शहीद – देशभक्ति का जनून – भाग 2

मैं वापस बैरक के भीतर घुसा तो देखा कि घायल शाहदीप का पूरा शरीर कांप रहा था.

मैं उस के करीब पहुंचा ही था कि उस का शरीर लहराते हुए मेरी ओर गिर पड़ा. मैं ने उसे अपनी बांहों में संभाल कर सामने बने चबूतरे पर लिटा दिया. वह लंबीलंबी सांसें लेने लगा.

उस की उखड़ी हुई सांसें कुछ नियंत्रित हुईं तो मैं ने पूछा, ‘‘बताओ, क्या कहना चाहते हो?’’

‘‘सिर्फ इतना कि मैं ने आप का कर्ज चुका दिया है.’’

‘‘कैसा कर्ज? मैं कुछ समझा नहीं.’’

‘‘अगर मैं चाहता तो आप मुझे मार भी डालते तो भी मेरे यहां आने का राज कभी मुझ से न उगलवा पाते. मैं यह भी जानता था कि देशभक्ति के जनून में आप मुझे मार डालेंगे किंतु यदि ऐसा हो जाता तो फिर जिंदगी भर आप अपने को माफ नहीं कर पाते.’’

‘‘फौजी तो अपने दुश्मनों को मारते ही रहते हैं, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है,’’ मैं ने अचकचाते हुए कहा.

‘‘लेकिन एक बाप को फर्क पड़ता है. अपने बेटे की हत्या करने के बाद वह भला चैन से कैसे जी सकता है?’’ शाहदीप के होंठों पर दर्द भरी मुसकान तैर गई.

‘‘कैसा बाप और कैसा बेटा. तुम कहना क्या चाहते हो?’’ मेरा स्वर कड़ा हो गया.

शाहदीप ने अपनी बड़ीबड़ी आंखें मेरे चेहरे पर टिका दीं और बोला, ‘‘ब्रिगेडियर दीपक कुमार सिंह, यही लिखा है न आप की नेम प्लेट पर? सचसच बताइए कि आप ने मुझे पहचाना या नहीं?’’

मेरा सर्वांग कांप उठा. मेरी ही तरह मेरे खून ने भी अपने खून को पहचान लिया था. हम बापबेटों ने जिंदगी में पहली बार एकदूसरे को देखा था किंतु रिश्ते बदल गए थे. हम दुश्मनों की भांति एकदूसरे के सामने खड़े थे. मेरे अंदर भावनाओं का समुद्र उमड़ने लगा था. मैं बहुत कुछ कहना चाहता था किंतु जड़ हो कर रह गया.

‘‘डैडी, आप को पुत्रहत्या के दोष से बचा कर मैं पुत्रधर्म के ऋण से उऋण हो चुका हूं. आज के बाद जब भी हमारी मुलाकात होगी आप अपने सामने पाकिस्तानी सेना के जांबाज और वफादार अफसर को पाएंगे, जो कट जाएगा लेकिन झुकेगा नहीं,’’ शाहदीप ने एकएक शब्द पर जोर देते हुए कहा.

‘‘इस का मतलब तुम ने जानबूझ कर अपना राज खोला है,’’ बहुत मुश्किलों से मेरे मुंह से स्वर फूटा.

‘‘मैं कायर नहीं हूं. मैं आप की सौगंध खा कर वादा करता हूं कि जिस देश का नमक खाया है उस के साथ नमकहरामी नहीं करूंगा,’’ शाहदीप की आंखें आत्मविश्वास से जगमगा उठीं.

शाहदीप के स्वर मेरे कानों में पिघले शीशे की भांति दहक उठे. मैं एक फौजी था अत: अपने बेटे को अपनी फौज के साथ गद्दारी करने के लिए नहीं कह सकता था किंतु जो वह कह रहा था उस की भी इजाजत कभी नहीं दे सकता था. अत: उसे समझाते हुए बोला, ‘‘बेटा, तुम इस समय हिंदुस्तानी फौज की हिरासत में हो इसलिए कोई दुस्साहस करने की कोशिश मत करना. ऐसा करना तुम्हारे लिए खतरनाक हो सकता है.’’

‘‘दुस्साहस तो फौजी का सब से बड़ा हथियार होता है, उसे मैं कैसे छोड़ सकता हूं. आप अपना फर्ज पूरा कीजिएगा मैं अपना फर्ज पूरा करूंगा,’’ शाहदीप निर्णायक स्वर में बोला.

मैं दर्द भरे स्वर में बोला, ‘‘बेटा, तुम्हारे पास समय बहुत कम है. मेहरबानी कर के तुम इतना बता दो कि तुम्हारी मां इस समय कहां है और यहां आने से पहले क्या तुम मेरे बारे में जानते थे?’’

‘‘साल भर पहले मां का इंतकाल हो गया. वह बताया करती थीं कि मेरे सारे पूर्वज सेना में रहे हैं. मैं भी उन की तरह बहादुर बनना चाहता था इसलिए फौज में भरती हो गया था. अपने अंतिम दिनों में मां ने आप का नाम भी बता दिया था. मैं जानता था कि आप भारतीय फौज में हैं किंतु यह नहीं जानता था कि आप से इस तरह मुलाकात होगी,’’ बोलतेबोलते पहली बार शाहदीप का स्वर भीग उठा था.

मैं भी अपने ऊपर नियंत्रण नहीं रख पा रहा था. अत: शाहदीप को अपना खयाल रखने के लिए कह कर तेजी से वहां से चला आया.

‘‘सर, वह क्या कह रहा था?’’ बाहर निकलते ही कैप्टन बोस ने पूछा.

‘‘कह रहा था कि मैं ने आप की मदद की है इसलिए मेरी मदद कीजिए, और मुझे यहां से निकल जाने दीजिए,’’ मेरे मुंह से अनजाने में ही निकल गया.

मैं चुपचाप अपने कक्ष में आ गया. बाहर खड़े संतरी से मैं ने कह दिया था कि किसी को भी भीतर न आने दिया जाए. इस समय मैं दुनिया से दूर अकेले में अपनी यादों के साथ अपना दर्द बांटना चाहता था.

कुरसी पर बैठ उस की पुश्त से पीठ टिकाए आंखें बंद कीं तो अतीत की कुछ धुंधली तसवीर दिखाई पड़ने लगी.

उस शाम थेम्स नदी के किनारे मैं अकेला टहल रहा था. अचानक एक अंगरेज नवयुवक दौड़ता हुआ आया और मुझ से टकरा गया. इस से पहले कि मैं कुछ कह पाता उस ने अत्यंत शालीनता से मुझ से माफी मांगी और आगे बढ़ गया. अचानक मेरी छठी इंद्री जाग उठी. मैं ने अपनी जेब पर हाथ मारा तो मेरा पर्स गायब था.

‘पकड़ोपकड़ो, वह बदमाश मेरा पर्स लिए जा रहा है,’ चिल्लाते हुए मैं उस के पीछे दौड़ा.

मेरी आवाज सुन उस ने अपनी गति कुछ और तेज कर दी. तभी सामने से आ रही एक लड़की ने अपना पैर उस के पैरों में फंसा दिया. वह अंगरेज मुंह के बल गिर पड़ा. मेरे लिए इतना काफी था. पलक झपकते ही मैं ने उसे दबोच कर अपना पर्स छीन लिया. पर्स में 500 पाउंड के अलावा कुछ जरूरी कागजात भी थे. पर्स खोल कर मैं उन्हें देखने लगा. इस बीच मौका पा कर वह बदमाश भाग लिया. मैं उसे पकड़ने के लिए दोबारा उस के पीछे दौड़ा.

‘छोड़ो, जाने दो उसे,’ उस लड़की ने लगभग चिल्लाते हुए कहा था.

भोली गाय : राम और रेखा की अनोखी कहानी

कि सान रमुआ के बेटों राम व रणवीर की शादी उन्हीं की तरह 2 जुड़वां बहनों रेखा और सीमा से हुई थी. रेखा 2 मिनट बड़ी थी, पर लगती छोटी थी. सीमा सुडौल और चुस्त लगती थी. पर एक मिनट बड़े भाई राम और रणवीर में कोई फर्क नहीं दिखता था.

रमुआ सब की मदद करने वाला और मीठा बोलने वाला इनसान था. उस के पास 50 एकड़ जमीन, पक्का मकान और कहना मानने वाले बेटे थे, जो पिता को मां की कमी खलने नहीं देते थे.

