Crime Story in Hindi: सोने का घंटा- भाग 1: एक घंटे को लेकर हुए दो कत्ल

प्रस्तुति : शकीला एस. हुसैन

लाश बिलकुल सीधी पड़ी थी. सीने पर दो जख्म थे. एक गरदन के करीब, दूसरा ठीक दिल पर. नीचे नीली दरी बिछी थी, जिस पर खून जमा था. वहीं मृतक के सिर के कुछ बाल भी पडे़ थे. वारदात अमृतसर के करीबी कस्बे ढाब में हुई थी.

मरने वाले का नाम रंजन सिंह था, उम्र करीब 45 साल. उस की किराने की दुकान थी. फिर अचानक ही उस के पास कहीं से काफी पैसा आ गया था. उस ने एक छोटी हवेली खरीद ली थी. 3 महीने पहले उस ने उसी पैसे से बड़ी धूमधाम से अपनी बेटी की शादी की थी.

रंजन का कत्ल उस की नई हवेली में हुआ था. उस के 2 बेटे थे, दोनों अलग रहते थे. बाप से उन का मिलनाजुलना नहीं था. बीवी 3 साल पहले मर चुकी थी. घर पर वह अकेला रहता था. नौकरानी सुगरा दोपहर में रंजन के घर तब आती थी, जब वह अपने काम पर होता था. सुगरा घर का काम और खाना वगैरह बना कर चली जाती थी.

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रंजन ने घर के ताले की एक चाबी उसे दे रखी थी. कत्ल के रोज भी सुगरा खाना बना कर चली गई थी. रात को रंजन आया और खाना खा कर सो गया. सुबह कोई उस से मिलने आया. खटखटाने पर भी दरवाजा नहीं खुला तो वह पड़ोसी की छत से रंजन के घर में घुसा, जहां खून में लथपथ उस की लाश पड़ी मिली.

मैं ने बहुत बारीकी से जांच की. कमरे में संघर्ष के आसार साफ नजर आ रहे थे. चीजे बिखरी हुई थीं. सबूत इकट्ठा कर के मैं ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी. उस के बाद मैं गवाहों के बयान लेने लग गया. सब से पहले पड़ोसी गफूर का बयान लिया गया.

उस ने दावे से कहा कि रात को रंजन की हवेली से लड़ाईझगडे़ की कोई आवाज नहीं आई थी. उस ने बताया कि रंजन सिंह बेटी की शादी के बाद से खुद शादी करना चाहता था. उस ने एक दो लोगों से रिश्ता ढूंढने को कहा था. बेटों और बहुओं से उस की कतई नहीं बनती थी. मैं ने गफूर से पूछा, ‘‘तुम पड़ोसी हो तुम्हें तो पता होगा उस के पास 6-7 महीने पहले इतना पैसा कहां से आया था?’’

गफूर ने सोच कर जवाब दिया, ‘‘साहब, यह तो मुझे नहीं मालूम, पर सब कहते हैं कि उसे कहीं से गड़ा हुआ खजाना मिल गया. पर रंजन कहता था उस का अनाज का व्यापार बहुत अच्छा चल रहा है.’’

पता चला वह सोने का घंटा था, उसी को ले कर 2 कत्ल हुए लेकिन घंटा…

जरूरी काररवाई कर के मैं थाने लौट आया. शाम को मैं ने बिलाल शाह को भेज कर सुगरा और उस के शौहर को बुलवाया. सुगरा 22-23 साल की खूबसूरत औरत थी. उस की गोद में डेढ़ साल का प्यारा सा बच्चा था. गरीबी और भूख ने उस की हालत खराब कर रखी थी. उस के कपड़े पुराने और फटे हुए थे. यही हाल उस के शौहर का था. उस के हाथ पर पट्टी बंधी हुई थी. मैं ने नजीर से पूछा, ‘‘तुम्हारे हाथ पर चोट कैसे लगी?’’

‘‘साहब, खराद मशीन में हाथ आ गया था. 2 जगह से हड्डी टूट गई थी. 2-3 औपरेशन हो चुके हैं पर फायदा नहीं है.’’

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‘‘क्या खराद मशीन तुम्हारी अपनी है?’’

‘‘नहीं जनाब, मैं दूसरे के यहां 50 रुपए महीने पर नौकरी करता था. हाथ टूटने के बाद उस ने निकाल दिया.’’

दोनों मियां बीवी सिसकसिसक कर रो रहे थे. पर मैं अपने फर्ज से बंधा हुआ था. मैं ने नजीर को बाहर भेज दिया और सुगरा से पूछा, ‘‘सुना है तुम्हारा शौहर पसंद नहीं करता था कि तुम किसी और के घर काम करो. इस बात पर वह तुम से झगड़ता भी था. क्या यह सच है?’’

‘‘जी हां साहब, उसे पसंद नहीं था पर मेरी मजबूरी थी. मेरे तीनों बच्चे भूखे मर रहे थे. काम कर के मैं उन्हें खाना तो खिला सकती थी. मैं ने गुड्डू के अब्बा से हाथ जोड़ कर रंजन चाचा के घर काम करने की इजाजत मागी थी और वह मान भी गया था.’’

‘‘पर गांव वाले तुम्हारे और रंजन के बारे में बेहूदा बातें करते थे. यह बातें तुम्हें और तुम्हारे शौहर को भी पता चलती होंगी?’’

‘‘साहब, जिन के दिल काले हैं, वही गंदी बातें सोचते हैं. रंजन चाचा मेरे साथ बहुत अच्छा सलूक करते थे. जब मैं काम करती थी, तब वह घर पर होते ही नहीं थे. लोगों की जुबान बंद करने के लिए मैं अपने बच्चों को भूखा नहीं मार सकती थी.’’

‘‘सुगरा, ऐसा भी तो हो सकता है कि गुस्से में आ कर नजीर ने रंजन सिंह को मार डाला हो?’’

‘‘नहीं साहब, वह कभी किसी का खून नहीं कर सकता. वैसे भी वह हाथ से मजबूर है, सीधा हाथ हिला भी नहीं सकता.’’

इस बारे में मैं ने नजीर से भी पूछताछ की. उस ने बताया कि उस रात 11 बजे तक वह अपने दोस्त अशरफ के यहां था. मैं ने नजीर से कहा, ‘‘लोग तुम्हारी बीवी के बारे में जो बेहूदा बातें करते थे, उस पर तुम्हें गुस्सा नहीं आता था, कहीं इसी गुस्से में तो तुम ने रंजन को नहीं मार डाला?’’

‘‘तौबा करें साहब, हम गरीब मजबूर इंसान हैं. ऐसा सोच भी नहीं सकते. हमारी भूख और मजबूरी के आगे गैरत हार जाती है.’’ मैं ने उन दोनों को घर जाने दिया, क्योंकि वे लोग बेकसूर नजर आ रहे थे.

मैं ने एक बार फिर रंजन के घर की अच्छे से तलाशी ली. दरी के ऊपर एक घड़ी पड़ी थी. अलमारियां खुली हुई थीं, पर यह पता लगाना मुश्किल था कि क्याक्या सामान गया है? बेटों को भी कुछ पता नहीं था, क्योंकि वह बाप की दूसरी शादी के सख्त खिलाफ थे, इसलिए आनाजाना बंद था.

पोस्टमार्टम के बाद रंजन सिंह का अंतिम संस्कार कर दिया गया. इस मौके पर सभी रिश्तेदार मौजूद थे. उस के दोनों बेटे रूप सिंह और शेर सिंह भी थे. बाद में मैं ने रूप सिंह को बुलाया. वह आते ही फट पड़ा, ‘‘थानेदार साहब, हमारे बापू को किसी और ने नहीं नजीर ने ही मारा है. दोनों मियांबीवी बापू के पीछे हाथ धो कर पड़े थे. सुगरा को पता होगा जेवर और पैसे कहां हैं. उसी के लिए मेरा बापू मारा गया.’’

मैं ने उसे समझाया, ‘‘हमारी नजर सब पर है. तुम उस की फिक्र मत करो. तुम यह बताओ कि हादसे की रात तुम कहां थे और बाप से क्यों झगड़ा चल रहा था?’’

‘‘मैं अपने घर में था. मेरी घर वाली को बेटा हुआ था. दोस्त और रिश्तेदार मिल कर जश्न माना रहे थे.’’

‘‘तुम्हारे यहां बेटा हुआ, जश्न मना, पर बाप को खबर देने की जरूरत नहीं समझी, क्यों? तुम काम क्या करते हो.’’

‘‘बापू की दूसरी शादी की वजह से झगड़ा चल रहा था. इसलिए उसे नहीं बताया. मैं मोमबत्ती और अगरबत्ती बनाने का काम करता हूं.’’

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दोनों बेटों से पूछताछ करने से भी कोई नतीजा नहीं निकला. पोस्टमार्टम की रिपोर्ट आ गई, जिस से पता चला रंजन नींद की गोलियों के नशे में था. इस रिपोर्ट से मेरा शक सुगरा की तरफ बढ़ गया. पर मेरे पास कोई सबूत नहीं था.

रिपोर्ट मिलने के बाद मैं रंजन सिंह के घर पहुंचा. वहां देनों बेटे और बेटी भी मौजूद थे. बेटी रोरो कर बेहाल थी. मैं ने नींद की गोलियों की तलाश में अलमारी छान मारी पर कहीं कुछ नहीं मिला. उस की बेटी का कहना था कि उस का बापू नींद की गोलियां नहीं खाता था.

2 दिन बाद डीएसपी बारा सिंह खुद ढाब आ पहुंचा. वह बहुत गुस्से में था. कहने लगा, ‘‘सारी कहानी और सबूत सुगरा और नजीर की तरफ इशारा कर रहे हैं कि कत्ल उन्होंने ही किया है. फौरन उन्हें गिरफ्तार कर के पूछताछ करो.’’

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सौजन्य- मनोहर कहानियां

रविवार 24 जून, 2018 की सुबह करीब 9 बजे का वक्त था. उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले के रहने वाले शरीफुद्दीन और बाबू मियां जलालनगर मोहल्ले के बगल से गुजरने वाले नाले के किनारे होते हुए पैदल ही बस अड्डे की तरफ जा रहे थे. अचानक शरीफुद्दीन की नजर नाले में गिरी पड़ी एक मोटरसाइकिल पर पड़ी, जिस का कुछ हिस्सा नाले के पानी के ऊपर था. यह देखते ही शरीफुद्दीन बोला, ‘‘अरे बाबू भाई, लगता है कोई आदमी नाले में गिर गया है. उस की बाइक यहीं से दिख रही है.’’

शरीफुद्दीन की बात पर बाबू ने जब नाले की तरफ देखा तो वह चौंकते हुए बोला, ‘‘हां शरीफ भाई, लग तो रहा है… चलो चल कर देखते हैं.’’

इस के बाद वह दोनों तेजी से कदम बढ़ाते हुए उधर ही पहुंच गए जहां मोटरसाइकिल पड़ी थी. उन्होंने देखा कि वहां न सिर्फ मोटरसाइकिल थी बल्कि चंद कदम की दूरी पर एक आदमी भी औंधे मुंह पड़ा हुआ था.

ऐसा लग रहा था कि या तो वह शराब के नशे में बाइक समेत नाले में जा गिरा या किसी चीज से टकरा कर वह बाइक समेत नाले में गिर गया है. वह दोनों उस व्यक्ति के करीब पहुंच गए, उस व्यक्ति के शरीर के ऊपर का कुछ भाग नाले के किनारे पर था. उस के सिर से खून बह कर जम गया था. वह व्यक्ति कौन है जानने के लिए दोनों ने जैसे ही उसे पलट कर देखा तो बाबू के मुंह से चीख निकल गई, ‘‘अरे बाप रे, ये तो अपने दरोगाजी भौंदे खान हैं.’’

दरोगा भौंदे खान उर्फ मेहरबान अली उन्हीं के मोहल्ले में रहते थे.

‘‘चल, इन के घर जा कर खबर करते हैं.’’ बाबू ने अपने साथी से कहा और उल्टे पांव अपने मोहल्ले की तरफ चल दिए.

वहां से बमुश्किल 400 मीटर की दूरी पर एमनजई जलालनगर मोहल्ला था. उस मोहल्ले में घुसते ही 20 कदम की दूरी पर दरोगा मेहरबान अली उर्फ भौंदे खान का घर था. चेहरे पर उड़ती हवाइयों के बीच दरोगाजी के घर पहुंचे तो घर के बाहर ही उन्हें दरोगाजी का दामाद अनीस मिल गया. दरोगाजी अपने दामाद के साथ ही रहते थे. शरीफुद्दीन और बाबू मियां ने एक ही सांस में अनीस को बता दिया कि उस के ससुर दरोगाजी अपनी मोटरसाइकिल के साथ नाले में गिरे पड़े हैं.

यह सुनते ही अनीस ने दौड़ कर अपने घर में अपनी सास जाहिदा, पत्नी और सालियों को ये बात बताई. जैसे ही परिवार वालों को भौंदे खान के नाले में गिरने की बात पता चली तो पूरे घर में जैसे कोहराम मच गया. उन की पत्नी जाहिदा और घर में मौजूद तीनों बेटियां अनीस के साथ नाले के उसी हिस्से की तरफ दौड़ पड़ीं, जहां उन के गिरे होने की जानकारी मिली थी. मोहल्ले के अनेक लोग भी उन के साथ हो लिए.

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मरने वाला निकला दरोगा भौंदे खान

जाहिदा ने अपने पति को काफी हिलायाडुलाया लेकिन खून से लथपथ पति के शरीर में कोई हलचल नहीं हुई तो कुछ लोगों ने उन की नब्ज टटोली तब पता चला कि उन की मौत हो चुकी है. इस के बाद तो जाहिदा और उन की बेटियां छाती पीटपीट कर रोने लगीं. थोड़ी ही देर में घटनास्थल पर लोगों का हुजूम लग गया. अनीस ने पुलिस कंट्रोल रूम को फोन कर के दरोगा मेहरबान अली का शव नाले में मिलने की सूचना दे दी.

यह इलाका सदर कोतवाली क्षेत्र में पड़ता था. मामला चूंकि विभाग के ही एक सबइंसपेक्टर की मौत से संबंधित था, इसलिए सूचना मिलते ही सदर कोतवाली थानाप्रभारी डी.सी. शर्मा तथा एसएसआई रामनरेश यादव पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. थानाप्रभारी ने जब मेहरबान अली के शव को नाले से बाहर निकलवा कर बारीकी से उस की पड़ताल की तो पहली ही नजर में मामला दुर्घटना का नजर आया.

