Story In Hindi: चोटी कटवा भूत – रामप्यारी के टोटके

Story In Hindi: रामप्यारी सुबह से परेशान घूम रही है. आजकल उस के पति की दूधजलेबी की दुकान ठप पड़ी है. वहीं पीपल के नीचे रामू की दुकान के लड्डू ज्यादा बिकने लगे हैं. लोग अब इधर का रुख कम ही करते हैं.

दुलारी की परेशानी थोड़ी अलग है. उस का बेरोजगार शराबी पति और झगड़ालू सास उस की सारी कमाई हड़प जाते हैं, बदले में मिलती हैं उसे सिर्फ गालियां. बड़ीबड़ी कोठियों में उसे कुछ रुपए ऊपरी काम के भी मिल जाते हैं, जिसे वह घर वालों की नजर में आने नहीं देती और छिप कर अपने शौक पूरे करती है. उस का बड़ा मन होता है कि मेमसाहब की तरह वह भी ब्यूटीपार्लर से सज कर आए.

श्यामा 27 साल की गठीले बदन की लड़की है. छोटे भाईबहनों को पालने का जिम्मा उसी के कंधे पर है. मां टीबी की मरीज हैं.

श्यामा का अपने पड़ोसी ननकू के साथ जिस्मानी रिश्ता बना हुआ है. मगर एक डर भी है कि उस का भेद ननकू की बीवी पर खुल गया, तब क्या होगा? वह एक अजीब से तनाव में रहती है.

प्रेमा के सिर पर हीरोइन बनने का भूत सवार है. वह अपनी सारी कमाई सजनेसंवरने में लगा देती है, फिर भले ही अपनी मां से खूब मार खाती रहे. उस के पिता की पंचर की दुकान है, जिस से दालरोटी चल जाती है, मगर प्रेमा के शौक पूरे नहीं हो सकते. इसी के चलते उस ने स्कूल में आया का काम पकड़ रखा है.

इस छोटी सी बस्ती में ज्यादातर मजदूर, मिस्त्री और घरेलू कामगारों के परिवार हैं. शहर के इस बाहरी इलाके में सरकारी फ्लैट भी कम आमदनी वाले तबके के लोगों को मुहैया कराए गए

हैं. उन्हीं के साथ लगी हुई जमीन पर गैरकानूनी कब्जा कर झुग्गी झोपडि़यां भी बड़ी तादाद में बन गई हैं.

यहां चारों तरफ हमेशा चिल्लपौं मची रहती है. कभी सरकारी नल पर पानी का झगड़ा, कभी बच्चों की सिरफुटौव्वल, तो कभी नाजायज रिश्तों की सच्चीझूठी घटना पर औरतमर्द की मारपीट का तमाशा चलता रहता है. सभी लोगों का यही मनोरंजन का साधन है.

‘‘क्या सोच रही हो तुम? जरा इधर टैलीविजन तो देखो… आजकल कई जगह औरतों की चोटियां कट रही हैं. लगता है, किसी भूतप्रेत का साया है.

‘‘तुम जरा सब औरतों को सावधान कर दो कि सभी अपने घर के बाहर नीबूमिर्च, नीम की पत्तियां टांग दें,’’ खिलावन टैलीविजन पर आंखें गड़ाए हुए रामप्यारी से बोला.

‘‘यह सब छोड़ो और अपने फायदे की सोचो. हमें क्या फायदा हो सकता है?’’ रामप्यारी ने पूछा. उस का दिमाग इन सब खुराफातों में तेजी से चलता है.

‘‘देखो, इस बस्ती में कोई नीम का पेड़ तो है नहीं. मैं पहले पास के गांव से नीम की टहनियां ले कर आता हूं. तब तक तुम 20-25 नीबूमिर्च की माला बनाओ. हम नीम की टहनी के साथ ये मालाएं बेच कर कुछ कमाई कर लेंगे. अच्छा रुको, अभी किसी से कुछ मत कहना.’’

जब तक खिलावन बस्ती में लौटा, हाहाकार मच चुका था. वह सीधे अपने घर भागा तो देखा कि रामप्यारी ने नीबूमिर्च की मालाओं का ढेर बना रखा है.

खिलावन ने नीम की छोटीछोटी टहनियों से भरा झोला पटकते हुए कहा, ‘‘तुम यहां पर बैठी हो, पता भी है कि बाहर क्या चल रहा है?’’

‘‘तुम बिलकुल भी चिंता मत करो. अब फटाफट नीम की टहनियों को अलग कर नीबूमिर्च की माला के साथ बांधते जाओ और एक अपने दरवाजे पर टांग दो और बाकी दुकान पर रखो.

‘‘और हां, जलेबी का सामान भी दोगुना तैयार करना पड़ेगा कल से,’’ रामप्यारी इतमीनान से बोली.

‘‘तुम्हें तो कुछ पता नहीं है. बाहर टैलीविजन वाले, पुलिस वाले सब जमा हैं. पता नहीं, क्या चल रहा है उधर

और तुम्हें जलेबी बनाने की पड़ी है,’’ खिलावन घबरा कर बोला.

‘‘तुम चिंता मत करो, यहां भी चोटी कट गई है रधिया की. अरे वही, जो पिछली गली में रहती है.’’

‘‘क्या तुम्हें डर नहीं लग रहा है? तुम्हारी चोटी भी कट सकती है? अब क्या करें?’’

‘‘चुप रहो. उस की चोटी तो मैं ने ही काटी है और वह कालू ओझ है न, उस से मिल कर भी आ गई हूं. मैं ने सारी बातें तय कर ली हैं,’’ रामप्यारी ने कहा.

‘‘तुम ने क्यों काटी? क्या तुझ पर भी भूत चढ़ गया था?’’ खिलावन बोला.

‘‘जब चोटी कटेगी, तभी तो ये लोग नीबूमिर्च की माला लेने दौड़ेंगे. तुझे तो पता ही है कि रधिया को तो वैसे भी जबतब चक्कर आते रहते हैं. अभी जब मैं थोड़ी देर पहले दुकान पर लहसुन लेने गई थी, तो उस का दरवाजा खुला देख अंदर चली गई. घर के अंदर वह बेहोश पड़ी थी. मैं ने भी आव देखा न ताव उस के बाल काट कर चलती बनी.’’

‘‘किसी ने देखा तो नहीं तुझे?’’

‘‘नहीं. अगर कोई देख भी लेता,

तो मैं ने सोच रखा था कि कह दूंगी

इस के बाल काट देती हूं, नहीं तो भूत परेशान करेगा. अच्छा हुआ किसी ने देखा ही नहीं.’’

‘‘तो फिर तू ओझ के पास क्यों गई थी?’’ खिलावन ने हैरानी से पूछा.

‘‘सैटिंग करने. अभी ओझ झाड़फूंक करेगा और उस को एक दोना जलेबी खिलाने को और एक किलो मजार पर चढ़ाने को भी बोलेगा. फिर देखना, कल से सब लोग जलेबी खाएंगे भी और चढ़ाएंगे भी. मैं अभी आई.’’

‘‘रुको, तुम कहीं मत जाओ. मैं अभी बाहर जा कर देख कर आता हूं,’’ कह कर खिलावन रधिया के घर की तरफ दौड़ पड़ा.

रधिया का इंटरव्यू कर के मीडिया व पुलिस दोनों वहां से जा चुके थे. अब केवल बस्ती के लोग जमा थे. तभी सामने से कालू ओझ रधिया के पति जगन के संग आता दिखा.

‘‘बाहर लाओ, उसे बाहर लाओ,’’ वह ओझ चीखा, ‘‘इसे बूढ़ी इमली के पेड़ का भूत चढ़ा है. वहां प्रीतम ने पेड़ से लटक कर खुदकुशी की थी. जाओ जल्दी जाओ, नीम ले कर आओ. हां, जलेबी भी ले कर आना.

‘‘प्रीतम जलेबी बहुत खाता था. जो जलेबी खाएगा, उस के सिर से भूत खुश हो कर उतर जाएगा. और जो भी नीम दरवाजे पर लगाएगा, वहां पर भूत फटकने न पाएगा,’’ ओझ ने सामने खड़ी रधिया पर मोरपंखी फेरते हुए कहा.

खिलावन ने पलक झपकते ही ओझ के आगे नीबूमिर्च, नीम और जलेबी सजा के रख दी.

कालू ने भी तेजी दिखाते हुए नीमनीबू दरवाजे पर टांग दिए. थोड़ी जलेबी रधिया को खिलाई और बाकी जलेबी भीड़ में प्रसाद के तौर पर बंटवा दी.

झाड़फूंक से रधिया के कलेजे को ठंडक पड़ गई कि उस के सिर पर चढ़ा भूत उतर गया है. वह खुशी से ओझ के पैरों में गिर पड़ी. भीड़ जयजयकार कर उठी.

खिलावन ने सब की नजर बचा कर सौ रुपए का नोट कालू की मुट्ठी में दबा दिया. दोनों एकदूसरे को देख कर मुसकरा दिए.

तभी प्रेमा के घर से चीखपुकार आने लगी. किसी ने फिर मीडिया को खबर कर दी थी. वे थोड़ी देर पहले ही अपना मोबाइल नंबर बांट गए थे. पुलिस से पहले मीडिया वाले पहुंच गए.

प्रेमा अपनी कटी चुटिया दिखा कर पूरे फिल्मी अंदाज में बखान कर रही थी. उस ने चीखपुकार मचा कर भूत को अपने पीछे से दबोचने और फिर अपने बेहोश होने की बात कह दी.

लोगों में डर बैठ गया. जितने मुंह उतनी बातें. मगर प्रेमा मन ही मन बहुत खुश थी. आज उस का टैलीविजन पर आने का सपना जो पूरा हो गया था.

दूसरे दिन दुलारी के चीखनेचिल्लाने की आवाज के साथ सब की भीड़ उस के घर के आगे जमा हो गई. उस की चुटिया भी कट चुकी थी. वह अपने टेड़ेमेढ़े ढंग से कटे बालों को दिखा

कर खूब चीखीचिल्लाई. फिर बाल सैट कराने के लिए ब्यूटीपार्लर चली गई.

मगर जब श्यामा को अपनी चोटी कटी हुई मिली, तो उस ने सारा दोष ननकू की बीवी पर मढ़ दिया और उसे चुड़ैल घोषित कर मारने दौड़ पड़ी.

वहां बड़ा बवाल मच गया. पूरी बस्ती 2 हिस्सों में बंट गई. आधे दुलारी की तरफ, आधे ननकू की बीवी की तरफ. ईंटपत्थर सब चल गए. पुलिस को बीचबचाव करना पड़ा. 2 सिपाहियों की ड्यूटी ‘चोटीकटवा भूत’ को पकड़ने के लिए लगा दी गई.

रामप्यारी अब खुश थी कि उस की जलेबी की दुकान चल निकली है. प्रेमा, श्यामा, दुलारी सभी आजकल अपने अंदर एक अलग ही खुशी महसूस कर रही थीं.

लेकिन खिलावन तनाव में था कि रामप्यारी अगर पकड़ी गई, तो क्या होगा? उस ने डरतेडरते उस से कहा, ‘‘तुम चुटिया काटने का काम बंद कर दो. मुझे बहुत डर लग रहा है. कहीं किसी ने तुम्हें पकड़ लिया, तो चुड़ैल जान कर जान से ही मार देंगे.’’

‘‘मगर, मैं ने तो रधिया के सिवा किसी के भी बाल नहीं काटे. मुझे अब दुकान और घर से फुरसत ही कहां मिलती है कि मैं लोगों के घरों में घूमती फिरूं,’’ रामप्यारी ने शान से कहा.

‘तो फिर बाकी लोगों के बाल किस ने काटे?’ खिलावन सोच में पड़ गया. Story In Hindi

Hindi Family Story: सासूजी ने पाया शौर्य सम्मान

Hindi Family Story: हमें दहेज में सास मिली हैं. हम ने उन्हें मां की तरह स्वीकार कर लिया है, क्योंकि बचपन में हमारी एकलौती मां हमें दुनिया में अकेला छोड़ कर उड़नछू हो गई थीं.

हम जब दिल्ली से ट्रेन द्वारा लौटे और अभी कमर सीधी भी नहीं हो पाई थी कि मोबाइल फोन की घंटी बज उठी, ‘क्या आप झुमरूलालजी बोल रहे हैं?’

‘‘जी फरमाइए,’’ उधर से किसी औरत की मधुर आवाज आई थी, इसलिए हमारी कोमल भावनाएं जाग उठी थीं.

‘आप की सासूजी का नाम लक्ष्मी देवी है?’

‘‘जी हां.’’

‘बधाई हो.’

‘‘किस बात के लिए?’’

‘हमारी एयरवेज की ओर से उन्हें ‘शौर्य सम्मान’ दिया जा रहा है,’ उधर से आवाज आई.

मैं तो सकते में रह गया. तभी उधर से दोबारा आवाज आई, ‘झुमरूलालजी, एयरवेज की ओर से इस सम्मान में एक प्रमाणपत्र, एक शील्ड और एक लाख रुपए की राशि दी जाती है.’

‘‘एक लाख रुपए…’’ हम ने बात को फिर से दोहराने की कोशिश की.

‘क्या कम है?’ उधर से औरत की मधुर आवाज आई.

‘‘जी…जी…वह…’’ कहते हुए हमारे गले में आवाज फंस रही थी.

‘इसी के साथ एक दर्जन मल्टीनैशनल कंपनियों की ओर से भी उन्हें कई चीजें दी जाएंगी.’

‘‘जी… अच्छा.’’

‘जैसे टैलीविजन, सोफा सैट, वाशिंग मशीन, मोबाइल फोन, फ्रिज, प्रोजैक्टर वगैरह.’

हम ने सुना तो लगा कि हमें चक्कर आ जाएगा. हमारी सासूजी इस उम्र में भी इतने अवार्ड जीत रही हैं, लेकिन यह ‘शौर्य सम्मान’ उन्हें ही क्यों दिया जा रहा है, हम समझ नहीं पाए थे.

हम ने विचार किया कि अगर कुछ बात पूछूं, तो कहीं नाराज हो कर फोन न काट दें, इस से बेहतर तो यही है कि गुपचुप स्वीकार कर लो.

उधर से मैडमजी की आवाज आई, ‘आप को आनेजाने का किराया मिलेगा. आप को फाइवस्टार होटल में ठहराया जाएगा. मंत्रीजी यह सम्मान देंगे.’

हमारे दिल की धड़कनें तेज हो रही थीं. हम ने तारीख नोट कर ली. अपना ईमेल एड्रैस दे दिया और वह फोन कट गया.

हम सोच रहे थे कि यह बात घर में बताएं या नहीं?

थोड़ी ही देर बाद हमारे ईमेल एड्रैस पर ईमेल भी आ गया. हम ने उस का प्रिंट आउट निकाला और अपनी धर्मपत्नी को पास बुला कर प्यार से पूछा, ‘‘क्या तुम्हें कपड़े धोने में दिक्कत आती है?’’

‘‘हां, आती तो है, तो क्या तुम कपडे़ धोओगे?’’ उस ने झन्ना कर हमें जवाब दिया. तबीयत तो हुई कि बात बंद कर दूं, लेकिन मां तो उसी की थीं.

हम ने झूठी हंसी हंस कर बात को उड़ा दिया और पूछा, ‘‘अगर हमारे घर में डबल डोर फ्रिज हो तो…’’

‘‘शेख चिल्ली की तरह बातें बंद करो, मुझे घर का काम करने दो.’’

‘‘कभी तो थोड़ी फुरसत निकाल कर हमारे पास बैठ जाया करो.’’

‘‘अब बकवास छोड़ो भी. मुझे काम करना है. आज मम्मी पापड़ बना रही हैं,’’ उस ने इतराते हुए हमें बताया.

‘‘मम्मी से काम मत लिया करो.’’

‘‘तो क्या मजदूर लगा लूं? आज यह तुम्हें हो क्या गया है, जो ऐसी बहकीबहकी बातें कर रहे हो?’’ पत्नी ने तुनक कर कहा.

वह जाने को उठी, तो हम ने उस का हाथ थाम लिया और कहा, ‘‘एक पल ठहरो तो…यह पढ़ तो लो…’’

‘‘यह क्या है?’’ पत्नी ने पूछा.

‘‘देखो तो सही,’’ हम ने कहा, तो उस ने कागज उठा कर पढ़ना शुरू किया.

पत्नी को कुछ समझ ही नहीं आया. उस ने किसी बेवकूफ की तरह हमारे चेहरे पर नजर गड़ा दी और कहने लगी, ‘‘कोई मम्मी को ‘शौर्य सम्मान’ और एक लाख रुपए क्यों देगा? तुम मुझे पागल मत बनाओ.’’

‘‘यह मजाक नहीं सच है. हमें वहां परसों पहुंचना है.’’

