Murder Mystery : मां के नाजायज संबंधों के चलते किया अपनी ही मां का कत्ल

Murder Mystery : रामाश्रय यादव को अपनी मां के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देख कर सूरज को इतना गुस्सा आया कि फावड़े से वार कर के उस ने रामाश्रय की जिंदगी का दीया हमेशा के लिए बुझा दिया. रामाश्रय यादव कर ड्राइंगरूम में पड़े सोफे पर बैठे ही थे कि उन के मोबाइल फोन की घंटी बजी. फोन उठा कर देखा, नंबर किसी खास का था, इसलिए फोन रिसीव करते हुए  उन के चेहरे पर मुसकान थिरक उठी थी. दूसरी ओर से महिला की शहदघुली आवाज आई. ‘‘तुम कब तक मेरे यहां पहुंच रहे हो? मैं ने दोपहर को ही बता दिया था कि पैसों की व्यवस्था हो गई है. जानते ही हो, समय कितना खराब चल रहा है. कहीं से चोरउचक्कों को हवा लग गई तो अनर्थ हो जाएगा, इसीलिए एक बार फिर कह रही हूं कि आ कर अपने पैसे ले जाओ.’’

‘‘ठीक है, मैं थोड़ी देर में तुम्हारे यहां पहुंच रहा हूं.’’ कह कर रामाश्रय ने फोन काट दिया. फोन काट कर रामाश्रय उठे और अपने कमरे में जा कर अलमारी से एक डायरी निकाल कर पत्नी आशा से बोले, ‘‘गामा की पत्नी का फोन आया था, पैसे देने के लिए बुला रही है. मुझे लौटने में देर हो सकती है, इसलिए तुम लोग खाना खा लेना. मेरी राह मत देखना.’’

‘‘कभी आप को खिलाए बिना मैं ने अपना मुंह जूठा किया है कि आज ही खा लूंगी. लौट कर आओगे तो साथ बैठ कर खाना खाऊंगी.’’ आशा ने कहा.

‘‘ठीक है भई, साथ ही खाएंगे. लेकिन बच्चों और बहुओं को भूखा मत रखना, उन्हें खिला देना.’’ रामाश्रय ने कहा और डायरी ले कर बाहर गए. अब तक उस के छोटे बेटे राकेश ने उस की मोटरसाइकिल निकाल कर बाहर खड़ी कर दी थी. डायरी उस ने डिक्की में रखी और मोटरसाइकिल स्टार्ट कर के चल पड़े. उस समय शाम के यही कोई 6 बज रहे थे और तारीख थी 12 नवंबर, 2013. उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर की थानाकोतवाली शाहपुर के मोहल्ला नंदानगर दरगहिया के रहने वाले रामाश्रय यादव ब्याज पर रुपए देने का काम करते थे. इसी की कमाई से उस ने अपना आलीशान मकान बनवा रखा था, जिस में वह पत्नी आशा, 2 बेटों दिनेश यादव उर्फ पहलवान और राकेश यादव के साथ रहते थे. उस ने करीब 40 लाख रुपए जरूरतमंदों को 10 से 15 प्रतिशत ब्याज पर दे रखा था.

इसी ब्याज की ही कमाई से रामाश्रय ने करोड़ों रुपए का प्लौट खरीद कर अपना यह आलीशान मकान तो बनाया ही था, एक फार्महाउस भी बनवा रखा था. उस का मकान और फार्महाउस आमनेसामने थे. फार्महाउस में उस ने भैंसें पाल रखी थीं, जिन का दूध बेच कर भी वह मोटी कमाई कर रहा था. यही नहीं, कुसुम्ही में 20 बीघे जमीन भी खरीद रखी थी, जिस पर खेती करवाता था. इन सब के अलावा वह प्रौपर्टी में भी पैसा लगाता था. एक तरह से वह बहुधंधी आदमी  था. उस के इन कारोबारों में उस का छोटा बेटा राकेश उस की मदद करता था.

रामाश्रय यादव को घर से गए 3 घंटे से ज्यादा हो गया और ही उस का फोन आया और ही वह आया तो आशा को चिंता हुई. उस ने राकेश से कहा, ‘‘अपने पापा को फोन कर के पूछो कि उन्हें आने में अभी कितनी देर और लगेगी. इस समय वह कहां हैं?’’ राकेश ने रामाश्रय को फोन किया तो पता चला कि उस का फोन बंद है. यह बात उसे अजीब लगी, क्योंकि ऐसा कभी नहीं होता था. राकेश की समझ में यह बात नहीं आई तो मां से कह कर वह अपनी मोटरसाइकिल से गामा यादव के घर के लिए निकल पड़ा. गामा के घर की दूरी 6 किलोमीटर के आसपास थी. वह अभिषेकनगर, शिवपुर, नहर कालोनी में रहता था. यह इलाका थाना कैंट के अंतर्गत आता था.

गामा यादव तो नौकरी की वजह से बाहर रहता था, यहां उस की पत्नी मंजू बच्चों के साथ रहती थी. मंजू से रामाश्रय के अच्छे संबंध थे, जिस की वजह से वह अकसर उस के यहां आताजाता रहता था. करीब 20 मिनट में राकेश मंजू के यहां पहुंच गया. उस ने घंटी बजाई तो मंजू ने ही दरवाजा खोला. उतनी रात को अपने यहां राकेश को देख कर वह चौंकी. उस ने कहा, ‘‘आओ, अंदर आओ. कहो, क्या बात है?’’

 ‘‘आप के यहां पापा आए थे, अभी तक लौटे नहीं. उन का फोन भी बंद है.’’ वह तो मेरे यहां दोपहर आए थे. पैसों का हिसाबकिताब करना था, ले कर तुरंत चले गए थे.’’ मंजू ने कहा.

मंजू के इस जवाब से राकेश हैरान रह गया, क्योंकि घर से निकलते समय उस के पापा ने इन्हीं के यहां आने की बात कही थी. जबकि वह कह रही थी कि पापा यहां दोपहर आए थे और हिसाबकिताब कर के पैसे ले कर चले गए थे. वह क्या कहता, बिना कुछ कहेसुने ही बाहर से लौट आया. घर लौट कर उस ने सारी बात मां को बताई तो आशा का दिल घबराने लगा. मां की हालत देख कर राकेश ने कहा, ‘‘आप परेशान मत होइए, फोन कर के अन्य परिचितों से पूछता हूं. हो सकता है किसी के घर जा कर बैठ गए हों. बातचीत में उन्हें समय का खयाल ही हो.’’

राकेश ने लगभग सभी जानपहचान वालों को फोन कर के पिता के बारे में पूछ लिया. लेकिन कहीं से उसे कोई जानकारी नहीं मिली. अब तक काफी रात हो चुकी थी. उस की समझ में नहीं रहा था कि इतनी रात गए वह कहां जा कर पिता को ढूंढे. किसी तरह रात बिता कर सुबह होते ही राकेश पिता को ढूंढ़ने के लिए निकल पड़ा. सुबह भी वह सब से पहले मंजू के ही घर गया. इस बार भी मंजू ने वही जवाब दिया, जो रात में दिया था. इस के बाद वह पिता को जगहजगह ढूंढ़ने लगा. शाम होतेहोते उस के किसी परिचित ने बताया कि थाना झंगहा पुलिस ने नया बाजार स्थित मंदिर के पास से एक मोटरसाइकिल लावारिस स्थिति में खड़ी बरामद की है. जा कर देख लो, कहीं वह उस के पिता की तो नहीं है.

अब तक राकेश के कुछ दोस्त भी उस की मदद के लिए गए थे. वह अपने दोस्तों के साथ थाना झंगहा जा पहुंचा. राकेश ने मोटरसाइकिल देखी तो वह वही थी, जो पिछली शाम उस के पिता ले कर निकले थे. उस ने डिक्की देखी तो उस में वह डायरी नहीं थी, जो उस के पिता उस में रख कर ले गए थे. डायरी पा कर उसे लगा कि उस के पापा के साथ अवश्य कोई अनहोनी हो चुकी है. अगले दिन 14 नवंबर, 2013 की सुबह राकेश अपने दोस्तों के साथ थाना कोतवाली शाहपुर पहुंचा. कोतवाली प्रभारी उपेंद्र कुमार यादव को पूरी बात बताई तो कोतवाली प्रभारी ने उस से एक तहरीर ले कर रामाश्रय यादव के अपहरण का मुकदमा दर्ज करा दिया.

मुकदमा दर्ज कराने के बाद कोतवाली प्रभारी उपेंद्र कुमार यादव ने रामाश्रय यादव का मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगवाने के साथ उस की काल डिटेल्स निकलवा ली. काल डिटेल्स में अंतिम फोन अभिषेकनगर, शिवपुर, नहर कालोनी की रहने वाली मंजू यादव के मोबाइल से किया गया था. रामाश्रय मंजू यादव के यहां ही जाने की बात कह कर घर से निकले थे. उसी के बाद से उस का पता नहीं चल रहा था. मोबाइल भी बंद हो गया था. पुलिस को मंजू पर शक हुआ तो उस के मोबाइल फोन को सर्विलांस पर लगवा दिया. क्योंकि पुलिस को लग रहा था कि रामाश्रय के अपहरण में कहीं कहीं से उस का हाथ जरूर है.

2 दिनों तक उस नंबर पर तो किसी का फोन आया और ही उसी ने किसी को फोन किया. 17 नवंबर, 2013 की सुबह मंजू ने अपने एक रिश्तेदार को फोन कर के रामाश्रय यादव के बारे में कुछ इस तरह की बातें कीं, जैसे उस के गायब होने के बारे में उसे कुछ पता हो. मामला एक संभ्रांत औरत से जुड़ा था, इसलिए पुलिस ने सारे साक्ष्य जुटा कर ही उस पर हाथ डालने का विचार किया. पुलिस की एक टीम बनाई गई, जिस में सिपाही राम विनय सिंह, संजय पांडेय, रामकृपाल यादव, अजीत सिंह, महिला सिपाही पिंकी सिंह और इंदुबाला को शामिल किया गया. इस टीम का नेतृत्व कोतवाली प्रभारी उपेंद्र कुमार यादव कर रहे थे.

गुप्तरूप से सारी जानकारियां जुटा कर उपेंद्र कुमार ने रात को अपनी टीम के साथ मंजू के घर छापा मारा. घर पर उस समय मंजू और उस का बेटा सौरभ था. उतनी पुलिस देख कर मंजू सकपका गई. दरवाजा खुलते ही पुलिस घर में घुस कर तलाशी लेने लगी. पीछे के कमरे की तलाशी लेते समय पुलिस ने देखा कि कमरे का आधा फर्श इस तरह है, जैसे गड्ढा खोद कर पाटा गया हो, जबकि बाकी का आधा हिस्सा लीपा हुआ था. दरअसल मकान का फर्श अभी बना नहीं था. एक सिपाही ने उस पर पैर मारा तो वह जमीन में धंस गया. संदेह हुआ तो पुलिस ने लोहे की सरिया का टुकड़ा उठा कर उस में घुसेड़ा तो वह आसानी से घुसता चला गया.

इस के बाद मंजू से पूछताछ की गई तो पहले वह इधरउधर की बातें करती रही. लेकिन जब पुलिस ने थोड़ी सख्ती की तो उस ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए पुलिस को बताया कि रामाश्रय यादव की हत्या कर के वहां उसी की लाश यहां गाड़ी गई है. कोतवाली प्रभारी उपेंद्र कुमार यादव ने मंजू को हिरासत में ले कर इस बात की सूचना क्षेत्राधिकारी नम्रता श्रीवास्तव को दे दी. इस के बाद नम्रता श्रीवास्तव, पुलिस अधीक्षक (नगर) परेश पांडेय, सिटी मजिस्ट्रेट रामकेवल तिवारी, इंसपेक्टर भंवरनाथ चौधरी और इंजीनियरिंग कालेज चौकी के चौकीप्रभारी भी वहां पहुंच गए.

सिटी मजिस्ट्रेट रामकेवल तिवारी की उपस्थिति में फर्श की खुदाई कर के लाश बरामद की गई. पुलिस ने मृतक रामाश्रय के बेटे राकेश को फोन कर के बुला लिया था. लाश देखते ही वह बिलखबिलख कर रोने लगा. लाश की शिनाख्त हो ही गई. पुलिस ने अपनी औपचारिक काररवाई पूरी कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए मैडिकल कालेज भिजवा दिया. मंजू यादव को पुलिस थाने ले आई. थाने में एसपी (सिटी) परेश पांडेय और क्षेत्राधिकारी नम्रता श्रीवास्तव की उपस्थिति में उस से पूछताछ की गई. इस पूछताछ में मंजू ने रामाश्रय यादव की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस तरह थी.

40 वर्षीया मंजू यादव मूलरूप से गोरखपुर के थाना कैंट के मोहल्ला अभिषेकनगर, शिवपुर की नहर कालोनी की रहने वाली थी. उस के परिवार में पति गामा यादव और 2 बेटे सूरज कुमार तथा सौरभ कुमार थे. करीब 5 साल पहले गामा यादव एयरफोर्स से सेवानिवृत्ति हुए तो उन्हें झारखंड के बोकारो में नौकरी मिल गई. वह वहां अकेले ही रहते थे. उन की पत्नी मंजू गोरखपुर में रह कर दोनों बच्चों को पढ़ा रही थी. अभिषेकनगर में रहने से पहले गामा यादव का परिवार नंदानगर दरगहिया में किराए के मकान में रहता था. वहीं रहते हुए उन की मुलाकात रामाश्रय यादव से हुई तो जल्दी ही दोनों में दोस्ती हो गई. धीरेधीरे यह दोस्ती इतनी गहरी हो गई कि दोनों परिवारों का एकदूसरे के यहां खूब आनाजाना हो गया. रामाश्रय यादव की शादी तो हो ही गई थी, वह 2 बेटों का बाप भी बन गया था. जबकि गामा यादव की नईनई शादी हुई थी. यह लगभग 20-25 साल पहले की बात है.

गामा यादव के ड्यूटी पर जाने के बाद घर में मंजू यादव ही रह जाती थी. ऐसे में कभीकभार घूमतेफिरते रामाश्रय उस के घर पहुंच जाता तो घंटों उस से बातें करता रहता था. बातें करतेकरते ही उस के मन में दोस्त की बीवी के प्रति आकर्षण पैदा होने लगा. मंजू भी 2 बेटों सूरज और सौरभ की मां बन गई थी. 2 बेटों के जन्म के बाद उस के शरीर में जो निखार आया था, वह रामाश्रय को और बेचैन करने लगा था. मंजू के आकर्षण में बंधा वह जबतब उस के घर पहुंचने लगा. लेकिन अब वह उस के घर खाली हाथ नहीं जाता था. बच्चों के बहाने वह कुछ न कुछ ले कर जाता था. मंजू और उस के बीच हंसीठिठोली होती ही थी, इसी बहाने वह उस से अश्लील मजाक करते हुए शारीरिक छेड़छाड़ भी करने लगा. मंजू ने कभी विरोध नहीं किया, इसलिए उस की हिम्मत बढ़ती गई और फिर एक दिन उस ने उसे बांहों में भर लिया.

ऐसे में तो रामाश्रय ने घरपरिवार की चिंता की मंजू ने. उन्होंने यह भी नहीं सोचा कि जब इस बारे में घर वालों को पता चलेगा तो इस का परिणाम क्या होगा. दोनों ही किसी तरह की परवाह किए बगैर एक हो गए. इस के बाद उन का यह लुकाछिपी का खेल लगातार चलने लगा. दोनों ही यह खेल इतनी सफाई से खेल रहे थे कि इस की भनक तो गामा को लगी और आशा को. गामा नंदानगर में किराए के मकान में रहता था. बच्चे बड़े हुए तो जगह छोटी पड़ने लगी. रामाश्रय सूदखोरी के साथ प्रौपर्टी का भी काम करता था. इसी वजह से मंजू ने उस से प्लौट दिलाने की बात कही तो रामाश्रय ने उसे अभिषेकनगर का यह प्लौट दिला दिया. प्लौट खरीदने का पैसा भी रामाश्रय ने ही दिया. लेकिन गामा ने उस का यह पैसा धीरेधीरे अदा कर दिया था.

रामाश्रय ने मंजू को प्लौट ही नहीं दिलवाया, बल्कि उस का मकान भी बनवा दिया. मकान बनने के बाद मंजू बच्चों को ले कर अपने मकान में गई. यह 18 साल पहले की बात है. उसी बीच गामा नौकरी से रिटायर हो गया तो उसे झारखंड के बोकारो में बढि़या नौकरी मिल गई, जहां वह अकेला ही रह कर नौकरी करने लगा. गामा के आने से जहां मंजू और रामाश्रय को मिलने में दिक्कत होने लगी थी, वहीं उस के बोकारो चले जाने के बाद उन का रास्ता फिर साफ हो गया था. सूरज और सौरभ बड़े हो गए थे. लेकिन वे स्कूल चले जाते थे तो मंजू घर में अकेली रह जाती थी. उसी बीच रामाश्रय उस से मिलने आता था. मंजू को पता ही था कि रामाश्रय ब्याज पर पैसे देता है. उस के मन में आया कि क्यों वह भी अपने शारीरिक संबंधों को कैश कराए. वह रामाश्रय से रुपए ऐंठने लगी. उन पैसों को वह 12 प्रतिशत की दर से ब्याज पर उठाने लगी. इसी तरह उस ने रामाश्रय से करीब 15 लाख रुपए ऐंठ लिए.

15 लाख रुपए कोई छोटी रकम नहीं होती. रामाश्रय मंजू से अपने पैसे वापस मांगने लगा. जबकि मंजू देने में आनाकानी करती रही. रामाश्रय को लगा कि उस के पैसे डूबने वाले हैं तो उस ने थोड़ी सख्ती की. किसी तरह मंजू ने 10 लाख रुपए तो वापस कर दिए, लेकिन 5 लाख रुपए उस ने दबा लिए. उस ने कह भी दिया कि अब वह ये रुपए नहीं देगी. इस के बाद रामाश्रय ने उस से पैसे मांगने छोड़ दिए. 12 नवंबर, 2013 की शाम 6 बजे मंजू ने फोन कर के रामाश्रय को अपने घर बुलाया, क्योंकि उस समय वह घर में अकेली थी. उस के दोनों बेटे कहीं घूमने गए थे. घर से निकलते समय रामाश्रय ने पत्नी को बता दिया था कि वह मंजू के यहां हिसाबकिताब करने जा रहा है. उसे लौटने में देर हो सकती है, इसलिए वह उस का इंतजार नहीं करेगी.

जिस समय रामाश्रय मंजू के यहां पहुंचा, सौरभ चुका था. उसे देख कर दोनों अचकचा गए. तब रामाश्रय ने उसे बाहर भेजने के लिए कुछ रुपए दे कर कोई सामान लाने को कहा. उस के जाते ही दोनों एकदूसरे की बांहों में समा गए. वह वासना की आग ठंडी कर ही रहे थे कि सूरज आ गया. दरवाजा अंदर से बंद था. उस ने दरवाजे की झिर्री से झांका तो उसे अंदर से खुसुरफुसुर की आवाज सुनाई दी. सूरज दीवाल के सहारे छत पर चढ़ गया. सीढि़यों से उतर कर वह कमरे में पहुंचा तो मां को रामाश्रय के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देख कर उसे गुस्सा आ गया. सूरज को देख कर मंजू हड़बड़ा कर उठी. वह कुछ करती, उस के पहले ही सूरज ने गुस्से में फावड़ा उठा कर रामाश्रय के सिर पर वार कर दिया.

