मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर : निराश करती

रेटिंग : दो स्टार

‘दिल्ली 6’, ‘भाग मिखा भाग’, ‘मिर्जिया’ जैसी फिल्मों के सर्जक राकेश ओमप्रकाश मेहरा एक बार फिर एक संदेश परक फिल्म ‘मेरे प्यारे प्राइम मिस्टिर’ लेकर आए हैं. मगर इस फिल्म में वह नया परोसने में विफल रहने के साथ ही कहानी के स्तर पर काफी भटके हुए नजर आते हैं. शौचालय की जरुरत को लेकर अक्षय कुमार की फिल्म ‘ट्वायलेटःएक प्रेम कथा’ और नीला माधव पंडा की फिल्म ‘हलका’आ चुकी हैं. नीला माधव पंडा की फिल्म ‘हलका’ में बाहरी दिल्ली की झुग्गी बस्ती में रहने वाला बालक अपने घर के अंदर  शौचालय बनाने की लड़ाई लड़ता है, जबकि राकेश ओमप्रकाश मेहरा की फिल्म ‘मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर’में मुंबई के धारावी इलाके की झुग्गी बस्ती का बालक बस्ती में  शौचालय के लिए लड़ाई लड़ता है.

फिल्म की कहानी मुंबई के धारावी इलाके की झुग्गी बस्ती की है, जहां गरीब तबके के लाखों लोग रह रहे हैं. यहां एक सजह व सुखद जीवन जीने की सुविधाओं का घोर अभाव है. यहीं पर आठ वर्षीय कन्हैया उर्फ कनु (ओम कनौजिया) अपनी मां सरगम ( अंजली पाटिल) के साथ रहता है. कनु के पिता नहीं है. पता चलता है कि सरगम ने सोलह साल की उम्र में किसी लड़के से प्यार किया था और शादी से पहले ही सरगम के गर्भवती हो जाने पर वह भाग गया, तब सरगम मुंबई के धारावी इलाके में आकर रहने लगी थी. उसकी पड़ोसन राबिया (रसिका अगाशे), राबिया का पति जस्सू (नचिकेत) और उसकी बेटी मंगला(सायना आनंद) है. कनू व मंगला के दोस्त हैं रिंग टोन(आदर्श भारती) और निराला (प्रसाद). इस बस्ती में एक गगनचुंबी इमारत में रहने वाली समाज सेविका ईवा (सोनिया अलबिजूरी) अपनी कार से आती रहती हैं, जो कि मंगला के स्कूल का खर्च उठाती है और इसके बदले में मंगला के हाथों लोगों के बीच कंडोम बंटवाती हैं, जिससे लोग कम से कम बच्चे पैदा करें. यही काम वह बाद में कनु को भी देती हैं. एक कंडोम बांटने पर एक रूपया देती है.

कनु एक समाचर पत्र बेचने वाले पप्पू (नितीश वाधवा) की दुकान पर काम करता है. पप्पू, सरगम से प्यार करता है और आए दिन किसी न किसी बहाने वह सरगम से मिलने आता रहता है. इस बात को राबिया समझ जाती है. वह सरगम से कहती है कि पप्पू अच्छा लड़का और वह सरगम से प्यार भी करता है. पर सरगम उसे महत्व नहीं देती. एक दिन जब रात में सरगम षौच के रेलवे पटरी की तरफ जाती है लिए बाहर जाती है, तो उसी मोहल्ले के साईनाथ (मकरंद देशपांडे), सरगम को छेड़ने का प्रयास करता है. पर ऐन वक्त पर पुलिस हवलदार आ जाता है, जो कि साईनाथ को मारकर भगा देता है. लेकिन हवलदार के साथ आया पुलिस का अफसर सरगम के साथ बलात्कार करता है. इससे सरगम बहुत दुखी होती है. अब कनु की समझ में आ जाता है कि जिस तरह ईवा के घर के अंदर ट्वायलेट है, वैसा उसके घर या बस्ती में न होने की बवजह से उसकी मां के साथ बलात्कार हुआ. तो वह अपने दो साथियां के साथ नगरपालिका के दफ्तर जाकर ट्वायलेट बनाने की मांग करता है. नगर पालिका का अफसर उन्हे यह कहकर भगा देता है कि दिल्ली में प्राइम मिनिस्टर के पास पत्र भेजने पर ही  शौचालय बनेगा. अब कनु अपने दोस्तों के साथ प्राइम मिनिस्टर के आफिस पहुंचता है, जहा वह एक अफसर (अतुल कुलकर्णी) को पत्र देकर आ जाते हैं. मुंबई पहुंचने के बाद वह और उसके दोस्त मंदिर बनवाने, मस्जिद बनवाने आदि के नाम पर लोगों से चंदा इकट्ठा करते हैं, जिससे वह अपनी बस्ती में ट्वायलेट बनवा सके. पर एक दिन पुलिस वाले कनु व उसके दोस्तों से यह पैसा ले लेते हैं. उधर पप्पू, सरगम को समझाकर गुप्त रोग आदि की जांच करवाने के लिए कहता है. फिर दोनों शादी करने के लिए सहमत हो जाते हैं. इसी बीच प्रधानमंत्री के आफिस से नगरपालिका में पत्र आता है और कनु की बस्ती में सार्वजनिक  शौचालय बन जाता है.

राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने अपनी फिल्म ‘मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर’ में नारी सुरक्षा का मुद्दा उठाया है, मगर वह कथा कथन में बुरी तरह से मात खा गए. फिल्मकार राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने फिल्म की षुरूआत में कंडोम बांटने से की और फिर एक महिला के साथ शौच जाने पर बलात्कार के बाद कहानी  शौचालय की तरफ मुड़ जाती है और कंडोम व कम बच्चे का मसला वह भूल गए. तो वहीं कम उम्र के चारो बच्चे जिस तरह से  शौचालय बनाने की जद्दोजेहाद करते हुए दिखाए गए, वह अविश्वसनिय लगता है.  शौचालय की मूल कहानी तक पहुंचने में भी कहानीकार व निर्देशक ऐसी लंबी उल जलूल यात्रा करते हैं कि दर्षक बोर हो जाता है. ’मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर’ देखकर इस बात का अहसास ही नहीं होता कि इस फिल्म के निर्देशक राकेश ओम प्रकाश मेहरा ही है, जिन्होने कभी ’दिल्ली 6’ और ’भाग मिल्खा भाग’ जैसी फिल्मों का निर्माण व निर्देशन किया था.

पूरी फिल्म देखने के बाद इस बात का अहसास होता है किलेखकीय टीम के सदस्य मनोज मैरटा, राकेश ओमप्रकाश मेहरा व हुसेन दलाल इतने बड़े हो गए हैं कि उनके लिए बाल मनोविज्ञान की समझ के साथ लेखन करना संभव ही नहीं रहा.

संगीतकार शंकर एहसान लौय का संगीत भी प्रभावहीन है.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो चारो बच्चों में से कनु का मूख्य किरदार निभाने वाले बाल कलाकार ओम कनौजिया प्रभावित नहीं करते. जबकि आदर्श भारती व प्रसाद में ज्यादा संभावनाएं नजर आती हैं. छोटे से किरदार में बाल कलाकार सयाना आनंद जरुर अपनी तरफ ध्यान आकर्षित करने में सफल रहती है. सरगम के किरदार में अंजली पाटिल ने भी उत्कृष्ट अभिनय किया है. इसके अलावा अन्य कलाकारों के हिस्से कुछ खास करने को रहा नहीं. यॅूं भी कहानी तो एक मां और बेटे के ही इर्द गिर्द घूमती है. मगर इन बाल कलाकारों के बेहतरीन अभिनय के बावजूद फिल्म दर्शकों को बांधकर नहीं रख पाती.

