जिस्म का मुआवजा

जुलूस शहर की बड़ी सड़क से होता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था. औरतों के हाथों में बैनर थे, जिन में से एक पर मोटेमोटे अक्षरों में लिखा हुआ था, ‘हम जिस्मफरोश नहीं हैं. हमें भी जीने का हक है. औरत का जिस्म खिलौना नहीं है…’ लोग उन्हें पढ़ते, कुछ पढ़ कर चुपचाप निकल जाते, कुछ मनचले भद्दे इशारे करते, तो कुछ मनचले जुलूस के बीच घुस कर औरतों की छातियों पर चिकोटी काट लेते. औरतें चुपचाप सहतीं, बेखबर सी नारे लगाती आगे बढ़ती जा रही थीं.

वे सब मुख्यमंत्री के पास इंसाफ मांगने जा रही थीं. इंसाफ की एवज में अपनी इज्जत की कीमत लगाने, अपने उघड़े बदन को और उघाड़ने, गरम गोश्त के शौकीनों को ललचाने. शायद इसी बहाने उन्हें अपने दर्द का कोई मरहम मिल सके. उन के माईबाप सरकार को बताएंगे कि उन की बेटी, बहन, बहू के साथ कब, क्या और कैसे हुआ? करने वाला कौन था? उन की देह को उघाड़ने वाला, नोचने वाला कौन था?

औरतों के जिस्म का सौदा हमेशा से होता रहा है और होता रहेगा. ये वे अच्छी तरह जानती हैं, लेकिन वे सौदे में नुकसान की हिमायती नहीं हैं. घर वाले बतातेबताते यह भूल जाएंगे कि शब्दों के बहाने वे खुद अपनी ही बेटियोंऔरतों को चौराहों पर, सभाओं में या सड़कों पर नंगा कर रहे हैं. उन की इज्जत के चिथड़े कर रहे हैं, लेकिन जुलूस वालों की यह सोच कहां होती है? उन्हें तो मुआवजा चाहिए, औरत की देह का सरकारी मुआवजा.

अखबार के पहले पेज पर मुख्यमंत्रीजी के साथ छपी तसवीर ही शायद उन के दर्द का मरहम हो. चाहे कुछ भी हो, लेकिन लोग उन्हें देखेंगे, पढ़ेंगे और यकीनन हमदर्दी जताने के बहाने उन के घर आ कर उन के जख्म टटोलतेटटोलते खुद कोई चीरा लगा जाएंगे. भीड़ में इतनी सोच और समझ कहां होती है. पर मगनाबाई इतनी छोटी सी उम्र में भी सब समझने लगी थी. लड़की जब एक ही रात में औरत बना दी जाती है, तब न समझ में आने वाली बातें भी समझ में आने लगती हैं. मर्दों के प्रति उस का नजरिया बदल जाता है.

15 साल की मगनाबाई 8 दिन की बच्ची को कंधे से चिपकाए जुलूस में चल रही थी. उस के साथ उस जैसी और भी लड़कियां थीं. किसी की सलवार में खून लगा था, कपड़े फटे और गंदे थे. किसी के गले और मुंह पर खरोंचों के निशान साफ नजर आ रहे थे. अंदर जाने कितने होंगे. किसी का पेट बढ़ा था. क्या ये सब अपनीअपनी देह उघाड़ कर दिखाएंगी? कैसे बताएंगी कि उस रात कितने लोगों ने…

मगनाबाई का गला सूखने लगा. कमजोरी के चलते उसे चक्कर आने लगे. लगा कि कंधे से चिपकी बच्ची छूट कर नीचे गिर जाएगी और जुलूस उस को कुचलता हुआ निकल जाएगा. जो कुचली जाएगी, उस के साथ किसी की भी हमदर्दी नहीं होगी. मगनाबाई ने साथ चलती एक औरत को पकड़ लिया. उस औरत ने मगनाबाई पर एक नजर डाली, उस की पीठ थपथपाई, ‘‘बच्ची, जब इतनी हिम्मत की है, तो थोड़ी और सही. अब तो मंजिल के करीब आ ही गए हैं. भरोसा रख. कहीं न कहीं तो इंसाफ मिलेगा…’’

कहने वाली औरत को मगनाबाई ने देखा. मन हुआ कि हंसे और पूछे, ‘भला औरत की भी कोई मंजिल होती है? किस पर भरोसा रखे? भेडि़यों से इंसाफ की उम्मीद तुम्हें होगी, मुझे नहीं,’ नफरत से उस ने जमीन पर थूक दिया. कंधे से चिपकी बच्ची रोए जा रही थी. मगनाबाई का मन हुआ कि जलालत के इस मांस के लोथड़े को पैरों से कुचल जाने के लिए जमीन पर गिरा दे. उसे लगा कि बच्ची बहुत भारी होती जा रही है. उस के कंधे बोझ उठाने में नाकाम लग रहे थे. जुलूस के साथ पैरों ने आगे बढ़ने से मना कर दिया था.

मगनाबाई कुछ देर वहीं खड़ी रही. जुलूस को उस ने आगे बढ़ जाने दिया. सड़क खाली हुई, तो उस की नजर सड़क के किनारे लगे हैंडपंप पर पड़ी. उस ने दौड़ कर किसी तरह बच्ची को गोद में उठाए ही पानी पीया. फिर वह एक बंद दुकान के चबूतरे पर रोती बच्ची को लिटा कर दीवार की टेक लगा कर बैठ गई. बच्ची ने लेटते ही रोना बंद कर दिया. मगनाबाई को भी सुकून मिला. कुनकुनी धूप उसे भली लगी. वह भी बच्ची के करीब लेट गई. उस की आंखें मुंदने लगीं.

मगनाबाई इस जुलूस के साथ आना नहीं चाहती थी. गप्पू भाई और भोला चाचा ही उसे बिस्तर से घसीट कर जुलूस के साथ ले आए. उस की आंखों के सामने बस्ता ले कर स्कूल जाती चंपा, गंगा और जूही नाच उठीं, लेकिन अब उस का बस्ता छूट गया और बस्ते की जगह इस बच्ची ने ले ली. गप्पू भाई और भोला चाचा कहते थे कि मगनाबाई पहले की तरह स्कूल जा सकेगी. इस बच्ची को किसी अनाथालय में डाल देंगे. वह फिर पहले की तरह हो जाएगी. बस, मुख्यमंत्री से मुआवजा मिल जाए. वे दोनों इन औरतों को दलदल से निकालने वाली संस्था के पैरोकार थे. जब भी पुलिस की रेड पड़नी होती थी, वे दोनों और उन की रखैलें इन औरतों के साथ बदसलूकी न हो, इसलिए साथ होते. जब भी वे दोनों साथ होते, तो पुलिस वाले रहम से पेश आते थे. आमतौर पर प्रैस रिपोर्टर भी पहुंचे होते थे. वे दोनों कई बार गोरी चमड़ी वाली लड़कियों को भी लाते थे.

उन दोनों का खूब रोब था, क्योंकि दलालों को अगर डर लगता था, तो उन से ही. उन दोनों ने मुख्यमंत्री के सामने धरनेप्रदर्शन का प्रोग्राम बनाया था और पुलिस से मिल कर जुलूस का बंदोबस्त करा था. क्या मजाल है कि ये मिलीजुली जिस्म बेचने वाली थुलथुल लड़कियां इस तरह बाजार में निकल सकें. मगनाबाई को कहा गया था कि वे दोनों मुआवजा मांग रहे हैं. इस से स्कूल खुलवाएंगे. इन की जिंदगी खुशहाल होगी. तभी मगनाबाई के विचारों को झटका लगा. मुआवजा किस बात का? किसे मिलेगा? क्या इसलिए कि 9 महीने तक इस बच्ची को बस्ते की जगह पेट में लादे घूमती रही थी? बारीबारी से लोगों का वहशीपन सहती रही थी? या फिर मुआवजे के रूप में गप्पू और भोला की पीठ ठोंकी जाएगी कि उन्होंने बेटी और बहन को अपनी मर्दानगी से परिचित कराया? सरकार उस की भी पीठ ठोंकेगी कि वह स्कूल जाने की उम्र में मां बनना सीख गई?

क्या सरकार उस से पूछेगी कि उसे मां किस तरह बनाया गया? क्या वह बता पाएगी कि उस के भाई ने पहली बार उस के हाथपैर खाट की पाटियों से बांध कर उसे चाचा को सौंप दिया था? चाचा ने भी इस के बदले भाई को मुआवजा दिया था और फिर भाई ने भी चाचा की तरह वही सब उस के साथ दोहराया था. यही सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा. उसे डर दिखाया जाता कि अगर किसी से इस बात का जिक्र किया, तो काट कर फेंक दिया जाएगा. मुआवजे के रूप में यह बच्ची उस की कोख में आ गई. पता नहीं, दोनों में से किस की थी? क्या इन तमाम औरतों के साथ भी इसी की तरह…

बच्ची दूध पी कर सो गई थी. तभी किसी ने बाल पकड़ कर मगनाबाई को झकझोरा, ‘‘तो यहां है नवाबजादी?’’ मगनाबाई ने मुड़ कर देखा. भोला चाचा जलती आंखों से उसे देख रहा था.

‘‘मैं नहीं जाऊंगी. अब मुझ से नहीं चला जाता,’’ मगनाबाई ने कहा. ‘‘चला तो तुझ से अभी जाएगा. चलती है या उतारूं सब के सामने…’’

लोग सुन कर हंस पड़े. वे चटपटी बात सुन कर मजेदार नजारा देखने के इच्छुक थे. उसे लगा कि यहां मर्द नहीं, महज जिस्मफरोश हैं. डरीसहमी मगनाबाई बच्ची को उठा कर धीरेधीरे उन के पीछे चल दी.

भोला चाचा ने मगनाबाई को पीछे से जोरदार लात मारी. उस के मुंह से निकला, ‘‘हम जिस्मफरोश नहीं हैं. हमारी मांगें पूरी करो… पूरी करो…’’

प्यार का चसका : अमित और रंभा ने की मस्ती

शहर के कालेज में पढ़ने वाला अमित छुट्टियों में अपने गांव आया, तो उस की मां बोली, ‘‘मेरी सहेली चंदा आई थी. वह और उस की बेटी रंभा तुझे बहुत याद कर रही थीं. वह कह गई है कि तू जब गांव आए तो उन से मिलने उन के गांव आ जाए, क्योंकि रंभा अब तेरे साथ रह कर अपनी पढ़ाई करेगी.’’

यह सुन कर दूसरे दिन ही अमित अपनी मां की सहेली चंदा से मिलने उन के गांव चला गया था.

जब अमित वहां पहुंचा, तो चंदा और उन के घर के सभी लोग खेतों पर गए हुए थे. घर पर रंभा अकेली थी. अमित को देख कर वह बहुत खुश हुई थी.

रंभा बेहद खूबसूरत थी. उस ने जब शहर में रह कर अपनी पढ़ाई करने की बात कही, तो अमित उस से बोला, ‘‘तुम मेरे साथ रह कर शहर में पढ़ाई करोगी, तो वहां पर तुम्हें शहरी लड़कियों जैसे कपड़े पहनने होंगे. वहां पर यह चुन्नीवुन्नी का फैशन नहीं है,’’ कह कर अमित ने उस की चुन्नी हटाई, तो उस के हाथ रंभा के सुडौल उभारों से टकरा गए. उस की छुअन से अमित के बदन में बिजली के करंट जैसा झटका लगा था.

ऐसा ही झटका रंभा ने भी महसूस किया था. वह हैरान हो कर उस की ओर देखने लगी, तो अमित उस से बोला, ‘‘यह लंबीचौड़ी सलवार भी नहीं चलेगी. वहां पर तुम्हें शहर की लड़की की तरह रहना होगा. उन की तरह लड़कों से दोस्ती करनी होगी. उन के साथ वह सबकुछ करना होगा, जो तुम गांव की लड़कियां शादी के बाद अपने पतियों के साथ करती हो,’’ कह कर वह उस की ओर देखने लगा, तो वह शरमाते हुए बोली, ‘‘यह सब पाप होता है.’’

‘‘अगर तुम इस पापपुण्य के चक्कर में फंस कर यह सब नहीं कर सकोगी, तो अपने इस गांव में ही चौकाचूल्हे के कामों को करते हुए अपनी जिंदगी बिता दोगी,’’ कह कर वह उस की ओर देखते हुए बोला, ‘‘तुम खूबसूरत हो. शहर में पढ़ाई कर के जिंदगी के मजे लेना.’’

इस के बाद अमित उस के नाजुक अंगों को बारबार छूने लगा. उस के हाथों की छुअन से रंभा के तनबदन में बिजली का करंट सा लग रहा था. वह जोश में आने लगी थी.

रंभा के मांबाप खेतों से शाम को ही घर आते थे, इसलिए उन्हें किसी के आने का डर भी नहीं था. यह सोच कर रंभा धीरे से उस से बोली, ‘‘चलो, अंदर पीछे वाले कमरे में चलते हैं.’’ यह सुन कर अमित उसे अपनी बांहों में उठा कर पीछे वाले कमरे में ले गया. कुछ ही देर में उन दोनों ने वह सब कर लिया, जो नहीं करना चाहिए था.

जब उन दोनों का मन भर गया, तो रंभा ने उसे देशी घी का गरमागरम हलवा बना कर खिलाया. हलवा खाने के बाद अमित आराम करने के लिए सोने लगा. उसे सोते हुए देख कर फिर रंभा का दिल उसके साथ सोने के लिए मचल उठा.

वह उस के ऊपर लेट कर उसे चूमने लगी, तो वह उस से बोला, ‘‘तुम्हारा दिल दोबारा मचल उठा है क्या?’’

‘‘तुम ने मुझे प्यार का चसका जो लगा दिया है,’’ रंभा ने अमित के कपड़ों को उतारते हुए कहा. इस बार वे कुछ ही देर में प्यार का खेल खेल कर पस्त हो चुके थे, क्योंकि कई बार के प्यार से वे दोनों इतना थक चुके थे कि उन्हें गहरी नींद आने लगी थी.

शाम को जब रंभा के मांबाप अपने खेतों से घर लौटे, तो अमित को देख कर खुश हुए.

रंभा भी उस की तारीफ करते नहीं थक रही थी. वह अपने मांबाप से बोली, ‘‘अब मैं अमित के साथ रह कर ही शहर में अपनी पढ़ाई पूरी करूंगी.’’

यह सुन कर उस के पिताजी बोले, ‘‘तुम कल ही इस के साथ शहर चली जाओ. वहां पर खूब दिल लगा कर पढ़ाई करो. जब तुम कुछ पढ़लिख जाओगी, तो तुम्हें कोई अच्छी सी नौकरी मिल जाएगी. तुम्हारी जिंदगी बन जाएगी.’’

‘‘फिर किसी अच्छे घर में इस की शादी कर देंगे. आजकल अच्छे घरों के लड़के पढ़ीलिखी बहू चाहते हैं,’’ रंभा की मां ने कहा, तो अमित बोला, ‘‘मैं दिनरात इसे पढ़ा कर इतना ज्यादा होशियार बना दूंगा कि फिर यह अच्छेअच्छे पढ़ेलिखों पर भारी पड़ जाएगी.’’

रंभा की मां ने अमित के लिए खाने को अच्छेअच्छे पकवान बनाए. खाना खाने के बाद बातें करते हुए उन्हें जब रात के 10 बज गए, तब उस के सोने का इंतजाम उन्होंने ऊपर के कमरे में कर दिया.

जब अमित सोने के लिए कमरे में जाने लगा, तो चंदा रंभा से बोली, ‘‘कमरे में 2 पलंग हैं. तुम भी वहीं सो जाना. वहां पर अमित से बातें कर के शहर के रहनसहन और अपनी पढ़ाईलिखाई के बारे में अच्छी तरह पूछ लेना.’’

