रखैल नहीं : श्यामलाल की आंखो में किसका चेहरा नजर आ रहा था

रात के 10 बज चुके थे. टैलीविजन बंद कर के श्यामलाल बिस्तर पर लेट गए और सोने की कोशिश करने लगेपर नींद ही नहीं आ रही थी. आंखों के सामने बारबार निम्मो का चेहरा और गदराया बदन आ रहा था.

एक घंटे बाद श्यामलाल ने निम्मो को फोन किया, ‘‘निम्मो…’’

हां बाबूजीक्या बात हैतबीयत तो ठीक है न आप की?’ उधर से निम्मो की आवाज सुनाई दी.

‘‘सिर में बहुत तेज दर्द हो रहा है. जरा आ कर गोली दे दो और बाम भी लगा दो.’’

अभी आती हूं.

कुछ देर बाद निम्मो कमरे में आ गई. सिरदर्द की गोली देते हुए वह बोली, ‘‘यह दर्द कब हुआ बाबूजी?’’

‘‘अभी थोड़ी देर पहले. नींद नहीं आ रही थी. राजू बेटा सो गया है क्या?’’

‘‘हां बाबूजीहम दोनों ही सो गए थे,’’ निम्मो ने कहा और श्यामलाल के माथे पर बाम लगाने लगी.

कुछ देर बाद श्यामलाल ने अपनी बांहें निम्मो की कमर में डाल दीं.

‘‘बाबूजीयह क्या कर रहे हैं आप?’’ निम्मो ने चौंक कर कहा.

‘‘कुछ नहीं निम्मोबस थोड़ा और मेरे पास आ जाओ.’’

निम्मो ने कुछ नहीं कहा. वह श्यामलाल के निकट होती चली गई.

कुछ देर बाद कमरे से निकलते हुए निम्मो ने कहा, ‘‘अब तो आप का दर्द बिलकुल ठीक हो गया होगा?’’

श्यामलाल ने कोई जवाब नहीं दिया. वे सोने की कोशिश करने लगेपर नींद आंखों से गायब थी. वे पुरानी यादों में खो गए.

2 साल हुए वह एक सरकारी महकमे से अफसर के रूप में रिटायर हुए थे. बेटा दिनेश अपनी पत्नी और बेटे के साथ अमेरिका में था. पत्नी सावित्री के साथ जिंदगी की गाड़ी बहुत अच्छी तरह चल रही थी.

एक दिन काम वाली शांतिबाई एक जवान औरत के साथ आई और बोली, ‘‘आप कह रहे थे कि ऐसी बाई चाहिएजो सुबह से शाम तक काम कर सके. यह निम्मो?है. घर का सारा काम करेगी. यह हमारे गांव की है. आप किसी तरह की चिंता न करना. इस की पूरी जिम्मेदारी मुझ पर है. इस के साथ

5 साल का एक छोटा बेटा है.

‘‘2 साल पहले इस के पति की एक हादसे में मौत हो गई थी. अब इस का गांव में कोई नहीं है. मैं ने ही इस को यहां बुलाया है.’’

निम्मो ने हाथ जोड़ कर नमस्कार किया. उन्होंने निम्मो की ओर देखा. गदराया बदनमोटी आंखेंगोरा रंगखूबसूरत चेहरा.

निम्मो को काम पर रख लिया गया. वह अच्छे ढंग से घर के काम करती व खाना भी बहुत लजीज बनाती थी.

निम्मो के आने से सावित्री को भी बहुत आराम मिल गया था. वे निम्मो की बहुत तारीफ करती थीं.

कुछ दिन के बाद निम्मो को कोठी में ही एक कमरा दे दिया गया थाजहां

वह अपने बेटे राजू के साथ रहने लगी. पास के एक स्कूल में राजू को दाखिला दिला दिया.

एक दिन सावित्री बीमार हो गईं. इलाज कराने पर भी बीमारी बढ़ती चली गई और पता चला कि उन्हें कैंसर है. इलाज होता रहापर सावित्री बच न पाईं.

सावित्री की बीमारी के समय निम्मो ने भी बहुत सेवा की थी. सावित्री के आखिरी समय तक वह साथ रही थी.

अमेरिका से दिनेश सपरिवार आया और कुछ दिन बाद वापस चला गया.

इतने बड़े मकान में श्यामलाल अकेले हो गए थे. निम्मो उन का पूरा ध्यान रखती कि उन को कब क्या खाना है और कौन सी दवा लेनी है.

यादों के समुद्र में डूबतेतैरते उन को नींद आ गई. सुबह श्यामलाल की आंख खुलीतो उन को रात की घटना याद आते ही चिंता हो गई कि निम्मो नाराज हो कर यह घर छोड़ कर न चली जाएपर ऐसा हुआ नहीं.

श्यामलाल ने देखा कि निम्मो का बरताव बिलकुल सामान्य है. उस के चेहरे पर गुस्सा या नाराजगी नहीं?है.

निम्मो ने श्यामलाल को नाश्ता देते हुए कहा, ‘‘बाबूजीरात जो हुआ उस से मुझे डर है कि कहीं बच्चा न ठहर जाए.’’

‘‘ऐसा नहीं होगा निम्मोमैं बाजार से गोलियां ला दूंगा.’’

उस के बाद जब कभी श्यामलाल का मन होतातो निम्मो को कमरे में

बुला लेते.

एक दिन श्यामलाल ने कहा, ‘‘निम्मोयहां रहते हुए तुम किसी तरह की चिंता न करना. जब भी अपने लिए या राजू बेटे के लिए बाजार से कुछ खरीदारी करनी होतो मुझ से रुपए

ले लेना.’’

‘‘ठीक है बाबूजी,’’ निम्मो बोली. वह अच्छी तरह जानती थी कि बाबूजी उस पर इतने दयालु क्यों हो रहे हैं.

वह बाबूजी की हर जरूरत जो पूरी कर देती है.

निम्मो यह भी समझती थी कि यहां बाबूजी के पास बहुत अच्छा घर मिल गया है. यहां हर तरह की सुविधा व आराम है.

एक दिन निम्मो रसोई में खाना बना रही थी. रेहड़ी पर सब्जी बेचने वाले सुरेंद्र की आवाज सुनाई पड़ी, ‘‘आलू लोप्याज लोभिंडी लोलौकी लो…’’

सब्जी वाले की आवाज सुनते ही वह बाहर आ गई.

पड़ोस की 2 औरतें सब्जी खरीद रही थीं. एक औरत बोली, ‘‘भई सुरेंद्रजैसे तुम साफसुथरे रहते होवैसी ही तुम्हारी सब्जियां भी बढि़याताजा और साफ होती हैं. इन को ज्यादा छांटने की जरूरत नहीं पड़ती.’’

‘‘मैडमजीहमारा तो एक उसूल है कि जब पैसे पूरे लेते हैंतो सामान भी बढि़या बेचना चाहिए. इसीलिए तो

मंडी से बढि़यासाफसुथरी सब्जी खरीदते हैं. बेईमानी हमें पसंद नहीं?है,’’ सुरेंद्र ने कहा.

‘‘तभी तो सभी लोग तुम्हारा इंतजार करते हैं,’’ दूसरी औरत ने कहा.

निम्मो सब्जी छांटने लगीतभी सुरेंद्र ने कहा, ‘‘कैसी हैं आपऔर बाबूजी व राजू बेटा?’’

‘‘सब ठीक हैं,’’ निम्मो ने कहा.

‘‘बाबूजी को कौन सी सब्जी

पसंद है?’’

‘‘उन को भिंडीतोरईलौकी और करेला.’’

‘‘और आप को?’’

‘‘मुझे तो हर सब्जी पसंद है,’’ निम्मो ने कहा.

निम्मो ने सब्जी लेते समय जब भी सुरेंद्र की ओर देखा तो उसे लगा कि वह कुछ कहना चाहता है.

जब वे दोनों औरतें सब्जी ले कर चली गईंतो सुरेंद्र ने कहा, ‘‘मुझे आप से कुछ कहना है…’’

‘‘कहो.’’

‘‘क्या आप का मोबाइल नंबर मिलेगाकुछ जरूरी बात करनी है.’’

‘‘कहो न…’’

‘‘मैं यहां नहीं बता सकता.’’

निम्मो ने अपना मोबाइल नंबर उसे दे दिया. सुरेंद्र ने चलतेचलते पूछा, ‘‘आप से कितने बजे बात हो सकेगी?’’

‘‘रात 9 बजे के बाद,’’ निम्मो बोली और सब्जी ले कर घर में आ गई.

रात के साढ़े 9 बजे निम्मो के फोन की घंटी बज उठी. उस समय वह अपने कमरे में राजू के साथ थी.

‘‘हैलो,’’ निम्मो ने कहा.

कौननिम्मो ही बोल रही हैं न?’ उधर से आवाज सुनाई दी.

‘‘मैं ही बोल रही हूं.’’

मैं सुरेंद्र बोल रहा हूं. आप तो जानती हैं कि हम दोनों बिहार के एक ही जिले के हैं. मैं यहां 10 साल से रह रहा हूं. चंदन कालोनी में मेरा छोटा सा मकान है. मेरी 8 साल की बेटी है.

मेरी पत्नी की पिछले साल दिमागी बुखार से मौत हो गई थी. बेटी तीसरी क्लास में पढ़ रही है. सब्जी के काम से ठीकठाक गुजारा हो रहा है.

‘‘अच्छी बात है.’’

आप के बारे में मैं शांति आंटी से सब मालूम कर चुका हूं. उन्होंने ही आप को यहां काम पर लगाया था.

‘‘हां.’’

कल मेरी छुट्टी रहेगी. मंडी बंद है. क्या आप मुझ से मिलने नेहरू पार्क आ सकती हैं?’

‘‘क्यों?’’

कुछ जरूरी बात करनी है.

‘‘देखिएमेरा घर से निकलना जरा मुश्किल रहता है. आप को जो बात करनी हैफोन पर ही कह दो,’’ निम्मो ने कहा. वह जानती थी कि सुरेंद्र उस से क्या कहना चाहता है.

आप मुझे बहुत अच्छी लगती हैं. मैं चाहता हूं कि आप पत्नी के रूप में मेरे घर आ जाएं. आप के राजू को पापा व मेरी बेटी को भी मां मिल जाएगी.

निम्मो चुप रही.

क्या मेरी बात से नाराज हो गईं आपआप चुप क्यों हैंकुछ

बोलिए न?’

‘‘मैं 1-2 दिन में बता दूंगी.’’

एक बात और मैं बताना चाहता हूं.

‘‘क्या…?’’

शादी के बाद आप को कहीं काम करने की जरूरत नहीं पड़ेगी. बस अपने छोटे से घरपरिवार को संभाल लेना.

‘‘ठीक हैबता दूंगी,’’ निम्मो ने कहा और मोबाइल बंद कर दिया.

राजू बेटा सो चुका था. निम्मो बिस्तर पर लेट गई. उस की आंखों के सामने बारबार सुरेंद्र का चेहरा आ रहा था.

अगले दिन निम्मो शांति चाची से मिली. शांति चाची ने कहा, ‘‘निम्मोमैं सुरेंद्र को 5-6 साल से जानती हूं. उस की बहुत अच्छी आदत है. शराब नहीं पीता. गुटकातंबाकू भी नहीं खाता.

‘‘वह तुझ से अगर शादी करना चाहता हैतो मना मत करना. तुम्हारी जिंदगी की नई शुरुआत हो जाएगी और उस का भी घर बस जाएगा.’’

रात को अपने कमरे में पहुंच कर निम्मो ने सुरेंद्र के मोबाइल पर बात शुरू की, ‘‘हैलो.’’

हां निम्मोकैसी हो?’ उधर से सुरेंद्र की आवाज आई.

‘‘मैं ठीक हूं. आप कैसे हैं?’’

मैं भी ठीक हूं. बस आप के फोन का इंतजार कर रहा था. क्या कुछ सोचा है अपने उस नए घरपरिवार के बारे में.

‘‘मुझे मंजूर है.’’

अब हम जल्द ही शादी कर लेंगे,’ सुरेंद्र की खुशी भरी आवाज सुनाई दी, ‘अब मैं ज्यादा दिन आप को अपने से दूर नहीं रखूंगा.

निम्मो काफी देर तक सुरेंद्र से बात करती रही.

सुबह नाश्ता करने के बाद श्यामलाल अखबार पढ़ रहे थे. निम्मो ने कमरे में आते ही कहा, ‘‘बाबूजीमुझे आप से कुछ कहना है.’’

‘‘हांहां कहो निम्मोकुछ रुपयों की जरूरत है क्या?’’

‘‘नहीं बाबूजीरुपयों की जरूरत नहीं है.’’

‘‘अच्छा बताओ कि क्या कहना है?’’

‘‘बाबूजीमैं शादी कर रही हूं.’’

श्यामलाल चौंक उठे. अखबार से गरदन उठा कर उन्होंने कहा, ‘‘शादी कर रही होलेकिन क्यों?’’

‘‘शादी क्यों की जाती है बाबूजी?’’

‘‘मेरा मतलब है कि यहां तुम्हें किसी बात की परेशानी हुई है क्यामैं ने कुछ गलत बरताव कर दिया है क्या?’’

‘‘नहीं बाबूजीआप तो बहुत अच्छे हैं. आप ने इतने दिनों तक मुझे आसरा दिया.’’

‘‘फिर क्यों जाना चाहती हो यहां सेतुम किस से शादी कर रही हो?’’

‘‘वह जो सब्जी का ठेला ले कर आता है सुरेंद्र. वह हमारे ही जिले का है. उस की पत्नी पिछले साल बीमारी में चल बसी थी. उस की 8 साल की बेटी है. शांति चाची ने भी कह दिया है उस से शादी करने को.’’

यह सुन कर उदास व दुखी श्यामलाल ने कहा, ‘‘ओह निम्मोतुम मुझे अकेला छोड़ कर जा रही हो. तुम ने यह नहीं सोचा कि तुम्हारे बिना मैं अकेला कैसे रह पाऊंगातुम मुझ

से कुछ और चाहती हो तो ले सकती

होपर मुझे छोड़ कर मत जाओ.’’

‘‘बाबूजीमैं यहां तब तक ही रह सकूंगीजब तक आप हैं. उस के बाद मुझे यहां कौन रहने देगा और किस हक से रहूंगी. हमेशा रहने का हक पत्नी को है और मैं यह हक हासिल कर सकूंऐसा मैं सपने में भी सोच नहीं सकतीक्योंकि मैं कहां और आप कहांजमीनआसमान का फर्क है बाबूजी.’’

श्यामलाल चुपचाप सुनते रहे.

निम्मो ने आगे कहा, ‘‘बाबूजीमुझे जिंदगी ने एक बार फिर मौका दिया है कि मैं अपना घर बसा सकूं. यहां आप के पास रह कर तो मैं एक नौकरानी या रखैल ही रहूंगी न. मैं रखैल नहीं किसी की पत्नी बनना चाहती हूंजहां मैं अपने बेटे के साथ निश्चिंत हो कर रह सकूं.’’

‘‘अब मेरा क्या होगा निम्मोइतने बड़े मकान में मुझे तो रातभर नींद भी नहीं आएगी.’’

‘‘बाबूजीआप अकेले नहीं रहेंगे. शांति चाची से कह कर किसी न किसी बाई का इंतजाम हो जाएगा.’’

‘‘कोई भी आ जाए निम्मोपर तुम जैसी नहीं मिलेगीजिस ने मेरी हर खुशी का ध्यान रखा,’’ श्यामलाल ने निम्मो की ओर देख कर कहा.

‘‘बाबूजीजब तक आप के लिए किसी बाई का इंतजाम नहीं होगातब तक मैं आप को अकेला छोड़ कर नहीं जाऊंगी.’’

‘‘निम्मोतुम ने ठीक ही सोचा है. तुम्हारे सामने 2 रास्ते थे. तुम ने दूसरे रास्ते की ओर सही कदम बढ़ाया है. वैसे भी तुम्हारी सेवाओं को मैं कभी भुला नहीं पाऊंगा.

‘‘और हांअपने नए घरपरिवार में जाने के बाद कभी भी मेरी मदद की जरूरत पड़े तो बता देना. मैं तो यही कहूंगा निम्मो कि तुम जहां भी रहो

खुश रहो.’’

‘‘बाबूजीआप कितने अच्छे हैं,’’ निम्मो ने मुसकरा कर श्यामलाल की ओर देखते हुए कहा.     

हिजड़ा: क्या श्री से सिया बनने के बाद मुसीबतों का खात्मा हो गया?

लड़की जैसे हावभाव होने पर श्री ने सिया बनने का फैसला ले तो लिया, पर मुसीबतों ने यहां भी पीछा नहीं छोड़ा. ट्रांसजेंडर और हिजड़ा शब्द बारबार उस के कानों में गूंजते. श्री से सिया बनने के बाद क्या मुसीबतों का खात्मा हो गया या फिर सामाजिक व मानसिक सोच में कोई बदलाव आया.

‘छनाक’ की आवाज के साथ आईना चकनाचूर हो गया था. कई टुकड़ों में बंटा हुआ आईने का हर टुकड़ा सिया का अक्स दिखा रहा था.

मांग में भरा सिंदूर, गले का मंगलसूत्र, कानों के कुंडल ये सब मानो सिया को चिढ़ा रहे थे.

शायद समाज के दोहरेपन के आगे वह हार मान चुकी थी.

एकसाथ कई सवाल सिया के मन में उमड़घुमड़ रहे थे.

आईने के नुकीले टुकड़ों में  सिया को उस के सवालों का उत्तर नहीं मिल सका. आंखों में आंसुओं के साथ पिछली यादें किसी फिल्म की तरह सिया की आंखों के सामने से गुजरने लगी थी.

“श्री” नाम था उस का. 20 साल का होतेहोते वह और उस के मांबाप ये समझ चुके थे कि श्री का शरीर भले ही एक पुरुष का हो, पर उस के अंदर आत्मा एक महिला की ही है.

मांबाप ने श्री को कई डाक्टरों और मनोचिकित्सकों को दिखलाया, इलाज भी चला, पर कोई लाभ नहीं हुआ. डाक्टरों ने श्री को ‘जेंडर आइडेंटिटी डिसऔर्डर’ का मरीज बताया, जिस में शरीर तो स्त्री या पुरुष का हो सकता है, पर हावभाव और लक्षण विपरीत लिंग के होते हैं.

श्री के नैननक्श तीखे थे. उस के चेहरे की खूबसूरती और चमक से लड़कियों को जलन होना स्वाभाविक ही था. वह लड़कियों के कपड़े पहनता, उन की तरह हावभाव रखता, गाने गाता और लड़कियों की तरह डांस करना उसे बहुत अच्छा लगता था. किसी से बात करते समय लचकनामचकना श्री की आदत थी. अनजाने में ही श्री के अंदर की स्त्री सहज रूप में उभर कर आती थी.

श्री जीवन के 22वें वर्ष में प्रवेश कर चुका था. बाहर जाने पर भी लड़कियों जैसे कपड़े ही पहनने लगा था वह… मानो अब उसे जमाने के कहनेसुनने की कोई परवाह ही नहीं थी. उस ने अमर नाम का एक दोस्त बनाया था, जिसे वह अपना बौयफ्रैंड कहता था.

अमर को इस बात का अहसास था कि श्री की हरकतें लड़कियों जैसी हैं, पर उसे तो सिर्फ श्री के पैसे से मजे करने थे, इसलिए वह उस के नाज उठाता था. आज वे दोनों श्री का जन्मदिन मनाने के लिए किसी रेस्टोरेंट में जाने वाले थे.

इस खास दिन के लिए श्री ने अपने लंबे बालों को खुला छोड़ा हुआ था और वह सलवारसूट पहने था.

उन दोनों को वापसी में रात के साढ़े 11 बजे गए थे. अमर और श्री एकदूसरे का हाथ पकड़े गाड़ी की पार्किंग की तरफ बढ़ रहे थे.

“अरे लगता है, मैं अपना मोबाइल रेस्टोरेंट में ही भूल आया हूं,” कह कर अमर अंदर की ओर लपक गया, जबकि श्री बाहर ही उस के आने का इंतजार करने लगा था.

