कैसी हो गुंजन : उस रात किशन ने ऐसा क्या किया

‘गुंजन, एक गुजारिश है तुम से. जिस तरह तुम ने अपना पुराना सिम बदल लिया है, उसी तरह यह अपना दूसरा सिम भी बदल लो, क्योंकि मैं तुम्हें फोन किए बिना नहीं रह पाता. जब मुझे तुम्हारा नंबर ही पता न होगा, तो मैं कम से कम तुम्हें भूलने की कोशिश तो कर पाऊंगा.

‘मैं तुम्हें फोन कर के परेशान नहीं करूंगा. यह सोच कर मैं हर दिन कसम खाता हूं, लेकिन फिर मजबूर हो कर अपनी ही कसम तोड़ कर तुम्हें फोन करने लगता हूं.

‘गुंजन प्लीज, अपना सिम बदल डालो, वरना मैं तुम्हें कभी भी भूल नहीं पाऊंगा.’

मैं उस दिन बस इतना ही लिख पाया था. इस के आगे कुछ लिखने की जैसे मेरी हिम्मत ही टूट गई थी. शायद गुंजन मेरी सोच में इस तरह शामिल थी कि मैं उसे भूल नहीं पा रहा था.

दूसरी तरफ गुंजन थी, जो आज पूरे 2 महीने हो गए थे, न तो उस ने मुझे फोन किया था और न ही उस ने मेरा फोन उठाया था. वह जनवरी, 2015 की एक शाम थी, जब मुझे रास्ते में पड़ा हुआ एक मोबाइल फोन मिला था. मैं ने जब फोन उठा कर देखा तो वह पूरी तरह से चालू था. बस, उस में पैसे नहीं थे.

फोन किस का है? यह सवाल जरूर मेरे जेहन में आया था, लेकिन इस का जवाब भी मुझे अपने अंदर से ही मिल गया था. मेरा मन कहता था कि जिस का भी फोन होगा, वह खुद ही फोन कर के बताएगा और फिर मैं उसे पहुंचा दूंगा.

अभी सिर्फ 2 दिन ही हुए थे कि तीसरे दिन उस मोबाइल पर मैसेज आया, तो मुझे इस बात का अंदाजा लग गया था कि शायद वह फोन कालेज में पढ़ने वाले किसी लड़के का था, जिसे मैसेज करने वाली लड़की उस की रिश्ते में बहन थी.

मैसेज पढ़ कर पहले तो मेरा मन हुआ कि मैं भी एक मैसेज करूं, लेकिन चूंकि उस में पैसे नहीं थे, इसलिए मैं इस बात को टाल गया. 1-2 दिन बाद एक दिन जब मैं ने उस फोन को रीचार्ज कराया, तो मैं ने उस लड़की को मैसेज के जरीए बता दिया कि वह फोन मुझे पड़ा मिला है और अभी तक किसी ने फोन कर के इस फोन के बारे में पूछा भी नहीं है.

मेरे मैसेज करने के चंद मिनटों बाद ही उधर से फोन आ गया. उधर से आवाज आई, ‘आप कौन बोल रहे हैं? क्या आप बताएंगे कि यह मोबाइल फोन आप को कब, कहां और कैसे मिला?’

मैं ने बिना किसी लागलपेट के साफसाफ सबकुछ बता दिया, ‘‘मैडम, यह फोन एक शाम को मुझे रास्ते में पड़ा मिला था. मैं फतेहपुर से बोल रहा हूं. वहीं बसअड्डे के पास मुझे यह शाम के 6 बजे के आसपास मिला था.’’

‘तो जब आप को यह फोन पड़ा मिला, तो क्या आप ने इस के मालिक को खोजने की तकलीफ उठाई?’

उस के सीधे से सवाल का मैं ने भी सीधा सा जवाब दिया था, ‘‘नहीं मैडम, मैं ने सोचा कि जिस का फोन होगा, वह खुद ही फोन कर के पता करेगा.’’

इस बार मेरे जवाब के बाद उस ने बस यही कहा था, ‘अच्छा, कोई बात नहीं,’ और तुरंत फोन रख दिया था.

उस के फोन रखने के बाद मैं भी इस बात को यहीं भूल गया था और अपनी पढ़ाई में मशगूल हो गया था. मैं यहीं फतेहपुर शहर में रह कर पढ़ाई करता था और विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाएं देता था. इस वजह से मैं अपनेआप में ही मस्त रहने वाला जीव था. लेकिन यह मेरी भूल थी, क्योंकि उस फोन वाली लड़की ने मेरा सबकुछ बदल डाला था. मोबाइल फोन की खोजबीन से चालू हुआ यह सिलसिला आगे बढ़ गया था.

उस लड़की का नाम गुंजन था, जो हमारे पड़ोसी जिले बांदा की रहने वाली थी. डबल एमए करने के बाद उस का 3 साल पहले विशिष्ट बीटीसी में चयन हो चुका था. वह इस समय अपने गांव के ही पास प्राइमरी स्कूल में पढ़ाती थी.

वह स्वरोजगार थी और मैं बेरोजगार. सो, मैं हीनभावना से घिरा हुआ था, लेकिन उस के प्यार ने मुझ में आत्मविश्वास पैदा कर दिया था. वह मुझे हमेशा पढ़ाई करते रहने की सलाह देती थी. अकसर बातों ही बातों में हम एकदूसरे को प्यारभरी बातों में सराबोर करने लगे थे. लेकिन फिर भी हम ने अभी तक एकदूसरे को देखा न था, इसलिए एक दिन जब मैं ने कहा कि गुंजन, मैं तुम्हें जीभर कर देखना चाहता हूं, तो उस ने भी कहा था कि किशन, मैं भी तुम्हें न केवल देखना चाहती हूं, बल्कि इस प्यार को रिश्ते में बदलना चाहती हूं.

‘‘मतलब?’’ मैं ने चौंक कर पूछा, तो उस ने बताया, ‘किशन, मैं तुम्हें बेहद प्यार करती हूं. मैं ने तुम्हें देखा जरूर नहीं है, लेकिन मेरे लिए इस की ज्यादा अहमियत नहीं है. फिर भी मैं केवल इसलिए तुम्हारे पास आना चाहती हूं कि मैं तुम्हारी गोद में सोना चाहती हूं. जिस प्यार को मैं ने आज तक सिर्फ फोन से महसूस किया है, उसे अब मैं जी भर कर जीना चाहती हूं.

‘साफसाफ शब्दों में कहूं, तो मैं अब तुम्हारी होना चाहती हूं जानू.’ तब मैं संभल कर बोला था, ‘‘हांहां रानी, मैं भी तो ऐसा ही चाहता हूं.’’

मैं ने इस जवाब के अलावा और कुछ भी नहीं कहा था. आप को बताना चाहता हूं कि जब गुंजन बेहद रोमांटिक मूड में होती थी, तो वह मुझे ‘जानू’ बोलती थी और उस वक्त मैं उसे ‘रानी’ कहता था.

हम दोनों ने महसूस किया कि हमारा शरीर फोन में बात करतेकरते इतना प्यार में पिघल जाता था कि फिर हमें कईकई घंटे उस प्यार की गरमाहट महसूस होती रहती थी. उस वक्त हम दोनों बस यही सोचा करते थे कि काश, वह पल आ जाए, जब हम आमनेसामने हों और हमारे अलावा कोई भी न हो.

मैं अकसर उसे छुट्टियों में अपने पास बुलाने की जिद करता था, तो वह कहती थी कि वह छुट्टियों में कतई मेरे पास नहीं आएगी, क्योंकि जब स्कूल खुला हो, तभी वह घर से बाहर निकल सकती है, क्योंकि तब घर वाले किसी तरह का सवाल नहीं करते.

हम दोनों रात में जी भर कर बात जरूर करते थे, लेकिन फिर भी कभी मन नहीं भरता था. वैसे, हमारे बीच एक और भी खेल होता था. वह यह कि प्यार के पलों में जो शब्द मुंह से अकसर निकल जाते हैं, अब हम फोन पर जी भर कर एकदूसरे से कहते और सुनते थे.

यह भी सच है कि मैं अकसर गुंजन से मिलने की जिद करता था, लेकिन वह तब यही कहती थी, ‘जानू, धीरज रखो. जिस दिन आऊंगी. सारी रात के लिए आऊंगी और अपनी 26 साल की प्यास बुझाऊंगी, फिर जितना चाहे प्यार कर लेना, बिलकुल मना नहीं करूंगी.’

और फिर एक दिन सचमुच उस ने ऐसा ही किया. उस ने मुझे फोन कर के बताया कि वह शाम तक मेरे पास आ जाएगी, तो मैं सातवें आसमान में उड़ने लगा था. गुंजन को लेने मैं बसअड्डे पर एक घंटा पहले ही पहुंच गया था और पहली बार उसे देखने के लालच में बेहद खुश था. लेकिन यह क्या. जब वह बस से उतरी, तो मैं डर गया और एक पल को उस से न मिलने का मन हुआ, लेकिन तभी उस का फोन आ गया.

आप सोचते होंगे कि मैं डर क्यों गया था? तो बात यह थी कि वह इतनी खूबसूरत थी कि मुझे लगा कि वह मेरी कैसे बन सकती है, क्योंकि मेरी शक्ल तो बेहद सामान्य सी थी.

लेकिन यह मेरा केवल भरम था. जब मैं ने उस का फोन उठाया, तो वह हड़बड़ाई सी बोली, ‘किशन, तुम कहां हो? जल्दी आ जाओ. मैं तुम्हारे पास आना चाहती हूं.’ और फिर मैं उस के सामने जा पहुंचा. मैं ने उसे तुरंत ही अपनी मोटरसाइकिल पर बिठा लिया और बिना बोले चल दिया.

कमरा खोल कर मैं ने उस से बैठने को कहा था, लेकिन मैं बेहद बेचैन था. पहली बात तो वह एक लड़की थी, जो मेरे कमरे में आज पहली बार आई थी. दूसरी बात यह कि अगर किसी को कुछ पता चल जाए, तो बदनामी होने का भी बेहद डर था.

लेकिन वह सिर्फ पानी के गिलास में अपने होंठ डुबा कर बूंदबूंद पानी पी रही थी, बिना किसी खास हरकत के. काफी देर बाद मैं ने उस से कहा, ‘‘चाय पीओगी?’’

‘‘इतनी शाम को?’’

‘‘क्यों, अभी तो 8 ही बजे हैं?’’ मैं ने जब सवाल किया, तो उस ने भी बताया, ‘‘8 तो बजे हैं, लेकिन सर्दियों के 8 चाय पीने को नहीं खाना खाने को कहते हैं, लेकिन मुझे खाना नहीं खाना. बस, तुम से एक बात कहनी है.’’

‘‘क्या?’’ मैं ने लापरवाही से पूछा, तो उस ने कहा, ‘‘क्या तुम 20 मिनट के लिए मुझे अकेला छोड़ सकते हो?’’

‘‘ठीक है, मैं जा रहा हूं,’’ उस के सवाल के जवाब में मैं ने बस इतना ही कहा था.

20 मिनट बाद दरवाजा खोल कर उस ने खुद ही मुझे अंदर आने के लिए कहा, तो मैं धीरेधीरे अंदर आ गया. अंदर पहुंच कर मैं ने जो देखा, बस देखता ही रह गया. साड़ी पहन कर गुंजन दुलहन का पूरा शृंगार किए घूंघट में खड़ी थी. मुझ से जब रहा न गया, तो मैं ने घूंघट उठा कर देखा. वह बिलकुल सुहागरात में सजी दुलहन लग रही थी.

मुझे देख कर वह नजरें नीची कर के बोली, ‘‘किशन, मैं तुम्हारी दुलहन बनना चाहती हूं. क्या तुम मेरी मांग में यह सिंदूर सजाओगे?’’ इतना कह कर उस ने सिंदूर की डब्बी मेरी तरफ बढ़ाई.

मैं ने तुरंत उस के हाथ से वह डब्बी ले ली और सिंदूर निकाल कर कहा, ‘‘मैं तुम्हें अपनी दुलहन स्वीकार करता हूं,’’ और फिर इतना कह कर मैं ने उस की मांग सजा दी.

फिर हम ने पूरी रात सुहागरात मनाई थी. उस के गदराए बदन को मैं ने जी भर कर भोगा था. उस के सीने की गोलाइयां, उस के होंठ, उस का सारा बदन मैं ने चुंबनों से गीला कर दिया था. वह मुझ से इस तरह लिपट जाती थी, जैसे कोई तड़पती हुई मछली पानी की धार से लिपटती है. हम ने उस रात शायद अपनी पूरी जिंदगी जी ली थी. लेकिन चूंकि हमें सुबह 5 बजे निकलना भी था, इसलिए मन को मार कर पहले तैयार हुए, फिर कमरे से निकल गए. मैं उसे उस के गांव तक छोड़ने जाना चाहता था, लेकिन उस की जिद के आगे मैं हार गया और उसे उस के गांव से कुछ किलोमीटर पहले ही छोड़ कर वापस आ गया.

