लेखक- रमेश चंद्र सिंह
पिछले अंकों में आप ने पढ़ा था : रजनी की बड़ी बहन संध्या को ब्रेन हैमरेज हो गया था. एक अनजान लड़के हितेश की मदद से रजनी अस्पताल पहुंची थी. वहां नीलेश उस की बहन की देखभाल कर रहा था, जो हितेश का बौस भी था. नीतेश का संध्या के साथ नाजायज संबंध था. रजनी नीतेश की पत्नी से मिलना चाहती थी, पर नीलेश ने टाल दिया था. अब पढि़ए आगे…
अब यह पक्का हो गया था कि नीलेश जानबूझ कर रजनी को अपने घर पर नहीं ले जाना चाहता था. अब किसी से कुछ पूछने का कोई मतलब नहीं था. रजनी इतनी भी बेवकूफ नहीं थी, जो यह न समझती कि उस की दीदी का नीलेश से नाजायज रिश्ता था. वह तो बस इस बात की तसदीक करना चाहती थी, जिस की अब जरूरत नहीं थी.
लेकिन रजनी के मन में एक विचार जरूर आ रहा था कि नीलेश जैसे लंपट के साथ दीदी का आगे रिश्ता बना कर रखना उन की जिंदगी को बरबाद कर सकता था और ज्यों ही इस की भनक नीलेश की पत्नी को लगेगी, उस की पारिवारिक जिंदगी में भी संग्राम छिड़ जाएगा.
रजनी अपनी दीदी से सीधे तो कुछ नहीं कह सकती थी, क्योंकि वे उस से उम्र में काफी बड़ी थीं और उस ने दीदी में बहन ही नहीं, मां का भी रूप देखा था. फिर वे खुद लैक्चरर थीं, इसलिए समाज को उन से बहुत उम्मीदें थीं.
अस्पताल लौट कर रजनी ने दीदी को उन की चैकबुक और एटीएम कार्ड सौंप दिया, लेकिन संध्या ने उसे इन्हें अपने पास ही रखने के लिए कहा.
रजनी ने दीदी के बैडरूम में पाए गए सामान के बारे में कुछ नहीं बताया. सोचा कि दीदी जब अपने फ्लैट में लौटेंगी, तब उन का रवैया देख कर ही वे आगे कुछ बोलेंगी.
डाक्टर ने संध्या को अस्पताल में एक हफ्ते और रहने के लिए कहा, तो रजनी ने अब वहीं दीदी के साथ रहने का फैसला किया. फिर सबकुछ सामान्य चलने लगा.
एक दिन शाम को रजनी एटीएम से कुछ पैसे निकालने अस्पताल से बाहर जा रही थी कि तभी अचानक उस की निगाहें हितेश से टकराईं. वह उसे देख कर मुसकराया.
‘‘तुम अब तक यहीं हो? मैं ने सोचा कि तुम्हारी बहन अब अस्पताल से रिलीज हो गई होंगी,’’ हितेश ने कहा.
‘‘तुम इधर कैसे? क्या तुम्हारा आसपास ही घर है?’’ रजनी ने पूछा.
‘‘हां, यहां से बस एक किलोमीटर की दूरी पर है. मेरे पिताजी यहीं विदेश विभाग में पोस्टेड थे. अब रिटायर हो गए हैं. हमारा एक छोटा सा घर है. क्या तुम मेरे यहां चाय पीने चलोगी? मेरी बहन भी एक कालेज से एमए कर रही है,’’ हितेश के चेहरे पर अब भी मुसकराहट बिखरी हुई थी.
‘‘घर में कौनकौन हैं?’’
‘‘पिताजी, मां, बहन और मैं.’’
‘‘अभी मुझे इस हफ्ते अस्पताल में रहना है, फिर कभी चलूंगी. अभी तुम किसी एटीएम के बारे में बता दो. पैसे निकलवाने के बाद दीदी के लिए दवाएं लेनी हैं.’’
‘‘मेरे घर के पास भी एटीएम है. वहीं चलते हैं. पैसा भी निकल जाएगा और चाय भी पी लेंगे,’’ हितेश ने कहते हुए रजनी को अपनी मोटरसाइकिल पर बैठने के लिए इशारा किया.
रजनी बिना कुछ बोले ही उस की मोटरसाइकिल की पिछली सीट पर बैठ गई. अब हितेश में ऐसा क्या आकर्षण था कि वह उसे मना नहीं कर पाई? शायद इस अनजान शहर में वह लगातार अस्पताल में रहने के चलते बोर हो गई थी, इसलिए उस ने सोचा कि हितेश के परिवार से मिल कर उस का मन हलका हो जाएगा.
हितेश ने जब रजनी को एटीएम के पास उतारा, तो रजनी को याद आया कि उस ने तो दीदी को शाम वाली दवा ही नहीं दी है. वह बोली, ‘‘अभी मैं तुम्हारे घर नहीं जा सकूंगी, लेकिन वादा करती हूं कि कल दीदी को खाना खिला कर और दवा दे कर जरूर चलूंगी.’’
‘‘लेकिन उस समय तो मैं औफिस में रहूंगा,’’ हितेश निराश हो कर बोला.
