राजस्थान में डायन के नाम पर गांवदेहात की औरतों की लगातार हो रही दर्दभरी हत्याओं से अंधविश्वास पर लगाम लगाने में पुलिस प्रशासन की नाकामी ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं.
प्रदेश में अंधविश्वास व अंधश्रद्धा के नाम पर हर साल दर्जनों जानें चली जाती हैं, पर सरकार चुप है. हाईकोर्ट के दखल से पुलिस प्रशासन में फौरी तौर पर ही थोड़ी हरकत दिखाई दी है.
दर्द की 9 सच्ची घटनाएं
उदलपुरा, भीलवाड़ा. करेड़ा तहसील के उदलपुरा गांव की गीता बलाई की जिंदगी उसी के परिवार वालों ने छीन ली. पति के कम दिमाग होने के चलते वह घर और खेती का सारा काम संभाल रही थी, जो शायद उस की जेठानी को पसंद नहीं आया.
गीता पर डायन होने का आरोप लगा कर वह उसे घनोप माता ले गई. यहां नवरात्र में उसे 11 दिनों तक भूखाप्यासा रखा गया.
गीता कुएं पर पानी पीने गई तो उसे धक्का दे कर कुएं में धकेल दिया गया. उस सूखे कुएं में एक पेड़ पर उस की लाश 10 दिनों तक अटकी पड़ी रही.
जेठानी ने गांव पहुंच कर गीता बलाई को चरित्रहीन बताते हुए यह कह दिया कि वह तो कहीं भाग गई है. गीता के भाई बालू ने उस की गुमशुदगी का मामला दर्ज कराया लेकिन पुलिस ने कोई कार्यवाही नहीं की.
जेठानी ने पंचायत में उसे मारने की बात कबूल ली, लेकिन पुलिस के सामने वह मुकर गई. पुलिस उस के खिलाफ कोई सुबूत नहीं जुटा पाई.
बालवास, भीलवाड़ा. यह घटना भी भीलवाड़ा जिले के बालवास गांव की है. नंदू देवी का परिवार पिछले 5 साल से गांव के बाहर जंगल में रहने को मजबूर है. पड़ोसी डालू का बेटा क्या बीमार हुआ, एक ओझा जिसे जादूटोने से मुक्ति दिलाने का देवता माना जाता है, ने इस का इलजाम गरीब नंदू देवी के सिर रख दिया. उस के बाद तो पूरे गांव ने उसे बुरी तरह पीटा.