शादी के बाद दोनों बहनें सुखी थीं और घर का ध्यान रखती थीं. रेखा को सब गाय जैसी सीधी मानते थे और वह सब के खानेपीने का ध्यान रखती थी. सीमा सारा समय खेतों में लगा देती थी. छोटा भाई रणवीर बड़े भाई राम और भाभी रेखा का कहना मानता था.

राम कभीकभी बीज लेने और गल्ला बेचने शहर जाता था. रणवीर घर और खेत का काम देखता था. राम रात होने से पहले घर आ जाता था.

राम ने एक दिन सरपंच से सुना कि पास के कृषि महाविद्यालय में उन्नत खेती की एक महीने की पढ़ाई करने पर सरकार ट्रैक्टर खरीदने के लिए कर्ज दे देती है.

राम ने अपना नाम लिखवा दिया. रेखा को यह अच्छा नहीं लगा, पर राम चला गया. रेखा उदास हो गई.

2-3 दिन सब ठीक रहा, पर चौथे दिन जब सब खेत पर थे, तो रणवीर किसी काम से घर आया. दरवाजा बंद करते ही रेखा रणवीर से लिपट गई और कहने लगी, ‘‘आप जल्दी आ गए, बहुत अच्छा किया. मैं आप के बिना नहीं रह सकती.’’

सजीधजी रेखा के ऐसा करते ही रणवीर हैरान हो गया, पर रेखा अपनी कोशिश में आगे ही बढ़ती गई और जो नहीं होना था हो गया.

रणवीर ने संयत होने के बाद कहा, ‘‘भाभी, मैं रणवीर हूं. आप ने बोलने का मौका ही नहीं दिया और यह सब हो गया.’’

‘‘पगले, मैं तुम दोनों भाइयों को पहचानती हूं. मैं अपने को रोक नहीं पा रही थी, इसलिए यह नाटक किया.’’

तब रणवीर बोला कि यह ठीक नहीं है, तो रेखा ने गुस्से में कहा, ‘‘अगर अब मुझे छोड़ा, तो मैं तुम्हें बदनाम कर दूंगी. मैं सीमा से खूबसूरत हूं.’’

यह सुन कर रणवीर डर गया और बोला, ‘‘सच है कि आप सीमा से ज्यादा खूबसूरत हैं. मैं आप को नहीं छोड़ूंगा.’’

तब से उन में यह सैक्स का खेल शुरू हो गया और राम के आने पर भी यह सिलसिला नहीं थमा. एक दिन पता चला कि सीमा पेट से है और घर पर रहेगी.

यह सुन कर रेखा खुश दिखी, मगर सोच में पड़ गई. थोड़े दिन बाद रेखा के पेट से होने की खबर मिली, तो रमुआ बहुत खुश हुआ और दोनों बहुओं को

2-2 सोने के कड़े दिए और गांव में मिठाई बांटी.

अब रेखा अपना और सीमा का बहुत ध्यान रखती थी. सीमा को कम से कम काम करने देती थी और ससुर को भी अच्छी तरह खिलानेपिलाने लगी थी.

एक दिन राम रेखा को शहर ले गया. शहर की रौनक देख कर रेखा दंग रह गई और उस ने खुशीखुशी आने वाले बच्चों के लिए खूब कपड़े खरीदे.

दोनों ने सिनेमा भी देखा. शहर का खाना भी रेखा को अच्छा लगा. मौजमस्ती में काफी समय लग गया. यहां तक कि आखिरी बस भी छूट गई.

राम का दोस्त राजू, जो ट्रक चलाता था, अचानक मिल गया. राम ने अपनी समस्या बताई, तो राजू ने घर छोड़ने की हामी भर दी.

रेखा के कहने पर भी दोनों ने जल्दी नहीं दिखाई. दोनों ने बैठ कर काफी देर तक शराब पी. रेखा सोचती थी कि उस का पति पीता नहीं है, पर यह देख कर उसे लगा कि वह अपने पति को जानती नहीं है. तब उसे यह भी पता लगा कि जब वह शहर में रहता है, तो पीता है, पर घर पर पिता रमुआ से डरता है और भाई के कारण आदत नहीं डालता है.

खैर, पीना बंद कर के राजू ने ट्रक चलाना शुरू किया. बरसात और कच्ची सड़क के कारण ट्रक ठीक नहीं चल पा रहा था, पर ट्रक को राजू ज्यादा तेज चला रहा था.

रेखा के कहने पर भी राजू ने ट्रक की स्पीड कम नहीं की. अचानक ही अंधेरे में बिजली चमकी, तो उस ने देखा कि आगे रोडरोलर है और ट्रक बड़ी तेजी से उस से टकराया और पलट गया. रेखा जमीन पर गिरी और बेहोश हो गई.

रेखा को जब होश आया, तो उस ने अपनेआप को पट्टियों से बंधा पाया और मुंह पर एक सांस लेने वाली किसी चीज को लगा देखा. यह सब उस ने फिल्मों में देखा था और अब वह घबरा गई थी.

उस ने अपने हाथपैरों को हिलाया और ठीक पाया. इस के बाद उस ने पेट पर हाथ फेरा और ‘उई मां’ चिल्लाई.

यह सुन कर नर्स भागी आई, तो वह जोर से बोली, ‘‘मेरे बच्चे को क्या हुआ? मेरे पति कहां हैं? मैं कहां हूं?’’ यह बोल कर वह रोने लगी.

तब नर्स ने डाक्टर को बुलाया. उस ने आ कर हिम्मत बंधाने की कोशिश की और सीमा को बुला लिया.

सीमा ने आ कर बहन के साथ लिपट कर कहा, ‘‘बच्चे तो बाद में आ जाएंगे. तुम बच गईं, यही काफी है. राम भैया और किसी का भी अभी मत सोचो,’’ यह सुन कर रेखा सो गई.

रेखा की जब आंखें खुलीं, तो वह सोच में पड़ गई कि राम का क्या हाल होगा. वह अपाहिज तो नहीं हो गया. अगर उसे कुछ हो गया, तो मेरी जिंदगी का क्या होगा?

यह सब सोचसोच कर वह आंसू बहाने लगी.

सीमा ने उस का मन बहलाना चाहा और कहा कि कल तक राम ठीक हो कर उस से मिलेगा, यह सुन कर उसे कुछ हौसला आया. उस ने दवा और नाश्ता लिया और फिर सो गई.

इस तरह 3 दिन बीत गए और रेखा के बारबार कहने पर भी राम नहीं आया. उस ने सोचा कि शायद राम को ज्यादा ही चोट लगी होगी.

चौथे दिन उस ने अपनेआप को दूसरे कमरे में पाया और देखा कि नर्स नहीं, सीमा उस का सिर दबा रही थी. उस के वही सवाल दोहराने पर सीमा ने कहा कि वहां राम नहीं आ सकते थे, अब जल्दी आ जाएंगे.

इस तरह करतेकरते 3 दिन और बीत गए, तब उस के फिर दोहराने पर सीमा ने कहा, ‘‘आज तो तुम घर चल रही हो, इतनी उतावली क्यों हो? जरा चलोफिरो और घर चलने को तैयार हो जाओ,’’ यह सुनते ही जैसे रेखा को पर लग गए हों. वह जल्दीजल्दी घर के लिए तैयार हो गई. घर आने पर उस ने अपने ससुर रमुआ के पैर छुए, तो वे रोते हुए घर से बाहर निकल गए.

वह अंदर आई, तो सीमा ने कहा, ‘‘रोज रट लगा रखी थी, लो अपने राम से मिल लो.’’

राम की तरफ देखते ही वह जोर से चिल्लाई, ‘‘नहीं… यह राम नहीं, रणवीर है. यह तुम क्या कह रही हो? सीमा, मैं क्या पहचानती नहीं,’’ और वह सिर पटक कर रोने लगी.

यह सुन कर रणवीर और सीमा माफी मांगने लगे और रमुआ भी अंदर आ गया और बोला, ‘‘बेटी, मैं ने राम को तो खो दिया, पर तुझे नहीं खोना चाहता था. मेरा बुढ़ापा खराब न हो, इसलिए मैं ने यह कहा था.’’

यह सुन कर उस का रोना कम नहीं हुआ और वह रोती रही.

