इंग्लैंड के इस गेंदबाज ने 5253 गेंदों के बाद फेंकी पहली नो बौल, उसमें भी मिला विकेट

क्रिकेट में हर दिन कोई न कोई रिकौर्ड दर्ज होता है लेकिन ऐसा बहुत कम होता है कि किसी गेंदबाज का पूरा करियर बिना नो बौल फेंके ही बीत जाए. हालांकि ये रिकौर्ड दर्ज होते-होते रह गया लेकिन ये भी कम नहीं था कि किसी गेंदबाज ने पांच हजार से ज्यादा गेंदे फेंकी हों और उनमें से एक भी नो बौल न गई हो. इंग्लैंड के क्रिस वोक्स (Chris Woakes) ने करियर की 5253 गेंदें फेंक दी लेकिन एक भी नो बौल नहीं डाली.

औस्ट्रेलिया के खिलाफ खेली गई एशेज सीरीज में वोक्स का नो बौल ना फेंकने का सिलसिला टूट गया. उन्होंने सीरीज के पांचवें मैच में टेस्ट करियर की पहली नो बौल फेंकी. उस पर विकेट भी लगभग मिल ही गया था लेकिन कुछ ऐसा हुआ, कि बल्लेबाज आउट नहीं हुआ. इसकी वजह भी ऐसी थी, जिसे वोक्स शायद ही भूल पाएं.

इंग्लैंड और औस्ट्रेलिया के बीच खेली गई एशेज सीरीज से ड्रौ रही. दोनों टीमों ने 2-2 मैच जीते. सीरीज का एक मैच बेनतीजा रहा. सीरीज के पांचवें मैच के चौथे दिन इंग्लैंड (England) के मीडियम पेस गेंदबाज क्रिस वोक्स ने अपने टेस्ट करियर की पहली नो बौल फेंकी. वैसे यह उनके टेस्ट करियर की 5254वीं गेंद थी. उन्होंने अपने करियर की शुरुआती 5253 गेंदों में एक बार भी नो बौल नहीं की थी.

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यह औस्ट्रेलिया की पारी के 31वें ओवर की दूसरी गेंद थी. क्रिस वोक्स के सामने मिचेल मार्श (Mitchell Marsh) थे. वे अच्छी बैटिंग कर रहे थे. मिचेल मार्श ने इस ओवर की दूसरी गेंद को खेलना चाहा, लेकिन वे थर्ड स्लिप में कैच दे बैठे. क्रिस वोक्स विकेट मिलने की खुशी में उछल पड़े. मार्श भी पैवेलियन की ओर बढ़ गए. तभी फील्ड अंपायर ने मार्श को रोक लिया.

फील्ड अंपायर को शक था कि क्रिस वोक्स का पैर क्रीज से आगे निकला है. ओवर स्टेपिंग के कारण यह नो बौल हो सकती है. फील्ड अंपायर ने इस बारे में थर्ड अंपायर से पूछा. थर्ड अंपायर ने इसे नो बौल करार दिया. वोक्स का पैर वाकई में क्रीज से आगे निकल गया था. इस तरह मिचेल मार्श को नौट आउट करार दिया गया.

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क्रिस वोक्स का यह 31वां टेस्ट मैच था. उन्होंने इस मैच से पहले 87 विकेट लिए थे. वोक्स ने औस्ट्रेलिया के खिलाफ दोनों पारियों में कुल मिलाकर 17 ओवर की गेंदबाजी की और एक विकेट लिया. उन्हें दूसरा विकेट मिलते-मिलते रह गया. इस तरह 30 साल के क्रिस वोक्स ने अपने 31वें टेस्ट मैच में पहली नो बौल फेंकी. उन्होंने 31 टेस्ट मैच में 88 विकेट लिए हैं और 27.92 की औसत से 1145 रन भी बनाए हैं. इसमें एक शतक और चार अर्धशतक शामिल हैं. औलराउंडर वोक्स ने 99 वनडे और आठ टी20 मैच भी खेले हैं.

