Hindi Short Story: सच्चा प्रेम

Hindi Short Story: 6 साल पहले की बात है. सोशल मीडिया ने पूरी रफ्तार से गति पकड़ ली थी. श्यामली ने भी फेसबुक पर अपना एकाउंट बना लिया था. उसी साल उस का ग्रैजुएशन पूरा हुआ था. ग्रैजुएशन पूरा होते ही उसे एक मल्टीनैशनल कंपनी में अच्छी नौकरी मिल गई थी.

स्वभाव से चंचल, शांत और हमेशा दूसरे के बारे में पहले सोचने वाली श्यामली औफिस का काम पूरा कर के फेसबुक लौगइन कर के बैठ जाती थी. श्यामली की प्रोफाइल में उस की एक फ्रैंड प्रियंका थी. प्रियंका और श्यामली अकसर फेसबुक पर कोई न कोई पोस्ट डालती रहती थीं. उस के बाद उन पर आए कमेंट्स और लाइक भी वे ध्यान से पढ़तीं और जरूरी होता तो जवाब भी देतीं. फेसबुक चलाने में उन्हें इतना मजा आता था कि वे उस की दीवानी बन गई थीं.

उस दिन औफिस से निकलते ही श्यामली ने फेसबुक पर एक पोस्ट शेयर की. देखते ही देखते उस पर लाइक और कमेंट्स आने लगे. प्रियंका और श्यामली आने वाले कमेंट्स पर आपस में बातें कर रही थीं कि तभी प्रियंका के एक कौमन फ्रैंड ने भी उस पोस्ट पर कमेंट किया. उस का नाम था दुष्यंत. इस के बाद दुष्यंत, प्रियंका और श्यामली कमेंट बौक्स में ही बातें करने लगे थे.

2 दिन बाद जब श्यामली ने फेसबुक खोला तो उस में दुष्यंत की फ्रैंड रिक्वेस्ट आई थी. 2 दिनों तक सोचनेविचारने के बाद श्यामली ने उस की रिक्वेस्ट एक्सेप्ट कर ली. यहीं से शुरू हुई उस प्यार की शुरुआत, जो कभी श्यामली को मिल नहीं सका.

दुष्यंत ने कंप्यूटर साइंस से इंजीनियरिंग की पढ़ाई अभी जल्दी ही पूरी की थी. स्वभाव से शांत और भावनात्मक दुष्यंत हमेशा सोशल मीडिया पर ऐक्टिव रहता था. सोशल मीडिया पर ही श्यामली से उस की मुलाकात हुई थी. श्यामली और दुष्यंत अब फेसबुक फ्रैंड बन गए थे. हायहैलो से शुरू हुआ यह संबंध अब पूरे जोश से आगे बढ़ रहा था.

मार्निंग शिफ्ट होने की वजह से दुष्यंत सुबह जल्दी 5 बजे ही उठ जाता था. और उठने के साथ ही वह श्यामली को गुडमौर्निंग का मैसेज भेजता था. यह उस का रोजाना का नियम बन गया था.  दुष्यंत की सुबह श्यामली को मैसेज भेजने के साथ ही शुरू होती थी. इस के बाद श्यामली के मैसेज के इंतजार में उस का आधा दिन बीत जाता. उसे श्यामली अच्छी लगने लगी थी. किसी न किसी बहाने वह उस से बात करने का मौका खोजता रहता था. वह यही सोचता रहता था कि श्यामली कब औनलाइन हो और वह उसे मैसेज करे.

दुष्यंत एक संस्कारी घर का युवक था, इसलिए श्यामली को उस पर विश्वास करने में ज्यादा समय नहीं लगा. विश्वास होने के बाद श्यामली ने दुष्यंत को अपना फोन नंबर दे दिया था. वैसे तो श्यामली आज के जमाने की आधुनिक लड़की थी. फिर भी वह खुद को इस आधुनिक जमाने से दूर रखती थी. क्योंकि उसे पता था कि सोशल मीडिया पर दुनिया भर के गलत काम भी होते हैं.

दुष्यंत को उस ने एक महीने तक परखा था, उस के बाद उस ने उसे दोस्त के रूप में दिल से स्वीकार किया था. बाकी तो उसे कोई लड़का पसंद ही नहीं आता था.

नंबर मिलने के बाद वाट्सऐप पर गुडमौर्निंग के आगे भी बात बढ़ गई थी. जबकि श्यामली अभी भी उसे अच्छा दोस्त ही मान रही थी. दुष्यंत तो श्यामली के ही सपनों में दिनरात खोया रहता था. इस के बावजूद दुष्यंत कभी श्यामली से अपने प्यार का इजहार नहीं कर सका था. दूसरी ओर दुष्यंत के स्वभाव से प्रभावित हो कर श्यामली के मन में भी उस के लिए प्रेम का बीज अंकुरित होने लगा था. पर कोई संस्कारी लड़की कहां जल्दी अपने प्यार का इजहार करती है. फिर श्यामली तो वैसे भी अपने मन की बात जल्दी किसी से कहने वाली नहीं थी.

उसी तरह दुष्यंत भी हमेशा सोचता रहता था कि वह अपने मन की बात कैसे श्यामली से कहे. प्यार की बात कहने पर कहीं श्यामली नाराज न हो जाए. पता नहीं वह उस के बारे में क्या सोचती होगी, क्या वह भी उसी की तरह उसे प्यार करती है या नहीं. अगर वह अपने मन की बात उस से कहेगा तो वह कहीं बुरा तो नहीं मानेगी?

यही सब सोचतेसोचते दिन बीत रहे थे. दुष्यंत हमेशा इसी सोच में डूबा रहता था कि आखिर वह करे तो क्या करे, किस तरह वह श्यामली से अपने मन की बात कहे.

आखिर एक दिन उस ने हिम्मत कर के श्यामली से मन की बात कह ही दी. श्यामली ने कहा, ‘‘अरे… अरे अभी रुको, अभी तो दूसरा अध्याय बाकी है.’’

दुष्यंत श्यामली से अपने मन की पूरी बात यानी प्रेम का इजहार तो नहीं कर पाया, पर इतना तो जता ही दिया कि वह उसे पसंद करता है. उस ने यह भी कह दिया था, ‘‘मैं तुम्हें तुम्हारे घर देखने आना चाहता हूं. तुम अपने मम्मीपापा से कह देना. मैं अपने मम्मीपापा के साथ आऊंगा.’’

इतना कह कर दुष्यंत सपनों की दुनिया में खो गया.

आखिर वह घड़ी आ ही गई, जब दुष्यंत जा कर श्यामली से आमनेसामने मिला. दोनों परिवारों में आपस में बातचीत हुई. श्यामली को भी दुष्यंत अच्छा लगा. पर बौडीगार्ड जैसा शरीर होने की वजह से श्यामली के पिता को दुष्यंत पसंद नहीं आया.

श्यामली एकदम स्लिम और ट्रिम थी. दूसरी ओर 90 किलोग्राम वजन वाले 25 साल के युवक दुष्यंत को श्यामली के पिता ने रिजेक्ट कर दिया. इस बात से दुष्यंत को लगा कि वह श्यामली को पसंद नहीं है, इसलिए श्यामली ने उस के साथ शादी से मना कर दिया है.

समय समुद्र की लहरों की तरह पूरे जोश से आगे बढ़ रहा था. अब श्यामली और दुष्यंत के बीच बातें कम होने लगी थीं. कुछ दिनों में श्यामली की भी शादी हो गई और दुष्यंत को भी जीवनसाथी मिल गई थी.

दोनों ही अपनीअपनी जिंदगी में बहुत खुश थे. फिर भी जब कभी दुष्यंत एकांत में होता, तो उसे श्यामली की याद आ ही जाती थी. उसे इस बात का हमेशा अफसोस रहता कि वह श्यामली से अपने दिल की बात खुल कर कह नहीं सका. किसी तरह अपने मन को मना कर उस का पहला प्रेम पूरा नहीं हुआ, इस दर्द को दिल में छिपा कर अतीत से वर्तमान में आ जाता.

पूरे 3 साल बाद अचानक एक मौल में दुष्यंत और श्यामली की मुलाकात हो गई. दोनों के बीच हायहैलो हुई. दुष्यंत ने पूछा, ‘‘कैसी हो श्यामली?’’

‘‘मैं तो ठीक हूं. अपनी बताओ?’’ वह बोली.

दोनों ने एकदूसरे के बारे में पूछा. हालचाल जानने के बाद दोनों के बीच नौरमल बातें होने लगीं. बातचीत करते हुए दोनों अतीत में खो गए. उसी बातचीत में दुष्यंत ने हिम्मत कर के कह दिया कि वह उस से बहुत प्यार करता था, है और हमेशा करता रहेगा.

यह सुन कर श्यामली के पैरों के नीचे से जैसे जमीन खिसक गई. यह बात तो वह 3 साल पहले सुनना चाहती थी. पर उस समय यह बात दुष्यंत नहीं कह सका था. उस समय श्यामली भी इस बात को नहीं समझ सकी थी. दोनों का यह अनकहा प्रेम 3 साल से हृदय में जीवंत रहा. पर दोनों ही अपने इस प्रेम को एकदूसरे से कह नहीं सके थे.

आज पूरे 3 साल बाद जब दोनों ने अकेले में बात की तो दुष्यंत ने अपने प्रेम का इकरार कर लिया. वह बहुत अच्छा दिन था. दोनों के ही मन में एकदूसरे के लिए अनहद प्रेम था.  पर समय उन के हाथ से निकल गया था. अब दोनों की ही शादी हो गई थी और दोनों ही उम्र से अधिक समझदार हो चुके थे.

दोनों ही अपने जीवनसाथी के साथ विश्वासघात करने के बारे में सोच भी नहीं सकते थे. पर दोनों ने ही एकदूसरे को वचन दिया कि वे जीवन के अंत तक एकदूसरे के संपर्क में बने रहेंगे.

दुष्यंत और श्यामली आज भी एकदूसरे से बातें करते हैं, प्रेम व्यक्त करते हैं, एकदूसरे की भावनाओं को समझते हैं, पर दोनों ही अपनेअपने जीवनसाथी के प्रति पूरी तरह से वफादार बने हुए हैं. वे जीवनसाथी नहीं बन सके तो क्या हुआ, दोनों ही एकदूसरे से मन से जुड़ कर जीवन का आनंद ले रहे हैं.

तो क्या अपने पहले प्रेम से दिल से जुड़े रहना अपराध है? क्या शादी के बाद अपने जीवनसाथी के प्रति वफादारी दिखाते हुए मनपसंद आदमी से बात करना अपराध है?

अपने जीवनसाथी के प्रति वफादार रहते हुए दो प्रेमी जब अपने अधूरे रह गए प्रेम को एकदूसरे से इकरार करते हैं तो लोग इस संबंध को खराब नजरों से देखते हैं. पर दुष्यंत और श्यामली का कहना है कि अगर एकदूसरे से बात करने से दुख कम होता हो और खुशी मिलती हो तो इस में गलत क्या है.

प्रेम तो प्रेम होता है. शादी के पहले करो या बाद में, उस में पवित्रता, विश्वास और बिना स्वार्थ का लगाव होना चाहिए, जो केवल हृदय के भाव को जानसमझ सके.

Hindi Story: तू मुझे कबूल

Hindi Story, लेखक- धीरज राणा भायला

शायरा और सुहैल एकसाथ खेलते बड़े हुए थे. उन्होंने पहले दर्जे से 7वें दर्जे तक एकसाथ पढ़ाई की थी. शायरा के अब्बा बड़ी होती लड़कियों के बाहर निकलने के सख्त खिलाफ थे, इसलिए उसे घर बैठा दिया गया.

उस समय शायरा और सुहैल को लगा था, जैसे उन की खुशियों पर गाज गिर गई हो, मगर दोनों के घर गांव की एक ही गली में होने के चलते उन्हें इस बात की खुशी थी कि शायरा की पढ़ाई छूट जाने के बाद भी वे दोनों एकदूसरे से दूर नहीं थे.

उन दोनों के अब्बा मजदूरी कर के घर चलाते थे, मगर माली हालात के मामले में दोनों ही परिवार तंगहाल नहीं थे. शायरा के चाचा खुरशीद सेना में सिपाही थे, बड़ी बहन नाजनीन सुहैल के बड़े भाई अरबाज के साथ ब्याही थी, जो सौफ्टवेयर इंजीनियर थे और बैंगलुरु में रहते थे. शायरा का एकलौता भाई जफर था, उस से बड़ा, जिस की गांव में ही परचून की दुकान थी.

सुहैल 3 भाइयों में बीच का था. अरबाज बैंगलुरु में सैटल था. गुलफान और सुहैल अभी पढ़ रहे थे. सुहैल खूब  मन लगा कर पढ़ रहा था, ताकि सेना में बड़ा अफसर बन सके.

स्कूल से आते ही सुहैल का पहला काम होता शायरा के घर पहुंच कर उस से खूब बातें करना. उस समय घर में शायरा के अलावा बस उस की अम्मी हुआ करती थीं.

शायरा कोई काम कर रही होती तो सुहैल उसे बांह पकड़ कर छत पर ले जाता. जब वे छोटे थे, तब उन की योजनाओं में गुड्डेगुडि़यों और खिलौनों से खेलना शामिल था, मगर अब वे बड़े हो गए थे तो योजनाएं भी बदल गई थीं.

वह शायरा से अपने प्यार का इजहार कर दे

अब सुहैल को लगता था कि वह शायरा से अपने प्यार का इजहार कर दे, मगर उस के मासूम बरताव को देख कर वह ठहर जाता.

एक दिन स्कूल से छुट्टी ले कर सुहैल ने शहर जा कर कोई फिल्म देखी. वापस लौटते हुए फिल्म की प्यार से सराबोर कहानी उस के जेहन पर छाई हुई थी. जैसे ही वह और शायरा छत पर पंहुचे, उस ने बिना कोई बात किए शायरा का हाथ पकड़ लिया.

ऐसा नहीं था कि उस ने शायरा का हाथ पहली बार पकड़ा हो, मगर उस की आंखों में तैर रहे प्यार के भाव को महसूस कर के शायरा घबरा गई और हाथ छुड़ा कर नीचे चली गई.

सुहैल चुपचाप अपने घर लौट आया. अब हालात बदल गए थे. स्कूल से आते ही वह अपना होमवर्क खत्म करता और उस के बाद शायरा के घर जा कर बस उसे देखभर आता.

समय बीतता गया. सुहैल की ग्रेजुएशन खत्म हो चुकी थी. घर वाले शादी की बात करने लगे थे, मगर सुहैल कह देता, ‘‘अभी मु?ो सीडीएस की तैयारी करनी है और फिर नौकरी लग जाने के बाद शादी करूंगा.’’

एक शाम सुहैल सीडीएस का इम्तिहान दे कर लौटा और सीधा शायरा के घर पहुंच गया. शायरा खाना बना रही थी. सुहैल ने हाथ पकड़ कर उसे उठाया, तो वह धीरे से बोली, ‘‘क्या करते हो… रोटी बनानी है मु?ो.’’

सुहैल ने शायरा की एक न सुनी और छत पर ले आया

सुहैल ने शायरा की एक न सुनी और छत पर ले आया. वहां दोनों हाथों से उस का चेहरा ऊपर कर के बोला, ‘‘मेरी जल्द ही नौकरी लग जाएगी और फिर हम दोनों शादी कर लेंगे.’’

शायरा चुप खड़ी रही. उस का दिल तो कह रहा था कि सुहैल उसे अपनी बांहों में भर कर खूब प्यार करे.

‘‘मैं अब्बा से कहूंगा कि वे तेरे घर आ कर हमारे रिश्ते की बात करें,’’ कह कर सुहैल अपने घर चला आया.

कई दिन बाद शायरा को खबर लगी कि सुहैल की नौकरी लग गई है और उसे श्रीनगर भेज दिया गया है. यह सुनते ही शायरा को लगा जैसे घरमकान, गलीकूचा सब बदरंग हो गए हों. न खाने का मन करता था और न ही किसी से बात करने को दिल करता. दिनभर या तो वह काम करती रहती या छत पर चली जाती. रात तो तारे गिनते कब बीत जाती, उसे पता ही न चलता.

शायरा की यह हालत देख कर एक रात उस की अम्मी ने अपने शौहर से कहा कि वे सुहैल के अब्बा से उन दोनों के रिश्ते की बात कर आएं.

अगले दिन शायरा के अब्बू घर लौटे, तो शायरा ने उन्हें पानी दिया. जब वह जाने लगी, तो उन्होंने उसे रोक लिया और बोले, ‘‘मैं ने निजाम से बात कर ली है. कहते हैं कि जैसे ही सुहैल छुट्टी पर आएगा, तुम दोनों का निकाह कर देंगे.’’

शायरा भाग कर कमरे में चली गई और तकिए में मुंह छिपा कर खूब मुसकराई. उस दिन उस ने भरपेट खाना खाया और कई दिनों के बाद अच्छी नींद आई. अब इंतजार था तो सुहैल के घर लौट आने का.

