30 लाख भी गए, बेटा भी : भाग 2

चमन सिंह के परिवार को तो अपहर्त्ताओं के फोन का इंतजार था ही, पुलिस भी इंतजार कर रही थी. लेकिन अपहर्त्ताओं का फोन आया 12 जुलाई को. चमन सिंह ने उन्हें बता दिया कि रकम तैयार कर ली गई है. इस पर उन्होंने कहा कि 30 लाख की रकम बैग में भर कर तैयार रखो. जल्दी ही बता दिया जाएगा कि रकम कहां और कैसे देनी है.

रुचि ने यह बात भी एसपी अपर्णा गुप्ता को बता दी. उन्होंने पूरी टीम को सादे कपड़ों में तैयार रहने के लिए अलर्ट कर दिया.  लेकिन उस दिन अपहर्त्ताओं का फोन नहीं आया. उन का फोन आया 13 जुलाई की दोपहर में.

अपहर्त्ताओं ने चमन सिंह से कहा कि शाम 5 बजे रकम का बैग ले कर वह गुजैनी हाइवे के फ्लाईओवर पर पहुंच जाएं. फ्लाईओवर से बैग नीचे फेंकना है. वे लोग पुल के नीचे रहेंगे. रकम मिलते ही संजीत को छोड़ दिया जाएगा. यह बात भी एसपी अपर्णा गुप्ता को बता दी गई. उन्होंने पुलिस टीम को तैयार रहने का आदेश दे दिया.

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ठीक 6 बजे पुलिस की 2 गाडि़यां फ्लाईओवर पर पहुंच गईं. एक गाड़ी में पुलिस जवानों के साथ अपर्णा गुप्ता थीं और दूसरी में सहयोगियों के साथ थानाप्रभारी रणजीत राय थे.

तभी रकम का बैग ले कर चमन सिंह मोटरसाइकिल से वहां पहुंच गया. मोटरसाइकिल खड़ी कर के उस ने नीचे झांका. तभी अपहर्त्ताओं का फोन आ गया कि चंद कदम आगे जा कर बैग नीचे फेंक दो. चमन सिंह ने बैग नीचे फेंक दिया तो अपहर्त्ताओं का फिर फोन आया. उन्होंने कहा कि थोड़ा आगे जा कर हनुमान मंदिर है, वहीं पहुंचो. संजीत मिल जाएगा.

इस बीच पुलिस की निगाहें चमन सिंह पर ही जमी थीं. जैसे ही उस ने बैग फेंका, पुलिस अपहर्त्ताओं को पकड़ने के लिए दौड़ी, लेकिन नीचे जाने का रास्ता लंबा था. पुलिस के वहां पहुंचने तक अपहर्त्ता बैग ले कर भाग गए थे. उधर चमन सिंह आंखों में आस समेटे मंदिर पर पहुंचा. लेकिन संजीत वहां नहीं मिला. पुलिस औपरेशन पूरी तरह फेल रहा.

चमन सिंह का परिवार अवाक रह गया. जैसेतैसे जुटाई 30 लाख की रकम तो गई ही, बेटा भी नहीं मिला. इस पर रुचि पिता के साथ जा कर आईजी मोहित अग्रवाल से मिली. रुचि ने पूरी बात आईजी को बताई. साथ ही संदेह भी व्यक्त किया कि पुलिस अपहर्त्ताओं से मिली हुई थी. संभव है पैसों का बैग भी पुलिस के ही पास हो.

चमन सिंह और रुचि की शिकायत पर आईजी मोहित अग्रवाल उसी समय थाना बर्रा पहुंचे. उन्होंने थानाप्रभारी रणजीत राय से पूछताछ की. उन की बातों से संतुष्ट न होने पर उन्होंने रणजीत राय को सस्पेंड कर के हरमीत सिंह को थानाप्रभारी नियुक्त कर दिया.

इंसपेक्टर हरमीत सिंह ने क्राइम ब्रांच व सर्विलांस टीम की मदद से जांच प्रारंभ की. उन्होंने पहले अपहृत संजीत के परिवार वालों से पूछताछ की, फिर संजीत के मोबाइल नंबर को खंगाला, जिस से पता चला अपहरण वाले दिन यानी 22 जून को संजीत के मोबाइल फोन पर एक नंबर से 5 काल आई थीं. 2 बार काल करने वाले ने बात की थी और 3 बार संजीत ने उसी नंबर पर बात की थी.

रात पौने 8  बजे संजीत की उस नंबर पर आखिरी बार बात हुई थी. पौने 9 बजे संजीत का मोबाइल और संदिग्ध नंबर के मोबाइल का स्विच्ड औफ हो गया था. फिरौती के लिए अलग नंबर प्रयोग किया गया था. उस नंबर से 22 बार काल की गई थी.

इस जानकारी के बाद पुलिस टीम ने सिम बेचने वाले दुकानदार का पता लगाया तो पता चला उस की सिम कार्ड की दुकान चकरपुर में हैं. पुलिस ने उसे उठा कर कड़ाई से पूछताछ की तो उस ने 6 सिम कार्ड बेचने की बात कही.

सर्विलांस टीम ने सभी मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवानी शुरू की. साथ ही उन नंबरों को लिसनिंग पर भी लगा दिया. इस के बाद पुलिस ने धनवंतरि अस्पताल की पैथालौजी के 2 कर्मचारियों को हिरासत में लिया. उन में से एक की संदिग्ध नंबर पर बात हुई थी.

उस कर्मचारी से सख्ती से पूछताछ की गई तो पता चला, वह संदिग्ध नंबर कुलदीप गोस्वामी का था, जो कुछ माह पहले धनवंतरि अस्पताल में काम करता था. लौकडाउन में विवाद होने पर उस ने नौकरी छोड़ दी थी. कुलदीप गोस्वामी पुलिस की रडार पर आया तो उस की तलाश शुरू की गई.

23 जुलाई, 2020 की सुबह 10 बजे थानाप्रभारी हरमीत सिंह को सूचना मिली कि कुलदीप गोस्वामी अपने साथियों के साथ अंबेडकर नगर के पटेल चौक पर मौजूद है.

इस सूचना पर हरमीत सिंह क्राइम ब्रांच की टीम के साथ पटेल चौक पहुंच गए. पुलिस को देख कर एक युवती और 4 युवक भागने लगे. लेकिन क्राइम ब्रांच की टीम ने घेराबंदी कर युवती सहित 4 युवकों को गिरफ्तार कर लिया और सुरक्षा की दृष्टि से थाना बर्रा न ले जा कर सीओ औफिस गोविंद नगर ले आए.

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उन से पूछताछ की गई तो युवकों ने अपना नाम कुलदीप गोस्वामी, नीलू सिंह, ज्ञानेंद्र सिंह और रामजी शुक्ला बताया. युवती ने अपना नाम प्रीति शर्मा बताया. पकड़े गए सभी युवक थे. उन की उम्र 25 से 30 वर्ष के बीच थी. पकड़े गए युवकों से जब संजीत यादव के अपहरण के संबंध में पूछा गया तो सब ने मौन धारण कर लिया और एकदूसरे का मुंह ताकने लगे. इस पर उन्हें तराशा गया, आखिर उन्होंने जुबान खोली और बताया कि संजीत अब इस दुनिया में नही है.

इन लोगों ने आगे बताया कि अपहरण के 4 दिन बाद उस की हत्या कर दी थी. फिर उस के शव को बोरी में भर कर पांडव नदी में फेंक दिया था. यह सुनते ही थानाप्रभारी हरमीत सिंह के होश उड़ गए. उन्होंने सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी.

सूचना पाते ही आईजी मोहित अग्रवाल, एसएसपी दिनेश कुमार पी, तथा एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता आ गईं. पुलिस अधिकारियों ने अपहर्ताओं से पूछताछ की, फिर शव बरामदगी के लिए फ्लड कंपनी बटालियन की 6 बोट तथा 35 गोताखोरों को बुला कर उन्हें पांडव नदी में उतारा गया. गोताखोरों ने 30 किलोमीटर तक शव को तलाशा, लेकिन शव बरामद नहीं हो सका.