तब से ले कर आज तक मैं उस से बात करने को तरसता हूं. मैं जब भी फोन लगाता हूं, मुझे कोई जवाब नहीं मिलता. मैं ने तमाम मैसेज कर डाले, लेकिन वह नहीं पसीजी.

मैं आज भी गुंजन की याद में तड़पता रहता हूं. उसे अपनी तड़प, अपनी बेताबी मैं किसी भी कीमत पर बताना चाहता हूं. यही वजह है कि आज मैं ने ये सारी बातें आप को भी बताई हैं, ताकि अगर गुंजन इसे पढ़ लेगी तो शायद मुझ पर तरस खा कर मेरे ख्वाबों की दुनिया में फिर से मेरी दुलहन बन कर आ जाएगी.

मेरी उस चिट्ठी का अगला हिस्सा कुछ यों था:

‘गुंजन, तुम कैसी हो. बस, मैं यही पूछना चाहता हूं. अपनी तड़प, अपनी तकलीफ तुम से नहीं कहूंगा. बस, मुझे तुम कैसी हो, कहां हो, यही जानना है. और अगर कुछ और जानना है, तो वह बस यह कि गुंजन क्या सच में अब तुम मुझे प्यार नहीं करती? लेकिन याद रखना. अगर उस का जवाब ‘न’ हो, तो भी मुझे न बताना, क्योंकि मैं तब जिंदा नहीं रह पाऊंगा. मैं तो बस यों ही तुम्हारी यादों में जीना चाहता हूं.

‘आई लव यू गुंजन, अपना खयाल रखना.

‘तुम्हारा, किशन.’

हार : अंधी मुहब्बत का घिनौना नतीजा

जारा की उम्र उस समय महज 16 साल की थी, जब उसे अहमद से प्यार हो गया था. अहमद कोई और नही, बल्कि उस की फूफी का लड़का था और वह अकसर जारा के घर आताजाता रहता था.

अहमद एक अमीर बाप की औलाद था. उन की एक आलीशान कोठी और कपड़ों का एक बड़ा कारखाना था. इस के साथसाथ अहमद देखने में भी काफी हैंडसम था. यही वजह थी कि जारा की अम्मी बचपन से ही उस के सामने अपने शौहर से कहती रहती थीं कि हम जारा की शादी अहमद से करेंगे.

उन की ये बातें सुन कर जारा का दिल भी अहमद के लिए मचलने लगा और वह अंदर ही अंदर उस की दीवानी बन गई.

अहमद भी उस की तरफ खिंचने लगा था. वह उसे पाने के लिए बेकरार रहने लगा था. रहता भी क्यों नहीं, जारा थी ही ऐसी बला की खूबसूरत. बड़ीबड़ी आंखें, गुलाबी होंठ, सुर्ख गाल और काले घने लंबे बाल उस की खूबसूरती में चार चांद लगा देते थे.

एक दिन जारा के घर में उस के सिवा कोई न था और अचनाक अहमद आ गया. अहमद जैसे ही घर के अंदर आया, जारा ने उसे अपनी बांहों में भर लिया. अहमद ने भी उसे अपने आगोश में ले लिया और दोनों यों ही एकदूसरे की बांहों में पड़े रहे.

अब जब भी अहमद को मौका मिलता, वह जारा से मिलने आ जाता. दोनों साथ जीनेमरने की कसम खाते और एकदूसरे से मिल कर बहुत खुश होते, पर अहमद को क्या पता था कि उस के प्यार से अनजान उस के घर वालों को जब जारा के बारे में पता चलेगा, तो घर में भूचाल आ जाएगा.

दरअसल, जारा के अब्बा एक दिन अहमद के अब्बा से 5 लाख रुपए एक महीने के लिए उधार ले कर गए थे, पर आज उन्हें इन रुपयों को लिए हुए 4 साल हो गए थे.

अहमद के अब्बा जब भी जारा के अब्बा से अपने पैसे मांगते थे, वे कोई न कोई बहाना बना लेते थे, जिस की वजह से उन दोनों में अनबन चल रही थी.

जारा के अब्बा कुछ दिन पहले ही अहमद के अब्बा से मिलने गए थे कि तभी अहमद के अब्बा ने उन से अपने पैसे का तकादा किया, तो जारा के अब्बा फौरन भड़क गए और बोले, ‘‘मैं तुम्हारे पैसे ले कर कोई भाग थोड़ा ही रहा हूं. जब मेरे पास होंगे दे दूंगा. तुम ने पैसे क्या दिए, मेरा जीना हराम कर दिया. जब भी मिलते हो, पैसों का तकादा करते हो.’’

अहमद के अब्बा को जारा के अब्बा के ये अल्फाज बहुत बुरे लगे और उन्होंने उन से हर तरह के ताल्लुकात तोड़ दिए. उन से साफ कह दिया, ‘‘न मुझे पैसा चाहिए और न तुम जैसा बदतमीज रिश्तेदार.’’

जारा के अब्बा घर आ गए और उन्होंने सारी बात अपनी बीवी को बताई. उस ने भी जारा के अब्बा से यह नहीं कहा कि जब तुम्हारे पास पैसे हैं तो दे क्यों नहीं देते. अभी तो बाग बेचा है. उस के काफी पैसे मिले हैं.

जारा की अम्मी ने अपने शौहर को समझाने के बजाय अहमद के अब्बा को बुराभला कहा.

अब दोनों परिवारों का एकदूसरे के घर आनाजाना बंद हो गया. जारा और अहमद एकदूसरे से मिलने के लिए बेकरार रहने लगे. उन दोनों की समझ में नहीं आ रहा था कि वे कैसे एकदूसरे से मिलें.

जब जारा को इस बात का पता चला, तो उस ने अपने अब्बा से कहा, ‘‘अब्बा, उन के पैसे दे दो. काफी टाइम हो गया है और आप के पास पैसे हैं भी…’’

यह सुनते ही जारा के अब्बा आगबबूला हो गए और जारा को बुराभला कहने लगे. साथ में जारा की अम्मी भी उसे डांटने लगी, ‘‘तू कौन होती है हमें नसीहत करने वाली?’’

जारा चुपचाप एक कोने में बैठ कर रोने लगी. उसे साफ नजर आ रहा था कि अब उस का अहमद से मिलना नामुमकिन है.

वे दोनों एकदूसरे के लिए तड़पते रहे कि तभी अहमद जारा की दादी और चाचा के घर आ गया जो अहमद के भी मामू और नानी लगते थे. अहमद और जारा के प्यार से वे अनजान थे. अहमद ने हिम्मत कर के जारा की दादी को सब बता दिया और उन से कहा कि किसी तरह उन दोनों की शादी करवा दो.

दादी ने किसी को भेज कर जारा को अपने घर बुला लिया और उस से मालूम किया तो जारा ने हां कर दी. दादी ने यह रिश्ता कराने का बीड़ा उठाया.

अब जारा और अहमद को जब भी मौका मिलता, दोनों दादी की मदद से वहीं मिलते और अपनी शादी के सपने देखते हुए एकदूसरे को अपनी बांहों में भर कर खूब प्यार करते. अब जारा की उम्र भी 18 साल की हो गई थी.

जब जारा की दादी ने उस के अब्बू से अहमद और जारा की शादी की बात की और उन के प्यार के बारे में उन्हें बताया तो उन्हें गुस्सा आ गया, क्योंकि अहमद के अब्बा से उन की बोलचाल बंद थी, पर जब जारा की अम्मी ने उन्हें समझाया कि लड़का अच्छा है, घरबार भी अच्छा है, अपनी लड़की वहां जा कर राज करेगी तो उन के दिमाग में बात आ गई और वे इस शादी के लिए राजी हो गए और अगले ही दिन अहमद के अब्बा के पास जारा का रिश्ता ले कर पहुंच गए.

उन्होंने जैसे ही अहमद और जारा के प्यार के बारे में उन्हें बताया, तो वे गुस्सा हो गए और साफसाफ कह दिया, ‘‘मेरे जीतेजी तुम्हारी बेटी इस घर में कदम भी नहीं रख सकती.’’

जारा के अम्मीअब्बू वहां से चुपचाप आ गए और अब्बू ने जारा को सख्त हिदायत दे दी, ‘‘आज के बाद अहमद से मिलने की कोशिश मत करना और उसे अपनी जिंदगी से निकाल दे. उस के अब्बा ने तुम्हें अपनी बहू बनाने से साफ मना कर दिया.’’

जारा ने जब यह सुना, तो उस ने तपाक से बोल दिया, ‘‘यह सब तुम्हारी गलती से हुआ है. अगर तुम उन के पैसे दे देते, तो आज हमारा प्यार तुम्हारे पैसे और नफरत की भेंट न चढ़ता.’’

यह सुनते ही जारा के अब्बू आगबबूला हो गए और तपाक से उसे एक थप्पड़ रसीद कर दिया. जारा रोते हुए अपने कमरे में चली गई.

उधर अहमद को जब इस बात का पता चला, तो उस ने अपने अब्बा से साफ बोल दिया कि वह शादी करेगा तो सिर्फ जारा से, भले ही उस के लिए यह घर क्यों न छोड़ना पड़े.

अहमद और जारा दोनों किसी भी कीमत पर एकदूसरे से अलग नहीं होना चाहते थे. वे दोनों एकदूसरे से मिलने के लिए मौके की तलाश में लगे हुए थे.

कुछ दिन बाद जारा की दादी की मदद से दोनों एकदूसरे से मिल गए और मौका देख कर अहमद जारा को अपने साथ कहीं ले गया. इस बात का सिर्फ जारा की दादी को पता था कि वे दोनों कहां गए हैं.

जारा के अम्मीअब्बू को जब जारा के घर से भागने का पता चला तो उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ, पर वे कर भी क्या सकते थे. उधर अहमद के अब्बा शादी के लिए किसी भी कीमत पर तैयार न थे.

जारा के अब्बा ने अहमद के बड़े भाई और बहनोई से बात की और उन दोनों का घर से यों गायब होने के बारे में बताया और कहा, ‘‘अगर इन की शादी नहीं की गई, तो हमारी कितनी बदनामी होगी. कैसे भी कर के इन दोनों को बुला कर इन का निकाह कर दिया जाए.’’

जारा की दादी से मिल कर अहमद के बहनोई और भाई ने बात की और उन दोनों को बुला कर निकाह करा दिया.

अहमद निकाह कर के जारा को अपने बहनोई के ही घर पर ले गया. उस के बहनोई और भाई ने अहमद को समझाया कि जब तक अब्बा नहीं मान जाते, तुम यहीं रहो.

अहमद कुछ दिन जारा के साथ अपने बहनोई के घर पर ही रहा, फिर अपने भाई और बहनोई से पैसे ले कर जारा को घुमाने मुंबई ले गया और वहीं अपने एक दोस्त की मदद से एक कमरा किराए पर ले लिया और रोजगार के लिए खुद टैक्सी चलाने लगा.

इस तरह जारा और अहमद पुणे में ही रहने लगे. दोनों कुछ महीने तक तो बड़े प्यार से रह रहे थे, पर समय के साथसाथ कमाई कम और खर्चा ज्यादा होने से उन में छोटीछोटी बातों पर झगड़ा होने लगा.

अहमद के दोस्त उस के घर पर आने लगे, वहीं महफिल जमने लगी. कभी बिरयानी तो कभी पुलाव की दावत होने लगी. अहमद जो भी कमाता, उसे अपने यारदोस्तों पर लुटा देता. जारा उसे रोकने की कोशिश करती, तो वह उस के साथ मारपीट करने पर उतारू हो जाता.

अहमद ने अब कामधंधा छोड़ दिया. वह हर समय दोस्तों के साथ ताश खेलता रहता, गपशप करता रहता. घर में खाने के लाले पड़ने लगे. वह खुद तो दोस्तों के साथ बाहर खाना खा आता था, पर जारा भूखी रहती. उसे उस की कोई परवाह न थी. अहमद अब कभीकभार शराब भी पी कर आने लगा.

एक दिन जब जारा ने उसे रोकने की कोशिश की, तो उस ने उसे भद्दीभद्दी गालियां देनी शुरू कर दीं. जारा के सारे सपने चकनाचूर हो कर रह गए.

एक दिन अहमद अपने दोस्तों के साथ घर पर ही शराब पी रहा था, तभी उस के एक दोस्त ने कहा, ‘‘यार, भूख लगी है. आज भाभी के हाथ की बिरयानी खिलवा दो, तो मजा आ जाए.’’

अहमद ने जारा को बिरयानी बनाने को कहा, पर वह झुंझला कर बोली, ‘‘बिरयानी कहां से बनाऊं… घर में कुछ है ही नहीं. दिनभर तो तुम अपने इन आवारा दोस्तों के साथ गपशप लड़ाने, शराब पीने में गुजार देते हो, कामधंधा कुछ करते नहीं और फरमाइश राजामहाराजा की तरह करते हो.’’

