मां बेटी: कौन थे उन दोनों के जिस्म के प्यासे – भाग 3

झाड़ूपोंछा करने वाली लड़की और कैसे रह सकती थी. कपड़े धोने के बाद तो वह खुद गीली हो जाती थी और तब बिना अंदरूनी कपड़ों के उस के बदन के अंग शीशे की तरह चमकने लगते थे.

ऐसे मौके पर चोगले की नजरों में एक प्यास उभर आती और उस के पास आ कर पूछता था, ‘‘मालती, तुम तो गीली हो गई हो, भीग गई हो. पंखे के नीचे बैठ कर कपड़े सुखा लो,’’ और वह पंखा चला देता.

मालती बैठती नहीं खड़ेखड़े ही अपने कपड़े सुखाती. चोगले उस के बिलकुल पास आ कर सट कर खड़ा हो जाता और अपने बदन से उसे ढकता हुआ कहता, ‘‘तुम्हारे कपड़े तो बिलकुल पुराने हो गए हैं.’’

‘‘जी…’’ वह संकोच से कहती.

‘‘अब तो तुम्हें कुछ और कपड़ों की भी जरूरत पड़ती होगी?’’ मालती उस का मतलब नहीं समझती. बस, वह उस को देखती रहती.

वह एक कुटिल हंसी हंस कर कहता, ‘‘संकोच मत करना, मैं तुम्हारे लिए नए कपड़े ला दूंगा. वे वाले भी…’’

मालती की समझ में फिर भी नहीं आता. वह अबोध भाव से पूछती, ‘‘कौन से कपड़े…’’

चोगले उस के कंधे पर हाथ रख कर कहता, ‘‘देखो, अब तुम छोटी नहीं रही, बड़ी और समझदार हो रही हो. ये जो कपड़े तुम ने ऊपर से पहन रखे हैं, इन के नीचे पहनने के लिए भी तुम्हें कुछ और कपड़ों की जरूरत पड़ेगी, शायद जल्दी ही…’’ कहतेकहते उस का हाथ उस की गरदन से हो कर मालती के सीने की तरफ बढ़ता और वह शर्म और संकोच से सिमट जाती. इतनी समझदार तो वह हो ही गई थी.

चोगले की मेहनत रंग लाई. धीरेधीरे उस ने मालती को अपने रंग में रंगना शुरू कर दिया.

चोगले की मीठीमीठी बातों और लालच में मालती बहुत जल्दी फंस गई. घर का सूनापन भी चोगले की मदद कर रहा था और मालती की चढ़ती हुई जवानी. उस की मासूमियत और भोलेपन ने ऐसा गुल खिलाया कि मालती जवानी के पहले ही प्यार के सारे रंगों से वाकिफ हो गई थी.

तब मालती की मां ने उस में होने वाले बदलाव के प्रति उसे सावधान नहीं किया था, न उसे दुनियादारी समझाई थी, न मर्द के वेष में छिपे भेडि़यों के बारे में उसे किसी ने कुछ बताया था.

भेद तब खुला था जब उस का पेट बढ़ने लगा. सब से पहले उस की मां को पता चला था. वह उलटियां करती तो मां को शक होता, पर वह इतनी छोटी थी कि मां को अपने शक पर भी यकीन नहीं होता था. यकीन तो तब हुआ जब उस का पेट तन कर बड़ा हो गया.

मां ने मारपीट कर पूछा, तब बड़ी मुश्किल से उस ने चोगले का नाम बताया. बड़े लोगों की करतूत सामने आई, पर तब चोगले ने भी उस की मदद नहीं की थी और दुत्कार कर उसे अपने घर से भगा दिया था. बाद में एक नर्सिंगहोम में ले जा कर मां ने उस का पेट गिरवाया था.

अपना बुरा समय याद कर के मालती रो पड़ी. डर से उस का दिल कांप उठा. क्या समय उस की बेटी के साथ भी वही खिलवाड़ करने जा रहा था, जो उस के साथ हुआ था? गरीब लड़कियों के साथ ही ऐसा क्यों होता है कि वे अपना बचपन भी ठीक से नहीं बिता पातीं और जवानी के तमाम कहर उन के ऊपर टूट पड़ते हैं?

मालती ने अपनी बेटी पूजा को गले से लगा लिया. जोकुछ उस के साथ हुआ था, वह अपनी बेटी के साथ नहीं होने देगी. अपनी जवानी में तो उस ने बदनामी का दाग झेला था, मांबाप को परेशानियां दी थीं. यह तो केवल वह या उस के मांबाप ही जानते थे कि किस तरह उस का पेट गिरवाया गया था. किस तरह गांव जा कर उस की शादी की गई थी.  फिर कई साल बाद कैसे वह अपने मर्द के साथ वापस मुंबई आई थी और अपने मांबाप के बगल की खोली में किराए पर रहने लगी थी.

आज उस का मर्द इस दुनिया में नहीं था. 4 बच्चे उस की और उस की बड़ी बेटी की कमाई पर जिंदा थे. पूजा के बाद 3 बेटे हुए थे, पर तीनों अभी बहुत छोटे थे. पिछले साल तक उस का मर्द फैक्टरी में हुए एक हादसे में जाता रहा.

पति की मौत के बाद ही मालती ने अपनी बेटी को घरों में काम करने के लिए भेजना शुरू किया था. उसे क्या पता था कि जो कुछ उस के साथ हुआ था, एक दिन उस की बेटी के साथ भी होगा.

जमाना बदल जाता है, लोग बदल जाते हैं, पर उन के चेहरे और चरित्र कभी नहीं बदलते. कल चोगले था, तो आज कांबले… कल कोई और आ जाएगा. औरत के जिस्म के भूखे भेडि़यों की इस दुनिया में कहां कमी थी. असली शेर और भेडि़ए धीरेधीरे इस दुनिया से खत्म होते जा रहे थे, पर इनसानी शेर और भेडि़ए दोगुनी तादाद में पैदा होते जा रहे थे.

मालती के पास आमदनी का कोई और जरीया नहीं था. मांबेटी की कमाई से 5 लोगों का पेट भरता था. क्या करे वह? पूजा का काम करना छुड़वा दे, तो आमदनी आधी रह जाएगी. एक अकेली औरत की कमाई से किस तरह 5 पेट पल सकते थे?

मालती अच्छी तरह जानती थी कि वह अपनी बेटी की जवानी को किसी तरह भी इनसानी भेडि़यों के जबड़ों से नहीं बचा सकती थी. न घर में, न बाहर… फिर भी उस ने पूजा को समझाते हुए कहा, ‘‘बेटी, अगर तू मेरी बात समझ सकती है तो ठीक से सुन… हम गरीब लोग हैं, हमारे जिस्म को भोगने के लिए यह अमीर लोग हमेशा घात लगाए रहते हैं. इस के लिए वे तमाम तरह के लालच देते हैं. हम लालच में आ कर फंस जाते हैं और उन को अपना बदन सौंप देते हैं.

‘‘गरीबी हमारी मजबूरी है तो लालच हमारा शाप. इस की वजह से हम दुख और तकलीफें उठाते हैं.

‘‘हम गरीबों के पास इज्जत के नाम पर कुछ नहीं होता. अगर मैं तुझे काम पर न भेजूं और घर पर ही रखूं तब भी तो खतरा टल नहीं सकता. चाल में भी तो आवाराटपोरी लड़के घूमते रहते हैं.

‘‘अमीरों से तो मैं तुझे बचा लूंगी. पर इस खोली में रह कर इन गली के आवारा कुत्तों से तू नहीं बच पाएगी. खतरा सब जगह है. बता, तुझे दुनिया की गंदी नजरों से बचाने के लिए मैं क्या करूं?’’ और वह जोर से रोने लगी.

पूजा ने अपने आंसुओं को पोंछ लिया और मां का हाथ पकड़ कर बोली, ‘‘मां, तुम चिंता मत करो. अब मैं किसी की बातों में नहीं आऊंगी. किसी का दिया हुआ कुछ नहीं लूंगी. केवल अपने काम से काम रखूंगी.

‘‘हां, कल से मैं कांबले के घर काम करने नहीं जाऊंगी. कोई और घर पकड़ लूंगी.’’

‘‘देख, हमारे पास कुछ नहीं है, पर समझदारी ही हमारी तकलीफों को कुछ हद तक कम कर सकती है. अब तू सयानी हो रही है. मेरी बात समझ गई है. मुझे यकीन है कि अब तू किसी के बहकावे में नहीं आएगी.’’

पूजा ने मन ही मन सोचा, ‘हां, मैं अब समझदार हो गई हूं.’

मालती अच्छी तरह जानती थी कि ये केवल दिलासा देने वाली बातें थीं और पूजा भी इतना तो जानती थी कि अभी तो वह जवानी की तरफ कदम बढ़ा रही थी. पता नहीं, आगे क्या होगा? बरसात का पानी और लड़की की जवानी कब बहक जाए और कब किधर से किधर निकल जाए, किसी को पता नहीं चलता.

पूजा अभी छोटी थी. जवानी तक आतेआते न जाने कितने रास्तों से उसे गुजरना पड़ेगा… ऐसे रास्तों से जहां बाढ़ का पानी भरा हुआ है और वह अपनी पूरी होशियारी और सावधानी के साथ भी न जाने कब किस गड्ढे में गिर जाए.

वे दोनों ही जानती थीं कि जो वे सोच रही थीं, वही सच नहीं था या जैसा वे चाह रही हैं, उसी के मुताबिक जिंदगी चलती रहेगी, ऐसा भी नहीं होने वाला था.