इधर अपहर्ताओं की निशानदेही पर पुलिस ने सड़क किनारे झाड़ी में छिपाई गई संजीत की मोटरसाइकिल, अपहरण व हत्या में प्रयुक्त कार, कार में रखा बैग तथा 4 मोबाइल फोन बरामद किए. पुलिस अब तक फिरौती के 30 लाख रुपए बरामद नहीं कर पाई थी. इस बाबत अपहर्ताओं से पूछताछ की गई तो उन्होंने बताया कि पुलिस के डर से वे नोटों से भरा बैग नहीं ले जा पाए थे.

अब सवाल था, जब नोटों से भरा बैग अपहर्ताओं ने नहीं उठाया, तो बैग क्या पुलिस ने गायब कर दिया.

पुलिस अधिकारियों को डर था कि हत्या की खबर फैलते ही बर्रा क्षेत्र में सनसनी फैल जाएगी. लोग सड़क पर उपद्रव मचाएंगे. नेता आग में घी डालने का काम करेंगे, अत: पुलिस अधिकारियों ने पहले क्षेत्र में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी की, फिर रात 11 बजे चमन सिंह के घर जा कर अपहर्ताओं के पकड़े जाने तथा संजीत की हत्या कर शव को पांडव नदी में बहाने की जानकारी दी.

संजीत की हत्या की खबर सुन कर घर में कोहराम मच गया. चमन सिंह, कुसुमा और रुचि चीखनेचिल्लाने लगी. उन की चीखपुकार सुन कर रात के सन्नाटे में मोहल्ले के लोग घरों से निकल आए.

देखते ही देखते सैकड़ों की भीड़ चमन सिंह के घर आ पहुंची. हत्या की जानकारी मिलने पर लोगों का गुस्सा भड़क उठा. मांबेटी की चीखों से महिलाएं द्रवित हो उठीं. रुचि पुलिस अधिकारियों के पैर पकड़ कर बोली, ‘‘आप लोग, जिंदा तो मेरे भाई को ला नहीं पाए, कम से कम मुर्दा ही ला दो. ताकि आखिरी बार उसे राखी बांध सकूं.’’ उस की इस बात पर पुलिस अधिकारी द्रवित हो गए. उन्होंने रुचि को धैर्य बंधाया.

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24 जुलाई, 2020 की सुबह 11 बजे आईजी मोहित अग्रवाल तथा एसएसपी दिनेश कुमार पी ने पुलिस लाइन सभागार में प्रैस वार्ता बुलाई और अपहर्ताओं को प्रिंट तथा इलेक्ट्रौनिक मीडिया के सामने पेश कर संजीत के अपहरण और हत्या का खुलासा कर दिया.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

30 लाख भी गए, बेटा भी : भाग 1

कानपुर दक्षिण में काफी बड़े क्षेत्र में फैला एक बड़ी आबादी वाला क्षेत्र है बर्रा. बड़े क्षेत्र को देखते हुए इसे कई भागों में बांटा गया है. चमन सिंह यादव अपने परिवार के साथ इसी बर्रा क्षेत्र के बर्रा 5 की एलआईजी कालोनी में रहते थे. उन के परिवार में पत्नी कुसुमा देवी के अलावा एक बेटा था संजीत और एक बेटी रुचि यादव.

चमन सिंह एक फैक्ट्री में काम करते थे. वह धनवान तो नहीं थे, पर घर में किसी चीज की कमी भी नहीं थी. चमन सिंह मृदुभाषी थे सो अड़ोसीपड़ोसी सभी से मिलजुल कर रहते थे.

चमन सिंह खुद तो ज्यादा पढ़ेलिखे नहीं थे, लेकिन उन्होंने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाई थी. बेटी रुचि डीबीएस कालेज गोविंद नगर से बीएससी कर के प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुटी थी, जबकि बेटे संजीत ने बीएससी नर्सिंग कर रखा था. वह नौबस्ता स्थित धनवंतरि अस्पताल के पैथोलौजी विभाग में बतौर लैब टेक्नीशियन कार्यरत था. उस का काम था मरीजों के खून का नमूना जांच हेतु एकत्र करना. फिर उसे जांच के लिए पैथोलौजी लैब ले जाना और जांच रिपोर्ट लाना.

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चमन सिंह की बेटी रुचि जौब की तलाश में थी, चमन सिंह बेटी का ब्याह कर देना चाहते थे. इस में उन की पत्नी कुसुमा की भी सहमति थी. इसी कवायद में चमन सिंह को रुचि के लिए राहुल यादव पसंद आ गया. राहुल बर्रा विश्व बैंक कालोनी में रहता था. उस के पिता राजेंद्र यादव पीएसी में तैनात थे. राहुल पसंद आया तो उन्होंने बेटी का रिश्ता तय कर दिया.

रिश्ता तय हुआ तो चमन सिंह बेटी की शादी की तैयारी में जुट गए. उन्होंने बेटी के लिए जेवरात बनवा लिए तथा कैश का भी इंतजाम कर लिया. संजीत का सपना था कि वह अपनी बहन को कार से ससुराल भेजेगा. कार खरीदने के लिए उस ने बैंक से 2 लाख का कर्ज भी ले लिया था.

रुचि की शादी की तैयारियां चल ही रही थीं कि इसी बीच चमन सिंह को पता चला कि राहुल रुचि के लिए ठीक लड़का नहीं है.

चमन सिंह ने अपने स्तर से पता लगाया तो बात सच निकली. इस के बाद उन्होंने पत्नी व बच्चों के साथ इस गंभीर समस्या पर विचारविमर्श किया और रुचि के भविष्य को देखते हुए रिश्ता तोड़ दिया.

रिश्ता टूटने से राहुल और उस के घर वाले बौखला गए. राहुल, रुचि के पिता व भाई को मनाने में जुट गया, परंतु बात नहीं बनी.

हर रोज की तरह 22 जून, 2020 को भी संजीत अस्पताल गया, लेकिन जब वह रात 10 बजे तक वापस घर नहीं आया, तब चमन सिंह व उस की पत्नी कुसुमा को चिंता हुई.

दरअसल संजीत रात 9 बजे तक हर हाल में घर आ जाता था. कभी उसे अस्पताल में रुकना होता था या कहीं और जाना होता तो वह अपनी मां या बहन को फोन कर के बता देता था.

10 बज गए थे. न वह आया था, न ही फोन पर बताया था. ताज्जुब की बात यह थी कि उस का मोबाइल फोन भी बंद था.

ज्योंज्यों समय बीतता रहा था, चमन सिंह, उन की पत्नी कुसुमा और बेटी रुचि की धड़कनें बढ़ती जा रही थीं. रुचि ने संजीत के अस्पताल फोन किया तो पता चला वह 7 बजे ही अस्पताल से चला गया था. पैथोलाजी लैब वह गया ही नहीं था. रुचि ने भाई के दोस्तों जिन्हें वह जानती थी, सब को फोन किया, कोई जानकारी नहीं मिली.

मां बेटी और पिता रात भर फोन पर फोन करते रहे, लेकिन कहीं से भी संजीत के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. सुबह का उजाला फैला तो पूरी कालोनी में संजीत के लापता होने की खबर फैल गई. पड़ोसी सांत्वना देने घर पहुंचने लगे. चमन सिंह ने कुछ खास पड़ोसियों से विचारविमर्श किया फिर बेटी रुचि को साथ ले कर जनता नगर पुलिस चौकी पहुंच गए.

उस समय चौकी इंचार्ज राजेश कुमार चौकी पर मौजूद थे. चमन सिंह ने उन्हें एकलौते बेटे संजीत के लापता होने की जानकारी दी. साथ ही अपहरण की आशंका भी जताई. राजेश कुमार ने चमन सिंह से तहरीर ले ली, फिर पूछा, ‘‘तुम्हारी किसी से दुश्मनी या जमीन वगैरह की रंजिश तो नहीं है. संजीत का लेनदेन में किसी से झगड़ाफसाद तो नहीं हुआ था.’’

