सहयात्री – क्या वह अजनबी बन पाया कनिका का सहयात्री

कहानी- अर्विना गहलोत

शामको 1 नंबर प्लेटफार्म की बैंच पर बैठी कनिका गाड़ी आने का इंतजार कर रही थी. तभी कंधे पर बैग टांगे एक हमउम्र लड़का बैंच पर आ कर बैठते हुए बोला, ‘‘क्षमा करें. लगता है आज गाड़ी लेट हो गई है.’’

न बोलना चाहते हुए भी कनिका ने हां में सिर हिला उस की तरफ देखा. लड़का देखने में सुंदर था. उसे भी अपनी ओर देखते हुए कनिका ने अपना ध्यान दूसरी ओर से आ रही गाड़ी को देखने में लगा दिया. उन के बीच फिर खामोशी पसर गई. इस बीच कई ट्रेनें गुजर गई. जैसे ही उन की टे्रन की घोषणा हुई कनिका उठ खड़ी हुई. गाड़ी प्लेटफार्ट पर आ कर लगी तो वह चढ़ने को हुई कि अचानक उस की चप्पल टूट गई और पैर पायदान से फिसल प्लेटफार्म के नीचे चला गया.

कनिका के पीछे खड़े उसी अनजान लड़के ने बिना देर किए झटके से उस का पैर निकाला और फिर सहारा दे कर उठाया. वह चल नहीं पा रही थी. उस ने कहा, ‘‘यदि आप को बुरा न लगे तो मेरे कंधे का सहारा ले सकती हैं… ट्रेन छूटने ही वाली है.’’

कनिका ने हां में सिर हिलाया तो अजनबी ने उसे ट्रेन में सहारा दे चढ़ा कर सीट पर बैठा दिया और खुद भी सामने की सीट पर बैठ गया. तभी ट्रेन चल दी.

उस ने अपना नाम पूरब बता कनिका से पूछा, ‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘कनिका.’’

‘‘आप को कहां जाना है?’’

‘‘अहमदाबाद.’’

‘‘क्या करती हैं?’’

‘‘मैं मैनेजमैंट की पढ़ाई कर रही हूं. वहां पीजी में रहती हूं. आप को कहां जाना है?’’

‘‘मैं भी अहमदाबाद ही जा रहा हूं.’’

‘‘क्या करते हैं वहां?’’

‘‘भाई से मिलने जा रहा हूं.’’

तभी अचानक कंपार्टमैंट में 5 लोग घुसे और फिर आपस में एकदूसरे की तरफ देख कर मुसकराते हुए 3 लोग कनिका की बगल में बैठ गए. उन के मुंह से आती शराब की दुर्गंध से कनिका का सांस लेना मुश्किल होने लगा. 2 लोग सामने पूरब की साइड में बैठ गए. उन की भाषा अश्लील थी.

पूरब ने स्थिति को भांप कनिका से कहा, ‘‘डार्लिंग, तुम्हारे पैर में चोट है. तुम इधर आ जाओ… ऊपर वाली बर्थ पर लेट जाओ… बारबार आनेजाने वालों से तुम्हें परेशानी होगी.’’

कनिका स्थिति समझ पूरब की हर बात किसी आज्ञाकारी शिष्य की तरह माने जा रही थी. पूरब ने सहारा दिया तो वह ऊपर की बर्थ पर लेट गई. इधर पैर में चोट से दर्द भी हो रहा था.

हलकी सी कराहट सुन पूरब ने मूव की ट्यूब कनिका की तरफ बढ़ाई तो उस के मुंह

से बरबस निकल गया, ‘‘ओह आप कितने

अच्छे हैं.’’

उन लोगों ने पूरब को कनिका की इस तरह सेवा करते देख फिर कोई कमैंट नहीं कसा और अगले स्टेशन पर सभी उतर गए.

कनिका ने चैन की सांस ली. पूरब तो जैसे उस की ढाल ही बन गया था.

कनिका ने कहा, ‘‘पूरब, आज तुम न होते तो मेरा क्या होता?’’ मैं

किन शब्दों में तुम्हारा धन्यवाद करूं… आज जो भी तुम ने मेरे लिए किया शुक्रिया शब्द उस के सामने छोटा पड़ रहा है.

‘‘ओह कनिका मेरी जगह कोई भी होता तो यही करता.’’

बातें करतेकरते अहमदाबाद आ गया. कनिका ने अपने बैग में रखीं स्लीपर निकाल कर पहननी चाहीं, मगर सूजन की वजह से पहन नहीं पा रही थी. पूरब ने देखा तो झट से अपनी स्लीपर निकाल कर दे दीं. कनिका ने पहन लीं.

पूरब ने कनिका का बैग अपने कंधे पर टांग लिया. सहारा दे कर ट्रेन से उतारा और फिर बोला, ‘‘मैं तुम्हें पीजी तक छोड़ देता हूं.’’

‘‘नहीं, मैं चली जाऊंगी.’’

‘‘कैसे जाओगी? अपने पैर की हालत देखी है? किसी नर्सिंग होम में दिखा लेते हैं. फिर तुम्हें छोड़ कर मैं भैया के पास चला जाऊंगा. आओ टैक्सी में बैठो.’’

कनिका के टैक्सी में बैठने पर पूरब ने टैक्सी वाले से कहा, ‘‘भैया, यहां जो भी पास में नर्सिंगहोम हो वहां ले चलो.’’

टैक्सी वाले ने कुछ ही देर में एक नर्सिंगहोम के सामने गाड़ी रोक दी.

डाक्टर को दिखाया तो उन्होंने कहा, ‘‘ज्यादा नहीं लगी है. हलकी मोच है. आराम करने से ठीक हो जाएगी. दवा लिख दी है लेने से आराम आ जाएगा.’’

नर्सिंगहोम से निकल कर दोनों टैक्सी में बैठ गए. कनिका ने अपने पीजी का पता बता दिया. टैक्सी सीधा पीजी के पास रुकी. पूरब ने कनिका को उस के कमरे तक पहुंचाया. फिर जाने लगा तो कनिका ने कहा, ‘‘बैठिए, कौफी पी कर जाइएगा.’’

‘‘अरे नहीं… मुझे देर हो जाएगी तो भैया ंिंचतित होंगे. कौफी फिर कभी पी लूंगा.’’

जाते हुए पूरब ने हाथ हिलाया तो कनिका ने भी जवाब में हाथ हिलाया और फिर दरवाजे के पास आ कर उसे जाते हुए देखती रही.

थोड़ी देर बाद बिस्तर पर लेटी तो पूरब का चेहरा आंखों के आगे घूम गया… पलभर को पूरे शरीर में सिहरन सी दौड़ गई, धड़कनें तेज हो गईं.

तभी कौल बैल बजी.

इस समय कौन हो सकता है? सोच कनिका फिर उठी और दरवाजा खोला तो सामने पूरब खड़ा था.

‘‘क्या कुछ रह गया था?’’ कनिका ने

पूछा, ‘‘हां… जल्दबाजी में मोबाइल यहीं भूल गया था.’’

‘‘अरे, मैं तो भूल ही गई कि मेरे पैरों में तुम्हारी स्लीपर हैं. इन्हें भी लेते जाना,’’ कह कौफी बनाने चली गई. अंदर जा कर कौफी मेकर से झट से 2 कप कौफी बना लाई, कनिका पूरब को कनखियों से देख रही थी.

पूरब फोन पर भाई से बातें करने में व्यस्त था. 1 कप पूरब की तरफ बढ़ाया तो पूरब की उंगलियां उस की उंगलियों से छू गईं. लगाजैसे एक तरंग सी दौड़ गई शरीर में. कनिका पूरब के सामने बैठ गई, दोनों खामोशी से कौफी पीने लगे.

कौफी खत्म होते ही पूरब जाने के लिए उठा और बोला, ‘‘कनिका, मुझे तुम्हारा मोबाइल नंबर मिल सकता है?’’

अब तक विश्वास अपनी जड़े जमाने

लगा था. अत: कनिका ने अपना मोबाइल नंबर

दे दिया.

पूरब फिर मिलेंगे कह कर चला गया. कनिका वापस बिस्तर पर आ कर कटे वृक्ष की तरह ढह गई.

खाना खाने का मन नहीं था. पीजी चलाने वाली आंटी को भी फोन पर ही अपने आने की खबर दी, साथ ही खाना खाने के लिए भी मना कर दिया.

लेटेलेटे कनिका को कब नींद आ गई,

पता ही नहीं चला. सुबह जब सूर्य की किरणें आंखों पर पड़ीं तो आंखें खोल घड़ी की तरफ देखा, 8 बज रहे थे. फिर बड़बड़ाते हुए तुरंत

उठ खड़ी हुई कि आज तो क्लास मिस हो गई. जल्दी से तैयार हो नाश्ता कर कालेज के लिए निकल गई.

एक सप्ताह कब बीत गया पता ही नहीं चला. आज कालेज की छुट्टी थी. कनिका को

बैठेबैठे पूरब का खयाल आया कि कह रहा था फोन करेगा, लेकिन उस का कोई फोन नहीं आया. एक बार मन किया खुद ही कर ले. फिर खयाल को झटक दिया, लेकिन मन आज किसी काम में नहीं लग रहा था. किताब ले कर कुछ देर यों ही पन्ने पलटती रही, रहरह कर न जाने क्यों उसे पूरब का खयाल आ रहा था. अनमनी हो खिड़की से बाहर देखने लगी.

तभी अचानक फोन बजा. देखा तो पूरब का था. कनिका ने कांपती आवाज में हैलो कहा.

‘‘कैसी हो कनिका?’’ पूरब ने पूछा.

‘‘मैं ठीक हूं, तुम कैसे हो? तुम ने कोई फोन नहीं किया?’’

पूरब ने हंसते हुए कहा, ‘‘मैं भाई के साथ व्यवसाय में व्यस्त था, हमारा हीरों का व्यापार है.’’

तुम तैयार हो जाओ मैं लेने आ रहा हूं.

कनिका के तो जैसे पंख लग गए. पहनने के लिए एक प्यारी पिंक कलर की ड्रैस निकाली. उसे पहन कानों में मैचिंग इयरिंग्स पहन आईने में निहारा तो आज एक अलग ही कनिका नजर आई. बाहर बाइक के हौर्न की आवाज सुन कर कनिका जल्दी से बाहर भागी. पूरब हलके नीले रंग की शर्ट बहुत फब रहा था. कनिका सम्मोहित सी बाइक पर बैठ गई.

पूरब ने कहा, ‘‘बहुत सुंदर लग रही हो.’’

सुन कर कनिका का दिल रोमांचित हो उठा. फिर पूछा, ‘‘कहां ले चल रहे हो?’’

‘‘कौफी हाउस चलते हैं… वहीं बैठ कर बातें करेंगे,’’ और फिर बाइक हवा से बातें करने लगी.

कनिका का दुपट्टा हवा से पूरब के चेहरे पर गिरा तो भीनी सी खुशबू से पूरब का दिल जोरजोर से धड़कने लगा.

कनिका ने अपना आंचल समेट लिया.

‘‘पूरब, एक बात कहूं… कुछ देर से एक गाड़ी हमारे पीछे आ रही है. ऐसा लग रहा है जैसे कोई हमें फौलो कर रहा है.’’

‘‘तुम्हारा वहम है… उन्हें भी इधर ही

जाना होगा.’’

‘‘अगर इधर ही जाना है तो हमारे पीछे

ही क्यों चल रहे हैं… आगे भी निकल कर जा सकते हैं.’’

‘‘ओह, शंका मत करो… देखो वह काफी हाउस आ गया. तुम टेबल नंबर 4 पर बैठो. मैं बाइक पार्क कर के आता हूं.’’

कनिका अंदर जा कर बैठ गई.

पूरब जल्दी लौट आया. बोला, ‘‘कनिका क्या लोगी? संकोच मत करो… अब तो हम मिलते ही रहेंगे.’’

‘‘पूरब ऐसी बात नहीं है. मैं फिर कभी… आज और्डर तुम ही कर दो.’’

वेटर को बुला पूरब ने 2 कौफी का और्डर दे दिया. कुछ ही पलों में कौफी आ गई.

कौफी पीने के बाद कनिका ने घड़ी की तरफ देख पूरब से कहा, ‘‘अब हमें चलना चाहिए.’’

‘‘ठीक है मैं तुम्हें छोड़ कर औफिस चला जाऊंगा. मेरी एक मीटिंग है.’’

पूरब कनिका को छोड़ कर अपने औफिस पहुंचा. भाई सौरभ के

कैबिन में पहुंचा तो उन की त्योरियां चढ़ी हुई थीं. पूछा, ‘‘पूरब कहां थे? क्लाइंट तुम्हारा इंतजार कर चला गया. तुम कहां किस के साथ घूम रहे थे… मुझे सब साफसाफ बताओ.’’

अपनी एक दोस्त कनिका के साथ था… आप को बताया तो था.’’

‘‘मुझे तुम्हारा इन साधारण परिवार के लोगों से मिलनाजुलना पसंद नहीं है… और फिर बिजनैस में ऐसे काम नहीं होता है… अब तुम घर जाओ और फोन पर क्लाइंट से अगली मीटिंग फिक्स करो.’’

‘‘जी भैया.’’

कनिका और पूरब की दोस्ती को 6 महीने बीत गए. मुलाकातें बढ़ती गईं. अब दोनों एकदूसरे के काफी नजदीक आ गए थे. एक दिन दोनों घूमने के  लिए निकले. तभी पास से एक बाइक पर सवार 3 युवक बगल से गुजरे कि अचानक सनसनाती हुई गोली चली जो कनिका की बांह को छूती हुई पूरब की बांह में जा धंसी.

कनिका चीखी, ‘‘गाड़ी रोको.’’

पूरब ने गाड़ी रोक दी. बांह से रक्त की धारा बहने लगी. कनिका घबरा गई. पूरब को सहारा दे कर वहीं सड़क के किनारे बांह पर दुपट्टा बांध दिया और फिर मदद के लिए

सड़क पर हाथ दिखा गाड़ी रोकने का प्रयास

करने लगी. कोई रुकने को तैयार नहीं. तभी कनिका को खयाल आया. उस ने 100 नंबर पर फोन किया. जल्दी पुलिस की गाड़ी पहुंच गई. सब की मदद से पूरब को अस्पताल में भरती

करा पूरब के फोन से उस के भाई को फोन पर सूचना दे दी.

डाक्टर ने कहा कि काफी खून बह चुका है. खून की जरूरत है. कनिका अपना खून देने के लिए तैयार हो गई. ब्लड ग्रुप चैक कराया तो उस का ब्लड गु्रप मैच कर गया. अत: उस का खून ले लिया गया.

तभी बदहवास से पूरब के भाई ने वहां पहुंच डाक्टर से कहा, ‘‘किसी भी हालत में मेरे भाई को बचा लीजिए.’’

‘‘आप को इस लड़की का धन्यवाद करना चाहिए जो सही समय पर अस्पताल ले आई… अब ये खतरे से बाहर हैं.’’

सौरभ की आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे. जैसे ही पूरब को होश आया सौरभ फफकफफक कर रो पड़ा, ‘‘भाई, मुझे माफ कर दे… मैं पैसे के मद में एक साधारण परिवार की लड़की को तुम्हारे साथ नहीं देख सका और उसे तुम्हारे रास्ते से हमेशा के लिए हटाना चाहा पर मैं भूल गया था कि पैसे से ऊपर इंसानियत भी कोई चीज है. कनिका मुझे माफ कर दो… पूरब ने तुम्हारे बारे में बताया था कि वह तुम्हें पसंद करता है. लेकिन मैं नहीं चाहता था कि साधारण परिवार की लड़की हमारे घर की बहू बने… आज तुम ने मेरे भाई की जान बचा कर मुझ पर बहुत बड़ा एहसान किया,’’ और फिर कनिका का हाथ पूरब के हाथों में दे कर बोला, ‘‘मैं जल्द ही तुम्हारे मातापिता से बात कर के दोनों की शादी की बात करता हूं.’’ कह बाहर निकल गया.

पूरब कनिका की ओर देख मुसकराते हुए बोला, ‘‘कनिका, अब हम सहयात्री से जीवनसाथी बनने जा रहे हैं.’’

यह सुन कनिका का चेहरा शर्म से लाल हो गया.

समझदार सासूमां: नौकरानी की छुट्टी पर जब बेहाल हुईं श्रीमतीजी

किचनमें पत्नीजी के द्वारा जिस तरह से जोरजोर से बरतन पटके जा रहे थे, उस से मुझे अंदाजा हो गया कि घर में काम करने वाली ने एक सप्ताह की छुट्टी ले ली है, इसलिए नाराजगी बरतनों पर निकल रही है.

नौकरानी का घर पर नहीं आने का दोष भला बरतनों पर क्यों उतारा जाए? मैं सोचता रहा लेकिन उन से कुछ कहा नहीं. रात को बिस्तर में जाने से पहले वे फोन पर अपनी मां से नौकरानी की शिकायतें करती रहीं, ‘‘मम्मी, ये कमला ऐसे ही नागा करती है. इस का वेतन काटो तो बुरा मुंह बना लेती है. मैं तो यहां की नौकरानियों से तंग आ चुकी हूं.’’

उधर सासूजी न जाने क्या कह रही थीं, जिसे सुन कर पत्नीजी हांहूं किए जा रही थीं. फिर वे कह उठीं, ‘‘नहीं मम्मीजी, ऐसा मत कहो,’’ और फिर जोरों से हंस दीं.

आखिर मामला क्या है? सोच कर मेरा दिल जोरों से धड़क उठा.

पत्नीजी ने टैलीफोन रखा और गीत गुनगुनाती हुई आ कर लेट गईं.

‘‘बड़ी खुश हो, क्या नई नौकरानी खोज ली?’’ मैं ने उन से पूछा.

‘‘मेरी खुशी भी नहीं देखी जाती?’’ उन्होंने तमक कर कहा.

‘‘यही समझ लो, फिर भी बताओ तो कि मामला क्या है? क्या सासूजी आ रही हैं?’’

‘‘आप को कैसे पता?’’ पत्नी ने खुशीखुशी कहा.

मुझे तो जैसे बिजली का करंट लग गया. मैं ने सोचा सासूजी आएंगी तो कई महीने रह कर घर का बजट किसी भूकंप की तरह तहसनहस कर के ही जाएंगी.

मैं भी कल से 7-8 दिनों की छुट्टी ले कर कहीं चला जाता हूं, मैं ने मन ही मन विचार किया.

‘‘तुम्हें इतना खुश देख कर समझ गया था कि तुम्हारी मम्मीजी आ रही हैं,’’ मैं ने उन से कहा.

‘‘तुम कितने समझदार हो,’’ पत्नीजी ने मुझ से कहा तो सच जानिए मैं शरमा गया.

‘‘इसीलिए तो तुम ने मुझ से विवाह किया,’’ मैं ने कहा और उन के चेहरे को पढ़ने लगा. वे भी शर्म से लाल हो रही थीं.

