परित्यक्ता – भाग 2 : कजरी के साथ क्या हुआ था

उस के घर में ही लखन ने कुछ पासपड़ोसियों के सामने उसे मंगलसूत्र पहना कर उस की मांग में सिंदूर भर दिया. अब लखन उस के साथ ही आ कर रहने लगा. बच्चों ने भी कुछ समय बाद आखिर उसे अपना लिया.

शादी को 8 महीने हो चुके थे. पुराने जख्म भरने लगे थे कि अचानक एक दिन सुबहसुबह एक औरत उस के दरवाजे पर आ कर उसे भलाबुरा कहने लगी. पहले तो कजरी समझ ही न पाई कि यह चक्कर क्या है. बाद में उसे समझ आया, तो उस पर फिर से एक बार आसमान टूट पड़ा.

वह औरत लखन की पत्नी थी जो रात ही अपने गांव से आई थी, और लखन व उस के संबंध की जानकारी मिलते ही वह उस से लड़ने चली आई थी. कजरी ने इस बारे में लखन से कई सवाल किए, पर उस की खामोशी देख कर वह समझ गई कि समय ने फिर से उस के साथ बहुत ही गंदा मजाक किया है. लखन ने सिर्फ अपनी वासनापूर्ति की खातिर ही उस से संबंध जोड़ा था.

लखन जा चुका था, कजरी अंदर ही अंदर टूट कर फिर बिखर चुकी थी. पर इस बार वह पहले की तरह एक कमजोर औरत नहीं थी, जो अपनी बेबसी का रोना ले कर बैठे. सो, दूसरे दिन से ही उस ने सुमि पर भाईबहनों की जिम्मेदारी छोड़ कर काम पर जाना शुरू कर दिया.

इधर, पड़ोस में रहने वाला 22 साल का दीनू उस की छोटी बेटी रीना पर गलत निगाह रखता था. रीना 9 साल की एक अबोध बालिका थी, जिसे अकसर वह चौकलेट वगैरह का लालच दे कर अपने पास बुलाने की कोशिश करता था. एक दिन सुमि ने चौकलेट खाती रीना के शरीर पर उस के रेंगते हाथों को देख कर मां को तुरंत बताया था. कजरी ने भी इस वाकए को हलके रूप में न ले कर दीनू के मांबाप से जा कर तुरंत इस की शिकायत की थी. उस के बाद दीनू ने सब के सामने उस से माफी मांगी थी.

कुछ दिनों शांत बैठ कर दीनू फिर से वही काम दोहरा रहा था. कजरी को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर वह क्या करे. कैसे बुरी नीयत व बुरी निगाह रखने वाले लोगों से अपनी बच्चियों को बचाए. खुद उस की देह भी तो उस के लिए बड़ी दुखदाई बन चुकी थी. मर्दों की पैनी निगाहें उस के शरीर पर यों फिसलती थीं मानो कपड़ों के अंदर तक झांक लेना चाहती हों.

पति की छोड़ी औरत शायद हर मर्द की जागीर हो जाती है. जिस पर हर कोईर् हाथ साफ करना चाहता है. कजरी के अंदर की औरत बहुत अकेली व लाचार हो गई थी. क्या बिना आदमी के औरत का कोई वजूद नहीं है? आखिर औरत को इतना कमजोर क्यों बनाया है? उस की बेचैनी आंसू बन कर उस के गालोें पर ढुलकने लगी. रात को न जाने कब उस की आंख लगी.

सुबह उठी तो सिर भारी हो रहा था.

आंखें भी जल रही थीं. देररात तक जागने से ऐसा हुआ है, यह  सोच कर कजरी ने उठने की कोशिश की परंतु शरीर ने साथ न दिया.सुमि ने मां को सहारा देने के लिए हाथ बढ़ाया, तो चौंक पड़ी, ‘‘आई, तुझे तो तेज बुखार है.’’

‘‘हां रे, मुझ से तो उठा भी नहीं जा रहा,’’ कजरी पर बेहोशी छाती जा रही थी. शायद बारिश में भीगने से उसे बुखार ने जकड़ लिया था.

मां की हालत देख कर सुमि घबरा गई. मां को वैसे ही छोड़ कर वह दौड़ कर पड़ोस से विमला काकी को बुला लाई. विमला काकी के पति औटो चलाते थे. जल्दी से कजरी को अपने औटो में बैठा कर वे उसे पास के अस्पताल ले गए.

कजरी की बिगड़ती हालत देख कर डाक्टर ने उसे वहीं ऐडमिट कर ग्लूकोस की बोतल चढ़ाने की सलाह दी. जब तक वह हौस्पिटल में रही, विमला काकी ने उस की पूरी देखभाल की और हौस्पिटल का बिल भी उन्होंने ही भरा.

कजरी घर पर तो आ गई लेकिन कमजोरी के चलते उस से उठतेबैठते नहीं बन रहा था. कुछ पैसे जो उस ने बचा कर रखे थे, वे घर के खानेखर्च में खत्म हो गए. अभी विमला काकी का उधार पूरा बाकी था.

‘‘आई, आज आटा खत्म हो गया है, तेल भी नहीं बचा. खाना कैसे बनाऊं?’’ सुमि ने एक सुबह कुछ झिझकते हुए मां से कहा. काम पर गए उसे एक हफ्ता हो गया था.

‘‘आज कुछ अच्छा लग रहा है. आज जाती हूं काम पर. उधर से आते वक्त सब किराना लेती आऊंगी. तब तक तुम पास वाली दुकान से दूध और ब्रैड ले आना और चाय बना कर उस के साथ टोस्ट खा लेना,’’ अपने पास बचे 50 रुपए का आखिरी नोट सुमि को पकड़ाते हुए वह बोली.

काम पर जा कर उसे बहुत बड़ा झटका लगा. उस की मालकिन ने बगैर बताए इतने दिनों की छुट्टी करने पर उसे काम से हटा कर दूसरी बाई रख ली थी. उस ने लाख मिन्नतें कर उन्हें समझाने की भरपूर कोशिश की कि उस ने जानबूझ कर छुट्टी नहीं मारी. लेकिन उन का कलेजा न पसीजा. उन्होंने उसे दोबारा काम पर रखने से साफ मना कर दिया.

परित्यक्ता – भाग 1 : कजरी के साथ क्या हुआ था

बरसती बूंदें कजरी के पैरों से कदमताल कर रही थीं. अभी 6 ही तो बजे थे, पर तेज बारिश और काले बादलों ने वक्त से पहले ही जैसे अंधेरा करने की ठान ली थी. ठीक उस के जीवन की तरह, जिस में उस की खुशियों के उजाले को समय के स्याह बादलों ने हमेशा के लिए ढक लिया था. कजरी सोचती जा रही थी. झमाझम होती बारिश में उस की पुरानी छतरी ने भी आज उस का साथ छोड़ दिया था. बच्चों की चिंता ने उस के पैरों की गति को और बढ़ा दिया. उस का घर आने से पहले ही बाबूलाल किराने वाले की दुकान पड़ती थी, जहां से उसे कुछ किराना भी लेना था.

‘‘क्या चाहिए?’’ बाबूलाल ने कजरी की भीगी देह पर भरपूर नजर डालते हुए कहा.

‘‘2 किलो आटा, आधा लिटर तेल, पाव किलो शक्कर और हां, आधा लिटर दूध भी दे देना,’’ कजरी ने अपने आंचल को ठीक करते हुए कहा. बाबूलाल की ललचाई नजरों में उसे हमेशा ही एक मौन आमंत्रण दिखाई देता था. यह तो उस की मजबूरी थी कि वह यहां से वक्तबेवक्त कभी भी उधारी में सामान ले लिया करती थी, वरना उस की दुकान की ओर कभी वह मुड़ कर भी न देखती.