‘‘सर, हम सीधेसादे लोग हैं. हमारी या बेटे संजीत की न तो किसी से रंजिश है, न ही लेनदेन का झगड़ा है.’’

‘‘तुम्हें किसी पर शक है?’’ चौकीप्रभारी राजेश कुमार ने पूछा.

‘‘हां सर, मुझे राहुल यादव पर शक है.’’ चमन सिंह ने बताया.

‘‘वजह बताओ?’’ राजेश कुमार ने अचकचा कर पूछा.

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‘‘सर, राहुल यादव, विश्व बैंक कालोनी बर्रा में रहता है. उस के पिता पीएसी में तथा चाचा मैनपुरी में दरोगा है. राहुल के साथ मैं ने अपनी बेटी रुचि का विवाह तय किया था. लेकिन कुछ कारणों से हम ने रिश्ता तोड़ दिया था. रिश्ता टूटने से राहुल बौखला गया. मुझे शक है कि इसी बौखलाहट में उस ने संजीत का अपहरण किया है.’’

‘‘ठीक है, तुम जाओ. मैं इस मामले को देखता हूं.’’ कह कर राजेश कुमार ने चमन सिंह को टरका दिया. उन्होंने न तो गुमशुदगी दर्ज की और न ही किसी से कोई पूछताछ की.

24 जून की सुबह 10 बजे चमन सिंह आशंका जताते हुए राहुल के खिलाफ नामजद तहरीर ले कर चौकी पहुंचे. तहरीर पढ़ते ही चौकीप्रभारी राजेश कुमार भड़क उठे, ‘‘तुम्हारा बेटा गर्लफ्रैंड के साथ मौजमस्ती करने गया होगा. किसी पर गलत आरोप लगाओगे तो भुगतना पड़ेगा. गलत होने पर मैं तुम्हारे खिलाफ मानहानि का मुकदमा लिख दूंगा, समझे.’’

चमन सिंह समझ गए कि यहां कोई काररवाई संभव नहीं है. अत: वह थाना बर्रा जा कर थानाप्रभारी रणजीत राय से मिले. उन्होंने उन्हें जनता नगर चौकी में दी गई तहरीर के आधार पर गुमशुदगी दर्ज न करने की बात बताई. इस पर वह नाराज होते हुए बोले, ‘‘हथेली पर सरसों मत उगाओ. तुम्हारा बेटा मिल जाएगा.’’

थाने से निराशा हाथ लगी तो चमन सिंह डीएसपी (गोविंद नगर) मनोज कुमार गुप्ता और एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता से मिले और अपनी परेशानी बताई. लेकिन जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों ने भी उस के आंसुओं को नजरअंदाज कर दिया.

दरअसल, पुलिस यह मान रही थी कि संजीत मौजमस्ती करने कहीं चला गया है. अगर उस का अपहरण हुआ होता तो अब तक फिरौती के लिए फोन आ गया होता.

पुलिस की खुमारी तब टूटी जब 29 जून को फिरौती के लिए अपहर्त्ताओं का फोन आया. उन्होंने संजीत को सहीसलामत लौटाने के लिए 30 लाख रुपए मांगे थे. चमन सिंह ने यह बात पुलिस को बताई. पुलिस ने उन्हें रुपयों का इंतजाम करने को कहा.

एक साधारण परिवार के लिए 30 लाख रुपए का इंतजाम करना आसान नहीं था. लेकिन सवाल एकलौते बेटे का था. चमन सिंह ने बेटी रुचि की शादी के लिए जो रकम सहेज कर रखी थी, वह और बेटी की शादी के लिए बनवाए गए जेवर बेच कर पैसा एकत्र किया. पर 30 लाख की रकम पूरी नहीं हो पाई. इस पर उन्होंने गांव की जमीन और मकान बेच दिया.

पैसा एकत्र हो गया तो चमन सिंह ने यह बात पुलिस को बता दी. इस बीच अपहर्त्ताओं  के फोन पर फोन आ रहे थे. उन का कहना था कि चाहे जैसे भी हो, 30 लाख रुपए जमा कर लो, बेटा अमित मिल जाएगा.

रुचि हर रोज सारी बात पुलिस को बता रही थी. इस बीच संजीत के अपहरण को 3 हफ्ते बीत गए थे. इसे पुलिस की कमजोरी ही कहा जाएगा कि वह अपहर्त्ताओं का नंबर तक ट्रेस नहीं कर पाई थी.

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रकम का इंतजाम हो जाने पर यह बात पुलिस को बता दी गई. इस पर एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता ने अपहर्त्ताओं को रंगेहाथों पकड़ने के लिए योजना तैयार की. इस के लिए क्राइम ब्रांच की टीम और सर्विलांस टीम को भी साथ लिया गया.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

30 लाख भी गए, बेटा भी

सम्मान की खातिर : भाग 3

पहली जुलाई को गढ़ा गांव के जंगल में देवराज उर्फ दानवीर के यूकेलिप्टस के बाग में बंटी और सुखदेवी की लाशें शीशम के एक पतले  से पेड़ पर लटकी मिलीं. गांव के कुछ लड़के उधर गए तो उन्होंने लाशें देखीं. लड़कों ने यह जानकारी दोनों के घर वालों को दे दी.

सूचना पा कर बंटी के घर वाले और गांव के लोग तो पहुंच गए, लेकिन सुखदेवी के घर वाले वहां नहीं पहुंचे. संबंधित थाना धनारी को घटना की सूचना दे दी गई. सूचना पा कर इंसपेक्टर सतेंद्र भड़ाना कुछ पुलिसकर्मियों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. थानाप्रभारी की सूचना पर एएसपी आलोक जायसवाल और सीओ (गुन्नौर) डा. के.के. सरोज भी वहां पहुंच गए.

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सुखदेवी और बंटी की लाशें एक ही पेड़ से लटकी हुई थीं. सुखदेवी के गले में हरे रंग के दुपट्टे का फंदा था तो बंटी के गले में प्लास्टिक की रस्सी का. दोनों के चेहरे तेजाब जैसे किसी पदार्थ से झुलसे हुए थे. प्रथमदृष्टया मामला आत्महत्या का था, लेकिन दोनों के चेहरे झुलसे होने से हत्या का शक भी जताया जा रहा था.

पुलिस अधिकारियों ने मौके पर मौजूद मृतक बंटी के पिता बिन्नामी से आवश्यक पूछताछ की. फिर इंसपेक्टर सतेंद्र भड़ाना को दिशानिर्देश दे कर दोनों अधिकारी चले गए. इस के बाद पुलिस ने जरूरी काररवाई कर दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का सही कारण नहीं आ पाया. 7 जुलाई, 2020 को सुखदेवी के भाई कुलदीप उर्फ सूखा का शव गढ़ा के जंगल में नीम के पेड़ से लटका मिला. उसी जगह जहां सुखदेवी और बंटी के शव मिले थे.

थानाप्रभारी सतेंद्र भड़ाना तत्काल पुलिस टीम के साथ वहां पहुंचे. सीओ के.के. सरोज भी फोरैंसिक टीम के साथ पहुंच गए.

कुलदीप का शव प्लास्टिक की रस्सी से लटका हुआ था और उस का चेहरा भी तेजाब से झुलसा हुआ लग रहा था. लाश का निरीक्षण करने पर पता चला कि तीनों की मौत का तरीका एक जैसा ही था. मुआयना करने के बाद पुलिस को इस मामले में भी हत्या की साजिश नजर आ रही थी.

पहले बंटी व सुखदेवी की मौत और अब सुखदेवी के भाई कुलदीप की मौत आत्महत्या नहीं हो सकती थी. हां, इसे आत्महत्या का रूप दे कर गुमराह करने का प्रयास जरूर किया था.

