औलाद की खातिर : भाग 1

35 वर्षीय शिवकुमार सिंह उत्तर प्रदेश के जिला सुलतानपुर के गांव लखनेपुर का निवासी था. उस के पिता उदयभान सिंह खेतीबाड़ी का काम करते थे. शिवकुमार के 3 भाई थे. एक बड़ा राजकुमार और 2 छोटे नरेश और देवकुमार. राजकुमार का विवाह हो चुका था, वह पिता के साथ खेती के काम में हाथ बंटाता था.

शिवकुमार का विवाह करीब 12 साल पहले उमा से हुआ था. बाद में वह 2 बेटियों की मां बनी.

उमा जब पहली बार गर्भवती हुई, तब उस की चाह बेटे की थी. यह चाहत दूसरी बार भी बनी रही. दोनों बार उमा को निराश होना पड़ा.

शिवकुमार को पता था कि बेटा न होने से उमा दुखी है. वह उसे समझाता भी था, लेकिन वह बेटा न होने के गम में घुलती रहती है. यह अलग बात है कि कई मायनों में बेटियां बेटों से लाख गुना बेहतर होती हैं.

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उमा के जी में तो आग लगी रहती कि सब के बेटे हुए, पर उसे नहीं हुआ. उस में ऐसी कौन सी कमी है, जो बेटी पर बेटी हो गई.

बच्चों के बड़े होने पर खर्च तो बढ़ा, लेकिन आमदनी उस हिसाब से नहीं बढ़ी. शिवकुमार बाहर जा कर काम करने की सोचने लगा. उस के गांव के कुछ लोग फरीदाबाद में काम करते थे. शिवकुमार ने उन से बात की तो दोस्तों ने काम पर लगवाने का वादा कर उसे फरीदाबाद बुला लिया. शिवकुमार पत्नी और बच्चों को छोड़ कर फरीदाबाद चला गया.

फरीदाबाद में एक फैक्ट्री में उस की नौकरी लग गई. वहां काम पर लगने के कुछ दिन बाद ही उस ने किराए पर कमरा ले लिया. रहने का सही ठिकाना हुआ तो वह गांव आ कर पत्नी उमा और दोनों बेटियों को अपने साथ फरीदाबाद ले गया. इस तरह उस की गृहस्थी की गाड़ी ठीकठाक चलने लगी.

शिवकुमार का छोटा भाई देवकुमार गांव में बेरोजगार घूमता था. उस ने कुछ दिनों बाद देवकुमार को भी फरीदाबाद बुला लिया. उस ने उसे भी काम पर लगवा दिया. दोनों भाई अच्छा कमाने लगे.

उमा के लिए फरीदाबाद अजनबी शहर था. वह दिन भर कमरे में ही रहती थी और कमरे में 2 ही इंसान थे, जिन से वह बात कर सकती थी, एक पति और दूसरा देवर.

पति से तो उमा सीमित बात करती लेकिन देवर देवकुमार से खूब गपशप करती थी. देवकुमार उमा से आयु में छोटा था और अविवाहित भी. वैसे भी देवरभाभी का रिश्ता होने के कारण उन में खूब पटती थी.

पहले तो उमा के प्रति देवकुमार की नीयत में खोट नहीं थी. लेकिन जब से उमा ने उस के सामने बेटा न होने का राग अलापना शुरू किया, तब से देवकुमार की नीयत डोलने लगी. भाभी की इसी कमजोरी का लाभ उठा कर देवर देवकुमार अपना उल्लू सीधा करने की सोचने लगा.

एक दिन काम से वापस आ कर देवकुमार जब उमा के पास बैठा तो उमा ने फिर अपने दुखड़े का पुलिंदा खोल दिया, ‘‘पता नहीं, मैं ने ऐसा कौन सा अपराध किया था, जिस का दंड बेटियों के तौर पर मुझे मिल रहा है.’’

देवकुमार को अपना उल्लू सीधा करने की दिशा मिल गई, ‘‘भाभी, बेटा और बेटी तो समान होते हैं, फिर तुम्हें बेटियों से चिढ़ क्यों है.’’

‘‘मुझे बेटियों से चिढ़ नहीं, अपने नसीब से शिकायत है.’’ उमा बोली, ‘‘2 बेटियों में से एक भी बेटा हो गया होता तो आज मेरे कलेजे में आग न लगी होती. कम से कम बुढ़ापे का सहारा और चिता में आग देने वाला भी तो कोई होना चाहिए. बेटा न होने से हमारे बाद तुम्हारे भैया का वंश ही खत्म हो जाएगा.’’

‘‘भाभी, विश्वास रखो,’’ देवकुमार ने आकाश की ओर उंगली उठाई, ‘‘नीली छतरी वाले के घर देर है, अंधेर नहीं. भाभी, लगातार 2 बेटियां होने से तुम खुद को दोषी क्यों मानती हो,’’ देवकुमार ने स्वार्थ की बिसात पर शातिर चाल चली, ‘‘तुम्हारी यह इच्छा जरूरी पूरी होगी.’’

उमा ने उस की आंखों में देखा, ‘‘यह तुम किस आधार पर कह रहे हो?’’

‘‘इसलिए कि शायद तुम्हें पता नहीं कि बेटा हो या बेटी, उस के लिए जिम्मेदार मां नहीं पिता होता है.’’

उमा ने चौंक कर उस की ओर देखा,‘‘मैं समझी नहीं, खुल कर बोलो.’’

‘‘भाभी जमीन को जोत कर उस में जिस पौधे का बीज डाला जाए, वही पौधा उगता है.’’ देवकुमार ने कायदे से समझाया, ‘‘अगर बीज खराब हो तो वह अंकुरित नहीं होता, मिट्टी में ही पड़ा रह कर सड़ जाता है.’’

‘‘हां, सड़ जाता है.’’

‘‘और बीज कमजोर होता है, तो उस से निकला पौधा भी कमजोर होता है न.’’

‘‘हां, होता है.’’

‘‘बस बेटियां होने की भी यही वजह है.’’ देवकुमार ने उमा को अपने शब्दों में समझा कर उस की दुखती रग पर उंगली रखी, ‘‘शिवकुमार भैया अंदर से कमजोर हैं. दरजन भर बच्चे पैदा कर लो, लड़की ही होगी. और तुम लड़के के लिए तरसती रहोगी.’’

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उमा गहरी सोच में डूब गई. देवकुमार ने उस की भावनाओं पर एक और चोट की, ‘‘मेरी बात का विश्वास न हो तो किसी पढ़े लिखे समझदार व्यक्ति से पूछ लो.’’

उमा की सोच और गहरी हो गई. उमा को इसी भंवर में फंसा छोड़ कर देवकुमार सोने चला गया. मन ही मन खुश होते हुए वह सोच रहा था कि तीर सही निशाने पर लगा है, असर जरूर देखने को मिलेगा. देवकुमार का सोचना सही था. उस की बात ने उमा के दिल पर गहरा असर किया था.

उमा कुछ देर बाद सोच के भंवर से निकली और उस ने तय किया कि वह पता करेगी कि क्या वास्तव में संतान के लिंग धारण का जिम्मेदार पिता होता है.

अगले ही दिन बीमारी का बहाना बना कर उमा एक लेडी डाक्टर के यहां गई. उस ने डाक्टर से पूछा तो उस ने कहा कि संतान के लिंग निर्धारण का उत्तरदायी पिता होता है. डाक्टर ने उमा को एक्सवाई की थ्योरी भी समझा दी.