‘‘अच्छा, दीदी से बात कर के चलती हूं,’’ कह कर रजनी दीदी को फोन मिलाने लगी.
संध्या बोली, ‘‘अभी के लिए दवा है. रात में जरूरत पड़ेगी. तुम किस के यहां जा रही हो? देखो, यह दिल्ली है. अनजान जगह पर मत जाना.’’
‘‘आप चिंता मत करो दीदी. मेरी एक पुरानी दोस्त मिल गई है, उस से मिल कर तुरंत लौटूंगी. उस का अस्तपाल के पास ही घर है. वह अपने मातापिता के साथ रहती है.’’
रजनी को झूठ बोलते देख कर हितेश ने उसे टोका, ‘‘रजनी, अपनी दीदी से झूठ मत बोलो. इस से तुम कभी भी धोखा खा सकती हो. सच तो यह है
कि तुम मेरे बारे में भी ठीक से नहीं जानती हो.’’
‘‘तुम ठीक कहते हो हितेश. किसी के बारे में इतनी जल्दी अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल है. मैं दीदी को तुम्हारे बारे में सबकुछ बता कर ही अब तुम्हारे घर चलूंगी.’’
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हितेश ने फिर रजनी से अपने घर चलने के लिए नहीं कहा, पर उसे छोड़ने अस्पताल तक जरूर आया.
हितेश ने कहा, ‘‘आज मैं तुम्हारी दीदी से मिले बिना नहीं जाऊंगा.’’
रजनी ने कहा, ‘‘चलो, तुम्हारा परिचय मैं उन से खुद करवाऊंगी.’’
जब संध्या ने हितेश को रजनी के साथ देखा, तो उस ने पूछा, ‘‘यह कौन है रजनी?’’
रजनी बोली, ‘‘दीदी, यह हितेश है. उस दिन मैं अस्पताल आ रही थी, तब आटोरिकशा वाले ने मुझे अकेली और अनजान समझ कर किराए से दोगुना भाड़ा मांगा था. जब मैं ने इस बात का विरोध किया, तो उस ने जानबूझ कर मुझे एक सुनसान रास्ते पर छोड़ दिया.
‘‘तब मैं ने इस से ही लिफ्ट ली थी. यह भी नीलेश के ही औफिस में काम करता है. आज अचानक रास्ते में मिल गया. उस दिन भी आप से मिलने आया था, लेकिन नीलेश ने बाहर से ही लौटा दिया था.
‘‘हितेश बहुत जिद कर रहा है. कल मैं इस के मातापिता से मिलने जा सकती हूं? इस की एक बहन भी है. उस के साथ मेरा मन भी लग जाएगा.’’
‘‘लेकिन, तुम तो अपनी किसी पुरानी सहेली की बात कर रही थी?’’ संध्या ने कहा, तो रजनी हंसी, ‘‘मैं हितेश को ही अपनी पुरानी सहेली बता रही
थी दीदी.’’
आज रजनी को इतनी खुश देख कर संध्या भी बहुत खुश थी. बहुत दिनों के बाद ऐसा माहौल बना था.
आज किसी काम में बिजी हो जाने के चलते नीलेश अस्पताल नहीं आया था, इसलिए भी हितेश रिलैक्स था. बौस के आगे वह इतना फ्री महसूस नहीं करता.
‘‘अच्छा, हितेश के कल औफिस से लौटने के बाद चली जाना,’’ कह कर संध्या ने माहौल को और खुशनुमा बना दिया.
दूसरे दिन हितेश औफिस से सीधे अस्पताल आया. अभी तक नीलेश नहीं आया था. जब से संध्या को होश आया था और रजनी यहां आई थी, वह अपने घर से फ्रैश हो कर आता था.
रजनी हितेश के घर गई और उस की मां से मिली. उस के पिताजी किसी काम से बाजार गए थे. हितेश की बहन रेखा कोई पत्रिका पढ़ रही थी.
हितेश के साथ रजनी को देख कर रेखा ने मुसकराते हुए उस का स्वागत किया और उसे ड्राइंगरूम में ले जाते हुए बोली, ‘‘आओ, तुम्हीं रजनी हो न… तुम्हारे बारे में भैया पहले ही बता चुका है. तुम्हारी दीदी अब कैसी हैं?’’
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‘‘जी, ठीक हैं. अभी डाक्टर उन्हें घर ले जाने की इजाजत नहीं दे रहे हैं. मैं तुम्हारे भैया की शुक्रगुजार हूं. उस ने मुझे उस सुनसान रास्ते से अस्पताल न पहुंचाया होता, तो मैं काफी परेशान हो जाती.’’
‘‘पता नहीं उस दिन की एक छोटी सी मुलाकात में ही तुम ने भैया पर कौन सा जादू कर दिया कि उस दिन के बाद से वह हर वक्त तुम्हारा ही नाम लेता है.’’
‘‘कुछ चायनाश्ते का भी इंतजाम करोगी या बातों की ही मिठाई खिलाती रहोगी,’’ हितेश ने कहा, तो रेखा उस के लिए चायनाश्ते का इंतजाम करने रसोईघर में चली गई.
हितेश रजनी के पास मां को बैठा कर कपड़े बदलने चला गया.
