अंडकोष के दर्द को अनदेखा करना हो सकता है खतरनाक, जानें कैसे

अंडकोष के कैंसर पर नई रिसर्च करने वाले अमेरिका के आर्मी मैडिकल सैंटर के यूरोलौजी औंकोलौजिस्ट विभाग के प्रमुख डा. जूड डब्लू मोले का कहना है कि पुरुष अंडकोष के दर्द को सामान्य रूप में लेते हैं जिस की वजह से वे डाक्टर के पास देर से जाते हैं. कुछ डाक्टर के पास जाते भी हैं तो डाक्टर पहचानने में गलती कर जाते हैं. साधारण बीमारी समझ कर उस का इलाज कर देते हैं. कैंसर विशेषज्ञ डा. एम के राणा का कहना है कि अधिकतर भारतीय पुरुष अंडकोष के कैंसर से अनजान हैं जिस की वजह से वे अपने अंडकोष में आए परिवर्तन की ओर ध्यान नहीं देते हैं. जब समस्या बढ़ जाती है तब डाक्टर के पास पहुंचते हैं.

हर पुरुष को चाहिए कि वह अपने अंडकोष में आए परिवर्तन पर ध्यान रखे. अंडकोष में दर्द, सूजन, आसपास भारीपन, अजीब सा महसूस होना, लगातार हलका दर्द बना रहना, अचानक अंडकोष के साइज में काफी अंतर महसूस करना, अंडकोष पर गांठ, अंडकोष का धंसना आदि लक्षण दिखाई देने पर तुरंत डाक्टर से मिलना चाहिए. पुरुषों में यह समस्या किसी भी उम्र में हो सकती है.

अंडकोष कैंसर के कारण

-किसी भी व्यक्ति के अंडकोष में कैंसर उत्पन्न हो सकता है. इस के होने की कुछ वजहें ये हैं :

क्रिस्टोरचाइडिज्म : यदि किसी युवक के बचपन से ही अंडकोष शरीर के अंदर धंसे रहें तो उसे अंडकोष कैंसर की समस्या हो सकती है. क्रिप्टोरचाइडिज्म का इलाज बचपन में ही करवा लेना चाहिए ताकि बड़े होने पर उसे खतरनाक समस्या से न जूझना पड़े. सर्जन छोटा सा औपरेशन कर के अंडकोष को बाहर कर देते हैं.

  • आनुवंशिकता : यदि पिता, चाचा, नाना, भाई आदि किसी को अंडकोष के कैंसर की समस्या हुई हो तो सावधान हो जाना चाहिए. टीएसई यानी टैस्टीक्युलर सैल्फ एक्जामिनेशन द्वारा अंडकोष की जांच करते रहना चाहिए.
  • बचपन की चोट : बचपन में खेलते वक्त कभी किसी बच्चे को यदि अंडकोष में चोट लगी है तो बड़े होने पर उसे अंडकोष के कैंसर की समस्या उत्पन्न हो सकती है. बचपन में चोट लगने वाले पुरुषों के अंडकोष में किसी तरह का दर्द, सूजन आदि महसूस होने पर तुरंत डाक्टर को दिखाना चाहिए.
  • हर्निया : हर्निया की समस्या की वजह से भी किसीकिसी के अंडकोष में दर्द व सूजन उत्पन्न हो जाती है. ऐसे में डाक्टर से शीघ्र मिलना चाहिए.
  • हाइड्रोसील : हाइड्रोसील की समस्या होने पर अंडकोष की थैली में पानी जैसा द्रव्य जमा हो जाता है. इस में अंडकोष में दर्द भले ही न हो लेकिन थैली के भारीपन से अंडकोष प्रभावित हो जाते हैं जिस की वजह से अंडकोष का कैंसर हो सकता है.
  • इंपोटैंसी : नई खोज के अनुसार, इंपोटैंसी की वजह से भी अंडकोष के कैंसर की समस्या उत्पन्न हो सकती है. डा. जूड मोले बताते हैं कि जिन लोगों को अंडकोष कैंसर की समस्या पाई गई है उन में से अधिकतर पुरुष इंपोटैंसी यानी नपुंसकता के शिकार थे.
  • अंडकोष का इलाज : अंडकोष में असामान्यता दिखाई देने पर तुरंत डाक्टर से मिलना चाहिए. डा. राना का कहना है कि ब्लड, यूरिन टैस्ट व अल्ट्रासाउंड द्वारा बीमारी का पता लगा लिया जाता है. बीमारी की स्थिति के मद्देनजर मरीज को दवा, कीमोथेरैपी या सर्जरी की सलाह दी जाती है. जिस तरह से महिला अपने स्तन का सैल्फ टैस्ट करती है उसी प्रकार पुरुष अपने अंडकोष का सैल्फ टैस्ट कर के जोखिम से बच सकते हैं.

सावधानी

विपरीत पोजिशन में संबंध बनाते वक्त ध्यान रखें कि अंडकोष में चोट न लगे.

तेज गति से हस्तमैथुन न करें, इस से अंडकोष को चोट लग सकती है.

किसी भी हालत में शुक्राणुओं को न रोकें. उन्हें बाहर निकल जाने दें नहीं तो यह शुक्रवाहिनियों में मर कर गांठ बना देते हैं. आगे चल कर कैंसर जैसी समस्या उत्पन्न हो सकती है.