जानें आगे की कहानी अगले भाग में…

औलाद की खातिर

दरिंदगी की पराकाष्ठा : भाग 3

इंस्पेक्टर परवेज आलम ने माही का केस लेने के बाद झारखंड पुलिस द्वारा दिए गए दस्तावेजों व साक्ष्यों का पूरा अध्ययन किया. पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टरों से पूरी रिपोर्ट पर चर्चा की.

डाक्टरों ने सीबीआई को बताया कि मृतका के नाखूनों और वैजाइनल स्वैब राज्य विधिविज्ञान प्रयोगशाला भेजे गए हैं. इंसपेक्टर परवेज आलम ने एफएसएल की रिपोर्ट में पाया कि नाखून व वैजाइनल स्वैब में केवल एक ही पुरुष होने के सबूत मिले हैं.

इस से जांच टीम आश्वस्त हो गई थी कि केवल एक ही व्यक्ति ने इस घटना को अंजाम दिया है. घटना की तह तक जाने के लिए इंसपेक्टर परवेज आलम ने अपने अधिकारियों से बूटी बस्ती में रहने की इजाजत मांगी.

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सीबीआई मुख्यालय के आदेश पर परवेज आलम अपनी टीम के साथ बूटी बस्ती में किराए पर कमरा ले कर रहने लगे. वहीं रह कर वह गुप्त तरीके से हत्यारोपी के बारे में छानबीन करने में जुट गए.

बूटी बस्ती की रहने वाली एक बूढ़ी महिला ने उन्हें बताया कि एक युवक यहां अकसर घूमता था, जो मंदिर परिसर के एक कमरे में रहता था. वह अब दिखाई नहीं दे रहा.

इंसपेक्टर आलम के लिए यह सुराग महत्त्वपूर्ण साबित हुआ. इसी सुराग के आधार पर उन्होंने 300 से अधिक लोगों के काल डंप डाटा के आधार पर छानबीन की. जांच में पता चला कि उन में से करीब 150 नंबर घटनास्थल के आसपास के हैं, उन में कुछ नंबर मृतका के संबंधियों और दोस्तों के भी थे.

सीबीआई ने शक के आधार पर 150 संदिग्धों में से 11 लोगों के खून के नमूने ले कर जांच के लिए केंद्रीय विधिविज्ञान प्रयोगशाला, दिल्ली भेजे. इस बीच सीबीआई राहुल उर्फ राज के दोस्त बंटी तक पहुंच गई. बंटी से उस संदिग्ध युवक यानी राज के बारे में पूछताछ की गई जो मंदिर के पास अकसर घूमता था.

बंटी ने बताया कि उस का नाम राहुल उर्फ राज है. वह बिहार के नालंदा जिले के एकंगर सराय के गांव धुर का रहने वाला है. इंसपेक्टर परवेज आलम की मेहनत रंग लाई. उन्हें संदिग्ध युवक राहुल का पता मिल चुका था. वह टीम के साथ नालंदा स्थित उस के घर जा पहुंचा. वहां से पता चला कि राहुल फरार है.

वहां उन्हें एक और चौंकाने वाली बात पता चली कि राहुल दुष्कर्म के आरोप में पटना की बेउर जेल में बंद था. चाचा की मौत पर वह जेल से पैरोल पर घर आया था और चकमा दे कर पुलिस हिरासत से भाग गया था. तब से वह फरार है. इस के बाद सीबीआई की टीम ने राहुल की मां निर्मला देवी व पिता उमेश प्रसाद को बुलाया.

संदिग्ध आरोपी राहुल उर्फ राज की सच्चाई पता लगाने के लिए उन्होंने उस के मातापिता के खून के नमूने लिए और जांच के लिए केंद्रीय विधिविज्ञान प्रयोगशाला दिल्ली भेज दिए. वहां माही के नाखून व वैजाइनल स्वैब से मिले पुरुष के डीएनए से संदिग्ध आरोपी राहुल उर्फ राज की मां निर्मला देवी का डीएनए मैच कर गया. जबकि पिता उमेश प्रसाद का मैच नहीं किया.

डीएनए रिपोर्ट के आधार पर यह तय हो गया कि माही का कातिल राहुल उर्फ राज ही है. राहुल उर्फ राज की तलाश में सीबीआई ने कोलकाता, वाराणसी सहित कई जगहों पर छापेमारी की, लेकिन उस का कहीं कोई पता नहीं चला.

इसी बीच 15 जून, 2019 को राहुल उर्फ राज लखनऊ में मोबाइल चोरी के एक केस में पकड़ा गया. सीबीआई इंसपेक्टर परवेज आलम राहुल के पीछे पड़े ही थे. उन्हें उस की गिरफ्तारी की सूचना मिली, तो वह लखनऊ पहुंच गए. वहां से राहुल उर्फ राज को ट्रांजिट रिमांड पर 22 जून, 2019 को रांची लाया गया. उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो वह टूट गया. उस ने माही हत्याकांड की पूरी कहानी बयां कर दी.

राहुल ने सीबीआई को बताया कि पटना में 11 साल की नेहा से दुष्कर्म करने के मामले में वह पकड़ा गया था. तभी उसे पता चला नेहा के अंडरगारमेंट में उस का सीमेन मिला था, जिस से वह पकड़ा गया था. सीख लेते हुए उस ने माही से दुष्कर्म करने के बाद उस के कपड़े जला दिए थे.

यही नहीं, उस ने फरारी के दौरान इसी जिले की अगस्त 2018 की एक घटना का भी राजफाश किया. जिस घर में वह चोरी की नीयत से घुसा तो वहां 9 वर्षीय सोनी को अकेली सोता देख कर वह उस पर टूट पड़ा. बेटी की चीख सुन कर मां के बेटी के कमरे में आ जाने से सोनी की अस्मत लुटने से तो बच गई लेकिन उस दिन की घटना के बाद से वह आज तक सदमे से उबर नहीं पाई है.

सीबीआई की पूछताछ में क्रूर दरिंदे राहुल उर्फ राज ने कबूल किया कि उस ने हर घटना में अपना नाम बदल कर अपराध किया था. अब तक उस ने 10 मासूमों की जिंदगी तबाह की थी, जिस में कई तो असमय कल का ग्रास बन गई थीं और कई विक्षिप्त अवस्था में पहुंच गई थी.

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राहुल उर्फ राज की शिनाख्त माही की बड़ी बहन रवीना से कराई गई तो उस ने आरोपी राहुल उर्फ राज को देख कर शिनाख्त कर ली. रवीना से इस मामले में अदालत में अपनी गवाही दर्ज कराई. रवीना ने अदालत को बताया कि घटना के कुछ दिन पहले राहुल किराए का कमरा लेने के लिए उस के घर आया था.

हम ने उसे कमरा देने से मना कर दिया था. उस दिन के बाद कई बार अहसास हुआ कि राहुल उस की बहन का पीछा करता है. घटना से पहले उसे घर के आसपास घूमते हुए भी देखा था. जबकि घटना के बाद से उसे कभी नहीं देखा गया.

इस केस के जांच अधिकारी इंसपेक्टर परवेज आलम ने सूक्ष्मता से एकएक सबूत जुटाया. फिर विशेष अदालत में चार्जशीट पेश की. जज ए.के. मिश्र ने सजा सुनाए जाने से पहले केस की फाइल पर नजर डाली. तभी शासकीय अधिवक्ता ने कहा कि योर औनर, मुजरिम राहुल कुमार ने जो अपराध किया है, वह रेयरेस्ट औफ रेयर है. ऐसे व्यक्ति का समाज में रहना ठीक नहीं है. यह समाज के लिए जहर के समान है. ऐसे पेशेवर अपराधी को फांसी की सजा देनी चाहिए.

