‘‘अम्मां, बिटिया भाग गई…’’ भोपाल ने रोते हुए गांव में बैठी अपनी अम्मां को फोन मिलाया.
‘यही होना था बेटा… उस की महतारी के लक्षण ही ऐसे थे. पहली दफा उस के मायके चले जाने पर उसे वापस बुलाने की गलती न की होती, तो आज यह नौबत न आती…’
भोपाल ने मोबाइल फोन बंद किया और दोबारा पुलिस थाने के चक्कर काटने चल पड़ा.
भोपाल को आज भी अपनी शादी की वह रात याद है, जब अनीता उस की दुलहन बन कर घर आई थी. उस की उम्र थी 25 साल और अनीता थी 18 साल की. सालभर तो उस का चुहलबाजी में ही निकल गया.
अम्मां चिल्लातीं, ‘‘क्या हर समय कमरे में घुसा रहता है औरत को ले कर… अपने सब्जियों के खेतों पर भी ध्यान दे. तुम्हारे बापू और छोटा भाई दिनरात खेतों में पड़े रहते हैं. दिनभर खेतों की निराईगुड़ाई, सब्जी को मंडी पहुंचाना और रात को जानवरों से बचाना…’’
जब अनीता पेट से हो गई, तो भोपाल ने खेतखलिहान की तरफ ध्यान देना शुरू कर दिया. इधर जब भी अम्मां अनीता को चूल्हेचौके का काम सौंपतीं, वह आधाअधूरा काम छोड़ कर पेटदर्द का बहाना बना कर कमरे में जा कर लेट जाती.
अम्मां भुनभुनाते हुए पूरा काम समेटतीं. वे बड़बड़ाती भी जातीं, ‘‘हम ने भी 4-4 बच्चे पैदा किए हैं… हमें नहीं पता कि पेटदर्द कब होता है. सब कामचोरी है…’’
अनीता को फर्क ही नहीं पड़ता. वह खाना तैयार होने के बाद ही कमरे से बाहर निकलती और अपना भोजन कर तुरंत कमरे में जा कर लेट जाती. पासपड़ोस की औरतें अम्मां को समझातीं, ‘पहला बच्चा है, तुम्हीं थोड़ा सब्र रख लो. कहीं ऊंचनीच हो गई, तो सभी का नुकसान है.’
बेटी के जन्म के साथ अनीता की कामचोरी भी बढ़ती गई. अब तो उस ने अपनी गजभर जबान भी चलानी शुरू कर दी, ‘‘तुम्हारी अम्मां 2 बार का खाना बना कर मुझ पर क्या अहसान जताती हैं… मेरा चूल्हा अलग करो…’’
‘‘अरे, ऐसा न कहो. जातबिरादरी क्या कहेगी… हम अम्मां को समझा लेंगे…’’ भोपाल उसे समझाता.
‘‘तो अपनी अम्मां से कह दो कि हमारे मुंह न लगें…. अगर हमारा मुंह खुला, तो बरदाश्त नहीं कर पाएंगी…’’ अनीता ने धमकी दी.
‘‘अम्मां, तुम भी क्यों अनीता के पीछे पड़ी रहती हो दिनभर? वह छोटी बिटिया को देखे या तुम्हारे काम को…’’ भोपाल तुरंत अपनी मां से बहस करने पहुंच गया.
‘‘अपनी जोरू की तरफदारी हम से न ही करो तो बेहतर है. दिनभर खटिया पर पड़ी रहती है. 6 महीने की बिटिया हो गई है. उसी का बहाना कर बिस्तर पर पड़ी रहती है. हम ने बच्चे नहीं पाले क्या? जब बच्चा सोया है तो तुम क्यों सो रही हो? तुम उठो, अपना काम करो, यही तो समझाया है उसे.’’
‘‘अम्मां, तुम्हीं शांत हो जाया करो. वह बेचारी भी क्या करे? बिटिया रातभर सोने नहीं देती.’’