खेल पत्रकारिता का गिरता स्तर, जिम्मेदार कौन

दो रोज पहले ब्रिटिश अखबार द सन ने एक रिपोर्ट छापी. रिपोर्ट थी इंग्लैंड के स्टार औलराउंडर बेन स्टोक्स के परिवार से जुड़ी. इस रिपोर्ट के छपने के बाद बेन स्टोक्स मीडिया पर बस भड़के ही नहीं बल्कि स्टोक्स ने इसे निजता पर हमला तक करार दिया. इससे पहले भारतीय कप्तान विराट कोहली और अनुष्का शर्मा को लेकर भी मीडिया ने ऐसी खबरें छापी थी जिसके बाद कोहली मीडिया पर खूब भड़के थे.

खेल पत्रकारिता का मतलब खिलाड़ियों की निजी लाइफ पर इंटरफेयर करना नहीं बल्कि खिलाड़ियों के प्रदर्शन को लेकर लिखना होता है. ये महज क्रिकेट को लेकर लागू नहीं होता बल्कि हर खेल में ऐसा ही देखने को मिलता है. भारतीय टेनिस सनसनी सानिया मिर्जा को लेकर भी कुछ ऐसा ही किया जाता है.

इंग्लैंड के औलराउंडर बेन स्टोक्स ने सोशल मीडिया में भावुक पोस्ट किया है. इस पोस्ट में उन्होंने ब्रिटिश अखबार की उस रिपोर्ट पर हमला बोला है, जिसमें दावा किया गया था कि 30 वर्ष पहले उनकी मां के पूर्व पति ने स्टोक्स के सौतेले भाई और बहन की हत्या कर दी थी.

स्टोक्स ने लिखा, अपने रिपोर्टर को मेरे घर, न्यूजीलैंड में भेजकर उसे कुरेदने का काम किया गया है. मेरे नाम का इस्तेमाल करने से मेरी निजता और साथ ही मेरे माता-पिता की निजता पर हमला किया गया जो काफी गलत है. मैं किसी को यह हक नहीं देता हूं कि मेरी प्रोफाइल से मेरे माता-पिता, पत्नी और मेरे बच्चों के अलावा मेरे पारिवारिक सदस्यों की निजता पर हमला किया जाए. उन्होंने साथ ही लिखा कि यह पत्रकारिता का सबसे खराब रूप है जो सिर्फ बेचने पर आधारित है, किसी की जिंदगी से नहीं. यह काफी गलत है.

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अखबार ने अपनी रिपोर्ट में हत्यारे की 49 वर्षीय बेटी जैकी डन के हवाले से लिखा- अप्रैल 1988 में स्टोक्स के जन्म से पहले उनकी आठ वर्षीय सौतेली बहन ट्रेसी और चार वर्षीय सौतेले भाई एंड्रयू की दुर्दांत तरीके से हत्या कर दी गई थी. इस वारदात को अंजाम दिया था रिचर्ड डन ने जोकि बेन स्टोक्स की मां के पूर्व पति है.

रिपोर्ट के मुताबिक, दोस्तों ने कहा कि देब को काफी दुख हुआ जब उन्हें पता लगा कि एक बेरोजगार व्यक्ति डन ने उनके बच्चों की हत्या कर दी. इतना ही नहीं, डन अपनी उसी राइफल के साथ अपने घर गया जिससे उसने बच्चों की हत्या क्राइस्टचर्च के एक फ्लैट में की थी. पिछले महीने ही स्टोक्स ने एशेज सीरीज के तीसरे टेस्ट मैच में अपनी टीम को अप्रत्याशित जीत दिलाई थी.

कोहली और अनुष्का पर उछाला कीचड़…

साल 2014 की बात है जब कोहली और अनुष्का के बारे में मीडिया पर अनायास ही बातें उछाली जा रही थी. ये खबरें पढ़ने और लिखने में तो रोचक लगती हैं लेकिन इससे खिलाड़ी को कितना नुकसान होता है इसका आंकलन आप कोहली के इस बयान से लगा सकते हैं. अनुष्का की ‘लिप सर्जरी’ पर चल रहे जोक्स विराट को बिल्कुल पसंद नहीं आ रहे हैं, इसीलिए जब उनसे इस बारे में बात की गई, तो वह नाराज हो गए.