एक दिन अब्बू ने बताया कि एक महीने बाद सुहैल घर लौट कर आ रहा है. यह सुन कर शायरा की खुशी का ठिकाना न रहा. अब तो बस दिन गिनने थे. महीने का समय ही कितना होता है? मगर जल्द ही उसे एहसास हो गया कि अगर किसी अजीज का इंतजार हो, तो एक दिन भी सदियों सा बड़ा हो जाता है.

शायरा सुबह उठती तो खुश होती कि चलो एक दिन बीता, मगर दिनभर बस घड़ी की तरफ निगाहें जमी रहतीं.

आखिर वह दिन भी आया, जब उसे पता चला कि सुहैल घर लौट आया  है. मेरठ नजदीक था तो चाचा भी घर  आ गए.

शाम को मौलवी की हाजिरी में दोनों परिवार के लोगों ने बैठ कर 10 दिन बाद का निकाह तय कर दिया.

शायरा को यकीन ही न था कि उसे मनमांगी मुराद मिल गई थी. घर में चूंकि चहलपहल थी, इसलिए सुहैल से मिलने का तो सवाल ही न था. बस, तसल्ली यह थी कि 10 ही दिनों की तो बात थी.

शादी में अभी 3 दिन बचे थे. घर में हर तरफ खुशी का माहौल था. अचानक एक बुरी खबर आई कि बैंगलुरु वाली बहन नाजनीन को बच्चों को स्कूल से लाते समय एक बस ने कुचल दिया. उन की मौके पर ही मौत हो गई.

एक पल में जैसे खुशियां मातम में बदल गईं. कुछ लोग तुरंत बैंगलुरु रवाना हो गए. हालात की नजाकत देखते  हुए उन्हें बैंगलुरु में ही दफना कर सब लौटे, तो अरबाज भी दोनों बच्चों के साथ आए.

शादी का समय नजदीक था, मगर शायरा ऐसे माहौल में शादी करने के हक में नहीं थी. उस ने जब यह बात सुहैल को बताई, तो उस ने शायरा का साथ दिया, मगर दोनों जानते थे कि कोई भी फैसला करना तो बड़ों को ही है.

शायरा दिनभर नाजनीन के बच्चों को अपने साथ रखती, उन के खानेपीने, नहलाने जैसी हर जरूरत का खयाल रखती. अरबाज दिन में 2-3 बार आ कर उस से बच्चों के बारे में जरूर जानते, उन का हालचाल लेते.

शादी की तैयारियां भी चुपचाप जारी थीं. शायरा भी कबूल कर चुकी थी कि बहन की मौत कुदरत की मरजी थी और यह शादी भी. उस ने मन ही मन खुद को तैयार भी कर लिया था.

शाम का समय था. सब लोग घर के आंगन में बैठे थे कि अरबाज और उस के अब्बू एकसाथ वहां पहुंचे. उन्हें बैठा कर चाय दी गई. शायरा उठ कर दूसरे कमरे में चली गई.

‘‘क्या बात है मियां, कुछ परेशान हो?’’ शायरा के अब्बू ने अरबाज के अब्बा से पूछा.

निजाम कुछ पल खामोश रहे, फिर कहा, ‘‘नाजनीन चली गई. अभी उस की उम्र ही कितनी थी. उस के बच्चे भी अभी बहुत छोटे हैं. अरबाज की हालत भी मु?ा से देखी नहीं जाती.’’

‘‘आप कहना क्या चाहते हैं?’’

‘‘अरबाज अभी जवान है. लंबी उम्र पड़ी है. कैसे कटेगी? और इन बच्चों को कौन पालेगा? आखिर इन सब के बारे में भी तो हमें ही सोचना है.’’

‘‘अब क्या किया जा सकता है?’’

‘‘नाजनीन के बच्चे शायरा के साथ घुलमिल गए हैं. अगर अरबाज और शायरा का निकाह कर दें तो कैसा रहे?’’

एक पल के लिए खामोशी छा गई. शायरा ने सुना तो उस के शरीर से जैसे जान निकल गई.

‘‘वह सुहैल से प्यार करती है. वह नहीं मानेगी,’’ शायरा के अब्बा बोले.

‘‘औरत जात की मरजी के माने ही क्या हैं? जानवर की तरह जिस के हाथ रस्सी थमा दी गई उसी से बंध गई. तुम अपनी कहो. मंजूर हो तो निकाह की तैयारी करें. अरबाज की भी नौकरी का सवाल है.’’

शायरा के अब्बा इसलाम ने अपनी बीवी जुबैदा की ओर देखा, तो जुबैदा ने हां में सिर हिला दिया.

‘‘ठीक है, जैसी आप की मरजी.’’

अगले ही दिन से शादी की तैयारी शुरू हो गई. सुहैल को इस निकाह की खबर लगी, तो उस ने अपना सामान पैक करना शुरू कर दिया.

जब यह खबर शायरा ने सुनी, तो उसे लगा कि जाने से पहले सुहैल उस से मिलने जरूर आएगा. मगर वह नहीं आया. उन के घर से खबर ही आनी बंद हो गई.

शादी बहुत सादगी से हो रही थी. शायरा को जब निकाह के लिए ले जाया गया, तो उस की हालत ऐसी थी जैसे मुरदे को मैयत के लिए ले जाया जा रहा हो. उस के सारे सपने टूट गए थे. जीने की वजह ही खत्म हो गई थी.

शायरा को लग रहा था कि जब उस से पूछा जाएगा कि अरबाज वल्द निजाम आप को कबूल है, तो वह कैसे कह पाएगी कि कबूल है?

दूल्हे से पूछा गया, ‘‘शायरा वल्द इसलाम आप को कबूल है?’’

आवाज आई, ‘‘कबूल है.’’

शायरा की जैसे धड़कन बढ़ गई. फिर शायरा से पूछा गया, ‘‘मोहतरमा, सुहैल वल्द निजाम आप को  कबूल है?’’

शायरा ने जैसे ही सुहैल का नाम सुना, तो उस ने धड़कते दिल और  चेहरे पर मुसकान लाते हुए कहा, ‘‘कबूल है.’’

दरअसल, अरबाज को पता चल चुका था कि शायरा सुहैल को चाहती है. उस ने सुहैल से बात की और शादी के दिन शायरा को यह खूबसूरत तोहफा देने की सोची. अब सुहैल और शायरा एक हो चुके थे.

Hindi Kahani: गहरी चाल – क्या थी सुनयना की चाल

Hindi Kahani: सुनयना दोनों हाथों में पोटली लिए खेत में काम कर रहे पति और देवर को खाना देने जा रही थी. उसे जब भी समय मिलता, तो वह पति और देवर के साथ खेत के काम में जुट जाती थी.

अपनी धुन में वह पगडंडी पर तेज कदमों से चली जा रही थी, तभी सामने से आ रहे सरपंच के लड़के अवधू और मुनीम गंगादीन पर उस की नजर पड़ी. वह ठिठक कर पगडंडी से उतर कर खेत में खड़ी हो गई और उन दोनों को जाने का रास्ता दे दिया.

अवधू और मुनीम गंगादीन की नजर सुनयना की इस हरकत और उस के गदराए जिस्म के उतारचढ़ावों पर पड़ी. वे दोनों उसे गिद्ध की तरह ताकते हुए आगे बढ़ गए.

कुछ दूर जाने के बाद अवधू ने गंगादीन से पूछा, ‘‘क्यों मुनीमजी, यह ‘सोनचिरैया’ किस के घर की है?’’

‘‘यह तो सुखिया की बहू है. जा रही होगी खेत पर अपने पति को खाना पहुंचाने. सुखिया अभी 2 महीने पहले ही तो मरा था. 3 साल पहले उस ने सरपंचजी से 8 हजार रुपए उधार लिए थे. अब तक तो ब्याज जोड़ कर 17 हजार रुपए हो गए होंगे,’’ अवधू की आदतों से परिचित मुनीम गंगादीन ने मसकेबाजी करते हुए कहा.

‘लाखों का हीरा, फिर भी इतना कर्ज. आखिर हीरे की परख तो जौहरी ही कर सकता है न,’ अवधू ने कुछ सोचते हुए पूछा, ‘‘और मुनीमजी, कैसी है तुम्हारी वसूली?’’

‘‘तकाजा चालू है बेटा. जब तक सरपंचजी तीर्थयात्रा से वापस नहीं आते, तब तक इस हीरे से थोड़ीबहुत वसूली आप को ही करा देते हैं.’’

‘‘मुनीमजी, जब हमें फायदा होगा, तभी तो आप की तरक्की होगी.’’

दूसरे दिन मुनीम गंगादीन सुबहसुबह ही सुनयना के घर जा पहुंचा. उस समय सुखिया के दोनों लड़के श्यामू और हरिया दालान में बैठे चाय पी रहे थे.

गंगादीन को सामने देख श्यामू ने चाय छोड़ कर दालान में रखे तख्त पर चादर बिछाते हुए कहा, ‘‘रामराम मुनीमजी… बैठो. मैं चाय ले कर आता हूं.’’

‘‘चाय तो लूंगा ही, लेकिन बेटा श्यामू, धीरेधीरे आजकल पर टालते हुए 8 हजार के 17 हजार रुपए हो गए. तू ने महीनेभर की मुहलत मांगी थी, वह भी पूरी हो गई. मूल तो मूल, तू तो ब्याज तक नहीं देता.’’

‘‘मुनीमजी, आप तो घर की हालत देख ही रहे हैं. कुछ ही दिनों पहले हरिया का घर बसाया है और अभीअभी पिताजी भी गुजरे हैं,’’ श्यामू की आंखों में आंसू भर आए.

‘‘मैं तो समझ रहा हूं, लेकिन जब वह समझे, जिस की पूंजी फंसी है, तब न. वैसे, तू ने महीनेभर की मुहलत लेने के बाद भी फूटी कौड़ी तक नहीं लौटाई,’’ मुनीम गंगादीन ने कहा.

तब तक सुनयना गंगादीन के लिए चाय ले कर आ गई. गंगादीन उस की नाजुक उंगलियों को छूता हुआ चाय ले कर सुड़कने लगा और हरिया चुपचाप बुत बना सामने खड़ा रहा.

‘‘देख हरिया, मुझ से जितना बन सका, उतनी मुहलत दिलाता गया. अब मुझ से कुछ मत कहना. वैसे भी सरपंचजी तुझ से कितना नाराज हुए थे. मुझे एक रास्ता और नजर आ रहा है, अगर तू कहे तो…’’ कह कर गंगादीन रुक गया.

‘कौन सा रास्ता?’ श्यामू व हरिया ने एकसाथ पूछा.

‘‘तुम्हें तो मालूम ही है कि इन दिनों सरपंचजी तीर्थयात्रा करने चले गए हैं. आजकल उन का कामकाज उन का बेटा अवधू ही देखता है.

‘‘वह बहुत ही सज्जन और सुलझे विचारों वाला है. तुम उस से मिल लो. मैं सिफारिश कर दूंगा.

‘‘वैसे, तेरे वहां जाने से अच्छा है कि तू अपनी बीवी को भेज दे. औरतों का असर उन पर जल्दी पड़ता है. किसी बात की चिंता न करना. मैं वहां रहूंगा ही. आखिर इस घर से भी मेरा पुराना नाता है,’’ मुनीम गंगादीन ने चाय पीतेपीते श्यामू व हरिया को भरोसे में लेते हुए कहा.

सुनयना ने दरवाजे की ओट से मुनीम की सारी बातें सुन ली थीं. श्यामू सुनयना को अवधू की कोठी पर अकेली नहीं भेजना चाहता था. पर सुनयना सोच रही थी कि कैसे भी हो, वह अपने परिवार के सिर से सरपंच का कर्ज उतार फेंके.

दूसरे दिन सुनयना सरपंच की कोठी के दरवाजे पर जा पहुंची. उसे देख कर मुनीफ गंगादीन ने कहा, ‘‘बेटी, अंदर आ जाओ.’’

सुनयना वहां जाते समय मन ही मन डर रही थी, लेकिन बेटी जैसे शब्द को सुन कर उस का डर जाता रहा. वह अंदर चली गई.

‘‘मालिक, यह है सुखिया की बहू. 3 साल पहले इस के ससुर ने हम से 8 हजार रुपए कर्ज लिए थे, जो अब ब्याज समेत 17 हजार रुपए हो गए हैं. बेचारी कुछ और मुहलत चाहती है,’’ मुनीम गंगादीन ने सुनयना की ओर इशारा करते हुए अवधू से कहा.

‘‘जब 3 साल में कुछ भी नहीं चुका पाया, तो और कितना समय दिया जाए? नहींनहीं, अब और कोई मुहलत नहीं मिलेगी,’’ अवधू अपनी कुरसी से उठते हुए बोला.

‘‘देख, ऐसा कर. ये कान के बुंदे बेच कर कुछ पैसा चुका दे,’’ अवधू सुनयना के गालों और कानों को छूते हुए बोला.

‘‘और हां, तेरा यह मंगलसूत्र भी तो सोने का है,’’ अवधू उस के उभारों को छूता हुआ मंगलसूत्र को हाथ में पकड़ कर बोला.

सुनयना इस छुअन से अंदर तक सहम गई, फिर भी हिम्मत बटोर कर उस ने कहा, ‘‘यह क्या कर रहे हो छोटे ठाकुर?’’

‘‘तुम्हारे गहनों का वजन देख रहा हूं. तुम्हारे इन गहनों से शायद मेरे ब्याज का एक हिस्सा भी न पूरा हो,’’ कह कर अवधू ने सुनयना की दोनों बाजुओं को पकड़ कर हिला दिया.

‘‘अगर पूरा कर्ज उतारना है, तो कुछ और गहने ले कर थोड़ी देर के लिए मेरी कोठी पर चली आना…’’ अवधू ने बड़ी बेशर्मी से कहा, ‘‘हां, फैसला जल्दी से कर लेना कि तुझे कर्ज उतारना है या नहीं. कहीं ऐसा न हो कि तेरे ससुर के हाथों लिखा कर्ज का कागज कोर्ट में पहुंच जाए.

‘‘फिर भेजना अपने पति को जेल. खेतघर सब नीलाम करा कर सरकार मेरी रकम मुझे वापस कर देगी और तू सड़क पर आ जाएगी.’’

सुनयना इसी उधेड़बुन में डूबी पगडंडियों पर चली जा रही थी. अगर वह छोटे ठाकुर की बात मानती है, तो पति के साथ विश्वासघात होगा. अगर वह उस की बात नहीं मानती, तो पूरे परिवार को दरदर की ठोकरें मिलेंगी.

कुछ दिनों बाद मुनीम गंगादीन फिर सुनयना के घर जा पहुंचा और बोला, ‘‘बेटी सुनयना, कर लिया फैसला? क्या अपने गहने दे कर ठाकुर का कर्ज चुकाएगी?’’

‘‘हां, मैं ने फैसला कर लिया है. बोल देना छोटे ठाकुर को कि मैं जल्दी ही अपने कुछ और गहने ले कर आ जाऊंगी कर्जा उतारने. उस से यह भी कह देना कि पहले कर्ज का कागज लूंगी, फिर गहने दूंगी.’’

‘‘ठीक है, वैसे भी छोटे ठाकुर सौदे में बेईमानी नहीं करते. पहले अपना कागज ले लेना, फिर…’’

वहीं खड़े सुनयना के पति और देवर यही सोच रहे थे कि शायद सुनयना ने अपने सोने और चांदी के गहनों के बदले पूरा कर्ज चुकता करने के लिए छोटे ठाकुर को राजी कर लिया है. उन्हें इस बात का जरा भी गुमान न हुआ कि सोनेचांदी के गहनों की आड़ में वह अपनी इज्जत को दांव पर लगा कर के परिवार को कर्ज से छुटकारा दिलाने जा रही है.

‘‘और देख गंगादीन, अब मुझे बेटीबेटी न कहा कर. तुझे बेटी और बाप का रिश्ता नहीं मालूम है. बाप अपनी बेटी को सोनेचांदी के गहनों से लादता है, उस के गहने को उतरवाता नहीं है,’’ सुनयना की आवाज में गुस्सा था.

दूसरे दिन सुनयना एक रूमाल में कुछ गहने बांध कर अवधू की कोठी पर पहुंच गई.

‘‘आज अंदर कमरे में तेरा कागज निकाल कर इंतजार कर रहे हैं छोटे ठाकुर,’’ सुनयना को देखते ही मुनीम गंगादीन बोला.

सुनयना झटपट कमरे में जा पहुंची और बोली, ‘‘देख लो छोटे ठाकुर, ये हैं मेरे गहने. लेकिन पहले कर्ज का कागज मुझे दे दो.’’

‘‘ठीक है, यह लो अपना कागज,’’ अवधू ने कहा.