एक दिन अचानक रेखा सपने से जागी. लगा, जैसे राम कह रहा हो, उठो और मेरे पिता का ध्यान रखो.

वह उठ कर बैठ गई और कुछ देर बाद घर से बाहर आ कर खेतों की तरफ धीरेधीरे चलने लगी. उस ने कुछ दूरी पर औरतों को बातें करते सुना कि रमुआ काका का तो घर बरबाद हो गया. राम जैसा बेटा चला गया और गाय जैसी रेखा का बच्चा. अब रेखा तो बांझ भी हो गई. उस के बच्चे भी नहीं हो सकते.

यह सुन कर रेखा हैरान रह गई, पर रोई नहीं.

वह घर की तरफ चल दी और घर में आ कर चारपाई पर लेट गई.

इतना सब सुनने पर नींद किसी पागल को ही आती होगी. वह सोचने लगी कि अब क्या होगा.

सीमा ने आ कर उस की सोच तोड़ी और चाय देते हुए कहा, ‘‘दीदी, चाय पी लो और उठ जाओ. हम दोनों जिंदगी में सुखदुख बांटती आई हैं, अब भी यही होगा.’’

तब रेखा ने चाय लेते हुए कहा, ‘‘तेरे होते मैं परेशान नहीं हूं. अब अपनी और होने वाले बच्चे की सोचो.’’

कुछ देर बाद रेखा ने रसोई में जा कर सीमा से कहा, ‘‘तुम काम कम किया करो, तुम्हें बच्चे को जन्म देना है. चलो हटो, खाना मैं बनाती हूं,’’ फिर उस ने सीमा को बाहर बैठा दिया और सब को खाना खिलाया.

रमुआ खुश हो गया और रेखा को बुला कर कहा, ‘‘बेटी, बात सुनो. यह लो अलमारी की चाबी और सामान वाले कमरे को भी देख लो. आज से घर का सब काम तुम्हें देखना है, तुम इस घर की बड़ी हो,’’ इतना कहने के बाद रमुआ उस के सिर पर हाथ फेर कर चला गया.

अब तो रेखा के पैर सारा दिन काम करते और सीमा का ध्यान रखते थकते नहीं थे. उस ने अपना हार बेच कर भैंस खरीद ली और सीमा के 2 बेटे होने के बाद बहुत अच्छा भोज भी किया.

जिंदगी एक रास्ते पर नहीं चलती. इसी तरह एक दिन रमुआ सोया, पर उठा नहीं, तो घर फिर दुख में डूब गया.

सीमा को रमुआ के जाने पर ज्यादा काम पड़ गया, पर वह अपने बेटों के साथ ही सोती थी.

घर का सारा काम रेखा देखती थी, इस थकान में वह रणवीर, राम और सबकुछ भूल कर रात को सो जाती.

एक रात वह सो रही थी, तो उस ने अपने आसपास हरकत देखी और कहा कि कौन है, तो रणवीर धीरे से बोला, ‘‘मैं हूं, मुझ से आप का दुख देखा नहीं जाता, इसलिए मैं यहां आया हूं.’’

तब रेखा ने धीरे से कहा, ‘‘मेरा दुख कि अपनी खुशी. खैर, जो भी है, पहले ही मैं यह कर चुकी हूं, अब तो जिंदगी तुम सब के नाम है. तुम चाहे जो करो.’’ यह सुन कर प्यार की बातें बना कर रणवीर अपना काम कर गया.

यह सिलसिला फिर शुरू हुआ, तो रुका नहीं, पर इस बीच पता चला कि सीमा फिर पेट से है और समय आने पर उस के 2 बेटियां पैदा हुईं.

अब घर का काम बढ़ गया था, पर फसल ठीक हो रही थी, इसलिए रणवीर ने एक 16 साल के लड़के को काम पर रख लिया था, पर रेखा को यह परेशानी थी कि उस का नाम भी राम था.

रेखा ने उसे बाबू कहना शुरू कर दिया. वह सारा दिन खेत और घर का काम करता था. रात को वह खेत पर ही सोता था. रणवीर खुश था, क्योंकि उसे सब आसानी से मिल रहा था.

एक दिन रणवीर ने कहा, ‘‘भाभी, घर का खर्च काफी हो रहा है. सीमा तो बस काम कर सकती है. आप बताओ कि क्या करें?’’

यह सुन कर रेखा ने कहा, ‘‘तुम्हें अब सिर्फ प्रेमलीला नहीं, घर की सोचनी चाहिए. ज्यादा खेती करो और कुछ राम की तरह पढ़ कर आओ.’’

इस पर रणवीर बोला, ‘‘मैं आप के लिए सब कर सकता हूं.’’

अगले दिन रेखा ने जा कर खुद, उसे और सीमा को प्रौढ़ शिक्षा केंद्र में दाखिल करवा लिया. तीनों जल्दी ही अच्छा पढ़नालिखना और अंगरेजी बोलना भी सीख गए.

एक साल बाद जब खेत में काम कम हुआ, तो ट्रक चलाने का मन बना कर रणवीर शहर चला गया. वहां उसे ट्रक चलाने से कार ठीक करना बेहतर लगा. वह कुछ महीनों में ही कार ठीक करने में माहिर हो गया और एक गैराज में काम करने लगा.

रणवीर के जाने के बाद नौकर राम का घर आना ज्यादा हो गया. वह सब का खयाल रखता था.

वह सब से ज्यादा रेखा का ध्यान रखता था और उसे ‘भाभीभाभी’ कहते नहीं थकता था. रेखा भी उसे अच्छी तरह खाना खिलाती थी.

रणवीर जब गांव आता, तो सब के लिए चीजें लाता था. वह दोनों बहनों के लिए एकजैसा सामान लाता था. सीमा कुछ नहीं कहती थी, पर बहन का पूरा ध्यान रखती थी.

एक दिन जब रणवीर आया, तो वह बहुत खुश था. उस ने बताया कि वह जिस गैराज में काम करता है, वह बिक रहा है. उस ने वह गैराज खरीदने का फैसला कर लिया है और हम सब शहर जा रहे हैं.

यह सुन कर घर के सब लोग खुश हो गए, मगर रेखा नहीं. रेखा ने कहा, ‘‘मैं यहीं रहूंगी.’’

तब सीमा बोली, ‘‘बहन, मैं ने तेरे साथ सबकुछ बांटा है, मुझे मूर्ख मत समझना. बाकी बात अकेले में करूंगी.’’

सब के जाने के बाद सीमा ने कहा, ‘‘मेरी जिंदगी आप की है. मैं ने सबकुछ तुम्हारे साथ बांटा है. बात कहे बिना समझ लो. अब बच्चे सब समझने लगे हैं, इसलिए जाना ही होगा,’’ यह कह कर वह रो पड़ी.

उन की जमीन काफी उपजाऊ थी, इसलिए आधा खेत बेचने पर गैराज और मकान मिल गया और वह चले गए.

रेखा का मन अब उचाट था, इसलिए वह जीजान से काम करती थी. खर्च उस का और नौकर राम का रह गया था. पैसा काफी बचता था. रेखा ने खेत वापस खरीद लिया.

नौकर राम खेत पर सोता था, पर वह रेखा का बहुत ध्यान रखता था.

एक दिन नौकर राम खाना खा रहा था, तो रेखा ने कहा, ‘‘बाबू, अब तुम जवान हो, शादी करो और घर बसाओ.’’

राम ने कहा, ‘‘मालकिन, मैं आप को छोड़ कर नहीं जा सकता. वैसे, मेरा घर क्या बसेगा, क्योंकि मेरे सौतेले बाप ने एक हजार रुपए के लिए मेरी नसबंदी करवा दी थी. मैं भाग आया और अब आप की सेवा में यह जिंदगी है.’’

यह बात सुनते ही रेखा रो उठी और उस के कंधे पर हाथ रख कर दिलासा दी. वह पानी की बालटी ले कर आई, पर उस का पैर फिसल गया, तो एकदम नौकर राम ने उसे संभाल कर बांहों में भर लिया.

वह बोली, ‘‘यह क्या कर रहे हो?’’

यह सुन कर राम ने माफी मांगते हुए कहा, ‘‘मालकिन, गलती हो गई, माफ करना. मैं ने गाय जैसी भोली मालकिन के साथ ऐसा क्यों किया?’’

