नेता के प्यार में दिल दिया और जान भी दी

जहां पर भी राजनीति व प्यार का मिलन हुआ है, वहां पर ज्यादातर लड़कियों के साथ धोखा ही होता रहा है. बहुत कम ऐसे नेता हैं, जिन्होंने अपने प्यार को निभाया और प्रेमिकाओं की जान बची रही.

उत्तर प्रदेश में एक बड़े नेता हुए, जिन के प्यार में गिरफ्तार हुई कमसिन लड़की को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था. वह लड़की जिस दबंगता से कविता पढ़ती थी, उसी दिलेरी से प्यार के मैदान में नहीं टिकी रह सकी. इस का नतीजा यह हुआ कि जब उस के पेट में नाजायज प्यार की निशानी आई, तो उस के नाम की सुपारी दे दी गई.

इस तरह एक होनहार लड़की तथाकथित प्यार की भेंट चढ़ गई. उसे क्या पता था कि जिस शादीशुदा नेता के प्यार में वह गिरफ्तार है, वही उस की जान का दुश्मन निकलेगा. लड़की की जान गई और नेता जेल पहुंच गए.

इसी तरह एक और बड़े नेता के प्यार की आंच में से एक पत्रकार लड़की पेट से हो गई, तो उसे भी अपनी जान से हाथ धोना पड़ गया.

एक एयरलाइंस चलाने वाले नेता ने भी अपनी तथाकथित प्रेमिका को मौत के घाट उतार दिया और खुद जेल यात्रा पर निकल गए. वैसे, यह राज हमेशा बना रहेगा कि इन सारे मामलों में कौन कुसूरवार था, नेता या जानबूझ कर प्यार की आग में कूदने वाली वह लड़की, जो शायद नेता के जाल में फंस कर उलझ गई?

हरियाणा के भी एक नेता के प्यार में फिदा हो कर एक वकील औरत ने अपने प्राण गंवा दिए थे.

इस तरह की घटना राजस्थान में भी घटी, जहां एक नेता के प्यार में उलझी औरत की सुपारी मंत्री की पत्नी ने दी और वह बच न सकी.

क्या वजह होती है कि ज्यादातर मामलों में शादीशुदा नेता के जाल में लड़कियां ऐसी फंसती हैं कि उन्हें अपनी जान की भी परवाह नहीं रहती है? वे यह भूल जाती हैं कि इन नेताओं के रुतबे के साथ उन के परिवार का भी वजूद होता है, जो हकीकत में उन से ज्यादा ताकतवर होता है.

इसी तरह एक बड़े नामी मंत्री की पत्नी ने जब बड़े होटल में खुदकुशी की, तब नेता पर शक किया गया. हालांकि यह मौत आज भी राज ही है.

दरअसल, अपने दबदबे के चलते नेता मजे तो लूट लेते हैं, पर लड़की को गले में अटकी हड्डी की तरह न निगल सकते हैं, न उगल सकते हैं. हां, सांपछछूंदर जैसे हालात में फंसे इन नेताओं के प्यार के किस्से देश के राजनीतिक हलकों में सुर्खियां जरूर बटोरते रहे हैं. ज्यादातर मामलों में इस तरह के प्यार का नतीजा लड़की की जान जाने के रूप में होता है.

तंत्र मंत्र के चक्कर में मासूम बेटे की बलि

35 साला उमेश परिहार के पास वह सब कुछ था जिसकी दरकार किसी को भी होती है मसलन अपना बड़ा आलिशान सा घर खूबसूरत स्मार्ट बीबी चार मासूम बच्चे माँ बाप और खुद की कार , और यह सब उस ने अपनी मेहनत से हासिल किया था . पेशे से ड्राइवर उमेश मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य  जिले धार के गाँव घाटबिल्लोदा के चन्दननगर मोहल्ले में रहता था . काम के सिलसिले में अक्सर उसका आना जाना इन्दोर और उज्जैन लगा रहता था . लेकिन जब से धार्मिक शहर उजैन में महाकाल लोक बना है तब से उसके फेरे उज्जैन ज्यादा लग रहे थे .

पिछले कुछ महीनों से वह उज्जैन में ही रहने लगा था अपनी बुलेरो कार उसने किराये पर उठा दी थी ..उज्जैन का माहौल दूसरे धार्मिक शहरों की तरह पूरी तरह धार्मिक है , जहां अल सुबह से बम बम भोले के नारे लगना शुरू होते हैं तो देर रात तक यही सिलसिला चलता रहता है . इस शहर में धर्म गुरुओं , ज्योतिषियों , बाबाओं और तांत्रिकों के इफरात से आश्रम और अड्डे हैं जिनमें ख्वाहिशमंद लोगों की लाइन लगी रहती है .

किसी को घरेलू कलह और लाईलाज बीमारी से छुटकारा चाहिए रहता है तो किसी को नौकरी की दरकार रहती है . बेटी की शादी के लिए भी लोग इन डेरों के चक्कर काटते नजर आते हैं तो किसी को पितृ दोष से मुक्ति के लिए यह शहर मुफीद लगता है . धन दौलत चाहने बालों का तो कहना ही क्या . यहाँ के काल भैरव  मन्दिर में  शराब का भोग लगता है जहाँ शनि उतरवाने दुनिया भर के लोग आते हैं . उजैन के महाकाल मन्दिर में शिव अभिषेक करने तो हस्तियों का तांता लगा रहता है

ऐसे माहौल का अलग अलग किस्म के लोगों पर अलग अलग असर पड़ता है . उमेश पर असर पड़ा तंत्र मन्त्र का और उसमें भी मरघट यानी श्मशान सिद्धि का जिसके लिए उजैन खासतौर से जाना जाता है .क्षिप्रा नदी के किनारे अघोरियों की श्मशान साधना होती है जिसके बारे में तरह तरह के मनगढ़ंत किस्से कहानिया फैलाने बालों ने फैला रखे हैं जिनमे से एक यह भी है कि अगर मरघटों में तत्र मत्र और क्रियाएं करते रहने बाले बाबा किसी को आशीर्वाद दे दें तो उसके वारे न्यारे होने से कोई नही रोक सकता .ये बाबा आमतौर पर नंगे रहते हैं और अपने शरीर पर श्मशान की राख या भभूत लपेटे रहते हैं चौबीसों घंटे गांजे और भंग के नशे में धुत रहने के चलते इनकी आँखे सुर्ख लाल रहती हैं इन्हें देखने भर से आम लोग डरते हैं क्योंकि ये बेहद डरावने एक हद तक खूंखार लगते हैं . इन्हें नागा बाबा भी कहा जाता है .

यानी उज्जैन में मुरादें पूरी करने होने की छोटी मोटी दुकानों सहित बड़े बड़े और शो रूम और माल्स भी हैं जिसकी जैसी हैसियत होती है उसके मुताबिक वह आशीर्वाद खरीद लेता है जिसकी कोई गारंटी नही होती . इस खालिस ठगी के धंधे में कैसे कैसे लोग उल्लू बनते हैं इसकी एक बानगी उमेश परिहार भी है जिसके सर रातों रात रईस बनने का भूत कुछ ऐसे सवार हुआ कि उसने अपने ही हाथों अपने 2 साल के बेटे भीम का इतनी बेरहमी से क़त्ल किया कि देखने बाले तो दूर की बात हैं सुनने बालों की भी रूह काँप उठे .

लालच में गड़े धन के

कोई बिरला ही शख्स होगा जिसने गड़े धन के किस्से कहानी नही सुने होंगे जिनका सार यह रहता है कि जमीन के नीचे इफरात से सोना चांदी हीरे जवाहरात गड़े रहते हैं जिन्हें तंत्र मन्त्र के जरिये निकाला जा सकता है . लेकिन यह काम आसान नही है क्योंकि जमीन में गड़े धन की हिफाजत खतरनाक जहरीले सांप करते हैं इसलिए यह पैसा माहिर गुरुओं जो तांत्रिक ही होते हैं  की सरपरस्ती और देखरेख में ही निकाला जाना चाहिए नही तो लेने के देने पड़ जाते हैं और 90 फीसदी मामलों में गडा धन या खजाना निकालने बाला बेमौत मारा जाता है

उज्जैन आते जाते उमेश ने भी ऐसी चमत्कारी कहानिया सुनी थीं सो जल्द ही अमीर बनने के सपने ने उसकी रात की नींद और दिन का चैन छीन लिया यहाँ तक कि उसने अपनी कार के बोनट पर भी खोपड़ी का निशान बनबा लिया था . बुलेरो किराये पर उठाने के बाद वह ऐसे किसी सिद्ध बाबा की तलाश में जुट गया जो तंत्र मन्त्र सिखा दे जिससे वह गडा धन निकालकर बिना मेहनत किये एशो आराम की जिन्दगी जिए .इसके पहले वह किन्नरों का ड्राइवर हुआ करता था जिन्होंने उसे खूब पैसा दिया था . लेकिन तंत्र मन्त्र के फेर में पडकर वह नशा करने लगा और काम में भी अलाली बरतने लगा तो किन्नरों ने भी उससे किनारा कर लिया .

उसकी यह तलाश बम बम बाबा की शक्ल में पूरी हुई . उज्जैन में बम बम बाबा का बड़ा नाम है जो अघोरी हैं और श्मशान साधना के स्पेशलिस्ट माने जाते हैं . इस बाबा के बारे में भी कई चमत्कारिक किस्से उज्जैन के लोग सुनाते हैं कि वे पहुंचे हुए सिद्ध पुरुष हैं . एक बार जिस पर खुश हो जाएँ उसकी हर मुराद पूरी हो जाए और जिससे गुस्सा हो जाएँ तो खड़े खड़े ही उसे भस्म कर दें . उमेश ने इस बाबा के बारे में सुना तो उसे लगा कि यही बाबा उसे गडा धन दिला सकते हैं . लिहाजा वह बम बम बाबा के चक्कर काटने लगा .

कई दिनों की मिन्नत और मनुहार के बाद बाबा उसे अपना चेला बनाने तैयार हुआ लेकिन इस शर्त के साथ कि पहले किसी की बलि चढ़ाओ तभी अपना चेला बनाऊंगा . लालच में अँधा हो चुका उमेश पूरी तरह बाबा की गिरफ्त में आ चुका था इसलिए यह मूर्खता करने भी तैयार हो गया . लेकिन आजकल के जमाने किसी की बलि लेना यानी उसकी हत्या कर देना आसान काम नही रह गया है सो वह परेशानी और चिंता में पड़ गया कि किस की बलि दे . तंत्र मन्त्र किस तरह अच्छे खासे आदमी की अक्ल हर लेता है यह अब उमेश को देख सहज समझा जा सकता था जिसके जेहन में में बलि के लिए अपने ही जिगर के टुकड़े मासूम भीम के चेहरा कौंध गया .

बेरहमी से कुचल डाला

एक तरफ बेटा था तो दूसरी तरफ करोड़ों की काल्पनिक दौलत जिसके बूते पर वह एशोआराम के ख्याली पुलाव पका रहा था . अन्धविश्वास की दलदल में गहरे तक धंस चुके उमेश को भीम साफ्ट टारगेट लगा था क्योंकि वह विरोध नही कर सकता था और आसानी से उसे मारा जा सकता था . लिहाजा बीती 5 सितम्बर को उज्जैन से वह सीधा अपने घर घाट बिल्लोदा जा पहुंचा . घर पहुँचते ही उमेश ने उटपटांग हरकतें शुरू कर दी . पहले तो उसने पूजा का सारा सामान जमाया और फिर एक कटोरे में आग जला ली .

घर पर मौजूद उसकी पत्नी , माँ और पिता हैरान थे कि वह यह क्या कर रहा है . पूरे घर को आग का धुंआ देता वह मन्त्र भी बुदबुदाता जा रहा था और अपने साथ लाई भभूत भी वह घर में बिखराता जा रहा था . ये हरकतें देख पिता और पत्नी ने उसे टोका तो उसने इन दोनों को पीट डाला ..इसके बाद अचानक ही उसने भीम को उठाया और उसे भी पीटने लगा तो पत्नी और घबरा गई क्योंकि अब उमेश के सर पागलपन सवार हो चुका था . किसी अनहोनी से डरी पत्नी ने भीम को उससे छुड़ाना चाहा तो उमेश और बिफर उठा और खुद को बेटे सहित दूसरे कमरे में लेजाकर शटर बंद कर लिया .

