Serial Story: बीवी का आशिक- भाग 1

लेखक- एम. अशफाक

नई उम्र के 2 थानेदार थे, जिन में से एक का नाम था अकबर शाह और दूसरे का नाम तलजा राम. दोनों बहुत बहादुर, दिलेर और निडर थे. दोनों में घनिष्ठ मित्रता थी, इतनी घनिष्ठता कि एकदूसरे के बिना जीना भी अच्छा नहीं लगता था. उन की तैनाती कहीं भी हो, लेकिन मिलने के लिए समय निकाल ही लेते थे. दोनों कभीकभी अवैध काम भी कर जाते थे, लेकिन करते इतनी चालाकी से थे कि किसी को उस की भनक तक नहीं लगती थी. दोनों बहुत बुद्धिमान थे, इसीलिए बहुत अकड़ कर चलते थे.

सन 1930 की जब की यह कहानी है तब सिंध में पुलिस के थानेदार को सूबेदार कहते थे. उस समय सूबेदार इलाके का राजा हुआ करता था. अकबर शाह और तलजा राम की भी दूसरे सूबेदारों की तरह बहुत इज्जत थी. अकबर शाह ऊंचे परिवार का था, इसलिए हर मिलने वाला पहले उस के पैर छूता था और बाद में बात करता था. तलजा राम भी उच्च जाति का ब्राह्मण था.

एक बार दोनों एक हत्या के मामले में फंस गए. हत्या जिला मीरपुर खास के पथोरो रेलवे स्टेशन पर हुई थी. वहीं से कुछ देर पहले अकबर शाह और तलजा राम गाड़ी में सवार हुए थे. रेलवे पुलिस के एसपी ने स्वयं विवेचना की और कह दिया कि हत्या दोनों के उकसावे पर की गई. देश की सभी रेलवे लाइन एकदूसरे से जुड़ी हुई थीं. फरंटियर मेल (अब स्वर्ण मंदिर मेल) मुंबई और लाहौर तक आतीजाती थीं, इसी तरह बीकानेर और जोधपुर से रेलवे की गाडि़यां हैदराबाद सिंध तक आतीजाती थीं.

एक शाम ऐसी ही एक गाड़ी में अकबर शाह और तलजा राम सवार होने के लिए पथोरो रेलवे स्टेशन पर बड़ी शानबान से आए. जोधपुर से आने वाली गाड़ी जब पथोरो स्टेशन पर आ कर रुकी तो दोनों झट से फर्स्ट क्लास के डिब्बे में बैठ गए.

उन दिनों गाडि़यों में इतनी भीड़ नहीं हुआ करती थी. उस डिब्बे से जिस में ये दोनों सवार हुए थे, रेलवे का एक अधिकारी उतरा जो पथोरो स्टेशन का निरीक्षण करने आया था. जब उस ने प्लेटफार्म पर भीड़ एकत्र देखी तो स्टेशन मास्टर से पूछा. उस ने बताया कि इस इलाके का सूबेदार सफर करने जा रहा है, ये भीड़ उसे छोड़ने आई है.

रेलवे का अधिकारी कुछ अनाड़ी किस्म का था, वह रेलवे का कुछ ज्यादा ही हितैषी था. उसे लगा कि पुलिस का एक सूबेदार फर्स्ट क्लास में कैसे यात्रा कर सकता है. उस ने टीटी को बुला कर कहा कि उन के टिकट चैक करे. जब टीटी ने टिकट मांगे तो अकबर शाह जो इलाके का सूबेदार था, उसे अपना अपमान लगा. उस ने गुस्से में दोनों टिकट निकाल कर टीटी के मुंह पर दे मारे. टिकट सेकेंड क्लास के थे. टीटी ने रेलवे अधिकारी की ओर देखा तो उस ने कहा, ‘‘इन से कहो कि उतर कर सेकेंड क्लास में चले जाएं.’’

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अकबर शाह को बहुत गुस्सा आया. लेकिन मजबूरी यह थी कि यह थाना नहीं रेलवे स्टेशन था, इसलिए उस ने तलजा राम को इशारा किया. दोनों उतर कर सेकेंड क्लास के डिब्बे में बैठ गए. गाड़ी हैदराबाद के लिए रवाना हो गई. अगली सुबह पुलिस को सूचना मिली कि पथोरो स्टेशन के प्लेटफार्म पर जोधपुर से आए रेलवे अधिकारी को किसी ने सोते में कुल्हाडि़यों के घातक वार कर के मार डाला है.

रेलवे के एसपी मंझे हुए अधिकारी थे, चूंकि हत्या रेलवे स्टेशन की सीमा में हुई थी इसलिए विवेचना भी रेलवे पुलिस को करनी थी. मृतक बीकानेर रेलवे का कर्मचारी था. उन लोगों ने शोर मचा दिया, जिस से सिंध की बदनामी होने लगी. जोधपुर रेलवे पुलिस ने हत्यारों का पता बताने वाले को 500 रुपए का इनाम देने की घोषणा कर दी. बीकानेर वाले क्यों पीछे रहते उन्होंने भी 1000 रुपए के इनाम का ऐलान कर दिया.

मामला बहुत नाजुक था, इसलिए उस की तफ्तीश स्वयं एसपी ने संभाल ली. वह घटनास्थल पर पहुंचे. उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया, गवाहों के बयान लिए. जब उन्हें पता लगा कि मृतक की 2 सूबेदारों से तूतूमैंमैं हुई थी तो उन्हें पक्का यकीन हो गया कि हत्या उन दोनों ने ही कराई होगी. वे दोनों सूबेदार थे, यह कैसे सहन कर सकते थे कि उन्हें फर्स्ट क्लास के डिब्बे से उतर कर सेकेंड क्लास में बैठना पड़ा.

वह भी उन चाटुकारों के सामने जो उन्हें स्टेशन पर छोड़ने आए थे. उन दोनों के बारे में यह भी मशहूर था कि वे अपराधी प्रवृत्ति के लोगों से संबंध रखते थे. उन के लिए हत्या कराना बाएं हाथ का खेल था.

मृतक परदेसी आदमी था, जो एक दिन के लिए यहां आया था. वहां न तो उसे कोई पहचानता था और न उस की किसी से दुश्मनी थी. उस की हत्या उन दोनों सूबेदारों ने ही कराई थी. माना यह गया कि उन्होंने पथोरो से अगले स्टेशन पर पहुंच कर किसी बदमाश को इशारा कर दिया और वह बदमाश एक माल गाड़ी से जो पथोरो जा रही थी, उस में बैठ कर पथोरो स्टेशन पहुंचा. वह अफसर प्लेटफार्म पर सो रहा था, उस बदमाश ने कुल्हाड़ी के वार कर के उस की हत्या कर दी और भाग गया.

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एसपी साहब ने अपनी रिपोर्ट डीआईजी को भेज दी और दोनों सूबेदारों की गिरफ्तारी की इजाजत मांगी. उन दिनों सिंध का उच्च अधिकारी डीआईजी हुआ करता था. रिपोर्ट डीआईजी के पास पहुंची तो उन्होंने एसपी साहब को बुला कर उन से इस मामले में बात की. फिर दोनों सूबेदारों को बुला कर पूछा कि उन पर हत्या का आरोप है तो दोनों भौचक्के रह गए.

हत्या और हम, दोनों ने कानों पर हाथ रख कर कहा, ‘‘आप यह सोच भी कैसे सकते हैं. हम कानून के रक्षक हैं और कानून तोड़ने की सोच भी नहीं सकते. हमारा काम लोगों की जान बचाना है, जान लेना नहीं. मृतक ने हमारा अपमान जरूर किया था और हमें गुस्सा भी आया था लेकिन इतनी छोटीसी बात पर हत्या नहीं हुआ करती.’’

Serial Story: अस्मत का सौदा- भाग 2

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

उस लड़की को अपने साथ पीछे वाली गाड़ी में ही बिठा लाया था रणबीर, जबकि कैंप में नेताजी की उदारवादिता की चर्चा होने लगी थी कि नेताजी कितने अच्छे हैं, जो हम लोगों के लिए रोजगार जुटा रहे हैं. शायद वे धीरेधीरे हम सब को रोजगार देंगे. जैसे आज रजिया को दिया है.

‘रजिया‘ हां, यही तो नाम था उस भोली सी दिखने वाली लड़की का, जो खूबसूरती में किसी भी फिल्म हीरोइन को टक्कर देती थी. बस उस का गूंगापन ही उस के लिए एक बड़ी समस्या थी. उस के मांबाप बचपन में ही मर गए थे. कैसे, वह रजिया को पता नहीं, सिर्फ उस की एक बहन थी, जो अब भी उसी कैंप में ही थी.

जब से रजिया ने होश संभाला, तब से उस की मौसी ने ही उसे पाला है और जब वह जवान हुई तो पाकिस्तान के खराब हालात उसे एक शरणार्थी बना कर आज यहां तक ले आए थे.

जब रजिया बाथरूम से नहा कर निकली, तो रणबीर सिंह को भी अपने फैसले पर सुखद आश्चर्य हो रहा था. रजिया को देख कर उस के मुंह में भी पानी आ गया था. अमूमन तो किसी भी नए फल को नेताजी ही चखते थे, पर रजिया को तो आज रणबीर सिंह ही खा जाने वाला था.

रात को जब रजिया फर्श पर बिछे कालीन पर सो रही थी, तभी शराब के नशे में रणबीर सिंह ने रजिया के जिस्म को नोच डाला… बेचारी गूंगी लड़की चीख भी नहीं सकी थी.

हांफता हुआ जब रणबीर रजिया के जिस्म से अलग हुआ, तो अनायास ही उस के मुंह से ये शब्द निकल पड़े, ‘‘स्साला… गूंगी लड़की के साथ तो सैक्स करने का अपना ही मजा है,‘‘ और धूर्तता से मुसकरा उठा था रणबीर.

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रजिया जब उठ पाने की हालत में आई, तो वह भाग कर नेताजी के पास पहुंची. नेताजी अभी अपने बिस्तर पर ही थे. रजिया ने हाथों के इशारों से ही अपने साथ हुए अत्याचार की सारी बात नेताजी को बता डाली.

नेताजी के गुस्से का पारावार नहीं रहा. उन्होंने तुरंत ही रणबीर को बुला कर खूब डांटा.

‘‘जिस लड़की के जिस्म पर पहले हमारा अधिकार था, उसे तुम ने हम से पहले जूठा कर दिया. लगता है कि अब हमारे साथ काम करने का मन नहीं है तुम्हारा.‘‘

‘‘माफ कर दीजिए सर. कल रात थोड़ी ज्यादा हो गई थी, इसलिए होश खो बैठा. आगे से ऐसा नहीं होगा,‘‘ गिड़गिड़ा रहा था रणबीर.

उस के इस तरह माफी मांगने पर नेताजी का गुस्सा थोड़ा शांत तो हुआ, पर अंदर ही अंदर उन के मन में नाराजगी ने घर कर लिया था.

नेताजी ने इशारों में रजिया को समझाया और जा कर नहाने को कहा.