‘‘इन मामलों में ऊपर वाले ने किसी को भी भोला नहीं बनाया, क्या गाय, क्या जानवर? मैं इस के लिए मन से मजबूर रही हूं. मेरे बच्चे नहीं हो सकते और तुम मुझ से छोटे हो, शादी भी नहीं हो सकती और वह मुझ पर कलंक होगी, इसलिए जाओ, खेत पर काम करो.’’

अब राम बहुत चुप रहता था, खाना भी कम खाता था. रेखा सब जानती थी. वह डर गई कि कहीं राम न चला जाए.

एक दिन वह आया, तो उस ने देखा, दरवाजा तो खुल गया, पर कोई दिखा नहीं. जब वह अंदर गया, तो सजी हुई रेखा को देखता ही रह गया.

यह देख कर रेखा बोली, ‘‘बाबू, क्या देखते हो… मैं ही हूं. मैं ने टैलीविजन पर शहर में बिना शादी किए साथ रहने के बारे में सुना है. क्या कहते हैं… लिव इन रिलेशनशिप… हम वही करेंगे. जीना तो है न. पर किसी को बताया, तो इतने जूते मारूंगी कि याद करेगा.’’

‘‘नहीं मालकिन, मैं आप का नौकर हूं, नौकर ही रहूंगा.’’

यह कह कर नौकर राम उस के गले लग गया.

चादर : रमजान के वे दिन

रमजान अली ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि इस बुढ़ापे में यह मुसीबत भी सिर पर आ पड़ेगी. इस जिंदगी ने उन्हें दिया ही क्या था, सिवा दुखों के. बचपन में ही अब्बा मर गए. अम्मी ने मेहनतमजदूरी कर के, दूसरों के कपड़े सिल कर, बरतन मांज कर जैसेतैसे पाला और मैट्रिक पास करा दिया.

उन दिनों इतनी पढ़ाई कर के रोजगार मिल जाता था. रमजान अली भी चुंगी महकमे में लग गए. उन की शादी होने के बाद अम्मी भी मर गईं.

एक साल के बाद बेटी पैदा हुई. वे थोड़ी सी आमदनी में गुजारा करते रहे. ईमानदार आदमी थे, इसलिए हाथ तंग ही रहा. न कभी अच्छा खा सके, न पहन सके. जिंदगी एक बोझ थी, जिसे वे ढो रहे थे.

रमजान अली की बेटी अकबरी 10 साल की ही थी कि उन की बीवी चल बसी. उन्होंने दूसरी शादी नहीं की, क्योंकि वे डरते थे कि सौतेली मां बेटी को तंग न करे.

न जाने क्याक्या जतन कर के वे अकबरी को पालते रहे. इस सब में उन की कमर टेढ़ी हो गई. बालों पर बुढ़ापे की बर्फ गिरने लगी. दांत टूट गए. धुंधलाई हुई आंखों पर चश्मा लग गया. वे छड़ी के सहारे चलने लगे.

अकबरी 20 साल की हो गई थी. रमजान अली की रातों की नींद हराम हो गई थी. रिश्ते की तलाश में दौड़तेदौड़ते उन के जूतों के तले घिस गए.

आमतौर पर या तो लड़के ऐबी और निकम्मे मिलते थे या उन के घरों का माहौल जाहिल था. जो कुछ ढंग के थे, उन्हें पैसे वाले झटक लेते थे.

आखिरकार काफी दौड़भाग के बाद एक रिश्ता मिला. लड़का किसी वकील का मुंशी था.

रमजान अली ने बेटी की शादी कर दी और बिलकुल ही कंगाल हो गए. रिटायर होने में एक साल बाकी था. कर्ज का बोझ दबा रहा.

बेटी को विदा कर के सोचा था, ‘चलो, इस फर्ज से तो निबट गए. दिल में एक ही तमन्ना थी कि रिटायर होने के बाद हज को जाऊंगा, पर यहां तो रोटियों के भी लाले हैं.’

बेटी की शादी तो एक तरह का जुआ होती है. कोई नहीं कह सकता कि अंजाम क्या होगा.

अकबरी बड़ी दुखी थी, क्योंकि उसे बड़ी जालिम सास मिली थी. वह अकबरी को दिनभर कोल्हू के बैल की तरह कामकाज में पेले रखती. चलो, उसे भी झेल लिया जाता, पर मुसीबत तो यह थी कि 2 साल बीतने पर भी उस की गोद हरी नहीं हुई थी और इस का इलजाम भी उसी पर था.

सास ‘बांझ’ होने का ताना देने लगी थी. जाहिल लोग भला क्या जानें कि ‘बांझ’ तो मर्द भी हो सकता है.

एक दिन अकबरी रोती हुई आई और अब्बा से कहा, ‘‘मेरी सास मेरे शौहर की दूसरी शादी की बात कर रही हैं… कहती हैं कि मैं बांझ हूं.’’

रमजान अली पर बिजली सी गिर पड़ी, आंखों के सामने अंधेरा छा गया. वे बेटी की ससुराल गए.

उन्होंने उस की सास के सामने हाथ जोड़े और गिड़गिड़ाए, ‘‘ऐसा मत करो. मेरी बेटी कहीं की न रहेगी. मैं उस का इलाज कराऊंगा… हम पर तरस खाओ.’’

सास चीख कर बोली, ‘‘घर में फल देने वाला पेड़ ही लगाते हैं. तुम ने एक बांझ को मेरे बेटे के पल्ले बांध कर हमें धोखा दिया है. मैं दूसरी बहू लाऊंगी और तुम्हारी बेटी को तलाक दिलवाऊंगी.’’

दामाद चुप रहा, क्योंकि मां उस पर छाई हुई थी. मां का हुक्म मानना हर बेटे का फर्ज है. बीवियां तो जितनी चाहो मिल जाती हैं, मां नहीं मिलती. मां के कहने पर शादी की और उस के कहने पर तलाक भी दे देगा.

तलाक देना कोई ऐसा मुश्किल काम तो है नहीं. बस, 3 बार जबान हिलानी पड़ती है. बांझ भला किस काम की? आखिर वह मर्द था, उसे हक था एक को तलाक दे कर दूसरी लाने का.

लेडी डाक्टर को दिखाया. अकबरी में कोई कमी नहीं थी. रिपोर्ट रमजान अली के हाथ में थी, पर समाज तो औलाद पैदा करने की जिम्मेदारी औरत पर ही डालता है. डाक्टर कुछ भी कहा करें, बदनामी तो हर सूरत में रमजान की बेटी ही की थी.

वे इसी परेशानी में मारेमारे फिर रहे थे कि उन के दोस्त जलील मियां ने सलाह दी, ‘‘मस्तान शाह की दरगाह पर जा कर मजार पर चादर चढ़ाओ, बड़ीबड़ी मुरादें पूरी हो जाती हैं. जितनी भारी चादर होगी, उतनी ही जल्दी मुराद पूरी होगी.’’

रमजान अली उलझन में पड़ गए कि करें तो क्या करें? इन बातों को वे मानते तो न थे, मगर डूबने वाला तो तिनके का भी सहारा लेता है. बेटी की शादी ने उन की हालत एक भिखारी जैसी बना दी. हाथ बहुत तंग हो रहा था. ऐसी हालत में भारी चादर चढ़ाने के लिए पैसे कहां से लाते?

मस्तान शाह के मजार पर अब फूलों की चादर चढ़ाना बंद कर दिया गया था. कपड़े की चादरें ही कबूल की जाती थीं. शायद पीर साहब ने सपने में सज्जादे मियां से यह बात कही थी.

रमजान अली रकम उधार ले कर बाजार पहुंचे.

‘जितनी भारी चादर होगी, उतनी ही जल्दी मुराद पूरी होगी,’ उन्होंने मन ही मन कहा. अब वे इतने भोले भी न थे कि ‘भारी’ का मतलब भी न समझते.

रेशम की भारी चादर 8 सौ रुपए में मिली. रकम गिनते वक्त जैसे कलेजा निकला जा रहा था, मगर बेटी की जिंदगी का सवाल था. इस जुए की एक बाजी और लगा दी.

जुमेरात की शाम को वे चादर को थाली में रख कर दरगाह की तरफ चल पड़े. हरे रंग के मीनार का कलश दूर से दिखाई दे रहा था. दरगाह के पास ही सड़क के दोनों तरफ मिठाई की दुकानों के अलावा फूलों, चादरों और इत्र की दुकानें भी थीं, जिन पर ग्राहकों की भीड़ थी.