ऐसा लग रहा था कि नाले में गिरने पर सिर में लगी चोट के कारण शायद उन की मौत हो गई है. सूचना मिलने पर एसपी का प्रभार देख रहे एसपी (ग्रामीण) सुभाष चंद्र शाक्य, एसपी (सिटी) दिनेश त्रिपाठी और सीओ (सदर) सुमित शुक्ला भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से मुआयना किया. फोरैंसिक टीम ने भी वहां पहुंच कर सबूत जुटाए. घटना की सूचना आईजी और डीआईजी तक पहुंच गई थी लिहाजा अगले 2 घंटे में पुलिस के ये आला अफसर भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. अगले दिन दरोगा मेहरबान अली के शव की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो उसे पढ़ कर पुलिस भी हैरान रह गई. क्योंकि उस में बताया गया कि उन की मौत दुर्घटना के कारण नहीं हुई थी बल्कि उन की हत्या की गई थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि सिर में दाहिनी तरफ चोट लगने के अलावा इस तरह की चोट थी, जैसे किसी ने कई बार भारीभरकम चीज से सिर पर चोट पहुंचाई हो. साथ ही गला भी दबाया गया था. उन की गरदन पर बाकायदा कुछ लोगों की अंगुलियों के निशान थे, मानो उन का गला दबाने की कोशिश भी की गई हो.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट सीधे तौर पर उन की हत्या की ओर इशारा कर रही थी. मृतक दरोगाजी के परिवार वालों से जब पूछा कि उन्हें किसी पर हत्या करने का शक है तो उन्होंने किसी पर शक नहीं जताया. लेकिन उन के दामाद अनीस ने सदर कोतवाली में तहरीर दे कर अज्ञात लोगों के खिलाफ उन की हत्या करने की शिकायत दर्ज करा दी.

रिपोर्ट दर्ज करने के बाद थानाप्रभारी डी.सी. शर्मा ने जांच अपने हाथ में ले ली. अनीस ने थानाप्रभारी को बताया कि एक दिन पहले शनिवार को भौंदे खान दोपहर करीब साढ़े 11 बजे खाना खा कर मोटसाइकिल ले कर ड्यूटी के लिए गए थे.

पुलिस ने की दरोगा के घर वालों से पूछताछ

वह ड्यूटी से रात 8 बजे तक घर लौटने वाले थे. लेकिन 11 बजे तक भी वह नहीं लौटे तो घर वालों को चिंता होने लगी तब साजिदा ने वायरलैस कंट्रोल रूम में फोन कर के पूछा तो पता चला कि मेहरबान अली तो उस दिन ड्यटी पर पहुंचे ही नहीं थे.

जाहिदा जानती थी कि उस के पति कभीकभी दोस्तों के साथ शराब की पार्टी में बैठ जाते हैं. ऐसे में वह कभीकभी ड्यटी पर भी नहीं जाते थे और देर रात तक घर लौटते थे. उस ने सोचा कि हो सकता है आज भी वह कहीं ऐसी ही किसी पार्टी में शामिल हो गए होंगे और सुबह तक आ जाएंगे. यह सोच कर जाहिदा सो गई.

सुबह हो गई, भौंदे खान तब भी घर नहीं लौटे. अनीस उस रोज शहर से बाहर गया हुआ था. सुबह जब वह घर लौटा तो सास जाहिदा ने उसे यह बात बताई. अनीस ने सास से कहा कि वह कुछ देर बाद पुलिस लाइन जा कर देख आएगा कि आखिर बात क्या है. लेकिन उस से पहले ही उसे भौंदे खान की लाश मिलने की सूचना मिल गई.

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सीओ (सदर) सुमित शुक्ला और थानाप्रभारी डी.सी. शर्मा की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर ऐसी कौन सी वजह रही होगी जिस के कारण उन की हत्या की गई. मामला लूटपाट का नहीं था क्योंकि उन की मोटरसाइकिल, कलाई घड़ी और जेब में उन का पर्स ज्यों का त्यों बरामद हुआ था. पर्स में आईडी कार्ड से ले कर डेबिट कार्ड तथा कुछ रुपए सहीसलामत पाए गए थे.

थानाप्रभारी डी.सी. शर्मा को लग रहा था कि दरोगा मेहरबान अली की हत्या का मामला उतना सीधा नहीं है, जितना कि नजर आ रहा है. इसलिए उन्होंने एक टीम मेहरबान अली के परिवार और उन के मेलजोल वालों के बारे में जानकारी एकत्र करने के लिए गठित कर दी, जिस में एसएसआई रामनरेश यादव, महिला एसआई ज्योति त्यागी, कांस्टेबल अनूप मिश्रा, माधुरी के साथ एक दरजन पुलिस वाले शामिल थे.

थानाप्रभारी ने यह कदम यूं ही नहीं उठाया, बल्कि उन्हें 2 महीने पहले दरोगा मेहरबान अली के घर में हुई एक ऐसी घटना याद आ गई जिस की तफ्तीश खुद उन्होंने ही की थी.

मेहरबान अली उर्फ भौंदे खान मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला मुजफ्फरनगर की तहसील बुढ़ाना के गांव कसेरवा के रहने वाले थे. वह उत्तर प्रदेश पुलिस में सब इंसपेक्टर के पद पर तैनात थे. उन की नियुक्ति उत्तर प्रदेश के अलगअलग जिलों में रहने के बाद सन 2007 में शाहजहांपुर जिले की पुलिस लाइन में वायरलैस सेल में हुई थी.

वह थाना सदर क्षेत्र के मोहल्ला एमनजई जलालनगर में अपने दामाद अनीस के साथ रहते थे. मकान की दूसरी मंजिल पर अनीस अपनी पत्नी सबा के साथ रहता था. अनीस मशीनरी टूल की ट्रेडिंग का धंधा करता था. जिस के सिलसिले में उसे अकसर शहर से बाहर भी आनाजाना पड़ता था.

जिस दिन मेहरबान अली गायब हुए थे, अनीस उस दिन शहर से बाहर गया हुआ था. मेहरबान अली के परिवार में उन की पत्नी जाहिदा के अलावा 5 बेटियां व एक बेटा था. बड़ी बेटी सबा की शादी अनीस के साथ डेढ़ साल पहले हुई थी. उस से छोटी 4 बेटियां सना, जीनत, इरम, आलिया तथा एक बेटा मोहसिन है, जो परिवार में सब से छोटा है. दूसरे नंबर की बेटी सना खान की 2 महीने पहले हत्या हो गई थी. थानाप्रभारी डी.सी. शर्मा ने ही उस मामले की जांच की थी.

दरोगा की बेटी की हुई थी हत्या

सना जी.एस. कालेज में बीए फाइनल की छात्रा थी. वह यूपी पुलिस परीक्षा की तैयारी कर रही थी. इस के लिए वह रामनगर कालोनी स्थित एक कोचिंग सेंटर, अपनी छोटी बहन जीनत के साथ जाती थी. 7 अप्रैल, 2018 को भी सना जीनत के साथ कोचिंग सेंटर से बाहर निकल कर 200 मीटर दूर पहुंची थी. तभी अरशद वहां आया. वह अपने एक दोस्त के साथ बाइक पर सवार था. उस ने सना से बात करने के लिए दोनों बहनों को रोक लिया.

अरशद भी उन के साथ उसी कोचिंग सेंटर में जाता था. दोनों आपस में अच्छे दोस्त थे. अरशद सना से बात करने लगा. बात करतेकरते दोनों जैसे ही इलाके के डा. मुबीन के घर के पास पहुंचे तभी अरशद की सना से किसी बात को ले कर नोकझोंक और गालीगलौज होने लगी. तभी गुस्से में आ कर अरशद ने जेब से तमंचा निकाल कर सना को गोली मार दी. गोली उस के सीने पर लगी और वह वहीं जमीन पर गिर पड़ी. गोली मारते ही अरशद अपने दोस्त के साथ बाइक से फरार हो गया था.

इधर, बहन को गोली लगते ही जीनत जोरजोर से चीखने लगी. जीनत की चीखपुकार सुन कर कोचिंग सेंटर से अन्य छात्र बाहर आ गए. उन्होंने खून से लथपथ सना को देखा तो तुरंत एंबुलेंस को फोन किया. लेकिन एंबुलेंस के आने से पहले ही कोचिंग के दोस्त सना को मोटरसाइकिल पर बीच में बैठा कर अस्पताल ले गए. लेकिन अस्पताल पहुंचने पर डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.

जिस इलाके में वारदात हुई वह सदर थाना क्षेत्र में आता है. सना के पिता मेहरबान अली चूंकि पुलिस में ही दरोगा थे, इसलिए थानाप्रभारी डी.सी. शर्मा ने मामले को गंभीरता से लिया. जीनत के बयान के आधार पर सना की हत्या की रिपोर्ट दर्ज की गई.

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अरशद नाम के जिस युवक ने सना को गोली मारी थी उस के बारे में जानकारी हासिल करने में पुलिस को ज्यादा वक्त नहीं लगा. अरशद प्रतापगढ़ के थाना कन्हई के कठहार गांव का रहने वाला था. उस के पिता जहीरूद्दीन सिद्दीकी भी उत्तर प्रदेश पुलिस में थे. अरशद के चाचा सौराब खां शाहजहांपुर में ही बतौर कांस्टेबल तैनात थे. अरशद उन्हीं के साथ रहता था. वह पुलिस लाइन में रह कर पुलिस सेना में भरती होने की तैयारी करता था. इसलिए वह रोजाना दौड़ लगाने के लिए पुलिस लाइन के परेड ग्राउंड में जाता था.

उसी ग्राउंड में सना खान और उस की बहन जीनत भी दौड़ने आती थी. वह भी पुलिस में भरती होने की तैयारी कर रही थीं. बातों ही बातों में अरशद की उन से दोस्ती हो गई. सना मन ही मन अरशद को पसंद करने लगी और जल्द ही दोनों का अकेले में मिलनाजुलना शुरू हो गया. लेकिन अरशद सना की बहन जीनत को ज्यादा पसंद करता था और उसी के साथ निकाह करना चाहता था. जीनत भी अरशद को चाहने लगी थी.

अरशद जब जीनत के साथ हंसीमजाक करता तो सना को ये बात नागवार गुजरती थी. उस ने इस बात पर अरशद को कई बार झिड़कते हुए कह दिया था कि वह उसे पसंद करती है इसलिए वह उस की बहन जीनत पर गलत नजर न रखे.

सना के कई बार ऐसा कहने पर एक दिन अरशद ने सना से साफ कह दिया कि वह उस से नहीं बल्कि जीनत को पसंद करता है और उस से निकाह करना चाहता है. इस के बाद से सना अरशद के जीनत से मेलजोल का विरोध करने लगी. इतना ही नहीं उस ने अपनी मां जाहिदा और पिता मेहरबान अली को भी यह बात बता दी थी. जिस पर जीनत को घर वालों से डांट भी पड़ी थी.

अरशद ने मारा था सना को

जीनत ने यह बात अरशद को बताई तो अरशद ने सना की हत्या कराने का फैसला कर लिया. उस ने सोचा कि सना के न रहने पर उसे जीनत से मिलने में कोई बाधा नहीं आएगी. इस बारे में अरशद ने अपने गांव के बचपन के दोस्त सलमान से बात की. सलमान अरशद का साथ देने के लिए तैयार हो गया और एक दिन उस ने सना को गोली मार दी.

हत्याकांड की जानकारी मिलने के बाद सदर पुलिस ने अगले 24 घंटे में ही अरशद को गिरफ्तार कर के उस के कब्जे से हत्या में प्रयुक्त 315 बोर का देशी तमंचा, 2 कारतूस और मोटरसाइकिल बरामद कर ली थी.

अरशद से पूछताछ में पता चला था कि हत्या में मदद करने वाला उस का दूसरा साथी भी प्रतापगढ़ जिले के गांव कढ़ार का रहने वाला सलमान है, तो पुलिस ने सलमान की गिरफ्तारी के प्रयास करते हुए कई बार उस के ठिकानों पर दबिशें दीं, लेकिन सलमान हर बार पुलिस की पकड़ में आने से बचता रहा.

आखिरकार एसपी सुभाष चंद्र शाक्य ने उस की गिरफ्तारी पर 25 हजार रुपए का ईनाम घोषित कर दिया. जिस के एक हफ्ते बाद सलमान को सदर पुलिस ने रोडवेज बस स्टैंड से गिरफ्तार कर लिया. आरोपी को न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

थानाप्रभारी डी.सी. शर्मा को अनायास सना की हत्या करने वाले कातिल अरशद का वह कबूल नामा भी याद आने लगा जब उस ने बताया था कि सना चाहती थी कि अगर वह उस के पिता मेहरबान अली को मार देने में उस की मदद करे तो अनुकंपा के आधार पर उन की नौकरी उसे मिल जाएगी.

सना ने अरशद से ये भी कहा था कि यदि वह ऐसा कर देगा तो वह उस से शादी कर लेगी. अरशद ने ये भी बताया था कि सना ने उस से कहा था कि उस के पिता उस की मां और सभी बहनों के साथ न सिर्फ मारपीट करते हैं बल्कि सभी बहनों पर पाबंदियां भी लगाते हैं. लेकिन अरशद ने सना का ये औफर इसलिए ठुकरा दिया था, क्योंकि वह सना से नहीं बल्कि उस की बहन जीनत से प्यार करता था.

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घर वालों के बयानों में मिला विरोधाभास

उस वक्त तो थानाप्रभारी को लगा था कि अरशद शायद अपने बचाव में और सना को ही दोषी ठहराने के लिए झूठी कहानी गढ़ रहा है. लेकिन अब जबकि दरोगा मेहरबान अली की हत्या हुई तो उन्हें अरशद के उस बयान में सच्चाई नजर आने लगी. उन्हें लगने लगा कि संभव है, मेहरबान अली की हत्या का राज कहीं न कहीं उन के घर में ही छिपा हो.

अगली सुबह सब से पहले उन्होंने पुलिस टीम के साथ मेहरबान अली के घर का दौरा किया. उन्होंने एकएक कर के मेहरबान अली की पत्नी और उस की बेटियों से पूछताछ की. उन्होंने सभी से मेहरबान अली के शनिवार को घर से बाहर जाने का घटनाक्रम पूछा था. तो न जाने क्यों मांबेटियों के बयानों में एक के बाद एक कई विरोधाभास नजर आए.

किसी ने बताया कि वह दोपहर को खाना खा कर ड्यूटी चले गए थे. किसी ने बताया कि वह सुबह 10 बजे ही रात की ड्यूटी कर के घर लौटे थे और शाम को घर से गए थे. यह भी पता चला कि उन्होंने रात को घर न लौटने पर पुलिस लाइन में फोन कर के उन के घर न लौटने के बारे में पूछा था. लेकिन वहां से पता चला कि उस दिन मेहरबान अली ड्यूटी पर आए ही नहीं थे.