सोचतेसोचते कजरी घर पहुंच गई. बच्चे ‘‘मां, मां’’ कहते हुए उस से लिपट गए.

‘‘आई बहुत भूख लगी है, ताई ने कुछ खाने को नहीं दिया,’’ छोटे बेटे कमल ने दीदी की शिकायत की.

‘‘क्या करती आई, घर में आटा ही नहीं था,’’ सुमि ने सफाई देते हुए कहा.

‘‘अच्छा मेरा राजा बेटा, मैं अभी गरमागरम रोटी बना कर अपने लाल को खिलाती हूं, मीठे दूध में मींज के खा लेना,’’ कजरी ने बेटे को पुचकारते हुए कहा.

‘‘आई, मैं भी खाऊंगी,’’ 9 साल की रीना ने मचलते हुए कहा.

‘‘क्यों नहीं मेरी गोलू, तू भी खाना.’’ गोलमटोल बड़ीबड़ी आंखों वाली रीना को सब गोलू ही कह कर बुलाते थे.

‘‘मैं ने टमाटर की मस्त चटनी भी बनाई है, आई,’’ सुमि ने उसे पानी का गिलास पकड़ाते हुए कहा.

जल्दी से आटा गूंध कर उस ने बच्चों को खाना खिलाया. उन को सुलाने के बाद कजरी सुमि के साथ वहीं नीचे जमीन पर लेट गई.

‘‘आई, आज फिर दीनू रीना को चौकलेट खिला रहा था. तब मैं ने रीना के हाथ से छीन कर वापस उस के मुंह पर फेंक दी, तो वह मेरे को देख लेने की धमकी दे कर चला गया. मुझे उस से बहुत डर लगता है, आई,’’ सुमि ने भयभीत स्वर में मां को बताते हुए कहा.

‘‘तुम घबराओ नहीं, सुमि, मैं उस की मां से बात करूंगी,’’ कजरी ने उसे तो समझा दिया, परंतु खुद सोच में पड़ गई.

जब से रमेश उसे छोड़ कर गया है, जीना कितना दूभर हो गया है. कभी सोचा नहीं था कि जिंदगी इस कदर बोझ बन जाएगी. रमेश के रहते उसे कभी भी बाहर जा कर काम करने की जरूरत नहीं पड़ी. 17 साल की थी जब मांबाप ने रमेश के साथ उस का ब्याह कर दिया था. बहुत खुश थी वह रमेश के साथ. पेशे से पेंटर रमेश इंदौर के राजेंद्रनगर इलाके से कुछ दूर बुद्धनगर के स्लम एरिया में किराए के मकान में रहता था. मकान बहुत अच्छा नहीं, पर रहने लायक जरूर था. दोनों की जिंदगी मजे में कट रही थी.

समय के साथ कजरी 3 प्यारे बच्चों की मां बनी. सब से बड़ी सुमि, उस से छोटी रीना और सब से छोटा कमल. बच्चों के जन्म के बाद कजरी का भरा बदन और भी सुंदर लगने लगा था. शादी के 12 साल बीत जाने पर भी रमेश उसे जीजान से चाहता था. आसपड़ोस के लोग उन दोनों के प्यारभरे रिश्ते से अनजान नहीं थे. कजरी के घर के पास ही एक बढ़ई परिवार रहता था. इस परिवार की इकलौती लड़की माया रमेश को बहुत पसंद करती थी, पर रमेश उस पर कभी ध्यान नहीं देता था.

इधर, बच्चों की देखरेख और घर के कामों में व्यस्त कजरी चाहते हुए भी रमेश को ज्यादा वक्त न दे पाती थी जिस वजह से अकसर दोनों में झड़प हो जाया करती थी. वह रमेश को समझाती थी कि बच्चों के आने के बाद उस का काम बढ़ गया है. पर पुरुषवादी सोच का गुलाम रमेश उस की न को अपना अपमान समझने लगा था. धीरेधीरे उन के बीच में दूरियां बढ़ती चली गईं.

अब काम से लौट कर रमेश सीधे जो बाहर निकलता, तो रात 11-12 बजे ही वापस आता. बच्चों के पालनपोषण में व्यस्त कजरी ने पहले तो इस ओर ध्यान नहीं दिया, और जब ध्यान दिया तब तक बड़ी देर हो चुकी थी.

35 साल का रमेश अब 16 साल की लड़की माया का दीवाना बन चुका था. इस बात का पता लगते ही कजरी ने बहुत बवाल मचाया. रमेश से लड़ीझगड़ी, उस माया के घर जा कर उसे लताड़ा. फिर भी उन दोनों पर कोई असर न होता देख कजरी ने माया के सामने अपना आंचल फैलाते हुए अपने बच्चों के पिता को छोड़ देने के लिए बहुत अनुनयविनय की. पर माया टस से मस न हुई. माया के मातापिता भी उस की इस हरकत के आगे मजबूर थे.

फिर, एक दिन वह दिन भी आया जब काम पर गया रमेश कभी घर नहीं लौटा. इधर, माया भी घर से गायब थी. कजरी की आंखों के सामने अंधेरा छा गया. वह फूटफूट कर रोई. पर अब हो भी क्या सकता था. भारी मन से उस ने इस सचाई को स्वीकार कर लिया कि अब वह एक परित्यक्ता है, जिसे उस का आदमी हमेशा के लिए छोड़ कर जा चुका है.

पति द्वारा छोड़ी हुई औरत समाज के पुरुषों की बपौती बन जाती है, कुछ ही दिनों में यह बात उस की समझ में आ चुकी थी. यह वह समाज है, जहां पुरुषों द्वारा की गई गलती की सजा भी औरत को ही भुगतनी पड़ती है. घर के बाहर हर दूसरा आदमी उस के शरीर पर अपनी गिद्ध निगाह जमाए बैठा था. पर बच्चों के भरणपोषण के लिए उस का घर से निकलना बेहद जरूरी हो चुका था. ऐसे में रमेश के दोस्त लखन ने उस की बहुत सहायता की. उस ने अपने मालिक के घर पर कजरी को काम दिला दिया.

जल्द ही कजरी ने भी बेशर्मी की चादर ओढ़ कर जीना सीख लिया. लेकिन, अब भी काम पर जाने के बाद बच्चों की देखरेख की समस्या उस के आगे मुंहबाए खड़ी थी, जिस का जिम्मा उस की 11 साल की बेटी ने ले लिया. अपनी पढ़ाई छोड़ कर वह अपने छोटे भाईबहन को संभालने लगी. पापा के घर छोड़ कर चले जाने से वह अचानक ही अपनी उम्र से कुछ ज्यादा बड़ी हो गई थी. कुछ महीनों में कजरी को ऐसा लगने लगा कि जिंदगी फिर पटरी पर आने लगी है.

एक दिन वह काम पर से वापस आ रही थी कि रास्ते में लखन मिल गया. बातोंबातों में उस ने कजरी से अपने प्यार का इजहार कर दिया. उस के एहसानों तले दबी कजरी उसे एकदम से इनकार न कर सकी. उस ने उस से सोचने के लिए कुछ समय मांगा. रातभर वह इसी ऊहापोह में रही कि अपने ही पति द्वारा वह एक बार ठगी जा चुकी है. क्या फिर से उसे किसी पर इतना विश्वास करना चाहिए? परंतु बिना मर्द के घर पर लोगों की चीलकौवे सी पड़ती निगाहों से बचने के लिए आखिरकार उसे यही रास्ता सब से उपयुक्त लगा.