इन चीजों को लोग खरीद कर मजार पर चढ़ाते थे और वही चीजें पिछली गली से फिर इन दुकानों में  जातीं, एक बार फिर बिकने के लिए. इस तरह मस्तान शाह भी खुश, मुजाविर भी खुश, दुकानदार भी खुश.

मर्द, औरतें, बूढ़े, जवान और बच्चे दरगाह के गेट की तरफ जा रहे थे.

जो पैसे वाले थे, उन की कीमती झिलमिलाती चादरें कव्वालों की गातीबजाती टोलियों के साथ ले जाई जा रही थीं, जिन पर गुलाबपाशी की जा रही थी.

दरगाह के आसपास लंगड़ेलूले, अपाहिज और हट्टेकट्टे भिखारियों का हुजूम था. जुमेरात के दिन और दिनों से ज्यादा ही भीड़ होती थी. एक मेला सा लगा रहता था. कव्वालों का गाना, औरतों  और बच्चों का शोर, दुकानदारों और ग्राहकों का मोलतोल, यानी कानपड़ी आवाज न सुनाई देती.

गेट पर एक बक्से में 5 रुपए का नोट डालना पड़ा. यह ‘चिरागी’ के नाम पर देना पड़ता था.

अंदर खचाखच भीड़ थी. अगरबत्ती, लोबान, गुलाब के फूलों और पसीने की बू से हवा बोझिल थी.

मजार तक पहुंचतेपहुंचते 3 जगह 3 बक्सों में 5-5 के नोट और सिक्के डालने पड़े, क्योंकि इन जगहों पर मस्तान शाह बैठ कर हुक्का पीया करते थे.

उस दिन भीड़ कुछ ज्यादा ही थी. इस की वजह यह थी कि सज्जादे साहब भी मजार पर हाजिर हुए थे. सुर्ख, सफेद रंगत वाले भारीभरकम आदमी थे.

10-20 लोग आगेपीछे चल रहे थे. लोग उन के हाथ चूमने के लिए एकदूसरे को धकेल कर आगे बढ़ने का जतन कर रहे थे.

इतनी बड़ी दरगाह के सज्जादे की एक नजर ही पड़ जाने से बेड़ा पार हो जाता था. उन की आंखों में लाललाल डोरे रातों को जागने से पड़े रहते थे.

लोगों का कहना था कि वे रातभर इबादत करते हैं, इसीलिए दिनभर सोया करते हैं. जब भी वे बाहर आते, रेशम के कपड़े पहने होते. गले में सोने की चेन और उंगलियों में जगमगाती हीरे की अंगूठियां उन की शान बढ़ाती थीं.

सुना है कि एक पार्टी उन्हें विधानसभा की सीट के लिए खड़ा करने वाली है. चेहरे पर बड़ीबड़ी मूंछें देख कर किस की हिम्मत थी, जो उन से आंख से आंख मिला कर बात करता?

सुना है कि वे करामाती भी हैं. एक बार एक कव्वाल का गला पड़ गया था, सज्जादे साहब ने उस के मुंह में थूक कर उस का गला ठीक कर दिया था.

सज्जादे साहब की हाजिरी के बाद भीड़ कम हुई, तो रमजान अली मजार की तरफ चले. बाहर कव्वाली हो रही थी. मजार के चारों तरफ मुजाविर मोर के परों के पंखे हिला रहे थे. लोबान का धुआं भरा हुआ था. लोग मिठाइयां और चादरें चढ़ा रहे थे. उन में बहुत से ऐसे थे, जिन के अपने तन पर फटे कपड़े थे.

पलभर के लिए रमजान अली ने सोचा, ‘हम लोग जिंदा लोगों को भूखा मारते हैं और उन के तन पर से कपड़े भी उतार लेते हैं और मरने वालों के लिए शानदार इमारतें बनवाते हैं, कब्रों को चादरें ओढ़ाते हैं और मिठाई चढ़ाते हैं.’

मजार पर औरतें और लड़कियां मर्दों से कहीं ज्यादा थीं. मुजाविर बारबार ‘या मस्तान’ का नारा लगा रहे थे.

न जाने क्यों, रमजान अली चादर लिए खड़े सोचते रहे, फिर वे चौंक पड़े. पहले उन्हें ऐसा लगा, जैसे बड़ा मुजाविर, जो चादरें और मिठाइयां लोगों से ले कर मजार पर चढ़ा रहा था, उन की तरफ देख रहा हो. मगर उस की लाललाल आंखें उस दुबलीपतली सी प्यारी सूरत वाली लड़की पर गड़ी थीं, जो उन के पीछे शरमाई सी खड़ी थी.

उन्होंने देखा, उस की आंखों में गहरा दुख था. वह बहुत गरीब थी. कपड़े फटे हुए थे. कुरता तो इतना फटा था कि उस का बदन भी जगहजगह से झांक रहा था.

वह लड़की बदन को फटे हुए दुपट्टे से ढकने की कोशिश कर रही थी. मुजाविर की निगाहों के तीर उसे घायल किए जा रहे थे.

रमजान अली ने उस लड़की से पूछ ही लिया, ‘‘क्या बात है?’’

‘‘मुराद मांगने आई हूं बाबा,’’ वह बोली.

उन्होंने फिर पूछा, ‘‘क्या दुख है बेटी?’’

वह बोली, ‘‘2 साल पहले मेरी शादी हुई थी. अभी तक गोद हरी नहीं हुई… मियां कहता है कि मैं बांझ हूं. तलाक देने की बात कर रहा है. घर से भी निकाल दिया है…

‘‘सुना है, चादर चढ़ाने से दुख दूर हो जाते हैं. तन पर तो फटे कपड़े हैं, चादर कहां से लाऊं? बड़ा मुजाविर कहता है कि सज्जादे साहब जुमेरात की रात को दुखियारियों को अपने हजूरे में बुला कर खास दुआ करते हैं.

‘‘इस तरह चादर चढ़ाए बिना भी मुराद पूरी हो जाती है. पर तुम तो चादर लाए हो, इसे चढ़ा कर मुराद पा लो.’’

रमजान अली ने फिर मुजाविर की आंखों की तरफ देखा, जो अभी भी उस लड़की के फटे कुरते में से झांकते गोरे बदन पर गड़ी थीं.

वे गुस्से से कांप उठे और उन्होंने आगे बढ़ कर अपनी चादर उस लड़की के बदन पर चढ़ा दी. मुजाविर और लड़की उन्हें इस तरह आंखें फाड़ कर देखने लगे, जैसे वे पागल हों.

फिर उन्होंने लड़की का हाथ पकड़ा और उसे दरगाह से बाहर ला कर कहा, ‘घर जा… बेटी, तेरा वहां आना ठीक नहीं है.’’

वह बोली, ‘‘यह चादर तुम ने…’’

उन्होंने उस की बात काट दी, ‘‘हां बेटी… आज मैं ने चादर भी चढ़ा दी और हज भी कर लिया.’’

उन्होंने जेब से अकबरी की डाक्टरी रिपोर्ट निकाली और सचाई व इंसाफ की लड़ाई लड़ने और जालिम को धूल चटाने के लिए वकील के घर की ओर चल पड़े.

शहीद – देशभक्ति का जनून – भाग 1

ऊबड़खाबड़ पथरीले रास्तों पर दौड़ती जीप तेजी से छावनी की ओर बढ़ रही थी. इस समय आसपास के नैसर्गिक सौंदर्य को देखने की फुरसत नहीं थी. मैं जल्द से जल्द अपनी छावनी तक पहुंच जाना चाहता था.

आज ही मैं सेना के अधिकारियों की एक बैठक में भाग लेने के लिए श्रीनगर आया था. कश्मीर रेंज में तैनात ब्रिगेडियर और उस से ऊपर के रैंक के सभी सैनिक अधिकारियों की इस बैठक में अत्यंत गोपनीय एवं संवेदनशील विषयों पर चर्चा होनी थी अत: किसी भी मातहत अधिकारी को बैठक कक्ष के भीतर आने की इजाजत नहीं थी.

बैठक 2 बजे समाप्त हुई. मैं बैठक कक्ष से बाहर निकला ही था कि सार्जेंट रामसिंह ने बताया, ‘‘सर, छावनी से कैप्टन बोस का 2 बार फोन आ चुका है. वह आप से बात करना चाहते हैं.’’