क्रिकेट, हौकी, फुटबाल, कुश्ती आदि खेल खेलते समय अपने अंडकोष का ध्यान रखें. उस में चोट न लग जाए. चोट लगने पर तुरंत डाक्टर को दिखाएं.

टाइट अंडरवियर न पहनें, लंगोट बहुत अधिक कस कर न बांधें. इस से अंडकोष पर अधिक दबाव पड़ता है.

सूती और हलके रंग के अंडरवियर पहनें. नायलोन के अंडरवियर पहनने से अंडकोष को हवा नहीं मिल पाती है. गहरे रंग का अंडरवियर अंडकोष को गरमी पहुंचाता है.

हमेशा अंडरवियर पहन कर न रहें. रात के वक्त उसे उतार दें जिस से अंडकोष को हवा लग सके.

अधिक गरम जगह जैसे भट्ठी, कोयला इंजन के ड्राइवर, लंबी दूरी के ट्रक ड्राइवर आदि अपने अंडकोष को तेज गरमी से बचाएं.

अंडकोष पर किसी प्रकार के तेल की तेजी से मालिश न करें. यह नुकसान पहुंचा सकता है.

बहरहाल, अंडकोष में किसी भी प्रकार की तकलीफ या फर्क महसूस करने पर खामोश न रहें. डाक्टर से सलाह लें. अंडकोष की हर तकलीफ कैंसर नहीं होती लेकिन आगे चल कर वह कैंसर को जन्म दे सकती है इसलिए इस से पहले कि कोई तकलीफ गंभीर रूप ले, उस का निदान कर लें.

घबराहट में क्यों आता है पसीना

क्याआप के साथ भी कभी ऐसा हुआ है कि आप कौंफ्रैंस रूम में खड़े हो कर प्रेजैंटेशन दे रहे हैं, सामने बौस, सीनियर्स और कोवर्कर्स बैठे हैं. मीटिंग काफी महत्त्वपूर्ण है और आप के दिल की धड़कनें बढ़ी हुई हैं. हथेलियां पसीने से भीग रही हैं?

अपने हाथों को आप किसी तरह पोंछने का प्रयास कर रहे होते हैं और घबराहट में आप के हाथों से नोट्स गिरतेगिरते बचते हैं. ऐसी परिस्थिति में न सिर्फ आप का आत्मविश्वास घटता है बल्कि आप के व्यक्तित्त्व को ले कर दूसरों पर नकारात्मक असर पड़ता है. यह एक सामान्य प्रक्रिया है जो अकसर हमारे साथ होती है. यह अत्यधिक तनाव अथवा तनावपूर्ण परिस्थितियों की एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया है.

पहली मुलाकात, सामाजिक उत्तरदायित्व अथवा किसी निश्चित कार्य को न कर पाने के भय के दौरान भी कुछ इसी तरह की स्थिति महसूस होती है. कई दफा तीखे मसालेदार भोजन, जंक फूड्स, शराब का सेवन, धूम्रपान या कैफीन के अधिक प्रयोग से भी ऐसा हो सकता है.

पसीना शरीर के कुछ खास हिस्सों में अधिक आता है. जैसे हमारी हथेलियां, माथा, पैर के तलवे, बगल की जगहों आदि में, क्योंकि इन हिस्सों में स्वेटग्लैंड्स अधिक मात्रा में होते हैं.

पसीना निकलता है ताकि हमारे शरीर का तापमान घट जाए. यही वजह है कि जब आप जौगिंग पर जाते हैं, व्यायाम करते हैं, मेहनत का काम करते हैं या फिर गरमी अधिक हो रही होती है तो आप को पसीना आने लगता है. तनावपूर्ण परिस्थिति में भी हमारे शरीर का तापमान बढ़ जाता है और पसीना आता है.

  1. सरोज सुपर स्पैश्यल्टी हौस्पिटल के

डा. संदीप गोविल कहते हैं कि जब आप नर्वस होते हैं तो आप के स्ट्रैस हारमोन ऐक्टिवेट हो जाते हैं. इस से आप के शरीर का तापमान और हृदय की धड़कनें बढ़ जाती हैं. मस्तिष्क में मौजूद हाइपोथेलेमस जो पसीने को नियंत्रित करता है, स्वेट ग्लैंड्स को संदेश भेजता है कि शरीर को ठंडा करने के लिए थोड़ा पसीना निकालना जरूरी है. सिंपैथेटिक नर्वस सिस्टम इमोशनल सिग्नल्स को पसीने में बदल देता है. आप इस प्रक्रिया को नियंत्रित नहीं कर सकते.

2. कैसे बचें इन परिस्थितियों से

परेशान न हों और न ही घबराएं. इस से आप की परेशानी और बढ़ जाएगी. घबराहट में सांसें तेजतेज चलने लगती हैं. रक्त का प्रवाह बढ़ जाता है, जिस से और अधिक पसीना निकलने लगता है.

3. रिलैक्सेशन और मैडिटेशन

4.अगर आप के दिल की धड़कनें तेज हो गईं

हों तो थोड़ा रिलैक्स होने का प्रयास करें. अपनी ब्रीदिंग पर फोकस करें. गहरी सांसें लें. कुछ देर तक (5-6 सेकंड) रोक कर रखें और फिर छोड़ दें. इस से आप का मन शांत होगा और स्ट्रैस घट जाएगा.

