रूह का स्पंदन – भाग 1: क्या था दीक्षा ने के जीवन की हकीकत

‘‘डूयू बिलीव इन वाइब्स?’’ दक्षा द्वारा पूरे गए इस सवाल पर सुदेश चौंका. उस के चेहरे के हावभाव तो बदल ही गए, होंठों पर हलकी मुसकान भी तैर गई. सुदेश का खुद का जमाजमाया कारोबार था. वह सुंदर और आकर्षक युवक था. गोरा चिट्टा, लंबा, स्लिम,

हलकी दाढ़ी और हमेशा चेहरे पर तैरती बाल सुलभ हंसी. वह ऐसा लड़का था, जिसे देख कर कोई भी पहली नजर में ही आकर्षित हो जाए. घर में पे्रम विवाह करने की पूरी छूट थी, इस के बावजूद उस ने सोच रखा था कि वह मांबाप की पसंद से ही शादी करेगा.

सुदेश ने एकएक कर के कई लड़कियां देखी थीं. कहीं लड़की वालों को उस की अपार प्यार करने वाली मां पुराने विचारों वाली लगती थी तो कहीं उस का मन नहीं माना. ऐसा कतई नहीं था कि वह कोई रूप की रानी या देवकन्या तलाश रहा था. पर वह जिस तरह की लड़की चाहता था, उस तरह की कोई उसे मिली ही नहीं थी.

सुदेश का अलग तरह का स्वभाव था. उस की सीधीसादी जीवनशैली थी, गिनेचुने मित्र थे. न कोई व्यसन और न किसी तरह का कोई महंगा शौक. वह जितना कमाता था, उस हिसाब से उस के कपड़े या जीवनशैली नहीं थी. इस बात को ले कर वह हमेशा परेशान रहता था कि आजकल की आधुनिक लड़कियां उस के घरपरिवार और खास कर उस के साथ व्यवस्थित हो पाएंगी या नहीं.

अपने मातापिता का हंसताखेलता, मुसकराता, प्यार से भरपूर दांपत्य जीवन देख कर पलाबढ़ा सुदेश अपनी भावी पत्नी के साथ वैसे ही मजबूत बंधन की अपेक्षा रखता था. आज जिस तरह समाज में अलगाव बढ़ रहा है, उसे देख कर वह सहम जाता था कि अगर ऐसा कुछ उस के साथ हो गया तो…

सुदेश की शादी को ले कर उस की मां कभीकभी चिंता करती थीं लेकिन उस के पापा उसे समझाते रहते थे कि वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा. सुदेश भी वक्त पर भरोसा कर के आगे बढ़ता रहा. यह सब चल रहा था कि उस से छोटे उस के चचेरे भाई की सगाई का निमंत्रण आया. इस से सुदेश की मां को लगा कि उन के बेटे से छोटे लड़कों की शादी हो रही हैं और उन का हीरा जैसा बेटा किसी को पता नहीं क्यों दिखाई नहीं देता.

चिंता में डूबी सुदेश की मां ने उस से मेट्रोमोनियल साइट पर औनलाइन रजिस्ट्रेशन कराने को कहा. मां की इच्छा का सम्मान करते हुए सुदेश ने रजिस्ट्रेशन करा दिया. एक दिन टाइम पास करने के लिए सुदेश साइट पर रजिस्टर्ड लड़कियों की प्रोफाइल देख रहा था, तभी एक लड़की की प्रोफाइल पर उस की नजर ठहर गई.

ज्यादातर लड़कियों ने अपनी प्रोफाइल में शौक के रूप में डांसिंग, सिंगिंग या कुकिंग लिख रखा था. पर उस लड़की ने अपनी प्रोफाइल में जो शौक लिखे थे, उस के अनुसार उसे ट्रैवलिंग, एडवेंचर ट्रिप्स, फूडी का शौक था. वह बिजनैस माइंडेड भी थी.

उस की हाइट यानी ऊंचाई भी नौर्मल लड़कियों से अधिक थी. फोटो में वह काफी सुंदर लग रही थी. सुदेश को लगा कि उसे इस लड़की के लिए ट्राइ करना चाहिए. शायद लड़की को भी उस की प्रोफाइल पसंद आ जाए और बात आगे बढ़ जाए. यही सोच कर उस ने उस लड़की के पास रिक्वेस्ट भेज दी.

सुदेश तब हैरान रह गया, जब उस लड़की ने उस की रिक्वेस्ट स्वीकार कर ली. हिम्मत कर के उस ने साइट पर मैसेज डाल दिया. जवाब में उस से फोन नंबर मांगा गया. सुदेश ने अपना फोन नंबर लिख कर भेज दिया. थोड़ी ही देर में उस के फोन की घंटी बजी. अनजान नंबर होने की वजह से सुदेश थोड़ा असमंजस में था. फिर भी उस ने फोन रिसीव कर ही लिया.

दूसरी ओर से किसी संभ्रांत सी महिला ने अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘मैं दक्षा की मम्मी बोल रही हूं. आप की प्रोफाइल मुझे अच्छी लगी, इसलिए मैं चाहती हूं कि आप अपना बायोडाटा और कुछ फोटोग्राफ्स इसी नंबर पर वाट्सऐप कर दें.’’

सुदेश ने हां कह कर फोन काट दिया. उस के लिए यह सब अचानक हो गया था. इतनी जल्दी जवाब आ जाएगा और बात भी हो जाएगी, सुदेश को उम्मीद नहीं थी. सोचविचार छोड़ कर उस ने अपना बायोडाटा और फोटोग्राफ्स वाट्सऐप कर दिए.

फोन रखते ही दक्षा ने मां से पूछा, ‘‘मम्मी, लड़का किस तरह बातचीत कर रहा था? अपने ही इलाके की भाषा बोल रहा था या किसी अन्य प्रदेश की भाषा में बात कर रहा था?’’

‘‘बेटा, फिलहाल वह दिल्ली में रह रहा है और दिल्ली में तो सभी प्रदेश के लोग भरे पड़े हैं. यहां कहां पता चलता है कि कौन कहां का है. खासकर यूपी, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड और राजस्थान वाले तो अच्छी हिंदी बोल लेते हैं.’’ मां ने बताया.

ले बाबुल घर आपनो…: सीमा ने क्या चुना पिता का प्यार या स्वाभिमान

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ले बाबुल घर आपनो…- भाग 3 : सीमा ने क्या चुना पिता का प्यार या स्वाभिमान

कुछ दिन तक तो वे समय पर घर पहुंचते रहे थे. लेकिन क्रम टूटते ही घर में तूफान आ जाता था. एक बार तो सीमा ने हद कर दी थी. महाराज के बारबार खाने के लिए बुलाने पर उस ने खाने की मेज ही उलट कर रख दी थी, और चिल्ला कर कहा था,

‘मैं शीला चाची के यहां जा रही हूं. डाक्टर साहब के साथ शतरंज खेलूंगी. पिताजी से कह देना, जिस समय मेरा मन होगा, मैं वापस आऊंगी. मुझे वहां लेने आने की कोई जरूरत नहीं.’ और वह दनदनाती हुई चली गई थी.

जब शंभुजी को पता चला तो वे चाह कर भी उसे लेने नहीं जा सके थे. उन्हें डर था, ‘जिद्दी लड़की है, वहीं कोई नाटक न शुरू कर दे.’

12 बजे के करीब डाक्टर साहब का बेटा दीपक उसे छोड़ने आया था तो वह बिना उन्हें देखे अपने कमरे में चली गई थी. पीछेपीछे भारी कदमों से उन्हें उस के कमरे में जाना पड़ा था, ‘खाना नहीं खाओगी, बेटी?’

‘मैं ने खा लिया है,’ वह लापरवाही से बोली थी.

‘तुम डाक्टर साहब के यहां रात को क्यों गई थी?’ उन्होंने सख्ती से पूछा था.

‘आप भी तो वहां जाते हैं. वे भी हमारे घर आते हैं,’ वह भी सख्त हो गई थी.

‘वे मेरे मित्र हैं, बेटी. तुम समझती क्यों नहीं? तुम अब बड़ी हो गई हो. रात को अकेले तुम्हें…’ आगे वे बात पूरी नहीं कर सके थे.

‘मैं वहां जरूर जाऊंगी. दीपक मुझे घुमाने ले जाता है. मेरा खयाल रखता है. वह भी मेरा दोस्त है. जब आप को फुरसत नहीं मिलती तो मैं अकेली क्या करूं?’इतना सुनते ही उन का सिर चकराने लग गया था. इन बातों का तो उन्हें पता ही नहीं था. वे तो अपने काम में ही इतने व्यस्त रहते थे कि बाहर क्या हो रहा है, कुछ जानते ही न थे. डाक्टर साहब जरूर उन्हें कभीकभी खींच कर पार्टियों में या क्लब में ले जाते थे.

फिर उन्हें यह भी जानकारी मिली कि, सीमा दीपक के साथ फिल्म देखने भी जाती है तो वे बड़े परेशान हो गए थे. पहले तो उन्हें सीमा पर गुस्सा आया था कि कभी मुझ से पूछती तक नहीं, लेकिन फिर वे स्वयं पर भी नाराज हो उठे थे, उन्होंने ही बेटी से कब, कुछ जानना चाहा था.

सीमा कुछ और सयानी हो गई थी. उन्होंने भी सोचा था, ‘दीपक अच्छा लड़का है. अगर सीमा उसे पसंद करती है तो वे उस की इस खुशी को जरूर पूरा करेंगे. सीमा के सिवा उन का है ही कौन? यह घर, यह कारोबार किसी को तो संभालना ही है. फिर दीपक तो बड़ा ही प्यारा लड़का है.’ और वे निश्ंिचत हो गए थे.

अब वे सीमा से हमेशा दीपक के बारे में पूछा करते थे. वे यह भी देख रहे थे, सीमा धीरेधीरे गंभीर होती जा रही है.

एक दिन बातोंबातों में सीमा ने कहा था, ‘पिताजी, आप क्यों नहीं किसी को अपने विश्वास में ले लेते? उसे सारा काम समझा दीजिए, तो आप का कुछ बोझ तो हलका हो ही जाएगा. आप को कितना काम करना पड़ता है.’

‘हां, बेटा, मैं भी कई दिनों से यही सोच रहा था. पहले तुम्हारे हाथ पीले कर दूं, फिर कारोबार का बोझ भी अपने ऊपर से उतार फेंकूं. अब मैं भी बहुत थक गया हूं, बेटी.’

