उजली परछाइयां- भाग 2: क्या अंबर और धरा का मिलन हुआ?

मन साफ सच्चा हो तो सूरत को भी हसीन बना देता है. धरा के चेहरे की खूबसूरती में गजब का आकर्षण था. अभी 23 वर्ष की पिछले महीने ही तो हुई थी. दूसरी ओर धरा जबजब अंबर को देखती तो सोचती थी कि कितना प्यार करता है अपनी बीवी को. काश, मुझे भी ऐसा ही कोई मिले. तलाक की बात सुन कर पहली बार अंबर को रोते देखा था धरा ने और उस के शब्द कानों में अब तक गूंज रहे थे कि ‘मर जाऊंगा लेकिन तलाक नहीं दूंगा. मैं नहीं रह सकता उस के बिना.’

अंबर की गहरी भूरी आंखों में दर्द भरा रहता था. 30 की उम्र हो गई थी लेकिन पर्सनैलिटी उस की ऐसी थी कि देखने वाला प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता था. धरा समझ नहीं पाती थी कि रोशनी को अंबर में ऐसी क्या कमी नजर आई थी जो उसे छोड़ गई.

जुलाई में धरा की दीदी देहरादून घूमने आई थी और उस की खूब खातिर की गई. देहरादून का मौसम खुशगवार था. इसलिए घूमनेफिरने का अलग मजा था. अंबर भी उसे पूछ कर ही सारे प्रोग्राम बना रहा था. प्राकृतिक सौंदर्य के लिए मसूरी, सहस्रधारा, चकराता, लाखामंडल तथा डाकपत्थर देखने का प्रोग्राम अंबर ने झटपट बना डाला. अंबर का किसी और को इंपौर्टेंस देते देख न जाने क्यों धरा के मन में जलन हुई और उसे पहली बार एहसास हुआ कि अनजाने में ही वह अंबर को चाहने लगी है. लेकिन क्यों, कब, कैसे, इस की वजह वह खुद नहीं जानती थी. इस की वजह शायद अंबर का इतना प्यारा इंसान होना था या फिर शायद इतनी गहराई से अपनी बीवी के लिए प्यार था कि धरा खुद उस के प्यार में पड़ गई थी.

धरा के दिल में अंबर ने अनजाने में जगह बना ली थी वहीं धरा जिस तरह सब का खयाल रखती और खुश रहती, वह अंबर के घर वालों को अपना बना रही थी. उस की ये आदतें सब के साथ अंबर को भी उस की तरफ खींच रही थीं. जब कोई चीज हमारे पास न हो तो उस की कमी ज्यादा ही लगती है, घर में भी सब को धरा को देख कर बहू की कमी कुछ ज्यादा ही अखरने लगी थी.

अंबर अकसर धरा को तंग करता रहता, कभी उलझे हुए बालों को खींचता तो कभी गालों पर हलकी चपत लगा देता. दोनों के दिलों में अनकही मोहब्बत जन्म ले चुकी थी जिस का एहसास उन्हें जल्दी ही हुआ. एक दिन धरा ने अंबर को छेड़ते हुए कहा, ‘मुझे तंग क्यों करते रहते हो, सब के लिए आप के दिल में प्यार है, फिर मुझ से ही क्या झगड़ा है?’ इस पर अंबर की मां ने जवाब दिया, ‘वह इसलिए गुस्सा करता है कि तू हमें पहले क्यों नहीं मिली.’ इन चंद शब्दों ने सब के दिलों का हाल बयां कर दिया था.

वह अचानक यह सुन कर बाहर भाग गई थी, बाहर बालकनी में रेलिंग पकड़ कर खड़ी थी. सांसें ऊपरनीचे हो रही थीं. अंबर ने पास आ कर कहा, ‘मैं ने और मेरे घर वालों ने तुम्हारी जैसी पत्नी और बहू का सपना देखा था.’ अंबर ने आगे कहा, ‘पता नहीं कब से, लेकिन मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. हां, मगर मैं तुम से शादी नहीं कर सकता क्योंकि अगर मैं ने ऐसा किया तो अपने बेटे को हमेशा के लिए खो सकता हूं.’

धरा का सुर्ख होता चेहरा सफेद पड़ गया था. उस ने नजरें उठा कर अंबर को देखा, तो अंबर की आंखों में आंसू थे, ‘मेरे पास जीने की वजह सिर्फ यह है कि कभी मेरा बेटा मुझे मिलेगा. मैं तुम से शादी नहीं कर सकता लेकिन अपना बुढ़ापा जरूर सिर्फ तुहारे साथ बिताना चाहूंगा. सुबहसुबह तुम्हारे हाथ की चाय पिया करूंगा,’ उस वक्त दोनों की सांसें महसूस कर सकती थी धरा जब अंबर ने ये शब्द कहे थे जिन्होंने एक पल में ही उस को आसमान पर ले जा कर वापस नीचे धरातल पर पटक दिया था.

एक पल को धरा को लगा यह कैसा प्यार है और कैसी बेतुकी बात कही है अंबर ने, लेकिन दूसरे ही पल उसे भविष्य में अंबर में एक हारा और टूटा हुआ पिता नजर आया जिस का बेटा उसे कह रहा था कि तुम ने दूसरी शादी के लिए मुझे और मेरी मां को छोड़ा. शायद सही भी थी अंबर की बात. 4 साल का बच्चा जब मां के साथ रहता है तो वह उतना ही सच समझेगा जितना उसे बताया जाएगा.

जिस से प्यार करती है उसे अपनी वजह से ही टूटा हुआ कैसे देखती धरा. अगर अंबर बेटे के लिए उस का इंतजार कर सकता है तो धरा भी तो अंबर का इंतजार कर सकती है. फिर अंबर मान भी जाता लेकिन अपने ही घर वालों को मनाना भी तो धरा के लिए आसान नहीं था.

अंबर का हाथ पकड़ कर धरा बोली, ‘अगर सच में हमारे बीच प्यार है तो एक दिन हम जरूर मिलेंगे. मैं इंतजार करूंगी उस दिन का जब सबकुछ सही होगा और रही शादी की बात, तो राधाकृष्णा की भी शादी नहीं हुई थी लेकिन आज भी उन का नाम साथ ही लिया जाता है.’

लेकिन शर्तें तो दिमाग लगाता है, दिल नहीं और सब हालात को जानतेसमझते भी उन दोनों के तनमन भी दूर नहीं रह सके. शादी की बात तो दोबारा नहीं हुई, लेकिन दोनों के ही घर वालों को उन के बीच पनपे रिश्ते का अंदाजा हो गया था. ऐसे ही साथ रहते 2 साल निकल गए थे. अब भी अंबर अपने बेटे किट्टू से बात करने को तरसता था. सबकुछ वैसा ही चल रहा था.

