Story In Hindi: 9 महीने की उमर

Story In Hindi: इदा चाहती कुछ थी, कहती कुछ थी और करती कुछ थी. वह मजबूर थी अपने हालात से, अपने माहौल से. दिखने में तो वह खुद एक बच्ची लगती थी, मगर उस का अपना एक 5 साल का बच्चा था.वह करीम से कहती थी, ‘‘तुम्हें शर्म नहीं आती? किसी और की बीवी को इस तरह परेशान करते हो? वह भी तब, जब वह तुम से 5 साल बड़ी है? उस का अपना एक बच्चा है, वह भी 5 साल का?’’

ये सारी बातें वह एक सांस में कह जाती थी, बिना रुके.करीम उस की बातें सुन कर कहता था, ‘‘क्या करूं… किसी और की बीवी इतनी खूबसूरत हो और मु?ा से प्यार करती हो, तो शर्म कहां से आए?’’करीम की बातें सुन कर इदा हंस देती थी और कहती थी, ‘‘तुम बहुत अच्छे हो करीम.’’करीम को यह सुन कर बड़ी तसल्ली मिलती थी.

वह अपनी बातें कहने में मगन रहता था. इदा उस की कुछ बातों को यों ही हंसी में उड़ा देती थी, मगर जब करीम उस से मिलने की बात करता था, तब उस के चेहरे की हंसी गायब हो जाती थी.वह कहती थी, ‘‘करीम, मैं भी तुम से मिलना चाहती हूूं. तुम्हारे साथ रहना चाहती हूं.

मगर ऐसा हो नहीं सकता है न. मैं किसी और की हूं.’’फिर इदा रोने लगती थी. करीम उसे अपने हिसाब से हौसला देता था. उसे सम?ाता था. दूर से ही सही, उस के आंसू पोंछने की कोशिश करता था.करीम को यह बात सम?ा में नहीं आती थी कि यह दुनिया ऐसी क्यों है? यह समाज ऐसा क्यों है? उसे इदा बहुत पसंद थी. इदा को भी वह बहुत पसंद था. मगर वह किसी और की थी.

वह चाह कर भी करीम की नहीं हो सकती थी. करीम इदा के बिना नहीं रह सकता था. अब किया क्या जाए? किसी को कोई रास्ता नहीं सू?ाता था. न इदा को और न करीम को.इदा तो रो कर अपना गम आंसुओं में बहा देती थी और शांत हो जाती थी.

वह उस से मिलने नहीं आ सकती, यह सुन कर करीम जिद करना छोड़ देता था. मगर बारबार अपने दिल को सम?ाना इतना आसान काम नहीं होता. करीम का दिल रहरह कर इदा के लिए बेचैन हो उठता था और फिर से उसे बुलाना शुरू कर देता था.इदा ने कई बार कोशिश भी की कि वह करीम से मिल ले, मगर ये मुलाकातें बस कुछ पलों की ही हो सकी थीं, जैसे सड़क पर, अपने बच्चे को स्कूल छोड़ने के रास्ते में या फिर किसी किताब की दुकान में.

यह कुछ पलों का मिलना करीम को और बेचैन कर देता था. एक बार तो जब इदा ने जाने के लिए हाथ मिलाया, तो सड़क पर ही करीम ने उस का हाथ इस तरह पकड़ लिया, जैसे अब छोड़ेगा ही नहीं.इदा अब परेशान होने लगी थी. वह कहने लगी, ‘‘करीम, तुम अब मु?ो बहका रहे हो.’’करीम का ऐसा कोई इरादा नहीं था. वह तो बस उस का हाथ नहीं छोड़ना चाहता था.

उसे समाज के बनाए नियम सम?ा नहीं आते थे. वह तो बस अपनी इदा को जाने नहीं देना चाहता था. मगर इदा जिस समाज में रहती थी, वहां इस मुहब्बत को कभी नहीं सम?ा जा सकता था. यह बात इदा अच्छी तरह जानती थी और इसी बात की वजह से वह करीम से दूर रहना चाहती थी. लेकिन करीम बारबार उस के रास्ते में आ जाता था.

एक बार इदा अपने बच्चे को स्कूल छोड़ने गई थी. करीम भी वहीं था.अपने बच्चे को स्कूल में छोड़ कर इदा करीम से मिली और उस से पूछा, ‘‘करीम, इस वक्त यहां किसलिए?’’करीम ने कहा, ‘‘बस, तुम्हें देखने का मन किया, तो चला आया.’’इदा करीम की इस दीवानगी से बहुत घबराती थी, मगर वह उस के रास्ते में बारबार आ ही जाता था.इदा सोचती थी कि ये मर्द ऐसे ही होते हैं.

मगर करीम ऐसा नहीं था. इदा उस की नसों में बस चुकी थी. खून बन कर जिस्म में बह रही थी. करीम के लिए और कुछ नहीं था, सिर्फ इदा और बस इदा. उस की पूरी दुनिया इदा थी और इदा की दुनिया में करीम के लिए कोई जगह नहीं थी.करीम बस इदा की सांसों में रह सकता था. उस के ख्वाबों में रह सकता था, मगर हकीकत में इदा अपने घर में करीम का नाम भी नहीं ले सकती थी. यह बात करीम को खाए जा रही थी.करीम की हालत इदा के लिए दिनोंदिन बिगड़ती जा रही थी.

इदा भी परेशान थी कि क्या करे? करीम इदा के ख्वाब देखता था, फिर इदा से कहता था कि यह ख्वाब पूरा कर दो…. मगर करीम के ख्वाबों में इदा होती थी… और हकीकत में इदा नहीं होती थी. इदा बस करीम से बातें करती थी. बातें हर तरह की. बातें ऐसी कि मियांबीवी भी क्या करें. मगर यह सब करीम की वजह से था. इदा बहुत खूबसूरत थी. यह करीम की परेशानी थी. करीम को इदा के अलावा कुछ सू?ाता ही नहीं था.इदा स्कूटी चलाती थी. करीम को इस बात पर यकीन नहीं हुआ था.

इस बात का उसे तब पता चला था, जब वह इदा के पीछे स्कूटी पर बैठा था. तब हवा के एक ?ोंके ने इदा का दुपट्टा थोड़ा सा सरका दिया था और उस के दाएं कंधे के पास एक तिल है, जो करीम को दिख गया था.फिर करीम से रहा नहीं गया. उस ने आंखें बंद कीं और दुनिया की परवाह किए बगैर अपने होंठ इदा के तिल पर रख दिए. यह पहली बार था,

जब करीम ने इदा को इस तरह छुआ था. इदा घबरा गई. उस ने कहा, ‘‘करीम, मैं गिर जाऊंगी…’’करीम ने दूसरी बार उस तिल को उसी तरह छू लिया. अब इदा को लगा कि रुकना पड़ेगा और वह रुक गई.अब करीम को स्कूटी से उतरना था. उतरते हुए उस ने इदा की कमर पर हाथ रख दिया था. इदा को यह बात भूली नहीं.इदा चाहती थी कि करीम खुद को संभाले, मगर करीम चाहता था कि अब इदा उसे संभाले. करीम उस वक्त चाहता था कि इदा के खूबसूरत होंठों को छू ले, मगर इदा ने कहा,

‘‘यहां नहीं करीम…’’करीम को लगा कि इदा फिर किसी मौके की बात कर रही है और उस ने खुद को सम?ा लिया और इदा चली गई.उस रात इदा की नींद उड़ गई थी और करीम को पहली बार ठीक से नींद आई थी. मगर इदा ने खुद को संभाल लिया और दोबारा ऐसा न हो, इस की पुरजोर कोशिश करने लगी. उस ने करीम से मिलने की बात पर हां कहना छोड़ दिया और करीम, जो यह सोच कर खुश हो रहा था कि इदा ने कहा है कि यहां नहीं… इस का मतलब वह किसी और जगह मिलेगी, के सपने चूरचूर हो गए, जब इदा ने कहा, ‘‘अब मैं तुम्हें अपनी स्कूटी पर नहीं बैठने दूंगी.

’’यहां एक नया सिलसिला शुरू हुआ. दोनों में बातें कम हो गईं, मगर दोनों ने एकदूसरे के बारे में सोचना और ज्यादा कर दिया. अब इदा को रात में अचानक ?ाटके आते थे. वह चौंक कर उठ जाती थी. करीम सपने देखता था, जिन में इदा बिना कपड़ों के होती थी. अगले दिन जब करीम किसी तरह कोशिश कर के इदा को बात करने के लिए मना लेता था,

तब इदा प्यार से उस के ख्वाब सुनती थी. जब करीम कहता कि ‘इदा, इस ख्वाब को सच कर दो,’ तब दोनों में बहस हो जाती थी. ?ागड़ा हो जाता था. फिर कईकई दिन बातें नहीं हो पाती थीं. करीम परेशान हो जाता था. इदा से बात करने के लिए वह अजीबअजीब तरकीबें निकालता था. अपने दफ्तर से फोन करता था. पीसीओ से फोन करता था और इदा जब फोन उठाती थी, तब कहता था,

‘‘फोन मत रखना…’’फिर वही सिलसिला शुरू होता था. इदा का रूठना, करीम का मनाना. इदा का आंसू बहाना और फिर करीम का अपने दिल को सम?ाना. इस तरह दोनों का रिश्ता एक अजीब दौर से गुजरने लगा. ?ां?ालाहट और ?ाल्लाहट से भर गया था करीम का दिल. उधर इदा खुद को सम?ाती रहती थी कि यह गलत है. वह करीम को भी सम?ाती थी.करीम को यह नहीं सम?ा में आता था कि इदा फिर उन बातों पर क्यों बात करती थी,

जो बातें उसे गलत लगती हैं?करीम इदा को चाहता था, मगर इस कीमत पर नहीं कि इदा की जिंदगी उस की वजह से किसी मुसीबत में पड़ जाए. करीम इस बात का हमेशा खयाल रखता था. वह इदा को दूर से देख कर तसल्ली कर लेता था, मगर अब यह सब भारी होता जा रहा था. दिल बो?िल होता जा रहा था.इदा बारबार करीम से कहती थी,

‘‘तुम क्यों आए मेरी जिंदगी में करीम? तुम दूर चले जाओ मेरी जिंदगी से… दूर, बहुत दूर.’’यह करीम का ही कलेजा था, जो यह सब बरदाश्त करता था. फिर एक दिन करीम ने एक ख्वाब देखा और इदा से कहा, ‘‘यह मेरी आखिरी ख्वाहिश है. इसे पूरी कर दो, फिर मैं तुम्हारी जिंदगी से हमेशा के लिए चला जाऊंगा.’’तब इदा को जैसे धक्का सा लगा…उस दिन इदा खूब रोई थी, क्योंकि करीम का ख्वाब ही ऐसा था. उस ने देखा था कि इदा और वह मिलते हैं… उन के जिस्म मिलते हैं.

फिर एक बच्चा होता है. इदा उसे बड़े प्यार से पालती है.इतना ख्वाब सुन कर इदा को हंसी आई थी. उस ने कहा था, ‘‘करीम… तुम भी न… पागल हो तुम… अच्छा, फिर क्या हुआ?’’‘‘फिर मैं चला गया,’’ करीम ने कहा.अब इदा ने पूछा, ‘‘चला गया मतलब?’’करीम ने कहा, ‘‘मैं चला गया. हमेशा के लिए. मगर एक बच्चे की शक्ल में फिर से तुम्हारे पास आ गया तुम्हारे बेटे के रूप में…’’इदा को यह बात बिलकुल भी अच्छी नहीं लगी थी.मगर करीम ने उसे ठीक से सम?ाया,

‘‘देखो इदा, तुम मेरे पास नहीं आ सकती. मैं तुम्हारी जिंदगी में नहीं आ सकता. मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकता. तुम अपनी बसीबसाई दुनिया छोड़ नहीं सकती और तुम्हें छोड़ना भी नहीं चाहिए. लेकिन एक काम हो सकता है. हमें मिले हुए आज 9 महीने हुए हैं. 9 महीने में तो कुछ होता है न? वही कर दो… मु?ो 9 महीने की उमर दे दो. ‘‘मैं 9 महीने और जिंदा रहना चाहता हूं.

फिर चला जाऊंगा तुम्हारी जिंदगी से… हमेशा के लिए. यही चाहती हो न तुम? यही एक रास्ता निकाला है मैं ने. ‘‘तुम मु?ा से एक बार तसल्ली से मिल लो. फिर तुम एक बच्चा पैदा करो, जो मेरी निशानी हो. मैं तुम से दूर नहीं रह सकता. मैं तुम्हारे पास रहना चाहता हूं और नियमकानून वाली इस दुनिया में एक बच्चे के ऊपर कोई शक नहीं करता. ‘‘मैं एक बच्चे की शक्ल में तुम्हारे पास रहूंगा. एकदम पास. तुम्हारे सीने से लिपट कर सोऊंगा. यही तो मैं चाहता था हमेशा.’’इदा करीम की बात बड़े ध्यान से सुन रही थी. उस का चेहरा पीला पड़ गया था. उसे समझ नहीं आ रहा था कि करीम के इस ख्वाब को कैसे सच करे? वह करीम को अब क्या जवाब दे? Story In Hindi

Hindi Short Story: जात – एक पेंटर का दर्द

Hindi Short Story: गांव में एक शानदार मंदिर बनाया गया. मंदिर समिति ने एक बैठक कर के मंदिर में रंगरोगन और चित्र सज्जा के लिए एक अच्छे पेंटर को बुलाना तय किया. सब ने शहर के नामचीन पेंटर को बुला कर काम करने की सहमति दी.दूसरे दिन मंदिर समिति द्वारा चुने गए 2 लोग शहर के नामचीन पेंटर की दुकान पर पहुंचे, जिस ने कई मंदिरों और दूसरी जगहों को अपनी कला से निखारा था.

