रात के 10 बज चुके थे. टैलीविजन बंद कर के श्यामलाल बिस्तर पर लेट गए और सोने की कोशिश करने लगे, पर नींद ही नहीं आ रही थी. आंखों के सामने बारबार निम्मो का चेहरा और गदराया बदन आ रहा था.
एक घंटे बाद श्यामलाल ने निम्मो को फोन किया, ‘‘निम्मो…’’
‘हां बाबूजी, क्या बात है? तबीयत तो ठीक है न आप की?’ उधर से निम्मो की आवाज सुनाई दी.
‘‘सिर में बहुत तेज दर्द हो रहा है. जरा आ कर गोली दे दो और बाम भी लगा दो.’’
‘अभी आती हूं.’
कुछ देर बाद निम्मो कमरे में आ गई. सिरदर्द की गोली देते हुए वह बोली, ‘‘यह दर्द कब हुआ बाबूजी?’’
‘‘अभी थोड़ी देर पहले. नींद नहीं आ रही थी. राजू बेटा सो गया है क्या?’’
‘‘हां बाबूजी, हम दोनों ही सो गए थे,’’ निम्मो ने कहा और श्यामलाल के माथे पर बाम लगाने लगी.
कुछ देर बाद श्यामलाल ने अपनी बांहें निम्मो की कमर में डाल दीं.
‘‘बाबूजी, यह क्या कर रहे हैं आप?’’ निम्मो ने चौंक कर कहा.
‘‘कुछ नहीं निम्मो, बस थोड़ा और मेरे पास आ जाओ.’’
निम्मो ने कुछ नहीं कहा. वह श्यामलाल के निकट होती चली गई.
कुछ देर बाद कमरे से निकलते हुए निम्मो ने कहा, ‘‘अब तो आप का दर्द बिलकुल ठीक हो गया होगा?’’
श्यामलाल ने कोई जवाब नहीं दिया. वे सोने की कोशिश करने लगे, पर नींद आंखों से गायब थी. वे पुरानी यादों में खो गए.
2 साल हुए वह एक सरकारी महकमे से अफसर के रूप में रिटायर हुए थे. बेटा दिनेश अपनी पत्नी और बेटे के साथ अमेरिका में था. पत्नी सावित्री के साथ जिंदगी की गाड़ी बहुत अच्छी तरह चल रही थी.
एक दिन काम वाली शांतिबाई एक जवान औरत के साथ आई और बोली, ‘‘आप कह रहे थे कि ऐसी बाई चाहिए, जो सुबह से शाम तक काम कर सके. यह निम्मो?है. घर का सारा काम करेगी. यह हमारे गांव की है. आप किसी तरह की चिंता न करना. इस की पूरी जिम्मेदारी मुझ पर है. इस के साथ
5 साल का एक छोटा बेटा है.
‘‘2 साल पहले इस के पति की एक हादसे में मौत हो गई थी. अब इस का गांव में कोई नहीं है. मैं ने ही इस को यहां बुलाया है.’’
निम्मो ने हाथ जोड़ कर नमस्कार किया. उन्होंने निम्मो की ओर देखा. गदराया बदन, मोटी आंखें, गोरा रंग, खूबसूरत चेहरा.
निम्मो को काम पर रख लिया गया. वह अच्छे ढंग से घर के काम करती व खाना भी बहुत लजीज बनाती थी.
निम्मो के आने से सावित्री को भी बहुत आराम मिल गया था. वे निम्मो की बहुत तारीफ करती थीं.
कुछ दिन के बाद निम्मो को कोठी में ही एक कमरा दे दिया गया था, जहां
वह अपने बेटे राजू के साथ रहने लगी. पास के एक स्कूल में राजू को दाखिला दिला दिया.
एक दिन सावित्री बीमार हो गईं. इलाज कराने पर भी बीमारी बढ़ती चली गई और पता चला कि उन्हें कैंसर है. इलाज होता रहा, पर सावित्री बच न पाईं.
सावित्री की बीमारी के समय निम्मो ने भी बहुत सेवा की थी. सावित्री के आखिरी समय तक वह साथ रही थी.
अमेरिका से दिनेश सपरिवार आया और कुछ दिन बाद वापस चला गया.
