दरिंदगी की इंतहा : भाग 2

खैर, अगली सुबह यानी 16 दिसंबर, 2019 की सुबह रहस्यमय तरीके से जली हुई माही की लाश उस के कमरे में पाई गई थी. दरअसल, रात में उस के पिता संजीव कुमार फोन कर के उस का हालचाल लेना चाहते थे. चूंकि दिन में कालेज का रिजल्ट आ चुका था. वह कालेज तक उस के साथ गए भी थे, इसलिए वह फोन कर उसे घर आने के लिए कहना चाहते थे. लेकिन उस का फोन नहीं लग रहा था.

फोन बारबार स्विच्ड औफ बता रहा था. बेटी का फोन स्विच्ड औफ होने से वह परेशान हो गए. रात भी काफी गहरा चुकी थी, इसलिए किसी और के पास फोन भी नहीं कर सके थे, जिस से माही का हालचाल मिल पाता. अगली सुबह जब सदर थाने के थानेदार बांकेलाल का फोन उन के पास पहुंचा तो बेटी की मौत की सूचना पा कर संजीव सकते में आ गए.

केस की जांच पर निगाह रखे था राहुल

बेटी की मौत की सूचना मिलते ही घर में कोहराम मच गया था. परिवार के लोगों को साथ ले कर संजीव रांची पहुंचे. शराफत का चोला पहने दरिंदा राज भी अपने दोस्त बंटी के साथ घटनास्थल पर पहुंचा था.

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वहां पहुंच कर वह यह जानना चाहता था कि पुलिस क्या काररवाई कर रही है. तब उस के दोस्त बंटी ने उस के सामने ही अज्ञात दरिंदे को भद्दीभद्दी गालियां देनी शुरू कर दीं तो राज ने बंटी को समझाया कि किसी को भी इस तरह गालियां देना ठीक नहीं है.

उस दिन के बाद से वह बंटी से पुलिस की गतिविधि पूछता था कि माही के हत्यारों तक पुलिस पहुंची या नहीं. उस के केस में क्या हो रहा है. यह बात बंटी को बड़ी अटपटी लगती थी कि राहुल उर्फ राज माही के केस में इतनी दिलचस्पी क्यों ले रहा है.

बहरहाल, पुलिस ने अपनी काररवाई कर माही की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दी. अगले दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई. रिपोर्ट पढ़ कर थानाप्रभारी बांकेलाल दंग रह गए. रिपोर्ट में बताया गया था कि पहले पीडि़ता के साथ बलात्कार किया गया था, फिर किसी पतले तार से गला कस कर उस की हत्या की गई थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट पढ़ने के बाद पुलिस ने अज्ञात हत्यारे के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 376, 499, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर मामले की छानबीन शुरू कर दी. घटना के करीब 6 महीने बीत जाने के बाद भी पुलिस जहां की तहां खड़ी रही. न तो वह हत्या का कारण जान सकी और न ही हत्यारों का पता लगा पाई.

माही हत्याकांड को ले कर रांची समेत समूचे झारखंड में बवाल मचा हुआ था. पुलिस की कार्यप्रणाली पर लोग अंगुलियां उठा रहे थे. पीडि़ता के पिता संजीव ने इस मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग की. यह आवाज प्रदेश सरकार के कान तक पहुंची तो सरकार ने जांच सीबीआई से कराने की अनुशंसा कर दी.

जब मामला सीबीआई के पास पहुंचा तो सीबीआई के तेजतर्रार इंसपेक्टर परवेज आलम के नेतृत्व में पुलिस टीम बनाई गई. टीम में एसआई नीरज कुमार यादव, कांस्टेबल प्रभात कुमार, आरिफ हुसैन, नैमन टोप्पो, अशोक कुमार, रितेश पाठक, महिला सिपाही जूही खातून आदि को शामिल किया गया.

इंसपेक्टर परवेज आलम झारखंड पुलिस में सन 1994 में एसआई पद पर भरती हुए थे. वह ड्यूटी मीट के ओवरआल चैंपियन भी रह चुके थे. झारखंड पुलिस में उन का डीएसपी पद पर प्रमोशन हो चुका था. फिर भी सीबीआई में इंसपेक्टर थे.

इंसपेक्टर परवेज आलम ने माही का केस लेने के बाद झारखंड पुलिस द्वारा दिए गए दस्तावेजों व साक्ष्यों का पूरा अध्ययन किया. पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टरों से पूरी रिपोर्ट पर चर्चा की. डाक्टरों ने सीबीआई को बताया कि मृतका के नाखूनों और वैजाइनल स्वैब राज्य विधिविज्ञान प्रयोगशाला भेजे गए हैं. इंसपेक्टर परवेज आलम ने एफएसएल की रिपोर्ट में पाया कि नाखून व वैजाइनल स्वैब में केवल एक ही पुरुष होने के सबूत मिले हैं.

इस से जांच टीम आश्वस्त हो गई थी कि केवल एक ही व्यक्ति ने इस घटना को अंजाम दिया है. घटना की तह तक जाने के लिए इंसपेक्टर परवेज आलम ने अपने अधिकारियों से बूटी बस्ती में रहने की इजाजत मांगी.

सीबीआई मुख्यालय के आदेश पर परवेज आलम अपनी टीम के साथ बूटी बस्ती में किराए पर कमरा ले कर रहने लगे. वहीं रह कर वह गुप्त तरीके से हत्यारोपी के बारे में छानबीन करने में जुट गए. बूटी बस्ती की रहने वाली एक बूढ़ी महिला ने उन्हें बताया कि एक युवक यहां अकसर घूमता था, जो मंदिर परिसर के एक कमरे में रहता था. वह अब दिखाई नहीं दे रहा.

इंसपेक्टर आलम के लिए यह सुराग महत्त्वपूर्ण साबित हुआ. इसी सुराग के आधार पर उन्होंने 300 से अधिक लोगों के काल डंप डाटा के आधार पर छानबीन की. जांच में पता चला कि उन में से करीब 150 फोन नंबर घटनास्थल के आसपास के हैं, उन में कुछ नंबर मृतका के संबंधियों और दोस्तों के भी थे.

सीबीआई ने शक के आधार पर 150 संदिग्धों में से 11 लोगों के खून के नमूने ले कर जांच के लिए केंद्रीय विधिविज्ञान प्रयोगशाला, दिल्ली भेजे. इस बीच सीबीआई राहुल के दोस्त बंटी तक पहुंच गई. बंटी से उस संदिग्ध युवक यानी राज के बारे में पूछताछ की गई जो मंदिर के पास अकसर घूमता था.

बंटी ने बताया कि उस का नाम राहुल उर्फ राज है. वह बिहार के नालंदा जिले के एकंगर सराय के गांव धुर का रहने वाला है. इंसपेक्टर परवेज आलम की मेहनत रंग लाई. उन्हें संदिग्ध युवक राहुल उर्फ राज का पता मिल चुका था. वह टीम के साथ नालंदा स्थित उस के घर जा पहुंचा. वहां से पता चला कि राहुल फरार है.

परवेज आलम ने एकएक तथ्य जुटाया

वहां उन्हें एक और चौंकाने वाली बात पता चली कि राहुल दुष्कर्म के आरोप में पटना की बेउर जेल में बंद था. चाचा की मौत पर वह जेल से पैरोल पर घर आया था और चकमा दे कर पुलिस हिरासत से भाग गया था. तब से वह फरार है. इस के बाद सीबीआई की टीम ने राहुल की मां निर्मला देवी व पिता उमेश प्रसाद को बुलाया.

संदिग्ध आरोपी राहुल उर्फ राज की सच्चाई पता लगाने के लिए उन्होंने उस के मातापिता के खून के नमूने लिए और जांच के लिए केंद्रीय विधिविज्ञान प्रयोगशाला दिल्ली भेज दिए. वहां माही के नाखून व वैजाइनल स्वैब से मिले पुरुष के डीएनए से संदिग्ध आरोपी राहुल उर्फ राज की मां निर्मला देवी का डीएनए मैच कर गया. जबकि पिता उमेश प्रसाद का मैच नहीं किया.

डीएनए रिपोर्ट के आधार पर यह तय हो गया कि माही का कातिल राहुल उर्फ राज ही है. राहुल उर्फ राज की तलाश में सीबीआई ने कोलकाता, वाराणसी सहित कई जगहों पर छापेमारी की, लेकिन उस का कहीं कोई पता नहीं चला.

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इसी बीच 15 जून, 2019 को राहुल उर्फ राज लखनऊ में मोबाइल चोरी के एक केस में पकड़ा गया. सीबीआई इंसपेक्टर परवेज आलम राहुल के पीछे पड़े ही थे. उन्हें उस की गिरफ्तारी की सूचना मिली, तो वह लखनऊ पहुंच गए. वहां से राहुल उर्फ राज को ट्रांजिट रिमांड पर 22 जून, 2019 को रांची लाया गया. उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो वह टूट गया. उस ने माही हत्याकांड की पूरी कहानी बयां कर दी.

राहुल ने सीबीआई को बताया कि पटना में 11 साल की नेहा से दुष्कर्म करने के मामले में वह पकड़ा गया था. तभी उसे पता चला नेहा के अंडरगारमेंट में उस का सीमेन मिला था, जिस से वह पकड़ा गया था. सीख लेते हुए उस ने माही से दुष्कर्म के बाद उस के कपड़े जला दिए थे.

यही नहीं, उस ने फरारी के दौरान इसी जिले की अगस्त 2018 की एक घटना का भी राजफाश किया. जिस घर में वह चोरी की नीयत से घुसा तो वहां 9 वर्षीय सोनी को अकेली सोता देख कर वह उस पर टूट पड़ा. बेटी की चीख सुन कर मां के बेटी के कमरे में आ जाने से सोनी की अस्मत लुटने से तो बच गई लेकिन उस दिन की घटना के बाद से वह आज तक सदमे से उबर नहीं पाई है.

सीबीआई की पूछताछ में क्रूर दरिंदे राहुल उर्फ राज ने कबूल किया कि उस ने हर घटना में अपना नाम बदल कर अपराध किया था. अब तक उस ने 10 मासूमों की जिंदगी तबाह की थी, जिस में कई तो असमय काल का ग्रास बन गई थीं और कई विक्षिप्त अवस्था में पहुंच गई थीं.

बहन ने पहचाना दरिंदे को

राहुल उर्फ राज की शिनाख्त माही की बड़ी बहन रवीना से कराई गई तो उस ने आरोपी राहुल उर्फ राज को देख कर शिनाख्त कर ली. रवीना से इस मामले में अदालत में गवाही दर्ज कराई. रवीना ने अदालत को बताया कि घटना के कुछ दिन पहले राहुल किराए का कमरा लेने के लिए उस के घर आया था.

हम ने उसे कमरा देने से मना कर दिया था. उस दिन के बाद कई बार अहसास हुआ कि राहुल उस की बहन का पीछा करता है. घटना से पहले उसे घर के आसपास घूमते हुए भी देखा था. जबकि घटना के बाद से उसे कभी नहीं देखा गया.