मंदिर समिति के लोगों ने उस पेंटर को बताया कि मंदिर में कौनकौन सी मूर्तियां लगेंगी और उन देवीदेवताओं की लीलाओं से संबंधित चित्र बनाने हैं और रंगरोगन करना है.उस पेंटर ने हामी भरी, तो मंदिर समिति के सदस्यों ने उसे 2,000 रुपए एडवांस दे दिए.दूसरे दिन वह पेंटर अपने रंगों व ब्रश के अलावा दूसरे तामझाम के साथ गांव पहुंच गया.

मंदिर में सामान रख कर वह एक दीवार को चित्रकारी के लिए तैयार कर ही रहा था कि मंदिर समिति का एक सदस्य वहां आया और चित्रकार से बोला, ‘‘पेंटर साहब, बापू साहब ने कहा है कि अभी कुछ दिन काम नहीं करना है, इसलिए आप अभी जाओ. काम कराना होगा तो बुला लेंगे.’’वह पेंटर अपना काम रोक कर सामान को समेटते हुए वापस शहर अपनी दुकान पर लौट आया.

4-5 दिन बाद गांव के कुछ खास लोग उस की दुकान पर पहुंचे और उन में से एक बोला, ‘‘पेंटर साहब, अभी काम बंद रखना है, इसलिए मंदिर की तरफ से जो पेशगी दी थी, वह वापस दे दो.’’पेंटर ने उन्हें वह राशि लौटा दी. सब चले गए. दूसरे दिन शहर में मंदिर समिति का एक सदस्य दिखाई दिया,

तो उस पेंटर ने इज्जत के साथ बुला कर उस से काम न कराने की वजह जाननी चाही, तो उस सदस्य ने समिति में हुई चर्चा बताते हुए कहा, ‘‘आप छोटी जाति के हो और मंदिर में उन का घुसना मना है, इसलिए आप को मना किया व दूसरे पेंटर को काम दे दिया.’’यह सुन कर वह पेंटर बोला,

‘‘पर, मैं न तो शराब पीता हूं, न मांस खाता हूं और न ही बीड़ीसिगरेट पीता हूं… मैं तो दोनों समय मंदिर जाता हूं.’’इस पर वह आदमी बोला, ‘‘वह सब तो ठीक है और बहुत सारे मंदिरों में आप ने बहुत अच्छा काम भी किया है, पर हमारे यहां बापू साहब ने मना किया, तो किस की हिम्मत जो आप के लिए बोले.’’ Hindi Short Story

Hindi Funny Story: पटनिया एडवैंचर, कुसूरवार कौन

Hindi Funny Story: पटनिया एडवैंचर आटोरिकशा ट्रिप बचपन से ही मुझे एडवैंचर ट्रिप पर जाने का शौक रहा है. जान हथेली पर रख कर स्टंट द्वारा लाइफ के साथ लाइफ से खेलने या मजा लेने की इच्छाएं मेरे खून, दिल, गुरदे, फेफड़े वगैरह में उफान मारा करती थीं, लेकिन कमजोर दिल और कमजोर अर्थव्यवस्था के चलते अपने इस शौक को मैं डिस्कवरी चैनल, ऐक्शन हौलीवुड मूवी या रोहित शेट्टी की फिल्में देख कर पूरा कर लिया करता था.कहते हैं कि जिस चीज की तमन्ना शिद्दत से की जाए तो सारी कायनात उसे मिलाने की साजिश करने लगती है. कुछ इसी तरह की घटना मेरे साथ भी हुई.

कुदरत ने मेरी सुन ली और मुझे भी कम खर्च में नैचुरल एडवैंचर जर्नी का सुनहरा मौका मिल ही गया.पहली बार बिहार की राजधानी पटना जाना हुआ. फिर क्या था, साधारण टिकट ले कर रेलवे के साधारण डब्बे में सेंध लगा कर घुस गया.

सेंध लगाना मजबूरी थी, क्योंकि 103 सीट वाली अनारक्षित हर बोगी में तकरीबन 300 पैसेंजर भेड़बकरियों की तरह सीट, लगेज सीट, फर्श, टौयलैट और गेट पर बैठेखड़े, लटके या फिर टिके हुए थे.  मैं भी इमर्जैंसी विंडो के सहारे किसी तरह डब्बे में घुस कर अपने आयतन के अनुसार खड़ा रहने की जगह पर कब्जा कर बैठा. स्टेशनों पर चढ़नेउतरने वाले मुसाफिरों की धक्कामुक्की और गैरकानूनी वैंडरों की ठेलमठेल के बीच खुद को बैलेंस करते हुए 6 घंटे की रोमांचक यात्रा के बाद मैं आखिरकार पटना जंक्शन पहुंच ही गया.

इस के बाद मैं पटना जंक्शन से पटना सिटी के लिए आटोरिकशा की तलाश में बाहर निकला.पटना सिटी के लिए बड़ी आसानी आटोरिकशा मिल गया. ड्राइवर ने उस के पीछे वाली चौड़ी सीट पर 3 लोगों को बैठाया, जबकि आगे की ड्राइवर सीट वाली कम जगह पर अपने अलावा 3 दूसरे पैसेंजर को बड़ी ही कुशलता से एडजस्ट कर लिया.कमोबेश सभी आटोरिकशा ड्राइवर तीनों पैसेंजर के साथ खुद को सैट कर  टेकऔफ करने के हालात में नजर आ रहे थे.

कुछ ड्राइवर ड्राइविंग सीट पर बीच में बैठ कर तो कुछ साइड में शिफ्ट हो कर बैठे थे. समझ लो कि अपनी तशरीफ को 45 डिगरी के कोण पर सैट कर के आटोरिकशा हुड़हुड़ाने को तैयार था.ड्राइवर समेत कुल 4 सीट वाले आटोरिकशा में 7 लोगों के सफर करने का हुनर देख कर मुझे समझते देर न लगी कि पटनिया आटोरिकशा ड्राइवर बेहतरीन मैनेजर होते हैं. मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि इस तरह का रोमांचक सीन आल इंडिया लैवल पर सिर्फ और सिर्फ पटना की सड़कों पर ही देखा जा सकता है.

पटना की सड़कों पर दोपहिया और चारपहिया के बीच तिपहिया की धूम के आगे रितिक रौशन और उदय चोपड़ा की ‘धूम’ भी फेल है.पटनिया आटोरिकशा ड्राइवर समय का पक्का होता है. बसस्टैंड से पैसेंजर को बैठाने के चक्कर में ड्राइवर ने भले ही जितनी देरी की हो, पर पैसेंजर सीट फुल होने के बाद वह बाएंदाएं, राइट साइड, रौंग साइड, आटोरिकशा की मैक्सिमम स्पीड और तेज शोर के साथ राकेट की रफ्तार से मंजिल की ओर कूच कर गया.

भले ही इन लोगों के चलते सड़क पर जाम लग जाए, पर लाइन में रह कर समय बरबाद करने मे ये आटोरिकशा वाले यकीन नहीं रखते और अमिताभ बच्चन की तरह अपनी लाइन खुद तैयार कर लेते हैं.शायद आगे सड़क पर जाम था या पेपर चैकिंग मुहिम चल रही थी, पता नहीं, पर इस बात का ड्राइवर को जैसे ही अंदाजा हुआ, फिर क्या था… उस ने हम सब को पटना की ऐसी टेढ़ीमेढ़ी गलियों में गोलगोल घुमाया, जिन गलियों को ढूंढ़ पाना कोलंबस के वंशज के वश से बाहर था. मुझे समझते देर न लगी कि यहां के आटोरिकशा ड्राइवर आविष्कारक या खोजी सोच के होते हैं.

हम राकेट की रफ्तार से सफर का मजा ले ही रहे थे कि फ्लाईओवर पर पीछे से हुड़हुड़ाता हुआ एक आटोरिकशा काफी तेजी से हमारे आगे निकल गया. शायद सवारियों से ज्यादा मंजिल तक पहुंचने की जल्दी ड्राइवर को थी. इसी मकसद को पूरा करने के लिए वह तीखे मोड़ पर टर्न लेने के दौरान तेज रफ्तार से बिना ब्रेक लिए पलटीमार सीन का लाइव प्रसारण कर बैठा.हमारे खुद के आटोरिकशा की बेहिसाब स्पीड और रेस में आगे निकल रहे दूसरे आटोरिकशा का हश्र देख कर मेरे कलेजे के अंदर डीजे बजने लगा. समझते देर न लगी कि पटनिया सड़कों पर ड्राइवर के रूप में यमराज के दूत भी मौजूद हैं, जो अपनी हवाहवाई स्पीड और रेस से सवारियों को परिवार या परिचित तक पहुंचाने के साथसाथ अस्पताल से ऊपर वाले के दर्शन तक कराने में भी मास्टर होते हैं.

ऐसा नहीं है कि बिना सैंसर बोर्ड वाले वाहियात भोजपुरी गीत इंडस्ट्री की तरह पटनिया परिवहन बिना ट्रैफिक कंट्रोल सिस्टम वाली है.

सौ से सवा सौ मीटर पर यातायात पुलिस वाले मौजूद रहते हैं. ये पटनिया आटोरिकशा ड्राइवर की औकात से ज्यादा सवारी ढोने और जिगजैग ड्राइविंग जैसे साहसिक कारनामे के दौरान धृतराष्ट्र मोड में, जबकि हैलमैट, सीट बैल्ट, कागजात वगैरह चैक करने के दौरान संजय मोड में अपनी जिम्मेदारी पूरी करते नजर आते हैं.बातोंबातों में एक बात बताना भूल ही गया कि यहां के आटोरिकशा ड्राइवर किराया मीटर या दूरी के बजाय पैसेंजर की मजबूरी के मुताबिक तय कर लेते हैं.

घटतेबढ़ते पैट्रोल के कीमत की तरह समय, स्टैंड पर आटोरिकशा की तादाद और मुसाफिरों के मंजिल तक पहुंचने की जरूरत के हिसाब से ड्राइवर को किराया तय करते देख और सफर के दौरान ब्लूटूथ स्पीकर से सवारियों को भोंड़े भोजपुरी गीत सुनवाने की इन की आदत से मुझे समझते देर न लगी कि यहां के आटोरिकशा ड्राइवर कुशल अर्थशास्त्री और संगीत प्रेमी भी हैं.

अगर आप भी रोहित शेट्टी के प्रोग्राम ‘खतरों के खिलाड़ी’ में नहीं जा सके हों और महंगाई के आलम में जान हथेली पर वाले एडवैंचर ट्रिप के शौक को पूरा करने से चूक गए हैं, तो महज 10 से 20 रुपए में पटनिया टैंपू ट्रैवल एडवैंचर ट्रिप का मजा किसी भी सीजन में ले सकते हैं. मेरी गारंटी है कि इस शानदार ट्रिप में आप को हर पल यादगार रोमांच हासिल होगा. Hindi Funny Story

Story In Hindi: अंधविश्वास का जाल – कैसी थी मनोरमा देवी

Story In Hindi: आज फिर सुबह से घर में उठापटक शुरू हो गई थी. मनोरमा देवी से सब को हिदायत मिल रही थी, ‘‘जल्दीजल्दी सब अपना काम निबटा कर तैयार हो जाओ. आज गुरुजी आएंगे. उन्हें इतनी अफरातफरी पसंद नहीं है.

‘‘और हां, जैसे ही गुरुजी आएं, तब सब उन के चरणों को धो कर चरणामृत लेना और साष्टांग प्रणाम करना. गुरुजी को भी तो पता चले कि मनोरमा देवी अपने बच्चों को कितने अच्छे संस्कार दे रही हैं.’’

मनोरमा देवी के अंदर अहम की भावना कूटकूट कर भरी थी, जो अपने हर काम में किसी न किसी बहाने खुद को ऊंचा रखने की कोशिश में लगी रहती थीं, चाहे वह काम ईमानदारी

का हो या फिर बेईमानी का.

छोटी बहू शिवानी सोच में पड़ गई, ‘गुरुजी के चरणों को धो कर पीना पड़ेगा… नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकती. मांजी भी पता नहीं किस दुनिया में जीती रहती हैं. मैं उन से जा कर कह देती हूं कि ऐसा नहीं कर पाऊंगी.

‘पर कहीं मांजी का गुस्सा मेरे ऊपर ही फूट गया तो क्या होगा? मैं उस चरणामृत को फेंक दूंगी…’ और वह घर के कामों में लग गई.

गुरुजी आते हैं. उन के आवभगत में पूरा परिवार लगा हुआ था. गुरुजी अपनी सेवा का आनंद ले रहे थे. मनोरमा देवी अपनी बहुओं पर कड़ी निगरानी रख रही थीं. गुरुजी के स्वागत में कोई कमी न रह जाए.

दोनों बहुएं आपस में कानाफूसी कर रही थीं कि पता नहीं गुरुजी ने क्या जादूटोना कर दिया है मांजी के ऊपर. गुरुजी के कहने पर वे अपना सबकुछ लुटाने को तैयार रहती हैं.

बड़ी बहू ऊषा ने झेंपते हुए कहा, ‘‘मैं यह नाटक कई सालों से देखती आ रही हूं. अब तुम भी झेलो. मेरा मानो तो इस नाटक में तुम भी शामिल हो जाओ, इसी में ही तुम्हारी भलाई है.

‘‘मैं ने एक बार गुरुजी के खिलाफ आवाज उठाई थी, तो मेरे ऊपर किसी देवी की छाया कह कर मेरी बोलती बंद कर दी गई थी, जिस का शिकार मैं आज तक हूं.’’