सुनयना ने उस कागज पर सरसरी निगाह डाली और उसे अपने ब्लाउज के अंदर रख लिया.

‘‘ये गहने तो लोगों की आंखों में परदा डालने के लिए हैं. तेरे पास तो ऐसा गहना है, जिसे तू जब चाहे मुझे दे कर और जितनी चाहे रकम ले ले,’’ अवधू कुटिल मुसकान लाते हुए बोला.

‘‘यह क्या कह रहे हो छोटे ठाकुर?’’ सुनयना की आवाज में शेरनी जैसी दहाड़ थी.

अवधू को इस की जरा भी उम्मीद नहीं थी. सुनयना बिजली की रफ्तार से अहाते में चली गई. तब तक गांव की कुछ औरतें और आदमी भी कोठी के सामने आ कर खड़े हो गए थे. वहां से अहाते के भीतर का नजारा साफ दिखाई दे रहा था.

लोगों को देख कर नौकरों की भी हिम्मत जाती रही कि वे सुनयना को भीतर कर के दरवाजा बंद कर लें. अवधू और गंगादीन भी समझ रहे थे कि अब वे दिन नहीं रहे, जब बड़ी जाति वाले नीची जाति वालों से खुलेआम जबरदस्ती कर लेते थे.

सुनयना बाहर आ कर बोली, ‘‘छोटे ठाकुर और गंगादीन, देख लो पूरे गहने हैं पोटली में. उतर गया न मेरे परिवार का सारा कर्ज. सब के सामने कह दो.’’

‘‘हांहां, ठीक है,’’ अवधू ने घायल सांप की तरह फुंफकार कर कहा.

सभी लोगों के जाने के बाद अवधू और गंगादीन ने जब पोटली खोल कर देखी, तो वे हारे हुए जुआरी की तरह बैठ गए. उस में सुनयना के गहनों के साथसाथ गंगादीन की बेटी के भी कुछ गहने थे, जो सुनयना की अच्छी सहेलियों में से एक थी.

‘अब मैं अपनी बेटी के सामने कौन सा मुंह ले कर जाऊंगा. क्या सुनयना उस से मेरी सब करतूतें बता कर ये गहने ले आई है?’ सोच कर गंगादीन का सिर घूम रहा था.

अवधू और गंगादीन दोनों समझ गए कि सुनयना एक माहिर खिलाड़ी की तरह बहुत अच्छा खेल खिला कर गई है.

Hindi Story: वही खुशबू – आखिर क्या थी उस की सच्चाई

Hindi Story: बहुत दिनों से सुनती आईर् थी कि भैरों सिंह अस्पताल के चक्कर बहुत लगाते हैं. किसी को भी कोई तकलीफ हो, किसी स्वयंसेवक की तरह उसे अस्पताल दिखाने ले जाते. एक्सरे करवाना हो या सोनोग्राफी, तारीख लेने से ले कर पूरा काम करवा कर देना जैसे उन की जिम्मेदारी बन जाती. मैं उन्हें बहुत सेवाभावी समझती थी. उन के लिए मन में श्रद्धा का भाव उपजता, क्योंकि हमें तो अकसर किसी की मिजाजपुरसी के लिए औपचारिक रूप से अस्पताल जाना भी भारी पड़ता है.

लोग यह भी कहते कि भैरों सिंह को पीने का शौक है. उन की बैठक डाक्टरों और कंपाउंडरों के साथ ही जमती है. इसीलिए अपना प्रोग्राम फिट करने के लिए अस्पताल के इर्दगिर्द भटकते रहते हैं. अस्पताल के जिक्र के साथ भैरों सिंह का नाम न आए, हमारे दफ्तर में यह नामुमकिन था.

पिछले वर्ष मेरे पति बीमार हुए तो उन्हें अस्पताल में दाखिल करवाना पड़ा. तब मैं ने भैरों सिंह को उन की भरपूर सेवा करते देखा तो उन की इंसानियत से बहुत प्रभावित हो गई. ऐसा लगा लोग यों ही अच्छेखासे इंसान के लिए कुछ भी कह देते हैं. कोई भी बीमार हो, वह परिचित हो या नहीं, घंटों उस के पास बैठे रहना, दवाइयों व खून आदि की व्यवस्था करना उन का रोज का काम था. मानो उन्होंने मरीजों की सेवा का प्रण लिया हो.

उन्हीं दिनों बातोंबातों में पता चला कि उन की पत्नी भी बहुत बीमार रहती थी. उसे आर्थ्राइटिस था. उस का चलनाफिरना भी दूभर था. जब वह मेरे पति की सेवा में 4-5 घंटे का समय दे देते तो मैं उन्हें यह कहने पर मजबूर हो जाती, ‘आप घर जाइए, भाभीजी को आप की जरूरत होगी.’ पर वे कहते, ‘पहले आप घर हो आइए, चाहें तो थोड़ा आराम कर आएं, मैं यहां बैठा हूं.’

यों मेरा उन से इतनी आत्मीयता का संबंध कभी नहीं रहा. बाद में बहुत समय तक मन में यह कुतूहल बना रहा कि भैरों सिंह के इस आत्मीयतापूर्ण व्यवहार का कारण क्या रहा होगा? धीरेधीरे मैं ने उन में दिलचस्पी लेनी शुरू की. वे भी किसी न किसी बहाने गपशप करने आ जाते.

एक दिन बातचीत के दौरान वे काफी संकोच से बोले, ‘‘चूंकिआप लिखती हैं, सो मेरी कहानी भी लिखें.’’मैं उन की इस मासूम गुजारिश पर हैरान थी. कहानी ऐसे हीलिख दी जाती है क्या? कहानी लायक कोई बात भी तो हो. परंतु यह सब मैं उन से न कह सकी. मैं ने इतना ही कहा, ‘‘आप अपनी कहानी सुनाइए, फिर लिख दूंगी.’’

बहुत सकुचाते और लजाई सी मुसकान पर गंभीरता का अंकुश लगाते हुए उन्होंने बताया, ‘‘सलोनी नाम था उस का, हमारी दोस्ती अस्पताल में हुई थी.’’

मुझे मन ही मन हंसी आई कि प्यार भी किया तो अस्पताल में. भैरों सिंह ने गंभीरता से अपनी बात जारी रखी, ‘‘एक बार मेरा एक्सिडैंट हो गया था. दोस्तों ने मुझे अस्पताल में भरती करा दिया. मेरा जबड़ा, पैर और कूल्हे की हड्डियां सेट करनी थीं. लगभग 2 महीने मुझे अस्पताल में रहना पड़ा. सलोनी उसी वार्ड में नर्स थी, उस ने मेरी बहुत सेवा की. अपनी ड्यूटी के अलावा भी वह मेरा ध्यान रखती थी.

‘‘बस, उन्हीं दिनों हम में दोस्ती का बीज पनपा, जो धीरेधीरे प्यार में तबदील हो गया. मेरे सिरहाने रखे स्टील के कपबोर्ड में दवाइयां आदि रख कर ऊपर वह हमेशा फूल ला कर रख देती थी. सफेद फूल, सफेद परिधान में सलोनी की उजली मुसकान ने मुझ पर बहुत प्रभाव डाला. मैं ने महसूस किया कि सेवा और स्नेह भी मरीज के लिए बहुत जरूरी हैं. सलोनी मानो स्नेह का झरना थी. मैं उस का मुरीद बन गया.

‘‘अस्पताल से जब मुझे छुट्टी मिल गई, तब भी मैं ने उस की ड्यूटी के समय वहां जाना जारी रखा. लोगों को मेरे आने में एतराज न हो, इसीलिए मैं कुछ काम भी करता रहता. वह भी मेरे कमरे में आ जाती. मुझे खेलने का शौक था. मैं औफिस से आ कर शौर्ट्स, टीशर्ट या ब्लेजर पहन कर खेलने चला जाता और वह ड्यूटी के बाद सीधे मेरे कमरे में आ जाती. मेरी अनुपस्थिति में मेरा कमरा व्यवस्थित कर के कौफी पीने के लिए मेरा इंतजार करते हुए मिलती.

‘‘जब उस की नाइट ड्यूटी होती तो वह कुछ जल्दी आ जाती. हम एकसाथ कौफी पीते. मैं उसे अस्पताल छोड़ने जाता और वहां कईकई घंटे मरीजों की देखरेख में उस की मदद करता. सब के सो जाने पर हम धीरेधीरे बातें करते रहते. किसी मरीज को तकलीफ होती तो उस की तीमारदारी में जुट जाते.

‘‘कभी जब मैं उस से ड्यूटी छोड़ कर बाहर जाने की जिद करता तो वह मना कर देती. सलोनी अपनी ड्यूटी की बहुत पाबंद थी. उस की इस आदत पर मैं नाराज भी होता, कभी लड़ भी बैठता, तब भी वह मरीजों की अनदेखी नहीं करती थी. उस समय ये मरीज मुझे दुश्मन लगते और अस्पताल रकीब. पर यह मेरी मजबूरी थी क्योंकि मुझे सलोनी से प्यार था.’’

‘‘उस से शादी नहीं हुई? पूरी कहानी जानने की गरज से मैं ने पूछा.’’

भैरों सिंह का दमकता मुख कुछ फीका पड़ गया. वे बोले, ‘‘हम दोनों तो चाहते थे, उस के घर वाले भी राजी थे.’’

‘‘फिर बाधा क्या थी?’’ मैं ने पूछा तो भैरों सिंह ने बताया, ‘‘मैं अपने मांबाप का एकलौता बेटा हूं. मेरी 4 बहनें हैं. हम राजपूत हैं, जबकि सलोनी ईसाई थी. मैं ने अपनी मां से जिद की तो उन्होंने कहा कि तुम जो चाहे कर सकते हो, परंतु फिर तुम्हारी बहनों की शादी नहीं होगी. बिरादरी में कोई हमारे साथ रिश्ता करने को तैयार नहीं होगा.

‘‘मेरे कर्तव्य और प्यार में कशमकश शुरू हो गई. मैं किसी की भी अनदेखी करने की स्थिति में नहीं था. इस में भी सलोनी ने ही मेरी मदद की. उस ने मुझे मां, बहनों और परिवार के प्रति अपना फर्ज पूरा करने के लिए मानसिक रूप से तैयार किया.

‘‘मां ने मेरी शादी अपनी ही जाति में तय कर दी. बड़ी धूमधाम से शादी हुई. सलोनी भी आई थी. वह मेरी दुलहन को उपहार दे कर चली गई. उस के बाद मैं ने उसे कभी नहीं देखा. विवाह की औपचारिकताओं से निबट कर जब मैं अस्पताल गया तो सुना, वह नौकरी छोड़ कर कहीं और चली गई है. बाद में पता चला कि  वह दूसरे शहर के किसी अस्पताल में नौकरी करती है और वहीं उस ने शादी भी कर ली है.’’

‘‘आप ने उस से मिलने की कोशिश नहीं की?’’ मैं ने पूछा.

‘‘नहीं,’’ भैरों सिंह ने जवाब दिया, ‘‘पहले तो मैं पगला सा गया. मुझे ऐसा लगता था, न मैं घर के प्रति वफादार रह पाऊंगा और न ही इस समाज के प्रति, जिस ने जातपांत की ये दीवारें खड़ी कर रखी हैं. परंतु शांत हो कर सोचने पर मैं ने इस में भी सलोनी की समझदारी और ईमानदारी की झलक पाई. ऐसे में कौन सा मुंह ले कर उस से मिलने जाता. फिर अगर वह अपनी जिंदगी में खुश है और चाहती है कि मैं भी अपने वैवाहिक जीवन के प्रति एकनिष्ठ रहूं तो मैं उस के त्याग और वफा को धूमिल क्यों करूं? अब यदि वह अपनी जिंदगी और गृहस्थी में सुखी है तो मैं उस की जिंदगी में जहर क्यों घोलूं?’’

‘‘अब अस्पताल में इतना क्यों रहते हैं? और यह कहानी क्यों लिखवा रहे हैं?’’ मैं ने उत्सुकता दिखाई.

भैरों सिंह ने गहरी सांस ली और धीमी आवाज में कहा, ‘‘मैं ने आप को बताया था न कि मैं उस का अधिक से अधिक साथ पाने के लिए उस की ड्यूटी के दौरान उस की मदद करता था, पर दिल में उस की कर्मनिष्ठा और सेवाभाव से चिढ़ता था. अब मुझे वह सब याद आता है तो उस की निष्ठा पर श्रद्धा होती है, खुद के प्रति अपराधबोध होता है. अब मैं मरीजों की सेवा, प्यार की खुशबू मान कर करता हूं और मुझे अपने अपराधबोध से भी नजात मिलती है.’’

भैरों सिंह की आवाज और धीमी हो गई. वह फुसफुसाते हुए से बोले, ‘‘अब मैं सिर्फ एक बात आप को बता रहा हूं या कहिए कि राज की बात बता रहा हूं. इस अस्पताल के समूचे वातावरण में मुझे अब भी वही खुशबू महसूस होती है, सलोनी के प्यार की खुशबू. रही बात कहानी लिखने की, तो मेरे पास उस तक अपनी बात पहुंचाने का कोई जरिया भी तो नहीं है. अगर वह इसे पढ़ेगी तो समझ जाएगी कि मैं उसे कितना याद करता हूं. उस की भावनाओं की कितनी इज्जत करता हूं. यही प्यार अब मेरी जिंदगी है.’’

Hindi Story: यह कैसा प्यार – प्यार में नाकामी का परिणाम

Hindi Story: ‘‘अब आप का बेटा खतरे से बाहर है,’’ डाक्टर ने कहा, ‘‘4-5 घंटे और आब्जर्वेशन में रखने के बाद उसे वार्ड में शिफ्ट कर देंगे. हां, ये कुछ दवाइयां हैं… एक्स्ट्रा आ गई हैं…इन्हें आप वापस कर सकते हैं.’’

24 घंटे के बाद डाक्टर की यह बात सुन कर मन को राहत सी मिली, वरना आई.सी.यू. के सामने चहलकदमी करते हुए किसी अनहोनी की आशंका से मैं और पत्नी दोनों ही परेशान थे. मैं ने दवाइयां उठाईं और अस्पताल के ही मेडिकल स्टोर में उन्हें वापस करने के लिए चल पड़ा.

दवाइयां वापस कर मैं जैसे ही मेडिकल स्टोर से बाहर निकला, एक अपरिचित सज्जन अपने एक साथी के साथ मिल गए और मुझे देखते ही बोले, ‘‘अब आप के बेटे की तबीयत कैसी है?’’

‘‘अब ठीक है, खतरे से बाहर है,’’ मैं ने कहा.

‘‘चलिए, यह तो बहुत अच्छी खबर है, वरना कल आप लोगों की परेशानी देखते नहीं बन रही थी. जवान बेटे की ऐसी दशा तो किसी दुश्मन की भी न हो.’’

यह सुन कर उन के दोस्त बोले, ‘‘क्या हुआ था बेटे को?’’

मैं ने इस विषय को टालने के लिए उस अपरिचित से ही प्रश्न कर दिया, ‘‘आप का यहां कौन भरती है?’’

‘‘बेटी है, आज सुबह ही उसे बेटा पैदा हुआ है.’’

‘‘बधाई हो,’’ कह कर मैं चल पड़ा.

अभी मैं कुछ ही कदम आगे चला था कि देखा मेडिकल स्टोर वाले ने मुझे 400 रुपए अधिक दे दिए हैं. उस ने शायद जल्दी में 500 के नोट को 100 का नोट समझ लिया था.

मैं उस के रुपए वापस लौटाने के लिए मुड़ा और पुन: मेडिकल स्टोर पर आ गया. वहां वे दोनों मेरी मौजूदगी से अनजान मेरे बेटे के बारे में बातें कर रहे थे.

‘‘क्या हुआ था उन के बेटे को?’’

‘‘अरे, नींद की गोलियां खा ली थीं. कुछ प्यारव्यार का चक्कर था. कल बिलकुल मरणासन्न हालत में उसे अस्पताल लाया गया था.’’

‘‘भैया, इस में तो मांबाप की गलती रहती है. नए जमाने के बच्चे हैं…जहां कहें शादी कर दो, अब मैं ने तो अपने सभी बच्चों की उन की इच्छा के अनुसार शादियां कर दीं. जिद करता तो इन्हीं की तरह भुगतता.’’

शायद उन की चर्चा कुछ और देर तक चलती पर उन दोनों में से किसी एक को मेरी मौजूदगी का एहसास हो गया और वे चुप हो गए. मैं ने भी ज्यादा मिले पैसे मेडिकल स्टोर वाले को लौटाए और वहां से चल पड़ा पर मन अजीब सा कसैला हो गया. संतान के पीछे मांबाप को जो न सुनना पडे़ कम है. ये लोग मांबाप की गलती बता रहे हैं, हमें रूढि़वादी बता रहे हैं, पर इन्हें क्या पता कि मैं ने खुद अंतर्जातीय विवाह किया था.

