Best Hindi Story: तब और अब – रमेश की नियुक्ति क्यों गलत समय पर हुई थी?

Best Hindi Story: पिछले कई दिनों से मैं सुन रहा था कि हमारे नए निदेशक शीघ्र ही आने वाले हैं. उन की नियुक्ति के आदेश जारी हो गए थे. जब उन आदेशों की एक प्रतिलिपि मेरे पास आई और मैं ने नए निदेशक महोदय का नाम पढ़ा तो अनायास मेरे पांव के नीचे की जमीन मुझे धंसती सी लगी थी.

‘श्री रमेश कुमार.’

इस नाम के साथ बड़ी अप्रिय स्मृतियां जुड़ी हुई थीं. पर क्या ये वही सज्जन हैं? मैं सोचता रहा था और यह कामना करता रहा था कि ये वह न हों. पर यदि वही हुए तो…मैं सोचता और सिहर जाता. पर आज सुबह रमेश साहब ने अपने नए पद का भार ग्रहण कर लिया था. वे पूरे कार्यालय का चक्कर लगा कर अंत में मेरे कमरे में आए. मुझे देखा, पलभर को ठिठके और फिर उन की आंखों में परिचय के दीप जगमगा उठे.

‘‘कहिए सुधीर बाबू, कैसे हैं?’’ उन्होंने मुसकरा कर कहा.

‘‘नमस्कार साहब, आइए,’’ मैं ने चकित हो कर कहा. 10 वर्षों के अंतराल में कितना परिवर्तन आ गया था उन में. व्यक्तित्व कैसा निखर गया था. सांवले रंग में सलोनापन आ गया था. बाल रूखे और गरदन तक कलमें. कत्थई चारखाने का नया कोट. आंखों पर सुनहरे फ्रेम का चश्मा लग गया था. सकपकाहट के कारण मैं बैठा ही रह गया.

‘‘तुम अभी तक सैक्शन औफिसर ही हो?’’ कुछ क्षण मौन रहने के बाद उन्होंने प्रश्न किया. क्या सचमुच उन के इस प्रश्न में सहानुभूति थी अथवा बदला लेने की अव्यक्त, अपरोक्ष चेतावनी, ‘तो तुम अभी तक सैक्शन औफिसर हो, बच्चू, अब मैं आ गया हूं और देखता हूं, तुम कैसे तरक्की करते हो?’

‘‘सुधीर बाबू, तुम अधिकारी के सामने बैठे हो,’’ निदेशक महोदय के साथ आए प्रशासन अधिकारी के चेतावनीभरे स्वर को सुन कर मैं हड़बड़ा कर खड़ा हो गया. मन भी कैसा विचित्र होता है. चाहे परिस्थितियां बदल जाएं पर अवचेतन मन की सारी व्यवस्था यों ही बनी रहती है. एक समय था जब मैं कुरसी पर बैठा रहता था और रमेश साहब याचक की तरह मेरे सामने खड़े रहते थे.

‘‘कोई बात नहीं, सुधीर बाबू, बैठ जाइए,’’ कह कर वे चले गए. जातेजाते वे एक ऐसी दृष्टि मुझ पर डाल गए थे जिस के सौसौ अर्थ निकल सकते थे.

मैं चिंतित, उद्विग्न और उदास सा बैठा रहा. मेरे सामने मेज पर फाइलों का ढेर लगा था. फोन बजता और बंद हो जाता. पर मैं तो जैसे चेतनाशून्य सा बैठा सोच रहा था. मेरी अस्तित्वरक्षा अब असंभव है. रमेश यों छोड़ने वाला नहीं. इंसान सबकुछ भूल सकता है, पर अपमान के घाव पुर कर भी सदैव टीसते रहते हैं.

पर रमेश मेरे साथ क्या करेगा? शायद मेरा तबादला कर दे. मैं इस के लिए तैयार हूं. यहां तक तो ठीक ही है. इस के अलावा वह प्रत्यक्षरूप से मुझे और कोई हानि नहीं पहुंचा सकता था.

रमेश की नियुक्ति बड़े ही गलत समय पर हुई थी, इस वर्ष मेरी तरक्की होने वाली थी. निदेशक महोदय की विशेष गोपनीय रिपोर्ट पर ही मेरी पदोन्नति निर्भर करती थी. क्या उन अप्रिय घटनाओं के बाद भी रमेश मेरे बारे में अच्छी रिपोर्ट देगा? नहीं, यह असंभव है. मेरा मन बुझ गया. दफ्तर का काम करना मेरे लिए असंभव था. सो, मैं ने तबीयत खराब होने का कारण लिख कर, 2 दिनों की छुट्टी के लिए प्रार्थनापत्र निदेशक महोदय के पास पहुंचवा दिया. 2 दिन घर पर आराम कर के मैं अपनी अगली योजना को अंतिम रूप देना चाहता था. यह तो लगभग निश्चित ही था कि रमेश के अधीन इस कार्यालय में काम करना अपने भविष्य और अपनी सेवा को चौपट करना था. उस जैसा सिद्घांतहीन, झूठा और बेईमान व्यक्ति किसी की खुशहाली और पदोन्नति का माध्यम नहीं बन सकता. और फिर मैं? मुझ से तो उसे बदले चुकाने थे.

मुझे अच्छी तरह याद है. जब आईएएस का रिजल्ट आया था और रमेश का नाम उस में देखा तो मुझे खुशी हुई थी, पर साथ ही, मैं थोड़ा भयभीत हो गया था. रमेश ने पार्टी दी थी पर उस ने मुझे निमंत्रित नहीं किया था. मसूरी अकादमी में प्रशिक्षण के लिए जाते वक्त रमेश मेरे पास आया था. और वितृष्णाभरे स्वर में बोला था, ‘सुधीर, मेरी बस एक ही इच्छा है. किसी तरह मैं तुम्हारा अधिकारी बन कर आ जाऊं. फिर देखना, तुम्हारी कैसी रगड़ाई करता हूं. तुम जिंदगीभर याद रखोगे.’

कैसा था वह क्षण. 10 वर्षों बाद आखिर उस की कामना पूरी हो गई. यों, इस में कोई असंभव बात भी नहीं थी. रमेश मेरा अधिकारी बन कर आ गया था. जीवन में परिश्रम, लगन तथा एकजुट हो कर कुछ करना चाहो तो असंभव भी संभव हो सकता है, रमेश इस की जीतीजागती मिसाल था. वर्ष 1960 में रमेश इस संस्थान में क्लर्क बन कर आया था. मैं उस का अधिकारी था तथा वह मेरा अधीनस्थ कर्मचारी. रोजगार कार्यालय के माध्यम से उस की भरती हुई थी. मैं ने एक ही निगाह में भांप लिया कि यह नवयुवक योग्य है, किंतु कामचोर है. वह महत्त्वाकांओं की पूर्ति के लिए कुछ भी कर सकता है. वह स्नातक था और टाइपिंग में दक्ष. फिर भी वह दफ्तर के काम करने से कतराता था. मैं समझ गया कि यह व्यक्ति केवल क्लर्क नहीं बना रहेगा. सो, शुरू से ही मेरे और उस के बीच एक खाई उत्पन्न हो गई.

मैं अनुशासनपसंद कर्मचारी था, जिस ने क्लर्क से सेवा प्रारंभ कर के विभागीय पदोन्नतियों की विभिन्न सीढि़यां पार की थीं. कोई प्रतियोगी परीक्षा नहीं दी थी.पर रमेश अपने भविष्य की सफलताओं के प्रति इतना आश्वस्त था कि उस ने एक दिन भी मेरी अफसरियत को नहीं स्वीकारा था. वह अकसर दफ्तर देर से आता. मैं उसे टोकता तो वह स्पष्टरूप से तो कुछ नहीं कहता, किंतु अपना क्रोध अपरोक्षरूप  से व्यक्त कर देता. काम नहीं करता या फिर गलत टाइप करता, सीट पर बैठा मोटीमोटी किताबें पढ़ता रहता. खाने की छुट्टी आधे घंटे की होती तो वह 2 घंटे के लिए गायब हो जाता. मैं उस से बहुत नाराज था. पर शायद उसे मेरी चिंता नहीं थी. सो, वह मनमानी किए जाता. उस ने मुझे कभी भी गंभीरता से नहीं लिया.

एक दिन मैं ने दफ्तर के बाद रमेश को रोक लिया. सब लोग चले गए. केवल हम दोनों रह गए. मैं ने सोचा था कि मैं उसे एकांत में समझाऊंगा. शायद उस की समझ में आ जाए कि काम कितना अहम होता है. ‘रमेश, आखिर तुम यह सब क्यों करते हो?’ मैं ने स्नेहसिक्त, संयत स्वर में कहा था. ‘क्या करता हूं?’ उस ने उखड़ कर कहा था.

‘तुम दफ्तर देर से आते हो.’

‘आप को पता है, दिल्ली की बस व्यवस्था कितनी गंदी है.’

‘और लोग भी तो हैं जो वक्त से पहुंच जाते हैं.’

‘उस से क्या होता है. अगर मैं देर से आता हूं तो

2 घंटे का काम आधे घंटे में निबटा भी तो देता हूं.’

‘रमेश दफ्तर का अनुशासन भी कुछ होता है. यह कोई तर्क नहीं है. फिर, मैं तुम से सहमत नहीं कि तुम 2 घंटे का काम…’

‘मुझे बहस करने की आदत नहीं,’ कह कर वह अचानक उठा और कमरे से बाहर चला गया. मैं अपमानित सा, तिलमिला कर रह गया. रमेश के व्यवहार में कोई विशेष अंतर नहीं आया. अब वह खुलेआम दफ्तर में मोटीमोटी किताबें पढ़ता रहता था. काम की उसे कोई चिंता नहीं थी.एक दिन मैं ने उसे फिर समझाया, ‘रमेश, तुम दफ्तर के समय में किताबें मत पढ़ा करो.’

‘क्यों?’

‘इसलिए, कि यह गलत है. तुम्हारा काम अधूरा रहता है और अन्य कर्मचारियों पर बुरा असर पड़ता है.’

‘सुधीर बाबू, मैं आप को एक सूचना देना चाहता हूं.’

‘वह क्या?’

‘मैं इस वर्ष आईएएस की परीक्षा दे रहा हूं.’

‘तो क्या तुम्हारी उम्र 24 वर्ष से कम है?’

‘हां, और विभागीय नियमों के अनुसार मैं इस परीक्षा में बैठ सकता हूं.’

‘फिर तुम ने यह नौकरी क्यों की? घर बैठ कर…’

‘आप की दूसरों के व्यक्तिगत जीवन में टांग अड़ाने की बुरी आदत है,’ उस ने कह तो दिया फिर पलभर सोचने के बाद वह बोला, ‘सुधीर बाबू, यों आप ठीक कह रहे हैं. मजा तो तभी है जब एकाग्रचित्त हो यह परीक्षा दी जाए. पर क्या करूं, घर की आर्थिक परिस्थितियों ने मजबूर कर दिया.’

‘पर रमेश, यह बौद्धिक तथा नैतिक बेईमानी है. तुम इस कार्यालय में नौकरी करते हो. तुम्हें वेतन मिलता है. किंतु उस के प्रतिरूप उतना काम नहीं करते. तुम अपने स्वार्थ की सिद्धि में लगे हुए हो.’

‘जितने भी डिपार्टमैंटल खूसट मिलते हैं, सब को भाषण देने की बीमारी होती है.’

मैं ने तिलमिला कर कहा था, ‘रमेश, तुम में बिलकुल तमीज नहीं है.’

‘आप सिखा दीजिए न,’ उस ने मुसकरा कर कहा था.

मेरी क्रोधाग्नि में जैसे घी पड़ गया. ‘मैं तुम्हें निकाल दूंगा.’

‘यही तो आप नहीं कर सकते.’

‘तुम मुझे उकसा रहे हो.’

‘सुधीर बाबू, सरकारी सेवा में यही तो सुरक्षा है. एक बार बस घुस जाओ…’

मैं ने आगे बहस करना उचित नहीं समझा. मैं अपने को संयत और शांत करने का प्रयास कर रहा था कि रमेश ने एक और अप्रत्याशित स्थिति में मुझे डाल दिया.

‘सुधीर बाबू, मैं एक प्रश्न पूछना चाहता हूं.’

‘पूछो.’

‘आखिर तुम अपने काम को इतनी ईमानदारी से क्यों करते हो?’

‘क्या मतलब?’

‘सरकार एक अमूर्त्त चीज है. उस के लिए क्यों जानमारी करते हो, जिस का कोई अस्तित्व नहीं, उस की खातिर मुझ जैसे हाड़मांस के व्यक्ति से टक्कर लेते रहते हो. आखिर क्यों?’

‘रमेश, तुम नमकहराम और नमकहलाल का अंतर समझते हो?’

‘बड़े अडि़यल किस्म के आदमी हैं, आप,’ रमेश ने मुसकरा कर कहा था.

‘तुम जरूरत से ज्यादा मुंहफट हो गए हो, मैं…’ मैं ने अपने वाक्य को अधूरा छोड़ कर उसे पर्याप्त धमकीभरा बना दिया था.

‘मैं…मैं…क्या करते हो? मैं जानता हूं, आप मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते.’

बस, गाड़ी यों ही चलती रही. रमेश के कार्यकलापों में कोई अंतर नहीं आया. पर मैं ने एक बात नोट की थी कि धीरेधीरे उस का मेरे प्रति व्यवहार पहले की अपेक्षा कहीं अधिक शालीन, संयत और अनुशासित हो चुका था. क्यों? इस का पता मुझे बाद में लगा.

रमेश की परक्षाएं समीप आ गईं. एक दिन वह सुबह ढाई महीने की छुट्टी लेने की अरजी ले कर आया. अरजी को मेरे सामने रख कर, वह मेरी मेज से सट कर खड़ा रहा.

अरजी पर उचटी नजर डाल कर मैं ने कहा, ‘तुम्हें नौकरी करते हुए केवल 8 महीने हुए हैं, 8-10 दिन की छुट्टी बाकी होगी तुम्हारी. यह ढाई महीने की छुट्टी कैसे मिलेगी?’

‘लीव नौट ड्यू दे दीजिए.’

‘यह कैसे मिल सकती है? मैं कैसे प्रमाणपत्र दे सकता हूं कि तुम इसी दफ्तर में काम करते रहोगे और इतनी छुट्टी अर्जित कर लोगे.’

‘सुधीर बाबू, मेरे ऊपर आप की बड़ी कृपा होगी.’

‘आप बिना वेतन के छुट्टी ले सकते हैं.’

‘उस के लिए मुझे आप की अनुमति की जरूरत नहीं. क्या आप अनौपचारिक रूप से यह छुट्टी नहीं दे सकते?’

‘क्या मतलब?’

‘मेरा मतलब साफ है.’

‘रमेश, तुम इस सीमा तक जा कर बेईमानी और सिद्धांतहीनता की बात करोगे, इस की मैं ने कल्पना भी नहीं की थी. यह तो सरासर चोरी है. बिना काम किए, बिना दफ्तर आए तुम वेतन चाहते हो.’

‘सब चलता है, सुधीर बाबू.’

‘तुम आईएएस बन गए तो क्या विनाशलीला करोगे, इस की कल्पना मैं अभी से कर सकता हूं.’

‘मैं आप को देख लूंगा.’

‘‘सुधीर बाबू, आप को साहब याद कर रहे हैं,’’ निदेशक महोदय के चपरासी की आवाज सुन कर मेरी चेतना लौट आई भयावह स्मृतियों का क्रम भंग हो गया.

मैं उठा. मरी हुई चाल से, करीब घिसटता हुआ सा, मैं निदेशक के कमरे की ओर चल पड़ा. आगेआगे चपरासी, पीछेपीछे मैं, एकदम बलि को ले जाने वाले निरीह पशु जैसा. परिस्थितियों का कैसा विचित्र और असंगत षड्यंत्र था.

रमेश की मनोकामना पूरी हो गई थी. वर्ष पूर्व उस ने प्रतिशोध की भावना से प्रेरित हो कर जो कुछ कहा था, उसे पूरा करने का अवसर उसे मिल चुका था. उस जैसा स्वार्थी, महत्त्वाकांक्षी, सिद्धांतहीन और निर्लज्ज व्यक्ति कुछ भी कर सकता है.

चपरासी ने कमरे का दरवाजा खोला. मैं अंदर चला गया. गरदन झुकाए और निर्जीव चाल से मैं उस की चमचमाती, बड़ी मेज के समीप पहुंच गया.

‘‘आइए, सुधीर बाबू.’’

मैं ने गरदन उठाई, देखा, रमेश अपनी कुरसी से उठ खड़ा हुआ है और उस ने अपना दायां हाथ आगे बढ़ा दिया है, मुझ से हाथ मिलाने के लिए.

मैं ने हाथ मिलाया तो मुझे लगा कि यह सब नाटक है. बलि से पूर्व पशु का शृंगार किया जा रहा है.

‘‘सुधीर बाबू, बैठिए न.’’

मैं बैठ गया. सिकुड़ा और सिहरा हुआ सा.

‘‘क्या बात है? आप की तबीयत खराब है?’’

‘‘हां…नहीं…यों,’’ मैं सकपका गया.

‘‘इस अरजी में तो…’’

‘‘यों ही, कुछ अस्वस्थता सी महसूस हो रही थी.’’

‘‘आप कुछ परेशान और घबराए हुए से लग रहे हैं.’’

‘‘हां, नहीं तो…’’

अचानक, कमरे में एक जोर का अट्टहास गूंज गया.

मैं ने अचकचा कर दृष्टि उठाई. रमेश अपनी गुदगुदी घूमने वाली कुरसी में धंसा हुआ हंस रहा था.

‘‘क्या लेंगे, सुधीर बाबू, कौफी या चाय?’’

‘‘कुछ नहीं, धन्यवाद.’’

‘‘यह कैसे हो सकता है?’’ कह कर रमेश ने सहायिका को 2 कौफी अंदर भेजने का आदेश दे दिया.

कुछ देर तक कमरे में आशंकाभरा मौन छाया रहा. फिर अनायास, बिना किसी संदर्भ के, रमेश ने हा, ‘‘10 वर्ष काफी होते हैं.’’

‘‘किसलिए?’

‘‘किसी को भी परिपक्व होने के लिए.’’

‘‘मैं समझा नहीं, आप क्या कहना चाहते हैं.’’

‘‘10-12 वर्षों के बाद इस दफ्तर में आया हू. देखता हूं, आप के अलावा सब नए लोग हैं.’’

‘‘जी.’

‘‘आखिर इतने लंबे अरसे से आप उसी पद पर बने हुए हैं. तरक्की का कोई मौका नहीं मिला.’’

‘‘इस साल तरक्की होने वाली है. आप की रिपोर्ट पर ही सबकुछ निर्भर करेगा, सर,’’ न जाने किस शक्ति से प्रेरित हो, मैं यंत्रवत कह गया.

रमेश सीधा मेरी आंखों में झांक रहा था, मानो कुछ तोल रहा हो. मैं पछता रहा था. मुझे यह सब नहीं कहना चाहिए था. अब तो इस व्यक्ति को यह अवसर मिल गया है कि वह…

तभी चपरासी कौफी के 2 प्याले ले आया.

‘‘लीजिए, कौफी पीजिए.’

मैं ने कौफी का प्याला उठा कर होंठों से लगाया तो महसूस हुआ जैसे मैं मीरा हूं, रमेश राणा और प्याले में काफी नहीं, विष है.

‘‘सुधीर बाबू, आप की तरक्की होगी. दुनिया की कोईर् ताकत एक ईमानदार, परिश्रमी, नमकहलाल, अनुशासनप्रिय कर्मचारी की पदोन्नति को नहीं रोक सकती.’’ मैं अविश्वासपूर्वक रमेश की ओर देख रहा था. विष का प्याला मीठी कौफी में बदलने लगा था.

‘‘मैं आप की ऐसी असाधारण और विलक्षण रिपोर्ट दूंगा कि…’’

‘‘आप सच कह रहे हैं?’’

‘‘सुधीर बाबू, शायद आप बीते दिनों को याद कर के परेशान हो रहे हैं. छोडि़ए, उन बातों को. 10-12 वर्षों में इंसान काफी परिपक्व हो जाता है. तब मैं एक विवेकहीन, त्तरदायित्वहीन, उच्छृंखल नवयुवक, अधीनस्थ कर्मचारी था और अब मैं विवेकशील, उत्तरदायित्वपूर्ण अधिकारी हूं और समझ सकता हूं कि… तब और अब का अंतर?’’ हां, एक सुपरवाइजर के रूप में आप कितने ठीक थे, इस सत्य का उद्घाटन तो उसी दिन हो गया था, जब मैं पहली बार सुपरवाइजर बना था.’’ रमेश ने मेरी छुट्टी की अरजी मेरी ओर सरका दी और बोला, ‘‘अब इस की जरूरत तो नहीं है.’’

मैं ने अरजी फाड़ दी. फिर खड़े हो कर मैं विनम्र स्वर में बोला, ‘‘धन्यवाद, सर, मैं आप का बहुत आभारी हूं. आप महान हैं.’’

और रमेश के होंठों पर विजयी व गर्वभरी मुसकान बिछ गई. Best Hindi Story

Story In Hindi: मिर्जा साहब का घायल दिल

Story In Hindi: दरवाजे पर लगी नाम की तख्ती पर उस ने एक नजर डाली, जो अरहर की टाटी में गुजराती ताले की तरह लगी हुई थी. तख्ती पर लिखा ‘मिर्जा अख्तर’ का नाम पढ़ कर वह रुक गई. मन ही मन उन का नाम उस ने कई बार दुहराया और इमारत को गौर से देखने लगी. अंगरेजों के जमाने की बेढंगी जंग लगी पुरानी इमारत थी वह, जिस की दाईं तरफ का कुछ हिस्सा फिर से बसाया गया था और उस पर 3-4 मंजिलें चढ़ाई गई थीं. उन सब में लोग दड़बों में चूजों की तरह भरे होंगे,

यह बाहर से दिख जाता था. सैकड़ों कपड़े बाहर बरामदे में सूख रहे थे और ज्यादातर लड़कियों के ही थे. पुराने हिस्से में बहुत दिनों से शायद सफेदी नहीं हुई थी. जगहजगह कबूतरों की बीट से सफेद निशान पड़े हुए थे. कुलमिला कर ‘नूर’ को वह मकान कबूतरों का दड़बा लग रहा था. नूर कुछ देर तक तो अवाक रह गई. सोचा, सचमुच बड़े शहरों में आबादी की बढ़ती समस्या मकान ढूंढ़ने वालों के लिए महंगाई से भी भयानक बीज बन गई है. और वह भी दिल्ली में, जहां अकेला आया हुआ इनसान 4 बच्चों का बाप तो बन सकता है, मगर एक अदद मकान का मालिक नहीं. आजकल वैसे भी मुसलमानों को रहने की जगह कम ही मिल पाती है. नूर भी दिल्ली में नई ही थी. सचिवालय में नौकरी पाने के बाद मकान की समस्या उस के लिए सिरदर्द बन गई थी. कुछ दिन तो उस ने होटल में गुजारे थे, फिर साथ काम करने वाली एक लड़की के साथ एक कमरे में रहने लगी थी.