यह सुन कर रंभा मुसकराते हुए बोली, ‘‘जब से अमित घर पर आया है, तब से मैं उस से खूब जानकारी ले चुकी हूं. पहले मैं एकदम अनाड़ी थी, लेकिन अब मुझे इतना होशियार कर दिया है कि मैं अब सबकुछ जान चुकी हूं कि असली जिंदगी क्या होती है?’’

यह सुन कर चंदा खुशी से मुसकरा उठी. वे दोनों ऊपर वाले कमरे में सोने चले गए थे. कमरे में जाते ही वे दोनों एकदूसरे पर टूट पड़े. शहर में आ कर अमित ने रंभा के लिए नएनए फैशन के कपड़े खरीद दिए, जिन्हें पहन कर वह एकदम फिल्म हीरोइन जैसी फैशनेबल हो गई थी. अमित ने एक कालेज में उस का एडमिशन भी करा दिया था.

जब उन के कालेज खुले, तो अमित ने अपने कई अमीर दोस्तों से उस की दोस्ती करा दी, तो रंभा ने भी अपनी कई सहेलियों से अमित की दोस्ती करा दी. गांव की सीधीसादी रंभा शहर की जिंदगी में ऐसी रम गई थी कि दिन में अपनी पढ़ाई और रात में अमित और उस के दोस्तों के साथ खूब मौजमस्ती करती थी.

जब रंभा शहर से दूसरी लड़कियों की तरह बनसंवर कर अपने गांव जाती, तब सभी लोग उसे देख कर हैरान रह जाते थे. उसे देख कर उस की दूसरी सहेलियां भी अपने मांबाप से उस की तरह शहर में पढ़ने की जिद कर के शहर में ही पढ़ने लगी थीं.

अब अमित उस की गांव की सहेलियों के साथ भी मौजमस्ती करने लगा था. उस ने रंभा की तरह उन को भी प्यार का चसका जो लगा दिया था.

चिंता : आखिर क्या था लता की चिंताओं कारण?

बुधवार को दिन भर लता अपने पति के लौटने की प्रतीक्षा करती रही. घर के मुख्यद्वार पर जरा सी आहट होने पर उस की निगाहें खुद ब खुद बाहर की ओर उठ जाती थीं. एक बार तो उसे लगा जैसे कोई दरवाजे पर दस्तक दे रहा हो. आशा भरे मन से उस ने दरवाजा खोला. देखा तो एक पिल्ला दरवाजे से अंदर घुसने का व्यर्थ प्रयास कर रहा था, जिस के कारण खटखट की आवाज हो रही थी. देख कर लता के होंठों पर मुसकराहट तैर गईर्. अगले ही पल निराश हो कर वह फिर लौट आई.

पिछले शनिवार को उस के पति इलाहाबाद गए थे. उस दिन अचानक उन्हें अपने मुख्य अधिकारी की ओर से इलाहाबाद जाने का आदेश प्राप्त हुआ था. कुछ गोपनीय कागजात सुबह तक वहां जरूरी पहुंचाए जाने थे, इसलिए वह रात की गाड़ी से ही रवाना हो गए थे. लता को यह बता कर गए थे कि एकदो दिन का ही काम है, मंगलवार को वह हर हालत में वापस लौट आएंगे.

मंगलवार की शाम तक तो लता को अधिक फिक्र नहीं थी परंतु जब बुधवार की शाम तक भी उस के पति नहीं लौटे तो उसे चिंता सताने लगी. उसे लगा, जैसे उन्हें घर से गए महीनों बीत गए हों. जब देर रात गए तक भी पति महोदय नहीं आए तो उस के मन में बुरेबुरे विचार आने लगे. वह सोने का असफल प्रयास करने लगी. कभी एक ओर करवट लेती तो कभी दूसरी ओर, पर नींद जैसे उस से कोसों दूर थी.

‘कहां रुक सकते हैं वह,’ लता सोचने लगी, ‘कहीं गाड़ी न छूट गई हो. लेकिन अगर गाड़ी छूट गई होती तो अगली गाड़ी भी पकड़ सकते थे. कल न सही, आज तो आ ही सकते थे.

‘हो सकता है उन की जेब कट गई हो और सभी पैसे निकल गए हों. ऐसे में उन्हें बड़ी मुश्किल हो गई होगी. वापसी पर टिकट लेने के लिए उन के सामने विकट समस्या खड़ी हो गई होगी.’

पर दूसरे ही क्षण लता उस का समाधान भी खोजने लगी, ‘इस के बावजूद तो कई उपाय थे. वहां स्थित अपने कार्यालय के शाखा अधिकारी को अपनी समस्या बता कर पैसे उधार मांग सकते थे. वहां के शाखा अधिकारी यहीं से तो स्थानांतरित हो कर गए हैं और उन के अच्छे दोस्त भी हैं. हां, उन की कलाई पर घड़ी भी तो बंधी है, उसे बेच सकते हैं. नहीं, उन की जेब नहीं कटी होगी. अब तक न आ सकने का कोई और ही कारण रहा होगा.

‘हो सकता है स्टेशन पर उन का सामान चुरा लिया गया हो. तब तो वह बड़ी मुसीबत में फंस गए होंगे. उन के ब्रीफकेस में तो दफ्तर के बहुत सारे महत्त्वपूर्ण कागज थे. यदि ऐसा हो गया तो अनर्थ हो जाएगा. फिर तो उन्हें नौकरी से निकाल दिया जाएगा. अपनी नौकरी के बचाव के लिए अधिकारियों के सामने गिड़गिड़ाना पड़ेगा. कैसी भयावह स्थिति होगी वह?’

यह सोच कर लता की आंखों के सामने कई प्रकार के भयानक दृश्य घूमने लगे.

‘नौकरी छूट गई तो दरदर भटकना पड़ेगा. आजकल दूसरी नौकरी कहां मिलती है? हर महीने मिलने वाला वेतन एकदम बंद हो जाएगा. तनख्वाह के बिना गुजारा कैसे चलेगा? मकान का किराया कहां से देंगे? बच्चों की फीस, किताबें, घर का अन्य खर्च, इतना सबकुछ. कटकटा कर उन्हें हर माह 2,200 रुपए तनख्वाह मिलती है. सब का सब घर के अंदर व्यय हो जाता है. लेकिन अगर यह पैसा भी मिलना बंद हो गया तो कहां से करेंगे ये सब खर्च?

‘यदि ऐसी नौबत आ गई तो कोई अन्य उपाय करना होगा…हां, अपने मायके से कुछ मदद लेनी होगी. पर वह भी आखिर कब तक हमारी सहायता करेंगे? बाबूजी, मां, भैया, भाभी और उन के छोटेछोटे बच्चे…उन का भी भरापूरा परिवार है. उन के अपने भी तो बहुत सारे खर्चे हैं. अंत में तो उन्हें खुद ही कुछ न कुछ अपनी आमदनी का उपाय करना होगा.

‘हां, एक बात हो सकती है,’ लता को उपाय सूझा, ‘मैं अपने पिताजी से कहसुन कर उन्हें कोई छोटीमोटी दुकान खुलवा दूंगी. कितने कष्टदायक दिन होंगे वे भी. क्या हमारे लिए दूसरों का मोहताज बनने की नौबत आ जाएगी.’

लता सोचतेसोचते एक बार फिर वर्तमान में लौट आईर्. दोनों बच्चे चारपाई पर हर बात से बेखबर गहरी नींद सो रहे थे. वह सोचने लगी, ‘काश, वह खुद भी एक बच्ची होती.’

बाहर घुप अंधेरा छाया हुआ था. दूर कहीं से कुत्ते भूंकने की आवाज रात के सन्नाटे को तोड़ रही थी. उस ने अनुमान लगाया कि रात के 12 बज चुके होंगे. उस ने सिर को झटका दिया, ‘मैं तो यों ही जाने क्याक्या सोचने लगी हूं. बाहर जाने वाले को किसी कारण ज्यादा दिन भी तो लग सकते हैं.’

लता ने अपने मन को समझाने की पूरीपूरी कोशिश की. दुश्ंिचताएं उस का पीछा नहीं छोड़ रही थीं. न चाहते हुए भी उसे तरहतरह के खयाल सताने लगते थे.

‘नहीं, उन का सामान चोरी नहीं हुआ होगा. तो फिर वह अभी तक लौटे क्यों नहीं थे? कल तो उन्हें जरूर आ जाना चाहिए,’ और तब लता को पति पर रहरह कर गुस्सा आने लगा, अगर ज्यादा ही दिन लगाने थे तो कम से कम तार द्वारा तो सूचना दे ही सकते थे. फोन पर भी बता सकते थे कि वह अभी नहीं आ सकेंगे…आ जाएं एक बार, खूब खबर लूंगी उन की. आएंगे तो दरवाजा ही नहीं खोलूंगी. पर दरवाजा तो खोलना ही होगा. मैं उन से बात ही नहीं करूंगी. बेशक, जितना जी चाहे मनाते रहें. खूब तंग करूंगी. चाय तक के लिए नहीं पूछूंगी. वह समझते क्या हैं अपनेआप को. पता नहीं, जनाब वहां क्या गुलछर्रे उड़ा रहे होंगे. उन्हें क्या पता यहां उन की चिंता  में कोई दिनरात घुले जा रहा है.’

अगले क्षण उसे किसी अज्ञात भय ने घेर लिया, ‘कहीं वह किसी औरत वगैरह के चक्कर में न पड़ गए हों. आजकल बड़ेबडे़ शहरों में कई पेशेवर औरतें केवल अजनबी व्यक्तियों को फंसाने के चक्कर में रहती हैं. जरूर ऐसा ही हुआ होगा. उन्हें फंसा कर उन का सब कुछ लूट लिया होगा. पर ऐसा नहीं हो सकता. वह आसानी से किसी के चंगुल में फंसने वाले नहीं हैं. जरूर कोई अन्य कारण रहा होगा.’ लता के दिलोदिमाग में अजीब तर्कवितर्क चल रहे थे.

ऐसी कौन सी वजह हो सकती है जो वह अभी तक नहीं लौटे. कहीं कोई दुर्घटना वगैरह तो नहीं हो गई? नहीं, नहीं…लता एक बार तो भीतर तक कांप उठी.

‘रिकशा से स्टेशन आते समय कोई दुर्घटना…नहीं, नहीं…बस दुर्घटना या रेलगाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई हो. अगर चोट लगी होगी तो किसी अस्पताल में पड़े कराह रहे होंगे…नहीं, नहीं, उन्हें कुछ नहीं हो सकता.’ लता मन ही मन पति की सलामती के लिए कामना करने लगी.

‘अगर ऐसी कोई दुर्घटना हुई होती तो अब तक अखबार, रेडियो या टेलीविजन पर खबर आ जाती.’

लता चारपाई से उठी और अलमारी में से पिछले 3-4 दिन के समाचारपत्र ढूंढ़ कर ले आई. उस ने अखबारों के सभी पन्ने उलटपलट कर एकएक खबर देख डाली. इलाहाबाद की किसी भी दुर्घटना की खबर नहीं थी.

‘यह मैं क्या उलटासीधा सोचने लगी. कितनी मूर्ख हूं मैं,’ लता ने अपनेआप को चिंता के भंवर से मुक्त करना चाहा. पर उस का व्याकुल मन उसे घेरघार कर फिर वहीं ले आता. उसे लगता, जैसे उस के पति अस्पताल में पड़े मौत से जूझ रहे हों.

‘वहां तो उन की देखभाल करने वाला कोई भी नहीं होगा. बेहोशी की हालत में वह अपना अतापता भी नहीं बता पाए होंगे. कहीं वह वहीं पर दम न तोड़ गए हों. नहीं, नहीं, उन का लावारिस शव…यह सोच कर वह अंदर तक सिहर उठी. उस ने पाया कि उस की आंखें गीली हो गई हैं और आंसुओं की बूंदें उस के गालों पर लुढ़क आईं. अपनी नादान सोच पर उसे हंसी भी आई और गुस्सा भी.

‘यह मुझे क्या होता जा रहा है. जागते हुए भी मुझे कैसेकैसे बुरे सपने आने लगे हैं.’ लता कल्पना की आंखों से देख रही थी कि कुछ लोग उस के पति के शव को गाड़ी पर लाद कर ले आए हैं. घर पर भीड़ जमा हो गई है. चारों ओर हंगामा मचा हुआ है. लोग उस से सहानुभूति जता रहे हैं.’

उस ने एक बार फिर उन विचारों को अपने दुखी मन से झटक देना चाहा, पर विचारों की उड़ान पर किस का वश चलता है.

‘उन के मरने के बाद मेरा क्या होगा? उन के अभाव में यह पहाड़ सी जिंदगी कैसे कटेगी,’ लता के विचारों की शृंखला लंबी होती जा रही थी.

‘नहीं, नहीं, ऐसा नहीं हो सकता. ऐसे में दूसरी शादी…नहीं, नहीं, किस से शादी करूंगी मैं? इस उम्र में कौन थामेगा मेरा हाथ. क्या कोई व्यक्ति उस के दोनों बच्चों को अपनाने के लिए राजी हो जाएगा. कौन करेगा इतना त्याग, पर मैं अभी इतनी बूढ़ी तो नहीं हो गई हूं कि कोई मुझे पसंद न करे. 24 वर्ष की उम्र ही क्या होती है. 2 बच्चों को जन्म देने के बाद भी मैं सुंदर व अल्हड़ युवती सी दिखाई देती हूं. उस दिन पड़ोस वाली कमला चाची कह रही थीं, ‘लता, लगता ही नहीं तुम 2 बच्चों की मां हो. अगर साथ में बच्चे न हों और मांग में सिंदूर न हो तो कोई पहचान ही नहीं सकता कि तुम विवाहिता हो.’

फिर एकाएक लता को सुशील का ध्यान हो आया, ‘सुशील अविवाहित है. कई बार मैं ने सुशील को प्यार भरी नजरों से अपनी ओर निहारते पाया है. वह अकसर मेरे बनाए खाने की तारीफ किया करता है. मुझे खुद भी तो सुशील बहुत अच्छा लगता है. सुशील सुदर्शन है, सभ्य है, मनमोहक व्यक्तित्व वाला है. वह उन का दोस्त भी है. यहां घर पर आताजाता रहता है. मैं किसी के माध्यम से उस के दिल को टोहने का प्रयास करूंगी. यदि वह मान गया तो उस के साथ मेरा जीवन खूब सुखमय रहेगा. वह उन से ऊंचे पद पर भी है. आय भी अच्छी है. उस के पास कार, बंगला सबकुछ है. वह जरूर मुझ से विवाह कर लेगा,’ लता अनायास मन ही मन खुद को सुशील के साथ जोड़ने लगी.

‘मैं सुशील के साथ हनीमून भी मनाने जाऊंगी. वह मुझे कश्मीर ले जाने के लिए कहेगा. मैं ने कभी कश्मीर नहीं देखा है. उन्होंने कभी मुझे कश्मीर नहीं दिखाया. कितनी बार उन से अनुरोध किया कि कभी कश्मीर घुमा लाओ, पर वह हमेशा टालते रहे हैं. पर मुन्ना और मुन्नी? उन को मैं यहीं उन के नानानानी के पास छोड़ जाऊंगी.’

सुशील के साथ प्रेम क्रीड़ा, छेड़छाड़ इत्यादि क्षण भर में ही लता कई बातें अनर्गल सोच गईर्.

कश्मीर का काल्पनिक दृश्य, तसवीरों में देखी डल झील, शिकारे, हाउस बोट, निशात बाग, शालीमार बाग, गुलमर्ग इत्यादि के बारे में सोच कर उस का मन रोमांचित हो उठा.