दो घंटे दस मिनट की अवधि वाली फिल्म ’मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर’ का निर्माण राकेश ओमप्रकाश मेहरा, पी एस भारती, नवमीत सिंह, राजीव टंडन व अर्पित व्यास ने किया है. फिल्म के निर्देशक राकेश ओमप्रकाश मेहरा, लेखक मनोज मैरटा, राकेश ओमप्रकाश मेहरा व हुसेन दलाल, संगीतकार शंकर एहसान लौय, कैमरामैन पावेल डायलस और कलाकार हैं-अंजली पाटिल, ओम कनौजिया, अतुल कुलकर्णी, मकरंद देशपांडे, रसिका अगाषे, सोनिया अलबिजुरी, सायना आनंद, आदर्ष भारती, प्रसाद, नचिकेत पूरणपत्रे, नितीश वाधवा, जिज्ञासा यदुवंशी व अन्य.

हामिद : दिल को छू लेने वाली उत्कृष्ट फिल्म

रेटिंग : 4 स्टार

‘‘द व्हाइट एलीफेंट’’ और ‘‘बाके की क्रेजी बारात’’ जैसी फिल्मों के निर्देशक ऐजाज खान की तीसरी फिल्म‘‘हामिद’’एक सात वर्षीय बालक के नजरिए से कश्मीर घाटी में चल रहे खूनी संघर्ष, उथल पुथल, सीआरपीएफ जवानों पर पत्थर बाजी, लोगों के गुम होने आदि की कथा से ओतप्रोत आम बौलीवुड मसाला फिल्म नहीं है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराही जा चुकी फिल्म ‘‘हामिद’’ मूलतः अमीन भट्ट लिखित कश्मीरी नाटक‘‘फोन नंबर 786’’ पर आधारित है. जिसमें मासूम हामिद अपने भोलेपन के साथ ही अल्लाह व चमत्कार में यकीन करता है. मासूम हामिद जिस भोलेपन से अल्लाह व कश्मीर के मुद्दों को लेकर सवाल करता है, वह सवाल विचलित करते हैं. वह कश्मीर में चल रहे संघर्ष की पृष्ठभूमि में बचपन की मासूमियत और विश्वास की उपचार शक्ति का ‘‘हामिद’’ में बेहतरीन चित्रण है. मासूम हामिद उस पवित्रता का प्रतीक बनकर उभरता है, जो भय और मृत्यु के बीच एक आशा की किरण है.

HAMID

फिल्म की कहानी शुरू होती है एक कारखाने से, जहां रहमत (सुमित कौल) और रसूल चाचा (बशीर लोन) नाव बनाने में मग्न है. जब रात होने लगती है, तो रसूल चाचा, रहमत को घर जाने के लिए कहते हैं. रास्ते में रहमत को सीआरपीएफ के जवानों के सवालों के जवाब देने पड़ते हैं. इधर घर पर रहमत के लाडले सात साल के बेटे हामिद को अपने पिता के आने का इंतजार है. क्योंकि उसे मैच देखना है और टीवी चलाने के लिए बैटरी की जरुरत है. जब रहमत अपने घर पहुंचता है, तो रहमत का बेटा हामिद (ताल्हा अरशद) जिद करता है कि उसे मैच देखना है, इसलिए अभी बैटरी लेकर आएं. रहमत की पत्नी और हामिद की मां इशरत (रसिका दुग्गल) के मना करने के बावजूद रहमत अपने बेटे की मांग को पूरा करने के लिए रात में ही बैटरी लेने निकल जाता है, पर वह घर नहीं लौटता. उसके बाद पूरे एक वर्ष बाद कहानी शुरू होती है. जब इशरत अपने बेटे की अनदेखी करते हुए अपने पति की तलाश में भटक रही है. वह हर दिन पुलिस स्टेशन जाती रहती है. इधर हामिद की जिंदगी भी बदल चुकी है. एक दिन उसके दोस्त से ही उसे पता चलता है कि उसके अब्बू यानी कि पिता अल्लाह के पास गए हैं. तब वह अपने अब्बू के अल्लाह के पास से वापस लाने के लिए जुगत लगाने लगता है. एक दिन एक मौलवी से उसे पता चलता है कि अल्लाह का नंबर 786 है. तो वह 786 को अपनी बाल बुद्धि के बल पर दस नंबर में परिवर्तित कर अल्लाह को फोन लगाता है. यह नंबर लगता है कश्मीर घाटी में ही तैनात एक अति गुस्सैल सीआरपीएफ जवान अभय (विकास कुमार) को. अभय अपने परिवार से दूर कश्मीर में तैनात है और इस अपराध बोध से जूझ रहा है कि उसके हाथों अनजाने ही एक मासूम की हत्या हुई है. फोन पर एक मासूम बालक की आवाज सुनकर अभय उससे बात करने लगता है और हामिद का दिल रखने के लिए वह खुद को अल्लाह ही बताता है. अब हर दिन हामिद और अभय के बीच बातचीत होती है. हामिद के कई तरह के सवाल होते हैं, जिनका जवाब अभय देने का प्रयास करता है. उधर एक इंसान अपनी तरफ से हामिद को गलत राह पर ले जाने का प्रयास करता रहता है, पर अभय से बात करके हामिद सही राह पर ही चलता है. हामिद अपनी हर तकलीफ अल्लाह यानी कि अभय को बताता रहता है. अभय हर संभव उसकी मदद करता रहता है. वह हामिद के लिए अपनी तरफ से रहमत की खोजबनी शुरू करता है, जिसके लिए उसे अपने उच्च अधिकारी से डांट भी खानी पड़ती है. यह सिलसिला चलता रहता है.

HAMID

एक दिन गुस्से में अभय, हामिद से कह देता है कि वह तो क्या कोई भी इंसान उसके अब्बू रहमत को वापस नही ला सकता. वह मर चुके है. उसके बाद हामिद अपने पिता के गुम होने की फाइल व तस्वीर आदि को जमीन में दफन कर देता है. फिर अपनी मां को लेकर उसी कारखाने में जाता है, जहां उसने अपने पिता की ही तरह नाव बनायी है. वहां पहुंचने पर रसूल चाचा बताते हैं कि हामिद के नाम पार्सल आया है, हामिद उसे खोलता है तो उसमें से लाल रंग से भरे दो डिब्बे निकलते हैं. हामिद कहता है कि यह अल्लाह ने भिजवाया है, क्योंकि उसने अल्लाह से कहा था कि लाल रंग खरीदने के लिए उसके पास पैसे नहीं है, फिर नाव को लाल रंग से रंगकर वह अपनी मां को उसी नाव में बिठाकर डल झील में घूमाता है.

ऐजाज खान के निर्देशन में बनी पहली फिल्म ‘‘द व्हाइट एलीफेंट’’ अब तक रिलीज नहीं हो पायी है. जबकि उनकी दूसरी हास्य फिल्म ‘‘बांकेलाल की क्रेजी बारात’’ 2015 में प्रदर्शित हुई थी. अब अति गंभीर विषय वाली ‘‘हामिद’’ उनके निर्देशन में बनी तीसरी फिल्म है. इस फिल्म में ऐजाज खान ने एक सात वर्षीय बच्चे हामिद के माध्यम से कश्मीर घाटी के उन सभी मसलों को उठाया है, जो हमसे अछूते नहीं है. फिल्म में सेना और कश्मीरियों के बीच टकराव, अलगाववादियों द्वारा मासूम बच्चों व किशोरो को आजादी,  जन्नत व अल्लाह के नाम पर बरगलाना, घर के पुरुषों के गायब होने के बाद स्त्रियों के दर्द, सेना के जवान का एक मासूम बालक की वजह से कश्मीरी परिवार के लिए पैदा हुई सहानुभूति को गलत अर्थ में लेना, अपने परिवारो से कई सौ किलोमीटर दूर पत्थरबाजों के बीच रह रहे आरपीएफ जवानो की मनः स्थिति आदि का बेहतरीन चित्रण है. मगर लेखक व निर्देशक ने कहीं भी अति नाटकीयता या तीखी बयानबाजी को महत्व नही दिया है.

