घी के साथ खाएं ये चीजें और हड्डियों को बनाएं मजबूत

घी खाने के कितने फायदे होते है ये तो आप सभी भली प्रकार जानते होंगे. घी हमारे शरीर के लिए कितना जरुरी है. जिससे आपकी सेहत अच्छी रहती है और स्कीन के भी फायदे होते है लेकिन आज हम इस आर्टिकल में ये बताएंगे कि आप घी के साथ ऐसी कौन सी चीजे खाएं जिससे आपकी हड्डियां मजबूत हो. घी में कुछ ऐसी चीजे मिलाकर खाने से आपका स्वास्थ्य ठीक रहेंगा और स्वस्थ महसूस करेंगे. बता दें कि घी के अंदर जरूरी विटामिंस और मिनरल्स मौजूद होते हैं ऐसे में यह हड्डियों को मजबूत रखने के साथ-साथ गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से आराम भी पहुंचा सकते हैं.

  • अंडे के अंदर न केवल प्रोटीन पाया जाता है बल्कि जरूरी विटामिन जैसे विटामिन डी भी मौजूद होते हैं. वहीं यह कैल्शियम से भी भरपूर है. ऐसे में यदि आप अंडे को घी में बनाकर खाते हैं तो इससे हड्डियों को भरपूर पोषक तत्व मिल सकते हैं. यह गठिया जैसी समस्याओं से भी राहत दिला सकता है.
  • यदि दूध में घी डालकर पिया जाए तो ऐसा करने से न केवल हड्डियों को मजबूत बनाया जा सकता है बल्कि हड्डियों की कई समस्याओं से राहत भी मिल सकती है.
  • आलू में कैल्शियम, मैग्नीशियम और पोटेशियम पाया जाता है. ऐसे में यदि आलू को घी के साथ खाया जाए तो यह शरीर में तेजी से अवशोषित होने लगते हैं और सेहत को फायदा मिलता है.
  • यदि हरी सब्जियों के साथ घी का सेवन किया जाए तो ऐसा करने से भी हड्डियों से जुड़ी कई समस्याओं से राहत मिल सकती है. बता दें कि हरी सब्जियों में कैल्शियम, फास्फोरस और विटामिन डी पाया जाता है जो सेहत के लिए बेहद उपयोगी होता है.
  • यदि घी रोटी के ऊपर लगाकर खाया जाए तो ऐसा करने से भी हड्डियों को कई तरीकों से फायदा पहुंच सकता है. बता दें कि गेहूं के अंदर कैल्शियम, विटामिन डी आदि पोषक तत्व पाए जाते हैं जो आंखों की सेहत के लिए अच्छे होते हैं.

 

कम उम्र में क्यों होता है पुरुषो में हेयर लॉस, क्या है इसके कारण?

किसी इंसान के बाल 13 से 30 साल की उम्र के बीच झड़ जाएं तो ये वाकई परेशान करने वाला हो सकता है. सौभाग्य से, किशोरों में बालों के झड़ने के अधिकांश मामलों को मूल कारण समझने के बाद सफलतापूर्वक रोका जा सकता है. इसलिए, इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि, कम उम्र में हेयर लॉस क्यों होता है? इसके अलावा, छोटी उम्र में बाल झड़ने के कारण के बारे में भी जानकारी देंगे. इन कारणों को जानकर और उनका इलाज करके इस समस्या से छुटकारा पा सकते हैं.

क्या होता है हेयर लॉस

अत्यधिक तनाव, नींद की कमी और क्रैश डाइट के कारण किशोरों में बालों के झड़ने की समस्या हो सकती है. पोषक तत्वों की कमी, हार्मोनल असंतुलन और बालों की खराब देखभाल के तरीके अन्य सामान्य कारण हैं. ऑटोइम्यून, आनुवांशिक और मनोवैज्ञानिक विकारों जैसी गंभीर चिकित्सा स्थितियां भी बालों के झड़ने का कारण हो सकती हैं. इन स्थितियों में तत्काल चिकित्सा की आवश्यकता होती है.

कम उम्र में हेयर लॉस के क्या है कारण

1. हार्मोनल बदलाव

यौवन और किशोरावस्था के दौरान हार्मोनल परिवर्तन से बालों का झड़ना शुरू हो सकता है. थायराइड और प्रजनन हार्मोन बालों के विकास को नियंत्रित करते हैं, और उनके असंतुलन से बालों के झड़ने की समस्या हो सकती है. थायराइड समस्याओं के कारण बालों का झड़ना पुरुषों और महिलाओं दोनों में आम है. पीसीओएस से संबंधित महिलाओं में बालों का झड़ना प्रारंभिक किशोरावस्था में शुरू हो सकता है.

2. सही पोषण न मिलना

रिफाइंड आटे और चीनी से बनने वाले खाद्य पदार्थों के सेवन और खानपान की खराब आदतें पोषक तत्वों की कमी पैदा कर सकती हैं. एनीमिया (लोहे की कमी के कारण), बुलीमिया, एनोरेक्सिया और क्रैश डाइट किशोरावस्था में और कम उम्र में बाल झड़ने के सामान्य कारण हैं.

3. बहुत ज्यादा तनाव लेना

किशोरावस्था में इंसान शारीरिक और मानसिक परिवर्तनों से गुजरता है. ये इंसान में तनाव पैदा कर सकते हैं. शिक्षा, पारिवारिक दायित्व, सामाजिक और व्यक्तिगत संबंध, और साथ के लोगों का दबाव उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भारी पड़ सकता है. इससे बालों का झड़ना शुरू हो सकता है.

4. बहुत ज्यादा स्टाइल करना

हेयर स्टाइलिंग टूल्स (ब्लो ड्रायर, हेयर स्ट्रेटनर और कर्लिंग आयरन) का इस्तेमाल करना भी अक्सर बालों को नुकसान और टूटने का कारण बन सकता है. बालों को कलर करना, पर्मिंग, स्ट्रेटनिंग और बालों को बार-बार रिलैक्स करना भी बालों के झड़ने का कारण हो सकता है.

जानें पुरुषों के लिए कैसे फायदेमंद होता है बेकिंग सोडा

बेकिंग सोडा एक ऐसा इंग्रेडिएंट है जो हर तरह की प्रौब्लम में कामगार साबित होता है और ये आसानी से आप सभी के घरों में मिल जाता है अगर घर पर नहीं तो आसपास की दुकान पर भी आसानी से मिल जाता है. जिसका उपयोग सिर्फ खाना पकाने में ही नहीं किया जाता है बल्कि ऐसी कई चीजे है जहां इनका उपयोग करके कई तरह की समस्याओं से निजात पाया जा सकता है. सोडा आपके बाल, स्किन, बॉडी और पूरी शरीर का स्वस्थ रखने के काम आता है.

1. बालों और स्कैल्प को करता है साफ

बेकिंग सोडा आपके बालों और स्कैल्प को गहराई से साफ करने में उपयोगी साबित हो सकता है, लेकिन एक शोध पत्र को छोड़कर इस दावे का कोई वैज्ञानिक समर्थन नहीं है. यह दानेदार सामग्री आपके बालों के रोम में जमा तेल, गंदगी, उत्पादों के अवशेष और अन्य अशुद्धियों को हटाने के लिए एक जेंटल स्क्रबिंग प्रदान कर सकती है.