एकाएक उस की तंद्रा भंग हो गई. बाहर दरवाजे पर दस्तक हो रही थी. लता कल्पनाओं के संसार से मुक्त हो कर एकाएक वास्तविकता के धरातल पर लौट आईर्. अपने ऊटपटांग विचारों को स्मरण कर के वह ग्लानि से भर गई, ‘कितने नीच विचार हैं मेरे. क्या मैं इतना गिर गई हूं? क्या इतनी ही पतिव्रता हूं मैं?’ लता को लगा जैसे अभीअभी उस ने कोई भयंकर सपना देखा हो.

बाहर कोई अब भी दरवाजा खटखटा रहा था. ‘इतनी रात गए कौन हो सकता है?’ लता सोचती हुई उठी और आंगन में आ गईर्. दरवाजा खोला, देखा तो उस के पति ब्रीफकेस हाथ में लिए सामने खड़े मुसकरा रहे थे. वह दौड़ कर उन से लिपट गई.

प्रसन्नता के मारे उस की आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी.

धोखा : काश शशि इतना समझ पाती

घर में चहलपहल थी. बच्चे खुशी से चहक रहे थे. घर की साजसज्जा और मेहमानों के स्वागतसत्कार का प्रबंध करने में घर के बड़ेबुजुर्ग व्यस्त थे.

किंतु शशि का मन उदास था. उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था. दरअसल, आज उस की सगाई थी. घर की महिलाएं बारबार उसे साजश्रृंगार के लिए कह रही थीं लेकिन वह चुपचाप खिड़की से बाहर देख रही थी. उसे कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या करे?

2 महीने पहले जब उस की शादी तय हुई थी तो वह खूब रोई थी. वह किसी और को चाहती थी. लेकिन उस के मातापिता ने उस से पूछे बगैर एक व्यवसायी से उस की शादी पक्की कर दी थी.

वह अभी शहर में होस्टल में रह कर बीएड कर रही थी. वहीं अपने साथ पढ़ने वाले राकेश को वह दिल दे बैठी थी. लेकिन उस ने यह बात अपने मातापिता को नहीं बताई थी क्योंकि वह खुद या राकेश अभी अपने पैरों पर खड़े नहीं हो पाए थे. पढ़ाई पूरी होने में भी 2 साल बाकी थे. इसलिए वह चाहती थी कि शादी 2 साल के लिए किसी तरह से रुकवा ले. उस ने सोचा कि जब परिस्थितियां ठीक हो जाएंगी तो मन की बात अपने मातापिता को बता कर राकेश के लिए उन्हें राजी कर लेगी.

इसीलिए, पिछली छुट्टी में वह घर आई तो अपनी शादी की बात पक्की होने की सूचना पा कर खूब रोई थी. शादी के लिए मना कर दिया था, लेकिन किसी ने उस की एक न सुनी. पिताजी तो एकदम भड़क गए और चिल्लाते हुए बोले थे, ‘शादी वहीं होगी जहां मैं चाहूंगा.’

राकेश को उस ने फोन पर ये बातें बताई थीं. वह घबरा गया था. उस ने कहा था, ‘शशि, तुम शादी के लिए मना कर दो.’

‘नहीं, यह इतना आसान नहीं है. पिताजी मानने को तैयार नहीं हैं.’

‘लेकिन मैं कैसे रहूंगा? अकेला हो जाऊंगा तुम्हारे बिना.’

‘मैं भी तुम्हारे बिना जी नहीं पाऊंगी, राकेश,’ शशि का गला भर आया था.

‘एक काम करो. तुम पहले होस्टल आ जाओ. कोई उपाय निकालते हैं,’ राकेश ने कहा था, ‘मैं रेलवे स्टेशन पर तुम्हारा इंतजार करूंगा. 2 नंबर गेट पर मिलना. वहीं से दोनों होस्टल चलेंगे.’

उदास स्वर में शशि बोली थी, ‘ठीक है. मैं 2 नंबर गेट पर तुम्हारा इंतजार करूंगी.’

तय योजना के अनुसार, शशि रेल से उतर कर 2 नंबर गेट पर खड़ी हो गई. तभी एक कार आ कर शशि के पास रुकी. उस में से राकेश बाहर निकला और शशि के गले लग कर बोला, ‘मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता.’

शशि रोआंसी हो गई. राकेश ने कहा, ‘आओ, गाड़ी में बैठ कर बातें करते हैं.’

‘राकेश कितना सच्चा है,’ शशि ने सोचा, ‘तभी होस्टल जाने के लिए गाड़ी ले आया. नहीं तो औटो से 20 रुपए में पहुंचती. 2 किलोमीटर दूर है होस्टल.’

गाड़ी में बैठते ही राकेश ने शशि का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, ‘शशि, मैं तुम से प्यार करता हूं. तुम नहीं मिलीं, तो अपनी जान दे दूंगा.’

कार सड़क पर दौड़ने लगी.

शशि बोली, ‘नहीं राकेश, ऐसा नहीं करना. मैं तुम्हारी हूं और हमेशा तुम्हारी ही रहूंगी.’

‘इस के लिए मैं ने एक उपाय सोचा है,’ राकेश ने कहा.

‘क्या,’ शशि बोली.

‘हम लोग शादी कर लेते हैं और अपनी नई जिंदगी शुरू करते हैं.’

शशि आश्चर्यचकित हो कर बोली, ‘यह क्या कह रहे हो, तुम्हारा दिमाग तो ठीक है न.’

‘तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है,’ तभी उस ने ड्राइवर से कार रोकने को कहा.

कार एक पुल पर पहुंच गई थी. नीचे नदी बह रही थी. राकेश कार से बाहर आ कर बोला, ‘तुम शादी के लिए हां नहीं कहोगी तो मैं इसी पुल से नदी में कूद कर जान दे दूंगा,’ यह कह कर राकेश पुल की तरफ बढ़ने लगा.

‘यह क्या कर रहे हो, राकेश?’ शशि घबरा गई.

‘तो मैं जी कर क्या करूंगा.’

‘चलो, मैं तुम्हारी बात मानती हूं. लेकिन जान न दो,’ यह कह कर उस ने राकेश को खींच कर वापस कार में बिठा दिया और खुद भी बगल में बैठ कर बोली, ‘लेकिन यह सब होगा कैसे?’

शशि के हाथों को अपने सीने से लगा कर राकेश बोला, ‘अगर तुम तैयार हो तो सब हो जाएगा. हम दोनों आज ही शादी करेंगे.’

शशि चकित रह गई. इस निर्णय पर वह कांप रही थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे? न कहे तो प्यार टूट जाता और राकेश जान दे देता. हां कहे तो मातापिता, रिश्तेदार और समाज के गुस्से का शिकार बनना पड़ेगा.

‘क्या सोच रही हो?’ राकेश ने पूछा.

शशि बोली, ‘यह सब अचानक और इतनी जल्दी ठीक नहीं है, मुझे कुछ सोचनेसमझने का समय तो दो.’

‘इस का मतलब तुम्हें मुझ से प्यार नहीं है. ठीक है, मत करो शादी. मैं भी जिंदा नहीं रहूंगा.’

‘अरे, यह क्या कर रहे हो? मैं तैयार हूं, लेकिन शादी कोई खेल नहीं है. कैसे शादी होगी. हम कहां रहेंगे? घर के लोग नाराज होंगे तो क्या करेंगे? हमारी पढ़ाई का क्या होगा?’ शशि ने कहा.

‘तुम इस की चिंता मत करो. मैं सब संभाल लूंगा. एक बार शादी हो जाने दो. कुछ दिनों बाद सब मान जाएंगे. वैसे अब हम बालिग हैं. अपने जीवन का फैसला स्वयं ले सकते हैं,’ राकेश ने समझाया.

‘लेकिन मुझे बहुत डर लग रहा है.’

‘मैं हूं न. डरने की क्या बात है?’

‘चलो, फिर ठीक है. मैं तैयार हूं,’ डरतेडरते शशि ने शादी के लिए हामी भर दी. वह किसी भी कीमत पर अपना प्यार खोना नहीं चाहती थी.

राकेश खुश हो कर बोला, ‘तुम कितनी अच्छी हो.’

थोड़ी देर बाद कार एक होटल के गेट पर रुकी. राकेश बोला, ‘डरो नहीं, सब ठीक हो जाएगा. हम लोग आज ही शादी कर लेंगे, लेकिन किसी को बताना नहीं. शादी के बाद कुछ दिन हम लोग होस्टल में ही रहेंगे. 15 दिनों बाद मैं तुम्हें अपने घर ले चलूंगा. मेरी मां अपनी बहू को देखना चाहती हैं. वे बहुत खुश होंगी.’

‘तो क्या तुम ने अपनी मम्मीपापा को सबकुछ बता दिया?’

‘नहीं, सिर्फ मम्मी को, क्योंकि मम्मी को गठिया है. ज्यादा चलफिर नहीं पातीं. इसीलिए वे जल्दी बहू को घर लाना चाहती हैं. किंतु पापा नहीं चाहते कि मेरी शादी हो. वे चाहते हैं कि मैं पहले पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ा हो जाऊं, लेकिन वे भी मान जाएंगे फिर हम दोनों की सारी मुश्किलें खत्म हो जाएंगी,’ राकेश बोला.

‘सच, तुम बहुत अच्छे हो.’

‘तो मेरी प्यारी महबूबा, तुम होटल में आराम करो और हां, इस बैग में तुम्हारी जरूरत की सारी चीजें हैं. तुम रात 8 बजे तक तैयार हो जाना. फिर हम दोनों पास के मंदिर में चलेंगे. वहां शादी कर लेंगे. फिर हम होटल में आ जाएंगे. आज हमारी जिंदगी का सब से खुशी का दिन होगा.’

कुछ प्रबंध करने राकेश बाहर चला गया. शशि उधेड़बुन में थी. उस के कुछ समझ में नहीं आ रहा था. अपने मातापिता को धोखा देने की बात सोच कर उसे बुरा लग रहा था, लेकिन राकेश जिद पर अड़ा था और वह राकेश को खोना नहीं चाहती थी.

कब रात के 8 बज गए, पता ही नहीं चला. तभी राकेश आ कर बोला, ‘अरे, अभी तक तैयार नहीं हुई? समय कम है. तैयार हो जाओ. मैं भी तैयार हो रहा हूं.’

‘लेकिन राकेश यह सब ठीक नहीं हो रहा है,’ शशि ने कहा.

‘यदि ऐसा है तो चलो, तुम्हें होस्टल पहुंचा देता हूं. किंतु मुझे हमेशा के लिए भूल जाना. मैं इस दुनिया से दूर चला जाऊंगा. जहां प्यार नहीं, वहां जी कर क्या करना?’ राकेश उदास हो कर बोला.

‘तुम बहुत जिद्दी हो, राकेश. डरती हूं कहीं कुछ बुरा न हो जाए.’

‘लेकिन मैं किसी कीमत पर अपना प्यार पाना चाहता हूं, नहीं तो…’

‘बस राकेश, और कुछ मत कहो.’

1 घंटे में तैयार हो कर दोनों पास के एक मंदिर में पहुंच गए. वहां राकेश के कुछ दोस्त पहले से मौजूद थे.

राकेश मंदिर के पुजारी से बोला, ‘पंडितजी, हमारी शादी जल्दी करा दीजिए.’

जल्दी ही शादी की प्रक्रिया पूरी हो गई. शशि और राकेश एकदूसरे के हो गए. शशि को अपनी बाहों में ले कर राकेश बोला, ‘चलो, अब हम होटल चलते हैं. आज की रात वहीं बितानी है.’

दोनों होटल में आ गए. लेकिन यह दूसरा होटल था. शशि को घबराहट हो रही थी. राकेश बोला, ‘चिंता न करो. अब सब ठीक हो जाएगा. आज की रात हम दोनों की खास रात है न.’

शशि मन ही मन डर रही थी, किंतु राकेश को रोक न सकी. फिर उसे भी अच्छा लगने लगा था. दोनों एकदूसरे में समा गए. कब 2 घंटे बीत गए, पता ही नहीं चला.

‘थक गई न. चलो, पानी पी लो और सो जाओ,’ पानी का गिलास शशि की तरफ बढ़ाते हुए राकेश बोला. शशि ने पानी पी लिया. जल्द ही उसे नींद आने लगी. वह सो गई.

सुबह जब शशि की नींद खुली तो वह हक्काबक्का रह गई. उस के शरीर पर एक भी वस्त्र नहीं था. उस के मुंह से चीख निकल गई. जब उस ने देखा कि कमरे में राकेश के अलावा 3 और लड़के थे. सब मुसकरा रहे थे.

तभी राकेश बोला, ‘चुप रहो जानेमन, यहां तुम्हारी आवाज सुनने वाला कोई नहीं है. ज्यादा इधरउधर की तो तेरी आवाज को हमेशा के लिए खामोश कर देंगे.’

‘यह तुम ने अच्छा नहीं किया, राकेश,’ अपने शरीर को ढकने का प्रयास करती हुई शशि रोने लगी, ‘तुम ने मुझे बरबाद कर दिया. मैं सब को बता दूंगी. पुलिस में शिकायत करूंगी.’

‘नहीं, तुम ऐसा नहीं करोगी अन्यथा हम तुम्हें जिंदा नहीं छोड़ेंगे. वैसे ऐसा करोगी तो तुम खुद ही बदनाम होगी,’ कह कर राकेश हंसने लगा. उस के दोस्त भी हंसने लगे.

शशि का बदन टूट रहा था. उस के शरीर पर जगहजगह नोचनेखसोटने के निशान थे. वह समझ गई कि रात में पानी में नशीला पदार्थ मिला कर पिलाया था राकेश ने. उस के बेहाश हो जाने पर सब ने उस के साथ…

शशि का रोरो कर बुरा हाल हो गया.

राकेश बोला, ‘अब चुप हो जा. जो हो गया उसे भूल जा. इसी में तेरी भलाई है और जल्दी से तैयार हो जा. तुझे होस्टल पहुंचा देता हूं. और हां, किसी से कुछ कहना नहीं वरना अंजाम अच्छा नहीं होगा.’

शशि को अपनी व अपने परिवार की खातिर चुप  रहना पड़ा था.

‘‘अरे, खिड़की के बाहर क्या देख रही हो? जल्दी तैयार हो जा. मेहमान आने वाले होंगे,’’ तभी मां ने उसे झकझोरा तो वह पिछली यादों से वर्तमान में लौटी.

‘‘वह प्यार नहीं धोखा था. उस ने अपने मजे के लिए मेरी सचाई और भावना का इस्तेमाल किया,’’ शशि ने मन ही मन सोचा.

अपने आंसू पोंछते हुए शशि बाथरूम में घुस गई. उसे अपनी नासमझी पर गुस्सा आ रहा था. अपनी जिंदगी का फैसला उस ने दूसरे को करने का हक दे दिया था जो उस की भलाई के लिए जिम्मेदार नहीं था. इसीलिए ऐसा हुआ, लेकिन अब कभी वह ऐसी भूल नहीं करेगी. मुंह पर पानी के छींटे मार कर वह राकेश के दिए घाव के दर्द को हलका करने की कोशिश करने लगी.

मेहमान आ रहे हैं. अब उसे नई जिंदगी शुरू करनी है. हां, नई जिंदगी…वह जल्दीजल्दी सजनेसंवरने लगी.

अधूरी कहानी

बात उन दिनों की है, जब राघव 12वीं जमात पास कर के कालेज में पढ़ने गया था. माली हालत अच्छी न होने की वजह से उसे पापा के पास बेंगलुरु जाना पड़ा और इसी बीच वह वहीं काम भी करने लगा.