धरा ने जौब जौइन कर ली और एक फ्रैंड की शादी में गई थी. वहां से आ कर एक बार फिर उस के दिल में अंबर से शादी करने की चाहत करवट लेने लगी. बहुत मुश्किल था उस का अंबर के इतने पास होते हुए भी दूर होना और इसीलिए उस का प्यार और उस की छुअन को अपने एहसासों में बसा कर धरा देहरादून छोड़ मुंबई आ गई थी. अब एक ही धुन थी उसे, टीवी इंडस्ट्री में नाम की और बहुत सारे पैसे कमाने की जिस से शादी न सही कम से कम सफल हो कर अपने घर वालों के प्रति कर्तव्य निभा सके.

कम्मो डार्लिंग – भाग 2 : इच्छाओं के भंवरजाल में कमली

मां ने उस से कहा था, ‘बेटा, कमली मुझे बहुत अच्छी लगती है. तेरे पीछे वह जिस तरह मेरी देखभाल करती है, उस तरह तो मेरी अपनी बेटी होती, तो वह भी नहीं कर पाती. मैं ने सोच लिया है कि तेरी शादी मैं कमली से ही कराऊंगी, क्योंकि मुझे पूरा यकीन है कि वह तेरा घर अच्छी तरह संभाल लेगी. नीतेश मन से अभी शादी करने को तैयार नहीं था. उस की इच्छा थी कि पहले वह अच्छा पैसा कमाने लगे. शहर में किराए के मकान को छोड़ कर अपना मकान बना ले, कुछ पैसा इकट्ठा कर ले, ताकि भविष्य में पैसों के लिए किसी का मुंह न ताकना न पड़े. लेकिन मां की खुशी के लिए उसे अपनी इच्छाओं का गला घोंट कर कमली से शादी करनी पड़ी.

शादी के कुछ ही महीनों बाद अचानक नीतेश की मां की तबीयत बिगड़ गई. काफी इलाज के बाद भी वे बच नहीं पाईं. नीतेश कमली को अपने साथ शहर ले आया. वहां कमली के रहनसहन, खानपान, बोलचाल और पहननेओढ़ने में एकदम बदलाव आ गया. उसे देख कर लगता ही नहीं था कि वह गांव की वही अल्हड़ और सीधीसादी कमली है, जो कभी सजनासंवरना भी नहीं जानती थी.

कमली में आए इस बदलाव को देख कर नीतेश को जितनी खुशी होती, उतना ही दुख भी होता था, क्योंकि वह दूसरों की बराबरी करने लगी थी. पड़ोस की कोई औरत 2 हजार रुपए की साड़ी खरीदती, तो वह 3 हजार रुपए की साड़ी मांगती. किसी के घर में 10 हजार रुपए का फ्रिज आता, तो वह 15 हजार वाले फ्रिज की डिमांड करती. नीतेश ने कई बार कमली को समझाया भी कि दूसरों की बराबरी न कर के हमें अपनी हैसियत और आमदनी के मुताबिक ही सोचना चाहिए, लेकिन उस के ऊपर कोई असर नहीं हुआ, जिस का नतीजा यह निकला कि वह अपनी इच्छाओं को पूरा करने की खातिर एक ऐसे भंवरजाल में जा फंसी, जिसे नीतेश ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था.

एक दिन शाम को नीतेश अपनी ड्यूटी से वापस आया, तो घर के दरवाजे पर ताला लटका हुआ था. उस ने सोचा कि कमली किसी काम से कहीं चली गई होगी, इसलिए वह बाहर खड़ा हो कर उस का इंतजार करने लगा. इस बीच उस ने कई बार कमली को फोन भी मिलाया, लेकिन उस का फोन बंद था. रात के तकरीबन 12 बज चुके थे, तभी उस के दरवाजे के सामने एक चमचमाती कार आ कर रुकी, जिस में से कमली नीचे उतरी. उस के कदम लड़खड़ा रहे थे. उस के लड़खड़ाते कदमों को देख कर कार में बैठा शख्स बोला, ‘‘कम्मो डार्लिंग, संभल कर.’’

कमली उस की ओर देख कर मुसकराई. वह शख्स भी मुसकराया और बोला, ‘‘ओके कम्मो डार्लिंग, बाय.’’ इतना कह कर वह वहां से चला गया. यह देख कर नीतेश हैरान रह गया. उस का दिल टूट गया. उसे कमली से नफरत हो गई. उस के जी में तो आया कि वह अपने हाथों से उस का गला घोंट दे, मगर…

कमली शराब के नशे में इस कदर चूर थी कि उसे घर का ताला खोलना भी मुश्किल हो रहा था. नीतेश ने उस से चाबी छीनी और दरवाजा खोल कर अंदर चला गया. विचारों की कश्ती में सवार सोफे पर बैठा नीतेश खुद से सवाल कर रहा था और खुद ही उन के जवाब दे रहा था. उसे खामोश देख कर कमली ने कहा, ‘‘नीतेश, मुझ से यह नहीं पूछोगे कि मैं इतनी रात को कहां से आ रही हूं? मेरे साथ कार में कौन था और मैं ने शराब क्यों पी है?’’

‘‘कमली, अगर बता सकती हो तो सिर्फ इतना बता दो कि मेरे प्यार में ऐसी कौन सी कमी रह गई थी, जिस ने तुम्हें कमली से कम्मो डार्लिंग बनने के लिए मजबूर कर दिया?’’

‘‘नीतेश, मैं तुम्हें अंधेरे में नहीं रखना चाहती. सबकुछ साफसाफ बता देना चाहती हूं. मैं आकाश से प्यार करने लगी हूं.’’

‘‘प्यार…?’’ चौंकते हुए नीतेश ने कहा. ‘‘हां, नीतेश. यह वही आकाश है, जिस के साड़ी इंपोरियम से हम एक बार साड़ी खरीदने गए थे. तुम्हें याद होगा िमैं ने गुलाबी रंग की साड़ी पसंद की थी और तुम ने उस साड़ी को महंगा बता कर खरीदने से इनकार कर दिया था.

तब आकाश ने तुम से कहा था कि साड़ी महंगी बता कर भाभीजी का दिल मत तोड़ो. भाभीजी की खूबसूरती के सामने 3 हजार तो क्या 20 हजार की साड़ी भी सस्ती होगी. लेकिन तुम आकाश की बातों में नहीं आए, जिस से मेरा दिल टूट गया.’’

‘‘दिल टूट गया और तुम आकाश से प्यार करने लगीं?’’ ‘‘नीतेश, हर लड़की की तरह मेरे भी कुछ सपने हैं. मैं भी ऐश की जिंदगी जीना चाहती हूं. महंगी से महंगी साड़ी और गहने पहनना चाहती हूं.

