बदला: सुगंधा ने कैसे लिया रमेश से बदला

‘‘सुगंधा, तुम बहुत खूबसूरत हो. तुम्हारी खूबसूरती पर मैं एक क्या कई जन्म कुरबान कर सकता हूं.’’ ‘‘चलो हटो, तुम बड़े वो हो. कुछ ही मुलाकातों में मसका लगाना शुरू कर दिया. मुझे तुम्हारी कुरबानी नहीं, बल्कि प्यार चाहिए,’’ फिर अदा से शरमाते हुए सुगंधा ने रमेश के सीने पर अपना सिर टिका दिया.

रमेश ने सुगंधा के बालों में अपनी उंगलियां उलझा दीं और उस के गालों को सहलाते हुए बोला, ‘‘सुगंधा, मैं जल्दी ही तुम से शादी करूंगा. फिर अपना घर होगा, अपने बच्चे होंगे…’’ ‘‘रमेश, तुम शादी के वादे से मुकर तो नहीं जाओगे?’’

‘‘सुगंधा, तुम कैसी बात करती हो? क्या तुम को मुझ पर भरोसा नहीं?’’ सुगंधा रमेश की बांहों व बातों में इस कदर डूब गई कि रमेश का हाथ कब उस के नाजुक अंगों तक पहुंच गया, उस को पता ही नहीं चला. फिर यह सोच कर कि अब रमेश से उस की शादी होगी ही, इसलिए उस ने रमेश की हरकतों का विरोध नहीं किया.

दोनों की मुलाकातें बढ़ती गईं और हर मुलाकात के साथ जीनेमरने की कसमें खाई जाती रहीं. रमेश ने शादी का वादा कर के सुगंधा के साथ जिस्मानी संबंध बना लिया और फिर अकसर दोनों होटलों में मिलते और जिस्म की भूख मिटाते. इस तरह दोनों जब चाहते जवानी का मजा लूटते.

रमेश इलाहाबाद के पास के एक गांव का रहने वाला था. उस के परिवार में मातापिता और एक छोटा भाई दिनेश था. छोटे से परिवार में सभी अपनेअपने कामों में लगे हुए थे. पिताजी पोस्टमास्टर के पद से रिटायर हो कर अब घर पर ही रह कर खेतीबारी का काम देखने लगे थे. छोटा भाई दिनेश दिल्ली यूनिवर्सिटी से एमए कर रहा था.

लखनऊ में एक विदेशी फर्म में कैशियर के पद पर काम करने की वजह से रमेश लखनऊ में एक फ्लैट ले कर रह रहा था. चूंकि घरपरिवार ठीक था और नौकरी भी अच्छी थी, इसलिए उस की शादी भी हो गई थी. बीवी को वह साथ नहीं रखता था, क्योंकि मां से घर का काम नहीं होता था. रमेश जिस फर्म में काम करता था, उसी फर्म में सुगंधा क्लर्क के पद पर काम करने आई थी.

सुगंधा को देखते ही रमेश उस पर मोहित हो गया और डोरे डालना शुरू कर दिया. रमेश की शराफत, पद और हैसियत देख कर सुगंधा भी उसे पसंद करने लगी. रमेश ने सुगंधा को बताया कि वह कुंआरा है और उस से शादी करना चाहता है. अब चूंकि रमेश ने उस से शादी का वादा किया, तो वह पूरी तरह उस की बातों में ही नहीं, आगोश में भी आ गई.

समय सरकता गया. रमेश सुगंधा की देह में इस कदर डूब गया कि घर भी कम जाने लगा. वह घर वालों को पैसा भेज देता और चिट्ठी में छुट्टी न मिलने का बहाना लिख देता था. एक दिन पार्क में जब वे दोनों मिले, तो सुगंधा ने रमेश से कहा, ‘‘रमेश, अब हमें शादी कर लेनी चाहिए. अभी तक आप ने मुझे अपने घर वालों से भी नहीं मिलाया है. मुझे जल्दी ही अपने मातापिता से मिलवाइए और उन्हें शादी के बारे में बता दीजिए.’’

रमेश सुगंधा को आगोश में लेते हुए बोला, ‘‘अरी मेरी सुग्गो, अभी शादी की जल्दी क्या है? शादी भी कर लेंगे, कहीं भागे तो जा नहीं रहे हैं?’’ ‘‘नहीं, मुझे शादी की जल्दी है. रमेश, अब मुझे अकेलापन अच्छा नहीं लगता है,’’ सुगंधा ने कहा.

‘‘ठीक है, कल शाम को मेरे कमरे पर आ जाना. वहीं शादी के बारे में बात करेंगे,’’ रमेश ने सुगंधा के नाजुक अंगों से खेलते हुए कहा. ‘‘मैं शाम को 8 बजे आप के कमरे पर आऊंगी,’’ रमेश ने सुगंधा के होंठों का एक चुंबन ले कर उस से विदा ली.

रमेश ने अभी तक शादी का वादा कर सुगंधा के साथ खूब मौजमस्ती की, लेकिन उस की शादी की जिद से उसे डर लगने लगा था. सच तो यह था कि वह सुगंधा से छुटकारा पाना चाहता था, क्योंकि एक तो सुगंधा से उस का मन भर गया था. दूसरे, वह उस से शादी नहीं कर सकता था. शाम को 8 बजने वाले थे कि रमेश के कमरे पर सुगंधा ने दस्तक दी. रमेश ने समझ लिया कि सुगंधा आ गई है. उस ने दरवाजा खोला और उसे बैडरूम में

ले गया. ‘‘हां, अब बताओ सुगंधा, तुम्हें शादी की क्यों जल्दी है? अभी कुछ दिन और मौजमस्ती से रहें, फिर शादी करेंगे,’’ रमेश ने उसे सीने से चिपकाते हुए कहा.

‘‘नहीं, जल्दी है. उस की कुछ वजहें हैं.’’

‘‘क्या वजहें हैं?’’ रमेश ने चौंकते हुए पूछा. तभी बाहर दरवाजे पर हुई दस्तक से दोनों चौंके. रमेश सुगंधा को छोड़ कर दरवाजा खोलने के लिए चला गया. सुगंधा घबरा कर एक तरफ दुबक कर बैठ गई.

इतने में रमेश को धकेलते हुए 3 लोग बैडरूम में आ गए.

‘‘अरे, तू तो कहता था कि यहां अकेले रहता?है. ये क्या तेरी बीवी है या बहन,’’ उन में से एक पहलवान जैसे शख्स ने कहा. ‘‘देखो, जबान संभाल कर बात करो,’’ रमेश ने कहा.

तभी एक ने रमेश के गाल पर जोर का थप्पड़ मारा और उसे जबरदस्ती कुरसी पर बैठा कर बांध दिया. तीनों सुगंधा की ओर बढ़े और उसे बैड पर पटक दिया. सुगंधा चीखतीचिल्लाती रही. उन से हाथ जोड़ती रही, पर उन्होंने एक न सुनी और बारीबारी से तीनों ने उस के साथ बलात्कार किया. उधर रमेश कुरसी से बंधा कसमसाता रहा.

जब सुगंधा को होश आया, तो वह लुट चुकी थी. उस का अंगअंग दुख रहा था. वह रोने लगी. रमेश उसे हिम्मत बंधाता रहा. फिर सुगंधा के आंसू पोंछते हुए रमेश ने कहा, ‘‘सुगंधा, इस को हादसा समझ कर भूल जाओ. हम जल्दी ही शादी कर लेंगे, जिस से यह कलंक मिट जाएगा.’’

सुगंधा उठी और अपने घर चली गई. वह एक हफ्ता की छुट्टी ले कर कमरे पर ही रही और भविष्य के बारे में सोच कर परेशान होती रही थी, लेकिन रमेश द्वारा शादी का वादा उसे कुछ राहत दे रहा था. सुगंधा हफ्तेभर बाद रमेश से मिली, तब बोली कि अब वह जल्द ही उस से शादी कर ले, क्योंकि वह बहुत परेशान है और वह उस के बच्चे की मां बनने वाली है.

‘‘क्या कहा तुम ने? तुम मेरे बच्चे की मां बनने वाली हो? सुगंधा, तुम होश में तो हो. अब तो यह तुम मुझ पर लांछन लगा रही हो. मालूम नहीं, यह मेरा बच्चा है या किसी और का,’’ रमेश ने हिकारत भरी नजरों से देखते हुए कहा. ‘‘नहींनहीं रमेश, ऐसा मत कहो. यह तुम्हारा ही बच्चा है. हादसे वाले दिन मैं तुम से यही बात बताने वाली थी,’’ सुगंधा ने कहा, पर रमेश ने धक्का दे कर उसे निकाल दिया.

सुगंधा जिंदगी के बोझ से परेशान हो उठी. जब लोगों को मालूम होगा कि वह बगैर शादी के मां बनने वाली है, तो लोग उसे जीने नहीं देंगे. अब वह जान दे देगी. अचानक रमेश का चेहरा उस के दिमाग में कौंधा, ‘धोखेबाज ने आखिर अपना असली रूप दिखा ही दिया.’

एक दिन जब सुगंधा बाजार जा रही थी, तो देखा कि रमेश किसी से बातें कर रहा था. उस आदमी का डीलडौल उसे कुछ पहचाना सा लगा. सुगंधा ने छिपते हुए नजदीक जा कर देखा, तो रमेश जिन लोगों से हंस कर बातें कर रहा था, वे वही लोग थे, जिन्होंने उस रात उस के साथ बलात्कार किया था.

अब सुगंधा रमेश की साजिश समझ गई थी. उस ने मन में ठान लिया कि अब वह मरेगी नहीं, बल्कि रमेश जैसे भेडि़ए से बदला लेगी. रमेश से बदला लेने की ठान लेने के बाद सुगंधा ने पहले परिवार के बारे में पता लगाया. जब मालूम हुआ कि रमेश शादीशुदा है, तो वह और भी जलभुन गई. उसे पता चला कि उस का छोटा भाई दिनेश दिल्ली में पढ़ाई कर रहा था. उस ने लखनऊ की नौकरी छोड़ दी.

दिल्ली जा कर सब से पहले सुगंधा ने अपना पेट गिराया, फिर उस ने वहीं एक कमरा किराए पर ले लिया, जहां दिनेश रहता था. धीरेधीरे उस ने दिनेश पर डोरे डालना शुरू किया. दिनेश को जब सुगंधा ने पूरी तरह अपने जाल में फांस लिया, तब उस ने दिनेश को शादी के लिए उकसाया. उस ने शादी की रजामंदी दे दी.

दिनेश ने रेलवे परीक्षा में अंतिम रूप से कामयाबी पा ली. अब वह अपनी मरजी का मालिक हो गया. उस ने सुगंधा से शादी के लिए अपने मातापिता को लिख दिया. लड़का अपने पैरों पर खड़ा हो गया है, इसलिए उन्होंने भी शादी की इजाजत दे दी. सुगंधा ने भी शर्त रखी कि शादी कोर्ट में ही करेगी. दिनेश को कोई एतराज नहीं हुआ.

जब दिनेश ने अपने मातापिता को लिखा कि उस ने कोर्ट में शादी कर ली है, तो उन्हें इस बात का मलाल जरूर हुआ कि घर में शादी हुई होती, तो बात ही कुछ और थी. अब जो होना था हो गया. उन्होंने गृहभोज के मौके पर दोनों को घर बुलाया. पूरा घर सजा था. बहुत से मेहमान, दोस्त, सगेसंबंधी इकट्ठा थे. रमेश भी उस मौके पर अपने दोस्तों के साथ आया था. दुलहन घूंघट में लाई गई.

मुंह दिखाई के समय रमेश और उस के दोस्त उपहार ले कर पहुंचे. रमेश ने जब दुलहन के रूप में सुगंधा को देखा, तो उस के पैरों के नीचे की जमीन ही खिसक गई. रमेश और उस के दोस्त जिन्होंने सुगंधा के साथ बलात्कार किया था, सब का चेहरा शर्म से झुक गया. इस तरह सुगंधा ने अपना बदला लिया.

कीमती चीज: पैसों के लालच में सौतेले पिता ने क्या काम किया

‘‘मैडम,क्या मैं अंदर आ सकता हूं?’’ अभिनव ने दरवाजे के बाहर से आवाज दी.

‘‘बताइए क्या काम है?’’  अंदर से आवाज आई.

‘‘जी मैं एक सेल्समैन हूं. हाउसवाइफ्स के लिए एक अनोखा औफर ले कर आया हूं,’’ अभिनव ने अंदर झांकते हुए कहा.

सुनैना अपने बाल समेटती कमरे में से बाहर निकली. उस समय वह नाईटी में थी. गोरे रंग और आकर्षक नैननक्स वाली सुनैना की खूबसूरती किसी को भी मोह सकती थी. उस की बड़ीबड़ी आंखों में कुतूहल साफ नजर आ रहा था. अभिनव से नजरें मिलते ही दोनों कुछ पल के लिए एकदूसरे को देखते रह गए. खुद को सेल्समैन बताने वाला अभिनव अच्छी कदकाठी का सभ्रांत युवक था.

‘‘आइए बैठिए न,’’ सुनैना ने उस से बैठने का आग्रह किया और फिर खुद भी पास ही बैठ गई.

‘‘कहिए क्या बात है?’’ सुनैना ने पूछा.

‘‘जी मैं हाउसवाइफ्स के लिए एक औफर ले कर आया हूं.’’

‘‘कैसा औफर?’’ सुनैना ने मुसकराते हुए पूछा.

‘‘दरअसल, मेरे पास किचन एंप्लायंसिस की एक लंबी रेंज है. आप को पसंद आए तो औनलाइन भी और्डर कर सकती हैं. मिक्सर ग्राइंडर जूसर की एक रेंज साथ

भी लाया हूं. फौर ए ट्रायल आप इस का प्रयोग कर के देखें. इस के साथ ही एक प्रैस बिलकुल फ्री है. हमारे पास दूसरी किसी भी कंपनी के मुकाबले कम कीमत में बैस्ट औफर्स हैं. हमारे ये प्रोडक्ट्स दूसरों से अलग हैं. मैं इन की खासीयतें 1-1 कर बताता हूं.’’

सुनैना एकटक अभिनव की तरफ देखती हुई बोली, ‘‘इन बेजुबान, बेजबान चीजों में भला क्या खासीयत हो सकती है? मुझे तो आप के बोलने के अंदाज में खासीयत लग रही है.’’

अभिनव एकदम से शरमा गया. फिर हंसता हुआ बोला, ‘‘मैडम, आप भी ऐसी बातें कर इस नाचीज की कीमत बढ़ा रही हैं.’’

‘‘मैं कीमत कहां बढ़ा रही? जिंदगी में किसी भी चीज की कीमत बढ़ाई या घटाई नहीं जा सकती. हर इंसान के लिए एक ही चीज की कीमत अलगअलग होती है. मेरे पति की नजर में ऐसी चीजें ही कीमती हैं, जो लोगों के आगे उन की शान को बढ़ाती हैं, मगर मेरे लिए ऐसी चीजें कीमती हैं, जो किसी की आंखों में मुसकान सजाती हैं.’’

अभिनव बिलकुल गंभीर हो कर बोला, ‘‘कितनी खूबसूरत सोच है आप की. काश, हर इंसान ऐसे ही सोचता. बुरा न मानें तो एक बात कहूं मैडम, आप दूसरी महिलाओं से बहुत अलग हैं.’’

‘‘मैं भी एक बात कहना चाहती हूं अभिनवजी. मुझे अपने लिए मैडम सुनना बिलकुल पसंद नहीं. आप मुझे सुनैना कह सकते हैं. मेरा नाम सुनैना है.’’

‘‘यथा नाम तथा गुण. सुनैना यानी सुंदर आंखें. वाकई आप की आंखें  बेहद खूबसूरत हैं सुनैनाजी,’’ सुनैना की आंखों में झंकते हुए अभिनव ने कहा.

सुनैना कुछ सोचती हुई बोली, ‘‘पता नहीं मुझे क्यों लग रहा है जैसे आप सेल्समैन हो ही नहीं सकते. आप कुछ और ही हो.’’

अभिनव ने खुद को संभाला और जल्दी से सेल्समैन की टोन में बोला, ‘‘नो मैम मैं सेल्समैन ही हूं. हमारी कंपनी ने कुछ नए प्रोडक्ट्स लौंच किए हैं, उन से आप का परिचय करा दूं. यकीनन आप को हमारे प्रोडक्ट्स पसंद आएंगे और आप इन्हें जरूर खरीदेंगी. मैम क्या मैं डैमो दे सकता हूं?’’

‘‘औफकोर्स औफ डैमो दिखा सकते हो, मगर मैं घर में अकेली हूं. आप को किचन में कैसे ले जाऊं?’’ सुनैना ने मजबूरी बताई.

‘‘छोडि़ए फिर आप ऐसे ही फील कीजिए… यह प्रोडक्ट कितना अच्छा है,’’ कहते हुए अभिनव ने मशीन सुनैना को थमाई तो दोनों के हाथ एकदूसरे से स्पर्श हो गए.

सुनैना ने उस की तरफ देखते हुए हौले से कहा, ‘‘फील तो मैं कर रही हूं.’’

अभिनव एकदम से असहज हो उठा और कहने लगा, ‘‘प्लीज, एक गिलास पानी मिलेगा?’’

‘‘बिलकुल,’’ कह सुनैना अंदर गई और पानी ले आई.

पानी पीते हुए अभिनव बोला, ‘‘बुरा न मानें तो एक बात कहूं, आप के पति और आप का कोई मैच नहीं. स्वभाव के साथ आप दोनों की उम्र में भी बहुत अंतर है.’’

‘‘मैं जानती हूं पर क्या मैं पूछ सकती हूं कि आप मेरे पति को कैसे जानते हैं?’’

‘‘मैं नहीं जानता … आप ने बताया था न… ’’ अभिनव हकलाते हुए बोला.

‘‘अच्छा मैं चाय भी बना लाती हूं. आप थक गए होंगे.’’

‘‘धन्यवाद.’’

सुनैना 2 कप चाय बना कर ले आई. दोनों बैठ कर चाय पीने लगे. दोनों अजनबी थे, मगर एकदूसरे के लिए अलग तरह का आकर्षण महसूस कर रहे थे. कहीं न कहीं अभिनव सुनैना का दर्द महसूस कर रहा था. सुनैना भी समझ रही थी कि यह कोई साधारण सेल्समैन नहीं.

‘‘मेरे पति केवल पैसों से प्यार करते हैं,’’ सुनैना ने खामोशी तोड़ते हुए कहा.

‘‘जी हां पैसों के लिए वे किसी की जिंदगी से भी खेल सकते हैं,’’ अभिनव बोल पड़ा.

सुनैना ने फिर से उस की तरफ सवालिया नजरों से देखा.

अभिनव ने सामने टंगी सुनैना और उस के पति के फोटो को देखते हुए कहा, ‘‘वे आप से प्यार नहीं करते?’’

‘‘नहीं उन के लिए जज्बातों की कोई कीमत नहीं. मगर मैं आप से ये सब क्यों कह रही हूं?’’

‘‘क्योंकि मेरे अंदर आप को एक दोस्त नजर आया है. यकीन मानिए मुझे जज्बातों की बहुत ज्यादा कद्र है. यदि आप ने वाकई मुझे अपना दोस्त माना तो मैं आप के लिए बहुत कुछ कर सकता हूं. पर यदि आप को मुझ पर जरा सा भी शक है तो मैं अभी अपना सारा सामान ले कर निकल जाऊंगा.’’

‘‘मुझे आप पर कोई शक नहीं, उलटा शक तो मुझे अपने पति पर है. जरूर उन्होंने आप के साथ कुछ गलत किया होगा, जिस का बदला लेने आप यहां आए हैं,’’ सुनैना ने अभिनव पर नजरें जमाते हुए कहा.

सुनैना के मुंह से बदला शब्द सुनते ही अभिनव चौंक  गया, ‘‘मगर यह बात आप को कैसे पता चली?’’