नेताजी की डांट का असर बहुत दिनों तक रणबीर पर नहीं रहा. एक नेता का पीए होने के नाते वह जनता के सीधे संपर्क में रहता था, इसलिए उसे गलत तरीके से पैसे कमाने में कोई परेशानी नहीं होती थी. कुछ दिनों बाद ही उस ने लोगों से फिर पैसा उगाहना शुरू कर दिया.

रणबीर सिंह द्वारा बलात्कार किए जाने के सदमे से रजिया बहुत घबराई हुई थी. वह न खाती थी और न ही पीती थी. उस की ये हालत देख कर नेताजी समझ गए कि अगर इस की यही हालत रही, तो इस लड़की के साथ कुछ भी करना ठीक नहीं होगा, क्योंकि गुस्से में आ कर ये लड़की आत्महत्या भी कर सकती है, इसलिए उन्होंने रजिया को प्यारदुलार से समझाना शुरू किया और रणबीर को तो बिलकुल रजिया के पास फटकने नहीं दिया. तब रजिया को कुछ सुरक्षित माहौल का अनुभव हुआ.

जब उन्होंने धीरेधीरे रजिया का विश्वास जीत लिया, तो उसे लगने लगा कि अब उस पर रणबीर का कोई खतरा नहीं है और भविष्य में उस की अस्मत पर कोई आंच नहीं आएगी, तब एक दिन जब नेताजी अपने कमरे में आराम कर रहे थे, तभी उस ने नेताजी को एक कागज के टुकड़े पर टूटीफूटी हिंदी में जो लिखा, वह इस प्रकार था, ‘‘इस दुनिया में हम 2 बहनें ही हैं. मेरे यहां आ जाने से वह कैंप में अकेली रह गई है. आप बड़े दयालु हैं. हो सके तो उस को भी यहीं मेरे पास बुलवा दीजिए. आप को शुक्रिया.‘‘

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‘‘ओह्ह… तो ये मतलब है… इस की एक बहन और भी है. इस लड़की को मानसिक रूप से सही होने के लिए उस की बहन का यहां होना ठीक होगा, तो हम कल ही उस को भी बुलवा लेते हैं.‘‘

फिर क्या था, नेताजी ने तुरंत ही रणबीर सिंह को शरणार्थी कैंप में रजिया की बहन को लाने के लिए भेज दिया. कैंप में होने वाली कागजी कार्यवाही के लिए वहां के प्रबंधक के लिए नजराना भी भिजवाना नहीं भूले थे नेताजी.

‘‘क्या नाम है तुम्हारा?‘‘ नेताजी ने अपने साथ खड़ी रजिया की बहन से इशारों में पूछा.

‘‘जी, हमारा नाम मुमताज है,‘‘ उसे बोलते हुए सुन कर नेताजी हैरान हो गए.

उन्होंने तो सोचा था कि गूंगी रजिया की बहन भी गूंगी ही होगी, पर यह तो बोलती भी है. मतलब यह हुआ कि मुमताज खूबसूरती में भी रजिया से कहीं आगे थी और उस का बोलना तो एक तरह से सोने पे सुहागा हो गया था.

जब मुमताज ने नहाधो कर साफ कपडे़ पहन लिए, तो उसे देख कर रजिया बहुत खुश हो गई और उस से लिपट गई. जब रात को दोनों बहनें पास में लेटीं, तो रजिया ने अपने साथ हुए बलात्कार के बारे में मुमताज को सब बता दिया.

यह जान कर मुमताज के गुस्से का पारावार नहीं रहा, पर उसे वक्त के थपेड़ों ने बहुत ही समझदार लड़की में तबदील कर दिया था, इसलिए उस ने अपने तरीके से ही रणबीर सिंह को सबक सिखाने की बात सोची, क्योंकि वह जानती थी कि सीधी लड़ाई में तो वह रणबीर से नहीं जीत सकती है.

मुमताज को देख कर नेताजी और रणबीर के मुंह में पानी आ गया. दोनों ही उसे भोगने का सपना देखने लगे.

रणबीर ने अपनी आदत के अनुसार ही उस पर डोरे डालने शुरू कर दिए.

‘‘हां सुनो मुमताज, आज मैं बहुत खुश हूं… बताओ, तुम्हें क्या गिफ्ट दूं,‘‘ रणबीर ने मुमताज से कहा.

‘‘पर, भला आप इतना खुश क्यों हो?‘‘ मुमताज ने पूछा.

‘‘क्योंकि, आज मेरा जन्मदिन है. मैं आज किसी को भी दुखी नहीं देखना चाहता और खुशियां बांटना चाहता हूं,‘‘ रणबीर ने मुमताज की आंखों में झांकते हुए कहा.

‘‘तो… अगर ऐसा है तो मुझे थोड़ा शहर घुमा दो. मैं काफी दिन से बाहर नहीं गई हूं,‘‘ मुमताज ने भी बनावटी प्रेम दिखाते हुए कहा.

अपने जाल में खुद ही मछली को फंसते देख मन ही मन खुश हो रहा था रणबीर.

शहर में कई जगहों पर घुमाने के बाद एक अच्छे से रैस्टोरैंट में दोनों ने साथ खाना खाया. मुमताज के हावभाव से कतई नहीं लग रहा था कि वह एक शरणार्थी कैंप से आई हुई लड़की है.

इस बीच रणबीर ने कई बार मुमताज के नाजुक अंगों को छूने की कोशिश की, जिसे वह बड़ी ही सफाई से बचा गई थी.

‘‘घूमना तो काफी हो गया… अब बताओ, मैं तुम्हें क्या तोहफा दूं?‘‘ रणबीर ने मुमताज के हाथ को अपने हाथों में लेते हुए कहा. इस बार मुमताज ने कोई विरोध नहीं किया.

‘‘आप मुझे कुछ दिलाना ही चाहते हैं, तो फिर मुझे एक अच्छा सा मोबाइल दिला दीजिए… दरअसल, मुझे फेसबुक चलाने का बहुत शौक है,‘‘ मुसकराते हुए मुमताज ने कहा.

‘‘बस, इतनी सी बात… अभी चल कर दिलवा देता हूं.‘‘

अपनी पसंद का मोबाइल ले कर उस पर गुलाबी रंग का कवर भी लगवा लिया था मुमताज ने.

मुमताज को घुमाने, खिलानेपिलाने और तोहफे के तौर पर रणबीर मन ही मन इतना तो बेफिक्र हो ही चुका था कि अब मुमताज को पाना कठिन नहीं होगा और यही बात सोच कर रणबीर ने मुमताज से कहा, ‘‘मुमताज, तुम ने मोबाइल तो ले लिया है, पर इसे चलाना तो तुम्हें अभी आता नहीं. अगर आज रात तुम मेरे घर आ जाओ, तो मैं तुम्हें सबकुछ सिखा दूंगा… सबकुछ,‘‘ रणबीर ने अपनी आंख दबाते हुए कहा. बदले में मुमताज ने सिर्फ मुसकरा कर हामी भर दी.

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पूरे दिन रणबीर सिंह मुमताज के जिस्म के बारे में कल्पनाएं करता रहा और शाम से ही शराब पीनी भी शुरू कर दी थी.

Serial Story: मासूम कातिल- भाग 2

लेखक- गजाला जलील

मुझे उतार कर कार आगे बढ़ गई. मेरे लिए अम्मा परेशान बैठी थीं. मैं ने उन्हें दिलासा दिया और बताया रशना के ड्राइवर चाचा मुझे छोड़ने आए थे. ताकि वह किसी शक में न पड़ें. जब मैं बिस्तर पर लेटी तो दिल बुरी तरह धड़क रहा था. आंखों में वही खूबसूरत चेहरा बसा था. उन्हीं के खयालों में खोए पता नहीं कब सो गई.

दूसरे दिन फिर वही औफिस था, वही काम, वही लोग. मेरी निगाहें बारबार बौस के औफिस की तरफ उठ रही थीं, दिल में प्यार का तूफान उमड़ रहा था. आंखों में दीदार की आस थी. लेकिन बौस के रूटीन में कोई फर्क नहीं आया, वह पिछले दरवाजे से ही आतेजाते रहे. मेरा दिल दीदार को तड़पता रहा.

कई बार जी चाहा, उन के औफिस में चली जाऊं, पर हिम्मत नहीं हुई. मैं ने दिल को समझा कर खुद को काम में मसरूफ कर लिया. बारबार सोचती, उस दिन रात को मेरी तारीफ करना, प्यार से बातें करना, वह सब क्या था?

उस दिन मैनेजर अहमद साहब मेरे पास आए और कहने लगे, ‘‘सुहाना, आप टाइपिंग सीख लीजिए. आगे आप के बहुत काम आएगी.’’

मुझे अहमद साहब ने दूसरी टेबल पर बिठा दिया. थोड़ा खुद ने सिखाया फिर साथी की ड्यूटी लगा दी कि मुझे बाकायदा टाइपिंग सिखाए. मैं ने दिल लगा कर सीखना शुरू कर दिया.

करीब 20 दिन के बाद अहमद साहब ने एक टेस्ट लिया. अच्छीखासी स्पीड हो गई थी. उन्होंने कहा, ‘‘वैरी गुड, अब आप आइए मेरे साथ.’’

मैं उन के अंदाज पर हैरान थी. वह मुझे ले कर इमरान साहब के औफिस में गए. मैं पहली बार वहां आई थी. औफिस की सजावट और खूबसूरती देख कर मैं चकाचौंध हो गई. कमरे में हलका अंधेरा था. एसी की ठंडक, टेबल पर हलकी नीली रोशनी थी. उन की गूंजती सी आवाज सुनाई दी, ‘‘आइए अहमद साहब, आप कैसी हैं मिस सुहाना.’’

मेरी आवाज मुश्किल से निकली, ‘‘मैं अच्छी हूं सर.’’

इतने दिनों के बाद बौस को देखने से मेरी तड़प और चाहत और बढ़ गई थी. मैं प्यासी निगाहों से उन्हें देखती रही. अहमद साहब बोले, ‘‘सर, मैं ने आप के लिए टाइपिस्ट का बंदोबस्त कर लिया है, ये हैं.’’

‘‘वैरी गुड, मिस सुहाना क्या आप टाइपिंग जानती हैं?’’

‘‘जी सर, इन्होंने अच्छे से सीख लिया है.’’

‘‘अहमद साहब, आप ने ये बड़ा अच्छा काम किया. एक बड़ा मसला हल हो गया.’’

उन के कमरे में एक तरफ एक छोटी टेबल रखी थी, जिस पर टाइपराइटर रखा था. मुझे वहां बिठा दिया गया. इमरान साहब ने मुझे कुछ कागजात टाइप करने को दिए.

शाम को जब मैं टेबल से उठी तो इमरान साहब ने कहा, ‘‘मिस सुहाना, टाइपिस्ट की हैसियत से आप की तनख्वाह में 300 रुपए का इजाफा कर दिया गया है.’’

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मुझे बड़ी खुशी हुई. मैं ने अम्मा को बताया तो वह खुश नहीं हुईं. कहने लगीं, ‘‘मैं कैसी मजबूर मां हूं कि तुम्हारी कमाई खा रही हूं. मुझे तो तुम्हारी शादी का सोचना चाहिए. तुम्हारी कमाई जमा कर के मुझे शादी की तैयारी करनी होगी.’’