एक ही वार में रामाश्रय का सिर फट गया और वह बिस्तर पर लुढ़क गया. मंजू डर गई. वह हड़बड़ा कर बिस्तर से नीचे कूद गई. तब तक सौरभ भी आ गया. वह भी छत के रास्ते नीचे आया था. रामाश्रय को खून में लथपथ देख कर वह बुरी तरह से डर कर रोने लगा. मंजू ने उसे डांट कर चुप कराया. जो होना था, सो हो चुका था. तीनों डर गए कि अब उन्हें जेल जाना होगा. पुलिस से बचने के लिए मंजू ने बेटों के साथ मिल कर कमरे के अंदर गड्ढा खोदा और रामाश्रय की लाश को उसी में दबा दिया. इस के बाद अपने एक रिश्तेदार की मदद से सूरज उस की मोटरसाइकिल को थाना झंगहा के अंतर्गत आने वाले नया बाजार के मंदिर के पास खड़ी कर आया. वहां से लौट कर वह उसी दिन पिता के पास बोकारो चला गया.

पूछताछ के बाद पुलिस ने मंजू को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. 21 नवंबर, 2013 को पुलिस ने सूरज को हिरासत में ले कर बच्चों की अदालत में पेश किया, जहां से उसे बालसुधार गृह भेज दिया गया. इस मामले मे मृतक के बेटे राकेश का कहना है कि उस के पिता के मंजू से अवैध संबंध बिलकुल नहीं थे. पैसे लौटाने न पड़ें, इस के लिए उस ने उस के पिता की हत्या की है. यही नहीं, घटना वाले दिन उस के पिता के पास 2 लाख रुपए के चैक और 2 लाख रुपए नकद थे, वे भी गायब हैं. उन का मोबाइल भी नहीं मिला है.

कथा लिखे जाने तक तो मंजू की जमानत हुई थी, सूरज की. गामा यादव ने उन की जमानत की कोशिश भी नहीं की थी. शायद उन्होंने बेटे और पत्नी को उन के किए की सजा भुगतने के लिए छोड़ दिया है.

ऐसी मिली Love Marriage की सजा : कुल्हाड़ी से काटे दामाद के पैर

Love Marriage : बेटी का पड़ोसी से ब्याह करना फूल सिंह को इतना खला कि गुस्से में उस ने पड़ोसी सुरेंद्र का ही नहीं, अपना भी परिवार बरबाद कर दिया.  गांवों में आज भी ज्यादातर घरों में दिन ढलते ही रात का खाना बन जाता है. शाम के यही कोई साढ़े 6 बजे खाना खा कर सुरेंद्र सोने के लिए जानवरों के बाड़े में चला गया था. उस के जाने के बाद सुरेंद्र की पत्नी ममता, बेटा कुलदीप, दीपक, रतन और बहू प्रभा खाना खाने की तैयारी करने लगी थी. सभी खाने के लिए बैठने जा रहे थे कि तभी प्रभा के पिता फूल सिंह पाल, चाचा रामप्रसाद, भाई लाल सिंह उस के मौसेरे भाई टुंडा के साथ उन के यहां पहुंचे

किसी के हाथ में कुल्हाड़ी थी तो कोई चापड़ लिए था तो कोई डंडा. उन्हें इस तरह आया देख कर घर के सभी लोग समझ गए कि इन के इरादे नेक नहीं हैं. वे कुछ कर पाते, उस से पहले ही उन्होंने प्रभा को पकड़ा और कुल्हाड़ी से उस की हत्या कर दी. प्रभा की सास ममता बहू को बचाने के लिए दौड़ी तो हमलावरों ने उसे भी कुल्हाड़ी से काट डाला. ममता प्रभा की 9 महीने की बेटी को लिए थी, हत्यारों ने उसे छीन कर एक ओर फेंक दिया था. 2 लोगों को मौत के घाट उतारने के बाद हमलावरों ने कुलदीप को पकड़ कर जमीन पर गिरा दिया. कुलदीप जान की भीख मांगने लगा तो फूल सिंह ने कहा, ‘‘कुलदीप, तुझे हम जान से नहीं मारेंगे, तुझे तो अपाहिज बना कर छोड़ देंगे, ताकि तू उम्र भर चलने को तरसे और अपनी बरबादी पर रोता रहे.’’

इतना कह कर फूल सिंह ने कुलदीप के दोनों पैर कुल्हाड़ी से काट दिए. सुरेंद्र की बुआ श्यामा और छोटेछोटे बच्चे चीखतेचिल्लाते रहे और गांव वालों से मदद की गुहार लगाते रहे, लेकिन गांव का कोई भी उन की मदद को नहीं आया. लोग अपनीअपनी छतों पर खड़े हो कर इस वीभत्स नजारे को देखते रहे. कुछ ही देर में इतनी बड़ी वारदात को अंजाम दे कर जिस तरह हमलावर आए थे, उसी तरह फरार हो गए. सुरेंद्र का घर खून से डूब गया था. 2 महिलाओं की खून से लथपथ लाशें पड़ी थीं, जबकि कुलदीप दर्द से तड़प रहा था. हमलावरों के जाने के बाद गांव वाले जुटने शुरू हुए. खबर सुन कर सुरेंद्र और उस के मातापिता, भाई, चाचा आदि गए. लोमहर्षक नजारा देख कर वे सन्न रह गए

सुरेंद्र ने पुलिस चौकी साढ़ को फोन कर के इस घटना की सूचना दी. सूचना मिलते ही चौकीप्रभारी वीरेंद्र प्रताप यादव घटना की सूचना कोतवाली घाटमपुर को दे कर हेडकांस्टेबल अरविंद तिवारी, कांस्टेबल रईस अहमद, भीम प्रकाश, प्रवेश मिश्रा, संजय कुमार के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. घटना की सूचना पा कर कोतवाली घाटमपुर के प्रभारी गोपाल यादव और सीओ जे.पी. सिंह गांव ढुकुआपुर के लिए चल पड़े थे. ढुकुआपुर से पुलिस चौकी 8 किलोमीटर दूर थी इसलिए पुलिस टीम को वहां पहुंचने में पौन घंटा लग गया. 3 लोगों को खून में लथपथ देख कर पुलिस हैरान रह गई. देख कर ही लग रहा था कि कि यह सब दुश्मनी की वजह से हुआ है.

2 महिलाओं की मौत हो चुकी थी. कुलदीप दर्द से तड़प रहा था. पुलिस ने कुलदीप को स्वरूपनगर के एसएनआर अस्पताल भिजवाया. सूचना मिलने पर एसपी (देहात) अनिल मिश्रा भी वहां गए थे. पुलिस अधिकारियों ने आसपास के लोगों से घटना के बारे में जानना चाहा, लेकिन पुलिस के सामने किसी ने मुंह नहीं खोला. लोग अलगअलग बहाने बना कर वहां से खिसकने लगे. पुलिस समझ गई कि डर या किसी अन्य वजह से लोग कुछ भी बताने से कतरा रहे हैं

हमलावरों ने सुरेंद्र की पत्नी ममता और बहू प्रभा की हत्या कर दी थी, जबकि बेटे कुलदीप के दोनों पैर काट दिए थे. पुलिस ने जब सुरेंद्र से पूछताछ की तो उस ने बताया कि यह सब कुलदीप की ससुराल वालों ने किया है. पुलिस ने सुरेंद्र पाल की ओर से फूल सिंह, उस के बेटे, भाई रामप्रसाद पाल, लाल सिंह, टुंडा उर्फ मामा और रामप्रसाद उर्फ छोटे के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 307, 452, 34 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली. पुलिस ने दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए कानपुर भिजवा दिया था. इस लोमहर्षक कांड के बाद गांव में दहशत फैल गई थी. गांव वाले दबी जुबान से तरहतरह की बातें कर रहे थे. एसएसपी यशस्वी यादव ने सीओ जे.पी. सिंह को निर्देश दिए कि वह जल्द से जल्द हमलावरों को गिरफ्तार करें. सीओ ने तुरंत ही प्रभारी निरीक्षक गोपाल यादव और चौकीप्रभारी वीरेंद्र प्रताप यादव के नेतृत्व में 2 टीमें गठित कीं

पहली टीम में एसआई अखिलेश मिश्रा, कांस्टेबल धर्मेंद्र सिंह, प्रवेश बाबू और इरशाद अहमद को शामिल किया गया, जबकि दूसरी टीम में हेडकांस्टेबल अरविंद तिवारी, कांस्टेबल रईस अहमद, अजय कुमार यादव और भीम प्रकाश को भी शामिल किया गया. चूंकि आरोपी अपने घरों से फरार थे, इसलिए पुलिस टीमें उन की तलाश में संभावित जगहों पर छापे मारने लगीं. आखिर सुबह होतेहोते पुलिस को सफलता मिल ही गई. पुलिस ने फूल सिंह, लाल सिंह और रामप्रसाद उर्फ छोटे को गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर उन से पूछताछ की गई तो इस खूनी तांडव की जो कहानी सामने आई, वह प्यार की प्रस्तावना पर लिखी हुई थी.

उत्तर प्रदेश के जिला कानपुर की एक तहसील है घाटमपुर. यहां से लगभग 50 किलोमीटर दूर बसा है एक गांव ढुकुआपुर. इस गांव में वैसे तो सभी जाति के लोग रहते हैं, लेकिन गड़रियों की संख्या कुछ ज्यादा है. इसी गांव में सुरेंद्र सिंह पाल भी अपने परिवार के साथ रहता था. वैसे सुरेंद्र पाल का पुश्तैनी मकान गांव के बीचोंबीच था, लेकिन भाइयों में जब बंटवारा हुआ तो वह गांव के बाहर खाली पड़ी जमीन पर मकान बना कर रहने लगा. सुरेंद्र के परिवार में पत्नी ममता के अलावा 3 बेटे, कुलदीप, दीपक और करण थे. कुलदीप पढ़ाई के साथ पिता के काम में भी हाथ बंटाता था. सुरेंद्र के पड़ोस में ही फूल सिंह पाल का परिवार रहता था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटे और 1 बेटी प्रभा थी. प्रभा और कुलदीप एक ही स्कूल में पढ़ते थे. दोनों आसपास ही रहते थे, इसलिए स्कूल भी साथसाथ आतेजाते थे. दोनों साथसाथ खेलते और पढ़ते हुए जवान हुए तो उन की दोस्ती प्यार में कब बदल गई, उन्हें पता ही नहीं चला.

कुलदीप और प्रभा का प्यार कुछ दिनों तक तो चोरीछिपे चलता रहा, लेकिन वह इसे ज्यादा दिनों तक लोगों की नजरों से छिपा सके. वैसे भी प्यार कहां छिप पाता है. दोनों के प्रेमसंबंधों की बात गांव के लोगों तक पहुंची तो लोग उन के बारे में चटखारे ले ले कर बातें करने लगे. गांव वालों से होते हुए यह बात किसी तरह प्रभा और कुलदीप के घर वालों के कानों तक पहुंची तो फूल सिंह ने पत्नी रानी से बात कर के प्रभा पर पाबंदी लगा दी कि वह घर के बाहर अकेली नहीं जाएगी. कहते हैं, बंदिशें लगाने से मोहब्बत और बढ़ती है. प्रभा की कुलदीप से मुलाकात भले ही नहीं हो पा रही थी, लेकिन फोन के जरिए बात होती रहती थी. चूंकि उन्होंने पहले से ही तय कर लिया था कि वे प्यार में आने वाली हर रुकावट का विरोध करेंगे, इसलिए वे बगावत पर उतर आए. जमाने की परवाह किए बगैर अपने प्यार को मंजिल तक पहुंचाने के लिए वे जनवरी, 2012 में अपनेअपने घरों को छोड़ कर हरियाणा के गुड़गांव शहर चले गए.

गुड़गांव में कुलदीप का एक दोस्त रहता था. कुलदीप ने उसी की मदद से आर्यसमाज रीति से प्रभा के साथ विवाह भी कर लिया. दोस्त की मदद से उसे दिल्ली की एक फैक्ट्री में नौकरी भी मिल गई. इस के बाद कुलदीप दिल्ली में किराए पर कमरा ले कर प्रभा के साथ रहने लगा. प्रभा के इस तरह भाग जाने से फूल सिंह की बहुत बदनामी हुई. उस ने 16 जनवरी, 2012 को थाना घाटमपुर में कुलदीप के खिलाफ प्रभा को बरगला कर भगा ले जाने की रिपोर्ट दर्ज करा दी. रिपोर्ट में उस ने प्रभा को नाबालिग बताया था. मामला नाबालिग लड़की का था, इसलिए पुलिस ने सुरेंद्र पाल और उस के परिवार वालों पर शिकंजा कसा. मजबूरन कुलदीप को वापस जाना पड़ा

चूंकि कुलदीप के खिलाफ पहले से रिपोर्ट दर्ज थी, इसलिए पुलिस ने कुलदीप को गिरफ्तार कर के पूछताछ की. प्रभा का मैडिकल परीक्षण कराया. मैडिकल में प्रभा की उम्र 18 साल से ऊपर निकली. वह संभोग की अभ्यस्त पाई गई. प्रभा ने कुलदीप की गिरफ्तारी का विरोध करते हुए कहा था कि उस ने कुलदीप के साथ अपनी मरजी से जा कर शादी की थी. प्रभा ने सुबूत के तौर पर अपने और कुलदीप के शादी के फोटो भी दिखाए. लेकिन पुलिस ने उस की एक सुनी और कुलदीप को अदालत में पेश कर जेल भेज दियामजिस्ट्रेट के सामने प्रभा के बयान कराए गए तो प्रभा ने वही सब कहा जो उस ने पुलिस के सामने चीखचीख कर कहा था. प्रभा के बयान और उस के बालिग होने की रिपोर्ट के मद्देनजर मजिस्ट्रेट ने प्रभा को उस की मरजी के अनुसार जहां और जिस के साथ जाने रहने की इजाजत दे दी.

अदालत के फैसले के बाद प्रभा ने अपने घर के बजाय सासससुर के साथ जाने की इच्छा जताई तो पुलिस ने उसे कुलदीप के घर पहुंचा दिया. बेटी के इस फैसले से फूल सिंह और उस के धर वालों ने बड़ी बेइज्जती महसूस की. कुछ दिनों बाद कुलदीप भी छूट कर घर आ गया. माहौल खराब हो, इसलिए कुलदीप प्रभा को ले कर फिर से दिल्ली चला गया. जनवरी, 2013 में प्रभा ने एक बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम उस ने शिवानी रखा. समय का पहिया अपनी गति से चलता रहा. शिवानी भी 9 महीने की हो गई. अपने मातापिता से भी कुलदीप के संबंध ठीक हो गए थे. वह अकसर घर वालों से फोन पर बातचीत करता रहता था. लेकिन फूल सिंह ने बेटी से हमेशा के लिए संबंध खत्म कर लिए थे. कुलदीप बेटी का मुंडन संस्कार कराना चाहता था, इसलिए घर वालों से बात कर के वह पत्नी और बेटी को ले कर 9 अक्तूबर, 2013 को अपने गांव ढुकुआपुर गया.

सुरेंद्र पाल ने मुंडन संस्कार की सारी तैयारियां पहले से ही कर रखी थीं. 10 अक्तूबर को बड़ी धूमधाम से शिवानी का मुंडन संस्कार हुआ. प्रभा के मातापिता ने कुलदीप को अपना दामाद स्वीकार नहीं किया था. वह कुलदीप से खुंदक खाए बैठा था. इसलिए सुरेंद्र ने मुंडन कार्यक्रम में फूल सिंह और उस के परिवार वालों को नहीं बुलाया था. गांव वाले मुंडन की दावत खा कर जब लौट रहे थे तो तरहतरह की बातें कर रहे थे. वे बातें फूल सिंह ने सुनीं तो उस का खून खौल उठा. उस ने उसी समय कुलदीप और उस के घर वालों को सबक सिखाने का निश्चय कर लिया. इस बारे में उस ने मोहद्दीपुर थाना बकेवर में रहने वाले अपने भाई रामप्रसाद से सलाहमशविरा कर के उसे भी शामिल कर लिया. अब इंतजार था, सुरेंद्र के मेहमानों के चले जाने का. 13 अक्तूबर को उस के यहां से सभी मेहमान चले गए. केवल सुरेंद्र की बुआ श्यामा रह गई थीं.

14 अक्तूबर, 2013 की शाम सुरेंद्र खाना खा कर घर से करीब 50 मीटर दूर जानवरों के बाड़े में सोने चला गया. उस की पत्नी ममता बच्चों को खाना खिलाने की तैयारी कर रही थी तभी फूल सिंह, लाल सिंह, रामप्रसाद आदि कुल्हाड़ी, चापड़ और डंडे ले कर सुरेंद्र के घर में दाखिल हुए. घर वाले कुछ समझ पाते उस से पहले उन्होंने प्रभा की हत्या की, क्योंकि उसी की वजह से समाज में उन की नाक कटी थी. ममता बहू को बचाने आई तो उन्होंने उसे भी काट डाला. उस के बाद कुलदीप के दोनों पैर काट दिए. इतना सब कर के वे फरार हो गए. पुलिस ने फूल सिंह, लाल सिंह, रामप्रसाद उर्फ छोटे पाल से पूछताछ कर के सभी को जेल भेज दिया.

पुलिस ने टुंडा उर्फ मामा से पूछताछ करने के बाद उसे छोड़ दिया. पुलिस का कहना था कि उस का एक हाथ कटा था. एक हाथ से वह किसी पर हमला नहीं कर सकता. दूसरे पुलिस जब उस के घर फरीदपुर पहुंची तो वह घर पर ही सोता मिला था. अगर वह हत्या जैसे जघन्य अपराध में शामिल होता तो अन्य हमलावरों की तरह वह भी घर से फरार होता. वह आराम से अपने घर में नहीं सो रहा होता. उधर सुरेंद्र का कहना है कि टुंडा घटना में शामिल था. पुलिस ने जानबूझ कर उसे छोड़ दिया. सच्चाई जो भी हो, इस लोमहर्षक कांड ने यह तो साबित कर दिया है कि लोग खुद को कितना भी आधुनिक कहें, लेकिन अभी उन की सोच नहीं बदली है. अगर फूल सिंह बेटी की पसंद को स्वीकार कर लेता तो उसे इस जघन्य अपराध के आरोप में जेल जाना पड़ता. कथा लिखे जाने तक कुलदीप अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा था.

   —कथा पुलिस सूत्र और जनचर्चा पर आधारित

लेखक – एम. आई. हाशमी

Fraud : झांसे‌ के‌ फांसे से बचना

Fraud : मध्य प्रदेश के कटनी थाना क्षेत्र में राजा रसगुल्ला की गली में सुबहसवेरे 60 साल की एक बूढ़ी औरत चंद्रकला जैन से जेवर ठग लिए. बाबा के वेश में पहुंचे ठगों ने उन्हें अपने जाल में फंसाया और फिर उन के घर की परेशानियों का समाधान करने के नाम पर जेवर उतरवा कर चंपत हो गए.

ठगी का शिकार हुईं चंद्रकला जैन द्वारा थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई गई. पुलिस आसपास लगे सीसीटीवी कैमरे खंगाल कर आरोपियों की तलाश में जुट गई.

कोतवाली पानी की टंकी के पास रहने वाली चंद्रकला जैन ने थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई कि वे सुबह पैदल राजा रसगुल्ला की गली से हनुमान ताल की तरफ जा रही थीं. वे बखरी वाले रोड पर पहुंची थीं कि तभी पीछे से एक आदमी ने उन्हें आवाज दी. आवाज देने वाला बाबा के वेश में था. उस ने आदमी ने उन से चश्मे की दुकान पूछी फिर बातचीत करते हुए कहा कि वह हरिद्वार से आया है. उस ने उन्हें दान देने के लिए कहा और फिर बातों में उलझा कर घर में कई परेशानियां होने और उन का समाधान करने का भरोसा दिलाते हुए सोने की चेन व कान टौप्स उतरवा कर पर्स में रखवाए. उस के बाद ठग ने पर्स अपने साथी को दिलवाया और चंद्रकला जैन से कहा कि वे 10 कदम आगे जाएं और लौट कर अपना पर्स उठाएं व घर जा कर पर्स पर दूध चढ़ाएं तो उन की सारी परेशानियां दूर हो जाएंगी.

उस आदमी की बातों में आ कर चंद्रकला जैन 10 कदम आगे चलीं और पीछे मुड़ कर देखा तो दोनों ठग गायब थे.