एक दिन गुस्से में अभय, हामिद से कह देता है कि वह तो क्या कोई भी इंसान उसके अब्बू रहमत को वापस नही ला सकता. वह मर चुके है. उसके बाद हामिद अपने पिता के गुम होने की फाइल व तस्वीर आदि को जमीन में दफन कर देता है. फिर अपनी मां को लेकर उसी कारखाने में जाता है, जहां उसने अपने पिता की ही तरह नाव बनायी है. वहां पहुंचने पर रसूल चाचा बताते हैं कि हामिद के नाम पार्सल आया है, हामिद उसे खोलता है तो उसमें से लाल रंग से भरे दो डिब्बे निकलते हैं. हामिद कहता है कि यह अल्लाह ने भिजवाया है, क्योंकि उसने अल्लाह से कहा था कि लाल रंग खरीदने के लिए उसके पास पैसे नहीं है, फिर नाव को लाल रंग से रंगकर वह अपनी मां को उसी नाव में बिठाकर डल झील में घूमाता है.

रवींद्र रंधावा और सुमित सक्सेना लिखित संवाद काफी अच्छे हैं और यह दिलों को झकझोरने के साथ ही सोचने पर मजबूर करते हैं. फिल्म की कमजोर कड़ी इसकी लंबाई है. इसे एडीटिंग टेबल पर कसने की जरुरत थी.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो हामिद की शीर्ष भूमिका में बाल कलाकार ताल्हा अरशद की मासूमियत व अभिनय दिल तक पहुंचता है. ताल्हा ने अपने किरदार को जिस संजीदगी के साथ जिया है, वह अभिभूत करता है. अपने पति की खोज में भटकती इशरत के किरदार में रसिका दुग्गल ने अपने सशक्त अभिनय से लोहा मनवाया है. वह अपने अभिनय से दर्शकों की आत्मा को भेदती है. अभय के किरदार को विकास कुमार ने भी सजीव किया है. रहमत के छोटे किरदार में सुमित कौल अपनी छाप छोड़ जाते हैं. अन्य कलाकारों ने भी सधा हुआ अभिनय किया है. फिल्म के कैमरामैन भी बधाई के पात्र हैं.

फिल्म‘‘हामिद’’का निर्माण ‘‘यूडली फिल्मस’’ने किया है. फिल्म के निर्देशक ऐजाज खान, लेखक रविंद्र रंधावा व सुमित सक्सेना तथा कलाकार हैं- ताल्हा अरशद, विकास कुमार, रसिका दुग्गल, सुमित कौल, बशीर लोन, गुरवीर सिंह, अशरफ नागू, मीर सरवर, काजी फैज, उमर आदिल, गुलाम हुसेन, साजिद, साफिया व अन्य.

भोजपुरी सिनेमा में कौमेडी पर काम करने की जरूरत

एक दौर था जब भोजपुरी फिल्मों में कौमेडियन की पहचान घुटनों तक कच्छे, लंबे नाड़े और चार्ली चैपलिन टाइप मूंछों से की जाती थी. इस इमेज में भोजपुरी की कौमेडी लंबे समय तक बंधी रही और भोजपुरी फिल्मों में बौलीवुड की तरह अच्छे कौमेडियन की कमी लगातार बनी रही.

लेकिन आज के दौर में भोजपुरी इंडस्ट्री में बहुत बेहतरीन कौमेडियन कलाकार हैं जिन की ऐक्टिंग की बदौलत भोजपुरी सिनेमा में भी अच्छी कौमेडी फिल्मों को बनाने का रास्ता खुला है.

भोजपुरी सिनेमा के ऐसे ही एक कलाकार हैं मनोज सिंह टाइगर उर्फ बतासा चाचा, जो भोजपुरी के लिए मील का पत्थर साबित हुए हैं. उन का नाम भोजपुरी बैल्ट का बच्चाबच्चा जानता है. उन्होंने कौमेडी को अलग पहचान दी है.

मनोज सिंह टाइगर उर्फ बतासा चाचा ने भोजपुरी की 150 से ज्यादा फिल्में की हैं. उन्हें ऐक्टिंग के लिए 50 से ज्यादा अवार्ड मिल चुके हैं और उन्होंने 50 से ज्यादा सुपरहिट फिल्में दी हैं.

फिल्म ‘दिलबर’ की शूटिंग के दौरान हुई मुलाकात में मनोज सिंह टाइगर उर्फ बतासा चाचा के कई अनछुए पहलुओं पर लंबी बातचीत हुई. पेश हैं, उसी के खास अंश:

आप का ऐक्टिंग की तरफ रुझान कैसे हुआ?

मैं उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले से हूं. मेरा ऐक्टिंग की तरफ रुझान गांव की रामलीला से शुरू हुआ तो घर के लोग नाराज रहने लगे, इसलिए अपनी ऐक्टिंग की इच्छा को पूरा करने के लिए मैं साल 1997 में फिल्मों में काम की तलाश में मुंबई चला गया. वहां मुझे पृथ्वी थिएटर में काम करने का मौका मिला. वहीं मैं ने एक नाट्य मंडली बनाई और कई नाटक किए.

इसी दौरान मेरे एक नाटक को अदाकारा आयशा जुल्का ने देखा और उन्होंने मुझे फिल्मों में काम करने की सलाह दे डाली. मैं ने वहीं से फिल्मों में काम करने के लिए कोशिश शुरू की तो मुझे पहली फिल्म ‘चलत मुसाफिर मोह लियो रे’ में काम करने का मौका मिला. इस में मेरी ऐक्टिंग को दर्शकों ने खूब सराहा. इस के तुरंत बाद मुझे फिल्म ‘निरहुआ रिकशावाला’ में काम करने का मौका मिला जो मेरे लिए मील का पत्थर साबित हुई.

आप को बतासा चाचा के नाम से जाना जाता है. आप को यह नाम कैसे मिला?

मुझे बतासा चाचा के नाम से पहचान फिल्म ‘निरहुआ रिकशावाला’ से मिली. इस फिल्म में मेरे किरदार का नाम बतासा चाचा था. मेरा यह किरदार दर्शकों को इतना पसंद आया कि उस के बाद मेरे चाहने वाले बतासा चाचा के नाम से ही मुझे जानने लगे. अब तो बहुत कम लोग मुझे मेरे असली नाम से जानते हैं.

सुना है कि आप ने खुद को लीड रोल में ले कर एक आर्ट फिल्म बनाई है?

जी हां. हाल ही में मैं ने ‘लागल रहा बतासा’ के नाम से एक फिल्म की है. इस फिल्म में मेरा लीड रोल है. इस फिल्म में मेरे साथ आम्रपाली दूबे हैं. यह भोजपुरी फिल्म जगत की पहली आर्ट फिल्म है जो साफसुथरी होने के साथसाथ मनोरंजन से भी भरपूर है.

इस फिल्म में कौमेडी का पार्ट अलग मिसाल लिए है जो दर्शकों को हंसाहंसा कर लोटपोट कर देगा.

हाल ही में आप को सर्वश्रेष्ठ स्टोरी राइटर का अवार्ड भी मिला है. इस बारे में आप क्या कहना चाहेंगे?