घर के लोग चिल्लाते रह गये लेकिन पगलाया उमेश भीम को मारता रहा तो पत्नी ने पास के थाने की तरफ दौड़ लगा दी . पुलिस तुरंत आ गई लेकिन लाख कहने और धमकाने के बाद भी उसने शटर नही खोला . देखते ही देखते वह बेटे को जमीन पर ऐसे पटकने लगा जैसे धोबी कपडा धोता है . उस मासूम के रोने चिल्लाने और चीखने का इस वहशी दरिब्दे पर कोई असर नही हुआ . वह लगातार उसे पटकता रहा जिससे उसकी मौत हो गई . नजारा इतना वीभत्स था कि पुलिस बाले भी काँप उठे क्योंकि भीम के शरीर की चटनी बन चुकी थी और सारा कमरा खून से लाल हो चुका था .

कोई और चारा न देख पुलिस ने शटर काटने गेस कटर का इंतजाम किया लेकिन तब तक यह हैवान अपने मकसद कामयाब हो चुका था . पुलिस को धमकाते उसने घर को गेस सिलेंडर से ब्लास्ट करने की धमकी भी दी थी . शटर काटकर पुलिस बाले अंदर कमरे में गए तब भी उमेश बमुश्किल काबू आया . उसने आग लगाने की कोशिश की और एक सिपाही को काट भी खाया . खुद को भी उसने सब्बल से नुकसान पहुँचाया .

गिरफ्तारी के बाद उमेश को पीथमपुर के अस्पताल में भर्ती किया गया क्योंकि उसकी दिमागी हालत ठीक नही थी . पुलिस बाले जंजीर से बांधकर उसे ले गये इस वक्त मौजूद सारे लोग उमेश और उसके तंत्र मन्त्र को कोस रहे थे लेकिन सबक कितनीं ने लिया कि इस फरेब में नही पड़ेंगे कहा नही जा सकता .

मेहनत से मिलता है धन

उमेश के लालच और अंधविश्वास ने उससे ही काफी कुछ छीन लिया है जबकि उसके पास सब कुछ था . देश में रोज कहीं न कहीं कोई न कोई ऐसे ही किसी अन्धविश्वास मसलन तंत्र मन्त्र , झाड फूंक , ज्योतिष और टोन टोटकों के फरेब में पडकर बर्बाद हो रहा होता है और खुद का और दूसरों का नुकसान कर रहा होता है लेकिन सब कुछ जानने समझने के बाद भी लोग संभलते नही तो इसके जिम्मेदार वे खुद तो हैं ही लेकिन इफरात से हर कहीं धूनी रमाये बैठे चिलम फूंकते बम बम बाबा जैसे तांत्रिक भी कम गुनाहगार नही ठहराए जा सकते जो लोगों को बहलाते फुसलाते हैं . उमेश को तो सजा होना तय है लेकिन जब तक ऐसे बाबाओं पर काररवाई नही होगी तब तक कोई न कोई भीम तंत्र मन्त्र की बलि चढ़ता रहेगा .

रही बातों रातों रात अम्बानी और अडाणी बन जाने के ख्वाव और ख्वाहिश की तो वह अगर तंत्र मन्त्र से पूरी होना मुमकिन होती तो देश में सभी अमीर होते . कम से कम वे बाबा तो होते ही जो करोडपति बनने का रास्ता हजार पांच सौ रु में दिखाया करते हैं . लेकिन खुद भिखारियों सी जिन्दगी जीते हैं . इसकी वजह शीशे की तरह साफ़ है कि इन चीजों में कोई दम नही होता . पैसा सिर्फ मेहनत और मेहनत से ही आता है और उमेश इसे कमा भी रहा था लेकिन अक्ल मारी गई तो बर्बाद भी हो गया .

ऐप्स से करें ‘पीरियड्स लौक’

आज की भागदौड़भरी जिंदगी को अगर पासवर्ड भरी लाइफ कहा जाए तो गलत नहीं होगा. हम अपने जीमेल, फेसबुक, फोन, एटीएम पिन व कई तरह के अन्य पासवर्ड्स को याद रखने में इतना ज्यादा ध्यान देते हैं कि अपनी हर महीने की सब से महत्त्वपूर्ण डेट को ही भूल जाते हैं. जी हां, हम पीरियड्स डेट के बारे में बात कर रहे हैं. अधिकांश युवतियों को अपनी पीरियड्स डेट्स याद नहीं होतीं, वे अंदाज से तारीख बताती हैं. अगर इस महीने की बता भी दें तो पिछले महीने की तारीख नहीं बता पातीं. तारीख याद नहीं रहने की वजह से कई बार उन्हें छोटी छोटी प्रौब्लम्स से भी गुजरना पड़ता है.

लेकिन अब आप को पीरियड्स की तारीख याद रखने की जरूरत नहीं. आप का एक टच आप की पीरियड्स डेट को लौक कर के आप को टैंशन फ्री रखेगा. आप सोच रही होंगी भला कैसे, तो कुछ ऐसे कि आप अपना मोबाइल तो हमेशा अपने पास रखती होंगी. बस, अपने फोन में पीरियड ट्रैकर ऐप्स डाउनलोड कर तारीख याद रखने के झंझट से छुटकारा पा कर अपने पीरियड्स को हैप्पी पीरियड्स बनाइए.

पीरियड ट्रैकर ऐप्स केवल ऐंड्रौयड फोन में ही नहीं चलते बल्कि आईफोन में भी डाउनलोड किए जा सकते हैं. कुछ में एक साधारण सा कलेंडर होता है जबकि कुछ में सर्विकल म्यूकस और शरीर के तापमान को भी मापा जा सकता है. ये ऐप्स केवल पीरियड्स की तारीख ही नहीं बताते बल्कि इन से आप अपनी प्रैग्नैंसी भी प्लान कर सकती हैं. ये ऐप्स आप को बताते हैं कि आप कब कंसीव कर सकती हैं, कब फर्टिलिटी ज्यादा होती है, कब संबंध बनाने से बचना चाहिए. इस में आप पीरियड्स के दौरान होने वाले शारीरिक बदलाव व फीलिंग्स के नोट्स भी तैयार कर सकती हैं.

ये हैं कुछ पीरियड्स ट्रैकर ऐप्स

पीरियड ट्रैकर लाइट

यह फ्री ऐप है जिसे आप अपने फोन के प्ले स्टोर से डाउनलोड कर सकती हैं. इस ऐप की खास बात यह है कि इस का इस्तेमाल आसानी से किया जा सकता है. इस में बस आप को अपने पीरियड के पहले और आखिरी दिन एक क्लिक करना होगा. इस के बाद ऐप आप को इस डाली गई सूचना के आधार पर यह बताता है कि आप का पीरियड साइकिल कितने दिन का होगा, महीने के किन दिनों में कंसीव करने की संभावना अधिक होगी साथ ही रिमाइंडर आप को बताता रहता है कि किस तारीख को आप का पीरियड आने वाला है.

पिंक पैड

यह ऐप पीरियड ट्रैकर होने के साथसाथ महिलाओं से जुड़े कई विषयों पर जरूरी जानकारी भी देता है. इस पीरियड ट्रैकर में पूरी दुनिया की महिलाओं द्वारा लिखे गए पोस्ट भी मिलेंगे, जो फैशन, ब्यूटी और हैल्थ जैसे विषयों पर होते हैं. इस ऐप की खास बात यह है कि इस में पीरियड का काउंटडाउन आप की होम स्क्रीम पर दिखाई देता है जिस से आप को ऐप ओपन कर के यह देखने की भी जरूरत नहीं कि पीरियड्स में कितने दिन बाकी हैं.

क्लू

यह ऐप काफी आकर्षक तरीके से डिजाइन किया गया है. इस में आप को अपने पीरियड की तारीख और सर्कल के बारे में लिखना होता है. कुछ महिलाओं में यह सर्कल 28 दिन का होता है तो कुछ में 30 दिन का. यह ऐप इस सूचना का इस्तेमाल कर आप को अगले महीने की पीरियड तारीख और अंडोत्सर्ग के बारे में बताता है. इस ऐप में आप अपने मूड व शारीरिक बदलाव व हार्मोनल लक्षण के बारे में एक कस्टम टैग भी बना सकती हैं. इस में आप कब सैक्स किया और गर्भ निरोधक दवाओं को खाने का रिमाइंडर भी लगा सकती हैं.

मंथली साइकल्स

इस का इस्तेमाल कर आप आसानी से अपने पीरियड्स को मौनिटर व मैनेज कर सकती हैं. इस कलेंडर में मैंस्ट्रुअल सर्कल को हाईलाइट करने के लिए कलर डौट्स का इस्तेमाल किया जाता है.

साइकल्स

यह ऐप उन महिलाओं के लिए उपयोगी है जो मूड और अन्य लक्षणों को ट्रैक नहीं करना चाहतीं, सिर्फ यह जानना चाहती हैं कि कब उन का पीरियड आने वाला है.

इस के अलावा माई साइकल्स, पी लौग, फर्टिलिटी फ्रैंड मोबाइल, लव साइकल्स मैंस्ट्रुअल कलेंडर, किंडरा, आई पीरियड, पीरियड फ्री कई ऐप्स हैं जिन्हें डाउनलोड कर के पीरियड्स डेट को लौक किया जा सकता है.

पीरियड ट्रैकर ऐप्स के फायदे

  • इन ऐप्स में आप की प्राइवेसी का पूरा ध्यान रखा जाता है.
  • जो महिलाएं कंसीव करना चाहती हैं उन्हें यह ऐप महीने के सब से फर्टाइल दिनों की जानकारी देता रहता है, साथ ही जो अपनी प्रैग्नैंसी टालना चाहती हैं उन्हें भी पता चलता है कि कब संबंध बनाना सुरक्षित
  • नहीं है.
  • इस के रिमाइंडर से पता चलता है कि पीरियड्स में कितने दिन बचे हैं, जिस से आप को पैड व हैल्थ हाईजीन प्रौडक्ट्स कैरी करने में आसानी होती है.
  • आप को अपने मैंस्ट्रुअल सर्कल के बारे में पता चलता रहता है. अगर कभी पीरियड्स संबंधी कोई समस्या होती है तो आप को अपने पिछले सारे रिकौर्ड्स डाक्टर को बताने में आसानी होती है.

इन ऐप्स की सहायता से आप ट्रैक कर सकती हैं कि आप का पीरियड सर्कल नौर्मल चल रहा है या नहीं.

कोमल हाथों में हथियार आखिर कैसे आए

‘‘मैं तब फर्स्ट ईयर में पढ़ती थी. जयपुर के महेश नगर इलाके से शाम तकरीबन साढ़े 6 बजे मैं पैदल ही घर से ट्यूशन के लिए निकली. आगे जहां लोगों की कम चहल पहल थी वहां पहुंची, तो मैं ने देखा कि सामने एक आदमी मुझे इशारा कर रहा था. वह साइन लैंग्वेज में कुछ कह रहा था. मैं ने पलट कर पीछे देखा तो एक अन्य आदमी भी मुझे फौलो करता नजर आया.

‘‘जब तक मैं समझ पाती कि दोनों एक दूसरे से मेरे बारे में ही बात कर रहे हैं, तब तक उन दोनों ने आ कर मुझे जकड़ लिया और करीब 20 कदम दूर खड़ी एक कार तक घसीटते हुए ले गए. जब वे मुझे कार में धकेल रहे थे तो मैं ने उसी समय एक व्यक्ति को किक मार कर नीचे गिरा दिया और कार से बाहर निकल गई. ऐसे में कार में बैठे 3 और बदमाश मुझे पकड़ कर वहीं मारपीट करने लगे.

