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सीप के मोती
‘‘ऐ... सिबली... आजकल ये फिल्म वाले हम वेश्याओं की जिंदगी पर बहुत फिल्में बनाने लगे हैं,’’ खुश होते हुए मुमताज ने कहा. ‘‘बहुत कम फिल्मों में ही हमारी सचाई को दिखाया जाता है...
भाग - 1
कुछ और दिन यह कर्फ्यू लगा रहे तो इन दुखती रगों को थोड़ा आराम मिल जाता,’’ सिबली ने मुमताज से कहा. ‘‘पगला गई हो क्या... अगर कर्फ्यू लगा रहेगा तो हमारे पास ग्राहक नहीं आएंगे और अगर ग्राहक नहीं आएंगे, तो क्या खाएंगे हम?
भाग - 2
अन्ना नाम का यह आदमी गरीब, अनाथ और पिछड़े तबके की औरतों के लिए ‘सीप के मोती’ नामक एक स्वयंसेवी संस्था चलाता था,
भाग - 3
अन्ना अक्सर ही यहां आता है किसी न किसी लड़की को साथ में ले कर..., हर एक आती हुई लड़की में सिबली अपनी झलक देखती है पर कुछ कर नहीं पाती सिर्फ आंसू बहा कर रह जाती है.
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