थानाप्रभारी शर्मा ने एसएसआई रामनरेश यादव को पुलिस लाइन में बने वायरलैस कंट्रोल रूम भेजा तो उन्हें पता चला कि मेहरबान अली के बारे में जानकारी लेने के लिए उन की पत्नी जाहिदा ने पुलिस लाइन में कोई फोन नहीं किया था. यह सुन कर थानाप्रभारी का शक यकीन में बदलने लगा कि हो न हो मेहरबान अली के कातिल उन के घर में ही छिपे हैं.

अपने शक को पुख्ता करने के लिए जब उन्होंने वायरलैस औफिस में मेहरबान अली की ड्यूटी का चार्ट निकलवाया तो जानकारी मिली कि मेहरबान अली इस सप्ताह रात की ड्यूटी पर तैनात थे. वह शुक्रवार की रात को ड्यूटी कर के शनिवार सुबह अपने घर आए थे.

डी.सी. शर्मा सोचने लगे कि अगर मेहरबान अली रात की ड्यूटी कर के घर लौटे थे तो दोपहर साढ़े 12 बजे वह भला दोबारा ड्यूटी पर क्यों जाएंगे. अब उन्हें लगने लगा कि मेहरबान अली को ले कर घर वाले झूठ बोल रहे हैं. इस झूठ का परदाफाश करना ही पड़ेगा.

थानाप्रभारी पुलिस टीम और फोरेंसिक टीम को ले कर एक बार फिर मेहरबान अली के घर पहुंचे. उन्होंने जब उन के घर व आसपास के घरों का निरीक्षण किया तो अनायास उन की नजर उन के घर के सामने वाले घर की छत पर लगे सीसीटीवी कैमरे पर पड़ी.

सीसीटीवी कैमरे से मिला क्लू

संयोग से सीसीटीवी कैमरे की दिशा ऐसी थी कि मेहरबान अली के घर आनेजाने वाला हर शख्स वीडियो में कैद हो सकता था. उन्होंने सीसीटीवी की फुटेज देखी तो अचानक मेहरबान अली हत्याकांड का पूरा सच सब के सामने आ गया.

सीसीटीवी वीडियो में 23 जून, 2018 को सुबह 9 बजे दरोगा मेहरबान अली घर के अंदर दाखिल होते दिखे थे. संभवत: वह उस वक्त अपनी ड्यूटी से लौटे थे. लगभग डेढ़ घंटे बाद घर के अंदर 2 अन्य लोग जाते दिखे लेकिन देर रात तक वह दोनों वापस लौटते नहीं दिखे. इस के बाद रात होने तक कोई असामान्य बात नहीं दिखी. लेकिन रात को 10 बजे के बाद अचानक मेहरबान अली की पत्नी व बेटियों की असामान्य गतिविधियां दिखाई पड़ीं.

करीब 10 बजे मेहरबान अली की पत्नी जाहिदा दरवाजे तक आई कुछ देर रोड पर इधरउधर देखा और लौट गई. उस के बाद कुछ देर बाद उस की बेटी आलिया और इरम बाहर आईं उन्होंने भी गली में इधरउधर देखा और वहां रुक कर मोबाइल देखती रहीं फिर वापस घर में भीतर चली गईं. इस के बाद मेहरबान अली की बड़ी बेटी शबा भी बाहर आई और कुछ देर रुक कर वह भी अंदर चली गई.

इस के बाद जाहिदा फिर एक बार दरवाजे पर आ कर लौट गई. फिर रात 10 बज कर 40 मिनट पर घर के बाहर 2 लोग जो सुबह घर के भीतर घुसे थे, वह एक बाइक पर मेहरबान अली को बीच में बैठा कर बाहर आते दिखाई दिए. घर से बाइक बाहर निकालने के लिए पीछे से जाहिदा और उस की 2 बेटियों को बाइक को धक्का लगाते देखा गया.

जाहिदा फिर गली में आई. उस ने देखा कि रोड पर कोई नहीं है तो रास्ता साफ होने का इशारा कर के बाइक को आगे ले जाने का उस ने इशारा किया.

इस के बाद 2 लोग बाइक को ले कर चले गए. लेकिन हैरानी की बात यह थी कि इस दौरान मेहरबान अली का शरीर बेजान सा बीच में रखा था. सीसीटीवी फुटेज को देख कर ऐसा लग रहा था कि वह मेहरबान अली के मृत शरीर को मोटरसाइकिल पर ले जा रहे थे.

जाहिदा और बेटियां ही निकलीं कातिल

अब सब कुछ आईने की तरह साफ था. सीसीटीवी फुटेज कब्जे में ले कर थानाप्रभारी शर्मा एक बार फिर जाहिदा के घर पहुंचे. उन्होंने जब पूछा कि शनिवार की सुबह उन के यहां कौन 2 लोग आए थे तो कोई भी ठीकठाक उन के सवालों का जवाब नहीं दे सका. वह जानते थे कि कोई भी गुनहगार आसानी से अपना गुनाह नहीं कबूलता.

उन्होंने जाहिदा और उस की बेटियों को पुरुषोत्तम आहूजा के घर से बरामद की गई सीसीटीवी फुटेज दिखाई तो उन के पास बचने का कोई बहाना नहीं रहा. थोड़ी सी डांटफटकार के बाद ही जाहिदा ने कबूल कर लिया कि अपने पति मेहरबान अली की हत्या उस ने अपनी बेटियों के साथ साजिश रच कर भाडे़ के 2 हत्यारों से कराई थी. और उन की लाश को करीब 11 घंटे तक अपने कमरे में ही रखा. इस दौरान दोनों हत्यारे भी उन के साथ घर में मौजूद रहे. फिर मौका मिलने पर रात के अंधेरे में लाश फेंकी गई.

जाहिदा से पूछताछ के बाद थानाप्रभारी डी.के. शर्मा ने उसे व उस की चारों बेटियों जीनत, इरम, आलिया तथा शादीशुदा बेटी सबा को उन के घर से गिरफ्तार कर लिया. पांचों को थाने ला कर उन्होंने उच्चाधिकारियों को हत्याकांड का खुलासा करने की सूचना दे दी. इस के बाद एसपी सुभाषचंद्र शाक्य, एसपी (सिटी) दिनेश त्रिपाठी और सीओ(सदर) सुमित शुक्ला के समने मेहरबान अली हत्याकांड की साजिश बेनकाब हो गई.

जाहिदा के अपने बहनोई से थे अवैध संबंध

जाहिदा ने बताया कि उस के नाजायज संबंध मुजफ्फरनगर के गांव तावली में रहने वाले अपने बहनोई फारुख से थे. उस के संबंधों की जानकारी जब मेहरबान अली को हुई तो उस ने जाहिदा को समझानेबुझाने की कोशिश की लेकिन बाद में जब जाहिदा नहीं मानी तो मेहरबान अली उस के साथ मारपीट करने लगे इसलिए जाहिदा के मन में अपनी पति के लिए नफरत भर गई.

इतना सब तो ठीक था, लेकिन जाहिदा ने अपनी बेटियों को भी अपने रंग में ढालना शुरू कर दिया. मेहरबान अली धार्मिक प्रवृत्ति के थे उन्हें बेटियों का आधुनिक फैशन करना और बेपर्दा हो कर घर से निकलना पसंद नहीं था. वह उन के आधुनिक फैशन पर रोकटोक लगाते थे. इसलिए उन की बेटियां भी उन के से तंग थीं. वे भी अपनी मां की तरह चाहने लगीं कि ऐसे पिता उन की जिंदगी में न रहे.

आए दिन मेहरबान अली की टोकाटाकी और अपने बहनोई से मेलजोल में बाधा बनने की वजह से जाहिदा ने करीब 6 महीने पहले अपने पति मेहरबान अली की हत्या कराने की साजिश रचनी शुरू कर दी.

वह इस बात की कोशिश कर रही थी कि किसी तरह पति रास्ते से हट जाएगा तो उन की जगह अनुकंपा के आधार पर बेटी जीनत को नौकरी पर लगवा दिया जाएगा. इस से उस का रास्ता भी साफ हो जाएगा और परिवार की गुजरबसर भी होती रहेगी.

पति की हत्या कराने के लिए जाहिदा ने 6 महीने पहले अपने बहनोई फारुख के गांव के रहने वाले तहसीन तथा कासिम से बात की. वे दोनों फारुख के दूर के रिश्तेदार भी थे.

जाहिदा ने उन से एक लाख रुपए में सौदा तय कर लिया. इस के लिए वह सही मौके का इंतजार करने लगी. जिस के लिए वह अकसर उन दोनों से फोन पर बात करती रहती. इधर जीनत से एकतरफा प्यार करने के कारण अरशद ने जब सना की हत्या कर दी तो मेहरबान अली ने पत्नी और बेटियों पर ज्यादा सख्ती करनी शुरू कर दी.

भाड़े के हत्यारों से कराया था कत्ल

जाहिदा को लगा कि इस काम को अब जल्द अंजाम देना होगा. सना की भले ही हत्या हो चुकी थी लेकिन वह जानती थी कि मेहरबान अली की मौत हो जाएगी तो जीनत को ये नौकरी मिल जाएगी. लिहाजा इस के लिए 23 जून, 2018 जाहिदा ने तहसीन और कासिम को फोन कर के मुजफ्फरनगर से शाहजहांपुर बुला लिया.

क्योंकि उस दिन सुबह उस का दामाद अनीस शहर से बाहर जाने वाला था और उस के न होने पर बारदात को अंजाम देना आसान था. जाहिदा के बुलाने पर तहसीन और कासिम शाहजहांपुर आ गए. और सुबह करीब साढ़े 10 बजे घर में पहुंचे.

उस वक्त मेहरबान अली खाना खा कर रात की ड्यूटी से थका होने के कारण बिस्तर पर जा लेटे थे और जल्द ही गहरी नींद में सो गए. तहसीन और कासिम ने गहरी नींद में सोए हुए मेहरबान अली का गला दबा दिया.

बचने की कोई गुंजाइश न रहे, इसलिए उन्होंने उन के सिर को कई बार दीवार से दे कर मारा. जिस से उन के सिर में चोट आई. इस के बाद रात को उन्होंने करीब साढ़े 10 बजे मेहरबान अली की बाइक पर ही डैडबौडी को बीच में बैठाने की स्थिति में रखा और लाश 400 मीटर दूर नाले में ले जा कर डाल दी. लेकिन इस से पहले उन्होंने मेहरबान अली के शरीर पर वही कपड़े पहना दिए जिन्हें पहन कर वह ड्यूटी जाते थे.

हाथ में घड़ी और जेब पर्स डाल कर ऐसा बना दिया ताकि लगे कि वह वाकई अपनी ड्यूटी पर गया हो. जाहिदा ने अपने पति के वेतन में से 50 हजार रुपए भाडे़ के कातिलों को एडवांस के रूप में दे दिए. 5 जून, 2018 को ही मेहरबान अली अपनी सैलरी 68 हजार 500 रुपए निकाल कर घर लाए थे. वह पैसे उस ने जाहिदा को दिए थे.

जाहिदा ने उसी रकम में से 50 हजार रुपए हत्यारों को दिए थे. शेष रकम उस ने जल्द ही देने का आश्वासन दिया था और उन से यह भी कह दिया था कि वह उस से संपर्क न करें. काम निपटाने के बाद रात को ही अपने घर चले गए थे.

दरोगा की पत्नी और बेटियां हुईं गिरफ्ता

जाहिदा ने अपने नाजायज रिश्तों को बनाए रखने के लिए पति मेहरबान अली को रास्ते से हटाने की साजिश तो पुख्ता रची थी लेकिन वह यह बात शायद नहीं जानती थी कि अपराध चाहे कितनी भी चालाकी से क्यों न किया जाए, एक न एक दिन वह खुल ही जाता है.

कहते हैं कि कातिल कितना भी चालाक हो वह कोई चूक कर ही जाता है.

जरूरी पूछताछ के बाद थानाप्रभारी ने जाहिदा और उस की चारों बेटियों को अदालत में पेश किया जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. उन के जेल भेजने के बाद थानाप्रभारी डी.सी. शर्मा को आशंका थी कि हत्याकांड का खुलासा होने के बाद कहीं भाड़े के हत्यारे पुलिस के चंगुल से दूर न हो जाएं इसलिए शाहजहांपुर एसपी सुभाषचंद्र शाक्य ने एसएसपी मुजफ्फरनगर अनंत देव को वारदात की जानकारी देते हुए तावली गांव में रहने वाले दोनों आरोपियों तहसीन और कासिम को तुरंत गिरफ्तार कराने का अनुरोध किया.

तावली गांव शाहपुर थानाक्षेत्र में आता था. पता चला कि तहसीन और कासिम इलाके के शातिर बदमाश हैं. उन के ऊपर जिला पुलिस ने 5-5 हजार रुपए का ईनाम भी घोषित किया हुआ था.

एसएसपी मुजफ्फरनगर अनंत देव के निर्देश पर शाहपुर के थानाप्रभारी कुशलपाल ने उक्त दोनों बदमाशों के घर दबिश दी लेकिन वह घर पर नहीं मिले. इस के बाद मुखबिर की सूचना पर उन दोनों को एक मुठभेड़ के बाद गिरफ्तार कर लिया.

पूछताछ में कासिम और तहसीन ने बताया कि दोनों ने जाहिदा के कहने पर दरोगा मेहरबान अली की हत्या कर उन का शव नाले में डाला था. शाहजहांपुर पुलिस को जब उन के गिरफ्तार होने की जानकारी मिली तो उस ने मुजफ्फनगर पहुंच कर कोर्ट के द्वारा उन्हें हिरासत में ले लिया. बाद में वह उन्हें शाहजहांपुर ले आई. पुलिस ने रिमांड पर ले कर उन से विस्तार से पूछताछ की फिर कोर्ट में पेश कर न्यायिक हिरासत में भेज दिया.

Manohar Kahaniya: पुलिस में भर्ती हुआ जीजा, नौकरी कर रहा साला!- भाग 2

अनिल कुमार के बारे में विस्तृत जानकारी जुटाने के बाद पुलिस टीम अनिल को साथ ले कर ठाकुरद्वारा कोतवाली आ गई.

कोतवाली लाते ही पुलिस ने अनिल से पूछताछ शुरू की तो सारा फरजीवाड़ा खुल कर सामने आ गया. अनिल बतौर एक सिपाही उत्तर प्रदेश पुलिस में भरती हुआ, लेकिन उस की जगह पर उसी का साला सुनील कुमार पिछले 5 साल से उस की एवज में नौकरी करता रहा.

पुलिस विभाग की लापरवाही आई सामने

इस फरजीवाड़े के सामने आते ही पुलिस को संदेह हो गया कि अनिल ने पुलिस में भरती होने के लिए शैक्षिक प्रमाणपत्रों में भी कोई फरजीवाड़ा किया होगा.