इस केस के जांच अधिकारी इंसपेक्टर परवेज आलम ने सूक्ष्मता से एकएक सबूत जुटाया. फिर विशेष अदालत में चार्जशीट पेश की. जज ए.के. मिश्र ने सजा सुनाए जाने से पहले केस की फाइल पर नजर डाली. तभी शासकीय अधिवक्ता ने कहा कि योर औनर, मुजरिम राहुल कुमार ने जो अपराध किया है, वह रेयरेस्ट औफ रेयर है. ऐसे व्यक्ति का समाज में रहना ठीक नहीं है. यह समाज के लिए जहर के समान है. ऐसे पेशेवर अपराधी को फांसी की सजा देनी चाहिए.

तभी बचाव पक्ष के अधिवक्ता ने कहा कि मुजरिम राहुल को अपने किए पर पछतावा है, इसलिए उसे सुधरने का मौका दिया जाना चाहिए. उन्होंने उसे कम से कम सजा सुनाए जाने की अपील की.

दोनों वकीलों की दलीलें सुनने के बाद जज ए.के. मिश्र ने कहा कि कटघरे में खड़ा यह अपराधी समाज के लिए एक कलंक है. इस ने योजनाबद्ध तरीके से घटना को अंजाम दिया था. इस के सुधरने की कोई गुंजाइश नहीं है. इस का अपराध रेयरेस्ट औफ रेयर है. इसलिए इसे मृत्यु होने तक फांसी पर लटकाया जाए.

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फैसला सुनाने के बाद पुलिस ने मुजरिम राहुल कुमार को हिरासत में ले कर जेल भेज दिया. वहीं फैसला आने के बाद कोर्ट में मौजूद मृतका के पिता संजीव कुमार घटना को याद कर रोने लगे. उन्होंने कहा कि फांसी की सजा भी अपराधी के लिए कम ही है, परंतु संतोष है कि अदालत ने न्याय किया है. इस प्रकार के फैसले से समाज को शुभ संदेश जाएगा.

कथा में माही, नेहा और सोनी परिवर्तित नाम हैं.

दरिंदगी की इंतहा : भाग 1

झारखंड की राजधानी रांची स्थित सीबीआई कोर्ट के जज ए.के. मिश्र की अदालत में 22 दिसंबर, 2019 को कुछ ज्यादा ही भीड़ थी. वकीलों के अलावा कुछ अन्य लोग भी अदालत की काररवाई शुरू होने से पहले कोर्टरूम में पहुंच चुके थे. अदालत परिसर में तमाम मीडियाकर्मी भी थे.

दरअसल, उस दिन रांची के बहुचर्चित बीटेक की छात्रा माही हत्याकांड का फैसला सुनाया जाना था. करीब 3 साल पहले हुई हत्या की यह वारदात काफी दिनों तक मीडिया की सुर्खियों में रही थी. जब थाना पुलिस इस केस को नहीं खोल सकी तो यह मामला सीबीआई को सौंप दिया गया था.

सीबीआई इंसपेक्टर परवेज आलम की टीम ने लंबी जांच के बाद न सिर्फ इस केस का परदाफाश किया, बल्कि आरोपी राहुल कुमार उर्फ राहुल राज उर्फ आर्यन उर्फ रौकी राज उर्फ अमित उर्फ अंकित को भी गिरफ्तार करने में सफलता हासिल की.

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पता चला कि रेप की वारदात को अंजाम देने के बाद आरोपी फरार हो जाता था या नाम बदल कर कहीं दूसरी जगह रहने लगता था. इस तरह वह एकदो नहीं, बल्कि 10 लड़कियों को अपनी हवस का शिकार बना चुका था. एक तरह से वह साइको किलर बन चुका था.

इस वहशी दरिंदे के खिलाफ सीबीआई की विशेष अदालत में केस चल रहा था. सीबीआई की ओर से इस मामले में 30 गवाह पेश किए गए थे. जज ए.के. मिश्र ने तमाम गवाह और सबूतों के आधार पर 30 अक्तूबर, 2019 को छात्रा माही हत्याकांड में आरोप तय करते हुए राहुल कुमार को दोषी ठहराया. उन्होंने सजा सुनाए जाने के लिए 22 दिसंबर, 2019 का दिन निश्चित किया.

सीबीआई की विशेष अदालत में 22 दिसंबर को जितने भी लोग बैठे थे, उन सभी के दिमाग में एक ही सवाल घूम रहा था कि जज साहब साइको किलर राहुल कुमार को क्या सजा सुनाएंगे. इस वहशी दरिंदे ने जिस तरह कई लड़कियों की जिंदगी तबाह की थी, उसे देखते हुए उन्हें उम्मीद थी कि उसे फांसी की सजा दी जानी चाहिए.

राहुल कुमार कौन है और वह कामुक दरिंदा कैसे बना, यह जानने के लिए उस के अतीत को जानना होगा.

25 वर्षीय राहुल कुमार बिहार के नालंदा जिले के एकंगर सराय थाना क्षेत्र के गांव धुर का रहने वाला था. उस के पिता उमेश प्रसाद पेशे से आटो चालक थे. 3 भाईबहनों में राहुल सब से बड़ा था.

कहते हैं कि पूत के पांव पालने में दिख जाते हैं. ऐसा ही कुछ राहुल के साथ भी हुआ. बचपन से ही राहुल जिद्दी और झगड़ालू किस्म का था. वह एक बार जो करने की ठान लेता था, उसे पूरा कर के ही मानता था. इस दौरान वह किसी की भी नहीं सुनता था. मांबाप की डांटफटकार का भी उस पर कोई असर नहीं होता था.

राहुल जैसेजैसे बड़ा होता गया, उस की संगत आवारा किस्म के लड़कों से होती गई. घर से उस का मतलब केवल 2 वक्त की रोटी से होता था. जब उस के पिता उमेश प्रसाद आटो ले कर शहर की ओर निकलते, वह भी घर से निकल जाता था. फिर दिन भर आवारा दोस्तों के साथ घूमता रहता था.

बचपन से ही जिद्दी आवारा था राहुल

मटरगश्ती करने के लिए वह मां से जबरन पैसे लिया करता था. अगर मां उसे पैसे नहीं देती तो वह लड़झगड़ कर पैसे छीन लेता था. दिन भर दोस्तों के बीच घूमनेफिरने के बाद वह शाम ढलने पर घर लौटता था.

घर का वह एक काम तक नहीं करता था, रात को जब आटो चला कर उमेश प्रसाद घर लौटता तो उस की पत्नी राहुल की दिन भर की शिकायतों की पोटली खोल कर बैठ जाती. उमेश राहुल को डांटता और समझाता, पर पिता की बातों को वह अनसुना कर देता. ऐसे में उमेश माथे पर हाथ रख कर चिंता में डूब जाता.

उमेश प्रसाद ने राहुल को समझाने और सही राह पर लाने के बहुत उपाय किए, लेकिन राहुल सुधरने के बजाए दिनबदिन जरायम की दलदल में उतारता गया. शुरुआत उस ने अपने घर के पैसे चुराने से की थी. इस के बाद उस ने औरों के घरों में भी चोरी करनी शुरू की. भेद न खुलने पर उस की हिम्मत बढ़ती गई. चोरी के साथसाथ राहुल लड़कियों को अपनी हवस का शिकार भी बनाने लगा.

बात सन 2012 की है. राहुल ने पटना के जीरो रोड पर स्थित एक घर में चोरी की. इतना ही नहीं, उस ने वहां एक युवती को अपनी हवस का शिकार भी बनाया. युवती से दुष्कर्म के मामले में 29 जून, 2012 को उसे बेउर जेल भेजा गया. जब वह जेल में था, तभी उस के चाचा की मौत हो गई. श्राद्धकर्म में शामिल होने के लिए वह 4 सितंबर, 2016 को पैरोल पर अपने गांव गया, उस समय वह पुलिस की सुरक्षा में था.

श्राद्धकर्म के बाद शातिर राहुल ने सिपाहियों को शराब पिलाई और अनुष्ठान का बहाना बना कर फरार हो गया. इस के बाद पुलिस उसे छू तक नहीं सकी. पुलिस अभिरक्षा से फरार होने के बाद उस ने जो कांड किया, उस ने समूचे झारखंड को हिला कर रख दिया.

राहुल नालंदा से भाग कर रांची आ गया था और वहां वह नाम बदल कर राज के नाम से रहने लगा. राहुल हर बार जुर्म करने के बाद अपना नाम बदल लेता था, ताकि पुलिस उस तक आसानी से न पहुंच सके. खैर, वह राहुल से राज बन कर रांची की बूटी बस्ती में पीतांबरा पैलेस के सामने वाली गली में स्थित दुर्गा मंदिर के कमरे में रहने लगा. यहां उस ने मंदिर कमेटी के पदाधिकारियों से आग्रह किया था. कमेटी के बंटी नामक युवक ने उस पर तरस खा कर वहां रखवाया था.

यहां रह कर राहुल उर्फ राज कमरा खोजने लगा. कमरे की तलाश में वह बीटेक की छात्रा माही के घर पहुंच गया. लेकिन वहां कमरा किराए पर नहीं मिला. राहुल का मुख्य पेशा चोरी था. उसे घूमतेघूमते पता चल गया कि माही के घर में सिर्फ लड़कियां रहती हैं. उस दिन के बाद से वह आतेजाते माही का पीछा करने लगा. माही इतनी खूबसूरत थी कि एक ही नजर में उस पर मर मिटा था.

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23 वर्षीया माही मूलरूप से झारखंड के बरकाकाना जिले के थाना सिल्ली क्षेत्र की रहने वाली थी. उस के पिता संजीव कुमार बरकाकाना में सेंट्रल माइन प्लानिंग ऐंड डिजाइन इंस्टीट्यूट लिमिटेड (सीएमपीडीआई) में नौकरी करते थे.

संजीव कुमार की 2 बेटियां रवीना और माही थीं. दोनों पढ़ने में अव्वल थीं. इसीलिए पिता संजीव भी उन्हें उन के मनमुताबिक पढ़ाना चाहते थे. वह अपनी बेटियों पर पानी की तरह पैसे बहा रहे थे.

बच्चों के भविष्य के लिए संजीव कुमार ने सन 2005 में रांची की बूटी बस्ती में एक प्लौट खरीदा था. उस पर उन्होंने घर भी बनवा दिया था. घटना से करीब 2 साल पहले यानी 2017 में उन की दोनों बेटियां रवीना और माही वहीं रह कर पढ़ाई करती थीं. संजीव और परिवार के अन्य सदस्य बरकाकाना में रहते थे.

बड़ी बेटी रवीना रांची शहर के एक प्रतिष्ठित कालेज से स्नातक कर रही थी, जबकि छोटी बेटी माही ओरमांझी के एक इंजीनियरिंग कालेज से बीटेक के चतुर्थ सेमेस्टर की छात्रा थी. माही का 15 दिसंबर, 2016 को रिजल्ट आने वाला था. उस के पिता रिजल्ट देखने बरकाकाना से रांची आए थे. रिजल्ट देखने के लिए वह माही के कालेज गए और वहीं से बरकाकाना वापस लौट गए.

दरिंदे ने भांप लिया था कि अकेली है माही

बहरहाल, रिजल्ट देखने के बाद माही जब कालेज से बूटी बस्ती स्थित अपने आवास जाने लगी तो पहले से घात लगाए बैठा राज पीछेपीछे उस के घर तक पहुंच गया. माही घर में बैग रख कर वापस बाहर आई. उस ने अपने घर के पास एक दुकान से मैगी खरीदी और वापस चली गई.