इतना सुनते ही अहमद भड़क गया और चिल्लाया, ‘‘मैं किसी महाराजा से कम नहीं था. जब से तू मेरी जिंदगी में आई है, मेरी यह हालत हो गई है. तेरी वजह से मेरे बाप ने मुझे घर से निकाल दिया…’’

इस के बाद अहमद ने अपने दोस्तों के सामने ही जारा की जम कर पिटाई की.

जारा से अब बरदाश्त करना मुश्किल हो गया था. उस ने अपने घर जाने का इरादा कर लिया और अहमद से कहा, ‘‘मुझे मेरे घर छोड़ दो.’’

अहमद जारा को उस के गांव के बाहर ही छोड़ कर अपने अब्बा के पास चला गया. जारा रोते हुए अपने घर पहुंची और अपने अम्मीअब्बा को सब हालात से वाकिफ किया.

उस के अब्बा ने समझाते हुए कहा, ‘‘कुछ दिन रुको. उस का गुस्सा भी शांत हो जाएगा और उसे अपनी गलती का भी अहसास होगा, तब वह तुम्हें लेने जरूर आएगा.’’

इस तरह कई महीने गुजर गए, लेकिन अहमद जारा को लेने नहीं आया. जारा अहमद के प्यार में इतनी पागल थी कि वह अभी भी उस का इंतजार कर रही थी और उस के बिछड़ने के गम में खानापीना भी कम कर दिया था.

बड़ी मुश्किल से जब जारा की अम्मी उसे खाना खिलाती तो वह बस इतना ही खाती जितना जीने के लिए जरूरी होता और हर समय गुमसुम रहती.

जारा के अम्मीअब्बू से उस की यह हालत देखी नहीं गई और वे जारा को ले कर अहमद के घर पहुंच गए, पर अहमद के अब्बू ने उन्हें वहीं रोक दिया और अहमद को आवाज लगाई, ‘‘यह लड़की कौन है?’’

अहमद ने जवाब दिया, ‘‘मेरी बीवी जारा है, जो मेरे दोस्तों के बिस्तर गरम करती थी. यह बदचलन है और मेरा इस से अब कोई रिश्ता नहीं. मैं इसे आप सब के सामने तलाक देता हूं… तलाक… तलाक… तलाक…’’

जारा अहमद के ये अल्फाज सुन कर हैरान रह गई. अम्मीअब्बा उसे अपने घर ले आए. जारा की हालत ऐसी हो गई जैसे वह कोई जिंदा लाश हो. उसे अहमद से ऐसी उम्मीद न थी. जो जिंदगीभर साथ जीनेमरने की कसमें खाता था, वह इतना घटिया इनसान निकलेगा, उस ने सपने में भी नहीं सोचा था.

जारा सोच रही थी, ‘मैं दुनिया की सब से बदनसीब इनसान हूं, जो मेरा प्यार जीत कर भी हार गया. मैं ने अहमद की खातिर अपने मांबाप से बगावत की, अपने प्यार की जीत की खातिर, अपने मांबाप को समाज में बेइज्जत कर के अहमद के साथ घर छोड़ कर भागी.

‘लेकिन अफसोस, हमारा प्यार जीत कर भी हार गया, इसलिए प्यार में जीत कर भी मेरी हार हो गई. क्या यही थी मेरी हार, मेरे प्यार की हार?’

 

दिन के सपने : क्या था रेशमा का राज?

शहर की भागदौड़ भरी जिंदगी से कुछ वक्त निकाल कर कुदरती नजारों में समय बिताना किसे अच्छा नहीं लगता है. शायद इसी वजह से सुनंदा को जैसे ही पता चला कि वीरेश हनीमून के सिलसिले में दार्जिलिंग जाने के लिए दफ्तर में छुट्टी की अर्जी दे कर घर लौटा है, तो वह खुशी से झूम उठी.

दार्जिलिंग शहर से दूर एक छोटी सी जगह चटकपुर के बारे में वीरेश को किसी से जानकारी मिली थी, तभी से वह उसी जगह को देखना अपनी पहली पसंद बना बैठा था.

दार्जिलिंग शहर से ही तकरीबन 28 किलोमीटर दूर चटकपुर समुद्रतल से 7810 फुट की ऊंचाई पर बसा है. छोटी जगह होते हुए भी यह सैलानियों के लिए बेहद सुकून भरा है. आसमान छूते ऊंचेऊंचे पेड़ों के साए में खिले रंगबिरंगे फूल देखते ही बनते हैं.

शायद इसी माहौल के चलते चटकपुर वीरेश की पहली पसंद था. हिमालय के घने जंगल के रास्ते वे कब और कैसे चटकपुर पहुंच गए, पता ही नहीं चला.

उस दिन दार्जिंलिंग का मौसम कुछ ज्यादा ही सुकून भरा था. कंचनजंघा को छूती ठंडी हवा बदन में अजीब सा जोश जगा रही थी. देखते ही देखते उन्हें चटकपुर के रंगबिरंगे फूलपौधों से घिरे मकान दिखने लगे.

गाड़ी ज्यों ही नरबू शेरपा के होम स्टे के सामने आ कर रुकी, ताजा हवा का एक झोंका आ कर रास्ते की उन की सारी थकान मिटा गया.

नरबू शेरपा का होम स्टे क्या था, जैसे कश्मीर की डल झील में तैरता कोई शिकारा. कमरे के अंदर का साजोसामान किसी स्वप्नपुरी का सा नजारा पेश कर रहा था. शहर के पांचसितारा होटलों की मौडर्न सुविधाओं को झुठलाती इस छोटी सी जगह में नरबू शेरपा का होम स्टे बड़ा शानदार था.

सैलानियों के लिए बने कमरों के सामने नरबू व उस की पत्नी समीरन का निजी घर था. उस से लगे आधुनिक उपकरणों से लैस रसोईघर से उठती खुशबू भूख की ज्वाला में घी का काम कर रही थी. लेकिन नरबू शेरपा के कमरे की खिड़की पर खड़ी वह लड़की कौन थी, जिस से नजर मिलते ही वीरेश अपनी सुधबुध खो बैठा था?

क्या कोई लड़की इतनी खूबसूरत भी हो सकती है, जिसे देखने के बाद किसी और को देखने की इच्छा ही खत्म हो जाए?

वह हसीना वीरेश से आंखें चार होते ही खिड़की का परदा खींच कर पीछे हट गई थी. सुनंदा के साथ हनीमून मनाने आए वीरेश को लगा कि अब हनीमून में क्या रखा है.

सुनंदा को पीछे छोड़ वीरेश अचानक नरबू के सामने आ खड़ा हुआ था.

‘‘नरबूजी, आप और आप की पत्नी यहां का सारा कारोबार कैसे संभालते हो? मैं किसी दूसरे को तो यहां नहीं देख रहा हूं,’’ वीरेश ने इसी बहाने उस लड़की के बारे में जानना चाहा.

‘‘है न रेशमा… आप यहां जोकुछ देख रहे हैं, सब रेशमा की वजह से है. उस के यहां आते ही हमारी किस्मत खुल गई है. हमारा कारोबार भी चल निकला है.’’

‘रेशमा…’ यह लफ्ज कानों में रस सा घोलता वीरेश के दिल में उतर गया था.

‘‘आप की बेटी रेशमा क्या पहले कहीं और रहती थी?’’ वीरेश की उत्सुकता बढ़ गई थी.

‘‘रेशमा हमारी बेटी नहीं है साहब. वह हमारी जिंदगी में अचानक ही आई थी. कभी हमारा कश्मीर में होम स्टे का छोटामोटा कारोबार था. अनाथालय में पलीबढ़ी रेशमा के गीत सुनने के लिए वहां आए सैलानी उस की ओर खिंचे चले आते थे.

‘‘जब वह कुछ बड़ी हुई, तो हम कानूनी तौर पर अनाथालय से उसे अपनी बेटी बना कर ले आए. गीतसंगीत का शौक उसे बचपन से ही था. जैसेजैसे वह सयानी हुई, उस की गायकी में निखार आता गया. रात में जब वह गाती थी, तो घाटी में एक अलग ही समां बंध जाता था.

‘‘लेकिन हमें ऐसे बुरे दिनों का सामना करना पड़ेगा, हम ने कभी नहीं सोचा था. दरअसल, दूर कहीं से आए एक सैलानी को रेशमा से प्यार हो गया और वह प्यार कुछ ऐसा परवान चढ़ा कि वह सैलानी अपना सबकुछ छोड़ कर कश्मीर का ही हो कर रह गया.

‘‘उन्हीं दिनों बादल फटने के बाद आसपास की चट्टानें सैलाब की तेज धारा के साथ हम पर मौत बन कर घाटी में उतर आईं. फिर पलक झपकते ही तेज धार में हमारा सबकुछ बह गया.

‘‘हम ने रेशमा को तो बचा लिया, लेकिन वह सैलानी बह गया. फिर उस का कहीं पता नहीं चला.

‘‘अपने प्रेमी से जुदा हो कर रेशमा भी वादी में गुम हो जाती, अगर उसे हमारा सहारा न मिलता. फिर हम कश्मीर से यहां चले आए और नए सिरे से इस होम स्टे को बनाया.

‘‘रेशमा के करिश्मे के चलते हम चंद सालों में फिर से उठ खड़े हुए. लेकिन सबकुछ ठीक होते हुए भी रेशमा खोईखोई सी रहने लगी. वह घर से जबतब निकल जाती. रात में उस के दर्दभरे गीत सुन कर लोग दुखी हो जाते.

नरबू की बातों के बीच वीरेश का ध्यान बारबार रेशमा की ओर खिंच जाता. सुनंदा से जब न रहा गया, तो वह वीरेश को खींच कर अंदर ले गई.

हनीमून मनाने आए उन दोनों के लिए वह होम स्टे बेचैनी का सबब बन गया था. देर रात तक सुनंदा वीरेश के आगोश में पड़ेपड़े जब ऊब गई, तो बोल उठी, ‘‘कमरे में मुझे अकेली छोड़ कर बारबार आंगन में जा कर खड़े होने की तुम्हारी वजह मैं समझती हूं. जिस ने तुम्हें बेचैन कर रखा है, उसे मैं ने भी देखा है. सपने देखना बंद करो वीरेश. तुम्हारी इच्छा की इज्जत करते हुए मैं ने अपना सबकुछ तुम्हें सौंप दिया. किसी एक का हो कर रहना ही मर्दानगी है.’’

लेकिन उस रात सुनंदा की आंखों में आए आंसुओं को तरजीह न दे कर वीरेश करवट बदल कर सो गया.

वीरेश के लिए वह न भूलने वाली रात थी. उस ने जोकुछ देखा, वह सच था या सपना, उस की समझ में नहीं आया. उस ने देखा कि रेशमा अचानक अपने कमरे से बाहर निकल आई. सफेद रंग की सलवारकमीज और काला दुपट्टा उस के गोरे बदन में तिलिस्म सा पैदा कर रहा था. आंगन में खिले बेला के फूल को अपने जूड़े में लगा कर वह कोई गीत गुनगुना रही थी. उसे आंगन में अकेला देख वीरेश काम वासना की आग में जल उठा था.

सुनंदा गहरी नींद में थी. उसे उसी हाल में छोड़ रेशमा को बांहों में भर लेने को वीरेश मचल उठा.

देखते ही देखते रेशमा गुनगुनाते हुए घर से बाहर निकल गई थी. वीरेश यह सोच कर हैरान था कि बला की इस खूबसूरत लड़की को नरबू ने अपने घर के पिंजरे में कैद कैसे कर रखा है?

वीरेश रेशमा के पीछेपीछे मशीन की तरह बाहर निकल आया था. देखते ही देखते रेशमा वीरेश की आंखों से ओ झल हो गई थी. अब उसे रेशमा के गीत की आवाज दूर से आती सुनाई दे रही थी. उस की समझ में नहीं आया कि इतनी जल्दी वह पथरीले, टेढ़ेमेढ़े रास्ते से टीले पर कैसे पहुंच गई.

हार कर वीरेश कमरे में सुनंदा के पास आ कर सो गया था.

सुबह वीरेश की अलसाई आंखें रेशमा को ही ढूंढ़ रही थीं. उस ने देखा कि नरबू उस के साथ वाले कमरे को संवारने में मसरूफ था. शायद किसी नए सैलानी के आने की बात थी.

दार्जिलिंग का मौसम उस दिन सुबह से ही खुशनुमा था. शाम होते ही एक नौजवान अपनी गाड़ी से जैसे ही होम स्टे में दाखिल हुआ, नरबू ने सलामी बजाते हुए उस का कमरा खोल दिया.