सब से खास बात यह है कि हिंदू समाज में अगर कोई गेरुआ कपड़े पहन लेता है, दाढ़ी बड़ा लेता है, तो लोग उस की बात को पत्थर की लकीर समझने लगते हैं. इस तरह गलती हमारी खुद की है. हमें यह समझना चाहिए कि क्या सच है और क्या गलत. क्या फरेब है और क्या हकीकत. जब तक हम में यह समझ नहीं होगी, तब तक पुलिस और सरकार भी कुछ नहीं कर सकती. लिहाजा, हम ठगी के शिकार होते रहेंगे.

ऐसे करें बचाव

-लोगों खासकर बूढ़ी औरतों को अनजान लोगों से सावधान रहने की जरूरत है.

-बूढ़ों को अपने आसपास के माहौल को जानने की कोशिश करनी चाहिए. उन्हें जागरूक होना चाहिए कि आज का समय ठगी और फरेब का है और किसी की बातों में नहीं आना चाहिए.

-बूढ़ी औरतों को अपने परिवार और जानपहचान वालो को अपनी गतिविधियों के बारे में सूचना देते रहना चाहिए.

-बूढ़ी औरतों को अपने जेवर और पैसे सुरक्षित रखने चाहिए.

-बूढ़ों को सामाजिक समर्थन प्रदान करने के लिए सामुदायिक कार्यक्रम आयोजित करना चाहिए.

-ठगी के बारे में जागरूकता अभियान चलाएं, ताकि लोगों को इस के बारे में जानकारी मिल सके.

-पुलिस और प्रशासन के साथ सहयोग कर के ठगी की घटनाओं को रोकने के लिए कदम उठाएं.

-बूढ़ी औरतों के लिए सुरक्षा सेवाएं प्रदान करने के लिए सामुदायिक संगठनों को सामने आना चाहिए.

-ठगी की घटनाओं की जांच करने के लिए पुलिस को सूझबूझ के साथ कार्यवाही करनी चाहिए.

-ठगों को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस को सख्त निर्देश देना चाहिए.

ठगी होने की खास वजह लालच है. जैसे ही कोई रुपए या सोनाचांदी दोगुना करने का भरोसा देता है, लोग उस के पीछे घूमने लगते हैं. लोगों को यह समझना चाहिए कि अगर उस के पास कुछ चमत्कार है, तो वह खुद गरीब क्यों है.

Crime Story : नशेड़ी बेटे ने अपनी मां का किया बेरहमी से कत्ल

Crime Story : खासतौर पर आज अगर हम हत्या की बात करें, तो इस मामले में आसपास के लोग ही 90 फीसदी भागीदारी करते हैं. अगर आप हत्या के मामलों की पड़ताल करें, तो पाएंगे कि इस में आरोपी अपराधी आमतौर पर मारे गए लोगों के आसपास के ही होते हैं.

पिछले दिनों दिल्ली पुलिस के उत्तरपूर्व जिले के दयालपुर इलाके में नशे के लिए पैसे न देने पर एक बेटे ने अपनी बुजुर्ग मां की पीटपीट कर हत्या कर दी. इतना ही नहीं, बेरहम आरोपी बेटे ने वारदात के बाद अपनी मां की लाश बाथरूम में छिपा दी और बेटी को भी मुंह बंद रखने के लिए धमकाने लगा.

देश की राजधानी में एक बेटे द्वारा अपनी मां की हत्या के इस मामले में आगे क्या हुआ हम आप को बताते हैं, मगर उस से पहले देखिए कि हाल ही में इस तरह के कैसेकैसे मामले सामने आए हैं :

-पत्नी ने खाने में ज्यादा नमक डाल दिया तो नाराज हो कर पति ने पत्नी को इतना मारा कि उस की मौत हो गई. यह वारदात छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के कटोरा तालाब थाना क्षेत्र की है.

-छत्तीसगढ़ के जिला अंबिकापुर में एक आदमी ने अपने बेटे की हत्या कर दी. वजह बस इतनी थी कि बेटा कोई कामधंधा नहीं ढूंढ़ पाया था.

-छत्तीसगढ़ में ही बिलासपुर के रतनपुर में एक बेटे ने अपनी ही मां की हत्या कर दी, क्योंकि उस ने उसे समय पर शराब के लिए पैसे नहीं दिए थे.

इस तरह छोटीछोटी बातों में अपने ही आसपास के लोगों की हत्या करते हुए समाज में अनेक तरह की वारदात होती रहती हैं, जो यह बताती है कि आज इनसानियत किस तरह कमतर हो गई हैं. लोगों में सब्र खत्म हो गया है और उतावलापन अपनी हद पर है.

बिलासपुर हाईकोर्ट के ऐडवोकेट देवघर महंत के मुताबिक, दरअसल, इस तरह की घटनाएं सिर्फ और सिर्फ पलभर के जोश में हो जाती हैं. जहां लोगों में सामाजिकता में कमी आ रही है, वहीं पढ़ाईलिखाई की कमी भी इस की एक बड़ी वजह है.

मां, बेटा और बेटी

दिल्ली में एक बेटे ने अपनी मां की हत्या कर दी और की लाश को छिपा दिया. जब बेटी आई और पूछने लगे कि दादी मां कहां हैं? तो पिता ने उसे सबकुछ बताते हुए धमकी दी कि अपना मुंह बंद रखो, नहीं तो तुम्हारा भी अंजाम वही होगा.

पुलिस के एक बड़े अफसर के मुताबिक, आरोपी की बेटी ने दादी के बारे में पूछा तो पिता पहले तो उसे गुमराह करता रहा और बाद में उस ने हत्या की बात बताई. इस के बाद किशोरी ने शोर मचाया तो चिल्लाने की आवाज सुन कर पड़ोसी आ गए और मामले की सूचना पुलिस को दी गई.

मौके पर पर पहुंची पुलिस ने लाश को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल की मोर्चरी में रखवा दिया था. मारी गई औरत की पहचान 65 साल की मुन्नी देवी के रूप में हुई थी. पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज कर आरोपी को गिरफ्तार कर लिया. आरोपी की पहचान 40 साल के सोनू के रूप में हुई.

उत्तरपूर्व जिला पुलिस उपायुक्त आशीष मिश्रा ने बताया कि मुन्नी देवी दयालपुर इलाके में परिवार के साथ रहती थी. उस के पति की मौत पहले हो चुकी है. परिवार में सिर्फ बेटा सोनू, उस की बेटी और बेटे ही हैं.

मुन्नी देवी की पहली बहू की मौत हो चुकी है और उस के बेटे ने दूसरी शादी की है. उस को पहली पत्नी से एक बेटी और दूसरी पत्नी से 3 बेटे हैं. फिलहाल सोनू बेरोजगार है और नशे का आदी है. कुछ दिन पहले हुए एक झगड़े के बाद उस की पत्नी अपने मायके चली गई थी. इधर सोनू अकसर अपनी मां से नशे के लिए पैसे मांगता था और पैसे न देने पर उस के साथ झगड़ा करता था.

शुक्रवार, 14 फरवरी, 2025 की शाम सोनू की बेटी ट्यूशन गई हुई थी. इसी दौरान अचानक सोनू घर आ गया और अपनी मां से शराब के लिए पैसे मांगने लगा.

पुलिस के आला अफसर के मुताबिक मुन्नी देवी की पोती ने जैसे ही दादी की लाश देखी तो वह डर कर कांपने लगी और रोने लगी. इस पर उस के पिता ने कहा कि अगर वह हत्या की बात किसी को बताएगी तो वह उसे भी मार देगा. इस के बाद किशोरी घर में जोरजोर से रोने लगी. उस की आवाज सुन कर पड़ोसी घर की तरफ दौड़े. देखते ही देखते वहां भीड़ जमा हो गई और मौके की नजाकत देखते हुए किसी ने पुलिस को खबर कर दी.

गहरी पैठ : Cyber Fraud से सावधान!

Cyber Fraud : दिल्ली के एक अखबार में एक ही दिन एक पेज पर 6 खबरें छपीं जिन में औनलाइन फ्राडों का जिक्र था. 2 मामले डिजिटल अरैस्ट के थे. एक मामले में तो शिकार खुद पढ़ीलिखी डाक्टर थी जिसे घंटों तक शातिरों ने ‘डिजिटल अरैस्ट’ कर रखा था. डिजिटल अरैस्ट में कुछ अरैस्ट नहीं होता. बस शिकार को कहा जाता है कि अपना ह्वाट्सएप वीडियो औन रखो और वहीं उस के सामने बैठे रहो. दूसरी तरफ एक पुलिस अफसर के वेश में बैठा शख्स होता है जो कहता है कि किसी औनलाइन ट्रांजैक्शन की वजह से कोई जुर्म हुआ है.

धमकी दी जाती है कि अगर डिजिटल अरैस्ट की शर्तें नहीं मानी गईं तो असल में पुलिस कई गाडि़यों में आ कर गिरफ्तार कर लेगी और पूरे समाज में बदनाम हो जाओगे. इस दौरान रिश्वत के नाम पर मामले को रफादफा करने के लिए 27 लाख रुपए ट्रांसफर भी करवा लिए गए. शर्तों में एक शर्त यह भी होती है कि कोई दूसरा उस कमरे में न हो. बारबार धमकी दी जाती है कि पुलिस वाले घर के आसपास ही हैं और कभी भी धावा बोल कर असली अरैस्ट कर सकते हैं.

दूसरे मामले में 48 घंटे तक डिजिटल अरैस्ट कर के रखा गया और 5 लाख वसूल कर लिए गए. तीसरे में एक ग्राफिक डिजाइनर को 4 घंटे तक डिजिटल अरैस्ट कर के 2 लाख ठगे.

एक और मामले में मुनाफा दिलाने का लालच दे कर एक लैफ्टिनैंट कमांडर से 25 लाख रुपए झटक लिए गए. एक मामले में पुलिस ने नोएडा में काल सैंटर चलाते शख्स को पकड़ा जो देशविदेश में कंप्यूटर इस्तेमाल करने वालों को सौफ्टवेयर अपग्रेड करने का झांसा दे कर कंप्यूटर का पूरा डाटा इकट्ठा कर लेता था और फिर उस में से जरूरत की चीजें खंगाल कर या तो अकाउंट साफ करता या ब्लैकमेल करता था.

ये सब क्या लोगों की गलती से अपराध हो रहे हैं? नहीं, इन के लिए सरकार और सिर्फ सरकार जिम्मेदार है. मोबाइल की पहुंच लोगों की बातचीत के लिए थी पर सरकार ने बैंकों, जीएसटी, इनकम टैक्स, रिटर्नों, म्यूनिसिपल टैक्सों के लिए मोबाइल को पहचानपत्र, आईडैंटिटी कार्ड बना दिया. अब यह मोबाइल तो लोगों के हाथों में है पर इस के अंदर क्या तकनीक है यह लोगों को क्या पता. जिन्हें पता है वे सरकारी घोड़ों पर चढ़ कर अब लूटमार कर रहे हैं.

सरकार हर चीज के लिए पहले औनलाइन एप्लाई करने को कहती है, फिर ओटीपी आता है, फिर उसे औनलाइन डालना पड़ता है तो सरकारी काम होता है. सरकार ने अपने दफ्तरों के दरवाजों पर ताला डाल दिया है, वहां सिर्फ कंप्यूटर वायर जा रहे हैं तो जनता को कंप्यूटरों और मोबाइलों पर भरोसा तो करना ही पड़ेगा न.

टैलीकौम कंपनियों, इंटरनैट कंपनियों, मोबाइल कंपनियों ने दुनियाभर के बैंकों, सरकारों, कंपनियों, इंश्योरैंस कंपनियों को फांस लिया कि हर काम मोबाइल पर कराओ ताकि उन के मोबाइल बिकें, डाटा बिके और साथ ही हर नागरिक को पूरी तरह गिरफ्त में रखा जा सके. शातिर इसी का फायदा उठा रहे हैं.

मोबाइल इस्तेमाल कराने की जबरदस्ती सरकार ने की है, सरकार के बैंकों ने की है. सारे अपराधों की जमीन उस ने ही तैयार की है. सरकार 4 अखबारों में इश्तिहार दे कर बच नहीं सकती कि उस ने तो जनता को बता दिया था.

जिस दिन एक पेज में 6 घटनाएं छपीं, उस दिन देश के अलगअलग हिस्सों में सैकड़ों मामले हुए होंगे. गरीब लोगों को भी लूटा गया होगा, अमीरों को भी. अभी जैसे एक नंबर पर एक काल आई +245311151.

यह पक्के तौर पर फ्राड काल थी और अगर फोन उठा लिया जाता तो कोई बुरी बात ही होती. यह नंबर गुआना, कांगो, अंगोला कहीं का भी हो सकता है. फोन कहीं और से भी किया जा सकता है.

आम आदमी जिसे सरकार ने धकेला है कि हर फोन को उठाओ क्योंकि यह बैंक से हो सकता, टैक्स वालों का हो सकता है, पुलिस वालों का हो सकता है, कौरपोरेशन का हो सकता है कैसे पता करे कि वह जाल में फंसेगा नहीं. जिम्मेदार वह सरकार है जो मोबाइल को जबरन थोप रही है.

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शादीशुदाओं के प्यार में पड़ने और किसी पराए के साथ सोने के किस्से कभी भी कम नहीं होते थे. हमारी स्मृतियों में, जिन में हिंदू कानूनों को लिखा गया, ऐसी बहुत सी सजाओं के बारे में लिखा गया है जो उन मर्दों और औरतों को दी जाती थीं जो शादी के बाहर के बंधन बनाते थे. सतयुग, त्रेता युग, द्वापर युग भी जब उन से भरा हो तो किस संस्कार, किस संस्कृति, किस पुराने काल के अच्छे होने की बात की जा सकती है.

अभी उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में अदालत ने एक औरत को अपने मर्द को गोली से मारने की सजा सुनाई क्योंकि मर्द उस के एक लड़के के सैक्स संबंध पर एतराज कर रहा था और झगड़ रहा था. मजेदार बात यह है कि औरत के प्रेमी, पिता और भाई को भी सजा दी गई क्योंकि हत्या में तीनों का भी हाथ था. मर्द को सिर में गोली मारी गई थी.

इस मामले में औरत के 6 साल के बच्चे ने सच उगल दिया वरना तो पुलिस के पास सुबूत भी नहीं थे.

अपने मर्द से नाराज हो कर दूसरे के साथ सोना कोई नई बात नहीं है और अमेरिका में ऐसे बहुत से मामले नेताओं और चर्चों के पुजारियों के भी खूब सामने आते हैं. वहां के चुने गए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को तो लंपट माना गया है फिर भी उन को वहां की जनता ने जीत का सेहरा बांध दिया.

असल में मर्द अभी भी यह नहीं भूले हैं कि औरतें तो उन के लिए खिलौना हैं. बस फर्क यह हुआ?है कि अब औरतें अपनी मरजी कुछ ज्यादा चलाने लगी हैं और कुछ कानून पिछले 60-70 सालों में बने हैं जिन में औरतों की बात को पहला सच माना जाता है. जहां पहले औरतें समाज के डर की वजह से मुंह छिपाती थीं और किसी की ज्यादती या अपना प्यार छिपाती थीं, अब वे खुल कर सामने आने को तैयार हैं.

आज की औरत अपनी मेहनत, अपनी अक्ल के साथसाथ अपने बदन की भी पूरीपूरी कीमत वसूलना सीख रही है. वह न पिता की गुलाम रह गई है, न पति की या किसी और मर्द की. प्रेमी भी धोखा दे तो उसे भी थानेकचहरी में घसीटने में वह हिचकती नहीं है.

आदमी अभी भी पुरानी सोच वाले हैं कि औरत पैर की जूती है, उसे जैसे मरजी फेंको. अब औरतें अपनी दमदार हैसियत रखने वाली हैं. मुंबई में एक ऐक्टर ने एक लड़की को फेसबुक पर उस का लिखा देख कर बुलाया और फिर उस से जोरजबरदस्ती करने लगा. लड़की ने तुरंत शिकायत कर दी और अब ऐक्टर बंधाबंधा बरसों घूमेगा. वह कचहरियों से बच जाए शायद पर जिसे जूती समझ रहा था वह उस के सिर पर पड़ने लगी है.

गांवदेहातों की लड़कियां तो शहरी लड़कियों से आगे हैं. वे दमखम में कम नहीं हैं और उन के साथ 4 जने आसानी से खड़े हो जाते हैं. यह बदलाव धर्म के बावजूद आया है. अगर औरतों ने धर्म का पल्लू छोड़ दिया होता तो वे कब की आजाद हो चुकी होतीं. धर्म उन्हें असल में गुलाम बने रहने की पट्टी रोजाना 4 बार पढ़ाता है. उस के बावजूद अगर यह सब हो रहा है तो खुशी की ही बात है.

Crime Story : अवैध संबंधों में हुई सीआरपीएफ जवान की हत्या

Crime Story : फर्रूखाबाद के कोतवाली इंसपेक्टर संजीव राठौर अपने औफिस में बैठे थे, तभी एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति ने  उन के औफिस में प्रवेश किया. दिखने में वह संभ्रांत लग रहा था, लेकिन उस के माथे पर परेशानी की लकीरें थीं. राठौर ने उस व्यक्ति को सामने पड़ी कुरसी पर बैठने का इशारा किया फिर पूछा, ‘‘आप कुछ परेशान दिख रहे हैं. आप अपनी परेशानी बताएं ताकि हम आप की मदद कर सकें.’’

‘‘सर, मेरा नाम रमेशचंद्र दिवाकर है. मैं एटा जिले के अलीगंज थाना अंतर्गत झकरई गांव का रहने वाला हूं. मेरा छोटा भाई दिनेश कुमार दिवाकर पत्नी व बच्चों के साथ आप के ही क्षेत्र के गांव झगुवा नगला में रहता है. दिनेश सीआरपीएफ की 75वीं बटालियन में है और श्रीनगर में तैनात है.

‘‘दिनेश 15 दिन की छुट्टी ले कर 6 जून को आया था, लेकिन वह घर नहीं पहुंचा. उस ने मुझे रात साढ़े 10 बजे मोबाइल पर फोन कर के जानकारी दी थी कि वह घर के नजदीक पहुंच गया है. लेकिन 8 जून को उस की पत्नी रमा ने मेरी मां को जानकारी दी कि दिनेश घर आया ही नहीं है. उस का फोन भी नहीं लग रहा है. श्रीनगर कंट्रोल रूम को भी रमा ने दिनेश का फोन बंद होने की जानकारी दी है. भाई के लापता होने से मैं परेशान हूं और इसी सिलसिले में आप के पास आया हूं. इस मामले में आप मेरी मदद कीजिए.’’

यह बात 10 जून की है. कोतवाल संजीव राठौर ने रमेशचंद्र दिवाकर की बात गौर से सुनी, फिर बोले, ‘‘झगुवा नगला गांव, पांचाल घाट पुलिस चौकी के अंतर्गत आता है. 8 जून को इस गांव के बाहर एक युवक की अधजली लाश बरामद हुई थी. अज्ञात में पंचनामा भर कर लाश को पोस्टमार्टम हाउस भेज दिया गया था. लाश की कुछ फोटो हैं, आप उन्हें देख लो.’’

श्री राठौर ने लाश के फोटो मंगवाए फिर रमेशचंद्र को देखने के लिए थमा दिए. रमेशचंद्र ने सभी फोटो गौर से देखे और फफक पड़े, ‘‘सर, ये फोटो मेरे भाई दिनेश की लाश के हैं.’’

इस के बाद रमेशचंद्र ने मोबाइल फोन से घर वालों को सूचना दी तो घर में हाहाकार मच गया.

थानाप्रभारी संजीव राठौर ने रमेशचंद्र को धैर्य बंधाया, फिर मृतक के संबंध में जानकारियां जुटाईं. इस के बाद उन्होंने पूछा, ‘‘रमेशजी, आप को किसी पर शक है?’’

‘‘हां, है.’’ रमेशचंद्र गंभीर हो कर बोले.