दिन बीतते रहे. मालती अपनी बेटी की तरफ से होशियार थी, उस की एकएक हरकत पर नजर रखती. उन दोनों के बीच में बात करने का सिलसिला कम था, पर बिना बोले ही वे दोनों एकदूसरे की भावनाओं को जानने और समझने की कोशिश करतीं.

पर जैसेजैसे बेटी बड़ी हो रही थी, वह और ज्यादा समझदार होती जा रही थी. अब वह बड़े सलीके से रहने लगी थी और उसे अपने भावों को छिपाना भी आ गया था.

इधर काफी दिनों से पूजा के रंगढंग में काफी बदलाव आ गया था. वह अपने बननेसंवरने में ज्यादा ध्यान देती, पर इस के साथ ही उस में एक अजीब गंभीरता भी आ गई थी. ऐसा लगता था, जैसे वह किन्हीं विचारों में खोई रहती हो. घर के काम में मन नहीं लगता था.

मालती ने एक दिन पूछ ही लिया, ‘‘बेटी, मुझे डर लग रहा है. कहीं तेरे साथ कुछ हो तो नहीं गया?’’

पूजा जैसे सोते हुए चौंक गई हो, ‘‘क्या… क्या… नहीं तो…’’

‘‘मतलब, कुछ न कुछ तो है,’’ उस ने बेटी के सिर पर हाथ रख कर कहा.

पूजा के मुंह से बोल न फूटे. उस ने अपना सिर झुका लिया. मालती समझ गई, ‘‘अब कुछ बताने की जरूरत नहीं है. मैं सब समझ गई हूं, पर एक बात तू बता, जिस से तू प्यार करती है, वह तेरे साथ शादी करेगा?’’

पूजा की आंखों में एक अनजाना सा डर तैर गया. उस ने फटी आंखों से अपनी मां को देखा. मालती उस की आंखों में फैले डर को देख कर खुद सहम गई. उसे लगा, कहीं न कहीं कोई बड़ी गड़बड़ है.

डरतेडरते मालती ने पूछा, ‘‘कहीं तू पेट से तो नहीं है?’’

पूजा ने ऐसे सिर हिलाया, जैसे जबरदस्ती कोई पकड़ कर उस का सिर हिला रहा हो. अब आगे कहने के लिए क्या बचा था.

मालती ने अपना माथा पीट लिया. न वह चीख सकती थी, न रो सकती थी, न बेटी को मार सकती थी. उस की बेबसी ऐसी थी, जिसे वह किसी से कह भी नहीं सकती थी.

जो मालती नहीं चाहती थी, वही हुआ. उस की जिंदगी में जो हो चुका था उसी से बेटी को आगाह किया था. ध्यान रखती थी कि बेटी नरक में न गिर जाए. बेटी ने भी उसे भरोसा दिया था कि वह कोई गलत कदम नहीं उठाएगी, पर जवानी की आग को दबा कर रख पाना शायद उस के लिए मुमकिन नहीं था.

मरी हुई आवाज में उस ने बस इतना ही पूछा, ‘‘किस का है यह पाप…?’’

पूजा ने पहले तो नहीं बताया, जैसा कि आमतौर पर लड़कियों के साथ होता है. जवानी में किए गए पाप को वे छिपा नहीं पातीं, पर अपने प्रेमी का नाम छिपाने की कोशिश जरूर करती हैं. हालांकि इस में भी वे कामयाब नहीं होती हैं, मांबाप किसी न किसी तरीके से पूछ ही लेते हैं.

पूजा ने जब उस का नाम बताया, तो मालती को यकीन नहीं हुआ. उस ने चीख कर पूछा, ‘‘तू तो कह रही थी कि कांबले के यहां काम छोड़ देगी?’’

‘‘मां, मैं ने तुम से झूठ बोला था. मैं ने उस के यहां काम करना नहीं छोड़ा था. मैं उस की मीठीमीठी और प्यारी बातों में पूरी तरह भटक गई थी. मैं किसी और घर में भी काम नहीं करती थी, केवल उसी के घर जाती थी.

‘‘वह मुझे खूब पैसे देता था, जो मैं तुम्हें ला कर देती थी कि मैं दूसरे घरों में काम कर के ला रही हूं, ताकि तुम्हें शक न हो.’’

‘‘फिर तू सारा दिन उस के साथ रहती थी?’’

पूजा ने ‘हां’ में सिर हिला दिया. ‘‘मरी, हैजा हो आए, तू जवानी की आग बुझाने के लिए इतना गिर गई. अरे, मेरी बात समझ जाती और तू उस के यहां काम छोड़ कर दूसरों के घरों में काम करती रहती, तो शायद किसी को ऐसा मौका नहीं मिलता कि कोई तेरे बदन से खिलवाड़ कर के तुझे लूट ले जाता. काम में मन लगा रहता है, तो इस काम की तरफ लड़की का ध्यान कम जाता है. पर तू तो बड़ी शातिर निकली… मुझ से ही झूठ बोल गई.’’

पूजा अपनी मां के पैरों पर गिर पड़ी और सिसकसिसक कर रोने लगी, ‘‘मां, मैं तुम्हारी गुनाहगार हूं, मुझे माफ कर दो. एक बार, बस एक बार… मुझे इस पाप से बचा लो.’’

मालती गुस्से में बोली, ‘‘जा न उसी के पास, वह कुछ न कुछ करेगा. उस को ले कर डाक्टर के पास जा और अपने पेट के पाप को गिरवा कर आ…’’

‘‘मां, उस ने मना कर दिया है. उस ने कहा है कि वह पैसे दे देगा, पर डाक्टर के पास नहीं जाएगा. समाज में उस की इज्जत है, कहीं किसी को पता चल गया तो क्या होगा, इस बात से वह डरता है.’’

‘‘वाह री इज्जत… एक कुंआरी लड़की की इज्जत से खेलते हुए इन की इज्जत कहां चली जाती है? मैं क्या करूं, कहां मर जाऊं, कुछ समझ में नहीं आता,’’ मालती बोली.

मालती ने गुस्से और नफरत के बावजूद भी पूजा को परे नहीं किया, उसे दुत्कारा नहीं. बस, गले से लगा लिया और रोने लगी. पूजा भी रोती जा रही थी.

दोनों के दर्द को समझने वाला वहां कोई नहीं था… उन्हें खुद ही हालात से निबटना था और उस के नतीजों को झेलना था.

मन थोड़ा शांत हुआ, तो मालती उठी और कपड़ेलत्ते व दूसरा जरूरी सामान समेट कर फटेपुराने बैग में भरने लगी. बेटी ने उसे हैरानी से देखा. मां ने उस की तरफ देखे बिना कहा, ‘‘तू भी तैयार हो जा और बच्चों को तैयार कर ले. गांव चलना है. यहां तो तेरा कुछ हो नहीं सकता. इस पाप से छुटकारा पाना है. इस के बाद गांव में रह कर ही किसी लड़के से तेरा ब्याह कर देंगे.’’

 

मां बेटी: कौन थे उन दोनों के जिस्म के प्यासे – भाग 2

मालती का दिल बेचैन हो गया. गरीबी में एक और मुसीबत… बेटी की जवानी सचमुच मांबाप के लिए एक मुसीबत बन कर ही आती है खासकर उस गरीब की बेटी की, जिस का बाप जिंदा न हो. मालती की सांसें कुछ ठीक हुईं, तो बेटी से पूछा, ‘‘किस ने दिया यह सामान तुझे?’’

मां की आवाज में कोई गुस्सा नहीं था, बल्कि एक हताशा और बेचारगी भरी हुई थी.

पूजा को अपनी मां के ऊपर तरस आ गया. वह बहुत छोटी थी और अभी इतनी बड़ी या जवान नहीं हुई थी कि दुनिया की सारी तकलीफों के बारे में जान सके. फिर भी वह इतना समझ गई थी कि उस ने कुछ गलत किया था, जिस के चलते मां को इस तरह रोना पड़ रहा था. वह भी रोने लगी और मां के पास बैठ गई.

बेटी की रुलाई पर मालती थोड़ा संभली और उस ने अपने ममता भरे हाथ बेटी के सिर पर रख दिए.

दोनों का दर्द एक था, दोनों ही औरतें थीं और औरतों का दुख साझा होता है. भले ही, दोनों आपस में मांबेटी थीं, पर वे दोनों एकदूसरे के दर्द से न केवल वाकिफ थीं, बल्कि उसे महसूस भी कर रही थीं.

पूजा की सिसकियां कुछ थमीं, तो उस ने बताया, ‘‘मां, मैं ले नहीं रही थी, पर उस ने मुझे जबरदस्ती दिया.’’

‘‘किस ने…?’’ मालती ने बेचैनी से पूछा.

‘‘गोकुल सोसाइटी के 401 नंबर वाले साहब ने…’’

‘‘कांबले ने?’’ मालती ने हैरानी से पूछा.

‘‘हां… मां, वह मुझ से रोज गंदीगंदी बातें करता है. मैं कुछ नहीं बोलती तो मुझे पकड़ कर चूम लेता है,’’ पूजा जैसे अपनी सफाई दे रही थी.

मालती ने गौर से पूजा को देखा. वह दुबलेपतले बदन की सांवले रंग की लड़की थी, कुल जमा 13 साल की… बदन में ऐसे अभी कोई उभार नहीं आए थे कि किसी मर्द की नजरें उस पर गड़ जाएं.

हाय रे जमाना… छोटीछोटी बच्चियां भी मर्दों की नजरों से महफूज नहीं हैं. पलक झपकते ही उन की हैवानियत और हवस की भूख का शिकार हो जाती हैं.

मालती को अपने दिन याद आ गए… बहुत कड़वे दिन. वह भी तब कितनी छोटी और भोली थी. उस के इसी भोलेपन का फायदा तो एक मर्द ने उठाया था और वह समझ नहीं पाई थी कि वह लुट रही थी, प्यार के नाम पर… पर प्यार कहां था वह… वह तो वासना का एक गंदा खेल था.