मेरी पत्नी बंगाली है और मैं हिंदू कायस्थ. समाज और नातेरिश्तेदारों ने घोर विरोध किया तो रजिस्ट्रार आफिस में शादी कर के कुछ दिन घर वालों से अलग रहना पड़ा, फिर सबकुछ सामान्य हो गया. बच्चों से भी मैं ने हमेशा यही कहा कि तुम जहां कहोगे वहां मैं तुम्हारी शादी कर दूंगा, फिर भी मुझे रूढि़वादी पिता की संज्ञा दी जा रही है.

मेरा बेटा प्यार में असफल हो कर नींद की गोलियां खा कर आत्म- हत्या करने जा रहा था. आज के बच्चे यह कदम उठाते हुए न तो आगा- पीछा सोचते हैं और न मातापिता का ही उन्हें खयाल रहता है. हर काम में जल्दबाजी, प्यार करने में जल्दबाजी, प्यार में असफल होने पर जान देने की जल्दबाजी.

हमारे कुलदीपक ने 3 बार प्यार किया और हर बार इतनी गंभीरता से कि असफल होने पर तीनों ही बार जान देने की कोशिश की. पहला प्यार इसे तब हुआ था जब यह 11वीं में पढ़ता था. हुआ यों कि इस के गणित के अध्यापक की पत्नी की मृत्यु हो गई. तब उस अध्यापक ने प्रिंसिपल से अनुरोध कर के अपनी बेटी का सुरक्षा की दृष्टि से उसी कालिज में एडमिशन करवा लिया जिस में वह पढ़ाते थे, ताकि बेटी आंखों के सामने बनी रहे.

वह कालिज लड़कों का था. अकेली लड़की होने के नाते वह कालिज में पढ़ने वाले सभी लड़कों का केंद्रबिंदु थी, पर मेरा बेटा उस में कुछ अधिक ही दिलचस्पी लेने लगा.

वह लड़की मेरे बेटे पर आकर्षित थी कि नहीं यह तो वही जाने, पर मेरा बेटा अपने दिल का हाल लिखलिख कर उसे देने लगा और उसी में एक दिन वह पकड़ा भी गया. बात लड़की के पिता तक पहुंची…फिर प्रिंसिपल तक. मुझे बुलाया गया. सोचिए, कैसी शर्मनाक स्थिति रही होगी.

प्रिंसिपल ने चेतावनी देते हुए मुझ से कहा, ‘आप का बेटा पढ़ाई में अच्छा है और मैं नहीं चाहता कि एक होनहार छात्र का भविष्य बरबाद हो, अत: इसे समझा दीजिए कि भविष्य में ऐसी गलती न करे.’

घर आ कर मैं ने बेटे को डांटते हुए कहा, ‘मैं ने तुम्हें कालिज में पढ़ने  के लिए भेजा था कि प्यार करने के लिए? आज तुम ने अपनी हरकतों से मेरा सिर नीचा कर दिया.’

‘प्यार करने से किसी का सिर नीचा नहीं होता,’ बेटे का जवाब था, ‘मैं उस के साथ हर हाल में खुश रह लूंगा और जरूरत पड़ी तो उस के लिए समाज, आप लोगों को, यहां तक कि अपने जीवन का भी त्याग कर सकता हूं.’

मैं ने कहा, ‘बेटा, माना कि तुम उस के लिए सबकुछ कर सकते हो, पर क्या लड़की भी तुम से प्यार करती है?’

‘हां, करती है,’ बेटे का जवाब था.

मैं ने कहा, ‘ठीक है. चलो, उस के घर चलते हैं. अगर वह भी तुम से प्यार करती होगी तो मैं उस के पिता को मना कर तुम दोनों की मंगनी कर दूंगा, पर शर्त यह रहेगी कि तुम दोनों अपनी पढ़ाई पूरी करोगे तभी शादी होगी.’

बेटे की इच्छा रखने के लिए मैं लड़की के घर गया और उस के पिता को समझाने की कोशिश की तो वह बडे़ असहाय से दिखे, पर मान गए कि  अगर बच्चों की यही इच्छा है तो आप जैसा कहते हैं कर लेंगे.

लेकिन जब उन की बेटी को बुला कर यही बात पूछी गई तो वह क्रोध में तमतमा उठी, ‘किस ने कहा कि मैं इस से प्यार करती हूं… अपनी कल्पना से कैसे इस ने यह सोच लिया. आप लोग कृपा कर के मेरे घर से चले जाइए, वैसे ही व्यर्थ में मेरी काफी बदनामी हो चुकी है.’

मैं अपमानित हो कर बेटे को साथ ले कर वहां से चला आया और घर आते ही गुस्से में मैं ने उसे कस कर एक थप्पड़ मारा और बोला, ‘ऐसी औलाद से तो बेऔलाद होना ही भला है.’

रात के करीब 12 बजे होंगे, जब बेटे ने जा कर अपनी मां को जगाया और बोला, ‘मां, मैं मरना नहीं चाहता हूं. मुझे बचा लो.’

उस की मां ने नींद से जग कर देखा तो बेटे ने अपने हाथ की नस काटी हुई थी और उस से तेजी से खून बह रहा था. पत्नी ने रोतेरोते मुझे जगाया. हम लोग तुरंत उसे ले कर नर्सिंग होम गए. वहां पता चला कि हाथ की नस कटी नहीं थी. खैर, मरहम पट्टी कर के उसे घर भेज दिया गया.

पत्नी का सारा गुस्सा मुझ पर फूट पड़ा, ‘जवान बेटे को ऐसे मारते हैं क्या? आज उसे सही में कुछ हो जाता तो हम लोग क्या करते?’

खैर, अब हम दोनों बेटे के साथ साए की तरह बने रहते. मनोचिकित्सक को भी दिखाया. किसी तरह उस ने परीक्षा दी और 12वीं में 62 प्रतिशत अंक प्राप्त किए. अब समय आया इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा की कोचिंग का. प्यार का भूत सिर पर से उतर चुका था. बेटा सामान्य हो गया था. पढ़ाई में मन लगा रहा था. हम लोग भी खुश थे कि इंजीनियरिंग में प्रवेश परीक्षाओं के पेपर ठीकठाक हो गए थे. तभी मेरे सुपुत्र दूसरा प्यार कर बैठे. हुआ यों कि पड़ोस में एक पुलिस के सब- इंस्पेक्टर ट्रांसफर हो कर किराएदार के रूप में रहने को आ गए. उन की 10वीं में पढ़ने वाली बेटी से कब मेरे बेटे के नयन मिल गए हमें पता नहीं चला.

कुल 3 हफ्ते के प्यार में बात यहां तक बढ़ गई कि एक दिन दोनों ने घर से भागने का प्लान बना लिया, क्योंकि लड़की को देखने के लिए दूसरे दिन कुछ लोग आने वाले थे, पर उन का भागने का प्लान असफल रहा और वे पकड़े गए. लड़की के पिता ने बेटी की तो लानत- मलामत की ही दोचार पुलिसिया हाथ मेरे कुलदीपक को भी जड़ दिए और पकड़ कर मेरे पास ले आए.

‘समझा लीजिए अपने बेटे को. अगर अब यह मेरे घर के आसपास भी दिखा तो समझ लीजिए…बिना जुर्म के ही इसे ऐसा अंदर करूंगा कि इस की जिंदगी चौपट हो कर रह जाएगी.’

मैं कुछ बोला तो नहीं पर उसे बड़ी हिकारत की दृष्टि से देखा. वह भी चुपचाप नजरें झुकाए अपने कमरे में चला गया.

रात को बेटी और दामाद अचानक आ गए. उन लोगों ने हमें सरप्राइज देने के लिए कोई सूचना न दी थी. थोड़ी देर तक इधरउधर की बातों के बाद मेरी बेटी बोली, ‘पापा, राहुल कहां है…सो गया क्या?’

राहुल की मां बोली, ‘शायद, अपने कमरे में बैठा पढ़ रहा होगा. जा कर बुला लाती हूं.’

‘रहने दो मां, मैं ही जा रही हूं उसे बुलाने,’ बेटी ने कहा.

ऊपर जा कर जब उस ने उस के कमरे का दरवाजा धकेला तो वह खुल गया और राहुल अचकचा कर बोला, ‘दीदी, तुम कैसे अंदर आ गईं, सिटकनी तो बंद थी.’

बेटी ने बिना कुछ बोले राहुल के गाल पर कस कर चांटा मारा और राहुल को स्टूल से नीचे उतार कर रोने लगी. दरअसल, राहुल कमरा बंद कर पंखे से लटक कर अपनी जान देने जा रहा था.

‘मुझे मर जाने दो, दीदी. मेरी वजह से पापा को बारबार शर्मिंदगी उठानी पड़ती है.’

‘तुम्हारे मरने से क्या उन का सिर गर्व से ऊंचा उठ जाएगा. अरे, अपना व्यवहार बदलो और जीवन में कुछ बन कर दिखाओ ताकि उन का सिर वास्तव में गर्व से ऊंचा हो सके.’

प्रवेश परीक्षाएं अच्छी हुई थीं.

इंजीनियरिंग कालिज में राहुल को प्रवेश मिल गया क्योंकि अच्छे नंबरों से उस ने परीक्षाएं पास की थीं. मित्रमंडली का समूह, जिन में लड़केलड़कियां सभी थे, अच्छा था. हम लोग निश्ंिचत हो चले थे. वह खुद भी जबतब अपने प्रेमप्रसंगों की खिल्ली उड़ाता था.

इंजीनियरिंग का तीसरा वर्ष शुरू होते ही उस मित्रमंडली में से एक लड़की से राहुल की अधिक मित्रता हो गई. वे दोनों अब अकसर ग्रुप के बाहर अकेले भी देखे जाते. मैं एकआध बार इन की पढ़ाई को ले कर सशंकित भी हुआ, पर लड़की बहुत प्यारी थी. वह हमेशा पढ़ाई और कैरियर की ही बात करती, साथ ही साथ मेरे बेटे को भी प्रोत्साहित करती और जबतब वे दोनों विदेश साथ जाने की बात करते थे.

विदेश जाने के लिए दोनों ने साथ मेहनत की, साथ परीक्षा दी, पर लड़की क्वालीफाई कर गई और राहुल नहीं कर सका. लड़की को 3 साल की पढ़ाई के लिए विदेश जाने की खबर से राहुल बहुत टूट गया. हालांकि लड़की ने उसे बहुत समझाया कि कोई बात नहीं, अगली बार क्वालीफाई कर लेना.

धीरेधीरे लड़की के विदेश जाने का समय नजदीक आने लगा और राहुल को उसे खोने का भय सताने लगा. वह बारबार उस से विवाह की जिद करने लगा. लड़की ने कहा, ‘देखो, राहुल, हम लोगों में बात हुई थी कि शादी हम पढ़ाई के बाद करेंगे, तो इस प्रकार हड़बड़ा कर शादी करने से क्या फायदा? 3 साल बीतते समय थोड़ी न लगेगा.’

राहुल जब उसे न समझा सका तो हम लोगों से कहने लगा कि विधि के पापा से बोलिए न. शादी नहीं तो उस के जाने के पहले मंगनी ही कर दें.

बच्चों के पीछे तो मातापिता को सबकुछ करना पड़ता है. मैं विधि के घर गया और उस के मातापिता से बात की तो वे बोले, ‘हम लोग तो खुद यही चाहते हैं.’

यह सुन कर विधि बोली, ‘पर मैं तो नहीं चाहती हूं…क्यों आप लोग मंगेतर या पत्नी का ठप्पा लगा कर मुझे भेजना चाहते हैं या आप लोगों को और राहुल को मुझ पर विश्वास नहीं है? और अगर ऐसा है तो मैं कहती हूं कि यह संबंध अभी ही खत्म हो जाने चाहिए, क्योंकि वास्तव में 3 साल की अवधि बहुत होती है. उस के बाद घटनाक्रम किस प्रकार बदले कोई कह नहीं सकता. क्या पता मेरी विदेश में नौकरी ही लग जाए और मैं वापस आ ही न सकूं. इसलिए मैं सब बंधनों से मुक्त रहना चाहती हूं.’

मैं और पत्नी अपना सा मुंह ले कर लौट आए. भारी मन से सारी बातें राहुल को बताईं…साथ में यह भी कहा कि वह ठीक कहती है. तुम लोगों का प्यार सच्चा होगा तो तुम लोग जरूर मिलोगे.

‘मैं सब समझ रहा हूं,’ राहुल बोला, ‘जब से उस के विदेश जाने की खबर आई है वह मुझे अपने से कमतर समझने लगी है. जाने दो, मैं कोई उस के पीछे मरा जाता हूं. बहुत लड़कियां मिलेंगी मुझे.’

परसों रात को विधि का प्लेन गया और परसों ही रात को राहुल ने नींद की गोलियां खा लीं. मैं और राहुल की मां एक शादी में गए हुए थे. कल शाम को लौट कर आए तो बेटे की यह हालत देखी. तुरंत अस्पताल ले कर आए. तभी कानों में शब्द सुनाई पड़े, ‘‘पापा, चाय पी लीजिए.’’

सामने देखा तो बेटी चाय का कप लिए खड़ी थी. मैं ने उस के हाथों से कप ले लिया.

बेटी बोली, ‘‘पापा, क्या सोच रहे हैं. राहुल अब ठीक है. इतना सोचेंगे तो खुद बीमार पड़ जाएंगे.’’

मैं ने चाय की चुस्की ली तो विचारों ने फिर पलटा खाया. यह कोई सिर्फ मेरे बेटे की ही बात नहीं है. आज की युवा पीढ़ी हो ही ऐसी गई है. हर कुछ जल्दी पाने की ललक और न पाने पर हताशा. समाचारपत्र उठा कर देखो तो ऐसी ही खबरों से पटा रहता है. प्यार शब्द भी इन लोगों के लिए एक मजाक बन कर रह गया है. अभी हमारे एक हिंदू परिचित हैं. उन की बेटी ने मुसलमान से शादी कर ली. दोनों ही पक्षों में काफी विरोध हुआ. अंतर्जातीय विवाह तो फिर भी पचने लगे हैं पर अंतर्धर्मीय नहीं. मैं ने अपने परिचित को समझाया.

‘जब बच्चों ने विवाह कर ही लिया है तब आप क्यों फालतू में सोचसोच कर हलकान हो रहे हैं. खुशीखुशी आशीर्वाद दे दीजिए.’

एक साल में उन के यहां बेटा भी पैदा हो गया. पर नाम को ले कर दोनों पतिपत्नी में जो तकरार शुरू हुई तो तलाक पर आ कर खत्म हुई. बात सिर्फ इतनी थी कि पिता बेटे का नाम अमन रखना चाहता था और मां शांतनु. दोनों के मातापिता ने समझाया…दोनों शब्दों का अर्थ एक होता है, चाहे जो नाम रखो, पर वे लोग न समझ पाए और आजकल बच्चा किस के पास रहे इस को ले कर दोनों के बीच मुकदमा चल रहा है.

‘‘नानू, नानू, यह आयुषी है,’’ मेरा 6 वर्षीय नाती एक प्यारी सी गोलमटोल लड़की से मेरा परिचय कराते हुए कहता है.

मैं अपने विचारों की दुनिया से बाहर आ कर थोड़ा सहज हो कर पूछता हूं, ‘‘आप की फ्रेंड है?’’

‘‘नो नानू, गर्लफे्रंड,’’ मेरा नाती कहता है.

मैं कहना चाहता हूं कि गर्लफ्रेंड के माने जानते हो? पर देखता हूं कि गर्लफ्रेंड कह कर परिचय देने पर उस बच्ची के गाल आरक्त हो उठे हैं और मैं खुद ही इस भूलभुलैया में फंस कर चुप रह जाता हूं.

Hindi Story : दूसरी भूल – क्या थी अनीता की भूल

Hindi Story : अनीता बाजार से कुछ घरेलू चीजें खरीद कर टैंपू में बैठी हुई घर की ओर आ रही थी. एक जगह पर टैंपू रुका. उस टैंपू में से 4 सवारियां उतरीं और एक सवारी सामने वाली सीट पर आ कर बैठ गई. जैसे ही अनीता की नजर उस सवारी पर पड़ी, तो वह एकदम चौंक गई और उस के दिल की धड़कनें बढ़ गईं.

इस से पहले कि अनीता कुछ कहती, सामने बैठा हुआ नौजवान, जिस का नाम मनोज था, ने उस की ओर देखते हुए कहा, ‘‘अरे अनीता, तुम?’’

‘‘हां मैं,’’ अनीता ने बड़े ही बेमन से जवाब दिया.

‘‘तुम कैसी हो? आज हम काफी दिन बाद मिल रहे हैं,’’ मनोज के चेहरे पर खुशी तैर रही थी.

‘‘मैं ठीक हूं.’’

‘‘मुझे पता चला था कि यहां इस शहर में तुम्हारी शादी हुई है. जान सकता हूं कि परिवार में कौनकौन हैं?’’