मगर तब भी रहने की समस्या उसे परेशान किए रहती थी. गांव में बूढ़े मांबाप थे. वह उन की एकलौती संतान थी. उन को किस के सहारे छोड़ें और जब तक मकान नहीं मिलता, वह उन्हें कैसे ले आए? मकान के लिए नूर ने कई लोगों से कह रखा था. उसे खबर मिली थी कि पुराने सराय महल्ले में मिर्जा अख्तर के मकान में 2 कमरों का फ्लैट खाली है. नूर मन ही मन सोचने लगी, ‘इस दड़बे में फ्लैट नाम की चीज कहां हो सकती है?’ फिर उस ने सारे खयालों को एक तरफ किया और आगे बढ़ कर दरवाजा खटखटा दिया. भारीभरकम दरवाजे के बगल में जंगले के समान कोई चीज थी. उसी में से कोई झांका था और एक खनकती आवाज उभरी थी, ‘‘कौन है?’’ ‘‘जी, जरा सुन लीजिए… कुछ काम है,’’ नूर ने अपनी आवाज में और मिठास घोलते हुए कहा, ‘‘वह मकान देखना था किराए के लिए. नूर नाम है मेरा.’’ उधर अंदर कमरे में जैसे हंगामा मच गया था.

पहले फुसफुसाहटें और फिर तेजतेज आवाजें. खबर देने वाले ने बताया था कि मेन मकान में 2 ही जने हैं, मिर्जा अख्तर और उन की बेगम. दोनों ही कब्र में पैर लटकाए बैठे हैं. एक ही बेटा है, जो मुंबई में फिल्म इंडस्ट्री में शायरों के लातजूते खा रहा है. फिर यह ठंडी आह…? तो क्या अख्तर साहब अब भी आहें भरते हैं? नूर कुछ ज्यादा सोच न सकी थी कि माथा भट्ठी की तरह सुलग उठा. उधर अंदर से आवाजें अब भी बराबर उभर रही थीं. ‘‘अरे, मैं कहती हूं कि दरवाजा खोलते क्यों नहीं?’’ फिर किसी के पैर पटकने की आवाज उभरी थी. धीरेधीरे फुसफुसाहटें शांत हो गई थीं और फिर आहिस्ता से दरवाजा खुला था. ‘‘हाय, मैं यह क्या देख रहा हूं? यह सपना है या सचाई, समझ में नहीं आता,’’ मिर्जाजी गुनगुनाए थे, ‘‘हम बियाबान में हैं और घर में बहार आई?है. अजी, मैं ने कहा, आदाब अर्ज है.

आइए, तशरीफ लाइए.’’ मिर्जा अख्तर को देख कर नूर बहुत मुश्किल से अपनी हंसी रोक सकी थी. सूखा छुहारा सा पिचका हुआ चेहरा, गहरी घाटियों की तरह धंसी आंखों में काले अंधेरों की तरह रची सुरमे की लंबी लकीर. जल्दबाजी में शायद पाजामा भी उन्होंने उलटा पहन लिया था. बाहर लटकते नाड़े पर उस की नजर ठिठक गई थी. मिर्जा ने कुछ पल नूर की नजरों को अपने चेहरे पर पढ़ते देखा था और नजरों के साथ ही उन की भी नजर अपने लटकते नाड़े पर पड़ी थी, ‘‘ओह… मोहतरमा, आप ठहरिए एक मिनट. हम अभी आ रहे हैं,’’ कह कर मिर्जा साहब पलट कर फिर अंदर चले गए थे. नूर ठगी सी उन की तरफ देखती रह गई थी. बाप रे, यह उम्र और ये जलवे. तभी फिर दरवाजे में एक काया नजर आई थी. भारीभरकम फूली रोटी की तरह शरीर.

कुछ बाहर की तरफ निकल कर चुगली खाते हुए दांत और पान की लाली से रचे कालेकाले होंठ. सबकुछ कुदरत की कलाकारी की याद ताजा कर रहा था. ‘‘आइए, अंदर बैठिए, मिर्जा साहब अभी आते हैं,’’ वही खनकती हुई आवाज सुन कर नूर के मन की सारी घबराहट गायब हो गई. उस ने अंदर कदम रखा. ‘बैठिए,’ अपनी काया को रोता पुराना सोफा मानो उसे पुकार रहा था. नूर आहिस्ता से सोफे पर बैठ गई, मानो उसे डर था कि कहीं तेजी से बैठने पर सोफा उसे ले कर जमीन में न धंस जाए. उसे सोफे पर बिठा कर बेगम फिर अंदर कमरे में चली गई थीं. उस ने कमरे को गौर से देखना शुरू किया. पुराने नवाबों के दीवानखाने की तरह एक तरफ रखा हुआ तख्त, जिस में पायों के बदले ईंटें रखी हुई थीं.

तख्त के ऊपर बाबा आदम के जमाने की बिछी चादर. सामने ही खुली हुई अलमारी थी, जिस में कबाड़ की तरह तमाम चीजें ठुंसी हुई थीं. कुछ भारीभरकम किताबें, कुछ अखबार के टुकड़े… आदि. तभी मिर्जा साहब फिर अंदर दाखिल हुए, ‘‘हेहेहे… जी, मुझ नाचीज को मिर्जा गुलफाम कहते हैं और मोहतरमा आप की तारीफ?’’ ‘‘जी, मुझे नूर कहते हैं. मैं यहीं सचिवालय में नौकरी करती हूं.’’ मगर मिर्जा साहब ने तो आखिरी बात मानो सुनी ही नहीं थी, ‘‘नूर, वाह क्या प्यारा नाम है. जैसा रूप वैसा नाम,’’ और उन्होंने डायरी उठा कर नूर का नाम लिख लिया. ‘‘जी देखिए, मैं… मैं ने सुना है कि आप के यहां कोई फ्लैट खाली है.’’ ‘‘अजी, फ्लैट को मारिए बम, यहां तो पूरा दिल ही खाली है… पूरा घर ही खाली है,’’ मिर्जा गुलफाम ने सीने पर हाथ मारा, ‘‘कहिए, कहां रहना पसंद करेंगी?’’

‘‘उफ,’’ नूर के माथे पर पसीना छलछला आया था, ‘‘जी, रहना तो फ्लैट में ही है. अगर आप मेहरबानी कर दें, तो मैं एहसानमंद रहूंगी.’’ ‘‘छोडि़ए भी मोहतरमा, एहसान की क्या बात है. अरे, वे जमाने गए, जब हम एहसान करते थे. अब तो हम खुद ही एहसान की ख्वाहिश करते हैं. सच कहता हूं… अगर आप की नजरे नूर मिल जाए, तो हम कयामत तक सबकुछ खाली रखेंगे. बस, आप को पसंद आ जाए तो…’’ नूर को पसीना आने लगा था. उस ने माथे को टटोला. माथा जैसे चक्कर खा रहा था, ‘‘जी, अगर आप वह फ्लैट दिखा सकें, तो बड़ी मेहरबानी होगी.’’ ‘‘हांहां, क्यों नहीं, क्यों नहीं. आइए, चलिए अभी दिखाता हूं,’’ कहते हुए मिर्जा साहब उठ खड़े हुए थे. फ्लैट को देख कर नूर को बहुत निराशा हुई थी. ढहने की कगार पर पहुंचे 2 कमरे बस… नूर की इच्छा हुई थी कि लौट जाए, फिर अपनी परेशानी का खयाल आया था और उस ने हां में सिर हिला दिया था. ‘‘तो क्या मैं समझूं कि मोहतरमा ने हमारे सूने घर को आबाद करने का फैसला कर लिया है?’’ ‘‘जी देखिए, ऐसा है कि आप किराया बता दीजिए.

फिर मैं कुछ कह सकूंगी.’’ ‘‘हाय,’’ मिर्जा इस तरह तड़पे थे मानो नूर ने सीने में खंजर उतार दिया हो, ‘‘देखिए मोहतरमा, ये सब बातें यों सीधे मत कहा कीजिए. उफ, देखिए तो कितना बड़ा घाव हो गया,’’ उन्होंने फिर सीने पर हाथ मारा. ‘‘मगर, मैं ने तो किराए की बात की थी,’’ नूर बौखला उठी. ‘‘बस यही बात तो हमारे दिल को भाले की तरह छेद गई… अजी साहब, आप की इनायत चाहिए, किराए की बात अपनेआप तय हो जाएगी.’’ नूर लाख सिर पटकने पर भी मिर्जा साहब को समझ नहीं पाई थी. किसी तरह सबकुछ तय कर के वह बाहर निकल आई. बाहर निकल कर उस ने लंबीलंबी सांसें खींचीं, फिर अपनी मजबूरी को कोसा कि वक्त ने उसे कहां ला पटका.

धीरेधीरे मन का बोझ उतरता जा रहा था. उसे मकान मिल गया था. मिर्जा अख्तर उन गुमनाम शायरों में थे, जो खुद को ही जानते हैं और खुद में ही खो कर रह जाते हैं. क्या पता, वे किस खानदान के थे, मगर अपना संबंध वह नवाब वाजिद अली शाह के घराने से ही जोड़ते थे. रंगीनमिजाजी मानो उन की नसनस में घुली थी. मगर जिंदगी के हर मोरचे पर उन्होंने थपेड़े ही खाए थे. वे इश्क की चोटी पर चढ़ने वाले उन बहादुरों की तरह थे, जो अपने हाथपैर तुड़वा कर शान से कहते हैं, ‘अजी, गिर गए तो क्या हुआ. गिरे भी तो इश्क की खातिर.’ उन का बेटा भी उन से परेशान हो कर मुंबई चला गया था और हवेलीनुमा मकान के एक हिस्से में उन्होंने अनऔथराइज्ड तीन मंजिलों में कमरे डलवा दिए थे, जिस के किराए से उन का खानापीना हो जाता था. मिर्जा साहब के पास पुराना वाला हिस्सा रह गया था. जब से नूर घर में रहने आई थी,

मिर्जा साहब का मानो काया ही पलट हो गया था. अब तो वे जागती आंखों से भी नूर का सपना देखने लगे थे. उधर नूर उस फ्लैटनुमा दड़बे में रहने तो आ गई थी, मगर उस का जीना मुश्किल हो गया था. आतेजाते हर समय उसे मिर्जा साहब की जबान से निकले तीर का सामना करना पड़ता था. ‘‘अहा, यह हुस्न की बिजली आज कहां गिरेगी हुजूर?’’ मिर्जा साहब अकसर ऐसी बातें कहते हुए अपनी नकली बत्तीसी दिखाने लगते थे. नूर जलभुन कर राख हो जाती, ‘‘संभल के रहिएगा मिर्जा साहब, कहीं आप के ऊपर ही न गिर जाए.’’ मिर्जा साहब की मुसकराहट नूर को जला कर राख कर देती थी. पूरे दिन उस का मन उखड़ाउखड़ा सा रहता था. मगर वह करती भी क्या? कोई दूसरा चारा भी तो नहीं था उस के सामने. उस दिन भी उसी जानेपहचाने अंदाज में गले तक की अचकन और चूड़ीदार पाजामा पहने हुए मिर्जा साहब नूर के सामने आ गए. नूर ने गुलाबी कुरती और चूड़ीदार पाजामा पहन रखा था.

मिर्जा साहब ने उसे ऊपर से नीचे तक घूरती नजरों से देखा. उन के चेहरे पर जमानेभर की मासूमियत उभर आई थी. ‘‘मिर्जा साहब, आदाब,’’ कह कर नूर आगे बढ़ने को हुई थी कि मिर्जा साहब सामने आ गए. ‘‘किया है कत्ल जो मेरा तो थोड़ी देर तो ठहरो, तड़पना देख लो दिल का लहू बहता है बहने दो,’’ चहकते हुए मिर्जा साहब ने यह शेर सुनाया. ‘‘उफ मिर्जा साहब, दफ्तर जाने में देर हो जाएगी. फिलहाल तो मुझे जाने दें और फिर दिनभर शायरी की टांग तोड़ते रहिएगा,’’ नूर झल्ला कर बोली. ‘‘उफ… फूलों से बदन इन के कांटे हैं जबानों में. अरे मोहतरमा, अगर प्यार से दो बोल हमारी तरफ भी उछाल दोगी तो क्या कयामत आ जाएगी?’’ ‘‘आप तो मजाक करते हैं मिर्जा साहब.

कहां मैं और कहां आप…?’’ नूर ने कहा. ‘‘बसबस, यही मैं और आप की दीवार ही तो मैं गिराना चाहता हूं… काश, तुम्हें दिखा सकता कि मेरा दिल तुम्हें देख कर कबूतर की मानिंद फड़फड़ाता है और तुम हो कि बिल्ली की नजरों से हमें देखती हो,’’ मिर्जा साहब की आवाज में जमाने भर का दर्द उभर आया था. नूर का दिमाग चक्कर खा रहा था. क्या करे वह? किस तरह से मिर्जा गुलफाम के इश्क का बुखार उतारे. लाख सिर पटका, मगर कोई रास्ता नजर न आया. मिर्जा साहब की हरकतें रोज ही बढ़ती जा रही थीं. नूर के अम्मीअब्बा ने फैसला किया था कि ईद के बाद ही आएंगे और ईद में पूरा महीना है. महीनेभर में तो वह पागल हो जाएगी. घंटों बैठ कर वह सिर खपाती रही.

आखिर में एक उपाय उस के दिमाग में कौंध गया. ‘‘अजी, मैं ने कहा, कि मिर्जा साहब आदाब अर्ज,’’ सुबहसुबह ही रोज की तरह मिर्जा साहब को अपने सामने पा कर नूर ने कहा. ‘‘हाय, क्या अदा है… हुजूर… आप ने तो जान ही निकाल ली. अरे, मैं ने कहा, सुबहसुबह यह सूरज पूरब में कैसे निकल गया?’’ ‘‘सूरज तो रोज ही पूरब में निकलता है गुलफाम साहब, बस देखने वाली नजरें होनी चाहिए,’’ नूर ने अपनी आवाज में और मिठास घोलते हुए कहा. ‘‘गुलफाम? हाय मोहतरमा, तुम ने मुझे गुलफाम कहा. हाय मेरी नूरे नजर, मेरे दिल की जलती हुई मोमबत्ती, मेरी नजरों की लालटेन, मेरा दिल तो जैसे तपता हुआ तवा हो गया…’’ मिर्जा साहब पिघल कर रसमलाई हो गए थे.

‘‘कभी हमारे गरीबखाने में भी आया कीजिए न. देखिए न दफ्तर से आने के बाद कमरे में अकेले ऊब जाती हूं. जरा सा यह भी नहीं सोचते कि इस भरी दुनिया में कोई इस कदर मेरी तरह तनहा भी है.’’ ‘‘क्या बात है? हाय, हम तो मर गए हुजूर की सादगी पर, कत्ल करते हैं और हाथ में झाड़ू भी नहीं, अरे मोहतरमा, तुम कहती हो, तो हम आज से वहीं अपना टूटा तख्त बिछाएंगे.’’ ‘‘नहींनहीं, उस की जरूरत नहीं. बस कुछ पलों के लिए बांदी को भी तनहाई दूर करने का मौका दे दिया कीजिए,’’ नूर जल्दी से बोली. ‘‘आज शाम को. मगर देखिए, बेगम साहिबा को पता न चले. जरा संभल कर.’’ ‘‘छोडि़ए भी हुजूर, बेगम साहिबा को दूध में नींद की गोली दे दूंगा. आप कहिए तो गला ही दबा दूं.’’ ‘‘तोबातोबा, आप भी कैसी बातें करते हैं गुलफाम साहब, फिर फांसी पर चढ़ना होगा.

न बाबा, न. बस, आप रात में बेगम साहिबा के सोने पर जरा तशरीफ लाइए. कुछ गुफ्तगू करनी है. अच्छा, मैं चलूं,’’ कह कर नूर तो चली गई और बेचारे मिर्जा साहब सारे दिन खयालीपुलाव पकाते रहे. शाम होते ही मिर्जा साहब के शरीर में मानो नई फुरती उतर आई थी. आईना ले कर वह घंटों अपने मुखड़े को हर तरफ से निहारते रहे थे. ‘‘अरे बेगम, मैं ने कहा, अरी ओ मेरी इलायची,’’ मिर्जा साहब तेज आवाज में चिल्लाए. ‘‘आती हूं, तुम तो हरदम बेसुरे तबले की तरह बजा करते हो. क्या बात है?’’ बेगम पास आ कर झल्लाईं. ‘‘भई, तुम्हारी तो गुस्से में ही नाक रहती है. सुनो, जरा मेरा शेविंग बौक्स तो दे दो.’’ ‘‘हाय, तो क्या अब आप दाढ़ी भी बनाएंगे,’’ बेगम ने नजाकत से पूछा. ‘‘उफ बेगम, तुम भी मजाक करती हो. हम दाढ़ी नहीं बनाएंगे? भला क्यों? अरे, अभी तो हम ने अपनी जवानी का दीदार भी नहीं किया. देखो बेगम, मजाक मत करो. जाओ, जल्दी से शेविंग बौक्स ला दो.’’

बेगम पैर पटकते हुए गईं और शेविंग बौक्स ला कर मिर्जा साहब को थमा दिया. आईने को सामने रख कर बहुत जतन से मिर्जा साहब ने ब्लेड निकाला. पुराना जंग खाया ब्लेड. बहुत दिनों से दाढ़ी बनाने की जरूरत नहीं पड़ी थी, ब्लेड में भी जंग लग गया था. उन्होंने दाढ़ी बनानी शुरू की. कई जगह गाल कट भी गया, मगर उन के जोश में कोई कमी न आई. खून भी बहे तो क्या हुआ? दाढ़ी बनाने के बाद गुनगुनाते हुए वे उठे ही थे कि बेगम फिर सिर पर सवार हो गईं, ‘‘तुम तो सोतेजागते नूर का ही सपना देखते रहते हो. कुछ तो शर्म करो. वह तुम्हारी बेटी की तरह है.’’ ‘‘क्या बात कही है? अरी बेगम साहिबा, तुम कहती हो बेटी की तरह है और मैं कहता हूं… छोड़ो… सुनो, हम जरा कनाट प्लेस तक जा रहे हैं.’’

‘‘कनाट प्लेस?’’ बेगम चौंकीं. ‘‘हां, और देर रात गए आएंगे. हमारा इंतजार मत करना. खाना खा कर सो जाना,’’ उन्होंने शेरवानी और चूड़ीदार पाजामा पहना था और छड़ी घुमाते हुए बाहर निकल गए थे. उन के मन में तब भी नूर का चेहरा घूम रहा था. ‘‘मिर्जा साहब दिनभर यों ही इधरउधर घूमते रहे. रात में जब 9 बज गए, तब वे अपनी हवेली के अंदर दाखिल हुए. पता चला कि बेगम अभी भी जाग रही हैं. मिर्जा साहब ने माथा ठोंक लिया, ‘‘उफ बेगम, तुम भी हद करती हो. अरे, इंतजार की क्या जरूरत थी, खा कर सो गई होतीं.’’ बेगम नई दुलहन की तरह शरमाईं, ‘‘हाय, कैसी बात करते हो जी. बिना तुम्हारे खाए हम ने कभी खाया भी?है.’’ मिर्जा साहब ने मन ही मन बेगम को हजारों गालियां दीं. वे बोल थे, ‘‘सुनो, मुझे भूख नहीं है. एक गिलास दूध ला दो तो वही पी लेंगे.’’ ‘‘ठीक है, वही मैं भी पी लूंगी. खाने का मेरा बिलकुल भी मन नहीं है,’’ बेगम ने कहा और दूध लेने चली गईं.

मिर्जा साहब मन ही मन बड़े खुश हुए, सारा काम अपनेआप बनता जा रहा था. उन्होंने जेब से नींद की गोली की शीशी निकाली, जो कनाट प्लेस से उन्होंने खरीदी थी. तभी बेगम दूध का गिलास ले कर आ गईं. ‘‘अरे बेगम, दूध में शक्कर तो है ही नहीं. क्या डालना भूल गई?’’ उन्होंने दूध का गिलास होंठों से लगाते हुए कहा. ‘‘अभी लाती हूं,’’ कह कर बेगम बाहर चली गईं. उन्होंने इधरउधर देखा और जल्दी से सारी गोलियां बेगम के गिलास में उड़ेल कर उन्हें मिला दिया. बेगम ने लौट कर उन के गिलास में शक्कर डाली ही थी, तभी बिजली चली गई. ‘‘उफ, यह क्या हुआ,’’ बेगम झल्लाईं, मगर मिर्जा साहब की तो बांछें खिल गईं. अंधेरे की ही तो उन्हें जरूरत थी. अंधेरे में ही दूध का गिलास दोनों ने खाली किया था और फिर बेगम लेट गईं. मिर्जा साहब कुछ पल चोर नजरों से देखते रहे और फिर पुकारा,

‘‘बेगम, अरी ओ बेगम.’’ मगर, बेगम तो नींद की दुनिया में खो गई थीं. मिर्जा साहब आहिस्ता से उठे और बाहर निकल गए. वे कुछ पल तक बाहर वाली बैठक में बैठ कर इंतजार करते रहे थे कि कहीं बेगम बाहर न आ जाएं. मगर, बेगम तो नींद की दुनिया में खो गई थीं. इसी तरह जब आधा घंटा गुजर गया, तब वे आहिस्ता से उठे और नूर के कमरे का दरवाजा खटखटाया. होंठों ही होंठों में वह गुनगनाए, ‘जरा मन की किवडि़या खोल कि सइयां तेरे द्वारे खड़े.’ मगर दरवाजा न खुला. ‘‘नूर, अरे ओ प्यारी नूर,’’ मिर्जा साहब ने धीमी आवाज में पुकारा, मगर तब भी कोई आवाज न आई. मिर्जा साहब का दिल धड़क उठा, ‘‘उफ प्यारी नूर… जरा दिल का रोशनदान खोल कर देखो, बाहर तुम्हारी नजरों का दावेदार, तुम्हारे दिल का तलबगार खड़ा तुम्हें आवाज दे रहा है…’’ दरवाजा तब भी नहीं खुला था. मिर्जा साहब का मन मानो कांप उठा था, ‘‘हाय, क्या हो गया तुम्हें मेरी छप्पन छुरी? मेरे दिल की कटोरी, अरे, बाहर तो आओ. तुम्हारा गुलफाम तुम्हें पुकार रहा है,’’ मिर्जा साहब की आंखें बेबसी पर छलक आई थीं. ‘‘हाय, कमबख्त दिल तड़प रहा है.