5.नियमित रूप से ऐक्सरसाइज करें

जो लोग नियमित रूप से ऐक्सरसाइज करते हैं, उन्हें तनाव कम होता है. आत्मविश्वास बढ़ता है. आप जितने अधिक आत्मविश्वासी होंगे तनावपूर्ण स्थितियों को उतने बेहतर तरीके से हैंडल कर पाएंगे.

6. शरीर में जल का स्तर बनाए रखें

अपने शरीर का तापमान कम रखने के लिए पानी अधिक पीएं ताकि अधिक ऊष्मा को आप का शरीर त्वचा से पसीने के रूप में बाहर निकाल दे.

7. ऐंटीपर्सपिरैंट इस्तेमाल करें

ऐंटीपर्सपिरैंट में पसीने को ब्लौक करने की क्षमता होती है. अगर आप को नर्वस, स्ट्रैस या ऐंग्जाइटी स्वैट की समस्या है, हथेलियों में पसीना ज्यादा आता है तो ऐंटीपर्सपिरैंट लगाएं.

8. अपने पास थोड़ा बेकिंग

पाउडर, कौर्नस्टार्च आदि रखें और किसी तनावपूर्ण स्थिति का सामना करने से पहले इसे हथेलियों पर अप्लाई करें.

कटहल के बीज क्यों है आपके लिए खतरनाक? जानें यहां

कटहल आमतौर सब्जी और फल के रुप में प्रयोग में लाया जाता है जो खाने में तो काफी स्वादिष्ट तो होती ही है और ये काफी सेहत के लिए फायदेमंद भी होती है. भारत के कुछ हिस्सों में इसका अचार भी काफी पसंद किया ज्यादा है. इसके अलावा लोग कटहल के बीजों को भी खूब चाव से खाते हैं. हालांकि कटहल के बीजों में ढेर सारे पोषक तत्व होते हैं, फिर भी कुछ हेल्थ एक्सपर्ट्स मानते हैं कि कई बार कटहल के बीज जहरीले हो सकते हैं और व्यक्ति की सेहत बिगाड़ सकते हैं या जान भी ले सकते हैं. तो चलिएं जानते है कटहल के बीज आपकी सेहत के लिए फायदेमंद है या नुकसान दायक.

पोषक तत्व से भरपूर है कटहल

कटहल के बीजों में ढेर सारे पोषक तत्व होते हैं, जो शरीर के लिए फायदेमंद होते हैं. इन बीजों में स्टार्च, प्रोटीन, विटामिन्स, मिनरल्स और एंटीऑक्सीडेंट्स अच्छी मात्रा में होते हैं. इसके अलावा 28 ग्राम कटहल के बीजों में 53 कैलोरीज, 11 ग्राम कार्बोहाइड्रेट्स, 2 ग्राम प्रोटीन, 0.5 ग्राम फाइबर होते हैं. कटहल के बीजों में विटामिन बी, मैग्नीशियम, फौस्फोरस आदि भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं.

कटहल के बीज किन बीमारियां के लिए है फायदेमंद

  1. डायरिया के मरीजों के लिए कटहल के बीज फायदेमंद हो सकते हैं क्योंकि इनमें ऐंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं.
  2. कटहल के बीजों में कुछ खास एंटीऔक्सीडेंट्स होते हैं, जो आपको कैंसर के खतरे भी बचाते हैं. इन एंटीऔक्सीडेंट्स में फ्लैवोनौइड्स, सैपोनिन्स और फेनौलिक्स हैं.
  3. कटहल के बीज बैड कोलेस्ट्रौल घटाने में भी मददगार होते हैं.

कटहल के बीजों के जहरीले हो सकते है

अगर आप कुछ खास दवाएं खाते हैं, तो कहटल के बीजों के कारण आपके शरीर से अधिक मात्रा में खून निकल सकता है. ये दवाएं जैसे- एस्पिरिन, आईबूप्रोफेन, नैपरोक्सेन, प्लेटलेट्स घटाने वाली दवाएं, खून पतला करने वाली दवाएं है.

हालांकि अगर आप कटहल के बीजों को उबाल लेते हैं या आग पर भून लेते हैं, तो ये एंटीन्यूट्रिएंट्स खत्म हो जाते हैं और फिर आपको कटहल के बीजों को खाने से कोई नुकसान नहीं होगा.

कटहल के बीजों को कैसे खाएं?

कहटल के बीज तमाम पौष्टिक गुणों से भरपूर होते हैं इसलिए इन्हें खाना आपके लिए फायदेमंद हो सकता है. मगर इन्हें खाते समय आपको कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है. कभी भी कटहल के बीजों को कच्चा न खाएं. खाने से पहले इन्हें 20-30 मिनट तक पानी में उबाल लें, तभी खाएं. अगर भूनकर खा रहे हैं, तो इन बीजों को 205 डिग्री सेल्सियस पर कम से कम 20 मिनट तक भूनें.