मैं ने रामसिंह को छावनी का नंबर मिलाने के लिए कहा. कैप्टन बोस की आवाज आते ही रामसिंह ने फोन मेरी तरफ बढ़ा दिया.

‘‘हैलो कैप्टन, वहां सब ठीक तो है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘हां सर, सब ठीक है,’’ कैप्टन बोस बोले, ‘‘लेकिन अपनी छावनी के भीतर भारतीय सैनिक की वेशभूषा में घूमता हुआ पाकिस्तानी सेना का एक लेफ्टिनेंट पकड़ा गया है.’’

‘‘तुम्हें कैसे पता चला कि वह पाकिस्तानी सेना का लेफ्टिनेंट है? वह छावनी के भीतर कैसे घुस आया? उस के साथ और कितने आदमी हैं? उस ने छावनी में किसी को कोई नुकसान तो नहीं पहुंचाया?’’ मैं ने एक ही सांस में प्रश्नों की बौछार कर दी.

‘‘सर, आप परेशान न हों. यहां सब ठीकठाक है. वह अकेला ही है. उस से बरामद पहचानपत्र से पता चला कि वह पाकिस्तानी सेना का लेफ्टिनेंट है,’’ कैप्टन बोस ने बताया.

‘‘मैं फौरन यहां से निकल रहा हूं तब तक तुम उस से पूछताछ करो लेकिन ध्यान रखना कि वह मरने न पाए,’’ इतना कह कर मैं ने फोन काट दिया.

श्रीनगर से 85 किलोमीटर दूर छावनी तक पहुंचने में 4 घंटे का समय इसलिए लगता है क्योंकि पहाड़ी रास्तों पर जीप की रफ्तार कम होती है. मैं अंधेरा होने से पहले छावनी पहुंच जाना चाहता था.

मेरे छावनी पहुंचने की खबर पा कर कैप्टन बोस फौरन मेरे कमरे में आए.

‘‘कुछ बताया उस ने?’’ मैं ने कैप्टन बोस को देखते ही पूछा.

‘‘नहीं, सर,’’ कैप्टन बोस दांत भींचते हुए बोले, ‘‘पता नहीं किस मिट्टी का बना हुआ है. हम लोग टार्चर करकर के हार गए लेकिन वह मुंह खोलने के लिए तैयार नहीं है.’’

‘‘परेशान न हो. मुझे अच्छेअच्छों का मुंह खुलवाना आता है,’’ मैं ने अपने कैप्टन को सांत्वना दी फिर पूछा, ‘‘क्या नाम है उस पाकिस्तानी का?’’

‘‘शाहदीप खान,’’ कैप्टन बोस ने बताया.

इन 2 शब्दों ने मुझे झकझोर कर रख दिया था.

मैं ने अपने मन को सांत्वना दी कि इस दुनिया में एक नाम के कई व्यक्ति हो सकते हैं किंतु क्या ‘शाहदीप’ जैसे अनोखे नाम के भी 2 व्यक्ति हो सकते हैं? मेरे अंदर के संदेह ने फिर अपना फन उठाया.

‘‘सर, क्या सोचने लगे,’’ कैप्टन बोस ने टोका.

‘‘वह पाकिस्तानी यहां क्यों आया था, यह हर हालत में पता लगाना जरूरी है,’’ मैं ने सख्त स्वर में कहा और अपनी कुरसी से उठ खड़ा हुआ.

कैप्टन बोस मुझे बैरक नंबर 4 में ले आए. उस पाकिस्तानी के हाथ इस समय बंधे हुए थे. नीचे से ऊपर तक वह खून से लथपथ था. मेरी गैरमौजूदगी में उस से काफी कड़ाई से पूछताछ की गई थी. मुझे देख उस की बड़ीबड़ी आंखें पल भर के लिए कुछ सिकुड़ीं फिर उन में एक अजीब बेचैनी सी समा गई.

मुझे वे आंखें कुछ जानीपहचानी सी लगीं किंतु उस का पूरा चेहरा खून से भीगा हुआ था इसलिए चाह कर भी मैं उसे पहचान नहीं पाया. मुझे अपनी ओर घूरता देख उस ने कोशिश कर के पंजों के बल ऊपर उठ कर अपने चेहरे को कमीज की बांह से पोंछ लिया.

खून साफ हो जाने के कारण उस का आधा चेहरा दिखाई पड़ने लगा था. वह शाहदीप ही था. मेरे और शाहीन के प्यार की निशानी. हूबहू मेरी जवानी का प्रतिरूप.

मेरा अपना ही खून आज दुश्मन के रूप में मेरे सामने खड़ा था और उस के घावों पर मरहम लगाने के बजाय उसे और कुरेदना मेरी मजबूरी थी. अपनी इस बेबसी पर मेरी आंखें भर आईं. मेरा पूरा शरीर कांपने लगा. एक अजीब सी कमजोरी मुझे जकड़ती जा रही थी. ऐसा लग रहा था कि कोई सहारा न मिला तो मैं गिर पड़ूंगा.

‘‘लगता है कि हिंदुस्तानी कैप्टन ने पाकिस्तानी लेफ्टिनेंट से हार मान ली, तभी अपने ब्रिगेडियर को बुला कर लाया है,’’ शाहदीप ने यह कह कर एक जोरदार कहकहा लगाया.

यह सुन मेरे विचारों को झटका सा लगा. इस समय मैं हिंदुस्तानी सेना के ब्रिगेडियर की हैसियत से वहीं खड़ा था और सामने दुश्मन की सेना का लेफ्टिनेंट खड़ा था. उस के साथ कोई रिआयत बरतना अपने देश के साथ गद्दारी होगी.

मेरे जबड़े भिंच गए. मैं ने सख्त स्वर में कहा, ‘‘लेफ्टिनेंट, तुम्हारी भलाई इसी में है कि सबकुछ सचसच बता दो कि यहां क्यों आए थे वरना मैं तुम्हारी ऐसी हालत करूंगा कि तुम्हारी सात पुश्तें भी तुम्हें नहीं पहचान पाएंगी.’’

‘‘आजकल एक पुश्त दूसरी पुश्त को नहीं पहचान पाती है और आप सात पुश्तों की बात कर रहे हैं,’’ यह कह कर शाहदीप हंस पड़ा. उस के चेहरे पर भय का कोई निशान नहीं था.

मैं ने लपक कर उस की गरदन पकड़ ली और पूरी ताकत से दबाने लगा. देशभक्ति साबित करने के जनून में मैं बेरहमी पर उतर आया था. शाहदीप की आंखें बाहर निकलने लगी थीं. वह बुरी तरह से छटपटाने लगा. बहुत मुश्किल से उस के मुंह से अटकते हुए स्वर निकले, ‘‘छोड़…दो मुझे…मैं…सबकुछ…. बताने के लिए तैयार हूं.’’

‘‘बताओ?’’ मैं उसे धक्का देते हुए चीखा.

‘‘मेरे हाथ खोलो,’’ शाहदीप कराहा.

कैप्टन बोस ने अपनी रिवाल्वर शाहदीप के ऊपर तान दी. उन के इशारे पर पीछे खड़े सैनिकों में से एक ने शाहदीप के हाथ खोल दिए.

हाथ खुलते ही शाहदीप मेरी ओर देखते हुए बोला, ‘‘क्या पानी मिल सकता है?’’

मेरे इशारे पर एक सैनिक पानी का जग ले आया. शाहदीप ने मुंह लगा कर 3-4 घूंट पानी पिया फिर पूरा जग अपने सिर के ऊपर उड़ेल लिया. शायद इस से उस के दर्द को कुछ राहत मिली तो उस ने एक गहरी सांस भरी और बोला, ‘‘हमारी ब्रिगेड को खबर मिली थी कि कारगिल युद्ध के बाद हिंदुस्तानी फौज ने सीमा के पास एक अंडरग्राउंड आयुध कारखाना बनाया है. वहां खतरनाक हथियार बना कर जमा किए जा रहे हैं ताकि युद्ध की दशा में फौज को तत्काल हथियारों की सप्लाई हो सके. उस कारखाने का रास्ता इस छावनी से हो कर जाता है. मैं उस की वीडियो फिल्म बनाने यहां आया था.’’

इस रहस्योद्घाटन से मेरे साथसाथ कैप्टन बोस भी चौंक पड़े. भारतीय फौज की यह बहुत गुप्त परियोजना थी. इस के बारे में पाकिस्तानियों को पता चल जाना खतरनाक था.