अब पता चला कि थाने से जो तथाकथित सिपाही भागा था, वह अनिल का साला सुनील कुमार था. सुनील कुमार अभी तक पुलिस पकड़ से बाहर था.

पुलिस ने उसे हरसंभव स्थान पर खोजा, लेकिन उस का कहीं भी अतापता न चल सका. उस की गिरफ्तारी के लिए पुलिस ने हर जगह मुखबिरों का जाल बिछा दिया था.

अगले दिन एक मुखबिर से सूचना मिली कि फरजी सिपाही सुनील ठाकुरद्वारा बसस्टैंड तिकोनिया चौराहे के पास कहीं जाने की फिराक में खड़ा है.

यह जानकारी मिलते ही पुलिस ने चारों ओर से घेराबंदी कर उसे अपनी हिरासत में ले लिया. पुलिस ने आरोपी के पास से पुलिस की वरदी भी बरामद की.

सुनील को थाने लाते ही उस से भी कड़ी पूछताछ की गई. वहां अपने बहनोई अनिल को देख कर उस के होश उड़ गए. जीजासाले से गहन पूछताछ के दौरान जो हैरतअंगैज कहानी उभर कर सामने आई, उस ने न केवल पुलिस विभाग की लापरवाही की पोल खोल दी, बल्कि जीजासाले के रिश्ते का रहस्य भी सामने ला दिया था.

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सिपाही अनिल और उस का साला फरजी सिपाही सुनील दोनों ही जिला मुजफ्फरनगर के खतौली थानाक्षेत्र के अलगअलग गांव के रहने वाले थे. दोनों की बहुत पुरानी दोस्ती थी.

दोस्ती होने के नाते दोनों का ही एकदूसरे के घर आनाजाना था. दोनों ने एक ही साथ पुलिस में भरती होने के लिए आवेदन भी किया था. जिस में अनिल का चयन तो हो गया था, लेकिन सुनील फेल हो गया था.

अनिल और सुनील थे गहरे दोस्त

जिला मुजफ्फरनगर के खतौली थानाक्षेत्र में पड़ता है एक गांव दहौड़. इसी गांव में रहते थे सुखपाल सिंह. सुखपाल सिंह का सुखी संपन्न परिवार था. उन के 3 बेटे थे. तीनों ने ही उचित शिक्षा भी ग्रहण की थी. सुखपाल सिंह स्वयं पंजाब में रेलवे विभाग में कार्यरत थे.

उन के तीनों बेटों में अनिल सब से छोटा था. अनिल शुरू से ही एक टीचर बनने के सपने देखा करता था. यही कारण था कि जैसे ही उस ने अपनी शिक्षा पूरी की, शिक्षा विभाग में जाने की तैयारी शुरू कर दी.

उसी दौरान एक दिन उस की मुलाकात मुजफ्फरनगर के ही गांव गंधाड़ी निवासी सुनील से हुई. सुनील उस का बचपन का दोस्त था. सुनील एक सामान्य परिवार से था. उस के पिता राजपाल मेहनतमजदूरी कर अपने परिवार का पेट पालते थे. रामपाल सिंह के 4 बच्चों में सुनील चौथे नंबर का था. उस से बड़ी उस की एक बहन थी.

सुनील उस वक्त पुलिस में जाने की तैयारी में जुटा था. वह सुबहशाम दौड़ लगाने जाता था. उसी दौरान सुनील ने अनिल से कहा कि यार तेरे शरीर की अच्छी फिटनैस है. अगर तू पुलिस में जाने की तैयारी करे तो तेरा नंबर बड़ी आसानी से आ सकता है.

हालांकि अनिल ने बीएड कर लिया था. उस के बाद उसे टेट की परीक्षा भी पास करनी थी. यह परीक्षा पास करने के बाद ही वह शिक्षा विभाग में नौकरी के लिए आवेदन कर सकता था. इस के बाद भी जरूरी नहीं कि उसे नौकरी मिले.

यही सोच कर अनिल ने सुनील के कहने पर पुलिस में भरती की तैयारी शुरू कर दी. हालांकि अनिल पहले से ही पुलिस की नौकरी पसंद नहीं करता था. लेकिन जब सुनील ने उस से बारबार कहा तो उस का मन भी बदल गया.

अनिल और सुनील ने एक साथ पुलिस में भरती के लिए आवेदन किया. साथ ही दोनों ने तैयारी भी की थी. इस तैयारी में अनिल तो पास हो गया, लेकिन सुनील पास न हो सका.

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अनिल हुआ पुलिस में भरती

अनिल का चयन हो जाने के बाद सब से पहले वर्ष 2011 में पुलिस में आरक्षी पद पर जिला मुजफ्फरनगर में भरती हुआ. जिस की ट्रेनिंग बरेली पुलिस लाइन में हुई थी. लेकिन ट्रेनिंग के दौरान अनिल ने सारी परीक्षाएं छोड़  दीं, जिस के कारण वह फेल हो गया.

उस के बाद फिर से उसे एक और मौका मिला. उस के बाद ही 3 महीने की आरक्षी की ट्रेनिंग पीटीएस मुरादाबाद में हुई. अनिल वहां भी एक विषय में फेल हो गया. अगली बार उस की आरक्षी की ट्रेनिंग पीएसी गोरखपुर में हुई. वहां पर पासआउट होने के बाद आरक्षी की प्रथम पोस्टिंग जनपद बरेली पुलिस लाइन में हुई.

पुलिस लाइन बरेली से उस की पोस्टिंग भोजीपुरा में हुई. बाद में 2016 तक आरक्षी अनिल की पोस्टिंग कभी बरेली में, कभी पुलिस लाइन और कभी थाने पर रही. इस दौरान सुनील हर जगह उसी के साथ ही रहा.

उसी दौरान एकदूसरे के घर आनेजाने के दौरान ही अनिल सुनील की बहन को चाहने लगा था. हालांकि सुनील के घर की माली हालत उस वक्त सही नहीं थी. लेकिन जब अनिल उस की बहन शालू को चाहने लगा तो दोनों के संबंधों में और भी मधुरता आ गई थी.

सुनील हर समय ही अनिल के सामने अपनी किस्मत का रोना रोता रहता था, जिसे देख कर अनिल को भी बहुत दुख होता था. सुनील की हालत देख कर एक दिन अनिल ने उस से कहा, ‘‘दोस्त परेशान मत हो, एक दिन तेरी भी इच्छा पूरी होगी और तू भी पुलिस की नौकरी करेगा.’’

दोस्त की बहन से हुआ प्यार

अनिल सुनील को अपना सब से अच्छा दोस्त समझता था. वैसे भी उस की इच्छा पुलिस में जाने की नहीं थी. इस के बाद वह सुनील की परेशानी को देख कर उस के लिए तरहतरह के उपाय खोलने लगा था.

साल 2016 में अनिल का स्थानांतरण बरेली से मुरादाबाद हो गया. मुरादाबाद पुलिस लाइन में अपनी आमद कराने के बाद वह विभिन्न जगहों पर ड्यूटी करता रहा. उस समय तक वह सुनील की बहन को इतना चाहने लगा था कि उस के बिना उस का कहीं भी मन नहीं लगता था.

इस के बावजूद भी वह न चाहते हुए पुलिस की नौकरी करता रहा. अनिल को उम्मीद थी कि एक न एक दिन उस की टीचर की नौकरी लग ही जाएगी. फिर वह पुलिस की नौकरी छोड़ कर शिक्षा विभाग में चला जाएगा.

सुनील की बहन शालू से प्यार हो जाने के बाद अनिल उस के बारे में भी सोचता रहता था. उसी समय एक दिन उस के दिमाग में एक ऐसा ही आइडिया आया.

उस ने सोचा कि किसी तरह से अपनी पुलिस की नौकरी सुनील को दे दूं. फिर में शिक्षक की नौकरी के लिए भी पूरी तैयारी कर सकूंगा.

यह विचार मन में आते ही उस ने इस बारे में सुनील से भी बात की. लेकिन उस की योजना को सुन कर सुनील बुरी तरह से घबरा गया था.

अगले भाग में पढ़ें- फरजी सिपाही बन कई साल की ड्यूटी

Manohar Kahaniya: जिद की भेंट चढ़ी डॉक्टर मंजू वर्मा- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

रिपोर्ट दर्ज होते ही थानाप्रभारी ने मृतका के पति डा. सुशील वर्मा को हिरासत में ले लिया. मृतका डा. मंजू वर्मा के शव का पोस्टमार्टम 3 डाक्टरों के एक पैनल ने किया. परीक्षण के बाद शव को मृतका के पिता अर्जुन प्रसाद को सौंप दिया गया. दरअसल ससुराल पक्ष से शव लेने कोई भी पोस्टमार्टम हाउस नहीं आया था.

अर्जुन प्रसाद बेटी का शव प्रयागराज ले जाना चाहते थे और वहीं अंतिम संस्कार करना चाहते थे, जबकि बिठूर पुलिस कोई रिस्क नहीं उठाना चाहती थी और अंतिम संस्कार कानपुर के भैरवघाट पर कराना चाहती थी. थानाप्रभारी ने इस बाबत अर्जुन प्रसाद से बात की तो वह इस शर्त पर मान गए कि बेटी को मुखाग्नि उस का पति दे.

इस पर बिठूर थानाप्रभारी मृतका के पति डा. सुशील वर्मा को ले कर भैरव घाट पहुंचे, जहां सुशील वर्मा ने पत्नी मंजू की चिता को अग्नि दी. उस के बाद उसे पुन: थाने लाया गया.

इधर मृतका की मां मीरा देवी व उस की बेटियों सरिता व गरिमा सुशील वर्मा के फ्लैट पर पहुंचीं. उस समय फ्लैट पर डा. सुशील वर्मा की मां कौशल्या देवी तथा छोटा भाई सुधीर वर्मा मौजूद था. मांबेटियों ने वहां जम कर भड़ास निकाली और बेटी की सास कौशल्या देवी को खूब खरीखोटी सुनाई.

मीरा देवी ने आरोपों की झड़ी लगाई तो कौशल्या देवी ने कहा कि वह गांव में रहती है. बेटा और बहू शहर में रहते हैं. उन्हें न तो लोन के संबंध में जानकारी थी और न ही दोनों के बीच मनमुटाव की. बहू ने क्यों और कैसे जान दी, वह नहीं जानती. दहेज मांगने और प्रताडि़त करने की बात सरासर गलत है.

उधर एसपी (वेस्ट) संजीव त्यागी ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट को गौर से पढ़ा. रिपोर्ट के अनुसार लगभग 75 फीट की ऊंचाई से गिरने के कारण डा. मंजू वर्मा की लगभग सारी पसलियां टूट कर चकनाचूर हो गई थीं. दिल और लिवर फट गया था. आंतरिक रक्तस्राव हुआ, जिस की वजह से मौत हो गई.

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पोस्टमार्टम रिपोर्ट का अध्ययन करने के बाद एसपी संजीव त्यागी व डीएसपी दिनेश कुमार शुक्ला ने आरोपी डा. सुशील वर्मा से बिठूर थाने में पूछताछ की. उस ने बताया कि 14 मई, 2021 की शाम सब कुछ सामान्य था. रात 8 बजे उस ने औनलाइन पिज्जा मंगाया. इस के बाद उस ने व मंजू ने पिज्जा खाया. कुछ देर तक हम दोनों बातचीत करते रहे. उस के बाद सोने चले गए.

रात 2 बजे डेढ़ वर्षीय बेटे रुद्रांश के रोने की आवाज सुन कर उस की नींद खुल गई. कमरे में आया तो देखा मंजू कमरे में नहीं है. कमरे से बाहर आ कर बालकनी में देखा तो मंजू वहां भी नहीं थी. बालकनी से नीचे झांका तो शोर सुनाई पड़ा. नीचे आ कर देखा तो मंजू की लाश पड़ी थी. इस के बाद उस ने अपने घर वालों को सूचना दी.

‘‘तुम्हारी पत्नी मंजू वर्मा ने आत्महत्या की या तुम ने उसे मार डाला?’’ डीएसपी दिनेश शुक्ला ने पूछा.

‘‘सर, मैं ने उस की हत्या नहीं की. मंजू ने स्वयं आत्महत्या की है.’’ सुशील ने जवाब दिया.

‘‘लेकिन डा. मंजू वर्मा ने आत्महत्या क्यों की?’’ श्री शुक्ला ने पूछा.

‘‘सर, डा. मंजू वर्मा ने एमबीबीएस की डिग्री हासिल की थी. शादी के पूर्व वह प्रैक्टिस करती थी. लेकिन शादी के बाद उन की प्रैक्टिस छूट गई थी. उन की साथी उन्हें चिढ़ाती थीं कि एमबीबीएस करने से क्या फायदा जो प्रैक्टिस न कर सको. वह एमडी करना चाहती थी. लेकिन बच्चा होने से वह पढ़ाई नहीं कर पा रही थी. इसी कारण वह डिप्रेशन में चली गई और उन्होंने आत्महत्या कर ली.’’

लेकिन सुशील कुमार की बात पुलिस अधिकारियों के गले नहीं उतरी और उन्होंने सुशील कुमार को दहेज हत्या में विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने सुशील के बड़े भाई सुनील वर्मा से भी पूछताछ की, जो बेसिक शिक्षा अधिकारी के पद पर कानपुर (देहात) जिले में तैनात थे.

उन्होंने बताया कि डा. मंजू वर्मा की मौत से उन का कोई लेनादेना नहीं है. डा. मंजू वर्मा ने मौत को गले क्यों लगाया, उन्हें कोई जानकारी नही है. डा. मंजू वर्मा के पिता अर्जुन प्रसाद ने उन की प्रतिष्ठा को धूमिल करने के लिए उन के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई है.

पुलिस द्वारा की गई जांच, आरोपी के बयानों एवं मृतका के घर वालों द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर डा. मंजू वर्मा की मौत की जो कहानी प्रकाश में आई, वह इस प्रकार थी.

उत्तर प्रदेश का प्रयागराज शहर कई मायनों में चर्चित है. गंगा यमुना के संगम तट पर बसा प्रयागराज धर्म नगरी के रूप में भी जाना जाता है. हर 12 साल में यहां संगम तट पर कुंभ का मेला लगता है. देशविदेश के लाखों श्रद्धालु एवं संत मेले में आते हैं और गंगा नदी में डुबकी लगाते हैं. मेले का आकर्षण देख कर विदेशी श्रद्धालु अचरज से भर उठते हैं.

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प्रयागराज शहर में उच्च न्यायालय भी है, जहां प्रदेश के मुकदमों की सुनवाई होती है. पूर्व में प्रयागराज को इलाहाबाद के नाम से भी जाना जाता था.