समय मिलते ही राघव अपने सारे दोस्तों को मैसेज करता था. वह शायरी का तो शौकीन था ही, हर रोज नईनई शायरी दोस्तों को भेजता और बदले में वे तारीफ भेजते. वे ज्यादातर बातें मैसेज के जरीए ही करते थे.

दोस्तों के अलावा राघव अपनी चचेरी भाभी सोनी को भी मैसेज करता था. वे खड़गपुर में राघव के भाई के साथ रहती थीं. राघव और सोनी दोनों जब भी बातें करते तो ऐसा नहीं लगता था कि कोई देवरभाभी बातें कर रहे हैं. ऐसा लगता था, मानो 2 जिगरी दोस्त बातें कर रहे हों.

एक दिन अचानक राघव के फोन पर एक नंबर से एक प्यारा सा मैसेज आया. वह पढ़ कर बहुत खुश हो गया. लेकिन अगले ही पल वह हैरान रह गया, क्योंकि जब उस नए नंबर पर उस ने फोन किया, तो फोन का जवाब नहीं मिल सका.

राघव ने उसी नंबर पर मैसेज किया, ‘कौन हो तुम?’

उधर से जवाब आया, ‘आप की अपनी दोस्त.’

राघव ने नाम पूछा, तो उस ने बताया नहीं. ‘फिर कभी…’ का मैसेज लिख दिया.

राघव ने सोचा, ‘शायद मेरा ही कोई दोस्त मुझे नए फोन नंबर से परेशान कर रहा है.’

रात को राघव ने उस नंबर पर फोन किया. एक लड़की ने फोन उठाया… और जैसे ही वह ‘हैलो’ बोली, राघव के रोंगटे खड़े हो गए.

राघव ने हकलाते हुए पूछा, ‘‘कौन हो तुम? मेरा नंबर तुम्हें किस ने दिया? तुम कहां से बोल रही हो?’’

उस लड़की ने बताया, ‘मेरा नाम पूजा है?’

इस के बाद उस ने राघव से कहा कि वह उसे पहले से जानती है. उस के बारे में बहुत सारी बातें भी बताईं. वह देखने में कैसा है, उस का कद कितना है वगैरह.

राघव ने पूछा, ‘‘मुझे कहां देखा आप ने?’’

उस लड़की ने कहा, ‘4 महीने पहले मुजफ्फरपुर रेलवे स्टेशन पर देखा था, तभी से नंबर ढूंढ़ रही हूं.’

राघव चौंक गया, क्योंकि ठीक 4 महीने पहले वह अपनी मौसी को छोड़ने वहां गया था. वह खयालीपुलाव पकाते हुए सोचने लगा कि एक अनजान लड़की ने अनजान जगह पर उसे देखा और तब से उस का फोन नंबर ढूंढ़ रही है.

पहले तो वह अनजान था, पर अब राघव दोस्ती के नाते उस से बातें करने लगा.

कुछ ही दिन हुए थे राघव और उस लड़की की दोस्ती को कि इसी बीच उस का एक मैसेज आया, जिस में लिखा था, ‘मुझे माफ कर देना. मैं नहीं चाहती कि हमारी दोस्ती की शुरुआत झूठ से हो. सच तो यह है कि मैं ने आप को कभी देखा ही नहीं. बस, सोनी भाभी के फोन पर आप का मैसेज पढ़ा, जो मुझे बहुत पसंद आया. इस के बाद भाभी से आप का नंबर ले कर मैसेज कर दिया.

‘मैं ने सोचा कि अगर आप को पहले ही सब बता देती, तो आप के बारे में इतना कुछ जानने का मौका न मिलता. इस झूठ के लिए मुझे माफ कर देना और मेरी दोस्ती को स्वीकार करना.’

यह मैसेज पढ़ कर राघव को थोड़ा गुस्सा तो आया, पर दोस्तों से इस बारे में जब उस ने बात की, तो वे भी उस की तारीफ के पुल बांधने लगे. उसे सलाह दी कि लड़की अच्छी है, तभी तो उस ने सब सचसच बता दिया. और तो और वह दोस्ती भी करना चाहती है. ऐसे सच्चे दोस्त कम ही मिलते हैं. उसे फोन कर और दोस्ती की नई शुरुआत कर. फिर क्या था, राघव का दिल बागबाग हो उठा.अगली सुबह राघव ने मैसेज किया, ‘गुड मौर्निंग दोस्त.’

उधर से भी मैसेज आया, जिस में पूछा गया था, ‘मुझे माफ तो कर दिया न? फिर से सौरी ऐंड थैंक्यू… दोस्ती को आगे बढ़ाने के लिए.’

राघव ने भी फिल्मी अंदाज में लिख भेजा, ‘दोस्ती में नो थैंक्स, नो सौरी.’

उन दोनों की दोस्ती परवान चढ़ती गई. पहली बार घर जाते समय राघव उस से खड़गपुर रेलवे स्टेशन पर मिला. ट्रेन वहां ज्यादा देर नहीं रुकी, इसलिए बातें भी न हो सकीं. सिर्फ ‘हायहैलो’ ही हो पाई.

उस समय छठ पूजा की तैयारियां चल रही थीं. राघव घर पर ही था. सोनी भाभी हर साल छठ पूजा के समय गांव आ जातीं. इस बार भी वे आईं, पर अकेली नहीं, पूजा भी साथ थी.

राघव इतना खुश था कि बयां नहीं कर सकता था. उस ने पूजा को अपनी मां और बहनों से मिलवाया. वह पूरा दिन उसी के साथ रहा.

सोनी भाभी कहां चूकने वाली थीं. वे भी ताने कसतीं, ‘‘क्यों देवरजी, क्या इसे यहीं छोड़ दूं हमेशा के लिए?’’

भाभी की ऐसी बातें सुन कर राघव के मन में लड्डू फूटने लगते. काश, ऐसा ही होता.

पूजा थी ही ऐसी. गोरा रंग, लंबी नाक, लंबा कद, पतली कमर, मानो कोई अप्सरा हो. राघव मन ही मन उसे चाहने लगा था. उस के फोन की बैटरी और पैसे खत्म हो जाते, पर बातें नहीं. हर साल छठ पूजा पर पूजा भी सोनी भाभी के साथ उस से मिलने चली आती, लेकिन राघव की कभी हिम्मत नहीं हुई कि वह भी कभी उस के घर जाए.

राघव जब भी गांव आता, उस से स्टेशन पर ही मिल कर चला जाता. प्यार वह भी उस से करती थी, पर बोलती नहीं थी. राघव उस से प्यार का इजहार करवा कर ही रहा.

अब दोस्ती भूल कर प्यारमुहब्बत की बातें होने लगीं. बात शादी तक पहुंच गई. राघव ने हिम्मत कर के पड़ोसियों के जरीए अपने प्यार और शादी की बात मां तक पहुंचा दी.

मां ने इस रिश्ते को एक बार में ही खारिज कर दिया. इस की वजह यह थी कि लड़की उन की बिरादरी की नहीं थी. पढ़ीलिखी है. शहर की रहने वाली है. गांव के बारे में क्या जानती है?

मां के खयाल से शायद पूजा घरपरिवार न संभाल सके. उन को ऐसी लड़की चाहिए थी, जो घर को संभाल सके. घर तो पूजा संभाल ही लेती, पर मां को कौन समझाए. पुराने खयालों वाली मां जो एक बार बोल देती हैं, वही राघव के लिए पत्थर की लकीर हो जाता था.

समय का पहिया अपनी रफ्तार से चलता रहा. राघव के दोस्तों, पड़ोसियों सभी ने उसे सलाह दी कि वह पूजा को भगा ले जाए. मां कुछ दिन नाराज रहेंगी, पर समय के साथ सब ठीक हो जाएगा.

राघव आगेपीछे की सोचने लगा, ‘जैसे हर मां के सपने होते हैं, वैसे ही मेरी मां के भी सपने होंगे. वे सोचती होंगी कि उन के बेटे की शादी होगी. बैंडबाजा बजेगा, वे खुशी के मारे नाचेंगी…’

राघव ने भी सोच लिया था कि पूरे परिवार के सामने उस की शादी होगी. वह अपनी मां के सपनों को नहीं तोड़ सकता.

एक दिन राघव ने पूजा को अपने मन की बात बता दी. वह सुन कर रोने लगी. रोया तो वह भी था.

कुछ सोच कर पूजा ने कहा, ‘‘आप की शादी किसी से भी हो, पर आप हमेशा खुश रहना. मां का दिल कभी मत तोड़ना. आप वहीं शादी कीजिएगा, जहां आप की मां चाहती हैं. जब तक हम दोनों में से किसी एक की शादी नहीं होती, तब तक हम दोस्ती के नाते बातें तो कर ही सकते हैं.’’

फिर पूजा छठ पूजा पर गांव नहीं आई. राघव भी उदास रहने लगा. उन दोनों ने क्याक्या सपने देखे थे कि शादी होगी, शादी के बाद घर पर ही वह कोई काम करेगा, पूजा बच्चों को ट्यूशन पढ़ाएगी और वह दुकान चलाएगा.

कहते हैं न कि आदमी जो सोचता है, वह हमेशा पूरा होता है, बल्कि सच में सोचा हुआ काम कभी पूरा नहीं होता. जो राघव ने सोचा था, वह सब तो अधूरा ही रह गया.

तलाक: जाहिरा को शादाब ने क्यों छोड़ दिया

Social Story in Hindi: रात का सारा काम निबटा कर जब जाहिरा बिस्तर पर जा कर सोने की कोशिश कर रही थी, तभी उस के मोबाइल फोन की घंटी शोर करने लगी. जाहिरा बड़बड़ाते हुए बिस्तर से उठी, ‘‘सारा दिन काम करते हुए बदन थक कर चूर हो जाता है. बेटा अलग परेशान करता है. ननद बैठीबैठी और्डर जमाती है… न दिन को चैन, न रात को आराम…’’ फिर वह मोबाइल फोन पर बोली, ‘‘हैलो, कौन?’’ ‘मैं शादाब, तुम्हारा शौहर,’ उधर से आवाज आई.‘‘जी…’’ कहते हुए जाहिरा खुशी से उछल पड़ी, ‘‘जी, कैसे हैं आप?’’ ‘मैं ठीक हूं. मेरी बात ध्यान से सुनो. मैं तुम्हें तलाक दे रहा हूं. आज से मेरातुम्हारा मियांबीवी का रिश्ता खत्म. मैं यह बात अम्मी और खाला के सामने बोल रहा हूं. तुम आज से आजाद हो. मेरे घर में रहने का तुम्हें कोई हक नहीं है. बालिग होने पर मेरा बेटा मेरे पास आ जाएगा,’ कह कर शादाब ने मोबाइल फोन काट दिया.

‘‘सुनिए… सुनिए…’’ जाहिरा ने कई बार कहा, पर मोबाइल फोन बंद हो चुका था.

जाहिरा ने नंबर मिला कर बात करनी चाही, पर शादाब का मोबाइल फोन बंद मिला. जाहिरा को अपने पैरों के नीचे की जमीन खिसकती नजर आई. आंसुओं की झड़ी लग गई. बिस्तर पर उस का एक साल का बेटा बेसुध सोया था. उसे देख कर जाहिदा के आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे.

जाहिरा दौड़ीदौड़ी अपने ससुर हसन मियां के कमरे में पहुंची. उस की सास शादाब के पास दुबई में थीं. जाहिरा ने दरवाजे के बाहर से आवाज दी, ‘‘अब्बू, दरवाजा खोलिए…’’

‘‘क्या बात है? क्यों चीख रही है?’’ शादाब के अब्बू हसन मियां ने कहा.

‘‘अब्बू…’’ लड़खड़ाते हुए जाहिरा ने कहा ‘‘शादाब ने मुझे फोन पर तलाक दे दिया है,’’ इतना कह कर वह रो पड़ी.

‘‘तो मैं क्या करूं…? यह तुम मियांबीवी के बीच का मामला है. तुम जानो और तुम्हारा शौहर…’’ कह कर हसन मियां ने दरवाजा बंद कर लिया. जाहिरा रोतेरोते अपने कमरे में आ गई.

रात यों ही बीत गई. सुबह जाहिरा ने उठ कर देखा कि रसोईघर के दरवाजे पर ताला लटक रहा था. वह परेशान हो गई और पड़ोसियों को पूरी बात बताई. पर पड़ोसी हसन मियां के पक्ष में थे. वह मन मार कर लौट आई. पड़ोस में रहने वाली विधवा चाची ने जाहिरा को समझाया, ‘‘बेटी, तू फिक्र न कर. मसजिद के हाफिज के पास जा. शायद, वहां इस मसले का कोई हल निकले.’’

उस इलाके की मसजिद के सारे खर्चे माली मदद से चलते थे. हसन मियां मसजिद के सदर थे. हाफिज के पास जाहिरा की शिकायत बेकार साबित हुई. उन्होंने कहा कि शौहर ने तलाक दे दिया है, अब कुछ नहीं हो सकता.

जाहिरा ने कहा, ‘‘हाफिज साहब, फोन पर दिया गया तलाक नाजायज है. मेरी कोई गलती नहीं है. न शौहर से कोई अनबन, अचानक मुझे तलाक…’’ कह कर वह रो पड़ी, ‘‘मेरी गोद में उन का ही बच्चा है. इस की परवरिश कैसे होगी? मेरा क्या कुसूर है? ‘‘शरीअत में ऐसा कुछ नहीं है. आप एक औरत पर जुल्म ढा रहे हैं. मर्द की हर बात अगर जायज है, तो औरत की भी जायज मानो.’’

जाहिरा मौलवी को खूब खरीखोटी सुना कर वापस आ गई और शौहर के खिलाफ कोर्ट में जाने का मन बना लिया. घर आ कर जाहिरा ने देखा कि घर के बाहर दरवाजे पर ताला लटक रहा था. बिना कुछ कहे वह अपने बेटे को मायके ले कर आ गई. घर पर मांबाप को सारी बात बता कर उस ने तलाक के खिलाफ आवाज उठाने का मन बना लिया

और फिर समाज के उन मुल्लाहाफिजों के खिलाफ मोरचा खोल दिया, जो शरीअत के नाम पर लोगों पर दबाव बनाते हैं. ‘‘देहात की गंवार औरत को तुम्हारे गले से बांध दिया था. कहां तुम पढ़ेलिखे खूबसूरत जवान, कहां वह देहातीगंवार… ज्वार के दाने में उड़द का बीज…’’ कह कर शादाब की खाला खिलखिला उठीं.

‘‘शादाब और रेहाना की जोड़ी लगती ठीक है. पढ़ीलिखी बीवी कम से कम अंगरेजी में बात तो कर सकेगी. क्यों आपा, ठीक कह रही हूं न मैं?’’

शादाब की खाला ने अपनी बेटी के कसीदे पढ़ने चालू किए. शादाब की मां ने भी उन की हां में हां मिलाई. शादाब की मां हमीदा बानो की छोटी बहन नूर अपनी बेटी रेहाना को ले कर पिछले 2 महीने से दुबई आई थीं. उन्हें 3 महीने का वीजा मिला था. रेहाना एमए की छात्रा थी. वह अपने मांबाप की एकलौती औलाद थी, जिसे लाड़प्यार से पाला गया था.

चुलबुली, खूबसूरत रेहाना ने अपनी मां की शह पा कर शादाब पर डोरे डालने शुरू किए थे, यह जानते हुए भी कि वह शादीशुदा है. ‘‘पर अम्मी, शादाब तो एक बच्चे का बाप है. मैं उस से निकाह कैसे करूंगी?’’ रेहाना ने अपनी अम्मी से पूछा.