इस से राज आश्वस्त हो गया था कि घर में माही अकेली है. घर में अगर कोई और होता तो माही के बजाए वही सामान खरीदने आता. इत्तफाक की बात यह थी कि कुछ दिनों पहले बड़ी बहन रवीना किसी जरूरी काम से अपने गांव बरकाकाना चली गई थी. माही के घर पर अकेला होने की जानकारी शातिर राज को पहले ही मिल चुकी थी, इसलिए वह निश्चिंत हो गया और उस ने फैसला कर लिया कि आज रात माही को अपनी हवस का शिकार बना कर रहेगा.

उसी रात करीब साढ़े 10 से 11 बजे के बीच राहुल कुमार उर्फ राज माही के घर पहुंचा. उस के मुख्य दरवाजे पर लोहे का मजबूत ग्रिल लगा था. ग्रिल पर भीतर की ओर से बड़ा ताला लगा था. उस के पास मास्टर चाबी रहती थी, जिस से वह कोई भी ताला आसानी से खोल सकता था. मास्टर चाबी से उस ने माही की ग्रिल का ताला खोल लिया.

माही जिस कमरे में सो रही थी, उस में सिटकनी नहीं लगी थी. दबेपांव वह उस के कमरे में आसानी से पहुंच गया और गहरी नींद में सोई माही का गला दबाने लगा. तभी माही की आंखें खुल गईं. उसे देख कर वह डर गई.

इस से पहले कि वह शोर मचाती, राज ने उसे धमका दिया. डर की वजह से माही चुप हो गई. राहुल ने उस के साथ रेप किया. उस दौरान उस ने दरिंदगी की सारी हदें पार कर दीं. इस दरम्यान माही के नाजुक अंग से रक्तस्राव हुआ, जिस से वह बेहोश हो गई.

उस के बाद दरिंदे राहुल उर्फ राज ने मोबाइल के चार्जर वाले तार से उस का गला घोंट दिया ताकि वह किसी को कुछ बता न सके. हैवानियत पर उतरे राज ने सबूत मिटाने के लिए माही को निर्वस्त्र कर दिया, फिर उस के कपड़ों को एक जगह रख कर उस पर मोबिल औयल डाल कर आग लगा दी. आग लगाने के बाद वह वहां से फरार हो गया. दरअसल, साक्ष्य मिटाने का यह तरीका उस ने अपने ही एक जुर्म से सीखा था.

अपराध की दुनिया में कदम रखते समय राहुल पहली बार पटना में एक घर में चोरी करने की नीयत से घुसा था. यह भी इत्तफाक था कि घर के एक कमरे में 11 वर्षीय नेहा अकेली सो रही थी. बाकी के लोग दूसरे कमरे में सो रहे थे. उस समय रात के करीब 3 बज रहे थे. अकेली नेहा को देख कर उस के जिस्म में वासना की आग धधक उठी. हैवान राहुल जिस्म की आग ठंडी करने के लिए मासूम नेहा की जिंदगी तारतार कर के भाग गया.

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लेकिन कानून के लंबे हाथों से कुकर्मी राहुल ज्यादा दिनों तक नहीं बच सका. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. तब राहुल को पता चला कि नेहा के अंडरगारमेंट में उस का सीमेन (वीर्य) मिला था, जिस से वह दोषी पाया गया था. इस घटना से ही सीख लेते हुए उस ने बीटेक की छात्रा माही से दुष्कर्म के बाद उस के अंडरगारमेंट के साथ अन्य कपड़े भी जला दिए थे ताकि वह पकड़ा न जा सके.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

नाग से जहरीला आदमी

नाग से जहरीला आदमी : भाग 3

अभी तक अमितेश पूरी तरह मोना का नहीं हुआ था. वह भले ही उस के साथ लिवइन में रहती थी, लेकिन उस पर पूरा हक शादी के बाद ही हो सकता था. क्योंकि कुछ भी हो, कोई कितना भी प्यार करता हो, पहला और ज्यादा हक तो उस की ब्याहता पत्नी का ही बनता है. लिवइन में रहने वाली महिला पत्नी के सामने रखैल से ज्यादा कुछ नहीं होती.

अमितेश की एक शादी हो चुकी थी. उस पत्नी से उसे 2 बच्चे भी थे, इसलिए दूसरी शादी के लिए उसे पहली पत्नी से तलाक लेना जरूरी था. मोना के लिए वह शिवानी से तलाक लेने को भी तैयार था, पर उसे तलाक की कोई वजह नजर नहीं आ रही थी. क्योंकि शिवानी सीधीसादी गृहस्थ महिला थी. अभी ससुराल वाले भी उसी के पक्ष में थे. इस के लिए अमितेश को पिता और बहन को भी अपने पक्ष में करना था.

घर वाले उस के पक्ष में तभी आते, जब शिवानी से उन्हें परेशानी होती. इस के लिए उस ने चाल चलनी शुरू कर दी. वह जम कर शिवानी की उपेक्षा करने लगा, जिस से शिवानी तिलमिला उठी और यह सोचने पर मजबूर हो गई कि अमितेश उस के साथ ऐसा क्यों कर रहा है.

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जल्दी ही उसे अपनी उपेक्षा की वजह पता चल गई. पता चला कि उस के पति को बीवी जैसा सुख देने वाली कोई और मिल गई है, इसीलिए वह उस की उपेक्षा कर रहा है.

विवाद बढ़ा तो पिता और बहन ने अमितेश का ही लिया पक्ष

मोना से अमितेश के संबंध होने की बात पता चलते ही पतिपत्नी में विवाद होने लगा. विवाद बढ़ा तो इस का असर घरपरिवार पर भी पड़ने लगा, जिस से घर में परेशानी होने लगी. पिता और बहन को जितना लगाव अमितेश से था, उतना शिवानी से नहीं था. होता भी कहां से अमितेश उन का अपना खून था, शिवानी गैर घर से आई थी.

घर वालों को शिवानी का अमितेश से लड़ना अच्छा नहीं लगता था. उन्हें लगता था कि शिवानी उसे परेशान करती है इसलिए वे शिवानी का पक्ष लेने के बजाए अमितेश का ही पक्ष लेते थे.

इस से शिवानी घर में अकेली पड़ गई. उस के ससुर और ननद दोष उसे ही देते थे. उन का कहना था कि उसी की वजह से अमितेश ने इंदौर आना छोड़ दिया. वह अपनी बात कहती तो उसकी बात पर कोई विश्वास नहीं करता था.

पिता और बहन अमितेश के पक्ष में आ गए तो उस ने शिवानी को तलाक देने की तैयारी कर ली. क्योंकि मोना तलाक के लिए उस पर लगातार दबाव डाल रही थी. शिवानी अमितेश से लड़ाईझगड़ा करती थी, उस ने इसे ही आधार बना कर तलाक की अर्जी तो लगा दी पर बाद में उसे लगा पतिपत्नी में लड़ाईझगड़े का आधार तलाक के लिए पर्याप्त नहीं है, इसलिए उस ने तलाक की अर्जी वापस ले कर शिवानी से समझौता कर लिया.

उस ने तलाक की अर्जी भले ही वापस ले ली थी, पर वह शिवानी से किसी भी तरह छुटकारा पाना चाहता था. क्योंकि अब वह मोना के बगैर नहीं रह सकता था. जब उस ने विचार करना शुरू किया कि किस तरह शिवानी से पूरी तरह मुक्ति मिल सकती है तो उस के दिमाग में एक ही बात आई, उस की हत्या. लेकिन यह काम आसान नहीं था. अगर वह हत्या के आरोप में पकड़ा जाता तो पूरी जिंदगी जेल में बीतती, मोना भी उसे नहीं मिल पाती.

लेकिन हत्या के अलावा अमितेश को दूसरा कोई उपाय नजर नहीं आ रहा था. वह इस बात पर विचार करने लगा कि शिवानी की हत्या किस तरह करे कि वह मर जाए और उस पर शक न जाए. काफी सोचविचार के बाद भी जब उस की समझ में कुछ नहीं आया तो उस ने टीवी पर आने वाले अपराध आधारित शो देखने शुरू किए. इन्हीं में से किसी धारावाहिक के एपिसोड में उस ने देखा कि एक आदमी ने जहरीले सांप से कटवा कर पत्नी की हत्या कर दी.

अमितेश को यह उपाय अच्छा लगा. उस ने इसी तरह की योजना बनानी शुरू कर दी. वह पता लगाने लगा कि भारत में सब से जहरीला सांप कौन सा होता है. उसे पता चला कि भारत में सब से अधिक जहरीला सांप डेजर्ट कोबरा है. पर वह मध्य प्रदेश में नहीं पाया जाता.

आजकल गूगल पर किसी भी बात के बारे में जाना जा सकता है. उस ने गूगल पर सर्च किया तो पता चला यह सांप राजस्थान में पाया जाता है.

सारी जानकारी जुटा कर अमितेश नवंबर 2019 में नौकरी से इस्तीफा दे कर इंदौर स्थित अपने घर आ गया. घर आ कर उस ने शिवानी से कहा, ‘‘लो अब मैं हमेशाहमेशा के लिए तुम्हारे पास आ गया. अब तो तुम्हें विश्वास हो जाना चाहिए कि मैं केवल तुम्हारा हूं.’’

‘‘कहीं इस में भी तुम्हारी कोई चाल न हो?’’ शिवानी ने कहा.

‘‘तुम्हें तो अब मेरी हर बात में चाल ही नजर आती है. अरे मैं तुम्हारे पास रह कर कौन सी चाल चलूंगा.’’ शिवानी को विश्वास दिलाने की गरज से अमितेश ने कहा, ‘‘तुम मेरी पत्नी ही नहीं, मेरे बच्चों की मां भी हो. मैं तुम्हें छोड़ कर भला कहां जा सकता हूं.’’

शिवानी को पति की बातों पर विश्वास करना ही पड़ा. उस के पास इस के अलावा कोई और विकल्प भी नहीं था क्योंकि उसे रहना तो वहीं था.

इस की सब से बड़ी वजह यह है कि हमारे यहां यह मान लिया जाता है कि शादी के बाद बेटी का घर ससुराल ही होता है. भले ही ससुराल में उसे कितनी भी तकलीफ झेलनी पड़े, शादी के बाद बेटी मांबाप के लिए बोझ बन जाती है. ऐसा ही शिवानी के साथ भी था. फिर अब वह अकेली भी नहीं थी. उस के 2 बच्चे भी थे. उन्हें साथ ले कर वह मायके नहीं जा सकती थी.

योजना पर अमल के लिए

इंदौर पहुंच कर अमितेश ने शिवानी से छुटकारा पाने वाली बात पिता ओमप्रकाश पटेरिया को बता कर उन से मदद मांगी. अमितेश उन का एकलौता बेटा था, बुढ़ापे की लाठी. वह भला उस का साथ क्यों न देते. क्योंकि उस ने उन से साफ कह दिया था कि मोना के बगैर वह नहीं रह सकता. अगर वह उस का साथ नहीं देते तो वह या तो हमेशाहमेशा के लिए घर छोड़ देता या मौत को गले लगा लेता.

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ऐसा ही कुछ कह कर उस ने बहन को भी शिवानी की हत्या में साथ देने के लिए राजी कर लिया. जब पिता और बहन राजी हो गए तो अमितेश 19 नवंबर को राजस्थान के जिला अलवर गया और वहां रहने वाले किसी संपेरे से 5 हजार रुपए में डेजर्ट कोबरा खरीद लाया. सांप को उस ने एक बरनी में बंद कर के अलमारी में छिपा दिया और मौके का इंतजार करने लगा.