इसी प्रयागराज का एक बड़ी आबादी वाला क्षेत्र है-नैनी. नैनी क्षेत्र की पीडीए कालोनी में अर्जुन प्रसाद अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी मीरा देवी के अलावा 3 बेटियां मंजू, सरिता, गरिमा तथा एक बेटा विष्णुकांत था.

अर्जुन प्रसाद औद्योगिक न्यायाधिकरण प्रयागराज में सहायक लिपिक पद पर कार्यरत थे. वह एक प्रतिष्ठित व्यक्ति थे. उन की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. लेकिन रहनसहन साधारण था.

अर्जुन प्रसाद की बड़ी बेटी मंजू दिखने में जितनी सुंदर थी, पढ़ने में भी उतनी ही तेज थी. हाईस्कूल तथा इंटर की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास करने के बाद मंजू ने प्रयागराज के स्वरूप रानी मैडिकल कालेज से एमबीबीएस की डिग्री हासिल कर ली थी. उस के बाद वह प्रैक्टिस करने लगी थी.

मंजू डाक्टर बन गई थी और कमाने भी लगी थी. लेकिन अर्जुन प्रसाद के माथे पर चिंता की लकीरें खिंचने लगी थीं. एक देहाती कहावत है ‘जब बेटी भई सयानी, फिर पेटे नहीं समानी.’ अर्जुन प्रसाद और उन की पत्नी मीरा भी इस कहावत से अछूते नहीं थे. मंजू के ब्याह की चिंता उन्हें सताने लगी थी.

मातापिता मंजू का विवाह ऐसे युवक से करना चाहते थे, जो उस के समकक्ष हो. मंजू डाक्टर थी, सो वह डाक्टर वर की ही खोज कर रहे थे. अथक प्रयास के बाद उन्हें एक लड़का पसंद आ गया. लड़के का नाम था सुशील कुमार वर्मा.

डाक्टर से ही की बेटी की शादी

सुशील कुमार वर्मा मूलरूप से उत्तर प्रदेश रायबरेली जिले के चतुर्भुज गांव का रहने वाला था. 3 भाइयों में वह मंझला था. सुशील का छोटा भाई सुधीर, गांव में मां कौशल्या देवी के साथ रहता था और पेशे से वकील था, जबकि सुशील का बड़ा भाई सुनील बेसिक शिक्षा अधिकारी था.

सुशील कुमार वर्मा स्वयं डाक्टर था. वह उरई मैडिकल कालेज में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर तैनात था और कानपुर (बिठूर) स्थित रुद्रा ग्रींस अपार्टमेंट में रहता था.

अर्जुन प्रसाद बेटी के लिए जैसा वर चाहते थे, सुशील कुमार वैसा ही था. अत: उन्होंने उसे पसंद कर लिया. इस के बाद 29 जनवरी, 2019 को अर्जुन प्रसाद ने अपनी बेटी डा. मंजू वर्मा का विवाह डा. सुशील कुमार वर्मा के साथ धूमधाम से कर दिया. शादी में उन्होंने अपनी हैसियत से ज्यादा खर्च किया था.

अगले भाग में पढ़ें- सिक्योरिटी गार्ड ने क्या सूचना दी

Crime Story: कुटीर उद्दोग जैसा बन गया सेक्सटॉर्शन- भाग 3

पुलिस ने उन के कब्जे से 23 मोबाइल फोन बरामद किए थे. जांच के बाद पता चला कि बड़ी संख्या में इन के अलगअलग नाम से बैंक खाते हैं. महिलाओं के नाम से खुद के पेटीएम, वाट्सऐप और फेसबुक सहित अधिकतर प्लेटफार्म पर एकाउंट खोल रखे थे. ताकि दूसरे लोगों को विश्वास हो जाए कि ये खाते महिला के नाम से ही हैं.

इस के कुछ दिन बाद अगस्त, 2021 में राजस्थान के अलवर जिले की रामगढ़ थाना पुलिस ने भी लड़की के नाम से फरजी आईडी बना कर अश्लील चैंटिग कर लोगों को ब्लैकमेल करने और लाखों रुपए ठगने वाले शातिर गिरोह का परदाफाश कर सैक्सटौर्शन करने वाले शातिर अपराधियों इकबाल और साहिल को गिरफ्तार किया था. ये दोनों भी भरतपुर के मेवात क्षेत्र रहने वाले थे.

ठगी करने वाले लोग पहले फ्रैंडशिप लिस्ट में बड़ी चतुराई से शामिल हो जाते हैं. अगर आप पुरुष हैं तो महिला बन कर और महिला हैं तो पुरुष बन कर आप से दोस्ती की जाती है. कई बार महिला के साथ महिला और पुरुष के साथ पुरुष बन कर भी दोस्ती का जाल बिछाया जाता है.

सैक्सी बातों में फंस जाते हैं लोग

फेसबुक मैसेंजर के जरिए शुरू होने वाली बातचीत बाद में वाट्सऐप और कई बार मोबाइल पर भी होने लगती है. बातचीत के झांसे में ‘साम दाम दंड भेद’ सभी का पूरा सहारा लिया जाता है.

भावुक बातें, जरूरत से ज्यादा केयर करना, कुछ जोक्स, वीडियो और मैसेज के साथ सैक्सी बातें भी होने लगती हैं. यही नहीं, वीडियो चैट तक होने लगती है.

इस के बाद अचानक डिमांड शुरू हो जाती है. आजकल पैसा ट्रांसफर करना इतना सरल हो गया है कि लोग भावुकता में पड़ कर तुरंत पैसा भेज देते हैं. ठगों के लिए सरल बात यह है कि फेसबुक में प्रोफाइल बनाना आसान काम है. इसलिए वे सब से ज्यादा सोशल मीडिया फेसबुक प्लेटफार्म को ही ठगी के लिए इस्तेमाल करते हैं.

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रामपुर के भाजपा नेता का सैक्सटौर्शन

उसी दौरान जितेंद्र सिंह को मीडिया की सुर्खी बना एक किस्सा याद आ गया, जिस में उन्हीं की तरह उत्तर प्रदेश में रामपुर के एक भाजपा नेता को ब्लैकमेल किया गया था.

उन्हें भी कई बार दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच का फरजी अधिकारी बता कर फोन

किया गया और जेल जाने डर दिखा कर धमकाया गया.

पैसे न देने पर उन का वीडियो यूट्यब पर डाल दिया गया और फिर नेताजी से कहा गया कि अगर वीडियो हटवाना चाहते हैं

तो यूट्यूब कस्टमर केयर पर बात कर लें. एक नंबर भी दिया गया, जिस पर काल करने पर कहा गया कि अगर वीडियो हटवाना चाहते हो तो यूट्यूब को प्रोसेसिंग फीस देनी पड़ेगी.

नेताजी जब ज्यादा परेशान हो गए तो उन्होंने रामपुर के एसपी से मिल कर इस बात की शिकायत की और साइबर क्राइम की टीम ने जांचपड़ताल शुरू की.

न्यूड काल कर भाजपा नेता को ब्लैकमेल करने वाला गैंग बाद में पकड़ा गया. इस गैंग के पकड़े गए 2 सदस्य आमिर और मुस्तकीम राजस्थान के भरतपुर के रहने वाले थे, जबकि तीसरा आरोपी इमरान नेताजी के गृह जनपद रामपुर का ही रहने वाला था.

इस गैंग के लोगों से पूछताछ और जांच में पुलिस को पता चला था कि इन का नेटवर्क कई राज्यों में फैला था, जिस कारण उन्हें पकड़ना आसान काम नहीं था.

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राजस्थान से जुड़े गिरोह के तार

क्योंकि ये अपराधी जिन सिमकार्ड का इस्तेमाल करते थे, वे सिमकार्ड ओडिशा के मजदूरों के नाम पर लिए थे. जबकि काल भरतपुर से किए जा रहे थे. इसी गिरोह के कुछ लोग दिल्ली से भी फोन करते थे.

पुलिस की जांच में यह भी सामने आया कि इस गिरोह के तार राजस्थान के भरतपुर, ओडिशा, दिल्ली और हरियाणा के मेवात से जुड़े थे. ये अपराधी अपने शिकार को कौन्फ्रैंसिंग के जरिए काल करते थे. जिस से हर बार अलगअलग लोकेशन आती थी. कभी भरतपुर तो कभी रामपुर की.

इस गैंग ने नेताजी को पैसे डालने के लिए जो बैंक खाते दिए थे, वे भी जांच करने पर फरजी दस्तावेजों से खोले पाए गए. रामपुर पुलिस शायद बीजेपी नेता के सैक्सटौर्शन करने वाले गैंग को पकड़ ही नहीं पाती. क्योंकि पुलिस 15 दिन की कोशिशों के बाद सिर्फ एक नंबर ही ट्रैस कर सकी थी.

तब पुलिस ने चालाकी खेली और नेताजी के जरिए ब्लैकमेलर्स को नकद पैसा देने का लालच दिलाया गया. नेताजी को पैसे देने के लिए रामपुर से दूर दिल्ली में पैसे देने के लिए बुलाया गया.

बस यहीं पर गैंग से चूक हो गई और पैसा लेने पहुंचे गैंग के एक सदस्य  को रामपुर पुलिस ने दबोच लिया. जब गैंग के 3 लोग पकड़े गए तो पूछताछ में पता चला कि रामपुर का रहने वाला इमरान सेंट बेचने राजस्थान गया था. वहां उस की मुलाकात सैक्सटौर्शन करने वाले अपराधियों से हो गई. शार्टकट से पैसा कमाने के लालच में वह इस गैंग से जुड़ गया और इस गैंग से ट्रेनिंग ले कर रामपुर आ गया.

रामपुर आ कर वह लोगों के साथ इस तरह की ठगी करने लगा. अपने गैंग की मदद से इमरान ने बरेली, उत्तराखंड, हापुड़ और कई दूसरे जिलों में कई लोगों को अपना शिकार बनाया.

बदनामी का रहता है डर

जितेंद्र सिंह ने मीडिया की सुर्खी बने बीजेपी नेता के सैक्सटौर्शन के किस्से की खबरें समाचार पत्र में पढ़ी थीं. इसी से प्रेरित हो कर उन्होंने भी ऐसा ही साहस जुटाया था.

पहले तो उन्हें बदनामी का डर सता रहा था, लेकिन बाद में उन्हें लगा कि एक बार उन्होंने रकम दे दी तो ब्लैकमेल करने वालों का साहस बढ़ जाएगा. वे फिर उन से पैसे मांगेंगे. लिहाजा उन्होंने दिल्ली पुलिस में बड़े अधिकारी के पद पर बैठे अपने दोस्त से मदद मांगी.

रुचिका नाम की लड़की और खुद को साइबर क्राइम का इंसपेक्टर बताने वाले शख्स विक्रम सिंह राठौर ने जब देखा कि उन का पासा गलत जगह पड़ गया है तो उन दोनों ने अपने फोन बंद कर दिए और फेसबुक एकाउंट को डिलीट कर दिया. जिस कारण पुलिस जितेंद्र सिंह को ब्लैकमेल करने वाले लोगों तक नहीं पहुंच पाई.

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जितेंद्र सिंह किस्मत वाले निकले कि वह थोड़ी सूझबूझ और अपनी हिम्मत के कारण बच गए क्योंकि उन के संबध एक बड़े पुलिस अधिकारी से थे.

लेकिन इन दिनों देश के अलगअलग हिस्सों खासतौर से महानगरों में सोशल मीडिया के जरिए लोगों को हनीट्रैप में फंसा कर उन से जबरन वसूली यानी सैक्सटौर्शन करने वाले गिरोह का आतंक फैला हुआ है.

इसी दौरान दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने 10 जुलाई, 2021 को एक ऐसे बड़े सैक्सटौशन गैंग का खुलासा किया, जिस के सरगना इंजीनियर युवकयुवती थे और वे टिंडर ऐप से ग्राहकों को फंसाते थे.

अगले भाग में पढ़ें- टिंडर ऐप से भी चल रहा है सैक्सटौर्शन

Best of Satyakatha: विधवा का करवाचौथ

वह कोई दैवीय शक्तियों का मालिक नहीं था, लेकिन महज तजुर्बे से औरतों की बौडी लैंग्वेज का विशेषज्ञ बन गया था. वह औरतों के हावभाव देख कर ही ताड़ लेता था कि कहां कामयाबी की गुंजाइश ज्यादा है. जहां भी उसे संभावनाएं दिखतीं, वहां वह तनमनधन से जुट जाता था और जल्द ही अपने मकसद में कामयाब भी हो जाता था.

उस ने कितनी औरतों से उन की सहमति से शारीरिक संबंध बनाए थे, यह बताने को अब रामचरण जिंदा नहीं रहा, लेकिन कटनी के उस के जानने वाले बेहिचक बताते हैं कि ऐसी औरतों की तादाद किसी भी सूरत में दर्जन भर से कम नहीं हो सकती.

कटनी के एक प्राइवेट स्कूल में ड्राइवर की नौकरी कर रहे रंगीनमिजाज रामचरण की एकलौती कमजोरी औरतें थीं. जवानी से ही उसे तरहतरह की औरतों से संबंध बनाने का शौक या रोग कुछ भी कह लें, लग गया था. हालांकि घर में उस की पत्नी थी, जो जीजान से उसे चाहती थी और उस की इस फितरत से वाकिफ भी थी.

लेकिन घरगृहस्थी न उजड़े और बच्चों पर कलह का बुरा असर न पड़े, यह सोच कर उस ने खामोश रहने में ही भलाई समझी.

रामचरण की इन हरकतों का चूंकि घरगृहस्थी की सुखशांति पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा था, इसलिए गाड़ी ठीकठाक चल रही थी. रामचरण की एक और खूबी यह थी कि वह कभी किसी प्रेमिका से जोरजबरदस्ती नहीं करता था. कम पढ़ेलिखे इस शख्स को यह ज्ञान जाने कहां से मिल गया था कि 2 बालिग अगर सहमति से शारीरिक संबंध बनाते हैं तो उन्हें नाजायज करार देने वाले खुद गलत हैं.

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मरजी के सौदे में यकीन करने वाले रामचरण को बीते कुछ सालों से लगने लगा था कि उस की जिस्मानी ताकत और यौनोत्तेजना में कमी आ रही है, लिहाजा उस ने कुछ आयुर्वेदिक और मर्दाना ताकत बढ़ाने वाली इश्तहारी दवाओं के बाद स्थाई रूप से वियाग्रा का सेवन शुरू कर दिया था, जो वाकई असरकारक दवा साबित हुई थी.

स्कूल की जिंदगी में रम चुके रामचरण की ड्राइवरी का हर कोई कायल था और वक्त की पाबंदी व ईमानदारी के मामले में भी उस की मिसाल दी जाती थी. इन सब खूबियों और बातों से परे रामचरण की खोजी निगाहें हर वक्त नए शिकार यानी ऐसी औरतों की तलाश करती रहती थीं, जिन्हें शीशे में उतार कर अपनी हवस मिटा सके.