मैं ने फिर प्रश्न किया, ‘‘वह घर की नौकरानी कब तक आ रही है?’’

पत्नीजी ने कहा, ‘‘एक बात सुन लीजिए. जब तक किसी के जीवन में चुनौतियां न हों, जीने का मजा ही नहीं आता. और प्रत्येक व्यक्ति के पीछे एक सैकंड लाइन होनी आवश्यक है.’’

मैं ने सुना तो मैं घबरा गया. पत्नीजी आखिर ये कैसी बातें कर रही हैं? मैं ने तो कभी पत्नीजी के पीछे किसी सैकंड लाइन के विषय में सोचा तक नहीं और आज ये क्या कह रही हैं? क्या मैं छुट्टी पर जा रहा हूं तो कोई दूसरा पुरुष मेरे स्थान पर यहां होगा? सोच कर ही मेरी रूह कांप गई. मेरे चेहरे पर आ रहे भावों को देख कर वे ताड़ गईं कि मेरे मन में क्या भाव चल रहा है.

हंसते हुए उन्होंने कहा, ‘‘मैं आप के विषय में नहीं कह रही हूं…’’

‘‘फिर?’’‘‘मैं घर की नौकरानी कमला के बारे में कह रही हूं. उस की नागा, उस के अत्याचार इतने बढ़ चुके हैं कि आप विश्वास नहीं करेंगे कि मुझे उस से डर लगने लगा है. कभी भी नागा कर जाती है, वेतन काटो तो नौकरानियों के यूनियन में जाने की धमकी देती है. काम ठीक से करती नहीं. लेकिन मैं काम से निकाल नहीं सकती, क्योंकि घर में काम बहुत अधिक है…’’

‘‘फिर क्या सोचा…?’’

‘‘प्रत्येक परेशानी का कोई न कोई उपाय तो निकलता ही है.’’

‘‘क्या उपाय है वह?’’

‘‘वह उपाय ले कर ही तो मम्मीजी आ रही हैं,’’ पत्नीजी ने रहस्य को उजागर करते हुए कहा.

‘‘क्या उपाय है कुछ तो बताओ.’’

‘‘यह तो उन्होंने बताया नहीं, लेकिन वे कह रही थीं कि पूरी कालोनी की कामवाली बाइयों को सुधार कर रख दूंगी.’’

चूंकि सासूजी से मेरी कभी पटी नहीं थी, इसलिए मैं ने फिर सोचा कि उन के आने पर 7-8 दिनों की छुट्टी ले कर मैं शहर से बाहर घूम आता हूं. फिर मैं जिस सुबह बाहर गया, उसी रात को सासूजी ने मेरे घर में प्रवेश किया. पूरे 8 दिनों बाद मैं जब घर लौट कर आया तो देखा कि बालकनी में हमारी पत्नी गरमगरम पकौड़े खा रही हैं. सासूजी झूले में लेटी हैं और कमला यानी घर की नौकरानी रसोई में पकौड़े तलतल कर खिला रही है.

हमें आया देख कर पत्नीजी दौड़ कर हम से लिपट गईं और कहने लगीं, ‘‘यहां सब ठीक हो गया.’’

‘‘यानी कमला बाई वाला मामला…?’’

‘‘हां, कमला बाई एकदम ठीक हो गई.’’

‘‘कैसे…?’’

‘‘वह मैं बाद में बताऊंगी.’’

इतनी देर में कमला बाई प्रकट हो गई. हमारा सामान उठाया, कमरे में रखा और घर के बरतन साफ कर के, किचन में पोंछा लगा कर जातेजाते हमारे कमरे में आई और पत्नीजी से कहने लगी, ‘‘जाती हूं मेम साब नमस्ते.’’ यह कह कर वह सासूजी की ओर पलटी और बोली, ‘‘मैं जाती हूं अध्यक्षजी,’’ फिर वह विनम्रता के साथ चली गई.

घमंड में चूर रहने वाली कमला, जो एक भी अतिरिक्त काम नहीं करती थी और हमेशा अतिरिक्त काम का अतिरिक्त रुपया मांगती थी, आखिर ऐसा क्या हो गया कि इतनी बदल गई? मैं सोच रहा था, लेकिन कुछ समझ नहीं पा रहा था.

रात को भोजन के बाद जब पत्नीजी, मैं और सासूजी बैठ कर गप्पें मारने बैठे तो पत्नीजी ने बताया, ‘‘मैं कमला से बहुत परेशान हो गई थी. इस का असर पूरी गृहस्थी पर पड़ रहा था. मम्मीजी से मैं ने यह बात शेयर की, तो मम्मीजी ने कहा कि मैं आ कर एक दिन में सब परेशानियों को निबटा दूंगी.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘वही तो बता रही हूं पर आप को एक पल का भी चैन नहीं है. हुआ यह कि मम्मीजी ने मुझे आने पर बताया कि उन का परिचय कमला बाई से यह कह कर करवाया जाए कि जहां ये रहती हैं वहां की नौकरानियों की यूनियन अध्यक्ष हैं. मैं ने वही किया भी. मम्मीजी ने यहां के काम को देखा और कमला बाई के सामने मुझ से कहा कि पूरी कालोनी में कितनी नौकरानियों की जरूरत है? मैं कामवाली बाइयों को काम भी दिलवाती हूं और इस समय 150 से अधिक काम करने वाली महिलाओं का पंजीयन मेरे पास है. वे सब यहां दिल्ली में काम करने के लिए आने को भी तैयार हैं. यहां काम कम, वेतन अधिक है और शहर की सारी सुविधाएं हैं.

‘‘लेकिन मम्मीजी इतनी कामवाली बाइयां रहेंगी कहां?’’ मैं ने पूछा तो वे बोलीं कि तू उस की चिंता मत कर. वैलफेयर डिपार्टमैंट ऐसी महिलाओं के निवास की व्यवस्था कम से कम दामों में कर देता है.

‘‘मम्मीजी पूरी कालोनी में 10 काम करने वाली महिलाओं की जरूरत है, मैं ने मम्मीजी से कहा तो उन्होंने तुरंत मोबाइल निकाल कर कमला बाई के सामने नंबर मिलाया ही था कि कमला ने दौड़ कर मम्मीजी के पांव पकड़ लिए और रोते हुए कहने लगी कि मैडमजी पीठ पर लात मार लो, लेकिन किसी के पेट पर लात मत मारो.

‘‘क्यों क्या हुआ? मम्मीजी बोलीं तो वह बोली कि मैडमजी सारी कामवाली बाइयां बेरोजगार हो जाएंगी.

‘‘लेकिन तुम भी तो परेशान करने में कसर नहीं करती हो, यह कहने पर उस का कहना था कि ऐसा नहीं है मैडमजी, हम जानबूझ कर छुट्टी ले कर केवल अपनी उपयोगिता बताना चाहते हैं कि हम भी इंसान हैं और हमारे नहीं आने से आप के कितने काम डिस्टर्ब हो जाते हैं. इसलिए आप हमें इंसान समझ कर इंसानों को जो बुनियादी सुविधाएं मिलनी चाहिए उन्हें हमें भी दिया करें.’’

‘‘कह तो यह सच रही है, मेरी ओर मम्मीजी ने देख कर कहा.

‘‘मैं पूरी बुनियादी सुविधाएं देने को तैयार हूं,’’ मैं ने झट से कहा.

‘‘आप को कभी मुझ से शिकायत नहीं मिलेगी. मुझ से ही नहीं कालोनी की काम करने वाली किसी भी महिला से,’’ उस ने मुझे आश्वासन दिया तो मम्मीजी ने मोबाइल बंद कर दिया और उसी दिन से कमला के व्यवहार में 100% परिवर्तन आ गया,’’ पत्नीजी ने पूरी बात का खुलासा करते हुए कहा.

‘‘वाह, क्या समझदारी का सुझाव सासूजी ने दिया. सांप भी मर गया, लाठी भी नहीं टूटी,’’ मैं ने प्रसन्नता से कहा.

‘‘लेकिन आप नौकरानी यूनियन की अध्यक्ष कब बनीं?’’ मैं ने सासूजी से हैरत से पूछा.

‘‘लो कर लो बात. तुम भी कितने भोले हो. अरे वह तो उस को ठीक करने का नाटक था,’’ सासूजी बोलीं.

फिर हम सभी जोर से हंस पड़े. हमें अपनी समझदार सासूमां की तरकीब पर गर्व हो आया.

Monsoon Special: रहे चमकता अक्स

‘‘ओके… बाय चुनचुन नहीं टुनटुन…’’ रितेश के कहते ही सब जाते हुए खूब हंसे, पर अनन्या का मन छलनी हुआ जा रहा था. उदास मन से वह अपने कमरे में आ कर बैठ गई.

रात को सोने के लिए जब वह बैड पर लेटी तो रजत के करीब जा कर उस के सीने में अपना मुंह छिपाए कुछ देर यों ही चुपचाप लेटी रही.

‘‘क्या हुआ? तबीयत तो ठीक है? दोस्तों के साथ गप्पें मारते हुए ज्यादा ही थक गईं शायद?’’ रजत उस की पीठ पर हाथ रख कर बोला.

अनन्या अपना चेहरा रजत की ओर घुमाते हुए बोली, ‘‘एक बात पूछूं रजत… क्या तुम्हें बुरा नहीं लगता कि मैं इतनी मोटी हो गई हूं. फेस भी बदलाबदला सा लग रहा है…तुम ने तो एक स्लिमट्रिम, गोरी लड़की से शादी की थी…

7-8 महीनों में ही वह क्या से क्या हो गई.’’ ‘‘हा… हा… हा…’’ पहले तो रजत ने एक जोरदार ठहाका लगाया. फिर मुसकरा कर अनन्या की ओर देखते हुए बोला, ‘‘ओह अनन्या, कैसा सवाल है यह? यह सच है कि तुम्हें एक बीमारी हो गई है और उस में वेट कंट्रोल में नहीं रहता…पर यह बताओ कि क्या हम हमेशा वैसे ही दिखते रहेंगे जैसे शादी के वक्त थे? क्या जब बुढ़ापे में मैं गंजा हो जाऊंगा या फिर मेरे दांत टूट जाएंगे तो तुम्हें खराब लगने लगूंगा?’’

‘‘तुम मुझे प्यार तो करते हो न?’’ अनन्या के चेहरे पर निराशा अभी भी झलक रही थी. रजत एक बार फिर खिलखिला पड़ा, ‘‘अनन्या तुम इतनी समझदार हो कि मैं कब तुम से पूरी तरह जुड़ गया मैं ही नहीं समझ पाया. तुम मेरी केयर तो करती ही हो, मुझ से अपने मन की हर बात शेयर करती हो, बिना वजह कभी भी झगड़ा नहीं करतीं… और इतना क्वालिफाइड होने के बाद भी घर का काम करना पड़े तो नाकभौं नहीं सिकोड़ती… तुम सच में अपने नाम की तरह ही सब से बिलकुल अलग, बहुत खास हो.’’

‘‘पर इस से पहले तो आप ने कभी ऐसा कुछ नहीं कहा?’’ रजत की प्रेममयी बातें सुन भावविभोर हो अनन्या बोली.

‘‘मैं हूं ही ऐसा… बोलना कम और सुनना बहुत कुछ चाहता हूं… अनन्या यकीन करो, मुझे बिलकुल तुम सा ही पार्टनर चाहिए था.’’

अनन्या मंत्रमुग्ध हुए जा रही थी.

‘‘एक बात और कहूंगा…अपने शरीर का ध्यान रखना हम सब के लिए जरूरी है… पर बाहरी सुंदरता कभी मन पर हावी नहीं होनी चाहिए… तुम जब भी मेरे इस मन में झांक कर अपनी सूरत देखोगी, तुम्हें अपनी वही सूरत दिखाई देगी जो कल थी. आज भी वही और आने वाले कल भी.’’

‘‘ओह रजत… कुछ नहीं चाहिए मुझे अब… कोई मुझे कुछ भी कहता रहे परवाह नहीं… बस तुम्हारे दिल के आईने में मेरा अक्स यों ही चमकता रहे.’’

अनन्या नम आंखों को मूंद कर रजत से लिपट गई. रजत के प्रेम की लौ में पिघल कर वह स्वयं को बहुत हलका महसूस कर रही थी.

फ्रैंड जोन: क्या कार्तिक को दोस्ती में मिल पाया अपना प्यार

‘‘नौकरी के साथसाथ अपनी सेहत का भी ध्यान रखना बेटा, अच्छा?’’ कार्तिक को ट्रेन में विदा करते समय मातापिता ने अपना प्यार उड़ेलने के साथ यह कह डाला.

कार्तिक पहली बार घर से दूर जा रहा था. आज तक तो मां ने ही उस का पूरा ध्यान रखा था, पर अब उसे स्वयं यह जिम्मेदारी उठानी थी. इंजीनियरिंग कर कालेज से ही कैंपस प्लेसमैंट से उस की नौकरी लग गई थी, और वह भी उस शहर में जहां उस के मौसामौसी रहते थे. सो अब किसी प्रकार की चिंता की कोई बात नहीं थी. मौसी के घर पहुंच कर कार्तिक ने मां द्वारा दी गई चीजें देनी आरंभ कर दीं.

‘‘ओ हो, क्या क्या भेज दिया जीजी ने,’’ मौसी सामान रखने में व्यस्त हो गईं और मौसाजी कार्तिक से उस की नई नौकरी के बारे में पूछने लगे. उन्हें नौकरी अच्छी लग रही थी, कार्यभार से भी और तनख्वाह से भी.

अगले दिन कार्तिककी जौइनिंग थी. उसे अपना दफ्तर काफी पसंद आया. पूरा दिन जौइनिंग प्रोसैस में ही बीत गया. उसे उस की मेज, उस का लैपटौप व डाटाकार्ड और दफ्तर में प्रवेश पाने के लिए स्मार्टकार्ड मिल गया था. शाम को घर लौट कर मौसाजी ने दिनभर का ब्योरा लिया तो कार्तिक ने बताया, ‘‘कंपनी अच्छी लग रही है, मौसाजी. तकनीकी दृष्टि से वहां नएनए सौफ्टवेयर हैं, आधुनिक मशीनें हैं और साथ ही मेरे जैसा यंगक्राउड भी है. वीकैंड्स पर पार्टियों का आयोजन भी होता रहता है.’’

‘‘ओ हो, यंगक्राउड और पार्टियां, तो यहां मामला जम सकता है,’’ मौसाजी ने उस की खिंचाई की तो कार्तिक शरमा गया. कार्तिक थोड़ा शर्मीला किस्म का लड़का था. इसी कारण आज तक उस की कोई गर्लफ्रैंड नहीं बन पाई थी.

‘‘क्यों छेड़ रहे हो बच्चे को,’’ मौसी बीच में बोल पड़ीं तब भी मौसाजी चुप नहीं रहे, ‘‘तो क्या यों ही सारी जवानी निकाल देगा ये बुद्धूराम.’’

कार्तिक काम में चपल था. दफ्तर का काम चल पड़ा. कुछ ही दिनों में अपने मैनेजमैंट को उस ने लुभा लिया था. लेकिन उस को भी किसी ने लुभा लिया था, वह थी मान्या. वह दूसरे विभाग में कार्यरत थी, लेकिन उस का भी काम में काफी नाम था और साथ ही, वह काफी मिलनसार भी थी. खुले विचारों की, सब से हंस कर दोस्ती करने वाली, हर पार्टी की जान थी मान्या.

वह कार्तिक को पसंद अवश्य थी, लेकिन अपने शर्मीले स्वभाव के चलते उस से कुछ कहने की हिम्मत तो दूर, कार्तिक आंखों से भी कुछ बयान करने की हिम्मत नहीं कर सकता था. मान्या हर पार्टी में जाती, खूब हंसतीनाचती, सब से घुलमिल कर बातें करती. कार्तिक बस उसे दूर से निहारा ही करता. पास आते ही इधरउधर देखने लगता. 2 महीने बीततेबीतते मान्या ने खुद ही कार्तिक से दूसरे सहकर्मियों की तरह दोस्ती कर ली. अब वह कार्तिक को अपने दोस्तों के साथ रखने लगी थी.

‘‘आज शाम को पार्टी में आओगे न, कार्तिक? पता है न आज का थीम रेट्रो,’’ मान्या के कहने पर कार्तिक ने 70 के दशक वाले कपड़े पहने. मान्या चमकीली सी ड्रैस पहने, माथे पर एक चमकीली डोरी बांधे बहुत ही सुंदर लग रही थी.

‘‘क्या गजब ढा रही हो, जानेमन,’’ कहते हुए इसी टोली के एक सदस्य, नितिन ने मान्या की कमर में हाथ डाल दिया, ‘‘चलो, थोड़ा डांस हो जाए.’’

‘‘डांस से मुझे परहेज नहीं है पर इस से जरूर है,’’ कमर में नितिन के हाथ की तरफ इशारा करते हुए मान्या ने आराम से उस का हाथ हटा दिया. जब काफी देर दोनों नाच लिए तो मान्या ने कार्तिक से कहा, ‘‘गला सूख रहा है, थोड़ा कोल्डड्रिंक ला दो न, प्लीज.’’

कार्तिक की यही भूमिका रहती थी अकसर पार्टियों में. वह नाचता तो नहीं था, बस मान्या के लिए ठंडापेय लाता रहता था. लेकिन आज की घटना ने उसे कुछ उदास कर दिया था. नितिन का यों मान्या की कमर में आसानी से अपनी बांह डालना उसे जरा भी नहीं भाया था. हालांकि मान्या ने ऐतराज जता कर उस का हाथ हटा दिया था. मगर नितिन की इस हरकत का सीधा तात्पर्य यह था कि मान्या को सब लड़के अकेली जान कर अवेलेबल समझ रहे थे. जिस का दांव लग गया, मान्या उस की. तो क्या कार्तिक का महत्त्व मान्या के जीवन में बस खानेपीने की सामग्री लाने के लिए था?

इन्हीं सब विचारों में उलझा कार्तिक घर वापस आ गया. कमरे में अनमना सा, सोच में डूबे हुए उस को यह भी नहीं पता चला कि मौसाजी कब कमरे में आ कर बत्ती जला चुके थे. बत्ती की रोशनी ने कमरे की दीवारों को तो उज्ज्वलित कर दिया पर कार्तिक के भीतर चिंतन के जिस अंधेरे ने मजबूती से पैर जमाए थे, उसे डिगाने के लिए मौसाजी को पुकारना पड़ा, ‘‘अरे यार कार्तिक, आज क्या हो गया जो इतने गुमसुम हुए बैठे हो? किस की मजाल कि मेरे भांजे को इतना परेशान कर रखा है, बताओ मुझे उस का नाम.’’

‘‘मौसाजी, आप? आइए… आइए… कुछ नहीं, कोई भी तो नहीं,’’ सकपकाते हुए कार्तिक के मुंह से कुछ अस्फुटित शब्द निकले.