इस खेल में मालती अपनी पूरी मासूमियत के साथ शामिल हो गई थी. नासमझ उम्र का वह ऐसा खेल था, जिस में एक मर्द उस के अधपके बदन को लूट रहा था और वह समझ रही थी कि वह मर्दऔरत का प्यार था.

वह एक ऐसे मर्द द्वारा लुट रही थी, जो उस से उम्र में दोगुनातिगुना ही नहीं, बाप की उम्र से भी बड़ा था, पर औरतमर्द के रिश्ते में उम्र बेमानी हो जाती है और कभीकभी तो रिश्ते भी बदनाम हो जाते हैं.

तब मालती भी अपनी बेटी की तरह दुबलीपतली सांवली सी थी. आज जब वह पूजा को गौर से देखती है, तो लगता है जैसे वही पूजा के रूप में खड़ी है.

मालती बिलकुल उस का ही दूसरा रूप थी. जब वह अपनी बेटी की उम्र की थी, तब चोगले साहब के घर में काम करती थी. वह शादीशुदा था, 2 बच्चों का बाप, पर एक नंबर का लंपट… उस की नजरें हमेशा मालती के इर्दगिर्द नाचती रहती थीं.

चोगले की बीवी किसी स्कूल में पढ़ाती थी, सो वह सुबह जल्दी निकल जाती थी. साथ में उस के बच्चे भी चले जाते थे. बीवी और बच्चों के जाने के बाद मालती उस घर में काम करने जाती थी.

चोगले तब घर में अकेला होता था. पहले तो काफी दिनों तक उस ने मालती की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया और कभी कोई ऐसी बात नहीं कही, जिस से लगे कि वह उस के बदन का भूखा था.

शायद वह उसे बच्ची समझता था. वह काम करती रहती थी और काम खत्म होने के बाद चुपचाप घर चली आती थी.

पर जब उस ने 13वें साल में कदम रखा और उस के सीने में कुछ नुकीला सा उभार आने लगा, तो अचानक ही एक दिन चोगले की नजर उस के शरीर पर पड़ गई. वह मैलेकुचैले कपड़ों में रहती थी.

मां बेटी: कौन थे उन दोनों के जिस्म के प्यासे – भाग 1

मालती काम से लौटी थी… थकीमांदी. कुछ देर लेट कर आराम करने का मन कर रहा था, पर उस की जिंदगी में आराम नाम का शब्द नहीं था. छोटा वाला बेटा भूखाप्यासा था. वह 2 साल का हो गया था, पर अभी तक उस का दूध पीता था.

मालती के खोली में घुसते ही वह उस के पैरों से लिपट गया. उस ने उसे अपनी गोद में उठा कर खड़ेखड़े ही छाती से लगा लिया. फिर बैठ कर वह उसे दूध पिलाने लगी थी.

सुबह मालती उसे खोली में छोड़ कर जाती थी. अपने 2 बड़े भाइयों के साथ खोली के अंदर या बाहर खेलता रहता था. तब भाइयों के साथ खेल में मस्त रहने से न तो उसे भूख लगती थी, न मां की याद आती थी.

दोपहर के बाद जब मालती काम से थकीमांदी घर लौटती, तो छोटे को अचानक ही भूख लग जाती थी और वह भी अपनी भूखप्यास की परवाह किए बिना या किसी और काम को हाथ लगाए बेटे को अपनी छाती का दूध पिलाने लगती थी.

तभी मालती की बड़ी लड़की पूजा काम से लौट कर घर आई. पूजा सहमते कदमों से खोली के अंदर घुसी थी. मां ने तब भी ध्यान नहीं दिया था. पूजा जैसे कोई चोरी कर रही थी. खोली के एक किनारे गई और हाथ में पकड़ी पोटली को कोने में रखी अलमारी के पीछे छिपा दिया.

मां ने छोटू को अपनी छाती से अलग किया और उठने को हुई, तभी उस की नजर बेटी की तरफ उठी और उसे ने पूजा को अलमारी के पीछे थैली रखते हुए देख लिया.

मालती ने सहज भाव से पूछा, ‘‘क्या छिपा रही है तू वहां?’’

पूजा चौंक गई और असहज आवाज में बोली, ‘‘कुछ नहीं मां.’’

मालती को लगा कि कुछ तो गड़बड़ है वरना पूजा इस तरह क्यों घबराती.

मालती अपनी बेटी के पास गई और उस की आंखों में आंखें डाल कर बोली, ‘‘क्या है? तू इतनी घबराई हुई क्यों है? और यहां क्या छिपाया है?’’

‘‘कुछ नहीं मां, कुछ नहीं…’’ पूजा की घबराहट और ज्यादा तेज हो गई. वह अलमारी से सट कर इस तरह खड़ी हो गई कि मालती पीछे न देख सके.

मालती ने जोर से पकड़ कर उसे परे धकेला और तेजी से अलमारी के पीछे रखी पोटली उठा ली.

हड़बड़ाहट में मालती ने पोटली को खोला. पोटली का सामान अंदर से सांप की तरह फन काढ़े उसे डरा रहे थे… ब्रा, पैंटी, लिपस्टिक, क्रीम, पाउडर और तेल की शीशी…

मालती ने फिर अचकचा कर अपनी बेटी पूजा को गौर से देखा… उसे अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ. उस की बेटी जवान तो नहीं हुई थी, पर जवानी की दहलीज पर कदम रखने के लिए बेचैन हो रही थी.

Raksha bandhan: अब हमारी बारी है-भाइयों ने बनाया बहन को सफल – भाग 1

उसदिन पहली बार नीरज उन के घर सब के साथ लंच लेने आ रहा था. अंजलि के दोनों छोटे भाई और उन की पत्नियां सुबह से ही उस की शानदार आवभगत करने की तैयारी में जुटे हुए थे. उस के दोनों भतीजे और भतीजी बढि़या कपड़ों से सजधज कर बड़ी आतुरता से नीरज के पहुंचने का इंतजार कर रहे थे.

अंजलि की ढंग से तैयार होने में उस की छोटी भाभी शिखा ने काफी सहायता की थी. और दिनों की तुलना में वह ज्यादा आकर्षक और स्मार्ट नजर आ रही थी. लेकिन यह बात उस के मन की चिंता और बेचैनी को कम करने में असफल रही.

‘‘तुम सब 35 साल की उम्र में मु झ पर शादी करने का दबाव क्यों बना रहे हो? क्या मैं तुम सब पर बो झ बन गई हूं? मु झे जबरदस्ती धक्का क्यों देना चाहते हो?’’ ऐसी बातें कह कर अंजलि अपने भैयाभाभियों से पिछले हफ्ते में कई बार  झगड़ी पर उन्होंने उस के हर विरोध को हंसी में उड़ा दिया था.

कुछ देर बाद अंजलि से 2 साल छोटे उस के भाई अरुण ने कमरे में आ कर सूचना दी, ‘‘दीदी, नीरजजी आ गए हैं.’’

अंजलि ड्राइंगरूम में जाने को नहीं उठी, तो अरुण ने बड़े प्यार से बाजू पकड़ कर उसे खड़ा किया और फिर भावुक लहजे में बोला, ‘‘दीदी, मन में कोई टैंशन मत रखो. आप की मरजी के खिलाफ हम कुछ नहीं करेंगे.’’

‘‘मैं शादी नहीं करना चाहती हूं,’’ अंजलि रुंधी आवाज में बोली.

‘‘तो मत करना, पर घर आए मेहमान का स्वागत करने तो चलो,’’ और अरुण उस का हाथ पकड़ कर ड्राइंगरूम की तरफ चल पड़ा. अंजलि की आंखों में चिंता और बेचैनी के भाव और बढ़ गए थे.

ड्राइंगरूम में नीरज को तीनों छोटे बच्चों ने घेर रखा था. उस के सामने उन्होंने कई पैंसिलें और ड्राइंगपेपर रखे हुए थे.

नीरज चित्रकार था. वे सब अपनाअपना चित्र पहले बनवाने के लिए शोर मचा रहे थे. उन के खुले व्यवहार से यह साफ जाहिर हो रहा था कि नीरज ने उन तीनों के दिल चंद मिनटों की मुलाकात में ही जीत लिए थे.

अरुण की 6 वर्षीय बेटी महक ने चित्र बनवाने के लिए गाल पर उंगली रख कर इस अदा से पोज बनाया कि कोई भी बड़ा व्यक्ति खुद को हंसने से नहीं रोक पाया.

अंजलि ने हंसतेहंसते महक का माथा चूमा और फिर हाथ जोड़ कर नीरज का अभिवादन किया.

‘‘यह तुम्हारे लिए है,’’ नीरज ने खड़े हो कर एक चौड़े कागज का रोल अंजलि के हाथ

में पकड़ाया.

‘‘आप की बनाई कोई पेंटिंग है इस में?’’ अरुण की पत्नी मंजु ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘जी, हां,’’ नीरज ने शरमाते हुए जवाब दिया.

‘‘हम सब इसे देख लें, दीदी?’’ अंजलि के छोटे भाई अजय की पत्नी शिखा ने प्रसन्न लहजे में पूछा.

अंजलि ने रोल शिखा को पकड़ा दिया.

वह अपनी जेठानी की सहायता से गिफ्ट पेपर खोलने लगी.

नीरज ने अंजलि को उसी का रंगीन पोर्ट्रेट बना कर भेंट किया था. तसवीर बड़ी सुंदर बनी थी. सब मिल कर तसवीर की प्रशंसा करने लगे.

अंजलि ने धीमी आवाज में नीरज से प्रश्न किया, ‘‘यह कब बनाई आप ने?’’