एक बड़ी सी गाड़ी श्री के ठीक सामने आ कर खड़ी हुई और उन में से बाहर निकले एक बलशाली लड़के ने श्री को अंदर घसीट लिया और श्री के मुंह पर टेप लगा दिया, ताकि वह शोर न मचा सके. गाड़ी को वे लोग एक निर्माणाधीन बिल्डिंग के पास ले गए और श्री को बाहर घसीटा.

“आज बहुत दिनों बाद कोई चिकना माल मिला है,” श्री के कपड़े फाड़ते हुए एक वहशी बोला, पर अगले ही पल वह बुरी तरह चौंक गया, “स्साला… ये तो लड़की के वेश में लड़का है… क्यों बे साले… लड़की बन कर घूमने में ज्यादा मजा आता है क्या?” दोचार लातघूंसे रसीद कर दिए थे उस वहशी ने श्री के गाल पर.

“अब क्या करें… सारे मूड का तो सत्यानाश हो गया…अब मूड कैसे फ्रेश करें?” दूसरा युवक बोला.

“भाई तुम लोग अपना सोच लो… मुझे तो आज इस लड़के के साथ ही मजे लेना है… कभीकभी स्वाद भी तो बदलना चाहिए न,” इतना कह कर वह युवक श्री के साथ जबरन दुराचार करने लगा और फिर कुछ देर बाद बारीबारी से तीनों दोस्तों ने  भी श्री के साथ मुंह काला किया और उसे तड़पती अवस्था में छोड़ कर वहां से चले गए.

अर्धबेहोशी की अवस्था में श्री कब तक रहा, उसे कुछ पता नहीं था. आंखें खुलीं, तो उस ने अपनेआप को एक अस्पताल में पाया. पुलिस वाले उस के सामने खड़े थे.

“तो आप का कहना है कि आप के बेटे का बलात्कार हुआ है,” पुलिस वाले ने श्री के पिता से पूछा.

“जी.”

“हमें पीड़ित का बयान लेना होगा,” इंस्पेक्टर ने कहा और श्री से कुछ अटपटे सवाल पूछने के बाद जल्द ही कार्यवाही करने की बात कह कर बाहर निकलते हुए पुलिस कांस्टेबल इंस्पेक्टर से कह रहा था, “साहब, ये सब अमीर घर के लड़कों  के चोंचले हैं… पहले लड़की बन कर घूमते हैं और फिर बलात्कार करवा कर हमारे लिए काम बढ़ा देते हैं… साले हिजड़े कहीं के…”

‘हिजड़े…’ यह शब्द गाली की तरह चुभा था श्री को. श्री का कलेजा अंदर तक छलनी हो गया था.

ये पहला मौका था, जब उसे अपने इस दोहरे जीवन जीने के ढंग पर शर्म आई थी.

करीब 5 दिन तक अस्पताल में रहने के बाद श्री अपने मांबाप के साथ घर आया और अपने बौयफ्रैंड अमर को फोन लगाया.

काफी देर बाद अमर ने उस का फोन उठाया और सीधे शब्दों में कह दिया कि श्री के साथ जो हादसा हुआ है, उस से उस की काफी बदनामी हो गई है, इसलिए  वह उस के साथ अब कोई संबंध नहीं रखना चाहता.

जिस दोस्त की अब उसे सब से ज्यादा जरूरत थी, उसी ने उस का साथ छोड़ दिया. ये सोच कर श्री काफी परेशान हो उठा.

श्री ने अपने मर्दाना पर निष्क्रिय पड़े हुए अंग को देखा और नफरत से भर गया. यह पहला मौका था, जब श्री ने अपना लिंग परिवर्तन कराने की बात गहराई से सोची, इस के लिए सब से पहले उस ने इंटरनेट खंगालना शुरू किया. उस के जैसे लक्षणों वाले और बहुत से लोग हैं इस दुनिया में. यह बात उसे पता चली, तो उस के मन को थोड़ा सुकून मिला और गहरे जाने पर श्री को बहुत सी नई बातें पता चलीं. उस में से एक यह बात भी थी कि चिकित्सा के नए स्वरूप में  लिंग परिवर्तन कराना कोई बहुत बड़ी बात नहीं रह गई है और 10 लाख से भी कम खर्चे में भारत में ही रह कर अपना लिंग परिवर्तन कराया जा सकता है.

ये सारी बातें जान कर श्री एक नई ऊर्जा से भर गया था. अपने लिंग परिवर्तन अर्थात अपनेआप को एक पुरुष से स्त्री के शरीर में ढालने की बात जब श्री ने अपने मांबाप से की, तो पहले तो वे सकते में आ गए, पर बाद में उन्होंने  हामी भर दी.

श्री ने लिंग परिवर्तन के लिए विशेषज्ञों से औनलाइन परामर्श लेना शुरू किया, जिन से उसे पता चला कि ये प्रोसेस धीमा जरूर है, पर इस में धैर्य रख कर इसे सफल बनाया जा सकता है, कुछ और जरूरी खोजबीन के बाद डाक्टर मुकेश माथुर से अपना लिंग परिवर्तन कराने के लिए वह गुजरात में उन से मिला और उन के अस्पताल में भरती हो गया.

डाक्टर माथुर ने सब से पहले उसे हार्मोंस के इंजेक्शन देने शुरू किए और थेरेपी व अन्य दवाएं भी देनी शुरू कीं, जिन के असर से कभीकभी श्री परेशान हो उठता. कभी वह मूड स्विंग्स का शिकार भी हो जाता था. स्त्री के स्वभाव के साथसाथ उस का शरीर भी एक का हो जाएगा, ये सोच कर श्री ये सारे दर्द झेलता रहा.

जब कभी श्री परेशान होता, तो वह रोने लगता. ऐसे में उस के मनोचिकित्सक की कमी डाक्टर मुकेश माथुर पूरी करते.

40 साल के डाक्टर मुकेश माथुर शहर के जानेमाने सर्जन थे और चिकित्सा में उन्होंने कई इनाम भी जीते थे. उन्हें मरीज की मनोदशा का अच्छी तरह से पता था. वह  घंटों श्री का हाथ पकड़ कर उस के सिरहाने बैठे रहते और उसे हिम्मत बंधाते. श्री को उन का आत्मिक होना बहुत अच्छा लगता था.

धीरेधीरे दवाएं और हार्मोंस का असर श्री के शरीर पर आने लगा. उस की काया कमनीय हो चली थी. सीने पर उभार आने लगे और शरीर के बाल पतले हो कर गायब होने लगे थे.

और आखिर वह दिन भी आया, जब डाक्टर मुकेश माथुर के द्वारा श्री को स्त्री घोषित कर दिया गया.

डाक्टर माथुर ने श्री को नया नाम भी दिया, “नए शरीर के साथ तुम्हारा नया होगा… सिया.”

अपने नए नाम को बारबार दोहरा रहा था श्री और ऐसा करते समय उस की आंखों से आंसू लगातार बहे जा रहे थे.

“वैसे तो हमारे देश में अब लिंग परिवर्तन की प्रक्रिया आसान हो गई है, पर डाक्टर मुकेश माथुर ने जितने कम समय और बिना किसी साइड इफेक्ट के इस सर्जरी को अंजाम दिया है, काबिलेतारीफ है,” डाक्टरों  के एक पैनल ने सर्वसम्मति से डाक्टर माथुर को “धन्वंतरि अवार्ड” से नवाजा.

श्री से सिया बन कर उस के जीने का अंदाज ही बदल गया था. अपनेआप को घंटों आईने के सामने निहारती रहती थी सिया.

सिया के नाम से नया फेसबुक एकाउंट भी बना लिया था उस ने. सब से पहली फ्रेंड रिक्वेस्ट उस ने अमर को भेजी, एक सुंदर लड़की की फोटो देख कर अमर ने तुरंत ही फ्रेंडशिप स्वीकार कर ली. धीरेधीरे फोन नंबरों का आदानप्रदान हुआ और अमर और सिया में बातचीत होने लगी. सिया ने वीडियो काल कर अमर को अपनी खूबसूरती की एक झलक भी दिखला दी थी.

अमर सिया से मिलने के लिए बेचैन हो उठा और उस ने सिया को मिलने के लिए एक रेस्टोरेंट में बुलाया, फिर उसे बहाने से एक होटल के कमरे में ले गया. उस की मंशा सिया जैसी खूबसूरत लड़की को भोगने की थी इसलिए, पर वह सिया को बातों मे लगा कर उस के कपड़े उतारने लगा. सिया ने भी कोई विरोध नहीं किया. कुछ देर बाद सिया पूरी तरह नग्न हो कर अमर के सामने खड़ी थी.

अमर अपलक सिया को निहारे जा रहा था. सिया को बांहों में भर लिया था अमर ने… जैसे ही सिया के शरीर में अमर ने समाने की कोशिश की, सिया ने उसे जोर का धक्का दिया.

यह देख अमर थोड़ा सा चौंक उठा, “अरे सिया, अब इतना नाटक क्यों कर रही हो?”

“मैं नाटक नहीं कर रही, बल्कि मैं तुम्हें ये अहसास कराना चाहती हूं कि तुम ने क्या खोया  है… ये सिया वही श्री है, जिस को तुम ने एक दिन अपनी बदनामी के डर से ठुकरा दिया था.”

ऐसा कह कर सिया ने झट से कपड़े पहने और कमरे से बाहर निकल गई.

अमर को अपने ऊपर भरोसा नहीं हो रहा था कि ये सब हकीकत थी या कोई छलावा था.

सिया अपने मांबाप के साथ रहने लगी. महल्ले के लोगों को पता चल चुका था कि श्री ही लिंग परिवर्तन के बाद की सिया है, इसलिए  सब उसे अजीब नजरों से देखते थे, कभीकभी सिया के पीछे फुसफुसाती आवाजें सिया को अजीब लगतीं, तो कभी 15-16 साल के लड़के उस के पीठ पीछे “हिजड़ा” बोल कर हंसते हुए चले जाते थे.

पहलेपहल तो सिया ने ध्यान नहीं दिया, पर जब इन चीजों की पुनरावृत्ति होने लगी तो सिया के मन में खटास आने लगी.

“मैं कोई हिजड़ा नहीं, बल्कि मैं तो पूरी औरत हूं,” फुसफुसा उठती थी सिया.

इस दौरान उसे हार्मोन थेरेपी के लिए डाक्टर मुकेश माथुर के पास जाना पड़ता था. उस दिन 14 फरवरी अर्थात “वैलेंटाइन डे” था. डाक्टर माथुर ने हाथों में एक सुर्ख गुलाब ले कर सिया को दिया.

“क्या आप किसी लड़की को लाल गुलाब देने का मतलब जानते हैं डाक्टर?” सिया ने पूछा.

“अच्छी तरह जानता हूं…तभी तो दे रहा हूं,” डाक्टर माथुर ने कहा.

“तुम्हारी सर्जरी करने के बाद मुझे तुम से मिलतेमिलते इतना प्यार हो गया है कि अब तुम्हारे बिना मुझ से रहा नहीं जाता है, इसलिए मैं तुम से  शादी करना चाहता हूं.”

एक ट्रांसजेंडर बनने के बाद से ही सिया एक ऐसे व्यक्ति को ढूंढ़ रही थी, जो उस के साथ शादी करने का साहस जुटा सके और उसे औरत के जिस्म का अहसास करा सके.

सिया डाक्टर माथुर की ये बात सुन कर फूली नहीं समा रही थी. उसे लग रहा था कि उस का सपना साकार हो गया है.

सिया के मांबाप को भला इस फैसले से क्या आपत्ति होती… उन्होंने उस की हां में हां मिला दी.

एक सादा समारोह में डाक्टर मुकेश माथुर ने सिया से शादी कर ली. एक ट्रांसजेंडर की एक डाक्टर से शादी को लोकल समाचारपत्रों ने प्रमुखता से स्थान दिया. सोशल मीडिया पर भी डाक्टर मुकेश माथुर और सिया की शादी खूब सुर्खियों में रही.

शादी के बाद डाक्टर मुकेश और सिया जी भर कर सैक्स का सुख लेने लगे. अपने शरीर को ले कर सिया का हर प्रकार का डर खत्म हो गया था.

आज कुछ मीडिया वाले डाक्टर मुकेश का इंटरव्यू लेने आए थे, जो उन से बारबार वही जानना चाह रहे थे कि एक ट्रांसजेंडर के साथ शादी कर के उन्हें कैसा लग रहा है… पत्रकार  घुमाफिरा कर उन के सैक्स संबंधों के बारे में ही सवाल पूछ रहे थे, उन के हर सवाल का जवाब डाक्टर मुकेश माथुर बड़ी गर्मजोशी से जवाब दे रहे थे.

पत्रकारवार्ता खत्म होने के बाद डाक्टर मुकेश के मोबाइल पर एक फोन आया, जिसे सुन कर वे बहुत खुश हुए और सिया से बोले, “सुनो सिया… मैं ने एक लिंग परिवर्तन करवाए हुए एक लड़के से शादी की है. मेरे इस साहसिक निर्णय के लिए मुझे मानव कल्याण संस्था वाले एक अवार्ड दे रहे हैं,” चहक रहे थे डाक्टर मुकेश. उन को खुश देख कर सिया भी खुश हो गई.

2 दिन बाद ही डाक्टर मुकेश माथुर को जब अवार्ड मिल गया, तो उस ने अपने कुछ डाक्टर साथियों को इस खुशी में घर पर पार्टी के लिए बुलाया. सारा खाना बाहर से मंगवाया गया था और महंगी वाली शराब का दौर चल रहा था. मुकेश के सभी साथी नशे में झूमने लगे थे.

“यार मुकेश… शराब तो तू ने पिला दी, पर शबाब के लिए अपनी उस ट्रांसजेंडर बीवी को ही बुला ले,” एक साथी ने कहा.

“हां यार, बड़ा मूड हो रहा है,” दूसरे साथी ने कहा.

“नहीं यार, भले ही वह ट्रांसजेंडर हो… पर है तो उस की बीवी ही,” दूसरे दोस्त ने बचाव किया.

“इन ट्रांसजेंडर की भी क्या इज्जत और क्या बेइज्जती? ये तो ग्रुप सैक्स के लिए भी राजी हो जाते हैं.”

कमाल की बात यह थी कि डाक्टर मुकेश उन सब की बातों का कोई प्रतिरोध नहीं कर रहा था, बल्कि उन की हां में हां मिला रहा था.

दीवार के पीछे खड़ी सिया ये सब सुन रही थी. उस की आंखों से आंसू बह रहे थे. इतने में सिया ने अपनी पीठ पर किसी का मजबूत हाथ महसूस किया. ये डाक्टर मुकेश माथुर था.

मुकेश सिया को घसीटते हुए अपने साथियों के सामने ले गया और बोला,

“लो दोस्तो, शराब के बाद… शबाब… मजे ले लो इस के.”

“ये आप क्या कर रहे हैं… मैं पत्नी हूं आप की.”

बड़ी ज़ोर से हंस पड़ा था डाक्टर मुकेश माथुर.

“अरे ओ… मैं ने तुझ जैसे हिजड़े… सौरी… ट्रांसजेंडर से शादी इसलिए की है कि मुझे समाज में सम्मान मिल सके… अवार्ड मिल सके… और मैं एक हिजड़े का उद्धार करने वाले डाक्टर के रूप मे जाना जाऊं,” नशे में डाक्टर मुकेश माथुर बुरी तरह हावी हो रहा था, जबकि डाक्टर मुकेश के साथी सिया के कपड़े खींचने में लगे हुए थे और कुछ ही देर में सिया उन सब के सामने नंगी खड़ी हुई फफक रही थी. वह हाथों से कैंची बना कर अपने सीने को ढकने की असफल कोशिश कर रही थी. एक व्यक्ति ने उसे बिस्तर पर गिरा लिया. उस के बाद सभी लोगों ने बारीबारी से सिया के साथ मुंह काला किया और इस घटना का वीडियो भी बनाया, ताकि इस बलात्कार की यादें ताजा रहें.

अगली सुबह जब सिया को होश आया था, तब कमरे में  कोई नहीं था, सिर्फ शराब और सिगरेट की गंध शेष थी.

सिया ने किसी तरह से कपड़े पहने और उस की नजर आईने के टूटे हुए टुकड़ों पर पड़ी, जो उसे चिढ़ा रहे थे मानो कह रहे हो कि तू एक हिजड़ा है… तू एक ट्रांसजेंडर है और तुझे समाज वाले इज्जत की नजर से कभी नहीं देखेंगे…बड़ी चली थी शादी करने… सिया ने भरे मन से टूटे आईने का एक टुकड़ा उठाया और अपनी कलाई की नस को काट लिया. उस की कलाई से खून तेजी से टपकने लगा था. सिया के कानों में अब भी आवाजें गूंज रही थीं… ट्रांसजेंडर… हिजड़ा… हिजड़ा…

रुदाली: क्या लौटरी का सरताज बना सूरज

राजस्थान प्रदेश के इस हिस्से में लौटरी खेलने पर कोई प्रतिबंध नहीं था. यहां के युवा तो युवा, प्रौढ़ लोग भी लौटरी खेलने के जाल में उलझे हुए थे. इसी कसबे में सूरज नाम का 30 वर्षीय युवक भी रहता था. सूरज को भी लौटरी खेलने की लत लग गई थी.

सूरज के पिताजी  गांव के प्रधान हुआ करते थे और किसी समय उन के पास काफी पैसा भी था. सूरज की लौटरी की लत ने काफी पैसा फुजूल उड़ा दिया था. सूरज लौटरी में ज्यादातर हारता, कभीकभी ही जीतता. पर जीत, हारे गए पैसों की तुलना में बहुत छोटी होती. फिर भी सूरज नए उत्साह से लौटरी का टिकट खरीदता और परिणाम का बेसब्री से इंतज़ार करता.

सूरज अपने मांबाप का इकलौता लड़का था. उस की शादी की उम्र हो गई थी, फिर भी उस की शादी नहीं हो रही थी. भला एक जुआरी से शादी करता भी कौन.

सूरज को गांव के लोग  अच्छी नज़रों से नहीं देखते थे जिस का कारण उस का लौटरी खेलना तो था ही, साथ ही, सूरज के अंदर एक ऐब और भी था. दरअसल, लौटरी जीतने की खुशी मनाने और हारने का गम मिटाने के लिए वह गेरुई के पास जाता था.

गेरुई एक रुदाली थी. रुदाली, यानी, वह स्त्री जो किसी व्यक्ति की मृत्य हो जाने पर विलाप करती है. रुदाली के विलाप में ऐसा दर्द उभर कर आना चाहिए कि वहां खड़े सभी लोगों की आंखें नम हो जाएं.

सभ्रांत घरों की महिलाएं व्यक्ति की लाश पर हाथ मारमार कर विलाप नहीं कर सकती थीं क्योंकि वे तथाकथित सभ्य समाज का हिस्सा थीं  और उन्हें घर की चारदीवारी के अंदर  ही रहना होता था. ऐसे में रुदाली, पैसे वाले और कुलीन कहलाने वाले लोगों के बहुत काम आती थी.

और यह भी सच है कि आंसुओं की भी एक सीमा होती है. ऐसे में जब आंसू आंखों  का साथ छोड़ देते तो रुदाली का सहारा लिया जाता.

रुदालियां काले रंग का लबादा सा ओढ़ कर आतीं. अच्छे कामों में रुदाली को देख लेने भर से काम बिगड़ जाते हैं, ऐसी मान्यता रखता  था यह गांव.

गेरुई और उस के परिवार को गांव वालों ने गांव के कोने पर ही रहने की इज़ाज़त दी हुई थी. वह गांव में तब ही आती जब उसे किसी की मृत्यु पर विलाप करने के लिए बुलाया जाता, वरना उसे गांव के अंदर जाने की सख्त मनाही थी.