इतने बड़े मकान में श्यामलाल अकेले हो गए थे. निम्मो उन का पूरा ध्यान रखती कि उन को कब क्या खाना है और कौन सी दवा लेनी है.
यादों के समुद्र में डूबतेतैरते उन को नींद आ गई. सुबह श्यामलाल की आंख खुली, तो उन को रात की घटना याद आते ही चिंता हो गई कि निम्मो नाराज हो कर यह घर छोड़ कर न चली जाए, पर ऐसा हुआ नहीं.
श्यामलाल ने देखा कि निम्मो का बरताव बिलकुल सामान्य है. उस के चेहरे पर गुस्सा या नाराजगी नहीं?है.
निम्मो ने श्यामलाल को नाश्ता देते हुए कहा, ‘‘बाबूजी, रात जो हुआ उस से मुझे डर है कि कहीं बच्चा न ठहर जाए.’’
‘‘ऐसा नहीं होगा निम्मो, मैं बाजार से गोलियां ला दूंगा.’’
उस के बाद जब कभी श्यामलाल का मन होता, तो निम्मो को कमरे में
बुला लेते.
एक दिन श्यामलाल ने कहा, ‘‘निम्मो, यहां रहते हुए तुम किसी तरह की चिंता न करना. जब भी अपने लिए या राजू बेटे के लिए बाजार से कुछ खरीदारी करनी हो, तो मुझ से रुपए
ले लेना.’’
‘‘ठीक है बाबूजी,’’ निम्मो बोली. वह अच्छी तरह जानती थी कि बाबूजी उस पर इतने दयालु क्यों हो रहे हैं.
वह बाबूजी की हर जरूरत जो पूरी कर देती है.
निम्मो यह भी समझती थी कि यहां बाबूजी के पास बहुत अच्छा घर मिल गया है. यहां हर तरह की सुविधा व आराम है.
एक दिन निम्मो रसोई में खाना बना रही थी. रेहड़ी पर सब्जी बेचने वाले सुरेंद्र की आवाज सुनाई पड़ी, ‘‘आलू लो, प्याज लो, भिंडी लो, लौकी लो…’’
सब्जी वाले की आवाज सुनते ही वह बाहर आ गई.
पड़ोस की 2 औरतें सब्जी खरीद रही थीं. एक औरत बोली, ‘‘भई सुरेंद्र, जैसे तुम साफसुथरे रहते हो, वैसी ही तुम्हारी सब्जियां भी बढि़या, ताजा और साफ होती हैं. इन को ज्यादा छांटने की जरूरत नहीं पड़ती.’’
‘‘मैडमजी, हमारा तो एक उसूल है कि जब पैसे पूरे लेते हैं, तो सामान भी बढि़या बेचना चाहिए. इसीलिए तो
मंडी से बढि़या, साफसुथरी सब्जी खरीदते हैं. बेईमानी हमें पसंद नहीं?है,’’ सुरेंद्र ने कहा.
‘‘तभी तो सभी लोग तुम्हारा इंतजार करते हैं,’’ दूसरी औरत ने कहा.
निम्मो सब्जी छांटने लगी, तभी सुरेंद्र ने कहा, ‘‘कैसी हैं आप? और बाबूजी व राजू बेटा?’’
‘‘सब ठीक हैं,’’ निम्मो ने कहा.
‘‘बाबूजी को कौन सी सब्जी
पसंद है?’’
‘‘उन को भिंडी, तोरई, लौकी और करेला.’’
‘‘और आप को?’’
‘‘मुझे तो हर सब्जी पसंद है,’’ निम्मो ने कहा.
निम्मो ने सब्जी लेते समय जब भी सुरेंद्र की ओर देखा तो उसे लगा कि वह कुछ कहना चाहता है.
जब वे दोनों औरतें सब्जी ले कर चली गईं, तो सुरेंद्र ने कहा, ‘‘मुझे आप से कुछ कहना है…’’
‘‘कहो.’’
‘‘क्या आप का मोबाइल नंबर मिलेगा? कुछ जरूरी बात करनी है.’’
‘‘कहो न…’’
‘‘मैं यहां नहीं बता सकता.’’
निम्मो ने अपना मोबाइल नंबर उसे दे दिया. सुरेंद्र ने चलतेचलते पूछा, ‘‘आप से कितने बजे बात हो सकेगी?’’