‘‘तू फिक्र मत कर. अगर शादाब तेरा शौहर बन गया, तो तू मजे करेगी. विदेश में रहेगी. तू हवाईजहाज से आनाजाना करेगी. ‘‘तू मालामाल हो जाएगी और हमारी गरीबी भी दूर हो जाएगी. बड़ी नौकरी है शादाब की. उस की जायदाद हमारी. तू किसी न किसी तरह उसे अपने वश में कर ले,’’ रेहाना की अम्मी ने समझाया.

और फिर उन्होंने ऐसा जाल बिछाया कि उस में मांबेटा उलझ कर रह गए. ‘‘रेहाना, अम्मी कहां हैं?’’ एक दिन दफ्तर से लौट कर शादाब ने पूछा. ‘‘वे पड़ोस में गई हैं. देर रात तक लौटेंगी. वहां उन की दावत है. मेरी अम्मी भी साथ गई हैं.’’

‘‘तुम क्यों नहीं गईं?’’

‘‘आप की वजह से नहीं गई.’’

रेहाना चाय ले कर शादाब के कमरे में पहुंची, जहां वह लेटा हुआ था. आज रेहाना ने ऐसा सिंगार कर रखा था कि शादाब उसे देख कर सुधबुध खो बैठा. चाय दे कर वह उस के करीब बैठ गई. इत्र की भीनीभीनी खुशबू से महकती रेहाना ने रोमांस भरी बातें करना शुरू किया. शादाब भी उस की बातों का लुत्फ लेने लगा. उस ने रेहाना को अपने सीने से लगाना चाहा, तो बगैर किसी डर के वह शादाब की बांहों में सिमट गई. फिर वे दोनों हवस के गहरे समुद्र में डुबकी लगाने लगे. जब जी भर गया, तो एकदूसरे को देख कर शरमा गए.

जब तक रेहाना वहां रही, शादाब उसे महंगे से महंगा सामान दिलाने लगा. जवानी के जोश में वह सबकुछ भूल गया. अब उसे सिर्फ रेहाना दिखती थी. वह अपनी बीवी को तलाक दे कर रेहाना को बीवी बनाने के सपने देखने लगा था. वक्त तेजी से गुजर रहा था. रेहाना के वीजा की मीआद खत्म होने वाली थी. शादाब ने रेहाना से जल्द निकाह करने का वादा किया.

रेहाना अपनी अम्मी के साथ दुबई में रहने के सपने संजोए भारत वापस आ गई. शादाब ने खाला से 2 महीने के अंदर रेहाना से निकाह करने की अपनी मंशा जाहिर की, तो खाला ने भी खुशीखुशी अपनी रजामंदी जाहिर की.

कुछ वक्त बीत जाने पर जाहिरा ने शहर की बड़ी मसजिद में शादाब के द्वारा दिए गए तलाक के बारे में शिकायत पेश की, जिस की सुनवाई आज होनी थी. जाहिरा ने कमेटी के सामने, जहां काजी, आलिम, हाफिज, बड़ेबड़े मौलाना सदस्य थे, अपनी बात रखी. उन्होंने बड़े गौर से जाहिरा की फरियाद सुनी.

इस से पहले शादाब को मांबाप के साथ कमेटी के सामने हाजिर होने की इत्तिला भेजी गई थी, पर वे नहीं आए. अपने रसूख का इस्तेमाल करते हुए उन्होंने कमेटी पर दबाव डालना चाहा था. वे तकरीबन 6 महीने तक कमेटी को चकमा देते रहे थे, बारबार के बुलावे पर भी नहीं आए थे. इस बात को ध्यान में रख कर कमेटी ने कड़ा फैसला लिया और उन्हें जमात से बेदखल करने के साथ कानूनी कार्यवाही करने का फैसला लिया.

आज मसजिद में काफी गहमागहमी थी. कार्यवाही शुरू हुई. शादाब, उस के अब्बू व दूसरे रिश्तेदार हाजिर थे. कमेटी के सदर ने शादाब से पूछा, ‘‘किस वजह से तुम ने अपनी बीवी जाहिरा को तलाक दिया है?’’

‘‘इस के अंदर शहर में रहने की काबिलीयत नहीं है. यह पढ़ीलिखी भी नहीं है. अंगरेजी नहीं जानती है. इसे ढंग से खाना बनाना तक नहीं आता है.’’

‘‘बेटी, तुम बताओ कि शादाब मियां जोकुछ कह रहे हैं, वह सही है या गलत?’’ सदर ने पूछा.

‘‘बिलकुल झूठ है. हमारी शादी को 3 साल हो गए हैं. मैं एक बच्चे की मां बन गई हूं. मैं इन की हर बात मानती हूं. मैं ने पूरी 7 जमात पढ़ी है. ‘‘इन के मांबाप व रिश्तेदार मुझे पसंद कर के लाए थे. हम ने भरपूर दहेज दिया था. अभी तक सब ठीकठाक चल रहा था, पर अचानक इन्होंने मुझे फोन पर तलाक दे दिया.’’

‘‘फोन पर तलाक…?’’ कमेटी के सभी सदस्य जाहिरा की यह बात सुन कर सकते में आ गए. उन्होंने आपस में सोचविचार कर के फैसला दिया, ‘यह तलाक नाजायज है. न तलाक देने की ठोस वजह है, न ही तलाक आमनेसामने बैठ कर दिया गया है. एकतरफा तलाक जायज नहीं है.

‘शादाब मियां के तलाक को गैरकानूनी मान कर खारिज किया जाता है. जाहिरा आज भी उन की बीवी हैं. उन्हें अपनी बीवी को सारे हक देने पड़ेंगे. साथ में रखेंगे. कोई तकलीफ नहीं देंगे, वरना यह कमेटी इन पर तलाक के बहाने औरत पर जुल्म करने का मामला दायर करेगी…’ इतना फरमान सुना कर जमात उठ गई.

और भी हैं नोट छापने की मशीनें

कुदरतउल्लाह ऐसा आदमी था, जिसे कहीं भी पहचाना जा सकता था. लंबे कद और दुबलेपतले शरीर वाले कुदरतउल्लाह की आंखें छोटीछोटी थीं और गालों की हड्डियां उभरी हुईं. उन उभरी हड्डियों के बीच में एक काला मस्सा था, जो किसी तालाब के टापू की तरह उभरा था, लेकिन माथा काफी ऊंचा था. उस की गरदन काफी छोटी, जो लंबे कद पर बड़ी विचित्र लगती थी. चपटी नाक के नीचे घनी मूछों की वजह से उस का चेहरा आम चेहरों से अलग लगता था. वह हुलिया भी ऐसा बनाए रहता था कि दूर से पहचान में आ जाता था.

कुल मिला कर उस का डीलडौल ऐसा था कि उस से मिलने आने वालों को उस के बारे में किसी से पूछने की जरूरत नहीं पड़ती थी. निसार चौधरी भी बिना किसी से कुछ पूछे उस के पास जा पहुंचे थे. कुदरतउल्लाह ने उन्हें नीचे से ऊपर तक देखते हुए पूछा, ‘‘आप की तारीफ?’’

‘‘मुझे निसार चौधरी कहते हैं.’’ निसार ने बिना इजाजत लिए सामने रखी कुरसी खींच कर बैठते हुए कहा, ‘‘आप के बारे में मुझे सब पता है. फरजंद अली ने मुझे सब बता दिया था.’’

‘‘मैं भी आप का ही इंतजार कर रहा था.’’ कुदरतउल्लाह ने अपने पतले होंठों पर मुसकराहट सजाने की नाकाम कोशिश करते हुए कहा, ‘‘फरजंद अली ने मुझे भी आप के बारे में सब बता दिया था.’’

‘‘इधरउधर की बातों में समय बेकार करने के बजाए सीधे काम की बात करनी चाहिए,’’ निसार ने कुदरतउल्लाह से चाय मंगाने का इशारा करते हुए कहा, ‘‘मुझे इस कारोबार में आए अभी 2 साल ही हुए हैं. वैसे तो मेरे पास अभी 4 मशीनें हैं, लेकिन उन में एक ही मशीन ऐसी है, जो ठीकठाक प्रोडेक्शन देती है. मैं ने यह बात फरजंद अली से कही तो उन्होंने आप के बारे में बताया कि आप के यहां तैयार मशीनें और कारखाने में तैयार मशीनों से अच्छा काम करती हैं.’’

‘‘मुझे जानने वालों का यही खयाल है.’’ कुदरतउल्लाह ने कहा, ‘‘इस समय मेरे पास 3 मशीनें हैं, जिन्हें मैं एक साथ बेचना चाहता हूं. जो आदमी तीनों मशीनें एक साथ खरीदेगा मैं उसी को बेचूंगा.’’

‘‘ऐसा क्यों?’’ निसार ने हैरानी से कहा, ‘‘भई मुझे तो 2 ही मशीनें चाहिए.’’

‘‘बाकी बची एक मशीन का मैं क्या करूंगा? दरअसल मैं अपना कारखाना कहीं और शिफ्ट करना चाहता हूं.’’

‘‘क्यों…? लोग बाहर से आ कर यहां कारखाने लगाते हैं और आप यह शहर छोड़ कर कहीं और जा रहे हो. मशीनें तैयार करने के लिए यहां जैसा कच्चा माल शायद कहीं और नहीं मिलेगा?’’

‘‘कच्चा माल तो वाकई यहां बड़ी आसानी से और सस्ता मिल जाता है, लेकिन यहां के कच्चे माल से तैयार की गई मशीनें जल्दी बिकती नहीं. लोग इन्हें कम ही खरीदते हैं. वजह शायद यह है कि यहां की मशीनें उन के दिल में नहीं उतरतीं.’’

‘‘खैर, यह लंबी बहस का विषय है,’’ निसार ने कहा, ‘‘चूंकि मैं पहली बार आप के यहां आया हूं, इसलिए मुझे मालूम नहीं कि आप की मशीनों की कीमत क्या है. अगर आप बताए तो…’’

‘‘कीमत मशीन के हिसाब से होती हैं. इस समय मेरे पास जो मशीनें हैं, उन में से केवल एक 20 हजार रुपए की है, बाकी की 2 मशीनें 50-50 हजार की हैं.’’

‘‘कीमत कुछ ज्यादा नहीं हैं?’’

‘‘ज्यादा नहीं हैं भाई, मैं बहुत कम बता रहा हूं.’’

‘‘इतनी रकम वसूलने में ही सालों लग जाएंगे. उस के बाद फायदे का नंबर आएगा.’’ निसार ने कहा, ‘‘मेरे पास जो मशीनें हैं, वे 10-15 हजार से ज्यादा की नहीं हैं.’’

‘‘इसीलिए तुम ऐसी बात कर रहे हो,’’ कुदरतउल्लाह ने कहा, ‘‘मेरी मशीनें ऐसी हैं, जिन के प्रोडेक्शन पर लोग गर्व करते हैं. 3-4 महीने में ही लाभ देने लगती हैं. मेरे साथ जो कारीगर काम करते हैं, उन्हें मेरी मशीनों का बहुत अच्छा अनुभव है.’’

‘‘मैं ने यह तो नहीं कहा कि तुम्हारी मशीनें फायदा नहीं देंगी.’’ निसार ने दबे लहजे में कहा, ‘‘लेकिन मेरे पास उतनी रकम नहीं हैं, जितनी तुम मांग रहे हो. तीनों मशीनों की कीमत एक लाख 20 हजार रुपए होती है ऊपर से आप तीनों मशीनें एक साथ बेचना चाहते हैं.’’

‘‘इस कारोबार में उधार बिलकुल नहीं चलता. वैसे भी मैं यह शहर ही छोड़ कर जा रहा हूं, इसलिए पैसे भी नकद चाहिए.’’

‘‘क्या तुम मुझे मशीनें दिखा सकते हो?’’

‘‘कारखानों में ले जा कर दिखाना तो मुश्किल है, क्योंकि कारखाना दिखाना हमारे उसूल के खिलाफ है.’’ कुदरतउल्लाह ने कहा, ‘‘मेरे पास मशीनों की तसवीरें हैं, उन्हें देख कर आप को अंदाजा हो जाएगा कि मेरे कारीगरों ने इन पर कितनी मेहनत की हैं.’’

निसार चौधरी कुदरतउल्लाह से तसवीरें ले कर एकएक कर के ध्यान से देखने लगा. वाकई उन मशीनों को तैयार करने में काफी मेहनत की गई थी. निसार ने तसवीरों को उस की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘ऐसा नहीं हो सकता कि अभी आप मुझ से 70 हजार रुपए ले लें और बाकी की रकम बाद में.’’

‘‘मेरी एक बात मानोगे?’’ कुदरतउल्लाह ने कहा.

‘‘एक नहीं, आप की 10 बातें मानूंगा.’’ निसार ने खुशदिली से कहा.

‘‘फरजंद अली आप का दोस्त है न?’’

‘‘हां, मेरे उन से बहुत अच्छे संबंध हैं.’’

‘‘तो ऐसा करो कि उधार करने के बजाए बाकी रकम उस से उधार ले कर दे दो.’’

‘‘भाई साहब, वह ऐसे ही रुपए नहीं देता, मोटा ब्याज लेता है. जबकि मैं ब्याज पर रकम ले कर कारोबार करना ठीक नहीं समझता. क्योंकि जो कमाई होगी, वह ब्याज अदा करने में ही चली जाएगी.’’

‘‘फिर तो आप का आना बेकार गया,’’ कुदरतउल्लाह ने कहा.

निसार चौधरी उठने ही वाले थे कि उस ने कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘अच्छा, आप एक काम करो, 30 हजार रुपए का इंतजाम कर के एक लाख रुपए में सौदा कर लो. उस के बाद मुझे बता दो कि मशीनें कहां पहुंचानी है.’’

‘‘ठीक है कोशिश करता हूं. इस वक्त मेरे पास 50 हजार रुपए हैं, इन्हें रख लीजिए.’’ निसार ने 5 सौ रुपए की एक गड्डी निकाल कर कुदरतउल्लाह की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘बाकी रुपए मैं कल पहुंचा दूंगा.’’

‘‘आप शायद मेरी मजबूरी का फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं?’’ कुदरतउल्लाह ने गड्डी जेब में रखते हुए कहा, ‘‘वैसे मशीनें कहां पहुंचानी होंगी?’’

‘‘बंदर रोड पर त्रिभुवनलाल जगमल का जो बोर्ड लगा है, उस के सामने वाली गली में मशीनें पहुंचानी हैं.’’ निसार ने कहा, ‘‘बाकी पैसे भी मैं वहीं दे दूंगा.’’

‘‘मशीनें कल रात 11 बजे पहुंच जाएंगी. लेकिन रुपए आप को दिन में देने होंगे. दोटांकी के पास एक शानदार कैफे है. कल दोपहर को मैं वहां पहुंच जाऊंगा. वहीं आ जाना.’’

‘‘क्या आप को मुझ पर विश्वास नहीं है.’’

‘‘यहां विश्वास की बात नहीं है. कारोबार के अपने नियम होते हैं. हमारा कारोबार परचून की दुकान नहीं है कि बेच कर पैसे अदा कर दोगे. इस कारोबार में लेनदेन का अपना अलग नियम है.’’ कुदरतउल्लाह ने एकएक शब्द पर जोर दे कर कहा, ‘‘अभी आप की मशीनें कहां लगी हैं?’’

‘‘मेरी मशीनें अच्छी जगहों पर लगी हैं. बड़ी मुश्किल से उन जगहों को मैं ने पगड़ी की मोटी रकम दे कर हासिल किया था. मुंबई में आजकल जगह की बड़ी कमी है. लोगों ने पहले से ही अच्छी जगहों पर कब्जा जमा रखा है.’’

‘‘मेरे पास अपनी एक जगह भी है, अगर आप वहां अपनी मशीन लगाना चाहें तो…?’’