‘‘मारपीट व छीना झपटी के दौरान मेरा बैग नीचे गिर गया और उस में रखा चाकू बाहर आ गया. उन लोगों की नजर चाकू पर नहीं पड़ी, लेकिन मैंने बैग के बाहर गिरे चाकू को देख लिया था. ऐसे में उन की मार खाकर मैं ने सड़क पर गिरने का नाटक किया और चाकू उठा कर हिम्मत से उन की तरफ लहरा दिया. मेरे हाथ में चाकू देख कर वे सकपका गए और एकदम पीछे हट गए. मैं मौका देख कर वहां से भाग निकली.

‘‘इस घटनाक्रम को वहां दूर खड़े 8-10 लोग देख रहे थे. मुझे भागता देख उन्हें सारा माजरा समझ आ गया और वे तुरंत कार के पास आ कर बदमाशों से सवाल जवाब करने लगे और मामला गड़बड़ देख उन्होंने बदमाशों की धुनाई करनी शुरू कर दी. उन लोगों की मदद से मैं घर पहुंची. घर पहुंच कर मैंने पेरैंट्स को सारी बातें बताईं और परिजनों के साथ थाने गई, जिस से पुलिस ने आगे की तहकीकात शुरू की.’’

जयपुर के महेश नगर थाना क्षेत्र में रहने वाली माधवी ने अपनी आपबीती सुनाते हुए आगे बताया, ‘‘दिल्ली गैंगरेप की घटना के बाद मैं ने अपने बैग में चाकू रखना शुरू कर दिया था. मैं अपनी ओर से सभी युवतियों को यह कहना चाहती हूं कि स्प्रे, मिर्च पाउडर व चाकू जैसी चीजें हर युवती को खुद की हिफाजत के लिए अपने पास जरूर रखनी चाहिए.’’

सभ्य समाज में हथियारों का कोई काम नहीं है. यह जिम्मेदारी पुलिस और प्रशासन की है कि वह समाज के लोगों में भरोसा और माहौल में शांति बनाए रखे, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा. भरोसा इस कदर उठ चुका है कि युवतियां अपने बचाव के लिए हथियार रखने को मजबूर हैं. युवतियां बदमाशों के खिलाफ अपने कोमल हाथों में हथियार थाम रही हैं.

दिल्ली गैंगरेप की घटना के बाद लाखों लोगों के विरोध और अपराधियों को सख्त सजा देने की मांग के बाद भी समाज के उन लोगों की सोच पर इन सब का कोई असर नहीं हुआ, जो युवतियों को महज शारीरिक हवस को पूरा करने की नजर से देखते हैं. आज भी देशभर में रोज दर्जनों ऐसे मामले सामने आ रहे हैं, जहां युवतियों का अपहरण कर बलात्कार किया जा रहा है. बढ़ते अपराध पर रोक लगाने में नाकामी से भी अब युवतियां हताश हो चुकी हैं. ऐसे में वे खुद की हिफाजत के लिए खुद आगे आने व हथियार उठाने को मजबूर हैं.

समाज में तेजी से आ रहे इस बदलाव को देखते हुए क्या अब यह समझ लेना चाहिए कि युवतियों को अपनी हिफाजत के लिए खुद ही हथियार उठाने होंगे? अगर ऐसा है तो देश में पुलिस का क्या काम है? क्या युवतियों के पास हथियार उठाने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है? युवतियां हथियार न उठाएं, तो खुद की हिफाजत के लिए क्या करें?

गौरतलब है कि दिल्ली में हुए गैंगरेप हादसे के बाद युवतियों ने हथियार रखने की जरूरत पर जोर दिया है. आंकड़ों पर नजर दौड़ाई जाए तो जयपुर में 2011 से कमिश्नरेट लागू होने के बाद से अब तक 2,368 महिलाएं आर्म लाइसैंस के लिए अप्लाई कर चुकी हैं, जिन में से 648 को लाइसैंस मिल भी चुका है. वहीं देश के दूसरे शहरों में भी आर्म लाइसैंस के लिए अप्लाई करने वाली महिलाओं की तादाद में पिछले 2-3 साल में तेजी से बढ़ोतरी हुई है.

सैल्फ डिफैंस ट्रेनर रिचा गौड़ बताती हैं कि पिछले 2 साल में मार्शल आर्ट व कराटे में युवतियों की भागीदारी 70 फीसदी तक बढ़ी है. मैं राजस्थान पुलिस एकेडमी समेत कई शिक्षण संस्थानों में युवतियों को सैल्फ डिफैंस की ट्रेनिंग दे रही हूं. हम कुल 4 युवतियों ने मिल कर सैल्फ डिफैंस ट्रेनिंग की शुरुआत की थी, आज हमारे ग्रुप से 65 युवतियां जुड़ी हुई हैं, जो ट्रेनर के रूप में युवतियों को ट्रेनिंग दे रही हैं.

जयपुर की पुलिस अफसर शिल्पा चौधरी का कहना है, ‘‘खुद की रक्षा के लिए हथियार से ज्यादा आत्मविश्वास की जरूरत होती है. युवतियों को सैल्फ प्रोटैक्शन के लिए खुद को तैयार करना है, तो उन्हें सैल्फ डिफैंस ट्रेनिंग लेनी चाहिए. कराटे और मार्शल आर्ट सीखना चाहिए, ताकि मुसीबत के समय वे खुद की रक्षा कर सकें. पर मालूम रहे कि 4 इंच से बड़ा चाकू या कोई हथियार रखना गैरकानूनी है.’’

पिस्टल शूटर राजश्री चूड़ावत का कहना है, ‘‘शूटर होने के कारण मेरा सैल्फ कौन्फिडैंस हमेशा बेहतर रहता है. हालांकि जिस पिस्टल से हम शूट करते हैं, वह पिस्टल बदमाशों पर फायर करने के काम नहीं आती, लेकिन फिर भी कहीं अकेले जाते हैं तो मन में सुरक्षा की भावना रहती है. कम से कम इस पिस्टल से बदमाशों को डराने का काम तो किया ही जा सकता है. हालांकि अभी तक कोई ऐसा हादसा मेरे साथ नहीं हुआ कि पिस्टल दिखाने की जरूरत पड़ी हो, लेकिन कभी ऐसा मौका पड़ेगा तो मैं चूकूंगी नहीं. कहीं भी रेप जैसे मामले सामने आते हैं, तो मेरा खून खौल उठता है. हालिया हालात को देखते हुए युवतियों के लिए सैल्फ प्रोटैक्शन बहुत जरूरी है.’’

इस मामले में रिटायर जिला और सैशन जज अजय कुमार सिन्हा का कहना है, ‘‘सरकार और पुलिस प्रशासन युवतियों को सुरक्षा देने में नाकामयाब हैं. यही वजह है कि युवतियों को आज कोमल हाथों में हथियार थामने पर मजबूर होना पड़ रहा है. युवतियों का पुलिस प्रशासन से भरोसा उठ रहा है. मेरा मानना है कि हथियार रखने के बजाय युवतियों को सैल्फ डिफैंस की ट्रेनिंग लेनी चाहिए.’’

राजस्थान यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र के प्रोफैसर सोहन शर्मा का कहना है कि युवतियों को समाज में हमेशा से ही सभ्य, शालीन और शांत स्वभाव का माना जाता रहा है, लेकिन अब आने वाले समय में यह सोच बदल जाएगी. इस का जिम्मेदार भी समाज खुद ही होगा. घर के बाहर ही नहीं, घर के भीतर भी युवतियां सुरक्षित नहीं हैं. तमाम तरह के रिश्ते भी आज के दौर में तारतार हो रहे हैं. ऐसे में युवतियां खुद की हिफाजत के लिए हथियार उठाने को विवश हो रही हैं.

अंधविश्वास के नाम पर बलि चढ़ते लोग

राजस्थान तो जैसे अंधविश्वास में ही जीता रहा है. गांवढांबी की बात तो छोड़ो, शहरी पढ़ेलिखे भी अंधविश्वास में जी रहे हैं. कसबों और शहरों में हर शनिवार को दुकान, मकान, गाड़ी में नीबूमिर्च टांगने का अंधविश्वास जोरों पर है.

लोगों की सोच है कि इस से नजर नहीं लगती और धंधा सही होता है. मगर वे लोग यह भूल जाते हैं कि बड़ीबड़ी कंपनियां, होटल व दफ्तरों में नीबूमिर्च नहीं बांधे जाते तो क्या उन का धंधा नहीं चलता?

जो लोग शनिदेव के नाम पर नीबूमिर्च हर शनिवार को बेचते हैं, उन की बल्लेबल्ले है. वे लोग इस के 10 रुपए लेते हैं. साथ ही, सरसों का तेल भी लेते हैं.

एक किलो हरी मिर्च व एक किलो नीबू तकरीबन सौ रुपए में आता है. इन को बांध कर बेचने से ऐसे लोग एक हजार से 15 सौ रुपए कमाते हैं और तेल अलग से मिलता है. वह तेल दुकान पर बेच देते हैं.

कहने का मतलब है कि इस धंधे से जुड़े लोग हर शनिवार को 2 हजार रुपए कमाते हैं. अगर महीने में 4 शनिवार हैं तो 8 हजार रुपए कमा लेते हैं, सिर्फ 4 दिन में.

इन्हीं की तरह बाबा लोग जटा बढ़ा कर, तिलक लगा कर झोलीझंडा लिए राजस्थान के गांवढांणी से ले कर शहरों तक में दानदक्षिणा लेते दिख जाते हैं.

ये लोग भोलेभाले लोगों को ऊपर वाले के नाम पर डरा कर और अच्छे दिन का झांसा दे कर लूटते फिरते हैं.

society

जैसलमेर शहर में सैकड़ों ऐसे बाबा दिख जाएंगे जो दिनभर भीख के नाम पर लोगों की जेबें हलकी करते हैं. इन बाबाओं का ठिकाना गड़सीसर सरोवर के पास है. वहां रात में ये भगवाधारी बाबा दारूमीट की दावत उड़ाते दिख जाते हैं. हर रोज यहां ऊपर वाले के नाम पर लिए गए पैसे से पार्टी होती है.

इन बाबाओं के साथ ही कई दिव्यांग भी होते हैं जो दिनभर सड़कों पर घिसटघिसट कर भीख मांगते हैं. वे भी इन बाबाओं के साथ मुर्गमुसल्लम और दारू में उड़ा देते हैं. सुबह होने पर ये लोग फिर भीख मांगने निकल पड़ते हैं.

राजस्थान में रामदेवरा, जसोल, देशनोक,  केलादेवी, गोगामेड़ी, खाटू श्यामजी, पुष्कर और ख्वाजा गरीब नवाज अजमेर में 12 महीने मेला लगता है. इन जगहों पर जाने वाले लोगों की जेबें कोई जूतों की रखवाली के नाम पर, तो कोई तालाब में मिट्टी निकालने के नाम पर, तो कोई रामरसोड़ा व पानी की प्याऊ के नाम पर और कोई गायों के चारेपानी के नाम पर ढीली करता है.

रामदेवरा में हर साल लाखों लोग आते हैं. राजस्थान में यह इलाका जैसलमेर जिले में पड़ता है. भादवा मेले में हर साल यहां तकरीबन 25-30 लाख लोग आते हैं.

रामदेवरा मंदिर के बाहर जूते खोलते हैं, तब वहां पर पहले से बैठे लोग कहते हैं कि आप आराम से दर्शन कर के आओ. हम जूतों की रखवाली करते हैं.

दर्शन के बाद जब लोग जूते लेने वापस आते हैं तो जूतों की रखवाली के नाम पर पैसे मांगे जाते हैं और खुशीखुशी लोग देते भी हैं.

इस के बाद वहां पर डायरियां ले कर घूम रहे धर्म के ठेकेदार तालाब से मिट्टी निकालने के नाम पर, रामरसोड़ा, प्याऊ और गायों के लिए चारापानी के नाम पर रुपए वसूलते हैं. पैसा न देने पर मारपीट तक की जाती है.