जी, बिलकुल सही सुना है आप ने. मैं ने बहुत सारी फिल्में लिखी हैं और आगे भी लिखता रहूंगा. खुद के लिखे हुए न जाने कितने नाटक मैं ने किए हैं. उन्हीं नाटकों को मैं सिनेमा में भी बदल रहा हूं.

मुझे 14 साल के भोजपुरी सिनेमा के अपने कैरियर में बहुत सारे अवार्ड मिले हैं. तकरीबन 20 से भी ज्यादा ‘कौमेडियन औफ द ईयर’ अवार्ड मिले, कई फिल्मों के लिए सपोर्टिंग ऐक्टर का अवार्ड मिला.

मुझे साल 2018 में सर्वश्रेष्ठ स्टोरी राइटर का अवार्ड फिल्म ‘सिपाही’ के  लिए मिला, जो मेरे लिए सब से बड़ी खुशी ले कर आया, क्योंकि मैं ने तकरीबन 15 फिल्में लिखी हैं लेकिन यह अवार्ड मुझे पहली बार मिला.

इस अवार्ड ने मेरे भीतर के जोश को बढ़ाया है. आगे और भी अच्छा लिखने की कोशिशें जारी रहेंगी.

आप भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री के एकलौते ऐसे कलाकार हैं जिस ने कौमेडी के साथसाथ निगेटिव और लीड रोल में कई किरदार निभाए हैं और दोनों में आप बेहद कामयाब रहे हैं. इतना कुछ कैसे मुमकिन हो पाता?है?

भोजपुरी में अभी तक स्टार कौमेडियन को दर्शकों ने विलेन के रूप में स्वीकार नहीं किया था. मैं ने इस लीक को तोड़ा और भोजपुरी फिल्मों का पहला कौमेडी ऐक्टर हूं जिस ने कौमेडी के साथसाथ निगेटिव किरदार भी निभाए हैं.

आप थिएटर में खासा सक्रिय हैं. इस का फिल्मी ऐक्टिंग को कितना फायदा मिल पाता है?

थिएटर मुझ में बसा है या कह लीजिए कि थिएटर मेरी कमजोरी और मजबूरी है. थिएटर के बिना मुझे जिंदगी अधूरी लगती है. जब भी मुझे कहीं से थिएटर में मंच पर काम करने के लिए औफर मिलता है तो मैं सारे काम छोड़ कर नाटकों के मंचन के लिए पहुंच जाता हूं.

जहां तक थिएटर का फिल्मी कैरियर में फायदा मिलने की बात है तो थिएटर ही तो है जिस ने मुझे फिल्मों में अपनी अलग पहचान दी. मुझे फिल्मों में लाने का श्रेय मेरे रंगकर्म को ही जाता है. मैं जिंदगीभर थिएटर करते रहना चाहता हूं.

आप बौलीवुड में भी कोई फिल्म कर रहे हैं?

जी हां, मैं ने बौलीवुड की एक हिंदी बायोपिक फिल्म ‘ऐक्सिडैंटल प्राइम मिनिस्टर’ की है, जिस में मैं ने नेता अमर सिंह का किरदार निभाया है. इस फिल्म में अनुपम खेर ने मनमोहन सिंह का रोल किया है.

गांवदेहात की लोकेशन में फिल्मों की शूटिंग बढ़ रही है. इस पर क्या कहना चाहेंगे?

गंवई लोकेशन में भोजपुरी फिल्मों के शूट का चलन फिल्म की कहानी को जाता है. लोकल लैवल पर शूट किए जाने से होटल, गाड़ी वगैरह के खर्चे और बढ़ जाते हैं, लेकिन कहानी का जुड़ाव बढ़ जाता है.

अर्जुन कपूर से अपने रिश्ते पर क्या कहा मलाइका ने

अर्जुन कपूर और मलाइका अरोड़ा का रिश्ता बौलीवुड की कुछ हौट गौसिप्स टौपिक्स में से एक है. हाल ही में करण जौहर के शो में मलाइका का आना हुआ और वहां उन्होंने अर्जुन कपूर की खूब तारीफ की. एक बार फिर से उन्होंने अपने और अर्जुन कपूर के रिश्ते को लेकर अपनी बात रखी है.

मालइका ने कहा कि उनके और अर्जुन के रिश्ते को लेकर मीडिया ने काफी कुछ कहा. ये सब मीडिया का बनाया हुआ है. मलाइका ने आगे कहा कि मुझे लगता है कि सभी मूव औन कर के प्यार और साथी पाना चाहते हैं. कोई ऐसा जिसके साथ वह सामंजस्य बिठा सकें. यदि ऐसा हो जाता है तो मैं मानती हूं कि आप लकी हैं. अगर आपको दूसरा मौका मिलता है तो आप लकी हैं क्योंकि जीवन में खुश रहने का दूसरा मौका आपको मिल गया है.

गौरतलब है कि जब अर्जुन करण के शो में आए थे तब करण ने उनसे पूछा था क्या वह अपनी गर्लफ्रेंड को अपने परिवार से मिलवायेंगे. इसपर अर्जुन ने कहा था कि ऐसा करना ही होगा. बहुत कुछ है जो परिवार में पिछले कुछ महीनों में हुआ है और इसने मुझे जीने का नया नजरिया दिया है. उन्होंने कहा था कि पिछले कुछ महीनों में उन्होंने एक साथी की कीमत को पहचाना है. अब ऐसे में देखना यह है कि दोनों अपनी शादी की खबर कब तक सभी से शेयर करते हैं.

मदर टेरेसा की बायोपिक का फर्स्ट लुक हुआ रिलीज

मदर टेरेसा की बायोपिक का फर्स्ट लुक आ गया है. मदर टेरेसा के जीवन पर प्रदीप शर्मा, नितिन मनमोहन, गिरीश जौहर और प्राची मनमोहन मिलकर यह बायोपिक बनाने वाले हैं. फिल्म की डायरेक्टर और राइटर सीमा उपाध्याय हैं.

आपको बता दें कि सीमा फिल्म की स्क्रिप्ट पर करीब तीन सालों से काम कर रही थीं. सीमा का कहना है कि वो उनकी जीवन के उन पहलुओं को सामने लाना चाहती हैं जिनके बारे में कम लोगों  को पता है. ये फिल्म दो घंटों की होगी. इस साल में सितंबर या अक्टूबर तक फिल्म की शूटिंग चालू होगी. कयास लगाए जा रहे हैं कि 2020 तक फिल्म रिलीज हो सकती है.

इससे पहले भी मदर टेरेसा पर दुनिया भर में फिल्में और डौक्सूमेंट्रीज बन चुकी हैं. इसमें खास तौर पर 1997 में बना टीवी शो मदर ‘टेरेसा इन द नेम औफ गौड्स पुअर’ था. वहीं 2003 में मदर टेरेसा औफ कलकत्ता और 2014 में अमेरिकन ड्रामा द लैटर्स बनाया गया था। जिसमें जूलियट स्टीवेन्सन ने मदर टेरेसा का रोल किया था.
मेसिडोनिया में जन्मी मदर टेरेसा 1929 में भारत आईं और यहां कई साल तक एक शिक्षक के रूप में काम करती रहीं. 1950 में कलकत्ता में उन्होंने मिशनरीज औफ चैरिटीज की स्थापना की, इसके बाद उन्हें भारतीय नागरिकता मिल गई. आगे चल कर 1979 में उन्हें नोबल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

यह सुहागरात इम्पौसिबल: जल्दबाजी में शादी के नुकसान

रेटिंग:ढाई स्टार

किसी कहानी या नाटक को सिनेमा के परदे पर उतरना आसान नही होता. दिग्गज फिल्मकार भी इस तरह की फिल्म बनाते समय असफल हो जाते हैं. ऐसे में एक पन्ने की कहानी ‘‘नमक स्वाद अनुसार’’ पर नवोदित फिल्मकार अभिनव ठाकुर से बहुत ज्यादा उम्मीद लगाना जायज नही है. फिर भी अभिनव ठाकुर कुछ कमियों के बावजूद फिल्म की विषय वस्तु को ‘सुहागरात’ तक सीमित रखते हुए कुछ मुद्दों को उकेरने के साथ ही कुछ संदेश देने की भी कोशिश की हैं.