विराट से जब इस बारे में सवाल पूछा गया, तो उन्होंने कहा, ‘यह उनका निजी मामला है और किसी को भी आजादी नहीं कि पब्लिक प्लैटफौर्म पर इसकी चर्चा करे. ‘विराट इसलिए भी भड़के हुए हैं, क्योंकि उनके और अनुष्का के न्यूजीलैंड में साथ घूमने की तस्वीरें मीडिया में ही लीक हुई थीं. स्टार क्रिकेटर ने अपील की है कि अनुष्का को अकेला छोड़ दिया जाए और अनुष्का से उनके बारे में बात ना की जाए. वह अभी अपना ध्यान सिर्फ क्रिकेट पर फोकस करना चाहते हैं.

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इसके अलावा एक बात और यहां कहना चाहूंगा. जब भी हम किसी टूर्नामेंट में अच्छा प्रदर्शन कर लेते हैं तो मीडिया के प्राइम टाइम में जमकर बड़ाई की जाती है. वहीं अगर एक भी टूर्नामेंट में खराब प्रदर्शन हुआ तो खेल पत्रकार पता नहीं किन-किन शब्दों से खिलाड़ियों का स्वागत करते हैं. ऐसा नहीं होना चाहिए. अपने देश के खिलाड़ियों के अलावा भी अगर कोई खिलाड़ी अच्छा प्रदर्शन करता है तो इसकी तारीफ होनी चाहिए. पिछले दिनों एशेज सीरीज में औस्ट्रेलिया के स्टीव स्मिथ ने बेहतरीन बल्लेबाजी की. इतना ही नहीं महज तीन पारियों में ही विराट कोहली ने टेस्ट का नंबर वन खिलाड़ी का खिताब भी छीन लिया. वर्तमान में स्मिथ टेस्ट के नंबर वन खिलाड़ी बन गए हैं. इससे पहले विराट कोहली नंबर वन थे. मीडिया में इस खिलाड़ी को लेकर कोई खास चर्चा नहीं की गई. जबकि खबरें ये चलीं कि कैसे कोहली नंबर वन बन सकते हैं. इसकी जगह पर स्मिथ के बारे में खबरें चलनी चाहिए थीं, स्मिथ बैन के बाद पहली बार एशेज सीरीज खेलने उतरे थे और उस खिलाड़ी ने बेहतरीन प्रदर्शन किया.

पिछले दिनों भारत बनाम वेस्टइंडीज टेस्ट सीरीज खेली गई. इस सीरीज में हनुमा विहारी ने बेहतरीन प्रदर्शन किया. हनुमा विहारी अच्छे खिलाड़ी हैं. घरेलू क्रिकेट में उनके नाम अच्छे रिकौर्ड दर्ज हैं लेकिन ऐसा नहीं कि महज एक ही मैच बाद उनको हीरो बना दिया गया. ऐसा ही तब हुआ था जब के. एल राहुल को तुलना राहुल द्रविड़ से की जाने लगी. के. एल राहुल भी तीसरे नंबर पर बैटिंग के लिए टीम में शामिल किए गए थे. लेकिन उनका प्रदर्शन बेहद खराब रहा और अब तो उनको टीम से ही बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. ऋषभ पंत के साथ भी ऐसा ही हुआ. मीडिया ने पंत को धोनी की संज्ञा दे दी. महज 2 मैच में ही. अब उनके हाल भी ऐसे ही है. कोच रवि शास्त्री ने कड़ी फटकार लगाई हैं.