‘‘मैं पानी लेने गई तब और जब चाय बना रही थी तब, आप की आंखें घर में कुछ ढूंढ़ रही थीं. आप मेरे पति के स्वभाव के बारे में भी जानते हैं. यही नहीं मेरे पति की तसवीर आप ने जिस नफरत से देखी उस से भी स्पष्ट था कि आप का उन से पहले ही सामना हो चुका है. एक सवाल यह भी है कि हमारे इस मुहल्ले में आज तक तो कोई सेल्समैन आया नहीं, फिर आज आप कैसे आ गए और वह भी बीच के सारे घरों को छोड़ कर सीधा मेरे घर आ कर बैल बजाई. इन्हीं सब बातों पर गौर कर मैं ने यह निष्कर्ष निकाला कि जरूर आप के मन में कोई बात है.’’

‘‘आप तो सच में काफी ब्रिलियंट हैं. मेरे बिना कुछ बोले भी आप ने हर बात पर नजर रखी. फिर तो आप को यह भी एहसास हो गया होगा कि आप के लिए मेरी क्या फीलिंग है?’’ अभिनव की आंखों में प्यार झलक उठा.

‘‘हां एहसास तो हो गया है कि आप मुझे पसंद करने लगे हैं. मेरा स्पर्श आप को विचलित कर रहा है. हमारे बीच आकर्षण का एक सेतु बनता जा रहा है. मैं थोड़ी भी कमजोर पड़ी तो हमारे बीच कुछ भी हो सकता है.’’

अभिनव ने अचानक बढ़ कर सुनैना को बांहों में भर लिया. सुनैना ने भी कोई प्रतिरोध नहीं किया. दोनों को एकदूसरे के मन की थाह मिल चुकी थी. कुछ देर इस खूबसूरत पल का आनंद लेने के बाद सुनैना अलग हो गई और अभिनव को बैठने का इशारा किया.

‘‘दिल का सौदा करने से पहले जरूरी है कि मुझे यह पता चले कि आप कौन हैं, कहां से आए हैं और क्या चाहते हैं?’’ सुनैना ने कहा.

‘‘कहानी लंबी है. शुरुआत से बतानी होगी.’’

‘‘मुझे भी कोई हड़बड़ी नहीं है. आप बताइए,’’ सुनैना ने इत्मीनान से कहा.

‘‘ऐक्चुअली मैं एक साधारण मध्यवर्गीय परिवार का इकलौता कमाऊ बेटा हूं. मैं ने एमबीए किया हुआ है और एक कंपनी में जौब करता था. इस बीच हमारी कंपनी में घोटाला हुआ, जिस में करोड़ों की रकम चोरी की गई. आप के पति हमारी कंपनी में काफी सीनियर पद पर हैं. घोटाला उन्होंने किया और नाम मेरा लगा दिया. मेरे खिलाफ गवाही दे कर मुझे चोरी और धोखाधड़ी के मामले में फंसा दिया. मुझे जेल भेज दिया गया.

‘‘आप ही बताइए किसी घर के कमाऊ बेटे के साथ ऐसा किया जाए तो मांबाप  पर क्या बीतेगी. किसी तरह मैं ने अपनी बेगुनाही का सुबूत दे कर खुद को जेल से बाहर निकाला. जेल जाते समय मैं ने प्रण किया था कि दिनदहाड़े आप के पति के घर में घुस कर उन की सब से कीमती चीज चुरा कर ले जाऊंगा.’’

‘‘ओके तो आप चोरी के मकसद से आए हैं,’’  हलके से मुसकराते हुए सुनैना ने कहा.

‘‘देखिए मैं आया तो चोरी के मकसद से ही था, मगर अब आप से मिल कर ऐसा कुछ करने की इच्छा नहीं हो रही.’’

‘‘अगर आप चोरी के मकसद से आए थे तो ठीक है न. मैं कहती हूं आप को जो भी चीज कीमती लग रही है उसे ले जाइए. मैं आप को तिजोरी और अलमारी की चाभी देती हूँ. देखिए आप के साथ नाइंसाफी हुई है तो उस का बदला जरूर लीजिए. मैं जानती हूं आप सच कह रहे हैं. मेरे पति ऐसे ही हैं. वे केवल अपना लाभ देखते हैं भले किसी की जान ही क्यों न चली जाए. ये लीजिए चाबियां.’’

‘‘नहीं ऐसा मत कीजिए. आप के पति नाराज हो जाएंगे. फिर वे आप के साथ कुछ भी कर सकते हैं,’’ अभिनव ने हिचकिचाते हुए कहा.

‘‘वे खुश ही कब रहते हैं, जो आज नाराज हो जाएंगे. यह कोई बड़ी बात नहीं है. वैसे भी मैं ने उन्हें छोड़ने का मन बना लिया है. किसी भी दिन उन्हें छोड़ कर चली जाऊंगी. इसलिए आप मेरी चिंता न करें,’’ कह सुनैना ने तिजोरी और अलमारी खोल दी. तिजोरी में गहने और अलमारी में रुपयों की गड्डियां रखी थीं, मगर अभिनव ने उन की तरफ देखा भी नहीं.

‘‘माना पहले तिकड़म लगा कर मैं आप के घर चोरी करने वाला था, मगर अब आप से मुलाकात के बाद मैं ऐसा सोच भी नहीं सकता… बिलकुल भी नहीं.’’

‘‘मैं ने कहा न आप मेरी चिंता बिलकु  न करें. यकीन मानिए पहली दफा मैं उस शख्स का साथ देना चाहती हूं, जिस का मकसद चोरी करना है, वह भी मेरे घर में. प्लीज डौंट हैजिटेट.’’

‘‘नहीं अब नहीं. मैं ने आप को दोस्त मान लिया है. एक दोस्त के घर चोरी कैसे कर सकता हूं?’’

‘‘पर मैं एक दोस्त के मकसद के आड़े भी कैसे आ सकती हूं? मैं कह रही हूं न अपना बदला पूरा करो.’’

‘‘ठीक है मुझे सोचने का समय दीजिए.’’

‘‘चोर बैठ कर सोचते नहीं, कर गुजरते हैं. कहीं तुम्हें यह डर तो नहीं लग रहा कि मैं तुम्हें पकड़वा सकती हूं, पुलिस बुला सकती हूं?’’  सुनैना ने पूछा.

‘‘पता नहीं क्यों पर यह डर बिलकुल नहीं है. अगर आप ने ऐसा कुछ किया भी तो मैं खुशीखुशी फिर से जेल जाने को तैयार हूं,’’ यह बात कहते हुए अभिनव सुनैना के करीब आ गया था. सुनैना ने उस की तरफ कातिलाना नजरों से देखा तो अभिनव ने फुसफुसा कर कहा,’’  ऐ हुस्न वाले, तू कत्ल भी कर दे तो कोई गम नहीं.’’

सुनैना भी शोख नजरों से देखती हुई बोली, ‘‘कमाल करते हो तुम भी. चुराने आए थे सामान और दिल चुरा कर ले गए.’’

‘‘ऐ हंसी तेरे दिल से कीमती कुछ और दिखा ही नहीं. तेरी इनायत है, जो इस नाचीज को नगीना मिल गया,’’  अभिनव ने उसी लहजे में जवाब दिया.

इस तरह शायराना अंदाज में बातें करतेकरते कब दोनों एकदूसरे के करीब  आ गए, पता ही नहीं चला. सुनैना, जिसे आज तक पति का प्यार नहीं मिला था, एक अनजान शख्स के लिए तड़प उठी थी तो वहीं अभिनव भी कहां जानता था कि जिस के घर चोरी करने और बदला लेने जा रहा है वहां अपने दिल का सौदा कर आएगा.

सुनैना ने बताया, ‘‘मेरी शादी एक धोखा थी. मेरे सौतेले पिता ने मुझे इन के कजिन का फोटो दिखाया था और कहा था कि मैं उस के साथ एक खुशहाल जिंदगी जीऊंगी, पर मुझे क्या पता था कि मेरी जिंदगी का सौदा किया गया है.

मेरे सौतेले पिता ने चंद रुपयों की खातिर मुझे अपने से दोगुनी उम्र के व्यक्ति के हाथ बेच दिया था. ये विधुर थे. पहली पत्नी ऐक्सीडैंट में मर गई थी. मेरे साथ इन का रिश्ता पहले दिन से ही मालिक और दासी का रहा है न कि पतिपत्नी का.

मायके में सौतेले पिता के सिवा अब कोई नहीं. यहां भी इन के सिवा सिर्फ नौकरचाकर हैं. अपना दर्द किस से कहती. इसलिए परिस्थितियों से समझौता कर लिया, पर तुम से मिल कर ऐसा लग रहा है जैसे मेरे जीवन में खुशियों के गुल फिर से खिलने वाले हैं. मुझे एक नई जिंदगी मिल गई है.’’

‘‘मैं ने भी प्यार के नाम पर केवल धोखे खाए हैं. इसलिए अब तक शादी नहीं की. अब समझ आता है कि इन सब के पीछे वजह क्या थी. दरअसल, तुम्हारे साथ मेरी कहानी जो पूरी होनी थी.’’

दोनों देर तक एकदूसरे से प्यार भरी बातें करते रहे. फिर अचानक सुनैना को  होश आया तो घबरा कर बोली, ‘‘देखो अब तुम्हारे पास ज्यादा समय नहीं है. वे आते होंगे, इसलिए जल्दी से फैसला करो कि तुम्हें यहां से क्या ले जाना है.’’

‘‘यदि मैं कहूं कि मुझे तुम्हें ले जाना है तो तुम्हारा जवाब क्या होगा?’’ हिम्मत कर के अभिनव ने अपने दिल की बात कह दी.

‘‘मेरा जवाब…’’ कहतेकहते सुनैना चुप हो गई. ‘‘बताओ सुनैना तुम्हारा जवाब क्या होगा?’’  बेचैन हो कर अभिनव ने पूछा.

‘‘मेरा जवाब यही होगा कि मैं खुद इस सोने के पिंजरे में रह कर थक चुकी हूं. अब एक परिंदे की भांति खुल कर उड़ान भरना चाहती हूं. मैं अनुमति देती हूँ,  तुम मुझे  मेरे घर से चुरा कर ले चलो. मैं तैयार हूं अभिनव.’’

‘‘तो ठीक है मैं तुम्हें यानी इस घर की सब से कीमती चीज को चुरा कर ले जा रहा हूं. मेरा बदला इतना खूबसूरत रुख ले कर पूरा होगा यह तो मैं ने सोचा भी नहीं था,’’ और फिर दोनों ने एकदूसरे का हाथ थामा और एक नई जिंदगी की शुरुआत के लिए निकल पड़े.

पहेली: क्या ससुराल में शिखा को प्रताड़ित किया जाता था!

 मैं शनिवार की शाम औफिस से ही एक रात मायके में रुकने आ गई. सीमा दीदी भी 2 दिनों के लिए आई हुई थी. सोचा सब से जी भर कर बातें करूंगी पर मेरे पहुंचने के घंटे भर बाद ही रवि का फोन आ गया.

मैं बाथरूम में थी, इसलिए मम्मी ने उन से बातें करीं.

‘‘रवि ने फोन कर के बताया है कि तेरी सास को बुखार आ गया है,’’ कुछ देर बाद मुझे यह जानकारी देते हुए मां साफतौर पर नाराज नजर आ रही थीं.

मैं फौरन तमतमाती हुई बोली, ‘‘अभी मुझे यहां पहुंचे 1 घंटा भी नहीं हुआ है कि बुलावा आ गया. सासूमां को मेरी 1 दिन की आजादी बरदाश्त नहीं हुई और बुखार चढ़ा बैठीं.’’

‘‘क्या पता बुखार आया भी है या नहीं,’’ सीमा दीदी ने बुरा सा मुंह बनाते हुए अपने मन की बात कही.

‘‘मैं ने जब आज सुबह सासूमां से यहां 1 रात रुकने की इजाजत मांगी थी, तभी उन का मुंह फूल गया था. दीदी तुम्हारी मौज है, जो सासससुर के झंझटों से दूर अलग रह रही हो,’’ मेरा मूड पलपल खराब होता जा रहा था.

‘‘अगर तुझे इन झंझटों से बचना है, तो तू अपनी सास को अपनी जेठानी के पास भेजने की जिद पर अड़ जा,’’ सीमा दीदी ने वही सलाह दोहरा दी, जिसे वे मेरी शादी के महीने भर बाद से देती आ रही हैं.

‘‘मेरी तेजतर्रार जेठानी के पास न सासूमां जाने को राजी हैं और न बेटा भेजने को. तुम्हें तो पता ही है पिछले महीने सास को जेठानी के पास भेजने को मेरी जिद से खफा हो कर रवि ने मुझे तलाक देने की धमकी दे दी थी. अपनी मां के सामने उन की नजरों में मेरी कोई वैल्यू नहीं है, दीदी.’’

‘‘तू रवि की तलाक देने की धमकियों से मत डर, क्योंकि हम सब को साफ दिखाई देता है कि रवि तुझ पर जान छिड़कता है.’’

‘‘सीमा ठीक कह रही है. तुझे रवि को किसी भी तरह से मनाना होगा. तेरी सास को दोनों बहुओं के पास बराबरबराबर रहना चाहिए,’’ मां ने दीदी की बात का समर्थन किया.

मैं ने गहरी सांस छोड़ते हुए कहा, ‘‘मां, फिलहाल मुझे वापस जाना होगा.’’

‘‘पागलों जैसी बात न कर,’’ मां भड़क उठीं, ‘‘तू जब इतने दिनों बाद सिर्फ 1 दिन को बाहर निकली है, तो यहां पूरा आराम कर के जा.’’

‘‘मां, मेरी जिंदगी में आराम करना कहां लिखा है? मुझे वापस जाना ही पड़ेगा,’’ कह अपना बैग उठा कर मैं ड्राइंगरूम की तरफ चल पड़ी.

‘‘शिखा, तू इतना डर क्यों रही है? देख, रवि ने तेरे फौरन वापस आने की बात एक बार भी मां से नहीं कही है,’’ दीदी ने मुझे रोकने को समझाने की कोशिश शुरू की.

‘‘दीदी, अगर मैं नहीं गई, तो इन का मूड बहुत खराब हो जाएगा. तुम तो जानती ही हो कि ये कितने गुस्से वाले इनसान हैं.’’

उन सब का समझाना बेकार गया और करीब घंटे भर बाद मुझे दीदी व जीजाजी कार से वापस छोड़ गए. अपनी नाराजगी दर्शाने के लिए दोनों अंदर नहीं आए.

मुझे अचानक घर आया देख रवि चौंकते हुए बोले, ‘‘अरे, तुम वापस क्यों आ गई हो?

मैं ने तुम्हें बुलाने के लिए थोड़े ही फोन किया था.’’

मेरे लौट आने से उन की आंखों में पैदा हुई खुशी की चमक को नजरअंदाज करते हुए मैं ने शिकायत की, मुझे 1 दिन भी आप ने चैन से अपने मम्मीपापा के घर नहीं रहने दिया. क्या 1 रात के लिए आप अपनी बीमार मां की देखभाल नहीं कर सकते थे?

‘‘सच कह रहा हूं कि मैं ने तुम्हारी मम्मी से तुम्हें वापस भेजने को नहीं कहा था.’’

‘‘वापस बुलाना नहीं था, तो फोन क्यों किया?’’

‘‘फोन तुम्हें सूचना देने के लिए किया था, स्वीटहार्ट.’’

‘‘क्या सूचना कल सुबह नहीं दी जा सकती थी?’’ मेरे सवाल का उन से कोई जवाब देते नहीं बना.

उन के आगे बोलने का इंतजार किए बिना मैं सासूमां के कमरे की तरफ चल दी.

सासूमां के कमरे में घुसते ही मैं ने तीखी आवाज में उन से एक ही सांस में कई सवाल पूछ डाले, ‘‘मम्मीजी, मौसमी बुखार से इतना डरने की क्या जरूरत है? क्या 1 रात के लिए आप अपने बेटे से सेवा नहीं करा सकती थीं? मुझे बुलाने को क्यों फोन कराया आप ने?’’

‘‘मैं ने एक बार भी रवि से नहीं कहा कि तुझे फोन कर के बुला ले. इस मामले में मेरे ऊपर चिल्लाने की कोई जरूरत नहीं है, बहू,’’ सासूमां फौरन मुझ से भिड़ने को तैयार हो गईं.

‘‘इन के लिए तो मैं खाना साथ लाई हूं. आप ने क्या खाया है? मैं सुबह जो दाल बना कर…’’

‘‘मेरा मन कोई दालवाल खाने का नहीं कर रहा है,’’ उन्होंने नाराज लहजे में जवाब दिया.

‘‘तो बाजार से टिक्की या छोलेभठूरे मंगवा दूं?’’

‘‘बेकार की बातें कर के तू मेरा दिमाग मत खराब कर, बहू.’’

‘‘सच में मेरा दिमाग खराब है, जो आप की बीमारी की खबर मिलते ही यहां भागी चली आई. जिस इनसान के पास इतनी जोर से चिल्लाने और लड़ने की ऐनर्जी है, वह बीमार हो ही नहीं सकता है,’’ मैं ने उन के माथे पर हाथ रखा तो मन ही मन चौंक पड़ी, क्योंकि मुझे महसूस हुआ मानो गरम तवे पर हाथ रख दिया हो.

‘‘तू मुझे और ज्यादा तंग करने के लिए आई है क्या? देख, मेरे ऊपर किसी तरह का एहसान चढ़ाने की कोशिश मत कर.’’

उन की तरफ से पूरा ध्यान हटा कर मैं रवि से बोली, ‘‘आप खड़ेखड़े हमें ताड़ क्यों रहे हो? गीली पट्टी क्यों नहीं रखते हो मम्मीजी के माथे पर? इन्हें तेज बुखार है.’’

‘‘मैं अभी गीली पट्टी रखता हूं,’’ कह वे हड़बड़ाए से रसोई की तरफ चले गए.

‘‘मैं आप के लिए मूंग की दाल की खिचड़ी बनाने जा रही….’’

‘‘मैं कुछ नहीं खाऊंगी. मेरे लिए तुझे कष्ट करने की जरूरत नहीं है,’’ वे नाराज ही बनी रहीं.

मैं भी फौरन भड़क उठी, ‘‘आप को भी मुझे ज्यादा तंग करने की जरूरत नहीं है. पता नहीं मैं क्यों आप के इतने नखरे उठाती हूं? बड़े भाईसाहब के पास जा कर रहने में पता नहीं आप को क्या परेशानी होती है?’’

‘‘तू एक बार फिर कान खोल कर सुन ले कि यह मेरा घर है और मैं हमेशा यहीं रहूंगी. तुझ से मेरे काम न होते हों, तो मत किया कर.’’

‘‘बेकार की चखचख से मेरा समय बरबाद करने के बजाय यह बताओ कि क्या चाय पीएंगी?’’ मैं ने अपने माथे पर यों हाथ मारा मानो बहुत तंग हो गई हूं.

‘‘तू मेरे साथ ढंग से क्यों नहीं बोलती है, बहू?’’ यह सवाल उन्होंने कुछ धीमी आवाज में पूछा.

‘‘अब मैं ने क्या गलत कहा है?’’

‘‘तू चाय पीने को पूछ रही है या लट्ठ मार रही है?’’

‘‘आप को तो मुझ से जिंदगी भर शिकायत बनी रहेगी,’’ मैं अपनी हंसी नहीं रोक पा रही थी, इसलिए तुरंत रसोई की तरफ चल दी.

मैं रसोई में आ कर दिल खोल कर मुसकराई और फिर खिचड़ी व चाय बनाने में लगी.

कुछ देर बाद पीछे से आ कर रवि ने मुझे अपनी बांहों में भर लिया और भावुक हो कर बोले, ‘‘मां का तेज बुखार देख कर मैं घबरा गया था. अच्छा हुआ जो तुम फौरन चली आईं. वैसे वैरी सौरी कि तुम 1 रात भी मायके में नहीं रह पाई.’’

‘‘तुम ने कब मेरी खुशियां की चिंता की है, जो आज सौरी बोल रहे हो?’’ मैं ने उचक कर उन के होंठों को चूम लिया.