आज के समाज में भी लोकरीति के चलते उपेक्षित जीवन जीने को मजबूर गेरुई के पास जब सूरज प्यार की तलाश में पहुंचा तो अपनेपन और सम्मान की भूखी गेरुई ने अपना तन और मन दोनों ही सूरज पर लुटा दिए थे. सूरज जब भी लौटरी में हार कर आता, तो हताशा में  गेरुई से कुछ अलग डिमांड करता. तब गेरुई उसे बिस्तर पर लिटाती और उस की आंखों के सामने अपने मांसल अंगों से खुद कपड़े अलग करती. सूरज का कहना था कि गेरुई को ऐसा करते देख उसे कामसुख जैसा ही आनंद प्राप्त होता है. जब गेरुई पूरी तरह से निर्वस्त्र हो जाती और सूरज की सांसें धौकनी बन रही होतीं तो वह गेरुई को बिस्तर पर पटक देता और अपना मुंह गेरुई के विशाल वक्ष स्थल के बीच में डाल देता और गेरुई के कोमल  व गोल अंगों को जी भर प्यार करता. गेरुई और सूरज जम कर कामसुख का आनंद लेते और फिर सूरज देर तक गेरुई की आगोश में पड़ा रहता. जातेजाते सूरज कुछ पैसे भी गेरुई को दे कर जाता.

एक दिन सूरज सड़क के किनारे वाली चाय की दुकान पर बैठा हुआ लौटरी के टिकट का गणित बिठा रहा था. तभी वहां पर अपने स्कूटर पर बैठा हुआ राजू सिंह आया और सूरज से जानपहचान बढ़ाने लगा. राजू सिंह ने उसे बताया कि वह आसपास के गांव और कसबों में घूमता है  और उम्र निकल जाने के कारण जिन लड़केलड़कियों की शादी नहीं हो पाती है वह उन की शादी करवाने में मदद करता है. राजू सिंह ने 4-5 फोटो सूरज के सामने फैला दी थीं. सूरज ने उड़ती नज़र उन पर डाली. वे सभी बहुत सुंदर लड़कियां थीं. देखने से ही बड़े घर की लड़कियां लग रही थीं. उन की सुंदरता देख कर एकबारगी सूरज के मुंह में भी पानी आ गया.

“ये… इत्ती सुंदर लड़कियां मुझ से शादी करने के लिए क्यों राजी होंगी भला?” सूरज ने सवाल किया.

“अरे हुज़ूर, आप के रसूख के बारे में  किसे पता नहीं  है. बस, आप यह लौटरी और रुदाली गेरुई का चक्कर छोड़ दीजिए, फिर देखिए, आप के पास लड़कियां कैसी खिंची चली आती हैं,” राजू सिंह ने चिकनीचुपड़ी बातें शुरू कर दीं और जातेजाते लड़कियों की फोटो सूरज के पास ही छोड़ गया और 2-3 दिनों बाद आने को कह गया.

संयोग की बात थी कि जब सूरज घर पहुंचा तो उस की मां ने खाना देते समय बेहद भावपूर्ण स्वर में सूरज से कहा, “क्या बेटा उम्रभर मुझ से ही खाना बनवाएगा? शादी कर ले,  तो मुझे भी बहू के हाथ की रोटी नसीब हो जाएगी. एक दिन तो मरना ही है मुझे.”

मां के मुंह से ऐसी बातें सुन कर सूरज को भी लगा कि भटकना बहुत हो गया, अब मांबाप के सुख के लिए उसे शादी कर लेनी चाहिए.

आज राजू सिंह आया तो सूरज ने अपनी परेशानी उसे बताई, “शादी तो मैं कर लूं पर मेरे पास पैसाकौड़ी तो कुछ है नहीं. फिर, सारा इंतज़ाम कैसे होगा?”

“पैसे की चिंता आप मत करो. पहले तो आप लड़की फाइनल करो. आगे का रास्ता मैं आप को बताता हूं.”

राजू सिंह को सूरज ने अपने मांबाप से मिलवा दिया ताकि शादी आदि की बात आगे बढ़ सके. लड़की की फोटो पर मांबाप और सूरज ने मोहर लगाई, तो राजू सिंह ने बताया कि यह लड़की सिंगरी गांव के एक गरीब किसान की बेटी है. इस के पास रूप है पर इस के बाप के पास पैसा नहीं है. ऐसे में आप लोगों को ही  इन का खर्चा भी उठाना पड़ेगा. आप लोगों का रिश्ता इतनी सुंदर लड़की से हो रहा है, इसलिए गांव में अभी इस रिश्ते की चर्चा किसी से मत करना वरना लोग शादी तुड़वा भी देते हैं.

“पर हमारे पास भी तो अधिक पैसे नहीं हैं,” सूरज के पिता ने कहा.

“अरे चाचा, कोई बात नहीं  है. मैं सूरज को बैंक से लोन दिलवा दूंगा.”

“लोन पर बैंक में बंधक यानी गारंटी के नाम पर हमारे पास तो सिर्फ ज़मीन के कागज़ ही हैं,” सूरज ने कहा.

“बस, उतना ही बहुत है. आप चिंता मत करो, सब इंतज़ाम हो जाएगा,” राजू सिंह ने शेखी बघारी.

राजू सिंह ने अगले दिन ही सूरज को अपने साथ ले जा कर बैंक में कागजी कार्यवाही भी शुरू कर दी और अपने स्कूटर को सिंगरी गांव के बाहर बने मंदिर की तरफ मोड़ दिया.

“यह हम सिंगरी गांव की तरफ क्यों जा रहे हैं?” सूरज ने पूछा, तो राजू सिंह ने बताया कि वह उसे अपनी होने वाली पत्नी से मिलाने ले जा रहा है.

सूरज आज मंदिर में जा कर उस फोटो वाली खूबसूरत लड़की से जा कर मिल भी लिया था. भले ही उस ने अपना चेहरा घूंघट में छिपाए रखा था पर  उस लड़की के हाथों की हलकी सी छुअन ने सूरज के जवान मन को विचलित कर दिया था.

सूरज ने अपने गले में पड़ी सोने की चेन को लड़की के गले में डाल कर यह रिश्ता पक्का कर दिया .

सूरज और उस का मन भी एक नवयौवना से मिल कर पुलकित हो रहा था. इस बीच गाहेबगाहे उस के मन में गेरुई की याद भी आ जाती थी. उसे लगता कि उस ने गेरुई के साथ धोखा किया है. पर भला वह भी क्या करे, अब एक रुदाली से शादी थोड़े ही की जा सकती है, ऐसा सोच कर गेरुई की याद को अपने ऊपर हावी नहीं  होने देता था.करीब 2 महीने बाद लोन के रुपए भी सूरज के हाथ में आ गए थे, पूरे 5 लाख थे. लड़की वाले गरीब थे, इसलिए उन की तरफ से लड़के वालों को दहेज देने के लिए सूरज ने अपने हाथों से 2 लाख रुपए लड़की के भाई को दे दिए और बाकी के पैसों से 3 तोला सोना और चांदी के गहने ले आया, जिन्हें शादी के समय दुलहन को देना था.

सूरज और उस का परिवार पूरी कोशिश कर रहा था  ताकि शादी में कहीं से भी सूरज के परिवार की बेइज़्ज़ती न हो जाए.

सूरज ने सोचा, एक बार और लौटरी का टिकट ले लिया जाए, क्या पता बाद में पत्नी लौटरी खेलने पर प्रतिबंध ही लगा दे. सूरज ने 50 लाख रुपए के  बम्पर प्राइज वाला टिकट ले लिया और शादी की तैयारियों में जुट गया.

शादी की तारीख नज़दीक आ रही थी. एक दिन राजू सिंह का फोन आया कि लड़की वाले के घर में  किसी की मौत हो गई है, इसलिए वे सब सिंगरी  गांव न जा कर एक दूसरे गांव बेकल में बरात ले कर आएंगे. बड़ी विपदा आ गई थी लड़की वालों पर. सूरज के परिवार में रिश्तेदार आ गए थे पर उन्हें भला दूसरे गांव में बरात ले जाने से क्या आपत्ति होती. शादी की तारीख आई, तो ज़ोरशोर से सूरज की बरात बेकल गांव के लिए रवाना हो गई. वहां पहुंच कर बेहद ही सादे समारोह में सूरज के ब्याह को निबटा दिया गया. उसे दहेज के नाम पर भी कोई सामान नहीं  दिखा जिस का कारण लड़की के खानदान में हुई मौत को बताया जा रहा था.

सूरज और उस के मांबाप ने समझदारी व शांति का परिचय देते हुए लड़की वालों की मनोदशा को समझा और जैसेजैसे रिश्ते की मध्यस्थता करने वाले राजू सिंह ने बताया, उन लोगों  ने वैसा ही किया और शादी कर के दुलहन विदा करा कर घर ले आए.

आज सूरज की सुहागरात  थी. बड़ी खास तैयारियां कर रखी थी सूरज ने. सुनहरे रंग का कुरता और सुनहरे  रंग की धोती पहने सूरज अपने कमरे में दाखिल हुआ. बिस्तर पर बैठी दुलहन के पास जा कर हौले से बैठ गया. सूरज ने जैसे ही दुलहन का घूंघट पलटना चाहा तो लड़की ने धीमे से कहा कि अभी वह किसी भी प्रकार का शारीरिक संबंध नहीं  बना सकती क्योंकि टीले वाले मंदिर पर उसे एक नारियल फोड़ना है. उस के बाद ही वह अपनी सुहागरात मनाएगी.

पत्नी बड़ी धार्मिक है, ऐसा सोच व जान कर सूरज को बड़ा अच्छा लगा और उस ने पत्नी की बात का पूरा सम्मान किया, उसे हाथ तक नहीं लगाया. अपने साथ मुंहदिखाई के तौर पर लाया हुआ मोबाइल सूरज ने अपनी दुलहन को बिना उस का मुंह देखे ही दे दिया.

अगला दिन निकला, तो सूरज ने सोचा कि फटाफट दुलहन को टीले वाले मंदिर ले जा कर नारियल फोड़वा लाऊं ताकि आज अपनी सुहागरात जम कर मना सकूं. मांबाप से आज्ञा ले कर  मोटरसाइकिल पर अपनी नईनवेली दुलहन को बिठा कर सूरज टीले वाले मंदिर की ओर चल दिया.

अपने हाथ में नारियल लिए दुलहन मंदिर की ओर बढ़ चली. बीचबीच में  सूरज दुलहन के चेहरे को देखने की कोशिश करता भी, तो दुलहन  बड़ी सफाई से अपना घूंघट और निकाल लेती. बेचारा मनमसोस कर रह जाता. अब तो उसे और भी बेसब्री से अपनी सुहागरात का इंतज़ार था.

मंदिर में नारियल फोड़ने के बाद सूरज को मंदिर की सीढ़ियों पर बिठा कर दुलहन मंदिर की परिक्रमा करने चली गई. सूरज काफी देर तक वहीं उस के इंतज़ार में बैठा रहा. जब करीब घंटेभर तक दुलहन नहीं  लौटी तब सूरज ने उसे ढूंढना शुरू किया. पर दुलहन का कहीं अतापता न  मिला. सूरज बहुत परेशान हो गया. आसपास पूछताछ की. पर कोई फायदा न  हुआ. सूरज बदहवास हो  लोगों से पूछता और उपहास का पात्र बनता. शाम तक भी दुलहन का कोई पता न चला, तो हार कर सूरज अपने घर चला आया और सारी बात अपने  मांबाप को बताई.

अभी वह मांबाप से बातें कर ही रहा था कि उस के मोबाइल पर फोन  आया. उधर से एक लड़की की आवाज़ थी, “सुनो, मुझे ढूंढने की कोशिश मत करो क्योंकि जो तसवीर देख कर तुम ने शादी की थी, वैसी कोई लड़की तुम्हें कभी नहीं मिलेगी क्योंकि वह लड़की मात्र तसवीरभर है. ये सब राजू सिंह और उस के गैंग की करतूत है. और मुझे भी इस काम के पैसे मिलते हैं, हज़ार रुपए रोज़. हां, तुम ने मुझे जो मोबाइल गिफ्ट किया था, इसलिए उसी मोबाइल से  फोन  कर रही हूं. वैसे भी, तुम आदमी मुझे भले लगे, पर कोई रपट मत करना क्योंकि ये सब राजू सिंह का प्लान रहता है जिस में बैंक से लोन पास कराने से ले कर लड़कियों के रिश्तेदार आदि सब के सब मिले होते हैं.”

सूरज और उस का परिवार सन्न रह गया था. मांबाप ने अंदर जा कर देखा तो उन की नईनवेली बहू के कमरे से  सारे गहने और नकदी गायब थी. उन लोगों की समझ में नहीं आ रहा था कि वे अपना दर्द किस से जा कर कहें. वे लोग एक सोचेसमझे ढंग की साज़िश का शिकार हुए थे. इस सदमे से उबरने के लिए उन्हें वक़्त चाहिए था.

सूरज और उस के मांबाप ने खुद के ठगे जाने की बात किसी से नहीं बताई. पर भला जंगल की आग और प्रपंच के फैलने को कोई रोक सकता है क्या?

पूरे गांव वालों में  यह बात फैल गई थी और लोग चुस्की व चटखारे लेले कर यह बात एकदूसरे से कहसुन रहे थे.

सूरज के बाप अपनी बदनामी सहन नहीं  कर पा रहे  थे, इसलिए वे सूरज की मां को ले कर शहर में  अपने भाई के पास रहने चले गए और गांव में सूरज अकेला रह गया.

अब तो सूरज से कोई भी बात नहीं  करता था. सूरज के पास पैसा नहीं बचा था, ऊपर से बैंक के लोन को चुकाने का तनाव अलग से उस पर हावी हो रहा था. उसे लगने लगा कि अब उस का जीना बेमानी है. उसे लालची लोगों ने ठगा, मुश्किल वक़्त में मांबाप ने भी साथ छोड़ दिया, इसलिए अब उस के जीवन में बचा ही क्या है…उसे मर जाना चाहिए… सूरज तुरंत ही रस्सी ले आया और अपना जीवन खत्म करने के लिए  एक मजबूत फंदा बनाने लगा. अचानक उस का मोबाइल बज गया. यह मेरी दुलहन का फोन तो नहीं?  उस ने जो कहानी सुनाई थी कहीं वह सब झूठ तो नहीं? यह सोच तपाक से फोन रिसीव कर लिया था सूरज ने.

पर अफसोस, उधर से किसी मर्द की आवाज़ थी. यह मर्द कोई और नहीं,  बल्कि सूरज का लौटरी बेचने वाला एजेंट था जो तेज़ आवाज़ में बोल रहा था, “बधाई हो सूरज भैया, पूरे 50 लाख रुपए की लौटरी लगी है तुम्हारी. जल्दी से टिकट ले आओ. भैया, तुम्हारी तो मौज हो गई.”

सूरज़ को अपने कानों पर विश्वास नहीं  हो रहा था जो उस ने अभी सुना. उसे भरोसा नहीं  हुआ, तो उस ने दोबारा लौटरी एजेंट को फोन लगा कर उस से इस बात की पुष्टि की.

कुछ देर बाद गांव वालों ने देखा कि हाथ में लौटरी का टिकट पकड़े सूरज तेज़ी से गांव के बाहर की ओर भागा जा रहा है. पर किधर?  यह तो रुदालियों के घर की तरफ चला गया. हां, रुदाली के पास ही तो गया था सूरज.

गेरुई को अपनी बांहों में  कस कर दबोच लिया था सूरज ने. उस के कपोलों को कस कर चूम रहा था सूरज.

गेरुई सारा माजरा समझ ही नहीं पा रही थी. उसे सूरज की शक्ल में नया ही सूरज दिखाई दे रहा था.

सूरज ने गेरुई का हाथ पकड़ा और शहर की ओर भाग पड़ा. जहां एक नया जीवन, एक नया सवेरा उन दोनों की प्रतीक्षा में था. जहां किसी की मौत पर रोने के लिए किसी रुदाली की ज़रूरत नहीं होती. गेरुई के पैरों में भी यह सोच कर पंख लग गए थे कि अब उसे किसी की मौत पर रोने जैसा अजीब कार्य नहीं करना पड़ेगा.

खुश रहो गुड़िया

9 दिसंबर मेरे जीवन का सब से बड़ा काला दिन है क्योंकि 2 साल पहले आज के ही दिन नियति के क्रूर हाथों ने मेरी उस गुडि़या को छीन लिया था जो फूल बन कर अपने साजन के आंगन को महका रही थी. एक दिन पहले गुडि़या ने फोन किया था, ‘मम्मा, जाने क्यों पिछले कुछ दिनों से आप की बहुत याद आ रही है. राजीव की 2 दिन की छुट्टी है, हम लोग आप से मिलने आ रहे हैं.’

मैं ने रात को ही दहीबडे़ और आलू की कचौडि़यों की तैयारी कर के रख दी थी. मेरी बेटी गुडि़या, दामाद राजीव और दोनों नातिनें गीतूमीतू सुबह की ट्रेन से आ रहे थे पर सुबहसुबह ही टेलीविजन पर समाचार आया कि जिस ट्रेन से वे लोग आ रहे थे वह दुर्घटनाग्रस्त हो गई.

चेतना जागृत होने पर यह क्रूर सचाई मेरे सामने थी कि मेरी गुडि़या अपनी अबोध गीतूमीतू और पति राजीव को छोड़ कर इस संसार से जा चुकी थी. समझाने वाले मुझे समझाते रहे पर मैं यह मानने को कहां तैयार थी कि मेरी गुडि़या अब हमारे बीच नहीं है और इसे स्वीकारने में मुझे वर्षों लग गए थे.

राजीव की आंखों में कैसा अजीब सा सूनापन उभर आया था और वह दोनों नन्ही कलियां इतनी नादान थीं कि उन्हें इस का अहसास तक नहीं था कि कुदरत ने उन के साथ कितना क्रूर खेल खेला है. उन की आंखें अपनी मां को ढूंढ़तेढूंढ़ते थक गईं. आखिर में उन के मन में धीरेधीरे मां की छवि धुंधली पड़तेपड़ते लुप्त सी हो गई और उन्होंने मां के बिना जीना सीख लिया.

दादी व बूआ के भरपूर लाड़प्यार के बावजूद मुझे गीतूमीतू अनाथ ही नजर आतीं. कभी दोपहर में बालकनी में खड़ी हो जाती तो देखती नन्हेमुन्ने बच्चे रंगबिरंगी यूनीफार्म में सजे अपनीअपनी मम्मी की उंगली पकड़ कर उछलतेकूदते स्कूल जा रहे हैं. उन्हें देख कर मेरे सीने में हूक सी उठती कि हाय, मेरी गीतूमीतू किस की उंगली पकड़ कर स्कूल जाएंगी. किस से मचलेंगी, किस से जिद करेंगी कि मम्मी, हमें टौफी दिला दो, हमें चिप्स दिला दो. और यही सब सोचते- सोचते मेरा मन भर उठता था.

जब से उड़ती- उड़ती सी यह खबर मेरे कानों में पड़ी है कि राजीव की मां अपने बेटे के पुन- र्विवाह की सोच रही हैं तो लगा किसी ने गरम शीशा मेरे कानोें में डाल दिया है. कई लड़की वाले अपनी अधेड़ बेटियों के लिए राजीव को विधुर और 2 बेटियों का बाप जान कर सहजप्राप्य समझने लगे थे.

राजीव की दूसरी शादी का मतलब था मासूम कलियों को विमाता के जुल्म व अत्याचार की आग में झोंकना. इस सोच ने मेरी बेचैनी को अपनी चरमसीमा पर पहुंचा दिया था. अब राजीव के पुनर्विवाह को रोकना मेरे लिए पहला और सब से अहम मकसद बन गया.

मैं ने अपनी चचेरी बहन, जो राजीव के घर से कुछ ही दूरी पर रहती थी, को सख्त हिदायत दे डाली कि किसी भी कीमत पर राजीव की दूसरी शादी नहीं होनी चाहिए. कोई लड़की वाला राजीव या उस के घरपरिवार के बारे में जानकारी हासिल करना चाहे तो उन की कमियां बताने में कोई कोरकसर न छोडे़.