‘‘उस जगह के भी आप मुंहमांगे दाम लेंगे?’’

‘‘नहीं, ऐसी बात नहीं है,’’ कुदरतउल्लाह ने मुसकराने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘अगर आप चाहें तो मैं उसे किराए पर भी दे सकता हूं. किराया आप मेरे घर पहुंचा दिया करना.’’

‘‘जगह की बात मैं अभी नहीं कर सकता. इस बारे में फरजंद अली से मेरी बात चल रही है. उस के पास भी अच्छी…’’

‘‘अगर फरजंद अली से आप की बात चल रही है तो ठीक है.’’ कुदरतउल्लाह ने निसार की बात काटते हुए कहा, ‘‘चलो, अब चला जाए. सौदा तय हो ही गया है.’’

दोनों कमरे से बाहर आए तो उन का स्वागत ट्रैफिक के शोर ने किया. वे दोनों फुटपाथ पर आ कर खडे हो गए. निसार ने कहा, ‘‘आप  कहां से बस पकड़ोगे?’’

‘‘मुझे तो उस सामने के चौराहे से बस मिल जाएगी.’’ कुदरतउल्लाह ने सामने इशारा करते हुए कहा, ‘‘और आप को?’’

‘‘चलिए पहले आप को बस पर बैठा दूं.’’

‘‘इस की कोई जरूरत नहीं है. मैं चला जाऊंगा.’’ कुदरतउल्लाह ने लालबत्ती की ओर देखते हुए कहा.

‘‘इंसानियत के भी कुछ फर्ज होते हैं जनाब,’’ निसार चौधरी ने गंभीरता से कहा.

फुटपाथ के दाईं ओर एक पतली सी गली के नुक्कड़ पर एक जूस की दुकान के जगमग करते बोर्ड के पास वाले खंभे पर पोलियो से सुरक्षित रखने के संदेश वाला बोर्ड टंगा था. कुदरतउल्लाह उसे ध्यान से पढ़ने लगा, इसलिए उस ने निसार को जवाब में कुछ नहीं कहा. दोनों खामोशी से आगे बढ़ने लगे. जैसे ही वे चौराहे पर पहुंचे तो मसजिद में अजान की आवाज सुनाई दी.

‘‘मेरा खयाल है, कहीं आसपास ही मसजिद है?’’ कुदरतउल्लाह ने निसार की ओर देखते हुए कहा.

‘‘हम लोग जहां जा रहे हैं, उसी चौराहे के दाईं ओर मसजिद है.’’

‘‘तो पहले वहीं चलें…’’

तभी दर्द में डूबी एक आवाज सुनाई दी, ‘‘अल्लाह के नाम पर कुछ दे दे बाबा.’’

‘‘चलो हरी बत्ती हो गई है.’’ चौधरी ने आगे बढ़ते हुए कहा तो कुदरतउल्लाह का ध्यान भंग हुआ.

कुदरतउल्लाह रुक गया. उस के सामने थोड़ी दूर पर 10-11 साल का एक लड़का चौराहे के कोने में गंदे से कपड़े पर लेटा था. उस के दोनों पैर घुटनों से नीचे लकड़ी की तरह सूखे हुए थे. बायां हाथ भी लकड़ी जैसा हो गया था.

उस मासूम का ऊपरी होंठ आधे से अधिक कटा हुआ था, जिस से उस के पीलेपीले दांत नजर आ रहे थे. उस की एक आंख का पपोटा कटा हुआ था, जिस से उस की आंख बड़े भयानक अंदाज में बाहर निकली हुई थी. उसे देख कर घृणा और दया के भाव गड्डमड्ड हो रहे थे.

कुदरतउल्लाह ने उस लड़के की ओर अंगुली से इशारा करते हुए कहा, ‘‘इसे देख रहे हो चौधरी?’’

‘‘हां हां, देख रहा हूं.’’

‘‘यह मेरे कारखाने की तैयार की हुई मशीन हैं.’’ कुदरतउल्लाह ने गर्व से सीना फुलाते हुए कहा, ‘‘यह मशीन पिछले साल मैं ने ही फरजंद अली को बेची थी. यह सुबह से देर रात तक बड़ी आसानी से हजार 2 हजार रुपए छाप लेती है. तुम्हें जो 2 मशीन दे रहा हूं वे भी इस मशीन से किसी भी तरह कम नहीं हैं. अगर तुम उन्हें अच्छी जगह फिट कर दोगे तो वे भी इसी तरह नोट छापेंगी.’’

फिसलती मछली: क्या प्रेमा बचा पाई अपनी इज्जत

बहुत देर से अपनी बीवी प्रेमा को सजतासंवरता देख बलवीर से रहा नहीं गया. उस ने पूछा, ‘‘क्योंजी, आज क्या खास बात है?’’

‘‘देखोजी…’’ कहते हुए प्रेमा उस की ओर पलटी. उस का जूड़े में फूल खोंसता हुआ हाथ वहीं रुक गया, ‘‘आप को कितनी बार कहा है कि बाहर जाते समय टोकाटाकी न किया करो.’’

‘‘फिर भी…’’

‘‘आज मुझे जनप्रतिनिधि की ट्रेनिंग लेने जाना है,’’ प्रेमा ने जूड़े में फूल खोंस लिया. उस के बाद उस ने माथे पर बिंदिया भी लगा ली.

‘‘अरे हां…’’ बलवीर को भी याद आया, ‘‘कल ही तो चौधरी दुर्जन सिंह ने कहलवाया था कि इलाके के सभी जनप्रतिनिधियों को ब्लौक दफ्तर में ट्रेनिंग दी जानी है,’’ उस ने होंठों पर जीभ फिरा कर कहा, ‘‘प्रेमा, जरा संभल कर. आजकल हर जगह का माहौल बहुत ही खराब है. कहीं…’’

‘‘जानती हूं…’’ प्रेमा ने मेज से पर्स उठा लिया, ‘‘अच्छी तरह से जानती हूं.’’

‘‘देख लो…’’ बलवीर ने उसे चेतावनी दी, ‘‘कहीं दुर्जन सिंह अपनी नीचता पर न उतर आए.’’

‘‘अजी, कुछ न होगा,’’ कह कर प्रेमा घर से बाहर निकल गई.

प्रेमा जब 7वीं क्लास में पढ़ा करती थी, तभी से वह देश की राजनीति में दिलचस्पी लेने लगी थी. शादी के बाद वह गांव की औरतों से राजनीति पर ही बातें किया करती. कुरेदकुरेद कर वह लोगों के खयाल जाना करती थी.

इस साल के पंचायती चुनावों में सरकार ने औरतों के लिए कुछ रिजर्व सीटों का ऐलान किया था. प्रेमा चाह कर भी चुनावी दंगल में नहीं उतर पा रही थी.

गांव की कुछ औरतों ने अपने नामांकनपत्र दाखिल करा दिए थे. तभी एक दिन उस के यहां दुर्जन सिंह आया और उसे चुनाव लड़ने के लिए उकसाने लगा.

इस पर बलवीर ने खीजते हुए कहा था, ‘नहीं चौधरी साहब, चुनाव लड़ना अपने बूते की बात नहीं है.’

‘क्यों भाई?’ दुर्जन सिंह ने पूछा था, ‘ऐसी क्या बात हो गई?’

‘हमारे पास पैसा नहीं है न,’ बलवीर ने कहा था.

‘तू चिंता न कर…’ दुर्जन सिंह ने छाती ठोंक कर कहा था, ‘वैसे, इस चुनाव में ज्यादा पैसों की जरूरत नहीं है. फिर भी जो भी खर्चा आएगा, उसे पार्टी दे देगी.’

‘तो क्या यह पार्टी की तरफ से लड़ेगी?’ बलवीर ने पूछा था.

‘हां…’ दुर्जन सिंह ने मुसकरा कर कहा था, ‘मैं ही तो उसे पार्टी का टिकट दिलवा रहा हूं.’

‘फिर ठीक है,’ बलवीर बोला था.

इस प्रकार प्रेमा उस चुनावी दंगल में उतर गई थी. सच में चौधरी दुर्जन सिंह ने चुनाव प्रचार का सारा खर्चा पार्टी फंड से दिला दिया था.

प्रेमा भी दिनरात महिला मतदाताओं से मुलाकात करने लगी थी. उस का चुनावी नारा था, ‘शराब हटाओ, देहात बचाओ.’

चुनाव होने से पहले ही मतदाताओं की हवा प्रेमा की ओर बहने लगी थी. चुनाव में वह भारी बहुमत से जीत गई थी. एक उम्मीदवार की तो जमानत तक जब्त हो गई थी. तब से चौधरी साहब का प्रेमा के यहां आनाजाना कुछ ज्यादा ही होने लगा था.

गांव से निकल कर प्रेमा सड़क के किनारे बस का इंतजार करने लगी. वहां से ब्लौक दफ्तर तकरीबन 20 किलोमीटर दूर था. बस आई, तो वह उस में चढ़ गई. बस में कुछ और सभापति भी बैठी हुई थीं. वह उन्हीं के साथ बैठ गई.

ब्लौक दफ्तर में काफी चहलपहल थी. प्रेमा वहां पहुंची, तो माइक से ‘हैलोहैलो’ कहता हुआ कोई माइक को चैक कर रहा था. उस शिविर में राज्य के एक बड़े नेता भी आए हुए थे. मंच पर उन्हें माला पहनाई गई. उस के बाद उन्होंने लोगों की ओर मुखातिब हो कर कहा, ‘‘भाइयो और बहनो, आप लोग जनता के प्रतिनिधि हैं. यहां आप सब का स्वागत है. तजरबेकार सभासद आप को बताएंगे कि आप को किनकिन नियमों का पालन करना है.

‘‘इस शिविर में आप लोगों की मदद यही तजरबेकार जनप्रतिनिधि किया करेंगे. आप को उन्हीं के बताए रास्ते पर चलना है.’’

प्रेमा की नजर मंच पर बैठे चौधरी दुर्जन सिंह पर पड़ी. वह खास सभासदों के बीच बैठा हुआ था.

समारोह खत्म होने के बाद दुर्जन सिंह प्रेमा के पास चला आया. उस ने उस से अपनेपन से कहा, ‘‘प्रेमा, जरा सुन तो.’’

‘‘जी,’’ प्रेमा ने कहा.

दुर्जन सिंह उसे एक कोने में ले गया. उस का हाथ प्रेमा के कंधे पर आतेआते रह गया. उस ने कहा, ‘‘कल तुम मुझ से मेरे घर पर मिल लेना. मुझे तुम से कुछ जरूरी काम है.’’

‘‘जी,’’ कह कर प्रेमा दूसरी औरतों के पास चली गई.

ट्रेनिंग के पहले ही दिन इलाकाई जनप्रतिनिधियों को उन के फर्ज की जानकारी दी गई. राज्य के एक बूढ़े सभासद ने बताया कि किस प्रकार सभी सभासदों को सदन की गरिमा बनाए रखनी चाहिए. उस के बाद सभी चायनाश्ता करने लगे.

दोपहर बाद प्रेमा ब्लौक दफ्तर से घर चली आई. उधर दुर्जन सिंह को याद आया कि जब पहली बार उस ने प्रेमा को देखा था, उसी दिन से उस का मन डगमगाने लगा था. उसे पहली बार पता चला था कि देहात में भी हूरें हुआ करती हैं. आज दुर्जन सिंह बिस्तर से उठते ही अपने खयालों को हवा देने लगा. उस ने दाढ़ी बनाई और शीशे के सामने जा खड़ा हुआ. 60 साल की उम्र में भी वह नौजवान लग रहा था.

आज दुर्जन सिंह की बीवी पति के मन की थाह नहीं ले पा रही थी. ऐसे तो वह कभी भी नहीं सजते थे.

आखिरकार उस ने पूछ ही लिया, ‘‘क्योंजी, आज क्या बात हो गई?’’

‘‘क्या मतलब है तुम्हारा?’’ दुर्जन सिंह ने मासूम बनते हुए पूछा.

‘‘आज तो आप कुछ ज्यादा ही बनठन रहे हैं.’’

‘‘अरे हां,’’ दुर्जन सिंह ने मूंछों पर ताव दे कर कहा, ‘‘आज मैं ने 2-3 सभासदों को अपने घर पर बुलाया है. उन से पार्टी की बातें करनी हैं.’’

‘‘फिर उन की खातिरदारी कौन करेगा?’’ चौधराइन ने पूछा.

‘‘हम ही कर लेंगे…’’ दुर्जन सिंह ने लापरवाही से कहा, ‘‘उन्हें चाय ही तो पिलानी है न? मैं बना दूंगा.’’

‘‘ठीक है,’’ चौधराइन भी बाहर जाने की तैयारी करने लगी.

चौधराइन के बड़े भाई के यहां गांव में पोता हुआ था, उसे उसी खुशी में बुलवाया गया था.

चौधराइन पति के पास आ कर बोली, ‘‘मैं जा रही हूं.’’

‘‘ठीक है…’’ दुर्जन सिंह उसे सड़क तक छोड़ने चल दिया, ‘‘जब मन करे, तब चली आना.’’

अब दुर्जन सिंह घर में अकेला ही रह गया. प्रेमा को उस ने सोचसमझ कर ही बुलाया था. वह बारबार घड़ी देखता और मन के लड्डू फोड़ता.

दुर्जन सिंह ने अपने कपड़ों पर इत्र छिड़का और खिड़की पर जा खड़ा हुआ. सामने से उन्हें अपना कारिंदा मोर सिंह आता दिखाई दिया.

दुर्जन सिंह ने उस से पूछा, ‘‘हां भई, क्या बात है?’’

‘‘मालिक…’’ कारिंदे ने कहा, ‘‘कल रात जंगली जानवर हमारी फसल को बरबाद कर गए.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘वे मक्के के खेतों को नुकसान पहुंचा गए हैं…’’ मोर सिंह ने बताया, ‘‘मैं ने बहुत हांक लगाई, तब जा कर कुछ फसल बच पाई.’’

‘‘तू इस समय चला जा…’’ दुर्जन सिंह ने बात को टालते हुए कहा, ‘‘इस समय मेरे पास कोई खास मेहमान आने वाला है. मैं कल आऊंगा.’’

‘‘ठीक है मालिक,’’ मोर सिंह हाथ जोड़ कर चल दिया.

अब दुर्जन सिंह था और उस की कुलबुलाती ख्वाहिशें थीं. वह वहीं आंगन में एक कुरसी पर बैठ गया और आंखें मूंद कर प्रेमा की छवि को अपनी आंखों में भरने लगा.

चूडि़यों की खनक से दुर्जन सिंह ने अपनी आंखें खोलीं. सामने हूर की तरह खूबसूरत प्रेमा खड़ी थी.

वह मुसकराते हुए बोला, ‘‘आ प्रेमा, तेरी लंबी उम्र है. मैं अभीअभी तुझे ही याद कर रहा था.

‘‘और सुना…’’ दुर्जन सिंह उस की ओर घूम गया, ‘‘शिविर में तुम ने कुछ सीखा या नहीं?’’

‘‘बहुतकुछ सीखा है मैं ने चौधरी साहब,’’ प्रेमा ने हंसते हुए कहा.

‘‘मैं चाहता हूं कि तुझे मैं एक दबंग नेता बना दूं,’’ दुर्जन सिंह उस के आगे चारा डालने लगा.

‘‘जी,’’ प्रेमा बोली.

दुर्जन सिंह ने कहा, ‘‘यह सब सिखाने वाले पर ही निर्भर करता है.’’

‘‘जी.’’

‘‘देख प्रेमा,’’ दुर्जन सिंह ने चालबाजी से कहा, ‘‘सोना भी आग में तप कर ही चमका करता है.’’

‘‘जी.’’