‘‘तुम जबान की कड़ी हो पर दिल की बहुत अच्छी हो.’’

‘‘मैं सब समझ रही हूं. अपनी बीमार मां की सेवा कराने के लिए मेरी झूठी तारीफ करने की तुम्हें कोई जरूरत नहीं है.’’

‘‘नहीं, तुम सचमुच दिल की बहुत अच्छी हो.’’

‘‘सच?’’

‘‘बिलकुल सच.’’

‘‘तो कमरे में मेरे लौटने से पहले सो मत जाना. अपने प्रोग्राम को गड़बड़ कराने की कीमत तो पक्का मैं आज रात को ही वसूल करूंगी,’’ मैं ने उन से लिपट कर फटाफट कई सारे चुंबन उन के गाल पर अंकित कर दिए.

‘‘आजकल तुम्हें समझना मेरे बस की तो बात नहीं है,’’ उन्होंने कस कर मुझे अपनी बांहों में भींच लिया.

‘‘तो समझने की कोशिश करते ही क्यों हो? जाओ, जा कर अपनी मम्मी के पास बैठो,’’ कह मैं ने हंसते हुए उन्हें किचन से बाहर धकेल दिया.

वे ठीक कह रहे हैं. महीने भर से अपने व्यवहार में आए बदलाव के कारण मैं अपनी सास और इन के लिए अनबूझ पहेली बन गई हूं.

अपनी सास के साथ वैसे अभी भी मैं बोलती तो पहले जैसा ही तीखा हूं पर अब मेरे काम हमेशा आपसी रिश्ते को मजबूती देने व दिलों को जोड़ने वाले होते हैं. तभी मैं बिना बुलाए अपनी बीमार सास की सेवा करने लौट आई.

कमाल की बात तो यह है कि मुझ में आए बदलाव के कारण मेरी सासूमां भी बहुत बदल गई हैं. अब वे अपने सुखदुख मेरे साथ सहजता से बांटती हैं. पहले हमारे बीच नकली व सतही शांति कायम रहती थी पर अब आपस में खूब झगड़ने के बावजूद हम एकदूसरे के साथ खुश व संतुष्ट नजर आती हैं.

सब से अच्छी बात यह हुई है कि अब हमारे झगड़ों व शिकायतों के कारण रवि टैंशन में नहीं रहते हैं और उन का ब्लडप्रैशर सामान्य रहने लगा है. सच तो यही है कि इन की खुशियों व विवाहित जीवन की सुखशांति बनाए रखने के लिए ही मैं ने खुद को बदला है.

‘‘मम्मी और मेरे बीच हो रहे झगड़े में कभी अपनी टांग अड़ाई, तो आप की खैर नहीं,’’ महीने भर पहले दी गई मेरी इस चेतावनी के बाद वे मंदमंद मुसकराते हुए हमें झगड़ते देखते रहते हैं.

‘‘जोरू के गुलाम, कभी तो अपनी मां की तरफ से बोला कर,’’ मम्मीजी जब कभी इन्हें उकसाने को ऐसे डायलौग बोलती हैं, तो ये ठहाका मार कर हंस पड़ते हैं.

सासससुर से दूर रह रही अपनी सीमा दीदी की मौजमस्ती से भरी जिंदगी की तुलना अपनी जिम्मेदारियों भरी जिंदगी से कर के मेरे मन में इस वक्त गलत तरह की भावनाएं कुलबुला रही हैं. सासूमां के ठीक हो जाने के बाद पहला मौका मिलते ही किसी छोटीबड़ी बात पर उन से उलझ कर मैं अपने मन की सारी खीज व तनाव बाहर निकाल फेंकूंगी.

प्यार : निखिल अपनी पत्नी से क्यों दूर होने लगा था

कहने को निखिल मुझ से बहुत प्यार करते हैं. सभी कहते हैं कि निखिल जैसा पति संयोग से मिलता है. घर में सभी सुखसुविधाएं हैं. मैं जो चाहती हूं वह मुझे मिल जाता है लेकिन लोग यह क्यों नहीं समझते कि मैं इनसान हूं. मुझे घर में सजी रखी वस्तुओं से ज्यादा छोटेछोटे खुशी के पलों की जरूरत है.

शादी के इतने साल बाद भी मुझे यह याद नहीं पड़ता कि कभी निखिल ने मेरे पास बैठ कर मेरा हाथ पकड़ कर यह पूछा हो कि मेघा, तुम खुश तो हो या मैं तुम्हें उतना समय नहीं दे पाता जितना मुझे देना चाहिए लेकिन फिर भी मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. निखिल और मुझ में हमेशा एक दूरी ही रही. मैं अपने उस दोस्त को निखिल में कभी नहीं देख पाई जो एक लड़की अपने पति में ढूंढ़ती है. मैं कभी अपने मन की बात निखिल से नहीं कह पाई. मुझे निखिल के रूप में हमसफर तो मिला लेकिन साथी कभी नहीं मिला. इतने अपनों के होते हुए भी आज मैं बिलकुल अकेली हूं. जिस रिश्ते में मैं ने प्यार की उम्मीद की थी, मेरे उसी रिश्ते में इतनी दूरी है कि एक समुद्र भी छोटा पड़ जाए. मैं अपने इस रिश्ते को कभी प्यार का नाम नहीं दे पाई. मेरे लिए वह बस, एक समझौता ही बन कर रह गया जिसे मुझे निभाना था…चाहे घुटघुट कर ही सही. मैं ने धीरेधीरे अपने हालात से समझौता करना सीख लिया था.

 

अपने आसपास से छोटीछोटी खुशियों के पल समेट कर उन्हीं को अपने जीने की वजह बना लिया था. मैं ने इस के लिए एक स्कूल में नौकरी कर ली थी, जहां बच्चों की छोटीछोटी खुशियों में मैं अपनी खुशियां भी ढूंढ़ लेती थी. बच्चों की प्यारी और मासूमियत भरी बातें मुझे जीने का हौसला देती थीं. किसी इनसान के पास अगर उस के अपनों का प्यार होता है तो वह बड़ी से बड़ी मुसीबत का सामना भी आसानी से कर लेता है, क्योंकि उसे पता होता है कि उस के अपने उस के साथ हैं. लेकिन उसी प्यार की कमी उसे अंदर से तोड़ देती है, बिखरने लगता है सबकुछ…मैं भी टूट कर बिखर रही थी लेकिन मेरे अंदर का टूटना व बिखरना किसी ने नहीं देखा. जिंदगी का यह सफर सीधा चला जा रहा था कि अचानक उस में एक मोड़ आ गया और मेरी जिंदगी ने एक नई राह पर कदम रख दिया. मेरे दिल की सूखी जमीन पर जैसे कचनार के फूल खिलने लगे और उसी के साथ मेरे अरमान भी महकने लगे. स्कूल में एक नए टीचर समीर की नियुक्ति हुई. वह विचारों से जितने सुलझे थे उन का व्यक्तित्व भी उतना ही आकर्षक था. उन से बात कर के दिल को न केवल बहुत राहत मिलती थी बल्कि वक्त का भी एहसास नहीं रहता था. समीर कहा करते थे कि इनसान जो चाहता है उसे हासिल करने की हिम्मत खुद उस में होनी चाहिए. एक दिन बातों ही बातों में समीर ने पूछ लिया, ‘मेघा, तुम इतनी अलगअलग सी क्यों रहती हो? किसी से ज्यादा बात भी नहीं करती हो. क्यों तुम ने अपने अंदर की उस लड़की को कैद कर के रखा है, जो जीना चाहती है? क्या तुम्हारा दिल नहीं करता कि उड़ कर उस आसमान को छू लूं…एक बार अपने अंदर की उस लड़की को आजाद कर के देखो, जिंदगी कितनी खूबसूरत है.’ समीर की बातें सुनने के बाद मुझे लगने लगा था कि मेरा भी कुछ अस्तित्व है और मुझे भी अपनी जिंदगी खुशियों के साथ जीने का हक है.

यों घुटघुट कर जीने के लिए मैं ने जन्म नहीं लिया है. इस तरह मुझे मेरे होने का एहसास दिया समीर ने और मुझे लगने लगा था जैसे मुझे वह दोस्त व साथी मिल गया है जिस की मुझे तलाश थी, जिसे मैं ने हमेशा निखिल में ढूंढ़ा लेकिन मुझे कभी नहीं मिला. मैं फिर से सपने देखना चाहती थी लेकिन मन में एक डर था कि यह सही नहीं है. समीर की आंखों में एक कशिश थी जो मुझे मुझ से ही चुराती जा रही थी. उन की आंखों में डूब जाने का मन करता था और मैं कहीं न कहीं अपने को बचाने की कोशिश कर रही थी लेकिन असफल होती जा रही थी. मन कह रहा था कि सभी पिंजरे तोड़ कर खुले आकाश में उड़ जाऊं पर इस दुनिया की रस्मोरिवाज की बेडि़यां, जिन में मैं इस कदर जकड़ी हुई थी कि उन्हें तोड़ने की हिम्मत नहीं थी मुझ में. मेरे अंदर एक द्वंद्व चल रहा था. दिल और दिमाग की लड़ाई में कभी दिल दिमाग पर हावी हो जाता तो कभी दिमाग दिल पर. कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूं. समीर का बातें करतेकरते मेरे हाथ को पकड़ना, मुझे छूने की कोशिश करना, मुझे अच्छा लगता था. उन के कहे हर एक शब्द में मुझे अपनी जिंदगी आसान करने की राह नजर आती थी. मेरा मन करने लगा था कि मैं दुनिया को उन की नजरों से देखूं, उन के कदमों से चल कर अपनी राहें चुन लूं. भुला दूं कि मेरी शादी हो चुकी है. पता नहीं वह सब क्या था जो मेरे अंदर चल रहा था. एक अजीब सी कशमकश थी.

अपने अंदर की इस हलचल को छिपाने की मैं कोशिश करती रहती थी. डरती थी कि कहीं मेरे जज्बात मेरी आंखों में नजर न आ जाएं और कोई कुछ समझे, खासकर समीर को कुछ समझ में आए. समीर जब भी मेरे सामने होते थे तो मन करता था कि उन्हें अपलक देखती रहूं और यों ही जिंदगी तमाम हो जाए. उन की आंखों में डूब जाने का मन करता था. मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं और क्या न करूं. दिमाग कहता था कि मुझे समीर से दूरी बना कर रखनी चाहिए और दिल उन की ओर खिंचता ही जा रहा था. दिमाग कहता था कि नौकरी ही छोड़ दूं और दिल मेरे कदमों को खुद ब खुद उस राह पर डाल देता था जो समीर की तरफ जाती थी. बहुत सोचने के बाद मैं ने दिमाग की बात मानने में ही भलाई समझी और फैसला किया कि अपने बढ़ते कदमों को रोक लूंगी. मैं ने समीर से कतराना शुरू कर दिया. अब मैं बस, काम की ही बात करती थी. समीर ने कई बार मुझ से बात करने की कोशिश की लेकिन मैं ने टाल दिया. वह परेशानी जो अब तक मैं ने अपने मन में छिपा रखी थी अब समीर की आंखों में दिखने लगी थी और मैं अपनेआप को यह कह कर समझाने लगी थी कि क्या हुआ अगर समीर मेरे पास नहीं हैं, कम से कम मेरे सामने तो हैं. क्या हुआ अगर हमसफर नहीं बन सकते, मगर वह मेरे साथ हमेशा रहेंगे मेरी यादों में…मेरे जीने के लिए तो इतना ही काफी है. मैं अपने विचारों में खोई समीर से दूर, बहुत दूर जाने के मनसूबे बना रही थी कि अगले दिन समीर स्कूल नहीं आए. मेरी नजरें उन्हें ढूंढ़ रही थीं लेकिन किसी से पूछने की हिम्मत नहीं थी क्योंकि जब अपने मन में ही चोर हो तो सारी दुनिया ही थानेदार नजर आने लगती है. किसी तरह वह दिन बीता पर घर आने के बाद भी अजीब सी बेचैनी छाई हुई थी.

अगले दिन भी समीर स्कूल नहीं आए और इसी तरह 4 दिन निकल गए. मेरी बेचैनी दिन पर दिन बढ़ती ही जा रही थी फिर बहुत हिम्मत कर के सोचा कि फोन ही कर लेती हूं. कुछ तो पता चलेगा. मैं ने फोन किया तो उधर से सीमा ने फोन उठाया. मैं ने उस से पूछा, ‘‘अरे, सीमा तुम, कब आईं होस्टल से?’’ ‘‘दीदी, मुझे तो आए 2 दिन हो गए,’’ सीमा ने बताया. ‘‘सब ठीक तो है न…समीरजी भी 4 दिन से स्कूल नहीं आ रहे हैं.’’ ‘‘दीदी, इसीलिए तो मैं यहां आई हूं. भैया की तबीयत ठीक नहीं है. उन्हें बुखार है और मेरी बातों का उन पर कोई असर नहीं हो रहा. न तो ठीक से कुछ खा रहे हैं और न ही समय पर दवा ले रहे हैं. मैं तो कहकह कर थक गई. आप ही आ कर समझा दीजिए न.’’ मैं सीमा को मना नहीं कर पाई और अगले दिन आने को कह दिया. अगले दिन समीर के घर जा कर घंटी बजाई तो सीमा ने ही दरवाजा खोला. मुझे देख कर वह बोली, ‘‘अंदर आइए न, मेघाजी, मैं तो आप का ही इंतजार कर रही थी.’’ ‘‘कैसी हो, सीमा,’’ मैं ने पूछा, ‘‘तुम्हारी पढ़ाई कैसी चल रही है.’’ ‘‘पढ़ाई तो ठीक चल रही है, मेघाजी,’’ सीमा बोली, ‘‘बस, समीर भैया की चिंता है. हम दोनों का एकदूसरे के सिवा है ही कौन और मैं तो होस्टल में रहती हूं और भैया यहां पर बिलकुल अकेले. जब से मैं घर आई हूं देख रही हूं कि भैया बहुत उदास रहने लगे हैं. आप ही देखो न कितना बुखार है लेकिन ढंग से दवा भी नहीं लेते. आप तो उन की दोस्त हैं, आप ही बात कीजिए, शायद उन की समझ में आ जाए.’’ मैं सीमा के साथ समीर के कमरे में गई तो वह लेटे हुए थे. बहुत कमजोर लग रहे थे. मैं ने माथे पर हाथ रखा तो बुखार अभी भी था. मैं ने सीमा से कुछ खाने के लिए और ठंडा पानी लाने के लिए कहा और समीर को बैठने में मदद करने लगी. सीमा खिचड़ी ले आई.

मैं खिलाने लगी तो समीर बच्चों की तरह न खाने की जिद करने लगे. मैं ने कहा, ‘‘समीरजी, आप अपना नहीं तो कम से कम सीमा का तो खयाल कीजिए… वह कितनी परेशान है.’’ खैर, उन्हें खिचड़ी खिला कर दवा दी और लिटा दिया. मैं माथे पर पानी की पट्टियां रखने लगी. कुछ देर बाद बुखार कम हो गया. समीर सो गए तो मैं ने सीमा से कहा, ‘‘सीमा, मैं जा रही हूं. तुम अपने भैया का ध्यान रखना. अगर हो सका तो मैं कल फिर आने की कोशिश करूंगी.’’ मैं घर आ गई लेकिन दिमाग में एक सवाल घूम रहा था कि क्या समीर की इस हालत की जिम्मेदार मैं हूं? क्या मेरी बेरुखी से वह इतने आहत हो गए कि उन की तबीयत खराब हो गई. मुझे ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए था. ये बातें सोचतेसोचते न जाने कब मेरी आंख लग गई. फोन की घंटी की आवाज सुन कर मेरी नींद खुली. घड़ी में सुबह के 8 बज चुके थे. आज भी स्कूल की छुट्टी हो गई, यह सोचते हुए मैं ने फोन उठाया तो दूसरी तरफ सीमा थी. मैं ने उस से पूछा, ‘‘समीरजी की तबीयत कैसी है?’’ ‘‘मेघाजी, भैया ठीक हैं. बस, मुझे एक जरूरी काम से अपनी सहेली के साथ बाहर जाना है और भैया अभी इस लायक नहीं हैं कि उन्हें अकेला छोड़ा जा सके इसलिए आप की मदद की जरूरत है. क्या आप कुछ देर के लिए यहां आ सकती हैं?’’ मैं ने कहा, ‘‘ठीक है, मैं आती हूं,’’ और फोन रख दिया. मैं तैयार हो कर वहां पहुंची तो सीमा और उस की सहेली मेरा ही इंतजार कर रही थीं. वह मुझे थैंक्स कहती हुई चली गई. मैं ने समीर के कमरे में जा कर देखा तो वह सो रहे थे. मैं ड्राइंगरूम में आ कर सोफे पर बैठ गई और मेज पर रखी किताब के पन्ने पलटने लगी. थोड़ी देर बाद समीर के कमरे में कुछ आवाज हुई…मैं ने जा कर देखा तो समीर अपने बिस्तर पर नहीं थे. शायद बाथरूम में थे, मैं वहां से आ गई और रसोई में जा कर चाय का पानी चूल्हे पर रख दिया. चाय बना कर जब मैं बाहर आई तो समीर नहा चुके थे. उन की तबीयत पहले से ठीक लग रही थी लेकिन कमजोरी बहुत थी. मुझे देख कर वह चौंक गए. शायद उन्हें पता नहीं था कि मैं वहां पर हूं. ‘‘मेघाजी…आप, सीमा कहां है?’’ ‘‘उसे किसी जरूरी काम से जाना था, आप की तबीयत ठीक नहीं थी. अकेला छोड़ कर कैसे जाती इसलिए मुझे बुला लिया. आप चाय पीजिए, वह आ जाएगी.’’ ‘‘सीमा भी पागल है. अगर उसे जाना था तो चली जाती…आप को क्यों परेशान किया,’’ समीर बोले. मैं ने समीर की तरफ देखा और चुपचाप चाय का प्याला उन्हें थमा दिया.

हम खामोशी से चाय पीने लगे. कुछ भी कहने की हिम्मत न तो मुझ में थी और न शायद उन में. चाय पी कर मैं बर्तन रसोई में रखने के लिए उठी तो समीर ने मेरा हाथ पकड़ लिया. एक सिहरन सी दौड़ गई मेरे पूरे शरीर में. टे्र हाथ से छूट जाती अगर मैं उसे मेज पर न रख देती. मैं ने हाथ छुड़ाने की कोशिश की तो उन्होंने और कस कर मेरा हाथ पकड़ लिया और बोले, ‘‘मेघा, तुम ने मेरे लिए यह सबकुछ क्यों किया?’’ समीर के मुंह से अपने लिए पहली बार मेघाजी की जगह मेघा और आप की जगह तुम का उच्चारण सुन कर मैं चौंक गई. इस तरह से मुझे पुकारने का अधिकार उन्होंने कब ले लिया. मैं कुछ बोल ही नहीं पा रही थी कि उन्होंने फिर से पूछा, ‘‘मेघा, तुम ने मेरे सवालों का जवाब नहीं दिया. तुम ने मेरे लिए यह सब क्यों किया?’’ बहुत हिम्मत कर के मैं ने अपना हाथ छुड़ाया और कहा, ‘‘एक दोस्त होने के नाते मैं इतना तो आप के लिए कर ही सकती थी, इतना भी अधिकार नहीं है मेरा?’’ ‘‘पहले तुम यह बताओ कि क्या हमारे बीच अभी भी सिर्फ दोस्ती का रिश्ता है? मेघा, तुम्हारा अधिकार क्या है और कितना है इस का फैसला तो तुम्हें ही करना है,’’ समीर बोले. मैं ने अपनी नजरें उठाईं तो समीर मुझे ही देख रहे थे. कितना दर्द, कितना अपनापन था उन की आंखों में. दिल चाह रहा था कि कह दूं…समीर, मैं आप से बेइंतहा प्यार करती हूं…नहीं जी सकती मैं आप के बिना. अपने सभी जज्बात, सभी एहसास उन के सामने रख दूं…उन की बांहों में समा जाऊं और सबकुछ भुला दूं लेकिन होंठ जैसे सिल गए थे. बिना कुछ कहे ही हम एकदूसरे के जज्बात और हालात समझ रहे थे. मुझे भी यह एहसास हो चुका था कि समीर भी मुझे उतना ही प्यार करते हैं जितना मैं उन्हें करती हूं. वह भी अपने प्यार की मौन सहमति मेरी आंखों में पढ़ चुके थे और शायद उस अस्वीकृति को भी पढ़ लिया था उन्होंने. कुछ नहीं बोल पाए…हम बस, यों ही जाने कितनी देर बैठे रहे. फिर अचानक समीर ने मेरे चेहरे को अपने हाथों में लिया और मेरे माथे को चूम लिया. अब मैं खुद को रोक नहीं पाई और उन की बांहों में समा गई. कितनी देर हम रोते रहे मुझे नहीं पता. दिल चाह रहा था कि यह पल यहीं रुक जाए और हम यों ही बैठे रहें. फिर समीर ने कहा, ‘‘मेघा, तुम जहां भी रहो खुश रहना और एक बात याद रखना कि मुझे तुम्हारी आंखों में आंसू और उदासी अच्छी नहीं लगती.