बचाव पक्ष के अधिवक्ता ने कहा कि मुजरिम राहुल को अपने किए पर पछतावा है, इसलिए उसे सुधरने का मौका दिया जाना चाहिए. उन्होंने उसे कम से कम सजा सुनाए जाने की अपील की.

दोनों वकीलों की दलीलें सुनने के बाद जज ए.के. मिश्र ने कहा कि कटघरे में खड़ा यह अपराधी समाज के लिए एक कलंक है. इस ने योजनाबद्ध तरीके से घटना को अंजाम दिया था.

इस के सुधरने की कोई गुंजाइश नहीं है. इस का अपराध रेयरेस्ट औफ रेयर है. इसे मृत्यु होने तक फांसी पर लटकाया जाए.

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फैसला सुनाने के बाद पुलिस ने मुजरिम राहुल कुमार को हिरासत में ले कर जेल भेज दिया. वहीं फैसला आने के बाद कोर्ट में मौजूद मृतका के पिता संजीव कुमार घटना को याद कर रोने लगे. उन्होंने कहा कि फांसी की सजा भी अपराधी के लिए कम ही है, परंतु संतोष है कि अदालत ने न्याय किया है. इस प्रकार के फैसले से समाज को शुभ संदेश जाएगा.

– कथा में माही, नेहा और सोनी परिवर्तित नाम हैं.

दरिंदगी की पराकाष्ठा : भाग 2

बहरहाल, रिजल्ट देखने के बाद माही जब कालेज से बूटी बस्ती स्थित अपने आवास जाने लगी तो पहले से घात लगाए बैठा राज पीछेपीछे उस के घर तक पहुंच गया. माही घर में बैग रख कर वापस बाहर आई. उस ने अपने घर के पास एक दुकान से मैगी खरीदी और वापस चली गई.

इस से राज आश्वस्त हो गया था कि घर में माही अकेली है. घर में अगर कोई और होता तो माही के बजाए वही सामान खरीदने आता. इत्तफाक की बात यह थी कि कुछ दिनों पहले बड़ी बहन रवीना किसी जरूरी काम से अपने गांव बरकाकाना चली गई थी.

माही के घर पर अकेला होने की जानकारी शातिर राज को पहले ही मिल चुकी थी, इसलिए वह निश्चिंत हो गया और उस ने फैसला कर लिया कि आज रात माही को अपनी हवस का शिकार बनाएगा.

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उसी रात करीब साढ़े 10 से 11 बजे के बीच राहुल कुमार उर्फ राज माही के घर पहुंचा. उस के मुख्य दरवाजे पर लोहे का मजबूत ग्रिल लगा था. ग्रिल पर भीतर की ओर से बड़ा ताला लगा था. उस के पास मास्टर चाबी रहती थी, जिस से वह कोई भी ताला खोल सकता था. मास्टर चाबी से उस ने माही की ग्रिल का ताला खोल लिया.

माही जिस कमरे में सो रही थी, उस में सिटकनी नहीं लगी थी. दबेपांव वह उस के कमरे में आसानी से पहुंच गया और गहरी नींद में सोई माही का गला दबाने लगा. तभी माही की आंखें खुल गईं. उसे देख कर वह डर गई.

इस से पहले कि वह शोर मचाती, राज ने उसे धमका दिया. डर की वजह से माही चुप हो गई. राहुल ने उस के साथ रेप किया. उस ने दरिंदगी की सारी हदें पार कर दीं. इस दरम्यान माही के नाजुक अंग से रक्तस्राव हुआ, जिस से वह बेहोश हो गई.

उस के बाद दरिंदे राहुल उर्फ राज ने मोबाइल के चार्जर वाले तार से उस का गला घोंट दिया ताकि वह किसी को कुछ बता न सके. हैवानियत पर उतरे राज ने सबूत मिटाने के लिए माही को निर्वस्त्र कर दिया, फिर उस के कपड़ों को एक जगह रख कर उस पर मोबिल औयल डाल कर आग लगा दी. आग लगाने के बाद वह वहां से फरार हो गया. दरअसल, साक्ष्य मिटाने का यह तरीका उस ने अपने ही एक जुर्म से सीखा था.

अपराध की दुनिया में कदम रखते समय राहुल पहली बार पटना में एक घर में चोरी करने की नीयत से घुसा था. यह भी इत्तफाक था कि घर के एक कमरे में 11 वर्षीय नेहा अकेली सो रही थी. बाकी के लोग दूसरे कमरे में सो रहे थे. उस समय रात के करीब 3 बज रहे थे. अकेली नेहा को देख कर उस के जिस्म में वासना की आग धधक उठी. हैवान राहुल जिस्म की आग ठंडी करने के लिए मासूम नेहा की जिंदगी तारतार कर के भाग गया.

लेकिन कानून के लंबे हाथों से कुकर्मी राहुल ज्यादा दिनों तक नहीं बच सका. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. तब राहुल को पता चला कि नेहा के अंडरगारमेंट में उस का सीमेन (वीर्य) मिला था, जिस से वह दोषी पाया गया था. इस घटना से ही सीख लेते हुए उस ने बीटेक की छात्रा माही से दुष्कर्म के बाद उस के अंडरगारमेंट के साथ अन्य कपड़े भी जला दिए थे ताकि वह पकड़ा न जा सके.

खैर, अगली सुबह यानी 16 दिसंबर, 2019 की सुबह रहस्यमय तरीके से जली हुई माही की लाश उस के कमरे में पाई गई थी. दरअसल, रात में उस के पिता संजीव कुमार फोन कर के उस का हालचाल लेना चाहते थे.

चूंकि दिन में कालेज का रिजल्ट आ चुका था. वह कालेज तक उस के साथ गए भी थे, इसलिए वह फोन कर उसे घर आने के लिए कहना चाहते थे. लेकिन उस का फोन नहीं लग रहा था.

फोन बारबार स्विच्ड औफ बता रहा था. बेटी का फोन स्विच्ड औफ होने से वह परेशान हो गए. रात भी काफी गहरा चुकी थी, इसलिए किसी और के पास फोन भी नहीं कर सके थे, जिस से माही का हालचाल मिल पाता. अगली सुबह जब सदर थाने के थानेदार बांकेलाल का फोन उन के पास पहुंचा तो बेटी की मौत की सूचना पा कर संजीव सकते में आ गए.

बेटी की मौत की सूचना मिलते ही घर में कोहराम मच गया था. परिवार के लोगों को साथ ले कर संजीव रांची पहुंचे. शराफत का चोला पहने दरिंदा राज भी अपने दोस्त बंटी के साथ घटनास्थल पर पहुंचा था.

वहां पहुंच कर वह यह जानना चाहता था कि पुलिस क्या काररवाई कर रही है. तब उस के दोस्त बंटी ने उस के सामने ही अज्ञात दरिंदे को भद्दीभद्दी गालियां देनी शुरू कर दीं तो राज ने बंटी को समझाया कि किसी को भी इस तरह गालियां देना ठीक नहीं है.

उस दिन के बाद से वह बंटी से पुलिस की गतिविधि पूछता था कि माही के हत्यारों तक पुलिस पहुंची या नहीं. उस के केस में क्या हो रहा है. यह बात बंटी को बड़ी अटपटी लगती थी कि राहुल उर्फ राज माही के केस में इतनी दिलचस्पी क्यों ले रहा है.

बहरहाल, पुलिस ने अपनी काररवाई कर माही की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दी. अगले दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई. रिपोर्ट पढ़ कर थानाप्रभारी बांकेलाल दंग रह गए. रिपोर्ट में बताया गया था कि पहले पीडि़ता के साथ बलात्कार किया गया था, फिर किसी पतले तार से गला कस कर उस की हत्या की गई थी.