‘‘ऐसा क्या कहा था आप ने गुरुजी को?’’ शिवानी ने पूछा.

‘‘गुरुजी की आदतें मुझे पसंद नहीं थीं. मैं ने सोहम से बात करने की कोशिश की, पर सोहम मेरी बातों को नहीं माना. सोहम ने मुझे ही समझा दिया था, ‘जब मैं एक बार बीमार पड़ा था, तो जब कोई डाक्टर मुझे ठीक नहीं कर पाया, तो गुरुजी की तंत्र विद्या ने ही मुझे ठीक किया था.’

‘‘इस के बाद गुरुजी और मांजी के कहने पर मुझे गांव से दूर जंगल में ले जा कर गरम चिमटे से मारना शुरू कर दिया गया. मेरी एक भी नहीं सुनी गई. मुझे सख्त हिदायत दी गई कि अगर कभी भी गुरुजी के खिलाफ आवाज उठाई, तो यहीं इस जंगल में ला कर

मार देंगे.

‘‘सच कहूं, तो इतना सब होने के बावजूद गुरुजी की हरकतें मुझे बिलकुल पसंद नहीं आती थीं. वे बारबार मेरे हाथ के बने भोजन की तारीफ करने के बहाने अपने पास बुलाते रहते थे.’’

गुरुजी के बारे में जब भी ऊषा सोहम से कुछ कहती, तो वह उस की बातें टाल देता था. वह अपनी कमी को छिपा कर सोहम ऊषा के बांझ होने की अफवाह फैला रहा था. इस अफवाह से लोग उस से नफरत करते थे. उस का सुबह मुंह देखना पसंद नहीं करते थे.

ऊषा के मुंह से ये सारी बातें सुन कर शिवानी हक्कीबक्की रह गई. वह मन ही मन उधेड़बुन में लग गई और रात का इंतजार करने लगी.

गुरुजी का समय तंत्र विद्या के लिए तय था. गुरुजी के आदेशानुसार पूजा की सारी सामग्री आ गई थी, जिस में एक जोड़ा सफेद कबूतर भी थे, जिन की बलि अगले दिन देनी थी.

यह देख कर शिवानी की रूह कांप गई. भला ये कैसे गुरुजी हैं, जो जीव हत्या को पूजा का नाम दे रहे हैं?

रात में गुरुजी एक कोठरी में आसीन होते थे. वहां सब हाथ जोड़ कर बैठते थे. यह पूजा शिवानी के नाम ही रखी गई थी. शिवानी भी वहां आई.

मनोरमा देवी ने शिवानी का परिचय गुरुजी को देते हुए कहा, ‘‘गुरुजी, यह मेरी छोटी बहू और छोटे बेटे सोहन की पत्नी है. काफी बड़े घराने की है. अच्छी पढ़ीलिखी है. जितनी यह देखने में खूबसूरत है, उतनी ही होशियार भी है. जिस चीज को छू देती है, वह चीज सोना हो जाती है. पर एक ही कमी है कि

यह अभी तक इस घर का चिराग नहीं दे पाई है.’’

शिवानी पसोपेश में पड़ गई कि मांजी उस की तारीफ कर रही हैं या फिर उसे नीचा दिखा रही हैं. लेकिन वह होशियार थी और भांप गई मनोरमा देवी की बातों को.

गुरुजी शिवानी को देख कर मन ही मन न जाने कितने सपनों को बुने जा रहे थे. वे अपनी तंत्र विद्या को भुला कर शिवानी को एकटक देखे जा रहे थे.

इतने में पंखों के फड़फड़ाने की आवाज आने लगी. शिवानी ने नजर दौड़ाई, तो उन कबूतरों पर चली गई.

‘मैं इन्हें मरते हुए कैसे देख सकती हूं. कैसे आजादी दिलाऊं इस जोड़े को ढोंगी से. दीदी सच ही कह रही थीं

इस पाखंडी के बारे में…’ शिवानी सोच रही थी.

पूजा खत्म होने के बाद गुरुजी ने शिवानी के सिर पर हाथ फेरते हुए ‘दूधो नहाओ पूतो फलो’ का आशीर्वाद दे दिया. उन्होंने उस से पूछा, ‘‘तुम क्या चाहती हो?’’

‘‘मुझे ये कबूतर दे दीजिए. मैं इन्हें खुले आसमान में उड़ाना चाहती हूं.’’

गुरुजी भांप गए कि शिवानी उन की तंत्र विद्या को नाकाम कराना चाहती है.

वे उस से पूछ बैठे, ‘‘क्या तुम्हें मेरा आना यहां पसंद नहीं?’’

शिवानी बोल उठी, ‘‘नहीं गुरुजी, ऐसा कुछ नहीं है, पर मुझे इन बेजबानों की हत्या बरदाश्त नहीं होती.’’

गुरुजी सोच में पड़ गए, फिर वे बोले, ‘‘तुम इस घर की छोटी बहू हो, इसलिए मै तुम्हें अधिकार देता हूं कि तुम इस जोड़े को ले जा सकती हो.’’

शिवानी ने कबूतर के उस जोड़े को आसमान में छोड़ दिया. गुरुजी ने पिंजरे पर सफेद कपड़ा डाल दिया.

सुबह कबूतर के जोड़े को पिंजरे में न देख कर घर वाले काफी हैरान हुए, पर गुरुजी से पूछने की हिम्मत किसी की नहीं हो रही थी.

लड़खड़ाती आवाज में मनोरमा देवी पूछ बैठीं, ‘‘गुरुजी, कबूतर का जोड़ा कहां है?’’

गुरुजी तपाक से बोल उठे, ‘‘तुम्हारे घर में किसी चुड़ैल का वास है, जो हमारी तंत्र विद्या में विघ्न डाल रही है. उस ने बलि दिए जाने वाले जोड़े को अपने हक में ले लिया है. आने वाला समय आप सब के लिए कठिन होगा. इस से बचने के लिए तुम्हें बहुत बड़ा अनुष्ठान करना पड़ेगा.’’

इस के बाद गुरुजी अपने आश्रम की ओर चल दिए. मनोरमा देवी गुरुजी की बात से परेशान रहने लगीं. धीरेधीरे वे बीमार रहने लगीं.

शिवानी से रहा नहीं गया. उस ने बताया, ‘‘हमारे परिवार पर किसी चुड़ैल का साया नहीं है. कबूतर के उस जोड़े को मैं ने आजाद किया था और वह पाखंडी गुरु भी इस बात को जानता था. वह अंधविश्वास के जाल में फंसा कर हमें और ज्यादा लूटना चाहता था. अब हम सब उस की तंत्र विद्या से आजाद हैं.’’

मनोरमा देवी को सारी बात समझ में आ गई थी. वे सब से कहे जा रही थीं, ‘‘मेरी बहू का जवाब नहीं.’’ Story In Hindi

Hindi Story: मालती – पति के शराब की लत देखकर क्या था मालती का फैसला

Hindi Story: कदमों के लड़खड़ाने और कुंडी खटखटाने की आवाज सुन कर मालती चौकन्नी हो उठी और बड़बड़ाई, ‘‘आज फिर…?’’

आंखों में नींद तो थी ही नहीं. झटपट दरवाजा खोला. तेजा को दुख और नफरत से ताकते हुए वह बुदबुदाई, ‘‘क्या करूं? इन का इस शराब से पिंड छूटे तो कैसे?’’

‘‘ऐसे क्या ताक रही है? मैं… कोई तमाशा हूं क्या…? क्या… मैं… कोई भूत हूं?’’ तेजा बहकती आवाज में बड़बड़ाया.

‘‘नहीं, कुछ नहीं…’’ कुछ कदम पीछे हट कर मालती बोली.

‘‘तो फिर… एं… तमाशा ही हूं… न? बोलती… क्यों नहीं…? ’’ कहता हुआ तेजा धड़ाम से सामने रखी चौकी पर पसर गया.

मालती झटपट रसोईघर से एक गिलास पानी ले आई.

तेजा की ओर पानी का गिलास बढ़ा कर मालती बोली, ‘‘लो, पानी पी लो.’’

‘‘पी… लो? पी कर तो आया हूं… कितना… पी लूं? अपने पैसे से पीया… अकबर ने भी पिला दी… अब तुम भी पिलाने… चली हो…’’

मालती कुछ बोलती कि तेजा ने उस के हाथ से गिलास झपट कर दीवार पर पटकते हुए चिल्लाया, ‘‘मजाक करती है…एं… मजाक करती है मुझ से… पति के साथ… मजाक करती है. …पानी… पानी… देती है,’’ तेजा उठ कर मालती की ओर बढ़ा.

मालती सहम कर पीछे हटी ही थी कि तेजा डगमगाता हुआ सामने की मेज से जा टकराया. मेज एक तरफ उलट गई. मेज पर रखा सारा सामान जोर की आवाज के साथ नीचे बिखर गया. खुद उस का सिर दीवार से जा टकराया और गुस्से में बड़बड़ाता हुआ वह मालती की ओर झपट पड़ा.

मालती को सामने न पा कर तेजा फर्श पर बैठ कर फूटफूट कर रोने लगा.

तेजा के सामने से हट कर मालती एक कोने में दुबकी खड़ी थी. उसे काटो तो खून नहीं. वह एकटक नशे में धुत्त अपने पति को देख रही थी. उस का कलेजा फटा जा रहा था.

तेजा के रोने की आवाज सुन कर बगल के कमरे में सोए दोनों बच्चों की नींद टूट गई. आंखें मलती 10 साल की मुन्नी और उस के पीछे 8 साल का बेटा रमेश पिता की ऐसी हालत देख कर हैरानपरेशान थे.

पिता के इस तरह के बरताव के वे दोनों आदी थे. आज पिता के रोने से उन्हें बड़ी तकलीफ हो रही थी, पर मां के गालों से लुढ़कते आंसुओं को देख कर वे और भी दुखी हो गए.

बेटी मुन्नी मां का हाथ पकड़

कर रोने लगी. रमेश डरासहमा कभी बाप को देखता, तो कभी मां के आंसुओं को.

तेजा को लड़खड़ा कर खड़ा होता देख तीनों का कलेजा पसीज गया.

तभी तेजा मालती पर झपट पड़ा, ‘‘मुझे भूख नहीं लगती क्या?… तुझे मार डालूंगा… तुम ने मुझे नीचे… गिरा दिया और… आंसू बहा रही है… झूठमूठ

के आंसू… तुम ने मुझे मारा… मैं ने

तेरा क्या बिगाड़ा?… एं… क्या बिगाड़ा… बता…?’’

मालती के बाल उस के हाथों

की गिरफ्त में आ गए. वह उन्हें छुड़ाने की नाकाम कोशिश करने लगी. बेटी मुन्नी जोरों से रोने लगी. रमेश अपने पिता का हाथ अपने नन्हे हाथों से पकड़ कर हटाने की नाकाम कोशिश करने लगा.

मालती ने चिल्ला कर रमेश को मना किया, पर वह नहीं माना. इस बीच तेजा ने रमेश को धक्का दे कर नीचे गिरा दिया. उस का सिर फर्श से टकराया और देखते ही देखते खून का फव्वारा फूट पड़ा.

खून देख कर मालती बदहवास हो कर चिल्ला पड़ी, ‘‘खून… रमेश… मेरे बेटे के सिर से खून…’’

खून देख कर तेजा का हाथ ढीला पड़ा.

मालती और मुन्नी दहाड़ें मार कर रोने लगीं. पड़ोसियों ने आ कर सारा माजरा देखा और रमेश को अस्पताल ले जा कर मरहमपट्टी करवाई. खाना रसोईघर में यों ही पड़ा रहा. मालती रातभर रमेश को सीने से लगाए रोती रही. नींद आंखों से गायब थी.

अपनी औलाद के लिए घुटघुट कर जीने के लिए मजबूर थी मालती. मन ही मन उस ने तेजा से हार मान ली थी. हालात से समझौता कर मालती ने मान लिया था कि यही उस की किस्मत में लिखा है.

पर, तेजा ने शराब से हार नहीं मानी. रात के अंधेरे में तेजा राक्षस बन कर घर में कुहराम मचाता, तो दिन की रोशनी में भले आदमी की तरह मुसकान बिखेरता मालती और बेटीबेटे को लाड़प्यार करता. ऐसा लगता कि जैसे रात में कुछ हुआ ही नहीं. पर अंदर ही अंदर मालती की घुटन एक चिनगारी का रूप लेने लगी थी.

एक दिन तो मालती की खिलाफत ने अजीब रंग दिखाया. उस दिन मालती ने दोनों बच्चों को स्कूल जाने से रोक दिया.

तेजा ने पूछा, ‘‘क्या आज स्कूल बंद है? ये तैयार क्यों नहीं हो रहे हैं?’’

‘‘नहीं, मेरी तबीयत ठीक नहीं है. इसी वजह से इन्हें रोक लिया,’’ मालती गंभीर हो कर बोली.

‘‘तो मैं आज काम पर नहीं जाता. तुम्हारे पास रहूंगा. इन्हें जाने दो,’’ तेजा बोला.

‘‘नहीं, ये आज नहीं जाएंगे. मेरे पास ही रहेंगे,’’ मालती बोली.

‘‘जैसी तुम्हारी मरजी. ज्यादा तबीयत खराब हो, तो मुझे बुलवा लेना. डाक्टर के  पास ले जाऊंगा,’’ तेजा बड़े प्यार से बोला.

मालती और बच्चों को छोड़ तेजा काम पर चला गया.