परित्यक्ता – भाग 3 : कजरी के साथ क्या हुआ था

‘‘हमेशा ही चुका देती हूं, भैया. हां, इस बार जरूर कुछ देर हो गई. पर मैं जल्द ही आप के सारे रुपए चुका दूंगी,’’ कजरी ने लगभग गिड़गिड़ाते हुए कहा.

‘‘माफ करना, मैं ने यहां कोई धर्मखाता नहीं खोल रखा है, जो मुफ्त में ही सब को जलपान कराता जाऊं,’’ बाबूलाल ने उसे दुत्कारते हुए कहा.

‘‘आज मेरा काम छूट गया है, लेकिन मैं विश्वास दिलाती हूं कि जल्द ही कोई काम ढूंढ़ कर आप की पूरी उधारी चुका दूंगी,’’ कह कर कजरी ने बेबसी से अपने हाथ जोड़ दिए.

‘‘काम तो मैं भी तुम्हें दे सकता हूं, अगर तुम चाहो तो. इस से तुम्हारा आज तक का पूरा उधार चुक जाएगा और ऊपर से कुछ कमाई भी हो जाएगी.’’ बाबूलाल की आंखों से टपकती लार देख कर कजरी सहम गई.

जाने कैसे ये भेडि़ए एक औरत की मजबूरी को सूंघ कर अपना दांव गांठते हैं. कजरी ने गहरी सांस छोड़ी और दुकान के बाहर आ गई.

मोड़ तक आतेआते वह कुछ ठिठक कर खड़ी हो गई. घर जा कर बच्चों को क्या खिलाएगी? बच्चों के भूख से कलपते चेहरे उसे साफ दिखाई पड़ रहे थे. मकान का किराया कहां से आएगा? विमला काकी का पूरा उधार अभी बाकी है. उफ, कैसे होगा यह सब? कजरी के दिल और दिमाग में एक जंग सी छिड़ गई थी. दिल कहता था…यह गलत है जबकि दिमाग कुछ ज्यादा ही व्यावहारिक हो चला था, जो हालफिलहाल की स्थिति से कैसे निबटा जाए, यह सोच रहा था. आखिरकार, एक औरत के सतीत्व पर मां की ममता भारी पड़ गई. कजरी के दुकान में दोबारा प्रवेश करते ही बाबूलाल की आंखों में वासनाजनित चमक आ गई.

कुछ देर बाद ही कजरी दोनों हाथों में सामान लिए घर की तरफ तेजी से बढ़ी चली जा रही थी. सामान्यतया रोज खुला रहने वाला दरवाजा आज भीतर से बंद था. अंदर से आती घुटीघुटी सिसकारी की आवाज ने कजरी को तनिक संशय में डाल दिया. किसी अनिष्ट की आशंका से उस का मन कांप गया. जोरजोर से बच्चों को आवाज लगा कर उस ने दरवाजा पीटना शुरू कर दिया. पर दरवाजा न खुला.

इतने में सुमि और कमल को बाहर से आता देख कजरी चीख पड़ी, ‘‘रीना कहां है सुमि?’’

‘‘अंदर ही होगी, आई. मैं कुछ देर पहले ही ब्रैड और दूध लेने गई थी और यह कमल मेरे पीछे लग लिया. बहुत समझाया, पर माना ही नहीं.’’

तब तक चिल्लाने की आवाज सुन कर आसपड़ोस से कई लोग निकल कर जमा हो गए. तुरंतफुरत ही दरवाजा तोड़ दिया गया. दरवाजा टूटते ही कजरी अंदर घुसी और कमरे के एक कोने में रीना को बेसुध पड़ा देख बदहवास सी हो गई. तभी भीतर से एक साया निकल कर बाहर की तरफ भागा. हां, वह दीनू ही था, जिस ने रीना के अकेले होने का फायदा आज उठा ही लिया था. यह सब इतना अचानक हुआ कि किसी को कुछ समझ ही नहीं आया.

शोरगुल की आवाज से विमला काकी भी आ चुकी थीं. कजरी ने रीना को उठानेहिलाने की बहुत कोशिश की, मगर सब बेकार था. रीना बेजान हो चुकी थी. एक नन्ही कली आज फिर किसी वहशी दरिंदे की बुरी नीयत का शिकार हो चुकी थी. कजरी सामने पड़ी सचाई स्वीकार नहीं कर पा रही थी. अपनी प्यारी गोलू का यह हाल देख कर वह कांप उठी थी. उस की पूरी दुनिया ही जैसे उजड़ गई थी. सुमि लगातार रोए जा रही थी और कमल सहमा हुआ एक तरफ खड़ा हुआ था.

लोगों की आपसी चर्चा चालू थी. कोई पुलिस को बुलाने की बात कर रहा था तो कोई रीना को डाक्टर के पास ले जाने को कह रहा था. कजरी अचानक उठी और पलंग के नीचे से हंसिया निकाल कर बिजली की फुरती से बाहर निकल गई. उधर, दीनू जल्दीजल्दी एक बैग में अपने कुछ कपड़े भर कर घर से निकलने ही वाला था कि कजरी ने उस का रास्ता रोक लिया.

‘‘मुझे माफ कर दो कजरी भाभी, मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई. पता नहीं मुझे क्या हो गया था. मैं उसे मारना नहीं चाहता था, वह चिल्ला न सके, इसलिए मैं ने उस का मुंह बंद किया. मुझे नहीं…’’ दीनू अपनी सफाई देता रह गया और कजरी ने उस पर हंसिये से प्रहार करना शुरू कर दिया.

‘‘नीच, तू ने मेरी गोलू को क्यों मारा, क्या बिगाड़ा था उस मासूम ने तेरा,’’ कजरी चीखती जा रही थी. तभी पीछे से विमला काकी ने आ कर कुछ लोगों की मदद से उसे रोका.

दीनू घायल हो कर गिर पड़ा था. इलाके की पुलिस ने तुरंत ही दीनू को अस्पताल भेजा. और पूछताछ में लग गई. रीना की मृतदेह एम्बुलेंस में ले जाई जा रही थी. उपस्थित सभी लोगों की आंखें नम थीं. इतनी देर से मूकदर्शक बनी कजरी ने अचानक अट्टहास करना शुरू कर दिया. भीड़ में से किसी ने कहा, ‘वह पागल हो गई है.’ एक विमला काकी ही ऐसी थीं जिन्हें कजरी में एक परित्यक्त मां की बेबसी और हताशा दिखाई दे रही थी, जो अपना सबकुछ दांव पर लगा कर भी अपनी मासूम बच्ची को नहीं बचा पाई.

अंधेरी रात का जुगनू – भाग 3 : रेशमा की जिंदगी में कौन आया

पलभर के लिए रेशमा का आत्मविश्वास भी डगमगाने लगा था. कहीं किसी ग्राहक को जल्दबाजी में ज्यादा पैसे तो नहीं दे दिए मैं ने, कहीं किसी से कम पैसे तो नहीं लिए? लेकिन दूसरे ही पल उस ने खुद को धिक्कारा. अपनी सतर्कता और हिसाब पर पूरा यकीन था उसे. तभी सेठ की आवाज का चाबुक उस की कोमल और ईमानदार भावना पर पड़ा, ‘रेशमा, अगर तुम मेरे दोस्त की बेटी न होतीं तो अभी, इसी समय पुलिस को फोन कर देता. शर्म नहीं आती चोरी करते हुए. पैसों की जरूरत थी तो मुझ से कहतीं. मैं तनख्वाह बढ़ा देता. लेकिन तुम ने तो ईमानदार बाप का नाम ही मिट्टी में मिला दिया.’