अंकुरित अनाज क्यों है सेहत के लिए फायदेमंद, जानें

कहते है सुबह का नाश्ता दिन के खाने से भी ज्यादा जरुरी है क्योंकी सोते हुए उन 8 घंटो में हमारे शरीर में कुछ भी नही जाता. इसलिए सुबह का नाश्ता ऐसा होना चाहिए तो पेट के साथ साथ शरीर के लिए भी स्वस्थ हो. सुबह सुबह तेल मसालों वालों खाना अपकी सेहत के लिए कतरनाक हो सकता है इसलिए अगर आप अंकुरित अनाज सुबह नाश्ते में खाऐंगे तो अच्छा होगा.

अंकुरित अनाज को स्‍वास्‍थ्‍य के लिए बहुत अच्छा माना जाता है. अंकुरित अनाज पोषक तत्वों से भरपूर होता है इसीलिए हेल्दी रहने के लिए अंकुरित अनाज का सेवन बहुत जरूरी है अनाज अंकुरित होने के बाद उसमें विटामिन डी सहित मिलिरल और विटामिन का स्तर बढ़ जाता है. इसके अलावा प्रोटीन की मात्रा भी बढ़ जाती है. अंकुरित होने की प्रक्रिया के दौरान, फलियों में कुछ संग्रहित स्टार्च का उपयोग छोटे पत्तों और जड़ों के निर्माण के लिए और विटामिन सी के निर्माण में किया जाता है.

अगर आप बहुत समय से बढ़ते वजन से परेशान है तो जल्द से जल्द अंकुरित अनाज को अपने खाने में शामिल जरुर करें. वजन और पेट संबंधी किसी भी समस्या के लिए अंकुरित काफी असरकारक होते है. अंकुरित अनाज एंटीऔक्सीडेंट और विटामिन ए,बी,सी, ई से भरपूर होता है. इतना ही नहीं इसमें फास्फोरस, आयरन, कैल्शियम, जिंक और मैग्नीशियम जैसी पौष्टिक तत्व भी होते हैं.

नाश्ते है किन किन अनाज को करें अंकुरित

आमतौर पर अंकुरित अनाज नाश्ते के रूप में लिया जाना चाहिए.आपको नाश्ता हैवी करना चाहिए.ऐसे में आप अंकुरित अनाज से नाश्ता करेंगे तो आपको बहुत फायदा होगा. इतना ही नहीं आप यदि सोयाबीन, काले चने, मूंग दाल और  मोंठ को अंकुरित करके खाएंगे तो इन खाघ पदार्थों में मौजूद पोषक तत्वों की मात्रा दोगुनी हो जाएगी.

अंकुरित करें डाइजेशन को दूरुस्त

अंकुरित अनाज खाने से आपकी पेट संबंधी समस्याएं दूर हो जाती हैं. फाइबर युक्त रेशेदार अंकुरित अनाज खाने से आपका पाचनतंत्र मजबूत बनता है.

मौनसून में फौलो करें ये डाइटचार्ट

बारिश का मौसम आते ही खाने के स्वाद मे भी बदलाव जरुरी होता होतो है. गरमा गरम खाने का मन सभी को करता है पर खाने में थोड़ी सी लापरवाही आपकी हेल्थ के लिए काफी परेशानी पैदा कर सकती है. बारिश में बाजार में मिलने वाली चटपटी चीजें आपको ज्यादा आकर्षित करती हैं. मौनसून में खानपान में थोड़ी सी लापरवाही आपको फूड पौयजनिंग, पेट के इंफेक्शन और कालरा, डायरिया जैसी बीमारियां दिला सकती है इसलिए आज हम लेकर आए है सेहतमंद और हेल्दी फूड टीप्स जिसे आपको जरुर ट्राय करना चाहिए.

बारिश के मौसम की स्पेशल डाईट

  • इस मौसम में दाल, सब्जि़यां व कम फैट वाला खाना खाएं.
  • बारिश में शरीर में वायु की वृद्धि होती है, इसलिए हल्के व शीघ्र पचने वाले खाने को ही खाएं
  • बरसात के मौसम में वातावरण में काफी नमी रहती है. जिसके कारण प्यास कम लगती है। लेकिन फिर भी पानी जरूर पीयें.
  • बरसात में नींबू की शिकंजी पीयें.
  • फलों को साबुत खाने के बजाय सलाद के रूप में लें. क्योंकि इस मौसम में फलों में कीड़ा होने की संभावना काफी अधिक रहती है और अगर आप उन्हें सलाद के रूप में काटकर खाएंगे तो आप यह देख सकेंगे कि कहीं फल भीतर से खराब तो नहीं है.
  • ब्रेकफास्ट में ब्लैक टी के साथ पोहा, उपमा, इडली, सूखे टोस्ट या परांठे ले सकते है.
  • लंच में तले-भुने खाने की बजाय दाल व सब्जी के साथ सलाद और रोटी लें.
  • डिनर में वेजीटेबल, चपाती और सब्जी लें.
  • इस मौसम में गरमागरम सूप काफी फायदेमंद रहता है.
  • दूध में रोजाना रात को हल्दी मिलाकर पीने से पेट और त्वचा दोनों स्वस्थ्य रहेंगे.

बारिश के मौसम मे इसे खाने से बचे

  • बरसात में गर्मागरम पकौड़े और समोसा खाने को मन जरूर ललचाता है. लेकिन बात अगर सेहत की हो तो इनसे दूर रहने में ही आपकी भलाई है.
  • गरिष्ठ भोजन, उड़द, अरहर, चौला आदि दालें कम खाएं.
  • दही से बनी चीजों का सेवन इस मौसम में कम करें.
  • इस मौसम में फलों के जूस का सेवन सोच-समझकर करें. बारिश में फल पानी में भीगते रहते हैं इससे फलों में रस की तुलना में पानी ज्यादा भर जाता है.