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बियांका पैदा भी नहीं हुई थीं जब सेरेना ने जीता था पहला यूएस ओपन

साल का चौथा और आखिरी ग्रैंड स्लैम यूएस ओपन का शानदार समापन हुआ. पुरुष वर्ग में ये खिलाब स्पेनिश खिलाड़ी राफेल नडाल के पास गया तो महिला एकल वर्ग में बियांका एंड्रेस्‍क्‍यू के पास. बियांका ने इतिहास रच दिया और जिसको हराया वो कोई और नहीं बल्कि 23 बार की ग्रैंड स्लैम विजेता टेनिस की महान खिलाड़ी सेरेना विलियम्स. विलियम्स मां बनने के बाद पहली बार टेनिस कोर्ट में उतरी थीं. अमेरिका की खिलाड़ी के साथ पूरा क्राउड था. हजारों लोगों की भीड़ सेरेना को 24वां ग्रैंड स्लैम जीतते हुए देखना चाहती थी. भीड़ हर बार से कुछ ज्यादा थी. साफ था कि मां बनने के बाद पहली बार सेरेना विलियम्स के हाथों में ग्रैंड स्लैम की ट्राफी लोग देखना चाहते थे लेकिन हजारों लोगों की उम्मीद तोड़ कर एक नया इतिहास कायम किया कनाडा की महज 19 साल की खिलाड़ी बियांका एंड्रेस्‍क्‍यू ने.

19 साल की बियांका एंड्रेस्‍क्‍यू ग्रैंडस्‍लैम जीतने वाली पहली कनाडाई हैं. उन्‍होंने अमेरिका की सेरेना विलियम्‍स को सीधे सेटों में 6-3,7-5 से हराया. इस जीत के साथ ही बियांका ग्रैंडस्‍लैम जीतने वाली दूसरी सबसे कम उम्र की विजेता बन गई हैं. उनसे पहले 2006 में रूस की मारिया शारापोवा ने यह रिकॉर्ड बनाया था. बियांका ने काफी तेजी से सफलता की सीढ़ियां चढ़ी हैं. पिछले साल इन्‍हीं दिनों में वह रैंकिंग में टॉप 200 के बाहर थीं. लेकिन इन 12 महीनों में वह 15वीं रैंक पर पहुंच चुकी हैं.

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बियांका के लिए आसान नहीं था. सेरेना कोर्ट में बहुत चालाकी से गेम प्ले करती हैं. लेकिन बियांका ने फुर्ती और आक्रामता के साथ गेम खेला. बियांका ने बिग हिटिंग, बिग सर्विंग शैली का आक्रामक खेल दिखाते हुए सेरेना को सीधे सेटों में 6-3, 7-5 से हरा दिया. जीत की खुशी के साथ इस खिलाड़ी ने जता दिया कि दिल बड़ा कैसे किया जाता है. इस खिलाड़ी ने तुरंत सेरेना का अभिवादन किया. क्योंकि वो जानती थी कि जिस खिलाड़ी को उसने हराया उसको इस खेल का मास्टर कहा जाता है.

पिछले साल बियांका यूएस ओपन के लिए क्‍वालिफाई भी नहीं कर पाई थीं. पिछले 2 साल से वह यूएस ओपन के क्‍वालिफाइंग में पहले राउंड में ही हार रही थीं. 2019 की शुरुआत बियांका ने जबरदस्‍त तरीके से ही और बीएनपी परिबास ओपन जीता. लेकिन फिर एक चोट की वजह से पूरे क्‍ले कोर्ट और ग्रास कोर्ट के सीजन से बाहर रहीं. लेकिन वापसी करते ही जीत की राह पर चल पड़ीं. इस साल टॉप 10 खिलाड़ियों के खिलाफ बियांका का रिकॉर्ड 8-0 का है.

बियांका के माता-पिता रोमानिया के रहने वाले हैं. लेकिन दोनों कनाडा शिफ्ट हो गए और यहां की नागरिकता ले ली. उस समय बियांका की उम्र 11 साल थी. दिलचस्‍प बात है कि विबंलडन का खिताब जीतने वाली सिमोना हालेप भी रोमानिया से हैं.

इन सब में सबसे चौंकाने वाली बात तो ये है कि सेरेना विलियम्‍स ने जब पहली बार 1999 में यूएस ओपन जीता था उस समय बियांका पैदा भी नहीं हुई थीं. सेरेना के नाम 6 यूएस ओपन खिताब है. वहीं बियांका ने पहली ही बार इस टूर्नामेंट में जगह बनाई थी और जीत दर्ज करने में कामयाब रहीं. उन्‍होंने मोनिका सेलेस की बराबरी की है, जिन्‍होंने अपने चौथे ही ग्रैंडस्‍लैम में ही खिताब जीत लिया था.

