पहला भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें- लाजवंती: भाग 1
लेखक- रतनलाल शर्मा ‘मेनारिया’
दीपक के आते ही लाजवंती ने थाली में खाना रख दिया. इस के बाद वह सोने के लिए जाने लगी कि तभी दीपक ने लाजवंती का हाथ पकड़ कर कहा, ‘लाजवंती, रुको. मुझे तुम से एक बात कहनी है.’
लाजवंती सम झ गई कि आज इस का नया नाटक है, फिर भी उस ने पूछा, ‘क्या बात है?’
दीपक ने कहा, ‘तुम मेरे पास तो आओ.’
लाजवंती उस के पास आ कर बोली, ‘मु झे बहुत नींद आ रही है. क्या बात करनी है, जल्दी कहो.’
दीपक ने लाजवंती का हाथ पकड़ कर बड़े प्यार से कहा, ‘मैं जो तुम से मांगना चाहता हूं, वह मु झे दोगी क्या?’
लाजवंती ने कहा, ‘क्या चाहिए आप को? मेरे पास देने लायक ऐसा कुछ भी नहीं है.’
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दीपक ने लाजवंती को सम झाते हुए कहा, ‘मैं आज 10,000 रुपए जुए में हार गया हूं. वे रुपए मैं दोबारा जीतना चाहता हूं इसलिए मु झे तुम्हारी खास चीज की जरूरत है.’
लाजवंती ने कहा, ‘इस में मैं क्या कर सकती हूं? आप ने तो जुए व शराब में सबकुछ बेच दिया है. अब क्या बचा है? मु झे बेचना चाहते हो क्या?’
दीपक ने बड़े प्यार से कहा, ‘तुम भी कैसी बातें करती हो? मैं तुम्हें कैसे बेच सकता हूं, तुम तो मेरी धर्मपत्नी हो. मु झे तो तुम्हारा मंगलसूत्र चाहिए.’
लाजवंती ने गुस्सा जताते हुए कहा, ‘आप को कुछ शर्म आती है कि नहीं. यह मंगलसूत्र सुहाग की निशानी है. कुछ दिन पहले आप ने मेरे सोने के कंगन बेच दिए, मैं ने कुछ नहीं कहा, अब मंगलसूत्र बेच रहे हो, कुछ तो शर्म करो, आप कुछ भी कर लो, मैं मंगलसूत्र नहीं दूंगी.’
जब लाजवंती ने मंगलसूत्र देने से साफ मना कर दिया, तो दीपक को बहुत गुस्सा आया. वह बोला, ‘मैं तेरी फालतू बकवास नहीं सुनना चाहता हूं, इस समय मु झे केवल तुम्हारा मंगलसूत्र चाहिए. मु झे मंगलसूत्र दे दे.’
लाजवंती ने कहा, ‘मैं नहीं दूंगी मंगलसूत्र, यह मेरी आखिरी निशानी बची है.’
दीपक ने लाजवंती का हाथ पकड़ कर अपने पास खींचा और जलती हुई सिगरेट से उस के हाथ को दाग दिया. लाजवंती को बहुत दर्द हुआ.
लाजवंती ने दर्द से कराहते हुए कहा, ‘आप चाहे मु झे मार डालो, लेकिन मैं मंगलसूत्र नहीं दूंगी.’
इस के बाद दीपक ने लाजवंती का हाथ पकड़ कर उस के बदन को जलती हुई सिगरेट से जगहजगह दाग दिया. लाजवंती जोरजोर से चिल्लाने लगी.
लाजवंती के चिल्लाने से महल्ले वाले वहां इकट्ठा हो गए तो दीपक उन सब के सामने लाजवंती पर बदचलन होने का आरोप लगाने लगा.
लाजवंती ने रोते हुए कहा, ‘आप को झूठ बोलते हुए शर्म नहीं आती. मेरे बदन को आप ने छलनी कर दिया. मु झे जलती हुई सिगरेट से दागा. मेरा कुसूर इतना सा था कि मैं ने अपना मंगलसूत्र आप को नहीं दिया और मैं यह मंगलसूत्र आप को नहीं दूंगी क्योंकि यह मेरी आखिरी निशानी है.’