‘‘मगर तुम्हारा कैमरा कहां है जिस से तुम वीडियोग्राफी कर रहे थे,’’ कैप्टन बोस ने डपटा.

शाहदीप ने कैप्टन बोस की तरफ देखा, इस के बाद वह मेरी ओर मुड़ते हुए बोला, ‘‘आज के समय में फिल्म बनाने के लिए कंधे पर कैमरा लाद कर घूमना जरूरी नहीं है. मेरे गले के लाकेट में एक संवेदनशील कैमरा फिट है जिस की सहायता से मैं ने छावनी की वीडियोग्राफी की है.’’

इतना कह कर उस ने अपने गले में पड़ा लाकेट निकाल कर मेरी ओर बढ़ा दिया. वास्तव में वह लाकेट न हो कर एक छोटा सा कैमरा था जिसे लाकेट की शक्ल में बनाया गया था. मैं ने उसे कैप्टन बोस की ओर बढ़ा दिया.

उस ने लाकेट को उलटपुलट कर देखा फिर प्रसंशात्मक स्वर में बोला, ‘‘सर, भारतीय सेना के हौसले आप जैसे काबिल अफसरों के कारण ही इतने बुलंद हैं.’’

‘काबिल’ यह एक शब्द किसी हथौड़े की भांति मेरे अंतर्मन पर पड़ा था. मैं खुद नहीं समझ पा रहा था कि यह मेरी काबिलीयत थी या कोई और कारण जिस की खातिर शाहदीप इतनी जल्दी टूट गया था. मेरे सामने मेरा खून इस तरह टूटने के बजाय अगर देश के लिए अपनी जान दे देता तो शायद मुझे ज्यादा खुशी होती.

‘‘सर, अब इस लेफ्टिनेंट का क्या किया जाए?’’ कैप्टन बोस ने यह पूछ कर मेरी तंद्रा भंग की.

‘‘इसे आज रात इसी बैरक में रहने दो. कल सुबह इसे श्रीनगर भेज देंगे,’’ मैं ने किसी पराजित योद्धा की भांति सांस भरी.

शाहदीप को वहीं छोड़ मैं कैप्टन बोस के साथ चल पड़ा था कि उस ने आवाज दी, ‘‘ब्रिगेडियर साहब, मैं आप से अकेले में कुछ बात करना चाहता हूं.’’

मैं असमंजस में पड़ गया. ऐसी कौन सी बात हो सकती है जो वह मुझ से अकेले में करना चाहता है. कैप्टन बोस ने मेरे असमंजस को भांप लिया था अत: वह सैनिकों के साथ दूर हट गए.

औरत बुरी नहीं होती : कहानी सत्यभामा की

25 साल की सत्यभामा सांवले रंग की थी. जब वह हंसती थी, तो सामने वाले को अपनी गिरफ्त में ले लेती थी. सत्यभामा नौकरी के सिलसिले में राजन से मिली थी. शुरू में तो राजन ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया था, पर जैसेजैसे वह अपने कामों के लिए राजन से बारबार मिलने लगी, वैसेवैसे वह उस पर असर डालती गई थी. धीरेधीरे वे दोनों पक्के दोस्त बन गए थे.

सत्यभामा की मासूमियत, गरीबी और बदहाली के चलते राजन हमेशा उस की मदद करने के लिए तैयार रहता था. एक दिन अचानक सत्यभामा अपने भाई और एक नौजवान के साथ राजन के यहां आई. पेशे से टीचर और बूआ का बेटा कह कर सत्यभामा ने उस नौजवान का परिचय राजन से करा दिया था. राजन ने उन सब के स्वागत में कोई कसर न छोड़ी थी, पर सत्यभामा का एकाएक रूखा बरताव उसे अटपटा लगा था.

रात के खाने के बाद राजन ने सत्यभामा के भाई और बूआ के बेटे को अपने ड्राइंगरूम में सुला दिया और खुद दूसरे कमरे में सोने चला गया. सर्दी लगने पर जब राजन कंबल लेने गया, तो खिड़की से ड्राइंगरूम का नजारा देख कर ठगा सा रह गया.

गहरी नींद में सोए सगे भाई की मौजूदगी में राजन को बूआ का बेटा और सत्यभामा बिस्तर पर एकदूसरे में लिपटे नजर आए थे. यह नजारा देख कर राजन दर्द से तिलमिला गया और उलटे पैर लौट गया.

सत्यभामा के जिस्मखोर होने का पहली बार एहसास उसे भीतर तक हिला गया. मगर सुबह उस ने उन्हें इस बात का एहसास नहीं होने दिया.

राजन ने दोस्ती और मर्यादा का पालन किया, पर सत्यभामा तो किसी और ही मिट्टी की निकली. राजन समझ गया कि सत्यभामा ने उसे धोखे में रख कर महज अपना उल्लू सीधा किया था.

जाते समय सत्यभामा की चालाक आंखें राजन को पहचान चुकी थीं कि वह उसे रात को देख चुका है.

राजन ने सोच लिया कि जो लड़की जिस्मानी सुख के लिए रिश्तों को बदनाम कर सकती है, वह कभी किसी की सच्ची दोस्त नहीं हो सकती.

राजन सत्यभामा से किनारा करने का मन बनाने लगा, मगर जिसे सच्चे मन से दोस्त मान लिया हो, उसे एकदम छोड़ा भी तो नहीं जा सकता.

आखिरकार राजन ने कड़ा मन कर के अपनी ओर से सत्यभामा से कोई नाता न रखा. लेकिन न चाहते हुए भी उस ने सत्यभामा के बारे में जो जानकारी हासिल की थी, वह उस के दिल को   झक  झोरने वाली थी.

राजन सैलानी बन कर जिस होटल में रुका था, रात को वहां अपनी सहेली सुकांति के साथ सत्यभामा की मौजूदगी उस का कच्चाचिट्ठा खोलने के लिए काफी थी.

इस सब के बावजूद सत्यभामा ने राजन से बराबर मेलजोल बनाए रखा और उस से मिलने के लिए बारबार जिद करने लगी. न चाहते हुए भी एक दिन राजन ने उसे बुला ही लिया.

सत्यभामा जैसे ही राजन के घर पहुंची, वह अपनेआप को संभाल न पाया और उस पर बरस पड़ा, ‘‘दोस्त बन कर मेरी भावनाओं से खेलते हुए तुम्हें शर्म नहीं आई. मेरा तो तुम से नफरत करने का मन करने लगा है.

‘‘जी चाहता है कि तुम्हें अभी पीट दूं. मुझे तुम से नफरत है. लानत है तुम पर, बेगैरत, बदजात…’’ राजन अपने गुस्से पर काबू नहीं रख सका.

सत्यभामा चुपचाप राजन की बातें सुनती रही. जब राजन का गुस्सा कुछ कम हुआ, तो वह बोली, ‘‘आप के तरकश में अगर और भी जहर बुझे तीर बचे हों, तो वे भी चला लीजिए.

‘‘मैं आप को लंबे समय से जानती हूं. आप पहले शख्स हैं, जिस पर आंखें बंद कर के भरोसा किया जा सकता है.

‘‘मैं जानती हूं कि आप मेरी मर्दखोरी के एक पहलू से ही वाकिफ हैं. मैं चाहती हूं कि आप इस का दूसरा पहलू भी जानें.

‘‘मैं आप को दोष नहीं दूंगी, क्योंकि यह समाज हमेशा औरत को ही दोषी मान कर सजा देता रहा है.

‘‘राजन, लगता है कि आप भी मर्दों की ओछी सोच से पीडि़त हैं. बेशक, आप मुझ से नफरत करने लगें, लेकिन मैं आप को हमेशा इज्जत और दोस्ती के नजरिए से देखूंगी.’’

‘‘मैं भी दोस्ती का मतलब जानता हूं सत्यभामा. तुम ने यह भी नहीं सोचा कि तुम्हारी हमेशा मदद करने वाला यह दोस्त भी तुम्हारे बुरे कामों से बदनाम होगा,’’ राजन ने कड़वी आवाज में कहा.

‘‘मर्द के मन से ही तो मत सोचिए राजन, औरत के लिहाज से भी तो एक बार सोच कर देखिए.