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पोस्टमार्टम रिपोर्ट पढ़ने के बाद पुलिस ने अज्ञात हत्यारे के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 376, 499, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर मामले की छानबीन शुरू कर दी. घटना के करीब 6 महीने बीत जाने के बाद भी पुलिस जहां की तहां खड़ी रही. न तो वह हत्या का कारण जान सकी और न ही हत्यारों का पता लगा पाई.

माही हत्याकांड को ले कर रांची समेत समूचे झारखंड में बवाल मचा हुआ था. पुलिस की कार्यप्रणाली पर लोग अंगुलियां उठा रहे थे. पीडि़ता के पिता संजीव ने इस मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग की. यह आवाज प्रदेश सरकार के कानों तक पहुंची तो सरकार ने जांच सीबीआई से कराने की अनुशंसा कर दी.

जब मामला सीबीआई के पास पहुंचा तो सीबीआई के तेजतर्रार इंसपेक्टर परवेज आलम के नेतृत्व में पुलिस टीम बनाई गई. टीम में एसआई नीरज कुमार यादव, कांस्टेबल प्रभात कुमार, आरिफ हुसैन, नैमन टोप्पो, अशोक कुमार, रितेश पाठक, महिला सिपाही जूही खातून आदि को शामिल किया गया.

इंस्पेक्टर परवेज आलम झारखंड पुलिस में सन 1994 में एसआई पद पर भरती हुए थे. वह ड्यूटी मीट के ओवरआल चैंपियन भी रह चुके थे. झारखंड पुलिस में उन का डीएसपी पद पर प्रमोशन हो चुका था. फिर भी सीबीआई में इंसपेक्टर हैं.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

दरिंदगी की पराकाष्ठा : भाग 1

दरअसल, उस दिन रांची के बहुचर्चित बीटेक की छात्रा माही हत्याकांड का फैसला सुनाया जाना था. करीब 3 साल पहले हुई हत्या की यह वारदात काफी दिनों तक मीडिया की सुर्खियों में रही थी. जब थाना पुलिस इस केस को नहीं खोल सकी तो यह मामला सीबीआई को सौंप दिया गया था.

सीबीआई इंसपेक्टर परवेज आलम की टीम ने लंबी जांच के बाद न सिर्फ इस केस का परदाफाश किया, बल्कि आरोपी राहुल कुमार उर्फ राहुल राज उर्फ आर्यन उर्फ रौकी राज उर्फ अमित उर्फ अंकित को भी गिरफ्तार करने में सफलता हासिल की.

पता चला कि रेप की वारदात को अंजाम देने के बाद आरोपी फरार हो जाता था या नाम बदल कर कहीं दूसरी जगह रहने लगता था. इस तरह वह एकदो नहीं, बल्कि 10 लड़कियों को अपनी हवस का शिकार बना चुका था. एक तरह से वह साइको किलर बन चुका था.

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इस वहशी दरिंदे के खिलाफ सीबीआई की विशेष अदालत में केस चल रहा था. सीबीआई की ओर से इस मामले में 30 गवाह पेश किए गए थे. जज ए.के. मिश्र ने तमाम गवाह और सबूतों के आधार पर 30 अक्तूबर, 2019 को छात्रा माही हत्याकांड में आरोप तय करते हुए राहुल कुमार को दोषी ठहराया. उन्होंने सजा सुनाए जाने के लिए 22 दिसंबर, 2019 का दिन निश्चित किया.

सीबीआई की विशेष अदालत में 22 दिसंबर को जितने भी लोग बैठे थे, उन सभी के दिमाग में एक ही सवाल घूम रहा था कि जज साहब साइको किलर राहुल कुमार को क्या सजा सुनाएंगे. इस वहशी दरिंदे ने जिस तरह कई लड़कियों की जिंदगी तबाह की थी, उसे देखते हुए उन्हें उम्मीद थी कि उसे फांसी की सजा दी जानी चाहिए.

25 वर्षीय राहुल कुमार कौन है और वह कामुक दरिंदा कैसे बना, यह जानने के लिए उस के अतीत को जानना होगा.

25 वर्षीय राहुल कुमार बिहार के नालंदा जिले के एकंगर सराय थाना क्षेत्र के गांव धुर का रहने वाला है. उस के पिता उमेश प्रसाद पेशे से आटो चालक हैं. 3 भाईबहनों में राहुल सब से बड़ा था.

कहते हैं कि पूत के पांव पालने में दिख जाते हैं. ऐसा ही कुछ राहुल के साथ भी हुआ. बचपन से ही राहुल जिद्दी और झगड़ालू किस्म का था. वह एक बार जो करने की ठान लेता था, उसे पूरा कर के ही मानता था. इस दौरान वह किसी की भी नहीं सुनता था. मांबाप की डांटफटकार का भी उस पर कोई असर नहीं होता था.

राहुल जैसेजैसे बड़ा होता गया, उस की संगत आवारा किस्म के लड़कों से होती गई. घर से उस का मतलब केवल 2 वक्त की रोटी से होता था. जब उस के पिता उमेश प्रसाद आटो ले कर शहर की ओर निकलते, वह भी घर से निकल जाता था. फिर दिन भर आवारा दोस्तों के साथ घूमता रहता था.

मटरगश्ती करने के लिए वह मां से जबरन पैसे लिया करता था. अगर मां उसे पैसे नहीं देती तो वह लड़झगड़ कर पैसे छीन लेता था. दिन भर दोस्तों के बीच घूमनेफिरने के बाद वह शाम होते ही घर लौट आता था.

घर का वह एक काम तक नहीं करता था, रात को जब आटो चला कर उमेश प्रसाद घर लौटता तो उस की पत्नी राहुल की दिन भर की शिकायतों की पोटली खोल कर बैठ जाती. उमेश राहुल को डांटता और समझाता, पर पिता की बातों को वह अनसुना कर देता. ऐसे में उमेश माथे पर हाथ रख कर चिंता में डूब जाता.

उमेश प्रसाद ने राहुल को समझाने और सही राह पर लाने के बहुत उपाय किए, लेकिन राहुल सुधरने के बजाए दिनबदिन जरायम की दलदल में उतारता गया. शुरुआत उस ने अपने घर के पैसे चुराने से की थी.

इस के बाद उस ने औरों के घरों में भी चोरी करनी शुरू की. भेद न खुलने पर उस की हिम्मत बढ़ती गई. चोरी के साथसाथ राहुल लड़कियों को अपनी हवस का शिकार भी बनाने लगा.

बात सन 2012 की है. राहुल ने पटना के जीरो रोड पर स्थित एक घर में चोरी की. इतना ही नहीं, उस ने वहां एक युवती को अपनी हवस का शिकार भी बनाया. युवती से दुष्कर्म के मामले में 29 जून, 2012 को उसे बेउर जेल भेजा गया.

जब वह जेल में था, तभी उस के चाचा की मौत हो गई. श्राद्धकर्म में शामिल होने के लिए वह 4 सितंबर, 2016 को पैरोल पर अपने गांव गया, उस समय वह पुलिस की सुरक्षा में था.

श्राद्धकर्म के बाद शातिर राहुल ने सिपाहियों को शराब पिलाई और अनुष्ठान का बहाना बना कर फरार हो गया. इस के बाद पुलिस उसे छू तक नहीं सकी. पुलिस अभिरक्षा से फरार होने के बाद उस ने जो कांड किया, उस ने समूचे झारखंड को हिला कर रख दिया.