‘‘रात 9 बजे के बाद,’’ निम्मो बोली और सब्जी ले कर घर में आ गई.
रात के साढ़े 9 बजे निम्मो के फोन की घंटी बज उठी. उस समय वह अपने कमरे में राजू के साथ थी.
‘‘हैलो,’’ निम्मो ने कहा.
‘कौन? निम्मो ही बोल रही हैं न?’ उधर से आवाज सुनाई दी.
‘‘मैं ही बोल रही हूं.’’
‘मैं सुरेंद्र बोल रहा हूं. आप तो जानती हैं कि हम दोनों बिहार के एक ही जिले के हैं. मैं यहां 10 साल से रह रहा हूं. चंदन कालोनी में मेरा छोटा सा मकान है. मेरी 8 साल की बेटी है.
‘मेरी पत्नी की पिछले साल दिमागी बुखार से मौत हो गई थी. बेटी तीसरी क्लास में पढ़ रही है. सब्जी के काम से ठीकठाक गुजारा हो रहा है.’
‘‘अच्छी बात है.’’
‘आप के बारे में मैं शांति आंटी से सब मालूम कर चुका हूं. उन्होंने ही आप को यहां काम पर लगाया था.’
‘‘हां.’’
‘कल मेरी छुट्टी रहेगी. मंडी बंद है. क्या आप मुझ से मिलने नेहरू पार्क आ सकती हैं?’
‘‘क्यों?’’
‘कुछ जरूरी बात करनी है.’
‘‘देखिए, मेरा घर से निकलना जरा मुश्किल रहता है. आप को जो बात करनी है, फोन पर ही कह दो,’’ निम्मो ने कहा. वह जानती थी कि सुरेंद्र उस से क्या कहना चाहता है.
‘आप मुझे बहुत अच्छी लगती हैं. मैं चाहता हूं कि आप पत्नी के रूप में मेरे घर आ जाएं. आप के राजू को पापा व मेरी बेटी को भी मां मिल जाएगी.’
निम्मो चुप रही.
‘क्या मेरी बात से नाराज हो गईं आप? आप चुप क्यों हैं? कुछ
बोलिए न?’
‘‘मैं 1-2 दिन में बता दूंगी.’’
‘एक बात और मैं बताना चाहता हूं.’
‘‘क्या…?’’
‘शादी के बाद आप को कहीं काम करने की जरूरत नहीं पड़ेगी. बस अपने छोटे से घरपरिवार को संभाल लेना.’
‘‘ठीक है, बता दूंगी,’’ निम्मो ने कहा और मोबाइल बंद कर दिया.
राजू बेटा सो चुका था. निम्मो बिस्तर पर लेट गई. उस की आंखों के सामने बारबार सुरेंद्र का चेहरा आ रहा था.
अगले दिन निम्मो शांति चाची से मिली. शांति चाची ने कहा, ‘‘निम्मो, मैं सुरेंद्र को 5-6 साल से जानती हूं. उस की बहुत अच्छी आदत है. शराब नहीं पीता. गुटकातंबाकू भी नहीं खाता.
‘‘वह तुझ से अगर शादी करना चाहता है, तो मना मत करना. तुम्हारी जिंदगी की नई शुरुआत हो जाएगी और उस का भी घर बस जाएगा.’’
रात को अपने कमरे में पहुंच कर निम्मो ने सुरेंद्र के मोबाइल पर बात शुरू की, ‘‘हैलो.’’
‘हां निम्मो, कैसी हो?’ उधर से सुरेंद्र की आवाज आई.
‘‘मैं ठीक हूं. आप कैसे हैं?’’
‘मैं भी ठीक हूं. बस आप के फोन का इंतजार कर रहा था. क्या कुछ सोचा है अपने उस नए घरपरिवार के बारे में.’
‘‘मुझे मंजूर है.’’
‘अब हम जल्द ही शादी कर लेंगे,’ सुरेंद्र की खुशी भरी आवाज सुनाई दी, ‘अब मैं ज्यादा दिन आप को अपने से दूर नहीं रखूंगा.’
निम्मो काफी देर तक सुरेंद्र से बात करती रही.
सुबह नाश्ता करने के बाद श्यामलाल अखबार पढ़ रहे थे. निम्मो ने कमरे में आते ही कहा, ‘‘बाबूजी, मुझे आप से कुछ कहना है.’’