हितेश की मां ने सोफे पर बैठते हुए पूछा, ‘‘तुम लोग कहां के रहने वाले हो बेटी?’’
‘‘कानपुर के मांजी.’’
‘‘तुम्हारे पिताजी क्या करते?हैं?’’
‘‘अब वे नहीं हैं.’’
‘‘और मां?’’
‘‘अब वे भी नहीं रहीं,’’ रजनी ने उदास हो कर कहा.
‘‘सौरी बेटी, मैं ने तुम्हारे दिल को दुखाया,’’ मांजी ने अफसोस जताते हुए पूछा, ‘‘अब तुम क्या करती हो?’’
‘‘कानपुर के एक कालेज से एमए कर रही हूं.’’
‘‘और तुम्हारी दीदी…?’’
‘‘अब रहने दो मां, तुम तो ऐसे इंटरव्यू ले रही हो जैसे भैया के लिए लड़की देखने आई हो,’’ रेखा रसोईघर से पनीर के पकौड़े ले कर आई और उसे सैंटर टेबल पर रखते हुए बोली.
मां झेंप सी गईं.
‘‘मां, रजनी की दीदी दिल्ली में ही एक कालेज में लैक्चरर हैं. उन्हीं को ब्रेन हैमरेज हुआ है,’’ रेखा बोली.
‘‘अच्छा, तो हितेश इसी लड़की के बारे में बराबर चर्चा करता रहता है.’’
‘‘हां मां, इतनी सुंदर लड़की कभीकभार ही नजर आती है,’’ हितेश पास आते हुए बोला.
‘‘देखना भैया, नजर न लगाना भाभी पर,’’ रेखा पकौड़े की प्लेट रजनी की ओर बढ़ाते हुए कह कर मुसकराई.
‘‘बेटी, इन दोनों की बातों का बुरा न मानना. दोनों भाईबहन ऐसे ही मजाक में कुछ का कुछ बोल देते हैं,’’ मांजी ने कहा.
रजनी यह नहीं जानती थी कि हितेश उस के प्रति इतना लगाव रखता?है. सच तो यह था कि वह उसे बिलकुल भूल गई थी. अगर पिछली शाम उस की अचानक हितेश से मुलाकात न होती तो वह उस के जेहन में भी नहीं आता. लेकिन इतना हंसमुख परिवार और घर का खुला माहौल उसे आकर्षित करने लगा था. उसे लगा जैसे वह अपने ही घर में है.
रेखा का मां से कहना कि वे उस से ऐसे पूछ रही हैं जैसे लड़की देखने आई हों और उस का भाई से यह कहना कि देखना, नजर न लग जाए भाभी को…
आखिर क्या कहना चाहती है रेखा? क्या ये लोग बातोंबातों में यह बताना चाहते हैं कि हितेश उस से शादी करना चाहता है? पर वह अभी हितेश को ठीक से जान भी नहीं पाई है. न हितेश ही उस के बारे ठीक से जानता है.
जो भी हो, रजनी इस पचड़े में पड़ना नहीं चाहती थी, इसलिए कुछ समय तक हितेश के परिवार से इधरउधर की बातें कर के वह वहां से जाने की इजाजत मांगने लगी.
‘‘थोड़ी देर और रुक जाओ बेटी, हितेश के पापा आते ही होंगे. उन से भी मिल लेना,’’ हितेश की मां बोलीं, तो वह रुक गई. वैसे भी वह दीदी को सारी दवाएं दे आई थी. उन के नाश्ते का भी इंतजाम कर दिया था, पर दीदी ने जाते वक्त उसे हिदायत दी थी कि जल्दी आना, पता नहीं कब क्या जरूरत पड़ जाए.
जब हितेश के पिताजी घर आए तो रजनी ने उन्हें नमस्ते किया और थोड़ी ही देर में जाने के लिए उठने लगी.
हितेश के पिताजी ने कहा, ‘‘बैठो, तुम्हीं रजनी हो न? हितेश बोल रहा था, तुम्हारी दीदी को ब्रेन हैमरेज हो गया है.
‘‘अभी मैं कुछ देर बाद घर लौटता, लेकिन हितेश की मां का फोन आया कि तुम आई हो तो कहीं नहीं रुका और सीधा घर चला आया.’’
रजनी समझ नहीं पा रही थी कि इस घर के सभी लोग उस में इतनी दिलचस्पी क्यों ले रहे हैं?
रजनी बोली, ‘‘जी, मैं ही रजनी हूं और मेरी ही दीदी को ब्रेन हैमरेज हुआ है.’’
‘‘कुछ देर और बैठो बेटी, मैं हितेश से बोल देता हूं, वह तुम्हें अस्पताल छोड़ आएगा.’’
‘‘ठीक है बाबूजी,’’ रजनी फिर सोफे पर बैठते हुए बोली.
‘‘अच्छा बेटी, तुम्हारे मातापिता कैसे हैं?’’
‘‘वे दोनों ही यह दुनिया छोड़ चुके हैं,’’ कह कर रजनी सोचने लगी, ‘कितनी बार मैं इन लोगों को अपने घर का हालचाल बताती रहूंगी.’