राहुल नालंदा से भाग कर रांची आ गया था और वहां वह नाम बदल कर राज के नाम से रहने लगा. राहुल हर बार जुर्म करने के बाद अपना नाम बदल लेता था, ताकि पुलिस उस तक आसानी से न पहुंच सके. खैर, वह राहुल से राज बन कर रांची की बूटी बस्ती में पीतांबरा पैलेस के सामने वाली गली में स्थित दुर्गा मंदिर के कमरे में रहने लगा. यहां उस ने कमेटी से आग्रह किया था. कमेटी के बंटी नामक युवक ने उस पर तरस खा कर वहां रखवाया था.

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यहां रह कर राहुल उर्फ राज दूसरा कमरा खोजने लगा. कमरे की तलाश में वह बीटेक की छात्रा माही के घर पहुंच गया. लेकिन वहां कमरा किराए पर नहीं मिला. राहुल का मुख्य पेशा चोरी था. उसे घूमतेघूमते पता चल गया कि माही के घर में सिर्फ लड़कियां रहती हैं. उस दिन के बाद से वह आतेजाते माही का पीछा करने लगा. माही इतनी खूबसूरत थी कि एक ही नजर में वह उस पर मर मिटा था.

23 वर्षीया माही मूलरूप से झारखंड के बरकाकाना जिले के थाना सिल्ली क्षेत्र की रहने वाली थी. उस के पिता संजीव कुमार बरकाकाना में सेंट्रल माइन प्लानिंग ऐंड डिजाइन इंस्टीट्यूट लिमिटेड (सीएमपीडीआई) में नौकरी करते थे.

संजीव कुमार की 2 बेटियां रवीना और माही थीं. दोनों पढ़ने में अव्वल थीं. इसीलिए पिता संजीव भी उन्हें उन के मनमुताबिक पढ़ाना चाहते थे. वह उन पर पानी की तरह पैसे बहा रहे थे.

बच्चों के भविष्य के लिए संजीव कुमार ने सन 2005 में रांची की बूटी बस्ती में एक प्लौट खरीदा था. उस पर उन्होंने घर भी बनवा दिया था. घटना से करीब 2 साल पहले यानी 2017 में उन की दोनों बेटियां रवीना और माही वहीं रह कर पढ़ाई करती थीं. संजीव और परिवार के अन्य सदस्य बरकाकाना में रहते थे.

बड़ी बेटी रवीना रांची शहर के एक प्रतिष्ठित कालेज से स्नातक कर रही थी, जबकि छोटी बेटी माही ओरमांझी के एक इंजीनियरिंग कालेज से बीटेक के चतुर्थ सेमेस्टर की छात्रा थी. माही का 15 दिसंबर, 2016 को रिजल्ट आने वाला था. उस के पिता रिजल्ट देखने बरकाकाना से रांची आए थे. रिजल्ट देख कर वह माही के कालेज गए और वहीं से बरकाकाना वापस लौट गए.

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जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

दरिंदगी की पराकाष्ठा

ताजमहल की नगरी में : भाग 2

अगले दिन विजय मां को आगरा ले आया. सास के आ जाने के बाद प्रेमलता का अजय से घर में मिलना संभव नहीं था. यह चिंता प्रेमलता ने अजय के सामने जाहिर की तो अजय ने कहा, ‘‘घर में न सही, हम बाहर मिल लेंगे. तुम क्यों फिक्र करती हो.’’

‘‘मुझे लग रहा है कि विजय को मुझ पर शक हो गया है. अब वह रोज रात को दारू की बोतल ले आता है. तुम तो जानते हो न गुस्से में उसे कुछ होश नहीं रहता और अगर उसे मेरे तुम्हारे रिश्ते के बारे में पता चल गया तो पता नहीं वह क्या करेगा. वैसे भी इस रिश्ते का अंत क्या है?’’ प्रेमलता बोली.

‘‘मैं क्या जानूं भाभी, मैं तो इतना जानता हूं कि मैं तुम से प्यार करने लगा हूं. मेरा चंचल मन तुम्हारे इर्दगिर्द ही मंडराता रहता है. हां, अगर तुम चाहो तो हम यहां से कहीं दूर चले जाएंगे और अपनी दुनिया बसा लेंगे.’’ अजय ने सुझाव दिया.

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‘‘लेकिन मेरे बेटे का क्या होगा? इस तरह तो दो परिवारों के बीच दुश्मनी हो जाएगी. नहीं, अभी ऐसे ही चलने दो, फिर आगे देखते हैं क्या होता है.’’ प्रेमलता ने सलाह दी.

अजय का पहले की तरह ही विजय के यहां आनाजाना लगा रहा, जो विजय की मां को अखरता था. वह बीमार जरूर थीं लेकिन उन की अनुभवी नजरों ने बहू के चालचलन को पहचान लिया. उन्होंने महसूस किया कि किसी से फोन पर बात करने के बाद बहू खरीदारी के बहाने बाहर चली जाती है. उसे लगा कि जरूर दाल में काला है.

एक दिन उस ने बेटे से कहा, ‘‘मैं हफ्ते भर से यहां हूं, अब घर जाना चाहती हूं. पर यहां सब कुछ ठीक नहीं है. गांव की बात दूसरी थी पर अजय यहां भी बहू के आगेपीछे मंडराता रहता है.’’

‘‘अम्मा, अजय तो बचपन से हमारे घर आता है. प्रेमलता को भी बहुत मानता है. तुम ऐसा क्यों सोचती हो.’’ विजय ने समझाना चाहा.

‘‘अब तू ही देख ले, कल तेरे पिताजी मुझे ले जाएंगे और जब दवा खत्म हो जाएगी तो मैं तुम्हें बता दूंगी.’’

अगले दिन मुन्ना सिंह पत्नी को लिवा ले गए. मां की बातों से न न करते हुए भी विजय के दिलोदिमाग में शक का बीज अंकुरित हो गया.

पिछले हफ्ते विजय के एक साथी ने प्रेमलता को बाजार में अजय के साथ देखा था. यह बात उस ने विजय को बताई तो उसे विश्वास नहीं हुआ था कि उस की पत्नी और अजय के बीच कुछ चक्कर है.

फिर भी अगले दिन उस ने प्रेमलता से पूछा, ‘‘अजय, मेरी गैरमौजूदगी में यहां क्यों आता है?’’

‘‘अगर तुम कहो तो मैं उसे मना कर दूंगी.’’ प्रेमलता बोली.

‘‘नहींनहीं, चलो छोड़ो, मैं ने तो ऐसे ही पूछ लिया.’’

लेकिन यह ऐसे ही पूछ लेना प्रेमलता के लिए खतरे की घंटी की तरह था. इसलिए अब वह सतर्क रहने लगी.

सास के चले जाने के बाद प्रेमलता ने चैन की सांस ली. विजयपाल को कभीकभी लगता था कि उस का शक गलत भी हो सकता है, लेकिन शक से छुटकारा पाना भी आसान नहीं होता.

अजय के दिल में भी एक अजीब सी हलचल थी. अब प्रेमलता के साथ अपनी दुनिया बसाना चाहता था. वह उस की हर इच्छा पूरी करने के लिए तैयार था.

पिछले कुछ दिनों से वह रोज रात को घर चला जाता था, लेकिन 12 दिसंबर, 2019 को वह घर नहीं पहुंचा और उस का फोन भी स्विच्ड औफ आ रहा था.

रामअवतार ने विजयपाल को फोन किया तो उस ने कहा कि अजय से तो उस की कई दिनों से मुलाकात नहीं हुई.

उन्होंने अपनी रिश्तेदारों और अजय के दोस्तों को फोन कर के पूछताछ की, लेकिन सभी ने बताया कि 12 दिसंबर को शाम तक अजय ट्रांसपोर्ट कंपनी में ही था फिर उस के मोबाइल पर कोई काल आई थी और वह चला गया था.