‘‘क्या तुम्हें अपनी तसवीर पसंद नहीं आई?’’ नीरज ने मुसकराते हुए पूछा.

‘‘तसवीर तो बहुत अच्छी है… पर आप ने बनाई कैसे?’’

‘‘शिखा ने तुम्हारा 1 पासपोर्ट साइज फोटो दिया था. कुछ उस की सहायता ली और बाकी काम मेरी कल्पनाशक्ति ने किया.’’

‘‘कलाकार को सत्य दर्शाना चाहिए, नीरजजी. मैं तो बिलकुल भी सुंदर नहीं हूं.’’

‘‘मैं ने इस कागज पर सत्य ही उतारा है… मु झे तुम इतनी ही सुंदर नजर आती हो.’’

नीरज की इस बात को सुन कर अंजलि ने कुछ घबरा और कुछ शरमा कर नजरें  झुका लीं.

सब लोग नीरज के पास आ कर अंजलि की तसवीर की प्रशंसा करने लगे. अंजलि ने कभी अपने रंगरूप की वैसी तारीफ नहीं सुनी थी, इसलिए असहज सी हो कर नीरज के लिए चाय बनाने रसोई में चली गई.

नीरज से उस की पहली मुलाकात शिखा ने अपनी सहेली कविता के घर पर करीब

2 महीने पहले करवाई थी.

42 वर्षीय चित्रकार नीरज कविता के जेठ थे. उन्होंने शादी नहीं की थी. घर की तीसरी मंजिल पर 1 कमरे के सैट में रहते थे और वहीं उन का स्टूडियो भी था.

उस दिन नीरज के स्टूडियो में अपना पैंसिल से बनाया एक चित्र देख कर वह चौंकी थी. नीरज ने खुलासा करते हुए उन सब को जानकारी दी थी, ‘‘अंजलि पार्क में 3 छोटे बच्चों के साथ घूमने आई थीं. बच्चे खेलने में व्यस्त हो गए और ये बैंच पर बैठीबैठी गहरे सोचविचार में खो गईं. मैं ने इन की जानकारी में आए बिना इस चित्र में इन के चेहरे के विशेष भावों को पकड़ने की कोशिश की थी.’’

‘‘2 दिन पहले अंजलि दीदी का यह चित्र यहां देख कर मैं चौंकी थी. मैं ने भाई साहब को दीदी के बारे में बताया, तो इन्होंने दीदी से मिलने की इच्छा जाहिर की. तभी मैं ने 2 दिन पहले तुम्हें फोन किया था, शिखा,’’ कविता के इस स्पष्टीकरण को सुन कर अंजलि को पूरी बात सम झ में आ गई थी.

कुछ दिनों बाद कविता उसे बाजार में मिली और अपने घर चाय पिलाने ले गई. अपने बेटे की चौथी सालगिरह की पार्टी में भी उस ने अंजलि को बुलाया. इन दोनों अवसरों पर उस की नीरज से खूब बातें हुईं.

इन 2 मुलाकातों के बाद नीरज उसे पार्क में कई बार मिला था. अंजलि वहां अपने भतीजों व भतीजी के साथ शाम को औफिस से आने के बाद अकसर जाती थी. वहीं नीरज ने उस का मोबाइल नंबर भी ले लिया था. अब वे फोन पर भी बातें कर लेते थे.

फिर कविता और शिखा ने एक दिन उस के सामने नीरज के साथ शादी करने की

चर्चा छेड़ी, तो उस ने उन दोनों को डांट दिया, ‘‘मु झे शादी करनी होती तो 10 साल पहले कर लेती. इस  झं झट में अब फंसने का मेरा रत्ती भर इरादा नहीं है. मेरे सामने ऐसी चर्चा फिर कभी मत करना,’’ उन्हें यों डपटने के बाद वह अपने कमरे में चली आई थी.

उस दिन के बाद अंजलि ने नीरज के साथ मिलना और बातें करना बिलकुल कम कर दिया. उस ने पार्क में जाना भी छोड़ दिया. फोन पर भी व्यस्तता का  झूठा बहाना बना कर जल्दी फोन काट देती.

उस की अनिच्छा को नजरअंदाज करते हुए उस के दोनों छोटे भाई और भाभियां अकसर नीरज की चर्चा छेड़ देते. उस से हर कोई कविता के घर या पार्क में मिल चुका था. सभी उसे हंसमुख और सीधासादा इंसान मानते थे. उन के मुंह से निकले प्रशंसा के शब्द यह साफ दर्शाते कि उन सब को नीरज पसंद है.

अंजलि की कई बार की नाराजगी उन

की इस इच्छा को जड़ से समाप्त करने में असफल रही थी. किसी को यह बात नहीं जंची थी कि अंजलि ने नीरज से बातें करना कम कर दिया है.

उन के द्वारा रविवार को नीरज को लंच पर आमंत्रित करने के बाद ही इस बात की सूचना अंजलि को पिछली रात को मिली थी.

कुछ देर बाद जब अंजलि चाय की ट्रे ले कर ड्राइंगरूम में दाखिल हुई, तो वहां बहुत शोर मचा था. नीरज ने तीनों बच्चों के पैंसिल स्कैच बड़े मनोरंजक ढंग से बनाए थे. नन्हे राहुल की उन्होंने बड़ीबड़ी मूंछें बना दी थीं. महक को पंखों वाली परी बना दिया था और मयंक के चेहरे के साथ शेर का धड़ जोड़ा था.

इन तीनों बच्चों ने बड़ी मुश्किल से नीरज को चाय पीने दी. वे उस के साथ अभी और खेलना चाहते थे.

वह रात : क्या था उस रात का राज – भाग 1

बरसात तो रामपुर से ही शुरू हो गई थी, इसलिए मूड कुछ उखड़ाउखड़ा सा हो रहा था. महीने का दूसरा शनिवार आ रहा था. रविवार को मिला कर 2 छुट्टियां हो जाती थीं. सोचा कि गांव ज्यादा दूर तो नहीं है, चाची के पास जाना चाहिए.

चाची से मेरी बहुत पटती थी. चाची मुझ से बहुत प्यार करती थीं. हमेशा से मेरी हर छोटीबड़ी जरूरत का ध्यान रखती थीं.

चाची तो कई बार बुला चुकी थीं, लेकिन नौकरी के चलते मेरा गांव जाना हो नहीं पाता था.

आबोहवा के हिसाब से हिमाचली हमारे छोटे से गांव ‘गौरा’ का क्या कहना. साढ़े 7 हजार फुट की ऊंचाई से शुरू हो कर 9 हजार फुट तक में फैले इस इलाके को गरमियों के मौसम में स्वर्ग ही कहा जा सकता है. बस, जरा सी बरसात होने की देर है, झट से स्वेटरशौल निकल आएंगे.

मेरे पापा बिजली महकमे के फील्ड स्टाफ में थे, इसलिए उन को तो ड्यूटी पर हाजिर होना बहुत जरूरी था.

मैं बैंक में मुलाजिम थी, वह भी क्लर्क.

मेरे गांव जाने की बात सुन कर सभी चौंक गए. मैं ने इस बार अपनी सहेली तनु को भी अपने साथ गांव चलने के लिए तैयार कर लिया था.

सुनंदा चाची, मेरी सगी चाची जरूर थीं, पर वे चाची कम और सहेली ज्यादा थीं. मां ने बताया था, ‘जब सुनंदा ब्याह कर आई थी, तब ‘तू’ सिर्फ 5 साल की थी और सुनंदा चाची 14 की.’

इस तरह वे मुझे से ज्यादा बड़ी भी नहीं थीं. मां ने कई बार मुझे दुनियादारी सिखाने और चाची को चाची समझाने की सीख देने की कोशिश की, लेकिन हर बार चाची आड़े आ जातीं. शायद उन्हें अपना छिनालुटा बचपन याद आता होगा.

चाची मां से कहती थीं, ‘जाने दो न दीदी, बच्ची है. हमारे दम पर लापरवाही नहीं करेगी, तो फिर किस के दम पर करेगी?’

मैं कई बार मां से सवाल कर बैठती, ‘मां, 14 साल की उम्र क्या किसी लड़की की शादी की उम्र होती है?’

‘बेटी, सब समयसमय की बात है. जब हम लोगों की शादियां हुई थीं, उस समय 14 साल की लड़की जवान होती थी, आज बच्ची होती है,’ कहते हुए मां एक ठंडी सांस भर कर रह जातीं.

अपनी यादों के साथ बस में मैं और तनु बातचीत कर ही रही थीं कि अचानक बस झटके से रुक गई. आगे बहुत सी गाडि़यां सड़क पर खड़ी थीं. पता चला कि आगे सड़क टूटी हुई है.

शहर से गांव महज 16 किलोमीटर ही तो था, लेकिन अब मुझे अफसोस होने लगा कि मैं ने क्यों किसी की बात पर ध्यान नहीं दिया और अपने साथ तनु को भी फंसा दिया.

मैं ने तनु की तरफ देखा. मुझे लग रहा था कि अब वह भड़क जाएगी, लेकिन उस ने हंस कर कहा, ‘‘चलो, नीचे उतर कर देखते हैं कि माजरा क्या है?’’

हमारे पास छोटेछोटे बैगों में एकएक सूट और छोटे बच्चों के लिए थोड़ी सी टौफियां थीं. हम ने बैग उठा कर कंधे पर लटका लिए और बस से नीचे उतर गईं.

बस से आगे खड़े ट्रक को पार करने के बाद हम ने देखा कि सड़क पर ढेर सारा मलबा गिरा हुआ था, जिसे मजदूर साफ कर रहे थे. वहां खड़े जूनियर इंजीनियर ने बताया कि इसे साफ करने में कम से कम 2 दिन तो लगेंगे ही, मतलब 2 दिन तक बसें बंद.