राजीव के साथ अपनी बेटी की शादी की इच्छा ले कर जो भी मातापिता मेरे पास उन के घरपरिवार की जानकारी लेने आते, मैं उन के सामने उस परिवार के बुरे स्वभाव का कुछ ऐसा चित्र खींचती कि वह दोबारा वहां जाने का नाम नहीं लेते थे और अपनी इस सफलता पर मैं अपार संतुष्टि का अनुभव करती थी.

मेरे बहुत अनुरोध पर उस दिन राजीव गीतूमीतू को मुझ से मिलाने ले आया. इस बार वह काफी खीजा हुआ सा लग रहा था. बातबात में गीतूमीतू को झिड़क बैठता. पता नहीं, मेरे कुचक्रों से या किसी और वजह से उस का विवाह नहीं हो पा रहा था और वह एकाकी जीवन जीने को विवश था.

मेरी समधिन बारबार फोन पर मुझ से अनुरोध करतीं, ‘बहनजी, कोई अच्छी लड़की हो तो बताइएगा. मैं चाहती हूं कि मेरी आंखों के सामने राजीव का घर फिर से बस जाए. कल को बेटी सुधा भी ब्याह कर अपने घर चली जाएगी तो इन बच्चियों को संभालने वाला कोई तो चाहिए न.

प्रकट में तो मैं कुछ नहीं कहती पर मेरी गुडि़या के बच्चों को सौतेली मां मिले, यह मेरे दिल को मंजूर न था. आखिर तिनकातिनका जोड़ कर बसाए अपनी बेटी के घोंसले को मैं किसी और का होता हुआ कैसे देख सकती थी.

मेरी लाख कोशिशों के बावजूद उन्हें यह पता लग गया कि राजीव का घर बसाने के मामले में जड़ काटने का काम मैं खुद कर रही हूं तो उन्हें सतर्क होना ही था और उन के सतर्क होने का नतीजा यह निकला कि राजीव ने अपनी सहकर्मी से विवाह कर लिया.

इस मनहूस खबर ने तो मुझे तोड़ कर ही रख दिया. हाय, अब मेरी गुडि़या के बच्चों का क्या होगा. अब मैं ने लगातार राजीव और उस की मां को कोसना शुरू कर दिया.

अब दिनोदिन मेरी बेचैनी बढ़ने लगी. जाने कितनी सौतेली मांओं के क्रूरता भरे किस्से मेरे दिमाग में कौंधते रहते और एक पल भी मुझे चैन न लेने देते. मन ही मन में गीतूमीतू को सौतेली मां की झिड़कियां खाते, पिटते और कई तरह के अत्याचारों को तसवीर में ढाल कर देखती रहती और अपनी बेबसी पर खून के आंसू रोती.

उस दिन मैं घर में अकेली ही थी. अचानक दरवाजे की घंटी बजी. मैं ने उठ कर दरवाजा खोला. सामने जो खड़ा था उसे देख कर मेरी त्यौरियां चढ़ गईं. मैं तो दरवाजा ही बंद कर लेती पर बगल में मुसकराती गीतूमीतू को देख कर मैं अपने गुस्से को पी गई.

राजीव ने नमस्ते की और उस के साथ जो औरत खड़ी थी उस ने भी कुछ सकुचाते हुए हाथ जोड़ कर नजरें झुका लीं.

राजीव ने कुछ अपराधी मुद्रा में कहा, ‘मांजी, मुझे माफ कीजिएगा कि आप को बिना बताए मैं ने फिर से विवाह कर लिया. मैं तो यहां आने में संकोच का अनुभव कर रहा था पर नेहा की जिद थी कि वह आप से मिल कर आप का आशीर्वाद जरूर लेगी.

मैं ने क्रोध भरी नजरों से नेहा को देखा पर उस के होंठों पर सरल मुसकान खेल रही थी. उस ने अपने सिर पर गुलाबी साड़ी का पल्लू डाला और मेरे चरण स्पर्श करने को झुकी पर उसे आशीर्वाद देना तो दूर, मैं ने अपने कदमों को पीछे खींच लिया. नेहा ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई, शायद वह इस के लिए तैयार थी.

बहुत दिनों बाद गीतूमीतू को अनायास ही अपने पास पा कर अपनी ममता लुटाने का जो अवसर आज मुझे मिला था उसे मैं किसी कीमत पर खोना नहीं चाहती थी इसलिए मजबूरीवश सब को अंदर आने के लिए कहना पड़ा.

राजीव तो बिना कहे ही सोफे पर बैठ गया और अपने माथे पर उभर आए पसीने को रूमाल से जज्ब करते हुए कहीं खो सा गया. गीतूमीतू ने खुद को टेलीविजन देखने में व्यस्त कर लिया पर नेहा थोड़ी देर ठिठकी सी खड़ी रही फिर स्वयं रसोई में जा कर सब के लिए पानी ले आई.

उस ने सब से पहले पानी के लिए मुझ से पूछा पर मैं ने बड़ी रुखाई से मना कर दिया. उस ने गीतूमीतू और राजीव को पानी पिलाया और फिर खुद पिया. इस के बाद मेरे रूखे व्यवहार की परवा न करते हुए वह मेरे पास ही बैठ गई.

पानी पी कर राजीव अचानक उठ कर बाहर चला गया. उस के चेहरे से मुझे लगा कि शायद यहां आ कर उस के मन में मेरी गुडि़या की याद ताजा हो गई थी पर अब क्या फायदा. मेरी गुडि़या से यदि वह इतना ही प्यार करता तो उस का स्थान किसी और को क्यों देता. और उस पर से मुझ से मिलाने के बहाने मेरे जख्मों पर नमक छिड़कने के लिए उसे यहां ले आया है. मेरी सोच की लकीरें मेरे चेहरे पर शायद उभर आई थीं तभी नेहा उन लकीरों को पढ़ कर अपराधबोध से पीडि़त हो उठी.

अगले ही पल नेहा ने अपने चेहरे से अपराधभाव को उतार फेंका और सहज हो कर पूछने लगी, ‘मांजी, आप की तबीयत ठीक नहीं है शायद? मैं अभी चाय बना कर लाती हूं.’

राजीव बाहर से अपने को सहज कर वापस आ गया. गीतूमीतू दौड़ती हुई राजीव की गोद में चढ़ गईं. नेहा चाय और रसोई के डब्बों में से ढूंढ़ कर बिस्कुटनमकीन भी ले आई. सब से पहले उस ने चाय मुझे ही दी, न चाहते हुए भी मुझे चाय लेनी ही पड़ी.

मीतू अचानक राजीव की गोद से उतर कर नेहा की गोद में बैठ गई. बिस्कुट कुतरती मीतू बारबार नेहा से चिपकी जा रही थी और नेहा उस के माथे पर बिखर आई लटों को पीछे करते हुए उस का माथा सहला रही थी. मीतू का इस तरह दुलार होता देख गीतू भी नेहा की गोद में जगह बनाती हुई चढ़ बैठी और नेहा ने उसे भी अपने अंक में समेट लिया तो गीतूमीतू दोनों एकसाथ खिलखिला कर हंस पड़ीं. पता नहीं उन की हंसी मेरे रोने का सबब क्यों बन गई. मैं आंखों के कोरों में छलक आए आंसुओं को कतई न छिपा सकी.

तभी नेहा ने दोनों बच्चों को गोद से उतार कर आंखों ही आंखों में राजीव को जाने क्या इशारा किया कि वह दोनों बच्चों को ले कर बाहर चला गया. नेहा खाली हो गया कप जो अभी भी मेरे हाथों में ही था, को ले कर सारे बरतन समेट रसोई में रख आई और मेरे एकदम करीब आ कर बैठ गई. फिर मेरे हाथों को अपने कोमल हाथों में ले कर जैसे मुझे आश्वस्त करती हुई बोली, ‘मांजी, मैं आप का दुख समझ सकती हूं. आप ने अपने कलेजे के टुकडे़ को खोया है और मैं यह भी जानती हूं कि मूल से ब्याज ज्यादा प्यारा होता है. आप बेहद आशंकित हैं कि कहीं सौतेली मां आ कर आप की नातिनों पर अत्याचार करना न शुरू कर दे और उन के पिता को उन से दूर न कर दे.

‘मेरा विश्वास कीजिए मांजी, जब यह बात मुझे पता चली तो मैं ने मन में यह ठान लिया कि मैं आप से मिल कर आप की आशंका जरूर दूर करूंगी. सभी ने तो मुझे रोका था कि आप पता नहीं मुझ से कैसे पेश आएंगी लेकिन मुझे यह पता था कि आप का वह व्यवहार बच्चों की असुरक्षा की आशंका से ही प्रेरित होगा.’

मेरे हाथों पर नेहा के  कोमल हाथों का हल्का सा दबाव बढ़ा और थोड़ा रुक कर उस ने फिर कहना शुरू किया, ‘मांजी, आप अपने दिल से यह डर बिलकुल निकाल दीजिए कि मैं गीतू व मीतू के साथ बुरा सुलूक करूंगी. आप निश्ंिचत हो कर रहिए ताकि आप का स्वास्थ्य सुधर सके,’ नेहा ने धीरे से अपना हाथ छुड़ा कर मेरा कंधा थपथपाया और मेरी आंखों में झांकती हुई बोली, ‘मांजी, मेरी विनती है कि मुझे भी आप अपनी बेटी जैसी ही समझें. मेरा आप से वादा है कि आप बच्चों से मिलने को नहीं तरसेंगी. हम उन्हें आप से मिलाने लाते रहेंगे.’

नेहा की बात समाप्त भी न होने पाई थी कि राजीव व बच्चे आ गए. दोनों बच्चे दौड़ कर नेहा की टांगों से लिपट गए और ‘मम्मी घर चलो,’ ‘मम्मी घर चलो’ की रट लगाने लगे.

नेहा ने उन्हें गोद में बिठाते हुए कहा, ‘चलते हैं बेटे, पहले आप नानी मां को नमस्ते करो.’

गीतूमीतू ने एकसाथ अपनी छोटीछोटी हथेलियां जोड़ कर तोतली भाषा में मुझे नमस्ते की. मेरे अंदर जमा शिलाखंड पिघलने को आतुर होता सा जान पड़ा. राजीव व नेहा ने चलने की इजाजत मांगी.

उन्हें कुछ पल रुकने को कह कर मैं अंदर गई और अलमारी से गीतूमीतू को देने के लिए 100-100 के 2 नोट निकाले तो लिफाफे के नीचे से झांकती नीली कांजीवरम् की साड़ी ने मेरा ध्यान आकृष्ट किया. साड़ी देखते ही मेरी आंखें भर आईं क्योंकि यह साड़ी मैं अपनी गुडि़या को देने के लिए लाई थी. साड़ी का स्पर्श करते ही मेरे हाथ कांपने लगे पर न जाने कैसे मैं वह साड़ी उठा लाई और टीके की थाली भी लगा लाई.

टीके के बाद मेरे पैर छू कर नेहा ने मीतू को गोद में उठाया और गीतू की उंगली पकड़ कर आटो में बैठने चल दी. आटो में बैठने से पहले नेहा ने मुझे पीछे मुड़ कर देखा. पता नहीं उस की आंखों में मैं ने क्या देखा कि मेरी आंखें झरझर बरसने लगीं. आंसुओं के सैलाब ने आंखों को इतना धुंधला कर दिया कि कुछ भी दिखना संभव न रहा.

जब धुंध छंटी तो सामने से जाती नेहा में मुझे अपनी गुडि़या की छवि का कुछकुछ आभास होने लगा. अब मुझे लगने लगा कि गुडि़या के जाने के बाद मैं जिस डर व आशंका के साथ जी रही थी वह कितना बेमानी था.

एक सवाल मन को मथे जा रहा था कि मैं जो करने जा रही थी क्या वह उचित था?

आज नेहा से मिल कर ऐसा लगा कि मेरी समधिन ने मुझ से छिपा कर राजीव का पुनर्विवाह कर के बहुत ही अच्छा काम किया, वरना मैं तो अपनी नातिनों की भलाई सोच कर उन का बुरा करने ही जा रही थी. कभी अपनी हार भी इतनी सुखदाई हो सकती है यह मैं ने आज नेहा से मिलने के बाद जाना. राजीव के चेहरे पर छाई संतुष्टि और गीतूमीतू के लिए नेहा के हृदय से छलकता ममता का सागर देख कर मैं भावविभोर थी.

मैं यह सोचने पर विवश थी, कितना बड़ा दिल है नेहा का. एक तो उसे विधुर पति मिला और उस पर से 2 अबोध बच्चियों के पालनपोषण की जिम्मेदारी. फिर भी वह मुझे मनाने चली आई. मुझे नेहा अपने से बहुत बड़ी लगने लगी.

अब मुझ से और नहीं रहा गया. बहुत दिनों बाद मैं ने राजीव के यहां फोन लगाया. रुंधे कंठ से इतना ही पूछ पाई, ‘‘ठीक से पहुंच गई थीं, बेटी?’’

‘‘जी, मम्मीजी,’’ नेहा का भी गला भर आया था. मेरे गले और दिल से एकसाथ निकला, ‘‘खुश रहो, मेरी गुडि़या.’’

3 किरदारों का अनूठा नाटक

पिछला टेलीफोन उस के लिए परेशानी भरा था. दूसरा फोन तो उसे खौफजदा करने के लिए काफी था. दोनों टेलीफोन दिन के वक्त आए थे. तब जब उस का हसबैंड सिकंदर अपने औफिस में था और वह घर पर अकेली थी.

‘‘मिसेज सिकंदर,’’ फोन पर एक अजनबी औरत की आवाज सुनाई दी.

‘‘हां, बोल रही हूं. आप कौन हैं?’’ मिसेज सिकंदर ने कहा.

‘‘एक दोस्त हूं. मकसद है आप की मदद करना. क्या आप सलिलि को जानती हैं?’’ उस ने पूछा.

‘‘तो क्या आप सलिलि हैं?’’ मिसेज सिकंदर ने पूछा.

‘‘नहीं मिसेज सिकंदर, सलिलि तो आप के शौहर की सेक्रेटरी का नाम है. मिस्टर सिकंदर और सलिलि के बीच जो चल रहा है, आप के लिए ठीक नहीं है. मेरा फर्ज है कि मैं आप को सही हालात की जानकारी दे दूं.’’

मिसेज सिकंदर गुस्से से चिल्लाई, ‘‘यह सब फालतू बकवास है. सलिलि मेरे शौहर की सेक्रेटरी जरूर है. वह उस का जिक्र भी करते हैं. पर उन का उस से कोई चक्कर है, यह बिलकुल गलत है. सलिलि को दिल की बीमारी है, इसलिए वह उस से हमदर्दी रखते हैं. अबकी बार तो वह कह रहे थे, अगर अब उस ने ज्यादा छुट्टियां लीं तो उसे नौकरी से निकाल देंगे.’’

दूसरी तरफ से औरत की जहरीली हंसी की आवाज आई, ‘‘हां, आप यह सच कह रही हैं मिसेज सिकंदर. सलिलि को दिल की बीमारी है, लेकिन वह दूसरी तरह की दिल की बीमारी है. वैसे मुझे सलिलि से कोई जलन नहीं है. मैं तो आप का भला चाहती हूं. आप यह मालूम करने की कोशिश करें कि जब आप के शौहर पिछले महीने बिजनैस के सिलसिले में सिंगापुर गए थे, उस वक्त उन की खूबसूरत सेक्रेटरी सलिलि कहां थी?’’

‘‘आप हद से आगे बढ़ रही हैं मैडम, अपनी बेहूदा बकवास बंद कीजिए.’’ गुस्से से मिसेज सिकंदर ने फोन रख दिया. दोनों हाथों से सिर थाम कर मिसेज सिकंदर सोच में डूब गईं.

उन्हें याद आया, जब पिछले महीने सिकंदर बिजनैस के लिए सिंगापुर गया था, तो उस ने उसे सिंगापुर के उस होटल का नाम बताया था, जहां वह ठहरने वाला था. लेकिन एक जरूरी काम के सिलसिले में जब उस ने सिकंदर को होटल फोन किया था तो होटल से बताया गया था कि सिकंदर नाम का कोई आदमी उन के होटल में नहीं ठहरा है. उस वक्त उस ने सोचा था कि सिकंदर ने किसी वजह से होटल बदल लिया होगा. लेकिन अब?

सिकंदर से उस की शादी किसी रोमांस का नतीजा नहीं थी. उसे कहीं देख कर सिकंदर ने उस के हुस्न की तारीफ की तो वह सोच में पड़ गई थी. वह सिकंदर से उम्र में बड़ी थी. देखने में भी कोई खास अच्छी नहीं थी. उसे अपने हुस्न के बारे में कोई गलतफहमी नहीं थी.

सिकंदर ने उस से शादी सिर्फ इसलिए की थी कि वह एक बड़ी दौलत और जायदाद की वारिस थी. 14 साल से वह सिकंदर के साथ एक अच्छी जिंदगी गुजार रही थी. सिकंदर देखने में स्मार्ट था और बेहद जहीन भी.

उस ने रोमा की दौलत को इस तरह बिजनैस में लगाया कि कारोबार चमक उठा. बिजनैस खूब फलफूल रहा था. 14 साल के अरसे में उन की शादी को एक शानदार कारोबारी समझौता कहा जा सकता था. दोनों एकदूसरे से खुश थे और इस कामयाब फायदेमंद कौंट्रैक्ट को तोड़ने पर राजी नहीं थे. दोनों ही खुशहाल जिंदगी बसर कर रहे थे.

शाम को सिकंदर की वापसी पर रोमा ने फोन काल के बारे में कुछ नहीं बताया. एक हफ्ता आराम से गुजरा. इस बार किसी आदमी का फोन था. जिस ने उसे दहशतजदा कर दिया. उस ने घबरा कर पूछा, ‘‘आप कौन हैं?’’

‘‘इस बारे में आप को फिक्र करने की जरूरत नहीं है. जो मैं कह रहा हूं, उसे ध्यान से सुनो मिसेज सिकंदर. मैं एक पेशेवर कातिल हूं. मैं मोटी रकम के बदले किसी का भी कत्ल कर सकता हूं. शायद यह जान कर आप को ताज्जुब होगा कि आप के शौहर सिकंदर ने आप को कत्ल करने के लिए मुझे 10 लाख रुपए की औफर दी है.’’

रोमा डर कर चिल्लाई, ‘‘तुम पागल हो गए हो या मजाक कर रहे हो? मेरा शौहर हरगिज ऐसा नहीं कर सकता.’’

मरदाना आवाज फिर उभरी, ‘‘अगर आप को आप के शौहर के औफर के बारे में न बताता तो शायद मैं पागल कहलाता. मैं हर काम बहुत सोचसमझ कर करता हूं. 10 लाख का औफर मिलने के बाद मैं ने अपने शिकार के बारे में जानकारी हासिल की और आप तक पहुंचा.

‘‘मैं कोई मामूली ठग या चोर नहीं हूं. अपने मैदान का कामयाब खिलाड़ी हूं. मैं इस तरह कत्ल करता हूं कि मौत नेचुरल लगे. किसी को भी कोई शक न हो. मैं अपने काम में कभी भी नाकाम नहीं रहा.’’

मिसेज सिकंदर ने कंपकंपाती आवाज में कहा, ‘‘यह सब क्या कह रहे हो तुम, मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है.’’

अजनबी मर्द की आवाज गूंजी, ‘‘मैं आप को सब समझाता हूं. आप के हसबैंड की औफर कबूल करने के बाद मुझे आप के बारे में पता लगा कि सारी दौलत की मालिक आप हैं. आप का शौहर आप का कत्ल करवाने के बाद पूरी दौलत का मालिक बनना चाहता है.

‘‘तब मुझे एक खयाल आया कि अगर मिसेज सिकंदर मुझे डबल रकम देने पर राजी हो जाएं तो मैं उन की जगह उन के शौहर को ही ठिकाने लगा दूं. आप क्या कहती हैं, इस बारे में मिसेज सिकंदर?’’

मिसेज सिकंदर खौफ से चीखीं, ‘‘तुम एकदम पागल आदमी हो. मैं पुलिस को खबर कर रही हूं.’’