रामदेवरा मंदिर के बाहर जूतों की रखवाली कर रही कमला देवी ने कहा कि वह दिनभर में 4-5 हजार रुपए कमाती है. यह मेला 10 दिन तक चलता है और कमला देवी 10 दिन में तकरीबन 40 हजार रुपए कमाती है. उस का पति, बेटा, बेटी भी इसी काम में लगे होते हैं.

उन का कहना है कि हम जूतों की रखवाली करते हैं और लोग प्यार से 10-12 रुपए देते हैं. हम किसी से छीनते नहीं हैं. मगर वहां का नजारा देखें तब पता चले कि कैसे लूटा जाता है.

गांवोंढांणियों में तो अंधविश्वास इस कदर हावी है कि लोग बीमार पड़ने पर अस्पताल जाने के बजाय भोपों, तांत्रिकों की शरण में जाते हैं. भोपे उन्हें झूठ कहते हैं कि उन से फलां देवता रूठा है या फिर कहते हैं कि उन के स्वर्गवासी पिता, दादा, माता या कोई उन्हें परेशान कर रहा है. उस की आत्मा शांत नहीं है. ऐसे में भोपा उन के मरे हुए दादा, माता या पिता की मूर्ति बनवा कर उन के घर या खेत में लगवा देते हैं.

वहां रात्रि जागरण के अलावा दारूबकरे की दावत उड़ाई जाती है. अगर फिर भी उस परिवार की तकलीफ दूर नहीं होती तो भोपा कहता है कि मूर्ति सही नहीं चढ़ी. दोबारा पूरी कार्यवाही करनी पड़ेगी. फिर भी सही नहीं होता तो कहता है कि अब आप किसी और भोपे के पास जाओ.

भोपे न केवल झाड़फूंक करते हैं बल्कि भूतप्रेत को रोटी तक डलवाते हैं. मगर क्या विज्ञान के समय में यह अति नहीं है? कभी किसी ने भूतप्रेत देखा है? नहीं न…? तो उन से डरना कैसा? मगर लोग तो अंधविश्वास से बाहर निकलना ही नहीं चाहते. अनपढ़ ही नहीं पढ़ेलिखे भी भोपों के चक्कर में पड़े हैं.

जोधपुर जिले के एक गांव में तो कुछ महीने पहले एक भोपे ने एक औरत का दुख दूर करने के नाम पर मंदिर में ले जा कर बलात्कार तक कर दिया था.

उस महिला की रिपोर्ट पर उस बलात्कारी भोपे को पुलिस ने पकड़ लिया था. वह आज भी जेल में है. ऐसे भोपों से सावधान रहें. अगर भोपों के पास कुछ ताकतें होतीं तो वे खुद अपने घर में क्यों दुखी होते?

अजमेर जिले के केकड़ी कसबे में शर्मनाक घटना हुई. 40 साला कन्या देवी के पति की मौत क्या हुई, परिवार के लोग ही जान के दुश्मन बन गए. उसे डायन बताया गया. फिर शुरू कर दिया जोरजुल्म ढाने का दौर. लोहे की चेन से बुरी तरह पीटा गया. कपड़े उतरवा कर महल्ले में घुमाया गया. आंख और हाथ दोनों ही अंगारों से दाग दिए गए. इस से भी मन नहीं भरा तो धधकते अंगारों पर बिठा दिया गया. बुरी तरह से घायल कन्या देवी की अगले दिन मौत हो गई.

इस वारदात पर परदा डालने के लिए उन्हीं लोगों ने अंतिम संस्कार भी कर दिया. इस के बाद जो हुआ, वह और भी चौंकाने वाला था.

पंचपटेलों ने इस मौत के लिए जिम्मेदार लोगों के सारे गुनाह माफ कर दिए. कहा कि पुष्कर सरोवर में डुबकी लगाओ और गायों के लिए एक बोरी अनाज, एक ट्रैक्टर चारा और 5 टैंकर पानी दे कर ‘पाप मुक्त’ हो जाओ.

दूसरी ओर पीडि़त परिवार से कहा गया कि किसी को इस बारे में बताया तो समाज से बाहर कर देंगे.

गनीमत यह रही कि कन्या देवी के भतीजे महादेव ने 12 अगस्त, 2017 को यह मामला केकड़ी थाने तक पहुंचा दिया. शिकायत में डायन बता कर मारने का आरोप लगाया गया है.

केकड़ी के थानाधिकारी हरीराम कुमावत ने शिकायत मिलने के बाद जांच एसआई को सौंप दी है.

अजमेर एसपी राजेंद्र सिंह के संज्ञान में मीडिया इस घटना को लाई तो उन्होंने निष्पक्ष जांच कर आरोपियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने का आदेश दिया.

इस मामले में राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष सुमन शर्मा के निर्देश पर आयोग की टीम 14 अगस्त को कांदेड़ा, केकड़ी पहुंची और कन्या देवी के बेटे कालूराम और आसपास के लोगों से जानकारी ली. इस के बाद केकड़ी थाना पहुंच कर डीएसपी राकेशपाल सिंह और सीआई हरिराम कुमावत से बात की.

इस मामले में 2 औरतों समेत 5 और लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है. जांच कर रहे एसआई शंकरलाल ने बताया कि आरोपी चंद्रप्रकाश, सोनिया, पिंकी, गोपीचंद, महावीर को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उन्हें 3 दिन की रिमांड पर लिया गया. इस मामले में शामिल मनोहर को तलाशा जा रहा है.

3 अगस्त को कांदेड़ा, केकड़ी में कन्या देवी को उसी की ससुराल के लोगों ने डायन बता कर इतना मारापीटा कि उस की मौत हो गई. उस समय उस का 15 साला बेटा कालूराम घर पर था, जिसे कमरे में बंद कर दिया गया था.

कालूराम की सिक्योरिटी को ले कर महिला आयोग की टीम ने पुलिस से बात की. कालू की जिम्मेदारी चाइल्ड हैल्पलाइन को दी गई है.

राजस्थान सरकार ने सवा 2 साल पहले अप्रैल, 2015 में डायन प्रताड़ना निवारण कानून भी बना दिया, इस के बावजूद राजस्थान में डायन के नाम पर औरतों पर जुल्म ढाने के 37 मामले सामने आ चुके हैं.

पिछले 20 सालों में डायन बता कर औरतों को सताने के 162 मामले सामने आ चुके हैं, वो भी केवल 5 जिलों में.

कानून के माहिरों का मानना है कि यह कानून असरदार तरीके से लागू हो, इस के लिए जरूरी है कि पुलिस ऐसे मामलों में सख्त और तेज ऐक्शन ले. लापरवाही बरतने वाले पुलिस अफसरों पर कड़ी कार्यवाही करे. इस कानून की जानकारी के लिए सरकार समयसमय पर कैंपेन चलाए.

डायन प्रताड़ना निवारण अधिनियम 2015 में किसी भी औरत को डायन करार देने वाले शख्स को 5 साल की सजा और 50 हजार रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान है. साथ ही, किसी भी औरत के खिलाफ लोगों को उकसाने और जायदाद पर कब्जा करने पर 3 साल से 7 साल तक की सजा का प्रावधान है. इस दौरान औरत के मरने पर आजीवन कारावास और एक लाख रुपए के जुर्माने का प्रावधान है. कन्या देवी के कातिलों को भी क्या आजीवन कारावास की सजा होगी, यह देखना होगा.

कोटा में छात्रों की खुदकुशी : खुद को साबित करने का जानलेवा दबाव

आप अपने मन में एक चित्र बनाएं कि किसी दूरदराज गांव का गरीबवंचित परिवार का कोई बच्चा ऊंची पढ़ाई के लिए कोटा, राजस्थान में कोचिंग लेने के सपने देख रहा है. उस का मजदूर पिता अपना अधभरा पेट काट कर पैसे जमा करता है और बच्चे की आंखों में सुनहरे भविष्य की चमक देख कर संतुष्ट हो जाता है.

पर अचानक कोटा से खबर आए कि उस मजदूर का बेटा वहां पढ़ाई का दबाव नहीं झेल पाया और एक नायलौन की रस्सी से फांसी लगा कर मर गया है, तो उस मजदूर पिता पर क्या बीतेगी? हमारे लिए यह एक दुखद खबर हो सकती है, पर वह मजदूर तो जीतेजी मर जाएगा.

इस चित्र को सोचने की वजह क्या है? दरअसल, अब कोटा अपनी पढ़ाई से ज्यादा छात्रों की खुदकुशी के लिए सुर्खियां बन रहा है. एक छात्र की लिखी आखिरी चिट्ठी के अंश से आप को बात समझ में आ जाएगी :

‘अभिनव मेरे भाई, तुम कभी कोटा नहीं आना. मैं नहीं चाहता कि तुम भी मेरी तरह दिमागी रूप से परेशान हो जाओ. मैं यहां सिर्फ और सिर्फ पढ़ाई करता हूं. अकेला हो गया हूं. मोबाइल है नहीं तो कई दिनों से यह लैटर लिख रहा हूं. जब मौका मिल पाया था तब भेजा.

‘अभिनव, तुम पेंटिंग बनाओ. सोशल मीडिया का इस्तेमाल करो. हो सकता है कि तुम को घर बैठे ही कहीं से और्डर आ जाएं. तुम बहुत बड़े आर्टिस्ट बन जाओ.

‘अंत में मांपापा, एक बात आप से बताना भूल गया. भूला नहीं शायद हिम्मत नहीं जुटा पाया. पिछले हफ्ते एक टैस्ट हुआ था पापा. 50 मार्क्स का था. मैं 35 नंबर ला पाया, जो क्लास में सब से कम थे. सब के नंबर अच्छे थे. कोचिंग वाले बोले कि मार्कशीट घर जाएगी. शायद अब तक पोस्ट भी हो गई होगी, लेकिन उस से पहले मैं आप सभी से माफी मांग रहा हूं. मांपापा, आप का सपना अब अभिनव पूरा करेगा. मैं उस लायक नहीं बना.

‘अभिनव, तुम रोना नहीं. बस यह सोच लेना भैया का सपना भी तुम को पूरा करना है.

‘अलविदा.’

कोटा को आईआईटी और नीट के इम्तिहान को क्रैक करने का हब माना जाता है, पर इस साल वहां 24 छात्र पढ़ाई और मानसिक दबाव में अपनी जान दे चुके हैं. हालात इतने बदतर हो रहे हैं कि वहां कोचिंग संस्थानों और होस्टलों में ‘ऐंटी सुसाइड फैन’ लगाने के आदेश जारी होने के बाद भी रविवार, 27 अगस्त, 2023 को 4 घंटे के भीतर 2 छात्रों ने अपनी जान दे दी थी.

इन में एक छात्र बिहार के रोहतास का था और दूसरा महाराष्ट्र के लातूर का रहने वाला था. बिहार के रोहतास जिले का 18 साल का आदर्श राज जहां फांसी पर लटक गया, वहीं 16 साल के अविष्कार संभाजी कासले ने इंस्टीट्यूट की छठी मंजिल से छलांग लगा दी.

खतरे की घंटी

‘हिंदुस्तान टाइम्स’ की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस साल जिन छात्रों ने खुदकुशी की है, उन में से ज्यादातर गरीब या लोअर मिडिल क्लास परिवार से थे. ऐसे छात्रों में किसी के पिता नाई, किसी के पिता गाड़ी साफ करने वाले और कुछ के पिता छोटे किसान थे.

कोटा में बच्चों पर क्या गुजर रही है, यह खुदकुशी करने वाले एक छात्र से समझिए, जिस के पिता ने कहा, “अपने बच्चे को कहीं भी भेजिए, बस कोटा मत भेजिए.”

हमारे ऐजूकेशन सिस्टम के लिए यह कितनी शर्मनाक बात है कि 17 साल के एक छात्र ने कोटा पहुंचने के एक महीने के भीतर ही खुदकुशी कर ली थी.

आंकड़ों पर नजर डालें तो साल 2015 में 17 छात्रों ने सुसाइड किया, जबकि साल 2016 में 16, 2017 में 7, 2018 में 20, 2019 में 8, 2020 में 4 और 2022 में 15 छात्रों ने अपनी जान दे दी.