हम ने देखा कि मलबे के दूसरी ओर भी उतनी ही गाडि़यां खड़ी थीं. हमें लगा कि अब घर तक पैदल ही जाना पड़ेगा, जो कि वहां से 8 किलोमीटर दूर है.

अभी हम लोग आगे चल ही रहे थे कि पीछे से तकरीबन भाग कर आने वाले मुसाफिरों ने बताया कि इस ओर खड़ी बस हम लोगों को ले जाएगी और हमारे वाली बस इस बस की सवारियों को रामपुर ले जाएगी.

थोड़ी ही देर में उधर के सारे मुसाफिर इधर की बस में बैठ चुके थे. हम आधे घंटे बाद घर में थीं.

चाची हमें देख कर बहुत खुश हुईं. उन्होंने मेरी मनपसंद खीर बना दी थी. पहाड़ी उड़द की दाल और मीठा चावल बनाया था. चाची को पता था कि मीठे चावल मुझे बहुत पसंद हैं.

खाना खा कर हम लोग चाची के कमरे में ही आ धमके थे और उन के डबल बैड पर बैठ गए. चाची भी हमारे साथ ही आ बैठी थीं. हम लोग बहुत देर तक बातें करते रहे. पूरे शहर के, आसपास के 10 गांवों के किस्सों को हम ने आपस में बांटा. चाची थकी हुई थीं. बरसात के चलते हम लोग कुछ जल्दी सो गए.

हमें सोए अभी मुश्किल से आधा घंटा ही हुआ होगा कि बाहर से किसी के पुकारने की आवाज आई, ‘‘कोई है? दरवाजा खोलिए…’’

आधी रात, जोर की बरसात, पहाड़ का मौसम… इस समय कौन होगा?

चाची उठतीं, इस से पहले मैं बोल उठी, ‘‘आप आराम करिए चाची. मैं देखती हूं.’’

पर मैं उठती, इस से पहले ही साथ वाले कमरे का दरवाजा खुला और

चाची का 17 साला बेटा हरीश बाहर निकल आया और बोला, ‘‘कौन है इतनी रात को?’’

‘‘बाबूजी, हम मुसाफिर हैं. रामपुर जा रहे थे. जोर की बरसात हो रही है. रातभर के लिए थोड़ी सी सोने के लिए जगह दे दीजिए. सुबह होते ही हम चले जाएंगे. आप की बड़ी दया होगी,’’ अंधेरे में एक आवाज उभरी.

‘‘रामू…’’ हरीश हैरान होते हुए बोला, ‘‘तू इस समय कहां से आ

रहा है?’’

‘‘अरे साहब, यह आप का घर है. मुझे तो पता ही नहीं था. चलो, अच्छा हुआ. अब हमें रातभर के लिए रहने को जगह मिल जाएगी.’’

‘‘कौन है हरीश?’’ चाची ने तेज आवाज लगाई.

‘‘कोई नहीं है मां, तुम सो जाओ भीतर जा कर,’’ हरीश ने भीतर की ओर देखते हुए कहा, पर हम तीनों तो बाहर निकल आई थीं.

नीचे बाहर खुले आंगन में मूसलाधार बरसात में भीगते हुए 3 शख्स खड़े थे, जो सर्दी से ठिठुर भी रहे थे.

‘‘पर तू ने मेरी बात का जवाब नहीं दिया रामू,’’ हरीश ने हमें देख कर भी अनदेखा कर दिया.

‘‘साहब, मैं काम से मशनू गांव गया था. वापस रामपुर लौटने में रात तो हो ही गई थी, पर मैं ने सोचा कि कोई बात नहीं, टौर्च है, चले जाएंगे.

बड़बोला: कैसे हुई विपुल की बहन की शादी- भाग 1

‘‘गुडमार्निंग सर,’’ केबिन में  प्रवेश करते हुए विपुल ने कहा और मुझे अपना नियुक्तिपत्र दिया. अकाउंट विभाग का हैड होने के नाते मैं ने उसे कुरसी पर बैठने का संकेत किया और इंटरकौम पर अपने सहायक महेश को केबिन में आने को कहा.

महेश ने केबिन में आते ही नमस्ते की और कुरसी पर बैठते हुए बोला, ‘‘सर, आज 2 घंटे पहले मुझे जाना है. श्रीमतीजी शाम की टे्रन से मायके से वापस आ रही हैं.’’

‘‘चले जाना पर पहले इन से मिलो,’’ मैं ने महेश को इशारा करते हुए कहा, ‘‘विपुल, तुम्हारे सहायक रहेंगे. काफी दिनों से तुम शिकायत कर रहे थे कि काम अधिक है, एक आदमी की जरूरत है. विपुल अब तुम्हारे अधीन काम करेंगे. विपुल के अलावा सुरेश को भी अगले सप्ताह ज्वाइन करना है. आफिस में स्टाफ पूरा हो जाएगा, जिस के बाद पेंडिंग काम पूरा हो जाएगा. अच्छा विपुल, तुम अब से महेश के साथ काम करोगे. अब तुम अपनी सीट पर जा कर काम शुरू कर दो.’’

20 साल का विपुल बी.काम. करने के बाद पिछले सप्ताह जब इंटरव्यू देने आया था तो उस को काम का कोई अनुभव नहीं था, लेकिन एक गजब का आत्मविश्वास उस में जरूर था, जिस को देख कर मैं ने उसे नौकरी पर रखा था. मझले कद का गोराचिट्टा, हंसमुख नौजवान विपुल नवगांव में रहता था.

नवगांव नवयुग सिटी से लगभग 80 किलोमीटर दूर एक छोटा सा कसबा है. बस से एक तरफ का सफर लगभग ढाई घंटे में पूरा होता है. आफिस का समय सुबह 10 से शाम 6 बजे है. 8 घंटे की ड्यूटी के बाद बस पकड़ने के लिए आधा घंटा और फिर लगभग 5 घंटे बस में, यानी लगभग 14 घंटे की ड्यूटी देने की बात जब इंटरव्यू में विपुल को मैं ने बताई और पूछा कि किस तरह वह समय को मैनेज कर पाएगा. कहीं कुछ दिन काम करने के बाद नौकरी तो नहीं छोड़ देगा तो उस के आत्मविश्वास और जवाब देने के ढंग ने मुझे निरुत्तर कर दिया. उस ने कहा कि हर हालत और मौसम में सुबह 10 बजने से 10 मिनट पहले ही आफिस पहुंच जाएगा. और यही हुआ, बिना नागा आफिस खुलने से पहले विपुल पहुंच जाता और 2 महीने के छोटे से समय के अंदर सभी कार्यों में निपुण हो गया. आफिस का पेंडिंग काम समाप्त हो गया और काम रुटीन पर आ गया.

विपुल काम में तेज, स्वभाव में विनम्र लेकिन उस की एक बात मुझे पसंद नहीं थी. वह बात उस के अधिक बोलने की थी. वह चुप नहीं रह सकता था. कई बार मुझे लगता था कि वह बात को बढ़ाचढ़ा कर करता था. विपुल ने अपनी बातों से धीरेधीरे पूरे आफिस को यकीन दिला दिया कि वह एक अमीर घर से ताल्लुक रखता है. अच्छे और महंगे कपड़े, जूते अपनेआप में उस के अमीर होने का एहसास कराते थे. आफिस में अपने सहयोगियोेंको अकसर दावत देना उस का नियम बन गया था.

आफिस में कंप्यूटर आपरेटर श्वेता और टेलीफोन आपरेटर सुषमा के आसपास उसे मंडराते देख कर मुझे ऐसा लगा था कि आफिस की लड़कियों में विपुल की कुछ खास रुचि थी. लंच वह सुषमा और श्वेता के साथ ही करता था. उन दोनों को प्रभावित करने में उस का खाली समय व्यतीत होता था. इन सब बातों को देख कर मैं ने विपुल को कभी टोका नहीं, क्योंकि आफिस का काम उस ने कभी पेंडिंग नहीं किया. इसलिए बाकी सब हरकतों को उस का निजी मामला समझ कर नजरअंदाज करता रहा क्योंकि वह कंपनी के काम में सदा आगे रहता था.

एक दिन मैं आफिस में रिपोर्ट देख रहा था. शाम के 4 बजे चाय के साथ चपरासी समोसा, गुलाबजामुन और पनीर पकौड़ा मेज पर रखता हुआ बोला, ‘‘सर, समोसा पार्टी विपुल की तरफ से है.’’

‘‘किस खुशी में दावत हो रही है?’’ मैं चपरासी से पूछ रहा था, तभी महेश केबिन में आता हुआ बोला, ‘‘सर, विपुल तो छिपा रुस्तम निकला. मोटा असामी है. यह दावत तो कुछ नहीं, बड़ी पार्टी लेनी पड़ेगी विपुल से. ऐसे नहीं छूट सकता. आज उस ने 2 ट्रक खरीदे हैं, 16 ट्रक पहले से ही नवगांव की दाल मिल में चल रहे हैं. टोटल 18 ट्रकों का मालिक है. समोसा पार्टी तो शुरुआत है, फाइव स्टार दावत पेंडिंग है, सर.’’

‘‘महेश, एक बात समझ में नहीं आती कि 18 ट्रकों के मालिक को एक क्लर्क की नौकरी करने की क्या जरूरत है?’’

मनपसंद: मेघा ने परिवार के प्रति कौनसा निभाया था फर्ज- भाग 1

मेघा सही स्थिति का आकलन कर पाने की स्थिति में नहीं है. मां को देखती है तो कलेजा कट के रह जाता है वहीं रिश्तेदारों की चाशनी में लिपटी बेतुकी सलाहें सुनती है तो कटे कलेजे को सिल कर ढाल बनाने को जी चाहता है उस का.