‘‘मैं जिस बदहाल समाज में जीने को मजबूर बना दी गई हूं, क्या आप जानते हैं उस समाज की असलियत? आप लोग पहाड़ के समाज और उस के दर्द को कतई नहीं जानते.’’

‘‘क्या पहाड़ का समाज हमारे समाज से अलग है?’’

‘‘हां, राजन बाबू. भूतप्रेत, देवता, गुरुचेलों और तांत्रिकों की बातें आज भी वहां पत्थर की लकीर होती हैं. पटवारी, वनरक्षक से शिक्षक तक कई महकमों के ज्यादातर मुलाजिम औरतों का जिस्मानी और दिमागी शोषण करने में शामिल होते हैं.

‘‘मांस खाने, जुआ खेलने और नशा करने के शौकीन ये लोग सैक्स और शराब पीने को मनोरंजन का जरीया मानते हैं.

‘‘औरतें खेत देखने, पशु पालने और घर संभालने में लगी रहती हैं, जबकि 90 फीसदी मर्द शराब और जुए में मस्त रहते हैं.

‘‘गुरुचेलों, पाखंड से भरे रीतिरिवाजों और कुप्रथाओं की मारी औरतें एक ही खूंटे से बंधना क्यों स्वीकार करेंगी? जो उन्हें अच्छा लगेगा, वे उस के साथ हो लेंगी.

‘‘जहां पगपग पर हर रोज प्रथाओं और रीतिरिवाजों के नाम पर औरतें सताई जाती हों, उस बदहाल समाज को धर्म और देवता की आज्ञा के नाम पर गुरु और पोंगापंथी कब बदलने देंगे?’’

सत्यभामा ने पहली बार राजन के सामने सचाई खोल कर रख दी. वह ठगा सा उस की बातें सुनने लगा था.

सत्यभामा के थोड़ा चुप होने पर राजन शांत लहजे में बोला, ‘‘क्या पढ़ेलिखे लोग भी इन कुप्रथाओं के खिलाफ मुंह नहीं खोलते?’’

‘‘पढ़ेलिखे लोग तो औरतों के और भी पक्के शोषक हैं.

‘‘एक बात जो पहाडि़यों और मैदान वालों में एक है, वह है मर्दवादी सोच. उसी सोच की आंखों से देख कर आप ने कईकई खिताब मु  झे दिए हैं. आप नहीं जानते कि खिलने से पहले ही यह ओछी सोच फूलों को किस तरह मसल कर फेंकती है. कहीं पत्ता तक नहीं हिलता.’’

ऐसा सुन कर राजन का सारा गुस्सा काफूर हो गया. उस ने सत्यभामा को प्यार से देखते हुए कहा, ‘‘सत्यभामा, मैं जानना चाहता हूं कि तुम केवल शौक के लिए ही इस दलदल में नहीं आई हो. आज तुम अपनी दास्तान सुना कर मेरे भीतर के गुस्से को खत्म कर दो.’’

सत्यभामा बोली, ‘‘हां राजन, अब तो मैं तुम्हें सारा सच सुनाऊंगी.’’

सत्यभामा ने सोफे पर बैठ कर पीठ टिका ली. राजन के चेहरे को गौर से देखते हुए उस ने कहना शुरू किया, ‘‘जब मैं 8वीं जमात में पढ़ती थी, तब बबलू नाम के सहपाठी ने मु  झे प्यार भरी चिट्ठी लिख दी थी. यहां तक कि उस ने अपने मांबाप भी मेरे घर भेज दिए थे.

‘‘जब मैं 9वीं जमात में थी, तो रिश्ते के शंभू चाचा ने घर से थोड़ी दूर सुनसान जगह पर मु  झे दबोच लिया था.

‘‘कुछ दिनों बाद अचानक मेरी मां चल बसी थी. बाप को शराब पीने की आदत थी और दादी को काम कराने की. मां तो थी नहीं, जो प्यार करती, रोकतीटोकती और मेरी गलतियों पर पीटती. मेरे आरामपरस्त भाई अपनी बीवियों में मस्त रहते थे.

‘‘राजन, नाग तो मेरे पति की तरह ही हो गया था. उस के साथ बने संबंधों ने तो एक भू्रण की हत्या भी करा दी थी. जानते हो कि नाग कौन था? मेरी बूआ का लड़का और मेरा भाई.

‘‘फिर आया जीजा. जीजा और साली का रिश्ता तो तारतार होता ही रहा.

भज्जी और साजू नाम के 2 ऊंची नाक वाले पड़ोसियों ने भी मु  झे उसी ओर धकेला, जिस ओर मैं कभी जाना नहीं चाहती थी.

‘‘मांगी मल्ल गांव का गुंडा था. उस ने जो डसा तो डसता ही रहा.

‘‘फिर आया रामलखन. देखने में गाय, पर था पूरा बाघ. अपने क्वार्टर में ब्लू फिल्में दिखादिखा कर वह मुझे खूब लूटता रहा. उस ने तो ठग कर अपने दोस्तों से भी मुझे रौंदवा डाला था.

‘‘मांगी मल्ल और रामलखन मुझे जबतब उठा ले जाते, मगर मैं कुछ न कर पाती थी. मैं भी धीरेधीरे उसी में सुख तलाशने लगी थी.

‘‘गांव का संथोली पटवारी और हरिमन कंपाउंडर भी मेरे पीछे लगे रहे.

‘‘फिर दीदी ने मुझे आप से मिलवाया. आप से मिल कर मैं ने खुद को बदलना चाहा था. मैं ने समाज की बदहाली के खिलाफ लड़ने की ठान ली थी. मगर मांगी मल्ल और रामलखन जैसों ने मुझे बदलने नहीं दिया.

‘‘मु  झे माफ करना राजन, आप के पास आने के बहाने बनाबना कर मैं ने न जाने कितने होटलों और अनेक कर्मचारियों के यहां रातें गुजारी हैं.

‘‘जानते हो राजन, बूआ का जमाई भी मुझे बीवी की तरह इस्तेमाल करता रहा. चंद्रमणि, लाल बूढ़ा सूद, पंपा फोटोग्राफर, संजू मिस्त्री, काले कोट वाला कुमार सब से मेरे संबंध बनते चले गए. विनय सुपरवाइजर ने भी मेरा खूब इस्तेमाल किया, पर मैं ने भी उसे निचोड़ कर ही दम लिया था.

‘‘जानते हो, आप के दोस्त होने का दम भरने वाले पत्रकार भी मेरे पीछे कुत्तों की तरह लगे रहे.

‘‘मैं ने तो अपनी सहेली की मदद की थी, जिस का कोई सुबूत इन के पास था. आज ये सारे लोग मेरी उंगली पर नाचने को मजबूर हैं.

‘‘जिस दोस्त की तारीफ करतेआप थकते न थे, जिसे भाई की तरह प्यार करते थे, वह इतना नीच था कि आप की बुराई में कभी कोई कसर न छोड़ता था.

‘‘वह तो आप को ब्लैकमेल करने के लिए हमेशा मुझे उकसाता रहा. आप के इस खास दोस्त ने अपने फायदे के लिए मु  झे बेच डाला था.

‘‘राजन, मर्दों की घटिया सोच को मैं ने बहुत करीब से देख लिया है. अब तो मैं भयानक रोग का शिकार हो चुकी हूं. मैं भेडि़यों की भड़ास और गीदड़ों की चालबाजियों को खूब पहचान गई हूं.

‘‘हां, आप से मिल कर मुझे लगा था कि पांचों उंगलियां बराबर नहीं होतीं. मेरा कल संवारने के लिए आप ने इतना कुछ किया, शायद मैं इस काबिल न थी.

‘‘अगर सभी मर्दों में अच्छे गुण हों, तो औरतें कभी वेश्या नहीं बनेंगी.

‘‘मुझे अपने किए पर कोई पछतावा नहीं है. मैं आप से इतना जरूर पूछूंगी कि औरत को बेचने की चीज बनाने वाले कौन हैं?

‘‘अगर कोई मर्द एक से ज्यादा औरतों से संबंध रख सकता है, तो औरत क्यों नहीं रख सकती? सारे नियमबंधन औरतों के लिए ही क्यों हैं? आप ही बताइए?’’

राजन से कुछ भी बोलते न बना. सत्यभामा एकटक उस के चेहरे को देखती रही.

राजन का मन सत्यभामा के प्रति इज्जत से भर गया था. अब वह जान गया था कि औरत बुरी नहीं होती.

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