दिनेश साहब स्कूटर पर अपने घर की तरफ जाते ताजा देखी फिल्म का एक रोमांटिक गीत सारे रास्ते गुनगुनाते रहे. समीर और वंदना के मध्य बिचौलियों की भूमिका निभाते हुए दोनों खुद भी प्रेम की डोरी में बंध गए थे, यह बात दोनों की समझ में आ गई थी. सीमा के अनुमान के मुताबिक, वंदना और समीर के बीच खेले जा रहे नाटक का अंत हुआ जरूर पर उस अंदाज में नहीं जैसा सीमा ने सोच रखा था.
वंदना को दिनेशजी के पीछे स्कूटर पर बैठ कर लौटते देख समीर किलसता है, इस की जानकारी उस के तीनों सहयोगियों को थी. वे पूरा दिन समीर के मुंह से उन के खिलाफ निकलते अपशब्द भी सुनते रहते थे. सीमा को नहीं, पर ओमप्रकाश और महेश को समीर से कुछ सहानुभूति भी हो गई थी.
उन्हें भी अब लगता था कि वंदना और दिनेश साहब के बीच कुछ अलग तरह की खिचड़ी पक रही थी. वे उस की बातों पर कुछ ज्यादा ध्यान देते थे. गुरुवार को भोजनावकाश में दिनेशजी और वंदना साथसाथ सीमा के पास किसी कार्यवश आए, तो समीर अचानक खुद पर से नियंत्रण खो बैठा.
‘‘सर, मैं आप से कुछ कहना चाहता हूं,’’ अपना खाना छोड़ कर समीर उन तीनों के पास पहुंच, तन कर खड़ा हो गया.
‘‘कहो, क्या कहना चाहते हो,’’ उन्होंने गंभीर लहजे में पूछा.
ओमप्रकाश और महेश उत्सुक दर्शक की भांति समीर की तरफ देखने लगे. सीमा के चेहरे पर तनाव झलक उठा. वंदना कुछ घबराई सी नजर आ रही थी.
‘‘सर, आप जो कर रहे हैं, वह आप को शोभा नहीं देता,’’ समीर चुभते स्वर में बोला.
‘‘क्या मतलब है तुम्हारी इस बात का?’’ वे गुस्सा हो उठे.
‘‘वंदना और आप की कोई जोड़ी नहीं बनती. आप को उसे फंसाने की गंदी कोशिशें छोड़नी होंगी.’’
‘‘यह क्या बकवास…’’
‘‘सर, एक मिनट आप शांत रहिए और मुझे समीर से बात करने दीजिए,’’ दिनेश साहब से विनती करने के बाद सीमा समीर की तरफ घूम कर तीखे लहजे में बोली, ‘‘तुम्हें वंदना के मामले में बोलने का कोई अधिकार नहीं, समीर. वह अपना भलाबुरा खुद पहचानने की समझ रखती है.’’
‘‘मुझे पूरा अधिकार है वंदना के हित को ध्यान में रख कर बोलने का. तुम लाख वंदना को भड़का लो, पर हमें अलग नहीं कर पाओगी, मैडम सीमा.’’
‘‘अलग मैं नहीं करूंगी तुम दोनों को, मिस्टर. तुम ही उसे धोखा दोगे, इस बात को ले कर वंदना के दिमाग में कोई शक नहीं रहा है,’’ सीमा भड़क कर बोली.
‘‘यह झूठ है.’’
‘‘तुम ही राजेशजी की बेटी को देखने गए थे. फिर तुम्हारी बात पर कौन विश्वास करेगा?’’ सीमा ने मुंह बिगाड़ कर पूछा.
‘‘वह…वह मेरी गलती थी,’’ समीर वंदना की तरफ घूमा, ‘‘मुझे अपने मातापिता के दबाव में नहीं आना चाहिए था, वंदना. पर उस बात को भूल जाओ. यह सीमा तुम्हें गलत सलाह दे रही है. दिनेश साहब के साथ तुम्हारा कोई मेल नहीं बैठता.’’
‘‘तो किस के साथ बैठता है?’’ वंदना को कुछ कहने का अवसर दिए बिना सीमा ने तेज स्वर में पूछा.
‘‘म…मेरे साथ. मैं वंदना से प्यार करता हूं,’’ समीर ने अपने दिल पर हाथ रखा.
‘‘तुम्हारी बात पर विश्वास नहीं किया जा सकता, समीर.’’
‘‘मैं वंदना से शादी करूंगा.’’
‘‘तुम ऐसा करोगे, क्या प्रमाण है इस बात का?’’
‘‘प्रमाण यह है कि मेरे मातापिता हमारी शादी को राजी हो गए हैं. उन्हें मैं ने राजी कर लिया है. पर…पर मुझे लगता है कि मैं वंदना का प्यार खो बैठा हूं,’’ समीर एकाएक उदास हो गया.