2. नहाने में भी इस्तेमाल किया जा सकता है

बेकिंग सोडा में एक एल्कलाइन पीएच होता है, जो स्किन पर एसिड को बेअसर करने में मदद करता है. सबसे पहले, यह स्किन की सतह पर जमा पसीने, सीबम और डेड स्किन सेल्स को तोड़ता है. फिर, स्किन पर इसके छोटे-छोटे दानों की मालिश करने से इन अशुद्धियों को दूर करने में मदद मिलती है, आपके रोमछिद्र खुलते हैं और आपकी स्किन कोमल, चिकनी और चमकदार बनती है.

3. खुजली की समस्या में करता है मदद

एक्जिमा, डर्मेटाइटिस, सोरायसिस, इचिथोसिस और रोसैसिया जैसे पुराने रोगों की की स्थिति में सूजन एक खास विशेषता होती है, जो शरीर के विभिन्न हिस्सों पर खुजली, सूखी, पपड़ीदार, लाल और इरिटेड पैच के रूप में प्रकट होती है. बेकिंग सोडा अपने एंटी इंफ्लेमेटरी गुणों के कारण इन लक्षणों को दूर करने में मदद कर सकता है.

4. पीले दांतों को सफेद करता है

बेकिंग सोडा आपके दांतों पर जमा प्लाक और टैटार को घोलने और ढीला करने में मदद करता है और उन्हें इनेमल से हटाने के लिए एक स्क्रब के रूप में काम करता है. यह दांतों की गहरी सफाई करता है और दांतों के जिद्दी दागों से छुटकारा पाने में मदद करता है. इसका बार-बार इस्तेमाल करने पर यह आपके दांतों को सफेद बनाता है.

 

भूलकर भी ना खाएं ये कच्ची सब्जियां, हो सकते हैं बीमार

यह सच है कि सेहतमंद रहने के लिए ढेर सारे फल और सब्जियों का सेवन करना चाहिए.लेकिन ऐसा करते हुए भी कुछ बातों का ध्यान रखने की जरूरत होती है. कई ऐसी सब्जियां हैं जिन्हें ठीक तरह से पकाना बेहद जरूरी होता है और इसे कच्चा बिल्कुल भी नहीं खाना चाहिए. इतना ही नहीं कुछ लोगों का मानना है कि सब्जियों और फलों को बिना किसी प्रोसेसिंग या बिना पकाए खाने से एक्स्ट्रा एनर्जी, बेहतर स्किन, बेहतर डाइजेशन और हार्ट प्रॉब्लम्स और कैंसर का खतरा भी कम हो सकता है. लेकिन यहां यह जानना भी जरूरी है कि कुछ सब्जियां ऐसी होती हैं, जिन्हें भूलकर भी कच्चा नहीं खाया खाना चाहिए. कच्ची सब्जियां खाने से व्यक्ति का शरीर पैरासाइट्स, बैक्टीरिया और जहरीले पदार्थों के संपर्क में आ सकता है, जो स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक हो सकते हैं.

1. अरबी का पत्ता

अरबी के पत्ते को खाने के इस्तेमाल में लेने से पहले हमेशा गर्म पानी में ब्लांच कर लें. पालक और केल पर भी यही नियम लागू होता है.उन्हें गर्म पानी में ब्लांच करें क्योंकि वे हाई ऑक्सालेट लेवल से जुड़े होते हैं, जो ब्लांच करने पर कम हो जाता है.

2. पत्तागोभी

पत्तागोभी को टेपवर्म (कीड़े) और उसके अंडों का घर भी कह सकते हैं, जो खाली आंखों से दिखाई नहीं देते, लेकिन सेहत के लिए बेहद हानिकारक होते हैं. इनमें से कुछ टेपवर्म इतने कठोर होते हैं कि कीटनाशक छिड़के जाने के बाद भी वे बच जाते हैं, इसलिए पत्तागोभी खाने से पहले उन्हें अच्छी तरह से साफ कर लें. पत्तागोभी को साफ करने का सबसे अच्छा तरीका है उसे काटकर गर्म पानी में ब्लांच कर लें और फिर इसे खाने से पहले अच्छी तरह से पकाएं.

3. शिमला मिर्च

शिमला मिर्च को इस्तेमाल करने से पहले उसके बीज निकालें और इसे गर्म पानी से धोएं, क्योंकि बीज टेपवर्म के अंडों का घर भी हो सकते हैं, जो फल के अंदर जीवित रहते हैं.

4. बैंगन

इस सब्जी में भी टेपवर्म का बसेरा हो सकता है. ये हमारे ब्लडसर्कुलेशन में एंट्री कर सकते हैं इसलिए इन सब्जियों को अच्छी तरह से पकाना ही इससे बचने का सबसे अच्छा तरीका है.

 

दिल की बात जुबां पर लाएं लड़कियां

स्कूल की दहलीज पार कर मंजू पहली बार जब कालेज पहुंची तो उस की नजर अपनी ही कक्षा के एक हैंडसम लड़के पर टिकी. पहली नजर में ही उसे उस से प्यार हो गया. वह रोजाना उस लड़के को ताकती रहती. उस का ध्यान व्याख्यान पर कम, उस लड़के पर अधिक रहता. हर समय वह उस के खयालों में खोई रहती. रात को भी उसी के सपने देखती. वही उस के सपनों का राजकुमार था.

मंजू के इस एकतरफा प्यार से सभी अनजान थे. मंजू ने अपने मन की बात कभी अपनी सहेलियों तक को न बताई. यहां तक कि घर में अपनी बड़ी बहन और भाभी को भी नहीं. ऐसे में भला उस का प्यार परवान कैसे चढ़ सकता है? प्यार तभी परवान चढ़ता है जब दोनों के दिल एकदूसरे के लिए धड़कते हों. लेकिन यहां तो वह लड़का भी नहीं जानता कि मंजू नाम की कोई लड़की उसे चाहती है.

एक वर्ष बीत गया. मंजू कभी अपने दिल की बात जबां पर नहीं लाई. एक दिन उस ने किसी अन्य लड़की को उस लड़के से हंस कर बात करते हुए देख लिया. वह भी उस से हंस कर बात कर रहा था. मंजू के मन में खटका हुआ. लेकिन उस में इतना साहस नहीं था कि वह अपने प्यार का इजहार कर पाती. नतीजतन, वह लड़का उस के हाथ से निकल गया.

काश, समय रहते वह अपने सपने के राजकुमार से दोस्ती बढ़ाती और फिर अपने प्यार का इजहार करती तो आज उसे इस तरह पछतावा न होता. लेकिन अब पछताने से क्या फायदा जब चिडि़या चुग गई खेत.

