला लेता. बबलू तो बस हाथ मसोस कर रह जाता. वैसे, बहुत बार उस ने मधु को आड़ेहाथों लेने की कोशिश की थी.

वह गांधी जयंती की सुबह थी. कालेज में हर वर्ष की तरह राष्ट्रपिता की जयंती मनाने का प्रबंध बहुत ही अच्छे तरीके से किया गया था. लड़कियां रंगबिरंगे कपड़ों में कालेज के कैंपस और पंडाल में आजा रही थीं. तभी, बबलू की टोली ने देखा कि मधु शैलेश की कार में बैठ रही है.

अक्तूबर का महीना. सूरज की किरणों में गरमी बढ़ रही थी. शहर से दूर समुद्र के किनारे एक पेड़ के तने से लगे मधु और शैलेश बैठे हुए थे. शैलेश का सिर मधु की गोद में था और मधु की उंगलियां उस के बालों से खेल रही थीं. जब भी दोनों को मौका मिलता तो शहर से दूर दोनों एकदूसरे की बांहों में समा जाते. तभी, शैलेश ने जमीन पर फैले पत्तों में किसी के पैरों की पदचाप सुनी और वह उठ गया, देखा कि सामने एक नौजवान खड़ा है और उस के पीछे 3 और लड़के. मधु ने देखा, वह बबलू था.

और अगले क्षण बबलू ने मधु को हाथों में जकड़ लिया. बब्लू ने मधु को उस की गिरफ्त से छुड़ाना चाहा और पूछा, ‘‘तुम लोग कौन हो और इस बदतमीजी का मतलब…’’ बात अभी पूरी भी न हो पाई थी कि बबलू के बूटों का एक प्रहार उस की कमर पर पड़ा. वह उठ कर भिड़ना ही चाहता था कि बबलू का एक सख्त घूंसा उस के गाल पर पड़ा.

बबलू के इशारे पर 2 लड़कों ने उसे पीटना शुरू कर दिया. शैलेश ने मधु को अपनी बलिष्ठ बांहों में उठा लिया और पास ही के जंगल की ओर बढ़ चला. मधु प्रतिवाद करती रही. बबलू का तीसरा सहायक भी उन के पीछे पहुंच गया था.

शाम तक मधु के न लौटने पर जनार्दन व उन के घर वाले घोर चिंता में घिर गए. उन्होंने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा दी. मालती अनजाने भय से अंदर ही अंदर घबरा रही थी.

अगले दिन यह खबर जंगली आग की तरह फैल गई थी कि शहर से दूर जंगल में एक लड़की का शव और समुद्र के किनारे एक लड़का घायल अवस्था में मिला है. पुलिस हरकत में आई. उस ने शव को अस्पताल पहुंचा दिया और घायल लड़के को अस्पताल में भरती करा दिया.

जनार्दन को पुलिस ने अस्पताल बुला लिया था शिनाख्त के लिए. जब पुलिस अधिकारी ने शव के मुंह से कपड़ा हटाया, जनार्दन के मुंह से चीख निकल गई. वे वहीं गिर पड़े.

दोपहर तक शव कालोनी में लाया गया. कालोनी के लिए वह दिन शोक का था. सभी जनार्दन परिवार के दुख में शामिल थे. मां का रो कर बुरा हाल था, छोटे दीपू को जैसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था. मालती दहाड़ें मारमार कर रो रही थी. जर्नादन के लिए सबकुछ एक अबूझ पहेली की तरह था. उन के सपनों का महल धराशायी हो गया था. रोरो कर उन का भी बुरा हाल था.

मालती के सिवा कौन जानता था कि मधु के जीवन के ऐसे अंत के लिए मालती भी तो जिम्मेदार थी. काश, शुरू से उस ने उसे बढ़ावा न दिया होता और मांपिताजी को सबकुछ बता दिया होता. दहाड़े मार कर रोती मालती को अड़ोसीपड़ोसी ढांढ़स बंधा रहे थे.

पिया बावरा : एक डाक्टर की दास्तान

घंटी बजते ही दरवाजे खोल दिए गए थे. डा. सुभाष गर्ग चुपचाप बाहर निकल गए. सब की तरह उन के हाथों में भी फावड़ाटोकरी थमा दिए गए थे.

सुभाष ने हैरत से अपने हाथों को देखा कि जिन में कल तक सिरिंज और आपरेशन के पतले नाजुक औजार होते थे अब उन में फावड़ा और कुदाल थमा दी गई.

‘‘क्यों डाक्टर, उठा तो पा रहे हो न?’’ एक कैदी ने मसखरी की, ‘‘अब यहां कोई नर्स तो मिलेगी नहीं जो अपने नाजुकनाजुक हाथों से आप को कैंचीछुरी थमाएगी.’’

सभी कैदियों को एक बड़ी चट्टान पर पहुंचा दिया गया और कहा गया कि यहां की चट्टानों को तोड़ना शुरू करो.

यह सुन कर सुभाष के पूरे शरीर में सिहरन सी दौड़ गई थी.

‘यह क्या हो गया मुझ से. कुछ भी बुरा करते समय आखिर ऐसे अंजाम के बारे में हम क्यों नहीं सोच पाते हैं?’ सुभाष मन ही मन अपने उस अतीत के लिए तड़प उठे जिस की वजह से आज वे जेल की सजा काट रहे हैं और अब कुछ हो भी नहीं सकता था. इतनी भारी कुदाल उठा कर पत्थर तोड़ना आसान नहीं था. डा. सुभाष गर्ग बहुत जल्दी थक गए. पहले पत्थर तोड़ना फिर उन्हें फावड़े की मदद से तसले में डालना. कुदाल की चार चोटों में ही उन की सांस फूल गई थी. काम रोक कर वहीं पत्थर पर बैठ कर वे सुस्ताने लगे. हीरालाल ने दूर से देखा और अपना काम रोक कर वहीं आ गया.

‘‘थक गए, डाक्टर?’’

सुभाष चुप रहे.

हीरालाल ने पूछा, ‘‘क्यों मारा था पत्नी को?’’

‘‘मैं ने नहीं मारा.’’

‘‘तो मरवाया होगा?’’ हीरालाल ने व्यंग्य से कहा.

डाक्टर चुप रहे.

‘‘बहुत सुंदर होगी वह जिस के लिए तुम ने पत्नी को मरवाया?’’ हीरा शरारत से बोला.

तभी एक सिपाही का कड़कदार स्वर गूंज उठा, ‘‘क्या हो रहा है. एक दिन आए हुआ नहीं कि कामचोरी शुरू हो गई,’’ और दोनों पर एकएक बेंत बरसा कर तुरंत काम करने का आदेश दिया.

बेंत लगते ही दर्द से तड़प उठे डाक्टर. अपनी हैसियत और हालात पर सोच कर उन की आंखें भर आईं. चुपचाप डाक्टर ने कुदाल उठा ली और काम में जुट गए.

जैसेतैसे शाम हुई. सभी कैदी अपनीअपनी कोठरी में पहुंचा दिए गए.

अपनी कोठरी में लेटेलेटे डा. सुभाष बारबार आंखें झपकाने की कोशिश कर रहे थे पर गंदी सीलन भरी जगह और नीची छत देख कर लग रहा था जैसे वह अभी सिर पर टपकने ही वाली है. 2 दिन पहले एक रिपोर्टर उन का इंटरव्यू लेने आई थी. उस ने प्रश्न किया था :

‘अपने प्यार को पाने के लिए क्या पत्नी का कत्ल जरूरी था? आप तलाक भी तो ले सकते थे?’

डाक्टर की यादों के मलबे में जाने कितने कांच और पत्थर दबे हुए थे. रात भर खयालों की हथेलियां उन पत्थरों और कांच के टुकड़ों को उन के जज्बातों पर फेंकती रहती हैं. काश, वे उत्तर दे पाते कि इतने बड़ेबड़े बच्चों की मां और अमीर बाप की उस बेटी को तलाक देना कितना कठिन था.

सुभाष गर्ग जिस साल डाक्टरी की डिगरी ले कर घर पहुंचे थे उसी साल 6 माह के भीतर ही वीणा पत्नी बन कर उन के जीवन में आ गई थी.

वीणा बहुत सुंदर तो नहीं पर आकर्षक जरूर थी. बड़े बाप की इकलौती संतान थी वह. उस के पिता ने सुभाष के लिए नर्सिंग होम बनवाने का केवल वादा ही नहीं किया, बल्कि टीके की रस्म होते ही वह हकीकत में बनने भी लगा था.

मातापिता बहत गद्गद थे. सुभाष भी नए जीवन के रोमांचक पलों को भरपूर सहेज रहे थे. जैसेजैसे डा. सुभाष अपने नर्सिंग होम में व्यस्त होने लगे और वीणा अपने बच्चों में तो पतिपत्नी के बीच की मधुरता धूमिल हो चली.

वीणा के तेवर बदले तो मुंह से अब कर्कश स्वर निकलने लगे. उसे हर पल याद रहने लगा कि वह एक अमीर पिता की संतान है और वारिस भी. इसलिए घर में उस की पूछ कुछ अधिक होनी चाहिए. इसीलिए उस की शिकायतें भी बढ़ने लगीं. सुभाष जैसेजैसे पत्नी वीणा से दूर हो रहे वैसेवैसे वे नर्सिंग होम और अपने मरीजों में खोते जा रहे थे. जीवन में तनिक भी मिठास नहीं बची थी. दवाओं की गंध में फूलों से प्यारे जीवन के क्षण खो गए थे. याद करतेकरते जाने कब डा. सुभाष को नींद ने आ घेरा.

खाने की थाली ले कर जब डा. सुभाष कैदियों की लाइन में लगते तो अपने नर्सिंग होम पर लगी मरीजों की लाइन उन्हें याद आने लगती. वह लाइन शहर में उन की लोकप्रियता का एहसास कराती थी जबकि यह लाइन किसी भिखारी का एहसास दिलाती है. डा. सुभाष को उस पत्रकार महिला का प्रश्न याद आ गया, ‘क्या सचमुच समस्या इतनी बड़ी थी, क्या और कोई राह नहीं थी?’

खाना खाते समय लगभग वे रोते रहते. अपने घर की वह शानदार डाइनिंग टेबल उन्हें याद आने लगती. बस, वही तो कुछ पल थे जिस में पूरा परिवार एकसाथ बैठ कर खाना खाता था. हालांकि यह नियम भी वीणा ने ही बनाया था.

वीणा का नाम व चेहरा दिमाग में आते ही डा. सुभाष फिर पुरानी यादों में खो से गए.

उस साल बड़ा बेटा पुनीत इंजीनियरिंग पढ़ने आई.आई.टी. रुड़की गया था और छोटा भी मेडिकल के लिए चुन लिया गया था. इधर नर्सिंग होम में पहले से और अधिक काम बढ़ गया तो डा. सुभाष दोपहर में घर कम आने लगे. रोज की तरह उस दिन भी घर से उन का टिफिन नर्सिंग होम आ गया था और उन के सामने प्लेट रख कर चपरासी ने सलाद निकाला था. तभी तीव्र सुगंध का झोंका लिए 30 वर्ष की एक युवती ने कमरे में प्रवेश किया.

‘सौरी सर, आप को डिस्टर्ब किया.’

डा. सुभाष ने गर्दन उठाई तो आंखें खुली की खुली रह गईं. मन में खयाल आया कि इतना सौंदर्य कहां से मिल जाता है किसीकिसी को.

‘सर, मैं डा. सुहानी, मुझे आप के पास डा. रावत ने भेजा है कि तुरंत आप से मिलूं.’

एक सांस में बोल कर युवती अपना पसीना पोंछने लगी.

सुभाष मुसकरा दिए.

‘आइए, बैठिए.’

‘नो सर. आप कहें तो मैं थोड़ी देर में आती हूं.’

‘नर्वस क्यों हो रही हैं डाक्टर, आप बैठिए,’ सुभाष ने खड़े हो कर सामने वाली कुरसी की ओर संकेत किया.

सुहानी डरती हुई कुरसी पर बैठ गई. डा. सुभाष ने चपरासी को इशारा किया तो उस ने दूसरी प्लेट सुहानी की तरफ रख दी.

‘नो सर, मैं दोपहर में पूरा खाना नहीं खाती हूं.’

‘आप सलाद लीजिए.’

उन के इतने अनुरोध की मर्यादा रखते हुए सुहानी ने थोड़ा सा सलाद अपनी प्लेट में रख लिया.

डा. सुभाष उस के सौंदर्य को देखते हुए मुसकरा कर बोले, ‘आज मेरी समझ में आया है कि कैसे लड़कियां केवल सलाद खा कर सुंदरता बनाए रखती हैं.’

सुहानी ने संकोच से देखा और बोली, ‘ओके, डाक्टर.’

डा. सुभाष ने कांटे में पनीर का एक टुकड़ा फंसा कर मुख में रख लिया और बोले, ‘आप यहां मेरी सहायक के रूप में काम करेंगी. अभी थोड़ी देर में सुंदर आप को केबिन दिखा देगा.’

उस दिन के बाद डा. सुभाष का हर दिन सुहाना होता गया. सुहानी केवल सौंदर्य की ही नहीं, मन की भी सुंदरी थी. उस के मीठे बोल डा. सुभाष में स्फूर्ति भर देते. यह काम की नजदीकियां कब प्यार में बदल गईं, दोनों को पता ही नहीं चला.

तब घर का पूरा उत्तरदायित्व वे अच्छी तरह पूरा कर रहे थे. पर पहले की तरह अब घर पर दुखी भी होते तो सुहानी की यादें उन की आंखों में घुलीमिली रहतीं.

उन दिनों वीणा कुछ अधिक ही चिड़चिड़ी होती जा रही थी. शायद इस की वजह यह थी कि बच्चों के जाने के बाद सुभाष भी उस से दूर हो गए थे और बढ़ती दूरी के चलते उस को अपने पति सुभाष पर शक हो गया था. एक रात वीणा ने पूछ ही लिया, ‘आजकल कुछ ज्यादा ही महकने लगे हो, क्या बात है?’

डा. सुभाष चौंक पड़े, ‘ये क्या बेसिरपैर की बातें कर रही हो. अब उम्र महकने की तो रही नहीं. मेरी तकदीर में तो आयोडीन और…’

‘बसबस. आदमियों की उम्र महकने के लिए हमेशा 16 की होती है.’

‘देखो वीणा, रातदिन दवाओं की खुशबू सूंघतेसूंघते जी खराब होने लगता है तो कभीकभार सेंट छिड़क लेता हूं. बहुत संभव है कि कभी ज्यादा सेंट छिड़क लिया होगा,’ सुभाष ने सफाई दी, लेकिन धीरेधीरे वीणा की शिकायतों और डा. सुभाष की सफाइयों का सिलसिला बढ़ गया.

नर्सिंग होम में वीणा के बहुत सारे अपने आदमी भी थे जो तरहतरह की रिपोर्ट देते रहते थे.

‘तुम्हारे इतने बड़ेबड़े बच्चे हो गए हैं. कल को उन की शादी होगी. बुढ़ापे में इश्क फरमाते कुछ तो शर्म करो,’ वीणा क्रोध में उन्हें सुनाती.

सुभाष ने उन दिनों चुप रहने की ठान ली थी. इसीलिए वीणा का पारा अधिक गरम होता जा रहा था.

रोजरोज की चिकचिक से तंग आ कर आखिर एक दिन सुभाष के मुख से निकल ही गया कि हां, मैं सुहानी से प्यार करता हूं और उस से शादी भी करना चाहता हूं.

डा. सुभाष को जेल की यातना सहते महीनों बीत चुके थे, लेकिन घर से मिलने कोई नहीं आया था. वे बच्चे भी नहीं जो उन के ही अंश हैं और जिन को उन्होंने अपना नाम दिया है. ऐसा नहीं कि बच्चे उन्हें प्यार नहीं करते थे पर मां तो मां ही होती है. मां की हत्या ने उन्हें बच्चों की नजरों में एक अपराधी, मां का हत्यारा साबित कर दिया था, पर क्या इस हादसे के लिए वे अकेले ही उत्तरदायी हैं?

बच्चे क्या जानें कि वीणा सुहानी को ले कर कितनी हिंसक हो उठी थी. एक दिन गुस्से में  उस ने कहा भी था, ‘आप अगर सोचते हैं कि मैं आप से तलाक ले लूंगी और आप मजे से उस से शादी कर लेंगे तो मैं आप को याद दिला दूं कि मैं उस बाप की बेटी हूं जो अपनी जिद के लिए कुछ भी कर सकती है. मेरे एक इशारे पर आप की वह प्रेमिका कहां गायब हो जाएगी पता भी नहीं चलेगा.’

वीणा की धमकियां जैसेजैसे बढ़ रही थीं वैसेवैसे सुभाष की घबराहट भी बढ़ रही थी…वे अच्छी तरह जानते थे कि इस आयु में बड़ेबड़े बच्चों के सामने पत्नी को तलाक देना या दूसरा विवाह करना उन के लिए सरल न होगा. पर सुहानी को वीणा सताए यह भी उन्हें स्वीकार नहीं था. इसलिए ही उन्होंने सुहानी से कहा था कि वह जितनी जल्दी हो सके यहां से लंबे समय के लिए कहीं दूर चली जाए.

अगले दिन सुहानी को नर्सिंग होम में न देख कर वीणा बोली थी, ‘उसे भगा दिया न. क्या मैं उसे खोज नहीं सकती. पाताल से भी खोज कर उसे अपनी राह से हटाऊंगी. तुम समझते क्या हो अपनेआप को.’

‘इतनी नफरत किस काम की,’ गुस्से से डा. सुभाष ने कहा था, ‘क्या इस उम्र में मैं दूसरी शादी कर सकता हूं.’

‘प्यार तो कर रहे हो इस उम्र में.’

‘नहीं, किसी ने गलत खबर दी है.’