मेरा दिल भी उदास हो गया. मैं ने कहा, ‘‘अम्मा, मैं शादी नहीं करूंगी. आप को छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगी.’’

‘‘नहीं बेटी, ये तो दुनिया का दस्तूर है. हर लड़की को विदा हो कर अपने असली घर जाना पड़ता है.’’ अम्मा ने दुखी मन से कहा.

वक्त गुजरता रहा. मैं इमरान हसन के औफिस में मेहनत और लगन से काम करती रही. वह भी बड़ी मोहब्बत और इज्जत से पेश आते. मेरी नजरों में उन की इज्जत और सम्मान दिनबदिन बढ़ता जा रहा था.

जिंदगी बड़ी अच्छी गुजर रही थी. उस दिन मैं घर पर ही अम्मा के साथ किचन में थी. मैं ने देखा अम्मा टटोलटटोल कर काम कर रही थीं. वह दूध का पतीला ठीक से देख नहीं पाईं. दूध नीचे गिर गया. कुछ गरम दूध पांव पर भी गिरा. उन्हें चक्कर आ गया. मैं उन्हें कमरे में लाई और ग्लूकोज पिलाया. पैर पर दवा लगाई, फिर पूछा, ‘‘अम्मा, ये सब क्या है? आप को क्या कम दिखाई देने लगा है?’’

‘‘कुछ नहीं बेटा, ऐसे ही जरा चक्कर आ गया था.’’

‘‘नहीं अम्मा, आप सच बताएं, आप को मेरी जान की कसम, आप को मुझे सच बताना होगा.’’

वह फूटफूट कर रोने लगीं फिर बताया, ‘‘बेटी, कुछ दिनों से मुझे चक्कर आ रहे हैं. धीरेधीरे मेरी आंखों की रोशनी कम होने लगी. अब तो बहुत ही कम दिखाई देता है. चक्कर भी आते हैं.’’

‘‘अम्मा, आप ने मुझे बताया क्यों नहीं, हम किसी डाक्टर को दिखाते, यह नौबत यहां तक आती ही नहीं. चलिए, उठिए डाक्टर के पास चलते हैं.’’

‘‘नहीं सुहाना, तुम मेरी बेटी हो. बेटी की कमाई कर्ज की तरह होती है. तुम्हारी कमाई सिर्फ तुम्हारी शादी पर खर्च होगी, इलाज पर नहीं.’’

‘‘नहीं अम्मा, मैं आप को किसी अच्छे डाक्टर के पास ले चलूंगी.’’

मैं ने बहुत कुछ कहा लेकिन अम्मा किसी कीमत पर इलाज के लिए तैयार नहीं हुईं.

दूसरे दिन औफिस में मैं उदास सी थी. इमरान हसन ने मुझे देखते ही कहा, ‘‘क्या बात है सुहाना, आप उदास लग रही हैं?’’

‘‘नहीं सर, ऐसी कोई बात नहीं है.’’

‘‘मिस सुहाना, आप मुझे गैर समझती हैं. आप नहीं जानतीं, मैं आप के बारे में क्या सोचता हूं. मेरा दिल चाहता है सारी दुनिया की खुशियां ला कर आप के कदमों में डाल दूं.’’

फिर वह अचकचा कर चुप हो गए.

‘‘शायद मैं कुछ ज्यादा बोल गया, मुझे माफ करना सुहाना.’’

‘‘नहीं सर, आप मेरे हमदर्द हैं. दरअसल मेरी अम्मा की आंखों की रोशनी जा रही है. उन्हें बहुत कम दिखाई देने लगा है. मैं क्या करूं?’’

‘‘आप परेशान न हों सुहाना. मैं आज आप के साथ आप के घर चलूंगा. हम उन्हें अच्छे डाक्टर को दिखाएंगे. क्या आप की अम्मा मेरी मां जैसी नहीं हैं?’’

‘‘यह बात नहीं है सर, असल में वह इलाज कराने को राजी ही नहीं होतीं.’’

‘‘मैं उन्हें समझा लूंगा, आप फिक्र न करें.’’

शाम को वह मेरे साथ मेरे घर आए. उन्होंने अम्मा से उन की बीमारी के बारे में पूछा, ‘‘इस की शुरुआत करीब 3 महीने पहले हुई थी, पर अम्मा ने मुझ से छिपाया.’’

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इमरान साहब ने बड़े प्यार से कहा, ‘‘आप घबराएं नहीं, मैं आप का इलाज कराऊंगा. आप ठीक हो जाएंगी.’’

‘‘नहीं बेटे, हम कुदरत से जंग नहीं लड़ सकते. मैं डाक्टरों का सहारा नहीं लेना चाहती. मैं आप का अहसान भी नहीं ले सकूंगी. मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो.’’

इमरान साहब भी नाकाम हो कर वापस चले गए. अम्मा ने कहा, ‘‘बड़ा नेक आदमी है. क्या तुम्हारे औफिस में काम करता है. अल्लाह उसे अच्छा रखे. वैसे कितनी उम्र है उस की?’’

मैं ने यहां झूठ बोलना ठीक समझते हुए कहा, ‘‘हां, अम्मा मेरे औफिस में काम करता है. अधेड़ आदमी है. 3 बच्चों का बाप है. भला आदमी है.’’

अम्मा को इत्मीनान हो गया.

दूसरे दिन इमरान साहब ने बड़े जज्बाती ढंग से कहा, ‘‘सुहाना, आज मैं दिल की बात तुम से कहना चाहता हूं. मैं तुम्हें दुलहन बना कर अपने घर ले जाना चाहता हूं. मैं तुम से बेहद मोहब्बत करता हूं. मुझे जवाब दो सुहाना.’’

मेरा दिल जोर से धड़क रहा था. मैं ने शरमा कर कहा, ‘‘सर, पर हमारे हालात में जमीनआसमान का फर्क है. मैं एक गरीब लड़की हूं और आप…’’

‘‘सुहाना, दिल के रिश्तों में ऊंचनीच, गरीब अमीर कुछ नहीं देखते. तुम मेरे लिए क्या हो, यह बस मैं जानता हूं.’’

‘‘क्या जिंदगी के किसी मोड़ पर आप को यह अहसास नहीं होगा कि आप ने बराबरी में शादी नहीं की?’’

‘‘नहीं, मैं ने बचपन में अपनी अम्मी को खो दिया था. फिर अब्बू चल बसे. मैं प्यार को तरसा हुआ इंसान हूं. तुम मेरे लिए मोहब्बत का समंदर हो. मेरी मंजिल हो. बस तुम राजी हो जाओ.’’

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मैं सोच में थी. मैं ने कहा, ‘‘इमरान साहब, मैं नहीं जानती, यह कैसे मुमकिन होगा?’’

‘‘तुम परेशान न हो, मैं सब देख लूंगा.’’

शादी- भाग 3: सुरेशजी को अपनी बेटी पर क्यों गर्व हो रहा था?

सुरेश चुपचाप वहां से निकल लिए और सुकन्या को ढूंढ़ने लगे.

‘‘क्या बात है, भाई साहब, कहां नैनमटक्का कर रहे हैं,’’ मिसेज साहनी ने कहा, जो सुकन्या के साथ गोलगप्पे के स्टाल पर खट्टेमीठे पानी का मजा ले रही थी और साथ कह रही थी, ‘‘सुकन्या, गोलगप्पे का पानी बड़ा बकवास है, इतनी बड़ी पार्टी और चाटपकौड़ी तो एकदम थर्ड क्लास.’’

सुकन्या मुसकरा दी.

‘‘मुझ से तो भूखा नहीं रहा जाता,’’ मिसेज साहनी बोलीं, ‘‘शगुन दिया है, डबल तो वसूल करने हैं.’’

उन की बातें सुन कर सुरेश मुसकरा दिए कि दोनों मियांबीवी एक ही थैली के चट्टेबट्टे हैं. मियां ज्यादा पी कर होश खो बैठा है और बीवी मीनमेख के बावजूद खाए जा रही है.

सुरेश ने सुकन्या से कहा, ‘‘खाना शुरू हुआ है, तो थोड़ा खा लेते हैं, नहीं तो निकलने की सोचते हैं.’’

‘‘इतनी जल्दी क्या है, अभी तो कोई भी नहीं जा रहा है.’’

‘‘पूरे दिन काम की थकान, फिर फार्म हाउस पहुंचने का थकान भरा सफर और अब खाने का लंबा इंतजार, बेगम साहिबा घर वापस जाने में भी कम से कम 1 घंटा तो लग ही जाएगा. चलते हैं, आंखें नींद से बोझिल हो रही हैं, इस वाहन चालक पर भी कुछ तरस करो.’’

‘‘तुम भी बच्चों की तरह मचल जाते हो और रट लगा लेते हो कि घर चलो, घर चलो.’’

‘‘मैं फिर इधर सोफे पर थोड़ा आराम कर लेता हूं, अभी तो वहां कोई नहीं है.’’

‘‘ठीक है,’’ कह कर सुकन्या सोसाइटी की अन्य महिलाआें के साथ बातें करने लगी और सुरेश एक खाली सोफे पर आराम से पैर फैला कर अधलेटे हो गए. आंखें बंद कर के सुरेश आराम की सोच रहे थे कि एक जोर का हाथ कंधे पर लगा, ‘‘सुरेश बाबू, यह अच्छी बात नहीं है, अकेलेअकेले सो रहे हो. जश्न मनाने के बजाय सुस्ती फैला रहे हो.’’

सुरेश ने आंखें खोल कर देखा तो गुप्ताजी दांत फाड़ रहे थे.

मन ही मन भद्दी गाली निकाल कर प्रत्यक्ष में सुरेश बोले, ‘‘गुप्ताजी, आफिस में कुछ अधिक काम की वजह से थक गया था, सोचा कि 5 मिनट आराम कर लूं.’’

‘‘उठ यार, यह मौका जश्न मनाने का है, सोने का नहीं,’’ गुप्ताजी हाथ पकड़ कर सुरेश को डीजे फ्लोर पर ले गए जहां डीजे के शोर में वर और वधू पक्ष के नजदीकी नाच रहे थे, ‘‘देख नंदकिशोर के ठुमके,’’ गुप्ताजी बोले पर सुरेश का ध्यान सुकन्या को ढूंढ़ने में था कि किस तरीके से अलविदा कह कर वापस घर रवानगी की जाए.

सुकन्या सोसाइटी की महिलाओं के साथ गपशप में व्यस्त थी. सुरेश को नजदीक आता देख मिसेज रस्तोगी ने कहा, ‘‘भाई साहब को कह, आज तो मंडराना छोड़ें, मर्द पार्टी में जाएं. बारबार महिला पार्टी में आ जाते हैं.’’

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‘‘भाभीजी, कल मैं आफिस से छुट्टी नहीं ले सकता, जरूरी काम है, घर भी जाना है, रात की नींद पूरी नहीं होगी तो आफिस में काम कैसे करूंगा. अब तो आप सुकन्या को मेरे हवाले कीजिए, नहीं तो उठा के ले जाना पड़ेगा,’’ सुरेश के इतना कहते ही पूरी महिला पार्टी ठहाके में डूब गई.