यह बात चिंताजनक थी. रामअवतार 14 दिसंबर को थाना छत्ता जीवनी मंडी आया और उस ने थानाप्रभारी उमेशचंद्र त्रिपाठी को अपने 25 वर्षीय बेटे के बारे में बता कर गुमशुदगी दर्ज करा दी. उस ने यह भी शक जताया कि अजय की गुमशुदगी में विजयपाल और उस की बीवी का कोई हाथ हो सकता है क्योंकि एक दिन विजय का उसे फोन आया था.

उस ने कहा था, ‘‘चाचा, तुम्हारा बेटा अब जवान हो गया है और उसे इधरउधर मुंह मारने की आदत हो गई है. अच्छा होगा उस की शादी कर दो.’’

रामअवतार के अनुसार उस ने जब फोन कर के अजय से पूछतछ की तो उस ने यही कहा कि विजय भैया मजाक कर रहे हैं.

थानाप्रभारी उमेशचंद्र त्रिपाठी ने रामअवतार से अजय का एक फोटो लिया और उन्हें काररवाई करने का आश्वासन दे कर घर भेज दिया. इस के बाद थानाप्रभारी ने अजय के फोटोग्राफ जिले के सभी थानों में भेज दिए. लेकिन काफी पूछताछ करने के बाद भी विजय जैसे दिखने वाले किसी व्यक्ति की लाश मिलने की खबर नहीं मिली.

इस के बाद पुलिस ने ट्रांसपोर्ट कंपनी के मालिक तथा कई मजदूरों से पूछताछ की, लेकिन किसी ने नहीं बताया कि अजय और विजय के बीच कोई झगड़ा था. इस के बाद पुलिस जीवनी मंडी स्थित विजय के घर गई. उस समय विजयपाल ट्रांसपोर्ट कंपनी में जाने को तैयार हो रहा था. पुलिस को देखते ही वह सकपका गया. लेकिन फिर हिम्मत कर के उस ने पूछा, ‘‘साहब, आप कैसे आए हैं?’’

‘‘तुम से अजय के बारे में पूछताछ करनी थी,’’ दरोगा नरेंद्र कुमार शर्मा ने कहा.

‘‘पूछिए, क्या पूछना है. अजय मेरा चचेरा भाई है. हम दोनों में बहुत प्यार है, लेकिन आप अजय के बारे में मुझ से क्यों पूछ रहे हैं? कुछ किया है क्या उस ने?’’ विजय बोला.

‘‘उस ने कुछ किया है या नहीं, यह तो पता नहीं पर उस के साथ जरूर कुछ गलत हुआ है. अब तुम बताओ कि तुम्हें अजय के बारे में क्या पता है?’’ दरोगाजी ने पूछा.

‘‘साहब, अजय अपना काम मेहनत से कर रहा है. कमाई भी ठीक है. कभीकभी हमारे घर भी आता है.’’ विजय ने कहा.

‘‘तो अब तेरी जबान से निकलवाना ही पड़ेगा.’’ एसआई नरेंद्र कुमार ने सख्ती से कहा, ‘‘और तेरी पत्नी कहां है?’’

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‘‘साहब, वह तो अपने मायके गई है. आजकल में आ जाएगी. मायके जाना भी गुनाह है क्या?’’ विजयपाल ने कहा.

पुलिस समझ गई कि विजयपाल चालाक बन रहा है. पुलिस ने अजय, विजय और प्रेमलता के मोबाल नंबर सर्विलांस पर लगा दिए थे. रिपोर्ट से पता चला कि अजय की विजयपाल और प्रेमलता के साथ कई बार बात हुई थी और 12 दिसंबर, 2019 को प्रेमलता और अजय के बीच भी कई बार बात हुई थी.

पुलिस को विश्वास होने लगा था कि जरूर मामला अवैध संबंधों से जुड़ा है. पर विजय पाल कुछ भी बताने को तैयार नहीं था. ऐसे में प्रेमलता की गिरफ्तारी जरूरी थी. पुलिस प्रेमलता के पीछे लग गई. 16 दिसंबर को वह वाटर वर्क्स चौराहे पर दिख गई. पुलिस उसे हिरासत में ले कर थाना छत्ता लौट आई.

प्रेमलता से पुलिस ने सख्ती से पूछताछ की तो उस ने कहा, ‘‘साहब, अजय के कत्ल में मेरा कोई हाथ नहीं है. यह ठीक है कि अजय और मेरे बीच अवैध संबंध बन गए थे और मेरे पति ने हम दोनों को एक साथ देख लिया था. विजय ने उसे रास्ते से हटाने का तय कर लिया था.’’

प्रेमलता के अनुसार उस ने पति से कहा था कि वह अजय से कभी नहीं मिलेगी, लेकिन विजय ने मारपीट कर उस से अजय को फोन करा कर अपने घर मिलने को बुलाने को कहा. पति की बात मानना मेरी मजबूरी थी, फिर न चाहते हुए भी उस ने अजय को फोन कर के बुला लिया.

विजय का गुस्सा काबू में नहीं था, जैसे ही अजय घर आया तो विजय ने तेजधार के बांके से अजय पर वार कर किए. अजय कुछ समझ नहीं पाया. लहूलुहान हो कर वह फर्श पर गिर गया, फिर विजय ने उस का गला दबा दिया.

अब लाश ठिकाने लगानी थी. दोनों ने मिल कर एक साड़ी में लाश लपेटी, फिर उसे बोरे में भरा. विजय ने उसे धमकाया कि जुबान खोलने पर उस का भी यही हाल किया करेगा. वह बुरी तरह डर गई. प्रेमी देवर मर चुका था, जिस के साथ वह दुनिया बसाना चाहती थी.

विजय और प्रेमलता लाश वाले बोरे को मोटरसाइकिल पर रख कर झरना नाला के जंगल में ले गए, जहां लाश वाला बोरा फेंक दिया और घर आ कर सारा घर भी धो दिया.

प्रेमलता के बयान के बाद विजय ने भी अपना गुनाह कबूल कर लिया. पुलिस ने विजय की निशानदेही पर झरना नाला जंगल से अजय तोमर की लाश और आलाकत्ल बरामद कर लिया. पुलिस ने दोनों को भादंवि की धारा 364, 302, 201 के तहत गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

गलत काम का नतीजा गलत ही होता है. बूढ़े बाप ने अपने जवान बेटे को खो दिया. शादीशुदा प्रेमलता ने अपने जवान देवर को गुमराह किया. 2 घरों की खुशियां अंधी आशिकी ने छीन लीं और उन का बेटा अनाथ हो गया.

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ताजमहल की नगरी में : भाग 1

आगरा जिले के नगला काक निवासी अजय ने जब से होश संभाला, तभी से बड़ेबड़े सपने देखने लगा. बड़ा भाई अमित तोमर ई रिक्शा चलाता था. रामअवतार चाहता था कि उस का बेटा अमित तो पढ़लिख नहीं पाया पर अगर अजय पढ़लिख जाए तो परिवार की किस्मत संवर जाएगी.

लेकिन घर और गांव का ऐसा माहौल था कि अजय पढ़ नहीं सका और रामअवतार की इच्छा अधूरी रह गई. अजय गांव के लड़कों के साथ आवारा घूमता रहता था. रामअवतार का बड़ा भाई मुन्ना सिंह भी नगला काक में रह कर अपने परिवार का भरणपोषण कर रहा था. मुन्ना सिंह का बेटा विजयपाल जवान हुआ तो उस ने तय किया कि गांव से निकल कर वह आगरा जाएगा और वहीं कुछ काम करेगा.