मेघा के लिए आने वाली परिस्थितियां आसान नहीं होंगी, इस का एहसास उसे बखूबी है. लेकिन इन से पार पाने की कोई रणनीति उस के दिमाग में अभी नहीं आ रही है. उस की मां तो साधारण घरेलू महिला रही हैं, पेट के रास्ते से पति के दिल में उतरने की कवायद से आगे कभी कुछ सोच ही नहीं पाईं. पता नहीं वे खुद नहीं सोच पाई थीं या फिर समाज ने इस से अधिक सोचने का अधिकार उन्हें कभी दिया ही नहीं था. जो कुछ भी हो, अच्छीभली गृहस्थी की गाड़ी लुढ़क रही थी. कोई भी कहां जानता था कि ऊंट कभी इस करवट भी बैठ सकता है. लेकिन अब तो बैठ ही चुका है. और यही सच है.

राहत की बात यह थी कि पिता सरकारी कर्मचारी थे और सरकार की यही अदा सब को लुभाती भी है कि चाहे परिस्थितियां कितनी भी प्रतिकूल हो जाएं लेकिन सरकार अपने सेवारत कर्मचारी और उस के बाद उस के आश्रितों का अंतिम समय तक साथ निभाती है. लिहाजा, परिवार के किसी एक सदस्य को अनुकंपा के आधार पर नौकरी मिल ही जाएगी. और यही नौकरी उन के आगे की लंगड़ाती राह में लकड़ी की टेक बनेगी.

15 बरस की छुटकी माला और 20 साल की मेघा. मां को चूंकि दुनियादारी की अधिक समझ नहीं थी और माला ने अभी अपनी स्कूली पढ़ाई भी पूरी नहीं की है, इसलिए यह नौकरी मेघा ही करेगी, यह तय ही था लेकिन मेघा जानती थी कि परिवार की जिम्मेदारी लेना बिना पैरों में चप्पल पहने कच्ची सड़क पर चलने से कम नहीं होगा.

अनुकंपा की नौकरी दोधारी तलवार होती है. एक तो यह एहसास हर वक्त कचोटता है कि यह नौकरी आप को अपनी मेहनत और काबिलीयत की बदौलत नहीं, बल्कि किसी आत्मीय की मृत्यु की कीमत पर मिली है और दूसरे हर समय एक अपराधबोध सा घेरे रहता है कि जाने कर्तव्य ठीक से निभ भी रहे हैं या नहीं. खुद को अपराधबोध न भी हो, तो कुछ नातेरिश्तेदार होते ही इसलिए हैं. उन का परम कर्तव्य होता है कि समयसमय पर सूखने की कोशिश करते घाव को कुरेद कर उसे हरा बनाए रखें. और वे अपना कर्तव्य पूरी निष्ठा से निभाते हैं.

6 महीने बीततेबीतते उतरती हुई गाड़ी फिर से पटरी पर आने लगी थी. एक परिवार ने अपने मुखिया के बिना जीने की कोशिशें शुरू कर दी थीं. मेघा को भी पिता की जगह उन के औफिस में नौकरी मिल गई. जिंदगी ने ढर्रा पकड़ लिया.

फ़िल्मी और किताबी बातों से परे मेघा बहुत ही व्यावहारिक लड़की है. भविष्य को ले कर उस का दृष्टिकोण बिलकुल स्पष्ट था. वह भलीभांति जानती थी कि माला और मां उस की जिम्मेदारी हैं लेकिन इन जिम्मेदारियों के बीच भी वह खुद अपने लिए भी जीने की चाह पाले हुए थी. बीस की हवाई उम्र में उस के भी कुछ निजी सपने थे जिन्हें पूरा करने के लिए वह बरसों इंतजार नहीं करना चाहती थी. उसे पता था कि उम्र निकलने के बाद सपनों का कोई मोल नहीं रहता.

नौकरी के दरमियान ही मंगल उस की जिंदगी में आया जिसे मेघा ने आदर्शों का रोना रोते हुए जाने नहीं दिया बल्कि खुलेदिल से उस का स्वागत किया. मंगल उस का सहकर्मी. मंगल की एकएक खूबी का विस्तार से बखान करने के बजाय मेघा एक ही शब्द में कहती थी- ‘मनपसंद.’ मनपसंद यानी इस एक विशेषण के बाद उस की शेष सभी कमियां नजरअंदाज की जा सकती हैं.

इधर लोगों ने फिल्में और टैलीविजन के धारावाहिक देखदेख कर मेघा की भी त्याग की मूर्ति वाली तसवीर बना ली थी और वे उसे उसी सांचे में फिट देखने की लालसा भी रखते थे. त्याग की मूर्ति यानी पहले छुटकी को पढ़ाएलिखाए. उस का कैरियर बनाए. उस का घर बसाए. तब कहीं जा कर अपने लिए कुछ सोचे. इन सब के बीच मां की देखभाल करना तो उस का कर्त्तव्य है ही. लोगों का दिल ही टूट गया जब उस ने मंगल से शादी करने की इच्छा जताई.

“अभी कहां वह बूढी हो रही थी. पहले छोटी का बंदोबस्त कर देती, फिर अपना सोचती. अब देखना तुम, पैसेपैसे की मुहताज न हो जाओ तो कहना.” यह कह कर कइयों ने मां को भड़काया भी. मां तो नहीं भड़कीं लेकिन मेघा जरूर भड़क गई.

“आप अपना बंदोबस्त देख लीजिए, हमारा हम खुद देख लेंगे,” यह कहने के साथ ही मेघा ने हर कहने वाले मुंह को बंद कर दिया. लेकिन इस के साथ मेघा को बदतमीज और मुंहफट का तमगा मिल गया.

परछाई: मायका या ससुराल, क्या था माही का फैसला?- भाग 1

माही को 2 शादियों के कार्ड एकसाथ मिले. एक भाई की बेटी की शादी का और एक जेठजी की बेटी की शादी का. दोनों शादियां भी एक ही दिन थीं और दोनों ही रिश्ते ऐसे कि शादी में जाना टाला नहीं जा सकता था. माही कार्ड को उलटपुलट कर ऐसे देखने लगी, जैसे ध्यान से देखने पर कोई न कोई सुराग मिल जाएगा या कोई दूसरी तारीख मिल जाएगी. या फिर कोई दूसरी सूरत मिल जाएगी दोनों शादियां अटैंड करने की. वह क्या करेगी अब?

भाई की बेटी की शादी में शामिल नहीं हो पाएगी तो भैयाभाभी की नाराजगी झेलनी पड़ेगी और अगर जेठजी की बेटी की शादी में शामिल नहीं हुई तो जेठजेठानी उस की मजबूरी समझ कर कुछ कहेंगे नहीं पर उन के प्यार भरे उलाहने का सामना कैसे करेगी?

किंकर्तव्यविमूढ़ सी वह पास पड़ी कुरसी पर बैठ गई. विभव से पूछेगी तो वे तपाक से कह देंगे कि जो तुम्हें ठीक लगता है वह करो. वह फिर दोराहे पर खड़ी हो जाएगी. या फिर बहुत अच्छे मूड में होंगे तो कह देंगे कि तुम अपने

भाई की बेटी की शादी में शामिल हो जाओ और मैं अपने भाई की बेटी की शादी में शामिल हो जाता हूं. लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकती. शाम होने को थी, अंधेरा धीरेधीरे चारों तरफ फैल रहा था.

उस का दिल वहां पहुंच गया जब उमंगें थीं, रंगीन इंद्रधनुषी सपने थे, मातापिता थे. उस की कुलांचे भरने वाली उम्र थी. वे 2 भाईबहन थे. मातापिता की इकलौती लाडली बेटी. भाई के बाद लगभग 10 सालों के बाद हुई, इसलिए भाई का भी लाड़प्यार भरपूर मिला. वह 20 साल की थी जब भाई की शादी हुई. आम लड़कियों की तरह उस के भी कई अरमान थे भाई की शादी के… काफी लड़कियां देखने के बाद सिमरन पसंद आ गई. भाई के सेहरा बांधे देख हर बहन की तरह वह भी खुश थी.

भाभी ने जब घर में कदम रखा तो खुशियां जैसे उन के घर के दरवाजे पर हाथ बांधे खड़ी हो गईं. भाभी 23 साल की थीं, उम्र का फासला कम था. उसे लगा उसे हमउम्र एक सहेली मिल गई. अभी तक तो घर में सभी बडे़ थे. 3 साल उसे भाभी के सान्निध्य में रहने का मौका मिला. 23 साल की उम्र में उस की भी शादी हो गई. पहले मां काम करती थीं तो वह निश्चिंत हो कर अपनी पढ़ाई करती थी. मां भाभी की भी किचन में पूरी मदद करती थीं. पर भाभी न जाने क्यों उस से हमेशा चिढ़ी सी ही रहती थीं. शायद उन्हें लगता था कि यह आराम से अपनी पढ़ाई कर रही है. बाकी सारा काम मुझे ही करना पड़ता है. नई होने के कारण वे अधिक नहीं बोल पाती थीं पर भावभंगिमाओं से सब जता देती थीं.

भाभी के हावभाव समझ कर वह भी किचन में हाथ बंटाने की कोशिश करने लगी तो मां ने टोक दिया, ‘तू जा…अपनी पढ़ाई कर… ये काम तो जिंदगी भर करने हैं…’ वह जाने को हुई तो भाभी बोल पड़ीं, ‘पर काम आएगा नहीं तो आगे करेगी कैसे?’ उसे समझ नहीं आया कि भाभी की बात माने कि मां की. वह एम.एससी. कर रही थी. पढ़ने में वह हमेशा कक्षा में अच्छे विद्यार्थियों में गिनी जाती रही. भाभी अपनी चुप्पी के पीछे से भी पूरी दबंगता दिखा देती थीं. भाई भी उस से अब पहले की तरह बेतकल्लुफ नहीं रहते थे. पहले की तरह भाई से फरमाइश करने की उस की अब हिम्मत नहीं पड़ती थी.