वह हर रात शिवानी के सो जाने पर उसे जहरीले सांप से कटवाने की कोशिश करता पर सांप को हाथ से पकड़ कर शिवानी को कटवाने की वह हिम्मत नहीं कर पाता.

इस तरह एकएक कर के 11 रातें गुजर गईं. सांप से कटवाने में उसे एक बात का डर और सता रहा था कि कहीं शिवानी जाग गई और उस के हाथ में सांप देख लिया तो शोर मचा देगी. उस के बाद वह पकड़ा जाएगा और हत्या की कोशिश में उसे सजा हो जाएगी.

जब अमितेश ने देखा कि वह जीते जी शिवानी को सांप से नहीं कटवा पा रहा है तो उस ने पिता और बहन की मदद ली. जब वे दोनों मदद के लिए राजी हो गए तो पहली दिसंबर की सुबह पिता और बहन की मदद से अमितेश ने सो रही शिवानी के मुंह को तकिए से दबा कर मार डाला.

शिवानी की हत्या के बाद उस के पिता और बहन बच्चों को ले कर साऊ चले गए तो अमितेश अपनी अगली योजना पर काम करने लगा. अब वह मृत शिवानी को सांप से कटवाना चाहता था. इस कोशिश में उसे काफी समय लग गया, क्योंकि वह खुद भी डर रहा था कि कहीं सांप उसे ही न काट ले. आखिरकार दोपहर बाद वह चिमटे से सांप को पकड़ कर शिवानी को कटवाने में सफल हो गया.

शिवानी तो पहले ही मर चुकी थी लेकिन अमितेश को तो यह दिखाना था कि शिवानी सांप के काटने से मरी है, इसलिए उस ने क्रिकेट खेलने वाले बैट से सांप को मार कर शिवानी के पास बैड पर रख दिया. इस के बाद सारी तैयारी कर के उस ने किराएदार निखिल को आवाज लगाई कि शिवानी को सांप ने काट लिया है. वह निखिल को गवाह बनाना चाहता था कि उस ने शिवानी के पास उस सांप को देखा है, जिस के काटने से उस की मौत हुई है.

निखिल गवाह तो बना पर अमितेश को बचाने का नहीं बल्कि फंसाने का. उसी ने पुलिस को बताया था कि पतिपत्नी में नहीं पटती थी. उस की इस बात से अमितेश शक के घेरे में आ गया था.

सभी से विस्तारपूर्वक की गई पूछताछ के बाद पुलिस ने अमितेश, उस के पिता ओमप्रकाश पटेरिया, बहन रिचा चतुर्वेदी के खिलाफ शिवानी की हत्या का मुकदमा दर्ज कर के उन्हें बाकायदा गिरफ्तार कर लिया.

इस के अलावा अमितेश ने यह भी स्वीकार किया कि उस ने डेजर्ट कोबरा की हत्या क्रिकेट बैट से की थी, इसलिए पुलिस ने उस के खिलाफ वन्यप्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 की धारा 51 के तहत भी केस दर्ज किया.

इस धारा में कम से कम 3 साल और ज्यादा से ज्यादा 7 साल की सजा का प्रावधान है. इस के अलावा 10 हजार रुपए का जुरमाना भी देना होता है.

सारी काररवाई पूरी कर पुलिस ने तीनों आरोपियों को अदालत में पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया.

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जिस मोना के लिए आज अमितेश जेल में है, क्या वह उस का इंतजार करेगी? कतई नहीं, मोना अपनी जवानी उस के इंतजार में क्यों गंवाएगी. अब वह अमितेश जैसा ही कोई और ढूंढ लेगी.

नाग से जहरीला आदमी : भाग 2

समय के साथ अमितेश एक बेटी और एक बेटे का पिता बना. बेटी वैदिका इस समय 8 साल की है तो बेटा वैदिक 4 साल का. सब मिलजुल कर रह रहे थे, इसलिए घर में खुशी ही खुशी थी. घर में परेशानी तब शुरू हुई, जब करीब 5 साल पहले अमितेश का तबादला इंदौर से नोएडा हो गया.

पिता सेवानिवृत्त हो चुके थे, इसलिए वह घर पर ही रहते थे. पत्नी और बच्चों को पिता के भरोसे इंदौर में छोड़ कर अमितेश नोएडा आ गया था. उस ने पत्नी से वादा किया था कि बच्चों की परीक्षा हो जाने के बाद वह उन्हें साथ ले जाएगा. लेकिन अमितेश अपने इस वादे पर कायम नहीं रहा.

बच्चों की परीक्षा खत्म हो गई तो शिवानी ने पति के साथ चलने की जिद की. तब उस ने पिता के अकेले होने की बात कह कर उसे इंदौर में ही रहने को कहा. उस का कहना था कि उस के नोएडा जाने पर पिता परेशान तो होंगे ही, उन की देखभाल भी नहीं हो पाएगी.

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शिवानी जबरदस्ती नहीं कर सकती थी, क्योंकि अमितेश ने बहाना ही ऐसा बनाया था. मजबूर हो कर शिवानी को ससुर के पास इंदौर में ही रुकना पड़ा. जबकि सही बात यह थी कि अमितेश ने पिता की देखभाल का सिर्फ बहाना बनाया था. क्योंकि उस का नोएडा की एक युवती मोना सिंह से प्रेम संबंध बन गया था. इसी वजह से वह शिवानी को नोएडा नहीं लाना चाहता था.

मोना से उस की मुलाकात बैंक में ही हुई थी. वह किसी काम से बैंक आई थी. उस का वह काम बिना मैनेजर के नहीं हो सकता था. मोना अमितेश से मिली तो उस ने उस की जिस तरह मदद की, उस से वह काफी प्रभावित हुई. फिर तो वह जब भी बैंक आती, अमितेश से जरूर मिलती. धीरेधीरे ये मुलाकातें दोस्ती में बदल गईं तो दोनों ने एकदूसरे के फोन नंबर ले लिए.

मोना आधुनिक विचारों वाली स्वच्छंद युवती थी. किसी भी मर्द से बातें करने में उसे जरा भी परहेज नहीं था. यही वजह थी कि वह अमितेश से फोन पर बातें करने लगी. धीरेधीरे बातों का यह सिलसिला बढ़ता गया और समय भी. इसी के साथ बातें करने का विषय भी बदलता गया. दुनियादारी की बातों के साथ प्रेम की बातें भी होने लगीं.

गर्लफ्रैंड लगी पत्नी से प्यारी

अमितेश शादीशुदा था. साथ ही 2 बच्चों का बाप भी. उस की उम्र बताती थी कि वह शादीशुदा होगा, मोना को यह बात पता भी थी. फिर भी अमितेश से दोस्ती और प्यार में उसे कोई आपत्ति नहीं थी. शायद वह मौके का फायदा उठाने वाली युवती थी. अमितेश घर और पत्नी से दूर नोएडा में अकेला रह रहा था. उसे प्यार और पत्नी के साथ की जरूरत भी महसूस होती थी.

पर पत्नी बच्चों की परीक्षा की वजह से साथ नहीं आ पाई थी. इसी का फायदा मोना सिंह ने उठाया. पत्नी साथ होती तो शायद अमितेश का झुकाव मोना सिंह की ओर नहीं होता. पत्नी के प्यार को तरस रहे अमितेश ने अपनी यह जरूरत मोना सिंह से पूरी करने की कोशिश की. वह बैंक के बाहर भी उस से मिलने लगा.

मोना मर्दों की कमजोरी का फायदा उठाने वाली युवती थी. तभी तो उस ने अमितेश जैसे कमाऊ आदमी को अपने प्रेमजाल में फांसा था. मोना अमितेश को अकसर अट्टा बाजार में मिलने के लिए बुलाती. नोएडा में अट्टा बाजार ही एक ऐसी जगह है, जहां आदमी की हर जरूरत का सामान मिल जाता है. प्रेमियों के मिलने का उचित स्थान भी वही है. क्योंकि वहां इतनी भीड़ होती है कि कोई एकदूसरे को नहीं देखता.

बैठने की जगहें भी हैं तो घूमने और खरीदारी के लिए दुकानें और मौल भी हैं. आधुनिक फैशन की हर चीज वहां मिलती है तो खाने के अच्छे रेस्टोरेंट भी हैं. अब तक मोना और अमितेश की बातें ही नहीं मुलाकातें भी लंबी हो गई थीं. दोनों लगभग रोज ही अट्टा बाजार में मिलने लगे थे. इस से मन नहीं भरता तो छुट्टी के दिन भी पूरा पूरा दिन साथ बिताते.

एक कहावत है, आदमी को अगर बैठने की जगह मिल जाए तो वह लेटने की सोचने लगता है. ऐसा ही कुछ अमितेश के साथ भी हुआ. मोना से दोस्ती के बाद प्यार हुआ, फिर दोनों साथसाथ घूमने लगे. शादीशुदा अमितेश का मन मोना से एकांत में मिलने का होने लगा. वह उस पर पैसे भी जम कर खर्च कर रहा था. ऐसे में भला फायदा क्यों न उठाता. लेकिन इस के लिए मोना को अपने फ्लैट पर लाना जरूरी था, क्योंकि उस से बढि़या एकांत जगह कहां हो सकती थी.

मोना भी बेवकूफ नहीं थी. वह अच्छी तरह जानती थी कि अमितेश उस पर पैसा क्यों लुटा रहा है. वह तो उस की हर इच्छा पूरी कर उसे पूरी तरह अपना बनाना चाहती थी, क्योंकि अब तक उसे अमितेश के बारे में सब कुछ पता चल चुका था. उस की हैसियत का भी उसे पता था. वह बैंक में मैनेजर था, अगर ऐसा आदमी इस तरह मिल जाए तो भला कौन नहीं पाना चाहेगा. मोना उसे पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार थी.

वैसा ही हाल अमितेश का भी था. वह भी मोना को पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार था. क्योंकि उस के आगे अब पत्नी बेकार लगने लगी थी. वैसे भी उसे पत्नी से एकांत में मिलने वाला प्यार नहीं मिल रहा था. उस के लिए वह तड़प रहा था. इंदौर इतना नजदीक भी नहीं था कि उस का जब मन होता, पत्नी से मिलने चला जाता. इसलिए मोना से नजदीकी बनने के बाद वह उस से उस प्यार की अपेक्षा करने लगा, क्योंकि वह प्यार उस की जरूरत भी बन चुका था.

मोना का हाथ हाथ में ले कर अमितेश घूमता ही था. ऐसे में ही एक दिन उस ने कहा, ‘‘मोना, तुम मेरे फ्लैट पर मिलने क्यों नहीं आती?’’

‘‘मैं तो तैयार हूं, तुम्हीं नहीं बुलाते.’’ मोना ने कहा.

‘‘मेरे कमरे पर आने की तुम्हारी हिम्मत है?’’ अमितेश ने पूछा.

‘‘मेरी तो आने की हिम्मत है, तुम अपनी हिम्मत की बात करो.’’

‘‘मैं तो तुम्हारे बारे में सोच रहा था कि कहीं तुम मना न कर दो.’’ अमितेश ने कहा.