‘‘क्या बचपना करते हो, थोड़ी देर इंतजार करो, सब के साथ चलेंगे. पार्टी का आनंद उठाओ. थोड़ा सुस्ता लो. देखो, उस कोने में सोफे खाली हैं, आप थोड़ा आराम करो, मैं अभी वहीं आती हूं.’’

मुंह लटका कर सुरेश फिर खाली सोफे पर अधलेटे हो गए और उन की आंख लग गई.

नींद में सुरेश ने करवट बदली तो सोफे से नीचे गिरतेगिरते बचे. इस चक्कर में उन की नींद खुल गई. चंद मिनटों की गहरी नींद ने सुरेश की थकान दूर कर दी थी. तभी सुकन्या आई, ‘‘तुम बड़े अच्छे हो, एक नींद पूरी कर ली. चलो, खाना शुरू हो गया है.’’

सुरेश ने घड़ी देखी, ‘‘रात का 1 बजा था. अब 1 बजे खाना परोस रहे हैं.’’

खाना खाते और फिर मिलते, अलविदा लेते ढाई बज गए. कार स्टार्ट कर के सुरेश बोले, ‘‘आज रात लांग ड्राइव होगी, घर पहुंचतेपहुंचते साढ़े 3 बज जाएंगे. मैं सोचता हूं कि उस समय सोने के बजाय चाय पी जाए और सुबह की सैर की जाए, मजा आ जाएगा.’’

‘‘आप तो सो लिए थे, मैं बुरी तरह थक चुकी हूं. मैं तो नींद जरूर लूंगी… लेकिन आप इतनी धीरे कार क्यों चला रहे हो?’’

‘‘रात के खाली सड़कों पर तेज रफ्तार की वजह से ही भयानक दुर्घटनाएं होती हैं. दरअसल, पार्टियों से वापस आते लोग शराब के नशे में तेज रफ्तार के कारण कार को संभाल नहीं पाते. इसी से दुर्घटनाएं होती हैं. सड़कों पर रोशनी पूरी नहीं होती, सामने से आने वाले वाहनों की हैडलाइट से आंखों में चौंध पड़ती है, पटरी और रोडडिवाइडर नजर नहीं आते हैं, इसलिए जब देरी हो गई है तो आधा घंटा और सही.’’

पौने 4 बजे वे घर पहुंचे, लाइट खोली तो रोहिणी उठ गई, ‘‘क्या बात है पापा, पूरी रात शादी में बिता दी. कल आफिस की छुट्टी करोगे क्या?’’

सुरेश ने हंसते हुए कहा, ‘‘कल नहीं, आज. अब तो तारीख भी बदल गई है. आज आफिस में जरूरी काम है, छुट्टी का मतलब ही नहीं. अगर अब सो गया तो समझ लो, दोपहर से पहले उठना ही नहीं होगा. बेटे, अब तो एक कप चाय पी कर सुबह की सैर पर जाऊंगा.’’

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‘‘पापा, आप कपड़े बदलिए, मैं चाय बनाती हूं,’’ रोहिणी ने आंखें मलते हुए कहा.

‘‘तुम सो जाओ, बेटे, हमारी नींद तो खराब हो गई है, मैं चाय बनाती हूं,’’ सुकन्या ने रोहिणी से कहा.

चाय पीने के बाद सुरेश, सुकन्या और रोहिणी सुबह की सैर के लिए पार्क में गए.

‘‘आज असली आनंद आएगा सैर करने का, पूरा पार्क खाली, ऐसे लगता है कि हमारा प्राइवेट पार्क हो, हम आलसियों की तरह सोते रहते हैं. सुबह सैर का अपना अलग ही आनंद है,’’ सुरेश बांहें फैला कर गहरी सांस खींचता हुआ बोला.

‘‘आज क्या बात है, बड़ी दार्शनिक बातें कर रहे हो.’’

‘‘बात दार्शनिकता की नहीं, बल्कि जीवन की सचाई की है. कल रात शादी में देखा, दिखावा ही दिखावा. क्या हम शादियां सादगी से नहीं कर सकते? अगर सच कहें तो सारा शादी खर्च व्यर्थ है, फुजूल का है, जिस का कोई अर्थ नहीं है.’’

तभी रोहिणी जौगिंग करते हुए समीप पहुंच कर बोली, ‘‘पापा, बिलकुल ठीक है, शादियों पर सारा व्यर्थ का खर्चा होता है.’’

सुकन्या सुरेश के चेहरे को देखती हुई कुछ समझने की कोशिश करने लगी. फिर कुछ पल रुक कर बोली, ‘‘मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है. आज सुबह बापबेटी को क्या हो गया है?’’

‘‘बहुत आसान सी बात है, शादी में सारे रिश्तेदारों को, यारों को, पड़ोसियों को, मिलनेजुलने वालों को न्योता दिया जाता है कि शादी में आ कर शान बढ़ाओ. सब आते हैं, कुछ कामधंधा तो करते नहीं…उस पर सब यही चाहते हैं कि उन की साहबों जैसी खातिरदारी हो और तनिक भी कमी हो गई तो उलटासीधा बोलेंगे, जैसे कि नंदकिशोर के बेटे की शादी में देखा, हम सब जम कर दावत उड़ाए जा रहे थे और कमियां भी निकाल रहे थे.’’

तभी रोहिणी जौगिंग का एक और चक्कर पूरा कर के समीप आई और बोलने लगी तो सुकन्या ने टोक दिया, ‘‘आप की कोई विशेष टिप्पणी.’’

यह सुन कर रोहिणी ने हांफते हुए कहा, ‘‘पापा ने बिलकुल सही विश्लेषण किया है शादी का. शादी हमारी, बिरादरी को खुश करते फिरें, यह कहां की अक्लमंदी है और तुर्रा यह कि खुश फिर भी कोई नहीं होता. आखिर शादी को हम तमाशा बनाते ही क्यों हैं. अगर कोई शादी में किसी कारण से नहीं पहुंचा तो हम भी गिला रखते हैं कि आया नहीं. कोई किसी को नहीं छोड़ता. शादी करनी है तो घरपरिवार के सदस्यों में ही संपन्न हो जाए, जितना खच?र् शादी में हम करते हैं, अगर वह बचा कर बैंक में जमा करवा लें तो बुढ़ापे की पेंशन बन सकती है.’’

‘‘देखा सुकन्या, हमारी बेटी कितनी समझदार हो गई है. मुझे रोहिणी पर गर्व है. कितनी अच्छी तरह से भविष्य की सोच रही है. हम अपनी सारी जमापूंजी शादियों में खर्च कर देते हैं, अकसर तो उधार भी लेते हैं, जिस को चुकाना भी कई बार मुश्किल हो जाता है. अपनी चादर से अधिक खर्च जो करते हैं.’’

‘‘क्या बापबेटी को किसी प्रतियोगिता में भाग लेना है, जो वहां देने वाले भाषण का अभ्यास हो रहा है या कोई निबंध लिखना है.’’

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‘‘काश, भारत का हर व्यक्ति ऐसा सोचता.

Serial Story: धनिया का बदला- भाग 2

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

‘‘अरे धनिया, आप चिंता क्यों करती हो… आप तो बस दवा खाओ और आराम करो… हम खाना भी बना लेंगे और बच्चों को भी संभाल लेंगे,’’ छंगा कह रहा था. उस की बात सुन कर खटिया पर लेटी हुई धनिया की आंखों में आंसू आ गए.

बीरू के मर जाने के बाद उस के हिस्से की जमीन धनिया के नाम कर दी गई थी. छंगा के मन में तो खोट था. वह उस जमीन को अपने नाम पर करा कर धनिया से छुटकारा पाना चाहता था, इसलिए एक दिन जब धनिया बुखार की दवा खा कर सो रही थी, तब धोखे से छंगा ने जमीन के कागजों पर धनिया का अंगूठा लगवा लिया.

शायद छंगा को इसी दिन का इंतजार ही था कि कागजों पर अंगूठा लग जाए और वह अकेला ही इस जमीन पर  राज करे.

जब कुछ दिनों बाद धनिया की सेहत में सुधार हो गया, तब उस ने गौर किया कि छंगा का उस के और उस की बेटियों के प्रति बरताव बदल सा गया है. जहां पहले वह बच्चियों के लिए खानेपीने की चीजें लाता था, वहीं अब वह खाली हाथ चला आता है और सीधे मुंह बात भी नहीं करता और उन्हें मारनापीटना भी शुरू कर दिया है.

‘‘अब तो तुम्हारा बुखार सही हो गया है… कुछ कामधाम भी किया करो… सारा दिन तुम्हारे बच्चे मुझे तंग करते रहते हैं और मेरे पैसे खर्च करवाते हैं. अब इन का और खर्चा मुझ से नहीं उठाया जाता,’’ छंगा गरज रहा था.

‘शायद बाहर की कुछ परेशानी होगी, तभी तो ऐसे कह रहा है छंगा, नहीं तो मीठा बोलने वाला छंगा इतना कड़वा क्यों बोलता,’ ऐसा सोच कर धनिया खुद ही खेत की तरफ सब्जी तोड़ने चल दी.

खेत पर पहुंचते ही उस की आंखें हैरत से फटी रह गईं. खेत में खड़े नीम के पेड़ की छांव में गांव के कुछ मुस्टंडे शराब और मांस खा रहे थे.

‘‘तुम लोग मेरे खेत में गंदगी क्यों फैला रहे हो… क्या तुम लोगों को और कोई जगह नहीं मिली… चलो, भागो यहां से,’’ धनिया चीख रही थी.

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‘‘तुम्हारा खेत… पर, यह खेत तो तुम अपनी मरजी से छंगा के नाम पर चुकी हो… और उसी ने हमें यहां बुला कर खानेपीने का इंतजाम करवाया है. अगर हमारी बात पर यकीन न आ रहा हो, तो पंचायत बुला कर पूछ लो,’’ उन में से एक ने धनिया से कहा.

धनिया ने उन लोगों को तो किसी तरह वहां से चलता किया, पर उन लोगों की बात उस के कानों में गूंजती रही.

धनिया घर लौटी, तो अपनी बेटियों को उस ने दरवाजे पर ही रोते पाया.

‘‘देखो अम्मां… पापा ने हमें मार कर घर से बाहर निकाल दिया है,’’ एक बेटी ने बताया.

धनिया का दिल दहल उठा था. उस ने बाहर से ही छंगा को आवाज लगाई.

‘‘अब मुझे तेरी जरूरत नहीं है… तू मेरी जिंदगी से चली जा, तुझ में है ही क्या? भला कोई 2 बेटियों की मां के साथ कैसे खुश रह सकता है,’’ छंगा अंदर से ही बोला और दरवाजा बंद  कर लिया.

रोती हुई धनिया पंचायत पहुंची. पंचों ने तुरंत ही छंगा को तलब किया और उस से पूछा कि जिस औरत के साथ अभी कुछ दिन पहले ही तुम ने ब्याह किया है, आज उस के साथ ऐसा सुलूक क्यों कर रहे हो?