मगर मैं जानती हूं कि तुम जैसे तंगदिल और दकियानूसी इनसान के साथ रह कर मेरा यह अरमान कभी पूरा नहीं होगा, इसलिए मैं सोचने लगी कि काश, मैं आकाश की पत्नी होती. वह कितने खुले दिन का इनसान है. कितनी खुशनसीब होगी वह लड़की, जो आकाश की पत्नी होगी.

कितना प्यार करता होगा आकाश अपनी पत्नी को. लेकिन आकाश शादीशुदा नहीं है, यह तो मुझे तब पता चला, जब एक दिन आकाश से अचानक मेरी मुलाकात बाजार में हो गई और उस ने मुझ से अपने साथ कौफी पीने को कहा. मैं खुद को रोक नहीं पाई और उस के साथ कौफी पीने चली गई.’’

बुढ़ापे में जो दिल बारंबार खिसका-भाग 1

पार्क के ट्रैक पर जौगिंग कर रही नेहा को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ. यह तो माथुर अंकल ने मुझे आंख मारी, एक बार नहीं बल्कि 2 बार. पिछले हफ्ते ही तो घर पर आए थे, पापाजी से बात कर रहे थे. मैं चाय दे कर आई थी. शायद धोखा हुआ है, पर दोबारा घूम कर आई तो फिर वही हरकत. नहीं, वही हैं माथुर अंकल, बदतमीज इंसान, इन्हें तो नमस्ते भी नहीं करना. वह शिखा के साथ आगे बढ़ गई. ‘‘क्या हुआ अचानक तेरा मुंह क्यों उतर गया और बोलती बंद?’’ शिखा उस के चेहरे को ध्यान से देख रही थी.

‘‘अरे यार, देख रही है ब्लू स्ट्राइप्स की टीशर्ट में जो अंकल 3 बंदों के बीच बैठे हैं, उस ने बिना सिर घुमाए आंखों से इशारा किया था. वे हर राउंड पर मुझे आंख मारे जा रहे हैं और मेरे घुसते ही हाथ का इशारा कर के गाना गाने लगे ‘जरा हौलेहौले चलो मोरे साजना…’ शिट, फादर इन लौ के जानपहचान के हैं वरना इन्हें अच्छे से सबक सिखा देती अभी. पिछले हफ्ते घर आए थे.

मुझ से मिले भी थे. फिर भी ऐसी हरकत, न उम्र का लिहाज न रिश्ते की मर्यादा. मम्मीजी को बोलूंगी, वही बताएंगी इन्हें.’’ ‘‘तू अभी नई है न यहां. अरे, ये चारों बुड्ढ़े हैं ही ऐसे. सभी को आएदिन चेतावनी मिलती रहती है, पर जबतब ये किसी को छेड़ने से बाज नहीं आते. मजाल है कि सुधर जाएं. कभी चाट वाले के पास, तो कभी कहीं…रोजरोज कौन मुंह लगे इन के. लेने दो इन को मजा. तुझे नहीं पता, नई खोज है, वैज्ञानिक बता रहे हैं कि महिला को छेड़नाघूरना आदमी की सेहत के लिए अच्छा होता है, उम्र बढ़ती है. बीवी बूढ़ी होगी तो ठीक से करवाचौथ रख नहीं पाती होगी, सेंकने दो इन्हें आंखें, बढ़ा लेने दो उम्र, इस से ज्यादा कर भी क्या पाएंगे. यार, इग्नोर कर, बस,’’ यह कह कर शिखा हंसने लगी.

‘‘समझा लीजिए इन्हें रेवती बहन, पानी सिर से ऊपर जा रहा है, रामशरणजी तो बहूबेटियों पर भी छींटाकशी से बाज नहीं आ रहे. बुढ़ापे में मुफ्त जेल की सैर हो जाएगी. कैसे रहती हैं ऐसे घटिया, लीचड़ आदमी के साथ. आप की भी बहू आने वाली है, तब देखेंगे,’’ भन्नाई हुई पड़ोसिन लीला निगम धमकी दे कर चली गईं. रामशरण माथुर अपनी आदत से लाचार थे. 60 साल के होने के बावजूद वे सड़कछाप आशिक बने हुए थे. बुढ़ापे में भी यही उन का शगल था. 2 ही बच्चे थे उन के. बड़ी लड़की रानी और बेटा रणवीर छोटा था. उन की ऐसी ओछी बातें सुनते ही वे दोनों बड़े हुए थे. पहले तो पड़ोस की औरतों के लिए लवलैटर क्या, पूरा रजिस्टर लिख कर अपने ही बच्चों को पढ़ापढ़ा कर हंसते, तो कभी चुपके से खत उन के घर फेंक आने को कहते और दोस्तों के साथ मजे लेते.

रेवती उन की बुद्धि पर हैरानपरेशान होती, अपने बच्चों के साथ कोई पिता ऐसा कैसे कर सकता है. नादान बच्चे गलत रास्ते पर न चल पड़ें, आशंका से रेवती गुस्सा करती, मना करती तो लड़ने बैठ जाते, समझते वह दूसरी औरतों से जलन के मारे ऐसा कह रही है. उसे चिढ़ाने के लिए वे ऐसी हरकतें और करने लगते. मां कुछ कहे, बाप कुछ और सिखाए, तो बच्चों पर अलग प्रभाव पड़ना ही था. रानी ने रोधो कर किसी तरह बीए किया. वह अपनी शादी के लिए लालायित रहती. जल्दी से जल्दी घर बसा कर इस माहौल से दूर चले जाना चाहती थी. बाप की हरकतों से जबतब कालोनी, कालेज की सखीसहेलियों में उसे शर्मिंदगी झेलनी पड़ती. ‘पापाजी तो अभी अपने में ही रमे हुए हैं, मेरी शादी क्या खाक करेंगे,’ यह सोच कर उस ने फेसबुक पर किसी रईस से पींगें बढ़ाईं और उस से शादी कर सुदूर विदेश चली गई.

रेवती चाहती थी छोटा बेटा रणवीर भी शादी कर अपना घर बसा ले. उस का माहौल बदले और वह खुश रहे. पर वह शादी के लिए तैयार ही नहीं हो रहा था. ऐसे वातावरण में होता भी कैसे, घर की प्रतिष्ठा पर पिता ही कीचड़ उछाल रहा था. वह किसी बड़ी कंपनी में सौफ्टवेयर इंजीनियर के पद पर जौब करने लगा था. बढि़या कमा रहा था. सो, घर की सारी जिम्मेदारी बाप द्वारा उस पर डाल दी गई कि उस के ऊपर इतना खर्च हुआ है, अब वह नहीं करेगा तो क्या हम बूढ़े करेंगे. जवानी में खूब पैसे उड़ाए, कुछ बुढ़ापे के लिए न जोड़ा न छोड़ा, कि बेटा आखिर होता किसलिए है? पढ़ायालिखाया, खर्च किया किसलिए? रेवती क्या, निर्लज्ज से वे बेटे को भी उस पर खर्च हुआ जुड़ाने लग जाते.