गाइनिकोमेस्टिया: मैन बूब्स होने के क्या है कारण, जानें

मेन बुब्स या गाइनिकोमेस्टिया एक ऐसी समस्या है जो आज कल काफी पुरुषों में देखी जाने लगी हैं इस समस्या का मुख्य कारण एस्ट्रोजन और टेस्टासिटरौन हार्मोन के असन्तुलन से होता हैं. समय रहते अगर आप डाक्टर से सलाह ले लेते है तो इस समस्या से निजाद मिल जाता हैं. पुरुषों में स्तन के टिशु बहुत कम मात्रा में होते हैं, जबकि स्त्रियों में किशोरावस्था ये हार्मोन के प्रभाव से अच्छी तरह विकसित होते हैं. लोग इस समस्या को मेडिकली ना लेकर इसे किसी दूसरी चीजों से जोड़ देते हैं. जिससे ना चाहते हुए भी हम शर्मिंदगी महसूस करते हैं. हालांकि ये स्त्रियों जैसे बड़े नहीं होते नहीं होते लेकिन फिर भी आकार में परिवर्तन होने के कारण ये सभी की नजरों में आले लगते हैं. कुछ ऐसी चीजें जिसे आप अनुबव कर सकते है- छाती फूलना, स्तन ग्रन्थि के टिशुओं में सूजन, स्तन टिशू में चमड़ी फैलने से दर्द हो सकता है जोकि इंटर्नल इन्फेक्शन को भी दर्शाता हैं.

क्या है कारण गाइनिकोमेस्टिया के

स्त्री और पुरुषों में टेस्टोस्टिरोन और इस्ट्रोजन हार्मोन की वजह से ही यौनांगों का विकास और रखरखाव होता है. पुरुषों टेस्टास्टिरोन से पुरुषत्व जैसे, पेशिय घनता, शरीर के बालों और स्त्रियों में एस्ट्रोजन के अधीन स्त्रीत्व जैसे, स्तन विकास, होते हैं. पुरुषों में एस्ट्रोजन की अपेक्षा टेस्टास्टिरोन के स्तर में  कमी होने से गाइनिकोमेस्टिया होता है. हार्मोन का सन्तुलन कई कारणों से बिगड़ सकता है. ये कारण प्राकृतिक हार्मोन का परिवर्तन, औषधियां या कुछ शारीरिक अवस्थाएं हो सकते हैं. कुछ रोगियों में कई बार गाइनिकोमेस्टिया के कारण का पता नहीं भी लग पता है.

गाइनिकोमेस्टिया होने पर करें एक्सरसाइज

कुछ एक्सरसाइजों का नियमित अभ्यास करने से पुरुषों में बढ़े हुए स्तनों की समस्या से निपटा जा सकता है. ये एक्सरसाइज हैं सीने को हष्ट-पुष्ट आकार देने वाली पुश अप एक्सरसाइज, शरीर को ताकत देने वाली और सीने व कंधे को बेहतरीन शेप देने वाली चिन अप एक्सरसाइज, सीने की चौड़ाई को बढ़ा वाली डंबल फ्लाइज एक्सरसाइज और बेंच प्रेस एक्सरसाइज.

पुरुष स्तनों के लिए लिपोसक्शन 

सामान्य ग्रंथियों होने और फैट की वृद्धि ही गाइनिकोमेस्टिया होती है. लिपोसक्शन की मदद से स्तनों को पुरुषों जैसा सामान्य आकार दिया जा सकता है. ऐसे करने के लिये अतिरिक्त फैट को इस स्थान से निकाल दिया जाता है. ज्यादातर मामलों में लिपोसक्शन की मदद से परिवेश घेरे के रंजित (पिमेंटिड) भाग के किनारों पर चीरे लगाकर अतिरिक्त ग्रंथियों के ऊतकों को हटाने का काम किया जाता है. जब पुरुषों में स्तन वृद्धि के कारण त्वचा खींच जाती है तो अतिरिक्त त्वचा को हटाना जरूरी हो जाता है. इसके अलावा पुरुष स्तनों के आकार को कम करने के लिए तुमेसेन्ट (Tumescent) लिपोसक्शन को भी लोकल ऐनिस्थीश़िया की मदद से किया जाता है.

तो अगर आप भी इस समस्या से परेशान हो तो घवराईएं नहीं. शर्मिंदा होने के बजाएं आप डाक्टर से सलाह ले और अपना इलाज शुरु कराएं.

थकान को ना करें अनदेखा, हो सकती हैं ये 5 बीमारियां

थकान एक ऐसी समस्या है जो आज के समय में सभी उम्र के लोगों मे देखने को मिलती हैं. किसी काम में मन नही लगना या फिर शरीर में सुस्ती रहने से लाइफ में ज्यादा मजा नही रह जाता हैं. अधूरी नींद या तनाव से होने वाली थकान, पूरी नींद लेने से खत्म हो जाती है पर थकान अगर किसी बीमारी की वजह से है तो वो आसानी से ठीक नहीं होती. थकान को हमेशा ज्यादा काम करने या नींद ना पूरी होने से जोड़ कर हम ना तो  डाक्टर से सलाह लेते है और ना हि इसके बारे में विचार करते है बल्कि इसको अनदेखा कर देते है पर क्या आप जानते है की थकान होना किसी बीनारी का संकेत भी हो सकता हैं. आज हम आपको बताएंगे की थकान से जुड़ी कौन कौन सी समस्या हो सकती हैं.