मैं चाहे तुम्हारे पास न रहूं, लेकिन तुम्हारे साथ हमेशा रहूंगा. बहुत देर हो गई है, अब तुम जाओ.’’ मैं ने अपना बैग उठाया और वहां से अपने घर आने के लिए निकल पड़ी. इसी प्यार ने एक बार फिर मुझे नए मोड़ पर ला कर खड़ा कर दिया. मैं ने सोच लिया था कि अब मैं समीर से कभी नहीं मिलूंगी. आज तो उस तूफान को हम पार कर गए, खुद को संभाल लिया, लेकिन दोबारा मैं ऐसा शायद न कर पाऊं और मैं नहीं चाहती थी कि समीर के आगे कमजोर पड़ जाऊं. मैं अपने प्यार को अपना तो नहीं सकती थी लेकिन उसी प्यार को अपनी शक्ति बना कर अपने फर्ज के रास्ते पर कदम बढ़ा चुकी थी

मैं ने अगले दिन स्कूल में अपना इस्तीफा भेज दिया. मैं ने एक बार फिर प्यार और समझौते में से समझौते को चुन लिया. मेरे अंदर जो प्यार समीर ने जगाया वह एहसास, उन की कही हर एक बात, उन के साथ बिताए हर एक पल मेरी जिंदगी का वह अनमोल खजाना है, जो न तो कभी कोई देख सकता है और न ही मुझ से छीन सकता है. कितना अजीब सा एहसास है न यह प्यार, कब किस से क्या करवाएगा, कोई नहीं जानता. यह एहसास किसी के लिए जान देने पर मजबूर करता है तो किसी की जान लेने पर भी मजबूर कर सकता है. अब आप ही बताइए कि आप प्यार को किस तरह से परिभाषित करेंगे, क्योंकि मेरे लिए तो यह एक ऐसी पहेली है जो कम से कम मैं तो नहीं सुलझा पाई. मैं नहीं जानती कि मैं ने इतना प्यार करते हुए भी समीर को क्यों नहीं अपनाया और अपनी शादी के समझौते.

जलन: क्यों प्रिया के मां बनने की खुशी कोई बांटना नही चाहता था

प्रिया बहुत खुश थी. उस ने कंफर्म कर लिया था कि वह मां बनने वाली है. इस खुशी के समाचार को अपने पति और घरवालों के साथ शेयर करने के बाद सब से पहले उस ने अपनी पक्की सहेली नेहा को फोन लगाया. नेहा और प्रिया बचपन से अपनी सारी खुशियां एकदूसरे से बांटती आई थीं. आज भी नेहा से बात कर वह इस खुशी को शेयर करना चाहती थी.

प्रिया ने फोन कर के नेहा को बताया, “यार नेहा, तू मौसी बनने वाली है.”

“मौसी?” अनजान बनते हुए नेहा ने पूछा.

“हां मौसी. अरे पगली, मैं मां बनने वाली हूं,” प्रिया ने उत्साहित स्वर में कहा.

मगर अपेक्षा के विपरीत नेहा ने बहुत ठंडा रिस्पौंस दिया, “ओ रियली, ग्रेट यार. मगर तेरी शादी को तो अभी चारपांच महीने भी नहीं हुए और तू …? ”

“हां यार, शायद फर्स्ट अटैम्प्ट में ही…,” कहते हुए वह शरमा गई.

“अच्छा है, तुझे मेरी तरह इंतजार नहीं करना पड़ेगा. मैं तो पिछले 4 साल से इंतजार में थी कि कब तुझे यह खुशखबरी सुनाऊं पर तू ने बाजी मार ली. वेरी गुड यार. अच्छा सुन, मैं बाद में फोन करती हूं तुझे. अभी जाना पड़ेगा. सासुमां बुला रही है,” बहाना बना कर नेहा ने फोन काट दिया.

नेहा के व्यवहार से प्रिया थोड़ी अचंभित हुई. फिर अपने मन को समझाया कि वाकई कोई जरूरी काम आ गया होगा, बाद में बात कर लेगी.

सहेली के बाद प्रिया ने अपनी बड़ी बहन को फोन लगाया. अपनी बहन के साथ भी प्रिया बहुत अटैच्ड थी. मगर बहन ने भी बहुत ठंडा रिस्पौंस दिया. उलटा, वह तो उसे डांटने ही लगी, “इतनी जल्दी करने की क्या जरूरत थी? अभी शादी को दिन ही कितने हुए हैं? थोड़ी जिंदगी जी कर तो देखती, घूमतीफिरती, ससुराल में ठीक से एडजस्ट हो जाती, वहां के तौरतरीके सीखती, तब जा कर बेबी प्लान करना था. मुझे देख, 3 साल हो गए, फिर भी बेबी नहीं किया. थोड़ी प्लानिंग से चलना पड़ता है और एक तू है कि अकल ही नहीं तुझे.”

“पर दीदी, बेबी तो जितनी जल्दी हो जाए उतना ही अच्छा है न. और फिर, जहां तक बात ससुराल में एडजस्ट करने की है, तो वह तो ऐसे भी प्रैग्नैंसी के इन महीनों में सब सीख ही जाऊंगी. वैसे भी सासुमां बहुत प्यार करती हैं. मुझे जो भी समझ नहीं आता, उन से पूछ लेती हूं.”

“मैं तो तेरे भले के लिए ही समझा रही थी पर बात तुझे समझ आती नहीं. अच्छा चल, मैं रखती हूं फोन. अब अपना ज्यादा ख़याल रखना होगा तुझे. अभी खुद को संभालना तो आया नहीं था, अब बच्चे की जिम्मेदारी और सिर पर ले ली,” कह कर बहन ने फोन काट दिया.

न कोई बधाई, न शुभकामना. बस, उलाहने मारना. बहन का यह रवैया महसूस कर वह बहुत देर तक गुमसुम बैठी रही. इस बातचीत के बाद तो उसे ऐसा लगने लगा था जैसे उस ने वाकई कोई गलती कर दी हो.

तब तक दूध का गिलास लिए सास कमरे में दाखिल हुईं और प्यार से बोलीं, “चल बहू, दूध पी ले. हमारा वारिस आने वाला है. उस का खयाल रख,” कह कर मुसकराती हुई वे चली गईं.

कुछ देर तक प्रिया दूध के गिलास की तरफ एकटक देखती रही. उस के दिमाग में बहन की बातें घूम रही थीं. तभी भाभी का फोन आ गया.

“बधाई हो प्रिया, मम्मीजी का फोन आया था. वे कह रही थीं कि तुम मां बनने वाली हो.”

“जी दीदी.”

“चल अच्छा है. मैं अब तक यह खुशी नहीं दे सकी. अब तू ही दे ले,” उदास स्वर में भाभी ने कहा.

प्रिया जल्दी से बोली, “दीदी, उदास क्यों होती हो? आप का ही बच्चा है यह भी.”

“अरे नहीं प्रिया, अपना तो अपना ही होता है. और फिर, मैं बड़ी बहू हूं. शादी के 4 साल होने वाले हैं. सब इस खुशी की बाट जोहते रह गए. पर मैं उन की यह इच्छा पूरी नहीं कर सकी. बच्चे के लिए कहांकहां नहीं गई. मंदिरों में जा कर मत्था टेका, बाबाओं के चरण पकड़े, मगर नतीजा कुछ भी नहीं निकला.”

भाभी की आवाज से ऐसा लग रहा था जैसे वे अभी रो देंगी. प्रिया कुछ कह नहीं पा रही थी. उस की खुशी किसी के दुख का कारण बन गई थी.

वह भाभी को सांत्वना देने लगी, “भाभी, आप दिल छोटा न करो. अभी समय ही कितना हुआ है? 4 साल कोई लंबा वक्त नहीं होता. आप बहुत जल्द मां बनोगी.”

” यह सब मन बहलाने की बातें होती हैं प्रिया. अच्छा चल, मैं फोन रखती हूं.”

प्रिया फोन की तरफ देखती हुई कुछ देर तक सोचती रही. उस के चेहरे पर खुशी के बजाय उदासी की रेखाएं घनीभूत हो गईं.

प्रिया की प्रैग्नैंसी का 8वां महीना चढ़ चुका था. इतने दिनों में भाभी, बहन या सहेली ने उसे बहुत कम फोन किया. कोई मिलने भी नहीं आई. कोविड का बहाना बना दिया. प्रिया फोन करती, तो तीनों का रिऐक्शन अलग होता. बहन उलाहने के रूप में बातें सुना देती. सहेली काम का बहाना बना कर जल्दी से फोन काट देती और भाभी अपना ही रोना ले कर बैठ जातीं. न तो किसी ने उस से मां बनने के पहलेपहले एहसास के बारे में पूछा और न ही उसे क्या खाना चाहिए या क्या करना चाहिए, इस पर ढंग से डिस्कशन किया या टिप्स दिए.

वह बहन या सहेली से कोई सवाल पूछती, तो वे सपाट सा जवाब दे देती, “मुझे क्या पता, मैं ने कौन से कई बच्चे पैदा कर लिए. डाक्टर से पूछ ले.”

प्रिया की इच्छा होती कि वह बच्चे के सुनहरे, प्यारे सपने उन के साथ शेयर करे. पर कुछ सोच कर ठहर जाती. प्रैग्नैंट होने की उस की खुशियां भी आधीअधूरी सी रह गई थीं.

उस दिन सुबहसुबह वह बालकनी पर खड़ी थी कि तभी उस के घर के आगे एक कैब आ कर रुकी. कैब में से मां को निकलता देख वह ख़ुशी से चीख पड़ी. मां के गले लग कर देर तक रोती रही.

मां ने उसे चुप कराते हुए पूछा, “इतने खुशी के पलों में रो क्यों रही है पगली?”

प्रिया कुछ कह नहीं सकी. उस के अंदर जो तकलीफ थी उसे कैसे बयां करती.

अगले 20- 25 दिन मां का साथ पा कर वह काफी खुश रही और फिर वह दिन भी आ गया जब डिलीवरी की मर्मांतक पीड़ा सहने के बाद नर्स ने उस की बांहों में उस का अंश थमाया. उस पल वह अपना सारा दर्द भूल गई थी. उस के हाथों में नन्हामुन्ना राजकुमार खिलखिला रहा था, किलकारियां मार रहा था. बेटे को गोद में उठाए जब उस ने अपने घर में प्रवेश किया तो उसे लगा जैसे सारा जहां उस की बांहों में सिमट आया हो.

बच्चे को देखने के लिए सब से पहले उस की बहन आई. मां के आगे बहन ने पहले की तरह कोई कड़वे वचन नहीं कहे. बस, देर तक बेबी को हाथों में लिए देखती रही. फिर मुसकरा कर बोली, “बिलकुल मुझ पर गया है.”

उस की बात सुन कर घर में सब हंसने लगे. प्रिया को भी यह बात बहुत प्यारी लगी. बहन ज्यादा देर तक रुकी नहीं. सुबह आई और शाम को निकल गई. करीब 10 दिन बच्चे और प्रिया की देखभाल कर मां भी अपने घर चली गई. इस बीच प्रिया की भाभी भी आ कर बच्चे को आशीर्वाद दे गई.

मां के जाने के बाद सासुमां उस का और बच्चे का पूरा खयाल रखने लगी. प्रैग्नैंसी और डिलीवरी के बाद वह काफी कमजोरी महसूस कर रही थी. उसे इस बात का भी दुख था कि उस की प्यारी सहेली बच्चे को देखने नहीं आई थी. उस ने तबीयत सही न होने का बहाना बना दिया था. वीडियो कौल पर ही उस ने बेबी को देख लिया था.

प्रिया का अकसर दिल करता कि बच्चे की प्यारीप्यारी हरकतों को अपनी सहेली या बहन से शेयर करे. उस के मन में ढेर सारी बातें थीं जिन्हें वह उन से डिस्कस करना चाहती थी. मगर उन की उदासीनता महसूस कर वह खामोश रह जाती. एक दिन हालचाल जानने के लिए प्रिया ने सहेली को फोन किया. थोड़ी देर दोनों के बीच नौर्मल बातचीत होती रही.

फिर जैसे ही उस ने बच्चे की बातें बतानी शुरू कीं, नेहा ने तुरंत बहाना बनाया, “यार, बहुत सिरदर्द हो रहा है मुझे. बाद में करती हूं तुझ से बात.”

इस एक छोटे से वाक्य ने प्रिया के दिल की उमंग और खुशियों पर फिर से पानी उड़ेल दिया. वह सोचने लगी कि यदि नेहा को अब तक बेबी नहीं हुआ तो भला इस में उस की क्या गलती है? वह क्यों अपनी खुशियों को एंजौय नहीं कर पा रही है? सच कहते हैं कि खुशियां तभी बढ़ती हैं जब उन्हें बांटा जाए, पर वह क्या करे जब कोई उस की खुशियों को बांटना ही नहीं चाहता. बहन भी तो अकसर ऐसे ही उस का दिल तोड़ देती है.

अभी 2 दिन पहले की बात थी. उस दिन प्रिया ने फोन कर के अपनी बहन को बताया था, “दीदी, पता है, आज मुझे मुन्ने ने पहली दफा मां कह कर पुकारा. बहुत खुश हूं मैं.”

“मां शब्द का मतलब समझती हो? मां सुन कर खुश होने के साथसाथ आने वाली जिम्मेदारियों के लिए भी तैयार होना पड़ता है. एक मां को बहुत सारे पापड़ बेलने पड़ते हैं, तब जा कर बच्चा बड़ा होता है. चल रखती हूं फोन.”

बहन का रिऐक्शन देख कर उस का सारा जोश ठंडा पड़ गया था. प्रिया की बहन वैसे तो पहले भी उस पर रोब झाड़ती थी मगर कभीकभी और साथ में बहनों के बीच मीठी चुहलबाजियां भी होती थीं. मगर जब से बच्चा हुआ था, प्रिया को लगने लगा था कि बहन उस से हमेशा तेवर में ही बात करती है. ऐसा जताती है जैसे उस ने बहुत बड़ी गलती कर दी हो. प्रिया समझती है कि साइकोलौजिकली बहन के दिल में बच्चा न होने की वजह से तकलीफ है और इसी तकलीफ को वह इस तरह प्रकट करती रहती है. मगर बहन इस बात को नहीं समझती थी कि ऐसे व्यवहार से प्रिया पर क्या गुजरती होगी.

धीरेधीरे बच्चा एक साल का हो गया. प्रिया के मन की कसक नहीं गई. उस की सब से प्यारी सहेली, सगी बहन और भाभी, तीनों ने एक बार मिलने आ कर, फिर न अपनी तरफ से कौल किया और न ही दोबारा मिलने आई थीं. आने की बात कहने पर बड़ी सहजता से तीनों कोविड-19 मुद्दा बना देतीं जबकि ऐसा नहीं था कि वे दूसरों के घर जाती नहीं थीं.

जब प्रिया का मन नहीं लगता था तो वह फोन लगा लेती थी. मगर उन का रिस्पौंस इतना ठंडा होता कि वह अंदर से टूट जाती. धीरेधीरे प्रिया ने भी उन्हें फोन करना छोड़ दिया.

कई दफा उसे ऐसा महसूस होता जैसे अपनों को ही उस की खुशी से जलन हो गई हो और वह इस जलन का उपचार भी नहीं जानती थी. न चाहते हुए भी इस का असर प्रिया के मन पर पड़ता जा रहा था और वह अकसर दुखी रहने लगी थी. पति और सास सवाल करते, तो वह सहज होने का नाटक करती और मुसकरा कर कहती कि ऐसी कोई बात नहीं. वह तो बहुत खुश है. वह ऊपर से मुसकरा रही होती मगर उस के दिल के अंदर गम का सागर लहरा रहा होता. अंदर ही अंदर यह गम उसे तकलीफ दे रहा था.

फिर एक दिन सुबहसुबह उस की बड़ी बहन की कौल आई. वह बहुत खुश थी, चहकती हुई बोली, “जानती है प्रिया, तू भी मौसी बनने वाली है. आज मुझे लग रहा है जैसे मैं आसमान में उड़ रही हूं. यह एहसास कितना खूबसूरत है, मैं बता नहीं सकती.”

“दीदी, मैं बहुत खुश हूं आप के लिए. कौंग्रैट्स,” प्रिया ने खुश हो कर कहा.

इस के बाद तो सुबहशाम हर रोज बहन का फोन आता. वह उस से अपनी खुशियां शेयर करती. धीरेधीरे प्रिया, जिसे अपनी खुशियां खुद तक सीमित रखना पड़ा था, भी खुलने लगी. उसे भी बहन के रूप में एक साथी मिल गया जिस से वह अपनी खुशियां शेयर कर सकती थी. दोनों एकदूसरे से बच्चे की बातें करतीं, भविष्य के सुनहरे सपने संजोतीं. प्रिया समझ गई थी कि वाकई खुशियां बांटने से बढ़ती हैं, मगर बांटने का मौका तब मिलता है जब सामने वाला भी उसी मैंटल स्टेटस में हो.

चलो एक बार फिर से : अमित का नेहा के लिए प्यार

‘कुछ तो था हमारे दरमियां… आज भी तुम्हें देख कर दिल की बस्ती में हलचल हो गई है…’

नेहा को देखते ही यह शायरी अमित के होठों पर खुद ब खुद आ गई थी. वही खुले लंबे बाल, बड़ीबड़ी झील सी गहरी आंखें, माथे पर लंबी सी बिंदिया और आंखों में कितने ही सवाल…अपनी साड़ी का पल्लू संभालती हुई नेहा मुड़ी तभी दोनों की नजरें टकरा गई थीं.

अमित एकटक उसे ही निहारता रह गया. नेहा की आंखों ने भी पल भर में उसे पहचान लिया था. अमित कुछ कहना चाहता था मगर नेहा ने खुद को संभाला और निगाहें फेर लीं.

अमित को लगा जैसे एक पल में मिली हुई खुशी अगले ही पल छिन गई हो. नेहा ने चोर नजरों से फिर उसे देखा. अमित अबतक उसी की तरफ देख रहा था.

“हैलो नेहा” अमित से रहा नहीं गया और वह उस के पास पहुंच गया.

“हैलो कैसे हो ?” धीमे स्वर में नेहा ने पूछा.

“जैसा छोड़ कर गई थीं.” अमित ने जवाब दिया तो नेहा ने एक भरपूर निगाह उस पर डाली और हौले से मुस्कुराती हुई बोली, “ऐसा तो नहीं लगता. थोड़े तंदुरुस्त हो गए हो.”

“अच्छा” अमित हंस पड़ा.