‘‘मैं जब तुम्हारे साथ घूम सकती हूं, तुम जहां बुलाते हो, वहां आ सकती हूं तो भला मैं तुम्हारे फ्लैट पर क्यों नहीं आ सकती. तुम बुलाने की हिम्मत तो करो.’’ मोना ने अमितेश की आंखों में आंखें डाल कर कहा.

‘‘फ्लैट पर आने का मतलब समझती हो?’’ अमितेश ने कहा.

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‘‘खूब अच्छी तरह समझती हूं, इसीलिए तो हिम्मत की बात कही है. कमरे पर आने का मतलब है, तुम्हारी इच्छा पूरी करना. मैं उस के लिए भी तैयार हूं. अब तुम सोचो कि तुम उस के लिए तैयार हो कि नहीं?’’

‘‘मैं तैयार हूं, तभी तो तुम से फ्लैट पर चलने को कह रहा हूं.’’

‘‘तैयार तो मैं भी हूं पर अगर तुम पत्नी वाला प्यार चाहते हो तो मुझे तुम्हें पत्नी का दर्जा भी देना होगा.’’ मोना ने मन की बात स्पष्ट बता दी.

पत्नी की जगह लेने को तैयार हुई गर्लफ्रैंड

मोना की इस बात पर अमितेश सोच में पड़ गया. उसे सोच में डूबा देख कर मोना ने कहा, ‘‘किस सोच में डूब गए. पत्नी वाला प्यार चाहिए तो दर्जा तो पत्नी वाला ही देना होगा. जिम्मेदारियां तो उठानी ही पड़ेंगी न?’’

अमितेश को मोना बहुत अच्छी लगती थी. उस ने पत्नी और मोना में जोड़ लगाना शुरू किया. उस की पत्नी शिवानी घरेलू, पुराने विचारों वाली, घरपरिवार में ही सुख तलाशने वाली महिला थी. उस ने ससुराल में साड़ी के अलावा कभी कुछ नहीं पहना था. उस की शक्लसूरत भी साधारण थी. उस में नाजनखरे नहीं थे, अपने बच्चों में ही उलझी रहती थी. उस के लिए बच्चे पहले थे, पति बाद में.

अमितेश को इस सब की आदत भी पड़ चुकी थी, लेकिन मोना से मिलने के बाद शिवानी उसे बेकार लगने लगी थी. उसे अब मोना ही मोना दिखाई देती थी. मोना जींसटौप तो पहनती ही थी, अमितेश उसे जो भी कपड़े खरीद कर देता, वह उन सभी को पहनती थी. बाजार में खुलेआम उस का हाथ पकड़ कर चलती थी. नाजनखरे करने भी खूब आते थे. भला इस उम्र में इस तरह की प्रेम करने वाली मिले तो कौन नहीं, उस की हर शर्त मान लेगा.

अमितेश ने भी मोना की हर शर्त मान ली. फिर तो मोना अमितेश के फ्लैट पर आने की कौन कहे, अपना सामान ले कर हमेशाहमेशा के लिए आ गई. वह बिना शादी के ही अमितेश के साथ रहने लगी. इस तरह किसी मर्द के साथ रहने को आजकल लिवइन कहा जाता है. महानगरों में इस तरह रहना नई पीढ़ी के लिए एक तरह का फैशन बन गया है.

अमितेश मोना के प्रेमजाल में पूरी तरह फंस चुका था, उस के आगे शिवानी बेकार लगने लगी थी. उस की हर जरूरत मोना से पूरी होने लगी तो वह शिवानी को भूलने लगा. उस की उपेक्षा करने लगा.

शुरूशुरू में घरपरिवार में व्यस्त रहने वाली शिवानी ने इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया, पर बात जब कुछ ज्यादा ही बढ़ गई तो उस ने अमितेश को उलाहना देना शुरू किया. ऐसे में अमितेश काम का बहाना बना कर खुद को बचाने की कोशिश करता.

लेकिन कोई भी गलत काम कितने दिन छिपा रह सकता है. उस ने शिवानी को बच्चों की परीक्षा के बाद नोएडा लाने को कहा था. बच्चों की परीक्षा हो गई तो शिवानी बच्चों को ले कर नोएडा आने की तैयारी करने लगी. क्योंकि नोएडा में बच्चों के दाखिले भी कराने थे. लेकिन उन्हें नोएडा लाने के बजाय अमितेश बहाने बनाने लगा. क्योंकि अब तक वह पूरी तरह मोना का हो चुका था. जैसेजैसे दिन बीत रहे थे, वह मोना के नजदीक आता जा रहा था और शिवानी से दूर होता जा रहा था.

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नाग से जहरीला आदमी : भाग 1

1 दिसंबर, 2019 की शाम की बात है. इंदौर के मोहल्ला संचार नगर एक्सटेंशन का रहने वाला अमितेश एकदम से चिल्लाया, ‘‘निखिल, ओ निखिल, शिवानी को सांप ने काट लिया है. जल्दी आओ, वह बेहोश हो गई है. मेरी मदद करो, इसे अस्पताल ले जाना है.’’

शिवानी अमितेश की पत्नी थी. निखिल कुमार खत्री उस का किराए था. जिस समय अमितेश ने उसे आवाज लगाई, वह रात का खाना बना रहा था. उस ने झट से गैस बंद की और सब कुछ जस का तस छोड़ कर अमितेश के बैडरूम में जा पहुंचा. क्योंकि शिवानी उस समय बैडरूम में ही थी. उस ने देखा शिवानी बैड पर पड़ी थी. उसी के पास बैड पर एक काला कोबरा सांप मरा पड़ा था.

अमितेश काफी घबराया हुआ था. शिवानी के पास पड़े सांप को देख कर निखिल को समझते देर नहीं लगी कि इसी सांप ने शिवानी को काटा है. उस के आते ही अमितेश ने कहा, ‘‘निखिल, जल्दी करो, इसे अस्पताल ले चलते हैं. जल्दी इलाज मिलने से शायद बच जाए. देर होने पर सांप का जहर पूरे शरीर में फैल सकता है.’’

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दोनों शिवानी को उठा कर बाहर ले आए. बाहर अमितेश की कार खड़ी थी. उसे कार में लिटा कर अमितेश अंदर जाने लगा तो निखिल ने सोचा, चाबी लेने जा रहा होगा. पर जब वह लौटा तो उस के हाथ में एक बरनी थी, जिस में वही मरा हुआ सांप था, जिस ने शिवानी को काटा था. उसे देख कर निखिल ने पूछा, ‘‘इसे कहां ले जा रहे हो?’’

‘‘डाक्टर को दिखा कर बताएंगे कि इसी सांप ने काटा है.’’ अमितेश ने कहा और बरनी को पीछे की सीट पर शिवानी के पास रख कर खुद ड्राइविंग सीट पर बैठ गया. बगल वाली सीट पर निखिल के बैठते ही कार आगे बढ़ गई. शिवानी को वह इंदौर के जानेमाने अस्पताल एमवाईएच अस्पताल ले गया.

अमितेश ने डाक्टरों को बताया कि इसे सांप ने काटा है. शिवानी को देखते ही डाक्टर समझ गए कि उस की मौत हो चुकी है. अमितेश के अनुसार शिवानी की मौत सांप के काटने से हुई थी. लेकिन जब डाक्टरों ने शिवानी को ध्यान से देखा तो उन्हें मामला गड़बड़ लगा. शिवानी के हाथ पर 3 काले गहरे नीले निशान थे, जो सांप के काटने के हो सकते थे, पर साथ ही उस के शरीर पर चोट के भी निशान थे.

अमितेश कह रहा था कि शिवानी की मौत सांप के काटने से हुई है. सांप के काटने के निशान भी उस के बाएं हाथ पर थे. यही नहीं, उस ने डाक्टरों को वह सांप भी दिखाया, जिस ने शिवानी को काटा था. डाक्टरों ने देखा कि जहां सांप ने काटा था, वहां तो नीले निशान थे, पर बाकी शरीर सफेद पड़ गया था, जबकि सांप के काटने से मरने वाले का शरीर नीला पड़ जाता है.

किसी को विश्वास नहीं हुआ अमितेश की बात पर

डाक्टरों का संदेह जब विश्वास में बदल गया कि कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है तो उन्होंने हत्या का शक होने की सूचना अस्पताल प्रशासन को दे दी. अमितेश थाना कनाडिया क्षेत्र में रहता था, इसलिए अस्पताल प्रशासन ने इस की जानकारी थाना कनाडिया पुलिस को दे दी.

सूचना मिलते ही थाना कनाडिया के थानाप्रभारी अनिल सिंह, एसआई अविनाश नागर, 2 सिपाही महेश और मीना सुरवीर को साथ ले कर एमवाईएच अस्पताल पहुंच गए. पुलिस को देख कर अमितेश घबराया जरूर, पर वह अपनी बात पर अड़ा रहा कि शिवानी की मौत सांप के काटने से ही हुई है.

अमितेश भले ही अपनी बात पर अड़ा था, पर पुलिस ने शिवानी के शव का निरीक्षण किया तो उसे पूरा विश्वास हो गया कि अमितेश झूठ बोल रहा है.

इस की वजहें भी थीं. सांप के काटने से मरने वाले का शरीर नीला पड़ जाता है, जबकि शिवानी का शरीर सफेद था. इस के अलावा उस की बाईं आंख के नीचे चोट का निशान भी था. दोनों पैरों के पंजे नीचे की ओर खिंचे हुए थे. हाथों की मुट्ठियां बंद थीं और नाक के बाहरी किनारों की चमड़ी छिली थी, जैसे किसी चीज से रगड़ी गई हो.

अमितेश जिस डेजर्ट कोबरा सांप को बरनी में भर कर लाया था, वह कोबरा मध्य प्रदेश में नहीं पाया जाता था. इस के अलावा जिस तरह सांप का सिर कुचला हुआ था, उस तरह सांप का सिर कुचलना आसान नहीं है. क्योंकि कोबरा बहुत फुर्तीला होता है. पुलिस को लग रहा था कि सांप को पकड़ कर मारा गया है.

इस सब के अलावा अहम बात यह भी थी कि घटना बरसात के मौसम की होती तो एक बार मान भी लिया जाता कि सांप कहीं से आ गया होगा. पर ठंड के मौसम में शहर के बीचोबीच इस तरह बैडरूम में जा कर सांप के काटने की बात किसी के गले नहीं उतर रही थी.

इन्हीं सब बातों को ध्यान में रख कर अनिल सिंह ने शिवानी की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. इस के बाद घटनास्थल के निरीक्षण के लिए अमितेश और निखिल को साथ ले कर संचार नगर एक्सटेंशन स्थित अमितेश के घर आ गए. पुलिस ने बैडरूम का निरीक्षण किया.

बैड पर बिछी चादर इस तरह अस्तव्यस्त थी, जैसे उस पर लेटने वाला खूब छटपटाया हो. बैड पर 2 तकिए थे. उन में से एक तकिए के कवर पर लार का निशान था. पुलिस ने तकियों के कवर और बैडशीट को फोरैंसिक जांच के लिए भिजवा दिया.

अनिल सिंह ने अब तक की जांच में जो पाया था और जो काररवाई की थी, उसे अपने अधिकारियों को बता दिया. निखिल और अमितेश से पूछताछ शुरू करने से पहले उन्होंने शिवानी की मौत की सूचना उस के मायके वालों को देना जरूरी समझा. अमितेश से फोन नंबर ले कर उन्होंने शिवानी की मौत की बात उस के पिता को बताई, तो उन्होंने सीधा आरोप लगाया, ‘शिवानी की मौत सांप के काटने से नहीं हुई, उस की हत्या की गई है.’