फिल्म की कहानी समस्तीपुर मे रह रहे सत्यप्रकाश (प्रताप सौरभ सिंह) के भाई पवन (प्रदीप शर्मा ) से शुरू होती है, जो कि अपने दोस्त के मोबाइल पर फिल्म ‘‘कभी कभी’’ देख रहा है. इस फिल्म के एक दृश्य पर पवन अपने दोस्त से कहता है कि उसके भाई के साथ भी ऐसा कुछ हुआ था. फिर वह अपने दोस्त को अपने भाई सत्यप्रकाश की कहानी सुनाता है. सत्यप्रकाश की शादी उसके परिवार की सहमति से उसके फूफा (आलोकनाथ पाठक) दिल्ली में पढ़ी लिखी देविका (प्रीतिका चैहान) से कराते हैं. यह प्रेम विवाह है नहीं, इसलिए सत्यप्रकाश और देविका की मुलाकात सुहागरात की रात्रि में ही होती है. सुहागरात के लिए जाते समय उसके फूफा उसे कुछ पाठ पढ़ाकर व एक तेल देकर भेजते हैं. गांव की पृष्ठभूमि और छोटे शहर में पले बढ़े सत्यप्रकाश औरतों की बड़ी इज्जत करते हैं. सुहागरात की रात्रि में जब देविका को दूध के गिलास के साथ कुछ औरतें सत्यप्रकाश के कमरे में छोड़ जाती है, तो देविका सहमी सी घूंघट निकाल कर पलंग पर बैठ जाती है.

सत्यप्रकाश देविका से प्यार जताते  हुए सुहागरात मनाने की बजाय देविका से बडे़ प्यार से कहता है कि गर्मी बहुत है, आप चाहें तो अपना घूंघट हटा सकती हैं. पर देविका घूंघट नहीं हटाती वह तो चाहती है कि सत्यप्रकाश अपने हाथों से उसका घूंघट हटाए. पर सत्यप्रकाश तो देविका से बात करते हुए कहता है कि उसकी सोच यह है कि शादी हो जाने से देविका उसकी जागीर नही हो गयी. वह एक दूसरे को समझना चाहते हैं इसलिए बातचीत करने का प्रस्ताव रखकर अपनी बात कहना शुरू करता है. वह बात को आगे बढ़ाते हुए अपने कालेज के दिनो की प्रेम कहानियां सुनाता है कि उसके मेघा,रोजी सहित चार लड़कियों से संबंध रहे हैं. हर लड़की की सुंदरता आदि का विस्तार से वर्णन करता है. सत्यप्रकाश बताता है कि किस तरह उसने जब रोजी का हाथ पकड़ा था तो रोजी ने चांटा जड़ते हुए कह दिया था कि वह उस तरह की लड़की नहीं है.

एक लड़की से उसने प्यार किया और बात शादी तक पहुंची पर वह उसे ठुकरा कर चली गयी थी  जिससे उसके पुरूष मन को ठेस लगी थी. उसका ईगो हर्ट हुआ था. इसलिए जब मेघा से उसे प्यार हुआ तो उसने मेघा के संग शारीरिक संबंध बनाकर उसे अपनी जिंदगी से दूर कर दिया था जबकि मेघा तो उसके पैरों पर पड़कर गिड़गिड़ा रही थी. देविका,सत्यप्रकाश की बातें चुपचाप सुनती रहती है. फिर सत्यप्रकाश देविका से सवाल कर बैठता है कि वह तो दिल्ली में पढ़ी है जहां लड़के व लड़कियां एक साथ पढ़ते हैं. तो उसका भी कोई प्रेमी रहा होगा. काफी कुरेदने पर झुंझलाकर देविका कहती है कि ‘मेरा संबंध अपने ड्राइवर के साथ रहा है. तब वह सवाल कर बैठता है कि ड्राइवर के साथ उसका संबंध कितना था? उसने उसे कहां कहां छुआ था.. अंत में वह देविका को ‘टैक्सी’ कह देता है. तब देविका अपना घूंघट हटाने के साथ ही सारे जेवर उतार देती है और सोने का जतन करने लगती है. पर सत्यप्रकाश कहां चुप रहने वाला? तब देविका उठकर रात में ही सड़क पर चली जाती है और सुहागरात नही मनाती. पर सत्यप्रकाश व पवन उसे वापस ले आते हैं. मगर सुबह जब सभी शादी के जश्न के बाद थके हुए सो रहे थे थे तभी देविका अपना बैग उठाकर चली जाती है.

सत्यप्रकाश उसके पैर पकड़कर उसे घर न छोड़ने के लिए कहता है. पर देविका पर इसका असर नहीं पड़ता. छह माह बाद पता चलता है कि देविका की शादी एक मैच्योर युवक देवेश(नयन रूपल) से होती है. सुहागरात के वक्त देवेश देश व समाज की प्रगति की बात करते हुए उसे उपहार देता है. उपहार लेकर जब देविका उसकी प्रशंसा करती है तब देवेश, देविका को ‘किस’ करना चाहता है पर देविका उसे रोक देती है. इस पर देवेश कहता है कि उसके साथ उसकी शादी हुई है और वह उसकी पत्नी है. तब देविका कहती है कि,‘शादी होने से वह उसकी जागीर नहीं हो गयी.’फिर देविका बिना सुहागरात मनाए ही बैग लेकर वहां से भी चली जाती है. दूसरे दिन समुद्र किनारे वह सिगरेट पीते हुए नजर आती है.

एक पन्ने की कहानी ‘‘नमक स्वाद अनुसार’’ पर बने नाटक ‘‘सुहागरात’’ को देखकर अभिनव ठाकुर ने हास्य फिल्म‘ ‘यह सुहाग रात इम्पौसिबल’’ बनाने का निर्णय लिया. उन्होंने इस फिल्म में कई मुद्दे उठाए हैं. मसलन-शादी एक इंसान नही बल्कि समाज तय करता है. शादी व्याह महज गुड्डे गुड़िया का खेल नहीं. गलत शादी नही करनी चाहिए. जब तक आप शादी के लिए मानसिक रूप से तैयार न हो शादी न करें. सुहागरात बातें करने के लिए नही होती. इसी तरह के मुद्दों के साथ फिल्मकार ने शादी को लेकर लोगों के मन में जो गलत धारणाएं है उन्हे खत्म कर उनकी सोच बदलने का प्रयास किया है. मगर कमजोर पटकथा के चलते वह इसमें सफल कम हुए हैं. यदि पटकथा पर थोड़ी मेहनत ज्यादा की जाती तो यह एक उम्दा फिल्म बन सकती थी. फिल्म में सुहागरात के समय सत्यप्रकाश ओर देविका के बीच की बातचीत को और अधिक रोचक बनाया जा सकता था.