रेवती को गुस्सा आता, तो कह उठती, ‘‘ऐसा भी कोई बाप होता है? बेटे के लिए लोग क्याक्या नहीं करते, कितना कुछ कर गुजरते हैं उन के सुंदर भविष्य के लिए. इस ने तो हर जगह अपने दम से ऐडमिशन लिया, शुरू से स्कौलरशिप से पढ़ाई की. तुम तो उसे खिलाया आलूगोभी, आटादाल भी जोड़ लो, छि, कैसे पिता हो.’’ अब तो बेटा ही घर का सारा खर्च उठा रहा था, फिर भी जबतब अलग से कभी चाटजलेबी खाने, तो कभी वाकिंग शू, शर्ट कुछ भी खरीदने के लिए रामशरण आतुर रहते और बिना झिझके रणवीर के सामने हाथ फैला देते. पत्नी रेवती इस तरह के व्यवहार से पहले ही बहुत शर्मिंदा रहती. अब जो लोगों से बहूबेटियों को छेड़ने की शिकायत सुनती तो जमीन में धंसती जाती. वह उन्हें समझासमझा कर थक गई. वे कुछ सुनने को राजी नहीं. उस पर से हंसते कहते, ‘जोर किस का, बुढ़ाने में जो दिल खिसका.’

इस बार अगर रणवीर के कानों में यह बात पड़ गई तो गुस्से और शर्मिंदगी में वह जाने क्या कर डाले. पिछली बार भी ऐसी ओछी हरकत से शर्मिंदा हो कर कितना फटकारा था बाप को और फिर तंग आ कर आखिरी चेतावनी भी दी थी कि अगर नहीं सुधरे, तो वह घर छोड़ कर चला जाएगा. ‘अच्छा है, रणवीर आज 8 बजे तक आएगा, तब तक शायद मामला ठंडा पड़ जाए,’ रेवती सोचने लगी.

औफिस से निकलते समय रणवीर एक बैंक के एटीएम में जा घुसा, उस का कार्ड ब्लौक हो गया. वह अंदर बैंक में गया तो ‘मे आई हैल्प यू’ सीट पर जयंति सिन्हा का साइन बोर्ड रखा था. सीट खाली थी. कुछ जानापहचाना सा नाम लग रहा है, वह यह सोच ही रहा था कि सीट वाली आ गई. ‘‘सर, मैं आप की क्या हैल्प कर सकती हूं,’’ जयंति ने कुछ पेपर टेबल पर रख कर सिर उठाया था.

दोनों एकदूसरे को देख कर आवाक रह गए. ‘मिस खुराफाती सिन्हा?’ वह मन ही मन बोल कर मुसकराया. इतने सालों बाद भी रणवीर 7वीं-8वीं क्लास में साथ पढ़ी जयंति को पहचान गया, ‘यही नाम तो रखा था उस के सहपाठियों ने इस का.’

‘‘अरे तुम, मास्टर रोंदूतोंदू, खुला बटन, बहती नाक, पढ़ाकू वीर,’’ वह थोड़ा झिझकी थी फिर फ्लो में बोल कर खिलखिला उठी, ‘‘वाउ, तोंद तो गायब हो गई है. ओहो, अब तो बड़े स्मार्ट हो गए हो, चमकता सूटबूटटाई, महंगी वाच…क्या बात है, क्या ठाठ हैं?’’ अगलबगल खड़े लोग भी सुन रहे थे, रणवीर झेंप गया. ‘‘तो अब मास्टर से मिस्टर शर्मीले बन गए हो, अच्छा छोड़ो ये सब, यार बताओ, किस काम से आना हुआ यहां. मैं पहले दूसरी ब्रांच में थी, अभी कल ही यहां जौइन किया है. अच्छा इत्तफाक है, जल्दी बोलो, ड्यूटी आवर खत्म होने को है, फिर बाहर निकल कर ढेर सारी बातें करेंगे,’’ वह मुसकराई.

जयंति ने फटाफट उस की समस्या का समाधान करवाया और उस के साथ बाहर निकल आई. ‘‘कोई घर पर इंतजार तो नहीं कर रहा होगा?’’ वह मुसकराई.

‘‘नहीं, ऐसा कुछ नहीं, अभी शादी नहीं की. मां को इंतजार रहता है, फोन कर देता हूं.’’ और वे दोनों कौम्प्लैक्स के हल्दीराम रैस्टोरैंट में आराम से बैठ गए. मां को तभी आज उस ने 8 बजे घर पहुंचने का टाइम बता दिया. दोनों बचपन के किस्सों में खो गए. फिर अब तक क्याक्या, कैसे किया वगैरह एकदूसरे से शेयर करते व हंसते बाहर निकल आए. रणवीर बहुत दिनों बाद इतना हंसा था.

जयंति अब भी वैसी ही मस्तमौला खुराफाती है. उस को उस का साथ बहुत भला लगा. ‘इतनी परेशानियां झेली… पिता का असमय अचानक देहांत, मां का कैंसर से निधन, भाई का ससुराल में घरजमाई बन कर चले जाना और जाने क्याक्या उस ने इतने दिनों में. पर अपने मस्तमौला स्वभाव पर कोई असर न आने दिया. यह सीखने वाली बात है,’ यह सोच कर वह हलका महसूस कर रहा था. उस दिन रणवीर को कुछ मालूम नहीं चलने पाया कि कोई पड़ोसी फिर पापा की शिकायत कर के गए हैं.

वह खाना खा कर सो गया और दूसरे दिन सुबह फिर औफिस चला गया. रेवती ने चैन की सांस ली. बेकार ही इन पर गुस्सा हो कर उलझता, और फिर बहुत बड़ा बखेड़ा हो जाता. घर बिखर जाए, इस से पहले मैं ही कुछ करती हूं. पिछली बार अपनी सहेली संध्या के दरोगा भतीजे ने इन पर विश्वास कर, भला जानते हुए इन्हें छेड़खानी के आरोप से छुड़ाया था. उसी से मदद लेती हूं. बिना शर्म के बताऊंगी कि ये ऐसे ही मस्तमिजाज हैं. लोग सही आरोप लगाते हैं. तू ही सुधार के लिए कुछ कर, यही ठीक रहेगा. यह सोचते हुए वह कुछ आश्वस्त हुई.

उजली परछाइयां- भाग 1: क्या अंबर और धरा का मिलन हुआ?