कुलदीप के घर वालों से पूछताछ की गई तो पता चला कि कुलदीप 25 जून से ही लापता था. लेकिन सुखदेवी और बंटी की मौत के बाद घर वाले पुलिस के पास जाने से डर रहे थे, इसलिए पुलिस तक सूचना नहीं पहुंची.

गढ़ा गांव में 3 हत्याओं के बाद एसपी यमुना प्रसाद एक्शन में आए. उन्होंने इंसपेक्टर सतेंद्र भड़ाना को जल्दी से जल्दी केस का खुलासा करने के निर्देश दिए.

मृतक बंटी के पिता बिन्नामी की तहरीर पर इंसपेक्टर भड़ाना ने अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धाराओं 302/201/34 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

इस के बाद थानाप्रभारी ने सुखदेवी के घर वालों से पूछताछ की तो सुखदेवी का भाई विनीत उर्फ लाला और किशोरी घर से गायब मिले. पुलिस ने दोनों की तलाश की तो गढ़ा के जंगल से दोनों को हिरासत में ले लिया.

उन से पूछताछ की गई तो इन 3 हत्याओं का परदाफाश हो गया. उन से पूछताछ में कई और लोगों के शामिल होने का पता चला. इस के बाद पुलिस ने गढ़ा गांव के ही जगपाल यादव उर्फ मुल्लाजी और श्योराज को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में सभी ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया और घटना के बारे में विस्तार से बता दिया.

पता चला कि सुखदेवी और बंटी के घर से लापता हो जाने के बाद उन के घर वाले काफी परेशान थे. जबकि बंटी सुखदेवी के साथ अपने गन्ने के खेत में छिप गया था. गांव के जगपाल यादव उर्फ मुल्लाजी ने 26 जून को उन्हें देख लिया. उस ने दोनों के खेत में छिपे होने की बात सुखदेवी के भाई विनीत उर्फ लाला को बता दी.

विनीत ने यह बात अपने भाई किशोरी और गांव के श्योराज को बताई. समाज में बदनामी के डर से विनीत ने जगपाल से अपनी बहन सुखदेवी और बंटी को मारने की बात कही और बदले में ढाई लाख रुपया देने को कहा. जगपाल पेशे से अपराधी था, इसलिए वह हत्या करने को तैयार हो गया.

विनीत ने उसे ढाई लाख रुपए ला कर दे दिए. इस के बाद योजना बना कर रात 11 बजे चारों बंटी के खेत में पहुंचे. वे शराब और तेजाब की बोतल साथ ले गए थे.

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वहां पहुंच कर चारों ने बंटी और सुखदेवी को दबोच लिया. श्योराज ने बंटी को जबरदस्ती शराब पिलाई. फिर श्योराज पास में ही जगपाल के ट्यूबवेल पर पड़े छप्पर में लगी प्लास्टिक की रस्सी निकाल लाया.

इस के बाद सुखदेवी के गले को उसी के हरे रंग के दुपट्टे से और बंटी के गले को प्लास्टिक की रस्सी से घोंट कर मार डाला.

इसी बीच विनीत का छोटा भाई 25 वर्षीय कुलदीप उर्फ सूखा वहां आ गया. उस ने उन लोगों को दोनों हत्याएं करते देख लिया.

विनीत ने उसे समझाबुझा कर वहां से वापस घर भेज दिया. इस के बाद वे लोग दोनों की लाशों को कुछ दूरी पर देवराज यादव उर्फ दानवीर के यूकेलिप्टस के बाग में ले गए. वहां दोनों की लाशों को दुपट्टे व रस्सी की मदद से शीशम के पेड़ पर लटका दिया. इस के बाद उन की पहचान मिटाने के लिए दोनों के चेहरों पर तेजाब डाल दिया गया.

कुलदीप को दौरे पड़ते थे, उन दौरों की वजह से उस का दिमाग सही नहीं था, उस पर भरोसा करना गलत था. वह घटना का लगातार विरोध भी कर रहा था. इस पर चारों लोगों ने योजना बनाई कि कुलदीप को भी मार दिया जाए, नहीं तो वह उन लोगों का भेद खोल देगा.

2 जुलाई, 2020 को विनीत और उस के तीनों साथी कुलदीप को बहाने से रात को जंगल में ले गए. वहां गांव के नेकपाल यादव के खेत में कुलदीप का गला पीले रंग के दुपट्टे से घोंट कर उस की हत्या कर दी और दुपट्टे से बांध कर उस की लाश को नीम के पेड़ पर लटका दिया. उस के चेहरे पर भी तेजाब डाल दिया गया. फिर निश्चिंत हो कर सब घर लौट आए.

कुलदीप की हत्या उन के लिए बड़ी गलती साबित हुई.

थानाप्रभारी सतेंद्र भड़ाना ने अभियुक्तों की निशानदेही पर हत्या के एवज में दिए गए ढाई लाख रुपए, शराब के खाली पव्वे और तेजाब की खाली बोतल बरामद कर ली.

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आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी करने के बाद चारों अभियुक्तों विनीत उर्फ लाला, किशोरी, जगपाल और श्योराज को न्यायालय में पेश किया गया, वहां से उन्हें न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सम्मान की खातिर

सम्मान की खातिर : भाग 2

बंटी ने उस से आंखें खोलने को कहा, मगर सुखदेवी हिम्मत नहीं कर सकी. उस के दोबारा कहने पर सुखदेवी ने अपनी पलकें उठाईं और तुरंत झुका लीं. तभी बंटी ने उस की आंखों को चूम लिया. सुखदेवी घबरा गई. उस ने वहां से उठना चाहा. मगर बंटी ने उसे उठने नहीं दिया. वह शर्म के मारे कांपने लगी. उस के होंठों की कंपकंपाहट से बंटी अच्छी तरह वाकिफ था. मगर वह उसी समय अपने प्यार का इजहार कर देना चाहता था.

तभी उस ने सुखदेवी की कलाई पकड़ कर कहा, ‘‘मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं, मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता, मैं सचमुच तुम से बहुत प्यार करता हूं.’’

बंटी की बात सुन कर सुखदेवी आश्चर्यचकित रह गई. उस ने बंटी को समझाना चाहा, मगर बंटी अपनी जिद पर ही अड़ा रहा. सुखदेवी ने कहा, ‘‘बंटी, मैं तुम्हारी बहन हूं. हमारा प्यार कोई कैसे स्वीकार करेगा.’’

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मगर बंटी ने इन सब बातों को खारिज करते हुए सुखदेवी को अपनी बांहों में समेट लिया और प्यार से उस के होंठों पर अपने प्यार की मोहर लगा दी.

सुखदेवी के लिए यह किसी पुरुष का पहला स्पर्श था, जिस ने उसे मदहोश कर दिया और वह बंटी की बांहों में कसमसाने लगी. सुखदेवी चाह कर भी अपने आप को उस से अलग नहीं कर पा रही थी. कुछ क्षणों तक चले इस प्रेमालाप से सुखदेवी मदमस्त हो गई, तभी अचानक बंटी उस से अलग हो गया. सुखदेवी तड़प उठी. बंटी के स्पर्श से छाया खुमार जल्दी ही उतरने लगा. वह बिना कुछ कहे घर के दरवाजे की तरफ बढ़ी तो पीछे से बंटी ने उसे कई आवाजें लगाईं, मगर सुखदेवी नजरें झुकाए चुपचाप बाहर चली गई.

बंटी घबरा सा गया. उस के दिल में हजारों सवाल सिर उठाने लगे. वह इस दुविधा में फंसा रहा कि सुखदेवी उस का प्यार ठुकरा न दे या फिर ताऊताई से उस की इस हरकत के बारे में न बता दे. इसी सोच में बंटी परेशान रहा, वह पूरी रात सो न सका, बस बिस्तर पर करवटें बदलता रहा.

