आप अपने मन में एक चित्र बनाएं कि किसी दूरदराज गांव का गरीबवंचित परिवार का कोई बच्चा ऊंची पढ़ाई के लिए कोटा, राजस्थान में कोचिंग लेने के सपने देख रहा है. उस का मजदूर पिता अपना अधभरा पेट काट कर पैसे जमा करता है और बच्चे की आंखों में सुनहरे भविष्य की चमक देख कर संतुष्ट हो जाता है.

पर अचानक कोटा से खबर आए कि उस मजदूर का बेटा वहां पढ़ाई का दबाव नहीं झेल पाया और एक नायलौन की रस्सी से फांसी लगा कर मर गया है, तो उस मजदूर पिता पर क्या बीतेगी? हमारे लिए यह एक दुखद खबर हो सकती है, पर वह मजदूर तो जीतेजी मर जाएगा.

इस चित्र को सोचने की वजह क्या है? दरअसल, अब कोटा अपनी पढ़ाई से ज्यादा छात्रों की खुदकुशी के लिए सुर्खियां बन रहा है. एक छात्र की लिखी आखिरी चिट्ठी के अंश से आप को बात समझ में आ जाएगी :

‘अभिनव मेरे भाई, तुम कभी कोटा नहीं आना. मैं नहीं चाहता कि तुम भी मेरी तरह दिमागी रूप से परेशान हो जाओ. मैं यहां सिर्फ और सिर्फ पढ़ाई करता हूं. अकेला हो गया हूं. मोबाइल है नहीं तो कई दिनों से यह लैटर लिख रहा हूं. जब मौका मिल पाया था तब भेजा.

‘अभिनव, तुम पेंटिंग बनाओ. सोशल मीडिया का इस्तेमाल करो. हो सकता है कि तुम को घर बैठे ही कहीं से और्डर आ जाएं. तुम बहुत बड़े आर्टिस्ट बन जाओ.

‘अंत में मांपापा, एक बात आप से बताना भूल गया. भूला नहीं शायद हिम्मत नहीं जुटा पाया. पिछले हफ्ते एक टैस्ट हुआ था पापा. 50 मार्क्स का था. मैं 35 नंबर ला पाया, जो क्लास में सब से कम थे. सब के नंबर अच्छे थे. कोचिंग वाले बोले कि मार्कशीट घर जाएगी. शायद अब तक पोस्ट भी हो गई होगी, लेकिन उस से पहले मैं आप सभी से माफी मांग रहा हूं. मांपापा, आप का सपना अब अभिनव पूरा करेगा. मैं उस लायक नहीं बना.

‘अभिनव, तुम रोना नहीं. बस यह सोच लेना भैया का सपना भी तुम को पूरा करना है.

‘अलविदा.’

कोटा को आईआईटी और नीट के इम्तिहान को क्रैक करने का हब माना जाता है, पर इस साल वहां 24 छात्र पढ़ाई और मानसिक दबाव में अपनी जान दे चुके हैं. हालात इतने बदतर हो रहे हैं कि वहां कोचिंग संस्थानों और होस्टलों में ‘ऐंटी सुसाइड फैन’ लगाने के आदेश जारी होने के बाद भी रविवार, 27 अगस्त, 2023 को 4 घंटे के भीतर 2 छात्रों ने अपनी जान दे दी थी.

इन में एक छात्र बिहार के रोहतास का था और दूसरा महाराष्ट्र के लातूर का रहने वाला था. बिहार के रोहतास जिले का 18 साल का आदर्श राज जहां फांसी पर लटक गया, वहीं 16 साल के अविष्कार संभाजी कासले ने इंस्टीट्यूट की छठी मंजिल से छलांग लगा दी.

खतरे की घंटी

‘हिंदुस्तान टाइम्स’ की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस साल जिन छात्रों ने खुदकुशी की है, उन में से ज्यादातर गरीब या लोअर मिडिल क्लास परिवार से थे. ऐसे छात्रों में किसी के पिता नाई, किसी के पिता गाड़ी साफ करने वाले और कुछ के पिता छोटे किसान थे.

कोटा में बच्चों पर क्या गुजर रही है, यह खुदकुशी करने वाले एक छात्र से समझिए, जिस के पिता ने कहा, “अपने बच्चे को कहीं भी भेजिए, बस कोटा मत भेजिए.”

हमारे ऐजूकेशन सिस्टम के लिए यह कितनी शर्मनाक बात है कि 17 साल के एक छात्र ने कोटा पहुंचने के एक महीने के भीतर ही खुदकुशी कर ली थी.