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यूएस ओपन के फाइनल में दर्शक सेरेना का समर्थन कर रहे थे. सेरेना ने जब भी कोई पॉइंट जीता तो जोरदार शोर हुआ. एक समय तो ऐसा भी आया जब तेज शोर और सेरेना के समर्थन में हो रही नारेबाजी के चलते बियांका ने अपने कानों पर हाथ रख लिए. मैच जीतने के बाद प्रेजेंटर से बातचीत में उन्‍होंने सेरेना की हार के लिए दर्शकों से माफी मांगी. बियांका ने कहा, ‘मैं काफी दुखी हूं. मुझे पता है कि आप लोग सेरेना को जिताना चाहते थे.

जब से बियांका ने ये खिताब अपने नाम किया तब से सोशल मीडिया में वो छा गई हैं. उनका प्रोफाइल तलाशने के बाद पता चलता है कि वो फैशन और मौडलिंग की भी शौकीन हैं. बियांका की कई ग्लैमरस पिक्चर्स सोशल मीडिया में वायरल हो रही है. लोग उनकी तुलना भारत की टेनिस सनसनी सानिया मिर्जा ने कर रहे हैं. सानिया जब कोर्ट पर पहली बार उतरी थीं तो उनकी खूबसूरती के चर्चे खूब हुए थे.

रोजर फेडरर को पहले ही सेट में मात देने वाले सुमित नांगल के बारे में जानिए,

क्रिकेट भारत की आत्मा में बसता है. ये बात सच है लेकिन क्रिकेट के अलावा बाकी खेलों में भी अब भारतीय तिरंगा लहराने लगा है. क्रिकेट विश्व कप में भारतीय टीम की हार ने करोड़ों खेल प्रेमियों का दिल तोड़ दिया था. उस हार के सदमें में कई क्रिकेट प्रेमियों ने खाना भी नहीं खाया था. लेकिन बीते एक पखवाड़ा में भारतीय खिलाड़ियों ने पूरे विश्व में अपना दमखम दिखाया है. पहले भारत की स्टार शटलर पीवी सिंधु ने विश्व बैडमिंटन चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल लाकर हिंदुस्तान को गौरन्वांवित किया, उसके बाद युवा टेनिस खिलाड़ी सुमित नागल ने जो किया वो अपने आपने में एक चौंकाने वाला है.

अक्सर खिलाड़ी की वाह-वाही तब होती है जब वो मैच जीत जाता है लेकिन सुमित नांगल के साथ ऐसा नहीं हुआ. सुमित नांगल मैच हार भी गए फिर भी उनको पूरे देश की तमाम बड़ी हस्तियों से शाबासी मिली. हरियाणा के झज्जर जिले में जन्म लेने वाले 22 वर्षीय नांगल का डेब्यू मैच ही रोजर फेडरर के साथ पड़ गया. अब आप समझ ही गए होंगे कि किसी का डेब्यू मैच हो उसके सामने वो खिलाड़ी हो जिसको इस खेल का महान खिलाड़ी कहा जाता हो तो फिर उस खिलाड़ी की सांसे तेज होना तो लाजिमी है लेकिन नांगल की सांसे तेज नहीं हुईं बल्कि टेनिस बैट से निकलने वाले शॉट्स तेज हो गए.

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साल के चौथे ग्रैंड स्लैम यूएस ओपन के पहले ही राउंड में सुमित का सामना टेनिस जगत के दिग्गज रोजर फेडरर से हुआ. मंगलवार को न्यूयॉर्क के आर्थर ऐश स्टेडियम में 22 साल के जोशिले क्वालिफायर सुमित नागल ने 38 साल के तजुर्बेकार फेडरर को जोरदार टक्कर दी. 20 बार ग्रैंड स्लैम विजेता रोजर फेडरर ने नागल को हल्के में ले लिया. फेडरर को यही गलती भारी पड़ गई. नांगल ने फेडरर को पहले सेट में 6-4 से हराकर अपनी ग्रांड ओपनिंग दी. फेडरर को समझ आ गया था कि ये कोई साधारण खिलाड़ी नहीं है. अंत में स्विस स्टार फेडरर ने नागल को 4-6, 6-1, 6-2, 6-4 से मात दी.