कोटा में हर साल तैयारी के लिए आने वाले छात्रों का आंकड़ा बढ़ता जाता है. साल 2021-22 में यहां 1,15,000 छात्र कोचिंग के लिए पहुंचे थे, तो वहीं 2022-23 में यह तादाद बढ़ कर 1,77,439 हो गई थी. साल 2023-24 में यह आंकड़ा 2,05000 तक पहुंच गया है.

कोटा में कोचिंग इंडस्ट्री की कुल नैटवर्थ तकरीबन 5,000 करोड़ रुपए है. यहां 3,000 से ज्यादा होस्टल, 1,800 मैस और 25,000 पीजी कमरे हैं.

कहने का मतलब है कि कोटा में पढ़ाई के संसाधन इतने ज्यादा मजबूत हैं कि ‘कोटा मौडल’ अपनेआप में एक मिसाल बन गया है, जहां छात्रों के लिए शानदार कोचिंग सैंटर, पढ़ाने के लिए उम्दा टीचर, एक से बढ़ कर एक लाइब्रेरी, पढ़ने की लाजवाब सामग्री… और भी न जाने क्याक्या मुहैया है. तो फिर ऐसी क्या वजह है कि छात्र ‘पढ़ाई के भूत’ से डर के मारे कंपकंपा रहे हैं? क्यों उन्हें मरने में ही अपना भविष्य उज्ज्वल दिखाई देता है?

दरअसल, कोटा का ऐजूकेशन सिस्टम अब हर तरह से फेल होता नजर आ रहा है. यहां का मैनेजमैंट चरमरा गया लगता है और छात्रों को इनसान कम, फीस भरने की एटीएम ज्यादा समझा जाने लगा है.

छात्रों पर पड़ता दबाव

हिंदी फिल्म ‘थ्री इडियट्स’ में रैंचो अपने साथी छात्र की मौत के बाद प्रिंसिपल से सीधा बोल देता है कि हर छात्र पर पढ़ाई का इतना ज्यादा दबाव रहता है कि उस का दिमाग प्रैशर कुकर सा बनने लगा है.

कुछ ऐसा ही कोटा में देखा जा रहा है. वहां के कोचिंग सिस्टम के अपने ही कायदे बने हुए हैं. वे 9वीं क्लास से ही आईआईटी और नीट के लिए कोर्स शुरू कर देते हैं. बच्चों के मांबाप के मन में यह बैठ जाता है कि अगर उन का नौनिहाल थोड़ा लेट कोचिंग क्लास जौइन करेगा तो पिछड़ जाएगा. लिहाजा, वे भेड़चाल में अपने बच्चे को वहां दाखिल करा देते हैं.

कोटा जैसी जगह पर ऐसा लगता है कि हर बच्चा हर समय पढ़ ही रहा है. वह बंधुआ मजदूर की तरह अपने मांबाप के सपनों को पूरा करने के लिए जुट जाता है कोल्हू के बैल की तरह और जो ‘मेरा समय’ है जैसे घूमनाफिरना, मौजमस्ती करना, दोस्तों और घर वालों से मिलना वगैरह, वह धीरेधीरे ‘दूसरों के सपने पूरे करने का समय’ बन जाता है, जिस में कोचिंग टाइम, स्कूल टाइम, होमवर्क टाइम, टैस्ट टाइम और प्रैक्टिस टाइम ही जरूरी माना जाता है.

यहां सब से जरूरी बात यह है कि खुदकुशी करने वाले ज्यादातर बच्चे ऐसे परिवारों से आते हैं, जहां उन्हीं से जिंदगी को बेहतर करने की उम्मीद लगाई गई होती है. वे अपने घर के हालात से वाकिफ होते हैं, इसलिए उन पर कामयाब होने का दबाव कई गुना बढ़ जाता है. अगर वे पढ़ाई में खुद को कमजोर महसूस करते हैं तो दिमागी तौर पर एकदम से टूट जाते हैं और एक लंबी सी चिट्ठी लिख कर अपनी जिंदगी छोटी कर देते हैं.

च्छे पैकेज का काटा कीड़ा

आजकल पढ़ाई का मतलब हो गया है कि बच्चा नौकरी में सालाना कितने लाख का पैकेज पा रहा है. हैरत की बात तो यह है कि हम कितने ही लाख या करोड़ का पैकेज सुन लें, हमें कोई हैरानी या खुशी ही नहीं होती है.

इस माहौल में अगर किसी का बच्चा राजनीति विज्ञान वगैरह से कालेज में ग्रेजुएशन कर रहा है तो ‘इस घर का तो पानी भी पीने में शर्म महसूस होगी’ वाली सोच मांबाप पर इतनी ज्यादा हावी है कि वे किसी भी हाल में अपने बच्चे को इंजीनियर या डाक्टर ही बनाना चाहते हैं. उन के सपने बच्चे के सपने से बड़े हो जाते हैं. यहीं पर बच्चे मार खा जाते हैं और डिप्रैशन के अंधेरे में खोने लगते हैं.

इस के अलावा बच्चों पर अपनी पढ़ाई के खर्च का भी बहुत ज्यादा दबाव रहता है. कोटा में एक साल में एक बच्चे के रहने का खर्च तकरीबन ढाई लाख रुपए के आसपास का है. एक से डेढ़ लाख रुपए कोचिंग की फीस है. इस के अलावा बच्चों के दूसरे तमाम खर्चे भी होते हैं. सबकुछ जोड़ कर देखें तो एक साल में एक बच्चे पर तकरीबन 4 लाख रुपए तक भी खर्च हो जाते हैं.

फिर क्या है हल

यह समस्या हर साल बड़ी होती जा रही है, पर इस का हल इतना पेचीदा भी नहीं है. अगर बच्चों को पढ़ाई और मनोरंजन की बैलेंस डोज दी जाए तो उन्हें पढ़ाई बोझ लगनी बंद हो जाएगी. उन्हें यह भी समझना होगा कि इंजीनियरिंग या डाक्टरी ही उज्ज्वल भविष्य की गारंटी नहीं है.

कोरोना काल में दुनिया की रेलगाड़ी मानो पटरी से उतर कर डगमगा गई थी, पर फिर भी बहुत से लोगों ने हिम्मत दिखाई और बहुत से ऐसे काम कामयाबी से किए, जिन के बारे में उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था. उन्होंने किसी से सीख ली और हिम्मत दिखाते हुए नई राह खोज ली.

ऐसी ही एक सीख पर गौर कीजिए. कोटा में लगातार बढ़ती छात्रों की खुदकुशी करने की घटनाओं को ले कर महिंद्रा ग्रुप के चेयरमैन आनंद महिंद्रा ने ट्वीट करते हुए लिखा, ‘इस तरह की खबर से मैं भी उतना ही परेशान हूं जितना आप हैं. देश के इतने उज्ज्वल भविष्यों को खत्म होते देखना मेरे लिए दुखद है. ऐसे मामलों में मेरे पास शेयर करने के लिए कोई बड़ी बातें या ज्ञान नहीं है, लेकिन कोटा के हर छात्र को जिंदगी के इस पड़ाव पर आप का टारगेट खुद को साबित करना नहीं, बल्कि खुद को ढूंढ़ना होना चाहिए…

‘किसी ऐग्जाम में कामयाबी नहीं मिलना खुद को खोजने की यात्रा का एक हिस्सा है. इस का मतलब यह भी हो सकता है कि आप की असली प्रतिभा कहीं और है, इसलिए खोजते रहो, ट्रैवल करते रहो… आप आखिरकार खोज लेंगे कि क्या ऐसी चीज है, जो आप के अंदर सर्वश्रेष्ठ है.’

याद रखिए, हर किसी में कोई न कोई गुण होता है. कोई अगर कम पढ़ालिखा है तो जरूरी नहीं कि वह जिंदगी की रेस में पिछड़ जाए. बहुत से गाड़ी मेकैनिक अपने हाथ के हुनर और तजरबे से अच्छीखासी आमदनी कर लेते हैं.

मांबाप और टीचरों को भी चाहिए कि वे बच्चे पर नजर रखें कि कहीं वह पढ़ाई को कुछ ज्यादा ही दिल पर तो नहीं ले रहा है. अगर ऐसा है तो उस के मन को टटोलें और अपने सपनों की हत्या पहले कर दें, ताकि वह खुदकुशी जैसा संगीन अपराध न कर बैठे.

तलाकशुदा और विधवा औरतें घर में भी महफूज नहीं

काजल की उम्र 22 साल थी. उस के मातापिता ने अपनी एकलौती बेटी की शादी एक इंजीनियर लड़के से की थी. पिता ने अपनी बेटी की शादी में तकरीबन 30 लाख रुपए खर्च किए थे. उन्होंने बेटीदामाद को जरूरत का हर सामान दिया था. लेकिन शादी का एक साल भी नहीं बीता था कि मुंबई में नौकरी कर रहे काजल के पति की मौत एक रेल हादसे में हो गई.

कुछ दिनों के बाद गांव वालों ने काजल के पिता को समझाया कि बेटी की दूसरी शादी कर दो, पर वे तैयार नहीं हुए. उन का कहना था कि हमारी जाति में दूसरी शादी नहीं होती है.

काजल के ससुर का भी यही कहना था कि अगर काजल की दूसरी शादी हो गई तो हम लोगों की जातबिरादरी में नाक कट जाएगी. मजबूर हो कर काजल ससुराल में रहने लगी.

एक दिन मौका देख कर काजल के ससुर ने उस से जिस्मानी संबंध बनाना चाहा तो उस ने काफी विरोध किया. लेकिन फिर वह मजबूर हो गई और अपने पिता समान ससुर के साथ सोने लगी.

इसी तरह से सीता की शादी एक ऐसे लड़के से हुई थी जो दिल की बीमारी से पीडि़त था. घर के दूसरे लोगों से उन्हें इस बीमारी का पता नहीं चल सका और उस की शादी हो गई. शादी के 2 साल बाद ही सीता के पति की मौत हो गई.

लोगों ने सीता की दूसरी शादी करने की सलाह दी पर उस के मातापिता तैयार नहीं हुए. वह ससुराल में ही रहने लगी.

बाद में सीता का अपने घर में गाड़ी चलाने वाले ड्राइवर से इश्क हो गया. परिवार वालों को जब यह बात मालूम हुई तो कुहराम मच गया. उस ड्राइवर की काफी पिटाई की गई और उसे काम से भी हटा दिया गया.

3 साल के अंदर ही कमला के पति की मौत एक सड़क हादसे में हो गई थी. वह भी मजबूर हो कर ससुराल में रह रही थी जहां ससुर और देवर से उस के नाजायज संबंध हो गए.

शबाना की शादी को 10 साल बीत गए थे. उस की 3 बेटियां और 1 बेटा था. उस के पति का सूरत, गुजरात में एक औरत से नाजायज संबंध हो गया था जहां वह कपड़े की एक फैक्टरी में काम करता था. उस ने शबाना को फोन पर ही तलाक दे दिया और अपने मोबाइल फोन का सिम बदल दिया.

शबाना ने उस से बात करने और मिलने की कोशिश की, पर नाकाम रही. उस का गुजारा अपने पति द्वारा भेजे गए पैसे से ही चलता था. शबाना के बच्चे मजबूर हो कर कबाड़ बेचने का काम करने लगे, फिर भी उन्हें इतने पैसे नहीं मिलते थे कि दोनों समय का चूल्हा जल सके. मजबूरी में शबाना दूसरों के घरों में  काम करने लगी. लोगों ने उस की मजबूरी का फायदा उठा कर उस के जिस्म से खेलना शुरू कर दिया.

5 साल बाद ही पति ने रुखसाना को  तलाक दे दिया था. वह मायके में रह रही थी. उस के मायके वाले उस से ऊब गए थे. बीए तक पढ़ीलिखी रुखसाना एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने लगी. उस की मजबूरी का फायदा उठा कर स्कूल संचालक ने उस से जिस्मानी संबंध बनाना शुरू कर दिया.