‘‘भला मैं ऐसा सुलूक करने वाला कौन होता हूं… इस कागज पर खुद धनिया का अंगूठा लगा है और जिस में लिखा हुआ है कि मैं अब अपनी सारी खेती छंगा के नाम कर रही हूं और अपनी मरजी से छंगा का घर छोड़ कर जा रही हूं, इसलिए भविष्य में उसे मेरा पति और मुझे उस की पत्नी न समझा जाए,’’ कह कर छंगा ने कागज आगे बढ़ा दिया.

पंचों ने उन कागजों को उलटापलटा. कागज पर यही लिखा हुआ था, जिस के नीचे धनिया का अंगूठा भी लगा हुआ था.

‘‘तुम ने तो अपनी मरजी से ही ये सब किया है… यह अंगूठे का निशान तो तुम्हारा ही है न?’’ पंचों में से  एक ने कागज दिखाते हुए पूछा.

धनिया हैरान थी. अंगूठे का निशान तो उसी का था, पर भला वह क्यों ऐसा करने लगी? यह सोच कर वह परेशान हो उठी.

कागजों के आगे पंच भी मजबूर थे, इसलिए उन्होंने छंगा के हक में फैसला सुना दिया और धनिया सड़क पर आ गई.

रात हुई तो धनिया को डर लगने लगा. कुछ सोच कर वह बेटियों को ले कर अपने घर गई. दरवाजा अंदर से भिड़ा हुआ था. सामने छंगा बैठा हुआ ढेर सारे नोटों की गड्डियां गिन रहा था.

धनिया सन्न रह गई थी, उस की आंखें फटी की फटी रह गई थीं. आखिरकार आज से पहले इतना पैसा तो छंगा के पास नहीं देखा था उस ने.

‘‘ऐसे चुड़ैल की तरह क्या देख रही है… क्या कभी पैसा नहीं देखा… और फिर मेरे घर क्यों आई हो, जब तुझे पंचायत में शिकायत ले कर जाना ही है… अब मुझे तेरा साथ नहीं चाहिए,’’ छंगा ने धनिया को देख कर कहा.

‘‘मैं कोई भीख मांगने नहीं आई… मेरे हिस्से की जमीन…’’

‘‘तेरी कोई जमीन नहीं… और जो जमीन तू ने मेरे नाम कर दी थी, वह भी मैं ने कालिया को बेच दी है,’’ कह कर छंगा ने दरवाजा बंद कर दिया था.

Serial Story: संधि प्रस्ताव- भाग 2

लेखक- अलका प्रमोद

‘‘सुनीता बोलीं, ‘यह किसी ने झूठ लिखा है. अरे, मेरे यथार्थ ने मुझ से फोन पर बात कर के आने को कहा था और अचानक उस ने आश्रम में दीक्षा ले ली? यह नहीं हो सकता. उस का दीक्षा लेने का मन होता तो कभी तो हम से जिक्र करता. वह तो हम से अपने मन की हर बात कहता है.’

‘‘‘अब तो सच वहां जा कर ही मालूम होग, सुनीता,’ तपन ने चिंतातुर वाणी में कहा.

‘‘आश्रम के द्वार पर ही सुनीता, तपन और उन के साथ आए यथार्थ के मामा राजन और तपन के अभिन्न मित्र विकास को रोक दिया गया. तपन ने वह पत्र दिखाया जिस में लिखा था कि उन के हृदय के टुकड़े ने आश्रम में दीक्षा ले ली है.

‘‘वहां स्वामीजी के कुछ शिष्य थे. उन्होंने उन के आने का उद्देश्य पूछा. सुनीता ने कहा, ‘हम अपने बेटे को लेने आए हैं.’

‘‘इस पर वहां का मुख्य कार्यकर्ता अखिलानंद बोला, ‘पर उन्होंने दीक्षा ले ली है. अब वे आप के बेटे नहीं हैं, बल्कि यहां के दीक्षित प्रशिक्षु हैं. कुछ समय बाद वे संत की उपाधि पा जाएंगे.’

‘‘यह सुन कर सुनीता व्यग्र हो गईं. उन्होंने कहा, ‘ऐसे कैसे आप मेरे बेटे को मुझ से छीन सकते हैं? आप कौन होते हैं यह कहने वाले कि वह मेरा बेटा नहीं है?’

‘‘तपन ने कहा, ‘वह एक पढ़ालिखा इंजीनियर है. अभी तो उसे अपना कैरियर बनाना है. अभी कोई आयु है दीक्षा लेने की?’

‘‘इस पर विकास ने कहा, ‘अरे तपन, इन लोगों से बहस करने से क्या लाभ, पहले यथार्थ से मिलो, दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा.’

‘‘‘आप उन से नहीं मिल सकते,’ अखिलानंद ने कहा.

‘‘‘अरे, मेरा बेटा है और हम ही नहीं मिल सकते, आप कौन होते हैं हमें रोकने वाले?’

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‘‘तभी अखिलानंद के एक साथी ने आ कर उस के कान में कुछ कहा. फिर अखिलानंद ने तपन से कहा, ‘आप लोग खुश हो जाएं स्वामीजी ने आज्ञा दी है कि आप लोगों को विश्वानंदजी से मिलवा दिया जाए.’

‘‘‘ये विश्वानंद कौन हैं, हम उन से मिलना नहीं चाहते. हमें, बस, अपने बेटे से मिलना है.’

‘‘‘जी, आप के जो बेटे थे उन का ही सांसारिक नाम त्याग कर नया नाम विश्वानंद रखा गया है.’

‘‘सुनीता को यह स्वीकार नहीं था. उन्होंने कहा, ‘आप के कहने से उस का नाम बदल जाएगा क्या? उस का नाम कानूनीरूप से यथार्थ है और वही रहेगा.’

‘‘तपन ने बात को विराम देते हुए कहा, ‘चलिए, पहले आप हमें उस से मिलवाइए.’

‘‘आखिलानंद और उस का वह साथी उन्हें आश्रम के पिछवाड़े एक गर्भकक्ष में ले गए जहां अंधकार पांव पसारे था. बस, एक रोशनदान से प्रकाश की रश्मियां घुसपैठ करने को प्रयासरत थीं वरना दिन या रात का निर्णय कठिन हो जाता.

‘‘अखिलानंद ने आवाज दी, ‘विश्वानंद, देखो कुछ लोग तुम से मिलना चाहते हैं.’

‘‘बैठे हुए व्यक्ति को देख कर आगंतुक कुछ क्षण तो हतप्रभ रह गए. कहां जींस पहने, बालों में जेल लगाए सुंदरस्मार्ट यथार्थ और कहां बाल मुंडाए गेरुए वस्त्र पहने यह युवक. पर मां की दृष्टि तो सात परदों में भी अपने बेटे को पहचान लेती है. उस ने यथार्थ को देख कर कहा, ‘बेटा, इन लोगों ने तुम्हारा यह क्या हाल किया है?’

‘‘‘आप कौन?’ यथार्थ ने सुनीता को देख कर कहा.

‘‘सुनीता को लगा मानो किसी ने उस के गाल पर तमाचा जड़ दिया हो. उस ने कहा, ‘मैं तेरी मम्मा, बेटू.’

‘‘‘मेरी कोई मां नहीं,’ यथार्थ ने कहा. उस की आंखें लाल हो रही थीं. वह आंखें नीची कर के बात कर रहा था.

‘‘तपन ने कहा, ‘बेटा, तुझे क्या हो गया है. मैं तेरा पापा, ये मम्मा, जरा होश में तो आ.’

‘‘पर यथार्थ ने उन की ओर दृष्टि नहीं उठाई. वह नीची दृष्टि किए हुए एक ही बात कह रहा था, ‘मैं किसी को नहीं जानता, मेरी कोई मां नहीं, कोई पिता नहीं.’

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‘‘सुनीता ने उस का हाथ थामा तो उस ने झटक दिया और बोला, ‘मैं एक संत हूं. मैं सांसारिक लोगों से नहीं मिलता. मुझ से दूर रहें.’

‘‘‘बेटा, मैं तेरी मां हूं. इन लोगों ने तुझे बहका दिया है.’

‘‘इस पर वह खोईखोई वाणी में बोला, ‘मेरी मांपिता सब ऊपर वाला है. इस नश्वर संसार में मेरा कोई नहीं.’

‘‘सुनीता रो पड़ीं. वे तपन से बोलीं, ‘देखो, मेरे बेटे को क्या हो गया है. यह मुझे ही नहीं पहचान रहा है. जरूर इस पर किसी ने कोई जादूटोना कर दिया है.’ वे यथार्थ को हिलाने लगीं, अखिलानंद ने उन्हें रोक दिया, ‘आप इन्हें छू नहीं सकतीं. ये पवित्र आत्मा हो गए हैं.’

‘‘सुनीता बिगड़ गईं, ‘मैं, जिस ने उसे जन्म दिया है उस की मां, उसे छू नहीं सकती?’ उन्होंने यथार्थ से कहा, ‘बोल बेटा, बता दे इन्हें कि मैं तेरी मां हूं.’ पर वे लोग उन्हें और तपन वगैरा को जबरदस्ती बाहर ले आए और बोले, ‘बस, इस से ज्यादा आप उन से नहीं मिल सकते.’

‘‘विवशता में उन्हें वहां से आना पड़ा पर अपना बेटा कैसे खो सकते थे वे. दूसरे दिन अपने साथ 15-20 लोगों को ले कर वे फिर आश्रम गए. पर इस बार उन्हें अंदर जाने से ही रोक दिया गया. तपन के साथ यथार्थ के मित्र शिशिर और पवन भी थे. वे दोनों गुस्से में आ गए. उन्होंने जबरदस्ती अंदर जाने का प्रयास किया. उधर, स्वामीजी के शिष्यों का समूह बाहर आ गया. वे लोग इन्हें रोकने लगे जिस में आपस में हाथापाई की स्थिति आ गई. इसी हाथापाई में पवन को चोट लग गई और खून बहने लगा.

‘‘जब इन लोगों का अंदर जाने का प्रयास असफल हो गया, तो ये लोग वहीं धरना दे कर बैठ गए. और नारे लगाने लगे, ‘मेरा बेटा वापस दो, स्वामी जी हायहाय, धर्म के नाम पर धांधली नहीं चलेगी’ आदि.

‘‘इन के चारों ओर लोगों की भीड़ लग गई. जब आश्रम वालों ने देखा कि ये नहीं हट रहे हैं तो उन्होंने पुलिस को बुला लिया.

‘‘पुलिस ने स्वामीजी की शिकायत पर धरने वालों को हटाने का प्रयास किया तो इन लोगों ने आश्रम के विरुद्ध शिकायत की. इस पर पुलिस ने पूछताछ की. पर जब यथार्थ से पुलिस ने पूछा तो उस ने साफसाफ कह दिया कि वह अपनी इच्छा से आया है.

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‘‘पुलिस इंस्पैक्टर ने तपन से कहा, ‘देखिए, आप का बेटा वयस्क है और यदि वह अपनी इच्छा से आश्रम में रह रहा है तो हम कुछ नहीं कर सकते.’

‘‘‘पर आश्रम वालों ने उस का ब्रेनवाश किया है, उसे बहका कर फंसाया है.’