‘आप एक चैरिटेबल ट्रस्ट क्यों नहीं बना देते? उस से जितना भी लाभ हो, गरीबों की सहायता में लगा दिया जाए. गरीबों के लिए एक अस्पताल बनवा दीजिए. एक स्कूल खुलवा दीजिए. इतने पैसों का आप क्या करेंगे?’

‘बेटी, अपना हक यों बांट देना चाहती हो,’ वे हैरानी से बोले थे.

‘मैं भी इतना पैसा क्या करूंगी. आदमी की जरूरतें तो सीमित होती हैं, और उसी में उसे खुशी होती है. इतना पैसा किस काम का जो किसी दूसरे के काम न आ सके, बैकों में पड़ापड़ा सड़ता रहे. सब बांट दीजिए, पापा.’

‘कैसी बातें करती हो, मैं ने सारी जिंदगी क्या इसी लिए खूनपसीना एक किया है कि मैं कमा कर लोगों में बांटता फिरूं. तुम नहीं जानतीं. मैं ने इसी व्यापार को बढ़ाने की खातिर क्या कुछ खोया है?’

‘मुझे सब पता है, पापा. इसी लिए तो कहती हूं, आप समेटतेसमेटते फिर कुछ न खो बैठें. एक बार बांट कर तो देखिए, आप को कितना सुख मिलता है. जो खुशी दूसरों के लिए कुछ कर के हासिल होती है, वह खुद के लिए समेट कर नहीं होती.’

‘यह तुम क्या कह रही हो?’

‘डाक्टर चाचा भी तो यही कहते हैं, पापा, देखिए न, वे गरीबों का मुफ्त इलाज करते हैं. वे हमेशा यही कहते हैं, बस, जितने की मुझे जरूरत होती है, मैं रख लेता हूं, बाकी दूसरों को दे देता हूं, ताकि मेरे साथसाथ दूसरों का भी काम चलता रहे.’

वे बेटी का मुंह देखते रह गए थे. अच्छा हुआ सीमा ने बात खोल दी, नहीं तो वे कितनी बड़ी गलती कर बैठते. नहीं, नहीं, उन्हें तो ऐसा लड़का चाहिए जो व्यापार को संभाल सके. वे इस तरह अपनी दौलत को कभी नहीं लुटाएंगे. और उन्होंने निश्चय किया था, वे अपनी तरफ से तलाश शुरू कर देंगे. यह काम जल्दी ही करना होगा.

जल्दी काम करने का नतीजा भी सीमा की नजरों से छिपा नहीं रहा. शंभुजी के औफिस की टेबल पर उस ने जब कई लड़कों के फोटो देखे तो वह सबकुछ समझ गई थी. उसी दिन वे कोलकाता जाने वाले थे. सीमा ने सबकुछ देखने के बाद केवल इतना ही कहा था, ‘पापा, आप इतनी जल्दी न करें, तो अच्छा है.’

‘तुम्हें मेरे फैसले पर कोई आपत्ति है.’

‘मेरा अपना भी तो कोई फैसला हो सकता है,’ उस ने दृढ़ता से कहा था.

‘मुझे तुम्हारे फैसले पर आपत्ति नहीं, बेटी. दीपक मुझे भी पसंद है. लेकिन मेरी भी तो कुछ खुशियां हैं, कुछ इच्छाएं हैं. तुम जानती हो, दीपक को शादी के बाद…’

‘आप पहले कोलकाता हो आइए. इस बारे में हम फिर बात करेंगे,’ उस ने उन की बात काट दी थी.

वे निश्ंिचत हो कर चले गए थे, और आज वापस आए थे. लेकिन दरवाजे पर इंतजार करती सीमा कहीं नजर नहीं आ रही थी.

वे तेजी से उस के कमरे में गए, शायद उस ने कोई मैसेज छोड़ा हो लेकिन कहीं कुछ भी नहीं था. सबकुछ व्यवस्थित था. तभी नौकर ने आ कर धीरे से कहा, ‘‘सीमा बिटिया आ गई है.’’

सीमा जब उन के सामने आ कर खड़ी हुई थी तो वे उसे अपलक देखते रह गए थे. इन 6 दिनों में सीमा को क्या हो गया है. लगता है, जैसे इतने दिनों तक सोई ही न हो, ‘‘कहां गई थी, बेटी?’’

‘‘रमेशजी के यहां, मां की तबीयत ठीक नहीं थी. उन्होंने बुलवा भेजा था.’’

‘‘मां…कौन मां?’’ वे हैरान थे.

‘‘रेखा चाची, यानी शरदजी की मां. शरदजी की भी तबीयत ठीक नहीं है. मैं यही बताने आई थी, कहीं आप चिंता न करने लगें. मुझे अभी फिर वापस जाना है. उन की देखभाल करने वाला कोई नहीं. दोनों बीमार हैं. शायद मुझे रात को भी वहीं रहना पड़े.’’

‘‘उन का नौकर उन की…’’ वे बात पूरी नहीं कर सके थे.

‘‘जितनी सेवा कोई अपना कर सकता है, उतनी सेवा क्या नौकर करेगा? मेरा मतलब तो आप समझ गए न, मैं ने कहा था न, पिताजी मेरा भी कोई फैसला हो सकता है.’’

‘‘और डाक्टर का बेटा दीपक?’’ वे हैरान थे.

‘‘वह तो बचपन की पगडंडियों पर लुकाछिपी खेलने वाला दोस्त था, जो जवानी के मोड़ पर आ कर आप की दौलत से भी आंखमिचौली खेलना चाहता था. मुझे जीवनसाथी की जरूरत है, पापा, दौलत पर पहरा देने वाले पहरेदार की नहीं. मैं जानती हूं, आप को मेरी बातों से दुख हो रहा है. लेकिन यह भी तो सोचिए, लड़की के जीवन में एक वह भी समय आता है जब वह बाबुल का घर छोड़ कर पति के घर जाने के लिए आतुर हो जाती है. इसी में उसे जिंदगी का सुख मिलता है. मांबाप की भी तो यही खुशी होती है कि लड़की अपने घर में सुखी रहे. आप शरद को भी बचपन से जानते हैं, आप भी अपना फैसला बदल डालिए, इसी में मेरी खुशी है और आप का सुख,’’ और वह जाने को तैयार हो गई.

‘‘रुक जाओ, बेटी, मुझे तुम्हारा फैसला मंजूर है. तुम ने तो एकसाथ मेरे दोदो बोझ हलके कर दिए हैं. बेटी का बोझ और धन का बोझ. इसे भी अपनी मरजी से ठिकाने लगा देना, बेटी, जिस से कइयों को खुशियां मिलती रहें,’’ कहतेकहते उन की आंखें नम हो गई थीं.

‘‘पापा,’’ वह भाग कर मुद्दत से प्यासे पापा के हृदय से लग कर रो पड़ी थी.

ले बाबुल घर आपनो…- भाग 2 : सीमा ने क्या चुना पिता का प्यार या स्वाभिमान

मीरा भी उन जैसा पति पा कर गर्व से फूल उठी थी और मन ही मन उस ने अपने मातापिता की बुद्धि को सराहा भी था. कुछ समय तक तो सबकुछ ठीकठाक चलता रहा था, लेकिन बाद में मीरा महसूस करने लगी थी जैसे पिताजी ने, दामाद नहीं, गुलाम खरीदा हो. शंभुजी सोए हों, या उस से प्रेमालाप कर रहे हों, बस पिताजी का एक बुलावा आया नहीं कि वे उठ कर चल देते. ऐसे में मीरा प्यार से उन्हें समझाती और कहती, ‘पिताजी से कह क्यों नहीं देते कि वक्तबेवक्त न बुलाया करें.’

‘अरे भई, काम होता है, तभी तो बुलाते हैं, और काम कोई वक्त देख कर तो नहीं आता,’ शंभूजी भी प्यार से जवाब देते.

‘पहले भी तो वे स्वयं काम संभालते थे, अब क्यों नहीं संभालते?’ मीरा उखड़ जाती.

‘इसी लिए तो उन्होंने तुम जैसी पत्नी का मुझे पति बना दिया है, ताकि मैं उन का बोझ हलका करूं,’ शंभुजी हंस कर टाल देते.

‘फिर उन्हें बेटी देने की क्या जरूरत थी. बोझ हलका करने के लिए तुम्हें रुपयों से खरीदा भी जा सकता था. तुम नहीं बोल सकते तो मैं पिताजी से कहूंगी कि आप साथसाथ काम करने के लिए कोई दूसरा नौकर रख लीजिए,’ मीरा नाराज हो जाती.

‘तुम तो बहुत भावुक हो, मीरा. जितनी मेहनत और ईमानदारी से अपने घर का आदमी काम कर सकता है, कोई दूसरा करेगा क्या?’ वे तर्क देते.

‘यह क्यों नहीं कहते कि तुम बिक गए हो. तुम्हें पत्नी की नहीं, सिर्फ दौलत की जरूरत थी,’ और मीरा फफक कर रो पड़ी थी.

शंभुजी कितने ही प्यार से क्यों न समझाते लेकिन मीरा को यह कतई पसंद नहीं था कि वे घरदामाद बन कर रहें. वह हमेशा यही कहती थी, ‘घरदामाद तो पालतू कुत्ते की तरह होता है, जो टुकड़े खा कर दिनरात वफादारी करता है. तुम क्यों नहीं अलग मकान ले लेते. तुम जैसे भी रखोगे, मैं उसी तरह रहूंगी. तुम से कभी गिला नहीं करूंगी. मुझे यह तो एहसास रहेगा, मेरा अपना घर है, तुम मेरे हो. यहां तो हमेशा मुझे ऐसा लगता है जैसे हम पिताजी की दया पर पल रहे हैं और तुम भी सोचते होगे कि यदि मैं ने कहीं विद्रोह किया, तो पिताजी रोजी ही न छीन लें.’

‘न जाने तुम क्यों गलत ढंग से सोचने लगी हो? मैं ने तो कभी इस तरह सोचा भी नहीं. मीरा, तुम पहले भी तो इस घर में रहती थीं, तब तुम ऐसा क्यों नहीं सोचती थीं?’