प्यार में हिचकिचाहट

संगीता के पिता सरकारी अधिकारी हैं. पिछले वर्ष उन का ट्रांसफर दूसरे शहर में हो गया. नए शहर में नए लोगों के बीच उस की जिंदगी में एक लड़का आया जो उसी मल्टी स्टोरी बिल्ंिडग में पड़ोस वाले फ्लैट में रहता था. कुछ ही दिनों में दोनों परिवारों के बीच अच्छा परिचय हो गया.

संगीता पड़ोस के जिस लड़के को चाहने लगी थी, वह उस से 2 वर्ष सीनियर था. संगीता बीए फर्स्ट ईयर में थी और वह बीए फाइनल में था. एक ही कालेज में होने के कारण उन के बीच अच्छी दोस्ती हो गई. लेकिन संगीता की नजर में वह दोस्त से ऊपर था. वह उस के दिल में बस चुका था. वह उसे अपना हमसफर बनाना चाहती थी.

संगीता से बस एक ही चूक हुई कि वह अपने दिल की बात उसे बता न पाई. इस बीच लड़के के पिता का ट्रांसफर अन्य जगह हो गया और वह अपने परिवार के साथ चला गया. काश, संगीता ने उस से अपने प्यार का इजहार किया होता तो आज स्थिति भिन्न होती.

संगीता का प्यार अधूरा रह गया. उस के सपने पूरे होने से पूर्व ही दफन हो गए.

मंजू और संगीता की भांति ऐसी अनेक लड़कियां हैं जो यौवन की दहलीज पर कदम रखते ही अपनी जिंदगी के तानेबाने बुनने लगती हैं. जिन को वे अपने सपनों का राजकुमार मानती हैं, उन्हें अपना दिल दे बैठती हैं, लेकिन दिल की बात जबां पर लाने में हिचकिचाती हैं.

वैसे, किसी लड़की का किसी लड़के से प्रेम करना गलत नहीं है. इस में भी जज्बात होते हैं. उस का मन हिलोरें भरता है, उस का दिल किसी के लिए धड़क सकता है. इस में असामान्य कुछ भी नहीं है. विडंबना यह है कि आज भी लड़कियां अपने प्यार का इजहार करने में शर्म का अनुभव करती हैं. ऐसे में उन के मन की मुराद अधूरी रह जाती है. जब आप किसी से प्यार करती हैं तो उसे व्यक्त करने में संकोच कैसा? जब कोई लड़का अपने प्यार का इजहार सहज रूप से या बेधड़क हो कर कर सकता है तो लड़की क्यों नहीं?

प्यार तो प्यार है चाहे किसी लड़के को लड़की से हो या लड़की को किसी लड़के से. इस के इजहार में विलंब नहीं करना चाहिए. जब आप किसी को चाहती हैं तो उस से कहती क्यों नहीं?

एक छोटी सी भूल की वजह से जिंदगीभर आप को अपने प्यार से दूर रहना पड़ता है. पहले प्यार को कभी भुलाया नहीं जा सकता. इसलिए यदि आप अपने प्यार को पाना चाहती हैं तो पहली फुरसत में अवसर मिलते ही उस से ‘आई लव यू’ कह दें. यदि सामने वाला इसे स्वीकार कर लेता है तो आप के मन की मुराद पूरी हो जाएगी और यदि किसी मजबूरीवश वह आप के प्यार को कुबूल न कर पाए तो इसे जिंदगी का एक कड़वा घूंट सम झ कर पी जाएं. उसे भूलने की कोशिश करें. आगे अपने जीवन की नई शुरुआत करें. हो सकता है जीवन में आप को इस से भी अच्छा हमसफर मिले. शादी तभी कामयाब होती है जब प्यार दोनों तरफ से हो.

क्यों है पुरुषों को हार्टअटैक का अधिक जोखिम

तेज रफतार जिंदगी, बदलती जीवनशैली व गलत खानपान ने इंसान के हार्ट को खासा नुकसान पहुंचाया है. भारत में हार्ट संबंधी समस्या पश्चिमी देशों की तुलना में अधिक बढ़ने लगी है. युवाओं में भी अब हार्टअटैक कुछ ज्यादा ही देखने को मिल रहा है.

भारत में हृदय रोगों के आंकड़े बढ़ रहे हैं. देखा गया है कि भारतीयों को हार्टअटैक की शिकायत पश्चिमी आबादी से करीब एक दशक पहले हो जाती है. इस के अलावा, भारतीयों में हृदयरोग संबंधी जटिलताएं व गंभीरता भी यहां उपलब्ध कमजोर चिकित्सा सेवाओं व इलाज लेने में देरी के चलते अधिक होती हैं.

कई अध्ययनों से यह स्पष्ट हो चुका है कि महिलाओं की तुलना में पुरुषों को हृदय संबंधी समस्याओं का खतरा अधिक होता है, जबकि दोनों में मधुमेह और उच्च रक्तचाप का जोखिम बराबर है. इंडियन हार्ट एसोसिएशन के मुताबिक, ‘भारतीय पुरुषों में 50 प्रतिशत हार्टअटैक 50 साल की उम्र से पहले और 25 प्रतिशत हार्टअटैक 40 साल से कम उम्र में होता है.’

हार्टअटैक का कारण आमतौर पर कोरोनरी हार्ट रोग होता है जिस में हृदय की मांसपेशियों में औक्सीजनयुक्त रक्त का प्रवाह अचानक अवरुद्ध हो जाता है और परिणामस्वरूप हृदय को औक्सीजन नहीं मिल पाती. इस का कारण कोरोनरी आर्टरी की भीतरी सतह पर कोलैस्ट्रौल का जमाव है. कोलैस्ट्रौल की इस परत का जमाव कई सालों तक होता है.

आसान शब्दों में, हार्टअटैक तब होता है जब हृदय की मांसपेशियों में रक्त का प्रवाह रुक जाता है, जोकि लंबे समय से चली आ रही दिल की बीमारी या खराब जीवनशैली, खानपान, मोटापा और तनाव के कारण होता है.

पुरुषों में हार्टअटैक के बढ़ते मामलों के जो कई कारण हैं, उन में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है हार्मोनल स्तर. ऐसा देखा गया है कि प्रीमीनोपौजल महिलाओं में एस्ट्रोजन के स्तर को सुरक्षा प्रदान करते हैं और ऐसे में महिलाओं में दिल के रोग मीनोपौज के बाद बढ़ते हैं और कमोबेश पुरुषों के समान हो जाते हैं.

इस के अलावा, एक और पहलू है महिलाओं और पुरुषों दोनों में तनाव का स्तर. शुरू में यह माना जाता था कि महिलाओं के मुकाबले पुरुषों को काम के मोरचे पर ज्यादा तनाव होता है जिस की वजह से उन में हार्टअटैक के मामले भी अधिक होते हैं, लेकिन हाल के समय में देखा गया है कि औरतें भी अपने कार्यक्षेत्रों में अधिक तनावजनित व गंभीर किस्म की भूमिकाओं में सक्रिय हैं, ऐसे में यह फर्क अब मिटने लगा है. अलबत्ता, दोनों में तनाव को सहने की क्षमता अलग होती है.