‘किसी ने गलत खबर नहीं दी,’ वीणा फुफकारती हुई बोली, ‘मैं ने स्वयं आप का पीछा कर के अपनी आंखों से आप दोनों को एकदूसरे की बांहों में सिमटते देखा है.’

डा. सुभाष स्तब्ध थे, कितनी तेज है यह औरत. घबरा कर कहा, ‘अपने बच्चों को भी तो हम किसी अच्छी बात पर प्यार कर लेते हैं.’

‘शर्म नहीं आती तुम को इतना झूठ बोलते हुए,’ वीणा के अंदर का झंझावात बुरी तरह उफन रहा था.

उस दिन पत्थर तोड़ते हुए हीरा ने कहा, ‘‘डाक्टर आप चाहते तो बच सकते थे. आप ने बीवी की कार का पीछा क्यों किया. अच्छेभले नर्सिंग होम में बैठे रहते तो बच जाते.’’

‘‘मैं बहुत डरा हुआ था, क्योंकि वीणा के पिता के आदमी उस की सुरक्षा में लगे हुए थे. शायद हत्या की सुपारी लेने वाला अपना काम न कर पाता,’’ हीरालाल की सहानुभूति पा कर

डा. सुभाष ने भी बोल दिया.

‘‘उस के आदमी चारों तरफ सुरक्षा में फैले रहते हैं. तभी तो आप आसानी से अंदर हैं.’’

शायद हीरालाल ठीक कह रहा था, वे क्या करते, जो कुछ भी हुआ वह सोचीसमझी योजना का हिस्सा नहीं था. वह सबकुछ केवल सुहानी को बचाने की जिद से हो गया. शायद उन से बचकानी हरकत हो गई. इतनी बड़ी बात को गंभीरता से नहीं लिया और नतीजे के बारे में भी नहीं सोचा था.

उन्हें लगा कि वीणा सुहानी के घर की तरफ ही जा रही है और बिना समय गंवाए उन्होंने वीणा पर गोली चला दी. सुहानी तो बच गई मगर वीणा के पिता का कुछ भरोसा नहीं. केवल उन्हें सलाखों के पीछे भेज कर वे संतुष्ट होने वाले नहीं हैं. सुभाष के जीवन से तो सबकुछ छिन गया, पत्नी भी और प्रेमिका भी.

वह 15 अगस्त का दिन था. सभी कैदियों को सुबह झंडा फहराते समय राष्ट्रगान गाना था. फिर सब को बूंदी के लड्डू दिए गए थे. सुभाष अपना लड्डू खाने का प्रयत्न कर ही रहे थे कि हीरालाल ने जल्दी से आ कर उन के कान से मुख सटा दिया और कहा, ‘‘अभीअभी इंस्पेक्टर के कमरे से सुन कर आया हूं, कह रहे थे कि डाक्टर की प्रेमिका का पता चल गया है. बहुत जल्द उसे भी गिरफ्तार कर लिया जाएगा.’’

‘‘क्या?’’ उन के हाथ से लड्डू छिटक गया. हीरालाल ने झट से लड्डू उठा लिया और बोला, ‘‘डाक्टर, मुझे पता है कि अब तुम इस लड्डू को नहीं खाओेगे. डाक्टर हो न, जमीन पर गिरा लड्डू कैसे खा सकते हो.’’

उस ने वह लड्डू भी खा लिया.

सुभाष बहुत व्याकुल हो उठे थे. वे समझ गए थे कि यह सब वीणा के पिता ने ही करवाया है. उन की आंखों से आंसू बहने लगे.

हीरा ने कहा, ‘‘यह क्या, डाक्टर साहब. आप इतने कमजोर दिल के हैं, फिर भला दूसरों के दिल का आपरेशन कैसे करते थे?’’

डाक्टर ने अपने आंसू पोंछे और कहा, ‘‘हीरा, सब को अपने अंत का पता होता है, फिर भी हम जैसों से इतनी भूल कैसे हो जाती है.’’

‘‘आप शरीफ इनसान हैं इसलिए सबकुछ शराफत के दायरे में करने की कोशिश की. काश, आप भी शातिर खिलाड़ी होते तो आज पकड़ा कोई और जाता और आप अपनी सुहानी के साथ हनीमून मना रहे होते.’’

सुभाष ने चौंक कर हीरालाल को देखा और बोले, ‘‘क्या कह रहे हो?’’

‘‘ठीक कह रहा हूं, डाक्टर. आज मैं जिस कत्ल की सजा भोग रहा हूं उस व्यक्ति को मैं ने कभी देखा ही नहीं. उस का हत्यारा बहुत शातिर और धनवान था. मुझे उलझा कर खुद मजे से घूम रहा है.’’

डाक्टर ठगे से खड़े रह गए.

‘‘डाक्टर, सच यह है कि इतने वर्षों में इस जेल के अंदर रह कर मैं ने दांवपेंच सीख लिए हैं. एक बार यहां से भागने का अवसर मिला तो उस शातिर की हत्या कर के सचमुच का हत्यारा बन जाऊंगा.’’

डा. सुभाष अपनी सोच में डूबे हुए थे, धीरे से बुदबुदाए, ‘इस से तो अच्छा था कि मुझे फांसी हो जाती.’’

इतना कहने के साथ ही उन्होंने कस कर अपनी छाती को दबाया और कराह उठे. उन का हृदय दर्द से तड़प रहा था.

‘‘डाक्टर,’’ हीरा चिल्ला उठा.

डाक्टर धीरेधीरे धरती पर गिर कर तड़पने लगे. हलचल मचते ही कई अधिकारी वहां आ गए थे. डाक्टर को स्ट्रेचर पर लिटाया गया और सिपाही चल पड़े. हीरा भाग कर वहां पहुंचा और झुक कर डाक्टर के कान में कहने की चेष्टा की कि वहां से भाग जाना पर सुभाष बेसुध हो चुके थे.

हीरा मन मसोस कर उन्हें जाता देखता रहा. सुभाष की बंद आंखों के सामने बहुत से चेहरे घूम रहे थे.

‘तुम पागल हो गए हो उस बेटी समान लड़की के लिए,’ वीणा के पुराने स्वर डाक्टर को नीमबेहोशी में सुनाई दे रहे थे. फिर सबकुछ डूबने लगा. आवाज, सांस और धुंधलाती सी पुरानी यादें. उस धुंधली छाया में बस एक छवि अटकी थी सुहानी…सुहानी.

रोजरोज की चिकचिक से तंग आ कर आखिर एक दिन सुभाष के मुख से निकल ही गया कि हां, मैं सुहानी से प्यार करता हूं और उस से शादी भी करना चाहता हूं.

जन्म समय: एक डौक्टर ने कैसे दूर की शंका

रिसैप्शन रूम से बड़ी तेज आवाजें आ रही थीं. लगा कि कोई झगड़ा कर रहा है. यह जिला सरकारी जच्चाबच्चा अस्पताल का रिसैप्शन रूम था. यहां आमतौर पर तेज आवाजें आती रहती थीं. अस्पताल में भरती होने वाली औरतों के हिसाब से स्टाफ कम होने से कई बार जच्चा व उस के संबंधियों को संतोषजनक जवाब नहीं मिल पाता था.

अस्पताल बड़ा होने के चलते जच्चा के रिश्तेदारों को ज्यादा भागादौड़ी करनी पड़ती थी. इसी झल्लाहट को वे गुस्से के रूप में स्टाफ व डाक्टर पर निकालते थे.

मुझे एक तरह से इस सब की आदत सी हो गई थी, पर आज गुस्सा कुछ ज्यादा ही था. मैं एक औरत की जचगी कराते हुए काफी समय से सुन रहा था और समय के साथसाथ आवाजें भी बढ़ती ही जा रही थीं. मेरा काम पूरा हो गया था. थोड़ा मुश्किल केस था. केस पेपर पर लिखने के लिए मैं अपने डाक्टर रूम में गया.

मैं ने वार्ड बौय से पूछा, ‘‘क्या बात है, इतनी तेज आवाजें क्यों आ रही हैं?’’

‘‘साहब, एक शख्स 24-25 साल पुरानी जानकारी हासिल करना चाहते हैं. बस, उसी बात पर कहासुनी हो रही है.’’ वार्ड बौय ने ऐसे बताया, जैसे कोई बड़ी बात नहीं हो.

‘‘अच्छा, उन्हें मेरे पास भेजो,’’ मैं ने कुछ सोचते हुए कहा.

‘‘जी साहब,’’ कहता हुआ वह रिसैप्शन रूम की ओर बढ़ गया.

कुछ देर बाद वह वार्ड बौय मेरे चैंबर में आया. उस के साथ तकरीबन 25 साल की उम्र का नौजवान था. वह शख्स थोड़ा पढ़ालिखा लग रहा था. शक्ल भी ठीकठाक थी. पैंटशर्ट में था. वह काफी परेशान व उलझन में दिख रहा था. शायद इसी बात का गुस्सा उस के चेहरे पर था.

‘‘बैठो, क्या बात है?’’ मैं ने केस पेपर पर लिखते हुए उसे सामने की कुरसी पर बैठने का इशारा किया.

‘‘डाक्टर साहब, मैं कितने दिनों से अस्पताल के धक्के खा रहा हूं. जिस टेबल पर जाऊं, वह यही बोलता है कि यह मेरा काम नहीं है. उस जगह पर जाओ. एक जानकारी पाने के लिए मैं 5 दिन से धक्के खा रहा हूं,’’ उस शख्स ने अपनी परेशानी बताई.

‘‘कैसी जानकारी?’’ मैं ने पूछा.

‘‘जन्म के समय की जानकारी,’’ उस ने ऐसे बोला, जैसे कि कोई बड़ा राज खोला.

‘‘किस के जन्म की?’’ आमतौर पर लोग अपने छोटे बच्चे के जन्म की जानकारी लेने आते हैं, स्कूल में दाखिले के लिए.

‘‘मेरे खुद के जन्म की.’’

‘‘आप के जन्म की? यह जानकारी तो तकरीबन 24-25 साल पुरानी होगी. वह इस अस्पताल में कहां मिलेगी. यह नई बिल्डिंग तकरीबन 15 साल पुरानी है. तुम्हें हमारे पुराने अस्पताल के रिकौर्ड में जाना चाहिए.

‘‘इतना पुराना रिकौर्ड तो पुराने अस्पताल के ही रिकौर्ड रूम में होगा, सरकार के नियम के मुताबिक, जन्म समय का रिकौर्ड जिंदगीभर तक रखना पड़ता है.

‘‘डाक्टर साहब, आप भी एक और धक्का खिला रहे हो,’’ उस ने मुझ से शिकायती लहजे में कहा.

‘‘नहीं भाई, ऐसी बात नहीं है. यह अस्पताल यहां 15 साल से है. पुराना अस्पताल ज्यादा काम के चलते छोटा पड़ रहा था, इसलिए तकरीबन 15 साल पहले सरकार ने बड़ी बिल्डिंग बनाई.

‘‘भाई यह अस्पताल यहां शिफ्ट हुआ था, तब मेरी नौकरी का एक साल ही हुआ था. सरकार ने पुराना छोटा अस्पताल, जो सौ साल पहले अंगरेजों के समय बना था, पुराना रिकौर्ड वहीं रखने का फैसला किया था,’’ मैं ने उसे समझाया.

‘‘साहब, मैं वहां भी गया था, पर कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला. बोले, ‘प्रमाणपत्र में सिर्फ तारीख ही दे सकते हैं, समय नहीं,’’’ उस शख्स ने कहा.

आमतौर पर जन्म प्रमाणपत्र में तारीख व जन्मस्थान का ही जिक्र होता है, समय नहीं बताते हैं. पर हां, जच्चा के इंडोर केस पेपर में तारीख भी लिखी होती है और जन्म समय भी, जो घंटे व मिनट तक होता है यानी किसी का समय कितने घंटे व मिनट तक होता है, यानी किसी का समय कितने घंटे व मिनट पर हुआ.

तभी मेरे दिमाग में एक सवाल कौंधा कि जन्म प्रमाणपत्र में तो सिर्फ तारीख व साल मांगते हैं, इस को समय की जरूरत क्यों पड़ी?

‘‘भाई, तुम्हें अपने जन्म के समय की जरूरत क्यों पड़ी?’’ मैं ने उस से हैरान हो कर पूछा.

‘‘डाक्टर साहब, मैं 26 साल का हो गया हूं. मैं दुकान में से अच्छाखासा कमा लेता हूं. मैं ने कालेज तक पढ़ाई भी पूरी की है. मुझ में कोई ऐब भी नहीं है. फिर भी मेरी शादी कहीं तय नहीं हो पा रही है. मेरे सारे दोस्तों व हमउम्र रिश्तेदारों की भी शादी हो गई है.

‘‘थकहार कर घर वालों ने ज्योतिषी से शादी न होने की वजह पूछी. तो उस ने कहा, ‘तुम्हारी जन्मकुंडली देखनी पड़ेगी, तभी वजह पता चल सकेगी और कुंडली बनाने के लिए साल, तारीख व जन्म के समय की जरूरत पड़ेगी.’

‘‘मेरी मां को जन्म की तारीख तो याद है, पर सही समय का पता नहीं. उन्हें सिर्फ इतना पता है कि मेरा जन्म आधी रात को इसी सरकारी अस्पताल में हुआ था.

‘‘बस साहब, उसी जन्म के समय के लिए धक्के खा रहा हूं, ताकि मेरा बाकी जन्म सुधर जाए. शायद जन्म का सही समय अस्पताल के रिकौर्ड से मिल जाए.’’

‘‘मेरे साथ आओ,’’ अचानक मैं ने उठते हुए कहा. वह उम्मीद के साथ उठ खड़ा हुआ.

‘‘यह कागज व पैन अपने साथ रखो,’’ मैं ने क्लिप बोर्ड से एक पन्ना निकाल कर कहा.

‘‘वह किसलिए?’’ अब उस के चौंकने की बारी थी.

‘‘समय लिखने के लिए,’’ मैं ने उसे छोटा सा जवाब दिया.

‘‘मेरी दीवार घड़ी में जितना समय हुआ है, वह लिखो,’’ मैं ने दीवार घड़ी की ओर इशारा करते हुए कहा.

उस ने हैरानी से लिखा. सामने ही डिलीवरी रूम था. उस समय डिलीवरी रूम खाली था. कोई जच्चा नहीं थी. डिलीवरी रूम में कभी भी मर्द को दाखिल होने की इजाजत नहीं होती है. मैं उसे वहां ले गया. वह भी हिचक के साथ अंदर घुसा.

मैं ने उस कमरे की घड़ी की ओर इशारा करते हुए उस का समय नोट करने को कहा, ‘‘अब तुम मेरी कलाई घड़ी और अपनी कलाई घड़ी का समय इस कागज में नोट करो.’’

उस ने मेरे कहे मुताबिक सारे समय नोट किए.

‘‘अच्छा, बताओ सारे समय?’’ मैं ने वापस चैंबर में आ कर कहा.

‘‘आप की घड़ी का समय दोपहर 2.05, मेरी घड़ी का समय दोपहर 2.09, डिलीवरी रूम का समय दोपहर 2.08 और आप के चैंबर का समय दोपहर 2.01 बजे,’’ जैसेजैसे वह बोलता गया, खुद उस के शब्दों में हैरानी बढ़ती जा रही थी.

‘‘सभी घडि़यों में अलगअलग समय है,’’ उस ने इस तरह से कहा कि जैसे दुनिया में उस ने नई खोज की हो.

‘‘देखा तुम ने अपनी आंखों से, सब का समय अलगअलग है. हो सकता है कि तुम्हारे ज्योतिषी की घड़ी का समय भी अलग हो. और जिस ने पंचांग बनाया हो, उस की घड़ी में उस समय क्या बजा होगा, किस को मालूम?

‘‘जब सभी घडि़यों में एक ही समय में इतना फर्क हो, तो जन्म का सही समय क्या होगा, किस को मालूम?

‘‘जिस केस पेपर को तुम ढूंढ़ रहे हो, जिस में डाक्टर या नर्स ने तुम्हारा जन्म समय लिखा होगा, वह समय सही होगा कि गलत, किस को पता?

‘‘मैं ने सुना है कि ज्योतिष शास्त्र के अनुसार एक पल का फर्क भी ग्रह व नक्षत्रों की जगह में हजारों किलोमीटर में हेरफेर कर देता है. तुम्हारे जन्म समय में तो मिनटों का फर्क हो सकता है.

‘‘सुनो भाई, तुम्हारी शादी न होने की वजह यह लाखों किलोमीटर दूर के बेचारे ग्रहनक्षत्र नहीं हैं. हो सकता है कि तुम्हारी शादी न होने की वजह कुछ और ही हो. शादियां सिर्फ कोशिशों से होती हैं, न कि ग्रहनक्षत्रों से,’’ मैं ने उसे समझाते हुए कहा.

‘‘डाक्टर साहब, आप ने घडि़यों के समय का फर्क बता कर मेरी आंखें खोल दीं. इतना पढ़नेलिखने के बावजूद भी मैं सिर्फ निराशा के चलते इन अंधविश्वासों के फेर में फंस गया. मैं फिर से कोशिश करूंगा कि मेरी शादी जल्दी से हो जाए.’’ अब उस शख्स के चेहरे पर निराशा की नहीं, बल्कि आत्मविश्वास की चमक थी.

सती: अवनि की जिंदगी में क्या हुआ पति की मौत के बाद

अवनी ने मनीष को दवा खिलाई और बाहर आ कर ड्राइंगरूम में टीवी देखने लगी. तभी अंदर से मनीष
के चिल्लाने की आवाज आई. अवनी भगाती हुई अंदर गई तो देखा मनीष गुस्से से भरा बैठा था.

अवनी को देखते ही बोला,”तुम मेरी नर्स हो या पत्नी? 2 मिनट भी साथ नहीं बैठ सकतीं? तुम्हें नाम, पैसा, 2 बेटे, कोठी क्या कुछ नहीं दिया और मेरे बीमार पड़ते ही तुम ने नजरें फेर लीं?”