उधर सुखदेवी का हाल भी बंटी से जुदा न था. वह भी पूरे रास्ते बंटी द्वारा कहे हर लफ्ज के बारे में सोचती रही. घर पहुंच कर वह बिना कुछ खाएपीए अपने बिस्तर पर लेट गई. मगर उस की आंखों में नींद कहां थी.

बंटी का प्यार दस्तक दे चुका था. वह बिस्तर पर पड़ीपड़ी करवटें बदल रही थी. सुखदेवी भी अपनी भावनाओं पर काबू न रख पाई और वह भी बंटी से प्यार कर बैठी. अपने इस फैसले को दिल में लिए सुखदेवी बहुत बेकरारी से सुबह का इंतजार करने में लगी रही.

पूरी रात आंखोंआंखों में कटने के बाद सुखदेवी ने सुबह जल्दीजल्दी घर का सारा काम निपटाया. फिर मां को बता कर बंटी के घर चली गई. सुखदेवी के कदम खुदबखुद आगे बढ़ते जा रहे थे. कभी वह बंटी के प्रेम के बारे में सोचती तो कभी समाज व लोकलाज के बारे में, जाते वक्त कई बार उस ने वापस लौटने की सोची, मगर हिम्मत न जुटा सकी.

वह बंटी के उस जुनून को भी नहीं भुला पा रही थी. क्योंकि कहीं न कहीं उस के दिल में भी बंटी के लिए प्रेम की भावना उछाल मार रही थी. इसी सोचविचार में वह बंटी के घर के दरवाजे पर पहुंच गई लेकिन अंदर जाने की हिम्मत न जुटा सकी. तभी बंटी की नजर उस पर पड़ गई और उसे अंदर जाना ही पड़ा.

उधर बंटी का चेहरा एकदम पीला पड़ा हुआ था. एक रात में ही ऐसा लग रहा था जैसे उस ने कई दिनों से कुछ खायापीया न हो. उस की आंखें लाल थीं, जिस से साफ पता चल रहा था कि वह न तो रात भर सोया है और न ही कुछ खायापीया है.

उस की आंखों को देख कर सुखदेवी समझ गई कि वह बहुत रोया है. सुखदेवी को आभास हो चुका था कि बंटी उस से अटूट प्रेम करता है.

उस ने आते ही बंटी से पूछा कि वह रोया क्यों था? बस फिर क्या था, इतना सुनते ही बंटी की आंखें फिर छलक आईं. उस की आंखों से छलके आसुंओं ने सुखदेवी को इस दुविधा में डाल दिया कि अब उस के मन से समाज की सोच और घर वालों का डर निकल चुका था. वह उस से लिपट गई और उस के चेहरे को चूमने लगी.

उस ने अपने हाथों से बंटी को खाना खिलाया. फिर दोनों एकांत कमरे में बैठ गए. तन्हाई के आलम में बंटी से रहा न गया और उस ने सुखदेवी को अपनी बांहों में भर लिया, सुखदेवी ने विरोध नहीं किया.

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सुखदेवी को इस से पहले कभी ऐसे एहसास का अनुभव नहीं हुआ था. बंटी का हर स्पर्श उस की मादकता को और भड़का रहा था. उस दिन बंटी ने सुखदेवी को पूरी तरह पा लिया.

सुखदेवी को भी यह अनुभव आनंदमई लगा. उसे वह सुख प्राप्त हुआ जो पहले कभी नहीं हुआ था. उस दिन के बाद सुखदेवी के मन में भी बंटी के लिए प्यार और बढ़ गया. अब उस के लिए बंटी ही सब कुछ था.

एक बार जिस्मानी ताल्लुकात कायम हुआ तो यह सिलसिला चलता रहा. दोनों घंटोंघंटों बातें करते. दोनों के लिए एकदूसरे के बगैर रहना मुश्किल होता जा रहा था.

एक दिन उन के प्यार का भेद उन के परिजनों के सामने खुला तो कोहराम सा मच गया. दोनों को समझाया गया कि उन के बीच खून का संबंध होने के कारण उन की शादी नहीं हो सकती, लेकिन वे प्रेम दीवाने कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे.

परिजनों के विरोध से दोनों परेशान रहने लगे. इसी बीच बंटी के घर वालों ने उस की शादी बदायूं जनपद के गांव तिमरुवा निवासी एक युवती से तय कर दी. शादी की तारीख तय हुई 26 जून, 2020. इस से सुखदेवी तो परेशान हुई ही बंटी भी बेचैन हो उठा. बेचैनी में वह काफी देर तक सोचता रहा, फिर उस ने फैसला कर लिया कि वह अब अपने प्यार को ले कर कहीं और चला जाएगा, जहां प्यार के दुश्मन उन को रोक न सकें.

अपने फैसले से उस ने सुखदेवी को भी अवगत करा दिया. सुखदेवी भी उस के साथ घर छोड़ कर दूर जाने को तैयार हो गई.

शादी की तारीख से एक दिन पहले 25 जून, 2020 को बंटी सुखदेवी को घर से ले भाग गया. उन के भाग जाने की भनक दोनों के घर वालों को लग गई. उन्होंने तलाशा लेकिन कोई पता नहीं चला.

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सम्मान की खातिर : भाग 1

बंटी की अजीब सी स्थिति थी. उस का दिमाग चेतनाशून्य हो चला था. मन में तूफान सा मचा हुआ था. यही तूफान सा चल रहा था. बेचैनी का आलम यह था कि कभी बैठ जाता तो कभी उठ कर चहलकदमी करने लगता. अचानक उस का चेहरा कठोर हो गया, जैसे किसीफैसले पर पहुंच गया हो, लगा जैसे उस फैसले के अलावा कुछ हो ही न सकता हो.

बंटी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के संभल जिले के थाना धनारी के गांव गढ़ा में रहता था. उस के पिता का नाम बिन्नामी और माता का नाम शीला था. बिन्नामी खेतीकिसानी का काम करते थे.

22 वर्षीय बंटी इंटर पास था. उस के बड़े भाई संदीप का विवाह हो चुका था. बंटी से छोटे 2 भाई तेजपाल और भोलेशंकर के अलावा छोटी बहनें कश्मीरा, सोमवती और राजवती थीं.

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उस के पड़ोस में उस के ताऊ तुलसीदास रहते थे. परिवार में उन की पत्नी रमा देवी और 8 बेटे थे. बेटी एक ही थी सुखदेवी, जो सब भाइयों से छोटी थी.

रिश्ते में बंटी और सुखदेवी तहेरे भाईबहन थे. बचपन से दोनों साथ खेलेघूमे थे. दोनों को एकदूसरे का साथ खूब भाता था. समय के साथ बचपन कब जवानी के प्यार की तरफ बढ़ने लगा, उन को एहसास भी नहीं हुआ.

जवान होती सुखदेवी के सौंदर्य को देखदेख कर बंटी आश्चर्यचकित था. सुखदेवी पर छाए यौवन ने उसे आकर्षक युवती बना दिया था. उस के नयननक्श में अब गजब का आकर्षण पैदा हो गया था.

उस के गालों पर उतरी लाली ने उसे इतना आकर्षक बना दिया था कि बंटी खुद पर काबू न रख सका और उसे पाने को लालायित हो उठा. उस के छरहरे बदन में यौवन की ताजगी, कसक और मादकता थी.

बंटी उस की चाहत में डूबता चला गया. वह भूल गया कि वह उस की तहेरी ही सही, लेकिन बहन है.

एक दिन बंटी जब सुखदेवी के घर गया तो उसे एकटक देखने लगा. सुखदेवी इस से बेखबर अपने काम में व्यस्त थी. जब उस की मां रमा ने उसे आवाज दी, ‘‘ऐ सुखिया, देख बंटी आया है.’’ तो उस का ध्यान बंटी की तरफ गया.

सुखदेवी को भी बंटी पसंद था, मगर उस रूप में नहीं जिस रूप में उसे बंटी देख रहा था और उसे पाने की चाह में तड़पने लगा था.