‘तब मैं कुआंरी थी. कुआंरी लड़की हमेशा अपनी नई दुनिया बसाने के सपने देखती है. एक ऐसे पति का सपना, जो उसे घर देगा, उस के सुखदुख का भागीदार होगा, और वह उस के हर सुखदुख की चादर अपने ऊपर ओढ़ लेगी. बताओ, क्या दिया तुम ने मुझे अपनी ओर से? बाकी सब छोड़ भी दें तो प्यार और विश्वास भी तुम नहीं दे सके, जिस समय भी मेरे पास होते हो, तुम्हें यही खयाल रहता है कि पिताजी के कहे काम सब पूरे हो गए कि नहीं, कहीं वे यह न सोचें, शादी होते ही लापरवाह हो गया है.’

इसी तरह तकरार और प्यार में वर्ष छलांगें लगाते निकल रहे थे. मीरा की गोद में सीमा भी आ गई थी. सीमा को पा कर मीरा काफी हद तक सहज हो गई थी. उन्होंने सोचा था, ‘मीरा सीमा को पा कर तनाव से शायद मुक्त हो गई है.’ लेकिन यह उन की भूल थी.

सीमा जैसेजैसे बड़ी होती गई, मीरा की खामोशी बढ़ती गई. वह हमेशा देखती, सीमा की हर जरूरत पिताजी पूरी करते हैं, उस का भविष्य कैसे संवारना है, यह भी पिताजी सोचते हैं. बिलकुल उसी तरह, जिस तरह उन्होंने उस के लिए सोचा था.

शंभुजी ने तो एक दिन भी यह महसूस नहीं किया कि बाप का अपनी संतान के लिए क्या कर्तव्य होता है. मीरा की जरूरत पिताजी आ कर पूछते. शंभुजी को इस से कोई अंतर नहीं पड़ता था. बस, उन्हें यही संतोष था कि पिताजी के होते उन्हें चिंता करने की क्या आवश्यकता है, या पिताजी उन पर कितने प्रसन्न हैं, क्योंकि उन्होंने उन का व्यापार और बढ़ा दिया था. मीरा की हर बात चिकने घड़े पर पड़े पानी की तरह उन के ऊपर से फिसल जाती थी.

एक दिन बेहद गुस्से में मीरा ने कहा था, ‘इन सुखों की खातिर तुम ने अपनेआप को बेच दिया है. अपनी आजादी, अपने आदर्शों तक को दांव पर लगा दिया है.’

‘तुम सुखी रहो, इसी लिए तो यह सब किया है मैं ने, वरना मैं अकेला तो दो रोटी और दो कपड़ों में ही प्रसन्न था. यदि तुम्हारी खुशी के लिए स्वयं मुझे भी बिकना पड़ा तो भी मैं पीछे नहीं हटूंगा, मीरा,’ शंभुजी ने हंस कर बात टालनी चाही थी.

‘मेरा नाम ले कर झूठ मत बोलो. तुम जानते हो इस पैसे की दुनिया से मुझे कभी प्यार नहीं रहा जहां आदमी आजादी से अपनी कोई इच्छा ही पूरी न कर सके, जहां आगेपीछे नौकरों की फौज खड़ी हो. मैं खुली हवा में सांस लेना चाहती हूं. प्लीज, मुझे अलग ले जाओ, ताकि मैं अपना छोटा सा संसार बना सकूं, और सोच सकूं, यह घर मेरा है, जहां सुकून हो, जहां तुम हो, हमारी बच्ची हो, और मैं होऊं,’ और मीरा रो पड़ी थी.

‘ठीक है, मीरा. मैं वचन देता हूं, हम उसी तरह रहेंगे जैसे तुम चाहती हो. मैं पिताजी से जरूर बात करूंगा,’ उन्होंने मीरा को प्यार से थपथपा दिया था.

जब मीरा ने देखा कि यह तकरार भी चिकने घड़े की बूंद बन गई है तो वह हमेशा के लिए चुप हो गई थी. शायद उस ने ‘जो है, सो ठीक है,’ समझ कर ही संतोष कर लिया था.

दूसरे बच्चे के समय मीरा की तबीयत बहुत बिगड़ गई थी. डाक्टरों की भीड़ भी उसे नहीं बचा सकी थी. तब यही शंभुजी सीमा को छाती से लगा कर फूटफूट कर रो पड़े थे. उन्होंने मन ही मन मीरा से कितनी बार माफी मांगी थी और वादा किया था, ‘तुम्हारी सीमा की मैं हर इच्छा पूरी करूंगा. मैं स्वयं उस का खयाल रखूंगा, उसे मां बन कर पालूंगा.’

कितना स्नेह और ममत्व उन्होंने बेटी को दिया था. उस के उठने से ले कर सोने तक, हर बात का ध्यान वे खुद रखते थे. बाहर जाना भी कितना कम कर दिया था. लेकिन कभीकभी जब सीमा उन्हें टकटकी लगाए देखने लगती थी तो न जाने वे क्यों सिहर उठते थे. उन्हें महसूस होता था, ये निगाहें सीमा की नहीं, मीरा की हैं, जो उन से कुछ कहना चाह रही हैं, तो वे घबरा कर यह पूछ बैठते, ‘कुछ कहना है, बेटी?’

‘कुछ नहीं, पापा,’ जब सीमा कहती तो उन की सांस की गति ठीक होती.

समय के साथ सीमा बड़ी हुई. मीरा के मातापिता का साथ छूटा. सारा कारोबार फिर एक बार शंभुजी पर आ पड़ा. यह वही जिम्मेदारी थी जो किसी को दी नहीं जा सकती थी और फिर धीरेधीरे वे पहले की तरह व्यस्तता के बीच खोने लगे थे.

एक दिन जब वे काफी रात गए घर लौटे थे, तो यह देख कर हैरान हो गए थे कि जल्दी सो जाने वाली सीमा, आज बालकनी में खड़ी उन का इंतजार कर रही है. वे हैरानी से बोले थे, ‘सोई क्यों नहीं?’

‘आप जल्दी क्यों नहीं आते? अकेले मेरा मन नहीं लगता,’ सीमा गुस्से में थी.

‘मेरा बहुत काम होता है, इसी लिए देर हो जाती है. आज कोई पहली बार तो मैं देर से नहीं आया?’ उन्होंने प्यार से समझाया था.

‘इतनी रात तक किसी का काम नहीं होता. आप झूठ बोलते हैं. आप पार्टियों में जाते हैं, शराब पीते हैं, इसी लिए आप को देर हो जाती है.’

‘सीमा,’ वे नाराज हो गए थे.

‘डांटिए मत, मैं कालेज से देर से आऊंगी, तब आप को अच्छा लगेगा?’ वह भी सख्ती से बोली थी, ‘मैं कहे देती हूं, अब आप देर से आएंगे तो मैं खाना नहीं खाऊंगी.’ और वह पैर पटकती हुई चली गई थी.

वे हैरान से खड़े देखते रह गए थे. मीरा और सीमा में कितना साम्य है. वह अगर हवा का तेज झोंका थी तो यह सबकुछ हिला देने वाली तेज आंधी.

ले बाबुल घर आपनो…- भाग 1 : सीमा ने क्या चुना पिता का प्यार या स्वाभिमान

न जाने शंभुजी को क्या हो गया था, इतनी बड़ी कोठी, कार, नौकरचाकर, पैसा देखते ही चौंधिया गए थे. शायद उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन उन के दामन में इतनी दौलत आएगी कि जिसे समेटने के लिए उन्हें स्वार्थ के दरवाजे खोल कर बुद्धि के दरवाजे बंद कर देने पड़ेंगे.

‘‘मुझे जीवनसाथी की जरूरत है, पापा, दौलत पर पहरा देने वाले पहरेदार की नहीं,’’ सीमा ने साफ शब्दों में अपनी बात कह दी.

शंभुजी कोलकाता से लौट कर आए तो उन्हें बड़ी हैरानी हुई. हमेशा दरवाजे पर स्वागत करने वाली सीमा आज कहीं भी नजर नहीं आ रही थी. मैसेज तो उन्होंने कोलकाता से चलने से पहले ही उस के मोबाइल पर भेज दिया था. क्या उस ने पढ़ा नहीं? लेकिन वे तो हमेशा ही ऐसा करते हैं. चलने से पहले मैसेज कर देते हैं और उन की लाड़ली बेटी सीमा दरवाजे पर मिलती है. उस का हंसता चेहरा देखते ही वे अपनी सारी थकान, सारा अकेलापन पलभर में भूल जाते हैं. शंभुजी का मन उदास हो गया. कहां गई होगी सीमा? मोबाइल भी घर पर छोड़ गई. किस से पूछें वे? और उन्होंने एकएक कर के सारे नौकरों को बुला लिया. पर किसी को पता नहीं था कि सीमा कहां है. सब का एक ही जवाब था, ‘‘सुबह घर पर थी, फिर पता नहीं बिटिया कहां गई.’’

शंभुजी ने सीमा का मोबाइल चैक किया. उन का मैसेज उस ने पढ़ लिया था. फिर भी सीमा घर में नहीं रही. क्या होता जा रहा है उसे? पिछले कई महीनों से वे देख रहे हैं, सीमा में कुछ परिवर्तन होते जा रहे हैं. न वह उन के साथ उतना लाड़ करती है, न उन्हें अपने मन की कोई बात ही बताती है और न ही अब उन से कुछ पूछती है. पिछली बार जब वे कोलकाता जा रहे थे, तो उन्होंने कितना पूछा था, ‘क्यों, बेटे, तुम्हें कुछ मंगवाना है वहां से?’ तो बस, केवल सिर हिला कर उस ने न कर दी थी और वहां से चली गई थी.

पहले जब वे कहीं जाते थे, तो कैसे उन के गले में बांहें डाल कर लटक जाती थी, और मचल कर कहती थी, ‘पापा, जल्दी आ जाइएगा, इतने बड़े सूने घर में हमारा मन नहीं लगता.’

उन का भी कहां इस घर में मन लगता है. यह तो सीमा ही है, जिस के पीछे उन्होंने इतने बरस हंसतेहंसते काट दिए हैं और अपनी पत्नी मीरा को भी भुला बैठे हैं. जबजब वे सीमा को देखते हैं, उन्हें हमेशा यही संदेह होता है, मीरा लौट आई है. और वे अपने अकेलेपन की खाई को सीमा की प्यारीप्यारी बातों से पाट देते हैं.

एक दिन सीमा भी तो पूछ बैठी थी, ‘पापा, मेरी मां बहुत सुंदर थीं?’