इसके अलावा हास्य के नाम पर फूहड़ता ही परोसी गयी है. इतना ही नही फिल्म की कहानी की पृष्ठभूमि उत्तर भारत वह भी खास कर बिहार है, जबकि फिल्म को गुजरात में फिल्माया गया है तो निर्देशक व फिल्म के कला निर्देशक की गलती के चलते फिल्म के कुछ दृश्यों में गुजराती भाषा में लिखे हुए विज्ञापन व नाम पट नजर आते हैं. इस गलती की वजह फिल्म का बजट भी हो सकता है. फिल्म बहुत कम बजट में बनायी गयी है. इसके अलावा यदि फिल्म में कुछ नामचीन कलाकार होते तो फिल्मकार का मकसद पूरे होने में मदद मिल जाती.

जहां तक अभिनय का सवाल है तो फिल्म में सभी नवोदित कलाकार हैं. मगर सत्य प्रकाश के किरदार को जिस तरह से प्रताप सौरभ सिंह ने जीवंतता प्रदान की है उसे देखकर यह अहसास ही नहीं होता कि यह उनकी पहली फिल्म है. पवन के किरदार में प्रदीप शर्मा ने भी ठीक ठाक अभिनय किया है. मगर देविका के किरदार में प्रीतिका चैहाण काफी निराश करती हैं. उनके चेहरे पर कोई भाव ही नही आते. एकदम सपाट चेहरा… उन्हे यदि अभिनय के क्षेत्र मे आगे बढ़ना है तो काफी मेहनत करने की जरुरत है.

बदलाः रहस्य रोमांच से भरपूर

रेटिंग: तीन स्टार

2017 की स्पैनिश फिल्म ‘‘द इनविजिबल गेस्ट’’ की हिंदी रीमेक फिल्म ‘‘बदला’’ एक बेहतरीन पटकथा पर बनी फिल्म होते हुए भी आम दर्शकों के लिए नहीं है. इस फिल्म में 2016 की सफल फिल्म ‘पिंक’ की जोड़ी अमिताभ बच्चन और तापसी पन्नू मुख्य भूमिका में हैं. अपराध, रहस्य व रोमांचक फिल्म का निर्माण करना सदैव बहुत कठिन होता है, मगर फिल्मकार सुजाय घोष एक बेहतरीन फिल्म बनाने में कामाब रहे हैं.

फिल्म की कहानी फ्रांस की है, जहां नैना सेठी (तापसी पन्नू) एक सफल बिजनेस वूमेन है.परिवार में उसके पति सुनिल व बेटी है. पर फोटोग्राफर अर्जुन (टोनी लुक) के साथ उसके अवैध संबंध है. कहानी शुरू होती है नैना पर अर्जुन की हत्या का आरोप लगने से. नैना की गिरफ्तारी हो जाती है. पर वकील जिम्मी(मानव कौल) किसी तरह नैना को जमानत पर छुड़ा लेता है. मगर अदालत में वे बाइज्जत बरी हो जाए, इसके लिए जिम्मी की सलाह पर नैना एडवोकेट बादल गुप्ता(अमिताभ बच्चन) की मदद लेती हैं और बादल गुप्ता, नैना से मिलने तय समय से पहले ही पहुंच जाते हैं. फिर बादल गुप्ता, नैना से कहते हैं कि वे सब कुछ उन्हें सच सच बताएं. नैना कहानी बताना शुरू करती हैं. नैना की कहानी के दो रूप सामने आते हैं. बहरहाल नैना की कहानी शुरू होती है अर्जुन के साथ एक शहर में कुछ दिन बिताने के बाद वापसी से.

जब नैना सेठी व अर्जुन वापस आ रहे होते हैं,तो रास्ते में एक कार से उनकी कार की टक्कर हो जाती है. पता चलता है कि उस कार को चला रहे युवक सनी सिंह की मौत हो गयी है. पर वह इसकी सूचना पुलिस को नहीं देते. नैना,सनी को उसी की कार की डिक्की में डालने के बाद उसकी कार को ले जाकर नदी में डुबा देती है. जबकि नैना की कार को अर्जुन लेकर आगे बढ़ना चाहता है, पर कार बंद हो चुकी है. पीछे से आ रही एक कार रूकती है, जिसमें निर्मल सिंह और उनकी पत्नी रानी कौर(अमृता सिंह) हैं. यूं तो दोनो बहुत अच्छे अभिनेता हैं. मगर निर्मल सिंह एक होटल में नौकरी करते हैं और वह बहुत अच्छे मैकेनिक हैं. रानी कौर के कहने पर निर्मल,नैना की कार को अपनी गाड़ी के साथ अपने घर ले जाते हैं. जहां पर वह उनकी कार को ठीक कर देते हैं.रानी कौर के घर से विदा लेने से पहले अर्जुन को सनी का मोबाइल रानी को देना पड़ता है. फिर नैना व अर्जुन मिलते हैं और अपने अपने घर चले जाते हैं. नैना अपने बिजनेस में मग्न हो जाती है. पर सनी के न मिलने से सनी की मां रानी कौर उसकी तलाश शुरू करती हैं. रानी कौर पुलिस की मदद लेती हैं. और शक अर्जुन से होते हुए नैना पर जाता है. रानी कौर ने जो हुलिया बताया उससे पुलिस ने अर्जुन का स्केच बनवा लिया है. पर पूछताछ में नैना व उनके वकील जिम्मी यह साबित कर देते हैं कि नैना उस दिन पेरिस में थी. उसकी कार किसी ने चुरा ली थी. कार में मौजूद इंसान अर्जुन को वह नही पहचानती. उसके बाद नैना अपने बिजनेस व परिवार में मग्न हो जाती है. नैना की कंपनी जापान की एक कंपनी के साथ समझौता करके एशिया की सबसे बड़ी कंपनी बन जाती है. इधर रानी कौर को पुलिस पर यकीन नहीं होता और वह नैना का पीछा करना शुरू कर देती हैं.

इधर नैना को पुरस्कार मिलता है. जिस दिन नैना को पुरस्कार मिलता है, उसी दिन पुरस्कार वितरण के बाद चल रही पार्टी में रानी कौर,नैना से मिलती है और उससे कहती है कि वह बताए कि उसका बेटा सनी कहां है? रानी कौर बहाने से नैना से लाइटर मांगती है, यह वही लाइटर होता है जिसे रानी कौर को अर्जुन ने अपनी बहन का लाइटर बताया था. रानी कौर उस लाइटर को पानी में  फेक देती है और नैना से कहती है कि उसे पता है कि तुम बहुत ताकतवर हो पर ताकतवर लोग भूल जाते हैं कि सच छिप नहीं सकता.रानी कौर उसे चुनौती देकर चली जाती है.

उसके बाद कहानी में कई मोड़ आते हैं. एक तरफ रानी कौर अपने बेटे सनी का सच जानने के लिए चालें चल रही है तो दूसरी तरफ नैना अपने आपको बचाने के लिए चालें चलती है. इतना ही नही खुद को बचाने के लिए नैना अर्जुन का कत्ल कर सारा आरोप रानी कौर व उनके पति निर्मल पर लगाने की भूमिका बना चुकी होती हैं पर वह बादल गुप्ता के सामने सच स्वीकार कर चुकी होती है. इस आस में कि बादल गुप्ता तो उसे बाइज्जत बरी करा ही देंगे.पर सारा सच जानने के बाद बादल गुप्ता चले जाते हैं और फिर जब दुबारा दरवाजे की घंटी बजती है तो पता चलता है कि एडवोकेट बादल तो अब आए हैं इससे पहले एडवोकेट बादल का रूप धर कर खुद निर्मल आए थे और वह जिस पेन से लिखने का नाटक कर रहे थे उस पेन से सारा सबूत नैना की आवाज में रानी कौर के पास रिकार्ड हो रहा था.रानी कौर ने पुलिस को फोन भी कर दिया.