अवनी इस से पहले कुछ बोलती, उस के दोनों बेटे रचित, सार्थक और सासससुर भी आ गए थे.

रचित गुस्से में बोला,”मम्मी, शर्म आनी चाहिए आप को। एक दिन टीवी नहीं देखोगी तो कोई तूफान नहीं आ जाएगा।”

सास गुस्से में बोलीं,”पत्नी अपने पति के लिए क्या क्या नहीं करती। मेरे बेटे को कैंसर क्या हुआ अवनी कि तुम ने अपनी नजरें ही फेर लीं…”

अवनी कमरे में एक तरफ अपराधी की तरह बैठी रही, वह अपराध जो उस ने किया ही नहीं था. मनीष के सिर पर अवनी ने जैसे ही हाथ फेरा मनीष ने झटक कर हाथ हटा दिया। अवनी की आंखों मे आंसू आ गए. उसे पता था मनीष कैंसर के कारण चिड़चिड़ा हो गया है पर वह क्या करे? वह पूरी कोशिश करती है पर आखिर है तो इंसान ही. पिछले 3 सालों से मनीष के कैंसर का इलाज चल रहा था. अवनी शुरुआत में रातदिन मनीष के साथ साए की तरह बनी रहती थी. पर धीरेधीरे वह तनमन से थक गई थी.

पर परिवार के सब लोग मनीष का भार अवनी पर डाल कर निश्चिंत हो गए थे. मनीष की बीमारी मानों
अवनी के लिए एक कैदखाना हो गई थी. अवनी के उठनेबैठने, कपड़े पहनने तक पर सब की निगाहें रहती थीं. अवनी अगर थोड़ा सा तैयार हो जाती तो मनीष की नजरों में सवाल तैरने लगते थे. अवनी का बहुत मन होता मनीष को बताने का कि उसे दुख है पर वह जीना नहीं छोड़ सकती.

पिछले 3 सालों से अवनी ने घर से बाहर कदम नहीं रखा था. किसी की शादी या कोई समारोह होता तो अवनी के सासससुर दोनों बेटों के साथ चले जाते थे. अवनी को ऐसा महसूस होने लगा था कि वह मनीष
के जिंदा होते हुए भी सती हो गई है. सती तो शायद पति की चिता के साथ एक बार ही जली थी पर अवनी तो पिछले 3 सालों से तिलतिल कर जल रही थी.

कल रात बहुत देर से अवनी की आंख लगी और मनीष के चिल्लाने की आवाज से एक झटके से खुल गई.
मनीष गुस्से में बड़बड़ा रहा था,”अगर मेरे पास पैसा न होता तो तुम तो मुझे सड़क पर बैठा देतीं।”

अवनी बिना कुछ बोले चुपचाप चाय बनाने चली गई. उस को देखते ही सास बोलीं,”आज तो तुम ने हद
कर दी है, कब मनीष कुछ खाएगा और कब वह दवा लेगा? तुम्हें पता है न कीमोथेरैपी के लिए डाइट का अच्छा होना जरूरी है…”

मनीष को चाय और बादाम दे कर अवनी नहाने चली गई. जब नहा कर बाहर निकली तो देखा कमरे में से
किसी के जोरजोर से हंसने की आवाज आ रही थी. अवनी ने गीले बालों को तौलिए से लपेट रखा था।कुछ गीले बाल छितर कर इधरउधर बिखरे हुए थे और इंडिगो ब्लू रंग का सूट उस पर खूब खिल रहा था.

जैसे ही वह बाहर आई, वह युवक बोला,”अरे भाभीजी को तो देख कर लगता ही नहीं इन के 18 और 20 साल के बेटे भी होंगे।”

मनीष कड़वा सा मुंह बनाते हुए बोला,”हां कुदरत ने सारा बुढ़ापा तेरे भैया के ही नसीब में लिख दिया है,”
और फिर वह फफकफफक कर रोने लगा. अवनी अपराधी की तरह खड़ी रह गई.

अवनी सब समझती थी। कीमोथेरैपी के कारण मनीष के बाल झड़ गए थे। चेहरे पर काले धब्बे पड़ गए थे और आंखे अंदर धंस गई थीं. पर अवनी को समझ नहीं आता था कि वह कैसे मनीष का मनोबल बढ़ाए.

तभी वह युवक बोला,”अरे अवनीजी, आप ने मुझे पहचाना नहीं, मैं मनीष की बुआ का बेटा हूं और रिश्ते में
आप का देवर हूं। मेरा नाम कुणाल है।”

अवनी बोली,”अरे आप बैठो, मैं चायनाश्ते का इंतजाम करती हूं।”

अवनी ने फटाफट कुक की मदद से पनीर के परांठे, ढोकला, सूजी का हलवा और लालमिर्च की चटनी बना
ली थी. जैसे ही वह बाहर निकली तो मनीष को डाइनिंग टेबल पर बैठा देख कर खुश हो गई.

कुणाल बोला,”जल्दीजल्दी नाश्ता लगाएं, बड़ी कस कर भूख लगी है।”

आज शायद लगभग 1 साल के बाद मनीष ने डाइनिंग टेबल पर बैठ कर सब के साथ खाया होगा. कुणाल पूरे समय चुटकले सुनाता रहा और अवनी के नाश्ते की तारीफ करता रहा. न जाने क्यों अवनी को लग रहा था कि कुणाल के आने से पूरे घर में खुशियों की लहर आ गई है. नाश्ते के बाद सब लोग अपनेअपने काम में लग गए और कुणाल ड्राइंगरूम में बैठ कर टीवी पर कोई प्रोग्राम देखने लगा. अवनी भी वहीं बैठ कर सब्जी काटने लगी और सब्जी काटतेकाटते कुणाल से बोली,”और आप के घर में सब कैसे हैं?”

कुणाल हंसते हुए बोला,”मैं ही घर हूं।
और कोई नहीं है मेरे घर में। मैं अच्छा हूं तो घर भी अच्छा है।”

अवनी बोली,”आप ने अब तक शादी नहीं करी क्या?”

कुणाल बोला,”करी थी मगर सोनल शादी के 4 साल बाद मुझ से अलग हो गई थी।”

अवनी ने धीमे से कहा,”सौरी…”

कुणाल हंसते हुए बोला,”अरे इस में सौरी की क्या बात है। अगर कोई मेरी टाइप की मिलेगी तो शादी कर लूंगा।”

कुणाल बिजनैस के सिलसिले में यहां आया हुआ था. वह अगले दिन से रोज सुबह काम पर निकल जाता
और शाम को आ जाता था. उस के आते ही अवनी के चेहरे पर रौनक आ जाती थी. कुणाल अवनी से सुखदुख की बात कर लेती थी.

धीरेधीरे कुणाल और अवनी के बीच अच्छी दोस्ती हो गई थी. कुणाल लगभग 2 महीने रहा और इन 2 महीनों में वह हर वीकैंड पर आउटिंग का प्लान करता था. जब पहली बार कुणाल ने मूवी का प्लान बनाया तो रचित और सार्थक का हमेशा की तरह अपने प्रोग्राम बने हुए थे.

सासससुर जब तैयार हो गए तो कुणाल बोला,”मनीष भैया और अवनी भाभी नही चलेंगे?”

अवनी की सास बोलीं,”अरे मनीष कहीं आताजाता नहीं है। वह तो तेरे कहने पर हम भी बरसों बाद मूवी
देखने जा रहे हैं।”

कुणाल ने जबरदस्ती मनीष को यह कहते हुए तैयार कर लिया कि अगर मन नहीं लगा तो वह खुद बीच में ही मनीष के साथ घर आ जाएगा.

जब इंटरवल में कुणाल और अवनी पौपकौर्न लेने गए तो कुणाल बोला,”ऐसे ही खुश रहा करो, अच्छी लगती हो। भैया बीमार हैं पर आप क्यों उन के साथ समय से पहले ही सती हो रही हो?”

कुणाल जातेजाते अवनी को हिम्मत और साहस दे गया था. अब अवनी महीने में 1 बार जरूर बाहर अपने दोस्तों से मिलने या मूवी देखने चली जाती थी. मनीष की चिड़चिड़ाहट, बच्चों की शिकायतें या
सासससुर की नसीहतों को अब अवनी अनदेखा कर देती थी. जब भी अवनी को अकेलापन लगता या हौसला टूटने लगता तो वह कुणाल से फोन पर बात कर लेती थी. मनीष के अंतिम दिनों में कुणाल भी वहीं आ गया था. कुणाल के आने से अवनी को हर तरह से सहारा मिल गया था.

जब मनीष की मृत्यु हो गई तो कुणाल ही था जो पूरे परिवार के लिए रातदिन खड़ा रहा था. वह पूरे 1 माह रुका और जाने से पहले कुणाल ने अवनी को कहा,”जब कभी भी मेरी जरूरत महसूस हो बस एक कौल कर देना…”

अब अवनी ने फिर से अपनी जिंदगी नई सिरे से शुरू करनी चाही पर उस का अपना परिवार उसे यह करने
से रोक रहा था. जब अवनी ने अपने ससुर से बिजनैस जौइन करने की बात करी तो ससुर बोले,”यह उम्र तुम्हारे बेटों की बिजनैस सीखने की है। तुम घर पर रह कर योगसाधना में अपना ध्यान लगाओ। पूजापाठ करो ताकि अगले जन्म में वैधव्य का दुख न भोगना पड़े।”

अवनी उन की अंधविश्वास भरी बातें सुन कर हैरान रह जाती। अगर वह थोड़ा ढंग से तैयार हो जाती तो सास की तीखी नजरें उसे चुभती रहती थीं. अवनी कभीकभी दुखी हो कर सोचती कि इस से अच्छा तो पहला जमाना था जब पति के साथ ही पत्नी सती हो जाती थी। कम से कम रोज तिलतिल कर मरना तो नहीं पड़ता था.

मनीष की मृत्यु को पूरे 1 साल हो गए थे. आज मनीष की बरसी थी और कुणाल भी आया हुआ था. अवनी
को देखते ही बोला,”यह तुम ने अपना क्या हाल बना लिया है? भैया की मृत्यु हुई है तुम्हारी नहीं।”

अवनी फफकफफक कर रो पड़ी और बोली,”काश, मैं ही मर जाती, कुणाल। मेरे कपड़े पहनने, हंसनेबोलने सब पर पाबंदी है। मेरे खुद के बेटे मुझे खुश देखते ही शक करने लगते हैं। मुझे बाहर काम करने की इजाजत नहीं है। घर पर कोई काम है नहीं, बच्चे बड़े हो गए हैं। बताओ मैं क्या करूं?

“इस पूजापाठ, व्रत में मेरी श्रद्धा नहीं है। मुझे एक सामान्य औरत की तरह जीने का मन है। मुझे देवी नहीं बनना है…”

कुणाल ने एकाएक कहा,”अवनी, मुझ से शादी करोगी?”

अवनी एकदम से हक्कीबक्की रह गई और बोली,”क्या कह रहे हो तुम? मेरे 2-2 जवान बेटे हैं…”

कुणाल बोला,”हां 2-2 बेटे हैं जिन्हें कभी भी तुम्हारी जरूरत नहीं थी।सोच कर बताना, अगर जवाब न भी होगा तो भी तुम्हारा दोस्त बन कर हमेशा खड़ा रहूंगा।”

कुणाल के जाने के बाद अवनी बहुत दिनों तक सोचविचार करती रही मगर उस के अंदर डर उसे भयभीत करता रहता।

कुछ दिनों बाद मनीष के परिवार में ही शादी थी. सब लोग अच्छे से तैयार हुए मगर अवनी जैसे ही तैयार हो
कर बाहर आई तो सास बोलीं,”यह नारंगी रंग की साड़ी के बजाए कोई लाइट कलर पहन लो। लोग क्या सोचेंगे कि तुम्हें जरा भी मनीष के जाने का दुख नहीं है।”

जैसे ही अवनी जाने लगी तो बड़े बेटे रचित की आवाज आई,”मम्मी, यह लिपस्टिक भी हलकी कर लीजिए।लोग आप को ऐसे देखें तो अच्छा नहीं लगता।”

अवनी अंदर जा कर फूटफूट कर रोई और जब बाहर निकली तो वह एक सफेद साड़ी में लिपटी थी।

ससुरजी गुस्से में बोले,”यह जानबूझ कर नाटक क्यों कर रही हो अवनी, ताकि सब को लगे हम एक विधवा पर जुल्म कर रहे हैं…”

आखिरकार अवनी उस शादी में गई ही नहीं मगर उस रात बहुत देर तक वह कुणाल से बात करती रही।
अगले दिन सब के सामने अवनी ने कुणाल से विवाह करने का फैसला सुना दिया। दोनों बेटे सकते में
आ गए थे.

सास रोते हुए बोलीं,”तेरा चक्कर तो कुणाल से शायद बहुत पहले से ही चल रहा था, अवनी. तभी तो तुम मेरे
बीमार बेटे की देखभाल नहीं करती थीं।”

ससुरजी बोले,”बेवकूफ औरत, यह तुम्हारे बेटों की शादी की उम्र है नाकि तुम्हारी. जरा अपनी उम्र का लिहाज तो करो. 2 साल भी तुम से मर्द के बिना नहीं रहा जा रहा है?”

सार्थक गुस्से में बोला,”अगर आप ने कुणाल से शादी करी तो आप हम से रिश्ता तोड़ लेना।”

अवनी के मातापिता भी उस के फैसले से खुश नहीं थे. अवनी की भाभी बोलीं,”दीदी, सार्थक और
रचित के बारे में तो सोचो। कुछ वर्षों बाद आप के पोतेपोती खिलाने की उम्र हो जाएगी और आप डोली में बैठने की तैयारी कर रही हो… अगर आप अकेली होतीं तो ठीक था पर आप के तो 2 जवान बेटे हैं, आप को क्यों किसी सहारे की आवश्यकता है?”

अवनी को समझ नहीं आ रहा था कि वह कैसे किसी को समझाए. जिंदगी का मतलब बस रोटी, कपड़ा और
मकान ही तो नहीं है. सब के विरोध के बावजूद भी अवनी और कुणाल ने कोर्ट में विवाह कर लिया था.

जब सब पुराने रिश्तों से रीति हो कर अवनी कुणाल का हाथ थाम कर उस के घर मे आई तो उस की आंखें
गीली थीं. अवनी कुणाल से बोली,”कुणाल, मुझे मेरे बेटों ने अपनी जिंदगी से बेदखल कर दिया है।”

कुणाल हंसते हुए बोला,”अवनी, देरसवेर रचित और सार्थक तुम्हारा पहलू समझ जाएंगे. सती प्रथा को समाप्त करने के लिए किसी को तो पहल करनी होती है न…”

अवनी के मन में ये पंक्तियां बारबार उमड़ रही थीं,”न बनना चाहती हूं मैं देवी और न ही बनना चाहती हूं सती, मैं हूं एक सामान्य नारी जो हर उम्र में चाहती है जीवन में भावनाओं की गति.

बीमार थीं क्या: नीलू क्यों हो गई डिप्रेशन की शिकार

‘‘क्याबात है मुन्नी, पीलीपीली सी क्यों लग रही हो? बीमार थीं क्या?’’ भाभी की मां ने बड़े स्नेह से सिर पर हाथ रख कर मेरा हालचाल पूछा तो मन भीग सा गया. कोई आप के स्वास्थ्य की इतनी चिंता करे तो अच्छा लगता ही है.

‘‘अपने खानेपीने का खयाल रखा करो बेटा. औरत घर की धुरी होती है. वही अगर बीमार पड़ जाए तो पूरा घर अस्तव्यस्त हो जाता है.’’

‘‘जी, आंटीजी, तबीयत थोड़ी ठीक नहीं थी. पहले वायरल हो गया था. उस के बाद खांसी ने जकड़ लिया. आप सुनाइए, कैसा चल रहा है? घर में सब ठीक हैं न?’’

उन के जाने पर मैं सोच में पड़ गई कि क्या सचमुच मेरा चेहरा पीलापीला लग रहा है? अभी तो मैं भाई की शादी के लिए सजीसंवरी हूं. भारी मेकअप करने और गहनों से लदीफंदी मैं इन्हें पीली क्यों लगी? क्या मेकअप ने भी मेरा पीला रंग नहीं छिपाया?

मुझे चिंता ने घेर लिया कि कितना तो खयाल रखती हूं मैं अपनी सेहत का. फिर भी हर साल बीमार हो जाती हूं. पिछले साल भी टाइफाइड होने पर बेहद कमजोर हो गई थी. पूरे 4 महीने लग गए थे मुझे अपनेआप और घर को संभालने में. राजीव कितनी छुट्टियां लेते. हार कर उन की मां और मेरी मां को हमारा घर संभालना पड़ा था. दोनों बारीबारी से आती थीं. तब से अपना विशेष खयाल रखती हूं, क्योंकि पहले ही मैं ससुराल और मायके वालों को परेशान कर चुकी हूं.

भाभी की मां फिर मेरे पास आ कर बोलीं, ‘‘देखो बेटा, सुबहसुबह उठ कर सैर करने जाया करो. रात को 5-6 बादाम भिगो दिया करो.

सुबह छील कर शहद और अदरक के साथ लिया करो.’’

न जाने वे क्याक्या बोलती रहीं. इस का मतलब मैं अभी तक बीमार हूं. क्या राजीव मुझ से झूठ बोलते हैं? मेरे खून की जांच तो वे कराते रहते हैं. वे तो कहते हैं कि अब मेरी तबीयत पूरी तरह ठीक है. शरीर में सारे तत्त्व पूरे हैं. फिर मैं स्वयं भी कोई कमजोरी महसूस नहीं करती. भाई की शादी की तैयारी में भी मैं ने भागभाग कर सारे काम किए हैं और अभीअभी बरात के लिए तैयार हो कर आई हूं. मुझे किसी ने बताया क्यों नहीं कि मैं इतनी बीमार लग रही हूं.