‘हां बेटा, बहुत सुंदर थी?’

‘बिलकुल मेरी तरह?’

‘हां, बिलकुल तेरी तरह.’

‘वे आप से रूठती भी थीं?’

‘हां बेटा.’

‘मेरी तरह?’

‘आज तुम्हें क्या हो गया है, सीमा? यह सब तुम्हें किस ने बताया है?’ वे नाराज हो गए थे.

‘15 नंबर कोठी वाली रेखा चाची हैं न, उन्होंने कहा था, मां बहुत अच्छी थीं. आप उन की बात नहीं मानते थे तो वे रूठ जाती थीं,’ सीमा बड़े भोलेपन से बोली थी.

‘तू वहां मत जाया कर, बेटी. अपने घर में क्यों नहीं खेलती? कितने खिलौने हैं तेरे पास?’ उन्होंने प्यार से समझाया था.

‘वहां शरद है न, वह मेरे साथ कैरम खेलता है, बैडमिंटन खेलता है, यहां मेरे साथ कौन खेलेगा? आप तो सारा दिन घर से बाहर रहते हैं,’ वह रोआंसी हो आई थी.

वे उस छोटी सी बेटी को कैसे बताते कि उस की मां उन से क्यों रूठ जाती थी. वे तो आज तक अपने को कोसते हैं कि मीरा की वे कोई भी इच्छा पूरी न कर सके. कितनी स्वाभिमानी थी वह? इतनी बड़ी जायदाद की भी उस की नजर में कोई कीमत न थी. हमेशा यही कहती थी कि वह सुख भी किस काम का जिस से हमेशा यह एहसास होता रहे, यह हमारा अपना नहीं, किसी का दिया हुआ है.

यह जो आज इतना बड़ा राजपाट है, यह सब उन्हें मीरा की बदौलत ही तो मिला था. लेकिन मीरा ने कभी इस राजपाट को प्यार नहीं किया. न जाने शंभुजी को क्या हो गया था, इतनी बड़ी कोठी, कार, नौकरचाकर, पैसा देखते ही चौंधिया गए थे. शायद उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन उन के दामन में इतनी दौलत आ आएगी कि जिसे समेटने के लिए उन्हें स्वार्थ के दरवाजे खोल कर बुद्धि के दरवाजे बंद कर देने पड़ेंगे.

बहुत बड़ा कारोबार था मीरा के पिताजी का. कितने ही लोग उन के दफ्तर में काम करते थे. शंभुजी भी वहीं काम करते थे. वे बहुत ही स्मार्ट, होनहार और ईमानदार व्यक्ति थे. अपनी मेहनत और लगन से उन्होंने मीरा के पिता का मन जीत लिया था. शंभुजी से उन की कोई बात छिपी नहीं थी, और शंभुजी भी उन की बात को अपनी बात समझ कर न जाने पेट के किस कोने में रख लेते थे, जिस से कोई जान तक नहीं पाता था. मीरा की मां ने ही एक दिन पति को सुझाव दिया था, ‘क्योंजी, तुम तो दिनरात शंभुजी की प्रशंसा करते हो. अगर हम अपनी मीरा की शादी उन से कर दें, तो कैसा रहेगा? गरीब घर का लड़का है, अपने घर रह जाएगा.’

‘मैं भी कितने दिनों से यही सोच रहा था. मुझे भी ऐसा लड़का चाहिए जो मेरा कारोबार भी संभाल ले, और हमारी बेटी भी हमारे पास रह जाए,’ मीरा के पिता ने बात का समर्थन किया था.

‘मेरी चिंता दूर हुई. लेदे कर एक ही तो औलाद है, वही आंखों से दूर हो जाए तो यह तामझाम किस काम का?’

‘लड़का हीरा है, हीरा. चरित्रवान, स्मार्ट, मेहनती, ईमानदार, यह समझ लो, चिराग ले कर ढूंढ़ने से भी ऐसा लड़का हमें नहीं मिलेगा.’

‘तो बात पक्की कर लो. यह जरूर जतला देना, घरजमाई बन कर रहना पड़ेगा. उसे मंजूर हो तो बस चट मंगनी पट ब्याह वाली बात कर ही डालो,’ मीरा की मां ने पुलकित हो कर कहा था.

बात पक्की हो गई थी. बड़ी धूमधाम से मीरा और शंभुजी की शादी हुई थी. शंभुजी के पांव धरती पर नहीं पड़ते थे. पहले तो दफ्तर में काम करने वाले सभी साथियों ने ईर्ष्या की थी, लेकिन धीरेधीरे वे सब के लिए छोटे मालिक हो गए थे. मीरा के पिता तो जैसे उन्हें पा कर पूरी तरह निश्ंिचत हो गए थे. धीरेधीरे सारा कारोबार ही उन्होंने शंभुजी को सौंप दिया था.

दूरियां – भाग 4: क्या काम्या और हिरेन के रिश्ते को समझ पाया नील

अगले दिन हिरेन जिद करने लगा कि कुछ खरीदारी करते हैं. मैं अधिकतर जींस पहनती हूं तो मु  झे शर्ट, टीशर्ट की दुकान पर ले गया. काम्या वहां पुरुषों के विभाग में शर्ट देखने में व्यस्त थी. उस ने हमें नहीं देखा. बड़ी अजीब फंकी सी शर्ट देख रही थी. खैर, मैं ने नील के लिए एक चैकदार शर्ट खरीदी और बाहर जाने लगी तो काम्या से टकरा गई.

काम्या ने अपनी ली हुई शर्ट दिखाते हुए पूछा, ‘‘यह कैसी शर्ट है?’’

शर्ट चटक औरेंज रंग की थी. मैं व्यक्तिगत तौर पर ऐसी शर्ट पसंद नहीं करती. लेकिन मैं ने उस से कहा अच्छी है और आगे बढ़ गई.

नील की याद इतनी सता रही थी कि बरदाश्त नहीं हो रहा था. आखिर मैं ने फोन किया, लेकिन संपर्क नहीं हो सका.

अगले दिन हमारा काम खत्म हो गया. लेकिन हिरेन ने जानबू  झ कर एक

दिन अधिक रखा था आसपास घूमने का. मु  झे जान कर बड़ी बोरियत हुई. मेरा बिलकुल मन नहीं था एक भी दिन और रुकने का.

जब घर पहुंची तो नील घर पर नहीं था, सोचा उस की शर्ट निकाल कर पहन लेती हूं. मैं ऐसा अकसर करती जब भी उस की नजदीकी का एहसास करना होता था. अलमारी खोलते ही सामने औरेंज रंग की शर्ट दिखी. हाथ में ले कर देखा तो यह वही शर्ट थी जो काम्या ने अपने बौयफ्रैंड के लिए खरीदी थी. अब कहनेसुनने को कुछ नहीं बचा था. स्थिति एकदम साफ थी. एक कागज पर संदेश लिखा:

‘‘मैं तुम्हें छोड़ कर जा रही हूं. अब हमारे रिश्ते में ऐसा कुछ नहीं बचा कि हम साथ रहें,’’ मैं किसी वकील से बात कर के आगे सहेली के घर रहने आ गई.

उस के बाद नील के बहुत फोन आए, लेकिन मैं ने फोन नहीं उठाया. जानती थी उस की आवाज सुन कर रो पड़ूंगी और कमजोर पड़ जाऊंगी. 17 महीनों से एक जिंदा लाश की तरह घूम रही हूं. हिरेन ने बहुत मदद की, दाद देनी पड़ेगी बंदा जितना मेरे साथ धैर्य से पेश आ रहा है कोई नहीं आ सकता. वकील से भी उस ने जोर दे कर समय लिया वरना मैं तो टालती जा रही थी.

नील ने जब मेरा हाथ पकड़ कर दबाया तो मैं अतीत से बाहर निकली.

‘‘ऐसा एकदम से क्या हुआ कि तुम घर छोड़ कर चली गई? कारण जानने के लिए मैं पागल हो गया था… तुम्हारे औफिस के इतने चक्कर लगाए, लेकिन किसी ने अंदर नहीं घुसने दिया. तुम कहां रहने चली गई मैं नहीं जान सका. तुम मेरा फोन नहीं उठाती थी.’’

मैं आहत स्वर में बोली, ‘‘बनो मत, तुम शिमला में काम्या के साथ थे. बस मु  झ से तलाक का इंतजार कर रहे हो उस से शादी करने के लिए.’’

‘‘मु  झे नहीं मालूम तुम किस काम्या की बात कर रही हो… मैं तो बस एक काम्या को जानता हूं जो मेरे औफिस में काम करती है और मु  झे बिलकुल पसंद नहीं है. हर समय मेरे पीछे पड़ी रहती है. मैं शिमला अपने दोस्तों निखिल और सोमेश के साथ गया था… वे बहुत समय से पीछे पड़े थे, लेकिन मैं टाल जाता था. जब तुम ने बताया तुम बाहर जा रही हो तो तुम्हारे बिना मैं भी यहां रह कर क्या करता. मेरे हां कहते ही दोनों ने शिमला का कार्यक्रम बना लिया.’’

‘‘तुम सच छिपाने की कोशिश मत करो. काम्या ने तुम्हें औरेंज रंग की शर्ट तोहफे में दी थी.’’

‘‘तुम पागल हो गई हो. मैं उस बददिमाग लड़की से तोहफा क्यों लूंगा भला? वह शर्ट मैं ने स्वयं खरीदी थी तुम्हें चिढ़ाने के लिए. मु  झे मालूम था उस का रंग और प्रिंट देख कर तुम कितना गुस्सा खाओगी.’’

मैं उठ कर अपने कमरे में चली गई. अब यहां रुकने से कोई लाभ नहीं, पुरानी यादों से बचने

आई थी, लेकिन फिर उसी भंवर में फंस गई. नील को भी यहीं आना था, उस को छोड़ कर जाने का मन नहीं कर रहा था. 2 दिन ही सही, फिर पता नहीं जिंदगी में कभी मिलें न मिलें.

तभी बाहर का दरवाजा खोलने की आवाज आई. उसे मेरी परवाह नहीं लगता है चला गया. जो थोड़ीबहुत उम्मीद थी उसे भी खत्म कर के ही दम लेगा. मैं थोड़ी देर बाद नहाने चली गई, जब बाहर आई तो नील कमरे में मेरा इंतजार कर रहा था.