‘‘किस पर?’’ संजीव राठौर ने अचकचा कर पूछा.

‘‘भाई दिनेश की पत्नी रमा और उस के आशिक अनमोल उर्फ अमन पर. हत्या की जानकारी रमा के भाई राहुल को भी होगी, लेकिन वह बहन के गुनाह को छिपाना चाहता है.’’

रमेशचंद्र दिवाकर की बात सुन कर संजीव राठौर चौंके. उन्होंने इस घटना की सूचना एसएसपी संतोष कुमार मिश्रा को दे दी. उन्होंने मामले को गंभीरता से लेते हुए दिनेश की हत्या का परदाफाश करने के लिए एडिशनल एसपी त्रिभुवन सिंह के निर्देशन में एक स्पैशल टीम बना दी. टीम में तेजतर्रार सबइंसपेक्टर, कांस्टेबल तथा महिला सिपाहियों को शामिल किया गया.

रमा ने किया गुमराह

पुलिस टीम ने सब से पहले मृतक दिनेश के बड़े भाई रमेशचंद्र दिवाकर से पूछताछ की तथा उन का बयान दर्ज किया. पूछताछ में रमेशचंद्र ने बताया कि दिनेश 6 जून की रात घर आया था, लेकिन रमा यह कह कर गुमराह कर रही है कि वह घर नहीं आया. रमा के घर से 200 मीटर दूर अधजली लाश खेत में पाई गई थी, लेकिन वह लाश की शिनाख्त के लिए नहीं गई.

एक रोज बाद रमा ने अपने आप को बचाने के लिए सास को पति के लापता होने की जानकारी दी. सब से अहम बात यह कि जब वह झगुवा नगला स्थित रमा के घर गया तो उस ने अपने बच्चों से बात नहीं करने दी.

घर में ताला बंद कर वह भाई राहुल के साथ ससुराल यानी हमारे यहां आ गई. रमा मायके न जा कर ससुराल इसलिए आई ताकि ससुराल वाले उस पर शक न करें. गुमराह करने के लिए ही उस ने श्रीनगर कंट्रोल रूम को फोन किया था.

रमेशचंद्र ने जो अहम जानकारी दी थी, उस से पुलिस टीम ने एएसपी त्रिभुवन सिंह को अवगत कराया तथा हत्या का परदाफाश करने के लिए रमा तथा उस के सहयोगियों की गिरफ्तारी के लिए अनुमति मांगी. त्रिभुवन सिंह ने तत्काल पुलिस टीम को अनुमति दे दी.

अनुमति मिलने पर पुलिस टीम ने रमा की ससुराल झकरई (एटा) में छापा मारा. रमा घर पर ही थी. पुलिस को देख कर वह रोनेधोने का नाटक करने लगी. लेकिन पुलिस टीम ने उस की एक नहीं सुनी और उसे गिरफ्तार कर फर्रूखाबाद कोतवाली ले आई.

रमा का मायका फर्रूखाबाद के चीनीग्राम में था. पुलिस टीम ने वहां छापा मार कर रमा के भाई राहुल दिवाकर को भी गिरफ्तार कर लिया. रमा का प्रेमी अनमोल उर्फ अमन फर्रूखाबाद जिले के थाना मेरापुर के गांव गुठना का रहने वाला था. पुलिस टीम ने उस के घर छापा मारा तो वह घर से फरार था.

घर पर उस के पिता महेश दिवाकर मौजूद थे. उन्होंने बताया कि अनमोल 2 दिन से घर नहीं आया है. पुलिस टीम ने जब उन्हें बताया कि पुलिस को एक हत्या के मामले में अनमोल की तलाश है तो वह आश्चर्यचकित रह गए.

जब पुलिस टीम लौटने लगी तब अनमोल के पड़ोसियों ने बताया कि अनमोल का एक जिगरी दोस्त है रामगोपाल, जो परचून की दुकान चलाता है. अनमोल जब भी फुरसत में होता है, तब रामगोपाल की दुकान पर पहुंच जाता है. दोनों घंटों बतियाते और अपने दिल की बात एकदूसरे को बताते हैं. रामगोपाल को पता होगा कि अनमोल कहां है.

दोस्त से मिली खास जानकारी

यह जानकारी मिलते ही पुलिस टीम ने रामगोपाल को उस की परचून की दुकान से हिरासत में ले लिया और थाना कोतवाली ला कर जब उस से अनमोल के संबंध में पूछताछ की गई तो वह उस की जानकारी से मुकर गया.

इस पर पुलिस ने उस से सख्ती से पूछताछ की तब उस ने बताया कि अनमोल का एक दोस्त कमलकांत शर्मा है, जो उसी के गांव गुठना का रहने वाला है. कमलकांत उत्तर प्रदेश पुलिस में सिपाही है और इन दिनों कानपुर देहात जिले के महाराजपुर थाने में तैनात है. अनमोल संभवत: कमलकांत के ही संरक्षण में होगा.

रामगोपाल से अनमोल के संबंध में अहम जानकारी मिली तो पुलिस टीम ने महाराजपुर थाने से संपर्क कर के सिपाही कमलकांत शर्मा से मोबाइल पर बात की. कमलकांत ने पुलिस टीम के प्रभारी संजीव राठौर को बताया कि अनमोल उस के पास है और वह पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण करना चाहता है.

यह सुनते ही पुलिस टीम की बांछें खिल गईं. इस के बाद पुलिस टीम सिपाही कमलकांत के आवास पर पहुंची और अनमोल को फर्रूखाबाद कोतवाली ले आई. अनमोल को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस टीम ने उस के दोस्त रामगोपाल को थाने से रिहा कर दिया.

पुलिस टीम ने थाना कोतवाली पर अनमोल उर्फ अमन से दिनेश कुमार की हत्या के संबंध में पूछताछ शुरू की तो उस ने सहज ही हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि वह दिनेश की पत्नी रमा से प्यार करता है. दोनों के बीच नाजायज संबंध बन गए थे. दिनेश नाजायज संबंधों का विरोध करता था. इसलिए हम दोनों ने मिल कर उस की हत्या कर दी और शव को खेत में फेंक कर जला दिया.

अनमोल ने यह भी बताया कि उसे दिनेश की हत्या का कोई अफसोस नहीं है बल्कि खुशी है कि उस की जान बच गई. क्योंकि दिनेश उसे व उस की प्रेमिका को ही मारने आया था. इसी वजह से वह घर में बिना किसी को बताए छुट्टी ले कर घर आ गया था. पूछताछ के बाद अनमोल ने हत्या में प्रयुक्त रायफल भी बरामद करा दी, जो उस ने छिपा दी थी.

हो गया हत्या का परदाफाश

रमा का सामना जब अनमोल से हुआ तो उस ने गरदन झुका ली और पति की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. रमा ने बताया कि पति दिनेश को उस पर शक हो गया था इसीलिए उस ने प्रेमी के साथ मिल कर उसे मौत की नींद सुला दिया. हत्या में उस के भाई राहुल का हाथ नहीं है. लेकिन उसे हम दोनों द्वारा हत्या किए जाने की जानकारी हो गई थी.

पूछताछ के बाद रमा ने घर में खड़ी लाल रंग की वह स्कूटी बरामद करा दी, जिस पर रख कर उस के प्रेमी अनमोल ने लाश खेत में फेंकी थी. राहुल ने पूछताछ में साफ इनकार कर दिया कि उसे हत्या की जानकारी थी, लेकिन पुलिस ने उस की इस बात को खारिज कर दिया.

पुलिस टीम ने दिनेश कुमार की हत्या का परदाफाश करने तथा अभियुक्तों को पकड़ने की जानकारी एसएसपी संतोष कुमार मिश्रा तथा एएसपी त्रिभुवन सिंह को दी. इस के बाद उन्होंने पुलिस सभागार में प्रैसवार्ता की और अभियुक्तों को मीडिया के सामने पेश कर घटना का खुलासा कर दिया.

चूंकि अभियुक्तों ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था, इसलिए कोतवाली प्रभारी संजीव राठौर ने मृतक के बड़े भाई रमेशचंद्र दिवाकर को वादी बना कर भादंवि की धारा 302 के तहत रमा, अनमोल तथा राहुल के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज कर ली और तीनों को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस जांच में एक अध्यापिका की पापलीला की सनसनीखेज कहानी सामने आई.

उत्तर प्रदेश का फर्रूखाबाद शहर आलू और बीड़ी उत्पादन के लिए दूरदूर तक मशहूर है. यहां पर आलू खुदाई और बीड़ी बनाने वाले मजदूर ठेके पर काम करते हैं. आलू खुदाई का काम तो मात्र 3 महीने ही चलता है लेकिन बीड़ी बनाने का काम पूरे साल चलता है. यहां का बीड़ी उत्पादन का कारोबार कई राज्यों में फैला है.

बीड़ी व्यापार के लिए दूरदूर से व्यापारी आते हैं. इसे मजदूरों का शहर भी कहा जाता है. इस शहर का नाम फर्रूखाबाद कैसे पड़ा, इस की भी एक कहावत है. पहले फरख बात में बाद उस को कहते फर्रूखाबाद. यानी बात में फरख और विवाद. हर बात में झूठ फरेब का बोलबाला.

इसी फर्रूखाबाद जिले का एक गांव है चीनीग्राम. इसी गांव में देवकरन दिवाकर अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी मालती के अलावा बेटी रमा तथा बेटा राहुल था. देवकरन दिवाकर प्रतिष्ठित व्यक्ति थे. उन की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. घर में सभी भौतिक सुखसुविधाएं थीं.

उन की बेटी रमा खूबसूरत थी. जवानी की राह पर कदम रखते ही उस की सुंदरता में और निखार आ गया. उसे चाहने वाले अनेक थे. लेकिन वह किसी को भाव नहीं देती थी.

रमा बनना चाहती थी टीचर

रमा जितनी खूबसूरत थी, उतनी ही पढ़ नेलिखने में भी तेज थी. उस ने हाईस्कूल व इंटरमीडिएट की परीक्षाएं प्रथम श्रेणी में पास कर छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय, कानपुर से बीए और बीएड किया था.

उसी दरम्यान उत्तर प्रदेश सरकार ने प्राथमिक शिक्षकों की भरती का विज्ञापन जारी किया. रमा ने भी आवेदन किया लेकिन किसी कारणवश परीक्षा रद्द हो गई, जिस से रमा की शिक्षक बनने की तमन्ना अधूरी रह गई.

देवकरन को जवान बेटी के ब्याह की चिंता सताने लगी थी. इसलिए वह उस के लिए उपयुक्त लड़का तलाशने लगे. बेटी की इच्छानुसार वह किसी शिक्षक वर की तलाश में थे, लेकिन कोई शिक्षक वर मिल नहीं रहा था. उन्हीं दिनों एक रिश्तेदार के माध्यम से उन्हें दिनेश कुमार के बारे में पता चला.

दिनेश कुमार के पिता राजेश दिवाकर एटा जिले के झकरई गांव में रहते थे. उन के 2 बेटे रमेशचंद्र व दिनेश कुमार थे. राजेश एक संपन्न किसान थे. वह बड़े बेटे रमेशचंद्र का विवाह कर चुके थे जबकि छोटा दिनेश कुमार अभी कुंवारा था. दिनेश सीआरपीएफ की 75वीं बटालियन में श्रीनगर में तैनात था.

राजेश ने दिनेश को देखा तो उन्होंने उसे अपनी बेटी रमा के लिए पसंद कर लिया. दोनों तरफ से बातचीत हो जाने के बाद जनवरी, 2006 में सामाजिक रीतिरिवाज से दिनेश और रमा का विवाह धूमधाम से हो गया.

पढ़ीलिखी व सुंदर बहू पा कर दिनेश के घर वाले फूले नहीं समा रहे थे. ससुराल में रमा को सभी का भरपूर प्यार मिला. घर में उसे किसी चीज की कमी नहीं थी. इस तरह से रमा का सुखमय जीवन व्यतीत होने लगा.

शादी के बाद भी शिक्षक बनने की तमन्ना रमा के दिल में थी. इस बाबत उस ने पति दिनेश और सासससुर से बात की तो उन्हें भी कोई ऐतराज नहीं था.

जब शिक्षक की भरती निकली तो रमा ने भी आवेदन कर दिया. उस ने पति दिनेश से अनुरोध किया कि वह किसी भी तरह से उसे नौकरी दिलवाने की कोशिश करें. दिनेश ने पत्नी की बात मान कर जीजान से कोशिश की तो रमा का चयन हो गया. उसे फर्रूखाबाद के राजेपुरा थानांतर्गत चाचूपुर गांव के प्राथमिक विद्यालय में सहायक शिक्षिका के पद पर नौकरी मिल गई.

मायके से ही करने लगी ड्यूटी

नौकरी लग जाने के बाद रमा का ससुराल में रहना नामुमकिन सा हो गया. दरअसल, उस की ससुराल एटा जिले में थी और नौकरी फर्रूखाबाद जिले में लगी थी, जो उस के घर के नजदीक थी. इसलिए रमा मायके में रह कर अपनी ड्यूटी करती रही.

मायके से आनेजाने का साधन भी था और उस के रहने तथा खानेपीने की उचित व्यवस्था भी थी. सो उसे कोई परेशानी नहीं थी. इस के बावजूद दिनेश ने घूस दे कर रमा का तबादला एटा कराने का प्रयास किया, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली.

रमा का मायके में रहना न तो उस के पति दिनेश को पसंद था और न ही सासससुर को. लेकिन रमा की सरकारी नौकरी थी, इसलिए वे ज्यादा ऐतराज भी नहीं कर सकते थे. लेकिन कुछ दिनों बाद दिनेश ने मायके में रहने पर ऐतराज जताया तो रमा ने फर्रूखाबाद या उस के आसपास जमीन या प्लौट खरीद कर मकान बनाने की सलाह पति को दी.

रमा की सलाह मान कर दिनेश ने कोशिश शुरू की तो उस ने फर्रूखाबाद शहर से सटे झगुआ नगला गांव में एक प्लौट खरीद लिया और वहां 3 कमरे बनवा दिए. पूजापाठ कराने के बाद रमा इसी मकान में रहने लगी. स्कूल आनेजाने में पत्नी को परेशानी न हो, इस के लिए दिनेश ने एक स्कूटी यूपी78ए-0522 भी खरीद कर उसे दे दी.

रमा अब तक एक बेटी और एक बेटे की मां बन चुकी थी. बच्चों की देखरेख व घरेलू काम के लिए उस ने एक महिला को अपने यहां नौकरी पर रख लिया था. इस के अलावा रमा का भाई राहुल भी वहां आताजाता रहता था ताकि बहन के मन में असुरक्षा की भावना पैदा न हो. रमा की सास उर्मिला भी कभीकभी उस के पास आतीजाती रहती थी.

रमा को अपनी जवानी पर था गर्व

रमा 2 बच्चों की मां जरूर बन गई थी लेकिन उस का शारीरिक आकर्षण कम नहीं हुआ था. वह बनसंवर कर और महंगा काला चश्मा लगा कर स्कूटी पर घर से निकलती तो लोग उसे मुड़मुड़ कर देखते थे. रमा को स्वयं भी अपनी जवानी पर गर्व था.

लेकिन ऐसी जवानी का क्या, जिस का कोई कद्रदान न हो. दरअसल रमा का पति दिनेश सीआरपीएफ की 75वीं बटालियन में श्रीनगर में तैनात था. उसे तीसरे चौथे महीने बड़ी मुश्किल से महीना या 15 दिन की छुट्टी मिलती थी.

दिनेश जब साथ होता तो रमा की जिंदगी में बहार आ जाती थी. वह उस के साथ खूब मौजमस्ती करती. लेकिन उस के जाने के बाद उस के जीवन में नीरसता आ जाती. उस का दिन तो स्कूल में बच्चों के बीच कट जाता लेकिन रात करवटें बदलते बीतती थीं. कभीकभी वह सोचती कि उस ने सैनिक के साथ ब्याह कर के भारी भूल की है. उसे तो ऐसा मर्द चुनना चाहिए था, जो उस की तमन्नाओं को पूरा करता.

रमा के मन में पति के प्रति हीनभावना पैदा हुई तो उस का मन भटकने लगा. अब वह जिस्मानी सुख के लिए किसी युवक की तलाश में जुट गई.

रमा ने ढूंढ लिया प्रेमी

उन्हीं दिनों एक रोज रमा की मुलाकात अनमोल उर्फ अमन से हुई. अनमोल फर्रूखाबाद जिले के थाना मेरापुर के गांव गुठना का रहने वाला था. उस के पिता महेशचंद्र दिवाकर सेना में थे किंतु अब रिटायर हो चुके थे. उन के परिवार में पत्नी राजवती के अलावा बेटा अनमोल तथा एक बेटी थी.

महेशचंद्र भी संपन्न किसान थे. उन के पास 20 बीघा उपजाऊ जमीन थी. कृषि उपज के साथ उन्हें पेंशन भी अच्छीखासी मिलती थी. उन के दोनों बच्चे पढ़नेलिखने में तेज थे. बेटी बीए करने के बाद बीएड कर रही थी जबकि अनमोल का चयन बीटीसी में हो गया था. वह एटा से 2 वर्षीय बीटीसी की ट्रेनिंग कर रहा था.

रमा की बुआ प्रीति की शादी अनमोल के ताऊ सुरेशचंद्र दिवाकर के बेटे मुकेश के साथ हुई थी इसलिए अनमोल रमा का खास रिश्तेदार भी था.

अनमोल शरीर से हृष्टपुष्ट व सुदर्शन युवक था. वह रहता भी ठाटबाट से था. रमा उसे अच्छी तरह जानती थी. अत: उस रोज अनमोल रमा के घर अचानक पहुंचा तो उसे देख कर रमा आश्चर्यचकित रह गई. दोनों एकदूसरे को कुछ देर तक अपलक देखते रहे.

रमा की खूबसूरती ने अनमोल के दिल में हलचल मचा दी. कुछ पलों के बाद रमा के होंठ फड़के, ‘‘मेरी याद कैसे आ गई अमन. तुम ने तो मुझे भुला ही दिया.’’

‘‘ऐसी बात नहीं है. तुम्हारी याद तो मुझे हमेशा सताती रहती है. आज फर्रूखाबाद शहर में कुछ काम था. तुम्हारी याद आई तो अपने कदम रोक नहीं पाया और चला आया. तुम से मिल कर दिल को बड़ा सुकून मिला. अब मैं चलता हूं. मौका मिला तो फिर आऊंगा.’’

‘‘अरे वाह, ऐसे कैसे चले जाओगे. आज इतने दिनों बाद तो आए हो. कम से कम एक कप चाय तो पीते जाओ.’’ रमा ने मुसकराते हुए कहा.

अनमोल भी यही चाहता था. कुछ देर में ही रमा 2 कप चाय बना कर ले आई. चाय पीने के दौरान अनमोल की नजरें रमा की देह पर ही टिकी रहीं. इस दौरान जब दोनों की नजरें टकरातीं, अनमोल मुसकरा देता. उस की मुसकराहट से रमा के दिल में हलचल मच जाती. वह सोचती काश ऐसे पुरुष का साथ मिल जाए तो उस के जीवन में बहार आ जाए.

अनमोल रमा से मिल कर अपने घर लौटा तो रमा का खूबसूरत चेहरा उस के दिलो दिमाग में ही घूमता रहा. दूसरी ओर रमा का भी यही हाल था. वह अनमोल की आंखों की भाषा पढ़ चुकी थी. अनमोल जानता था कि रमा का पति फौज में है. वह महीना-15 दिन की  छुट्टी पर आता है और फिर चला जाता है. इसलिए रमा देह सुख की अभिलाषी है. अगर उस की तरफ कदम बढ़ाया जाए तो सफलता मिल सकती है.

अनमोल अब अकसर रमा के घर आने लगा. वह उस के बच्चों के लिए कुछ न कुछ जरूर लाता. रमा के बच्चे भी उस से हिलमिल गए और उसे अंकल कह कर बुलाने लगे. रमा और अनमोल दोनों के दिल एकदूसरे के लिए धड़क रहे थे. लेकिन अपनी बात जुबान पर लाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे.