‘‘बच्चू, हम से ही होशियारी? हम ने भी कांच की गोटियां नहीं खेलीं, बता भी दे कौन है?’’ कार्तिक के कंधे पर हाथ रखते हुए मौसाजी वहीं विराजमान हो गए. उन के हावभाव स्पष्ट कर रहे थे कि आज वे बिना बात जाने जाएंगे नहीं. मौसी से कह कर खाना भी वहीं लगवा लिया गया. जब खाना लगा कर मौसी जाने को हुईं तो मौसाजी ने कमरे का दरवाजा बंद करते हुए मौसी को हिदायत दी, ‘‘आज हम दोनों की मैन टु मैन टौक है, प्लीज डौंट डिस्टर्ब,’’ मौसी हंसती हुई वापस रसोई में चली गईं तो मौसाजी फिर शुरू हो गए, ‘‘हां, यार, तो बता…’’

कार्तिक ने हथियार डालते हुए सब उगल दिया.

‘‘हम्म, तो अभी यही नहीं पता कि बात एकतरफा है या आग दोनों तरफ बराबर लगी हुई है’’, मौसाजी का स्वभाव एक दोस्त जैसा था. उन्होंने सदा से कार्तिक को सही सलाह दी थी और आज भी उन्हें अपनी वही परंपरा निभानी थी.

‘‘देख यार, पहली बात तो यह कि यदि तुम किसी लड़की को पसंद करते हो, तो उस के फ्रैंड जोन से फौरन बाहर निकलो. मान्या के लिए तू कोई वेटर नहीं है. सब से पहले किसी भी पार्टी में जा कर उस के लिए खानापीना लाना बंद कर. लड़कियों को आकर्षित करना हो तो 3 बातों का ध्यान रख, पहली, उन्हें बराबरी का दर्जा दो और खुद को भी उन के बराबर रखो. अगली पार्टी कब है? मान्या को अपना यह नया रूप तुझे उसी पार्टी में दिखाना है. जब तू इस इम्तिहान में पास हो जाएगा, तो अगला स्टैप फौलो करेंगे.’’

हालांकि कार्तिक तीनों बातें जानने को उत्सुक था, मौसाजी ने एकएक कदम चलना ही ठीक समझा. जल्द ही अगली पार्टी आ गई. पूरी हिम्मत जुटा कर, अपने नए रूप को ध्यान में रखते हुए कार्तिक वहां पहुंचा. इस बार नाचने के बाद जब मान्या ने कार्तिक की ओर देखा तो पाया कि वह अन्य लोगों से बातचीत में मगन है. कार्तिक को अचंभा हुआ जब उस ने यह देखा कि मान्या न सिर्फ अपने लिए, बल्कि उस के लिए भी ठंडेपेय का गिलास पकड़े उस की ओर आ रही है.

‘‘लो, आज मैं तुम्हें कोल्डड्रिंक सर्व करती हूं,’’ हंसते हुए मान्या ने कहा. फिर धीरे से उस के कान में फुसफुसाई, ‘‘मुझे अच्छा लगा यह देख कर कि तुम भी सोशलाइज हो.’’

मौसाजी की बात सही निकली. मान्या पर उस के इस नए रूप का सार्थक असर पड़ा था. घर लौट कर कार्तिक खुश था. कारण स्पष्ट था. मौसाजी ने आज मैन टु मैन टौक का दूसरा स्टैप बताया. ‘‘इस सीढ़ी के बाद अब तुझे और भी हिम्मत जुटा कर अगली पारी खेलनी है. फ्रैंड जोन से बाहर आने के लिए तुझे उस के आसपास से परे देखना होगा. एक औरत के लिए यह झेलना मुश्किल है कि जो अब तक उस के इर्दगिर्द घूमता था, अब वह किसी और की तरफ आकर्षित हो रहा है. और इस से हमें यह भी पता चल जाएगा कि वह तुझे किस नजर से देखती है. उस से तुलनात्मक तरीके से उस की सहेली की, उस की प्रतिद्वंद्वी की, यहां तक कि उस की मां की तारीफ कर. इस का परिणाम मुझे बताना, फिर हम आखिरी स्टैप की बात करेंगे.’’

अगले दिन से ही कार्तिक ने अपने मौसाजी की बात पर अमल करना शुरू कर दिया. ‘‘कितनी अच्छी प्रैजेंटेशन बनाई आज रवीना ने. इस से अच्छी प्रैजेंटेशन मैं ने आज तक इस दफ्तर में नहीं देखी’’, कार्तिक के यह कहने पर मान्या से रहा नहीं गया, ‘‘क्यों मेरी प्रैजेंटेशन नहीं देखी थी तुम ने पिछले हफ्ते? मेरे हिसाब से इस से बेहतर थी.’’

लंच के दौरान सभी साथ खाना खा रहे थे. एकदूसरे के घर का खाना बांट कर खाते हुए कार्तिक बोला, ‘‘वाह  मान्या, तुम्हारी मम्मी कितना स्वादिप्ठ भोजन पकाती हैं. तुम भी कुछ सीखती हो उन से, या नहीं?’’

‘‘हां, हां, सीखती हूं न,’’ मान्या स्तब्ध थी कि अचानक कार्तिक उस से कितने अलगअलग विषयों पर बात करने लगा था. अगले कुछ दिन यही क्रम चला. मान्या अकसर कार्तिक को कभी कोई सफाई दे रही होती या कभी अपना पक्ष रख रही होती. कार्तिक कभी मान्या की किसी से तुलना करता तो वह चिढ़ जाती और फौरन खुद को बेहतर सिद्ध करने लग जाती. फिर मौसाजी द्वारा राह दिखाने पर कार्तिक ने एक और बदलाव किया. उस ने अपने दफ्तर में मान्या की क्लोजफ्रैंड शीतल को समय देना शुरू कर दिया. शीतल खुश थी क्योंकि कार्तिक के साथ काम कर के उसे बहुत कुछ सीखने को मिल रहा था. मान्या थोड़ी हैरान थी क्योंकि आजकल कार्तिक उस के बजाय शीतल के साथ लंच करने लगा था, कभी किसी दूसरे दफ्तर जाना होता तब भी वह शीतल को ही संग ले जाता.

‘‘क्या बात है, कार्तिक, आजकल तुम शीतल को ही अपने साथ हर प्रोजैक्ट में रखते हो? किसी बात पर मुझ से नाराज हो क्या?’’, आखिर मान्या एक दिन पूछ ही बैठी.

‘‘नहीं मान्या, ऐसी कोई बात नहीं है. वह तो शीतल ही चाह रही थी कि वह मेरे साथ एकदो प्रोजैक्ट कर ले तो मैं ने भी हामी भर दी,’’ कह कर कार्तिक ने बात टाल दी. लेकिन घर लौटते ही मौसाजी से सारी बातें शेयर की.

‘‘अब समय आ गया है हमारी मैन टु मैन टौक के आखिरी स्टैप का, अब तुम्हारा रिश्ता इतना तैयार है कि जो मैं तुम से कहलवाना चाहता हूं वह तुम कह सकते हो. अब तुम में एक आत्मविश्वास है और मान्या के मन में तुम्हारे प्रति एक ललक. लोहा गरम है तो मार दे हथोड़ा,’’ कहते हुए मौसाजी ने कार्तिक को आखिरी स्टैप की राह दिखा दी.

अगले दिन कार्तिक ने मान्या को शाम की कौफी पीने के लिए आमंत्रित किया. मान्या फौरन तैयार हो गई. दफ्तर के बाद दोनों एक कौफी शौप पर पहुंचे. ‘‘मान्या, मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं,’’ कार्तिक के कहने के साथ ही मान्या भी बोली, ‘‘कार्तिक, मैं तुम से कुछ कहना चाहती हूं.’’

‘‘तो कहो, लेडीज फर्स्ट,’’ कार्तिक के कहने पर मान्या ने अपनी बात पहले रखी. पर जो मान्या ने कहा वह सुनने के बाद कार्तिक को अपनी बात कहने की आवश्यकता ही नहीं रही.

‘‘कार्तिक, मैं बाद में पछताना नहीं चाहती कि मैं ने अपने दिल की बात दिल में ही रहने दी और समय मेरे हाथ से निकल गया. मैं… मैं… तुम से प्यार करने लगी हूं. मुझे नहीं पता कि तुम्हारे मन में क्या है, लेकिन मैं अपने मन की बात तुम से कह कर निश्चिंत हो चुकी हूं.’’

अंधा क्या चाहे, दो आंखें, कार्तिक सुन कर झूम उठा, उस ने तत्काल मान्या को प्रपोज कर दिया, ‘‘मान्या, मैं न जाने कब से तुम्हारी आस मन में लिए था. आज तुम से भी वही बात सुन कर मेरे दिल को सुकून मिल गया. लेकिन सब से पहले मैं तुम्हें किसी से मिलवाना चाहता हूं. अपने गुरु से,’’ और कार्तिक मान्या को ले कर सीधा अपने मौसाजी के पास घर की ओर चल दिया.

कौन है वो: क्यों किसी को अपने घर में नही आने देती थी सुधा

जैसे ही डोरबैल बजी तो अधखुले दरवाजे में से किसी ने अंदर से ही दबे स्वर में पूछा, ‘‘जी कहिए?’’

रितिका की पैनी नजर अधखुले दरवाजे में से अंदर तक झांक रही थी. शायद कुछ तलाश करने की कोशिश कर रही थी, किसी के अंदर होने की आहट ले रही थी. जब उस ने देखा पड़ोसिन तो अंदर आने के लिए आग्रह ही नहीं कर रही तो बात बनाते हुए बोली, ‘‘आज कुछ बुखार जैसा महसूस हो रहा है. क्या आप के पास थर्मामीटर है? मेरे पास है पर उस की बैटरी लो है.’’

जी अभी लाती हूं कह कर दरवाजा बंद कर सुधा अंदर गई और फिर आधे से खुले दरवाजे से बाहर झांक कर उस ने थर्मामीटर अपनी पड़ोसिन रितिका के हाथ में थमा दिया.

रितिका चाह कर भी उस के घर की टोह नहीं ले पाई. घर जाते ही उस ने अपनी सहेली को फोन किया और रस ले ले कर बताने लगी कि कुछ तो जरूर है जो सुधा हम से छिपा रही है. अंदर आने को भी नहीं कहती.

अपार्टमैंट में यह अजब सा तरीका था. महिलाएं अकसर अकेले में एकदूसरे के घर जातीं लेकिन मेजबान महिला से कह देतीं कि वह किसी को बताए नहीं कि वह उस के घर आई थी वरना लोग बहुत लड़ातेभिड़ाते हैं.

कई दिन तो यह समझ ही नहीं आया कि आखिर वे ऐसा क्यों करती हैं? सभी एकसाथ मिल कर भी तो दिन व समय निश्चित कर मिल सकती हैं, किट्टी पार्टी भी रख सकती हैं.

अकसर जब वे मिलतीं तो सुधा व उस की बेटी संध्या के बारे में जरूर चर्चा करतीं. उन्हें शक था कि कोई तीसरा जरूर है उन के घर में जिसे वह छिपा रही है.

एक महिला ने बताया ‘‘मेरी कामवाली कह रही थी कि कोई ऐक्सट्रा मेंबर है उस के घर में. पहले खाने के बरतन में 2 प्लेटें होती थीं, अब 3 लेकिन कोई मेहमान नजर नहीं आता. न ही कोई सूटकेस न कोई जूते. पर हां, हर दिन 3 कमरों में से एक कमरा बंद रहता है, जिस की साफसफाई सुधा उस से नहीं करवाती. इसलिए कोई है जरूर.’’

‘‘मुझे भी शक हुआ था एक रात. उस के घर की खिड़की का परदा आधा खुला था. मैं बालकनी में खड़ी थी. मुझे लगा कोई पुरुष है जबकि वहां तो मांबेटी ही रहती हैं.’’

‘‘कैसी बातें करती हो तुम? क्या उन के कोई रिश्तेदार नहीं आ सकते कभी?’’

‘‘तुम सही कहती हो. हमें इस तरह किसी पर शक नहीं करनी चाहिए.’’

‘‘शक तो नहीं करनी चाहिए पर फिर वह घर का दरवाजा आधा ही क्यों खोलती है? किसी को अंदर आने को क्यों नहीं कहती?’’

‘‘अरे, उन की मरजी. कोई स्वभाव से एकाकी भी तो हो सकता है.’’

‘‘तुम बड़ा पक्ष ले रही हो उन का, कहीं तुम्हारी कोई आपसी मिलीभगत तो नहीं?’’ और सब जोर से ठहाका मार कर हंस पड़ीं.

रितिका अपनी कामवाली से खोदखोद कर पूछती, ‘‘कुछ खास है उस घर में. क्यों सारे दिन दरवाजा बंद रखती है यह मैडम?’’

‘‘मुझे क्या पता मैडम, मैं थोड़े ही वहां काम करती हूं,’’ कामवाली कभीकभी खीज कर बोलती.

पर तुम्हें खबर तो होगी, ‘‘जो उधर काम करती है. क्या तुम और वह आपस में बात नहीं करतीं? तुम्हारी सहेली ही तो है वह,’’ रितिका फिर भी पूछती.

रितिका का अजीब हाल था. कभी रात के समय खिड़की से अंदर झांकने की कोशिश करती तो कभी दरवाजे के बाहर से आहट लेने की. मगर सुधा हर वक्त खिड़की के परदे को एक सिरे से दूसरे सिरे तक खींच कर रखती और टीवी का वौल्यूम तेज रहता ताकि किसी की आवाज बाहर तक न सुनाई दे.

घर की घंटी बजी तो रितिका ने देखा ग्रौसरी स्टोर से होम डिलीवरी आई है. उस का सामान दे कर जैसे ही डिलीवरी बौय ने सामने के फ्लैट में सुधा की डोरबेल बजाई रितिका ने पूछा, ‘‘शेविंग क्रीम किस के लिए लाया है?’’

‘‘मैडम ने फोन से और्डर दिया. क्या जाने किस के लिए?’’ उस ने हैरानी से जवाब दिया.

अब तो जैसे रितिका को पक्का सुराग मिल गया था. फटाफट 3-4 घरों में इंटरकौम खड़का दिए, ‘‘अरे, यह सुधा शेविंग क्रीम कब से इस्तेमाल करने लगी?’’

‘‘क्या कह रही हो तुम?’’

‘‘हां, सच कह रही हूं. ग्रौसरी स्टोर से शेविंग क्रीम डिलिवर हुआ है आज फ्लैट नंबर 105 में,’’ जोर से ठहाका लगाते हुए उस ने कहा.

‘‘वाह आज तो खबरी बहुत जबरदस्त खबर लाई है, दूसरी तरफ से आवाज आई.’’

‘‘पर देखो तुम किसी को कहना नहीं. वरना सुधा तक खबर गई तो मेरी खटिया खड़ी कर देगी.’’

लेकिन उस के स्वयं के पेट में कहां बात टिकने वाली थी. जंगल की आग की तरह पूरे अपार्टमैंट में बात फैला दी. अब तो वाचमैन भी आपस में खुसरफुसर करने लगे थे, ‘‘कल मैं ने इंटरकौम किया तो फोन किसी पुरुष ने उठाया. शायद सुधा मैडम घर में नहीं थीं. वहां तो मांबेटी ही रहती हैं. तो यह आदमी कौन है?’’ एक ने कहा.

‘‘तो तूने क्यों इंटरकौम किया 105 में?’’

अरे कूरियर आया था. फिर मैं ने कूरियर डिलिवरी वाले लड़के से भी पूछा तो वह बोला कि ‘‘हां, एक बड़ी मूछों वाले साहब थे घर में.’’

‘‘बौयफ्रैंड होगा मैडम सुधाजी का. आजकल बड़े घरों में लिवइन रिलेशन खूब चलते हैं. अपने पतियों को तो ये छोड़ देती हैं, फिर दूसरे मर्दों को घर में बुलाती हैं. फैशन है आजकल ऐसा,’’ एक ने तपाक से कहा.

अगले दिन जैसे ही सुधा ने ग्रौसरी स्टोर में फोन किया और सामान और्डर किया तो शेविंग ब्लैड सुनते ही उधर से आवाज आई ‘‘मैडम यह तो जैंट्स के लिए होता है. आप क्यों मंगा रही हैं?’’ शायद उस लड़के ने जानबूझ कर यह हरकत की थी.

सुधा घबरा गई पर हिम्मत रखते हुए बोली, ‘‘तुम से मतलब? जो सामान और्डर किया है जल्दी भिजवा दो.’’

पर इतने में कहां शांति होने वाली थी. डिलिवरी बौय अपार्टमैंट में ऐंट्री करते हुए सिक्योरिटी गार्ड्स को सब खबर देते हुए अंदर गया.

शाम को जब सुधा की बेटी संध्या अपार्टमैंट में आई तो वाचमैन उसे कुछ संदेहास्पद निगाहों से देख रहे थे. फिर क्या था वाचमैन से कामवाली बाई और उन से हर घर में फ्लैट नंबर 105 की खबर पहुंच गई थी.

अपार्टमैंट की तथाकथित महिलाओं में यह खबर बढ़चढ़ कर फैल गई. सब एकदूसरे को इंटरकौम कर के या फिर चोरीचुपके घर जा कर मिर्चमसाला लगा कर खबर दे रही थीं और हर खबर देने वाली महिला दूसरी को कहती कि देखो मैं तुम्हें अपनी क्लोज फ्रैंड मानती हूं. इसीलिए तुम्हें बता रही हूं. तुम किसी और को मत बताना. विभीषण का श्राप जो ठहरा महिलाओं को चुप कैसे कर सकती थीं. कानोकान बात बतंगड़ बनती गई. सभी ने अपनीअपनी बुद्घि के घोड़े दौड़ाए. एक ने कहा कि सुधा का प्रेमी है जरूर. अपने पति को तो छोड़ रखा है. बेटी का भी लिहाज नहीं. इस उम्र में भला कोई ऐसी हरकत करता है क्या? तो दूसरी कहने लगी कि एक दिन मेरी कामवाली बता रही थी कि उस की सहेली फ्लैट नंबर 105 में काम करती है. कोई लड़का है घर में जरूर, बेटी का बौयफ्रैंड होगा.

सभी की नजरें फ्लैट नंबर 105 पर टिकी थीं. किसी ने सुधा से आड़ेटेढ़े ढंग से छानबीन करने की कोशिश भी की पर सुधा ने बिजी होने का बहाना किया और वहां से खिसक ली.

अब जब बात चली ही थी तो ठिकाने पर भी पहुंचनी ही थी. इसलिए पहुंच गई सोसायटी के सेक्रैटरी के पास, जो एक महिला थीं. उन्हें भी सुन कर बड़ा ताज्जुब हुआ कि गंभीर और सुलझी हुई सी दिखने वाली सुधा ने अपने घर में किसे छुपा रखा है? न तो कोई दिखाई देता है और न ही कभी खिड़कीदरवाजे खुलते हैं.