‘‘अब जाऊं बाबूजी, काफी देर से बैठी हूं. दीदी चिंता कर रही होंगी,’’ रजनी ने कहा.
‘‘अच्छा बेटी, जाओ. तुम्हारी दीदी से मैं भी मिलूंगा. अब तो वे ही घर की कर्ताधर्ता हैं.’’
‘‘जी, बाबूजी.’’
हितेश ने जब रजनी को अस्पताल छोड़ा, तब उस ने राहत की सांस ली.
हितेश के जाने के बाद रजनी ने संध्या से कहा, ‘‘जानती हो दीदी, हितेश के परिवार के सभी लोग अच्छे हैं. मुझे तो लगा, वे तुरंत मुझे अपने घर की बहू ही बना लेंगे.’’
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संध्या मुसकराई, ‘‘तो क्या बुरा है, हितेश देखने में स्मार्ट लड़का है.’’
‘‘क्या दीदी, तुम भी चाहती हो कि मुझ से जल्दी से पिंड छूट जाए.’’
‘‘नहीं रे पगली, मेरा बस चले तो मैं तुम्हें हमेशा अपनी पलकों पर बैठा कर रखूं. उन्होंने ऐसा क्या कर दिया कि तुम खुशी के मारे इतनी फूली हुई हो?’’
‘‘सब मेरे घर का हालचाल लेने लगे… हितेश की बहन ने तो मुझे भाभी तक कह दिया.’’
‘‘हो सकता है, वह मजाक कर रही हो. इस बात को इतना सीरियस लेने की जरूरत नहीं है.’’
लेकिन एक दिन जब हितेश के पिताजी संध्या से मिलने आए, तो उन्होंने अपने मन की बात कह ही दी. उस समय रजनी भी वहीं थी.
रजनी बोली, ‘‘बाबूजी, अभी तो दीदी की ही शादी नहीं हुई है. मैं तो अभी इस के बारे में सोच भी नहीं सकती.’’
‘‘लेकिन बेटी, अगर तुम्हें हितेश पसंद है, तो हमें कभी भी तुम्हें बहू बनाने में खुशी होगी. जिस दिन तुम हितेश से पहली बार मिली थीं, तभी से घर में तुम्हारी बराबर चर्चा हो रही है.’’
‘‘अब यह हितेश और रजनी का आपसी मामला है बाबूजी. अगर वे इस रिश्ते के लिए राजी हैं, तो मुझे भी कोई एतराज नहीं है,’’ संध्या ने कहा, तो हितेश के पिताजी बोले, ‘‘हितेश की जिद पर मैं तुम से गुजारिश कर रहा हूं बेटी.’’
उस समय हितेश वहां नहीं था. वह अपने पिताजी को अस्पताल छोड़ कर औफिस चला गया था.
रजनी ने अपनी दीदी की शादी और अपने कैरियर का हवाला देते हुए इस रिश्ते से इनकार कर दिया.
अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद संध्या को रजनी के साथ अपने क्वार्टर जाना था. उस ने अस्पताल के सारे बिल भर दिए और नीलेश द्वारा खर्च किए गए पैसे भी उसे लौटा दिए.
नीलेश ने इस का बुरा नहीं माना. सच तो यह था कि अब उसे संध्या की जरूरत ही नहीं थी. उस का अपने ही औफिस की एक लेडी कलीग से अफेयर चल रहा था, लेकिन वह संध्या को एकदम से छोड़ना भी नहीं चाहता था.
नीलेश जानता था कि अपने फ्लैट में पहुंचते ही उस का ध्यान अपने बैडरूम और उस में पड़े कंडोम के डब्बे और शराब की बोतलों पर आएगा और उस की पोल खुल जाएगी, इसलिए उस ने संध्या को अपने क्वार्टर तक जाने के लिए एक कैब बुला दी और किसी जरूरी मीटिंग का बहाना कर के अपनी गाड़ी से औफिस लौट गया.
संध्या जब रजनी के साथ फ्लैट पर पहुंची, तो सब से पहले बैडरूम में ही गई. जाते ही उसे लगा, जैसे कोई उस के बैड पर उस की गैरहाजिरी में सोया था, क्योंकि जिस दिन वह बीमार हुई थी, उस दिन वह रात में बैड पर सोई ही नहीं थी. तकरीबन 10 बजे उस के सिर में दर्द शुरू हुआ, तो वह टैलीविजन चला कर बैठ गई थी.
पर जब दर्द बढ़ने लगा, तब संध्या सोफे पर ही लेट गई. आखिर में जब उसे दर्द बरदाश्त नहीं हुआ, तब नीलेश को फोन लगाया था. मतलब, इस तरह बैड पर सिलवटें पड़ने का सवाल ही नहीं उठता था.
इस के बाद संध्या की नजर कंडोम और शराब की बोतलों पर पड़ी, तो वह भड़क उठी. उस ने रजनी से पूछा, ‘‘यह सब क्या?है रजनी? मेरे बीमार होने के बाद तुम्हारे और नीलेश के अलावा तो कोई यहां आया ही नहीं था.’’
‘‘हां दीदी, मैं भी तो यही जानना चाहती हूं कि जब हम दोनों के अलावा यहां कोई आया ही नहीं था, तो फिर यह सब कैसे हुआ?’’