अनिल सिंह ने उन से इंदौर आने को कहा और निखिल कुमार खत्री से पूछताछ शुरू की. पूछताछ में निखिल ने जो देखा था, सचसच बता दिया. अमितेश से घर वालों के बारे में पूछा गया तो उस ने बताया कि उस के पिता ओमप्रकाश पटेरिया, दोनों बच्चों बेटी वैदिका और बेटे वैदिक को ले कर राऊ में रहने वाली उस की बहन रिचा चतुर्वेदी के यहां गए हैं. पुलिस ने फोन कर के उन्हें भी शिवानी की मौत की सूचना दे कर इंदौर आने को कहा.

अगले दिन सब लोग इंदौर आ गए. ललितपुर से शिवानी के पिता और भाई भी आ गए थे. पुलिस ने एक बार फिर अमितेश कुमार पटेरिया, पिता ओमप्रकाश पटेरिया, बहन रिचा चतुर्वेदी, किराएदार निखिल कुमार खत्री से विस्तारपूर्वक पूछताछ की. इस पूछताछ में सभी के बयान अलगअलग पाए गए. इस से पुलिस का शक विश्वास में बदल गया, लेकिन पुलिस को सबूत चाहिए था.

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दूसरी ओर शिवानी के पिता और भाई का कहना था कि अमितेश का नोएडा में रहने वाली किसी युवती से प्रेमसंबंध है. वह युवती नोएडा में उस के साथ लिवइन में रहती थी, इसीलिए वह शिवानी को साथ नहीं रखता था. उस ने शिवानी से तलाक के लिए मुकदमा भी दायर किया था, लेकिन बाद में खुद ही मुकदमा वापस ले लिया था. उस युवती को ले कर शिवानी और अमितेश में अकसर लड़ाई झगड़ा होता था.

पतिपत्नी के बीच विवाद की बात अमितेश और उस के घर वालों ने भी स्वीकार की. पुलिस चाहती तो अमितेश को गिरफ्तार कर सकती थी, लेकिन वह किसी साधारण परिवार से नहीं था इसलिए पुलिस को अब पोस्टमार्टम रिपोर्ट और फोरैंसिक रिपोर्ट का इंतजार था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने खोली पोल

तीसरे दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली तो सारा मामला साफ हो गया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, शिवानी की मौत अस्पताल लाने से 8 घंटे पहले सांप के काटने से नहीं बल्कि दम घुटने से हुई थी. फोरैंसिक रिपोर्ट से भी साबित हो गया था कि शिवानी की हत्या की गई थी. पुलिस ने अमितेश के बैडरूम से जो तकिए के कवर जब्त किए गए थे, उन में से एक तकिए के कवर पर शिवानी की लार के धब्बे पाए गए थे.

शक विश्वास में बदल गया था, पुलिस ने अमितेश को हिरासत में ले कर सख्ती से पूछताछ की तो उस ने शिवानी की हत्या का अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने पुलिस को बताया कि उसी ने पिता ओमप्रकाश एवं बहन रिचा की मदद से शिवानी की हत्या सोते समय मुंह पर तकिया रख कर की थी.

अमितेश से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस के पिता ओमप्रकाश पटेरिया और बहन रिचा चतुर्वेदी को भी गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तारी के बाद उन दोनों ने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इस पूरी पूछताछ में शिवानी की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

जल संसाधन विभाग के एग्जीक्यूटिव इंजीनियर पद से रिटायर 73 वर्षीय ओमप्रकाश पटेरिया परिवार के साथ मध्य प्रदेश, इंदौर के थाना कनाडिया क्षेत्र में पड़ने वाले संचार नगर एक्सटेंशन में रहते थे. उन के परिवार में बेटा अमितेश कुमार और बेटी रिचा पटेरिया थी. पत्नी की मौत हो गई थी. बेटी बड़ी थी और बेटा छोटा. बेटी की पढ़ाई पूरी होने के बाद उन्होंने उस की शादी कर दी थी.

बेटा अमितेश कुमार पटेरिया पढ़लिख कर एक्सिस बैंक में मैनेजर के पद पर तैनात हो गया था. करीब 13 साल पहले ओमप्रकाश ने उस की शादी ललितपुर की शिवानी के साथ कर दी थी. अमितेश बैंक में अधिकारी था. पिता भी एग्जीक्यूटिव इंजीनियर था, घर में किसी चीज की कमी नहीं थी, इसलिए जिंदगी आराम से कट रही थी.

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जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

प्रेमी, झुमका और पति की हत्या : वासना की आग में वह खुद ही जल गई

बिहार की राजधानी पटना से सटा बाढ़ जिला यों तो स्वादिष्ठ लाई (एक तरह का लड्डू) के लिए मशहूर है मगर पिछले दिनों 8 जुलाई को यहां एक व्यक्ति की लाश मिली तो लोग सकते में आ गए.

लाश के सामने बीवी दहाङें मारमार कर रो रही थी, तो इस से वहां रहे लोगों की आंखें भी एकबारगी नम हो गई थीं पर जब पुलिस ने तफ्तीश की और माजरा लोगों की समझ में आया तो किसी को यकीन ही नहीं हो रहा था कि उस की हत्या कराई गई है और हत्या कराने वाला कोई और नहीं खुद उस की बीवी ही है.

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कहते हैं जब वासना की आग सिर चढ़ कर बोलने लगे तो इस का अंजाम बेहद बुरा होता है. इस घटना में भी वही हुआ जो आमतौर पर होता है.

पति, पत्नी और वो

पावर ग्रिड में काम करने वाला पंकज का एक हंसताखेलता परिवार था. उस की शादी बाढ़ जिले में ही अगवानपुर नाम के एक गांव की रहने वाली शोभा से हुई थी. वह बेहद खूबसूरत थी, जिस के प्यार में पति डूबा रहता था. कुछ दिन सब ठीकठाक रहा. लेकिन शोभा अति महात्वाकांक्षी के साथसाथ आजाद खयाल की थी.

पंकज के घर पर आएदिन गोलू नाम का एक शख्स आया करता था, जो पंकज का जानकार था. वह बातबात पर शोभा से मजाक करता और उसे जोक्स भी सुनाता था. इस से धीरेधीरे शोभा गोलू की तरफ आकर्षित हो गई. वे घंटों फोन पर बतियाने लगे. दोनों में प्यार भी हो गया था.

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प्रेमी के नाम का टैटू बनवा ली

इधर पंकज को शोभा और गोलू की नजदीकियों से ऐतराज होने लगा था. उसे इस रिश्ते पर शक हुआ तो उस ने दोनों पर नजर रखनी शुरू कर दी. एक दिन पंकज ने शोभा को घंटों गोलू से फोन पर बातें करते सुन लिया था.

बात यहीं तक नहीं रही थी. शोभा ने हाथ पर गोलू के नाम का टैटू भी बनवा रखा था. इस को ले कर पंकज ने एक दिन शोभा की पिटाई भी की थी. यह बात शोभा ने अपने प्रेमी गोलू को बता दी. फिर दोनों ने पंकज को रास्ते से हटाने की साजिश रच डाली. गोलू ने साथी मनीष को यह बात बताई. मनीष ने अपराधी गतिविधियों में शामिल रहे मोहित को इस साजिश में शामिल कर लिया.

अपराध की योजना

मोहित ने पंकज की हत्या करने के लिए एक अन्य युवक राजा से संपर्क साधा. राजा ने ऐडवांस के रूप में ₹45 हजार भी लिए. इस हत्याकांड को अंजाम देने के लिए उस ने ₹3 लाख मांगे. अंत में बात ₹2 लाख 80 हजार पर तय हुई.

पति की हत्या के लिए शोभा ने किलर को हस्ताक्षर किया ब्लैंक चैक भी दिया था. दरअसल, सब से पहले अपराधी राजा सिंह ने ₹50 हजार ऐडवांस मागे. शोभा के पास पैसे नहीं थे तो उस ने झुमका बेच कर उसे पहले ₹45 हजार दिए.

इस के बाद किलर आयुष ने ₹3 लाख मांगे. शोभा ने कहा कि वह ऐडवांस ₹45 हजार राजा को दे चुकी है. इस के बाद रुपए काम होने पर मिलेंगे. किलर को भरोसा दिलाने के लिए उस ने एक ब्लैंक चैक तक दे दिया. घटना के दूसरे दिन शोभा बैंक गई और रूपए निकाल कर आयुष को दे दिए.

आशिक की बेवफाई

मगर सामाजिक मर्यादाओं व रिश्तों को तारतार कर देने वाली इस घटना के बाद की कहानी भी बेहद अजीब है. प्रेमी के चक्कर में पेशेवर अपराधियों से अपने पति की हत्या कराने वाली पत्नी का प्रेमी पुलिस गिरफ्त में आया तो उस ने प्रेमिका शोभा से शादी करने से इनकार कर दिया.

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खुद से कम उम्र के लड़के से शादी करने के लिए पति की हत्या कराने की आरोपित शोभा और उस के प्रेमी के बीच बाढ़ थाने में ही झगड़ा हो गया. हत्या की साजिश में शामिल गोलू उर्फ सन्नी ने शोभा के साथ शादी करने से इसलिए इनकार कर दिया कि जब यह अपनी पति की नहीं हुई तो मेरी क्या होगी? इस पर थाने में ही खूब ड्रामेबाजी हुई. जवाब सुनते ही शोभा बोली कि अगर गोलू उस से शादी नहीं करेगा तो वह उस के घर के पास जा कर जान दे देगी.

इस हाईवोल्टैज ड्रामे को ले कर थाने के पुलिसकर्मी भी परेशान रहे. पुलिस गिरफ्त में आने के बाद प्रेमी गोलू का मिजाज बदल चुका था. उस ने शोभा से बात तक करने से इनकार कर दिया.

न घर की रही न घाट की

इस हत्याकांड के बाद पकङे गए अपराधियों से थानेदार संजीत कुमार ने सभी आरोपियों से सख्ती से पूछताछ की. इस के बाद सभी को दूसरे दिन सुबह कोर्ट में पेश किया, जहां सभी को जेल भेज दिया गया है.

अब शोभा सालों जेल में रहेगी. मुकदमा चलता रहेगा. उसे क्या सजा मिलेगी यह तो वक्त ही बताएगा पर इतना तो तय है कि अब वह पूरी जवानी जेल में ही रहेगी.

अगर वह अपने पति से बेवफाई नहीं करती तो कल उस का हंसताखेलता परिवार होता, सपने होते.

मगर जिस प्रेमी के लिए उस ने कानून को अपने हाथों में लिया था, वह भी बदल गया. अब वह न घर की रही न घाट की.

हैवानियत की हद

हैवानियत की हद : भाग 3

लेखक- विजय माथुर/कैलाश चंदेल 

अगले ही पल सीमा की कार श्रीराम गुप्ता अस्पताल की तरफ दौड़ रही थी. डा. सीमा सास को कार में बैठी छोड़ कर हौस्पिटल के अंदर चली गई. जब वह बाहर निकली तो उस के हाथ में एक बोतल थी. इस के बाद कार अब सूर्या सिटी की तरफ दौड़ने लगी.

आगे जो हुआ, वह कहानी में बता चुके हैं.