कोई आताजाता भी नहीं है. उन्होंने भी सिक्युरिटी हैड को सुधा के घर आनेजाने वालों पर नजर रखने की हिदायत दे दी. ‘‘कोई भी आए तो पूरी ऐंट्री करवाओ और मैडम को इंटरकौम करो. किसी पर कुछ शक हो तो तुरंत औफिस में बताना.’’

वाचमैन को तो जैसे इशारे का इंतजार था. मौका आ भी गया जल्द ही.

एक नई महिला आई फ्लैट नंबर 105 में. देखने में पढ़ीलिखी, टाइट जींस और शौर्टटौप पहन कर, एक हाथ में लैपटौप बैग था, दूसरे में एक छोटा कैबिन साइज सूटकेस. लेकिन जब वह गई तो बैग उस के हाथ में नहीं था. जाहिर था, सुधा के घर छोड़ आई थी. मतलब कुछ सामान देने आई थी.

रात के समय सुधा कुछ कपड़े हैंगर में डाल कर सुखा रही थी वाचमैन ने अपनी पैनी नजर डाली तो देखा हैंगर में कुछ जैंट्स शर्ट्स सूख रहे हैं. तो कामवाली से क्यों नहीं सुखवाए ये कपड़े?

अगले दिन जब सुबह हुई वाचमैन ने फिर देखा शर्ट रस्सी से गायब थे. वाचमैन ने यह खबर झट सेक्रैटरी मैडम तक पहुंचा दी, ‘‘मैडम कोई तो मर्द है इस घर में पर नजर आता नहीं.’’ आप कहें तो हम उन के घर जा कर पूछताछ करें?

‘‘नहीं इस सब की आवश्यकता नहीं,’’ सेक्रैटरी महोदया ने कहा.

अगले ही दिन सोसायटी औफिस में कुछ लोग बातचीत करने आए और वे उस महिला के बारे में पूछताछ करने लगे जो सुधा के घर बैग छोड़ गई थी. औफिस मैनेजर ने वाचमैन से पूछा तो बात खुल गई कि वह महिला सुधा के घर आई थी और 1 घंटे में वापस भी चली गई थी. उन लोगों ने सुधा के बारे में मैनेजर व वाचमैन से जानकारी ली. दोनों ने बहुत बढ़चढ़ कर चटखारे लेले कर सुधा के बारे में बताया और सुधा के घर में किसी पुरुष के छिपे होने का अंदेशा जताया. आज उन्हें ऐसा महसूस हुआ जैसे उन्होंने किसी अवार्ड पाने के लिए काम किया है. उन्होंने उसी समय पुलिस को बुलवाया और सुधा के घर की तलाशी का आदेश जारी कर दिया.

वाचमैन, मैनेजर व पुलिस समेत वे लोग फ्लैट नं. 105 में पहुंच गए. जैसे ही घंटी बजी सुधा ने अधखुले दरवाजे से बाहर झांका. इतने सारे लोगों और पुलिस को साथ देख उस के होश उड़ गए. उस ने झट से दरवाजा बंद करने की कोशिश की पर पुलिस के बोलने पर दरवाजा खोलना पड़ा.

जैसे ही घर की तलाशी ली गई बड़ी मूछों वाले महाशय सामने आए. सुधा बहुत डर गई थी. उस के मुंह से घबराहट के कारण एक शब्द भी नहीं निकला. सामने के फ्लैट में रितिका को जैसे ही कुछ आवाज आई. वह बाहर निकल कर सुधा के घर में ताकझांक करने लगी. वह समझ गई थी आज कुछ तो खास होने वाला है. पुलिस भी है और अपार्टमैंट का सैक्युरिटी हैड व मैनेजर भी. वह झट से अंदर गई और कुछ खास सहेलियों को इंटरकौम पर सूचना दे दी. बाहर जो नजारा देखा उस का पूरा ब्यौरा भी दे दिया.

एक से दूसरे व दूसरे से तीसरे घर में इंटरकौम के मारफत खबर फैली और साथ में यह चर्चा भी कि वह पुरुष सुधा का प्रेमी है या उस की बेटी संध्या का बौयफ्रैंड? फिर भी अपने घर के बंद दरवाजे के आईहोल से वह देखने की कोशिश कर रही थी कि बाहर क्या चल रहा है. थोड़ी ही देर में मूछों वाले साहब पुलिस की गिरफ्त में थे और न के साथ रवाना हो गए थे.

पूरे अपार्टमैंट में सनसनी फैल गई थी और अब अगले ही दिन अखबार में खबर आई तो 3 महीनों से छिपा राज खुल गया था.

हकीकत यह थी कि बड़ी मूछों वाले साहब जिन्हें सुधा ने अपने घर में छिपा कर रखा था, वे उन के पुराने पारिवारिक मित्र थे और किसी प्राइवैट बैंक में मैनेजर के तौर पर काम कर रहे थे और अपना टारगेट पूरा करने के लिए लोगों को अंधाधुंध लोन दे रहे थे. लोन के जरूरी कागजात भी पूरी तरह से चैक नहीं कर रहे थे. सिर्फ वे ही नहीं उन के साथ बैंक के कुछ अन्य कर्मचारी भी इस घपले में लिप्त थे.

यह बात तब खुली जब उन के कुछ क्लाइंट्स लोन चुकाने में असमर्थ पाए गए. बैंक के सीनियर्स ने जब इस की जांच की तो बड़ी मूछों वाले मिस्टर कालिया और उन के कुछ साथियों को इस में शामिल पाया. जांच हुई तो पाया गया कि कागजात भी पूरे नहीं थे. बल्कि लोन लेने वालों के द्वारा ये लोग कमीशन भी लिया करते थे ताकि लोन की काररवाई जल्दी हो जाए.

मिस्टर कालिया के अन्य साथी तो पकड़े गए थे पर इन्हें तो सुधा ने दोस्ती के नाते अपने घर में पनाह दी हुई थी. वह टाईट जींस और शौर्टटौप वाली महिला इन की पत्नी हैं. बैंक वाले पुलिस की मदद से मिसेज कालिया को ट्रैक कर रहे थे और वे सुधा के घर आए तो उन्हें समझ आ गया था कि हो न हो मिस्टर कालिया जरूर इसी अपार्टमैंट में छिपे हैं.

इस बहाने एक बैंक में बैंक कर्मियों द्वारा किए गए घोटाले का परदाफाश हुआ और मजे की बात यह कि अपार्टमैंट की बातूनी महिलाओं, वाचमैन और ग्रौसरी स्टोर के लड़कों को अब चटखारे ले कर सुनाने के लिए एक नया किस्सा भी मिल गया.

जब मैं छोटा था : केशव अपने बेटे से नाराज क्यों था

केशव ने घूर कर अपने बेटे अंगद को देखा. वह सहम गया और सोचने लगा कि उस ने ऐसा क्या कह दिया जो उस के पिता को खल गया. अगर उसे कुछ चाहिए तो वह अपने पिता से नहीं मांगेगा तो और किस से मांगेगा. रानी बेटे की बात समझती है पर वह केवल उस की सिफारिश ही तो कर सकती है. निर्णय तो इस परिवार में केशव ही लेता है.

रानी ने मुसकरा कर केशव को हलकी झिड़की दी, ‘‘अब घूरना बंद करो और मुंह से कुछ बोलो.’’

केशव ने रानी को मुंह सिकोड़ कर देखा और फिर सांस छोड़ते हुए कहा, ‘‘क्या समय आ गया है.’’

‘‘क्यों, क्या तुम ने अपने पिता से कभी कुछ नहीं मांगा?’’ रानी ने हंस कर कहा, ‘‘बेकार में समय को दोष क्यों देते हो?’’

‘‘मांगा?’’ केशव ने तैश खा कर कहा, ‘‘मांगना तो दूर हमारा तो उन के सामने मुंह भी नहीं खुलता था. इतनी इज्जत करते थे उन की.’’

‘‘इज्जत करते थे या डरते थे?’’ रानी ने व्यंग्य से कहा.

केशव ने लापरवाही का नाटक किया, ‘‘एक ही बात है. अब हमारी औलाद हम से डरती कहां है?’’

अवसर का लाभ उठाते हुए अंगद ने शरारत से पूछा, ‘‘पिताजी, क्या आप के समय में आजकल की तरह जन्मदिन मनाया जाता था?’’

केशव ने व्यंग्य से हंस कर कहा, ‘‘जनाब, ऐसी फुजूलखर्ची के बारे में सोचना ही गुनाह था. ये तो आजकल के चोंचले हैं.’’

‘‘फिर भी पिताजी,’’ अंगद ने कहा, ‘‘कभी न कभी तो आप को जन्मदिन पर कुछ तो विशेष मिला होगा.’’

रानी ने हंसते हुए कहा, ‘‘मिला था, एक पाजामा. क्यों, ठीक है न?’’

केशव भी हंसा, ‘‘ठीक है, तुम्हें तो मेरा राज मालूम है.’’

‘‘पाजामा?’’ अंगद ने चकित हो कर पूछा, ‘‘क्या यह भी कोई उपहार है?’’

‘‘बहुत बड़ा उपहार था, बेटे,’’ केशव ने यादों में खोते हुए कहा, ‘‘पिताजी से तो बात करने का सवाल ही नहीं था. जब मैं ने मां से हठ की तो उन्होंने अपने हाथों से नया पाजामा सिल कर दिया था. मैं बहुत खुश था. रानी, तुम भी अंगद को एक पाजामा सिल

कर दो, पर…पर तुम्हें तो सिलना आता ही नहीं.’’

‘‘सारे दरजी मर गए क्या?’’ रानी ने चिढ़ कर कहा.

‘‘पाजामावाजामा नहीं,’’ अंगद ने जोर दे कर कहा, ‘‘अगर कुछ देना है तो मोपेड दीजिए. मेरे सारे दोस्तों के पास है. सब मोपेड पर ही स्कूल आते हैं. बस, एक मैं ही हूं, खटारा साइकिल वाला.’’

के शव ने तनिक नाराजगी से कहा, ‘‘साइकिल की इज्जत करना सीखो. उस ने 20 साल मेरी सेवा की है.’’

‘‘दहेज में जो मिली थी,’’ रानी ने टांग खींची.

‘‘क्या करता,’’ केशव चिढ़ कर बोला, ‘‘अगर स्कूटर मांगता तो तुम्हारे पिताजी को घर बेचना पड़ जाता.’’

‘‘अरे, जाओ भी,’’ रानी ने चोट खाए स्वर में कहा, ‘‘लेने वाले की हैसियत भी देखी जाती है.’’

अंगद ने महसूस किया कि बातों का रुख बदल रहा है इसीलिए बीच में पड़ कर बोला, ‘‘आप लोग तो

फिर लड़ने लगे. मेरे लिए मोपेड लेंगे या नहीं?’’

‘‘बरखुरदार,’’ केशव ने फिर से घूरते हुए कहा, ‘‘जब हम तुम्हारे बराबर थे तो पैदल स्कूल जाते थे. स्कूल भी कोई पास नहीं था. पूरे 3 मील दूर था. उन दिनों घर में बिजली भी नहीं थी इसलिए सड़क के किनारे लैंपपोस्ट के नीचे बैठ कर पढ़ते थे. जेबखर्च के पैसे भी नहीं मिलते थे. दिन भर कुछ नहीं खाते थे. घर आ कर 5 बजे तक रात का खाना निबट जाता था. समझे जनाब? आप मोपेड की बात करते हैं.’’

रानी इस भाषण को कई बार सुनसुन कर उकता चुकी थी इसलिए ताना मार कर बोली, ‘‘तो यह है आप की सफलता का रहस्य. देखो बेटे, ऐसा करोगे तो पिताजी की तरह एक दिन किसी कारखाने के महाप्रबंधक बन जाओगे.’’

अंगद मूर्खों की तरह मांबाप को देख रहा था. उस के मन में विद्रोह की आग सुलग रही थी. बड़ी बहन मानिनी जब भी कुछ मांगती थी तो उसे तुरंत मिल जाता था. एक वही है इस घर में दलित वर्ग का शोषित प्राणी.

नाश्ता समाप्त होने पर केशव कार्यालय जाने की तैयारी में लग गया और नौकरानी के आ जाने से रानी घर की सफाई कराने में व्यस्त हो गई. अंगद कब स्कूल चला गया किसी को पता ही नहीं चला.

कार निकालते समय केशव ने रोज के मुकाबले कुछ फर्क महसूस किया, पर समझ नहीं पाया. बहुत दूर निकल जाने पर उसे ध्यान आया कि आज अंगद की साइकिल अपनी जगह पर ही खड़ी थी. वैसे अकसर साइकिल खराब होने पर अंगद साइकिल घर छोड़ कर बस से चला जाता था.

घर का काम निबट जाने के बाद रानी ने देखा कि अंगद का लंच बाक्स मेज पर ही पड़ा था. वैसे आमतौर पर वह लंच बाक्स ले जाना भूलता नहीं है क्योंकि रानी हमेशा बेटे का मनपसंद खाना ही रखती थी. खैर, कोई बात नहीं, अंगद की जेब में इतने रुपए तो होते ही हैं कि वह कुछ ले कर खा ले.

शाम को रानी को च्ंिता हुई क्योंकि अंगद हमेशा 3 बजे तक घर आ जाता था, पर आज 5 बज रहे थे. केशव के फोन से वह जान चुकी थी कि आज अंगद साइकिल भी नहीं ले गया था, पर बस से भी इतनी देर नहीं लगती. उस वक्त 6 बज रहे थे जब अंगद ने घर में प्रवेश किया. उस का चेहरा लाल हो रहा था और जूते धूलधूसरित हो गए थे. थकान के लक्षण भी स्पष्ट थे.

‘‘इतनी देर कहां लगा दी?’’ रानी ने बस्ता संभालते हुए पूछा.

‘‘बस, हो गई देर, मां,’’ अंगद ने टालते हुए कहा, ‘‘जल्दी से खाना दो. बहुत भूख लगी है.’’

‘‘खाना क्यों नहीं ले गया?’’ रानी ने शिकायत की.

‘‘भूल गया था,’’ अंगद का झूठ पता चल रहा था.

‘‘भूल गया या ले नहीं गया?’’ रानी ने तनिक क्रोध से पूछा.

‘‘कहा न, भूल गया,’’ अंगद चिढ़ कर बोला.

रानी ने अधिक जोर नहीं दिया. बोली, ‘‘जा, जल्दी से कपड़े बदल और हाथमुंह धो कर आ. आलू के परांठे और गाजर का हलवा बना है.’’

अंगद के चेहरे पर झलकती प्रसन्नता से रानी को संतोष हुआ. उसे लगा कि वह वाकई बहुत भूखा है. अंगद के आने से पहले ही उस ने खाना मेज पर लगा दिया था.

अंगद ने भरपेट खाया. कुछ देर तक टीवी देखा और फिर पढ़ाई करने अपने कमरे में चला गया.

8 बजे केशव कार्यालय से आया.

आराम से बैठने के बाद केशव ने रानी से पूछा, ‘‘बच्चे कहां हैं? बहुत शांति है घर में.’’

‘‘मन्नू तो शालू के यहां गई है,’’ रानी ने सामने बैठते हुए कहा, ‘‘कोई पार्टी है. देर से आएगी.’’

‘‘अकेली आएगी क्या?’’ केशव ने चिंता से पूछा.

‘‘नहीं,’’ रानी ने उत्तर दिया, ‘‘शालू का भाई छोड़ने आएगा.’’

‘‘उफ, ये बच्चे,’’ केशव ने अप्रसन्नता से कहा, ‘‘इतनी आजादी भी ठीक नहीं. जब मैं छोटा था तो बहन को तो छोड़ो, मुझे भी देर से आने नहीं दिया जाता था. आगे से ध्यान रखना. वैसे मन्नू कब तक आएगी?’’

‘‘अब क्यों च्ंिता करते हो,’’ रानी ने कहा, पर केशव की मुद्रा देख कर बोली, ‘‘ठीक है, फोन कर के पूछ लूंगी.’’

‘‘और साहबजादे कहां हैं?’’ केशव ने पूछा.

‘‘पढ़ रहा है,’’ रानी ने उत्तर दिया.

‘‘पर मुझे तो कोई आवाज नहीं सुनाई दे रही,’’ केशव ने पुकारा, ‘‘अंगद…अंगद?’’

‘‘ओ हो, पढ़ने दो न,’’ रानी ने झिड़का, ‘‘कल परीक्षा है उस की.’’

‘‘तो जवाब नहीं देगा क्या?’’ केशव ने क्रोध से पुकारा, ‘‘अंगद?’’

अंगद का उत्तर नहीं आया. केशव अब अधिक सब्र नहीं कर सका. उठ कर अंगद के कमरे की ओर गया और झटके से अंदर घुसा.

‘‘यहां तो है नहीं,’’ केशव ने क्रोध से कहा.

‘‘नहीं है,’’ रानी को विश्वास नहीं हुआ, ‘‘थोड़ी देर पहले ही तो मैं उस के मांगने पर चाय देने गई थी.’’

केशव ने व्यंग्य से कहा, ‘‘हां, चाय का प्याला तो है, पर जनाब नहीं हैं. गया कहां?’’

‘‘मुझ से तो कुछ कह कर नहीं गया,’’ रानी ने च्ंिता से कहा, ‘‘मन्नू के कमरे में देखो.’’

‘‘मन्नू के कमरे में भी होता तो जवाब देता न,’’ केशव ने क्रोध से कहा, ‘‘बहरा तो नहीं है.’’

रानी ने तसल्ली के लिए मन्नू के कमरे में  देखा और बोली, ‘‘पता नहीं कहां गया. शायद अखिल के यहां चला गया होगा. उस के साथ ही पढ़ता है न.’’

‘‘कह कर तो जाना था,’’ केशव भी अब च्ंितित था, ‘‘अखिल का घर कहां है?’’

‘‘वह राममनोहरजी का लड़का है,’’ रानी ने कहा, ‘‘309 नंबर में रहता है.’’

‘‘ओह,’’ केशव ने कहा, ‘‘उन के यहां तो फोन भी नहीं है.’’

‘‘थोड़ी देर देख लो,’’ रानी ने अपनी चिंता छिपाते हुए कहा, ‘‘आ जाएगा.’’

‘‘और मन्नू…’’

केशव का वाक्य समाप्त होेने से पहले ही रानी ने चिढ़ कर कहा, ‘‘अब मन्नू के पीछे पड़ गए. कभी तो चैन से बैठा करो.’’

झिड़की खा कर केशव कुरसी पर बैठ कर पत्रिका पढ़ने का नाटक करने लगा.

‘‘खाना लगाऊं क्या?’’ रानी ने कुछ देर बाद पूछा.

‘‘नहीं,’’ केशव ने कहा, ‘‘बच्चों को आने दो.’’