व्यवहार के स्तर पर महिलाएं अकसर दूसरों के साथ अपनी भावनाओं को बांटने वाली होती हैं और अपनी देखभाल पर भी समय लगाती हैं, जैसे कि पढ़ने या स्नातकोत्तर आदि पर, जिस के चलते उन का तनाव कम होता है, जबकि पुरुषों की आदत होती है कि वे अपनी भावनाओं को अपने तक ही सीमित रखते हैं. इस का परिणाम यह होता है कि आगे चल कर पुरुषों में तनाव बुरा असर डालने लगता है. देखा गया है कि तनाव के समय रक्त वाहिकाएं (आर्टरीज) सिकुड़ती हैं, जिस से ब्लडप्रैशर बढ़ता है और अगर किसी व्यक्ति में पहले से ही रक्तवाहिकाएं संकुचित होती हैं, तो यह बड़ी मुसीबत का कारण बन सकता है.

जीवनशैली का असर

खानपान और जीवनशैली संबंधी आदतों का अध्ययन करने पर यह पाया गया है कि पुरुषों की जीवनशैली औरतों के मुकाबले अस्वस्थकर होती है, जिस का असर उन के दिल पर ज्यादा पड़ता है.

शराब का सेवन भी दिल के रोगों का प्रमुख कारण है. हार्ट यूके के मुताबिक, ‘करीब 37 प्रतिशत पुरुष सरकार द्वारा सु झाई गई शराब के सेवन संबंधी मात्रा से अधिक नियमितरूप से सेवन करते हैं, जबकि महिलाओं के मामले में यह आंकड़ा 28 प्रतिशत है. इसी तरह, महिलाओं की तुलना में पुरुषों में धूम्रपान भी काफी अधिक प्रचलित होने की वजह से उन में हृदयरोगों का जोखिम अधिक होता है और यह युवा मरीजों में प्रमुख कारण है.

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, महिलाओं की तुलना में पुरुष मोटापे के अधिक शिकार होते हैं. इस का काफी हद तक कारण खानपान की आदतें हैं. आमतौर पर महिलाओं के मुकाबले, पुरुष अधिक मांस का सेवन करते हैं और वे ज्यादातर रैड मीट खाते हैं. दूसरी तरफ, पुरुषों की तुलना में महिलाएं गोभी प्रजाति की सब्जियों का सेवन 19 प्रतिशत अधिक करती हैं और इसी तरह वे 14 प्रतिशत अधिक पत्तेदार सब्जियां खाती हैं. मीट, खासतौर से रैड मीट से शरीर में इन्लेमेशन का खतरा बढ़ जाता है और इस में सैचुरेटेड वसा की अधिकता के चलते यह कार्डियोवैस्कुलर समस्याओं का कारण भी बनता है. इस तरह, अधिक मात्रा में भोजन में मांस और कम सब्जियों के सेवन की वजह से भी पुरुषों में दिल के मर्ज बढ़ रहे हैं.

लेकिन महिलाओं में हृदय रोगों को अकसर कम कर के आंका जाता है

क्योंकि यह गलत धारणा है कि वे कार्डियोवैस्कुलर रोगों से सुरक्षित होती हैं. इस के अलावा, भारत में सांस्कृतिक व सामाजिक कारणों के चलते भी औरतों की सेहत को पुरुषों की तुलना में कम महत्त्व मिलता है. हृदयरोगों को कम महत्त्व दिया जाता है और साथ ही, महिलाओं के रोगों के सामने आने की कम परिस्थितियों के चलते भी उन के मामले में इलाज की स्थिति कमजोर बनी हुई है.

अमेरिका के हाल के आंकड़ों से यह सामने आया है कि 2 दशकों से भी अधिक अवधि के दौरान प्रौढ़ महिलाओं (35 से 54 वर्ष) में मायोकार्डियल रोगों के मामलों में बढ़ोतरी हुई है, जबकि इसी आयुवर्ग के पुरुषों में ये घट रहे हैं. इसलिए, महिलाओं को अपने स्वास्थ्य  को ले कर अधिक सचेत होने व कार्डियोवैस्कुलर रोगों से जुड़े जोखिमों पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है, जिस से हृदय संबंधी जोखिमों के खतरों को कम किया जा सके.

‘‘युवाओं में अधिक कोलैस्ट्रौल लैवल से हृदयरोगों के जोखिमों का पहले से पता लगाया जा सकता है वाली सोच के मामले में हमें कोलैस्ट्रौल को सही ढंग से सम झना होगा. यही हृदय को रक्त पहुंचाने वाली धमनियों में अवरोध खड़ा करता है जिस की वजह से हार्टअटैक होता है. इंसान के शरीर को कई प्रकार के कार्यों के लिए कोलैस्ट्रौल की आवश्यनकता होती है. कोलैस्ट्रौल 2 प्रकार का होता है- अच्छा कोलैस्ट्रौल एचडीएल कहलाता है जबकि दुष्प्रभावी कोलैस्ट्रौल को एलडीएल कहते हैं. एलडीएल कोलैस्ट्रौल ही शरीर की धमनियों की अंदरूनी परतों में जमा हो कर हार्टअटैक और स्ट्रौक का कारण बनता है.

विश्वप्रसिद्ध लांसेट जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, 19 देशों में 43 वर्षों तक ऐसे करीब 4 लाख लोगों पर नजर रखी गई जिन्हें शुरू में किसी प्रकार का हृदय रोग नहीं था. अध्ययन में पाया गया कि 45 वर्ष से कम उम्र में अधिक कोलैस्ट्रौल लैवल के चलते आगे चल कर हृदयरोगों की आशंका बढ़ जाती है. साथ ही, जिन व्यक्तियों में कोलैस्ट्रौल का स्तर कम होता है उन में हार्टअटैक का जोखिम भी कम होता है. वैज्ञानिकों ने इस की वजह रक्त में नुकसानदायक लिपिडों का कम होना पाया है जोकि कोरोनरी आर्टरीज को नुकसान पहुंचाता है और धीरेधीरे यह नुकसान गंभीर रूप ले लेता है.

अध्ययन में यह भी पाया गया है कि अधिक कोलैस्ट्रौल स्तर वाले मरीजों में जल्दी इलाज शुरू करने से बाद के वर्षों में हृदय संबंधी समस्याएं और स्ट्रोक का खतरा घट जाता है.

अमेरिका में एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि शरीर की धमनियों में 20 से 30 वर्ष की आयुवर्ग में कोलैस्ट्रौल का जमाव होने लगता है. ऐसे में, आगे चल कर समस्याओं से बचने के लिए जीवन में जल्दी ही उपाय करना फायदेमंद है.

आज के दौर में फास्ट और प्रोसैस्ड फूड की अधिकता, शारीरिक व्यायाम का अभाव और ताजे फलों एवं सब्जियों का कम सेवन, मोटापा तथा कोलैस्ट्रौल स्तर में गड़बड़ी (एलडीएल की अधिक और एचडीएल की कम मात्रा) जैसी समस्याएं बच्चों में बढ़ रही हैं जो आगे चल कर उन में हार्टअटैक और स्ट्रोक का कारण बन सकती हैं. इसलिए, पेरैंट्स को चाहिए कि वे अपने बच्चों को इन तमाम दुष्प्रभावों के बारे में शुरू से ही सजग बनाएं और संतुलित व सेहतमंद जीवनशैली अपनाने के लिए प्रेरित करें.