जरा इस पर तो नजर डाल लो. देखो तो तुम्हारे लिए खास कनाट प्लेस से हम बर्गर लाए हैं. दोनों मिल कर खाएंगे और नजरों से बतियाएंगे. दरवाजा खोलो न,’’ मिर्जा साहब तड़प कर पुकार रहे थे. तभी धीरे से दरवाजा खुला और नूर की मीठी आवाज उभरी, ‘‘हाय, आप आ गए? उफ, कमबख्त आंखें लग गई थीं. आइए, अंदर आ जाइए.’’ अंदर गहरा अंधेरा था. मगर मिर्जा साहब के दिल में तो मानो हजारों वाट की लालटेन जल उठी थी, ‘‘हाय नूर, कहां हो तुम? अरे जालिम, अब तो सामने आओ. देखो तो नामुराद दिल तुम्हारे दीदार के लिए केकड़े के माफिक बारबार गरदन निकाल रहा है. कहां हो तुम?’’ मिर्जा साहब ने हाथ बढ़ा कर टटोला था. ‘‘मगर, बेगम साहिबा…?’’

नूर की आवाज फिर उभरी. ‘‘अरे, उस कमबख्त की बात मत करो. उसे तो नींद की गोली खिला कर आए हैं. अब तो बस, हम और तुम… हाय, क्या प्यारा मौसम है. प्यारी नूर, कहां हो तुम?’’ और तभी मौसम से अचानक ही बिजलियां टूट पड़ीं. उन के सिर पर किसी चीज का जोरदार धमाका हुआ था. और फिर धमाके होते चले गए थे. सिर, हाथ, पैर, सीना और कमर कोई भी तो जगह बाकी नहीं थी, जहां धमाका न हुआ हो. ऐन वक्त पर कमबख्त बिजली भी आ गई थी. मिर्जा साहब का सारा जोश ठंडा पड़ गया था. सामने भारीभरकम काया वाली बेगम साहिबा हाथ में झाड़ू लिए खड़ी थीं. ‘‘बेगम साहिबा तुम…?’’ मुंह से भरभराती आवाज निकली थी मिर्जा के… ‘‘हां, मैं…,’’

और बेगम साहिबा के मुंह से गालियों का तूफान टूट पड़ा था. हाथ में जैसे बिजली भर गई थी और झाड़ू फिर मिर्जा साहब के सूखे जिस्म पर टूट पड़ी थी. मिर्जा साहब की नजरों के आगे जैसे अंधेरा सा छा गया था और वे धड़ाम से गिर कर बेहोश हो गए. फिर उन्हें पता नहीं चला कि क्या हुआ? जाने कब वह अपने कमरे में पहुंचे थे, उन्हें कुछ भी याद नहीं था. बस, उन्हें इतना ही याद था कि होश आने के बाद गुलफाम बनने का नशा सिर से उतर गया था. पहलीपहली बार इश्क का पहाड़ा पढ़ने चले थे और जो ठोकर मिली थी, उस ने उन्हें गुलफाम से फिर अख्तर बना दिया था. उधर नूर बराबर वाले हिस्से में मिर्जा साहब के बेटे से चोंचें लड़ा रही थी. उस ने कई दिन पहले उन के बेटे को मुंबई से बुला लिया था और सारी बात बताई थी. बेटे को नूर की हिम्मत पर बहुत नाज हो गया और उस ने शादी की इच्छा जाहिर कर दी थी. अब नूर और मिर्जा साहब का बेटा बगल वाले हिस्से में एक खाली रह गए फ्लैट में रहेंगे. और नूर के मातापिता…? वे मिर्जा और मिर्जाइन के हिस्से में परमानैंट मेहमान बने रहेंगे. यह सब जान कर मिर्जा साहब का दिल कितना घायल हुआ, न पूछें. Story In Hindi

Hindi Story: बहू हो या बेटी – हिना और शारदा के रिश्ते से लोगों को क्या दिक्कत थी

Hindi Story: रूबी ताई ने जैसे ही बताया कि हिना छत पर रेलिंग पकड़े खड़ी है तो घर में हलचल सी मच गई.

‘‘अरे, वह छत पर कैसे चली गई, उसे तीसरे माले पर किस ने जाने दिया,’’ शारदा घबरा उठी थीं, ‘‘उसे बच्चा होने वाला है, ऐसी हालत में उसे छत पर नहीं जाना चाहिए.’’

आदित्य चाय का कप छोड़ कर तुरंत सीढि़यों की तरफ दौड़ा और हिना को सहारा दे कर नीचे ले आया. फिर कमरे में ले जा कर उसे बिस्तर पर लिटा दिया.

हिना अब भी न जाने कहां खोई थी, न जाने किस सोच में डूबी हुई थी.

हिना का जीवन एक सपना जैसा ही बना हुआ था. खाना बनाती तो परांठा तवे पर जलता रहता, सब्जी छौंकती तो उसे ढकना भूल जाती, कपड़े प्रेस करती तो उन्हें जला देती.

हिना जब बहू के रूप में घर में आई थी तो परिवार व बाहर के लोग उस की खूबसूरती देख कर मुग्ध हो उठे थे. उस के गोरे चेहरे पर जो लावण्य था, किसी की नजरों को हटने ही नहीं देता था. कोई उस की नासिका को देखता तो कोई उस की बड़ीबड़ी आंखों को, किसी को उस की दांतों की पंक्ति आकर्षित करती तो किसी को उस का लंबा कद और सुडौल काया.

सांवला, साधारण शक्लसूरत का आदित्य हिना के सामने बौना नजर आता.

शारदा गर्व से कहतीं, ‘‘वर्षों खोजने पर यह हूर की परी मिल पाई है. दहेज न मिला तो न सही पर बहू तो ऐसी मिली, जिस के आगे इंद्र की अप्सरा भी पानी भरने लगे.’’

धीरेधीरे घर के लोगों के सामने हिना के जीवन का दूसरा पहलू भी उजागर होने लगा था. उस का न किसी से बोलना न हंसना, न कहीं जाने का उत्साह दिखाना और न ही किसी प्रकार की कोई इच्छा या अनिच्छा.

‘‘बहू, तुम ने आज स्नान क्यों नहीं किया, उलटे कपडे़ पहन लिए, बिस्तर की चादर की सलवटें भी ठीक नहीं कीं, जूठे गिलास मेज पर पडे़ हैं,’’ शारदा को टोकना पड़ता.

फिर हिना की उलटीसीधी विचित्र हरकतें देख कर घर के सभी लोग टोकने लगे, पर हिना न जाने कहां खोई रहती, न सुनती न समझती, न किसी के टोकने का बुरा मानती.

एक दिन हिना ने प्रेस करते समय आदित्य की नई शर्ट जला डाली तो वह क्रोध से भड़क उठा, ‘‘मां, यह पगली तुम ने मेरे गले से बांध दी है. इसे न कुछ समझ है न कुछ करना आता है.’’

उस दिन सभी ने हिना को खूब डांटा पर वह पत्थर बनी रही.

शारदा दुखी हो कर बोलीं, ‘‘हिना, तुम कुछ बोलती क्यों नहीं, घर का काम करना नहीं आता तो सीखने का प्रयास करो, रूबी से पूछो, मुझ से पूछो, पर जब तुम बोलोगी नहीं तो हम तुम्हें कैसे समझा पाएंगे.’’

एक दिन हिना ने अपनी साड़ी के आंचल में आग लगा ली तो घर के लोग उस के रसोई में जाने से भी डरने लगे.

‘‘हिना, आग कैसे लगी थी?’’

‘‘मांजी, मैं आंचल से पकड़ कर कड़ाही उतार रही थी.’’

‘‘कड़ाही उतारने के लिए संडासी थी, तौलिया था, उन का इस्तेमाल क्यों नहीं किया था?’’ शारदा क्रोध से भर उठी थीं, ‘‘जानती हो, तुम कितनी बड़ी गलती कर रही थीं…इस का दुष्परिणाम सोचा है क्या? तुम्हारी साड़ी आग पकड़ लेती तब तुम जल जातीं और तुम्हारी इस गलती की सजा हम सब को भोगनी पड़ती.’’

आदित्य हिना को मनोचिकित्सक को दिखाने ले गया तो पता लगा कि हिना डिप्रेशन की शिकार थी. उसे यह बीमारी कई साल पुरानी थी.

‘‘डिपे्रशन, यह क्या बला है,’’ शारदा के गले से यह बात नहीं उतर पा रही थी कि अगर हिना मानसिक रोगी है तो उस ने एम.ए. तक की पढ़ाई कैसे कर ली, ब्यूटीशियन का कोर्स कैसे कर लिया.

‘‘हो सकता है हिना पढ़ाई पूरी करने के बाद डिप्रेशन की शिकार बनी हो.’’

आदित्य ने फोन कर के अपने सासससुर से जानकारी हासिल करनी चाही तो उन्होंने अनभिज्ञता जाहिर कर दी.

शारदा परेशान हो उठीं. लड़की वाले साफसाफ तो कुछ बताते नहीं कि उन की बेटी को कौन सी बीमारी है, और कुछ हो जाए तो सारा दोष लड़के वालों के सिर मढ़ कर अपनेआप को साफ बचा लेते हैं.

‘‘मां, इस पागल के साथ जीवन गुजारने से तो अच्छा है कि मैं इसे तलाक दे दूं,’’ आदित्य ने अपने मन की बात जाहिर कर दी.

घर के दूसरे लोगोें ने आदित्य का समर्थन किया.

घर में हिना को हमेशा के लिए मायके भेजने की बातें अभी चल ही रही थीं कि एक दिन उसे जोरों से उलटियां शुरू हो गईं.

डाक्टर के यहां ले जाने पर पता चला कि वह मां बनने वाली है.

‘‘यह पागल हमेशा को गले से बंध जाए इस से तो अच्छा है कि इस का एबौर्शन करा दिया जाए,’’ आदित्य आक्रोश से उबल रहा था.

शारदा का विरोध घर के लोगों की तेज आवाज में दब कर रह गया.

आदित्य, हिना को डाक्टर के यहां ले गया,  पर एबौर्शन नहीं हो पाया क्योंकि समय अधिक गुजर चुका था.

घर में सिर्फ शारदा ही खुश थीं, सब से कह रही थीं, ‘‘बच्चा हो जाने के बाद हिना का डिप्रेशन अपनेआप दूर हो जाएगा. मैं अपनी बहू को बेटी के समान प्यार दूंगी. हिना ने मेरी बेटी की कमी दूर कर दी, बहू के रूप में मुझे बेटी मिली है.’’

अब शारदा सभी प्रकार से हिना का ध्यान रख रही थीं, हिना की सभी प्रकार की चिकित्सा भी चल रही थी.

लेकिन हिना वैसी की वैसी ही थी. नींद की गोलियों के प्रभाव से वह घंटों तक सोई रहती, परंतु उस के क्रियाकलाप पहले जैसे ही थे.

‘‘अगर बच्चे पर भी मां का असर पड़ गया तो क्या होगा,’’ आदित्य का मन संशय से भर उठता.

‘‘तू क्यों उलटीसीधी बातें बोलता रहता है,’’ शारदा बेटे को समझातीं, ‘‘क्या तुझे अपने खून पर विश्वास नहीं है? क्या तेरा बेटा पागल हो सकता है?’’

‘‘मां, मैं कैसे भूल जाऊं कि हिना मानसिक रोगी है.’’

‘‘बेटा, जरूर इस के दिल को कोई सदमा लगा होगा, वक्त का मरहम इस के जख्म भर देगा. देख लेना, यह बिलकुल ठीक हो जाएगी.’’

‘‘तो करो न ठीक,’’  आदित्य व्यंग्य कसता, ‘‘आखिर कब तक ठीक होगी यह, कुछ मियाद भी तो होगी.’’

‘‘तू देखता रह, एक दिन सबकुछ ठीक हो जाएगा…पहले घर में बच्चे के रूप में खुशियां तो आने दे,’’ शारदा का विश्वास कम नहीं होता था.

पूरे घर में एक शारदा ही ऐसी थीं जो हिना के पक्ष में थीं, बाकी लोग तो हिना के नाम से ही बिदकने लगे थे.

शारदा अपने हाथों से फल काट कर हिना को खिलातीं, जूस पिलातीं, दवाएं पिलातीं, उस के पास बैठ कर स्नेह दिखातीं.

प्यार से तो पत्थर भी पिघल जाता है, फिर हिना ठहरी छुईमुई सी लड़की.

‘‘मांजी, आप मेरे लिए इतना सब क्यों कर रही हैं,’’ एक दिन पत्थर के ढेर से पानी का स्रोत फूट पड़ा.

हिना को सामान्य ढंग से बातें करते देख शारदा खुश हो उठीं, ‘‘बहू, तुम मुझ से खुल कर बातें करो, मैं यही तो चाहती हूं.’’

हिना उठ कर बैठ गई, ‘‘मैं अपनी जिम्मेदारियां ठीक से नहीं निभा पा रही हूं.’’

‘‘तुम मां बनने वाली हो, ऐसी हालत में कोई भी औरत काम नहीं कर सकती. सभी को आराम चाहिए, फिर मैं हूं न. मैं तुम्हारे बच्चे को नहलाऊंगी, मालिश करूंगी, उस के लिए छोटेछोटे कपडे़ सिलूंगी.’’

हिना अपने पेट में पलते नवजात शिशु की हलचल को महसूस कर के सपनों में खो जाती, और कभी शारदा से बच्चे के बारे में तरहतरह के प्रश्न पूछती रहती.

‘‘हिना ठीक हो रही है. देखो, मैं कहती थी न…’’ शारदा उत्साह से भरी हुई सब से कहती रहतीं.

आदित्य भी अब कुछ राहत महसूस कर रहा था और हिना के पास बैठ कर प्यार जताता रहता.

एक शाम आदित्य हिना के लिए जामुन खरीद कर लाया तो शारदा का ध्यान जामुन वाले कागज के लिफाफे की तरफ आकर्षित हुआ.

‘‘देखो, इस कागज पर बनी तसवीर हिना से कितनी मिलतीजुलती है.’’

आदित्य के अलावा घर के अन्य लोग भी उस तसवीर की तरफ आकर्षित हुए.

‘‘हां, सचमुच, यह तो दूसरी हिना लग रही है, जैसे हिना की ही जुड़वां बहन हो, क्यों हिना, तुम भी तो कुछ बोलो.’’

हिना का चेहरा उदास हो उठा, उस की आंखें डबडबा आईं, ‘‘हां, यह मेरी ही तसवीर है.’’

‘‘तुम्हारी?’’ घर के लोग आश्चर्य से भर उठे.

‘‘मैं ने कुछ समय मौडलिंग की थी. पैसा और शौक पूरा करने के लिए यह काम मुझे बुरा नहीं लगा था, पर आप लोग मेरी इस गलती को माफ कर देना.’’

‘‘तुम ने मौडलिंग की, पर मौडल बनना आसान तो नहीं है?’’

‘‘मैं अपने कालिज के ब्यूटी कांटेस्ट में प्रथम चुनी गई थी. फिर…’’

‘‘फिर क्या?’’ शारदा ने उस का उत्साह बढ़ाया, ‘‘बहू, तुम ब्यूटी क्वीन चुनी गईं, यह बात तो हम सब के लिए गर्व की है, न कि छिपाने की.’’

‘‘फिर इस कंपनी वालों ने खुद ही मुझ से कांटेक्ट कर के मुझे अपनी वस्तुओं के विज्ञापनों में लिया था,’’ इतना बताने के बाद हिना हिचकियां भर कर रोने लगी.

काफी देर बाद वह शांत हुई तो बोली, ‘‘मुझे एक फिल्म में सह अभिनेत्री की भूमिका भी मिली थी, पर मेरे पिताजी व ताऊजी को यह सब पसंद नहीं आया.’’

अब हिना की बिगड़ी मानसिकता का रहस्य शारदा के सामने आने लगा था.

हिना ने बताया कि उस के रूढि़वादी घर वालों ने न सिर्फ उसे घर में बंद रखा बल्कि कई बार उसे मारापीटा भी गया और उस के फोन सुनने पर भी पाबंदी लगा दी गई थी.

शारदा के मन में हिना के प्रति वात्सल्य उमड़ पड़ा था.

हिना के मौडलिंग की बात खुल जाने से उस के मन का बोझ हलका हो गया था. वह बोली, ‘‘मांजी, मुझे डर था कि आप लोग यह सबकुछ जान कर मुझे गलत समझने लगेंगे.’’

‘‘ऐसा क्यों सोचा तुम ने?’’

‘‘लोग मौडलिंग के पेशे को अच्छी नजर से नहीं देखते और ऐसी लड़की को चरित्रहीन समझने लगते हैं. फिर उस लड़की का नाम कई पुरुषों के साथ जोड़ दिया जाता है, मेरे साथ भी यही हुआ था.’’

‘‘बेटी, सभी लोग एक जैसे नहीं हुआ करते. आजकल तुम खुश रहा करो. खुश रहोगी तो तुम्हारा बच्चा भी खूबसूरत व निरोग पैदा होगा.’’

शारदा का स्नेह पा कर हिना अपने को धन्य समझ रही थी कि आज के समय में मां की तरह ध्यान रखने वाली सास भी है, वरना उस ने तो सास के बारे में कुछ और ही सुन रखा था.

नियत समय पर हिना ने एक स्वस्थ बेटे को जन्म दिया तो घर में खुशियों की शहनाई गूंज उठी.

हिना बेटे की किलकारियों में खो गई. पूरे दिन बच्चे के इतने काम थे कि उस के अलावा और कुछ सोचने की उसे फुरसत ही नहीं थी.

एक दिन शारदा की इस बात ने घर में विस्फोट जैसा वातावरण बना दिया कि हिना धारावाहिक में काम करेगी. पारस, मेरी सहेली के पति हैं और वह एक पारिवारिक धारावाहिक बना रहे हैं. उन्होंने हिना को कई बार देखा है और मेरे सामने प्रस्ताव रखा है कि आदर्श बहू की भूमिका वह हिना को देना चाहते हैं.

‘‘मां, तुम यह क्या कह रही हो. हिना को धारावाहिक में काम दिलवाओगी, वह कहावत भूल गईं कि औरत को खूंटे से बांध कर रखना चाहिए. एक बार औरत के कदम घर से बाहर निकल जाएं तो घर में लौटना कठिन रहता है,’’ आदित्य आक्रोश से उबल रहा था.

शारदा भी क्रोध से भर उठीं, ‘‘क्या मैं औरत नहीं हूं? पति के मरने के बाद मैं ने घर से बाहर जा कर सैकड़ों जिम्मेदारियां पूरी की हैं. मां बन कर तुम्हें जन्म दिया और बाप बन कर पाला है. सैकड़ों कष्ट झेले, पैसा कमाने को छोटीछोटी नौकरियां कीं, कठिन परिश्रम किया, तो क्या मैं ने अपना घर उजाड़ लिया? पुरुष तो सभी जगहों पर होते हैं, रूबी ताई भी तो दफ्तर में नौकरी कर रही है, क्या उस ने अपना घर उजाड़ लिया है. फिर हिना के बारे में ही ऐसा क्यों सोचा जा रहा है?

‘‘अगर तुम हिना को खूंटे से ही बांधना चाहते हो तो पहले मुझे बांधो, रूबी को बांधो. हिना का यही दोष है न कि वह सामान्य से कुछ अधिक ही खूबसूरत है, पर यह उस का दोष नहीं है. अरे, कोई खूबसूरत चीज है तो लोगों की नजरें उस तरफ उठेंगी ही.’’

शारदा के तर्कों के आगे सभी की जुबान पर ताले लग गए थे.

हिना शारदा की गोद में मुंह छिपा कर रो रही थी. फिर अपने आंसुओं को पोंछ कर बोली, ‘‘मां, तुम सचमुच मेरे लिए मेरा आदर्श ही नहीं बल्कि मां भी हो.’’

एक दिन जब हिना का धारावाहिक टेलीविजन पर प्रसारित हुआ तो उस के अभिनय की सभी ने तारीफ की और बधाइयां मिलने लगीं.

हिना उत्तर देती, ‘‘बधाई की पात्र तो मेरी सास हैं, उन्हीं ने मुझे डिप्रेशन से मुक्ति दिलाई और एक नया सम्मान से भरा जीवन दिया.’’

शारदा सिर्फ मुसकरा कर रह जातीं, ‘‘बहू हो या बेटी, दोनों ही एक हैं. दोनों के प्रति एक ही प्रकार से फर्ज निभाना चाहिए.’’ Hindi Story

Story In Hindi: नहले पे दहला – साक्षी ने कैसे लिया बदला

Story In Hindi: साक्षी ने जैसे ही दरवाजा खोला, वह चौंक कर दो कदम पीछे हट गई. सामने खड़ा टोनी बगैर कुछ कहे मुसकराता हुआ अंदर दाखिल हो गया.

‘‘तुम यहां पर…’’ साक्षी चौंकते हुए बोली.

‘‘क्या भूल गई अपने आशिक को?’’ टोनी ने बेशर्मी से कहा.