‘‘हां…’’ कहतेकहते वह हमारे कंधे का सहारा लेतेलेते बेहोश होतेहोते बची.

हम ने उस के माथे को प्यार से सहलाया, तो वह थोड़ी देर में ठीक हुई. तब हम दोनों ने तय किया कि सासूजी को यह खबर देंगे.

सासूजी पापड़ का आटा पत्थर से ऐसे कूट रही थीं, मानो पापड़ का आटा न हो कर किसी पर गुस्सा निकाल रही हों.

हमारी पत्नीजी ने अपनी मम्मी को पीछे से गले लगाते हुए कहा, ‘‘मम्मीजी, हमें दिल्ली चलना है.’’

‘‘चल हट. मजाक मत कर. पापड़ के आटे को कूटने दे,’’ सासूजी ने आंखें तरेरते हुए कहा.

‘‘नहीं मम्मी, कसम से… आप को एक भव्य समारोह में सम्मानित किया जाना है.’’

‘‘अच्छा… अपनी बकवास बंद कर और आटा कूटने दे,’’ कह कर वे दोबारा अपने काम में जुट गईं.

यह देख कर हम ने मोरचा संभाला और कहा, ‘‘मम्मीजी, सच में हमें

परसों दिल्ली पहुंचना है. वहां एक भव्य कार्यक्रम है.’’

‘‘कब चलना है?’’ सासूजी ने पूछा.

‘‘आज शाम को ही निकलना है,’’ हम ने कहा, तो वे खुशी से चहक

उठीं, ‘‘दामादजी, मुझे हवाईजहाज की कलाबाजी पसंद नहीं है.’’

‘‘हम तो ट्रेन से जा रहे हैं मम्मीजी.’’

‘‘तो ठीक है,’’ सासूजी ने कहा. हम ने उन्हें सम्मान राशि और शौर्य सम्मान की कोई जानकारी नहीं दी थी.

तत्काल में टिकट बनवाया और रात में ही दिल्ली के लिए रवाना हो गए.

अगली दोपहर को हम लोग दिल्ली में थे. स्टेशन पर ही हमें लेने के लिए कार आई हुई थी. हम शान से उस में बैठे, होटल के कमरे क्या थे, मानो महल की सुविधा थी.

पत्नीजी तो मानो सपनों की दुनिया में आ गई थीं. सासूजी तो हैरानी में डूबी हुई थीं. नाश्ता, भोजन मुफ्त में था, जो चाहो खाओ. घंटी बजाओ नौकर हाजिर. वाह रे सुख, स्वर्ग इसी को कहते होंगे.

हमें अगले दिन का कार्यक्रम समझा दिया गया था. कार्यक्रम की जगह पर एक घंटे पहले पहुंचना था. एक कार अगले दिन आ गई. हमें ले कर कार्यक्रम की जगह पर ले गई. वहां पर बहुत ज्यादा भीड़ थी.

हमारी पत्नी सासूजी को ले कर मंच तक गई. सम्मान राशि का चैक, ट्रौफी, शाल, सम्मानपत्र मिला. खूब फोटो उतरे. सासू मां हैरान थीं कि आखिर यह ‘शौर्य सम्मान’ उन्हें क्यों दिया गया है?

कार्यक्रम के बाद पत्रकारों ने तमाम सवाल किए, सब का जवाब हम ने यह कह कर दिया, ‘‘सासू मां के गले में दर्द है, जिस के चलते वे बोल नहीं पाएंगी.’’

खूब फोटो उतरवा कर, तमाम कंपनियों के ढेर से उपहार के साथ हम घर लौटे. पूरा घर विदेशी चीजों से भर गया था.

अब आप लोग सोच रहे होंगे कि हमारी सासूजी को यह ‘शौर्य सम्मान’ क्यों मिला?

हम अब सारी बात बताते हैं, क्योंकि लेने के पहले बता देते तो शायद वह राशि और उपहार नहीं मिलते.

हम ने आप को बताया था कि सासूजी हमें दहेज में मिली थीं.

बात कुछ ऐसी हो गई थी कि पिछले दिनों सासूजी सीढि़यों से गिर गई थीं और उन के सिर में चोट आ गई थी, जिस के चलते उन्हें आंखों से कम और कानों से बिलकुल सुनाई देना बंद हो गया था.

हमारी पत्नी बहुत घबराई. हम से कहा कि इन्हें बड़े डाक्टर को दिखाओ.

हम एक बूढ़े डाक्टर के पास ले गए. उस ने कहा कि दिल्ली ले जाओ. हम ने हवाईजहाज का टिकट लिया और दिल्ली के लिए रवाना हो गए.

सासूजी थोड़ी घबराई हुई बैठी थीं, लेकिन जब आसमान में हवाईजहाज उड़ा तो उन्हें बहुत अच्छा लगा.

हम सोच रहे थे कि जल्दी से पहुंच कर इलाज करवा लेंगे, तभी घोषणा हुई कि सभी मुसाफिर सावधान रहें, हवाईजहाज का इंजन अचानक बंद हो गया है. हम इसे ठीक करने की कोशिश कर रहे हैं.

सब लोग जोरजोर से चीखने लगे.  सासूजी भी खुशी में लोगों के चीखने को देख कर हंसते हुए चीख रही थीं. तब ही हवाईजहाज ने एक गोता खाया. सासूजी खुशी में खड़ी हो गईं. उन्हें अंगरेजी झूले का मजा आ रहा था. वे खुशी के मारे ताली बजा रही थीं. कभी आगे, कभी पीछे, जबकि हम सब की हवा टाइट थी.

एयर होस्टेस ने जो घोषणा की थी, वह सासूजी सुन ही नहीं पाई थीं. वे तो खुश हो कर किलकारी मार रही थीं. तब ही घोषणा हुई कि हवाईजहाज का दूसरा इंजन भी बंद हो गया है. हम 6 हजार फुट ऊपर हैं. कृपया सावधान रहें, बैल्ट बांध लें. हम उसे ठीक करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं.

हवाईजहाज तेजी से नीचे की ओर जा रहा था. हम जोरों से रो रहे थे. सासूजी हंस रही थीं.

हम जानते थे कि पलभर बाद हम सब मरे हुए होंगे, लेकिन सासूजी के चेहरे पर जरा भी डर नहीं था.

एयर होस्टेस उन्हें देख कर हैरान हो रही थी. तभी घोषणा हुई कि हवाईजहाज इमर्जैंसी लैंडिंग दिल्ली में कर रहा है. एक इंजन थोड़ा काम करने लगा है.

कुछ ही देर में हवाईजहाज जमीन पर तेजी से चलने लगा और थोड़ी देर में खड़ा हो गया. सब खुशी के मारे चीख रहे थे. हमारी सासूजी ने पूछा, ‘‘ये लोग चीख क्यों रहे हैं?’’

‘‘मतलब? क्या आप को सुनाई देने लगा है?’’

‘‘सुनाई क्या दिखाई भी साफ दे रहा है कि सब खुश हैं,’’ सासूजी ने कहा.

हम खुशी के मारे कबड्डी खेलने का मन बनाने लगे थे. एयर होस्टेस ने सासू मां को गले लगाया और ताली बजा कर स्वागत कर के विदाई दी.

इस के बाद का किस्सा आप को मालम ही है. दिल्ली के डाक्टर ने चैक कर के कहा कि खुशी से चीखनेचिल्लाने के चलते जिस नस में खून का बहना बंद हो गया था, वह खुल गई है. आप की सास अब पूरी तरह से ठीक हैं.’’

हम घर लौट आए. अब आप ही बताएं कि मैं क्या पत्रकारों को बताता कि उस समय मेरी सासू मां बहरी थीं, कम दिखाई देने की बीमारी से पीडि़त थीं. अगर वे ठीक होतीं तो खिड़की तोड़ कर कूद जातीं, लेकिन जो होता है, अच्छा होता है. हम आज आदरणीय सासूजी पर गर्व कर के खुश हैं. Hindi Family Story

Family Story In Hindi: फुलमतिया – जब सौतन से हुआ सामना

Family Story In Hindi: शाम के 5 बज रहे थे. मेरी सास के श्राद्ध में आए सभी मेहमान खाना खा चुके थे. ननदें भी एकएक कर के विदा हो चुकी थीं.

सासू मां की मौत के बाद के इन 13 दिनों तक तो मु झे किसी की तरफ देखने का मौका ही नहीं मिला, पर आज सारा घर सासू मां के बगैर बहुत खाली लग रहा था.

मेरे पति शायद अपने दफ्तर के कुछ कागजात ले कर बैठे थे और बेटा अगले महीने होने वाले इम्तिहान की तैयारी कर रहा था. रसोई में थोड़ा काम बाकी था, जो बसंती कर रही थी.

मैं सासू मां के कमरे में आ कर थोड़ा सुस्ताने के लिए उन के पलंग पर बैठी ही थी कि फुलमतिया की आवाज सुनाई दी, ‘‘मेमसाहब, मैं जाऊं?’’

मैं ने पलट कर देखा, तो वह कमरे की चौखट के सहारे खड़ी थी. थकीथकी सी फुलमतिया आज कुछ ज्यादा ही बूढ़ी लग रही थी.

मेरे हिसाब से फुलमतिया की उम्र 40-45 से ज्यादा नहीं है, जबकि इस उम्र की मेरी सहेलियां तो पार्टी में यों फुदकती हैं कि उर्मिला मातोंडकर और माधुरी दीक्षित भी शरमा जाएं, पर यहां इस बेचारी को देखो.

वह फिर से बोली, ‘‘मेमसाहब, और कोई काम बाकी तो नहीं रह गया है? अच्छी तरह सोच लो.’’

‘‘नहीं फुलमतिया, अब जितना काम बाकी है, वह बसंती कर लेगी. वैसे भी तुम ने पिछले 10-12 दिनों से मेहमानों की देखभाल में बहुत मेहनत की है, अब घर जा कर आराम करो.

‘‘तुम ने खाना तो खा लिया था न ठीक से? मु  झे तो कुछ देखने का मौका ही नहीं मिला. एक तरफ श्राद्ध, दूसरी तरफ मेहमानों का आनाजाना. ऊपर से भंडार संभालना. लोग सिर्फ एकलौती बहू के सुख को देखते हैं, उस के   झं  झट और जिम्मेदारी को नहीं.’’

फुलमतिया जाने के बजाय मेरी सासू मां के पलंग से टिक कर वहीं जमीन पर बैठ गई, जहां मैं उसे पिछले 16 साल से बैठती देखती आ रही हूं.

उस दिन भी वह यहीं बैठी थी, जब मैं नईनवेली दुलहन के रूप में पहली बार इस कमरे में दाखिल हुई थी.

मेरे ससुराल वालों के सगेसंबंधी, सासननदों की सहेलियां, पड़ोसनें सब मु  झे देखने आ रही थीं और मेरी नजर घूमघूम कर फुलमतिया की खूबसूरती और जवानी पर ठहर रही थी.

आज भी फुलमतिया के कपड़ों में कोई खास बदलाव नहीं आया है. वही घाघरा, चोली. बस, सिर के अधपके बाल और चेहरे की  झुर्रियां उस के गुजरे वक्त की दास्तां सुनाती हैं.

मैं ने सासू मां के मुंह से सुना था कि फुलमतिया बिहार के किसी गरीब गांव से ब्याह करवा कर शहर आई थी. वह अपने मांबाप की 10वीं औलाद थी, इसलिए 11-12 साल की उम्र में जिस अधेड़ उम्र के आदमी के साथ ब्याही गई, वह शहर में मजदूर था. उस के गांव के पुश्तैनी मकान में बेटेबहू पहले से मौजूद थे, जो उस से उम्र में बड़े भी थे. उसे पूरे घर की नौकरानी बना दी गई. जब उस से न सहा गया, तो एक दिन जिद कर के अपने पति के साथ शहर चली आई. लेकिन गरीब की बेटी तो आसमान से गिरी और खजूर पर अटकी.

शहर की गंदी बस्ती के छोटे से कमरे में एक सौतन अपने 3 बच्चों के साथ पहले से मौजूद थी. शुरू हुआ लड़ाई  झगड़े का नया सिलसिला.

आखिरकार तंग आ कर एक दिन मजबूर पति ने पहले वाली औरत को उस के 2 बच्चों के साथ घर से बाहर निकाल दिया.

छोटी बच्ची फुलमतिया की चहेती बन गई थी, इसलिए फुलमतिया ने उसे अपने पास रख लिया.

कुछ दिन ठीक से गुजरे. फुलमतिया को भी 2 बच्चे हुए. पर गरीब को चैन कहां? इधर फुलमतिया पर मस्त जवानी आ रही थी और उधर उस का पति बूढ़ा और बीमार रहने लगा था.

आसपास के मनचले उस के इर्दगिर्द ही मंडराने लगे. पर पेट कहां किसी की सुनता है? आखिर में जब पति की बीमारी का दर्द और बच्चों की भूख न देखी गई, तो एक दिन वह मिल मालिक के कदमों पर जा पड़ी.

मिल मालिक ने भरोसा दिया, कुछ पैसे दिए और काम भी दिया, पर जितना दिया उस से कई गुना ज्यादा लूटा.

तब उसे सारे रिश्ते बिना मतलब के लगने लगे. जो चंद रुपए मिलते थे, वे तो पति की दवादारू और बच्चों की भूख मिटाने में ही खर्च हो जाते.

एक तो पेट की भूख, ऊपर से बारबार पेट गिरवाना. जब फुलमतिया मालिक के लिए बो  झ बन गई, तो छंटनी हो गई. फिर वही भूख, वही तड़प.

ऐसे में एक दिन जिस का हाथ थाम कर वह शहर आई थी, वही चल बसा. आगे की जिंदगी मुश्किलों भरी लग रही थी कि इलाके के दादा रघुराज ने उस के बच्चों के सिर पर हाथ रखा और उस की मांग में सिंदूर भर दिया.

उस बस्ती में ऐसी 4 और औरतें थीं, जिन की मांग में रघुराज का सिंदूर भरा था. वह इन सभी औरतों को कमाने का रास्ता देता और सिंदूर के प्रति जिम्मेदारी निभाने में महीने में 50 रुपए भी देता. बदले में जब जिस के पास मन होता, रात गुजारता.

अब तक फुलमतिया भी बस्ती के रिवाज की आदी हो चुकी थी. वह सम  झ गई थी कि भुखमरी की इस दुनिया में सारे रिश्ते बिना मतलब के हैं. जो पेट की आग बुझा दे, वही रिश्ते का है.

इस 50 रुपए वाले पति ने उसे मंदिर के पास थोड़ी जगह दिलवा दी थी, जहां वह मंदिर आने वालों को फूल बेचती.

मेरी सासू मां की उस से वहीं मुलाकात हुई थी, जो उन दिनों रोज मंदिर जाती थीं. फिर जब पैर के जोड़ों के दर्द से परेशान मेरी सासू मां ने बाहर आनाजाना बंद कर दिया, तो घर में ही पूजापाठ करना शुरू कर दिया.

अब फुलमतिया घर आ कर फूल दे कर जाने लगी. कुछ दिनों में उन दोनों में बहुत अच्छी दोस्ती हो गई.

धीरेधीरे फुलमतिया न सिर्फ फूल देने आती, बल्कि मेरी सासू मां के पैरों की मालिश भी करती. वह घर के छोटेमोटे काम भी निबटाती और खाली समय में सासू मां के साथ बैठी बतियाती. हर काम में चुस्त फुलमतिया पूरे घर की फुलमतिया बन गई.

हमारे घर से भी उस का बिना मतलब का रिश्ता जुड़ गया, क्योंकि यहां से भी उसे खाना, कपड़े और जरूरत के मुताबिक पैसे भी मिलने लगे थे.

इस बीच रघुराज से उसे 2 बच्चे भी हुए. दूसरी तरफ उस की सौतन की छोटी बेटी, जिस को उस ने अपनी बेटी की तरह पाला था, किसी पराए मर्द के साथ भाग खड़ी हुई और उस का अपना बेटा मुंबई चला गया.

एक बार फुलमतिया 3 दिन तक नहीं आई. जब वह आई, तो पता चला कि उस के पति का किसी ने कत्ल कर दिया है. न तो उस के कपड़ों में कोई अंतर आया, न उस के बरताव में. सिर्फ सिंदूर की जगह खाली थी, लेकिन 6 महीने बाद एक बार फिर वहां सिंदूर चढ़ गया.

उस दिन मेरी सासू मां ने गुस्से में कहा था, ‘यह क्या फूलो, तू ने फिर ब्याह रचा लिया. कम से कम एक साल तक तो इंतजार किया होता.’

मेरी सासू मां की डांट को उस ने हंसी में उड़ाते हुए जवाब दिया था, ‘मरे के साथ थोड़े ही मरा जाता.’’

उस के इस जवाब के सामने सासू मां भी चुप हो गईं.