‘‘तुम एकदम से नहीं दिखाई दी तो मु  झे लगा तुम गुस्सा हो कर चली गई. देखो आज छोटी दीवाली है. मैं कुछ लडि़यां, दीपक और रंगोली के रंग लाया हूं. आखिरी ही सही हम एक बार इस नए घर में पतिपत्नी का नाटक कर के दीवाली मनाते हैं.’’

फिर उस की नजर मु  झ पर ठहर गई. हाथ का सामान नीचे रखते हुए बोला, ‘‘तू सही कहती है मैं तुम्हारी देह देख कर पागल हो जाता हूं.’’

फिर वह एकदम मेरे करीब आ कर मु  झे बांहों में कस कर किस करने लगा. कायदे से मु  झे उसे धक्का दे कर अपने से अलग कर देना चाहिए था, लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकी. कितनी संतुष्टि मिल रही थी उस की नजदीकी से… तन और मन कितने बेचैन थे… तृप्त हो गए.

वह हांफ रहा था, होंठों को अलग करते हुए बोला, ‘‘शादी के इतने साल बाद भी इतनी बेचैनी, कैसे रह सकेंगे एकदूसरे के बिना? यार एक अनजान लड़की ने क्या कह दिया तूने सच मान लिया. मु  झे देखा तूने उस के साथ कभी और वह शर्ट मैं ने स्वयं खरीदी थी. मैं तु  झे रसीद भी दिखा सकता हूं.’’

मैं आहिस्ता से उस से अलग होते हुए सोच रही थी कह तो यह सही रहा है. मैं ने अपना फोन खोल कर देखा हिरेन की कई कौल्स आई हुई थीं.

मेरी सहेली का संदेश था, ‘‘कहां हो यार तुम्हारा बौस पागल हो रहा है.’’

कमाल है हिरेन को क्या परेशानी है… 2 दिन की छुट्टी है. मैं कहीं भी जाऊं उसे क्या… मेरे मन में न जाने क्या आया कि मैं ने निर्मला को फोन मिलाया.

वह बेरुखी से बोली, ‘‘हैलो, बोलो क्या बात है?’’

‘‘कुछ नहीं निर्मलाजी बस दीवाली की शुभकामनाएं देने के लिए फोन मिलाया था.’’

उन की आवाज एकदम बदल गई, ‘‘ओह, अच्छाअच्छा, आप को भी बहुतबहुत शुभकामनाएं. कल पार्टी में नहीं शामिल हुई… हिरेन सर का मूड बड़ा खराब रहा.’’

सुन कर कुछ अजीब लगा. बोली, ‘‘बस तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही थी. इसलिए शोरशराबे से दूर अपनी मम्मी से मिलने आ गई थी. आप ने इतने कम नोटिस पर शिमला जाने का टिकट करवा दिया, आप भी कमाल हो.’’

‘‘इस में कमाल क्या, हमारी ट्रैवल एजेंट्स से सांठगांठ रहती है, 2 टिकट ही तो करवाए थे. उस में कोई दिक्कत नहीं होती, अधिक हो तो थोड़ी परेशानी हो जाती है.’’

‘‘2 टिकट? लेकिन मैं तो अकेले गईर् थी?’’

‘‘तुम्हारी बगल में काम्या बैठ कर गई थी. उस का टिकट भी मैं ने ही करवाया था हिरेन सर के कहने पर. वह सर की ममेरी बहन है… उस ने तुम्हें बताया नहीं?’’

‘‘मैं इतनी थकी हुई थी कि प्लेन में बैठते ही नींद आ गई. इस कारण हमारी खास बात नहीं हुई,’’ फिर थोड़ी देर इधरउधर की बातें

कर के मैं ने फोन काट दिया.

नील मेरे निकट आते हुए बोला, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘हिरेन और काम्या भाईबहन हैं और शिमला में ऐसे नाटक कर रहे थे मानो एकदूसरे को जानते तक नहीं हैं.’’

यह दोनों की चाल थी… शक का बीज बोया. नील तुम्हें और काम्या मु  झे पाना चाहती थी… शिमला में वह मु  झ पर नजर रख रही होगी. जैसे ही मैं ने वह शर्ट खरीदी उस ने भी वैसी एक और खरीद ली होगी. मैं अभी हिरेन के घर जा कर उस की ऐसी धुनाई करूंगा कि साला आगे से मेरी बीवी की तरफ आंख उठा कर देखने की भी हिम्मत नहीं करेगा.’’

‘‘रहने दो नील हमारे रिश्ते में दरार पड़ गई थी तभी दूसरों को सेंध लगाने का मौका मिला,’’ मैं उस के एकदम करीब जा कर बोली, ‘‘मैं आज ही हिरेन की नौकरी से इस्तीफा दे कर कहीं और काम ढूंढ़ लूंगी… अपने बीच किसी तीसरे को नहीं आने देंगे,’’ मु  झे लगा मेरे दिल का अंधेरा छंट गया है और अब हम रात को मिल कर दीए सजाएंगे असली पतिपत्नी की तरह.

दूरियां – भाग 3 : क्या काम्या और हिरेन के रिश्ते को समझ पाया नील

जब मैं ने नील को बताया कि मुझे 5 दिनों के लिए लखनऊ जाना है तो वह बड़बड़ाने लगा. यह मेरे लिए बड़ी परेशानी की बात हो गई थी कि पति का मिजाज देखूं या नौकरी. मेरा मन बड़ा खिन्न सा रहता. उस से बात करने का भी मन नहीं करता.

जाने से 2 दिन पहले निर्मलाजी ने बताया मुझे लखनऊ

नहीं शिमला जाना होगा. वहां जो टीम औडिट करने गई है उस के एक सदस्य की तबीयत खराब हो गई है. मु  झे क्या फर्क पड़ता था फिर कहीं भी जाना हो. नील को बताने का मन नहीं हुआ. इसलिए कि फिर दोबारा उस की बड़बड़ शुरू हो जाएगी. अच्छा हुआ नहीं बताया. मु  झे नील का वह रंग देखने को मिला जिस पर मु  झे अभी तक विश्वास नहीं हो रहा है.

‘‘मैं जब 5 दिनों के लिए बाहर गई थी 2 महीने पहले तो क्या तुम शिमला गए थे?’’

नील आश्चर्य से, ‘‘हां, लेकिन तु  झे कैसे पता?’’

‘‘मैं भी तब शिमला में थी और मैं ने तुम्हें देखा था.’’

‘‘तुम तो लखनऊ जाने वाली थी और अगर शिमला गईर् थी तो बताया क्यों नहीं? साथ में घूमते बड़ा मजा आता.’’

‘‘अच्छा और जिस के साथ घूमने का कार्यक्रम बना कर गए थे उस बेचारी को म  झधार में छोड़ देते?’’

नील असमंजस से देखते हुए बोला, ‘‘तुम क्या बोल रही हो मु  झे नहीं पता… राहुल और सौरभ बहुत दिनों से कह रहे थे कहीं घूमने चलते हैं… मैं बस टालता जा रहा था. जब तुम जा रही थी तो मैं ने उन्हें कार्यक्रम बनाने के लिए हां कह दी.’’

‘‘रहने दो… तुम   झूठ बोल रहे हो, तुम वहां काम्या के साथ रंगरलियां मनाने गए थे.’’

नील आश्चर्य से बोला, ‘‘कौन काम्या? तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है, लड़ने के बहाने ढूंढ़ती हो. अलग होना चाहती हो… हिरेन का साथ चाहती हो… ठीक है, पर गलत इलजाम मत लगाओ. अब मैं   झूठ क्यों बोलूंगा जब हम अलग हो रहे हैं… वैसे भी मैं   झूठ नहीं बोलता हूं.’’

‘‘बहुत अच्छे, तुम हिरेन को ले कर मु  झ पर कोई भी इलजाम लगाओ वह ठीक है.’’

‘‘तुम हिरेन के लिए क्या महसूस करती हो मैं नहीं जानता, लेकिन हिरेन के दिल में तुम्हारे लिए क्या है मैं सम  झता हूं… मेरे लिए तुम क्या हो तुम नहीं जानती हो, तुम मेरी जिंदगी की धुरी हो, सबकुछ मेरा तुम्हारे इर्दगिर्द घूमता है.’’

उस की आंखें और भी बहुत कुछ कहना चाहती थीं, लेकिन उस की बात सुन कर मेरी आंखों में आंसू आ गए. उस की इस तरह की चिकनीचुपड़ी बातों में आ कर मैं मीरा की तरह उसे कृष्ण मान कर उस की दीवानी हो जाती थी.

जब मैं शिमला जाने वाले प्लेन में सवार हुई, बहुत उदास थी. पहली बार 5 दिनों के

लिए नील से अलग हो रही थी और उस ने केवल बाय कह कर मुंह फेर लिया. शुरू में हम औफिस के लिए भी जब निकलते थे तो ऐसा लगता

7-8 घंटे कैसे एकदूसरे के बिना रहेंगे, बहुत देर तक एकदूसरे के गले लगे रहते. प्लेन में मेरी बगल वाली सीट पर बैठी लड़की बहुत उत्साहित थी. कुछ न कुछ बोले जा रही थी. मु  झे उस की आवाज से बोरियत हो रही थी.   झल्ला कर मैं ने पूछा, ‘‘पहली बार प्लेन में बैठी हो या पहली बार शिमला जा रही हो?’’

वह शरमाते हुए बोली, ‘‘पहली बार अपने प्रेमी से इस तरह मिलने जा रही हूं. वह शादीशुदा है… जब तक तलाक नहीं हो जाता हमें इसी तरह छिपछिप कर मिलना पड़ेगा. तलाक मिलते ही हम शादी कर लेंगे.’’

मेरी उस की प्रेम कहानी में कोई दिलचस्पी नहीं थी. मैं आंखें बंद कर सिर टिका कर सोने की कोशिश करने करने लगी. लेकिन जब नाश्ता आया तो यह नाटक नहीं चला और वह दोबारा शुरू हो गई. उस के औफिस में ही काम करता था और उस के अनुसार दिखने में बहुत मस्त था. लेकिन बेचारा दुखी था. बीवी   झगड़ालू थी. दोनों में बिलकुल नहीं बनती थी. उस लड़की की बकबक से बचने के लिए मैं कान में इयर फोन लगा कर बैठ गई.