फिर थोड़ी देर रुक कर रजनी बोली, ‘‘क्या तुम यह कहना चाहती हो कि यह सब हम दोनों ने ही मिल कर किया है?’’
‘‘नहीं, मैं ऐसा नहीं सोच रही हूं, लेकिन नीलेश ठीक आदमी नहीं है.’’
‘‘तो फिर दीदी नीलेश से तुम्हारा क्या रिश्ता है? जब वह ठीक आदमी नहीं है, तो तुम क्यों उस से संबंध बनाए हुए हो? कुछ लोग तुम दोनों के बारे में कानाफूसी क्यों कर रहे हैं?’’
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‘‘अब तू चुप रह. मुझे यह बता कि यह सामान यहां कहां से आया?’’ उस की बात बीच में ही काटते हुए संध्या झुंझला कर बोली.
सचाई तो यह थी कि संध्या रजनी के इन अचानक हुए सवालों को सुन कर बौखला गई थी, क्योंकि यह उस की ऐसे नब्ज को छू गया था, जो पहले से ही उसे टीस दे रहा था.
‘‘यही तो मैं ने नीलेश से भी पूछा था, पर उस ने कहा कि इस बारे में तो तुम्हीं कुछ बता सकती हो.’’
‘‘झूठ बोल रहा था वह. उसी ने यहां अपने उस लेडी कलीग को बुलाया होगा, जिस के बारे में उस के औफिस का हर इनसान जानता है. उसी को ले कर उस की पत्नी सुधा से उस की कई बार बकझक हुई है.’’
‘‘तुम नहीं जानती दीदी कि तुम ने आदमी के रूप में एक भेडि़ए से संबंध बना रखा है. यह नीलेश की ही कारिस्तानी है. उस दिन जब वह तुम्हारे बैडरूम को साफ करने लगा, तब मैं ने मना कर दिया, ताकि तुम समझ सको कि नीलेश की असलियत क्या है.’’
संध्या चुप हो गई. अब उस के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था. हकीकत तो यही थी कि उस का नीलेश से नाजायज रिश्ता था और वह खुद को ही नहीं, बल्कि नीलेश की पत्नी को भी धोखा दे रही थी, पर अगर नीलेश उस रात उसे तुरंत अस्पताल नहीं पहुंचाता, तो उस का बचना मुश्किल हो जाता इसलिए उस का एहसान मानने के लिए वह मजबूर थी.
संध्या जब कुछ नहीं बोली, तो उस से कुछ और पूछने का कोई मतलब ही नहीं था, लेकिन रजनी अपनी दीदी को अब अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी.
अगर दीदी अकेली नहीं होतीं, तो नीलेश के फरेब में कभी नहीं फंसतीं, इसलिए रजनी ने कहा, ‘‘दीदी, आप यहां अकेली रहती हो, मैं वहां अकेली. अगर हम दोनों एकसाथ रहतीं तो उस दिन तुम्हें नीलेश को फोन करने की जरूरत नहीं पड़ती, इसलिए अब मैं भी यहीं रहना चाहती हूं.’’
संध्या ने कहा, ‘‘अभी तुम्हारा एमए फाइनल है. अब तुम्हारे इम्तिहान भी होने वाले हैं. इम्तिहान दे कर तुम यहीं आ जाना और फिर या तो किसी नौकरी के लिए तैयारी करना या किसी प्रोफैसर के अंडर पीएचडी कर लेना, उस के बाद किसी कालेज में लैक्चरर की नौकरी मिल सकती है.’’
‘‘ठीक है. लेकिन दीदी, आगे से नीलेश से संबंध मत रखना. उस की नजर मेरे प्रति भी ठीक नहीं है.’’
‘‘मैं पूरी कोशिश करूंगी, लेकिन अचानक तो यह सब होगा नहीं, समय लगेगा. तुम पूरे फ्लैट में झाड़ू लगा दो और 1-2 दिन में कानपुर लौट जाओ और एमए फाइनल के इम्तिहान दे कर आ जाना, तब तक मैं भी पूरी तरह से ठीक हो जाऊंगी.’’
उस के बाद 1-2 दिनों तक वहां रह कर रजनी कानपुर लौट गई. अभी फाइनल इम्तिहान होने में 2 महीने की देरी थी.
संध्या दूसरे हफ्ते से कालेज जाने लगी. नीलेश उस से पहले जैसा संबंध बनाना चाहता, लेकिन अब संध्या उस से दूरी बनाने लगी.
उधर हितेश ने रजनी से फोन पर बात की तो वह बोली कि जल्दी ही वह दिल्ली आ कर अपनी दीदी के साथ रहेगी. तब तक वह उस की दीदी का खयाल रखेगा.
एक दिन शाम को अचानक नीलेश संध्या के फ्लैट में पहुंचा और उस से प्यार जताने लगा.
तब संध्या ने कहा, ‘‘नीलेश, हम लोग जो भी कर रहे हैं, क्या वह जरूरी है? क्या यह गलत काम नहीं है? क्या यह तुम्हारी पत्नी के साथ धोखा नहीं है?