विधवा और तलाकशुदा औरतों की ऐसी तमाम कहानियां हैं जो समाज की अनदेखी के चलते जिल्लत भरी जिंदगी जी रही हैं.

अंदरूनी बीमारियां और अंधविश्वास का जाल

मर्दों के बजाय औरतों के नाजुक अंगों की बनावट इस तरह की होती है, जिन में बीमारियों वाले कीटाणु आसानी से दाखिल हो सकते हैं. इस की वजह से उन में तमाम तरह की बीमारियां देखने को मिलती हैं.

ये बीमारियां मर्दऔरत के असुरक्षित सैक्स संबंध बनाने, असुरक्षित बच्चा जनने, माहवारी के दौरान गंदे कपड़े का इस्तेमाल करने व अंगों की साफसफाई न रखने की वजह से होती हैं.

इस से औरतों के अंगों पर घाव होना, सैक्स संबंध बनाते समय खून का बहना व तेज दर्द, पेशाब में जलन व दर्द, अंग के आसपास खुजली होना, जांघों में गांठें होना व अंग से बदबूदार तरल जैसी चीज निकलने व मर्दों के अंग पर दाने, खुजली, घाव जैसी समस्याओं से दोचार होना पड़ता है.

अगर इन का समय से डाक्टरी इलाज न कराया जाए तो औरतों में बांझपन, एचआईवी एड्स, गर्भाशय में गांठ व कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियां जन्म ले सकती हैं.

अकसर औरतों में होने वाली अंदरूनी बीमारियों में वे समय से इलाज न करा कर झाड़फूंक जैसे अंधविश्वासों में पड़ कर शारीरिक, माली व दिमागी शोषण का शिकार हो जाती हैं.

12वीं जमात तक पढ़ी शीला को कुछ दिनों से पेड़ू में दर्द की शिकायत थी. इस के बाद उस के अंग के आसपास दाने निकलने शुरू हो गए और फिर बदबूदार पानी बहने लगा.

शीला ने अपनी  यह समस्या पड़ोस की एक औरत को बताई, तो उस ने बताया कि उसे किसी बुरी आत्मा के साए ने जकड़ लिया है. एक तांत्रिक बाबा हैं, जो उस की इस समस्या का हल कर सकते हैं.

शीला बाबा के पास पहुंची, तो बाबा ने बताया कि उस के ऊपर किसी चुड़ैल का साया है, जिस की वजह से उसे यह समस्या हो रही है.

शीला ने बाबा से अपनी इस समस्या का उपाय पूछा, तो बाबा ने कहा कि इस के लिए अनुष्ठान करना पड़ेगा, जिस पर तकरीबन 20 हजार रुपए का खर्च आएगा.

शीला ने अपने पति को बिना बताए उस बाबा को 20 हजार रुपए दे दिए और झाड़फूंक कराना शुरू कर दिया. लेकिन जब 2 महीने बीतने के बाद भी शीला की समस्या घटने के बजाय और बढ़ गई, तो उस ने अपने पति को यह बात बताई.

शीला का पति पढ़ालिखा था. उस ने शीला को समझाबुझा कर एक लेडी डाक्टर को दिखाया, तो डाक्टर ने शीला को अंग की बीमारी बताई.

उस डाक्टर ने शीला और उस के पति का एकसाथ इलाज किया और शीला कुछ ही हफ्तों में पूरी तरह ठीक हो गई.

इस सिलसिले में डाक्टर मलिक मोहम्मद अकमलुद्दीन का कहना है कि अकसर मर्दऔरत द्वारा असुरक्षित सैक्स संबंध बनाने की वजह से अंग में इंफैक्शन की शिकायत हो जाती है. यह समस्या औरत से मर्द में या मर्द से औरत में फैलने की वजह बनती है.

अंग में इंफैक्शन की वजह से औरत में पेशाब करते समय दर्द या जलन की तकलीफ बढ़ जाती है. इस के अलावा संबंध बनाते समय औरत को तेज दर्द होता है, वहीं मर्दों में अंग से स्राव, अंडकोषों में दर्द, अंग पर दाने व पेशाब करते समय दर्द व जलन की समस्या देखने को मिलती है.

ये सभी समस्याएं इंफैक्शन की वजह से होती हैं, न कि भूतपे्रत या टोनेटोटके की वजह से. ऐसे में इन बीमारयों का इलाज झाड़फूंक से कराना कभीकभी जानलेवा भी साबित हो जाता है.

अगर किसी औरत या मर्द में इस तरह के लक्षण दिखाई दें, तो उन्हें अपने नजदीकी अस्पताल में जा कर जरूर डाक्टरी सलाह लेनी चाहिए.

बांझपन में झाड़फूंक

अकसर औरतों में बच्चा न होने की समस्या देखने को मिलती है, जो कई वजह से होती है. अगर औरत की बच्चेदानी में किसी तरह की गांठ हो या उसे किसी तरह का इंफैक्शन हो, तो बच्चा पैदा होने में यह वजह रुकावट बनती है. ऐसे में बहुत सी औरतें बच्चा पाने की लालसा में झाड़फूंक करने वाले बाबाओं के पास चली जाती हैं, जहां उन्हें बच्चा तो नहीं पैदा होता है, बल्कि बाबाओं द्वारा माली व शारीरिक शोषण जरूर झेलना पड़ जाता है.

कभीकभी पाखंडी बाबाओं द्वारा बच्चा पैदा करने के नाम पर झाड़फूंक करने की आड़ में औरतों की इज्जत भी लूट ली जाती है, जिस के चलते कभीकभी उन के बच्चा ठहर जाता है. औरतें ये बातें इसलिए छिपा जाती हैं, क्योंकि उन्हें बांझपन के ताने से छुटकारा मिल जाता है.

ऐसे तमाम मामले सामने आते रहते हैं, जिन में झाड़फूंक करने वाले पाखंडी बाबाओं द्वारा औरतों की इज्जत लूटने की वारदातें सामने आती हैं. बाद में पोल खुलने पर इन बाबाओं को जेल की हवा भी खानी पड़ती है.

डाक्टर प्रीति मिश्रा के मुताबिक, अकसर किशोरावस्था से ही नाजुक अंगों की साफसफाई न करने की वजह से औरतों के अंग में इंफैक्शन हो जाता है, जो उन में बच्चा न पैदा होने की समस्या को जन्म देता है. इस हालत में औरतों को चाहिए कि वे अपने परिवार के लोगों के साथ बातचीत कर के किसी अच्छे डाक्टर को अपनी समस्या बताएं.

बांझपन आज के दौर में शाप नहीं रहा है, बल्कि इस का समय से इलाज कराने से औरतें आसानी से मां बन सकती हैं. अगर किसी औरत या मर्द की बच्चा पैदा करने की कूवत में किसी तरह की कमी होती है, तो पतिपत्नी आपसी रजामंदी से टैस्ट ट्यूब बेबी या किराए की कोख से भी औलाद का सुख ले सकते हैं.

एचआईवी का खतरा

सामाजिक संस्था ‘गौतम बुद्ध जागृति समिति’ के सचिव श्रीधर पांडेय का कहना है कि अकसर औरत या मर्द में से किसी एक के अंग में होने वाला इंफैक्शन उस के साथ सैक्स करने की वजह से दूसरे साथी में चला जाता है, जिसे एसटीडी यानी यौन संचारी रोग के नाम से जाना जाता है. यह बीमारी मर्द व औरत द्वारा मुख मैथुन या गुदा मैथुन, संक्रमित अंगों को आपस में रगड़ने की वजह से होती है.

इस के अलावा मर्द का इंफैक्शन वाला वीर्य जब औरत के अंग में जाता है, तो मर्द की बीमारी औरत को भी लग जाती है. इस हालत में इलाज की जगह बाबाओं से झाड़फूंक कराना न केवल घातक साबित होता है, बल्कि समय से इलाज न होने से औरत और मर्द में एचआईवी होने का खतरा भी बढ़ जाता है.

श्रीधर पांडेय का आगे कहना है कि उन की संस्था नोएडा, उत्तर प्रदेश में एड्स नियंत्रण सोसाइटी के सहयोग से एचआईवी एड्स से बचाव को ले कर जागरूकता का काम कर रही है. इस दौरान वे तमाम ऐसे एचआईवी पीडि़तों से मिले, जो पहले अंग के इंफैक्शन से पीडि़त थे और झाड़फूंक व इलाज में देरी होने की वजह से इन का यह इंफैक्शन एचआईवी में बदल गया.

इस तरह के लोगों में औरतों की तादाद सब से ज्यादा थी, क्योंकि औरतें अकसर अपनी बीमारी का इलाज डाक्टर से कराने के बजाय झाड़फूंक में ज्यादा विश्वास रखती हैं, जिस की वजह से उन को इस तरह की घातक बीमारियों का सामना करना पड़ता है.

डाक्टर मलिक मोहम्मद अकमलुद्दीन का कहना है कि अगर औरत या मर्द के अंगों में किसी तरह की खुजली, दाने या घाव दिखाई पड़ते हैं, तो इस का समय रहते इलाज शुरू कर देना चाहिए, जिस से बीमारी के फैलने का खतरा कम हो जाता है. अगर यह समस्या औरत या मर्द में से किसी एक को है, तो उस दौरान दोनों को आपस में संबंध बनाने से बचना चाहिए या सैक्स के दौरान कंडोम का इस्तेमाल करना चाहिए.

अंग के इंफैक्शन में साफसफाई का खास खयाल रखना चाहिए. साथ ही, किसी तरह के अंधविश्वास से दूरी बना कर रखने में ही भलाई होती है.

डाक्टर प्रीति मिश्रा कहती हैं कि औरतों में सैक्स संबंधी बीमारियों के नतीजे ज्यादा घातक होते हैं, जिस से वे तनाव का भी शिकार होती हैं. ऐसे में वे झाड़फूंक के अंधविश्वास में आसानी से पड़ जाती हैं.

अगर किसी औरत में अंग के इंफैक्शन के लक्षण दिखाई दें, तो उसे अपनी समस्या अपने पति व परिवार वालों को बिना संकोच के बतानी चाहिए, जिस का समय रहते इलाज किया जा सके.

डाक्टर प्रीति मिश्रा आगे बताती हैं कि अकसर अंग में इंफैक्शन की वजह से पैदा होने वाला बच्चा या तो समय से पहले पैदा हो जाता है या बेहद कमजोर व अंधा भी हो सकता है. मां में इंफैक्शन की वजह से उस के बच्चे को निमोनिया जैसी बीमारियां भी आसानी से जकड़ लेती हैं.

अगर कोई औरत अपने अंदरूनी अंग में इंफैक्शन से पीडि़त है, तो उस के पेट में लंबे समय तक दर्द बना रह सकता है. उस के गर्भाशय में कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी भी जन्म ले सकती है. एचआईवी होने का खतरा भी बढ़ जाता है.

ऐसे में आज के जमाने में हर शख्स की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह विज्ञान के तर्कों पर चलते हुए समय पर अपना इलाज कराए, न कि पाखंडी बाबाओं के चक्कर में पड़ कर अपनी जान जोखिम में डाले.

डायन के नाम पर हत्याएं : दर्द की 9 सच्ची घटनाएं

राजस्थान में डायन के नाम पर गांवदेहात की औरतों की लगातार हो रही दर्दभरी हत्याओं से अंधविश्वास पर लगाम लगाने में पुलिस प्रशासन की नाकामी ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं.

प्रदेश में अंधविश्वास व अंधश्रद्धा के नाम पर हर साल दर्जनों जानें चली जाती हैं, पर सरकार चुप है. हाईकोर्ट के दखल से पुलिस प्रशासन में फौरी तौर पर ही थोड़ी हरकत दिखाई दी है.

दर्द की 9 सच्ची घटनाएं

उदलपुरा, भीलवाड़ा. करेड़ा तहसील के उदलपुरा गांव की गीता बलाई की जिंदगी उसी के परिवार वालों ने छीन ली. पति के कम दिमाग होने के चलते वह घर और खेती का सारा काम संभाल रही थी, जो शायद उस की जेठानी को पसंद नहीं आया.