एक घंटे बाद मालती ने मुन्नी के हाथों शराब की भट्ठी से 4 बोतल शराब मंगवाई. दरवाजा बंद कर धीरेधीरे एक बोतल वह खुद पी गई. फिर मुन्नी व रमेश को पिलाने लगी. मुन्नी ज्यादा पीने की वजह से रोने लगी.

रमेश भी रोता हुआ बड़बड़ाने लगा, ‘‘मम्मी, अच्छी नहीं लग रही है. अब मत पिलाओ मम्मी.’’

‘‘पी लो, थोड़ी और पी लो… देखो, मैं भी तो पी रही हूं…’’ रुकरुक कर मालती बोली और दोनों के मुंह में पूरा गिलास उडे़ल दिया. दोनों ही फर्श पर निढाल हो कर गिर पड़े. मालती ने दूसरी बोतल भी पी डाली और वह भी फर्श पर लुढ़क गई.

थोड़ी देर बाद बच्चे उलटी करने लगे और चिल्लाने लगे.

बच्चों की दर्दभरी कराह और चिल्लाहट सुन कर पड़ोसी दरवाजा तोड़ कर घर में घुसे. वहां की हालत देख कर सभी हैरान रह गए. कमरे में शराब की बदबू पा कर उन्हें समझते देर नहीं लगी कि तेजा की हरकतों से तंग आ कर ही मालती ने ऐसा किया है.

पड़ोसियों ने तीनों को अस्पताल पहुंचाया.

खबर पा कर तेजा अस्पताल की ओर भागा. मालती और बच्चों का हाल देख कर वह पछाड़ खा कर गिर पड़ा और फूटफूट कर रोने लगा.

‘‘बचा लो भैया… इन्हें बचा लो… मेरी मालती को बचा लो… मेरे बच्चों को बचा लो…’’ कहता हुआ तेजा अपनी छाती पीट रहा था.

‘‘और शराब पियो तेजा… और पियो… और जुल्म करो अपने बीवीबच्चों पर… देख लिया…’’ एक पड़ोसी ने गुस्साते हुए कहा.

‘‘नहीं, नहीं… मैं कुसूरवार हूं… मेरी वजह से ही यह सब हुआ… उस ने कई बार मुझे समझाने की कोशिश की, पर मैं ही अपनी शराब की बुरी आदत की वजह से मामले को समझ नहीं पाया,’’ रोतेरोते तेजा बोला.

करीब एक घंटे बाद डाक्टर ने आ कर बताया कि दोनों बच्चे तो ठीक हैं, पर मालती ने दम तोड़ दिया है. उसे बचाया नहीं जा सका. उस पर शराब के  असर के अलावा दिमागी दबाव बहुत ज्यादा था.

तेजा फूटफूट कर रोने लगा. उसे अक्ल तो आ गई थी, पर इतनी अच्छी बीवी को खोने के बाद. Hindi Story

Hindi Family Story: खडूस मकान मालकिन – क्या था आंटी का सच

Hindi Family Story: ‘‘साहबजी, आप अपने लिए मकान देख रहे हैं?’’ होटल वाला राहुल से पूछ रहा था. पिछले 2 हफ्ते से राहुल एक धर्मशाला में रह रहा था. दफ्तर से छुट्टी होने के बाद वह मकान ही देख रहा था. उस ने कई लोगों से कह रखा था. होटल वाला भी उन में से एक था. होटल का मालिक बता रहा था कि वेतन स्वीट्स के पास वाली गली में एक मकान है, 2 कमरे का. बस, एक ही कमी थी… उस की मकान मालकिन.

पर होटल वाले ने इस का एक हल निकाला था कि मकान ले लो और साथ में दूसरा मकान भी देखते रहो. उस मकान में कोई 2 महीने से ज्यादा नहीं रहा है.

‘‘आप मकान बता रहे हो या डरा रहे हो?’’ राहुल बोला, ‘‘मैं उस मकान को देख लूंगा. धर्मशाला से तो बेहतर ही रहेगा.’’

अगले दिन दफ्तर के बाद राहुल अपने एक दोस्त प्रशांत के साथ मकान देखने चला गया. मकान उसे पसंद था, पर मकान मालकिन ने यह कह कर उस की उम्मीदों पर पानी फेर दिया कि रात को 10 बजे के बाद गेट नहीं खुलेगा.

राहुल ने सोचा, ‘मेरा तो काम ही ऐसा है, जिस में अकसर देर रात हो जाती है…’ वह बोला, ‘‘आंटी, मेरा तो काम ही ऐसा है, जिस में अकसर रात को देर हो सकती है.’’

‘‘ठीक है बेटा,’’ आंटी बोलीं, ‘‘अगर पसंद न हो, तो कोई बात नहीं.’’

राहुल कुछ देर खड़ा रहा और बोला, ‘‘आंटी, आप उस हिस्से में एक गेट और लगवा दो. उस की चाबी मैं अपने पास रख लूंगा.’’

आंटी ने अपनी मजबूरी बता दी, ‘‘मेरे पास खर्च करने के लिए एक भी पैसा नहीं है.’’

राहुल ने गेट बनाने का सारा खर्च खुद उठाने की बात की, तो आंटी राजी हो गईं. इस के साथ ही उस ने झगड़े की जड़ पानी और बिजली के कनैक्शन भी अलग करवा लिए. दोनों जगहों के बीच दीवार खड़ी करवा दी. उस में दरवाजा भी बनवा दिया, लेकिन दरवाजा कभी बंद नहीं हुआ.

सारा काम पूरा हो जाने के बाद राहुल मकान में आ गया. उस ने मकान मालकिन द्वारा कही गई बातों का पालन किया. राहुल दिन में अपने मकान में कम ही रहता था. खाना भी वह होटल में ही खाता था. हां, रात में वह जरूर अपने कमरे पर आ जाता था. उस के हिस्से में ‘खटखट’ की आवाज से आंटी को पता चल जाता और वे आवाज लगा कर उस के आने की तसल्ली कर लेतीं.

उन आंटी का नाम प्रभा देवी था. वे अकेली रहती थीं. उन की 2 बेटियां थीं. दोनों शादीशुदा थीं. आंटी के पति की मौत कुछ साल पहले ही हुई थी. उन की मौत के बाद वे दोनों बेटियां उन को अपने साथ रखने को तैयार थीं, पर वे खुद ही नहीं रहना चाहती थीं. जब तक शरीर चल रहा है, तब तक क्यों उन के भरेपूरे परिवार को परेशान करें.

अपनी मां के एक फोन पर वे दोनों बेटियां दौड़ी चली आती थीं. आंटी और उन के पति ने मेहनतमजदूरी कर के अपने परिवार को पाला था. उन के पास अब केवल यह मकान ही बचा था, जिस को किराए पर उठा कर उस से मिले पैसे से उन का खर्च चल जाता था.

एक हिस्से में आंटी रहती थीं और दूसरे हिस्से को वे किराए पर उठा देती थीं. पर एक मजदूर के पास मजदूरी से इतना बड़ा मकान नहीं हो सकता. पतिपत्नी दोनों ने खूब मेहनत की और यहां जमीन खरीदी. धीरेधीरे इतना कर लिया कि मकान के एक हिस्से को किराए पर उठा कर आमदनी का एक जरीया तैयार कर लिया था.

राहुल अपने मांबाप का एकलौता बेटा था. अभी उस की शादी नहीं हुई थी. नौकरी पर वह यहां आ गया और आंटी का किराएदार बन गया. दोनों ही अकेले थे. धीरेधीरे मांबेटे का रिश्ता बन गया.

घर के दोनों हिस्सों के बीच का दरवाजा कभी बंद नहीं हुआ. हमेशा खुला रहा. राहुल को कभी ऐसा नहीं लगा कि आंटी गैर हैं. आंटी के बारे में जैसा सुना था, वैसा उस ने नहीं पाया. कभीकभी उसे लगता कि लोग बेवजह ही आंटी को बदनाम करते रहे हैं या राहुल का अपना स्वभाव अच्छा था, जिस ने कभी न करना नहीं सीखा था. आंटी जो भी कहतीं, उसे वह मान लेता.

आंटी हमेशा खुश रहने की कोशिश करतीं, पर राहुल को उन की खुशी खोखली लगती, जैसे वे जबरदस्ती खुश रहने की कोशिश कर रही हों. उसे लगता कि ऐसी जरूर कोई बात है, जो आंटी को परेशान करती है. उसे वे किसी से बताना भी नहीं चाहती हैं. उन की बेटियां भी अपनी मां की समस्या किसी से नहीं कहती थीं.

वैसे, दोनों बेटियों से भी राहुल का भाईबहन का रिश्ता बन गया था. उन के बच्चे उसे ‘मामामामा’ कहते नहीं थकते थे. फिर भी वह एक सीमा से ज्यादा आगे नहीं बढ़ता था. लोग हैरान थे कि राहुल अभी तक वहां कैस टिका हुआ है.

आज रात राहुल जल्दी घर आ गया था. एक बार वह जा कर आंटी से मिल आया था, जो एक नियम सा बन गया था. जब वह देर से घर आता था, तब यह नियम टूटता था. हां, तब आंटी अपने कमरे से ही आवाज लगा देती थीं.

रात के 11 बज रहे थे. राहुल ने सुना कि आंटी चीख रही थीं, ‘मेरा बच्चा… मेरा बच्चा… वह मेरे बच्चे को मुझ से छीन नहीं सकता…’ वे चीख रही थीं और रो भी रही थीं.

पहले तो राहुल ने इसे अनदेखा करने की कोशिश की, पर आंटी की चीखें बढ़ती ही जा रही थीं. इतनी रात को आंटी के पास जाने की उस की हिम्मत नहीं हो रही थी, भले ही उन के बीच मांबेटे का अनकहा रिश्ता बन गया था.

राहुल ने अपने दोस्त प्रशांत को फोन किया और कहा, ‘‘भाभी को लेता आ.’’

थोड़ी देर बाद प्रशांत अपनी बीवी को साथ ले कर आ गया. आंटी के कमरे का दरवाजा खुला हुआ था. यह उन के लिए हैरानी की बात थी. तीनों अंदर घुसे. राहुल सब से आगे था. उसे देखते ही पलंग पर लेटी आंटी चीखीं, ‘‘तू आ गया… मुझे पता था कि तू एक दिन जरूर अपनी मां की चीख सुनेगा और आएगा. उन्होंने तुझे छोड़ दिया. आ जा बेटा, आ जा, मेरी गोद में आ जा.’’

राहुल आगे बढ़ा और आंटी के सिर को अपनी गोद में ले कर सहलाने लगा. आंटी को बहुत अच्छा लग रहा था. उन को लग रहा था, जैसे उन का अपना बेटा आ गया. धीरेधीरे वे नौर्मल होने लगीं.

प्रशांत और उस की बीवी भी वहीं आ कर बैठ गए. उन्होंने आंटी से पूछने की कोशिश की, पर उन्होंने टाल दिया. वे राहुल की गोद में ही सो गईं. उन की नींद को डिस्टर्ब न करने की खातिर राहुल बैठा रहा.

थोड़ी देर बाद प्रशांत और उस की बीवी चले गए. राहुल रातभर वहीं बैठा रहा. सुबह जब आंटी ने राहुल की गोद में अपना सिर देखा, तो राहुल के लिए उन के मन में प्यार हिलोरें मारने लगा. उन्होंने उस को चायनाश्ता किए बिना जाने नहीं दिया.

राहुल ने दफ्तर पहुंच कर आंटी की बड़ी बेटी को फोन किया और रात में जोकुछ घटा, सब बता दिया. फोन सुनते ही बेटी शाम तक घर पहुंच गई. उस बेटी ने बताया, ‘‘जब मेरी छोटी बहन 5 साल की हुई थी, तब हमारा भाई लापता हो गया था. उस की उम्र तब 3 साल की थी. मांबाप दोनों काम पर चले गए थे.

‘‘हम दोनों बहनें अपने भाई के साथ खेलती रहतीं, लेकिन एक दिन वह खेलतेखेलते घर से बाहर चला गया और फिर कभी वापस नहीं आया. ‘‘उस समय बच्चों को उठा ले जाने वाले बाबाओं के बारे में हल्ला मचा हुआ था. यही डर था कि उसे कोई बाबा न उठा ले गया हो.

‘‘मां कभीकभी हमारे भाई की याद में बहक जाती हैं. तभी वे परेशानी में अपने बेटे के लिए रोने लगती हैं.’’ आंटी की बड़ी बेटी कुछ दिन वहीं रही. बड़ी बेटी के जाने के बाद छोटी बेटी आ गई. आंटी को फिर कोई दौरा नहीं पड़ा.

2 दिन हो गए आंटी को. राहुल नहीं दिखा. ‘खटखट’ की आवाज से उन को यह तो अंदाजा था कि राहुल यहीं है, लेकिन वह अपनी आंटी से मिलने क्यों नहीं आया, जबकि तकरीबन रोज एक बार जरूर वह उन से मिलने आ जाता था. उस के मिलने आने से ही आंटी को तसल्ली हो जाती थी कि उन के बेटे को उन की फिक्र है. अगर वह बाहर जाता, तो कह कर जाता, पर उस के कमरे की ‘खटखट’ बता रही थी कि वह यहीं है. तो क्या वह बीमार है? यही देखने के लिए आंटी उस के कमरे पर आ गईं.

राहुल बुखार में तप रहा था. आंटी उस से नाराज हो गईं. उन की नाराजगी जायज थी. उन्होंने उसे डांटा और बोलीं, ‘‘तू ने अपनी आंटी को पराया कर दिया…’’ वे राहुल की तीमारदारी में जुट गईं. उन्होंने कहा, ‘‘देखो बेटा, तुम्हारे मांबाप जब तक आएंगे, तब तक हम ही तेरे अपने हैं.’’