‘‘नीलेश, यह मैं नहीं कहती कि इस में केवल तुम्हारा ही कुसूर है, बल्कि मैं भी इस में बराबर की हिस्सेदार हूं. एक औरत होने के नाते मुझे एक औरत के हक और यकीन के साथ धोखा नहीं करना चाहिए था, लेकिन अब तो हमें अपनी गलती सुधार लेनी चाहिए.
‘‘देखो, पति और पत्नी का रिश्ता आपसी यकीन पर ही टिका होता है. आज नहीं तो कल, कभी न कभी हमारे संबंधों की जानकारी तुम्हारी पत्नी को होगी ही. कब तक हम उसे और समाज को धोखा देते रहेंगे?
‘‘तुम ने मेरी गैरहाजिरी में एक घिनौना खेल खेला. इस के बारे में रजनी को भी पता चल गया है. जानते हो, जब उस ने इस बारे में सवाल किया, तो मैं कितना नर्वस हो गई थी.
‘‘धीरेधीरे तुम्हारे औफिस के लोग ही नहीं, बल्कि मेरे कालेज के लोग भी हमें शक की निगाह से देखने लगे हैं, इसलिए मैं ने तय किया है कि अब आगे से तुम से संबंध नहीं रखूंगी.’’
संध्या ने जब साफ इनकार किया, तो नीलेश उसे धमकी देने लगा. कहने लगा कि उस के पास उन दोनों की वीडियो क्लिप्स हैं. अगर उस ने उसे मना किया, तो उन वीडियो क्लिप्स को वह सोशल मीडिया पर अपलोड कर के उस को बदनाम कर देगा.
इस धमकी से संध्या काफी डर गई, लेकिन अब वह किसी भी हालत में नीलेश से जिस्मानी रिश्ता नहीं बनाना चाहती थी, इसलिए उस ने शांत मन से काम लिया और माहवारी आने का बहाना बनाया.
कुछ देर वहां रह कर नीलेश लौटने लगा, तो जाते समय फिर वही धमकी दोहरा गया.
हवस का मारा मर्द किस हद तक नीचे गिर सकता है, यह आज संध्या ने पहली बार जाना. सच तो यह था कि नीलेश को समझने में उस से ही भूल हुई थी. सब से मुश्किल बात तो यह थी कि संध्या नीलेश की इस धमकी के बारे में किसी से बात भी नहीं कर सकती थी, क्योंकि उसे पता नहीं था कि नीलेश ने उस की वीडियो क्लिप्स कब और कैसे बनाई थीं.
अगर नीलेश ने अपनी धमकी को असली रंग दे दिया, तो इस से वह पूरे समाज में बदनाम हो सकती थी और उस की नौकरी भी जा सकती थी.
नीलेश के जाने के बाद संध्या उस रात खाना नहीं खा पाई और जब वह बिस्तर पर सोने गई, तो उसे नींद भी नहीं आई.
दूसरे दिन संध्या की आंखें नींद न आने के चलते बोझिल थीं. रात में उस ने कुछ नहीं खाया था. सुबह भी उसे भूख नहीं थी. लेकिन तभी उसे खयाल आया, क्या इस से केवल उसी की बदनामी होगी? क्या नीलेश की कोई बदनामी नहीं होगी? क्या इज्जत सिर्फ औरतों के खाते में दर्ज है?
संध्या ने तय किया कि वह नीलेश की इस धमकी के बारे में किसी को नहीं बताएगी और पहले इस के सुबूत जमा करेगी. इस के बाद उस ने खाना खाया और कालेज चली गई.
2-3 दिन बाद नीलेश ने संध्या को फोन किया. इस बार संध्या पहले से ही सावधान थी. उस ने अपने स्मार्टफोन में काल वाइस रिकौर्डिंग सिस्टम का एप्लीकेशन इंस्टौल कर लिया था, इसलिए अब नीलेश जो भी बात करता, वह बातचीत रिकौर्ड हो जाती.
‘‘हैलो.’’
‘हैलो. अब कैसी हो संध्या, बहुत दिन हो गए यार, याद है न उस शाम तुम से मैं ने क्या कहा था?’ नीलेश ने धमकाने वाली आवाज में कहा.
‘‘भूल गई हूं. नीलेश, जब से मैं बीमार पड़ी हूं, मेरी याददाश्त कुछ कमजोर सी पड़ गई है,’’ संध्या ने बहाना बनाया.
‘अब सबकुछ तो फोन पर नहीं कहूंगा न. अभी तुम्हारे फ्लैट पर आ रहा हूं, फिर तुम्हें सबकुछ याद आ जाएगा?’
संध्या कुछ नहीं बोली. नीलेश ने भी फोन काट दिया.
संध्या ने पहले से ही 2 छिपे कैमरे लगा दिए थे, एक ड्राइंगरूम में, दूसरा बैडरूम में. अब उन की हर बात रिकौर्ड हो जाने वाली थी.
वही हुआ भी. थोड़ी ही देर में नीलेश आ गया. आज वह शराब की एक बोतल भी साथ ले कर आया था.
नीलेश आते ही बहकीबहकी बातें करने लगा. शायद उस ने पहले से शराब पी रखी थी.