भाई कहीं बाहर तो जाते तो भाभी के लिए कई चीजें खरीद कर लाते. वह बहुत उम्मीद से देखती कि शायद उस के लिए भी कुछ खरीद कर लाए हों, पर ऐसा होता नहीं था. उसे किसी बात की कमी नहीं थी पर भाई का कुछ न लाना जता देता कि अब उन की जिंदगी में उस की कोई अहमियत नहीं रह गई है. उस ने यह मासूम सी शिकायत मां से की तो उन्होंने उसे ही समझा दिया, ‘ऐसा तो होता ही है पगली. तेरी शादी होगी तो तेरा पति भी तेरे लिए ऐसे ही लाएगा, पति के लिए पत्नी सब कुछ होती है.’

‘और लोग कुछ नहीं होते?’

‘होते हैं… पर पत्नी से कम ही होते हैं.’ 2 साल तक भाभी का व्यवहार समझते हुए भी उस ने अधिक ध्यान नहीं दिया. उस के लिए भाभी फिर भी अपनी थीं पर भाभी उसे कभी अपना नहीं समझ पाईं. उस के 23 की होतेहोते मातापिता ने उस के लिए लड़का देखना शुरू कर दिया. विभव बैंक में अफसर थे. उन के घर में 2 भाई व 1 बहन और मां थीं. वहां सब कुछ अच्छा देख कर उस का रिश्ता तय हो गया और फिर उस की शादी हो गई. उस ने सोचा कि अब भाभी के साथ उस के रिश्ते सहज हो जाएंगे, जब वह कभीकभी आएगी तो भाभी भी उसे पूरा सम्मान देंगी.

ससुराल में सभी ने उसे हाथोंहाथ लिया पर घर में जेठानी का ही राज था. वे पूरे परिवार पर छाई हुई थीं. सास, ननद व यहां तक की उस के पति के दिलोदिमाग पर भी वही राज कर रही थीं. वह अनायास ही ईर्ष्या से भर उठी. मायके जाती तो वहां सब कुछ भाभी का तो यहां सब कुछ जेठानी का.

धीरेधीरे न चाहते हुए भी उस के मन में जेठानी के प्रति ईर्ष्या की भावना घर कर गई. पति से कुछ भी पूछती तो एक ही जवाब मिलता कि भाभी से पूछ लो.

‘साड़ी खरीदनी है साथ चलो,’ तो उसे जवाब मिलता, ‘भाभी के साथ चली जाओ’ या फिर, ‘चलो भाभी को भी साथ ले चलते हैं, उन की पसंद बहुत अच्छी है.’’

‘खाने में क्या बनाऊं…’

‘भाभी से पूछ लो.’

उन दोनों का सच : क्या पति के धोखे का बदला ले पाई गौरा- भाग 3

तभी उन्हीं दिनों कोविड के प्रकोप से आई विश्वव्यापी मंदी की वजह से पलाश की छंटनी हो गई. एक तरफ उस की महंगी महंगी दवाओं का खर्च, दूसरी तरफ घरगृहस्थी के सौ खर्चे. पलाश की उड़ाऊ आदत और अस्पताल में उस के इलाज पर हुए खर्चे के चलते उस के पास बचत भी कोई खास न थी. नौकरी के दिनों में बिब्बो से अफेयर चलातेचलाते वह उस पर महंगेमहंगे तोहफों के रूप में अपनी तनख्वाह की एक बड़ी रकम उस पर खर्च करता आया था, लेकिन अब उस के बेरोजगार होने पर वह उस पर पहले की तरह उपहारों की बारिश नहीं कर पाता. सो उस की कड़की देख कर उस ने भी पलाश से आंखें फेर ली और किसी दूसरे मुरगे की तलाश में जुट गई. वक्त के साथ अब पलाश के घर उस का आना न के बराबर रह गया था.

पिछले 1 साल से गौरा की मां अपने पड़ोस में किराए पर रहने वाले 10-15 लड़कों के लिए 2 वक्त के खाने का टिफिन भेजने का काम कर रही थी, जो दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा था. गौरा की मां पाककला में निपुण थीं. एक बार जो भी उन का बनाया खाना, खासकर सब्जी, दाल चख लेता, उन के स्वाद का दीवाना बने न रहता. वक्त के साथ गौरा की मां के टिफिन के और्डर बढ़ते ही जा रहे थे. काम इतना बढ़ता जा रहा था कि उन से अकेले सिमट नहीं पा रहा था.

तभी घर में पलाश की नौकरी जाने की दशा में गौरा की मां ने गौरा से भी यह काम शुरू करने के लिए कहा, और अपने कुछ और्डर उसे दे दिए. गौरा भी कुकिंग में अपनी मां की तरह सिद्धहस्त थी. गौरा ने पूरी मेहनत और लगन से यह काम शुरू किया और मां की तरह उस की टिफिन सर्विस भी अच्छी चल निकली.
वक्त का फेर, पलाश की नौकरी गए 6 माह होने आए, लेकिन उसे कोई दूसरी अच्छी नौकरी नहीं मिली. नौकरी गई, माशूका गई और इस के साथ ही आर्थिक स्वतंत्रता जाने के साथसाथ पलाश अब गौरा पर पूरी तरह से आश्रित हो गया.

उस की महंगीमहंगी दवाएं सालभर तक चलने वाली थीं. परिस्थितियों के इस मोड़ पर उसे बिब्बो और गौरा के बीच का अंतर स्पष्ट दिखाई देने लगा था. गौरा मुंह से कुछ न कहती, न जताती लेकिन उस के प्रति किए गए अपने अन्याय के एहसास से वह अब उस से आंखें न मिला पाता. उस के मन का चोर उसे हर लमहा शर्मिंदा करता.

वक्त के साथ गौरा की टिफिन सर्विस का काम अच्छाखासा बढ़ता जा रहा था. अब उसने रसोई में अपनी मदद के लिए 2 सहायिकाएं रख लीं थीं, जो पूरे काम में उस की मदद करतीं. उसे अब अपनी जिंदगी का मकसद मिल गया था. पति की बेशर्म बेवफाई के बाद यह एक सुखद परिवर्तन था.उधर जिंदगी के इस कठिन दौर ने पलाश को भी एहसास दिला दिया था कि गौरा खरा सोना है और बिब्बो जैसी मतलबपरस्त, चरित्रहीन औरत के लिए उस की बेकद्री कर के उस ने अपनी जिंदगी की महत भूल की थी.
अब वह गौरा के प्रति अपने दुर्व्यवहार को ले कर बेहद शर्मिंदा महसूस करता. इतना कुछ हो जाने के बाद भी गौरा के पति के प्रति पूर्ण समर्पण और परवाह में कोई कमी नहीं आई थी.

वह एक परंपरावादी महिला थी, जो पति के साथ हर हाल में एक छत के नीचे रहने में विश्वास रखती थी. पलाश की बचत लगभग खत्म होने आई थी. अब घर का खर्च पूरी तरह से गौरा की टिफिन सर्विस की आमदनी से चलता. पलाश की महंगीमहंगी दवाओं का आना बदस्तूर जारी रहा. डाक्टरों के निर्देशों के मुताबिक उस के त्वरित स्वास्थ्य लाभ के लिए उस की थाली में भरपूर महंगेमहंगे पोषक खाद्य पदार्थ रहते. उन में किसी तरह की कोई कमी एक दिन के लिए भी नहीं आई. कमी आई थी तो महज पति के प्रति उस के व्यवहार में.

पति के निर्लज्ज प्रेम प्रसंग से उस का उस से मन पूरी तरह से फट गया. उसे उस की शक्ल तक देखना गवारा नहीं था. वह दिनदिन भर मात्र अपनी टिफिन सर्विस के काम में अपने होंठ भींचे व्यस्त रहती. पति के साथ उस की बोलचाल मात्र हां या न तक सीमित रह गई. उस की उस से बात करने की तनिक भी इच्छा न होती.

पति के बेशर्म आचरण से क्षतविक्षत आहत मन उस ने अपनेआप को मौन के अभेद्य खोल में समेट लिया था. पलाश कभी उस से बात भी करता तो वह मात्र हूंहां कर वहां से इधरउधर हो जाती. पिछले कुछ समय से पत्नी के इस नितांत शुष्क और रूखे व्यवहार से पलाश बेहद बेचैनी का अनुभव कर रहा था.

उस दिन गौरा की दोनों सहायिकाओं ने अचानक किसी जरूरी काम से छुट्टी ले ली. गौरा को खुश करने की मंशा से पलाश भी रसोई में घुस गया. उस ने पूरे वक्त एक पैर पर खड़े रह पत्नी की यथासंभव मदद की. अपनी गलती का मन से एहसास कर वह एक बार फिर से पत्नी से अपने संबंध सामान्य बनाना चाहता था. जब से बिब्बो उन दोनों के बीच आई थी, गौरा दोनों बच्चों के साथ दूसरे बैडरूम में सोने लगी थी. गौरा बच्चों के साथ उन के बैडरूम में लेटी हुई थी कि पलाश ने दोनों सोते हुए बच्चों को गोद में उठा कर अपने बैडरूम के पलंग पर सुलाया और खुद पत्नी के बगल में लेट गया.