दोनों करीब 4 साल बाद एकदूसरे से मिले थे. 4 साल पहले ऐसे ही स्टेशन पर नेहा को गाड़ी में बिठा कर अमित ने विदा किया था. नेहा उस की जिंदगी से दूर जा रही थी. अमित उसे रोकना चाहता था मगर दोनों का ईगो आड़े आ गया था. वह गई तो मायके थी पर दोनों को ही पता था कि वह हमेशा के लिए जा रही है. लौट कर नहीं आएगी और फिर 2 महीने के अंदर ही तलाक के कागजात अमित के पास पहुंच गए. एक लंबी अदालती कार्यवाही के बाद दोनों की जिंदगी के रास्ते अलग हो गए.

“चाय पीओगी या कॉफी ?” पुरानी यादों का साया परे करते हुए अमित ने पूछा था.

“हां कॉफी पी लूंगी. तुम तो चाय पियोगे न. बट आई विल प्रेफर कॉफी.”

“ऑफकोर्स. अभी लाता हूं.”

नेहा अमित को जाता हुआ पीछे से देर तक देखती रही. तलाक के बाद उस ने शादी कर ली थी पर अमित अब तक अकेला था. वह नेहा को अपने दिलोदिमाग से निकाल नहीं सका था. शायद यही हालत नेहा की भी थी. मगर शादी के बाद प्राथमिकताएं बदल जाती हैं और वैसा ही नेहा के साथ भी हुआ था.

“और बताओ कैसी हो? सब कैसा चल रहा है? ”

अमित चाय और कॉफी ले आया था. नेहा के पास बैठते हुए उस ने पूछा तो एक लंबी सांस ले कर नेहा बोली,” सब ठीक ही चल रहा है. बस आजकल अपनी तबीयत को ले कर थोड़ी परेशान रहती हूं.”

“क्यों क्या हुआ तुम्हें?” चिंतित स्वर में अमित ने पूछा.

“कुछ नहीं बस अस्थमा से थोड़ी प्रॉब्लम हो रही है. सांस की तकलीफ रहती है.”

“आजकल तो वैसे भी कोरोना फैल रहा है. तुम्हें तो फिर अपना खास ख्याल रखना चाहिए.”

“हां वह तो रखती हूं. बस 2 दिन का देहरादून में काम है और फिर वापस नागपुर लौटना है. सुजय अभी नागपुर में ही शिफ्टेड है न.”

“अच्छा. मैं भी दिल्ली काम से आया था. मुझे भी वापस कोटा जाना है.*

“मेरी ट्रेन सुबह 6.40 की है. अमित जरा तुम देखो न, ट्रेन कब आएगी? स्टेशन मास्टर से पूछ कर बताओ न जरा. ट्रेन टाइम पर है या लेट है?”

“हां अभी पूछता हूं.” कह कर अमित चला गया.

पूछताछ करने पर पता चला कि लॉकडाउन हो गया है और इस वजह से ट्रेनें रद्द हो गई हैं. नेहा घबरा गई.
“अब क्या होगा ट्रेन कब चलेगी?”

“देखो नेहा. अभी तो यही पता चल रहा है कि 31 मार्च तक ट्रेनें रद्द कर दी गई हैं. सब कुछ बंद है. लौकडाउन में ट्रेनों के परिचालन पर पाबंदी लग गई है.”

“अरे अब मैं कहां जाऊंगी? ऐसा कैसे हो गया? होटल खुले हैं या नहीं?”

नेहा घबरा गई थी. उसे शांत कराते हुए अमित बोला,” नेहा परेशान मत हो. मेरे कजिन ब्रदर का घर है यहां. वह आजकल मुंबई में जॉब कर रहा है. इसलिए घर की चाबी मुझे दी हुई है. मुझे अक्सर यहां आना पड़ता है तो मैं उसी घर में ठहर जाता हूं. डोंट वरी. तुम भी मेरे साथ चलो. अभी तुम्हें वहीं ठहरा देता हूं. इतना तो विश्वास कर ही सकती हो मुझ पर. ”

“ओके डन. चलो.” नेहा अमित के साथ चल दी.

अमित उसे ले कर कजिन के घर पहुंचा. एक बेडरूम के इस घर में बाहर बड़ी सी बालकनी और झूला भी था. अच्छाखासा लौन था. गलियारे में सुंदर पेड़पौधे भी लगे हुए थे. घर छोटा मगर काफी खूबसूरत था.

अमित के घर पहुंच कर नेहा ने सारी बातें अपने वर्तमान पति यानि सुजय को बता दीं. परेशानी के वक्त पुराने पति की मदद लेने और उस के घर पर ठहरने के फैसले को सुजय ने पॉजिटिव वे में लिया और उस के सुरक्षित होने की खबर पर खुशी जाहिर की.

“गुड. थैंक्स अमित.” नेहा ने घर का मुआयना करते हुए कहा

” चलो तुम फ्रेश हो जाओ. मैं खाना बनाता हूं. तुम मेरी गेस्ट हो ना.”

“अच्छा तो अब तुम बनाओगे खाना? जब हम साथ थे तब तो कभी किचन में झांकते भी नहीं थे.”

“वक्त और परिस्थितियां बहुत कुछ सिखा देती हैं नेहा मैडम. आप हमारे हाथ का खाना खा कर देखना. उंगलियां चाटती रह जाओगी.”

“क्या बात है. बातें बनाना तो तुम्हें खूब आता है.” न चाहते हुए भी नेहा की जुबान पर पुरानी यादों की तल्खी आ ही गई थी.

तुरंत बात सुधारती हुई बोली,” वैसे अमित काफी अच्छे बदलाव नजर आ रहे हैं तुम में.”

“थैंक्यू” अमित मुस्कुरा कर काम में लग गया. वाकई उस ने बहुत स्वादिष्ट खाना बनाया था.

नेहा ने स्वाद से खाना खाया. थोड़ी देर बातचीत करते हुए पुरानी यादें ताजा करने के बाद सोने की बारी आई. बेडरूम एक ही था. अमित ने बेड की तरफ इशारा करते हुए कहा,” नेहा तुम आराम से सो जाओ यहां.”

“तुम कहां सोओगे?”

“मेरा क्या है? मैं बैठक में सोफे पर एडजस्ट हो जाऊंगा.”

“ओके”

नेहा आराम से बैड पर लुढ़क गई. बहुत नींद आ रही थी उसे. थकी हुई भी थी फिर भी रात भर करवटें बदलती रही. मन के आंगन में पुरानी यादें, कुछ कड़वी और कुछ मीठी, घेरा डाले जो बैठी थीं. अमित का भी यही हाल था. सुबह 8 बजे नेहा की नींद टूटी. बाहर आई तो देखा कि अमित नहाधो कर नाश्ता बना रहा है.

“क्या बात है. आई एम इंप्रैस्ड. पूरी गृहिणी बन गए हो.”

“घरवाली छोड़ कर चली जाए तो यही हाल होता है मैडम जी.”

अमित ने माहौल को हल्का बनाते हुए कहा. नेहा लौन में टहलने लगी तभी अमित चाय ले कर आ गया. नेहा ने चाय पीते हुए कहा,” अमित मुझे अजीब लग रहा है. सारे काम तुम कर रहे हो. देखो कहे देती हूं. दोपहर का खाना मैं बनाऊंगी और रात का भी. तुम केवल बर्तन साफ कर देना.”

“जैसी आप की आज्ञा मोहतरमा.” हंसते हुए अमित बोला.

इस तरह दोनों मिल कर लौकडाउन के इस समय में एकदूसरे की सहायता करते हुए वक्त बिताने लगते हैं. अमित जितना संभव होता सारे काम खुद करता. उसे नेहा की तबीयत को ले कर चिंता रहती थी. झाड़ू पौंछा या सफाई का काम नेहा को छूने भी नहीं देता.

एक दिन सुबहसुबह नेहा की तबीयत ज्यादा ही खराब हो गई. नेहा ने बताया कि उस का इनहेलर नहीं मिल रहा है. अमित उसी वक्त बाजार भागा. बड़ी मशक्कत के बाद उसे एक मेडिकल शॉप खुली मिली. वहीं से इनहेलर और जरूरी दवाइयां खरीद कर भागाभागा घर लौटा. इस समय एकएक पल महत्वपूर्ण था. नेहा की तबीयत काफी बिगड़ रही थी. मगर समय पर इनहेलर मिल जाने से वह बेहतर महसूस करने लगी.

तब तक अमित ने जल्दी से एक बाउल में पानी गर्म किया और उस में लैवेंडर ऑयल की 5-6 बूंदें डालीं. इसे वह नेहा के पास ले आया और 5 -10 मिनट तक स्टीम लेने को कहा. इस से नेहा को काफी आराम मिला.

अब अमित ने एक गिलास गर्म पानी में शहद मिला कर उसे धीरेधीरे पीने को कहा. कुल मिला कर नेहा की तबीयत में काफी सुधार आ गया. अमित ने प्यार से नेहा का माथा सहलाते हुए कहा,” आज के बाद तुम्हें रोज शहद या हल्दी डाल कर गर्म पानी पीना है. इस से तुम्हें आराम मिलेगा.”

उस दिन नेहा को महसूस हुआ कि अमित वाकई उस से प्यार करता है और अलग हो कर भी वह दिल से उस से जुड़ा हुआ है. यह बात उस ने शिद्दत से महसूस की.

वह अमित के पास आ कर बैठ गई और उस के हाथों को थामते हुए बोली,” मैं अपना अतीत पूरी तरह भूल जाना चाहती हूं. आज से मैं केवल तुम्हारे साथ बिताए हुए ये खूबसूरत और प्यारे लम्हे याद रखूंगी. रियली आई मीन इट.”

“नेहा कौन कहता है कि एक्स हसबैंडवाइफ दोस्त नहीं हो सकते. अब तुम तो जिंदगी में आगे बढ़ चुकी हो. हमारा पुराना रिश्ता तो अब जुड़ नहीं सकता. फिर भी दोस्ती का एक नया रिश्ता तो हम बना ही सकते हैं न.”

उस दिन पहली बार दोनों गले लग कर खुशी के आंसू रोए थे.

अगले दिन सुबह नेहा एक फूल ले कर अमित के पास पहुंची.

“यह क्या है?” वह अचकचाया.

“फूल है गुलाब का.”

” वह तो है मगर इस नाचीज पर आज इतनी मेहरबान क्यों?”

“क्यों कि आज ही हम पहली दफा मिले थे. ईडियट भूल गए तुम?” शरारत से देखते हुए नेहा बोली.

“ओह याद आया. रियली मैं सरप्राइज्ड हूं. तुम्हें आज का दिन याद रह गया?”

“हां चलो, आज का दिन कुछ खास मनाते हैं.”

“फाइन ”

फिर दोनों ने मिल कर घर में एक शानदार डेट ऑर्गेनाइज की. घर को फूलों से सजाया. बरामदे में टेबल और कुर्सी लगा कर दोनों ने लंच किया. एकदूसरे की पसंद के कपड़े पहने. लंच में एकदूसरे की पसंद की चीजें ही ऑर्डर कीं गई. एक आर्डर करता और दूसरा किचन से सामान ले कर आता. दोनों ने पहली मुलाकात याद करते हुए एकदूसरे के लिए गाने गाए. शायरियां सुनाईं. गिफ्ट का आदानप्रदान किया. मजेदार बातें कीं और फिर एक खुशनुमा शाम का वादा कर एकदूसरे से विदा ली.

यह सब दोनों ने इतने मजे लेते हुए और फ्रेंडली अप्रोच के साथ किया कि उन के लिए यह डेट यादगार बन गई.

रात में नेहा ने अमित को अपने पास ही सो जाने का न्योता दिया और बोली,” आज मैं एक खूबसूरत भूल करना चाहती हूं . बस केवल आज के लिए अपने हस्बैंड को चीट करूंगी अपने दोस्त की खातिर.”

“तुम तो बड़ी पाप पुण्य की बातें करती थीं कि विवाह के बाद परपुरुष को देखने पर भी नर्क मिलता है या सती सावित्री ही आदर्श होती है वगैरह-वगैरह.” अमित बोला.

नेहा मुंह बिचकाकर बोली, “वे सब पाखंड तो मैं अपनी मौसी से सीख कर आई थी. पता  है उन्होंने मां को ही चूना लगा डाला था. उनका पैसा एक ऐसी जमीन में लगवा दिया था जो थी ही नहीं और सिर्फ कागज थे. बचपन से हम समझते थे कि वे सुबह तीन घंटे पूजा करतीं हैं तो सही ही होंगीं. उन्होंने मां का वह कागजी हिस्सा भी बेच कर पैसे बेटे बहू को दे दिए. मां बहुत रोई थीं. तब से मैंने फैसला कर लिया कि इस झूठ फरेब में नहीं पड़ूंगी और अपनी शर्तों पर अपनी समझ से जिऊंगी.”

“काश तुम्हें यह समझ पहले होती” कहता हुआ अमित कपड़े फेंकते हुए नेहा के साथ बिस्तर पर लेट गया.

दोनों की जिंदगी में लौकडाउन का वह पूरा दिन उम्र भर के लिए यादगार बन गया था. पुरानी गलतफहमियां और कड़वाहट दूर हो गई थीं. एकदूसरे के ऊपर अधिकार न होते हुए भी वे एकदूसरे के लिए कुछ भी करने को तैयार थे. एक अलग सा कंफर्ट लेवल था जिस ने तकलीफ के उन दिनों को भी नए रंग में रंग दिया था.

सबक: क्यों शिखा की शादीशुदा जिंदगी में जहर घोल रही थी बचपन की दोस्त

अपनेमंगेतर रवि के दोस्त मयंक की सगाई के मौके पर शिखा पहली बार नेहा से मिली थी. कुछ ही देर में नेहा के मुंह से उस ने बहुत सी ऐसी बातें सुनीं, जिन से साफ जाहिर हो गया कि वह उसे फूटी आंख नहीं भा रही थी.

शिखा को पता था कि वह अच्छी डांसर नहीं है, लेकिन उसे डांस करने में बहुत मजा आता था. रवि के साथ कुछ देर डांस करने के बाद जब वह अपनी परिचित महिलाओं के पास गपशप करने पहुंची, तब नेहा ने बुरा सा मुंह बना कर टिप्पणी की, ‘‘डांस में जोश के साथसाथ ग्रेस भी नजर आनी चाहिए, नहीं तो इंसान जंगली सा नजर आता है.’’

फिर कुछ देर बाद उस ने शिखा की फिगर को निशाना बनाते हुए कहा, ‘‘शिखा, तुम मेरी बात का बुरा मत मानना, पर आजकल जो जीरो साइज का फैशन चल रहा है, वह मेरी समझ से तो बाहर है. फैशन अपनी जगह है पर प्रेमी या पति के हिस्से में प्यार करते हुए सिर्फ हड्डियों का ढांचा आए, यह उस बेचारे के साथ नाइंसाफी होगी या नहीं?’’

नेहा की इस बात को सुन कर सब औरतें खूब हंसी. शिखा ने कुछ तीखा जवाब देने से खुद को रोक लिया. अपने दिमाग पर बहुत जोर डालने के बाद भी शिखा की समझ में नहीं आया कि नेहा क्यों उस के साथ ऐसा गलत सा व्यवहार कर रही है.

शिखा ने एकांत में जा कर आखिरकार रवि से पूछ ही लिया, ‘‘अतीत में तुम्हारे नेहा से कैसे संबंध रहे हैं?’’

‘‘ठीक रहे हैं, पर तुम यह सवाल क्यों पूछ रही हो?’’ उन्होंने ध्यान से शिखा के चेहरे को पढ़ना शुरू कर दिया.

‘‘क्योंकि मुझे लग रहा है कि नेहा जानबूझ कर मेरे साथ बेढंगा सा व्यवहार कर रही है. चूंकि आज हम पहली बार मिले हैं, इसलिए मेरी किसी गलती के कारण उस के यों नाराज नजर आने का सवाल ही नहीं उठता. आर यू श्योर कि किसी पुरानी अनबन के कारण वह आप से नाराज नहीं चल रही है?’’

‘‘नहीं, मेरे साथ कभी उस का झगड़ा नहीं हुआ है.’’

‘‘फिर क्या कारण हो सकता है, जो वह मुझ से इतनी खुंदक खा रही है?’’

‘‘इंसान का मूड सौ कारणों से खराब हो जाता है. तुम बेकार की टैंशन क्यों ले रही हो, यार? चलो, तुम्हें टिक्की खिलाता हूं.’’

‘‘वह मेरा पार्टी का सारा मजा किरकिरा कर रही है.’’

‘‘तो चलो उस से झगड़ा कर लेते हैं,’’ रवि कुछ चिड़ उठे थे.

‘‘तुम नाराज मत होओ. मैं उस की बातों पर ध्यान देना बंद कर देती हूं,’’ उस का मूड ठीक करने को शिखा फौरन मुसकरा उठी.

‘‘यह हुई न समझदारी की बात,’’ रवि ने प्यार से उस का गाल थपथपाया और फिर हाथ पकड़ कर टिक्की वाले स्टाल की तरफ बढ़ चला.

शिखा नेहा के गलत व्यवहार के बारे में सबकुछ भूल ही जाती अगर उस ने  कुछ देर बाद उन दोनों को बाहर बगीचे में बहुत उत्तेजित व परेशान अंदाज में बातें करते खिड़की से न देख लिया होता.

वह उन की आवाजें तो नहीं सुन सकती थी पर उन के हावभाव से अंदाज लगाया कि रवि उसे कुछ समझने की कोशिश कर रहा था और वह बड़ी अकड़ से अपनी बात कह रही थी. उत्तेजित लहजे में बोलते हुए नेहा रवि के ऊपर हावी होती नजर आ रही थी, इस बात ने शिखा के मन में खलबली सी मचा दी.

अपने मन की चिंता को काबू में रखते हुए वह मयंक के पास पहुंची और गंभीर लहजे में बोली, ‘‘आप मुझे 1 बात सचसच बताओगे, मयंक भैया?’’

‘‘बिलकुल बताऊंगा,’’ मयंक ने मुसकरा कर जवाब दिया.

‘‘आप तो जानते ही हो कि मैं रवि को अपनी जान से ज्यादा चाहती हूं.’’

‘‘यह मुझे अच्छी तरह से मालूम है.’’

‘‘नेहा से आज मैं पहली दफा मिली हूं. वह मुझ से अकारण क्यों चिड़ी हुई है और बातबात में मुझे सब के सामने शर्मिंदा करने की कोशिश क्यों कर रही है, मेरे इन सवालों का जवाब तुम दो, प्लीज.’’

शिखा को बहुत संजीदा देख मयंक ने कोई कहानी गढ़ने का इरादा त्याग दिया. वह शांत खड़ी हो कर उन के बोलने का इंतजार कर रही थी.

कुछ देर बाद उस ने धीमी आवाज में शिखा को बताया, ‘‘नेहा कालेज में हमारे साथ पढ़ती थी. रवि और वह कभी एकदूसरे को बहुत चाहते थे. फिर उस के मातापिता की रजामंदी न होने से वे शादी नहीं कर पाए थे.

‘‘अमीर पिता की बेटी नेहा की शादी भी बड़े अच्छे घर में हुई है, पर अपने पति के साथ उस के संबंध अच्छे नहीं चल रहे हैं. लेकिन तुम किसी बात की चिंता मत करो. मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं कि रवि के मन में अब उस के लिए कोई आकर्षण मौजूद नहीं है.’’

‘‘लेकिन नेहा के मन में रवि के लिए अभी भी आकर्षण मौजूद है, नहीं तो मैं उस की आंखों में क्यों चुभती?’’ नेहा के मन में गुस्सा बढ़ने लगा था.

‘‘मुझे एक बात बताओ. रवि के प्यार के ऊपर तुम्हें पूरा विश्वास है न?’’

‘‘अपने से ज्यादा विश्वास करती हूं मैं उन पर, लेकिन…’’

‘‘लेकिन को गोली मारो और मुझे बताओ कि जब रवि के प्यार पर तुम्हें पूरा विश्वास है, तो फिक्र किस बात की कर रही हो?’’

‘‘जो बीज भविष्य में बड़ी सिरदर्दी का पेड़ बनने की संभावना रखता हो, क्या उसे शुरू में ही नष्ट कर देना समझदारी नहीं होगी?’’