‘‘मेरे पति, 2 बेटियां और एक बेटा,’’ अनीता बोली.

‘‘तुम्हारे पति क्या करते हैं?’’

‘‘कार मेकैनिक हैं.’’

‘‘क्या नाम है?’’

‘‘नरेंद्र कुमार’’

‘‘मैं यहां अपनी कंपनी के काम से आया था. अब काम हो चुका है. रात की ट्रेन से वापस चला जाऊंगा,’’ मनोज ने अनीता की ओर देखते हुए कहा, ‘‘घर का पता नहीं बताओगी?’’

‘‘क्या करोगे पता ले कर?’’ अनीता कुछ सोचते हुए बोली.

‘‘कभी तुम से मिलने आ जाऊंगा.’’

‘‘क्या करोगे मिल कर? देखो मनोज, अब मेरी शादी हो चुकी है और मुझे उम्मीद है कि तुम ने भी शादी कर ली होगी. तुम्हारे घर में भी पत्नी व बच्चे होंगे.’’

‘‘हां, पत्नी और 2 बेटे हैं. तुम मुझे पता बता दो. वैसे, तुम्हारे घर आने का मेरा कोई हक तो नहीं है, पर एक पुराने प्रेमी नहीं, बल्कि एक दोस्त के रूप में आ जाऊंगा किसी दिन.’’

‘‘शिव मंदिर के सामने, जवाहर नगर,’’ अनीता ने कहा.

कुछ देर बाद टैंपू रुका. अनीता टैंपू से उतरने लगी.

‘‘अनीता, अब तो रात को मैं वापस आगरा जा रहा हूं, फिर किसी दिन आऊंगा.’’

अनीता ने कोई जवाब नहीं दिया. घर पहुंच कर उस ने देखा कि उस की बड़ी बेटी कल्पना, छोटी बेटी अल्पना और बेटा कमल कमरे में बैठे हुए स्कूल का काम कर रहे थे.

अनीता ने कल्पना से कहा, ‘‘बेटी, मैं जरा आराम कर रही हूं. सिर में तेज दर्द?है.’’

‘‘मम्मी, आप को डिस्प्रिन की दवा या चाय दूं?’’ कल्पना ने पूछा.

‘‘नहीं बेटी, कुछ नहीं,’’ अनीता ने कहा और दूसरे कमरे में जा कर लेट गई.

अनीता को तकरीबन 11 साल पहले की बातें याद आने लगीं. जब वह 12वीं जमात में पढ़ रही थी. कालेज से छुट्टी होने पर वह एक नौजवान को अपने इंतजार में पाती थी. वह मनोज ही था. उन दोनों का प्यार बढ़ने लगा. अनीता जान चुकी थी कि मनोज किसी प्राइवेट कंपनी में नौकरी कर रहा है.

मनोज के पिताजी का अपना कारोबार था और अनीता के पिताजी का भी. वे दोनों शादी करना चाहते?थे, पर अनीता के पापा को यह रिश्ता बिलकुल मंजूर नहीं था.

लिहाजा, अनीता और मनोज ने घर से भागने की ठान ली. घर से 50 हजार रुपए नकद व कुछ जेवर ले कर अनीता मनोज के साथ जयपुर जाने वाली ट्रेन में बैठ गई थी.

जयपुर पहुंच कर वे 8-10 दिन होटल में रहे. पता नहीं, पुलिस को कैसे पता चल गया और उन दोनों को पकड़ लिया गया. अनीता के पापा को आगरा से बुलाया गया. मनोज को पुलिस ने नहीं छोड़ा. नाबालिग लड़की को भगाने के अपराध में जेल भेज दिया गया.

पापा को अनीता से बहुत नफरत हो गई थी,क्योंकि उस ने कहना नहीं माना था.अनीता ने आगे पढ़ाई करने को कहा था, पर पापा ने मना कर दिया था और उस की शादी करने की ठान ली थी. उस के लिए रिश्ते ढूंढ़े जाने लगे.

सालभर इधरउधर धक्के खाने के बाद पापा को एक रिश्ता मिल ही गया था. विधुर नरेंद्र की उम्र 35 साल थी. उस की पत्नी की एक हादसे में मौत हो चुकी थी. उस की2 बेटियां थीं. एक 5 साल की और दूसरी 3 साल की.

नरेंद्र एक कार मेकैनिक था. उस की अपनी वर्कशौपथी. पापा ने नरेंद्र से जब शादी की बात की, तो उसे सब सच बता दिया था. नरेंद्र ने सब जान कर भी मना नहीं किया था.अनीता शादी कर के नरेंद्र के घर आ गई थी. अब वह 2 बेटियों की मां बन गई थी.

एक दिन नरेंद्र ने कहा था, ‘देखो अनीता, मुझे तुम्हारी पिछली जिंदगी से कोई मतलब नहीं. तुम भी वह सब भुला दो. इस घर में आने का मतलब है कि अब तुम्हें एक नई जिंदगी शुरू करनी है. अब तुम अल्पना और कल्पना की मम्मी हो… तुम्हें इन दोनों को पालना है.’

‘जी हां, मैं ऐसा ही करूंगी. अब कल्पना और अल्पना आप की ही नहीं, मेरी भी बेटियांहैं,’ अनीता ने कहा था.एक साल बाद अनीता ने एक बेटे को जन्म दिया था. बेटा पा कर नरेंद्र बहुत खुश हुआ था. बेटे का नाम कमल रखा गया था.

अनीता नरेंद्र को पति के रूप में पा कर खुश थी और उस ने भी कभी शिकायत का मौका नहीं दिया था. पापामम्मी भी अपना गुस्सा भूल कर अब उस से मिलने आने लगे थे.

आज दोपहर अनीता की अचानक मनोज से मुलाकात हो गई. उसे मनोज को घर का पता नहीं देना चाहिए था. उस के दिल में एक अनजाना सा डर बैठने लगा. वह आंखें बंद किए चुपचाप लेटी रही.

अगले दिन सुबह के तकरीबन 11 बजे अनीता रसोई में खाना तैयार कर रही थी. कालबेल बज उठी. उस ने दरवाजा खोला, तो सामने मनोज खड़ा था.

‘‘तुम…’’ अनीता के मुंह से अचानक ही निकला,’’ तुम तो कह रहे थे कि मैं रात की गाड़ी से आगरा जा रहा हूं.’’

‘‘अनीता, मुझे रात की गाड़ी से ही आगरा जाना था, पर टैंपू में तुम से मिलने के बाद मेरा दिल दोबारा मिलने को बेचैन हो उठा. होटल में रातभर नींद नहीं आई. तुम्हारे बारे में ही सोचता रहा. तुम नहीं जानती अनीता कि मैं आज भी तुम को कितना चाहता हूं,’’ मनोज ने कहा.

अनीता चुपचाप खड़ी रही. उस ने कोई जवाब नहीं दिया.

‘‘अनीता, अंदर आने के लिए नहीं कहोगी क्या? मैं तुम से केवल 10 मिनट बातें करना चाहता हूं.’’

‘‘आओ,’’ न चाहते हुए भी अनीता के मुंह से निकल गया.

कमरे में सोफे पर बैठते हुए मनोज ने इधरउधर देखते हुए पूछा, ‘‘कोई दिखाई नहीं दे रहा है… सभी कहीं गए हैं क्या?’’

‘‘बच्चे स्कूल गए हैं और नरेंद्र वर्कशौप गए हैं,’’ अनीता बोली.

तभी रसोई से गैस पर रखे कुकर से सीटी की आवाज सुनाई दी.

‘‘जो कहना है, जल्दी कहो. मुझे खाना बनाना है.’’

‘‘अनीता, तुम अब पहले से भी ज्यादा खूबसूरत हो गई हो. दिल करताहै कि तुम्हें देखता ही रहूं. क्या तुम्हें जयपुर के होटल के उस कमरे की याद आती है, जहां हम ने रातें गुजारी थीं?’’

‘‘क्या यही कहने के लिए तुम यहां आए हो?’’

‘‘अनीता, मैं तुम्हारे पति को सब बताना चाहता हूं.’’

‘‘तुम उन्हें क्या बताओगे?’’ अनीता ने घबरा कर पूछा.

‘‘मैं नरेंद्र से कहूंगा कि जयपुर में मैं अकेला ही नहीं था. मेरे 2 दोस्त और भी थे, जिन के साथ अनीता ने खूब मस्ती की थी.’’

‘‘झूठ, बिलकुल झूठ,’’ अनीता गुस्से से चीखी.

‘‘यह झूठ है, पर इसे मैं और तुम ही तो जानते हैं. तुम्हारा पति तो सुनते ही एकदम यकीन कर लेगा,’’ मनोज ने अनीता की ओर देखते हुए कहा.

अनीता ने हाथ जोड़ कर पूछा, ‘‘तुम आखिर चाहते क्या हो?’’

‘‘मैं चाहता हूं कि आज दोपहर बाद तुम मेरे होटल के कमरे में आ जाओ.’’

‘‘नहीं मनोज, मैं नहीं आऊंगी. अब मैं अपनी जिंदगी में जहर नहीं घोलूंगी. नरेंद्र मुझ पर बहुत विश्वास करते हैं.

मैं उन से विश्वासघात नहीं करूंगी,’’ अनीता ने मनोज से घूरते हुए कहा.

‘‘तो ठीक है अनीता, मैं नरेंद्र से मिलने जा रहा हूं वर्कशौप पर,’’ मनोज ने कहा.

‘‘वर्कशौप जाने की जरूरत नहीं है. मैं यहीं आ गया हूं,’’ नरेंद्र की आवाज सुनाई पड़ी.

यह देख अनीता और मनोज बुरी तरह चौंक उठे. अनीता के चेहरे का रंग एकदम पीला पड़ गया.

‘‘यहां क्यों आया है?’’ नरेंद्र ने मनोज को घूरते हुए पूछा, ‘‘तुझे इस घर का पता किस ने दिया?’’

‘‘अनीता ने. कल यह मुझे बाजार में मिली थी,’’ मनोज बोला.अनीता ने घबराते हुए नरेंद्र को पूरी बात बता दी.

‘‘अबे, तुझे अनीता ने पता क्या इसलिए दिया था कि तू घर आए और उसे ब्लैकमेल करे. मैं ने तुम दोनों की बातें सुन ली हैं. अब तू यहां से दफा हो जा. फिर कभी इस घर में आने की कोशिश की, तो पुलिस के हवाले कर दूंगा,’’ नरेंद्र ने मनोज की ओर नफरत से देखते हुए गुस्साई आवाज में कहा. मनोज चुपचाप घर से निकल गया.

अनीता को रुलाई आ गई. वह सुबकते हुए बोली, ‘‘मुझे माफ कर दो. मुझ से बहुत बड़ी भूल हो गई, जो मैं ने मनोज को घर का पता दे दिया?था.’’

‘‘हां अनीता, यह तुम्हारी जिंदगी की दूसरी भूल है, जो तुम ने अपने दुश्मन को घर में आने दिया. मनोज तुम्हारा प्रेमी नहीं, बल्कि दुश्मन था. सच्चे प्रेमी कभी भी अपनी प्रेमिका को घर से रुपएगहने वगैरह ले कर भागने को नहीं कहते.’’

अनीता की आंखों से आंसू बहते रहे. नरेंद्र ने उस के चेहरे से आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘अनीता, मुझे तुम पर बहुत विश्वास था, पर आज की बातें सुन कर यह विश्वास और बढ़ गया है. वैसे तो मनोज अब यहां नहीं आएगा और अगर आ भी गया, तो मुझे फोन कर देना. मैं उसे पुलिस के हवाले कर दूंगा.’’

नरेंद्र की यह बात सुन कर अनीता के मुंह से केवल इतना ही निकला, ‘‘आप कितने अच्छे हैं…’’

Hindi Story : अनुभव – गरिमा के साथ परेश को क्या महसूस हुआ

Hindi Story : पहाड़ियों पर कार सरपट भागी जा रही थी. ड्राइवर को शायद घर पहुंचने की ज्यादा जल्दी थी, वरना सांप जैसे टेढ़ेमेढ़े रास्तों पर इस तरह कौन खतरा मोल लेता है? सूरज तेजी से डूबने वाला था. परेश का मन भी शायद सूरज की तरह ही बैठा हुआ था, लेकिन पहाड़ों की जिंदगी उसे बहुत सुकून देती आई थी. जब भी छुट्टी मिलती वह भागा चला जाता था.

परेश की जिंदगी बहुत अजीब थी. नाम, पैसा, शोहरत सब था लेकिन मन के अकेलेपन को दूर करने वाला साथी कोई नहीं था. पहाड़ों पर सूरज छिपते ही अंधेरा तेजी से पसरने लगता है. जल्दी ही रात जैसा माहौल छाने लगता है. अचानक एक मोड़ पर जैसे ही कार तेजी से घूमी, परेश की नजर घाटी की एक चट्टान पर पड़ी. एक लड़की वहां खड़ी थी. इस मौसम में अकेली लड़की की यह हालत परेश को खटक गई.

उस ने ड्राइवर को कार रोकने को कहा. ड्राइवर ने फौरन कार रोक दी. ‘चर्र… चर्र…’ की तेज आवाज पहाड़ों के शांत माहौल को चीर गई. ड्राइवर ने हैरानी से परेश की ओर देखा और पूछा, ‘‘क्या हुआ साहबजी?’’

परेश ने बिना कोई जवाब दिए कार का दरवाजा खोला और बिजली की रफ्तार से उस ओर भागा जहां वह लड़की खड़ी दिखी थी. परेश ज्यों ही वहां पहुंचा लड़की ने नीचे छलांग लगा दी. लेकिन परेश ने गजब की फुरती दिखाते हुए उसे नीचे गिरने से पहले ही पकड़ लिया.

परेश ने फौरन उस लड़की को पीछे खींचा. वह पलटी तो परेश की ओर अजीब सी नजरों से देखने लगी. ‘‘क्या कर रही थी?’’ परेश ने उस लड़की का हाथ पकड़े हुए पूछा.

‘‘कुछ नहीं…’’ लड़की बोली. ‘‘कहां जाना है? इस वक्त सुनसान इलाके में इतनी खतरनाक जगह… क्या करना चाहती थी?’’ परेश ने फिर गुस्से से पूछा.

‘‘अरे, मैं तो सैरसपाटे के लिए… बस यों ही… पैर फिसल गया शायद…’’ कहते हुए लड़की ने वाक्य अधूरा छोड़ दिया. परेश उस लड़की को अपनी कार की ओर ले आया. लड़की ने कोई विरोध भी नहीं किया. ड्राइवर उस लड़की को शक भरी नजरों से घूरने लगा. परेश की पूछताछ अभी भी जारी थी. थोड़ी देर बाद वह लड़की अपने मन का गुबार निकालने लगी.

परेश यह जान कर हैरान हुआ कि वह घर से भागी हुई थी और किसी भी कीमत पर वापस लौटने को तैयार नहीं थी. उस के अशांत मन का गुस्सा साफ झलक रहा था. ‘‘अब कहां ठहरी हो आप?’’ परेश ने पूछा.

‘‘मैं… अरे, मुझे मरना है, जीना ही नहीं, इसलिए ठहरने की क्या बात आई?’’ इतना कह कर वह लड़की खिलखिला कर हंस पड़ी. ‘‘यह क्या बात हुई. आप को पता है कि आप के मातापिता कितना परेशान होंगे…’’ परेश ने शांत लहजे में उसे समझाते हुए कहा.

‘‘मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता,’’ वह लड़की बेतकल्लुफ अंदाज से बोली. ‘‘मैं परेश… लेखक. यहां किताब पूरी करने आया हूं.’’

‘‘अच्छा, आप लेखक हैं? फिर तो मेरी कहानी भी जरूर लिखना… एक पागल लड़की, जिस ने किसी की खातिर खुद को मिटा दिया.’’ ‘‘आप ऐसी बातें न करें. जिंदगी बेशकीमती है, इसे खत्म करने का हक किसी को नहीं,’’ परेश ने कहा.

‘‘मेरा नाम है गरिमा सिंह… एक हिम्मती लड़की जिसे कोई नहीं हरा सकता, पर नकार जरूर दिया.’’ ‘‘आप ऐसा मत कहिए…’’ परेश अपनी बात पूरी करता उस से पहले ही गरिमा ने उस की बात काट दी, ‘‘आप मुझे यहीं उतार दीजिए…’’

‘‘मैं आप को अब कहीं नहीं जाने दूंगा. क्या आप मेरे साथ रहेंगी?’’ गरिमा ने पहले परेश की तरफ देखा, फिर अचकचा कर हंस पड़ी, ‘‘देख लीजिए, कोई नई कहानी न बन जाए?’’