(लेखक इंटरवैंशनल कार्डियोलौजी, फोर्टिस मैमोरियल रिसर्च इंस्टिट्यूट, गुरुग्राम में सलाहकार हैं.)

Piles की बीमारी से इस तरह मिलेगा छुटकारा

गुदा के अंदर वौल्व की तरह गद्देनुमा कुशन होते हैं, जो मल को बाहर निकालने या रोकने में सहायक होते हैं. जब इन कुशनों में खराबी आ जाती है, तो इन में खून का प्रवाह बढ़ जाता है और ये मोटे व कमजोर हो जाते हैं. फलस्वरूप, शौच के दौरान खून निकलता है या मलद्वार से ये कुशन फूल कर बाहर निकल आते हैं. इस व्याधि को ही बवासीर कहा जाता है. ऐसा माना जाता है कि कब्ज यानी सूखा मल आने के फलस्वरूप मलद्वार पर अधिक जोर पड़ता है तथा पाइल्स फूल कर बाहर आ जाते हैं. बवासीर की संभावना के कई कारण हो सकते हैं.

क्या हैं कारण

शौच के समय अधिक जोर लगाना, कम रेशेयुक्त भोज्य पदार्थ का सेवन करना, बहुत अधिक समय तक बैठे या खड़े रहना, बहुत अधिक समय तक शौच में बैठे रहना, मोटापा, पुरानी खांसी, अधिक समय तक पतले दस्त लगना, लिवर की खराबी, दस्तावर पदार्थों या एनिमा का अत्यधिक प्रयोग करना, कम पानी पीना और गरिष्ठ भोज्य पदार्थों का अधिक सेवन करना आदि.

1. आनुवंशिक :

एक ही परिवार के सदस्यों को आनुवंशिक गुणों के कारण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में आना.

2. बाह्य संरचना :

पाइल्स साधारणतया जानवरों में नहीं पाए जाते, चूंकि मनुष्य पैर के बल पर सीधा खड़ा रहता है, सो, गुरुत्वाकर्षण बल के कारण शरीर के निचले भाग में कमजोर नसों में अधिक मात्रा में रक्त एकत्रित हो जाता है, जिस से नसें फूल जाती हैं और पाइल्स का कारण बनती हैं.

3. शारीरिक संरचना :

गुदा में पाई जाने वाली नसों को मजबूत मांसपेशियों का सहारा नहीं मिलने के कारण ये नसें फूल जाती हैं और कब्ज के कारण जोर लगता है तो फटने के कारण खून निकलना शुरू हो जाता है.

4. लक्षण पहचानें:

शौच के दौरान बिना दर्द के खून आना, मस्सों का फूलना व शौच के दौरान बाहर आना. मल के साथ चिकने पदार्थ का रिसाव होना व बाहर खुजली होना, खून की लगातार कमी के कारण एनीमिया होना तथा कमजोरी आना व चक्कर आना और भूख नहीं लगना इस के प्रमुख लक्षण हैं.

5. उपाय भी हैं:

यदि हम खानपान में सावधानी बरतें तो बवासीर होने से बचने की संभावना होती है. कब्ज न होने दें, भोजन में अधिक रेशेयुक्त पदार्थों का प्रयोग करें, दोपहर के खाने में कच्ची सब्जियों का सलाद लें, अंकुरित मूंगमोठ का प्रयोग करें, गेहूं का हलका मोटा पिसा व बिना छना आटा खाएं, खाना चबाचबा कर खाएं, रात को गाय के दूध में 8-10 मुनक्का डाल कर उबाल कर खाएं. चाय व कौफी कम पीएं, वजन ज्यादा हो तो कम करें, प्रतिदिन व्यायाम करें और सकारात्मक सोच रखें.

6. इन बातों का रखें ध्यान:

जब भी शौच की जरूरत महसूस हो, तो उसे रोका न जाए. शौच के समय जरूरत से ज्यादा जोर न लगाएं. लंबे समय तक जुलाब न लें. बहुत अधिक समय तक एक ही जगह पर न बैठें. शौच जाने के बाद मलद्वार को पानी से अच्छी तरह साफ करें.

7. एमआईपीएच विधि से इलाज:

एमआईपीएच यानी मिनिमली इनवेजिव प्रौसीजर फौर हेमरोहिड्स. इस विधि में एक विशेष उपकरण, जिसे स्टेपलर कहते हैं, काम में लिया जाता है, जो कि सिर्फ एक ही बार काम में आता है. यह विधि ग्रेड-1, ग्रेड-2 तथा ग्रेड-3, जोकि दूसरी विधि के फेल हो जाने पर काम में ली जा सकती है.

इस विधि में पाइल्स को काट कर उस के ऊपर मलद्वार में 2-3 इंच की खाल कट जाती है, जिस से पाइल्स अपने सामान्य स्थान पर आ जाते हैं. इस विधि को करने में मात्र 20 मिनट लगते हैं, न के बराबर खून निकलता है, तथा दर्द भी कम ही होता है व मरीज को 24 घंटों से पहले छुट्टी दे दी जाती है. व्यक्ति 24-48 घंटों में काम पर जाने लायक हो जाता है. इस विधि द्वारा उपचार करने के बाद फिर से पाइल्स होने की संभावना 2 से 10 प्रतिशत ही रहती है, निर्भर करता है कि सर्जन कितना अनुभवी है.

(लेखक पाइल्स व गुदा रोग विशेषज्ञ हैं.)

घर पर कैसे रहें फिट

 कोरोनाकाल में युवाओं की फिटनैस काफी प्रभावित हुई है. जिम बंद हुए तो अधिकतर का शरीर ढीला पड़ता गया. लेकिन अब चिंता की जरूरत नहीं क्योंकि यहां फिटनैस मंत्र जो उपलब्ध है जो आप को बिन जिम के भी फिट रखेगा.

कोरोनाकाल में लोगों को भीड़भाड़ वाली जगहों से दूर रहने की खास हिदायत दी गई है, क्योंकि कोविड-19 का संक्रमण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में बड़ी तेजी से फैलता है. जिस के प्रसार का माध्यम छींकने, खांसने, पसीने और बातचीत के आम व्यवहार से हो सकता है.   यही कारण है कि समयसमय पर ऐसी जगहों पर सरकार द्वारा कड़े प्रतिबंध लगाने की नौबत आई जहां संक्रमण फैलने का अधिक खतरा बना रहता है और उन स्थानों में से एक ‘जिम’ रहा.

जिम फिजिकल फिटनैस के लिहाज से बेहतर जगह होती है, युवा से ले कर बुजुर्ग तक रूटीन ऐक्सरसाइज के लिए ‘जिम’ का प्रयोग करते हैं लेकिन यहां से संक्रमण का खतरा भी बना रहता है. इंडिपैंडेंट यूके की रिपोर्ट के मुताबिक, जिम में कोरोना का खतरा इसलिए अधिक होता है क्योंकि जिम में लोग पसीने से भरे रहते हैं, जिस से कीटाणुओं के फैलने का अधिक खतरा बना रहता है. इस रिपोर्ट में डा. स्वान का कथन है, ‘‘जिम में नमी होती है, लोग पसीना छोड़ते हैं जिस से संक्रमण फैलने का अधिक खतरा बना रहता है.’’