आंकड़ों पर नजर डालें तो साल 2015 में 17 छात्रों ने सुसाइड किया, जबकि साल 2016 में 16, 2017 में 7, 2018 में 20, 2019 में 8, 2020 में 4 और 2022 में 15 छात्रों ने अपनी जान दे दी.

कोटा में हर साल तैयारी के लिए आने वाले छात्रों का आंकड़ा बढ़ता जाता है. साल 2021-22 में यहां 1,15,000 छात्र कोचिंग के लिए पहुंचे थे, तो वहीं 2022-23 में यह तादाद बढ़ कर 1,77,439 हो गई थी. साल 2023-24 में यह आंकड़ा 2,05000 तक पहुंच गया है.

कोटा में कोचिंग इंडस्ट्री की कुल नैटवर्थ तकरीबन 5,000 करोड़ रुपए है. यहां 3,000 से ज्यादा होस्टल, 1,800 मैस और 25,000 पीजी कमरे हैं.

कहने का मतलब है कि कोटा में पढ़ाई के संसाधन इतने ज्यादा मजबूत हैं कि ‘कोटा मौडल’ अपनेआप में एक मिसाल बन गया है, जहां छात्रों के लिए शानदार कोचिंग सैंटर, पढ़ाने के लिए उम्दा टीचर, एक से बढ़ कर एक लाइब्रेरी, पढ़ने की लाजवाब सामग्री… और भी न जाने क्याक्या मुहैया है. तो फिर ऐसी क्या वजह है कि छात्र ‘पढ़ाई के भूत’ से डर के मारे कंपकंपा रहे हैं? क्यों उन्हें मरने में ही अपना भविष्य उज्ज्वल दिखाई देता है?

दरअसल, कोटा का ऐजूकेशन सिस्टम अब हर तरह से फेल होता नजर आ रहा है. यहां का मैनेजमैंट चरमरा गया लगता है और छात्रों को इनसान कम, फीस भरने की एटीएम ज्यादा समझा जाने लगा है.

छात्रों पर पड़ता दबाव

हिंदी फिल्म ‘थ्री इडियट्स’ में रैंचो अपने साथी छात्र की मौत के बाद प्रिंसिपल से सीधा बोल देता है कि हर छात्र पर पढ़ाई का इतना ज्यादा दबाव रहता है कि उस का दिमाग प्रैशर कुकर सा बनने लगा है.

कुछ ऐसा ही कोटा में देखा जा रहा है. वहां के कोचिंग सिस्टम के अपने ही कायदे बने हुए हैं. वे 9वीं क्लास से ही आईआईटी और नीट के लिए कोर्स शुरू कर देते हैं. बच्चों के मांबाप के मन में यह बैठ जाता है कि अगर उन का नौनिहाल थोड़ा लेट कोचिंग क्लास जौइन करेगा तो पिछड़ जाएगा. लिहाजा, वे भेड़चाल में अपने बच्चे को वहां दाखिल करा देते हैं.

कोटा जैसी जगह पर ऐसा लगता है कि हर बच्चा हर समय पढ़ ही रहा है. वह बंधुआ मजदूर की तरह अपने मांबाप के सपनों को पूरा करने के लिए जुट जाता है कोल्हू के बैल की तरह और जो ‘मेरा समय’ है जैसे घूमनाफिरना, मौजमस्ती करना, दोस्तों और घर वालों से मिलना वगैरह, वह धीरेधीरे ‘दूसरों के सपने पूरे करने का समय’ बन जाता है, जिस में कोचिंग टाइम, स्कूल टाइम, होमवर्क टाइम, टैस्ट टाइम और प्रैक्टिस टाइम ही जरूरी माना जाता है.

यहां सब से जरूरी बात यह है कि खुदकुशी करने वाले ज्यादातर बच्चे ऐसे परिवारों से आते हैं, जहां उन्हीं से जिंदगी को बेहतर करने की उम्मीद लगाई गई होती है. वे अपने घर के हालात से वाकिफ होते हैं, इसलिए उन पर कामयाब होने का दबाव कई गुना बढ़ जाता है. अगर वे पढ़ाई में खुद को कमजोर महसूस करते हैं तो दिमागी तौर पर एकदम से टूट जाते हैं और एक लंबी सी चिट्ठी लिख कर अपनी जिंदगी छोटी कर देते हैं.