राहुल के ठीक होने तक आंटी ने उसे कोई भी काम करने से मना कर दिया. उसे बाजार का खाना नहीं खाने दिया. वे उस का खाना खुद ही बनाती थीं.

राहुल को वहां रहते तकरीबन 9 महीने हो गए थे. समय का पता ही नहीं चला. वह यह भी भूल गया कि उस का जन्मदिन नजदीक आ रहा है. उस की मम्मी सविता ने फोन पर बताया था, ‘हम दोनों तेरा जन्मदिन तेरे साथ मनाएंगे. इस बहाने तेरा मकान भी देख लेंगे.’

आज राहुल की मम्मी सविता और पापा रामलाल आ गए. उन को चिंता थी कि राहुल एक अनजान शहर में कैसे रह रहा है. वैसे, राहुल फोन पर अपने और आंटी के बारे में बताता रहता था और कहता था, ‘‘मम्मी, मुझे आप जैसी एक मां और मिल गई हैं.’’

फोन पर ही उस ने अपनी मम्मी को यह भी बताया था, ‘‘मकान किराए पर लेने से पहले लोगों ने मुझे बहुत डराया था कि मकान मालकिन बहुत खड़ूस हैं. ज्यादा दिन नहीं रह पाओगे. लेकिन मैं ने तो ऐसा कुछ नहीं देखा.’’ तब उस की मम्मी बोली थीं, ‘बेटा, जब खुद अच्छे तो जग अच्छा होता है. हमें जग से अच्छे की उम्मीद करने से पहले खुद को अच्छा करना पड़ेगा. तेरी अच्छाइयों के चलते तेरी आंटी भी बदल गई हैं,’ अपने बेटे के मुंह से आंटी की तारीफ सुन कर वे भी उन से मिलने को बेचैन थीं.

राहुल मां को आंटी के पास बैठा कर अपने दफ्तर चला गया. दोनों के बीच की बातचीत से जो नतीजा सामने आया, वह हैरान कर देने वाला था.

राहुल के लिए तो जो सच सामने आया, वह किसी बम धमाके से कम नहीं था. उस की आंटी जिस बच्चे के लिए तड़प रही थीं, वह खुद राहुल था. मां ने अपने बेटे को उस की आंटी की सचाई बता दी और बोलीं, ‘‘बेटा, ये ही तेरी मां हैं. हम ने तो तुझे एक बाबा के पास देखा था. तू रो रहा था और बारबार उस के हाथ से भागने की कोशिश कर रहा था. हम ने तुझे उस से छुड़ाया. तेरे मांबाप को खोजने की कोशिश की, पर वे नहीं मिले.

‘‘हमारा खुद का कोई बच्चा नहीं था. हम ने तुझे पाला और पढ़ाया. जिस दिन तू हमें मिला, हम ने उसी दिन को तेरा जन्मदिन मान लिया. अब तू अपने ही घर में है. हमें खुशी है कि तुझे तेरा परिवार मिल गया.’’ राहुल बोला, ‘‘आप भी मेरी मां हैं. मेरी अब 2-2 मांएं हैं.’’ इस के बाद घर के दोनों हिस्से के बीच की दीवार टूट गई. Hindi Family Story

Story In Hindi: हरी चूडियां – सायरा ने क्या-क्या खरीदा

Story In Hindi: अम्मी खुश थीं सायरा को उस के शादी के बाद आए पहले तोहफे दिला कर. सायरा खुश थी अपनी पसंद के तोहफे पा कर. वह कभी हरा और रेशमी गरारा उठा कर देखती, तो कभी सलमासितारों से जड़ी हरी ओढ़नी अपने सिर पर रख कर कहती, ‘‘देखिए अम्मीजान, इस का हरा रंग कितना अलग सा है. इस पर जड़े सितारे तो ऐसे लगते हैं जैसे पूरी कायनात के सितारे मेरी ओढ़नी पर आ कर अपनी महफिल सजा कर बैठे हों.’’

अम्मी बोलीं, ‘‘मेरी बच्ची की ओढ़नी यों ही हरीभरी रहे…’’ फिर दोनों हाथों से सायरा की बलाएं ले कर अपने पान से सुर्ख हो रहे होंठों से उसे चूम लिया.मैं अभी भी किताब में अपना सिर झुकाए चोर नजरों से इन सासबहू का लाड़दुलार देख रहा था. मन ही मन कुढ़ भी रहा था

सायरा से मेरा निकाह हुए 2 महीने हो गए थे. मैं अभी तक उस से अपना जुड़ाव महसूस नहीं कर पा रहा था. जुड़ाव महसूस भी कैसे करता? कुछ ऐसा महसूस करने के लिए जुड़ना जरूरी होता है. केवल किसी को ‘कबूल’ बोल देने भर से तो वह कबूल नहीं हो जाता.

यह अलग बात है कि काजी साहब के सामने किए इजहार को मैं अपनी जिंदगी के कयामत वाले दिन तक निभाने को तैयार हूं. हां, मगर अभी मुझे वक्त चाहिए खुद को समेटने के लिए. सलमा को भुलाने के लिए.

मैं क्या करूं… नहीं लुभाती सायरा की खूबसूरती, उस की चुलबुली सी अदाएं, उस का चहकना और मचलना मुझे कुछ भी नहीं भाता. मुझे हर वक्त अपने आसपास सलमा का सांवला सा संजीदा चेहरा ही नजर आता है.

मैं मानता हूं कि सायरा रिमझिम बरखा सी है, पर मेरा इश्क मेरी सलमा… वह भी तो भादों से भरी घटा थी.फिर मेरे मिजाज में भी तो यह सब नहीं था. मुझे कभी अच्छा भी तो नहीं लगा बरसात में भीगना. चिढ़ थी मुझे भीगने से और फिर लौट कर अम्मी के तमाम नियमकायदे मानने से. गीले पैर पायदान पर रख कर उसे खिसकाते हुए गुसलखाने तक जाओ, कपड़े का पानी बाहर ही निचोड़ो, यह सब मुझे उकता देता था.

ऊपर से अम्मी का वह जोशांदा काढ़ा… उफ. वह तो मेरे हलक से नीचे ही नहीं उतरता था. जो चीज मेरे दिल से गुफ्तगू करती थी, वह थी घिरी हुई घटाओं के बीच दालान में बैठ कर किताबें पढ़ना.बादलों को एकदूसरे में सिमटते देखना, बादलों का गरजना यों लगता जैसे आसमां अपने भीतर के सारे मनोभाव जमीन से खुल कर कह रहा हो कि किसी से नहीं डरना हमें. हम तो तेरे आशिक हैं.अकसर सोचता एक दिन मैं भी खुशी से सब को बता दूंगा कि मुझे सलमा से मुहब्बत है.

मैं अपनी सोच में खोया हुआ था कि तभी सायरा ने अपने सामान का जखीरा मेरे सामने ला पटका और बोली, ‘‘देखिए साहिर साहब, हमें अम्मीजान ने कितने तोहफे दिलाए हैं. आप भी कुछ दिलाइए…’’

बिना मेरा जवाब सुने ही उस ने फिर से कहना शुरू किया, ‘‘यह हार देखिए, और ये झुमके भी. यह तो उन्होंने अपनी छोटी वाली पेटी से निकाल कर दिए हैं. कह रही थीं कि बड़े बेशकीमती हैं.

‘‘अम्मीजान बता रही थीं कि उन की दुबई वाली खाला ने उन्हें बतौर नजराना दिए थे. आप देखें, आज ये सब अम्मीजान ने हमें दे दिए.’’

मैं ने बड़ी बेतकल्लुफी से उन सब पर बिना नजर डाले ही कहा, ‘‘सब ले लो, आज भी यह सब तुम्हारा ही है. कल भी सब तुम्हारा ही तो होना है. अम्मी का मेरे सिवा है ही कौन?’’

री बात सुन कर बड़ी बेतकल्लुफी से वह बोली, ‘‘यह क्या बात हुई… हम भी तो हैं अम्मी के. साहिर, हम ने कितनी ही सासें देखी हैं. एकलौती बहू को भी अपना सब अपने जीतेजी नहीं सौंप देती हैं. अम्मीजान तो लाखों में एक हैं.

‘‘एक बात सुनें आप… फिर हों भी क्यों न? उन में हमारे सैयद खानदान का ही खून दौड़ रहा है. आखिर वे मेरी फूफी भी तो हैं.’’

मैं चुप हो गया. यह सैयद खानदान की जिद ही तो थी, जिस ने सलमा और मेरे इश्क को परवान नहीं चढ़ने दिया. अम्मी ने अपने एक फैसले से मेरी दुनिया बदल कर रख दी.

बहुत सालों बाद पिछले साल जब अम्मी अपने मायके गई थीं, तब वहीं से सायरा का रिश्ता मांग लाई थीं. बिना मुझ से पूछे, बिना मेरी मरजी जाने और वापस आ कर बस फरमान सुनाया था, ‘‘साहिर, तुम्हें सायरा याद है न? वही मेरे चचा भाई की मंझली बेटी… हम उसे तेरे लिए मांग आए हैं.’’

यह सुन कर बिना घबराए मैं ने बड़े यकीन से अम्मी को अपने दिल का हाल सुनाया था. लेकिन अम्मी ने चंद शब्दों में सारी बात खत्म कर दी, ‘बरखुरदार, हम सैयद खानदान से ताल्लुक रखते हैं. हम जबान दे कर पीछे नहीं हटते हैं. तुम्हें मेरी बात न माननी हो, तो शौक से तुम अपने मामू को फोन कर के मना कर दो.साथ ही साथ यह भी कह देना कि तुम्हारी बेवा मां का इंतकाल हो गया है, तभी तुम यह रिश्ता तोड़ रहे हो.’अम्मी की इस बात के बाद सिवा सेहरा पहनने के मेरे पास कुछ कहने को नहीं था.

सायरा अभी भी अपने तोहफे समेट रही थी, जबकि मैं यादों की बारादरी से गुजर कर वापस भी आ गया. कल सायरा की पहली विदाई है. वह अपने अरमान संजो रही थी.

सुबह ही मैं ने अपने मन में सोच लिया था कि कल कुछ भी कर के मैं सलमा से मुलाकात करूंगा. उस से सब कह दूंगा कि नहीं रहा जाता तुम्हारे बिना… बताओ क्या करूं? कोई तो रास्ता सुझाओ…

मैं अपनी ही उधेड़बुन में था कि तभी सायरा आ कर मेरे गले लग गई और चहक कर बोली, ‘‘आप तो बड़े छिपे रुस्तम हो जी. ये हरी चूडि़यां ले कर आए हो तो मुझे दी क्यों नहीं?’’फिर प्यार से हाथ आगे बढ़ाते हुए वह बोली, ‘‘आप जानते हैं… आप के नाम लिख गई है मेरी कलाई की एकएक नस, तो फिर शरमाना कैसा? चलिए, पहना दीजिए.’’

मैं पसोपेश में पड़ गया. कल सलमा से मुलाकात के लिए लाया हुआ तोहफा सायरा के हाथ में था. उन चूडि़यों की खनक सायरा की आवाज में थी. बिना कुछ भी बोले हुए मैं ने उस की कलाई में वे हरी चूडि़यां सजा दी थीं. वह एकएक चूड़ी को चूम रही थी.

मैं ने खुद को वफा की नजर में तोला तो पाया कि मैं भटक रहा था. खुद को झटकते हुए मैं ने अपने भटकते मन को सीधी राह पर चलाने के लिए नजरबंद कर लिया. मन की दबी हुई सारी काली घटाएं बूंद बन कर पिघलने लगीं. हवाओं का शोर बता रहा था कि बाहर जोर से पानी बरस रहा है. Story In Hindi

Hindi Family Story: कर्मों का फल – कैसे बदली सुनील की जिदंगी

Hindi Family Story: हजारीबाग की हरीभरी वादियों में बसे टनकपुर गांव की गिनती आदर्श गांवों में होती थी. झिलिया नदी के तट पर बसे इस गांव की आबादी तकरीबन सवा सौ परिवारों की थी.अयोध्या राम गांव के अमीर लोगों में से एक थे. मजबूत कदकाठी के चलते उन की अलग पहचान थी. उन के पास खेतखलिहान, नौकरचाकर थे. वर्तमान समय में किसी चीज की कमी नहीं थी. लेकिन पर्वत्योहार के मौके पर उन की स्वर्गीय पत्नी सुलोचना की याद ताजा हो जाती थी, जिन्होंने बेटे सुनील को जन्म देने के बाद अस्पताल में ही दम तोड़ दिया था.सुनील का लालनपालन अयोध्या राम ने खुद किया था. पुत्र मोह में उन्होंने दूसरी शादी नहीं की थी. पता नहीं सौतेली मां कैसी मिलेगी, यह सोच कर उन्होंने अपने लिए आए हर रिश्ते को मना कर दिया था.

टनकपुर में हर साल हाई स्कूल के निकट बने मंदिर में भारी मेला लगता था, जिस में गांवदेहात में बनी चीजों से ले कर शहर में बने फैंसी सामान तक बिकते थे. 3 दिन के इस मेले में झूले, जादू घर, मौत का कुआं, कठ घोड़वा जैसे मनोरंजन के साधन थे, जो मेला देखने वालों के आकर्षण का केंद्र थे. बच्चों के लिए तरहतरह के खिलौने, औरतों के लिए सजनेसंवरने की चीजें भी खूब बिकती थीं. टनकपुर के आसपास के लोग भी मेले में पहुंचते थे. गांव के लोग बहती झिलिया नदी में स्नान कर मंदिर में पूजाअर्चना करते और मेले में से सामान खरीद कर घर लौट जाते. वहीं बगल में मवेशियों का हाट लगा हुआ था, जहां तरहतरह के मवेशी बिकने के लिए आए हुए थे. मेले में भेड़, बैल, बकरा, मुरगा की लड़ाई की प्रतियोगिता भी होती थी. जीतने वाले पशु मालिकों को नकद इनाम आयोजकों द्वारा दिया जाता था. पशुओं की सेहत व सुंदरता की परख भी की जाती थी.