थाना चिकसाना में डा. सीमा और डा. सुदीप की मां सुरेखा के खिलाफ केस दर्ज होने के बाद आईजी लक्ष्मण गौड़ के निर्देश पर एसपी हैदर अली ने जांच की जिम्मेदारी एएसपी मूल सिंह राणा को सौंप दी. 9 नवंबर को डा. सीमा और सुरेखा गुप्ता एएसपी मूल सिंह राणा के सामने बैठी थीं. सीमा की आंखें रोतेरोते सूज गई थीं. सिसकियां अभी भी जारी थीं.

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आंसुओं से भीगा रूमाल लिए बैठी सीमा के चेहरे पर ऐसे भाव थे, मानो अंदर से फूट पड़ने को व्याकुल रुलाई को पूरी ताकत से दबाने की कोशिश में हो. सुरेखा गुप्ता को देख लग रहा था जैसे 2 दिनों में और बूढ़ी हो गई. उस की आंखें बुझीबुझी सी थीं. एएसपी राणा ने सीमा के चेहरे पर नजर गड़ाते हुए कहा, ‘‘छिपाने से कुछ हासिल नहीं होगा. बेहतर है सब कुछ अपने आप ही बता दें. पहले 7 नवंबर का ब्यौरा बताइए.’’

अब तक अपने आप पर काबू पा चुकी सीमा ने बताना शुरू किया, ‘‘अपनी सास सुरेखा के साथ जिस समय मैं पहली बार सूर्या सिटी स्थित दीपा के मकान पर पहुंची, उस समय दोपहर का डेढ़ बजा था. लेकिन दीपा वहां नहीं मिली. उस समय मकान पर ताला लगा हुआ था.

मकान के आगे लगी प्लेट में एस-2 विला लिखा हुआ था. मकान के कोने पर आयशा सैलून एंड स्पा सेंटर का बोर्ड लगा हुआ था. मैं इस कदर आवेश में थी कि लौटने के बजाए मुझे आसपास कहीं रुक कर दीपा का इंतजार करना बेहतर लगा.

‘‘प्रतीक्षा के लिए हम ने पेड़ों से घिरे पार्क को चुना. वहां से हम दीपा की आवाजाही पर नजर रख सकते थे. इस बीच करीब 2 बजे हम ने डा. सुदीप को दीपा के घर में जाते और फौरन वापस लौटते देखा.

सुदीप की वहां आवाजाही ने मेरे शक को पुख्ता कर दिया. लेकिन वहां पहुंचने के अपने मकसद को ध्यान में रखते हुए तात्कालिक तौर पर गुस्से पर काबू रखना जरूरी था.

‘‘करीब ढाई बजे के लगभग हम ने शौर्य को स्कूल बस से उतरते देखा. बच्चे ने भी घर पर ताला लगा देखा होगा, वह घर से निकल कर पड़ोस के मकान में चला गया.

‘‘हमारी आंखें दीपा के मकान पर गड़ी हुई थीं. लगभग 5 बजे हम ने दीपा को एक टैक्सी से उतरते और घर के भीतर दाखिल होते हुए देखा. हम ने करीब 10 मिनट इंतजार किया. इस के बाद हम ने अपनी गाड़ी दीपा के मकान के पास खड़ी कर दी.’’

अपराध की लकीरें छप गईं हाथों पर

सीमा पुलिस स्टेशन के चार्ज रूम में गुरुवार, 7 नवंबर, 2019 का अपना हालहवाल दोहरा रही थी. पुलिस सीसीटीवी कैमरे खंगालने तथा चौकीदार से पूछताछ कर तथ्यों की पुष्टि कर चुकी थी.

राणा ने कहा, ‘‘अच्छा, मुझे उस दिन डा. सुदीप गुप्ता से हुई बातचीत के बारे में बताओ. और हां, यह सोच कर बताना कि बातचीत की मोबाइल रिकौर्डिंग हमारे पास मौजूद है.’’

सीमा क्षणभर चुप रही. फिर उस ने बताना शुरू किया. ‘‘घटना से पहले मैं ने सुदीप को बता दिया था कि तुम लाख समझाने के बावजूद दीपा से किनारा नहीं कर रहे हो. इसलिए अब मैं मम्मी को साथ ले कर उस के घर जा रही हूं. एक औरत ही औरत को समझा सकती है. किसी का सिंदूर पोंछ कर अपनी मांग सजाने का क्या नतीजा हो सकता है, उसे पता चलेगा.

‘‘सुदीप मेरे मिजाज से वाकिफ था. इसलिए बारबार कहता रहा, ‘देखो जल्दबाजी से काम मत लेना. मुझे उसे समझाने का एक और मौका दो.’ लेकिन मैं ने यह कहते हुए उस की बात अनसुनी कर दी कि मैं ने तुम्हें एक नहीं दस मौके दिए.

‘‘सुदीप की कोई बात सुनने के बजाए मैं ने फोन काट दिया. सुदीप शायद मेरा इरादा भांप गया था. इसलिए वह अनहोनी की आशंका से बुरी तरह घबरा गया. मैं ने दीपा के मकान की निगरानी करते वक्त करीब 3 बार सुदीप को उस के घर पहुंचते और लौटते देखा.

‘‘सुदीप को आखिरी फोन मैं ने मकान को आग लगाने के बाद किया कि आजा और बचा सके तो बचा ले अपने दिल की रानी को. मैं ने उसे आग के हवाले कर दिया है. मैं केवल सुदीप की चीख सुन पाई और फोन बंद कर दिया.’’

सीमा ने कहना जारी रखा, ‘‘सुदीप दीपा पर जान निछावर करता था. उस की आशनाई इस कदर बढ़ गई थी कि सुबह मेरे सामने रिश्ते तोड़ने की कसम खाता था और शाम को फिर उस की गोद में चला जाता था. कई बार शहर से बाहर जाने के बहाने वह दीपा के साथ होटलों में रात गुजारने लगा था. दीपा गुर्जर के पीछे वह इतना पागल हो गया था कि आयशा स्पा सेंटर की साजसज्जा पर लाखों  रुपए फूंक दिए थे.

‘‘स्पा सेंटर में थाइलैंड की झालर, करीब 5 लाख के फरनीचर के अलावा उस ने करीब 20 लाख खर्च कर दिए थे. मैं ने अपने सूत्रों से पता लगाया तो जान कर हैरान रह गई कि दीपा सुदीप को अपना पति बताते हुए कहती थी कि स्पा सेंटर उस के पति सुदीप ने ही खुलवाया है.’’

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अपनी फूटती रुलाई रोकने की कोशिश करते हुए सीमा ने कहा, ‘‘उस ने दीपा के बेटे को अडौप्ट कर लिया था. नया घर, नई बीवी और बेटा…और मैं? मेरा क्या?’’

मैं ने सुदीप को बहुत समझाया कि ऐसी औरतें किसी की सगी नहीं होतीं. दीपा उसे बहका रही है. उसे तुम्हारे पैसों और शरीर सुख की चाहत है. जब पैसा मिलना बंद हो जाएगा, तुम्हारे लिए दरवाजे भी बंद हो जाएंगे. लेकिन मेरी कोई समझाइश काम नहीं आई.

सीमा ने कहना जारी रखा, ‘‘हमें स्पा सेंटर की बाबत सब कुछ मालूम हो चुका था. पहली नवंबर को जब सुदीप देर रात तक नहीं लौटा तो हमें मालूम नहीं था कि वो दीपा की पार्टी में था. लेकिन जब मैं ने अपनी सास से फोन करवाया तो वह साफ झूठ बोल गया कि वह किसी परिचित की पार्टी में है. मुझे उसी दिन शक हो गया था लेकिन कलह की वजह से चुप्पी साध गई.

‘‘पार्टी में शहर के कई लोग आए होंगे, लोगों ने सुदीप और दीपा की जुगलबंदी को किस नजर से देखा होगा, कितनी बदनामी की बात थी. बस उसी दिन मैं ने तय कर लिया था कि उस पेड़ को ही काट दूंगी, जिस पर सुदीप झूल रहा है.

‘‘फिर पैसा तो मेरे घर का ही फूंका जा रहा था. बैंक एकाउंट से लाखों निकाले जा रहे थे और मैं उसे रोक तक नहीं पा रही थी. सूर्या सिटी का लाखों का मकान भी तो सुदीप ने ही उसे खरीद कर दिया था.’’

डा. सुदीप के सच पर संदेह

डा. सुदीप से पूछताछ में पुलिस को बेशक बहुत कुछ मिला, लेकिन वह सच बोल रहा था, इस की कोई गारंटी नहीं थी. पुलिस जांच में आए कुछ तथ्य महत्त्वपूर्ण थे. मसलन, रोजरोज के दबाव के चलते डा. सुदीप ने कुछ समय पहले दोसा शहर के महवा कस्बे के एक होटल में दीपा से शादी कर ली थी.  इस शादी में दीपा की बहन राधा भी मौजूद थी. कुछ दिनों से सुदीप और दीपा के रिश्तों में भी खटास आने लगी थी.

दरअसल, दीपा अपने बेटे शौर्य को पिता के तौर पर डा. सुदीप का नाम दिलवाने की जिद कर रही थी. जबकि डा. सुदीप इस के लिए तैयार नहीं थे. चिकसाना थानाप्रभारी श्रवण पाठक का कहना था कि इस मामले में डा. सुदीप के शामिल होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. इस की वजह दीपा की जिद को ले कर दोनों के बीच बढ़ती तकरार हो सकती है.

सुदीप उसे टालने के लिए बारबार कहता था कि अभी जल्दबाजी मत करो. थोड़ा इंतजार करो. डा. सुदीप का कहना था कि पता नहीं भावुकता के कौन से पल थे, जब मैं उस से प्यार कर बैठा. लेकिन उस का प्यार मेरे गले की फांस बन गया था. दीपा मुझ से शादी कर चुकी थी, अब बेटे को मेरा नाम देने पर अड़ी हुई थी.

मैं जितना दलदल से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा था, उतना ही फंसता जा रहा था. मेरी पत्नी और मां, दोनों को कैंसर था. मैं ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की कि सीमा को कुछ भी हो सकता है. अगर ऐसा हुआ तो हमारे लिए रास्ता खुल जाएगा. उस के बाद हम दोनों को साथ रहने में कोई दिक्कत नहीं होगी. लेकिन दीपा थी कि मेरी कोई बात मानने को तैयार नहीं थी.

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बहरहाल, पुलिस की जांच अभी इसी दिशा में चल रही है. चिकसाना थाने में इस मामले की रिपोर्ट सीमा की बहन राधा ने दर्ज कराई थी. सुदीप, सीमा और सुरेखा तीनों न्यायिक हिरासत में हैं.

पुलिस सूत्रों तथा जानकार सूत्रों पर आधारित

हैवानियत की हद : भाग 2

लेखक- विजय माथुर/कैलाश चंदेल 

अगले दिन डा. सुदीप गुप्ता ने रिसैप्शन पर एक अजनबी और मोहक चेहरे को देखा तो थोड़ा आश्चर्य हुआ. दीपा ने जब एक अनजान व्यक्ति को अपनी तरफ अपलक निहारते हुए देखा तो हड़बड़ा गई. लेकिन यह सोच कर कि शायद कोई क्लायंट होगा, उस ने चेहरे पर सुलभ मुसकान लाते हुए पूछा, ‘‘यस सर, व्हाट कैन आई डू फौर यू?’’