फिल्म ‘‘बादल’ ’की सबसे बड़ी खासियत इसकी कसी हुई पटकथा है. लेखक ने बहुत ही चतुराई से इसके दृष्यों को रचा है.बतौर निर्देषक सुजाय घोष अपनी छाप छोड़ जाते हैं. मगर सत्तर प्रतिशत फिल्म अपराध को छिपाने के लिए र्सिफ देा पात्रों के बीच बातचीत पर है जिसके चलते फिल्म काफी शुष्क हो जाती है.‘‘बादल’’ उन दर्शकों के सिर के उपर से गुजरती है, जो अपना दिमाग घर पर रखकर महज मनोरंजन के लिए फिल्म देखने जाते हैं.

जहां तक अभिनय का सवाल है तो ‘पिंक’, ‘मुल्क’ व ‘मनमर्जियां’ के बाद एक बार फिर तापसी पन्नू ने नैना के किरदार में जानदार अभिनय किया है. अमिताभ बच्चन तो महान कलाकार हैं. उनके अभिनय का करिश्मा अपना जादू जगा ही जाता है. छोटी सी भूमिका में मानव कौल भी अपनी छाप छोड़ जाते हैं. अर्जुन के किरदार में टोनी लुक के पास करने को कुछ खास है ही नहीं. वैसे यह पूरी फिल्म नैना यानी कि तापसी पन्नू और अमिताभ बच्चन यानी कि बादल गुप्ता पर ही केंद्रित है. लेकिन अमृता सिंह अपने अभिनय से लोगों के दिलो दिमाग में अपनी छाप अंकित कर जाती हैं.

स्कौटलैंड में फिल्मायी गयी इस फिल्म के कैमरामैन अनिक मुखोपाध्याय की भी तारीफ की ही जानी चाहिए उन्होंने प्रकृति के सौंदर्य को भी अपने कैमरे में कैद किया है.

दो घंटे की अवधि वाली फिल्म ‘‘बदला’’ का निर्माण गौरी खान, सुनीर खेत्रपाल, अक्षय पुरी व गौरव वर्मा ने किया है. फिल्म के निर्देशक व लेखक सुजाय घोष और राज वसंत, कहानीकार ओरीओल पौलो, संगीतकार अनुपम रौय, अमाल मलिक, क्लिंटन सिरीजो,  कैमरामैन अनिक मुखोपाध्याय व कलाकार हैं- अमिताभ बच्चन, तापसी पन्नू, अमृता सिंह, टोनी लुक व अन्य.

फिल्मी अंधभक्तों की बढ़ती फौज

जनवरी, 2019 में एक वीडियो ट्विटर पर तैर रहा था, जिस में कथित तौर पर तमिल सुपरस्टार अजीत के चाहने वाले रजनीकांत की फिल्म ‘पेट्टा’ के पोस्टर जला रहे थे. चूंकि रजनीकांत और अजीत की फिल्म ‘पेट्टा’ और ‘विश्वासम’ एक ही दिन रिलीज हुई थीं, इसलिए दोनों फिल्मी सितारों के चाहने वाले आपस में भिड़े हुए थे.

दक्षिण भारत में फिल्मी सितारों और नेताओं को ले कर उन के चाहने वाले किस हद तक अंधभक्ति के शिकार हैं, इस के नमूने जबतब कलाकारों दिख जाते हैं. कोई फैन क्लब वाला उन के मंदिर बनवा देता है तो कोई उन्हें शिवलिंग की तरह दूध से नहला देता है.

रजनीकांत, कमल हासन से ले कर पवन कल्याण, चिरंजीवी तक ऐसे कई कलाकार हैं जिन के बाकायदा फैन क्लब बने हुए हैं और कई कलाकारों की तरफ से उन्हें पैसा भी मिलता है. लिहाजा, ये क्लब वाले इस तरह के अंधभक्तों की फौज खड़ी कर देते हैं जो खुद को एक खास ऐक्टर या नेता का फैन बता कर लड़नेमरने पर उतारू हो जाते हैं.

कमल हासन ने रजनीकांत को कुछ कह दिया तो उन के फैन पहुंच जाते हैं कमल हासन के घर तोड़फोड़ करने.

कुछ साल पहले जब एक दक्षिण भारतीय ऐक्टर चंद्रशेखर ने राजनीति में उतरे अपने प्रतिद्वंद्वी ऐक्टर के खिलाफ कुछ बोल दिया था तो उस ऐक्टर के चाहने वालों ने चंद्रशेखर पर भरी सभा में पत्थरों की बारिश कर दी थी. वे बेचारे चोटिल हो गए थे, लेकिन चाहने वालों पर कौन सा केस दर्ज होता.

खुद को ही जला दिया

हालिया मामला तो और भी दहला देने वाला है. कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री के सुपरस्टार यश से मिलने की जिद में एक लड़के ने खुद को आग लगा ली.

हुआ यों कि यश को जन्मदिन की बधाई देने के लिए जब उन का एक फैन रविशंकर अपने दोस्तों के साथ उन के घर पहुंचा तब उसे वहां ऐंट्री करने से मना कर दिया गया. नाराजगी में रविशंकर ने ऐक्टर के घर के सामने खुद को आग लगा ली. उसे यश के जन्मदिन पर उन से मिलने की धुन थी.

चूंकि कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री के इस ऐक्टर ने ‘केजीएफ’ फिल्म के बाद से शाहरुख खान की फिल्म ‘जीरो’ को मात दे कर अपने फैन बढ़ा लिए हैं, लिहाजा उन के घर के बाहर ऐसे चाहने वालों की तादाद लगातार बढ़ती जा रही है. अब सब से मिलना तो किसी भी ऐक्टर के लिए मुमकिन नहीं है. बहरहाल, किसी तरह रविशंकर को अस्पताल ले जाया गया, लेकिन अगले दिन उस ने दम तोड़ दिया. 26 साल के इस लड़के ने अपनी जान सिर्फ शौक लिए दे दी. हैरानी इस बात की है कि इस बात से उस के मातापिता भी वाकिफ थे.

मातापिता के मुताबिक, रविशंकर हर साल यश से मिलने जाता था. पिछले साल वह हमें भी उन के घर ले गया था. इस साल हम ने उसे जाने से मना किया था, लेकिन वह चला गया. पता नहीं, रवि को पैट्रोल कहां से मिला.

हालांकि इस घटना के बाद यश रविशंकर से मिलने के लिए अस्पताल पहुंचे. लेकिन उन्होंने इस बात पर काफी गुस्सा भी जताया.

उन्होंने कहा, ‘‘मैं इस तरह के प्रशंसकों को नहीं चाहता हूं. यह फैंटेसी या प्यार नहीं है. इस से मुझे खुशी नहीं मिलती?है. मैं इस तरह से किसी और को देखने नहीं आऊंगा. यह उन प्रशंसकों को गलत संदेश देगा जो सोचते हैं कि अगर वे ऐसा काम करेंगे तो मैं उन से मिलने आऊंगा.’’

इस में कुसूर भक्त का है या देवता बन चुके फिल्म कलाकारों का? वजह कोई भी हो, किसी फैन का इस तरह का रवैया अपनाना चिंता की बात है. पढ़ाई के प्रैशर से ले कर लड़की के दिल तोड़ने तक सुसाइड की कोशिशें वैसे ही नौजवानों की जानें ले रही हैं, उस पर फिल्मी सितारों के प्रति ऐसी दीवानगी भी कम गंभीर मसला नहीं है.

कुछ लोग तो यह भी कहेंगे कि इस में कलाकारों का क्या कुसूर है? लेकिन कहीं न कहीं इस फैनबाजी को कलाकार ही बढ़ावा देते हैं.