रमा देवी ने फिर आवाज लगाई. सुखदेवी ने तुरंत एक गिलास पानी और थोड़ा मीठा ला कर बंटी के सामने रख दिया. पानी का गिलास हाथ में पकड़ाते हुए वह बोली, ‘‘क्या हाल हैं जनाब के?’’

बंटी ने उस से पानी का गिलास लिया तो उस का स्पर्श पा कर वह और ज्यादा व्याकुल हो उठा. इधर सुखदेवी ने उस के गालों को खींच कर कहा, ‘‘कहां खो गए जनाब?’’

इस के बाद वह चाय बनाने चली गई. बंटी का पूरा ध्यान सुखदेवी की तरफ ही था, जो किचन में उस के लिए चाय बना रही थी.

वह इस कदर व्याकुल था कि दिल हुआ किचन में जा कर खड़ा हो जाए. जब सुखदेवी चाय ले कर आई तो बंटी की बेचैनी थोड़ी कम हुई.

सुखदेवी ने जब बंटी को चाय दी तो उस ने पुन: उसे छूना चाहा, मगर नाकाम रहा. तभी उस की ताई को कुछ काम याद आ गया और वह उठ कर बाहर चली गईं. इधर बंटी की धड़कनें रेल के इंजन की तरह दौड़ने लगीं. वह घबराने लगा. मगर एक खुशी भी थी कि उस तनहाई में वह सुखदेवी को देख सकता है.

सुखदेवी फिर अपने काम में लग गई, मगर बंटी के कहने पर वह उस के करीब ही चारपाई पर बैठ गई. बंटी का दिल चाह रहा था कि वह उसे अपनी बांहों में भर ले और प्यार करे, मगर झिझक उसे रोक रही थी. वह अपने जज्बातों को काबू कर के उस की बातें सुन रहा था. वह बारबार हंसती तो बंटी के मन में फूल खिल उठे.

थोड़ी ही देर में बंटी को न जाने क्या हुआ, वह उठा और जाने लगा. तभी सुखदेवी ने उस का हाथ पकड़ कर पूछा, ‘‘कहां जा रहे हो?’’

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मगर बंटी ने बिना कुछ कहे अपना हाथ छुड़ाया और वहां से चला गया. सुखदेवी उस से बारबार पूछती रही.

मगर वह रुका नहीं और बिना पीछे देखे चला गया.

उस दिन के बाद बंटी को कुछ अच्छा नहीं लगता था, वह बस सुखदेवी के खयालों में ही खोया रहता था, मगर चाह कर भी वह उस से मन की बात नहीं बता पाता था. उस के मन में पैदा हुई दुविधा ने उसे उलझा रखा था. तहेरी बहन से प्रेम की इच्छा ने उस के दिलोदिमाग को हिला रखा था. मगर सुखदेवी के यौवन का रंग बंटी पर चढ़ चुका था.

एक दिन बंटी घर पर अकेला था और सुखदेवी के खयालों में खोया हुआ था. वह चारपाई पर लेटा ही था, तभी सुखदेवी उस के घर पहुंची और बिना कुछ कहे सीधे अंदर चली गई. बंटी उसे देख कर आश्चर्यचकित रह गया. कुछ देर तक वह उसे देखता रहा. तभी सुखदेवी ने सन्नाटा भंग करते हुए कहा, ‘‘क्या हाल है? क्या मुझे बैठने तक को नहीं कहोगे?’’

‘‘कैसी बात कर रही हो, आओ तुम्हारा ही घर है.’’ बंटी ने कहा तो सुखदेवी वहीं पड़ी चारपाई पर बैठ गई.

सुखदेवी बैठते ही बंटी की ओर देख कर कहने लगी, ‘‘क्या बात है आजकल तुम घर नहीं आते? मुझ से कोई गलती हो गई है कि उस दिन तुम बिना कुछ कहे घर से चले आए.’’

बंटी मूक बैठा बस सुखदेवी को निहारे जा रहा था. सुखदेवी ने जब उसे चुप देखा तो उस के करीब बैठ गई और उस के हाथों को अपने हाथों में ले कर बोली, ‘‘बोलो न क्या हुआ? तुम इतने चुपचुप क्यों हो, क्या कोई बात है जो तुम्हें बुरी लग गई है. मुझे बताओ न, तुम तो हमेशा हंसते थे, मुझ से ढेर सारी बातें करते थे. मगर अब क्या हुआ तुम्हें, इतने खामोश क्यों हो?’’

मगर बंटी एक अलग ही दुविधा में फंसा हुआ था. सुखदेवी की बातें सुन कर वह अचानक उस की ओर घूमा और उसे बड़े गौर से देखने लगा. तभी सुखदेवी ने उस से पूछा कि वह क्या देख रहा है, मगर बंटी जड़वत बना उसे घूरता जा रहा था. सुखदेवी भी उस की निगाहों के एहसास को महसूस कर रही थी, शायद इसलिए वह नजरें झुकाए खामोश बैठी रही.

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बंटी उस से प्रेम का इजहार करना चाहता था, मगर इस दुविधा में था कि वह तहेरी बहन है. मगर अंत में प्रेम की जीत हुई. उस ने सुखदेवी के चेहरे को अपने हाथों में ले लिया. बंटी के इस व्यवहार से सुखदेवी थोड़ा घबरा गई. मगर अपनी धड़कनों पर काबू पा कर उस ने अपनी दोनों मुट्ठियों को बहुत जोर से भींचा और आंखें बंद कर लीं.

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रसरंगी औरत का प्यार

रसरंगी औरत का प्यार : भाग 3

बेटे अभि को अपने पास बुलाने के लिए उस ने अपने ननदोई राजीव से संपर्क किया. उस ने राजीव को 30 हजार रुपए का लालच देते हुए कहा कि अगर वह उस के बेटे को सुखपाल के पास से ले आए तो उसे 30 हजार रुपए देगी.

लौकडाउन में 30 हजार रुपए मिलने वाली बात सुनते ही राजीव ने सुखपाल को अपने विश्वास में ले कर अभि को साथ लिया और उसे मुरादाबाद पहुंचा दिया.

देश में लौकडाउन लगते ही सभी अपने घरों में कैद हो कर रह गए थे. शहर या गांव सभी जगह कामकाज मिलना बंद हुआ तो सुखपाल खर्च के लिए पैसेपैसे को तरसने लगा. उस ने गांव की जो जमीन बेची थी उस का बाकी पैसा भी मंजू के पास ही था. मंजू से कुछ खर्च के लिए पैसे मिल जाएं यह सोच कर वह हिम्मत कर के गोविंद नगर जा पहुंचा.

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सुखपाल को अचानक घर आया देख पहले तो मंजू उस से बोलने तक को तैयार न थी. लेकिन पता नहीं उस के दिमाग में ऐसा क्या चल रहा था कि जल्द ही वह मोम की तरह पिघल गई. उस ने पति को खाना बना कर दिया. फिर वह उस के साथ गांव आ गई.

गांव आ कर वह सुखपाल के साथ हंसीखुशी से रहने लगी. जब राजीव को सुखपाल के गांव आने वाली बात पता चली तो वह भी उस के घर के चक्कर लगाने लगा. मंजू और राजीव के बीच पहले से ही अवैध संबंध थे. राजीव से मंजू का पुनर्मिलन हुआ तो उस का दिल बागबाग हो उठा.

लौकडाउन के चलते राजीव भी अपनी ससुराल में आ कर पड़ा रहने लगा. उसी दौरान मंजू ने अपने ननदोई को विश्वास में लेते हुए कहा कि अगर वह सुखपाल को अपने बीच से हटाने में उस का साथ दे तो उस की 2 बीघा जमीन बेच कर वह सारे पैसे उसे देगी. तब दोनों के मिलने को रोकनेटोकने वाला कोई नहीं होगा.

मंजू की बात सुनते ही राजीव लालच में आ कर अपने साले को ही मौत की नींद सुलाने के लिए साजिश में शामिल हो गया. राजीव को साथ देने के लिए पक्का कर के मंजू फिर से मुरादाबाद पहुंची. मुरादाबाद जाते ही उस ने राजकुमार को भी अपने लटकेझटके दिखाने के बाद उसे भी मकान का लालच दे कर साजिश में शामिल होने को कहा.