उतरते समय वह कुछ परेशान लगी, बोली, ‘‘मैं पहली बार इस तरह अकेली यात्रा कर रही हूं मु  झे बहुत घबराहट हो रही है. अगर वे नहीं आए तो मैं क्या करूंगी. आप मु  झे प्लीज अपना फोन नंबर और नाम बता दो. अगर जरूरत पड़ी तो मैं आप से सहायता मांग लूंगी. मेरा नाम काम्या है. मैं सुगम लिमिटेड में काम करती हूं.’’

मु  झे ऐसे लोगों से चिढ़ होती है जो बेमतलब चिपकते हैं. मैं ने उस से परिचय मांगा था… बेमतलब उतावली हो रही थी अपने बारे में बताने को. लेकिन वह उस कंपनी में काम करती है, जिस में नील भी नौकरी करता है.

हिरेन मु  झे एयरपोर्ट पर लेने आया. देख कर बड़ा खुश हुआ. अच्छे होटल में ठहरने की व्यवस्था की थी. कमरे तक पहुंचा कर हिरेन बोला, ‘‘आज रविवार है. कल से काम करेंगे. तुम अभी आराम करो. जब उठो तो कौल करना. कहीं घूमने चलेंगे.’’

‘‘बाकी सब कहां हैं?’’

‘‘वे सब चले गए… उन का काम खत्म हो गया. अब बस मेरा और तुम्हारा काम रह गया है.’’

मैं चुपचाप कमरे में अपने फोन को हाथ में पकड़ कर बैठ गई. अगर नील का फोन आया यह पूछने के लिए कि मैं ठीक से पहुंच गई कि नहीं और मैं इधरउधर हुई तो बात नहीं हो पाएगी. अत: मैं शाम तक ऐसे ही बैठी रही पर उस का फोन नहीं आया.

तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. खोला तो सामने हिरेन था.

‘‘यह क्या कपड़े भी नहीं बदले… जब से ऐसे ही बैठी हो. मैं इंतजार करता रहा तुम्हारे बुलाने का. तैयार हो जाओ हम बाहर घूमने चलते हैं वहीं कुछ खा कर आ जाएंगे,’’ वह बोला.

मैं बेमन सी हो गई और फिर सिरदर्द का बहाना बना कर जल्दी वापस आ कर कमरे में सो गई.

अगले दिन जिस होटल में ठहरे थे वहीं का औडिट करना था, इसलिए सुबह से शाम तक काम करते रहे. शाम को हिरेन फिर घूमने की जिद करने लगा. अकेले रोज उस के साथ इस तरह घूमना मु  झे ठीक नहीं लग रहा था. लेकिन क्या करती.

घूमतेघूमते काम्या दिख गई. अकेली थी. फिर चिपक गई. उस दिन मु  झे उस का साथ बुरा नहीं लगा. हिरेन से उस का परिचय करा कर हम इधरउधर की बातें करने लगे. काम्या ने बताया कि उस का बौयफ्रैंड कल आने वाला था सड़क मार्ग से पर गाड़ी खराब हो गई तो बीच में कहीं रुकना पड़ा. अब रात तक आएगा. वह अकेली थी. हमारे साथ घूमने लगी, हिरेन बोर हो रहा था, लेकिन मु  झे क्या.

खुशियों के फ़ूल -भाग 3 : किस बात से डर गए थे निनाद और अम्बा

निनाद को चादर उढ़ा वह दूसरे बेडरूम में अपने पलंग पर लेट गई. पिछले दिन से अम्बा गंभीर सोचविचार में मग्न थी. निनाद को लेकर वह कुछ फैसला नहीं कर पा रही थी. निनाद के रवैये से स्पष्ट था, वह अब समझौते के मूड में था, लेकिन क्या वह पिछले तीन वर्षों तक उसके दिये घावों को भुला कर उसकी इच्छानुसार उसके साथ एक बार फिर जिंदगी की नई शुरुआत कर पाएगी.वह घोर द्विविधा में थी. निनाद के बंधन को काट फेंके या फिर गुजरे दिनों को भुला कर एक नया आगाज़ करे? एक ओर उसका मन कहता, इंसान की फितरत कभी नहीं बदलती. उसने उसके साथ एक नई शुरुआत कर भी ली तो क्या गारंटी है कि वह उसे दोबारा तंग नहीं करेगा? तभी दूसरी ओर वह सोचती, जब निनाद ने अपनी गलती मान ली है तो एक मौका तो उसे देना ही चाहिए.अनायास उसके कानों में माँ के धीर गंभीर शब्द गूंज उठे, “रिश्तों की खूबसूरती उन्हें बनाए रखने में होती है, ना की उन्हें तोड़ने में.“

जिंदगी के इस मोड पर वह स्पष्टता से कुछ सोच नहीं पा रही थी, कि क्या करे.

बीमारी के इस दौर में निनाद एक दम बदला बदला नज़र आ रहा था. वह   बेहद डर गया था. वह एक बेहद डरपोक किस्म का, कमज़ोर दिल का इंसान था.उसे लगता वह कोरोना से मर जाएगा. ठीक नहीं होगा. वह बेहद कमज़ोरी फील कर रहा था. अम्बा  को यूं दिन रात अपनी देखभाल करते देख मन ही मन उसने न जाने कितनी बार अपने आप से दोहराया, “इस बार बस मैं ठीक हो जाऊं, अम्बा  को बिल्कुल तंग नहीं करूंगा. उसे पूरा प्यार और मान दूंगा. अब उसपर बिलकुल नहीं चिल्लाऊंगा.” अम्बा को इस तरह समर्पित भाव से अपनी सेवा करते देख वह गुजरे दिनों में उसके प्रति अपने दुर्व्यवहार को लेकर घोर  पछतावे से भर उठा. साथ ही कोरोना से मौत के खौफ ने उसे बहुत हद तक  बदल दिया था.

उस दिन रात का एक  बज रहा था. निनाद की तबीयत अचानक बिगड़ गई थी.  उसके हाथ पैरों में बहुत दर्द हो रहा था. वह बार-बार दर्द से हाथ पैर पटक रहा था. अम्बा  उसके हाथ पैर दबा रही थी. अम्बा  के हाथ पैर दबाने से उसे बेहद आराम लगा था और भोर होते होते वह गहरी नींद में सो गया था. इतनी देर तक उसके हाथ पैर दबाते दबाते अम्बा  भी थकान से बेदम हो गई थी लेकिन मन में कहीं अबूझ सुकून का भाव था. वह कोरोना की वज़ह से  निनाद में आए परिवर्तन को भांप रही थी. निनाद अब  बेहद बदल गया था. उसकी आंखों में अपने लिए प्यार का समुंदर उमड़ते  देख वह मानो  भीतर तक भीग  उठती लेकिन दूसरे की क्षण पुराने दिनों की याद कर भयभीत हो उठती.

अगली सुबह अम्बा ने डाक्टर को बुलवाया. उन्होंने निनाद के लिए कुछ दवाइयाँ लिख दीं. उन दवाइयों  से निनाद  की तबीयत धीमे धीमे सुधरने लगी थी. दस  दिनों में वह बिस्तर से उठ बैठा था.

वह  दिन उन दोनों की जिंदगी का एक अहम दिन था जब दोनों अस्पताल में टेस्ट के बाद कोरोना नेगेटिव निकले थे. अभी उन्हें चौदह दिनों तक क्वारंटाइन में और रहना था. सो दोनों फिर से निनाद के घर चले गए.

घर पहुंचकर निनाद ने अम्बा से  कहा, “अम्बा,  में ताउम्र तुम्हारा शुक्रगुजार रहूंगा कि तुम मेरी सारी ज़्यादतियाँ  भुलाकर मुझे मौत के मुंह से वापस खींच लाई. मैं वादा करता हूं तुमसे, अब कभी पुरानी  गलतियां  नहीं दोहराऊंगा. कभी बेबात तुम पर नहीं चिल्लाऊंगा. आई एम रीयली वेरी सॉरी. मुझे माफ कर दो.’’

“निनाद, तुम्हारे माफ़ी मांगने से क्या रो रो कर, कुढ़ते झींकते तुम्हारे साथ बिताए तीन साल अनहुए हो जाएँगे? उन तीन सालों में तुमने मुझे जो दर्द दिया, तुम्हारे सॉरी कह देने से क्या उनकी भरपाई हो जाएगी? मैं कैसे मान लूँ कि तुम अब पुरानी बातें नहीं दोहराओगे? नहीं नहीं, हम अलग अलग ही ठीक हैं. अब मुझमें तुम्हारी फ़िज़ूल की कलह को झेलने की सहनशक्ति भी नहीं बची है.मैं अकेले बहुत सुकून से हूँ.“

उसकी बातें सुन निनाद ने उससे फिर से मिन्नतें की “अम्बा, मेरा यकीन करो, तुमसे अलग रह कर अब मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है कि मैंने तुम्हारे साथ बहुत अन्याय किया. बेवज़ह तुमसे झगड़ा करता रहा. प्लीज़ अम्बा, एक बार मुझे माफ़ करदो. वादा करता हूँ, तुम्हें कभी मुझसे शिकायत नहीं होगी. प्लीज़ अम्बा.’’

निनाद की ये बातें सुन अम्बा को अभी तक यकीन नहीं हो रहा था कि यह वही निनाद है जो कुछ महीनों पहले तक उससे बात बात पर लड़ाई मोल लेता था. बहाने बहाने से उसे सताता था. कुछ सोच कर उसने निनाद से कहा, “इस बार तो मैं तुम्हारी बात मान  लेती हूँ, लेकिन एक बात कान खोलकर सुन लो, अगर  अब तुमने फिर से बेबात मुझसे कभी भी कलह की, बेवज़ह मुझसे झगड़े तो मैं उसी वक़्त  तुम्हें छोड़ कर चली जाऊँगी और तुमसे तलाक लेकर रहूंगी. पढ़ी लिखी अपने पैरों पर खड़ी हूं, अकेले जिंदगी काटने का दम खम  रखती हूं. इतने दिनों से अकेली बड़े चैन से रह ही रही हूँ. अब मैं तुम्हें अपनी मानसिक शांति भंग करने की इज़ाजत  हर्गिज़ हर्गिज़  नहीं दूँगी. ना ही अपनी बेइज्ज़ती करवाऊंगी. तुम्हें अपनी गलती का एहसास हो गया, इसलिए इस बार तो मैंने तुम्हें माफ़ किया लेकिन याद रखना, अगली बार तुम्हें कतई माफ़ी नहीं मिलेगी.“

“नहीं, नहीं अम्बा, भरोसा रखो, अब मैं तुम्हें शिकायत का मौका हर्गिज़ हर्गिज़ नहीं दूंगा. मैं वास्तव में अपनी पुरानी ज़्यादतियों के लिए बहुत शर्मिंदा हूँ. अब हम एक नई जिंदगी की शुरुआत करेंगे. जिंदगी की यह दूसरी पारी तुम्हारे नाम, माय लव,” यह  कहते हुए निनाद ने अम्बा  को अपने सीने से लगा लिया था .