अजय और विजय एकदूसरे के काफी नजदीक थे, आपस में प्यार भी था. दोनों की उम्र में भी कोई ज्यादा अंतर नहीं था. दोनों ही साथसाथ घूमते और भविष्य के सपने बुनते थे.

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विजय पाल का एक दोस्त था जो आगरा की एक मिल में काम करता था. उस के गांव से आगरा की दूरी करीब 15 किलोमीटर थी. दोस्त के कहने पर विजय आगरा चला गया और दोस्त के साथ मिल में ही काम करने लगा. विजयपाल जब कमाने लगा तो घरवालों ने उस की शादी कछनेरा निवासी प्रेमलता से कर दी. विजयपाल और प्रेमलता अपने दांपत्य जीवन से खुश थे.

शादी के कुछ दिन बाद विजयपाल आगरा चला गया. उस ने थाना छत्ता क्षेत्र की डाकखाना गली में किराए पर कमरा ले रखा था. उस ने मिल की नौकरी छोड़ कर एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में नौकरी कर ली. धीरेधीरे वह ट्रांसपोर्ट कंपनी के मालिक का खासमखास बन गया. रात हो या दिन, विजयपाल अपने मालिक के एक फोन काल पर हाजिर हो जाता था.

विजय की दुलहन प्रेमलता अब जिद करने लगी थी कि वह भी आगरा में उस के साथ रहेगी. पर प्रेमलता गर्भवती थी, इसलिए उस की सास ने कहा कि बच्चे के जन्म के बाद उसे आगरा भेज देंगे.

इधर अजय का अपने ताऊ मुन्ना सिंह के घर आनाजाना कुछ ज्यादा ही होने लगा था. उस का भाभी प्रेमलता से खूब हंसनाबोलना था. देवरभाभी में खूब पटती थी. घर वालों को भी उन की बातचीत पर कोई ऐतराज नहीं था. कुछ दिनों बाद प्रेमलता ने एक बेटे को जन्म दिया. बेटे के जन्म के बाद विजयपाल गांव आया तो उस ने गांव वालों को दावत दी.

अजय तोमर के पिता रामअवतार ने विजय से कहा, ‘‘बेटा, अजय दिन भर यहांवहां घूमता रहता है. तुम उसे भी अपने साथ आगरा ले जाओ. वहां कोई कामधाम करेगा तो जिम्मेदारी समझने लगेगा. कमाएगा तो उस का घर भी बस जाएगा.’’

अपने चाचा रामअवतार के कहने के बाद विजय अपने भाई अजय को भी आगरा ले गया. उस ने अजय को भी एक कंपनी में नौकरी पर लगवा दिया. नौकरी लगने के बाद अजय के हाथ में पैसा आने लगा. इस से अजय की महत्त्वाकांक्षाएं भी बढ़ने लगीं. जल्दी ही उसे महानगर की हवा लग गई. आगरा में उस ने कई दोस्त भी बना लिए.

वह विजयपाल के साथ ही रहता था. सब कुछ ठीक चल रहा था. इसी बीच विजय ने तय किया कि बारबार गांव जाने से खर्च ज्यादा होता है, इसलिए उस ने पत्नी को आगरा लाने की सोच ली.

विजय ने एक दिन अजय से कहा कि उसे अब कोई दूसरा कमरा किराए पर लेना होगा, क्योंकि अब वह अपनी पत्नी को अपने साथ ही रखना चाहता है.

प्रेमलता भाभी के आने की बात सुन कर अजय बहुत खुश हुआ. उस ने दोस्तों की मदद से वहां से कुछ ही दूरी पर दूसरा कमरा ले लिया. इस के बाद विजय पत्नी और बेटे को आगरा ले आया.

अजय का कमरा विजय के कमरे के नजदीक था, इसलिए वह जबतब भाभी से मिलने आ जाता. प्रेमलता देवर के साथ खूब हंसीमजाक करती थी. एक दिन प्रेमलता ने अजय से कहा कि उसे आगरा आए काफी समय हो गया, लेकिन वह एक छोटे से कमरे में बंध कर रह गई है. तुम्हारे भैया कमाने की धुन में रोज रात को देर से आते हैं और खाना खा कर सो जाते हैं. उन्हें तो काम से ही फुरसत नहीं है.

अजय ने भाभी की ख्वाहिश को समझ कर कहा, ‘‘भाभी, चिंता क्यों करती हो, तुम्हारा यह देवर तुम्हें आगरा की सैर कराएगा. पहले एक प्याला चाय पिलाओ फिर हम प्लान बनाते हैं.’’

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प्रेमलता ने तुरंत चाय बनाई और चाय का प्याला अजय के सामने रख दिया. चाय पी कर अजय ने कहा, ‘‘चलो भाभी, तैयार हो जाओ. आज हम तुम्हें आगरा शहर दिखाएंगे.’’

‘‘अभी…इस वक्त? तुम्हारे भैया से तो पूछा नहीं है,’’ प्रेमलता ने कहा.

‘‘ओह! अभी वह काम पर होंगे, वापस आ कर बता देंगे. चलो, तैयार हो जाओ.’’

प्रेमलता कशमकश में थी, फिर भी उस ने बेटे को तैयार किया और खुद भी कपड़े बदले और अजय के साथ बाहर आ गई.

‘‘आगरा भ्रमण का कार्यक्रम ताजमहल से शुरू करते हैं.’’ अजय ने एक आटो बुक किया और कहा, ‘‘बैठो भाभी, आज हम तुम्हें शाहजहां और मुमताज की मोहब्बत की निशानी दिखाएंगे.’’

प्रेमलता बहुत खुश थी. कुछ ही देर में दोनों ताजमहल के गेट पर पहुंच गए. अजय ताजमहल देखने के लिए 2 टिकट खरीद लाया. फिर दोनों ने ताज परिसर में प्रवेश किया. संगमरमरी ताज को देख कर प्रेमलता बहुत खुश हुई. दोनों ताज की मखमली घास पर बैठ गए. प्रेमलता ने ठंडी सांस ली तो अजय ने पूछा, ‘‘क्या हुआ भाभी, कुछ परेशान हो क्या?’’

‘‘नहीं तो…बस सोच रही हूं कि पति को बीवी के दिल की बात को समझनी चाहिए.’’ प्रेमलता बोली.

‘‘अरे हम हैं, तुम परेशान क्यों हो.’’ कहते हुए अजय ने अचानक प्रेमलता का हाथ पकड़ लिया. प्रेमलता अजय के स्पर्श से कांप उठी. तभी अजय ने कहा, ‘‘भाभी, जानती हो तुम आज कितनी खूबसूरत लग रही हो?’’

प्रेमलता ने अपना हाथ छुड़ाया और बोली, ‘‘अच्छा मजाक कर लेते हो. तुम्हारे भैया ने तो यह बात मुझे आज तक नहीं बताई. मुझे लगता है कि मर्द को या तो खाना पकाने के लिए या फिर बिस्तर गर्म करने के लिए औरत की जरूरत होती है.’’ अचानक प्रेमलता का दर्द छलक उठा.

अजय के पास कहने के लिए शब्द नहीं थे. वह इधरउधर की बातें करने लगा. करीब 2 घंटे बाद वे ताजमहल से निकले, तब अजय ने कहा, ‘‘भाभी, तुम्हें और मुन्ने को भूख लगी होगी.’’

इस से पहले कि प्रेमलता कुछ कहती, अजय ने मुन्ने को उठाया और सामने रेस्टोरेंट में जा पहुंचा. पीछेपीछे प्रेमलता भी चलने लगी.यह प्रेमलता के लिए एक नया तजुर्बा था. वह सोचने लगी कि काश! विजय भी उस की इच्छाओं को पूरा करता.