थायराइड भी हो सकता है कारण

थायराइड हौर्मोन का स्तर कम होने पर भी शरीर की ऊर्जा का स्तर बिगड़ सकता है. सामान्य तौर पर थायराइड की समस्या औरतों को होती हैं, मगर कई बार ये दिक्कत पुरुषों को भी आ सकती है. पुरुषों में अगर ऐसी समस्या होती है तो समय पर ध्यान देना जरुरी है वरना ये गंभीर समस्या भी हो सकती है.

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टेस्टोस्टेरोन का रखे ध्यान

टेस्टोस्टेरोन नाम के हौर्मोन का स्तर पुरुषों में वयस्कता और किशोरवस्था के प्रारंभिक चरणों में सबसे अधिक सक्रिय होता है. जैसे-जैसे पुरूषों की उम्र बढ़ती है खासकर जब उनकी उम्र 40 के आसपास होती है तो, उनके टेस्टोस्टेरोन का स्तर प्रति वर्ष 1% कम होता जाता है. साफ तौर पर नही कहा जा सकता है की इस हौर्मोन के गिरने की वजह क्या है, उम्र बढ़ने की वजह से इसका स्तर गिर रहा है या ह्य्पोगोनाडिस्म जैसी बीमारी भी इसकी वजह हो सकती है.टेस्टोस्टेरोन में गिरावट से सेक्स ड्राइव यानि सेक्स में रुचि कम हो जाती है और नींद संबंधी विकार भी हो सकते हैं, जो थकान और कम ऊर्जा के  लिए भी जिम्मेदार होते हैं. इसलिआए अगर अपमें भी ऐसे कोई लक्षण दिख रहे है तो इसको अनदेखा ना करें.

कही डिप्रेशन ना हो इस समस्या का कारण

आज के दौर में किसी को भी डिप्रेशन हो सकता है. डिप्रेशन के लक्षण में उदासी ,सुस्त रहना, निराश रहना, नींद ना आना , किसी काम में मन न लगना और ऊर्जा स्तर भी कम हो सकता है. जिसे भी डिप्रेशन की समस्या हो उसे अपना इलाज़ जरूर कराना चाहिए वरना यह खतरनाक हो सकता है और यहां तक कि मरीज आत्महत्या की भी कोशिश कर सकता है.

नींद संबंधी बीमारी होना

नींद न आना या नींद की गुणवत्ता की कमी के कारण भी ऊर्जा के स्तर में कमी आती है. कम ऊर्जा के स्तर के लिए नींद भी जिम्मेदार होती है अगर आप नाईट शिफ्ट करते हैं,  देर रात तक जागते हैं तो भी ये दिक्कत आती है. ये एक समान्य बात है क्योंकि आज के इस व्यास्थ में समय में लोग काम में ज्यादा परेशान रहते हैं.

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अच्छा खाना और एक्सरसाइज ना करना

व्यायाम और सही खान-पान की कमी के कारण भी थकान और ऊर्जा का स्तर कम हो सकता है. नियमित रूप से व्यायाम करने से अच्छी नींद आती है और जीवनशैली में भी सुधार आता है. सही और पौष्टिक आहार सबके लिए जरुरी है मगर इस समस्या में इसका खास ध्यान रखना चाहिए. आप इन बातों पर ध्यान रखें जिससे आप इन समस्या से परेशान ना हो.

तो ये है थकान के कुछ कारण किसे अनदेखा करना आपके लिए खतरनाक हो सकता हैं.

कई रोगों का आसान इलाज है पान के पत्ते का सेवन

पान का नाम जैसे ही आता है तो दादा के डब्बे से निकलता सरोता और साथ में चुना कथ्था याद आ ही जाता है. अंदर से दादी का पानी में भीगा हुआ पान का पत्ता लेकर हाजिर हो जाना उन कुछ यादों सा होता है जो रोजाना की बात होता हैं. पान का भारत में उन संस्कृति में शामिल है जो हर गली, मौहल्ले को एक धागे में बांधता हैं. हमारे देश में पान और सुपारी का उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों और प्रार्थनाओं में भी किया जाता है क्योंकि इसे शुभ माना जाता है. इसी में अगर हम आपसे कहे की पान खाना कई रोगों से निजाद दिलाता है तो क्यां आप मानेंगे. चलिए जानते है की पान कैसे आपनी सेहत के लिए फायदेमंद हैं…

विटामिन्स से भरपूर है पान

पान के पत्तियां विटामिन सी, थायमिन, नियासिन, राइबोफ्लेविन और कैरोटीन जैसे विटामिन से भरपूर होते हैं और इसे कैल्शियम का एक बड़ा स्त्रोत भी माना जाता हैं. हालांकि ये जरूर है कि पान के पत्ते को तंबाकू और अन्य कैंसर पैदा करने वाले सामग्रियों के साथ खाने से मुंह के कैंसर का खतरा भी बढ़ सकता है. एक रिसर्च के अनुसार ये होंठ, मुंह, जीभ और ग्रसनी के कैंसर के खतरे को बढ़ाते हैं. केवल पान का पत्ता खाना स्वस्थ्य के लिए फायदेमंद होता है.