हरियाणा को खिलाड़ियों की धरती भी कहा जाता है. ओलंपिक में पदक जीतने वाले ज्यादातर खिलाड़ी इसी प्रदेश से ताल्लुक रखते हैं. सुमित नागल भी हरियाणा के झज्जर जिले के जैतपुर गांव से हैं. परिवार में किसी की खेलों में जरा भी दिलचस्पी नहीं रही. उनके फौजी पिता सुरेश नागल को टेनिस में रुचि थी. सुमित को उनके पिता ने ही टेनिस खिलाड़ी बनाने के बारे में सोचा. सुरेश को एक रोज ख्याल आया कि उनका बेटा भी तो दूसरे खिलाड़ियों की तरह खेलता नजर आ सकता है. हरियाणा के सुमित नागल ने आठ साल की उम्र में टेनिस खेलना शुरू किया था.

सुमित के परिवार को उनकी ट्रेनिंग के लिए दिल्ली शिफ्ट होना पड़ा. 2010 में अपोलो टायर वालों की टैलेंट सर्च प्रतियोगिता में सुमित चुन लिए गए. दो साल तक उन्होंने स्पॉन्सर किया. सुमित ने महेश भूपति की एकेडमी में भी ट्रेनिंग ली थी. पिछले नौ साल से वो कनाडा, स्पेन, जर्मनी में ट्रेनिंग कर चुके हैं.

आंकड़ों के हिसाब से अगर भारत में टेनिस खिलाड़ियों की बात करें तो सानिया मिर्जा, लिएंडर पेस, महेश भूपति, रोहन बोपन्ना, सोमदेव देववर्मन, युकी भांबरी, अंकिता रैना इनका नाम ही सबसे ज्यादा लिया जाता है लेकिन अब इस लिस्ट में सुमित नांगल का नाम जुड़ गया. लिएंडर पेस भारत के शानदार टेनिस खिलाड़ी हैं. युगल और मिश्रित युगल में इनके नाम कुल चौदह ग्रैंड स्लैम खिताब है. डेविस कप में भारत के लिए उनका योगदान अकल्पनीय है. 1996 में अटलांटिक ओलंपिक खेलों में इन्होने कांस्य पदक जीता था. इसके बाद नंबर आता है महेश भूपति का. महेश भूपति के नाम चार ग्रैंड स्लैम युगल खिताब है. टेनिस खिलाडी लिएंडर के साथ उनकी जोड़ी शानदार रही है. महेश ने दोहा में 2006 में लिएंडर पेस के साथ एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता था. भूपति डेविस कप में भी भारत के लिए भाग ले चुके हैं. भूपति ने कुल 46 डेविस कप खेले हैं जिनमे से 28 में जीत और 18 हार हाथ लगी.

वह भारतीय टेनिस के इतिहास में सर्वोच्च महिला टेनिस खिलाड़ियों में से एक हैं सानिया मिर्जा. इन्होने तीन प्रमुख मिश्रित युगल जीते 2009 ऑस्ट्रेलियन ओपन, 2012 फ्रेंच ओपन और 2014 में अमेरिकी ओपन. 2014 के एशियाई खेलों में सानिया ने साकेत मिरेनी के साथ मिश्रित युगल स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता और महिलाओं की डबल स्पर्धा में कांस्य पदक जीता था. अक्टूबर 2014 में डब्ल्यूटीए फाइनल में जीत हासिल की थी.