राजकुमार तो पहले ही उस मकान पर निगाहें गड़ाए बैठा था. जिस राह की खोज में वह काफी समय से भटक रहा था, वह राह उसे मंजू ने स्वयं दिखा दी. मंजू ने राजकुमार को गोविंद नगर का मकान और उस के साथ सदा के लिए जीवनयापन करने की पट्टी पढ़ा कर अपनी योजना में शामिल कर लिया.

जब मंजू को पूरा यकीन हो गया कि उस के दोनों दीवाने उस की हर तरफ से सहायता करने को तैयार हैं तो उस ने सुखपाल को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली.

राजकुमार से बात करने के बाद वह फिर से सुखपाल के पास गांव आ गई. पति के पास आ कर उस ने प्रेम का नाटक करना शुरू किया.

सुखपाल उस की मंशा को जाने बिना उस की मीठीमीठी बातों में फंस कर उस के साथ बिताए बुरे दिनों को पल भर में भुला बैठा.

इस घटना को अंजाम देने से 5 दिन पहले मंजू ने सुखपाल से अपनी ननद ऊषा देवी के पास जाने की मंशा जाहिर की.

सुखपाल अब किसी भी तरह उस के दिल को कोई ठेस नहीं पहुंचाना चाहता था. इसीलिए वह उसे साथ ले कर अपनी बहन ऊषा के गांव खाईखेड़ा पहुंच गया.

अपनी ननद के पास 4 दिन तक मेहमाननवाजी करते हुए वह सुखपाल को मौत की नींद सुलाने की योजना बनाती रही. लेकिन वह योजना को अंतिम रूप नहीं दे पा रही थी. अपनी ननद के घर से ही उस ने राजकुमार को फोन कर के वहीं पर बुला लिया.

राजकुमार के आते ही ऊषा के घर पर हर रोज दावत होने लगी. राजकुमार ने अपनी शानशौकत दिखाते हुए वहां पर शराब और मीट मछली बनाने खाने में काफी पैसा खर्च कर दिया.

खाना खाने के बाद राजकुमार, राजीव और मंजू को एकांत में ले जा कर सुखपाल को मौत के घाट उतारने की योजना बनाते रहे.

उसी योजनानुसार मंगलवार 14 जुलाई की रात फिर से राजीव के घर पर दावत का प्रोग्राम बना. उस शाम राजकुमार और राजीव ने सुखपाल को जम कर शराब पिलाई. काफी देर तक खानेपीने का प्रोग्राम चलता रहा. जब रात काफी हो गई तो सारे दिन की थकीहारी ऊषा अपने दोनों बच्चों को साथ ले कर मकान की छत पर चली गई.

ऊषा के छत पर जाते ही मौका पा कर मंजू ने राजीव, राजकुमार व सुखपाल से गांव के पास ही बाग में आम खाने की बात कही और रात 11 बजे उन को साथ ले कर घर से निकल गई. आम खाने की बात सुनते ही सुखपाल नशे में धुत होने के बावजूद उन के साथ जाने को तैयार हो गया था.

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चारों एक साथ गांव से लगभग एक किलोमीटर दूर हसनगंज गांव की सीमा में ईट भट्ठे के पास पीपल के पेड़ से लगे कुएं के पास पहुंचे. कुएं की दीवार पर बैठते ही नशे में डूबा सुखपाल फैल गया. उस के नशे से बेहोश होते ही मंजू अपना आपा खो बैठी. उस ने बड़ी ही फुरती से पति के पैर पकड़े और अपने ननदोई राजीव और राजकुमार से धारदार हथियार से बार करने को कहा.

उस समय वैसे भी रात का अंधेरा छाया हुआ था, ऊपर से राजीव और राजकुमार बुरी तरह नशे में धुत थे. मंजू के कहते ही राजीव और राजकुमार कसाई बन सामने बेहोश पड़े सुखपाल पर ताबड़तोड़ प्रहार करने लगे.

सुखपाल पर पहला प्रहार होते ही वह उठ बैठा था. लेकिन उस के बाद तीनों ने उसे दबोच लिया और तेजधार वाले हथियार से उसे काट कर मार डाला. सुखपाल को मौत की नींद सुलाने के बाद तीनों ने उस की गरदन भी काट दी. फिर उस की लाश कुएं में फेंक दी.

लाश को छिपाने के लिए उन्होंने बाग में से पत्ते इकट्ठे किए और उस की लाश के ऊपर डाल दिए. सुखपाल की हत्या करने के बाद तीनों चोरीछिपे घर पर आ कर सो गए. उस समय तक सुखपाल की बहन ऊषा गहरी नींद में सो चुकी थी. उसे कुछ पता नहीं चल पाया था.

सुबह होने पर उस ने मंजू और अपने पति राजीव से भाई सुखपाल के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि रात सुखपाल ने कुछ ज्यादा ही पी ली थी. उस के बाद वह सो गया था. लेकिन वह रात में पता नहीं कहां गायब हो गया था.

यह सुनते ही ऊषा ने अपने भाई के साथ किसी अनहोनी होने की आशंका के चलते मंजू से थाने जा कर रिपोर्ट दर्ज कराने को कहा.

इस केस के खुलते ही पुलिस ने मृतक की बीवी मंजू उस के ननदोई प्रेमी राजीव पर भादंवि की धारा 364/302/201 के अंतर्गत केस दर्ज कर कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

कहानी लिखे जाने तक इस मामले का तीसरा अभियुक्त राजकुमार पुलिस की पकड़ से बाहर था. मंजू ने अपने पति की जिंदगी के साथ जो खेल खेला उस से उस पर कोई फर्क नहीं पड़ा.

पति की हत्या में गिरफ्तार हुई मंजू के चेहरे पर गम की कोई शिकन तक नहीं थी. उस का कहना था कि उसे पति की हत्या का कोई पछतावा नहीं है.

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मंजू ने पुलिस को दोटूक जबाव दिया कि वह जेल से आने के बाद भी दोनों प्रेमियों के साथ रहेगी. उसे अपने बच्चों के भविष्य को ले कर किसी तरह की चिंता नहीं थी, जो अनाथ हो गए थे. उस का बेटा अभि उस की तहेरी दादी गंगा देवी के पास रह रहा था. जबकि उस की बेटी उस की नानी के साथ चली गई थी.

रसरंगी औरत का प्यार : भाग 1

15 जुलाई, 2020 की सुबह करीब 9 बजे मंजू नाम की महिला गांव के कुछ लोगों के साथ जनपद मुरादाबाद के थाना मूंडा पांडे पहुंची. उस ने थानाप्रभारी नवाब सिंह को बताया कि वह 4 दिन पहले अपने पति सुखपाल के साथ ननद ऊषा की ससुराल खाईखेड़ा आई थी. कल 14 जुलाई, 2020 की रात को उस का पति वहीं से अचानक गायब हो गया.

पुलिस पूछताछ में मंजू ने यह भी बताया कि उस का पति देर रात अपने बहनोई राजीव के साथ घर से निकला था. लेकिन उस के बाद उस का बहनोई तो घर वापस आ गया लेकिन उस के पति का कोई अतापता नहीं है.

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किसी मामले में अगर किसी आरोपी का नाम पहले ही सामने आ जाता है तो पुलिस की सिरदर्दी काफी कम हो जाती है. इस मामले में भी पुलिस ने कुछ राहत की सांस ली और सब से पहले इस आरोपी राजीव कुमार को हिरासत में लेना जरूरी समझा. थानाप्रभारी उसी वक्त राजीव के गांव खाईखेड़ा पहुंचे तो राजीव तो घर पर नहीं मिला. लेकिन उस की पत्नी ऊषा ने जो बताया, उस ने इस केस को और भी उलझा दिया.