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कैंसर और डायाबिटीज जैसे रोग के लिए फायदेमंद  

पान के पत्ते की बात करें तो इसमें फाइटोकेमिकल्स, फ्लेवोनोइड, टैनिन, अल्कलौइड, स्टेरौयड और क्विनोन जैसे शक्तिशाली एंटीऔक्सिडेंटस और एंटी इंफ्लेमेटरी यौगिक शामिल हैं. जो कैंसर और डायाबिटीज जैसे खतरनाक बामारियों को रोकने में आपकी मदद करता है. कुछ आयुर्वेदिक रिसर्च के अनुसार ये कार्डियोवस्कुलर रोग, उच्च कोलेस्ट्रौल और हाई ब्लड प्रेशर की रोकथाम में भी काफी मददगार होता है.

सर्दी जुखाम में पान के पत्ते का इस्तेमाल

लोग पान के पत्ते का उपयोग काफी लंबे समय से सर्दी और खांसी को दूर करने के लिए करते आ रहे हैं. पत्तियों को पहले सरसों के तेल में भिंगा कर गर्म किया जाता है और फिर उसे छाती पर लगाया जाता है इससे फेफड़ों में जमे कफ से काफी राहत मिलता है.

सूजन को करें कम

पान के पत्ते में एंटीऔक्सिडेंट्स और एंटी इंफ्लेमेटरी यौगिक (Compound) पाये जाते हैं जो आपके मसूड़े में गांठ या फिर सूजन हो जाने पर दर्द से राहत दिलाने में मददगार होते हैं. पान में ऐसे पोषक तत्व पाये जाते हैं जो सूजन को कम करने का काम करते हैं.

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थकान से दिलाए राहत

थकान, नींद न आना या फिर आंखों में किसी कारण से समस्या होने पर, जब आंखें लाल हो जाती है. तब आप पान के पत्ते को उबाल लें और उसे ठंडा करके, पानी के छींटे आंखों पर मारें इससे आपके आंखों को काफी राहत मिलती है और शरीर का थकान भी दूर हो जाता है.

तो ये है पान के पत्तों के कुछ फायदे जिसे जानना आपके लिए जरुरी था. तो आगे से अगर आप किसी को पान खाते देखे तो उनको सलाह दे की वो अकेला पान का पत्ता खाए ताकी उनका स्वस्थ अच्छा रहें.

इस घरेलू नूस्खे से दूर करें सांसों की बदबू

मुंह की बदबू एक ऐसी समस्या जो एक समस्या ना रहकर शर्मिंदगी का कारण बन जाती हैं जिसके चलते कौन्फिडेंस खत्म हो जाता हैं. मुंह से बदबू आने का सामान्य कारण तो पेट अच्छे से साफ ना होता हैं पर और भी कारण हैं जिसके चलते आपको ये समस्या हो सकती हैं.बहुत से लोगों के मुंह से आने वाली बदबूदार सांसो के कारण मुंह पर हाथ लगाकर हंसना बोलना पड़ता है. ऐसे में आप उससे बचने के लिए माउथवौश की मदद लेते हैं. लेकिन कई माउथवौश में एल्‍कोहल और कई और अप्राकृतिेक तत्‍व होते हैं, जो कि मुंह में प्राकृतिक पीएच लेवल पर बुरा प्रभाव डालते हैं. इस समस्या को लेकर बहुत कम लोग ही किसी डाक्टर से सलाह लेते हैं क्योंकि उनको शर्म आती हैं. इस लिए अगर घरेलू इलाज से कुछ हद तक फायदा पहुंचे तो बुरा नही होगा. आज हम लेकर आए है ऐसे ही कुछ घरेलू इलाज जिसको यूज करने से आप मुंह की बदबू से निजाद पा सकते हैं.

होममेड माउथवौश का करें यूज

बदबूदार सांसों से बचने के लिए सबसे बेहतर और सबसे अच्छा विकल्प है कि आप खुद घर पर अपना होममेड माउथवौश बनाएं. यह आपकी बदबूदार सांसो को दूर करने में आपकी मदद करेगा. इस माउथ वौश को बनाने के लिए आपको नारियल तेल, नमक और पुदीना की आवश्‍यकता पड़ेगी. यह माउथवौश आपके मुंह के लिए सुपर स्वस्थ है.

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कैसे बनाएं होममेड माउथवौश

पानी- 2 कप

नारियल का तेल – 2 बड़े चम्मच

हिमालयी गुलाबी नमक – 1 टी स्‍पून

पुदीने का तेल – 3-4 बड़े चम्मच

एक कांच के कंटेनर में 2 कप पानी, 2 बड़े चम्मच नारियल का तेल, 1 टी स्‍पून हिमालयी गुलाबी नमक, 3-4 बड़े चम्मच पुदीने का तेल डालें और इन सभी को मिलाएं. नमक अच्‍छी तरह से घुल जाना चाहिए. यदि नारियल का तेल जम जाता है, तो जार को गर्म पानी के ऊपर चलाएं.