‘‘भूल जाओ उन बातों को. मेरी जिंदगी में जहर मत घोलो,’’ साक्षी रोंआसी हो कर बोली.

‘‘चिंता मत करो, मैं तुम्हें ज्यादा तंग नहीं करूंगा. लो यह देखो,’’ टोनी ने एक लिफाफा साक्षी को देते हुए कहा.

साक्षी ने लिफाफे से तसवीरें निकाल कर देखीं, तो उसे लगा मानो आसमान टूट पड़ा हो. उन तसवीरों में साक्षी और टोनी के सैक्सी पोज थे. यह अलग बात थी कि साक्षी ने टोनी के साथ कभी भी ऐसावैसा कुछ नहीं किया था.

‘‘यह सब क्या है?’’ साक्षी घबरा गई और डर कर बोली.

‘‘बस छोटा सा नजराना.’’

‘‘क्या चाहते हो तुम?’’ साक्षी ने कांपते हुए पूछा.

‘‘ज्यादा नहीं, बस एक लाख रुपए दे दो, फिर तुम्हारी छुट्टी,’’ टोनी बेशर्मी से बोला.

‘‘लेकिन ये फोटो तो झूठे हैं. ऐसा तो मैं ने कभी नहीं किया था.’’

‘‘जानेमन, ये फोटो देख कर कोई भी इन्हें झूठा नहीं बता सकता.’’

‘‘तुम इतने नीच होगे, यह मैं ने कभी नहीं सोचा था.’’

‘‘आजकल सिर्फ पैसे का जमाना है, जिस के लिए लोग अपना ईमान भी बेच देते हैं,’’ टोनी ने बेशर्मी से कहा.

साक्षी बुरी तरह घबरा गई. उसे यह भी डर था कि कहीं कोई आ न जाए. लेकिन वे दोनों यह नहीं जानते थे कि दो आंखें बराबर उन पर टिकी थीं.

साक्षी ने टोनी को भलाबुरा कह कर एक महीने का समय ले लिया. टोनी दरवाजा खोल कर बाहर निकल गया. एकाएक साक्षी की रुलाई फूट पड़ी. वह लिफाफा अब भी उस के हाथ में था.

सहसा उन दो आंखों का मालिक दीपक कमरे में दाखिल हुआ और चुपचाप साक्षी के सामने जा खड़ा हुआ. उस ने हाथ बढ़ा कर वह लिफाफा ले लिया.

‘‘देवरजी, तुम…’’ साक्षी एकाएक उछल पड़ी.

‘‘जी…’’

‘‘यह लिफाफा मुझे दे दो प्लीज,’’ साक्षी कांप कर बोली.

‘‘चिंता मत करो भाभी, मैं सबकुछ जान चुका हूं.’’

‘‘लेकिन, ये तसवीरें झूठी हैं.’’

दीपक ने वे फोटो बिना देखे ही टुकड़ेटुकड़े कर दिए.

‘‘मैं सच कह रही हूं, यह सब झूठ है,’’ साक्षी बोली.

‘‘कौन था वह कमीना, जिस ने हमारी भाभी पर कीचड़ उछालने की कोशिश की है?’’ दीपक ने पूछा.

‘‘लेकिन…’’

‘‘चिंता मत कीजिए भाभी. अगर उस कुत्ते से लड़ना होता तो उसे यहीं पकड़ लेता. लेकिन मैं नहीं चाहता कि आप की जरा भी बदनामी हो.’’

दीपक का सहारा पा कर साक्षी ने उसे हिचकते हुए बताया, ‘‘उस का नाम टोनी है. वह मेरी क्लास में पढ़ता था. उस से थोड़ीबहुत बोलचाल थी, लेकिन प्यार कतई नहीं था.’’

‘‘उस का पता भी बता दीजिए.’’

‘‘लेकिन तुम करना क्या चाहते हो?’’

‘‘मैं अपनी भाभी को बदनामी से बचाना चाहता हूं.’’

‘‘तुम उस का क्या करोगे?’’

‘‘उस का मुरब्बा तो बना नहीं सकता, लेकिन उस नीच का अचार जरूर बना डालूंगा.’’

‘‘तुम उस बदमाश के चक्कर में मत पड़ो. मुझे मेरे हाल पर ही छोड़ दो.’’

लेकिन दीपक के दबाव डालने पर साक्षी को टोनी का पता बताना ही पड़ा. पता जानने के बाद दीपक तेज कदमों से बाहर निकल गया. दीपक को टोनी का घर ढूंढ़ने में ज्यादा समय नहीं लगा. घर में ही टोनी की छोटी सी फोटोग्राफी की दुकान थी. दीपक ने पता किया कि टोनी की 3 बहनें हैं और मां विधवा हैं.

दीपक ने फोटो खिंचवाने के बहाने टोनी से दोस्ती कर ली और दिल खोल कर खर्च करने लगा. उस ने टोनी की एक बहन ज्योति को अपने प्यार के जाल में फंसा लिया.

एक दिन मौका पा कर दीपक और ज्योति पार्क में मिले और शाम तक मस्ती करते रहे. उस दिन टोनी अपनी दुकान में अकेला बैठा था. तभी दीपक की मोटरसाइकिल वहां आ कर रुकी.

दीपक को देखते ही टोनी का चेहरा खिल उठा. उस ने खुश होते हुए कहा. ‘‘आओ दीपक, मैं तुम्हीं को याद कर रहा था.’’

‘‘तुम ने याद किया और हम हाजिर हैं. हुक्म करो,’’ दीपक ने स्टाइल से कहा.

‘‘बैठो यार, क्या कहूं शर्म आती है.’’

‘‘बेहिचक बोलो, क्या बात है?’’

‘‘क्या तुम मेरी कुछ मदद कर सकते हो?’’

‘‘बोलो तो सही, बात क्या?है?’’

‘‘मुझे 5 हजार रुपए की जरूरत है. कुछ खास काम है,’’ टोनी हिचकते हुए बोला.

‘‘बस इतनी सी बात, अभी ले कर आता हूं,’’ दीपक बोला और एक घंटे में ही उस ने 5 हजार की गड्डी ला कर टोनी को थमा दिया. टोनी दीपक के एहसान तले दब गया. कुछ दिनों बाद ज्योति की हालत खराब होने लगी. उसे उलटियां होने लगीं. जांच करने के बाद डाक्टर ने बताया कि वह मां बनने वाली है.

यह सुन कर सब हैरान रह गए. ज्योति की मां ने रोना शुरू कर दिया. लेकिन टोनी गुस्से में ज्योति को मारने दौड़ पड़ा. ज्योति लपक कर बड़ी बहन के पीछे छिप गई.

‘‘बता कौन है वह कमीना, जिस के साथ तू ने मुंह काला किया?’’ टोनी ने सख्त लहजे में पूछा.

ज्योति सुबक रही थी. उस की मां और बहनें रोए जा रही थीं और टोनी गुस्से में न जाने क्याक्या बके जा रहा था. काफी दबाव डालने पर ज्योति ने दीपक का नाम बता दिया.

यह सुन कर सब हैरान रह गए. टोनी भी एकाएक ढीला पड़ गया. दीपक को घर बुला कर बात की गई, लेकिन वह साफ मुकर गया और उस ने शादी करने से इनकार कर दिया.

एक पल के लिए टोनी को गुस्सा आ गया और वह गुर्रा कर बोला, ‘‘अगर मेरी बहन को बरबाद किया तो मैं तुम्हारा खून पी जाऊंगा.’’

‘‘तुम्हारा क्या खयाल है कि मैं ने चूडि़यां पहन रखी हैं?’’ दीपक सख्त लहजे में बोला.

‘‘तुम ने हम से किस जन्म का बदला लिया है,’’ टोनी की मां रोते हुए बोलीं.

‘‘आप जरा चुप रहिए मांजी, पहले इस खलीफा से निबट लूं,’’ दीपक ने कहा और टोनी को घूरने लगा.

टोनी ने पैतरा बदला और हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ता हूं दीपक, मेरी बहन को बरबाद मत करो.’’

‘‘तुम किस गलतफहमी के शिकार हो रहे हो,’’ दीपक बोला.

‘‘देखो दीपक, मेरी बहन से शादी कर लो. तुम जो कहोगे, मैं करने के लिए तैयार हूं,’’ टोनी हार कर बोला.

‘‘तुम क्या कर सकते हो भला?’’

‘‘तुम जो कहोगे मैं वही करूंगा,’’ टोनी गिड़गिड़ा कर बोला.

‘‘अपनी इज्जत पर आंच आई तो कितना तड़प रहे हो. क्या दूसरों की इज्जत, इज्जत नहीं होती?’’ दीपक शांत हो कर बोला.

‘‘क्या मतलब है तुम्हारा?’’ टोनी बुरी तरह चौंका.

‘‘अपने गरीबान में झांक कर देखो टोनी, सब मालूम हो जाएगा,’’ एकाएक दीपक का लहजा बदल गया.

टोनी सबकुछ समझ गया. उस ने मां और बहनों को बाहर भेजना चाहा, लेकिन दीपक उन्हें रोक कर बोला, ‘‘अब डर क्यों रहे हो, घर के सभी लोगों को बताओ कि तुम कितनी मासूमों का बसाबसाया घर तबाह करने पर तुले हो.’’

‘‘तुम कौन हो?’’ टोनी हैरत से बोला.

‘‘तुम मेरी बात का फटाफट जवाब दो, वरना मैं चला,’’ दीपक जाने के लिए लपका.

‘‘लेकिन मैं ने किसी की जिंदगी बरबाद तो नहीं की,’’ टोनी अटकते हुए बोला.

‘‘मगर करने पर तो तुले हो.’’

‘‘यह सच है, लेकिन तुम ने आज मेरी आंखें खोल दीं दोस्त. आज मुझे एहसास हुआ कि पैसे से कहीं ज्यादा इज्जत की अहमियत है,’’ टोनी बुझी आवाज में बोला.

दीपक के होंठों पर मुसकराहट नाच उठी. ज्योति भी मुसकराने लगी.

‘‘अब क्या इरादा है प्यारे?’’ दीपक ने पूछा.

‘‘वह सब झूठ था. मैं कसम खाता हूं कि सारे फोटो और निगेटिव जला दूंगा,’’ टोनी ने कहा.

‘‘यह अच्छा काम अभी और सब के सामने करो,’’ दीपक ने कहा.

टोनी ने पैट्रोल डाल कर सारे गंदे फोटो और निगेटिव जला डाले और दीपक से बोला, ‘‘माफ करना दोस्त, मैं ने लालच में पड़ कर लखपति बनने का यह तरीका अपना लिया था.’’

‘‘माफी मुझ से नहीं पहले अपनी मां से मांगो, फिर मेरी मां से मांगना.’’

‘‘तुम्हारी मां…’’

‘‘हां, साक्षी यानी मेरी भाभी मां. वह माफ कर देंगी तो मैं भी तुम्हें माफ कर दूंगा,’’ दीपक बोला.

‘‘मंजूर है, लेकिन मेरी बहन?’’

‘‘इस का फैसला भी भाभी ही करेंगी.’’

साक्षी के पैर पकड़ कर माफी मांगते हुए टोनी बोला, ‘‘आज से आप मेरी बड़ी दीदी हैं. चला तो था चाल चलने, लेकिन आप के इस होशियार देवर ने ऐसी चाल चली कि नहले पे दहला मार कर मुझे चित कर दिया. क्या इस नालायक को माफ कर सकेंगी?’’

साक्षी ने गर्व से देवर की ओर देखा और टोनी से कहा, ‘‘फिर कभी ऐसी जलील हरकत मत करना.’’

माफी मिलने के बाद टोनी ने साक्षी को अपनी बहन व दीपक का मामला बताया तो साक्षी ने दीपक को घूरते हुए पूछा, ‘‘दीपक, यह सब क्या?है?’’

‘‘यह भी एक नाटक है भाभी. आप ज्योति से ही पूछिए,’’ दीपक हंस कर बोला.

‘‘ज्योति, आखिर किस्सा क्या है?’’ टोनी ने पूछा.

‘‘भैया, मैं भी सबकुछ जान गई थी. आप को सही रास्ते पर लाने के लिए ही मैं ने व दीपक ने नाटक किया था और उस में डाक्टर को भी शामिल कर लिया था,’’ ज्योति ने हंसते हुए बताया.

‘‘चल, तू ने छोटी हो कर भी मुझे राह दिखा कर अच्छा किया. मैं तेरी शादी दीपक जैसे भले लड़के से करने के लिए तैयार हूं.’’

दीपक ने इजाजत मांगने के अंदाज में भाभी की ओर देखा. साक्षी ने ज्योति को खींच कर अपने गले से लगा लिया. ज्योति की मां भी इस रिश्ते से बहुत खुश थीं. Story In Hindi

Story In Hindi: किस्सा डाइटिंग का – क्या अपना वजन कम कर पाए गुप्ताजी

Story In Hindi: एक दिन सुबहसुबह पत्नी ने मुझ से कहा, ‘‘आप ने अपने को शीशे में  देखा है. गुप्ताजी को देखो, आप से 5 साल बड़े हैं पर कितने हैंडसम लगते हैं और लगता है जैसे आप से 5 साल छोटे हैं. जरा शरीर पर ध्यान दो. कचौरी खाते हो तो ऐसा लगता है कि बड़ी कचौरी छोटी कचौरी को खा रही है. पेट की गोलाई देख कर तो गेंद भी शरमा जाए.’’

मैं आश्चर्यचकित रह गया. यह क्या, मैं तो अपने को शाहरुख खान का अवतार समझता था. मैं ने शीशे में ध्यान से खुद को देखा, तो वाकई वे सही कह रही थीं. यह मुझे क्या हो गया है. ऐसा तो मैं कभी नहीं था. अब क्या किया जाए? सभी मिल कर बैठे तो बातें शुरू हुईं. बेटे ने कहा, ‘‘पापा, आप को बहुत तपस्या करनी पड़ेगी.’’

फिर क्या था. बेटी भी आ गई, ‘‘हां पापा, मैं आप के लिए डाइटिंग चार्ट बना दूं. बस, आप तो वही करते जाओ जोजो मैं कहूं, फिर आप एकदम स्मार्ट लगने लगेंगे.’’

मैं क्या करता. स्मार्ट बनने की इच्छा के चलते मैं ने उन की सारी बातें मंजूर कर लीं पर फिर मुझे लगा कि डाइटिंग तो कल से शुरू करनी है तो आज क्यों न अंतिम बार आलू के परांठे खा लिए जाएं. मैं ने कहा कि थोड़ी सी टमाटर की चटनी भी बना लेते हैं. पत्नी ने इस प्रस्ताव को वैसे ही स्वीकार कर लिया जैसे कि फांसी पर चढ़ने वाले की अंतिम इच्छा को स्वीकार करते हैं.

मैं ने भरपेट परांठे खाए. उठने ही वाला था कि बेटी पीछे पड़ गई, ‘‘पापा, एक तो और ले लो.’’

पत्नी ने भी दया भरी दृष्टि मेरी ओर दौड़ाई, ‘‘कोई बात नहीं, ले लो. फिर पता नहीं कब खाने को मिलें.’’

आमतौर पर खाने के मामले में इतना अपमान हो तो मैं कदापि नहीं खा सकता था पर मैं परांठों के प्रति इमोशनल था कि बेचारे न जाने फिर कब खाने को मिलें.

रात को सो गया. सुबह अलार्म बजा. मैं ने पत्नी को आवाज दी तो वे बोलीं, ‘‘घूमने मुझे नहीं, आप को जाना है.’’

मैं मरे मन से उठा. रात को प्रोग्राम बनाते समय सुबह 5 बजे उठना जितना आसान लग रहा था अब उतना ही मुश्किल लग रहा था. उठा ही नहीं जा रहा था.

जैसेतैसे उठ कर बाहर आ गया. ठंडीठंडी हवा चल रही थी. हालांकि आंखें मुश्किल से खुल रही थीं पर धीरेधीरे सब अच्छा लगने लगा. लगा कि वाकई न घूम कर कितनी बड़ी गलती कर रहा था. लौट कर मैं ने घर के सभी सदस्यों को लंबा- चौड़ा लैक्चर दे डाला. और तो और अगले कुछ दिनों तक मुझे जो भी मिला उसे मैं ने सुबह उठ कर घूमने के फायदे गिनाए. सभी लोग मेरी प्रशंसा करने लगे.

पर सब से खास परीक्षा की घड़ी मेरे सामने तब आई जब लंच में मेरे सामने थाली आई. मेरी थाली की शोभा दलिया बढ़ा रहा था जबकि बेटे की थाली में मसालेदार आलू के परांठे शोभा बढ़ा रहे थे. चूंकि वह सामने ही खाना खा रहा था इसलिए उस की महक रहरह कर मेरे मन को विचलित कर रही थी.

मरता क्या न करता, चुपचाप मैं जैसेतैसे दलिए को अंदर निगलता रहा और वे सभी निर्विकार भाव से मेरे सामने आलू के परांठों का भक्षण कर रहे थे, पर आज उन्हें मेरी हालत पर तनिक भी दया नहीं आ रही थी.

खाने के बाद जब मैं उठा तो मुझे लग ही नहीं रहा था कि मैं ने कुछ खाया है. क्या करूं, भविष्य में अपने शारीरिक सौंदर्य की कल्पना कर के मैं जैसेतैसे मन को बहलाता रहा.

डाइटिंग करना भी एक बला है, यह मैं ने अब जाना था. शाम को जब चाय के साथ मैं ने नमकीन का डब्बा अपनी ओर खिसकाया तो पत्नी ने उसे वापस खींच लिया.

‘‘नहीं, पापा, यह आप के लिए नहीं है,’’ यह कहते हुए बेटे ने उसे अपने कब्जे में ले लिया और खोल कर बड़े मजे से खाने लगा. मैं क्या करता, खून का घूंट पी कर रह गया.

शाम को फिर वही हाल. थाली में खाना कम और सलाद ज्यादा भरा हुआ था. जैसेतैसे घासपत्तियों को गले के नीचे उतारा और सोने चल दिया. पर पत्नी ने टोक दिया, ‘‘अरे, कहां जा रहे हो. अभी तो तुम्हें सिटी गार्डन तक घूमने जाना है.’’

मुझे लगा, मानो किसी ने पहाड़ से धक्का दे दिया हो. सिटी गार्डन मेरे घर से 2 किलोमीटर दूर है. यानी कि कुल मिला कर आनाजाना 4 किलोमीटर. जैसेतैसे बाहर निकला तो ठंडी हवा बदन में चुभने लगी. आंखों में आंसू भले नहीं उतरे, मन तो दहाड़ें मार कर रो रहा था. मैं जब बाहर निकल रहा था तो बच्चे रजाई में बैठे टीवी देख रहे थे. बाहर सड़क पर भी दूरदूर तक कोई नहीं था पर क्या करता, स्मार्ट जो बनना था, सो कुछ न कुछ तो करना ही था.

फिर यही दिनचर्या चलने लगी. एक ओर खूब जम कर मेहनत और दूसरी ओर खाने को सिर्फ घासफूस. अपनी हालत देख कर मन बहुत रोता था. लोग बिस्तर में दुबके रहते और मैं घूमने निकलता था. लोग अच्छेअच्छे पकवान खाते और मैं वही बेकार सा खाना.

तभी एक दिन मैं ने सुबह 9 बजे अपने एक मित्र को फोन किया. मुझे यह जान कर आश्चर्य हुआ कि वह अभी तक सो कर ही नहीं उठा था जबकि उस ने मुझे घूमने के मामले में बहुत ज्ञान दिया था. करीब 10 बजे मैं ने दोबारा फोन किया. तो भी जनाब बिस्तर में ही थे. मैं ने व्यंग्य से पूछा, ‘‘क्यों भई, तुम तो घूमने के बारे में इतना सारा ज्ञान दे रहे थे. सुबह 10 बजे तक सोना, यह सब क्या है.’’

मित्र हंसने लगा, ‘‘अरे भई, आज संडे है. सप्ताह में एक दिन छुट्टी, इस दिन सिर्फ आराम का काम है.’’

मुझे लगा, यही सही रास्ता है. मैं ने फौरन एक दिन के साप्ताहिक अवकाश की घोषणा कर दी और फौरन दूसरे ही दिन उसे ले भी लिया. देर से सो कर उठना कितना अच्छा लगता है और वह भी इतने संघर्ष के बाद. उस दिन मैं बहुत खुश रहा. पर बकरे की मां कब तक खैर मनाती, दूसरे दिन तो घूमने जाना ही था.

तभी बीच में एक दिन एक रिश्तेदार की शादी आ गई. खाना भी वहीं था. पहले यह तय हुआ था कि मेरे लिए कुछ हल्काफुल्का खाना बना लिया जाएगा पर जब जाने का समय आया तो पत्नी ने फैसला सुनाया कि वहीं पर कुछ हल्का- फुल्का खाना खा लेंगे. बस, मिठाइयों पर थोड़ा अंकुश रखें तो कोई परेशानी थोड़े ही है.

उन के इस निर्णय से मन को बहुत राहत पहुंची और मैं ने वहां केवल मिठाई चखी भर, पर चखने ही चखने में इतनी खा गया कि सामान्य रूप से कभी नहीं खाता था. उस रात को मुझे बहुत अच्छी नींद आई थी क्योंकि मैं ने बहुत दिनों बाद अच्छा खाना खाया था लेकिन नींद भी कहां अपनी किस्मत में थी. सुबह- सुबह कम्बख्त अलार्म ने मुझे फिर घूमने के लिए जगा दिया. जैसेतैसे उठा और घूमने चल दिया.