अयोध्या राम अपने बैलों को नहला कर और रंगबिरंगे रंगों से सजा कर सजी हुई बैलगाड़ी में जोत कर मेले में पहुंचे. बैलगाड़ी को एक पेड़ की छाया में खड़ा कर बापबेटा लिट्टी की दुकान पर चले गए और वहां गरमागरम लिट्टीचोखा और हरी मिर्च का स्वाद लिया. लिट्टी खाते समय सुनील की नजर बकरी के एक नटखट खस्सी पर जा पड़ी. उस का सफेद रंग, शीशे जैसी चमचमाती आंखें, खड़़े कान, उस का उछलनाकूदना और मचलना बहुत ही मनभावन था. सुनील अपने पिता से वह खस्सी खरीदने की जिद करने लगा.

अयोध्या राम ने भी सोचा कि बेटा घर में अकेला रहता है. खस्सी का साथ मिलेगा, तो उस का समय अच्छा कट जाएगा. उन्होंने बिना मोलभाव किए उस खस्सी को 1,000 रुपए में खरीद लिया. घर के अहाते में ला कर खस्सी को छोड़ दिया. सुनील खस्सी के साथ इतना घुलमिल गया कि अब वह उसे अपने बिछावन पर सुलाने लगा. देखते ही देखते 4 साल में वह खस्सी बकरा बन गया. सुनील ने उस की निडरता को देख कर उस का नाम शेरा रख दिया था, साथ ही उस के गले में पीतल की एक घंटी भी बांध दी थी.

जब शेरा उछलताकूदता तो घंटी की ‘टनटन’ की मधुर आवाज सब का मन मोह लेती. पूरे गांव में शेरा की चर्चा होने लगी थी. गांव के मंदिर में फिर मेला लगा और उस में मवेशियों की प्रतियोगिता का आयोजन हुआ, जिस में शेरा ने भी भाग लिया. उस ने खस्सी मुकाबला, परेड और दौड़ में पहला नंबर पाया. दूसरे खस्सी उस का मुकबला नहीं कर सके. तीनों प्रतियोगिताओं में सुनील को 3,000 रुपए मिले. शेरा की यह बढ़त कई साल तक जारी रही.

अब टनकपुर के लोग शेरा को इतना प्यार करते, जैसे वह उन के घर का सदस्य हो. वह दिनरात सुनील के साथ रहता, उस के साथ खातापीता और घूमता था. इधर सुनील ने अपने गांव के स्कूल से मैट्रिक पास कर ली थी. अयोध्या राम ने उस का दाखिला रांची के नामीगिरामी कालेज में करा दिया था. कालेज के होस्टल में उस के रहने का इंतजाम हो गया था. कालेज में सीधासादा सुनील बुरे लड़कों की संगत में पड़ गया. गबरी गाय का दूधदही खाने वाला सुनील अब कालेज में नशा करने लगा था. इतना ही नहीं, अब सुनील स्मैक की सप्लाई करने लगा था. वह अपनी फुजूलखर्ची को पूरा करने के लिए अपने पिता से और ज्यादा रुपयों की मांग करता था.

सुनील के ड्रग्स लेने की जानकारी कालेज के शिक्षकों द्वारा प्रिंसिपल तक पहुंच गई. नतीजतन, पहले उसे चेतावनी दी गई और बाद में जब वह नहीं माना, तो प्रिंसिपल ने उसे कालेज से निकाल दिया.

सुनील कालेज से अपना सामान समेट कर अपने घर टनकपुर पहुंचा. बेटे को देख कर अयोध्या राम ने कालेज छोड़ने की वजह पूछी, तो सुनील ने उन्हें बताया कि कोरोना काल में कालेज बंद हो गया है. कालेज की पढ़ाई औनलाइन घर पर होगी. इसी बहाने सुनील ने लैपटौप खरीदने के लिए अपने पिता से 65,000 रुपए झटक लिए. पैसा मिलते ही सुनील रांची चला गया. वहां उस ने 15,000 रुपए में एक पुराना लैपटौप खरीदा और बाकी रुपयों की उस ने स्मैक और नशे की गोलियां खरीद लीं.

रांची से लौटने के बाद वह घर में भी नशा करने लगा. जब उसे नशा हो जाता, तो वह शेरा को भी भूल जाता. शेरा को पहले जैसा प्यारदुलार नहीं दे पाता, जिस का आभास शेरा को हो चुका था. जब अयोध्या राम को सुनील के नशेड़ी होने की बात मालूम हुई, तो उन्होंने सुनील के जेबखर्च पर रोक लगा दी. तब सुनील ने अपना लैपटौप पतंग के भाव में बेच डाला. लेकिन, वह पैसा भी खत्म होने के बाद सुनील अपना सिर धुन रहा था कि स्मैक के लिए पैसा कहां से लाए. पास में बैठा शेरा उस को निरीह आंखों से देख रहा था.

गांव के एक कसाई जुम्मन की नजर शेरा पर थी. वह शेरा को खरीदने के लिए मौके की तलाश में था. एक दिन वह सुनील के पास पहुंचा और बोला, ‘‘सुनील बाबू, आप को कुछ पैसे चाहिए क्या?’’ चाहिए तो, पर कौन देगा पैसे? मेरे पास अब बेचने को है ही क्या?’’

सरकार अभी तो आप के पास खजाना है,’’ जुम्मन अपनी चाटुकारिता पर उतर आया. कैसा खजाना? क्यों मजाक करते हो जुम्मन भाई.’’‘हुजूर, शेरा तो आप का खजाना ही है. कहिए तो इस के लिए 12,000 रुपए अभी गिन दूं…’’12,000…’’ यह सुन कर सुनील का मुरझाया मन खिल उठा. उस की नजरें शेरा पर जा कर ठहर गईं. उस ने शेरा को देखा और जुम्मन से बोला, ‘‘अच्छा, लाओ रुपए.’’ जुम्मन ने रुपए निकालने में देर न की. उस ने तुरंत अपनी झोली में हाथ डाला और नोट सुनील के हाथों पर रख दिए.

अब जुम्मन शेरा के पास आया और उस के पुट्ठे पर हाथ फेरा. साथ ही, उस की कमर को ऊपर उठा कर वजन का अंदाजा लगाया. उस ने बिना देर किए शेरा को ले जाने के लिए उस की गरदन में रस्सी बांध कर खींचा, मगर शेरा अपनी जगह से हिला तक नहीं.जब जुम्मन ने पूरा जोर लगा कर शेरा को खींचा, तो वह मिमियाने लगा. पर सुनील को कोई खास फर्क नहीं पड़ा. उस का ध्यान तो जेब में रखे पैसों पर था. लेकिन रात को उसे शेरा की खूब याद आई और वह अगली ही सुबह बाजार में जुम्मन की दुकान पर जा पहुंचा. उस ने अपनी जेब से 12,000 रुपए निकाल कर जुम्मन की तरफ बढ़ाए, तो जुम्मन ने शेरा के कटे हुए सिर व टंगे हुए धड़ को दिखाया.

यह देख कर सुनील बेकाबू हो गया और वह एकाएक जुम्मन पर टूट पड़ा. उस ने जुम्मन का चाकू छीन लिया. उन दोनों में मारपीट होने लगी कि इसी दौरान वे एक दीवार से टकरा गए. दीवार सुनील के ऊपर भरभरा कर गिर पड़ी और वह गंभीर रूप से घायल हो कर बेहोश हो गया.

आसपास के लोगों ने सुनील को मलबे से बाहर निकाला. इस घटना की खबर अयोध्या राम को दी गई. वे एक डाक्टर और पंचायत के मुखिया के साथ वहां पहुंचे. डाक्टर ने सुनील के प्राथमिक उपचार के बाद उसे रांची ले जाने की सलाह दी.

अयोध्या राम की हिम्मत ने जवाब दे दिया. तब मुखियाजी ने एक एंबुलैंस मंगवाई और सुनील को ले कर रांची रवाना हुए.

अस्पताल के बड़े डाक्टर जल्दी ही वहां पहुंचे और स्ट्रैचर पर ही सुनील का चैकअप करते हुए बोले, ‘‘आप लोगों ने लाने में देर कर दी. यह लड़का अब इस दुनिया में नहीं है…’’

इतना सुनते ही उस माहौल में अयोध्या राम के चीखने की आवाज गूंजने लगी. गांव के मुखिया उन्हें समझाने में लगे हुए थे. वे किसी तरह उन्हें ले कर कार में बैठे और गांव जाने के लिए रवाना हो गए. Hindi Family Story

Hindi Funny Story: कुशल साहब, गुस्सा लाजवाब

Hindi Funny Story: कुरसी पर पसरे चाय की चुसकियां लेते हुए. उन के सामने हाथ में डायरी लिए उन का पीए खड़ा था. क्या पता वे कब क्या बक डालें. वैसे तो साहबजी अपनी कुरसी से जरा भी नहीं हिलते और यही वजह है कि हर 2 महीने बाद उन की घिसाई कुरसी बदलनी पड़ती है, पर इन दिनों वे पिछले महीने से रैगुलर धूप में अपनी गोरी चमड़ी काली करने इसलिए आ रहे हैं कि डाक्टर के पास अपने को चैक करवाने के बाद उस ने उन्हें सलाह दी है कि उन की पाचन पावर तो ठीक है, पर उन की हड्डियां पलपल कमजोर हो रही हैं. वे इन्हें मजबूत रखना चाहते हैं, तो उन्हें सरकारी के साथसाथ कुदरती तौर पर भी विटामिन डी लेना होगा, हर दिन कम से कम 3 घंटे अपने औफिस से बाहर धूप में बैठ कर.

बस, यही वजह है कि वे सुबह  10 बजे औफिस में आते ही बाहर धूप में कुरसी पर पसर जाते हैं, लेट आने वालों की तरफ से अपनी आधी आंखें मूंदे अपना हर अंग करवट बदलबदल कर सूरज को  दिखाते हुए.  कई बार उन के इस तरह कुरसी पर पसरे देख सूरज को भी शर्म आ जाती है, पर उन्हें नहीं आती. उन्हें पता है कि हड्डियों में दम है तो जिंदगी छमाछम है. उस वक्त धूप में आराम से कुरसी पर अपना अंगअंग सेंकते औफिस को भूल अचानक उन्हें पता नहीं क्या सूझी कि उन्होंने अपने सामने खड़े पीए को आदेश दिया, ‘‘पीए…’’ ‘‘जी, साहबजी…’’ ‘‘जनता के फायदे के लिए एक मीटिंग रखो.’’

‘‘पर साहबजी, अभी तो आप को विटामिन डी लेते हुए आधा ही घंटा  हुआ है और डाक्टर ने सलाह दी है  कि कम से कम 2 घंटे तक आप को अपना आगापीछा सूरज को हर हाल में दिखाना है.’’

‘‘तो कोई बात नहीं, 2 घंटे बाद एक मीटिंग रखो.’’ ‘‘जनता के किस फायदे को ले कर सर?’’ ‘‘हमें अपनी जनता को गरमियों से बचाने के लिए कल से ही आपदा तैयारियां युद्ध स्तर पर शुरू करनी हैं

जनता के लिए गरमियों वाला टोल फ्री नंबर जारी करना है और… और….’’ ‘‘लेकिन सौरी सर… माफ कीजिएगा… अभी तो जाड़ों के दिन हैं. उस के बाद वसंत आएगा, फिर गरमी का सीजन… तब तक कौन जाने कि कौन राजा हो और कौन प्रजा… इसलिए मेरा निवेदन है कि जो रखनी ही है तो वसंत की आपदा से जनता को बचाने के लिए मीटिंग रख ली जाए सर…’’

‘‘साहब कौन है… तुम कि हम?’’ वे बदन गरम करते सूरज से ज्यादा गरमाए. ‘‘आप साहब.’’ ‘‘तो कायदे से और्डर किस का चलेगा, मेरा कि तुम्हारा?’’ ‘‘आप का सर.’’ ‘‘तो जो मैं कहता हूं वह करो. अभी लंच टाइम में एक मीटिंग रखो. वैसे भी इन दिनों पूरा औफिस कमरे में हीटर जलाए और धूप सेंकने के सिवा  और कुछ नहीं कर रहा है. मतलब, धूप सेंकने की पगार? जनता के पैसे की बरबादी?’’

‘‘नो सर. दिस इज टोटली गलत सर.’’ ‘‘तो जाओ, अभी एक नोटिस निकालो कि सब के साहबजी ने चाहा है कि जनहित में लंच में गरमियों से निबटने के लिए सरकारी तैयारियों पर आपातकालीन बैठक होनी है.’’ ‘‘जी साहब,’’ पीए उन को मन ही मन गालियां देता अपने कमरे में नोटिस टाइप करने चला गया.

हद है यार, ये साहब जात के जीव समझते क्यों नहीं? हड्डियां क्या साहबों की ही कमजोर होती हैं, उन के मातहतों की नहीं? पता नहीं, ये स्वार्थी कब समझेंगे कि साहबों की कमजोर हड्डियों के बिना देश चल सकता है, पर उन के मातहतों की कमजोर हड्डियों के बिना यह देश कतई नहीं चल सकता.  अरे साहबो, देश हित में कभी अपने मातहतों की हड्डियों के बारे में भी सोचो, तो देश का शुद्ध विकास हो. और लंच टाइम में साहब के कमरे के साथ लगते कौंफ्रैंसरूम में उन के अंडर के सारे अफसर, मुलाजिम उन को गालियां देते जुट गए.