‘‘कब तक कर लोगे तुम वंदना से शादी?’’ सीमा ने उस के आखिरी वाक्य को नजरअंदाज कर सख्त लहजे में पूछा.
‘‘इस महीने की 25 तारीख को.’’
‘‘यानी 10 दिन बाद?’’ सीमा ने चौंक कर पूछा.
‘‘हां.’’
सीमा, वंदना और दिनेश साहब फिर इकट्ठे एकाएक मुसकराने लगे. समीर आर्श्चयभरी निगाहों से उन्हें देखने लगा.
‘‘समीर, वंदना और मेरे संबंध पर शक मत करो,’’ दिनेश साहब ने कदम बढ़ा कर दोस्ताना अंदाज में समीर के कंधे पर हाथ रखा.
‘‘वंदना सिर्फ मेरी है, मेरे दिल का यह विश्वास तुम्हारी पिछले दिनों की हरकतों से डगमगाया है, वंदना,’’ समीर आहत स्वर मेें बोला.
‘‘वे सब बातें मेरे निर्देशन में हुई थीं, समीर,’’ सीमा मुसकराते हुए बोली, ‘‘वह सब एक सोचीसमझी योजना थी. सर और मेरी मिलीभगत थी इस मामले में. वह सब नाटक था.’’
‘‘मैं कैसे विश्वास कर लूं तुम्हारी बातों का, सीमा?’’ समीर अब भी परेशान व चिंतित नजर आ रहा था.
‘‘मैं कह रही हूं न कि वंदना और दिनेश साहब के बीच कोई चक्कर नहीं है,’’ सीमा खीझ भरे स्वर में बोली.
समीर फिर भी उदास खड़ा रहा. वातावरण फिर तनाव से भर उठा.
‘‘भाई, तुम्हारा विश्वास जीतने का अब एक ही तरीका मुझे समझ में आता है,’’ दिनेश साहब कुछ झिझकते हुए बोले, ‘‘मैं प्रेम करता हूं, पर वंदना से नहीं. कल शाम ही सीमा और मैं ने जीवनसाथी बनने का निर्णय लिया है,’’
‘‘सच, सीमा दीदी?’’ वंदना के इस प्रश्न के जवाब में सीमा का गोरा चेहरा शर्म से गुलाबी हो उठा.
‘‘हुर्रे,’’ एकाएक समीर जोर से चिल्ला उठा, तो सब उस की तरफ आश्चर्य से देखने लगे.
‘‘बहुत खुश हो न, वंदना को पा कर तुम, समीर,’’ दिनेश साहब हंस कर बोले, ‘‘तुम्हें सीमा का दिल से धन्यवाद करना चाहिए. वह एक समझदार बिचौलिया न बनती, तो वंदना और तुम्हारी शादी की तारीख इतनी जल्दी निश्चित न हो पाती.’’
‘‘शादी हमारी तो बहुत पहले से निश्चित है, सर. मुझे ही नहीें, हम सब को इस वक्त जो बेहद खुशी का अनुभव हो रहा है, वह इस बात का कि सीमा और आप ने जीवनसाथी बनने का निर्णय ले लिया है,’’ कहते हुए समीर अपनी मेज के पास पहुंचा और दराज में से एक कार्ड निकाल कर उस ने उन को पकड़ाया. कार्ड वंदना और समीर की शादी का था जो वाकई 25 तारीख को होने जा रही थी. कार्ड पढ़ कर सीमा और दिनेश साहब के मुंह हैरानी से खुले रह गए. वंदना मुसकराती हुई समीर के पास आ कर खड़ी हो गई. समीर उस का हाथ अपने हाथ में ले कर प्रसन्नस्वर में बोला, ‘‘सर, वंदना और मेरी अनबन नकली थी. सीमा और आप के जीवन के एकाकीपन को समाप्त करने को पिछले कई दिनों से हम सब ने एक शानदार नाटक खेला है.
‘‘हमारी योजना में बड़े बाबू, महेशजी, वंदना और मैं ही नहीं, मेरे मातापिता, सीमा की मां, मामाजी और मामाजी के पड़ोसी राजेशजी तक शामिल थे. मेरे लड़की देखने जाने की झूठी खबर से हमारी योजना का आरंभ हुआ था. वंदना और मैं नहीं, सीमा और आप हमारे इशारों पर चल रहे थे. अब कहिए. बढि़या बिचौलिए हम रहे या आप?’’ ‘‘धन्यवाद तुम सब का,’’ दिनेशजी ने लजाती सीमा का हाथ थामा तो सभी ने तालियां बजा कर उन्हें सुखी भविष्य के लिए अपनीअपनी शुभकामनाएं देना आरंभ कर दिया.