इसी तलाश में एक दिन उस ने स्कूल की नई बाई (चपरासी) अंजलि बर्मन को देखा तो देखता ही रह गया. सांवली रंगत वाली अंजलि की उम्र 29 साल थी और वह खासी खूबसूरत और गठीले बदन की मालकिन थी. अंजलि को देखते ही इस अधेड़ बहेलिए ने जैसे मन ही मन संकल्प कर लिया कि जैसे भी हो, इस चिडि़या का शिकार करना है.

इस बाबत जब उस ने अंजलि को अपने स्तर पर टटोला तो नतीजा उस के हक में आया. लेकिन इस बात का भी अंदाजा हुआ कि स्कूल की यह नईनवेली बाई आसानी से उस के काबू में नहीं आने वाली. इस के लिए उसे थोड़ी मेहनत करनी पड़ेगी. इस चुनौती को स्वीकार करते हुए उस ने अपने नए मकसद की तरफ पहला कदम बढ़ा दिया.

विधवा अंजलि 2 बच्चों की मां थी और कटनी की एक बस्ती में रह रही थी. ये दोनों बातें रामचरण को सुकून देने वाली थीं. अपने स्तर की छानबीन में उसे यह भी पता चला कि विधवा होने के बावजूद अंजलि का कोई प्रेमी या आशिक नहीं है तो उस की बांछें और भी खिल उठीं.

स्कूल में रोज अंजलि से उस का सामना होता था. रामचरण ने जब अपने स्टाइल में उस से नजदीकियां बढ़ानी शुरू कीं तो अंजलि चौंकी. इस की वजह यह थी कि रामचरण उस से उम्र में लगभग दोगुना था. साथ ही घरगृहस्थी तथा बालबच्चेदार भी. इस के बाद भी वह उस पर डोरे डाल रहा था.

लेकिन जल्दी ही कुछ बातें उसे अपने हक की लगने लगीं. अंजलि को भी सुरक्षित ढंग से मर्द की और जिस्मानी सुख की जरूरत थी, यह बात स्त्री मनोविज्ञान का ज्ञाता हो चुका रामचरण पहली बार में ही ताड़ गया था. इसी दिशा में कदम बढ़ाते हुए वह यही अहसास अंजलि को भी करा रहा था.

जाहिर है, किसी बाहरी नौजवान से अंजलि का नाम जुड़ता तो उस की बदनामी होती और स्कूल वाले उसे नौकरी से बाहर करने में एक मिनट भी न लगाते. एक तरह से रामचरण की बड़ी उम्र और सहकर्मी होना किसी भी तरह का शक पैदा न करने वाली बातें थीं.

तजुर्बा और हालात दोनों काम आए तो जल्द ही रामचरण की रातें अंजलि के घर गुजरने लगीं. वह जानता था कि जितना ज्यादा वह अंजलि को बिस्तर में संतुष्टि देगा, वह उतनी ही उस की दीवानी और मुरीद होती जाएगी. ऐसा करने के लिए उस ने वियाग्रा की खुराक बढ़ा दी थी.

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अंजलि की संगत में आ कर खुद को जवान महसूस करने वाले रामचरण के सिलेबस में त्रियाचरित्र का यह पाठ नहीं था कि जवान औरत को बातें भी रोमांटिक और जवानों जैसी चाहिए. मर्द कितनी ही शारीरिक संतुष्टि दे दे, पर उम्र का फर्क कहीं न कहीं झलक ही जाता है. एक वक्त ऐसा भी आता है जब ताकत बढ़ाने वाली दवाइयां भी एक हद के बाद असर दिखाना बंद कर देती हैं.

अंजलि की तरफ से बेफिक्र और अभिसार में डूबे रामचरण को कतई अहसास नहीं था कि उस का अनुभव उसे धोखा दे रहा है और मौत दबेपांव उस की तरफ बढ़ी चली आ रही है. वह 10 अक्तूबर की सुबह थी, जब दमोह जिले के हिंडोरिया थाने के थानाप्रभारी पी.डी. मिंज को खबर मिली कि दमोह कटनी रेलवे लाइन के गेट नंबर 3 पर एक लाश पड़ी है. यह सूचना उन्हें रेलवे गेट के चौकीदार दीपक मंडल ने दी थी.

मामला संगीन था, इसलिए पी.डी. मिंज तुरंत अपनी टीम के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. चलने से पहले उन्होंने वारदात की खबर दमोह के एसपी विवेक अग्रवाल को देने की अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली थी.

लाश देख कर ही उन की समझ में आ गया था कि इस में शक की कोई गुंजाइश नहीं कि मामला बेरहमी से की गई हत्या का है. रेलवे पुलिया के नीचे पड़े मृतक की उम्र 50-55 साल थी. लाश के आसपास जानकारी देने वाला कोई सुराग नहीं मिला था, पर मृतक की तलाशी में उस की जेब से 2 चीजें बरामद हुईं, जिस में एक था मोबाइल फोन और दूसरी चौंका देने वाली चीज थी वियाग्रा का पूरा पत्ता.

इस चौंका देने वाली चीज से एक बात साफ जाहिर हो रही थी कि मामला जायज या फिर नाजायज संबंधों का था. तय था कि इस में कोई औरत भी शामिल थी. लेकिन जो भी था, सच जानना जरूरी था. इस के लिए मृतक की शिनाख्त जरूरी थी.

यह काम बहुत ज्यादा मुश्किल नहीं था. लाश की जेब से मिले मोबाइल फोन के नंबरों ने मिनटों में साफ कर दिया कि मृतक का नाम रामचरण बर्मन है और वह इंद्रा ज्योतिनगर कटनी का रहने वाला है.

रामचरण के फोन में मिले नंबरों पर बात करने से उस की शिनाख्त तो हो गई, पर यह कोई नहीं बता सका कि वह कटनी से दमोह कैसे पहुंच गया था. उस की पत्नी और घर वाले भी यह बात नहीं बता सके थे.

मामला जल्द सुलझाने की गरज से एसपी विवेक अग्रवाल ने पी.डी. मिंज के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी, जिस में थाना पटेरी के थानाप्रभारी रमा उदेनिया के साथ बांदकपुर चौकी के इंचार्ज पी.डी. दुबे को भी शामिल किया गया.

मामला हाथ में आते ही इस टीम ने सब से पहले रामचरण की काल डिटेल्स खंगाली तो पता चला कि उस की सब से ज्यादा बातें अंजलि बर्मन से हुई थीं. दिलचस्प और मामला लगभग सुलझा देने वाली एक बात यह भी थी कि 9 अक्तूबर को अंजलि के मोबाइल फोन की लोकेशन आनू गांव की मिल रही थी, जो घटनास्थल के नजदीक था.

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शक की कोई गुंजाइश नहीं थी कि हत्या की इस वारदात में अंजलि का हाथ न हो या वह इस कत्ल के बारे में न जानती हो. इसलिए जब उस से पूछताछ की गई तो शुरुआती नानुकुर के बाद उस ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. इस के बाद उस ने जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

अपने और रामचरण के संबंधों की बात तो अंजलि ने नहीं स्वीकारी, लेकिन ईमानदारी से यह जरूर बता दिया कि हत्या में उस का साथ 28 साल के सूरज पटेल के अलावा उस के दोस्तों 24 साल के संतोष पटेल और 26 साल के जगत पटेल ने दिया था.

अंजलि के मुताबिक रामचरण उस पर बुरी नजर रखता था और उस से नाजायज संबंध बनाने के लिए दबाव डाल रहा था. स्कूल में जानपहचान होने के बाद रामचरण ने सीधे शारीरिक संबंध बनाने की मांग कर डाली थी, अंजलि इनकार करने के साथ उस से दूरी बना कर रहने लगी थी.

तजुर्बेकार रामचरण ने आदत के मुताबिक इस इनकार को इकरार समझा और उस के पीछे पड़ गया. अकसर आधी रात को वह फोन कर के उस से सैक्सी बातें करते हुए शारीरिक संबंध बनाने के लिए कहता.

पिछले कुछ दिनों से अंजलि की दोस्ती सूरज से हो गई थी. जब उस ने अपनी यह परेशानी उसे बताई तो वह रामचरण को रास्ते से हटाने को तैयार हो गया. इस बाबत उस ने अपने दोस्तों संतोष और जगत से बात की तो वे उस का साथ देने को तैयार हो गए.

इस के बाद चारों ने मिल कर रामचरण की हत्या की योजना बनाई और फिर उस पर अमल कर डाला. इन का सोचना यह था कि रामचरण को कटनी से दूर ले जा कर मारा जाए तो लाश की शिनाख्त नहीं हो सकेगी और वे बच जाएंगे.

योजना के मुताबिक, हादसे के कुछ दिन पहले जब रामचरण ने अंजलि से जिस्मानी ताल्लुक बनाने की मांग की तो इस बार उस ने मना करने के बजाय उसे उकसाने वाली यानी सैक्सी बातें कीं. रामचरण को मेहनत रंग लाती दिखी. फोन पर अंजलि ने कहा था कि वाकई उस ने उस जैसा दीवाना नहीं देखा, पर यहां कटनी में ऐसा करने से बदनामी हो सकती है, इसलिए इच्छा पूरी करने के लिए कहीं बाहर चलना पड़ेगा.

रामचरण की हालत तो अंधा क्या चाहे 2 आंखें वाली थी, इसलिए वह अंजलि के कहे अनुसार बांदकपुर चलने को तैयार हो गया. तय हुआ कि सैक्स करने से पहले दोनों बांदकपुर के मंदिर में दर्शन करेंगे.

पहले अंजलि ने उसे करवाचौथ वाले दिन चलने को कहा था, पर औरतों के रसिया रामचरण को अपनी पत्नी की भावनाओं और व्रत का पूरा खयाल था, इसलिए 9 अक्तूबर का दिन तय हुआ. त्रियाचरित्र तो अपना रंग दिखा ही रहा था, पुरुष चरित्र भी उन्नीस नहीं था, जो यह कह रहा था कि करवाचौथ के दिन पत्नी का व्रत खुलवाना है, इसलिए अगले दिन चलेंगे.

9 अक्तूबर को तय वक्त पर रामचरण ने अंजलि को अपनी मोटरसाइकिल पर बैठाया और बांदकपुर की तरफ चल पड़ा. जाने से पहले उस ने वियाग्रा का पूरा पत्ता खरीद कर जेब में रख लिया था.

बांदकपुर जाने के बाद दोनों अंधेरा होने का इंतजार करने लगे, जिस से संबंध बनाने में सहूलियत हो. अंधेरा होते ही इस इलाके से वाकिफ रामचरण अंजलि को आनू गांव की रेलवे पुलिया के नीचे ले गया, जहां आमतौर पर सुनसान रहता है. इस के पहले उस ने वियाग्रा की दो गोलियां खा ली थीं.

रामचरण को जरा भी अहसास नहीं था कि प्रेयसी भले ही पहलू में है, पर मौत भी उस के पीछे दौड़ रही है. सूरज और उस के दोस्त अंजलि के इशारे पर उन का पीछा कर रहे थे. जैसे ही रामचरण पुलिया के नीचे सहवास के लिए अंजलि के ऊपर झुका, सूरज और उस के दोस्तों ने उसे खींच लिया.

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इस के बाद तीनों ने रामचरण के साथ मारपीट कर के उस का गला दबा दिया. फिर उस के सिर पर पत्थर से वार कर के उस की हत्या कर दी.

हत्या कर के चारों कटनी आ गए, पर मोबाइल फोन की लोकेशन ने इन्हें पकड़वा दिया. अंजलि का कहना था कि रामचरण उसे धमकी देता रहता था कि अगर उस ने उस की बात नहीं मानी तो वह सूरज और उस के प्रेमप्रसंग को आम कर देगा. अंजलि इस धमकी से डर गई थी, क्योंकि एक विधवा के प्रेमप्रसंग और नाजायज संबंधों से बदनामी होती तो उस की नौकरी जानी तय थी.

कटनी में किसी ने अंजलि के पुलिस को दिए बयान से इत्तफाक नहीं रखा. उलटे यह चर्चा आम रही कि रामचरण से ऊब जाने के बाद उस ने सूरज से पींगे बढ़ानी शुरू कर दी थीं, इस से रामचरण नाराज था. एक दिन रामचरण ने उसे सूरज के साथ रंगरलियां मनाते रंगेहाथों पकड़ भी लिया था. इस पर दोनों में खूब झगड़ा भी हुआ था.

सच जो भी हो, पर अब अंजलि अपने आशिक सहित जेल में है, जिस ने हत्या जैसे जघन्य अपराध को अंजाम देने से पहले अपनी मासूम बच्चियों के भविष्य के बारे में बिलकुल नहीं सोचा, जिन की कोई गलती नहीं थी.

Satyakatha: लॉकडाउन में इश्क का उफान- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

लेखक- शाहनवाज

रमेश ने बताया कि दीपक 2 जुलाई, 2021 को ही अपने गांव बागपत से दिल्ली लौटा था. रमेश ने बताया कि दीपक का पास में ही रहने वाले सत्यवीर की बेटी पूजा के साथ अफेयर था. इस अफेयर के बारे में मोहल्ले में रहने वाले कई लोगों को पता भी था.

इस पूछताछ के बाद पुलिस ने पोस्टमार्टम के बाद आए शव की पहचान के लिए रमेश को अस्पताल में बुलाया. लाश देखने के बाद रमेश अस्पताल में ही फूटफूट कर रोने लगा. रोते हुए बोला, ‘‘ये हत्या उसी लड़की की वजह से हुई है.’’

दरअसल उत्तर प्रदेश के बागपत का रहने वाला 18 वर्षीय दीपक, दिल्ली के करावल नगर में अपने चाचा रमेश के घर बचपन से ही रहता था. दीपक के परिवार में उस के मातापिता की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण कई सालों से उन्होंने पढ़ाई के लिए दिल्ली में रमेश के पास उसे छोड़ दिया था.

दीपक पढ़नेलिखने में कमजोर था, और उस का ध्यान पढ़ाईलिखाई के अलावा मटरगश्ती में ज्यादा लगा रहता था. उस की इसी मटरगश्ती वाली आदतों की वजह से उस के चाचा रमेश ने उसे 10वीं पास होने पर सेकंडहैंड स्मार्टफोन खरीद कर दिया था. ताकि उस से संपर्क बना रहे और पता लगाया जा सके कि वह कहां हैं?

साल 2019 में जब वह 11वीं क्लास में था और जिस ट्यूशन सेंटर पर वह पढ़ने के लिए जाता था, वहां उस की मुलाकात पूजा से हुई थी. पूजा दीपक से एक क्लास जूनियर थी. दोनों ही इलाके के सरकारी स्कूल में पढ़ते थे, लेकिन उन के स्कूल अलगअलग थे.