मर्द ने जोरों से हंसते हुए कहा, ‘‘पुलिस, आप उन्हें क्या बताएंगी. चलिए, अगर उन्होंने यकीन कर भी लिया तो आप मुझे कहां तलाश करेंगी? मैं पीसीओ से फोन कर रहा हूं. आप बेकार की बातें छोड़ें और गौर करें. आप दोनों में से कोई एक मरने वाला है. अब रहा सवाल यह कि मरने वाला कौन होगा? आप या आप का शौहर? इस का फैसला आप को करना होगा. आप तसल्ली से सोच लें. कल मैं इसी वक्त फिर फोन करूंगा. आप का आखिरी फैसला जानने के लिए.’’

दूसरी तरफ से फोन बंद हो गया.

शाम को सिकंदर घर नहीं आया. उस ने फोन कर दिया कि औफिस में काम ज्यादा है, वह देर रात तक काम करेगा. उस ने सोचा कि सलिलि के साथ ऐश करेगा. जब आधी रात को सिकंदर बैडरूम में दाखिल हुआ तो वह जाग रही थी और कुछ सोच रही थी.

सोचतेसोचते वह इस फैसले पर पहुंच गई कि सुबह सिकंदर को टेलीफोन के बारे में बताएगी. मगर सिर्फ पहले फोन के बारे में. वह उस से कहेगी कि अगर उसे कोई कीप रखनी है तो रखे. उसे कोई ऐतराज नहीं, पर यह बात राज रहे. कोई बदनामी न हो.

वह आखिर दूसरे फोन के बारे में क्या बताती कि एक आदमी ने कहा है कि मुझे कत्ल करने के लिए 10 लाख का औफर दिया गया है. अगर मैं औफर डबल कर दूं तो मेरी जगह वह मारा जाएगा. शायद यह सुन कर सिकंदर उसे पागलखाने में दाखिल करा दे.

फिर उसे खयाल आया कि क्यों न वह उस अजनबी मर्द के दूसरे फोन का इंतजार करे. हो सकता है बातचीत के दौरान उस की कोई ऐसी गलती पकड़ में आ जाए, जिस की वजह से सिकंदर और पुलिस दोनों को उस की बात का यकीन आ जाए. फिर उसे पागलखाने में डालने की जरूरत नहीं पड़ेगी.

लेकिन उसे लगा कि पहले फोन के बारे में भी बताने की भी क्या जरूरत है. वह उस की कहानी सुन कर खूब हंसेगा. अफेयर से इनकार करेगा और चौकन्ना हो जाएगा.

जैसेजैसे वह सोच रही थी, उसे लग रहा था कि फोन करने वाला आदमी पागल है. आखिर सिकंदर उस का कत्ल क्यों करवाएगा? वह खुद बूढ़ा हो रहा है, तोंद निकल आई है. अब क्या इश्क लड़ाएगा. पर यह बात भी सच है कि वह उसे तलाक नहीं दे सकता, क्योंकि सारी दौलत उस के हाथ से निकल जाएगी.

पर अचानक एक खयाल ने उसे डरा दिया कि अगर आज वह मर जाती है तो सारी दौलत का मालिक सिकंदर होगा. इस तरह उसे अपनी बीवी से छुटकारा मिल जाएगा और वह सलिलि से शादी करने के लिए आजाद हो जाएगा.

इसी सोचविचार में सारी रात कट गई. दूसरे दिन जब फोन की घंटी बजी तो उसी मरदाना आवाज ने पूछा, ‘‘मैडम, आप ने क्या फैसला किया?’’

रोमा की पेशानी पसीने से भीग गई. उस ने कहा, ‘‘मैं तैयार हूं. मैं तुम्हें 20 लाख दूंगी, तुम शिकार बदल दो. पर शिकार सिकंदर नहीं, सलिलि होगी.’’

‘‘बहुत अच्छा फैसला है, मतलब अब इस लड़की को ठिकाने लगाना है.’’ मरदाना आवाज ने पूछा.

‘‘हां, मेरे शौहर के बजाए उस की सेक्रेटरी सलिलि को कत्ल करना बेहतर है. क्योंकि न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी. उसे लग रहा था, जैसे सलिलि और सिकंदर के अफेयर के बारे में सारी दुनिया जानती है. सलिलि के न रहने से वह खुद ही वफादार बन जाएगा और अगर उस ने अपनी बीवी को कत्ल कराने की कोशिश की थी तो वह उस से खौफजदा भी रहेगा.’’

उस के दिमाग में एक खयाल और आया कि ये सारी बातें लिख कर अपने वकील के पास हिफाजत से रखवा देगी कि उस की अननेचुरल डैथ के बाद इसे खोला जाए और मौत का जिम्मेदार सिकंदर को ठहराया जाए.

फोन में मरदाना आवाज उभरी, ‘‘मुझे इस से कोई मतलब नहीं कि शिकार कौन है? मैं अपना काम बहुत ईमानदारी और सलीके से करता हूं. मैं आज ही आप के शौहर के औफर से इनकार कर दूंगा.

‘‘आप का काम हो जाने के बाद फिर कभी आप मेरी आवाज नहीं सुनेंगी, पर एकदो चीजें बहुत जरूरी हैं. मैं अपनी फीस एडवांस में नहीं मांग रहा हूं पर आप को मेरे बताए पते पर मेरे कहे मुताबिक एक खत लिख कर भेजना पड़ेगा. मेरा पता है— रूस्तम, पोस्ट बौक्स-911, रौयल पैलेस.’’

रोमा ने घबरा कर पूछा, ‘‘मुझे क्या लिखना होगा?’’

‘‘आप को लिखना होगा कि आप ने 20 लाख के एवज में मुझे हायर किया है कि मैं आप के शौहर की सेक्रेटरी सलिलि फर्नांडीज को कत्ल कर दूं.’’ मरदानी आवाज सुनाई दी.

रोमा चीख पड़ी, ‘‘नहीं, हरगिज नहीं. इस तरह तो मैं कत्ल में शामिल हो जाऊंगी.’’

‘‘बेशक, पर यह खत मेरे लिए बहुत ही जरूरी है, क्योंकि इसे लिखने के बाद आप मेरे बारे में छानबीन नहीं करेंगी. यही खत मेरी फीस की गारंटी भी है. जब आप को सबूत मिल जाए कि सलिलि मर चुकी है, आप मुझे 20 लाख की रकम भेजेंगी. उस के मिलते ही कुरियर से आप को आप का खत वापस मिल जाएगा.’’

‘‘नहीं नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकती.’’ रोमा ने चिल्ला कर कहा.

‘‘मुझे बहुत दुख है मैडम कि आप के शौहर आप से कहीं ज्यादा अक्लमंद हैं. उन्होंने मेरी हर बात मंजूर कर ली थी. अब मैं आप के शौहर से ही सौदा कर लेता हूं.’’

रोमा ने कांपती आवाज में कहा, ‘‘ठहरो, मुझे तुम्हारी बात मंजूर है. बताओ, मुझे क्या लिखना है?’’

‘‘हां, यह ठीक है. आप कागज पेन ले लें, मैं आप को लिखवाता हूं.’’

रोमा ने कांपते हाथों से खत लिखा. फिर उस ने कहा, ‘‘मैं आप को खबर करूंगा कि आप खत भेज दें. खत मिलने के 2-3 दिन के अंदर ही अखबार में आप को सलिलि फर्नांडीस की मौत की खबर मिल जाएगी. फिर मैं आप को रकम के बारे में बताऊंगा कि कहां और कैसे भेजनी है. और फिर आप का खत आप को वापस मिल जाएगा. इस के बाद हमारा ताल्लुक खत्म.’’ दूसरी तरफ से फोन बंद हो गया.

2 दिन बाद फिर फोन आया. उस ने खत भेजने की हिदायत दी. रोमा ने खत रवाना कर दिया. तीसरे दिन अखबार में सलिलि फर्नांडीस की मौत की खबर छपी कि कल रात सलिलि फर्नांडीस की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई.

रोमा का शौहर सिकंदर काम के सिलसिले में कलकत्ता गया हुआ था. अब उसे कोई फिक्र नहीं थी. वह कहां जाता है, कहां ठहरता है, क्या करता है.

दूसरे दिन उसी आदमी ने रकम के बारे में कई हिदायतें दीं. रोमा ने अलगअलग बैंकों से रकम निकलवाई. कुछ अपने पास से मिलाई और बड़ी ईमानदारी से वहां पैसा पहुंचा दिया, जहां कहा गया था. वह कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी. पेशेवर कातिल भी अपने वादे का पक्का निकला. दूसरे रोज ही रोमा को कुरियर से उस का खत वापस मिल गया. उस ने फौरन उसे जला दिया और चैन की नींद सो गई.

उसी रात रोमा का शौहर रोमा से कई सौ मील दूर अपनी खूबसूरत सेक्रेटरी सलिलि के साथ एक शानदार होटल में अपनी कामयाबी का जश्न मना रहा था. सलिलि ने पूछा, ‘‘सिकंदर, मुझे यकीन नहीं हो रहा है कि यह सब कैसे हो गया? आखिर कैसे तुम ने मेरी मौत की खबर छपवा दी?’’

सिकंदर ने शराब का घूंट भरते हुए कहा, ‘‘बहुत आसानी से, तुम्हारे मरने की खबर और रकम मैं ने अखबार वालों को भेज दी थी और उस के साथ एक परचा रखा था—‘सलिलि फर्नांडीस का कोई रिश्तेदार या करीबी इस शहर में नहीं है और वह मेरी कंपनी में मुलाजिम थी. उस की सारी जिम्मेदारी मुझ पर आती है. उस के सारे मामलात मैं ही देख रहा हूं. बस अखबार के जरिए उस की मौत की खबर दुनिया को बताना चाहता हूं.’

उन लोगों ने दूसरे दिन ही यह खबर छाप दी. अच्छा जानेमन, तुम यह बताओ कि तुम ने फ्लैट छोड़ते वक्त अपनी मकान मालकिन से क्या कहा?’’

‘‘मैं ने मकान मालकिन से कहा था कि मैं दिल की मरीज हूं. अपने शहर वापस जा कर अपने डाक्टर से इलाज कराऊंगी, क्योंकि अब तकलीफ बहुत बढ़ गई है.’’

‘‘शाबाश, तुम्हें मुंबई आए अभी बहुत कम अरसा हुआ है. कोई तुम्हें जानता भी नहीं है, न कोई दोस्त है. अब तुम दूरदराज के इलाके में एक शानदार फ्लैट ले कर ठाठ से रहना. अपना नाम और पहचान भी बदल लेना. रोमा से मिले 20 लाख रुपए मैं किसी बिजनैस में लगा दूंगा ताकि हर महीने गुजारे के लिए अच्छीखासी रकम मिलती रहे.’’

‘‘डार्लिंग, तुम कितने अच्छे हो, सारी रकम मेरे नाम पर लगा रहे हो.’’

‘‘क्यों नहीं डियर, पहली बार टेलीफोन करने वाली तुम खुद थीं. तुम्हीं ने तो प्लान कामयाब बनाया.’’

‘‘मगर सिकंदर, सारी प्लानिंग तो तुम्हारी थी. तुम ने कितनी कामयाबी से आवाज बदल कर कातिल का रोल अदा किया. तुम्हारी आवाज सुन कर तो मैं भी धोखा खा गई थी. तुम वाकई में बहुत बड़े कलाकार हो.’’

‘‘चलो, फालतू बातें छोड़ो, अब हमारे मिलने में कोई रुकावट नहीं रहेगी. टूर का बहाना कर के मैं तुम्हारे पास आ जाया करूंगा. उधर रोमा अपनी दौलत पर नाज करते हुए चैन से सोएगी. अब मुझ पर शक भी नहीं करेगी.’’

दामाद: अमित के सामने आई आशा की सच्चाई

अमित आज शादी के बाद पहली बार अपनी पत्नी को ले कर ससुराल जा रहा था. पढ़ाईलिखाई में अच्छा होने के चलते उसे सरकारी नौकरी मिल गई थी. सरकारी नौकरी लगते ही उसे शादी के रिश्ते आने लगे थे. उस के गरीब मांबाप भी चाहते थे कि अमित की शादी किसी अच्छी जगह हो जाए. अमित के गांव के एक दलाल ने उस का रिश्ता पास के शहर के एक काफी अमीर घर में करवा दिया. अमित तो गांव की ऐसी लड़की चाहता था जो उस के मांबाप की सेवा कर सके लेकिन पता नहीं उस दलाल ने उस के पिता को क्या घुट्टी पिलाई थी कि उन्होंने तुरंत शादी की हां कर दी.

सगाई होते ही लड़की वाले तुरंत शादी करने की कहने लगे थे और अमित के पिताजी ने तुरंत ही शादी की हां भर दी. शादी से पहले अमित को इतना भी मौका नहीं मिला था कि वह अपनी होने वाली पत्नी से बात कर सके. अमित की मां ने उस की बात को भांप लिया था और उन्होंने अमित के पिता से कहा भी कि अमित को अपनी होने वाली पत्नी को देख तो लेने दो, लेकिन उस के पिता ने कहा कि शादी के बाद खूब जीभर के देख लेगा.

खैर, शादी हो गई और अमित को दहेज में बहुतकुछ मिला. लड़की वाले तो अमित को कार भी दे रहे थे लेकिन अमित ने मना कर दिया कि वह दहेज लेने के भी खिलाफ है लेकिन उस के पिताजी के कहने पर वह मान गया. सुहागरात को ही अमित को कुछकुछ समझ में आने लगा था क्योंकि उस की नईनई पत्नी बनी आशा ने न तो उस के मातापिता की ही इज्जत की थी और न ही सुहागरात को उस ने अमित को अपने पास फटकने दिया था.

अमित ने आशा से भी कई बार पूछा भी कि तुम्हारी शादी मुझ से जबरदस्ती तो नहीं की गई है लेकिन आशा ने कोई जवाब नहीं दिया. शादी के तीसरे दिन अमित अपनी मां और पिताजी के कहने पर एक रस्म के मुताबिक आशा को छोड़ने ससुराल चल दिया.

अमित और आशा ट्रेन से उतर कर पैदल ही चल दिए. अमित की ससुराल रेलवे स्टेशन के पास ही थी. रास्ते में आशा अमित से आगे चलने लगी. अमित ने देखा कि 2 लड़के मोटरसाइकिल पर उन की तरफ आ रहे थे. वे आशा को देख कर रुक गए और आशा भी उन को देख कर काफी खुश हुई.

अमित जब तक आशा के पास पहुंचा तब तक वे दोनों लड़के उस की तरफ देखते हुए चले गए. आशा के चेहरे पर असीम खुशी झलक रही थी. अमित के पास आने पर आशा ने अमित को उन लड़कों के बारे में कुछ नहीं बताया और अमित ने भी नहीं पूछा.

अमित अपनी ससुराल पहुंचा. वहां पर सब लोग केवल आशा को देख कर खुश हुए और अमित की तरफ किसी ने ध्यान भी नहीं दिया. आशा की मां उसे ले कर अंदर चली गईं और अमित बाहर बरामदे में खड़ा रहा. अंदर से उस के ससुर और दोनों साले बाहर आए.

अमित के ससुर ने पास ही रखी कुरसी की तरफ इशारा किया और बोले, ‘‘अरे, खड़े क्यों हो, बैठ जाओ.’’ अमित चुपचाप बैठ गया. उसे वहां का माहौल कुछ ठीक नहीं लग रहा था.

अमित के सालों ने तो उस की तरफ ध्यान भी नहीं दिया था. शाम होने को थी और अंधेरा धीरेधीरे बढ़ रहा था. अमित को फर्स्ट फ्लोर के एक कमरे में ठहरा दिया. अमित थोड़ा लेट गया और उस की आंख लग गई. नीचे से शोर सुन कर अमित की आंख खुली तो उस ने देखा कि अंधेरा हो चुका था और रात के 9 बज चुके थे.

अमित खड़ा हुआ और उस ने मुंह धोया. उस को हैरानी हो रही थी कि किसी ने उस से चाय तक की नहीं पूछी थी. अमित उसे अपना वहम समझ कर भूलने की कोशिश कर रहा था. लेकिन दिमाग तो उस के पास भी था इसलिए वह अपने ही विचारों में खोया हुआ था.

अब नीचे से जोरजोर से हंसने की आवाज आ रही थी. अमित के ससुर शायद किसी से बात कर रहे थे. अमित ने नीचे झांका तो पाया कि उस के ससुर और 2-3 लोग बरामदे में महफिल लगाए शराब पी रहे थे. अमित के ससुर बहुत शराब पी चुके थे इसलिए वे अब होश में नहीं थे.

वे बोले, ‘‘देखा मेरी अक्ल का कमाल. मैं ने अपनी बिगड़ैल बेटी की शादी कैसे एक गरीब लड़के से करा दी वरना आप लोग तो कह रहे थे कि इस बिगड़ी लड़की से कौन शादी करेगा,’’ इतना कह कर वे जोर से हंसे और बाकी बैठे दोनों लोगों ने भी उन का साथ दिया और उन की इस बात का समर्थन किया. अमित के पैरों के नीचे से जैसे जमीन खिसक गई.

तभी अमित की सास आईं और उस के ससुर के कान में कुछ बोलीं जिस को सुन कर वे तुरंत अंदर गए. अब अमित को समझ आ गया था कि उस के ससुर ने ही अपना रोब दिखा कर उस के पिताजी को डराया होगा और उस की शादी आशा से कर दी होगी. तभी उस के पिताजी उस की शादी में उस के सवालों के जवाब नहीं दे रहे थे.

अमित का सिर चकरा रहा था. वह तुरंत नीचे उतरा और अंदर कमरे के दरवाजे पर पहुंचा. अमित ने अंदर देखा कि आशा एक कोने में नीचे ही बैठी है और उस के ससुर उस के पास खड़े उसे डांट रहे हैं. उन्होंने कहा कि अब वह किस के साथ अपना मुंह काला करा आई. अमित को तो अब बिलकुल भी समझ नहीं आ रहा था, ऐसा लगता था कि उस की शादी किसी बिगड़ैल लड़की से करा दी गई है और उस का परिवार भी सामाजिक नहीं है. तभी उस की सास ने आशा के बाल पकड़े और उस को मारने लगीं.

आशा बिलकुल चुप थी और वह अपनी पिटाई का भी बिलकुल विरोध नहीं कर रही थी. आशा की मां उसे रोते हुए मारे जा रही थीं. तभी पता नहीं अमित को क्या सूझा कि वह अंदर पहुंचा और अपनी सास से आशा को मारने को मना किया.

अमित को अंदर आया देख सासससुर घबरा गए. ससुर का तो नशा भी उतर गया था. वे समझ चुके थे कि अमित ने सब सुन लिया है. अमित के ससुर अब कुरसी पर बैठ कर रो रहे थे और उस की सास का भी बुरा हाल था. तभी अमित के ससुर एक झटके से उठे और कमरे से अपनी दोनाली बंदूक ले आए और आशा की तरफ तान कर बोले, ‘‘मैं ने इस की हर गलती को माफ किया है. बड़ी मुश्किल से मैं ने इस की शादी कराई है और अब यह मुंह काला करा कर पता नहीं किस का पाप अपने पेट में ले आई है. मैं इसे नहीं छोड़ूंगा.’’

तभी अमित ने उन के हाथों से बंदूक छीन ली और एक तरफ फेंक दी. वह बोला, ‘‘चलो आशा, मेरे साथ अपने घर.’’ आशा ने झटके से अपना चेहरा ऊपर उठाया. अमित की बात सुन कर उस के सासससुर भी चौंक गए.

अमित के ससुर बोले, ‘‘अमित, तुम आशा की इतनी बड़ी गलती के बावजूद उसे अपने साथ घर ले जाना चाहते हो?’’ अमित बोला, ‘‘आप सब लोगों के लाड़प्यार की गलती आशा ही क्यों भुगते. इस में इस की क्या गलती है. गलती तो आप के परिवार की है जो ऐसे काम को अपनी शान समझते हैं और उस को छिपाने के लिए मुझ जैसे लड़के से उस की शादी करवा दी.’’