मेरी बड़ी मुसीबत हो गई थी. जो चीजें मुझे अच्छी नहीं लगती थीं वही करनी पड़ रही थीं. जैसेतैसे निबट कर आफिस पहुंचा. पर यहां भी किसी काम में मन नहीं लग रहा था. सोचा, कैंटीन जा कर एक चाय पी लूं. आजकल घर पर ज्यादा चाय पीने को नहीं मिलती थी. चूंकि अभी लंच का समय नहीं था इसलिए कैंटीन में ज्यादा भीड़ नहीं थी पर मैं ने वहां शर्मा को देखा. वह मेरे सैक्शन में काम करता था और वहां बैठ कर आलूबड़े खा रहा था. मुझे देख कर खिसिया गया. बोला, ‘‘अरे, वह क्या है कि आजकल मैं डाइटिंग पर चल रहा हूं. अब कभीकभी अच्छा खाने को मन तो करता ही है. अब इस जबान का क्या करूं. इसे तो चटपटा खाने की आदत पड़ी है पर यह सब कभीकभी ही खाता हूं. सिर्फ मुंह का स्वाद चेंज करने के लिए…मेरा तो बहुत कंट्रोल है,’’ कह कर शर्मा चला गया पर मुझे नई दिशा दे गया. मेरी तो बाछें खिल गईं. मैं ने फौरन आलूबड़े और समोसे मंगाए और बड़े मजे से खाए.

उस दिन के बाद मैं प्राय: वहां जा कर अपना जायका चेंज करने लगा. हां, एक बात और, डाइटिंग का एक और पीडि़त शर्मा, जोकि अपने कंट्रोल की प्रशंसा कर रहा था, वह वहां अकसर बैठाबैठा कुछ न कुछ खाता रहता था. शुरूशुरू में वह मुझ से शरमाया भी पर फिर बाद में हम लोग मिलजुल कर खाने लगे.

बस, यह सिलसिला ऐसे ही चलने लगा. इधर तो पत्नी मुझ से मेहनत करवा रही थी और दूसरी ओर आफिस जाते ही कैंटीन मुझे पुकारने लगती थी. मैं और मेरी कमजोरी एकदूसरे पर कुरबान हुए जा रहे थे. पत्नी ध्यान से मुझे ऊपर से नीचे तक देखती और सोच में पड़ जाती.

फिर 2 महीने बाद वह दिन भी आया जहां से मेरा जीवन ही बदल गया. हुआ यों कि हम सब लोग परिवार सहित फिल्म देखने गए. वहां पत्नी की निगाह वजन तौलने वाली मशीन पर पड़ी. 2-2 मशीनें लगी हुई थीं. फौरन मुझे वजन तौलने वाली मशीन पर ले जाया गया. मैं भी मन ही मन प्रसन्न था. इतनी मेहनत जो कर रहा था. सुबहसुबह उठना, घूमनाफिरना, दलिया, अंकुरित नाश्ता और न जाने क्याक्या.

मैं शायद इतने गुमान से शादी में घोड़ी पर भी नहीं चढ़ा होऊंगा. सभी लोग मुझे घेर कर खड़े हो गए. मशीन शुरू हो गई. 2 महीने पहले मेरा वजन 80 किलो था. तभी मशीन से टिकट निकला. सभी लोग लपके. टिकट मेरी पत्नी ने उठाया. उस का चेहरा फीका पड़ गया.

‘‘क्या बात है भई, क्या ज्यादा कमजोर हो गया? कोई बात नहीं, सब ठीक हो जाएगा,’’ मैं ने पत्नी को सांत्वना दी.

पर यह क्या, पत्नी तो आगबबूला हो गई, ‘‘खाक दुबले हो गए. पूरे 5 किलो वजन बढ़ गया है. जाने क्या करते हैं.’’

मैं हक्काबक्का रह गया. यह क्या? इतनी मेहनत? मुझे कुछ समझ में नहीं आया. कहां कमी रह गई, बच्चों के तो मजे आ गए. उस दिन की फिल्म में जो कामेडी की कमी थी, वह उन्होंने मुझ पर टिप्पणी कर के पूरी की. दोनों बच्चे बहुत हंसे.

मैं ने भी बहुत सोचा और सोचने के बाद मुझे समझ में आया कि आजकल मैं कैंटीन ज्यादा ही जाने लगा था. शायद इतने समोसे, आलूबडे़, कचौरियां कभी नहीं खाईं. पर अब क्या हो सकता था. पिक्चर से घर लौटने के बाद रात को खाने का वक्त भी आया. मैं ने आवाज लगाई, ‘‘हां भई, जल्दी से मेरा दलिया ले आओ.’’

पत्नी ने खाने की थाली ला कर रख दी. उस में आलू के परांठे रखे हुए थे. ‘‘बहुत हो गया. हो गई बहुत डाइटिंग. जैसा सब खाएंगे वैसा ही खा लो. और थोड़े दिन डाइटिंग कर ली तो 100 किलो पार कर जाओगे.’’

मैं भला क्या कहता. अब जैसी पत्नीजी की इच्छा. चुपचाप आलू के परांठे खाने लगा. अब कोई नहीं चाहता कि मैं डाइटिंग करूं तो मेरा कौन सा मन करता है. मैं ने तो लाख कोशिश की पर दुबला हो ही नहीं पाया तो मैं भी क्या करूं. इसलिए मैं ने उन की इच्छाओं का सम्मान करते डाइटिंग को त्याग दिया. Story In Hindi

Best Hindi Story: रेतीला सच – कैसी हो गई थी अनंत की जिंदगी

Best Hindi Story: ‘‘तुम्हें वह पसंद तो है न?’’ मैं  ने पूछा तो मेरे भाई अनंत  के चेहरे पर लजीली सी मुसकान तैर गई. मैं ने देखा उस की आंखों में सपने उमड़ रहे थे. कौन कहता है कि सपने उम्र के मुहताज होते हैं. दिनरात सतरंगी बादलों पर पैर रख कर तैरते किसी किशोर की आंखों की सी उस की आंखें कहीं किसी और ही दुनिया की सैर कर रही थीं. मैं ने सुकून महसूस किया, क्योंकि शिखा के जाने के बाद पहली बार अनंत को इस तरह मुसकराते हुए देख रही थी.

शिखा अनंत की पत्नी थी. दोनों की प्यारी सी गृहस्थी आराम से चल रही थी कि एक दर्दनाक एहसास दे कर यह साथ छूट गया. शिखा 5 साल पहले अनंत पर उदासी का ऐसा साया छोड़ गई कि उस के बाद से अनंत मानो मुसकराना ही भूल गया.

पेट में लगातार होने वाले हलकेहलके दर्द को शिखा ने कभी गंभीरता से नहीं लिया. जब दर्द ज्यादा बढ़ने लगा तो जांच के बाद पित्त की थैली में पत्थर पाया गया जो काफी लंबे समय से हलकाहलका दर्द देते रहने के बाद अब पैंक्रियाज को कैंसरग्रस्त कर चुका था. इलाज शुरू हुआ पर 3 महीने के अंदर ही शिखा पति अनंत और अपने चारों बच्चों को छोड़ कर चल बसी.

शिखा के गुजरने के बाद मैं जब मायके गई तो कमरों की दीवारें हों या आंगन का खुला आसमान, अपनीअपनी भाषा में बस यही दोहराते हुए से लग रहे थे कि शिखा के साथ ही अब उस घर की रौनक भी हमेशा के लिए चली गई. अनंत और चारों बच्चों की आंखों से पलभर भी मायूसी जुदा नहीं होती थी. सभी एकदूसरे की ओर भीगी आंखों से मूक ताकते रहते. उन सब की हालत देख कर मन तड़प कर रह जाता.

6 महीने बाद रक्षाबंधन पर जब मैं दोबारा वहां गई तो घर का माहौल काफी अलग था. समय के साथ कितनाकुछ बदल जाता है. दोनों बहनें आकृति और सुकृति सुबहसुबह आईं और भाइयों को राखी बांध अपनाअपना नेग ले कर शाम को वापस चली गईं, क्योंकि उन के बच्चों के एग्जाम्स चल रहे थे. दोनों बेटे अनूप और मधूप तथा बहुएं झरना और नेहा भी अपनीअपनी दुनिया में बिजी नजर आईं. सुबह 8 बजे के बाद घर बिलकुल सूना हो जाता. शाम 5-6 बजे के बाद ही बेटेबहुएं वापस आतीं.

रात का खाना एकदिन तो सब ने साथ में खाया शायद मेरी वजह से, पर उस के बाद 8 बजे ही खाने के लिए एकदो बार मुझ से पूछ कर दोनों बहुओं और बेटों ने यह कह कर कि सुबहसुबह स्कूल, औफिस के लिए निकलना पड़ता है, खाना खा लिया. 9 बजतेबजते दोनों बेटे अपनीअपनी बीवियों के साथ अपनेअपने कमरों में बंद हो जाते. इतवार के दिन दोनों बेटे अपनी पत्नियों के साथ घूमने निकल जाते.

अनंत के कहने पर मैं एक हफ्ते के लिए वहां रुक गई थी. इस एक ही हफ्ते में उन बच्चों की दिनचर्या से मेरे सामने यह साफ हो

गया कि मौजमस्ती को ही वे अपना जीवनमंत्र मानते थे. अनंत ने औफिस से हफ्तेभर की छुट्टी ले रखी थी. एक दिन वह किसी काम से 2 घंटे के लिए घर से बाहर गया. मैं घर में अकेली रह गई, तो उतने बड़े घरआंगन का सूनापन भांयभांय कर चीखता अनंत के जीवन में अंधेरे एकाकीपन को मेरे सामने बयान करने लगा.

पुराने ढंग के हमारे पुश्तैनी मकान को भैयाभाभी ने कितने पैसे और मेहनत से आलीशान बंगले का रूप दे दिया था पर हर तरह की सुखसुविधाओं वाले भरेपूरे घर में आज घर का मालिक ही अवांछित, तिरस्कृत सा हो गया था. अनंत को रात में देर से खाने की आदत थी. हम दोनों भाईबहन अकेले बैठे बातें करते रहते.

10 बजे मैं खाना निकालने किचन में जाती और वापस आ कर देखती कि अनंत सूनी आंखों से दीवारों को ताक रहा है.

खुद से 11 साल छोटे अपने इकलौते भाई की ऐसी दशा देख कर मेरा मन तड़प उठता. मैं मन को समझाती कि शायद संसार का रिवाज ही यही है. हम सब में से ज्यादातर लोग जिन अपनों के लिए अपने जीवन की सारी ऊर्जा खर्च कर खुशियों के इंतजाम में लगे रहते हैं वही एक दिन इतने संवेदनहीन हो जाते हैं कि उन्हें हमारी वेदनाओं, भावनाओं का कोई एहसास तक नहीं होता.

बड़ा बेटा मोटरपार्ट्स की एक बड़ी फर्म में मैनेजर था और छोटा दुलारा बेटा सरकारी स्कूल में टीचर. दोनों बहुएं एक कंप्यूटर सैंटर में पढ़ाने जाती थीं. पर चारों में से कोई भी परिवार के लिए एक पैसा नहीं निकालता था. पूरे घर का खर्च अनंत ही चलाता था. भाईभाभियों के व्यवहार की वजह से ही शायद घर की दोनों बेटियां भी ज्यादा आनाजाना नहीं रखती थीं. सब अपनीअपनी दुनिया में मस्त थे. अगर कोई अलगथलग और अकेला पड़ गया था तो वह था अनंत.

मैं ने मन में यह निर्णय कर लिया कि अनंत को इस तरह अकेले उपेक्षित जीवन नहीं जीने दूंगी  जाते वक्त मैं ने उस से कहा कि शनिवाररविवार तो छुट्टी होती है, हमारे पास आ जाया करो. हम भी अकेले ही रहते हैं. तुम्हारा भी दिल लगा रहेगा और हमारा भी. वह पहले एकाध बार आया पर धीरेधीरे अब हर शनिवार को हमारे घर आ जाता, रविवार रुक कर सोम की सुबह यहीं से सीधा अपने औफिस चला जाता.

इधर कई सालों से बच्चों के विदेश में सैटल हो जाने के बाद हम दोनों भी अकेले हो गए थे. कभीकभार छुट्टी वाले दिन मंजरी कुछ देर के लिए चली आती तो थोड़े समय को घर मैं रौनक रहती. शनिवार रविवार मंजरी की छुट्टी होती थी. हम सब बातें करते, कभीकभार बाहर घूमने भी चले जाते.

मंजरी मेरी बड़ी बेटी की सहेली है और यहीं एक कालेज में पढ़ाती है. हमारे लिए वह एक पारिवारिक सदस्य की तरह ही है. देखने में खूबसूरत होने के साथसाथ उस के विचार भी सुलझे हुए हैं. वह तलाकशुदा है और अपने छोटे से जीवन में उस ने बहुत संघर्ष झेले हैं. आज से 15 साल पहले उस की उम्र तब 35 साल की रही होगी जब वह इस कालोनी में रहने आई थी. तब उस का तलाक का केस चल रहा था. उस की अरैंज मैरिज हुई थी. उस का पति बेहद घटिया इंसान था. वह मंजरी को परेशान करने के लिए 2-3 बार यहां भी आ चुका था.

मैं हर सुबह अपनी बालकनी से उसे काम पर जाते हुए और शाम को फिर घर वापस आते हुए देखती रहती थी. तब मेरे घर से 2 बिल्ंिडग छोड़ कर तीसरी में वह रहती थी. पर अपनी मेहनत के बल पर अब इसी कालोनी में उस ने अपना खुद का छोटा सा फ्लैट खरीद लिया है. पहले पैदल या औटो से कालेज आतीजाती थी, अब अपनी गाड़ी से आतीजाती है. 13 साल के मासूम से बच्चे को साथ ले कर आई थी. बच्चा आज इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर बेंगलुरु में जौब कर रहा है.

अपने देश की लचर कानून व्यवस्था की पीड़ा झेलते हुए 20 साल बाद आखिरकार उसे उस पति से तलाक मिल गया पर पति को छोड़ने की वजह से उस के पिता और परिजन आज भी उस से नाराज हैं. शुरुआती दिनों में ही एक बार जब मंजरी कालेज के लिए घर से निकली तो उस का पति रास्ता रोक कर उस से झगड़ने लगा था. उस ने मंजरी की कलाई को कस कर पकड़ रखा था. लोग तमाशा देख रहे थे. अनंत ने उधर से गुजरते हुए जब यह सब देखा तो उस ने मंजरी के पति का विरोध करते हुए पुलिस को फोन पर घटना की जानकारी दी. तब गुस्से से अनंत की ओर देख कर उस के पति ने घटिया लहजे में कहा था, ‘तू क्यों बीच में टपक रहा है, तू क्या इस का यार लगता है?’ लज्जा, पीड़ा और अपमान से मंजरी का चेहरा लाल हो गया था.

अनंत और मंजरी की यही पहली मुलाकात थी. उस के काफी समय बाद दोनों फेसबुक फ्रैंड बने, पर मुलाकातें नहीं होती थीं. अब जब मिलनाजुलना होने लगा तो मैं ने महसूस किया कि दोनों एकदूसरे का साथ काफी पसंद करते हैं.

एक दिन माहौल देख कर मैं ने अनंत से कहा कि दुनिया का यही दस्तूर है जब तक अपना स्वार्थ सिद्ध होता रहे, आदमी आदमी को पहचानता है. स्वार्थ खत्म तो रिश्ते खत्म. मौत से पहले अपनों की अवहेलना ही मार डालती है. तुम्हारे सामने अभी लंबा जीवन पड़ा हुआ है, ऐसे कैसे गुजारोगे. उधर, मंजरी भी अकेली है और मुझे लगता है कि वह तुम्हें पसंद भी करती है. तुम दोनों शादी कर लो, दोनों के जीवन में चटख रंग खिल उठेंगे. एकदूसरे के सहारे बन कर जीवन का सफर हंसतेमुसकराते पूरा हो जाएगा…कहो तो मैं मंजरी से बात करूं. थोड़ा ठहर कर अनंत बोला. ‘बच्चों से एक बार बात कर लेना उचित रहेगा.’ मैं अनंत को जाते हुए देखती रही.

एक दिन सुबह के 6 भी नहीं बजे थे कि फोन की घंटी लगातार बजने लगी. उस तरफ अनंत की बड़ी बेटी आकृति थी. न दुआ न सलाम, बडे़ ही गुस्से में वह बोली, ‘‘बुड्ढा शादी कर रहा है, तुम्हें पता है न?’’

मैं ने पूछा, ‘‘कौन बुड्ढा?’’

‘‘तुम्हारा भाई और कौन, ऐसे बाप को और क्या कहा जाए जिस ने यह भी नहीं सोचा कि उन के इस कारनामे के बाद मेरे बच्चों, खासकर, मेरी बेटियों से कौन शादी करेगा.’’ वह आक्रोशित स्वर में बोल रही थी.

मेरा मन गुस्से से सुलग उठा, बोली, ‘‘जो इंसान जीवनभर तुम सब के सुख की खातिर मेहनत की चक्की में पिसपिस कर मिट्टी होता रहा, तुम सब का जीवन संवारने के लिए क्याक्या जतन करता रहा, आज जब तुम सब सैटल हो गए तो वह तुम्हारे लिए पिता न हो कर बुड्ढा हो गया? अपने एकाकीपन में घुटघुट कर वह आज हर पल मर रहा है पर तुम सब को तो इस का एहसास तक नहीं? तुम सब के लिए सोचता रहे तो बहुत बढि़या, एक बार अपने लिए सोच लिया तो गुनाहगार हो गया? बुड्ढे होने से जीवन खत्म हो जाता है? आदमीआदमी न हो कर कुछ और हो जाता है? क्या तुम सब कभी बुड्ढे नहीं होगे?’’

इतना सुनते ही व्यंगभरी चुभती आवाज में वह बोली, ‘‘मुझे तो लगा था कि तुम अपने भाई को समझाओगी, पर बुरा न मानना बूआ, अब तो मुझे लग रहा कि यह सब तुम्हारा ही कियाधरा है.’’ और उधर से फोन पटकने की आवाज आई.

अनंत आज सुबह ही औफिस के किसी काम से 2-3 दिनों के लिए मुंबई निकल गया था.

मंजरी अपने घर में लेटी हुई टीवी देख रही थी. शाम को लगभग 6 बज रहे थे. बाहर हलका झुटपुटा सा हो रहा था. दरवाजे पर खटखट की आवाज सुन कर अलसाई हुई मंजरी ने दरवाजा खोला, सामने एक नवयुवक हाथ में रिवौल्वर लिए खड़ा नजर आया. उस ने चेहरे पर मास्क पहन रखा था, केवल उस की लाललाल आंखें ही नजर आ रही थीं. मंजरी घबरा कर दो कदम पीछे हो गई.

चेतावनीभरी आवाज मंजरी के कानों में पड़ी, ‘‘सुना है तुम डाक्टर अनंत कुमार सिंह से शादी करने की सोच रही हो? अगर ऐसा है तो इस सोच को यहीं विराम दे दो, तुम्हारी सेहत के लिए यही अच्छा होगा.’’ रिवौल्वर वाले हाथ को एक हलकी सी जुंबिश दे कर वह वापस मुड़ा और पलट कर बोला, ‘‘याद रखना.’’

मैं ने अपनी बालकनी से मधूप और 3 अन्य युवकों को मंजरी के घर की तरफ से निकल कर कालोनी से बाहर की तरफ जाते हुए देखा. यह इधर क्या करने आया था, सोच ही रही थी कि इतने में मंजरी का फोन आया, ‘‘अनंत के बच्चे अपने स्वार्थ के लिए इस हद तक गिर जाएंगे, मैं ने कभी सोचा भी न था.’’ इस सब के बाद मुझे लगा था मंजरी अब इस शादी से पीछे हट जाएगी. लेकिन हुआ इस का उलटा.

अनंत को फोन कर के मैं ने सबकुछ बता दिया था. मंजरी के साथ अपने बेटे की करतूत जान कर वह बेहद लज्जित था. तीसरे दिन आया तो मंजरी के सामने आंखें नहीं उठा पा रहा था, हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘तुम्हारी जिंदगी तो वैसे ही गमों से खाली न थी, मैं तुम्हारा दर्द और नहीं बढ़ा सकता. समय का मारा हूं जो ऐसे बच्चों का बाप हूं और क्या कहूं. तुम्हारे जीवन को बदरंग करने का मुझे कोई हक नहीं.’’

अनंत की आंखों में नमी थी, उठ कर जाने लगा. मंजरी खड़ी हो गई और उस का हाथ पकड़ कर बोली, ‘‘यह तुम ने अपनी बात कही. अब मेरी बात सुनो. मैं न तो तुम्हें रोकूंगी न टोकूंगी, न सामाजिक नियमों की जंजीरों में जकड़ूंगी. न तुम मुझे रोकना न टोकना, न किसी नकशे में जकड़ना. हम उड़ेंगे एकदूसरे के साथ और अपनेअपने विवेक के साथ. शुरू करेंगे एक सफर जो पूरा होगा प्रेम के स्वच्छंद आसमान में. लेकिन उस से पहले अपने पंखों को मजबूत करना होगा. जीवन में वीरानी आ जाए तो अपने लिए एक नए जीवन का चयन करना कहीं से भी गलत नहीं. इस से पहले कि हमारा यह जीवन अवेहलना व उदासियों का गुच्छा सा बन कर रह जाए, कुछ चटकीले रंगों को मुट्ठियों में भर लेने का हक और हौसला हम सब के पास होना चाहिए.’’

४सारस का एक जोड़ा आसमान से गुजर रहा था, अपनी बालकनी में बैठी मैं सोच रही थी, क्यों हम ने अपने जीवन के चारों ओर नियमों, रूढि़यों, धर्मों, और आडंबरों के झाड़झंखाड़ों की चारदीवारियां उगा रखी हैं. ये सब इंसानों के लिए होने चाहिए या इंसान इन सब के लिए… Best Hindi Story

Hindi Story: भूल – प्यार के सपने दिखाने वाले अमित के साथ क्या हुआ?

Hindi Story: कैफे कौफी डे’ में रजत, अमित, विनोद और प्रशांत बैठे गपें मार रहे थे, इतने में अचानक रजत की नजर घड़ी पर गई तो वह बोला, ‘‘अमित, तुझे तो अभी ‘उपवन लेक’ जाना है न, वहां पायल तेरा इंतजार कर रही होगी.’’

अमित ने अपने कौलर ऊपर करते हुए कहा, ‘‘वही एक अकेली थोड़ी है जो मेरा इंतजार कर रही है, कई हैं, करने दे उसे भी इंतजार, बंदा है ही ऐसा.’’

प्रशांत हंसा, ‘‘हां यार, तू अमीर बाप की इकलौती औलाद है, हैंडसम है, स्मार्ट है, लड़कियां तो तुझ पर मरेंगी ही.’’