बीकानेर के सैंट पौल स्कूल के सामने बैठी धरा बहुत नर्वस थी. उसे वहां आए करीब 1 घंटा हो रहा था. वह स्कूल की छुट्टी होने और किट्टू के बाहर आने का इंतजार कर रही थी. किट्टू से उस का अपना कोई रिश्ता नहीं था, फिर भी उस की जिंदगी के बीते हुए हर बरस में किट्टू के निशान थे. अंबर का 14 साल का बेटा, जो अंबर के अतीत और धरा के वर्तमान के 10 लंबे सालों की सब से अहम परछाईं था. उसी से मिलने वह आज यहां आई थीं. आज वह सोच कर आई थी कि उस की कहानी अधूरी ही सही, लेकिन बापबेटे का अधूरापन वह पूरा कर के रहेगी.

करीब 10 साल पहले धरा का देहरादून में कालेज का सैकंड ईयर था जब धरा मिली थी मिस आभा आहलूवालिया से, जो उस के और अंबर के बीच की कड़ी थी. उस से कोई 4-5 साल बड़ी आभा कालेज की सब से कूल फैकल्टी बन के आई थी. वहीं, धरा में शैतानी और बेबाकपन हद दर्जे तक भरा था. लेकिन धीरेधीरे आभा और धरा टीचरस्टूडैंट कम रह गई थीं, दोस्त ज्यादा बन गईं. लेकिन शायद इस लगाव का एक और कारण था, वह था अम्बर, आभा का बड़ा भाई, जिस की पूरी दुनिया उस के इर्दगिर्द बसी थी और उसे वह अकसर याद करती रहती थी.

आभा ने बताया था कि अंबर ने करीब 5 साल पहले लवमैरिज की थी, बीकानेर में अपनी पत्नी रोशनी व 4 साल के बेटे किट्टू के साथ रह रहा था और 3-4 महीने में अपने घर आता था. आभा अकसर धरा से कहती कि उस की आदतें बिलकुल उस के भाई जैसी हैं.

ग्रेजुएशन खत्म होतेहोते आभा और धरा एकदूसरे की टीचर और स्टूडैंट नहीं रही थीं, अब वे एक परिवार का हिस्सा थीं. इन बीते महीनों में धरा उस के घर भी हो आई थी, भाई अंबर और बड़ी बहन नीरा से फेसबुक पर कभीकभार बातें भी होने लगी थीं और छुट्टियां उस के मम्मीपापा के साथ बीतने लगी थीं.

एग्जाम हो गए थे लेकिन मास्टर्स का एंट्रैंस देना बाकी था, इसलिए धरा उस समय आभा के घर में ही रह रही थी. तब अंबर घर आया था. बाहर से शांत लेकिन अंदर से अपनी ही बर्बादी का तूफान समेटे, जिस की आंधियों ने उस की हंसतीखेलती जिंदगी, उस का प्यार, सबकुछ तबाह कर दिया था. आभा के साथ रहते धरा को यह मालूम था कि अंबर की शादी के 2 साल तक सब ठीक था, फिर अचानक उस की बीवी रोशनी अपने मम्मी के घर गई, तो आई ही नहीं.

इस बार जब अंबर आया तो उस के हमेशा मुसकराते रहने वाले चेहरे से पुरानी वाली मुसकान गायब थी. धरा के लिए वह सिर्फ आभा का भाई था, जो केवल उतना ही माने रखता था जितना बाकी घरवाले. लेकिन 1-2 दिन में ही न जाने क्यों अंबर की उदास आंखों और फीकी मुसकान ने उसे बेचैन कर दिया.

करीब एक सप्ताह बाद अंबर ने बताया कि वह अपनी जौब छोड़ कर आया है क्योंकि उस के ससुराल वालों और पत्नी को लगता है कि वह पैसे के चलते वहां रहता है. अब वह यहीं जौब करेगा और कुछ महीनों के बाद पत्नी और बेटा भी आ जाएंगे. यह सब के लिए खुश होने की बात थी. लेकिन फिर भी, कुछ था जो नौर्मल नहीं था.

अंबर ने नई जौब जौइन कर ली थी. कितने ही महीने निकल गए, पत्नी नहीं आई. हां, तलाक का नोटिस जरूर आया. रोशनी ने अंबर से फोन पर भी बात करनी बंद कर दी थी और बेटे से भी बात नहीं कराती थी. इन हालात ने सभी को तोड़ कर रख दिया था. अंबर के साथ बाकी घर वालों ने भी हंसना छोड़ दिया.  उन के एकलौते बेटे की जिंदगी बरबाद हो रही थी. वह अपने बच्चे से बात तक नहीं कर पाता था. परिवार वाले कुछ नहीं कर पा रहे थे.

धरा सब को खुश रखने की कोशिश करती. कभी सब की पसंद का खाना बनाती तो कभी अंबर को पूछ कर उस की पसंद का नाश्ता बनाती. उसे देख कर अंबर अकसर सोचता कि यह मेरी और मेरे घर की कितनी केयर करती है. धरा आज की मौडर्न लड़की थी. लेकिन घरपरिवार का महत्त्व वह अच्छी तरह समझती थी. घर के काम करना उसे अच्छा लगता था.

कम्मो डार्लिंग – भाग 1 : इच्छाओं के भंवरजाल में कमली

‘‘नीतेश…’’ जानीपहचानी आवाज सुन कर नीतेश के कदम जहां के तहां रुक गए. उस ने पीछे घूम कर देखा, तो हैरत से उस की आंखें खुली की खुली रह गईं.

‘‘क्या हुआ नीतेश? मुझे यहां देख कर हैरानी हो रही है? अच्छा, यह बताओ कि तुम मुंबई कब आए?’’ उस ने नीतेश से एकसाथ कई सवाल किए, लेकिन नीतेश ने उस के किसी भी सवाल का कोई जवाब नहीं दिया और चुपचाप आगे बढ़ गया. वह भी उस के साथसाथ आगे बढ़ गई.

कुछ दूर नीतेश के साथ चलते हुए उस ने झिझकते हुए कहा, ‘‘नीतेश, मैं काफी अरसे से दिल पर भारी बोझ ले कर जी रही हूं. कई बार सोचा भी कि तुम से मिलूं और मन की बात कह कर दिल का बोझ हलका कर लूं, मगर… ‘‘आज हम मिल ही गए हैं, तो क्यों न तुम से दिल की बात कह कर मन हलका कर लूं.’’

‘‘नीतेश, मैं पास ही में रहती हूं. तुम्हें कोई एतराज न हो, तो हम वहां थोड़ी देर बैठ कर बात कर लें?’’ नीतेश के पैर वहीं ठिठक गए. उस ने ध्यान से उस के चेहरे को देखा. उस के चेहरे पर गुजारिश के भाव थे, जो नीतेश की चुप्पी को देख कर निराशा में बदल रहे थे.