तभी उसे पलंग पर आया देख गौरा ने उठने का उपक्रम किया ही था कि पलाश ने उसे खींच कर अपने सीने पर गिरा दिया और उस की आंखों में झांकते हुए उस से बोला, “गौरा और कितने दिन मुझ से गुस्सा रहोगी? अब गुस्सा थूक भी दो. मुझे अपनी गलतियों का एहसास हो गया है.

“बिब्बो जैसी औरत के लिए मैं ने तुम्हारी बेकद्री की. मुझ से बड़ी भूल हुई. प्लीज, मुझे माफ कर दो,” पति की यह बातें सुन कर गौरा की आंखों में आंसुओं का सैलाब उतर आया और रुंधे गले से वह बोली, “तुम्हारी गलती की कोई माफी नहीं है. तुम ने बिब्बो जैसी सस्ती औरत के लिए मुझे खून के आंसू रुलाए. मैं तुम्हें जिंदगी भर माफ नहीं करूंगी. तुम ने मेरा बहुत जी दुखाया है. अब मुझ से माफी की उम्मीद मत रखो.”

पलाश के पास पत्नी के इस कड़वे उलाहने का कोई जवाब नहीं था. उस ने बेबस करवट बदल कर आंखें मूंद लीं. गोरा की आंखों में खून के आंसू थे तो पलाश की आंखों में पश्चाताप के. अब शायद आंसू ही उन दोनों की नियति थी, उन दोनों का सच था.

उन दोनों का सच : क्या पति के धोखे का बदला ले पाई गौरा – भाग 2

उस मुश्किल घड़ी में पति की यह हालत देख वह बेहद घबरा गई. वह सोच नहीं पा रही थी कि आखिरकार पति को उस के पीछे एसी की बाहरी यूनिट को साफ करने की जरूरत क्या आन पड़ी और वह भी तब, जब वह घर पर नहीं थी.

उधर पलाश गिरने के बाद पूरी तरह से मौन हो गया था. उस ने गिरने के बाद गौरा से बिलकुल कोई भी बात नहीं की. वह बस वीरान निगाहों से शून्य में ताक रहा था. एक तरफ उस की यह हालत देख उस का कलेजा मुंह में था, वहीं दूसरी ओर उस के प्रति गुस्से का भाव भी था कि आखिर वह बेवजह एसी की बाहरी यूनिट साफ करने उस ऊंचे स्टूल पर चढ़ा ही क्यों जिस से आज उसे अस्पताल में धक्के खाने की नौबत आ गई. उस नाजुक वक्त में बिब्बो ने उसे बहुत सहारा दिया.

बिब्बो भी ग्रैजुएट ही थी, लेकिन दुनिया देखीभाली, खेलीखाई महिला थी. पुरुषों से बेहद धड़ल्ले से बातें करती. सो पलाश के इलाज के सिलसिले में डाक्टरों से बातचीत करने में वही आगे रही .

अस्पताल के डाक्टर मिहिर और उन की टीम ने पलाश का ट्रीटमैंट शुरू किया. गौरा तो बस बेहद घबराई हुई कलेजा मुंह में लिए डाक्टरों और बिब्बो की बातें सुनती रहती. तभी डाक्टर मिहिर ने गौरा से कहा, “गौरा, आप के हसबैंड के ब्रेन का सीटी स्कैन और एमआरआई करवाना पड़ेगा, यह देखने के लिए कि कहीं उन्हें कोई अंदरूनी चोट तो नहीं पहुंची.”

“ठीक है डाक्टर साहब, आप जो ठीक समझें”, गौरा ने डॉक्टर से कहा.

“डाक्टर साहब, पलाश के ब्रेन का सीटी स्कैन और एमआरआई होगा? एक बात बताइए डाक्टर साहब, इन की गरदन के पीछे कुछ दाने हो रहे हैं. सीटी स्कैन और एमआरआई में कोई दिक्कत तो नहीं आएगी?” बिब्बो के मुंह से अनायास यह शब्द निकले ही थे कि अगले ही क्षण अपनी जीभ काटते हुए वह चुप हो गई.

यह वह क्या कह बैठी, अगले ही क्षण उसे एहसास हुआ और वह घबरा गई.

“नहींनहीं, उस की वजह से कोई परेशानी नहीं होगी,” डाक्टर ने जवाब दिया.

इधर बिब्बो के मुंह से पति की गरदन के पीछे हुए दानों के बारे में सुन कर गौरा के जेहन में घंटी बजी, यह बिब्बो को पलाश की गरदन के पीछे के दानों के बारे में कैसे पता? वह एक असहज बेचैनी में डूब गई. बारबार एक ही प्रश्न उस के दिलोदिमाग को मथने लगा, ‘आखिर बिब्बो ने यह बात कैसे बोली?’

पलाश के ब्रेन का सीटी स्कैन और एमआरआई हुआ और उन की रिपोर्ट से पता चला कि पलाश के ऊंचाई से गिरने की वजह से उस के ब्रेन में तीव्र हेमरेज हुआ था. दोनों जांचों की रिपोर्ट आने के बाद डाक्टर ने उस की हालत बेहद गंभीर बताई.

पति की गंभीर हालत के विषय में सुन कर गौरा के हाथों के तोते उड़ गए. डाक्टर ने उसे यह भी कहा कि पलाश की हालत बहुत नाजुक है. अगले ढाई घंटों में कुछ भी हो सकता है.”

आखिरकार डाक्टरों का इलाज रंग लाई. ढाई घंटे सकुशल बिना किसी अनहोनी के बीत गए. उस के बाद पलाश की हालत में शीघ्रता से सुधार हुआ. करीब 1 सप्ताह आईसीयू में रहने के बाद पलाश को एक अलग कमरे में शिफ्ट किया गया. अस्पताल में गुजरा वह समय गौरा के लिए बेहद उथलपुथल भरा रहा, पर वहां बीता आखिरी दिन उसे एक जबरदस्त झटका दे गया.

उस दिन पलाश को अस्पताल से छुट्टी मिलने वाली थी. उसे डिस्चार्ज करने के पहले डाक्टर मिहिर उसे उस की दवाओं और घर पर ली जाने वाली सावधानियों के बारे में बताने के लिए अपने चैंबर ले गए. आधे घंटे बाद डाक्टर से बात कर गौरा जैसे ही पलाश के कमरे में घुसी, यह देख कर उस के पांवों तले जमीन न रही कि पलाश अपनी आंखें मूंदे बिब्बो के दोनों हाथों को अपने हाथों में थामे हुए उन्हें चूम रहा था और बुदबुदा रहा था, “तुम ने मेरी जान बचा दी. अगर तुम मुझे उस दिन वक्त पर अस्पताल नहीं लातीं तो न जाने क्या होता?”

उस के अचानक कमरे में पहुंचने पर बिब्बो ने सकपका कर अपने हाथ पलाश के हाथों की गिरफ्त से छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन पलाश ने उस के हाथ नहीं छोड़े और गौरा पर एक घोर उपेक्षा की दृष्टि डाल वह बिब्बो से इधरउधर की बातें करता रहा.

एक ओर पति की गंभीर शारीरिक हालत, तो दूसरी ओर उस का निर्लज्ज आचरण गौरा के सीने में छुरियां चला रहा था. वह सोच नहीं पा रही थी कि जिंदगी के इस कठिन मुकाम पर वह उन विपरीत परिस्थितियों का सामना कैसे करे? बिस्तर पर पड़े पलाश और बिब्बो का अनवरत प्रेमालाप देख उस का खून उबल उठता, लेकिन वह हालातों के आगे बेबस थी. आर्थिक तौर पर वह पूरी तरह से पलाश पर आश्रित थी.

एक दिन तो हद ही हो गई. उस दिन पलाश अपने 5 साल के बेटे और 7 साल की बेटी के सामने ही गौरा द्वारा परोसी गई लौकी की सब्जी को परे हटा बिब्बो की लाई सब्जी की चटखारे लेते खा रहा था और बिब्बो की कुकिंग की प्रशंसा कर रहा था, “बिब्बो से सीखो सब्जी बनाना. तुम्हें तो तुम्हारी मां ने महज हींगजीरे का छौंक लगाना सिखाया है. बिब्बो के हाथ की बनी यह पनीर की सब्जी खा कर देखो तो समझ आएगा कुकिंग किसे कहते हैं.”

पलाश की इस बात से गौरा का चेहरा स्याह हो आया और उस दिन वह अपनेआप पर काबू नहीं रख पाई और बिब्बो के अपने घर जाते ही घोर आवेश में आ उस से बोल पड़ी, “बिब्बो के हाथ की बनी सब्जी तो बहुत अच्छी लग रही है आप को. उस की तरह मैं भी किसी गैर मर्द के साथ इश्क के पेंच लड़ाऊं तो भी आप को बहुत अच्छा लगेगा न?”

गौरा की यह हिमाकत देख पलाश आगबबूला हो गया और गुस्से में गौरा पर फट पड़ा, “मैं जो चाहे करूं, तुम होती कौन हो मुझे आंख दिखाने वाली? मेरा ही खाती है और मुझ पर ही गुर्राती है बदजात? इतनी ही ऊंची नाक है तो चली जा अपनी मां के घर.”

गौरा के पास पति की प्रताड़ना को सहने के अलावा और कोई चारा न था. एक बार को तो उस का मन किया कि वह सबकुछ छोड़छाड़ मां के घर चली जाए, लेकिन वृद्धा विधवा मां जो अपना और एक बेटी का गुजारा बड़ी मुश्किल से कर रही हो वह उसे किस दम पर संभालती? सो बस आंखों में पानी भर उस ने पति के इस तिरस्कार को खून के घूंट पीते हुए सहा, लेकिन उस दिन उस ने जिंदगी में पहली बार अपने आत्मनिर्भर होने की दिशा में सोचा.

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