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ऐसे करें यूज

होममेड माउथवौश को मुंह में डालने के बाद थूकने से पहले कम से कम 30 सेकंड के लिए रखें और इससे कुल्‍ला करें. सुबह या दिन जब भी आप अपनी सांस को तरोताजा करना चाहते हैं, इसका उपयोग करें. यह माउथवौश  एंटी-माइक्रोबियल, एंटी-इंफ्लेमेटरी, टौक्सिन-मुक्त होने के साथ सस्ता भी है, जो बिना किसी रसायन के आपके मुंह, दांतों और मसूड़ों को स्‍वस्‍थ व सुरक्षित रखने में मददगार है.

 

बीमारी नहीं आत्मसम्मान की लड़ाई है विटिलिगो

राह चलते कई बार हमने अपने आस पास ऐसे लोगों को देखा होगा जिनकी सफेद धब्बे वाली स्किन होती है. कई लोगों का मानना होता है की मछली खाने के बाद दूध पीने से ये समस्या होती है. उन लोगों को देखते ही हम मन में कई ऐसी धारणाएं बना लेते है या फिर उनसे घृणा कर, दूर रहने की कोशिश करते है. हां ये पढ़ते समय आपको जरुर लगेगा की नहीं हम ऐसा नहीं करते पर भारत जैसे देश में जहां शरीर का रंग खूबसूरती से जोड़ा जाता है वहां इस तरह का भेदभाव होना कोई खास बात नहीं है.

25 जून को वर्ल्‍ड विटिलिगो डे (World Vitiligo Day)  पूरे दुनिया में मनाया जाता हैं. इस बीमारी के शारीरिक प्रभाव तो अमूमन सभी जानते है पर क्या इस बीमारी से परेशान लोगों की मानसिक स्थिति से आप वाकिफ हैं?

आपको जानकर हैरानी होगी की विटिलिगो वाले लोग आत्मविश्वास और आत्म-सम्मान से संबंधित मुद्दों से काफी जूझते हैं, खासकर अगर उनकी स्थिति ज्यादा नजर आने वाली होती है तब लोगों में सामान्य संवेदना ना होने के कारण विटिलिगो के रोगियों को भावनात्मक रूप से काफी परेशानी होती है.

क्या है विटिलिगो

जिन्हें बिल्कुल भी जानकारी नहीं है, उनके लिए विटिलिगो एक त्वचा की  समस्या/बीमारी है जहां पीले सफेद पैच त्वचा पर आना शुरू हो जाते हैं. मेलेनिन(Melanin) की कमी की वजह से डिपिग्मेंटेशन होता है. विटिलिगो त्वचा के किसी भी हिस्से में हो सकता है, लेकिन आम तौर पर यह चेहरे, गर्दन, हाथों और त्वचा की क्रीज जहां बनती हैं, वहां होने की संभावना ज्यादा होती है. लेकिन विटिलिगो एक जानलेवा बीमारी नहीं है, फर्स्ट स्टेज में किसी व्यक्ति को सुनने की शक्ति में कमी होना, आंखों में जलन और सनबर्न स्किन का अनुभव हो सकता है.

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मनोवैज्ञानिक प्रभाव क्या है

विटिलिगो से पीड़ित लोगों को अक्सर अपने दोस्तों, परिवार और साथियों से भेदभावपूर्ण व्यवहार का सामना करना पड़ता हैं. कुछ को तो स्कूल में ही छेड़ा और तंग किया जाता है, जो उन्हें गहराई से मनोवैज्ञानिक स्तर पर प्रभावित करता है.

विटिलिगो मरीजों के लिए क्या करें?

  • किसी भी मनोवैज्ञानिक स्थिति के लिए विटिलिगो वाले रोगियों का मूल्यांकन किया जाना चाहिए. डिप्रेशन और चिंता के लक्षणों की नियमित जांच के साथ-साथ रोगी के जीवन की गुणवत्ता का आकलन सबसे महत्वपूर्ण है.
  • मरीजों को त्वचा विशेषज्ञ और मनोवैज्ञानिक दोनों से मदद लेनी चाहिए.
  • चिकित्सा देखभाल के अलावा रोगियों के लिए सुरक्षित और सामाजिक रूप से स्वस्थ वातावरण सुनिश्चित करने के लिए विटिलिगो के लिए सार्वजनिक संवेदीकरण कार्यक्रम भी किए जाने चाहिए.

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बहुत हद तक ग्लोबल साईकोलोजी पहले ही विकसित होना शुरू हो गया है. लोगों में विटिलिगो के बारे में जागरूकता और लोगों के बीच बेहतर संवेदनशीलता बढ़ रही है. विटिलिगो से पीड़ित लोगों को अपना समर्थन देने के लिए विभिन्न फाउंडेशन और सपोर्ट ग्रुप आगे आ रहे हैं. हालांकि, भारत में जागरूकता की स्थिति अभी भी बहुत अच्छी नहीं है. अधिक जागरूकता वाले अभियान और सार्वजनिक संवेदीकरण कार्यक्रम के साथ, हम अधिक समावेशी भविष्य की आशा कर सकते हैं. विटिलिगो कोई छुआछूत की बीमारी नही है, इससे डरने या उन पीड़ितो से भागने की बजाएं उनका साथ दे और उनके आत्मसम्मान पर कोई आंच ना आने दे.

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