सुन कर तिलमिला गई रेशमा. क्या सफाई देती उन्हें जो उस की विवशता को उस का गुनाह समझ रहे हैं. मेहनत और वफादारी के बदले में मिला उसे जलालत का तोहफा. तभी खुद्दारी सिर उठा कर खड़ी हो गई और 28 दिन की तनख्वाह का हिसाब मांगे बगैर वह दुकान से बाहर निकल गई. अंदर का आक्रोश उफनउफन कर बाहर आने के लिए जोर मार रहा था. मगर रेशमा ने पूरी शिद्दत के साथ उसे भीतर ही दबाए रखा. असमय घर पहुंचती तो अम्मी को सच बतलाना पड़ता. रेशमा पर चोरी का इलजाम लगने और नौकरी हाथ से चले जाने का सदमा अम्मी बरदाश्त नहीं कर पाएंगी. अगर उन्हें कुछ हो गया तो वह कैसे दोनों भाइयों और घर को संभाल पाएगी, यह सोचते हुए रेशमा के कदम अनायास ही मजार की तरफ बढ़ गए.

मजार के अहाते का पुरसुकून, इत्र और फूलों की मनमोहक खुशबू भी उस के रिसते जख्म पर मरहम न लगा सकी. घुटनों पर सिर रख कर फफक कर रो पड़ी. रात 10 बजे मजार का गेट बंद करने आए खादिम ने आवाज लगाई, ‘घर नहीं जाना है क्या, बेटी?’ सुन कर जैसे नींद से जागी. धीमेधीमे मायूस कदम उठाते हुए घर पहुंची. अम्मी का चिंतित चेहरा दोनों भाइयों की छटपटाहट देख कर उसे यकीन हो गया कि मेरे घर के लोग मुझे कभी गलत नहीं समझेंगे.

‘कहां चली गई थीं?’

‘दुकान में ज्यादा काम था आज,’ संक्षिप्त सा जवाब दे कर पानी के साथ रोटी का निवाला गटकते हुए बिना कोई सफाई दिए बिस्तर पर पहुंचते ही मुंह में कपड़ा ठूंस कर बिलखबिलख कर रो पड़ी. उस रात अब्बू बहुत याद आए थे. कमसिन कंधों पर उन की भरीपूरी गृहस्थी का बोझ तो उठा लिया रेशमा ने, मगर उन के नाम को कलंकित करने का झूठा इल्जाम वह बरदाश्त नहीं कर पा रही थी.

दूसरे दिन रोज की तरह लंच बाक्स ले कर रेशमा के कदम अनजाने में अब्बू की दुकान की तरफ मुड़ गए. बरसों बाद जंग लगे ताले को खुलता देख अगलबगल वाले दुकानदार हैरान रह गए.

धूल से अटे कमरे में अब्बू का बनाया हुआ मार्बल का लैंपस्टैंड, सूखा एक्वेरियम और कभी तैरती, मचलती खूबसूरत मछलियों के स्केलटन. दुकान के कोने में बना प्लास्टर औफ पेरिस का फाउंटेन, सबकुछ जैसा का तैसा पड़ा था. अगर कुछ नहीं था तो अब्बू का वजूद. बस, उन की आवाज की प्रतिध्वनि रेशमा के कानों में गूंजने लगी, ‘बेटा, खूब दिल लगा कर पढ़ना. आप को चार्टर्ड अकाउंटैंट और दोनों बेटों को डाक्टर, इंजीनियर बनाऊंगा,’ ऐसे ही गुमसुम बैठे हुए सुबह से शाम गुजर गई.

भरा हुआ टिफिन वापस बैग में डाल कर घर वापस जाने के लिए उठ ही रही थी कि मोबाइल बज उठा, ‘रेशमा, आई एम सौरी. मुझे माफ करना बेटा. मैं गुस्से में तुम को पता नहीं क्याक्या कह गया,’ दूसरी ओर से सेठ की आवाज गूंजी, ‘सुन रही हो न, रेशमा. दरअसल, 8 हजार रुपए मेरे बेटे ने गल्ले से निकाले थे. कल शाम को ही वह जुआ खेलता हुआ पकड़ा गया तो पता चला.’

सुन कर रेशमा स्थिर खड़ी अब्बू की धूल जमी तसवीर को एकटक देखती रही.

‘बेटे, अपने अब्बू के दोस्त को माफ कर दो तो कुछ कहूं.’

इधर से कोई प्रतिउत्तर नहीं.

‘कोई बात नहीं, तुम अगर दुकान पर काम नहीं करना चाहती हो तो कोई बात नहीं, तुम मेरा बुटीक सैंटर संभाल लो. तुम्हारी जैसी मेहनती और ईमानदार इंसान की ही जरूरत है मेरे बुटीक सेंटर को.’

रेशमा ने कोई जवाब नहीं दिया. अपमान और तिरस्कार का आघात,

सेठ की आत्मविवेचना व पछतावे पर भारी रहा.

रास्ते भर ‘बुटीक…बुटीक…बुटीक’ शब्द मखमली दूब की तरह कानों में उगते रहे. स्कूल के दिनों में शौकिया तौर पर एंब्रायडरी सीखी थी रेशमा ने. कुरतों, सलवारों, चादरों, नाइटीज पर खूबसूरत रेशमी धागों से बनी डिजाइनों ने उसे अब्बू और रिश्तेदारों की शाबाशियां भी दिलवाई थीं. थोड़ाबहुत कटे हुए कपड़े भी सिलना सीख गई थी. अनजाने में ही सेठ ने रेशमा की अमावस की अंधेरी रात को पूर्णिमा का उजाला दिखला दिया, स्वाभिमान और आत्मविश्वास से जीने का रास्ता बतला दिया.

पापा की दुकान और रेशमा का शौकिया हुनर, अपना निजी और स्वतंत्र कारोबार, जहां अपना आधिपत्य होगा जहां उसे कोई चोर कह कर जलील नहीं करेगा. जहां वह अपने परिवार के साथसाथ हुनरमंद कारीगरों और उन के परिवारों का पेट पालने का जरिया बन सकेगी. पूरी रात बिस्तर पर करवटें बदलती रही रेशमा. उस दिन आसमां पर चांद की रफ्तार धीमी लगने लगी उसे.

पौ फटते ही रेशमा दोनों भाइयों के साथ पापा की दुकान में खड़ी अनुपयोगी वस्तुओं को ठेले पर लदवा रही थी. लघु उद्योग प्रोत्साहन योजना के तहत बैंक से लोन लेने के लिए आवेदन दे दिया. 1 महीने बाद दुकान के सामने बोर्ड लग गया, ‘जास्मीन बुटीक सैंटर’. दूसरे ही दिन दुकान के शुभारंभ का दावतनामा ले कर बांटने के लिए निकल पड़ी रेशमा. कार्ड देख कर किसी ने हौसला बढ़ाया, तो किसी ने नाउम्मीद और नाकामयाबी के डर से डराया. लेकिन रेशमा कान और मुंह बंद किए हुए पूरे हौसले के साथ जिस रास्ते पर चल पड़ी उस से पलट कर पीछे नहीं देखा.

रेशमा के भीतर का कलाकार धीरेधीरे उभरने लगा, वह कपड़ों की डिजाइन केटलौग्स के अलावा कंप्यूटर स्क्रीन पर ग्राहकों को दिखलाने लगी. धीरेधीरे आकर्षक डिजाइनों व काम की नियमितता देख कर महिला ग्राहकों की भीड़ बढ़ने लगी. शादीब्याह, तीजत्योहारों के मौकों पर तो रेशमा को दम लेने की फुरसत नहीं होती.