बाद में सासू मां के मुंह से ही सुना था कि फुलमतिया का यह पति अच्छा है. इस की 2 ही पत्नियां हैं. रिकशा चला कर वह जितना कमाता है, अपने दारू के खर्च के लिए रख कर बाकी दोनों पत्नियों में बांट देता है.

यह सुन कर हम सब हंस दिए थे. मेरे पास कभी इतना समय ही नहीं बचता था कि उस की कहानी सुनूं. हां, जब कभी उसे दारोगा के यहां हाजिरी देनी होती, तो सासू मां से कहने की हिम्मत नहीं होती, तब वह मु  झ से कहती.

एक दिन मैं ने उस से पूछा था कि वह दारोगा के पास क्यों जाती है? उस ने कहा था, ‘न जाऊं तो दारोगा मेरी दुकान किसी और को दे देगा.’

यह सुन कर मैं चुप रह गई थी. मेरे पास उसे इस जंजाल से निकालने का कोई उपाय नहीं था, तो उसे उस के बिना मतलब के रिश्तों के साथ छोड़ देना ही बेहतर था.

अचानक फुलमतिया की हिचकियों से मेरा ध्यान टूटा. इधर मैं अपने खयालों में गुम थी और उधर वह न जाने कब से रो रही थी.

पिछले कई दिनों से लोग आ रहे थे, रो रहे थे, पर इतने पवित्र आंसू कम ही बहे होंगे. कौन कहता है कि उस का चरित्र साफसुथरा नहीं है? अगर वह चरित्रहीन है, तो वह बाप क्या है, जो सिर्फ बच्चे पैदा करना जानता है, उन्हें पालता नहीं?

वह आदमी क्या है, जो बेटेबहू, पत्नी के रहते एक बच्ची को ब्याह कर शहर ले आता है? वह गुंडा क्या है, जो सिर्फ 50 रुपए के बदले औरत के तन से खेलता है? वह दारोगा क्या है, जो समाज की हिफाजत करने की तनख्वाह लेता है और औरत के जिस्म को भोगता है?

इन सवालों के जवाब ढूंढ़ते हुए मु  झे कुछ और थकान महसूस होने लगी.

मैं ने फुलमतिया से कहा, ‘‘रो मत, एक दिन तो सभी को जाना है.

‘‘बसंती, जरा फुलमतिया के बच्चों के लिए खाना पैक कर देना.’’

‘‘थोड़ा ज्यादा देना मेमसाहब, वह मेरी सौतन की बेटी है न, जो भाग गई थी, परसों अपने 3 बच्चों के साथ मर्द को छोड़ कर आ गई है.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘पता नहीं, कह रही थी कि उस का मर्द दूसरी जोरू ले आया है और कहता है कि वह अब ढीली पड़ गई है, उस में कुछ बचा नहीं है.’’

मैं ने एक लंबी सांस छोड़ कर कहा, ‘‘ठीक है, रसोई में जाओ और बसंती से कह कर जितना खाना लेना चाहो, ले जाओ. एक टिफिन कैरियर लेती जाओ, पर कल वापस जरूर साथ लाना. कल सफाई का काम भी ज्यादा होगा, थोड़ा बसंती का हाथ बंटा देना.’’

‘‘कल सुबह तो मैं नहीं आ पाऊंगी मेमसाहब.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘दारोगाजी ने हाजिरी देने के लिए बुलाया है.’’

‘‘पर अब तो तुम बूढ़ी हो गई हो फुलमतिया.’’

‘‘मु  झे नहीं, दूसरी बेटी को ले कर जाना है.’’

‘‘वह तो अभी बहुत छोटी है.’’

‘‘मेमसाहब, हमारे यहां क्या छोटी और क्या बड़ी. माहवारी शुरू होते ही सलवार पहना दी. बस, वह सलवारसूट में बड़ी दिखने लगी और क्या…’’

‘‘पर तुम तो कहती थीं कि वह घर का काम संभालती है और तुम उसे बाहर ज्यादा निकलने भी नहीं देती हो?’’

‘‘पिछली पूर्णिमा को फूल ज्यादा बिकेंगे, सोच कर कुछ ज्यादा फूल ले लिए थे. एक पेटी उस के हाथ में थमा दी थी. सिपाही ने देख लिया, तो उस ने जा कर दारोगा से शिकायत कर दी.

‘‘आज सुबह दारोगा दुकान पर आया था और बोला, ‘सुना है कि तेरी बेटी कली से फूल बन गई है. उसे कब तक छिपा कर रखेगी, कल शाम को थाने में ले आना.’’’

मेरा जी चाहा कि उठ कर सीधी थाने जाऊं और उस दारोगा की सरकारी पिस्तौल से उसी पर गोली चलाऊं. सरकारी पिस्तौल का कभी तो सही इस्तेमाल होना चाहिए. फिर मैं बोली, ‘‘ठीक है फुलमतिया, कल तुम्हारी बेटी नहीं, मैं जाऊंगी तुम्हारे साथ.’’

वह घबरा कर बोली, ‘‘नहीं मेमसाहब, साहब बहुत नाराज होंगे. कहीं मेरा आना ही न रोक दें इस घर में. गरीब की बेटी है, कब तक वह खैर मनाएगी.’’

‘‘पर ऐसा कब तक चलता रहेगा? ऐसे तो एक और नई फुलमतिया तैयार हो जाएगी.’’

‘‘हमारे लिए आप कब तक और किसकिस से लड़ेंगी मेमसाहब. एक दारोगा जाएगा, दूसरा आएगा. दूसरा जाएगा, तो तीसरा आएगा. अगर इस बीच कभी कोई भला दारोगा आया भी तो उधर गुंडेमवाली की फौज खड़ी हो जाएगी.

‘‘आप इस महल में बैठ कर कुछ नहीं सम  झ सकतीं, कभी चल कर हमारी बस्ती में आइए, आप को हजारों फुलमतिया मिल जाएंगी.’’

मैं हैरान हो कर उस की बातें सुनती रही. वह उठ कर लड़खड़ाते हुए कदमों से जा रही थी. अचानक मैं ने उसे पुकारा, ‘‘फुलमतिया, अपनी बेटी को नहला कर कल सुबह यहां ले आना. मेरा घर बहुत बड़ा है. मु  झे फुरसत नहीं है. बसंती पूरा घर संभालते हुए थक जाती है.

‘‘वह बसंती का हाथ बंटाएगी और मैं उसे पढ़नालिखना सिखा कर कहीं काम पर लगा दूंगी.’’

इतना सुन कर फुलमतिया मेरे कदमों में लोट गई और उन्हें आंसुओं से भिगो दिया. मैं ने उसे गले लगा लिया. आंसू मेरी आंखों में भी थे, खुशी के आंसू. Family Story In Hindi

Hindi Family Story: गृह प्रवेश – जगन्नाथ सिंह का दबदबा

Hindi Family Story: बरामदे में चारपाइयां पड़ी थीं. दक्षिण दिशा में एक तख्त था, जिस पर बिस्तर बिछा हुआ था. बरामदे से उत्तर दिशा में गोशाला थी. वहीं एक बड़ा सा आंगन था, जिसे एक आदमी बहुत देर से पानी की मोटर चला कर धो रहा था. उस के बदन पर एक बनियान थी और वह लुंगी लपेटे हुए था, जिसे घुटनों तक ला कर अपनी कमर में बांधा था.

वे थे कुशघर पंचायत के मुखिया जगन्नाथ सिंह. उन का समाज में काफी दबदबा था. उस पंचायत के लोग उन की इज्जत करते थे या डरते थे. शायद डर कर ही उन्हें लोग ज्यादा इज्जत देते थे.

‘‘मुखियाजी प्रणाम…’’ भीखरा उन के पास आते हुए बोला.

मुखियाजी ने पूछा, ‘‘भीखरा, आज इधर कैसे आना हुआ? सुना है, आजकल तू ब्लौक के चक्कर लगा रहा है… बीडीओ साहब बता रहे थे.’’

‘‘जी हां मालिक, उन्होंने ही मुझे आप के पास भेजा है,’’ भीखरा ने हाथ जोड़े हुए ही कहा.

‘‘किसलिए?’’

‘‘मालिक, सरकार गरीबों के लिए मकान बनाने के लिए पैसा दे रही है.’’

‘‘हां, तो तू इसीलिए बीडीओ साहब के पास गया था.’’

‘‘हां मालिक. अगर आप की मेहरबानी हो जाए, तो हमारा भी एक मकान बन जाए.

‘‘बरसात में तो झोंपड़ी टपकने लगती है और नाली का गंदा पानी ?ोंपड़ी में घुस जाता है.’’

‘‘पर, तू मेरे पास क्यों आया है?’’

‘‘बीडीओ साहब ने कहा है कि दरख्वास्त पर मुखियाजी से दस्तखत करा के लाओ, इसलिए मैं आप के पास आया हूं.’’

‘‘ठीक है, इस दरख्वास्त को मेरे बिस्तर पर रख दे. पहले तू गाड़ी धुलवाने में मेरी मदद कर,’’ मुखियाजी ने कहा. भीखरा ने वैसा ही किया. जब गाड़ी धुल गई, तब मुखियाजी ने कहा, ‘‘गाय का गोबर हटा दे.’’

भीखरा ने गोबर को हटा कर उस जगह को साफ कर दिया. हाथ धो कर वह उन के पास अपने कागज लेने गया.

मुखियाजी ने भीखरा से कहा, ‘‘देखो भीखरा, मैं इस पर दस्तखत तो कर दूंगा, लेकिन तुम्हें     4 हजार रुपए खर्च करने पड़ेंगे.

‘‘वह पैसा मैं नहीं लूंगा, बल्कि बीडीओ साहब को दे दूंगा. सब का अपनाअपना हिस्सा होता है. सरकारी मुलाजिम बिना हिस्सा लिए तुम्हारा काम जल्दी नहीं करेंगे.’’

‘‘मालिक, भला मैं इतना पैसा कहां से लाऊंगा?’’ भीखरा ने कहा.

‘‘यह तो तुम्हारी समस्या है, तुम ही जानो,’’ मुखियाजी ने कहा.

‘‘तब मालिक, आप ही दे दीजिए. मैं आप को धीरेधीरे चुका दूंगा.’’

‘‘देखो भीखरा, मेरे पास इस समय पैसा नहीं है. तुम देख ही रहे हो कि यह गाड़ी मैं ने साढ़े 6 लाख रुपए में खरीदी है और घर का खर्च… इसलिए मैं लाचार हूं. मेरे पास होता, तो मैं तुम्हें जरूर दे देता. तुम कहीं और से उपाय कर लो.’’

‘‘मैं कहां जाऊं मालिक. मैं तो आप के भरोसे यहां आया था. मेरे बापदादा ने इस घर की बहुत सेवा की है मालिक.’’

‘‘तुम कह तो ठीक ही रहे हो, पर इस समय चाह कर भी मैं तुम्हारी मदद नहीं कर सकता.’’

मुखियाजी मंजे हुए खिलाड़ी थे. वे जानते थे कि अगले चुनाव में भीखरा की जाति के वोट बड़ी अहमियत रखेंगे और हर चुनाव में वे इन्हीं लोगों के वोट से जीतते आए हैं.

वे भीखरा को नाराज भी नहीं करना चाहते थे, साथ ही अपना कमीशन भी वसूल कर लेना चाहते थे.

इस समय भीखरा पर पक्का मकान बनाने का नशा सवार था, इसलिए वह कहीं न कहीं से उधार जरूर लेगा. बीडीओ साहब के हर आवंटन पर उन का 15 सौ रुपए कमीशन तय था और वे इसे जाने नहीं देना चाहते थे.

‘‘देखो भीखरा, अभी तो तुम कहीं और से कर्ज ले लो और अपना मकान बनवा लो.

‘‘सोचो, पक्का मकान बन जाएगा, तब तुम लोगों को कितना आराम हो जाएगा. बरसात में तुम्हारी ?ोंपड़ी में नाली का पानी नहीं घुसेगा और न झोपड़ी तेज बारिश में टपकेगी.’’

‘‘लेकिन मालिक, मैं रोजरोज मजदूरी करने वाला आदमी इतने पैसे कहां से लाऊंगा?’’ भीखरा ने कहा.

‘‘एक उपाय है. तुम बालमुकुंद पांडे के पास जाओ और मेरा नाम ले कर कहना कि मैं ने तुम्हें भेजा है. उन के पास पैसा है. वे जरूर तुम्हें दे देंगे,’’ मुखियाजी ने उसे समझाते हुए कहा.

भीखरा वहां से उठ कर बालमुकुंद पांडे के पास गया. वे बरामदे में कुरसी पर बैठ कर अपने पोते को खिला रहे थे. भीखरा की झोॆपड़ी और उन का मकान आमनेसामने था. बीच में गली पड़ती थी.

बालमुकुंद पांडे ने उस से बहुत बार कहा था कि वह अपनी जमीन उन्हें बेच दे. उस में वे अपनी गायों को बांधने के लिए गोशाला बनाना चाहते थे, लेकिन भीखरा ने मना कर दिया था.

वैसे, बालमुकुंद पांडे उस से जमीन खरीदना चाहते थे. भीखरा की झोंपड़ी से पांडेजी के मकान की खूबसूरती मिट रही थी. वे रोज सुबहसुबह एक दलित का मुंह भी नहीं देखना चाहते थे.

भीखरा ने जैसे ही उन के बरामदे के नीचे से ‘पंडितजी प्रणाम’ कहा, तभी उन का माथा ठनका कि भीखरा आज इधर कैसे? जरूर कोई बात है.

उन्होंने हंसते हुए कहा, ‘‘आओ भीखरा, आज तुम इधर कैसे आ गए?’’

‘‘पंडितजी, मुखियाजी ने भेजा है.’’

‘‘क्यों? कोई बात है क्या?’’

‘‘हां पंडितजी,’’ भीखरा ने उन्हें सारी बातें सचसच बता दीं.

बालमुकुंद पांडे बोले, ‘‘भीखरा,  यह मौका हाथ से जाने मत दो,’’ और मन ही मन वे सोचने लगे, ‘अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे.’

फिर उन्होंने पूछा, ‘‘मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूं?’’

भीखरा ने कहा, ‘‘पंडितजी, मुझे   4 हजार रुपए उधार चाहिए. मैं धीरेधीरे कर के चुका दूंगा.’’

‘‘मैं कहां कह रहा हूं कि तुम नहीं दोगे? मैं तुम्हें पैसे जरूर दूंगा, जिस से तुम्हारे पास पक्का मकान हो जाए.’’

‘‘पंडितजी, आप की बड़ी मेहरबानी होगी. मेरे बच्चे जिंदगीभर आप का एहसान नहीं भूलेंगे.’’

‘‘लेकिन, देखो भीखरा…’’ पंडितजी ने पैतरा बदलते हुए कहा, ‘‘भाई, यह पैसे के लेनदेन का मामला है. इस के लिए तो तुम्हें कुछ गिरवी रखना पड़ेगा और इस पैसे का ब्याज मैं महीने का

8 रुपए प्रति सैकड़ा के हिसाब से लूंगा.’’

‘‘ब्याज तो मालिक हम हर महीने चुकाते जाएंगे, पर गिरवी रखने लायक मेरे पास है ही क्या?’’ भीखरा ने अपनी मजबूरी बताई.

‘‘तुम्हारे पास जमीन है न, उसी को गिरवी रख दो. सरकार तुम्हें जो पैसा देगी, उसी में से तुम कुछ बचत कर के मु?ो लौटा देना और अपने कागज ले जाना,’’ पंडितजी ने  कहा.

भीखरा तैयार हो गया. उस ने एक सादा स्टांप पेपर पर अपने अंगूठे के निशान लगा दिए. पंडितजी ने गांव के ही 2 लोगों के गवाह के रूप में दस्तखत करा कर भीखरा को पैसे दे दिए.

भीखरा ने वह पैसे मुखियाजी को दे दिए. मुखियाजी ने उसे भरोसा दिलाया कि वे उस का काम बहुत जल्दी कराने की कोशिश करेंगे, पर उस का काम होतेहोते 2 साल लग गए.

आज उस के घर में गृह प्रवेश था. पंडितजी ने कहा, ‘‘अब तुम दोनों एकसाथ घर में प्रवेश करो. पहले मंगली जाएगी और उस के पीछेपीछे तुम.’’

उसी समय न जाने कहां से बालमुकुंद पांडे वहां पहुंच गए और जोर से बोले, ‘‘भीखरा, तुम गृह प्रवेश तब करोगे, जब मेरा पैसा चुका दोगे.’’

भीखरा ने कहा, ‘‘पंडितजी, हम आप का सारा पैसा दे देंगे. अभी तो हमें गृह प्रवेश कर लेने दीजिए.’’