सोमदेव देवबर्मन ने 2002 में टेनिस खेलना शुरू कर दिया था और 2004 में एफ 2 कोलकाता चैम्पियनशिप में जीत के साथ सुर्खियों में आये. सोमदेव ने राष्ट्रमंडल खेल 2010 में एकल स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता था साथ ही एशियाई खेल 2010 में एकल और डबल्स इवेंट में भी स्वर्ण पदक हासिल किया.

इन सबके अलावा हमको दो नाम कभी नहीं भूलना चाहिए. जिन्होंने भारत को टेनिस से अवगत कराया. या यूं कहें कि भारत में टेनिस के जन्मदाता ही यही खिलाड़ी रहे हैं. पहला नाम आता है रमेश कृष्णन भारत के प्रसिद्ध टेनिस प्रशिक्षक और पूर्व टेनिस खिलाड़ी हैं. 1970 के दशक के अंत में जूनियर विंबल्डन और फ्रेंच ओपन में पुरुष एकल का खिताब जीता था. वर्ष 1980 के दशक में तीन ग्रैंड स्लैम के क्वार्टर फ़ाइनल तक पहुंचे और डेविस कप टीम में भी फ़ाइनल तक पहुंचे थे. रमेश कृष्णन 2007 में भारत के डैविस कप कप्तान रहे थे. इनके पिता रामनाथन कृष्णन थे जोकि भारत के प्रसिद्ध टेनिस खिलाड़ी रहे हैं. इन्हें 1998 में भारत सरकार ने ‘पद्मश्री’ सम्मान से सम्मानित किया था.

दूसरा नाम आता है विजय अमृतराज. अमृतराज के छोटे भाई आनंद और अशोक देश का प्रतिनिधित्व करने वाले पहले खिलाड़ी थे. विजय ने अपना पहला ग्रांड प्रिक्स 1970 में खेला था। 1973 में वह विंबलडन और यू.एस. ओपन के क्वॉर्टर फाइनल तक पहुंचे, जहाँ उन्हें यान कोडेस और केन रोजवैल जैसे दिग्गज ही हरा सके.

साक्षी धोनी और अनुष्का का वो रिश्ता जिसके बारे में नहीं जानते लोग

अनुष्का शर्मा और साक्षी धोनी भारतीय क्रिकेट के सबसे बड़े खिलाड़ियों से शादी की है. पर इन दोनों के बीच एक और चीज है जो दोनों को जोड़ती है, जो दोनों के बीच में कौमन है.

इस खबर में हम आपको दोनों के बीन का एक बेहद खास कनेक्शन बताएंगे. क्या आपको पता है कि दोनों एक समय में स्कूलमेट्स थीं? दोनों के बचपन से जुड़ी इस बास का खुलासा ‘Quora’ के जरिए हुआ.

असल में अनुष्का के पिता कर्नल अजय कुमार खर्मा का ट्रांसफर असम में हुआ था. उस वक्त अनुष्का का एडमिशन ‘सेंट मैरी स्कूल, मार्गरीटा’ में करवाया गया था. उस वक्त साक्षी उसी स्कूल में थीं. इस तस्वीर में आप देख सकते हैं कि अनुष्का और साक्षी एक फैंसी ड्रेस प्रोग्राम के लिए तैयार हुई हैं. फेयरी वाली ड्रेस में साक्षी हैं. वहीं अनुष्का ने पिंक लहंगा पहना है.

sakshi dhoni and anushka sharma classmates

आपको बता दें कि अनुष्का ने साक्षी के साथ अपने इस कनेक्शन का जिक्र साल 2013 में एक इवेंट के दौरान किया था. अनुष्का ने कहा था कि, ‘साक्षी और मैं एक छोटे शहर में साथ रहे हैं. जब उन्होंने मुझे बताया कि वह असम में रहीं तो मैं कहा ‘Wow’ और जब उन्होंने स्कूल का नाम बताया तो मैंने उन्हें बताया कि मैं भी उसी स्कूल में पढ़ी हूं.’

sakshi dhoni and anushka sharma classmates

अनुष्का ने बताया ये जानने के बाद जब उन्होंने ढूंढा तो उन्हें स्कूल की एक तस्वीर मिली जहां वह साक्षी के साथ हैं. ये वही तस्वीर है.

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