कड़ी मेहनत, समझदारी से मृदुभाषी रेशमा के बैंक के बचत खाते में बढ़ोतरी होने लगी. 1 साल के बाद 30×60 स्क्वैर फुट का प्लौट खरीदते समय खालेदा बेगम ने अपने बचेखुचे जेवर भी रेशमा को थमा दिए.

हाउस लोन ले कर रेशमा ने तनहा ही धूप, बरसात, ठंड के थपेड़े सह कर नींव खुदवाने से ले कर मकान बनने तक दिनरात एक कर दिए. दोनों छोटे भाइयों और अम्मी के संबल ने रेशमा का हौसला मजबूत किया. अब कतराने वाले रिश्तेदार, अब्बू के करीबी दोस्त, मकान की मुबारकबाद देने बुटीक सैंटर पर ही आने लगे.

चौक पर लगी घड़ी ने रात के 4 बजाए. रेशमा की अम्मी दर्द की चादर ओढ़े नींद के आगोश में समा गईं लेकिन रेशमा छत की ग्रिल से टिक कर खड़ी, एकटक कोने पर लगी ग्रिल की तरफ देख रही थी. लगा, अब्बू सफेद कुरतापाजामा पहने दीवार से टिक कर खड़े हैं. ‘रेशमा, मेरी बच्ची, मेरा ख्वाब पूरा कर दिया. शाबाश बेटा. मैं जानता हूं तुम दोनों भाइयों को इसी तरह जुगनू बन कर राह दिखलाती रहोगी.’ धीरेधीरे पापा की परछाईं अंधेरे में कहीं खो गई और रेशमा बिस्तर पर आ कर लेट गई. दूर कहीं भोर होने की घंटी बजी. पूर्व दिशा में आसमान का रंग लाल हो चला था.

जल समाधि- आखिर क्यूं परेशान था सुशील?

अंधेरी रात का जुगनू – भाग 2 : रेशमा की जिंदगी में कौन आया

‘बेटी, इकबाल साहब की मौत, मिट्टी का इंतजाम…’ महल्ले के बुजुर्ग अनीस साहब ने डूबते जहाज का मस्तूल पकड़ा दिया रेशमा के कमजोर हाथों में. सुन कर भीतर तक दहल गई रेशमा.

भारी कदमों को घसीटते हुए अलमारी खोल कर, अपनी शादी के लिए अम्मी द्वारा जमा की गई लाल पोटली में बंधी पूंजी अनीस साहब को थमाते हुए रेशमा के हाथ पत्थर के हो गए थे.

अब्बू की मौतमिट्टी, चेहल्लुम, अम्मी की इद्दत के पूरे होने तक रेशमा का खिलंदड़ापन जाने कहां दफन हो गया. शौहर की मौत के सदमे से बुत बनी अम्मी को देख कर, दोनों छोटे भाइयों को अब्बू की याद कर रोते देखती तो उन्हें समझाने के लिए पुचकारते हुए रेशमा कब बड़ी हो गई, उसे खुद भी पता नहीं चला. रेशमा ने अब्बू के अकाउंट्स चेक किए तो बमुश्किल 8-10 हजार रुपए का बैलेंस था.

रेशमा की पढ़ाई छूट गई, दिनचर्या ही बदल गई. रेशमा के उन्मुक्त ठहाकों को आर्थिक अभाव का विकराल अजगर निगलता चला गया. बहुत ढूंढ़ने पर होमलोन देने वाले प्राइवेट बैंक की नौकरी 4 जनों की रोटी का जुगाड़ बनी. घर के खाली कनस्तरों में थोड़ाथोड़ा राशन भरने लगा.

जिंदगी कड़वे तजरबों के चुभते ऊबड़खाबड़ रास्ते से गुजर कर अभी समतल मैदान पर आ भी नहीं पाई थी कि मकान मालिक ने मकान खाली करवाने की जिम्मेदारी पेशेवर गुंडे गोलू जहरीला को सौंप दी.

‘मकान जल्दी खाली कर दीजिए,’ आएदिन दरवाजे पर दस्तक देती उस की डरावनी शक्ल दिखलाई पड़ती.

एक दिन हिम्मत कर के रेशमा ने ज्यों ही दरवाजा खोला तो शराब का भभका उस के नथुनों में घुस गया. गोलू जहरीला ने उसे देखते ही अपना वाक्य दोहरा दिया, ‘मकान जल्दी खाली कर दीजिए नहीं तो…’

‘नहीं तो… क्या कर लेंगे आप?’ भीतर के आक्रोश को दबातेदबाते भी रेशमा की आंखें चिंगारी उगलने लगी थीं.

‘कुछ नहीं. बस, तुम को उठवा लेंगे,’ पान रचे होंठों को तिरछा कर के व्यंग्य से हंसते हुए गोलू जहरीला ने चेतावनी दी तो रेशमा के कानों में जैसे अंगारे सुलगने लगे.

‘बंद कीजिए बकवास. दफा हो जाइए यहां से,’ रेशमा का आक्रोश बरदाश्त का पुल उखाड़ने लगा.

बाहर आवाजों का हंगामा सुन कर भीतर से दौड़ी आई रेशमा की अम्मी. रेशमा को दरवाजे के पीछे ढकेल कर, खुद दरवाजे के बीचोंबीच खड़ी हो कर बोलीं, ‘देखिए, आप जब मरजी हो तब कमर पर बंदूक लटका कर हमारे दरवाजे पर न आया कीजिए. जैसे ही हालात ठीक होंगे, हम आप को घर खाली करने की सूचना दे देंगे.’

सुन कर गोलू चला तो गया लेकिन अपने पीछे छोड़ गया दहशत, डर और मजबूरियों का अंधड़.

उस के जाते ही रेशमा की अम्मी रो पड़ीं. रेशमा के पैर गुस्से से कांपने लगे और दांत किटकिटाने लगे लेकिन विवशता की नदी मुहाने तक आतेआते अपनी रफ्तार खो चुकी थी. दोनों भाइयों को सीने से चिपकाए वह खुद भी रो पड़ी. उस रात न उन के घर में चूल्हा जला न किसी के हलक से पानी का घूंट ही उतरा. सब अपनीअपनी मजबूरियों के शिकंजे में कसे छटपटाते रहे.

वक्त की आंधियों ने कसम खा ली थी रेशमा को तसल्ली देने वाले हर चिराग को बुझा देने की.

3 महीने बाद प्राइवेट बैंक भी बंद हो गया. घर की जरूरतों ने रेशमा को कपड़ों के थोक विक्रेता की दुकान पर कैशियर की नौकरी के लिए ला कर खड़ा कर दिया. छोटी सी तनख्वाह घर की बड़ीबड़ी जरूरतों के सामने मुंह छिपाने लगी और ऊंट के मुंह में जीरे की तरह चिपक गई. बस, जिंदा रहने के लायक तक की चीजें ही खरीद पाते रेशमा के पसीने से भीगी बंद मुट्ठी के नोट. रिश्तेदार, जो अपना काम करवाने के लिए इकबाल साहब से मधुमक्खी की तरह चिपके रहते थे, अब जंगल की नागफनी की तरह हो गए थे. महफिलों, मजलिसों में अब मिलनेजुलने वाले उस के परिवार को देख कर कन्नी काट लेते, जैसे कांटों की बाड़ को छू गए हों.