ऊषा ने बताया कि उस की भाभी के साथ मुरादाबाद निवासी राजकुमार भी था, जिसे वह भैया बता रही थी. 14 जुलाई की देर रात वह सभी मेहमानों को खाना खिलाने के बाद घर का काम खत्म कर अपने बच्चों को ले कर छत पर सोने चली गई थी. उस के बाद उस का भाई सुखपाल अचानक कहां गायब हो गया उसे कुछ नहीं मालूम.

उस रात उस के भाई सुखपाल, राजकुमार ने उस के पति के साथ शराब भी पी थी. जिस के बाद तीनों पर ज्यादा नशा हावी हो गया तो गांव के पास बगीचे में आम खाने की बात कह कर घर से निकल गए थे. वहां पर आम खाने के बाद राजीव और राजकुमार तो घर वापस आ गए, लेकिन सुखपाल अचानक गायब हो गया था.

पुलिस जिस केस को आसान समझ रही थी, इस जानकारी के बाद वह पुलिस के लिए काफी जटिल बन गया. क्योंकि ऊषा ने पुलिस को जो जानकारी दी थी, वह सुखपाल की बीवी मंजू ने ही उस के पूछने पर बताई थी.

इस मामले में पुलिस को सब से पहले सुखपाल की बीवी मंजू की बातों में झोल नजर आ रहा था. लेकिन पुलिस को लिखित तहरीर मंजू ने दी थी. इसलिए पुलिस पहले इस मामले में जानकारी जुटाना चाहती थी. पुलिस ने सब से पहले राजीव कुमार से पूछताछ करना ठीक समझा. उस की तलाश की गई तो वह जल्दी ही पुलिस के हत्थे चढ़ गया.

राजीव ने पुलिस को गुमराह करते हुए बताया कि उस रात वह उन सभी के साथ आम खाने बाग में गया जरूर था, लेकिन आते समय सुखपाल न जाने अचानक कहां गायब हो गया.

राजीव ने पुलिस को यह भी बताया कि उस की बीवी मंजू भी उस के साथ थी. उस के बाद उन्होंने उसे काफी ढूंढने की कोशिश की, लेकिन उस का कहीं पता न चला.

उन्होंने सोचा कि उसे शायद कुछ ज्यादा ही नशा हो गया था. जिस के कारण वह पीछे आतेआते कहीं बैठ गया होगा. उन्हें उम्मीद थी कि वह खुद ही घर चला आएगा. लेकिन हम सब देर रात तक उस का इंतजार करते रहे, वह नहीं आया. उस के बाद उसे सुबह में भी सब जगह पर तलाशा लेकिन उस का कहीं भी अतापता न चल सका.

इस मामले की पूछताछ की हर कड़ी में एक नई जानकारी जुड़ रही थी. जिस से पुलिस को लगने लगा था कि सुखपाल इस दुनिया में नहीं रहा. राजीव कुमार की बातों से पुलिस को सारी कहानी समझ आ गई थी. पुलिस यह भी जानती थी कि यह मामला इतनी जल्दी खुलने वाला नहीं है.

तभी थानाप्रभारी ने अपनी चाल चलते हुए राजीव कुमार से प्रश्न किया, ‘‘लेकिन उस की बीवी मंजू का कहना है कि तुम ने उस की हत्या कर डाली है.’’

यह सुनते ही राजीव बोला, ‘‘वो सरासर झूठ बोल रही है, सर. सुखपाल की हत्या की पूरी योजना तो उसी की थी. इस में वह खुद शामिल थी.’’

इस के बाद पुलिस ने सुखपाल की पत्नी मंजू को भी हिरासत में ले लिया.

इस केस के खुलते ही पुलिस ने मंजू और उस के ननदोई राजीव कुमार की निशानदेही पर कुएं से सुखपाल का शव बरामद कर लिया. शव मिलने के बाद पुलिस ने काररवाई कर के उस की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. पोस्टमार्टम हो जाने के बाद पुलिस ने उस की डैडबौडी सुखपाल के परिवार वालों को सौंप दी. पुलिस पूछताछ में राजीव, मंजू और उस के प्रेमी राजकुमार के जुर्म की जो दास्तान उभर कर सामने आई. वह इस प्रकार थी –

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उत्तर प्रदेश के मुरादाबादरामपुर हाईवे से उत्तर दिशा में एक छोटा सा गांव है हरसैनपुर. इस गांव में ठाकुर जाति के लोग रहते हैं. आज भी सरकार द्वारा उपलब्ध कराई जा रही आधुनिक सुखसुविधा प्रदान करने के बाद भी यह गांव पिछड़ा हुआ सा लगता है. यहां के घरों में आज तक बाथरूम और शौचालय तक नहीं है. इसी गांव में रहता था, रतन सिंह का परिवार.

रतन सिंह के पास गांव में लगभग 8 बीघा खेती की जमीन थी, जिस के सहारे उस के परिवार का पालनपोषण होता था. रतन सिंह का सीमित परिवार था. उस के घर में उस की बीवी और 3 बच्चों को मिला कर 5 सदस्य थे. 3 बच्चों में सब से बड़ी बेटी ऊषा थी. उस के बाद राजबाला तथा सुखपाल थे. दोनों बेटियों की शादी हो चुकी था. सुखपाल ने बड़े होते ही घर की जिम्मेदारी संभाल ली. सुखपाल राजगीर का काम करता था.

अब से लगभग 6 साल पहले उस का विवाह गांव कनौबी निवासी राजेंद्र की बेटी मंजू के साथ हो गया था. शुरू से मंजू का सपना किसी शहरी युवक से शादी करने का था. जो सुखपाल के साथ शादी होने के बाद एक छोटे से घर में आ कर बिखर गया था. मंजू सुखपाल को कभी भी अपने दिल में जगह नहीं दे पाई थी. दूसरी तरफ सुखपाल उस के लिए कुछ भी करने को तैयार रहता था.

मांबाप की मौत के बाद सुखपाल अकेला पड़ गया था. उस के घरेलू खर्च भी बढ़ गए थे. लेकिन खेती से सीमित आय ही होती थी. जिस के कारण उसे गांव में राजगीरी करनी पड़ती थी. वह सारे दिन काम करने के बाद शाम को थकाहारा घर लौटता और रात का खाना खा कर जल्दी सो जाता. यह बात मंजू को बिलकुल पसंद नहीं थी.

उस के बावजूद भी वह सुखपाल से तरहतरह की फरमाइशें पूरी कराती रहती थी, जिन्हें वह किसी न किसी तरह से पूरी करता था. लेकिन मंजू को इतने से भी तसल्ली नहीं होती थी. वह जानती थी कि सुखपाल उसे बहुत प्यार करता है. इसी का लाभ उठाते हुए वह उस पर हावी होती गई.

इसी बीच मंजू ने एक बेटे को जन्म दिया. जिस का नाम अभिमन्यु रखा गया. लेकिन प्यार से सब उसे अभि कह कर पुकारते थे. सुखपाल को उम्मीद थी कि बच्चा हो जाने के बाद पत्नी के व्यवहार में बदलाव आ जाएगा, लेकिन उस का दिमाग और भी सातवें आसमान पर चढ़ गया था.

घर में तकरार बढ़ी तो सुखपाल शराब का आदी हो गया. एक बच्चे की मां बन जाने के बाद मंजू की खूबसूरती में चार चांद लग गए थे. इअ वह और भी ज्यादा सजसंवर कर रहने लगी थी.

राजीव का गांव सुखपाल के गांव के पास ही था. वह वक्तबेवक्त ससुराल आताजाता रहता था. मंजू के बच्चा होने के समय राजीव काफी समय तक अपनी बीवी ऊषा के साथ वहीं पर रहा था.

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सुखपाल दिन निकलते ही अपने काम पर चला जाता, लेकिन राजीव दामाद होने के नाते घर पर ही पड़ा रहता था. मौके का फायदा उठाते हुए वह मंजू के साथ लच्छेदार बातें करने लगा. जो उस के मन को भी भाने लगी थीं.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

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