अमित थोड़ी देर रुका और फिर बोला, ‘‘आशा की यही सजा है कि उसे मेरे साथ मेरी पत्नी बन कर रहना पड़ेगा.’’ यह सुन कर उस के ससुर ने उस के पैर पकड़ लिए लेकिन अमित ने उन्हें उठाया और आशा का हाथ पकड़ कर घर से बाहर निकल गया.

आशा अमित के पीछेपीछे हो ली. अमित के ससुर तो हाथ जोड़े खड़े थे. अमित और आशा पैदल ही जा रहे थे तभी उन्हें वही दोनों लड़के मिले जो उन्हें आते हुए मिले थे. अब की बार वे दोनों पैदल ही थे. आशा को देख उन में से एक बोला, ‘‘चलो आशा डार्लिंग, हम तुम्हारे पेट में पल रहे बच्चे को गिरवा देते हैं और फिर से मजे करेंगे.’’

इतना कह कर वे दोनों बड़ी बेहूदगी से हंसने लगे. उन में से एक ने आशा का हाथ पकड़ने की कोशिश की तो अमित ने उसे पकड़ कर अच्छीखासी धुनाई कर दी और जब दूसरा लड़का अपने साथी को बचाने आया तो आशा ने उस के बाल पकड़ कर नीचे गिरा दिया और लातों से अधमरा कर दिया. थोड़ी देर में वे दोनों ही वहां से भाग खड़े हुए. आशा का साथ देना अमित को अच्छा लगा था. अमित ने आशा का हाथ पकड़ा और रेलवे स्टेशन की तरफ चल पड़े.

घर पहुंच कर अमित ने अपने मां और पिताजी को कुछ नहीं बताया. अब आशा ने अमित के घर को इस तरह से संभाल लिया था कि अमित सबकुछ भूल गया. आशा ने जब उस के पेट में पल रहे बच्चे को गिराने की बात कही तो अमित ने कहा, ‘‘इस में इस मासूम की क्या गलती है…’’ आशा अमित के पैरों में गिर पड़ी और रोने लगी. अमित ने उसे उठाया और गले से लगा लिया. वह बोला, ‘‘आशा, तुम्हारे ये पछतावे के आंसू ही तुम्हारी पवित्रता हैं.’’

आशा अमित के गले लग कर रोए जा रही थी. दूर शाम का सूरज नई सुबह में दोबारा आने के लिए डूब रहा था.

तभी तो कह रही हूं

लड़कियों की मकान मालकिन कम वार्डेन नीलिमा ने रोज की तरह दरवाजे पर ताला लगा दिया और बोलीं, ‘‘लड़कियो, मैं बाहर की लाइट बंद कर रही हूं. अपनेअपने कमरे अंदर से ठीक से बंद कर लो.’’

एक नियमित दिनचर्या है यह. इस में जरा भी दाएंबाएं नहीं होता. जैसे सूरज उगता और ढलता है ठीक उसी तरह रात 10 बजते ही दालान में नीलिमा की यह घोषणा गूंजा करती है.

उन का मकान छोटामोटा गर्ल्स होस्टल ही है. दिल्ली या उस जैसे महानगरों में कइयों ने अपने घरों को ही थोड़ीबहुत रद्दबदल कर छात्रावास में तबदील कर दिया है. दूरदराज के गांवों, कसबों और शहरों से लड़कियां कोई न कोई कोर्स करने महानगरों में आती रहती हैं और कोर्स पूरा होने के साथ ही होस्टल छोड़ देती हैं. इस में मकान कब्जाने का भी कोई अंदेशा नहीं रहता.

15 साल पहले नीलिमा ने अपने मकान का एक हिस्सा पढ़ने आई लड़कियों को किराए पर देना शुरू किया था. उस काम में आमदनी होने के साथसाथ उन के मकान ने अब कुछकुछ गर्ल्स होस्टल का रूप ले लिया है. आय होने से नीलिमा का स्वास्थ्य और आत्मविश्वास तो अवश्य सुधरा लेकिन बाकी रहनसहन में ठहराव ही रहा. हां, उन की बेटी के शौक जरूर बढ़ते गए. अब तो पैसा जैसे उस के सिर चढ़कर बोल रहा है. घर में ही हमउम्र लड़कियां हैंपर वह तो जैसे किसी को पहचानती ही नहीं.

सुरेखा और मीना एम.एससी. गृह विज्ञान के फाइनल में हैं. पिछले साल जब वे रांची से आई थीं तो विचलित सी रहती थीं. जानपहचान वालों ने उन्हें नीलिमा तक पहुंचाया.

‘‘1,500 रुपए एक कमरे का…एक कमरे को 2 लड़कियां शेयर करेंगी…’’ नीलिमा की व्यावसायिकता में क्या मजाल जो कोई उंगली उठा दे.

‘‘ठीक है,’’ सुरेखा और मीना के पिताजी ने राहत की सांस ली कि किसी अनजान लड़की से शेयर नहीं करना पड़ेगा.

‘‘खाने का इंतजाम अपना होगा. वैसे यहां टिफिन सिस्टम भी है. कोई दिक्कत नहीं है,’’ नीलिमा बताती जाती हैं.

सबकुछ ठीकठाक लगा. अब तो वे दोनों अभ्यस्त हो गई हैं. गर्ल्स होस्टल की जितनी हिदायतें और वर्जनाएं होती हैं, सब की वे आदी हो चुकी हैं.

‘‘नो बौयफ्रेंड एलाउड,’’ यह नीलिमा की सब से अलार्मिंग चेतावनी है.

सुरेखा और मीना के बगल के कमरे में देहरादून से आई दामिनी और अर्चना हैं. दोनों ग्रेजुएशन कर रही हैं. इंगलिश आनर्स कहते उन के चेहरे पर ऐसे भाव आते हैं जैसे इंगलैंड से सीधे आई हैं और सारा अंगरेजी साहित्य इन के पेट में हो.

दोनों कमरों के बीच में एक छोटा सा कमरा है जिस में एक गैस का चूल्हा, फिल्टर, फ्रिज और रसोई का छोटामोटा सामान रखा है. बस, यही वह स्थान है जहां देहरादूनी लड़कियां मात खा जाती हैं.

सुरेखा नंबर एक कुक है. जबतब प्रस्ताव रख देती है, ‘‘चाइनीज सूप पीना हो तो 20-20 रुपए जमा करो.’’

दामिनी और अर्चना बिके हुए गुलामों की तरह रुपए थमा देतीं. निर्देशों पर नाचतीं. सुरेखा अब सुरेखा दीदी बन गई है. अच्छाखासा रुतबा हो गया है. अकसर पूछ लिया करती है, ‘‘कहां रही इतनी देर तक. आंटी नाराज हो रही थीं.’’

‘‘आंटी का क्या, हर समय टोकाटाकी. अपनी बेटी तो जैसे दिखाई ही नहीं देती,’’ दामिनी भुनभुनाती.

ऊपर की मंजिल में भी कमरे हैं. वहां भी हर कमरे में 2-2 लड़कियां हैं. उन की अपनी दुनिया है पर आंटी की आवाज होस्टल के हर कोने में गूंजा करती है.

आज छुट्टी है. लड़कियां देर तक सोएंगी. जवानी की नींद जो है. नीलिमा एक बार झांक गई हैं.

‘‘ये लड़कियां क्या घोड़े बेच कर सो रही हैं,’’ बड़बड़ाती हुई नीलिमा सुरेखा के कमरे के पास से गुजरीं.

सुरेखा की नींद खुल गई. उसे उन की यह बेचैनी अच्छी लगी.

‘‘अपनी बेटी को उठा कर देखें ये… बस, यहीं घूमती रहती हैं,’’ सुरेखा ढीठ हो लेटी रही. जैसे ऐसा कर के ही वह नीलिमा को कुछ जवाब दे पा रही हो.

उधर होस्टल गुलजार होने लगा. गुसलखाने के लिए चिल्लपौं मची. फिर सबकुछ ठहर गया. कुछ कार्यक्रम बने. मीना की चचेरी बहन लक्ष्मीनगर में रहती है. वहीं लंच का कार्यक्रम था इसलिए सुरेखा और मीना भी चली गईं.

एकाएक दामिनी ने चमक कर अर्चना से कहा, ‘‘चल, बाहर से फोन करते हैं. अरविंद को बुला लेंगे. फिल्म देखने जाएंगे.’’

‘‘अरविंद को बुलाने की क्या जरूरत.’’

‘‘लेकिन अब कौन सा शो देखा जाएगा. 6 से 9 के ही टिकट मिल सकते हैं,’’ अर्चना ने घड़ी देखते हुए कहा.

‘‘तो क्या हुआ?’’ दामिनी लापरवाही से बोली.

‘‘नहीं पागल, आंटी नाराज होंगी…. लौटने में समय लग जाएगा.’’

‘‘ये आंटी बस हम पर ही गुर्राती हैं. अपनी बेटी के लक्षण इन को नहीं दिखते. रोज एक गाड़ी आ कर दरवाजे पर रुकती है… आंटी ही कौन सा दूध की धुली हैं… बड़ी रंगीन जिंदगी रही है इन की.’’

अर्चना, दामिनी और अरविंद ‘दिल से’ फिल्म देखने हाल में जा बैठे. खूब बातें हुईं. अरविंद दामिनी की ओर झुकता जाता. सांसें टकरातीं. शो खत्म हुआ.

कालिज तक अरविंद दोनों को छोड़ने आया था. वहां से दोनों टहलती हुई होस्टल के गेट तक आ गईं. गेट खोलने को हलका धक्का दिया. चूं…चूं… की आवाज हुई.

‘‘तैयार हो जाओ डांट खाने के लिए,’’ अर्चना ने फुसफुसा कर कहा.

‘‘ऊंह, क्या फर्क पड़ता है.’’

गेट खुलते ही सामने नीलिमा घूमते हुए दिखीं. सकपका गईं दोनों लड़कियां.

‘‘आंटी, नमस्ते,’’ दोनों एकसाथ बोलीं.

‘‘कहां गई थीं?’’

‘‘बहुत मन कर रहा था, ‘दिल से’ देखने का,’’ अर्चना ने मिमियाती सी आवाज में कहा.

‘‘यही शो मिला था फिल्म देखने को?’’

‘‘आंटी, प्रोग्राम देर से बना,’’ दामिनी ने बात संभालने की कोशिश की.

‘‘मैं कुछ नहीं जानती. होस्टल का डिसीपिलिन बिगाड़ती हो. आज ही तुम्हारे घर पत्र डालती हूं,’’ नीलिमा यह कहती हुई अपने कमरे की ओर चली गईं.

दामिनी कमरे में आते ही धम से बिस्तर में धंस गई और अर्चना गुसलखाने में चली गई.

‘‘कुछ खानावाना भी है या अरविंद के सपनों में ही रहेगी,’’ अर्चना ने दामिनी को वैसे ही पड़ी देख कर पूछा.

दामिनी वैसे ही मेज पर आ गई. राजमा, भिंडी की सब्जी और चपातियां. दोनों ने कुछ कौर गले के नीचे उतारे. पानी पिया.

‘हेमलेट’ के नोट्स ले कर अर्चना दिन गंवाने का अपराधबोध कुछ कम करने का प्रयास करने लगी. उसे पढ़ता देख दामिनी भी रैक में कुछ टटोलने लगी. सभी के कमरों की लाइट जल रही है.

‘‘जाऊंगी, सौ बार कहती हूं मैं जाऊंगी,’’ आंटी के कमरे की ओर से आती आवाज सन्नाटे को चीरने लगी.

बीचबीच में ऐसा कुछ होता रहता है. इस की भनक सभी लड़कियों को है. आज संवाद एकदम स्पष्ट है.

बेटी की आवाज ऊंची होते देख आंटी को जैसे सांप सूंघ गया. वह खामोश हो गईं. बेटी भी कुछ बड़बड़ा कर चुप हो गई.

सुबह रात्रि के विषाद की छाया आंटी के चेहरे पर साफ झलक रही है. नियमत: वह होस्टल की तरफ आईं पर बिना कुछ कहेसुने ही चली गईं.

फाइनल परीक्षा अब निकट ही है. सुरेखा और मीना प्रेक्टिकल के बोझ से दबी रहती हैं. देहरादूनी लड़कियों को उन्हें देख कर ही पता चला कि गृहविज्ञान कोई मामूली विषय नहीं है. उस पर इस विषय के कई अभ्यास देखे तो आंखें खुल गईं. विषय के साथसाथ सुरेखा और मीना भी महत्त्वपूर्ण हो गईं.

आजकल दामिनी भी सैरसपाटा भूल गई है पर दिल के हाथों मजबूर दामिनी बीचबीच में अरविंद के साथ प्रोग्राम बना लेती है. पिछले दिनों उस के बर्थ डे पर अरविंद एंड पार्टी ने उसे सरप्राइज पार्टी दी. बड़े स्टाइल से उन्हें बुलाया. वहां जा कर दोनों चकरा गईं. सुनहरी पन्नियों की बौछार, हैपी बर्थ डे…हैपी बर्थ डे की गुंजार.

रात के 11 बज रहे हैं. दामिनी और अर्चना ‘शेक्सपियर इज ए ड्रामाटिस्ट’ पर नोट्स तैयार कर रही हैं. दोनों के हाथ तेजी से चल रहे हैं. बगल के कमरे से छन कर आती रोशनी बता रही है कि सुरेखा और मीना भी पढ़ रही होंगी. यहां पढ़ने के लिए रात ही अधिक उपयुक्त है. एकदम सन्नाटा रहता है और एकदूसरे के कमरे की दिखती लाइट एक प्रतिद्वंद्विता उत्पन्न करती है.

बाहर से कुछ बातचीत की आवाज आ रही है. आंटी की बेटी आई होगी. धीरेधीरे सब की श्रवण शक्ति बाहर चली गई. पदचाप…खड़…एक असहज सन्नाटा.

‘‘…अब आ रही है?’’ आंटी तेज आवाज में बोलीं, ‘‘फिर उस के साथ गई थी. मैं ने तुझे लाख बार समझाया है पर क्या तेरा भेजा फिर गया है?’’

‘‘आप मेरी लाइफ स्टाइल में इंटरफेयर क्यों करती हैं? ये मेरी लाइफ है. मैं चाहे जिस तरह जिऊं.’’

‘‘तू जिसे अपना लाइफ स्टाइल कह रही है वह एक मृगतृष्णा है, जहां सिर्फ तुझे भटकाव ही मिलेगा. तू मेरी औलाद है और मैं ने दुनिया देखी है इसलिए तुझे समझा रही हूं. तू समझ नहीं रही है…’’

‘‘मैं कुछ नहीं समझना चाहती. और आप समझा रही हैं…मेरा मुंह आप मत खुलवाओ. पापा से आप की दूसरी शादी…. पता नहीं पहले वाली शादी थी भी या…’’

‘‘चुप, बेशर्म, खबरदार जो अब आगे एक शब्द भी बोला,’’ आज नीलिमा अप्रत्याशित रूप से बिफर गईं.

‘‘चुप रहने से क्या सचाई बदल जाएगी?’’

‘‘तू क्या सचाई जानती है? पिता का साया नहीं था. 6 भाईबहनों के परिवार में मैं एकमात्र कमाने वाली थी. तब का जमाना भी बिलकुल अलग था. लड़कियां दिन में भी घर से बाहर नहीं निकलती थीं और मैं रात की शिफ्ट में काम करती थी. कुछ मजबूर थी, कुछ मैं नादान… यह दुनिया बड़ी खौफनाक है बेटी, तभी तो कह रही हूं…’’

नीलिमा रो रही हैं. वे हताश हो रही हैं. उन की व्यथा को सब लड़कियों ने जाना, समझा. सब ने फिर एकदूसरे को देखा किंतु आज वे मुसकराईं नहीं.

सरोजिनी नौटियाल

अंधविश्वास की बेड़ियां: क्या सास को हुआ बहू के दर्द का एहसास?

‘‘अरे,पता नहीं कौन सी घड़ी थी जब मैं इस मनहूस को अपने बेटे की दुलहन बना कर लाई थी. मुझे क्या पता था कि यह कमबख्त बंजर जमीन है. अरे, एक से बढ़ कर एक लड़की का रिश्ता आ रहा था. भला बताओ, 5 साल हो गए इंतजार करते हुए, बच्चा न पैदा कर सकी… बांझ कहीं की…’’ मेरी सास लगातार बड़बड़ाए जा रही थीं. उन के जहरीले शब्द पिघले शीशे की तरह मेरे कानों में पड़ रहे थे.

यह कोई पहला मौका नहीं था. उन्होंने तो शादी के दूसरे साल से ही ऐसे तानों से मेरी नाक में दम कर दिया था. सावन उन के इकलौते बेटे और मेरे पति थे. मेरे ससुर बहुत पहले गुजर गए थे. घर में पति और सास के अलावा कोई न था. मेरी सास को पोते की बहुत ख्वाहिश थी. वे चाहती थीं कि जैसे भी हो मैं उन्हें एक पोता दे दूं.

मैं 2 बार लेडी डाक्टर से अपना चैकअप करवा चुकी थी. मैं हर तरह से सेहतमंद थी. समझाबुझा कर मैं सावन को भी डाक्टर के पास ले गई थी. उन की रिपोर्ट भी बिलकुल ठीक थी.

डाक्टर ने हम दोनों को समझाया भी था, ‘‘आजकल ऐसे केस आम हैं. आप लोग बिलकुल न घबराएं. कुदरत जल्द ही आप पर मेहरबान होगी.’’

डाक्टर की ये बातें हम दोनों तो समझ चुके थे, लेकिन मेरी सास को कौन समझाता. आए दिन उन की गाज मुझ पर ही गिरती थी. उन की नजरों में मैं ही मुजरिम थी और अब तो वे यह खुलेआम कहने लगी थीं कि वे जल्द ही सावन से मेरा तलाक करवा कर उस के लिए दूसरी बीवी लाएंगी, ताकि उन के खानदान का वंश बढ़े.

उन की इन बातों से मेरा कलेजा छलनी हो जाता. ऐसे में सावन मुझे तसल्ली देते, ‘‘क्यों बेकार में परेशान होती हो? मां की तो बड़बड़ाने की आदत है.’’

‘‘आप को क्या पता, आप तो सारा दिन अपने काम पर होते हैं. वे कैसेकैसे ताने देती हैं… अब तो उन्होंने सब से यह कहना शुरू कर दिया है कि वे हमारा तलाक करवा कर आप के लिए दूसरी बीवी लाएंगी.’’

‘‘तुम चिंता न करो. मैं न तो तुम्हें तलाक दूंगा और न ही दूसरी शादी करूंगा, क्योंकि मैं जानता हूं कि तुम में कोई कमी नहीं है. बस कुदरत हम पर मेहरबान नहीं है.’’

एक दिन हमारे गांव में एक बाबा आया. उस के बारे में मशहूर था कि वह बेऔलाद औरतों को एक भभूत देता, जिसे दूध में मिला कर पीने पर उन्हें औलाद हो जाती है.

मुझे ऐसी बातों पर बिलकुल यकीन नहीं था, लेकिन मेरी सास ऐसी बातों पर आंखकान बंद कर के यकीन करती थीं. उन की जिद पर मुझे उन के साथ उस बाबा (जो मेरी निगाह में ढोंगी था) के आश्रम जाना पड़ा.

बाबा 30-35 साल का हट्टाकट्टा आदमी था. मेरी सास ने उस के पांव छुए और मुझे भी उस के पांव छूने को कहा. उस ने मेरे सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया. आशीर्वाद के बहाने उस ने मेरे सिर पर जिस तरह से हाथ फेरा, मुझे समझते देर न लगी कि ढोंगी होने के साथसाथ वह हवस का पुजारी भी है.

उस ने मेरी सास से आने का कारण पूछा. सास ने अपनी समस्या का जिक्र कुछ इस अंदाज में किया कि ढोंगी बाबा मुझे खा जाने वाली निगाहों से घूरने लगा. उस ने मेरी आंखें देखीं, फिर किसी नतीजे पर पहुंचते हुए बोला, ‘‘तुम्हारी बहू पर एक चुड़ैल का साया है, जिस की वजह से इसे औलाद नहीं हो रही है. अगर वह चुड़ैल इस का पीछा छोड़ दे, तो कुछ ही दिनों में यह गर्भधारण कर लेगी. लेकिन इस के लिए आप को काली मां को खुश करना पड़ेगा.’’