तभी कोई आ गया और भाभी की मां उन से बातें करने में व्यस्त हो गईं. मैं अनमनी सी भारी कदमों से एक बार फिर भीतर वाले कमरे में चली गई. राजीव ने क्या झूठ बोला मेरे साथ? वे तो कहते थे अब हम अपना परिवार बढ़ाने के बारे में सोच सकते हैं. उस के लिए मेरी सेहत अब पूरी तरह उपयुक्त है, तो क्या राजीव ने झूठ कहा मुझ से कि मैं स्वस्थ हूं? क्या सभी

मुझ से छिपा रहे हैं मेरी बिगड़ी हालत? भैयाभाभी भी, मां भी और विजय भैया भी?

मैं स्वयं को आईने में निहारने लगी कि बीमार तो नहीं लग रही हूं मैं.

एक ही तो बहन हूं मैं अपने भाइयों की. लाडप्यार से पली. सभी सिरआंखों पर लेते हैं मुझे. मैं बीमार हूं किसी ने बताया क्यों नहीं मुझे? क्या सभी ने एकदूसरे को यह समझा रखा है कि जो भी मुझ से मिले बस यही कहे कि मैं बहुत सुंदर लग रही हूं?

अभी बाहर कार से जब मैं निकली तब दिल्ली वाले मौसाजी मिल गए. मुझे देख कर कितने खुश हुए थे, ‘‘अरे वाह, आज तो हमारी बच्ची बहुत सुंदर लग रही है… जीती रहो.’’

अगर मैं बीमार लग रही होती तो क्या मौसाजी बताते नहीं? राजीव तो बारबार तारीफ करते ही हैं मेरी परंतु उन पर अब क्या भरोसा करूं. सवाल यह नहीं है मैं कैसी लग रही हूं, सवाल यह है कि क्या मैं अब भी बीमार ही हूं?

‘‘नीलू, जरा इधर आना तो,’’ भीतर आतेआते दूल्हा बने विजय भैया बोले, ‘‘जरा सूईधागे से सेहरा पगड़ी के साथ ही सी दो… बारबार उतर रहा है. अरे वाह, कितनी सुंदर लग रही है आज मेरी गुडि़या,’’ कुछ पलों को विजय भैया अपना सेहरा संभालना भूल से गए.

मैं शीशे के सामने चुपचाप खड़ी थी. भाई के शब्दों पर आंखें भर आईं मेरी.

‘अरे, क्या हुआ है तुझे नीलू… चुपचाप सी क्यों है?’’

भैया ने पास आ कर सिर पर हाथ रखा.

‘‘क्या मैं अभी भी बीमार लगती हूं विजय भैया?’’ मैं ने पूछा.

‘‘नहीं तो. किस ने कहा तुम बीमार हो? जब थीं तब थीं अब तो ठीक हो. क्या तुम्हें स्वयं पता नहीं चलता? भागदौड़ कर सारे काम कर रही हो… क्या बीमार महसूस करती हो?’’

मैं चुपचाप सूईधागा ला कर भैया का सेहरा पगड़ी के साथ सीने लगी. तभी वहां राजीव और विजय भैया के मित्र आ गए.

‘‘यह भाभी की मां की बुरी आदत है विजय कि जिस पर भी प्यार आ रहा है उसी की सेहत खराब करती जा रही हैं… बाहर मुझे मिलीं तो कहने लगीं मैं बहुत बीमार लग रहा हूं… रंग पीला पड़ गया है… हटो जरा सामने से मैं देखूं तो कहां से पीलानीला लग रहा हूं मैं,’’ कह विजय भैया को एक तरफ कर राजीव भी शीशे में स्वयं को गौर से देखने लगे. फिर बोले, ‘‘यार, अच्छाभला तो हूं मैं. पिछले ही महीने मैं ने अपने सारे कपड़े खुलवाए हैं. अगर कमजोर होता तो सब से पहले कपड़े ही ढीले पड़ते हैं न?’’

कुछ देर और आईने में खुद को देख कर राजीव बोले, ‘‘आज तो मैं ने भी खास मेकअप किया है भई… घर का दामाद हूं मैं… अच्छीखासी पौलिश की है चेहरे पर. फिर भी मेरा रंग पीला लग रहा है. बता न विजय क्या सचुमच मैं बीमार लग रहा हूं?’’

क्षण भर को विजय भैया ने मेरा हाथ रोक दिया. मैं भी तनिक चौंकी राजीव के शब्दों पर. हम तीनों की नजरें मिलीं और फिर मिलीजुली हंसी कमरे में गूंज गई.

‘‘लगता है तुम दोनों से ही उन्हें खास प्यार है… क्या करें वे भी. तुम उन की बेटी ननद हो… सुना होगा न तुम बीमार थीं बस उसी को लक्ष्य किया होगा… मुझे भी जब मिलती हैं यही कहती हैं क्या बात है विजय बीमार हो क्या? तबीयत तो ठीक है न बड़े कमजोर लग रहे हो.’’

हंसी में उड़ गया सारा तनाव. वास्तव में कुछ लोगों का प्यार करने का यही ढंग होता है. वे आप के दुश्मन नहीं होते. बस एक तरीका होता है प्यार जताने का जबकि आप की सेहत से भी उन का कोई लेनादेना नहीं होता. वे तो मात्र अपने स्नेह और अपनत्व का प्रदर्शन करते हैं. यह अलग बात है मुझ जैसे बीमारी से उठ कर बड़ी मेहनत कर के स्वस्थ होते इंसान पर इस का विपरीत प्रभाव पड़ता है. मैं बीमार थी अब मैं स्वस्थ होना चाहती हूं. अगर वे मुझ से यही कह देतीं कि वाह नीलू, अब तुम अच्छी लग रही हो. अब कमजोर भी नहीं लग रही तो शायद मेरा उत्साह बढ़ जाता और भाई की शादी की चहलपहल में भी मैं अवसाद से न घिरती.

प्यार इस तरह क्यों व्यक्त किया जाए कि जिस से प्यार किया जा रहा हो उस पर नकारात्मक प्रभाव पड़े और वह राजीव और मेरी तरह पागल होने लगे. आज के व्यस्त जीवन में जीवन जीवन ही कहां रह गया है. मशीन की तरह काम करते हैं हम पतिपत्नी… हंसने के लिए भी समय नहीं. खुश हैं कि नहीं यह भी पता नहीं चलता. मानों हंसना भी एक मशीनी क्रिया है. हंस दिए तो हंस दिए. न तो न सही.

आज दिल से सजधज कर भाई की बरात के लिए तैयार हुई तो उन के प्यार ने सब फीका कर दिया. प्यार प्यार कहां रहा वह तो गाली बन गया. भई, अच्छेभले इंसान से अगर इस तरह प्यार किया जाएगा तो उस पर मुझ जैसे इंसान वाला ही प्रभाव पड़ेगा न.

बरात चल पड़ी. खासी गर्मजोशी थी हम सब में. लड़की वालों के घर पहुंचे. जयमाला की रस्म होने लगी. दुलहन से मिलने लगे सब.

‘‘क्या बात है बेटा, बड़ी कमजोर लग रही हो, तबीयत ठीक नहीं थी क्या?’’ यह सुनाई दिया.

मुड़ कर देखा, भाभी की मां दुलहन से प्यार से पूछ रही थीं. राजीव और विजय मेरी तरफ देख मुसकराने लगे, मगर दुलहन के चेहरे पर वही भाव जो कुछ समय पहले मेरे और राजीव के चेहरे पर थे

मन की रानी: जब अनीता ने तोड़े समाज के सारे नियम

‘‘अम्मां, बिटिया भाग गई…’’ भोपाल ने  रोते हुए गांव में बैठी अपनी अम्मां को फोन मिलाया.

‘यही होना था बेटा… उस की महतारी के लक्षण ही ऐसे थे. पहली दफा उस के मायके चले जाने पर उसे वापस बुलाने की गलती न की होती, तो आज यह नौबत न आती…’

भोपाल ने मोबाइल फोन बंद किया और दोबारा पुलिस थाने के चक्कर काटने चल पड़ा.

भोपाल को आज भी अपनी शादी की वह रात याद है, जब अनीता उस की दुलहन बन कर घर आई थी. उस की उम्र थी 25 साल और अनीता थी 18 साल की. सालभर तो उस का चुहलबाजी में ही निकल गया.

अम्मां चिल्लातीं, ‘‘क्या हर समय कमरे में घुसा रहता है औरत को ले कर… अपने सब्जियों के खेतों पर भी ध्यान दे. तुम्हारे बापू और छोटा भाई दिनरात खेतों में पड़े रहते हैं. दिनभर खेतों की निराईगुड़ाई, सब्जी को मंडी पहुंचाना और रात को जानवरों से बचाना…’’

जब अनीता पेट से हो गई, तो भोपाल ने खेतखलिहान की तरफ ध्यान देना शुरू कर दिया. इधर जब भी अम्मां अनीता को चूल्हेचौके का काम सौंपतीं, वह आधाअधूरा काम छोड़ कर पेटदर्द का बहाना बना कर कमरे में जा कर लेट जाती.

अम्मां भुनभुनाते हुए पूरा काम समेटतीं. वे बड़बड़ाती भी जातीं, ‘‘हम ने भी 4-4 बच्चे पैदा किए हैं… हमें नहीं पता कि पेटदर्द कब होता है. सब कामचोरी है…’’

अनीता को फर्क ही नहीं पड़ता. वह खाना तैयार होने के बाद ही कमरे से बाहर निकलती और अपना भोजन कर तुरंत कमरे में जा कर लेट जाती. पासपड़ोस की औरतें अम्मां को समझातीं, ‘पहला बच्चा है, तुम्हीं थोड़ा सब्र रख लो. कहीं ऊंचनीच हो गई, तो सभी का नुकसान है.’

बेटी के जन्म के साथ अनीता की कामचोरी भी बढ़ती गई. अब तो उस ने अपनी गजभर जबान भी चलानी शुरू कर दी, ‘‘तुम्हारी अम्मां 2 बार का खाना बना कर मुझ पर क्या अहसान जताती हैं… मेरा चूल्हा अलग करो…’’

‘‘अरे, ऐसा न कहो. जातबिरादरी क्या कहेगी… हम अम्मां को समझा लेंगे…’’ भोपाल उसे समझाता.

‘‘तो अपनी अम्मां से कह दो कि हमारे मुंह न लगें…. अगर हमारा मुंह खुला, तो बरदाश्त नहीं कर पाएंगी…’’ अनीता ने धमकी दी.

‘‘अम्मां, तुम भी क्यों अनीता के पीछे पड़ी रहती हो दिनभर? वह छोटी बिटिया को देखे या तुम्हारे काम को…’’ भोपाल तुरंत अपनी मां से बहस करने पहुंच गया.

‘‘अपनी जोरू की तरफदारी हम से न ही करो तो बेहतर है. दिनभर खटिया पर पड़ी रहती है. 6 महीने की बिटिया हो गई है. उसी का बहाना कर बिस्तर पर पड़ी रहती है. हम ने बच्चे नहीं पाले क्या? जब बच्चा सोया है तो तुम क्यों सो रही हो? तुम उठो, अपना काम करो, यही तो समझाया है उसे.’’

‘‘अम्मां, तुम्हीं शांत हो जाया करो. वह बेचारी भी क्या करे? बिटिया रातभर सोने नहीं देती.’’

‘‘एक तुम्हारी औरत ने बच्चा पैदा किया है न इस दुनिया में…’’

इतना सुनते ही अनीता बिस्तर से कूद कर बाहर आ गई और कमर में हाथ रख कर चीखने लगी, ‘‘बच्चे के संग जरा सी देर को आंख क्या लगी, बुढि़या को बरदाश्त नहीं होता.’’

‘‘दिनभर ऐसे सोई रहती है, जैसे कहीं की महारानी है…’’

‘‘तो तुम हो महारानी… हाय रे, मेरी तो किस्मत ही फूट गई…  पता नहीं, कैसे गरीब घर में ब्याह दी…’’ कह कर अनीता ने जोरजोर से रोना शुरू कर दिया.

अम्मां तो अनीता की रोजरोज की नौटंकी से दुखी थीं ही, वे भला चुप क्यों रहतीं, ‘‘जैसे खुद का बाप धन्ना सेठ होगा और दहेज में दुनिया का सामान भर कर लाई होगी….बाप ने न देखी बोरी, सपने में आई खाट…’’ अम्मां ने भी खूब सुनाई.

कुछ ही देर में घर युद्ध का अखाड़ा बन गया. भोपाल खटिया पर सिर पकड़ कर बैठ गया.

‘‘देख लिया अपनी अम्मां को… लड़की पैदा हुई है, इसीलिए ऐसा बरताव करती है…’’

‘‘इस में लड़कीलड़के की बात कहां से आ गई?’’

‘‘इतनी भी नासमझ नहीं हूं. पोता पैदा किया होता, तो घी के लड्डू खिलाती. पोती पैदा हुई है, तभी तो मुझे चार बातें सुनाती रहती है. मेरे बाप ने बोरी भी नहीं देखी क्या कभी… और हां अब दहेज का भी ताना देने लगी है. मुझे मेरे घर पहुंचा दो… यहां आराम करने को नहीं मिला, जब से बिटिया पैदा हुई है…’’

अनीता की बात सुन कर अम्मां के तनबदन में आग लग गई, ‘‘हां, जाओ, शौक से जाओ, ताकि यहां हम भी चैन की दो रोटी खा सकें…’’

अनीता ने तुरंत भोपाल से मोबाइल फोन छीना और अपने मायके मिला दिया, ‘‘भैया, अभी तुरंत यहां पहुंचो. अब हम से बरदाश्त नहीं होता…’’

उधर पास के गांव से अनीता के भाई तुरंत 3-4 लठैत ले कर किराए की गाड़ी से घंटेभर में उस के पास पहुंच गए.

अपने भाई और उस के साथियों को देख कर अनीता जोरजोर से रोने लगी.

‘‘क्या हुआ बताओ… अभी हम इन सब को ठीक करते हैं,’’ उस के बड़े भाई अनिल ने अपनी मूंछ उमेठते हुए कहा.

‘‘सारे झगड़े की जड़ यह बुढि़या है, जो मुझे दहेज के लिए भी परेशान करती है.’’

अनीता का झूठ सुन कर अम्मां गुस्से से उबल पड़ीं, ‘‘कुछ शऊर भी सीखा अपने घर में या सिर्फ झूठ बोलना, झगड़ा करना ही सीख कर आई हो…’’

‘‘देखा भैया, तुम्हारे सामने ही मायके वालों को गाली दे रही है. हम सब एक पल भी यहां नहीं रहेंगे. चलो भैया…’’

कह कर अनीता खाट पर सोती हुई अपनी बेटी को छोड़ कर, अपना झोला ले कर भाई के पास आ कर खड़ी हो गई.

अनीता के भाई ने उस से कहा, ‘‘बिटिया को उठा लाओ.’’

‘‘अरे नहीं… पाले अपनी पोती को खुद ही, अब मैं नहीं लौटने वाली,’’ अनीता तमक कर बोली.

‘‘जाओजाओ, तुम्हारी कोई जरूरत भी नहीं है,’’ अम्मां भी गुस्से से बोलीं.

भोपाल, जो कुछ देर के लिए खेतों में सिंचाई करने चला गया था, वापस घर लौट कर हैरान रह गया. अनीता दूधमुंही बच्ची को छोड़ कर अपने भाई के साथ गाड़ी में सवार हो गई थी.

‘‘अनीता, ऐसा जुल्म न करो. बच्ची तुम्हारे बिना कैसे रह पाएगी?’’ भोपाल गिड़गिड़ा उठा.

‘‘आज से ही हमारा चूल्हा अलग करो, वरना मैं अपने मायके जा रही हूं,’’ अनीता ने धमकी दी.

‘‘अच्छा ठीक है. आज से ही हमारा चूल्हा अलग बनेगा, ‘‘भोपाल ने समझौता कर लिया.

अम्मां दरवाजा रोक कर खड़ी हो गईं, ‘‘जा रही है तो जाने दे भोपाल, बिटिया हम पाल लेंगे. लड़कियों की कोई कमी नहीं है रे, दूसरी शादी करवा देंगे तुम्हारी.’’

यह सुन कर अनिल के कान खड़े हो गए. उस ने तुरंत अनीता को गाड़ी से उतारा और रास्ता रोक कर खड़ी अम्मां को धक्का मार कर अलग कर दिया.

अम्मां इस हमले के लिए तैयार नहीं थीं. वे झटका खा कर फर्श पर गिर पड़ीं. अपने को बचाने के लिए उन्होंने अपने हाथों से बचाव करना चाहा, मगर उन का हाथ पास पड़ी खटिया से टकराया और हाथ की हड्डी टूट गई. वे बिलबिला पड़ीं.

अनीता और उस के भाइयों को कोई फर्क नहीं पड़ा. वे उस का सामान उसे पकड़ा कर वापस लौट गए और जाते हुए धमकी भी दे गए कि अगर उन की बहन को सताया, तो देख लेना क्या हाल करेंगे.

उस दिन से अनीता का चूल्हा अलग हो गया. बड़ी ननद ने आ कर अपनी मां के हाथ का प्लास्टर कटने तक मायके में डेरा डाल दिया.

अनीता से परिवार के सदस्यों का संपर्क कट कर रह गया. वह भोपाल पर रोब गांठती और पूरे गांव में घूमघूम कर पंचायत करती. कुछ समय के बाद उस ने भोपाल से शहर में चल कर रहने की जिद पकड़ ली.

‘‘वहां मुझे रोजगार क्या मिलेगा?’’ भोपाल ने पूछा.

‘‘उस की फिक्र न करो. मेरी मौसी की बेटी सीमा लखनऊ में रहती है. उसी के साथ लोगों के घरों के बरतन और झाड़ूपोंछा करने का काम पकड़ लूंगी. उस का आदमी पुताई का काम जानता है, तुम्हें भी अपने साथ लगा लेगा.’’