‘‘मन्नू तो खा कर आएगी,’’ रानी ने सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘अंगद बाद में खा लेगा. स्कूल से आ कर कुछ ज्यादा ही खा लिया था.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘2 की जगह पूरे 4 परांठे खा लिए,’’ रानी ने मुसकरा कर कहा, ‘‘उसे आलू के परांठे अच्छे लगते हैं न.’’

कुछ और समय बीतने पर केशव उठ खड़ा हुआ, ‘‘मैं राममनोहरजी के घर हो कर आता हूं.’’

उसी समय घंटी बजी और मानिनी ने प्रवेश किया. वह बहुत प्रसन्न थी.

‘‘शालू की पार्टी में बहुत मजा आया,’’ मानिनी ने हंसते हुए पूछा, ‘‘यह अंगद सड़क के किनारे क्यों बैठा है? क्या आप ने सजा दी है?’’

‘‘सड़क के किनारे?’’ केशव और रानी ने एकसाथ पूछा, ‘‘कहां?’’

‘‘साधना स्टोर के सामने,’’ मानिनी ने उत्तर दिया, ‘‘क्या मैं उसे बुला कर ले आऊं?’’

इस से पहले कि रानी कुछ कहती केशव ने गंभीरता से कहा, ‘‘नहीं, रहने दो. शायद पढ़ रहा होगा.’’

‘‘क्या घर में बिजली नहीं है?’’ मानिनी ने पूछा, पर फिर ध्यान आया कि बिजली तो है.

रानी ने खाना लगा दिया. केशव हाथ धो कर बैठने ही वाला था कि अंगद ने आहिस्ताआहिस्ता घर में प्रवेश किया.

केशव ने घूरते हुए पूछा, ‘‘इतनी दूर पढ़ने क्यों गए थे?’’

‘‘क्योंकि पास में कोई लैंपपोस्ट नहीं था,’’ अंगद ने मासूमियत से कहा.

केशव को हंसी भी आई और क्रोध भी. रानी भी हंस कर रह गई.

‘‘चलो, खाने के लिए बैठो,’’ रानी ने कहा.

‘‘स्कूल से आते ही खा तो लिया था,’’ अंगद ने कहा और अपने कमरे में चला गया.

केशव और रानी को अंगद का व्यवहार अब समझ में आ रहा था. लगता था कि नाटक की शुरुआत है.

मानिनी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था. उस ने पूछा, ‘‘बात क्या है? आज अंगद के तेवर क्यों बिगड़े हुए हैं?’’

‘‘कुछ नहीं,’’ रानी हंसी, ‘‘शीत- युद्ध है.’’

‘‘क्यों?’’ मानिनी ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘मोपेड चाहिए जनाब को,’’ केशव ने कहा, ‘‘हमारे जमाने में…’’

‘‘ओ हो, पिताजी,’’ मानिनी ने चिढ़ कर कहा, ‘‘अब मैं समझ गई. न आप कभी बदलेंगे, न आप का जमाना. ठीक है, मैं चंदा इकट्ठा करती हूं.’’

एक मानिनी ही थी जो केशव से बेझिझक हो कर बात कर सकती थी.

केशव ने उसे घूर कर देखा और फिर उठ कर चला गया.

सुबह की चाय हो चुकी थी. जब नाश्ता लगा तो अंगद जा चुका था.

उस की साइकिल पर धूल जम गई थी और हवा भी निकल गई थी.

शाम को थकामांदा अंगद 6 बजे आया.

‘‘क्यों, बस नहीं मिली क्या?’’ रानी ने क्रोध से पूछा.

‘‘बसें तो आतीजाती रहती हैं.’’

‘‘तो फिर?’’ रानी ने पूछा.

‘‘तो फिर क्या? मुझे भूख लगी है. खाना तो मिलेगा न?’’

रानी को अब क्रोध नहीं आया. जानती थी कि वह भूखा होगा. उस के लिए खीर, पूडि़यां और गोभी की

सब्जी बनाई थी. अंगद ने प्रसन्न हो कर भरपेट खाया और कमरे में चला गया.

केशव जब आया तब अंगद घर में नहीं था. आते वक्त केशव ने लैंपपोस्ट के नीचे निगाह डाली थी. अंगद धुंधली रोशनी में आंखें गड़ाए पढ़ रहा था.

3 दिन तक यह नाटक चलता रहा.

आज अंगद का जन्मदिन था. हर साल इस दिन रौनक छा जाती थी. पार्टी में आने वाले मित्रों की सूची बनती थी. लजीज व्यंजन बनाए जाते थे. मानिनी कुछ दिन पहले ही से उसे छेड़ने लगती थी और इस छेड़छाड़ में लड़ाई भी हो जाती थी. वैसे अंगद को इस बात का बहुत मलाल रहता था कि मानिनी का जन्मदिन धूमधाम से मनाया जाता है.

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नींद खुलते ही अंगद की नजर पास पड़े लिफाफे पर पड़ी. लिफाफे को उठाते ही उस में से एक चाबी गिरी. चाबी से लटका एक छोटा सा कार्ड था. उस पर लिखा था, ‘जन्मदिन पर छोटा सा उपहार.’

अंगद की आंखों में चमक आ गई. यह तो मोपेड की चाबी थी. आधी रात को वह एक चिट्ठी खाने की मेज पर छोड़ कर आया जिस में लिखा था :

पूज्य पिताजी और मां, क्या आप मुझे क्षमा करेंगे? मोपेड के लिए हठ करना मेरी भूल थी. मुझे सिवा आप के आशीर्वाद और प्यार के कुछ नहीं चाहिए.

आप का पुत्र अंगद.

जब अंगद नीचे पहुंचा तो पत्र मां के हाथ में था और वह पढ़ कर सुना रही थीं. केशव और मानिनी हंस रहे थे.

‘‘पिताजी, आप ने भी जल्दी कर दी. बेकार में मोपेड की चपत पड़ी,’’ मानिनी हंस कर कह रही थी.

अंगद सिर झुकाए शर्मिंदा सा खड़ा था.

‘‘तो आप को मोपेड नहीं चाहिए,’’ केशव ने नकली गंभीरता से पूछा.

‘‘नहीं,’’ अंगद ने दृढ़ता से उत्तर दिया.

‘‘क्यों?’’ केशव ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘क्योंकि,’’ अंगद ने गंभीरता से शरारती अंदाज में कहा, ‘‘अब मुझे स्कूटर चाहिए.’’

‘‘क्या?’’ केशव ने मारने के अंदाज में हाथ उठाते हुए पूछा, ‘‘क्या कहा?’’

मानिनी ने बीच में आते हुए कहा, ‘‘पिताजी, छोडि़ए भी. हमारा अंगद अब छोटा नहीं है.’’

‘‘पर जब मैं छोटा था…’’

होहल्ले में केशव अपना वाक्य पूरा न कर सका.

हैप्पीनैस हार्मोन: क्यों दिल से खुश नहीं था दूर्वा

कालेज कंपाउंड में चारों दोस्त सुमति को सांत्वना दे रहे थे. अब हो भी कुछ नहीं सकता था. आज अकाउंट्स के प्रैक्टिकल जमा करने का आखिरी दिन था. सुमति को भी यह बात पता थी परंतु बूआ के लड़के की शादी में जाने के कारण उस के दिमाग से यह बात निकल गई. आज छुट्टियों के बाद कालेज आई तो मालूम पड़ा प्रैक्टिकल पूरे 20 नंबर का है.

‘‘गए 20 नंबर पानी में,’’ सुरक्षा दुखी स्वर में बोली.

‘‘20 नंबर बड़ी अहमियत रखते हैं,’’ रोनी सूरत बनाते हुए सुमति बोली.’’

‘‘मैडम बड़ी स्ट्रिक्ट हैं. आज प्रैक्टिकल सबमिट नहीं किया तो फिर लेंगी नहीं,’’ राजन बोला.

‘‘प्रैक्टिकल में जीरो मिलना मतलब कैंपस इंटरव्यू में भी अवसर खोना,’’ सुयश ने अपना पक्ष रखा.

‘‘इस का असर तो कैरियर पर पड़ेगा,’’ धीरज बोला.

‘‘लो, दूर्वा भी आ गया,’’ दूर से आते हुए देख सुयश बोला. ‘‘मतलब हम 6 में से 5 के प्रैक्टिकल कंपलीट हैं.’’

‘‘यारो, हंसो. रोनी सूरत क्यों बना रखी,’’ दूर्वा जोर से गाता हुआ गु्रप के बीच आ कर खड़ा हो गया.

‘‘क्या मस्तीमजाक करते रहते हो हर टाइम,’’ सुमति चिढ़ कर बोली, ’’यहां मेरी जान पर बनी हुई और तुम्हें मजाक सूझ रहा है.’’

‘‘क्या हुआ?’’ दूर्वा लापरवाही वाले अंदाज में बोला.

पूरा माजरा सुनने के बाद दूर्वा बोला, ‘‘अगर हम सभी आज प्रैक्टिकल जमा न करें तो.’’

‘‘तो क्या? अभी सिर्फ सुमति का नुकसान हो रहा है. फिर हम सब को जीरो नंबर मिलेंगे,’’ सुरक्षा बोली.

‘‘नहीं, मेरा मतलब है पूरी क्लास,’’ दूर्वा बोला.

‘‘मगर क्लास ऐसा करेगी क्यों?’’ सुमति आश्चर्य से बोली.

‘‘अगर मैं ऐसा करवा दूं तो मुझे क्या दोगी?’’ दूर्वा ने प्रश्न किया.

‘‘जो तुम बोलोगे, मैं दे दूंगी पर आज का यह प्रोग्राम डिले करवा दो,’’ सुमति बोली.

‘‘ठीक है अगले 3 दिनों तक बड़ा पिज्जा पार्सल करवा देना,’’ दूर्वा ने शर्त रखी.

‘‘मुझे मंजूर है. बस, तुम प्रैक्टिकल सबमिशन का प्रोग्राम रुकवा दो,’’ सुमति अनुरोध करती हुई बोली.

‘‘देखो, 2 ही कारण से प्रैक्टिकल नहीं लिया जा सकता, या तो कोईर् बड़ा नेता अचानक मर जाए या फिर क्लास में किसी का ऐक्सिडैंट हो जाए.’’

‘‘आज क्लास में एक ऐक्सिडैंट होगा,’’ दूर्वा बोला.

‘‘कैसे, कुछ उलटासीधा करोगे क्या?’’ सुमति ने पूछा.

‘‘देखो, कुल 40 मिनट का पीरियड है. अटेडैंस लेने में 5 मिनट निकल जाएंगे. 5 मिनट मैडम बताने और समझाने में निकाल देगी. बचे 30 मिनट. जैसे ही मैडम बोलेगी प्रैक्टिकल जमा कीजिए, सब से पहले मैं उठूंगा और टेबल पर कौपी रखने से पहले चक्कर खा कर गिर पड़ूंगा. मेरे गिरते ही तुम पांचों मुझे घेर लेना और जोरजोर से चिल्लाना, बेहोश हो गया, बेहोश हो गया. जल्दी पानी लाओ, और पानी लेने के लिए तुम में से ही कोई जाएगा जो कम से कम 15 मिनट बाद ही आएगा. जब पानी आए तब पानी के हलकेहलके छींटे मारना. यदि समय बचा तो मैं होश में आ कर कमजोरी की ऐक्टिंग कर के पीरियड निकाल दूंगा,’’ दूर्वा ने अपनी योजना समझाई.

‘‘इस में रिस्क है दूर्वा,’’ सुरक्षा ने आशंका जाहिर की.

‘‘कोई बात नहीं, दोस्तों के लिए जान हाजिर है. लेकिन सुमति, अपना वादा याद रखना,’’ दूर्वा ने सुमति की तरफ देख कर कहा. दूर्वा का ऐक्टिंग प्रोग्राम सफल रहा, बल्कि मैडम तो घबरा कर प्रिंसिपल के पास चली गईर् और एंबुलैंस बुलवा ली. आधे घंटे बाद एंबुलैंस आई और दूर्वा को अस्पताल ले गई. डाक्टर ने जांच की तो दूर्वा को स्वस्थ पाया.

डाक्टरों ने कहा कि कभीकभी थकान और नींद पूरी नहीं होने की वजह से ऐसा हो जाता है. चिंता की कोई बात नहीं.

‘‘थैंक्यू दूर्वा, तुम्हारे कारण मुझे प्रैक्टिकल में नंबर मिल जाएंगे,’’ सुमति कृतज्ञताभरे शब्दों में बोली.

‘‘नो इमोशनल ब्लैकमेलिंग. अपना वादा पूरा करो. पिज्जा वह भी लार्ज साइज,’’ दूर्वा अधिकारपूर्वक बोला.

‘‘अरे, पैक क्यों करवा रहे हो? यहीं बैठ कर खा लेते हैं न,’’ सुयश बोला.

‘‘नहीं, मैं तुम्हारे साथ नहीं खा सकता,’’ दूर्वा सपाट शब्दों में बोला.

‘‘क्यों? क्यों नहीं खा सकते?’’ सुयश ने फिर पूछा.

‘‘क्योंकि मेरी नाक में दांत हैं और मैं नाक से खाता हूं,’’ दूर्वा मजाक करता हुआ बोला.

‘‘चायसमोसे तो तुम हमारे साथ खा लेते हो,’’ सुरक्षा बोली.

‘‘यह लो तुम्हारा पिज्जा,’’ सुमति पैकेट बढ़ाती हुई बोली.

‘‘कल और परसों का भी तैयार रखना,’’ पिज्जा बौक्स लेते हुए दूर्वा ने कहा.

परीक्षा के रिजल्ट में सुमति ने अपनी पिछली स्थिति से बेहतर प्रदर्शन किया था और इस का पूरा श्रेय वह दूर्वा को दे रही थी.

‘‘अरे, मेरे देश की रोती प्रजा. आज क्या माजरा है, तुम लोगों के चेहरे खींचे हुए रबर की तरह क्यों लटके हुए हैं?’’ धीरज के टकले सिर पर धीमे से चपत लगाता हुआ दूर्वा बोला.

‘‘फिर मजाक दूर्वा. कभी तो सीरियस रहा करो. अभी राजन के पापा का फोन आया था. उस के चाचा का सीरियय ऐक्सिडैंट हो गया है और उन्हें तुरंत ब्लड देना है. डाक्टर्स ब्लडबैंक की जगह किसी स्वस्थ व्यक्ति के ताजे ब्लड का इंतजाम करने को बोल रहे हैं. उस के पापा कोशिश कर रहे हैं, पर टाइम तो लगेगा ही,’’ सुरक्षा ने बताया.

‘‘कौन सा ब्लड गु्रप चाहिए?’’ दूर्वा ने पूछा.

‘‘ओ नैगेटिव,’’ राजन बोला.

‘‘लो, इसे कहते हैं बगल में छोरा और गांव में ढिंढोरा. हम हैं न इस रेयर गु्रप के मालिक,’’ दूर्वा बोला.

‘‘तू सच बोल रहा है?’’ सुरक्षा ने पूछा.

‘‘हां,’’ दूर्वा हंसता हुआ बोला.

दूर्वा का ब्लड राजन के चाचा से मेल खा गया और राजन के चाचा की जान बच गई.

‘‘दूर्वा, तुम सचमुच कमाल के लड़के हो, हंसीहंसी में ही समस्या का समाधान कर देते हो,’’ राजन कृतज्ञ भाव से बोला.

‘‘तुम हम सब में खुशी का संचार करते हो. हम सब के लिए आशाजनक खुशी का माहौल बनाए रखते हो. जैसे बौडी की ग्रोथ के लिए हार्मोंस जरूरी होते हैं, उसी तरह तुम इस गु्रप के लिए जरूरी हो और तुम्हारा नाम है हैप्पीनैस हार्मोन,’’ सुमति बोली.

‘‘अरे, मक्खन लगाना छोड़ो और शर्त के मुताबिक 3 दिनों के लिए पिज्जा पार्सल करवा दो, बड़ा वाला,’’ दूर्वा अपने चिरपरिचित अंदाज में बेतक्कलुफी से बोला.

‘‘यार, तू भी कमाल करता है. अगर सब के साथ बैठ कर खाएगा तो मजा दोगुना हो जाएगा,’’ राजन बोला.

‘‘मैं पहले हाथमुंह धोता हूं. फिर पिज्जा खाता हूं, ‘‘दूर्वा अपने पुराने अंदाज में बोला. यारदोस्तों के हंसीमंजाक में यों ही दिन बीत रहे थे. पर कुछ दिनों से दूर्वा कालेज नहीं आ रहा था.

‘‘यार, अब फाइनल एग्जाम्स को सिर्फ एक महीना बचा है और ऐसे क्रूशियल पीरियड में हैप्पीनैस हार्मोन नहीं आ रहा है. क्या बात है? कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं?’’ सुरक्षा बोली.

‘‘हां, कल मैं ने फोन किया था, लेकिन कुछ ठीक से बात नहीं हो पा रही थी,’’ राजन ने बताया.

‘‘हमें उस के घर चलना चाहिए. शायद किसी मदद की जरूरत हो उसे,’’ सुमति बोली.

‘‘घर कहां है उस का? देखा है?’’ सुरक्षा ने पूछा.

‘‘देखा तो नहीं, परंतु निचली बस्ती में कहीं रहता है. वहीं जा कर पूछना पड़ेगा,’’ सुयश बोला.

‘‘ठीक है. चलो, हम सब चलते हैं,’’ धीरज बोला.

‘‘क्यों बेटा, यहां कोई दूर्वा कुमार रहता है क्या?’’ निचली बस्ती में प्रवेश करते ही सामने खेल रहे एक 12-13 वर्षीय बालक से सुयश ने पूछा.

‘‘कौन दूर्वा कुमार? वही भैया जो हमेशा जींस और नीली चप्पल पहने रहते हैं?’’ लड़के ने पूछा.

‘‘हां, हां, वही,’’ सुयश बोला.

‘‘सामने संकरी गली में पहला कमरा है उन का,’’ लड़के ने पता बताया.

गली में घुसते ही सामने एक साफसुथरा कमरा दिखाई दिया, जिस में एक पलंग रखा हुआ था और उस पर एक महिला लेटी हुईर् थी. दूर्वा महिला को पंखा झल रहा था.

‘‘दूर्वा,’’ जैसे ही सुयश ने आवाज दी, दूर्वा हड़बड़ा कर उठा.

‘‘अरे, तुम लोग? तुम लोग यहां कैसे? सब ठीक तो है न? आओ, आओ,’’ दूर्वा सभी को आश्चर्य से देखते हुए बोला.

‘‘तुम एक हफ्ते से कालेज नहीं आ रहे हो, तो देखने आए हैं, क्या कारण है?’’ सुमति बोली.

‘‘मम्मी की तबीयत ठीक नहीं है, इसी कारण नहीं आ पाया,’’ दूर्वा कुछ उदास हो कर बोला.

‘‘डाक्टर को दिखाया, क्या कहा?’’ सुमति ने पूछा.