एक दिन अनमोल सुबह 10 बजे रमा के घर पहुंच गया. रमा उस समय घर पर अकेली ही थी. उस के बच्चे स्कूल गए थे और वह बनसंवर कर बाजार जाने की तैयारी कर रही थी. अनमोल को देख कर वह मुसकरा कर बोली, ‘‘अरे अमन तुम, इस वक्त. बच्चे तो स्कूल गए हैं.’’

अनमोल रमा के चेहरे पर नजरें गड़ा कर बोला, ‘‘रमा, आज मैं बच्चों से नहीं तुम से मिलने आया हूं.’’

‘‘अच्छा,’’ रमा खिलखिला कर हंसी, ‘‘इरादा तो नेक है.’’

‘‘नेक है तभी तो अकेले में मिलने चला आया. रमा, मैं तुम से बहुत प्यार करने लगा हूं.’’ अनमोल ने सीधे ही मन की बात कह दी.

‘‘अनमोल, तुम ने यह बात कह तो दी लेकिन जानते हो प्यार की राह में कितने कांटे हैं,’’ रमा ने गंभीरता से कहा, ‘‘मैं शादीशुदा और 2 बच्चों की मां हूं.’’

‘‘जानता हूं, फिर भी जब तुम चाहोगी, मैं सारी बाधाओं को तोड़ दूंगा.’’ अनमोल ने रमा के करीब जा कर कहा.

इस के बाद अनमोल के गले में बांहें डाल कर रमा ने कहा, ‘‘अमन, मैं भी तुम्हें बहुत चाहती हूं. लेकिन शर्म की वजह से दिल की बात नहीं कह पा रही थी.’’

अनमोल ने रमा को पकड़ कर सीने से लगा लिया. फिर तो मर्यादा भंग होते देर नहीं लगी. जिस्मानी रिश्ते की नींव पड़ गई तो वासना का महल खड़ा होने लगा. अनमोल को जब भी मौका मिलता, वह रमा के घर आ जाता और इच्छा पूरी कर के चला जाता.

धीरेधीरे समय बीतता गया तो अमन ने भी अपना दायरा बढ़ा दिया. अब वह कई कई दिनों तक रमा के घर रुक कर मौजमस्ती करता. रमा रात को अपने बच्चों को डांटडपट कर दूसरे कमरे में सुला देती और खुद प्रेमी अनमोल के साथ रात भर जिस्मानी सुख क ा आनंद उठाती.

कहावत है कि औरत जब फिसलती है तो वह सारी मर्यादाओं को ताख पर रख देती है. रमा फिसली तो उस ने भी सारी मर्यादाओं पर पलीता लगा दिया. अनमोल के इश्क में अंधी रमा यह भूल गई कि वह 2 बच्चों की मां है. उस के परिवार की मानमर्यादा है और उस का पति देश की सुरक्षा में अपनी जान हथेली पर रखे हुए है.

बच्चों ने बता दी रमा की करतूत

अनमोल के आने का सिलसिला बढ़ता गया तो पासपड़ोस के लोगों की नजरों में दोनों खटकने लगे. कुछ महीने बाद दिनेश छुट्टी पर आया तो लोगों ने रमा और अनमोल के बारे में उसे बताया.

पड़ोसियों की बात सुन कर दिनेश का माथा ठनका. उस ने अपनी बेटी व बेटे से पूछा तो दोनों ने बताया कि अमन अंकल घर आते हैं और रात को घर में रुकते हैं. मासूमों ने यह बात भी बताई कि मम्मी उन दोनों को अपने कमरे में नहीं लिटातीं. वह उन्हें डांट कर दूसरे कमरे में बंद कर देती हैं. खुद अमन अंकल के साथ सोती हैं.

दिनेश पत्नी रमा पर बहुत अधिक भरोसा करता था. लेकिन आज उस का भरोसा टूट गया था. उस ने गुस्से में पूछा, ‘‘रमा, हमारी गैरमौजूदगी में अनमोल यहां क्यों आता है? वह रात में क्यों रुकता है? तुम दोनों के बीच क्या खिचड़ी पकती है. वैसे मुझे उड़ती खबर मिली है कि तुम्हारे और अनमोल के बीच नाजायज संबंध हैं.’’

रमा न डरी न लजाई. बेबाक आवाज में बोली, ‘‘जिन के पति परदेश में होते हैं, उन की पत्नियों पर ऐसे ही इलजाम लगाए जाते हैं. इस में नया कुछ नहीं है. पड़ोसियों ने कान भरे और तुम ने सच मान लिया. तुम्हें अपनी पत्नी पर भरोसा करना चाहिए.’’

लेकिन दिनेश ने रमा की एक न सुनी. उस ने उसे जम कर पीटा और सख्त हिदायत दी कि अनमोल घर आया तो उस की खैर नहीं. उस ने अनमोल को भी उस के गांव जा कर फटकारा और उस के मांबाप से उस की शिकायत की.

दिनेश जितने दिन घर में रहा, अनमोल को ले कर उस का झगड़ा पत्नी से होता रहा. बात बढ़ जाती तो दिनेश रमा की पिटाई भी कर देता. छुट्टी खत्म होने के बाद दिनेश अपनी ड्यूटी पर चला गया.

दिनेश के जाते ही रमा और अनमोल का मिलन फिर से शुरू हो गया. हां, इतना जरूर हुआ कि अनमोल अब दिन के बजाए रात को आने लगा था. प्रेमिका की पिटाई से अनमोल आहत था. उस का मन करता कि वह दिनेश को सबक सिखा दे.

रमा जान चुकी थी कि उस के बच्चे उस की शिकायत दिनेश से कर देंगे, इसलिए वह अब बच्चों से भी सतर्क रहने लगी थी. बच्चों के सो जाने के बाद ही वह अनमोल को फोन कर घर बुलाती थी. अनमोल शराब पीता था. उस ने रमा को भी शराब का चस्का लगा दिया था. बिस्तर पर जाने से पहले दोनों जाम टकराते थे.

मई के महीने में दिनेश छुट्टी ले कर घर आया तो पता चला कि अनमोल मना करने के बावजूद उस के घर आता है. रमा उसे मना करने के बजाए उस के साथ शराब पीती है. यह सब जान कर दिनेश का खून खौल उठा.

उस ने जम कर रमा की पिटाई की और धमकी दी कि जिस दिन वह दोनों को साथ देख लेगा, उसी दिन उन के सीने में गोली उतार देगा. उस ने रमा के नाजायज रिश्तों की जानकारी अपने भाई रमेशचंद्र को भी दे दी. कुछ दिन घर रुक कर वह फिर वापस श्रीनगर चला गया.

लेकिन इस बार दिनेश का मन ड्यूटी पर नहीं लगा. उस ने किसी तरह अपने अधिकारी से आने के 20 दिन बाद ही 15 दिन की छुट्टी मंजूर करा ली. इस बार दिनेश ने छुट्टी मंजूर होने तथा घर आने की सूचना किसी को नहीं दी. हर बार वह छुट्टी मिलने की सूचना फोन से पत्नी को दे देता था. इस की वजह यह थी कि वह अचानक घर पहुंच कर देखना चाहता था कि पत्नी पीठ पीछे क्या करती है.

इधर दिनेश के जाते ही रमा और अनमोल फिर से मौजमस्ती में डूबने लगे. उन दोनों को विश्वास था कि अब 4 महीने बाद ही दिनेश छुट्टी ले कर घर आएगा.

लेकिन दिनेश 6 जून, 2019 की रात 11 बजे ही अपने घर झगुआ नगला आ गया. दरअसल वह दोनों को रंगेहाथ पकड़ने तथा उन का काम तमाम करने ही आया था. उस रात रमा का प्रेमी अनमोल घर पर ही था और रमा के साथ बिस्तर पर था.

दिनेश ने दरवाजा पीटा तो रमा घबरा गई. दोनों ने जल्दीजल्दी अपने कपड़े दुरुस्त किए और रमा ने अनमोल को दूसरे कमरे की टांड पर छिपा दिया. फिर उस ने जा कर दरवाजा खोला तो सामने उस का पति दिनेश खड़ा था. उस की आंखों में क्रोध की ज्वाला भड़क रही थी.

दिनेश ने देर से दरवाजा खोलने की बाबत रमा से पूछा तो रमा ने गहरी नींद में होने का बहाना बनाया. इस पर दिनेश को शक हुआ तो उस ने रमा का हाथ मरोड़ दिया और पिटाई कर दी.

दिनेश को शक था कि अनमोल घर के अंदर ही कहीं है. अपने शक की पुष्टि के लिए उस ने सभी कमरों की तलाशी ली, लेकिन उसे अनमोल कहीं दिखाई नहीं दिया. अनमोल के न मिलने से दिनेश का गुस्सा कुछ कम हो गया. उस ने कहा कि तुम दोनों को आज मैं एक साथ पकड़ लेता तो दोनों ही जिंदा न रहते.

इस के बाद रमा ने अपने लटके झटके दिखा कर दिनेश का बाकी बचा गुस्सा शांत किया. फिर रमा ने पति को बिस्तर पर संतुष्ट किया.

देह सुख प्राप्त करने के बाद दिनेश गहरी नींद में सो गया. पति के सो जाने के बाद रमा ने अनमोल को टांड से नीचे उतारा. दोनों ने आंखों ही आंखों में इशारा किया फिर दोनों गहरी नींद में सो रहे दिनेश के पास पहुंचे.

दिनेश की रायफल कमरे में ही रखी थी. अनमोल ने लपक कर रायफल उठाई और दिनेश के सीने में 2 गोलियां दाग दीं. दिनेश खून से लथपथ हो कर तड़पने लगा. इसी समय उस की छाती पर सवार हो कर रमा ने तार से उस का गला घोंट दिया.

हत्या करने के बाद दिनेश के शव को उन दोनों ने कमरे में छिपा दिया और बाहर से ताला बंद कर दिया. सवेरा होने से पहले उन्होंने कमरे से खून आदि साफ कर दिया था.

7 जून को दिनेश का शव कमरे में ही बंद रहा. बच्चों ने कमरा खोलने की जिद की तो रमा ने उन्हें बुरी तरह पीट दिया. फिर रात होने पर अनमोल ने दिनेश के शव को बोरी में भरा और स्कूटी पर रख कर गांव के बाहर खेत में फेंक दिया. लाश पहचानी न जाए, इस के लिए उस ने पैट्रोल डाल कर शव को जला दिया.

खून सनी चादर भी उस ने जला दी तथा दिनेश का बैग जिस में उस के कपडे़ वगैरह थे, बस स्टौप जा कर दिल्ली जाने वाली रोडवेज की एक बस में रख दिया तथा मोबाइल तोड़ कर फेंक दिया. ये सब करने के बाद अनमोल फरार हो गया.

8 जून को झगुआ नगला गांव के लोगों ने खेत में जली लाश देखी तो सूचना फर्रूखाबाद कोतवाली पुलिस को दी. शव की पहचान न होने से पुलिस ने शव अज्ञात में पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. इधर 8 जून को ही रमा ने सास उर्मिला को फोन कर जानकारी दी कि दिनेश छुट्टी ले कर घर आया, लेकिन घर नहीं पहुंचा.

तब 10 जून को रमेशचंद्र भाई का पता लगाने फर्रूखाबाद आया और कोतवाली में अज्ञात शव की फोटो देख कर दिनेश की पहचान की. इस के बाद शक के आधार पर उन्होंने रमा, उस के भाई राहुल तथा प्रेमी अनमोल के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी. कोतवाली पुलिस ने तीनों को पकड़ कर पूछताछ की तो हत्या का परदाफाश हुआ.

13 जून, 2019 को फर्रूखाबाद कोतवाली पुलिस ने अभियुक्त अनमोल, राहुल और रमा को फर्रूखाबाद की कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जिला कारागार भेज दिया गया. कथा संकलन तक उन की जमानत स्वीकृत नहीं हुई थी. रमा की बेटी तथा बेटा अपने दादादादी के पास सुरक्षित थे.

अनमोल ने दिनेश को रायफल से 2 गोलियां मारी थीं. रात के सन्नाटे में गोलियों की आवाज पड़ोसियों ने जरूर सुनी होगी, लेकिन पुलिस इस बात का पता नहीं लगा पाई कि पड़ोसियों ने गोली की आवाज सुनने वाली बात जानबूझ कर छिपाए रखी या इस की कोई दूसरी वजह थी.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Hindi Crime Story : 17 महीने से छिपा रखी लाश का ऐसे हुआ पर्दाफाश

Hindi Crime Story : नाले के पास बिना सिर वाला एक धड़ पड़ा हुआ है, जिस के बदन पर नीले कलर की टीशर्ट पर लाल सफेद लाइनिंग साफ नजर आ रही थी. मरने वाले के हाथ में लोहे का कड़ा और पीले लाल कलर का धागा बंधा हुआ था. उस के शरीर के निचले हिस्से में लाल रंग की अंडरवियर और बनियान थी. सिर के बाल  तथा दाढ़ी व मूंछ में मेहंदी कलर लगा हुआ था. जिस जगह यह सिर कटा धड़ पड़ा हुआ था, उस के कुछ ही दूरी पर एक प्लास्टिक की बोरी भी पड़ी हुई थी.

पुलिस टीम ने जब उस बोरी को खोला तो उस में मृतक का सिर मिला. पहली नजर में हत्या का मामला दिख रहा था. लिहाजा उन्होंने सीन औफ क्राइम मोबाइल यूनिट के प्रभारी डा. आर.पी. शुक्ला को मौके पर बुला लिया.

फोरैंसिक एक्सपर्ट डा. आर.पी. शुक्ला ने मौका मुआयना कर शव को देख कर बताया कि मरने वाले की उम्र 35 साल से अधिक लग रही है. लाश को देखने से प्रतीत हो रहा है कि लाश महीनों पुरानी है और उस की गरदन काट कर हत्या की गई होगी.

एफएसएल टीम ने मौकामुआयना कर वैज्ञानिक साक्ष्य एकत्र कर धड़ को संजय गांधी मैडिकल कालेज की फोरैंसिक शाखा भेज दिया. यह बात 26 अक्तूबर, 2022 की है.

सोशल मीडिया पर यह खबर जंगल की आग की तरह फैलते ही कुछ ही घंटों में पुलिस को पता चल गया कि बिना सिर वाली लाश पास के गांव ऊमरी में रहने वाले 42 साल के रामसुशील पाल की है.

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           एसपी नवनीत भसीन

रीवा जिले के एसपी नवनीत भसीन ने मऊगंज थाने की टीआई श्वेता मौर्य, एसआई लालबहुर सिंह, एएसआई आदि के नेतृत्व में एक टीम का गठन कर जल्द ही रामसुशील की हत्या का खुलासा करने का निर्देश दिया.

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         टीआई श्वेता मौर्य

पुलिस टीम जांच करने जब ऊमरी गांव पहुंची तो पूछताछ में पता चला कि रामसुशील ऊमरी गांव में रहने वाले साधारण किसान मोहन पाल का सब से बड़ा बेटा था. वह पेशे से ड्राइवर था. अपने पेशे की वजह से वह कईकई महीने तक घर से बाहर रहता था.

रामसुशील की पहली पत्नी की मौत के बाद करीब 4 साल पहले उस ने मिर्जापुर निवासी रंजना पाल से विवाह किया था. शादी के शुरुआती समय तो सब ठीकठाक चलता रहा, मगर कुछ समय बाद ही दोनों के बीच मनमुटाव हो गया था.

पुलिस टीम ने जब घर के आसपास रहने वाले लोगों से पूछताछ की तो पता चला कि रामसुशील तो पिछले डेढ़ साल से गांव में किसी को दिखा ही नहीं. जब गांव के लोग पूछताछ करते तो पत्नी रंजना बताती कि उस का पति काम के सिलसिले में उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर गया है.

पुलिस को रामसुशील के घर जा कर यह भी मालूम हुआ कि रंजना भी कुछ दिनों पहले अपने बच्चों को ले कर मायके मिर्जापुर गई हुई है. इस वजह से पुलिस के शक की सूई रंजना की तरफ ही घूम रही थी. लिहाजा पुलिस की एक टीम रंजना की तलाश के लिए मिर्जापुर भेजी गई.

पुलिस ने सख्ती दिखाते हुए रंजना से पूछताछ की तो उस ने पति की मौत की पूरी कहानी बयां कर दी.

मध्य प्रदेश के रीवा जिले के मऊगंज जनपद पंचायत के छोटे से गांव ऊमरी श्रीपथ में रहने वाले किसान मोहन पाल के 3 बेटों में 42 साल का रामसुशील सब से बड़ा था. उस के बाद अंजनी पाल और सब से छोटा 30 साल का गुलाब था.

रामसुशील पेशे से ट्रक ड्राइवर था. उस की पहली शादी 22 साल की उम्र में हो गई थी. एक बेटे और बेटी के जन्म के बाद वह अपनी पत्नी के साथ बुरा व्यवहार करने लगा था. नशे की लत और उस की प्रताडऩा से तंग आ कर पत्नी ने आग लगा कर आत्महत्या कर थी.

उस समय उस के बच्चों की उम्र कम थी, इसलिए समाज के लोगों ने रामसुशील के मातापिता को बच्चों की परवरिश के लिए उस की दूसरी शादी करने की सलाह दी.

उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में रहने वाली रंजना पाल भी पति की मारपीट से तंग आ कर मायके में रह रही थी. उस के 2 बेटे थे. समाज के लोगों ने यही सोच कर दोनों की शादी करा दी कि दोनों के बच्चों की परवरिश होने लगेगी.

इस तरह ढह गई मर्यादा की दीवार

रामसुशील नशे का आदी होने की वजह से घरपरिवार की जिम्मेदारियों से बेखबर रहता था. लिहाजा दोनों के बीच तकरार बढऩे लगी.

रामसुशील का परिवार गांव में घर के 3 हिस्सों में अलगअलग रहता था. एक हिस्से में रामसुशील का परिवार, दूसरे हिस्से में उस का भाई अंजनी पाल अपनी पत्नी और बच्चों के साथ, जबकि सब से छोटा भाई गुलाब  मातापिता के साथ रहता था. उस समय गुलाब की शादी नहीं हुई थी.

रामसुशील काम के सिलसिले में अकसर 15-15 दिन घर से बाहर रहता था. इस का फायदा उठाते हुए रंजना का झुकाव अपने देवर गुलाब की तरफ हो गया. उस समय गुलाब 30 साल का गोराचिट्टा जवान व कुंवारा था.

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   आरोपी गुलाब पाल

गुलाब भाभी का लाडला देवर था, परंतु रामसुशील की बुरी आदतों की वजह से अपने भाइयों से नहीं पटती थी. रामसुशील पैतृक संपत्ति का ज्यादा भाग खुद उपयोग कर रहा था. इस वजह से उस के भाई भी उस से नफरत करते थे.

ऐसे में रंजना ने गुलाब पर डोरे डालने शुरू कर दिए. गुलाब उम्र की जिस दहलीज पर खड़ा था, वहां पर शादीशुदा नाजनखरों वाली भाभी रंजना के बिछाए प्रेम जाल में वह फंस ही गया. लिहाजा जल्द ही दोनों के बीच अवैध संबंध हो गए.

इस के बाद तो गुलाब और रंजना का इश्क परवान चढऩे लगा था. जब भी उन्हें मौका मिलता, वे अपनी हसरतों को पूरा कर लेते. लेकिन कहते हैं कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. यही हाल हुआ भौजाई रंजना और देवर गुलाब के इश्क का. आखिर पति रामसुशील को देवर भौजाई के चोरीछिपे चल रहे इश्क का पता चल ही गया.

एक दिन शराब के नशे में चूर रामसुशील जब घर पहुंचा तो रंजना पर बरस पड़ा, ”छिनाल, तूने आखिर अपनी औकात दिखा ही दी. गुलाब के साथ रंगरलियां मना रही है.’’