परेश को शायद ऐसे सवाल की उम्मीद न थी. उस की सोच अचानक बदल गई. आखिर था तो वह भी मर्द ही. जोश को दबाते हुए वह बोला, ‘‘कोई नहीं जो कहानी बने, लेकिन अब अपने साथ और खिलवाड़ मत कीजिए.’’ ‘‘मरने वाला कभी किसी चीज से डरा है क्या सर…?’’ इस बार गरिमा की आवाज में गंभीरता झलक रही थी.

अचानक ड्राइवर ने कार रोकी. दोनों ने सवालिया नजरों से उसे देखा. कार में कोई खराबी आ गई थी जिसे वह ठीक करने में जुटा था. अब रात होने लगी थी. तभी ड्राइवर ने परेश को आवाज लगाई, ‘‘साहब, बाहर आइए.’’

परेश हैरानी से कार से बाहर निकला. ड्राइवर बोनट खोले इंजन को दुरुस्त करने में बिजी था. उस ने गरदन ऊपर उठाई और परेश के कान में फुसफुसा कर कहा, ‘‘साहबजी, कार को कुछ नहीं हुआ है. आप को एक बात बतानी थी, इसलिए यह ड्रामा किया.’’ ‘‘क्या?’’ परेश ने पूछा.

‘‘साहबजी, यह लड़की मुझे सही नहीं लग रही. आजकल पहाड़ों में… मुझे डर है कि कहीं आप के साथ कुछ गलत न हो जाए.’’ ‘‘अरे, तुम चिंता मत करो… मैं सब समझता हूं.’’

‘‘ठीक है साहब, आप की जैसी मरजी,’’ ड्राइवर ने लाचारी से कहा. ‘‘अच्छा, हमें ऐसी जगह ले चलो जहां भीड़भाड़ न हो,’’ परेश ने कहा.

सीजन नहीं होने से भीड़भाड़ नहीं थी. शहर से थोड़ा दूर एक बढि़या लोकेशन पर उन्हें ठहरने की शानदार जगह मिल गई. ड्राइवर उन्हें होटल में छोड़ कर वापस चला गया. कमरे में आते ही गरिमा का अल्हड़पन दिखने लगा था. अब ऐसा कुछ नहीं था जिस से लगे कि वह थोड़ी देर पहले जान देने जा रही थी.

रात के 9 बज रहे थे. डिनर आ गया था. गरिमा बाथरूम में थी. थोड़ी देर बाद परेश की ड्रैस पहन कर वह बाहर निकली तो एकदम तरोताजा लग रही थी. उस की खूबसूरती परेश को मदहोश करने लगी. डिनर निबट गया. एक बैड पर लेटे दोनों उस मुद्दे पर चर्चा कर रहे थे जिस की वजह से गरिमा इतनी परेशान थी.

गरिमा की कहानी बड़ी अजीब थी. कालेज के बाद उस ने जिस कंपनी में काम शुरू किया वहीं उस के बौस ने उसे प्यार के जाल में ऐसा फंसाया कि वह अभी तक उस भरम से बाहर नहीं निकल पा रही थी. अधेड़ उम्र का बौस उसे सब्जबाग दिखाता रहा और उस से खेलता रहा. जब गरिमा के मम्मीपापा को इस बात की भनक लगी तो उन्होंने उसे बहुत समझाया. सख्ती भी की लेकिन एक बार तीर कमान से निकल जाए तो फिर उसे वापस कमान में लौटाना मुमकिन नहीं होता. कुछ परवरिश में भी कमी रही. न पापा को फुरसत और न मम्मी को.

गरिमा को पुलिस का डर नहीं था. वह पहले भी 4 बार ऐसा कर चुकी थी, इसलिए उस के मातापिता अब पुलिस में शिकायत करा कर अपनी फजीहत नहीं कराना चाहते थे. गरिमा सो चुकी थी. परेश उस के बेहद करीब था. उस की सांसों की उठापटक एक अजीब सा नशा दे रही थी. आहिस्ता से उस का हाथ गरिमा की छाती पर चला गया. कोई विरोध नहीं हुआ. कुछ पल ऐसे ही बीत गए.

परेश कुछ और करता, उस से पहले ही गरिमा ने अचानक अपनी आंखें खोल दीं, ‘‘आप की क्या उम्र है सर?’’ ‘‘यही कोई 40 साल…’’ परेश ने जवाब दिया.

‘‘गुड, मैच्योर्ड पर्सन… अच्छा, एक बात बताओ… मैं कैसी लग रही हूं?’’ मुसकराते हुए गरिमा ने पूछा. ‘‘बहुत ज्यादा खूबसूरत,’’ परेश ने जोश में कहा.

इस में कोई शक नहीं था कि गरिमा की अल्हड़ जवानी, मासूमियत से लबरेज खूबसूरती सच में बड़ी दिलकश लग रही थी. ‘‘सच में…?’’

‘‘सच में आप बहुत खूबसूरत हैं,’’ परेश ने अपनी बात दोहराई. ‘‘लेकिन मैं खूबसूरत ही होती तो वह मुझे क्यों छोड़ता… दूध में से मक्खी की तरह निकाल बाहर किया उस ने…’’

‘‘प्लीज गरिमा, आप हकीकत को मान क्यों नहीं लेतीं? जो हुआ सही हुआ. पूरी जिंदगी पड़ी है आप की. वहां उस के साथ क्या फ्यूचर था, यह भी सोचो?’’ ‘‘इतना आसान नहीं है सर, किसी को भुला देना. प्यार किया है मैं ने…’’

‘‘मान लिया लेकिन तुम में समझ ही होती तो क्या ऐसे प्यार को अपनाती?’’ ‘‘सर, यह सही है कि हम में थोड़ा उम्र का फर्क था लेकिन उस के बीवीबच्चे थे, यह मुझे अब पता चला… धोखा किया उस ने मेरे साथ…’’

‘‘तो फिर तुम उसे अब क्यों याद कर रही हो? बुरा सपना बीत गया. अब तो वर्तमान में लौट आओ?’’ गरिमा ने कोई जवाब नहीं दिया. वह परेश के बहुत करीब लेटी थी. सच तो यह था कि परेश अब बहुत दुविधा में था.

गरिमा का हाथ परेश की छाती पर था. उस का इस तरह लिपटना उसे असहज कर रहा था. उस के अंदर शांत पड़ा मर्द जागने लगा. गरिमा के मासूम चेहरे पर कोई भाव नहीं थे. ‘‘क्या तुम्हें मुझ से डर नहीं लगता?’’ परेश ने पूछा.

‘‘नहीं, मुझे आप पर भरोसा है,’’ गरिमा ने शांत आवाज में जवाब दिया. ‘‘क्यों… मैं भी मर्द हूं… फिर?’’ परेश ने पूछा.

‘‘कोई नहीं सर… अब मैं इनसान और जानवर में फर्क करना सीख गई हूं.’’ गरिमा के जवाब से परेश को ग्लानि महसूस हुई. वह फौरन संभल गया. गरिमा क्या सोचेगी… हद है मर्द कितना नीचे गिर सकता है? परेश का मन उसे कचोटने लगा.

लेकिन गरिमा का अलसाया बदन परेश में भूचाल ला रहा था. गरिमा का खुलापन अजीब राज बन रहा था. वह समझ नहीं पा रहा था कि इस इम्तिहान में कैसे पास हो… गरिमा अब भी उस से लिपटी हुई थी. उस की आंखों में नींद की खुमारी झलक रही थी.

परेश सोच रहा था कि गरिमा का ऐसा बरताव उस के लिए न्योता था या अपनेपन में खोजता विश्वास… परेश की दुविधा ज्यादा देर नहीं चली. उस की हालत को समझ कर गरिमा बोली, ‘‘अगर आप इस समय मुझ से कुछ चाहते हैं तो मैं इनकार नहीं करूंगी… आप की मैं इज्जत करती हूं… आप ने मुझे आज नई जिंदगी दी है.’’

‘‘अरे नहीं, प्लीज… ऐसा कुछ भी नहीं… तुम दोस्त बन गई हो… बस यही बड़ा गिफ्ट है मेरे लिए,’’ सकपकाए परेश ने जवाब दिया. ‘‘उम्र में छोटी हूं सर लेकिन एक बात कहूंगी… शरीर का मिलन इनसान को दूर करता है और मन का मिलन हमेशा नजदीक, इसलिए फैसला आप पर है…’’

परेश को महसूस हुआ, सच में समझ उम्र की मुहताज नहीं होती. छोटे भी बड़ी बात कह और समझ सकते हैं. 2 दिन सैरसपाटे में बीत गए. परेश की किताब का काम शुरू ही न हो पाया, लेकिन गरिमा अब बिलकुल ठीक थी. वह वापस अपने घर लौटने को राजी हो गई थी. परेश ने फोन नंबर ले कर उस के पापा से बात की. घर से गुम हुई जवान लड़की की खबर पा कर गरिमा के मम्मीपापा ने सुकून की सांस ली.

परेश और गरिमा अब दोस्त बन गए थे. पक्के दोस्त, जिन में उम्र का फर्क तो था लेकिन आपसी समझ कहीं ज्यादा थी. परेश की मेहनत रंग लाई और गरिमा अपने घर वापस लौट गई. कुछ दिन बाद उस की शादी भी हो गई. अब वह अपनी गृहस्थी में खुश थी. परेश के लिए यह सुकून की बात थी. अकसर उस का फोन आ जाता, वही बिंदास, अल्हड़पन लेकिन अब सच में उस ने जिंदगी जीनी सीख ली थी. दिखावा नहीं बल्कि औरत की सच्ची गरिमा का अहसास और जिम्मेदारी उस में आ गई थी.

परेश सोचता था कि गरिमा को उस ने जीना सिखाया या गरिमा ने उसे? लेकिन यह सच था कि गरिमा जैसी अनोखी दोस्त परेश को औरत के मन की गहराइयों का अहसास करा गई.

Hindi Story : इश्क वाला लव – विशाल ने देखा रुशाली के प्यार का घिनौना रूप

Hindi Story : जब से मिस रुशाली की प्यार भरी नजर मुझ पर पड़ी थी, तब से मानो मैं तो जी उठा था. हमारे दफ्तर के सारे मर्दों में मैं ही तो सिर्फ शादीशुदा था और उस पर एक बच्चे का बाप भी. ऐसे में मिस रुशाली पर मेरा जादू चलना किसी चमत्कार से कम न था.

पर अब जब यह चमत्कार हो गया था, तब ऐसे में सभी को आहें भरते देख मैं खुद पर नाज कर बैठा था.

‘‘मैं ने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि उस विशाल पर मिस रुशाली फिदा होंगी. पता नहीं, उस हसीना को उस ढहते हुए बूढ़े बरगद के पेड़ में न जाने क्या नजर आया, जो उसे अपना दिल दे बैठी?’’ लंच करते वक्त रमेश आहें भरता हुआ सब से कह रहा था.

‘‘हां भाई, अब यह बेचारा दिल ही तो है. अब यह किसी गधे पर आ जाए, तो इस में उस कमसिन मासूम हसीना का क्या कुसूर?’’ राहुल के इस मजाक पर सभी खिलखिला कर हंस पड़े.

कैंटीन में घुसते वक्त जब मैं ने अपने साथियों की ये बातें सुनीं, तो मैं मन ही मन इतरा उठा और अपना लंच बौक्स उठा कर दोबारा अपनी सीट पर आ कर बैठ गया.

अपने दफ्तर के सारे आशिकों के जलते हुए दिलों से निकलती हुई आहें मेरे मन को ऐसा सुकून दे रही थीं कि मैं खुशी के चलते फिर कुछ खा न पाया.

तब मैं ने चपरासी से कौफी मंगाई और कौफी पी कर फिर से अपने काम में जुट गया. वैसे तो उस समय मैं लैपटौप पर काम कर रहा था, पर मेरा ध्यान तो मिस रुशाली के इर्दगिर्द ही घूम रहा था.

सलीके का पहनावा, तीखे नैननक्श, सुलझे हुए बाल और उस पर मदमस्त चाल. सच में मिस रुशाली एक ऐसा कंपलीट पैकेज है, जिस के लिए जितनी भी कीमत चुकाई जाए, कम है.

अब तो मिस रुशाली के सामने मुझे अपनी पत्नी प्रिया की शख्सीयत बौनी सी लगने लगी थी. वैसे, प्रिया में एक पत्नी के सारे गुण थे और मैं उसे प्यार भी करता था, पर मिस रुशाली से मिलने के बाद मुझे लगने लगा था कि कुछ तो ऐसा है मिस रुशाली में, जो प्रिया में नहीं है.

शायद, मुझे मिस रुशाली से इश्क वाला लव हुआ है, जो शायद उस लव से ज्यादा है, जो मैं अपनी पत्नी प्रिया से करता था, इसलिए तो मिस रुशाली मेरे मन में बसती जा रही थी.

इधर मेरा प्यार परवान चढ़ रहा था, तो उधर मिस रुशाली का जादू मेरे सिर चढ़ कर बोलने लगा था.

लौंग ड्राइव, पांचसितारा होटल में डिनर, महंगे उपहार पा कर मिस रुशाली मुझ पर फिदा हो गई थी. जब भी मैं उस की बड़ीबड़ी झील सी आंखों में अपने प्रति उमड़ रहे प्यार को देखता, तब मेरा दिल जोरजोर से धड़कने लगता था.

अब तो सिर्फ इसी बात की इच्छा होती कि न जाने ऐसा वक्त कब आएगा, जब मिस रुशाली की प्यार भरी नजरें मुझ पर मेहरबान होंगी और उस प्यार भरी बारिश में मेरा मन भीग जाएगा.

बस, इसी कल्पना की चाह में मैं फिर से जी उठा था. ऐसा लगता था, मानो मैं उस मंजिल को पा गया हूं, जहां धरती और आसमान एक हो जाते हैं.

पर प्रिया मेरे अंदर आए इस बदलाव से कैसे अछूती रह पाती? अब उस की सवालिया नजरें मुझ पर उठने लगी थीं. पर मैं चुप था, क्योंकि मुझे एक सही मौके की तलाश जो थी.

रात को सोते वक्त जब कभी प्रिया मेरे नजदीक आने की कोशिश करती, तब मैं जानबूझ कर उस की अनदेखी कर देता था.

तब मैं तो मुंह फेर कर सो जाता और वह आंसू बहाती रहती. मुझे उस का रोना अखरता था, पर मैं क्या करता? मैं अपने दिल के हाथों मजबूर जो था.

बीतते समय के साथ मेरी मिस रुशाली को पाने की चाह बढ़ने लगी थी, क्योंकि मिस रुशाली की बड़ीबड़ी आंखों में मेरे प्रति प्यार का सागर तेजी से हिलोरें जो लेने लगा था.

अब मुझे लगने लगा था कि शायद सही वक्त आ गया है, जब मुझे प्रिया से तलाक ले कर मिस रुशाली को अपना बनाना होगा, तभी मेरी इस उमस भरी जिंदगी में खुशियों के फूल खिल पाएंगे.

अभी मैं सही मौके की तलाश में था कि अचानक मेरी किस्मत मुझ पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान हो गई. प्रिया के मामाजी के अचानक बीमार होने के चलते वह पूरे 3 दिन के लिए आगरा क्या गई, मुझे तो मानो दबा हुआ चिराग मिल गया.

‘सुनो, मैं आगरा जा रही हूं. तुम्हारा खाना कैसरोल में रखा है,’ प्रिया अपना सामान पैक करते हुए फोन पर मुझ से कह रही थी.

‘‘तुम जल्दी से निकलो. मेरे खाने की चिंता मत करो, वरना तुम्हारी शाम वाली बस छूट जाएगी,’’ मैं खुशी के मारे हड़बड़ा रहा था.

‘हां जी, वह तो ठीक है. मैं ने श्यामा को बोल दिया है कि वह सुबहशाम आप का मनपसंद खाना बना दिया करेगी,’ प्रिया अभी भी मेरे लिए परेशान थी.

‘‘प्रिया, मैं तो चाह रहा था कि मैं दफ्तर से जल्दी निकल कर तुम्हें बसस्टैंड पर छोड़ आऊं, पर क्या करूं, इतना ज्यादा काम जो है,’’ मैं ने अपनी चालाकी दिखाते हुए कहा.

‘नहीं जी, आप अपना काम करो. मैं चली जाऊंगी,’ इतना कह कर प्रिया ने फोन रख दिया.

प्रिया का इस तरह अचानक चले जाना मुझे एक अनजानी सी खुशी दे गया. मैं बावला सा कभी सोचता कि यहां दफ्तर में ही मिस रुशाली को सबकुछ बता कर अपने घर ले जाऊं.

पर फिर बहुत सोचने के बाद मुझे यही लगा कि मैं अपने घर पहुंच कर फ्रैश होने के बाद ही मिस रुशाली से मिलने जाऊंगा.

जब वह अचानक मुझे देखेगी, तब मुझ पर चुंबनों की बरसात कर देगी और उस प्यारभरी बारिश में भीग कर हम दोनों दो जिस्म एक जान बन जाएंगे.