‘‘नहीं दिखाया और दिखा भी नहीं पाऊंगा. कालेज की फीस भरने व घर का किराया देने के बाद पैसे बचे ही नहीं. मैडिकल स्टोर वाले से पूछ कर दवा दे दी है. उस दवा से या खुद की इच्छाशक्ति से धीरेधीरे ठीक हो रही हैं,’’ दूर्वा की आंखों में आंसू और आवाज में अजीब सा भारीपन था.

‘‘अरे, हमें तो कहा होता, हम कोईर् पराए हैं क्या?’’ धीरज ने कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.

अब तक रोक कर रखी गई रुलाई दूर्वा के गले से फूट पड़ी. वह बच्चों की तरह रोने लगा. कुछ देर जीभर कर रोने के बाद बोला, ‘‘पिताजी का बचपन में ही देहांत हो गया था. तभी से दिनरात लोगों के कपड़े सीसी कर मां ने मुझे पढ़ाया है. अब स्थिति यह है कि मां 5-7 मिनट से अधिक बैठ नहीं पातीं. महल्ले में सभी को पता है. सभी मां की बहुत इज्जत करते हैं. इसी कारण महल्ले के बड़े किराने वाले ने मुझे दोपहर 2 से 6 बजे तक की नौकरी पर रख लिया है.

मैं उन का दिनभर का अकाउंट्स व्यवस्थित कर देता हूं. इस से उन के सीए को भी आसानी हो जाती है. 5 हजार रुपए महीना देते हैं. फीस के लिए भी समय पर पैसे दे देते हैं. अकसर वे मुझे बिस्कुट के पैकेट या इसी तरह की कोई खाने की चीज यह कहते हुए दे देते हैं कि जल्दी ही एक्सपायर्ड होने वाली है, खापी कर खत्म करो. जबकि, मैं जानता हूं कि यदि वे चाहें तो सीधे कंपनी से भी बदलवा सकते हैं.’’

‘‘कभी हमें भी तो हिंट्स करते, कुछ मदद हम भी कर देते. तुम हमेशा हंसीमजाक करते रहते हो. कभी परिवार के बारे में कुछ बताया नहीं,’’ सुमति बोली.

‘‘समान ध्रुव वाले चुंबक प्रतिकर्षण का काम करते हैं. मैं तुम्हें अपनी परेशानियों के बारे में बताने से डरता था. मुझे लगता था शायद मैं तुम को खो दूंगा. यही कारण है कि मैं हमेशा हंसता रहता था. हंसते रहो तो समस्या का समाधान भी शीघ्र हो जाता है,’’ दूर्वा बोला.

‘‘जो हुआ उसे छोड़ो, मेरे पापा डाक्टर हैं, अभी उन्हें बुला कर दिखा देते हैं,’’ सुमति बोली.

‘‘पर मेरे पास दवा के लिए पैसे नहीं हैं,’’ दूर्वा कातर स्वर में बोला.

‘‘मेरे पापा मेरे सभी दोस्तों को बायनेम पहचानते हैं. उन्होंने ही तुम्हें हैप्पीनैस हार्मोन का नाम दिया है. उन्हें पूरी स्थिति बता कर बुलवा लेते हैं. सैंपल वाली दवा होगी तो वह भी लेते आएंगे,’’ सुमति बोली.

कुछ ही देर में सुमति के पापा आ गए. अपने पास से दवा भी दे गए. चिंता वाली कोई बात नहीं थी. जातेजाते बोले, ‘‘कमाल का जज्बा है दूर्वा तुम में, कीप इट अप. अपना हैप्पीनैस हार्मोन कभी कम मत होने देना. और हो सके तो तुम पांचों भी इस से सबक लेना. खुशियां देने से बौंडिंग बढ़ती है, समस्याओं के समाधान के नए रास्ते खुलते हैं.’’

दूर्वा की आंखों में जिंदगी की हर कठिनाई को झेलने की नई उम्मीद, जोश, आशा साफ झलक रही थी.

विनविन सिचुएशन: जब सोमेश और रम्या के बीच बने शारीरिक संबंध

‘‘विनविनसिचुएशन वह होती है जिस में सभी पक्ष फायदे में रहें. जैसे हम ने किसी सामान को बनाने में 50रुपए लगाए और उसे 80 रुपए में बेच दिया, तो यह हमारे लिए फायदे का सौदा हुआ. लेकिन अगर वही सामान कोई व्यक्ति पहले

क्व90 में खरीदता था और अब हमारी कंपनी उसे क्व80 में दे रही है, तो यह उस का भी फायदा हुआ यानी दोनों पक्षों का फायदा हुआ. इसे कहते हैं विनविन सिचुएशन,’’ सोमेश कंपनी के नए स्टाफ को समझा रहा था.

12 साल हो गए सोमेश को इस कंपनी में काम करते हुए. अब नए लोगों को ट्रेनिंग देने का काम वही संभालता था. 12 सालों में पद, कमाई के साथसाथ परिवार भी बढ़ गया था उस का. हाल ही में वह दूसरी बार बाप बनने के गौरव से गर्वित हुआ था, लेकिन खुशी से ज्यादा एक नई जिम्मेदारी बढ़ने का एहसास हुआ था उसे. सालोंसाल वही जिंदगी जीतेजीते उकता गया था वह. उस की पत्नी रूमी बच्चों में ही उलझी रहती थी.

लंच टाइम में सोमेश जब खाना खाने बैठा, तो टिफिन खोलते ही उस ने बुरा सा मुंह बनाया, ‘‘लगता है आज फिर भाभीजी ने टिंडों की सब्जी बनाई है,’’ नमनजी के मजाक में कहे ये शब्द उसे तीर की तरह चुभ गए, क्योंकि सचमुच रूमी ने टिंडों की ही सब्जी दी थी टिफिन में.

कुछ खीजता हुआ सोमेश यों ही कैंटीन के काउंटर की ओर बढ़ गया.

‘‘सर, आप अपना टिफिन खुला ही भूल आए मेज पर,’’ एक खनकती हुई आवाज पर

उस ने मुड़ कर देखा. कंपनी में नई आई हुई लड़की रम्या उस का टिफिन उठा कर उस

के पास ले आई थी. यों कंपनी में और भी लड़कियां थीं, लेकिन सोमेश उन सब पर

थोड़ा रोब बना कर ही रखता था. इतने बेबाक तरीके से कोई लड़की उस से कभी बात नहीं करती थी.

‘‘सर, यह लीजिए मैं इसी टेबल पर आप का टिफिन रख देती हूं.’’

‘‘सर, आप अगर बुरा न मानें तो मैं भी इधर ही खाना खा लूं? उस बड़ी वाली मेज पर तो जगह ही नहीं है.’’

सोमेश ने बड़ी टेबल की ओर नजर दौड़ाई. सचमुच नए लोगों के आ जाने से बड़ी टेबल पर खाली जगह नहीं बची थी. उस ने सहमति में सिर हिलाया.

टिफिन रखते हुए रम्या के मुंह से निकल गया, ‘‘वाह, मेरी पसंदीदा टिंडों की सब्जी,’’

और फिर सोमेश की ओर देख कर कुछ ठिठक गई और चुपचाप अपना टिफिन खोल कर खाना खाने लगी.

बरबस ही सोमेश की नजर भी रम्या के टिफिन में रखे आलू के परांठों पर पड़ गई. रम्या बेमन से आलू के परांठे खा रही थी और सोमेश भी किसी तरह सूखी रोटियां अचार के साथ निगल रहा था.

‘‘सर, आप सब्जी नहीं खा रहे?’’ आखिरकार रम्या बोल ही पड़ी.

‘‘मुझे टिंडे पसंद नहीं, सोमेश ने बेरुखी से कहा तो रम्या ने उस की ओर आश्चर्य से देखा.’’

रम्या की निगाहों से साफ जाहिर था कि उस की पसंदीदा सब्जी की बुराई सुन कर उसे अच्छा नहीं लगा.

‘‘खाना फेंकना नहीं चाहिए सर,’’ रम्या ने किसी दार्शनिक की तरह कहा तो सोमेश को हंसी आ गई, ‘‘अच्छा, तो तुम ही खा लो यह टिंडों की सब्जी.’’

‘‘सच में ले लूं सर?’’ रम्या को जैसे मनचाही मुराद मिल गई.

‘‘हांहां, ले लो और तुम क्या मुझे आलू का परांठा दोगी?’’ रम्या की बेफिक्री से सोमेश भी थोड़ा बेतकल्लुफ हो गया था.

‘‘अरे बिलकुल सर, मैं तो बोर हो गई हूं आलू के परांठे खाखा कर. सुबह जल्दी में ये आसानी से बन जाते हैं. सब्जी बनाने के चक्कर में देर होने लगती है.’’

‘‘तुम खुद ही खाना बनाती हो क्या?’’

‘‘जी सर, अकेली रहती हूं तो खुद ही बनाना पड़ेगा न.’’

‘‘तुम अकेली रहती हो?’’

‘‘जी सर, मां को इलाज के लिए मामाजी के पास छोड़ा हुआ है.’’

सोमेश रम्या से अनेक सवाल पूछना चाहता था, लेकिन तभी कैंटीन में लगी बड़ी सी घड़ी की ओर उस का ध्यान गया. लंच टाइम खत्म होने वाला था. लंच के बाद उस की मैनेजर के साथ मीटिंग थी. उस ने अपना टिफिन रम्या की ओर खिसका दिया. बदले में रम्या ने भी 4 परांठों का डब्बा उस की ओर बढ़ा दिया.

लंच के बाद मीटिंग में मैनेजर ने उस से नए स्टाफ की जानकारी ली और पूछा कि इन में से किस नए मैंबर को तुम अपनी टीम में शामिल करना चाहते हो. चूंकि सभी नए लोगों की योग्यता एक सी ही थी और किसी को भी काम करने का पुराना अनुभव नहीं था, इसलिए उसे किसी के भी अपनी टीम में जुड़ने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था.

‘‘जैसा आप ठीक समझें सर,’’ सोमेश ने औपचारिक अंदाज में कहा.

‘‘तो फिर मैं रम्या को तुम्हारी टीम में दे रहा हूं, क्योंकि नमनजी ने दीपक को लिया है, जो उन का कोई दूर का रिश्तेदार लगता है. और देवेंद्र का स्वभाव तो तुम जानते ही हो कि उस के साथ कोई लड़की काम करना ही नहीं चाहती,’’ मैनेजर साहब ने जैसे पहले से ही सोच रखा था.

‘‘ठीक है सर,’’ सोमेश ने स्वीकृति में सिर हिलाया.

अगले दिन से रम्या सोमेश की टीम से जुड़ गई. थोड़ा और बेतकल्लुफ होते हुए अब रम्या उस के टिफिन से मांग कर खाना खाने लग गई.

‘‘आज शाम को जल्दी आ जाना, छोटे बेटे को टीका लगवाने जाना है,’’ औफिस के लिए निकलते हुए सोमेश को पीछे से रूमी की आवाज सुनाई दी. आज्ञाकारी पति की तरह सिर हिलाते हुए सोमेश ने गाड़ी स्टार्ट की.

शाम को औफिस से निकलते समय बारिश हो रही थी. सोमेश जल्दी से पार्किंग में खड़ी गाड़ी की ओर बढ़ा, लेकिन कुछ बूंदें उस पर पड़ ही गईं. गाड़ी में बैठ कर वह थोड़ा ही आगे बढ़ा था कि उस की नजर सामने एक दुकान के पास बारिश से बचने की कोशिश में किनारे खड़ी रम्या पर पड़ी.

इंसानियत के नाते उस ने गाड़ी उधर रोक दी और अंदर बैठे हुए ही रम्या को आवाज लगाई, ‘‘गाड़ी में आ जाओ वरना भीग जाओगी. अकेली रहती हो, बीमार हो गई तो देखभाल कौन करेगा?’’

बारिश से बचतीबचाती रम्या आ कर उस की गाड़ी में उस की बगल में बैठ गई. उस के सिर से पानी टपक रहा था.

‘‘ओह तुम तो काफी भीग गई हो,’’ सोमेश ने संवेदना दिखाते हुए कहा, ‘‘तुम्हारा घर कहां है?’’

‘‘पास ही है सर, पैदल ही आ जाती हूं. आज बारिश हो रही थी वरना आप को कष्ट नहीं देती.’’

बातों ही बातों में दोनों ने एकदूसरे को अपने परिवार के बारे में बता डाला. सोमेश को यह जान कर बड़ा आश्चर्य हुआ कि पिता के होते हुए भी अपनी बीमार मां की देखभाल का जिम्मा रम्या के ऊपर है.

‘‘क्या तुम्हारे पिताजी साथ में नहीं रहते?’’ सोमेश को रम्या के प्रति गहरी संवेदना हो आई.

‘‘नहीं सर, पिताजी मां के पूर्व सहपाठी उमेश अंकल को उन का प्रेमी मान कर उन पर शक करते हैं.’’

‘‘अच्छा, अगर रिश्तों में इतनी कड़वाहट है, तो वे तलाक क्यों नहीं ले लेतीं? कम से कम उन्हें अपने खर्च के लिए कुछ पैसे तो मिलेंगे.’’

‘‘वही तो सर, मां की इसी दकियानूसी बात पर तो मुझे गुस्सा आता है. पति साथ न दे तब भी वे उन्हें परमेश्वर ही मानेंगी.’’

बातोंबातों में वे रम्या के घर से आगे निकल गए. इसी बीच रूमी का फोन आ गया, ‘‘सुनो, बाहर बारिश हो रही है, ऐसे में बच्चे को बाहर ले कर जाना ठीक नहीं. हम कल चलेंगे उसे टीका लगवाने’’ जल्दीजल्दी बात पूरी कर रूमी ने फोन काट दिया.

‘‘सर, आप को वापस मोड़ना पड़ेगा, मेरा घर पीछे रह गया.’’

‘‘कोई बात नहीं, कह कर सोमेश ने गाड़ी मोड़ ली. वैसे भी अब घर जल्दी जा कर करना ही क्या था.’’

तभी रम्या को जोर की छींक आई.

‘‘बारिश में बहुत भीग गई हो, लगता है तुम्हें जुकाम हो गया है,’’ सोमेश को रम्या की चिंता होेने लगी.

रम्या का घर आ गया था. उस ने शिष्टाचारवश कहा, ‘‘सर, 1 कप चाय पी कर जाइए.’’

ऐसी बारिश में सोमेश को भी चाय की तलब हो आई थी. अत: रम्या के पीछे उस के छोटे से कमरे वाले घर में चला गया.

‘‘मैं अभी आई,’’ कह कर रम्या सामने लगे दरवाजों में एक के अंदर चली गई. कुछ देर तक वापस नहीं आई तो सोमेश खुद ही उधर जाने लगा. कुछ आगे जाने पर उसे दरवाजे की दरार में से रम्या नजर आई. अचानक ही रम्या की निगाहें भी उस से टकरा गईं. उस ने जल्दी से दरवाजा बंद किया, लेकिन कपड़े बदलती रम्या की एक झलक सोमेश को मिल चुकी थी.

‘‘माफ कीजिएगा सर, दरवाजे की चिटकनी खराब है… अकेली रहती हूं, इसलिए सही करवाने का समय ही नहीं मिलता.’’

फिर नजरें झुकाए हुए ही वह चाय बना कर ले आई. चाय का कप लेते हुए एक बार फिर सोमेश की निगाहें रम्या से चार हो गईं. इस बार रम्या ने नजरें नहीं झुकाईं, बल्कि खुद को आवेश के पलों में बहक जाने दिया.

अरसे का तरसा सोमेश रम्या का खुला निमंत्रण पा कर पागल ही हो बैठा.

कुछ पलों को वह यह भी भूल गया कि वह शादीशुदा है और उस के 2 बच्चे भी हैं.

जब तक वह कुछ सोचसमझ पाता, तीर कमान से निकल चुका था. वह खुद से नजरें नहीं मिला पा रहा था. रम्या ने उसे संयत किया. ‘‘इतना परेशान होने की जरूरत नहीं है सर, यह तो शरीर की स्वाभाविक जरूरत है. मेरा पहले भी एक बौयफ्रैंड था… आज का अनुभव मेरे लिए कोई नया नहीं है. आप कहें तो मैं इस बारे में किसी से कुछ नहीं कहूंगी.’’

रम्या की बात सुन कर सोमेश ने किसी तरह खुद को संभाला और बिना कुछ कहे अपने घर का रास्ता लिया.

अब सोमेश हर पल बेचैन रहने लगा.

रम्या की उपस्थिति में उस की यह बेचैनी और भी बढ़ जाती जबकि रम्या बिलकुल सामान्य रहती. वह रम्या के सान्निध्य के बहाने ढूंढ़ता रहता.

घर छोड़ने के बहाने वह कई बार रम्या के घर गया. रम्या बड़ी सहजता से उस की ख्वाहिश पूरी करती रही. बदले में सोमेश भी उसे कंपनी में तरक्की पर तरक्की देता रहा और देता भी क्यों नहीं? रम्या पूरी तरह से  विनविन सिचुएशन का मतलब जो समझ चुकी थी.

धन्नो : भानुमती किस कमी से परेशान रहती थी

भानुमती नाम था उन का. निम्नमध्य- वर्गीय परिवार, परिवार माने पूरे डेढ़ दर्जन लोग, कमाने वाला इकलौता उन का पति और वे स्वयं राजस्थान के एक सरकारी स्कूल की शिक्षिका.

‘‘जब देखो तब घर में कोहराम छिड़ा रहता है,’’ वे अकसर अनु से कहती थीं. अनु उन से आधी उम्र की थी. उस की नियुक्ति प्रिंसिपल के पद पर हुई थी. भानुमती अकसर देर से स्कूल आतीं और जब आतीं तो सिर पर पट्टी बंधी रहती. सिर में उन के सदैव दर्द रहता था. चिड़चिड़ा स्वभाव, स्कूल आती थीं तो लगता था किसी जंग के मैदान से भाग कर आई हों.

उन्हें अनुशासन में बांधना असंभव था. अनु उन से एक सुहृदया बौस की तरह पेश आती थी. यही कारण था कि सब की अप्रिय, भानुमतीजी अपने जीवन की पोथी उस के सामने खोल कर बैठ जाती थीं.

एक दिन प्रार्थना सभा में वे चक्कर खा कर गिर पड़ीं. तुरंत चिकित्सा आदि की गई तो पता चला कि पिछले 24 घंटे से उन्होंने एक बूंद पानी भी नहीं पिया था. वे 7 दिन से व्रत कर रही थीं. स्कूल आना बेहद जरूरी था क्योेंकि परीक्षा चल रही थी. समय ही नहीं जुटा पाईं कि अपना ध्यान रख सकें. जब उन्हें चाय आदि पिला कर स्वस्थ किया गया तो एकदम से फफक पड़ीं.