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पूजा के अफेयर को अभी सिर्फ 4-5 महीने ही हुए थे कि 2020 में कोरोना की वजह से लौकडाउन लग गया. लौकडाउन के दौरान दीपक और पूजा के संपर्क का एकलौता जरिया फोन ही था. दोनों का ही लौकडाउन की वजह से स्कूल, ट्यूशन, घूमनाफिरना सब बंद हो गया था. दोनों अपनेअपने घरों में मानो कैद हो गए थे.

पूजा के पास अपना कोई फोन नहीं था, लेकिन वह घर में मौजूद फोन से अकसर दीपक को फोन कर उस से बात किया करती थी. उन की उम्र ही ऐसी थी कि वे प्यार में बंधते चले गए. दोनों का पहला प्यार दैहिक आकर्षण में भी बदल गया.

एकदूसरे के लिए बेचैनियां और फिक्र दोनों होने लगी.  कोरोना की वजह से लौकडाउन के चलते बनी सामाजिक और शारीरिक दूरी ने उन की बेचैनियों को और बढ़ा दिया. ऐसे में दोनों के परिवार में शक होना आम बात थी.

दीपक को दिन भर फोन पर लगा देख उस के चाचा रमेश को शक हुआ कि कहीं यह किसी बुरी संगत में तो नहीं पड़ गया. इसलिए जैसे ही सरकार ने लौकडाउन में ढील दी, तभी रमेश ने अपने भतीजे दीपक को आनंद विहार बस अड्डा से प्राइवेट बस के जरिए उस के मांबाप के घर बागपत भेज दिया.

दूसरी तरफ पूजा के पिता सत्यवीर सिंह को भी अपनी बेटी को दिन भर फोन पर लगे रहने की वजह से शक होने लगा था. उस के शक को कुछ पासपड़ोस वालों ने भी बढ़ा दिया. तब उस ने अपनी बेटी पर पाबंदियां लगानी शुरू कर दीं.

जब भी पूजा के हाथों में फोन होता वह उसे डांट देता. वह कुछ भी करती तो उस पर वह नजर रखी जाती. फिर भी पूजा अपने पिता की नजरों से बचते हुए कहीं से भी फोन का जुगाड़ कर दीपक से बात कर लिया करती थी.

इन पाबंदियों और रोकाटोकी के बीच दीपक और पूजा के बीच प्रेम संबंध और भी गहरा हो गया था.

पूजा पर उस के पिता द्वारा शक करने की वजह से वह अकसर रात को ही अपने प्रेमी दीपक से बातें किया करती थी. कई बार तो दोनों पूरी रात बातें करते रह जाते थे. उन के बीच घर, परिवार, दोस्त, रिश्तेदार, फिल्में, सीरियल, फैशन, कपड़े आदि हर तरह की बातें होती थीं. यहां तक कि वे सैक्स संबंधी बातें भी किया करते थे. जब दीपक अपने घर चला गया था, तब पूजा बारबार दीपक को फोन कर के दिल्ली आने को कहती थी.

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दीपक पूजा के लिए दिल्ली वापस आना तो चाहता था, लेकिन उस के मातापिता उसे आने से रोक रहे थे. किसी तरह दीपक ने अपने मातापिता को दिल्ली जाने के लिए राजी कर लिया था. पुलिस को जब पूजा के साथ दीपक के प्रेम संबंध की जानकारी मिली तब इंसपेक्टर राजेंद्र कुमार ने पूजा और उस के पिता को भी थाने बुलाकर पूछताछ की गई.

थाने में पूजा ने अपने और दीपक के प्रेम संबंधों को स्वीकार लिया. उस के पिता ने भी अपना जुर्म मान लिया. उस ने बताया कि ऐसा उस ने अपनी बेटी की इज्जत के साथ खिलवाड़ करने के कारण किया. उस ने दीपक को जब पकड़ा था, तब वह अपने बेकाबू गुस्से को रोक नहीं पाया.

उस ने बताया कि उस ने कैंची से भी दीपक के ऊपर वार किए थे. जिस की वजह से दीपक के शरीर से खून निकल आया. खून लगातार बहने की वजह से दीपक बेहोश हो गया. उधर कमरे में पूजा बिस्तर में तकिए के नीचे अपना मुंह दबाए रोए जा रही थी. उसे कोई अंदाजा ही नहीं था कि दीपक के साथ उस के पिता ने क्या किया है.

कुछ ही देर में ज्यादा खून बह जाने की वजह से दीपक का दम निकल गया. जब दीपक ने बिलकुल हिलनाडुलना बंद कर दिया तो उस का गुस्सा शांत हुआ. इस के बाद वह घबरा गया.

लाश को ठिकाने लगाने के बारे में सत्यवीर ने बताया कि दीपक की हालत देख कर उस के दिमाग में तरहतरह के खयाल पैदा होने लगे. जिस से उस के मन में बेहद खौफ पैदा हो गया था. इस के लिए उस ने रात के 3 बजे मोहल्ले में ही रहने वाले जानकार अनुज को फोन किया.

5-6 बार फोन किया तो उस ने नहीं उठाया, लेकिन 5 मिनट के बाद अनुज का ही उस के पास फोन आया. तब उस ने उसे ये सारा किस्सा फोन पर बताया और जल्द ही घर आने के लिए कहा. करीब 5 मिनट के बाद ही अनुज अपनी बाइक पर सत्यवीर के घर आ गया.

सत्यवीर और अनुज ने दीपक को पहले उल्टेसीधे कपड़े पहनाए फिर उस के शव को सीढि़यों से नीचे उतारा और उसे बाइक पर बीच में बैठा कर अपने घर से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर करावल नगर के भगत विहार में स्थित वर्ल्ड जिम के बाहर डाल आए.

सत्यवीर के जुर्म कुबूल करने के बाद पुलिस ने उसे हत्या कर लाश ठिकाने लगाने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. फिर उसे कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया. बाद में लाश ठिकाने लगवाने वाले दूसरे आरोपी अनुज ने थाने में सरैंडर कर दिया. जहां से उसे भी जेल भेज दिया गया.

(कथा में पूजा परिवर्तित नाम है, कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित)

Manohar Kahaniya: जॉइनिंग से पहले DSP को जेल- भाग 2

आशुतोष ने उन की हां में हां मिलाई और निखिल से बात करते हुए बोला, ‘‘ले कर दिया तेरा जुगाड़, अब जल्दी तैयार हो जा. जो काम निपटाने हैं, निपटा ले. मैं बस एक घंटे में पहुंच जाऊंगा. पहले सौरभ को रिसीव करूंगा फिर तुझे’’ कहते हुए आशुतोष ने काल डिस्कनेक्ट कर दी.

निखिल से बात करने के एक घंटे बाद आशुतोष कार ड्राइव करता हुआ सौरभ के घर के नजदीक पहुंच गया. उस ने उसे फोन कर सड़क के मोड़ तक आने के लिए कहा.

सौरभ आ गया तो उसे गाड़ी में बिठा कर वे निखिल के घर की ओर बढ़ चले. निखिल को भी रिसीव करने के बाद आशुतोष ने गाड़ी मोड़ ली अपने ‘अड्डे’ की ओर, जहां पर वे अकसर शराब पीने और मस्ती करने के लिए जाया करते थे.

बिहार के दनियावान, बिहारशरीफ, नवादा के रास्ते दोस्तों की ये तिकड़ी झारखंड के कोडरमा, झुमरी तलैया होते हुए तिलैया बांध पर पहुंच गई. करीब 190 किलोमीटर का सफर और 5 घंटे की इस यात्रा को पूरा करने के बाद आशुतोष, निखिल और सौरभ अपने अड्डे पर आ पहुंचे थे.

वहां पहुंचने से पहले आशुतोष ने झारखंड के कोडरमा शहर में गाड़ी रोक कर वहां की सरकारी शराब की दुकान से व्हिस्की और बीयर की बोतलें खरीद ली थीं. साथ में खानेपीने के लिए कुछ और भी सामान खरीद लिया था.

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5 घंटे की इस ड्राइविंग ने तीनों दोस्तों को बुरी तरह से थका दिया था. वे वहां पर दोपहर के 2 बजे पहुंच चुके थे. गाड़ी से निकलते ही तीनों ने अंगड़ाइयां लीं.

जब उन की थकान थोड़ी हलकी हुई और उन्होंने नजर घुमा कर देखा तो तिलैया बांध के चारों ओर दिन के समय ही काफी दूरदूर तक लोग 4-5 के झुंड में शराब पीते और मस्ती करते हुए नजर आ रहे थे.

कोडरमा बन गया शराबियों का अड्डा

दरअसल इस इलाके में ऐसा होना आम बात थी. जब से बिहार में शराबबंदी हुई थी, लगभग तभी से लोगों की शराब की तलब उन्हें यहां खींच लाती थी.

बिहार में शराबबंदी के बाद बिहार की सीमा से सटा झारखंड का कोडरमा जिला शराबियों का अड्डा बन गया है. यहां पर बिहार के विभिन्न जिलों से लोग शराब पार्टी के लिए आते हैं.

यहां पर बिहार के नंबरों की तमाम गाडि़यां खड़ी मिल जाती हैं. वैसे ये इलाका है भी पिकनिक स्पौट लायक. नदी, बांध, पेड़पौधे इत्यादि की वजह से ये इलाका बेहद आकर्षक लगता है.

इसी इलाके में आशुतोष का एक और स्थानीय दोस्त, सूरज कुमार भी रहता था, जिसे उस ने यहां पहुंचने से पहले ही फोन कर के आने के लिए कह दिया था.

निखिल और सौरभ, सूरज को जानते तो थे लेकिन उस के साथ उन की उतनी घनिष्ठ दोस्ती नहीं थी जिस तरह से आशुतोष के साथ थी. सूरज खानेपीने का कुछ और सामान अपने साथ ले आया था.

दोपहर के 2 बज रहे थे लेकिन दिन बेहद हल्का था, धूप नहीं थी. यही देखते हुए आशुतोष ने सौरभ और निखिल से बीयर की बोतलें खोलने के लिए कहा.

वह बोला, ‘‘बीयर की बोतल अभी ठंडी ही है, दिन भी हल्का है. एक काम करते हैं, एकएक बीयर की बोतल यहीं पी लेते हैं और यहां से अब रात को ही जाएंगे. पास के होटल वाले से मैं ने पहले ही बात कर रखी है. वो 2 कमरे हमारे लिए खाली रखेगा. क्या कहते हो?’’

निखिल और सौरभ को आशुतोष का आइडिया बुरा नहीं लगा. उन दोनों ने तुरंत आशुतोष के सवाल का जवाब देते हुए हामी भर दी.

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आशुतोष ने अपनी गाड़ी से एक थैला निकाला, खानेपीने, चकना व बीयर की बोतलें उस में डाल कर और अपनी गाड़ी लौक कर के वे सब बांध के उस हिस्से के करीब जा पहुंचे जहां दूरदूर तक शांति थी.

तिलैया बांध के मैदान में शुरू हुई पार्टी

मैदान में एक जगह पहुंचने के बाद उन चारों ने नीचे घास पर अपनी तशरीफ टिका ली. आशुतोष ने अपने थैले से बीयर की 4 बोतलें, नमकीन के पैकेट निकाले और खानेपीने का सामान निकाला. चारों गोल घेरे में बैठ कर एकएक कर के बीयर की बोतलें खोल कर पीने लगे, और सब के बीच हंसीमजाक होने लगा.

ऐसे ही करते हुए करीब 4 बजे के आसपास नशे में धुत हर कोई अपने फोन से एक दूसरे की फोटो खींचने लगा.

इतने में नशे में अपना होश खो बैठे आशुतोष ने फोटो और अच्छे से खींचने और खिंचवाने के लिए अपनी पैंट की कमर से अपनी सर्विस पिस्तौल निकाल ली.

आशुतोष की सर्विस पिस्तौल को देखने के बाद निखिल, सूरज और सौरभ हैरान रह गए. निखिल को छोड़ कर सूरज और सौरभ ने अपने जीवन में पहली बार हकीकत में इतनी नजदीक से पिस्तौल देखी थी.

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वह उसे पकड़ कर महसूस करना चाहते थे कि आखिर इसे हाथ में पकड़ कर कैसा महसूस होता है. निखिल इसलिए हैरान हो गया था क्योंकि उसे लगा था कि आशुतोष इसे अपने घर ही छोड़ आया होगा.

उस समय वहां मौजूद चारों दोस्त नशे में धुत थे. इतने में सौरभ ने नशे में आशुतोष से उस की पिस्तौल मांगते हुए कह, ‘‘भाई, दिखा जरा. आखिर हम भी तो देखें कि कैसा लगता है इसे पकड़ कर.’’

आशुतोष अपने दोस्त को पिस्तौल थमाते हुए लड़खड़ाती जबान में बोला, ‘हां भाई, ले न. पूछ क्या रहा है. तेरी ही तो चीज है.’

अगले भाग में पढ़ें- रंज में बदल गई पार्टी

Crime Story in Hindi: वर्चस्व का मोह- भाग 1: आखिर किसने दादजी की हत्या की?

नीना और राजन का गंभीरता से किसी मसले पर सलाहमशवरा करना ठीक वैसा ही हैरान कर देने वाला था जैसे हवा में दीपक का जलना. मगर आज दोनों बातचीत में इतने तल्लीन थे कि उन्हें देव के आने का पता भी नहीं चला.

‘‘इतना सन्नाटा क्यों है भई?’’

दोनों ने सिर उठा कर देखा. दोनों की ही आंखों में परेशानी के साथसाथ मायूसी भी थी.

‘‘खैरियत तो है न?’’ देव ने फिर पूछा.

‘‘हां भैया, घर में तो सब ठीक ही है…’’

‘‘तो फिर गड़बड़ कहां है?’’ देव ने राजन की बात काटी.

‘‘सोनिया की जिंदगी में भैया,’’ नीना बोली, ‘‘और वह भी बिना वजह… समझ नहीं आ रहा कैसे उस की मदद करें.’’

सोनिया नीना की खास सहेली थी और उस की ओर राजन का झुकाव भी देव की पैनी नजरों से छिपा नहीं था.

‘‘पूरी बात बताओ,’’ देव ने आराम से बैठते हुए कहा, ‘‘हो सकता है मैं कुछ मदद कर सकूं.’’

राजन फड़क उठा…

‘‘सुन नीना, पहले तो सब ठीक ही था, जीजी का इनकार आलोक के दादाजी की हत्या के बाद ही शुरू हुआ है न… तो भैया ठहरे हत्या विशेषज्ञ, जरूर यह मसला भी सुलझा देंगे.’’