यही कारण भी है कि जहां कहीं भी लौकडाउन जैसी सिचुएशन आती है तो प्राथमिक तौर पर जिम को बंद करने का आदेश दिया जाता है. लेकिन इन आदेशों से यह समस्या पैदा हुई कि जिम के बंद होने से लोगों की फिटनैस प्रभावित हो गई. इस से हैल्थ पर नकारात्मक प्रभाव भी पड़ा है. जो लोग जिम जा कर वर्कआउट करते थे वे घर पर रह रहे हैं. जिम जाने वालों में अधिकतर संख्या 18 से 40 वर्ष के युवाओं की होती है.

ऐसे में कुछ मंत्र हैं जिन्हें अपना कर आप घर में सुरक्षित रहते हुए ऐक्सरसाइज करने के साथ खुद को फिट रख सकते हैं और, सही खानपान से खुद की फिटनैस को मैंटेन रख सकते हैं.

वार्मअप : खुद को चुस्त रखने के लिए वार्मअप बहुत जरूरी है. इस के लिए कहीं बाहर जाने की आवश्यकता नहीं है. इसलिए सुबहसुबह एक जगह फिर चाहे वह घर की छत हो, बालकनी हो, या रूम ही क्यों न हो, सीधे खड़े रह कर ऊपरनीचे जंप करें. यह जंप ऐसी भी हो सकती है कि पंजे जमीन पर चिपके रहें और एडि़यां ऊपर उठें. फिर सीधे खड़े हो कर दोनों हाथों को कंधे की सीध में रख कर चलाएं. उस के बाद पैरों के घुटने मोड़ कर स्क्वाट करें. आप रस्सीकूद भी कर सकते हैं.

पैदल चलना : पैदल चलना हमेशा शरीर के लिए बेहतर है. व्यक्ति को अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए नियमित तौर पर पैदल चलना ही चाहिए. इसलिए रोजाना सुबह आधे घंटे पैदल चल के फिट रहा जा सकता है. आप इस के लिए अपनी कालोनी के इर्दगिर्द ही चक्कर लगा

सकते है, या आसपास के पार्क में हलकीफुलकी रनिंग की जा सकती है. समय का ध्यान रखते हुए ट्रेडमिल एक बेहतर औप्शन है.

पुशअप : सब से पहली और आराम से की जानी वाली ऐक्सरसाइज पुशअप है. इस के लिए किसी प्रकार के इक्विपमैंट की आवश्यकता नहीं होती. यह सब से सामान्य ऐक्सरसाइज है जिसे लोग सब से अधिक करते भी हैं. इसे जरूरत के हिसाब से करें और समयनुसार सैट बढ़ाते रहें. इस से चैस्ट, आर्म्स, शोल्डर, पीठ स्ट्रौंग होती है.

वाल सिट्स : वाल सिट्स ऐक्सरसाइज में पीठ को दीवार पर चिपका देते हैं और फिर दोनों पैरों को कुरसी पर बैठने की पोजिशन में रखते हैं. ये 90 डिग्री होने चाहिए. अब दोनों हाथों को फोल्ड कर के कुछ देर इसी पोजिशन में 30 सैकंड तक रहना होता है. इस से बौडी का बैलेंस बनाया जा सकता है. इस से पेट की चरबी कम होती है, जांघें और हिप्स शेप में आते हैं और कैलोरी बर्न भी होती है.

पुलअप्स : यह अपने ही शरीर के वेट को ऊपर उठाने जैसा है. देखा गया है कि ज्यादातर लोगों से इस ऐक्सरसाइज में रेप्स नहीं लगते हैं क्योंकि वे लोग इस ऐक्सरसाइज को लगाने का सही तरीका नहीं जानते. इस में हाथों को लगभग 28 इंच तक खोलें. जब आप ऊपर की तरफ जाएंगे तो लगभग एक सैकंड तक होल्ड करें. फिर नीचे आएं.

ध्यान रहे, पूरी ऐक्सरसाइज डेढ़ घंटे से ऊपर न हो और फिटनैस का जरूरी मंत्र यह है कि नींद सही समय पर सही घंटों की लें व डाइट पर्याप्त मात्रा में लें.

ऐक्सरसाइज के बाद क्या पिएं

फिटनैस के लिए ऐक्सरसाइज के बाद आप कुछ तरल पिएं तो बेहतर है क्योंकि ऐक्सरसाइज के बाद बौडी को हाइड्रेट रखना फिटनैस का एक जरूरी हिस्सा है.

तरबूज का जूस पिएं : भारी व्यायाम के बाद तरबूज शरीर में उचित हाइड्रेशन बनाए रखने में मदद करता है. वर्कआउट के दौरान आमतौर पर हमारा शरीर लगभग 2 फीसदी तक पानी की मात्रा पसीने के तौर पर बर्न करता है, जिस की भरपाई करने के लिए तरबूज का जूस अच्छा माध्यम हो सकता है.

नारियल पानी : नारियल का पानी शरीर में पानी की कमी की मात्रा को पूरा करता है.

चेरी का जूस : चेरी में मौजूद एंटीऔक्सिडैंट्स का उ?च्च स्रोत मांसपेशियों को ऊर्जा देता है.

ग्रीन टी : ग्रीन टी शारीरिक थकान दूर कर शरीर को ऊर्जा प्रदान करती है.

बहुत से लोग मौसंबी का जूस, गाजर का जूस और अलगअलग शेक, बनाना शेक, मैंगो शेक पीते हैं. स्वादानुसार हर चीज ट्राई की जा सकती है.

पीरियड के 2 दिन पहले क्यों होता है दर्द

अकसर लड़कियों को पीरियड से पहले या पीरियड के दौरान असहनीय दर्द होता है, जिस के पीछे कई कारण हो सकते हैं. इस से निबटने के लिए जरूरी है कि पहले जान लिया जाए कि दर्द की वजह क्या है.

पीरियड के दौरान दर्द होने से कोई भी लड़की बहुत ज्यादा अनकंफर्टेबल फील कर सकती है या वह बहुत कमजोर भी हो सकती है. पीएमएस यानी प्रीमैंस्ट्रुअल सिंड्रोम जैसे शब्द कभीकभी मजाक में उपयोग किए जाते हैं. पीएमएस में होने वाली सूजन, सिरदर्द, बदनदर्द, ऐंठन और थकान लड़कियों के लिए दर्दनाक स्थिति बना देती है. इस के अलावा और भी गंभीर कंडीशन, जैसे प्रीमैंस्ट्रुअल डिस्फोरिक डिस्और्डर यानी पीएमडीडी भी हो सकती है जो प्रीमैंस्ट्रुअल सिंड्रोम की तरह  है लेकिन पीरियड आने के एक हफ्ते या दो हफ्ते पहले गंभीर चिड़चिड़ापन, डिप्रैशन या एंग्जाइटी का कारण बन सकता है. आमतौर पर लक्षण पीरियड्स शुरू होने के 2 से 3 दिन बाद तक रहते हैं. लेकिन पहले 1-2 दिन बहुत दर्द वाले हो सकते हैं. यह प्रोस्टाग्लैंडीन नामक एक हार्मोन संबंधी पदार्थ के कारण होता है जिस से दर्द और सूजन के कारण गर्भाशय की मांसपेशियों में कौन्ट्रैक्शन होता है. ज्यादा गंभीर मैंस्ट्रुअल कै्रम्प होना प्रोस्टाग्लैंडीन के हाई लैवल का संकेत दे सकता है.