‘‘पर, यहां अपना काम है, भोपाल ने कहा, ‘‘लेकिन, दो पैसे की बचत नहीं है.’’ सीमा ने तो वहां अपना घर भी बना लिया है.’’

भोपाल को पता था कि अनीता के मुताबिक न चलो, तो घर में रोज कलह होगी और दो रोटी भी नसीब नहीं होगी. वह लखनऊ चला आया.

लखनऊ की चकाचौंध में अनीता की आंखें चौंधियां गईं. सीमा ने उसे पास के ब्यूटी पार्लर में साफसफाई का काम दिलवा दिया. मेहंदी लगाना उसे आता ही था, इसलिए जल्द ही उसे मेहंदी लगाने के अनेक मौके मिलने लगे, जिस से उस की ज्यादा आमदनी होने लगी.

जब अनीता ने बैंक में अपना पहला  खाता खोला तो घर आ कर भोपाल को पासबुक दिखा कर बोली, ‘‘गांव में रह कर यह खाता खोल पाते तुम, देखना जल्द ही हमारा खुद का मकान होगा.’’

भोपाल ने कुछ नहीं कहा. वह यह सोच कर शहर चला आया था कि कुछ दिन बाद अनीता ऊब कर वापस लौट चलने को कहेगी, मगर अनीता तो यहीं के माहौल में रम गई.

अनीता को एक कारोबारी महेंद्रनाथ  के घर खाना बनाने का काम भी मिल गया. उस की पत्नी कैंसर की बीमारी की लास्ट स्टेज से जूझ रही थी. महेंद्रनाथ की नजर अनीता के शरीर पर टिक गई थी. उस ने अपनी पत्नी की साडि़यां 1-1 कर के अनीता को उपहार में देनी शुरू कर दीं.

अनीता की नजर महेंद्रनाथ की जायदाद पर थी. दोनों एकदूसरे के सहारा बनते चले गए. फिर उस की पत्नी की देखभाल का बहाना कर अनीता ने रात को वहीं रुकना शुरू कर दिया. भोपाल विरोध करता, तो वह चीखपुकार का पुराना हथकंडा अपनाती, जिस से भोपाल चुप लगा जाता.

धीरेधीरे महेंद्रनाथ के जरीए अनीता के नए लोगों से संबंध बनते चले गए. भोपाल ने जब महेंद्रनाथ के घर में घुस कर विरोध प्रकट किया, तो उस ने अपने नौकर से पिटवा कर भगा दिया.

भोपाल अपनी 14 साल की बेटी रुचि की पढ़ाई का ध्यान रखता. अनीता अब कभीकभार ही घर आती थी.

‘‘रुचि, देख मैं तेरे लिए नया मोबाइल ले कर आई हूं,’’ अनीता ने अपनी बेटी से कहा.

‘‘अरे वाह मां, यह तो बहुत प्यारा है. मेरी सहेलियां देख कर जल उठेंगी.’’

‘‘सुन, अब से तुझे सरकारी स्कूल में पढ़ने की जरूरत नहीं है. महेंद्र बाबू ने कहा है कि अपनी बिटिया यहीं ले आओ, पास के प्राइवेट स्कूल में नाम लिखा देंगे.’’

‘‘सच में, लेकिन पापा तुम्हारे साथ जाने नहीं देंगे.’’

‘‘उस के साथ रहोगी तो ऐसे घटिया कमरे में चूल्हाचौका समेत पड़ी रहोगी. वहां चलो, उधर महेंद्र बाबू की पत्नी भी पिछले महीने चल बसी हैं. उन के विदेश में बसे बच्चे भी आ कर वापस लौट गए हैं. पूरा घर खाली है. तुम्हें एक पूरा कमरा देंगे.’’

‘‘सच मां, पापा काम से लौट कर आएं, तो उन से पूछ लूंगी.’’

‘‘कुछ पूछने की जरूरत नहीं है. अपने कपड़े समेटो और मेरे साथ चलो. कमरे में ताला डाल दो और चाबी पड़ोसी को दे दो. तुम्हें आज स्कूटी से ले कर जाऊंगी. मुझे अब अच्छे से चलानी आ गई है.

‘‘पता है, यह भी महेंद्र बाबू की है. उन्होंने कहा कि अभी पुरानी स्कूटी से चलाना सीख लो, फिर नई खरीद लेना,’’ अनीता की बातें सुनती हुई रुचि जब महेंद्रनाथ के घर पहुंची, तो वहां की सजावट और बगीचा देख कर खिल उठी.

महेंद्रनाथ ने भी उस का प्यार से स्वागत किया और उसे एक बढि़या कमरा सौंप दिया. रुचि की खुशी का ठिकाना न रहा.

उधर जब भोपाल कमरे में पहुंचा, तो पड़ोसी ने बता दिया कि तुम्हारी पत्नी आ कर तुम्हारी बेटी को अपने साथ ले कर चली गई है. यह सुन कर भोपाल का खून खौल उठा. वह तुरंत महेंद्रनाथ के घर पहुंच गया.

अनीता ने बेटी को हाथ से घसीटते हुए उसे भोपाल के सामने ला कर खड़ा कर दिया और बोली, ‘‘पूछो इस से कि क्या यह तुम्हारे साथ जाना चाहती है?’’

रुचि ने कहा, ‘‘नहीं, अब मैं नहीं जाऊंगी. मुझे यहीं रहना है और बढि़या स्कूल में पढ़ना है.’’

भोपाल ठगा सा खड़ा रह गया और घर लौट गया.

सीमा ने अनीता से पूछा, ‘‘तू ने तो गांव से आ कर बड़ी तेजी से तरक्की कर ली… क्या राज है इस का?’’

अनीता इतरा कर बोली, ‘‘मैं अपने मन की रानी हूं. अगर मुझे कुछ लेना है, तो उस के लिए मैं सारे हथकंडे अपना सकती हूं और समाज के बनाए सारे नियम तोड़ देती हूं.’’

सीमा के सिर के ऊपर से सारी बात निकल गई, मगर अनीता अपनी कामयाबी पर इतरा उठी.

नए इंगलिश मीडियम स्कूल में आ कर रुचि पढ़ाई में पिछड़ती चली गई. अब उस का सारा ध्यान अपनी मां के नक्शेकदम पर चलते हुए फैशन और मेकअप की दुनिया में रमने लगा था. जल्द ही मोबाइल फोन से उस ने रील बना कर पोस्ट करना शुरू कर दिया.

रुचि की इस कला को देख कर मां उसे बढ़ावा ही देती थीं.

रुचि के बौयफ्रैंडों की तादाद में इजाफा हो रहा था. बबलू मेकैनिक, जो महेंद्रनाथ के घर पंखा, कूलर, मिक्सी की मरम्मत के लिए आया करता था, ने रुचि को मोबाइल फोन में रील बनाते देख कर उस से कहा, ‘‘तुम जैसी लड़कियों की जगह तो मुंबई में है. यहां तुम्हारे हुनर की कद्र नहीं होगी.’’

‘‘मुझे पता है, मगर मैं मुंबई तक जाऊंगी कैसे?’’

‘‘मेरे कुछ दोस्त हैं, जो काम करने मुंबई चले गए हैं. अगर तुम चाहो, तो हम भी जा सकते हैं.’’

‘‘अगर मां राजी नहीं हुईं तो…?’’

‘‘कोई बात नहीं. उन्हें अभी कुछ मत बताना. जैसे वे मोबाइल फोन पर तुम्हें देख कर बहुत खुश होती हैं, फिर जब बड़े परदे पर देखेंगी, तब सोचो कि वे कितना खुश हो जाएंगी…’’

‘‘सच… मैं ने तो यह सोचा ही नहीं…’’ रुचि खुशी से उछल पड़ी और एक दिन स्कूल से घर लौटने के बजाय बबलू के साथ भाग गई.

इधर अपनी लड़की के जाने के बाद भी  अनीता लोगों से झूठ बोलती रही कि उसे उस ने गांव भेज दिया है, पर जल्द ही बात खुल गई.

कई लोगों ने अनीता से पूछा, ‘तुम्हारी बेटी कहां है?’

अनीता ने फिर से वही पुराना हथकंडा अपनाया. वह जोर से चिल्ला कर लोगों से कहती, ‘‘आप अपने काम से मतलब रखो… मेरी बेटी मेरे साथ रहे या घूमने जाए, किसी को क्या करना…’’

उधर भोपाल हैरानपरेशान सा घर और थाने के चक्कर ही काटता रह गया. उस के कानों में अपनी अम्मां के शब्द हमेशा गूंजते रहते, ‘यही होना था बेटा, उस की महतारी के यही लक्षण थे’, लेकिन भोपाल को यही समझ नहीं आ रहा था कि उस की जिंदगी के किस गलत फैसले का नतीजा आज सामने आया है.

लियो: आखिर जोया का क्या कुसूर था

राधा यश पर खूब बरसीं, धर्म, जाति, समाज की बड़ीबड़ी बातें कीं लेकिन जब यश भी उखड़ गया, तो रोने लगीं. ये कैसी मां हैं, क्या इन्हें अपने इकलौते व योग्य बेटे की खुशी पसंद नहीं? इंसानों ने अपनी खुशियों के बीच इतनी दीवारें क्यों खड़ी कर ली हैं? अपनों की खुशी इन दीवारों के आगे माने नहीं रखती क्या? राधा जोया को इतने अपशब्द क्यों कह रही हैं? आखिर, ऐसा क्या किया है उस ने?

अहा, जोया आ रही है. उस के परफ्यूम की खुशबू को मैं पहचानता हूं और वह मेरे लिए मटन ला रही है, मुझे यह भी पता चल गया है. अब आई, अब आई और यह बजी डोरबैल. यश लैपटौप पर कुछ काम कर रहा था, जिस फुरती से उस ने दरवाजा खोला, हंसी आई मुझे. प्यार करता है जोया से वह और जोया भी तो जान देती है उस पर. दोनों साथ में कितने अच्छे लगते हैं जैसे एकदूसरे के लिए ही बने हैं.

जैसे ही यश ने दरवाजा खोला, जोया अंदर आई. आते ही यश ने उस के गाल पर किस कर दिया. वह शरमा गई. मैं ने लपक कर अपनी पूंछ जोरजोर से हिला कर अपनी तरह से जोया का स्वागत किया. वह मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए नीचे ही बैठ गई. पूछा, ‘‘कैसे हो, लिओ? देखो, तुम्हारे लिए क्या लाई हूं.’’

मैं ने और तेजी से अपनी पूंछ हिलाई. फिर जोया ने आंगन की तरफ मेरे बरतनों के पास जाते हुए कहा, ‘‘आओ, लिओ.’’ मैं मटन पर टूट पड़ा, कितना अच्छा बनाती है जोया. उस के हाथ में कितना स्वाद है. राधारानी तो अपने मन का कुछ भी बनाखा कर अपनी खाली सहेलियों के साथ सत्संग, भजनों में मस्त रहती हैं. यश बेचारा सीधा है, मां जो भी बना देती है, चुपचाप खा लेता है. कभी कोई शिकायत नहीं करता. अच्छे बड़े पद पर काम करता है, पर घमंड नाम का भी नहीं. और जोया भी कितनी सलीकेदार, पढ़ीलिखी नरम दिल लड़की है. मैं तो इंतजार कर रहा हूं कि कब वह यश की पत्नी बन कर इस घर में आए.

यश के पापा शेखर भी बहुत अच्छे स्वभाव के हैं. घर में क्लेश न हो, यह सोच कर ज्यादातर चुप रहते हैं. राधा की जिदों पर उन्हें गुस्सा तो खूब आता है पर शांत रह जाते हैं. शायद इसी कारण से राधारानी जिद्दी और गुस्सैल होती चली गई हैं. यश का स्वभाव बिलकुल अपने पापा पर ही तो है. घर में मुझे प्यार तो सब करते हैं, राधारानी भी, पर मुझे उन का अपनी जाति पर घमंड करना अच्छा नहीं लगता. उन की बातें सुनता हूं तो बुरा लगता है. बोल नहीं पाता तो क्या हुआ, सुनतासमझता तो सब हूं.

मैं यश और जोया को बताना चाहता हूं कि राधारानी यश के लिए लड़कियां देख रही हैं, यह अभी यश को पता ही नहीं है. वह तो सुबह निकल कर रात तक ही आता है. वह घर आने से पहले जब भी जोया से मिल कर आता है, मैं समझ जाता हूं क्योंकि यश के पास से जोया के परफ्यूम की खुशबू आ जाती है मुझे. एक दिन जोया यश को बता रही थी कि उस का भाई समीर फ्रांस से यह परफ्यूम ‘जा दोर’ लाया था. जब घर में शेखर और राधा नहीं होते, यश जोया को घर में ही बुला लेता है. मैं खुश हो जाता हूं कि अब जोया आएगी, यश की फोन पर बात सुन लेता हूं न. जोया मुझे बहुत प्यार करती है, इसलिए हमेशा मेरे लिए कुछ जरूर लाती है.

यश जोया को अपने बैडरूम में ले गया तो मैं चुपचाप आंगन में आ कर बैठ गया. इतनी समझ है मुझ में. दोनों को बड़ी मुश्किल से यह तनहाई मिलती है. शेखर और राधा को, बस, इतना ही पता है कि दोनों अच्छे दोस्त हैं. दोनों एकदूसरे को बेइंतहा प्यार करते हैं, इस की भनक भी नहीं है उन्हें. मैं जानता हूं, जिस दिन राधारानी को इस बात का अंदाजा भी हो गया, जोया का इस घर में आना बंद हो जाएगा. एक विजातीय लड़की से बेटे की बाहर की दोस्ती तो ठीक है पर इस के आगे राधारानी कुछ सह न पाएंगी. धर्मजाति से बढ़ कर उन के जीवन में कुछ भी नहीं है, पति और बेटे की खुशी भी नहीं.

थोड़ी देर बाद जोया ने अपने और यश के लिए कौफी बनाई. फिर दोनों ड्राइंगरूम में ही बैठ कर बातें करने लगे. अब मैं उन दोनों के पास ही बैठा था.  कौफी पीतेपीते अपने पास बिठा कर मेरे  सिर पर हाथ फेरते रहने की यश की आदत है. मैं भी खुद ही कौफी का कप देख कर उस के पास आ कर बैठ जाता हूं. मुझे भी यही अच्छा लगता है. उस के स्पर्श में इतना स्नेह है कि मेरी आंखें बंद होने लगती हैं, ऊंघने भी लगता हूं. पर अचानक जोया के स्वर में उदासी महसूस हुई तो मेरे कान खड़े हुए.

जोया कह रही थी, ‘‘यश, अगर मैं ने अपने मम्मीपापा को मना भी लिया तो तुम्हारी मम्मी तो कभी राजी नहीं होंगी, सोचो न यश, कैसे होगा?’’

‘‘तुम चिंता मत करो जो, अभी टाइम है, सब ठीक हो जाएगा.’’

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जो, यश भी न. जोया के पहले से ही छोटे नाम को उस ने ‘जो’ में बदल दिया है, हंसी आती है मुझे. खैर, मैं यश को कैसे बताऊं कि अब टाइम नहीं है, राधारानी लड़कियां देख रही हैं. मैं ने अपने मुंह से कूंकूं तो किया पर समझाऊं कैसे. मुझे जोया के उतरे चेहरे को देख कर तरस आया तो मैं जोया की गोद में मुंह रख कर बैठ गया.

जोया की आंखें भर आई थीं, बोली, ‘‘यश, मैं तुम्हारे बिना जीने की कल्पना नहीं कर सकती.’’

‘‘ठीक है जो, मैं मम्मी से जल्दी ही बात करूंगा. तुम दुखी मत हो.’’

फिर यश अपने हंसीमजाक से जोया को हंसाने लगा. दोनों हंसते हुए कितने प्यारे लगते हैं. जोया की लंबी सी चोटी पकड़ कर यश ने उसे अपने पास खींच लिया था. वह हंस दी. मैं भी हंस रहा था. फिर जोया ने अपने फोन से हम तीनों की एक सैल्फी ली. वाह, ‘हैप्पी फैमिली’ जैसा फील हुआ मुझे. फिर जोया टाइम देखती हुई उठ खड़ी हुई, ‘‘अब आंटीअंकल के आने का टाइम हो रहा है, मैं चलती हूं.’’

‘‘हां, ठीक है,’’ कहते हुए यश ने खड़े हो कर उसे बांहों में भर लिया, फिर उस के होंठों पर किस कर दिया. मैं जानबूझ कर इधरउधर देखने लगा था.

जोया के जाने के 20 मिनट बाद शेखर और राधा आ गए. मैं ने सोचा, अच्छा हुआ, जोया टाइम से चली गई. जोया के परफ्यूम की जो खुशबू पूरे घर में आती रहती है, उसे शेखर और राधा महसूस नहीं करते. घंटों तक रहती है यह खुशबू घर में. कितनी अच्छी खुशबू है यह. पर आज शायद घर में मटन और परफ्यूम की अलग ही खुशबू राधारानी को महसूस हो ही गई, पूछा, ‘‘यश, कैसी महक है?’’

‘‘क्या हुआ, मम्मी?’’

‘‘कोई आया था क्या?’’

‘‘हां मम्मी, मेरे कुछ फ्रैंड्स आए थे.’’

शक्की तो हैं ही राधारानी, ‘‘अच्छा? कौनकौन?’’

‘‘अमित, महेश, अंजलि और जोया. जोया ही लिओ के लिए मटन ले आई थी.’’

शेखर ने जोया के नाम पर जिस तरह यश को देखा, मजा आ गया मुझे. बापबेटे की नजरें मिलीं तो यश मुसकरा दिया, वाह. बापबेटे की आंखोंआंखों में जो बातें हुईं, उन से मुझे मजा आया. दोनों का बढि़या दोस्ताना रिश्ता है. शेखर गरदन हिला कर मुसकराए, यश मुंह छिपा कर हंसने लगा. अचानक राधा ने कहा, ‘‘यश, अगले वीकैंड का कुछ प्रोग्राम मत रखना. फ्री रहना.’’