बस फिर क्या था. मैं तुरंत घर पहुंचा और अच्छी तरह तैयार हो कर मिस रुशाली के पास पहुंच गया.

दरवाजे की घंटी बजाने पर दरवाजा रुशाली ने नहीं, बल्कि एक मोटी सी औरत ने खोला.

‘‘मिस रुशाली…’’

‘‘वह ऊपर रहती है,’’ उस औरत ने बेरुखी से कहा.

फिर मैं ऊपर चढ़ गया. जब मैं रुशाली के कमरे में पहुंचा, तब मैं ने देखा कि वह किसी चालू फिल्मी गाने पर थिरक रही थी. कमरे में चारों तरफ कपड़े बिखरे पड़े थे और जूठे बरतन यहांवहां लुढ़के पड़े थे.

‘‘अरे तुम, अचानक…’’ मुझे अचानक सामने देख वह हड़बड़ा गई, ‘‘वह क्या है न, आज मेड नहीं आई.’’

रुशाली यहांवहां पड़ा सामान समेटने लगी. फिर उस ने सामने पड़ी कुरसी पर पड़ी धूल साफ की और मुझे बैठने का इशारा किया. फिर वह मेरे लिए पानी लेने चली गई.

रुशाली के जाने के बाद जब मैं ने कमरे में चारों तरफ नजर घुमाई, तो गर्द की जमी मोटी सी परत को पाया.

इतना गंदा कमरा देख मेरा जी मिचलाने लगा. अब धीरेधीरे मुझे अपनी प्रिया की कद्र समझ आने लगी थी. वह तो सारा घर शीशे की तरह चमका कर रखती है, तब भी मैं उसे टोकता ही रहता हूं, पर यहां तो गंदगी का ऐसा आलम है कि पूछो मत.

‘‘कुछ खाओगे क्या?’’ पानी का गिलास देते हुए रुशाली मुझ से पूछ बैठी.

‘‘हां… भूख तो लगी है.’’

‘‘ये लो टोस्ट और चाय,’’ थोड़ी देर में रुशाली मुझे चाय की ट्रे थमाते हुए बोली.

डिनर में चाय देख कर मेरे सिर पर चढ़ा इश्क का रहासहा भूत भी उतर गया.

‘‘वह क्या  है न… मुझे तो बस यही बनाना आता है, क्योंकि सारा खाना तो मेरी आंटी ही बनाती हैं. पेईंग गैस्ट हूं मैं उन की,’’ रुशाली अपना पसीना पोंछते हुए बोली, तो मैं समझ गया कि अब तक मैं जो कुछ भी रुशाली के लिए महसूस कर रहा था, वह सिर्फ एक छलावा था. मेरा उखड़ा मूड देख कर तुरंत रुशाली ने अपना अगला पासा फेंका.

वह तुरंत मेरे पास आई और बेशर्मी से अपना गाउन उतारने लगी.

‘‘क्या कर रही हो यह…’’ मैं गुस्से से तमतमा उठा.

‘‘अरे, शरमा क्यों रहे हो? जो करने आए थे, वह करे बिना ही वापस चले जाओगे क्या?’’ इतना कह कर वह मुझ से लिपटने लगी.

उसे इस तरह करते देख मैं हड़बड़ा गया. इस से पहले कि मैं खुद को संभाल पाता, उस ने मुझे यहांवहां चूमना शुरू कर दिया.

तभी अचानक मेरे गले में पड़ा लौकेट उस के हाथ में आ गया, जिस में मेरी बीवी प्रिया और अंशुल का फोटो था.

‘‘ओह, तो यह है तुम्हारी देहाती पत्नी… अरे, इसे तलाक दे दो और मेरे नाम अपना फ्लैट कर दो, फिर देखो कि मैं कैसे तुम्हें जन्नत का मजा दिलाती हूं?’’ इतना कह कर वह मुझ से लिपटने की कोशिश करने लगी.

‘‘प्यार बिना शर्त के होता है रुशाली,’’ मैं उस समय सिर्फ इतना ही कह पाया.

‘‘आजकल कुछ भी मुफ्त नहीं मिलता, मिस्टर. हर चीज की कीमत होती है और हर किसी को वो कीमत चुकानी ही पड़ती है,’’ इतना कह कर रुशाली जोर से हंस पड़ी.

रुशाली के प्यार का यह घिनौना रूप देख मैं टूट सा गया और उसे धक्का दे कर बाहर आ गया.

हारी हुई नागिन की तरह रुशाली जोर से चीखते हुए बोली, ‘‘विशाल, मेरा डसा तो पानी भी नहीं मांगता, फिर तुम क्या चीज हो?’’

पर मैं तब तक अपनी कार में बैठ चुका था और मेरे इश्क वाले लव का भूत उतर चुका था.

Hindi Story : रिश्ता – शमा के लिए आया रफीक का रिश्ता

Hindi Story : शमा के लिए रफीक का रिश्ता आया. वह उसे पहले से जानती थी. वह ‘रेशमा आटो सर्विस’ में मेकैनिक था और अच्छी तनख्वाह पाता था.

शमा की मां सईदा अपनी बेटी का रिश्ता लेने को तैयार थीं.

शमा बेहद हसीन और दिलकश लड़की थी. अपनी खूबसूरती के मुकाबले वह रफीक को बहुत मामूली इनसान समझती थी. इसलिए रफीक उसे दिल से नापसंद था.

दूसरी ओर शमा की सहेली नाजिमा हमेशा उस की तारीफ करते हुए उकसाया करती थी कि वह मौडलिंग करे, तो उस का रुतबा बढ़ेगा. साथ ही, अच्छी कमाई भी होगी.

एक दिन शमा ख्वाबों में खोई सड़क पर चली जा रही थी.

‘‘अरी ओ ड्रीमगर्ल…’’ पीछे से पुकारते हुए नाजिमा ने जब शमा के कंधे पर हाथ रखा, तो वह चौंक पड़ी.

‘‘किस के खयालों में चली जा रही हो तुम? तुझे रोका न होता, तो वह स्कूटर वाला जानबूझ कर तुझ पर स्कूटर चढ़ा देता. वह तेरा पीछा कर रहा था,’’ नाजिमा ने कहा.

शमा ने नाजिमा के होंठों पर चुप रहने के लिए उंगली रख दी. वह जानती थी कि ऐसा न करने पर नाजिमा बेकार की बातें करने लगेगी.

अपने होंठों पर से उंगली हटाते हुए नाजिमा बोली, ‘‘मालूम पड़ता है कि तेरा दिमाग सातवें आसमान में उड़ने लगा है. तेरी चमड़ी में जरा सफेदी आ गई, तो इतराने लगी.’’

‘‘बसबस, आते ही ऐसी बातें शुरू कर दीं. जबान पर लगाम रख. थोड़ा सुस्ता ले…’’

थोड़ा रुक कर शमा ने कहा, ‘‘चल, मेरे साथ चल.’’

‘‘अभी तो मैं तेरे साथ नहीं चल सकूंगी. थोड़ा रहम कर…’’

‘‘आज तुझे होटल में कौफी पिलाऊंगी और खाना भी खिलाऊंगी.’’

‘‘मेरी मां ने मेरे लिए जो पकवान बनाया होगा, उसे कौन खाएगा?’’

‘‘मैं हूं न,’’ शमा नाजिमा को जबरदस्ती घसीटते हुए पास के एक होटल में ले गई.

‘‘आज तू बड़ी खुश है? क्या तेरे चाहने वाले नौशाद की चिट्ठी आई है?’’ शमा ने पूछा.

यह सुन कर नाजिमा झेंप गई और बोली, ‘‘नहीं, साहिबा का फोटो और चिट्ठी आई है.’’

‘‘साहिबा…’’ शमा के मुंह से निकला.

साहिबा और शमा की कहानी एक ही थी. उस के भी ऊंचे खयालात थे. वह फिल्मी दुनिया की बुलंदियों पर पहुंचना चाहती थी.

साहिबा का रिश्ता उस की मरजी के खिलाफ एक आम शख्स से तय हो गया था, जो किसी दफ्तर में बड़ा बाबू था. उसे वह शख्स पसंद नहीं था.

कुछ महीने पहले साहिबा हीरोइन बनने की लालसा लिए मुंबई भाग गई थी, फिर उस की कोई खबर नहीं मिली थी. आज उस की एक चिट्ठी आई थी.

चिट्ठी की खबर सुनने के बाद शमा ने नाजिमा के सामने साहिबा के तमाम फोटो टेबिल पर रख दिए, जिन्हें वह बड़े ध्यान से देखने लगी. सोचने लगी, ‘फिल्म लाइन में एक औरत पर कितना सितम ढाया जाता है, उसे कितना नीचे गिरना पड़ता है.’

नाजिमा से रहा नहीं गया. वह गुस्से में बोल पड़ी, ‘‘इस बेहया लड़की को देखो… कैसेकैसे अलफाजों में अपनी बेइज्जती का डंका पीटा है. शर्म मानो माने ही नहीं रखती है. क्या यही फिल्म स्टार बनने का सही तरीका है? मैं तो समझती हूं कि उस ने ही तुम्हें झूठी बातों से भड़काया होगा.

‘‘देखो शमा, फिल्म लाइन में जो लड़की जाएगी, उसे पहले कीमत तो अदा करनी ही पड़ेगी.’’

‘‘फिल्मों में आजकल विदेशी रस्म के मुताबिक खुला बदन, किसिंग सीन वगैरह मामूली बात हो गई है.

‘‘कोई फिल्म गंदे सीन दिखाने पर ही आगे बढ़ेगी, वरना…’’ शमा बोली.

‘‘सच पूछो, तो साहिबा के फिल्मस्टार बनने से मुझे खुशी नहीं हुई, बल्कि मेरे दिल को सदमा पहुंचा है. ख्वाबों की दुनिया में उस ने अपनेआप को बेच कर जो इज्जत कमाई, वह तारीफ की बात नहीं है,’’ नाजिमा ने कहा.

बातोंबातों में उन दोनों ने 3-3 कप कौफी पी डाली, फिर टेबिल पर उन के लिए वेटर खाना सजाने लगा.

‘‘शमा, ऐसे फोटो ले जा कर तुम भी फिल्म वालों से मिलोगी, तो तुझे फौरन कबूल कर लेंगे. तू तो यों भी इतनी हसीन है…’’ हंस कर नाजिमा बोली.

‘‘आजकल मैं इसलिए ज्यादा परेशान हूं कि मां ने मेरी शादी रफीक से करने के लिए जीना मुश्किल कर दिया है. उन्हें डर है कि मैं भी मुंबई न भाग जाऊं.’’

‘‘अगर तुझे रफीक पसंद नहीं है, तो मना कर दे.’’

‘‘वही तो समस्या है. मां समझती हैं कि ऐसे कमाऊ लड़के जल्दी नहीं मिलते.’’

‘‘उस में कमी क्या है? मेहनत की कमाई करता है. तुझे प्यारदुलार और आराम मुहैया कराएगा. और क्या चाहिए तुझे?’’

‘‘तू भी मां की तरह बतियाने लगी कि मैं उस मेकैनिक रफीक से शादी कर लूं और अपने सारे अरमानों में आग लगा दूं.

‘‘रफीक जब घर में घुसे, तो उस के कपड़ों से पैट्रोल, मोबिल औयल और मिट्टी के तेल की महक सूंघने को मिले, जिस की गंध नाक में पहुंचते ही मेरा सिर फटने लगे. न बाबा न. मैं तो एक हसीन जिंदगी गुजारना चाहती हूं.’’

‘‘सच तो यह है कि तू टैलीविजन पर फिल्में देखदेख कर और फिल्मी मसाले पढ़पढ़ कर महलों के ख्वाब देखने लगी है, इसलिए तेरा दिमाग खराब होने लगा है. उन ख्वाबों से हट कर सोच. तेरी उम्र 24 से ऊपर जा रही है. हमारी बिरादरी में यह उम्र ज्यादा मानी जाती है. आगे पूछने वाला न मिलेगा, तो फिर…’’

इसी तरह की बातें होती रहीं. इस के बाद वे दोनों अपनेअपने घर चली गईं.

उस दिन शमा रात को ठीक से सो न सकी. वह बारबार रफीक, नाजिमा और साहिबा के बारे में सोचती रही.

रात के 3 बज रहे थे. शमा ने उठ कर आईने के सामने अपने शरीर को कई बार घुमाफिरा कर देखा, फिर कपड़े उतार कर अपने जिस्म पर निगाहें गड़ाईं और मुसकरा दी. फिर वह खुद से ही बोली, ‘मुझे साहिबा नहीं बनना पड़ेगा. मेरे इस खूबसूरत जिस्म और हुस्न को देखते ही फिल्म वाले खुश हो कर मुझे हीरोइन बना देंगे.’’

जब कोई गलत रास्ते पर जाने का इरादा बना लेता है, तो उस का दिमाग भी वैसा ही हो जाता है. उसे आगेपीछे कुछ सूझता ही नहीं है.

शमा ने सोचा कि अगर वह साहिबा से मिलने गई, तो वह उस की मदद जरूर करेगी. क्योंकि साहिबा भी उस की सहेली थी, जो आज नाम व पैसा कमा रही है.

लोग कहते हैं कि दूर के ढोल सुहावने होते हैं. वे सच कहते हैं, लेकिन जब मुसीबत आती है, तो वही ढोल कानफाड़ू बन कर परेशान कर देते हैं.

शमा अच्छी तरह जानती थी कि उस की मां उसे मुंबई जाने की इजाजत नहीं देंगी, तो क्या उस के सपने केवल सपने बन कर रह जाएंगे? वह मुंबई जरूर जाएगी, चाहे इस के लिए उसे मां को छोड़ना पड़े.

शमा ने अपने बैंक खाते से रुपए निकाले, ट्रेन का रिजर्वेशन कराया और मां से बहाना कर के एक दिन मुंबई के लिए चली गई.

शमा ने साहिबा को फोन कर दिया था. साहिबा ने उसे दादर रेलवे स्टेशन पर मिलने को कहा और अपने घर ले चलने का भरोसा दिलाया.

जब ट्रेन मुंबई में दादर रेलवे स्टेशन पर पहुंची, उस समय मूसलाधार बारिश हो रही थी. बहुत से लोग स्टेशन पर बारिश के थमने का इंतजार कर रहे थे. प्लेटफार्म पर बैठने की थोड़ी सी जगह मिल गई.

शमा सोचने लगी, ‘घनघोर बारिश के चलते साहिबा कहीं रुक गई होगी.’

उसी बैंच पर एक औरत बैठी थी. शायद, उसे भी किसी के आने का इंतजार था.

शमा उस औरत को गौर से देखने लगी, जो उम्र में 40 साल से ज्यादा की लग रही थी. रंग गोरा, चेहरे पर दिलकशी थी. अच्छी सेहत और उस का सुडौल बदन बड़ा कशिश वाला लग रहा था.

शमा ने सोचा कि वह औरत जब इस उम्र में इतनी खूबसूरत लग रही है, तो जवानी की उम्र में उस पर बहुत से नौजवान फिदा होते रहे होंगे.

उस औरत ने मुड़ कर शमा को देखा और कहा, ‘‘बारिश अभी रुकने वाली नहीं है. कहां जाना है तुम्हें?’’

शमा ने जवाब दिया, ‘‘गोविंदनगर जाना था. कोई मुझे लेने आने वाली थी. शायद बारिश की वजह से वह रुक गई होगी.’’

‘‘जानती हो, गोविंदनगर इलाका इस दादर रेलवे स्टेशन से कितनी दूर है? वह मलाड़ इलाके में पड़ता है. यहां पहली बार आई हो क्या?’’

‘‘जी हां.’’

‘‘किस के यहां जाना है?’’

‘‘मेरी एक सहेली है साहिबा. हम दोनों एक ही कालेज में पढ़ती थीं. 2-3 साल पहले वह यहां आ कर बस गई. उस ने मुझे भी शहर देखने के लिए बुलाया था.’’

उस औरत ने शमा की ओर एक खास तरह की मुसकराहट से देखते हुए पूछा, ‘‘तुम्हारे पास सामान तो बहुत कम है. क्या 1-2 दिन के लिए ही आई हो?’’

‘‘अभी कुछ नहीं कह सकती. साहिबा के आने पर ही बता सकूंगी.’’

‘‘कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम अपने घर से बिना किसी को बताए यहां भाग कर आई हो? अकसर तुम्हारी उम्र की लड़कियों को मुंबई देखने का बड़ा शौक रहता है, इसलिए वे बिना इजाजत लिए इस नगरी की ओर दौड़ पड़ती हैं और यहां पहुंच कर गुमराह हो जाती हैं.’’

शमा के चेहरे की हकीकत उस औरत से छिप न सकी.

‘‘मुझे लगता है कि तुम भी भाग कर आई हो. मुमकिन है कि तुम्हें भी हीरोइन बनने का चसका लगा होगा, क्योंकि तुम्हारी जैसी हसीन लड़कियां बिना सोचे ही गलत रास्ते पर चल पड़ती हैं.’’