संध्या जब नीलेश की कामुक हरकतों का विरोध करने लगी, तब उस ने पहले तो वही राग अलापा कि उस की वीडियो क्लिप्स सोशल मीडिया पर अपलोड कर उस को बदनाम कर देगा, फिर वह जबरदस्ती पर उतर आया.
लेकिन अब पहले वाली यह संध्या नहीं थी. उस ने भी ठान लिया था कि अब उसे नीलेश को सबक सिखाना ही होगा. वह नरम पड़ गई और मुसकराते हुए बोली, ‘‘मैं बाथरूम हो कर आती हूं नीलेश, तब तक कुछ नाश्ता कर लो. घर अपना है, रात अपनी है, इतनी भी जल्दी क्या?है…’’
नीलेश संध्या के झांसे में आ गया. संध्या बाथरूम में गई और 100 नंबर पर पुलिस को सूचना दे दी. फिर वह चाय बनाने रसोईघर में चली गई. जब वह रसोईघर से लौटी, तब तक पुलिस की गश्ती टीम वहां आ गई थी.
संध्या ने नीलेश के खिलाफ रेप के लिए कोशिश करने और ब्लैकमेलिंग करने की रिपोर्ट लिखवा दी और सुबूत में औडियो और वीडियो क्लिप्स पुलिस के हवाले कर दीं.
नीलेश ने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि वह अब अपने ही बुने जाल में बुरी तरह फंस चुका है.
पुलिस ने नीलेश को रेप करने की कोशिश और ब्लैकमेलिंग करने के जुर्म में जेल भेज दिया.
दूसरे दिन पूरे शहर में यह बात फैल गई कि एक कंपनी मैनेजर नीलेश ने एक लेडी लैक्चरर संध्या, जो कि अकेली रहती थी, के फ्लैट में घुस कर रेप करने की कोशिश की, लेकिन संध्या की सूझबूझ से समय रहते वह पुलिस के हत्थे चढ़ गया और अपने घिनौने काम को अंजाम नहीं दे पाया.
अखबार के जरीए यह बात कानपुर में रजनी के कानों तक भी पहुंची. इस बात की जानकारी जब नीलेश की लेडी असिस्टैंट अनु को हुई, तो उस ने भी नीलेश पर रेप के आरोप लगाए.
सच तो यह था कि अनु ने जब से नीलेश के औफिस में जौइन किया था, तभी से वह उस के पीछे पड़ गया था और उसे प्रमोशन का लालच दे कर उस के साथ जबरन शारीरिक संबंध बना रहा था.
इस की जानकारी जब हितेश को हुई, तब वह अंदर ही अंदर बहुत खुश हुआ, क्योंकि नीलेश नहीं चाहता था कि वह संध्या या रजनी के साथ संबंध बढ़ाए.
इस का सब से बड़ा खमियाजा नीलेश को यह भुगतना पड़ा कि उस पर अपनी कलीग के साथ रेप करने का आरोप लगते ही नौकरी से निकाल दिया गया.
रजनी यह खबर पा कर मन ही मन खुश ही नहीं हुई, बल्कि फोन कर के दीदी की इस हिम्मत की तारीफ भी की. इस बात का एक फायदा यह हुआ कि जो लोग यह समझ रहे थे कि संध्या का नीलेश से नाजायज संबंध है और उसे गलत नजरों से देख रहे थे, उन का भी संध्या के प्रति नजरिया बदल गया.
हां, कुछ ऐसे भी लोग थे, जो संध्या को यह कह कर कोस रहे थे कि जिस शख्स ने उस की जान बचाई, उसी को उस ने जेल भिजवा दिया. नीलेश नहीं, बल्कि संध्या ही नीलेश को ब्लैकमेल कर रही होगी. जब उस ने उस की बात नहीं मानी होगी, तो झूठे आरोप में फंसा दिया.
दूसरे दिन संध्या से मिलने उस के कलीग आए. उन्होंने भी संध्या के इस हिम्मती काम की तारीफ की.
संध्या से सब से ज्यादा प्रभावित उस का एक कलीग मधुप था, जो इसी साल इलाहाबाद से यहां आया था.
इस नौकरी के पहले मधुप एक स्वयंसेवी संस्था ‘नारी सशक्तीकरण मंच’ के लिए काम करता था, जो महिला सशक्तीकरण पर काम कर रही थी और काम की जगह पर महिलाओं के साथ यौन शोषण पर आंदोलन चला रही थी.
उस ने अपनी संस्था की दिल्ली ब्रांच से संध्या और अनु को उन की इस हिम्मती काम के लिए अवार्ड दिलाया और मुकदमा लड़ने में उन्हें संस्था की ओर से माली मदद के साथ ही वकील भी मुहैया कराया.
मधुप की निगाह में संध्या की इज्जत बढ़ गई थी. वह अभी कुंआरा था और गणित का अच्छा जानकार था. संध्या कैमिस्ट्री पढ़ाती थी, पर गणित में उस की काफी दिलचस्पी थी, इसलिए कभीकभी वह मधुप से गणित के कुछ सवाल हल करने के लिए उस से मिलती थी.
ऐसे ही 3 महीने बीत गए. नीलेश अभी भी जेल में ही था. कंपनी ने उस का काम हितेश को सौंप दिया.