‘‘यह बात तो ठीक है, पर तुम करने क्या जा रही हो?’’

‘‘तुम्हारी पार्टी में कोई बखेड़ा खड़ा नहीं करूंगी, देवरजी. मैं नेहा को ऐसा सबक सिखाना चाहती हूं कि वह भविष्य में कभी मुझ से पंगे लेने की जुर्रत न करे. तुम तो बस मेरा परिचय उस के पति से करा दो, प्लीज.’’

शिखा की बात को सुन मयंक की आंखों से चिंता के भाव तो कम नहीं हुए पर वो नेहा के पति विवेक के साथ उस का परिचय कराने को साथ चल पड़ा था.

आकर्षक युवतियों के लिए पुरुषों के मन को प्रभावित करना ज्यादा मुश्किल नहीं होता है. शिखा ने विवेक की जिंदगी के बारे में जानने को थोड़ी सी दिलचस्पी दिखाई, तो बहुत जल्दी वो दोनों बहुत अच्छे मित्रों की तरह से हंसनेबोलने लगे थे.

‘‘मेरे पति कहीं नजर नहीं आ रहे हैं और मेरा दिल आइसक्रीम खाने को कर रहा है,’’ करीब 15 मिनट की जानपहचान के बाद शिखा की इस इच्छा को सुनते ही विवेक की आंखों में जो चमक पैदा हुई वह इस बात का प्रतीक थी कि उस का जादू विवेक पर पूरी तरह से चल गया है.

‘‘अगर तुम्हें ठीक लगे तो मेरे साथ आइसक्रीम खाने चलो,’’ उस ने फौरन साथ चलने का प्रस्ताव शिखा के सामने रख दिया.

‘‘आप चलोगे मेरे साथ?’’

‘‘बड़ी खुशी से.’’

‘‘यों मेरे साथ अकेले बाहर घूमने जाने से कहीं आप की पत्नी नाराज तो नहीं हो जाएंगी?’’ यह पूछते हुए शिखा बड़ी अदा से मुसकराई.

‘‘उसे मैं ने इतना सिर नहीं चढ़ाया हुआ है कि इतनी छोटी बात को ले कर मुझ से झगड़ा करे.’’

‘‘फिर भी हमें बिना मतलब किसी का दिल नहीं दुखाना चाहिए. आप बाहर मेरी कार नंबर 4678 के पास मेरा इंतजार करोगे, प्लीज. मैं 2 मिनट के बाद बाहर आती हूं.’’

‘‘जैसी तुम्हारी मरजी,’’ कह हौल के मुख्य द्वार की तरफ चल पड़ा.

विवेक  जैसे ही शिखा की नजरों से ओझल हुआ तो वह तेज चाल से कुछ दूर  खड़ी नेहा से मिलने चल पड़ी.

पास पहुंच कर शिखा ने उस का हाथ पकड़ा और उसे उस की सहेलियों से कुछ दूर ले आई. फिर उस के कान के पास मुंह ले जा कर उस ने हैरान नजर आ रही नेहा को कठोर लहजे में धमकी दी, ‘‘मुझे तुम्हारे और रवि के बीच कालेज में रहे पुराने इश्क के चक्कर के बारे में सबकुछ पता लग गया है. तुम अभी भी उस के साथ चक्कर चालू रखना चाहती हो, यह भी मुझे पता है. आज तुम ने सब के सामने जो मुझे बेइज्जत करने की बारबार कोशिश करी है, उस के लिए मैं तुम्हें सजा जरूर दूंगी.’’

‘‘मैं विवेक के साथ बाहर घूमने जा रही हूं और रास्ते में उसे तुम्हारी चरित्रहीनता के बारे में सब बता कर उस की नजरों में तुम्हारी छवि बिलकुल खराब कर दूंगी. तुम तो मेरे और रवि के बीच कबाब में क्या हड्डी बनती, मैं ही तुम्हारे विवाहित जीवन की सारी खुशियां नष्ट कर देती हूं,’’ उसे धमकी देने के बाद शिखा गुस्से से कांपने का अभिनय करती हुई मुख्य दरवाजे की तरफ चल पड़ी.

नेहा ने शिखा को घबराहट और डर से कांपती आवाज में पुकार कर रोकने की कोशिश करी, पर उस ने मुड़ कर नहीं देखा.

हौल से बाहर आ कर शिखा दाईं तरफ कुछ फुट दूर एक झड़ी के पीछे छिप कर बैठ गई. वहां से उसे दरवाजा साफ नजर आ रहा था.

रवि और नेहा मुश्किल से 2 मिनट बाद बेहद घबराए हुए दरवाजे से बाहर आए. जब शिखा या विवेक उन्हें कहीं नहीं नजर आए, तो वे आपस में बातें करने लगे.

‘‘शिखा तो कहीं दिखाई नहीं दे रही है,’’ रवि बहुत परेशान नजर आ रहा था.

‘‘उसे ढूंढ़ कर विवेक से बातें करने से रोको, नहीं तो वह मुझे कभी चैन से जीने नहीं देगा,’’ नेहा की आवाज डर के मारे कांप रही थी.

‘‘जब वह कहीं दिखाई ही नहीं दे रही है, तो मैं उसे रोकूं कैसे?’’ विवेक चिड़ उठा.

‘‘तुम ने उसे हमारे प्रेम के बारे में कुछ बताया ही क्यों?’’

‘‘मैं पागल हूं जो उसे तुम्हारे बारे में कुछ बताऊंगा?’’

‘‘फिर उस ने मुझ से क्या यह झूठ बोला है कि वह हमारे बारे में सबकुछ जान गई है?’’

‘‘हो सकता है किसी और ने उसे सब बता दिया हो, पर मुझे यह बताओ कि तुम आज बेकार ही उस के साथ चिड़ और नाराजगी से भरा गलत व्यवहार कर उसे क्यों छेड़ रही थी?’’

‘‘क्योंकि यह सच है कि वह घमंडी लड़की तुम्हारी भावी जीवनसंगिनी के रूप में मुझे रत्तीभर पसंद नहीं आई है.’’

‘‘तुम्हें अपनी यह राय अपने तक रखनी चाहिए थी. तुम्हारेमेरे बीच जो प्यार का रिश्ता हमेशा के लिए खत्म हो चुका है, उस के आधार पर तुम्हें किसी कमअक्ल स्त्री की तरह शिखा से खुंदक नहीं खानी चाहिए थी,’’ रवि ने उसे फौरन डांटा तो मेरे मन ने इसे रवि की नेहा में कोई दिलचस्पी न होने का सुबूत मान कर बड़ी राहत महसूस करी.

‘‘तुम उसे रोकने के बजाय मुझे लैक्चर मत दो, तुम्हें पता नहीं कि विवेक का गुस्सा कितना तेज है. शिखा की बातें सुनने के बाद वह गुस्सैल इंसान मुझे ताने देदे कर मार डालेगा. कितनी पागल और बेवकूफ है यह शिखा. उस के लिए ये सब खेल होगा, पर मेरी तो जिंदगी बरबाद हो जाएगी.’’

वह अचानक रोने लगी तो मैं ने उन के सामने आने का यही मौका उचित समझ.

अपने छिपने की जगह से बाहर आते हुए ही मैं ने नेहा को सख्त लहजे में चेतावनी देनी शुरू कर दी, ‘‘अगर तुम में थोड़ी सी भी बुद्धि है तो आज की इस घटना को, अपने मन के डर और इस वक्त अपनी आंखों से बहते इन आंसुओं को कभी मत भूलना. रवि की बातों से यह साफ जाहिर हो रहा है कि उसे तुम से किसी तरह का कोई वास्ता नहीं रखना है. तुम भी कभी उस के साथ गलत नीयत के साथ मुलाकात करने की कोशिश मत करना. तुम मेरी कुछ बातें इस वक्त कान खोल कर सुन लो. जो बीत गया है उसे भूलो और वर्तमान की तुलना अतीत से कर अपना मन मत दुखाओ. रवि और मैं कुछ ही दिनों बाद शादी कर के नई शुरुआत करने जा रहे हैं. अपने विवाहित जीवन के दुखों को दूर करने के लिए अगर तुम ने मेरे रवि को गुमराह कर हमारे रास्ते में दिक्कत खड़ी करने की कभी कोशिश करी, तो बहुत पछताओगी.’’

मेरी चेतावनी के जवाब में बहुत डरी हुई नेहा के मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला. कुछ देर पहले उस में नजर आ रही सारी अकड़ छूमंतर हो गई थी.

मैं ने बड़े अधिकार से रवि का हाथ पकड़ा और उसे साथ ले कर अंदर हौल की तरफ चल पड़ी. मुझे पक्का विश्वास था कि नेहा भविष्य में मेरे भावी जीवनसाथी के साथ किसी तरह का संपर्क बनाने की जुर्रत कभी नहीं करेगी.

आजादी: राधिका का आखिर क्या था कुसूर

फैमिली कोर्ट की सीढि़यां उतरते हुए पीछे से आती हुई आवाज सुन कर वह ठिठक कर वहीं रुक गई. उस ने पीछे मुड़ कर देखा. वहां होते कोलाहल के बीच लोगों की भीड़ को चीरता हुआ नीरज उस की तरफ तेज कदमों से चला आ रहा था.

‘‘थैंक्स राधिका,’’ उस के नजदीक पहुंच नीरज ने अपने मुंह से जब आभार के दो शब्द निकाले तो राधिका का चेहरा एक अनचाही पीड़ा के दर्द से तन गया. उस ने नीरज के चेहरे पर नजर डाली. उस की आंखों में उसे मुक्ति की चमक दिखाई दे रही थी. अभी चंद मिनटों पहले ही तो एक साइन कर वह एक रिश्ते के भार को टेबल पर रखे कागज पर छोड़ आगे बढ़ गई थी.

‘‘थैंक्स राधिका टू डू फेवर. मुझे तो डर था कि कहीं तुम सभी के सामने सचाई जाहिर कर मुझे जीने लायक भी न छोड़ोगी,’’ राधिका को चुप पा कर नीरज ने आगे कहा.

राधिका ने एक बार फिर ध्यान से नीरज के चेहरे को देखा और बिना कुछ कहे आगे बढ़ गई. फैमिली कोर्ट के बाहर से रिकशा ले कर वह सीधे औफिस ही पहुंच गई. उस के मन में था कि औफिस के कामों में अपने को व्यस्त रख कर मन में उठ रही टीस को वह कम कर पाएगी. लेकिन वहां पहुंच कर भी उस का मन किसी भी काम में नहीं लगा. उस ने घड़ी पर नजर डाली. एक बज रहा था. औफिस में आए उसे अभी एक घंटा ही हुआ था. अपनी तबीयत ठीक न होने का बहाना कर उस ने हाफडे लीव को फुल डे सिकलीव में कन्वर्ट करवा लिया और औफिस से निकल कर सीधे घर जाने के लिए रिकशा पकड़ लिया.

सोसाइटी कंपाउंड में प्रवेश कर उस ने लिफ्ट का बटन दबाया, पर सहसा याद आया कि आज सुबह से बिजली बंद है और शाम 5 बजे के बाद ही सप्लाई वापस चालू होगी. बुझे मन से वह सीढि़यां चढ़ कर तीसरी मंजिल पर आई. फ्लैट नंबर सी-302 का ताला खोल कर अंदर से दरवाजा बंद कर वह सीधे जा कर बिस्तर पर पसर गई.

कुछ देर पहले बरस कर थम चुकी बारिश की वजह से वातावरण में ठंडक छा गई थी. लेकिन उस का मन अंदर से एक आग की तपिश से जला जा रहा था. नेहा अपने बौस के साथ बिजनैस टूर पर गई हुई थी और कल सुबह से पहले नहीं आने वाली थी वरना मन में उठ रही टीस उस के संग बांट कर अपने को कुछ हलका कर लेती. बैडरूम में उसे घबराहट होने लगी, तो वह उठ कर हौल में आ कर सोफे पर सिर टिका कर बैठ गई. उस की आंखों के आगे जिंदगी के पिछले 4 साल घूमने लगे…

‘चलो अच्छा ही है 2 दोस्तों के बच्चे अब शादी की गांठ से बंध जाएंगे तो दोस्ती अब रिश्तेदारी में बदल कर और पक्की हो जाएगी,’ राधिका के नीरज से शादी के लिए हां कहते ही जैसे पूरे घर में खुशियां छा गई थीं. राधिका के पिता ने अपने दोस्त का मुंह मीठा करवाया और गले से लगा लिया.

राधिका ने अपने सामने बैठे नीरज को चोरीछिपे नजरें उठा कर देखा. वह शरमाता हुआ नीची नजरें किए हुए चुपचाप बैठा था. न्यूजर्सी से अपनी पढ़ाई पूरी कर अभी कुछ महीने पहले ही आया नीरज शायद यहां के माहौल में अपनेआप को फिर से पूरी तरह से एडजस्ट नहीं कर पाया. यही सोच कर राधिका उस वक्त उस के चेहरे के भाव नहीं पढ़ पाई. अपने पापा के दोस्त दीनानाथजी को वह बचपन से जानती थी लेकिन नीरज से उस की मुलाकात इस रिश्ते की नींव बनने से पहले कभीकभी ही हुई थी. 12वीं पास करने के बाद नीरज 5 साल के लिए स्टूडैंट वीजा पर न्यूजर्सी चला गया था और जब वापस आया तो पहली ही मुलाकात में चंद घंटों की बातों के बाद उन की शादी का फैसला हो गया.

‘‘नीरज, मैं तुम्हें पसंद तो हूं न?’’ बगीचे में नीरज का हाथ थाम कर चलती राधिका ने पूछा.

‘‘हां. लेकिन क्यों ऐसा पूछ रही हो?’’ उस की बात का जवाब देते हुए नीरज ने पूछा.

‘बस ऐसे ही. अगले महीने हमारी शादी होने वाली है. पर तुम्हारे चेहरे पर कोई उत्साह न देख कर मुझे डर सा लगता है. कहीं तुम ने किसी दबाव में आ कर तो इस शादी के लिए हां नहीं की न?’ पास ही लगी बैंच पर बैठते हुए राधिका ने नीरज को देखा.

‘वैल. अपना बिजनैस सैट करने की थोड़ी टैंशन है. इसी उलझन में रहता हूं कि कहीं शादी का यह फैसला जल्दी तो नहीं ले लिया,’ कहते हुए नीरज ने अपनी पैंट की जेब से रूमाल निकाला और माथे पर उभर आई पसीने की बूंदों को पोंछ डाला.

‘इस में टैंशन लेने वाली बात ही क्या है? शादी तो समय पर हो ही जानी चाहिए. वैसे भी, जीने के लिए पैसा नहीं, अपने लोगों के पास होने की जरूरत होती है,’ कहती हुई राधिका ने नीरज के कंधे पर अपना सिर टिका दिया.

‘बात तो सच है तुम्हारी पर फिर भी हर वक्त एक डर सा बना रहता है,’ नीरज ने अपने हाथ में अभी भी रूमाल पकड़ रखा था.

‘छोड़ो भी अब यह डर और कोई रोमांटिक बात करो न मुझ से,’ कहती हुई राधिका ने आसपास नजर दौड़ाई. बगीचे में अधिकांश जोड़े अपनी ही मस्ती में खोए हुए थे. सहसा राधिका नीरज के और करीब आ गई और उस के हाथ की उंगलियां उस की छाती पर हरकत करने लगीं.

‘यह क्या हरकत है राधिका?’ कहते हुए नीरज ने एक झटके से राधिका को अपने से दूर कर दिया और अपनी जगह से खड़ा हो गया. राधिका के लिए नीरज का यह व्यवहार अप्रत्याशित था. वह नीरज की इस हरकत से सहम गई. तभी दरवाजे की घंटी बज उठी. राधिका अपनी यादों से बाहर निकल कर खड़ी हुई और दरवाजा खोला.

‘‘नेहा प्रधान हैं?’’

दरवाजे पर कूरियर वाला खड़ा था. ‘‘जी, इस वक्त वह घर पर नहीं है. लाइए मैं साइन कर देती हूं,’’ राधिका ने पैकेट लेने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया.

पैकेट दे कर कूरियर वाला चला गया. दरवाजा बंद करती हुई राधिका ने पैकेट को देख कर उस के अंदर कोई पुस्तक होने का अंदाजा लगाया. नेहा अकसर कोई न कोई पुस्तक मंगाती रहती थी. उस ने पैकेट टेबल पर रख दिया और वापस सोफे पर बैठ गई.

4 वर्षों का साथ आज यों ही एक झटके में तो नहीं टूट गया था. उस के पीछे की भूमिका तो शायद शादी के पहले से ही बन चुकी थी. पर नीरज का मौन राधिका की जिंदगी भी दांव पर लगा गया. नीरज के बारे में और सोचते हुए उस का चेहरा तन गया.

‘नीरज,  तुम्हारे मन में आखिर चल क्या रहा है? हमारी शादी हुए एक महीने से ज्यादा हो गया और 10 दिनों के अच्छेखासे हनीमून के बाद भी तुम्हारे चेहरे पर नईनई शादी वाली खुशी नदारद सी है. बात क्या है? मुझ से तो खुल कर कहो,’ पूरे हनीमून के दौरान राधिका ने महसूस किया कि नीरज हमेशा उस से एक सीमित अंतर बना कर रह रहा है. रात के हसीन पल भी उसे रोमांचित नहीं कर पा रहे थे. वह, बस, शादी के बाद की रातों को एक जिम्मेदारी मान कर जैसेतैसे निभा ही रहा था. हनीमून से लौट कर आने के बाद राधिका के चेहरे पर अतृप्ति के भाव छाए हुए थे.

‘कुछ नहीं राधिका. मुझे लगता है हम ने शादी करने में जल्दबाजी कर दी है,’ राधिका की बात सुन कर नीरज इतना ही बोल पाया.

‘जनाब, अब ये सब बातें सोचने का समय बीत चुका है. बेहतर होगा हम मिल कर अपनी शादी का जश्न पूरे मन से मनाएं,’ राधिका ने नीरज की बात सुन कर कहा.

‘तुम नहीं समझ पाओगी राधिका और मैं तुम्हें अपनी समस्या समझ भी नहीं पाऊंगा,’ कह कर नीरज राधिका की प्रतिक्रिया की परवा किए बिना ही कमरे से बाहर चला गया.

अकेले बैठी हुई राधिका का मन बारबार पिछली बातों में जा कर अटक रहा था. लाइट भी नहीं थी जो टीवी औन कर अपना मन बहला पाती. तभी उस के मन में कुछ कौंधा और उस ने नेहा के नाम से अभी आया पैकेट खोल लिया. उस के हाथों में किसी नवोदित लेखक की पुस्तक थी. पुस्तक के कवर पर एक स्त्री की एक पुरुष के साथ हाथों में हाथ डाले हुए मनमोहक छवि थी और उस के ऊपर पुस्तक का शीर्षक छपा हुआ था- ‘उस के हिस्से का प्यार’. कहानियों की इस पुस्तक की विषय सूची पर नजर डालते हुए उस ने एक के बाद एक कुछ कहानियां पढ़नी शुरू कर दीं. बच्चे के यौन उत्पीड़न और फिर उस को ले कर वैवाहिक जीवन में आने वाली समस्या को ले कर लिखी गई एक कहानी पढ़ कर वह फिर से नीरज की यादों में खो गई.

उस दिन नीरज बेहद खुश था. वह घर खाने पर अपने किसी विदेशी दोस्त को ले कर आया था.

‘राधिका, 2 दिनों पहले मैं अपने जिस दोस्त की बात कर रहा था वह यह माइक है. न्यूजर्सी में हम दोनों रूममेट थे और साथ ही पढ़ते थे,’ नीरज ने राधिका को माइक का परिचय देते हुए कहा.