अमित ने इशारे से वेटर को बुला कर बिल मंगवाया और बिल चुकाने के बाद अपनी गाड़ी की चाबी उठाई और बोला, ‘‘चलो, मैं चलता हूं, थोड़ा टाइमपास कर के आता हूं,’’ सब ने ठहाका लगाया और अमित बाहर निकल गया. वह सीधा ‘उपवन लेक’ पहुंचा, पायल वहां बैंच पर बैठी थी, उस ने कार से उतरते अमित को देखा तो खिल उठी. वह अमित को देखती रह गई. शिक्षित, धनी, स्मार्ट अमित उस जैसी मध्यवर्गीय घर से ताल्लुक रखने वाली साधारण लड़की को प्यार करता है, यह सोचते ही पायल खुद पर इतरा उठी. पास आते ही अमित ने उस की कमर में हाथ डाल दिया और इधरउधर देखते हुए कहा, ‘‘चलो, कहीं चल कर कौफी पीते हैं.’’

‘‘नहीं अमित, अगर किसी ने देख लिया तो?’’

‘‘अरे पायल, मैं तुम्हें जिस होटल में ले जाऊंगा वहां तुम्हारी जानपहचान का कोई फटक भी नहीं सकता.’’

पायल को अमित की यह बात बुरी तो लगी, लेकिन उस के व्यक्तित्व के रोब में दबा उस का मन कोई प्रतिक्रिया नहीं दे पाया, उस ने चुपचाप सिर हिला दिया. अमित उसे एक शानदार महंगे होटल में ले गया और दोनों ने एक कोने में बैठ कर कौफी और कुछ स्नैक्स का और्डर दे दिया, हलकाहलका मधुर संगीत और होटल के शानदार इंटीरियर को देख पायल का मन झूम उठा.

अमित की मीठीमीठी बातें सुन कर पायल किसी और ही दुनिया में पहुंच गई. करीब घंटेभर दोनों साथ बैठे रहे. इस दौरान कभी अमित पायल का हाथ अपने हाथ में ले कर बैठता तो कभी उस के खूबसूरत सुनहरे बालों को उंगलियों से सहलाने लगता. पायल हमेशा की तरह सुधबुध खो कर उस की बातों की दीवानी बन खोई रही. जब उस के मोबाइल की घंटी बजी तो वह होश में आई, उस के पापा का फोन था, उन्होंने पूछा, ‘‘कहां हो?’’

पायल ने तुरंत कहा, ‘‘बस पापा, रास्ते में हूं, घर पहुंचने वाली हूं.’’ उस ने अमित से कहा, ‘‘अब मैं जा रही हूं, फिर मिलेंगे.’’ अमित ने कहा, ‘‘ठीक है, तुम जाओ, मैं यहां अपने दोस्त का इंतजार कर रहा हूं, वह आता ही होगा.’’ पायल चली गई. अमित ने मुसकराते हुए घड़ी देखी. रंजना को उस ने आधे घंटे बाद यहीं बुलाया था. वह जानता था कि पायल घंटेभर से ज्यादा नहीं रुक पाएगी, क्योंकि उस के पापा काफी अनुशासनप्रिय हैं.

अमित बिजनैसमैन कमलकांत का इकलौता बेटा था, मम्मी का देहांत हो चुका था. उस ने अभीअभी एमबीए किया था ताकि बिजनैस संभाल सके. वह युवतियों को खिलौना समझता था, उन पर पैसा खर्च कर वह अपना उल्लू साधता था. वह कई युवतियों से एकसाथ फ्लर्ट करता था. कालेज में युवतियां उस की दीवानी थीं, जिस का उस ने हमेशा फायदा उठाया.

पायल के जाने के बाद वह अब रंजना का इंतजार कर रहा था. खुले विचारों वाली रंजना मौडर्न ड्रैस पहन कर मिलने आई थी. अमित को देख कर उस ने फ्लाइंग किस की और पास पहुंच कर उस से सट कर बैठ गई. अमित ने उस से प्यार भरी बातें कीं और छेड़खानी शुरू कर दी.

रंजना खुद को बड़ी खुशनसीब मानती थी कि उसे अमित जैसा दौलतमंद बौयफ्रैंड मिला. उस ने शादी का जिक्र किया, ‘‘अमित, तुम डैड से हमारी शादी की बात कब कर रहे हो?’’

अमित चौंक कर बोला, ‘‘देखता हूं, अभी तो डैड बहुत बिजी हैं,’’ कहते हुए वह मन ही मन हंसा, ’कितनी बेवकूफ होती हैं लड़कियां, दो बोल प्यार के सुन कर शादी के सपने देखने लगती हैं, हुंह. शादी और इन से, शादी तो अपने ही जैसे उच्चवर्गीय परिवार की किसी लड़की से करूंगा, मखमल में टाट का पैबंद तो लगने से रहा,’अमित ने रंजना की बातों का रुख मोड़ दिया. फिर घंटेभर टाइमपास कर रंजना को ले कर कार की तरफ बढ़ा और उस के घर से पहले ही कार रोक कर उसे उतार कर आगे बढ़ गया.

वह जब घर पहुंचा तो उस के पिता कमलकांत औफिस से आ चुके थे, वे ड्राइंगरूम में गुमसुम बैठे थे. अमित गुनगुनाते हुए घर के अंदर दाखिल हुआ तो उस से पापा की नजरें मिलीं. अमित ने अपने पिता के चेहरे की गंभीरता भांप ली और बोला, ‘‘डैड, कुछ प्रौब्लम है क्या? आप की तबीयत तो ठीक है न?’’

कमलकांत कुछ नहीं बोले, बस, सोफे पर उन्होंने सिर टिका लिया. अमित घबरा कर आगे बढ़ा, ‘‘क्या हुआ डैड?’’

कमलकांत की बुझीबुझी सी आवाज आई, ‘‘2 दिन से सोच रहा हूं तुम्हें बताने के लिए, मुझे एबीसी कंपनी के शेयरों में काफी घाटा हुआ है. अब सारा पैसा डूब गया, जबरदस्त नुकसान हुआ है.’’

दोनों बापबेटा काफी देर सिर पकड़ कर बैठे रहे, फिर कमलकांत ने कहा,

‘‘मि. कुलकर्णी की बेटी से तुम्हारे रिश्ते की जो बात चल रही थी आज उन्होंने भी बात घुमाफिरा कर इस रिश्ते को खत्म करने का संकेत दे दिया है. अब तुम्हें कोई लड़की पसंद हो तो बता देना,’’ तभी नौकर ने आ कर खाना बनाने के लिए पूछा तो दोनों ने ही मना कर दिया.

दोनों के होश उड़े हुए थे, दोनों बापबेटा अपनेअपने कमरे में रातभर जागते रहे. कमलकांत रातभर अपने वकील, सैक्रेटरी, मैनेजर से बात करते रहे, अमित ने तो अपना फोन ही स्विचऔफ कर दिया था, कहां तो वह रोज इस समय फोन पर किसी न किसी लड़की को भविष्य के सुनहरे सपने दिखा रहा होता था. अगले कुछ दिनों में स्थिति और भी स्पष्ट होती चली गई थी. शहर में चर्चा होने लगी, इसी वजह से कमलकांत को हार्टअटैक आ गया, उन्हें तुरंत अस्पताल में भरती किया गया. अमित की भी हालत खराब थी. रिश्तेदारों ने भी उस से दूरी बना ली. सिर्फ एकदो दोस्त उस के साथ अस्पताल में थे.

अमित पिता की रातदिन देखभाल कर रहा था. कुछ दिन बाद जब उन की हालत में कुछ सुधार हुआ तो डाक्टर के निर्देशों के साथ घर आते ही उन्होंने अमित से कहा, ‘‘बेटा, तुम जल्दी से जल्दी साधारण ढंग से ही शादी कर लो, मेरी एक चिंता तो खत्म हो जाएगी. तुम्हारी तो इतनी सारी लड़कियों से दोस्ती है. मुझे बताओ, किस से शादी करना चाहते हो?’’

‘‘डैड, पहले आप ठीक तो हो जाओ, मुझे तय करने के लिए थोड़ा समय चाहिए.’’

समाचारपत्रों में छपी खबरों से अब तक रंजना, पायल और अन्य लड़कियों को भी अमित के चरित्र और कमलकांत की गिरती साख की खबर लग चुकी थी. अमित ने पायल को मिलने के लिए फोन किया तो उस ने साफ इनकार कर दिया और बोली, ‘‘तुम एक आवारा और चरित्रहीन लड़के हो, लड़कियों की भावनाओं से खेलते हो. शादी तो दूर मैं तुम्हारी शक्ल भी नहीं देखना चाहती.‘‘

अमित पायल के व्यंग्यबाणों से अपमान, मानसिक पीड़ा और क्रोध में जला जा रहा था. इस पीड़ा से उस ने अपनेआप को बहुत मुश्किल से संभाला. सामान्य होने के बाद उस ने रंजना को फोन किया तो रंजना का भी जवाब था, ‘‘तुम अब कुछ भी नहीं हो अमित, जिस पिता के पैसे पर ऐश कर के लड़कियों को बेवकूफ बनाते थे वह पैसा तो अब डूब गया. अब मेरी भी तुम में कोई रुचि नहीं है. मुझे पूजा, अनीता और मंजू के बारे में भी पता चल चुका है, अब सब तुम्हारी हकीकत जान चुके हैं. पिता की दौलत के बिना तुम कुछ नहीं हो, किसी लड़की को अपने से कम समझना, तुम लड़कों का ही हक नहीं है बल्कि हम में भी फैसला लेने की क्षमता, इच्छा, रुचि और पसंद होती है. काश, तुम गरीब और साधारण रूपरंग वाले लेकिन चरित्रवान युवक होते और लड़कियों की भावनाओं से नहीं खेलते,’’ कह कर रंजना ने उस की बात सुने बिना ही फोन रख दिया.

अमित को ऐसा लगा जैसा कि रंजना ने उसे करारा तमाचा मारा हो. निष्प्राण सा वह बिस्तर पर ढह गया. उसे ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो शरीर का खून पानी हो गया हो. उस का गला सूखने लगा और वह अब कुछ करने की हालत में नहीं था. वह बड़ी मुश्किल से उठा और पापा को उस ने अपने हाथ से जबरदस्ती कुछ खिला कर दवा दी, फिर अपने कमरे में आ कर निढाल पड़ गया. उस के दिलोदिमाग में विचारों की आंधी का तांडव चल रहा था. वह इस तरह अपने को ठुकराना सहन नहीं कर पा रहा था. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उस जैसे स्मार्ट, हैंडसम लड़के का कोई लड़की इस तरह से अपमान कर सकती है. उस ने अब तक न जाने कितनी लड़कियों को अपनी बातों के जाल में फंसाया था, लेकिन आज उन साधारण लड़कियों ने उस के घमंड को चकनाचूर कर दिया.

मन शांत हुआ तो उस ने सोचा कि सिर्फ पुरुष होने के नाते वह किसी लड़की की भावनाओं से नहीं खेल सकता. उस ने हमेशा अपनी भावनाओं को ही महत्त्व दिया. कभी उस के मन में यह बात नहीं आई कि किसी लड़की का भी आत्मसम्मान व पसंदनपसंद हो सकती है. उस के दिमाग में तो हमेशा यही गलतफहमी रही कि उसे पा कर हर लड़की खुद को धन्य समझेगी, लेकिन उस रात आत्मविश्लेषण करते हुए उस ने महसूस किया कि पायल और रंजना की बातों ने उस की सोच को नया आयाम दिया है. सुबह उस का मन एकदम शांत था, ठीक तूफान के गुजरने के बाद की तरह शांत. उसे अपनी भूल का एहसास हो चुका था. वह मन ही मन पायल, रंजना और पता नहीं कितनी लड़कियों से माफी मांग रहा था. Hindi Story

Hindi Family Story: क्या मैं गलत हूं – शादीशुदा मयंक को क्या अपना बना पाई मायरा?

Hindi Family Story: पियाबालकनी में आ कर खड़ी हो गई. खुली हवा में सांस ले कर ऐसा लगा जैसे घुटन से बाहर आ गई हो. आसपास का शांत वातावरण, हलकीहलकी हवा से धीरेधीरे लहराते पेड़पौधे, डूबता सूरज सबकुछ सुकून मन को सुकून सा दे रहा था. सामने रखी चेयर पर बैठ कर आंखें मूंद लीं. भरसक प्रयास कर रही थी अपने को भीतर से शांत करने का. लेकिन दिमाग शांत होने का नाम नहीं ले रहा था. एक के बाद एक बात दिमाग में आती जा रही थी…

मैं पिया इस साल 46 की हुई हूं. जानपहचान वाले अगर मेरा, मेरे परिवार का खाका खींचेंगे तो सब यही कहेंगे, वाह ऐश है पिया की, अच्छाखासा खातापीता परिवार, लाखों कमाता पति, होशियार कामयाब बच्चे, नौकरचाकर और क्या चाहिए किसी को लाइफ में खुद भी ऐसी कि 4 लोगों के बीच खड़ी हो जाए तो अलग ही नजर आती है. खूबसूरती प्रकृति ने दोनों हाथों से है. ऊपर से उच्च शिक्षा ने उस में चारचांद लगा दिए. तभी तो मयंक को वह एक नजर में भा गई थी.

‘नैशनल इंस्टिट्यूट औफ फैशन टैक्नोलौजी, बेंगलुरु’ से मास्टर डिगरी ली थी उस ने.

जौब के बहुत मौके थे. मयंक का गारमैंट्स का बिजनैस देशविदेश में फैला था. फैशन इलस्टेटर की जौब के लिए उस ने अप्लाई किया था. उस के डिजाइन्स किए गारमैंट्स के कंपनी को काफी बड़ेबड़े और्डर मिले. मयंक की अभी तक उस से मुलाकात नहीं हुई, बस नाम ही

सुना था.

पिया के काम की तारीफ और स्पैशल इंसैंटिव के लिए मयंक ने उसे स्पैशल अपने कैबिन में बुलाया. कंपनी के सीईओ से मिलना पिया के लिए फक्र की बात थी.

मयंक को देखा तो देखती रह गई. किसी फिल्मी हीरो जैसी पर्सनैलिटी थी उस की. लेकिन पिया कौन सी कम थी. मयंक के दिल में उसी दिन से उतर गई थी. पिया कंपनी के सीईओ के लिए कुछ ऐसावैसा सोच भी नहीं सकती थी, लेकिन मयंक ने तो बहुत कुछ सोच लिया था पिया को देख कर. अब तो वह नित नए बहाने बना कर पिया को डिस्कस करने के लिए कैबिन में बुला लेता. पिया बेवकूफ तो थी नहीं कि कुछ सम?ा न पाती. मयंक ने उस से जब बातों ही बातों में शादी का प्रस्ताव रखा तो पिया को लगा कि कहीं वह कोई सपना तो नहीं देख रही. सपनों का राजकुमार उसे मिल गया था.

शादी के बाद पिया का हर दिन सोना और रात चांदी थी. 1 साल के अंदर ही पिया बेटे अनुज की मां बन गई और डेढ़ साल बाद ही स्वीटी की किलकारियों से घर फिर से गुलजार हो गया.

कहते हैं न जब प्रकृति देती है तो छप्पर फाड़ कर देती है. दोनों बच्चे एक से बढ़ कर एक होशियार. अनुज 12वीं के बाद ही आस्ट्रेलिया चला गया और वहां से बीबीए करने के बाद उस ने मयंक के साथ बिजनैस संभाल लिया. बापबेटे की देखरेख में बिजनैस खूब फूलफल रहा था. स्वीटी का एमबीबीएस करते हुए शशांक के साथ अफेयर हो गया तो दोनों की पढ़ाई खत्म होते हुए उन की शादी कर दी. आज दोनों मिल कर अपना बड़ा सा क्लीनिक चला रहे हैं.

पिया की यह कहानी सुन कर यह लगेगा न वाऊ क्या लाइफ है. पिया को भी ऐसा लगता है. लेकिन लाइफ यों ही मजे से गुजरती रहे ऐसा भला होता है? बस पिया की जिंदगी में भी ट्विस्ट आना बाकी था.

मयंक का अपने बिजनैस के सिलसिले में दुबई काफी आनाजाना था. मायरा जरीवाला गुजरात से थी. गारमैंट्स स्टार्टअप से शुरुआत की थी उस ने और आज उस की गुजराती टचअप लिए क्लासिक और मौडर्न ड्रैसेज की खूब डिमांड हो रही थी. बहुत महत्त्वाकांक्षी लड़की थी. मयंक की गारमैंट इंडस्ट्री के साथ टाइअप कर के वह अपने और पांव पसारना चाहती थी. इसी सिलसिले में उस ने दुबई में मयंक के साथ एक मीटिंग रखी थी.

मयंक 48 वर्ष का हो चुका था. कहते हैं कि पुरुष इस उम्र में अपने अनुभव, अपने धीरगंभीर व्यक्तित्व और पैसे वाला हो तो उस की पर्सनैलिटी में गजब की रौनक आ जाती है. माएरा मयंक के इस रोबीले व्यक्तित्व से प्रभावित हुए बिना न रह सकी. उस की कंपनी के साथ टाइअप के साथसाथ उस की जिंदगी के साथ भी टाइअप करने की उस ने ठान ली.

पता नहीं क्यों पत्नी चाहे कितनी ही खूबसूरत, प्यार करने वाली हो, हर तरह से खयाल रखने वाली हो, लेकिन जहां कोई दूसरी औरत, ऊपर से खूबसूरत लाइन देने लगे तो पुरुष को उस की तरफ खिंचते हुए ज्यादा देर नहीं लगती. मयंक भी पुरुष था. मायरा एक बिजनैस वूमन थी. ऊपर से पूरी तरह आत्मविश्वास से भरी 35 साल की खूबसूरत औरत.

मयंक धीरेधीरे उस की ओर आकर्षित होता गया. मायरा नए दौर की औरत थी, जिस के लिए पुरुष के साथ रिलेशनशिप बनाना कोई बहुत बड़ी बात नहीं थी. अपनी खुशी उस के लिए सब से ज्यादा माने रखती थी. मयंक और वह अब अकसर दुबई में ही मिलते और हफ्ता साथ बिता कर अपनेअपने बिजनैस में लग जाते. दोनों बिजनैस वर्ल्ड में अपनी रैपो बना कर रखना चाहते थे.

‘‘मयंक डियर, मु?ो बुरा लगता है कि मेरे कारण तुम पिया के साथ धोखा कर रहे हो. लेकिन मैं क्या करूं. मैं तुम से बहुत प्यार करती हूं. अब मेरी खुशी तुम से जुड़ी है,’’ मायरा मयंक को अपनी बांहों के घेरे में घेरती हुई बोली.

‘‘मायरा, मैं तुम से ?ाठ नहीं बोलूंगा. पिया से मैं भी प्यार करता हूं. लेकिन अब जब भी तुम्हारे साथ होता हूं मु?ो अजीब सा सुकून मिलता है. मैं उसे कोई दुख नहीं पहुंचाना चाहता, लेकिन तुम्हें अब छोड़ भी नहीं सकता. वह मेरी जिंदगी है तो तुम मेरी सांस हो. मायरा, अब मैं तुम्हें जीवनभर यों ही प्यार करना चाहता हूं. मेरी जिंदगी में अब तक पिया की जगह एक तरफ

है और तुम्हारी दूसरी तरफ. मैं दोनों को ही शिकायत का मौका नहीं देना चाहता,’’ मयंक ने मायरा को एक भरपूर किस करते हुए अपने आगोश में ले लिया.

मयंक ने पूरी कोशिश की थी कि पिया को मायरा के बारे में कुछ पता न चले.

वह मायरा के साथ अपनी सारी चैट साथ ही

साथ डिलीट कर देता था. मोबाइल में अपना फिंगर पासवर्ड लगा रखा था. पिया खुद भी मयंक का मोबाइल कभी चैक नहीं करती थी, पूरा विश्वास जो था उस पर, लेकिन उस दिन मयंक नहाने के लिए जैसे ही बाथरूम में गया मायरा के 2-3 व्हाट्सऐप मैसेज आ गए.

पिया की नजर मोबाइल पर पड़ी. मोबाइल पर 2-3 बार बीप की आवाज हुई. नोटीफिकेशन में माई डियर लिखा दिख गया.

पिया का माथा ठनक गया. अब उसे मयंक की हरकतों पर शक होना शुरू हो गया. मयंक का बिजनैस ट्रिप की बात कह कर जल्दीजल्दी दुबई जाना, मोबाइल चैट पढ़ते हुए मंदमंद मुसकान, उस पर जरूरत से ज्यादा प्यार लुटाना, बातवेबात उसे गिफ्ट दे कर खुश रखना.

अपनी बौडी फिटनैस के लिए जिम एक दिन भी मिस न करना, डाइट पर पूरापूरा ध्यान देना जिस के लिए वह कहतेकहते थक जाती थी, लेकिन वह लापरवाही करता था. पिया को एक के बाद एक सब बातें जुड़ती नजर आने लगीं.

मयंक की जिंदगी में आजकल क्या चल रहा है उस का पता लगाना उस के लिए मुश्किल नहीं था. मयंक का ऐग्जीक्यूटिव असिस्टैंट समीर को एक तरह से पिया ने ही जौब पर रखा था. वह उस की फ्रैंड सीमा का कजिन था. समीर पिया की बहुत इज्जत करता था और अपनी बड़ी बहन मानता था.

पिया ने जब समीर से मयंक के प्रेमप्रसंग के बारे में पूछा तो उस ने अपना नाम बीच में न आने की बात कह पिया को मायरा के बारे में सबकुछ बता दिया.

समीर उसे मायरा और मयंक के बीच के बारे में बताता जा रहा था और पिया को लग रहा था जैसे उस के सपनों का महल जिसे उस ने प्यार से मजबूत बना दिया था आज रेत की तरह ढह गया है.

कहां कमी छोड़ दी थी उस ने. सबकुछ तो मयंक के कहे अनुसार करती रही थी. उस ने कहा नौकरी छोड़ दो, उस ने छोड़ दी. अपने कैरियर के पीक पर थी वह लेकिन मयंक के प्यार के आगे सब फीका लगा. उस ने कहा कि पिया बच्चों की देखभाल तुम्हारी जिम्मेदारी है, मैं अपने काम में बिजी हूं, तो यह बात भी उस ने मयंक की चुपचाप मान ली थी.