‘‘यू कैन डू एवरीथिंक फौर मी…’’ कहते हुए डा. सुदीप ने हंस कर जवाब दिया, ‘‘आई एम डा. सुदीप गुप्ता…आई थिंक माई इंट्रोडक्शन इज सफिशिएंट फौर यू?’’

‘‘सौरी सर, मुझे मालूम नहीं था.’’ कहते हुए दीपा संकोच से सिकुड़ती हुई हड़बड़ा कर रह गई.

‘‘कोई बात नहीं,’’ डा. सुदीप ने लापरवाही दर्शाते हुए कहा, ‘‘होता है ऐसा…’’

डा. सुदीप की आंखों की चमक बता रही थी कि दीपा की खूबसूरती उन के दिल में उतर गई थी.

रात को जब डाक्टर दंपति घर लौट रहे थे, तब सीमा ने खबरिया लहजे में डा. सुदीप को बताया, ‘‘मैं ने एक रिसैप्शनिस्ट रख ली है.’’

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कार ड्राइव करते हुए सुदीप ने पत्नी से बड़े सहज भाव से कहा, ‘‘तुम ने जो किया, अच्छा ही किया होगा.’’

असल में दीपा से मिलने के बाद डा. सुदीप उतना सहज नहीं थे, जितना प्रदर्शित कर रहे थे. श्री राम अस्पताल की बागडोर पूरी तरह डा. सीमा के हाथ में थी. सरकारी नौकरी में होने के नाते डा. सुदीप सिर्फ शाम को दोढाई घंटे क्लिनिक में बैठते थे. उन की सिटिंग में नियमितता कतई नहीं थी.

लेकिन दीपा को देखने के बाद डा. सुदीप को एक मकसद मिल गया था. दीपा को देखने के बाद गंभीर रहने वाले डा. सुदीप के चेहरे पर मुसकान तैरने लगी थी. उन की हौस्पिटल सिटिंग भी बढ़ गई थी.

सीमा इस परिवर्तन को भांप नहीं पाई. उस की नजर में तो यह अच्छा ही था. इस से  उसे पति का ज्यादा सान्निध्य मिलने लगा. पति के साथ रात को घर वापसी के मौके भी बढ़ गए थे. दूसरी ओर दीपा के लिए भी ऐसे मौके बढ़ गए थे, जब डा. सुदीप किसी न किसी बहाने उसे अपने चैंबर में बुलाते थे.

भूले से दीपा के जहन में यह खयाल भी आया कि डा. सुदीप उस के करीब आने की कोशिश कर रहे हैं तो उसे भी आगे बढ़ना चाहिए. इसी सोच के साथ दीपा और डाक्टर के बीच हायहैलो के साथ छोटीमोटी बातें होने लगीं.

एक दिन लुकाछिपी का यह परदा भी हट गया. दरअसल, अस्वस्थता के कारण डा. सीमा कुछ दिनों से अस्पताल नहीं आ रही थी. इस से दीपा की जिम्मेदारियां बढ़ गई थीं. साथ ही डा. सुदीप को भी अस्पताल में ज्यादा वक्त देना पड़ रहा था. दीपा को हर मामले में मशविरे के लिए डा. सुदीप के पास जाना पड़ता था.

डा. सुदीप को मन भाई दीपा

मिलने के मौके बढ़े तो अनायास दोनों बेतकल्लुफ होते गए. चायकौफी भी साथ होने लगी. नतीजतन अनायास ही कुछ स्थितियां बनीं कि डा. सुदीप दीपा के घरपरिवार के बारे में पूछ बैठे.

दीपा की यह सब से बड़ी दुखती रग थी, उस ने पति से अलगाव और बेटे का पालनपोषण करने से ले कर एकाकीपन का सारा संताप आंसुओं के साथ डा. सुदीप के सामने बहा दिया. अपनेपन का अहसास हुआ तो दीपा के दिल का दर्द फूट पड़ा, ‘‘दिन तो जैसेतैसे हौस्पिटल में गुजर जाता है, लेकिन शाम को जब लौटती हूं तो रात और अकेलेपन की चिंता मन को मथने लगती है. मैं बिलकुल टूट गई हूं.’’

इसी बीच एक दिन डा. सुदीप और दीपा के बीच की सारी दूरियां खत्म हो गईं. इस के बाद तो यह सिलसिला बन गया. डा. सुदीप का गाहेबगाहे अस्पताल आना और दीपा का रिसैप्शन छोड़ कर घंटों सुदीप के चैंबर में बैठे रहना, हौस्पिटल स्टाफ में खुसरफुसर की वजह बनने लगा.

इस प्रेम कहानी की भनक डा. सीमा को लगी तो एक बार तो उसे विश्वास ही नहीं हुआ. इधरउधर की बातें सुनने की बजाए उसे आंखों देखी पर ज्यादा भरोसा था.

आखिर उसे यह मौका भी मिल गया. संयोग से डा. सीमा को एक रसूखदार पेशेंट के लिए विजिट पर जाना पड़ा. सुदीप की अस्पताल में मौजूदगी के कारण डा. सीमा को कहीं जाने में कोई दिक्कत भी नहीं थी. पत्नी की लंबी गैरहाजिरी में प्यार का लुत्फ उठाने के लिए डा. सुदीप को यह बढि़या मौका मिल गया.

उस ने सोचा कि सीमा जिस विजिट पर गई है, 2 घंटे से पहले वापस नहीं आएगी. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. डा. सीमा विजिट कर के एक घंटे में ही लौट आई. सीमा ने दीपा को रिसैप्शन से गायब देखा तो उस के मन में शक का कीड़ा कुलबुलाए बिना नहीं रहा.

बिना एक पल गंवाए डा. सीमा पति के चैंबर में जा धमकी. चैंबर का नजारा शर्मसार कर देने वाला था. पति को डा. सीमा क्या कहती? लेकिन जो कर सकती थी, उस ने वही किया. सीमा ने दीपा को नौकरी से निकालने की धमकी दे कर कहा कि वह डा. सुदीप से दूर रहे.

इस अपमानजनक घटना के बाद इस प्रेम कहानी का पटाक्षेप हो जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. डा. सुदीप और दीपा लुकाछिपी से इस प्रेम कहानी को चलाते रहे. डा. सीमा को कभीकभार उड़ती खबरें मिलीं भी तो सुदीप ने यह कह कर आश्वस्त कर दिया कि ऐसा कुछ नहीं है. जो हुआ, वह एक मामूली हवा का झोंका था, जिस में मैं ही बहक गया था.

फिर भी डा. सीमा ने पति को चेतावनी देते हुए कहा, ‘‘अच्छा है, सुबह का भूला शाम को घर लौट आए. नहीं लौटे तो तुम्हें और उसे ऐसा सबक सिखाऊंगी कि तुम्हारे फरिश्ते भी पनाह मांगेंगे.’’

पत्नी की गंभीर चेतावनी से पलभर को डा. सुदीप हड़बड़ाया जरूर, लेकिन जल्दी ही सहज होते हुए बोला, ‘‘अब तुम खामख्वाह बात का बतंगड़ बनाने पर तुली हो, जबकि ऐसी कोई बात नहीं है.’’

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पत्नी से वादा करने के बावजूद डा. सुदीप उस की आंखों में धूल झोंकता रहा. सुदीप और दीपा के नाजायज रिश्तों की खिचड़ी पूरे उफान पर थी, इसे सामने तो आना ही था. यह मौका भी अपने आप दबेपांव चल कर आया.

शुक्रवार 2 नवंबर को डा. सीमा को उस की सहेली नीरजा सप्रे (कल्पित नाम) की फोन काल ने हड़बड़ा कर रख दिया. नीरजा ने डा. सीमा को बधाई देते हुए सवाल भी कर डाला कि तुम्हें स्पा सेंटर खोलने की क्या सूझी. सीमा की समझ में नहीं आ रहा था कि नीरजा कौन से स्पा सेंटर की बात कर रही है. माजरा जानने के लिए उस ने संयम बरतते हुए कहा, ‘‘हां, वो तो है लेकिन तुम कहना क्या चाहती हो, कैसे पता चला तुम्हें?’’

नीरजा ने हैरानी जताते हुए कहा, ‘‘क्यों पहेलियां बुझा रही हो सीमा, साफसाफ लिखा तो है इनविटेशन कार्ड में. कार्ड तुम्हारे हसबैंड डा. सुदीप गुप्ता के नाम से था. सूर्या सिटी में कल आयशा सैलून एंड स्पा सेंटर का उद्घाटन था.’’

फिर एक पल रुकते हुए नीरजा ने कहा, ‘‘यह शौर्य कौन है? कार्ड में स्पा सेंटर के अलावा शौर्य की बर्थडे पार्टी भी थी…क्या तुम ने कोई बच्चा अडौप्ट किया है?’’

नीरजा के फोन ने सीमा के कानों में अंदेशों की हजार घंटियां बजा दीं. उसे पूरी तरह यकीन हो गया कि सुदीप ने दीपा का साथ नहीं छोड़ा, जरूर उस ने कोई नया गुल खिलाया है.

गुस्से से उबलती हुई डा. सीमा ने भरसक अपने आप पर काबू रखने के साथ यह कहते हुए फोन काट दिया कि जब मिलेगी तो बताऊंगी.

सुरेखा गुप्ता को भी हैरानी हुई. सीमा ने बताया कि आप के लिए नई खबर है मम्मी.

‘‘कैसी खबर?’’ सुरेखा ने चौंकते हुए पूछा.

‘‘लगता है सुदीप और दीपा की प्रेम कहानी बदस्तूर चल रही है. सुदीप ने सूर्या सिटी में उस के लिए फ्लैट ले दिया है. साथ ही उस के लिए स्पा सेंटर भी खुलवा दिया है.’’ डा. सीमा ने बताया.

‘‘खुलवा दिया है, क्या मतलब?’’ सास ने हैरानी से पूछा.

‘‘सुदीप अब भी दीपा गुर्जर से चिपका हुआ है. कल पहली नवंबर को उस का स्पा सेंटर खुलवा चुका है आप का बेटा, अपनी प्रेमिका के लिए.’’ सीमा ने आगबबूला होते हुए कहा, ‘‘इतना ही नहीं, उस के बेटे को भी एडौप्ट कर लिया है. कल ही उस की बर्थडे पार्टी थी.’’

‘‘यह क्या कह रही हो?’’ सुरेखा ने विस्मय से पूछा, ‘‘तुम्हें कैसे पता चला, किस ने बताया?’’

‘‘अपने तो बताने से रहे, गैरों ने ही बताया. शहर में इनविटेशन कार्ड बांटे और हमें भनक तक नहीं लगी. कार्ड में इनवाइट करने वाले की जगह आप के बेटे का ही नाम था डा. सुदीप गुप्ता.’’ डा. सीमा ने हाथ नचाते हुए कहा.

सुरेखा गुप्ता सिर थाम कर बैठ गईं, ‘‘समझ में नहीं आ रहा, शहर में अपनी किरकिरी क्यों करवा रहा है संदीप.’’

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‘‘कोई किरकिरी नहीं होगी मम्मीजी, मैं आज हमेशा के लिए उस का टंटा खत्म कर दूंगी. न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी.’’ इस के साथ ही सीमा गुप्ता ने सास का हाथ थामा और घसीटते हुए बाहर खड़ी कार की तरफ बढ़ गई.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

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