उस दिन रात का खाना खाते हुए गुमसुम बैठे छोटे भाई से रेशमा ने पूछ ही लिया, ‘क्या हुआ आफाक तबीयत ठीक नहीं है क्या?’ कुछ देर तक साहस बटोरने के बाद भाई के द्वारा बोले गए शब्दों ने रेशमा को कांच के ढेर पर खड़ा कर दिया. ‘बाजी, छोटे मामूजान कह रहे थे कि तुम दोनों भाइयों को रेशमा अब तुम्हारे अम्मीअब्बू के पास भेज देगी, क्योंकि उस की छोटी सी तनख्वाह अब 4 लोगों का पेट नहीं पाल सकेगी. फाके की नौबत आने वाली है. ऐसे में तुम दोनों भाई उस पर बोझ…’ ठहरी हुई झील में मामू ने पत्थर मार दिया था. तिलमिलाहट के ढेर सारे दायरे बनने लगे. रेशमा ने तुरंत मामू को फोन मिलाया और चीख पड़ी, ‘मेरे घर में कंगाली आ जाए या फाकाकशी हो, मैं अपने चचाजात भाइयों को कभी भी अपने से अलग नहीं करूंगी. अगर घर में एक रोटी भी बनेगी न, तो हम चारों एकएक टुकड़ा खा कर सो जाएंगे, मगर किसी के दरवाजे पर हाथ पसारने नहीं जाएंगे. कान खोल कर सुन लीजिए, आज के बाद कभी मेरे मासूम भाइयों को बरगलाने की कोशिश की तो मैं भूल जाऊंगी आप इन के सगे मामू हैं.’

रेशमा का गुस्सा देख कर दोनों भाई तो सहम गए लेकिन खालेदा को यकीन हो गया कि रेशमा की खुद्दारी और आत्मविश्वास बढ़ने लगा है. अगर रेशमा की जगह उन का अपना बेटा होता तो वह अभावों का हवाला दे कर किसी भी सूरत में चचाजान भाइयों की जिम्मेदारी न उठाता. सचमुच अभाव इंसानों को जुदा नहीं करते, जुदा करती हैं उन की स्वार्थी भावनाएं.

घर का खर्च, भाइयों के स्कूल का खर्च, मकान का किराया, सब पूरा करने के बाद रेशमा के पास मुश्किल से आटो का किराया ही बच पाता.

अपनी पसंद का काम न होते हुए भी रेशमा दुकान के काम में दिल लगाने लगी थी. तभी एक दिन सेठ की कर्कश आवाज ने चौंका दिया, ‘रेशमा, तुम ने कल जो हिसाब दिया था उस में 8 हजार रुपए कम हैं.’

‘लेकिन मैं ने तो पूरे पैसे गिन कर गल्ले में रखे थे,’ रेशमा की आत्मविश्वास से भरी आवाज सुन कर सेठ ने जैसे अंगारा छू लिया.

‘मैं ने 10 बार हिसाब मिला लिया है, पैसे कम हैं इसलिए बोल रहा हूं. कहां गए पैसे अगर तुम ने रखे थे तो?’

अंधेरी रात का जुगनू – भाग 1: रेशमा की जिंदगी में कौन आया

शाम होते ही नया बना मकान रंगीन रोशनी से जगमगा उठा. मुख्यद्वार पर आने वाले मेहमानों का तांता लगा था. पूरा घर अगरबत्ती, इत्र और लोबान की खुशबू से महक रहा था. कव्वाली की मधुर स्वरलहरी शाम की रंगीनियों में चार चांद लगा रही थी. पंडाल से उठती मसालेदार खाने की खुशबू ने वातावरण को दिलकश बना दिया था.

तभी बाहर जीप रुकने की आवाज सुन कर एक 20-22 वर्ष की लड़की दरवाजे पर आ खड़ी हुई और दोनों हाथ जोड़ कर बोली, ‘‘नमस्ते, चाचाजी.’’

‘‘जीती रहो, रेशमा बिटिया,’’ कहते हुए 2 अंगरक्षकों के साथ इलाके के विधायक रमेशजी ने मकान में प्रवेश किया.

पोर्च में खड़े हो कर मकान के चारों तरफ नजर डालते रमेशजी के चेहरे पर मुसकराहट खिलने लगी, ‘‘बिटिया, आज तुम ने अपने अब्बाजान का सपना पूरा कर के दिखला दिया. तुम्हारी हिम्मत और हौसले को देख कर लोग अब से बेटे नहीं बेटियां चाहेंगे.’’

रमेशजी की इस बात से रेशमा की आंखें नम हो गईं. खुद को संभालते हुए संयत स्वर में बोल उठी रेशमा, ‘‘चाचाजी, आप ने ही तो अब्बू की तरह हमेशा मेरा संबल बढ़ाया. मकान बनाते हुए आने वाली तमाम परेशानियों को सुलझाने में हमेशा मेरी मदद की.’’

‘‘बिटिया, तुम्हारे अब्बू इकबाल मेरा लंगोटिया यार था. उस की असमय मृत्यु के बाद उस के परिवार का खयाल रखना मेरा फर्ज था. मैं ने उसे निभाने की बस कोशिश की है. बाकी सबकुछ तुम्हारे साहस और धैर्य के सहारे ही संभव हो सका है.’’

‘‘चाचाजी, चलिए, खाना टेबल पर लग गया है,’’ रेशमा के चाचा का बेटा आफताब बड़े आदरपूर्वक रमेशजी को खाने की मेज की तरफ ले गया.

रेशमा की अम्मी खालेदा इकबाल ओढ़नी से सिर को ढके परदे के पीछे से चाचाभीतीजी का वात्सल्यमयी वार्तालाप सुन रही थीं और रेशमा को घर के इस कोने से उस कोने तक आतेजाते, मेहमानों का स्वागत करते हुए गृहप्रवेश की मुबारकबाद स्वीकारते हुए भीगी आंखों से मंत्रमुग्ध हो कर देख रही थीं. तभी मेहमानों की भीड़ से उठते कहकहों ने उन्हें चौंकाया और वे दुपट्टे के छोर से उमड़ते आंसुओं को पोंछ कर, अतीत की यादों के चुभते नश्तर से बचने के लिए मेहमानों की गहमागहमी में खो जाने का असफल प्रयास करने लगीं.

देर रात तक मेहमानों को विदा कर के बिखरे सामान को समेट और मेनगेट पर ताला लगा कर ज्योंही वे भीतर जाने लगीं, ऐसा लगा जैसे इकबाल साहब ने आवाज दी हो, ‘फिक्र न करना बेगम, धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा. आज सिर पर छत का साया मिला है, कल रेशमा की शादी, फिर बेटों की गृहस्थी…’

वे चौंक कर पीछे पलटीं तो दूर तक रात की नीरवता के अलावा कुछ भी न था. कहां हैं इकबाल साहब? यहां तो नहीं हैं? कैसे नहीं हैं यहां? यही सोतेजागते, उठतेबैठते हर वक्त लगता है कि वे मेरे करीब ही बैठे हैं. बातें कर रहे हैं. विश्वास ही नहीं हो रहा है कि अब वे हमारे बीच नहीं हैं. बिस्तर पर पहुंचने तक बड़ी मुश्किल से रुलाई रोक पाई थीं रेशमा की अम्मी. दिनभर का रुका हुआ अवसाद आंखों के रास्ते बह निकला. बहुत कोशिशें कीं बीते हुए तल्ख दिनों को भूल जाने की लेकिन कहां भूल पाईं वे.

इकबाल साहब की मौत के बाद हर दिन का सूरज नईनई परेशानियों की तीखी किरणें ले कर उगता और उन की हर रात समस्याओं के समाधान ढूंढ़ने में आंखों ही आंखों में कट जाती. दर्द की लकीरें आंसुओं की लडि़यां बन कर आंखों में तैरती रहतीं.