खापी कर दोनों घर आ गए. अजय ने कहा, ‘‘ठीक है भाभी, मैं चलता हूं.’’

अजय के जाने के बाद वह प्रेमलता के दिलोदिमाग पर छाया रहा, जो अपने पति से संतुष्ट नहीं थी. दरअसल, महत्त्वाकांक्षाओं का मिजाज कुछ ऐसा होता है कि एक बार खड़ी होती है तो बढ़ती ही जाती है.

अजय की मजबूत कदकाठी अब प्रेमलता के दिलोदिमाग को घेरने लगी थी. कुछ अधिक पाने की चाह भी सिर उठाने लगी थी. पर ये वो दलदल थी, जिस में घुसना तो आसान था पर निकल पाना मुश्किल था. प्रेमलता ने सिर झटका, वह भी क्या सोचने लगी. अभी तो यही डर था कि कहीं विजय को पता चल गया तो वह न जाने क्या हंगामा खड़ा कर दे.

लेकिन विजय को पता नहीं चला. प्रेमलता ने राहत की सांस ली और फोन कर के अजय को बता दिया कि वह विजय से ताजमहल घूमने जाने का कोई जिक्र न करे.

अगली रात जब विजयपाल काम से लौटा तो कमरे का दरवाजा खुला हुआ था और प्रेमलता नींद में थी. वह बड़ी मुश्किल से उठी और पति को खाना लगाया.

शायद ऐसा पहली बार हुआ था. विजय ने खाना खाया और इधरउधर टहलने लगा. प्रेमलता के मन में एक डर सा समाया हुआ था. पर कुछ देर तक टहलने के बाद विजय गहरी नींद में सो गया.

2-4 दिन तक जब अजय नहीं आया तो प्रेमलता ने अजय को फोन कर के कहा, ‘‘आज तुम्हारे भैया गांव जा रहे हैं, तुम यहां आ सकते हो?’’

अजय को ऐसे ही किसी निमंत्रण का इंतजार था. शाम को विजय जल्दी घर आ गया. उस ने कहा, ‘‘अम्मा की तबीयत ठीक नहीं है. मैं ने फोन कर के पापा को कह दिया है कि अम्मा को यहां मैडिकल में दिखा देंगे. अब अम्मा कुछ दिनों तक हमारे पास ही रहेंगी.’’

यह सुनते ही प्रेमलता बोली, ‘‘अम्मा को गांव के वैद्यजी की दवा से फायदा होता है. खामख्वाह यहां आ कर परेशान होंगी.’’

विजयपाल ने प्रेमलता की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया और चला गया. पति के जाने के बाद प्रेमलता ने अजय को बता दिया कि रास्ता साफ है.

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अजय कुछ ही देर में आ गया और घर के एकांत में देवरभाभी का पवित्र रिश्ता पाप में डूब गया. पूरी रात दोनों एकदूसरे के आगोश में रहे.

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ताजमहल की नगरी में

खुदकुशी का अनोखा मामला, जांघ पर लिखा हाल ए दिल

पति द्वारा सताए जाने की दहशत पत्नी के दिलोदिमाग पर इस कदर हावी थी कि सुसाइड करने से पहले पति को सबक सिखाने के लिए क्या किया जाए के बारे में कई बार सोचा होगा. फिर अंत में पत्नी ने ऐसी जगह को चुना, जहां हर किसी की निगाह ही न जाए यानी जांघ पर सुसाइड नोट लिख कर हर किसी को हैरत में डाल दिया.

भले ही अपनी जिंदगी को खत्म करना इतना आसान नहीं होता, लेकिन फिर भी कई बार लोग सुसाइड करने पर मजबूर हो जाते हैं.

30 साला महिला अपने पति से इतनी डरी हुई थी कि उस ने सुसाइड नोट लिखने के लिए अपने शरीर का गुप्त हिस्सा जांघ चुना. यह खुलासा पोस्टमार्टम के दौरान पुलिस द्वारा बनाए जा रहे पंचनामे से हो पाया.

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जी हां, चौंकाने वाला यह अजीबोगरीब मामला राजस्थान के उदयपुर जिले के सेमारी थाना क्षेत्र के मल्लाड़ा गांव का है. पति खेमराज की प्रताड़ना से तंग हो कर रेखा मेघवाल नाम की महिला ने जहर खा लिया. जहर खाने से पहले उस ने अपनी जांघ पर सुसाइड नोट लिख कर पति को सजा देने की गुहार लगाई.

रेखा अपने पति से इस कदर डरी हुई थी कि उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वो सुसाइड नोट कहां लिखे? जब पुलिस ने उस की जांघ पर लिखा सुसाइड नोट देखा तो हैरान रह गई.

रेखा ने साफसाफ लिखा कि अगर वह कागज पर सुसाइड नोट लिखती तो उस का पति फाड़ देता. दीवार पर लिखती तो मिटा देता. कहीं और छिपा कर रखती तो ढूंढ़ लेता. यही वजह है कि उसे जांघ से बेहतर कोई जगह नजर नहीं आई क्योंकि वहां पर उस की नजर नहीं पड़ती, इसलिए उस ने ऐसी जगह को चुना.

suicides

रेखा मेघवाल ने गुरुवार, दिनांक 27 अगस्त, 2020 की सुबह साढे़ 7 बजे जहर खा लिया था. पति और उस के घर वाले उसे तुरंत ही सलूंबर अस्पताल ले गए, लेकिन महिला को बचाया न जा सका.

पुलिस के मुताबिक, एक साल पहले खेमराज रेखा को नाता प्रथा के तहत ले आया था. रेखा के कोई औलाद नहीं थी, वहीं खेमराज की यह तीसरी शादी थी. खेमराज पहले से ही शादीशुदा था और उस के 4 बच्चे थे. एक बेटे की शादी हो चुकी है. बेटे की शादी के बाद से ही घर के सभी लोगों ने उस के साथ बुरा बरताव करना शुरू कर दिया. यहां तक कि उसे सताया जाना शुरू कर दिया. इस वजह से वह हमेशा डरी रहती थी.

मानसिक और शारीरिक परेशानी झेल रही रेखा ने अंत में आत्महत्या का रास्ता चुना. आत्महत्या का कारण सभी के सामने आए, इस के लिए उस ने सुसाइड नोट अपनी जांघ पर लिख दिया.

यह तो अच्छा हुआ कि पोस्टमार्टम के दौरान पुलिस द्वारा पंचनामा तैयार करते समय नजर चली गई और मामले का खुलासा हो गया.

साफ है कि रेखा के मन में पति द्वारा सताए जाने का खौफ मरते दम तक देखा गया. वहीं सुसाइड नोट से महिला के सताए जाने की पूरी कहानी पुलिस की समझ में आ गई.

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जहर खाने से पहले महिला ने जांघ पर 14 लाइन का सुसाइड नोट लिखा. इस में लिखा कि पति कहता था कि तेरे जैसी 17 और ले आऊंगा. लेकिन तुझे पहले खत्म कर दूंगा. वह हमेशा कहता था कि इतना मजबूर कर दूंगा कि तू सुसाइड कर ले. अगर कहीं सुसाइड लैटर किसी को लिख कर दिया तो उस को भी खत्म कर दूंगा. इसलिए मैं मजबूरी में यह लाइनें जांघ पर लिख रही हूं.

पुलिस ने पति खेमराज के खिलाफ महिला को आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया है. देखते हैं कि आने वाले समय में पति के खिलाफ पुलिस या अदालत क्या कार्यवाही करती है.

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