शाम होते ही वीरेश का कमरा चांदनी रात की शीतल रोशनी से जगमगा उठा था. वीरेश व सुनंदा को अपने कमरे से बाहर बरामदे में बैठ कर बातें करता देख वह नौजवान उन की ओर बढ़ आया था.

वीरेश से हाथ मिलाते हुए उस ने कहा, ‘‘मैं अभिजीत… कर्नाटक से. आप लोग शायद कोलकाता से हैं. कैसा लग रहा है यहां?’’

‘‘गनीमत है कि कुदरत से छेड़छाड़ करने वालों की बुरी नजर से महफूज है यह जगह. लेकिन आप अकेले…? कोई संगीसाथी नहीं मिला क्या?’’ वीरेश ने अभिजीत से पूछा.

‘‘हैं न आप लोग. वैसे, इस माहौल में फलफूल रहे विभिन्न प्रजाति के फूलपौधे, पेड़ व जीवजंतु खासकर चाय की पैदावार से जुड़ी यहां की मिट्टी की क्वालिटी की स्टडी के लिए सरकार ने मु झे यहां भेजा है,’’ अभिजीत ने बताया.

इन बातों के बीच नरबू गरमागरम कौफी दे गया. वहां वीरेश के साथ बैठी सुनंदा का दिल कहीं, नजरें और कहीं थीं. उस ने मन ही मन कहा, ‘इस आफत को मिट्टी की जांच के लिए कोई और जगह नहीं मिली…’ फिर सोचा, ‘इस हैंडसम के दिल में क्या चल रहा है कौन जाने.’

जो भी हो, अभिजीत की शख्सीयत काबिलेतारीफ थी, जिस से सुनंदा भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकी. हालांकि सच तो यह था कि जैसे रेशमा को देख कर वीरेश सुनंदा को भूल बैठा था, कुछ देर के लिए ही सही अभिजीत को देख कर सुनंदा भी वीरेश को भूल गई थी.

उस दिन रेशमा किसी काम से शहर गई थी. उसे आतेआते शाम गहरा गई थी. होम स्टे के अहाते में खड़ी गाड़ी किसी नए सैलानी के आने का संकेत था. रेशमा आतेजाते सैलानियों की खोजखबर कम ही रखती थी. वह शहर से आते ही अपने कमरे में चली गई थी.

रात गहराने लगी थी. बाहर पेड़पौधे शबनमी चांदनी में नहा रहे थे. आंगन में खिले फूल कुछ ज्यादा ही निखरेनिखरे से लग रहे थे.

अभिजीत आंगन में खड़ा हुआ था. खिड़की खोलते ही रेशमा की नजर अभिजीत पर पड़ी, वह सन्न रह गई. उस नीम अंधेरे में भी वह कश्मीर के अपने बिछड़े पे्रमी को पहचान गई. यकीनन, वह अभिजीत ही है.

यह जान कर रेशमा झट से खिड़की बंद कर बिस्तर पर आ बैठी. उस की सांसें तेजतेज चल रही थीं. उधर अभिजीत को सिर्फ इतना लगा कि कोई उसे देख कर पीछे हट गया है.

अभिजीत को आंगन में खड़ा देख वीरेश कुछ सोच ही रहा था कि सुनंदा पीछे से बोल उठी, ‘‘खिड़की बंद करो. मुझे ठंड लग रही है. खिड़की न हुई, मेरी सौत हो गई.’’

‘औरतों में छठी इंद्री कितनी तेज होती है,’ इतना सोच कर वीरेश मुसकरा उठा था.

आंगन में खड़ा अभिजीत अपने कमरे में जाने की बात सोच ही रहा था कि आंखों को चकाचौंध कर देने वाले कपड़ों में किसी लड़की को दुपट्टे में अपना चेहरा छिपाए तेज कदमों से बाहर जाते देख उस के पैर रुक गए थे. उस ने सोचा कि होम स्टे में उस ने तो सिर्फ

2 ही उम्रदराज लोगों को देखा था, फिर यहां जवान खूबसूरत लड़की कैसे? रात में वह अकेली निकल कर गई कहां?

अभिजीत की इच्छा हुई कि वह उस का पीछा करे, लेकिन उसे यह ठीक नहीं लगा. फिर भी वह बाहर निकला. लड़की को मदमस्त चाल से घाटी के टेढ़ेमेढे़ रास्ते से हो कर जाते हुए देर तक वह देखता रहा, फिर वह उस की आंखों से ओझल हो गई.

अभिजीत अपने दिल की उत्सुकता दबाए लौटना चाह रहा था कि रात की चुप्पी को भंग करता किसी औरत के गले का सुमधुर गीत सुन कर वह ठिठक सा गया था. गीत की लाइनें उसे साफ सुनाई पड़ रही थीं:

‘ऐ सनम… तुझ से मैं दूर चला जाऊंगा, याद रखना कि तु झे याद बहुत आऊंगा…’

गीत सुनते ही अभिजीत मन ही मन बोल उठा, ‘अभीअभी जो लड़की मेरी आंखों के सामने से गुजरी है, कहीं वह रेशमा तो नहीं… लेकिन इतने सालों बाद वह इस होम स्टे में कैसे?’

इस के बाद अभिजीत के पैरों में जैसे पंख लग गए हों. आवाज का पीछा करता वह दौड़ पड़ा था.

वह चिल्ला उठा, ‘‘रेशमा… रेशमा, तुम कहां हो…?’’

दूर ऊंचे टीले पर मदमाती चांदनी में खड़ी रेशमा बांहें फैलाए बिछड़े प्रेमी को अपनी बांहों में भर लेने को बेचैन वही दर्दभरा गीत दोहरा रही थी.

पास पहुंचते ही ‘रेशमा… मेरी रेशमा’ कहते हुए अभिजीत उस की बांहों में समा गया था. फिर दोनों ऐसे गले लग गए, जैसे दो बदन एक जान हों.

‘‘रेशमा, इतने साल बाद तुम मुझे यहां मिलोगी, यह कितने हैरत की बात है. लेकिन तुम यहां कैसे रेशमा? मैं तो अपने काम से यहां आया था, लेकिन तुम्हें यहां कौन छोड़ गया?’’

अभिजीत दोनों हाथों से रेशमा का चेहरा थामे उस की आंखों में आए खुशी के आंसुओं के अक्स में अपने अतीत की उभरती यादों में डूब गया था.

‘‘अभिजीत, ये बातें फिर कभी. अगर रातोंरात हम यहां से भाग नहीं निकले, तो होम स्टे वाले हमें कभी जाने नहीं देंगे. उन्हें शक है कि मेरे जाते ही उन का कारोबार चौपट हो जाएगा. उन से ज्यादा डर तो मुझे कमरे में ठहरे बाबू से लगता है. अपनी खूबसूरत पत्नी के रहते वह आंगन में खड़ा अजीब नजरों से मु झे घूरता रहता है. मुझे डर है कि मेरे लिए वह अपनी पत्नी की हत्या भी कर सकता है.’’

यह बताते हुए रेशमा सहम गई.

‘‘अब तुम मेरे साथ हो रेशमा. दुनिया तुम्हें मुझ से अलग नहीं कर सकती,’’ अभिजीत बोल उठा.

अभी सुबह का उजाला फैला भी न था कि अभिजीत रेशमा को ले कर वहां से चला गया.

सुबह होते ही होम स्टे में अफरातफरी मच गई थी. सभी हैरानी से एकदूसरे का मुंह ताक रहे थे.

नरबू शेरपा अपनी पत्नी समीरन के साथ मुंह लटकाए बैठा था. वीरेश को लग रहा था, मानो किसी ने रातोंरात उस का सबकुछ लूट लिया हो.

सुनंदा बड़े अरमान से हनीमून मनाने आई थी, लेकिन वीरेश की नजर रेशमा से क्या मिली, वह रातदिन उस की एक झलक पाने के लिए खिड़की पर आंखें गड़ाए रहता. वह सुनंदा को कमरे में अकेला छोड़ जबतब आंगन में आ खड़ा होता.

कर्नाटक से आया अभिजीत रेशमा को ले उड़ा है, यह जान कर सुनंदा की खुशी का ठिकाना नहीं था. वीरेश किसी हारे हुए सिपाही की तरह सुनंदा के आगे हथियार डाल चुका था.

जब रेशमा अपने बिछड़े साथी के साथ हमेशा के लिए वीरेश की आंखों से दूर चली गई, तो उसे हनीमून की याद आई.

दिनभर के हंगामे के बाद जब होम स्टे में आखिरी रात बिताने की बारी आई, तो वीरेश ने जैसे ही सुनंदा को अपनी बांहों में भरना चाहा, वह खुद को उस की पकड़ से छुड़ाते हुए बिफर उठी, ‘‘वीरेश, यह होम स्टे है, अपना घर नहीं. कल तक जिस की चाहत में तुम मु झे पहचानने से भी इनकार कर रहे थे, आज एकाएक मेरे प्रति इतनी हमदर्दी कैसे?

‘‘जिस तरह रेशमा को देखते ही तुम अपनी ब्याहता खूबसूरत बीवी को भूल बैठे थे, मुझे भी तुम से ज्यादा स्मार्ट अभिजीत को देख कर कुछ ऐसा ही लगा था.

‘‘कितना अच्छा होता, अगर रेशमा की जगह अभिजीत मुझे भगा ले जाता और रेशमा तुम जैसे मतलबी यार को दुत्कार देती.’’

हवस : कैसे इस आग ने उसे जला दिया

कार्तिक पूरी तरह से टूट चुका था. हवस की आग ने उसे जला दिया था. अब उस की जिंदगी के अगले कई साल जेल की सलाखों के पीछे गुजरेंगे. हवस की इस आग में उस के सपने, मांबाप के अरमान सब भस्म हो गए. उस का दिल बारबार बस यही सोचता कि काश, वह अपने मन को हवस के दलदल में न फंसने देता और अपनी पढ़ाईलिखाई पर ध्यान देता…

6 महीने पहले की ही तो बात है. कल्पना गुमला से रांची आई थी. कार्तिक की उस से कालेज में जानपहचान हुई थी जो धीरेधीरे दोस्ती में बदल गई थी.

कार्तिक कल्पना के साथ कभी फिल्म देखने जाता तो कभी पार्क में घूमने. कल्पना हर बात में, हर काम में उस का साथ देती थी.

गांव से आई कल्पना भोलीभाली लड़की थी. कार्तिक उस की हर इच्छा पूरी करता था. मोटरसाइकिल से घुमाना, सिनेमा दिखाना, होटल में खिलाना, गिफ्ट देना सबकुछ, पर उस के मन में कभी भी कल्पना के प्रति प्यार नहीं था. वह तो उस के गदराए बदन का मजा लेना चाहता था. पर शायद कल्पना इसे प्यार समझने लगी थी.

जब कार्तिक को लगा कि कल्पना उस के प्रेमजाल में फंस चुकी है तो उस ने धीरेधीरे अपने पर फैलाने शुरू किए. पहले हाथों से छूना, फिर चूमना, गले लगाना और धीरेधीरे सबकुछ. यहां तक कि पार्क के कोने में उस ने कल्पना के साथ हर तरह का शारीरिक सुख भोग लिया था. इसी तरह कभी सिनेमाघर में, तो कभी किसी होटल में वह अपनी ख्वाहिश को पूरा करता रहता था.

कार्तिक कल्पना के शरीर के बदले उस पर खर्च करता था और उस की नजर में हिसाब बराबर हो रहा था. पर कल्पना की बात अलग थी. वह कार्तिक को अपना प्रेमी मानती थी और उस से शादी करना चाहती थी.

एक बार कल्पना को महसूस हुआ कि कार्तिक के साथ जिस्मानी रिश्ता बनाने से वह पेट से हो गई है. उस ने उसे बताया था, ‘कार्तिक, मैं तुम्हारे बच्चे की मां बनने वाली हूं.’

यह सुन कर कार्तिक चौंका था, पर जल्दी ही सहज हो कर उस ने कहा था, ‘अभी हम दोनों को पढ़ाई पूरी करनी है. किसी लेडी डाक्टर से मिल कर इस समस्या से छुटकारा पा लेते हैं.’

‘मुझे कोई एतराज नहीं, पर आगे चल कर हमें शादी करनी ही है तो अगर हम अभी शादी कर बच्चे को आने दें तो इस में क्या हर्ज है?’ कल्पना ने प्रस्ताव रखा था.

‘शादी…’ कार्तिक चौंका था, पर यह सोच कर कि कहीं कल्पना का शरीर दोबारा न मिले इसलिए बोला था, ‘अभी पढ़ाई, फिर कैरियर, उस के बाद शादी.’

कल्पना ने इसे शादी की रजामंदी मान कर लेडी डाक्टर से मिल कर बच्चा गिरवा दिया था. कार्तिक और कल्पना पहले की तरह मजे से रहने लगे थे. पर अब कार्तिक सावधान था. बच्चा न ठहरे, इस के लिए वह उपाय कर लेता था.