‘‘‘जी, मैं सब समझ रहा हूं पर इस का कोई साक्ष्य नहीं है.’

‘‘तपन ने कहा, ‘पर आप हमें अपने ढंग से अपने बेटे को वापस लेने दीजिए.’

‘‘इंस्पैक्टर ने कहा, ‘देखिए तपनजी, मैं आप को अपने हाथ में कानून नहीं लेने दे सकता.’

‘‘सुनीता ने कहा, ‘यह कैसी बात है कि आप जानते हैं कि उन्होंने मेरे बेटे को बरगलाया है, वे गलत हैं और हम सही, फिर भी हमें ही रोक रहे हैं?’

Serial Story: उल्टी पड़ी चाल- भाग 2

लेखक- एडवोकेट अमजद बेग

‘‘आप ने खुद किस्सा कह कर बात साफ कर दी. यह सरासर मनघडंत कहानी है. वह सरासर झूठ बोल रहा है. घर की तलाश में वह मेरे औफिस में आता रहता था. 14 अक्तूबर की शाम भी वह आया था. मैं ने उस से कहा था जल्द ही अच्छा घर बताऊंगा.

‘‘बातोंबातों में मैं ने एक लाख का जिक्र किया था कि पार्टी ने एक लाख रुपए की पेमेंट कर के सेल एग्रीमेंट बनवा लिया है, जिस के अनुसार पार्टी एक माह के अंदर बाकी के 5 लाख रुपए अदा कर के मेरे घर का कब्जा ले लेगी. इस बीच बिक्री के पूरे दस्तावेज तैयार हो जाएंगे.’’

‘‘यानी आप ने मुल्जिम को यह बता दिया था कि आप के घर में एक लाख की रकम रखी है?’’ वकील इस्तेगासा ने चालाकी से पूछा.

‘‘जी हां, बिलकुल उसे यह बात खबर हो गई थी. अगले दिन ही शैतान ने मेरे घर पर धावा बोल दिया और ऐसा वक्त चुना जब मैं घर पर नहीं था. उसे मालूम था मेरी बीवी रशीदा कमजोर और बीमार है. उस ने इस का फायदा उठाते हुए मेरे घर से एक लाख उड़ा लिए और जब रशीदा ने उस का विरोध किया तो उस का गला घोंट कर मार डाला.

‘‘इत्तफाक से मैं उस दिन जल्दी घर आ गया और मैं ने उसे तेजी से मेरे घर से जाते हुए देख लिया. मैं समझा अपना कोई बचा हुआ सामान लेने आया होगा, पर जब मैं बेडरूम में दाखिल हुआ, मैं ने अपनी बीवी को मुर्दा हालत में पड़े देखा.’’ काजी ने रोनी आवाज में कहा.

वकील इस्तेगासा ने अपनी जिरह खत्म करते हुए कहा, ‘‘योर औनर, यह इंसान नहीं वहशी दरिंदा है. इसे जितनी सख्त सजा दी जाए कम है.’’

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अपनी बारी पर जज से इजाजत ले कर मैं बिटनेस बौक्स के करीब पहुंच गया.

‘‘काजी साहब, मैं आप से सादा सा सवाल पूछूंगा. सच बताइए क्या आप वाकई अपना मकान बेचना चाहते थे?’’ मैं ने चुभते लहजे में पूछा.

‘‘आप का क्या मतलब है? अगर मुझे मकान बेचना ना होता तो मैं पार्टी से एक लाख रुपए वसूल कर के सेल एग्रीमेंट पर दस्तखत क्यों करता?’’ उस ने गुस्से से कहा.

‘‘इस सेल एग्रीमेंट के अनुसार पार्टी को एक माह के अंदर 5 लाख रुपए अदा कर के मकान का कब्जा ले लेना था. क्या आप ने मकान पार्टी के हवाले कर दिया है?’’

‘‘नहीं, मैं अभी तक अपने ही मकान में रह रहा हूं.’’

‘‘एग्रीमेंट के मुताबिक इस शर्त पर आप अमल नहीं करते तो आप को पार्टी को डील कैंसल कर के 2 लाख देने पड़ते क्या आप ने 2 लाख अदा किए?’’

‘‘दुनिया में सब इंसान मुल्जिम की तरह फरेबी और मतलबी नहीं होते. मेरी बीवी के कत्ल और एक लाख की चोरी के बाद पार्टी ने मुझ पर कोई दबाव नहीं डाला और कहा कि अगर मैं घर ना बेचना चाहूं तो उन के एक लाख रुपए सहूलियत से वापस कर दूं. और मैं ने उधार ले कर रकम लौटा दी. इस तरह मामला सेटल हो गया.’’

‘‘इस तरह के मामलात इतनी आसानी से सेटल नहीं होते. सेल एग्रीमेंट की एक नकल जिस में आप ने एक लाख एडवांस लिए थे, अदालत में पेश करते तो यह एक पक्का सबूत होता.’’

‘‘अगर अदालत का हुक्म होगा तो मैं एग्रीमेंट की कौपी ले आऊंगा.’’

‘‘और अगर पार्टी की गवाही की जरूरत पड़ी तो?’’

‘‘तो मैं पार्टी को भी अदालत में ला सकता हूं.’’

‘‘क्या मैं इस पार्टी का नामपता जान सकता हूं?’’

‘‘मैं आप को कोई भी जवाब देने का पाबंद नहीं हूं. अगर अदालत मुझ से कहेगी तो बता दूंगा.’’

‘‘काजी साहब, आप अदालत में ना तो सेल एग्रीमेंट की कौपी पेश कर सकते हैं और ना पार्टी को हाजिर कर सकते हैं. यह बिक्री सिर्फ एक साजिशी ड्रामा था जो आप ने मेरे क्लाइंट को फंसाने के लिए रचा था. हकीकत तो यह है, काजी साहब, आप इस मकान को बेचने का हक ही नहीं रखते. फिर कहां की पार्टी और कहां का सेल एग्रीमेंट?’’

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काजी का चेहरा पीला पड़ गया. वह हकलाया, ‘‘यह…यह… आप क्या कह रहे हैं?’’

‘‘एक लाख दे कर 2 कमरे मिलने पर वह बेहद खुश था, पर काजी ने अपनी मक्कारी और साजिश से उसे कटघरे में खड़ा कर दिया. उस का कसूर बस इतना है कि उस ने काजी की बातों का भरोसा किया. काजी से उसे जज्बात की मार मारी थी, जिस की वजह से वह बिना किसी लिखापढ़ी के इतना बड़ा सौदा कर बैठा.’’

विपक्ष के वकील ने जमानत का विरोध करते हुए कहा, ‘‘मुलजिम पढ़ालिखा समझदार आदमी है. बैंक में काम करता है. वह इतना बेवकूफ हरगिज नहीं हो सकता कि आंख बंद कर के किसी के बहकावे में एक लाख इनवेस्ट कर दे. यह बेहद चालाक आदमी है. अपनी मजबूरी का रोना रो कर काजी का किराएदार बना. फिर बीमार बीवी की खिदमत कर के उन के दिल में जगह बना ली. काफी दिनतक वह उन के घर में रहा, जब उस का मकसद पूरा हो गया तो उस ने काजी वहीद साहब से घर छोड़ कर जाने की बात की और साथ ही एक लाख रुपए की डिमांड भी की.

‘‘जब काजी ने कहा कि घर पर उस का एक पैसा भी खर्च नहीं हुआ है, तब वह गुस्से से पागल हो गया. दोनों के बीच काफी झगड़ा हुआ. तभी मुलजिम ने उन्हें खतरनाक अंजाम भुगतने की धमकी दी और 15 अक्तूबर की शाम को धमकी पूरी कर दिखाई.

‘‘मौका पा कर वह ऐसे वक्त पर मकतूला के घर में घुसा, जब उस का शौहर नहीं था. उस ने अलमारी से एक लाख रुपए चोरी किए. मकतूला के विरोध करने पर उस ने उसे गला घोंट कर मार दिया. जब वह घर से फरार हो रहा था, तभी काजी वहां पहुंच गया.

‘‘उस ने उसे जाते देख लिया, काजी फौरन घर में घुसा. हकीकत किसी बम की तरह उस के सिर पर फटी. उस की बीवी बेडरूम में मुर्दा पड़ी थी. उसे गला घोंट कर मार दिया गया था और खुली अलमारी से एक लाख रुपए गायब थे.’’

मैं ने अपने मुवक्किल की जमानत पर जोर देते हुए कहा, ‘‘योर औनर, विपक्ष के वकील सच्चाई को तोड़मरोड़ कर सामने रख रहे हैं. ना तो मेरे मुवक्किल ने उस की बीवी का कत्ल किया और ना ही उस की अलमारी से एक लाख रुपए चुराए.

देसी मेम- भाग 4: क्या राकेश ने अपने मम्मी-पापा की मर्जी से शादी की?

लेखक- शांता शास्त्री

अब मैं उन के मनोविज्ञान को आईने में तसवीर की तरह साफसाफ देख रहा था. इस डर से कि कहीं किसी विदेशी मेम को मैं घर न ले आऊं, इन लोगों ने मेरे इर्दगिर्द देशी मेमों की भीड़ लगा दी थी.

मुझे लगा कि मम्मी मेरा निर्णय आज सुन कर ही दम लेंगी, इसीलिए उन्होंने फिर से पूछ लिया, ‘‘अब तो तेरे जाने का समय आ चुका है. तू ने बताया नहीं कि तुझे कौन सी भा गई.’’

मैं ने उन के प्रश्न को अनसुना करते हुए कहा, ‘‘फिक्र क्यों करती हो, मां? एकाध दिन में अंतिम फैसला खुद ब खुद आप लोगों के सामने आ जाएगा.’’

मां न कुछ समझीं. न कुछ बोलीं, और न ही शायद अध्यक्ष महोदय से सलाह करना चाहती थीं. हुआ भी वही. अगले दिन मैं पिताजी के निशाने पर था. बड़ी मुश्किल से उन्हें समझा पाया कि बस, आप एक दिन और रुक जाइए.

‘‘मगर परसों तो तू जा रहा है,’’ मां ने परेशान स्वर में कहा.

‘‘हां, मां, बिना यह मामला तय हुए मैं नहीं जाऊंगा, बस?’’ संदेह भरी नजरों से देखती हुई मां चुप हो गईं.

पिताजी सोच में पड़ गए.

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अगले दिन शाम को पिताजी घर पर ही थे. मधु अपने पिकनिक के फोटो मां और पिताजी को दिखा रही थी. मैं बनठन कर बाहर निकलने ही वाला था कि पिताजी की आवाज आई, ‘‘राकेश, यहां आओ.’’

मैं आज्ञाकारी बच्चे की तरह उन के पास आ कर खड़ा हो गया तो मां बोलीं, ‘‘सचसच बता, तू ने क्या खेल रचाया?’’ मम्मी ने मेरे बैठने से पहले ही गुस्से से पूछा.

‘‘कैसा खेल, मां?’’ मैं ने बडे़ भोलेपन से पूछा.

‘‘इन लड़कियों से तू ने क्या कहा है कि वे बिदक गईं. अब न पूछना कि कौन सी लड़कियां?  मैं जानती हूं कि तू सब समझता है.’’