‘‘क्यों, मम्मी?’’

‘‘मैं ने तुम्हारे लिए एक लड़की पसंद की है, ज्योति, उसे देखने चलेंगे.’’

‘‘नहीं मम्मी, मुझे नहीं देखना है किसी को.’’

‘‘क्यों?’’ राधारानी के माथे पर त्योरियां उभर आईं.

‘‘बस, नहीं जाना मुझे.’’

‘‘कारण बताओ.’’

यश ने पिता को देखा, शेखर ने सस्नेह पूछा, ‘‘तुम्हारी कोईर् पसंद है?’’

यश साफ बात करने वाला सच्चा इंसान है. उसे लागलपेट नहीं आती, बोला, ‘‘मम्मी, मुझे जोया पसंद है, मैं उसी से मैरिज करूंगा.’’

जोया के नाम पर जो तूफान आया, पूरा घर हिल गया. राधा यश पर खूब बरसीं, धर्म, जाति, समाज की बड़ीबड़ी बातें कीं. जब यश भी उखड़ गया, तो रोने पर आ गईं. वैसा ही दृश्य हो गया जैसा फिल्मों में होता है. यश जब घर में कोई मूवी देखता है, मैं भी देखता हूं उस के साथ बैठ कर, ऐसा दृश्य तो खूब घिसापिटा है पर अब तो मेरे यश से इस का संबंध था तो मैं बहुत दुखी हो रहा था. मुझे बारबार जोया की आज की ही आंसुओं से भरी आंखें याद आ रही थीं.

मैं चुपचाप शेखर के पास बैठ कर सारा तमाशा देख रहा था और सोच रहा था, ये कैसी मां हैं, क्या इन्हें अपने इकलौते व योग्य बेटे की खुशी अजीज नहीं?

इंसानों ने अपनी खुशियों के बीच इतनी दीवारें क्यों खड़ी कर ली हैं? अपनों की खुशी इन दीवारों के आगे माने नहीं रखती? राधा जोया को इतने अपशब्द क्यों कह रही हैं? ऐसा क्या किया उस ने?

यश अपने बैडरूम की तरफ बढ़ गया तो मैं झट उठ कर उस के पीछे चल दिया. वह बैड पर औंधेमुंह पड़ गया. मैं ने उस के पैर चाटे. अपना मुंह उस के पैरों पर रख कर उसे तसल्ली दी. वह मुझे अपनी गोद में उठा कर वापस अपने पास लिटा कर एक हाथ अपनी आंखों पर रख कर सिसक उठा तो मुझे भी रोना आ गया. यश को तो मैं ने आज तक रोते देखा ही नहीं था. ये कैसी मां हैं? इतने में शेखर यश के पास आ कर बैठ गए.

यश के सिर पर हाथ फेरते हुए बोले,  ‘‘बेटा, तुम्हारी मां जोया को किसी सूरत में स्वीकार नहीं करेंगी.’’

‘‘और मैं उस के सिवा किसी और से विवाह नहीं करूंगा, पापा.’’

घर का माहौल अजीब हो गया था. अगले कई दिन घर का माहौल बेहद तनावपूर्ण रहा. राधा और यश दोनों अपनी बात पर अड़े थे. शेखर कभी राधा को समझा रहे थे, कभी यश को. यश कभी घर में खाता, कभी बाहर से खा कर आता और चुपचाप अपने कमरे में बंद हो जाता. वह जोया से तो बाहर मिलता ही था, मुझे तो जोया के परफ्यूम की खुशबू अकसर यश के पास से आ ही जाती थी.

मैं ने जोया को बहुत दिनों से नहीं देखा था. मुझे जोया की याद आती थी. यश का उदास चेहरा देख कर भी राधा का हठ कम नहीं हो रहा था और मेरा यश तो मुझे आजकल बिलकुल रूठारूठा फिल्मी हीरो लगता था.

एक दिन राधा यश के पास आईं, टेबल पर एक लिफाफा रखती हुई बोलीं, ‘‘यह रही ज्योति की फोटो. एक बार देख लो, खूब धनी व समृद्ध परिवार है.  ज्योति परिवार की इकलौती वारिस है. तुम्हारा जीवन बन जाएगा और एक बात कान खोल कर सुन लो, यह इश्क का भूत जल्दी उतार लो, वरना मैं अन्नजल त्याग दूंगी.’’

मैं ने मन ही मन कहा, झूठी. आप तो भूखी रह ही नहीं सकतीं. व्रत में भी आप का मुंह पूरा दिन चलता है. मेरे यश को झूठी धमकियां दे रही हैं राधारानी. झूठी बातें कर के यश को परेशान कर रही हैं, बेचारा फंस न जाए. अन्नजल त्यागने की धमकी से सचमुच यश का मुंह उतर गया.

अब मैं कैसे बताऊं कि यश, इस धमकी से डरना मत, तुम्हारी मां कभी भूखी नहीं रह सकतीं. जोया को न छोड़ना, तुम दोनों साथ बहुत खुश रहोगे. पिछली बार जो मेरे फेवरेट पौपकौर्न तुम मेरे लिए लाए थे, आधे तो राधारानी ने ही खा लिए थे. 4 अपने मुंह में डाल रही थीं तो एक मेरे लिए जमीन पर रख रही थीं. एक बार भी नहीं सोचा कि मेरे फेवरेट पौपकौर्न हैं और तुम मेरे लिए लाए थे. तुम ने जोया के साथ मूवी देखते हुए खरीदे थे और आ कर झूठ बोला था कि एक दोस्त के साथ मूवी देख कर आए हो. हां, ठीक है, ऐसी मां से झूठ बोलना ही पड़ जाता है. गपड़गपड़ सारे पौपकौर्न खा गई थीं राधारानी. ये कभी भूखी नहीं रहतीं, तुम डरना मत, यश.

फोटो पटक कर राधा शेखर के साथ कहीं बाहर चली गई थीं. यश सिर पकड़ कर बैठ गया था. मैं तुरंत उस के पैरों के पास जा कर बैठ गया. इतने दिनों से घर में तूफान आया हुआ था. यश के साथ मैं भी थक चुका था. मैं ने उसे कभी अपने मातापिता से ऊंची आवाज में बात करते हुए भी नहीं सुना था. उसे अपनी पसंद की जीवनसंगिनी की इच्छा का अधिकार क्यों नहीं है? इंसानों में यह भेदभाव करता कौन है और क्यों? क्यों एक इंसान दूसरे इंसान से इतनी नफरत करता है? मेरा मन हुआ, काश, मैं बोल सकता तो यश से कहता, ‘दोस्त, यह तुम्हारा जीवन है, बेकार की बहस छोड़ कर अपनी पसंद का विवाह तुम्हारा अधिकार है. राधारानी ज्यादा दिनों तक बेटे से नाराज थोड़े ही रहेंगी. तुम ले आओ जोया को अपनी दुलहन बना कर. जोया को जाननेसमझने के बाद वे तुम्हारी पसंद की प्रशंसा ही करेंगी.’ यश मुझे प्यार करने लगा तो मैं  भी उस से चिपट गया.

मैं बेचैन सा हुआ तो यश ने कहा, ‘‘लिओ, क्या करूं? प्लीज हैल्प मी. बताओ, दोस्त. मां की पसंद देखनी है? मुझे भी पता है तुम्हें भी जोया पसंद है, है न?’’

मैं ने खूब जोरजोर से अपनी पूंछ हिला कर ‘हां’ में जवाब दिया. वह भी समझ गया. हम दोनों तो पक्के दोस्त हैं न. एकदूसरे की सारी बातें समझते हैं, फिर उसे पता नहीं क्या सूझा, बोला, ‘‘आओ, तुम्हें मां की पसंद दिखाता हूं.’’

यश ने मेरे आगे उस लड़की की फोटो की. मुझे धक्का लगा, मेरे हीरो जैसे हैंडसम दोस्त के लिए यह भीमकाय लड़की. पैसे व जाति के लिए राधारानी इसे बहू बना लेंगी. छिछि, लालची हैं ये. यश को भी झटका लगा था. वह चुपचाप अपनी हथेलियों में सिर रख कर बैठ गया. उस की आंखों की कोरों से नमी सी बह गई. मैं ने उस के घुटनों पर अपना सिर रख कर उसे प्यार किया. मुंह से कुछ आवाज भी निकाली. वह थके से स्वर में बोला.

‘‘लिओ, देखा? मां कितनी गलत जिद कर रही हैं. बताओ दोस्त, क्या करना चाहिए अब?’’

मेरा दोस्त, मेरा यार मुझ से पूछ रहा था तो मुझे बताना ही था. राधारानी को पता नहीं आजकल के घर के दमघोंटू माहौल में चैन आ रहा था, यह तो वही जानें. यश की उदासी मुझे जरा भी सहन नहीं हो रही थी. मेरा दोस्त अब मुझ से पूछ रहा था तो मुझे तो अपनी राय देनी ही थी. क्या करूं, क्या करूं, ऐसे समय न बोल पाना बहुत अखरता है. मैं ने झट न आव देखा न ताव, उस फोटो को मुंह में डाला और चबा कर जमीन पर रख दिया. यश को तो यह दृश्य देख हंसी का दौरा पड़ गया. मैं भी हंस दिया, खूब पूंछ हिलाई. दोनों पैरों पर खड़ा भी हो गया. यश तो हंसतेहंसते जमीन पर लेट गया था. मैं भी उस से चिपट गया. हम दोनों जमीन पर लेटेलेटे खूब मस्ती करने लगे थे.

अब यश की हंसी नहीं रूक रही थी. मैं भांप गया था, अब यश जोया से दूर नहीं होगा. वह फैसला ले चुका था और मैं इस फैसले से बहुत खुश था. मुझ पर अपना हाथ रखते हुए यश कह रहा था, ‘‘ओह लिओ, आई लव यू.’’

‘मी टू,’ मैं ने भी उस का हाथ चाट कर जवाब सा दिया था.

बदला: सुगंधा ने कैसे लिया रमेश से बदला

‘‘सुगंधा, तुम बहुत खूबसूरत हो. तुम्हारी खूबसूरती पर मैं एक क्या कई जन्म कुरबान कर सकता हूं.’’ ‘‘चलो हटो, तुम बड़े वो हो. कुछ ही मुलाकातों में मसका लगाना शुरू कर दिया. मुझे तुम्हारी कुरबानी नहीं, बल्कि प्यार चाहिए,’’ फिर अदा से शरमाते हुए सुगंधा ने रमेश के सीने पर अपना सिर टिका दिया.

रमेश ने सुगंधा के बालों में अपनी उंगलियां उलझा दीं और उस के गालों को सहलाते हुए बोला, ‘‘सुगंधा, मैं जल्दी ही तुम से शादी करूंगा. फिर अपना घर होगा, अपने बच्चे होंगे…’’ ‘‘रमेश, तुम शादी के वादे से मुकर तो नहीं जाओगे?’’

‘‘सुगंधा, तुम कैसी बात करती हो? क्या तुम को मुझ पर भरोसा नहीं?’’ सुगंधा रमेश की बांहों व बातों में इस कदर डूब गई कि रमेश का हाथ कब उस के नाजुक अंगों तक पहुंच गया, उस को पता ही नहीं चला. फिर यह सोच कर कि अब रमेश से उस की शादी होगी ही, इसलिए उस ने रमेश की हरकतों का विरोध नहीं किया.

दोनों की मुलाकातें बढ़ती गईं और हर मुलाकात के साथ जीनेमरने की कसमें खाई जाती रहीं. रमेश ने शादी का वादा कर के सुगंधा के साथ जिस्मानी संबंध बना लिया और फिर अकसर दोनों होटलों में मिलते और जिस्म की भूख मिटाते. इस तरह दोनों जब चाहते जवानी का मजा लूटते.

रमेश इलाहाबाद के पास के एक गांव का रहने वाला था. उस के परिवार में मातापिता और एक छोटा भाई दिनेश था. छोटे से परिवार में सभी अपनेअपने कामों में लगे हुए थे. पिताजी पोस्टमास्टर के पद से रिटायर हो कर अब घर पर ही रह कर खेतीबारी का काम देखने लगे थे. छोटा भाई दिनेश दिल्ली यूनिवर्सिटी से एमए कर रहा था.

लखनऊ में एक विदेशी फर्म में कैशियर के पद पर काम करने की वजह से रमेश लखनऊ में एक फ्लैट ले कर रह रहा था. चूंकि घरपरिवार ठीक था और नौकरी भी अच्छी थी, इसलिए उस की शादी भी हो गई थी. बीवी को वह साथ नहीं रखता था, क्योंकि मां से घर का काम नहीं होता था. रमेश जिस फर्म में काम करता था, उसी फर्म में सुगंधा क्लर्क के पद पर काम करने आई थी.

सुगंधा को देखते ही रमेश उस पर मोहित हो गया और डोरे डालना शुरू कर दिया. रमेश की शराफत, पद और हैसियत देख कर सुगंधा भी उसे पसंद करने लगी. रमेश ने सुगंधा को बताया कि वह कुंआरा है और उस से शादी करना चाहता है. अब चूंकि रमेश ने उस से शादी का वादा किया, तो वह पूरी तरह उस की बातों में ही नहीं, आगोश में भी आ गई.

समय सरकता गया. रमेश सुगंधा की देह में इस कदर डूब गया कि घर भी कम जाने लगा. वह घर वालों को पैसा भेज देता और चिट्ठी में छुट्टी न मिलने का बहाना लिख देता था. एक दिन पार्क में जब वे दोनों मिले, तो सुगंधा ने रमेश से कहा, ‘‘रमेश, अब हमें शादी कर लेनी चाहिए. अभी तक आप ने मुझे अपने घर वालों से भी नहीं मिलाया है. मुझे जल्दी ही अपने मातापिता से मिलवाइए और उन्हें शादी के बारे में बता दीजिए.’’

रमेश सुगंधा को आगोश में लेते हुए बोला, ‘‘अरी मेरी सुग्गो, अभी शादी की जल्दी क्या है? शादी भी कर लेंगे, कहीं भागे तो जा नहीं रहे हैं?’’ ‘‘नहीं, मुझे शादी की जल्दी है. रमेश, अब मुझे अकेलापन अच्छा नहीं लगता है,’’ सुगंधा ने कहा.

‘‘ठीक है, कल शाम को मेरे कमरे पर आ जाना. वहीं शादी के बारे में बात करेंगे,’’ रमेश ने सुगंधा के नाजुक अंगों से खेलते हुए कहा. ‘‘मैं शाम को 8 बजे आप के कमरे पर आऊंगी,’’ रमेश ने सुगंधा के होंठों का एक चुंबन ले कर उस से विदा ली.

रमेश ने अभी तक शादी का वादा कर सुगंधा के साथ खूब मौजमस्ती की, लेकिन उस की शादी की जिद से उसे डर लगने लगा था. सच तो यह था कि वह सुगंधा से छुटकारा पाना चाहता था, क्योंकि एक तो सुगंधा से उस का मन भर गया था. दूसरे, वह उस से शादी नहीं कर सकता था. शाम को 8 बजने वाले थे कि रमेश के कमरे पर सुगंधा ने दस्तक दी. रमेश ने समझ लिया कि सुगंधा आ गई है. उस ने दरवाजा खोला और उसे बैडरूम में

ले गया. ‘‘हां, अब बताओ सुगंधा, तुम्हें शादी की क्यों जल्दी है? अभी कुछ दिन और मौजमस्ती से रहें, फिर शादी करेंगे,’’ रमेश ने उसे सीने से चिपकाते हुए कहा.

‘‘नहीं, जल्दी है. उस की कुछ वजहें हैं.’’

‘‘क्या वजहें हैं?’’ रमेश ने चौंकते हुए पूछा. तभी बाहर दरवाजे पर हुई दस्तक से दोनों चौंके. रमेश सुगंधा को छोड़ कर दरवाजा खोलने के लिए चला गया. सुगंधा घबरा कर एक तरफ दुबक कर बैठ गई.

इतने में रमेश को धकेलते हुए 3 लोग बैडरूम में आ गए.

‘‘अरे, तू तो कहता था कि यहां अकेले रहता?है. ये क्या तेरी बीवी है या बहन,’’ उन में से एक पहलवान जैसे शख्स ने कहा. ‘‘देखो, जबान संभाल कर बात करो,’’ रमेश ने कहा.

तभी एक ने रमेश के गाल पर जोर का थप्पड़ मारा और उसे जबरदस्ती कुरसी पर बैठा कर बांध दिया. तीनों सुगंधा की ओर बढ़े और उसे बैड पर पटक दिया. सुगंधा चीखतीचिल्लाती रही. उन से हाथ जोड़ती रही, पर उन्होंने एक न सुनी और बारीबारी से तीनों ने उस के साथ बलात्कार किया. उधर रमेश कुरसी से बंधा कसमसाता रहा.

जब सुगंधा को होश आया, तो वह लुट चुकी थी. उस का अंगअंग दुख रहा था. वह रोने लगी. रमेश उसे हिम्मत बंधाता रहा. फिर सुगंधा के आंसू पोंछते हुए रमेश ने कहा, ‘‘सुगंधा, इस को हादसा समझ कर भूल जाओ. हम जल्दी ही शादी कर लेंगे, जिस से यह कलंक मिट जाएगा.’’

सुगंधा उठी और अपने घर चली गई. वह एक हफ्ता की छुट्टी ले कर कमरे पर ही रही और भविष्य के बारे में सोच कर परेशान होती रही थी, लेकिन रमेश द्वारा शादी का वादा उसे कुछ राहत दे रहा था. सुगंधा हफ्तेभर बाद रमेश से मिली, तब बोली कि अब वह जल्द ही उस से शादी कर ले, क्योंकि वह बहुत परेशान है और वह उस के बच्चे की मां बनने वाली है.