गीता पर डायन होने का आरोप लगा कर वह उसे घनोप माता ले गई. यहां नवरात्र में उसे 11 दिनों तक भूखाप्यासा रखा गया.

गीता कुएं पर पानी पीने गई तो उसे धक्का दे कर कुएं में धकेल दिया गया. उस सूखे कुएं में एक पेड़ पर उस की लाश 10 दिनों तक अटकी पड़ी रही.

जेठानी ने गांव पहुंच कर गीता बलाई को चरित्रहीन बताते हुए यह कह दिया कि वह तो कहीं भाग गई है. गीता के भाई बालू ने उस की गुमशुदगी का मामला दर्ज कराया लेकिन पुलिस ने कोई कार्यवाही नहीं की.

जेठानी ने पंचायत में उसे मारने की बात कबूल ली, लेकिन पुलिस के सामने वह मुकर गई. पुलिस उस के खिलाफ कोई सुबूत नहीं जुटा पाई.

बालवास, भीलवाड़ा. यह घटना भी भीलवाड़ा जिले के बालवास गांव की है. नंदू देवी का परिवार पिछले 5 साल से गांव के बाहर जंगल में रहने को मजबूर है. पड़ोसी डालू का बेटा क्या बीमार हुआ, एक ओझा जिसे जादूटोने से मुक्ति दिलाने का देवता माना जाता है, ने इस का इलजाम गरीब नंदू देवी के सिर रख दिया. उस के बाद तो पूरे गांव ने उसे बुरी तरह पीटा.

अपने 3 बेटों के साथ अगर नंदू देवी किसी तरह जंगल में भाग कर नहीं जाती, तो शायद उसे मौत के घाट उतार दिया जाता.

जब भी नंदू देवी किसी अजनबी को देखती है तो हाथ जोड़ कर बस एक ही सवाल करती है, ‘‘मैं डायन होती तो क्या आज मेरा खुद का परिवार जिंदा रहता?’’

पुर रोड, भीलवाड़ा. भीलवाड़ा शहर के पुर रोड पर भोली 12 साल से अकेली रह रही थी. समाज के कुछ लोगों ने डायन बता कर उसे सताना शुरू किया. उस के परिवार ने 5 बार पंचायत बुलाई लेकिन 3 लाख रुपए खर्च करने के बाद भी पंच पटेलों ने उसे डायन की बदनामी से आजाद नहीं किया.

गांव की 5 औरतें भोली का साथ देने आईं, तो उन्हें भी डायन बता दिया गया. पढ़ीलिखी बहू हेमलता ने साथ दिया तो मायके वालों ने भी उस से नाता तोड़ लिया.

आज भोली अपने पति प्याराचंद के साथ अलग मकान में रहती है. पुलिस इस मामले में चुप्पी साधे हुए है.

बोरड़ागांव, भीलवाड़ा. बोरड़ागांव की 96 साल की गुलाबीबाई की दास्तां बहुत ही दर्दनाक है. पति की मौत के बाद उस के परिवार वालों ने उसे डायन बता कर दरबदर कर दिया.

गुलाबीबाई को डायन बताने वाले लोगों ने उस की 6 बीघा जमीन और पुश्तैनी मकान पर भी कब्जा कर लिया. 11 साल पहले गुलाबीबाई के भतीजों ने उसे पीटपीट कर गांव से बाहर निकाल दिया.

गुलाबीबाई के लिए कानूनी कार्यवाही में मदद कर रहे दूर के एक रिश्तदार बंसी का पुश्तैनी मकान बिक चुका है. मामला दर्ज होने के बावजूद पुलिस प्रशासन ने कभी भी गुलाबीबाई की हालत जानने की कोशिश नहीं की.

सेमलाट, भीलवाड़ा. ससुराल वालों के जोरजुल्म की शिकार पारसी पिछले 2 साल से पिता के घर में रह रही है. उस की शादी रायपुर के तिलेश्वर गांव के मुकेश से हुई थी. घर में 2 बकरियां क्या मरीं कि पारसी को डायन बना दिया गया. पीटपीट कर रात में ही उसे घर से बाहर निकाल दिया गया. परिवार ने थाने में मामला दर्ज कराया, पर पुलिस ने कोई कार्यवाही नहीं की.

अगरपुरा, भीलवाड़ा. भीलवाड़ा जिले की सुहाणा तहसील के अगरपुरा गांव की विधवा रामगणी के परिवार पर डायन के नाम पर काफी जोरजुल्म हुआ. रामगणी के पति और 2 बेटों की मौत के बाद उस की पुश्तैनी जमीन हथियाने के लिए पड़ोसियों ने उस के साथ पूरे परिवार की औरतों को डायन ऐलान कर दिया.

रामगणी के बेटे उदयलाल ने थाने में मामला दर्ज कराया, लेकिन आरोपियों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हुई. दबंग लोगों ने उस के पूरे परिवार को गांव से अलगथलग कर दिया.

टाणका गांव, राजसमंद. डायन करार दे दी गई नोजीबाई के जले हाथ आज भी उस पर हुए जुल्म की कहानी बयां करते हैं. डायन बता कर गांव के दबंगों ने उसे गरम सलाखों से दागा, जिस के निशान आज भी मौजूद हैं.

गांव के एक दबंग परिवार में एक मौत हुई और आरोप नोजीबाई पर लगा दिया गया. फिर जोरजुल्म का सिलसिला चल पड़ा. उस के हाथों को अंगारों से जलाया गया. पुलिस में शिकायत की गई, पर कार्यवाही जीरो रही.

थाली का तलागांव, राजसमंद. राजसमंद जिले के थाली का तलागांव की केशीबाई ने 3 साल से खुद को घर में ही कैद कर रखा है. 8 नवंबर, 2014 को पूरे गांव ने उसे डायन बता कर नंगा कर के गधे पर बिठा कर 3 गांवों में घुमाया था. वह रोतीगिड़गिड़ाती रही, लेकिन वहशी भीड़ उस का दर्द सुनने की जगह उस पर पत्थर बरसाती रही. उसे मरा हुआ समझ कर भीड़ रास्ते में ही फेंक गई. बाद में किसी ने अस्पताल पहुंचाया.

केशीबाई की जिंदगी तो बच गई, लेकिन उस घटना का सदमा दिल पर ऐसा लगा कि 3 साल में उस ने घर से बाहर कदम नहीं रखा. गांव में किसी आदमी ने फांसी लगा ली, तो उसे डायन बता दिया गया था. पुलिस तमाशबीन बनी रही.

देवलगांव, डूगंरपुर. एक भोपे के आदेश पर डूंगरपुर जिले के देवलगांव में 4 औरतों को डायन करार दे दिया गया. मार्च, 2016 में गांव की काली, कमला, बसंती और मीरा को उन के ही परिवार के लोगों ने डायन बता कर सताया. पंचायत और पुलिस तमाशबीन बनी रही.

भोपों के आदेश पर दर्जनों औरतों को डायन बता कर सताया जाता है. इन्हीं भोपों ने फरमान सुना कर भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़ व राजसमंद जिलों में पिछले कुछ सालों में 105 से ज्यादा औरतों को डायन बना दिया. 22 औरतों को गांव से बाहर निकाल दिया और 8 औरतों को पीटपीट कर मार डाला गया.

उधर बवाल बढ़ने पर राजस्थान हाईकोर्ट और महिला आयोग ने संज्ञान लिया. कोर्ट ने भोपों के खिलाफ कार्यवाही की रिपोर्ट मांगी है. साथ ही, निर्देश दिए कि भोपें किसी को डायन न बताएं.

इस आदेश व जांचपड़ताल का पलीता तब लगा जब पिछले दिनों उदयपुर जिले के बिचला फुला गांव में 70 साला चंपा को डायन बता कर पीटपीट कर उस की हत्या कर दी. भोपों इस चंपा के पड़ोसी शंकर लाल मीणा के परिवार ने इस काम को अंजाम दिया. यह आदमी अपने बीमार बेटे को ठीक करना चाहता था. पुलिस ने हर मामले की तरह इस की भी जांच शुरू कर दी.

क्या है कानून

राजस्थान डायन प्रताड़ना निवारण अधिनियम की धारा 6(1) के अनुसार, खुद को भोपों या किसी अलौकिक या जादुई शक्ति का स्वामी बताना अपराध है. इस के लिए 3 साल की सजा देने का कानून है.

डायन प्रताड़ना निवारण अधिनियम की धारा 6(3) के मुताबिक, कोई भी शख्स किसी को डायन के कहर से छुड़ाने के लिए कोई पूजापाठ करता है, तो उसे 3 से

7 साल की सजा देने का कानून है. डायन प्रताड़ना निवारण अधिनियम की धारा 7 के मुताबिक, डायन के नाम पर जोरजुल्म करने से मौत होने पर इस से जुड़े हर शख्स को 7 साल से ताउम्र कैद की सजा देने का कानून है.

डायन के नाम पर किसी को सताने के खिलाफ कानून बने 2 साल हो गए हैं, मगर अब तक 50 से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं. इस के बावजूद न तो भोपों के खिलाफ कोई कार्यवाही हो रही है और न ही डायन के नाम पर जोरजुल्म कर चुके अपराधियों के खिलाफ. कानून को ठेंगा दिखा कर पूरे समाज में अंधविश्वास का जाल फैलाया जा रहा है. इस के बावजूद पूरा प्रशासन, पुलिस, राजनीतिक दल और सामाजिक संगठन खामोश हैं.

कमाऊ पत्नी अहमियत कितनी

‘‘हा  उस वाइफ से कहीं ज्यादा, लेकिन मर्दों से कम… इसे आप कुछ भी समझ सकते हैं. मेरी अहमियत, हैसियत, आत्मविश्वास या फिर स्वाभिमान…’’

बैंक में काम करने वाली 30 साल की नेहा की शादी को अभी 5 साल ही हुए हैं. इस दौरान उस ने जो महसूस किया, उसे दोटूक कह तो दिया, लेकिन बात करने के कुछ घंटों बाद फिर फोन कर के बोली, ‘‘अच्छा होगा, अगर आप यही सवाल मेरे पति से भी करें कि उन की नजर में मैं क्या हूं?’’ फिर खिलखिला कर हंसते हुए वह बोली, ‘‘अच्छा, मैं ही बता देती हूं कि उन की नजर में मैं उन के आत्मविश्वास की

एक बहुत बड़ी वजह हूं. उतनी ही जितनी मेरे आत्मविश्वास की वे वजह हैं.’’

हाउस वाइफ बनाम वर्किंग वाइफ पर आएदिन बहस, चर्चाएं और रिसर्च भी होती रही हैं, जिन में कमाऊ पत्नी की हालत हमेशा बेहतर बताई जाती है, जो कि एक हद तक है भी, लेकिन नेहा जैसी स्मार्ट औरतों के लिए दुनिया और समाज से ज्यादा पति का नजरिया माने रखता है.

बकौल नेहा, ‘अगर पति पत्नी को इज्जत देता है, तो दूसरे भी देंगे. और एक अच्छा समझदार पति ऐसा करता भी है.’

नेहा जैसी कई औरतें अगर आज भी समाज में अपनी जगह और हैसियत की रैंकिंग के लिए पति की मुहताज हैं, तो क्या इस की एकलौती वजह उन का कमाऊ होना है? यह बहुत टेढ़ा सा सवाल है, जिस का सीधा जवाब एक और बैंक में काम करने वाली सुप्रिया ही यह कहते हुए देती हैं, ‘‘इस सच को स्वीकारने में संकोच नहीं होना चाहिए.  मेरी मम्मी भी सरकारी विभाग में क्लर्क थीं, जिन्हें कई चीजों को अकसर बेमन से ढोना पड़ता था.

‘‘मसलन, धार्मिक और सामाजिक परंपराएं और रीतिरिवाज. लेकिन इस का यह मतलब नहीं कि वे इस का जिम्मेदार अकेले पापा को मानती थीं. वे अगर दादी के जिंदा रहने तक साड़ी बांध कर औफिस गईं, तो इसे उन्होंने आसानी से स्वीकार लिया था.