च्छे पैकेज का काटा कीड़ा

आजकल पढ़ाई का मतलब हो गया है कि बच्चा नौकरी में सालाना कितने लाख का पैकेज पा रहा है. हैरत की बात तो यह है कि हम कितने ही लाख या करोड़ का पैकेज सुन लें, हमें कोई हैरानी या खुशी ही नहीं होती है.

इस माहौल में अगर किसी का बच्चा राजनीति विज्ञान वगैरह से कालेज में ग्रेजुएशन कर रहा है तो ‘इस घर का तो पानी भी पीने में शर्म महसूस होगी’ वाली सोच मांबाप पर इतनी ज्यादा हावी है कि वे किसी भी हाल में अपने बच्चे को इंजीनियर या डाक्टर ही बनाना चाहते हैं. उन के सपने बच्चे के सपने से बड़े हो जाते हैं. यहीं पर बच्चे मार खा जाते हैं और डिप्रैशन के अंधेरे में खोने लगते हैं.

इस के अलावा बच्चों पर अपनी पढ़ाई के खर्च का भी बहुत ज्यादा दबाव रहता है. कोटा में एक साल में एक बच्चे के रहने का खर्च तकरीबन ढाई लाख रुपए के आसपास का है. एक से डेढ़ लाख रुपए कोचिंग की फीस है. इस के अलावा बच्चों के दूसरे तमाम खर्चे भी होते हैं. सबकुछ जोड़ कर देखें तो एक साल में एक बच्चे पर तकरीबन 4 लाख रुपए तक भी खर्च हो जाते हैं.

फिर क्या है हल

यह समस्या हर साल बड़ी होती जा रही है, पर इस का हल इतना पेचीदा भी नहीं है. अगर बच्चों को पढ़ाई और मनोरंजन की बैलेंस डोज दी जाए तो उन्हें पढ़ाई बोझ लगनी बंद हो जाएगी. उन्हें यह भी समझना होगा कि इंजीनियरिंग या डाक्टरी ही उज्ज्वल भविष्य की गारंटी नहीं है.

कोरोना काल में दुनिया की रेलगाड़ी मानो पटरी से उतर कर डगमगा गई थी, पर फिर भी बहुत से लोगों ने हिम्मत दिखाई और बहुत से ऐसे काम कामयाबी से किए, जिन के बारे में उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था. उन्होंने किसी से सीख ली और हिम्मत दिखाते हुए नई राह खोज ली.

ऐसी ही एक सीख पर गौर कीजिए. कोटा में लगातार बढ़ती छात्रों की खुदकुशी करने की घटनाओं को ले कर महिंद्रा ग्रुप के चेयरमैन आनंद महिंद्रा ने ट्वीट करते हुए लिखा, ‘इस तरह की खबर से मैं भी उतना ही परेशान हूं जितना आप हैं. देश के इतने उज्ज्वल भविष्यों को खत्म होते देखना मेरे लिए दुखद है. ऐसे मामलों में मेरे पास शेयर करने के लिए कोई बड़ी बातें या ज्ञान नहीं है, लेकिन कोटा के हर छात्र को जिंदगी के इस पड़ाव पर आप का टारगेट खुद को साबित करना नहीं, बल्कि खुद को ढूंढ़ना होना चाहिए…

‘किसी ऐग्जाम में कामयाबी नहीं मिलना खुद को खोजने की यात्रा का एक हिस्सा है. इस का मतलब यह भी हो सकता है कि आप की असली प्रतिभा कहीं और है, इसलिए खोजते रहो, ट्रैवल करते रहो… आप आखिरकार खोज लेंगे कि क्या ऐसी चीज है, जो आप के अंदर सर्वश्रेष्ठ है.’

याद रखिए, हर किसी में कोई न कोई गुण होता है. कोई अगर कम पढ़ालिखा है तो जरूरी नहीं कि वह जिंदगी की रेस में पिछड़ जाए. बहुत से गाड़ी मेकैनिक अपने हाथ के हुनर और तजरबे से अच्छीखासी आमदनी कर लेते हैं.

मांबाप और टीचरों को भी चाहिए कि वे बच्चे पर नजर रखें कि कहीं वह पढ़ाई को कुछ ज्यादा ही दिल पर तो नहीं ले रहा है. अगर ऐसा है तो उस के मन को टटोलें और अपने सपनों की हत्या पहले कर दें, ताकि वह खुदकुशी जैसा संगीन अपराध न कर बैठे.

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