‘‘क्या कहा तुम ने? तुम मेरे बच्चे की मां बनने वाली हो? सुगंधा, तुम होश में तो हो. अब तो यह तुम मुझ पर लांछन लगा रही हो. मालूम नहीं, यह मेरा बच्चा है या किसी और का,’’ रमेश ने हिकारत भरी नजरों से देखते हुए कहा. ‘‘नहींनहीं रमेश, ऐसा मत कहो. यह तुम्हारा ही बच्चा है. हादसे वाले दिन मैं तुम से यही बात बताने वाली थी,’’ सुगंधा ने कहा, पर रमेश ने धक्का दे कर उसे निकाल दिया.

सुगंधा जिंदगी के बोझ से परेशान हो उठी. जब लोगों को मालूम होगा कि वह बगैर शादी के मां बनने वाली है, तो लोग उसे जीने नहीं देंगे. अब वह जान दे देगी. अचानक रमेश का चेहरा उस के दिमाग में कौंधा, ‘धोखेबाज ने आखिर अपना असली रूप दिखा ही दिया.’

एक दिन जब सुगंधा बाजार जा रही थी, तो देखा कि रमेश किसी से बातें कर रहा था. उस आदमी का डीलडौल उसे कुछ पहचाना सा लगा. सुगंधा ने छिपते हुए नजदीक जा कर देखा, तो रमेश जिन लोगों से हंस कर बातें कर रहा था, वे वही लोग थे, जिन्होंने उस रात उस के साथ बलात्कार किया था.

अब सुगंधा रमेश की साजिश समझ गई थी. उस ने मन में ठान लिया कि अब वह मरेगी नहीं, बल्कि रमेश जैसे भेडि़ए से बदला लेगी. रमेश से बदला लेने की ठान लेने के बाद सुगंधा ने पहले परिवार के बारे में पता लगाया. जब मालूम हुआ कि रमेश शादीशुदा है, तो वह और भी जलभुन गई. उसे पता चला कि उस का छोटा भाई दिनेश दिल्ली में पढ़ाई कर रहा था. उस ने लखनऊ की नौकरी छोड़ दी.

दिल्ली जा कर सब से पहले सुगंधा ने अपना पेट गिराया, फिर उस ने वहीं एक कमरा किराए पर ले लिया, जहां दिनेश रहता था. धीरेधीरे उस ने दिनेश पर डोरे डालना शुरू किया. दिनेश को जब सुगंधा ने पूरी तरह अपने जाल में फांस लिया, तब उस ने दिनेश को शादी के लिए उकसाया. उस ने शादी की रजामंदी दे दी.

दिनेश ने रेलवे परीक्षा में अंतिम रूप से कामयाबी पा ली. अब वह अपनी मरजी का मालिक हो गया. उस ने सुगंधा से शादी के लिए अपने मातापिता को लिख दिया. लड़का अपने पैरों पर खड़ा हो गया है, इसलिए उन्होंने भी शादी की इजाजत दे दी. सुगंधा ने भी शर्त रखी कि शादी कोर्ट में ही करेगी. दिनेश को कोई एतराज नहीं हुआ.

जब दिनेश ने अपने मातापिता को लिखा कि उस ने कोर्ट में शादी कर ली है, तो उन्हें इस बात का मलाल जरूर हुआ कि घर में शादी हुई होती, तो बात ही कुछ और थी. अब जो होना था हो गया. उन्होंने गृहभोज के मौके पर दोनों को घर बुलाया. पूरा घर सजा था. बहुत से मेहमान, दोस्त, सगेसंबंधी इकट्ठा थे. रमेश भी उस मौके पर अपने दोस्तों के साथ आया था. दुलहन घूंघट में लाई गई.

मुंह दिखाई के समय रमेश और उस के दोस्त उपहार ले कर पहुंचे. रमेश ने जब दुलहन के रूप में सुगंधा को देखा, तो उस के पैरों के नीचे की जमीन ही खिसक गई. रमेश और उस के दोस्त जिन्होंने सुगंधा के साथ बलात्कार किया था, सब का चेहरा शर्म से झुक गया. इस तरह सुगंधा ने अपना बदला लिया.

कीमती चीज: पैसों के लालच में सौतेले पिता ने क्या काम किया

‘‘मैडम,क्या मैं अंदर आ सकता हूं?’’ अभिनव ने दरवाजे के बाहर से आवाज दी.

‘‘बताइए क्या काम है?’’  अंदर से आवाज आई.

‘‘जी मैं एक सेल्समैन हूं. हाउसवाइफ्स के लिए एक अनोखा औफर ले कर आया हूं,’’ अभिनव ने अंदर झांकते हुए कहा.

सुनैना अपने बाल समेटती कमरे में से बाहर निकली. उस समय वह नाईटी में थी. गोरे रंग और आकर्षक नैननक्स वाली सुनैना की खूबसूरती किसी को भी मोह सकती थी. उस की बड़ीबड़ी आंखों में कुतूहल साफ नजर आ रहा था. अभिनव से नजरें मिलते ही दोनों कुछ पल के लिए एकदूसरे को देखते रह गए. खुद को सेल्समैन बताने वाला अभिनव अच्छी कदकाठी का सभ्रांत युवक था.

‘‘आइए बैठिए न,’’ सुनैना ने उस से बैठने का आग्रह किया और फिर खुद भी पास ही बैठ गई.

‘‘कहिए क्या बात है?’’ सुनैना ने पूछा.

‘‘जी मैं हाउसवाइफ्स के लिए एक औफर ले कर आया हूं.’’

‘‘कैसा औफर?’’ सुनैना ने मुसकराते हुए पूछा.

‘‘दरअसल, मेरे पास किचन एंप्लायंसिस की एक लंबी रेंज है. आप को पसंद आए तो औनलाइन भी और्डर कर सकती हैं. मिक्सर ग्राइंडर जूसर की एक रेंज साथ

भी लाया हूं. फौर ए ट्रायल आप इस का प्रयोग कर के देखें. इस के साथ ही एक प्रैस बिलकुल फ्री है. हमारे पास दूसरी किसी भी कंपनी के मुकाबले कम कीमत में बैस्ट औफर्स हैं. हमारे ये प्रोडक्ट्स दूसरों से अलग हैं. मैं इन की खासीयतें 1-1 कर बताता हूं.’’

सुनैना एकटक अभिनव की तरफ देखती हुई बोली, ‘‘इन बेजुबान, बेजबान चीजों में भला क्या खासीयत हो सकती है? मुझे तो आप के बोलने के अंदाज में खासीयत लग रही है.’’

अभिनव एकदम से शरमा गया. फिर हंसता हुआ बोला, ‘‘मैडम, आप भी ऐसी बातें कर इस नाचीज की कीमत बढ़ा रही हैं.’’

‘‘मैं कीमत कहां बढ़ा रही? जिंदगी में किसी भी चीज की कीमत बढ़ाई या घटाई नहीं जा सकती. हर इंसान के लिए एक ही चीज की कीमत अलगअलग होती है. मेरे पति की नजर में ऐसी चीजें ही कीमती हैं, जो लोगों के आगे उन की शान को बढ़ाती हैं, मगर मेरे लिए ऐसी चीजें कीमती हैं, जो किसी की आंखों में मुसकान सजाती हैं.’’

अभिनव बिलकुल गंभीर हो कर बोला, ‘‘कितनी खूबसूरत सोच है आप की. काश, हर इंसान ऐसे ही सोचता. बुरा न मानें तो एक बात कहूं मैडम, आप दूसरी महिलाओं से बहुत अलग हैं.’’

‘‘मैं भी एक बात कहना चाहती हूं अभिनवजी. मुझे अपने लिए मैडम सुनना बिलकुल पसंद नहीं. आप मुझे सुनैना कह सकते हैं. मेरा नाम सुनैना है.’’

‘‘यथा नाम तथा गुण. सुनैना यानी सुंदर आंखें. वाकई आप की आंखें  बेहद खूबसूरत हैं सुनैनाजी,’’ सुनैना की आंखों में झंकते हुए अभिनव ने कहा.

सुनैना कुछ सोचती हुई बोली, ‘‘पता नहीं मुझे क्यों लग रहा है जैसे आप सेल्समैन हो ही नहीं सकते. आप कुछ और ही हो.’’

अभिनव ने खुद को संभाला और जल्दी से सेल्समैन की टोन में बोला, ‘‘नो मैम मैं सेल्समैन ही हूं. हमारी कंपनी ने कुछ नए प्रोडक्ट्स लौंच किए हैं, उन से आप का परिचय करा दूं. यकीनन आप को हमारे प्रोडक्ट्स पसंद आएंगे और आप इन्हें जरूर खरीदेंगी. मैम क्या मैं डैमो दे सकता हूं?’’

‘‘औफकोर्स औफ डैमो दिखा सकते हो, मगर मैं घर में अकेली हूं. आप को किचन में कैसे ले जाऊं?’’ सुनैना ने मजबूरी बताई.

‘‘छोडि़ए फिर आप ऐसे ही फील कीजिए… यह प्रोडक्ट कितना अच्छा है,’’ कहते हुए अभिनव ने मशीन सुनैना को थमाई तो दोनों के हाथ एकदूसरे से स्पर्श हो गए.

सुनैना ने उस की तरफ देखते हुए हौले से कहा, ‘‘फील तो मैं कर रही हूं.’’

अभिनव एकदम से असहज हो उठा और कहने लगा, ‘‘प्लीज, एक गिलास पानी मिलेगा?’’

‘‘बिलकुल,’’ कह सुनैना अंदर गई और पानी ले आई.

पानी पीते हुए अभिनव बोला, ‘‘बुरा न मानें तो एक बात कहूं, आप के पति और आप का कोई मैच नहीं. स्वभाव के साथ आप दोनों की उम्र में भी बहुत अंतर है.’’

‘‘मैं जानती हूं पर क्या मैं पूछ सकती हूं कि आप मेरे पति को कैसे जानते हैं?’’

‘‘मैं नहीं जानता … आप ने बताया था न… ’’ अभिनव हकलाते हुए बोला.

‘‘अच्छा मैं चाय भी बना लाती हूं. आप थक गए होंगे.’’

‘‘धन्यवाद.’’

सुनैना 2 कप चाय बना कर ले आई. दोनों बैठ कर चाय पीने लगे. दोनों अजनबी थे, मगर एकदूसरे के लिए अलग तरह का आकर्षण महसूस कर रहे थे. कहीं न कहीं अभिनव सुनैना का दर्द महसूस कर रहा था. सुनैना भी समझ रही थी कि यह कोई साधारण सेल्समैन नहीं.

‘‘मेरे पति केवल पैसों से प्यार करते हैं,’’ सुनैना ने खामोशी तोड़ते हुए कहा.

‘‘जी हां पैसों के लिए वे किसी की जिंदगी से भी खेल सकते हैं,’’ अभिनव बोल पड़ा.

सुनैना ने फिर से उस की तरफ सवालिया नजरों से देखा.

अभिनव ने सामने टंगी सुनैना और उस के पति के फोटो को देखते हुए कहा, ‘‘वे आप से प्यार नहीं करते?’’

‘‘नहीं उन के लिए जज्बातों की कोई कीमत नहीं. मगर मैं आप से ये सब क्यों कह रही हूं?’’

‘‘क्योंकि मेरे अंदर आप को एक दोस्त नजर आया है. यकीन मानिए मुझे जज्बातों की बहुत ज्यादा कद्र है. यदि आप ने वाकई मुझे अपना दोस्त माना तो मैं आप के लिए बहुत कुछ कर सकता हूं. पर यदि आप को मुझ पर जरा सा भी शक है तो मैं अभी अपना सारा सामान ले कर निकल जाऊंगा.’’

‘‘मुझे आप पर कोई शक नहीं, उलटा शक तो मुझे अपने पति पर है. जरूर उन्होंने आप के साथ कुछ गलत किया होगा, जिस का बदला लेने आप यहां आए हैं,’’ सुनैना ने अभिनव पर नजरें जमाते हुए कहा.

सुनैना के मुंह से बदला शब्द सुनते ही अभिनव चौंक  गया, ‘‘मगर यह बात आप को कैसे पता चली?’’

‘‘मैं पानी लेने गई तब और जब चाय बना रही थी तब, आप की आंखें घर में कुछ ढूंढ़ रही थीं. आप मेरे पति के स्वभाव के बारे में भी जानते हैं. यही नहीं मेरे पति की तसवीर आप ने जिस नफरत से देखी उस से भी स्पष्ट था कि आप का उन से पहले ही सामना हो चुका है. एक सवाल यह भी है कि हमारे इस मुहल्ले में आज तक तो कोई सेल्समैन आया नहीं, फिर आज आप कैसे आ गए और वह भी बीच के सारे घरों को छोड़ कर सीधा मेरे घर आ कर बैल बजाई. इन्हीं सब बातों पर गौर कर मैं ने यह निष्कर्ष निकाला कि जरूर आप के मन में कोई बात है.’’

‘‘आप तो सच में काफी ब्रिलियंट हैं. मेरे बिना कुछ बोले भी आप ने हर बात पर नजर रखी. फिर तो आप को यह भी एहसास हो गया होगा कि आप के लिए मेरी क्या फीलिंग है?’’ अभिनव की आंखों में प्यार झलक उठा.

‘‘हां एहसास तो हो गया है कि आप मुझे पसंद करने लगे हैं. मेरा स्पर्श आप को विचलित कर रहा है. हमारे बीच आकर्षण का एक सेतु बनता जा रहा है. मैं थोड़ी भी कमजोर पड़ी तो हमारे बीच कुछ भी हो सकता है.’’

अभिनव ने अचानक बढ़ कर सुनैना को बांहों में भर लिया. सुनैना ने भी कोई प्रतिरोध नहीं किया. दोनों को एकदूसरे के मन की थाह मिल चुकी थी. कुछ देर इस खूबसूरत पल का आनंद लेने के बाद सुनैना अलग हो गई और अभिनव को बैठने का इशारा किया.

‘‘दिल का सौदा करने से पहले जरूरी है कि मुझे यह पता चले कि आप कौन हैं, कहां से आए हैं और क्या चाहते हैं?’’ सुनैना ने कहा.

‘‘कहानी लंबी है. शुरुआत से बतानी होगी.’’

‘‘मुझे भी कोई हड़बड़ी नहीं है. आप बताइए,’’ सुनैना ने इत्मीनान से कहा.

‘‘ऐक्चुअली मैं एक साधारण मध्यवर्गीय परिवार का इकलौता कमाऊ बेटा हूं. मैं ने एमबीए किया हुआ है और एक कंपनी में जौब करता था. इस बीच हमारी कंपनी में घोटाला हुआ, जिस में करोड़ों की रकम चोरी की गई. आप के पति हमारी कंपनी में काफी सीनियर पद पर हैं. घोटाला उन्होंने किया और नाम मेरा लगा दिया. मेरे खिलाफ गवाही दे कर मुझे चोरी और धोखाधड़ी के मामले में फंसा दिया. मुझे जेल भेज दिया गया.

‘‘आप ही बताइए किसी घर के कमाऊ बेटे के साथ ऐसा किया जाए तो मांबाप  पर क्या बीतेगी. किसी तरह मैं ने अपनी बेगुनाही का सुबूत दे कर खुद को जेल से बाहर निकाला. जेल जाते समय मैं ने प्रण किया था कि दिनदहाड़े आप के पति के घर में घुस कर उन की सब से कीमती चीज चुरा कर ले जाऊंगा.’’

‘‘ओके तो आप चोरी के मकसद से आए हैं,’’  हलके से मुसकराते हुए सुनैना ने कहा.

‘‘देखिए मैं आया तो चोरी के मकसद से ही था, मगर अब आप से मिल कर ऐसा कुछ करने की इच्छा नहीं हो रही.’’

‘‘अगर आप चोरी के मकसद से आए थे तो ठीक है न. मैं कहती हूं आप को जो भी चीज कीमती लग रही है उसे ले जाइए. मैं आप को तिजोरी और अलमारी की चाभी देती हूँ. देखिए आप के साथ नाइंसाफी हुई है तो उस का बदला जरूर लीजिए. मैं जानती हूं आप सच कह रहे हैं. मेरे पति ऐसे ही हैं. वे केवल अपना लाभ देखते हैं भले किसी की जान ही क्यों न चली जाए. ये लीजिए चाबियां.’’

‘‘नहीं ऐसा मत कीजिए. आप के पति नाराज हो जाएंगे. फिर वे आप के साथ कुछ भी कर सकते हैं,’’ अभिनव ने हिचकिचाते हुए कहा.

‘‘वे खुश ही कब रहते हैं, जो आज नाराज हो जाएंगे. यह कोई बड़ी बात नहीं है. वैसे भी मैं ने उन्हें छोड़ने का मन बना लिया है. किसी भी दिन उन्हें छोड़ कर चली जाऊंगी. इसलिए आप मेरी चिंता न करें,’’ कह सुनैना ने तिजोरी और अलमारी खोल दी. तिजोरी में गहने और अलमारी में रुपयों की गड्डियां रखी थीं, मगर अभिनव ने उन की तरफ देखा भी नहीं.

‘‘माना पहले तिकड़म लगा कर मैं आप के घर चोरी करने वाला था, मगर अब आप से मुलाकात के बाद मैं ऐसा सोच भी नहीं सकता… बिलकुल भी नहीं.’’

‘‘मैं ने कहा न आप मेरी चिंता बिलकु  न करें. यकीन मानिए पहली दफा मैं उस शख्स का साथ देना चाहती हूं, जिस का मकसद चोरी करना है, वह भी मेरे घर में. प्लीज डौंट हैजिटेट.’’

‘‘नहीं अब नहीं. मैं ने आप को दोस्त मान लिया है. एक दोस्त के घर चोरी कैसे कर सकता हूं?’’

‘‘पर मैं एक दोस्त के मकसद के आड़े भी कैसे आ सकती हूं? मैं कह रही हूं न अपना बदला पूरा करो.’’