‘‘यह 80 के दशक की पत्नी की खूबी थी कि वह कमाऊ होने का कोई सिला पति से नहीं चाहती थी. उस पर यह आरोप भी नहीं लगाया जा सकता कि वह आधुनिक नहीं थी.’’

तो क्या अब जमाना और हालात इतने बदल गए हैं कि कमाऊ पत्नी को बहुत सारे या इतने सारे हक मिल गए हैं कि वह अपने मुताबिक जी सके और तमाम वे फैसले ले सके, जिन में पति की सहमति जरूरी न होती हो?

इस सवाल पर बैंगलुरु के सब से बड़े अस्पताल में बतौर काउंसलर काम कर रही अपूर्वा कहती हैं, ‘‘इस सवाल को उलट दीजिए. हकीकत यह है कि आज के पति भी बिना पत्नी की राय के कोई अहम फैसला नहीं लेते. इसलिए नहीं कि उस में पत्नी की भी आर्थिक भागीदारी होती है, बल्कि इसलिए भी कि एक कामकाजी पत्नी को पढ़ीलिखी होने के नाते यह जानकारी मिल ही जाती है कि कहां पैसा इंवैस्ट करने से बेहतर रिटर्न मिलेगा और बच्चा कब प्लान करना ठीक रहेगा.’’

यहां भी है धर्म का दखल

अपूर्वा के मुताबिक, यह सच है कि समाज अभी भी पितृ सत्तात्मक है, लेकिन कमाऊ पत्नियां इसे दरकाने में कामयाब हो रही हैं. हैरत की बात यह है कि उन में से ज्यादातर को नहीं मालूम कि वे ऐसा क्यों कर रही हैं.

अपनी इस बात के समर्थन में अपूर्वा ने सोशल मीडिया पर आएदिन वायरल होती कुछ पोस्ट भी शेयर की कि कैसे परंपरावादी और कट्टरवादी लोग पतिपत्नी के बीच खाई खोदने का काम कर रहे हैं. ये वे लोग हैं, जो चाहते हैं कि कमाऊ पत्नी को कैसे कमतर साबित कर के उस में हीनता भरें और फिर उसे दबाएं.

ये पोस्ट कितनी शातिराना होती हैं, इस का अंदाजा हर कोई नहीं लगा सकता. ऐसी ही एक पोस्ट में अमेरिका के एक तथाकथित सर्वे का हवाला देते हुए आखिर में कहा गया कि हमारे आधुनिकतावादी भी अमेरिका की तरह दुकानों से या औनलाइन भोजन खरीदने की वकालत कर रहे हैं और खुश हो रहे हैं कि भोजन बनाने की समस्या से हम मुक्त हो गए हैं. इस वजह से भारत में भी परिवार धीरेधीरे अमेरिकी परिवारों की तरह बरबाद हो रहे हैं.

इसी पोस्ट में अमेरिकी औरतों के अकेलेपन और तलाक वगैरह का आंकड़ों समेत इतना वीभत्स चित्रण किया गया है कि एक बार के लिए कोई भी कमाऊ पत्नी डर सकती है कि क्या फायदा ऐसे पैसे और नौकरी का, जिस से पति, परिवार और बच्चों को सुख न मिले.

ऐसी ही एक पोस्ट में धौंस सी दी गई है कि कम पढ़ीलिखी औरत ही घर बसाने की कला जानती है. पढ़ीलिखी को तो अकसर कोर्टकचहरी के चक्कर काटते देखा है मैं ने.

इस पोस्ट में औरत को सिर पर घूंघट डाले हुए दिखाया गया है, जिस से यह लगे कि जींसटौप पहनने वाली औरतें तलाक ज्यादा लेती और देती हैं. जाहिर है कि जो औरत अपने हक के बारे में जानतीसमझती है, उस का शोषण करना आसान नहीं होता.

ऐसी पोस्टों पर भोपाल के एक सीनियर प्रोफैसर राजेश पटेरिया कहते हैं, ‘‘ऐसी साजिशों से पतिपत्नी दोनों को सावधान रहना होगा, खासतौर से पति को, क्योंकि इस तरह की बातें मर्दों के अहम को सदियों से भड़काती रही हैं, जबकि हर दौर में औरत कमाऊ रही है, लेकिन अब चूंकि उस में पढ़ाईलिखाई के चलते जागरूकता भी आ गई है, तो परिवारों और समाज को तोड़ने का कारोबार करने वाले लोग नए तरीके से इसे अंजाम दे रहे हैं.’’

जरूरत है कमाऊ पत्नी

हालांकि मर्द चाह कर भी ऐसे झांसों में नहीं आ रहे, क्योंकि बढ़ती महंगाई व विलासिता की हद तक सुविधाजनक होती जा रही दुनिया में पतिपत्नी दोनों का कमाऊ होना जरूरी है. अखबारों में छप रहे वैवाहिक विज्ञापनों में अब शायद ही कोई घरेलू और गृह कार्य में दक्ष पत्नी चाहता है.

बात अकेले कमाई की नहीं है, बल्कि बदलते सामाजिक माहौल और एकल होते परिवारों के बढ़ते खर्चों की भी है, जिन्हें किसी एक की कमाई से पूरा नहीं किया जा सकता और अगर कर भी लिया जाए तो बहुत से समझौते उसे करने पड़ते हैं, फिर महंगा फ्लैट, बड़ी कार और बच्चे को महंगे स्कूल में पढ़ाने जैसे ढेरों सपने सपने ही रह जाते हैं.

आर्थिक लिहाज के अलावा निजी संतुष्टि भी कम रोल नहीं निभाती. भोपाल की ही एक सरकारी कर्मचारी 46 साल की सविता कहती हैं, ‘‘कमाऊ पत्नियों में ज्यादा आत्मविश्वास और बेफिक्री होती है. वे घर और दफ्तर की दोहरी लड़ाई कामयाबी से लड़ लेती हैं. उन का भावनात्मक लगाव पति व बच्चों से कम नहीं होता.’’

अब यह मिथक भी धीरेधीरे टूट रहा है कि कमाऊ पत्नी घरपरिवार, बच्चों और पति को मुनासिब वक्त नहीं दे पाती. अब इन सभी को ज्यादा वक्त की जरूरत ही नहीं रही, बल्कि पैसों और सहूलियतों की जरूरत ज्यादा है. डबल इनकम इसे आसानी से पूरा करती है और रिटायरमैंट के बाद की जिंदगी भी सुकून से गुजरती है.

सविता कहती हैं, ‘‘आप देखिए कि देशभर के पर्यटन स्थलों पर बूढ़ों की तादाद नौजवानों से कहीं ज्यादा देखने में आती है. धार्मिक शहर तो उन्हीं से भरे पड़े रहते हैं.’’

यह पीढ़ी तो बस…

जान कर हैरत नहीं होती कि स्कूली पीढ़ी भी कमाऊ पत्नी की जरूरत और अहमियत पर संजीदा है. इस साल 12वीं जमात पास कर कालेज में दाखिला ले चुके नक्षत्र की मानें, तो उन की उम्र का कोई भी लड़का हाउस वाइफ नहीं चाहता. उन की नजर में वह एक बेकार और फालतू साथी साबित होगी, जो बातबात पर फसाद खड़े करेगी, क्योंकि खाली दिमाग वाकई में शैतान का घर होता है और हम एक सुकून भरी जिंदगी की कल्पना करते हैं, जिस में हर जरूरी चीज हो.

इस का मतलब है कि नई जवान होती पीढ़ी के मन में कमाऊ पत्नी को ले कर कोई शक नहीं है, जिस ने आने वाले वक्त की नजाकत को समय रहते भांप लिया है.

लड़कियां भी स्वीकार कर चुकी हैं कि वे अपनी दादीनानी की तरह चूल्हेचौके के झंझट में पड़ कर जिंदगी खराब नहीं करेंगी. उन्हें अगर मौका और तालीम मिली होती, तो वे भी शायद नौकरी ही करतीं. यूपीएससी की तैयारी कर रही 20 साल की अदिति की मानें तो,

‘‘मैं कोई रिस्क उठाना पसंद नहीं करूंगी. वक्त और हालात कैसे भी रहें, काम में पैसा ही आएगा और वैसे भी लड़कियों का अपना पैरों पर खड़े होना अब हर लिहाज से बहुत जरूरी हो चला है.

‘‘इसे रिश्तों से उठता भरोसा नहीं कहा जा सकता, उलटे अब पैसा नजदीकी रिश्तों को और मजबूती दे रहा है, क्योंकि मजबूती देने वाले रिश्तेनाते खुद मजबूती के मुहताज हो चले हैं.

‘‘अगर आप अस्पताल में किसी अपने वाले को देखने गए हैं और आप की जेब में जरूरत पड़ने पर उस की मदद के लिए पैसा नहीं है, तो आप के वहां होने या न होने के कोई माने नहीं. पत्नी कमाऊ हो, तो पति आसानी से किसी अपने की मदद कर सकता है.’’

यह सब अहम कितना

अकसर कमाऊ पत्नियों पर यह आरोप लगता रहता है कि वे अहंकारी होती हैं और बातबात में अपने फैसले थोपती हैं. अदिति इसे गलत बताते हुए कहती है, ‘‘दरअसल, कमाऊ पत्नियों से लोग ज्यादा उम्मीद इन शर्तों के साथ पाल लेते हैं कि वे खामोशी से अपनी कमाई का इस्तेमाल होते देखती रहेंगी, लेकिन ऐसा अब है नहीं. शादी के 3-4 साल बाद जब पतिपत्नी में ट्यूनिंग हो जाती है, तब यह समस्या नहीं रह जाती. शादी के तुरंत बाद कुछ दिनों तक वे एकदूसरे को ले कर आशंकित हो सकते हैं, जो बेहद स्वाभाविक बात है.’’

थोड़े से बचे संयुक्त परिवारों में जरूर सभी कमाऊ सदस्य घर के मुखिया के पास तयशुदा पैसा जमा करते हैं, जिस से वह घरखर्च चलाता है. ऐसे ही एक परिवार की बहू अर्चना जो शिक्षिका हैं, कहती हैं, ‘‘यह व्यवस्था भी बुरी नहीं, क्योंकि बचे पैसों, जो 60 से 70 फीसदी होते हैं, पर पतिपत्नी का हक होता है और इस्तेमाल करने की आजादी भी होती है.

‘‘मैं अपने भतीजे को सोने की चेन दूं, तो पति और ससुराल वालों को कोई एतराज नहीं होता. दिक्कत उन मामलों में हो जाती है, जिन में पति पत्नी की कमाई पर अपना हक जताता है. हालांकि ऐसे पतियों की तादाद कम हो रही है, लेकिन खत्म नहीं हुई है.’’

कुछ दिन पहले दिल्ली में ‘वर्किंग स्त्री’ नाम की जारी रिपोर्ट में बताया गया है कि 70 फीसदी कमाऊ औरतें घरखर्च में सक्रिय योगदान देती हैं. 30 फीसदी औरतें अपनी आधी तनख्वाह घरखर्च में देती हैं.

हालांकि, यह रिपोर्ट एक सामाजिक सच भी उजागर करती है कि भले ही आर्थिक रूप से औरतें आत्मनिर्भर और जिम्मेदार हैं, लेकिन वित्तीय फैसले वे घर के मर्द सदस्यों की मदद से ही लेती हैं. इस में कोई बुराई नहीं है.

इस से हासिल क्या

पैसा कमाने की औरतों की जिद ने उन्हें घर और समाज में बराबरी का दर्जा तो दिलाया है, पर कुछ फीसदी मामलों में विवाद होते हैं, लेकिन उन्हें ही हवा देने से परिवारतोड़ू गैंग की मंशा पूरी होती है, जिन्हें फर्राटे से कार चलाती लड़कियां संस्कारहीन लगती हैं. क्लब जाती और किटी पार्टी में मशगूल औरतों को वे धर्म से विमुख कहते हैं तो साफ है कि इस से उन का नुकसान हो रहा होता है.

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