‘‘नहीं, आज मैं किसी की नहीं सुनूंगा. जब से तुम ने पैसा लिया है, तब से एक रुपया भी नहीं दिया है. इस समय मूल पर ब्याज लगा कर 19,369 रुपए होते हैं. ये रुपए मु?ो दे दो और खुशीखुशी गृह प्रवेश करो.’’

‘‘पंडितजी, इतना पैसा कैसे हो गया?’’ भीखरा की पत्नी ने पूछा.

‘‘तुम्हारी सम?ा में नहीं आएगा. ऐ रामलोचन, तुम आओ… मैं तुम्हें सम?ाता हूं,’’ पंडितजी ने रामलोचन को आवाज दे कर कहा.

पंडितजी ने उसे समझाया, तो वह भी मान गया कि पंडितजी सही कह रहे हैं.

भीखरा ने बालमुकुंद पांडे से प्रार्थना की, पर वे नहीं माने. थोड़ी देर में मुखियाजी भी वहां पहुंच गए.

भीखरा ने उन से भी कहा, पर उन्होंने साफ कह दिया कि वे इस में उस की कोई मदद नहीं कर सकते. या तो पंडितजी के रुपए लौटा दो या जमीन छोड़ दो.

‘‘मालिक, लेकिन हम अपने बच्चों को ले कर कहां जाएंगे? अब तो मेरी झोंपड़ी भी नहीं रही,’’ भीखरा ने मुखियाजी से गिड़गिड़ाते हुए कहा.

‘‘वह तुम सोचो. जिस दिन पंडितजी से तुम ने रुपए उधार लिए थे, उस दिन नहीं सोचा था?’’ मुखियाजी ने कहा.

उस समय वहां पर काफी भीड़ इकट्ठा हो गई थी. सभी भीखरा को ही कुसूरवार ठहरा रहे थे.

भीखरा ने हाथ जोड़ कर पंडितजी से कहा, ‘‘पंडितजी, इस समय हम आप का पैसा देने में लाचार हैं. हम यह गांव छोड़ कर जा रहे हैं. अब यह मकान आप का है और आप ही इस में गृह प्रवेश कीजिए.’’

थोड़ी देर बाद अपनी आंखों में आंसू लिए दोनों पतिपत्नी अपने बच्चों के साथ गांव छोड़ कर चले गए. इधर पंडितजी अपनी पत्नी के साथ उस घर में हंसीखुशी गृह प्रवेश कर रहे थे. Hindi Family Story

Story In Hindi: छूतखोर – एक बाबा की करामात

Story In Hindi: सुमन लाल की बेटी दामिनी अब तक 18 वसंत देख चुकी थी. वह उम्र के जिस पड़ाव पर थी, उस पड़ाव पर अकसर मन मचल ही जाता है. पर वह एक समझदार लड़की थी. इस बात को सुमन लाल अच्छी तरह से जानता था, फिर भी उस को अपनी बेटी की शादी की चिंता सताने लगी थी.

एक दिन सुमन लाल ने इस बात का जिक्र अपनी पत्नी शीला से किया, तो उस ने भी सहमति जताई.

अब तो सुमन लाल दामिनी के लिए एक पढ़ालिखा वर ढूंढ़ने की कोशिश करने लगा. आखिरकार एक दिन सुमन लाल की तलाश खत्म हुई.

लड़का पढ़ालिखा था और अच्छे खानदान से ताल्लुक रखता था. सुमन लाल को यह रिश्ता जम गया. बात भी पक्की हो गई.

एक दिन लड़के वालों ने लड़की को देखने की इच्छा जताई. सुमन लाल खुशीखुशी राजी हो गया.

लड़के वाले सुमन लाल के गांव पहुंचे. कुछ देर तक इधरउधर की बात करने के बाद किसी ने कहा, ‘‘क्यों

न इन दोनों को बाहर टहलने के लिए भेज दिया जाए. इस से दोनों एकदूसरे को जानसमझ लेंगे.’’

सभी लोगों की सहमति से वे दोनों झल के किनारे चले गए, जो गांव के बाहर थी.

?ाल बहुत खूबसूरत और बड़ी थी. उसे पार करने के लिए लकड़ी का एक पतला सा पुल बना हुआ था.

लड़के ने दामिनी से बातें करते हुए उसी पुल पर जाने की इच्छा जताई. दोनों पुल पर चलने लगे.

थोड़ी देर बाद अचानक एक घटना घट गई. हुआ यों कि गांव का ही एक दबंग लड़का, जो कई दिनों से दामिनी के पीछे पड़ा था, वहां पर आ धमका. उस के एक हाथ में चाकू था.

बातों में खोई दामिनी को उस वक्त पता चला, जब उस दबंग लड़के ने उस का हाथ पकड़ लिया.

दामिनी के होने वाले पति ने कुछ कहना चाहा, पर इस से पहले ही वह चाकू लहराता हुआ बोला, ‘‘अबे, चल निकल… नहीं तो तेरी आंखें बाहर निकाल कर रख दूंगा.’’

दामिनी का होने वाला पति डर के मारे वहां से भाग निकला. दामिनी चिल्लाती रह गई, पर उस की लौटने की हिम्मत न हुई.

वह दबंग लड़का दामिनी के साथ मनमानी करने लगा. दामिनी ने बचाव का कोई रास्ता न देखते हुए उसी पुल से ?ाल में छलांग लगा दी.

धीरेधीरे दामिनी डूबने लगी. यह देख कर वह दबंग लड़का भी वहां से रफूचक्कर हो गया.

इसी दौरान उसी गांव का एक लड़का वहां से गुजर रहा था. जब उस ने दामिनी को पानी में डूबते हुए देखा, तो वह झल में कूद पड़ा.

उस लड़के ने तैर कर डूबती हुई दामिनी को बचा लिया.

थोड़ी देर बाद जब दामिनी को होश आया, तो वह लड़का उसे ले कर उस के घर आ गया.

घर पर जब दामिनी ने सब लोगों को आपबीती सुनाई, तो वे दंग रह गए.

सब लोगों ने उस लड़के से पूछा, तो उस ने अपना नाम सुमित बताया. वह इसी गांव के पश्चिम टोले में रहता था.

तभी अचानक सुमन लाल की भौंहें तन गईं. उस की सारी खुशियां पलभर में छू हो गईं.

सुमन लाल हैरानी से बोला, ‘‘पश्चिम टोला तो केवल अछूतों का टोला है. क्या तुम अछूत हो?’’

सुमित ने ‘हां’ में सिर हिलाया. फिर क्या था. सुमन लाल अब तक जिस लड़के के कारनामे पर फूला नहीं समा रहा था, अब उसी को बुराभला कह रहा था.

पास में खड़ी दामिनी सारा तमाशा देख रही थी. सुमित अपना सिर झकाए चुपचाप सबकुछ सुन रहा था.

फिर अचानक वह बिना कुछ बोले एक बार दामिनी की तरफ देख कर वहां से चला गया.

सुमित के देखने के अंदाज से दामिनी को लगा कि जैसे वह उस से कह रहा हो कि तुम्हें बचाने का क्या इनाम दिया है तुम्हारे पिता ने.

अब तो सब दामिनी को बुरी नजर से देखने लगे थे. गांव में खुसुरफुसुर होने लगी थी.

एक दिन दामिनी ने फैसला किया कि उस की यह जिंदगी सुमित की ही देन है, तो क्यों न वह सारे रिश्ते तोड़ कर सुमित से ही रिश्ता जोड़ ले.

एक दिन दामिनी सारे रिश्ते तोड़ कर सुमित के घर चली गई. वहां पहुंच कर उस ने देखा कि सुमित का छोटा भाई बेइज्जती का बदला लेने की बात कर रहा था.

सुमित उसे समझ रहा था, तभी दामिनी बोली, ‘‘तुम्हारा भाई ठीक ही तो कह रहा है. उन जाति के ठेकेदारों को सबक सिखाना ही चाहिए.’’

दामिनी को अचानक अपने घर आया देख कर सुमित चौंका और हड़बड़ा कर बोला, ‘‘अरे दामिनीजी, आप यहां? आप को यहां नहीं आना चाहिए. आप घर जाइए, नहीं तो आप के मांबाप परेशान होंगे. मुझे आप लोगों से कोई शिकायत नहीं है.’’

दामिनी बोली, ‘‘कौन से मांबाप… मैं तो उन के लिए उसी दिन मर गई थी, जिस दिन तुम ने मुझे नई जिंदगी दी थी. अब मैं यह नई जिंदगी तुम्हारे साथ जीना चाहती हूं. अगर तुम ने मुझे अपनाने से मना किया, तो मैं अपनी जान दे दूंगी.’’

दामिनी की जिद के आगे सुमित को झकना पड़ा. उस ने दामिनी के साथ कोर्ट मैरिज कर ली.

धीरेधीरे समय बीतने लगा. सुमित ने शादी के बाद भी अपनी पढ़ाई जारी रखी. आखिरकार एक दिन उस की मेहनत रंग लाई और वह लेखपाल के पद पर लग गया.

एक दिन सुमित गांव के किनारे की जमीन की नापजोख का काम देख रहा था, तभी वहां पर सुमन लाल आ गया.

सुमित ने तो सुमन लाल को एक ही नजर में पहचान लिया था, मगर सुमन लाल की आंखें उसे नहीं पहचान सकीं.

सुमन लाल पास आ कर बोला, ‘‘नमस्कार लेखपाल साहब.’’

जवाब में सुमित ने अपना सिर हिला दिया.

सुमन लाल बोला, ‘‘साहब, यह बगल वाला चक हमारा ही है. इस पर जरा ध्यान दीजिएगा.’’

सुमित ने जवाब में फिर सिर हिला दिया.

सुमन लाल समझ गया कि साहब बड़े कड़क मिजाज के हैं. अब तो वह उन की खुशामत करने में लग गया, ‘‘अरे ओ भोलाराम, साहब के लिए कुछ शरबत बनवा लाओ. देखते नहीं कि साहब को गरमी लग रही है.

‘‘आइए साहब, इधर बगीचे में बैठिए. कुछ शरबतपानी हो जाए, काम तो होता ही रहेगा.’’

सुमित सुमन लाल की चाल को समझ गया था. उस ने सोचा कि सबक सिखाने का यही अच्छा मौका है.

सुमित जा कर चारपाई पर बैठ गया. थोड़ी ही देर बाद शरबत आ गया. सुमित ने शरबत पी लिया, फिर बोला, ‘‘आप का चक मापने का नंबर तो कल ही आएगा.’’

सुमन लाल बोला, ‘‘ठीक है साहब, कल ही सही. सोचता हूं कि क्यों न आज आप हमारे घर ठहर जाएं. एक तो हमें आप की खिदमत करने का मौका भी मिल जाएगा और आप को भी पुण्य कमाने का मौका.’’

‘‘पुण्य कमाने का मौका, पर वह कैसे?’’ सुमित ने पूछा.

‘‘अरे साहब, हमारे घर पर कई दिनों से एक साधु बाबा पधारे हैं. वे काशी से आए हैं.’’

सुमित बोला, ‘‘ठीक है, पर यह पुण्य का काम तो मेरी पत्नी को ही ज्यादा भाता है. मैं उन्हीं को ले कर आऊंगा बाबाजी के दर्शन के लिए.’’

सुमन लाल बोला, ‘‘बहुत अच्छा रहेगा साहब, जरूर ले आइएगा.’’

घर पहुंच कर सुमित ने दामिनी को सारी घटना कह सुनाई. दामिनी साथ में जाने के लिए मना करने लगी.

सुमित ने उसे प्यार से समझाया कि यही तो मौका है उन जाति के ठेकेदारों को सबक सिखाने का.

दामिनी जाने के लिए राजी हो गई, तो सुमित ने पूछा, ‘‘अरे दामिनी, तुम्हारा देवर कहीं नहीं दिख रहा है.’’

दामिनी बोली, ‘‘मैं तो बताना ही भूल गई कि वह कुछ दिनों के लिए मामा के यहां गया है.’’

अगले दिन शाम होतेहोते सुमित कार ले कर सुमन लाल के घर पहुंच गया.

सुमन लाल ने बताया, ‘‘साहब, यही हैं काशी से आए हुए बाबाजी.’’

सुमित ने अनमने ढंग से बाबा को हाथ जोड़े, तो उस बाबा ने आशीर्वाद देते हुए कहा, ‘‘खुश रहो बच्चा.’’

सुमित ने देखा कि सुमन लाल की पत्नी बाबाजी के पैर दबा रही थी और बाबाजी बड़े ठाट से पैर दबवाने का मजा ले रहे थे.

धीरेधीरे सुमन लाल के घर के बाहर भीड़ लगनी शुरू हो गई थी. कुछ लोग अपने खेतों का मसला ले कर सुमित के पास आ रहे थे, तो कुछ बाबाजी के दर्शन करने के लिए.

सुमन लाल ने पूछा, ‘‘साहब, क्या आप की पत्नी नहीं आईं?’’

सुमित बोला, ‘‘हां, आई हैं. वे कार में बैठी हैं.’’

सुमन लाल ने अपनी पत्नी शीला से कहा, ‘‘अरे सुनती हो, जाओ जा कर साहब की पत्नी को ले आओ. बेचारी कब से कार में बैठी हैं.’’

शीला जैसे ही उठ कर चली, सुमन लाल तुरंत बाबाजी के पैर दबाने लगा.

थोड़ी ही देर में कार के पास से रोने की आवाजें आने लगीं. सुमन लाल ने गौर किया, तो पता चला कि शीला और लेखपाल की पत्नी एकदूसरे से लिपट कर रो रही थीं.

सुमन लाल ने जब पास आ कर देखा, तो हैरान रह गया. लेखपाल की पत्नी तो उस की बेटी दामिनी थी.

सुमित बोला, ‘‘सुमन लालजी, मैं वही सुमित हं, जिसे आप ने बेइज्जत कर के अपने घर से भगा दिया था.’’

सारे गांव वाले चुप थे. किसी के पास कोई जवाब नहीं था.

अभी यह सब हो ही रहा था कि तभी बाबाजी की आवाज सुन कर सभी गांव वालों का ध्यान उन की तरफ गया. पर यह क्या… बाबाजी तो एकएक कर के अपनी नकली दाढ़ीमूंछें उतारने लगे और बोले ‘‘मैं सुमित का छोटा भाई हूं.’’

फिर वह सुमन लाल से बोला, ‘‘मेरे भाई ने तो अपनी जान पर खेल कर आप की बेटी की जान बचाई थी, पर एहसान मानने के बजाय आप ने कहा कि उस के छूने से आप की बेटी नापाक हो गई.

‘‘आज सभी गांव वाले डूब मरिए कहीं चुल्लू भर पानी में, क्योंकि आज तो आप का सारा गांव ही नापाक हो गया है. आज तो आप सभी लोगों ने एक अछूत को छुआ है, इसीलिए यह सारा गांव ही ‘छूतखोर’ हो गया है.

‘‘अब मैं यहां पर एक पल भी नहीं रुकना चाहता,’’ सुमित के छोटे भाई का इतना कहना था कि वे तीनों गाड़ी में बैठ गए.

सुमन लाल ने उन लोगों को रोकना चाहा, पर उस की आवाज हलक के बाहर ही नहीं निकली. धीरेधीरे कार सब की आंखों से ओझल होती चली गई. Story In Hindi

Hindi Family Story: अनकही पीड़ा – बिट्टी कैसे खुश रहेगी

Hindi Family Story: आज अजीत कितना खुश था. मां व बिट्टी ने भी बहुत दिनों बाद घर में हंसीखुशी का माहौल देखा.

अजीत ने मेरे पैर छू कर कहा, ‘‘दीदी, अगर आप 4 हजार रुपए का इंतजाम न करतीं, तो यह नौकरी भी हाथ से निकल जाती. आप का यह उपकार मैं जिंदगीभर नहीं भुला सकूंगा.’’

भाई की बातों को सुन कर मुझे कुछ अंदर तक महसूस हुआ. बड़ी हूं न, खुद को हर हाल में सामान्य रखना है.

मैं भाई का गाल स्नेह से थपथपा कर बोली, ‘‘पगले, बड़ी बहन हमेशा छोटे भाई के प्रति फर्ज का पालन करती?है. मैं ने कोई एहसान नहीं किया है.’’

वह भावुक हो उठा, ‘‘दीदी, आप ने इस घर के लिए बहुत सी तकलीफें उठाई हैं. पिताजी की मौत के बाद कड़ा संघर्ष किया है. अपने लिए कभी कुछ नहीं सोचा. अब आप चिंता न करें, सब ठीक हो जाएगा.’’

मेरे भीतर कुछ कसकता चला गया. अगर इसे पता लग जाए कि कितना कुछ गंवाने के बाद मैं 4 हजार की रकम हासिल कर सकी हूं, तो इस की खुशी पलभर में ही काफूर हो जाएगी और यह भी पक्की बात?है कि उस हालत में यह चोपड़ा का खून कर देने से नहीं हिचकेगा. लेकिन इसे वह सब बताने की जरूरत ही क्या है?

थोड़ी देर पहले बिट्टी चाय ले आई थी. मैं ने उसे लौटा दिया. मैं ने 2 दिन से कुछ नहीं खाया. मां से झूठ बोला कि उपवास चल रहा है.

बिट्टी इस साल इंटर का इम्तिहान दे रही?है. वह ज्यादा भावुक लड़की है. घरपरिवार के विचार मेरे दिमाग को घेरे हुए हैं. गुजरा हुआ सबकुछ नए सिरे से याद आ रहा है.

3 साल पहले जब पिताजी बीमारी से लड़तेलड़ते हार गए थे, तब कैसी घुटती हुई पीड़ा भरी आवाज में कहा था, ‘रेखा बेटी, मौत मेरे बिलकुल पास खड़ी है. मैं जीतेजी तेरे हाथ पीले न कर सका. मुझे माफ कर देना.

‘जिंदगी की राहों में बहुत रोड़े और कांटे मिलेंगे, मगर मुझे यकीन है कि तू घबराएगी नहीं, उन का डट कर मुकाबला करेगी.’

लेकिन क्या सच में मैं मुकाबला कर सकी? पिताजी की मौत के बाद जब अपनों ने साथ छोड़ दिया, तब केवल एक गोपाल अंकल ही थे, जिन्होंने अपनी तमाम घरेलू दिक्कतों के बावजूद हमारी मदद की थी. हमेशा हिम्मत बढ़ाते रहे, एक बाप की तरह.

मैं स्नातक थी. उन्हीं की भागदौड़ और कोशिशों से एक कंपनी में सैक्रेटरी के पद पर मेरी नियुक्ति हो सकी थी.

फार्म का अधेड़ मैनेजर चोपड़ा मुझ से हमदर्दी रखने लगा?था. वह कार में घर आ कर मां से मिल कर हालचाल पूछ लेता. मां खुश हो जातीं. वे सोचतीं कुछ और हड़बड़ी में मुंह से कुछ और ही निकल जाता.

गोपाल अंकल का तबादला आगरा हो गया. इधर अजीत नौकरी के लिए जीजान से कोशिश कर रहा था. वह सुबह घरघर अखबार डालने का काम करता.

अजीत ने अनेक जगहों पर जा कर इंटरव्यू दिया, पर नतीजा जीरो ही रहा. कभीकभी वह बेहद मायूस हो जाता, तब मैं यह कह कर उस का हौसला बढ़ाती कि उसे सब्र नहीं खोना चाहिए. कभी न कभी तो उसे नौकरी जरूर मिलेगी.

एक हफ्ता पहले अजीत ने?घर आ कर बताया था कि किसी फर्म में एक जगह खाली है, पर वह नौकरी 4 हजार रुपए की रिश्वत एक अफसर को देने पर ही मिल सकती?है.

मेरे बैंक के खाते में महज 9 सौ रुपए पड़े थे. मां के जेवर पिताजी की बीमारी में ही बिक गए थे. इतनी बड़ी रकम बगैर ब्याज के कोई महाजन देने को तैयार न था. घर में सब पैसे को ले कर चिंता में थे.

चूंकि मैं रुपयों को ले कर तनाव में?थी, इसलिए काम में गलतियां भी कर गई. पर चोपड़ा ने डांटा नहीं, बल्कि प्यार से मेरी परेशानी का सबब पूछा. उस की हमदर्दी पा कर मैं ने अपनी समस्या बता दी. उस ने मेरी मदद करने का भरोसा दिया.

फिर एक दिन चोपड़ा ने मुझे अपने शानदार बंगले में बुलाया और कहा कि उस की बीवी रीमा मुझ से मिलने को बेताब है. वह मुझे कुछ उपहार देना चाहती?है.

शाम को 7 बजे के आसपास मैं वहां पहुंची, तो बंगला सुनसान पड़ा था.

चोपड़ा ने अपनी फैं्रचकट दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए हंस कर कहा था, ‘रेखा, मेरी बीवी को अचानक एक मीटिंग में जाना पड़ गया. वह तुम से न मिल पाने के लिए माफी मांग गई है और तुम्हारे लिए यह लिफाफा दे गई है.’

मैं ने लिफाफा खोला. अंदर 4 हजार रुपए थे. मैं चकरा कर रह गई थी.

मैं हकला कर बोली, ‘सर, ये रुपए…उन्हीं ने…?’

तब चोपड़ा के चेहरे पर शैतानी मुसकान खेलने लगी. उस धूर्त ने झट दरवाजे की सिटकिनी लगा दी और मुझे ऊपर से नीचे तक ललचाई नजरों से घूरता हुआ बोला, ‘इन्हें रख लो, रेखा डार्लिंग. तुम्हें इन रुपयों की सख्त जरूरत है और मैं ये रुपए दे कर तुम पर मेहरबानी नहीं कर रहा हूं. यह तो एक हाथ ले दूसरे हाथ दे का मामला है. तुम नादानी मत करना. अपनेआप को तुम खुशीखुशी मेरे हवाले कर दो.’

एक घंटे बाद मैं वहां से अपना सबकुछ गंवा कर बदहवास निकली और लड़खड़ाते कदमों से नदी के पुल पर जा पहुंची थी. मुझे खुद से नफरत हो गई थी. मैं जान देने को तैयार थी. मुझे अपनी जिंदगी बोझ सी लग रही थी. ऊपर से नीचे तक मैं पसीने में डूबी थी.

लेकिन उसी समय दिमाग में अजीत, बिट्टी और सूनी मांग वाली मां के चेहरे घूमने लगे थे. मैं सोचने लगी, मेरी मौत के बाद उन का क्या होगा?

मैं ने खुद को संभाला और घर लौट आई.

अजीत को रुपए दे कर मैं तबीयत खराब होने का बहना बना कर लेट गई.

‘‘यह तू क्या सोचे जा रही है, बेटी?’’ अचानक मां की अपनापन लिए प्यार भरी आवाज सुन कर मेरे सोचने का सिलसिला टूट गया.

मैं ने चौंक कर उन की तरफ देखा. मां ने मेरा सिर छाती में छिपा कर चूम लिया. मुझे एक अजीब तरह का सुकून मिला.

अचानक मां ने भर्राई हुई आवाज में कहा, ‘‘मेरी बच्ची, चल उठ और खाना खा ले. हिम्मत से काम ले. हौसला रख. अपने पिता की नसीहत याद कर. निराश होने से काम नहीं चलता बेटी. तू नाखुश व भूखी रहेगी, तो अजीत और बिट्टी भला किस तरह खुश रहेंगे. समझदारी से काम ले, जो बीत गया उसे भूल जा.’’

मेरे कांपते होंठों से निकला, ‘‘मां…’’

‘‘तू मेरी बेटी नहीं, बेटा है,’’ मां ने इतना कहा, तो मैं उन से लिपट गई.

अचानक मेरे दिमाग में खयाल आया कि क्या मां मेरी अनकही पीड़ा को जान गई हैं? Hindi Family Story

Family Story In Hindi: अमीर – बड़े दिलवाला लालू

Family Story In Hindi: ‘‘उठो… आंगनबाड़ी जाना है न?’’ मां लालू को जगाने की कोशिश कर रही थी.

‘थोड़ी देर और…’’ लालू ने अंगड़ाई लेते हुए कहा.

‘‘मुझे और तेरे बापू को काम पर जाने में रोज देरी होती है. चलो, तैयार हो जाओ,’’ मां झंझला कर बोली, तो लालू को उठना पड़ा.

मां ने बासी और कड़क रोटी चायनुमा पानी में डुबो कर नरम की थी. टिन की थाली में वही रोटी परोस कर लालू के सामने सरका दी.

लालू वही नरम और बासी रोटी बड़े चाव से खाने लगा.

‘‘ढंग से खाओ, कपड़ों पर मत गिराना,’’ मां बोली.

‘‘क्यों डांटती हो? बच्चा ही तो है,’’ बापू लालू की तरफ से बोला.

‘‘कल ही कपड़े धोए हैं,’’ मां के मन में साबुन का हिसाबकिताब चल रहा था.

इस के बाद मां और बापू चाय का पानी पी कर काम पर चले गए.

‘‘तुम ने रोटी नहीं खाई?’’ लालू ने पूछा, ‘‘ठकुराइन के घर की रोटी बहुत अच्छी होती है.’’

‘तुम्हारे उठने से पहले ही खा ली थी बेटा,’ मां और बापू दोनों सफाई से झठ बोल गए.

मां गांव के प्रधान के घर पर झाड़ू, बरतन, सफाई करती थी और बापू उन

के खेतों में मजदूर था. इन के घर में चूल्हा जलता था, तो सिर्फ चाय बनाने के लिए, वह भी गुड़ वाली चाय. वरना जो जूठा, बचा हुआ खाना मिलता, उसी पर वे लोग अपना गुजारा कर लेते थे.

मां और बापू दोनों दिनरात मजदूरी में जुटे रहते. बापू को कभी काम मिलता, तो कभी नहीं. मां को पुराने कपड़े, सामान, बचा हुआ खाना मिलता था.

प्रधान के घर में खाना खा कर मां अपना गुजारा कर लेती और अच्छा खाना मिले भले बासी ही सही, अपने बेटे लालू के लिए बांध कर घर ले आती.     5 साल का लालू इसी साल से आंगनबाड़ी में जाने लगा था.

बापू ने उस को इस जिद से भरती करवाया था कि वे दोनों तो अनपढ़ हैं. अगर वे लिखनापढ़ना जानते, तो वे मजदूर नहीं होते. लेकिन उन का बेटा पढ़ेगा. आगे चल कर वे उसे शहर भेजेंगे. वह पढ़लिख कर बड़ा आदमी बनेगा, उस के लिए भले ही उन दोनों को सारी जिंदगी भूखे पेट क्यों न रहना पड़े.

लालू को आंगनबाड़ी भेजने की एक और भी वजह थी. सरकारी नियमों के मुताबिक वहां से कौपीकिताबें मुफ्त में मिलती थीं. साल में एक बार 2 जोड़ी कपड़े मिलते थे. अगर छुट्टी न करो, तो हर रोज दोपहर का खाना मिलता था.

देशभर में 15 अगस्त बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा था. आंगनबाड़ी में भी खास समारोह होना था.

आंगनबाड़ी को झाड़ू लगा कर साफ कराया गया. फूलों की माला से झंडे का स्तंभ सजाया गया. उस के चारों ओर रंगोली से नक्काशी बनाई गई.

थोड़ी ही देर में गांव के सरपंचजी आए. उन्होंने झंडा फहराया. सभी ने राष्ट्रगान गाया. उस के बाद ‘भारत माता की जय’ का जयघोष हुआ. फिर सरपंचजी ने भाषण किया.

समारोह खत्म होने के बाद सभी बच्चों को एकएक डब्बा दिया गया, जिस में 2 समोसे, 2 लड्डू और कुछ नमकीन थी. सभी बच्चे अपनाअपना डब्बा खोल कर समोसेलड्डू पर टूट पड़े.

लालू ने भी अपना डब्बा खोला. समोसे की बहुत अच्छी खुशबू आ रही थी. लालू ने नाक के पास ले जा कर वह खुशबू सूंघी. गांव के रतन हलवाई की दुकान के आसपास ऐसी ही खुशबू फैली रहती है.

लालू ने समोसे और लड्डू को प्यार भरी नजरों से देखा, फिर एक बार सूंघा और डब्बा बंद कर दिया.

आज 15 अगस्त होने की वजह से आंगनबाड़ी में छुट्टी थी. नतीजतन, दोपहर का खाना नहीं मिलने वाला था.

सारे बच्चे लड्डूसमोसा खा कर के घर जाने लगे. कुछ बच्चों ने नमकीन अपनी निकर की जेबों में भर ली और खाली डब्बे वहीं फेंक दिए.

लालू के हाथ में अभी भी डब्बा था, भरा हुआ डब्बा. लालू बड़े ध्यान से संभाल कर डब्बा ले कर अपने घर जा रहा था.

दूर खेतों में खड़े अपने झोंपड़े में आ कर लालू ने वह डब्बा ठंडे चूल्हे के पास रख दिया. थोड़ी देर के लिए वह झोंपडे़ में इधरउधर घूमा, फिर डब्बा चूल्हे के पास से उठाया. उसे डर था कि कहीं कोई चूहा या बिल्ली इसे खा न जाए. उस ने वह डब्बा चूल्हे के ऊपर जो तवा था, उस पर रख दिया. अब वह निश्चिंत हो गया और खेलने के लिए झोंपड़े के बाहर चला गया.

वह खेल में मस्त हो गया कि तभी अचानक उसे कुछ याद आया और दौड़ कर झोंपड़े के अंदर चला आया. डब्बा तो तवे पर सहीसलामत था, मगर चींटियों की कतारें उस के अंदरबाहर आजा रही थीं. उस ने झट से डब्बा खोला. अभी ज्यादा चींटियां अंदर नहीं घुसी थीं. उस ने फूंक मारमार कर चींटियों को भगाया.

इस हड़बड़ी में उस के हाथों पर कुछ चींटियां चिपक कर मर गई थीं. लालू ने अपने कपड़ों से लड्डू पोंछ कर साफ किए. वह खुश हुआ, लड्डू सहीसलामत थे.

पर अब क्या करे? उसे एक तरकीब सूझ. उन के पास एक ही खटिया थी, जो झोंपड़े के बाहर पड़ी रहती थी, जिस पर उस का बापू सोता था. खटिया के पाए ढीले हो गए थे, डोरियां ढीली पड़ गई थीं, उन में अच्छाखासा झोल आ गया था. लालू ने उस पर वह डब्बा रख दिया. अब उसे तसल्ली हो गई कि डब्बा एकदम महफूज है.

वह फिर से खेलने लगा. घर में खाने के लिए कुछ भी नहीं था. आज वह खेल में ही अपना ध्यान लगा रहा था, पर खटिया पर रखे डब्बे पर भी नजर रख रहा था कि कहीं कुत्ता मुंह न मारे.

4-5 साल का छोटा भूखा, थका हुआ बच्चा कितनी देर खाने का डब्बा संभालता? आखिरकार डब्बा गोद में लिए वह खटिया पर लुढ़क गया.

शाम ढलतेढलते मांबापू दोनों काम से वापस आ गए. मां ने लालू को जगाया. आंख मलतेमलते वह जाग गया. मांबापू ने देखा कि उस की गोद में एक डब्बा है.

मां ने पूछा, ‘‘यह क्या है?’’

‘‘आज आंगनबाड़ी में हमें यह दिया गया है,’’ लालू ने डब्बा मां के हाथों में देते हुए कहा.

मां ने डब्बा खोल कर देखा. उस में 2 लड्डू, 2 समोसे और नमकीन थी.

‘‘तुम ने खाया क्यों नहीं बेटा? आज तो तुम्हें वहां खाना भी नहीं मिला होगा,’’ बापू कह रहा था. उस की आवाज में नाराजगी थी.

यह नाराजगी लालू के खाना न खाने पर थी या एक वक्त का खाना न मिलने पर थी, यह तो वही जाने.

‘‘क्यों नहीं खाया?’’ मां गुस्से से बोली. उस की आवाज में गुस्से के साथसाथ तड़प भी थी कि उस का बच्चा दिनभर का भूखा है.

मांबापू सोचने लगे, ‘इस ने खाना क्यों नहीं खाया? डब्बा गोद में लिए लेटा रहा… तबीयत तो ठीक है न इस की? क्या हो गया है इसे?’

मांबापू दोनों ने नाराजगी और तड़प भरे दिल से लालू को डांट लगाई, ‘चलो, पहले लड्डू, समोसा खा लो. खाना गोद में लिए कोई सोता है भला?’

लालू बोला, ‘‘मां, मैं ने इसे तवे पर रखा था, तो इस में चींटियां घुस गईं. पर मैं ने लड्डू को पोंछपोंछ कर साफ कर दिया. चूहा, बिल्ली, कुत्ता कोई इसे मुंह न लगाए, इसलिए गोद में ले कर दिनभर संभालता रहा, तुम दोनों के लिए.’’

थकी हुई मां के जिस्म में न जाने कहां से ताकत आ गई. वह ?ाट से उठ गई. दो कदम की दौड़ लगा कर वह अपने बच्चे के पास आ गई. उस ने लालू का चेहरा कई बार चूमा.

झोंपड़े से पीठ टिकाए बैठा बापू मांबेटे का यह प्यारदुलार देख रहा था. उस ने सिर पर बांधा हुआ कपड़ा अपने हाथों से हलके से उतार कर अपनी आंखें पोंछीं. वह अपनी जगह से उठ गया और प्यार से बेटे के पास खटिया पर जा बैठा. उस ने लालू को सीने से लगाया और उस के माथे को चूमा. उस के उन नन्हे हाथों को चूमा, जो खाना खाने के बजाय खाने की हिफाजत कर रहे थे.

लालू ने अपनी मां से वह डब्बा लिया और बड़े प्यार से उस में से एक समोसा उठाया.

‘‘एक कौर मेरी रानी मां का,’’ कहते हुए लालू ने समोसा मां को खिलाया.

मां ने समोसे का छोटा सा टुकड़ा काट लिया. वही जूठा समोसा बापू के मुंह के पास ले जा कर कहा, ‘‘एक कौर मेरे राजा बापू का.’’

बाप ने भी समोसे खा लिया.

मां के गले से सिसकी निकली. बापू का गला रुंध गया. बापू ने समोसे के साथ सिसकी निगल ली.

मांबापू को समोसा खाते देख कर लालू खिलखिला कर हंस पड़ा. मां ने बचा हुआ समोसा बड़े प्यार से अपने लालू को खिलाया.

लालू बोला, ‘‘अब मेरी मां लड्डू खाएंगी, मेरा बापू लड्डू खाएगा. फिर लालू लड्डू खाएगा.’’

तेल में बने उस लड्डू का स्वाद क्या बताएं कि असली देशी घी के लड्डू का स्वाद भी फीका पड़ जाए.

खुले आसमान के नीचे चांदनी की चादर ओढ़े, झलाती हुई खटिया पर रानी मां, राजा बापू और उन का नन्हा राजदुलारा लालू एकदूसरे को टुकड़टुकड़ा खाना खिला रहे थे. तीनों के मुंह समोसे, लड्डू से और दिल खुशी से भरे थे. Family Story In Hindi

Hindi Family Story: गरीब का डर – बेटी को ले कर परेशान पिता

Hindi Family Story: टैलीविजन और सोशल मीडिया पर जैसे आग लगी हुई है, जब से श्रद्धा और आफताब वाला केस चला है. 35 टुकड़े फ्रिज में रखे गए थे. एकएक कर के वह जंगल में फेंक रहा था.‘‘नराधम, राक्षस, पापी, कुत्ता, नरक में भी जगह नहीं मिलेगी, कीड़े पड़ेंगे बदन में, मर जाए नासपिटा, न जाने कैसी कोख से जन्म लिया है, मांबाप के नाम को कलंक लगा दिया है, ऐसे कपूत से तो बेऔलाद भले…’’ रामआसरे अपनी सब्जी की पोटलियां खोलतेखोलते जोरजोर से बड़बड़ा रहा था.

प्लास्टिक की छोटी बालटी में पानी भरभर कर रामआसरे की पत्नी शारदा प्लास्टिक के छोटे मग से सब्जियों पर पानी छिड़कती जा रही थी. वह जानती थी कि पिछले कई दिनों से आफताब वाले केस को ले कर रामआसरे बड़ा दुखी है. रोज बड़बड़ करता है. घर में भी बेचैन सा रहता है. रोटी भी बेमन से खाता है. वह क्या करे? उस के बस में कुछ नहीं है.

रामआसरे देश का गरीब आदमी है, जिस तक सरकार की कोई योजना का लाभ नहीं जाता है, न ही मिल पाता है. पटरियों पर सब्जी की दुकानें लगाने वाले गरीबों की सुनता कौन है? स्मार्ट सिटी बनाने में सड़कें चौड़ी करने के लिए उन को हर बार लात मार कर भगा दिया जाता है. कभी भी जगह बदल देते हैं, यहां से खाली करो वहां दूसरी जगह दुकान लगाओ.

बेचारे दरबदर होते रहते हैं सब्जी वाले. सड़कें चौड़ी करने के चक्कर में इन की पुरानी ग्राहकी टूट जाती है. बड़ी मुश्किल होती है दुकान जमने में. अब यह परेशानी कौन सुने?सुबह से शाम तक काम ही काम. 2 बच्चों का भरणपोषण, बीमार मां की सेवा… गरीब आदमी है मां को आश्रम में नहीं डालेगा. ये अमीरों के चोंचले हैं.मां चाहे बीमार हो, लेकिन मां तो मां है.

मां के भरोसे ही जवान छोरी को छोड़ कर सब्जी की दुकान में शारदा के साथ बैठ कर शांति से सब्जी बेच पाता है.दोपहर में शारदा घर चली जाती है, तो वह अपनी बेटी की चिंता भी भूल जाता है. मां और पत्नी के घर रहने से बेटी की देखभाल भी हो जाती है.

शारदा 5 बजे शाम को पैट्रोल पंप वाले साहब लोगों के घर खाना बनाने जाती है और 7 बजे वापस भी आ जाती है. बनिया परिवार है. 5 जने हैं घर में. सभी की पसंद का खाना अलगअलग बनता है. कई सारे नौकरचाकर हैं.

शाम का खाना बनाने के लिए शारदा जाती है. सुबह और दोपहर के खाने के लिए दूसरे नौकर रखे हैं. बड़े लोगों की बड़ी बातें.3,000 रुपए महीना मिलते हैं इस बनिया परिवार से. इस के अलावा उन की जवान छोरी के कपड़े भी मिल जाते हैं, जो रामआसरे की जवान छोरी कजरी के काम आ जाते हैं.

होलीदीवाली पर मिठाई का डब्बा, शारदा को नई साड़ी और 1,000 रुपए इनाम में देते हैं. 4 साल से शारदा वहां खाना बना रही है. तब कजरी 15 साल की थी. आज 19 साल की हो गई है.मां की बीमारी की दवा वगैरह भी बनिया परिवार दिला देता है.

एक बार मां ज्यादा बीमार पड़ी थी. साहब ने पहचान के डाक्टर को फोन लगा कर जांच करने को कहा था. इतना अच्छा घर कैसे छोड़े? कितनी मदद मिल जाती है. गरीब आदमी का जीवन चल जाता है.उस दिन तो रामआसरे ने हद कर दी.

जैसे ही टीवी पर श्रद्धा और आफताब की खबर देखी, तो कजरी को डांटने लगा, ‘‘बता तेरा कोई लफड़ावफड़ा तो नहीं है किसी के साथ?’’कजरी डर गई थी बाप का गुस्सा  देख कर. रामआसरे के 2 घर छोड़ कर शकील चाचा का घर था. वहां भी जाना बंद करवा दिया था. शकील चाचा के घर में 2 जवान छोरी और एक जवान छोरा था.

शकील चाचा की पत्नी सायरा और रामआसरे के परिवार के अच्छे संबंध थे. आनाजाना था. बेड़ा गर्क हो आफताब का, जिस ने देश की हवा में जहर घोल दिया था.रामआसरे ने शाम को चाय की टपरी पर बैठना भी बंद कर दिया था शकील चाचा से बचने के लिए. शकील चाचा और रामआसरे के बच्चे साथसाथ खेलकूद कर जवान हुए थे.

रामआसरे को शकील चाचा के घर का जर्दा पुलाव और बिरयानी पसंद थी. जब शकील चाचा के घर से जर्दा पुलाव आता था, तो पूरा घर खुश हो कर खाता था. ऐसे ही होलीदीवाली की गुझिया की खुशबू शकील चाचा को पसंद थी. पूरा परिवार गुझिया पसंद करता था, पर कीड़े पड़ें आफताब को, जिस ने देश का माहौल खराब कर दिया.

रामआसरे ने घर में सख्त मना कर दिया था कि शकील चाचा की दुकान से कोई सामान नहीं आए. शकील चाचा की किराने की छोटी सी दुकान थी. जवान छोरे असलम को किसी गाड़ी के शोरूम में लगवा दिया था. वह सुबह 10 बजे चला जाता था और रात में 9 बजे तक घर आता था. 2 जवान छोरियों के साथ कजरी की दोस्ती थी. वह घर आतीजाती थी.

आफताब और श्रद्धा केस के बाद वह भी बंद करवा दिया था. एक अजीब सी दहशत थी रामआसरे के भीतर, जो गुस्से में कभी भी फट पड़ती थी.रामआसरे के मना करने के बाद भी परिवार के बच्चों में दोस्ती थी. क्या प्यार और इनसानियत के रिश्ते कभी टूट सकते हैं? लेकिन वे रामआसरे की भावनाओं का ध्यान रखते हुए उस के सामने नहीं मिलते थे.

शकील चाचा के छोरे असलम ने महल्ले में आए एक नए परिवार को भी दावत पर बुला लिया था. परिवार क्या था, बस मां और बेटे थे. बेटे का नाम शिवम था. पिता की कुछ साल पहले सड़क हादसे में मौत हो गई थी.उसी दावत में शिवम ने पहली बार कजरी को देखा तो देखता ही रह गया था. कजरी की सादगी उस के मन को भा गई थी.

असलम की बहनों के साथ कजरी कभी किसी काम से बाजार जाती थी, वहीं 1-2 बार उस की शिवम से ‘हायहैलो’ हो गई थी. इस से ज्यादा कुछ नहीं.शिवम सोच रहा था कि बात शुरू कैसे करे? उस ने सोचा कि वह असलम से बात करेगा, इसलिए उस ने असलम को मोबाइल पर अपनी बात बताई.

असलम बोला, ‘‘कुछ सोचते हैं. रामआसरे अंकल के सामने तो मिलने से रहे…’’अचानक असलम को आइडिया सूझा. उस ने शिवम को कहा, ‘‘तू एक काम कर कि रामआसरे अंकल की दुकान से सब्जी खरीदना शुरू कर दे. इस बहाने वे तुझे देखेंगे, फिर धीरेधीरे बात शुरू करना.’’

‘‘उस से क्या होगा?’’ शिवम ने पूछा.‘‘अरे यार, उन से बात तो शुरू हो जाएगी. कभीकभी कजरी खाना देने आती है, उसे देख भी लेना और मौका मिले तो बात भी कर लेना,’’ असलम ने कहा.‘‘यह आइडिया सही है,’’ शिवम खुश हुआ.उसी दिन शिवम सब्जी लेने पहुंच गया.

जानबूझ कर ज्यादा ही सब्जी खरीदी. सब्जी की तारीफ भी की.रामआसरे खुश हो गया और बोला, ‘‘बाबू साहब, सब्जी मंडी से ले कर आता हूं… ताजी हैं.’’शिवम ऐसे ही हर दूसरे दिन कुछ न कुछ सामान रामआसरे की दुकान पर लेने पहुंच जाता. आज शिवम लंच टाइम में गया, तो खुशी के मारे उछल पड़ा. वहां कजरी थी.‘‘कजरी तुम… बापू कहां गए हैं?’’

शिवम को देखते ही कजरी भी खुश हो गई. वह बोली, ‘‘बापू बैंक गए हैं. आप सब्जी लेने आए हो?’’‘‘सब्जी तो ठीक है… आज बड़े दिनों बाद मौका मिला है तुम से बात करने का. कहीं बाहर मिलो न, ढेर सारी बातें करनी हैं… अपना मोबाइल नंबर दो,’’ शिवम बोला.

‘‘मोबाइल नहीं है मेरे पास…’’ कजरी बोली, ‘‘पहले था, पर अब बापू टैंशन में रहते हैं मोबाइल और सोशल मीडिया को ले कर, इसलिए नहीं रखने देते.’’

‘‘ओह, फिर मुलाकात कैसे हो…’’ शिवम बोला.‘‘असलम से बात करना तुम, शायद वह कोई रास्ता बताए,’’ कजरी बोली.‘‘हां, यह ठीक रहेगा,’’

शिवम बोला और वह सब्जी खरीद कर वापस चला गया.रात को ही शिवम ने असलम को फोन पर आज की मुलाकात के बारे में बताया, फिर कजरी से बाहर मिलने के लिए मदद भी मांगी.

असलम बोला, ‘‘सोचता हूं कुछ.’’दूसरे दिन असलम ह्वाट्सएप ग्रुप पर मैसेज देख रहा था. ‘हैप्पी सावन’ के मैसेजों की भरमार थी.

अचानक उसे एक बात ध्यान आई कि 2 दिन बाद ही पीछे खाली मैदान में सावन का मेला लगता है, झूले और तमाम खानेपीने के स्टौल. कजरी को झूला झूलने का शौक है. वहीं मिलवा देगा उन दोनों को.2 दिन बाद हलकीहलकी फुहारें पड़ रही थीं.

कजरी शाहिदा और शमीम के साथ झूला झूलने वालों की कतार में खड़ी थी.सामने वाली चाय की टपरी में शिवम असलम के साथ चाय पी रहा था.

2 झूले खाली हुए ही थे. शाहिदा और शमीम आगे बढ़ी झूले में बैठने के लिए. कजरी भी बैठने की जिद करने लगी कि इतने में शिवम ने पीछे से उस के कंधे पर हाथ रख दिया.कजरी एकदम पलटी और बोली, ‘‘शिवम तुम…’’‘‘हां कजरी, चलो हम दोनों भुट्टा खाते हैं.’’

‘‘कजरी, तुम जाओ और शिवम से बात कर लो,’’ तभी असलम भी आ गया.कजरी शिवम के साथ भुट्टे के ठेले के पास चली गई.‘‘गरम भुट्टे का स्वाद नीबू और नमक के साथ बड़ा ही अच्छा लगता है… क्यों शिवम?’’‘‘बिलकुल कजरी,’’

शिवम बोला, ‘‘उतना ही नमकीन, जितना हमारा प्यार.’’

‘‘प्यार और नमकीन…?’’ कजरी हंसने लगी.

‘‘हां कजरी, जिंदगी में नमक से कभी दूर नहीं हो सकते. तुम मेरी जिंदगी का नमक हो.’

’‘‘अच्छा,’’ यह सुन कर कजरी हंस पड़ी.वे दोनों मेले में घूमते रहे और ढेर सारी बातों के बीच वक्त कब उड़ गया, पता ही नहीं चला.तभी असलम भी अपनी बहनों के साथ आ गया. उन के हाथों में भी भुट्टे थे.‘‘चलें शिवम?’’ असलम ने पूछा.‘‘ठीक है,’’

शिवम बोला.कजरी भी खुश थी इस मुलाकात से.‘‘शिवम, बापू से बात कब करोगे?’’‘‘जल्दी ही कुछ सोचते हैं,’’ शिवम बोला.असलम ने भी उन की हां में हां मिलाई.इस बात के कुछ दिन बाद असलम सुबहसुबह ही रामआसरे के घर पहुंच गया. रामआसरे घर के बाहर झाड़ू लगा रहा था. असलम जानता था कि वह सुबह घर के बरामदे की झाड़ू खुद ही लगाता है,

फिर पानी से छिड़काव करता है, तो मिट्टी की एक सौंधी सी खुशबू फैल जाती है.असलम को देखते ही रामआसरे का मूड खराब हो गया, ‘‘कहां सुबहसुबह आ टपका यह…’’‘‘नमस्ते अंकलजी,’’ असलम ने कहा.‘‘क्या हुआ? क्यों आए हो यहां?’’

रामआसरे पूछ बैठा.‘‘आप से बात करनी है, इसलिए चला आया. सुबह आप मिल जाओगे, नहीं तो सारा दिन आप को टाइम नहीं मिलेगा.’’‘‘कौन सी बात करनी है तुम्हें?’’ रामआसरे बोला.‘‘शादी की…’’ असलम इतना ही बोला था कि रामआसरे गुस्से में चिल्ला उठा, ‘‘अरी ओ शारदा, आ जा… जल्दी से देख तेरी बेटी के लक्षण…’’शारदा आवाज सुन कर दौड़ी चली आई, ‘‘क्या हुआ सुबहसुबह?’’

पर सामने असलम को देखा तो चुप हो गई.‘‘यह देखो शादी की बात करने आया है,’’ रामआसरे बोला.‘‘किस की शादी?’’ शारदा ने पूछा.‘‘कजरी की.’’असलम शांत था.‘‘अब भी बोलेगी कि तेरी लड़की कजरी ने कोई गुल नहीं खिलाया…’’ रामआसरे चिल्लाया.

‘‘अरे, पूरी बात तो सुनो कि यह क्या बोल रहा है…’’ शारदा ने कहा.‘‘अब बचा क्या है सुनने को… मैं तो बरबाद हो गया,’’ रामआसरे बोला.‘‘शांत रहो और पहले असलम की बात सुनो,’’ शारदा बोली.‘‘आंटीजी, एक लड़का है, जो कजरी से शादी करना चाहता है,’’

असलम ने अपनी बात पूरी की.‘मतलब, असलम खुद की शादी की बात नहीं करने आया…’ रामआसरे ने सोचा, फिर बोला, ‘‘तुम खुद की शादी की बात नहीं करने आए थे?’’‘‘मैं कब बोला आप को कि अपनी शादी की बात कर रहा हूं…’’‘‘अच्छाअच्छा… फिर?’’

रामआसरे उत्सुक हो गया.‘‘एक लड़का है शिवम, जो कजरी से शादी करना चाहता है. कजरी भी उसे जानती है,’’ असलम बोला.‘‘मतलब, इश्क वाला मामला है और तू बिचौलिया है. हद हो गई और हमें पता ही नहीं,’’ रामआसरे फिर गुस्साया.‘‘चुप रहो तुम…’’

शारदा बोली, ‘‘असलम, तुम आगे बोलो.’’‘‘आंटीजी, शायद आप उसे जानती होंगी…’’ असलम ने कहा.‘‘मैं कैसे जानूंगी?’’ शारदा हैरानी से बोली.‘‘मांबेटी दोनों एक…’’ रामआसरे बोला.‘‘अंकलजी, वे जो पैट्रोल पंप वाले साहब हैं न… शिवम, उन के पैट्रोल पंप पर काम करता है.’’

‘‘अच्छा… उस का कोई फोटो है?’’ शारदा बोली.‘‘हां आंटीजी,’’ कहते हुए असलम ने मोबाइल में फोटो दिखाया.शारदा ने जैसे ही फोटो देखा तो वह खुशी से चिल्ला पड़ी, ‘‘यह शिवम है…’’‘‘तू जानती है इसे?’’ रामआसरे ने बोलते हुए फोटो पर ध्यान से नजर दौड़ाई.

‘‘हां, कई बार देखा है. बंगले पर काम से आताजाता है. बड़ी पूजा में भी देखा था. नाम नहीं जानती थी,’’ शारदा के चेहरे से खुशी छलक पड़ रही थी.‘‘कजरी… ओ कजरी…’’ शारदा ने आवाज लगाई, पर कजरी कब से दरवाजे पर खड़ी थी और उन की बातें सुन रही थी.

‘‘कजरी, तू इस लड़के को जानती है?’’ रामआसरे ने पूछा.‘‘हां बापू, जानती हूं,’’ कजरी ने जवाब दिया.‘‘तू इसे पसंद करती है?’’ शारदा बोली.‘‘हां मां…’’ कहते हुए कजरी ने मां की पीठ में सिर छिपा लिया.रामआसरे खुश हो गया, फिर वह असलम से बोला,

‘‘बेटा, बाप हूं न… डर जाता हूं कि कहीं कुछ गलत न हो जाए…’’‘‘अंकलजी, कोई बात नहीं. माहौल ही ऐसा है.’’शारदा बोली, ‘‘साहब, लोगों के लिए मिठाई ले कर जाऊंगी आज.’’‘‘हम दोनों साथ चलेंगे,’’ रामआसरे बोला.‘‘और मेरी मिठाई अंकलजी?’’

असलम बोला.‘‘तेरी कोई मिठाई नहीं. मिठाई का डब्बा ले कर आ रहा हूं तेरे घर. शकील से बोलना कि जर्दा पुलाव खाए बहुत दिन हो गए हैं,’’ कह कर रामआसरे हंसने लगा. Hindi Family Story

Family Story In Hindi: बदलाव की आंधी – गंगाप्रसाद के घर आया कैसा तूफान

Family Story In Hindi: ‘‘मुन्ना के पापा सुनो तो, आज मुन्ना नया घर तलाशने की बात कर रहा था. काफी परेशान लग रहा था. मुझ से बोला कि मैं आप से बात कर लूं.’’

‘‘मगर, मुझ से तो कुछ नहीं बोला. बात क्या है मुन्ना की अम्मां. खुल कर बोलो. कई सालों से बिल्डिंग को ले कर समिति, किराएदार, मालिक और हाउसिंग बोर्ड के बीच लगातार मीटिंग चल रही है, यह तो मैं जानता हूं, पर आखिर में फैसला क्या हुआ?’’

‘‘वह कह रहा था कि हमारी बिल्डिंग अब बहुत पुरानी और जर्जर हो चुकी है, इसलिए बरसात के पहले सभी किराएदारों को घर खाली करने होंगे. सरकार की नई योजना के मुताबिक इसे फिर से बनाया जाएगा, पर तब तक सब को अपनीअपनी छत का इंतजाम खुद करना होगा. वह कुछ रुपयों की बात कर रहा था. जल्दी में था, इसलिए आप से मिले बिना ही चला गया.’’

गंगाप्रसाद तिवारी अब गहरी सोच में डूब गए. इतने बड़े शहर में बड़ी मुश्किल से घरपरिवार का किसी तरह से गुजारा हो रहा था. बुढ़ापे के चलते उन की अपनी नौकरी भी अब नहीं रही. ऐसे में नए सिरे से नया मकान ढूंढ़ना, उस का किराया देना नाकों चने चबाने जैसा है. गैलरी में कुरसी पर बैठेबैठे तिवारीजी यादों में खो गए थे.

उन की आंखों के सामने 30 साल पहले का मंजर किसी चलचित्र की तरह चलने लगा.

2 छोटेछोटे बच्चे और मुन्ने की मां को ले कर जब वे पहली बार इस शहर में आए थे, तब यह शहर अजनबी सा लग रहा था. पर समय के साथ वे यहीं के हो कर रह गए.

सेठ किलाचंदजी ऐंड कंपनी में मुनीम की नौकरी, छोटा सा औफिस, एक टेबल और कुरसी. मगर कारोबार करोड़ों का था, जिस के वे एकछत्र सेनापति थे.

सेठजी की ही मेहरबानी थी कि उस मुश्किल दौर में बड़ी मुश्किल से लाखों की पगड़ी का जुगाड़ कर पाए और अपने परिवार के लिए एक छोटा सा आशियाना बना पाए. दिनभर की थकान मिटाने के लिए अपने हक की छोटी सी जमीन, जहां सुकून से रात गुजर जाती थी और सुबह होते ही फिर वही रोज की आपाधापी भरी तेज रफ्तार वाली शहर की जिंदगी.

पहली बार मुन्ने की मां जब गांव से निकल कर ट्रेन में बैठी, तो उसे सबकुछ सपना सा लग रहा था. 2 रात का सफर करते हुए उसे लगा, जैसे वह विदेश जा रही हो. धीरे से वह कान में फुसफुसाई, ‘‘अजी, इस से तो अच्छा अपना गांव था. सभी अपने थे वहां. यहां तो ऐसा लगता है, जैसे हम किसी पराए देश में आ गए हों? कैसे गुजारा होगा यहां?’’

‘‘चिंता मत करो मुन्ने की अम्मां, सब ठीक हो जाएगा. जब तक मन करेगा, यहां रहेंगे, और जब घुटन होने लगेगी तो अपने गांव लौट जाएंगे. गांव का घर, खेत, खलिहान सब है. अपने बड़े भाई के जिम्मे सौंप कर आया हूं. बड़ा भाई पिता समान होता है.’’

इन 30 सालों में इस अजनबी शहर में हम ऐसे रचबस गए, मानो यही अपनी कर्मभूमि है. आज मुन्ने की मां भी गांव में जा कर बसने का नाम नहीं लेती. उसे इस शहर से प्यार हो गया है. उसे ही क्यों? खुद मेरे और दोनों बच्चों के रोमरोम में यह शहर बस गया है. माना कि अब वे थक चुके हैं, मगर अब बच्चों की पढ़ाई पूरी हो गई है. उन्हें ढंग की नौकरी मिल जाएगी तो उन के ब्याह कर देंगे और जिंदगी की गाड़ी फिर से पटरी पर अपनी रफ्तार से दौड़ने लगेगी. अचानक किसी की आवाज ने तिवारीजी की सोच भंग की. देखा तो सामने मुन्ने की मां थी.

‘‘अजी, आप किस सोच में डूबे हो? सुबह से दोपहर हो गई. चलो, अब भोजन कर लो. मुन्ना भी आ गया है. उस से पूरी बात कर लो और सब लोग मिल कर सोचो कि आगे क्या करना है? आखिर कोई हल तो निकालना ही पड़ेगा.’’

भोजन के समय तिवारीजी का पूरा परिवार एकसाथ बैठ कर सोचविचार करने लगा.

मुन्ना ने बताया, ‘‘पापा, हमारी बिल्डिंग का हाउसिंग बोर्ड द्वारा रीडवलपमैंट किया जा रहा है. सबकुछ अब फाइनल हो गया है. एग्रीमैंट के मुताबिक हमें मालिकाना अधिकार का 250 स्क्वायर फुट का फ्लैट मुफ्त में मिलेगा. मगर वह काफी छोटा पड़ेगा, इसलिए अगर कोई अलग से या मौजूदा कमरे में जोड़ कर एक और कमरा लेना चाहता हो, तो उसे ऐक्स्ट्रा कमरा मिलेगा, पर उस के लिए बाजार भाव से दाम देना होगा.’’

‘‘ठीक कहते हो मुन्ना, मुझे तो लगता है कि यदि हम गांव की कुछ जमीन बेच दें, तो हमारा मसला हल हो जाएगा और एक कमरा अलग से मिल जाएगा. ज्यादा रुपयों का इंतजाम हो जाए, तो यह बिलकुल मुमकिन है कि हम अपना एक और फ्लैट खरीद लेंगे,’’ तिवारीजी बोले.

बरसात से पहले तिवारीजी ने डवलपमैंट बोर्ड को अपना रूम सौंप दिया और पूरे परिवार के साथ अपने गांव आ गए. गांव में शुरू के दिनों में बड़े भाई और भाभी ने उन की काफी खातिरदारी की, पर जब उन्हें पूरी योजना के बारे में पता चला तो वे लोग पल्ला झाड़ने लगे.

यह बात गंगाप्रसाद तिवारी की समझ में नहीं आ रही थी. उन्हें कुछ शक हुआ. धीरेधीरे उन्होंने अपनी जगह की खोजबीन शुरू की. हकीकत का पता चलते ही उन के पैरों तले की जमीन ही सरक गई.

‘‘अजी क्या बात हैं? खुल कर बताते क्यों नहीं? दिनभर घुटते रहते हो? अगर जेठजी को हमारा यहां रहना भारी लग रहा है, तो वे हमारे हिस्से का घर, खेत और खलिहान हमें सौंप दें, हम खुद अपना बनाखा लेंगे.’’

‘‘धीरे बोलो भाग्यवान, अब यहां हमारा गुजारा नहीं हो पाएगा. हमारे साथ धोखा हुआ है. हमारे हिस्से की सारी जमीनजायदाद उस कमीने भाई ने जालसाजी से अपने नाम कर ली है.  झूठे कागजात बना कर उस ने दिखाया है कि मैं ने अपने हिस्से की सारी जमीनजायदाद उसे बेच दी है.

‘‘हम बरबाद हो गए मुन्ना की अम्मां. अब तो एक पल के लिए भी यहां कोई ठौरठिकाना नहीं है. हम से भूल यह हुई कि साल 2 साल में एकाध बार यहां आ कर अपनी जमीनजायदाद की कोई खोजखबर नहीं ली.’’

‘‘अरे, यह तो घात हो गया. अब हम कहां रहेंगे? कौन देगा हमें सहारा? कहां जाएंगे हम अपने इन दोनों बच्चों को ले कर? बच्चों को इस बात की भनक लग जाएगी, तो बड़ा अनर्थ हो जाएगा,’’ विलाप कर के मुन्ना की मां रोने लगी.

पूरा परिवार शोक में डूब गया. नहीं चाहते हुए भी तिवारीजी के मन में घुमड़ती पीड़ा की गठरी आखिर खुल ही गई थी.

इस के बाद तिवारी परिवार में कई दिनों तक वादविवाद, सोचविचार होता रहा. सुकून की रोटी जैसे उन के सब्र का इम्तिहान ले रही थी. अपने ही गांवघर में अब गंगाप्रसाद का परिवार बेगाना हो चुका था. उन्हें कोई सहारा नहीं दे रहा था. वे लोग जान चुके थे कि उन्हें लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी होगी. पर इस समय गुजरबसर के लिए छोटी सी झुग्गी भी उन के पास नहीं थी. उसी के चलते आज वे दरदर की ठोकरें खाने को मजबूर थे.

उसी गांव में निचली जाति के मधुकर नामक आदमी का अमीर दलित परिवार था. गांव में उन की अपनी बड़ी सी किराने की दुकान थी. बड़ा बेटा रामकुमार पढ़ालिखा और आधुनिक खयालात का नौजवान था. जब उसे छोटे तिवारीजी के परिवार पर हो रहे नाइंसाफी के बारे में पता चला, तो उस का खून खौल उठा, पर वह मजबूर था. गांव में जातिपाति की राजनीति से वह पूरी तरह परिचित था. एक ब्राह्मण परिवार को मदद करने का मतलब अपनी बिरादरी से पंगा लेना था. पर दूसरी तरफ उसे शहर से आए उस परिवार के प्रति लगाव भी था. उस दिन घर में उस के पिताजी ने तिवारीजी को ले कर बात छेड़ी.

‘‘जानते हो तुम लोग, हमारा वही परिवार है, जिस के पुरखे किसी जमाने में उसी तिवारीजी के यहां पुश्तों से चाकरी किया करते थे. तिवारीजी के दादाजी बड़े भले इनसान थे. जब हमारा परिवार रोटी के लिए मुहताज था, तब इस तिवारीजी के दादाजी ने आगे बढ़ कर हमें गुलामी की दास्तां से छुटकारा दे कर अपने पैरों पर खड़े होने का हौसला दिया था. उस अन्नदाता परिवार के एक सदस्य पर आज विपदा की घड़ी आई है. ऐसे में मुझे लगता है कि हमें उन के लिए कुछ करना चाहिए. आज उसी परिवार की बदौलत गांव में हमारी दुकान है और हम सुखी हैं.’’

‘‘हां बाबूजी, हमें सच का साथ देना चाहिए. मैं ने सुना है कि बैंकों के राष्ट्रीयकरण के बाद जब बैंक के दरवाजे सामान्य लोगों के लिए खुले, तब बड़े तिवारीजी ने हमें राह दिखाई थी. यह उसी बदलाव के दौर का नतीजा है कि कभी दूसरों के टुकड़ों पर पलने वाला गांव का यह परिवार आज अमीर परिवारों में गिना जाता है और शान से रहता है,’’ रामकुमार ने अपनी जोरदार हुंकार भरी.

रामकुमार ताल ठोंक कर अब छोटे तिवारीजी के साथ खड़ा हो गया था. काफी सोचसमझ कर इस परिवार ने छोटे तिवारीजी से बातचीत की.

‘‘हम आप को दुकान खुलवाने और सिर पर छत के लिए जगह, जमीन, पैसाकौड़ी की हर मुमकिन मदद करने के लिए तैयार हैं. आप अपने पैरों पर खड़े हो जाएंगे, तो यह लड़ाई और आसान  हो जाएगी. एक दिन आप का हक  जरूर मिलेगा.’’

उस परिवार का भरोसा और साथ मिल जाने से तिवारी परिवार का हौसला बढ़ गया था. रामकुमार के सहारे अंकिता अपनी दुकानदारी को बखूबी संभालने लगी थी. इस से घर में पैसे आने लगे थे. धीरेधीरे उन के पंखों में बल आने लगा और वे अपने पैरों पर खड़े हो जाते हैं.

तिवारीजी की दुकानदारी का भार उन की बिटिया अंकिता के जिम्मे था, क्योंकि तिवारीजी और उन का बड़ा बेटा मुन्ना अकसर कोर्टकचहरी और शहर के फ्लैट के काम में बिजी रहते थे.

इस घटना से गांव के ब्राह्मण घरों में  जातपांत की राजनीति जन्म लेने लगी. कुंठित निचली बिरादरी के लोग भी रामकुमार और अंकिता को ले कर साजिश रचने लगे. चारों ओर तरहतरह की अफवाहें रंग  लेने लगीं, पर बापबेटे ने पूरे गांव को खरीखोटी सुनाते हुए अपने हक की लड़ाई जारी रखी. इस काम में रामकुमार तन, मन और धन से उन के साथ था. उस ने जिले के नामचीन वकील से तिवारीजी की मुलाकात कराई और उस की सलाह पर ही पुलिस में शिकायत भी दर्ज कराई.

छोटीमोटी इस उड़ान को भरतेभरते अंकिता और रामकुमार कब एकदूसरे को दिल दे बैठे, इस का उन्हें पता  ही नहीं चला. इस बात की भनक पूरे गांव को लग जाती है. लोग इस बेमेल प्यार को जातपांत का रंग दे कर  तिवारी और चौहान परिवार को  बदनाम करने की कोशिश करते हैं. इस काम में अंकिता के ताऊजी सब से आगे थे.

गंगाप्रसादजी के परिवार को जब  इस बात की जानकारी होती?है, तो वे राजीखुशी इस रिश्ते को स्वीकार कर लेते हैं. इतने सालों तक बड़े शहर में रहते  हुए उन की सोच भी बड़ी हो चुकी होती है. जातपांत के बजाए सम्मान, इज्जत और इनसानियत को वे तवज्जुह देना जानते थे.

जमाने के बदलते दस्तूर के साथ बदलाव की आंधी अब अपना रंग जमा चुकी थी. अंकिता ने अपना फैसला सुनाया, ‘‘बाबूजी, मैं रामकुमार से प्यार करती हूं और हम शादी के बंधन में बंध कर अपनी नई राह बनाना चाहते हैं.’’

‘‘बेटी, हम तुम्हारे फैसले का स्वागत करते हैं. हमें तुम पर पूरा भूरोसा है. अपना भलाबुरा तुम अच्छी तरह से जानती हो. इन के परिवार के हम पर बड़े उपकार हैं.’’

आखिर में दोनों परिवारों ने आपसी रजामंदी से उसी गांव में विरोधियों की छाती पर मूंग दलते हुए अंकिता और रामकुमार की शादी बड़े धूमधाम से करा दी.

एक दिन वह भी आया, जब गंगाप्रसादजी अपनी जमीनजायदाद की लड़ाई जीत गए. जालसाजी के केस में उन के बड़े भाई को जेल की हवा खाने की नौबत भी आ गई थी. Family Story In Hindi

Hindi Family Story: महक वापस लौटी – दोस्त ने की दोस्त की मदद

Hindi Family Story: सुमि को रोज 1-2 किलोमीटर पैदल चलना बेहद पसंद था. वह आज भी बस न ले कर दफ्तर के बाद अपने ही अंदाज में मजेमजे से चहलकदमी करते हुए, तो कभी जरा सा तेज चलती हुई दफ्तर से लौट रही थी कि सामने से मनोज को देख कर एकदम चौंक पड़ी.

सुमि सकपका कर पूछना चाहती थी, ‘अरे, तुम यहां इस कसबे में कब वापस आए?’

पर यह सब सुमि के मन में ही कहीं  रह गया. उस से पहले मनोज ने जोश में आ कर उस का हाथ पकड़ा और फिर तुरंत खुद ही छोड़ भी दिया.

मनोज की छुअन पा कर सुमि के बदन में जैसे कोई जादू सा छा गया हो. सुमि को लगा कि उस के दिल में जरा सी झनझनाहट हुई है, कोई गुदगुदी मची है.

ऐसा लगा जैसे सुमि बिना कुछ  बोले ही मनोज से कह उठी, ‘और मनु, कैसे हो? बोलो मनु, कितने सालों के बाद मिले हो…’

मनोज भी जैसे सुमि के मन की बात को साफसाफ पढ़ रहा था. वह आंखों से बोला था, ‘हां सुमि, मेरी जान. बस अब  जहां था, जैसा था, वहां से लौट आया, अब तुम्हारे पास ही रहूंगा.’

अब सुमि भी मन ही मन मंदमंद मुसकराने लगी. दिल ने दिल से हालचाल पूछ लिए थे. आज तो यह गुफ्तगू भी बस कमाल की हो रही थी.

पर एक सच और भी था कि मनोज को देखने की खुशी सुमि के अंगअंग में छलक रही थी. उस के गाल तक लाल हो गए थे.

मनोज में कोई कमाल का आकर्षण था. उस के पास जो भी होता उस के चुंबकीय असर में मंत्रमुग्ध हो जाता था.

सुमि को मनोज की यह आदत कालेज के जमाने से पता थी. हर कोई उस का दीवाना हुआ करता था. वह कुछ भी कहां भूली थी.

अब सुमि भी मनोज के साथ कदम से कदम मिला कर चलने लगी. दोनों चुपचाप चल रहे थे.

बस सौ कदम चले होंगे कि एक ढाबे जैसी जगह पर मनोज रुका, तो सुमि भी ठहर गई. दोनों बैंच पर आराम से बैठ गए और मनोज ने ‘2 कौफी लाना’ ऐसा  कह कर सुमि से बातचीत शुरू कर दी.

‘‘सुमि, अब मैं तुम से अलग नहीं रहना चाहता. तुम तो जानती ही हो, मेरे बौस की बरखा बेटी कैसे मुझे फंसा कर ले गई थी. मैं गरीब था और उस के जाल में ऐसा फंसा कि अब 3 साल बाद यह मान लो कि वह जाल काट कर आ गया हूं.’

यह सुन कर तो सुमि मन ही मन हंस पड़ी थी कि मनोज और किसी जाल में फंसने वाला. वह उस की नसनस से वाकिफ थी.

इसी मनोज ने कैसे अपने एक अजीज दोस्त को उस की झगड़ालू पत्नी से छुटकारा दिलाया था, वह पूरी दास्तान जानती थी. तब कितना प्रपंच किया था इस भोले से मनोज ने.

दोस्त की पत्नी बरखा बहुत खूबसूरत थी. उसे अपने मायके की दौलत और पिता के रुतबे पर ऐश करना पसंद था. वह हर समय पति को मायके के ठाठबाट और महान पिता की बातें बढ़ाचढ़ा कर सुनाया करती थी.

मनोज का दोस्त 5 साल तक यह सहन करता रहा था, पर बरखा के इस जहर से उस के कान पक गए थे. फिर एक दिन उस ने रोरो कर मनोज को आपबीती सुनाई कि वह अपने ही घर में हर रोज ताने सुनता है. बरखा को बातबात पर पिता का ओहदा, उन की दौलत, उन के कारनामों में ही सारा बह्मांड नजर आता है.

तब मनोज ने उस को एक तरकीब बताई थी और कहा था, ‘यार, तू इस जिंदगी को ऐश कर के जीना सीख. पत्नी अगर रोज तुझे रोने पर मजबूर कर रही है, तो यह ले मेरा आइडिया…’

फिर मनोज के दोस्त ने वही किया. बरखा को मनोज के बताए हुए एक शिक्षा संस्थान में नौकरी करने का सुझाव दिया और पत्नी को उकसाया कि वह अपनी कमाई उड़ा कर जी सकती है. उस को यह प्रस्ताव भी दिया कि वह घर पर नौकर रख ले और बस आराम करे.

दोस्त की मनमौजी पत्नी बरखा यही चाहती थी. वह मगन हो कर घर की चारदीवारी से बाहर क्या निकली कि उस मस्ती में डूब ही गई.

वह दुष्ट अपने पति को ताने देना ही भूल गई. अब मनोज की साजिश एक महीने में ही काम कर गई. उस संस्थान का डायरैक्टर एक नंबर का चालू था. बरखा जैसी को उस ने आसानी से फुसला लिया. बस 4 महीने लगे और  मनोज की करामात काम कर गई.

दोस्त ने अपनी पत्नी को उस के बौस के साथ पकड़ लिया और उस के पिता को वीडियो बना कर भेज दिया.

कहां तो दोस्त को पत्नी से 3 साल अपने अमीर पिता के किस्सों के ताने सुनने पड़े और कहां अब वह बदनामी नहीं करने के नाम पर उन से लाखों रुपए महीना ले रहा था.

ऐसा था यह धमाली मनोज. सुमि मन ही मन यह अतीत याद कर के अपने होंठ काटने लगी. उस समय वह मनोज के साथ ही नौकरी कर रही थी. हर घटना उस को पता थी.

ऐसा महातिकड़मी मनोज किसी की चतुराई का शिकार बनेगा, सुमि मान नहीं पा रही थी.

मगर मनोज कहता रहा, ‘‘सुमि, पता है मुंबई मे ऐश की जिंदगी के नाम पर बौस ने नई कंपनी में मुझे रखा जरूर, मगर वे बापबेटी तो मुझे नौकर समझने लगे.’’

सुमि ने तो खुद ही उस बौस की  यहां कसबे की नौकरी को तिलांजलि दे दी थी. वह यों भी कुछ सुनना नहीं चाहती थी, मगर मजबूर हो कर सुनती रही. मनोज बोलता रहा, ‘‘सुमि, जानती हो मुझ से शादी तो कर ली, पद भी दिया, मगर मेरा हाथ हमेशा खाली ही रहता था. पर्स बेचारा शरमाता रहता था. खाना पकाने, बरतन मांजने वाले नौकरों के पास भी मुझ से ज्यादा रुपया होता था.

‘‘मुझे न तो कोई हक मिला, न कोई इज्जत. मेरे नाम पर करोड़ों रुपया जमा कर दिया, एक कंपनी खोल दी, पर मैं ठनठन गोपाल.

‘‘फिर तो एक दिन इन की दुश्मन कंपनी को इन के राज बता कर एक करोड़ रुपया इनाम में लिया और यहां आ गया.’’

‘‘पर, वे तुम को खोज ही लेंगे,’’ सुमि ने चिंता जाहिर की.

यह सुन कर मनोज हंसने लगा, ‘‘सुमि, दोनों बापबेटी लंदन भाग गए हैं. उन का धंधा खत्म हो गया है. अरबों रुपए का कर्ज है उन पर. अब तो वे मुझ को नहीं पुलिस उन को खोज रही है. शायद तुम ने अखबार नहीं पढ़ा.’’

मनोज ने ऐसा कहा, तो सुमि हक्कीबक्की रह गई. उस के बाद तो मनोज ने उस को उन बापबेटी के जोरजुल्म की ऐसीऐसी कहानियां सुनाईं कि सुमि को मनोज पर दया आ गई.

घर लौटने के बाद सुमि को उस रात नींद ही नहीं आई. बारबार मनोज ही खयालों में आ जाता. वह बेचैन हो जाती.

आजकल अपने भैयाभाभी के साथ रहने वाली सुमि यों भी मस्तमौला जिंदगी ही जी रही थी. कालेज के जमाने से मनोज उस का सब से प्यारा दोस्त था, जो सौम्य और संकोची सुमि के शांत मन में शरारत के कंकड़ गिरा कर उस को खुश कर देता था.

कालेज पूरा कर के दोनों ने साथसाथ नौकरी भी शुरू कर दी. अब तो सुमि के मातापिता और भाईभाभी सब यही मानने लगे थे कि दोनों जीवनसाथी बनने का फैसला ले चुके हैं.

मगर, एक दिन मनोज अपने उसी बौस के साथ मुंबई चला गया. सुमि को अंदेशा तो हो गया था, पर कहीं उस का मन कहता जरूर कि मनोज लौट आएगा. शायद उसी के लिए आया होगा.

अब सुमि खुश थी, वरना तो उस को यही लगने लगा था कि उस की जिंदगी जंगल में खिल रहे चमेली के फूल जैसी हो गई है, जो कब खिला, कैसा खिला, उस की खुशबू कहां गई, कोई नहीं जान पाएगा.

अगले दिन सुमि को अचानक बरखा दिख गई. वह उस की तरफ गई.

‘‘अरे बरखा… तुम यहां? पहचाना कि नहीं?’’

‘‘कैसी हो? पूरे 7 साल हो गए.’’ कहां बिजी रहती हो.

‘‘तुम बताओ सुमि, तुम भी तो नहीं मिलतीं,’’ बरखा ने सवाल का जवाब सवाल से दिया.

दोनों में बहुत सारी बातें हुईं. बरखा ने बताया कि मनोज आजकल मुंबई से यहां वापस लौट आया है और उस की सहेली की बहन से शादी करने वाला है.

‘‘क्या…? किस से…?’’ यह सुन कर सुमि की आवाज कांप गई. उस को लगा कि पैरों तले जमीन खिसक गई.

‘‘अरे, वह थी न रीमा… उस की बहन… याद आया?’’

‘‘मगर, मनोज तो…’’ कहतेकहते सुमि रुक गई.

‘‘हां सुमि, वह मनोज से तकरीबन 12 साल छोटी है. पर तुम जानती हो न मनोज का जादुई अंदाज. जो भी उस से मिला, उसी का हो गया.

‘‘मेरे स्कूल के मालिक, जो आज पूरा स्कूल मुझ पर ही छोड़ कर विदेश जा बसे हैं, वे तक मनोज के खास दोस्त हैं.’’

‘‘अच्छा?’’

‘‘हांहां… सुमि पता है, मैं अपने मालिक को पसंद करने लगी थी, मगर मनोज ने ही मुझे बचाया. हां, एक बार मेरी वीडियो क्लिप भी बना दी.

‘‘मनोज ने चुप रहने के लाखों रुपए लिए, लेकिन आज मैं बहुत ही खुश हूं. पति ने दूसरी शादी रचा ली है. मैं अब आजाद हूं.’’

‘‘अच्छा…’’ सुमि न जाने कैसे यह सब सुन पा रही थी. वह तो मनोज की शादी की बात पर हैरान थी. यह मनोज फिर उस के साथ कौन सा खेल खेल रहा था.

सुमि रीमा का घर जानती थी. पास में ही था. उस के पैर रुके नहीं. चलती गई. रीमा का घर आ गया.

वहां जा कर देखा, तो रीमा की मां मिलीं. बताया कि मनोज और खुशी तो कहीं घूमने चले गए हैं.

यह सुन कर सुमि को सदमा लगा. खैर, उस को पता तो लगाना ही था कि मनोज आखिर कर क्या रहा है.

सुमि ने बरखा से दोबारा मिल कर पूरी कहानी सुना दी. बरखा यह सुन कर खुद भौंचक सी रह गई.

सुमि की यह मजबूरी उस को करुणा से भर गई थी. वह अभी इस समय तो बिलकुल समझ नहीं पा रही थी कि कैसे होगा.

खैर, उस ने फिर भी सुमि से यह वादा किया कि वह 1-2 दिन में जरूर कोई ठोस सुबूत ला कर देगी.

बरखा ने 2 दिन बाद ही एक मोबाइल संदेश भेजा, जिस में दोनों की  बातचीत चल रही थी. यह आडियो था. आवाज साफसाफ समझ में आ रही थी.

मनोज अपनी प्रेमिका से कह रहा था कि उस को पागल करार देंगे. उस के घर पर रहेंगे.

सुमि यह सुन कर कांपने लगी. फिर भी सुमि दम साध कर सुन रही थी. वह छबीली लड़की कह रही थी कि ‘मगर, उस को पागल कैसे साबित करोगे?’

‘अरे, बहुत आसान है. डाक्टर का  सर्टिफिकेट ले कर?’

‘और डाक्टर आप को यह सर्टिफिकेट क्यों देंगे?’

‘अरे, बिलकुल देंगे.’ फिक्र मत करो.

‘महिला और वह भी 33 साल की, सोचो है, न आसान उस को उल्लू बनाना, बातबात पर चिड़चिड़ापन पैदा करना कोई मुहिम तो है नहीं, बस जरा माहौल बनाना पड़ेगा.

‘बारबार डाक्टर को दिखाना पड़ेगा. कुछ ऐसा करूंगा कि 2-4 पड़ोसियों के सामने शोर मचा देगी या बरतन तोड़ेगी पागलपन के लक्षण यही तो होते हैं. मेरे लिए बहुत आसान है. वह बेचारी पागलखाने मत भेजो कह कर रोज गिड़गिड़ा कर दासी बनी रहेगी और यहां तुम आराम से रहना.’

‘मगर ऐसा धोखा आखिर क्यों? उस को कोई नुकसान पहुंचाए बगैर, इस प्रपंच के बगैर भी हम एक हो सकते  हैं न.’

‘हांहां बिलकुल, मगर कमाई के  साधन तो चाहिए न मेरी जान. उस के नाम पर मकान और दुकान है. यह मान लो कि 2-3 करोड़ का इंतजाम है.

‘सुमि ने खुद ही बताया है कि शादी करते ही यह सब और कुछ गहने उस के नाम पर हो जाएंगे. अब सोचो, यह इतनी आसानी से आज के जमाने में कहां मिल पाता है.

‘यह देखो, उस की 4 दिन पहले की तसवीर, कितनी भद्दी. अब सुमि तो बूढ़ी हो रही है. उस को सहारा चाहिए. मातापिता चल बसे हैं. भाईभाभी की  अपनी गृहस्थी है.

‘मैं ही तो हूं उस की दौलत का सच्चा रखवाला और उस का भरोसेमंद हमदर्द. मैं नहीं करूंगा तो वह कहीं और जाएगी, किसी न किसी को खोजेगी.

‘मैं तो उस को तब से जानता हूं, जब वह 17 साल की थी. सोचो, किसी और को पति बना लेगी तो मैं ही कौन सा खराब हूं.’

रिकौर्डिंग पूरी हो गई थी. सुमि को बहुत दुख हुआ, पर वह इतनी भी कमजोर नहीं थी कि फूटफूट कर रोने लगती.

सुमि का मन हुआ कि वह मनोज का  गला दबा दे, उस को पत्थर मार कर घायल कर दे. लेकिन कुछ पल बाद ही सुमि ने सोचा कि वह तो पहले से ही ऐसा था. अच्छा हुआ पहले ही पता लग गया.

कुछ देर में ही सुमि सामान्य हो गई. वह जानती थी कि उस को आगे क्या करना है. मनोज का नाम मिटा कर अपना हौसला समेट कर के एक स्वाभिमानी जिद का भरपूर मजा  उठाना है. Hindi Family Story

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