इसी बीच कल्पना को भनक लग गई कि कार्तिक उस से नहीं बल्कि उस के शरीर से प्यार करता है. उस की शादी की बात कहीं और चल रही है. उस ने फोन कर कार्तिक को रेलवे स्टेशन बुलाया.

रेलवे स्टेशन से कुछ ही दूरी पर एक सुनसान जगह थी जहां वे पहले भी कई बार मिले थे. कार्तिक ने वहां झाडि़यों के पीछे उस के साथ जिस्मानी रिश्ते भी बनाए थे. कार्तिक मन में जिस्मानी सुख पाने की उमंग लिए वहां जा पहुंचा.

कल्पना के चेहरे पर तनाव देख कर वह हंस कर बोला, ‘क्या हुआ, फिर लेडी डाक्टर के पास चलना पड़ेगा क्या? पर अब तो हम काफी संभल कर चल रहे हैं.’

‘सीरियस हो जाओ कार्तिक. तुम मुझ से शादी करोगे न?’ कल्पना ने उदास हो कर पूछा था.

‘पागल हो रही हो. अभी शादी की बात कैसे सोच सकते हैं हम?’ कार्तिक जोश में आ कर बोला था.

कहां वह जिस्मानी मजा लेने की बात सोच कर आया था, कहां कल्पना उसे दूसरी बातों में उलझाए हुए थी.

‘मैं अभी की बात नहीं कर रही… 4 साल बाद ही सही, पर शादी तुम मुझ से ही करोगे. मैं ने तुम्हें अपना सबकुछ इसीलिए सौंपा है,’ कल्पना बोली थी.

‘दोस्ती अलग चीज है, शादी अलग चीज है. मैं तुम्हारी दोस्ती की कीमत अदा करता रहा हूं. शादी की बात तो सोचो ही मत,’ कार्तिक ने बेरुखी से कहा था. उस का मन उचाट हो आया था. सारा जोश जाता रहा था.

‘मैं अपना सबकुछ तुम्हें तुम्हारी कीमत के चलते नहीं प्यार के चलते सौंपती रही, लेकिन मुझे नहीं पता था कि तुम मेरे प्यार को पैसे से तोल रहे हो. पर अगर तुम प्यार को पैसे से खरीद रहे थे तो मैं भी अपने प्यार को ताकत के बल पर पा लूंगी. मेरे चाचा और मामा नक्सली हैं. जब चाहें तुम्हें और तुम्हारे परिवार को मिटा सकते हैं,’ कहते हुए कल्पना को गुस्सा आ गया था.

कार्तिक कल्पना की बात सुन कर डर गया था. वह जानता था कि कल्पना जहां से आई है, वहां नक्सलियों का अड्डा है. वह आएदिन नक्सली वारदातों की खबरें अखबार में पढ़ता था.

कुछ दिन पहले ही कार्तिक के परिवार वालों ने किसी लड़की से उस की शादी की बात भी चला रखी थी. उसे लगा, अगर कल्पना जिंदा रहेगी तो रंग में भंग डालेगी. उस ने झपट कर कल्पना की गरदन पकड़ ली और उस पर तब तक दबाव बनाता गया जब तक कि उस ने शरीर ढीला नहीं छोड़ दिया.

कार्तिक को अभी भी यकीन नहीं हुआ कि कल्पना ने दम तोड़ दिया है तो उस ने अपनी बैल्ट से फिर उस का गला दबा दिया व चुपचाप अपने घर आ गया.

कार्तिक मन ही मन घबराया हुआ था पर जिस जगह पर उस ने कल्पना की लाश छोड़ी थी उधर किसी का आनाजाना न के बराबर होता था. कौएकुत्ते उसे नोंच कर खा जाएंगे यही सोच कर वह अपने मन को संतोष देता था. पर 2 दिनों के बाद एकाएक पुलिस ने उसे दबोच लिया. शायद किसी ने लाश की सूचना पुलिस को दे दी थी और पुलिस उस तक पहुंच गई.

छोटे शहर की लड़की : जब पूजा ने दी दस्तक- भाग 4

‘‘आसमान से भी ऊंचे सपने व्यक्ति देख सकता है, परंतु न तो वह आसमान में उड़ सकता है, न आसमान में घर बना कर रहना उस के लिए संभव है. तो क्या तुम इस छोटे शहर से अलग हो गए?’’ ‘‘नहीं, परंतु यहां मेरे सपनों के लिए कोई जगह नहीं है,’’ उस ने साफ किया.

‘‘क्या प्यार के लिए भी नहीं…’’ ‘‘प्यार तो समय और परिस्थिति के अनुसार बदलता रहता है.’’

‘‘तुम बहुत कठोर हो.’’ ‘‘हो सकता है.’’

‘‘पहले तो ऐसे नहीं थे.’’ ‘‘पहले मैं छोटे शहर में रहता था और यहां की लड़कियां मुझे डराती थीं.’’

‘‘तो तुम ने डर कर मुझ से प्यार किया था? लेकिन अब तुम बड़े शहर में रहते हो. वहां की लड़कियां तो छोटे शहर की लड़कियों से भी अधिक तेज होती हैं. क्या वहां की लड़कियों से तुम्हें डर नहीं लगता?’’ ‘‘लड़कियों से मुझे डर नहीं लगता, बस उन के प्यार से डर लगता है.’’

‘‘तो तुम मुझे प्यार नहीं करते?’’ ‘‘शायद… मुझे संदेह है,’’ उस ने पूजा की भावनाओं की परवा न करते हुए स्पष्ट रूप से कहा.

‘‘तो क्या तुम मुझे छोड़ दोगे?’’ वह लगभग रोंआसी हो गई थी. ‘‘मुझे मेरा सपना पूरा करने दो. उस के बाद ही मैं कुछ कह पाऊंगा. अभी मेरे और मेरे सपनों के बीच में और कुछ नहीं है.’’

‘‘पूजा का दिल टूट गया. उसे लगा कि सबकुछ समाप्त हो गया है.’’ छुट्टियां भी एक दिन समाप्त होनी थीं. पूजा हताश और निराश हो गई थी. उस ने विनोद के घर आना बंद कर दिया था. उस से फोन पर भी बात नहीं करती थी और न उस से बाहर मिलने के लिए जिद करती थी.

दिल्ली जाने से एक दिन पहले विनोद ने पूजा को फोन किया, ‘‘क्या कर रही हो?’’ ‘‘कुछ नहीं… मेरे पास करने के लिए है भी क्या?’’

‘‘तो फिर वहीं आ जाओ. जहां हम मिलते हैं.’’ ‘‘क्या जरूरी है, मेरा मन नहीं कर रहा है,’’ उस ने उपेक्षा जाहिर की.

‘‘बहुत जरूरी है, नहीं आओगी तो जीवनभर पछताओगी.’’ ‘पता नहीं क्या बात है‘, सोच कर पूजा मिलने के लिए आ गई. वह उदास थी, अपने सूखे होंठों पर जीभ फेरते हुए वह उसे देखने लगी. विनोद मुसकरा रहा था. पूजा को उस की मुसकराहट का भेद समझ में नहीं आया. विनोद ने बेझिझक उस के कंधों पर हाथ रख दिया और उसे लगभग अपनी तरफ खींचता हुआ बोला, ‘‘तुम बहुत दुखी हो.’’

वह कुछ नहीं बोली. उस ने अपना एक हाथ उस के सिर के पीछे रख उस का सिर अपने सीने पर दबा लिया और उस के बालों को सहलाते हुए बोला, ‘‘स्वाभाविक है, मेरी तरफ से तुम्हारा मन उचट गया हो, परंतु मैं भी क्या करता? एक डरपोक लड़के को तुम ने प्यार किया. मैं तुम्हारे लायक नहीं था. मैं एक किताबी कीड़ा था और समझता था इन्हीं में मेरा जीवन है.

जीवन में सपने देखने के सिवा मैं ने और कुछ नहीं किया. जब तुम ने मुझे प्यार किया तो मैं इतना डर गया था कि समझ नहीं पा रहा था कि क्या करूं. तुम्हारे प्यार में पड़ कर कहीं मेरे सपने चकनाचूर न हो जाएं. इसी असमंजस में दिन गुजर रहे थे. दिल्ली गया तो लगा कि मेरा सपना मेरी पकड़ से बहुत दूर नहीं है, परंतु तुम्हारी यादें बीच में बाधा उत्पन्न कर रही थीं,’’ वह चुप हो कर अपनी सांसों को संयत करने लगा.

पूजा ने अपना सिर उठा कर उस के चेहरे की तरफ देखा. ‘‘परंतु इन छुट्टियों में मेरे प्रति तुम्हारी दीवानगी और प्यार ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया. मैं नहीं समझता कि जीवन में बिना प्यार के कोई भी सपना पूरा हो सकता है. मैं अपने चाहे जितने सपने पूरे कर लूं, वे सभी अधूरे रहेंगे, अगर मेरे जीवन में किसी का प्यार नहीं है. तुम्हारा अपने प्रति अटूट प्यार देख कर मेरा आत्मबल और विश्वास दोगुना हो गया है. मुझे लगता है कि तुम्हारा प्यार पा कर मैं अपना सपना जल्दी ही पूरा कर लूंगा. इस में ज्यादा दिन नहीं लगेंगे.’’

अब पूजा उस से अलग हो कर उस की तरफ तीखी नजरों से देखने लगी थी. विनोद की आंखों में प्रेम का गहरा समुद्र हिलोरें मार रहा था. पूजा का हृदय अनायास धड़क उठा, बिलकुल उसी तरह जिस प्रकार पहली बार विनोद के लिए धड़का था. ‘‘मैं ने तुम्हें बहुत सताया है,’’ उस ने भावुक हो कर कहा.

उस का सिर नीचे झुक गया. वह सुबकने लगी. ‘‘आशा है, तुम मेरी बात का मतलब समझ गई होगी. मैं अधिक कुछ नहीं कह सकता. बस, एक बात पूछना चाहता हूं, क्या मेरा सपना पूरा होने तक तुम मेरा इंतजार कर सकती हो?’’

पूजा ने अपना मुंह उस के सीने में छिपा लिया और उस की पीठ पर अपनी बांहें कसती हुई बोली, ‘‘आज तुम ने मुझे पूरी तरह से जीत लिया. मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी. मैं छोटे शहर की लड़की हूं और सच्चे मन से तुम्हें प्यार करती हूं, तुम अपना सपना पूरा कर के आओ, फिर हम दोनों घर वालों की सहमति से विवाह कर के अपना घर बसा लेंगे.’’ विनोद ने भी उसे अपनी बांहों में कस लिया, ‘‘ऐसा मत कहो कि तुम छोटे शहर की लड़की हो. तुम्हारा दिल बहुत बड़ा है.’’

‘‘तुम ने एक दिन कहा था कि छोटे शहर की लड़कियों की सोच ऐसी ही होती है. यह तुम्हारी बात का जवाब था.’’ ‘‘लेकिन ऐसा नहीं है कि केवल छोटे शहर की लड़कियां ही सच्चा प्यार करती हैं. बड़े शहर की लड़कियां भी अपने प्रेमियों का इंतजार करती हैं. प्रेम सच्चा हो, तो सब कुछ संभव है. हां, जीवन का बड़ा सपना केवल बड़े शहरों में ही पूरा होता है, परंतु प्यार का सपना तो कहीं भी, किसी भी जगह पूरा हो सकता है.’’

‘‘सचमुच… आज मैं इस बात को समझ गई हूं. तुम ने मेरे सारे भ्रम दूर कर दिए.’’ ‘‘और मेरे मन से भी सारी दुविधाएं दूर हो गई हैं. मुझे पूरी आशा है कि मेरे दोनों सपने… आईएएस बनने का और तुम से शादी करने का… जल्दी ही पूरे हो जाएंगे. फिर तुम्हें ज्यादा दिन तक विरह के आंसू नहीं बहाने होंगे.’’

…और उन के मन में हजारों दीपक जल कर मुसकराने लगे, जिन का प्रकाश चारों तरफ फैल गया.

छोटे शहर की लड़की : जब पूजा ने दी दस्तक- भाग 3

विनोद दिल्ली चला गया. समय का पहिया दूसरी तरफ घूम गया. पूजा को विनोद से बिछुड़ने पर बहुत दुख हुआ, परंतु वह कर भी क्या सकती थी. उस ने विनोद से वचन लिया था कि वह नियमित रूप से उसे फोन करता रहेगा. कुछ दिन तक उस ने यह वादा निभाया भी, परंतु धीरेधीरे उस के फोन करने में अंतराल आता गया.

इस का कारण उस ने बताया था दिन में कालेज अटैंड करना, शाम को कोचिंग क्लास और फिर रात में पढ़ाई… ऐसे में उसे वक्त ही नहीं मिलता. यूपीएससी की परीक्षा पास करना कोई आसान काम नहीं था. रातदिन की मेहनत से ही इस में सफलता प्राप्त हो सकती थी. प्यार के चक्कर में वह अपने लक्ष्य से भटक सकता था. पूजा ने कहा था, ‘‘प्यार मनुष्य को अपना लक्ष्य प्राप्त करने की ताकत देता है, उसे भटकाता नहीं है.’’