नीना ने चिढ़ कर राजन की ओर देखा, ‘‘हत्या से सोनिया बेचारी का क्या लेनादेना? खैर, फिर भी भैया आप सोनिया के लिए कुछ न कुछ सुझाव तो दे ही सकते हैं,’’ नीना बोली, ‘‘आप जानते ही हैं कि सोनिया ने भी राजन के साथ ही आईआईएम अहमदाबाद की प्रवेश परीक्षा दी है और उसे भरोसा है कि वह सफल हो जाएगी. मगर उस के घर वाले चाहते हैं कि परीक्षा का नतीजा आने से पहले ही वह शादी कर ले, फिर अगर उस की ससुराल वाले चाहें तो वह पढ़ाई जारी रख सकती है… पैसे की बात नहीं है भैया, सोनिया के पापा शादी के बाद भी पढ़ाई का पूरा खर्च उठाने को तैयार हैं.’’

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‘‘शादी किस से हो रही है?’’ देव ने पूछा.

‘‘अभी तो सोनिया से कहा है कि उसे कोई पसंद है, तो बता दे. वे लोग उस की भी पढ़ाई का खर्चा उठाने को तैयार हैं और अगर उसे कोई पसंद नहीं है, तो वे ढूंढ़ लेंगे.’’

‘‘यानी किसी भी कीमत पर उन्हें सोनिया की शादी करनी है,’’ देव ने फिर नीना की बात काटी, ‘‘मगर क्यों?’’

नीना ने फिर गहरी सांस ली.

‘‘इस की वजह है सोनिया की जीजी किरण का अजीब व्यवहार. किरण की पड़ोस में रहने वाले आलोक से बचपन से दोस्ती थी और दोनों की सगाई की तारीख भी तय हो चुकी थी. लेकिन अचानक किरण ने शादी करने से मना कर दिया. आलोक से ही नहीं किसी से भी. उस का कहना है कि उसे शादी से इनकार नहीं है पर उसे कुछ समय दिया जाए. घर वालों ने 2 साल से ज्यादा समय दिया, मगर किरण अभी भी और समय चाहती है. घर वाले परेशान हो गए हैं. उन का खयाल है कि उन्होंने किरण को नौकरी करने की छूट दे कर गलती की है और यही गलती वे सोनिया के साथ नहीं दोहराना चाहते.’’

‘‘दूध का जला छाछ तो फूंकेगा ही. किरण के व्यवहार की वजह क्या है?’’ देव ने पूछा.

‘‘यही तो वह नहीं बतातीं. वजह पता चल जाए तो सोनिया सब को समझा तो सकती है कि उस के साथ ऐसा कुछ नहीं है. वह पढ़ाई खत्म होने पर शादी कर लेगी पर फिलहाल आईआईएम की पढ़ाई और शादी एकसाथ करना न तो मुमकिन है और न ही मुनासिब.’’

‘‘यह तो है. वह हत्या वाली बात… तुम क्या कह रहे थे राजन?’’

‘‘किरण और आलोक की सगाई से कुछ रोज पहले आलोक के दादाजी की हत्या हो गई थी. हत्या क्यों और किस ने की यह आज तक पता नहीं चल सका,’’ नीना ने बताया, ‘‘लेकिन इस से किरण के इनकार का क्या ताल्लुक?’’

‘‘हो भी सकता है. किरण और आलोक जानेपहचाने से नाम हैं,’’ देव कुछ सोचते हुए बोला, ‘‘ये लोग सुंदर नगर में पासपास की कोठियों में तो नहीं रहते?’’

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‘‘जी हां,’’ नीना बोली, ‘‘आप कैसे जानते हैं?’’

‘‘ये दोनों कालेज में मेरे से 2 साल पीछे थे और मेरे निर्देशन में दोनों ने नाटकों में अभिनय भी किया था. हमारे एक नाटक ‘चोट’ का चयन अखिल भारतीय नाटक प्रतियोगिता में होने पर हम सब दूसरे शहरों में उस के मंचन के लिए भी गए थे और तब हमारी अच्छी दोस्ती हो गई थी. मैं ने एक बार जब आलोक से पूछा था कि किरण के साथ शादीवादी करने का इरादा है तो उस ने बड़ी गंभीरता से हां कहा था.’’

‘‘शादी के लिए इनकार आलोक नहीं किरण कर रही है. हालांकि आलोक ने भी अभी शादी की बात नहीं है. काम की व्यस्तता के कारण 2-3 साल पहले उस ने आईबीएम की एजेंसी ली और मार्केट में पैर जमाने के लिए बहुत भागदौड़ कर रहा था. अब धंधा जम गया है और वह शादी कर सकता है. यह सुन कर किरण के घर वाले बेचैन हो गए हैं. भैया, आप क्या आलोक से मिल कर किरण के इनकार की वजह नहीं पूछ सकते?’’ नीना ने पूछा.

‘‘जब इनकार किरण कर रही है तो आलोक से क्यों, किरण से क्यों नहीं? मुझे किरण से मिलवा सकती हो?’’

‘‘हां, जब भी आप कहें. शादी न करने के सिवा उन्हें और किसी बात से इनकार नहीं है,’’ नीना बोली, ‘‘मेरा मतलब है किसी से मिलनेजुलने से उन्हें कोई परहेज नहीं है. क्यों न मैं कल शाम को सोनिया के घर चली जाऊं और आप मुझे लेने वहां आ जाओ.’’

Crime Story in Hindi- अधूरी मौत: भाग 3- क्यों शीतल ने अनल के साथ खतरनाक खेल खेला?

शीतल अपने बैडरूम की तरफ भागी, मगर वह बाहर से उसी प्रकार बंद था जैसे वह कर के गई थी. दरवाजा बाहर से बंद होने के बावजूद कोई अंदर कैसे जा सकता है, यह सोच कर वह गैलरी की तरफ गई. गैलरी की तरफ जाने वाला दरवाजा भी अंदर से लौक था.

शीतल ने सोचा शायद कोई चोर होगा, अत: वह सुरक्षा के नजरिए से अपने साथ बैडरूम में रखी अनल की रिवौल्वर ले कर गैलरी में गई. मगर वहां कोई नहीं था. शीतल को अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हो रहा था.

उस ने चौकीदार को आवाज दी. चौकीदार के आने पर उस ने पूछा, ‘‘ऊपर कौन आया था?’’

‘‘नहीं मैडम, ऊपर तो क्या आप के जाने के बाद बंगले में कोई नहीं आया.’’ चौकीदार ने जवाब दिया.

सुबह जैसे ही शीतल की नींद खुली, उसे रात की घटना याद आ गई.

शाम को शीतल पूरी तरह चौकन्नी थी. वह कल जैसी गलती दोहराना नहीं चाहती थी. बंगले से निकलते समय उस ने खुद अपने बैडरूम को लौक किया और चौकीदार को लगातार राउंड लेने की हिदायत दी.

रात को वह क्लब से घर लौटी, तभी उस के मोबाइल की घंटी बज उठी.

‘‘हैलो..’’

‘‘मेरे दिल ने जो मांगा मिल गया, मैं ने जो भी चाहा मिल गया…’’ दूसरी तरफ से किसी पुरुष के गुनगुनाने की आवाज आ रही थी.

‘‘कौन है?’’ शीतल ने तिलमिला कर पूछा.

जवाब में वह व्यक्ति वही गीत गुनगुनाता रहा. शीतल ने झुंझला कर फोन काट दिया और आए हुए नंबर की जांच करने लगी. मगर स्क्रीन पर नंबर डिसप्ले नहीं हो रहा था. उसे याद आया यह तो वही पंक्तियां थीं, जो वह उस हिल स्टेशन पर होटल में अनल के सामने बुदबुदा रही थी.

कौन हो सकता है यह व्यक्ति? मतलब होटल के कमरे में कहीं गुप्त कैमरा लगा था जो उस होटल में रुकने वाले जोड़ों की अंतरंग तसवीरें कैद कर उन्हें ब्लैकमेल करने के काम में लिया जाता होगा. लेकिन जब उन्हें उस की और अनल की ऐसी कोई तसवीर नहीं मिली तो इन पंक्तियों के माध्यम से उस का भावनात्मक शोषण कर ब्लैकमेल कर रुपए ऐंठना चाहते होंगे.

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शीतल बैडरूम में जाने के लिए सीढि़यां चढ़ ही रही थी कि एक बार फिर से मोबाइल की घंटी बज उठी. इस बार उस ने रिकौर्ड करने की दृष्टि से फोन उठा लिया. फिर वही आवाज और फिर वही पंक्तियां. उस ने फोन काट दिया. मगर फोन काटते ही फिर घंटी बजने लगी. बैडरूम का लौक खोलने तक 4-5 बार ऐसा हुआ.

झुंझला कर शीतल ने मोबाइल ही स्विच्ड औफ कर दिया. उसे डर था कि यह फोन उसे रात भर परेशान करेगा और वह चैन से नहीं सो पाएगी.

शीतल कपड़े चेंज कर के आई और लाइट्स औफ कर के लेटी ही थी कि उस के बैडरूम में लगे लैंडलाइन फोन पर आई घंटी से वह चौंक गई. यह तो प्राइवेट नंबर है और बहुत ही चुनिंदा और नजदीकी लोगों के पास थी. क्या किसी परिचित के यहां कुछ अनहोनी हो गई. यही सोचते हुए उस ने फोन उठा लिया.

फोन उठाने पर फिर वही पंक्तियां कानों में पड़ने लगीं. शीतल बुरी तरह से घबरा गई. एसी के चलते रहने के बावजूद उस के माथे पर पसीना उभर आया. कोई उसे डिस्टर्ब न करे, इसलिए उस ने लैंडलाइन फोन का भी प्लग निकाल कर डिसकनेक्ट कर दिया.

फोन डिसकनेक्ट कर के वह मुड़ी ही थी कि उस की नजर बैडरूम की खिड़की पर लगे शीशे की तरफ गई. शीशे पर किसी पुरुष की परछाई दिख रही थी, जो कल की ही तरह बाहें फैलाए उसे अपनी तरफ बुला रहा था.

वह जोरों से चीखी और बैडरूम से निकल कर नीचे की तरफ भागी. चेहरे पर पानी के छीटें पड़ने से शीतल की आंखें खुलीं.

‘‘क्या हुआ?’’ उस ने हलके से बुदबुदाते हुए पूछा.

घर के सारे नौकर और चौकीदार शीतल को घेर कर खड़े थे और उस का सिर एक महिला की गोद में था.

‘‘शायद आप ने कोई डरावना सपना देखा और चीखते हुए नीचे आ गईं और यहां गिर कर बेहोश हो गईं.’’ चौकीदार ने बताया.

‘‘सपना…? हां शायद,’’ कुछ सोचते हुए शीतल बोली, ‘‘ऐसा करो, वह नीचे वाला गेस्टरूम खोल दो, मैं वहीं आराम करूंगी.’’

सुबह उठ कर शीतल पुलिस में शिकायत करने के बारे में सोच ही रही थी कि एक नौकर ने आ कर सूचना दी.

‘‘मैडम, वीर सर आप से मिलाना चाहते हैं.’’

‘‘वीर? अचानक? इस समय?’’ शीतल मन ही मन बुदबुदाते हुई बोली.

‘‘भाभीजी जैसा कि आप ने कहा था मैं ने इंश्योरेंस कंपनी के औफिसर्स से बात की है. चूंकि यह केस कुछ पेचीदा है फिर भी वह कुछ लेदे कर केस निपटा सकते हैं.’’ वीर ने कहा.

‘‘कितना क्या और कैसे देना पड़ेगा? हमारी तरफ से कौनकौन से पेपर्स लगेंगे?’’ शीतल ने शांत भाव से पूछा.

‘‘हमें उस हिल स्टेशन वाले थाने से पिछले तीन केस की ऐसी रिपोर्ट निकलवानी होगी, जिस में लिखा होगा कि उस खाई में गिरने के बाद उन लोगों की लाशें नहीं मिलीं.

‘‘इस काम के लिए अधिकारियों को मिलने वाली राशि का 25 परसेंट मतलब ढाई करोड़ रुपए देना होगा. यह रुपए उन्हें नगद देने होंगे. कुछ पैसा अभी पेशगी देना होगा बाकी क्लेम सेटल होने के बाद. चूंकि बात मेरे माध्यम से चल रही है अत: पेमेंट भी मेरे द्वारा ही होगा.’’ वीर ने बताया.

‘‘ढाई करोड़ऽऽ..’’ शीतल की आंखें चौड़ी हो गईं, ‘‘यह कुछ ज्यादा नहीं हो जाएगा?’’ वह बोली.

‘‘देखिए भाभीजी, अगर हम वास्तविक क्लेम पर जाएंगे तो सालों का इंतजार करना होगा. शायद कम से कम 7 साल. फिर उस के बाद कोर्ट का अप्रूवल.’’ वीर ने अपना मत रखा.

‘‘आप क्या चाहते हैं, इस डील को स्वीकार कर लिया जाए?’’ शीतल ने पूछा.

‘‘जी मेरे विचार से बुद्धिमानी इसी में है.’’ वीर बोला, ‘‘अभी हमें सिर्फ 25 लाख रुपए देने हैं. ये 25 लाख लेने के बाद इंश्योरेंस औफिस एक लेटर जारी करेगा, जिस के आधार पर हम उस हिल स्टेशन वाले थाने से पिछले 3 केस की केस हिस्ट्री लेंगे.

‘‘इस हिस्ट्री के आधार पर कंपनी हमारे क्लेम को सेटल करेगी और 10 करोड़ का चैक जारी करेगी.’’ वीर ने पूरी योजना विस्तार से समझाई.

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‘‘ठीक है 1-2 दिन में सोच कर बताती हूं. 25 लाख का इंतजाम करना भी आसान नहीं होगा.’’ शीतल बोली.

‘‘अच्छा भाभीजी, मैं चलता हूं.’’ वीर उठते हुए नमस्कार की मुद्रा बना कर बोला.

शीतल की तीक्ष्ण बुद्धि यह समझ गई की वीर दोस्ती के नाम पर धोखा दे रहा है. और हो न हो, यह वही शख्स है जो उसे रातों में डरा रहा है. यह मुझे डरा कर सारा पैसा हड़पना चाहता है. मैं ऐसा नहीं होने दूंगी और इसे रंगेहाथों पुलिस को पकड़वाऊंगी.

रोजाना की तरह आज भी लगभग 8 बजे शाम को वह क्लब जाने के लिए निकली. आज शीतल बेफिक्र थी, क्योंकि उसे पता चल चुका था कि पिछले दिनों हो रही घटनाओं के पीछे किस का हाथ है. अब उस का डर निकल चुका था. उस ने वीर को सबक सिखाने की योजना पर भी काम चालू कर दिया था.

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