‘‘नीतेश, अगर तुम्हारी इच्छा नहीं है, तो रहने दो,’’ उस ने मायूस होते हुए कहा. नीतेश ने उस के मन के दर्द को महसूस करते हुए धीरे से कहा, ‘‘कहां है तुम्हारा घर?’’

‘‘उधर, उस चाल में,’’ उस ने सामने की तरफ इशारा कर के कहा. ‘‘लेकिन मैं ज्यादा देर तक तुम्हारे साथ रुक नहीं पाऊंगा. जो कहना हो जल्दी कह देना.’’

उस ने ‘हां’ में गरदन हिला दी. ‘‘ठीक है, चलो,’’ कह कर नीतेश उस के साथ चल दिया.

नीतेश का साथ पा कर उस को जो खुशी हो रही थी, उसे कोई भी महसूस कर सकता था. खुशी से उस के चेहरे की लाली ऐसे चमकने लगी, मानो सालों से बंजर पड़ी जमीन पर अचानक हरीभरी फसल लहलहाने लगी हो. उस के रूखे और उदास चेहरे पर एकदम ताजगी आ गई. थोड़ी दूर चलने के बाद वह चाल में बने छोटे से घर के सामने आ कर रुकी और दरवाजे पर लटके ताले को खोल कर नीतेश को अंदर ले गई.

‘‘नीतेश, तुम यहां बैठो, मैं अभी आई,’’ कह कर वह दूसरे कमरे में चली गई. जमीन पर बिछे बिस्तर पर बैठा नीतेश उस छोटे से कमरे की एकएक चीज को ध्यान से देखने लगा. तभी उस की नजर सामने मेज पर रखे एक फोटो फ्रेम पर जा कर अटक गई, जिस में नीतेश के साथ उस का फोटो जड़ा हुआ था. वह फोटो उस ने अपनी शादी के एक महीने बाद कसबे की नुमाइश में खिंचवाया था, अपनी मां के कहने पर.

मां ने तब उस से कहा था, ‘बेटा, तेरी नईनई शादी हुई है, जा, कमली को नुमाइश घुमा ला. और हां, नुमाइश में कमली के साथ एक फोटो जरूर खिंचवा लेना. पुराना फोटो देख कर गुजरे समय की यादें ताजा हो जाती हैं.’ मां की बात याद आते ही नीतेश का मन भर आया. एक तो पिता की अचानक मौत का दुख, दूसरे नौकरी के लिए उस का गाजियाबाद चले जाना, मां को अंदर ही अंदर दीमक की तरह चाटने लगा था. नतीजतन, वे धीरेधीरे बिस्तर पर आ गईं.

नीतेश ने कई बार मां को अपने साथ शहर ले जा कर किसी अच्छे डाक्टर से उन का इलाज करवाने को भी कहा, लेकिन वे गांव से हिलने के लिए भी राजी नहीं हुईं. वह तो शुक्र हो उस के पड़ोस में रहने वाली कमली का, जो मां की तीमारदारी कर दिया करती थी. कमली कोई खास पढ़ीलिखी नहीं थी. गांव के ही स्कूल से उस ने 6 जमात पढ़ाई की थी, पर थी बहुत समझदार. शायद इसीलिए वह उस की मां के मन को भा गई और उन्होंने उसे अपने घर की बहू बनाने का फैसला कर लिया था, यह बात मां ने नीतेश को तब बताई थी, जब वह एक दिन उन से मिलने गांव आया था.

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सच्ची परख : शैफाली की कशमकश

बिस्तर पर लेटी वह खिड़की से बाहर निहार रही थी. शांत, स्वच्छ, निर्मल आकाश देखना भी कितना सुखद लगता है. घर के बगीचे के विस्तार में फैली हरियाली और हवा के झोंकों से मचलते फूल वगैरा तो पहले भी यहां थे लेकिन तब उस की नजरों को ये नजारे चुभते थे. परंतु आज…?

शेफाली ने एक ठंडी सांस ली, परिस्थितियां इंसान में किस हद तक बदलाव ला देती हैं. अगर ऐसा न होता तो आज तक वह यों घुटती न रहती. बेकार ही उस ने अपने जीवन के 2 वर्ष मृगमरीचिका में भटकते हुए गंवा दिए, निरर्थक बातों के पीछे अपने को छलती रही. काश, उसे पहले एहसास हो जाता तो…

‘‘लीजिए मैडम, आप का जूस,’’ सुदेश की आवाज ने उसे सोच के दायरे से बाहर ला पटका.

‘‘क्यों बेकार आप इतनी मेहनत करते हैं, जूस की क्या जरूरत थी?’’ शेफाली ने संकोच से कहा.

‘‘देखिए जनाब, आप की सेहत के लिए यह बहुत जरूरी है. आप तो बस आराम से आदेश देती रहिए, यह बंदा आप को तरहतरह के पकवान बना कर खिलाता रहेगा. फिर कौन सी बहुत मेहनत करनी पड़ती है, यहां तो सबकुछ डब्बाबंद तैयार मिलता है, विदेश का कम से कम यह लाभ तो है ही,’’ सुदेश ने गिलास थमाते हुए कहा.

‘‘लेकिन आप काम करें, यह मुझे अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘शेफाली, थोड़े दिनों की बात है. जहां पेट के टांके कटे, वहीं तुम थोड़ाबहुत चलने लगोगी. अभी तो डाक्टर ने तुम्हें पूरी तरह आराम करने को कहा है. अच्छा, देखो, मैं बाजार से सामान ले कर आता हूं, तब तक तुम थोड़ा सो लो. फिर सोचने मत लग जाना. मैं देख रहा हूं, जब से तुम्हारा औपरेशन हुआ है, तुम हमेशा सोच में डूबी रहने लगी हो. सब ठीक से तो हो गया है, फिर काहे की चिंता. खैर, अब आराम करो.’’

सुदेश ने ठीक ही कहा था. जब से उस के पेट के ट्यूमर का औपरेशन हुआ था तब से वह सोचने लगी थी. असल में तो वह इन 2 वर्षों में सुदेश के प्रति किए गए व्यवहार की ग्लानि थी जो उसे निरंतर मथती रहती थी.

सुदेश के साधारण रूपरंग और प्रभावहीन व्यक्तित्व के कारण शेफाली हमेशा उसे अपमानित करने की कोशिश करती. अपने अथाह रूप और आकर्षण के सामने वह सुदेश को हीन समझती. अपने मातापिता को भी माफ नहीं कर पाई थी. अकसर वह मां को चिट्ठी में लिखती कि उस ने उन्हें वर चुनने का अधिकार दे कर बहुत भारी भूल की थी. ऐसे कुरूप पति को पाने से तो अच्छा था वह स्वयं किसी को ढूंढ़ कर विवाह कर लेती. ऐसा लिखते वक्त उस ने यह कभी नहीं सोचा था कि भारत में बैठे उस के मातापिता पर क्या बीत रही होगी.