राधिका ने अपने पति की बाजू में खड़े उस श्वेतवर्णी स्निग्ध त्वचा वाले लंबे व छरहरे युवक पर नजर डाली. राधिका को पहली ही नजर में नीरज का यह दोस्त बिलकुल पसंद नहीं आया. उस का क्लीनशेव्ड नाजुक चेहरा और उस पर सिर पर थोड़े लंबे बालों को बांध कर बनाई गई छोटी सी चोटी देख कर राधिका को आश्चर्य हो रहा था कि ऐसा लड़का नीरज का दोस्त कैसे हो सकता है. नीरज तो खुद अपने पहनावे और लुक को ले कर काफी कौन्शियस रहता है. उस वक्त इस बात को नजरअंदाज कर वह इस बात पर ज्यादा कुछ न सोचते हुए खाना बनाने में जुट गई.

उसी रात नीरज ने जब राधिका से सीधेसीधे तलाक लेने की बात छेड़ी तो राधिका के पैरोंतले जमीन खिसक गई.

‘लेकिन बात क्या हुई नीरज? न हमारे बीच कोई झगड़ा है न कोई परेशानी. सबकुछ तो बराबर चल रहा है. कहीं तुम्हारा किसी के संग अफेयर तो…’ रिश्तों को बांधे रखने की दुहाई देते हुए सहसा उस का मन एक आशंका से भर गया.

‘अफेयर ही समझ लो. अब तुम से मैं आगे कुछ और नहीं छिपाऊंगा,’ कहते हुए नीरज चुप हो गया. राधिका ने नीरज के चेहरे को देखते हुए उस की आंखों में अजीब सी मदहोशी महसूस की.

‘तुम कहना क्या चाहते हो नीरज?’ राधिका नीरज की अधूरी छोड़ी बात पूरी सुनना चाहती थी. उस के बाद नीरज ने जो कुछ उस से कहा, उन में से आधी बात तो वह ठीक से सुन ही नहीं पाई.

‘तुम्हारे संग मेरी शादी मेरे लिए एक जुआ ही थी. मैं अपनी सारी जिंदगी इसी तरह कशमकश में गुजार देता पर अब यह कुछ नामुमकिन सा लगता है राधिका. बेहतर होगा हम अपनेअपने रास्ते अलगअलग ही तय करें,’ नीरज से शादी टूटने से पहले कहे गए आखिरी वाक्य उस के दिमाग में बारबार कौंधने लगे.

राधिका ने कमरे की लाइट बंद कर दी और चुपचाप लेट कर सारी रात अपनी बरबादी पर आंसू बहाती रही.

अब एक ही घर में नीरज के साथ रहते हुए वह अपनेआप को एक अजनबी महसूस कर रही थी. अपने मन की बात राधिका को जता कर जैसे नीरज के मन का भार हलका हो चुका था लेकिन राधिका जैसे मन पर एक अनचाहा भार ले कर जी रही थी. जब उस के मन का भार असहनीय हो गया तो वह नीरज के घर की दहलीज छोड़ कर अपने पिता के घर आ गई.

फिर जो हुआ वह आज के दिन में परिणत हो कर उस के सामने खड़ा था. कानूनी तौर पर वह भले ही नीरज से अलग हो चुकी थी लेकिन नीरज की सचाई और उस के द्वारा दी गई अनचाही पीड़ा अब भी उस के मन के कोने में कैद थी जिसे वह चाह कर भी किसी से बयान नहीं कर सकती थी. घर में बैठेबैठे अकेले घुटन होने से वह घर लौक कर बाहर निकल गई और एमजी रोड पर स्थित मौल में दिल बहलाने के लिए चक्कर लगाने लगी.

रात देर से नींद आने की वजह से सुबह उस की नींद देर से ही खुली. वैसे भी आज उस का वीकली औफ होने से औफिस जाने का कोई झंझट न था. उस ने उठ कर समाचार सुनने के लिए टीवी औन ही किया था कि डोरबेल बज उठी.

‘‘हाय राधिका. हाऊ आर यू?’’ दरवाजा खोलते ही नेहा राधिका से लिपट गई.

‘‘मैं ठीक हूं. तेरा टूर कैसा रहा?’’ राधिका के चेहरे पर एक फीकी सी मुसकान तैर गई.

‘‘बौस के साथ टूर हमेशा ही मजेदार रहता है. वैसे भी अब जिंदगी ऐसे मोड़ तक पहुंच गई है जहां से वापस लौटना संभव ही नहीं. यह टूर तो एक बहाना होता है एकांत पाने का,’’ कहती हुई नेहा सोफे पर पसर गई.

राधिका ने रिमोट उठा कर चुपचाप न्यूज चैनल शुरू कर दिया.

‘‘सुन, कल तेरी आखिरी सुनवाई थी न फैमिली कोर्ट में. क्या फैसला आया?’’ नेहा ने राधिका को अपने पास खींचते हुए उस से पूछा.

‘‘फैसला तो पहले से ही तय था. बस, साइन ही करने तो जाना था,’’ राधिका ने बुझेमन से जवाब दिया.

‘‘लेकिन तू ने अभी तक नहीं बताया कि आखिर ऐसा क्या हुआ जो तू ने नीरज से अलग होने का फैसला ले लिया?’’ पिछले एक साल से साथ रहने के बावजूद राधिका ने अपनी जिंदगी का एक अधूरा सच नेहा से अब तक छिपाए रखा था.

‘भारत की न्याय प्रणाली में एक ऐतिहासिक फैसला सैक्शन 377 के तहत अब गे और लैस्बियन संबंध वैध.’

तभी टीवी स्क्रीन पर आती ब्रैकिंग न्यूज देख कर राधिका असहज हो गई.

‘‘स्ट्रैंज,’’ नेहा ने न्यूज पर अपनी छोटी सी प्रतिक्रिया जताते हुए राधिका से फिर से पूछा, ‘‘तू ने बताया नहीं राधिका? कुछ कारण तो रहा होगा न?’’

‘‘बस, समझ ले कल उसे एक अनचाहे रिश्ते से कानूनीतौर पर मुक्ति मिली और आज उस मुक्ति की खुशी मनाने का मौका भी उसी कानून ने उसे दे दिया,’’ राधिका की नजरें अभी भी टीवी स्क्रीन पर जमी हुई थीं. लेकिन नेहा उस की नम हो चुकी आंखों में तैर रही खामोशी को पढ़ चुकी थी.

जातपांत : निर्मला से क्यों नाराज था उसका परिवार

निर्मला अपने पति राजन के साथ जिद कर के अपनी दादी के श्राद्ध में मायके आई थी. हालांकि राजन ने उसे बारबार यही कहा था कि बिन बुलाए वहां जाना ठीक नहीं है, फिर भी वह नहीं मानी और अपना हक समझते हुए वहां पहुंच ही गई.

निर्मला ने सोचा था कि दुख की इस घड़ी में वहां पहुंचने पर परिवार के सभी लोग गिलेशिकवे भूल कर उसे अपना लेंगे और दादी की मौत का दुख जताएंगे. पर उस का ऐसा सोचना गलत साबित हुआ.

सभी ने निर्मला को देख कर भी नजरअंदाज कर दिया, मानो वह कोई अजनबी हो.

इस के बावजूद भी निर्मला को उम्मीद थी कि परिवार वाले भले ही उसे नजरअंदाज करें, मां ऐसा नहीं कर सकतीं.

तभी निर्मला ने राजन की तरफ इस तरह देखा, मानो वह मां के पास जाने की उस से इजाजत ले रही हो. फिर वह अकेली ही मां की तरफ बढ़ गई.

उस समय निर्मला की मां औरतों के हुजूम में आगे बैठी हुई थीं. जब मां ने निर्मला को अपने करीब आते देखा, तो वे उठ कर तेजी से दूसरे कमरे में चली गईं.

मां के पीछेपीछे निर्मला भी वहां पहुंच गई और प्यार से बोली, ‘‘मां, यह सब कैसे हुआ? क्या दादी बहुत दिनों से बीमार थीं?’’

‘‘तुम से मतलब? आखिर तुम पूछने वाली होती कौन हो? चली जाओ यहां से. फिर कभी भूल कर भी इस घर की तरफ मत देखना, नहीं तो तुम मेरा मरा हुआ मुंह देखोगी,’’ गुस्से से चीखते हुए उस की मां बोलीं.

‘‘ऐसा न कहो, मां. नहीं तो मैं अनाथ हो जाऊंगी. आखिर तुम्हारा ही तो सहारा है मुझे. मां हो कर भी तुम मेरे मन की भावना को नहीं समझोगी, तो और कौन समझेगा?’’ रोते हुए निर्मला बोली.

‘‘नहीं समझना है मुझे. कुछ नहीं समझना,’’ चीखते हुए उस की मां ने कहा.

‘‘क्यों नहीं समझना है, मां? तुम्हें समझना ही पड़ेगा. अपनी बेटी के दुख को महसूस करना ही पड़ेगा. आखिर मेरा इतना ही कुसूर था न कि मैं ने राजन से सच्चा प्यार किया? उस से शादी की, जो हमारी बिरादरी का नहीं है?

‘‘लेकिन मां, तुम मुझे गौर से देखो कि मैं राजन के साथ कितनी खुश हूं. मुझे किसी बात का दुख नहीं है,’’ खुशी जताते हुए निर्मला ने कहा.

‘‘मुझे कुछ नहीं देखना है और न ही सुनना है, बस. तुम अभी और इसी समय उस राजन को ले कर यहां से चली जाओ, ताकि तुम्हारी दादी का श्राद्ध शांति से पूरा हो सके,’’ मां बोलीं.

‘‘हम यहां से चले जाएंगे, मां, रहने के लिए नहीं आए हैं. केवल दादी के श्राद्ध में आए हैं. बस, उसे पूरा हो जाने दो. क्योंकि दादी से मेरा और मुझ से उन का कितना गहरा लगाव था, यह तुम अच्छी तरह से जानती हो. मेरे बिना तो वे कुछ भी नहीं खातीपीती थीं,’’ सुबकते हुए निर्मला ने कहा.

‘‘इसीलिए तो तुम उस कलमुंहे राजन के साथ भाग गई और कोर्ट में जा कर शादी कर ली. तब तुम्हें दादी का इतना खयाल नहीं था, जबकि उन्होंने तुम्हारी याद में अपनी जान दे दी?’’

‘‘मुझे दादी का बहुत खयाल था, मां. परंतु मैं क्या करती, आप सभी तो मुझ से खफा थे. डर के चलते मैं नहीं आ सकी,’’ रोते हुए निर्मला ने कहा.

‘‘बड़ी आई डर वाली. जब इतना ही डर था, तो घर से कदम बाहर निकालते समय हजार बार सोचती? फिर भी कुछ नहीं सोचा.

‘‘अरे, क्या अपनी बिरादरी में लड़कों की कमी हो गई थी, जो उस नाशपीटे राजन के साथ भाग गई?’’ तीखी आवाज में उस की मां ने कहा.

मां के सवालों का जवाब देने के बजाय निर्मला ने कहा, ‘‘मां, मुझे जी भर कर कोस लो, लेकिन उन्हें कुछ न कहो, क्योंकि अब वे मेरे पति हैं.’’

‘‘तुम तो ऐसे कह रही हो, जैसे दुनिया में केवल एक तुम ही पति वाली हो, बाकी सब दिखावे वाली हैं,’’ खिल्ली उड़ाते हुए उस की मां बोलीं.

‘‘मां, मेरी अच्छी मां, तुम तो मुझे ऐसा न कहो. हर मांबाप का सपना होता है कि मेरी बेटी अच्छे घर में ब्याहे, सुखशांति से रहे. उन्हीं में से मैं एक हूं.

‘‘तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि मैं ने अपने जीवनसाथी का खुद ही चुनाव कर तुम लोगों की परेशानी को दूर किया है. इस के बावजूद भी सभी की तरह तुम भी मुझे नजरअंदाज कर रही हो?’’ दुखी हो कर निर्मला ने कहा.

‘‘हां, तुम इसी काबिल हो, इसीलिए नहीं मिलेगा अब तुम्हें वह लाड़प्यार और अपनापन, जो कभी यहां मिला करता था…’’

निर्मला की मां की बातें अभी पूरी भी नहीं हो पाई थीं कि पिता, भाई, बहन व भाभी सभी वहां आ गए और गुस्से से निर्मला को घूरने लगे.

तभी उस के पिता दयाशंकर ने गुस्से में कहा, ‘‘कलंकिनी, मुझे तो तेरा नाम लेते हुए भी नफरत हो रही है. आखिर तुम ने मेरे घर में कदम रखने की हिम्मत कैसे की?’’

‘‘ऐसा न कहिए, पापा. आखिर इस घर से मेरा भी तो कोई रिश्ता है? उसी रिश्ते के वास्ते तो मैं यहां आई हूं. मुझे और मेरे पति को अपना लीजिए, पापा,’’ रोतेगिड़गिड़ाते हुए निर्मला ने कहा.

‘‘खबरदार, जो मुझे पापा कहा. तेरा पापा तो उसी दिन मर गया था, जिस दिन तू इस घर को छोड़ कर गई थी. रहा सवाल अपनाने का, तो यह हक अब तुम खो चुकी हो.’’

‘‘नहीं, पापा नहीं. ऐसा न कहो और ठंडे दिमाग से सोचो कि प्यार करना क्या कोई जुर्म है?

‘‘आखिर मैं भी तो बालिग हूं. जब मैं अपना भलाबुरा सोचसमझ सकती हूं, तो फिर मुझे फैसला लेने का हक क्यों नहीं है? और फिर चाहे बातें भविष्य की हों या जीवनसाथी चुनने की, लड़कियों को यह हक जरूर मिलना चाहिए,’’ थोड़ा खुश हो कर निर्मला ने कहा.

‘‘तू मुझे हक के बारे में समझा रही है? अगर तू इतनी ही समझदार होती, तो अपनी ही जाति के लड़के से शादी करती, न कि किसी दूसरी जाति के लड़के से,’’ निर्मला के पिता ने कहा.

‘‘दूसरी जाति के लड़के क्या इनसान नहीं होते? क्या उन में समझदारी नहीं होती? इस की मिसाल तो राजन ही हैं, जिन्होंने मुझे जिंदगी की सारी खुशियां दे रखी हैं, कोई कमी महसूस नहीं होने दी है उन्होंने. मैं इस तरह के जातपांत के भेदभाव को नहीं मानती, जो एक इनसान को दूसरे इनसान से अलग करता हो, आपस में दूरियां बढ़ाता हो…

‘‘मैं केवल इनसानियत की जात को जानती व मानती हूं,’’ निर्मला बोलती चली गई.

‘‘बस करो अपनी यह बकवास और उस राजन के साथ यहां से चलती बनो,’’ इस बार चीखते हुए निर्मला का भाई विशाल बोला.

‘‘भैया, मुझे जो चाहो कह लो, मैं सब बरदाश्त कर लूंगी. लेकिन उन के बारे में कुछ भी नहीं सुन सकती. क्योंकि एक पत्नी अपने सामने पति की बेइज्जती कभी बरदाश्त नहीं कर सकती.’’

‘‘अच्छा, तब तो मुझे तुम्हारे पति की बेइज्जती करनी ही होगी, वह भी तुम्हारे सामने,’’ नजरें तिरछी करते हुए विशाल बोला.

‘‘क्या…? यह तुम कह रहे हो? जबकि तुम भी किसी के पति हो और तुम्हारी पत्नी तुम्हारे सामने खड़ी है. महाभारत मचा दूंगी मैं यहां. तुम क्या समझते हो अपनेआप को कि वे तुम से कमजोर हैं?

‘‘वे जूडोकराटे में ब्लैकबैल्ट हैं और साथ ही पुलिस में भी हैं. उन से टकराना तुम्हें महंगा पड़ेगा, भैया.

‘‘हां, मैं यदि चाहूं, तो तुम्हारी पत्नी के सामने तुम्हारी बेइज्जती जरूर करवा सकती हूं, ताकि तुम बेइज्जती के दर्द को महसूस कर सको.

‘‘लेकिन, मैं इतनी बेवकूफ भी नहीं हूं कि तुम्हारी तरह कुछ करने से पहले कुछ सोचसमझ न सकूं. औरत हूं, इसलिए औरत का दर्द समझती हूं. लिहाजा, ऐसा कुछ नहीं करना चाहूंगी, जिस से कि भाभी के मन में दुख हो.’’

निर्मला की बातें सुन कर उस की भाभी सुबक पड़ी और उस ने आगे बढ़ कर निर्मला को गले लगा लिया.

‘‘माधुरी, यह तुम क्या कर रही हो? दूर हटो उस से. इस से हमारा कोई रिश्ता नहीं है,’’ चीखते हुए विशाल बोला.

‘‘रिश्ता है क्यों नहीं? खून का रिश्ता है हमारा, इसलिए अपनी बहन को अपना लीजिए. इस ने ठीक ही कहा है कि जातपांत कुछ नहीं होता. होती है तो केवल इनसानियत, और इनसानियत का रिश्ता,’’ निर्मला की तरफदारी लेते हुए उस की भाभी माधुरी ने कहा, मानो वह भी इनसानियत के रिश्ते को ही अहमियत दे रही हो.

लेकिन माधुरी की बातें सुन कर विशाल बौखला गया. वह गुस्से से बोला, ‘‘माधुरी, लगता है इस के साथसाथ तुम्हारा भी दिमाग खराब हो गया है, कहीं…’’

अभी विशाल अपनी बातें पूरी भी नहीं कर पाया था कि तभी वहां राजन आ गया और सूझबूझ का परिचय देते हुए गंभीरता से बोला, ‘‘निर्मला, अब चलो यहां से. बहुत हो चुकी तुम्हारी बेइज्जती. मैं अब और सहन नहीं कर सकता.

‘‘मैं ने सबकुछ सुन लिया है और जान लिया है कि ये लोग ऐसे पत्थरदिल इनसान हैं, जो जातपांत का ढोंग रच कर समाज को गंदा करते हैं.’’

‘‘आप बिलकुल ठीक कहते हैं. अब मुझे समझ में आया कि मैं ने यहां आ कर कितनी बड़ी भूल की है?

‘‘ले चलिए मुझे. अब एक पल भी मैं यहां रुकना नहीं चाहूंगी,’’ उठते हुए निर्मला बोली और अपने पति राजन का हाथ थाम कर घर से बाहर जाने लगी.

उस की छोटी बहन उर्मिला ने दौड़ कर निर्मला का हाथ थाम लिया और सिसकते हुए बोली, ‘‘दीदी, मत जाओ. मुझे छोड़ कर मत जाओ.’’

‘‘पगली, मैं कहां तुम्हें छोड़ कर जा रही हूं? हां, जातपांत और उन बुरे रिवाजों को छोड़ कर जा रही हूं, जिसे मां, पापा व भैया ने अपनी मुट्ठियों में जकड़ रखा है.

‘‘मैं यहां नहीं आऊंगी तो क्या हुआ, तुम तो अपनी दीदी के घर आ सकती हो?’’ निर्मला बोली.

‘‘जरूर आऊंगी दीदी,’’ उर्मिला ने खुश हो कर कहा.

‘‘मैं इंतजार करूंगी,’’प्यार से उस के सिर पर अपना हाथ फेरते हुए निर्मला ने कहा और अपने पति राजन के साथ घर से बाहर निकल गई.

अपारदर्शी सच: किस रास्ते पर चलने लगी तनुजा

रात के 11 बज चुके थे. तनुजा की आंखें नींद और इंतजार से बोझिल हो रही थीं. बच्चे सो चुके थे. मम्मीजी और मनीष लिविंगरूम में बैठे टीवी देख रहे थे. तनुजा का मन हो रहा था कि मनीष को आवाज दे कर बुला ले, लेकिन मम्मी की उपस्थिति के लिहाज के चलते उसे ठीक नहीं लगा. पानी पीने के लिए किचन में जाते हुए उस ने मनीष को देखा पर उन का ध्यान नहीं गया. पानी पी कर भी अतृप्त सी वह वापस कमरे में आ गई.

बिस्तर पर बैठ कर उस ने एक नजर कमरे पर डाली. उस ने और मनीष ने एकदूसरे की पसंदनापसंद का खयाल रख कर इस कमरे को सजाया था.