‘‘एक तुम्हारी औरत ने बच्चा पैदा किया है न इस दुनिया में…’’
इतना सुनते ही अनीता बिस्तर से कूद कर बाहर आ गई और कमर में हाथ रख कर चीखने लगी, ‘‘बच्चे के संग जरा सी देर को आंख क्या लगी, बुढि़या को बरदाश्त नहीं होता.’’
‘‘दिनभर ऐसे सोई रहती है, जैसे कहीं की महारानी है…’’
‘‘तो तुम हो महारानी… हाय रे, मेरी तो किस्मत ही फूट गई… पता नहीं, कैसे गरीब घर में ब्याह दी…’’ कह कर अनीता ने जोरजोर से रोना शुरू कर दिया.
अम्मां तो अनीता की रोजरोज की नौटंकी से दुखी थीं ही, वे भला चुप क्यों रहतीं, ‘‘जैसे खुद का बाप धन्ना सेठ होगा और दहेज में दुनिया का सामान भर कर लाई होगी….बाप ने न देखी बोरी, सपने में आई खाट…’’ अम्मां ने भी खूब सुनाई.
कुछ ही देर में घर युद्ध का अखाड़ा बन गया. भोपाल खटिया पर सिर पकड़ कर बैठ गया.
‘‘देख लिया अपनी अम्मां को… लड़की पैदा हुई है, इसीलिए ऐसा बरताव करती है…’’
‘‘इस में लड़कीलड़के की बात कहां से आ गई?’’
‘‘इतनी भी नासमझ नहीं हूं. पोता पैदा किया होता, तो घी के लड्डू खिलाती. पोती पैदा हुई है, तभी तो मुझे चार बातें सुनाती रहती है. मेरे बाप ने बोरी भी नहीं देखी क्या कभी… और हां अब दहेज का भी ताना देने लगी है. मुझे मेरे घर पहुंचा दो… यहां आराम करने को नहीं मिला, जब से बिटिया पैदा हुई है…’’
अनीता की बात सुन कर अम्मां के तनबदन में आग लग गई, ‘‘हां, जाओ, शौक से जाओ, ताकि यहां हम भी चैन की दो रोटी खा सकें…’’
अनीता ने तुरंत भोपाल से मोबाइल फोन छीना और अपने मायके मिला दिया, ‘‘भैया, अभी तुरंत यहां पहुंचो. अब हम से बरदाश्त नहीं होता…’’
उधर पास के गांव से अनीता के भाई तुरंत 3-4 लठैत ले कर किराए की गाड़ी से घंटेभर में उस के पास पहुंच गए.
अपने भाई और उस के साथियों को देख कर अनीता जोरजोर से रोने लगी.
‘‘क्या हुआ बताओ… अभी हम इन सब को ठीक करते हैं,’’ उस के बड़े भाई अनिल ने अपनी मूंछ उमेठते हुए कहा.
‘‘सारे झगड़े की जड़ यह बुढि़या है, जो मुझे दहेज के लिए भी परेशान करती है.’’
अनीता का झूठ सुन कर अम्मां गुस्से से उबल पड़ीं, ‘‘कुछ शऊर भी सीखा अपने घर में या सिर्फ झूठ बोलना, झगड़ा करना ही सीख कर आई हो…’’
‘‘देखा भैया, तुम्हारे सामने ही मायके वालों को गाली दे रही है. हम सब एक पल भी यहां नहीं रहेंगे. चलो भैया…’’
कह कर अनीता खाट पर सोती हुई अपनी बेटी को छोड़ कर, अपना झोला ले कर भाई के पास आ कर खड़ी हो गई.
अनीता के भाई ने उस से कहा, ‘‘बिटिया को उठा लाओ.’’
‘‘अरे नहीं… पाले अपनी पोती को खुद ही, अब मैं नहीं लौटने वाली,’’ अनीता तमक कर बोली.
‘‘जाओजाओ, तुम्हारी कोई जरूरत भी नहीं है,’’ अम्मां भी गुस्से से बोलीं.