रजनी के इम्तिहान खत्म हो गए थे, पर रिजल्ट आना अभी बाकी था. अब वह भी दिल्ली आ कर संध्या के साथ रहने लगी थी.
कुछ दिनों के बाद रजनी का रिजल्ट आया. वह एमए फर्स्ट डिवीजन से पास हुई थी. उस ने रिसर्च करने के बजाय नौकरी के लिए प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करना ज्यादा अच्छा समझा. वैसे भी उसे किसी कालेज में लैक्चरर बनने की ख्वाहिश नहीं थी.
इस बीच उस का संपर्क हितेश से बना रहा. सच तो यह था कि हितेश उसे एक निहायत शरीफ इनसान लगता था. उस के परिवार वाले उसे अपनी बहू बनाना चाहते थे, लेकिन वह अपनी बहन की शादी होने तक अपनी शादी की बात तक करना पसंद नहीं करती थी.
समय और जिंदगी में बड़ा ही गहरा रिश्ता है. समय के साथसाथ जिंदगी में बदलाव होना जरूरी भी है. अगर ऐसा न हो, तो जिंदगी की रफ्तार कमजोर हो जाती है.
कभी संध्या की जिंदगी में नीलेश का दखल था और अब उस की जिंदगी में मधुप आ गया था.
मधुप के घर वाले उस की शादी के लिए लड़की देख रहे थे. जब उन्हें मालूम हुआ कि उस की संध्या नामक उसी कालेज की एक लैक्चरर से दोस्ती हो गई है, तब उन्होंने चैन की सांस ली.
मधुप भी किसी ऐसी लड़की से शादी करना चाहता था, जो औरतों को उन के हकों के प्रति उन्हें जागरूक करे और खुद भी किसी मर्दों के जोरजुल्म के प्रति आवाज उठाए. संध्या से उसे एक ऐसी ही लड़की की इमेज दिखाई पड़ी थी, इसलिए वह उस के प्रति आकर्षित था.
अगले महीने संध्या का बर्थडे था. रजनी अपनी दीदी के बर्थडे के मौके पर दिल्ली के अपने कुछ परिचितों को बुलाना चाहती थी. उस ने इस के लिए दीदी को मना लिया था. इस मौके पर मधुप और हितेश को बुलाने पर भी आपस में सहमति बनी थी.
रात में संध्या की बर्थडे पार्टी का आयोजन था. इस मौके पर उस ने कुछ खास मेहमानों को बुलाया था. मधुप तो आया ही था, हितेश भी था. रजनी ने उस की बहन रेखा को भी बुलाया था.
संध्या की एक सहेली सरोज भी अपने पति के साथ आई थी. उस का पति दिल्ली में ही किसी कंपनी में काम करता था. संध्या उसी से अपने दिल की बात शेयर करती थी.
पार्टी में सभी ने संध्या को जन्मदिन की मुबारकबाद दी. खाने के समय संध्या द्वारा रेप के खिलाफ उठाए गए कदम की चर्चा न हो, यह कैसे हो सकता था.
सरोज ने कहा, ‘‘संध्या की बहादुरी की चर्चा पूरे शहर में है, लेकिन अब आगे इस तरह की घटना न हो, यह ध्यान रखना भी जरूरी है.
‘‘नीलेश कोई साधारण आदमी नहीं है. उस के पिताजी अब भी सरकारी महकमों में एक ऊंचा स्थान रखते हैं और अभी भी नौकरी कर रहे हैं. उन की ऊंचे अफसरों से अच्छी जानपहचान है. नीलेश भी कंपनी में एक ऊंचा अफसर था, इसलिए ये लोग मुकदमा वापस लेने के लिए जरूर दबाव बनाएंगे.
‘‘संध्या के बारे में मैं यह नहीं कहती कि वह कमजोर है, लेकिन अब उसे किसी के सहारे की सख्त जरूरत है.’’
‘‘लेकिन सरोज, अब मैं यहां अकेली नहीं हूं, मेरे साथ मेरी छोटी बहन रजनी भी है,’’ संध्या ने कहा, तो रजनी बोली, ‘‘लेकिन दीदी, सरोज दीदी तुम्हारे जीवनसाथी के बारे में बोल रही हैं.’’
‘‘दीदी, आप से तो मधुप भैया की खूब पटती है और दोनों के विचार भी मिलते हैं. मुझे लगता है, दोनों की जोड़ी अच्छी रहेगी,’’ हितेश बोला, तो उस की बात का वहां आए सभी लोगों ने तालियां बजा कर समर्थन किया.
संध्या ने शरमाते हुए मधुप की ओर देखा. वह भी उस की ओर देखते हुए शरमा रहा था.
दोनों की चुप्पी पर हितेश बोला, ‘‘अब दीदी की शादी के बाद मेरा रास्ता भी साफ हो गया है.’’
‘‘क्यों भाभी, अब तो मेरे और भैया के साथ एक फोटो खिंचवा लो,’’ कहते हुए रेखा रजनी को हितेश के पास खींच लाई.
एक बार फिर घर में तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी. नई जिंदगी की मशाल अब जल चुकी थी.