रामसुशील ने भद्दी गालियां देते हुए रंजना की पिटाई कर दी. अब तो आए दिन दोनों के बीच झगड़ा आम बात हो गई थी. जब रामसुशील गुस्से में रंजना की पिटाई करता तो प्रेमी गुलाब के सीने पर सांप लोट जाता.

छोटा भाई क्यों बना जान का दुश्मन

रोजरोज अपनी प्रेमिका की पिटाई से उसे दुख पहुंचता. एक दिन मौका पा कर गुलाब ने रंजना से साफसाफ कह दिया, ”भौजी, हम से तुम्हारा दर्द देखा नहीं जाता. आखिर कब तक जुल्म सहती रहोगी.’’

”कुछ समझ भी नहीं आता, आखिर ऐसे मर्द के साथ मैं निभाऊं कैसे.’’ रंजना बोली.

”मेरी तो इच्छा है कि ऐसे मर्द को तुम्हारी जिंदगी से हमेशा के लिए दूर कर दूं, फिर हमारे प्यार में कोई अड़चन ही नहीं होगी.’’ गुलाब रंजना से बोला.

”लेकिन यह काम इतना आसान नहीं है. यदि यह राज किसी को पता चल गया तो जेल में चक्की पीसेंगे हम दोनों.’’ रंजना ने आशंका व्यक्त करते हुए कहा.

”मेरे पास एक प्लान है, तुम अगर मानो तो किसी को कानोकान खबर नहीं होगी.’’ गुलाब चहकते हुए बोला.

”बताओ, ऐसा कौन सा प्लान है तुम्हारे पास?’’ रंजना बोली.

”भौजी, मैं बाजार से चूहे मारने वाली दवा ला कर दूंगा, तुम चुपचाप खाने में मिला कर रामसुशील भैया को खिला देना.’’ गुलाब बोला.

”फिर… घर के लोगों को क्या बताएंगे कि कैसे मर गए?’’ रंजना आगे की मुश्किल देखते हुए बोली.

”तुम इस की चिंता मत करो. रातोंरात मैं लाश को ठिकाने लगा दूंगा और लोगों से कह देंगे कि भैया काम के सिलसिले में बाहर गए हुए हैं.’’ गुलाब रंजना को आश्वस्त करते हुए बोला.

गुलाब और रंजना का प्यार अब घर वालों को भी पता चल चुका था. गुलाब के रंजना से संबंधों की भनक पिता मोहन पाल को लगी तो उन्होंने माथा पीट लिया. समाज में ऊंचनीच न होने के भय से उन्होंने यह सोच कर गुलाब की शादी कर दी कि शादी होते ही वह अपनी भाभी से दूर रहने लगेगा.

मगर शादी होने के बाद भी गुलाब की रंजना से नजदीकियां कम नहीं हुईं. गुलाब की पत्नी भी गुलाब की इन हरकतों से परेशान थी. गुलाब अपनी नवविवाहिता पत्नी पर फिदा होने के बजाय रंजना भाभी की जवानी के गुलशन का भंवरा बना हुआ था. गुलाब की नईनवेली पत्नी जब गुलाब को रंजना से दूर रहने को कहती तो वह उलटा उस के साथ ही मारपीट करने लगता.

रामसुशील जब भी घर आता तो वह देखता कि गुलाब रंजना के इर्दगिर्द घूमता रहता है. इस बात को ले कर वह गुलाब को भलाबुरा भी कह चुका था. गुलाब अपने भाई से जब जमीन के बंटवारे की बात कहता तो रामसुशील उसे डराधमका कर चुप करा देता.

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         आरोपी अंजनी पाल

जमीनजायदाद के बंटवारे को ले कर जब भी उन का आपसी विवाद होता तो उस के चाचा रामपति और उस के लड़के सूरज और गुड्डू भी गुलाब और अंजनी का पक्ष लेते. इस से रामसुशील अपने चाचा और उन के बेटों के साथ गालीगलौज करता.

समोसे की चटनी में मिलाया जहर

रामसुशील से तंग आ कर 2021 के मई महीने में रंजना और गुलाब ने रामसुशील को रास्ते से हटाने का प्लान बनाया और एक रात रंजना ने घर पर स्वादिष्ट समोसे बनाए.

समोसे खाने का रामसुशील शौकीन था, उसे टमाटर की चटनी के साथ समोसे खाना बहुत अच्छा लगता था. रंजना ने समोसे के साथ परोसी गई चटनी में चूहे मारने की दवा मिला दी थी.

रामसुशील चटखारे मार कर समोसे खा गया, मगर उसे इस बात का पता नहीं था कि उस की पत्नी ने जो प्यार जता कर समोसे परोसे हैं, उस में उस की मौत छिपी हुई थी.

पेट भर समोसे खा लेने के बाद रामसुशील सोने चला  गया. बच्चों के सोने के बाद जब रंजना रात के करीब 12 बजे पति के बिस्तर पर पहुंची तो उस ने हिलाडुला कर पति की नब्ज टटोली.

कोई हलचल न पा कर रंजना ने गुलाब को फोन कर खबर कर दी. गुलाब भी इसी पल का इंतजार कर रहा था. उस ने जमीन के बंटवारे में हिस्सा दिलाने का लालच दे कर अपने भाई अंजनी पाल को भी साथ ले लिया.

जैसे ही गुलाब और अंजनी भाभी के बुलावे पर रामसुशील के पास कमरे में पहुंचे तो रामसुशील को बेहोश देख कर बहुत खुश हुए. उन्हें लगा कि भाई जिंदा न बचे, इसलिए अपने साथ लाए धारदार हथियार से गुलाब ने रामसुशील का गला काट कर भाई अंजनी की मदद से धड़ और सिर प्लास्टिक की बोरी में भर दिया.

दूसरे दिन सुबह जल्दी उठ कर अंधेरे में ही गुलाब लाश वाली बोरी को साइकिल पर लाद कर अपने चाचा रामपति पाल के खेत पर पहुंच गया. वहां चाचा के लड़के सूरज और गुड्डू की मदद से भूसा रखने वाले कमरे में उस ने लाश की बोरी दबा दी.

इस काम में चाचा के बेटों गुड्डू पाल और सूरज पाल ने इसलिए मदद की क्योंकि एक बार जमीनी विवाद में इन का झगड़ा रामसुशील से हो गया था, तब रामसुशील ने पूरे गांव के सामने उन का अपमान किया था. अपने अपमान का बदला लेने के लिए वे गुलाब के इस प्लान में शामिल हो गए.

सुबह जब बच्चे सो कर उठे तो उन्हें रंजना ने बताया कि उस के पापा काम के सिलसिले में बाहर गए हैं. रामसुशील को रास्ते से हटाने के बाद गुलाब और रंजना के प्रेम की राह आसान हो गई थी. अब वे अपनी मरजी के मुताबिक जिंदगी जी रहे थे. गुलाब अपनी बीवी की उपेक्षा कर भाभी रंजना पर अपनी कमाई लुटा रहा था. रंजना भी गुलाब की दीवानगी का खूब फायदा उठा रही थी.

17 महीने बाद कैसे खुला राज

लाश को छिपाए करीब 17 महीने बीतने को थे, परंतु हर समय गुलाब के मन में पकड़े जाने का भय बना रहता था. गुलाब के चाचा रामपति को जब इस बात का पता चला तो वह गुलाब पर लाश को वहां से हटाने का दबाव बनाने लगे थे.

उन्होंने साफतौर पर कह दिया था, ”भूसा भरने वाले कमरे से वह जल्द ही लाश को हटा दे, नहीं तो वह पुलिस को सब कुछ बता देंगे.’’

पशुओं के लिए रखा भूसा भी खत्म होने को था. 25 अक्तूबर, 2022 की रात को गुलाब ने लाश वाली बोरी ला कर पास के गांव निबिहा के नाले के पास फेंक दी और घर जा कर चैन की नींद सो गया.

अगली सुबह रामसुशील की लाश मिलते ही गुलाब राज खुलने के डर से भयभीत हो गया और उस ने फोन लगा कर रंजना को बताते हुए सचेत कर दिया था.

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                                                    हिरासत में आरोपी

सूचना मिलने पर मऊगंज थाने की टीआई श्वेता मौर्य पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंची और सिर व धड़ बरामद कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिए. पुलिस जांच में रंजना से पूछताछ की गई तो थोड़ी सख्ती से रंजना जल्दी ही टूट गई और पुलिस को उस ने सच्चाई बता दी.

देवरभाभी के प्रेम और वासना की आग में अंधे हो कर रामसुशील को ठिकाने लगा कर यही समझ बैठे थे कि वे पुलिस की आंखों में धूल झोंक कर कानून की नजरों से बच जाएंगे, परंतु उन का यह भ्रम जल्दी ही टूट गया.

17 महीने तक भूसे के ढेर में दबी लाश जब बाहर निकली तो रामसुशील की हत्या का पूरा सच सामने आ गया.

पुलिस ने गुलाब, रंजना के साथ उस के भाई अंजनी व चाचा रामपति को भादंवि की धारा 302 और 201 के तहत मामला कायम कोर्ट में पेश किया, जहां से रंजना को महिला जेल रीवा और गुलाब, अंजनी और रामपति को उपजेल मऊगंज भेज दिया.

कथा लिखे जाने तक 2 आरोपी जेल में बंद थे और उन के खिलाफ आरोपपत्र कोर्ट में पेश किया जा चुका था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Hindi Crime Story : बेरहमी से की दोस्त की हत्या, कट्टे में भरकर जंगल में फेंकी लाश

Hindi Crime Story : अपनी आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए शशिबाला ने पति इंद्रपाल के पैसे वाले दोस्त टिंकू की तरफ प्यार के कदम बढ़ा तो दिए लेकिन एक दिन हालात ऐसे हो गए कि दोनों ने इंद्रपाल को ही ठिकाने लगा दिया.  शशिबाला अपनी छोटी बहन सुषमा के साथ 20 मार्च, 2014 को दोपहर के समय उत्तरपूर्वी दिल्ली के थाना न्यू उस्मानपुर पहुंची. थानाप्रभारी महावीर सिंह से मुलाकात कर उस ने बताया कि उस का पति इंद्रपाल 18 मार्च से गायब है. हम ने सभी जगह देख लिया, लेकिन उन का कहीं भी पता नहीं चला.

‘‘वह कहां से लापता हुए हैं. ’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘मैं उन्हें घर पर ही छोड़ कर गई थी. हम यहीं गौतम विहार की गली नंबर 5 में रहते हैं.’’ शशिबाला बोली.

‘‘जब उन्हें घर पर ही छोड़ कर गई थीं तो वह गायब कैसे हो गए?’’

‘‘साहब, न्यू उस्मानपुर के जयप्रकाशनगर में मेरी यह छोटी बहन सुषमा रहती है. होली के अगले दिन मैं बच्चों को ले कर इस के यहां होली मिलने चली गई थी. उस समय वह घर पर बैठे शराब पी रहे थे. जब मैं वापस आई तो वह नहीं मिले. कमरे पर ताला लगा था. मैं ने उन का फोन मिलाया, जो स्विच औफ मिला. तब मैं ने सोचा कि अपने यारदोस्तों के साथ कहीं खापी रहे होंगे. क्योंकि ऐसा वह अकसर करते रहते थे. लेकिन अब तक उन का कहीं पता नहीं चला तो मैं थाने आई हूं.’’ शशिबाला ने बताया.

शशिबाला से बातचीत करने के बाद थानाप्रभारी ने उस के पति इंद्रपाल की गुमशुदगी थाने में दर्ज करा कर जांच हेडकांस्टेबल श्रीपाल को सौंप दी. हेडकांस्टेबल श्रीपाल ने सब से पहले दिल्ली के समस्त थानों में इंद्रपाल के हुलिया के साथ उस की गुमशुदगी की सूचना वायरलेस से प्रसारित करा दी. गौतम विहार का इलाका हेडकांस्टेबल श्रीपाल की बीट में ही आता था, इसलिए उन्होंने इलाके के लोगों से उस के बारे में छानबीन शुरू की. इस में उन्हें पता चला कि वह यारदोस्तों के साथ शराब पीने का शौकीन था.

हेडकांस्टेबल श्रीपाल को यह भी जानकारी मिली कि इंद्रपाल ने 2 कमरे किराए पर ले रखे थे, जिन में से एक कमरा उस ने टिंकू नाम के युवक को दे रखा था. इंद्रपाल उस के साथ भी खातापीता था. इंद्रपाल के गायब होने के बाद टिंकू भी लापता था. उस के कमरे पर भी ताला लटका मिला. हेडकांस्टेबल श्रीपाल ने जो जांच की थी वह सब थानाप्रभारी को बता दी. एक की जगह 2 लोग गायब थे, इसलिए थानाप्रभारी को यह मामला संदिग्ध लगा. उन्होंने यह जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को दे दी. डीसीपी के निर्देश पर एसीपी अमित शर्मा को नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई गई, जिस में थानाप्रभारी महावीर सिंह, इंसपेक्टर जितेंद्र सिंह, एसआई पंकज तोमर, हेडकांस्टेबल श्रीपाल, प्रदीप शर्मा, कांस्टेबल अनिल कुमार, सोनू राठी, सचिन खोखर आदि को शामिल किया गया.

पुलिस टीम सब से पहले गौतम विहार में उस कमरे पर गई, जहां इंद्रपाल और टिंकू रहते थे. पड़ोसियों ने बताया कि वे दोनों मंगलवार यानी 18 मार्च से दिखाई नहीं दिए हैं. इंसपेक्टर जितेंद्र सिंह ने इंद्रपाल की पत्नी शशिबाला से टिंकू के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि टिंकू उसे कई दिनों से नहीं दिखा है. शशिबाला से टिंकू का मोबाइल नंबर ले कर जितेंद्र सिंह ने उसे अपने फोन से मिलाया तो उस का फोन नंबर स्विच औफ मिला. दोनों के ही फोन स्विच औफ मिलने की बात पुलिस के गले नहीं उतर रही थी. इंद्रपाल के लापता होने की जानकारी मिलने पर उस के चाचा दिनेश कुमार और चेचरा भाई संजय कुमार भी थाना न्यू उस्मानपुर पहुंच चुके थे. उन्होंने भी पुलिस पर इंद्रपाल का जल्द से जल्द पता लगाने का दबाव बनाया. पुलिस ने उन्हें किसी तरह समझाया.

जो 2 लोग गायब थे, पुलिस के पास उन के केवल फोन नंबर थे और वे भी बंद थे, इस के अलावा पुलिस के पास ऐसी कोई चीज नहीं थी, जिस से उन दोनों के बारे में कुछ पता चल सके. पूछताछ के लिए सिर्फ इंद्रपाल की पत्नी शशिबाला ही बची थी. इंसपेक्टर जितेंद्र सिंह ने शशिबाला से मालूमात की तो उस ने वही बातें उन के समने दोहरा दी, जो पहले थानाप्रभारी को बताई थीं. इंसपेक्टर जितेंद्र सिंह उस से पूछताछ कर रहे थे तो शशिबाला बोली, ‘‘साहब, अब मैं अपने गांव जाना चाहती हूं. मैं ने पति की गुमशुदगी की जो सूचना दर्ज कराई थी, उसे वापस लेना चाहती हूं. मैं पुलिस के किसी लफड़े में नहीं पड़ना चाहती. वह कहीं गए होंगे, अपने आप घर लौट आएंगे.’’ शशिबाला हापुड़ के पटना मुरादपुर गांव की रहने वाली थी.

शशिबाला के मुंह से यह बात सुन कर जितेंद्र सिंह चौंके कि पता नहीं यह कैसी औरत है जो पति के गुम हो जाने के बाद भी इस तरह की बातें कर रही है. उस ने एक बार भी पुलिस से यह नहीं कहा कि उस के पति का जल्द पता लगाया जाए. पति के गायब होने पर जिस तरह कोई महिला परेशान हो जाती है, ऐसी कोई परेशानी शशिबाला के चेहरे पर नहीं दिख रही थी. वह एमदम सामान्य थी. इस से इंसपेक्टर जितेंद्र सिंह को उस पर शक होने लगा. बहरहाल उन्होंने उस समय तो उस से कुछ नहीं कहा, लेकिन उस की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए हेडकांस्टेबल श्रीपाल को लगा दिया.

23 मार्च को शशिबाला, उस की बहन सुषमा, बहनोई विक्रम फिर थाने आए. इंद्रपाल के रिश्तेदार भी उस समय थाने में ही थे. तभी सुषमा ने इंसपेक्टर जितेंद्र सिंह को बताया, ‘‘सर, कल रात शशिबाला उस के कमरे पर थी. रात करीब 8 बजे टिंकू भी उस के घर आया था. टिंकू ने शशिबाला से अलग में बात की थी. शशिबाला से बात कर के वह चला गया था. उस के चले जाने के बाद मैं ने शशिबाला से पूछा तो उस ने मुझे बताया कि टिंकू ने उस से कहा था कि वह पुलिस के पास चक्कर लगाने के बजाय अपने गांव चली जाए. इंद्रपाल अपने आप लौट आएगा.’’

सुषमा ने आगे कहा, ‘‘सर, मुझे टिंकू पर शक हो रहा है. आखिर वह इस तरह की बातें क्यों कर रहा है? इंद्रपाल जब टिंकू का दोस्त था तो इस परेशानी में उसे हमारा साथ देना चाहिए था, जबकि वह इधरउधर घूमता फिर रहा है.’’

सुषमा ने जैसे ही यह बात पुलिस से कही तो पास में खड़ी शशिबाला उस के कान में फुसफुसाते हुए बोली, ‘‘तुझे यह बात यहां कहने की क्या जरूरत थी?’’

चूंकि जिस दिन से इंद्रपाल गायब था उसी दिन से उस का दोस्त टिंकू भी गायब था. पुलिस को टिंकू की भी तलाश थी. उस के बारे में भी पुलिस को पता नहीं चल रहा था. इंसपेक्टर जितेंद्र सिंह ने सोचा कि कल जब टिंकू शशिबाला से मिला था तो उसे यह बात पुलिस को बता देनी चाहिए थी. लेकिन उस ने ऐसा नहीं किया. दूसरे सुषमा ने टिंकू वाली बात पुलिस को बताई तो शशिबाला उस के कान में खुसरफुसर क्यों कर रही थी? इस का मतलब यह हुआ कि शशिबाला और टिंकू की इस बीच फोन पर भी बातचीत होती रही होगी. इन सब बातों से शशिबाला पर इंसपेक्टर जितेंद्र सिंह का शक का दायरा बढ़ता जा रहा था.

पहले तो पुलिस यही समझ रही थी कि इंद्रपाल के साथ टिंकू भी गायब है, लेकिन अब यह बात साफ हो चुकी थी कि टिंकू कहीं और रह रहा है. वह कहां रह रहा है, इस बात को शशिबाला जरूर जानती होगी. इसलिए इंसपेक्टर जितेंद्र सिंह ने शशिबाला से ही टिंकू के बारे में पूछताछ की तो उस ने साफसाफ कह दिया कि उसे नहीं पता कि अब वह कहां रह रहा है?

जिस समय पुलिस शशिबाला से पूछताछ कर रही थी, सुषमा भी वहीं थी. तभी सुषमा के फोन की घंटी बजी. सुषमा ने काल रिसीव की तो दूसरी ओर से टिंकू की आवाज आई. सुषमा को पता था कि पुलिस टिंकू से पूछताछ करना चाहती है, इसलिए उस ने अपने फोन के स्पीकर पर हथेली रखी, ताकि उस की आवाज टिंकू तक न पहुंचे. फिर वह इंसपेक्टर जितेंद्र सिंह से आहिस्ता से बोली, ‘‘सर, टिंकू का फोन आया है.’’

जितेंद्र सिंह ने उस से धीरे से कहा, ‘‘उसे तुम किसी तरह शास्त्री पार्क बुला लो.’’

सुषमा ने ऐसा ही किया. उस ने टिंकू से बात करनी शुरू की तो टिंकू ने कहा, ‘‘सुषमा जी, मैं आप से एक जरूरी बात करना चाहता हूं.’’