पति की बाहों में बंधी अम्बा  को लगा, मानो पूरी दुनिया उसकी मुट्ठी में थी. निनाद  के साथ साझा, सुखद  भविष्य के सतरंगे  सपने उसकी आंखों में झिलमिला उठे.उसे लगा, एक अर्से बाद उसके चारों ओर खुशियों के फ़ूल गमक महक उठे थे.

दूरियां – भाग 2 : क्या काम्या और हिरेन के रिश्ते को समझ पाया नील

वैसे तो मु  झे उस के छूने से, उस के करीब आने से एक नैसर्गिक प्रसन्नता और तृप्ति मिलती थी, लेकिन उन दिनों औफिस के माहौल से बहुत परेशान थी. घर आते ही मन करता था नील के कंधे पर सिर रख कर औफिस की भड़ास निकाल कर थोड़ा रोने का. लेकिन उसे आधे घंटे में ट्यूशन पढ़ाने निकलना होता था. मेरे आते ही वह मु  झे बांहों में खींच कर चूमने लगता.

उस दिन कुछ तबीयत ठीक नहीं थी और औफिस में भी कुछ अधिक ही कहासुनी हो गई. भरी बैठी थी. अत: उस के करीब आते ही सारा आक्रोश उस पर निकल गया. धक्का देते हुए बोली, ‘‘इस तन के अलावा और कुछ नहीं सू  झता क्या?’’

वह ठिठक गया. फिर एकदम पलट कर बाहर चला गया.

रात को 12 बजे तक आता था और मेरी नींद न खुले, इसलिए ड्राइंगरूम में ही सो जाता

था. उस रात भी उस ने ऐसा ही किया. सुबह जब मेरी आंख खुली वह तैयार हो कर औफिस जा रहा था. बिना कुछ खाए और बोले वह चला गया. शाम को मेरे आने से 1 घंटा पहले घर आ जाता था और मेरे आते ही हम आधा घंटा अपनी तनमन की सब बातें करते थे. इस के अलावा हमारे पास एकदूसरे के लिए समय नहीं होता था. लेकिन अब मेरे आने से पहले वह निकल जाता था. रोना तो बहुत आता था, पर मैं सही थी. उस के पास मु  झ से बात करने के लिए 2 पल भी नहीं होते थे.

वह खड़ा हो गया. मेरे कंधों को जोर से पकड़ चीखते हुए बोला, ‘‘तुम ने उस दिन मेरे प्रेम को गाली दी, जीवन में अगर अपने से अधिक किसी को प्यार किया तो वह तुम हो. अगर केवल तुम्हारे तन का भूखा होता तो कालेज में 3 साल तक बिना हाथ लगाए नहीं रहता. मन तो तब बहुत मचलता था, लेकिन वादा किया था कि तुम्हारी इज्जत से कभी खिलवाड़ नहीं करूंगा. वही तो आधा घंटा मिलता था करीब आने का. सारा दिन बीत जाता तुम्हारे बारे में सोचतेसोचते… तुम्हारे नजदीक आ कर पूर्णता का एहसास होता, स्फूर्ति आ जाती, दुनिया का सामना करने की ताकत मिल जाती. मेरे प्रेम की अभिव्यक्ति थी वह, तुम में समा कर इतने गरीब हो जाने का एहसास था कि लगता हम एक हैं.’’

उस ने मेरे कंधे छोड़ दिए, आवाज थरथरा रही थी. आंखों में दर्र्द था और वह लड़खड़ाते हुए बाथरूम में चला गया. मेरा मन भारी हो गया. उस की नजरों से कभी सोचने की कोशिश नहीं की. दोनों एकदूसरे का साथ चाहते थे, लेकिन अलगअलग तरीके से. जीवन की भागदौड़ में समय इतना कम जरूरतें इतनी अधिक सब बिखर गया. बात केवल इन गलतफहमियों के कारण बिगड़ी होती तो शायद संभल जाती, लेकिन हमारे रिश्ते में धोखा और   झूठ भी शामिल हो गए थे. कमरे में जा कर लेट गई और रोतेरोते कब सो गई पता नहीं चला.

सुबह फिर बाहर के दरवाजे के खुलने की आवाज से आंख खुली. ताला कुछ सख्त लगता है. कमरे से बाहर आई तो नील खानेपीने का सामान ले कर आया था. चेहरे पर वही उस की चिरपरिचित मुसकान. कितने भी गुस्से में हो बहुत जल्दी सामान्य हो जाता है, मैं बातों को मन में रख कर अपना भी दिमाग खराब कर लेती हूं और दूसरों से भी चिढ़ कर बात करने लगती हूं.

‘‘नीलू, आज गरमगरम कौफी पीते हैं… नीचे कुछ खानेपीने की दुकानें खुल गई हैं,’’ कह मैं जल्दी से मंजन कर आई. फिर हम कल की तरह बालकनी में फर्श पर बैठ कर नाश्ता करने लगे.

नील आसमान की तरफ देखते हुए बोला, ‘‘यहां से

सुबहशाम आसमान की छटा कितनी निराली दिखती है. अद्भुत नजारा है. अगर हम साथ रहते तो कितना अच्छा लगता. रोज यहां बैठ कर बातें करते.’’

कह तो सही रहा था, लेकिन जो नहीं हो सकता मैं उस के बारे में बात नहीं करना चाहती. नाश्ते में एक पेस्ट्री भी रखी थी. हम अकसर छोटी से छोटी खुशी सैलिब्रेट करने के लिए मीठे में एक पेस्ट्री ले आते थे, दोनों आधीआधी खा लेते थे.

‘‘यह पेस्ट्री किस खुशी में?’’

‘‘याद है आज ही के दिन हमें मिले 4 महीने हुए थे और तुम ने मेरे साथ डेट पर जाना स्वीकार कर लिया था.’’

‘‘तुम भी कमाल करते हो न जाने कैसी छोटीछोटी बातें याद रख लेते हो. वह डेटवेट नहीं थी. कालेज कैंटीन में बैठ कर कौफी पी थी बस.’’

‘‘केवल तुम से संबंधित बातें ही याद रख पाता हूं. कैंटीन में उस दिन साथ बैठ कर कौफी पीना एक महत्त्वपूर्ण कदम था. जब तुम पहले दिन कालेज आई थी तो हिरेन और मेरी तुम पर एकसाथ नजर पड़ी थी. दोनों के मुंह से निकला था कि वाह, कितनी खूबसूरत लड़की है. हम दोनों के दिल पर तुम ने एकसाथ दस्तक दी थी. हम ने निश्चय किया कि हम दोनों तुम्हें लाइन मारेंगे और जिस की तरफ तुम्हारा   झुकाव होगा, दूसरा रास्ते से हट जाएगा. उस दिन कैंटीन में कौफी पीते हुए यह खामोश ऐलान था कि तुम मेरी गर्लफ्रैंड हो.’’

मु  झे ये सब नहीं पता था, हिरेन ने शुरू में मु  झे प्रभावित करने की कोशिश तो की थी. नील गुलाब देता तो वह गुलदस्ता लाता. वह पैसे वाले घर से था, इसलिए महंगे तोहफे देता था, लेकिन मु  झे नील पहली नजर में ही भा गया था. उस के हंसमुख व्यवहार और केयरिंग ऐटिट्यूड के आगे सब फीका था. धीरेधीरे हम दोनों सम  झ गए थे कि हमारा एकदूसरे के बिना गुजारा नहीं और हमारे परिवार को हमारा साथ गवारा नहीं.

नील के ब्राह्मण परिवार को मेरे खानपान से दिक्कत थी तो मेरे मातापिता को नील की आर्थिक स्थिति खल रही थी. वैसे मेरे परिवार के पास भी कुछ खास नहीं था, लेकिन पिताजी को लगता अपनी बहनों की तरह मैं भी अपनी खूबसूरती के बल पर पैसे वाले घर में स्थान बना सकती हूं.

स्नातक करते ही हम दोनों ने शादी की और जो नौकरी मिली पकड़ ली. फिर किराए का घर ढूंढ़ना शुरू किया. क्व10-12 हजार से कम का कोई अच्छा मकान नहीं मिल रहा था. बहुत धक्के खा कर 2 कमरों का प्लैट क्व7 हजार किराए पर मिला, वह भी बस कामचलाऊ था. तब हम ने निर्णय लिया आगे सोचसम  झ कर जीवन की राह पर चलेंगे. पहले कुछ पैसे जमा करेंगे. अपना स्वयं का घर नहीं बन जाता तब तक परिवार नहीं बढ़ाएंगे.

शुरू की हमारी जिंदगी बड़ी खुशहाल रही, दोनों 6 बजे तक घर आ जाते. फिर बहुत बातें करते और सपने देखते. किराया देने के बाद अधिक नहीं बचता था, लेकिन एकदूसरे के साथ मस्त थे. फिर नील को लगा कुछ और पैसे कमाने के लिए ट्यूशन पकड़ लेनी चाहिए और मु  झे लगा पदोन्नति और अच्छे वेतन के लिए एम. कौम. कर लेना चाहिए. बस हम दोनों दौड़ में शामिल हो गए, एक बेहतरीन भविष्य की कामना में. इतने थके रहने लगे कि एकदूसरे के लिए समय नहीं होता. बस   झुं  झलाहट रहने लगी.

इस बीच नील का मन सीए की पढ़ाई करने का भी करता बीचबीच में. वह बहुत होशियार है. मु  झे कई बार लगता इतनी जल्दी शादी कर के कहीं पछता तो नहीं रहा. वह आगे पढ़ कर बहुत कुछ कर सकता था.