‘‘ठीक है मुझे सोचने का समय दीजिए.’’

‘‘चोर बैठ कर सोचते नहीं, कर गुजरते हैं. कहीं तुम्हें यह डर तो नहीं लग रहा कि मैं तुम्हें पकड़वा सकती हूं, पुलिस बुला सकती हूं?’’  सुनैना ने पूछा.

‘‘पता नहीं क्यों पर यह डर बिलकुल नहीं है. अगर आप ने ऐसा कुछ किया भी तो मैं खुशीखुशी फिर से जेल जाने को तैयार हूं,’’ यह बात कहते हुए अभिनव सुनैना के करीब आ गया था. सुनैना ने उस की तरफ कातिलाना नजरों से देखा तो अभिनव ने फुसफुसा कर कहा,’’  ऐ हुस्न वाले, तू कत्ल भी कर दे तो कोई गम नहीं.’’

सुनैना भी शोख नजरों से देखती हुई बोली, ‘‘कमाल करते हो तुम भी. चुराने आए थे सामान और दिल चुरा कर ले गए.’’

‘‘ऐ हंसी तेरे दिल से कीमती कुछ और दिखा ही नहीं. तेरी इनायत है, जो इस नाचीज को नगीना मिल गया,’’  अभिनव ने उसी लहजे में जवाब दिया.

इस तरह शायराना अंदाज में बातें करतेकरते कब दोनों एकदूसरे के करीब  आ गए, पता ही नहीं चला. सुनैना, जिसे आज तक पति का प्यार नहीं मिला था, एक अनजान शख्स के लिए तड़प उठी थी तो वहीं अभिनव भी कहां जानता था कि जिस के घर चोरी करने और बदला लेने जा रहा है वहां अपने दिल का सौदा कर आएगा.

सुनैना ने बताया, ‘‘मेरी शादी एक धोखा थी. मेरे सौतेले पिता ने मुझे इन के कजिन का फोटो दिखाया था और कहा था कि मैं उस के साथ एक खुशहाल जिंदगी जीऊंगी, पर मुझे क्या पता था कि मेरी जिंदगी का सौदा किया गया है.

मेरे सौतेले पिता ने चंद रुपयों की खातिर मुझे अपने से दोगुनी उम्र के व्यक्ति के हाथ बेच दिया था. ये विधुर थे. पहली पत्नी ऐक्सीडैंट में मर गई थी. मेरे साथ इन का रिश्ता पहले दिन से ही मालिक और दासी का रहा है न कि पतिपत्नी का.

मायके में सौतेले पिता के सिवा अब कोई नहीं. यहां भी इन के सिवा सिर्फ नौकरचाकर हैं. अपना दर्द किस से कहती. इसलिए परिस्थितियों से समझौता कर लिया, पर तुम से मिल कर ऐसा लग रहा है जैसे मेरे जीवन में खुशियों के गुल फिर से खिलने वाले हैं. मुझे एक नई जिंदगी मिल गई है.’’

‘‘मैं ने भी प्यार के नाम पर केवल धोखे खाए हैं. इसलिए अब तक शादी नहीं की. अब समझ आता है कि इन सब के पीछे वजह क्या थी. दरअसल, तुम्हारे साथ मेरी कहानी जो पूरी होनी थी.’’

दोनों देर तक एकदूसरे से प्यार भरी बातें करते रहे. फिर अचानक सुनैना को  होश आया तो घबरा कर बोली, ‘‘देखो अब तुम्हारे पास ज्यादा समय नहीं है. वे आते होंगे, इसलिए जल्दी से फैसला करो कि तुम्हें यहां से क्या ले जाना है.’’

‘‘यदि मैं कहूं कि मुझे तुम्हें ले जाना है तो तुम्हारा जवाब क्या होगा?’’ हिम्मत कर के अभिनव ने अपने दिल की बात कह दी.

‘‘मेरा जवाब…’’ कहतेकहते सुनैना चुप हो गई. ‘‘बताओ सुनैना तुम्हारा जवाब क्या होगा?’’  बेचैन हो कर अभिनव ने पूछा.

‘‘मेरा जवाब यही होगा कि मैं खुद इस सोने के पिंजरे में रह कर थक चुकी हूं. अब एक परिंदे की भांति खुल कर उड़ान भरना चाहती हूं. मैं अनुमति देती हूँ,  तुम मुझे  मेरे घर से चुरा कर ले चलो. मैं तैयार हूं अभिनव.’’

‘‘तो ठीक है मैं तुम्हें यानी इस घर की सब से कीमती चीज को चुरा कर ले जा रहा हूं. मेरा बदला इतना खूबसूरत रुख ले कर पूरा होगा यह तो मैं ने सोचा भी नहीं था,’’ और फिर दोनों ने एकदूसरे का हाथ थामा और एक नई जिंदगी की शुरुआत के लिए निकल पड़े.

पहेली: क्या ससुराल में शिखा को प्रताड़ित किया जाता था!

 मैं शनिवार की शाम औफिस से ही एक रात मायके में रुकने आ गई. सीमा दीदी भी 2 दिनों के लिए आई हुई थी. सोचा सब से जी भर कर बातें करूंगी पर मेरे पहुंचने के घंटे भर बाद ही रवि का फोन आ गया.

मैं बाथरूम में थी, इसलिए मम्मी ने उन से बातें करीं.

‘‘रवि ने फोन कर के बताया है कि तेरी सास को बुखार आ गया है,’’ कुछ देर बाद मुझे यह जानकारी देते हुए मां साफतौर पर नाराज नजर आ रही थीं.

मैं फौरन तमतमाती हुई बोली, ‘‘अभी मुझे यहां पहुंचे 1 घंटा भी नहीं हुआ है कि बुलावा आ गया. सासूमां को मेरी 1 दिन की आजादी बरदाश्त नहीं हुई और बुखार चढ़ा बैठीं.’’

‘‘क्या पता बुखार आया भी है या नहीं,’’ सीमा दीदी ने बुरा सा मुंह बनाते हुए अपने मन की बात कही.

‘‘मैं ने जब आज सुबह सासूमां से यहां 1 रात रुकने की इजाजत मांगी थी, तभी उन का मुंह फूल गया था. दीदी तुम्हारी मौज है, जो सासससुर के झंझटों से दूर अलग रह रही हो,’’ मेरा मूड पलपल खराब होता जा रहा था.

‘‘अगर तुझे इन झंझटों से बचना है, तो तू अपनी सास को अपनी जेठानी के पास भेजने की जिद पर अड़ जा,’’ सीमा दीदी ने वही सलाह दोहरा दी, जिसे वे मेरी शादी के महीने भर बाद से देती आ रही हैं.

‘‘मेरी तेजतर्रार जेठानी के पास न सासूमां जाने को राजी हैं और न बेटा भेजने को. तुम्हें तो पता ही है पिछले महीने सास को जेठानी के पास भेजने को मेरी जिद से खफा हो कर रवि ने मुझे तलाक देने की धमकी दे दी थी. अपनी मां के सामने उन की नजरों में मेरी कोई वैल्यू नहीं है, दीदी.’’

‘‘तू रवि की तलाक देने की धमकियों से मत डर, क्योंकि हम सब को साफ दिखाई देता है कि रवि तुझ पर जान छिड़कता है.’’

‘‘सीमा ठीक कह रही है. तुझे रवि को किसी भी तरह से मनाना होगा. तेरी सास को दोनों बहुओं के पास बराबरबराबर रहना चाहिए,’’ मां ने दीदी की बात का समर्थन किया.

मैं ने गहरी सांस छोड़ते हुए कहा, ‘‘मां, फिलहाल मुझे वापस जाना होगा.’’

‘‘पागलों जैसी बात न कर,’’ मां भड़क उठीं, ‘‘तू जब इतने दिनों बाद सिर्फ 1 दिन को बाहर निकली है, तो यहां पूरा आराम कर के जा.’’

‘‘मां, मेरी जिंदगी में आराम करना कहां लिखा है? मुझे वापस जाना ही पड़ेगा,’’ कह अपना बैग उठा कर मैं ड्राइंगरूम की तरफ चल पड़ी.

‘‘शिखा, तू इतना डर क्यों रही है? देख, रवि ने तेरे फौरन वापस आने की बात एक बार भी मां से नहीं कही है,’’ दीदी ने मुझे रोकने को समझाने की कोशिश शुरू की.

‘‘दीदी, अगर मैं नहीं गई, तो इन का मूड बहुत खराब हो जाएगा. तुम तो जानती ही हो कि ये कितने गुस्से वाले इनसान हैं.’’

उन सब का समझाना बेकार गया और करीब घंटे भर बाद मुझे दीदी व जीजाजी कार से वापस छोड़ गए. अपनी नाराजगी दर्शाने के लिए दोनों अंदर नहीं आए.

मुझे अचानक घर आया देख रवि चौंकते हुए बोले, ‘‘अरे, तुम वापस क्यों आ गई हो?

मैं ने तुम्हें बुलाने के लिए थोड़े ही फोन किया था.’’

मेरे लौट आने से उन की आंखों में पैदा हुई खुशी की चमक को नजरअंदाज करते हुए मैं ने शिकायत की, मुझे 1 दिन भी आप ने चैन से अपने मम्मीपापा के घर नहीं रहने दिया. क्या 1 रात के लिए आप अपनी बीमार मां की देखभाल नहीं कर सकते थे?

‘‘सच कह रहा हूं कि मैं ने तुम्हारी मम्मी से तुम्हें वापस भेजने को नहीं कहा था.’’

‘‘वापस बुलाना नहीं था, तो फोन क्यों किया?’’

‘‘फोन तुम्हें सूचना देने के लिए किया था, स्वीटहार्ट.’’

‘‘क्या सूचना कल सुबह नहीं दी जा सकती थी?’’ मेरे सवाल का उन से कोई जवाब देते नहीं बना.

उन के आगे बोलने का इंतजार किए बिना मैं सासूमां के कमरे की तरफ चल दी.

सासूमां के कमरे में घुसते ही मैं ने तीखी आवाज में उन से एक ही सांस में कई सवाल पूछ डाले, ‘‘मम्मीजी, मौसमी बुखार से इतना डरने की क्या जरूरत है? क्या 1 रात के लिए आप अपने बेटे से सेवा नहीं करा सकती थीं? मुझे बुलाने को क्यों फोन कराया आप ने?’’

‘‘मैं ने एक बार भी रवि से नहीं कहा कि तुझे फोन कर के बुला ले. इस मामले में मेरे ऊपर चिल्लाने की कोई जरूरत नहीं है, बहू,’’ सासूमां फौरन मुझ से भिड़ने को तैयार हो गईं.

‘‘इन के लिए तो मैं खाना साथ लाई हूं. आप ने क्या खाया है? मैं सुबह जो दाल बना कर…’’

‘‘मेरा मन कोई दालवाल खाने का नहीं कर रहा है,’’ उन्होंने नाराज लहजे में जवाब दिया.

‘‘तो बाजार से टिक्की या छोलेभठूरे मंगवा दूं?’’

‘‘बेकार की बातें कर के तू मेरा दिमाग मत खराब कर, बहू.’’

‘‘सच में मेरा दिमाग खराब है, जो आप की बीमारी की खबर मिलते ही यहां भागी चली आई. जिस इनसान के पास इतनी जोर से चिल्लाने और लड़ने की ऐनर्जी है, वह बीमार हो ही नहीं सकता है,’’ मैं ने उन के माथे पर हाथ रखा तो मन ही मन चौंक पड़ी, क्योंकि मुझे महसूस हुआ मानो गरम तवे पर हाथ रख दिया हो.

‘‘तू मुझे और ज्यादा तंग करने के लिए आई है क्या? देख, मेरे ऊपर किसी तरह का एहसान चढ़ाने की कोशिश मत कर.’’

उन की तरफ से पूरा ध्यान हटा कर मैं रवि से बोली, ‘‘आप खड़ेखड़े हमें ताड़ क्यों रहे हो? गीली पट्टी क्यों नहीं रखते हो मम्मीजी के माथे पर? इन्हें तेज बुखार है.’’

‘‘मैं अभी गीली पट्टी रखता हूं,’’ कह वे हड़बड़ाए से रसोई की तरफ चले गए.

‘‘मैं आप के लिए मूंग की दाल की खिचड़ी बनाने जा रही….’’

‘‘मैं कुछ नहीं खाऊंगी. मेरे लिए तुझे कष्ट करने की जरूरत नहीं है,’’ वे नाराज ही बनी रहीं.

मैं भी फौरन भड़क उठी, ‘‘आप को भी मुझे ज्यादा तंग करने की जरूरत नहीं है. पता नहीं मैं क्यों आप के इतने नखरे उठाती हूं? बड़े भाईसाहब के पास जा कर रहने में पता नहीं आप को क्या परेशानी होती है?’’

‘‘तू एक बार फिर कान खोल कर सुन ले कि यह मेरा घर है और मैं हमेशा यहीं रहूंगी. तुझ से मेरे काम न होते हों, तो मत किया कर.’’

‘‘बेकार की चखचख से मेरा समय बरबाद करने के बजाय यह बताओ कि क्या चाय पीएंगी?’’ मैं ने अपने माथे पर यों हाथ मारा मानो बहुत तंग हो गई हूं.

‘‘तू मेरे साथ ढंग से क्यों नहीं बोलती है, बहू?’’ यह सवाल उन्होंने कुछ धीमी आवाज में पूछा.

‘‘अब मैं ने क्या गलत कहा है?’’

‘‘तू चाय पीने को पूछ रही है या लट्ठ मार रही है?’’

‘‘आप को तो मुझ से जिंदगी भर शिकायत बनी रहेगी,’’ मैं अपनी हंसी नहीं रोक पा रही थी, इसलिए तुरंत रसोई की तरफ चल दी.

मैं रसोई में आ कर दिल खोल कर मुसकराई और फिर खिचड़ी व चाय बनाने में लगी.

कुछ देर बाद पीछे से आ कर रवि ने मुझे अपनी बांहों में भर लिया और भावुक हो कर बोले, ‘‘मां का तेज बुखार देख कर मैं घबरा गया था. अच्छा हुआ जो तुम फौरन चली आईं. वैसे वैरी सौरी कि तुम 1 रात भी मायके में नहीं रह पाई.’’

‘‘तुम ने कब मेरी खुशियां की चिंता की है, जो आज सौरी बोल रहे हो?’’ मैं ने उचक कर उन के होंठों को चूम लिया.

‘‘तुम जबान की कड़ी हो पर दिल की बहुत अच्छी हो.’’

‘‘मैं सब समझ रही हूं. अपनी बीमार मां की सेवा कराने के लिए मेरी झूठी तारीफ करने की तुम्हें कोई जरूरत नहीं है.’’

‘‘नहीं, तुम सचमुच दिल की बहुत अच्छी हो.’’

‘‘सच?’’

‘‘बिलकुल सच.’’

‘‘तो कमरे में मेरे लौटने से पहले सो मत जाना. अपने प्रोग्राम को गड़बड़ कराने की कीमत तो पक्का मैं आज रात को ही वसूल करूंगी,’’ मैं ने उन से लिपट कर फटाफट कई सारे चुंबन उन के गाल पर अंकित कर दिए.

‘‘आजकल तुम्हें समझना मेरे बस की तो बात नहीं है,’’ उन्होंने कस कर मुझे अपनी बांहों में भींच लिया.

‘‘तो समझने की कोशिश करते ही क्यों हो? जाओ, जा कर अपनी मम्मी के पास बैठो,’’ कह मैं ने हंसते हुए उन्हें किचन से बाहर धकेल दिया.

वे ठीक कह रहे हैं. महीने भर से अपने व्यवहार में आए बदलाव के कारण मैं अपनी सास और इन के लिए अनबूझ पहेली बन गई हूं.

अपनी सास के साथ वैसे अभी भी मैं बोलती तो पहले जैसा ही तीखा हूं पर अब मेरे काम हमेशा आपसी रिश्ते को मजबूती देने व दिलों को जोड़ने वाले होते हैं. तभी मैं बिना बुलाए अपनी बीमार सास की सेवा करने लौट आई.

कमाल की बात तो यह है कि मुझ में आए बदलाव के कारण मेरी सासूमां भी बहुत बदल गई हैं. अब वे अपने सुखदुख मेरे साथ सहजता से बांटती हैं. पहले हमारे बीच नकली व सतही शांति कायम रहती थी पर अब आपस में खूब झगड़ने के बावजूद हम एकदूसरे के साथ खुश व संतुष्ट नजर आती हैं.

सब से अच्छी बात यह हुई है कि अब हमारे झगड़ों व शिकायतों के कारण रवि टैंशन में नहीं रहते हैं और उन का ब्लडप्रैशर सामान्य रहने लगा है. सच तो यही है कि इन की खुशियों व विवाहित जीवन की सुखशांति बनाए रखने के लिए ही मैं ने खुद को बदला है.

‘‘मम्मी और मेरे बीच हो रहे झगड़े में कभी अपनी टांग अड़ाई, तो आप की खैर नहीं,’’ महीने भर पहले दी गई मेरी इस चेतावनी के बाद वे मंदमंद मुसकराते हुए हमें झगड़ते देखते रहते हैं.

‘‘जोरू के गुलाम, कभी तो अपनी मां की तरफ से बोला कर,’’ मम्मीजी जब कभी इन्हें उकसाने को ऐसे डायलौग बोलती हैं, तो ये ठहाका मार कर हंस पड़ते हैं.

सासससुर से दूर रह रही अपनी सीमा दीदी की मौजमस्ती से भरी जिंदगी की तुलना अपनी जिम्मेदारियों भरी जिंदगी से कर के मेरे मन में इस वक्त गलत तरह की भावनाएं कुलबुला रही हैं. सासूमां के ठीक हो जाने के बाद पहला मौका मिलते ही किसी छोटीबड़ी बात पर उन से उलझ कर मैं अपने मन की सारी खीज व तनाव बाहर निकाल फेंकूंगी.

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