‘‘आ, अंदर चल कर बातें करते हैं,’’ इतना कह कर दुर्जन सिंह कुरसी से उठ गया.

‘‘चलिए,’’ कह कर प्रेमा भी उस के पीछेपीछे चल दी.

बैठक में पहुंच कर दुर्जन सिंह ने प्रेमा को सोफे पर बैठा दिया और उसे एक बहुत बड़ा अलबम थमा दिया, ‘‘तब तक तू इसे देखती रह. मैं ने जिंदगी में जो भी काम किया है, इस में उन सभी का लेखाजोखा है. तुझे बड़ा मजा आएगा.’’

‘‘आप भी बैठिए न,’’ प्रेमा ने कहा.

‘‘मैं तेरे लिए चायनाश्ते का इंतजाम करता हूं,’’ दुर्जन सिंह ने कहा.

‘‘चौधराइनजी नहीं हैं क्या?’’ प्रेमा ने पूछा.

‘‘अचानक ही आज उसे मायके जाना पड़ गया,’’ दुर्जन सिंह ने बताया.

दुर्जन सिंह रसोईघर की ओर चल दिया. प्रेमा अलबम के फोटो देखने लगी.

तभी दुर्जन सिंह एक बड़ी प्लेट में ढेर सारी भुजिया ले आया और उसे टेबल पर रख दिया.

साथ ही, दुर्जन सिंह ने टेबल पर 2 गिलास और 1 बोतल दारू रख दी. उसे देख कर प्रेमा बिदक पड़ी, ‘‘आप तो…’’

‘‘अरे भई, यह विदेशी चीज है…’’ दुर्जन सिंह मुसकरा दिया, ‘‘यह लाल परी मीठामीठा नशा दिया करती है.’’

‘‘तो आप शराब पीएंगे?’’ प्रेमा ने तल्खी से पूछा.

‘‘मैं कभीकभी ले लेता हूं,’’ दुर्जन सिंह गिलासों में शराब उड़ेलने लगा.

‘‘यह तो अच्छी बात नहीं है चौधरी साहब,’’ प्रेमा नाकभौं सिकोड़ते हुए बोली.

‘‘प्रेमा रानी…’’ इतना कह कर दुर्जन सिंह का भारीभरकम हाथ प्रेमा के कंधे पर आ लगा.

प्रेमा ने उस का हाथ झिड़क दिया और बोली, ‘‘आप तो बदतमीजी करने लगे हैं.’’

दुर्जन सिंह ने शराब का घूंट भर कर कहा, ‘‘इसे पी कर मैं तुम्हें ऐसी बातें बताऊंगा कि तुम भूल नहीं पाओगी. रातोंरात आसमान को छूने लगोगी.’’

प्रेमा चुप ही रही. दुर्जन सिंह ने उस से गुजारिश की, ‘‘लो, कुछ घूंट तुम भी ले लो. दिमाग की सारी खिड़कियां खुल जाएंगी.’’

‘‘मैं तो इसे छूती तक नहीं,’’ प्रेमा गुस्से से बोली.

‘‘लेकिन, हम तो इसे गले लगाए रहते हैं,’’ दुर्जन सिंह उसे बरगलाने लगा.

प्रेमा ने नफरत से कहा, ‘‘लानत है ऐसी जिंदगी पर.’’

‘‘देख…’’ दुर्जन सिंह के हाथ उस के कंधों पर फिर से जा लगे, ‘‘तू मेरा कहा मान. मैं तेरी राजनीतिक जिंदगी संवार दूंगा.’’

इतना सुनते ही प्रेमा दहाड़ उठी, ‘‘आप जैसे पिता की उम्र के आदमी से मुझे इस तरह की उम्मीद नहीं थी.’’

मगर तब भी दुर्जन सिंह के हाथों का दबाव बढ़ता ही गया. प्रेमा शेरनी से बिजली बन बैठी. उस ने एक ही झटके में चौधरी के हाथ एक ओर झटक दिए और दहाड़ी, ‘‘मुझे मालूम न था कि आप इतने गिरे हुए हैं.’’

दुर्जन सिंह खिसियाई आवाज में बोला, ‘‘राजनीति का दलदल आदमी को दुराचारी बना देता है. तू मेरा कहा मान ले. तेरी पांचों उंगलियां घी में रहा करेंगी. तुझे लोग याद करेंगे.’’

‘‘नहीं…’’ प्रेमा जोर से चीख उठी, ‘‘मैं अपने ही बूते पर एक दबंग नेता बनूंगी.’’

इस के बाद वह झट से बाहर निकल गई. दुर्जन सिंह को लगा, जैसे उस के हाथ से मछली फिसल गई हो.

ऐसा ही होता है : गंगूबाई ने अपने मरद को क्यो दिया धोखा

‘‘सुनती हो लक्ष्मी…’’ मांगीलाल ने आ कर जब यह बात कही, तब लक्ष्मी बोली, ‘‘क्या है… क्यों इतना गला फाड़ कर चिल्ला रहे हो?’’

‘‘गंगूबाई के बारे में कुछ सुना है तुम ने?’’

‘‘हां, उसे पुलिस पकड़ कर ले गई…’’ लक्ष्मी ने सीधा सपाट जवाब दिया, ‘‘अब क्यों ले गई, यह मत पूछना.’’

‘‘मुझे सब मालूम है…’’ मांगीलाल ने जवाब दिया, ‘‘कैसा घिनौना काम किया. अपने मरद के साथ ही धोखा किया.’’

‘‘धोखा तो दिया, मगर बेशर्म भी थी. उस का मरद कमा रहा था, तब धंधा करने की क्या जरूरत थी?’’ लक्ष्मी गुस्से से उबल पड़ी.

‘‘उस की कोई मजबूरी रही होगी,’’ मांगीलाल ने कहा.

‘‘अरे, कोई मजबूरी नहीं थी. उसे तो पैसा चाहिए था, इसलिए यह धंधा अपनाया. उस का मरद इतना कमाता नहीं था, फिर भी वह बनसंवर के क्यों रहती थी? अरे, धंधे वाली बन कर ही पैसा कमाना था, तो लाइसैंस ले कर कोठे पर बैठ जाती. महल्ले की सारी औरतों को बदनाम कर दिया,’’ लक्ष्मी ने अपनी सारी भड़ास निकाल दी.

‘‘उस का पति ट्रक ड्राइवर है. बहुत लंबा सफर करता है. 8-8 दिन तक घर नहीं आता है. ऐसे में…’’

‘‘अरे, आग लगे ऐसी जवानी को…’’ बीच में ही बात काट कर लक्ष्मी  झल्ला पड़ी, ‘‘मैं उस को अच्छी तरह जानती हूं. वह पैसों के लिए धंधा करती थी. अच्छा हुआ जो पकड़ी गई, नहीं तो बस्ती की दूसरी औरतों को भी बिगाड़ती. न जाने कितनी लड़कियों को अपने साथ इस धंधे में डालने की कोशिश करती वह बदचलन औरत.’’

‘‘उस के साथ तो और भी औरतें होंगी?’’ मांगीलाल ने पूछा.

‘‘हांहां, होंगी क्यों नहीं, बेचारा मरद तो ट्रक ड्राइवर है. देश के न जाने किसकिस कोने में जाता रहता है. कभीकभार तो 15-15 दिन तक घर नहीं आता है. तब गंगूबाई की जवानी में आग लगती होगी… बु झाने के बहाने यह धंधा अपना लिया.’’

‘‘क्या करें लक्ष्मी, जवानी होती ऐसी है…’’ मांगीलाल ने जब यह बात कही, तब लक्ष्मी गुस्से से बोली, ‘‘तू क्यों इतनी दिलचस्पी ले रहा है?’’

‘‘पूरी बस्ती में गंगूबाई की थूथू जो हो रही है,’’ मांगीलाल ने बात पलटते हुए कहा.

लक्ष्मी बोली, ‘‘दिन में कैसी सती सावित्री बन कर रहती थी.’’

‘‘मगर, तू उसे बारबार कोस क्यों रही है?’’ मांगीलाल ने पूछा.

‘‘कोसूं नहीं तो क्या पूजा करूं उस बदचलन की,’’ उसी गुस्से से फिर लक्ष्मी बोली, ‘‘करतूतें तो पहले से दिख रही थीं. उसे मेहनत कर के कमाने में जोर आता था, इसलिए नासपीटी ने यह धंधा अपनाया.’’

‘‘अब तू लाख गाली दे उसे, उस ने तो कमाई का साधन बना रखा था. अरे, कई औरतें कमाई के लिए यह धंधा करती हैं…’’ मांगीलाल ने जब यह कहा, तब लक्ष्मी आगबबूला हो कर बोली,

‘‘तू क्यों बारबार दिलचस्पी ले रहा है? तेरा क्या मतलब? तु झे काम पर नहीं जाना है क्या?’’

‘‘जा रहा हूं बाबा, क्यों नाराज हो रही हो?’’ कह कर मांगीलाल तो चला गया, मगर लक्ष्मी न जाने कितनी देर तक गंगूबाई की करतूतों को ले कर बड़बड़ाती रही, फिर वह भी बरतन मांजने के लिए कालोनी की ओर बढ़ गई.

इस कालोनी में लक्ष्मी 4-5 घरों में बरतन मांजने का काम करती है. मांगीलाल किराने की दुकान पर मुनीमगीरी करता है. उस के एक बेटा और एक बेटी है. छोटा परिवार होने के बावजूद घर का खर्च मांगीलाल की तनख्वाह से जब पूरा नहीं पड़ा, तब लक्ष्मी भी घरघर जा कर बरतनबुहारी करने लगी. वह कालोनी वालों के लिए एक अच्छी मेहरी साबित हुई. वह रोजाना जाती थी. कभी जरूरी काम से छुट्टी भी लेनी होती थी, तब वह पहले से सूचना दे देती थी.

गंगूबाई लक्ष्मी की बस्ती में ही उस के घर से 5वें घर दूर रहती है. उस का मरद ट्रक ड्राइवर है, इसलिए आएदिन बाहर रहता है. उस के 2 बेटे अभी छोटे हैं, इसलिए उन्हें घर छोड़ कर गंगूबाई रात में कमाई करने जाती है.

पूरी बस्ती में यही चर्चा चल रही थी. गंगूबाई पर सभी थूथू कर रहे थे.

छिप कर शरीर बेचना कानूनन अपराध है. उसे कई बार आधीआधी रात को घर आते हुए देखा था. वह कई बार किसी अनजाने मरद को भी अपने घर में बुला लेती थी, फिर बस्ती वालों को भनक लग गई. उन्होंने एतराज किया कि अनजान मर्दों को घर में बुला कर दरवाजा बंद करना अच्छी बात नहीं है.

तब गंगूबाई ने गैरमर्दों को घर बुलाना बंद कर दिया. तब से उस ने कमाने के लिए किसी होटल को अड्डा बना लिया था. पुलिस ने जब उस होटल पर छापा मारा, तब उस के साथ 3 औरतें और पकड़ी गई थीं. मतलब, होटल वाला पूरा गिरोह चला रहा था.

बस्ती वालों को शक तो बहुत पहले से था, मगर जब तक रंगे हाथ न पकड़ें तब तक किसी पर कैसे इलजाम लगा सकें. छोटे बच्चे जब पूछते थे, तब गंगूबाई कहती थी, ‘‘मैं ने नौकरी कर ली है. तुम्हारा बाप तो 10-15 दिन तक ट्रक पर रहता है, तब पैसे भी तो चाहिए.’’

ऐसी ही बात गंगूबाई बस्ती वालों से कहती थी कि वह नौकरी करती है.

बस्ती वाले सवाल उठाते थे कि नौकरी तो दिन में होती है, भला रात में ऐसी कौन सी नौकरी है, जो वह करती है?

मगर, गंगूबाई ऐसी बातों को हंसी में टाल देती थी. मगर जब भी उस का मरद घर पर होता था, तब वह शहर नहीं जाती थी. तब बस्ती वाले सवाल उठाते, ‘जब तेरा मरद घर पर रहता है, तब तू क्यों नहीं नौकरी पर जाती है?’

तब वह हंस कर कहती, ‘‘मरद 10-15 दिन बाद सफर कर के थकाहारा आता है. तब उस की सेवा में लगना पड़ता है.’’

तब बस्ती वाले कहते, ‘तू जोकुछ कह रही है, उस में जरा भी सचाई नहीं है. कभीकभी आधी रात को आना शक पैदा करता है. लगता है कि नौकरी के बहाने…’

‘‘बसबस, आगे मत बोलो. बिना देखे किसी पर इलजाम लगाना अपराध है. आप मेरी निजी जिंदगी में  झांक रहे हैं. क्या पेट भरने के लिए नौकरी करना भी गुनाह है?’’

तब बस्ती वालों ने गंगूबाई को अपने हाल पर छोड़ दिया. मगर वे सम झ गए थे कि गंगूबाई धंधा करती है.

‘‘लक्ष्मी, कहां जा रही है?’’ लक्ष्मी की सारी यादें टूट गईं. यह उस की सहेली कंचन थी.

लक्ष्मी बोली, ‘‘बरतन मांजने जा रही हूं साहब लोगों के बंगले पर.’’

‘‘धत तेरे की, कुछ गंगूबाई से सबक सीख,’’ कंचन मुसकराते हुए बोली.

‘‘किस नासपीटी का नाम ले लिया तू ने,’’ लक्ष्मी गुस्से से उबल पड़ी.

‘‘बिस्तर पर सो कर कमा रही थी और तू उसे नासपीटी कह रही है?’’

‘‘उस ने औरत जात को बदनाम कर दिया है. मरद तो बेचारा परदेश में पड़ा रहता है और वह छोटे बच्चों को घर छोड़ कर गुलछर्रे उड़ा रही थी. उस के बच्चों का क्या हुआ?’’

‘‘अरे, पुलिस उस के बच्चों को भी अपने साथ ले गई है…’’ कंचन ने जवाब दिया, ‘‘गंगूबाई पर शक तो बहुत पहले से था.’’

‘‘मगर, किसी ने उसे आज तक रंगे हाथ नहीं पकड़ा है,’’ लक्ष्मी ने जरा तेज आवाज में कहा.

‘‘हां, पकड़ा तो नहीं…’’ कंचन ने कहा, फिर वह आगे बोली, ‘‘अरे, तु झे काम पर जाना है न, जा बरतन मांज कर अपनी हड्डियां गला.’’

लक्ष्मी साहब के बंगले की तरफ बढ़ चली. आज उसे देर हो गई, इसलिए वह जल्दीजल्दी जाने लगी. सब से पहले उसे त्रिवेदीजी के बंगले पर जाना था.

जब लक्ष्मी त्रिवेदीजी के बंगले पर पहुंची, तब मेमसाहब उसी का इंतजार कर रही थीं. वे नाराजगी से बोलीं, ‘‘आज देर कैसे हो गई लक्ष्मी?’’

‘‘क्या करूं मेमसाहब, आज बस्ती में एक लफड़ा हो गया.’’

‘‘अरे, बस्ती में लफड़ा कब नहीं होता. वहां तो आएदिन लफड़ा होता रहता है.’’

‘‘बात यह नहीं है मेमसाहब. गंगूबाई नाम की औरत धंधा करती हुई पकड़ी गई है.’’

‘‘इस में भी कौन सी नई बात है. बस्ती की गरीब औरतें यह धंधा करती हैं. गंगूबाई ने ऐसा कर लिया, तब तो उस की कोई मजबूरी रही होगी.’’

‘‘अरे मेमसाहब, यह बात नहीं है. वह शादीशुदा है और 2 बच्चों की मां भी है.’’

‘‘तो क्या हुआ, मां होना गुनाह है क्या? पैसा कमाने के लिए ज्यादातर औरतें यह धंधा करती हैं…’’ मेम साहब बोलीं, ‘‘औरतें इस धंधे में क्यों आती हैं? इस की जड़ पैसा है. इन गरीब घरों में ऐसा ही होता है.’’