बीएमजे पब्लिशिंग ग्रुप, यूके द्वारा प्रकाशित क्लीनिकल एविडैंस हैंडबुक के अनुसार, 20 फीसदी महिलाओं में क्रैम्प, मतली, बुखार और कमजोरी जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं जबकि कई अन्य ने इमोशनल कंट्रोल और कंसन्ट्रेशन में कमी देखी. एंडोमेट्रियोसिस सोसाइटी इंडिया के आंकड़े सु?ाते हैं कि 2.5 करोड़ से अधिक महिलाएं एंडोमेट्रियोसिस से पीडि़त हैं. यह एक क्रोनिक कंडीशन होती है जिस में पीरियड के दौरान बहुत ज्यादा दर्द होता है, जिसे चिकित्सकीय रूप से डिसमेनोरिया कहा जाता है.

दिल का दौरा पड़ने के बावजूद काम करने वाले किसी व्यक्ति की कल्पना करें. पीरियड में दर्द होना उस से भी बुरा हो सकता है. कालेज औफ यूनिवर्सिटी, लंदन की रिसर्च के अनुमान के अनुसार, 68 फीसदी से अधिक महिलाएं भारत में गंभीर पीरियड से संबंधित लक्षण, जैसे ऐंठन, थकान, सूजन व ऐंठन का अनुभव करती हैं और इन में से 49 फीसदी थकावट महसूस करती हैं. लगभग 28 फीसदी महिलाओं को अपने पीरियड्स के दौरान सूजन का अनुभव होता है.

पीरियड्स में होने वाले दर्द को समझते

हार्मोन जारी करने पर गर्भाशय की ऐंठन के कारण महिलाओं को पीरियड्स के दौरान दर्द का अनुभव होता है. प्रोस्टाग्लैंडीन गर्भाशय में मांसपेशियों के कौन्ट्रैक्शन के प्रोसैस को शुरू करता है. यह दर, जिस में कौन्ट्रैक्शन होता है, उपयोग न की गई यूट्रीन लाइनिंग की शेडिंग को निर्धारित करता है कि शरीर से बाहर खून के साथ क्लौट्स भी निकलेंगे. डिसमेनोरिया कुछ बीमारियों का संकेत भी दे सकता है जैसे-

पौलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम यानी पीसीओडी मासिकधर्म में होने वाली बीमारियों में सब से आम बीमारी है. यह महिलाओं में निष्क्रिय लाइफस्टाइल के कारण बढ़ रहे हार्मोनल असंतुलन के कारण होती है. यह शरीर में पुरुष हार्मोन का प्रोडक्शन बढ़ाता है और ओव्यूलेशन की प्रक्रिया को बाधित करता है.

गर्भाशय फाइब्रौएड – हालांकि ये नेचर में सौम्य होते हैं, लेकिन ये असहनीय लक्षण पैदा कर सकते हैं, जैसे असामान्य यूट्रीन ब्लीडिंग, डिस्पेर्यूनिया, पेल्विक पेन, मूत्राशय या मलाशय पर प्रतिरोधी प्रभाव और बां?ापन की समस्या. अन्य बीमारियां जो पीरियड्स के दौरान दर्द पैदा कर सकती हैं वे पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज (पीआईडी), एंडोमेट्रियोसिस और एडिनोमायोसिस हैं.

क्या पीरियड के दर्द का इलाज किया जा सकता है?

हां, हलके मासिकधर्म के क्रैम्प का इलाज ओवर द काउंटर (ओटीसी) दवाओं के साथ किया जा सकता है, जबकि ज्यादा गंभीर क्रैम्प के लिए नौनस्टेरौइडल एंटी इंफ्लेमेटरी ड्रग्स की जरूरत होगी. यह सुनिश्चित करें कि दवा दर्द शुरू होने से पहले लें. एक्सरसाइज करना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह ब्लड फ्लो और एंडोर्फिन दोनों के प्रोडक्शन को बढ़ाती है, जो प्रोस्टाग्लैंडीन और रिजल्टंट दर्द को कम कर सकता है.

मासिकधर्म के दौरान स्वच्छता बनाए रखना बहुत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि लगभग 70 फीसदी रिप्रोडक्टिव संबंधी बीमारियां खराब मासिकधर्म की स्वच्छता के कारण होती हैं. ओरल गर्भनिरोधक गोलियों के माध्यम से ट्रीटमैंट किसी भी ओवेरियन हार्मोन लैवल के असंतुलन को ठीक कर सकता है. ताजे भोजन, फलों और सब्जियों को ज्यादा खाएं, धूम्रपान, शराब और कैफीन का सेवन करने से बचें, नमक व चीनी के सेवन को भी कम करें और 30 मिनट के लिए रोज एक्सरसाइज करें.

पीरियड हौलिडे, रोज के कामों में साथ देना और हम कुछ ऐसी ही मदद कर के एक महिला को पीरियड के दिनों में राहत पहुंचा सकते हैं.

(लेखिका सीड्स औफ इनोसैंस एंड जेनेस्ंिट्रग्स लैब की फाउंडर व आईवीएफ एक्सपर्ट हैं)

जानें यहां, वर्कर्स के पहनावे से शहरी पहनावे तक का शानदार सफर

जिसे फैक्टिरियों में काम करने वाले वर्कर्स पहनते थे वह आज सबको पसंदीदा पोशाक बन चुका है.

त्यौहारों का उत्सव हो या शादी का रौनक या किसी पारिवारिक आयोजन में आप शामिल हो रहे हो  , इस सब में एक पोशाक आम है , जो किसी पहचान का मोहताज नहीं है . वह है जींस के कपड़े. तो आईए आज जानते है इसके हर उस पहलू को जो इसे पोशाक को सबका पसंदीदा बनता है. आइए समझते है 9 विंदुओ में….

1. डूंगरीज से जींस बनने की कहानी है शानदार :-

अगर जींस के प्रौडक्शन की बात करेंए तो फ्रांस और भारत स्वतंत्र रुप से इसका प्रॉडक्शन करते थे. शायद आपको यह जानकर आश्चर्य हो कि शुरुआत में जींस वर्कर्स द्वारा पहनी जाती थी. भारत में डेनिम से बने ट्राउजर्स डूंगा के नाविक पहना करते थेए जिन्हें डूंगरीज के नाम से जाना जाता था. वहीं फ्रांस में गेनोइज नेवी के वर्कर जींस को बतौर यूनिफॉर्म पहनते थे. उनके लिए जींस का फैब्रिक उनके काम के मुताबिक परफेक्ट था. जींस को ब्लू कलर में रंगने के लिए इंडिगो डाई का इस्तेमाल किया जाता था. हालांकि 16 वीं शताब्दी में जींस के चलन ने ज्यादा जोर पकड़ाए लेकिन बाकी देशों तक अपनी पहुंच बनाने में इसे काफी समय लग गया.