बच्चों की हर जिम्मेदारी उस ने खुद पर ले ली थी. अड़ोसपड़ोस, नातेरिश्तेदार, घरबाहर की सब व्यवस्था उस ने संभाल ली थी. किस के लिए, मयंक के लिए न, क्योंकि मयंक ही उस की दुनिया था. सबकुछ उस से ही तो जुड़ा था और उस ने कितनी आसानी से मायरा को उस के हिस्से का प्यार दे दिया. यह भी नहीं सोचा कि उस पर क्या बीतेगी, जब उसे पता चलेगा.

पिया को ऐसा लग रहा था जैसे उस की नसों में गरम खून दौड़ रहा है. तनमन दहक रहा है. मन कर रहा था कि मयंक को सब के सामने शर्मसार कर दे.

पिया यह सब तू क्या सोच रही है’, अचानक पिया को अपने मन की आवाज सुनाई दी, ‘पिया, यह तो तु?ो मयंक के बारे में अचानक शक हो गया तो तू ने सच पता कर लिया. अगर उस दिन फोन नहीं देखती तो? सबकुछ वैसा ही चलता रहता जैसे पिछले कई बरसों से चलता आ रहा है.’

पिया की सोच जैसे तसवीर का दूसरा पहलू देखने लगी थी. आज समाज में मयंक का एक रुतबा है. बेटे की बिजनैस टाइकून की इमेज बनी हुई. बेटी स्वीटी अपनी ससुराल में सिरआंखों पर बैठाई जाती है, क्योंकि उस का मायका रुसूखदार है. खुद का सोसाइटी में हाई प्रोफोइल स्टेट्स रखती है. आज अगर वह मुंह खोलती है तो मयंक के इस अफेयर को ले कर मीडिया वाले मिर्चमसाला लगा कर जगजाहिर कर देंगे. उन के बिजनैस पर इस का बहुत फर्क पड़ेगा.

बरसों से कमाई गई शोहरत पर ऐसा धब्बा लगेगा जिस का खमियाजा अनुज को भुगतना पड़ेगा, बेटा जो है. अभी तो उस का पूरा भविष्य पड़ा है आगे अपनी शोहरत बटोरने के लिए. स्वीटी के लिए मयंक उस के आइडियल पापा हैं. समाज में कितना रुतबा है उन के खानदान का. ऊफ, सब मिट्टी में मिल जाएगा. सोचतेसोचते पिया का सिर चकराने लगा था.

‘‘पिया मैडम, जरा संभल कर. आप ठीक तो हैं न, आप यहां आराम से बैठिए,’’ समीर ने पिया को कुरसी पर बैठाते हुए कहा.

पिया को पानी का गिलास दिया तो वह एक सांस में पी गई. उस की चुप्पी सबकुछ वैसा ही चलते रहने देगी जैसे चलता आ रहा है और अपने साथ हो रही बेवफाई को सरेआम करती है तो सच बिखर जाएगा. दिल और दिमाग में टकराव चल रहा था.

अचानक पिया कुरसी से उठ खड़ी हुई. पर्स से मोबाइल निकाला और

मयंक को फोन मिलाया, ‘‘मयंक, कहां हो तुम.’’

‘‘डार्लिंग, मीटिंग के लिए बाहर आया था. क्यों क्या बात है?’’ मयंक ने पूछा.

‘‘वह मैं तुम्हारे औफिस आई थी कि साथ लंच करते हैं.’’

‘‘ओह, यह बात है. नो प्रौब्लम, ऐसा करो तुम शंगरिला होटल पहुंचो, मैं सीधा तुम्हें वहां

15 मिनट में मिलता हूं. साथ लंच करते हैं वहां,’’ मयंक ?ाट से बोला.

‘‘ठीक है मैं पहुंचती हूं,’’ बोल कर पिया ने फोन काट दिया.

पिया जब होटल पहुंची तो मयंक उसे उस का इंतजार करता मिला.

पिया को लगा जैसे मयंक वही तो है जैसे पहले था. उस का खयाल रखने वाला. उसे इंतजार न करना पड़े इसलिए खुद पहले पहुंच जाना. मयंक के प्यार में कमी तो उसे कहीं दिख नहीं रही.

दोनों ने साथ लंच किया और मयंक ने उसे घर छोड़ा और औफिस चला गया, क्योंकि 4 बजे उस की क्लाइंट के साथ फिर मीटिंग थी.

घर आ कर पिया बालकनी में बैठ गई थी. उस ने निर्णय ले लिया. मयंक का सबकुछ बिखेर कर रख देगा. जो कुछ वह देख पा रही है शायद मयंक ने उस बारे में सोचा तक नहीं है. उस का सबकुछ तबाह हो जाएगा.

मयंक ने शायद सोचा ही नहीं कि मायरा के साथ उस की खुशी बस तभी तक है जब तक सब परदे के पीछे है. सच सामने आ गया तो सब खत्म हो जाएगा. न प्यार का यह नशा रहेगा, न परिवार में इज्जत, न समाज में मानप्रतिष्ठा.

‘उस की तो दोनों तरफ हार है. मयंक की तबाही से उसे क्या हासिल होगा. खुशी तो मिलने से रही. फिर यह ?ाठ ही क्यों नहीं अपना लिया जाए,’ पिया दिल को एक तरफ रख दिमाग से सोचने लगी, ‘मयंक उस से मायरा का सच छिपाने के लिए उस से बेइंतहा प्यार करने लगा है. प्यार तो कर रहा है न.

‘उस के प्यार के बिना वह नहीं रह सकती. नहीं जी पाएगी वह उस के बिना. मयंक इस भुलावे में रहे कि वह उस की सचाई जानती तो अच्छा ही है. सब अच्छी तरह तो चल रहा है.

‘पत्नी हूं मैं उस की, मेरा हक कोई और छीन नहीं सकता. पतिपत्नी के रिश्ते में सचाई होनी चाहिए. यह बात मानती है वह लेकिन अगर आज वह मयंक को उस के सच के साथ नंगा कर देगी तो क्या उन के बीच वह पहले जैसा प्यार रह पाएगा? नहीं, कई बार झूठ को ही अपनाना पड़ता है. दवा कड़वी होती है, लेकिन इलाज के लिए खानी ही पड़ती है.’

पिया ने अब निर्णय ले लिया और एक नई पहल शुरू करने के लिए वह कमरे के भीतर गई. लाइट औन की. पूरा कमरा लाइट से जगमगा उठा. अब अंधेरा नहीं था. मयंक के सामने जाहिर नहीं होने देगी कि वह सब जान चुकी है. शायद यही सब के लिए ठीक है. गलत तो नहीं है वह कहीं? Hindi Family Story

Story In Hindi: औरों से जुदा – निशा ने जब खुद को रवि को सौंपने का फैसला किया

Story In Hindi: अपनीसहेली महक का गुस्से से लाल हो रहा चेहरा देख कर निशा मुसकराने से खुद को रोक नहीं सकी. बोली, ‘‘मयंक की बर्थडे पार्टी में तेरे बजाय रवि प्रिया को क्यों ले जा रहा है?’’ निशा की मुसकराहट ने महक का गुस्सा और ज्यादा भड़का दिया.

निशा ने प्यार से महक का हाथ थामा और फिर शांत स्वर में जवाब दिया, ‘‘परसों रविवार को मेरा जापानी भाषा का एक महत्त्वपूर्ण इम्तिहान है, इसलिए मैं ने रवि को सौरी बोल दिया था. रही बात प्रिया की, तो वह रवि की अच्छी फ्रैंड है. दोनों का पार्टी में साथ जाना तुझे क्यों परेशान कर रहा है?’’ ‘‘क्योंकि मैं प्रिया को अच्छी तरह जानती हूं. वह तेरा पत्ता साफ रवि को हथियाना चाहती है.’’

‘‘देख एक सुंदर, स्मार्ट और अमीर लड़के को जीवनसाथी बनाने की चाह हर लड़की की तरह प्रिया भी अपने मन में रखती है, तो क्या बुरा कर रही है?’’ ‘‘तू रवि को खो देगी, इस बात को सोच कर क्या तेरा मन जरा भी चिंतित या परेशान नहीं होता है?’’

‘‘नहीं, क्योंकि रवि की जिंदगी में मुझ से बेहतर लड़की और कोई नहीं है,’’ निशा का स्वर आत्मविश्वास से लबालब था. ‘‘उस ने पहले मुझ से ही पार्टी में चलने को कहा था, यह क्यों भूल रही है तू?’’

‘‘प्रिया को रवि के साथ जाने का मौका दे कर तू ने गलती करी है, निशा. तुम जैसी मेहनती लड़की को इम्तिहान में पास होने की चिंता करनी ही नहीं चाहिए थी. रवि के साथ पार्टी में तुझे ही जाना चाहिए था, बेवकूफ.’’ ‘‘सच बात तो यह है कि मेरा मन भी नहीं लगता है रवि के अमीर दोस्तों के द्वारा दी जाने वाली पार्टियों में, महक. लंबीलंबी कारों में आने वाले मेहमानों की तड़कभड़क मुझे नकली और खोखली लगती है. न वे लोग मेरे साथ सहज हो पाते हैं और न मैं उन सब के साथ. तब रवि भी पार्टी का मजा नहीं ले पाता है. इन सब कारणों से भी मैं ऐसी पार्टियों में रवि के साथ जाने से बचती हूं,’’ निशा ने बड़ी सहजता से अपने मन की बात महक से कह दी.

‘‘तू मेरी एक बात का सचसच जवाब देगी?’’ ‘‘हां, दूंगी.’’

‘‘क्या तू रवि से शादी करने की इच्छुक नहीं है?’’

कुछ पलों के सोचविचार के बाद निशा ने गंभीर लहजे में जवाब दिया, ‘‘यह सच है कि रवि मेरे दिल के बेहद करीब है…उस का साथ मुझे बहुत अच्छा लगता है, लेकिन हमारी शादी जरूर हो, ऐसी उलझन मैं अपने मन में नहीं पालती हूं. भविष्य में जो भी हो मुझे स्वीकार होगा.’’ ‘‘अजीब लड़की है तू,’’ महक हैरानपरेशान हो उठी, देख, ‘‘अमीर खानदान की बहू बन कर तू अपने सारे सपने पूरे कर सकेगी. तुझे रवि को अपना बना कर रखने की कोशिशें बढ़ा देनी चाहिए. इस मामले में जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वासी होना गलत और नुकसानदायक साबित होगा, निशा.’’

‘‘रवि को अपना जीवनसाथी बनाने के लिए मेरा उस के पीछे भागना मूर्खतापूर्ण और बेहूदा लगेगा, महक. अच्छे जीवनसाथी साथसाथ चलते हैं न कि आगेपीछे.’’ ‘‘लेकिन…’’

‘‘अब लेकिनवेकिन छोड़ और मेरे साथ जिम चल. कुछ देर वहां पसीना बहा कर मैं तरोताजा होना चाहती हूं,’’ निशा ने एक हाथ में अपना बैग उठाया और दूसरे हाथ से महक का हाथ पकड़ कर बाहर चल पड़ी. निशा ने अपनी मां को जिम जाने की बात बताई और फिर दोनों सहेलियां फ्लैट से बाहर आ गईं.

जिम में अच्छीखासी भीड़ इस बात की सूचक थी कि लोगों में स्वस्थ रहने व स्मार्ट दिखने की इच्छा बढ़ती जा रही है. निशा वहां की पुरानी सदस्य थी, इसलिए ज्यादातर लोग उसे जानते थे. उन सब से हायहैलो करते हुए वह पसीना बहाने में दिल से लग गई. लेकिन महक की दिलचस्पी तो उस से बातें करने में कहीं ज्यादा थी.

खुद को फिट रखने की आदत ने निशा की फिगर को बहुत आकर्षक बना दिया था. उस का पसीने में भीगा बदन वहां मौजूद हर पुरुष की प्रशंसाभरी नजरों का केंद्र बना हुआ था. उन नजरों में अश्लीलता का भाव नहीं था, क्योंकि अपने मिलनसार स्वभाव के कारण वह उन सभी की दोस्ती, स्नेह व आदरसम्मान की पात्रता हासिल कर चुकी थी. लगभग 1 घंटा जिम में बिताने के बाद दोनों घर चल पड़ीं.

‘‘यू आर द बैस्ट, निशा,’’ अचानक महक के मुंह से निकले इन प्रशंसाभरे शब्दों को सुन कर निशा खुश होने के साथसाथ हैरान भी हो उठी. ‘‘थैंकयू, स्वीटहार्ट, लेकिन अचानक यों प्यार क्यों दर्शा रही है?’’ निशा ने भौंहें मटकाते हुए पूछा.

‘‘मैं सच कह रही हूं, सहेली. तेरे पास क्या नहीं है? सुंदर नैननक्श, गोरा रंग, लंबा कद… एमकौम, एमबीए और जापानी भाषा की जानकारी…बहुराष्ट्रीय कंपनी में शानदार नौकरी…एक साधारण से स्कूल मास्टर की बेटी के लिए ऐसे ऊंचे मुकाम पर पहुंचना सचमुच काबिलेतारीफ है.’’ ‘‘जो गुण और परिस्थितियां कुदरत ने दिए हैं, मैं न उन पर घमंड करती हूं और न ही कोई शिकायत है मेरे मन में. अपने व्यक्तित्व को निखारने व कड़ी मेहनत के बल पर अच्छा कैरियर बनाने के प्रयास दिल से करते रहना मेरे लिए हमेशा महत्त्वपूर्ण रहा है. अपनी गरीबी और सुखसुविधाओं की कमी का बहाना बना कर जिंदगी में तरक्की करने का अपना इरादा कभी कमजोर नहीं पड़ने दिया. मेरे इसी गुण ने मुझे इन ऊंचाइयों तक पहुंचाया है,’’ अपने मन की बातें बताते हुए निशा की आवाज में उस का आत्मविश्वास साफ झलक रहा था.

‘‘अब रवि से तेरी शादी भी हो जाए तो फिर तेरी जिंदगी में कोई कमी नहीं रहेगी,’’ महक ने भावुक लहजे में अपने मन की इच्छा दर्शाई. कुछ पल खामोश रह कर निशा ने किसी दार्शनिक के से अंदाज में कहा, ‘‘मैं ने अपनी खुशियों को रवि के साथ शादी होने से बिलकुल नहीं जोड़ रखा है. कुछ खास पा कर अपनी खुशियां हमेशा के लिए तय कर लेना मुमकिन भी नहीं होता है, सहेली. जीवनधारा निरंतर गतिमान है और मैं अपनी जिंदगी की गुणवत्ता बेहतर बनाने को निरंतर गतिशील रहना चाहती हूं. मेरे लिए यह जीवन यात्रा महत्त्वपूर्ण है, मंजिलें नहीं. रवि से मेरी शादी हो गई, तो मैं खुश हूंगी और नहीं हुई तो दुखी नहीं हूंगी.’’

‘‘तुम दूसरी लड़कियों से कितनी अलग हो.’’ ‘‘सहेली, हम सब ही इस दुनिया में अनूठे और भिन्न हैं. दूसरों से अपनी तुलना करते रहना अपने समय व ताकत को बेकार में नष्टकरना है. मैं अपनी जिंदगी को खुशहाल अपने बलबूते पर बनाना चाहती हूं. इस यात्रा में रवि मेरा साथी बनता है, तो उस का स्वागत है. ऐसा नहीं होता है, तो भी कोई गम नहीं क्योंकि कोई दूसरा उपयुक्त हमराही मुझे जरूर मिलेगा, ऐसा मेरा विश्वास है.’’

‘‘शायद तेरे इस अनूठेपन के कारण ही रवि तेरा दीवाना है… तेरा आत्मविश्वास, तेरी आत्मनिर्भरता ही तेरी ताकत और अनूठी पहचान है.’’ महक के मुंह से निकले इन वाक्यों को सुन कर निशा बड़े रहस्यमयी अंदाज में मुसकराने लगी थी.

महक और निशा ने घर का आधा रास्ता ही तय किया होगा जब रवि की कार उन की बगल में आ कर रुकी. उसे अचानक सामने देख कर निशा का चेहरा गुलाब के फूल सा खिल उठा. ‘‘हाय, तुम यहां कैसे?’’ निशा ने रवि से प्रसन्न अंदाज में हाथ मिलाया और फिर छोड़ा

ही नहीं. ‘‘पार्टी में जाने का मन नहीं किया,’’ रवि ने उस की आंखों में प्यार से झांकते हुए जवाब दिया, ‘‘कुछ समय तुम्हारे साथ बिताने के बाद पार्टी में जाऊंगा.’’

‘‘क्या? प्रिया को भी साथ ले जाओगे?’’ महक चुभते से लहजे में यह पूछने से खुद को नहीं रोक पाई. ‘‘नहीं, वह अमित के साथ जा चुकी है. चलो, आइसक्रीम खाने चलते हैं,’’ रवि ने महक के सवाल का जवाब लापरवाही से देने के बाद अपना ध्यान फिर से निशा पर केंद्रित कर लिया.

‘‘पहले मुझे घर छोड़ दो,’’ महक का मूड उखड़ा सा हो गया. ‘‘ओके,’’ रवि ने साथ चलने के लिए महक पर जरा भी जोर नहीं डाला.

निशा रवि की बगल में और महक पीछे की सीट पर बैठ गई तो रवि ने कार आगे बढ़ा दी. ‘‘पहले तुम दोनों मेरे घर चलो,’’ निशा ने मुसकराते हुए माहौल को सहज करने की कोशिश करी. ‘‘नहीं, यार. मैं कुछ वक्त सिर्फ तुम्हारे साथ गुजारना चाहता हूं,’’ रवि ने उस के प्रस्ताव का फौरन विरोध किया.

‘‘पहले घर चलो, प्लीज,’’ निशा ने प्यार से रवि का कंधा दबाया, ‘‘मां के हाथ की बनी एक खास चीज तुम्हें खाने को मिलेगी.’’ ‘‘क्या?’’

‘‘वह सीक्रेट है.’’ ‘‘लेकिन…’’

‘‘प्लीज, बड़े प्यार से करी गई प्रार्थना को रवि अस्वीकार नहीं कर सका और फिर कार निशा के घर की तरफ मोड़ दी.’’

महक अपने घर की तरफ जाना चाहती थी, पर निशा ने उसे प्यार से डपट कर खामोश कर दिया. वह समझती थी कि उस की सहेली रवि को उस के प्रेमी के रूप में उचित प्रत्याशी नहीं मानती है. महक को डर था कि रवि उसे प्रेम में जरूर धोखा देगा. काफी समझाने के बाद भी निशा उस के इस डर को दूर करने में सफल नहीं रही थी. इसीलिए जब ये दोनों उस के साथ होती थीं, तब उसे माहौल खुश बनाए रखने के लिए अतिरिक्त प्रयास हमेशा करना पड़ता था.

रवि मीठा खाने का शौकीन था. निशा की मां के हाथों के बने शाही टोस्ट खा कर उस की तबीयत खुश हो गई. मीठा खा कर महक अपने घर चली गई. निशा ने रवि को खाना खिला कर ही भेजा. हंसतेबोलते हुए 2 घंटे कब बीत गए पता ही नहीं चला.

‘‘लंबी ड्राइव पर जाने का मौसम हो रहा है,’’ ताजी ठंडी हवा को चेहरे पर महसूस करते हुए रवि ने कार में बैठने से पहले अपने मन की इच्छा व्यक्त करी. ‘‘आज के लिए माफी दो. फिर किसी दिन कार्यक्रम…’’

‘‘परसों चलने का वादा करो…, इम्तिहान के बाद?’’ रवि ने उस की आंखों में प्यार से झांकते हुए पूछा. ‘‘श्योर,’’ निशा ने फौरन रजामंदी जाहिर

कर दी. ‘‘इम्तिहान खत्म होते ही निकल लेंगे.’’

‘‘ओके.’’ ‘‘पूछोगी नहीं कि कहां चलेंगे?’’

‘‘तुम्हारा साथ है, तो हर जगह खूबसूरत बन जाएगी.’’

‘‘आई लव यू.’’ ‘‘मी टू.’’

रवि ने निशा के हाथ को कई बार प्यार से चूमा और फिर कार आगे बढ़ा दी. रवि के चुंबनों के प्रभाव से निशा के रोमरोम में अजीब सी मादक सिहरन पैदा हो गई थी. दिल में अजीब सी गुदगुदी महसूस करते हुए वह अपने कमरे में लौटी और तकिए को छाती से लगा कर पलंग पर लेट गई. रवि के बारे में सोचते हुए उस का तनमन अजीब सी खुमारी में डूबता जा रहा था. उस के होंठों की मुसकान साफ जाहिर कर रही थी कि उस वक्त उस के सपनों की दुनिया बड़ी रंगीन बनी हुई थी.

रविवार को दोपहर 12 बजे निशा की जापानी भाषा की परीक्षा समाप्त हो गई. वह हौल से बाहर आई तो उस ने रवि को अपना इंतजार करते पाया. सिर्फ 1/2 घंटे बाद रवि की कार दिल्ली से आगरा जाने वाले राजमार्ग पर दौड़ रही थी. दोनों का साथसाथ किसी दूसरे शहर की यात्रा करने का यह पहला मौका था.

मौसम बहुत सुहावना था. ठंडी हवा अपने चेहरों पर महसूस करते हुए दोनों प्रसन्न अंदाज में हसंबोल रहे थे. कुछ देर बाद निशा आंखें बंद कर के मीठे, प्यार भरे गाने गुनगुनाने लगी. रवि रहरह कर उस के सुंदर, शांत चेहरे को देख मुसकराने लगा.

‘‘तुम संसार की सब से सुंदर स्त्री हो,’’ रवि के मुंह से अचानक यह शब्द निकले, तो निशा ने झटके से अपनी आंखें खोल दीं.

रवि की आंखों में अपने लिए गहरे प्यार के भावों को पढ़ कर उस के गौरे गाल गुलाबी हो उठे और फिर शरमाए से अंदाज में वह सिर्फ इतना ही कह पाई, ‘‘झूठे.’’