‘‘आज घर में 10 रुपए भी नहीं हैं. 7 अपने बच्चे, 2 हम, सासससुर, 1 विधवा ननद व 4 उस के बच्चे. सब के तन पर चादर तानतेतानते चादर ही फट गई है, किसकिस का तन ढकूं? किसकिस के पेट में भोजन डालूं? किसकिस के पैरों को पत्थरकंकड़ चुभने से बचाऊं? किस को पढ़ाऊं, किस को नहीं? सब जरूरी हैं. एक का कुरता सिलता है तो दूसरे की सलवार फट जाती है. एक की रोटी सिंकती है तो दूसरे की थाली खाली हो जाती है. और ये लक्ष्मीमाता मेरे घर के दरवाजे की चौखट से कोसों दूर…वहां विष्णु के पैर दबा रही हैं. खुद तो स्वर्णजडि़त ताज पहने, कमल के फूल पर विराजमान हैं और यहां उन के भक्तों को कांटों के गद्दे भी नसीब नहीं होते…’’

न मालूम क्याक्या बड़बड़ा रही थीं. उस दिन तो जैसे किसी वेगवती नदी का बांध टूट गया हो. उन्होंने किसी को नहीं छोड़ा. न ऊपर वाले को न नीचे वाले को….

थोड़ा स्वस्थ होने पर बोलीं, ‘‘चाय का यह घूंट मेरे गले में दिन भर बाद उतरा है पर किसी को फिक्र है मेरी? पति तो इस भीड़ में ऐसे खो गए हैं कि मेरी शक्ल देख कर भी मुझे पहचान नहीं पाएंगे. बस, बच्चे पैदा कर डाले, वह भी 7. आज के जमाने में जहां लोगों के घर 1 या 2 बच्चे होते हैं, मेरे घर में दूसरों को देने लायक ऐक्स्ट्रा बच्चे हैं. 6 बेटियां हैं, परंतु उन्हें तो बेटा चाहिए, चाहिए तो बस चाहिए, आखिर 7वां बेटा हुआ.

‘‘सच पूछो तो मैडम, मुझे अपनी कोखजनों से कोई लगाव नहीं है, कोई ममता नहीं है. आप कहेंगी कि कैसी मां हूं मैं? बस, मैं तो ऐसी ही हूं…रूखी. पैसे का अभाव ब्लौटिंग पेपर की तरह समस्त कोमल भावनाओं को सोख गया है. पानी सोख लेने वाला एक पौधा होता है, ठीक उसी तरह मेरे इस टब्बर ने पैसों को सोख लिया है,’’ वे रोती जा रही थीं और बोलती जा रही थीं.

‘‘जीवन में कुछ हो न हो, बस पैसे का अभाव नहीं होना चाहिए. मुझे तो आजकल कुछ हो गया है, पेड़ों पर लगे पत्ते रुपए नजर आते हैं. मन करता है, उन्हें तोड़ लाऊं. सड़क पर पड़े ईंट के टुकड़े रुपयों की गड्डी नजर आते हैं और नल से पानी जब खाली लोहे की बालटी में गिरता है तो उस में भी पैसों की खनक जैसी आवाज मुझे सुनाई देती है.’’

उस दिन उन की यह दशा देख कर अनु को लगा कि भानुमतीजी की मानसिक दशा बिगड़ रही है. उस ने उन की सहायता करने का दृढ़ निश्चय किया. मैनेजमैंट के साथ मीटिंग बुलाई, भानुमतीजी की सब से बड़ी लड़की जो कालेज में पढ़ रही थी, उसे टैंपोररी नौकरी दिलवाई, दूसरी 2 लड़कियों को भी स्कूल के छोटे बच्चों के ट्यूशन दिलवाए.

अनु लगभग 8 साल तक उस स्कूल में प्रिंसिपल रही और उस दौरान भानुमतीजी की समस्याएं लगभग 50 फीसदी कम हो गईं. लड़कियां सुंदर थीं. 12वीं कक्षा तक पढ़ कर स्वयं ट्यूशन करकर के उन्होंने कुछ न कुछ नौकरियां पकड़ लीं. सुशील व कर्मठ थीं. 4 लड़कियों की सहज ही बिना दहेज के शादियां भी हो गईं. 1 बेटी डाक्टरी में निकल गई और 1 इंजीनियरिंग में.

ननद के बच्चे भी धीरेधीरे सैटल हो गए. सासससुर चल बसे थे, पर उन का बुढ़ापा, भानुमतीजी को समय से पहले ही बूढ़ा कर गया था. 47-48 साल की उम्र में 70 साल की प्रतीत होती थीं भानुमतीजी. जब कभी कोई बाहर से सरकारी अफसर आता था और शिक्षकों का परिचय उन से करवाया जाता था, तो प्राय: कोई न कोई अनु से प्रश्न कर बैठता था :

‘‘आप के यहां एक टीचर काफी उम्र की हैं, उन्हें तो अब तक रिटायर हो जाना चाहिए.’’

उन की उम्र पता चलने पर, उन के चेहरे पर अविश्वास के भाव फैल जाते थे. जहां महिलाएं अपनी उम्र छिपाने के लिए नईनई क्रीम, लोशन व डाई का प्रयोग करती हैं वहीं भानुमतीजी ठीक इस के विपरीत, न बदन पर ढंग का कपड़ा न बालों में कंघी करना. लगता है, वे कभी शीशे में अपना चेहरा भी नहीं देखती थीं. जिस दिन वे मैचिंग कपड़े पहन लेती थीं पहचानी नहीं जाती थीं.

‘‘महंगाई कितनी बढ़ गई है,’’ वे अकसर कहती रहती थीं. स्टाफरूम में उन का मजाक भी उड़ाया जाता था. उन के न मालूम क्याक्या नाम रखे हुए थे… उन्हें भानुमतीजी के नाम से कोई नहीं जानता था.

एक दिन इंटरस्कूल वादविवाद प्रतियोगिता के सिलसिले में अनु ने अपने नए चपरासी से कहा, ‘‘भानुमतीजी को बुला लाओ.’’

वह पूरे स्कूल में ढूंढ़ कर वापस आ गया. तब अनु ने उन का पूरा नाम व क्लास लिख कर दिया, तब कहीं जा कर वे आईं तो अनु ने देखा कि चपरासी भी हंसी को दबा रहा था.

अनु ने वादविवाद का विषय उन्हें दे दिया और तैयारी करवाने को कहा. विषय था : ‘टेलीविजन धारावाहिक और फिल्में आज साहित्य का स्थान लेती जा रही हैं और जिस प्रकार साहित्य समाज का दर्पण होता जा रहा है वैसे ही टेलीविजन के धारावाहिक या फिल्में भी.’

वादविवाद प्रतियोगिता में बहुधा टीचर्स की लेखनी व वक्ता का भावपूर्ण भाषण होता है. 9वीं कक्षा की नीति प्रधान, भानुमतीजी की क्लास की थी. उस ने ओजपूर्ण तर्क रखा और समस्त श्रोताओं को प्रभावित कर डाला. उस ने अपना तर्क कुछ इस प्रकार रखा था :

‘टेलीविजन धारावाहिक व फिल्में समाज का झूठा दर्पण हैं. निर्धन किसान का घर, पांचसितारा होटल में दिखाया जाता है. कमरे में परदे, सोफासैट, खूबसूरत पलंग, फर्श पर कालीन, रंगीन दीवारों पर पेंटिंग और बढि़या स्टील के खाली डब्बे. भारी मेकअप व गहनों से लदी महिलाएं जेवरात की चलतीफिरती दुकानें लगती हैं.’

व्यंग्यात्मक तेवर अपनाते हुए नीति प्रधान पुरजोर पौइंट ढूंढ़ लाई थी, टेलीविजन पर गरीबी का चित्रण और वास्तव में गरीबी क्या होती है?

‘गरीब के नए कपड़ों पर नए कपड़ों का पैबंद लगाया दिखाते हैं. वे तो अकसर ऐसे लगते हैं जैसे कोई बुटीक का डिजाइन. गरीबी क्या होती है? किसी गरीब के घर जा कर देखें. आजकल के युवकयुवतियां घुटनों पर से फटी जीन्स पहनना फैशन मानते हैं, तब तो गरीब ही सब से फैशनेबल हैं. बड़ेबड़े स्टेटस वाले लोग कहते हैं :

‘आई टेक ब्लैक टी. नो शुगर प्लीज.’

‘अरे, गरीब के बच्चे सारी जिंदगी ब्लैक टी ही पीते रहे हैं, दूध और शक्कर के अभाव में पलतेपलते वे कितने आधुनिक हो गए हैं, उन्हें तो पता ही नहीं चला. आजकल अकसर लोग महंगी होलव्हीट ब्रैड खाने का ढोल पीटते हैं. अरे, गरीब तो आजीवन ही होलव्हीट की रोटियां खाता आया है. गेहूं के आटे से चोकर छान कर रोटियां बनाईं तो रोटियां ही कम पड़ जाएंगी. और हां, आजकल हर वस्तु में रिसाइक्ंिलग शब्दों का खूब इस्तेमाल होता है, गरीब का तो जीवन ही रिसाइकल है. सर्दी की ठिठुरती रातों में फटेपुराने कपड़ों को जोड़ कर जो गुदड़ी सिली जाती है उसे कोई फैशनेबल मेमसाहब अपना बटुआ खाली कर खरीद कर ले जाएंगी.’

धन के अभाव का ऐसा आंखोंदेखा हाल प्रस्तुत करने वाला और कौन हो सकता था? प्रतियोगिता में नीति प्रथम घोषित हुई थी.

अनु को दिल्ली आए अब 10-12 वर्ष हो गए थे. अब तो वह शिक्षा मंत्रालय में, शिक्षा प्रणाली के योजना विभाग में कार्य करने लगी थी. अत: उस स्कूल के बाद छात्रों व अध्यापकों के साथ उस की नजदीकियां खत्म हो गई थीं. अकसर अनु को वहां की याद आती थी. उस स्कूल की लगभग सभी अध्यापिकाएं….सब के जीवन में कहीं न कहीं कोई न कोई कमी तो थी ही. कोई स्वास्थ्य से परेशान तो कोई अपने पति को ले कर दुखी. कोई समाज से तो कोई मकान से.

जहां सब सुख थे, वहां भी हायतौबा. मिसेज भंडारी बड़े हंसमुख स्वभाव की महिला थीं, संपन्न, सुंदर व आदरणीय. उन्हें ही अनु कार्यभार सौंप कर आई थी. वे अकसर अपनी सास के बारे में बात करती और कहती थीं, ‘‘मेरी सास के पास कोई दुख नहीं है, फिर भी वे दुख ढूंढ़ती रहती हैं, वास्तव में उन्हें सुखरोग है.’’

एक दिन अनु दिल्ली के एक फैशनेबल मौल में शौपिंग करने गई थी. वहां अचानक उसे एक जानापहचाना चेहरा नजर आया. करीने से कढ़े व रंगे बाल, साफसुथरा, मैचिंग सिल्क सलवार- सूट, हाथों में पर्स. पर्स खोल कर रुपयों की गड्डी निकाल कर काउंटर पर भुगतान करते हुए उन के हाथ और हाथों की कलाइयों पर डायमंड के कंगन.

‘‘भानुमतीजी, आप…’’अविश्वास के बीच झूलती अनु अपलक उन्हें लगभग घूर रही थी.

‘‘अरे, अनु मैडम, आप…’’

दोनों ने एकदूसरे को गले लगाया. भानुमती के कपड़ों से भीनीभीनी परफ्यूम की खुशबू आ रही थी.

अनु ने कहा, ‘‘अब मैं मैडम नहीं हूं, आप सिर्फ अनु कहिए.’’

अनु ने देखा 4-5 बैग उन्हें डिलीवर किए गए.

‘‘आइए, यहां फूडकोर्ट में बैठ कर कौफी पीते हैं,’’ अनु ने आग्रह किया.

‘‘आज नहीं,’’ वे बोलीं, ‘‘बेटी आज जा रही है, उसी के लिए कुछ गिफ्ट खरीद रही थी. आप घर आइए.’’

अनु ने उन का पता और फोन नंबर लिया. मिलने का पक्का वादा करते हुए दोनों बाहर निकल आईं. अनु ने देखा, एक ड्राइवर ने आ कर उन से शौपिंग बैग संभाल लिए और बड़ी सी गाड़ी में रख दिए. अनु की कार वहीं कुछ दूरी पर पार्क थी. दोनों ने हाथ हिला कर विदा ली.

भानुमतीजी की संपन्नता देख कर अनु को बहुत खुशी हुई. सोचने लगी कि बेचारी सारी जिंदगी मुश्किलों से जूझती रहीं, चलो, बुढ़ापा तो आराम से व्यतीत हो रहा है. अनु ने अनुमान लगाया कि बेटा होशियार तो था, जरूर ही अच्छी नौकरी कर रहा होगा. समय निकाल कर उन से मिलने जरूर जाऊंगी. भानुमतीजी के 3-4 फोन आ चुके थे. अत: एक दिन अनु ने मिलने का कार्यक्रम बना डाला. उस ने पुरानी यादों की खातिर उन के लिए उपहार भी खरीद लिया.

दिए पते पर जब अनु पहुंची तो देखा बढि़या कालोनी थी. गेट पर कैमरे वाली सिक्योरिटी. इंटरकौम पर चैक कर के, प्रवेश करने की आज्ञा के बाद अनु अंदर आई. लंबे कौरीडोर के चमकते फर्श पर चलतेचलते अनु सोचने लगी कि भानुमतीजी को कुबेर का खजाना हाथ लग गया है. वाह, क्या ठाटबाट हैं.

13 नंबर के फ्लैट के सामने दरवाजा खोले भानुमतीजी अनु की प्रतीक्षा में खड़ी थीं. खूबसूरत बढि़या परदे, फर्नीचर, डैकोरेशन.

‘‘बहुत खूबसूरत घर है, आप का.’’

कहतेकहते अचानक अनु की जबान लड़खड़ा गई. वह शब्दों को गले में ही घोट कर पी गई. सामने जो दिखाई दिया, उसे देखने के बाद उस में खड़े रहने की हिम्मत नहीं थी. वह धम्म से पास पड़े सोफे पर बैठ गई. मुंह खुला का खुला रह गया. गला सूख गया. आंखें पथरा गईं. चश्मा उतार कर वह उसे बिना मतलब पोंछने लगी. भानुमतीजी पानी लाईं और वह एक सांस में गिलास का पानी चढ़ा गई. भानुमतीजी भी बैठ गईं. चश्मा उतार कर वे फूटफूट कर रो पड़ीं.

‘‘देखिए, देखिए, अनुजी, मेरा इकलौता बेटा.’’

हक्कीबक्की सी अनु फे्रम में जड़ी 25-26 साल के खूबसूरत नौजवान युवक की फोटो को घूर रही थी, उस के निर्जीव गले में सिल्क के धागों की माला पड़ी थी, सामने चांदी की तश्तरी में चांदी का दीप जल रहा था.

‘‘कब और कैसे?’’

सवाल पूछना अनु को बड़ा अजीब सा लग रहा था.

‘‘5 साल पहले एअर फ्रांस का एक प्लेन हाइजैक हुआ था.’’

‘‘हां, मुझे याद है. अखबार में पढ़ा था कि पायलट की सोच व चतुराई के चलते सभी यात्री सुरक्षित बच गए थे.’’

‘‘जी हां, ग्राउंड के कंट्रोल टावर को उस ने बड़ी चालाकी से खबर दे दी थी, प्लेन लैंड करते ही तमाम उग्रवादी पकड़ लिए गए थे परंतु पायलट के सिर पर बंदूक ताने उग्रवादी ने उसे नहीं छोड़ा.’’

‘‘तो, क्या वह आप का बेटा था?’’

‘‘हां, मेरा पायलट बेटा दुष्यंत.’’

‘‘ओह,’’ अनु ने कराह कर कहा.

भानुमतीजी अनु को आश्वस्त करने लगीं और भरे गले से बोलीं, ‘‘दुष्यंत को पायलट बनने की धुन सवार थी. होनहार पायलट था अत: विदेशी कंपनी में नौकरी लग गई थी. मेरे टब्बर का पायलट, मेरी सारी जिंदगी की जमापूंजी.’’

‘‘उस ने तो बहुत सी जिंदगियां बचा दी थीं,’’ अनु ने उन के दुख को कम करने की गरज से कहा.

‘‘जी, उस प्लेन में 225 यात्री थे. ज्यादातर विदेशी, उन्होंने उस के बलिदान को सिरआंखों पर लिया. मेरी और दुष्यंत की पूजा करते हैं. हमें गौड तुल्य मानते हैं. भूले नहीं उस की बहादुरी और बलिदान को. इतना धन मेरे नाम कर रखा है कि मेरे लिए उस का हिसाब भी रखना मुश्किल है.’’

अनु को सब समझ में आ गया.

‘‘अनुजी, शायद आप को पता न होगा, उस स्कूल की युवा टीचर्स, युवा ब्रिगेड ने मेरा नाम क्या रख रखा था?’’

अस्वस्थ व अन्यमनस्क होती हुई अनु ने आधाअधूरा उत्तर दिया, ‘‘हूं… नहीं.’’

‘‘वे लोग मेरी पीठ पीछे मुझे भानुमती की जगह धनमती कहते थे, धनधन की माला जपने वाली धन्नो.’’

अनु को उस चपरासी की शरारती हंसी का राज आज पता चला.

‘‘कैसी विडंबना है, अनुजी. मेरे घर धन आया तो पर किस द्वार से. लक्ष्मी आई तो पर किस पर सवार हो कर…उन का इतना विद्रूप आगमन, इतना घिनौना गृहप्रवेश कहीं देखा है आप ने?’’

: मधु

थैंक्यू मम्मी-पापा: बेटे के लिए क्या तरकीब निकाली?

‘‘हां, बोलो तानिया, कैसी हो,’’ फोन उठाते ही वरुण ने तानिया का स्वर पहचान लिया.

‘‘मैं तो ठीक हूं, पर तुम्हारी क्या समस्या है वरुण?’’ तानिया ने तीखे स्वर में पूछा.

‘‘कैसी समस्या?’’

‘‘वह तो तुम्हीं जानो पर तुम से बात करना तो असंभव होता जा रहा है. घर पर फोन करो तो मिलते नहीं हो. मोबाइल हमेशा बंद रहता है,’’ तानिया ने शिकायत की.

‘‘आज पूरा दिन बहुत व्यस्त था. बौस के साथ एक के बाद एक मीटिंगों का ऐसा दौर चला कि सांस लेने तक की फुरसत नहीं थी. मीटिंग में मोबाइल तो बंद रखना ही पड़ता है,’’ वरुण ने सफाई दी.  ‘‘बनाओ मत मुझे. तुम जानबूझ कर बात नहीं करना चाहते. मैं क्या जानती नहीं कि तुम अपनी कंपनी के उपप्रबंध निदेशक हो. तुम्हें फोन पर बात करने से कौन मना कर सकता है?’’

‘‘प्रश्न किसी और के मना करने का नहीं है पर जो नियमकायदे दूसरों के लिए बनाए गए हैं, उन का पालन सब से पहले मुझे ही करना पड़ता है,’’ वरुण ने सफाई दी.