लाजवंती की ऐसी हालत देख कर महल्ले वालों की आंखों में आंसू आ गए. सभी दीपक को भलाबुरा कहने लगे. दीपक ने उन्हें गालियां देते हुए दरवाजा बंद कर लिया और दोबारा लाजवंती को पीटने लगा.
लाजवंती ने अपने पापा को फोन लगाया, तो दीपक ने उस के हाथ से मोबाइल छीन कर फर्श पर फेंक दिया जिस से मोबाइल फोन टूट गया.
दीपक ने लाजवंती को फिर बुरी तरह से मारा, जिस से वह बेहोश हो गई.
दीपक उस के गले से मंगलसूत्र खींच कर रात को ही घर से गायब हो गया.
जब अचानक रात को लाजवंती के बच्चे की नींद खुली तो मां को अपने पास न पा कर वह रोने लगा और बरामदे में चला आया और उस के पास बैठ गया. जब लाजवंती को होश आया तो उस ने अपने बेटे को गले से लगा लिया.
लाजवंती ने पाया कि उस के गले से मंगलसूत्र गायब था. वह सम झ गई थी कि दीपक ले गया है. उस ने घड़ी की तरफ देखा. सुबह के 5 बज चुके थे.
लाजवंती ने कुछ सोचते हुए अपने बेटे को साथ लिया और घर से निकल गई. पड़ोस की एक औरत से मोबाइल मांग कर अपने पापा को फोन लगा दिया.
पापा से बात कर के लाजो सीधी रेलवे स्टेशन की तरफ भागी. वह प्लेटफार्म के फ्लाईओवर की सीढि़यों पर अपने पापा का इंतजार करने लगी.
लाजवंती अपने खयालों में खोई थी कि उस के बेटे ने देखा कि कई छोटेछोटे बच्चे हाथ में कटोरा ले कर भीख मांग रहे थे. वह भी अपने छोटेछोटे हाथ आगे कर के भीख मांगने लगा.
इधर जब राधेश्याम की नींद खुली, तो वह उदयपुर पहुंच गया था.
उदयपुर स्टेशन पर उतर कर राधेश्याम जाने लगा, तभी अचानक कोई पीछे से उस की धोती पकड़ कर खींचने लगा.
राधेश्याम ने पीछे मुड़ कर देखा कि एक नन्हा बच्चा उन की धोती पकड़ कर हाथ आगे कर के भीख मांग रहा था.
राधेश्याम ने उस बच्चे को दुत्कारते हुए धक्का दिया, तो बच्चा दूर जा गिरा और रोने लगा.
बच्चे के रोने की आवाज सुन कर लाजवंती वहां आई. वह अपने बच्चे के पास जा कर उसे उठाने लगी.
राधेश्याम की नजर बेटी लाजो पर पड़ी. वह बोला, ‘‘लाजो, तुम यहां… ऐसी हालत में… तुम्हारी यह हालत किस ने बनाई?’’
लाजवंती ने देखा कि इस अनजान शहर में कौन लाजो कह कर पुकार रहा है. जब उस ने नजर उठा कर देखा तो सामने पापा खड़े हैं. वह जल्दी से दौड़ते हुए अपने पापा के गले लग कर रोने लगी.
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राधेश्याम ने हिम्मत से काम लेते हुए अपने आंसुओं पर काबू पाते हुए कहा, ‘‘बेटी लाजो, आंसू मत बहा. मैं तु झे लेने ही आया हूं. चल, घर चलते हैं.’’
उस समय प्लेफार्म पर दूसरे मुसाफिरों ने पिता व बेटी को इस तरह आंसू बहाते हुए अनमोल मिलन व अनोखा प्यार देखा तो सभी भावुक हो गए.
राधेश्याम अपनी बेटी व नाती को ले कर गांव आ गया.
लाजवंती के साथ दीपक ने जो जोरजुल्म किए थे, लाजवंती ने अपनी मां व पिता को साफसाफ बता दिया.
लाजवंती ने कुछ महीनों बाद ही दीपक से तलाक ले लिया और नई जिंदगी की शुरुआत की.