सुषमा ने कहा, ‘‘ठीक है, तुम शास्त्री पार्क बस स्टौप पर आ जाओ. मैं भी वहीं पहुंच रही हूं.’’

इंसपेक्टर जितेंद्र सिंह ने सुषमा द्वारा टिंकू से कही गई बात सुन ली थी, इसलिए वह 2-3 पुलिसकर्मियों को साथ ले कर सुषमा के साथ शास्त्री पार्क बस स्टौप पर पहुंच गए. पुलिस टीम सादा लिबास में थी.

सुबह साढ़े 10 बजे के करीब वहां एक युवक पहुंचा. वह जैसे ही सुषमा से बात करने लगा तो पुलिस ने सोचा कि यही टिंकू होगा, उसे दबोच लिया. पूछताछ में उस ने अपना नाम टिंकू बताया. उसे ले कर पुलिस थाने पहुंची तो उस से पहले शशिबाला थाने से जा चुकी थी. वह वहां से क्यों और कहां गई, यह बाद की बात थी. उस से पहले इंसपेक्टर जितेंद्र सिंह ने टिंकू से इंद्रपाल के बारे में मालूमात की. टिंकू पहले तो उन के सामने झूठ बोलता रहा. लेकिन पुलिस की सख्ती के आगे उस का झूठ ज्यादा देर तक नहीं टिक सका. उस ने स्वीकार कर लिया कि उस ने इंद्रपाल की हत्या करने के बाद उस की लाश को तीसरे पुश्ते के पास डाल दिया है. टिंकू ने बताया था कि उस की हत्या 18 मार्च को ही कर दी गई थी.

उस की लाश को जंगल में डाले हुए 6 दिन हो गए थे. लाश को कहीं जंगली जानवर वगैरह न खा गए हों, इसलिए पुलिस टिंकू को साथ ले कर तीसरे पुश्ते की तरफ चल दी. पुलिस के साथ इंद्रपाल के चाचा और चचेरा भाई भी था. पुलिस तीसरे पुश्ते के पास यमुना खादर पहुंची और वहां टिंकू की निशानदेही पर झाडि़यों से प्लास्टिक का एक कट्टा बरामद किया. उस कट्टे का मुंह एक रस्सी से बंधा हुआ था. टिंकू ने बताया कि इंद्रपाल की लाश इसी कट्टे में है.

इंसपेक्टर जितेंद्र सिंह ने फोन कर के क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को भी वहां बुलवा लिया. क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम के सामने जब उस कट्टे को खोला गया तो उस के अंदर रस्सी से लपेटा हुआ एक और कट्टा निकला. उस कट्टे को खोला गया तो उस में एक आदमी की लाश थी. लेकिन उस लाश का सिर गायब था. सिर के बारे में टिंकू से पूछा गया तो उस ने कहा कि सिर को जानवर खा गए होंगे. यह बात जितेंद्र सिंह के गले नहीं उतरी, क्योंकि जब प्लास्टिक के कट्टे रस्सी से बंद थे तो जानवर सिर कैसे खा सकते थे. इस का मतलब टिंकू उन से झूठ बोल रहा था. उन्होंने उस से सख्ती की तो उस ने बताया कि सिर पाइपलाइन के पास खादर में पानी के एक गड्ढे में डाल दिया था.

पुलिस वहां से एक-डेढ़ किलोमीटर दूर टिंकू की बताई जगह पर पहुंची. वहां गैस पाइपलाइन के पास पानी से भरे एक गड्ढे में एक पौलीथिन की थैली दिखाई दी. उस थैली को निकलवाया गया तो उस में सिर निकला. सुषमा और इंद्रपाल के रिश्तेदारों ने उस की पहचान इंद्रपाल के सिर के रूप में की. पुलिस ने इंद्रपाल के सिर और धड़ को कब्जे में ले कर पंचनामा करने के बाद उन्हें पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और थाने लौट कर इंद्रपाल की गुमशुदगी के मामले को हत्या कर लाश को छिपाने की धाराओं में दर्ज कर लिया.

अब पुलिस यह जानना चाह रही थी कि जिस इंद्रपाल के साथ टिंकू की गहरी दोस्ती थी, उसी इंद्रपाल के उस ने टुकड़े क्यों कर दिए? यह जानने के लिए पुलिस ने टिंकू से पूछताछ की तो इंद्रपाल की हत्या की जो कहानी सामने आई, उस की वजह उस की बीवी शशिबाला निकली. इंद्रपाल मूलरूप से उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले के कस्बा सिंभावली के नजदीक बसे गांव भगवानपुर का रहने वाला था. सन 1999 में उस की शादी जिला हापुड़ के ही गांव पटना मुरादपुर की रहने वाली शशिबाला से हुई थी. जिस दिन शशिबाला की शादी हुई थी, उसी दिन उस की छोटी बहन सुषमा की शादी विक्रम के साथ हुई थी. यानी दोनों बहनों की शादी एक ही मंडप के नीचे हुई थी.

शादी के 7 साल बाद भी शशिबाला जब मां नहीं बनी तो वह बहुत टेंशन में रहने लगी. इंद्रपाल भी परेशान रहता था. उस ने बीवी का इलाज करवाया. जिस की वजह से उस पर कुछ लोगों का कर्ज भी हो गया. वह गांव में खेतीकिसानी करता था. इस काम से उसे अपने ऊपर का कर्ज उतरने की कोई उम्मीद नहीं थी. इसलिए उस ने दिल्ली जा कर कमाने की सोची. उस के गांव के कई लड़के दिल्ली में काम करते थे, इसलिए वह भी दिल्ली आ गया. वह मामूली पढ़ालिखा था, इसलिए उसे उस की इच्छा के मुताबिक नौकरी नहीं मिली. तब उस ने मजबूरी में बेलदारी करनी शुरू कर दी. दिल्ली में इस काम के बदले उसे जो मजदूरी मिल रही थी, वह उस के हिसाब से अच्छी थी. इसलिए कुछ दिनों बाद ही वह पत्नी शशिबाला को भी दिल्ली लिवा लाया और उत्तरपूर्वी दिल्ली के न्यू उस्मानपुर में किराए पर कमरा ले कर रहने लगा.

शशिबाला पहली बार दिल्ली आई थी. यहां आ कर उस का भी मन लग गया. इसी बीच वह एक बेटी की मां बनी. मां बनने के बाद इंद्रपाल और शशिबाला की खुशी का ठिकाना न रहा. उन के दिन हंसीखुशी से गुजर रहे थे. इस के बाद शशिबाला एक और बेटी की मां बनी. 2 बच्चों के जन्म के बाद भी शशिबाला के हुस्न में जबरदस्त आकर्षण था. बल्कि इस के बाद तो उस के रूप में और भी निखार आ गया था. इंद्रपाल जिस ठेकेदार के साथ काम करता था, उस का नाम टिंकू था. टिंकू बिहार के जिला मुंगेर के पहाड़पुर गांव के रहने वाले मुदीन सिंह का बेटा था. बीए पास टिंकू 3 साल पहले काम की तलाश में दिल्ली आया था.

काफी कोशिश के बाद जब उस की कहीं नौकरी नहीं लगी तो उस ने कंस्ट्रक्शन कंपनियों में लेबर सप्लाई का काम शुरू कर दिया. कंस्ट्रक्शन ठेकेदारों के संपर्क में रहरह कर उसे भी मकान बनवाने के काम का अनुभव हो गया. फिर उस ने भी बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन के ठेके लेने शुरू कर दिए. इंद्रपाल कुछ दिनों से टिंकू के साथ ही काम कर रहा था. करीब एक साल पहले की बात है. टिंकू का काम उस्मानपुर में चल रहा था. वह वहीं अपने रहने के लिए किराए का कमरा देख रहा था, ताकि अपने काम पर नजर रख सके. किराए के कमरे के बारे में उस ने इंद्रपाल से बात की. इंद्रपाल न्यू उस्मानपुर के गौतम विहार में पवन शर्मा के यहां रहता था. उस ने 2 कमरे किराए पर ले रखे थे.

उस ने टिंकू से कहा, ‘‘मेरे पास 2 कमरे हैं. चाहो तो तुम उन में से एक कमरा ले सकते हो. एक में मेरा परिवार रह लेगा.’’

टिंकू जब उस का कमरा देखने गया तो इंद्रपाल ने अपनी बीवी को बताया कि यह हमारे ठेकेदार हैं और इन्हें हमारा कमरा पसंद आ गया तो यह यहीं रहेंगे. ठेकेदार के घर आने पर शशिबाला ने उस की जम कर खातिरदारी की. 29 साल का टिंकू शशिबाला की मेहमाननवाजी से बहुत प्रभावित हुआ. उसे इंद्रपाल का कमरा भी पसंद आ गया तो अगले दिन से वह वहां रहने लगा. टिंकू कमरे पर अकेला रहता था. उस की आमदनी अच्छी थी, इसलिए वह जी खोल कर पैसे खर्च करता था. चूंकि शशिबाला बराबर वाले कमरे में रहती थी, इसलिए उस की बेटियों के लिए वह अकसर खानेपीने की चीजें लाता रहता था.

जिस की वजह से दोनों बच्चियां उस से घुलमिल गई थीं. कभीकभी वह शराब पीता तो इंद्रपाल को भी अपने कमरे पर बुला लेता था. फ्री में शराब मिलने पर इंद्रपाल की भी मौज आ गई थी. इंद्रपाल जो कमाता था, उस से उस के घर का गुजारा तो हो जाता था, लेकिन वह बीवीबच्चों की फरमाइशें पूरी नहीं कर पाता था. जबकि टिंकू बहुत ठाठबाट से रहता था. 32 साल की शशिबाला की भी कुछ ख्वाहिशें थीं. पति की कमाई से उसे ख्वाहिशें पूरी होती नजर नहीं आ रही थीं. इसलिए उस ने अपने कदम टिंकू की तरफ बढ़ा दिए.  टिंकू जवान और अविवाहित था. अनुभवी शशिबाला ने अपने हुस्न के जाल में उसे जल्द ही फांस लिया. उन दोनों के बीच अवैध संबंध बन गए. यह करीब एक साल पहले की बात है.

अपनी उम्र से छोटे टिंकू के साथ संबंध बन जाने के बाद शशिबाला को अपना 40 वर्षीय पति बासी लगने लगा. अब वह उस में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाती. इंद्रपाल सुबह का घर से निकलने के बाद शाम को ही लौटता था, जबकि टिंकू का जब मन होता घर आ जाता था. मौका मिलने पर वे अपनी हसरतें पूरी कर लेते. इस तरह दोनों का यह खेल चलता रहा. टिंकू अब शशिबाला को आर्थिक सहयोग भी करने लगा था. इस के अलावा वह उस के पसंद के कपड़े आदि भी खरीदवा देता. शशिबाला भी उस की खूब सेवा करती. पत्नी की बेरुखी को इंद्रपाल समझ नहीं पा रहा था.

वह पत्नी से इस की वजह पूछता तो वह उलटे उस पर झुंझला जाती. तब इंद्रपाल उस की पिटाई कर देता. अगर उस समय टिंकू घर पर होता तो बीचबचाव कर देता और नहीं होता तो शशिबाला को वह जम कर धुन डालता था. पति द्वारा आए दिन पिटने से शशिबाला आजिज आ चुकी थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि उसे पति की पिटाई से कैसे निजात मिले. टिंकू के सामने उस की प्रेमिका की पिटाई हो, यह बात उसे अच्छी नहीं लगती थी. शशिबाला चाहती थी कि वह हमेशा टिंकू के साथ ही पत्नी की तरह रहे. लेकिन इंद्रपाल के होते हुए ऐसा मुमकिन नहीं था.

इस बारे में उस ने टिंकू से भी बात की तो टिंकू ने उसे भरोसा दिलाया कि समय आने दो, सब कुछ ठीक हो जाएगा. शशिबाला जानती थी कि टिंकू जो कहता है, उस काम को पूरा जरूर कर देता है. इसलिए उसे विश्वास था कि वह पति से छुटकारा दिलाने का कोई न कोई रास्ता जरूर निकाल लेगा. होली के मौके पर टिंकू ने इंद्रपाल के बीवीबच्चों पर खूब खर्च किया. खानेपीने के सामान के अलावा उस ने बच्चों को भी रंग और उन की पसंद की पिचकारियां दिलवाईं. बड़ी हंसीखुशी से त्यौहार मनाया. इंद्रपाल को भी जम कर शराब पिलाई.18 मार्च, 2014 को इंद्रपाल का नशा उतरा तो किसी बात को ले कर उस की पत्नी से कहासुनी हो गई. उस समय दोनों बेटियां छत पर खेल रही थीं.

दोनों के बीच झगड़ा बढ़ा तो इंद्रपाल ने उस की पिटाई करनी शुरू कर दी. इत्तफाक से टिंकू उस समय कमरे पर ही था. शोरशराबा सुन कर टिंकू वहां पहुंच गया. उस ने जब इंद्रपाल को रोकना चाहा तो इंद्रपाल ने उल्टे उसे ही झटक दिया. इस पर टिंकू को भी गुस्सा आ गया. उस ने इंद्रपाल को जोर से धक्का दिया तो इंद्रपाल का सिर दीवार से टकरा गया. दीवार से सिर टकराने पर इंद्रपाल बेहोश हो कर नीचे गिर गया. यह देख कर टिंकू और शशिबाला घबरा गए. उन दोनों ने सोचा कि इंद्रपाल शायद मर चुका है. शशिबाला ने टिंकू से कहा, ‘‘अब सब कुछ तुम्हें ही संभालना है, मैं अभी अपनी बहन सुषमा के घर जा रही हूं. जब काम हो जाए तो फोन कर देना.’’

इंद्रपाल को ठिकाने लगाने का टिंकू के पास इस से अच्छा मौका नहीं था. उस ने उसी समय दोनों हाथों से उस का गला घोंट दिया. इस के बाद इंद्रपाल का शरीर ठंडा पड़ता गया. इंद्रपाल की हत्या के बाद उस के सामने इस बात की समस्या यह थी कि लाश को ठिकाने कहां लगाए. तब तक शशिबाला दोनों बेटियों को ले कर वहां से 200 मीटर दूर जयप्रकाश नगर में रहने वाली सुषमा के यहां चली गई थी. कुछ देर सोचने के बाद टिंकू ने नांगलोई के चंदन विहार में रहने वाले अपने दोस्त संदीप को फोन कर के कहा, ‘‘यार संदीप, इस समय मैं एक बड़ी मुसीबत में फंस गया हूं. तू इसी समय मेरे कमरे पर आ जा.’’

23 वर्षीय संदीप भी मूलरूप से टिंकू के ही गांव का रहने वाला था. वह 3 साल पहले ही दिल्ली आया था. फिलहाल वह टिंकू के साथ ही राजमिस्त्री का काम कर रहा था. दोस्त टिंकू की परेशानी की बात सुन कर संदीप तुरंत अपने कमरे से निकल गया और रात करीब 8 बजे टिंकू के कमरे पर पहुंच गया. उस समय तक टिंकू लाश को ठिकाने लगाने के लिए बाजार से गंडासा और प्लास्टिक के कुछ खाली कट्टे, रस्सी खरीद लाया था. संदीप कमरे पर पहुंचा तो टिंकू ने कहा, ‘‘यार, यह अपनी पत्नी से झगड़ रहा था, मैं ने बीचबचाव किया तो इस का सिर दीवार से लग गया और इस का काम तमाम हो गया. अब यह मुसीबत गले पड़ी है तो इसे ठिकाने लगाना भी जरूरी है. इसी के लिए मैं ने तुझे बुलाया है.’’

ऐसी मुसीबत से बाहर निकालने में संदीप ने उस का साथ देने की हामी भर दी. टिंकू ने इंद्रपाल की लाश ठिकाने लगाने की योजना पहले ही बना रखी थी. उसी योजना के अनुसार उस ने सब से पहले गंडासे से इंद्रपाल की गरदन काट कर धड़ से अलग की. सिर को उस ने एक बड़ी सी पौलीथिन थैली में रख लिया.  धड़ को प्लास्टिक के कट्टे में भर कर कट्टे को रस्सी से अच्छी तरह लपेट दिया. फिर उस कट्टे को दूसरे कट्टे में रखा और उसे अच्छी तरह बांध दिया. लाश की अच्छी तरह पैकिंग करने के बाद अब वह रास्तों के सुनसान होने का इंतजार करने लगा. आधी रात के बाद धड़ वाले कट्टे को टिंकू ने अपने कंधे पर रखा और सिर वाली थैली संदीप ने ले ली. दोनों साढ़े 3 पुश्ता से होते हुए मेन रोड पर पहुंचे. फिर वहां से वे खादर की तरफ उतर कर गैस पाइपलाइन से थोड़ा आगे चल कर पानी के गड्ढे में सिर वाली थैली डाल दी.

धड़ वाला कट्टा उन्होंने तीसरे पुश्ते के पास डाल दिया. लाश को ठिकाने लगाने के बाद संदीप रात में ही नांगलोई लौट गया और टिंकू अपने कमरे पर लौट आया. कमरे में खून फैला हुआ था. टिंकू ने रात में ही खून को साफ किया. उस के कपड़ों पर खून के जो छींटे आ गए थे, उन्हें भी उस ने साफ किए. सुबह होने पर करावलनगर चला गया. करावल नगर में जिस जगह उस का काम चल रहा था, वहीं पर उस ने अपना सामान वगैरह रख दिया और वहीं रहने लगा. उधर शशिबाला छोटी बहन सुषमा के कमरे पर गई तो उस ने शशिबाला से पूछा कि जीजू कहां हैं, वह क्यों नहीं आए?

तब शशिबाला ने उस से यह कह दिया कि वह घर पर बैठ कर ही खापी रहे हैं. शशिबाला की बुआ विनोद नगर में रहती थीं. उन से मिले हुए उसे काफी दिन हो गए थे. वह सुषमा के साथ उन से मिलने के लिए चली गई. वहां से वह उसी इलाके में रहने वाली चचेरी बहन संगीता के यहां भी गईं. अगले दिन बुआ के घर से लौटते समय सुषमा ने कहा, ‘‘दीदी, जीजू से नहीं मिली हूं, चलो पहले तुम्हारे कमरे पर चलते हैं. जीजू से मिल कर फिर तुम मेरे साथ ही मेरे कमरे पर चलना.’’

‘‘उन से क्या मिलेगी. शराब पी कर कहीं घूमफिर रहे होंगे. फिर भी जब तेरा मन उन से मिलने को हो रहा है तो तू चल.’’ कहते हुए शशिबाला अपने कमरे पर गई तो वहां ताला लगा था. ताला देखते ही वह सुषमा से बोली, ‘‘मैं कह रही थी न कि वह कहीं घूमफिर रहे होंगे. तू ही देख, कमरे को बंद कर के पता नहीं कहां चले गए. मुझे लगता है शराब पी कर कहीं पड़े होंगे.’’

सुषमा को क्या पता था कि जिस जीजा से वह मिलने की इच्छा जता रही है, उस का काम तमाम हो चुका है और बहन उसे बेवकूफ बना रही है. खैर, बहन के कमरे का ताला बंद होने पर सुषमा बहन और उस के बच्चों को अपने कमरे पर ले आई. शशिबाला उस दिन सुषमा के यहां रही. अगले दिन भी इंद्रपाल का पता नहीं चला तो सुषमा ने उस की सूचना थाने में दर्ज कराने को कहा. बहन के दबाव डालने पर शशिबाला ने 20 मार्च, 2014 को पति की गुमशुदगी थाने में दर्ज करा दी. इस के बाद पुलिस मामले की छानबीन में लग गई. उस बीच टिंकू और शशिबाला की फोन पर बातें होती रहीं.