‘‘मैं मानता हूं, परंतु केवल प्यार के बारे में सोच कर किसी परीक्षा में सफलता प्राप्त नहीं की जा सकती. इस के लिए आंखें फोड़नी पड़ती हैं.’’

‘‘तुम मुझ से दूर जाने के लिए बहाना तो नहीं बना रहे?’’ उस के मन में शंका के बादल उमड़ आए. ‘‘नहीं, परंतु तुम मेरी तैयारी में बाधा न उत्पन्न करो, यह तुम्हारा मुझ पर एहसान होगा,’’ उस ने सख्त स्वर में कहा था. पूजा का दिल विनोद की बात से बैठने लगा था. पूजा समझती थी कि उस से दूर जाने के बाद विनोद उस के दिल से भी दूर हो गया था.

दिल्ली जा कर किसी और लड़की के चक्कर में पड़ गया होगा, इसीलिए उस की उपेक्षा कर रहा था और उस से संबंध तोड़ने के लिए इस तरह के बहाने बना रहा था. ऐसी स्थिति में हर लड़की अपने प्रेमी के बारे में इसी तरह की सोच रखती है. इस में पूजा का कोई दोष नहीं था.

वह रोज दीप्ति के पास आती, उस के साथ विनोद की बातें करती और अपने मन को सांत्वना देने का प्रयास करती कि एक दिन जब विनोद लौट कर आएगा तो इतने दिनों की दूरियों का सारा हिसाब चुकता कर लेगी. उसे इतना प्यार करेगी कि वह दोबारा दिल्ली जाने का नाम नहीं लेगा. ‘‘क्या वह रोज घर में फोन करता है?’’ उस ने दीप्ति से पूछा था.

‘‘नहीं, रोज नहीं करता. हम ही फोन कर के उस का हालचाल पूछ लेते हैं,’’ दीप्ति ने सहज भाव से बताया. ‘‘मुझे भी फोन नहीं करता. कहीं वह किसी और को प्यार तो नहीं करने लगा?’’

‘‘क्या पता?’’ दीप्ति ने मुंह बिचका कर कहा. पूजा दीप्ति का मुंह ताकती ही रह गई. दीप्ति को अभी किसी से प्यार नहीं हुआ था न, इसलिए वह पूजा के दिल का दर्द नहीं समझ पा रही थी. दीप्ति पूजा के मन को समझती थी, परंतु उस के हाथ में था भी क्या? वह नहीं जानती थी कि किस तरह से पूजा के मन को तसल्ली दे. इस बारे में उस की भैया से कोई बात नहीं होती थी.

उस से जब भी बात होती थी, मम्मीपापा पास में होते थे. फिर भी एक दिन चोरी से उस ने पूजा की विनोद से बात कराई थी. उस ने बात तो की, परंतु बाद में कह दिया कि फोन कर के उसे डिस्टर्ब मत किया करे, पढ़ाई का हर्ज होता है और पूजा मन मसोस कर रह गई.

विनोद दीवाली में घर आया था, परंतु पूजा से एकांत में मुलाकात नहीं हो सकी. दीप्ति ने भैया से कहा, ‘‘भैया, एक बार पूजा से मिल तो लो.’’ उस ने दीप्ति को अर्थपूर्ण निगाहों से देखते हुए कहा, ‘‘मिल लूंगा, परंतु तुम उस के लिए परेशान न हो,’’ और बात आईगई हो गई.

फिर वह होली पर घर आया और उसी प्रकार पूजा से बिना मिले ही चला गया. पूजा उस के घर आती थी, परंतु दोनों एकांत में नहीं मिल पाते थे. विनोद कोई न कोई बहाना बना कर उस से दूर रहता था. पूजा ने उसे घेरने की कोशिश की तो उस ने निरपेक्ष भाव से कहा, ‘‘पूजा, मैं जब गरमी की छुट्टियों में आऊंगा तो तुम से रोज मिला करूंगा. अभी मुझे अकेला छोड़ दो.’’ उस ने मान लिया.

गरमी की छुट्टियों में मिलते ही पूजा ने पहला सवाल किया, ‘‘तुम बदल गए हो?’’ ‘‘नहीं तो…’’ उस ने बात को टालने वाले अंदाज में कहा.

‘‘नहीं, क्या… मैं देख नहीं रही? तुम अब पहले जैसे भोले नहीं रहे. इधर मैं तुम्हारे प्यार में संजीदा हो गईर् हूं. अपनी सारी चंचलता मैं ने खो दी, परंतु तुम दिल्ली जा कर मुखर ही नहीं चंचल भी हो गए हो. यह तुम्हारे हावभाव से ही दिख रहा है.’’ ‘‘आदमी समय के अनुसार बदल जाता है. इस में आश्चर्य की कोई बात नहीं है.’’

‘‘मुझे आश्चर्य नहीं है, परंतु आश्चर्य तब होगा, जब तुम मेरे प्यार को भुला दोगे. यह भी भुला दोगे कि मैं ने तुम्हें प्यार करना सिखाया था वरना कोई लड़की तुम्हें घास न डालती और अगर तुम कोशिश भी करते तो भी कोई लड़की तुम्हारे फंदे में नहीं फंसती,’’ उस ने कुछ चिढ़ कर कहा. ‘‘तुम छोटे शहर की लड़कियों की यही गंदी सोच है. इस के आगे तुम कुछ सोच ही नहीं सकती.

सभी लड़कों को तुम बुद्धू और भोंदू समझती हो. तुम सोचती हो कि लड़कों से प्यार कर के तुम उन के ऊपर एहसान कर रही हो, क्योंकि लड़के इस लायक ही नहीं होते कि वे किसी लड़की को प्यार कर सकें या कोई लड़की उन के ऊपर अपना प्यार लुटा सके. तुम्हें अपने रूप पर घमंड जो होता है.’’

पूजा विनोद की बातों से आहत हो गई, ‘‘मैं ऐसा नहीं सोचती, परंतु तुम से सच कहती हूं. एक दिन इसी बात को ले कर मेरी सहेलियों से शर्त लगी थी.’’ ‘‘क्या शर्त लगी थी?’’ उस ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘महल्ले की सारी लड़कियां तुम्हें भोंदू और बुद्धू कहती थीं. वे तुम्हें ले कर मजाक करती रहती थीं कि यह मिट्टी का माधो कभी किसी लड़की को प्यार नहीं कर सकेगा. पहली बात तो यह कि कोई लड़की ही तुम्हें प्यार नहीं करेगी और किसी का मन तुम पर आ भी गया तो भी तुम लड़की को अपने प्यार में बांध नहीं पाओगे.’’ ‘‘तो फिर.’’

‘‘मैं ने इस चुनौती को स्वीकार किया था, क्योंकि मैं मन ही मन तुम्हें प्यार करने लगी थी. मुझे तुम्हारी सादगी और भोलापन पसंद था. अन्य लड़कों की तरह तुम में कोई छिछोरापन नहीं था और तुम उन की तरह लड़कियों के पीछे नहीं भागतेफिरते थे, इसलिए मैं ने तय किया कि मैं तुम्हारा प्यार पा कर रहूंगी. मैं ने उन से कहा था कि विनोद एक दिन मेरे प्यार में पागल हो जाएगा, परंतु अब मुझे ऐसा नहीं लगता. जब तक तुम दिल्ली नहीं गए थे, मुझे लगता था कि तुम भी मुझ से प्यार करने लगे हो और सहेलियों से मैं ने बड़े फख्र से कहा था कि मैं ने तुम्हारा प्यार हासिल कर लिया है.

परंतु लगता है, मैं अपनी शर्त हार गई हूं,’’ उस की आवाज भीग गई थी. विनोद हतप्रभ रह गया. उस की समझ में नहीं आया कि वह पूजा से क्या कहे, उसे किस प्रकार सांत्वना दे और कैसे बताए कि वह उसे प्यार करता है, क्योंकि इस बारे में उसे स्वयं पर संदेह था. जबलपुर में रहते हुए विनोद पूजा को डरतेडरते प्यार करता था, जैसे कोई पूजा से जबरदस्ती प्यार करने के लिए कह रहा था. दिल्ली में एक साल रहने के बाद वह आजाद पंछी की तरह हो गया था और पूजा की गिरफ्त से उसे छुटकारा मिल गया था.

वह एक किताबी कीड़ा था और किताबों में ही उस का मन लगता था. लड़कियां उसे लुभाती थीं और वह उन्हें पसंद भी करता था. चोर निगाहों से उन की सुंदरता की प्रशंसा भी करता था, परंतु खुल कर किसी लड़की को पटाने का साहस उस के पास नहीं था. यही कारण था कि जबलपुर में भी पूजा ने ही पहल की थी और चूंकि उस के जीवन में आने वाली वह पहली लड़की थी, वह भी डरतेडरते उसे प्यार करने लगा था, परंतु एक बार दूर जाते ही उस के मन से पूजा का प्यार फूटे गुब्बारे की तरह हवा हो गया था.

फिर भी उन दोनों का मिलना जारी रहा. गरमी की लंबी छुट्टियां थीं. उस की एक साल की कोचिंग समाप्त हो गई थी, परंतु एमए का फाइनल ईयर था. उस ने यूपीएससी की सिविल सर्विसेज का फार्म भी भर रखा था, जिस की प्रारंभिक परीक्षा जुलाई में ही होनी थी. एमए की क्लासेज भी जुलाई में प्रारंभ होनी थीं, अत: उन दोनों के पास मिलने के लिए गरमी के ढेर सारे लंबेलंबे दिन थे और सोचने के लिए ढेरों छोटीछोटी रातें. कहना बड़ा मुश्किल था कि विनोद के मन में क्या था, परंतु पूजा को डर लगने लगा था.

बरसात आने में अभी देर थी, परंतु उन के घरों के पीछे खेतों में किसानों ने मकई बो दी थी. उन के पौधे अब काफी बड़े हो गए थे. उन में भुट्टे भी आने लगे थे, परंतु उन के पकने में अभी देर थी. खेतों के बीच की कच्ची सड़क पर घूमना पूजा को अच्छा लगता था. वह जिद कर के विनोद को उधर ले जाती थी. खेतों के बीच का वह पेड़ जिस के नीचे बैठ कर वे दोनों चोरी से भुट्टे तोड़ कर खाते थे, उन के मिलन के प्रारंभिक दिनों का गवाह था.

वह अपनी जगह पर निश्चल खड़ा था. वे लड़कियां भी जो उन्हें प्यार से भुट्टे भून कर खाने के लिए देती थीं, अपनेअपने खेतों की रखवाली के लिए आने लगी थीं और उन दोनों को देख कर मंदमंद मुसकराती थीं.

अभी भुट्टे पके नहीं थे और पूजा को लगने लगा था कि अभी उन के प्यार में भी परिपक्वता नहीं आई. सुस्ताने के लिए वे पेड़ की छाया तले बैठे तो पूजा ने कहा, ‘‘तुम्हारे सपने बड़े हो गए हैं.’’ ‘‘फिलहाल तो मेरा एक ही सपना है, आईएएस बनना और जब तक यह सपना पूरा नहीं हो जाता, मेरे लिए बाकी सभी सपने बहुत छोटे हैं.’’

छोटे शहर की लड़की : जब पूजा ने दी दस्तक- भाग 2

‘एक दिन अचानक पूजा उस के घर आई तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ. वह पूजा को पहचानता था, वह उस के पड़ोस में ही रहती थी. परंतु उस के साथ कभी कोई बात नहीं होती थी. कारण, वह बहुत संकोची था और पूजा अपनेआप में मस्त रहने वाली लड़की. वह शर्मीली लड़की की तरह पूजा के घर के सामने से सिर झुका कर गुजर जाता. अकसर उस ने पूजा को अपने घर से बाहर अपनी सहेलियों से बातें करते हुए देखा था. कई बार उस ने महसूस भी किया कि वे सभी उस की तरफ कुछ इशारा कर के हंसती थीं.\

यह उस का भ्रम भी हो सकता था, परंतु संकोचवश वह तुरंत उन के सामने से हट जाता और घर आ कर अपनी तेज सांसों पर काबू पाने का प्रयास करता. वह पूजा की हंसी और मुसकराहट का अर्थ आज तक समझ नहीं पाया था. आज जब पूजा उस के घर आई और उसे देख कर बड़ी अदा से मुसकराई तो उस के दिल पर मानो बिजली गिर गई हो. लड़कियों को देख कर वैसे ही उस के हाथपैर कांपने लगते और मुंह लाल हो जाता था. पूजा को अपने घर पर देख कर उस के दिल की धड़कन और भी बढ़ गई थी.