भोपाल, जो कुछ देर के लिए खेतों में सिंचाई करने चला गया था, वापस घर लौट कर हैरान रह गया. अनीता दूधमुंही बच्ची को छोड़ कर अपने भाई के साथ गाड़ी में सवार हो गई थी.
‘‘अनीता, ऐसा जुल्म न करो. बच्ची तुम्हारे बिना कैसे रह पाएगी?’’ भोपाल गिड़गिड़ा उठा.
‘‘आज से ही हमारा चूल्हा अलग करो, वरना मैं अपने मायके जा रही हूं,’’ अनीता ने धमकी दी.
‘‘अच्छा ठीक है. आज से ही हमारा चूल्हा अलग बनेगा, ‘‘भोपाल ने समझौता कर लिया.
अम्मां दरवाजा रोक कर खड़ी हो गईं, ‘‘जा रही है तो जाने दे भोपाल, बिटिया हम पाल लेंगे. लड़कियों की कोई कमी नहीं है रे, दूसरी शादी करवा देंगे तुम्हारी.’’
यह सुन कर अनिल के कान खड़े हो गए. उस ने तुरंत अनीता को गाड़ी से उतारा और रास्ता रोक कर खड़ी अम्मां को धक्का मार कर अलग कर दिया.
अम्मां इस हमले के लिए तैयार नहीं थीं. वे झटका खा कर फर्श पर गिर पड़ीं. अपने को बचाने के लिए उन्होंने अपने हाथों से बचाव करना चाहा, मगर उन का हाथ पास पड़ी खटिया से टकराया और हाथ की हड्डी टूट गई. वे बिलबिला पड़ीं.
अनीता और उस के भाइयों को कोई फर्क नहीं पड़ा. वे उस का सामान उसे पकड़ा कर वापस लौट गए और जाते हुए धमकी भी दे गए कि अगर उन की बहन को सताया, तो देख लेना क्या हाल करेंगे.
उस दिन से अनीता का चूल्हा अलग हो गया. बड़ी ननद ने आ कर अपनी मां के हाथ का प्लास्टर कटने तक मायके में डेरा डाल दिया.
अनीता से परिवार के सदस्यों का संपर्क कट कर रह गया. वह भोपाल पर रोब गांठती और पूरे गांव में घूमघूम कर पंचायत करती. कुछ समय के बाद उस ने भोपाल से शहर में चल कर रहने की जिद पकड़ ली.
‘‘वहां मुझे रोजगार क्या मिलेगा?’’ भोपाल ने पूछा.
‘‘उस की फिक्र न करो. मेरी मौसी की बेटी सीमा लखनऊ में रहती है. उसी के साथ लोगों के घरों के बरतन और झाड़ूपोंछा करने का काम पकड़ लूंगी. उस का आदमी पुताई का काम जानता है, तुम्हें भी अपने साथ लगा लेगा.’’
‘‘पर, यहां अपना काम है, भोपाल ने कहा, ‘‘लेकिन, दो पैसे की बचत नहीं है.’’ सीमा ने तो वहां अपना घर भी बना लिया है.’’
भोपाल को पता था कि अनीता के मुताबिक न चलो, तो घर में रोज कलह होगी और दो रोटी भी नसीब नहीं होगी. वह लखनऊ चला आया.
लखनऊ की चकाचौंध में अनीता की आंखें चौंधियां गईं. सीमा ने उसे पास के ब्यूटी पार्लर में साफसफाई का काम दिलवा दिया. मेहंदी लगाना उसे आता ही था, इसलिए जल्द ही उसे मेहंदी लगाने के अनेक मौके मिलने लगे, जिस से उस की ज्यादा आमदनी होने लगी.
जब अनीता ने बैंक में अपना पहला खाता खोला तो घर आ कर भोपाल को पासबुक दिखा कर बोली, ‘‘गांव में रह कर यह खाता खोल पाते तुम, देखना जल्द ही हमारा खुद का मकान होगा.’’