जब उसे पता चला कि पुलिस बहुत सक्रिय हो गई है तो टिंकू ने 22 मार्च को सुषमा के कमरे पर पहुंच कर शशिबाला से मुलाकात की और उस से कहा कि वह पुलिस से काररवाई बंद करने की बात कह कर अपने गांव चली जाए. बाद में जब मामला शांत हो जाएगा तो वह उसे वहां से बुला लाएगा, फिर कहीं दूसरी जगह रहा जाएगा. शशिबाला को उस का सुझाव पसंद आ गया और वह अगले दिन 23 मार्च की सुबह ही सुषमा और उस के पति को ले कर थाने पहुंच गई. लेकिन इत्तफाक से उसी समय थाने में सुषमा के मोबाइल पर टिंकू का फोन आ गया तो पुलिस टिंकू तक पहुंच गई. टिंकू से पूछताछ के बाद पुलिस टीम ने 24 मार्च को संदीप और शशिबाला को भी गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने टिंकू की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त गंडासा और कपड़े आदि भी बरामद कर लिए.

पुलिस ने तीनों अभियुक्तों को कड़कड़डूमा न्यायालय में अतिरिक्त सत्र दंडाधिकारी शरद गुप्ता की कोर्ट में पेश किया. जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया. मामले की विवेचना इंसपेक्टर जितेंद्र सिंह कर रहे हैं.

 —कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित.

Honey Trap : सोशल मीडिया पर डाक्टर को ठगा

Honey Trap : आरोपियों ने अपने अपराध को अंजाम देने के लिए एक शातिर योजना बनाई थी. उन्होंने सोशल मीडिया पर डाक्टर को अपना निशाना बनाया और उन्हें अपने जाल में फंसाया.

आरोपियों ने डाक्टर को यह यकीन दिलाया कि वे दिल्ली पुलिस में हैं और उन्हें अपनी सेवाओं के लिए पैसे देने होंगे. डाक्टर ने आरोपियों की बातों पर यकीन कर लिया और उन्हें तकरीबन 9 लाख रुपए दे दिए. पर जब डाक्टर को यह एहसास हुआ कि वे ठगी के शिकार हो गए हैं, तो उन्होंने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई. पुलिस ने आरोपियों की तलाश शुरू की और आखिरकार उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.

आरोपियों की पहचान तिलक नगर के बाशिंदे 42 साल के नीरज त्यागी उर्फ धीरज उर्फ धीरू, कराला के रहने वाले 32 साल के आशीष माथुर और खरखौदा, हरियाणा के रहने वाले 30 साल के दीपक उर्फ साजन के रूप में हुई थी.

पुलिस ने आरोपियों के पास से हैड कांस्टेबल की पूरी वरदी और दिल्ली पुलिस के 3 पहचानपत्र, एक कार और 3 मोबाइल फोन बरामद किए.

आरोपी नीरज त्यागी और दीपक उर्फ साजन के खिलाफ पहले से ही बिंदापुर थाने में प्रेमजाल में फंसा कर वसूली करने का मामला दर्ज है.

हनी ट्रैप की शुरुआत का सटीक समय नहीं बताया जा सकता है, क्योंकि यह एक तरह की धोखाधड़ी है, जो अलगअलग रूप में और अलगअलग समयों में हुई है.

हालांकि, यह कहा जा सकता है कि हनी ट्रैप की शुरुआत प्राचीनकाल में हुई थी, जब लोगों को औरतों के बहाने से लुभाने और उन से फायदा उठाने के लिए अलगअलग तरीकों का इस्तेमाल किया जाता था.

दरअसल, आधुनिक समय में हनी ट्रैप की शुरुआत 60 के दशक में हुई थी, जब अमेरिकी और सोवियत जासूसों ने अपने फायदे की जानकारी हासिल करने के लिए इस तरीके का इस्तेमाल करना शुरू किया था.

इंटरनैट और सोशल मीडिया के आने के साथ हनी ट्रैप की शुरुआत और भी आसान हो गई है और अब यह एक आम तरह की धोखाधड़ी बन गई है, जो दुनियाभर के देशों में होती है.

कुछ दिलचस्प बातें

* 60 के दशक में अमेरिकी और सोवियत जासूसों ने हनी ट्रैप का इस्तेमाल करना शुरू किया था.

* 80 के दशक में हनी ट्रैप का इस्तेमाल व्यावसायिक जासूसी में किया जाने लगा था.

* 90 के दशक में इंटरनैट के आने के साथ हनी ट्रैप औनलाइन हो गई और यह और भी आसान हो गई.

हनी ट्रैप की कुछ घटनाएं

मध्य प्रदेश के इंदौर में हनी

ट्रैप का एक मामला सामने आया, जिस में एक औरत ने कई मर्दों को अपने जाल में फंसा कर उन से पैसे ऐंठे. इस मामले में पुलिस ने कई आरोपियों को गिरफ्तार किया था.

इसी तरह दिल्ली में भी हनी ट्रैप का एक मामला सामने आया था, जिस में एक औरत ने एक मर्द को अपने प्रेमजाल में फंसा कर उसे पैसे देने के लिए मजबूर किया था. इस मामले में पुलिस ने आरोपी औरत को गिरफ्तार किया था.

मुंबई में हनी ट्रैप का एक मामला सामने आया, जिस में एक औरत ने कई मर्दों को अपने प्रेमजाल में फंसा कर उन से पैसे ऐंठे. इस मामले में पुलिस ने कई आरोपियों को गिरफ्तार किया.

हनी ट्रैप के प्रकार

औनलाइन हनी ट्रैप : औनलाइन हनी ट्रैप में आरोपी सोशल मीडिया या औनलाइन डेटिंग प्लेटफार्म का इस्तेमाल कर के पीडि़त को अपने प्रेमजाल में फंसाता है.

औफलाइन हनी ट्रैप : औफलाइन हनी ट्रैप में आरोपी किसी पीडि़त से निजीतौर पर मिलता है और उसे अपने जाल में फंसाता है.

कौरपोरेट हनी ट्रैप : कौरपोरेट हनी ट्रैप में आरोपी किसी कंपनी के शख्स को अपने जाल में फंसाता है और उस से कारोबारी जानकारी हासिल करता है.

हनी ट्रैप के लक्षण

* अगर कोई किसी अनजान शख्स से अचानक मिलता है और उस के साथ बहुत जल्दी गहरे संबंध बनाने की कोशिश करता है, तो यह हनी ट्रैप का एक लक्षण हो सकता है.

* अगर कोई किसी के प्रति बहुत ज्यादा प्यार और आकर्षण दिखाता है, तो यह हनी ट्रैप का एक लक्षण हो सकता है.

* यदि कोई किसी की निजी जानकारी मांगता है, जैसे कि पता, फोन नंबर या बैंक खाते से जुड़ी जानकारी, तो यह हनी ट्रैप का एक लक्षण हो सकता है.

बचाव के कानूनी उपाय

* अगर आप हनी ट्रैप के शिकार हुए हैं, तो तुरंत ही पुलिस थाने में अपनी शिकायत दर्ज करें.

* हनी ट्रैप से संबंधित कानूनी सलाह लेने के लिए किसी माहिर वकील से बात करें.

* आप औनलाइन हनी ट्रैप के शिकार हुए हैं, तो साइबर सैल में शिकायत दर्ज करें.

हनी ट्रैप में लड़कियां और लड़के दोनों ही शामिल हो सकते हैं. हालांकि, ज्यादातर मामलों में लड़कियां ही हनी ट्रैप के लिए इस्तेमाल की जाती हैं, लेकिन यह जरूरी नहीं है कि हर बार ऐसा ही हो. कुछ मामलों में लड़के भी हनी ट्रैप में शामिल हो सकते हैं.

हनी ट्रैप में शामिल होने वाले के लिए उस के लिंग या उम्र की कोई अहमियत नहीं है. यह एक ऐसी धोखाधड़ी है, जिस में कोई भी शामिल हो सकता है और किसी को भी अपना शिकार बना सकता है. ऐसे शातिर लोग अमीरों को फांसते हैं. वे लड़की को आगे रख कर अपने शिकार को गुमराह करते हैं और उन से फायदा उठाते हैं.

Reality of Society : पढ़ाई छोड़ रही एससीएसटी लड़कियां

Reality of Society : देशराज अपनी 18 साल की बेटी की शादी का न्योता देने गांव के प्रधान इंद्र प्रताप के पास गया. उन्होंने पूछा, ‘‘इतनी कम उम्र में शादी क्यों कर रहे हो? तुम ने अपनी बेटी को स्कूल की पढ़ाई भी नहीं करने दी? कानून और संविधान की बहुत सी कोशिशों के बावजूद भी एससीएसटी लड़कियां जल्दी पढ़ाई छोड़ रही हैं और उन की शादी भी जल्दी हो जा रही हैं, जिस से कम उम्र में कई बच्चों का पैदा होना उन को बीमार बनाता है.

‘‘पढ़ाई छोड़ने के चलते वे अच्छी नौकरी नहीं कर पाती हैं, जिस से बाद में वे मजदूरी ही करती रहती हैं. आजादी के 77 सालों के बाद आखिर एससीएसटी लड़कियों की ऐसी हालत क्यों है? एससीएसटी तबका हिंसा का ज्यादा शिकार होता है. ये गरीब हैं और लड़कियां हैं, इसलिए इन को नीची नजरों से देखा जाता है. इन के हक में खड़े होने वाले कम होते हैं, इसलिए इन्हें सैक्स हिंसा का ज्यादा शिकार होना पड़ता है.’’

देश की आबादी में एससीएसटी औरतों और लड़कियों की तादाद 18 से 20 फीसदी है. आजादी और आरक्षण के बाद भी आज वे जातीय व्यवस्था और भेदभाव की शिकार हैं. इन की परेशानी यह है कि ये घर के अंदर और बाहर दोनों ही जगहों पर जोरजुल्म का शिकार होती हैं, जिस के चलते इन की पढ़ाई जल्दी छुड़वा दी जाती है, जबकि लड़कों को बाहर पढ़ने भेजा जाता है. मातापिता लड़कियों को जिम्मेदारी भरा बोझ समझ कर शादी कर देना चाहते हैं, ताकि इन की जिम्मेदारी पति उठाए.

जातिगत होती है सैक्स हिंसा

एससीएसटी लड़कियों के साथ किस तरह से जातिगत सैक्स हिंसा होती है, उत्तर प्रदेश का हाथरस कांड इस का बड़ा उदाहरण है. यहां एससी तबके की लड़की के साथ कथित तौर पर ऊंची जाति के लोगों द्वारा रेप और हत्या का मसला सुर्खियों में रहा है. गांव के इलाकों में एससी औरतें और लड़कियां सैक्स हिंसा की शिकार रही हैं. यहां की ज्यादातर जमीन, संसाधन और सामाजिक ताकत ऊंची जातियों के पास है.
एससीएसटी के खिलाफ जोरजुल्म को रोकने के लिए साल 1989 में बनाए गए कानून के बावजूद भी एससीएसटी औरतों और लड़कियों के खिलाफ हिंसा में कोई कमी नहीं आई है. आज भी इन का पीछा किया जाता है. इन के साथ छेड़छाड़ और रेप की वारदातें होती हैं. विरोध करने पर इन की हत्या भी की जाती है.

आंकड़े बताते हैं कि भारत में हर दिन 10 एससीएसटी औरतों और लड़कियों के साथ रेप होता है. उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान में एससीएसटी लड़कियों के खिलाफ सैक्स हिंसा के सब से ज्यादा मामले होते हैं.

500 एससीएसटी औरतों और लड़कियों पर की गई एक रिसर्च से पता चलता है कि 54 फीसदी पर शारीरिक हमला किया गया, 46 फीसदी पर सैक्स से जुड़ा जुल्म किया गया, 43 फीसदी ने घरेलू हिंसा का सामना किया, 23 फीसदी के साथ रेप हुआ और 62 फीसदी के साथ गालीगलौज की गई.

क्या है 1989 का कानून

साल 1989 का कानून अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के नाम से जाना जाता है. इस को एससीएसटी ऐक्ट के नाम से भी जाना जाता है.

यह अधिनियम अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को जाति के आधार पर होने वाले भेदभाव और हिंसा से बचाने के लिए बनाया गया था.

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 और 17 पर यह अधिनियम आधारित है. इस अधिनियम को 11 सितंबर, 1989 को पास किया गया था और 30 जनवरी, 1990 से इसे जम्मूकश्मीर को छोड़ कर पूरे भारत में लागू
किया गया.

कश्मीर में अनुच्छेद 370 लागू होने के चलते वहां यह कानून लागू नहीं हो सका था. साल 2019 में अनुच्छेद 370 खत्म होने के बाद अब यह कानून वहां भी लागू होता है.

इस अधिनियम के तहत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों के खिलाफ शारीरिक हिंसा, जोरजुल्म, और सामाजिक भेदभाव जैसे अपराधों को अत्याचार माना गया है.

इस अधिनियम के तहत इन अपराधों के लिए कठोर सजा दी जाती है. ऐसे अपराधों के लिए स्पैशल कोर्ट बनाई गई हैं. इस के तहत ही पीडि़तों को राहत और पुनर्वास भी दिया जाता है. साथ ही, पीडि़तों को अपराध के स्वरूप और गंभीरता के हिसाब से मुआवजा दिया जाता है.

कम उम्र में होती हैं शिकार

भारत के 16 जिलों में एससीएसटी औरतों और लड़कियों के खिलाफ सैक्स हिंसा की 100 घटनाओं की स्टडी से पता चलता है कि 46 फीसदी पीड़ित 18 साल से कम उम्र की थीं. 85 फीसदी 30 साल से कम उम्र की थीं. हिंसा के अपराधी एससी तबके सहित 36 अलगअलग जातियों से थे.

इस का मतलब यह है कि दूसरी जाति के लोग ही नहीं, बल्कि अपनी जाति के लोग भी एससीएसटी औरतों और लड़कियों पर जोरजुल्म करते हैं. इस की सब से बड़ी वजह यह है कि अब ये लड़कियां मुखर हो कर अपनी बात कहने लगी हैं. इन की आवाज को दबाने के लिए जोरजुल्म किया जाता है. एससी के बढ़ते दबदबे से ऊंची जातियां विरोध करने लगी हैं.

एससी परिवारों में जागरूक और पढ़ेलिखे लोग भी अपनी लड़कियों को ऊंची तालीम के मौके दे रहे हैं. इस के बावजूद ज्यादातर परिवार अपनी लड़कियों की पढ़ाई क्लास 5वीं से क्लास 8वीं के बीच छुड़वा दे रहे हैं. पढ़ाई छोड़ने वाली लड़कियों की तादाद में एससी लड़कियां सब से आगे पाई जाती हैं.

आज भी 18 से 20 साल की उम्र के बीच इन की शादी तय कर दी जाती है, जो औसत उम्र से काफी कम है. इस वजह से इन को अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ती है. आंकड़ों के मुताबिक, 25 फीसदी एसटी और 20 फीसदी एससी 9वीं और 10वीं क्लास में स्कूल छोड़ देती हैं.

एससीएसटी औरतों और लड़कियों के साथ सैक्स हिंसा जिंदगी के हर पहलू में असर डाल रही है. इन को काम करने की जगहों पर सैक्स से जुड़ा जोरजुल्म, लड़कियों की तस्करी, सैक्स शोषण और घरेलू हिंसा का शिकार होना पड़ता है.

20 साल की एक एससी लड़की प्रेमा बताती है, ‘‘जब मैं पहली बार पुलिस के पास शिकायत दर्ज कराने गई, तो पुलिस ने मेरे रेप और अपहरण की शिकायत पर एफआईआर दर्ज करने से इनकार कर दिया था.

थाने में बिचौलिए ने कहा कि मैं आरोपी से कुछ पैसे ले लूं और मामले में समझौता कर लूं. समझौाता करने के लिए मुझ पर दबाव बनाया गया.’’

परिवार पर पड़ता है असर

आज भी पुलिस में एफआईआर दर्ज कराना आसान नहीं है. कई बार थाने में एफआईआर नहीं लिखी जाती, तो बड़े पुलिस अफसरों तक जाना पड़ता है. बड़े पुलिस अफसरों तक शिकायतें पहुंचने के बाद ही एफआईआर दर्ज की जाती है. कई मामलों में तो अदालत के आदेश के बाद ही मुकदमा दर्ज हो पाता है.

पुलिस और कोर्ट के चक्कर काटने में ही घरपरिवार और नौकरी पर बुरा असर पड़ता है. कई लोगों को अपनी नौकरी छोड़नी पड़ती है, क्योंकि कोर्ट केस लड़ने के लिए उन को छुट्टी नहीं मिलती है.

देवरिया के रहने वाले राधेश्याम की 17 साल की बेटी कविता का अपहरण कर लिया गया था. 2 साल तक उसे तस्करी, सैक्स हिंसा और बाल मजदूरी का शिकार होना पड़ा था. कई अलगअलग शहरों में मुकदमे दर्ज हुए.

पुलिस के बयान, टैस्ट के लिए उसे अपनी बेटी को साथ ले कर जाना पड़ता था. इस के लिए उसे छुट्टियां लेनी पड़ती थीं, जिस की वजह से उसे काम से निकाल दिया गया था.

राधेश्याम बताते हैं, ‘‘मेरी बेटी के साथ रेप हुआ था, लेकिन उस की शिकायत करने पर थाना, अस्पताल और कचहरी में वही बात इतनी बार पूछी गई कि मुझे रोजरोज उस पीड़ा से गुजरना पड़ता था.’’

एससीएसटी तबके की ज्यादातर औरतें और लड़कियां मजदूरी करती हैं. ऐसे में उन को पैसा देने वाले ठेकेदार और मैनेजर टाइप के लोग पैसा देने के बहाने जबरदस्ती करते हैं. उन को ज्यादा पैसा देने की बात कह कर सैक्स हिंसा करना चाहते हैं.

आज बड़ी तादाद में घरेलू नौकर के रूप में काम करने वाली लड़कियों और औरतों के साथ भी ऐसी वारदातें खूब हो रही हैं. 1997 में विशाखा कमेटी के दिशानिर्देश केवल कागजी साबित हो रहे हैं. इन औरतों और लड़कियों के खिलाफ हिंसा काम करने की जगह और घर दोनों पर होती है. घरेलू काम करने वाली लड़कियों की उम्र 15 से 18 साल होती है. ये शारीरिक हिंसा की सब से ज्यादा शिकार होती हैं.

बदनामी भी इन्हीं की होती है

बहुत सारी जागरूकता के बाद भी सैक्स हिंसा और रेप जैसी घटनाओं को महिलाओं के किरदार से जोड़ कर देखा जाता है. इस में कुसूरवार औरत या लड़की को हीबदचलनसमझ जाता है. उसे ही ज्यादातर कुसूरवार साबित किया जाता है.

रुचि नामक एक एससी तबके की लड़की अपने परिवार की मदद करने के लिए एक डाक्टर के यहां घरेलू नौकरी करती थी. डाक्टर के पति ने उस को लालच दे कर अपने साथ सैक्स करने के लिए तैयार कर लिया. एक दिन उन की पत्नी ने देख लिया. पतिपत्नी में थोड़ी नोकझों हुई.

इस का शिकार रुचि बनी. उसे बदचलन बता कर काम से निकाल दिया गया. इस के बाद उस
पूरी कालोनी में रुचि को दूसरी नौकरी नहीं मिली. बदनामी से बचने के लिए इस बात को दबा दिया गया.

रेप को हादसा मान कर घरपरिवार और समाज उस लड़की को आगे नहीं बढ़ने देते हैं. उस को बदचलन सम? जाता है. ऐसे में वह जिंदगीभर उस दर्द को भूल नहीं पाती है. ऐसे में एससीएसटी परिवारों में लड़कियों की शादी जल्दी करा दी जाती है, जिस से किसी तरह की बदनामी से बचा जा सके.

यह बात और है कि कम उम्र में शादी और मां बनने से लड़कियों का कैरियर और हैल्थ दोनों पर ही बुरा असर पड़ता है, जिस से तरक्की की दौड़ में वे पूरे समाज से काफी पीछे छूट जाती हैं.

एससीएसटी समाज की लड़कियों के लिए सब से मुश्किल अपने ही घरपरिवार के लोगों को समझाना होता है, जिस की वजह से उन की स्कूली पढ़ाई पूरी नहीं होती है और वे तालीम से आज भी कोसों दूर हैं.

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