घर पर उस की मां थीं, छोटी बहन थी और रविवार होने के कारण उस के पिता भी घर पर ही थे. वे लोग उस के बारे में क्या सोचेंगे? उस ने मुड़ कर अपने कमरे की तरफ भागने का प्रयास किया ही था कि पूजा की मधुर आवाज उस के कानों में पड़ी, ‘‘भाग रहे हो? अपने ही घर में भाग कर कहां छिपोगे?’’ पूजा पहली बार उस से ऐसे बोली थी. वह ठिठक कर खड़ा हो गया, सचमुच वह अपने घर से भाग कर कहां जाएगा? उस ने पूजा के प्रफुल्लित चेहरे को बच्चे की तरह देखा और मन ही मन कहा, ‘तुम यहां क्या मेरी दुर्गति करने के लिए आई हो?’

पूजा ने पूछा, ‘‘आंटीजी हैं क्या, और तुम्हारी बहन कहां है?’’ वह इस तरह बात कर रही थी, जैसे विनोद उस से

छोटा हो और उस का इस घर में बहुत ज्यादा आनाजाना हो. पूजा का आत्मविश्वास और साहस देख कर उसे अपनेआप पर शर्म आने लगी. काश, वह भी उस की तरह दबंग होता. वह जानता था कि उस की मां से पूजा गली में कभीकभार बात कर लेती थी, लेकिन यह बिलकुल पता नहीं था कि उस की छोटी बहन दीप्ति से पूजा की कोई बोलचाल थी या वे दोनों आपस में मिलतीजुलती थीं. दोनों की उम्र में लगभग 4-5 साल का अंतर था.

उस ने पूजा की बात का जवाब देने के बजाय ऊंचे स्वर में लगभग चीखते हुए मां को आवाज लगाई, ‘‘मम्मी, दीप्ति, देखो तो तुम से कोई मिलने आया है?’’ और वह फिर से जाने के लिए उद्यत हुआ. पूजा खिलखिला कर हंस पड़ी, ‘‘अरे, तुम बौखला क्यों रहे हो? क्या कोई कुत्ता तुम्हारे पीछे पड़ा है?’’

उस ने मन ही मन कहा, ‘नहीं, एक बिल्ली है, जो मेरा मुंह नोचने के लिए आई है. क्या कोई मुझे इस बिल्ली से बचाएगा?’ वह और जोर से चिल्लाया, ‘‘दीप्ति, आती क्यों नहीं?’’ उस की मां किचन में थीं, दीप्ति झटपट बाहर निकली और सामने का नजारा देख कर कुछ चौंकी. पूजा को पहली बार अपने घर में देख कर वह बोली, ‘‘दीदी, आप… यहां?’’

‘‘हां, वैसे ही एक काम आ गया था,’’ वह दो कदम आगे बढ़ कर बोली, ‘‘परंतु तुम्हारा भाई तो बहुत झेंपू है, क्या वह लड़कियों के साथ ज्यादा उठताबैठता है, क्योंकि उन्हीं के जैसे गुण और लक्षण इस में आ गए हैं,’’ अपने कमरे में घुसतेघुसते उस ने पूजा को दीप्ति से कहते सुना. उस का दिल बैठ गया, ‘क्या वह इतना दब्बू है कि लड़कियां उस के बारे में ऐसे खयाल रखती हैं?‘ उस ने अपने दिल को संयत किया और मन ही मन बोला, ‘एक दिन दिखा दूंगा तुम्हें पूजा की बच्ची कि मैं कायर और डरपोक नहीं हूं. तुम मुझे झेंपू समझने की भूल मत करना.’

कमरे में आए उसे थोड़ी ही देर हुई थी कि धमधमाते हुए दोनों उस के कमरे में ही आ गईं. पूजा आगे थी और दीप्ति उस के पीछे. दोनों पता नहीं आपस में क्या बातें कर के आई थीं और अब उन का मकसद क्या था. वह अपने बिस्तर से उठ कर खड़ा हो गया. ‘‘क्या कर रहे हो… पढ़ाई? अभीअभी तो नए सत्र की कक्षाएं शुरू हुई हैं. अच्छा, विनोद यह बताओ, तुम कौन सी कक्षा में गए हो?’’ पूजा ने निस्संकोच उस के पास आ कर पूछा.

विनोद धम् से कुरसी पर बैठ गया. जैसे चेहरे पर किसी ने गोबर मल दिया हो. उस की बोलती बंद थी और दिल काबू में नहीं था. वे दोनों उसे देखदेख कर मुसकराती रहीं.

‘‘बताओ न मुझे पढ़ाई में तुम से मदद लेनी है,’’ पूजा उस के पास आ कर खड़ी हो गई और मटकती हुई बोली. जवान लड़की के बदन की एक अनोखी गंध उस के नथुनों में समा गई. विनोद ने बड़ी मुश्किल से खुद को संभाला और बोला, ‘‘बीए में.’’ ‘‘कौन सा साल है?’’ यह पूछते हुए वह लगभग उस से सट गई थी.

विनोद ने अपने को पीछे की तरफ धकेला. कुरसी थोड़ा पीछे की तरफ सरक गई. उस के गले में सांस फंस कर रह गई. शब्द गले में अटक गए और वह बता नहीं पाया कि बीए अंतिम वर्ष में था. पूजा यह बात जानती थी. वह स्वयं बीए द्वितीय वर्ष में थी. वह तो जानबूझ कर विनोद को बनाने की कोशिश कर रही थी. पूजा उस की हालत पर मुसकराई, ‘‘तुम कांप क्यों रहे हो? तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न?’’

छोटे शहर की लड़की : जब पूजा ने दी दस्तक- भाग 1

‘‘हां, मैं ठीक हूं,’’ उस के गले से फंसी हुई सी सांस निकली. वह कुरसी से उठ कर खड़ा हो गया और बिना आदत के तन कर बोला, ‘‘तुम आराम से बैठ कर बात करो. मेरे ऊपर क्यों चढ़ी आ रही हो.’’ ‘‘ओह, माफ करना, वीनू, मेरी आदत कुछ खराब है. मैं जब तक किसी से सट कर बात नहीं करती, मुझे बातचीत में अपनापन नहीं लगता. खैर, तुम चिंता मत करो. एक दिन तुम्हें भी मुझ से सट कर बात करने की आदत हो जाएगी,’’ और वह मुसकराते हुए दीप्ति की तरफ देखने लगी. पूजा के चेहरे पर शर्मोहया का कोई नामोनिशान नहीं था. विनोद को वह बड़ी निर्लज्ज लड़की लगी.

‘‘अच्छा, क्या तुम मुझे पढ़ा दिया करोगे. दीप्ति ने मुझे बताया कि तुम पढ़ने में बहुत अच्छे हो,’’ उस ने बात बदली. ‘‘मेरे पास समय नहीं है,’’ उस ने किसी तरह कहा.

‘‘तुम्हें मेरे घर आने की जरूरत नहीं है. मैं स्वयं तुम्हारे पास आ कर पढ़ लिया करूंगी. प्लीज, तुम मेरी थोड़ी सी मदद कर दोगे तो…’’ फिर उस ने बात को अधूरा छोड़ दिया. वह पूजा की बातों का अर्थ नहीं समझ पाया. ‘क्या वह पढ़ने में कमजोर थी. अगर हां, तो अभी तक उसे यह खयाल क्यों नहीं आया. कोई दूसरी बात होगी,‘ उस ने सोचा. उस ने कहीं पढ़ा था कि अगर किसी लड़की का किसी लड़के पर दिल आ जाता है तो वह बहाने बना कर उस लड़के से मिलती है. क्या पूजा भी… उस के दिमाग में एक धमाका सा हुआ. उस का दिल और दिमाग दोनों बौखला गए थे. वह पूजा की किसी बात का ठीक से जवाब नहीं दे पाया, न उस की किसी बात का अर्थ समझ में आया और फिर दोनों लड़कियां उसे विचारों के सागर में डूबता हुआ छोड़ कर चली गईं.

उस दिन भले ही वह पूजा की बातों का अर्थ नहीं समझ पाया था, लेकिन उस की बातों का अर्थ समझने में उसे ज्यादा समय नहीं लगा. अब पूजा नियमित रूप से उस के घर आती. वह समझ गया था कि पूजा के मन में क्या है और वह उस से क्या चाहती है.

आमनेसामने पड़ने और रोजरोज बातें करने से विनोद के मन का संकोच भी बहुत जल्दी खत्म हो गया. वह पूजा से खुल कर बातें करने लगा, लेकिन अभी भी उस की बातें कम ही होती थीं और ऐसा लगता था जैसे पूजा उस के मुंह से बातें उगलवा रही हो.

फिर उन के मन भी मिल गए. पूजा और विनोद के रास्ते अब मिल कर एक हो गए थे. वे लगभग एक ही समय पर घर से कालेज के लिए निकलते और थोड़ा आगे चल कर उन का रास्ता एक हो जाता. कालेज से वापस आते समय वे शहर के बाहर जाने वाली सड़क से हो कर खेतों के बीच से होते हुए अपने घर लौटते. वे शहर के बाहर नई बस्ती में रहते थे, जिस के पीछे दूरदूर तक खेत ही खेत थे. उन दिनों बरसात का मौसम था और खेतों में मकई की फसल लहलहा रही थी. दूरदूर जहां तक दृष्टि जाती, हरियाली का साम्राज्य दिखता. खेतों में मकई के पौधे काफी ऊंचे और बड़े हो गए थे, आदमी के कद को छूते हुए, उन में हरेपीले भुट्टे लग गए थे और उन भुट्टों में दाने भी आ गए थे. पहले भुट्टों में छोटे शिशु की भांति दूध के दांत जैसे दाने आए थे. हाथ से दबाने पर पच्च से उन का दूध बाहर आ जाता था. धीरेधीरे दाने थोड़ा बड़े हो कर कड़े होते गए और उन में पीलापन आता गया. जब भुट्टे पूरी तरह पक गए तो किसी नवयुवती के मोती जैसे चमकते दांतों की तरह चमकीले और सुडौल हो गए.

दिन धुलेधुले से थे और प्रकृति की छटा देख कर ऐसा लगता था जैसे अभीअभी किसी युवती ने अपना घूंघट उठाया हो और उस ने देखने वाले को अपनी सुंदरता से भावविभोर कर दिया हो. इसी तरह सावन के महीने में नवयुवतियां भी किसी के प्रेम रस में विभोर हो कर बारिश की बूंदों में भीगते हुए भुट्टों की तरह हंसतीमुसकराती हैं, खिलखिलाती हैं और अल्हड़ हवाओं के साथ अठखेलियां करती हुई, झूलों में पींगें बढ़ाती हुई अपने प्रेमी का इंतजार करती हैं.

पूजा पर भी सावन की छटा ने अपना रंग बिखेरा था, वह भी बारिश की बूंदों से भीग कर अपने में सिमटी थी. कजरी के गीतों ने उस के मन में भी मधुर संगीत की धुनों के विभिन्न राग छेड़े थे. अपनी सहेलियों के साथ झूला झूलते हुए, दबे होंठों से गीत गाते हुए उस ने भी अपने प्रिय साजन को बुलाने की टेर लगाई थी. उस की टेर पर उस का साजन तो उस से मिलने नहीं आया था, परंतु वह लोकलाज का भय त्याग कर स्वयं उस से मिलने के लिए उस के घर आ गई थी और आज दोनों साथसाथ घूम रहे थे.

मौसम ने उन दोनों के जीवन में प्यार के बहुत सारे रंग बिखेर दिए थे. दोनों के बीच प्यार की कली पनप गई थी. पूजा पहले से ही विनोद से प्यार करती थी. अब विनोद को भी पूजा के प्यार में रंगने में ज्यादा वक्त नहीं लगा. पूजा की चंचलता ने विनोद को चंद दिनों में ही उस का दीवाना बना दिया. हालांकि दोनों के स्वभाव में बड़ा अंतर था. पूजा मुखर, वाचाल और चंचल थी तो विनोद मृदुभाषी, संकोची और लड़कियों से डर कर रहने वाला लड़का. पूजा के साथ रहते हुए वह सदा चौकन्ना रहता था कि कोई उन्हें देख तो नहीं रहा. पूजा लड़कों की तरह निर्भीक थी तो विनोद लड़कियों की तरह लज्जाशील. वह एक कैदी की तरह पूजा के पीछेपीछे चलता रहता.

खेतों के बीच से होते हुए वह कच्ची सड़क के किनारे किसी पेड़ की छाया के नीचे थोड़ी देर बैठ कर सुस्ताते, प्यार भरी बातें करते और मकई के खेतों के किनारे से होते हुए एक रखवाले की नजर बचा कर कभी 2 भुट्टे चुपके से तोड़ लेते तो कभी उन से विनययाचना कर के मांग लेते थे. खेतों की रखवाली करने वाली ज्यादातर लड़कियां होती थीं, ऐसी लड़कियां जो दिल की बहुत अच्छी होती थीं और जवानी के सपने देखने की उन की उम्र हो चुकी थी.