2. 1850 से 1950 तक का शानदार सफर :-

1850 तक जींस काफी पौपुलर हो चुकी थी. इस दौरान एक जर्मन व्यापारी लेवी स्ट्रास ने कैलिफोर्निया में जींस पर अपना नाम छापकर बेचना शुरू किया. वहां एक टेलर जेकब डेविस उसका सबसे पहला कस्टमर बना. वह काफी दिन तक उससे जींस खरीदता रहा और उसने भी उन्हें लोगों को बेचना शुरू कर दिया. वहां कोयले की खान में काम करने वाले मजदूर इसे ज्यादा खरीदते, क्योंकि इसका कपड़ा बाकी फैब्रिक से थोड़ा मोटा था, जो उनके लिए काफी आरामदायक था.

ऐसा कहा जाता है कि एक दिन डेविस ने स्ट्रास से कहा कि क्यों न हम दोनों मिलकर इसका एक बड़ा बिजनस शुरू करें. स्ट्रास को डेविस का प्रपोजल काफी पसंद आया. इस तरह उन्होंने जींस के लिए यूएस पेटेंट ले लिया और फिर जींस का उत्पादन बड़े पैमाने पर शुरू कर दिया.

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका की फैक्टिरियों में काम करने वाले वर्कर्स इसे पहना करते थे. और तो और यह उनकी यूनिफौर्म में शामिल कर दी गई थी.

– पुरुषों के लिए बनी जींस में जिप फ्रंट में नीचे की तरफ लगाई जाती थी, वहीं महिलाओं के लिए बनी जींस में इसे साइड में लगाया जाता था.

– स्पेन और चीन में वहां के काउबाय वर्कर्स जींस कैरी किया करते थे.

– वक्त के साथ जींस में नए नए चेंज आने लगे. इसी के तहत अमेरिकन नेवी में बूट कट जींस को वर्कर्स की यूनिफौर्म बनाया गया.

3. जींस का फैशन में आने की कहानी भी है पुरानी :-

आज से 8 दशक पहले 1950 के करीब जेम्स डीन ने एक हौलिवुड फिल्म श्रेबल विदाउट ए कॉजश् बनाई, जिसमें उन्होंने पहली बार जींस को बतौर फैशन यूज किया.

इस फिल्म को देखने के बाद अमेरिका के टीन एजर्स और यूथ में जींस का ट्रेंड काफी पौपुलर हो गया.

इसकी लोकप्रियता कम करने के लिए अमेरिका में रेस्तरांए थियेटर्स और स्कूल में जींस पहनकर जाने पर बैन भी लगा दिया गया, फिर भी जींस का फैशन यूथ के सिर पर ऐसा चढ़ा की फिर उतरा ही नहीं.

अमेरिका से आगे  जींस की लोकप्रियता  धीरे धीरे बढ़ने लगी, पूरे विश्व समुदाय ने दो दशक के उपरांत यानी 1970 के दशक में इसे फैशन के तौर पर स्वीकार कर लिया गया. तब से अब तक इसके (जींस का) क्रेज हर तबके के लोगों के सिर पर चढ़कर बोल रहा है.

4. हर उम्र के लोगों का पसंदीदा पोशाक :-

बच्चों से लेकर 50 साल के लोगों तक की पसंद बन चुका है, जींस . बच्चे तो सिर्फ जींस ही पहनने की रट लगाते हैं और कुछ बड़े भी हैं, जो सातों दिन बारह माह जींस ही पहनते हैं.

5. गरीब से लेकर अमीर तक सबका पसंदीदा पोशाक-

एक अच्छी किस्म की जींस के कपड़े हजार रुपए से आना शुरू होता है , वहीं बाजार के मांग और एक बड़े ग्राहक समूह को होने के कारण यह सामान्यतः पटरी और बड़े शहरों के लोकल बाजार में आराम से यह 500 से मिलना शुरू हो जाता है   .

इस कपड़े के बाजार में देश – विदेश की कई कम्पनी शामिल होने के कारण इसमें भी प्रतिस्पर्धा काफी बढ़ा है .

500 के शुरुआती मूल्य से 21 हजार के अधिकतम मूल्य तक इसके कपड़े मिल जाते है .

इस पोशाक का यह भी खास बात है कि हर रेट यानी हर बजट में बहुत प्रकार के कपड़े मिल जाएंगे . कुल मिला कर अगर आपको जींस का कपड़ा पसंद है तो इसके बदलते रूप से आप कभी बोर नहीं हो सकते .

6. हर समय इसका जादू रहता है बरकरार

-किसी भी फैशन का जादू अधिक दिन तक नहीं टिकता है , लेकिन जींस एक ऐसा परिधान है जिसका जलवा सालों से जस का तस बरकरार है. कभी मजदूरों की पोशाक के रूप में शुरू हुई जींस समाज के हर वर्ग में अपनी पैठ बना लेगी, किसी ने सोचा भी नहीं होगा. लेकिन आज यह एक बड़ी सच्चाई है कि कई दशकों से फैशन की दुनिया में ये पहले पायदान पर है.

7. कई रूप में उपलब्ध है जींस का पोशाक

युवकों के लिए इसका दायरा जींस पैंट और जैकेट तक ही सीमित है. जबकि युवतियों ने गुजराती बंधेज के धागे और कट ग्लास से सजे मिडी, मिनी स्कटे और हाफ पैंटस तक जींस के पहनने शुरू कर दिए हैं.

8. महिलओं में विशेष क्रेज है :-

भारत में जींस का दखल तो वर्षों से रहा है मगर बीते कुछ दशक में   भारतीय महिलाओं की यह मनपसंद पोशाक बन चुका है. आज महानगरों और अन्य उपनगरों कों छोड दिया जाए तों छोटे शहरों की महिलाए भी इसे अरामदायक पहनावे के रूप में स्वीकार कर चुकी है. अगर इसे सिर्फ पहनावे के रूप में इसे देखा लाए तो यह भारतीय महिलाओं के लिए खासी सुविधाजनक साबित हुई है.

एक दशक पहले तक छोटे शहरों में शादी के बाद किसी भारतीय महिला को जींस में देखने की कल्पना करना भी मुश्किल था. लेकिन अब स्थिति बदल गई है .

9. रखरखाव आसान :-

जींस के रखरखाव की बात करे तो एक बार धुलाई के बाद इसे दो बार तक इस्तेमाल कर सकते हैं. अगर आपको बहुत यात्राएं करनी पड़ती हों या आपका प्रोफेशन भागदौड़ भरा हो तो भला जींस से बेहतर क्या हो सकता है.

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