शेफाली अपनी मां से तब कितना लड़ी थी, जब उसे पता चला था कि सुदेश ने कनाडा में ही बसने का निश्चय कर लिया है. सुदेश ने वहीं अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी और अच्छी नौकरी मिलने के कारण वह अब भारत नहीं आना चाहता था. शेफाली ने स्वयं एमबीबीएस पास कर लिया था और ‘इंटर्नशिप’ कर रही थी. वह चाहती थी कि भारत में ही रह कर अपना क्लीनिक खोले. नए देश में, नए परिवेश में जाने के नाम से ही वह परेशान हो गई थी. बेटी को नाखुश देख मातापिता को लगा कि इस से तो अच्छा है कि सगाई को तोड़ दिया जाए, पर उस ने उन्हें यह कह कर रोक दिया था कि इस से सामाजिक मानमर्यादा का हनन होगा और उस के भाईबहनों के विवाह में अड़चन आ सकती है. सुदेश से पत्रव्यवहार व फोन द्वारा उस की बातचीत होती रहती थी, इसलिए वह नहीं चाहती थी कि ऐसी हालत में रिश्ता तोड़ कर उस का दिल दुखाया जाए. इसी कशमकश में वह विवाह कर के कनाडा आ गई थी.

अचानक टिं्रन…ट्रिंन…की आवाज से शेफाली का ध्यान भंग हुआ, फोन भारत से आया था. मां की आवाज सुन कर वह पुलकित हो उठी

‘‘कैसी हो बेटी, आराम कर रही हो न? देखो, ज्यादा चलनाफिरना नहीं.’’

उन की हिदायतें सुन वह मुसकरा उठी, ‘‘मैं ठीक हूं मां, सारा दिन आराम करती हूं. घर का सारा काम सुदेश ने संभाला हुआ है.’’

‘‘सुदेश ठीक है न बेटी, उस की इज्जत करना, वह अच्छा लड़का है, बूढ़ी आंखें धोखा नहीं खातीं, रूपरंग से क्या होता है,’’ मां ने थोड़ा झिझकते हुए कहा.

‘‘मां, तुम फिक्र मत करो. देर से ही सही, लेकिन मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है,’’ तभी फोन कट गया.

दूर बैठी मां भी शायद जान गई थीं कि वह सुदेश को अपमानित करने का कोई मौका नहीं छोड़ती. फिर से एक बार शेफाली के मानसपटल पर बीते दिन घूमने लगे.

मौंट्रीयल के इस खूबसूरत फ्लैट में जब उस ने कदम रखा था तो ढेर सारे फूलों और तालियों की गड़गड़ाहट के साथ उस का स्वागत किया गया था. उन के आने की खुशी में सुदेश के मित्रों ने पूरे फ्लैट को सजा रखा था. ऐसी आवभगत की उसे आशा नहीं थी, इसलिए खुशी हुई थी, लेकिन वह उसे दबा गई थी. आखिर किस काम की थी वह खुशी.

सुदेश एकएक कर अपने साथियों से उसे मिलवाता रहा. उस की खूबसूरती की प्रशंसा में लोगों ने पुल बांध दिए.

‘यार, तुम तो इतनी सुंदर परी को भारत से उड़ा लाए,’ सुदेश के मित्र की बात सुन उसे वह मुहावरा याद आ गया था, ‘हूर के साथ लंगूर’. सुदेश जब भी उस का हाथ पकड़ता, वह झटके से उसे खींच लेती. ऐसा नहीं था कि सुदेश उस के व्यवहार से अनभिज्ञ था, लेकिन उस ने सोचा था कि अपने प्यार से वह शेफाली का मन जीत लेगा.

विवाह के कुछ दिन बाद उस ने कहा था, ‘अभी छुट्टियां बाकी हैं. चलो, तुम्हें पूरे कनाडा की सैर करा दें.’

तब शेफाली ने यह कह कर इनकार कर दिया था कि उस की तबीयत ठीक नहीं है. उस की हरसंभव यही कोशिश रहती कि वह सुदेश से दूरदूर रहे. अपने सौंदर्य के अभिमान में वह यह भूल गई थी कि वह उस का पति है. उस का प्यार, उस का अपनापन और छोटीछोटी बातों का खयाल रखना शेफाली को तब दिखता ही कहां था.

सुदेश के सहयोगियों ने क्लब में पार्टी रखी थी, पर उस ने साथ जाने से इनकार कर दिया था.

‘देखो शेफाली, यह पार्टी उन्होंने हमारे लिए रखी है.’

पति की इस बात पर वह आगबबूला हो उठी थी, ‘मुझ से पूछ कर रखी है क्या? मैं पूछती हूं, तुम्हें मेरे साथ चलते झिझक नहीं होती. कहां तुम कहां मैं?’

तब सुदेश अवाक् रह गया था.

दरवाजा खुलने से एक बार फिर उस की तंद्रा भंग हो गई, ‘‘अरे, इतना सामान लाने की क्या जरूरत थी?’’ शेफाली ने सुदेश को पैकटों से लदे देख पूछा.

‘‘अरे जनाब, ज्यादा कहां है, बस, कुछ फल हैं और डब्बाबंद खाना. जब तक तुम ठीक नहीं हो जातीं, इन्हीं से काम चलाना है,’’ सुदेश ने हंसते हुए कहा, ‘‘अच्छा, खाना यहीं लगाऊं या बालकनी में बैठना चाहोगी?’’

‘‘नहींनहीं, यहीं ठीक है और देखो, ज्यादा पचड़े में मत पड़ना, वैसे भी ज्यादा भूख नहीं है.’’

‘‘क्यों, भूख क्यों नहीं है? तुम्हें ताकत  चाहिए और इस के लिए खाना बहुत जरूरी है,’’ सुदेश ने अपने हाथों से उसे खाना खिलाते हुए कहा.

शेफाली की आंखें नम हो आईं. ऐसे व्यक्ति से, जिस के अंदर प्यार का सागर लबालब भरा हुआ है, वह आज तक घृणा करती आई, सिर्फ इसलिए कि वह कुरूप है. लेकिन बाहरी सौंदर्य के झूठे सच में वह उस के गुणों को नजरअंदाज करती रही. अंदर से उस का मन कितना निर्मल, कितना स्वच्छ है. वह कितनी मूर्ख थी, तभी तो वैवाहिक जीवन के 2 सुनहरे वर्ष यों ही गंवा दिए. उस का हर पल यही प्रयत्न रहता कि किसी तरह सुदेश को अपमानित करे इसलिए उस की हर बात काटती.

लेकिन अपनी बीमारी के बाद उस ने जाना कि सच्चा प्रेम क्या होता है. शेफाली की इतनी बेरुखी के बाद भी सुदेश कितनी लगन से उस की सेवा कर रहा था.