अपनी फिल्मों में मसीहा की इमेज बनाने से ले कर फैन क्लब को रजिस्टर कराना हो या उन के उत्सवों में शिरकत करने जैसी बातें फैंस को अलगअलग गुटों में बांध देती हैं, कुछकुछ राजनीतिक कार्यकर्ताओं की तरह, जो अपने नेता की तर्ज पर अभिनेताओं का झंडा (पोस्टर) ले कर चलते हैं.

इन की फिल्मों के रिलीज के समय पूरा थिएटर इन फैंस क्लब की मुट्ठी में होता है. चलती फिल्म को बीच में ही रोक कर ढोलनगाड़ों का जश्न जैसा पागलपन भी यहीं दिखता है. टिकटों की कालाबाजारी भी होती है और असुरक्षा का माहौल अलग से बनता है.

अभी हिंदी बैल्ट में यह संक्रमण ज्यादा नहीं फैला है लेकिन कुछकुछ लक्षण जरूर दिखने लगे हैं.

मसलन, सलमान खान और अक्षय कुमार के पोस्टरों पर रिलीज के समय मालाबाजी होने लगी है. जान देने या लेने जैसी बातें सोशल मीडिया अकाउंट पर दिख जाती हैं जहां फैंस आपस में भिड़ जाते हैं और कलाकारों को गरियाने लगते हैं.

महामानव जैसे किरदार दरअसल, रीजनल सिनेमा ने कभी भी देशी मुद्दों को नहीं छोड़ा. वहां के हीरो अभी भी लुंगी डांस करते हैं और ‘रंगस्थलम’, ‘काला’, ‘पेट्टा’, ‘शिवाजी’, ‘नायकन’, ‘मारी’, ‘सरकार’ जैसी फिल्में वहीं के गांव, किसान और इलाकाई राजनीति की बात करती हैं. लिहाजा, ऐसी फिल्मों के हीरो जननायक महामानव बन जाते हैं.

एमजी रामचंद्रन, राम्या, जानकी रामचंद्रन, सीएन अन्नादुराई, एनटी रामाराव, एमके करुणानिधि, पवन कल्याण, जयललिता, चंद्रशेखर, विजय कांत, चिरंजीवी, बालकृष्ण, हरिकृष्ण, जयाप्रदा वगैरह नाम फिल्मी बैकग्राउंड से थे.

एनटीआर ने बतौर अभिनेता अपनी नायक छवि का इस्तेमाल तेलुगु गर्व के मुद्दे पर आधारित अपनी तेलुगुदेशम पार्टी को बनाने में बखूबी किया. बाद में वे मुख्यमंत्री बने.

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके वाईएस राजशेखर रेड्डी की बायोपिक, बालकृष्ण की कथानायुडू, नेताअभिनेता चिरंजीवी का सईरा नरसिम्हा रेड्डी से फ्रीडम फाइटर उय्यलावाड़ा नरसिम्हा रेड्डी की जिंदगी को परदे पर उतारना, तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रह चुकी जे. जयललिता की बायोपिक ‘आयरन लेडी’ का बनाना, सब उसी फैनबाजी के कंधे पर सवार हो कर यहां तक पहुंचे हैं.

फिल्में कोरी कल्पनाओं पर आधारित होती हैं. लेकिन इन में काम करने वाले कलाकार सामाजिक सरोकार की आड़ में रिएलिस्टिक सिनेमा को दरकिनार कर लार्जर दैन लाइफ किरदार रचते हैं, जो राजा भी होता है और रंक भी, बिलकुल देवता सरीखा बन कर जनता की आवाज उठाता है और अवाम उस किरदार को असल का समझने लगती है.

कई बार अभिनेता इस पागलपन का फायदा उठा कर सियासत में उतर जाते हैं और सिनेमाघर के टिकटों को बैलेट बौक्स तक खींच ले आते हैं. लेकिन इस सब फैनबाजी में उन का क्या, जो जोश में आ कर खुद को जीतेजी मार रहे हैं.

दरअसल, देश के डीएनए में ही व्यक्ति पूजा और गुलामी के बीज हैं. हम किसी को थोड़ा सा पसंद कर लें तो उसे अवतार मान बैठते हैं.

जाहिर है, इस का फायदा सदियों से भारत में सत्ता में बैठे लोग उठा रहे हैं और शायद आगे भी उठाते रहेंगे.

सोहित विजय सोनी के लिए सिर मुंड़ाना रिस्क नहीं

‘तू मेरा हीरो’, ‘जीजा जी छत पे हैं’, ‘भाभी जी घर पर है’ जैसे हास्य सीरियलों में अभिनय करने के बाद अभिनेता सोहित विजय सोनी को जब सीरियल ’तेनालीराम’ में मणी के किरदार को निभाने का आफर मिला, तो सोहित विजय सोनी पहेल दुविधा में थे कि क्या करें. क्योंकि इस किरदार के लिए उन्हे सिर मुंड़ाना था, जिसे वह रिस्क मानकर चल रहे थे. मगर एक कलाकार होने की वजह से उन्होने इस रिस्क को उठाकर मणी का किरदार निभाया. और पिछले डेढ़ वर्ष के दौरान मणी के किरदार ने उन्हे जबरदस्त शोहरत दिलायी.

खुद सोहित विजय सोनी ने कहा- ‘रिस्क तो था, मगर किरदार की मांग को देखते हुए मैंने बिना हिचक अपना सिर मुंडाया और पिछले डेढ़ वर्ष से मैं सिर मुंडाकर इस किरदार को निभा रहा हूं. इसने मुझे एक नई पहचान और शोहरत दिलायी. मैं तो इस सीरियल के निर्माता अभिमन्यु सिंह का आभारी हूं कि उन्होने मुझे मणी का किरदार निभाने का अवसर दिया. पहले एक नाई आकर मेरे बाल निकालता था,पर अब मैं स्वयं अपने हाथ से ही सेट पर अपने सिर के बाल निकाल लेता हूं.’

देखें अक्षय की आने वाली फिल्म ‘सूर्यवंशी’ की जबरदस्त झलक

अक्षय कुमार अपनी नई फिल्म ‘सूर्यवंशी’ के साथ बड़े पर्दे पर जल्दी ही नजर आने वाले हैं. फिल्म की रिलीज डेट भी अनाउंस कर दी गई है. रोहित शेट्टी के निर्देशन में बन रही ये फिल्म 2020 में ईद के मौके पर सिनेमा घरों में लगेगी.  फिल्म का फर्स्ट लुक शेयर करते हुए खुद अक्षय कुमार ने इसकी जानकारी दी है. फिल्म में अक्षय, वीर सूर्यवंशी नाम के पुलिस वाले के किरदार में नजर आएंगे.

इस फिल्म के प्रोड्यूसर करण जौहर हैं. फिल्म की शूटिंग गोवा में शुरू हो गई है. आपको बता दें कि रोहित शेट्टी के निर्देशन में रणवीर स्टारर फिल्म सिंबा में ही इस फिल्म की घोषणा कर दी गई थी. इस फिल्म में अक्षय की एक छोटी सी झलक दिखाई गई थी. दर्शकों ने सिंबा को बेहद पंसद किया और बौक्स औफिस पर भी फिल्म ने धमाल मचाया.

 

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Here’s Bajirao, Simmba and Sooryavanshi along with our creator, @itsrohitshetty signing off from the #Umang show tonight 🙌🏻

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रोहित शेट्टी सिंबा के अलावा दिलवाले, सिंघम, चेन्नई एक्सप्रेस, गोलमाल सीरीज, बोल बच्चन और औल द बेस्ट जैसी जबरदस्त फिल्में दे चुके हैं. उनकी सभी फिल्में बौक्स औफिस पर अच्छी चली हैं.

 

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