8 भाईबहनों में 5वें नंबर के इकबाल की शिक्षा माध्यमिक कक्षा से आगे संभव न हो सकी थी. लेकिन कलाकार मस्तिष्क ने 14 साल की उम्र में ही टायरट्यूब खोल कर पंचर बनाने और गाडि़यां सुधारने का काम सीख लिया था. भूरी मूछों की रेखाओं के काली होने तक पाईपाई बचा कर जोड़ी गई रकम से शहर की मेन मार्केट में टायरों के खरीदनेबेचने की दुकान खरीद ली. शाम होते ही दुकान पर दोस्तों का मजमा जमता, ठहाके लगते. शेरोशायरी की महफिल जमती. सालों तक दोस्तों के साथ इकबाल साहब के व्यवहार का झरना अबाध गति से बहता रहा. उन की 2 बेटियां और छोटे भाई के 2 बेटों के बीच गहरा प्यार और अपनापन देख कर रिश्तेदारों और महल्ले वालों के लिए फर्क करना मुश्किल हो जाता कि कौन से बच्चे इकबाल साहब के हैं और कौन से उन के भाई के. खुशियां हमेशा उन के किलकते परिवार के इर्दगिर्द रहतीं.

अकसर एकांत के क्षणों में इकबाल साहब खालेदा का हाथ अपने हाथ में ले कर कहते, ‘बेगम, मेरा कारोबार और ट्यूबलैस टायर बनाने की टेकनिक टायर कंपनी को पसंद आ गई तो मैं खुद डिजाइन बना कर एक आलीशान और खूबसूरत सा घर बनाऊंगा जिस के आंगन में गुलाबों का बगीचा होगा. सब के लिए अलगअलग कमरे होंगे और छत को, आखिरी सिरे तक छूने वाले फूलों की बेल से सजाऊंगा.’

रेशमा अकसर अपनी ड्राइंगकौपी में घर की तसवीर बना कर पापा को दिखाते हुए कहती, ‘पापा, मेरी गुडि़या और डौगी के लिए भी अलग कमरे बनवाइएगा.’

सुन कर इकबाल साहब हंस कर मासूम बेटी को गले लगा कर बोलते, ‘जरूर बनाएंगे बेटे, अगर लंबी जिंदगी रही तो आप की हर ख्वाहिश पूरी करेंगे.’

‘तौबातौबा, कैसी मनहूस बातें मुंह से निकाल रहे हैं आप. आप को हमारी उम्र भी लग जाए,’ रेशमा की अम्मी ने प्यार से झिड़का था शौहर को.

ठंडी सांस भर कर सोचने लगीं, शायद उन्हें आने वाली दुर्घटनाओं का पूर्वाभास हो चुका था. तभी तो तीसरे ही दिन हट्टेकट्टे इकबाल साहब सीने के दर्द को हथेलियों से दबाए धड़ाम से गिर पड़े थे फर्श पर. देखते ही गगनभेदी चीख निकल गई थी रेशमा की अम्मी के मुंह से.

‘पापा की तबीयत खराब है,’ सुन कर तीर की तरह भागी थी रेशमा कालेज से.

घर के दालान में लोगों का जमघट और कमरे में पसरा पड़ा जानलेवा सन्नाटा. बेहोश अम्मी को होश में लाने की कोशिशें करती पड़ोसिन, हालात की संजीदगी से बेखबर सहमे से कोने में खड़े दोनों चचाजान, भाई और फर्श पर पड़ा अब्बू का निर्जीव शरीर. घर का दर्दनाक दृश्य देख कर रेशमा की निस्तेज आंखें पलकें झपकाना ही भूल गईं और पैर बर्फ की सिल्ली की तरह जम गए.

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जल समाधि: आखिर क्यूं परेशान था सुशील? भाग 3

तभी उन दोनों को किसी के आने की आहट सुनाई दी, तो वे संभल कर बैठ  गए. प्रकाश ने छोटे बच्चे को गोद में ले लिया और अपने साथ लाया हुआ पाउडर का डब्बा रीता को दिखाने लगा. समाज की नजर में भले ही रीता ने पराए मर्द के साथ सैक्स कर के गलत काम किया था, पर उस के अपने विचार से वह एकदम सही थी, क्योंकि उस के इस एक कदम ने घर के सभी लोगों को खुश कर दिया था.

रीता के ससुर को वंश आगे बढ़ाने वाला मिल गया था, बेटियों को भाई और सुशील को बेटा. इसी वजह से सुशील पहले से ज्यादा खुश रहने लगा था और अपने काम को हंसीखुशी करने लगा था. इसी बीच प्रकाश की आवाजाही रीता के घर में अब और ज्यादा बढ़ गई थी. समय और बीता तो लोगों में बातें बनने लगीं कि हो न हो, जरूर इन दोनों में कोई लफड़ा है. और यह लड़का सुशील का नहीं, बल्कि प्रकाश का ही है. जिस घर में सभी काले और सांवले रंग के हों, वहां कोई गोरा लड़का पैदा कैसे हो सकता है?

बेटे के जन्म के बाद सुशील और उस के पिता के बीच सबकुछ ठीक होने लगा था. आज वह अपने पिता के पास आया और बोला, ‘‘क्या आप को नहीं लगता कि प्रकाश की आवाजाही कुछ ज्यादा बढ़ने लगी है? अब तो महल्ले में लोग बातें भी बनाने लगे हैं…’’

साथ ही साथ सुशील ने अपने मोबाइल को राममोहन की नजरों के सामने कर दिया. मोबाइल की स्क्रीन पर एक तसवीर थी, जिस में प्रकाश और रीता एकदूसरे के साथ ऐसे चिपक कर बैठे थे, जैसे पतिपत्नी हों.

सुशील ने बताया कि रीता के मोबाइल में यह तसवीर उस की बड़ी बेटी ने अनजाने में ही ले ली थी और आज जब रीता के नहाने जाने के बाद  सुशील उस के मोबाइल की भर चुकी मैमोरी की तसवीरें डिलीट कर के खाली कर रहा था, तभी उस की नजर इस तसवीर पर पड़ी और उस ने अपने मोबाइल में उस तसवीर को ले लिया.

राममोहन पर इन सब बातों का कोई असर नहीं हुआ और वे बोले, ‘‘ये सारी बातें मुझ से छिपी नहीं हैं. पर जैसे भी हो, आज हमारे वंश को आगे ले जाने वाला एक लड़का तो हमें प्रकाश ने ही दिया है, इसलिए जैसा चल रहा है, वैसा ही चलने दो और अपना मुंह बंद रखो. और हां, हो सके तो अपनी आंखें भी बंद कर लो.’’

सुशील अपने पिता की बातें सुन कर सन्न रह गया. आज सुबह से ही सुशील अपने कागजपत्र इकट्ठे कर रहा था, क्योंकि उसे अनाथ बच्चों के भविष्य के लिए चंदा जमा करने के लिए मंत्रीजी से मिलने जाना था.

‘‘पूरे 2 दिन का प्रोग्राम है. बच्चों का ध्यान रखना,’’ रीता को कह कर सुशील निकल गया था.

सुशील के जाते ही रीता ने एक अलग ही आजादी का अहसास किया और नौकरानी को जल्दीजल्दी काम निबटाने की हिदायत देने लगी.

बीचबीच में प्रकाश का फोन भी आता रहा. रीता उस से पता नहीं क्या फुसफुसा कर बात करती कि किसी और को सुनाई भी नहीं देता था.

आज शाम को रीता के ससुर और उस की बेटियों ने खाना खा लिया और अपने कमरों में आराम करने लगे… राममोहन सोने जाने से पहले अपने पोते को प्यार करना नहीं भूले. आज सुशील भी नहीं था, सो रीता भी अपने बेटे को ले कर बिस्तर पर चली गई थी.