‘‘काली मां कैसे खुश होंगी?’’ मेरी सास ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘तुम्हें काली मां की एक पूजा करनी होगी. इस पूजा के बाद हम तुम्हारी बहू को एक भभूत देंगे. इसे भभूत अमावास्या की रात में 12 बजे के बाद हमारे आश्रम में अकेले आ कर, अपने साथ लाए दूध में मिला कर हमारे सामने पीनी होगी, उस के बाद इस पर से चुड़ैल का साया हमेशाहमेशा के लिए दूर हो जाएगा.’’

‘‘बाबाजी, इस पूजा में कितना खर्चा आएगा?’’

‘‘ज्यादा नहीं 7-8 हजार रुपए.’’

मेरी सास ने मेरी तरफ ऐसे देखा मानो पूछ रही हों कि मैं इतनी रकम का इंतजाम कर सकती हूं? मैं ने नजरें फेर लीं और ढोंगी बाबा से पूछा, ‘‘बाबा, इस बात की क्या गारंटी है कि आप की भभूत से मुझे औलाद हो ही जाएगी?’’

ढोंगी बाबा के चेहरे पर फौरन नाखुशी के भाव आए. वह नाराजगी से बोला, ‘‘बच्ची, हम कोई दुकानदार नहीं हैं, जो अपने माल की गारंटी देता है. हम बहुत पहुंचे हुए बाबा हैं. तुम्हें अगर औलाद चाहिए, तो जैसा हम कह रहे हैं, वैसा करो वरना तुम यहां से जा सकती हो.’’

ढोंगी बाबा के रौद्र रूप धारण करने पर मेरी सास सहम गईं. फिर मुझे खा जाने वाली निगाहों से देखते हुए चापलूसी के लहजे में बाबा से बोलीं, ‘‘बाबाजी, यह नादान है. इसे आप की महिमा के बारे में कुछ पता नहीं है. आप यह बताइए कि पूजा कब करनी होगी?’’

‘‘जिस रोज अमावास्या होगी, उस रोज शाम के 7 बजे हम काली मां की पूजा करेंगे. लेकिन तुम्हें एक बात का वादा करना होगा.’’

‘‘वह क्या बाबाजी?’’

‘‘तुम्हें इस बात की खबर किसी को भी नहीं होने देनी है. यहां तक कि अपने बेटे को भी. अगर किसी को भी इस बात की भनक लग गई तो समझो…’’ उस ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी.

मेरी सास ने ढोंगी बाबा को फौरन यकीन दिलाया कि वे किसी को इस बात का पता नहीं चलने देंगी. उस के बाद हम घर आ गईं.

3 दिन बाद अमावास्या थी. मेरी सास ने किसी तरह पैसों का इंतजाम किया और फिर पूजा के इंतजाम में लग गईं. इस पूजा में मुझे शामिल नहीं किया गया. मुझे बस रात को उस ढोंगी बाबा के पास एक लोटे में दूध ले कर जाना था.

मैं ढोंगी बाबा की मंसा अच्छी तरह जान चुकी थी, इसलिए आधी रात होने पर मैं ने अपने कपड़ों में एक चाकू छिपाया और ढोंगी के आश्रम में पहुंच गई.

ढोंगी बाबा मुझे नशे में झूमता दिखाई दिया. उस के मुंह से शराब की बू आ रही थी. तभी उस ने मुझे वहीं बनी एक कुटिया में जाने को कहा.

मैं ने कुटिया में जाने से फौरन मना कर दिया. इस पर उस की भवें तन गईं. वह धमकी देने वाले अंदाज में बोला, ‘‘तुझे औलाद चाहिए या नहीं?’’

‘‘अपनी इज्जत का सौदा कर के मिलने वाली औलाद से मैं बेऔलाद रहना ज्यादा पसंद करूंगी,’’ मैं दृढ़ स्वर में बोली.

‘‘तू तो बहुत पहुंची हुई है. लेकिन मैं भी किसी से कम नहीं हूं. घी जब सीधी उंगली से नहीं निकलता तब मैं उंगली टेढ़ी करना भी जानता हूं,’’ कहते ही वह मुझ पर झपट पड़ा. मैं जानती थी कि वह ऐसी नीच हरकत करेगा. अत: तुरंत चाकू निकाला और उस की गरदन पर लगा कर दहाड़ी, ‘‘मैं तुम जैसे ढोंगी बाबाओं की सचाई अच्छी तरह जानती हूं. तुम भोलीभाली जनता को अपनी चिकनीचुपड़ी बातों से न केवल लूटते हो, बल्कि औरतों की इज्जत से भी खेलते हो. मैं यहां अपनी सास के कहने पर आई थी. मुझे कोई भभूत भुभूत नहीं चाहिए. मुझ पर किसी चुड़ैल का साया नहीं है. मैं ने तेरी भभूत दूध में मिला कर पी ली थी, तुझे यही बात मेरी सास से कहनी है बस. अगर तू ने ऐसा नहीं किया तो मैं तेरी जान ले लूंगी.’’

उस ने घबरा कर हां में सिर हिला दिया. तब मैं लोटे का दूध वहीं फेंक कर घर आ गई.

कुछ महीनों बाद जब मुझे उलटियां होनी शुरू हुईं, तो मेरी सास की खुशी का ठिकाना न रहा, क्योंकि वे उलटियां आने का कारण जानती थीं.

यह खबर जब मैं ने सावन को सुनाई तो वे भी बहुत खुश हुए. उस रात सावन को खुश देख कर मुझे अनोखी संतुष्टि हुई. मगर सास की अक्ल पर तरस आया, जो यह मान बैठी थीं कि मैं गर्भवती ढोंगी बाबा की भभूत की वजह से हुई हूं.

अब मेरी सास मुझे अपने साथ सुलाने लगीं. रात को जब भी मेरा पांव टेढ़ा हो जाता तो वे उसे फौरन सीधा करते हुए कहतीं कि मेरे पांव टेढ़ा करने पर जो औलाद होगी उस के अंग विकृत होंगे.

मुझे अपनी सास की अक्ल पर तरस आता, लेकिन मैं यह सोच कर चुप रहती कि उन्हें अंधविश्वास की बेडि़यों ने जकड़ा हुआ है.

एक दिन उन्होंने मुझे एक नारियल ला कर दिया और कहा कि अगर मैं इसे भगवान गणेश के सामने एक झटके से तोड़ दूंगी तो मेरे होने वाले बच्चे के गालों में गड्ढे पड़ेंगे, जिस से वह सुंदर दिखा करेगा. मैं जानती थी कि ये सब बेकार की बातें हैं, फिर भी मैं ने उन की बात मानी और नारियल एक झटके से तोड़ दिया, लेकिन इसी के साथ मेरा हाथ भी जख्मी हो गया और खून बहने लगा. लेकिन मेरी सास ने इस की जरा भी परवाह नहीं की और गणेश की पूजा में लीन हो गईं.

शाम को काम से लौटने के बाद जब सावन ने मेरे हाथ पर बंधी पट्टी देखी तो इस का कारण पूछा. तब मैं ने सारी बात बता दी.

तब वे बोले, ‘‘राधिका, तुम तो मेरी मां को अच्छी तरह से जानती हो.

वे जो ठान लेती हैं, उसे पूरा कर के ही दम लेती हैं. मैं जानता हूं कि आजकल उन की आंखों पर अंधविश्वास की पट्टी बंधी हुई है, जिस की वजह से वे ऐसे काम भी रही हैं, जो उन्हें नहीं करने चाहिए. तुम मन मार कर उन की सारी बातें मानती रहो वरना कल को कुछ ऊंचनीच हो गई तो वे तुम्हारा जीना हराम कर देंगी.’’

सावन अपनी जगह सही थे, जैसेजैसे मेरा पेट बढ़ता गया वैसेवैसे मेरी सास के अंधविश्वासों में भी इजाफा होता गया. वे कभी कहतीं कि चौराहे पर मुझे पांव नहीं रखना है.  इसीलिए किसी चौराहे पर मेरा पांव न पड़े, इस के लिए मुझे लंबा रास्ता तय करना पड़ता था. इस से मैं काफी थकावट महसूस करती थी. लेकिन अंधविश्वास की बेडि़यों में जकड़ी मेरी सास को मेरी थकावट से कोई लेनादेना न था.

8वां महीना लगने पर तो मेरी सास ने मेरा घर से निकलना ही बंद कर दिया और सख्त हिदायत दी कि मुझे न तो अपने मायके जाना है और न ही जलती होली देखनी है. उन्हीं दिनों मेरे पिताजी की तबीयत अचानक खराब हो गई. वे बेहोशी की हालत में मुझ से मिलने की गुहार लगाए जा रहे थे. लेकिन अंधविश्वास में जकड़ी मेरी सास ने मुझे मायके नहीं जाने दिया. इस से पिता के मन में हमेशा के लिए यह बात बैठ गई कि उन की बेटी उन के बीमार होने पर देखने नहीं आई.

उन्हीं दिनों होली का त्योहार था. हर साल मैं होलिका दहन करती थी, लेकिन मेरी सास ने मुझे होलिका जलाना तो दूर उसे देखने के लिए भी मना कर दिया.

मेरे बच्चा पैदा होने से कुछ दिन पहले मेरी सास मेरे लिए उसी ढोंगी बाबा की भभूत ले कर आईं और उसे मुझे दूध में मिला कर पीने के लिए कहा. मैं ने कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि मैं ऐसा करूंगी तो मुझे बेटा पैदा होगा.

अपनी सास की अक्ल पर मुझे एक बार फिर तरस आया. मैं ने उन का विरोध करते हुए कहा, ‘‘मांजी, मैं ने आप की सारी बातें मानी हैं, लेकिन आप की यह बात नहीं मानूंगी.’’

‘‘क्यों?’’ सास की भवें तन गईं.

‘‘क्योंकि अगर भभूत किसी ऐसीवैसी चीज की बनी हुई होगी, तो उस का मेरे होने वाले बच्चे की सेहत पर बुरा असर पड़ सकता है.’’

‘‘अरी, भूल गई तू कि इसी भभूत की वजह से तू गर्भवती हुई थी?’’

उन के लाख कहने पर भी मैं ने जब भभूत का सेवन करने से मना कर दिया तो न जाने क्या सोच कर वे चुप हो गईं.

कुछ दिनों बाद जब मेरी डिलीवरी होने वाली थी, तब मेरी सास मेरे पास आईं और बड़े प्यार से बोलीं, ‘‘बहू, देखना तुम लड़के को ही जन्म दोगी.’’

मैं ने वजह पूछी तो वे राज खोलती हुई बोलीं, ‘‘बहू, तुम ने तो बाबाजी की भभूत लेने से मना कर दिया था. लेकिन उन पहुंचे बाबाजी का कहा मैं भला कैसे टाल सकती थी, इसलिए मैं ने तुझे वह भभूत खाने में मिला कर देनी शुरू कर दी थी.’’

यह सुनते ही मेरी काटो तो खून नहीं जैसी हालत हो गई. मैं कुछ कह पाती उस से पहले ही मुझे अपनी आंखों के सामने अंधेरा छाता दिखाई देने लगा. फिर मुझे किसी चीज की सुध नहीं रही और मैं बेहोश हो गई.

होश में आने पर मुझे पता चला कि मैं ने एक मरे बच्चे को जन्म दिया था. ढोंगी बाबा ने मुझ से बदला लेने के लिए उस भभूत में संखिया जहर मिला दिया था. संखिया जहर के बारे में मैं ने सुना था कि यह जहर धीरेधीरे असर करता है. 1-2 बार बड़ों को देने पर यह कोई नुकसान नहीं पहुंचाता. लेकिन छोटे बच्चों पर यह तुरंत अपना असर दिखाता है. इसी वजह से मैं ने मरा बच्चा पैदा किया था.

तभी ढोंगी बाबा के बारे में मुझे पता चला कि वह अपना डेरा उठा कर कहीं भाग गया है.

मैं ने सावन को हकीकत से वाकिफ कराया तो उस ने अपनी मां को आड़े हाथों लिया.

तब मेरी सास पश्चात्ताप में भर कर हम दोनों से बोलीं, ‘‘बेटी, मैं तुम्हारी गुनहगार हूं. पोते की चाह में मैं ने खुद को अंधविश्वास की बेडि़यों के हवाले कर दिया था. इन बेडि़यों की वजह से मैं ने जानेअनजाने में जो गुनाह किया है, उस की सजा तुम मुझे दे सकती हो… मैं उफ तक नहीं करूंगी.’’

मैं अपनी सास को क्या सजा देती. मैं ने उन्हें अंधविश्वास को तिलांजलि देने को कहा तो वे फौरन मान गईं. इस के बाद उन्होंने अपने मन से अंधविश्वास की जहरीली बेल को कभी फूलनेफलने नहीं दिया.

1 साल बाद मैं ने फिर गर्भधारण किया और 2 स्वस्थ जुड़वा बच्चों को जन्म दिया. मेरी सास मारे खुशी के पागल हो गईं. उन्होंने सारे गांव में सब से कहा कि वे अंधविश्वास के चक्कर में न पड़ें, क्योंकि अंधविश्वास बिना मूठ की तलवार है, जो चलाने वाले को ही घायल करती है.

विरासत: आकर्षण को मिला विरासत का तोहफा

 

‘‘दादाजी, आप का पाकिस्तान से फोन है,’’ आश्चर्य भरे स्वर में आकर्षण ने अपने दादा नंद शर्मा से कहा.

‘‘पाकिस्तान से, पर अब तो हमारा वहां कोई नहीं है. फिर अचानक…फोन,’’ नंद शर्मा ने तुरंत फोन पकड़ा.

दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘अस्सलामअलैकुम, मैं पाकिस्तान, जडांवाला से जहीर अहमद बोल रहा हूं. मैं ने आप का साक्षात्कार यहां के अखबार में पढ़ा था. मुझे यह जान कर बहुत खुशी हुई कि मेरे शहर जड़ांवाला के रहने वाले एक नागरिक ने हिंदुस्तान में खूब तरक्की पाई है. मैं ने यह भी पढ़ा है कि आप के मन में अपनी जन्मभूमि को देखने की बड़ी तमन्ना है. मैं आप के लिए कुछ उपहार भेज रहा हूं जो चंद दिनों में आप को मिल जाएगा, शेष बातें मैं ने पत्र में लिख दी हैं जो मेरे उपहार के साथ आप को मिल जाएगा.’’

फोन पर जहीर की बातें सुन कर नंद शर्मा भावुक हो उठे. फिर बोले, ‘‘भाई, आज बरसों बाद मैं ने अपने जन्मस्थान से किसी की आवाज सुनी है. आज आप से बात कर के 55 साल पहले का बीता समय आंखों के आगे घूम रहा है. मैं क्या कहूं, कुछ समझ में नहीं आ रहा है. बस, आप की समृद्धि और उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूं.’’

इतना कहतेकहते नंद शर्मा की आंखें डबडबा गईं. वह आगे कुछ न कह सके और फोन रख दिया.

14 साल का आकर्षण अपने दादाजी के पास ही खड़ा था. उस ने दादाजी को इतना भावुक होते कभी नहीं देखा था.

कुछ समय तक नंद शर्मा की आंखें नम रहीं. उन्हें ऐसा लगा था मानो वह वहां केवल शरीर से मौजूद थे, उन का मन 55 साल पहले के जड़ांवाला में था.

आकर्षण कुछ देर वहां बैठा और उन के सामान्य होने का इंतजार करता रहा. फिर बोला, ‘‘दादाजी, आप को अपने पुराने घर की याद आ रही है?’’

‘‘हां बेटा, बंटवारे के समय मैं 17 साल का था. आज भी मुझे वह दिन याद है जब जड़ांवाला में कत्लेआम शुरू हुआ और दंगाइयों ने चुनचुन कर हिंदुओं को गाजरमूली की तरह काटा था. हमारे पड़ोसी मुसलमान परिवार ने हमें शरण दी और फिर मौका पा कर एकएक कर के मेरे परिवार के लोगों को सेना के पास पहुंचा दिया था. मेरे परिवार में केवल मैं ही पाकिस्तान में बचा था. मैं भी मौका देख कर निकलने की ताक में था कि किसी ने दंगाइयों को खबर कर दी कि नंद शर्मा को उस के पड़ोसियों ने पनाह दे रखी है.

‘‘खबर पा कर दंगाई पागलों की तरह उस घर की ओर झपटे. इस से पहले कि वे मेरी ओर पहुंच पाते मुझे छत के रास्ते से उन्होंने भगा दिया.

‘‘मैं एक छत से दूसरी छत को फांदता हुआ जैसे ही सड़क पर पहुंचा कि तभी सेना का ट्रक आ गया और सेना को देख कर दंगाई भाग खड़े हुए. फिर उसी ट्रक से सेना ने मुझे अमृतसर के लिए रवाना कर दिया.

‘‘उस वक्त तक मैं यही समझता था कि यह अशांति कुछ समय की है… धीरधीरे सब ठीक हो जाएगा, मैं फिर अपने परिवार के साथ वापस जड़ांवाला जा पाऊंगा पर यह मेरा भ्रम था. पिछले 55 सालों में कभी ऐसा मौका नहीं आया. मेरा शहर, मेरी जन्मभूमि, मेरी विरासत हमेशा के लिए मुझ से छीन ली गई.’’

इतना कह कर नंद शर्मा खामोश हो गए. आकर्षण का मन अभी और भी बहुत कुछ जानने को इच्छुक था पर उस समय दादा को परेशान करना उचित नहीं समझा.

नंद शर्मा हरियाणा के अंबाला शहर में एक प्रतिष्ठित पत्रकार थे. उन की गिनती वहां के वरिष्ठ पत्रकारों में होती थी. कुछ समय पहले हरियाणा के मुख्यमंत्री ने एक पत्रकार सम्मेलन में उन्हें सम्मानित किया था. उस सम्मेलन में पाकिस्तान से भी पत्रकारों का प्रतिनिधिमंडल आया हुआ था. उस समारोह में नंद शर्मा ने इस बात का जिक्र किया था कि वह विभाजन के बाद जड़ांवाला से भारत कैसे आए थे और साथ ही वहां से जुड़ी यादों को भी ताजा किया.

समारोह समाप्त होने के बाद एक पाकिस्तानी पत्रकार ने उन का साक्षात्कार लिया और पाकिस्तान आ कर अपने अखबार में उसे छाप भी दिया. वह साक्षात्कार जड़ांवाला के वकील जहीर अहमद ने पढ़ा तो उन्हें यह जान कर बहुत दुख हुआ कि कोई व्यक्ति इस कदर अपनी जन्मभूमि को देखने के लिए तड़प रहा है.

जहीर एक नेकदिल इनसान था. उस ने नंद शर्मा के लिए फौरन कुछ करने का फैसला लिया और समाचारपत्र में प्रकाशित नंबर पर उन से संपर्क किया.

नंद शर्मा एक भरेपूरे परिवार के मुखिया थे. उन के 4 बेटे और 1 बेटी थी. सभी विवाहित और बालबच्चों वाले थे. आज के इस भौतिकवादी युग में भी सभी मिलजुल कर एक ही छत के नीचे रहते थे.

आकर्षण ने जब सब को पाकिस्तान से आए फोन के  बारे में बताया तो सब विस्मित रह गए. फिर नंद शर्मा के बड़े बेटे मोहन शर्मा ने पिता के पास जा कर कहा, ‘‘बाबूजी, यदि आप कहें तो हम सब जड़ांवाला जा सकते हैं और अब तो बस सेवा भी शुरू हो चुकी है. इसी बहाने हम भी अपने पुरखों की जमीन को देख आएंगे.’’

‘‘मन तो मेरा भी करता है कि एक बार जड़ांवाला देख आऊं पर देखो कब जाना होता है,’’ इतना कह कर नंद शर्मा खामोश हो गए.