हलके नीले रंग की दीवारों में से एक पर खूबसूरत पहाड़ी, नदी से गिरते झरने और पेड़ों की पृष्ठभूमि से सजी पूरी दीवार के आकार का वालपेपर. खिड़कियों पर दीवारों से तालमेल बिठाते नैट के परदे, फर्श से छत तक की अलमारियां, तरहतरह के सौंदर्य प्रसाधनों से भरी अंडाकार कांच की ड्रैसिंगटेबल, बिस्तर पर साटन की रौयल ब्लू चादर और टेबल पर सजा महकते रजनीगंधा के फूलों का गुलदस्ता. उसे लगा, सभी मनीष का इंतजार कर रहे हैं.

तनुजा की आंख खुली, तब दिन चढ़ आया था. उस का इंतजार अभी भी बदन में कसमसा रहा था. मनीष दोनों हाथ बांधे बगल में खर्राटे ले कर सो रहे थे. उस का मन हुआ, उन दोनों बांहों को खुद ही खोल कर उन में समा जाए और कसमसाते इंतजार को मंजिल तक पहुंचा दे. लेकिन घड़ी ने इस की इजाजत नहीं दी. फुरफुराते एहसासों को जूड़े में लपेटते वह बाथरूम चली गई.

बेटे ऋषि व बेटी अनु की तैयारी करते, सब का नाश्ताटिफिन तैयार करते, भागतेदौड़ते खुद की औफिस की तैयारी करते हुए भी रहरह कर एहसास कसमसाते रहे. उस ने आंखें बंद कर जज्बातों को जज्ब करने की कोशिश की, तभी सासुमां किचन में आ गईं. वह सकपका गई. उस ने झटके से आंखें खोल लीं और खुद को व्यस्त दिखाने के लिए पास पड़ा चाकू उठा लिया पर सब्जी तो कट चुकी थी, फिर उस ने करछुल उठा लिया और उसे खाली कड़ाही में चलाने लगी. सासुमां ने चश्मे की ओट से उसे ध्यान से देखा.

कड़ाही उस के हाथ से छूट गई और फर्श पर चक्कर काटती खाली कड़ाही जैसे उस के जलते एहसास उस के जेहन में घूमने लगे और वह चाह कर भी उन्हें थाम नहीं पाई.

एक कोमल स्पर्श उस के कंधों पर हुआ. 2 अनुभवी आंखों में उस के लिए संवेदना थी. वह शर्मिंदा हुई उन आंखों से, खुद को नियंत्रित न कर पाने से, अपने यों बिखर जाने से. उस ने होंठ दबा कर अपनी रुलाई रोकी और तेजी से अपने कमरे में चली गई.

बहुत कोशिश करने के बावजूद उस की रुलाई नहीं रुकी, बाथरूम में शायद जी भर रो सके. जातेजाते उस की नजर घड़ी पर पड़ी. समय उस के हाथ में न था रोने का. तैयार होतेहोते तनुजा ने सोते हुए मनीष को देखा. उस की बेचैनी से बेखबर मनीष गहरी नींद में थे.

तैयार हो कर उस ने खुद को शीशे में निहारा और खुद पर ही मुग्ध हो गई. कौन कह सकता है कि वह कालेज में पढ़ने वाले बच्चों की मां है? कसी हुई देह, गोल चेहरे पर छोटी मगर तीखी नाक, लंबी पतली गरदन, सुडौल कमर के गिर्द लिपटी साड़ी से झांकते बल. इक्कादुक्का झांकते सफेद बालों को फैशनेबल अंदाज में हाईलाइट करवा कर करीने से छिपा लिया है उस ने. सब से बढ़ कर है जीवन के इस पड़ाव का आनंद लेती, जीवन के हिलोरों को महसूस करते मन की अंगड़ाइयों को जाहिर करती उस की खूबसूरत आंखें. अब बच्चे बड़े हो कर अपने जीवन की दिशा तय कर चुके हैं और मनीष अपने कैरियर की बुलंदियों पर हैं. वह खुद भी एक मुकाम हासिल कर चुकी है. भविष्य के प्रति एक आश्वस्ति है जो उस के चेहरे, आंखों, चालढाल से छलकती है.

मनीष उठ चुके थे. रात के अधूरे इंतजार के आक्रोश को परे धकेल एक मीठी सी मुसकान के साथ उस ने गुडमौर्निंग कहा. मनीष ने एक मोहक नजर उस पर डाली और उठ कर उसे बांहों में भर लिया. रीढ़ में फुरफुरी सी दौड़ गई. कसमसाती इच्छाएं मजबूत बांहों का सहारा पा कर कुलबुलाने लगीं. मनीष की आंखों में झांकते हुए तपते होंठों को उस के होंठों के पास ले जाते शरारत से उस ने पूछा, ‘‘इरादा क्या है?’’ मनीष जैसे चौंक गए, पकड़ ढीली हुई, उस के माथे पर चुंबन अंकित करते, घड़ी की ओर देखते हुए कहा, ‘‘इरादा तो नेक ही है, तुम्हारे औफिस का टाइम हो गया है, तुम निकल जाना.’’ और वे बाथरूम की तरफ बढ़ गए.

जलते होंठों की तपन को ठंडा करने के लिए आंसू छलक पड़े तनुजा के. कुछ देर वह ऐसे ही खड़ी रही उपेक्षित, अवांछित. फिर मन की खिन्नता को परे धकेल, चेहरे पर पाउडर की एक और परत चढ़ा, लिपस्टिक की रगड़ से होंठों को धिक्कार कर वह कमरे से बाहर निकल गई.

करीब सालभर पहले तक सब सामान्य था. मनीष और तनुजा जिंदगी के उस मुकाम पर थे जहां हर तरह से इतमीनान था. अपनी जिंदगी में एकदूसरे की अहमियत समझतेमहसूस करते एकदूसरे के प्यार में खोए रहते.

इस निश्चितता में प्यार का उछाह भी अपने चरम पर था. लगता, जैसे दूसरा हनीमून मना रहे हों जिस में अब उत्सुकता की जगह एकदूसरे को संपूर्ण जान लेने की तसल्ली थी. मनीष अपने दम भर उसे प्यार करते और वह पूरी शिद्दत से उन का साथ देती. फिर अचानक यों ही मनीष जल्दी थकने लगे तो उसी ने पूरा चैकअप करवाने पर जोर दिया.

सबकुछ सामान्य था पर कुछ तो असामान्य था जो पकड़ में नहीं आया था. वह उन का और ध्यान रखने लगी. खाना, फल, दूध, मेवे के साथ ही उन की मेहनत तक का. उस की इच्छाएं उफान पर थीं पर मनीष के मूड के अनुसार वह अपने पर काबू रखती. उस की इच्छा देखते मनीष भी अपनी तरफ से पूरी कोशिश करते लेकिन वह अतृप्त ही रह जाती.

हालांकि उस ने कभी शब्दों में शिकायत दर्ज नहीं की, लेकिन उस की झुंझलाहट, मुंह फेर कर सो जाना, तकिए में मुंह दबा कर ली गई सिसकियां मनीष को आहत और शर्मिंदा करती गईं. धीरेधीरे वे उन अंतरंग पलों को टालने लगे. तनुजा कमरे में आती तो मनीष कभी तबीयत खराब होने का बहाना बनाते, कभी बिजी होने की बात कर लैपटौप ले कर बैठ जाते.

कुछकुछ समझते हुए भी उसे शक हुआ कि कहीं मनीष का किसी और से कोई चक्कर तो नहीं है? ऐसा कैसे हो सकता है जो व्यक्ति शाम होते ही उस के आसपास मंडराने लगता था वह अचानक उस से दूर कैसे होने लगा? लेकिन उस ने यह भी महसूस किया कि मनीष

अब भी उस से प्यार करते हैं. उस की छोटीछोटी खुशियां जैसे सप्ताहांत में सिनेमा, शौपिंग, आउटिंग सबकुछ वैसा ही तो था. किसी और से चक्कर होता तो उसे और बच्चों को इतना समय वे कैसे देते? औफिस से सीधे घर आते हैं, कहीं टूर पर जाते नहीं.

शक का कीड़ा जब कुलबुलाता है तब मन जितना उस के न होने की दलीलें देता है उतना उस के होने की तलाश करता. कभी नजर बचा कर डायरी में लिखे नंबर, तो कभी मोबाइल के मैसेज भी तनुजा ने खंगाल डाले पर शक करने जैसा कुछ नहीं मिला.

उस ने कईकई बार खुद को आईने में निहारा, अंगों की कसावट को जांचा, बातोंबातों में अपनी सहेलियों से खुद के बारे में पड़ताल की और पार्टियों, सोशल गैदरिंग में दूसरे पुरुषों की नजर से भी खुद को परखा. कहीं कोई बदलाव, कोई कमी नजर नहीं आई. आज भी जब पूरी तरह से तैयार होती है तो देखने वालों की नजर एक बार उस की ओर उठती जरूरी है.

हर ऐसे मौकों पर कसौटी पर खरा उतरने का दर्प उसे कुछ और उत्तेजित कर गया. उस की आकांक्षाएं कसमसाने लगीं. वह मनीष से अंतरंगता को बेचैन होने लगी और मनीष उन पलों को टालने के लिए कभी काम में, कभी बच्चों और टीवी में व्यस्त होने लगे.

अधूरेपन की बेचैनी दिनोंदिन घनी होती जा रही थी. उस दिन एक कलीग को अपनी ओर देखता पा कर तनुजा के अंदर कुछ कुलबुलाने लगा, फुरफुरी सी उठने लगी. एक विचार उस के दिलोदिमाग में दौड़ कर उसे कंपकंपा गया. छी, यह क्या सोचने लगी हूं मैं? मैं ऐसा कभी नहीं कर सकती. मेरे मन में यह विचार आया भी कैसे? मनीष और मैं एकदूसरे से प्यार करते हैं, प्यार का मतलब सिर्फ यही तो नहीं है. कितना धिक्कारा था तनुजा ने खुद को लेकिन वह विचार बारबार कौंध जाता, काम करते हाथ ठिठक जाते, मन में उठती हिलोरें पूरे शरीर को उत्तेजित करती रहीं.

अतृप्त इच्छाएं, हर निगाह में खुद के प्रति आकर्षण और उस आकर्षण को किस अंजाम तक पहुंचाया जा सकता है, वह यह सोचने लगी. संस्कारों के अंकुश और नैसर्गिक प्यास की कशमकश में उलझी वह खोईखोई सी रहने लगी.

उस दिन दोपहर तक बादल घिर आए थे. खाना खा कर वह गुदगुदे कंबल में मनीष के साथ एकदूसरे की बांहों में लिपटे हुए कोई रोमांटिक फिल्म देखना चाहती थी. उस ने मनीष को इशारा भी किया जिसे अनदेखा कर मनीष ने बच्चों के साथ बाहर जाने का प्रोग्राम बना लिया. वे नासमझ बन तनुजा से नजरें चुराते रहे, उस के घुटते दिल को नजरअंदाज करते रहे. वह चिढ़ गई. उस ने जाने से मना कर दिया, खुद को कमरे में बंद कर लिया और सारा दिन अकेले कमरे में रोती रही.

तनुजा ने पत्रपत्रिकाएं, इंटरनैट सब खंगाल डाले. पुरुषों से जुड़ी सैक्स समस्याओं की तमाम जानकारियां पढ़ डालीं. परेशानी कहां है, यह तो समझ आ गया लेकिन समाधान? समाधान निकालने के लिए मनीष से बात करना जरूरी था. बिना उन के सहयोग के कोई समाधान संभव ही नहीं था. बात करना इतना आसान तो नहीं था.

शब्दों को तोलमोल कर बात करना, एक कड़वे सच को प्रकट करना इस तरह कि वह कड़वा न लगे, एक ऐसी सचाई के बारे में बात करना जिसे मनीष पहले से जानते हैं कि तनुजा इसे नहीं जानती और अब उन्हें बताना कि वह भी इसे जानती है, यह सब बताते हुए भी कोई आक्षेप, कोई इलजाम न लगे, दिल तोड़ने वाली बात पर दिल न टूटे, अतिरिक्त प्यारदेखभाल के रैपर में लिपटी शर्मिंदगी को यों सामने रखना कि वह शर्मिंदा न करे, बेहद कठिन काम था.

दिन निकलते गए. कसमसाहटें बढ़ती गईं. अतृप्त प्यास बुझाने के लिए वह रोज नए मौकेरास्ते तलाशती रही. समाज, परिवार और बच्चे उस पर अंकुश लगाते रहे. तनुजा खुद ही सोचती कि क्या इस एक कमी को इस कदर खुद पर हावी होने देना चाहिए? तो कभी खुद ही इस जरूरी जरूरत के बारे में सोचती जिस के पूरा न होने पर बेचैन होना गलत भी तो नहीं. अगर मनीष अतृप्त रहते तो क्या ऐसा संयम रख पाते? नहीं, मनीष उसे कभी धोखा नहीं देते या शायद उसे कभी पता ही नहीं चलने देते.

निशा उस की अच्छी सहेली थी. उस से तनुजा की कशमकश छिपी न रह सकी. तनुजा को दिल का बोझ हलका करने को एक साथी तो मिला जिस से सहानुभूति के रूप में फौरीतौर पर राहत मिल जाती थी. निशा उसे समझाती तो थी पर क्या वह समझना चाहती है, वह खुद भी नहीं समझ पाती थी. उस ने कई बार इशारे में उसे विकल्प तलाशने को कहा तो कई बार इस के खतरे से आगाह भी किया. कई बार तनुजा की जरूरत की अहमितयत बताई तो कई बार समाज, संस्कार के महत्त्व को भी समझाया. तनुजा की बेचैनी ने उस के मन में भी हलचल मचाई और उस ने खुद ही खोजबीन कर के कुछ रास्ते सुझाए.

धड़कते दिल और डगमगाते कदमों से तनुजा ने उस होटल की लौबी में प्रवेश किया था. साड़ी के पल्लू को कस कर लपेटे वह खुद को छिपाना चाह रही थी पर कितनी कामयाब थी, नहीं जानती. रिसैप्शन पर बड़ी मुश्किल से रूम नंबर बता पाई थी. कितनी मुश्किल से अपने दिल को समझा कर वह खुद को यहां तक ले कर आई थी. खुद को लाख मनाने और समझाने पर भी एक व्यक्ति के रूप में खुद को देख पाना एक स्त्री के लिए कितना कठिन होता है, यह जान रही थी.

अपनी इच्छाओं को एक दायरे से बाहर जा कर पूरा करना कितना मुश्किल होता है, लिफ्ट से कमरे तक जाते यही विचार उस के दिमाग को मथ रहे थे. कमरे की घंटी बजा कर दरवाजा खुलने तक 30 सैकंड में 30 बार उस ने भाग जाना चाहा. दिल बुरी तरह धड़क रहा था. दरवाजा खुला, उस ने एक बार आसपास देखा और कमरे के अंदर हो गई. एक अनजबी आवाज में अपना नाम सुनना भी बड़ा अजीब था. फुरफुराते एहसास उस की रीढ़ को झुनझुना रहे थे. बावजूद इस के, सामने देख पाना मुश्किल था. वह कमरे में रखे एक सोफे पर बैठ गई, उसे अपने दिमाग में मनीष का चेहरा दिखाई देने लगा.

क्या वह ठीक कर रही? इस में गलत क्या है? आखिर मैं भी एक इंसान हूं. अपनी इच्छाएं, अपनी जरूरतें पूरी करने का हक है मुझे. मनीष को पता चला तो?

कैसे पता चलेगा, शहर के इस दूसरे कोने में घरऔफिस से दसियों किलोमीटर दूर कुछ हुआ है, इस की भनक तक इतनी दूर नहीं लगेगी. इस के बाद क्या वह खुद से नजरें मिला पाएगी? यह सब सोच कर उस की रीढ़ की वह सनसनाहट ठंडी पड़ गई, उठ कर भाग जाने का मन हुआ. वह इतनी स्वार्थी नहीं हो सकती. मनीष, मम्मी, बच्चे, जानपहचान वाले, रिश्तेदार सब की नजरों में वह नहीं गिर सकती.

वेटर 2 कौफी रख गया. कौफी की भाप के उस पार 2 आंखें उसे देख रही थीं. उन आंखों की कामुकता में उस के एहसास फिर फुरफुराने लगे. उस ने अपने चेहरे से हो कर गरदन, वक्ष पर घूमती उन निगाहों को महसूस किया. उस के हाथ पर एक स्पर्श उस के सर्वांग को थरथरा गया. उस ने आंखें बंद कर लीं. वह स्पर्श ऊपर और ऊपर चढ़ते बाहों से हो कर गरदन के खुले भाग पर मचलने लगा. उस की अतृप्त कामनाएं सिर उठाने लगीं. अब वह सिर्फ एक स्त्री थी हर दायरे से परे, खुद की कैद से दूर, अपनी जरूरतों को समझने वाली, उन्हें पूरा करने की हिम्मत रखने वाली.

सहीगलत की परिभाषाओं से परे अपनी आदिम इच्छाओं को पूरा करने को तत्पर वह दुनिया के अंतिम कोने तक जा सकने को तैयार, उस में डूब जाने को बेचैन. तभी वह स्पर्श हट गया, अतृप्त खालीपन के झटके से उस ने आंखें खोल दीं. आवाज आई, ‘कौफी पीजिए.’

कामुकता से मुसकराती 2 आंखें देख उसे एक तीव्र वितृष्णा हुई खुद से, खुद के कमजोर होने से और उन 2 आंखों से. होटल के उस कमरे में अकेले उस अपरिचित के साथ यह क्या करने जा रही थी वह? वह झटके से उठी और कमरे से बाहर निकल गई. लगभग दौड़ते हुए वह होटल से बाहर आई और सामने से आती टैक्सी को हाथ दे कर उस में बैठ गई. तनुजा बुरी तरह हांफ रही थी. वह उस रास्ते पर चलने की हिम्मत नहीं जुटा पाई.

दोनों ओर स्थितियां चरम पर थीं. दोनों ही अंदर से टूटने लगे थे. ऐसे ही जिए जाने की कल्पना भयावह थी. उस रात तनुजा की सिसकियां सुन मनीष ने उसे सीने से लगा लिया. उस का गला रुंध गया, आंसू बह निकले. ‘‘मैं तुम्हारा दोषी हूं तनु, मेरे कारण…’’

तनु ने उस के होंठों पर अपनी हथेली रख दी, ‘‘ऐसा मत कहो, लेकिन मैं करूं क्या? बहुत कोशिश करती हूं लेकिन बरदाश्त नहीं कर पाती.’’

‘‘मैं तुम्हारी बेचैनी समझता हूं, तनु,’’ मनीष ने करवट ले कर तनुजा का चेहरा अपने हाथों में ले लिया, ‘‘तुम चाहो तो किसी और के साथ…’’ बाकी के शब्द एक बड़ी हिचकी में घुल गए.

वह बात जो अब तक विचारों में तनुजा को उकसाती थी और जिसे हकीकत में करने की हिम्मत वह जुटा नहीं पाई थी, वह मनीष के मुंह से निकल कर वितृष्णा पैदा कर गई.

तनुजा का मन घिना गया. उस ने खुद ऐसा कैसे सोचा, इस बात से ही नफरत हुई. मनीष उस से इतना प्यार करते हैं, उस की खुशी के लिए इतनी बड़ी बात सोच सकते हैं, कह सकते हैं लेकिन क्या वह ऐसा कर पाएगी? क्या ऐसा करना ठीक होगा? नहीं, कतई नहीं. उस ने दृढ़ता से खुद से कहा.

जो सच अब तक संकोच और शर्मिंदगी का आवरण ओढ़े अपारदर्शी बन कर उन के बीच खड़ा था, आज वह आवरण फेंक उन के बीच था और दोनों उस के आरपार एकदूसरे की आंखों में देख रहे थे. अब समाधान उन के सामने था. वे उस के बारे में बात कर सकते थे. उन्होंने देर तक एकदूसरे से बातें कीं और अरसे बाद एकदूसरे की बांहों में सो गए एक नई सुबह मेें उठने के लिए.

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