‘‘मेमसाहब, आप पढ़ीलिखी हैं, इसलिए ऐसा सोचती हैं. मगर, मैं इतना जरूर जानती हूं कि छिप कर शरीर बेचना कानूनन अपराध है. अब आप से कौन बहस करे… यहां से मु झे गुप्ताजी के घर जाना है. अगर देर हो गई तो वहां भी डांट पड़ेगी,’’ कह कर लक्ष्मी रसोईघर में चली गई.

शगुन का नारियल : शादी और जात पांत का चक्रव्यूह

‘‘दिमाग फिर गया है इस लड़की का. अंधी हो रही है उम्र के जोश में. बापदादा की मर्यादा भूल गई. इश्क का भूत न उतार दिया सिर से तो मैं भी बाप नहीं इस का,’’ कहते हुए पंडित जुगलकिशोर के मुंह से थूक उछल रहा था. होंठ गुस्से के मारे सूखे पत्ते से कांप रहे थे.

‘‘उम्र का उफान है. हर दौर में आता है. समय के साथसाथ धीमा पड़ जाएगा. शोर करोगे तो गांव जानेगा. अपनी जांघ उघाड़ने में कोई समझदारी नहीं. मैं समझाऊंगी महिमा को,’’ पंडिताइन बोली.

‘‘तू ने समझाया होता, तो आज यों नाक कटने का दिन न देखना पड़ता. पतंग सी ढीली छोड़ दी लड़की. अरे, प्यार करना ही था, तो कम से कम जातबिरादरी तो देखी होती. चल पड़ी उस के पीछे जिस की परछाईं भी पड़ जाए तो नहाना पड़े. उस घर में देने से तो अच्छा है कि लड़की को शगुन के नारियल के साथ जमीन में गाड़ दूं,’’ पंडित जुगलकिशोर ने इतना कह कर जमीन पर थूक दिया.

बाप के गुस्से से घबराई महिमा सहमी कबूतरी सी गुदड़ों में दुबकी बैठी थी. आज अपना ही घर उसे लोहे के जाल सा महसूस हो रहा था, जिस में से सिर्फ सांस लेने के लिए हवा आ सकती है.

शगुन के नारियल के साथ जमीन में गाड़ देने की बात सुनते ही महिमा को ‘औनर किलिंग’ के नाम पर कई खबरें याद आने लगीं. उस ने घबरा कर अपनी आंखें बंद कर लीं.

21 साल की उम्र. 5 फुट 7 इंच का निकलता कद. धूप में संवलाया रंग और तेज धार कटार सी मूंछ. पहली बार महिमा ने किशोर को तब देखा था, जब गांव के स्कूल से 12वीं जमात पास कर वह अपना टीसी लेने आया था.

महिमा भी वहां खड़ी अपनी 10वीं जमात की मार्कशीट ले रही थी. आंखें मिलीं और दोनों मुसकरा दिए थे. किशोर झेंप गया, महिमा शरमा गई. तब वह कहां जातपांत के फर्क को समझाती थी.

धीरेधीरे बातचीत मुलाकातों में बदलने लगी और आंखों के इशारे शब्दों में ढलने लगे. महक की तरह इश्क भी फिजाओं में घुलने लगा और जबानजबान चर्चा होने लगी.

इस से पहले कि चिनगारी शोला बन कर घर जलाती, किशोर आगे की पढ़ाई के लिए शहर चला गया, इसलिए उन की मुलाकातें कम हो गईं.

इधर महिमा ने 12वीं जमात पास करने के बाद कालेज जाने की जिद की. उधर, किशोर की कालेज की पढ़ाई पूरी होने वाली थी. महिमा होस्टल में रह कर कालेज की पढ़ाई करने लगी और किशोर ग्रेजुएट होने के बाद प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुट गया.

सही खादपानी मिलते ही दम तोड़ती प्यार की दूब फिर से हरी हो गई. मुलाकातें परवान चढ़ने लगीं. एक दिन गांव के किसी भले आदमी ने दोनों को साथसाथ देख लिया. बस, फिर क्या था तिल का ताड़ बनते कहां देर लगती है.

नमकमिर्च लगी खिचड़ी पंडित जुगलकिशोर के घर तक पहुंचने की ही देर थी कि पंडितजी राशनपानी ले कर किशोर के बाप मदना के दरवाजे पर जा धमके.

‘‘सरकार ने ऊपर चढ़ने की सीढ़ी क्या दे दी, अपनी औकात ही भूल बैठे. आसमान में बसोगे क्या? अरे, चार अक्षर पढ़ने से जाति नहीं बदल जाती. नींव के पत्थर कंगूरे में नहीं लगा करते,’’ और भी न जाने क्याक्या वे मदना को सुनाते, अगर बड़ा बेटा महेश उन्हें जबरदस्ती घसीट कर न ले जाता.

‘‘कमाल करते हो बापू. अरे, यह समय उबलने का नहीं है. जरा सोचो, अगर जातिसूचक गालियां निकालने के केस में अंदर करवा दिया, तो बिना

गवाह ही जेल जाओगे. जमानत भी नहीं मिलेगी,’’ महेश ने अपने पिता को सम?ाया.

पंडित जुगलकिशोर को भी अपनी जल्दबाजी पर पछतावा तो हुआ, लेकिन गुस्सा अभी भी जस का तस बना हुआ था.

‘‘पंचायत बुला कर गांव बदर न करवा दिया तो नाम नहीं,’’ पंडितजी ने बेटे की आड़ में मदना को सुनाया.

पंडित जुगलकिशोर का गांव में बड़ा रुतबा था. मंदिर के पुजारी जो ठहरे. हालांकि अब पुरोहिताई में वह पहले वाली सी बात नहीं रही थी. बस, किसी तरह से दालरोटी चल जाती है, लेकिन कहते हैं न कि शेर भूखा मर जाएगा, लेकिन घास नहीं खाएगा. वही तेवर पंडितजी के भी हैं. चाहे आटे का कनस्तर रोज पैंदा दिखाता हो, लेकिन मजाल है, जो चंदन के टीके में कभी कोई कमी रह जाए.

वह तो पंडिताइन के मायके वाले जरा ठीकठाक कमानेखाने और दानदहेज में भरोसा करने वाले हैं, इसलिए समाज में पंडित जुगलकिशोर की पंडिताई की साख बची हुई है, वरना कभी की पोल चौड़े आ जाती. महिमा की पढ़ाईलिखाई का खर्चा भी उस के मामा यानी पंडिताइन के भाई सालग्राम ही उठा रहे हैं.

कुम्हार का कुम्हारी पर जोर न चले, तो गधे के कान उमेठता है. पंडित जुगलकिशोर ने भी महेश को भेज कर महिमा को शहर से बुलवा कर घर में नजरबंद कर दिया. पति का बिगड़ा मिजाज देख कर पंडिताइन ने अपने भाई को तुरंत आने को कह दिया.

50 साल का सालग्राम कसबे में क्लर्की करता था. सरकारी नौकरी में रहने के चलते राजकाज के तौरतरीके और सरकार की पहुंच समझता था. वह जानता था कि भले ही सरकारी काम सरकसरक कर होते हैं, लेकिन यह सरकार अगर गौर करने लगे तो फिर ऐक्शन लेने में मिनट लगाती है.

गांव से पहले घर में पंचायत बैठी. मामा को देख महिमा के जी को शांति मिली. प्यार मिले न मिले, किस्मत की बात… जान की सलामती तो रहेगी.

एक तरफ पंडित जुगलकिशोर थे, तो वहीं दूसरी तरफ पूरा परिवार, लेकिन अकेले पंडितजी सब पर भारी पड़ रहे थे. रहरह कर दबी हुई स्प्रिंग से उछल रहे थे.

‘‘चौराहे पर बैठा समझ लिया क्या ससुरों ने? अरे, शासन की सीढ़ियां चढ़ लीं तो क्या गढ़ जीत लिया? चले हैं हम से रिश्ता जोड़ने… दो निवाले दोनों बखत मिलने क्या लगे तो औकात भूल गए…’’ पंडितजी ने अपने साले को सुनाया.

‘‘समय को समझने की कोशिश करो जीजाजी. अब रजवाड़ों का समय नहीं है. यह लोकतंत्र है. यहां भेड़बकरी एक घाट पर पानी पीते हैं,’’ सालग्राम ने पंडित जुगलकिशोर को समझाया.

‘‘मामा सही कह रहे हैं बापू. जातपांत आजकल पिछड़ी सोच वाली बात हो गई. आप कभी गांव से बाहर गए नहीं न इसलिए आप को अटपटा लग रहा है. शहरों में आजकल दो ही जात होती हैं, अमीर और गरीब,’’ मामा की शह पा कर महेश के मुंह से भी बोल फूटे.

पंडितजी ने उसे खा जाने वाली नजरों से घूरा. महेश सिर नीचा कर के खड़ा हो गया.

‘‘इस बच्चे को क्या आंखें दिखाते हो. सब सही ही तो कह रहे हैं. आप तो रामायण पढ़े हो न… भगवान राम ने केवट और शबरी को कैसा मान दिया था, याद नहीं…?’’ पंडिताइन बातचीत के बीच में कूदीं.

‘‘हां, रामायण पढ़ी है. माना कि समाज में सब का अपना महत्व है, लेकिन पैर की जूती को सिर पर पगड़ी की जगह नहीं पहना जाता,’’ पंडितजी ने पत्नी को घुड़क दिया.

‘‘चलो छोड़ो इस बहस को. बाहर  चल कर चाय पी कर आते हैं,’’ सालग्राम ने एक बार के लिए घर की पंचायत बरखास्त कर दी. महिमा की उम्मीदों की कडि़यां जुड़तीजुड़ती बिखर गईं.

‘‘जीजाजी, मैं मानता हूं कि जो संस्कार हमें घुट्टी में पिलाए गए हैं, उन के खिलाफ जाना आसान नहीं है, लेकिन मैं तो सरकारी नौकर हूं और मेरे अफसर यही लोग हैं. हमें तो इन के बुलावे पर जाना भी पड़ता है और इन का परोसा खाना भी पड़ता है. इन्हें भी अपने यहां न्योतना पड़ता है और इन के जूठे कपगिलास भी उठवाने पड़ते हैं.

‘‘अब इस बात को ले कर आप मुझे जात बाहर करो तो बेशक करो,’’ सालग्राम के हरेक शब्द के साथ पंडित जुगलकिशोर की आंखें हैरानी से फैलती जा रही थीं.

‘‘आप छोरी की पढ़ाईलिखाई मत छुड़वाओ. उसे पढ़ने दो. हो सकता है कि वह खुद ही आप के कहे मुताबिक चलने लगे या फिर समय का इंतजार करो. ज्यादा जोरजबरदस्ती से तो गाय भी खूंटा तोड़ कर भाग जाती है,’’ सालग्राम ने कहा.

वे दोनों गांव के बीचोंबीच बनी चाय की थड़ी पर आ कर बैठ गए. लड़का  2 कप चाय रख गया. तभी शोर ने उन का ध्यान खींचा. देखा तो पुलिस की गाड़ी सरपंचजी के घर के सामने आ कर रुकी थी.

2 सिपाही उतर कर हवेली में गए और वापसी में सरपंचजी हाथ जोड़े उन के साथ आते दिखे.

‘‘देखें, क्या मामला है…’’ सालग्राम ने कहा और दोनों जीजासाला तमाशबीन भीड़ का हिस्सा बन गए.

सालग्राम ने पुलिस अफसर की वरदी पर लगी नाम की पट्टी को देखा और जीजा को कुहनी से ठेला मार कर उन का ध्यान उधर दिलाया. नाम पढ़ कर पंडितजी सोच में पड़ गए.

‘‘इन का यह रुतबा है. सरपंच भी हाथ जोड़े खड़ा है,’’ सालग्राम ने कहा, तो पंडित जुगलकिशोर समझने की कोशिश कर रहे थे.

तभी हवेली के भीतर से चायपानी आया और सरपंचजी मनुहार करकर के अफसर को खिलानेपिलाने लगे.

‘रामराम… धर्म भ्रष्ट हो गया…’ पंडितजी कहना चाह कर भी नहीं कह सके. वे साले के साथ चुपचाप वापस लौट आए.

रात को घर की पंचायत में फैसला हुआ कि महिमा की पढ़ाई जारी रखी जाएगी. उसे ऊंचनीच समझ कर मामा के साथ वापस शहर भेज दिया गया.

जब पंडित जुगलकिशोर के घर से इस चर्चा पर विराम लग गया, तो  फिर किसी और की हिम्मत भी नहीं हुई बात का बतंगड़ बनाने की.

साल बीततेबीतते महिमा ग्रेजुएट हो गई और अब शहर में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुट गई.

महेश ने भी शहर के कालेज में भरती ले ली थी. इस बीच न तो महिमा की जबान पर कभी किशोर का नाम आया और न ही बेटे ने कोई चोट देती खबर दी तो पंडितजी ने राहत की सांस ली. उन्हें लगा मानो यह दूध का उफान था,जो अब रूक गया है. लड़की अपना भलाबुरा सम?ा गई है.

‘‘जीजाजी, सुना आप ने… प्रशासनिक सेवाओं का नतीजा आ गया है. आप के गांव के किशोर का चयन हुआ है,’’ सालग्राम ने घर में घुसते ही कहा.

यह सुनते ही पंडिताइन खिल गईं. पंडितजी के माथे पर बल पड़ गए.

‘‘हुआ होगा.. हमें क्या? बहुत से लोगों के हुए हैं,’’ पंडित जुगलकिशोर ने लापरवाही से कहा.

‘‘बावली बातें मत करो जीजाजी. समय को समझ. जून सुधर जाएगी कुनबे की. अरे, छोरी तो राज करेगी ही, आगे की पीढ़ियां भी तर जाएंगी. बच्चों के साथ तो बाप का नाम ही जुड़ेगा न,’’ सालग्राम ने जीजा को समझाया.

‘‘मामा सही कह रहे हैं बापू. जिस की लाठी हो भैंस उस की ही हुआ करे. राज में भागीदारी न हो तो जात का लट्ठ बगल में दबाए घूमते रहना. कोई घास न डालने का,’’ महेश भी मामा के समर्थन में उतर आया था.

‘‘अरे, ये तो छोराछोरी के भले संस्कार हैं जो इज्जत ढकी हुई है, वरना शहर में कोर्टकचहरी कर लेते तो क्या कर लेता कोई? कानून भी उन्हीं का साथ देता,’’ पंडिताइन कहां पीछे रहने वाली थीं.

‘‘लगता है, पूरा कुनबा ही ज्ञानी हो गया, एक मैं ही बोड़म बचा,’’ पंडितजी से कुछ बोलते नहीं बना, तो उन्होंने सब को झिड़क दिया, लेकिन इस झिड़क में उन की झेंप और कुछकुछ सहमति भी झलक रही थी.

मामला पक्ष में जाते देख पंडिताइन झट भीतर से नारियल निकाल कर लाईं और जबरदस्ती पति के हाथ में थमा दिया.

‘‘छोरा गांव आया हुआ है, आज ही रोक लो, वरना गुड़ की खुली भेली पर मक्खियां आते कितनी देर लगती है,’’ पंडिताइन ने सफेद कुरताधोती भी ला कर पलंग पर रख दिए.

पंडितजी कभी अपने कपड़ों को तो कभी सामने रखे मोली बंधे शगुन के नारियल को देख रहे थे. उन्होंने कुरता पहन कर धोती की लांग संवारी और नारियल को लाल गमछे में लपेट कर मदना के घर चल दिए बधाई देने.

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