भोपाल ने कुछ नहीं कहा. वह यह सोच कर शहर चला आया था कि कुछ दिन बाद अनीता ऊब कर वापस लौट चलने को कहेगी, मगर अनीता तो यहीं के माहौल में रम गई.
अनीता को एक कारोबारी महेंद्रनाथ के घर खाना बनाने का काम भी मिल गया. उस की पत्नी कैंसर की बीमारी की लास्ट स्टेज से जूझ रही थी. महेंद्रनाथ की नजर अनीता के शरीर पर टिक गई थी. उस ने अपनी पत्नी की साडि़यां 1-1 कर के अनीता को उपहार में देनी शुरू कर दीं.
अनीता की नजर महेंद्रनाथ की जायदाद पर थी. दोनों एकदूसरे के सहारा बनते चले गए. फिर उस की पत्नी की देखभाल का बहाना कर अनीता ने रात को वहीं रुकना शुरू कर दिया. भोपाल विरोध करता, तो वह चीखपुकार का पुराना हथकंडा अपनाती, जिस से भोपाल चुप लगा जाता.
धीरेधीरे महेंद्रनाथ के जरीए अनीता के नए लोगों से संबंध बनते चले गए. भोपाल ने जब महेंद्रनाथ के घर में घुस कर विरोध प्रकट किया, तो उस ने अपने नौकर से पिटवा कर भगा दिया.
भोपाल अपनी 14 साल की बेटी रुचि की पढ़ाई का ध्यान रखता. अनीता अब कभीकभार ही घर आती थी.
‘‘रुचि, देख मैं तेरे लिए नया मोबाइल ले कर आई हूं,’’ अनीता ने अपनी बेटी से कहा.
‘‘अरे वाह मां, यह तो बहुत प्यारा है. मेरी सहेलियां देख कर जल उठेंगी.’’
‘‘सुन, अब से तुझे सरकारी स्कूल में पढ़ने की जरूरत नहीं है. महेंद्र बाबू ने कहा है कि अपनी बिटिया यहीं ले आओ, पास के प्राइवेट स्कूल में नाम लिखा देंगे.’’
‘‘सच में, लेकिन पापा तुम्हारे साथ जाने नहीं देंगे.’’
‘‘उस के साथ रहोगी तो ऐसे घटिया कमरे में चूल्हाचौका समेत पड़ी रहोगी. वहां चलो, उधर महेंद्र बाबू की पत्नी भी पिछले महीने चल बसी हैं. उन के विदेश में बसे बच्चे भी आ कर वापस लौट गए हैं. पूरा घर खाली है. तुम्हें एक पूरा कमरा देंगे.’’
‘‘सच मां, पापा काम से लौट कर आएं, तो उन से पूछ लूंगी.’’
‘‘कुछ पूछने की जरूरत नहीं है. अपने कपड़े समेटो और मेरे साथ चलो. कमरे में ताला डाल दो और चाबी पड़ोसी को दे दो. तुम्हें आज स्कूटी से ले कर जाऊंगी. मुझे अब अच्छे से चलानी आ गई है.
‘‘पता है, यह भी महेंद्र बाबू की है. उन्होंने कहा कि अभी पुरानी स्कूटी से चलाना सीख लो, फिर नई खरीद लेना,’’ अनीता की बातें सुनती हुई रुचि जब महेंद्रनाथ के घर पहुंची, तो वहां की सजावट और बगीचा देख कर खिल उठी.
महेंद्रनाथ ने भी उस का प्यार से स्वागत किया और उसे एक बढि़या कमरा सौंप दिया. रुचि की खुशी का ठिकाना न रहा.
उधर जब भोपाल कमरे में पहुंचा, तो पड़ोसी ने बता दिया कि तुम्हारी पत्नी आ कर तुम्हारी बेटी को अपने साथ ले कर चली गई है. यह सुन कर भोपाल का खून खौल उठा. वह तुरंत महेंद्रनाथ के घर पहुंच गया.