पता नहीं क्या साहब है यह. खुद तो चौबीसों घंटे यहांवहां से खाता ही रहता है, पर उन्हें लंच टाइम में भी उन का अपना लाया लंच तक नहीं खाने देता. जब साहब के पीए ने देखा कि सारे औफिस के लोग आ गए हैं तो उस ने साहब से आदेश मांगते पूछा, ‘‘साहबजी, अब सब आ गए हैं तो जो साहबजी का मन हो तो वे मीटिंग शुरू करवाएं,’’

पीए के दुम दबाए पूछने पर उन्होंने अपनी अकड़ी गरदन और अकड़ाई.  जब उन्हें लगा कि इस से ज्यादा वे अपनी गरदन नहीं अकड़ा सकते, तो उन्होंने बड़े ही मार्मिक स्टाइल से गरमी के सीजन में आने वाली जन आपदा की पीड़ा को अपने मन में महसूसते हुए रुंधे गले से कहना शुरू किया,

‘‘हे मेरे औफिस के परम डियरो, लगता है कि गरमी के सीजन में गरमी की किसी भी आपात स्थिति से निबटने के लिए जनता की रक्षा के लिए अब टोल फ्री नंबर जारी कर दिया जाए, क्योंकि मैं हर मौसम से सौ कदम आगे चलने का हिमायती रहा हूं.

‘‘जनता आपदा में है, तो हम हैं, इसलिए मैं ने चाहा है कि मेरे अंडर खाने… सौरी, आने वाले एरिया में अभी से गरमी से निबटने की तमाम सरकारी तैयारियां शुरू कर दी जाएं, ताकि गरमी खराब होने पर हमारा औफिस अलर्ट  पर रहे. इस के बाद भी जो जनता परेशानी में रहे तो हम कर भी क्या  सकते हैं?’’ ‘‘पर सर, अभी तो जनवरी चल रहा है. ये दिन जी भर कर धूप सेंकने के दिन होते हैं सर.

इस के बाद फरवरी आएगा और फिर मार्च. उस के बाद अप्रैलमई, उस के बाद जूनजुलाई में जा कर कहीं गरमी आएगी.  ‘‘आग लगने से पहले कुआं खुदाई क्यों? कोई जो कूद कर उस में खुदकुशी कर गया, तो मीडिया दोष किस के  सिर मढ़ेगा?’’

‘‘देखो दोस्तो, कोई खुदकुशी करे तो सारा दोष कुएं का. रही बात मीडिया की, तो उस को मैं हैंडल कर लूंगा. कुदरत का कुछ पता नहीं. हमें दुश्मनों पर भरोसा करना चाहिए, पर कुदरत पर बिलकुल भी नहीं. वह चाहे तो जनवरी में भी हमें झुलसा सकती है.

वह चाहे तो फरवरी में भी बाढ़ ला सकती है.  ‘‘हमें तब तक जनता को कुदरत के भरोसे बिलकुल नहीं छोड़ना है, जब तक हम उस के भरोसे हैं. इसलिए हम अभी गरमी से बचने के लिए जनता को टोल फ्री नंबर जारी कर रहे हैं.

‘‘यह टोल फ्री नंबर 24 मिनट, नहीं… सौरी… 24 घंटे लगातार चलेगा, हमारे औफिस का नंबर चले या न  चले, तब गरमी से परेशान कोई भी जरूरतमंद किसी भी हालात में इस नंबर पर हमें मदद के लिए मुफ्त में फोन कर सकता है.

‘‘अब मैं साहब, अपने सभी अफसरों और मुलाजिमों को निर्देश देता हूं कि तुम्हारे द्वारा गरमी के मौसम में जनहित में सभी सुविधाएं अभी से सुचारु रखनी शुरू कर दी जाएं. ‘‘मैं शर्माजी को आदेश देता हूं कि वे मेरे एरिया की जनता के लिए जनता के हित के लिए सड़क के दोनों ओर जल्द से जल्द ऐसे पेड़ लगवाएं, जो 4 महीनों में ही जनता को छाया देने लायक हो जाएं, भले ही पेड़ों की जातियां हमें विदेशों से क्यों न लानी पड़ें. इस के लिए मेरा विदेश जाना तय रहेगा, जितनी जल्दी मुमकिन हो. ‘‘वर्माजी को आदेश दिए जाते हैं कि वे गरमी से जनता को नजात दिलाने के लिए अभी से सड़कों पर पंखे, एसी लगवाने की प्रक्रिया शुरू करवा दें. जनता के लिए सड़क के हर मोड़ पर कूलर लगवाने के लिए सड़कों के मोड़ों की तुरंत गिनती कर रिपोर्ट 4 दिनों के भीतर मेरी टेबल पर आ जानी चाहिए.

‘‘और हां आप… आप कल से ही सड़कों पर जेसीबी मशीनों के साथ  24 घंटे खुद तैनात रहेंगे, ताकि गरमी के सीजन में हवा को सड़क से गुजरने में कोई दिक्कत न हो. सड़कों की देखभाल भी आप ही करेंगे, ताकि गरमी से पीडि़त एंबुलैंस बिना रोकटोक सरकारी अस्पताल पहुंच जाए.

‘‘और ठाकुर साहब आप… आप को आदेश दिया जाता है कि आप गरमी में लू से हताहतों के लिए सरकारी अस्पतालों में अभी से बिस्तरों का मोरचा संभाल लें प्लीज. हम नहीं चाहते कि हमारे राज में गरमियों में कोई भी लू से सड़क पर मरे. ‘‘और पीए साहब आप… आप गरमी से लड़ने के लिए अपने औफिस के संसाधनों की लिस्ट अपडेट कीजिए. जोजो हमारे पास सामान कम हो, उस के लिए टैंडर बुलवाइए.

‘‘इस के साथसाथ आप पुलिस विभाग को मेरी ओर से चिट्ठी भेज दीजिए कि वे लोग कल से ही मेरे इलाके में बचे पेड़ों की शीतल हवा की कड़ी निगरानी करते हुए ईमानदारी से हर जरूरतमंद आम आदमी तक ड्रोन से पहुंचाना पक्का करें.

‘‘गरमियों में उन की हवा दूसरे न चुरा लें, इस के लिए वे हवा की सुरक्षा का भी पुख्ता इंतजाम कर हमें समयसमय पर सूचित करेंगे, यह उन को हमारा आदेश है.  ‘‘और हां, मेरी ओर से सूरज को भी एक कड़ी चेतावनी वाली चिट्ठी लिखी जाए कि जो वह गरमियों में हमारी जनता को त्रस्त करने के लिए सरकार द्वारा तय गरमी के पैमाने से इंच भर भी ज्यादा गरम हुआ, तो हम उस के खिलाफ किसी भी हद तक कार्यवाही करने से गुरेज न करेंगे. हो सकता है कि तब हम उस के अपने पर किए अहसान भी भूल जाएं तो भूल जाएं. हमारे लिए जनहित सब से ऊपर है.

‘‘इसी के साथ यह आपातकालीन मीटिंग खत्म होती है. अगले जनहित को ले कर अगली मीटिंग में फिर मिलेंगे जल्दी ही,’’ साहब ने अपना संबोधन यों खत्म किया, ज्यों उन पर कोई आपदा आ गई हो और फिर औफिस के पिछली ओर के लान में बची धूप में आ कर अपनी हड्डियां मजबूत करने कुरसी पर आड़ेतिरछे पसर गए. Hindi Funny Story

Hindi Family Story: शर्वरी – महिमा देवी को बेटी के घर क्या अच्छा लगा

Hindi Family Story: महिमा देवी कुछ दिनों के लिए अपनी बेटी नूपुर के घर गईं तो उस की ननद शर्वरी के व्यवहार व शालीनता ने उन का मन जीत लिया. इसलिए दामाद अभिषेक की गैरहाजिरी में उन्होंने शर्वरी को अपने साथ ही रख लिया. महिमा के इस वात्सल्य व स्नेह का शर्वरी ने क्या प्रतिदान दिया? ‘‘ओशर्वरी, इधर तो आ. इस तरह कतरा कर क्यों भाग रही है,’’ महिमा ने कांजीवरम साड़ी में सजीसंवरी शर्वरी को दरवाजे की तरफ दबे कदमों से खिसकते देख कर कहा था. ‘‘जी,’’ कहती, शरमातीसकुचाती शर्वरी उन के पास आ कर खड़ी हो गई.

‘‘क्या बात है? इस तरह सजधज कर कहां जा रही है?’’ महिमा ने पूछा. ‘‘आज डा. निपुण का विदाई समारोह है न, मांजी, कालेज में सभी अच्छे कपड़े पहन कर आएंगे. मैं ऐसे ही, सादे कपड़ों में जाऊं तो कुछ अजीब सा लगेगा,’’ शर्वरी सहमे स्वर में बोली. ‘‘तो इस में बुरा क्या है, बेटी. तेरी गरदन तो ऐसी झुकी जा रही है मानो कोई अपराध कर दिया हो. इस साड़ी में कितनी सुंदर लग रही है, हमें भी देख कर अच्छा लगता है. रुक जरा, मैं अभी आई,’’ कह कर महिमा ने अपनी अलमारी में से सोने के कंगन और एक सुंदर सा हार निकाल कर उसे दिया. ‘‘मांजी…’’ उन से कंगन और हार लेते हुए शर्वरी की आंखें डबडबा आई थीं. ‘‘यह क्या पागलपन है. सारा मुंह गंदा हो जाएगा,’’ मांजी ने कहा. ‘‘जानती हूं, पर लाख चाहने पर भी ये आंसू नहीं रुकते कभीकभी,’’ शर्वरी ने खुद पर संयम रखने का प्रयास करते हुए कहा. शर्वरी ने भावुक हो कर हाथों में कंगन और गले में हार डाल लिया.

‘‘कैसी लग रही हूं?’’ अचानक उस के मुंह से निकल पड़ा. ‘‘बिलकुल चांद का टुकड़ा, कहीं मेरी नजर ही न लग जाए तुझे,’’ वह प्यार से बोलीं. ‘‘पता नहीं, मांजी, मेरी अपनी मां कैसी थी. बस, एक धुंधली सी याद शेष है, पर मैं यह कभी नहीं भूलूंगी कि आप के जैसी मां मुझे मिलीं,’’ शर्वरी भावुक हो कर बोली. ‘‘बहुत हो गई यह मक्खनबाजी. अब जा और निपुण से कहना, मुझ से मिले बिना न चला जाए,’’ उन्होंने आंखें तरेर कर कहा. ‘‘जी, डा. निपुण तो खुद ही आप से मिलने आने वाले हैं. उन की माताजी आई हैं. वह आप से मिलना चाहती हैं,’’ कहती हुई शर्वरी पर्स उठा कर बाहर निकल गई थी.

इधर महिमा समय के दर्पण पर जमी अतीत की धूल को झाड़ने लगी थीं. वह अपनी बेटी नूपुर के बेटा होने के मौके पर उस के घर गई थीं. वह जा कर खड़ी ही हुई थी कि शर्वरी ने आ कर थोड़ी देर उन्हें निहार कर अचानक ही पूछ लिया था, ‘आप लोग अभी नहाएंगे या पहले चाय पिएंगे?’ वह कोई जवाब दे पातीं उस से पहले ही नूपुर, शर्वरी पर बरस पड़ी थीं, ‘यह भी कोई पूछने की बात है? इतने लंबे सफर से आए हैं तो क्या आते ही स्नानध्यान में लग जाएंगे? चाय तक नहीं पिएंगे?’ ‘ठीक है, अभी बना लाती हूं,’ कहती हुई शर्वरी रसोईघर की तरफ चल दी. ‘और सुन, सारा सामान ले जा कर गैस्टरूम में रख दे. अंकुश का रिकशे वाला आता होगा. उसे तैयार कर देना. नाश्ते की तैयारी भी कर लेना…’

‘बस कर नुपूर. इतने काम तो उसे याद भी नहीं रहेंगे,’ महिमा ने मुसकराते हुए कहा. ‘मां, आप नहीं जानती हैं इसे. यह एक नंबर की कामचोर है. एक बात कहूं मां, पिताजी ने कुछ भी नहीं देखा मेरे लिए. पतिपत्नी कैसे सुखचैन से रहते हैं, मैं ने तो जाना ही नहीं, जब से इस घर में पैर रखा है मैं तो देवरननद की सेवा में जुटी हूं,’ अब नूपुर पिताजी की शिकायत करने लगी. ‘ऐसे नहीं कहते, अंगूठी में हीरे जैसा पति है तेरा. इतना अच्छा पुश्तैनी मकान है. मातापिता कम उम्र में चल बसे तो भाईबहन की जिम्मेदारी तो बड़े भाईभाभी पर ही आती है,’ महिमा ने समझाते हुए कहा. ‘वही तो कह रही हूं. यह सब तो देखना चाहिए था न आप को. भाई की पढ़ाई का खर्च, फिर बहन की पढ़ाई. ऊपर से उस की शादी के लिए कहां से लाएंगे लाखों का दहेज,’ नूपुर चिड़चिड़े स्वर में बोली थी. ‘ठीक है, यदि मैं सबकुछ देख कर विवाह करता और बाद में सासससुर चल बसते तो क्या करतीं तुम?’ अभिजीत भी नाराज हो उठे थे.