‘‘अरे भई, खाना ठंडा हो जाएगा. जब देखो तब सोचती ही रहती हो. आखिर बात क्या है, मुझ से कोई गलती हो गई क्या?’’

‘‘यह क्या कह रहे हो?’’ शेफाली ने सफाई से आंखें पोंछते हुए कहा, ‘‘मुझे शर्मिंदा मत करो. अरे हां, मां का फोन आया था,’’ उस ने बात पलटते हुए कहा.

रसोई व्यवस्थित कर सुदेश बोला, ‘‘मैं थोड़ी देर दफ्तर हो कर आता हूं, तब तक तुम सो भी लेना. चाय के समय तक आ जाऊंगा. अरे हां, दफ्तर के साथी तुम्हारा हालचाल पूछने आना चाहते हैं, अगर तुम कहो तो?’’ सुदेश ने झिझकते हुए पूछा तो शेफाली ने मुसकरा कर हामी भर दी.

शेफाली जानती थी सुदेश ने क्यों पूछा था. वह उस के साथ न तो कहीं जाती थी, न ही उस के मित्रों का आना उसे पसंद था, क्योंकि तब उसे सुदेश के साथ बैठना पड़ता था, हंसना पड़ता था और वह यह चाहती नहीं थी. कितनी बार वह सुदेश को जता चुकी थी कि उस की पसंदनापसंद की उसे परवा नहीं है, खासकर उन दोस्तों की, जो हमेशा उस के सामने सुदेश की तारीफों के पुल बांधते रहते हैं, ‘भाभीजी, यह तो बहुत ही हंसमुख और जिंदादिल इंसान है. अपने काम और व्यवहार के कारण सब काप्यारा है, अपना यार.’

शेफाली उस की बदसूरती के सामने जब इन बातों को तोलती तो हमेशा उसे सुदेश का पलड़ा हलका लगता. सुदेश जब भी उसे छूता, उसे लगता, कोई कीड़ा उस के शरीर पर रेंग रहा है और वह दूसरे कमरे में जा कर सो जाती.दरवाजे की घंटी बजी तो वह चौंक उठी. सच ही था, वह ज्यादा ही सोचने लगी थी. सोचा, शायद पोस्टमैन होगा. वह आहिस्ता से उठी और पत्र निकाल लाई. मां ने खत में वही सब बातें लिखी थीं और सुदेश का सम्मान करने की हिदायत दी थी. उस का मन हुआ कि वह अभी मां को जवाब दे दे, पर पेन और कागज दूसरे कमरे में रखे थे और वह थोड़ा चल कर थक गई थी. लेटने ही लगी थी कि सुदेश आ गया.

‘‘सुनो, जरा पेन और पैड दोगे, मां को चिट्ठी लिखनी है,’’ शेफाली ने कहा.

‘‘बाद में, अभी लेटो, तुम्हें उठने की जरूरत ही क्या थी,’’ सुदेश ने बनावटी गुस्से से कहा, ‘‘दवा भी नहीं ली. ठहरो, मैं पानी ले कर आता हूं.’’

‘‘सुनो,’’ शेफाली ने उस की बांह पकड़ ली. सुदेश ने कुछ हैरानी से देखा. शेफाली को समझ नहीं आ रहा था कि वह कैसे अपने किए की माफी मांगे.

व्यक्ति की पहचान उस के गुणों से होती है, उस के व्यवहार से होती है, वही उस के व्यक्तित्व की छाप बनती है. सुदेश की सच्ची परख तो उसे अब हुई थी. आज तक तो वह अपनी खूबसूरती के दंभ में एक ऐसे राजकुमार की तलाश में कल्पनालोक में विचर रही थी जो किस्सेकहानियों में ही होते हैं, पर यथार्थ तो इस से बहुत परे होता है. जहां मनुष्य के गुणों को समाज की नजरें आंकती हैं, उस की आंतरिक सुंदरता ज्यादा माने रखती है. अगर खूबसूरती ही मापदंड होता तो समाज के मूल्यों पर प्रश्नचिह्न लग जाता.

‘‘शेफाली, तुम कुछ कहना चाहती थीं?’’ सुदेश ने मुसकराते हुए पूछा.

‘‘हां…बस, कुछ खास नहीं,’’ वह चौंकते हुए बोली.

‘‘मैं जानता हूं, मैं तुम्हारे लायक नहीं हूं. अगर तुम चाहो तो मुझे छोड़ कर जा सकती हो,’’ सुदेश के स्वर में दर्द था.

‘‘बसबस, और कुछ न कहो, मैं पहले ही बहुत शर्मिंदा हूं. हो सके तो मुझे माफ कर दो. मैं ने तुम्हारा बहुत अपमान किया है. फिर भी तुम ने कभी मुझ से कटुता से बात नहीं की. मेरी हर कड़वाहट को सहते रहे और अब भी मेरी इतनी सेवा कर रहे हो, शर्म आती है मुझे अपनेआप पर,’’ शेफाली उस से लिपट कर रो पड़ी.

‘‘कैसी बातें कर रही हो, कौन नहीं जानता कि तुम्हारी खूबसूरती के सामने मैं कितना कुरूप लगता हूं.’’

‘‘खबरदार, जो तुम ने अपनेआप को कुरूप कहा. तुम्हारे जैसा सुंदर मैं ने जिंदगी में नहीं देखा. मेरी आंखों को तुम्हारी सच्ची परख हो गई है.’’

दोनों अपनी दुनिया में खोए थे कि तभी दरवाजे पर थपथपाहट हुई और घंटी भी बजी.

‘‘सुदेश, दरवाजा खोलो,’’ बाहर से शोर सुनाई दिया.

‘‘लगता है, मित्रमंडली आ गई है,’’ सुदेश बोला.

दरवाजा खुलते ही फूलों की महक से सारा कमरा भर गया. सुदेश के मित्र शेफाली को फूलों का एकएक गुच्छा थमाने लगे.

‘‘भाभीजी, आप के ठीक होने के बाद हम एक शानदार पार्टी लेंगे. क्यों, देंगी न?’’ एक मित्र ने पूछा.

‘‘जरूर,’’ शेफाली ने हंसते हुए कहा. उसे लग रहा था कि इन फूलों की तरह उस का जीवन भी महक से भर गया है. हर तरफ खुशबू बिखर गई है. गुच्छों के बीच से उस ने देखा, सुदेश के चेहरे पर एक अनोखी मुसकराहट छाई हुई है. शेफाली ने जब सारी शर्महया छोड़ आगे बढ़ कर उस का चेहरा चूमा तो ‘हे…हे’ का शोर मच गया और सुदेश ने उसे आलिंगनबद्ध कर लिया.

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