‘‘मां, मेरा विश्वास कीजिए. मैं ने उन से ऐसा कुछ नहीं कहा.’’

‘‘देखो राकेश, बात को घुमाने के बजाय साफ और सीधी करो तो सभी का समय बचेगा,’’ पिताजी ने कहा.

‘‘इस ने जरूर कुछ उलटासीधा किया है वरना सारे के सारे रिश्ते इस तरह पलट नहीं जाते. कोई कहती है आगे पढ़ना है, किसी की कुंडली नहीं जमी तो कोई मंगली है….वाह, 9 के 9 रिश्ते अलगअलग बहाने बना कर छिटक गए. रिश्ते लड़कों की तरफ से मना होते हैं पर लड़कियों की तरफ से ना होना कितने अपमान की बात है. वह भी एक सुंदर, पढे़लिखे, अमेरिका में नौकरीशुदा नौजवान के लिए. बोल, क्या शरारत की तू ने? सचसच बता, वरना तू वापस अमेरिका नहीं जाएगा. हमारी तो नाक ही कट गई,’’ मां को इतना बिफरते हुए किसी ने कभी नहीं देखा था.

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मैं मां की साथ वाली कुरसी पर बैठ गया और उन के कंधे पर हाथ रखते हुए बोला, ‘‘मां, क्या तुम्हें अपने बेटे पर विश्वास नहीं है? मैं ने ऐसा कुछ नहीं किया है. वे जब अमेरिका में मेरी गर्ल फ्रेंड्स के बारे में पूछ रही थीं तब मैं ने सूसन के बारे में बताया था.’’

पिताजी ने कहा, ‘‘हूं,’’ और उस एक ‘हूं’ में  हजार अर्थ थे.

मां ने कहा, ‘‘अब समझी, यह बात क्या कम है?’’

‘‘नहीं मां, आप गलत समझ रही हैं. उन में से किसी भी लड़की को इस बात पर एतराज नहीं है.’’

पिताजी गरजे, ‘‘बकवास बंद कर. तू कैसे जानता है कि तेरे सूसन से परिचय में इन लड़कियों को कोई एतराज नहीं है?’’

‘‘क्योंकि उन में से एक ने कहा कि अमेरिकन कल्चर में यह आम बात है. दूसरी ने कहा कि वहां तो सुबह शादी होती है और शाम को डिवोर्स. तीसरी बोली कि मैं सती सावित्री की पुण्य भूमि में जन्मी हूं. मैं उस के चंगुल से आप को छुड़ा लूंगी.’’

मैं ने देखा कि पिताजी के होंठों पर मुसकराहट थी. मां का मुंह खुला का खुला रह गया.

‘‘इसी तरह सभी ने इस बात को घास के तिनके की तरह उड़ा दिया था.’’

‘‘अगर किसी को इस बात पर एतराज न था तो समस्या कहां आई,’’ पिताजी ने असमंजस में भर कर पूछा.

अब मेरे सामने सच बोलने के सिवा कोई रास्ता नहीं था सो मैं ने तय कर लिया कि मुझे साफसाफ सबकुछ बताना ही होगा.

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‘‘हर किसी ने मुझ से यही पूछा कि इस समय मेरी तनख्वाह क्या है और आगे चल कर कितनी बढ़ सकती है और मुझे ग्रीन कार्ड कब मिलेगा? इस पर मैं ने केवल इतना कहा कि मेरा वीजा मुझे 1 साल और वहां रहने की इजाजत देता है. मैं इस समय जो एसाइनमेंट कर रहा हूं वह ज्यादा से ज्यादा 6 महीने के अंदर खत्म हो जाएगा. उस के बाद मैं भारत आ कर यहीं बसना चाहता हूं,’’ मैं ने बडे़ भोलेपन से मां और पिताजी की ओर देख कर जवाब दिया.

आसरा- भाग 2: नासमझ जया को करन से प्यार करने का क्या सिला मिला

लेखक- मीनू सिंह

अगले दिन स्कूल जाते समय जया की नजरें करन को ढूंढ़ती रहीं, लेकिन वह कहीं नजर नहीं आया. 3 दिन लगातार जब वह जया को दिखाई नहीं दिया तो उस का मन उदास हो गया. उसे लगा कि करन ने शायद ऐसे ही कह दिया होगा और वह उसे सच मान बैठी, लेकिन चौथे दिन जब करन नियत स्थान पर खड़ा मिला तो उसे देखते ही जया के मन की कली खिल उठी. उस दिन जया के पीछेपीछे चलते हुए करन ने आहिस्ता से पूछा, ‘आप मुझ से नाराज तो नहीं हैं?’

‘नहीं,’ जया ने धड़कते दिल से जवाब दिया, तब करन ने उत्साहित होते हुए बात आगे बढ़ाई, ‘क्या मैं आप का नाम जान सकता हूं?’

‘जया,’ उस का छोटा सा उत्तर था.

‘आप बहुत अच्छी हैं, जयाजी.’

अपनी बात कहने के बाद करन थोड़ी दूर तक जया के साथ चला, फिर उसे ‘बाय’ कर के अपने रास्ते चला गया. उस दिन के बाद वह दोनों एक निश्चित जगह पर मिलते, वहां से करन थोड़ी दूर जया के साथ चलता, दो बातें करता और फिर दूसरे रास्ते पर मुड़ जाता.

इन पल दो पल की मुलाकातों और छोटीछोटी बातों का जया पर ऐसा असर हुआ कि वह हर समय करन के ही खयालों में डूबी रहने लगी. नादान उम्र की स्वप्निल भावनाओं को करन का आधार मिला तो चाहत के फूल खुद ब खुद खिल उठे. यही हाल करन का भी था. एक दिन हिम्मत कर के उस ने अपने मन की बात जया से कह ही दी, ‘आई लव यू जया,’ मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. तुम्हारे बगैर जिंदगी अधूरीअधूरी सी लगती है.

करन के मन की बात उस के होंठों पर आई तो जया के दिल की धड़कनें बेकाबू हो गईं. उस ने नजर भर करन को देखा और फिर पलकें झुका लीं. उस की उस एक नजर में प्यार का इजहार भी था और स्वीकारोक्ति भी.

एक बार संकोच की सीमाएं टूटीं, तो जया और करन के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं. ज्योंज्यों दूरियां कम होती गईं, दोनों एकदूसरे के रंग में रंगते गए. फिर उन्होंने सब की नजरों से छिप कर मिलना शुरू कर दिया. जब भी मौका मिलता, दोनों प्रेमी किसी एकांत स्थल पर मिलते और अपने सपनों की दुनिया रचतेगढ़ते.

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उस वक्त जया और करन को इस बात का जरा भी एहसास नहीं था कि पागल मन की उड़ान का कोई वजूद नहीं होता. किशोरवय का प्यार एक पागलपन के सिवा और क्या है. बिलकुल उस बरसाती नदी की तरह जो वर्षाकाल में अपने पूरे आवेग पर होती है, लेकिन उस के प्रवाह में गंभीरता और गहराई नहीं रहती. इसीलिए वर्षा समाप्त होते ही उस का अस्तित्व भी मिट जाता है. अब जया की हर सोच करन से शुरू हो कर उसी पर खत्म होने लगी थी. अब उसे न कैरियर की चिंता रह गई थी और न मातापिता के सपनों को पूरा करने की उत्कंठा.

बेटी में आए इस परिवर्तन को आशा की अनुभवी आंखों ने महसूस किया तो एक मां का दायित्व निभाते हुए उन्होंने जया से पूछा, ‘क्या बात है जया, इधर कुछ दिन से मैं महसूस कर रही हूं कि तू कुछ बदलीबदली सी लग रही है? आजकल तेरी सहेलियां भी कुछ ज्यादा ही हो गई हैं. तू उन के घर जाती रहती है, लेकिन उन्हें कभी नहीं बुलाती?’

मां द्वारा अचानक की गई पूछताछ से जया एकदम घबरा गई. जल्दी में उसे कुछ सुझाई नहीं दिया, तो उस ने बात खत्म करने के लिए कह दिया, ‘ठीक है मम्मी, आप मिलना चाहती हैं तो मैं उन्हें बुला लूंगी.’

कई दिन इंतजार करने के बाद भी जब जया की कोई सहेली नहीं आई और उस ने भी जाना बंद नहीं किया तो मजबूरी में आशा ने जया को चेतावनी देते हुए कहा, ‘अब तू कहीं नहीं जाएगी. जिस से मिलना हो घर बुला कर मिल.’

घर से निकलने पर पाबंदी लगी तो जया करन से मिलने के लिए बेचैन रहने लगी. आशा ने भी उस की व्याकुलता को महसूस किया, लेकिन उस से कहा कुछ नहीं. धीरेधीरे 4-5 दिन सरक गए तो एक दिन जया ने आशा को अच्छे मूड में देख कर उन से थोड़ी देर के लिए बाहर जाने की इजाजत चाही, जया की बात सुनते ही आशा का पारा चढ़ गया. उन्होंने नाराजगी भरे स्वर में जया को जोर से डांटते हुए कहा, ‘इतनी बार मना किया, समझ में नहीं आया?’

‘‘इतनी बार मना कर चुका हूं, सुनाई नहीं देता क्या?’’ नारी निकेतन के केयरटेकर का कर्कश स्वर गूंजा तो जया की विचारधारा में व्यवधान पड़ा. उस ने चौंक कर इधरउधर देखा, लेकिन वहां पसरे सन्नाटे के अलावा उसे कुछ नहीं मिला. जया को मां की याद आई तो वह फूटफूट कर रो पड़ी.

जया अपनी नादानी पर पश्चाताप करती रही और बिलखबिलख कर रोती रही. इन आंसुओं का सौदा उस ने स्वयं ही तो किया था, तो यही उस के हिस्से में आने थे. इस मारक यंत्रणा के बीच वह अपने अतीत की यादों से ही चंद कतरे सुख पाना चाहती थी, तो वहां भी उस के जख्मों पर नमक छिड़कता करन आ खड़ा होता था.

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उस दिन मां के डांटने के बाद जया समझ गई कि अब उस का घर से निकल पाना किसी कीमत पर संभव नहीं है. बस, यही एक गनीमत थी कि उसे स्कूल जाने से नहीं रोका गया था और स्कूल के रास्ते में उसे करन से मुलाकात के दोचार मिनट मिल जाते थे. आशा ने बेटी के गुमराह होते पैरों को रोकने का भरसक प्रयास किया, लेकिन जया ने उन की एक नहीं मानी.

एक दिन आशा को अचानक किसी रिश्तेदारी में जाना पड़ा. जाना भी बहुत जरूरी था, क्योंकि वहां किसी की मृत्यु हो गई थी. जल्दबाजी में आशा छोटे बेटे सोमू को साथ ले कर चली गई. जया पर प्यार का नशा ऐसा चढ़ा था कि ऐसे अवसर का लाभ उठाने से भी वह नहीं चूकी. उस ने छोटी बहन अनुपमा को चाकलेट का लालच दिया और करन से मिलने चली गई.