महिमा ने उन्हें शांत करना चाहा. बेटी और पति के स्वभाव से वह अच्छी तरह परिचित थीं और उन के भड़कते गुस्से को काबू में रखने के लिए उन्हें हमेशा ठंडे पानी का कार्य करना पड़ता था. तभी चाय की ट्रे थामे शर्वरी आई थी. साथ ही नूपुर के पति अभिषेक ने वहां आ कर उस गरमागरम बहस में बाधा डाल दी थी. चाय पीते हुए भी महिमा की आंखें शर्वरी का पीछा करती रहीं. उस ने फटाफट अंकुश को तैयार किया,उस का टिफिन लगाया, अभिषेक को नाश्ता दिया और महिमा और उन के पति के लिए नहाने का पानी भी गरम कर के दिया. महिमा नहा कर निकलीं तो उन्होंने देखा कि शर्वरी सब्जी काट रही थी. वह बोलीं, ‘अरे, अभी से खाने की क्या जल्दी है, बेटी. आराम से हो जाएगा.’

‘मांजी, मैं सोच रही थी, आज कालेज चली जाती तो अच्छा रहता. छमाही परीक्षाएं सिर पर हैं. कालेज न जाने से बहुत नुकसान होता है,’ शर्वरी जल्दीजल्दी सब्जी काटते हुए बोली. ‘तुम जाओ न कालेज. मैं आ गई हूं, सब संभाल लूंगी. इस तरह परेशान होने की क्या जरूरत है. मुझे पता है, इंटर की पढ़ाई में कितनी मेहनत करनी पड़ती है,’ महिमा ने कहा. उन की बात सुन कर शर्वरी के चेहरे पर आई चमक, उन्हें आज तक याद है. कुछ पल तक तो वह उन्हें एकटक निहारती रह गई थी, फिर कुछ इस तरह मुसकराई थी मानो बहुत प्यासे व्यक्ति के मुंह में किसी ने पानी डाल दिया हो. दोनों के बीच इशारों में बात हुई व शर्वरी लपक कर उठी और तैयार हो कर किताबों का बैग हाथ में ले कर बाहर आ गई थी. ‘तो मैं जाऊं, मांजी?’ उस ने पूछा. ‘कहां जा रही हैं, महारानीजी?’ तभी नूपुर ने वहां आ कर पूछा. ‘कालेज जा रही है, बेटी,’ शर्वरी कुछ कहती उस से पहले ही महिमा ने जवाब दे दिया. ‘मैं ने कहा था न, एक सप्ताह और मत जाना,’ नूपुर ने डांटने के अंदाज में कहा. ‘जाने दे न नूपुर, कह रही थी, पढ़ाई का नुकसान होता है,’

महिमा ने शर्वरी की वकालत करते हुए कहा. ‘ओह, तो आप से शिकायत कर रही थी. कौन सी पीएचडी कर रही है? इंटर में पढ़ रही है और वह भी रोपीट कर पास होगी,’ नूपुर ने व्यंग्य के लहजे में कहा. महिमा का मन हुआ कि वे नूपुर को बताएं कि जब वह स्कूल में पढ़ती थी तो उसे कैसे सबकुछ पढ़ने की टेबल पर ही चाहिए होता था और तब भी वह उसी के शब्दों में ‘रोपीट कर’ ही पास होती थी, या नहीं भी होती थी, पर स्थिति की नजाकत देख कर वे चुप रह गई थीं. अभिजीत तो 2 दिन बाद ही वापस चले गए थे पर उन्हें नूपुर के पूरी तरह स्वस्थ होने तक वहीं उस की देखभाल को छोड़ गए थे. शर्वरी दिनभर घर के कार्यों में हाथ बंटा कर अपनी पढ़ाई भी करती और नूपुर की जलीकटी भी सुनती, पर उस ने कभी भी कुछ न कहा. अभिषेक अपने काम में व्यस्त रहता या व्यस्त रहने का दिखावा करता.

छोटे भाई रोहित ने, शायद नूपुर के स्वभाव से ही तंग आ कर छात्रावास में रह कर पढ़ने का फैसला किया था. वह मातापिता की चलअचल संपत्ति पर अपना हक जताता तो नूपुर सहम जाती थी, पर अब सारा गुस्सा शर्वरी पर ही उतरता था. कभीकभी महिमा को लगता कि सारा दोष उन का ही है. वे उसे दूसरों से शालीन व्यवहार की सीख तक नहीं दे पाई थीं. बचपन से भी वह अपने तीनों भाईबहनों में सब से ज्यादा गुस्सैल स्वभाव की थी और बातबात पर जिद करना और आपे से बाहर हो जाना उस के स्वभाव का खास हिस्सा बन गए थे. कुछ दिन और नूपुर के परिवार के साथ रह कर महिमा जब घर लौटीं तो उन के मन में एक कसक सी थी. वे चाह कर भी नूपुर से कुछ नहीं कह सकी थीं. 2 महीने तक साथ रह कर शर्वरी से उन का अनाम और अबूझ सा संबंध बन गया था. कहते हैं, ‘मन को मन से राह होती है,’

पहली बार उन्होंने इस कथन की सचाई को जीवन में अनुभव किया था, पर संसार में हर व्यक्ति को अपनी लड़ाई खुद ही लड़नी पड़ती है और वे चाह कर भी शर्वरी के लिए कुछ न कर पाई थीं. पर अचानक ही कुछ नाटकीय घटना घट गई थी. अभिषेक को 2 साल के लिए अपनी कंपनी की तरफ से जरमनी जाना था. शर्वरी को वह कहां छोड़े, यह समस्या उस के सामने मुंहबाए खड़ी थी. दोनों ने पहले उसे छात्रावास में रखने की बात भी सोची पर जब महिमा ने शर्वरी को अपने पास रखने का प्रस्ताव रखा तो दोनों की बांछें खिल गई थीं. ‘अंधा क्या चाहे दो आंखें,’ फिर भी अभिषेक ने पूछ ही लिया, ‘आप को कोई तकलीफ तो नहीं होगी, मांजी?’ ‘अरे, नहीं बेटे, कैसी बातें करते हो. शर्वरी तो मेरी बेटी जैसी है. फिर तीनों बच्चे अपने घरसंसार में व्यवस्थित हैं. हम दोनों तो बिलकुल अकेले हैं. बल्कि मुझे तो बड़ा सहारा हो जाएगा,’ महिमा ने कहा. ‘सहारे की बात मत कहो, मां. बहुत स्वार्थी किस्म की लड़की है यह सहारे की बात तो सोचो भी मत,’ नूपुर ने अपनी स्वाभाविक बुद्धि का परिचय देते हुए कहा था.

महिमा की नजर सामने दरवाजे पर खड़ी शर्वरी पर पड़ी थी तो उस की आंखों की हिंसक चमक देख कर वे भी एक क्षण को तो सहम गई थीं. ‘हां, तो पापा, आप क्या कहते हैं?’ उन्हें चुप देख कर नूपुर ने अभिजीत से पूछा था. ‘तुम्हारी मां तैयार हैं तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता. वैसे मुझे भी नहीं लगता कि कोई समस्या आएगी. शर्वरी अच्छी लड़की है और तुम्हारी मां को तो यों भी कभी किसी से तालमेल बैठाने में कोई परेशानी नहीं हुई है,’ अभिजीत ने नूपुर के सवाल का जवाब देते हुए कहा. इस तरह शर्वरी महिमा के जीवन का हिस्सा बन गई थी और जल्दी ही उस ने उन दोनों पतिपत्नी के जीवन में अपनी खास जगह बना ली थी. एक दिन शर्वरी कालेज से लौटी तो महिमा अपने बैडरूम में बेसुध पड़ी थीं. यह देख कर शर्वरी पड़ोसियों की मदद से उन्हें अस्पताल ले गई. बीमारी की हालत में शर्वरी ने उन की ऐसी सेवा की कि सब आश्चर्यचकित रह गए थे. ‘शर्वरी,’ महिमा ने हाथ में साबूदाने की कटोरी थामे खड़ी शर्वरी से कहा था. ‘जी.’ ‘तुम जरूर पिछले जन्म में मेरी मां रही होगी,’ महिमा ने मुसकरा कर कहा था. ‘आप पुनर्जन्म में विश्वास करती हैं क्या?’ शर्वरी ने पूछा. ‘हां, पर क्यों पूछ रही हो तुम?’

‘यों ही, पर मुझे यह जरूर लगता है कि कभी किसी जन्म में कुछ भले काम जरूर किए होंगे मैं ने जो आप लोगों से इतना प्यार मिला, नहीं तो मुझ अभागी के लिए यह सब कहां,’ कहते हुए शर्वरी की आंखें डबडबा गई थीं. ‘आज कहा सो कहा, आगे से कभी खुद को अभागी न कहना. कभी बैठ कर शांतमन से सोचो कि जीवन ने तुम्हें क्याक्या दिया है,’ महिमा ने शर्वरी को समझाते हुए कहा था. अभिजीत और महिमा के साथ रह कर शर्वरी कुछ इस कदर निखरी कि सभी आश्चर्यचकित रह गए थे. उस स्नेहिल वातावरण में शर्वरी ने पढ़ाई में अपनी पूरी ताकत लगा दी थी. जब कठिनाई से पास होने वाली शर्वरी पूरे विश्वविद्यालय में प्रथम आई थी तो खुद महिमा को भी उस पर विश्वास नहीं हुआ था. उसे स्वर्ण पदक मिला था. स्वर्ण पदक ला कर उस ने महिमा को सौंपते हुए कहा था,

‘इस का श्रेय केवल आप को जाता है, मांजी. पता नहीं इस का ऋण मैं कैसे चुका पाऊंगी.’ ‘पगली है, शर्वरी तू तो, मां भी कहती है और ऋण की बात भी करती है. फिर भी मैं बताती हूं, मेरा ऋण कैसे उतरेगा,’ महिमा ने उसे समझाते हुए कहा, ‘तेन त्यक्तेन भुंजीषा.’ ‘क्या?’ शर्वरी ने चौंकते हुए कहा, ‘यह क्या है? सीधीसादी भाषा में कहिए न, मेरे पल्ले तो कुछ नहीं पड़ा,’ कह कर शर्वरी हंस पड़ी. यह मजाक की बात नहीं है, बेटी. जीवन का भोग, त्याग के साथ करो और इस त्याग के लिए सबकुछ छोड़ कर संन्यास लेने की जरूरत नहीं है. परिवार और समाज में छोटी सी लगने वाली बातों से दूसरों का जीवन बदल सकता है. तुम समझ रही हो, शर्वरी?’ महिमा ने शर्वरी को समझाते हुए कहा था.

‘जी, प्रयास कर रही हूं,’ शर्वरी ने जवाब दिया. ‘देखो, नूपुर मेरी बेटी है, पर उस के तुम्हारे प्रति व्यवहार ने मेरा सिर शर्म से झुका दिया है. तुम ऐसा करने से बचना, बचोगी न?’ महिमा ने पूछा. ‘जी, प्रयत्न करूंगी कि आप को कभी निराश न करूं,’ शर्वरी गंभीर स्वर में बोली थी. शीघ्र ही शर्वरी की अपने ही कालेज में व्याख्याता के पद पर नियुक्ति हो गई और अब तो उस का आत्मविश्वास देखते ही बनता था. उस की कायापलट की बात सोचते हुए उन के चेहरे पर हलकी सी मुसकान तैर गई थी. ‘‘कहां खोई हो?’’ तभी अभिजीत ने आ कर महिमा की तंद्रा भंग करते हुए पूछा. ‘‘कहीं नहीं, यों ही,’’ महिमा ने चौंक कर कहा. ‘‘तुम्हारी तो जागते हुए भी आंखें बंद रहती हैं. आज लाइब्रेरी से निकला तो देखा शर्वरी डा. निपुण के साथ हाथ में हाथ डाले जा रही थी,’’ अभिजीत ने कहा. ‘‘जानती हूं,’’ महिमा ने उन की बात का जवाब दिया. ‘‘क्या?’’ अभिजीत ने पूछा. ‘‘यही कि दोनों एकदूसरे को बहुत चाहते हैं,’

’ उन्होंने बताया. ‘‘क्या कह रही हो, पराई लड़की है, कुछ ऊंचनीच हो गई तो हम कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे,’’ अभिजीत ने सकपकाते हुए कहा. ‘‘घबराओ नहीं, मुझे शर्वरी पर पूरा भरोसा है. उस ने तो अभिषेक को सब लिख भी दिया है,’’ महिमा बोलीं. ‘‘ओह, तो दुनिया को पता है. बस, हम से ही परदा है,’’ अभिजीत ने मुसकरा कर कहा था. थोड़ी ही देर में शर्वरी दरवाजे पर दस्तक देती हुई घर में घुसी. ‘‘मां, आज शाम को निपुण अपनी मां के साथ आप से मिलने आएंगे,’’ उस ने शरमाते हुए महिमा के कान में कहा. ‘‘क्या बात है? हमें भी तो कुछ पता चले,’’ अभिजीत ने पूछा. ‘‘खुशखबरी है, निपुण अपनी मां के साथ शर्वरी का हाथ मांगने आ रहे हैं. चलो, बाजार चलें, बहुत सी खरीदारी करनी है,’’ महिमा ने कहा तो शर्वरी शरमा कर अंदर चली गई. ‘‘सच कहूं महिमा, आज मुझे जितनी खुशी हो रही है उतनी तो अपनी बेटियों के संबंध करते समय भी नहीं हुई थी,’’ अभिजीत गद्गद स्वर में बोले. ‘‘अपनों के लिए तो सभी करते हैं पर सच्चा सुख तो उन के लिए कुछ करने में है जिन्हें हमारी जरूरत है,’’ संतोष की मुसकान लिए महिमा बोलीं. Hindi Family Story

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