कुछ ही देर बाद रीता के मोबाइल पर प्रकाश का फोन आ गया, ‘तुम से मिलने आ रहा हूं. दरवाजा खुला रखना,’ कह कर फोन कट गया था.

रीता को प्रकाश का इस समय चोरीछिपे आना अजीब तो लगा, पर उस के जिस्म की जरूरत ने उसे प्रकाश को आने से नहीं रोका. तकरीबन आधे घंटे के बाद प्रकाश रीता के साथ उस के बिस्तर पर था.

‘‘कहीं बाबूजी ने तुम्हें देखा तो नहीं?’’ रीता फुसफुसाई.

‘‘अरे, वे हमारे बारे में सब जानते हैं, पर उन्हें तो सिर्फ अपने पोते से मतलब है, जो मैं ने उन्हें दिया है,’’ कहते हुए प्रकाश ने रीता के कपड़े हटाने शुरू कर दिए. आज बहुत दिनों के बाद प्रकाश ने रीता को इस हालत में देखा था, इसलिए उस के अंदर जोश जाग चुका था.

रीता और प्रकाश अभी नाजायज रिश्ते का मजा ले ही रहे थे कि अचानक कमरे का दरवाजा खुल गया. सामने कोई खड़ा था.

रीता ने आंखें फाड़ कर देखा कि वह कोई और नहीं, बल्कि उस का पति सुशील था, जो अपनी बीवी को गैरमर्द के साथ देख कर हैरान था.

रीता ने प्रकाश को धक्का दिया और कपड़े पहनने लगी. प्रकाश भी चौंक गया था, फिर भी वह बेशर्मी दिखाते हुए बोला, ‘‘अरे सुशील, इतनी जल्दी वापस कैसे आ गए? तुम ने तो हमारा सारा मजा ही खराब कर दिया.’’

प्रकाश बाहर जा चुका था और सुशील की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. उस की जबान हलक से जा चिपकी थी और आंखें पथरा रही थीं. उस ने रीता को बड़े जबरदस्त तरीके से घूरा, पर रीता पर उस के घूरने का भी कोई असर नहीं हुआ. सुशील उसी समय बिना कुछ कहे वहां से चला गया.

तकरीबन 20 दिन के बाद भी सुशील जब वापस नहीं आया, तो रीता को थोड़ी चिंता हुई. हालांकि उस की आंखों पर तो बेशर्मी का परदा पड़ा हुआ था, फिर भी उस ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराना जरूरी समझा, पर तभी उसे एक चिट्ठी मिली, जो साधारण डाक से आई थी. उस में लिखा था :

‘तुम दूसरे आदमी के साथ लड़का पाने के लिए सोई या सिर्फ मजे के लिए, यह तो सिर्फ तुम जानती हो. मैं अगर तुम दोनों के खिलाफ कोई भी कार्यवाही करता हूं, तो उस में मेरी और मेरे खानदान की बदनामी ही होगी, इसलिए मैं खामोश हूं… और मेरी दोनों लड़कियों की जिम्मेदारी अब से मेरी एनजीओ उठाएगी. अफसोस है कि उन की मां के होते हुए भी वे दोनों अनाथालय में पलेंगी.

‘मैं तुम्हारे इस रिश्ते पर खामोश रहा और अब हमेशा के लिए खामोश ही रहूंगा. मेरे पिता ने एक पोते के लिए इस गंदे रिश्ते पर मुंह और आंखें बंद रखने को कहा था. मेरा मुंह तो पहले से ही बंद था और अब मेरी आंखें भी बंद हो रही हैं. ‘और हां, मेरी लाश तुम्हें नहीं मिल पाएगी, क्योंकि मेरा शरीर पानी की लहर के साथ कहां तक बहता चला जाएगा, यह मुझे भी नहीं पता…’चिट्ठी पढ़ कर रीता की समझ में आ चुका था कि सुशील ने जल समाधि ले ली है. पर क्या सुशील की खुदकुशी हकीकत में खुदकुशी थी या रीता द्वारा न चाहते हुए भी की गई हत्या?

जल समाधि: आखिर क्यूं परेशान था सुशील? भाग 2

प्रकाश समझ गया था कि लोहा गरम है. उस ने रीता को अपनी बांहों में भर लिया और उस के होंठों को चूमने लगा. रीता भी किसी लता की तरह उस की बांहों में समा गई और फिर दोनों की गरम सांसें पूरे कमरे में गूंजने लगीं. दोनों के शरीर एकदूसरे से ऐसे चिपटे हुए थे, जैसे उन्हें किसी ने एक ही कर दिया हो. उस दिन के बाद उन दोनों ने कई बार जम कर सैक्स का मजा लूटा.

ऐसा नहीं था कि यह जिस्मानी रिश्ता अनजाने में बना था, बल्कि रीता ने जानबूझ कर प्रकाश के साथ संबंध को बढ़ने दिया, ताकि वह उस के साथ हमबिस्तर हो कर एक लड़का पैदा कर सके. यही नहीं, बातोंबातों में रीता ने यह डर भी प्रकाश पर जाहिर कर दिया था कि उसे फिर से लड़की हुई तो क्या होगा? प्रकाश ने रीता से वादा किया था कि उस की मर्दानगी में वह दम है, जो लड़की नहीं, बल्कि लड़का ही पैदा करेगी और अगर फिर भी भ्रूण की जांच में लड़की होती है, तो वह उसे गिरवा देगा.

और ऐसा भी लगता था कि रीता के ससुर ने इन दोनों के बीच आने की कोई कोशिश नहीं की. कहीं न कहीं वे भी चाहते थे कि जो हो रहा है, होने दिया जाए. आखिरकार वे भी तो एक पोता चाहते ही थे. कुछ समय के बाद वही हुआ, जिस का इंतजार रीता को था. वह पेट से हो गई. सुशील खुश तो हुआ, पर अगले पल ही मायूसी ने उसे घेर लिया.

‘‘इस बार भी लड़की हो गई तो…?’’ सुशील बोला. ‘‘हम पहले जांच करा लेंगे, उस के बाद ही इसे पनपने देंगे,’’ यह कहते हुए रीता के चेहरे पर चमक थी. जांच के नतीजे ने बताया कि रीता के पेट में पल रहा बच्चा एक लड़का ही है, तो यह जान कर राममोहन, सुशील और रीता सभी खुशी से झूम उठे.

ठीक समय आने पर रीता ने सुंदर चेहरे वाले गोरे लड़के को जन्म दिया… छोटे बालक को देख कर सब की आंखें फैल गई थीं, क्योंकि राममोहन के परिवार में तो सभी सांवले थे, ऐसे में एक गोरे बालक का जन्म सब को सुहा रहा था. राममोहन तो बस इसी बात से खुश थे कि उन के वंश को आगे बढ़ाने के लिए उन्हें एक पोता मिल गया था. 2 महीने बीत गए थे. रीता अपने बेटे को जी भर कर देखती और मन ही मन अपने उस फैसले पर खुश होती, जब उस ने प्रकाश के साथ संबंध कायम किए थे.

आज प्रकाश रीता के घर पहुंचा, तो राममोहन सिर्फ मुसकरा कर रह गए. रीता अपने कमरे में बैठी थी, जिस की देह चिकनी और गदराई हो गई थी… इधर कई महीनों से प्रकाश रीता के साथ हमबिस्तर भी नहीं हुआ था और आज इसी उम्मीद में वह रीता के पास आया था. प्रकाश ने रीता को चूमना चाहा, तो रीता ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा, ‘‘मुझ से दूर ही रहो, अब मैं एक बेटे की मां हूं.’’ ‘‘अजी, इस में मेरी भी मेहनत लगी है,’’ प्रकाश ने रीता की पीठ सहलाते हुए कहा.

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