अनीता ने बेटी को हाथ से घसीटते हुए उसे भोपाल के सामने ला कर खड़ा कर दिया और बोली, ‘‘पूछो इस से कि क्या यह तुम्हारे साथ जाना चाहती है?’’
रुचि ने कहा, ‘‘नहीं, अब मैं नहीं जाऊंगी. मुझे यहीं रहना है और बढि़या स्कूल में पढ़ना है.’’
भोपाल ठगा सा खड़ा रह गया और घर लौट गया.
सीमा ने अनीता से पूछा, ‘‘तू ने तो गांव से आ कर बड़ी तेजी से तरक्की कर ली… क्या राज है इस का?’’
अनीता इतरा कर बोली, ‘‘मैं अपने मन की रानी हूं. अगर मुझे कुछ लेना है, तो उस के लिए मैं सारे हथकंडे अपना सकती हूं और समाज के बनाए सारे नियम तोड़ देती हूं.’’
सीमा के सिर के ऊपर से सारी बात निकल गई, मगर अनीता अपनी कामयाबी पर इतरा उठी.
नए इंगलिश मीडियम स्कूल में आ कर रुचि पढ़ाई में पिछड़ती चली गई. अब उस का सारा ध्यान अपनी मां के नक्शेकदम पर चलते हुए फैशन और मेकअप की दुनिया में रमने लगा था. जल्द ही मोबाइल फोन से उस ने रील बना कर पोस्ट करना शुरू कर दिया.
रुचि की इस कला को देख कर मां उसे बढ़ावा ही देती थीं.
रुचि के बौयफ्रैंडों की तादाद में इजाफा हो रहा था. बबलू मेकैनिक, जो महेंद्रनाथ के घर पंखा, कूलर, मिक्सी की मरम्मत के लिए आया करता था, ने रुचि को मोबाइल फोन में रील बनाते देख कर उस से कहा, ‘‘तुम जैसी लड़कियों की जगह तो मुंबई में है. यहां तुम्हारे हुनर की कद्र नहीं होगी.’’
‘‘मुझे पता है, मगर मैं मुंबई तक जाऊंगी कैसे?’’
‘‘मेरे कुछ दोस्त हैं, जो काम करने मुंबई चले गए हैं. अगर तुम चाहो, तो हम भी जा सकते हैं.’’
‘‘अगर मां राजी नहीं हुईं तो…?’’
‘‘कोई बात नहीं. उन्हें अभी कुछ मत बताना. जैसे वे मोबाइल फोन पर तुम्हें देख कर बहुत खुश होती हैं, फिर जब बड़े परदे पर देखेंगी, तब सोचो कि वे कितना खुश हो जाएंगी…’’
‘‘सच… मैं ने तो यह सोचा ही नहीं…’’ रुचि खुशी से उछल पड़ी और एक दिन स्कूल से घर लौटने के बजाय बबलू के साथ भाग गई.
इधर अपनी लड़की के जाने के बाद भी अनीता लोगों से झूठ बोलती रही कि उसे उस ने गांव भेज दिया है, पर जल्द ही बात खुल गई.
कई लोगों ने अनीता से पूछा, ‘तुम्हारी बेटी कहां है?’
अनीता ने फिर से वही पुराना हथकंडा अपनाया. वह जोर से चिल्ला कर लोगों से कहती, ‘‘आप अपने काम से मतलब रखो… मेरी बेटी मेरे साथ रहे या घूमने जाए, किसी को क्या करना…’’
उधर भोपाल हैरानपरेशान सा घर और थाने के चक्कर ही काटता रह गया. उस के कानों में अपनी अम्मां के शब्द हमेशा गूंजते रहते, ‘यही होना था बेटा, उस की महतारी के यही लक्षण थे’, लेकिन भोपाल को यही समझ नहीं आ रहा था कि उस की जिंदगी के किस गलत फैसले का नतीजा आज सामने आया है.