‘‘आप ने मुझे एक नजर में ताड़ लिया. लगता है कि आप लड़कियों को पहचानने में माहिर हैं,’’ कह कर शमा हंस दी.

‘‘ठीक कहा तुम ने…’’ कह कर वह औरत भी हंस दी, ‘‘मैं भी किसी जमाने में तुम्हारी उम्र की एक हसीन लड़की गिनी जाती थी. मैं भी मुंबई में उसी इरादे से आई थी, फिर वापस न लौट सकी.

‘‘मैं भी अपने घर से भाग कर आई थी. मुझ से पहले मेरी सहेली भी यहां आ कर बस चुकी थी और उसी के बुलावे पर मैं यहां आई थी, पर जो पेशा उस ने अपना रखा था, सुन कर मेरा दिल कांप उठा…

‘‘वह बड़ी बेगैरत जिंदगी जी रही थी. उस ने मुझे भी शामिल करना चाहा, तो मैं उस के दड़बे से भाग कर अपने घर जाना चाहती थी, लेकिन यहां के दलालों ने मुझे ऐसा वश में किया कि मैं यहीं की हो कर रह गई.

‘‘मुझे कालगर्ल बनना पड़ा. फिर कोठे तक पहुंचाया गया. मैं बेची गई, लेकिन वहां से भाग निकली. अब स्टेशनों पर बैठते ऐसे शख्स को ढूंढ़ती फिरती हूं, जो मेरी कद्र कर सके, लेकिन इस उम्र तक कोई ऐसा नहीं मिला, जिस का दामन पकड़ कर बाकी जिंदगी गुजार दूं,’’ बताते हुए उस औरत की आंखें नम हो गईं.

‘‘कहीं तुम्हारा भी वास्ता साहिबा से पड़ गया, तो जिंदगी नरक बन जाएगी. तुम ने यह नहीं बताया कि तुम्हारी सहेली करती क्या है?’’ उस औरत ने पूछा.

शमा चुप्पी साध गई.

‘‘नहीं बताना चाहती, तो ठीक है?’’

‘‘नहीं, ऐसी बात नहीं है. वह हीरोइन बनने आई थी. अभी उस को किसी फिल्म में काम करने को नहीं मिला, पर आगे उम्मीद है.’’

‘‘फिर तो बड़ा लंबा सफर समझो. मुझे भी लोगों ने लालच दे कर बरगलाया था,’’ कह कर औरत अजीब तरह से हंसी, ‘‘तुम जिस का इंतजार कर रही हो, शायद वह तुम्हें लेने नहीं आएगी, क्योंकि जब अभी वह अपना पैर नहीं जमा सकी, तो तुम्हारी खूबसूरती के आगे लोग उसे पीछे छोड़ देंगे, जो वह बरदाश्त नहीं कर पाएगी.’’

दोनों को बातें करतेकरते 3 घंटे बीत गए. न तो बारिश रुकी, न शाम तक साहिबा उसे लेने आई. वे दोनों उठ कर एक रैस्टोरैंट में खाना खाने चली गईं.

शमा ने वहां खुल कर बताया कि उस की मां उस की शादी जिस से करना चाहती थीं, वह उसे पसंद नहीं करती. वह बहुत दूर के सपने देखने लगी और अपनी तकदीर आजमाने मुंबई चली आई.

‘‘शमा, बेहतर होगा कि तुम अपने घर लौट जाओ. तुम्हें वह आदमी पसंद नहीं, तो तुम किसी दूसरे से शादी कर के इज्जत की जिंदगी बिताओ, इसी में तुम्हारी भलाई है, वरना तुम्हारी इस खूबसूरत जवानी को मुंबई के गुंडे लूट कर दोजख में तुम्हें लावारिस फेंक देंगे, जहां तुम्हारी आवाज सुनने वाला कोई न होगा.’’

शमा उस औरत से प्रभावित हो कर उस के पैरों पर गिर पड़ी और वापस जाने की मंसा जाहिर की.

‘‘अगर तुम इस ग्लैमर की दुनिया में कदम न रखने का फैसला कर घर वापस जाने को राजी हो गई हो, तो मैं यही समझूंगी कि तुम एक जहीन लड़की थी, जो पाप के दलदल में उतरने से बच गई. मैं तुम्हारे वापसी टिकट का इंतजाम करा दूंगी,’’ उस औरत ने कहा.

शमा घर लौट कर अपनी बूढ़ी मां सईदा की बांहों में लिपट कर खूब रोई.

आखिरकार शमा रफीक से शादी करने को राजी हो गई.

मां ने भी शमा की शादी बड़े ही धूमधाम से करा दी.

अब रफीक और शमा खुशहाल जिंदगी के सपने बुन रहे हैं. शमा भी पिछली बातें भूलने की कोशिश कर रही है.

Hindi Story : प्रेमिका की तलाश – क्या पूरी हुई प्रेम की तलाश

Hindi Story : प्रेम का कालेज में आखिरी साल था और वह बिलकुल सहीसलामत था. मतलब, वह किसी लड़की के चक्कर में नहीं पड़ा था, इसीलिए उस के मातापिता को उस पर नाज था. लेकिन सच कहें तो प्रेम को यह मंजूर न था. बात यह थी कि उस के दोस्त अकसर किसी न किसी लड़की के साथ कभी पार्क में, कभी बाजार में तो कभी चर्च के पीछे दिख जाते थे. उन्हें मटरगश्ती करते देख प्रेम को बहुत बुरा लगता था. मन में हीनभावना भर जाती थी, क्योंकि उस की कोई प्रेमिका जो नहीं थी, इसीलिए उसे अपने लिए एक अदद प्रेमिका की शिद्दत से तलाश थी.

एक दिन प्रेम कालेज जा रहा था. अचानक रास्ते में कुछ लड़कियों को उस ने कहीं जाते देखा. उन सब के बीच एक लड़की को देख कर वह अपनी सुधबुध खो बैठा. तभी वह लड़की तिरछी नजर से प्रेम को देख कर मुसकराई, फिर अपनी सहेलियों के साथ आगे बढ़ गई. उस की इस अदा पर वह निहाल हो गया. उसे लगा, इसी लड़की का उसे इंतजार था.

प्रेम कालेज जा रहा था, लेकिन अब उस का इरादा बदल गया. उस ने उस हसीना का पताठिकाना जानने का निश्चय कर लिया और उस के पीछे चल पड़ा. उस का पीछा करतेकरते तकरीबन आधा घंटे के बाद प्रेम एक अनजान महल्ले में पहुंचा. एकएक कर उस की सारी सहेलियां उस से अलग होती गईं. आखिर में वह लड़की सड़क से लगे एक खूबसूरत घर में दाखिल हो गई. प्रेम समझ गया कि यही उस का घर है.

उस लड़की के घर का पता जान कर प्रेम बहुत खुश हुआ. उस ने तय किया कि अब धीरेधीरे वह उस हसीना से मेलजोल बढ़ाएगा. अगले दिन प्रेम कालेज जाने के बजाय उस हसीना के घर के सामने जा पहुंचा. उस का दिल जोरजोर से धड़क रहा था. क्या पता उस का दीदार होगा भी या नहीं? लेकिन वह गूलर के फूल की तरह कहीं दिखी ही नहीं.

प्रेम कभी उस लड़की के घर के सामने किराना की दुकान के पास खड़ा हो जाता तो कभी इधरउधर आनेजाने का नाटक करता ताकि लोग समझें कि वह किसी काम से कहीं आजा रहा है. वह 2 घंटे वहीं मंडराता रहा. लेकिन वह हसीना कहीं नजर नहीं आई. वह निराश हो कर वहां से लौटने लगा.

लेकिन प्रेम कुछ दूर ही चला था कि देखा वह हसीना एक औरत के साथ रिकशे में बैठी कहीं से आ रही थी. हाथ में बड़ेबड़े थैले थे. शायद वे बाजार से लौट रही थीं. वह औरत शायद उस की मां थी. उसे देख कर प्रेम बहुत खुश हो गया. काली घटा सी जुल्फों के बीच झांकता उस का चांद सा मुखड़ा प्रेम को अजीब सी खुशी दे गया.

‘काश, यह मुझे मिल जाए तो मेरी जिंदगी में बहार आ जाए,’ यह सोच कर प्रेम मुसकराया. अपने घर के सामने गेट पर वह लड़की उस औरत के साथ रिकशे से उतर गई और अपने घर के अंदर चली गई.

प्रेम ने सोचा, ‘अब कालेज चलता हूं…’ लेकिन यह सोच कर कि क्लास अब खत्म हो गई होगी, कालेज जाने के बजाय वह वापस घर लौट आया. प्रेम अब उस हसीना को पटाने की जुगत भिड़ाने लगा. अगले दिन उस ने काले रंग की शर्ट और जींस पहन ली. भैया का काला चश्मा चुपके से उठा लिया और पापा की मोटरसाइकिल ले कर निकल लिया और सीधे उस हसीना के घर के सामने पहुंच गया.

मोटरसाइकिल किराना की दुकान के पास खड़ी कर प्रेम ने चश्मा आंखों पर लगाया और रितिक रोशन के स्टाइल में खड़ा हो कर इधरउधर देखते हुए मोबाइल फोन पर बिना काल किए किसी से बात करने का नाटक करने लगा ताकि कोई यह न कहे कि वह बिना काम के वहां खड़ा है. लेकिन एक घंटे से ज्यादा समय बीत गया, लेकिन वह लड़की नजर नहीं आई. तभी पता नहीं कहां से एक कुत्ता आ गया और प्रेम पर भूंकने लगा. उस की आवाज सुन कर कहीं से 2 कुत्ते और दौड़े आए उस पर गुर्राने और भूंकने लगे. प्रेम की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. शायद उन्हें उस का काला लिबास और काला चश्मा पसंद नहीं आया था.

प्रेम डर कर एक तरफ भागा. भागतेभागते वह एक पत्थर से टकरा कर गिर गया और नाक से खून निकलने लगा. उस की पैंट और शर्ट पर धूल लग गई. बाल बिखर गए. प्रेम की यह हालत देख कर बगल से गुजरने वाले एक राहगीर ने उन कुत्तों को डरा कर भगा दिया, तब जा कर उस की जान में जान आई. लेकिन इस हालत में उस हसीना का दीदार करने की उस की इच्छा नहीं रही. वह घर लौट गया.

अगले दिन जब प्रेम उस हसीना के घर के सामने पहुंचा तो उस की खुशी का ठिकाना न रहा. वह अपने घर के बाहर ही किसी सहेली से बात कर रही थी. प्रेम का मन किया कि अभी जा कर उसे अपना हालेदिल कह सुनाए और अपने प्यार का इजहार कर दे. पर सोचा, ‘जल्दबाजी ठीक नहीं होगी. क्या पता कहीं उस की सैंडिल मेरी मुहब्बत के जोश को ठंडा न कर दे.’

थोड़ी देर बाद वह लड़की सहेली से बात खत्म कर घर के अंदर चली गई. उस के बाद कई दिनों तक प्रेम उस हसीना के घर का चक्कर लगाता रहा. कभी छत पर, कभी गेट पर, कभी कहीं आतेजाते वह दिख जाती.

एक दिन प्रेम ने हिम्मत कर एक चुंबन उस की तरफ उछाल दिया. जवाब में वह मुसकरा दी और तुरंत घर के अंदर चली गई. प्रेम खुशी से पागल हो गया. लगा, अब वह उस से पट जाएगी, इसीलिए कालेज जाना तकरीबन छोड़ दिया और उस हसीना के घर के सामने 2-3 घंटे मंडराता रहता. जब भी वह लड़की प्रेम को दिखती, वह उस की तरफ चुंबन उछाल देता. वह हर बार मुसकरा देती.

एक दिन प्रेम बहुत देर तक उस के घर के सामने मंडराता रहा लेकिन वह नजर ही नहीं आई और न बाहर निकली. बहुत इंतजार के बाद वह निराश हो कर लौटने लगा. प्रेम कुछ ही कदम आगे बढ़ा था कि अचानक पीछे से 2-3 लड़कों ने उस पर लातघूंसों की बौछार कर दी. उन में से एक चिल्ला कर कह रहा था, ‘‘लड़की पर लाइन मारता है, आज तेरी इश्कबाजी का नशा उतार दूंगा.’’

प्रेम घबरा गया, ‘‘मैं ने यहां कोई लड़की नहीं देखी है. किस लड़की पर लाइन मारने की बात कह रहे हो तुम?’’ एक मुस्टंडे लड़के ने दुकान के पीछे की तरफ इशारा करते हुए कहा, ‘‘उधर देखो, वहां मेरी बहन खड़ी रहती है और तुम यहां से लाइन मारते हो. 20-25 दिन से तुम्हारी हरकतें बरदाश्त कर रहा हूं. आज के बाद से कभी यहां नजर आए तो तुम्हारी हड्डीपसली एक कर दूंगा.’’

उन लोगों की पिटाई से प्रेम की आंखों के आगे अंधेरा घिर रहा था, फिर भी उस ने कोशिश कर दुकान के पीछे की तरफ देखा. सचमुच वहां एक लड़की नजर आई. वह पहली बार उसे देख रहा था. दुकान के पीछे की तरफ कोई लड़की रहती है, यह इतने दिनों तक उसे पता ही नहीं था. वह तो दुकान के सामने वाले मकान में रहने वाली लड़की के चक्कर में यहां भटक रहा था. ‘‘मुझे छोड़ दो. मैं ने वहां किसी लड़की को पहले नहीं देखा है. लाइन मारने की बात तो दूर है,’’ प्रेम ने गिड़गिड़ाते हुए उन से कहा.

‘‘झूठ मत बोलो…’’ एक लड़के ने प्रेम के सूजे हुए गाल पर जोरदार तमाचा मारते हुए कहा, ‘‘अगर लाइन नहीं मारते हो तो तुम यहां क्या करने आते हो?’’ प्रेम के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं था. पिटाई से बचने के लिए उस ने कहा, ‘‘मुझे माफ कर दो. अब से मैं कभी इधर नहीं आऊंगा.’’

इतना कह कर प्रेम ने मोटरसाइकिल स्टार्ट की और भाग लिया. ‘‘बेटे, तेरा यह हाल किस ने किया?’’ प्रेम घर पहुंचा तो मां उस की हालत देख कर रोने लगीं.

प्रेम ने मां को समझाया, ‘‘तुम्हें अपने शेर जैसे बेटे पर भरोसा नहीं है क्या? तुम्हारे बेटे पर हाथ उठाने की किसी में हिम्मत नहीं है. मोटरसाइकिल सड़क के एक गड्ढे में फंस कर गिर गई, इसीलिए मुझे चोट लग गई.’’ शरीर में दर्द और सूजन के चलते प्रेम कई दिनों तक कहीं नहीं जा सका. उन लोगों ने झूठे आरोप में उसे बहुत मारा था. उस हसीना की भी उसे बहुत याद आती थी. प्रेम ने कान पकड़ लिए कि अब दोबारा उस के महल्ले में कदम नहीं रखेगा. लेकिन ज्योंज्यों वह ठीक हो रहा था उसे देखने और प्यार का इजहार करने की इच्छा फिर जोर मारने लगी.

कुछ दिनों के बाद प्रेम हिम्मत कर के फिर उस हसीना के घर के सामने पहुंच गया. पर यह क्या? उस हसीना के घर के आगे कारों का काफिला लगा था. बहुत सारे लोग इधरउधर मंडरा रहे थे. पास ही एक शामियाना लगा था जिसे अब खोला जा रहा था. शायद यहां कोई शादी थी. तभी कई औरतें उस हसीना के घर से एक दुलहन को घेरे हुए गाना गाती हुई बाहर निकलीं और एक कार की तरफ बढ़ गईं. सब रो रही थीं. दुलहन भी रो रही थी.

दुलहन को गौर से देखा तो प्रेम के होश उड़ गए. वह तो उस की हसीना थी. वह सपनों के महल सजाता रहा और उस की शादी भी हो गई. यह देख कर वह बहुत निराश हुआ. तभी प्रेम को खयाल आया कि वह बहुत दिनों से कालेज नहीं गया है, इसीलिए बुझे मन से कालेज के लिए चल पड़ा.

रास्ते में प्रेम ने सोचा, ‘मुझे अपने जीवन को संवारने पर ध्यान देना चाहिए, वरना मैं सपनों के महल सजाता रह जाऊंगा और सब की शादी होती जाएगी. और क्या पता, लड़कियों के चक्कर में मैं कहीं निकम्मा और बेरोजगार रह गया तो शायद सारी जिंदगी कुंआरा भी रहना पड़ सकता है. नहीं, मैं यह नहीं होने दूंगा. कैरियर पर पहले ध्यान दूंगा.’ प्रेम तेज रफ्तार से कालेज चल पड़ा. क्लास शुरू होने में थोड़ी ही देर थी.

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