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लेखिका- किरण डी. कुमार
अब सुशांत बारबार घर जाने की जिद करने लगा. हालांकि उस जैसे मरीज की अस्पताल में ही अच्छी देखभाल हो सकती थी पर पति की इच्छा को देखते हुए नलिनी ने सब को आश्वासन दिया कि वह घर में सुशांत की देखभाल में कोई कसर नहीं छोड़ेगी बल्कि घर के माहौल में सुशांत जल्दी ठीक हो जाएगा. अंत में डाक्टरों ने उसे घर ले जाने की इजाजत दे दी.
घर पर सुशांत की देखरेख का सारा जिम्मा नलिनी के सिर पर डाल कर भानुमति बेन तो मुक्त हो गईं. घर पर ही फिजियोेथेरैपी चिकित्सा देने के लिए एक डाक्टर आते.
सुशांत की नौकरी तो छूट गई थी. दोनों भाइयों का कारोबार अच्छा चल रहा था. सुशांत और नलिनी का खर्च भी उन्हें ही वहन करना पड़ रहा था. प्रत्यक्षत: तो कोई कुछ न कहता, पर घर के ऊपरी काम करने के लिए जो महरी आती थी, उसे निकाल दिया गया था. सुशांत को नहलानेधुलाने, खिलानेपिलाने के बाद जो वक्त बचता था, वह नलिनी कपड़े धोने, बर्तन साफ करने, झाडूपोंछा करने और रसोई का काम करने में बिता देती. वह बेचारी दिन भर घर के कामों में लगी रहती.
मैं कभी उन के घर बैठने जाती तो मुझे नलिनी को देख कर तरस आता कि किस तरह यह समय की मार झेल रही है. दिनभर घर के कामों के साथ अपाहिज पति की देखभाल करती है पर चेहरे पर जरा भी शिकन नहीं आती. मैं कभी आंटीजी से कहती तो वह खीज उठतीं, ‘इस के कर्मों का फल तो सुशांत भुगत रहा है. उस की सेवा कर के यह अपने पूर्व जन्म के पापों का प्रायश्चित्त ही कर रही है,’ मुझे उन की बातों का बुरा जरूर लगता पर मैं सोचती कि सुशांत वक्त के साथ ठीक होगा तो सब के मुंह अपनेआप बंद हो जाएंगे.
फिजियोथेरैपिस्ट और नलिनी की अथक मेहनत से सुशांत अब उठताबैठता, बैसाखी की मदद से चलता. अपने तमाम छोटेमोटे काम वह खुद ही करता. अब नलिनी उसे जयपुर फुट लगवाने की सलाह देने लगी. जब जयपुर फुट की मदद से सुशांत चलने का प्रयास करने लगा तो नलिनी को तो मानो सारे जहान की खुशियां मिल गईं.
एक दिन मैं दोपहर के खाली समय में बैठी कोई पत्रिका पढ़ रही थी कि किसी ने दरवाजा खट- खटाया. दरवाजा खोलने पर सामने नलिनी को देख कर मैं खुश हो गई और बोली, ‘आओ, नलिनी, कितने दिनों बाद तुम घर से बाहर निकली हो. मैं कल आशुतोष से तुम्हारी ही बात कर रही थी. किस तरह तुम ने विपरीत परिस्थितियों में हार न मानी. मौत के मुंह से अपने पति को बाहर ले आईं. सच, सारे विश्व में एक हिंदुस्तानी नारी इसलिए ही पतिव्रता मानी जाती होगी.’
‘बस, दीदी, अब मेरी तारीफ करना छोडि़ए, मैं आप को यह बताने आई थी कि सुशांत ने फिर से नौकरी कर ली है. भूकंप में दुर्घटनाग्रस्त होने के पहले सुशांत जिस प्रेस में काम करते थे, उस के मालिक ने उन को फिर से काम पर बुलाया है. सुशांत को पहले भी घर के व्यापार में दिलचस्पी नहीं थी. प्रेस का प्रिय काम पा कर वह खुश हैं.’
‘यह तो बहुत अच्छी बात है, नलिनी…2-3 साल बहुत कष्ट सह लिए तुम ने, अब जल्दी से सुशांत को वह प्यारा तोहफा देने की तैयारी करो जिस के आने से जीवन में बहार आ जाती है. वैसे भी सुशांत को बच्चे बहुत पसंद हैं.’
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मेरे यह कहते ही नलिनी की आंखों में आंसू भर आए, ‘दीदी, पति के जिस प्यार को पाने के लिए मैं ने इतने कष्ट सहे, वह तो आज तक मेरे हिस्से में नहीं आया. सुशांत काफी समय से मुझ से कटेकटे रहते थे. पहले तो मैं समझती थी कि दुर्घटना के कारण उन में बदलाव आया होगा. पर आजकल मुझ से बात करना तो दूर वह मेरी तरफ देखते तक नहीं हैं.
‘कल रात को मैं ने जब उन से इस बेरुखी की वजह पूछी तो वह मुझ पर बिफर उठे कि क्या बात करूं, मैं तुम से? अरे, तुम से शादी कर के तो अब मैं पछता रहा हूं. कैसी मनहूस पत्नी हो तुम? तुम्हारे मांगलिक होने के कारण मेरी तो जान ही जाने वाली थी. वह तो जोशी बाबा की पूजा, अम्मां की मन्नतें, घर वालों का प्यार ही था, जो मैं बच गया.
‘मुझे तो अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ. पहली बार पता चला कि सुशांत के दिल में मेरे लिए इतना जहर भरा है. मैं ने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की. मैं ने यह भी कहा कि आप तो जन्मकुंडली मांगलिक अमांगलिक यह सब नहीं मानते थे.
‘मेरी बात सुनते ही सुशांत गुस्से में भड़क गए थे कि उसी का तो अंजाम भुगत रहा हूं. अम्मां और पिताजी तो तुम से शादी करने के पक्ष में ही नहीं थे. काश, उस वक्त मैं ने उन का और जोशी बाबा का कहा माना होता तो कम से कम मेरी जान पर तो न बन आती.
‘आप यह क्या कह रहे हैं? 2 साल मैं ने कितने जी जान से आप की सेवा की, इस उम्मीद में कि हम आप के ठीक होने के बाद, अपने प्यार की दुनिया बसाएंगे. अब आप ठीक हो गए तो अंधविश्वास को आधार बना कर मुझ से इतनी नफरत कर रहे हैं? मैं सबकुछ सह सकती हूं, पर आप की नफरत नहीं सह सकती.
‘वह बोले कि नहीं सह सकतीं तो चली जाओ अपने बाप के घर, रोका किस ने है? तुम से जितनी जल्दी पीछा छूटे, उसी में मेरी बेहतरी है और ऐसी क्या सेवा की है तुम ने? जो तुम ने किया है वह तो चंद पैसों के बदले कोई नर्स भी तुम से बेहतर कर सकती थी. यह कह सुशांत बिना कुछ खाए ही काम पर चले गए.’
इतना बता कर नलिनी फूटफूट कर रो पड़ी.