रवि ने कार की गति धीमी करते हुए उसे एक पेड़ की छाया के नीचे रोक दिया. फिर उस ने झटके से निशा को अपनी तरफ खींचा और उस के गुलाबीि होंठों पर प्यारा सा चुंबन अंकित कर दिया. निशा की तेज सांसों और खुले होंठों ने उसे फिर से वैसा करने को आमंत्रित किया, तो रवि के होंठ फिर से निशा के होंठों से जुड़ गए.

इस बार का चुंबन लंबा और गहन तृप्ति देने वाला था. उस की समाप्ति पर दोनों ने एकदूसरे की आंखों में गहन प्यार से झांका. ‘‘तुम एक जादूगरनी हो,’’ निशा की पलक को चूमते हुए रवि ने उस की तारीफ करी.

‘‘वह तो मैं हूं,’’ निशा हंस पड़ी. ‘‘मेरा दिल इस वक्त मेरे काबू में नहीं है.’’

‘‘मेरा भी.’’ ‘‘मैं तुम्हें जी भर कर प्यार करना चाहता हूं.’’

‘‘मैं भी.’’ ‘‘सच?’’

निशा ने बेहिचक ‘हां’ में सिर ऊपरनीचे हिलाया, तो रवि की आंखों में हैरानी के भाव उभरे. ‘‘क्या तुम्हें अपनी बदनामी का, अपनी छवि खराब होने का डर नहीं है?’’

‘‘क्या करना है और क्या नहीं, इसे मैं दूसरों की नजरों से नहीं तोलती हूं, रवि.’’ ‘‘फिर भी शादी से पहले शारीरिक संबंध बनाने को समाज गलत मानता है, खासकर लड़कियों के लिए.’’

निशा ने आगे झुक कर रवि के गाल को चूमा और फिर सहज अंदाज में बोली, ‘‘स्वीटहार्ट, पुरानी मान्यताओं को जबरदस्ती ओढ़े रखने में मेरा विश्वास नहीं है. मैं इतना जानती हूं कि मैं तुम्हें प्यार करती हूं और तुम्हारा स्पर्श मेरे रोमरोम में मादक झनझनाहट पैदा कर देता है.’’ ‘‘तुम्हारे साथ सैक्स संबंध बनाने का फैसला मैं तुम्हारी और अपनी खुशियों को ध्यान में रख कर करूंगी. वैसा करने के लिए तुम मुझ से शादी करने का झूठासच्चा वादा करो, यह कतई जरूरी नहीं है.’’

‘‘तो क्या तुम मेरे साथ सोने को तैयार हो?’’ ‘‘बड़ी खुशी से,’’ निशा का ऐसा जवाब सुन कर रवि जोर से चौंका, तो वह खिलखिला कर हंस पड़ी.

‘‘तुम्हें समझना मेरे बस की बात नहीं है. साधारण से घर में पैदा हुई लड़की इतनी असाधारण… इतनी अनूठी… इतनी आत्मविश्वास से भरी कैसे हो गई है?’’ कार को फिर से आगे बढ़ाते हुए हैरान रवि ने यह सवाल मानो खुद से ही पूछा हो. ‘‘जिस के पास अपने सपनों को पूरा करने के लिए हिम्मत, लगन और कठिन मेहनत करने जैसे गुण हों, वह इंसान साधारण घर में पैदा होने के बावजूद असाधारण ऊंचाइयां ही छू सकती है,’’ होंठों से बुदबुदा कर निशा ने रवि के सवाल का जवाब खुद को दिया और फिर रवि के हाथ को प्यार से पकड़ कर शांत अंदाज में आंखें मूंद लीं.

आत्मविश्वासी निशा अपने भविष्य के प्रति पूरी तरह आश्वस्त थी. मस्त अंदाज में सीटी बजा रहे रवि ने भी भविष्य को ले कर एक फैसला उसी समय कर लिया. ताजमहल के सामने निशा के सामने शादी करने का प्रस्ताव रखने का निर्णय लेते हुए उस का दिल अजीब खुशी और गुदगुदी से भर उठा था, साधारण बगीचे में उगे इस असाधारण फूल की महक से वह अपना भावी जीवन भर लेने को और इंतजार नहीं करना चाहता था. Story In Hindi

Hindi Family Story: मैं सुहागिन हूं – क्यों पति की मौत के बाद भी सुहागन रही वो

Hindi Family Story: जटपुर गांव के चौधरी देशराज के 5 बेटे बेगराज, लेखराज, यशराज, मोहनराज और धनराज और 4 बेटियां कमला, विमला, सुफला और निर्मला हुईं. भरापूरा परिवार, लंबीचौड़ी खेतीबारी और चौधरी देशराज का दबदबा. दालान पर बैठते तो किसी महाराजा की तरह. बड़े चौधरियों की तरह हुक्के की चिलम कभी बुझने का नाम न ले. दालान पर 4 चारपाई और दर्जनभर मूढ़े उन की चौधराहट की शान बढ़ाते थे. शाम को दालान का नजारा किसी पंचायत का सा होता था.

चौधरी देशराज ने सब से छोटे बेटे धनराज को छोड़ कर अपने सभी बेटे और बेटियों की शादी बड़ी धूमधाम से की थी. चौधरी देशराज का उसूल था कि बेटियों की शादियां बड़े चौधरियों में करो, तो वे अपने से बड़ा घराना पा कर खुश रहेंगी और अपने पिता व किस्मत पर फख्र करेंगी. बहुएं हमेशा छोटे चौधरियों की लाओ तो वे कहने में रहेंगी और बेटों का अपनी ससुरालों में दबदबा बना रहेगा.

सब से छोटे बेटे धनराज के कुंआरे रहने की कोई खास वजह नहीं थी. कितने ही चौधरी अपनी बहनबेटियों के रिश्ते धनराज के लिए ले कर आ चुके थे, लेकिन देशराज सदियों से चली आ रही गांव की ‘पांचाली प्रथा’ के मकड़जाल में फंसे हुए थे.

गांव की परंपरा के मुताबिक, वे चाहते थे कि धनराज अपने किसी बड़े भाई के साथ सांझा कर ले, जिस से जोत के 4 ही हिस्से हों, 5 नहीं. गांव के अनेक परिवार अपनी जोत के छोटा होने से इसी तरह बचाते चले आ रहे थे.

धनराज के बड़े भाइयों ने भी यही कोशिश की, लेकिन धनराज की अपनी किसी भाभी से नहीं पटी. हालांकि ‘पांचाली प्रथा’ के मुताबिक भाभियों ने धनराज पर अपनेअपने हिसाब से डोरे डाले, लेकिन धनराज कभी भाभियों के चंगुल में फंसा ही नहीं.

अब देशराज के सामने धनराज की शादी करने का दबाव था, क्योंकि बड़े बेटे बेगराज का बड़ा बेटा प्रताप भी शादी के लायक हो गया था.

असल में जब धनराज पैदा हुआ था, उस के कुछ दिनों बाद ही प्रताप का जन्म हुआ था. चाचाभतीजे के आगेपीछे जन्म लेने पर देशराज की बड़ी जगहंसाई हुई थी.

गांव के हमउम्र लोग मजाक ही मजाक में कह देते थे, ‘चौधरी साहब, अब तो होश धरो. हुक्के की गरमी ने आप के अंदर की गरमी बढ़ा रखी है, लेकिन उम्र का तो खयाल करो.’

इस के बाद चौधरी देशराज ने बच्चे पैदा करने पर रोक लगा दी. दादा बनने के बाद अपने बरताव में बदलाव लाए और दूसरी जिम्मेदारियों का दायरा बढ़ा लिया.

बेगराज ने अपने बड़े बेटे का नाम प्रताप जरूर रखा था, लेकिन प्रताप का मन पढ़ाईलिखाई, खेतीबारी में कम लगता था, मौजमस्ती में ज्यादा था. दिनभर खुले सांड़ की तरह प्रताप गांवभर में घूमताफिरता. उस के इस बरताव को देख कर गांव वालों ने उस का दूसरा नाम ‘सांड़ू’ ही रख दिया.

बड़ा परिवार होने के नाते घर में काम तो बहुत थे, लेकिन प्रताप ने न तो उन में कभी कोई दिलचस्पी दिखाई और न ही कोई जिम्मेदारी अपने कंधों पर लेने की कोशिश की. इस वजह से बेगराज उस की जल्दी से जल्दी शादी कर के परिवार का जिम्मेदार सदस्य बनाना चाहता था.

गांव से उस की शिकायतें कोई न कोई ले कर आता रहता था. इस से भी बेगराज परेशान था. लेकिन पहले धनराज की शादी हो, तब वे प्रताप की शादी के बारे में सोचें.

देशराज ने जल्दी ही इस समस्या का हल निकाल दिया. धनराज की शादी पास के ही गांव जगतपुर के चौधरी शक्ति सिंह की बेटी सविता के साथ हुई.

धनराज और सविता सुखभरी जिंदगी गुजारने लगे. धनराज के हिस्से में जो जमीन आई, उस में वह जीतोड़ मेहनत करने लगा. सविता भी उस का खूब साथ निभाने लगी.

धनराज खेतों में बैल बना खूब पसीना बहाता. उस की कोशिश थी कि वह भी जल्दी से जल्दी अपने भाइयों के लैवल पर पहुंच जाए.

इस जद्दोजेहद में वह भूल गया कि उस के घर में छुट्टे सांड़ प्रताप ने घुसपैठ शुरू कर दी है. वह छुट्टा सांड़ कब उस की गाय सविता के पीछे लग गया, उसे पता ही नहीं चला. गांव में भी एक खुला सांड़ था, जो इस और उस के खेत में मुंह मारता फिरता था.

धनराज की शादी में आया दहेज का सामान अभी नया था. प्रताप कभी गाने सुनने के बहाने और कभी फिल्म देखने के बहाने दहेज में आई नई एलईडी पर कार्यक्रम देखने के बहाने धनराज के कमरे में आ धमकता था.

सविता नईनवेली दुलहन थी, इसलिए वह कुछ कह पाने में हिचक रही थी. कोई और भी प्रताप को नहीं टोकता था. धनराज का वह हमउम्र भी था और बचपन का साथी था, इसलिए धनराज को भी कोई एतराज नहीं था.

सविता भी इस की आदी हो गई. उस ने सोचा कि जब किसी को प्रताप के इस बरताव से कोई एतराज नहीं तो वही क्यों प्रताप पर एतराज करे. सविता और प्रताप धीमेधीमे आपस में बातचीत भी करने लगे. अगर सविता प्रताप से कभी किसी बात को कहती तो प्रताप उसे कभी न टालता.

धीरेधीरे दोनों की दोस्ती बढ़ने लगी. प्रताप पहले से ज्यादा समय सविता के कमरे में गुजारने लगा. आग और घी का यह रिश्ता धीरेधीरे चाचीभतीजे के रिश्ते को पिघलाने लगा. हवस की आंधी में एक दिन यह रिश्ता पूरी तरह से उड़ गया.

जब तक सविता और प्रताप के इस नए रिश्ते का एहसास धनराज और परिवार के दूसरे सदस्यों को होता, तब तक बात बहुत आगे तक बढ़ गई थी.

धनराज और परिवार के दूसरे लोगों ने सविता और प्रताप पर रोक लगाने की कोशिश की, तो उन दोनों ने दूसरे तरीके ढूंढ़ लिए. हर कोई तो 24 घंटे चौकीदार बन कर घूम नहीं सकता. दोनों का मिलन कभी खेतों में तो कभी खलिहानों में, कभी गौशाला में तो कभी बिटौड़ों के पीछे होने लगा. गांव के खुले सांड़ को भी कहीं भी आनेजाने की आजादी थी.

देशराज तजरबेकार थे. वे जानते थे कि एक खुला सांड़ किसी औरत के लिए सब से अच्छा प्रेमी होता है. उस के पास अपनी प्रेमिका के लिए वह अनमोल वक्त होता है, जो किसी कामकाजी बैल के पास कभी नहीं हो सकता है. यही वजह है कि ज्यादातर लड़कियों के प्रेमी आवारा और लफंगे होते हैं. सांड़ के पास यहांवहां मुंह मारने के लिए बहुत सा खाली वक्त होता है, जबकि कामकाजी बैल की गरदन हमेशा काम के तले दबी रहती है.

देशराज ने एक दिन बेगराज को बुला कर कहा, ‘‘बेगराज, अपने प्रताप को संभाल ले. इसे कामधंधे में लगा, नहीं तो जो आग घर में सुलग रही है, पूरे परिवार को ले डूबेगी. भविष्य में इस घर में कोई रिश्ता नहीं आएगा. आगे की सोच, प्रताप घर को आग लगा रहा है.’’

‘‘बाबूजी, मैं ने कितनी ही कोशिश कर ली, लेकिन लगता है ऐसे बात बनने वाली नहीं.’’

‘‘बेगराज, पहले समझाबुझा. बात न बने तो सख्ती से परहेज मत करना. नहीं तो तेरा प्रताप पूरे परिवार का सत्यानाश कर देगा. पहले ही गांव में काफी फजीहत हो चुकी है. कैसे भी कर, प्रताप पर लगाम लगा.’’

‘‘जी बाबूजी.’’

उधर धनराज ने सविता को हर तरह से समझा लिया. लेकिन हर बात पर वह धनराज की ‘हां’ में ‘हां’ मिलाती या चुप्पी साध जाती. धनराज के सामने वह ऐसी नौटंकी करती, जैसे वह इस दुनिया में धनराज के लिए ही आई है और बाकी सब बातें बेसिरपैर की हैं. लेकिन धनराज के घर से बाहर कदम रखते ही वह गिरगिट की तरह रंग बदलती.

धनराज और परिवार के लोग जितना सविता और प्रताप को समझाते, उन की इश्क की आग उतनी ही ज्यादा भड़कती. समझानेबुझाने की सीमा जब पार हो गई, तो बेगराज और लेखराज ने एक दिन प्रताप को कमरे में बंद कर के जम कर तुड़ाई की, तो सविता ने उस के घावों पर अपनी मुहब्बत का मरहम लगा दिया. यही हाल एक दिन धनराज ने सविता का किया, तो प्रताप ने उस के घावों पर अपनी मुहब्बत के फूल बरसा दिए.

धनराज ने सविता को घर छोड़ने से ले कर तलाक देने तक की धमकियां दे डालीं, लेकिन सविता के सिर चढ़ा इश्क का भूत उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था.

एक दिन धनराज घर में रखी पुराने समय की तलवार उठा लाया और गुस्से में नंगी तलवार से सविता की ‘बोटीबोटी’ काट डालने की धमकी देने लगा, तो सविता ने नंगी तलवार के आगे गरदन करते हुए कहा, ‘‘काटो. पहले मेरी गरदन काटो, फिर मेरे शरीर की बोटीबोटी काट डालो. लेकिन, यह याद रखना, मेरे मरने के बाद इस घर में तबाही मचेगी, कलह मचेगा, मौत नाचेगी, किसी को जरा सा भी चैन न मिलेगा.’’

‘‘बदजात…’’ कह कर जैसे ही धनराज ने तलवार प्रहार के लिए उठाई, परिवार के लोगों ने उसे किसी तरह रोका. इस आपाधापी में यशराज और उस की घरवाली तलवार से घायल हो गए.

लेकिन सविता लाख गालियां खा कर भी टस से मस न हुई. इश्क की ताकत का भी उसे अब एहसास हुआ कि इतना सबकुछ होने पर भी उस पर किसी बात का कोई असर क्यों नहीं हो रहा है. वह चाहे तो एक पल में सबकुछ ठीक कर सकती है, लेकिन इश्क की गुलामी उसे कुछ करने दे तब न.

इन सब बातों से धनराज की गांव में इतनी जगहंसाई हो रही थी कि उस का गांव में निकलना दूभर हो गया था. उसे हर कोई ऐसा लगता था मानो वह सविता और प्रताप की ही मुहब्बत की बातें कर रहा हो.

धनराज की यह हालत हो गई कि न तो वह किसी के पास जाता था और न ही किसी को अपने पास बुलाता था. दुनिया से उस का मन उचटने लगा था. न तो उसे अच्छे कपड़े पहनना सुहाता था और न ही फैशन करना. अच्छा खाना तो उसे जहर की तरह लगता था.

उस का शरीर सूख कर कांटा होता जा रहा था. घर उसे खाने को दौड़ता था, इसलिए वह अपना ज्यादातर समय खेतों में गुजारता था. कोई उस को समझाने की कोशिश करता, तो उस को ऐसा लगता जैसे वह उस के जले पर नमक छिड़क रहा हो. परिवार के लोगों से भी वह कटाकटा सा रहने लगा था.

खेतीबारी के काम में भी उस का मन अब बिलकुल नहीं लगता था. गांव में जो एक खुला सांड़ था पहले वह उस के खेत में घुसता था तो उसे डंडा मार कर भगाता और अपनी फसल को बचाता, लेकिन अब वह उस सांड़ को फसल चरने देता और बैठाबैठा उसे देखता रहता.

धनराज बड़ी उलझन में था. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह करे तो क्या करे. हताशा और निराशा ने उसे चारों तरफ से घेर लिया था. उस ने सुना था कि आदमी को अपने कर्मों की सजा भुगतनी पड़ती है.

काफी सोचने के बाद भी उसे यह समझ में नहीं आया कि आखिर उस ने ऐसा कौन सा गुनाह कर दिया था, जिस की उसे इतनी बड़ी सजा मिली?है.

फिर उसे खेत में बैठेबैठे ध्यान में आया कि सारी समस्या की जड़ सविता ही है, तो फिर क्यों न उसे ही रास्ते से हटा दिया जाए. आज रात को उसे खाने में धतूरे के बीज पीस कर खिला दूं तो सारे खटराग की जड़ ही खत्म.

वह इसी मंशा के साथ खलिहान में गया, जहां बहुत सारे धतूरे के पौधे थे. वहां से वह बहुत सारे धतूरे के बीज ले आया. एक पेड़ की छाया में बैठ कर धनराज उन्हें पीसने लगा.

धतूरे के बीज पीसते हुए उसे खयाल आया कि सविता को रास्ते से हटा कर क्या वह चैन की बंसी बजा सकेगा? क्या इस के बाद उस की नाक ऊंची हो जाएगी? लोग क्या उसे इज्जत की नजर से देखने लगेंगे? प्रताप के सामने क्या वह सिर उठा सकेगा?

इन सवालों ने उस के दिमाग में घमासान मचा दिया. सचाई पता चलने पर लोग उसे पत्नी का हत्यारा भी बताएंगे. फिर कौन औरत उस से शादी करेगी? वह अपने भाइयों और भाभियों पर बोझ बन जाएगा. इस से अच्छा तो यह है कि वह अपनी ही जान दे दे. कितना आसान तरीका है इन सभी मुसीबतों से छुटकारा पाने का.

यह इनसान की फितरत होती है कि वह हमेशा हर समस्या के आसान उपाय ढूंढ़ता है. धनराज ने भी यही किया. पिसे हुए धतूरे के बीज उस ने खुद फांक लिए, लेकिन तुरंत कुछ नहीं हुआ. इस से धनराज की परेशानी और बढ़ गई. वह मरने का इंतजार देर तक नहीं कर सकता था. उस ने आम के एक ऊंचे पेड़ में रस्सी लटकाई, फांसी का फंदा बनाया और उस पर झूल गया.

धनराज को किसी ने फांसी के फंदे पर झूलता देखा, तो गांव में जा कर शोर मचा दिया. ग्राम प्रधान ने हकीकत जानने पर पुलिस को सूचना दी और गांव वालों को चेतावनी दी कि पुलिस के आने तक कोई भी उस पेड़ के पास न फटके, जहां धनराज फांसी के फंदे पर लटका पड़ा है.

आननफानन ही पुलिस की जीप आ गई. धनराज की लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया गया.

इस बीच देशराज के परिवार पर पुलिस ने अपनी हनक दिखानी शुरू की. महक सिंह के बीच में पड़ने से 2 लाख रुपए में मामला तय हो गया, नहीं तो पुलिस को खुदकुशी का केस हत्या में बदलने में कितनी देर लगती.

दोपहर के बाद धनराज के अंतिम संस्कार के लिए पुलिस ने परिवार के सुपुर्द कर दिया. पूरा गांव देशराज के घर पर इकट्ठा हो गया. शाम ढलने को थी इसलिए शव को गंगाघाट पर ले जाने की जल्दी थी.

परिवार की औरतें सविता को ले कर अंतिम दर्शनार्थ धनराज के शव के पास ले कर पहुंची, तो भीड़ में हलचल पैदा हो गई. शव के पास जब घर की औरतों ने सविता की कलाई की चूड़ी तोड़ने और बिछुवे उतारने की कोशिश की, तो उस ने अपनी कलाई छुड़ाते हुए चीख कर कहा, ‘‘मुझ से नहीं होगा यह सब पाखंड. जब तक प्रताप जिंदा है, मैं सुहागिन हूं. यह बात मैं नहीं कह रही सारा गांव जानता है. न मैं अपनी मांग का सिंदूर मिटाऊंगी, न चूडि़यां तुड़वा कर अपनी कलाई नंगी करूंगी और न ही बिछुवे उतारूंगी.

‘‘प्रताप जिंदा है, तो मैं सधवा हूं, विधवा नहीं. धनराज तो मुझे मंझधार में छोड़ कर चला गया. अब प्रताप ही मेरा सहारा है.’’

सविता की बात सुन कर भीड़ ने अपनेअपने तरीके से खुसुरफुसुर की, लेकिन किसी औरत के ऐसे तेवर उन्होंने पहली बार देखे थे. दुख की इस घड़ी में कोई अड़चन नहीं डालना चाहता था.

सविता के विरोध में कुछ आवाजें उठीं, तो उन्हें समझदारी से दबा दिया गया. धनराज का शव चार कंधों पर उठा तो सब की आंखें गमगीन हो गईं. गांव में कौन ऐसा था, जो धनराज की शवयात्रा में न रोया हो.

तेरहवीं और शोक के दिन गुजरने के बाद सविता और प्रताप ने कोर्टमैरिज कर ली. सविता और प्रताप गांव की अपनी जमीनजायदाद बेच कर दूर के किसी गांव में जा बसे.

सविता प्रताप के साथ वहां रहने लगी. उन के जाने के बाद गांव वालों ने राहत की सांस ली. गांव का खुला सांड़ अब बैल बन के रह गया था. Hindi Family Story

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