‘‘यह सब मैं कुछ नहीं जानती. पर मैं बहुत नाराज हूं. फोन करकर के थक गई हूं मैं.’’

‘‘छोड़ो ये गिलेशिकवे और बताओ कि किसलिए इतनी बेसब्री से फोन पर संपर्क साधा जा रहा था?’’

‘‘वाह, बात तो ऐसे कर रहे हो जैसे कुछ जानते ही नहीं. याद है, आज संदीप ने तुम्हारे स्वागत में बड़ी पार्टी का आयोजन किया है.’’

‘‘याद रहने, न रहने से कोई अंतर नहीं पड़ता. मैं ने पहले ही कहा था कि मैं पार्टी में नहीं आ रहा. आज मैं बहुत व्यस्त हूं. व्यस्त न होता तो भी नहीं आता. मुझे पार्टियों में जाना पसंद नहीं है.’’

‘‘क्या कह रहे हो? संदीप बुरा मान जाएगा. उस ने यह पार्टी विशेष रूप से तुम्हारे लिए ही आयोजित की है.’’

‘‘जरा सोचो तानिया, पिछले 10 दिन में हम जब भी मिले हैं, किसी न किसी पार्टी में ही मिले हैं. तुम्हें नहीं लगता कि कभी हम दोनों अकेले में ढेर सारी बातें करें. एकदूसरे को जानेंसमझें?’’

‘‘कितने पिछड़े विचार हैं तुम्हारे, बातें तो हम पार्टी में भी कर सकते हैं और एकदूसरे को जाननेसमझने को तो पूरा जीवन पड़ा है,’’ तानिया ने अपने विचार प्रकट किए तो वरुण बुरी तरह झल्ला गया. पर वह कोई कड़वी बात कह कर कोई नई मुसीबत मोल नहीं लेना चाहता था.

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‘‘ठीक है, तो फिर कभी मिलेंगे. बहुत सारी बातें करनी हैं तुम से,’’ वरुण ने लंबी सांस ली थी.

‘‘क्या, पार्टी में नहीं आ रहे तुम?’’ तानिया चीखी.

‘‘नहीं.’’

‘‘ऐसा मत कहो, तुम्हें मेरी कसम. आज की पार्टी में तुम्हारी मौजूदगी बेहद जरूरी है.’’

‘‘केवल एक ही शर्त पर मैं पार्टी में आऊंगा कि आज के बाद तुम मुझे किसी दूसरी पार्टी में नहीं बुलाओगी,’’ वरुण अपना पीछा छुड़ाने की नीयत से बोला था.

‘‘जैसी आप की आज्ञा महाराज,’’ तानिया नाटकीय अंदाज में हंस कर बोली.  वरुण पार्टी में पहुंचा तो वहां की तड़कभड़क देख कर दंग रह गया था. ज्यादातर युवतियां पारदर्शी, भड़काऊ परिधानों में एकदूसरे से प्रतिस्पर्धा करती नजर आ रही थीं.

तानिया को देख कर पहली नजर में तो वरुण पहचान ही नहीं सका. कुछ देर के लिए तो वह उसे देखता ही रह गया था.

‘‘अरे, ऐसे आश्चर्य से क्या घूर रहे हो?’’ तानिया खिलखिलाई थी, ‘‘कैसा लग रहा है मेरा नया रूपरंग? आज का यह नया रूपरंग, साजसिंगार खासतौर पर तुम्हारे लिए है. बालों का यह नया अंदाज देखो और यह नई ड्रैस. इसे आज के मशहूर डिजाइनर सुशी से डिजाइन करवाया है,’’ तानिया सब के सामने अपनी प्रदर्शनी कर रही थी. पर वरुण के मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला था.

‘‘क्या कर रही हो तुम? क्यों लोगों के सामने अपना तमाशा बना रखा है तुम ने. अपना नहीं तो कम से कम मेरे सम्मान का खयाल करो,’’ वरुण उसे एक ओर ले जा कर बोला था.

‘‘क्यों, क्या हुआ? तुम तो ऐसे नाराज हो रहे हो जैसे मैं ने कोई अपराध कर डाला होे. खुद तो कभी मेरी प्रशंसा में दो शब्द बोलते नहीं हो और मेरे पूछने पर यों मुंह फुला लेते हो,’’ तानिया आहत स्वर में बोली थी.

‘‘तुम्हें दुखी करने का मेरा कोई इरादा नहीं था. पर फिर भी…’’

‘‘फिर भी क्या?’’

‘‘मैं अपनी भावी पत्नी से थोड़े शालीन व्यवहार की उम्मीद रखता हूं और तुम्हारी यह ड्रैस? इस के बारे में जो न कहा जाए वह कम है,’’ वरुण शायद कुछ और भी कहता कि तभी संदीप अपने 2 दूसरे मित्रों के साथ आ गया था.

‘‘हैलो वरुण,’’ संदीप ने बड़ी गर्मजोशी से आगे बढ़ कर हाथ मिलाया था.

‘‘आज आप को यहां देख कर मुझे असीम प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है. मैं ने यह पार्टी आप के सम्मान में आयोजित की है. आप के न आने से इस सब तामझाम का कोई अर्थ ही नहीं रह जाता,’’ संदीप ने कहा और वहां मौजूद अतिथियों से उस का परिचय कराने लगा. तानिया भी उस के साथ ही अपने दोस्तों से वरुण का परिचय करा रही थी.

‘‘इन से मिलिए, ये हैं डा. पंकज राय. शल्य चिकित्सक होने के साथ ही तानिया के अच्छे मित्र भी हैं,’’ एक युवक से परिचय कराते हुए कुछ ठिठक सा गया था संदीप.  ‘‘डा. पंकज से इन का परिचय मैं स्वयं कराऊंगी. मेरे बड़े अच्छे मित्र हैं. 2 वर्ष तक हम दोनों साथ रहे हैं. एकदूसरे को जाननेसमझने का प्रयत्न किया. जब लगा कि हम एकदूसरे के लिए बने ही नहीं हैं तो अलग हो गए,’’ तानिया ने विस्तार से डा. पंकज का परिचय दिया.  ‘‘तानिया ठीक कहती है. मैं ने तो इसे सलाह दी थी कि हमारे साथ रहने की बात आप को न बताए. पर यह कहने लगी कि आप संकीर्ण मानसिकता के व्यक्ति नहीं हैं. वैसे भी आजकल तो यह सब आधुनिक जीवन का हिस्सा है,’’

डा. पंकज ने अपने विचार प्रकट किए थे.  कुछ क्षणों के लिए तो वरुण को लगा कि उस का मस्तिष्क किसी प्रहार से सुन्न हो गया है. पर दूसरे ही क्षण उस ने खुद को संभाल लिया. वह कोई भी उलटीसीधी हरकत कर के लोगोें के उपहास का पात्र नहीं बनना चाहता था.  पर मन में एक फांस सी गड़ गई थी जो लाख प्रयत्न करने पर भी निकल नहीं रही थी. अच्छा था कि वरुण के चेहरे के बदलते भावों को किसी ने नहीं देखा.

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हाथ में शीतल पेय का गिलास थामे वह एक ओर पड़े सोफे पर बैठ गया.  पिछले कुछ समय की घटनाएं चलचित्र की तरह वरुण के मानसपटल से टकरा रही थीं. 10-12 दिन पहले ही बड़ी धूमधाम से तानिया से उस की सगाई हुई थी. बड़े से पांचसितारा होटल में मानो आधा शहर ही उमड़ आया था. तानिया के पिता जानेमाने व्यवसायी थे. विधानपरिषद के सदस्य होने के साथ ही राजनीतिक क्षेत्र में उन की अच्छी पैठ थी. सगाई से पहले वरुण 3-4 बार तानिया से मिला था. उसे लगा कि तानिया ही उस के सपनों की रानी है, जिस की उसे लंबे समय से प्रतीक्षा थी. अपने सुंदर रंगरूप और खुले व्यवहार से किसी को भी आकर्षित कर लेना तानिया के बाएं हाथ का खेल था.  वरुण के मातापिता ने तानिया को देखते ही पसंद कर लिया था. वरुण का परिवार भी शहर के संपन्न परिवारों में गिना जाता था. पर उस के मातापिता ‘सादा जीवन उच्च विचार’ के पक्षधर थे. सगाई के अवसर की तड़कभड़क देख कर उस के मित्रों और संबंधियों ने दांतों तले उंगली दबा ली थी. वरुण और उस के मातापिता ने भी इसे स्वाभाविक रूप से ही लिया था. पर अब वरुण को लग रहा था कि सबकुछ बहुत जल्दबाजी में हो गया. उसे तानिया को अच्छी तरह जाननेसमझने के बाद ही कोई निर्णय लेना चाहिए था.  तानिया की कई सहेलियां व दोस्त थे. उस ने खुद ही वरुण को सबकुछ स्पष्ट रूप से बता दिया था. शायद उस के इस खुले स्वभाव ने ही प्रारंभ में उसे प्रभावित किया था. आज जब युवा खुलेआम एकदूसरे से मिलतेजुलते हैं तो उन में मित्रता होना स्वाभाविक है. वह अब तक स्वयं को खुली मानसिकता का व्यक्ति समझता था, पर आज की घटना ने उसे पूर्ण रूप से उद्वेलित कर दिया था.

हर समय अपने पुरुष मित्रों की बातें करना, उन के गले में बाहें डाल कर घूमना, उन के साथ बेशर्मी से हंसना, खिलखिलाना, तानिया के ऐसे व्यवहार को वह सहजता से नहीं ले पा रहा था. मन ही मन स्वयं को भी झिड़क देता था.  ‘समय बहुत तेजी से बदल रहा है वरुण राज. उस के कदम से कदम मिला कर नहीं चले तो औंधे मुंह गिरोगे,’ वह खुद को ही समझाता. कभीकभी तो उसे लगता मानो वह संकीर्ण मानसिकता का शिकार है, जो आधुनिकता का जामा पहन कर भी स्त्री की स्वतंत्रता को स्वीकार करने की स्थिति में नहीं आ सका.  पर आज नहीं, आज तो उसे लगा कि यह उस की सहनशक्ति से परे है. वह इतना आधुनिक भी नहीं हुआ कि समाज की समस्त वर्जनाओं को अस्वीकार कर के उच्छृंखल जीवनशैली अपना ले. उस के धीरगंभीर स्वभाव और अनुशासित जीवनशैली की सभी प्रशंसा करते थे.

धीरेधीरे सबकुछ शीशे की तरह साफ होता जा रहा था. वरुण को लगने लगा कि उसे ग्लैमर की गुडि़या नहीं जीवनसाथी चाहिए, जो शायद तानिया चाह कर भी नहीं बन सकेगी.  वरुण अपने गंभीर खयालों में खोया था कि एक हाथ में सिगरेट और दूसरे में गिलास थामे तानिया लहराती हुई आई.  ‘‘हे, वरुण, तुम यहां बैठे हो? मैं ने तुम्हें कहांकहां नहीं ढूंढ़ा. चलो न, डांस करेंगे,’’ वरुण को देखते ही उस ने आग्रह किया था.  वरुण तुरंत ही उठ खड़ा हुआ था. ‘‘तानिया यह सब क्या है? तुम तो कह रही थीं कि तुम तो सिगरेटशराब को छूती तक नहीं?’’ वरुण ने तीखे स्वर में प्रश्न किया था.  ‘‘मैं तो अब भी वही कह रही हूं. यह सिगरेट तो केवल अदा के लिए है. मुझे तो एक कश लेते ही इतने जोर की खांसी उठती है कि सांस लेना कठिन हो जाता है. तुम भी लो न. अच्छा लगता है. दोनों साथ में फोटो खिचवाएंगे. और यह तो केवल शैंपेन है, महिलाओें का पेय.’’

‘‘धन्यवाद, मैं ऐसे अंदाज दिखाने में विश्वास नहीं रखता,’’ वरुण ने मना किया तो तानिया उसे डांसफ्लोर तक खींच ले गई. तानिया देर तक वहां थिरकती रही, वरुण ने कुछ देर उस का साथ देने का प्रयत्न किया फिर कक्ष से बाहर आ गया. बाहर की ठंडी सुगंधित मंद पवन ने उसे बड़ी राहत दी. वह कुछ देर वहीं बैठ कर आकाश में बनतीबिगड़ती आकृतियों को देखता रहा.  पीनेपिलाने, नाचनेगाने और देर रात तक पार्टी गेम्स खेलने के बाद जब भोजन शुरू हुआ तो सुबह के 4 बज गए थे. वरुण की भूख मर चुकी थी.  तानिया से विदा ले कर जब तक घर पहुंचा तो पौ फटने लगी थी.

‘‘यह घर आने का समय है?’’ उस की मां शोभा देवी झल्लाई थीं.

‘‘मां, तानिया के मित्रों की पार्टी थी. रात भर गहमागहमी चलती रही. मैं थोड़ी देर सो जाता हूं. 3 घंटे के बाद जगा देना. 9 बजे तक कार्यालय पहुंचना है. आवश्यक कार्य है,’’ थके उनींदे स्वर में बोल कर वरुण अपने कमरे में सोने चला गया.  ‘‘आ गया तुम्हारा बेटा?’’ प्रात: टहलने के लिए तैयार हो रहे वरुण के पिता मनोहर ने व्यंग्यपूर्ण स्वर में पत्नी से कहा. ‘‘हां, आ गया,’’ शोभा ने बुझे स्वर में कहा था.

‘‘देख लो, साहबजादे के लक्षण ठीक नजर नहीं आ रहे.’’

‘‘हम दोनों चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते. पढ़ालिखा समझदार है वरुण. अच्छे पद पर है. विवाह भी हम ने उस की पसंद पर छोड़ दिया है. सब देखसुन कर उस ने तानिया को पसंद किया था. पढ़ीलिखी सुंदर स्मार्ट लड़की है. दोनों आनंद से जीवन बिताएं, इस से अधिक हमें क्या चाहिए.’’

‘‘वह भी होता नजर नहीं आ रहा. तुम्हें नहीं लगता कि हमारे और उन के सामाजिक स्तर में बड़ा अंतर है.’’

‘‘होंगे वे बड़े लोग, हम भी उन से किसी बात में कम नहीं हैं. वैसे भी यदि वरुण प्रसन्न है तो तुम क्यों अपना दिल जला रहे हो,’’ शोभा ने बात को वहीं विराम देना चाहा था.

‘‘वह भी ठीक है. काजीजी दुबले क्यों…’’ ठहाका लगाते हुए मनोहर बाबू टहलने के लिए पार्क की ओर चल पड़े.

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कुछ दिन इसी ऊहापोह में बीत गए. वरुण अंतर्मुखी होता जा रहा था.  उस दिन डिनर के समय वरुण अपने ही विचारों में खोया हुआ था. शोभा देवी कुछ देर तक उसे ध्यान से देखती रही थीं.

‘‘वरुण,’’ उन्होंने धीमे स्वर में पुकारा.

‘‘हां, मां, कहिए न, क्या बात है?’’

‘‘बात क्या होगी, तेरी सगाई क्या हुई हम तो तुम से बात करने को तरस गए. बात क्या है बेटे?’’

‘‘कुछ नहीं मां. ऐसे ही कुछ सोचविचार कर रहा था.’’

‘‘सोचविचार बाद में करना. कभी हम से भी बात करने का समय निकाला करो न.’’

‘‘कैसी बात कर रही हो मां. कहिए न, क्या कहना है?’’

‘‘तानिया के पापा का फोन आया था. वे विवाह की तिथि पक्की कर के चटपट इस जिम्मेदारी से मुक्ति पाना चाहते हैं.’’

‘‘ऐसी जल्दी भी क्या है मां? अभी 10 दिन पहले ही तो सगाई हुई है. थोड़े दिन साथ घूमफिर लें, एकदूसरे को समझ लें, फिर विवाह के बारे में सोचेंगे.’’

‘‘क्या कह रहा है बेटे, सगाई के बाद कोई लंबे समय तक प्रतीक्षा नहीं करता. वैसे भी कितना समय चाहिए तुम्हें एकदूसरे को जानने के लिए?’’ शोभा देवी हैरानपरेशान स्वर में बोली थीं.

‘‘मां, हमारे विचारों में कोई समानता नहीं है. मुझे नहीं लगता कि यह विवाह एक दिन भी चल पाएगा. जीवन भर की तो कौन कहे,’’ वरुण रूखे स्वर में बोला था.

‘‘यह क्या कह रहा है बेटे? ये सब तो सगाई से पहले सोचना था.’’

‘‘उसी भूल की तो सजा पा रहा हूं मैं. सच कहूं तो सगाई के बाद से मैं ने एक दिन भी चैन से नहीं बिताया. मां, यह सगाई तोड़ दो. इस विवाह से न मैं खुश रहूंगा, न तानिया. हम दोनों के विचारों और जीवनशैली में जमीनआसमान का अंतर है.’’

शोभा देवी स्तब्ध रह गईं. जब मनोहर बाबू ने भोजन कक्ष में प्रवेश किया तो वहां बोझिल चुप्पी छाई थी.

‘‘क्या बात है. आज मांबेटे का मौनव्रत है क्या?’’ उन्होंने उपहास किया था.

‘‘मौनव्रत तो नहीं है पर पूरी बात सुनोगे तो तुम्हारे पांवों तले से धरती खिसक जाएगी,’’ शोभा देवी रोंआसे स्वर में बोली थीं.

‘‘फिर तो कह ही डालो. हम भी इस अलौकिक अनुभूति का आनंद उठा ही लें.’’

‘‘तो सुनो, वरुण तानिया से विवाह नहीं करना चाहता. चाहता है कि इस सगाई को तोड़ दिया जाए.’’

‘‘क्या? यह सच है वरुण?’’

‘‘जी पापा, मैं विवाह के बंधन को अपने लिए ऐसा पिंजरा नहीं बना सकता जिस में मेरा अस्तित्व मात्र एक परकटे पंछी सा रह जाए.’’  मनोहर बाबू यह सुन कर मौन रह गए थे. वरुण के स्वर से उस की पीड़ा स्पष्ट हो गई थी.  ‘‘ठीक है, जैसी तुम्हारी इच्छा. अभी तो केवल सगाई हुई है. यदि तुम समझते हो कि तुम दोनों की नहीं निभ सकती तो सगाई को तोड़ देने में ही सब की भलाई है.’’

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मनोहर बाबू और शोभा ने तानिया के मातापिता के सामने पूरी स्थिति स्पष्ट कर दी. काफी विचारविमर्श के बाद उस संबंध को वहीं समाप्त करने का निर्णय लिया गया.  दोनों पक्षों ने एकदूसरे को दी हुई वस्तुओं की अदलाबदली कर संपूर्ण प्रक्रिया की इतिश्री कर डाली.  आज बहुत दिनों के बाद शोभा देवी ने वरुण के चेहरे पर स्वाभाविक चमक देखी थी. मन में गहरी टीस होने पर भी उस के चेहरे पर संतोष था.

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