उन के मन में प्यार के फूल खिलने लगे थे और वे पूजा और विनोद को देख कर मंदमंद मुसकराती हुईं अपने दुपट्टे का छोर दांतों तले दबा लेती थीं. वे न केवल अपने हाथों से पके भुट्टे तोड़ कर उन्हें देतीं, बल्कि कभीकभी मचान के नीचे जलने वाली आग में उन्हें पका भी देती थीं, तब दोनों मचान के ऊपर बैठ कर मकई के खेतों के ऊपर उड़ने वाले परिंदों को देखा करते थे और बैठे परिंदों को उड़ाने का बचकाना प्रयास करते, जिसे देख कर खेत की रखवाली करने वाली लड़कियां भी खुल कर हंसतीं और उन्हें परिंदों को उड़ाने का तरीका बतातीं. प्यार भरे मौसम का एक साल बीत गया.

उन के इम्तहान खत्म हो गए. अब वह दोनों घरों में कैद हो कर रह गए थे, परंतु पूजा अपने घर में रुकने वाली कहां थी. उस ने दीप्ति से दोस्ती गांठ ली थी और उस से मिलने के बहाने लगभग रोज ही विनोद के घर पर डेरा जमा कर बैठने लगी. विनोद के मातापिता को इस में कोई एतराज नहीं था क्योंकि वह दीप्ति के पास आती थी और उसी के साथ विनोद के कमरे में जाती थी. दीप्ति भी उन के प्यार को समझ गई थी और उसे दोनों के बीच पनपते प्यार से कोई एतराज नहीं था. उसे पूजा बहुत अच्छी लगती थी क्योंकि वह बहुत प्यारीप्यारी बातें करती थी और पूजा दीप्ति को अपनी छोटी बहन की तरह प्यार देती थी.

परीक्षा परिणाम घोषित होते ही विनोद के घर में एक धमाका हो गया. उस के पिताजी ने उसे दिल्ली जाने का फरमान जारी कर दिया. उस के भविष्य का निर्णय करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘विनोद, बीए में तुम्हारे अंक काफी अच्छे हैं और मैं चाहता हूं कि दिल्ली जा कर तुम किसी कालेज में एमए में दाखिला ले लो और वहीं रह कर सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करो. तुम्हें आईएएस या आईपीएस बन कर दिखाना है,’’ उस के पिता ने अपना अंतिम निर्णय सुना दिया था. मां ने भी उस के पिता के निर्णय का समर्थन किया, लेकिन पूजा को यह पसंद नहीं आया. ‘‘तुम यहां रह कर भी तो सिविल सर्विसेज की तैयारी कर सकते हो. यहां भी तो अच्छे कालेज हैं, विश्वविद्यालय है,’’ उस ने तुनकते हुए विनोद से कहा.

‘‘देखो पूजा, पहली बात तो यह है कि मैं पिताजी की आज्ञा का उल्लंघन नहीं कर सकता और फिर दिल्ली में अच्छे कोचिंग संस्थान हैं. वहां ऐसे कालेज हैं जहां विद्यार्थी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए ही तैयारी करने के लिए पढ़ते हैं. मेरी

भी तमन्ना है कि मैं अपने पिताजी की आकांक्षाओं को पूरा करूं.’’ ‘‘मैं तुम्हारे बिना कैसे रहूंगी?’’ पूजा ने एक छोटे बच्चे की तरह मचलते हुए कहा.

‘‘रह लोगी, समय सबकुछ सिखा देता है और मैं कोई सदा के लिए थोड़े ही जा रहा हूं. छुट्टियों में तो आता ही रहूंगा.’’ ‘‘मुझे इस बात का डर नहीं है कि तुम सदा के लिए जा रहे हो. मुझे डर इस बात का है कि दिल्ली जबलपुर के मुकाबले एक बड़ा शहर है. वहां ज्यादा खुलापन है. वहां की लड़कियां अधिक आधुनिक हैं और वह लड़कों के साथ बहुत खुल कर मिलतीजुलती हैं. साथसाथ पढ़ते हुए पता नहीं कौन सी परी तुम्हें अपना बना ले,’’ उस के स्वर में उदासी झलक रही थी. ‘‘हर लड़की तुम्हारी तरह तो नहीं होती,’’ उस ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘हां, सच, पर तुम अब इतने भोंदू और संकोची भी नहीं रहे. क्या पता, तुम्हें ही कोई लड़की पसंद आ जाए और तुम उसे अपने जाल में फंसा लो,’’ उस ने आंखों को चौड़ा करते हुए कहा. ‘‘हां, यह बात तो है, भविष्य को किस ने देखा है,’’ उस ने चुटकी ली.

‘‘2 या 3 साल, पता नहीं कितना समय लगे तुम्हें नौकरी मिलने में? तब तक तुम पूरी तरह से बदल तो नहीं जाओगे?’’ उस के स्वर में निराशा का भाव आ गया था. ‘‘तुम अपनेआप पर भरोसा रखो. शायद कुछ भी न बदले,’’ विनोद ने उसे तसल्ली देने का प्रयास किया.

‘‘क्या पता सिविल सेवा की परीक्षा पास करते ही तुम्हारा मन बदल जाए और क्या तुम्हारे मम्मीपापा उस स्थिति में मेरे साथ तुम्हारी शादी के लिए तैयार होंगे?’’ ‘‘यह तो वही बता सकते हैं?’’ उस ने स्पष्ट किया. पूजा का मन डूब गया.

चंपा लौट आई : देह सौंप कर चुकाया अहसान का कर्ज

‘‘चंपा, मैं तुम से मिलने कल फिर आऊंगा,’’ नरेश अपने कपड़े समेटते हुए बोला.

‘‘नहीं, कल से मत आना. कल मेरा आदमी घर आने वाला है. मैं किसी भी तरह के लफड़े या बदनामी में नहीं पड़ना चाहती,’’ चंपा नरेश से बोली.

‘‘अरे नहीं, सूरत इतना नजदीक नहीं है. उस के आने में कम से कम 2-3 दिन तो लग ही जाएंगे,’’ नरेश चंपा को अपनी बांहों में कसते हुए बोला.

चंपा बांह छुड़ा कर बोली, ‘‘2 दिन पहले ही बता चुका है कि वह गाड़ी पकड़ चुका है. कल वह घर भी पहुंच जाएगा.’’

नरेश मायूस होता हुआ बोला, ‘‘जैसी तेरी मरजी. दिन में एक बार तुझे देखने जरूर आ जाया करूंगा.’’

‘‘ठीक है, आ जाना,’’ चंपा हंस कर उस से बोली.

नरेश पीछे के दरवाजे से बाहर हो गया. अपने घर जाते समय नरेश चंपा के बारे में वह सब सोचने लगा, जो चंपा ने उसे बताया था.

चंपा के घर में सासससुर और पति के अलावा और कोई नहीं था. चंपा का पति संजय अकसर काम के सिलसिले में गुजरात की कपड़ा मिल में जाया करता था. वह वहां तब से काम कर रहा है, जब उस की चंपा से शादी भी नहीं हुई थी.

संजय को गुजरात गए 2 महीने बीत गए थे. कसबे में मेला लगने वाला था.

चंपा संजय को फोन पर बोली, ‘तुम घर पर नहीं हो. इस बार का मेला मैं किस के साथ देखने जाऊंगी? मांपिताजी तो जा नहीं सकते.’

संजय ने चंपा को गांव की औरतों के साथ मेला देखने को कहा. यह सुन कर चंपा का चेहरा खुशी से खिल उठा.

एक रात गांव की कुछ औरतें समूह बना कर मेला देखने जा रही थीं. चंपा भी उन के साथ हो ली. घर पर रखवाली के लिए सासससुर तो थे ही.

मेले में रंगबिरंगी सजावट, सर्कस, झूले और न जाने मनोरंजन के कितने साजोसामान थे. उन सब को निहारती चंपा गांव की औरतों से बिछड़ गई.

अब चंपा घर कैसे जाएगी? वह डर गई थी. मेले से उस का मन उचटने लगा था. उसे घर की चिंता सताने लगी थी. उस ने उन औरतों की बहुत खोजबीन की, पर उन का पता नहीं चल पाया.

रात गहराती जा रही थी. लोग धीरेधीरे अपने घरों को जाने लगे थे. चंपा भी डरतेडरते घर की ओर जाने वाले रास्ते पर चल दी.

चंपा की शादी को अभी 2 साल हुए थे. अभी तक उसे कोई बच्चा भी नहीं हुआ था. तीखे नाकनक्श, होंठ लाल रसभरे, गठीला बदन, रस की गगरी की तरह उभार, सब मिला कर वह खिला चांद लगती थी, इसलिए तो संजय मरमिटा था चंपा पर और उस को खुश रखने के लिए हर ख्वाहिश पूरी करता था.

चंपा के गदराए बदन को देख कर 2 मनचले मेले में ही लार टपका रहे थे. अकेले ही घर की ओर जाते देख वे भी अंधेरे का फायदा उठाना चाहते थे.

चंपा भी उन की मंशा भांप गई थी. घर की ओर जाने वाली पगडंडी पर वह तेज कदमों से चली जा रही थी. वे पीछा तो नहीं कर रहे, इसलिए पीछे मुड़ कर देख भी लेती.

मनचले भी तेज कदमों से चंपा की ओर बढ़ रहे थे. वह बदहवास सी तेजी से चली जा रही थी कि अचानक ठोकर खा कर गिर पड़ी.

तभी एक नौजवान ने सहारा दे कर चंपा को उठाया और पूछा, ‘आप बहुत डरी हुई हैं. क्या बात है?’

‘कुछ नहीं,’ चंपा उठते हुए बोली.

‘शायद मेला देख कर आ रही हैं? कहां तक जाना है?’ नौजवान ने पूछा.

‘पास के सूरतपुर गांव में मेरा घर है. 2 मनचले मेरा पीछा कर रहे हैं. जिन औरतों के साथ मैं आई थी, वे पता नहीं कब घर चली गईं. मुझे मालूम नहीं चला,’ बदहवास चंपा ने एक ही सांस में सारी बातें उस नौजवान से बोल दीं.

जिस नौजवान ने चंपा को सहारा दिया, उस का नाम नरेश था. उस ने पीछे मुड़ कर देखा, तो वहां कोई नहीं था.

‘डरने की कोई बात नहीं है. मैं भी उसी गांव का हूं. मैं आप को घर तक छोड़ दूंगा.’

चंपा डर गई थी. डर के मारे वह नरेश का हाथ पकड़ कर चल रही थी. कभीकभार दोनों के शरीर भी एकदूसरे से टकरा जाते.

कुछ देर बाद नरेश ने चंपा को उस के घर पहुंचा दिया. चंपा ने शुक्रिया कहा और अगले दिन नरेश से घर आने को बोली.

नरेश उसी दिन से चंपा के घर आया करता था, उस से ढेर सारी बातें करता, मजाकमजाक में चंपा को छूता भी था. चंपा को भी अच्छा लगता था.

एक दिन नरेश चंपा के गाल चूमते हुए बोला, ‘आप बहुत सुंदर हैं. मेरा बस चले तो…’ चंपा मुसकरा कर पीछे हट गई.

इस के बाद नरेश ने चंपा को बांहों में जकड़ कर एक बार और गालों को चूम लिया.

चंपा कसमसाते हुए बोली, ‘यह अच्छा नहीं है. क्या कर रहे हो?’

संजय अकसर घर से बाहर ही रहता था, इसलिए चंपा की जवानी भी प्यासी मछली की तरह तड़पती रहती. छुड़ाने की नाकाम कोशिश कर नरेश के आगे वह समर्पित हो गई और वे दोनों एक हो गए. दोनों ने जम कर गदराई जवानी का मजा उठाया. चंपा खुश थी.

उस दिन के बाद से ही यह सिलसिला चल पड़ा. दोनों एकदूसरे के साथ मिल कर बहुत खुश होते.

एक दिन नरेश ने चंपा से पूछा, ‘तुम सारी जिंदगी मुझ से इसी तरह प्यार करती रहोगी न?’

‘नहीं,’ चंपा बोली.

‘क्यों? लेकिन, मैं तो तुम से बहुत प्यार करता हूं.’

‘यह प्यार नहीं हवस है नरेश.’

‘आजमा कर देख लो,’ नरेश बोला.

‘नरेश, तुम अपने एहसानों का बदला चुकता कर रहे हो. जिस दिन मुझे लगेगा, तुम्हारा एहसान पूरा हो चुका है, मैं तुम से अलग हो जाऊंगी. और तुम भी अपनी अलग ही दुनिया बसा लेना,’ चंपा उसे समझाते हुए बोली.

आज नरेश को चंपा की कही हुई हर बात जेहन में ताजा होने लगी थी कि कल संजय के घर पहुंचते ही उस एहसान का कर्ज चुकता होने वाला है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें