Murder Story : हत्या के बाद घर में ही कर दिया दफन

Murder Story : शादीशुदा संतोष का दिल अपने दोस्त की बहन रेखा पर आ गया. उसे पाने के लिए उस ने एक चाल चली. उस चाल में उस की मनोकामना तो पूरी हो गई पर रामकुमार बेवजह मारा गया. सुबह के करीब साढ़े 10 बजे रायबरेली के पुलिस अधीक्षक राजेश पांडेय जैसे ही अपने कार्यालय के सामने गाड़ी से उतरे, बूढ़ा चंद्रपाल यादव अपनी पत्नी जनकदुलारी के साथ उन के सामने हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया. उन के चेहरों से ही लग रहा था कि उन पर कोई भारी विपत्ति आई है. चंद्रपाल ने कांपते स्वर में कहा, ‘‘साहब, पिछले एक महीने से हमारा जवान बेटा रामकुमार लापता है. हम ने उसे बहुत ढूंढ़ा, थाने में गुमशुदगी भी दर्ज कराई, लेकिन कुछ पता नहीं चला. हर तरफ से निराश हो कर अब आप के पास आया हूं.’’

बात पूरी होते ही पतिपत्नी फफकफफक कर रोने लगे. पुलिस अधीक्षक राजेश पांडेय ने चंद्रपाल का हाथ थाम कर सांत्वना देते हुए कहा, ‘‘आप अंदर आइए, हम से जो हो सकेगा, हम आप की मदद करेंगे.’’

एसपी साहब ने वहां खड़े संतरी को उन्हें अंदर ले कर आने का इशारा किया. साहब का इशारा पाते ही एक सिपाही दोनों को अंदर ले गया. पांडेयजी ने दोनों को प्यार और सम्मान के साथ बैठा कर उन की पूरी बात सुनी. चंद्रपाल यादव उत्तर प्रदेश के जिला रायबरेली, थाना भदोखर के गांव बेलहिया का रहने वाला था. वैसे तो इस गांव में सभी जाति के लोग रहते हैं, लेकिन यादवों की संख्या कुछ ज्यादा है. गांव के ज्यादातर लोगों की रोजीरोटी खेतीकिसानी पर निर्भर है. चंद्रपाल के परिवार में पत्नी जनकदुलारी के अलावा 2 बेटे थे श्यामकुमार तथा रामकुमार और एक बेटी थी श्यामा. श्यामकुमार और श्यामा की शादी हो चुकी थी. श्यामा अपनी ससुराल में रहती थी. जबकि श्यामकुमार अपने परिवार के साथ मांबाप से अलग रहता था. एक तरह से रामकुमार ही मांबाप के बुढ़ापे का सहारा था.

14 जनवरी, 2013 की रात रामकुमार खापी कर घर में सोया था, लेकिन सुबह को वह गायब मिला. 15 जनवरी की सुबह से ही चंद्रपाल ने 23 वर्षीय रामकुमार की तलाश शुरू कर दी, लेकिन काफी खोजबीन के बाद भी उस के बारे में कुछ पता नहीं चला. कोई रास्ता न देख चंद्रपाल ने थाना भदोखर में उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी. पुलिस ने 2-4 दिन इधरउधर देखा, उस के बाद वह भी शांत हो कर बैठ गई. धीरेधीरे महीना भर से ज्यादा बीत गया. जब रामकुमार का कुछ पता नहीं चला तो गांव वालों ने चंद्रपाल को शहर जा कर कप्तान साहब से मिलने की सलाह दी. इसी के बाद चंद्रपाल पत्नी के साथ पुलिस अधीक्षक राजेश पांडेय से मिलने आया था. एसपी साहब ने उसे सांत्वना देते हुए कहा था कि वे लोग परेशान न हों. वह जल्द से जल्द उन के बेटे के बारे में पता लगवाने की कोशिश करेेंगे.

पुलिस अधीक्षक के इस आश्वासन पर चंद्रपाल और उस की पत्नी जनकदुलारी को काफी राहत महसूस हुई. इस के बाद पुलिस ने नए सिरे से छानबीन शुरू की. पुलिस अधीक्षक राजेश पांडेय के निर्देश पर थाना भदोखर पुलिस, क्राइम ब्रांच और सर्विलांस सेल सभी सक्रिय हो गए. उन दिनों थाना भदोखर के थानाप्रभारी आर.पी. रावत थे. वह अपनी पुलिस टीम के साथ रामकुमार की खोज में लग गए. यह देख कर पुलिस से नाउम्मीद हो चुके चंद्रपाल को लगा कि शायद अब उन के बेटे के बारे में पता चल जाएगा. लेकिन पुलिस की तत्परता के बावजूद दिन पर दिन बीतते जा रहे थे. रामकुमार का कहीं कोई पता नहीं चल पा रहा था. धीरेधीरे पुलिस ने लाख युक्ति लगाई, लेकिन कोई भी युक्ति काम नहीं आई. गांव वालों की ही नहीं, पुलिस की भी समझ में नहीं आ रहा था कि रामकुमार को जमीन खा गई या आसमान निगल गया.

रामकुमार के पता न चल पाने से पुलिस अधीक्षक भी हैरान थे. उन की भी समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर उस के बारे में पता क्यों नहीं चल रहा है. गांव में उस की किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं थी. गांव वालों के अनुसार, वह अपने काम से काम रखने वाला लड़का था. उस की शादी भी नहीं हुई थी. उस का चालचरित्र भी ऐसा नहीं था कि उस बारे में कुछ ऐसावैसा सोचा जाता. हर कोई रामकुमार को ले कर परेशान था कि उसी बीच कुछ ऐसा हुआ कि रामकुमार के लापता होने का रहस्य अपनेआप खुल गया.

26 जुलाई की रात इतनी ज्यादा बारिश हुई कि बेलहिया गांव में पानी ही पानी भर गया. चंद्रपाल के घर में भी पानी भर गया था. घर का पानी निकालने के लिए चंद्रपाल नाली बना रहा था तो जनकदुलारी ने कहा, ‘‘रामू के बप्पा रामू के कमरे में भी पानी भर गया है. उस में रखा तख्त सरका देते तो मैं वहां का पानी भी बाहर निकाल देती.’’

रामकुमार का अपना अलग कमरा था. जब से वह गायब हुआ था, जनकदुलारी उस कमरे में कम ही जाती थी. क्योंकि उस में रामकुमार का सारा सामान रखा था, जिसे देख कर उसे बेटे की याद आ जाती थी. इसी वजह से चंद्रपाल का भी उस कमरे में जाने का मन नहीं करता था. इसलिए उस ने टालने वाले अंदाज में कहा, ‘‘ऐसे ही काम चल जाए तो चला लो, मेरा उस कमरे में जाने का मन नहीं करता.’’

‘‘मन तो मेरा भी नहीं करता. लेकिन कच्ची दीवार है. पानी भरा रहेगा तो दीवारें गिर सकती हैं.’’

चंद्रपाल तख्त हटाने के लिए कमरे में पहुंचा तो उस ने देखा तख्त के नीचे की मिट्टी अंदर धंसी हुई है. वहां गढ्ढा सा बना हुआ था. उस गड्ढे को देख कर चंद्रपाल को हैरानी हुई, क्योंकि वह कोठरी काफी पुरानी थी. उस की जमीन काफी मजबूत थी. उस में इस तरह का गड्ढा खुदबखुद नहीं हो सकता था. बहरहाल उस ने जैसे ही तख्त हटवाया, उसे जो दिखाई दिया, उस से उस की आंखें खुली की खुली रह गईं. गड्ढे की धंसी हुई मिट्टी में सड़ागला एक इंसानी हाथ दिखाई दे रहा था. चंद्रपाल ने जल्दीजल्दी हाथों से मिट्टी हटानी शुरू की तो थोड़ी ही देर में उस के बेटे रामकुमार की लाश निकल आई.

रामकुमार की लाश निकलते ही चंद्रपाल बदहवास सा चिल्लाने लगा. उस की चीखपुकार सुन कर जनकदुलारी और आसपड़ोस के लोग भी आ गए. रामकुमार की सड़ीगली लाश देख कर घर में कोहराम मच गया. गांव वाले भी हैरान थे. बहरहाल रामकुमार की लाश मिलने की सूचना थाना भदोखर पुलिस को दे दी गई. वहां से यह सूचना पुलिस अधीक्षक राजेश पांडेय को दी गई.

पुलिस के लिए यह सूचना हैरान करने वाली थी. आननफानन में थाना भदोखर के थानाप्रभारी रामराघव सिंह सिपाही कन्हैया सिंह और अमरचंद्र शुक्ला को साथ ले कर गांव बेलहिया आ पहुंचे. थोड़ी ही देर में पुलिस अधीक्षक राजेश पांडेय भी फौरेंसिक टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस ने सावधानी से लाश गड्ढे से बाहर निकाली. वह पूरी तरह से सड़गल चुकी थी. लाश के साथ लाल रंग का एक दुपट्टा मिला, जिसे पुलिस ने कब्जे में ले लिया. इस के बाद अन्य काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए रायबरेली भेज दिया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि रामकुमार की हत्या गला दबा कर की गई थी. महीनों पहले हुई हत्या का मामला था, इसलिए पुलिस के लिए यह चुनौती जैसी थी. हत्या की कोई वजह नजर नहीं आ रही थी. लाश घर के अंदर मिली थी, साफ था हत्या घर के अंदर ही की गई थी. ऐसी स्थिति में इस मामले में घरवालों का ही हाथ हो सकता था. लेकिन घर में सिर्फ बूढ़े मांबाप थे. वे अपने बेटे की हत्या क्यों करते? जबकि वही उन का सहारा था. वैसे भी वह ऐसा नहीं था कि मांबाप उस से परेशान होते. पुलिस ने हत्यारों तक पहुंचने के लिए जब चंद्रपाल और जनकदुलारी से विस्तारपूर्वक पूछताछ की तो उन्होंने एक बात ऐसी बताई, जिस पर पुलिस को संदेह हुआ. पतिपत्नी ने पुलिस को बताया था कि जिस रात रामकुमार गायब हुआ था, उस रात उन का रिश्ते का एक भांजा संतोष आया हुआ था.

वह पंजाब से एक लड़की साथ लाया था, जिस की शादी वह रामकुमार से कराना चाहता था. पुलिस ने जब चंद्रपाल से उन के उस भांजे संतोष के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि वह पंजाब के अंबाला शहर में रहता है. पुलिस को उस पर संदेह हो रहा था, इसलिए पुलिस उस से ही नहीं, उस लड़की से भी पूछताछ करना चाहती थी, जो उस के साथ आई थी. पुलिस अधीक्षक राजेश पांडेय ने चंद्रपाल के भांजे संतोष और उस के साथ आई लड़की को रायबरेली लाने के लिए एक पुलिस टीम अंबाला भेज दी. पुलिस ने दोनों को रायबरेली ला कर पूछताछ की तो 11 महीने पुराने रामकुमार हत्याकांड से पर्दा उठ गया. उन दोनों ने रामकुमार की हत्या की जो कहानी पुलिस को सुनाई थी, वह इस प्रकार थी.

रायबरेली के ही थाना डलमऊ के गांव ठाकुरद्वारा का रहने वाला दिनेश कुमार अपने साले संतोष कुमार के साथ पंजाब के अंबाला शहर में रहता था. वहां दोनों एक साइकिल बनाने की फैक्ट्री में नौकरी करते थे. दोनों ने पंजाबी बाग मोहल्ले में किराए का एक कमरा ले रखा था, जिस में वे एक साथ रहते थे. उसी मोहल्ले में पटना की साधु बस्ती का रहने वाला रमेश कुमार यादव भी रहता था. वह कृषिकार्य की मशीनें बनाने के कारखाने में काम करता था. रमेश के साथ उस का परिवार भी रहता था. रमेश के परिवार में पत्नी सुधा, 10 साल का बेटा राजू और 20 साल की बहन रेखा थी.

एक मोहल्ले में रहने की वजह से और एक ही जाति का होने की वजह से दिनेश और रमेश की पहले जानपहचान हुई, जो बाद में दोस्ती में बदल गई. बीच में दिनेश के साले संतोष की नौकरी छूट गई तो रमेश ने उसे अपनी फैक्ट्री में नौकरी दिलवा दी थी. इस के बाद संतोष से भी रमेश की दोस्ती हो गई थी. अकसर सभी एकसाथ बैठते और एकदूसरे का सुखदुख बांटते. ऐसे में ही एक दिन रमेश ने कहा, ‘‘भाई दिनेश, सब तो ठीक है. मुझे चिंता रेखा की है. समझ में नहीं आ रहा कि उस की शादी कहां करूं, क्योंकि गांव से अब मेरा कोई रिश्ता नहीं रह गया है.’’

‘‘रमेश भाई, परदेश में आप ने हमारी बहुत मदद की है. मैं इस मामले में आप की मदद कर सकता हूं. दरअसल संतोष के एक मामा हैं चंद्रपाल. वह रायबरेली के नजदीक बेलहिया गांव में रहते हैं. उन का खातापीता परिवार है. उन के पास खेती की ठीकठाक जमीन है. उन का बेटा रामकुमार आप की बहन रेखा के लिए एकदम ठीक है. जातिबिरादरी भी एक है. आप कहें तो बात चलाऊं?’’ दिनेश ने कहा.

‘‘दिनेश भाई, तुम कह तो ठीक रहे हो. लेकिन परेशानी यह है कि मेरी बहन कई सालों से यहां शहर में हमारे साथ रह रही है. वह गांव में कैसे रहेगी?’’ रमेश ने अपनी परेशानी बताई तो दिनेश ने कहा, ‘‘रमेश भाई, आप भी कैसी बात करते हैं. न जाने कितने लोगों को आप ने नौकरी दिलवाई है. शादी के बाद बहनोई को भी यहीं बुला लेना. उस के बाद आप की बहन यहीं रहेगी.’’

दिनेश की बात रमेश को सही लगी. इस के बाद उस ने अपनी पत्नी सुधा से बात की तो उस ने भी हामी भर दी. इस के बाद तो दिनेश और संतोष से रमेश की और भी गहरी दोस्ती हो गई. रमेश की बहन रेखा की उम्र बामुश्किल 20 साल थी. उस का गोल चेहरा, बोलती आंखें किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर सकती थीं. संतोष तो उसे देख कर पागल सा हो गया था. अब वह अकसर रमेश के घर आनेजाने लगा. उस की पत्नी को वह भाभी कहता था. अगर रेखा वहां होती तो वह उस की शादी की बात छेड़ देता. वह अपने मामा के बेटे रामकुमार की खूब तारीफें करता था. ऐसी ही बातों के बीच एक दिन सुधा ने कहा, ‘‘आप मेरी ननद को तो देख ही रहे हैं इस का दूल्हा भी इस जैसा है कि नहीं? अगर दूल्हा सुंदर न हुआ तो रेखा उस के साथ नहीं जाएगी. बारात को बिना दुल्हन के ही जाना होगा.’’

‘‘ऐसा नहीं होगा भाभीजी, रामकुमार भी कम सुंदर नहीं है. एकदम हीरो लगता है. लड़कियां उस पर जान छिड़कती हैं.’’

‘‘अच्छा तो यह बताओ कि वह मेरी रेखा को पसंद कर लेगा या नहीं?’’ सुधा ने हंसते हुए पूछा.

‘‘रेखा भी कहां कम है,’’ संतोष ने रेखा की ओर तिरछी नजरों से देखते हुए कहा, ‘‘एकदम हीरोइन लगती है. अगर मैं शादीशुदा न होता तो खुद ही इस से शादी कर लेता.’’

रेखा का दीवाना हो चुका संतोष रेखा की तारीफों के कसीदे काढ़ने लगा. दरअसल वह किसी भी तरह रेखा के नजदीक जाना चाहता था. दिलफेंक संतोष जानता था कि लड़कियों को अपनी तारीफ अच्छी लगती है. इसीलिए वह उस की तारीफ कर के उसे अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश कर रहा था. दरअसल वह किसी भी तरह रेखा को पाने के सपने देखने लगा था और किसी भी तरह अपने उसी सपने को पूरा करने का तानाबाना बुन रहा था. रमेश, दिनेश और संतोष जब भी मिलते, रेखा की शादी को ले कर चर्चा जरूर होती. ऐसे में ही एक दिन दिनेश और संतोष ने रमेश की रायबरेली के रहने वाले अपने रिश्तेदार चंद्रपाल से बात भी कराई. इस के बाद संतोष ने कहा, ‘‘मामा, आप चिंता न करें. अगले सप्ताह मैं आ रहा हूं. अपने साथ आप की होने वाली बहू को भी ले आऊंगा. आप लोग उसे अपने घर रख कर कायदे से देख लीजिएगा.’’

चंद्रपाल अपने बेटे रामकुमार के लिए लड़की तलाश ही रहा था. संतोष और दिनेश ने इस रिश्ते की बात की तो उस ने हामी भर दी. संतोष रमेश का विश्वस्त था. उस ने जब रेखा को दिखाने के लिए उसे अपने साथ रायबरेली स्थित अपने गांव ले जाने की बात की तो वह इनकार नहीं कर सका. दिसंबर, 2012 के आखिरी सप्ताह में संतोष रेखा को साथ ले कर अपने गांव जाने के लिए रवाना हुआ. रास्ते में उस ने रेखा को अकेली पा कर उस से खूब प्यारभरी बातें कीं. बहाने से उस के संवेदनशील अंगों को भी छुआ. लेकिन रेखा सब कुछ जानते हुए भी अनजान बनी रही. इस से संतोष की हिम्मत बढ़ गई. घर जा कर उस ने रेखा को अपनी पत्नी रमा और 3 साल की बेटी सुमन से मिलवाया. संतोष ने रमा को बताया कि रेखा को वह बेलहिया के रहने वाले मामा के बेटे रामकुमार से शादी कराने के लिए लाया है.

रमा को इस में क्या परेशानी हो सकती थी. उस ने रेखा की खूब आवभगत की. लेकिन घर मे रहते हुए रेखा और संतोष एकदूसरे से कुछ ज्यादा ही खुल गए. एक दिन मौका मिलने पर संतोष ने रेखा को बांहों में भर लिया. थोड़ी नानुकुर के बाद रेखा ने भी स्वयं को उसे समर्पित कर दिया. इस के बाद जब भी मौका मिलता, संतोष और रेखा अपनी इच्छा पूरी करते. संतोष और रेखा मिलते तो थे सब की नजरें बचा कर, लेकिन उन के हावभाव से रमा को उन पर शक हो गया. इस की एक वजह यह थी कि रमा को अपने पति की फितरत पता थी. उस ने रेखा को अपने घर में रखने से मना किया तो संतोष ने उसे अपने मामा चंद्रपाल के यहां बेलहिया पहुंचा दिया. अपनी होने वाली ससुराल देख कर और होने वाले पति से मिल कर रेखा खुश थी. संतोष ने वहां पहुंच कर चंद्रपाल से कहा था,

‘‘मामा, तुम्हारी होने वाली बहू ले आया हूं. कुछ दिन रख कर देख लो. मैं 10 दिन बाद अंबाला जाऊंगा, तब इसे साथ ले जाऊंगा.’’

चंद्रपाल ने रेखा को अपने घर में रख लिया. रामकुमार अपनी होने वाली पत्नी से बातचीत तो करता था, लेकिन संतोष की तरह कभी उस के नजदीक जाने की कोशिश नहीं की थी. वह सोचता था कि जो काम शादी के बाद होता है, उसे शादी के बाद ही होना चाहिए. रेखा को मामा के यहां छोड़ कर संतोष अपने घर तो लौट गया, लेकिन जल्दी ही उसे रेखा की याद सताने लगी. 2-3 दिन तो उस ने किसी तरह बिताए, लेकिन जब उस से नहीं रहा गया तो वह मामा के घर आ गया. रेखा चंद्रपाल के यहां घर के अंदर वाले कमरे में लेटती थी, जबकि रामकुमार अपनी मां जनकदुलारी के साथ वाले कमरे में सोता था. संतोष के सोने की व्यवस्था रामकुमार वाले कमरे में की गई थी.

रात में जब संतोष को लगा कि रामकुमार सो गया है तो वह चुपके से उठा और रेखा के कमरे में जा पहुंचा. रेखा ने उसे मना किया तो उस ने कहा, ‘‘यहां सभी घोड़े बेच कर सो रहे हैं, इसलिए चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है. तुम्हें पता होना चाहिए कि इतनी दूर मैं सिर्फ तुम से मिलने आया हूं.’’

रेखा मान गई तो संतोष उस के साथ शारीरिक संबंध बनाने लगा. इसी बीच अचानक रामकुमार की आंख खुल गई तो उसे रेखा के कमरे में फुसफुसाने की आवाज सुनाई दी. उस ने संतोष का बिस्तर टटोला तो वह गायब था. रामकुमार सारा माजरा समझ गया, वह उठ कर सीधे रेखा के कमरे में जा पहुंचा. उस ने वहां जो देखा, उसे देख कर उसे गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन उस ने उस गुस्से को जब्त कर के सिर्फ इतना ही कहा, ‘‘तुम लोगों पर भरोसा कर के मैं ने शादी के लिए हामी भर दी थी. लेकिन यह सब देख कर मेरा इरादा बदल गया है. निश्चिंत रहो, मैं यह बात किसी से नहीं बताऊंगा. तुम लोग चुपचाप अपने घर चले जाना.’’

उन दोनों को चेतावनी दे कर रामकुमार अपने बिस्तर पर आ कर लेट गया. रामकुमार की इस धमकी से रेखा और संतोष सन्न रह गए. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि वे क्या करें. पलभर सोचविचार कर के रेखा बोली, ‘‘तुम शादीशुदा हो, इसलिए मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकती. चिंता की बात यह है कि अंबाला लौट कर हम भैयाभाभी को क्या जवाब देंगे कि रामकुमार शादी क्यों नहीं करना चाहता? अगर रामकुमार ने यह बात सब को बता दी तो हम किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे.’’

सुन कर संतोष परेशान हो उठा. वह कुछ सोच कर बोला, ‘‘अगर रामकुमार न रहे तो किसी को पता ही नहीं चलेगा कि रात में क्या हुआ था. इस का हल अब यही है कि उसे खत्म कर दें. इस से सारा झंझट ही खत्म हो जाएगा.’’

‘‘मार तो देंगे, लेकिन उस की लाश का क्या करेंगे?’’ रेखा ने चिंता जाहिर की तो संतोष बोला, ‘‘उस की चिंता करने की जरूरत नहीं है. मैं ने इस बारे में भी सोच लिया है.’’

उस समय रात के करीब 12 बज रहे थे. रेखा और संतोष दबे पांव रामकुमार के कमरे में पहुंचे. तब तक वह सो गया था. संतोष ने रेखा का दुपट्टा ले कर फुर्ती से रामकुमार के गले में डाला और जल्दी से कस दिया. रामकुमार छटपटा कर मर गया. इस के बाद दोनों लाश को उसी कमरे में ले आए, जहां थोड़ी देर पहले रंगरलियां मना रहे थे. उन्होंने तख्त हटा कर वहां 3 फुट गहरा गड्ढा खोदा और उस में लाश डाल कर मिट्टी भर दी. सारा काम निपटा कर संतोष ने कहा,  ‘‘रेखा हमें यहां 3-4 दिन रुकना पड़ेगा. अन्यथा लोग हम पर शंका करेंगे. जब मामला शांत हो जाएगा, उस के बाद अंबाला चले जाएंगे.’’

‘‘लेकिन लाश से बदबू आने लगेगी तो हमारा राज खुल जाएगा.’’ रेखा ने आशंका व्यक्त की.

‘‘तुम बेकार ही परेशान हो रही हो. आज मुझे किसी ने यहां आते देखा तो है नहीं. केवल रामकुमार जानता था, वह रहा नहीं. कल मैं 5-6 किलो नमक ले आऊंगा. उसे डाल देंगे तो लाश गल जाएगी और बदबू नहीं आएगी.’’ कह कर संतोष रात में ही अपने गांव चला गया. सुबह किसी ने रामकुमार की ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. लेकिन जैसेजैसे समय बीता, उस की तलाश शुरू हुई. शाम होतेहोते पूरे गांव में खबर फैल गई कि रामकुमार गायब है. रेखा भी घर वालों के साथ रामकुमार की तलाश में लगी थी.

चंद्रपाल ने संतोष को रामकुमार के गायब होने की बात बताई तो वह भी उस की तलाश के बहाने बेलहिया आ गया. जब सब सो गए तो वह रेखा के कमरे में गया और रामकुमार की लाश पर पड़ी मिट्टी हटा कर अपने साथ लाया नमक उस पर डाल कर ठीक से मिट्टी फैला कर गड्ढा बंद कर दिया. इस के बाद उस के ऊपर तख्त डाल दिया. उस कमरे में अंधेरा रहता था, इसलिए किसी का भी इस ओर ध्यान नहीं गया कि वहां गड्ढा खोदा गया है. घर में अब रामकुमार की मां जनकदुलारी ही रह गई थी. ऐसे में उन्हें किसी का डर नहीं था. इसलिए संतोष रामकुमार की लाश के ऊपर पड़े तख्त पर रेखा के साथ हर रात रंगरलियां मनाने लगा. चूंकि उन्हें इस के बाद इस तरह का मौका फिर मिलने वाला नहीं था. इसलिए इस का वे भरपूर लाभ उठा रहे थे.

रामकुमार का जब कई दिनों तक पता नहीं चला तो चंद्रपाल ने थाना भदोखर में उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी. पुलिस ने भी 2-4 दिनों तक राजकुमार को इधरउधर खोजा. जब उस के बारे में कुछ पता नहीं चला तो पुलिस भी सुस्त पड़ गई. अब तक सभी को यकीन हो गया था कि रामकुमार घर छोड़ कर कहीं चला गया है. उधर जब संतोष को पूरा यकीन हो गया कि गांव और घर वालों ने रामकुमार को लापता मान लिया है तो वह रेखा को ले कर वापस अंबाला चला गया. वहां उस ने रामकुमार के गायब होने की बात बता कर रेखा और रामकुमार की शादी वाली बात खत्म कर दी.

बाद में संतोष को रेखा से भी डर लगने लगा कि कहीं वह किसी से सच्चाई न बता दे. इस से बचने के लिए उस ने रेखा की शादी भोपाल के कटरा सुल्तान के रहने वाले रामगोपाल यादव से करा दी. रामगोपाल उसी के साथ नौकरी करता था. इस के बाद संतोष निश्चिंत हो गया, क्योंकि उस ने फंसने के सारे रास्ते साफ कर दिए थे. वह समयसमय पर फोन कर के रामकुमार के पिता चंद्रपाल से उस का हालचाल लेता रहता था. लेकिन रामकुमार की लाश मिली तो पुलिस ने चंद्रपाल से विस्तार से पूछताछ की. उस ने उस रात घर में रेखा और संतोष के होने की बात बता कर उन के बारे में भी सारी बातें बता दी थीं.

पुलिस को रेखा और संतोष पर संदेह हुआ तो अंबाला जा कर दोनों को पकड़ लिया. पहले तो वे आनाकानी करते रहे, लेकिन पुलिस ने अंतत: सच्चाई उगलवा ही ली. रेखा और संतोष ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया तो थाना भदोखर पुलिस ने दोनों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर उन्हें अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित है.

Family Crime : साली ने किया अपने जीजे का कत्ल

Family  Crime : काजल उत्तराखंड के जिला हरिद्वार की कोतवाली लक्सर के गांव कलसिया के रहने वाले वीर सिंह की बेटी थी. 9 जून, 2014 को उस की शादी थी. शादी की वजह से घर में खूब गहमागहमी थी. बारात आने में ज्यादा समय नहीं रह गया था, इसलिए लगभग सारे नातेरिश्तेदार और दोस्तपरिचित वीर सिंह के घर इकट्ठा हो  गए थे. उसी बीच जब काजल को सजाने के लिए ब्यूटीपार्लर ले जाने की बात चली तो उस ने साफ कहा कि वह सजने के लिए ब्यूटीपार्लर अनिल जीजा के साथ जाएगी.

शादी के माहौल में काजल को ब्यूटीपार्लर ले जाने वाले तमाम लोग थे, लेकिन जब उस ने स्वयं अनिल जीजा के साथ ब्यूटीपार्लर जाने की बात कही थी तो भला कोई दूसरा चलने की बात कैसे करता. नातेरिश्तेदारों तथा घर वालों को लगा कि काजल जीजा से अकेले में कुछ व्यक्तिगत बातें करना चाहती होगी, इसीलिए उस के साथ जाना चाहती है. घर में भीड़भाड़ थी, कुछ औरतों ने हंसी भी की, लेकिन किसी बात पर ध्यान दिए बगैर काजल ब्यूटीपार्लर जाने के लिए जीजा के साथ निकल पड़ी.

इधर अनिल और काजल निकले, उधर बारात आ गई. सभी बारात के स्वागत में लग गए. घर वाले जरूरी रस्में पूरी करने लगे तो बराती नाश्ते और खाने में जुट गए. द्वारपूजा की तैयारी हो रही थी कि तभी वीर सिंह के मोबाइल फोन की घंटी बजी. उन्होंने जेब से मोबाइल निकाल कर स्क्रीन पर नंबर देखा तो फोन काजल का था. उन्होंने जल्दी से फोन रिसीव कर के मोबाइल कान से लगाया, ‘‘हां बोलो बेटा, क्या बात है?’’

‘‘पापा, बड़ी गड़बड़ हो गई, बदमाशों ने अनिल जीजा को गोली मार दी है.’’ काजल ने कहा.

यह सुन कर वीर सिंह सन्न रह गया. उस ने घबरा कर पूछा, ‘‘कहां…?’’

‘‘सैदाबाद के पास.’’ दूसरी ओर से काजल ने कहा.

इस के बाद वीर सिंह ने जैसे ही फोन काटा, आसपास खड़े लोग उस की ओर सवालिया नजरों से ताकने लगे. क्योंकि फोन पर बातचीत के दौरान उस के चहरे पर जो भाव आए थे, उसी से उन लोगों ने अंदाजा लगा लिया था कि कहीं कुछ गड़बड़ हुई है. वीर सिंह के सामने बड़ी विषम परिस्थिति थी. जो कुछ हुआ था, उसे बताने पर उस की सारी तैयारी, सारे खर्च पर पानी फिर जाने वाला था. जबकि बताना भी जरूरी था. इसलिए उस ने सिर थाम कर बैठते हुए कहा, ‘‘काजल का फोन था, लक्सर जाते समय सैदाबाद के पास बदमाशों ने अनिल को गोली मार दी है.’’

वीर सिंह का इतना कहना था कि वहां खड़े लोग सन्न रहे. घर में कोहराम मच गया. पल भर में ही यह बात घर से ले कर जहां बारात ठहरी थी, वहां तक पहुंच गई. बैंड बाजा बज रहा था, डीजे पर लोग डांस कर रहे थे, सब बंद हो गया. चारों ओर खुसुरफुसुर होने लगी कि अब क्या होगा. वीर सिंह अपने खास रिश्तेदारों तथा घर वालों के साथ घटनास्थल की ओर भागा. काजल वहां गांव के ही सुभाष के साथ घायल अनिल को अस्पताल ले जाने की कोशिश कर रही थी. सभी लोग गाडि़यों से आए थे, इसलिए जल्दी से अनिल को उठा कर गाड़ी में डाला और लक्सर स्थित सरकारी अस्पताल में गए, जहां जांच के बाद डाक्टरों ने बताया कि यह मर चुका है.

अस्पताल से ही इस घटना की सूचना कोतवाली लक्सर पुलिस को दे दी गई थी. अब तक काफी रात हो चुकी थी. जिस समय इस घटना की सूचना कोतवाली लक्सर को दी गई थी, उस समय कोतवाली प्रभारी भुवनेश कुमार शर्मा गश्त पर थे. उस समय थाने में सीनियर सबइंसपेक्टर प्रशांत बहुगुणा मौजूद थे. उन्होंने तत्काल इस घटना की सूचना कोतवाली प्रभारी भुवनेश कुमार शर्मा को देने के साथ एसएसपी डा. सदानंद दाते, एसपी (देहात) अजय सिंह तथा क्षेत्राधिकारी जी.बी. पांडेय को दे दी.

पुलिस अधिकारियों को घटना की सूचना दे कर एसएसआई प्रशांत बहुगुणा थाने से कुछ सिपाहियों को साथ ले कर सरकारी अस्पताल पहुंच गए. वह लाश का निरीक्षण कर  रहे थे कि कोतवाली प्रभारी भुवनेश कुमार शर्मा और क्षेत्राधिकारी जी.बी. पांडेय भी आ गए. इस के बाद सभी पुलिस अधिकारियों ने लाश का निरीक्षण किया. मृतक की उम्र 30-35 साल रही होगी. उस के सीने में गोली मारी गई थी. घाव देख कर ही लग रहा था कि गोली एकदम करीब से मारी गई थी.

अस्पताल में मृतक अनिल की ससुराल वालों के अलावा तमाम नातेरिश्तेदार तथा गांव वाले इकट्ठा थे. सभी को इस बात पर गुस्सा था कि हंसीखुशी के मौके पर बदमाशों ने ऐसा काम कर दिया कि सारी खुशियों पर तो पानी फिर गया. एक बेटी की जिंदगी बरबाद हो गई और दूसरी के भविष्य पर सवालिया निशान लग गया. अनिल की ससुराल वालों का रोरो कर बुरा हाल था. उस की पत्नी ममतेश तो सिर पटकपटक कर रो रही थी. माहौल बड़ा गमगीन था, फिर भी पुलिस को अपनी काररवाई तो करनी ही थी. अब तक एसएसपी डा. सदानंद दाते और एसपी (देहात) अजय सिंह भी आ गए थे. वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की उपस्थिति में कोतवाली प्रभारी भुवनेश कुमार शर्मा ने अनिल की लाश को कब्जे में ले कर पंचनामा की सारी काररवाई पूरी कर के उसे पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

इस के बाद पुलिस ने घटनास्थल का भी निरीक्षण किया. अनिल को जिस जगह गोली मारी गई थी, वहां उस के शरीर से निकला खून सूख चुका था. सारी स्थितियों से अंदाजा लगाया गया कि अनिल मोटरसाइकिल से उतर कर खड़ा था, तभी उसे गोली मारी गई थी. जिस तरह हत्या की गई थी, उस से यही लगता था कि अनिल की रंजिशन हत्या की गई थी. गोली सामने से मारी गई थी तो क्या अनिल सामने से आने वाले अपने दुश्मनों को पहचान नहीं पाया था. पुलिस ने घटनास्थल से वह तमंचा भी बरामद कर लिया था, जिस से इस वारदात को अंजाम दिया गया था.

सारी बातों को ध्यान में रख कर पुलिस अधिकारियों ने जब घटना के बारे में मृतक की ससुराल वालों से पूछताछ की तो पता चला कि मृतक अनिल अपनी साली काजल, जिस की शादी थी, उस का मेकअप कराने अपनी मोटरसाइकिल से लक्सर जा रहा था. वह रायसी-लक्सर रोड पर स्थित गांव सैदाबाद के पास पहुंचा तो काजल ने उसे लघुशंका के लिए रोक लिया. वह सड़क के किनारे लघुशंका करने लगा तो काजल भी थोड़ी दूर स्थित झाडि़यों में लघुशंका के लिए चली गई. काजल लघुशंका कर रही थी कि तभी उसे गोली चलने और अनिल के चीखने की आवाज सुनाई दी. वह जल्दी से उठी. पलट कर देखा तो अनिल जमीन पर पड़ा तड़प रहा था. उस ने इधरउधर देखा तो थोड़ी दूर पर मोटरसाइकिल से 2 लोग लक्सर की ओर जाते दिखाई दिए. शायद उन्हीं लोगों ने अनिल को गोली मारी थी.

काजल भाग कर अनिल के पास पहुंची. वह अकेली तो कुछ कर नहीं सकती थी. तभी संयोग से उस के गांव का सुभाष आ गया. उस ने सुभाष से अपने पिता को फोन कराया. थोड़ी देर बाद सभी लोग आ गए तो अनिल अस्पताल पहुंचाया गया, जहां पता चला कि वह मर चुका है. इस पूछताछ से जब पुलिस को पता चला कि घटना के समय मृतक की साली साथ थी तो पुलिस को लगा कि काजल से पूछताछ में हत्यारों का जरूर कोई सुराग मिल सकता है. इस के बाद पुलिस ने काजल से पूछताछ की. उस ने भी वही सब बताया, जो उस के पिता वीर सिंह बता चुके थे.

क्योंकि वीर सिंह को उसी ने यह सब बताया था. अंत में जब उस ने कहा कि हत्यारे जीजाजी के सीने में गोली मार कर तमंचा वहीं फेंक कर भाग गए थे तो पुलिस को थोड़ा हैरानी हुई कि हत्यारे जब मोटरसाइकिल से आए थे और मोटरसाइकिल से चढ़ेचढ़े ही गोली मारी थी तो उन्होंने तमंचा वहां क्यों फेंक दिया था. इस के बाद जब काजल से पूछा गया कि उस ने बदमाशों को देखा था, वे किस रंग की कौन सी मोटरसाइकिल से थे? तो वह पुलिस के इन सवालों पर हकबका सी गई. फिर खुद को संयत करते हुए उस ने बताया था कि उस के बाहर आतेआते बदमाश इतनी दूर निकल गए थे कि वह न तो बदमाशों को देख पाई थी और न उन की मोटरसाइकिल को.

पुलिस ने काजल को बहुत कुरेदा, लेकिन उस से उन्हें मतलब की कोई जानकारी नहीं मिली. लेकिन इस बातचीत में पुलिस को यह आभास जरूर हो गया कि काजल को जीजा की हत्या के बाद जिस तरह दुखी और परेशान होना चाहिए, वैसा दुख और परेशानी न तो उस के चेहरे पर दिखाई दे रही है न बातचीत में. वह इस तरह बातचीत कर रही थी, जैसे हत्या उस के अपने सगे जीजा की न हो कर गांव के किसी आदमी की हुई है. बहरहाल, उस समय ऐसा माहौल था कि इस तरह की कोई बात नहीं की जा सकती थी. वैसे भी वहां इकट्ठा लोगों का मूड ठीक नहीं लग रहा था. मृतक अनिल की पत्नी की हालत ऐसी थी कि उस समय उस से पूछताछ नहीं की जा सकती थी. घटना की सूचना अनिल के घर वालों को भी दे दी गई थी. इस स्थिति में शादी होने का सवाल ही नहीं उठता था, इसलिए बारात बिना शादी के ही लौट गई थी.

अनिल की हत्या की सूचना पा कर उस का छोटा भाई सुनील आ गया था. अगले दिन उसी की ओर से अनिल की हत्या का मुकदमा कोतवाली लक्सर में अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज कर लिया गया. एसएसपी डा. सदानंद दाते ने इस मामले की जांच कोतवाली प्रभारी भुवनेश कुमार शर्मा को सौंपते हुए क्षेत्राधिकारी जी.बी. पांडेय को इस मामले पर नजर रखने का आदेश दिया. पुलिस को संदेह ही नहीं, पूरा विश्वास था कि अनिल की हत्या रंजिश की वजह से की गई थी. उस की किस आदमी से ऐसी रंजिश थी, जो उस की हत्या कर सकता था? यह बात घर वाले ही बता सकते थे. भाई सुनील से पूछा गया तो वह इस बारे में पुलिस की कोई मदद नहीं कर सका. क्योंकि वह गांव में रहता था, जबकि अनिल हरिद्वार में रहता था.

पत्नी ममतेश अभी इस स्थिति में नहीं थी कि उस से पूछताछ की जा सकती. बहरहाल अगले दिन पोस्टमार्टम के बाद शव घर वालों को मिला तो उन्होंने उस का अंतिम संस्कार कर दिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार अनिल को गोली एकदम करीब से मारी गई थी, जो तिरछी लगी थी. पुलिस को काजल पर संदेह था, इसलिए उस के बारे में पता करने के लिए मुखबिरों को तो लगाया ही गया, उस के घर के सभी फोन नंबरों को भी सर्विलांस पर लगवा दिया गया कि शायद उन की आपसी बातचीत से हत्यारे के बारे में कोई जानकारी मिल सके. इस के अलावा काजल और उस के घर वालों के बारे में जानकारी जुटाने के लिए पुलिस ने ग्रामप्रधान विनोद चौधरी से भी पूछताछ की.

अनिल के घर वालों ने पुलिस को बताया था कि उन्हें उस के ऐसे दुश्मन के बारे में कोई जानकारी नहीं है, जो उस की हत्या कर सकता था. लेकिन जब इस बारे में ममतेश से पूछा गया तो उस ने कहा कि और कोई भले न जानता हो, लेकिन काजल को हत्यारों के बारे में जरूर पता होगा. पुलिस को तो काजल पर पहले से ही संदेह था, ममतेश की इस बात ने पुलिस के संदेह को और बढ़ा दिया. 18 जून, 2014 को मृतक अनिल की पत्नी ममतेश क्षेत्राधिकारी जी.बी. पांडेय से मिली और उस ने उन से साफसाफ कहा कि उस के पति की हत्या में उस के मायके वालों की अहम भूमिका हो सकती है. उन्हीं लोगों ने साजिश रच कर हत्या की है. अगर उन लोगों से सख्ती से पूछताछ की जाए तो निश्चित इस हत्याकांड से परदा उठ सकता है.

क्षेत्राधिकारी ने ममतेश से वजह पूछी कि उस के मायके वाले उस के पति की हत्या क्यों करेंगे तो उस ने बताया कि उस की मंझली बहन मीना की आत्महत्या के बाद से उस के मायके वाले उस के पति से रंजिश रखने लगे थे. उसी की वजह से करीब 4 साल तक आनाजाना बंद रहा. इस साल काजल की शादी तय हुई तो आनाजाना शुरू हुआ. इस के अलावा मुखबिरों से पुलिस को जो सूचनाएं मिली थीं, वे भी अनिल की ससुराल वालों को हत्यारा बता रही थीं. ये सारी बातें काजल और उस के पिता वीर सिंह को थाने बुला कर पुलिस को पूछताछ करने के लिए मजबूर कर रही थीं. जब सारी बातें एसएसपी डा. सदानंद दाते को बताई गईं तो उन्होंने काजल और वीर सिंह को थाने ला कर सख्ती से पूछताछ करने का आदेश दिया.

इस के बाद कोतवाली प्रभारी भुवनेश कुमार शर्मा एसएसआई प्रशांत बहुगुणा और कुछ सिपाहियों के साथ वीर सिंह के घर पहुंचे और बापबेटी को पकड़ कर थाने ले आए. थाने में काजल और वीर सिंह से पूछताछ शुरू हुई. दोनों वही बातें दोहराते रहे, जो उन्होंने पुलिस को पहले बताई थीं. लेकिन अब उन बातों पर पुलिस को विश्वास नहीं था, इसलिए पुलिस उन से सच उगलवाना चाहती थी, जबकि बापबेटी सच बोलने को राजी नहीं थे. क्षेत्राधिकारी जी.बी. पांडेय ने देखा कि ये सीधे सच बताने को तैयार नहीं हैं तो उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा, ‘‘तुम दोनों को ही पता होना चाहिए कि कानून और पुलिस, दोनों के ही हाथ बहुत लंबे होते हैं. इसलिए इन से कोई भी अपराधी नहीं बच सकता.

अपने सूत्रों से मुझे पता चल गया है कि अनिल की हत्या तुम्हीं लोगों ने की है. अब तुम लोग सच्चाई अपने आप बता दो तो अच्छा रहेगा, वरना हम अपनी तरह से उगलवाएंगे तो तुम दोनों को बहुत परेशानी होगी.’’

वीर सिंह और काजल कोई पेशेवर अपराधी तो थे नहीं. उन्होंने भले ही पुलिस की मार नहीं देखी थी, लेकिन फिल्मों और सीरियलों में तो देखा ही था. इस के अलावा पुलिस की थर्ड डिग्री के तमाम किस्से भी सुन रखे थे. जब उन्होंने देखा कि अब पुलिस का रुख कड़ा हो रहा है तो बापबेटी, दोनों ही फफकफफक कर रो पड़े. उन दोनों के रोते ही क्षेत्राधिकारी समझ गए कि अब उन का काम हो गया है. ये दोनों अब अपना अपराध स्वीकार कर लेंगे. इसलिए पुलिस ने उन्हें रोने दिया, जिस से मन हलका हो जाए.

और सचमुच रो कर मन हलका हो गया तो काजल और वीर सिंह ने अनिल की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. काजल ने बताया कि उसी ने अनिल की गोली मार कर हत्या की थी. यह हत्या उस ने अपनी बहन की मौत का बदला लेने के लिए की थी. इस के बाद वीर सिंह और काजल ने अनिल की हत्या के पीछे की जो कहानी सुनाई, वह कुछ इस प्रकार थी. उत्तराखंड के जिला हरिद्वार की कोतवाली लक्सर के गांव कलसिया के रहने वाले वीर सिंह अपनी 3 बेटियों में बड़ी बेटी ममतेश की शादी मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला बिजनौर के थाना मंडावर के गांव फतेहपुर के रहने वाले चंद्रपाल के बेटे अनिल के साथ की थी. अनिल हरिद्वार में हर की पौड़ी में फोटोग्राफी करता था. उस का जमाजमाया काम था, इसलिए शादी के बाद ममतेश को भी वहीं ले आया. यह करीब 10 साल पहले की बात है.

ममतेश से छोटी थी मीना, जो उन दिनों इंटर में पढ़ रही थी. इंटर पास करने के बाद वह बीए करना चाहती थी. इस के लिए मांबाप से अनुमति ले कर उस ने हरिद्वार के डिग्री कालेज में दाखिला ले लिया. घर से रोजना हरिद्वार जा कर पढ़ाई करना संभव नहीं था, इसलिए पढ़ाई के लिए उस ने हरिद्वार में ही रहने का फैसला किया. वहां उस की बहन और बहनोई रहते ही थे, इसलिए उसे वहां रहने में कोई दिक्कत नहीं थी. मीना बहन ममतेश के घर साथ रह कर बीए की पढ़ाई करने लगी. उस का बीए का अंतिम साल था. अब तक मीना पूरी तरह जवान हो चुकी थी. खूबसूरत वह थी ही. सब कुछ ठीकठाक चल रहा था कि अचानक एक दिन वीर सिंह को सूचना मिली की मीना ने आत्महत्या कर ली है.

वीर सिंह कुछ खास लोगों के साथ हरिद्वार पहुंचा और बेटी का शव चुपचाप ले कर गांव आ गया. उस ने सोचा कि शोरशराबा करने पर बात पुलिस तक पहुंचेगी तो परेशानी भी बढ़ जाएगी और इज्जत का भी तमाशा बनेगा. इसलिए उस ने वहां किसी से कोई बात तक नहीं की. घर लाने के बाद उस ने शव देखा तो उसे कहानी कुछ और ही लगी. उसे मीना के शरीर पर चोट और खरोंच के निशान दिखाई दिए. वीर सिंह बेवकूफ नहीं था कि चोट और खरोंच के निशानों का मतलब न समझता. सब कुछ जानसमझ कर भी वह इज्जत की खातिर चुप रहा कि अगर बात खुलेगी तो उसी की बदनामी होगी और गांव वाले उसी की हंसी उड़ाएंगे. यह 4 साल पहले की बात है.

उस समय वीर सिंह भले ही चुप रह गया था, लेकिन उसे दामाद से ही नहीं, बेटी से भी नफरत हो गई थी. क्योंकि उस ने स्वार्थ के लिए पति का साथ दिया था. स्थितियां बता रही थीं कि मीना ने ऐसे आत्महत्या नहीं की थी, उसे इस के लिए इस तरह मजबूर कर दिया गया था कि उस ने खुद को जीने लायक नहीं समझा था और इस सब में उस की बेटी का भी हाथ था. वीर सिंह का सोचना था कि अनिल तो पराया था, लेकिन ममतेश तो उस की अपनी थी. वह पति के प्यार में इस तरह अंधी हो गई थी कि उस ने मांबाप की इज्जत का भी नहीं खयाल किया. उस बहन के बारे में भी नहीं सोचा, जिस को उस ने बचपन में खेलायाकुदाया था. यही सब सोचसोच कर उन्हें दामाद से ही नहीं, बेटी से भी नफरत हो गई और उन्होंने बेटीदामाद से संबंध तो तोड़ ही लिए, यह भी तय कर लिया कि वह मीना की मौत का बदला जरूर लेगा.

समय धीरेधीरे बीतता रहा. समय बीतने के साथ वीर सिंह के मन में बेटी और दामाद के लिए जो नफरत थी, वह कम होने के बजाय बढ़ती गई. मीना से छोटी काजल भी समझदार हो गई थी. कभीकभार घर में मीना की चर्चा होती तो घर वालों को गुस्सा होते देख काजल को भी बहनबहनोई पर गुस्सा आता कि उन्होंने उस के मांबाप की इज्जत का जरा भी खयाल नहीं किया. यही नहीं, उन्हीं की वजह से उस की बहन को मौत को गले लगाना पड़ा. घर वालों की बातें सुनसुन कर काजल को भी बहनबहनोई से नफरत हो गई थी और वह भी बहन की मौत का बदला लेने के बारे में सोचने लगी. इस साल उस की शादी तय हुई तो उसने वीर सिंह से कहा कि उस की शादी में जीजा और बहन को भी बुलाएं. वीर सिंह इस के लिए तैयार नहीं थे, लेकिन काजल ने जब उन्हें मन की बात बताई तो वह अनिल और ममता को बुलाने को तैयार हो गए. यह कीरब 4 महीने पहले की बात है.

काजल के कहने पर वीर सिंह हरिद्वार स्थित ममतेश के घर गए और उसे घर आने को कहा. इस के बाद अनिल और ममतेश कलसिया आनेजाने लगे. संबंध सुधर गए तो काजल की शादी की तैयारी में अनिल और ममतेश ने भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया. 9 जून, 2014 को काजल की शादी थी. शादी में अनिल और ममतेश को भी बुलाया गया था. बहुत दिनों बाद संबंध सुधरे थे, इसलिए शादी में दोनों आए भी थे. शाम को दुल्हन के रूप में सजने के लिए काजल को लक्सर स्थित ब्यूटीपार्लर जाना था. वैसे तो काजल को ले जाने वाले बहुत लोग थे, लेकिन काजल ने जीजा अनिल के साथ जाने की इच्छा व्यक्त की. अनिल भला क्यों मना करता. मना करने की कोई वजह भी नहीं थी. उस का सोचना था कि मन की सारी कड़वाहट धुल चुकी है, इसलिए वह मोटरसाइकिल ले कर तैयार हो गया.

अनिल तैयार हो गया तो काजल ने घर में रखा तमंचा, जिसे वीर सिंह ने मुजफ्फरनगर के अपने एक रिश्तेदार की मदद से खरीदा था, उसे पर्स में रख कर ऊपर से शाल ओढ़ कर अनिल की मोटरसाइकिल पर बैठ गई. अनिल मोटरसाइकिल ले कर सैदाबाद गांव के पास सुनसान जगह पर पहुंचा तो लघुशंका की बात कह कर काजल ने मोटरसाइकिल रुकवा ली. लघुशंका करने के बहाने वह झाडि़यों की ओट में गई और वहां उस ने तमंचे में गोली भरी. अनिल मोटरसाइकिल पर ही बैठा था. काजल झाडि़यों से निकल कर उस के पास आई और तमंचा उस के सीने से सटा कर गोली चला दी. गोली लगते ही अनिल जमीन पर गिर कर छटपटाने लगा. काजल को लगा कि उस का काम हो गया है तो उस ने शोर मचा दिया.

संयोग से उसी समय उस के गांव का सुभाष वहां पहुंच गया. सुभाष की मदद से उस ने घटना की सूचना घर वालों को दी. थोड़ी ही देर में घर वाले भी आ गए. इस के बाद अनिल को अस्पताल पहुंचाया गया, जहां पता चला कि वह मर चुका है. इस के बाद वीर सिंह ने भी माना कि उन्हें अनिल की हत्या की जानकारी ही नहीं थी, बल्कि काजल के साथ वह भी हत्या की इस योजना में शामिल थे. काजल ने बताया कि अनिल की हत्या के लिए शादी वाला दिन उस ने इसलिए चुना था कि कोई भी नहीं सोचेगा कि जिस की शादी के लिए दरवाजे पर बारात आ गई हो, ऐसे समय में हत्या जैसा अपराध करेगी. वह भी अपने सगे बहनोई की हत्या.

काजल ने होशियारी तो बहुत दिखाई, लेकिन बच नहीं सकी. पुलिस ने वह तमंचा पहले ही बरामद कर लिया था, जिस से अनिल की हत्या की गई थी. काजल के बयान के बाद कोतवाली लक्सर पुलिस ने पहले से दर्ज मुकदमे में अज्ञात लोगों की जगह बापबेटी यानी काजल और वीर सिंह का नाम दर्ज कर दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कोतवाली प्रभारी भुवनेश्वर कुमार शर्मा सुभाष की भूमिका की जांच कर रहे हैं कि वह अनिल की हत्या के बाद वहां संयोग से पहुंचा था या उसे पहले से मालूम था. कथा लिखे जाने तक सुभाष के बारे में कुछ पता नहीं चला था. काजल और वीर सिंह जेल में थे.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पति बना पत्नी का काल, फरसे से काट दिया गला

दिल्ली में शराबी पति ने पत्नी से मांगे शराब के लिए 500 रुपए, इनकार करने पर घोंप दिया पेट में चाकू. पत्नी की मौत.

बरेली में शराब के लिए रुपए न देने पर पत्नी को पत्थर से सिर कुचल कर मौत के घाट उतारा.

बरेली में नाजायज संबंधों के शक के चलते पति ने खाना बना रही पत्नी की फरसा से गला काट कर हत्या कर दी.

इटावा में रहने वाले आभूषण कारोबारी ने अपनी प्रेमिका के लिए अपनी बीवी, बेटे और बेटी का किया कत्ल.

ये वरदातें किसी फिल्म का सीन नहीं हैं, बल्कि हकीकत हैं हमारे समाज की  जहां औरतों पर शादी के बंधन में बंध कर जोरजुल्म तो हो ही रहा है, साथ में ऐसे पति उन का कब काल बन जाएं, इस बात का भरोसा भी नहीं है.

आज औरतों को जागरूक होने की जरूरत है, क्योंकि सहन करने से न सिर्फ उन की जिंदगी बरबाद हो रही है, बल्कि उन के बच्चों की भी जिंदगी अधर में लटक जाती है. ऐसे में समझना होगा कि जब संबंध में जहर घुलने लगे, तो उस रिश्ते से निकलने में ही भलाई है. आप की भी व आप के परिवार की भी.

ज्यादातर औरतों के चरित्र में शुमार होता है बरदाश्त करना, लेकिन एक सीमा से ज्यादा सहन करना सबकुछ बरबाद कर सकता है, तो जरूरी है कि आप को मालूम हो कि आप का रिश्ता बरबादी की राह पर है :

-अगर आप के पति का दूसरी औरतों के साथ नाजायज संबंध है, तो इस बात की समय रहते छानबीन करें व परिवार के सदस्यों से भी बातचीत करें. पति आप की बात को समझे, तो खुल कर अपने हक के साथ अलग होने की बात रखें. जरूरत पड़े तो पुलिस की मदद जरूर लें, क्योंकि ऐसे पति कब आप की जान के दुश्मन बन जाएं समझ पाना मुश्किल होता है.

-किसी के पति में अगर कोई बुरी लत है, जैसे वह नशीली चीजों का सेवन करता है, शराब पीता है या जुआ खेलने का आदी है, तो ऐसे पतियों से सावधान रहना बहुत जरूरी है, क्योंकि जब उन के खिलाफ कदम उठाने की कोशिश की जाती है, तो उन की लत उन पर इस कदर  हावी होती है कि वे आप को नुकसान ही नहीं, बल्कि कत्ल करने से भी पीछे नहीं हटेंगे, इसलिए समय रहते कड़े कदम लेना आप के और आप के बच्चों के लिए बहुत जरूरी है.

-जब किसी मर्द के अहम को चोट पहुंचती है या उसे ऐसा लगता है कि उस की पत्नी उस से ज्यादा कामयाब है और हर तरह से उस से ज्यादा काबिल है तब भी वह उस से बदले की भावना रखने लगता है और हर वक्त उस के लिए अपने मन में नफरत और जलील करने का भाव रखता है. कब वह कत्ल जैसा अपराध कर रिश्तों को तार तार कर दे, समझना मुश्किल है. ऐसे रिश्तों में सतर्क रहना बहुत जरूरी है.

अश्लील हरकतें करने वाला बाबा!

धर्म के नाम पर हमारे देश में धन के साथ-साथ तन की भी लूट मची हुई है. इसके अनेक उदाहरण के अब किसी सबूत के मोहताज नहीं हैं. लोग धार्मिक जगहों पर बाबाओं के पास श्रद्धा के वशीभूत पहुंच जाते हैं और कई दफे अपनी जिंदगी बर्बाद करते चले जाते हैं. एक तरफ यह सच्चाई, तथ्य बारंबार सामने आता रहा है दूसरी तरफ यह भी सच है कि ऐसे ढोंगी बाबाओं की कमी नहीं है और यह बदस्तूर जारी है.

जनवरी के पहले पखवाड़े मे छत्तीसगढ़ के राजधानी रायपुर से महज सत्तर किलोमीटर दूरी पर स्थित बलौदाबाजार जिले के कसडोल थाना क्षेत्र में एक ‘बाबा’ पर उसी के आश्रम में रहने वाली कई युवतियों ने अश्लील हरकतें का आरोप लगाया है. और पुलिस ने उसे अपनी गिरफ्त में लिया है. बाबा के नाम पर अश्लीलता का चोला धारण करने वाले बाबा का नाम रजनीश है जिसके छत्तीसगढ़ में कुछ आश्रम भी चल रहे हैं. यह लंबे समय से आश्रम के आड़ में यही कुत्सित काम कर रहा था. पुलिस के पास इस कथित बाबा की अनेक शिकायते दर्ज थी और अंततः वही हुआ जो होना था बाबा के पाखंड का घड़ा फूट गया और तो और युवतियों ने पुलिस अधीक्षक के समक्ष शिकायत दर्ज कराई.

रात को आश्रय मे दबोचा

जब लगातार बाबा के खिलाफ शिकायत मिलने लगी तब पुलिस ने विगत 13 जनवरी की देर रात “सत्संग शिविर” में दबिश देकर बाबा को गिरफ्तारी किया और पूछताछ की गई. पुलिस सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इस कथित आरोपी बाबा का नाम रजनीश है और यह उत्तरप्रदेश के बाराबंकी जिले का मूल निवासी है. कई वर्ष पूर्व यह छत्तीसगढ़ आ पहुंचा और लोगों को भ्रमित कर अपने जाल में फंसा में फंसा कइ आश्रम खोल लिए है. आश्रम में युवतियों को प्राथमिकता दी जाती थी अब खुलकर जो तथ्य सामने आ रहे हैं उसके अनुसार बाबा रजनीश ओशो रजनीश से कुछ ज्यादा ही प्रभावित थे और उन्हीं की पगडंडी पर चलते चलते दिशा भटक गए. इस बाबा की खासियत यह बताई जा रही है कि यह ग्रामीण अंचल में अपना संजाल फैला रहा था और ग्रामीण युवतियों पर डोरे डालाता था जिसका मूल कारण यह था कि ग्रामीण अंचल की जनता जल्दी से थाना पुलिस नहीं करती और बाबा का धंधा चलता रहता.

तीन आश्रम खोल लिए…

बाबा रजनीश ने देखते ही देखते छत्तीसगढ़ में तीन जगह जांजगीर जिला के धनपुरी, देवरी और बलौदा बाजार जिले के झबड़ी गांव में अपने आश्रम खोल लिए. बाबा का आश्रम संचालित है.कसडोल थाना क्षेत्र के ग्राम  झबड़ी स्थित उसी के आश्रम में रहने वाली युवतियों के साथ ईश्वर दर्शन कराने के नाम पर अश्लीलता करता था. जिसकी शिकायत कई बार पीड़िताओं ने करनी चाही, लेकिन बाबा उन्हें डरा धमका देता था. अंततः बाबा की हरकतों से तंग आकर पीड़ितलडकियों ने 24 दिसंबर 2019 को कसडोल थाने में शिकायत दर्ज कराई . साथ ही जिले के पुलिस अधीक्षक के पास भी शिकायत की गई. जिसके बाद पुलिस मामले को गंभीरता से लेने को मजबूर हो गई और बीती रात कसडोल ब्लाक के खैरा गांव. में चल रहे बाबा के सत्संग शिविर में अनुविभागीय दंडाधिकारी टीसी अग्रवाल और  अनुविभागीय अधिकारी( पुलिस) राजेश जोशी ने अपने टीम के साथ दबिश दी. वहां से गिरफ्तार कर आरोपी बाबा राजनीश को थाने ले आया गया . बाबा की इस गिरफ्तारी के तारतम्य में एसडीएम टी .सी. अग्रवाल ने हमारे संवाददाता को बताया कि तीन युवतियो ने बाबा के खिलाफ शिकायत के बाद कारवाई हुई है.

सट्टा और लड़की का फर्जी अपहरण

औनलाइन गेमिंग ने आज के नौजवानों को अपनी गिरफ्त में ले लिया है. इस से न केवल उन का समय बरबाद हो रहा है, बल्कि उन के भविष्य को भी खतरे में डाल रहा है.

उत्तर प्रदेश के झांसी में हाल ही में एक नर्सिंग छात्रा सुनैना (बदला नाम) के औनलाइन गेमिंग में लाखों रुपए गंवाने और फिरौती के लिए अपने अपहरण की झूठी कहानी रचने का अनोखा मामला सामने आया है. जांच करने के बाद पुलिस खुद हैरान रह गई.

यह मामला आज देशभर में सुर्खियां बटोर रहा है कि किस तरह आज का नौजवान तबका गिरावट की ओर जा रहा है. इस मामले से यह साफ होता है कि औनलाइन गेमिंग की लत कितनी खतरनाक हो सकती है. यह न केवल पैसे के नुकसान की वजह बनती है, बल्कि लोगों को अपराध की ओर भी धकेल सकती है.

औनलाइन गेमिंग की लत के चलते नौजवानों में ये समस्याएं आ रही हैं :

-औनलाइन गेमिंग में नौजवान अपना बहुत सा समय बरबाद कर रहे हैं, जिस से उन की पढ़ाईलिखाई और कैरियर पर बुरा असर पड़ रहा है.

-औनलाइन गेमिंग में नौजवान अपना पैसा बरबाद कर रहे हैं, जिस से उन के परिवार की माली हालत खराब हो रही है.

-औनलाइन गेमिंग की लत से नौजवानों में तनाव और चिंता जैसी दिमागी समस्याएं आ रही हैं.

-औनलाइन गेमिंग की लत नौजवानों को अपराध की ओर धकेल सकती हैं, जैसा कि झांसी के मामले में देखा गया. जब सुनैना इस में बरबाद हो गई तो उस ने अपहरण की झूठी कहानी बना कर के फिरौती लेने की कोशिश की.

क्या है इस का हल

-औनलाइन गेमिंग की लत के विरोध में जागरूकता बढ़ानी चाहिए और नौजवानों को इस के खतरों के बारे में जानकारी देनी चाहिए.

-सरकार को औनलाइन गेमिंग पर प्रतिबंध लगाना चाहिए या इस के लिए उम्र सीमा तय करनी चाहिए.

परिवार को औनलाइन गेमिंग की लत से पीड़ित की मदद करनी चाहिए और उन्हें सही दिशा में ले जाना चाहिए.

-सरकार को औनलाइन गेमिंग की लत के प्रति कड़ा ऐक्शन लेना चाहिए और इस के लिए जरूरी कदम उठाने चाहिए.

देशदुनिया में सट्टे की लत के चलते कई लोगों ने झूठी कहानियां गढ़ीं और पकड़े गए. यहां कुछ उदाहरण हैं :

-मुंबई, महाराष्ट्र में एक आदमी ने सट्टे में लाखों रुपए गंवाए. उस ने अपने परिवार को झूठी कहानी सुनाई कि उस का अपहरण हो गया है और फिरौती के लिए 50 लाख रुपए मांगे. पुलिस ने उस की झूठी कहानी का परदाफाश किया और उसे गिरफ्तार किया.

-रायपुर, छत्तीसगढ़ में एक नौजवान ने सट्टे में 20 लाख रुपए गंवाए. उस ने अपने दोस्तों से पैसे उधार लिए और फिर झूठी कहानी गढ़ी कि उस का एक्सीडैंट हो गया है और उसे पैसे की जरूरत है. पुलिस ने उस की झूठी कहानी का परदाफाश किया.

-ढाका, बंगलादेश में एक आदमी ने सट्टे में लाखों रुपए गंवाए. उस ने अपने परिवार को झूठी कहानी सुनाई कि उस का अपहरण हो गया है और फिरौती के लिए 10 लाख रुपए मांगे हैं. पुलिस ने उस की झूठी कहानी का परदाफाश किया और उसे गिरफ्तार कर लिया.

-पाकिस्तान में एक आदमी ने सट्टे में लाखों रुपए गंवाए. उस ने अपने दोस्तों से पैसे उधार लिए और फिर झूठी कहानी गढ़ी कि उस के घर में आग लग गई है और उसे पैसे की जरूरत है. पुलिस ने उस की झूठी कहानी का परदाफाश किया.

इन उदाहरणों से यह साफ होता है कि सट्टे की लत कैसे लोगों को झूठी कहानियां गढ़ने और अपराध की ओर धकेल सकती हैं.

सुनैना की कहानी

उत्तर प्रदेश के झांसी में एक लड़की का मामला आज देशभर में चर्चा का विषय है. वह पहले लाखों रुपए का नुकसान कर बैठी और फिर झूठी अपहरण की कहानी गढ़ने लगी.

दरअसल,सोशल मीडिया पर सामने आए वीडियो में लड़की को एक अंधेरे कमरे में हाथपैर बंधे हुए दिखाया गया है. वीडियो देख घबराए परिवार ने तुरंत पुलिस को सूचना दी.

पुलिस के मुताबिक छात्रा ने औनलाइन गेमिंग में तकरीबन ढाई लाख रुपए गंवा दिए फिर इस की भरपाई के लिए उस ने अपने अपहरण की झूठी कहानी रची और अपने पिता को व्हाट्सएप पर काल करवा कर फिरौती की मांग करवाई.

इस मामले में 6 लाख रुपए की फिरौती मांगी जा रही थी .जांच के दौरान पुलिस को छात्रा के पहले दिल्ली में और फिर नोएडा में मौजूद होने की जानकारी मिली. विशेष अभियान समूह और पुलिस की टीम बुधवार, 21 नवंबर, 2024 को नोएडा पहुंची, तो मामले की परत दर परत सामने आई.

झांसी की एसएसपी सुधा सिंह के मुताबिक, टोडी फतेहपुर के रहने वाले बबलू रैकवार ने प्राथमिकी दर्ज करवाई कि नर्सिंग की पढ़ाई कर रही उन की 19 साल की बेटी सुनैना का अपहरण हो गया है और उसे छोड़ने के एवज में 6 लाख रुपए फिरौती मांगी गई है.

सुनैना ने पुलिस को बताया कि उस ने औनलाइन गेमिंग में तकरीबन ढाई लाख रुपए गंवा दिए थे. इस में उस के कुछ दोस्तों का भी पैसा लगा था. इस की भरपाई के लिए उस ने अपने अपहरण की झूठी कहानी रची और अपने पिता को व्हाट्सएप के द्वारा फिरौती की मांग करवाई.

आरोपी छात्रा और साजिश में शामिल उस के 4 दोस्त हृदयेश, प्रियांशु, शिवम और नंदकिशोर को गिरफ्तार कर लिया गया है. पूछताछ के बाद एक मोबाइल फोन बरामद किया गया जिस से फिरौती के लिए फोन किया गया था.

नौजवानों को इस घटना से सबक लेना चाहिए कि झूठ झूठ होता है और आखिरकार पुलिस और कानून से कोई बच नहीं सकता, इसलिए कभी भी झूठी कहानी नहीं बनानी चाहिए. कभी कोई अपराध गलती हो भी जाए तो उसे परिवारजनों के बीच शेयर कर लेना चाहिए और औनलाइन गेमिंग से तोबा कर लेनी चाहिए.

पहले की छेड़छाड़, फिर जिंदा जलाया

बांग्लादेश की राजधानी से तकरीबन 160 किलोमीटर दूर एक छोटे से कस्बे फेनी में रहने वाली 19 साल की नुसरत जहां रफी को उस के ही स्कूल में जिंदा जला कर मार दिया गया.  मामला कुछ यों था कि नुसरत जहां ने इस वारदात से तकरीबन 2 हफ्ते पहले ही अपने मदरसे के हैडमास्टर के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज कराई थी. नुसरत की शिकायत के मुताबिक, 27 मार्च 2019 को उस के हैडमास्टर ने उसे अपने केबिन में बुलाया और गलत ढंग से यहां-वहां छुआ. इस बेहयाई से घबराई नुसरत वहां से भाग गई.

लेकिन बाद में नुसरत जहां ने अपने साथ हुए इस अपराध के खिलाफ आवाज उठाने की ठानी और परिवार के साथ जा कर पुलिस में शिकायत दर्ज कराई.

वीडियो हुआ लीक

एक रिपोर्ट के मुताबिक, जब नुसरत जहां पुलिस को अपना बयान दे रही थी तो वहां का औफिसर इंचार्ज यह सब अपने मोबाइल फोन में रिकौर्ड कर रहा था. यह देख कर घबराई नुसरत ने अपने हाथ से चेहरा ढकने की कोशिश पर पुलिस वाला उसे हाथ हटाने को कहता रहा. बाद में यह वीडियो लोकल मीडिया में लीक हो गया.

नुसरत जहां रफी की शिकायत पर पुलिस ने मदरसे के उस हैडमास्टर को गिरफ्तार कर लिया. लेकिन जब कुछ लोग इकट्ठा हो कर हैडमास्टर की रिहाई की मांग करने लगे तो नुसरत के लिए काफी मुश्किलें खड़ी हो गईं. इतना ही नहीं, उन्होंने नुसरत को ही बुराभला कहना शुरू कर दिया. तब लगा कि धीरेधीरे बात आईगई हो जाएगी, पर 6 अप्रैल 2019 को जब नुसरत जहां अपने फाइनल इम्तिहान देने के लिए स्कूल गई तो मामला बिगड़ गया.

नुसरत जहां के भाई महमुदुल हसन नोमान ने बताया, ‘मैं अपनी बहन को स्कूल ले कर गया और जब मैं ने स्कूल के भीतर जाने की कोशिश की तो मुझे रोक लिया गया. अगर मुझे रोका न गया होता तो मेरी बहन के साथ ऐसा न हुआ होता.’

ऐसा क्या हुआ था नुसरत जहां के साथ? नुसरत के बयान के मुताबिक, उस के साथ पढ़ने वाली एक छात्रा यह कह कर उसे अपने साथ छत पर ले गई कि उस की एक दोस्त की पिटाई की गई है. जब नुसरत छत पर पहुंची तो 4-5 बुरका पहने हुए लोगों ने उसे घेर लिया और हैडमास्टर के खिलाफ शिकायत वापस लेने को कहा. जब नुसरत ने ऐसा करने से मना कर दिया तो उन्होंने उसे आग के हवाले कर दिया.

पुलिस ब्यूरो औफ इन्वेस्टिगेशन के प्रमुख बनाज कुमार मजूमदार ने कहा कि हत्यारे चाहते थे कि यह सब-कुछ एक खुदकुशी जैसा लगे पर उन की योजना उस समय फेल हो गई, जब आग लगने के बाद नुसरत को अस्पताल लाया गया और मरने से पहले उस ने हत्यारों के खिलाफ बयान दे दिया.

10 अप्रैल को नुसरत जहां की मौत हो गई. पुलिस ने उस की हत्या के आरोप में 15 लोगों को गिरफ्तार किया. बाद में हैडमास्टर को भी गिरफ्तार कर लिया गया. थाने में नुसरत जहां की शिकायत की रेकौर्डिंग करने वाले पुलिस वाले को उस के पद से हटा कर दूसरे महकमे में भेज दिया गया.

प्यार ने किया रिश्तों का अंत

उत्तर प्रदेश के बदायूं शहर के सिविल लाइंस इलाके में एक स्कूल है होली चाइल्ड. निशा इसी स्कूल में पढ़ाती थी. उस का पति राजकुमार पादरी था और उस की पोस्टिंग बदायूं जिला मुख्यालय से लगभग 23 किलोमीटर दूर वजीरगंज की एक चर्च में थी. चर्च में जब ज्यादा काम रहता था तो राजकुमार रात में वहीं रुक जाता था.

निशा को स्कूल की बिल्डिंग में ही रहने के लिए कमरा मिला हुआ था, जहां पर वह पति राजकुमार और 2 बेटियों रागिनी व तमन्ना के साथ रहती थी. राजकुमार और निशा की मुलाकात लखनऊ में पादरी के काम की ट्रेनिंग के दौरान हुई थी, जोकि वीसीसीआई संस्था द्वारा अपने धर्म प्रचारकों को दी जाती है. कुछ मुलाकातों के बाद दोनों एकदूसरे को पसंद करने लगे.

निशा मूलरूप से गोरखपुर जिले की रहने वाली थी. उस के पिता दयाशंकर पादरी थे. निशा की बड़ी बहन शारदा की शादी बरेली निवासी रघुवीर मसीह के बेटे दिलीप के साथ हुई थी. इसी के चलते बहन के देवर राजकुमार से निशा की नजदीकियां बढ़ने लगीं. दोनों जानते थे कि घर वालों को इस रिश्ते से कोई ऐतराज नहीं होगा, अत: दोनों ने अपनी पसंद की बात अपने परिवार वालों को बता दी थी.

राजकुमार ने लखनऊ में अपनी ट्रेनिंग पूरी कर ली लेकिन किन्हीं कारणों से निशा को ट्रेनिंग बीच में ही छोड़ देनी पड़ी. राजकुमार बरेली निवासी रघुवीर मसीह का बेटा था. रघुवीर मसीह पुलिस विभाग में वायरलैस मैसेंजर के पद पर बदायूं में तैनात था.

सन 2014 में पारिवारिक सहमति से राजकुमार और निशा का विवाह हो गया. रघुवीर मसीह के 4 बेटे और 2 बेटियां थीं. सब से बड़ा बेटा रवि था, जिस की शादी बाराबंकी निवासी अनुराधा से हुई थी. दूसरा दिलीप था, जिस की शादी निशा की बड़ी बहन शारदा से हुई थी. उस से छोटा राजकुमार था और सब से छोटा राहुल.

राजकुमार की पहली पोस्टिंग कासगंज जिले के सोरों कस्बे में नवनिर्मित चर्च में हुई थी. इसी बीच राजकुमार की शादी हो गई और रघुवीर मसीह ने कोशिश कर के राजकुमार का तबादला कासगंज से वजीरगंज करवा दिया.

शादी के बाद कुछ समय तो अच्छा कटा. राजकुमार की मां आशा मसीह ने नवविवाहिता बहू निशा को हाथोंहाथ लिया, पर निशा को राजकुमार के घर का माहौल रास नहीं आया. इसलिए उस ने पति से कहा कि वह घर में बैठ कर वक्त बरबाद नहीं करना चाहती.

निशा इंटरमीडिएट पास थी और उस की अंगरेजी भाषा पर अच्छी पकड़ थी. वह सोचती थी कि किसी भी इंग्लिश स्कूल में उसे नौकरी मिल सकती है.

नौकरी करने वाली बात निशा ने पति और सासससुर से बताई तो उन्हें इस पर कोई ऐतराज नहीं हुआ. निशा को इजाजत मिल गई और थोड़ी कोशिश से निशा को होली चाइल्ड स्कूल में नौकरी मिल गई.

कालांतर में निशा 2 बेटियों की मां बनी, जिन के नाम रागिनी और तमन्ना रखे गए. अब उन का छोटा सा खुशहाल परिवार था. वे स्कूल परिसर में स्थित कमरे में रहते थे. राजकुमार और निशा का दांपत्य जीवन काफी सुखद था. किन्हीं खास मौकों पर वे लोग बरेली चले जाते थे.

बदलने लगी निशा की सोच  सब कुछ ठीक चल रहा था, पर वक्त कब करवट ले लेगा, इस का आभास किसी को नहीं था. स्कूल की नौकरी करतेकरते निशा को लगने लगा था कि राजकुमार से शादी करना उस के जीवन की सब से बड़ी भूल थी. वह अच्छाखासा कमा लेती है. अगर उस ने शादी की जल्दबाजी न की होती तो उसे कोई पढ़ालिखा अच्छा पति मिलता और वह ऐश करती.

ऐसे विचार मन में आते ही उस का दिल बेचैन होने लगा. जितना उसे मिला था, उस से उसे संतोष नहीं था. उस की कुछ ज्यादा पाने की चाहत बढ़ रही थी.  कहते हैं, अकसर ज्यादा पाने की चाह में लोग बहुत कुछ गंवा देते हैं. निशा का भी यही हाल था. अब धीरेधीरे राजकुमार और निशा के जीवन में तल्खियां बढ़ने लगीं. निशा छोटीछोटी बातों को ले कर मीनमेख निकालती और उस से झगड़ा करने की कोशिश करती.

सीधेसादे राजकुमार को हैरानी होती थी कि निशा को आखिर हो क्या गया है. एक दिन निशा ने कहा, ‘‘तुम क्या थोड़ी और पढ़ाई नहीं कर सकते थे? कम से कम मेरी तरह इंटर तो पास कर लेते. पढ़ेलिखे होते तो तुम्हारा दिमाग भी खुला होता.’’

‘‘मैं ज्यादा पढ़ालिखा न सही, पर अपने काम में तो परफैक्ट हूं. लोगों को अपने धर्म का ज्ञान बेहतर तरीके से देता हूं. हालांकि मैं केवल हाईस्कूल पास हूं लेकिन मैं ने यह ठान लिया है कि अपनी बेटियों को खूब पढ़ाऊंगा.’’ राजकुमार बोला.

‘‘बेटियों की फिक्र तुम छोड़ो. यह सब मुझे सोचना है कि उन के लिए क्या करना है.’’ निशा ने पति की बात काटते हुए कहा. राजकुमार तर्क कर के बात बढ़ाना नहीं चाहता था. इसलिए वह पत्नी के पास से उठ गया. दोनों बेटियों को साथ ले कर वह यह सोच कर घर से बाहर निकल गया कि थोड़ी देर में निशा का गुस्सा शांत हो जाएगा.

थोड़ी देर बाद जब वह घर पहुंचा तो निशा नार्मल हो चुकी थी. राजकुमार ने राहत की सांस ली. निशा ने राजकुमार का खाना लगा दिया, तभी स्कूल का चपरासी 20 वर्षीय अर्जुन आया और वह निशा को चाबियां देते हुए बोला, ‘‘मैडम, मैं ने बाकी ताले बंद कर दिए हैं. आप केवल बाहरी गेट का ताला लगा लेना, मैं घर जा रहा हूं.’’

‘‘अर्जुन, बैठो, चाय पी कर जाना.’’ निशा ने कहा.  निशा के कई बार कहने पर अर्जुन कुरसी पर बैठ गया. अर्जुन बाबा कालोनी निवासी ओमेंद्र सिंह का बेटा था. वह स्कूल में चपरासी था और उस का छोटा भाई किरनेश स्कूल के प्रिंसिपल के घर का नौकर था.

कुछ देर में निशा चाय बना कर ले आई. चाय पी कर अर्जुन चला गया. लेकिन राजकुमार के दिल में कुछ खटकने लगा. उस ने निशा से कहा, ‘‘मुझे इस अर्जुन की आदतें कुछ अच्छी नहीं लगतीं. वैसे भी ये स्कूल का चपरासी है और तुम टीचर, तुम्हें अपने स्टैंडर्ड का ध्यान रखना चाहिए.’’

निशा ने तुनक कर कहा, ‘‘मैं ने ऐसा क्या कर दिया जो तुम मेरे स्टैंडर्ड को कुरेद रहे हो.’’

राजकुमार ने कोई जवाब नहीं दिया. वह बात को बढ़ाना नहीं चाहता था. लेकिन उस दिन के बाद निशा का ध्यान अर्जुन पर टिक गया. जब वह अकेली होती तो अचानक अर्जुन उस के जेहन में आ बैठता.

निशा के दिल के दरवाजे पर दस्तक दी अर्जुन ने  कुछ दिनों बाद राजकुमार की तबीयत खराब हो गई. वह कभीकभी 2 दिन तक चर्च में ही रुक जाता और बदायूं नहीं आ पाता था. इस अकेलेपन ने निशा को गुमराह कर दिया. अर्जुन एक स्वस्थ और स्मार्ट युवक था. वैसे भी निशा के साथ वह घुलनेमिलने लगा था. अब राजकुमार की गैरमौजूदगी में वह निशा के कमरे में आ जाता और उस की बेटियों के लिए खानेपीने की चीजें ले आता था.

निशा के मन में अर्जुन अपनी जगह बनाने लगा था. निशा भी अर्जुन के बारे में सोचती रहती थी. वह उस की मजबूत बांहों में समाने के लिए बेताब रहने लगी थी. उधर अर्जुन निशा को चाहता तो था लेकिन निशा के पति की वजह से पहल करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था.

कहा जाता है कि फिसलन की ओर बढ़ने वाले कदम आसानी से दलदल तक पहुंच जाते हैं. यही निशा के साथ हुआ. एक दिन शाम को निशा के पास राजकुमार का फोन आया. उस ने कहा कि वह आज रात को घर नहीं आ पाएगा. इस फोन काल ने निशा के दिल में हलचल मचा दी. उस के दिल की धड़कनें बढ़ गईं.

निशा के दिमाग में अर्जुन घूम रहा था. उस ने कमरे से बाहर निकल कर देखा तो उस समय अर्जुन स्कूल के अपने काम निपटा कर घर जाने की तैयारी कर रहा था. तभी निशा ने उसे आवाज दे कर बुलाया, ‘‘अर्जुन, तुम कमरे में आओ, कुछ बात करनी है.’’

अर्जुन कमरे में आ गया. निशा उस के लिए चाय बना कर ले आई. निशा ने चाय का प्याला उस की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘अर्जुन, आज रात राजकुमार घर नहीं आएगा. अकेले में मुझे डर लगेगा, तुम आज रात यहीं रुक जाओ, जिस से मेरा भी मन लगा रहेगा.’’

अर्जुन ने गहरी नजर से निशा को देखा. उसे निशा का अंदाज कुछ अजीब सा लगा. उस की चुप्पी देख कर निशा ने पूछा, ‘‘कुछ परेशानी है क्या?’’

‘‘नहीं मैडम, ऐसी कोई बात नहीं है. मैं सोच रहा हूं कि अगर साहब को पता चला तो पता नहीं वो मेरे बारे में क्या सोचेंगे, वह तो वैसे भी मुझे पसंद नहीं करते.’’

‘‘तुम उन की चिंता मत करो. तुम्हें मैं तो पसंद करती हूं न.’’ निशा ने मुसकराते हुए कहा तो अर्जुन की भावनाओं में जैसे तूफान उठने लगा. उस ने उसी समय जेब से मोबाइल निकाला और अपने घर फोन कर के बता दिया कि स्कूल में कुछ काम होने की वजह से वह आज घर नहीं आ पाएगा.

इस के बाद अर्जुन उस के कमरे में बैठ गया. निशा ने खाना बनाने की तैयारी शुरू कर दी. तब तक अर्जुन उस के दोनों बच्चों के साथ खेलने लगा. खाना बनने के बाद निशा ने बच्चों को पहले खाना खिलाया और उन्हें सुला दिया.

फिर निशा ने अपना और अर्जुन का खाना लगाया. खाना खातेखाते अर्जुन उस के खाने की तारीफ करते हुए बोला, ‘‘मैडम, आप खाना बहुत अच्छा बनाती हैं.’’

‘‘खाना बनाना ही नहीं, मैं बहुत से काम बहुत अच्छे से करती हूं.’’ कह कर निशा हंसने लगी. फिर उस ने एक प्रश्न किया, ‘‘अर्जुन, तुम ने अभी तक शादी क्यों नहीं की?’’

अर्जुन निशा को गौर से देखते हुए बोला, ‘‘रिश्ते तो कई आए थे मैडम, लेकिन जब से आप को देखा है मेरा इरादा बदल गया है.’’

‘‘क्या मतलब?’’ निशा ने चौंकते हुए पूछा.

‘‘मतलब यह कि मुझे आप जैसी स्मार्ट जीवनसाथी की जरूरत है.’’

निशा की चाहत बन गया अर्जुन  अर्जुन की बात सुन कर निशा मन ही मन खुश हुई कि इस का मतलब वह उसे पहले से ही चाहता है. निशा कुछ नहीं बोली बल्कि मुसकराने लगी. खाना खाते हुए दोनों इसी तरह की बातें करते रहे.

खाना खाने के बाद निशा ने अर्जुन का बिस्तर जमीन पर लगाते हुए कहा कि वह यहां आराम कर सकता है. इस के बाद रसोई का काम खत्म कर के वह भी आ गई. उस ने चटाई बिछा कर अपना बिस्तर भी जमीन पर लगा लिया. धीरेधीरे रात गहराती जा रही थी और वहां भी कुछ ऐसा होने वाला था, जो किसी के लिए बरबादी ला सकता था.

निशा की आंखों में नींद नहीं थी. उस ने अर्जुन की तरफ देखा तो वह भी करवटें बदल रहा था. उस ने पूछा, ‘‘अर्जुन, नींद नहीं आ रही क्या?’’  ‘‘हां, नींद नहीं आ रही. पर सोच रहा हूं कि आप के पति तो अकसर वजीरगंज में ही रुक जाते हैं, फिर आप ने आज मुझे यहां क्यों रोका है?’’

निशा ने हंसते हुए कहा, ‘‘तुम क्या सचमुच अनाड़ी हो या अनजान बनने का नाटक कर रहे हो. मैं ने तुम्हारी आंखों में कुछ खास देखा था, वही पिछले कई दिनों से मुझे परेशान कर रहा है. अर्जुन भूख अकसर 2 लोगों को एकदूसरे के करीब ले आती है.’’

‘‘यह क्या कह रही हैं आप?’’ अर्जुन बोला.  ‘‘ठीक ही कह रही हूं. मैं तुम से प्यार करने लगी हूं अर्जुन.’’

अर्जुन को जैसे करंट सा लगा, पर उसे विश्वास नहीं हो रहा था. निशा ने आगे बढ़ कर अर्जुन का हाथ पकड़ा और कहा, ‘‘डरो मत अर्जुन, मैं सचमुच तुम्हें चाहती हूं और यह कोई गुनाह नहीं है. मैं अपने पति से तंग आ चुकी हूं.’’

अर्जुन फिसलन की कगार पर खड़ा था. निशा के स्पर्श से वह दलदल में जा गिरा. शादीशुदा और 2 बच्चों की मां ने उसे एक ऐसे दलदल में खींच लिया, जिस के अंदर जाना तो आसान था पर बाहर आने का कोई रास्ता नहीं था.

उस दिन के बाद रिश्तों की दिशा और दशा ही बदल गई. अपनी तबाही से बेखबर राजकुमार अगले दिन घर आ गया. राजकुमार की बरबादी की नींव रखी जा चुकी थी. बीवी ने बेवफाई करने के लिए कमर कस ली थी. अब आए दिन वह पति से झगड़ने लगी. राजकुमार भी महसूस कर रहा था कि स्कूल का चपरासी अर्जुन अब पहले की तरह उस की इज्जत नहीं करता.

एक दिन वह जब वजीरगंज से लौटा तो उस ने अर्जुन को कमरे में चारपाई पर पसरा हुआ देखा. यह देख कर राजकुमार का माथा गरम हो गया. वह बोला, ‘‘अर्जुन, तुम यहां क्या कर रहे हो? लगता है, तुम अपनी औकात भूल रहे हो. मेरी गैरमौजूदगी में तुम्हें यहां आने की जरूरत नहीं है.’’

उस समय तो अर्जुन वहां से चला गया. उस ने खुद को अपमानित महसूस किया और तय किया कि राजकुमार को सबक सिखाएगा.  राजकुमार के तेवर देख कर निशा भी डर गई थी. राजकुमार ने कहा, ‘‘निशा, यह अर्जुन मुझे बिलकुल भी पसंद नहीं है. तुम इस से दूर ही रहो. देखो, मैं सोच रहा हूं कि अपना तबादला बरेली में ही करा लूं. पापा भी रिटायर हो गए हैं, अपना मकान भी उन्होंने बना लिया है. फिर तुम्हें भी बरेली में कहीं नौकरी मिल ही जाएगी.’’

‘‘देखो, अर्जुन इसी स्कूल में काम करता है. तुम्हारे जाने के बाद वह मार्केट से घर की जरूरत का सामान भी ला देता है. तुम खामख्वाह उस पर गरम हो रहे थे. देखो, हमें यहां कमरा मिला हुआ है. यहां कोई परेशानी भी नहीं है. और फिर यह बात तुम जानते हो कि मैं जौइंट फैमिली में नहीं रह सकती.’’ निशा ने पति को समझाया.

‘‘इस मामले में मैं घर वालों से बात करूंगा.’’ कह कर राजकुमार बाथरूम चला गया.

राजकुमार अनभिज्ञ था पत्नी के संबंधों से राजकुमार को अभी तक यह पता नहीं था कि अर्जुन और उस की पत्नी निशा के बीच किस तरह के संबंध हैं. पिछले 6 महीने से वह महसूस कर रहा था कि निशा बदल रही है.  कहते हैं कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपता. निशा और अर्जुन के संबंधों की असलियत भी सामने आ ही गई. उस दिन अर्जुन घर जाने ही वाला था कि राजकुमार का पत्नी के पास फोन आ गया कि वह आज रात को घर नहीं आएगा.

यह खबर सुन कर निशा खुश हुई. उस ने अर्जुन को बुला कर कहा, ‘‘आज रात फिर अपनी ही है क्योंकि राजकुमार आज भी नहीं आएगा. ऐसा करो कि तुम नहाधो कर फ्रैश हो जाओ. तब तक मैं तुम्हारे लिए चाय बनाती हूं.’’

निशा ने गैस पर चाय चढ़ा दी. अर्जुन भी फ्रैश होने के लिए बाथरूम में घुस गया. फ्रैश होने के बाद वह निशा के साथसाथ चाय पीने लगा. चाय की चुस्कियां लेते हुए वह बोला, ‘‘ऐसा आखिर कब तक चलेगा, हमें कुछ करना ही होगा.’’

‘‘हां करेंगे.’’ कहते हुए निशा ने कहा, ‘‘अभी तो इन पलों को जिओ, जो हमें मिल रहे हैं.’’  इस के बाद दोनों मौजमस्ती में लीन हो गए. अर्जुन इस बात से बेखबर था कि उस ने बाहरी गेट बंद नहीं किया था. तभी अचानक दबेपांव राजकुमार वहां आ गया. बीवी को अर्जुन की बाहों में देख कर वह आगबबूला हो गया. उस ने अर्जुन की टांग पकड़ कर खींची और उसे कई तमाचे जड़ दिए.

किसी तरह अर्जुन उस के चंगुल से निकल कर भाग गया. तभी राजकुमार ने कहा कि वह इस की शिकायत स्कूल से करेगा.

अर्जुन के चले जाने के बाद राजकुमार ने निशा को जम कर लताड़ा. निशा उस के पैरों में गिर कर अपनी गलती की माफी मांगने लगी, पर राजकुमार के तेवर सख्त थे. उस ने  कह दिया कि अब हम यहां नहीं रहेंगे. राजकुमार ने पिता को फोन पर सारी बातें बता दीं और कहा कि अब हम बरेली में नेकपुर स्थित अपने घर में रहेंगे.

पति का फैसला सुन कर निशा परेशान हो गई. वह किसी भी हालत में बदायूं को छोड़ना नहीं चाहती थी. अत: उस ने तय कर लिया कि वह पति नाम के इस कांटे को अपनी जिंदगी से उखाड़ फेंकेगी.

अगले दिन राजकुमार वजीरगंज चला गया. निशा ने मौका मिलते ही अर्जुन को एकांत में बुला कर कहा, ‘‘अगर मुझे चाहते हो तो तुम्हें राजकुमार को रास्ते से हटाना होगा.’’

अर्जुन का दिल तेजी से धड़कने लगा क्योंकि ऐसा तो उस ने कभी सोचा ही नहीं था.  उसे चुप देख निशा बोली, ‘‘हां, मैं ठीक ही कह रही हूं. आज राजकुमार जब घर आएगा तो तुम घर आ कर उस से अपनी गलती की माफी मांगना और उस का विश्वास जीतना. इस के आगे क्या करना है, मैं बाद में बताऊंगी.’’

अर्जुन ने ऐसा ही किया. राजकुमार जब घर पहुंचा तो अर्जुन उस के घर चला गया. उसे देखते ही राजकुमार उस पर भड़का तो अर्जुन ने उस से अपनी गलती पर अफसोस जताते हुए माफी मांग ली. सीधेसादे राजकुमार ने उसे माफ कर दिया और कहा कि अब वैसे भी हमें यहां नहीं रहना है.

माफी मांग कर काट दी जीवन की डोर  पर अर्जुन के दिल में राजकुमार के प्रति क्या था, यह बात राजकुमार नहीं जानता था. राजकुमार मौत की दस्तक को सुन ही नहीं पाया था. 15 जून, 2019 को अपनी योजना के मुताबिक अर्जुन अपनी बाइक पर आया. उस ने राजकुमार से कहा, ‘‘चलिए, मछली लेने चलते हैं.’’

राजकुमार भी माहौल का तनाव कम करना चाहता था. वह अर्जुन को माफ कर चुका था.  साजिश से अनजान राजकुमार अर्जुन के साथ बाइक पर बैठ गया. अर्जुन बाइक को इधरउधर घुमाता रहा. फिर बाइक मझिया गांव के सुनसान इलाके में ले गया और बोला, ‘‘अब बाइक आप चलाओ, मैं पीछे बैठता हूं.’’

राजकुमार ने ड्राइविंग सीट संभाली. दोनों शर्की रेलवे स्टेशन से कुछ ही दूरी पर पहुंचे थे कि बाइक पर पीछे बैठे अर्जुन ने जेब से तमंचा निकाला और राजकुमार के सिर पर गोली मार दी. राजकुमार का बैलेंस बिगड़ा और वह बाइक समेत जमीन पर गिर गया. राजकुमार खून से लथपथ था. अब योजना के मुताबिक राजकुमार को रेलवे ट्रैक पर डालना था ताकि उस की मौत ट्रेन एक्सीडेंट लगे.

अर्जुन चाहता था ट्रेन एक्सीडेंट समझा जाए  खून से लथपथ राजकुमार को अर्जुन ने रेलवे ट्रैक पर डाल दिया. उस के कपडे़ भी खून से लथपथ थे. रेलवे लाइन पर पड़ा राजकुमार तड़प रहा था. वह अभी जिंदा था पर अर्जुन ने जो सोचा था, हो नहीं सका. कासगंज से बरेली जाने वाली ट्रेन तब तक गुजर गई थी. अब सुबह 5 बजे से पहले वहां से कोई गाड़ी निकलने वाली नहीं थी.

अर्जुन ने बाइक स्टार्ट की और घर आ गया. उस ने खून सने कपड़े उतारे. कपड़ों पर लगा खून देख कर घर वाले सन्न रह गए. उन्होंने अर्जुन से जब सख्ती से पूछताछ की तो पता चला कि अर्जुन ने राजकुमार का कत्ल कर दिया है.

अर्जुन ने अपने कपड़े धो डाले और घर वालों से सख्त लहजे में कहा कि कोई भी अपना मुंह नहीं खोलेगा. उस ने निशा को काम हो जाने की खबर फोन पर दे दी.

रात जैसेतैसे गुजर गई. सुबह मार्निंग वाक पर निकले लोगों ने रेलवे ट्रैक पर लाश देखी तो किसी ने इस की सूचना रेलवे पुलिस को दे दी. पुलिस वहां आ गई और लोगों से लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश की. पर उस की शिनाख्त नहीं हो पाई. सिविल लाइंस थाने की पुलिस भी वहां पहुंच गई.

उधर राजकुमार को 15 जून को बरेली जाना था, यह बात उस ने फोन पर अपने पिता रघुवीर को बता दी थी, लेकिन वह रात में घर नहीं पहुंचा तो घर वाले परेशान हो गए.  इधर थाना सिविल लाइंस के थानाप्रभारी ओ.पी. गौतम, सीओ राघवेंद्र सिंह राठौर और एसपी (सिटी) जितेंद्र कुमार श्रीवास्तव भी मौके पर पहुंच गए थे. फोरैंसिक टीम भी जांच के लिए पहुंच गई थी. जांच में पुलिस को मृतक की जेब से 100 रुपए का एक नोट और एक परची मिली. पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.  17 जून को लाश का फोटो अखबारों में छपा तो रघुवीर के एक रिश्तेदार जे.पी. मसीह ने उन्हें फोन कर के पूछा कि राजकुमार कहां है? रघुवीर ने कहा कि राजकुमार को बरेली आना था, पर आया नहीं है.

सब जगह फोन कर लिया, पर उस का कुछ पता नहीं है. तब जे.पी. मसीह अखबार ले कर रघुवीर के घर पहुंच गए और उन्हें अखबार दिखाया. अखबार में अपने बेटे की लाश का फोटो देख कर रघुवीर की आंखों से आंसू निकल आए. वह परेशान हो गए तभी उन के पास पुलिस कंट्रोल रूम से भी फोन आ गया.

रघुवीर अपने रिश्तेदारों के साथ पोस्टमार्टम हाउस पहुंच गए और लाश की शिनाख्त बेटे राजकुमार के रूप में कर दी. निशा भी किसी से खबर पा कर घडि़याली आंसू बहाती हुई पोस्टमार्टम हाउस पहुंची. वह वहां इस तरह से रो रही थी, जैसे उस का सब कुछ लुट गया हो.

पोस्टमार्टम के बाद लाश बरेली ला कर उस का अंतिम संस्कार कर दिया गया. निशा के हावभाव देख कर रघुवीर की समझ में कुछकुछ आ रहा था. उन्हें शक था कि उन के बेटे की हत्या निशा ने कराई होगी. क्योंकि उसे रंगेहाथ पकड़ने पर राजकुमार ने उस की शिकायत अपने पिता से कर दी थी.

रघुवीर ने जांच अधिकारी के सामने अपनी पुत्रवधू और अर्जुन के नाजायज संबंधों का खुलासा कर दिया था. पुलिस ने अर्जुन को हिरासत में ले लिया. अर्जुन ने अपने हाथ पर ब्लेड से निशा का नाम लिख रखा था.

पुलिस ने निशा और अर्जुन को आमनेसामने बैठा कर पूछताछ की तो दोनों एकदूसरे पर इलजाम लगाने लगे. उन की दीवानेपन आशिकी की हवा निकल चुकी थी. दोनों ने ही अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. अब दोनों को जेल जाने का डर सता रहा था.

पुलिस ने भादंवि की धारा 302, 201 के तहम मुकदमा दर्ज कर के उन से विस्तार से पूछताछ की और कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.  रागिनी और तमन्ना ने मांबाप दोनों को खो दिया था. राजकुमार की मां आशा मसीह ने कहा कि उसे तो विश्वास ही नहीं हो रहा कि उन की बहू उन के सीधेसादे बेटे को मरवा सकती है. अब इस उम्र में उन्हें अपने बेटे की बच्चियों की परवरिश के लिए जीना होगा.

निशा के पिता दयाशंकर और मां गीता को बेटी के इस गुनाह पर अफसोस होता है. उन्होंने तो कभी कल्पना भी नहीं की थी कि निशा ऐसा भी कर सकती है. काश, राजकुमार मौत की दस्तक को सुन पाता तो उसे अपनी जान से हाथ न धोना पड़ता.

जब प्यार में आशिक ही बना गया कातिल

प्रियंका और कृष्णा प्यार की पींगें भर रहे थे. दोनों का प्यार दोस्तों के बीच चर्चा का विषय बन गया था. कृष्णा तिवारी की उम्र जहां 25 वर्ष थी, वहीं प्रियंका श्रीवास 21 साल की थी. दोनों अकसर छत्तीसगढ़ के बिलासपुर शहर की सड़कों पर एकदूसरे का हाथ थामे घूमते हुए दिख जाते.  कृष्णा उसे अपनी बुलेट मोटरसाइकिल पर भी घुमाता था. दोनों का प्रेम परवान चढ़ रहा था.

कृष्णा तिवारी उर्फ डब्बू मूलत: कोनी, बिलासपुर का रहने वाला था और प्रियंका पास के ही बिल्हा शहर के मुढ़ीपार गांव की थी. वह बिलासपुर में अपने मौसा जोगीराम के यहां रह कर बीए फाइनल की पढ़ाई कर रही थी.

एक दिन कृष्णा ने शहर के विवेकानंद गार्डन में घूमतेघूमते प्रियंका से कहा, ‘‘प्रियंका, आज मैं तुम से एक बहुत खास बात कहने जा रहा हूं,जिस का शायद तुम्हें बहुत समय से इंतजार होगा.’’

‘‘क्या?’’ प्रियंका ने स्वाभाविक रूप से कहा.

‘‘मैं तुम से शादी करना चाहता हूं,’’ कृष्णा बोला, ‘‘मैं चाहता हूं कि हम दोनों शादी कर लें या फिर घरपरिवार से कहीं दूर भाग चलें.’’

‘‘नहींनहीं, मैं भाग कर शादी नहीं कर सकती, वैसे भी अभी मैं पढ़ रही हूं. शादी होगी तो मेरे मातापिता की सहमति से ही होगी.’’

‘‘तब तो प्यार भी तुम्हें मम्मीपापा की आज्ञा ले कर करना चाहिए था.’’ कृष्णा ने उस की खिल्ली उड़ाते हुए मीठे स्वर में कहा.

‘‘देखो, प्यार और शादी में बहुत बड़ा फर्क है. तुम मुझे अच्छे लगे तो तुम से दोस्ती हो गई और फिर प्यार हो गया.’’ प्रियंका ने सफाई दी.

‘‘अच्छा, यह तो बड़ी कृपा की आप ने हुजूर.’’ कृष्णा ने विनम्र भाव से कहा, ‘‘अब कुछ और कृपा बरसाओ, मेरी यह इच्छा भी पूरी करो.’’

‘‘देखो डब्बू, तुम मेरे पापा को नहीं जानते. वह बड़े ही गुस्से वाले हैं. मैं मां को तो मना लूंगी मगर पापा के सामने तो बोल तक नहीं सकती. वो तो अरे बाप रे…’’ कहतेकहते प्रियंका की आंखें फैल गईं और चेहरा सुर्ख हो उठा.

‘‘प्रियंका, तुम कहो तो मैं पापा से बात करूं या फिर उन के पास अपने पापा को भेज दूं. मुझे यकीन है कि हमारे खानदान, रुतबे को देख कर तुम्हारे पापा जरूर हां कह देंगे. बस, तुम अड़ जाना.’’ कृष्णा ने समझाया.

‘‘देखो कृष्णा, हमारे घर के हालात, माहौल बिलकुल अलग हैं. मैं किसी भी हाल में पापा से बहस या सामना नहीं कर सकती. तुम अपने पापा को भेज दो, हो सकता है बात बन जाए.’’ प्रियंका बोली.

‘‘और अगर नहीं बनी तो?’’ कृष्णा ने गंभीर होते हुए कहा.

‘‘नहीं बनी तो हमारे रास्ते अलग हो जाएंगे. इस में मैं क्या कर सकती हूं.’’ प्रियंका ने जवाब दिया.

एक दिन कृष्णा तिवारी के पिता लक्ष्मी प्रसाद तिवारी प्रियंका श्रीवास के पिता नारद श्रीवास से मिलने उन के घर पहुंच गए. नारद श्रीवास का एक बेटा और 2 बेटियां थीं. वह किराने की एक दुकान चलाते थे.

लक्ष्मी प्रसाद ने विनम्रतापूर्वक अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘भाईसाहब, मैं आप से मिलने बिलासपुर से आया हूं. आप से कुछ महत्त्वपूर्ण बातचीत करना चाहता हूं.’’

कृष्णा के पिता ने की कोशिश

नारद श्रीवास ने उन्हें ससम्मान घर में बिठाया और खुद सामने बैठ गए. लक्ष्मी प्रसाद तिवारी हाथ जोड़ कर बोले, ‘‘मैं आप के यहां आप की बड़ी बेटी प्रियंका का अपने बेटे कृष्णा के लिए हाथ मांगने आया हूं.’’

यह सुन कर नारद श्रीवास आश्चर्यचकित हो कर लक्ष्मी प्रसाद की ओर ताकते रह गए. उन के मुंह से बोल नहीं फूट रहे थे. तब लक्ष्मी प्रसाद बोले, ‘‘भाईसाहब, मेरे बेटे कृष्णा को आप की बिटिया पसंद है. हालांकि हम लोग जाति से ब्राह्मण हैं, मगर बेटे की इच्छा को ध्यान में रखते हुए आप के पास चले आए. आशा है आप इनकार नहीं करेंगे.’’

यह सुन कर नारद श्रीवास के चेहरे का रंग बदलने लगा. उन्होंने लक्ष्मी प्रसाद से कहा, ‘‘देखो तिवारीजी, आप मेरे घर आए हैं, ठीक है. मगर मैं अपनी बिटिया का हाथ किसी गैरजातीय लड़के को नहीं दे सकता.’’

‘‘मगर भाईसाहब, अब समय बदल गया है. मेरा आग्रह है कि आप घर में चर्चा कर लें. बच्चों की खुशी को देखते हुए अगर आप हां कर देंगे तो यह बड़ी अच्छी बात होगी.’’ लक्ष्मी प्रसाद ने सलाह दी.

‘‘देखिए पंडितजी, मैं समाज के बाहर बिलकुल नहीं जा सकता. फिर प्रियंका के लिए मेरे पास एक रिश्ता आ चुका है. वे लोग प्रियंका को पसंद कर चुके हैं. मैं हाथ जोड़ता हूं, आप जा सकते हैं.’’ नारद श्रीवास ने विनम्रता से कहा तो लक्ष्मी प्रसाद तिवारी अपने घर लौट गए.

घर लौट कर उन्होंने जब बात न बनने की जानकारी दी तो कृष्णा को गहरा धक्का लगा. अगले दिन कृष्णा ने अपनी बुलेट निकाली और नारद श्रीवास की दुकान पर पहुंच गया. उस समय नारद ग्राहकों को सामान दे रहे थे. दुकान के बाहर खड़ा कृष्णा नारद श्रीवास को घूरघूर कर देख रहा था. जब वह ग्राहकों से फारिग हुए तो उन्होंने कृष्णा की ओर मुखातिब होते हुए कहा, ‘‘हां, क्या चाहिए?’’

कृष्णा ने उन से बिना किसी डर के अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘कल मेरे पापा आप के पास आए थे.’’

यह सुनते ही नारद श्रीवास के दिलोदिमाग में बीते कल का सारा वाकया साकार हो उठा, जिसे लगभग वह भुला चुके थे. उन्होंने कहा, ‘‘हां, तो?’’

कृष्णा तिवारी ने कहा, ‘‘आप ने मना कर दिया. मैं इसलिए आया हूं कि एक बार आप से मिल कर अपनी बात कहूं.’’

‘‘देखो, तुम चले जाओ. मैं ने तुम्हारे पिताजी को सब कुछ बता दिया है और इस बारे में अब मैं कोई बात नहीं करूंगा.’’

कृष्णा ने अपनी आंखें घुमाते हुए अधिकारपूर्वक कहा, ‘‘आप से कह रहा हूं, आप मान जाइए नहीं तो एक दिन आप खून के आंसू रोएंगे.’’

‘‘तो क्या तुम मुझे धमकाने आए हो?’’ नारद श्रीवास का पारा चढ़ गया.

‘‘धमकाने भी और चेतावनी देने भी. आप नहीं मानोगे तो अंजाम बुरा होगा.’’ कहने के बाद कृष्णा तिवारी बुलेट से घर वापस लौट गया.

नारद श्रीवास कृष्णा के तेवर देख कर अवाक रह गए. उन्होंने सोचा कि यह लड़का एक नंबर का बदमाश जान पड़ता है. मैं ने अच्छा किया कि इस के पिता की बात नहीं मानी.

उन्होंने उसी दिन अपने साढ़ू भाई जोगीराम श्रीवास को फोन कर के सारी बात बता दी. उन्होंने उन से प्रियंका पर विशेष नजर रखने की बात कही, क्योंकि प्रियंका उन्हीं के घर रह कर पढ़ रही थी.

नारद की बातें सुन कर जोगीराम ने उन से कहा, ‘‘आप बिलकुल चिंता मत करो. मैं खुद प्रियंका से बात कर के देखता हूं और आप लोग भी बात करो. इस के अलावा आप धमकी देने वाले कृष्णा के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा दो.’’

‘‘नहींनहीं, पुलिस में जाने से हमारी ही बदनामी होगी. मैं अब जल्द ही प्रियंका की सगाई, शादी की बात फाइनल करता हूं.’’ नारद बोले.

21 अगस्त, 2019 डब्बू उर्फ कृष्णा ने प्रियंका को सुबहसुबह लवली मौर्निंग का वाट्सऐप मैसेज भेजा और लिखा, ‘‘प्रियंका हो सके तो मुझ से मिलो, कुछ जरूरी बातें करनी हैं. जाने क्यों रात भर तुम्हारी याद आती रही, इस वजह से मुझे नींद भी नहीं आ सकी.’’

प्रियंका ने मैसेज का प्रत्युत्तर हमेशा की तरह दिया, ‘‘ठीक है, ओके.’’

मौसी ने समझाया था प्रियंका को

प्रियंका रोजाना की तरह उस दिन भी तैयार हो कर कालेज के लिए निकलने लगी तो मौसा और मौसी ने उसे बताया कि वह घरपरिवार की मर्यादा को ध्यान में रखे. कृष्णा से मेलमुलाकात उस के पापा को पसंद नहीं है. तुम्हें शायद यह पता नहीं कि कृष्णा ने मुढ़ीपार पहुंच कर धमकी तक दे डाली है. यह अच्छी बात नहीं है. अगर इस में तुम्हारी शह न होती तो क्या उस की इतनी हिम्मत हो पाती?

मौसी की बातें सुन कर प्रियंका मुसकराई. वह जल्दजल्द चाय पीते हुए बोली, ‘‘मौसी, आप जरा भी चिंता मत करना. मैं घरपरिवार की नाक नहीं कटने दूंगी. जब पापा मुझ पर भरोसा करते हैं, उन्होंने मुझे पढ़ने भेजा है, मेरी हर बात मानते हैं तो मैं भला उन की इच्छा के बगैर कोई कदम कैसे उठाऊंगी. आप एकदम निश्चिंत रहिए.’’

मौसी सीमा ने उसे बताया कि जल्द ही उस की सगाई एक इंजीनियर लड़के से होने वाली है, इसलिए वह कृष्णा से दूर ही रहे.

हंसतीबतियाती प्रियंका रोज की तरह सीपत रोड स्थित शबरी माता नवीन महाविद्यालय की ओर चली गई. वह बीए अंतिम वर्ष की पढ़ाई कर रही थी.

कालेज में पढ़ाई के बाद प्रियंका क्लास से बाहर आई तो कृष्णा का फोन आ गया. दोनों में बातचीत हुई तो प्रियंका ने कहा, ‘‘मैं कालेज से निकल रही हूं और थोड़ी देर में तुम्हारे पास पहुंच जाऊंगी.’’

प्रियंका राजस्व कालोनी स्थित कृष्णा के किराए के मकान में जाती रहती थी. वह मकान बौयज हौस्टल जैसा था. कृष्णा और प्रियंका वहां बैठ कर अपने दुखदर्द बांटा करते थे. प्रियंका ने उस से वहां पहुंचने की बात कही तो कृष्णा खुश हो गया.

कृष्णा घर का बिगड़ैल लड़का था. आवारागर्दी और घरपरिवार से बेहतर संबंध नहीं होने के कारण पिता ने एक तरह से उसे घर से निकाल दिया था. कृष्णा किराए का मकान ले कर रहता था. उस मकान में पढ़ाई करने वाले और भी लड़के रहते थे. उस के पास एक बुलेट थी. अपने खर्चे पूरे करने के लिए वह पार्टटाइम कार वाशिंग का काम करता था.

काफी समय बाद भी प्रियंका कृष्णा के कमरे पर नहीं पहुंची तो वह परेशान हो गया. वह झल्ला कर कमरे से निकला और प्रियंका को फोन किया. प्रियंका ने उसे बताया कि वह अपनी फ्रैंड के साथ है और उस के पास पहुंचने में कुछ समय लगेगा.

कृष्णा उस से मिलने के लिए उतावला था. काफी देर बाद भी जब वह नहीं पहुंची तो उस ने प्रियंका को फिर फोन किया. प्रियंका बोली, ‘‘आ रही हूं यार. मैं अशोक नगर पहुंच चुकी हूं.’’

इस पर कृष्णा ने झल्ला कर कहा, ‘‘मैं वहीं आ रहा हूं. तुम रुको, मैं पास में ही हूं’’

कृष्णा थोड़ी ही देर में अशोक नगर जा पहुंचा. प्रियंका वहां 2 सहेलियों के साथ खड़ी थी.

प्रियंका की बातों से कृष्णा को लगा कि आज उस का रंग कुछ बदलाबदला सा है. मगर उस ने धैर्य से काम लिया. प्रियंका को देख वह स्वाभाविक रूप से मुसकराते हुए बोला, ‘‘प्रियंका, तुम मुझे मार डालोगी क्या? तुम से मिलने के लिए सुबह से बेताब हूं और तुम कह रही हो कि आ रही हूं…आ रही हूं.’’

‘‘तो क्या कालेज भी न जाऊं? पढ़ाई छोड़ दूं, जिस के लिए मैं गांव से यहां आई हूं?’’ प्रियंका ने तल्ख स्वर में कहा.

‘‘मैं ऐसा कहां कह रहा हूं, मगर कालेज से सीधे आना था. 2 घंटे हो गए तुम्हारा इंतजार करते हुए. कम से कम मेरी हालत पर तो तरस खाना चाहिए तुम्हें.’’

‘‘और तुम्हें मेरे घर जा कर हंगामा करना चाहिए. पापा से क्या कहा है तुम ने, तुम ऐसा कैसे कह सकते हो?’’ प्रियंका ने रोष भरे स्वर में कहा.

प्रियंका को गुस्से में देख कर कृष्णा को भी गुस्सा आ गया. दोनों की अशोक नगर चौक पर ही नोकझोंक होने लगी, जिस से वहां लोगों का हुजूम जमा हो गया. तभी एक स्थानीय नेता प्रशांत तिवारी जो कृष्णा और प्रियंका से वाकिफ थे, वहां पहुंचे और उन्होंने दोनों को समझाबुझा कर शांत कराया.

कृष्णा प्रियंका को ले आया अपने कमरे पर

दोनों शांत हो गए. कृष्णा ने प्रियंका को बुलेट पर बिठाया और अपने कमरे की ओर चल दिया. रास्ते में दोनों ही सामान्य रहे. अपने कमरे पर पहुंच कर कृष्णा ने कहा, ‘‘प्रियंका, अब दिमाग शांत करो. मैं तुम्हारे लिए बढि़या चाय बनाता हूं.’’

यह सुन कर प्रियंका मुसकराई, ‘‘यार, मुझे भूख लग रही है और तुम बस चाय बना रहे हो.’’

इस के बाद कृष्णा पास के एक होटल से नाश्ता ले आया. दोनों प्रेम भाव से बातचीत करतेकरते कब फिर से तनाव में आ गए, पता ही नहीं चला. कृष्णा ने कहा, ‘‘तुम मुझ से शादी करोगी कि नहीं, आज मुझे साफसाफ बता दो.’’

प्रियंका ने स्पष्ट शब्दों में कहा, ‘‘नहीं, मैं शादी घर वालों की मरजी से ही करूंगी.’’

हत्या कर कृष्णा हो गया फरार

दोनों में बहस होने लगी. उसी दौरान बात बढ़ने पर कृष्णा ने चाकू निकाला और प्रियंका पर कई वार कर उसे गंभीर रूप से घायल कर दिया. खून से लथपथ प्रियंका को मरणासन्न छोड़ कर वह वहां से भाग खड़ा हुआ. घायल प्रियंका कराहती रही और वहीं बेहोश हो गई.

हौस्टल के राकेश वर्मा नाम के एक लड़के ने प्रियंका के कराहने की आवाज सुनी तो वह कमरे में आ गया. उस ने गंभीर रूप से घायल प्रियंका को बिस्तर पर पड़े देखा तो तुरंत स्थानीय सरकंडा थाने में फोन कर के यह जानकारी थानाप्रभारी जयप्रकाश गुप्ता को दे दी.

जानकारी मिलते ही थानाप्रभारी जयप्रकाश गुप्ता कुछ पुलिसकर्मियों को साथ ले कर राजस्व कालोनी के हौस्टल पहुंच गए. उन्होंने कमरे के बिस्तर पर खून से लथपथ एक युवती देखी, जिस की मौत हो चुकी थी.

थानाप्रभारी ने यह जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को भी दे दी. एडीशनल एसपी ओ.पी. शर्मा एवं एसपी (सिटी) विश्वदीपक त्रिपाठी भी मौके पर पहुंच गए. दोनों पुलिस अधिकारियों ने मौकामुआयना करने के बाद उस की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेजने के आदेश दिए.

अधिकारियों के जाने के बाद थानाप्रभारी ने प्रियंका की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. हौस्टल के लड़कों से पता चला कि जिस कमरे में प्रियंका की हत्या हुई थी, वह कृष्णा का है. प्रियंका के फोन से पुलिस को उस की मौसी व पिता के फोन नंबर मिल गए थे, लिहाजा पुलिस ने फोन कर के उन्हें अस्पताल में बुला लिया.

प्रियंका के मौसामौसी और मातापिता ने अस्पताल पहुंच कर लाश की शिनाख्त प्रियंका के रूप में कर दी. उन्होंने हत्या का आरोप बिलासपुर निवासी कृष्णा उर्फ डब्बू पर लगाया. पुलिस ने कृष्णा के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर उस की खोजबीन शुरू कर दी. उस का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ था. पुलिस को पता चला कि वह रायपुर से नागपुर भाग गया है.

पकड़ा गया कृष्णा

थानाप्रभारी जयप्रकाश गुप्ता व महिला एसआई गायत्री सिंह की टीम आरोपी को संभावित स्थानों पर तलाशने लगी. पुलिस ने कृष्णा के फोटो नजदीकी जिलों के सभी थानों में भी भेज दिए थे.

सरकंडा से करीब 25 किलोमीटर दूर स्थित मुंगेली जिले के थाना सरगांव के एक सिपाही को 23 अगस्त, 2019 को कृष्णा तिवारी सरगांव चौक पर दिख गया. उस सिपाही का गांव आरोपी कृष्णा तिवारी के गांव के नजदीक ही था. इसलिए सिपाही को यह जानकारी थी कि कृष्णा मर्डर का आरोपी है और पुलिस से छिपा घूम रहा है.

लिहाजा वह सिपाही कृष्णा तिवारी को हिरासत में ले कर थाना सरगांव ले आया. सरगांव पुलिस ने कृष्णा तिवारी को गिरफ्तार करने की जानकारी सरकंडा के थानाप्रभारी जयप्रकाश गुप्ता को दे दी.

उसी शाम सरकंडा थानाप्रभारी कृष्णा तिवारी को सरगांव से सरकंडा ले आए. उस से पूछताछ की गई तो उस ने प्रियंका की हत्या करने का अपराध स्वीकार कर लिया. उस की निशानदेही पर पुलिस ने घटनास्थल से एक चाकू भी बरामद किया, जो 3 टुकड़ों में था.

कृष्णा ने बताया कि हत्या करने के बाद वह बुलेट से सीधा रेलवे स्टेशन की तरफ गया. उस समय उस के कपड़ों पर खून के धब्बे लगे थे. उस के पास पैसे भी नहीं थे. स्टेशन के पास अनुराग मानिकपुरी नाम के दोस्त से उस ने 500 रुपए उधार लिए और रायपुर की तरफ निकल गया.

कृष्णा तिवारी उर्फ दब्बू से पूछताछ कर पुलिस ने उसे 24 अगस्त, 2019 को मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी, बिलासपुर के समक्ष पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

देवर के प्यार में अंधी हुई भाभी ने लीं ननद की जान, बनीं हत्यारी

उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के गैनी गांव में छोटेलाल कश्यप अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में उन की पत्नी रामवती के अलावा 2 बेटे नरेश व तालेवर, 2 बेटियां सुनीता व विनीता थीं. छोटेलाल खेती किसानी का काम करते थे. इसी की आमदनी से उन्होंने बच्चों की परवरिश की. बच्चे शादी लायक हो गए तो उन्होंने बड़े बेटे नरेश का विवाह नन्ही देवी नाम की युवती से करा दिया.

कालांतर में नन्ही ने एक बेटे शिवम व एक बेटी सीमा को जन्म दिया. बाद में उन्होंने बड़ी बेटी सुनीता का भी विवाह कर दिया. अब 2 बच्चे शादी के लिए रह गए थे. छोटेलाल उन दोनों की शादी की भी तैयारी कर रहे थे.

इसी बीच दूसरे बेटे तालेवर ने ऐसा काम कर दिया, जिस से उन की गांव में बहुत बदनामी हुई. तालेवर ने सन 2014 में अपने ही पड़ोस में रहने वाली एक महिला के साथ रेप कर दिया था. जिस के आरोप में उस को जेल जाना पड़ा था.

उधर छोटेलाल की छोटी बेटी विनीता भी 20 साल की हो चुकी थी. यौवन की चमक से उस का रूपरंग दमकने लगा था. वह ज्यादा पढ़ीलिखी नहीं थी, पर उसे फिल्म देखना, फैशन के अनुसार कपड़े पहनना अच्छा लगता था. उस की सहेलियां भी उस के जैसे ही विचारों की थीं, इसलिए उन में जब भी बात होती तो फिल्मों की और उन में दिखाए जाने वाले रोमांस की ही होती थी. यह उम्र का तकाजा भी था.

विनीता के खयालों में भी एक अपने दीवाने की तसवीर थी, लेकिन यह तसवीर कुछ धुंधली सी थी. खयालों की तसवीर के दीवाने को उस की आंखें हरदम तलाशती थीं. वैसे उस के आगेपीछे चक्कर लगाने वाले युवक कम नहीं थे, लेकिन उन में से एक भी ऐसा न था, जो उस के खयालों की तसवीर में फिट बैठता हो.

बात करीब 2 साल पहले की है. विनीता अपने पिता के साथ एक रिश्तेदारी में बरेली के कस्बा आंवला गई, जो उस के यहां से करीब 13 किलोमीटर दूर था. वहां से वापसी में वह आंवला बसअड्डे पर खड़ी बस का इंतजार कर रही थी तभी एक नवयुवक जोकि वेंडर था, पानी की बोतल बेचते हुए उस के पास से गुजरा.

उस युवक को देख कर विनीता का दिल एकाएक तेजी से धड़कने लगा. निगाहें तो जैसे उस पर ही टिक कर रह गई थीं. उस के दिल से यही आवाज आई कि विनीता यही है तेरा दीवाना, जिसे तू तलाश रही थी. उस युवक को देखते ही उस के खयालों में बनी धुंधली तसवीर बिलकुल साफ हो गई.

वह उसे एकटक निहारती रही. उसे इस तरह निहारता देख कर वह युवक भी बारबार उसी पर नजर टिका देता. जब उन की निगाहें आपस में मिल जातीं तो दोनों के होंठों पर मुसकराहट तैरने लगती.

उसी समय बस आ गई और विनीता अपने पिता के साथ बस में बैठ गई. वह पिता के साथ बस में बैठ जरूर गई थी, पर पूरे रास्ते उस की आंखों के सामने उस युवक का चेहरा ही घूमता रहा. विनीता उस युवक के बारे में पता कर के उस से संपर्क करने का मन बना चुकी थी.

अगले ही दिन सहेली के यहां जाने का बहाना बना कर विनीता आंवला के लिए निकल गई. बसअड्डे पर खड़े हो कर उस की आंखें उसे तलाशने लगीं. कुछ ही देर में वह युवक विनीता को दिख गया. पर उस युवक ने विनीता को नहीं देखा था.

विनीता उस पर नजर रख कर उस का पीछा कर के उस के बारे में जानने की कोशिश में लग गई. कुछ देर में ही उस ने उस युवक के बारे में किसी से जानकारी हासिल कर उस का नाम व मोबाइल नंबर पता कर लिया. उस युवक का नाम हरि था और वह अपने परिवार के साथ आंवला में ही रहता था.

एक दिन हरि सुबह के समय अपनी छत पर बैठा था, तभी उस का मोबाइल बज उठा. हरि ने स्क्रीन पर बिना नंबर देखे ही काल रिसीव करते हुए हैलो बोला.

‘‘जी, आप कौन बोल रहे हैं?’’ दूसरी ओर से किसी युवती की मधुर आवाज सुनाई दी तो हरि चौंक पड़ा.

वह बोला, ‘‘आप कौन बोल रही हैं और आप को किस से बात करनी है?’’

‘‘मैं विनीता बोल रही हूं. मुझे अपनी दोस्त से बात करनी थी, लेकिन लगता है नंबर गलत डायल हो गया.’’

‘‘कोई बात नहीं, आप को अपनी दोस्त का नंबर सेव कर के रखना चाहिए. ऐसा होगा तो दोबारा गलती नहीं होगी.’’

‘‘आप पुलिस में हैं क्या?’’

‘‘जी नहीं, आम आदमी हूं.’’

‘‘किसी के लिए तो खास होंगे?’’

‘‘आप बहुत बातें करती हैं.’’

‘‘अच्छी या बुरी?’’

‘‘अच्छी.’’

‘‘क्या अच्छा है, मेरी बातों में?’’

अब हंसने की बारी थी हरि की. वह जोर से हंसा, फिर बोला, ‘‘माफ करना, मैं आप से नहीं जीत सकता.’’

‘‘और मैं माफ न करूं तो?’’

‘‘तो आप ही बताइए, मैं क्या करूं?’’ हरि ने हथियार डाल दिए.

‘‘अच्छा जाओ, माफ किया.’’

दरअसल विनीता को हरि का मोबाइल नंबर तो मिल गया था. लेकिन विनीता के पास खुद का मोबाइल नहीं था, इसलिए उस ने अपनी सहेली का मोबाइल फोन ले कर बात की थी. पहली ही बातचीत में दोनों काफी घुलमिल गए थे. दोनों के बीच कुछ ऐसी बातें हुईं कि दोनों एकदूसरे के प्रति अपनापन महसूस करने लगे.

फिर उन के बीच बराबर बातें होने लगीं.  विनीता ने हरि को बता दिया था कि उस दिन अनजाने में उस के पास काल नहीं लगी थी बल्कि उस ने खुद उस का नंबर हासिल कर के उसे काल की थी और उन की मुलाकात भी हो चुकी है.

जब हरि ने मुलाकात के बारे में पूछा तो विनीता ने आंवला बसअड्डे पर हुई मुलाकात का जिक्र कर दिया. हरि यह जान कर बहुत खुश हुआ क्योंकि उस दिन विनीता का खूबसूरत चेहरा आंखों के जरिए उस के दिल में उतर गया था.

इस के बाद दोनों एकदूसरे से रूबरू मिलने लगे. इसी बीच एक मुलाकात में दोनों ने अपने प्यार का इजहार भी कर दिया. दिनप्रतिदिन उन का प्यार प्रगाढ़ होता जा रहा था. विनीता तो दीवानगी की हद तक दिल की गहराइयों से हरि को चाहने लगी थी.

धीरेधीरे उन का प्यार परवान चढ़ने लगा. प्रेम दीवानों के प्यार की खुशबू जब जमाने को लगती है तो वह उन दीवानों पर तरहतरह की बंदिशें लगाने लगता है. यही विनीता के परिजनों ने किया. विनीता के घर वालों को पता चल गया कि वह जिस लड़के से मिलती है, वह बदमाश टाइप का है.

इसलिए उन्होंने विनीता पर प्रतिबंध लगाने शुरू कर दिए. लेकिन तमाम बंदिशों के बाद भी विनीता हरि से मिलने का मौका निकाल ही लेती थी.

धीरेधीरे दोनों के इश्क के चर्चे गांव में होने लगे. गांव के लोगों ने कई बार विनीता को हरि के साथ देखा. इस पर वह तरहतरह की बातें बनाने लगे. गांव वालों के बीच विनीता के इश्क के चर्चे होने लगे. इस से छोटेलाल की गांव में बदनामी हो रही थी.

घरपरिवार के सभी लोगों ने विनीता को खूब समझाया लेकिन प्यार में आकंठ डूबी विनीता पर इस का कोई असर नहीं हुआ. पूरा परिवार गांव में हो रही बदनामी से परेशान था. रोज घर में कलह होती लेकिन हो कुछ नहीं पाता था.

29 सितंबर की सुबह करीब 8 बजे विनीता अपनी भाभी नन्ही देवी के साथ दिशामैदान के लिए खेतों की तरफ गई थी. कुछ समय बाद नन्ही देवी घर लौटी तो विनीता उस के साथ नहीं थी. घर वालों ने उस से विनीता के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि जब वह दिशामैदान के बाद बाजरे के खेत से बाहर निकली तो उसे विनीता नहीं दिखी.

उस ने सोचा कि विनीता शायद अकेली घर चली गई होगी. लेकिन यहां आ कर पता चला कि वह यहां पहुंची ही नहीं है. नन्ही ने कहा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि विनीता अपनी किसी सहेली के यहां चली गई हो.

कुछ ही देर में गांव के एक किसान चंद्रपाल ने विनीता के घर पहुंच कर बताया कि रामानंद शर्मा के बाजरे के खेत में विनीता की लाश पड़ी है. उस समय छोटेलाल पत्नी के साथ डाक्टर के पास दवा लेने गए थे. छोटेलाल के धान के खेत के बराबर में ही रामानंद का बाजरे का खेत था.

यह खबर सुन कर सभी घर वाले लगभग दौड़ते हुए घटनास्थल पर पहुंचे. विनीता की लाश देख कर सब बिलखबिलख कर रोने लगे. इसी बीच वहां गांव के काफी लोग पहुंच गए थे. ग्रामप्रधान भी मौके पर थे. उन्होंने घटना की सूचना स्थानीय थाना अलीगंज को दे दी.

सूचना मिलते ही थानाप्रभारी विशाल प्रताप सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. विनीता के पेट में गोली लगने के निशान थे. निशान देख कर ऐसा लग रहा था कि किसी ने काफी नजदीक से गोली मारी है. इस का मतलब था कि हत्यारे को विनीता काफी अच्छी तरह से जानती थी. इसी बीच रोतेबिलखते छोटेलाल और उन की पत्नी भी वहां पहुंच गए.

थानाप्रभारी विशाल प्रताप सिंह ने नन्ही और बाकी घर वालों से आवश्यक पूछताछ की. फिर विनीता की लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी.

थाने वापस आ कर उन्होंने छोटेलाल कश्यप की लिखित तहरीर पर गांव के ही इंद्रपाल, हरपाल, उमाशंकर और धनपाल के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. तहरीर में हत्या का कारण इन लोगों से रंजिश बताया गया था.

थानाप्रभारी सिंह ने केस की जांच शुरू की तो पता चला कि विनीता का भाई तालेवर अपने मकान के पीछे रहने वाली युवती से दुष्कर्म के मामले में 2014 से जेल में बंद है. पुलिस को पता चला कि जिस युवती ने रेप का आरोप लगाया था, छोटेलाल ने उस युवती के पिता को भी विनीता की हत्या में आरोपी बनाया गया था.

साथ ही विनीता के किसी हरि नाम के युवक से प्रेम संबंध की बात पता चली. बेटी की इस हरकत से घर वाले काफी परेशान थे. इस से पुलिस का शक विनीता के परिवार पर केंद्रित हो गया.

थानाप्रभारी ने सोचा कि कहीं एक तीर से दो शिकार करने की कोशिश तो नहीं की गई. विनीता से छुटकारा तो मिलता ही साथ ही तालेवर को जेल भेजने वाले को भी जेल की चारदीवारी में कैद कराने में सफल हो जाते.

पूरी घटना की जांच में यही निष्कर्ष निकला कि परिवार का ही कोई सदस्य इस घटना में शामिल है. लेकिन मांबाप तो थे नहीं, उन का बेटा नरेश गांव में नहीं था. बची बेटे की पत्नी नन्ही जो विनीता के साथ ही गई थी और अकेली वापस लौटी थी. नन्ही पर ही हत्या का शक गहराया. थानाप्रभारी ने गांव के लोगों से पूछताछ की तो ऐसे में एक व्यक्ति ऐसा मिल गया, जिस ने ऐसा कुछ बताया कि थानप्रभारी की आंखों में चमक आ गई.

इस के बाद 2 अक्तूबर को उन्होंने नन्ही देवी को घर से पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. जब महिला आरक्षी की उपस्थिति में नन्ही से सख्ती से पूछताछ की गई तो वह टूट गई. उस ने विनीता की हत्या अपने नाबालिग बेटे शिवम के साथ मिल कर किए जाने की बात स्वीकार कर ली और पूरी कहानी बयान कर दी.

विनीता के हरि नाम के युवक से प्रेम संबंध की बात से घर का हर कोई नाराज था. समझाने के बावजूद भी विनीता नहीं मान रही थी. गांव में हो रही बदनामी से घर वालों का जीना मुहाल हो गया था.

नन्ही अपनी ननद विनीता की कारगुजारियों से कुछ ज्यादा ही खफा थी. वह अपने परिवार को बदनामी से बचाना चाहती थी. इसलिए उस ने विनीता की हत्या अपने नाबालिग बेटे शिवम से कराने का फैसला कर लिया.

इस हत्या में उस इंसान को भी फंसा कर  जेल भेजने की योजना बना ली, जिस की बेटी से दुष्कर्म के मामले में उस का देवर तालेवर जेल में बंद था. उस इंसान के जेल जाने पर उस से समझौते का दबाव बना कर वह देवर तालेवर को जेल से छुड़ा सकती थी. घर में एक .315 बोर का तमंचा पहले से ही रखा हुआ था. नन्ही ने शिवम के साथ मिल कर विनीता की हत्या की पूरी योजना बना ली.

29 सितंबर की सुबह 8 बजे नन्ही ने बेटे शिवम को तमंचा ले कर घर से पहले ही भेज दिया. फिर विनीता को साथ ले कर दिशामैदान के लिए खुद घर से निकल पड़ी. विनीता को ले कर नन्ही अपने धान के खेत के बराबर में बाजरे के खेत में पहुंची. शिवम वहां पहले से मौजूद था.

विनीता के वहां पहुंचने पर शिवम ने तमंचे से विनीता पर फायर कर दिया. गोली सीधे विनीता के पेट में जा कर लगी. विनीता जमीन पर गिर कर कुछ देर तड़पी, फिर शांत हो गई.

विनीता की लीला समाप्त करने के बाद शिवम ने अपने धान के खेत में तमंचा छिपाया और वहां से छिपते हुए निकल गया. नन्ही भी वहां से घर लौट गई. लेकिन पुलिस के शिकंजे से वह न अपने आप को बचा सकी और न ही अपने बेटे को.

थानाप्रभारी विशाल प्रताप सिंह ने नन्ही को मुकदमे में 120बी का अभियुक्त बना दिया. शिवम की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त तमंचा भी पुलिस ने बरामद कर लिया.

आवश्यक लिखापढ़ी के बाद नन्ही को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया, और शिवम को बाल सुधार गृह.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में शिवम नाम परिवर्तित है.

– फोटो काल्पनिक है. घटना से संबंधित नहीं है.

17 टुकडें कर ली जान, साऊदी से इंडिया लौटे प्रेमी को मिला मौत का तोहफा

26 वर्षीय मोहम्मद वसीम अंसारी अपनी 17 वर्षीया गर्लफ्रेंड नरगिस से मिलने के लिए बेताब था. उस से मिलने की खातिर वह सऊदी अरब से इंडिया आया. यहां उस की 17 टुकड़ों में कटी लाश पुलिस ने बरामद की. आखिर किस ने और क्यों की वसीम अंसारी की हत्या?

पहली नजर में दिल दे बैठा वसीम

वसीम और नरगिस की मुलाकात करीब 2 साल पहले बिलासपुर से रांची जाते हुए ट्रेन में हुई थी. वसीम अपनी एक रिश्तेदारी में बिलासपुर आया था. वहां से लौटते हुए ट्रेन की भीड़भाड़ वाले कोच में जिस सीट पर वह बैठा था, उस के सामने ही एक गोरीचिट्टी कमसिन लड़की बैठी थी. लड़की अपनी मां के साथ थी. वसीम की निगाह उस पर से हट नहीं रही थी. हालांकि उस की मां से नजरें बचा कर वसीम लड़की को बीचबीच में गहरी निगाह से घूर लेता था.

वसीम अकेला था. यह कहें कि वसीम की निगाह लड़की के चेहरे से हट नहीं पा रही थी. थोड़ी ही देर बाद लड़की मां से बोली, ”मुझे प्यास लग रही है.’’  उन के पास पानी नहीं था. इस कारण उस की मां इधरउधर देखने लगी. वसीम ने अपने बैग से पानी की बोतल निकाली और आगे बढ़ा दी. लड़की ने बोतल को थाम लिया. पानी पीने के बाद बोतल वापस करती हुई मुसकरा कर बोली, ‘थैंक यू!

इस पर वसीम ने सिर हिलाते हुए उस की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ”कोई बात नहीं, पानी ही तो है.’’ लड़की की मां भी झेंपती हुई लड़की से बोली, ”पानी वाला आएगा, तब एक बोतल खरीद लेना.’’ ”अम्मा, ट्रेन में पानी वाला नहीं आएगा, अगले स्टेशन से लेना होगा. कोई बात नहीं, मैं जा कर ला दूंगा.’’ ”हांहां…’’ लड़की बीच में ही बोल पड़ी. इस तरह से वसीम और उस लड़की के बीच बातचीत भी शुरू हो गई.

वसीम ने बातों ही बातों में उस से पूछ लिया, ”क्या नाम है आप का? पढ़ती हो?’’ ”मैं नरगिस सुलतान हूं. पढ़ाईलिखाई छूट गई है.’’ ”नरगिस सुलतान. वाह! कितना प्यारा नाम है. मगर पढ़ाई छूट गई, यह तो गलत बात हुई. अभी तो तुम्हारी उम्र ही क्या है? भला क्यों छूटी पढ़ाई?’’ इस पर नरगिस चुप हो गई, लेकिन उस की मां सकुचाती हुई बोली, ”घर में गमी हो गई थी बेटा, इस के बाद सब कुछ तहसनहस हो गया था…’’ यह कहतेकहते वह अपनी आंखें पोंछने लगी.

”ओह..! सौरी अम्मीजान, मैं ने आप का दिल दुखा दिया.’’ वसीम बोला. थोड़ी देर उन के बीच चुप्पी बनी रही. वसीम गाड़ी के बाहर भागते पेड़ों और खेतों को देखने लगा. नरगिस भी दूसरी खिड़की से बाहर देखने लगी थी. उसी ने चुप्पी तोड़ी. अनायास बोल पड़ी, ”अम्मी, देखो तो बाहर कितनी अच्छी हवा बह रही है.’’ ”हां, बिलकुल सही कह रही हो. मौसम सुहावना बना हुआ है.’’ 

वसीम ने हां में हां मिलाई. उस के बाद उन के बीच फिर से बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया. इस बार वे दूसरी बातें करने लगे. तुम क्या करते हो बेटा, काफी पढ़ेलिखे मालूम देते हो!’’ नरगिस की अम्मी बोली. ज्यादा नहीं.’’ वसीम बोला. काम क्या करते हो?’’ नरगिस ने पूछा. मैं बहुत जल्द सऊदी अरब जाने वाला हूं, वहीं नौकरी करूंगा. मुझे खूब रुपएपैसे कमाने हैं.’’ वसीम बोला. इस पर नरगिस आश्चर्य से वसीम को देखने लगी. मजाकिया लहजे में नरगिस बोल पड़ी, ”मेरे लिए भी वहां कोई काम मिल सकता है क्या?’’

क्यों नहीं?…वहां तो हर किसी के लिए कुछ न कुछ काम होता है.’’ वसीम बोला. अच्छा… मुझ जैसी अनपढ़ को भी!’’ नरगिस की आंखें आश्चर्य से फैल गईं. बातोंबातों में वसीम और नरगिस ने अपने मोबाइल नंबर एकदूसरे को दे दिए. कुछ घंटे बाद दोनों अपनेअपने स्टेशनों पर उतर गए. वसीम और नरगिस अलगअलग शहरों में रहते हुए एकदूसरे से मोबाइल के जरिए जुड़े हुए थे. वसीम रांची का रहने वाला था, जबकि नरगिस बिलासपुर की थी.  एक बार उस ने नरगिस को बताया कि वह सऊदी जा चुका है. उसे बहुत सारा पैसा कमाना है. 

जब नरगिस के पाई कौल 

सऊदी अरब से कोरबा के पाली गांव की रहने वाली नरगिस के पास एक काल आई, ”हैलो…हैलो नरगिस, मैं वसीम बोल रहा हूं. कैसी हो?’’ काल का जवाब नरगिस शिकायती लहजे में देते हुए बोली, ”मैं कैसी हूं, यह पूछ रहे हो? बस, समझो जिंदा हूं.’’

”ऐसा क्यों कह रही हो नरगिस?’’ आश्चर्य से वसीम बोला. नरगिस कुछ नहीं बोली. वसीम ही दोबारा बोला, ”ऐसा मत कहो.’’ नरगिस का जवाब फिर शिकायत के साथ नाराजगी भरा था, ”इतने दिनों बाद तुम्हें मेरी याद आ रही है. मैं तो हमेशा तुम्हें याद करती हूं तुम्हें… नंबर भी दिया था, मगर?’’ बात पूरी किए बगैर चुप हो गई. इस पर वसीम ने कहा, ”नाराज मत हो नरगिस, जिस दिन से यहां आया हूं, सच कहो तो मैं तुम्हें कभी भूल नहीं पाया. यहां दम्मन, सऊदी अरब में इतना काम है कि मत पूछो…’’  वसीम मानो हाथ जोड़ कर के मनुहार कर रहा हो.

अच्छा, वहां काम में ही मन लगा रहता है, यह बात है. सिर्फ काम और पैसा ही तुम कमाते रहो और मैं तुम से बात भी नहीं करूं.’’  इतराती हुए नरगिस बोली. अरे, ऐसा नहीं है यार! मैं तो 24 घंटे तुम्हें याद करता रहता हूं. तुम्हारी सूरत मेरी आंखों के सामने घूमती रहती है. मैं संकोच में था कि फोन तुम उठाओगी या नहीं. हमें भूल तो नहीं गई होगी?’’ वसीम सहजता से बोला.

अच्छा! सीधा कहो न कि रुपयों से प्यार है, जो इतना दूर चले गए हो. तुम से तो प्यार करना फिजूल है.’’ नरगिस का ताना मारना वसीम पर असर कर गया.  वह बोला, ”अच्छा, मैं बहुत जल्दी तुम से मिलने आ रहा हूं… बस कुछ और रुपए और जोड़ लूं!’’ रुपए जोडऩा तो अच्छी बात है, तुम मेरे लिए क्या लाओगे?’’ नरगिस उस से जानना चाहती थी. अरे नरगिस, मैं आ रहा हूं यह क्या कम है. …और रुपएपैसे की क्या बात है. यहां जो मैं कमाता हूं वो घर भी भेज देता हूं. तुम्हारे लिए मैं ऐसी चीज लाऊंगा कि तुम खुश हो जाओगी! …और हां, अभी एक गिफ्ट मैं यहां से तुम्हें भेज रहा हूं. अब तो खुश हो जाओ.’’

यह सुन कर के नरगिस बड़ी खुशी से बोली, ”देखो, कोई अच्छी सी गिफ्ट भेजना, नहीं तो मैं वापस भेज दूंगी वहीं, सऊदी अरब.’’ वसीम और नरगिस के बीच होने वाली ये बातें कोई पहली बार नहीं हो रही थीं. वे अकसर काफी देर तक रोजाना मोबाइल पर बात करते थे. एक दिन भी इस में चूक होने पर नरगिस शिकायती लहजे में ताना भी मार देती थी. तब वसीम माफी मांगता और फिर दोनों फोन पर ही जीनेमरने की कसमें खाने लगते. एक दिन फेसबुक लाइव में बातों ही बातों में नरगिस बोली, ”वसीम, तुम्हारी बहुत याद आ रही है.’’

इसी के साथ उस ने अपने बदन को अधखुला कर दिया. इस का असर वसीम पर भी हुआ…और देखते ही देखते दोनों बेपरदा हो गए. एकदूसरे को देख शर्मसार भी हुए…

हजारों किलोमीटर की दूरी से इस अनुभूति का दोनों ने वीडियो कालिंग को थैंक्स बोला. छूटते ही वसीम ने नरगिस को फेसबुक, इंस्टाग्राम के लिए रील बनाने की सलाह दे डाली.

वसीम ने गर्लफ्रेंड को दी खुशखबरी

बात 26 जून, 2024 की है. शाम के वक्त नरगिस के मोबाइल पर वसीम की काल आई, ”रेहाना, मैं अगले महीने 2 जुलाई को आ रहा हूं.’’ सच विश्वास नहीं हो रहा, लेकिन तुम कहां आओगे? मेरे पास ही न!’’ हां, मैं रांची प्लेन से आ रहा हूं, उस के बाद सीधा तुम्हारे पास आ जाऊंगा, तुम मिलोगी न!’’ कैसी बात करते हो, तुम इतनी दूर से आ रहे हो और मैं भला नहीं मिलूंगी. तुम ने मेरे लिए इतने सारे गिफ्ट भेजे हैं, साडिय़ां भेजी हैं… क्या मैं तुम्हें भूल सकती हूं. लेकिन यह तो बताओ कि तुम अब वहां से मेरे लिए क्या बेशकीमती चीज ला रहे हो?’’ नरगिस मचलती हुई बोली.

कुछ सेकेंड तक वसीम चुप रहा, फिर धीरे से बोला, ”तुम दिल छोटा न करो… सऊदी अरब से आ रहा हूं, कुछ अच्छा ही लाऊंगा तुम्हारे लिए. तुम्हें तो मालूम है कि यहां पैसा ही पैसा है. हवा में उड़ता है पैसा, कोई पकडऩे वाला होना चाहिए. मैं यहां पैसे कमाने ही तो आया हूं और तुम्हारी दुआ से मैं यहां बहुत खुश हूं, मगर तुम्हारे प्यार के कारण आ रहा हूं.’’ इस के बाद वसीम ने अपने घरपरिवार के बारे में बातें कीं. बातों ही बातों में उस ने बताया कि उस के परिवार वाले उस के निकाह की तैयारी कर रहे हैं. लड़की तलाश रहे हैं. यह सुन कर नरगिस रुआंसी हो गई.

वसीम ने बताया कि वह पहले उस से मिलने के लिए आ रहा है, उस के बाद ही वह अपने घर रांची, झारखंड जाएगा. इस पर नरगिस सुलतान ने कहा, ”ठीक है, जैसे ही रांची से रवाना होना, मुझे बताना. मैं बिलासपुर आ जाऊंगी.  और फिर हम वहां से चैतमा आ जाएंगे.’’ 2 जुलाई, 2024 नरगिस को वसीम ने फोन किया, ”रेहाना, मैं इंडिया आ चुका हूं और शाम तक रांची हमारा प्लेन लैंड करने वाला है.’’

यह सुन कर के नरगिस बहुत खुश हो गई. वसीम भी नरगिस से मिलने की बात सोच कर बहुत ही प्रसन्न था. नरगिस ने भी कह दिया, ”मैं बिलासपुर आ रही हूं और वहां से हम लोग आगे का प्लान बना लेंगे.’’  वसीम ने संशय से कहा, ”तुम फिजूल ही क्यों आ रही हो, मैं गाड़ी ले कर के तुम से मिलने आ जाऊंगा.’’ ”अरे नहीं, मेरे एक मुंहबोले भाई हैं न बादशाह, उन के पास गाड़ी है. घूमतेफिरते आ जाएंगे. रांची से सिर्फ 50 किलोमीटर ही तो है बिलासपुर.’’

”तब ठीक है. मैं शाम को 3 बजे के आसपास बिलासपुर पहुंच जाऊंगा. तुम्हारा इंतजार रहेगा. नरगिस, तुम से मिलने के लिए मैं कितना बेताब हूं, इस का तुम्हें शायद अंदाजा नहीं है… कब होगी मुलाकात और कब मैं तुम्हें अपनी बांहों में भरूंगा. हरदम इसी कल्पना में खोया रहता हूं.’’ ”अच्छा, अब मैं फोन रखती हूं.’’ इठलाते हुए नरगिस ने काल डिसकनेक्ट कर दी.

17 टुकड़ों में मिली लाश

बुधवार के दिन 10 जुलाई, 2024 को छत्तीसगढ़ के जिला कोरबा के थाना पाली में किसी ने फोन कर के सूचना दी कि गोपालपुर डैम के पास एक पिट्ठू बैग में कोई संदिग्ध चीज है. बैग के ऊपर मक्खियां भिनभिना रही हैं और तेज बदबू फैल रही है. यह सूचना मिलते ही एसएचओ चमन लाल सिन्हा कुछ पुलिसकर्मियों को ले कर गोपालपुर डैम के पास पहुंच गए. उन्होंने जब वह बैग खुलवाया तो किसी युवक की टुकड़ों में कटी लाश निकली. उस का सिर और कुछ अंग गायब थे. 

पुलिस की प्रारंभिक जांच में पाया गया कि बरामद लाश को धारदार हथियार से टुकड़ों में काटा गया था. एसएचओ ने यह जानकारी कोरबा के एसपी सिद्धार्थ तिवारी के साथसाथ कोटघरा शहर की एडिशनल एसपी नेहा वर्मा और एसडीओपी पंकज ठाकुर को भी दे दी गई. एफएसएल यूनिट प्रभारी सत्यजीत कोसरिया और थाना पाली, चौकी चैतमा सहित साइबर टीम को सूचना दे दी गई. एसपी के निर्देश पर उपरोक्त अधिकारियों की टीम मौके पर गई. वहां की गई सूक्ष्म जांच के सिलसिले में गोताखोरों ने डैम में दोपहर तक मृतक का सिर व अन्य लापता अंगों से भरी एक बोरी तलाश ली. बरामद बैग में लाश के टुकड़ों के साथ एक आधार कार्ड, पासपोर्ट एवं एक फ्लाइट टिकट भी मिली.

उन दस्तावेजों की जांच के आधार पर मृतक की पहचान मोहम्मद वसीम अंसारी पुत्र मोहम्मद जमीर अंसारी के रूप में हुई. उस की उम्र 26 साल थी और वह कांता तोला, रांची, झारखंड का निवासी था. वहीं से उस के भाई का फोन नंबर भी मिल गया. पुलिस ने उन के बड़े भाई मोहम्मद तहसीन से फोन पर बात की. उन्हें घटना की जानकारी दे कर कोरबा बुलाया गया. फोन पर ही तहसीन ने बताया कि उस का भाई मोहम्मद वसीम पिछले 2 सालों से सऊदी अरब में सुरक्षा अधिकारी की नौकरी कर रहा था. वह वहां से कब आया, इस की उसे कोई जानकारी नहीं है.

वसीम की नृशंस तरीके से की गई हत्या कोरबा से ले कर रांची तक में चर्चा का विषय बन गई. आम और खास लोग यह जानने को उत्सुक थे कि आखिर किस ने और क्यों इस तरह मासूम नौजवान वसीम अंसारी को मार डाला? उस से किस की क्या दुश्मनी थी, जो उस के सऊदी से लौटते ही हत्या हो गई? क्या कोई पहले से ही घात लगाए बैठा था?

लोग तरहतरह की चर्चाएं कर रहे थे. इधर समय बीता जा रहा था. चौतरफा सनसनी बढ़ती जा रही थी. पुलिस जांच टीम तत्परता से बड़ी सतर्कता के साथ काम कर रही थी.  कड़ी से कड़ी जोड़ते हुए पुलिस जांच को आगे बढ़ा रही थी. जुड़े पहलुओं की जांच पर यह तथ्य उजागर हुआ कि मृतक की सोशल मीडिया के माध्यम से बांसटाल चैतमा, थाना पाली की एक अवयस्क बालिका नरगिस से कई बार बातचीत हुई है. उन के बीच बातचीत इंटरनैशनल वीडियो काल, वाट्सऐप काल से हुई थी. बरामद मोबाइल में संयोग से उन दोनों की बातचीत के रिकार्डिंग क्लिप्स भी थे.

क्यों की गई वसीम की हत्या

पुलिस ने जब नरगिस के बारे में खोजबीन की, तब वह अपने घर से गायब मिली. उस के बारे में यह भी पता चला कि वह अपने किसी राजा खान उर्फ बादशाह नाम के प्रेमी के साथ फरार है. पुलिस नरगिस के साथसाथ राजा खान की भी तलाश करने लगी. जल्द उन का पता चल गया. वे ओडिशा के राउरकेला में एक होटल से पकड़े गए. उन्हें कोरबा ला कर पूछताछ शुरू की गई. नरगिस सुलतान के चेहरे से मासूमियत झलक रही थी, जो शायद कमसिन उम्र का तकाजा था. चेहरे की ताजगी बता रही थी कि वह बेकुसूर है. वह डरीसहमी थी. उस ने वसीम के साथ किसी तरह की जानपहचान होने से साफसाफ इनकार कर दिया. बड़े सामान्य ढंग से उस ने पुलिस को बताया कि वह मोहम्मद वसीम नाम के किसी व्यक्ति से मिली ही नहीं है.

मगर पुलिस के पास उस की और वसीम की बातचीत के सबूत थे. पुलिस जांच टीम के एक सदस्य ने सख्ती के साथ पूछताछ की और मोबाइल ट्रेस की जानकारी सामने रखी तो वह टूट गई. इस के बाद उस ने जो घटनाक्रम बयान किया, उस से वसीम की हत्या की तसवीर भी सामने आ गई.  महज 17 साल की नरगिस ने बताया कि वह राजा से मोहब्बत करती है और अपने परिवार को छोड़ चुकी है. दोनों साथ रहते हैं. इसी के साथ उस ने बताया कि उस ने पैसों के लालच में प्रेमी के साथ मिल कर वसीम की हत्या की.

नरगिस के इस बयान के बाद पुलिस ने राजा खान के खिलाफ भी रिपोर्ट दर्ज कर ली. आरोपी राजा खान उर्फ बादशाह 20 साल का नवयुवक था. वह बांसटाल चैतमा थाना पाली, जिला कोरबा का निवासी है. उस ने पुलिस से नरगिस के बारे में जो भी बातें बताईं, उस से यह साबित हो गया था कि वह और नरगिस एकदूसरे को बेइंतहा चाहते हैं.  दोनों अपनी मरजी से साथसाथ रह रहे थे. उस ने यह भी बताया कि नरगिस से उसे वसीम के बारे में जानकारी मिली थी और उस के कहने पर ही उस की योजना में शामिल हो गया था.

राजा खान ने बताया कि नरगिस ने उसे  मोहम्मद वसीम के सऊदी अरब से वापस आने की जानकारी दी थी. नरगिस ने उसे यह भी बताया था कि वसीम उस के रूपजाल पर लट्टू है और उसे दिलोजान से चाहता है. उस ने 2 सालों के भीतर सऊदी में रह कर बहुत पैसा कमाया है. उन पैसों को वह साथ ले कर आने वाला है. इसी लालच में उस ने वसीम को अपने जाल में फंसा लिया था. नरगिस उस से प्रेम का दिखावा करती थी.

नरगिस के कहने पर ही राजा खान ने बोलेरो गाड़ी किराए पर ली थी. उस पर सवार हो दोनों बिलासपुर गए थे. वसीम से मिलने पर नरगिस ने राजा का परिचय मुंहबोले भाई के रूप में दिया था. उस के बाद वे तीनों राजा के घर चैतमा आ गए. उस रोज मोहम्मद वसीम बहुत खुश था. राजा ने बताया कि वसीम ने बातों ही बातों में उस से कहा था कि उस की जिंदगी का खुशनुमा दिन आया है. उस ने यह भी कह डाला कि नरगिस से वह बेइंतहा मोहब्बत करता है. आज की रात वह उस के साथ गुजारेगा. उस वक्त घर में राजा और नरगिस के अलावा कोई नहीं था. नरगिस भी खुश नजर आ रही थी. वसीम ने आते ही उसे एक अच्छा गिफ्ट का पैकेट पकड़ा दिया था. इस पर नरगिस बोली थी, ”मैं आज तुम लोगों के लिए खाने में चिकन बना देती हूं.’’

इस तरह से की गई वसीम की हत्या

थोड़ी देर बाद रात होने पर सभी ने एक साथ खाना खाया था. उस के बाद राजा खान बाहर चला गया. नरगिस ने वसीम को बताया कि राजा अपने दोस्त के घर गया है, सुबह आएगा. वसीम यह सुन कर खुश हो गया. उसे नरगिस के साथ एकांत में रात गुजारने का मौका मिल गया था. दोनों खुशी से बातें करने में मशगूल हो गए. तभी पीछे के दरवाजे से राजा खान अचानक घर में आ घुसा. वसीम नरगिस से बातें करते हुए उस के काफी करीब आ चुका था.

नरगिस को वह अपनी बांहों में कसना ही चाहता था कि राजा खान ने मुरगी काटने वाले छुरे से वसीम अंसारी की गरदन पर पीछे से वार कर दिया. अचानक हुए वार से वसीम तिलमिला गया. वह बुरी तरह जख्मी हो गया और तड़पता हुआ कभी नरगिस को तो कभी राजा खान को देखने लगा. उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि उस के साथ यह क्या हो रहा है? हंसते हुए राजा खान बोला, ”तुम नरगिस को चाहते हो, मेरी नरगिस को, हाहाहा… नरगिस सिर्फ मेरी है. नरगिस, बताओ इस बेवकूफ को जो तुम्हें पाने के लिए यहां आ गया है.’’

राजा की बातों में हां में हां मिलाते हुई बोली, ”तुम्हारा सारा पैसा अब हमारा होगा, हम दोनों जिंदगी भर ऐश करेंगे. हाहाहा.’’  नरगिस की इस हरकत पर वसीम तड़पता हुआ बोला, ”धोखा! मेरे साथ धोखा कर रही हो, ठीक नहीं होगा.’’ यह सुनना था कि राजा ने वसीम पर छुरे से लगातार 3-4 ताबड़तोड़ वार कर दिए. नरगिस ने तड़पते वसीम के पैर दबोच लिए थे. राजा खान ने ताबड़तोड़ वार कर उस का सिर धड़ से अलग कर दिया.  उस के बाद दोनों ने मिल कर वसीम के हाथों और पैरों को धड़ से अलग कर दिया. शव को 17 टुकड़ों में काट डाला. इस के लिए राजा ने पहले से ही छुरे के अलावा आरी ब्लेड ला कर घर में छिपा कर रख दिया था. वसीम की लाश के कटे टुकड़ों को उन्होंने प्लास्टिक की बोरी में भर लिया.

नरगिस और राजा ने बोरी को पिट्ठू बैग और एक ट्रौली बैग में बांध कर बाइक पर रख डैम में फेंकने की योजना बनाई. यह सब करतेकरते सवेरा हो गया था. शव के कुछ टुकड़े बच गए थे. वो उन्होंने घर के फ्रिज में छिपा कर रख दिए. अगले रोज 3 जुलाई, 2024 की रात में करीब लगभग 11 बजे स्पलेंडर बाइक से गोपालपुर डैम में फेंक कर दोनों घर वापस आ गए. वसीम की पहनी हुई सोने की चेन और अन्य सामान घर में छिपा दिया. 

नरगिस ने बातोंबातों में वसीम के मोबाइल का पासवर्ड पता कर लिया था. मोबाइल से यूपीआई आईडी चैक किया तो दोनों के होश उड़ गए. कारण, उन्होंने सोचा था कि सऊदी अरब में नौकरी करने के कारण कम से कम 50 लाख रुपए तो उस के एकाउंट में होंगे ही. मगर मिले सिर्फ 3 लाख रुपए. यह देख कर दोनों निराश हो गए. कुछ पैसे ही अपने खातों में ट्रांसफर कर पाए. आरोपी नरगिस सुलतान और राजा खान उर्फ बादशाह को पूछताछ करने के बाद पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. उन की निशानदेही पर घटना में इस्तेमाल छुरा, बाइक आदि सामान जब्त कर लिया गया. 

राजा खान को 12 जुलाई, 2024 को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश कर दूसरी आरोपी नरगिस सुलतान को नाबालिग होने के कारण किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष पेश किया गया, जहां से उसे बालसुधार गृह भेज दिया गया. उक्त अपराध का खुलासा करने वाले एसपी (सिटी) दर्री नगर रविंद्र कुमार मीना के मार्गदर्शन में एसएचओ (पाली) चमन लाल सिन्हा, चौकीप्रभारी चैतमा चंद्रपाल खांडे, विमलेश भगत, एसआई पुरुषोत्तम उइके, कांस्टेबल अनिल कुर्रे, आशीष साहू तथा साइबर टीम के हैडकांस्टेबल राजेश कंवर, चंद्रशेखर पांडेय, आर. रवि चौबे, डेमन ओग्रे, बिरकेश्वर प्रताप सिंह, आलोक टोप्पो, सुशील यादव, लेडी कांस्टेबल सुषमा डहरिया एवं चौकी चैतमा के इंचार्ज की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में नरगिस परिवर्तित नाम है.

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