‘‘हांहां कहो निम्मो, कुछ रुपयों की जरूरत है क्या?’’
‘‘नहीं बाबूजी, रुपयों की जरूरत नहीं है.’’
‘‘अच्छा बताओ कि क्या कहना है?’’
‘‘बाबूजी, मैं शादी कर रही हूं.’’
श्यामलाल चौंक उठे. अखबार से गरदन उठा कर उन्होंने कहा, ‘‘शादी कर रही हो? लेकिन क्यों?’’
‘‘शादी क्यों की जाती है बाबूजी?’’
‘‘मेरा मतलब है कि यहां तुम्हें किसी बात की परेशानी हुई है क्या? मैं ने कुछ गलत बरताव कर दिया है क्या?’’
‘‘नहीं बाबूजी, आप तो बहुत अच्छे हैं. आप ने इतने दिनों तक मुझे आसरा दिया.’’
‘‘फिर क्यों जाना चाहती हो यहां से? तुम किस से शादी कर रही हो?’’
‘‘वह जो सब्जी का ठेला ले कर आता है सुरेंद्र. वह हमारे ही जिले का है. उस की पत्नी पिछले साल बीमारी में चल बसी थी. उस की 8 साल की बेटी है. शांति चाची ने भी कह दिया है उस से शादी करने को.’’
यह सुन कर उदास व दुखी श्यामलाल ने कहा, ‘‘ओह निम्मो, तुम मुझे अकेला छोड़ कर जा रही हो. तुम ने यह नहीं सोचा कि तुम्हारे बिना मैं अकेला कैसे रह पाऊंगा? तुम मुझ
से कुछ और चाहती हो तो ले सकती
हो, पर मुझे छोड़ कर मत जाओ.’’
‘‘बाबूजी, मैं यहां तब तक ही रह सकूंगी, जब तक आप हैं. उस के बाद मुझे यहां कौन रहने देगा और किस हक से रहूंगी. हमेशा रहने का हक पत्नी को है और मैं यह हक हासिल कर सकूं, ऐसा मैं सपने में भी सोच नहीं सकती, क्योंकि मैं कहां और आप कहां? जमीनआसमान का फर्क है बाबूजी.’’
श्यामलाल चुपचाप सुनते रहे.
निम्मो ने आगे कहा, ‘‘बाबूजी, मुझे जिंदगी ने एक बार फिर मौका दिया है कि मैं अपना घर बसा सकूं. यहां आप के पास रह कर तो मैं एक नौकरानी या रखैल ही रहूंगी न. मैं रखैल नहीं किसी की पत्नी बनना चाहती हूं, जहां मैं अपने बेटे के साथ निश्चिंत हो कर रह सकूं.’’
‘‘अब मेरा क्या होगा निम्मो? इतने बड़े मकान में मुझे तो रातभर नींद भी नहीं आएगी.’’
‘‘बाबूजी, आप अकेले नहीं रहेंगे. शांति चाची से कह कर किसी न किसी बाई का इंतजाम हो जाएगा.’’
‘‘कोई भी आ जाए निम्मो, पर तुम जैसी नहीं मिलेगी, जिस ने मेरी हर खुशी का ध्यान रखा,’’ श्यामलाल ने निम्मो की ओर देख कर कहा.
‘‘बाबूजी, जब तक आप के लिए किसी बाई का इंतजाम नहीं होगा, तब तक मैं आप को अकेला छोड़ कर नहीं जाऊंगी.’’
‘‘निम्मो, तुम ने ठीक ही सोचा है. तुम्हारे सामने 2 रास्ते थे. तुम ने दूसरे रास्ते की ओर सही कदम बढ़ाया है. वैसे भी तुम्हारी सेवाओं को मैं कभी भुला नहीं पाऊंगा.
‘‘और हां, अपने नए घरपरिवार में जाने के बाद कभी भी मेरी मदद की जरूरत पड़े तो बता देना. मैं तो यही कहूंगा निम्मो कि तुम जहां भी रहो
खुश रहो.’’
‘‘बाबूजी, आप कितने अच्छे हैं,’’ निम्मो ने मुसकरा कर श्यामलाल की ओर देखते हुए कहा.