इस बीच नील के पिताजी का देहांत हुआ तो उस के बड़े भाई ने घर बेचने का निर्णय ले लिया. घर खस्ता हालत में था, फिर भाई को पैसे चाहिए थे फ्लैट खरीदने के लिए. वह दूसरे शहर में रहता था. नील की माताजी मेरे कारण हमारे साथ नहीं रहना चाहती थीं. मकान बेच कर जो रकम मिली उस के

3 हिस्से हुए. 2 हिस्से माताजी व भाई साहब के साथ चले गए. अपने हिस्से से हम ने भी फ्लैट बुक करा दिया. हमारी मुसीबतें और बढ़ गईं. जहां रहते थे उस का किराया, फ्लैट की किश्तें, फिर जिंदा रहने के लिए रोटी और कपड़ा भी जरूरी था. अब हमारे बीच खीज भी रहने लगी. ऐसा नहीं था हम हमेशा एकदूसरे से सड़े रहते थे. जब किसी का जन्मदिन या छुट्टी होती तो प्रेम भी खूब लुटाते, लेकिन अकसर एकदूसरे से बचते या चिढ़ कर बात करते.

मजबूरन मु  झे नौकरी भी छोड़नी पड़ी. वहां का माहौल बरदाश्त के बाहर हो गया था. नील को यह बिलकुल अच्छा नहीं लगा. लेकिन मेरी परेशानी सम  झते हुए कुछ बोला नहीं. उन्हीं दिनों हिरेन से फिर मुलाकात हुई. वह सीए कर चुका था और अपने पिता की फर्म में काम करता था. परेशान देख जब उस ने कारण पूछा तो पुराने दोस्त के सामने बाढ़ के पानी की तरह सारा उदगार तीव्रता से उमड़ पड़ा. उस ने तुरंत अपनी फर्म में बहुत अच्छे वेतन के साथ नौकरी का प्रस्ताव दे दिया और मैं ने सहर्ष स्वीकार भी कर लिया. नील को यह बात भी अच्छी नहीं लगी, लेकिन इस बार वह चुप नहीं रहा.   झगड़ा किया और बहुत कुछ बोल गया.

उस समय सम  झ नहीं सकी थी नील के आक्रोश का कारण, लेकिन आज सम  झ गई. उस के स्वाभिमान को ठेस पहुंची थी. अब हमारे बीच बोलचाल खत्म हो गई थी. मैं कुछ भी बोलने से डरती कि वह बखेड़ा न खड़ा कर दे. वह सामने पड़ते ही मुंह फेर कर इधरउधर हो जाता.

हिरेन के पास दिल्ली के बाहर कई दूसरे शहरों का भी काम था. वह अकसर बाहर जाता रहता था. मु  झे नौकरी करते हुए अधिक समय नहीं हुआ था, फिर भी मेरा नाम लखनऊ जाने वाली टीम में शामिल था.

खुशियों के फ़ूल -भाग 2 : किस बात से डर गए थे निनाद और अम्बा

“मिस्टर निनाद, आप और आपकी वाइफ कोरोना पोजिटिव आए हैं, लेकिन आपके सिम्टम्स बहुत माइल्ड हैं. इसलिए आप दोनों को अपने घर पर ही सेल्फ क्वॉरेंटाइन में रहना होगा. यह रही

निनाद  बात बात पर उसे अपने से कम हैसियत के परिवार का तायना देता.गाहे बगाहे  वह मां से मिलने जाती तो उस से लड़ता. मामूली बातों पर उससे उलझ पड़ता. बात बात पर उसे झिड़कता.

अम्बा  एक बेहद सुलझी हुई, समझदार और मैच्योर युवती  थी. वह भरसक निनाद को अपनी ओर से कोई मौका नहीं देती कि वह क्रुद्ध  हो लेकिन दुष्ट निनाद  किसी न किसी बात पर उससे रार  कर ही बैठता.

निनाद अम्बा  के विवाह को तीन  वर्ष बीत  चले.पति के खुराफ़ाती स्वभाव से त्रस्त अम्बा  कभी-कभी सोचती, पति से अलग होकर उसे इस यातना से मुक्ति मिल जाएगी.जिस दिन गले तक निनाद के दुर्व्यवहार से भर जाती, मां से अपनी व्यथा कथा साझा  करती.उससे अलग होने की मंशा जताती. लेकिन पुरातनपंथी मां हर बार उसे धीरज रखने की सलाह देकर चुप करा कर वापस अपने घर भेज देती.

एक  दिन लेकिन हद ही हो गई. उस दिन अम्बा  मां के घर से लौटी ही थी, कि रात के आठ  बजे तक टेबल पर डिनर सर्व ना होने की फ़िजूल सी बात पर निनाद उस पर गुस्से से फट पड़ा और उस दिन निनाद का बेवजह गुस्से से चीखना चिल्लाना सुन अम्बा  का धैर्य जवाब दे गया. वह उल्टे पैरों वापस मां के घर चली आई. बहुत सोच विचार कर मां के यहां एक माह  रहने के बाद उसने निनाद को फोन करके कहा “निनाद, अब मैं यहां माँ के साथ ही रहूँगी. तुम्हारे घर नहीं लौटूंगी. मुझे तुमसे तलाक चाहिए.’’

अम्बा की यह बात सुनकर निनाद अतीव क्रोध से बिफर उठा. अम्बा की तलाक की मांग उसे अपने पौरुष पर प्रहार लगी. सो गुस्से से भड़कते हुए वह चिल्लाया, “शौक से रहो माँ के साथ.मैं भी तुम्हारे बिना मरा नहीं जा रहा. जब चाहोगी तलाक मिल जाएगा.’’

मन ही मन समझता था कि वह पत्नी के साथ ज्यादती कर रहा है लेकिन अपने पुरुषोचित, अड़ियल  और अहंवादी  स्वाभाव से मजबूर था.

अम्बा तलाक की कार्यवाही शुरू करने के लिए एक अच्छे वकील की तलाश में जुट गई थी. अम्बा को माँ के यहां आए तीन माह हो चले थे.तभी अम्बा को एक अच्छी महिला वकील मिल गई थी और वह उससे मिलने ही वाली थी कि तभी  उन्हीं दिनों लंदन में एक कॉन्फ्रेंस में दोनों को जाना पड़ा. कॉन्फ्रेंस अटेंड कर एक ही फ़्लाइट से वे दोनों अपने देश लौटे ही थे कि लंदन में कोरोना  के प्रकोप के चलते  अपने शहर के एयरपोर्ट पर निनाद को हल्का बुखार निकला. फिर हौस्पिटल में दोनों का कोरोना का टेस्ट हुआ और उसमें  दोनों कोरोना पॉजिटिव निकले

कि तभी निनाद की  पुकार से उसकी तंद्रा टूटी और वह वर्तमान में वापस आई और दौड़ी-दौड़ी निनाद के पास गई.

निनाद आंखें बंद कर लेटा हुआ था.”अम्बा,  मेरे पास बैठो.  मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा.”

” कैसा लग रहा है निनाद?”

”  बहुत कमजोरी लग रही है और घबराहट हो रही है.”

“अरे घबराने की क्या बात है?  चलो मैं तुम्हारे लिए गर्मागर्म टमेटो सूप बनाकर लाती हूं.सूप पीकर तुम बेहतर फ़ील करोगे,” यह कहकर अम्बा  रसोई में जाकर दस  मिनट में सूप बनाकर ले आई.

” अम्बा,  हम दोनों ठीक तो हो जाएंगे ना?”

” हां हां बिल्कुल ठीक हो जाएंगे. डाक्टर ने कहा था न, हम दोनों के ही सिमटम्स बहुत माइल्ड हैं. डरने की कोई बात नहीं है. तुम सोने की कोशिश करो. सो लोगे तो बेहतर फील करोगे.”

” तुम भी जा कर आराम करो. तुम्हें भी तो थकान हो रही होगी.”

” नहीं नहीं, मेरा इंफेक्शन  शायद  कुछ ज्यादा ही माइल्ड है. मुझे कुछ गड़बड़ फील नहीं हो रहा. तुम सो जाओ.”

तभी निनाद ने अपना हाथ बढ़ाकर अम्बा का हाथ थाम उसे जकड़ लिया और उसे खींच कर अपने पास बिठाते हुए उससे बेहद मीठे स्वरों में बोला, “मुझसे नाराज़ हो? मैं अपनी पिछली गलतियों को लेकर बेहद शर्मिंदा हूं. मेरे पास बैठो. तुम मुझसे दूर चली जाती हो तो मुझे लगता है, मेरी जिंदगी मुझसे दूर चली गई. वापिस आजाओ अम्बा मेरी ज़िंदगी में. तुम्हारे बिना मैं बहुत अकेला हो गया हूँ.“ यह कह कर उसने उसकी  हथेली को चूम उसके हाथों को अपनी गिरफ़्त में जकड़ लिया.”

महीनों बाद पति के स्नेहिल स्पर्श और स्वरों  से अम्बा  एक अबूझ  मृदु ऐहसास  से भर उठी लेकिन दूसरे ही क्षण वह असमंजस से भर उठी. तीन वर्षों तक उसका दुर्व्यव्हार सह कर क्या अब उसे एक बार फिर उसके करीब आना चाहिए?

पति के हाथों को जकड़े जकड़े अम्बा  सोच रही थी, “काश, तुम पहले भी ऐसे ही रहते तो जिंदगी कितनी खुशनुमा होती.”

अगली सुबह निनाद  जब उठा तो उसके सर में तेज दर्द था. अम्बा  ने निनाद के फैमिली डॉक्टर को निनाद के चेकअप के लिए बुलाया. वह आए और निनाद  की हालत देख अम्बा  से बोले, “चिंता की कोई बात नहीं है. अभी भी इनके सिम्टम्स माइल्ड ही  हैं. हॉस्पिटलाइजेशन की जरूरत नहीं है. बस इन पर पूरे वक्त वॉच रखिए और तबीयत बिगड़े तो मुझे इन्फॉर्म करिए. आपको भी कोरोना का इंफेक्शन है. बेहतर होगा यदि आप एक नर्स रख लें.”

“नहीं-नहीं डॉक्टर, मैं बिल्कुल ठीक हूं.  ना मुझे कोई कमजोरी लग रही न ही कहीं दर्द है. आप निश्चिंत रहिए मैं इन पर पूरे वक्त वॉच रखूंगी.”

डाक्टर के जाने के बाद निनाद  ने अम्बा  से कहा, “तुम  इतना लोड लोगी तो तुम भी बीमार पड़ जाओगी. प्लीज कोई नर्स रख लो.”

“हां, इस बारे में सोचती हूं. तुम अभी सो जाओ.’’

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