एक दिन नंद शर्मा के नाम एक पार्सल आया. वह पार्सल देखते ही आकर्षण जोर से चिल्लाया, ‘‘दादाजी, आप के लिए पाकिस्तान से पार्सल आया है,’’ और इसी के साथ परिवार के सारे सदस्य उसे देखने के लिए जमा हो गए.

नंद शर्मा आंगन में कुरसी डाल कर बैठ गए. आकर्षण ने उस पैकेट को खोला. उस में 100 से भी अधिक तसवीरें थीं. हर तसवीर के पीछे उर्दू में उस का पूरा विवरण लिखा हुआ था.

नंद शर्मा के चेहरे पर उमड़ते खुशी के भावों को आसानी से पढ़ा जा सकता था. उन्होंने ही नहीं, उन का पूरा परिवार उन तसवीरों को देख कर भावविभोर हो उठा.

एक तसवीर उठाते हुए नंद शर्मा ने कहा, ‘‘यह देखो, हमारा घर, हमारी पुश्तैनी हवेली और यहां अब बैंक आफ पाकिस्तान बन गया है.’’

नंद शर्मा के पोतेपोतियां बहुत हैरान हो उन तसवीरों को देख रहे थे. उन के छोटे पोते मानू और शानू बोले, ‘‘दादाजी, क्या इन में आप का स्कूल भी है?’’

‘‘हां बेटा, अभी दिखाता हूं,’’ कह कर उन्होंने तसवीरों को उलटापलटा तो उन्हें स्कूल की तसवीर नजर आई. अपने स्कूल की तसवीर देख कर उन का चेहरा खिल उठा और वह खुशी से चिल्ला उठे, ‘‘यह देखो बच्चों, मेरा स्कूल और यह रही मेरी कक्षा. यहां मैं टाट पर बैठ कर बच्चों के साथ पढ़ता था.’’

धीरेधीरे जड़ांवाला के बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, खेल के मैदान, सिनेमाघर, वहां की गलियां, पड़ोसियों के घर, गोलगप्पे, चाट वालों की दुकान और वहां की छोटी से छोटी जानकारी भी तसवीरों के माध्यम से सामने आने लगी. अंत में एक छोटी सी कपड़े की थैली को खोला गया. उस में कुछ मिट्टी थी और साथ में एक छोटा सा पत्र था. पत्र जहीर अहमद का था जिस में उस ने लिखा था :

‘नमस्ते, आज यह तसवीरें आप के पास पहुंचाते हुए मुझे बहुत खुशी हो रही है. आप भी सोचते होंगे कि मुझे क्या जरूरत पड़ी थी यह सब करने की. भाईजान, मेरे वालिद बंटवारे से पहले पंजाब के बटाला शहर में रहते थे. अपने जीतेजी वह कभी अपने शहर वापस न आ सके. उन के मन में यह आरजू ही रह गई कि वह अपनी जन्मभूमि को एक बार देख सकें. इसलिए जब मैं ने आप के बारे में पढ़ा तो फैसला किया कि आप की खुशी के लिए जो बन पड़ेगा, जरूर करूंगा.

‘भाईजान, इस पोटली में आप के पुश्तैनी मकान की मिट्टी है जो मेरे खयाल से आप के लिए बहुत कीमती होगी. इस के साथ ही मैं अपने परिवार की ओर से भी आप को पाकिस्तान आने की दावत देता हूं. आप जब चाहें यहां तशरीफ ला सकते हैं. आप अपने बच्चों, पोतेपोतियों के साथ यहां आएं. हम आप की खातिरदारी में कोई कमी नहीं रखेंगे.

‘आप का, जहीर अहमद.’

पत्र पढ़तेपढ़ते नंद शर्मा भावुक हो उठे. उन्होंने फौरन घर की पुश्तैनी मिट्टी को अपने माथे से लगाया और अपने पोते आकर्षण को बुला कर उस मिट्टी से सब के माथे पर तिलक करने को कहा.

‘‘दादाजी, पाकिस्तानी तो बहुत अच्छे हैं,’’ आकर्षण बोला, ‘‘फिर क्यों हम उस देश को नफरत की दृष्टि से देखते हैं. आज जहीर अहमद के कारण ही घरबैठे आप को अपनी विरासत के दर्शन हुए हैं.’’

‘‘ठीक कहते हो बेटा,’’ नंद शर्मा बोले, ‘‘घृणा और नफरत की दीवार तो चंद नेताओं और संकीर्ण विचारधारा वाले तथाकथित लोगों ने बनाई है. आम हिंदुस्तानी और पाकिस्तानी के दिलों में कोई मैल नहीं है. आज अगर मैं तुम्हारे सामने जिंदा हूं तो अपने उस मुसलिम पड़ोसी परिवार के कारण जिन्होंने समय रहते मुझे व मेरे परिवार को वहां से बाहर निकाला.’’

नंद शर्मा अगले कुछ दिनों तक घर आनेजाने वालों को जड़ांवाला की तसवीरें दिखाते रहे. एक दिन शाम को जब वह पत्रकार सम्मेलन से वापस आए तो ‘हैप्पी बर्थ डे टू दादाजी’ की ध्वनि से वातावरण गूंज उठा. उस दिन उन के जन्मदिन पर बच्चों ने उन्हें पार्टी देने का मन बनाया था.

नंद शर्मा को उन के पोतेपोतियों ने घेर लिया और फिर उन्हें उस कमरे की ओर ले गए जहां केक रखा था. वहां जा कर उन्होंने केक काटा और फिर सब ने खूब मस्ती की. फोटोग्राफर को बुलवा कर तसवीरें भी खिंचवाई गईं. बाद में उन में से एक तसवीर जो पूरे परिवार के साथ थी, वह जड़ांवाला भेज दी गई.

वक्त गुजरता रहा. धीरधीरे पत्राचार और फोन के माध्यम से दोनों परिवारों की नजदीकियां बढ़ने लगीं. देखते ही देखते 1 साल बीत गया. एक दिन जहीर अहमद का फोन आया, ‘‘भाईजान, ठीक 1 माह बाद मेरे बड़े बेटे की शादी है. आप सपरिवार आमंत्रित हैं. और हां, कोई बहाना बनाने की जरूरत नहीं है. मैं ने सारा इंतजाम कर दिया है. आप के पुरखों की विरासत आप का इंतजार कर रही है.’’

नंद शर्मा तो मानो इसी पल का इंतजार कर रहे थे. उन्होंने तुरंत कहा, ‘‘ऐसा कभी हो सकता है कि मेरे भतीजे की शादी हो और मैं न आऊं. आप इंतजार कीजिए, मैं सपरिवार आ रहा हूं.’’

रात के खाने पर जब सारा परिवार जमा हुआ तो नंद शर्मा ने रहस्योद्घाटन किया, ‘‘ध्यान से सुनो, हम सब लोग अगले माह जड़ांवाला जहीर के बेटे की शादी में जा रहे हैं. अपनीअपनी तैयारियां कर लो.’’

‘‘हुर्रे,’’ सब बच्चे खुशी से नाच उठे.

‘‘सच है, अपनी जमीन, अपनी मिट्टी और अपनी विरासत, इन की खुशबू ही कुछ और है,’’ कह कर नंद शर्मा आंखें बंद कर मानो किसी अलौकिक सुख में खो गए.

डौलर का लालच : मसाज के नाम पर हुई ठगी

सेवकराम फैक्टरी में मजदूर था. वह 12वीं जमात पास था. घर की खस्ता हालत के चलते वह आगे की पढ़ाई नहीं कर सका था, लेकिन उस का सपना ज्यादा पैसा कमा कर बड़ा आदमी बनने का था.

फैक्टरी में लंच टाइम हो गया था. सेवकराम सड़क के किनारे बने ढाबे पर खाना खा रहा था. उस के सामने अखबार रखा था. उस के एक पन्ने पर छपे एक इश्तिहार पर उस की निगाह टिक गई.

इश्तिहार बड़ा मजेदार था. उस में नए नौजवानों को मौजमस्ती वाले काम करने के एवज में 20-25 हजार रुपए हर महीने की कमाई लिखी गई थी.

सेवकराम मन ही मन हिसाब लगाने लगा. इस तरह तो वह 5 साल तक भी दिल लगा कर काम करेगा, तो 8-10 लाख रुपए आराम से कमा लेगा.

इश्तिहार में लिखा था कि भारत के मशहूर मसाज पार्लर को जवान लड़कों की जरूरत है, जो विदेशी व भारतीय रईस औरतों की मसाज कर सकें. अच्छा काम करने वाले को विदेशों के लिए भी बुक किया जा सकता है.

इतना पढ़ते ही सेवकराम की आंखों के सामने रेशमी जुल्फें लहराती गोरे गुलाबी तराशे बदन वाली गोरीगोरी विदेशी औरतें उभर आईं, जिन्हें कभी पत्रिकाओं में, फोटो में या फिल्मों में देखा था. अगर उसे काम मिल गया, तो ऐसी खूबसूरत हसीनाओं के तराशे गए बदन उस की बांहों में होंगे.

ऐसे में तो उस की जिंदगी संवर जाएगी. फैक्टरी में सारा दिन जान खपाने के बाद उसे 3 हजार रुपए से ज्यादा नहीं मिल पाते. मिल मालिक हर समय काम कम होने का रोना रोता रहता है.

सेवकराम ने उसी समय इश्तिहार के नीचे लिखा मोबाइल नंबर नोट किया और तुरंत फैक्टरी की नौकरी छोड़ने का मन बना लिया.

सेवकराम सीधा दफ्तर गया और बुखार होने का बहाना बना कर 3 दिन की छुट्टी ले ली. इस के बाद वह बाजार गया. वहां पर उस ने 2 जोड़ी नए कपडे़ और जूते खरीदे. वह जब बड़े घरानों की औरतों के सामने जाएगा, तो उस के कपड़े भी अच्छे होने चाहिए.

सेवकराम शाम तक सपनों में डूबा बाजार में घूमता रहा. उस का कमरे पर जाने को मन नहीं हो रहा था. रात का खाना भी उस ने बाहर ढाबे पर ही खाया. वह देर रात कमरे पर गया.

कमरे में 4-5 आदमी एकसाथ रहते थे. उस के तमाम साथी सो गए थे. वह भी अपनी चारपाई पर लेट गया. उस ने अपने साथ वाले लोगों का जायजा लिया कि गहरी नींद में सो गए हैं या नहीं. जब उसे तसल्ली हो गई, तो उस ने इश्तिहार वाला फोन नंबर मिलाया और बात की.

दूसरी तरफ से किसी लड़की की उखड़े हुए लहजे में आवाज गूंजी, ‘इतनी रात गुजरे कौन बेवकूफ बोल रहा है? तुम्हें जरा भी अक्ल नहीं है क्या? सुबह तो होने दी होती… क्या परेशानी है?’

‘‘मैडमजी, माफ करना. मैं एक परदेशी हूं. हम एक कमरे में 4-5 लोग रहते हैं. मैं आप से चोरीछिपे बात करना चाहता था, इसलिए उन के सोने का इंतजार करता रहा. मैं ने आप का इश्तिहार अखबार में पढ़ा था. मैं आप के मसाज पार्लर में काम करना चाहता हूं. मुझे काम की सख्त जरूरत है.’’

सेवकराम ने बेहद नरम लहजे में कहा था. इस से दूसरी तरफ से बोल रही लड़की की आवाज में भी मिठास आ गई थी.

‘ठीक है, तुम ने हमारा इश्तिहार पढ़ा होगा. हमारे मसाज पार्लर की कई जवान औरतें, लड़कियां हमारी ग्राहक हैं, जिन की मसाज के लिए हमें जवान लड़कों की जरूरत रहती है. तुम बताओ कि

मर्दों की मसाज करोगे या जवान औरतों की?’

यह सुनते ही सेवकराम रोमांचित हो उठा. उसे तो ऐसा महूसस हुआ, जैसे उसे नौकरी मिल गई है. उस की आवाज में जोश भर उठा. वह शरमाते हुए बोला, ‘‘मैडमजी, मेरी उम्र 30 साल है. मुझे जवान औरतों की मसाज करना अच्छा लगता है. मैं अपना काम मेहनत और ईमानदारी से करूंगा.’’

‘ठीक है, तुम्हें काम मिल जाएगा. बस, इतना ध्यान रखना होगा कि उस समय कोई शरारत नहीं होनी चाहिए, वरना नौकरी से निकाल दिए जाओगे,’ दूसरी तरफ से बेहद सैक्सी अंदाज में जानबूझ कर चेतावनी दी गई, तो सेवकराम रोमांटिक होते हुए बोला, ‘‘जी, मैं अपना काम समझ कर करूंगा. मेरे मन में उन के लिए कोई गलत भावना नहीं आएगी.’’

‘ठीक है, तुम्हारा नाम मैं रजिस्टर में लिख लेती हूं. कल दिन में तुम करिश्मा बैंक में 10 हजार रुपए हमारे खाते में जमा करा दो. रुपए जमा होते ही तुम्हारा एक पहचानपत्र भी बनाया जाएगा. जिसे दिखा कर तुम देश के किसी भी शहर में काम के लिए जा सकते हो,’ उधर से निर्देश दिया गया.

यह सुन कर सेवकराम कुछ परेशान हो गया और बोला, ‘‘मैडमजी, 10 हजार रुपए तो कुछ ज्यादा हैं.’’

‘ठीक है, फिर हम तुम्हारा पहचानपत्र नहीं बनाएंगे. अगर तुम्हें पुलिस ने पकड़ लिया, तो क्या जेल जाना पसंद करोगे?’

‘‘क्या ऐसा भी हो जाता है मैडमजी?’’ सेवकराम ने थोड़ा घबराते हुए पूछा.

‘ऐसा हो जाता है सेवकरामजी. ये परदे में करने वाले काम हैं. पुलिस पकड़ लेती है. बोलो, क्या तुम पुलिस के चक्कर में फंसना चाहते हो?’

‘‘ठीक है मैडमजी, मैं कल ही 10 हजार रुपए जमा करा दूंगा. बस, आप मेरा पहचानपत्र बनवा कर तुरंत काम पर बुलाइए. मैं ज्यादा दिन बेरोजगार नहीं रह सकता,’’ सेवकराम ने कहा, तो फोन कट गया.

उस रात सेवकराम सो नहीं सका. उस के दिलोदिमाग में खूबसूरत, जवान औरतों के दिल घायल करते हुए जिस्मों के सपने छाए रहे. सारी रात ऐसे ही गुजर गई.

अगले दिन सेवकराम सीधे बैंक पहुंचा और अपनी पासबुक से 20 हजार रुपए निकाले. 10 हजार रुपए तो उस ने रात फोन पर बताए गए खाते में जमा करा दिए और बाकी के 10 हजार रुपए अपने खर्चे के लिए रख लिए. अब वह लाखों रुपए कमाएगा.

सेवकराम को तो अब मसाज पार्लर के दफ्तर से फोन आने का इंतजार था. इसी इंतजार में 4-5 दिन गुजर गए, मगर उस औरत का फोन नहीं आया.

सेवकराम को अब बेचैनी होना शुरू हो गई. उस ने 10 हजार नकद खाते में जमा कराए थे. इंतजार की घडि़यां काटनी मुश्किल होती हैं, फिर भी उस ने 7 दिनों तक इंतजार किया.

आखिर में सेवकराम ने ही फोन कर के पूछा, तो दूसरी तरफ से किसी औरत की आवाज गूंजी, मगर वह आवाज पहले वाली नहीं थी. उस के बात करने का लहजा जरा कड़क और गंभीर था.

‘‘क्या बात है मैडमजी, मुझे 10 हजार रुपए आप के खाते में जमा कराए 7-8 दिन गुजर गए हैं. अभी मेरा परिचयपत्र भी नहीं मिला है. मुझे काम की सख्त जरूरत है.’’

‘आप बेफिक्र रहें. आप का परिचयपत्र तैयार है. हमारी मसाज पार्लर कमेटी ने एक टीम बनाई है, जिस में आप का नाम भी शामिल है. इस टीम को विदेशों में भेजा जाएगा.’

सेवकराम खुशी से उछल पड़ा. वह चहकते हुए बोला, ‘‘मैडमजी, जल्दी से टीम को काम दिलाओ. विदेश में तो काम करने के डौलर मिलेंगे न?’’

‘हां, वहां से तो तुम लोगों की पेमेंट डौलरों में होगी,’ औरत ने बताया, तो थोड़ी देर के लिए सेवकराम सीने पर हाथ रख कर हिसाब लगाता रहा. आंखों के सामने नोटों के बंडल चमकते रहे. अपनी बेताबी जाहिर करते हुए उस ने पूछा, ‘‘अब देर क्यों की जा रही है?

हम तो काम के लिए कहीं भी जाने को तैयार हैं.’’

‘आप सब के परिचयपत्र मंजूरी के लिए विदेश मंत्रालय भेजे जाने हैं. अगर भारत सरकार से मंजूरी मिल गई, तो तुम लोग किसी भी देश में बेधड़क हो कर काम कर सकते हो, मगर भारत सरकार की मंजूरी दिलाने के लिए 20 हजार रुपए का खर्चा आएगा. आप को 20 हजार रुपए उसी खाते में जमा कराने होंगे.’

‘‘मैडमजी, इतनी बड़ी रकम तो बहुत ज्यादा है. हम तो गरीब आदमी हैं,’’ सेवकराम की तो मानो हवा निकल गई थी. उस का जोश ढीला पड़ने लगा था.

‘हम मानते हैं कि 20 हजार रुपए ज्यादा हैं, मगर यह सोचो कि जब तुम अलगअलग देशों में जाओगे, वहां से वापस आने पर लाखों रुपए ले कर आओगे. सोच लो, अगर विदेश नहीं जाना चाहते हो, तो रहने दो,’ औरत ने दूसरी तरफ से कहा, तो सेवकराम पलभर के लिए खामोश रहा, फिर जल्दी ही वह बोला, ‘‘ठीक है, मैं 20 हजार रुपए आप के खाते में जमा करा दूंगा. बस, मेरा काम सही होना चाहिए.’’

सेवकराम ने ठंडे दिमाग से सोचा, तो उसे यह काम फायदे का लगा. बेशक, 20 हजार रुपए उस के पास नहीं थे, फिर भी अगर उधार उठा कर लगा देगा, तो बाहर के पहले टूर में लाखों रुपए वारेन्यारे कर देगा, इसलिए 20 हजार रुपए उन के खाते में जमा कराना ही फायदे में रहेगा.

सेवकराम ने इधरउधर से रुपए उधार लिए और उसी खाते में जमा करा दिए. अब वह इंतजार करने लगा. उसे यकीन था कि उसे बुलाया जाएगा.

सेवकराम को इंतजार करतेकरते 10 दिन गुजर गए. सेवकराम के मन में तमाम तरह के खयाल आ रहे थे. वह इस मुगालते में था कि दफ्तर वाले खुद फोन करेंगे. वह महीने भर से काम छोड़ कर बैठा था. जमापूंजी खर्च हो चुकी थी. ऊपर से 20 हजार रुपए का कर्जदार और हो गया था.

काफी इंतजार करने के बाद सेवकराम ने उसी फोन नंबर पर फोन किया, तो मोबाइल बंद मिला. काफी कोशिश करने के बाद भी उस नंबर पर बात नहीं हुई. उस के पैरों तले जमीन खिसक गई.

वह उसी पल उस बैंक में गया, जहां अजनबी खाते में उस ने 30 हजार रुपए जमा कराए थे. वहां से पता चला कि वह खाता वहां से 5 सौ किलोमीटर दूर किसी शहर में किसी बैंक का था. अब उस खाते में महज 4 रुपए कुछ पैसे बाकी थे.

सेवकराम थाने में गया, लेकिन पुलिस ने उस की शिकायत लिखने की जरूरत नहीं समझी. थकहार कर वह कमरे पर लौट आया.

विदेशों में जा कर खूबसूरत औरतों की मसाज करने के एवज में लाखों डौलर कमाने के चक्कर में सेवकराम ने अपनी जमापूंजी गंवा दी, साथ ही 20 हजार रुपए का कर्जदार भी हो गया. लालच में वह न तो घर का रहा और न घाट का.

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