जया ने फोन कर के करन को बुलाया और उस के सामने अपनी मजबूरी जाहिर की. जब करन कोई रास्ता नहीं निकाल पाया तो जया ने बेबाक हो कर कहा, ‘अब मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकती, करन. हमारे सामने मिलने का कोई रास्ता नहीं बचा है.’

जया की बात सुनने के बाद करन ने उस से पूछा, ‘मेरे साथ चल सकती हो जया?’

‘कहां?’ जया ने रोंआसी आवाज में कहा, तो करन बेताबी से बोला, ‘कहीं भी. इतनी बड़ी दुनिया है, कहीं तो पनाह मिलेगी.’

…और उसी पल जया ने एक ऐसा निर्णय कर डाला जिस ने उस के जीवन की दिशा ही पलट कर रख दी.

इस के ठीक 5-6 दिन बाद जया ने सब अपनों को अलविदा कह कर एक अपरिचित राह पर कदम रख दिया. उस वक्त उस ने कुछ नहीं सोचा. अपने इस विद्रोही कदम पर वह खूब खुश थी क्योंकि करन उस के साथ था. करन जया को ले कर नैनीताल चला गया और वहां गेस्टहाउस में एक कमरा ले कर ठहर गया.

करन का दिनरात का संगसाथ पा कर जया इतनी खुश थी कि उस ने एक बार भी यह नहीं सोचा कि उस के इस तरह बिना बताए घर से चले जाने पर उस के मातापिता पर क्या गुजर रही होगी. काश, उसे इस बात का तनिक भी आभास हो पाता.

जया दोपहर को उस वक्त घर से निकली थी जब आशा रसोई में काम कर रही थीं. काम कर के बाहर आने के बाद जब उन्हें जया दिखाई नहीं दी तो उन्होंने अनुपमा से उस के बारे में पूछा. उस ने बताया कि दीदी बाहर गई हैं. यह जान कर आशा को जया पर बहुत गुस्सा आया. वह बेताबी से उस के लौटने की प्रतीक्षा करती रहीं. जब शाम ढलने तक जया घर नहीं लौटी तो उन का गुस्सा चिंता और परेशानी में बदल गया.

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8 बजतेबजते किशन भी घर आ गए थे, लेकिन जया का कुछ पता नहीं था. बात हद से गुजरती देख आशा ने किशन को जया के बारे में बताया तो वह भी घबरा गए. उन दोनों ने जया को लगभग 3-4 घंटे पागलों की तरह ढूंढ़ा और फिर थकहार कर बैठ गए. वह पूरी रात उन्होंने जागते और रोते ही गुजारी. सुबह होने तक भी जया घर नहीं लौटी तो मजबूरी में किशन ने थाने जा कर उस की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करा दी.

बेटी के इस तरह गायब हो जाने से किशन का दुख और चिंता से बुरा हाल था. उधर आशा की स्थिति तो और भी दयनीय थी. उन्हें रहरह कर इस बात का पछतावा हो रहा था कि उन्होंने जया के घर से बाहर जाने वाले मामले की खोजबीन उतनी गहराई से नहीं की, जितनी उन्हें करनी चाहिए थी. इस की वजह यही थी कि उन्हें अपनी बेटी पर पूरा भरोसा था.

संकरा- भाग 3: जब सूरज के सामने आया सच

‘‘बेटा, इसे आज तक मेरे सिवा किसी और ने नहीं पढ़ा है. शुक्र है कि इसे मैं ने भी जतन से रखा, नहीं तो आज मैं तुम्हारे सवालों के जवाब कहां से दे पाता…’’ रात की सुनसान लंबी सड़क पर इक्कादुक्का गाडि़यों के अलावा आदित्य की कार दौड़ रही थी, जिसे ड्राइवर चला रहा था. आदित्य पिछली सीट पर सिर टिकाए आंखें मूंदे निढाल पड़ा था. दादाजी की बताई बातें अब तक उस के जेहन में घटनाएं बन कर उभर रही थीं.

कसरती बदन वाला मैयादीन, जिस के चेहरे पर अनोखा तेज था, हवेली में ठाकुर शमशेर सिंह को पुकारता हुआ दाखिल हुआ, ‘ठाकुर साहब, आप ने मुझे बुलाया. मैं हाजिर हो गया हूं… आप कहां हैं?’ तभी गुसलखाने से उसे चीख सुनाई दी. वह दौड़ता हुआ उस तरफ चला गया. उस ने देखा कि सुंदरसलोनी रति पैर में मोच आने से गिर पड़ी थी. उस का रूप और अदाएं किसी मुनि के भी अंदर का शैतान जगाने को काफी थीं. उस ने अदा से पास खड़े मैयादीन का हाथ पकड़ लिया.

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‘देवीजी, आप क्या कर रही हैं?’ ‘सचमुच तुम बड़े भोले हो. क्या तुम यह भी नहीं समझते?’

‘आप के ऊपर वासना का शैतान हावी हो गया है, पर माफ करें देवी, मैं उन लोगों में से नहीं, जो मर्दऔरत के पवित्र बंधन को जानवरों का खेल समझते हैं.’ ‘तुम्हारी यही बातें तो मुझे बावला बनाती हैं. लो…’ कह कर रति ने अपना पल्लू गिरा दिया, जिसे देख कर मैयादीन ने एक झन्नाटेदार तमाचा रति को जड़ दिया और तुरंत वहां से निकल आया.

मैयादीन वहां से निकला तो देखा कि दीवार की आड़ में बूढ़े ठाकुर शमशेर सिंह अपना सिर झुकाए खड़े थे. वह कुछ कहता, इस से पहले ही ठाकुर साहब ने उसे चुप रहने का इशारा किया और पीछेपीछे अपने कमरे में आने को कहा. मैयादीन ठाकुर साहब के पीछेपीछे उन के कमरे में चल दिया और अपराधबोध से बोला, ‘‘ठाकुर साहब, आप ने सब सुन लिया?’’

शर्म पर काबू रखते हुए थकी आवाज में उन्होंने कहा, ‘‘हां मैयादीन, मैं ने सब सुन लिया और अपने खून को अपनी जाति पर आते हुए भी देख लिया… तुम्हारी बहादुरी ने पहले ही मुझे तुम्हारा कर्जदार बनाया था, आज तुम्हारे चरित्र ने मुझे तुम्हारे सामने भिखारी बना दिया. ‘धन्य है वह खून, जो तुम्हारी रगों में दौड़ रहा है… अपनी बेटी की तरफ से यह लाचार बाप तुम से माफी मांगता है. जवानी के बहाव में उस ने जो किया, तुम्हारी जगह कोई दूसरा होता है, तो जाने क्या होता. मेरी लड़की की इज्जत तुम ने दोबारा बचा ली…

‘अब जैसे भी हो, मैं इस मंगली के हाथ जल्द से जल्द पीले कर दूंगा, तब तक मेरी आबरू तुम्हारे हाथों में है. मुझे वचन दो मैयादीन…’ ‘ठाकुर साहब, हम अछूत हैं. समय का फेर हम से पाखाना साफ कराता है, पर इज्जतआबरू हम जानते हैं, इसलिए आप मुझ पर भरोसा कर सकते हैं. यह बात मुझ तक ही रहेगी.’

मैयादीन का वचन सुन कर ठाकुर साहब को ठंडक महसूस हुई. उन्होंने एक लंबी सांस ले कर कहा, ‘अब मुझे किसी बात की चिंता नहीं… तुम्हारी बातें सुन कर मन में एक आस जगी है. पर सोचता हूं, कहीं तुम मना न कर दो.’ ‘ठाकुर साहब, मैं आप के लिए जान लड़ा सकता हूं.’

‘‘मैयादीन, तुम्हारी बहादुरी से खुश हो कर मैं तुम्हें इनाम देना चाहता था और इसलिए मैंने तुम्हें यहां बुलाया था… पर अब मैं तुम से ही एक दान मांगना चाहता हूं.’ मैयादीन अचरज से बोला, ‘मैं आप को क्या दे सकता हूं? फिर भी आप हुक्म करें.’

ठाकुर साहब ने हिम्मत बटोर कर कहा, ‘‘तुम जानते हो, मेरे बेटे भानुप्रताप का ब्याह हुए 10 साल हो गए हैं, लेकिन सभी उपायों के बावजूद बहू की गोद आज तक सूनी है, इसलिए बेटे की कमजोरी छिपाने के लिए मैं लड़के की चाहत लिए यज्ञ के बारे में सोच रहा था. ‘‘मैं चाहता था, किसी महात्मा का बीज लूं, पर मेरे सामने एक बलवान और शीलवान बीजदाता के होते हुए किसी अनजान का बीज अपने खानदान के नाम पर कैसे पनपने दूं?’

यह सुन कर मैयादीन को जैसे दौरा पड़ गया. उस ने झुंझला कर कहा, ‘ठाकुर साहब… आज इस हवेली को क्या हो गया है? अभी कुछ देर पहले आप की बेटी… और अब आप?’ ‘मैयादीन, अगर तुम्हारा बीज मेरे वंश को आगे बढ़ाएगा, तो मुझे और मेरे बेटे को बिरादरी की आएदिन की चुभती बातों से नजात मिल जाएगी. मेरी आबरू एक दफा और बचा लो.’

ठाकुर साहब की लाचारी मैयादीन को ठंडा किए जा रही थी, फिर भी वह बोला, ‘‘ठाकुर साहब, मुझे किसी इनाम का लालच नहीं, और न ही मैं लूंगा, फिर भी मैं आप की बात कैसे मान लूं?’’ ठाकुर साहब ने अपनी पगड़ी मैयादीन के पैरों में रखते हुए कहा, ‘मान जाओ बेटा. तुम्हारा यह उपकार मैं कभी नहीं भूलूंगा.’’

ठाकुर साहब उस का हाथ अपने हाथ में ले कर बोले, ‘‘तुम ने सच्चे महात्मा का परिचय दिया है… अब से एक महीने तक तुम हमारी जंगल वाली कोठी में रहोगे. तुम्हारी जरूरत की सारी चीजें तुम्हें वहां मौजूद मिलेंगी. सही समय आने पर हम वहीं बहू को ले आएंगे…’ आदित्य का ध्यान टूटा, जब उस के कार ड्राइवर ने तीसरी बार कहा, ‘‘साहब, एयरपोर्ट आ गया है.’’

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जब तक आदित्य खानदानी ठाकुर था, तब तक उस के भीतर एक मानवतावादी अपने ही खानदान के खिलाफ बगावत पर उतर आया था, पर अब उसे मालूम हुआ कि वह कौन है, कहां से पैदा हुआ है, उस का और सफाई करने वाले सूरज का परदादा एक ही है, तब उस की सारी वैज्ञानिक योजनाएं अपनी मौत आप मर गईं. जिस सच को आदित्य दुनिया के सामने लाना चाहता था, वही सच उस के सामने नंगा नाच रहा था, इसलिए वह हमेशा के लिए इस देश को छोड़े जा रहा था. अपने पिता के पास, उन की तय की हुई योजनाओं का हिस्सा बनने.

पर जाने से पहले उस ने अपने दादा की गलती नहीं दोहराई. उन के परदादा के जतन से रखे दस्तावेज को वह जला आया था.

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